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Adultery उल्टा सीधा

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बहुत ही जबरदस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र।
 
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Bhai update zabardast hai but story main pics or gif ki kami hai agar pics or gif bhi add karo to story padne ka maza doguna ho jayega plz
दोस्त gif और pics से मुझे लगता है की कहानी मैं खुल कर लिख नहीं पाऊंगा, वैसे अगर आपको किसी किरदार की कल्पना के अनुसार अगर कुछ ऐसी pics या gif मिलती हैं तो उसे आप पोस्ट कर सकते हैं,
 

Deepaksoni

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अध्याय 6

सुधा ने हंसी करते हुए कहा पर पुष्पा को लगा कि सुधा तो उसके मन की बात जान गई है, पर फिर वो संभालते हुए बोली: हट मुझे और तुझसे किस बात का डर, वैसे भी औरत औरत के बीच क्या होगा।
ये जवाब सुधा से ज्यादा पुष्पा ने अपने आप को समझाने के लिए था।
सुधा: ठीक है फिर नहाते हैं।
सुधा ने लोटा उठाते हुए कहा, आगे...

और फिर सुधा ने लोटा को पानी से भरा और अपने सीने पर डालकर अपनी मोटी चूचियों को भिगाने लगी। पुष्पा तिरछी नज़रों से सुधा के नंगे बदन के ही निहार रही थी,
सुधा: दीदी हम पहले ऐसे साथ में कभी नहीं नहाए न?
पुष्पा: हां इससे पहले तूने ये पागलों वाला काम नहीं करवाया।
सुधा: पागलों वाला क्या है इतना अच्छा लग रहा है साथ में नहाने में, कितना फायदा ही फायदा है।
पुष्पा: फायदा कैसा फायदा ?
सुधा: देखो पानी की बचत, समय की बचत, और सबसे बड़ी बात एक दूसरे की मदद कर सकते हैं।
पुष्पा: नहाने में क्या मदद करेंगे री?
पुष्पा ने अपनी पीठ को मलते हुए कहा,
सुधा: रुको बताती हूं।
ये कहकर सुधा थोड़ा आगे बढ़ी तो पुष्पा के बदन में एक सिरहन सी होने लगी ना जाने क्यों, वो समझ नहीं पा रही थी आज हो क्या रहा है, पर उसके आगे कुछ सोचती कि सुधा उसके पीछे की ओर पहुंच गई और पुष्पा का हाथ पकड़ कर उसकी पीठ से हटा दिया और फिर पुष्पा को अपनी नंगी पीठ पर अपनी देवरानी का हाथ महसूस हुआ, वो उसकी पीठ पर फिसलने लगा।
सुधा: देखो ये हुई ना मदद हम लोग एक दूसरे के बदन को साफ करने में मदद कर सकते हैं,
पुष्पा ये सुनकर चुप हो गई, उसे समझ नहीं आ रहा था क्या बोले पर इतना ज़रूर था कि उसे अपने बदन पर सुधा का हाथ चलता हुआ अच्छा लग रहा था, वो मन ही मन सोचने लगी कि मैं क्यों इतना सकुचा रही हूं, वो भी अपनी देवरानी के आगे, ऐसे ही चुप चुप रहूंगी तो उसे लगेगा की मैं बुरा मान रही हूं, वैसे भी दो औरतें साथ में नहाएं तो इसमें गलत क्या है।
पुष्पा: हां कह तो सही रही है तू, ये उपाय अच्छा है पानी बचाने का और जहां हमारा खुद का हाथ नहीं पहुंचता वो हिस्सा भी साफ हो जाएगा।
सुधा: तभी तो हमने बोला दीदी।
सुधा उसकी पीठ और कंधों को अच्छे से मलते हुए बोली, दोनों के नंगे बदन इस समय गीले होकर पानी से चमक रहे थे, देवरानी जेठानी को कोई इस हालत में देख लेता तो बस देखता ही रहता।
सुधा को भी अच्छा लग रहा था कि उसकी जेठानी साथ दे रही है, साथ ही जेठानी के भरे बदन को स्पर्श करने मात्र से उसकी खुद की चूत नम हो रही थी, पीठ और कंधों को रगड़ते हुए सुधा ने हाथों को दोनों ओर से कमर पर भी चलाना शुरू कर दिया, पुष्पा को तो वैसे भी ये अच्छा लग रहा था तो उसने कुछ नहीं कहा,
सुधा: दीदी हम तुम्हारा बदन मल रहे हैं तुम्हें भी हमारा मलना है। मुफ्त की सेवा मत समझना।
सुधा ने हंसते हुए कहा तो पुष्पा की भी हंसी छूट गई,
पुष्पा: हां भाई मल दूंगी, नहीं दूंगी तेरी मुफ्त की सेवा।
साथ ही पुष्पा को ये भी ज्ञात हो गया कि उसे भी सुधा का बदन छूने का मौका मिलेगा, ये सोचकर उसकी उत्तेजना और बढ़ गई।

