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Bhai ek hafte m ek update nhi de paa rhe yarr
Agr itni hi busy life h to strt kyu krte ho forum
Shandar jabardast super hot erotic update
Fantastic update
Ek maa beti ke beech ka aisa kaamuk milaap padhke sharir tapne laga. Jis choot se nikli usi se apni choot ragadke jhadna aisa anand hai jo har kisi ko nahi milta. Lata to aaj alag hi kaamuk mood me hai. Chhotu bichara bhi pudia ke herfer me lund tight karwa baith hai aur maa bete ke beech ka kaamuk samikaran to atyant lubhavan hai. Bhasha par aapki pakad bahot acchi hai Arthur Morgan Bhai Aap mere se kayi guna acche writer ho isliye aapki story ke updates ki vyakulta se pratiksha karta hoon
वाह भाई.. मज़ा आ गया पढ़कर... !! जबरदस्त अपडेट.. !!
Nice update bro
Romanchak. pratiksha agle rasprad update ki
Wow bhai kya gajab update diya aap ne maja aa gya
Jha nandani apni maa ke chut me apni chut ragad kr jhad gyi to yha bechara choto k liye apni maa ke hatho me bas land hone se hi jhad gya maja aagya
Jaldi se agla update dena bhai
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Lovely updated
Update de do dst
Waise kahani badi behtareen hai lekin mujhe aisa lagta hai ki 3 alag alag pariwaron ki jagah 1 hi pariwar dikha dete toh aur maza aata jaise ek main family aur baaki do chacha aur mausa ki family ya bua ya mama ki family aisa kuch hota toh saari families ek dusre se connect ho jaati
बहुत ही शानदार रोमांचक अपडेट
Waiting for yours valuable update guruji
Waiting for your update
ठीक है मित्र ! काम पहले है, आप आराम से समय लेकर अपडेट देना !!
Waiting for new update
Update do bhai
waiting for the next update....
Update please..
अगला अध्याय पोस्ट कर दिया है पढ़ कर प्रतिक्रिया अवश्य दें। धन्यवाद।Story bhut achi hai..... But Jis trah se update de rhe hai........Lgta hai ye story v jld hi bnd ho jayegi......so sad
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति मित्र
गजब की कहानी है , सब कुछ सचित्र और संजीव सा मालूम पड़ता है
चाहे वो गाव के घूमककड़ो की यारी हो या फिर पिछड़े हुए समाज मे महिलाओ पर थोपे गये संस्कार और मर्यादाओ की बेड़ीया हो या फिर भूत प्रेत बाधा वाली किस्से कहानिया सब कुछ आस पास घट रहा हो और अपने ही गाव घर की बात हो ऐसा मह्सूस हो रहा है ।
लता ताई के झुल्ते चुचे और पुष्पा की फैली गाड़ सब किरदार आन्खो मे बस से गये हो ।
किसी पुराने और अनुभवी एक पाठक मित्र द्वारा कभी मेरे लिए ये बात कही गई थी वो आज आपको समर्पित है
Brilliant updates with awasome writting skills. Keep it up
Fantastic update Bhai... waiting more
अपडेट क्यों नहीं आ रहे
अध्याय 10 पोस्ट कर दिया पढ़ कर प्रतिक्रिया ज़रूर दें।Will be eagerly waiting for next update
Mast update guruji thanks gurujiअध्याय 10
इससे पहले पुष्पा कुछ समझ पाती कि क्या हो रहा है छोटू का लंड पिचकारी छोड़ने लगा और पिचकारी सीधी उसके बदन पर गिरने लगी कोई पेट पर गिरती तो कोई ब्लाउज पर और कोई पेटिकोट पर, कुछ देर में छोटू का झड़ना खत्म हुआ तब तक उसके लंड ने अच्छे से मां के बदन को रंग दिया था। आगे..
पुष्पा अपने बेटे के लंड को थामें ज्यों की त्यों पड़ी थी और अभी जो हुआ उसे समझने का प्रयास कर रही थी, उसके बदन पर उसके बेटे के लंड की मलाई लगी हुई थी और जहां जहां उसके बदन पर उसके बेटे के लंड का रस लगा हुआ था उस जगह मानो उसका बदन जल सा रहा था,
छोटू तो आंखें मूंदे डर के मारे लेटा हुआ था उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी मां ने उसके लंड को अपने हाथ में लिया और फिर हिलाया भी पर उसके आगे क्या हुआ उसके बाद उसने अपना रस मां के बदन पर गिरा दिया अब मां ज़रूर बहुत गुस्से में होगी, छोटू बेटा आज तो तू गया आज तेरा आखिरी दिन समझ। जहां छोटू डर से सहमा हुआ था वहीं उसकी मां अलग दुविधा में थी, उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बेटे के साथ सोना इतना मुश्किल होने वाला था और उसे ये सब करना पड़ेगा जिसकी कल्पना भी एक मां नहीं कर सकती।
पर वास्तविकता तो ये थी कि उसके हाथ में उसके बेटे का कड़क तन्नाया लंड था, उसके बदन पर उसके लंड का रस था,
पुष्पा इन्हीं सब विचारों में खोई थी उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, फिर उसके मन में विचार आया चलो कम से कम इसका रस तो निकला अब आराम से सो पाएगा, पर फिर खुद ही अपने हाथ में उसका लंड महसूस कर हैरान हो गई,
