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Dilchasp
Pics/gifs की जरूरत नहीं
Zabardast khanai bana chotu ustaad na toh.....
बहुत ही शानदार प्रदर्शन कर रहे हो भाईबहुत ही बड़ीया अपडेट्स मज़ा आ गया
इंतजार है तीनों दोस्तो के पहले seen को देखने के लिए
Mst bhai
Shandar update
बहुत ही शानदार अपडेट
Mazedaar update Bhai..... waiting more.....
Nice story
Nice update
Super bhai ..mza aa rha hh
Next update jldi dena plz
Hinglish me likho maza aayega samay bhi bachega aapka.
Update plz
Gaon ki manikta aur parithitiyon ka nazara badhiya peh kiya hai. Pratiksha agle rasprad update ki
Waiting for next update….
Bhai ye story hai or bo bhi incest to agar maa bete ki shadi ho gayi to fir to ye ligal ho gaya or agar ligal ho gaya to fir incest nahi rahega.or dusri baat aurat jis kisise bhi dil se sex karti hai to us time vo aadmi uska lover uska pati uska Malik uska sab kuchh hota hai par sex ke baad aurat us aadmi se uske rishte ke hisab se hi vyavhar karti hai.chahe sex karne wala uska pati uska beta ho ya naukar hi kyun na ho.or ek rishta banane ke liye ek rishta khatam kar diya to kya maza .maza to tab hai jab dono rishte sath sath chale maa bete ka bhi or premi premika ka bhi or yahi rohnny bhai ki story ki khubsurti hai aise hi tharki po bhai or dream boy ka apna ek alag style hai to story aage badne to do
आपकी बात से सहमत और असहमत दोनों हूं मगर क्योंकि ये एक कोरी कल्पना की तस्वीर बन रही है इसलिए हमारे सुझाव रंगों की तरह है अब ये लेखक के मन और कहानी के ढंग पर आश्रित है कि वो कौन से रंग का उपयोग कहां करते है।
पहली बात मां-बेटे की शादी हो गई तब भी उनका रिश्ता दुनिया को नजरों में अनैतिक ही रहेगा और इससे कहानी में एक किंक पैदा होगी, जो इसे रोचक बनाने में सहायता कर सकती है जैसे मां का अपने बेटे को शादी के लिए टोकना पर बेटे का यह कहकर इंकार कर देना की आपके जैसी औरत उसे कहीं और नहीं मिल सकती है या बेटे के दोस्तों का मां को GF समझ लेना, ऐसी कई विषयों पर कहानी को टच किया जा सकता है !
दूसरी बात से पूरी तरह सहमत हूं मगर कई कहानियों में ऐसा नहीं होता है, उसकी परिस्थिति के अनुसार और जब कहानी के केंद्र बिंदु मां-बेटे हो।
बाकी मैंने लेखक महोदय को उनकी कहानी के लिए शुभकामनाएं दी है और अगली कड़ी की प्रतीक्षा में हूं।
ना सिर्फ़ मर्द औरतों को भी खुली छूट दी जाती है इन भाइयों की कहानियों में। शायद ही कोई और लेखक इस तरह की कहानियाँ लिखने की हिम्मत कर पाता है, आपके लिखने के तरीक़े से लग रहा है अपना नाम भी इस तरह के लेखकों में शुमार होगा।
WAITING for next update bhai
बहुत ही मस्त लाजवाब और अद्भुत मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Superb dost kya mast kamuk Update diya h aap ne maza aa gya aap ki lekhni pad kr
Waise gaon ki story padne me bht jada maza ata h lekin jab story incest or adultery base me ho sabhi ko chudai krne ka moka mile or thoda seductive sean creat ho to or bhi maja ata h
Aap se yahi umid h ki aap ese hi kamuk or mast update dete rahenge
Waise bhi chotu ke dosto me chotu ki maa puspa ki gand dekh li h dekhte h pehle baji kon marta h chotu ki unke dosto me se koi orबहुत ही मस्त लाजवाब और अद्भुत मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Superb dost kya mast kamuk Update diya h aap ne maza aa gya aap ki lekhni pad kr
Waise gaon ki story padne me bht jada maza ata h lekin jab story incest or adultery base me ho sabhi ko chudai krne ka moka mile or thoda seductive sean creat ho to or bhi maja ata h
Aap se yahi umid h ki aap ese hi kamuk or mast update dete rahenge
Waise bhi chotu ke dosto me chotu ki maa puspa ki gand dekh li h dekhte h pehle baji kon marta h chotu ki unke dosto me se koi or
अध्याय 5 भी पोस्ट कर दिया है, पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया खुलकर व्यक्त करें। बहुत बहुत आभार।मस्त कहानी है भाई
Shaandar update bro.plz story main pics or gif bhi add karo jaise tharki po bhai or dreamboy 40 Bhai apni story main karte haiअध्याय 5पुष्पा: हां सही कह रही हो अम्मा। छोटू के पापा तो रात ही कह रहे थे कि छोटू को शहर के डाक्टर से दिखा लाते हैं।
फुलवा: इसीलिए तो कह रहीं हूं, इस बला का निपटारा हमें ही करना है,
सुधा: ठीक है अम्मा ऐसा ही करते हैं बाकी अब कोई पूछे तो बोलना है छोटू ठीक है।
पुष्पा: ठीक है ऐसा ही करूंगी।
फुलवा: आने दो छोटू को किसी बहाने से ले जाऊंगी पीपल पे।
तीनों योजना बनाकर आगे के काम पर लग जाते हैं, अब आगे...
लल्लू और भूरा ने उन दो पन्नों को देख देख कर अच्छे से हिलाया था और अपना अपना रस से नीचे की घास को नहलाकर दोनों बैठे बैठे हांफ रहे थे।
लल्लू: भेंचो लग रहा है सारी जान निकल गई।
भूरा: हां यार मुझे तो भूख लग रही है बड़ी तेज।
लल्लू: हां साले पहले लंड की भूख अब पेट की, तू भूखा ही रहता है।
भूरा: हेहेह।
भूरा ने उठकर पजामा ऊपर करते हुए कहा, लल्लू ने भी अपने कपड़े ठीक कर लिए फिर एक पन्ना जो भूरा के हाथ में था भूरा उसे देखते हुए कुछ बोलने को हुआ पर रुक गया,
लल्लू: क्या हुआ क्या बोल रहा था या मुंह में लंड अटक गया हहहा।
भूरा: कुछ नहीं यार बोलने लायक बात नहीं है।
लल्लू: अबे फिर तो जल्दी बता, ऐसी क्या बात है जो बोलने लायक नहीं है।
भूरा: छोड़ ना यार गलत चीज है।
लल्लू: बता रहा है या नहीं भेंचो।
भूरा: यार ये तस्वीर में लड़की की गांड देखने पर न बार बार एक ही खयाल आ रहा है दिमाग में।
लल्लू: क्या?
भूरा थोड़ा सोच कर सकुचा कर बोलता है: यही की पुष्पा चाची की गांड इससे ज़्यादा अच्छी है।
लल्लू ये सुन कर चुप हो जाता है तो भूरा को लगता है गलत बोल दिया फिर तभी लल्लू बोलता है: यार सही कहूं तो मैं भी ये ही सोच रहा था।
भूरा: हैं ना चाची की मस्त है ना?
लल्लू: हां यार पर हम ये गलत नहीं कर रहे वो हमारे लंगोटिया की मां है हमारी खुद की मां जैसी है, पहले तो हमने उन्हें उस हालत में देखा और अब उनकी गांड के बारे में बातें कर रहे हैं।
भूरा: कह तो तू सही रहा है यार पर क्या करूं बार बार वोही चित्र सामने आ जाता है,
लल्लू: जानता हूं, एक काम करते हैं अभी घर चलते हैं कुछ खाते पीते हैं फिर सोचेंगे इस बारे में, और फिर छोटुआ से भी मिलना है।
भूरा: हां चल चलते हैं।
दोनो ही अपने अपने अपने घर की ओर चल देते हैं, दोनों की गली तो एक ही थी बस घर थोड़े अलग अलग थे भूरा घर पहुंचता तो है उसके घर के बाहर ही चबूतरे पर बैठा हुआ उसका दादा प्यारेलाल चिलम गुड़गुड़ा रहा होता है उसके साथ ही बगल में सोमपाल छोटू का दादा और कुंवर पाल लल्लू के दादा भी थे,
प्यारेलाल उसे देखते ही कहता है: आ गया हांड के गांव भर में।
भूरा: हां बाबा अगली बार तुम्हे भी ले चलूंगा।
भूरा ये कहते हुए घर में घुस जाता है,
प्यारेलाल: देख रहे हो कैसे जवाब देता है।
प्यारेलाल अपने साथियों से कहता है।
कुंवरपाल: अरे ये तीनों का गुट एक जैसा ही है, तीनों को कोई काम धाम नहीं बस गांव भर में आवारागर्दी करवा लो।
सोमपाल: अरे तुम लोग भी न, बालक हैं इस उमर में सब कोई ऐसा ही होता है, अपना समय भूल गए कैसे कैसे कहां कहां हांडते रहते थे।
प्यारेलाल: अरे ये तो सही कहा, क्या दिन थे वो बचपन के।
कुंवरपाल: तब हमारे बाप दादा हम पर ऐसे ही चिल्लाते थे।
तीनों ठहाका लगाकर ज़ोर से हंसते हैं।
भूरा भन्नता हुआ घर में घुसता है और सीधा आंगन में पड़ी खाट पर जाकर धम्म से बैठ जाता है, उसकी मां रत्ना सामने बैठी पटिया पर बर्तन धो रही होती है।
भूरा: मां बाबा को समझा लो जब देखो तब सुनाते रहते हैं।
रत्ना: अच्छा मैं तेरे बाबा को समझा लूं? तू बड़े छोटे की सब तमीज भूल गया है क्या? एक तो सुबह सुबह ही हांडने निकल जाता है, ना घर में कोई काम न कुछ, और क्यूं करेगा मैं नौकरानी जो हूं पूरे घर की सारा काम करती रहूं। बना बना के खिलाती रहूं लाट साहब को।
भूरा समझ गया उसने आज बोल कर गलती कर दी है दादा ने तो एक ही बात बोली थी अब मां अच्छे से सुनाएगी हो सकता है एक दो लगा भी दें।
भूरा: अरे मेरी प्यारी मां तुम क्यूं गुस्सा करती हो बताओ क्या काम है अभी कर देता हूं।
रत्ना: ज़्यादा घी मत चुपड़ बातों में, सब जानती हूं तू कितना ही काम करता है,
भूरा: अरे बताओ तो क्या करना है, बताओगी नहीं तो कैसे करूंगा, लाओ बर्तन धो देता हूं।
भूरा उसके पास आकर बैठ जाता है और उसके हाथ से बर्तन लेकर धोने लगता है।
रत्ना उसके हाथ से बापिस बर्तन छीन लेती है और कहती है: छोड़ नाशपीटे, पाप लगेगा मुझे लड़के और मर्द पर बर्तन धुलाऊंगी खुद के होते हुए तो पाप चढ़ जायेगा।
भूरा: फिर क्या करूं,
रत्ना: कुछ मत कर जा चूल्हा गरम है अभी अपने लिए चाय बना ले।
भूरा: अच्छा ठीक है बना लेता हूं, वैसे मां चाय बनवाने पर पाप वगैरा का कोई जुगाड़ नहीं है क्या?
रत्ना: अभी बताती हूं रुक नाशपीटे।
रत्ना हंसते हुए झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहती है भूरा की बातें सुन उसे हंसी आ जाती है, उधर भूरा चूल्हे में जा कर चाय बनाने लगता है।
रत्ना बहुत मेहनती थी जैसी अक्सर गांव की सारी महिलाएं होती हैं, घर का सारा काम साथ पशुओं का भी वो सब संभाल लेती थी, पर उसकी एक आदत थी कि वो डरती बहुत थी और बहुत अंधविश्वासी थी, किसी ने कोई टोटका आदि बता दिया तो वो ज़रूर करती थी ये सब शायद उसके डर की वजह से ही था, अपने परिवार की खुशी या समृद्धि के लिए दिन प्रतिदिन कोई न कोई टोटका उसका चलता ही रहता था, जिससे भी जो सुनती थी वो करने लगती थी, घर वाले उसकी आदत से परेशान थे पर कर भी क्या सकते थे इसलिए वो उसे जैसा चाहे करने देते थे।
बर्तन धोने के बाद वो उठती है और रसोई में देखती है भूरा चाय बना रहा होता है, भगोने में झुक कर देखती है और कहती है: अरे बस इतना सा पानी क्यों चढ़ाया है और डाल अब जब बना ही रहा है तो सब पी लेंगे,
भूरा: अरे तो पहले बतातीं ना।
रत्ना: तुझमें बिल्कुल भी बुद्धि नहीं है या सब गांव में घूम घूम कर लूटा दी,
भूरा: अरे बढ़ा तो रहा हूं क्यूं गुस्सा करती हो।
रत्ना: बना मैं नहाने जा रही हूं राजू या तेरे पापा आ जाएं तो उन्हें भी दे दियो चाय।
भूरा: जो आज्ञा मां की।
भूरा हाथ जोड़कर झुक कर कहता है।
रत्ना के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ जाती है: भांड गीरी ही करले तू।
ये कहकर वो पानी की बाल्टी और कपड़े लेकर आंगन के कोने में बने स्नानघर में घुस जाती है, स्नान घर क्या था एक ओर दीवार और फिर उसके सामने दो बांस गाड़ दिए थे जिनको चादरों से बांधकर और एक ओर लकड़ी आदि के पट्टे लगाकर धक दिया था और सामने से एक साड़ी का ही परदा बना कर लटका दिया था, स्नान घर में जाकर वो पानी की बाल्टी रखती है कपड़े एक ओर दीवार पर टांग देती है और फिर तुरंत अपनी साड़ी खोल कर नीचे एक ओर रख देती है, तभी उसे कुछ याद आता है और वो स्नानघर से बाहर निकलती है और रसोई की ओर आती है, भूरा अपनी मां को अपनी ओर आते देखता है तो पूछता है क्या हो गया?
रत्ना: कुछ नहीं,
भूरा की नज़र अनजाने में ही उसकी मां की नाभी पर पड़ती है जो उसके हर कदम पर थिरक रही थी, साथ ही उसका गदराया पेट देख भूरा को कुछ अजीब सा लगता है, वो मन ही मन सोचता है मां की नाभी और पेट कितना सुंदर है,
इतने में रत्ना पास आती है और चूल्हे के बाहर की ओर से ठंडी राख उठाने लगती है।
भूरा: अब राख का क्या करोगी?