सुधा: फिर सही है।
सुधा पुष्पा की कमर को दोनों ओर एक एक हाथ से मल रही थी, पुष्पा की गदराई कमर उसे बहुत अच्छी लग रही थी, कमर मलते हुए धीरे धीरे उसने अपने हाथों को आगेकी ओर यानी पेट की ओर ले जाना शुरू कर दिया, और हाथों को आगे लाने के कारण उसे पीछे से पुष्पा के और पास या यूं कहें कि पुष्पा से चिपकना पड़ा, पुष्पा को अचानक अपनी पीठ पर सुधा की चुचियों का खासकर उसके सख्त निप्पल के चुभने का एहसास हुआ तो पुष्पा के बदन में उत्तेजना की एक लहर सी दौड़ गई। उसे लगा उसकी चूत ने पानी की कुछ बूंदे बहा दी हैं, सुधा के दोनों निप्पल उसे लग रहा था मानों उसकी पीठ में घुसते जा रहे हैं, पानी से भीगे होते हुए भी उसे लग रहा था की वो कितने गरम हैं।
यही हाल कुछ सुधा का हुआ जैसा ही उसकी चूचियां और निप्पल ने पुष्पा की पीठ को छुआ तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई उसके निप्पल का पुष्पा की पीठ से स्पर्श हुआ तो उसे लगा जैसे कि उसके निप्पल गरम हो गए हैं और एक अलग तरह का अहसास उसे हुआ, उसकी चूत उसे गीली होती हुई महसूस हुई, कुछ पल को तो उसके हाथ भी रुक गए जिस पर शायद पुष्पा ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि वो खुद अपने भंवर में थी।
सुधा को न जाने क्या हुआ वो खुद को रोक नहीं पाई और वो पीछे से बिल्कुल पुष्पा से चिपक गई, उसके हाथ पुष्पा के पेट पर कस गए, पुष्पा की पीठ में उसकी चूचियां और धंस गई, पुष्पा को भी ये अहसास हुआ तो उसके सीने में तेज़ से धक धक होने लगी।
सुधा को जैसे अहसास हुआ कि उसने ये क्या किया तो बात को संभालते हुए बोली: अरे दीदी पैर फिसल गया था।
पुष्पा: कोई बात नहीं, लगी तो नहीं तुझे?
पुष्पा ने अपने पेट पर रखे उसके हाथों को अपने हाथों से सहलाते हुए पूछा तो सुधा को भी चैन आया, कि जेठानी को बुरा तो नहीं लगा, पर साथ ही हाथों को हाथ पर सहलाने से उसने या भी जता दिया कि वो चाहती है कि वो आगे भी उसके बदन को मलती रहे।
पुष्पा को खुद यकीन नहीं हुआ की उसके अंदर इतना जोश और विश्वास कहां से आ रहा था क्या ये सब उसका बदन उससे करवा रहा था।
सुधा ने उसका पेट मलना मसलना शुरू कर दिया, पुष्पा के मुंह से हल्की सिसकियां निकलने लगी जिन्हें वो दबाना चाह रही थी, पर सुधा को फिर भी अपनी जेठानी की हल्की सिसकियां सुनाई दे रहीं थी और सुधा को वो सुनकर मन में एक अजीब सी हलचल हो रही थी। सुधा अपने हाथों को कस कस कर पुष्पा के पेट पर मल रही थी, पुष्पा का बदन भी सुधा के हाथों के साथ हिचकोले खा रहा था, सुधा अपने हाथों को पुष्पा के पेट के ऊपरी हिस्से तक ला रही थी और हर बार उसके हाथ पुष्पा की चुचियों के पास आते जा रहे थे, पुष्पा के बदन में एक अजीब सी खुजली हो रही थी, उसके निप्पल बिल्कुल तन कर खड़े थे उसकी छाती हर सांस पर ऊपर नीचे हो रही थी, उसका बदन चाह रहा था कि सुधा उसकी चुचियों को भी अपने हाथों में लेकर मसले उन्हें भी निचोड़े, पर मन ही मन डर रही थी कि ऐसा हुआ तो वो क्या करेगी। साथ ही उसकी इच्छा भी बढ़ती जा रही थी जब जब सुधा के हाथ ऊपर की ओर आते उसे लगता अब ऐसा होने वाला है आशा से उसकी चूचियां ऊपर उठ जाती पर फिर से सुधा के हाथ नीचे चले जाते और उसे निराशा होती,
उसकी चूचियां अब बेसब्री से मसले जाने की प्रतीक्षा में थी, उसे लग रहा था कि अगर सुधा ने उसकी चुचियों की सुध नहीं ली तो वो इस खुजली से इस उतावलेपन से बावरी हो जायेगी। पर सुधा के हाथ उसके पेट पर ही घूम रहे थे, हालांकि चाहती तो सुधा भी थी, पर उसके लिए ये कदम बढ़ाना आसान नहीं था, वो झिझक और शर्म के दायरे में फंसकर अटक सी गई थी, वो नहीं चाहती थी की कुछ भी ऐसा हो जिससे उसके और उसकी जेठानी के रिश्ते में खटास आए।
पर और देर रुकना पुष्पा के लिए मुश्किल हो गया उसके मन में बेचैनी इतनी बढ़ गई कि उसके लिए सहना मुश्किल हो गया, और उसी बेचैनी में उसने वो कदम उठाया जो अन्यथा उठाना उसके लिए असंभव था, उसने दोनों हाथों से सुधा के हाथों को पकड़ा और उन्हें उठाकर अपनी चूचियों पर रख दिया, सुधा तो ये देख हैरान और खुश दोनों हो गई वहीं पुष्पा को अपनी चुचियों पर सुधा के हाथों का स्पर्श मिल जाने से शांति मिली, उसके बेचैन मन को चैन आया, सुधा तो खुशी से तुरंत अपनी जेठानी की भारी चूचियों को मसलने लगी, उसके हाथ में नहीं समा रही थी पर वो पूरा प्रयास कर रही थी, सुधा अपनी जेठानी की चूचियां मसलती हुई खुद को बहुत उत्तेजित महसूस कर रही थी, उसके पूरे बदन में एक अजीब सी प्यास दौड़ने लगी थी उसकी चूत में लग रहा था हज़ारों चीटियां रेंग रही हैं।
पुष्पा का हाल भी कुछ ऐसा ही था, इससे पहले उसने ऐसा कुछ महसूस नहीं किया था, उसका बदन उसकी देवरानी के हाथों में एक अलग ही रंग दिखा रहा था, एक औरत के साथ भी बदन में ऐसी काम वासना ऐसी उत्तेजना महसूस होती है उसे ज्ञात ही नहीं था, सुधा के हाथ उसकी चुचियों पर चल रहे थे तो उसे ऐसा लग रहा था मानों उसके अंदर की कोई दबी हुई इच्छा पूरी हो रही थी, जो उसे खुद भी नहीं पता थी, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि किसी औरत के हाथ उसे अपनी चूचियों पर ऐसा महसूस कराएंगे।
जेठानी देवरानी दोनों ही इस नए अनुभव को महसूस कर अपने होश खो रहे थे, दोनों को लग रहा था कि किसी औरत के साथ करने पर उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है, क्यों कि पुष्पा की चूचियां तो उसका पति भी दबाता था और उसे बहुत अच्छा भी लगता था पर जैसे बेचैनी उसके अंदर सुधा से चूचियां दबवाने की हुई वैसी तो कभी पति के साथ नहीं हुई,
पर जिस अहसास को वो समझ नहीं पा रहे थे वो किसी मर्द या औरत के कारण नहीं था, वो उत्तेजना थी कुछ नया कुछ गलत कुछ अलग करने की, कुछ नया पाने की, जो कि दुनिया में हर किसी को सताती है, इसी कारण कोई मर्द या औरत अपने साथी को छोड़कर किसी दूसरे के साथ संबंध बनाता है, वो इसी कुछ गलत करने के एहसास से। मनुष्य के मन में हमेशा ही एक बागी हिस्सा होता है जो चाहता है कि वो समाज के सारे नियम आदि को तोड़े समाज के बनाए रीति रिवाजों, कायदे कानून को पैरों तले रौंध डाले इससे उसके मन में एक अलग सी खुशी और उत्तेज़ना होती है एक संतोष होता है एक अहसास होता है जो मनुष्य को ऐसे कृत्य करने के लिए उकसाती है।