हाय दईया पर इसका लंड तो अब भी बिल्कुल वैसे ही कड़क है रस निकलने के बाद भी कोई असर नहीं हुआ, इसके पापा का तो रस निकलने के बाद ढीला हो जाता है पर इसका क्यों नहीं हो रहा, अब तो मुझे पक्का विश्वास होता जा रहा है लल्ला के ऊपर उस चुड़ैल का साया है नहीं तो ऐसा क्यों होता।
पुष्पा ये सोच घबराने लगी और आगे क्या करे ये सोचने लगी, कुछ तो करना पड़ेगा ही मैं अपने लल्ला को उसके चंगुल में नहीं रहने दे सकती, वो भले ही चुड़ैल सही पर वो एक मां से नहीं जीत सकती,
मन में ऐसा विचार कर पुष्पा ने खुद को संभाला और फिर धीरे धीरे उसका हाथ दोबारा से बेटे के लंड को मुठियाने लगा,
छोटू जो कि डर से अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रहा था वो अचानक अपनी मां की इस हरकत से अचम्भे में पड़ गया उसे तो लगा था कि उसकी मां उसे मारेगी पीटेगी गालियां देगी पर यहां तो उसकी मां अब भी उसका लंड मुठिया रही थी, वो सोचने लगा आज उसके साथ भाग्य है, लगता है मां उसे नहीं मारेगी बल्कि मां के मन में कुछ और ही चल रहा है,
क्या मां को मेरा लंड अच्छा लग गया है क्या वो मेरा लंड देख कर खुद को नियंत्रित नहीं कर पा रही हैं,
नहीं नहीं मेरी मां ऐसी औरत तो नहीं है, कितनी संस्कारी हैं कोई भी काम ऐसा नहीं करती जो गलत हो तो अपने ही बेटे के साथ ऐसा क्यों करेंगी, अह्ह्ह्ह पर मां का हाथ लंड पर कितना अच्छा लग रहा है अह्ह्ह्ह अपने हाथ से हिलाने से तो हजार गुना ज्यादा अच्छा है ये अनुभव। अभी ये सोचने से कि मां ये सब क्यों कर रही हैं उससे अच्छा है कि जो कर रही हैं उसका आनंद लूं, शायद ही कभी ऐसा जीवन में दोबारा संयोग बने, ये सोच छोटू भी अपने लंड पर अपनी मां के हाथ का आनंद लेने लगा,
पुष्पा अपने आप को शांत करते हुए छोटू का लंड मुठिया रही थी मन में यही सोच रही थी कि किसी भी प्रकार से अपने लल्ला को उस चुड़ैल से बचाना है, पर धीरे धीरे उसके बदन पर भी उत्तेजना चढ़ती जा रही थी, जैसे जैसे वो अपने बेटे का लंड मुठिया रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ती जा रही थी, उसकी चूत में खुजली होने लगी थी उसकी चूचियां तन कर मानो ब्लाउज में छेद करने को तैयार थीं, इसी बीच उसके मन में उसके बदन पर पड़े छोटू के लंड रस का विचार आया तो वो उसे पोंछने का सोचने लगी और उसने अपना दूसरा हाथ अपनी गर्दन पर रखा जहां छोटू के लंड ने पिचकारी मारी थी, जैसे ही उसकी उंगलियों ने बेटे के गाढ़े वीर्य को छुआ तो उसके बदन में सिरहन सी हुई, इस विचार से कि उसकी उंगलियों पर उसके बेटे का वीर्य है,
पुष्पा ने इस विचार को थोड़ा दबाया और अपनी गर्दन से छोटू के रस को उंगलियों से पोंछने लगी साथ ही एक हाथ छोटू के लंड पर भी लगातार चल रहा था, रस को पोंछते हुए पुष्पा का बदन हर पल के साथ उत्तेजित होता जा रहा था, उसे लग रहा था मानो छोटू के वीर्य में कुछ जादू है जो उसके बदन को उत्तेजित कर रहा है, उसकी गर्मी को भड़का रहा है उसके बदन में एक प्यास जगा रहा है और हो भी ऐसा ही रहा था, उसकी चूत भी नम होकर पानी बहाने लगी थी, चूचियां बिल्कुल तनी हुई थीं जो कि ब्लाउज के ऊपर से ही पता चल रही थीं,
गर्दन से वीर्य पोंछने के बाद पुष्पा ने अपने पेट पर हाथ लगाया और पेट पर हाथ फिराते हुए वीर्य को पोंछने लगी, पर उसकी उत्तेजना इतनी बढ़ गई कि उसने धीरे धीरे वीर्य को पोंछने की जगह उसे अपने पेट पर ही मलना शुरू कर दिया, और ये वो बिना सोचे ही करने लगी, हर बढ़ते पल के साथ उसकी उत्तेजना और बढ़ रही थी, वो अपने बदन और मन से नियंत्रण खोने लगी, अचानक से उसे विचार आया कि ये क्या कर रही है पुष्पा बेटे के वीर्य को पोंछने की जगह उसे अपने बदन पर मल रही है, ये सोच कर तो वो और गरम हो गई और स्वयं को रोकने की जगह वो खुल कर छोटू के वीर्य को अपने पेट पर मलते हुए मसलने लगी, साथ ही हर पल के साथ और उत्तेजित होती जा रही थी,
छोटू के लंड पर उसकी पकड़ और बढ़ती जा रही थी पेट पर वीर्य मलने के बाद उसने अपने ब्लाउज पर लगे वीर्य को भी उंगलियों से बटोरा और उसे अपनी छाती और गर्दन पर लगाने लगी, बेटे के लंड रस को पुष्पा ऐसे बदन से मल रही थी जैसे औरतें महंगी क्रीम भी नहीं मलती होंगी।
छोटू भी अलग आनंद में था और हो भी क्यूं ना उसकी मां उसका लंड पकड़ कर मुठिया रही थी, वो तो छोटू सोने का नाटक कर रहा था नहीं तो मां को अपने रस को बदन पर मलते देखता तो आंखें फटी की फटी रह जाती।