रत्ना: बे फिजूल के सवाल मत पूछा कर। जो करती हूं करने दे।
भूरा: हां करो, तुम और तुम्हारे टोटके।
भूरा दबे सुर में ही बोलता है उसे पता था अगर उसकी मां ने सुन लिया तो फिर उस पर बरस पड़ेगी।
रत्ना मुट्ठी में राख लेती है और फिर बापिस चली जाती है, भूरा की नज़र अपने आप ही रत्ना के पेटीकोट और फिर उसमें उभरे हुए चूतड़ों पर चली जाती है, उसके मन में अचानक खयाल आता है, मां के चूतड़ पुष्पा चाची से बड़े होंगे या छोटे, वो ये सोच ही रहा होता है कि खुद को झटकता है, और सोचता है क्या हो गया है मुझे अब तक सिर्फ पुष्पा चाची के बारे में ऐसे गंदे विचार आ रहे थे और अब खुद की मां के बारे में, क्या होता जा रहा है मुझे? इतना गंदा दिमाग होता जा रहा है मेरा, इतनी हवस बढ़ती जा रही है कि अपनी मां और चाची को भी नहीं छोड़ रहा। रसोई में चूल्हे पर चढ़ी हुई चाय जितनी उबाल मार रही थी उससे कहीं अधिक उबाल इस समय भूरा का दिमाग मार रहा था, पर मन का एक चरित्र होता है मन पर नियंत्रण रखना किसके बस की बात है उससे जिसके बारे में सोचने की मना किया जाए उसी के बारे में ज्यादा सोचता है, यही अभी भूरा के साथ हो रहा था जितना वो उन विचारों से लड़ने की कोशिश कर रहा था वो विचार उस पर उतने ही हावी हो रहे थे।
स्नान घर के अंदर रत्ना एक और टोटका करने में लगी हुई थी, कहीं से उसके कानों में बात पड़ी थी कि नहाते हुए चूल्हे की राख लगाने से घर के सारे कलेश मिट जाते हैं, अब कोई भी होगा तो ये ही सोचेगा ऐसा कैसे हो सकता है क्या कारण है, राख में ऐसी क्या शक्ति है, पर रत्ना नहीं, रत्ना को स्त्रोत कारण, प्रक्रिया इन सब से कोई मतलब नहीं था वो बस सुनती थी और करती थी। खैर अभी वो वोही कर रही थी वैसे तो वो पेटिकोट को सीने पर बांधकर नहाती थी जैसे अक्सर गांव में औरतें नहाती हैं पर टोटके के कारण अभी वैसे नहाना तो संभव नहीं था इसलिए राख को उसने एक और रखी अपनी साड़ी पर रख लिया और फिर अपना ब्लाउज उतारने लगी ब्लाउज उतरते ही वो ऊपर से पूरी नंगी हो गई क्योंकि अंदर बनियान आदि तो वो या गांव की औरतें तभी पहनती थी जब कहीं आना जाना हो रिश्तेदारी आदि में, ब्लाउज के बाद उसने अपने पेटिकोट के नाडे को पकड़ा और उसकी गांठ खोल दी और पेटिकोट को भी तुरंत पैरों के बीच से निकाल दिया, और वो पूरी नंगी हो गई, उसे पूरा नंगा होकर एक अजीब सी शर्म और एक अलग सा अहसास महसूस हो रहा था वो ऐसे पूरी नंगी होकर कभी नहीं नहाती थी, और अभी बेटे के घर में होते हुए वो पूरी नंगी थी स्नान घर में ये सोच कर ही उसके बदन में एक अलग प्रकार की सिरहन हो रही थी जिसे वो खुद नहीं जान पा रही थी कि ये क्या है,
शायद ये वोही अहसास या भाव है जो हमें तब होता है जब हम ये जानते हैं कि कोई कार्य गलत है फिर भी हम उसे करते हैं, ये ही भाव अभी रत्ना के मन में हो रहा था,
रत्ना ने नीचे से साड़ी के ऊपर रखी राख को पानी की कुछ बूंदें डालकर गीला कर लिया और फिर थोड़ी सी राख लेकर अपने दोनों हाथों में फैलाई और सबसे पहले अपने सुंदर चेहरे को राख से रंगने लगी, उसका गोरा चेहरा राख के कारण थोड़ा काला लगने लगा पर रत्ना का चेहरा ऐसा था कि वो किसी भी रंग की होती सुंदर ही लगती, क्यूंकि उसका चेहरा गोल था भरे हुए गाल थे बड़ी बड़ी आंखें और उस पर उसके होंठ जिनका आकार बिलकुल धनुष जैसा था।
चेहरे के बाद उसके हाथ उसकी गर्दन पर चलने लगे, गर्दन के बाद अपनी बाजुओं को भी राख से घिसने लगी। बाजुओं के बाद उसने फिर से राख को अपने हाथों में मला और फिर हाथों को सीधा लाकर अपनी दो बड़ी बड़ी चूचियों पर रख दिया और उन्हें राख से मलने लगी, अपनी चुचियों को मलते हुए उसके बदन में उसे तरंगें उठती हुई महसूस होने लगी, उसे अपनी चूचियों पर अपने हाथों का एहसास अच्छा लगने लगा। उसकी पपीते जैसी मोटी चूचियां उसके हाथों में समा भी नहीं रही थी पर वो उन्हे सहलाते हुए सोचने लगी, भूरा के पापा जब दबाते हैं तब ऐसा नहीं लगता पर अपने हाथों से भी अच्छा लग रहा है मन करता है ऐसे ही मसलती रहूं, उसे अपनी चूत में भी थोड़ी नमी का एहसास सा होने लगा जिसे सोचकर वो मन ही मन शर्मा गई, और उसने जानकर अपनी चुचियों से हाथ हटा लिया, और फिर से राख लेकर उसे अपनी पीठ पर लगाने लगी, पीठ के बाद अपनी गदराइ कमर और फिर पेट को मला, यहां तक मलने से वो खुद को काफी उत्तेजित महसूस कर रही थी, उसने और रख ली और फिर एक एक करके अपने दोनों पैरों और जांघों को मला, उसके बाद उसने फिर से राख ली और सोचने लगी क्यूंकि बस एक ही हिस्सा बचा था, खैर उसने एक सांस ली और फिर हाथों को पीछे ले जाकर अपने दोनों बड़े बड़े चूतड़ों को मलने लगी, जो उसके मलने से बुरी तरह हिल रहे थे, वो मन ही मन सोचने लगी कि उसके चूतड़ कितने बढ़ गए हैं, बताओ कैसे थरथरा रहे हैं मलने पर, उसने ये सोचते हुए चूतड़ों पर एक हल्की सी थाप मार दी तो उनमें एक बार फिर से लहर आ गई जिसे देख वो शर्मा गई,
पीछे लगाने के बाद उसने बची हुई राख ली और उसे लेकर अपनी पानी छोड़ती बुर पर उंगलियां रखी तो उसके पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गई और उसके मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई, उसके बदन में उसे एक गर्मी का एहसास हो रहा था उसने तुरन्त अपनी उंगलियां चूत के ऊपर से हटा लीं, पर उंगलियां हटाते ही उसकी चूत में एक खुजली सी होने लगी, उसका मन कर रहा था कि अभी उंगलियां लगाकर अच्छे से खुजली मिटा दे, पर वो जानती थी कि उसकी चूत की खुजली सिर्फ खुजली नहीं बल्कि उत्तेजना थी।
वो चाह तो नहीं रही थी पर उससे रहा भी नहीं जा रहा था और आखिर बदन की इच्छा के आगे मजबूर होकर उसने अपनी उंगलियां बापिस चूत के ऊपर रख दी तो उसके मुंह से एक बार फिर से सिसकी निकल गई, रत्ना धीरे धीरे अपनी उंगलियों से अपनी चूत के होंठों को सहलाने लगी, उसे एक अलग सा मज़ा आने लगा, जैसे लकड़ी से लड़की घिसने और लोहे से लोहा घिसने पर ऊर्जा उत्पन्न होती है वैसे ही उसकी बुर और उंगलियों की घिसावट से एक ऊर्जा एक गर्मी उत्पन्न हो रही थी जो कि उसके पूरे बदन में फैल रही थी और उसको तड़पा रही थी, धीरे धीरे वासना रत्ना के ऊपर सवार होने लगी उसकी आंखें बन्द हो गई और वो अपनी बुर को अलादीन के चिराग की तरह घिसते लगी, जिसमें से वासना और उत्तेजना रूपी ज़िंद निकल कर उसके बदन पर चढ़ गया था, कुछ ही पलों में जो उंगलियां उसकी बुर को बाहर से घिस रही थीं वो धीरे धीरे अंदर प्रवेश करने लगीं रत्ना भूलने लगी कि वो कहां किस हालत में है और अपनी उंगलियों से अपनी चूत की खुजली मिटाने लगी।
रसोई में बैठा हुआ भूरा अपनी उथल पुथल में था बल्कि और गहरा फंसता जा रहा था, अब तो उसके दिमाग में ये भी विचार आने लगा था कि उसकी मां की गांड नंगी कैसी दिखती होगी, और वो जितना इन विचारों से लड़ने की कोशिश कर रहा था उतना वो उस पर हावी हो रहे थे, तभी उसे अचानक से चाय का ध्यान आया तो उसने भगोने में देखा चाय पक चुकी थी अब बस दूध डालना था, उसने जल्दी से दूध निकाल कर डाला उसके मन में फिर से वही विचार घूमने लगे। स्नान घर में रत्ना की उंगलियां उसकी चूत में घूम रहीं थी, और उसके मुंह से हल्की हल्की सिसकियां भी निकल रही थी जो कि कोई भी आस पास होता तो सुन सकता था पर किस्मत से भूरा रसोई में बैठा था, उंगलियां लगातार उसकी चूत में अंदर बाहर हो रही थी उसका एक हाथ स्वयं ही उसकी चूची को मसलने लगा था, उंगलियों की लगातार मेहनत और साथ ही चुचियों का मसला जाना रत्ना के लिए एक पल को असहनीय हो गई और उसकी चूत ने खुशी के आंसू बहा कर उंगलियों को भीगा दिया, झड़ते हुए उसकी कमर झटके से खाने लगी साथ ही उसे अपनी टांगें भी कमज़ोर पड़ती हुई महसूस हुई तो वो धीरे धीरे नीचे की ओर बैठती चली गई और जब झड़ना खत्म हुआ तो वो नीचे बैठी हुई बुरी तरह हान्फ रही थी ऐसा तो वो उसे भूरा के पापा के साथ चुदाई के बाद भी एहसास नहीं होता था जैसा अभी हो रहा था, झड़ने के बाद उसे अहसास हुआ कि उसने अभी क्या किया तो उसे खुद पर लज्जा आने लगी साथ ही एक ग्लानि भाव मन में आ गया।
पानी को अपने बदन पर डालते हुए वो सोचने लगी कि मुझे क्या होता जा रहा है, क्या सच में मैं इतनी प्यासी हूं कि बेटे के रसोई में होते हुए भी नंगी होकर ये सब कर रही थी, इतनी हवस मेरे अंदर कैसे आ गई, भूरा के पापा जब कभी चुदाई के लिए कहते हैं तो मैं खुद कितने ही नखरे करने के बाद उन्हें करने देती हूं और आज खुद से ही ये सब, ज़रूर कुछ गलत हो रहा है।
रसोई में बेटा तो स्नानघर में मां दोनो ही ग्लानि भाव से डूबे हुए सोच में पड़े थे और दोनों की ग्लानि का कारण काम और उत्तेजना ही थे। चाय में उबाल आया तो भूरा ने चूल्हे से उतार ली इतने में उसका भाई राजू और पापा राजकुमार भी आ गए, भूरा ने उन्हें भी अपनी बनाई हुई चाय दी तो दोनों ही हैरान थे कि आज भूरा को कहां से चाय बनाने का शौक लग गया, कुछ ही देर में रत्ना भी नहाकर बाहर निकल चुकी थी और उनके पास आ कर बैठ कर वो भी चाय पीने लगी, भूरा चोरी छिपे अपनी मां को न चाहते हुए भी निहार रहा था और उसे एक अलग ढंग से देख रहा था। आज तक मां उसे मां नज़र आती थी पर अभी एक औरत नज़र आ रही थी एक भरे बदन की गदराई हुई औरत।
दूसरी ओर छोटू जैसे ही शौच आदि से निवृत होकर आया वैसे ही उसे उसकी अम्मा फुलवा ने घेर लिया: आ गया लल्ला चल जल्दी से नहा ले।
छोटू: पर इतनी जल्दी क्या है अम्मा?
फुलवा: अरे जल्दी कैसे ना है, जो रात हुआ वो दोबारा न हो इसके लिए उपाय तो करना पड़ेगा ना, और सुन ये बात जो तूने हम तीनों को बताई वो और किसी को नहीं पता चलनी चाहिए, तेरे उन दोनो यारों को भी नहीं।
छोटू: पर क्यूं अम्मा? बताने मे क्या नुकसान है?
फुलवा: कह रही हूं ना नहीं बतानी, ऐसी बातें बताई नहीं जाती समझा।
छोटू: ठीक है अम्मा।
फुलवा: जा अब जल्दी जा नहा ले।
छोटू बेमन नहाने जाता है वो सोचता है अपना फैलाया रायता है बटोरना तो पड़ेगा ही कुछ कहूंगा तो खुद ही फंस जाऊंगा।
नहा धो लेता है तो फुलवा उसे अपने साथ लेकर चल निकल जाती है।
घर के बाकी मर्द भी खा पी कर खेतों पर चले जाते हैं, सुधा पटिया के बगल में बैठी बर्तन मांझ रही होती है और पुष्पा पटिया पर बैठ कर कपड़े धो रही होती है, सुधा देखती है कि उसकी जेठानी कुछ सोच में डूबी हुई है।
सुधा: अरे दीदी अब सोचना छोड़ो अम्मा लेकर तो गई है छोटू को झाड़ा लग जायेगा तो सब ठीक हो जायेगा।
पुष्पा: अरे नहीं मैं कुछ और सोच रही थी।
सुधा: क्या?
पुष्पा: वही उदयभान की लुगाई के बारे में, मुझे तो उसका नाम भी नहीं पता, आखिर क्या हुआ होगा कि उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा और उसने फांसी लगा ली।
सुधा: कह तो सही रही हो दीदी, और सही कहूं तो मुझे नहीं लगता उसकी सच्ची बात किसी को पता भी है, जितने मुंह हैं उतनी बातें हैं।
पुष्पा: वही तो कोई कहता है वो रांड थी उसके बदन में बहुत प्यास बढ़ गई थी मर्दों के पीछे पड़ी रहती थी।
सुधा: हां कहते तो यहां तक हैं कि अपने ससुर तक के साथ उसके संबंध थे तभी तो और एक दिन उसने ससुर के साथ ऐसा सम्भोग किया की ससुर बिस्तर पर ही लुढ़क गया और उसी के बाद उसने फांसी लगा ली।
पुष्पा: पता नहीं क्या सच्चाई है क्या झूठ, वैसे इतनी गर्मी हो सकती है बदन में कि सही गलत का बोध ही न रहे।
सुधा: दीदी होने को तो कुछ भी हो सकता है, और तुम्हें पता है औरत के बदन में इन मर्दों से ज़्यादा गर्मी होती है, पर समाज और परिवार के खयाल से औरतें छुपा के रखती हैं।
पुष्पा: हां ये तो सही कहा तूने, घर परिवार का मान औरत से ही माना जाता है।
सुधा: पर दीदी होता तो औरत के पास बदन ही है ना, उसकी भी इच्छाएं होती हैं, बदन की जरूरतें होती हैं, जब ये पूरी नहीं होती तब ही कोई औरत गलत कदम उठाती है।
पुष्पा: पर गलत कदम उठाना भी सही नहीं माना जा सकता भले ही कुछ भी मजबूरी हो।
सुधा: बिलकुल नहीं होना चाहिए दीदी गलत तो गलत है, पर हम ये भूल जाते हैं कि जितनी गलती औरत की होती है उतनी ही आदमी की भी होती है।
पुष्पा: आदमी की मतलब?
