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वैसे आप इन कहानियों से प्रेणना ले सकते है मगर अगर आप थोड़ा पहले शुरू करते तो आप इन महिलाओं के पति को शारारिक रूप से कमजोर करके शुरुवात कर सकते थे जो इनकी यौन इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाते तो वो अपने बेटों को या उनके दोस्त के चुंगल में आसानी से आ सकती थी।धन्यवाद मित्र देखता हूं आपके सुझाव कितने काम आ सकते हैं और कहां
बहुत ही मस्त लाजवाब और अद्भुत मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गयाअध्याय 4छोटू मन ही मन सोच रहा था बच गया, हालांकि उदयभान की मृतक लुगाई को उसके कारण क्या क्या सुनना पड़ रहा था , पर छोटू ने मन ही मन उससे माफी मांगी की तुम तो मर ही गई हो मुझे ज़िंदा रहना है तो तुम्हारा सहारा लेना पड़ेगा। छोटू को मन ही मन ये उपाय ही ठीक लगा क्योंकि कौनसा उदयभान की लुगाई अपनी सफाई पेश करने आ रही थी। अब आगे...
छोटू बिस्तर पर आंखें मूंदे पड़ा था, और बाकी परिवार वाले उसके चारो ओर उसे घेर कर बैठे थे, छोटू का मन अभी भी धक धक कर रहा था पर वो नाटक को जारी रखे हुए था और बिना किसी हलचल के लेता हुआ था,
पुष्पा: अम्मा हमें तो बड़ी चिंता हो रही है का हो गया है हमारे लाल को?
पुष्पा पल्लू के पीछे से ही बोलती है क्योंकि ससुर और जेठ आदि के आगे चेहरा ढकने की परंपरा थी
सुधा: अरे दीदी कुछ नहीं हुआ है, तुम चिंता मत करो सुबह तक ठीक हो जायेगा छोटू।
सुधा ने अपनी जेठानी को समझाते हुए कहा,
फुलवा: और बहुरिया कल ही हम उस छिनाल का भी इलाज़ करवा देंगे, कुछ नही होगा लल्ला को।
राजेश: अरे अम्मा कोई छिनाल नहीं चढ़ी है, हो सकता है नींद में चल रहा हो।
सुभाष: हां राजेश सही कह रहा है, सपना देख रहा होगा कोई।
संजय: पर पजामा छप्पर पर अटका हुआ था, और छोटू जगाने से जाग भी नहीं रहा, ये समझ नहीं आ रहा।
नीलम: अरे पापा मैं तो कहती हूं अभी सुबह तक सोने दो इसे नींद पूरी हो जायेगी तो खुद उठ जायेगा।
सुधा: हां ऐसा ही करो अरे दीदी देखो तो इसके सिर पर कोई चोट वागेरा तो नहीं दिख रही।
पुष्पा तुरंत छोटू का सिर इधर उधर घुमा कर देखती है
पुष्पा: चोट तो नहीं नज़र आ रही।
सोमपाल: तो ऐसा करो फिर सब लोग सो जाओ सुबह देखेंगे,
सब उठ कर चलने लगते हैं, अपने अपने बिस्तर की ओर।
राजेश: अम्मा तुम भी सो जाओ अब नहीं आ रही उदयभान की लुगाई, इतनी गालियां जो सुनाई हैं तुमने उसे।
इस पर सबके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है पर फुलवा भड़क जाती है इस बार उद्दयभान की लुगाई पर नहीं बल्कि अपने नाती राजेश पर।
फुलवा: आ नासपीटे, तुझे बड़ी ठिठोली सूझ रही हैं, हमारी बात को मज़ाक उड़ा रहा है,
राजेश: अरे नहीं अम्मा हम तो बस ऐसे ही बोल रहे थे,
फुलवा: ऐसे बोलो चाहे वैसे, कल हम लल्ला को दिखाने जायेंगे पेड़ पर।
संजय: अरे ठीक है अम्मा ले जाना, अभी सो जाओ।
तब जाकर फुलवा भी लेट जाती हैं, और फिर सब सोने लगते हैं, सिवाए छोटू के जो यही सोच रहा था कि सुबह क्या होगा, वो सुबह सब को क्या जवाब देगा अगर किसी ने पूछा तो क्या कहानी बताएगा।
जहां छोटू अलग उधेड़बुन में व्यस्त था वहीं कमरे में आते ही उसके चाचा ने दोबारा से उसकी चाची को बाहों में भर लिया।
सुधा: अरे क्या कर रहे हो, अब रहने दो सो जाओ।
संजय: अरे ऐसे कैसे सो जाएं, छोटू के चक्कर में हमारा अधूरा ही रह गया, निकला ही नहीं, देखो अभी भी खड़ा है।
संजय ने लुंगी हटाकर अपना खड़ा लंड अपनी पत्नी को दिखाते हुए कहा।
सुधा: ओह्ह्ह हो तुम भी ना, इसे खड़ा करके सब के सामने घूम रहे थे, कोई देख लेता तो,
सुधा ने पति के लंड को हाथ में लेकर सहलाते हुए कहा,
संजय: तो और क्या करता ये ऐसे बैठता भी नहीं है, आह इसे बैठाना तो तुम्हारा काम है,
संजय ने ये कहकर सुधा की पीठ सहलाते हुए अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़ दिया, सुधा भी अपने पति का साथ देने लगी, संजय उसके होंठों को चूसते हुए धीरे धीरे उसके कपड़े भी उतारने लगा,
सुधा ने संजय का हाथ अपनी साड़ी पर रोक लिया और होंठों को अलग करके कहा: अरे कपड़े मत उतारो ना, देखा न कितनी मुश्किल से पहनी थी अभी,
संजय: अरे यार पर तुम्हें तो पता है ना तुम्हारा बदन देखे बिना हमें मज़ा नहीं आता।
संजय उसके हाथ से साड़ी खींचते हुए बोला तो सुधा भी अपने पति को रोक नहीं पाई,
सुधा: पता नहीं तुम्हें क्या मज़ा मिलता है, इतने बरस हो गए ब्याह को रोज तो नंगा देखते हो आज क्या नया मिल जायेगा।
संजय: अरे तुम हमारी नज़र से देखोगी तो पता चलेगा कि तुम क्या चीज़ हो, और जितने बरस बीत रहें हैं तुम और गदराती जा रही हो, तुम्हारा बदन भरता जा रहा है। और मस्त होती जा रही हो।
सुधा ने अपनी तारीफ सुनी तो अंदर ही अंदर शरमाते हुए पति के छाती पर हल्का सा मुक्का मारते हुए बोली: धत्त झूठ बोलना तो कोई तुमसे सीखे, बूढ़ी होती जा रही हूं और तुम्हें मस्त लग रही हूं।
संजय: अरे तुम और बूढ़ी, ज़रा एक बार नज़र भर के खुद को देखो तो पता चले, कि क्या चीज़ हो तुम।
संजय ने झटके से साड़ी खींचते हुए कहा तो सुधा घूमते हुए नीचे से बिल्कुल नंगी हो गई, क्योंकि जाते हुए जल्दबाजी में उसने पेटीकोट नहीं पहना था। वैसे संजय का कहना भी गलत नहीं था सुधा कुछ भी हो रही थी बूढ़ी तो बिल्कुल नहीं, अभी तो उसके बदन पर जवानी छा रही थी, उसका बदन जैसा संजय ने कहा गदराता जा रहा था, और गदराए भी क्यों न दो जवान बच्चों की मां जो थी, अब इस उमर में नहीं गदरायेगी तो कब?
संजय ने हाथ आगे बढ़ा कर उसका ब्लाउज भी खोल दिया और सुधा ने उसे अपनी बाजुओं से निकल फेंका और पूरी नंगी अपने पति के सामने खड़ी हो गई, संजय एक कदम पीछे रख कर उसे देखने लगा, सुधा उसके ऐसे देखने से शर्मा गई,
सुधा: ऐसे क्या देख रहे हो जी?
संजय: अपनी पत्नी की सुन्दरता को देख रहा हूं।
जैसे हर स्त्री को अपनी सुंदरता की तारीफ सुनकर अच्छा लगता है वैसे ही सुधा को भी लग रहा था, वो मन ही मन हर्षित हो रही थी, कुछ लोग स्त्री को प्रसन्न करने के लिए झूठी तारीफ करते हैं ताकि उससे अपना स्वार्थ निकल सकें पर संजय सच कह रहा था उसे झूठ का सहारा लेने की आवश्यकता ही नहीं थी, उसकी पत्नी थी ही इतनी कामुक और सुंदर।
तीखे नैन नक्स से सजा हुआ सुंदर गोरा चेहरा रसीले लाल होंठ मानो जैसे हर पल ही रस से भरे रहते हो, नागिन जैसे गर्दन के नीचे सीने पर मानो दो रसीले खरबूजे रखे हो, ऐसी भरी हुई चूचियां जो देखने में खरबूजे से बड़ी और चखने में उससे भी मीठी थी, उनके नीचे गोरा सपाट पेट सिलवटें पड़ी हुई कामुक कमर और पेट के बीच में गहरी नाभी, नाभी के नीचे हल्का सा झांटों का झुरमुट और उसके नीचे उसके बदन का स्वर्ग द्वार, उसकी रसीली बुर, जिसके होंठों पर अभी भी चासनी लगी हुई थी, जिसे देख कर संजय का लंड बिलबिलाने लगा, पर उसने खुद को रोका और सुधा को घूमने का इशारा किया, सुधा भी पति का इशारा पाकर एक हिरनी की तरह मादकता से घूम गई, सुधा के घूमने से संजय के सामने उसकी पत्नी की बवाल धमाल और कामुकता से मालामाल गांड आ गई, सुधा की गांड बहुत बड़ी नहीं थी पर उसकी गोलाई और उभार बड़ा मादक था,गोलाई ऐसी जैसे कि आधा कटा हुआ सेब और उभार ऐसा कि दोनों चूतड़ों को अच्छे से फैलाकर ही गांड का छेद नज़र आए।
संजय ने आगे होकर यही किया, एक हाथ से सुधा की पीठ पर दबाव दिया तो वो भी हाथ के सहारे आगे झुकती चली गई और खाट को पकड़ कर झुक गई जिससे उसकी गांड और खिल कर संजय के सामने आ गई, संजय ने फिर अपने दोनो हाथों से दोनों चूतड़ों को फैलाया तो सुधा की गांड का वो भूरा छुपा हुआ कामुक छेद सामने आ गया, जिसे देख कर ही संजय के तन मन और लंड में तरंगे उठने लगीं, संजय ने अपना हाथ सरकाते हुए अपने अंगूठे को उसकी गांड के छेद पर स्पर्श कराया तो सुधा बिलबिला उठी।
सुधा: अह्ह्ह्हह क्या कर रहे हो जी, वो गंदी जगह है। हाथ हटाओ।
संजय: अरे तुम्हारे बदन में कुछ भी गंदा नहीं है मेरी रानी एक बार मान जाओ ना और अपने इस द्वार की सैर करने दो, और मेरे इस लंड को धन्य कर दो।
सुधा: अह्ह्ह्ह समझा करो ना पहले भी कहा है वो सब बहुत गंदा होता है, मुझे नहीं करना राजेश के पापा।
सुधा ने अपनी गांड से संजय का हाथ हटाते हुए कहा।
संजय: पर मेरे इस लंड के बारे मे तो कुछ सोचो न ये कितना बेसबर है तुम्हारी इस गांड के लिए।
संजय ने अपनी कमर आगे कर अपने लंड को सुधा की गांड की दरार में घिसते हुए साथ ही उसकी गांड के छेद पर दबाव डालते हुए कहा,
सुधा: इसकी बेसबरी मिटाना मुझे बहुत अच्छे से आता है जी।
ये कहते हुए सुधा अपनी टांगों के बीच हाथ लाई और संजय का लंड पकड़ कर उसे अपनी गीली चूत के द्वार पर रख दिया, संजय ने भी सोचा गांड तो मिलने से रही कहीं चूत भी न निकल जाए हाथ से तो इसी सोच से आगे बढ़ते हुए उसने सुधा की गदराई कमर को थाम लिया और फिर धक्का देकर अपना लंड एक बार फिर से अपनी पत्नी की चूत में उतार दिया, दोनों के मुंह से एक घुटी हुई आह निकल गई, और फिर संजय ने थपथप धक्के लगाते हुए सुधा की चुदाई शुरू कर दी।
सुबह हो चुकी थी पर ये सुबह सूरज के निकलने से पहले वाली थी जैसा कि अक्सर गांव में होता है लोग सूरज उगने से पहले ही उठ जाते हैं, तो उसी तरह भूरा और लल्लू उठ चुके थे और दोनों अभी छोटू के घर के बाहर थे और उसे बुला रहे थे, छोटू तो रोज की तरह ही गहरी नींद में था और हो भी क्यों न आखिर बदन की प्यासी आत्मा ने उस पर रात में हमला जो किया था, खैर लल्लू ने छोटू को आवाज लगाई तो छोटू की जगह फुलवा ने किवाड़ खोले।
लल्लू: प्रणाम अम्मा।
फुलवा: प्रणाम लल्ला जुग जुग जियो।
भूरा ने भी प्रणाम किया, और फिर छोटू को बुलाने को कहा।
फुलवा: अरे लल्ला उसकी थोड़ी तबीयत खराब हो गई है रात से ही।
भूरा: अच्छा कल शाम तो ठीक था जब भैंस चराके आए थे तो।
फुलवा: अच्छा पर पता नहीं का हुआ रात को अचानक से बिगड़ गई।
लल्लू: अच्छा, चलो कोई नहीं अम्मा उसे आराम करने दो। हम जाते हैं जब जाग जायेगा तो मिलने आयेंगे।
फुलवा: ठीक है लल्ला,
दोनों जाने के लिए मुड़ते हैं कि तभी फुलवा उन्हें रोकती है।
फुलवा: अच्छा एक बात बताओ रे।
भूरा: हां अम्मा।
फुलवा: तुम लोग कल कहां गए थे भैंस लेकर।
लल्लू: हम कहीं दूर नहीं बस जंगल के थोड़ा अंदर तक।
फुलवा: अरे दईया, तुम नासपीटों से कितनी बार कहा है कि जंगल में मत जाया करो पर तुम्हारे कानों में तो गू भरा है सुनते ही नही।
भूरा: अरे अम्मा ऐसी बात न है, वो जंगल के बाहर की घास तो पहले ही चर चुकी इसलिए आगे जाना पड़ा।
ये सुन कर फुलवा का चेहरा लाल पड़ने लगा।
फुलवा: हमारी बात ध्यान से सुनलो, आगे से जंगल की तरफ बड़ मत जाना कोई सा भी, नहीं तुम्हारी टांगे छटवा दूंगी।
भूरा: क्या हो गया अम्मा।
फुलवा: कछु नहीं हो गया, अब जाओ यहां से पर ध्यान रखना जंगल की ओर गए तो टांगे तोड़ दूंगी सबकी।
भूरा और लल्लू तुरंत निकल लिए,
लल्लू: अरे क्या हो गया ये डोकरी(बूढ़ी) ?