सुधा ज्यों ज्यों पुष्पा की चुचियों को मीझ रही थी त्यों त्यों पुष्पा की आहें बढ़ती जा रही थीं, पुष्पा की चुचियों से ऊर्जा पूरे बदन में दौड़ रही थी और पूरे बदन को उत्तेज़ित कर रही थी, पुष्पा को अपनी चूत में अब वोही खुजली वही बेचैनी महसूस होने लगी जो अब तक चुचियों में हो रही थी, वो समझ नहीं पा रही थी क्या करे, यही हाल सुधा का भी था वो पुष्पा के बदन से अब पीछे से बिल्कुल चिपक गई थी, पुष्पा को अपनी गर्दन पर सुधा की गरम सांसें महसूस हो रही थीं, जो उसकी उत्तेजना और बढ़ा रहीं थी, पुष्पा अपनी चूत की खुजली से फिर से उसी तरह बेचैन होने लगी जैसे कुछ देर पहले उसकी चुचियों में हो रही थीं, सुधा का भी वही हाल था उसकी चूत में भी एक असहनीय खुजली हो रही थी, पर वो अपने हाथों को पुष्पा की चूचियों से हटाना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने अपनी चूत की खुजली से जूझने के लिए अपनी चूत को पीछे से ही पुष्पा के चूतड़ों पर घिसना शुरू कर दिया,
पुष्पा को अपने चूतड़ों पर जब गरम चूत का एहसास हुआ तो उसे लगा जैसे उसके अंदर एक अलग बिजली दौड़ गई। उसकी चूत में अचानक से एक तेज़ खुजली हुई, जिसे वो सह नहीं पाई और पुष्पा ने अपना हाथ नीचे लेजाकर अपनी एक उंगली अपनी चूत में घुसा दी और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी,
चूचियों को तो सुधा मसल ही रही थी और चूत में खुद की उंगली एक साथ दोनों ओर से ऊर्जा का संचार उसके बदन में होने लगा तो वो आहें भरने लगी, उसकी आहें सुनकर सुधा ने आगे नजर डाली तो अपनी जेठानी को अपनी चूत में उंगली करते पाया ये देख तो सुधा भी उत्तेजना से पागल हो गई, और अपनी चूत को पागलों की तरह पुष्पा के चूतड़ों से घिसने लगी पर वैसा आनंद जो वो चाहती थी वो सिर्फ घिसने मात्र से उसे नहीं मिल पा रहा था इसलिए उसने पुष्पा की चुचियों से एक हाथ हटाया और पुष्पा की तरह ही सीधा चूत के ऊपर ले जाकर उंगली चूत में अंदर बाहर करने लगी,
अब देवरानी जेठानी दोनों की एक साथ आहें निकल रहीं थी, दोनों ही उत्तेजना के चरम पर थी, तेज़ी से दोनों की उंगलियां चूत से अन्दर बाहर हो रही थीं। और कुछ पल बाद ही लगभग एक साथ ही दोनों उत्तेजना के शिखर पर पहुंच गईं, पुष्पा की कमर झटके खाने लगी तो सुधा की आंखें ऊपर को चढ़ गई,
दोनों झड़ते हुए पटिया पर बैठ गईं कुछ पलों की लंबी लंबी सांसों के बाद दोनों को होश आया तो वासना का तूफान सिर से उठ चुका था और उसकी जगह शर्म और ग्लानि के बादल छा गए। पुष्पा की हिम्मत नहीं हो रही थी सुधा की ओर देखने की और सुधा का भी यही हाल था, पुष्पा ने जल्दी से अपने कपड़े लिए और कमरे के अंदर भाग गई, सुधा उसकी मनोदशा समझ रही थी क्योंकि उसका हाल भी कुछ वैसा ही था।