सुधा: दीदी औरत गलत कदम क्यूं उठाती है, अपने आदमी की वजह से, जब उसे आदमी के प्यार की जगह तिरस्कार मिलने लगे, सम्मान की जगह अपमान मिलने लगे और सबसे बड़ी बात जब आदमी उसके बदन की जरूरतों को पूरा न कर सके तो औरत कहीं और ये सब खोजने लगती है।
पुष्पा: हां री, इस तरह से तो मैंने कभी सोचा नहीं था, सच में बड़ी होशियार है तू।
सुधा: क्या दीदी तुम भी, इसमें कौनसी समझ दारी है।
पुष्पा: वैसे अच्छा है हमारे घर में ऐसा नहीं है, खासकर तेरे साथ बाबू अच्छे से सारी जरूरतें पूरी करते हैं तेरी।
सुधा: धत्त दीदी तुम भी ना कहां की बात कहां ले आई।
पुष्पा: अरे गलत थोड़े ही बोल रही हूं, जो सच है वो सच है।
सुधा: तुम्हें बड़ा पता है क्या सच है, हां नहीं तो।
पुष्पा: अच्छा बेटा किवाड़ बंद करके क्या क्या होता है कमरे में, क्या मुझे नहीं पता।
सुधा ये सुन शर्मा जाती है,
सुधा: कुछ नहीं होता सोते हैं हम बस।
पुष्पा: ओहो देखो तो सोते हैं, कितना सोते हो इसका जवाब तो तेरा बदन ही दे रहा है, देख कैसे गदराता जा रहा है।
पुष्पा सुधा की छाती की ओर इशारा करके कहती है।
सुधा: धत्त, अच्छा इस हिसाब से तो तुम्हें जेठ जी पूरी रात छोड़ते ही नहीं होंगे, अपनी तो देखो कैसे ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ रही हैं।
सुधा के पलटवार से पुष्पा भी थोड़ा शरमा जाती है और पलटवार करती है,
पुष्पा: अच्छा मुझे कहां पकडेंगे तेरे जेठ जी, हम लोग तो आंगन में ही सोते हैं सबके साथ।
सुधा: अच्छा दीदी मूंह मत खुलवाओ मेरा, कब खाट से उठती हो कब रात में कमरे के किवाड़ खुलते हैं सब पता है मुझे।
सुधा के इस वार ने तो पुष्पा की बोलती ही बंद कर दी।
पुष्पा: हट बहुत बोलती है चल अब नहाने दे मुझे।
धुले कपड़ों की बाल्टी को एक और सरकाकर पुष्पा कहती है।
सुधा: अरे तो नहाओ न मैंने कहां रोका है, वैसे शर्मा तो नहीं रहीं अपना गदराया बदन मुझे दिखाने में।
पुष्पा: मैं क्यूं शर्माने लगी, जो मेरे पास है वोही तेरे पास है,
पुष्पा खड़े होते हुए कहती है और अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगती है और हुक खोलने के बाद अपने पेटिकोट को खोलकर अपनी छाती पर बांध लेती है।
सुधा: अच्छा शर्मा नहीं रही हो तो फिर ये पेटिकोट से क्या छुपा रही हो।
पुष्पा: अरे नहा रही हूं तू क्या चाहती है नंगी हो जाऊं तेरे सामने।
सुधा: और क्या हो जाओ, शर्माना कैसा है वैसे भी हम दोनों के अलावा कोई है भी नहीं घर में।
पुष्पा: हट पगला गई है तू, नंगे होकर नहाऊंगी अब।
सुधा: नंगे होकर ही नहाना चाहिए, वो तो कोई हो तो हम अपने बदन को ढंक लेते हैं, औरतों में क्या शर्माना।
सुधा पुष्पा को आज ऐसे ही छोड़ने वाली नहीं थी वो अच्छे से उसे चिढ़ाना चाहती थी।
पुष्पा: अरे तू भी ना मैं शर्मा नहीं रही हूं, वो तो बस हमेशा ऐसे ही नहाती हूं इसलिए।
सुधा: नहीं दीदी तुम शर्मा तो रही हो, भले ही जो मेरे पास है वो ही तुम्हारे पास है पर तुम्हारा वो सब मुझसे बड़ा बड़ा है।
पुष्पा: आज तू बिल्कुल पगला गई है, पीछे ही पड़ गई है।
सुधा: तो मान लो बात फिर और पेटिकोट खोल कर नहाओ।
पुष्पा एक गहरी सांस लेती है और कहती है: ठीक है पर मेरी भी एक बात तू भी मानेगी तुझे भी नंगे होकर नहाना पड़ेगा।
पुष्पा बड़े आत्मविश्वास से कहती है वो सोचती है कि खुद के नंगे होने की सुनकर सुधा अभी पीछे हट जाएगी। पर सुधा का जवाब उसे हैरान कर देता है।
सुधा: ठीक है मैं भी ऐसे ही नहाऊँगी, अब उतारो जल्दी से।
पुष्पा की चाल उल्टी पड़ जाती है, वो फिर हार मानते हुए कहती है: पता नहीं क्या क्या करवाती रहती है तू भी।
और इतना कहकर पुष्पा अपनी छाती के ऊपर बंधे पेटीकोट को खोल देती है और पेटिकोट उसके गदराए बदन से सरकते हुए नीचे गिरने लगता है और कुछ ही पलों में पुष्पा अपनी देवरानी के सामने नंगी खड़ी होती है।
सुधा ऊपर से नीचे तक अपनी जेठानी पुष्पा के बदन को देखती है और देख कर एक पल को उसका मुंह खुला का खुला का रह जाता है, वैसे तो सुधा ने पुष्पा को नहाते हुए और शौच आदि करते हुए बहुत बार देखा था पर ऐसे बिल्कुल मादरजात नंगी आज पहली बार देख रही थी, उसकी पपीते के आकार की चूचियां जिनमें एक कसावट थी, चूचियों के बीच अंगूर जैसे आकार के निप्पल जो तन कर खड़े होकर मानो पुकार रहे हों, चुचियों के नीचे गदराया हुआ पेट बीच में गोल गहरी नाभी जो किसी रेगिस्तान में एक गहरे कुएं की याद दिला रही थी, नाभी से नीचे हल्की हल्की झांटे थी उसके की नीचे चूत की लकीर की शुरुआत का आभास हो रहा था पर पुष्पा ने अपनी टांगों को चिपका कर उसे छिपा रखा था,
अपनी जेठानी का नंगा बदन देख कर सुधा का मुंह में पानी आ गया, उसे अहसास हुआ कि उसकी जेठानी का बदन सचमुच कितना कामुक है, एक औरत होकर भी उसके मन में जेठानी के प्रति आकर्षण हो रहा था तो अगर कोई मर्द ऐसे देखले तो उसका क्या होगा।
पुष्पा: ले हो गई खुश तू?
सुधा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वो अपने मुंह में आए पानी को गटक कर कहती है: हां दीदी, और सच कहूं तो क्या बदन है तुम्हारा, मैं अगर आदमी होती ना तो दिन भर तुम्हारे ऊपर चढ़ी रहती।
हर औरत की तरह पुष्पा को भी अपनी तारीफ सुनकर अच्छा लगा पर वो शरमाते हुए बोली: हट ना जाने क्या क्या बोलती रहती है तू।
पुष्पा लोटे से पानी अपने बदन पर डालते हुए बोली।
सुधा: सच में जीजी तुम्हारा बदन बहुत ही कामुक है, ऐसा बदन तो भोगने के लिए ही बनता है, जेठ जी पता नहीं कैसे तुम्हें अकेला छोड़ देते हैं।
पुष्पा: आज तेरे दिमाग पर कौनसा भूत सवार हो गया है जो ऐसी बाते कर रही है।
पुष्पा अपने पूरे बदन पर पानी डालते हुए बोली,
सुधा: अरे दीदी तुम्हें कोई ऐसे देख ले न तो उसपर कामवासना का भूत अपने आप चढ़ जायेगा। बताओ एक औरत होकर मुझे ऐसा हो रहा है तो आदमी का क्या हाल होगा।
पुष्पा जता नहीं रहीं थी पर उसे अपनी देवरानी द्वारा मिल रही तारीफ अच्छी लग रही थी और किस औरत को नहीं लगेगी और प्रशंशा का महत्व तो अपने आप ही बढ़ जाता है जब कोई दूसरी औरत करे तो क्योंकि आमतौर पर तो औरतों में होड़ लगी रहती है।
सुधा की बातें सुनकर और यूं आंगन में नंगे होकर नहाने से पुष्पा के बदन में उसे गर्मी और उत्तेजना का एहसास हो रहा था, उसे अपनी चूत में भी हल्की हल्की नमी महसूस हो रही थी, जिसे दबाने का वो प्रयास कर रही थी
पुष्पा: अब मजाक करना बंद कर तू और मुझे नहाने दे।
सुधा: अरे तो नहाओ न मैंने कब रोका है, मेरे बर्तन भी धूल गए, अब मैं भी नहाऊंगीं।
सुधा ने बर्तनों की टोकरी को एक और सरकाते हुए कहा,
पुष्पा: ठीक है जल्दी जल्दी नहा लेते हैं अम्मा भी आने वाली होंगी।
सुधा: हां दीदी, जल्दी नहा लेते हैं।
ये कहते हुए सुधा अपनी साड़ी खोलने लगी, पुष्पा अपने पैरों को घिसते हुए अपनी देवरानी को कनखियों से उसे देख रही थी, साड़ी के बाद सुधा ने अपना ब्लाउज खोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में उसे खोल कर अपनी बाजुओं से निकाल दिया तो पुष्पा की नज़र अपनी देवरानी की चुचियों पर अटक गई, सुधा की चूचियां उससे आकार में उन्नीस जरूर थीं पर उनकी गोलाई, कसावट और बीच में निप्पल और उसके आसपास का घेरा मानो ऐसा था जैसे किसी शिल्पकार ने बड़ी मेहनत और लगन से उन्हें रचा हो। सुधा तो बस अपनी देवरानी के जोबन को देखकर मंत्र मुग्ध सी हो गई, पर अगले ही पल कुछ ऐसा हुआ जिसकी आशा उसने नहीं की थी, सुधा ने पेटिकोट की गांठ खोली पर उसे अपने सीने पर चढ़ा कर बांधने की जगह सुधा ने उसे छोड़ दिया और वो उसके बदन से सरकता हुआ उसके पैरों में गिर गया।
पुष्पा के हाथ जो उसके पैरों को घिस रहे थे वो ज्यों के त्यों रुक गए, वो टकटकी लगाकर बस सुधा को देखने लगी, सुधा का बदन भी काम कामुक नहीं था कामुकता तो उसे भी जेठानी की तरह भर भर कर मिली थी, और इस सत्य की साक्षी खुद पुष्पा उसकी जेठानी थी जो कि नज़रें गड़ाए उसकी ओर देखे जा रही थी।
सुधा ने अपनी जेठानी को अपनी ओर यूं देखते हुए पाया तो उसके मन में भी एक उत्साह सा हुआ साथ ही बदन में एक उत्तेजना की लहर दौड़ गई, उसे भी अपनी चूत नम होती हुई महसूस हुई।
सुधा: ऐसे का देख रही हो दीदी, फिर मत कहना कि मैंने तुम्हारी शर्त पूरी नहीं की,
पुष्पा तो शर्त की बात भूल ही चुकी थी, फिर उसे याद आया तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, और खुद को थोड़ा संभालते हुए वो अपने हाथ पैर धोने लगी, पर उसकी नजरें अभी भी सुधा के बदन पर ही थी या यूं कहें कि वो हटाना ही नहीं चाह रही थी,
सुधा को भी पुष्पा का यूं उसे देखना बहुत भा रहा था, औरत के चरित्र में ही होता है अपनी कामुकता दिखाकर दूसरे को उत्साहित और उत्तेजित करना, पर अगर यही वो किसी औरत के साथ कर सके तो उसका आत्मविश्वास आकाश छूने लगता है।
इसी आत्मविश्वास के साथ सुधा ने अगला कदम बढ़ाया और पेटिकोट को पैरों से निकालने के बहाने से वो दूसरी तरफ घूम गई और बड़ी कामुकता से झुक कर अपने चूतड़ों को बाहर की ओर निकाल कर पेटिकोट को उठाने लगी, जिससे की उसके गोल मटोल चूतड़ उभर कर पुष्पा के सामने आ गए और पुष्पा के हाथ एक बार फिर से रुक गए, हालांकि पुष्पा ने शौच करते हुए सुधा के चूतड़ों को हज़ारों बार देखा था, पर अभी की परिस्थिति अलग थी, उसे लग रहा था वो उन चूतड़ों को आज पहली बार देख रही है, चूतड़ क्या थे मानो दो गोल पटीलों को सटाकर रख दिया गया हो, सुधा की चूचियां आकार में भले ही जेठानी से छोटी हों पर उसकी गांड़ बिल्कुल उसके बराबर थी, और उतनी ही कामुक और गोल थी,
पुष्पा तो ये दृश्य देख कर बिलकुल सुन्न सी होकर देखने लगी, सुधा को भी ये एहसास था कि उसकी जेठानी की नज़र उसके चूतड़ों पर ही है, उसे अपनी जेठानी को इस तरह लुभाने और सताने में बहुत अच्छा लग रहा था साथ ही उसको एक अलग प्रकार की उत्तेजना हो रही थी, जिसे वो खुद भी नहीं समझ पा रही थी पर उसे अच्छा लग रहा था, उसे अपनी चूत में नमी बढ़ती हुई महसूस हो रही थी। इसी को आगे बढ़ाते हुए सुधा थोड़ा और झुकी और उसने पेटिकोट के साथ साथ पड़े ब्लाउज को भी उठाया तो उसके चूतड़ खुल गए और लगा मानों दो पर्वतों ने थोड़ा खिसककर नदी के लिए रास्ता कर दिया हो, पुष्पा की नज़र भी उस नदी यानी सुधा के चूतड़ों की दरार पर टिक गई, और अगले ही पल उसे सुधा की गांड के उस भूरे से छेद का दर्शन हो गया, जिसे देखते ही पुष्पा को लगा उसकी चूत से पानी की कुछ बूंदे टपकी हों, पुष्पा बिलकुल एक टक अपनी देवरानी के गांड के छेद को देखे जा रही थी, पुष्पा का बदन उत्तेजना से भर उठा उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
सालों साथ शौच करने के बाद भी पुष्पा ने आजतक सुधा के गांड के छेद को नहीं देखा था क्योंकि अधिकतर वो अगल बगल में ही बैठती थीं और फिर धोकर चल देती थी, और सुधा ही क्या, पुष्पा ने बच्चों के अलावा किसी के गुदा द्वार को नहीं देखा था, उसे तो यही लगता था कि ये बदन का सबसे गंदा छेद होता है और इसे तो सबसे ही छुपा के रखना चाहिए, वो तो अपने पति सुभाष को भी नहीं देखने देना चाहती थी पर कई बार पति ने जब उसे नंगा कर के चोदा था तो देख ही लिया था पर उसके अलावा तो ऐसा कोई अनुभव उसका ऐसा नहीं था, और यहां उसकी देवरानी अपने उसी छेद को कितनी सहजता से उसके सामने उजागर कर रही थी, ये देख कर बहुत से भाव उसके मन में आ रहे थे।
कुछ पल बाद सुधा बापिस खड़ी हो गई तो पुष्पा के सामने से वो दृश्य हट गया, पर मन ही मन वो चाह रही थी वो बस ऐसे ही देखती रहे, ये खयाल आते ही पुष्पा ने सोचा क्या हो गया है उसे क्यों उसके मन में ऐसे विचार आ रहे हैं।
सुधा कपड़ों को उठाकर एक और बाल्टी में रखकर पुष्पा के पास पटिया पर आ गई, पर ज्यों ज्यों सुधा पास आ रही थी न जाने क्यों पुष्पा की छाती में जोर जोर से धक धक होने लगी, उसका पूरा बदन एक रोमांच से भरने लगा।
पुष्पा: तू यहां क्या कर रही है।
सुधा: क्या कर रही है मतलब, नहाऊंगी.
ये सुनकर पुष्पा का जी डोलने लगा।
पुष्पा: ऐसे साथ में,
पुष्पा ने सकुचाते हुए पूछा उत्तर जानते हुए भी, पुष्पा अपनी देवरानी के साथ आज ऐसा महसूस कर रही थी जैसे सुहागरात पर बिस्तर पर कुंवारी दुल्हन अपने पति के सामने करती है, मन में बहुत से विचार थे डर था, उत्तेजना थी, उत्साह था, साथ ही द्वंद था, चिंता थी और असहजता थी, वहीं सुधा उसे मर्द लग रही थी जिसे पता था क्या करना है वो आत्मविश्वास से भरी हुई थी, वहीं पुष्पा के मन में सिर्फ संशय ही था।
सुधा: हां दीदी साथ में, क्यों तुम्हें डर तो नहीं लग रहा कि हमारे बीच कुछ हो न जाए
सुधा ने हंसी करते हुए कहा पर पुष्पा को लगा कि सुधा तो उसके मन की बात जान गई है, पर फिर वो संभालते हुए बोली: हट मुझे और तुझसे किस बात का डर, वैसे भी औरत औरत के बीच क्या होगा।
ये जवाब सुधा से ज्यादा पुष्पा ने अपने आप को समझाने के लिए था।
सुधा: ठीक है फिर नहाते हैं।
सुधा ने लोटा उठाते हुए कहा।
इसके आगे अगले अपडेट में,
सिर्फ पढ़कर हिलाएं नहीं दोस्तों अपनी आपकी प्रतिक्रिया भी खुलकर व्यक्त करें।
Superb bhai itna kamuk or garam krne wala update aap ne diya ki land khada ho kr thumke marne lga bht hi maja aya update pad krअध्याय 5पुष्पा: हां सही कह रही हो अम्मा। छोटू के पापा तो रात ही कह रहे थे कि छोटू को शहर के डाक्टर से दिखा लाते हैं।
फुलवा: इसीलिए तो कह रहीं हूं, इस बला का निपटारा हमें ही करना है,
सुधा: ठीक है अम्मा ऐसा ही करते हैं बाकी अब कोई पूछे तो बोलना है छोटू ठीक है।
पुष्पा: ठीक है ऐसा ही करूंगी।
फुलवा: आने दो छोटू को किसी बहाने से ले जाऊंगी पीपल पे।
तीनों योजना बनाकर आगे के काम पर लग जाते हैं, अब आगे...
लल्लू और भूरा ने उन दो पन्नों को देख देख कर अच्छे से हिलाया था और अपना अपना रस से नीचे की घास को नहलाकर दोनों बैठे बैठे हांफ रहे थे।
लल्लू: भेंचो लग रहा है सारी जान निकल गई।
भूरा: हां यार मुझे तो भूख लग रही है बड़ी तेज।
लल्लू: हां साले पहले लंड की भूख अब पेट की, तू भूखा ही रहता है।
भूरा: हेहेह।
भूरा ने उठकर पजामा ऊपर करते हुए कहा, लल्लू ने भी अपने कपड़े ठीक कर लिए फिर एक पन्ना जो भूरा के हाथ में था भूरा उसे देखते हुए कुछ बोलने को हुआ पर रुक गया,
लल्लू: क्या हुआ क्या बोल रहा था या मुंह में लंड अटक गया हहहा।
भूरा: कुछ नहीं यार बोलने लायक बात नहीं है।
लल्लू: अबे फिर तो जल्दी बता, ऐसी क्या बात है जो बोलने लायक नहीं है।
भूरा: छोड़ ना यार गलत चीज है।
लल्लू: बता रहा है या नहीं भेंचो।
भूरा: यार ये तस्वीर में लड़की की गांड देखने पर न बार बार एक ही खयाल आ रहा है दिमाग में।
लल्लू: क्या?
भूरा थोड़ा सोच कर सकुचा कर बोलता है: यही की पुष्पा चाची की गांड इससे ज़्यादा अच्छी है।
लल्लू ये सुन कर चुप हो जाता है तो भूरा को लगता है गलत बोल दिया फिर तभी लल्लू बोलता है: यार सही कहूं तो मैं भी ये ही सोच रहा था।
भूरा: हैं ना चाची की मस्त है ना?