भूरा: हां यार कुछ तो हुआ है, वैसे तो अम्मा इतना गुस्सा कभी नहीं देखी मैने।
लल्लू: कह तो सही रहा है, कोई तो बात है और वो भी छोटू की, तभी उसकी तबीयत खराब हुई है।
भूरा: डोकरी ने तो जंगल में घुसने से भी मना किया है, दोपहर का कांड कैसे करेंगे फिर?
लल्लू: अरे दोपहर की दोपहर को सोचेंगे पहले अभी का देखते हैं,
भूरा: हां चल।
दोनों एक रास्ते पर थोड़ा आगे की ओर जाते हैं फिर थोड़ा आगे जाकर एक बार इधर उधर देखते हैं कोई देख तो नहीं रहा और फिर जल्दी से एक अरहर के खेत में घुस जाते हैं और उसके बीच से आगे बढ़ने लगते हैं, बड़ी सावधानी से आगे बढ़ते हुए दोनों वो खेत पर कर जाते हैं, और खेत के बगल में बने रास्तों पर न चलकर दोनों खेतों के बीच से होते हुए आगे बढ़ते हैं, आगे बढ़ते हुए चलते जाते हैं और जैसे ही एक और खेत पर करते हैं दोनों को एक झटका लगता है और दोनों बापिस मुड़ कर खेत में घुस जाते हैं।
लल्लू: अबे भेंचों ये क्या हुआ।
भूरा: मैय्या चुद गई दिमाग की और क्या हुआ।
लल्लू: ये रामविलास ने तो खेत ही कटवा दिया, भेंचो।
भूरा: हमारी खुशी नहीं देखी गई धी के लंड से। भेंचाे एक ही खेत था जिसमें औरतें आराम से हगने आती थी और हम देख पाते थे आराम से बिना किसी के पकड़ में आए, साले ने वो भी हमसे छीन लिया।
वैसे हर गांव में ये नियम होता था कि गांव में एक तरफ के खेतों में औरतें शौच के लिए जाती थी और एक ओर आदमी। तो ये लोग छुपक कर औरतों वाली तरफ जाते थे और उन्हें शौच करते हुए उनकी नंगी गांड का दर्शन करते थे दोनों का ही रोज का ये प्रोग्राम रहता था वैसे तो तीनों का ही होता था पर पिछले कुछ दिनों से छोटू नहीं आ पा रहा था तो ये दोनों ही कार्यभार संभाले हुए थे।
लल्लू: चोद हो गई भोसड़ी की सवेरे सवेरे।
भूरा: वोही तो यार।
लल्लू: एक काम करें, बाग के पीछे वाले खेतों में चलें वहां भी खूब औरतें जाती हैं।
भूरा: हां जाती तो हैं और अब हो सकता है जो इधर आती थीं वो भी उधर ही गई हो।
लल्लू: तो चल फिर चलते हैं।
भूरा: पर साले पकड़े गए तो जो गांड छिलेगी, जिंदगी भर आराम से हग नहीं पाएंगे।
लल्लू: अरे कुछ नहीं होगा एक काम करेंगे नदी नदी जायेंगे और फिर कौने से बाग में घुस जायेंगे और फिर बाग में तो पेड़ों के बीच कौन देख रहा है।
भूरा: हां यार साले का गांड फाड़ तरीका सोचा है, चल चलते हैं।
और दोनों तुरंत भाग पड़ते हैं। खेतों को पार कर दोनों तुंरत नदी के किनारे पहुंच जाते हैं और फिर किनारे किनारे चलते हुए आगे बाग तक, बाग में घुसकर दोनों आगे बढ़ने लगते हैं, जैसे ही दोनों बाग के किनारे पहुंचने वाले होते हैं धीरे हो जाते हैं और सावधानी से पेडों की ओट लेकर आगे बढ़ने लगते हैं और फिर अच्छी सी जगह देख कर छिप कर बैठ जाते हैं और खेत में इधर उधर देखने लगते हैं।
लल्लू: अभी तो कोई नहीं दिख रही यार।
भूरा: हां भेंचाें इतनी दूर भागते आए और यहां तो कोई नहीं है।
लल्लू: दूसरी तरफ देखें बाग के?
भूरा: अरे मेरे हिसाब से तो अगर कोई यहां आयेगी भी तो यहां नहीं बैठती होगी।
लल्लू: क्यूं?
भूरा: खुद ही देख उन्हें भी पता होगा कि बाग मे से कोई भी उन्हें देख लेगा इसलिए।
लल्लू: हां यार ये बात तो है फिर अब का करें?
भूरा: ये खेत में घुस के देखते हैं अगले खेत में ज़रूर होगी।
लल्लू: चल इतनी दूर आ ही गए हैं तो एक खेत और सही।
दोनों फिर और आगे बढ़ते हैं, धीरे धीरे अरहर के खेत को पार करते हुए, और जैसे ही किनारे पर पहुंचने वाले होते हैं उन्हें आभास होता है कि कोई मेड़ के दूसरी ओर बैठा है, दोनों सजग हो जाते हैं और दबे हुए कदमों से आगे आकर झांकते हैं और झाड़ियों के बीच से आंख टिकाकर देखते हैं तो दोनों की आंखें चमक जाती हैं, दोनों जिस दृश्य के लिए इतनी भागा दौड़ी कर रहे थे वो उनके सामने होता है, देखते हैं एक औरत उनकी ओर पीठ किए हुए बैठी है साड़ी कमर तक चढ़ाए उसके नंगे गोरे भारी और गोल मटोल चूतड़ देख दोनों के लंड ठुमकने लगते हैं और पूरे अकड़ जाते हैं,
दोनों की नज़र उसकी गांड पर ऐसे चिपक जाती है जैसे गोंद पर मक्खी।
कुछ पल बाद ही वो औरत अपने लोटे से पानी लेकर अपने पिछवाड़े पर मार कर धोने लगती है, अपने चूतड़ों को थोड़ा उठाकर हथेली में पानी भर सीधा अपनी गांड के छेद पर मारती है जिससे इन दोनों को भी उसकी गांड का भूरा छेद नज़र आता है गोरे चूतड़ों के बीच गांड का भूरा छेद बहुत कामुक लग रहा था औरत बार बार पानी लेकर अपनी गांड पर मारती है तो उसके भरे हुए चूतड़ थरथरा जाते हैं जिससे पता चल रहा था कि उसके चूतड़ कितने मांसल हैं। इन दोनों का तो ये देख बुरा हाल हो जाता है, दोनों के लंड अकड़ जाते हैं जिन्हें दोनो ही अपनी सांसों को थामे पजामे के उपर से ही मसल रहे होते हैं।
अपनी गांड धोने के बाद औरत खड़ी होती है और दोनों को चूतड़ों का आखिरी दर्शन देकर उन पर अपनी साड़ी और पेटीकोट का परदा कर लेती है और फिर खेत के बाहर की ओर निकल जाती है, लल्लू और भूरा तो अपनी सांसे थामे देखते रह जाते हैं, उसके निकलते ही भूरा फुसफुसा कर कहता है: यार क्या चूतड़ थे भेंचों।
लल्लू: सही में यार ऐसी गांड तो अभी तक नहीं देखी मैंने, इतने भरे हुए चूतड़ गोल मटोल और साली का गांड का छेद भी इतना मस्त था मन कर रहा था अभी जा कर लंड घुसा दूं।
भूरा: सही में यार लंड तो लोहे के हो गया उसे देख कर।
लल्लू: थी कौन ये यार, इतनी मस्त गांड वाली।
भूरा: क्या पता यार चेहरा तो दिखा नहीं पल्लू डाल रखा था मुंह पर लेकिन यार जो दिखा वो बड़ा मजेदार था।
लल्लू: देखें कौन है?
भूरा: देखें कैसे?
लल्लू: भाग कर चलते हैं ज्यादा दूर नहीं पहुंची होगी, और साड़ी का रंग याद है पहचान जाएंगे आराम से।
भूरा: पूरा बाग घूम कर बापिस किनारे से आना पड़ेगा इधर से तो गए तो पिट जायेंगे।
लल्लू: तभी तो कह रहा हूं चल जल्दी।
दोनों फिर से सरपट दौड़ लगा देते हैं बाग को पार करके फिर से नदी के किनारे होते हुए जल्दी ही गांव के मुख्य रास्ते पर आ जाते हैं, रास्ते में तो वो औरत नहीं दिखती थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तो एक नल लगा था जो कि पूरे गांव का ही था जिस पर लोग सुबह आकर अपने हाथ पैर धोते थे वो लोग भी वहीं पहुंच गए, वहां एक दो औरत और भी थी जो अपने हाथ पैर धो रही थी बातें करते हुए तभी लल्लू भूरा को कुछ इशारा करता है, और भूरा लल्लू के इशारे पर देखता है तो उसे वो औरत दिखती है जो कि झुककर अपने हाथ पैर धो रही होती है।
भूरा: अरे ये तो वोही है ना।
लल्लू: हां साड़ी तो वोही है अब बस चेहरा दिखे तो पता चले कौन है।
दोनों बेसब्री से इंतज़ार करने लगते हैं, औरत जल्दी ही अपने हाथ धोकर पानी अपने चेहरे पर मारती है और फिर पल्लू से अपना चेहरा पौंछते हुए उनकी ओर घूमती है, दोनों सांसें रोक कर उसका चेहरा देखने के लिए आंखे टिका देते हैं, और कुछ ही पलों बाद वो अपना पल्लू चेहरे से हटाती है तो दोनों की नज़र उसके चेहरे पर पड़ती है और दोनों हैरान परेशान रह जाते हैं... वो औरत भी उन दोनों को देख उनके पास आती है और कहती है: तुम दोनों अच्छा हुआ मुझे मिल गए मुझे एक बात बताओ।
लल्लू: हूं? हां हां चाची।
लल्लू सकुचाते हुए कहता है, वहीं भूरा के मन में भी उथल पुथल चल रही होती है पर वो खुद को संभालते हुए कहता है: प्रणाम चाची।
लल्लू: हां हां प्रणाम चाची।
लल्लू उसके चेहरे से नज़र हटाकर नीचे की ओर देखते हुए कहता है, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वो औरत जिसकी गांड देख कर कुछ देर पहले वो लोग आहें भर रहे थे वो और कोई नहीं उनके दोस्त छोटू की मां पुष्पा थी, उनकी मां समान बचपन से ही दोस्त थे तीनों और एक दूसरे के परिवार को भी अपने परिवार की तरह ही मानते थे और एक दूसरे के मां बाप को अपने मां बाप की तरह, तो अभी दोनों को ही बड़ा अजीब सा एहसास हो रहा था मन में एक जलन हो रही थी, अपनी दोस्ती में एक विश्वासघात का बोध हो रहा था,
पुष्पा: तुम लोग कल भैंसों को लेकर जंगल गए थे न?