इधर छोटू को लेकर फुलवा गांव के बाहर नदी किनारे एक पीपल के पुराने पेड़ के पास ले जा रही थी, पेड़ के पास ही एक झोपड़ी थी जो कि गांव के वैद्य केलालाल की थी, गांव के वैद्य कहलो या बाबा कहो या झाड़ फूंक करने वाला सब यही थे, इससे पहले इनके पिता यही करते थे तो खुद के गुजरने से पहले अपना ज्ञान अपने बेटे को लेकर चले गए, इसी से इनकी रोज़ी रोटी चलती थी, वैसे झाड़फूंक का केलालाल को ऐसा ज्ञान नहीं था पर अपने पिता को करते देख बहुत से टोटके सीख लिए थे बाकी का काम उनकी बनाई हुई जड़ी बूटियां कर देती थी तो गांव वालों में अच्छा सम्मान था, यूं कह लो कि हर विपदा के समय गांव वालों को ये ही याद आते थे, हर तरह की कमी के लिए पुड़िया इनके पास होती थी, गांव के कुछ बूढ़े से लेकर अधेड़ उमर के लोग तक रातों को रंगीन करने से पहले सब इनके पास ही आते थे जिनको भी थोड़ी बहुत कमजोरी लगती थी। और इनके पास पुड़िया ऐसी होती थी कि बूढ़ा भी रात भर के लिए जवान हो जाता था। वैसी ही पुड़िया के लिए एक बूढ़ा अभी उनकी कुटिया में बैठा था। पुड़िया का प्रभाव ऐसा था गांव में कोई उनसे छोटा हो या बड़ा सब इन्हें पुड़िया बाबा कहकर ही पुकारते थे।
पुड़िया बाबा: क्यों भाई कालीचरन आज भी झंडे गाड़ने के इरादे से आए हो।
कालीचरण: अब तुम्हें तो सब पता ही है बाबा। हफ्ते भर की बना देना तनिक।
पुड़िया बाबा: बनाते हैं।
ये कहकर वो बाहर की ओर देखते हैं तो दरवाज़े पर फुलवा को देखते हैं,
केलालाल: अरे आओ आओ माई कैसे आना हुआ। अरे कालीचरण भाई तुम तनिक बाहर बैठो हम तुम्हारी पुड़िया बना कर देते हैं।
और ये कहकर कालीचरण को बाहर भेज वो फुलवा और छोटू को अंदर बुला लेते हैं। फुलवा अंदर आकर उनके हाथ जोड़ती है तो छोटू पैर छूकर आशीष लेता है। बाबा उन्हें सामने बिठाते हैं।
पुड़िया बाबा: हां माई का हुआ? सब कुशल मंगल तो है ना?
फुलवा: कहां कुशल मंगल बाबा, हम पर तो बिपदा आन पड़ी है।
बाबा: अरे ऐसा का हो गया?
फिर फुलवा उन्हें सारी बात बताती है, छोटू को मन में थोड़ी घबराहट हो रही थी कि कहीं पुड़िया बाबा उसका झूठ तो नहीं पकड़ लेंगे। वैसे तो पुड़िया बाबा भी गांव के ही थे और ऐसी चीज़ें वो भी मानते थे, पर उनका और उनके पिता का अनुभव ये भी कहता था कि अधिकतर ऐसी भूत प्रेत और आत्माओं से जुड़ी कहानियां या तो वहम निकालतीं थीं या अपने फायदे के लिए बोला गया झूठ। पर बिना सच जाने किसी भी नतीजे पर पहुंचना भी ठीक नहीं होता था।
उनके पिताजी ने उन्हें कुछ खास बातें भी सिखाई थीं जैसे कि किसी के विश्वास को उससे मत छीनो, चाहे हो वो अंधविश्वास ही क्यों न हो, क्योंकि ये उनके काम के लिए अच्छा था, जिस दिन लोगों में अंधविश्वास नहीं रहा तो हमारा सम्मान भी गांव में कम हो जायेगा और कमाई भी, इसलिए लोगों का डर ही हमारी कमाई भी है और सम्मान भी।

