अध्याय ३
नहाने के बाद मैं जीन्स और टी शर्ट डाल कर कॉलेज के लिए तैयार हो जाती हु और मम्मी जो कि इस साड़ी पहनी हुई थी उनके साथ बैठ कर नास्ता करने लग जाती हु और नास्ता करने के बाद मैं अपनी कॉलेज के लिए और मम्मी अपनी कॉलेज के लिए रवाना हो जाती हैँ।
यहाँ आपको बता दू कि मम्मी अलग कॉलेज मैं पढ़ाती थी और मेरी सब्जेक्ट और स्ट्रीम अलग होने कि वजह से मुझे दूसरी कॉलेज मैं दाखिला लेना पड़ा था।
पुरे रास्ते मेरे ज़हन मैं वही रात के दृश्य घूम रहे थे और इन्ही दृश्ययो के साथ मैं कब कॉलेज पहुंच गयी मुझे भी पता नहीं लगा। और कॉलेज पहुंच कर मैं सीधा अपनी क्लास अटेंड करने चली गयी। क्लास मैं जैसे ही अपनी जगह पर बैठी हु कि तभी एक आवाज कान मैं पडती है, " गुड मॉर्निंग काम्या "।
और इस आवाज के साथ ही मैं अपने ख्यालो से बाहर आती हु और एक मुस्कान के साथ, "गुड मॉर्निंग आकाश " बोल कर जवाब देती हु। उसी के साथ उसके पास बैठी मेरी सहेली और आकाश कि गर्लफ्रेंड "मानसी" को भी गुड मॉर्निंग विश करती हु और उनके साथ ही बैठ जाती हु। अभी हमारी रोजमर्रा कि थोड़ी गप शाप हुई ही होती है कि क्लास मैं "बलवान सर" कि एंट्री हो जाती है जिन्हे देख सब एक दम चिप हो जाते है।
बलवान सर एक ऐसी शख्शियत थे जिनसे पूरा कॉलेज डरा करता था, डिसिप्लिन के पक्के और हर चीज ने समय के पक्के, उतने ही गुस्से वाले भी। उनकी क्लास मैं कोई चु तक कि आवाज करने कि भी हिम्मत नहीं करता था और जो अगर किसी ने कुछ हरकत कर दी तो उसकी खैर नहीं।
अभी सर ने क्लास मैं कदम ही रखा था कि मेरी नजर उनके हाथ पर पड़ी, और जैसे ही मेरी नजर उन हाथो पर गिरती है, शरीर मैं एक ऐसा कम्पन पैदा हो जाता है कि मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है।
मेरे ऐसा हाल होने का कारण था उनके हाथ मैं पकड़ी हुई एक "छड़ी "। जी हाँ, बलवान सर हमेशा अपने साथ एक बांस कि छड़ी भी रखा करते थे, ताजुब है कि कॉलेज मैं कोई प्रोफेसर इस तरह छड़ी ले कर घूमे लेकिन इनके होते हर चीज मुमकिन है।
फिलहाल मेरे लिए ये छड़ी ताजुब और रोंगटे खड़े होने का कारण इसलिए बनी थी चुंकि उसे देख तुरंत ही मेरी आँखों मैं रात को सपने मैं देखा गया दृश्य वापस जाग्रत हो चूका था और बस एक ही चीज नजर आ रही थी कि कही ये छड़ी मेरे चूतड्डो पर ना मार दे। पूरी क्लास के दौरान इसी ख्याल और दृश्य के चलते मैं एक दम सहमी सी बैठी रही और जैसे ही क्लास ख़तम होने के बाद मैं सर बाहर गए तब ना जाने क्यों लेकिन मेने एक चैन कि सास ली।
ऐसा नहीं था कि सर के हाथो मैं मेने आज पहली बार वो छड़ी देखि थी लेकिन मेरा ये अलग सा बर्ताव मुझे भी सोचने पर मजबूर कर रहा था और करें भी क्यों नहीं, पिछले कुछ दिनों से रात मैं जिस तरह के सपने मुझे दिखाई दे रहे है, ना चाहते हुए भी ऐसी चीजे होने लगती है। खैर इसके बाद कुछ देर मैं मानसी और आकाश के साथ कैंटीन मैं वक्त बिताई और बाकि कि क्लास अटेंड करने चली गयी।
एक नजर मम्मी यानि सीमा कि कॉलेज मैं -