लल्लू: हां यार पर हम ये गलत नहीं कर रहे वो हमारे लंगोटिया की मां है हमारी खुद की मां जैसी है, पहले तो हमने उन्हें उस हालत में देखा और अब उनकी गांड के बारे में बातें कर रहे हैं।
भूरा: कह तो तू सही रहा है यार पर क्या करूं बार बार वोही चित्र सामने आ जाता है,
लल्लू: जानता हूं, एक काम करते हैं अभी घर चलते हैं कुछ खाते पीते हैं फिर सोचेंगे इस बारे में, और फिर छोटुआ से भी मिलना है।
भूरा: हां चल चलते हैं।
दोनो ही अपने अपने अपने घर की ओर चल देते हैं, दोनों की गली तो एक ही थी बस घर थोड़े अलग अलग थे भूरा घर पहुंचता तो है उसके घर के बाहर ही चबूतरे पर बैठा हुआ उसका दादा प्यारेलाल चिलम गुड़गुड़ा रहा होता है उसके साथ ही बगल में सोमपाल छोटू का दादा और कुंवर पाल लल्लू के दादा भी थे,
प्यारेलाल उसे देखते ही कहता है: आ गया हांड के गांव भर में।
भूरा: हां बाबा अगली बार तुम्हे भी ले चलूंगा।
भूरा ये कहते हुए घर में घुस जाता है,
प्यारेलाल: देख रहे हो कैसे जवाब देता है।
प्यारेलाल अपने साथियों से कहता है।
कुंवरपाल: अरे ये तीनों का गुट एक जैसा ही है, तीनों को कोई काम धाम नहीं बस गांव भर में आवारागर्दी करवा लो।
सोमपाल: अरे तुम लोग भी न, बालक हैं इस उमर में सब कोई ऐसा ही होता है, अपना समय भूल गए कैसे कैसे कहां कहां हांडते रहते थे।
प्यारेलाल: अरे ये तो सही कहा, क्या दिन थे वो बचपन के।
कुंवरपाल: तब हमारे बाप दादा हम पर ऐसे ही चिल्लाते थे।
तीनों ठहाका लगाकर ज़ोर से हंसते हैं।
भूरा भन्नता हुआ घर में घुसता है और सीधा आंगन में पड़ी खाट पर जाकर धम्म से बैठ जाता है, उसकी मां रत्ना सामने बैठी पटिया पर बर्तन धो रही होती है।
भूरा: मां बाबा को समझा लो जब देखो तब सुनाते रहते हैं।
रत्ना: अच्छा मैं तेरे बाबा को समझा लूं? तू बड़े छोटे की सब तमीज भूल गया है क्या? एक तो सुबह सुबह ही हांडने निकल जाता है, ना घर में कोई काम न कुछ, और क्यूं करेगा मैं नौकरानी जो हूं पूरे घर की सारा काम करती रहूं। बना बना के खिलाती रहूं लाट साहब को।
भूरा समझ गया उसने आज बोल कर गलती कर दी है दादा ने तो एक ही बात बोली थी अब मां अच्छे से सुनाएगी हो सकता है एक दो लगा भी दें।
भूरा: अरे मेरी प्यारी मां तुम क्यूं गुस्सा करती हो बताओ क्या काम है अभी कर देता हूं।
रत्ना: ज़्यादा घी मत चुपड़ बातों में, सब जानती हूं तू कितना ही काम करता है,
भूरा: अरे बताओ तो क्या करना है, बताओगी नहीं तो कैसे करूंगा, लाओ बर्तन धो देता हूं।
भूरा उसके पास आकर बैठ जाता है और उसके हाथ से बर्तन लेकर धोने लगता है।
रत्ना उसके हाथ से बापिस बर्तन छीन लेती है और कहती है: छोड़ नाशपीटे, पाप लगेगा मुझे लड़के और मर्द पर बर्तन धुलाऊंगी खुद के होते हुए तो पाप चढ़ जायेगा।
भूरा: फिर क्या करूं,
रत्ना: कुछ मत कर जा चूल्हा गरम है अभी अपने लिए चाय बना ले।
भूरा: अच्छा ठीक है बना लेता हूं, वैसे मां चाय बनवाने पर पाप वगैरा का कोई जुगाड़ नहीं है क्या?
रत्ना: अभी बताती हूं रुक नाशपीटे।
रत्ना हंसते हुए झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहती है भूरा की बातें सुन उसे हंसी आ जाती है, उधर भूरा चूल्हे में जा कर चाय बनाने लगता है।
रत्ना बहुत मेहनती थी जैसी अक्सर गांव की सारी महिलाएं होती हैं, घर का सारा काम साथ पशुओं का भी वो सब संभाल लेती थी, पर उसकी एक आदत थी कि वो डरती बहुत थी और बहुत अंधविश्वासी थी, किसी ने कोई टोटका आदि बता दिया तो वो ज़रूर करती थी ये सब शायद उसके डर की वजह से ही था, अपने परिवार की खुशी या समृद्धि के लिए दिन प्रतिदिन कोई न कोई टोटका उसका चलता ही रहता था, जिससे भी जो सुनती थी वो करने लगती थी, घर वाले उसकी आदत से परेशान थे पर कर भी क्या सकते थे इसलिए वो उसे जैसा चाहे करने देते थे।
बर्तन धोने के बाद वो उठती है और रसोई में देखती है भूरा चाय बना रहा होता है, भगोने में झुक कर देखती है और कहती है: अरे बस इतना सा पानी क्यों चढ़ाया है और डाल अब जब बना ही रहा है तो सब पी लेंगे,
भूरा: अरे तो पहले बतातीं ना।
रत्ना: तुझमें बिल्कुल भी बुद्धि नहीं है या सब गांव में घूम घूम कर लूटा दी,
भूरा: अरे बढ़ा तो रहा हूं क्यूं गुस्सा करती हो।
रत्ना: बना मैं नहाने जा रही हूं राजू या तेरे पापा आ जाएं तो उन्हें भी दे दियो चाय।
भूरा: जो आज्ञा मां की।
भूरा हाथ जोड़कर झुक कर कहता है।
रत्ना के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ जाती है: भांड गीरी ही करले तू।
ये कहकर वो पानी की बाल्टी और कपड़े लेकर आंगन के कोने में बने स्नानघर में घुस जाती है, स्नान घर क्या था एक ओर दीवार और फिर उसके सामने दो बांस गाड़ दिए थे जिनको चादरों से बांधकर और एक ओर लकड़ी आदि के पट्टे लगाकर धक दिया था और सामने से एक साड़ी का ही परदा बना कर लटका दिया था, स्नान घर में जाकर वो पानी की बाल्टी रखती है कपड़े एक ओर दीवार पर टांग देती है और फिर तुरंत अपनी साड़ी खोल कर नीचे एक ओर रख देती है, तभी उसे कुछ याद आता है और वो स्नानघर से बाहर निकलती है और रसोई की ओर आती है, भूरा अपनी मां को अपनी ओर आते देखता है तो पूछता है क्या हो गया?
रत्ना: कुछ नहीं,
भूरा की नज़र अनजाने में ही उसकी मां की नाभी पर पड़ती है जो उसके हर कदम पर थिरक रही थी, साथ ही उसका गदराया पेट देख भूरा को कुछ अजीब सा लगता है, वो मन ही मन सोचता है मां की नाभी और पेट कितना सुंदर है,
इतने में रत्ना पास आती है और चूल्हे के बाहर की ओर से ठंडी राख उठाने लगती है।
भूरा: अब राख का क्या करोगी?
रत्ना: बे फिजूल के सवाल मत पूछा कर। जो करती हूं करने दे।
भूरा: हां करो, तुम और तुम्हारे टोटके।
भूरा दबे सुर में ही बोलता है उसे पता था अगर उसकी मां ने सुन लिया तो फिर उस पर बरस पड़ेगी।
रत्ना मुट्ठी में राख लेती है और फिर बापिस चली जाती है, भूरा की नज़र अपने आप ही रत्ना के पेटीकोट और फिर उसमें उभरे हुए चूतड़ों पर चली जाती है, उसके मन में अचानक खयाल आता है, मां के चूतड़ पुष्पा चाची से बड़े होंगे या छोटे, वो ये सोच ही रहा होता है कि खुद को झटकता है, और सोचता है क्या हो गया है मुझे अब तक सिर्फ पुष्पा चाची के बारे में ऐसे गंदे विचार आ रहे थे और अब खुद की मां के बारे में, क्या होता जा रहा है मुझे? इतना गंदा दिमाग होता जा रहा है मेरा, इतनी हवस बढ़ती जा रही है कि अपनी मां और चाची को भी नहीं छोड़ रहा। रसोई में चूल्हे पर चढ़ी हुई चाय जितनी उबाल मार रही थी उससे कहीं अधिक उबाल इस समय भूरा का दिमाग मार रहा था, पर मन का एक चरित्र होता है मन पर नियंत्रण रखना किसके बस की बात है उससे जिसके बारे में सोचने की मना किया जाए उसी के बारे में ज्यादा सोचता है, यही अभी भूरा के साथ हो रहा था जितना वो उन विचारों से लड़ने की कोशिश कर रहा था वो विचार उस पर उतने ही हावी हो रहे थे।
स्नान घर के अंदर रत्ना एक और टोटका करने में लगी हुई थी, कहीं से उसके कानों में बात पड़ी थी कि नहाते हुए चूल्हे की राख लगाने से घर के सारे कलेश मिट जाते हैं, अब कोई भी होगा तो ये ही सोचेगा ऐसा कैसे हो सकता है क्या कारण है, राख में ऐसी क्या शक्ति है, पर रत्ना नहीं, रत्ना को स्त्रोत कारण, प्रक्रिया इन सब से कोई मतलब नहीं था वो बस सुनती थी और करती थी। खैर अभी वो वोही कर रही थी वैसे तो वो पेटिकोट को सीने पर बांधकर नहाती थी जैसे अक्सर गांव में औरतें नहाती हैं पर टोटके के कारण अभी वैसे नहाना तो संभव नहीं था इसलिए राख को उसने एक और रखी अपनी साड़ी पर रख लिया और फिर अपना ब्लाउज उतारने लगी ब्लाउज उतरते ही वो ऊपर से पूरी नंगी हो गई क्योंकि अंदर बनियान आदि तो वो या गांव की औरतें तभी पहनती थी जब कहीं आना जाना हो रिश्तेदारी आदि में, ब्लाउज के बाद उसने अपने पेटिकोट के नाडे को पकड़ा और उसकी गांठ खोल दी और पेटिकोट को भी तुरंत पैरों के बीच से निकाल दिया, और वो पूरी नंगी हो गई, उसे पूरा नंगा होकर एक अजीब सी शर्म और एक अलग सा अहसास महसूस हो रहा था वो ऐसे पूरी नंगी होकर कभी नहीं नहाती थी, और अभी बेटे के घर में होते हुए वो पूरी नंगी थी स्नान घर में ये सोच कर ही उसके बदन में एक अलग प्रकार की सिरहन हो रही थी जिसे वो खुद नहीं जान पा रही थी कि ये क्या है,
शायद ये वोही अहसास या भाव है जो हमें तब होता है जब हम ये जानते हैं कि कोई कार्य गलत है फिर भी हम उसे करते हैं, ये ही भाव अभी रत्ना के मन में हो रहा था,
रत्ना ने नीचे से साड़ी के ऊपर रखी राख को पानी की कुछ बूंदें डालकर गीला कर लिया और फिर थोड़ी सी राख लेकर अपने दोनों हाथों में फैलाई और सबसे पहले अपने सुंदर चेहरे को राख से रंगने लगी, उसका गोरा चेहरा राख के कारण थोड़ा काला लगने लगा पर रत्ना का चेहरा ऐसा था कि वो किसी भी रंग की होती सुंदर ही लगती, क्यूंकि उसका चेहरा गोल था भरे हुए गाल थे बड़ी बड़ी आंखें और उस पर उसके होंठ जिनका आकार बिलकुल धनुष जैसा था।
चेहरे के बाद उसके हाथ उसकी गर्दन पर चलने लगे, गर्दन के बाद अपनी बाजुओं को भी राख से घिसने लगी। बाजुओं के बाद उसने फिर से राख को अपने हाथों में मला और फिर हाथों को सीधा लाकर अपनी दो बड़ी बड़ी चूचियों पर रख दिया और उन्हें राख से मलने लगी, अपनी चुचियों को मलते हुए उसके बदन में उसे तरंगें उठती हुई महसूस होने लगी, उसे अपनी चूचियों पर अपने हाथों का एहसास अच्छा लगने लगा। उसकी पपीते जैसी मोटी चूचियां उसके हाथों में समा भी नहीं रही थी पर वो उन्हे सहलाते हुए सोचने लगी, भूरा के पापा जब दबाते हैं तब ऐसा नहीं लगता पर अपने हाथों से भी अच्छा लग रहा है मन करता है ऐसे ही मसलती रहूं, उसे अपनी चूत में भी थोड़ी नमी का एहसास सा होने लगा जिसे सोचकर वो मन ही मन शर्मा गई, और उसने जानकर अपनी चुचियों से हाथ हटा लिया, और फिर से राख लेकर उसे अपनी पीठ पर लगाने लगी, पीठ के बाद अपनी गदराइ कमर और फिर पेट को मला, यहां तक मलने से वो खुद को काफी उत्तेजित महसूस कर रही थी, उसने और रख ली और फिर एक एक करके अपने दोनों पैरों और जांघों को मला, उसके बाद उसने फिर से राख ली और सोचने लगी क्यूंकि बस एक ही हिस्सा बचा था, खैर उसने एक सांस ली और फिर हाथों को पीछे ले जाकर अपने दोनों बड़े बड़े चूतड़ों को मलने लगी, जो उसके मलने से बुरी तरह हिल रहे थे, वो मन ही मन सोचने लगी कि उसके चूतड़ कितने बढ़ गए हैं, बताओ कैसे थरथरा रहे हैं मलने पर, उसने ये सोचते हुए चूतड़ों पर एक हल्की सी थाप मार दी तो उनमें एक बार फिर से लहर आ गई जिसे देख वो शर्मा गई,
पीछे लगाने के बाद उसने बची हुई राख ली और उसे लेकर अपनी पानी छोड़ती बुर पर उंगलियां रखी तो उसके पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गई और उसके मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई, उसके बदन में उसे एक गर्मी का एहसास हो रहा था उसने तुरन्त अपनी उंगलियां चूत के ऊपर से हटा लीं, पर उंगलियां हटाते ही उसकी चूत में एक खुजली सी होने लगी, उसका मन कर रहा था कि अभी उंगलियां लगाकर अच्छे से खुजली मिटा दे, पर वो जानती थी कि उसकी चूत की खुजली सिर्फ खुजली नहीं बल्कि उत्तेजना थी।
वो चाह तो नहीं रही थी पर उससे रहा भी नहीं जा रहा था और आखिर बदन की इच्छा के आगे मजबूर होकर उसने अपनी उंगलियां बापिस चूत के ऊपर रख दी तो उसके मुंह से एक बार फिर से सिसकी निकल गई, रत्ना धीरे धीरे अपनी उंगलियों से अपनी चूत के होंठों को सहलाने लगी, उसे एक अलग सा मज़ा आने लगा, जैसे लकड़ी से लड़की घिसने और लोहे से लोहा घिसने पर ऊर्जा उत्पन्न होती है वैसे ही उसकी बुर और उंगलियों की घिसावट से एक ऊर्जा एक गर्मी उत्पन्न हो रही थी जो कि उसके पूरे बदन में फैल रही थी और उसको तड़पा रही थी, धीरे धीरे वासना रत्ना के ऊपर सवार होने लगी उसकी आंखें बन्द हो गई और वो अपनी बुर को अलादीन के चिराग की तरह घिसते लगी, जिसमें से वासना और उत्तेजना रूपी ज़िंद निकल कर उसके बदन पर चढ़ गया था, कुछ ही पलों में जो उंगलियां उसकी बुर को बाहर से घिस रही थीं वो धीरे धीरे अंदर प्रवेश करने लगीं रत्ना भूलने लगी कि वो कहां किस हालत में है और अपनी उंगलियों से अपनी चूत की खुजली मिटाने लगी।
रसोई में बैठा हुआ भूरा अपनी उथल पुथल में था बल्कि और गहरा फंसता जा रहा था, अब तो उसके दिमाग में ये भी विचार आने लगा था कि उसकी मां की गांड नंगी कैसी दिखती होगी, और वो जितना इन विचारों से लड़ने की कोशिश कर रहा था उतना वो उस पर हावी हो रहे थे, तभी उसे अचानक से चाय का ध्यान आया तो उसने भगोने में देखा चाय पक चुकी थी अब बस दूध डालना था, उसने जल्दी से दूध निकाल कर डाला उसके मन में फिर से वही विचार घूमने लगे। स्नान घर में रत्ना की उंगलियां उसकी चूत में घूम रहीं थी, और उसके मुंह से हल्की हल्की सिसकियां भी निकल रही थी जो कि कोई भी आस पास होता तो सुन सकता था पर किस्मत से भूरा रसोई में बैठा था, उंगलियां लगातार उसकी चूत में अंदर बाहर हो रही थी उसका एक हाथ स्वयं ही उसकी चूची को मसलने लगा था, उंगलियों की लगातार मेहनत और साथ ही चुचियों का मसला जाना रत्ना के लिए एक पल को असहनीय हो गई और उसकी चूत ने खुशी के आंसू बहा कर उंगलियों को भीगा दिया, झड़ते हुए उसकी कमर झटके से खाने लगी साथ ही उसे अपनी टांगें भी कमज़ोर पड़ती हुई महसूस हुई तो वो धीरे धीरे नीचे की ओर बैठती चली गई और जब झड़ना खत्म हुआ तो वो नीचे बैठी हुई बुरी तरह हान्फ रही थी ऐसा तो वो उसे भूरा के पापा के साथ चुदाई के बाद भी एहसास नहीं होता था जैसा अभी हो रहा था, झड़ने के बाद उसे अहसास हुआ कि उसने अभी क्या किया तो उसे खुद पर लज्जा आने लगी साथ ही एक ग्लानि भाव मन में आ गया।
पानी को अपने बदन पर डालते हुए वो सोचने लगी कि मुझे क्या होता जा रहा है, क्या सच में मैं इतनी प्यासी हूं कि बेटे के रसोई में होते हुए भी नंगी होकर ये सब कर रही थी, इतनी हवस मेरे अंदर कैसे आ गई, भूरा के पापा जब कभी चुदाई के लिए कहते हैं तो मैं खुद कितने ही नखरे करने के बाद उन्हें करने देती हूं और आज खुद से ही ये सब, ज़रूर कुछ गलत हो रहा है।
रसोई में बेटा तो स्नानघर में मां दोनो ही ग्लानि भाव से डूबे हुए सोच में पड़े थे और दोनों की ग्लानि का कारण काम और उत्तेजना ही थे। चाय में उबाल आया तो भूरा ने चूल्हे से उतार ली इतने में उसका भाई राजू और पापा राजकुमार भी आ गए, भूरा ने उन्हें भी अपनी बनाई हुई चाय दी तो दोनों ही हैरान थे कि आज भूरा को कहां से चाय बनाने का शौक लग गया, कुछ ही देर में रत्ना भी नहाकर बाहर निकल चुकी थी और उनके पास आ कर बैठ कर वो भी चाय पीने लगी, भूरा चोरी छिपे अपनी मां को न चाहते हुए भी निहार रहा था और उसे एक अलग ढंग से देख रहा था। आज तक मां उसे मां नज़र आती थी पर अभी एक औरत नज़र आ रही थी एक भरे बदन की गदराई हुई औरत।
दूसरी ओर छोटू जैसे ही शौच आदि से निवृत होकर आया वैसे ही उसे उसकी अम्मा फुलवा ने घेर लिया: आ गया लल्ला चल जल्दी से नहा ले।
छोटू: पर इतनी जल्दी क्या है अम्मा?