फुलवा की सारी बातें सुनने के बाद बाबा ने कुछ सोचा और फिर छोटू से भी एक दो प्रश्न पूछे, जिनका उत्तर छोटू ने अंदर से थोड़ा घबराते हुए दिए पर उसने उत्तर अपनी रटी रटाई कहानी से ही दिए। बाबा ने ये सुना और फिर अपनी खास कई तरह के पंखों से बनी हुई झाड़ू को लेकर छोटू के सिर पर फिराया और आंखें मूंद कर कुछ मंत्र वगैरा पढ़े, और फिर आंखें खोल लीं। फिर छोटू को देख कर बोले: लल्ला तुम बाहर जा कर बैठो।
छोटू तुरंत खड़ा हुआ और प्रणाम कर के बाहर आ गया मन में सोचते हुए: अच्छा हुआ जान छूटी।
छोटू के जाने के बाद बाबा बोले: देखो माई अपनी तरफ से तो मैंने झाड़ा मार दिया है पर खतरा टला नहीं हैं, और जैसा तुम्हारे नाती ने बताया कि इस तरह की औरत आती है तो इस तरह की आत्माएं काफी ताकत वर होती हैं और इतनी जल्दी पीछा नहीं छोड़ती।
फुलवा: अरे दईया फिर का करें बाबा, वो कलममुही कैसे पीछा छोड़ेगी।
बाबा: माई जैसे आदमी औरत की रक्षा करता है उसी तरह औरत भी अपने आदमी की रक्षा करती है ऐसी बुरी शक्तियों से।
फुलवा: पर बाबा अभी हमारे नाती का ब्याह कहां हुआ है तो उसकी रक्षा कैसे हो सकती है कौन करेगा?
बाबा: ब्याह होने से पहले हर बच्चे की रक्षक होती है मां, जो उसे हर तरह की परेशानी से बचाती है मातृत्व में बहुत शक्ति होती है, ऐसी आत्मा तुम्हारे नाती को परेशान कर पाई क्योंकि उसे बचाने वाला कोई नहीं था, तो अब तुम्हें क्या करना है कि उसे अकेले मत सोने देना, कोशिश करना कि जब तक सब सही न हो जाए ये अपनी मां के साथ ही सोए।
फुलवा: ठीक है बाबा जो तुम्हारी आज्ञा होगी वैसा ही होगा।
बाबा: पर खतरा इससे बिल्कुल टल नहीं जायेगा, हो सकता है कि वो असर दिखाए इस पर, इसके सपनों में फिर से आए भी पर मां के होने से ये उतना नुकसान नहीं कर पाएगी।
फुलवा: हाय हाय न जाने क्यों हमारे लाल के पीछे पड़ी है।
बाबा: माई वो उपाय तो हो गया नाती की रक्षा के लिए, पर उसे बिल्कुल नाती के पीछे से हटाने के लिए कुछ और उपाय भी करना होगा।
फुलवा: वो क्या बाबा?
बाबा: पूजा करनी होगी।
फुलवा: कर दूंगी बाबा कब और किसकी करनी है?
बाबा: उस आत्मा को हटाने के लिए कुछ विधि है वो करनी होगी, और वो चाहो तो तुम भी कर सकती हो।
फुलवा: मैं सब करूंगी बाबा तुम बताओ।
बाबा: सुबह पहली पहर में ही उठ कर तुम्हें बिना कोई वस्त्र धारण किए नदी में स्नान करना है उसके बाद उसी अवस्था में बाहर आकर किसी वृक्ष को पूजकर उसकी जड़ में अपना माथा टेकना है और उस आत्मा से विनती करनी है और कहना हैं आजा और आकर अपनी प्यास बुझा कर शांत हो, ऐसा कहके फिर वैसे ही माथा टिकाए रखना है और मैं एक मंत्र दूंगा इसको एक सौ सतासी 187 बार मन ही मन जपना है।
फुलवा ये सुन कर चौंकी क्यूंकि नग्न अवस्था में ये सब करना था
फुलवा: बाबा पूजा तो ठीक है पर बिना किसी वस्त्र के ये सब करना होगा?
फुलवा ने सकुचाते हुए कहा।
बाबा: हां माई का है कि ये आत्मा काम की प्यासी है शरीर तो मिट गया पर कामाग्नि नहीं बुझी इसलिये इधर उधर भटक रही है, इसलिए इसे बुलाने का और मनाने का सही तरीका भी यही है कि उससे उसी वेश में बुलाया जाए जिसमें वो चाहती है।
फुलवा ने बात को समझते हुए सिर हिलाया और बोली: ठीक है बाबा मैं कर लूंगी।
बाबा: पर ध्यान रखना ये बात तुम्हारे अलावा किसी को पता नहीं लगन चाहिए कि तुम ये क्या कर रही हो नहीं तो पूजा व्यर्थ हो जायेगी।
फुलवा: ठीक है बाबा किसी को नहीं पता चलेगा।
बाबा: ठीक माई अब तुम कुछ देर बाहर रुको मैं एक पुड़िया दूंगा वो सोने से पहले दूध में मिलाकर लल्ला को पिला देना हफ्ते भर जिससे उसके बदन के अंदर ठंडक मिलेगी जो गुप्तांग में जलन होती है वो नहीं होगी।
फुलवा: ठीक है बाबा जो तुम्हारी आज्ञा। जय हो पीपल वाले बाबा की। फुलवा ने ब्लाउज से चार आने निकाले और बाबा की थाली में रख दिए जिसमें दक्षिणा आदि रखी जाती थी।
और हाथ जोड़ कर फुलवा बाहर जाने लगी, उसे जाते हुए देख कर और उसके भारी भरकम थिरकते हुए चूतड़ों को देख कर पुड़िया बाबा के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई, वैसे बाबा का एक चेहरा ये भी था, भोली भाली गांव की औरतों को कुछ खास तरह के टोटके आदि बताकर वो अपने मन की कामाग्नी को शांत करते थे, पर जितना टोटके से हो सके उतना, खुल कर वो किसी के भी सामने नहीं आते थे बस टोटकों का सहारा लेकर जितना बन सकता था मज़े लेते थे, फुलवा जब गांव में ब्याह कर आई थी तब वो लड़कपन में थे और तबसे ही उस पर उनकी नजर थी आज इतने बरस बाद भी वो अंदर की इच्छा खत्म नहीं हुई थी इसलिए आज मौका मिलते ही बाबा ने चौका मार दिया था। वैसे भी फुलवा दादी भले ही बन गई हो पर उसकी उमर अभी पचास के करीब ही थी, बदन भी पूरा भरा हुआ था बड़ी बड़ी तरबूज जैसी चूचियां, मटके जैसे चूतड़, भरा हुआ बदन, फुलवा ने जवानी में खेतों में खूब काम किया था तो बदन भी बिल्कुल कसा हुआ था, जवानी क्या वो अब भी कौनसा खाली बैठती थी अभी भी किसी न किसी काम में लगी ही रहती थी।
फुलवा के बाहर जाते ही बाबा ने पुड़िया बनाईं और कालीचरण को आवाज दी और उसे उसकी पुड़िया पकड़ा कर एक और पुड़िया हाथ में देते हुए कहा इसे बाहर माई को दे देना।
कालीचरण खुश हुआ और प्रणाम कर उसने भी चार आने बाबा की थाली में डाले और बाहर चल दिया। बाहर आकर उसने एक पुड़िया फुलवा को पकड़ा दी और फिर पुड़िया लेकर अम्मा और पोता घर को चल दिए। घर आए तब तक सब लोग आ चुके थे घर पर सब ही थे सिवाए नीलम के, खाना पीना चल रहा था सुधा और पुष्पा एक दूसरे से नजरें चुराकर काम कर रही थीं, छोटू ने खाना खाया और बाहर की ओर चल दिया, तभी उसके पीछे पीछे उसका चचेरा भाई सुधा और संजय का बेटा राजेश भी आ गया, राजेश छोटू की उमर का ही था वो छोटू से कुछ महीने बढ़ा था, एक उमर के होने के बाद भी दोनों साथ में कम ही रहते थे, क्योंकि छोरी तो हमेशा से ही भूरा और लल्लू के साथ रहता था वहीं राजेश की दोस्ती अलग लड़कों से थी,
घर के बाहर आते ही राजेश ने छोटू को रोका: अरे छोटू सुन।
छोटू: हां बता।
राजेश: क्या हुआ था तुझे रात को?
छोटू: बताया तो सोते हुए वहां पहुंच गया कुछ याद नहीं।
छोटू ने बात दोहराते हुए कहा,
राजेश: सही सही बता।
छोटू: सही सही ही बता रहा हूं।
राजेश: मुझे चूतिया मत बना बेटा, तू नंगा हो कर वहां पहुंच गया और तुझे पता भी नहीं।
छोटू उसकी बात सुन मन ही मन थोड़ा सकुचाया पर फिर भी बात बना कर बोला: चूतिया तू पहले से है मैं क्यूं बनाऊंगा।
राजेश: बेटा कोई तो बात है जो तू झूठ बोलकर बना रहा है, अभी मुझे बता दे तो सही नहीं तो बाद में तेरा पिछवाड़ा लाल होते देख बड़ा मजा आयेगा।
छोटू एक बार को उसकी बात सुन कर मन ही मन डर गया और सोचने लगा कह तो सही रहा है ये पर क्या करूं इसे क्या बताऊं कि तेरी मां और पापा की चुदाई देख कर मुठ मार रहा था,
छोटू को चुप देख राजेश समझ गया कि उसका निशाना सही लगा है उसे बस छोटू को थोड़ा डराना है फिर ये सब सही सही बोल देगा।
राजेश: देख ले बेटा अभी बता देगा तो मैं बचा भी लूंगा नहीं तो बाद में पता तो लगना ही है फिर कोई नहीं बचाने वाला, तू मेरा भाई है इसलिए बोल रहा हूं नहीं तो मुझे क्या पड़ी।
छोटू भी मन ही मन सोच रहा था कह तो ये सही रहा है वैसे भी इसका साथ होना उसके लिए अच्छा ही था, पर उसे बताए क्या ये सोच रहा था।
छोटू: कह तो तू सही रहा है पर।
राजेश: पर क्या?
छोटू: मैंने तुझे बताया और तूने किसी को बता दिया तो?
राजेश: अरे पागल है क्या अपने भाई की बात मैं किसी और को क्यों बताने जाऊंगा? घर की बात बाहर थोड़े ही कहते हैं।
छोटू: पक्का नहीं बताएगा न और घर में मेरी शिकायत नहीं करेगा?
राजेश: अरे बोल तो रहा हूं नहीं करूंगा साथ ही मैं तो तुझे बचाने की सोच रहा था।