यहाँ सीमा (मेरी मम्मी ) भी कॉलेज पहुंच चुकी थी और जैसा कि मैंने बताया था उनको देख कर आज भी कोई नहीं कह सकता था कि उनकी इतनी बाटी बेटी होंगी, बस इसी कारण जैसे ही सीमा कॉलेज मैं स्टाफ रूम मैं पहुँचती है तो कॉलेज के सभी मेल स्टाफ कि नजर उस पर ही टिकी रह जाती है, और टिके भी क्यों नहीं, इतनी खूबसूरत हसीन जिस्म कि मालकिन सामने थी , जिसका बदन बहोत अच्छे से उस कसी हुई साड़ी मैं बंधा हुआ था कि हर एक अंग का रूप और ढंग कोई देख कर ही कल्पना कर लेवे, खास कर वो भरी कसे चुत्तड़ जो साड़ी मैं बहोत अच्छे से उभार रहे थे ओर वो दो खूबसूरत चट्टान से उभरे हुए लेकिन आम से मुलायम चुचे जो ब्लाउज और ब्लाउज के उप्पर हलके से क्लीवेज मैं बहोत अच्छे से नजर आ रहे हो।
सीमा, एक बार सबकी नजरों को पढ़ते हुए और उनके भाव समझ चेहरे पर मुस्कान लेट हुए - गुड मॉर्निंग एवरीवन।
पूजा (सीमा के साथ कि प्रोफेसर, उम्र मैं उससे 5-6 साल छोटी होंगी लेकिन खूबसूरती और शरीर कि बनावट मैं ये भी कम नहीं, इसकी और सीमा कि एक दूसरे से बहोत अच्छे से बनती है और एक दूसरे से हर बात बिना झिझक शर्म के ब देती है, कह सकते है कि दोनों स्टाफ के सदस्य होने के साथ साथ बहोत अच्छी दोस्त भी है।), मुस्कान से जवाब देते हुए - गुड मॉर्निंग सीमा मैम।
वही मौजूद बाकि सभी सदस्यो ने भी गुड मॉर्निंग विश किया और फिर अपने अपने कामों मैं लग गए। और इसी बिच एक नजर जो एक टक सीमा को निहारे जा रही थी,या यु कहो कि निहारना कम और सीमा के जिस्म के एक एक अंग को उस साड़ी मैं होते हुए भी नंगा देख रही थी, जैसे मानो अभी इसी वक्त साड़ी का पल्लू हटा ब्लाउज मैं कैसे उन उरोजो को हाथ मैं पकड़ कस के निचोड़ ले और साथ ही उन चूतड़ों को मुट्ठी मैं भर ऐंठ डाले, फिर खुद की भावनाओं और माहौल का ध्यान रखते हुए - गुड मॉर्निंग सीमा मैम।
सीमा, जैसे इंतज़ार ही कर रही थी तुरंत :- गुड मॉर्निंग युसूफ सर।
और जैसे ही सीमा के मुँह से अपना नाम युसूफ के कानो मैं पड़ता है तो उसकी नजर भी चमक उठती है और एक नाटकीय शराफत भरी नजर से वो सीमा को उप्पर से निचे टक देख इशारो इशारो मैं ही तारीफ कर देते है और सीमा उस इशारे को बहोत अच्छे से समझते हुए नजरें नीची कर लेती है।
ये सब तिरछी नजरों से देख रही पूजा तुरंत युसूफ के करीब से निकलते हुए - क्या बात है युसूफ सर आपको क्लास लेने नहीं जाना है क्या आज।
युसूफ, इस साली पूजा ने सारा मजा ख़राब कर दिया कुतिया कही कि - अरे पूजा मैम बस वही तो जा रहा हु,लो आपने ही रोक दिया अब। चलिए मैं चलता हु बाद मैं मिलते है और ये बोल सीमा कि तरफ एक बार ओर देख वो स्टाफ रूम से बाहर निकल जाता है।
पूजा, सीमा के करीब आ कर :- हाय राम! आज मैं ना होती तो ये तो खा ही जाता आपको सीमा मैम।
सीमा, पूजा कि बात सुन हस्ते हुए :- हाहाहा क्या पूजा तुम भी, क्या क्या कहती हो।
पूजा :- इसमें क्या गलत कहा भला मेने, देखा नहीं आपने कैसे घूरे जा रहा था वो आपको, आप ही हो जो इसकी इन नजरों को संभालती हो मैं तो पता ही नहीं क्या कर बैठु।