पुष्पा के लिए हर आने वाला पल उसकी गर्मी बढ़ा रहा था और उसके लिए खुद को संभालना मुश्किल होता जा रहा था, उसकी चूत में मानों हज़ारों चीटियां रेंग कर उसे तड़पा रहीं थी, उसकी चूचियां ऐसे अकड़ गई थीं मानों ब्लाउज में छेद करके बाहर निकल आएंगी, अपनी गर्दन पर रस मलते हुए उसका हाथ थोड़ा नीचे आया और वो ब्लाउज के ऊपर से ही अपनी चूचियों को हल्का हल्का मसलने लगी, पर ज्यों ज्यों वो चुचियों को मसलती वो उतना ही और स्पर्श के लिए तड़प उठती, उसका मसलना उसके अंदर की आग को शांत करने की जगह और भड़का रहा था।
इसी तड़पन में पुष्पा ने बिना विचारे ही एक कदम उठाया और अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी, एक एक करके बटन अलग होते गए और कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज खुल चुका था। पर ब्लाउज खोलते हुए भी पुष्पा ने एक ग्रहणी की मुख्य विशेषता का परिचय दिया और वो थी बहुकार्यन, एक ही साथ कई कार्य करने की खास शक्ति एक नारी में होती है और पुष्पा भी अभी वही कर रही थी, भले ही वो अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी पर उसने अपना हाथ छोटू के लंड से तनिक भी नहीं हटाया बल्कि उसे लगातार मुठियाती रही।
ब्लाउज खुलने के बाद पुष्पा ने दोनों पाटों को अलग किया और चांदनी में उसकी उन्नत चूचियां बाहर आ गईं जिन्हें बारी बारी पकड़ कर वो मसलने लगी, उसने खुद को किसी तरह सिसकियां लेने से रोका, अच्छा था छोटू की आंखें बंद थी नहीं तो इतनी पास से अपनी मां की मोटी मोटी चूचियों को देख कर न जाने उसका क्या हाल होता,
पर हाल तो पुष्पा का खराब हो रहा था चुचियों को नंगा कर मसलने के बाद भी उसके बदन में तडपन और बढ़ती जा रही थी उसकी चूत की खुजली उसे तड़पा रही थी, पर वो क्या करे उसकी समझ नहीं आ रहा था चुचियों की तडपन संभाले या चूत की खुजली, लल्ला के लंड को भी नहीं छोड़ सकती थी या कहें तो छोड़ना ही नहीं चाहती थी,
इसका जवाब खुद ही उसे मिल गया पर अगले ही पल वो खुद को मना करने लगी, मन में एक द्वंद होने लगा, सही और हवस में, संस्कार और उत्तेजना में,
बुद्धि और बदन में, और अंत में बदन के सुख के आगे बुद्धि को हार स्वीकार करनी पड़ी और पुष्पा ने अपने ब्लाउज से हाथ उठाया और उससे छोटू का एक हाथ जो कि उसने अपनी कमर पर रखा हुआ था उसे उठाकर अपनी एक चूची पर रख दिया,
चूची पर हाथ का स्पर्श होते ही पुष्पा का बदन पूरा एक पल के थरथरा गया, और अब तो जो भी विचार उसे रोक रहे थे सब धुआं हो गए,
छोटू ने अनुभव किया कि मां उसका हाथ पकड़ रही हैं और फिर उसका हाथ उठाकर कहीं रखा किसी मुलायम सी चीज पर और फिर अगले ही पल छोटू को जैसे ही समझ आया ये क्या है वो तो अंदर तक हिल गया उसकी आंखें झट से खुल गईं, और खुल कर फटी की फटी रह गईं, उसने देखा कि उसके चेहरे के सामने ही उसकी मां का ब्लाऊज खुला हुआ है उनकी दोनों मोटी चूचियां बाहर हैं और एक पर उसका हाथ है ये विचार आते ही उसका पूरा बदन सिहर गया उसका लंड पुष्पा के हाथ में झटके मारने लगा, अब छोटू को भी खुद पर काबू करना मुश्किल होने लगा, जो कि स्वाभाविक ही था जब पुष्पा जैसी परिपक्व औरत खुद पर नियंत्रण नहीं कर पा रही थी तो किशोर अवस्था का छोटू ऐसी परिस्थिति में वो भी दवाई के असर के साथ खुद को कैसे संभाले?
पुष्पा की आँखें बंद थी वो छोटू के हाथ को अपनी चूची पर रख कर उसका स्पर्श महसूस कर अंदर ही अंदर सिहर रही थी, इसी बीच उसे महसूस हुआ कि छोटू की उंगलियां उसकी चूची पर कस गईं, और मानो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो उत्तेजना से होश खो बैठेगी,
छोटू ने भी सब सोच विचार त्याग दिए और अपनी मां की मोटी मस्त मांसल कोमल चूची पर ध्यान लगाया और उसे मसलने लगा, इस एहसास से ही वो बावरा सा होने लगा, पहली बार वो जीवन में किसी चूची को दबा रहा था वो भी अपनी मां की पपीते जैसी चूचियों को, ये विचार कर ही उसका पूरा बदन मचलने लगा, उसकी कमर खुद ब खुद हिलने लगी और वो पुष्पा की मुट्ठी को मानो धीरे धीरे चोदने लगा, अपने हाथों में मां की चूची उसे मानो माखन की पोटली जैसी लग रही थी, इतना कोमल एहसास, अःह्ह्ह्ह्ह, वो बार बार अपनी उंगलियों से माखन की पोटली को आटे की तरह गूंथने लगा, साथ ही उसकी नजर कभी मां की दूसरी चूची पर रहती
पुष्पा के लिए तो अब उत्तेजना इतनी हो गई थी कि उसके लिए अब खुद को रोकना संभव नहीं हो रहा था, बेटे दारा चूची के मर्दन ने तो उसकी आग को कुछ ज़्यादा ही भड़का दिया था, उसने अपना हाथ छोटू के हाथ के ऊपर से हटा दिया और नीचे कर अपने पेट को मसलने लगी, छोटू ने मां का हाथ हटने के बाद भी अपनी मां की चूची को दबाना जारी रखा, पुष्पा का हाथ छोटू के लंड पर लगातार चल रहा था पर छोटू एक बार स्खलित हो चुका था साथ ही दवाई का असर भी था इसीलिए वो मां की चूची को मसलने के बाद भी टिका हुआ था,