फुलवा: अरे जल्दी कैसे ना है, जो रात हुआ वो दोबारा न हो इसके लिए उपाय तो करना पड़ेगा ना, और सुन ये बात जो तूने हम तीनों को बताई वो और किसी को नहीं पता चलनी चाहिए, तेरे उन दोनो यारों को भी नहीं।
छोटू: पर क्यूं अम्मा? बताने मे क्या नुकसान है?
फुलवा: कह रही हूं ना नहीं बतानी, ऐसी बातें बताई नहीं जाती समझा।
छोटू: ठीक है अम्मा।
फुलवा: जा अब जल्दी जा नहा ले।
छोटू बेमन नहाने जाता है वो सोचता है अपना फैलाया रायता है बटोरना तो पड़ेगा ही कुछ कहूंगा तो खुद ही फंस जाऊंगा।
नहा धो लेता है तो फुलवा उसे अपने साथ लेकर चल निकल जाती है।
घर के बाकी मर्द भी खा पी कर खेतों पर चले जाते हैं, सुधा पटिया के बगल में बैठी बर्तन मांझ रही होती है और पुष्पा पटिया पर बैठ कर कपड़े धो रही होती है, सुधा देखती है कि उसकी जेठानी कुछ सोच में डूबी हुई है।
सुधा: अरे दीदी अब सोचना छोड़ो अम्मा लेकर तो गई है छोटू को झाड़ा लग जायेगा तो सब ठीक हो जायेगा।
पुष्पा: अरे नहीं मैं कुछ और सोच रही थी।
सुधा: क्या?
पुष्पा: वही उदयभान की लुगाई के बारे में, मुझे तो उसका नाम भी नहीं पता, आखिर क्या हुआ होगा कि उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा और उसने फांसी लगा ली।
सुधा: कह तो सही रही हो दीदी, और सही कहूं तो मुझे नहीं लगता उसकी सच्ची बात किसी को पता भी है, जितने मुंह हैं उतनी बातें हैं।
पुष्पा: वही तो कोई कहता है वो रांड थी उसके बदन में बहुत प्यास बढ़ गई थी मर्दों के पीछे पड़ी रहती थी।
सुधा: हां कहते तो यहां तक हैं कि अपने ससुर तक के साथ उसके संबंध थे तभी तो और एक दिन उसने ससुर के साथ ऐसा सम्भोग किया की ससुर बिस्तर पर ही लुढ़क गया और उसी के बाद उसने फांसी लगा ली।
पुष्पा: पता नहीं क्या सच्चाई है क्या झूठ, वैसे इतनी गर्मी हो सकती है बदन में कि सही गलत का बोध ही न रहे।
सुधा: दीदी होने को तो कुछ भी हो सकता है, और तुम्हें पता है औरत के बदन में इन मर्दों से ज़्यादा गर्मी होती है, पर समाज और परिवार के खयाल से औरतें छुपा के रखती हैं।
पुष्पा: हां ये तो सही कहा तूने, घर परिवार का मान औरत से ही माना जाता है।
सुधा: पर दीदी होता तो औरत के पास बदन ही है ना, उसकी भी इच्छाएं होती हैं, बदन की जरूरतें होती हैं, जब ये पूरी नहीं होती तब ही कोई औरत गलत कदम उठाती है।
पुष्पा: पर गलत कदम उठाना भी सही नहीं माना जा सकता भले ही कुछ भी मजबूरी हो।
सुधा: बिलकुल नहीं होना चाहिए दीदी गलत तो गलत है, पर हम ये भूल जाते हैं कि जितनी गलती औरत की होती है उतनी ही आदमी की भी होती है।
पुष्पा: आदमी की मतलब?
सुधा: दीदी औरत गलत कदम क्यूं उठाती है, अपने आदमी की वजह से, जब उसे आदमी के प्यार की जगह तिरस्कार मिलने लगे, सम्मान की जगह अपमान मिलने लगे और सबसे बड़ी बात जब आदमी उसके बदन की जरूरतों को पूरा न कर सके तो औरत कहीं और ये सब खोजने लगती है।
पुष्पा: हां री, इस तरह से तो मैंने कभी सोचा नहीं था, सच में बड़ी होशियार है तू।
सुधा: क्या दीदी तुम भी, इसमें कौनसी समझ दारी है।
पुष्पा: वैसे अच्छा है हमारे घर में ऐसा नहीं है, खासकर तेरे साथ बाबू अच्छे से सारी जरूरतें पूरी करते हैं तेरी।
सुधा: धत्त दीदी तुम भी ना कहां की बात कहां ले आई।
पुष्पा: अरे गलत थोड़े ही बोल रही हूं, जो सच है वो सच है।
सुधा: तुम्हें बड़ा पता है क्या सच है, हां नहीं तो।
पुष्पा: अच्छा बेटा किवाड़ बंद करके क्या क्या होता है कमरे में, क्या मुझे नहीं पता।
सुधा ये सुन शर्मा जाती है,
सुधा: कुछ नहीं होता सोते हैं हम बस।
पुष्पा: ओहो देखो तो सोते हैं, कितना सोते हो इसका जवाब तो तेरा बदन ही दे रहा है, देख कैसे गदराता जा रहा है।
पुष्पा सुधा की छाती की ओर इशारा करके कहती है।
सुधा: धत्त, अच्छा इस हिसाब से तो तुम्हें जेठ जी पूरी रात छोड़ते ही नहीं होंगे, अपनी तो देखो कैसे ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ रही हैं।
सुधा के पलटवार से पुष्पा भी थोड़ा शरमा जाती है और पलटवार करती है,
पुष्पा: अच्छा मुझे कहां पकडेंगे तेरे जेठ जी, हम लोग तो आंगन में ही सोते हैं सबके साथ।
सुधा: अच्छा दीदी मूंह मत खुलवाओ मेरा, कब खाट से उठती हो कब रात में कमरे के किवाड़ खुलते हैं सब पता है मुझे।
सुधा के इस वार ने तो पुष्पा की बोलती ही बंद कर दी।
पुष्पा: हट बहुत बोलती है चल अब नहाने दे मुझे।
धुले कपड़ों की बाल्टी को एक और सरकाकर पुष्पा कहती है।
सुधा: अरे तो नहाओ न मैंने कहां रोका है, वैसे शर्मा तो नहीं रहीं अपना गदराया बदन मुझे दिखाने में।
पुष्पा: मैं क्यूं शर्माने लगी, जो मेरे पास है वोही तेरे पास है,
पुष्पा खड़े होते हुए कहती है और अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगती है और हुक खोलने के बाद अपने पेटिकोट को खोलकर अपनी छाती पर बांध लेती है।
सुधा: अच्छा शर्मा नहीं रही हो तो फिर ये पेटिकोट से क्या छुपा रही हो।
पुष्पा: अरे नहा रही हूं तू क्या चाहती है नंगी हो जाऊं तेरे सामने।
सुधा: और क्या हो जाओ, शर्माना कैसा है वैसे भी हम दोनों के अलावा कोई है भी नहीं घर में।
पुष्पा: हट पगला गई है तू, नंगे होकर नहाऊंगी अब।
सुधा: नंगे होकर ही नहाना चाहिए, वो तो कोई हो तो हम अपने बदन को ढंक लेते हैं, औरतों में क्या शर्माना।
सुधा पुष्पा को आज ऐसे ही छोड़ने वाली नहीं थी वो अच्छे से उसे चिढ़ाना चाहती थी।
पुष्पा: अरे तू भी ना मैं शर्मा नहीं रही हूं, वो तो बस हमेशा ऐसे ही नहाती हूं इसलिए।
सुधा: नहीं दीदी तुम शर्मा तो रही हो, भले ही जो मेरे पास है वो ही तुम्हारे पास है पर तुम्हारा वो सब मुझसे बड़ा बड़ा है।
पुष्पा: आज तू बिल्कुल पगला गई है, पीछे ही पड़ गई है।
सुधा: तो मान लो बात फिर और पेटिकोट खोल कर नहाओ।
पुष्पा एक गहरी सांस लेती है और कहती है: ठीक है पर मेरी भी एक बात तू भी मानेगी तुझे भी नंगे होकर नहाना पड़ेगा।
पुष्पा बड़े आत्मविश्वास से कहती है वो सोचती है कि खुद के नंगे होने की सुनकर सुधा अभी पीछे हट जाएगी। पर सुधा का जवाब उसे हैरान कर देता है।
सुधा: ठीक है मैं भी ऐसे ही नहाऊँगी, अब उतारो जल्दी से।
पुष्पा की चाल उल्टी पड़ जाती है, वो फिर हार मानते हुए कहती है: पता नहीं क्या क्या करवाती रहती है तू भी।
और इतना कहकर पुष्पा अपनी छाती के ऊपर बंधे पेटीकोट को खोल देती है और पेटिकोट उसके गदराए बदन से सरकते हुए नीचे गिरने लगता है और कुछ ही पलों में पुष्पा अपनी देवरानी के सामने नंगी खड़ी होती है।
सुधा ऊपर से नीचे तक अपनी जेठानी पुष्पा के बदन को देखती है और देख कर एक पल को उसका मुंह खुला का खुला का रह जाता है, वैसे तो सुधा ने पुष्पा को नहाते हुए और शौच आदि करते हुए बहुत बार देखा था पर ऐसे बिल्कुल मादरजात नंगी आज पहली बार देख रही थी, उसकी पपीते के आकार की चूचियां जिनमें एक कसावट थी, चूचियों के बीच अंगूर जैसे आकार के निप्पल जो तन कर खड़े होकर मानो पुकार रहे हों, चुचियों के नीचे गदराया हुआ पेट बीच में गोल गहरी नाभी जो किसी रेगिस्तान में एक गहरे कुएं की याद दिला रही थी, नाभी से नीचे हल्की हल्की झांटे थी उसके की नीचे चूत की लकीर की शुरुआत का आभास हो रहा था पर पुष्पा ने अपनी टांगों को चिपका कर उसे छिपा रखा था,
अपनी जेठानी का नंगा बदन देख कर सुधा का मुंह में पानी आ गया, उसे अहसास हुआ कि उसकी जेठानी का बदन सचमुच कितना कामुक है, एक औरत होकर भी उसके मन में जेठानी के प्रति आकर्षण हो रहा था तो अगर कोई मर्द ऐसे देखले तो उसका क्या होगा।
पुष्पा: ले हो गई खुश तू?