सीमा :- हेहे अरे पूजा अब किसी कि नज़र पर तो मेरा बस है नहीं ना।
पूजा :- हाँ वैसे ये बात तो है और सच कहु तो आप आज लग भी क़यामत रही हो, युसूफ सर के जैसे ना जाने कितनी ही नजरें पूरा दिन आज आपके इस सुन्दर बदन कि एक झलक पाने के लिए लालायित होंगी हेहे।
सीमा :- वाह देखो तो, अभी तो युसूफ कि शिकायत कर रही थी अब उसी बात को अलग रूप दे दिया, एक निश्चय तो कर लो तुम,।
पूजा :- हाहा यही तो उलझन है ना मैम, जिस नज़र से उन्होंने आपको देखा मेने उसपर अपनों प्रतिक्रिया दी कि मुझे क्या लगा, बाकि वैसे हकीकत तो यही है ना कि मेरी दोस्त सीमा इस वक्त बहोत हसीन लग रही है और उसके आगे यहाँ कोई दूसरी को तो देखेगा भी नहीं।
सीमा, चिढ़ाते हुए :- एक मिनट, तो तुम्हारी व्यथा क्या है, "ये कि ये सभी मर्द मुझे अलग अलग नजरों से देखते है या ये कि कोई तुम्हे उस नज़र से नहीं देखता है?"
पूजा :- क्या मैम आप भी ना, मुझे कोई शोक नहीं और ना ही अच्छा लगेगा कि कोई मुझे ऐसे घूरता रहे, ये तो आप ही हो जो इस सब चीजों को संभालती हो।
सीमा :- हाहा वैसे एक बात कहु, इन चीजों के मजे लिया करो पूजा, ये नहीं कह रही कि सब पूर्ण रूप से सही है पर कही ना कही हमारा अंतर्मन भी इस चीज से खुश होता है जब एक मर्द कि नज़र हम औरतों पर पडती है, हाँ बस हर नज़र का नज़रिया अलग होता है, हमें उस नज़र का मतलब समझ आना चाहिए।
पूजा, उलझती हुई :- उफ्फ्फ मैम कभी कभी तो आप क्या बातें करती हो पल्ले ही नहीं पडती, वैसे इतना मुझे भी पता है कि औरत होने के नाते कौन किस नज़र से देखता है पर मुझे ये बिलकुल अच्छा नहीं लगता है, मेरे पास मेरे पति है और ये हक़ सिर्फ उनका है और हर औरत को ये हक़ सिर्फ अपने पति को देना चाहिए, ऐसे हर मर्द किसी को उस नज़र से देखे और वो उसमे मजा ढूंढे तो कही ना कही उसकी नियत मैं भी खोट जरूर है।
पूजा बोलते तो बोल गयी लेकिन जब उसने सीमा के चेहरे के बदले भाव देखे तो समझ पडती है कि उसने सीमा कि किस दुखती रग पर हाथ डाल दिया है और बात सँभालते हुए
माफ़ करना सीमा मैम मेरा वो मतलब नहीं था, सच मैं मुझे नहीं पता मैं ऐसा क्यों बोल गयी पर प्लीज इस बात को बोल कर मैं आपके जख्म हरे नहीं कर रही थी।
सीमा, मुस्कुराते हुए :- अरे पूजा कोई बात नहीं मुझे बुरा नहीं लगा है तुम्हारी बात का, हो सकता है तुम अपनी जगह एक दम सही हो, ओर जैसा मेने कहा हर किसी का हर चीज को ले अपना नज़रिया होता है। खैर छोड़ो इन बातो को चलो अब जिस काम के लिए कॉलेज आये वो कर ले..?
पूजा :- कौनसा काम मैम?
सीमा :- वही काम, पूरी कॉलेज के मर्दो कि नज़रे चेक करने का, कि कौन हमारा कौनसा अंग कैसे देख रहा... हाहाहाहा
पूजा :- नहीं मुझे नहीं करना ये काम अभी तो, वैसे भी आपके होते मुझे कौन देखेगा हाहाहा।
सीमा :- चुप जर, मज़ाक कर रही, मैं क्लास लेने के काम कि बात कर रही हु चल अब।
और ये बोल दोनों सीमा और पूजा अपनी अपनी क्लास कि तरफ चल पड़ते है।
आगे कि कहानी अगले अध्याय मैं ~ आपकी काम्या..