अब छोटू को जब ये पता चल गया था कि उसकी मां जान कर ये सब उसके साथ कर रही है तो उसके मन में भी विश्वास बढ़ा, उसे लगने लगा कि मां अब उसपर गुस्सा नहीं करेगी, तो उसने अपना दूसरा हाथ भी सिर के नीचे से निकाला और उसे पुष्पा की गर्दन के नीचे से निकालते हुए दूसरी ओर ले गया और गर्दन के बगल से निकालते हुए दूसरी चूची पर रख दिया, अब छोटू के दोनों हाथ उसकी मां की दोनों चुचियों पर थे, और इस अनुभव से वो पागल सा होने लगा, और दोनों चुचियों को उत्तेजना के वेग में आते हुए मसलने लगा,
दूसरी चूची पर भी बेटे का हाथ पाकर तो पुष्पा का बदन डोलने लगा, उसकी कमर भी धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी,
जो हाथ उसका पेट पर था वो सरकते हुए नीचे जाने लगा और कब पेटिकोट के ऊपर से वो अपनी चूत को सहलाने लगी उसे खुद पता ही नहीं चला, वो तो बस अपने बदन की गर्मी को कम करने के लिए सारे जतन कर रही थी,
चूत पर अपनी उंगलियों का स्पर्श होते ही पुष्पा के पूरे बदन में बिजली दौड़ गई, उसका बदन कांपने लगा यहां तक कि छोटू के लंड पर भी उसकी पकड़ ढीली हो गई, जो मां अपने बेटे को हवस और उत्तेजना के जादू से बचाना चाहती थी वो स्वयं ही उस जादू के आगे बेवश हो कर अपने बदन की उत्तेजना और हवस शांत करने का भरसक प्रयास करने लगी,
सीना और उठकर छोटू के हाथों में समाने लगा, तपते होंठ कांपने लगे,
छोटू के हाथ लगातार मां की चुचियों का मर्दन कर रहे थे वहीं छोटू की आंखें अपनी मां के सुंदर चेहरे पर टिकी थीं, चांद की चांदनी में वो मां के मुखड़े पर बदलते भावों को साफ देख पा रहा था, तपते होंठों का कंपन जिन पर बार बार पुष्पा की जीभ आती और उन्हें नम करने का प्रयास करती, छोटू से ये देख कर स्वयं पर से नियंत्रण खो गया और उसने ऐसा कदम उठा लिया जो होश में वो कभी उठाने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, छोटू ने अपना चेहरा आगे बढ़ा कर अपने होंठ अपनी मां के रसीले कामुक तपते होंठो से मिला दिए, और जोश में आते हुए उन्हें चूसने लगा, पुष्पा को भी जैसे ही होंठों पर बेटे के होंठों का स्पर्श हुआ उसके पहले से तपते बदन में मानो और गर्मी भर गई, और उसके होंठ अपने आप खुल गए और स्वयं को अचम्भित करते हुए वो भी अपने बेटे के होंठों को चूसने लगी, छोटू तो अपनी मां का साथ पाकर फूला नहीं समा रहा था और पागलों की तरह उनके होंठों को चूस रहा था, पुष्पा भी वासना में इस कदर डूब गई की अपने ही बेटे के साथ प्रेमी की तरह चुम्बन कर रही थी, छोटू मां के होंठों को चूमते हुए उसकी दोनों चूचियों को लगातार मसल रहा था, साथ ही उसका लंड जो कि पुष्पा की मुठ्ठी से आज़ाद हो चुका था उसे अपनी कमर हिला हिला कर पुष्पा के नंगे पेट पर घिस रहा था।
पुष्पा का हाथ जो छोटू के लंड से खाली हुआ था वो भी सीधा उसकी जांघों के बीच पहुंचा और सीधा पेटिकोट पर पड़ा और अगले ही पल वो पेटिकोट को ऊपर खींचने लगी, पेटीकोट को अगले ही पल ऊपर खींचते हुए पुष्पा ने अपने हाथ को पेटिकोट के अंदर जांघो के बीच घुसाया और अपनी नंगी चूत पर अपनी उंगलियों का स्पर्श कराया, और गीली चूत को तुरंत ही घिसने लगी,
चूत को स्पर्श मिलते ही पुष्पा का बदन ऐंठने लगा उसकी कमर ऊपर नीचे होने लगी, उसका सीना भी अकड़कने लगा, उसके होंठों की पकड़ छोटू को अपने होंठों पर बढ़ती हुई महसूस हुई और जिससे उसे भी और जोश मिला और वो भी अपनी कमर आगे पीछे कर अपने लंड को पुष्पा की कमर और गांड पर घिसने लगा,
पुष्पा की चूत से उंगलियों का परिचय होते ही चूत ने उंगलियों के लिए चूत की चासनी परोस दी, और पुष्पा कांपते हुए स्खलित होने लगी, वो तो अच्छा था उसके होंठ छोटू के होंठों से बंद थे नहीं तो उसकी सिसकियां बाहर चबूतरे तक सुनाई देती,
छोटू ने भी अपनी मां को स्खलित होते महसूस किया तो उसके मन में भी ये विचार आया कि उसकी मां उसकी वजह स्खलित हो रही है, और बस इतना काफी था उसे भी उसके चरम पर पहुंचाने के लिए,
दोनों मां बेटे एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए स्खलित हो रहे थे, और दोनो के ही जीवन का ये सबसे ताकतवर स्खलन था, छोटू के लंड ने पिचकारी मार कर पुष्पा के पेट और कमर को रस से रंग दिया, वहीं पुष्पा का रस भी पेटिकोट और उसकी उंगलियों पर था और अपनी अलग कहानी कह रहा था, स्खलित होने के बाद दोनों के होंठ अलग हुए, पुष्पा को तो लग रहा था उसके बदन में जान ही नहीं बची, उसके मन में बहुत से विचार चल रहे थे पर उन पर ध्यान देने की शक्ति नहीं मिल पा रही थी, वहीं छोटू तो अपनी मां से चिपक कर सो भी चुका था, पुष्पा के बदन से जैसे ही हवस रस बन कर चूत की मोरी से निकली तो वास्तविकता का साफ पानी दिखने लगा,