सुधा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वो अपने मुंह में आए पानी को गटक कर कहती है: हां दीदी, और सच कहूं तो क्या बदन है तुम्हारा, मैं अगर आदमी होती ना तो दिन भर तुम्हारे ऊपर चढ़ी रहती।
हर औरत की तरह पुष्पा को भी अपनी तारीफ सुनकर अच्छा लगा पर वो शरमाते हुए बोली: हट ना जाने क्या क्या बोलती रहती है तू।
पुष्पा लोटे से पानी अपने बदन पर डालते हुए बोली।
सुधा: सच में जीजी तुम्हारा बदन बहुत ही कामुक है, ऐसा बदन तो भोगने के लिए ही बनता है, जेठ जी पता नहीं कैसे तुम्हें अकेला छोड़ देते हैं।
पुष्पा: आज तेरे दिमाग पर कौनसा भूत सवार हो गया है जो ऐसी बाते कर रही है।
पुष्पा अपने पूरे बदन पर पानी डालते हुए बोली,
सुधा: अरे दीदी तुम्हें कोई ऐसे देख ले न तो उसपर कामवासना का भूत अपने आप चढ़ जायेगा। बताओ एक औरत होकर मुझे ऐसा हो रहा है तो आदमी का क्या हाल होगा।
पुष्पा जता नहीं रहीं थी पर उसे अपनी देवरानी द्वारा मिल रही तारीफ अच्छी लग रही थी और किस औरत को नहीं लगेगी और प्रशंशा का महत्व तो अपने आप ही बढ़ जाता है जब कोई दूसरी औरत करे तो क्योंकि आमतौर पर तो औरतों में होड़ लगी रहती है।
सुधा की बातें सुनकर और यूं आंगन में नंगे होकर नहाने से पुष्पा के बदन में उसे गर्मी और उत्तेजना का एहसास हो रहा था, उसे अपनी चूत में भी हल्की हल्की नमी महसूस हो रही थी, जिसे दबाने का वो प्रयास कर रही थी
पुष्पा: अब मजाक करना बंद कर तू और मुझे नहाने दे।
सुधा: अरे तो नहाओ न मैंने कब रोका है, मेरे बर्तन भी धूल गए, अब मैं भी नहाऊंगीं।
सुधा ने बर्तनों की टोकरी को एक और सरकाते हुए कहा,
पुष्पा: ठीक है जल्दी जल्दी नहा लेते हैं अम्मा भी आने वाली होंगी।
सुधा: हां दीदी, जल्दी नहा लेते हैं।
ये कहते हुए सुधा अपनी साड़ी खोलने लगी, पुष्पा अपने पैरों को घिसते हुए अपनी देवरानी को कनखियों से उसे देख रही थी, साड़ी के बाद सुधा ने अपना ब्लाउज खोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में उसे खोल कर अपनी बाजुओं से निकाल दिया तो पुष्पा की नज़र अपनी देवरानी की चुचियों पर अटक गई, सुधा की चूचियां उससे आकार में उन्नीस जरूर थीं पर उनकी गोलाई, कसावट और बीच में निप्पल और उसके आसपास का घेरा मानो ऐसा था जैसे किसी शिल्पकार ने बड़ी मेहनत और लगन से उन्हें रचा हो। सुधा तो बस अपनी देवरानी के जोबन को देखकर मंत्र मुग्ध सी हो गई, पर अगले ही पल कुछ ऐसा हुआ जिसकी आशा उसने नहीं की थी, सुधा ने पेटिकोट की गांठ खोली पर उसे अपने सीने पर चढ़ा कर बांधने की जगह सुधा ने उसे छोड़ दिया और वो उसके बदन से सरकता हुआ उसके पैरों में गिर गया।
पुष्पा के हाथ जो उसके पैरों को घिस रहे थे वो ज्यों के त्यों रुक गए, वो टकटकी लगाकर बस सुधा को देखने लगी, सुधा का बदन भी काम कामुक नहीं था कामुकता तो उसे भी जेठानी की तरह भर भर कर मिली थी, और इस सत्य की साक्षी खुद पुष्पा उसकी जेठानी थी जो कि नज़रें गड़ाए उसकी ओर देखे जा रही थी।
सुधा ने अपनी जेठानी को अपनी ओर यूं देखते हुए पाया तो उसके मन में भी एक उत्साह सा हुआ साथ ही बदन में एक उत्तेजना की लहर दौड़ गई, उसे भी अपनी चूत नम होती हुई महसूस हुई।
सुधा: ऐसे का देख रही हो दीदी, फिर मत कहना कि मैंने तुम्हारी शर्त पूरी नहीं की,
पुष्पा तो शर्त की बात भूल ही चुकी थी, फिर उसे याद आया तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, और खुद को थोड़ा संभालते हुए वो अपने हाथ पैर धोने लगी, पर उसकी नजरें अभी भी सुधा के बदन पर ही थी या यूं कहें कि वो हटाना ही नहीं चाह रही थी,
सुधा को भी पुष्पा का यूं उसे देखना बहुत भा रहा था, औरत के चरित्र में ही होता है अपनी कामुकता दिखाकर दूसरे को उत्साहित और उत्तेजित करना, पर अगर यही वो किसी औरत के साथ कर सके तो उसका आत्मविश्वास आकाश छूने लगता है।
इसी आत्मविश्वास के साथ सुधा ने अगला कदम बढ़ाया और पेटिकोट को पैरों से निकालने के बहाने से वो दूसरी तरफ घूम गई और बड़ी कामुकता से झुक कर अपने चूतड़ों को बाहर की ओर निकाल कर पेटिकोट को उठाने लगी, जिससे की उसके गोल मटोल चूतड़ उभर कर पुष्पा के सामने आ गए और पुष्पा के हाथ एक बार फिर से रुक गए, हालांकि पुष्पा ने शौच करते हुए सुधा के चूतड़ों को हज़ारों बार देखा था, पर अभी की परिस्थिति अलग थी, उसे लग रहा था वो उन चूतड़ों को आज पहली बार देख रही है, चूतड़ क्या थे मानो दो गोल पटीलों को सटाकर रख दिया गया हो, सुधा की चूचियां आकार में भले ही जेठानी से छोटी हों पर उसकी गांड़ बिल्कुल उसके बराबर थी, और उतनी ही कामुक और गोल थी,
पुष्पा तो ये दृश्य देख कर बिलकुल सुन्न सी होकर देखने लगी, सुधा को भी ये एहसास था कि उसकी जेठानी की नज़र उसके चूतड़ों पर ही है, उसे अपनी जेठानी को इस तरह लुभाने और सताने में बहुत अच्छा लग रहा था साथ ही उसको एक अलग प्रकार की उत्तेजना हो रही थी, जिसे वो खुद भी नहीं समझ पा रही थी पर उसे अच्छा लग रहा था, उसे अपनी चूत में नमी बढ़ती हुई महसूस हो रही थी। इसी को आगे बढ़ाते हुए सुधा थोड़ा और झुकी और उसने पेटिकोट के साथ साथ पड़े ब्लाउज को भी उठाया तो उसके चूतड़ खुल गए और लगा मानों दो पर्वतों ने थोड़ा खिसककर नदी के लिए रास्ता कर दिया हो, पुष्पा की नज़र भी उस नदी यानी सुधा के चूतड़ों की दरार पर टिक गई, और अगले ही पल उसे सुधा की गांड के उस भूरे से छेद का दर्शन हो गया, जिसे देखते ही पुष्पा को लगा उसकी चूत से पानी की कुछ बूंदे टपकी हों, पुष्पा बिलकुल एक टक अपनी देवरानी के गांड के छेद को देखे जा रही थी, पुष्पा का बदन उत्तेजना से भर उठा उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
सालों साथ शौच करने के बाद भी पुष्पा ने आजतक सुधा के गांड के छेद को नहीं देखा था क्योंकि अधिकतर वो अगल बगल में ही बैठती थीं और फिर धोकर चल देती थी, और सुधा ही क्या, पुष्पा ने बच्चों के अलावा किसी के गुदा द्वार को नहीं देखा था, उसे तो यही लगता था कि ये बदन का सबसे गंदा छेद होता है और इसे तो सबसे ही छुपा के रखना चाहिए, वो तो अपने पति सुभाष को भी नहीं देखने देना चाहती थी पर कई बार पति ने जब उसे नंगा कर के चोदा था तो देख ही लिया था पर उसके अलावा तो ऐसा कोई अनुभव उसका ऐसा नहीं था, और यहां उसकी देवरानी अपने उसी छेद को कितनी सहजता से उसके सामने उजागर कर रही थी, ये देख कर बहुत से भाव उसके मन में आ रहे थे।
कुछ पल बाद सुधा बापिस खड़ी हो गई तो पुष्पा के सामने से वो दृश्य हट गया, पर मन ही मन वो चाह रही थी वो बस ऐसे ही देखती रहे, ये खयाल आते ही पुष्पा ने सोचा क्या हो गया है उसे क्यों उसके मन में ऐसे विचार आ रहे हैं।
सुधा कपड़ों को उठाकर एक और बाल्टी में रखकर पुष्पा के पास पटिया पर आ गई, पर ज्यों ज्यों सुधा पास आ रही थी न जाने क्यों पुष्पा की छाती में जोर जोर से धक धक होने लगी, उसका पूरा बदन एक रोमांच से भरने लगा।
पुष्पा: तू यहां क्या कर रही है।
सुधा: क्या कर रही है मतलब, नहाऊंगी.
ये सुनकर पुष्पा का जी डोलने लगा।
पुष्पा: ऐसे साथ में,
पुष्पा ने सकुचाते हुए पूछा उत्तर जानते हुए भी, पुष्पा अपनी देवरानी के साथ आज ऐसा महसूस कर रही थी जैसे सुहागरात पर बिस्तर पर कुंवारी दुल्हन अपने पति के सामने करती है, मन में बहुत से विचार थे डर था, उत्तेजना थी, उत्साह था, साथ ही द्वंद था, चिंता थी और असहजता थी, वहीं सुधा उसे मर्द लग रही थी जिसे पता था क्या करना है वो आत्मविश्वास से भरी हुई थी, वहीं पुष्पा के मन में सिर्फ संशय ही था।
सुधा: हां दीदी साथ में, क्यों तुम्हें डर तो नहीं लग रहा कि हमारे बीच कुछ हो न जाए
सुधा ने हंसी करते हुए कहा पर पुष्पा को लगा कि सुधा तो उसके मन की बात जान गई है, पर फिर वो संभालते हुए बोली: हट मुझे और तुझसे किस बात का डर, वैसे भी औरत औरत के बीच क्या होगा।
ये जवाब सुधा से ज्यादा पुष्पा ने अपने आप को समझाने के लिए था।
सुधा: ठीक है फिर नहाते हैं।
सुधा ने लोटा उठाते हुए कहा।
इसके आगे अगले अपडेट में,
सिर्फ पढ़कर हिलाएं नहीं दोस्तों अपनी आपकी प्रतिक्रिया भी खुलकर व्यक्त करें।
Shandar super hot updateअध्याय 5पुष्पा: हां सही कह रही हो अम्मा। छोटू के पापा तो रात ही कह रहे थे कि छोटू को शहर के डाक्टर से दिखा लाते हैं।
फुलवा: इसीलिए तो कह रहीं हूं, इस बला का निपटारा हमें ही करना है,
सुधा: ठीक है अम्मा ऐसा ही करते हैं बाकी अब कोई पूछे तो बोलना है छोटू ठीक है।
पुष्पा: ठीक है ऐसा ही करूंगी।
फुलवा: आने दो छोटू को किसी बहाने से ले जाऊंगी पीपल पे।
तीनों योजना बनाकर आगे के काम पर लग जाते हैं, अब आगे...
लल्लू और भूरा ने उन दो पन्नों को देख देख कर अच्छे से हिलाया था और अपना अपना रस से नीचे की घास को नहलाकर दोनों बैठे बैठे हांफ रहे थे।
लल्लू: भेंचो लग रहा है सारी जान निकल गई।
भूरा: हां यार मुझे तो भूख लग रही है बड़ी तेज।
लल्लू: हां साले पहले लंड की भूख अब पेट की, तू भूखा ही रहता है।
भूरा: हेहेह।
भूरा ने उठकर पजामा ऊपर करते हुए कहा, लल्लू ने भी अपने कपड़े ठीक कर लिए फिर एक पन्ना जो भूरा के हाथ में था भूरा उसे देखते हुए कुछ बोलने को हुआ पर रुक गया,
लल्लू: क्या हुआ क्या बोल रहा था या मुंह में लंड अटक गया हहहा।
भूरा: कुछ नहीं यार बोलने लायक बात नहीं है।
लल्लू: अबे फिर तो जल्दी बता, ऐसी क्या बात है जो बोलने लायक नहीं है।
भूरा: छोड़ ना यार गलत चीज है।
लल्लू: बता रहा है या नहीं भेंचो।
भूरा: यार ये तस्वीर में लड़की की गांड देखने पर न बार बार एक ही खयाल आ रहा है दिमाग में।
लल्लू: क्या?
भूरा थोड़ा सोच कर सकुचा कर बोलता है: यही की पुष्पा चाची की गांड इससे ज़्यादा अच्छी है।
लल्लू ये सुन कर चुप हो जाता है तो भूरा को लगता है गलत बोल दिया फिर तभी लल्लू बोलता है: यार सही कहूं तो मैं भी ये ही सोच रहा था।
भूरा: हैं ना चाची की मस्त है ना?
लल्लू: हां यार पर हम ये गलत नहीं कर रहे वो हमारे लंगोटिया की मां है हमारी खुद की मां जैसी है, पहले तो हमने उन्हें उस हालत में देखा और अब उनकी गांड के बारे में बातें कर रहे हैं।
भूरा: कह तो तू सही रहा है यार पर क्या करूं बार बार वोही चित्र सामने आ जाता है,
लल्लू: जानता हूं, एक काम करते हैं अभी घर चलते हैं कुछ खाते पीते हैं फिर सोचेंगे इस बारे में, और फिर छोटुआ से भी मिलना है।
भूरा: हां चल चलते हैं।
दोनो ही अपने अपने अपने घर की ओर चल देते हैं, दोनों की गली तो एक ही थी बस घर थोड़े अलग अलग थे भूरा घर पहुंचता तो है उसके घर के बाहर ही चबूतरे पर बैठा हुआ उसका दादा प्यारेलाल चिलम गुड़गुड़ा रहा होता है उसके साथ ही बगल में सोमपाल छोटू का दादा और कुंवर पाल लल्लू के दादा भी थे,
प्यारेलाल उसे देखते ही कहता है: आ गया हांड के गांव भर में।
भूरा: हां बाबा अगली बार तुम्हे भी ले चलूंगा।
भूरा ये कहते हुए घर में घुस जाता है,
प्यारेलाल: देख रहे हो कैसे जवाब देता है।
प्यारेलाल अपने साथियों से कहता है।
कुंवरपाल: अरे ये तीनों का गुट एक जैसा ही है, तीनों को कोई काम धाम नहीं बस गांव भर में आवारागर्दी करवा लो।
सोमपाल: अरे तुम लोग भी न, बालक हैं इस उमर में सब कोई ऐसा ही होता है, अपना समय भूल गए कैसे कैसे कहां कहां हांडते रहते थे।
प्यारेलाल: अरे ये तो सही कहा, क्या दिन थे वो बचपन के।
कुंवरपाल: तब हमारे बाप दादा हम पर ऐसे ही चिल्लाते थे।
तीनों ठहाका लगाकर ज़ोर से हंसते हैं।
भूरा भन्नता हुआ घर में घुसता है और सीधा आंगन में पड़ी खाट पर जाकर धम्म से बैठ जाता है, उसकी मां रत्ना सामने बैठी पटिया पर बर्तन धो रही होती है।
भूरा: मां बाबा को समझा लो जब देखो तब सुनाते रहते हैं।
रत्ना: अच्छा मैं तेरे बाबा को समझा लूं? तू बड़े छोटे की सब तमीज भूल गया है क्या? एक तो सुबह सुबह ही हांडने निकल जाता है, ना घर में कोई काम न कुछ, और क्यूं करेगा मैं नौकरानी जो हूं पूरे घर की सारा काम करती रहूं। बना बना के खिलाती रहूं लाट साहब को।
भूरा समझ गया उसने आज बोल कर गलती कर दी है दादा ने तो एक ही बात बोली थी अब मां अच्छे से सुनाएगी हो सकता है एक दो लगा भी दें।
भूरा: अरे मेरी प्यारी मां तुम क्यूं गुस्सा करती हो बताओ क्या काम है अभी कर देता हूं।
रत्ना: ज़्यादा घी मत चुपड़ बातों में, सब जानती हूं तू कितना ही काम करता है,
भूरा: अरे बताओ तो क्या करना है, बताओगी नहीं तो कैसे करूंगा, लाओ बर्तन धो देता हूं।
भूरा उसके पास आकर बैठ जाता है और उसके हाथ से बर्तन लेकर धोने लगता है।
रत्ना उसके हाथ से बापिस बर्तन छीन लेती है और कहती है: छोड़ नाशपीटे, पाप लगेगा मुझे लड़के और मर्द पर बर्तन धुलाऊंगी खुद के होते हुए तो पाप चढ़ जायेगा।
भूरा: फिर क्या करूं,
रत्ना: कुछ मत कर जा चूल्हा गरम है अभी अपने लिए चाय बना ले।
भूरा: अच्छा ठीक है बना लेता हूं, वैसे मां चाय बनवाने पर पाप वगैरा का कोई जुगाड़ नहीं है क्या?
रत्ना: अभी बताती हूं रुक नाशपीटे।
रत्ना हंसते हुए झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहती है भूरा की बातें सुन उसे हंसी आ जाती है, उधर भूरा चूल्हे में जा कर चाय बनाने लगता है।
रत्ना बहुत मेहनती थी जैसी अक्सर गांव की सारी महिलाएं होती हैं, घर का सारा काम साथ पशुओं का भी वो सब संभाल लेती थी, पर उसकी एक आदत थी कि वो डरती बहुत थी और बहुत अंधविश्वासी थी, किसी ने कोई टोटका आदि बता दिया तो वो ज़रूर करती थी ये सब शायद उसके डर की वजह से ही था, अपने परिवार की खुशी या समृद्धि के लिए दिन प्रतिदिन कोई न कोई टोटका उसका चलता ही रहता था, जिससे भी जो सुनती थी वो करने लगती थी, घर वाले उसकी आदत से परेशान थे पर कर भी क्या सकते थे इसलिए वो उसे जैसा चाहे करने देते थे।
बर्तन धोने के बाद वो उठती है और रसोई में देखती है भूरा चाय बना रहा होता है, भगोने में झुक कर देखती है और कहती है: अरे बस इतना सा पानी क्यों चढ़ाया है और डाल अब जब बना ही रहा है तो सब पी लेंगे,
भूरा: अरे तो पहले बतातीं ना।
रत्ना: तुझमें बिल्कुल भी बुद्धि नहीं है या सब गांव में घूम घूम कर लूटा दी,
भूरा: अरे बढ़ा तो रहा हूं क्यूं गुस्सा करती हो।
रत्ना: बना मैं नहाने जा रही हूं राजू या तेरे पापा आ जाएं तो उन्हें भी दे दियो चाय।
भूरा: जो आज्ञा मां की।
भूरा हाथ जोड़कर झुक कर कहता है।
रत्ना के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ जाती है: भांड गीरी ही करले तू।
ये कहकर वो पानी की बाल्टी और कपड़े लेकर आंगन के कोने में बने स्नानघर में घुस जाती है, स्नान घर क्या था एक ओर दीवार और फिर उसके सामने दो बांस गाड़ दिए थे जिनको चादरों से बांधकर और एक ओर लकड़ी आदि के पट्टे लगाकर धक दिया था और सामने से एक साड़ी का ही परदा बना कर लटका दिया था, स्नान घर में जाकर वो पानी की बाल्टी रखती है कपड़े एक ओर दीवार पर टांग देती है और फिर तुरंत अपनी साड़ी खोल कर नीचे एक ओर रख देती है, तभी उसे कुछ याद आता है और वो स्नानघर से बाहर निकलती है और रसोई की ओर आती है, भूरा अपनी मां को अपनी ओर आते देखता है तो पूछता है क्या हो गया?