छोटू: अच्छा पहले तूने घर पर बता दिया था कि मैंने तंबाकू खाई थी तो कितनी मार पड़ी थी मुझ पर, जबकि मैंने बस एक दाना खाया था बस।
राजेश: वो भी मैंने तेरे भले के लिए ही बताई थी।
छोटू: मेरे भले के लिए वाह जी वाह, मार पड़वा के भला हुआ मेरा।
राजेश: अरे वो इसलिए बताया था कि तुझे खाते हुए दुकान वाली चाची ने भी देख लिया था और वो घर पर कहने वाली थी, और वो आकर कहती तो तुझे पता है ना कितना मसाला डाल कर कहती, इसलिए मैंने खुद से पहले बता दिया था।
छोटू ये सुन चुप हो गया और फिर बोला: देख बताता हूं वो मैं रात को वहां पर मुठ मार रहा था।
राजेश ये सुन हंसते हुए बोला: अबे तुझे भैंसों के बीच मुठ मारने की क्या सूझी, कोई भैंसिया तो नहीं पसंद आ गई।
छोटू: देख इसीलिए तुझे नहीं बताना चाह रहा था तू मजाक उड़ाता है।
राजेश: अच्छा ठीक नहीं उड़ा रहा मजाक पर ये तो बता भैंसों के बीच वो भी पजामा उतार के?
छोटू: वो मेरा नुन्नू बहुत कड़क हो गया था सो ही नहीं पा रहा था और बिस्तर पर मारता तो किसी के उठ जाने का खतरा था, और पजामा इसलिए उतारा था क्योंकि मैं नीचे बैठा था और वो गंदा न हो जाए।
राजेश: अच्छा तो ऐसा है मैं तेरी परेशानी समझ सकता हूं मेरे साथ भी रात को ऐसा ही होता है मेरा लंड भी साला कभी कभी बैठता ही नहीं।
राजेश खुल कर छोटू के सामने बोलता है तो छोटू को हैरानी भी होती है खुशी भी,
छोटू: तो क्या तू भी करता है घर में कभी?
राजेश: हां कभी चुपचाप बिस्तर पर तो कभी मूतने के बहाने से।
छोटू: बिस्तर पर तो मुझे डर लगता है कहीं गंदा हो गया तो मुश्किल हो जायेगी।
राजेश: हां यार ये डर तो मुझे भी रहता है पर वो सब छोड़ ये बता तुझे रात में मुठियाने की क्या जरूरत पड़ गई तुम तीनों तो जंगल में एक साथ मुठियाते हो।
ये सुनकर छोटू हैरान रह गया।
छोटू: ये ये तुझे कैसे पता?
राजेश: बेटा मुझे सब पता रहता है बस मैं बताता नहीं।
राजेश शेखी बघारते हुए बोला।
छोटू: पर तुझे पता था तो तूने मुझसे कभी कहा क्यूं नहीं?
राजेश: अरे तू अपने दोस्तों के साथ खुश था तो मैं क्या कहता।
छोटू को इस बात पर ग्लानि हुई साथ ही अपने भाई पर प्यार भी आया,
छोटू: वैसे अब से चाहे तो तू भी चल सकता है हमारे साथ जंगल में।
राजेश: मुठियाने?
छोटू: हां।
राजेश कुछ सोचता है और फिर कहता है: नहीं यार मेरी तेरे दोस्तों से नही बनती, तुझे भी पता है।
छोटू: हां कह तो सही रहा है।
राजेश: एक बात बताएगा?
छोटू: हां पूछ।
राजेश: तू किसके बारे में सोच के मुठिया रहा था रात को?
राजेश मुस्कुराते हुए पूछता है तो छोटू सकुचा जाता है क्या बोलता की तेरी मां अपनी सगी चाची को नंगा देख हिला रहा था।
छोटू: मैं वो मैं दुकान वाली चाची को।
राजेश: अरे दादा गजब, मस्त माल है चाची, गांड देखी है साली की अःह्ह्ह्ह लंड खड़ा हो जाता है।
छोटू: हैं ना पूरा बदन भरा हुआ है, चूचियां कसी हुई, गहरी नाभी और मस्त पतीले जैसे चूतड़ हाय।
राजेश को लगता है छोटू दुकान वाली के बारे मैं बोल रहा था पर छोटू तो उसकी मां यानी सुधा के कामुक बदन का बखान कर रहा था।
राजेश: अरे बोल तो ऐसे रहा है जैसे रोज़ नंगा देखता हो।
छोटू: अरे सपने में तो नंगी ही रहती है,
छोटू कमीनी मुस्कान के साथ कहता है तो दोनों हंस पड़ते हैं,
राजेश: यार अच्छा लग रहा है ऐसे खुल कर तुझसे बातें करने में।
छोटू: मुझे भी, हम लोग भी भाई हैं एक उमर के हैं फिर भी अलग थलग रहते हैं।
राजेश: कोई नहीं आगे से ऐसा नहीं होगा। चल तुझे तेरे सपनों की रानी के दर्शन करवाता हूं।
छोटू: मतलब?
राजेश: मतलब बाबा ने तंबाकू की पुड़िया मंगाई है दुकान से, साथ में कमपट के लिए भी पैसे दिए हैं।
छोटू: अरे वाह चल चलते हैं जल्दी।
दोनों साथ साथ खुशी खुशी आगे बढ़ जाते हैं। रास्ते में थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्हें सामने से नंदिनी आती हुई दिखती है जो पास आकर पूछती है: सुनो दोनों, नीलम घर पर ही है ना?
छोटू: हां दीदी, वो कहां जायेगी घर ही तो रहेगी।
छोटू हंसते हुए कहता है और दोनों ही हंसने लगते हैं
नंदिनी: हां तुम लोगों की तरह गांव में हांडने का काम तो तुम लोगों का है ना,
राजेश: अरे दीदी तुम भी ना बेइज्जती करने का मौका नहीं छोड़ती।
नंदिनी: और तुम लोग बकवास करने का चलो घूमो अब मैं जाती हूं।
ये कह नंदिनी आगे बढ़ जाती है और वो दोनों भी, नंदिनी जल्दी छोटू के घर पहुंच जाती है,
नंदिनी: प्रणाम चाची, नीलम कहां है?
नंदिनी आंगन में बैठी पुष्पा से पूछती हैं उसे थोड़ी दूर बैठी सुधा नजर आती है तो वो उसे भी प्रणाम करती है और फिर आंगन में बैठे सभी को,
पुष्पा: प्रणाम बिटिया, कमरे में सो रही है जा जाकर जगा ले।
नंदिनी भाग कर कमरे में घुस जाती है और नीलम को सोते हुए देखती है तो आगे बढ़ कर शरारत करते हुए उसकी उभरती हुई चूचियों को दबा देती है जिससे नीलम चौंक कर उठ जाती है और फिर कुछ पल इधर उधर देखकर जब सामने नंदिनी को देखती है तो बोलती है: कुत्तिया कहीं की ऐसे डराता है कोई, मेरी तो जान ही निकल गई थी,
नंदिनी: तो मैंने कहा था दोपहर में सोने को रात को ऐसा क्या करती है?
नंदिनी उसे छेड़ते हुए कहती है,
नीलम: तेरे ब्याह में नाचती हूं,
नीलम उठते हुए कहती है।
नंदिनी: बिटिया तुम हमारे ब्याह में नहीं नाचती बल्कि अपना जुगाड़ लगाती होगी। अब चलो भाभी इंतेजार कर रहीं होंगी।
नीलम: चल रही हूं मुंह धोकर आती हूं।
नीलम बाहर मुंह धोने चली जाती है दोनों पिछली गली की रजनी भाभी से कढ़ाई सीखने जाती थीं, पढ़ाई लिखाई के नाम पर ब्याह से पहले लड़कियों को घर के काम की ही शिक्षा दी जाती थी, घर के काम के अलावा अगर एक आध काम और कोई आता हो जैसे सिलाई कढ़ाई, बुनाई आदि तो सोने पर सुहागा, इसलिए दोनों सहेलियां रजनी भाभी से पिछले कुछ समय से कढ़ाई सीख रही थीं, जल्दी ही दोनों कढ़ाई का समान लिए घर से निकल जाती हैं।
जैसे लल्लू छोटू भूरा राजेश एक उमर के थे उसी तरह नीलम और नंदिनी भी एक उमर की थीं तो दोस्ती होना स्वाभाविक ही था, और बचपन से ही हर काम दोनों साथ करती थीं, दोनों की लंबाई भी लगभग समान ही थी पर दोनों के बदन में काफी अंतर था, नंदिनी का बदन अच्छा खासा भरा हुआ था वहीं नीलम छरहरे बदन वाली थी, शरीर पर मांस उतना ही था जितना आवयश्यक था, पर ऐसा नहीं कि सुंदर नहीं दिखती थी, उसका चेहरा बहुत सुंदर था बिल्कुल अपनी मां सुधा जैसा था पर उससे भी कहीं अधिक सुंदर। उसकी मुस्कान बेहद सुंदर थी।
जहां नंदिनी की छातियां सूट फाड़कर बाहर आने को तैयार रहतीं वहीं नीलम की छाती पर अभी सिर्फ दो आधे कटे सेब जितना उभार आया था, यही हाल नितंब का था नंदिनी के जहां पतीले थे तो नीलम के कटोरे। उसका बदन हल्का ज़रूर था पर सुंदरता में किसी से कम नहीं था। यदि कुछ शब्दों में दोनों सहेलियों के बीच में अंतर बताया जाए तो नंदिनी के बदन से जहां कामुकता टपकती थी वहीं नीलम से सुंदरता, दोनों ही अपने अपने नज़रिए से बहुत सुंदर थीं।
रास्ते में थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्हें राजू नज़र आता है जो सामने से आ रहा होता है दोनों को देख वो तुरंत नजर नीचे करके निकल जाता है।
नीलम: ये राजू हमारे सामने कुछ अजीब तरह नहीं करता,
नंदिनी: मतलब।
नीलम: मतलब अभी देखा नहीं कैसे हमें देखते ही नज़र नीची करके निकल गया, एक इसे देखो और एक भूरा को लगता ही नहीं दोनों भाई हैं।
नंदिनी: हां ये शुरू से ही ऐसा देखा है मैंने तो, तू यकीन मानेगी बचपन से अब तक मैने इससे कोई दो चार बार ही बात की होगी। और पिछले दो सालों में तो बिल्कुल ही नहीं।
नीलम: नहीं जैसे हमारे घर आता है तो मूझसे तो करता है, खूब अच्छे से, शायद तूझसे ही डरता है।
नंदिनी: अच्छा मैं क्या कोई चुड़ैल हूं जो मुझसे डरेगा?
नीलम: यार सच कहूं तो कभी कभी मुझे भी लगती है।
नंदिनी: कुत्तिया कहीं की।
दोनों हंसी मजाक करते हुए आगे बढ़ जाते हैं