पुष्पा का तो सिर चकराने लगा ये सोच कर कि उसने आज क्या महापाप कर दिया, अपने ही बेटे के साथ ऐसी हरकत, उसे खुद से घिन आने लगी, उसने एक नजर छोटू पर डाली पर वो सो चुका था, पुष्पा के मन में एक साथ लाख विचार आने लगे, एक पल सोचती कि कैसी मां है तू, तो अगले पल सोचती मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं मेरे जैसी पापी को तो मर जाना चाहिए, पर इतनी हिम्मत भी उसमें नहीं थी, तभी उसे अपनी कमर से कुछ नीचे सरकने का आभास हुआ तो उसे याद आया कि छोटू का रस उसकी कमर और पेट पर अब भी है वो तुरंत उठी और खाट से उतर कर नीचे बैठ गई, उसने तुरंत सिरहाने से अपनी साड़ी उठाई और अपने पेट कमर और बदन को पोंछने लगी और खुद को कोसते हुए उसकी आंखों में पानी आ गया, खुद को मन ही मन गालियां देते हुए, अपने आप पर घिन करते हुए वो खुद को पोंछ रही थी, आंखों से लगातार अश्रु धारा बह रही थी, खाट के नीचे बैठे हुए कुछ देर रोती रही, फिर खुद को समझाया, अपने कपड़े सही किए, छोटू का कच्छा भी लंड पर चढ़ाया और फिर साड़ी बांधी पर उसका मन फिर से छोटू के बगल में सोने को नहीं मान रहा था इसलिए वो एक चादर को जमीन पर ही बिछा कर लेट गई और सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।
सुबह तड़के ही फुलवा की हमेशा की तरह आंख खुल गई और उठते ही अपने पूर्वजों और पृथ्वी को प्रणाम कर वो बिस्तर से उठी और उठ कर ज्यों ही नित क्रिया के लिए वो आगे बढ़ती उसकी नजर छोटू की खाट पर पड़ी और फिर बगल में सोती हुई पुष्पा पर, पुष्पा को नीचे सोते देख फुलवा का पारा चढ़ने लगा, इस बहुरिया से एक काम नहीं होता बाबा ने बोला था साथ सोने को पर ये महारानी नीचे सो रही हैं, ऊपर से अगर कोई कीड़ा मकोड़ा काट ले तो और आफत, सोचते हुए फुलवा सीधा पुष्पा की ओर बढ़ गई, और उसके पास जाकर उसे हिलाकर जगाया तो पुष्पा चौंकते हुए उठी,
फुलवा: ए बहू नीचे क्यों सो रही है, लल्ला की साथ सोने को कहा था ना,
पुष्पा: आएं? का? मैं? अम्मा?
पुष्पा तो समझ नही पा रही थी क्या बोले वो गहरी नींद से उठी थी, जो कि फुलवा भी समझ रही थी इसलिए फुलवा ने सोचा अभी रहने देती हूं दिन में बात करती हूं इससे,
फुलवा: चल ऊपर सो जा खाट पर।
पुष्पा भी फुलवा की बात मान तुरंत ऊपर लेट कर सो गई।
फुलवा ने सोचा चलो ये अभी समय है बाबा का बताया हुआ टोटका भी करना है ये सोच वो कमरे की ओर बढ़ गई।
अभी ठीक से सुबह भी नहीं हुई थी कि गांव के सम्मान नीय पुड़िया बाबा यानी केलालाल जी अपनी कुटिया से निकल कर लपक कर चले जा रहे थे, कदमों में तेजी साफ दर्शा रही थी कि कहीं जाने की जल्दी थी, लपक कर चलते हुए वो जल्दी ही नदी की ओर पहुंचे फिर एक पेड़ की आड़ में झांक कर देखा पर सामने देख कर थोड़े निराश हुए फिर मन में कुछ और सोचा और दबे पांव आगे बढ़ते हुए पेड़ों की ओट लेकर आगे बढ़े और फिर एक जगह जाकर रुक गए और फिर एक पेड़ से बड़ी सावधानी से इधर उधर देखते हुए आगे छुप कर देखने लगे और जो दृश्य सामने देखा उसे देख कर उनकी आंखें चौड़ी हो गई,
सामने थी बिल्कुल नंगी फुलवा पानी से भीगी हुई, उसका भरा बदन देख बाबा की सांसें भारी होने लगीं, ऊपर से नीचे तक बाबा फुलवा के बदन को निहारने लगे, सांवले सुडौल कंधों के नीचे पपीते से भी बड़ी बड़ी चूचियां थीं, पपीता क्या तरबूज भी कह सकते थे, गीली होकर चांद की हल्की रोशनी में दोनों चूचियां कार की बत्ती की तरह चमक रहीं थी, चूचियों के नीचे मांसल हल्का बाहर को निकला हुआ पेट जिसके बीच गहरी बड़ी नाभी थी और उसके नीचे झांटों का झुरमुट।
फुलवा का कामुक बदन बच्चे से बूढ़े किसी के भी लंड को उठाने लायक था और उसकी स्वीकृति खुद बाबा का लंड उनकी धोती के अंदर से दे रहा था, जिसे धोती के ऊपर से ही मसलते हुए वो मन ही मन बोले: अःह्ह्ह्ह् फुलवा रानी इस उमर में भी क्या जलवे हैं तेरे, अह्ह्ह्ह मज़ा आ गया, झूठ का टोटका बताना सफल हो गया,
बाबा ये सब सोच ही रहे थे कि फुलवा घूम गई और बाबा को फुलवा के मटके के आकार के चूतड़ आ गए जिन्हें देख बाबा ने अपना लंड बाहर निकाल लिया, और उसे देख सहलाने लगे।