भूरा: हां चाची वो बाहर घास नहीं है ना इसलिए।
पुष्पा: अरे दुष्टों तुमसे कितनी बार मना किया है, पता है रात को छोटुआ की तबीयत खराब हो गई कितनी।
लल्लू: हां चाची वो अम्मा ने बताया तो पर ठीक से कुछ नहीं बोली,
पुष्पा: अच्छा मैं बताती हूं, आगे चलो पर सुनो ये बात गांव में नहीं पता लगनी चाहिए किसी को।
लल्लू: हां चाची अपने घर की बात क्यों बताएंगे किसी को।
तीनों वहां से थोड़ा आगे बढ़ जाते हैं, और दूसरी औरतों से अलग हो जाते हैं तो पुष्पा उन्हें सारी बात बताती है रात की, सुनकर दोनों की आंखें चौड़ी हो जाती हैं,
लल्लू: ऐसा कैसे हो सकता है चाची मेरी तो समझ नहीं आ रहा,
भूरा भी कुछ कहने वाला होता है और जैसे ही वो पुष्पा के चेहरे की ओर देखता है उसकी आंखों के सामने पुष्पा की गांड का दृश्य दिखाई देने लगता है और वो चुप हो जाता है।
पुष्पा: अरे कैसे नहीं हो सकता, वो उदयभान की लुगाई ने जंगल में ही तो पेड़ से लटक के जान दी थी, अम्मा बता रही थी उसकी आत्मा अब भी भटक रही है।
ये सुन उन दोनों का भी दिल धक धक करने लगता है और थोड़ा थोड़ा दोनों ही दर जाते हैं।
भूरा: फिर अब क्या होगा चाची?
पुष्पा: अब होना क्या है तुम दोनों सावधान रहना और जंगल में मत जाना।
लल्लू: और छोटू?
पुष्पा: छोटू को अम्मा पेड़ वाले बाबा के पास ले जाएंगी दिखाने। चलो अब मैं चलती हूं तुम दोनों बेकार में इधर उधर मत घूमना।
लल्लू: ठीक है चाची।
पुष्पा आगे बढ़ जाती है और दोनों वहां ठगे से खड़े रह जाते हैं, दोनों के मन में ही उथल पुथल हो रही होती है और दोनों ही एक दूसरे नजरें मिलाने में कतरा रहे होते हैं, लल्लू एक और चल देता है तो भूरा भी बिना कुछ कहे उसके साथ साथ चल देता है, कोई कुछ नहीं बोलता बस चलते जाते हैं और चलते चलते दोनों नदी के किनारे बैठ जाते हैं, कुछ पल सिर्फ नदी में बह रहे पानी की कलकल के सिवाए कुछ नहीं सुनाई देता फिर कुछ पल बाद लल्लू पानी में देखते हुए ही कहता है: यार जो हुआ सही नही हुआ।
भूरा: हम्म् मेरे मन में भी अजीब सी जलन हो रही है, हमें चाची को ऐसे नहीं देखना चाहिए था।
लल्लू: हां यार जबसे उनकी गां मेरा मतलब है उन्हें उस हालत में देखा और फिर उनका चेहरा देखा तबसे मन जल रहा है,
भूरा: भाई मैं तो उनके चेहरे की ओर भी नहीं देख पा रहा था जैसे ही उनका चेहरा देखता तो मेरी आंखों के सामने उनके चूतड़ मतलब वोही हालत में वो दिख जाती।
लल्लू: साला हमें जाना ही नहीं चाहिए था बाग में।
भूरा: तू ही ले गया मैं तो मना कर रहा था,
लल्लू: अच्छा मैं ले गया साले तू अपनी मर्ज़ी से नहीं गया था या रोज तू अपनी मर्ज़ी से नहीं आता था,
भूरा: रोज रामिविलास के खेत की बात होती थी बाग की तूने बोली थी,
लल्लू: अच्छा तो मैं क्या तुझे ज़बरदस्ती ले गया बाग में अपनी मर्जी से गया तू, और साले अरहर का खेत पार करके देखते हैं ये किसने बोला था।
भूरा: साले अपनी गलती मुझ पर मत डाल मुझे पता था तेरे मन में ही पाप है।
लल्लू: भेंचो मेरे मन में पाप है तो एक बात बता तेरा लोड़ा अभी तक खड़ा क्यों है चाची को देख कर।
भूरा ये सुन नीचे देखता है सकपका जाता है उसका लंड सच में उसके पजामे में तम्बू बनाए हुए था, लल्लू की बात का उसके पास कोई जवाब नही होता वो नजरें नीचे कर इधर उधर फिराने लगता है। तभी उसे अपने आप जवाब मिल जाता है।
भूरा: अच्छा भेंचो मुझे ज्ञान चोद रहा है और खुद बड़ा दूध का धुला है तू,
भूरा उसे इशारा करके कहता है तो लल्लू भी नीचे देखता है और अपने लंड को भी पजामे में सिर उठाए पता है और वो भी सकपका जाता है, कुछ देर कुछ नहीं बोलता, भूरा भी कुछ देर शांत रहता है, फिर कुछ सोच के बोलता है: यार गलती हम दोनों की ही है,
लल्लू: सही कह रहा है यार। पर साला ये चाची की गांड आंखों से हट ही नहीं रही यार।
भूरा: हां यार भेंचो आंखें बंद करो तो वो ही दृश्य सामने आ जाता है जब चाची पानी से अपने चूतड़ों को धो रहीं थी,
लल्लू: कुछ भी कह यार चाची की गांड है कमाल की ऐसी गांड मैने आज तक नहीं देखी।
भूरा: यार मैंने भी नहीं, क्या मस्त भूरा छेद था न गोरे गोरे चूतड़ों के बीच।
दोनों के ही हाथ उस कामुक दृश्य को याद कर अपने अपने लंड को पजामे के ऊपर से ही सहलाने लगते हैं। तभी जैसे लल्लू को कुछ होश आता है और वो अपना हाथ झटक देता है
लल्लू: धत्त तेरी की ये गलत है।
भूरा को भी एहसास होता है वो गलत कर रहा है और वो भी अपना हाथ हटा लेता है।
लल्लू: कुछ कहने वाला ही होता है कि तभी पीछे से उन्हें एक आवाज़ सुनाई देती है: क्यों बे लोंडो क्या हो रहा है?
दोनों आवाज़ सुनकर पलट कर देखते हैं तो पाते हैं सामने से सत्तू चला आ रहा होता है, सत्तू उनके गांव का ही लड़का है जिसकी उम्र उनसे ज्यादा है, वो भूरा के भाई राजू की उमर का था हालांकि उसकी और राजू की कम ही बनती थी पर वो इन तीनों लड़कों के साथ अच्छे से ही पेश आता था।
लल्लू: अरे कुछ नहीं सत्तू भैया ऐसे ही बस टेम पास कर रहे हैं।
सत्तू: बढ़िया है, और आज तुम दोनों ही हो छोटू उस्ताद कहां है आज?
भूरा: उसकी तबीयत खराब है भैया।
सत्तू: अच्छा का हुआ?
लल्लू: पता नहीं अम्मा बता रही थी उसकी तबीयत ठीक नहीं है।
सत्तू: अरे मुट्ठी ज्यादा मार लोगी हरामी ने इसलिए कमज़ोरी आ गई होगी।
सत्तू हंसते हुए कहता है लल्लू और भूरा के भी चेहरे पर हंसी आ जाती है,
सत्तू: सकल से ही साला हवसी लगता है छोटू उस्ताद,
भूरा: हिहेहे सही कह रहे हो सत्तू भैया,
भूरा भी हंसते हुए कहता है,
सत्तू: बेटा कम तो तुम दोनों भी नहीं हो, उसी के साथी हो।
दोनों ये सुनकर थोड़ा शरमा से जाते हैं।
लल्लू: अरे कहां सत्तू भैया तुम भी।
सत्तू: अच्छा अभी मेरे आने से पहले तुम लोग क्या बातें कर रहे थे मैं सब जानता हूं।
दोनों ये सुनकर हिल जाते हैं।
भूरा: केकेके क्या बातें भैया?
सत्तू: चुदाई की बातें तभी तो देखो दोनों के छोटू उस्ताद पजामे में तम्बू बनाए हुए हैं।
लल्लू और भूरा को चैन आता है थोड़ा उन्हे लगा था कहीं पुष्पा चाची के बारे में तो उनकी बात नहीं सुनली सत्तू ने।
लल्लू: हेहह वो तो भैया बस ऐसे ही हो जाता है।
सत्तू: अरे होना भी चाहिए सालों अभी जवान हो अभी लंड नही खड़ा होगा तो कब होगा।
भूरा: होता है भैया बहुत होता है साला।
भूरा खुलते हुए बोला, वैसे भी सत्तू हमेशा से उन तीनों के साथ खुलकर बात करता था तो वो तीनों भी उससे खुले हुए ही थे।
सत्तू: अरे तो होने दो ये उमर ही होती है मज़े लेने की, खूब मजे करने की अरे मैं तो कहता हूं मौका मिले तो चुदाई भी करो।
लल्लू: अरे भईया यहां गांव में कहां चुदाई का मौका मिलेगा। अपनी किस्मत में सिर्फ हिलाना लिखा है।
सत्तू: अरे ये ही तो तुम नहीं समझते घोंचुओ, मौका हर जगह होता है बस निकलना पड़ता है, और जहां नहीं होता वहां बनाना पड़ता है।
लल्लू: मतलब?
सत्तू: मतलब ये कि तुम्हें क्या लगता है कि जहां मौका होगा वहां कोई लड़की या औरत आकर खुद से तुम्हारा लोड़ा पकड़ कर अपनी चूत में डालेगी, अबे ऐसे तो खुद की पत्नी भी नहीं देती।
भूरा: फिर???
सत्तू: फिर क्या, मौका खुद से बनाना पड़ता है,
लल्लू: भैया समझ नहीं आ रहा तुम कह रहे हो मौका बनाएं, पर मौका कहां कैसे बनाएं।
भूरा: और मौका बनाने के चक्कर में कहीं गांड ना छिल जाए।
सत्तू: तुम जैसे घोंचू की तो छिलनी ही चाहिए।
लल्लू: सत्तू भैया ठीक से बताओ ना यार। तुम ही तो हमारे गुरू हो यार।
सत्तू: ठीक है आंड मत सहलाओ बताता हूं, देखो अभी में पिछले हफ्ते सब्जी बेचने गया था शहर तो एक ग्राहक से बात हुई काफी पड़ा लिखा था अफसर बाबू जैसा,
लल्लू: अच्छा फिर?
सत्तू: उसने कुछ बातें बताई औरतों के बारे में।
भूरा: अच्छा कैसी बातें?
सत्तू: उसने बताया कि औरतें जताती नहीं हैं पर औरतों में हमारे से ज्यादा गर्मी होती है, वो बस समाज के दर से छुपा के रखती हैं तो जो कोई उस गर्मी को भड़का लेता है वो अच्छे से हाथ क्या सब कुछ सेक लेता है, बस गर्मी को भड़काना और फिर अच्छे से बुझाना आना चाहिए।
लल्लू: अरे भईया बुझा तो अच्छे से देंगे, बस भड़काना नहीं आता।
भूरा: क्या ये बात सच है भैय्या कि लड़कियों में ज्यादा गर्मी होती है हमसे?
सत्तू: और क्या, वो गलत थोड़े ही बोलेगा, उसने इसी चीज की तो पढ़ाई की है, पता नहीं क्या बता रहा था नाम नहीं याद कुछ लौकी लौकी बता रहा था, उसमें शरीर की पढ़ाई होती है जैसे हमारा बदन काम करता है अंदर बाहर सब कुछ पढ़ाया जाता है।
लल्लू और भूरा आंखे फाड़े सत्तू से ज्ञान ले रहे थे,
लल्लू: सही है भैय्या, अगर मुझे पढ़ने को मिलता तो मैं भी यही पढ़ता।
सत्तू: हां ताकि चूत मिल सके, हरामी।
इस पर तीनों ताली मार कर हंसने लगते हैं,
भूरा: सारा खेल ही उसी का है भैया।
सत्तू: समझदार हो रहा है भूरा तू, अच्छा सुनो अब मैं चलता हूं मां राह देख रही है, पर तुम्हारे लिए एक उपहार है तुम्हारे सत्तू भैया की ओर से, लो मजे लो।
ये कहते हुए सत्तू अपने पीछे हाथ करता है और पैंट में से कुछ निकाल कर लल्लू के हाथ में रख देता है और चल देता है,
लल्लू और भूरा हाथ में रखे कागज़ को खोल कर देखते हैं और उनकी आंखें चौड़ी हो जाती हैं, वो पन्ने ऐसा लग रहा था किसी किताब के फटे हुए थे पर उन्हें देख कर लल्लू और भूरा की आंखें फटी हुई थी, दोनों ध्यान से देखते हैं, पहले पन्ने पर एक तस्वीर होती है लड़की की जो कि पूरी नंगी होकर झुकी हुई होती है और अपने दोनों हाथों से चूतड़ों को फैलाकर अपनी चूत और गांड दिखा रही होती है, दोनों के लंड ये देखकर तन जाते हैं, दोनों ध्यान से पूरी तस्वीर को बारिकी से देखते हैं,
भूरा: दूसरी भी देख ना।
लल्लू तुरंत दूसरा पन्ना ऊपर करता है, इस पर एक औरत बिल्कुल नंगी होकर एक लड़के के लंड पर बैठी है लंड उसकी चूत में घुसा हुआ है साथ ही उसके अगल बगल में दो लड़के खड़े हैं जिनमे से एक का लंड उसके मुंह में है और दूसरे का हाथ में। औरत की बड़ी बड़ी चूचियां लटक रही हैं।
ये देख तो दोनों के बदन में सरसराहट होने लगती है, दोनों ही अपने एक एक हाथ से लंड मसलते हुए पन्नों को पलट पलट कर देखने लगते हैं
भूरा: अरे भेंचो ऐसा भी होता है देख तो एक औरत एक साथ तीन तीन लंड संभाल रही है,
लल्लू: हां यार, सत्तू भैया मस्त बवाल चीज देकर गया है।
भूरा: यार अब मुझसे तो रहा नहीं जा रहा लंड बिल्कुल अकड़ गया है,
लल्लू: यही हाल मेरा भी है यार चल बाग में चलकर एक एक बार इसे भी शांत कर ही लेते हैं।
भूरा: चल।
दोनों साथ में बाग की ओर चल देते हैं।
इधर छोटू आज फिर देर से उठा पर आज उसे उठते ही मां की गाली सुनने को नहीं मिली बल्कि उठते ही मां ने उसके हाथ में चाय पकड़ा दी। उसकी दादी भी उसके बगल में ही बैठी थी
फुलवा: अब कैसा है हमारा लाल? तबीयत ठीक है?