रत्ना: कुछ नहीं,
भूरा की नज़र अनजाने में ही उसकी मां की नाभी पर पड़ती है जो उसके हर कदम पर थिरक रही थी, साथ ही उसका गदराया पेट देख भूरा को कुछ अजीब सा लगता है, वो मन ही मन सोचता है मां की नाभी और पेट कितना सुंदर है,
इतने में रत्ना पास आती है और चूल्हे के बाहर की ओर से ठंडी राख उठाने लगती है।
भूरा: अब राख का क्या करोगी?
रत्ना: बे फिजूल के सवाल मत पूछा कर। जो करती हूं करने दे।
भूरा: हां करो, तुम और तुम्हारे टोटके।
भूरा दबे सुर में ही बोलता है उसे पता था अगर उसकी मां ने सुन लिया तो फिर उस पर बरस पड़ेगी।
रत्ना मुट्ठी में राख लेती है और फिर बापिस चली जाती है, भूरा की नज़र अपने आप ही रत्ना के पेटीकोट और फिर उसमें उभरे हुए चूतड़ों पर चली जाती है, उसके मन में अचानक खयाल आता है, मां के चूतड़ पुष्पा चाची से बड़े होंगे या छोटे, वो ये सोच ही रहा होता है कि खुद को झटकता है, और सोचता है क्या हो गया है मुझे अब तक सिर्फ पुष्पा चाची के बारे में ऐसे गंदे विचार आ रहे थे और अब खुद की मां के बारे में, क्या होता जा रहा है मुझे? इतना गंदा दिमाग होता जा रहा है मेरा, इतनी हवस बढ़ती जा रही है कि अपनी मां और चाची को भी नहीं छोड़ रहा। रसोई में चूल्हे पर चढ़ी हुई चाय जितनी उबाल मार रही थी उससे कहीं अधिक उबाल इस समय भूरा का दिमाग मार रहा था, पर मन का एक चरित्र होता है मन पर नियंत्रण रखना किसके बस की बात है उससे जिसके बारे में सोचने की मना किया जाए उसी के बारे में ज्यादा सोचता है, यही अभी भूरा के साथ हो रहा था जितना वो उन विचारों से लड़ने की कोशिश कर रहा था वो विचार उस पर उतने ही हावी हो रहे थे।
स्नान घर के अंदर रत्ना एक और टोटका करने में लगी हुई थी, कहीं से उसके कानों में बात पड़ी थी कि नहाते हुए चूल्हे की राख लगाने से घर के सारे कलेश मिट जाते हैं, अब कोई भी होगा तो ये ही सोचेगा ऐसा कैसे हो सकता है क्या कारण है, राख में ऐसी क्या शक्ति है, पर रत्ना नहीं, रत्ना को स्त्रोत कारण, प्रक्रिया इन सब से कोई मतलब नहीं था वो बस सुनती थी और करती थी। खैर अभी वो वोही कर रही थी वैसे तो वो पेटिकोट को सीने पर बांधकर नहाती थी जैसे अक्सर गांव में औरतें नहाती हैं पर टोटके के कारण अभी वैसे नहाना तो संभव नहीं था इसलिए राख को उसने एक और रखी अपनी साड़ी पर रख लिया और फिर अपना ब्लाउज उतारने लगी ब्लाउज उतरते ही वो ऊपर से पूरी नंगी हो गई क्योंकि अंदर बनियान आदि तो वो या गांव की औरतें तभी पहनती थी जब कहीं आना जाना हो रिश्तेदारी आदि में, ब्लाउज के बाद उसने अपने पेटिकोट के नाडे को पकड़ा और उसकी गांठ खोल दी और पेटिकोट को भी तुरंत पैरों के बीच से निकाल दिया, और वो पूरी नंगी हो गई, उसे पूरा नंगा होकर एक अजीब सी शर्म और एक अलग सा अहसास महसूस हो रहा था वो ऐसे पूरी नंगी होकर कभी नहीं नहाती थी, और अभी बेटे के घर में होते हुए वो पूरी नंगी थी स्नान घर में ये सोच कर ही उसके बदन में एक अलग प्रकार की सिरहन हो रही थी जिसे वो खुद नहीं जान पा रही थी कि ये क्या है,
शायद ये वोही अहसास या भाव है जो हमें तब होता है जब हम ये जानते हैं कि कोई कार्य गलत है फिर भी हम उसे करते हैं, ये ही भाव अभी रत्ना के मन में हो रहा था,
रत्ना ने नीचे से साड़ी के ऊपर रखी राख को पानी की कुछ बूंदें डालकर गीला कर लिया और फिर थोड़ी सी राख लेकर अपने दोनों हाथों में फैलाई और सबसे पहले अपने सुंदर चेहरे को राख से रंगने लगी, उसका गोरा चेहरा राख के कारण थोड़ा काला लगने लगा पर रत्ना का चेहरा ऐसा था कि वो किसी भी रंग की होती सुंदर ही लगती, क्यूंकि उसका चेहरा गोल था भरे हुए गाल थे बड़ी बड़ी आंखें और उस पर उसके होंठ जिनका आकार बिलकुल धनुष जैसा था।
चेहरे के बाद उसके हाथ उसकी गर्दन पर चलने लगे, गर्दन के बाद अपनी बाजुओं को भी राख से घिसने लगी। बाजुओं के बाद उसने फिर से राख को अपने हाथों में मला और फिर हाथों को सीधा लाकर अपनी दो बड़ी बड़ी चूचियों पर रख दिया और उन्हें राख से मलने लगी, अपनी चुचियों को मलते हुए उसके बदन में उसे तरंगें उठती हुई महसूस होने लगी, उसे अपनी चूचियों पर अपने हाथों का एहसास अच्छा लगने लगा। उसकी पपीते जैसी मोटी चूचियां उसके हाथों में समा भी नहीं रही थी पर वो उन्हे सहलाते हुए सोचने लगी, भूरा के पापा जब दबाते हैं तब ऐसा नहीं लगता पर अपने हाथों से भी अच्छा लग रहा है मन करता है ऐसे ही मसलती रहूं, उसे अपनी चूत में भी थोड़ी नमी का एहसास सा होने लगा जिसे सोचकर वो मन ही मन शर्मा गई, और उसने जानकर अपनी चुचियों से हाथ हटा लिया, और फिर से राख लेकर उसे अपनी पीठ पर लगाने लगी, पीठ के बाद अपनी गदराइ कमर और फिर पेट को मला, यहां तक मलने से वो खुद को काफी उत्तेजित महसूस कर रही थी, उसने और रख ली और फिर एक एक करके अपने दोनों पैरों और जांघों को मला, उसके बाद उसने फिर से राख ली और सोचने लगी क्यूंकि बस एक ही हिस्सा बचा था, खैर उसने एक सांस ली और फिर हाथों को पीछे ले जाकर अपने दोनों बड़े बड़े चूतड़ों को मलने लगी, जो उसके मलने से बुरी तरह हिल रहे थे, वो मन ही मन सोचने लगी कि उसके चूतड़ कितने बढ़ गए हैं, बताओ कैसे थरथरा रहे हैं मलने पर, उसने ये सोचते हुए चूतड़ों पर एक हल्की सी थाप मार दी तो उनमें एक बार फिर से लहर आ गई जिसे देख वो शर्मा गई,
पीछे लगाने के बाद उसने बची हुई राख ली और उसे लेकर अपनी पानी छोड़ती बुर पर उंगलियां रखी तो उसके पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गई और उसके मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई, उसके बदन में उसे एक गर्मी का एहसास हो रहा था उसने तुरन्त अपनी उंगलियां चूत के ऊपर से हटा लीं, पर उंगलियां हटाते ही उसकी चूत में एक खुजली सी होने लगी, उसका मन कर रहा था कि अभी उंगलियां लगाकर अच्छे से खुजली मिटा दे, पर वो जानती थी कि उसकी चूत की खुजली सिर्फ खुजली नहीं बल्कि उत्तेजना थी।
वो चाह तो नहीं रही थी पर उससे रहा भी नहीं जा रहा था और आखिर बदन की इच्छा के आगे मजबूर होकर उसने अपनी उंगलियां बापिस चूत के ऊपर रख दी तो उसके मुंह से एक बार फिर से सिसकी निकल गई, रत्ना धीरे धीरे अपनी उंगलियों से अपनी चूत के होंठों को सहलाने लगी, उसे एक अलग सा मज़ा आने लगा, जैसे लकड़ी से लड़की घिसने और लोहे से लोहा घिसने पर ऊर्जा उत्पन्न होती है वैसे ही उसकी बुर और उंगलियों की घिसावट से एक ऊर्जा एक गर्मी उत्पन्न हो रही थी जो कि उसके पूरे बदन में फैल रही थी और उसको तड़पा रही थी, धीरे धीरे वासना रत्ना के ऊपर सवार होने लगी उसकी आंखें बन्द हो गई और वो अपनी बुर को अलादीन के चिराग की तरह घिसते लगी, जिसमें से वासना और उत्तेजना रूपी ज़िंद निकल कर उसके बदन पर चढ़ गया था, कुछ ही पलों में जो उंगलियां उसकी बुर को बाहर से घिस रही थीं वो धीरे धीरे अंदर प्रवेश करने लगीं रत्ना भूलने लगी कि वो कहां किस हालत में है और अपनी उंगलियों से अपनी चूत की खुजली मिटाने लगी।
रसोई में बैठा हुआ भूरा अपनी उथल पुथल में था बल्कि और गहरा फंसता जा रहा था, अब तो उसके दिमाग में ये भी विचार आने लगा था कि उसकी मां की गांड नंगी कैसी दिखती होगी, और वो जितना इन विचारों से लड़ने की कोशिश कर रहा था उतना वो उस पर हावी हो रहे थे, तभी उसे अचानक से चाय का ध्यान आया तो उसने भगोने में देखा चाय पक चुकी थी अब बस दूध डालना था, उसने जल्दी से दूध निकाल कर डाला उसके मन में फिर से वही विचार घूमने लगे। स्नान घर में रत्ना की उंगलियां उसकी चूत में घूम रहीं थी, और उसके मुंह से हल्की हल्की सिसकियां भी निकल रही थी जो कि कोई भी आस पास होता तो सुन सकता था पर किस्मत से भूरा रसोई में बैठा था, उंगलियां लगातार उसकी चूत में अंदर बाहर हो रही थी उसका एक हाथ स्वयं ही उसकी चूची को मसलने लगा था, उंगलियों की लगातार मेहनत और साथ ही चुचियों का मसला जाना रत्ना के लिए एक पल को असहनीय हो गई और उसकी चूत ने खुशी के आंसू बहा कर उंगलियों को भीगा दिया, झड़ते हुए उसकी कमर झटके से खाने लगी साथ ही उसे अपनी टांगें भी कमज़ोर पड़ती हुई महसूस हुई तो वो धीरे धीरे नीचे की ओर बैठती चली गई और जब झड़ना खत्म हुआ तो वो नीचे बैठी हुई बुरी तरह हान्फ रही थी ऐसा तो वो उसे भूरा के पापा के साथ चुदाई के बाद भी एहसास नहीं होता था जैसा अभी हो रहा था, झड़ने के बाद उसे अहसास हुआ कि उसने अभी क्या किया तो उसे खुद पर लज्जा आने लगी साथ ही एक ग्लानि भाव मन में आ गया।
पानी को अपने बदन पर डालते हुए वो सोचने लगी कि मुझे क्या होता जा रहा है, क्या सच में मैं इतनी प्यासी हूं कि बेटे के रसोई में होते हुए भी नंगी होकर ये सब कर रही थी, इतनी हवस मेरे अंदर कैसे आ गई, भूरा के पापा जब कभी चुदाई के लिए कहते हैं तो मैं खुद कितने ही नखरे करने के बाद उन्हें करने देती हूं और आज खुद से ही ये सब, ज़रूर कुछ गलत हो रहा है।
रसोई में बेटा तो स्नानघर में मां दोनो ही ग्लानि भाव से डूबे हुए सोच में पड़े थे और दोनों की ग्लानि का कारण काम और उत्तेजना ही थे। चाय में उबाल आया तो भूरा ने चूल्हे से उतार ली इतने में उसका भाई राजू और पापा राजकुमार भी आ गए, भूरा ने उन्हें भी अपनी बनाई हुई चाय दी तो दोनों ही हैरान थे कि आज भूरा को कहां से चाय बनाने का शौक लग गया, कुछ ही देर में रत्ना भी नहाकर बाहर निकल चुकी थी और उनके पास आ कर बैठ कर वो भी चाय पीने लगी, भूरा चोरी छिपे अपनी मां को न चाहते हुए भी निहार रहा था और उसे एक अलग ढंग से देख रहा था। आज तक मां उसे मां नज़र आती थी पर अभी एक औरत नज़र आ रही थी एक भरे बदन की गदराई हुई औरत।
दूसरी ओर छोटू जैसे ही शौच आदि से निवृत होकर आया वैसे ही उसे उसकी अम्मा फुलवा ने घेर लिया: आ गया लल्ला चल जल्दी से नहा ले।
छोटू: पर इतनी जल्दी क्या है अम्मा?
फुलवा: अरे जल्दी कैसे ना है, जो रात हुआ वो दोबारा न हो इसके लिए उपाय तो करना पड़ेगा ना, और सुन ये बात जो तूने हम तीनों को बताई वो और किसी को नहीं पता चलनी चाहिए, तेरे उन दोनो यारों को भी नहीं।
छोटू: पर क्यूं अम्मा? बताने मे क्या नुकसान है?
फुलवा: कह रही हूं ना नहीं बतानी, ऐसी बातें बताई नहीं जाती समझा।
छोटू: ठीक है अम्मा।
फुलवा: जा अब जल्दी जा नहा ले।
छोटू बेमन नहाने जाता है वो सोचता है अपना फैलाया रायता है बटोरना तो पड़ेगा ही कुछ कहूंगा तो खुद ही फंस जाऊंगा।
नहा धो लेता है तो फुलवा उसे अपने साथ लेकर चल निकल जाती है।
घर के बाकी मर्द भी खा पी कर खेतों पर चले जाते हैं, सुधा पटिया के बगल में बैठी बर्तन मांझ रही होती है और पुष्पा पटिया पर बैठ कर कपड़े धो रही होती है, सुधा देखती है कि उसकी जेठानी कुछ सोच में डूबी हुई है।
सुधा: अरे दीदी अब सोचना छोड़ो अम्मा लेकर तो गई है छोटू को झाड़ा लग जायेगा तो सब ठीक हो जायेगा।
पुष्पा: अरे नहीं मैं कुछ और सोच रही थी।
सुधा: क्या?
पुष्पा: वही उदयभान की लुगाई के बारे में, मुझे तो उसका नाम भी नहीं पता, आखिर क्या हुआ होगा कि उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा और उसने फांसी लगा ली।
सुधा: कह तो सही रही हो दीदी, और सही कहूं तो मुझे नहीं लगता उसकी सच्ची बात किसी को पता भी है, जितने मुंह हैं उतनी बातें हैं।
पुष्पा: वही तो कोई कहता है वो रांड थी उसके बदन में बहुत प्यास बढ़ गई थी मर्दों के पीछे पड़ी रहती थी।
सुधा: हां कहते तो यहां तक हैं कि अपने ससुर तक के साथ उसके संबंध थे तभी तो और एक दिन उसने ससुर के साथ ऐसा सम्भोग किया की ससुर बिस्तर पर ही लुढ़क गया और उसी के बाद उसने फांसी लगा ली।
पुष्पा: पता नहीं क्या सच्चाई है क्या झूठ, वैसे इतनी गर्मी हो सकती है बदन में कि सही गलत का बोध ही न रहे।
सुधा: दीदी होने को तो कुछ भी हो सकता है, और तुम्हें पता है औरत के बदन में इन मर्दों से ज़्यादा गर्मी होती है, पर समाज और परिवार के खयाल से औरतें छुपा के रखती हैं।
पुष्पा: हां ये तो सही कहा तूने, घर परिवार का मान औरत से ही माना जाता है।
सुधा: पर दीदी होता तो औरत के पास बदन ही है ना, उसकी भी इच्छाएं होती हैं, बदन की जरूरतें होती हैं, जब ये पूरी नहीं होती तब ही कोई औरत गलत कदम उठाती है।
पुष्पा: पर गलत कदम उठाना भी सही नहीं माना जा सकता भले ही कुछ भी मजबूरी हो।
सुधा: बिलकुल नहीं होना चाहिए दीदी गलत तो गलत है, पर हम ये भूल जाते हैं कि जितनी गलती औरत की होती है उतनी ही आदमी की भी होती है।
पुष्पा: आदमी की मतलब?