फुलवा बाबा के कहे अनुसार अनुष्ठान करने लगी, पहले पेड़ की पूजा की फिर बाबा के कर अनुसार पेड़ की जड़ में झुककर माथा टेका और वैसे ही मंत्र पढ़ने लगी, झुकने से उसके चूतड़ खुल कर उसकी गांड के छेद और बालों से भरी चूत के दर्शन होने लगे, जिन्हें देख बाबा की बैचैनी और बढ़ गई और उन्होंने अपने कड़क होते लंड को धोती के बाहर निकाल लिया, फुलवा वैसे ही झुकी हुई बाबा ने जो मंत्र बताया था वो जपने लगी, बाबा उसे देखते हुए अपना लंड हिलाने लगे, तभी आंख के कोने से बाबा को कुछ दिखा और उन्होंने तुरंत उस ओर देखा तो चौंक गए, एक साया जिसने अपने को गमछे से ढंक रखा था फुलवा की ओर बढ़ रहा था, बाबा को उसका चेहरा नहीं दिख रहा था, क्योंकि चेहरे पर गमछा बंधा था धीरे धीरे वो साया फुलवा की ओर बढ़ने लगा पर फुलवा तो इस सब से बेखबर होकर मंत्र जपने में लगी हुई थी, बाबा की सांसें तेज़ हो रही थी ये सोच कर कि ये कौन है और क्या करने वाला है, वो साया धीर से फुलवा के ठीक पीछे पहुंच गया और बाबा ने देखा कि फुलवा के पीछे घुटनो पर बैठ भी गया, पर बाबा को सिर्फ उसकी पीठ दिख रही थी इसलिए बाबा ने तुरंत अपनी जगह किसी तरह बदली और आहिस्ता आहिस्ता वो एक तरफ आ गए और देखा तो चौंक गए वो साया फुलवा के बिल्कुल पीछे बैठ कर उसके चूतड़ों को निहारते हुए अपना लंड बाहर निकाल कर सहला रहा है, उसका लंड भी बिल्कुल कड़क है इसी बीच वो थोड़ा सा आगे सरकता है साथ ही अपने लंड पर थूक लगाता है, और फिर बाबा को अचंभित करते हुए वो साया अपने लंड को पकड़ कर उसका टोपा फुलवा की बालों भरी चूत के मुहाने पर लगाता है और फिर इससे पहले बाबा या स्वयं फुलवा कुछ कर पाते या उसे रोकते वो फुलवा की कमर थाम कर एक जोरदार धक्का लगाता है और अपना लंड फुलवा की चूत में ठूंस देता है,
जिसके साथ ही फुलवा की एक तेज़ चीख जंगल में गूंज जाती है वो तुरंत अपना चेहरा घुमा कर पीछे देखने की कोशिश करती है तो उसे गमछे में लिपटा एक चेहरा दिखता है और वो सिर्फ उसकी आंखें देख पाती है, वो अगले ही पल उठने का प्रयास करती है पर उस साए के सख्त हाथ उसकी कमर को थाम कर उसे वैसे ही रोक कर रखते हैं वो अपना लंड बाहर खींचता है और फिर से जड़ तक ठूंस देता है और ऐसे ही करते हुए फुलवा को चोदने लगता है, फुलवा के मुंह से हर धक्के पर आह्ह्ह्ह्ह निकलने लगती है, बाबा भी अपने सामने फुलवा की चुदाई देख कुछ नहीं कर पाते बल्कि अपना लंड हिलाने लगते हैं, वो साया लगातार तगड़े धक्कों से फुलवा की परिपक्व चूत को चोदने लगता है,
फुलवा को जवानी से अधेड़ उमर तक खूब चोदा था पर नाती पोता बढ़े होने लगे तो उसने स्वयं ही ये सब कम कर दिया था, उसके पति सोमपाल तो अभी भी उसे कभी कभी पकड़ लेते थे पर वो ही समाज का और उमर का उलाहना देकर टाल देती थी, इसलिए आज जब अचानक से इतने दिनो से सूखी चूत में लंड का प्रवेश हुआ तो उसे आरंभ में तकलीफ हुई पर अब लगातार लंड के घर्षण ने उसकी चूत की मांसपेशियों को जाग्रत कर दिया और उसकी चूत भी अब गीली होने लगी और अपने पानी से उस अनजान साए के लंड को चुपड़ने लगी,
चूत के गीले होने से लंड और अच्छे से अंदर बाहर होने लगा, और न चाहते हुए भी फुलवा को इतने दिनों बाद चुदाई का आनंद आने लगा, बदन में इतनी तरंगे उठने लगीं, उसके मुंह से न चाहते हुए भी आह्ह्ह्ह अअह्ह्ह्ह की कामुक आहें निकलने लगी,
वहीं वो साया तो उसकी कमर थामे लगातार दनादन धक्के लगा रहा था हर पल के साथ उसके धक्कों की गति और बढ़ती जा रही थी,
और कुछ ही पलों में वो साया गुर्राने लगा और उसने अपना लंड जड़ तक फुलवा की चूत में गाड़ दिया और फिर अपना रस छोड़ने लगा,
फुलवा ने भी जब अपनी चूत की वर्षों से सूखी माटी पर रस की बारिश होती देखी वो भी एक अनजान मर्द के लंड से तो इस विचार को वो भी संभाल नहीं पाई और उस साए के साथ ही स्खलित होने लगी, अपना रस फुलवा की चूत में भरने के बाद उस अनजान साए ने अपना लंड उसकी चूत से निकाला और फिर कुछ ही पलों में पेड़ों के पीछे गायब हो गया, फुलवा को जब तक होश आया तब तक तो वो गायब हो चुका था वहीं बाबा के लिए भी उसकी गति का पीछा करना असंभव ही था, और वो भी तब था न जब वो पीछा करते वो खुद पेड़ के तने से टिके हुए थे और अपने लंड की पिचकारी घास पर छोड़ रहे थे, अपने लंड से रस निचोड़ने के बाद बाबा का दिमाग चलने लगा और वो तुरंत वहां से निकल लिया लपकते हुए, ये सोचते हुए कि निकल ले बेटा नहीं तो फुलवा ने या किसी और ने तुझे इस ओर देख लिया तो बिना मजे लिए ही तू फंस जायेगा।
फुलवा कुछ पल वैसी ही पड़ी रही चूत से अनजान मर्द का रस बह कर बाहर टपक रहा था, वैसे तो इस उमर में चूत में रस गिराने से कोई खतरा नहीं था पिछले साल से ही उसके मासिक धर्म आने बंद हो गए थे, पर सूखी चूत पर अचानक से हुई बारिश ने उसके मन को भी भीगा कर रख दिया था, अपने आप को संभालने के बाद फुलवा ने मंत्रों को पूरा किया, और फिर पेड़ की ओट में कपड़े पहनकर घर की ओर चल दी,
जारी रहेगी।
फुलवा और बाबा ने बवाल मचा दिया.. बड़ा ही जबरदस्त अपडेटअध्याय 10
इससे पहले पुष्पा कुछ समझ पाती कि क्या हो रहा है छोटू का लंड पिचकारी छोड़ने लगा और पिचकारी सीधी उसके बदन पर गिरने लगी कोई पेट पर गिरती तो कोई ब्लाउज पर और कोई पेटिकोट पर, कुछ देर में छोटू का झड़ना खत्म हुआ तब तक उसके लंड ने अच्छे से मां के बदन को रंग दिया था। आगे..