छोटू मन में सोचने लगा साला रात वाला कांड तो मैं भूल ही गया, अब सब पूछेंगे तो क्या बोलूंगा क्या हुआ था, फिर याद आया कि रात को जो कहानी अम्मा ने खुद बनाई थी उसे ही चलने देता हूं क्या जा रहा है।
छोटू: ठीक हूं अम्मा।
पुष्पा और फुलवा दोनों ही ये सुनकर थोड़ी शांत होती हैं इतने में सुधा भी उनके पास आकर बैठ जाती है, घर के सारे मर्द शौच क्रिया आदि के लिए बाहर गए हुए थे,
फुलवा: हाय मेरा लाल एक ही रात में चेहरा उतरा उतरा सा लग रहा है।
फुलवा उसे अपने सीने से लगाकर कहती है, इधर छोटू अपनी अम्मा की कद्दू के आकर की चुचियों में मुंह पाकर कसमसाने लगता है, उसे स्पर्श अच्छा लगता है पर वो खुद को रोकता है।
सुधा: बेटा तुझे कुछ याद है रात को क्या हुआ था,
छोटू: हां चाची वो...
छोटू ये कहके चुप हो जाता है और सोचने लगता है ऐसा क्या बोलूं जो बिल्कुल सच लगे, ऐसे कुछ भी बोल दूंगा तो मुश्किल में पढ़ सकता हूं, और फिर वो मन ही मन एक कहानी बनाता है।
पुष्पा: चुप क्यूं हो गया लल्ला बोल ना।
छोटू: कैसे कहूं मां थोड़ी वैसी बात है, मुझे शर्म आ रही है।
फुलवा: अरे हमसे क्या शर्म, इतना बढ़ा हो गया तू जो अपनी अम्मा से शर्माएगा?
सुधा: देखो बेटा शरमाओ मत, यहां पर तो हम लोग ही हैं तुम्हारी मां, तुम्हारी चाची और अम्मा, हमने तुम्हें बचपन से गोद में खिलाया है तो हमसे मत शरमाओ और देखो अगर कुछ परेशानी है तो हमसे कहोगे तभी तो हम इसका हल निकलेंगे।
छोटू चाची की बात सुन तो रहा था पर उसके दिमाग में बार बार चाची का वो दृश्य सामने आ रहा था जिसमें वो नंगी होकर चाचा के लंड पर कूद रही थीं।
पुष्पा: चाची सही कह रही बेटा सब बतादे।
फुलवा: हां मेरे छोटूआ बता दे अपनी अम्मा को सब।
छोटू का ध्यान अपनी मां और अम्मा की बात सुनकर बापिस आता है और वो नजरें नीची करके बोलता है: अम्मा रात को जब मैं सो रहा था तो सोते सोते अचानक सपने में एक औरत आई और वो मुझे प्यार से छोटू छोटू कहके मेरे पास आ कर बैठ गई और मुझसे बोली छोटू तुम मुझे बहुत पसंद हो तुम मेरे साथ चलोगे, मैंने उससे मना किया तो वो वो..
छोटू इतना कह कर चुप हो जाता है,
सुधा: आगे बोलो बेटा, डरो मत हम लोग हैं तुम्हारे साथ।
सुधा उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहती है।
छोटू एक एक बार तीनों की ओर देखता है फिर अपना सिर नीचे कर के बोलता है: जब मैं उसे मना कर दिया तो वो वो खड़ी होकर अपने कपड़े उतारने लगी, मैंने उससे कहा ये तुम क्या कर रही हो, कपड़े क्यों उतार रही हो, जाओ यहां से पर वो सुन ही नहीं रही थी और फिर पूरी नंगी हो गई, उसे देख कर मैंने आंखे बंद करने की कोशिश की पर मेरी आंखें बंद ही नहीं हो रही थी, और वो मुझे पूरी नंगी होकर दिखा रही थी। इतना कहकर छोटू शांत हो जाता है और तीनों की प्रतिक्रिया देखने लगता है
वहीं ये सुनकर तीनों औरतें हैरान रह जाती हैं फुलवा के माथे पर तो फिर से गुस्सा दिखने लगता है पर सुधा उसे शांत करती है, वहीं पुष्पा को भी ये सब बड़ा अजीब सा लग रहा था साथ ही उसे अपने बेटे की चिंता भी हो रही थी, तीनों एक बार एक दूसरे को देखती हैं तो सुधा दोनों को शांत रहने का इशारा करती है और छोटू से कहती है: आगे क्या हुआ लला?
छोटू वैसे ही नज़रें नीचे किए हुए ही आगे बोलता है: फिर वो बार बार पूछ रही थी कि बताओ छोटू मैं कैसी लग रही हूं, पर मैं कुछ नहीं बोला तो वो मेरे हाथ पकड़ कर अपने बदन पर लगाने लगी पर मैं उससे हाथ छुड़ा लिए।
पुष्पा: फिर?
छोटू: फिर वो मुझसे बोली कि कोई बात नहीं तुम मुझको नहीं छुओगे तो मैं तुम्हें छू लूंगी,
सुधा: अच्छा फिर?
छोटू: फिर वो अपने हाथ बढ़ाकर मेरे पजामे के ऊपर फिराने लगी और और..
फुलवा: और का लल्ला?
छोटू: वो पजामे के ऊपर से ही मेरा वो वो पकड़ने लगी,
सुधा: लल्ला शरमाओ मत खुल कर बोलो।
छोटू: वो पजामे के ऊपर से ही मेरा नुन्नू पकड़ कर सहलाने लगी।
ये सुनकर कहीं न कहीं तीनों औरतों की ही सांसे भारी होने लगी थी,
फुलवा: दारी की इतनी हिम्मत,
सुधा: अम्मा रुको तो, उसे पूरी बात तो बताने दो। छोटू बोल आगे क्या हुआ?
छोटू: वो उसके बाद मैने उसे धक्का दिया तो वो पीछे हो गई पर पीछे होकर वो हंसने लगी और फिर मेरे नुन्नु में जलन होने लगी बहुत तेज़ तभी मेरी आंख खुल गई तो देखा सच में बहुत जलन हो रही थी, और नुन्नु बिल्कुल कड़क हो गया था,
पुष्पा: हाय दईया हमारा लल्ला, फिर का हुआ?
छोटू: इतनी तेज़ जलन हो रही थी कि मुझे कुछ समझ ही नहीं आया क्या करूं मैंने तुरंत अपना पजामा नीचे कर दिया पर फिर भी आराम नहीं मिला तो मैं उठ कर पानी के लिए भागा सोचा भैंसों के कुंड में डुबकी लगा दूंगा पर थोड़ा आगे बड़ा तो लगा पीछे से किसी ने कुछ मारा और फिर उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं।
छोटू अपनी कहानी सुना कर चुप हो गया और तीनों के चेहरे पढ़ने की कोशिश करने लगा, तीनों ही एक दूसरे की ओर देख रहीं थी पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था, उसे अपनी अम्मा की आंखों में गुस्सा साफ दिख रहा था वहीं मां और चाची की आंखों में चिंता थी।
सुधा: अच्छा चल जो हुआ सो हुआ तुम वो सब भूल जाओ लल्ला और जाओ खेत हो आओ, अब कुछ नहीं होगा।
छोटू: ठीक है चाची।
छोटू उठकर जाने लगता है तो पुष्पा पीछे से कहती है: लल्ला ज्यादा दूर मत जाना।
छोटू: ठीक है मां।
छोटू बाहर निकलते हुए मंद मंद मुस्काता है उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो सब उसकी कहानी को इतनी आसानी से मान जाएंगे, वो मन ही मन सोचता है: अरे वाह छोटू तेरे दिमाग का जवाब नहीं, क्या घुमाया है सबको, नहीं तो रात की सच्चाई किसी को पता चलती तो वो धुनाई होती जो जीवन भर याद रहती, ये सब सोचते हुए वो खुश होकर घर से निकल जाता है। इधर घर में तीनों औरतों की बातें शुरू हो गई थी उसके जाने के बाद।
पुष्पा: हाए दईया अम्मा हमें तो बहुत डर लग रहा है, अब का होगा?
सुधा: परेशान मत हो दीदी, सब ठीक हो जायेगा, अभी हमें छोटू को संभालना होगा नहीं तो उसको और चिंता हो जायेगी।
पुष्पा: सही कह रही हो सुधा, हाय क्या बिगाड़ा था हमारे लल्ला ने उस का जो हमारे लल्ला के पीछे पड़ गई।
तभी अचानक से फुलवा गुस्से में बोलती है: उस रांड का तो मैं बिगाडूंगी, कलमुही कहीं की, आजा मेरे नाती से क्या टकराती है मुझसे भिड़ आकर, छिनाल न तेरी सारी प्यास बुझा दी तो मेरा नाम फुलवा नहीं,
रंडी इतनी गर्मी है चूत में तो अपने बेटे को पकड़ ना उसका लंड ले अपनी चूत में मेरे नाती को छोड़ नहीं तो तेरी आत्मा का भी वो हाल करवाऊंगी जो किसी ने सोचा भी नहीं होगा।
फुलवा का गुस्सा देख सुधा और पुष्पा भी डर गई वहीं मां को बेटे से चुदवा लेने की बात सुनकर दोनों ही एक दूसरे की ओर देखने लगी कि ये क्या कह रही हैं।
सुधा: अम्मा शांत हो जाओ, ऐसे गुस्से से कुछ नहीं होगा, अब ये सोचो आगे करना क्या है।
फुलवा: करना क्या है क्या? आज ही छोटू को पीपल पर ले जाऊंगी और झाड़ा लगवा कर आऊंगी।
पुष्पा: ठीक है अम्मा ले जाओ बस हमारे लल्ला के सर से ये बला है जाए,
फुलवा: अरे वो क्या उसका बाप भी हटेगा।
सुधा: अम्मा फिर इनको और जेठ जी को क्या बताना है वो लोग भी आते होंगे।
पुष्पा: बताना क्या है जो बात है वो बताएंगे।
फुलवा: नहीं ये बात हम तीनों के बीच ही रहेगी, छोटू को भी बोल देंगे कि वो और किसी को ना कहे,
पुष्पा: पर इनसे क्यों छुपाना अम्मा?
फुलवा: मर्दों को बताएगी न तो वो कुछ कराएंगे हैं नहीं ऊपर से छोटू को शहर लेकर चल देंगे हस्पताल में दिखाने, और वहां तो इसका इलाज होने से रहा,
पुष्पा: हां सही कह रही हो अम्मा। छोटू के पापा तो रात ही कह रहे थे कि छोटू को शहर के डाक्टर से दिखा लाते हैं।
फुलवा: इसीलिए तो कह रहीं हूं, इस बला का निपटारा हमें ही करना है,
सुधा: ठीक है अम्मा ऐसा ही करते हैं बाकी अब कोई पूछे तो बोलना है छोटू ठीक है।
पुष्पा: ठीक है ऐसा ही करूंगी।
फुलवा: आने दो छोटू को किसी बहाने से ले जाऊंगी पीपल पे।
तीनों योजना बनाकर आगे के काम पर लग जाते हैं।
इसके आगे अगले अध्याय में।
धन्यवाद मित्र, पर मैंने DREAMBOY40 भाई और TharkiPo भाई की कहानियों को पढ़कर अपनी कहानी लिखने की प्रेरणा ली है और उनकी कहानियों में एक चीज है कि किसी भी मर्द के साथ भेदभाव नहीं किया गया कोई ज्याद्ति नहीं हुई है, बाप हो या बेटा चाचा हो या भतीजा या फिर मामा हो या नाना, हर कोई चुदाई की पूरी क्षमता रखता है और करता भी है और मैं भी लल्लू, छोटू और भूरा के बाप आदि से ये हक नहीं छीनूंगा।वैसे आप इन कहानियों से प्रेणना ले सकते है मगर अगर आप थोड़ा पहले शुरू करते तो आप इन महिलाओं के पति को शारारिक रूप से कमजोर करके शुरुवात कर सकते थे जो इनकी यौन इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाते तो वो अपने बेटों को या उनके दोस्त के चुंगल में आसानी से आ सकती थी।
वैसे शायद इनमे से ही कोई एक कहानी थी जिसका मैंने ज़िक्र किया था।
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Erotica - लल्लू लल्लू न रहा😇😇
इस कहानी का प्लॉट बेठे बेठे आया। इस कहानी में सब कुछ होगा इंसेस्ट, एडल्टरी, हॉरर एंड थ्रिलर। प्रतेक सप्ताह एक ही अपडेट मिलेगा, दूसरे की उपेक्षा न करे। कहानी सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी जा रही हैं। इसका किसी व्यक्ति विशेष और घटनाओं से कोई संबंध नहीं हैं। जैसा प्यार "काला नाग" को मिल रहा...xforum.live
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Incest - काला नाग
अध्याय १नमस्कार दोस्तो। मेरा नाम सविता हैं। मैं ४५ वर्ष की महिला हूं। हम लोग राजस्थान के एक छोटे से गांव में रहते हैं। मेरा जन्म एक बहुत ही साधारण से परिवार में हुआ। १७ बसंत निकलते मेरे रूप यौवन में गजब का निखार आ गया। जिसको देख मेरे बापू ने मेरे लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया। और १८ बसंत...xforum.live
बहुत बहुत धन्यवाद भाई।बहुत ही मस्त लाजवाब और अद्भुत मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
अरे मित्र आज ही तो अपडेट दी है थोड़ा इंतजार का मज़ा लीजिए।Waiting for next update….