जल्दी ही दोनों रजनी भाभी के यहां पहुंच गईं कढ़ाई सीखने के लिए, रजनी भाभी इस गांव में 5 साल पहले ब्याह के आई थीं, देखने में बहुत सुंदर सर्व गुण संपन्न , जिसने भी देखा यही कहा कि दूल्हे के तो भाग खुल गए, पर बेचारी के खुद के भाग फूटे पड़े थे, ब्याह के एक साल बाद ही सास ससुर नदी में डूब के मर गए, शादी के पांच साल बाद भी संतान सुख नहीं मिला था, गांव के वैद्य से लेकर शहर के डाक्टर ने ये ही कहां कि कमी कोई नहीं है पर बच्चा नहीं हो रहा था, अब पूरे घर में सिर्फ वो और उनके पति मनोज रहते थे, पति भी मन ही मन दुखी रहते थे इसलिए दुख कम करने के लिए ताड़ी का सहारा आए दिन लेते थे, आपस में प्यार भी उतना नहीं बचा था, बड़ी नीरस सी जिंदगी गुज़र रही थी दोनों की, तो नीलम नंदिनी को कढ़ाई सिखाने के बहाने ही उसके दिन का कुछ समय हंस खेल कर बीत जाता था, दोनों ही रिश्ते में उसकी ननद लगती थीं तो खूब ननद भाभी वाला मजाक करते थे आपस मे, दिन का यही समय होता था जब रजनी मन से थोड़ी प्रसन्न होती थी, बाकी गांव में जिसके बच्चा ना हो उस औरत को कैसे देखा जाता है वो अच्छे से जानती थी और उसके साथ हो भी रहा था, नई दुल्हनों को अब उससे मिलने से मना कर दिया जाता था तो वो खुद ही कुछ न कुछ बहाना बनाकर किसी के यहां भी जाने से डरती थी, आज का समय भी ऐसे ही बीता और फिर समय पूरा होने पर दोनों रजनी के यहां से निकल चली, नीलम जैसे ही घर की ओर चली तो नंदिनी उसका हाथ पकड़ दूसरी ओर खींचने लगी।