पुष्पा अपने बेटे के लंड को थामें ज्यों की त्यों पड़ी थी और अभी जो हुआ उसे समझने का प्रयास कर रही थी, उसके बदन पर उसके बेटे के लंड की मलाई लगी हुई थी और जहां जहां उसके बदन पर उसके बेटे के लंड का रस लगा हुआ था उस जगह मानो उसका बदन जल सा रहा था,
छोटू तो आंखें मूंदे डर के मारे लेटा हुआ था उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी मां ने उसके लंड को अपने हाथ में लिया और फिर हिलाया भी पर उसके आगे क्या हुआ उसके बाद उसने अपना रस मां के बदन पर गिरा दिया अब मां ज़रूर बहुत गुस्से में होगी, छोटू बेटा आज तो तू गया आज तेरा आखिरी दिन समझ। जहां छोटू डर से सहमा हुआ था वहीं उसकी मां अलग दुविधा में थी, उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बेटे के साथ सोना इतना मुश्किल होने वाला था और उसे ये सब करना पड़ेगा जिसकी कल्पना भी एक मां नहीं कर सकती।
पर वास्तविकता तो ये थी कि उसके हाथ में उसके बेटे का कड़क तन्नाया लंड था, उसके बदन पर उसके लंड का रस था,
पुष्पा इन्हीं सब विचारों में खोई थी उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, फिर उसके मन में विचार आया चलो कम से कम इसका रस तो निकला अब आराम से सो पाएगा, पर फिर खुद ही अपने हाथ में उसका लंड महसूस कर हैरान हो गई,
हाय दईया पर इसका लंड तो अब भी बिल्कुल वैसे ही कड़क है रस निकलने के बाद भी कोई असर नहीं हुआ, इसके पापा का तो रस निकलने के बाद ढीला हो जाता है पर इसका क्यों नहीं हो रहा, अब तो मुझे पक्का विश्वास होता जा रहा है लल्ला के ऊपर उस चुड़ैल का साया है नहीं तो ऐसा क्यों होता।
पुष्पा ये सोच घबराने लगी और आगे क्या करे ये सोचने लगी, कुछ तो करना पड़ेगा ही मैं अपने लल्ला को उसके चंगुल में नहीं रहने दे सकती, वो भले ही चुड़ैल सही पर वो एक मां से नहीं जीत सकती,
मन में ऐसा विचार कर पुष्पा ने खुद को संभाला और फिर धीरे धीरे उसका हाथ दोबारा से बेटे के लंड को मुठियाने लगा,
छोटू जो कि डर से अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रहा था वो अचानक अपनी मां की इस हरकत से अचम्भे में पड़ गया उसे तो लगा था कि उसकी मां उसे मारेगी पीटेगी गालियां देगी पर यहां तो उसकी मां अब भी उसका लंड मुठिया रही थी, वो सोचने लगा आज उसके साथ भाग्य है, लगता है मां उसे नहीं मारेगी बल्कि मां के मन में कुछ और ही चल रहा है,
क्या मां को मेरा लंड अच्छा लग गया है क्या वो मेरा लंड देख कर खुद को नियंत्रित नहीं कर पा रही हैं,
नहीं नहीं मेरी मां ऐसी औरत तो नहीं है, कितनी संस्कारी हैं कोई भी काम ऐसा नहीं करती जो गलत हो तो अपने ही बेटे के साथ ऐसा क्यों करेंगी, अह्ह्ह्ह पर मां का हाथ लंड पर कितना अच्छा लग रहा है अह्ह्ह्ह अपने हाथ से हिलाने से तो हजार गुना ज्यादा अच्छा है ये अनुभव। अभी ये सोचने से कि मां ये सब क्यों कर रही हैं उससे अच्छा है कि जो कर रही हैं उसका आनंद लूं, शायद ही कभी ऐसा जीवन में दोबारा संयोग बने, ये सोच छोटू भी अपने लंड पर अपनी मां के हाथ का आनंद लेने लगा,
पुष्पा अपने आप को शांत करते हुए छोटू का लंड मुठिया रही थी मन में यही सोच रही थी कि किसी भी प्रकार से अपने लल्ला को उस चुड़ैल से बचाना है, पर धीरे धीरे उसके बदन पर भी उत्तेजना चढ़ती जा रही थी, जैसे जैसे वो अपने बेटे का लंड मुठिया रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ती जा रही थी, उसकी चूत में खुजली होने लगी थी उसकी चूचियां तन कर मानो ब्लाउज में छेद करने को तैयार थीं, इसी बीच उसके मन में उसके बदन पर पड़े छोटू के लंड रस का विचार आया तो वो उसे पोंछने का सोचने लगी और उसने अपना दूसरा हाथ अपनी गर्दन पर रखा जहां छोटू के लंड ने पिचकारी मारी थी, जैसे ही उसकी उंगलियों ने बेटे के गाढ़े वीर्य को छुआ तो उसके बदन में सिरहन सी हुई, इस विचार से कि उसकी उंगलियों पर उसके बेटे का वीर्य है,