Nice updateअध्याय 4छोटू मन ही मन सोच रहा था बच गया, हालांकि उदयभान की मृतक लुगाई को उसके कारण क्या क्या सुनना पड़ रहा था , पर छोटू ने मन ही मन उससे माफी मांगी की तुम तो मर ही गई हो मुझे ज़िंदा रहना है तो तुम्हारा सहारा लेना पड़ेगा। छोटू को मन ही मन ये उपाय ही ठीक लगा क्योंकि कौनसा उदयभान की लुगाई अपनी सफाई पेश करने आ रही थी। अब आगे...
छोटू बिस्तर पर आंखें मूंदे पड़ा था, और बाकी परिवार वाले उसके चारो ओर उसे घेर कर बैठे थे, छोटू का मन अभी भी धक धक कर रहा था पर वो नाटक को जारी रखे हुए था और बिना किसी हलचल के लेता हुआ था,
पुष्पा: अम्मा हमें तो बड़ी चिंता हो रही है का हो गया है हमारे लाल को?
पुष्पा पल्लू के पीछे से ही बोलती है क्योंकि ससुर और जेठ आदि के आगे चेहरा ढकने की परंपरा थी
सुधा: अरे दीदी कुछ नहीं हुआ है, तुम चिंता मत करो सुबह तक ठीक हो जायेगा छोटू।
सुधा ने अपनी जेठानी को समझाते हुए कहा,
फुलवा: और बहुरिया कल ही हम उस छिनाल का भी इलाज़ करवा देंगे, कुछ नही होगा लल्ला को।
राजेश: अरे अम्मा कोई छिनाल नहीं चढ़ी है, हो सकता है नींद में चल रहा हो।
सुभाष: हां राजेश सही कह रहा है, सपना देख रहा होगा कोई।
संजय: पर पजामा छप्पर पर अटका हुआ था, और छोटू जगाने से जाग भी नहीं रहा, ये समझ नहीं आ रहा।
नीलम: अरे पापा मैं तो कहती हूं अभी सुबह तक सोने दो इसे नींद पूरी हो जायेगी तो खुद उठ जायेगा।
सुधा: हां ऐसा ही करो अरे दीदी देखो तो इसके सिर पर कोई चोट वागेरा तो नहीं दिख रही।
पुष्पा तुरंत छोटू का सिर इधर उधर घुमा कर देखती है
पुष्पा: चोट तो नहीं नज़र आ रही।
सोमपाल: तो ऐसा करो फिर सब लोग सो जाओ सुबह देखेंगे,
सब उठ कर चलने लगते हैं, अपने अपने बिस्तर की ओर।
राजेश: अम्मा तुम भी सो जाओ अब नहीं आ रही उदयभान की लुगाई, इतनी गालियां जो सुनाई हैं तुमने उसे।
इस पर सबके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है पर फुलवा भड़क जाती है इस बार उद्दयभान की लुगाई पर नहीं बल्कि अपने नाती राजेश पर।
फुलवा: आ नासपीटे, तुझे बड़ी ठिठोली सूझ रही हैं, हमारी बात को मज़ाक उड़ा रहा है,
राजेश: अरे नहीं अम्मा हम तो बस ऐसे ही बोल रहे थे,
फुलवा: ऐसे बोलो चाहे वैसे, कल हम लल्ला को दिखाने जायेंगे पेड़ पर।
संजय: अरे ठीक है अम्मा ले जाना, अभी सो जाओ।
तब जाकर फुलवा भी लेट जाती हैं, और फिर सब सोने लगते हैं, सिवाए छोटू के जो यही सोच रहा था कि सुबह क्या होगा, वो सुबह सब को क्या जवाब देगा अगर किसी ने पूछा तो क्या कहानी बताएगा।
जहां छोटू अलग उधेड़बुन में व्यस्त था वहीं कमरे में आते ही उसके चाचा ने दोबारा से उसकी चाची को बाहों में भर लिया।
सुधा: अरे क्या कर रहे हो, अब रहने दो सो जाओ।
संजय: अरे ऐसे कैसे सो जाएं, छोटू के चक्कर में हमारा अधूरा ही रह गया, निकला ही नहीं, देखो अभी भी खड़ा है।
संजय ने लुंगी हटाकर अपना खड़ा लंड अपनी पत्नी को दिखाते हुए कहा।
सुधा: ओह्ह्ह हो तुम भी ना, इसे खड़ा करके सब के सामने घूम रहे थे, कोई देख लेता तो,
सुधा ने पति के लंड को हाथ में लेकर सहलाते हुए कहा,
संजय: तो और क्या करता ये ऐसे बैठता भी नहीं है, आह इसे बैठाना तो तुम्हारा काम है,
संजय ने ये कहकर सुधा की पीठ सहलाते हुए अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़ दिया, सुधा भी अपने पति का साथ देने लगी, संजय उसके होंठों को चूसते हुए धीरे धीरे उसके कपड़े भी उतारने लगा,
सुधा ने संजय का हाथ अपनी साड़ी पर रोक लिया और होंठों को अलग करके कहा: अरे कपड़े मत उतारो ना, देखा न कितनी मुश्किल से पहनी थी अभी,
संजय: अरे यार पर तुम्हें तो पता है ना तुम्हारा बदन देखे बिना हमें मज़ा नहीं आता।
संजय उसके हाथ से साड़ी खींचते हुए बोला तो सुधा भी अपने पति को रोक नहीं पाई,
सुधा: पता नहीं तुम्हें क्या मज़ा मिलता है, इतने बरस हो गए ब्याह को रोज तो नंगा देखते हो आज क्या नया मिल जायेगा।
संजय: अरे तुम हमारी नज़र से देखोगी तो पता चलेगा कि तुम क्या चीज़ हो, और जितने बरस बीत रहें हैं तुम और गदराती जा रही हो, तुम्हारा बदन भरता जा रहा है। और मस्त होती जा रही हो।
सुधा ने अपनी तारीफ सुनी तो अंदर ही अंदर शरमाते हुए पति के छाती पर हल्का सा मुक्का मारते हुए बोली: धत्त झूठ बोलना तो कोई तुमसे सीखे, बूढ़ी होती जा रही हूं और तुम्हें मस्त लग रही हूं।
संजय: अरे तुम और बूढ़ी, ज़रा एक बार नज़र भर के खुद को देखो तो पता चले, कि क्या चीज़ हो तुम।
संजय ने झटके से साड़ी खींचते हुए कहा तो सुधा घूमते हुए नीचे से बिल्कुल नंगी हो गई, क्योंकि जाते हुए जल्दबाजी में उसने पेटीकोट नहीं पहना था। वैसे संजय का कहना भी गलत नहीं था सुधा कुछ भी हो रही थी बूढ़ी तो बिल्कुल नहीं, अभी तो उसके बदन पर जवानी छा रही थी, उसका बदन जैसा संजय ने कहा गदराता जा रहा था, और गदराए भी क्यों न दो जवान बच्चों की मां जो थी, अब इस उमर में नहीं गदरायेगी तो कब?
संजय ने हाथ आगे बढ़ा कर उसका ब्लाउज भी खोल दिया और सुधा ने उसे अपनी बाजुओं से निकल फेंका और पूरी नंगी अपने पति के सामने खड़ी हो गई, संजय एक कदम पीछे रख कर उसे देखने लगा, सुधा उसके ऐसे देखने से शर्मा गई,
सुधा: ऐसे क्या देख रहे हो जी?
संजय: अपनी पत्नी की सुन्दरता को देख रहा हूं।
जैसे हर स्त्री को अपनी सुंदरता की तारीफ सुनकर अच्छा लगता है वैसे ही सुधा को भी लग रहा था, वो मन ही मन हर्षित हो रही थी, कुछ लोग स्त्री को प्रसन्न करने के लिए झूठी तारीफ करते हैं ताकि उससे अपना स्वार्थ निकल सकें पर संजय सच कह रहा था उसे झूठ का सहारा लेने की आवश्यकता ही नहीं थी, उसकी पत्नी थी ही इतनी कामुक और सुंदर।
तीखे नैन नक्स से सजा हुआ सुंदर गोरा चेहरा रसीले लाल होंठ मानो जैसे हर पल ही रस से भरे रहते हो, नागिन जैसे गर्दन के नीचे सीने पर मानो दो रसीले खरबूजे रखे हो, ऐसी भरी हुई चूचियां जो देखने में खरबूजे से बड़ी और चखने में उससे भी मीठी थी, उनके नीचे गोरा सपाट पेट सिलवटें पड़ी हुई कामुक कमर और पेट के बीच में गहरी नाभी, नाभी के नीचे हल्का सा झांटों का झुरमुट और उसके नीचे उसके बदन का स्वर्ग द्वार, उसकी रसीली बुर, जिसके होंठों पर अभी भी चासनी लगी हुई थी, जिसे देख कर संजय का लंड बिलबिलाने लगा, पर उसने खुद को रोका और सुधा को घूमने का इशारा किया, सुधा भी पति का इशारा पाकर एक हिरनी की तरह मादकता से घूम गई, सुधा के घूमने से संजय के सामने उसकी पत्नी की बवाल धमाल और कामुकता से मालामाल गांड आ गई, सुधा की गांड बहुत बड़ी नहीं थी पर उसकी गोलाई और उभार बड़ा मादक था,गोलाई ऐसी जैसे कि आधा कटा हुआ सेब और उभार ऐसा कि दोनों चूतड़ों को अच्छे से फैलाकर ही गांड का छेद नज़र आए।
संजय ने आगे होकर यही किया, एक हाथ से सुधा की पीठ पर दबाव दिया तो वो भी हाथ के सहारे आगे झुकती चली गई और खाट को पकड़ कर झुक गई जिससे उसकी गांड और खिल कर संजय के सामने आ गई, संजय ने फिर अपने दोनो हाथों से दोनों चूतड़ों को फैलाया तो सुधा की गांड का वो भूरा छुपा हुआ कामुक छेद सामने आ गया, जिसे देख कर ही संजय के तन मन और लंड में तरंगे उठने लगीं, संजय ने अपना हाथ सरकाते हुए अपने अंगूठे को उसकी गांड के छेद पर स्पर्श कराया तो सुधा बिलबिला उठी।
सुधा: अह्ह्ह्हह क्या कर रहे हो जी, वो गंदी जगह है। हाथ हटाओ।
संजय: अरे तुम्हारे बदन में कुछ भी गंदा नहीं है मेरी रानी एक बार मान जाओ ना और अपने इस द्वार की सैर करने दो, और मेरे इस लंड को धन्य कर दो।
सुधा: अह्ह्ह्ह समझा करो ना पहले भी कहा है वो सब बहुत गंदा होता है, मुझे नहीं करना राजेश के पापा।
सुधा ने अपनी गांड से संजय का हाथ हटाते हुए कहा।
संजय: पर मेरे इस लंड के बारे मे तो कुछ सोचो न ये कितना बेसबर है तुम्हारी इस गांड के लिए।
संजय ने अपनी कमर आगे कर अपने लंड को सुधा की गांड की दरार में घिसते हुए साथ ही उसकी गांड के छेद पर दबाव डालते हुए कहा,
सुधा: इसकी बेसबरी मिटाना मुझे बहुत अच्छे से आता है जी।
ये कहते हुए सुधा अपनी टांगों के बीच हाथ लाई और संजय का लंड पकड़ कर उसे अपनी गीली चूत के द्वार पर रख दिया, संजय ने भी सोचा गांड तो मिलने से रही कहीं चूत भी न निकल जाए हाथ से तो इसी सोच से आगे बढ़ते हुए उसने सुधा की गदराई कमर को थाम लिया और फिर धक्का देकर अपना लंड एक बार फिर से अपनी पत्नी की चूत में उतार दिया, दोनों के मुंह से एक घुटी हुई आह निकल गई, और फिर संजय ने थपथप धक्के लगाते हुए सुधा की चुदाई शुरू कर दी।
सुबह हो चुकी थी पर ये सुबह सूरज के निकलने से पहले वाली थी जैसा कि अक्सर गांव में होता है लोग सूरज उगने से पहले ही उठ जाते हैं, तो उसी तरह भूरा और लल्लू उठ चुके थे और दोनों अभी छोटू के घर के बाहर थे और उसे बुला रहे थे, छोटू तो रोज की तरह ही गहरी नींद में था और हो भी क्यों न आखिर बदन की प्यासी आत्मा ने उस पर रात में हमला जो किया था, खैर लल्लू ने छोटू को आवाज लगाई तो छोटू की जगह फुलवा ने किवाड़ खोले।
लल्लू: प्रणाम अम्मा।
फुलवा: प्रणाम लल्ला जुग जुग जियो।
भूरा ने भी प्रणाम किया, और फिर छोटू को बुलाने को कहा।
फुलवा: अरे लल्ला उसकी थोड़ी तबीयत खराब हो गई है रात से ही।
भूरा: अच्छा कल शाम तो ठीक था जब भैंस चराके आए थे तो।
फुलवा: अच्छा पर पता नहीं का हुआ रात को अचानक से बिगड़ गई।
लल्लू: अच्छा, चलो कोई नहीं अम्मा उसे आराम करने दो। हम जाते हैं जब जाग जायेगा तो मिलने आयेंगे।
फुलवा: ठीक है लल्ला,
दोनों जाने के लिए मुड़ते हैं कि तभी फुलवा उन्हें रोकती है।
फुलवा: अच्छा एक बात बताओ रे।
भूरा: हां अम्मा।
फुलवा: तुम लोग कल कहां गए थे भैंस लेकर।
लल्लू: हम कहीं दूर नहीं बस जंगल के थोड़ा अंदर तक।
फुलवा: अरे दईया, तुम नासपीटों से कितनी बार कहा है कि जंगल में मत जाया करो पर तुम्हारे कानों में तो गू भरा है सुनते ही नही।
भूरा: अरे अम्मा ऐसी बात न है, वो जंगल के बाहर की घास तो पहले ही चर चुकी इसलिए आगे जाना पड़ा।
ये सुन कर फुलवा का चेहरा लाल पड़ने लगा।
फुलवा: हमारी बात ध्यान से सुनलो, आगे से जंगल की तरफ बड़ मत जाना कोई सा भी, नहीं तुम्हारी टांगे छटवा दूंगी।
भूरा: क्या हो गया अम्मा।
फुलवा: कछु नहीं हो गया, अब जाओ यहां से पर ध्यान रखना जंगल की ओर गए तो टांगे तोड़ दूंगी सबकी।
भूरा और लल्लू तुरंत निकल लिए,
लल्लू: अरे क्या हो गया ये डोकरी(बूढ़ी) ?