सुधा: दीदी औरत गलत कदम क्यूं उठाती है, अपने आदमी की वजह से, जब उसे आदमी के प्यार की जगह तिरस्कार मिलने लगे, सम्मान की जगह अपमान मिलने लगे और सबसे बड़ी बात जब आदमी उसके बदन की जरूरतों को पूरा न कर सके तो औरत कहीं और ये सब खोजने लगती है।
पुष्पा: हां री, इस तरह से तो मैंने कभी सोचा नहीं था, सच में बड़ी होशियार है तू।
सुधा: क्या दीदी तुम भी, इसमें कौनसी समझ दारी है।
पुष्पा: वैसे अच्छा है हमारे घर में ऐसा नहीं है, खासकर तेरे साथ बाबू अच्छे से सारी जरूरतें पूरी करते हैं तेरी।
सुधा: धत्त दीदी तुम भी ना कहां की बात कहां ले आई।
पुष्पा: अरे गलत थोड़े ही बोल रही हूं, जो सच है वो सच है।
सुधा: तुम्हें बड़ा पता है क्या सच है, हां नहीं तो।
पुष्पा: अच्छा बेटा किवाड़ बंद करके क्या क्या होता है कमरे में, क्या मुझे नहीं पता।
सुधा ये सुन शर्मा जाती है,
सुधा: कुछ नहीं होता सोते हैं हम बस।
पुष्पा: ओहो देखो तो सोते हैं, कितना सोते हो इसका जवाब तो तेरा बदन ही दे रहा है, देख कैसे गदराता जा रहा है।
पुष्पा सुधा की छाती की ओर इशारा करके कहती है।
सुधा: धत्त, अच्छा इस हिसाब से तो तुम्हें जेठ जी पूरी रात छोड़ते ही नहीं होंगे, अपनी तो देखो कैसे ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ रही हैं।
सुधा के पलटवार से पुष्पा भी थोड़ा शरमा जाती है और पलटवार करती है,
पुष्पा: अच्छा मुझे कहां पकडेंगे तेरे जेठ जी, हम लोग तो आंगन में ही सोते हैं सबके साथ।
सुधा: अच्छा दीदी मूंह मत खुलवाओ मेरा, कब खाट से उठती हो कब रात में कमरे के किवाड़ खुलते हैं सब पता है मुझे।
सुधा के इस वार ने तो पुष्पा की बोलती ही बंद कर दी।
पुष्पा: हट बहुत बोलती है चल अब नहाने दे मुझे।
धुले कपड़ों की बाल्टी को एक और सरकाकर पुष्पा कहती है।
सुधा: अरे तो नहाओ न मैंने कहां रोका है, वैसे शर्मा तो नहीं रहीं अपना गदराया बदन मुझे दिखाने में।
पुष्पा: मैं क्यूं शर्माने लगी, जो मेरे पास है वोही तेरे पास है,
पुष्पा खड़े होते हुए कहती है और अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगती है और हुक खोलने के बाद अपने पेटिकोट को खोलकर अपनी छाती पर बांध लेती है।
सुधा: अच्छा शर्मा नहीं रही हो तो फिर ये पेटिकोट से क्या छुपा रही हो।
पुष्पा: अरे नहा रही हूं तू क्या चाहती है नंगी हो जाऊं तेरे सामने।
सुधा: और क्या हो जाओ, शर्माना कैसा है वैसे भी हम दोनों के अलावा कोई है भी नहीं घर में।
पुष्पा: हट पगला गई है तू, नंगे होकर नहाऊंगी अब।
सुधा: नंगे होकर ही नहाना चाहिए, वो तो कोई हो तो हम अपने बदन को ढंक लेते हैं, औरतों में क्या शर्माना।
सुधा पुष्पा को आज ऐसे ही छोड़ने वाली नहीं थी वो अच्छे से उसे चिढ़ाना चाहती थी।
पुष्पा: अरे तू भी ना मैं शर्मा नहीं रही हूं, वो तो बस हमेशा ऐसे ही नहाती हूं इसलिए।
सुधा: नहीं दीदी तुम शर्मा तो रही हो, भले ही जो मेरे पास है वो ही तुम्हारे पास है पर तुम्हारा वो सब मुझसे बड़ा बड़ा है।
पुष्पा: आज तू बिल्कुल पगला गई है, पीछे ही पड़ गई है।
सुधा: तो मान लो बात फिर और पेटिकोट खोल कर नहाओ।
पुष्पा एक गहरी सांस लेती है और कहती है: ठीक है पर मेरी भी एक बात तू भी मानेगी तुझे भी नंगे होकर नहाना पड़ेगा।
पुष्पा बड़े आत्मविश्वास से कहती है वो सोचती है कि खुद के नंगे होने की सुनकर सुधा अभी पीछे हट जाएगी। पर सुधा का जवाब उसे हैरान कर देता है।
सुधा: ठीक है मैं भी ऐसे ही नहाऊँगी, अब उतारो जल्दी से।
पुष्पा की चाल उल्टी पड़ जाती है, वो फिर हार मानते हुए कहती है: पता नहीं क्या क्या करवाती रहती है तू भी।
और इतना कहकर पुष्पा अपनी छाती के ऊपर बंधे पेटीकोट को खोल देती है और पेटिकोट उसके गदराए बदन से सरकते हुए नीचे गिरने लगता है और कुछ ही पलों में पुष्पा अपनी देवरानी के सामने नंगी खड़ी होती है।
सुधा ऊपर से नीचे तक अपनी जेठानी पुष्पा के बदन को देखती है और देख कर एक पल को उसका मुंह खुला का खुला का रह जाता है, वैसे तो सुधा ने पुष्पा को नहाते हुए और शौच आदि करते हुए बहुत बार देखा था पर ऐसे बिल्कुल मादरजात नंगी आज पहली बार देख रही थी, उसकी पपीते के आकार की चूचियां जिनमें एक कसावट थी, चूचियों के बीच अंगूर जैसे आकार के निप्पल जो तन कर खड़े होकर मानो पुकार रहे हों, चुचियों के नीचे गदराया हुआ पेट बीच में गोल गहरी नाभी जो किसी रेगिस्तान में एक गहरे कुएं की याद दिला रही थी, नाभी से नीचे हल्की हल्की झांटे थी उसके की नीचे चूत की लकीर की शुरुआत का आभास हो रहा था पर पुष्पा ने अपनी टांगों को चिपका कर उसे छिपा रखा था,
अपनी जेठानी का नंगा बदन देख कर सुधा का मुंह में पानी आ गया, उसे अहसास हुआ कि उसकी जेठानी का बदन सचमुच कितना कामुक है, एक औरत होकर भी उसके मन में जेठानी के प्रति आकर्षण हो रहा था तो अगर कोई मर्द ऐसे देखले तो उसका क्या होगा।
पुष्पा: ले हो गई खुश तू?
सुधा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वो अपने मुंह में आए पानी को गटक कर कहती है: हां दीदी, और सच कहूं तो क्या बदन है तुम्हारा, मैं अगर आदमी होती ना तो दिन भर तुम्हारे ऊपर चढ़ी रहती।
हर औरत की तरह पुष्पा को भी अपनी तारीफ सुनकर अच्छा लगा पर वो शरमाते हुए बोली: हट ना जाने क्या क्या बोलती रहती है तू।
पुष्पा लोटे से पानी अपने बदन पर डालते हुए बोली।
सुधा: सच में जीजी तुम्हारा बदन बहुत ही कामुक है, ऐसा बदन तो भोगने के लिए ही बनता है, जेठ जी पता नहीं कैसे तुम्हें अकेला छोड़ देते हैं।
पुष्पा: आज तेरे दिमाग पर कौनसा भूत सवार हो गया है जो ऐसी बाते कर रही है।
पुष्पा अपने पूरे बदन पर पानी डालते हुए बोली,
सुधा: अरे दीदी तुम्हें कोई ऐसे देख ले न तो उसपर कामवासना का भूत अपने आप चढ़ जायेगा। बताओ एक औरत होकर मुझे ऐसा हो रहा है तो आदमी का क्या हाल होगा।
पुष्पा जता नहीं रहीं थी पर उसे अपनी देवरानी द्वारा मिल रही तारीफ अच्छी लग रही थी और किस औरत को नहीं लगेगी और प्रशंशा का महत्व तो अपने आप ही बढ़ जाता है जब कोई दूसरी औरत करे तो क्योंकि आमतौर पर तो औरतों में होड़ लगी रहती है।
सुधा की बातें सुनकर और यूं आंगन में नंगे होकर नहाने से पुष्पा के बदन में उसे गर्मी और उत्तेजना का एहसास हो रहा था, उसे अपनी चूत में भी हल्की हल्की नमी महसूस हो रही थी, जिसे दबाने का वो प्रयास कर रही थी
पुष्पा: अब मजाक करना बंद कर तू और मुझे नहाने दे।
सुधा: अरे तो नहाओ न मैंने कब रोका है, मेरे बर्तन भी धूल गए, अब मैं भी नहाऊंगीं।
सुधा ने बर्तनों की टोकरी को एक और सरकाते हुए कहा,
पुष्पा: ठीक है जल्दी जल्दी नहा लेते हैं अम्मा भी आने वाली होंगी।
सुधा: हां दीदी, जल्दी नहा लेते हैं।
ये कहते हुए सुधा अपनी साड़ी खोलने लगी, पुष्पा अपने पैरों को घिसते हुए अपनी देवरानी को कनखियों से उसे देख रही थी, साड़ी के बाद सुधा ने अपना ब्लाउज खोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में उसे खोल कर अपनी बाजुओं से निकाल दिया तो पुष्पा की नज़र अपनी देवरानी की चुचियों पर अटक गई, सुधा की चूचियां उससे आकार में उन्नीस जरूर थीं पर उनकी गोलाई, कसावट और बीच में निप्पल और उसके आसपास का घेरा मानो ऐसा था जैसे किसी शिल्पकार ने बड़ी मेहनत और लगन से उन्हें रचा हो। सुधा तो बस अपनी देवरानी के जोबन को देखकर मंत्र मुग्ध सी हो गई, पर अगले ही पल कुछ ऐसा हुआ जिसकी आशा उसने नहीं की थी, सुधा ने पेटिकोट की गांठ खोली पर उसे अपने सीने पर चढ़ा कर बांधने की जगह सुधा ने उसे छोड़ दिया और वो उसके बदन से सरकता हुआ उसके पैरों में गिर गया।
पुष्पा के हाथ जो उसके पैरों को घिस रहे थे वो ज्यों के त्यों रुक गए, वो टकटकी लगाकर बस सुधा को देखने लगी, सुधा का बदन भी काम कामुक नहीं था कामुकता तो उसे भी जेठानी की तरह भर भर कर मिली थी, और इस सत्य की साक्षी खुद पुष्पा उसकी जेठानी थी जो कि नज़रें गड़ाए उसकी ओर देखे जा रही थी।
सुधा ने अपनी जेठानी को अपनी ओर यूं देखते हुए पाया तो उसके मन में भी एक उत्साह सा हुआ साथ ही बदन में एक उत्तेजना की लहर दौड़ गई, उसे भी अपनी चूत नम होती हुई महसूस हुई।
सुधा: ऐसे का देख रही हो दीदी, फिर मत कहना कि मैंने तुम्हारी शर्त पूरी नहीं की,
पुष्पा तो शर्त की बात भूल ही चुकी थी, फिर उसे याद आया तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, और खुद को थोड़ा संभालते हुए वो अपने हाथ पैर धोने लगी, पर उसकी नजरें अभी भी सुधा के बदन पर ही थी या यूं कहें कि वो हटाना ही नहीं चाह रही थी,
सुधा को भी पुष्पा का यूं उसे देखना बहुत भा रहा था, औरत के चरित्र में ही होता है अपनी कामुकता दिखाकर दूसरे को उत्साहित और उत्तेजित करना, पर अगर यही वो किसी औरत के साथ कर सके तो उसका आत्मविश्वास आकाश छूने लगता है।
इसी आत्मविश्वास के साथ सुधा ने अगला कदम बढ़ाया और पेटिकोट को पैरों से निकालने के बहाने से वो दूसरी तरफ घूम गई और बड़ी कामुकता से झुक कर अपने चूतड़ों को बाहर की ओर निकाल कर पेटिकोट को उठाने लगी, जिससे की उसके गोल मटोल चूतड़ उभर कर पुष्पा के सामने आ गए और पुष्पा के हाथ एक बार फिर से रुक गए, हालांकि पुष्पा ने शौच करते हुए सुधा के चूतड़ों को हज़ारों बार देखा था, पर अभी की परिस्थिति अलग थी, उसे लग रहा था वो उन चूतड़ों को आज पहली बार देख रही है, चूतड़ क्या थे मानो दो गोल पटीलों को सटाकर रख दिया गया हो, सुधा की चूचियां आकार में भले ही जेठानी से छोटी हों पर उसकी गांड़ बिल्कुल उसके बराबर थी, और उतनी ही कामुक और गोल थी,
पुष्पा तो ये दृश्य देख कर बिलकुल सुन्न सी होकर देखने लगी, सुधा को भी ये एहसास था कि उसकी जेठानी की नज़र उसके चूतड़ों पर ही है, उसे अपनी जेठानी को इस तरह लुभाने और सताने में बहुत अच्छा लग रहा था साथ ही उसको एक अलग प्रकार की उत्तेजना हो रही थी, जिसे वो खुद भी नहीं समझ पा रही थी पर उसे अच्छा लग रहा था, उसे अपनी चूत में नमी बढ़ती हुई महसूस हो रही थी। इसी को आगे बढ़ाते हुए सुधा थोड़ा और झुकी और उसने पेटिकोट के साथ साथ पड़े ब्लाउज को भी उठाया तो उसके चूतड़ खुल गए और लगा मानों दो पर्वतों ने थोड़ा खिसककर नदी के लिए रास्ता कर दिया हो, पुष्पा की नज़र भी उस नदी यानी सुधा के चूतड़ों की दरार पर टिक गई, और अगले ही पल उसे सुधा की गांड के उस भूरे से छेद का दर्शन हो गया, जिसे देखते ही पुष्पा को लगा उसकी चूत से पानी की कुछ बूंदे टपकी हों, पुष्पा बिलकुल एक टक अपनी देवरानी के गांड के छेद को देखे जा रही थी, पुष्पा का बदन उत्तेजना से भर उठा उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
सालों साथ शौच करने के बाद भी पुष्पा ने आजतक सुधा के गांड के छेद को नहीं देखा था क्योंकि अधिकतर वो अगल बगल में ही बैठती थीं और फिर धोकर चल देती थी, और सुधा ही क्या, पुष्पा ने बच्चों के अलावा किसी के गुदा द्वार को नहीं देखा था, उसे तो यही लगता था कि ये बदन का सबसे गंदा छेद होता है और इसे तो सबसे ही छुपा के रखना चाहिए, वो तो अपने पति सुभाष को भी नहीं देखने देना चाहती थी पर कई बार पति ने जब उसे नंगा कर के चोदा था तो देख ही लिया था पर उसके अलावा तो ऐसा कोई अनुभव उसका ऐसा नहीं था, और यहां उसकी देवरानी अपने उसी छेद को कितनी सहजता से उसके सामने उजागर कर रही थी, ये देख कर बहुत से भाव उसके मन में आ रहे थे।
कुछ पल बाद सुधा बापिस खड़ी हो गई तो पुष्पा के सामने से वो दृश्य हट गया, पर मन ही मन वो चाह रही थी वो बस ऐसे ही देखती रहे, ये खयाल आते ही पुष्पा ने सोचा क्या हो गया है उसे क्यों उसके मन में ऐसे विचार आ रहे हैं।
सुधा कपड़ों को उठाकर एक और बाल्टी में रखकर पुष्पा के पास पटिया पर आ गई, पर ज्यों ज्यों सुधा पास आ रही थी न जाने क्यों पुष्पा की छाती में जोर जोर से धक धक होने लगी, उसका पूरा बदन एक रोमांच से भरने लगा।
पुष्पा: तू यहां क्या कर रही है।
सुधा: क्या कर रही है मतलब, नहाऊंगी.
ये सुनकर पुष्पा का जी डोलने लगा।
पुष्पा: ऐसे साथ में,
पुष्पा ने सकुचाते हुए पूछा उत्तर जानते हुए भी, पुष्पा अपनी देवरानी के साथ आज ऐसा महसूस कर रही थी जैसे सुहागरात पर बिस्तर पर कुंवारी दुल्हन अपने पति के सामने करती है, मन में बहुत से विचार थे डर था, उत्तेजना थी, उत्साह था, साथ ही द्वंद था, चिंता थी और असहजता थी, वहीं सुधा उसे मर्द लग रही थी जिसे पता था क्या करना है वो आत्मविश्वास से भरी हुई थी, वहीं पुष्पा के मन में सिर्फ संशय ही था।
सुधा: हां दीदी साथ में, क्यों तुम्हें डर तो नहीं लग रहा कि हमारे बीच कुछ हो न जाए
सुधा ने हंसी करते हुए कहा पर पुष्पा को लगा कि सुधा तो उसके मन की बात जान गई है, पर फिर वो संभालते हुए बोली: हट मुझे और तुझसे किस बात का डर, वैसे भी औरत औरत के बीच क्या होगा।
ये जवाब सुधा से ज्यादा पुष्पा ने अपने आप को समझाने के लिए था।
सुधा: ठीक है फिर नहाते हैं।
सुधा ने लोटा उठाते हुए कहा।
इसके आगे अगले अपडेट में,
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