नीलम: अरे कहां ले जा रही है घर चल ना।
नंदिनी: अरे चुपचाप चल ना कुछ काम है।
नीलम: अरे हां समझ गई तेरा काम, देख नंदिनी तू जा मुझे तेरे चक्कर में नहीं पढ़ना।
नंदिनी: अरे यार कैसी सहेली है तू मुझे अकेले जाने को बोल रही है, चल ना तू तो मेरी प्यारी बहन है, तुझे मेरी कसम।
नीलम: यार तू समझ नहीं रही किसी दिन पकड़े गए न तो तू तो फंसेगी ही मैं और लपेटी जाऊंगी।
नंदिनी: अरे कुछ नहीं होगा और आज तक कुछ हुआ।
नीलम: अरे तो जरूरी है की आगे भी न हो।
नीलम मना करती रहती है पर नंदिनी उसे खींचते हुए आगे ले जाती रहती है। दोनों जल्दी ही गांव के बाहर अमरूद के बाग के बाहर पहुंच जाते हैं,
नीलम: यार मुझे डर लग रहा है।
नंदिनी: तू तो ऐसे बोल रही है जैसे पहली बार आई हो, चल ना,
दोनों फिर बाग के अंदर की ओर बढ़ने लगते हैं अंदर आकर थोड़ा आगे ही बढ़ते हैं कि अचानक से पेड़ के पीछे से एक साया आता है और नंदिनी का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लेता है, अचानक ऐसा होने पर दोनों सहेलियां चीख उठती हैं वो साया नंदिनी का मुंह तो हाथों से बंद कर लेता है नीलम जब उसकी ओर देखती है तो चीखना बंद कर देती है और गुस्से से उसकी ओर देखती है।
नीलम: अरे ये कैसा मजाक हुआ, डरा दिया मुझे।
इधर नंदिनी भी अपने मुंह से हाथ हटाती है और कहती है: हां बड़े दुष्ट हो तुम, देखो कितना डर गए हम। सही कहती है नीलम कि तुमसे दूर रहा करें।
वो साया नीलम की ओर देखता है तो नीलम बोलती है: देखो सत्तू भैया मुझे वैसे भी गुस्सा आ रहा है अब और मत दिलाओ।
जी हां ये साया और कोई नहीं बल्कि सत्तू होता है,
सत्तू: अरे पर तू इससे मेरी बुराई क्यूं करती है?
नीलम: क्योंकि तुम हो बुरे।
सत्तू: अरे अच्छा डराने के लिए माफ करदे पर मैं बुरा कैसे हूं।
नंदिनी: अरे तुम लोग अब लड़ो मत वैसे भी देर हो रही है जाना भी है।
सत्तू: हां नीलम तू तब तक अमरूद तोड़ मैं और नंदिनी कुछ बातें कर लेते हैं।
नीलम: हां सब समझती हूं बातें, नीलम मुंह सिकोड़ती हुए आगे चली जाती है और उसके आगे जाते ही सत्तू नंदिनी को पेड़ की ओट में कर पेड़ से चिपका लेता है।
सत्तू: पता है कितनी देर से राह देख रहा था।
नंदिनी: अरे जब समय होता तभी आती ना।
नंदिनी आंखे नीचे करते हुए बोलती है,
सत्तू: अरे यार इतने समय बाद भी तुम मुझसे इतना शर्माती क्यों हो।
नंदिनी: पता नहीं क्यों पर तुम जब पास आते हो तो शर्म आने लगती है अपने आप।
सत्तू: लो फिर मैं और पास आ गया तुम्हारे अब शरमाओ।
ये कह सत्तू नंदिनी से सामने से बिल्कुल चिपक जाता है, नंदिनी की मोटी चूचियां उसे अपने सीने में महसूस होती हैं।
नंदिनी इसकी बात का कोई जवाब नहीं देती और अपना चेहरा उसके सीने में छुपा लेती है।
सत्तू प्यार से उसका चेहरा उठता है और उसकी आंखों में देख कर कहता है: मुझे पता है तुम्हारी शर्म कैसे दूर करनी है,
ये सुन नंदिनी शर्म से अपनी आंखे बंद कर लेती है और कुछ पल बाद ही उसे अपने होंठों पर सत्तू के होंठों का स्पर्श होता है और उसके पूरे बदन में बिजली कौंध जाती है, उसके हाथ सत्तू के बदन पर कसने लगते हैं सत्तू धीरे धीरे से उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगता है और नंदिनी का पूरा बदन उस उत्तेजना में सिहरने लगता है, ज्यों ज्यों उसकी उत्तेजना बढ़ती है उसकी शर्म काम होती जाती है, और कुछ पल बाद वो भी सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी का साथ पाकर और उत्तेजित हो जाता है कुछ पल लगातार एक दूसरे के होंठों को चूसने के बाद सत्तू अपने हाथ नंदिनी के कामुक बदन पर फिराने लगता है, वो सूट के ऊपर से ही उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए उसके होंठों को चूसता है नंदिनी तो सब कुछ भूल कर सत्तू का चुम्बन में साथ देने लगती है।
सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है


आगे जारी रहेगी।
Superb bhai kya mast update diya aap ne maza aa gya


Bhai jha ek trf puspa or shudha ek dusre ke sath maje kr kr sarma rahi h to ek trf pipal wale baba bhi chotoo ki dadi gand ko dekh kr ahe bhar rahe h dekhna ye h ki sabse pehle kiski chudai hoti h

Bhai ji ek requst h ki jaldi se puspa shudha ki chudai bura choto ya lallu se karwao na yrrrr

Or jaldi update dena yrrr intjar nhi hota h
 
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Deepaksoni

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Bhai ji ab kab tak ayega update
 
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