भूरा: हां यार कुछ तो हुआ है, वैसे तो अम्मा इतना गुस्सा कभी नहीं देखी मैने।
लल्लू: कह तो सही रहा है, कोई तो बात है और वो भी छोटू की, तभी उसकी तबीयत खराब हुई है।
भूरा: डोकरी ने तो जंगल में घुसने से भी मना किया है, दोपहर का कांड कैसे करेंगे फिर?
लल्लू: अरे दोपहर की दोपहर को सोचेंगे पहले अभी का देखते हैं,
भूरा: हां चल।
दोनों एक रास्ते पर थोड़ा आगे की ओर जाते हैं फिर थोड़ा आगे जाकर एक बार इधर उधर देखते हैं कोई देख तो नहीं रहा और फिर जल्दी से एक अरहर के खेत में घुस जाते हैं और उसके बीच से आगे बढ़ने लगते हैं, बड़ी सावधानी से आगे बढ़ते हुए दोनों वो खेत पर कर जाते हैं, और खेत के बगल में बने रास्तों पर न चलकर दोनों खेतों के बीच से होते हुए आगे बढ़ते हैं, आगे बढ़ते हुए चलते जाते हैं और जैसे ही एक और खेत पर करते हैं दोनों को एक झटका लगता है और दोनों बापिस मुड़ कर खेत में घुस जाते हैं।
लल्लू: अबे भेंचों ये क्या हुआ।
भूरा: मैय्या चुद गई दिमाग की और क्या हुआ।
लल्लू: ये रामविलास ने तो खेत ही कटवा दिया, भेंचो।
भूरा: हमारी खुशी नहीं देखी गई धी के लंड से। भेंचाे एक ही खेत था जिसमें औरतें आराम से हगने आती थी और हम देख पाते थे आराम से बिना किसी के पकड़ में आए, साले ने वो भी हमसे छीन लिया।
वैसे हर गांव में ये नियम होता था कि गांव में एक तरफ के खेतों में औरतें शौच के लिए जाती थी और एक ओर आदमी। तो ये लोग छुपक कर औरतों वाली तरफ जाते थे और उन्हें शौच करते हुए उनकी नंगी गांड का दर्शन करते थे दोनों का ही रोज का ये प्रोग्राम रहता था वैसे तो तीनों का ही होता था पर पिछले कुछ दिनों से छोटू नहीं आ पा रहा था तो ये दोनों ही कार्यभार संभाले हुए थे।
लल्लू: चोद हो गई भोसड़ी की सवेरे सवेरे।
भूरा: वोही तो यार।
लल्लू: एक काम करें, बाग के पीछे वाले खेतों में चलें वहां भी खूब औरतें जाती हैं।
भूरा: हां जाती तो हैं और अब हो सकता है जो इधर आती थीं वो भी उधर ही गई हो।
लल्लू: तो चल फिर चलते हैं।
भूरा: पर साले पकड़े गए तो जो गांड छिलेगी, जिंदगी भर आराम से हग नहीं पाएंगे।
लल्लू: अरे कुछ नहीं होगा एक काम करेंगे नदी नदी जायेंगे और फिर कौने से बाग में घुस जायेंगे और फिर बाग में तो पेड़ों के बीच कौन देख रहा है।
भूरा: हां यार साले का गांड फाड़ तरीका सोचा है, चल चलते हैं।
और दोनों तुरंत भाग पड़ते हैं। खेतों को पार कर दोनों तुंरत नदी के किनारे पहुंच जाते हैं और फिर किनारे किनारे चलते हुए आगे बाग तक, बाग में घुसकर दोनों आगे बढ़ने लगते हैं, जैसे ही दोनों बाग के किनारे पहुंचने वाले होते हैं धीरे हो जाते हैं और सावधानी से पेडों की ओट लेकर आगे बढ़ने लगते हैं और फिर अच्छी सी जगह देख कर छिप कर बैठ जाते हैं और खेत में इधर उधर देखने लगते हैं।
लल्लू: अभी तो कोई नहीं दिख रही यार।
भूरा: हां भेंचाें इतनी दूर भागते आए और यहां तो कोई नहीं है।
लल्लू: दूसरी तरफ देखें बाग के?
भूरा: अरे मेरे हिसाब से तो अगर कोई यहां आयेगी भी तो यहां नहीं बैठती होगी।
लल्लू: क्यूं?
भूरा: खुद ही देख उन्हें भी पता होगा कि बाग मे से कोई भी उन्हें देख लेगा इसलिए।
लल्लू: हां यार ये बात तो है फिर अब का करें?
भूरा: ये खेत में घुस के देखते हैं अगले खेत में ज़रूर होगी।
लल्लू: चल इतनी दूर आ ही गए हैं तो एक खेत और सही।
दोनों फिर और आगे बढ़ते हैं, धीरे धीरे अरहर के खेत को पार करते हुए, और जैसे ही किनारे पर पहुंचने वाले होते हैं उन्हें आभास होता है कि कोई मेड़ के दूसरी ओर बैठा है, दोनों सजग हो जाते हैं और दबे हुए कदमों से आगे आकर झांकते हैं और झाड़ियों के बीच से आंख टिकाकर देखते हैं तो दोनों की आंखें चमक जाती हैं, दोनों जिस दृश्य के लिए इतनी भागा दौड़ी कर रहे थे वो उनके सामने होता है, देखते हैं एक औरत उनकी ओर पीठ किए हुए बैठी है साड़ी कमर तक चढ़ाए उसके नंगे गोरे भारी और गोल मटोल चूतड़ देख दोनों के लंड ठुमकने लगते हैं और पूरे अकड़ जाते हैं,
दोनों की नज़र उसकी गांड पर ऐसे चिपक जाती है जैसे गोंद पर मक्खी।
कुछ पल बाद ही वो औरत अपने लोटे से पानी लेकर अपने पिछवाड़े पर मार कर धोने लगती है, अपने चूतड़ों को थोड़ा उठाकर हथेली में पानी भर सीधा अपनी गांड के छेद पर मारती है जिससे इन दोनों को भी उसकी गांड का भूरा छेद नज़र आता है गोरे चूतड़ों के बीच गांड का भूरा छेद बहुत कामुक लग रहा था औरत बार बार पानी लेकर अपनी गांड पर मारती है तो उसके भरे हुए चूतड़ थरथरा जाते हैं जिससे पता चल रहा था कि उसके चूतड़ कितने मांसल हैं। इन दोनों का तो ये देख बुरा हाल हो जाता है, दोनों के लंड अकड़ जाते हैं जिन्हें दोनो ही अपनी सांसों को थामे पजामे के उपर से ही मसल रहे होते हैं।
अपनी गांड धोने के बाद औरत खड़ी होती है और दोनों को चूतड़ों का आखिरी दर्शन देकर उन पर अपनी साड़ी और पेटीकोट का परदा कर लेती है और फिर खेत के बाहर की ओर निकल जाती है, लल्लू और भूरा तो अपनी सांसे थामे देखते रह जाते हैं, उसके निकलते ही भूरा फुसफुसा कर कहता है: यार क्या चूतड़ थे भेंचों।
लल्लू: सही में यार ऐसी गांड तो अभी तक नहीं देखी मैंने, इतने भरे हुए चूतड़ गोल मटोल और साली का गांड का छेद भी इतना मस्त था मन कर रहा था अभी जा कर लंड घुसा दूं।
भूरा: सही में यार लंड तो लोहे के हो गया उसे देख कर।
लल्लू: थी कौन ये यार, इतनी मस्त गांड वाली।
भूरा: क्या पता यार चेहरा तो दिखा नहीं पल्लू डाल रखा था मुंह पर लेकिन यार जो दिखा वो बड़ा मजेदार था।
लल्लू: देखें कौन है?
भूरा: देखें कैसे?
लल्लू: भाग कर चलते हैं ज्यादा दूर नहीं पहुंची होगी, और साड़ी का रंग याद है पहचान जाएंगे आराम से।
भूरा: पूरा बाग घूम कर बापिस किनारे से आना पड़ेगा इधर से तो गए तो पिट जायेंगे।
लल्लू: तभी तो कह रहा हूं चल जल्दी।
दोनों फिर से सरपट दौड़ लगा देते हैं बाग को पार करके फिर से नदी के किनारे होते हुए जल्दी ही गांव के मुख्य रास्ते पर आ जाते हैं, रास्ते में तो वो औरत नहीं दिखती थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तो एक नल लगा था जो कि पूरे गांव का ही था जिस पर लोग सुबह आकर अपने हाथ पैर धोते थे वो लोग भी वहीं पहुंच गए, वहां एक दो औरत और भी थी जो अपने हाथ पैर धो रही थी बातें करते हुए तभी लल्लू भूरा को कुछ इशारा करता है, और भूरा लल्लू के इशारे पर देखता है तो उसे वो औरत दिखती है जो कि झुककर अपने हाथ पैर धो रही होती है।
भूरा: अरे ये तो वोही है ना।
लल्लू: हां साड़ी तो वोही है अब बस चेहरा दिखे तो पता चले कौन है।
दोनों बेसब्री से इंतज़ार करने लगते हैं, औरत जल्दी ही अपने हाथ धोकर पानी अपने चेहरे पर मारती है और फिर पल्लू से अपना चेहरा पौंछते हुए उनकी ओर घूमती है, दोनों सांसें रोक कर उसका चेहरा देखने के लिए आंखे टिका देते हैं, और कुछ ही पलों बाद वो अपना पल्लू चेहरे से हटाती है तो दोनों की नज़र उसके चेहरे पर पड़ती है और दोनों हैरान परेशान रह जाते हैं... वो औरत भी उन दोनों को देख उनके पास आती है और कहती है: तुम दोनों अच्छा हुआ मुझे मिल गए मुझे एक बात बताओ।
लल्लू: हूं? हां हां चाची।
लल्लू सकुचाते हुए कहता है, वहीं भूरा के मन में भी उथल पुथल चल रही होती है पर वो खुद को संभालते हुए कहता है: प्रणाम चाची।
लल्लू: हां हां प्रणाम चाची।
लल्लू उसके चेहरे से नज़र हटाकर नीचे की ओर देखते हुए कहता है, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वो औरत जिसकी गांड देख कर कुछ देर पहले वो लोग आहें भर रहे थे वो और कोई नहीं उनके दोस्त छोटू की मां पुष्पा थी, उनकी मां समान बचपन से ही दोस्त थे तीनों और एक दूसरे के परिवार को भी अपने परिवार की तरह ही मानते थे और एक दूसरे के मां बाप को अपने मां बाप की तरह, तो अभी दोनों को ही बड़ा अजीब सा एहसास हो रहा था मन में एक जलन हो रही थी, अपनी दोस्ती में एक विश्वासघात का बोध हो रहा था,
पुष्पा: तुम लोग कल भैंसों को लेकर जंगल गए थे न?
भूरा: हां चाची वो बाहर घास नहीं है ना इसलिए।
पुष्पा: अरे दुष्टों तुमसे कितनी बार मना किया है, पता है रात को छोटुआ की तबीयत खराब हो गई कितनी।
लल्लू: हां चाची वो अम्मा ने बताया तो पर ठीक से कुछ नहीं बोली,
पुष्पा: अच्छा मैं बताती हूं, आगे चलो पर सुनो ये बात गांव में नहीं पता लगनी चाहिए किसी को।
लल्लू: हां चाची अपने घर की बात क्यों बताएंगे किसी को।
तीनों वहां से थोड़ा आगे बढ़ जाते हैं, और दूसरी औरतों से अलग हो जाते हैं तो पुष्पा उन्हें सारी बात बताती है रात की, सुनकर दोनों की आंखें चौड़ी हो जाती हैं,
लल्लू: ऐसा कैसे हो सकता है चाची मेरी तो समझ नहीं आ रहा,
भूरा भी कुछ कहने वाला होता है और जैसे ही वो पुष्पा के चेहरे की ओर देखता है उसकी आंखों के सामने पुष्पा की गांड का दृश्य दिखाई देने लगता है और वो चुप हो जाता है।
पुष्पा: अरे कैसे नहीं हो सकता, वो उदयभान की लुगाई ने जंगल में ही तो पेड़ से लटक के जान दी थी, अम्मा बता रही थी उसकी आत्मा अब भी भटक रही है।
ये सुन उन दोनों का भी दिल धक धक करने लगता है और थोड़ा थोड़ा दोनों ही दर जाते हैं।
भूरा: फिर अब क्या होगा चाची?
पुष्पा: अब होना क्या है तुम दोनों सावधान रहना और जंगल में मत जाना।
लल्लू: और छोटू?
पुष्पा: छोटू को अम्मा पेड़ वाले बाबा के पास ले जाएंगी दिखाने। चलो अब मैं चलती हूं तुम दोनों बेकार में इधर उधर मत घूमना।
लल्लू: ठीक है चाची।
पुष्पा आगे बढ़ जाती है और दोनों वहां ठगे से खड़े रह जाते हैं, दोनों के मन में ही उथल पुथल हो रही होती है और दोनों ही एक दूसरे नजरें मिलाने में कतरा रहे होते हैं, लल्लू एक और चल देता है तो भूरा भी बिना कुछ कहे उसके साथ साथ चल देता है, कोई कुछ नहीं बोलता बस चलते जाते हैं और चलते चलते दोनों नदी के किनारे बैठ जाते हैं, कुछ पल सिर्फ नदी में बह रहे पानी की कलकल के सिवाए कुछ नहीं सुनाई देता फिर कुछ पल बाद लल्लू पानी में देखते हुए ही कहता है: यार जो हुआ सही नही हुआ।
भूरा: हम्म् मेरे मन में भी अजीब सी जलन हो रही है, हमें चाची को ऐसे नहीं देखना चाहिए था।
लल्लू: हां यार जबसे उनकी गां मेरा मतलब है उन्हें उस हालत में देखा और फिर उनका चेहरा देखा तबसे मन जल रहा है,
भूरा: भाई मैं तो उनके चेहरे की ओर भी नहीं देख पा रहा था जैसे ही उनका चेहरा देखता तो मेरी आंखों के सामने उनके चूतड़ मतलब वोही हालत में वो दिख जाती।
लल्लू: साला हमें जाना ही नहीं चाहिए था बाग में।
भूरा: तू ही ले गया मैं तो मना कर रहा था,
लल्लू: अच्छा मैं ले गया साले तू अपनी मर्ज़ी से नहीं गया था या रोज तू अपनी मर्ज़ी से नहीं आता था,
भूरा: रोज रामिविलास के खेत की बात होती थी बाग की तूने बोली थी,
लल्लू: अच्छा तो मैं क्या तुझे ज़बरदस्ती ले गया बाग में अपनी मर्जी से गया तू, और साले अरहर का खेत पार करके देखते हैं ये किसने बोला था।
भूरा: साले अपनी गलती मुझ पर मत डाल मुझे पता था तेरे मन में ही पाप है।
लल्लू: भेंचो मेरे मन में पाप है तो एक बात बता तेरा लोड़ा अभी तक खड़ा क्यों है चाची को देख कर।
भूरा ये सुन नीचे देखता है सकपका जाता है उसका लंड सच में उसके पजामे में तम्बू बनाए हुए था, लल्लू की बात का उसके पास कोई जवाब नही होता वो नजरें नीचे कर इधर उधर फिराने लगता है। तभी उसे अपने आप जवाब मिल जाता है।
भूरा: अच्छा भेंचो मुझे ज्ञान चोद रहा है और खुद बड़ा दूध का धुला है तू,
भूरा उसे इशारा करके कहता है तो लल्लू भी नीचे देखता है और अपने लंड को भी पजामे में सिर उठाए पता है और वो भी सकपका जाता है, कुछ देर कुछ नहीं बोलता, भूरा भी कुछ देर शांत रहता है, फिर कुछ सोच के बोलता है: यार गलती हम दोनों की ही है,
लल्लू: सही कह रहा है यार। पर साला ये चाची की गांड आंखों से हट ही नहीं रही यार।
भूरा: हां यार भेंचो आंखें बंद करो तो वो ही दृश्य सामने आ जाता है जब चाची पानी से अपने चूतड़ों को धो रहीं थी,
लल्लू: कुछ भी कह यार चाची की गांड है कमाल की ऐसी गांड मैने आज तक नहीं देखी।
भूरा: यार मैंने भी नहीं, क्या मस्त भूरा छेद था न गोरे गोरे चूतड़ों के बीच।
दोनों के ही हाथ उस कामुक दृश्य को याद कर अपने अपने लंड को पजामे के ऊपर से ही सहलाने लगते हैं। तभी जैसे लल्लू को कुछ होश आता है और वो अपना हाथ झटक देता है
लल्लू: धत्त तेरी की ये गलत है।
भूरा को भी एहसास होता है वो गलत कर रहा है और वो भी अपना हाथ हटा लेता है।
लल्लू: कुछ कहने वाला ही होता है कि तभी पीछे से उन्हें एक आवाज़ सुनाई देती है: क्यों बे लोंडो क्या हो रहा है?
दोनों आवाज़ सुनकर पलट कर देखते हैं तो पाते हैं सामने से सत्तू चला आ रहा होता है, सत्तू उनके गांव का ही लड़का है जिसकी उम्र उनसे ज्यादा है, वो भूरा के भाई राजू की उमर का था हालांकि उसकी और राजू की कम ही बनती थी पर वो इन तीनों लड़कों के साथ अच्छे से ही पेश आता था।
लल्लू: अरे कुछ नहीं सत्तू भैया ऐसे ही बस टेम पास कर रहे हैं।
सत्तू: बढ़िया है, और आज तुम दोनों ही हो छोटू उस्ताद कहां है आज?
भूरा: उसकी तबीयत खराब है भैया।
सत्तू: अच्छा का हुआ?
लल्लू: पता नहीं अम्मा बता रही थी उसकी तबीयत ठीक नहीं है।
सत्तू: अरे मुट्ठी ज्यादा मार लोगी हरामी ने इसलिए कमज़ोरी आ गई होगी।
सत्तू हंसते हुए कहता है लल्लू और भूरा के भी चेहरे पर हंसी आ जाती है,
सत्तू: सकल से ही साला हवसी लगता है छोटू उस्ताद,
भूरा: हिहेहे सही कह रहे हो सत्तू भैया,
भूरा भी हंसते हुए कहता है,
सत्तू: बेटा कम तो तुम दोनों भी नहीं हो, उसी के साथी हो।
दोनों ये सुनकर थोड़ा शरमा से जाते हैं।
लल्लू: अरे कहां सत्तू भैया तुम भी।
सत्तू: अच्छा अभी मेरे आने से पहले तुम लोग क्या बातें कर रहे थे मैं सब जानता हूं।
दोनों ये सुनकर हिल जाते हैं।
भूरा: केकेके क्या बातें भैया?
सत्तू: चुदाई की बातें तभी तो देखो दोनों के छोटू उस्ताद पजामे में तम्बू बनाए हुए हैं।
लल्लू और भूरा को चैन आता है थोड़ा उन्हे लगा था कहीं पुष्पा चाची के बारे में तो उनकी बात नहीं सुनली सत्तू ने।
लल्लू: हेहह वो तो भैया बस ऐसे ही हो जाता है।
सत्तू: अरे होना भी चाहिए सालों अभी जवान हो अभी लंड नही खड़ा होगा तो कब होगा।
भूरा: होता है भैया बहुत होता है साला।
भूरा खुलते हुए बोला, वैसे भी सत्तू हमेशा से उन तीनों के साथ खुलकर बात करता था तो वो तीनों भी उससे खुले हुए ही थे।
सत्तू: अरे तो होने दो ये उमर ही होती है मज़े लेने की, खूब मजे करने की अरे मैं तो कहता हूं मौका मिले तो चुदाई भी करो।
लल्लू: अरे भईया यहां गांव में कहां चुदाई का मौका मिलेगा। अपनी किस्मत में सिर्फ हिलाना लिखा है।
सत्तू: अरे ये ही तो तुम नहीं समझते घोंचुओ, मौका हर जगह होता है बस निकलना पड़ता है, और जहां नहीं होता वहां बनाना पड़ता है।
लल्लू: मतलब?
सत्तू: मतलब ये कि तुम्हें क्या लगता है कि जहां मौका होगा वहां कोई लड़की या औरत आकर खुद से तुम्हारा लोड़ा पकड़ कर अपनी चूत में डालेगी, अबे ऐसे तो खुद की पत्नी भी नहीं देती।
भूरा: फिर???
सत्तू: फिर क्या, मौका खुद से बनाना पड़ता है,
लल्लू: भैया समझ नहीं आ रहा तुम कह रहे हो मौका बनाएं, पर मौका कहां कैसे बनाएं।
भूरा: और मौका बनाने के चक्कर में कहीं गांड ना छिल जाए।
सत्तू: तुम जैसे घोंचू की तो छिलनी ही चाहिए।
लल्लू: सत्तू भैया ठीक से बताओ ना यार। तुम ही तो हमारे गुरू हो यार।
सत्तू: ठीक है आंड मत सहलाओ बताता हूं, देखो अभी में पिछले हफ्ते सब्जी बेचने गया था शहर तो एक ग्राहक से बात हुई काफी पड़ा लिखा था अफसर बाबू जैसा,
लल्लू: अच्छा फिर?
सत्तू: उसने कुछ बातें बताई औरतों के बारे में।
भूरा: अच्छा कैसी बातें?
सत्तू: उसने बताया कि औरतें जताती नहीं हैं पर औरतों में हमारे से ज्यादा गर्मी होती है, वो बस समाज के दर से छुपा के रखती हैं तो जो कोई उस गर्मी को भड़का लेता है वो अच्छे से हाथ क्या सब कुछ सेक लेता है, बस गर्मी को भड़काना और फिर अच्छे से बुझाना आना चाहिए।
लल्लू: अरे भईया बुझा तो अच्छे से देंगे, बस भड़काना नहीं आता।
भूरा: क्या ये बात सच है भैय्या कि लड़कियों में ज्यादा गर्मी होती है हमसे?
सत्तू: और क्या, वो गलत थोड़े ही बोलेगा, उसने इसी चीज की तो पढ़ाई की है, पता नहीं क्या बता रहा था नाम नहीं याद कुछ लौकी लौकी बता रहा था, उसमें शरीर की पढ़ाई होती है जैसे हमारा बदन काम करता है अंदर बाहर सब कुछ पढ़ाया जाता है।
लल्लू और भूरा आंखे फाड़े सत्तू से ज्ञान ले रहे थे,
लल्लू: सही है भैय्या, अगर मुझे पढ़ने को मिलता तो मैं भी यही पढ़ता।
सत्तू: हां ताकि चूत मिल सके, हरामी।
इस पर तीनों ताली मार कर हंसने लगते हैं,
भूरा: सारा खेल ही उसी का है भैया।
सत्तू: समझदार हो रहा है भूरा तू, अच्छा सुनो अब मैं चलता हूं मां राह देख रही है, पर तुम्हारे लिए एक उपहार है तुम्हारे सत्तू भैया की ओर से, लो मजे लो।
ये कहते हुए सत्तू अपने पीछे हाथ करता है और पैंट में से कुछ निकाल कर लल्लू के हाथ में रख देता है और चल देता है,
लल्लू और भूरा हाथ में रखे कागज़ को खोल कर देखते हैं और उनकी आंखें चौड़ी हो जाती हैं, वो पन्ने ऐसा लग रहा था किसी किताब के फटे हुए थे पर उन्हें देख कर लल्लू और भूरा की आंखें फटी हुई थी, दोनों ध्यान से देखते हैं, पहले पन्ने पर एक तस्वीर होती है लड़की की जो कि पूरी नंगी होकर झुकी हुई होती है और अपने दोनों हाथों से चूतड़ों को फैलाकर अपनी चूत और गांड दिखा रही होती है, दोनों के लंड ये देखकर तन जाते हैं, दोनों ध्यान से पूरी तस्वीर को बारिकी से देखते हैं,
भूरा: दूसरी भी देख ना।
लल्लू तुरंत दूसरा पन्ना ऊपर करता है, इस पर एक औरत बिल्कुल नंगी होकर एक लड़के के लंड पर बैठी है लंड उसकी चूत में घुसा हुआ है साथ ही उसके अगल बगल में दो लड़के खड़े हैं जिनमे से एक का लंड उसके मुंह में है और दूसरे का हाथ में। औरत की बड़ी बड़ी चूचियां लटक रही हैं।
ये देख तो दोनों के बदन में सरसराहट होने लगती है, दोनों ही अपने एक एक हाथ से लंड मसलते हुए पन्नों को पलट पलट कर देखने लगते हैं
भूरा: अरे भेंचो ऐसा भी होता है देख तो एक औरत एक साथ तीन तीन लंड संभाल रही है,
लल्लू: हां यार, सत्तू भैया मस्त बवाल चीज देकर गया है।
भूरा: यार अब मुझसे तो रहा नहीं जा रहा लंड बिल्कुल अकड़ गया है,
लल्लू: यही हाल मेरा भी है यार चल बाग में चलकर एक एक बार इसे भी शांत कर ही लेते हैं।
भूरा: चल।
दोनों साथ में बाग की ओर चल देते हैं।
इधर छोटू आज फिर देर से उठा पर आज उसे उठते ही मां की गाली सुनने को नहीं मिली बल्कि उठते ही मां ने उसके हाथ में चाय पकड़ा दी। उसकी दादी भी उसके बगल में ही बैठी थी
फुलवा: अब कैसा है हमारा लाल? तबीयत ठीक है?
छोटू मन में सोचने लगा साला रात वाला कांड तो मैं भूल ही गया, अब सब पूछेंगे तो क्या बोलूंगा क्या हुआ था, फिर याद आया कि रात को जो कहानी अम्मा ने खुद बनाई थी उसे ही चलने देता हूं क्या जा रहा है।
छोटू: ठीक हूं अम्मा।
पुष्पा और फुलवा दोनों ही ये सुनकर थोड़ी शांत होती हैं इतने में सुधा भी उनके पास आकर बैठ जाती है, घर के सारे मर्द शौच क्रिया आदि के लिए बाहर गए हुए थे,
फुलवा: हाय मेरा लाल एक ही रात में चेहरा उतरा उतरा सा लग रहा है।
फुलवा उसे अपने सीने से लगाकर कहती है, इधर छोटू अपनी अम्मा की कद्दू के आकर की चुचियों में मुंह पाकर कसमसाने लगता है, उसे स्पर्श अच्छा लगता है पर वो खुद को रोकता है।
सुधा: बेटा तुझे कुछ याद है रात को क्या हुआ था,
छोटू: हां चाची वो...
छोटू ये कहके चुप हो जाता है और सोचने लगता है ऐसा क्या बोलूं जो बिल्कुल सच लगे, ऐसे कुछ भी बोल दूंगा तो मुश्किल में पढ़ सकता हूं, और फिर वो मन ही मन एक कहानी बनाता है।
पुष्पा: चुप क्यूं हो गया लल्ला बोल ना।
छोटू: कैसे कहूं मां थोड़ी वैसी बात है, मुझे शर्म आ रही है।
फुलवा: अरे हमसे क्या शर्म, इतना बढ़ा हो गया तू जो अपनी अम्मा से शर्माएगा?
सुधा: देखो बेटा शरमाओ मत, यहां पर तो हम लोग ही हैं तुम्हारी मां, तुम्हारी चाची और अम्मा, हमने तुम्हें बचपन से गोद में खिलाया है तो हमसे मत शरमाओ और देखो अगर कुछ परेशानी है तो हमसे कहोगे तभी तो हम इसका हल निकलेंगे।
छोटू चाची की बात सुन तो रहा था पर उसके दिमाग में बार बार चाची का वो दृश्य सामने आ रहा था जिसमें वो नंगी होकर चाचा के लंड पर कूद रही थीं।
पुष्पा: चाची सही कह रही बेटा सब बतादे।
फुलवा: हां मेरे छोटूआ बता दे अपनी अम्मा को सब।
छोटू का ध्यान अपनी मां और अम्मा की बात सुनकर बापिस आता है और वो नजरें नीची करके बोलता है: अम्मा रात को जब मैं सो रहा था तो सोते सोते अचानक सपने में एक औरत आई और वो मुझे प्यार से छोटू छोटू कहके मेरे पास आ कर बैठ गई और मुझसे बोली छोटू तुम मुझे बहुत पसंद हो तुम मेरे साथ चलोगे, मैंने उससे मना किया तो वो वो..
छोटू इतना कह कर चुप हो जाता है,
सुधा: आगे बोलो बेटा, डरो मत हम लोग हैं तुम्हारे साथ।
सुधा उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहती है।
छोटू एक एक बार तीनों की ओर देखता है फिर अपना सिर नीचे कर के बोलता है: जब मैं उसे मना कर दिया तो वो वो खड़ी होकर अपने कपड़े उतारने लगी, मैंने उससे कहा ये तुम क्या कर रही हो, कपड़े क्यों उतार रही हो, जाओ यहां से पर वो सुन ही नहीं रही थी और फिर पूरी नंगी हो गई, उसे देख कर मैंने आंखे बंद करने की कोशिश की पर मेरी आंखें बंद ही नहीं हो रही थी, और वो मुझे पूरी नंगी होकर दिखा रही थी। इतना कहकर छोटू शांत हो जाता है और तीनों की प्रतिक्रिया देखने लगता है
वहीं ये सुनकर तीनों औरतें हैरान रह जाती हैं फुलवा के माथे पर तो फिर से गुस्सा दिखने लगता है पर सुधा उसे शांत करती है, वहीं पुष्पा को भी ये सब बड़ा अजीब सा लग रहा था साथ ही उसे अपने बेटे की चिंता भी हो रही थी, तीनों एक बार एक दूसरे को देखती हैं तो सुधा दोनों को शांत रहने का इशारा करती है और छोटू से कहती है: आगे क्या हुआ लला?
छोटू वैसे ही नज़रें नीचे किए हुए ही आगे बोलता है: फिर वो बार बार पूछ रही थी कि बताओ छोटू मैं कैसी लग रही हूं, पर मैं कुछ नहीं बोला तो वो मेरे हाथ पकड़ कर अपने बदन पर लगाने लगी पर मैं उससे हाथ छुड़ा लिए।
पुष्पा: फिर?
छोटू: फिर वो मुझसे बोली कि कोई बात नहीं तुम मुझको नहीं छुओगे तो मैं तुम्हें छू लूंगी,
सुधा: अच्छा फिर?
छोटू: फिर वो अपने हाथ बढ़ाकर मेरे पजामे के ऊपर फिराने लगी और और..
फुलवा: और का लल्ला?
छोटू: वो पजामे के ऊपर से ही मेरा वो वो पकड़ने लगी,
सुधा: लल्ला शरमाओ मत खुल कर बोलो।
छोटू: वो पजामे के ऊपर से ही मेरा नुन्नू पकड़ कर सहलाने लगी।
ये सुनकर कहीं न कहीं तीनों औरतों की ही सांसे भारी होने लगी थी,
फुलवा: दारी की इतनी हिम्मत,
सुधा: अम्मा रुको तो, उसे पूरी बात तो बताने दो। छोटू बोल आगे क्या हुआ?
छोटू: वो उसके बाद मैने उसे धक्का दिया तो वो पीछे हो गई पर पीछे होकर वो हंसने लगी और फिर मेरे नुन्नु में जलन होने लगी बहुत तेज़ तभी मेरी आंख खुल गई तो देखा सच में बहुत जलन हो रही थी, और नुन्नु बिल्कुल कड़क हो गया था,
पुष्पा: हाय दईया हमारा लल्ला, फिर का हुआ?
छोटू: इतनी तेज़ जलन हो रही थी कि मुझे कुछ समझ ही नहीं आया क्या करूं मैंने तुरंत अपना पजामा नीचे कर दिया पर फिर भी आराम नहीं मिला तो मैं उठ कर पानी के लिए भागा सोचा भैंसों के कुंड में डुबकी लगा दूंगा पर थोड़ा आगे बड़ा तो लगा पीछे से किसी ने कुछ मारा और फिर उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं।
छोटू अपनी कहानी सुना कर चुप हो गया और तीनों के चेहरे पढ़ने की कोशिश करने लगा, तीनों ही एक दूसरे की ओर देख रहीं थी पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था, उसे अपनी अम्मा की आंखों में गुस्सा साफ दिख रहा था वहीं मां और चाची की आंखों में चिंता थी।
सुधा: अच्छा चल जो हुआ सो हुआ तुम वो सब भूल जाओ लल्ला और जाओ खेत हो आओ, अब कुछ नहीं होगा।
छोटू: ठीक है चाची।
छोटू उठकर जाने लगता है तो पुष्पा पीछे से कहती है: लल्ला ज्यादा दूर मत जाना।
छोटू: ठीक है मां।
छोटू बाहर निकलते हुए मंद मंद मुस्काता है उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो सब उसकी कहानी को इतनी आसानी से मान जाएंगे, वो मन ही मन सोचता है: अरे वाह छोटू तेरे दिमाग का जवाब नहीं, क्या घुमाया है सबको, नहीं तो रात की सच्चाई किसी को पता चलती तो वो धुनाई होती जो जीवन भर याद रहती, ये सब सोचते हुए वो खुश होकर घर से निकल जाता है। इधर घर में तीनों औरतों की बातें शुरू हो गई थी उसके जाने के बाद।
पुष्पा: हाए दईया अम्मा हमें तो बहुत डर लग रहा है, अब का होगा?
सुधा: परेशान मत हो दीदी, सब ठीक हो जायेगा, अभी हमें छोटू को संभालना होगा नहीं तो उसको और चिंता हो जायेगी।
पुष्पा: सही कह रही हो सुधा, हाय क्या बिगाड़ा था हमारे लल्ला ने उस का जो हमारे लल्ला के पीछे पड़ गई।
तभी अचानक से फुलवा गुस्से में बोलती है: उस रांड का तो मैं बिगाडूंगी, कलमुही कहीं की, आजा मेरे नाती से क्या टकराती है मुझसे भिड़ आकर, छिनाल न तेरी सारी प्यास बुझा दी तो मेरा नाम फुलवा नहीं,
रंडी इतनी गर्मी है चूत में तो अपने बेटे को पकड़ ना उसका लंड ले अपनी चूत में मेरे नाती को छोड़ नहीं तो तेरी आत्मा का भी वो हाल करवाऊंगी जो किसी ने सोचा भी नहीं होगा।
फुलवा का गुस्सा देख सुधा और पुष्पा भी डर गई वहीं मां को बेटे से चुदवा लेने की बात सुनकर दोनों ही एक दूसरे की ओर देखने लगी कि ये क्या कह रही हैं।
सुधा: अम्मा शांत हो जाओ, ऐसे गुस्से से कुछ नहीं होगा, अब ये सोचो आगे करना क्या है।
फुलवा: करना क्या है क्या? आज ही छोटू को पीपल पर ले जाऊंगी और झाड़ा लगवा कर आऊंगी।
पुष्पा: ठीक है अम्मा ले जाओ बस हमारे लल्ला के सर से ये बला है जाए,
फुलवा: अरे वो क्या उसका बाप भी हटेगा।
सुधा: अम्मा फिर इनको और जेठ जी को क्या बताना है वो लोग भी आते होंगे।
पुष्पा: बताना क्या है जो बात है वो बताएंगे।
फुलवा: नहीं ये बात हम तीनों के बीच ही रहेगी, छोटू को भी बोल देंगे कि वो और किसी को ना कहे,
पुष्पा: पर इनसे क्यों छुपाना अम्मा?
फुलवा: मर्दों को बताएगी न तो वो कुछ कराएंगे हैं नहीं ऊपर से छोटू को शहर लेकर चल देंगे हस्पताल में दिखाने, और वहां तो इसका इलाज होने से रहा,
पुष्पा: हां सही कह रही हो अम्मा। छोटू के पापा तो रात ही कह रहे थे कि छोटू को शहर के डाक्टर से दिखा लाते हैं।
फुलवा: इसीलिए तो कह रहीं हूं, इस बला का निपटारा हमें ही करना है,
सुधा: ठीक है अम्मा ऐसा ही करते हैं बाकी अब कोई पूछे तो बोलना है छोटू ठीक है।
पुष्पा: ठीक है ऐसा ही करूंगी।
फुलवा: आने दो छोटू को किसी बहाने से ले जाऊंगी पीपल पे।
तीनों योजना बनाकर आगे के काम पर लग जाते हैं।
इसके आगे अगले अध्याय में।