पुष्पा ने इस विचार को थोड़ा दबाया और अपनी गर्दन से छोटू के रस को उंगलियों से पोंछने लगी साथ ही एक हाथ छोटू के लंड पर भी लगातार चल रहा था, रस को पोंछते हुए पुष्पा का बदन हर पल के साथ उत्तेजित होता जा रहा था, उसे लग रहा था मानो छोटू के वीर्य में कुछ जादू है जो उसके बदन को उत्तेजित कर रहा है, उसकी गर्मी को भड़का रहा है उसके बदन में एक प्यास जगा रहा है और हो भी ऐसा ही रहा था, उसकी चूत भी नम होकर पानी बहाने लगी थी, चूचियां बिल्कुल तनी हुई थीं जो कि ब्लाउज के ऊपर से ही पता चल रही थीं,
गर्दन से वीर्य पोंछने के बाद पुष्पा ने अपने पेट पर हाथ लगाया और पेट पर हाथ फिराते हुए वीर्य को पोंछने लगी, पर उसकी उत्तेजना इतनी बढ़ गई कि उसने धीरे धीरे वीर्य को पोंछने की जगह उसे अपने पेट पर ही मलना शुरू कर दिया, और ये वो बिना सोचे ही करने लगी, हर बढ़ते पल के साथ उसकी उत्तेजना और बढ़ रही थी, वो अपने बदन और मन से नियंत्रण खोने लगी, अचानक से उसे विचार आया कि ये क्या कर रही है पुष्पा बेटे के वीर्य को पोंछने की जगह उसे अपने बदन पर मल रही है, ये सोच कर तो वो और गरम हो गई और स्वयं को रोकने की जगह वो खुल कर छोटू के वीर्य को अपने पेट पर मलते हुए मसलने लगी, साथ ही हर पल के साथ और उत्तेजित होती जा रही थी,
छोटू के लंड पर उसकी पकड़ और बढ़ती जा रही थी पेट पर वीर्य मलने के बाद उसने अपने ब्लाउज पर लगे वीर्य को भी उंगलियों से बटोरा और उसे अपनी छाती और गर्दन पर लगाने लगी, बेटे के लंड रस को पुष्पा ऐसे बदन से मल रही थी जैसे औरतें महंगी क्रीम भी नहीं मलती होंगी।
छोटू भी अलग आनंद में था और हो भी क्यूं ना उसकी मां उसका लंड पकड़ कर मुठिया रही थी, वो तो छोटू सोने का नाटक कर रहा था नहीं तो मां को अपने रस को बदन पर मलते देखता तो आंखें फटी की फटी रह जाती।
पुष्पा के लिए हर आने वाला पल उसकी गर्मी बढ़ा रहा था और उसके लिए खुद को संभालना मुश्किल होता जा रहा था, उसकी चूत में मानों हज़ारों चीटियां रेंग कर उसे तड़पा रहीं थी, उसकी चूचियां ऐसे अकड़ गई थीं मानों ब्लाउज में छेद करके बाहर निकल आएंगी, अपनी गर्दन पर रस मलते हुए उसका हाथ थोड़ा नीचे आया और वो ब्लाउज के ऊपर से ही अपनी चूचियों को हल्का हल्का मसलने लगी, पर ज्यों ज्यों वो चुचियों को मसलती वो उतना ही और स्पर्श के लिए तड़प उठती, उसका मसलना उसके अंदर की आग को शांत करने की जगह और भड़का रहा था।
इसी तड़पन में पुष्पा ने बिना विचारे ही एक कदम उठाया और अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी, एक एक करके बटन अलग होते गए और कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज खुल चुका था। पर ब्लाउज खोलते हुए भी पुष्पा ने एक ग्रहणी की मुख्य विशेषता का परिचय दिया और वो थी बहुकार्यन, एक ही साथ कई कार्य करने की खास शक्ति एक नारी में होती है और पुष्पा भी अभी वही कर रही थी, भले ही वो अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी पर उसने अपना हाथ छोटू के लंड से तनिक भी नहीं हटाया बल्कि उसे लगातार मुठियाती रही।
ब्लाउज खुलने के बाद पुष्पा ने दोनों पाटों को अलग किया और चांदनी में उसकी उन्नत चूचियां बाहर आ गईं जिन्हें बारी बारी पकड़ कर वो मसलने लगी, उसने खुद को किसी तरह सिसकियां लेने से रोका, अच्छा था छोटू की आंखें बंद थी नहीं तो इतनी पास से अपनी मां की मोटी मोटी चूचियों को देख कर न जाने उसका क्या हाल होता,
पर हाल तो पुष्पा का खराब हो रहा था चुचियों को नंगा कर मसलने के बाद भी उसके बदन में तडपन और बढ़ती जा रही थी उसकी चूत की खुजली उसे तड़पा रही थी, पर वो क्या करे उसकी समझ नहीं आ रहा था चुचियों की तडपन संभाले या चूत की खुजली, लल्ला के लंड को भी नहीं छोड़ सकती थी या कहें तो छोड़ना ही नहीं चाहती थी,
इसका जवाब खुद ही उसे मिल गया पर अगले ही पल वो खुद को मना करने लगी, मन में एक द्वंद होने लगा, सही और हवस में, संस्कार और उत्तेजना में,
बुद्धि और बदन में, और अंत में बदन के सुख के आगे बुद्धि को हार स्वीकार करनी पड़ी और पुष्पा ने अपने ब्लाउज से हाथ उठाया और उससे छोटू का एक हाथ जो कि उसने अपनी कमर पर रखा हुआ था उसे उठाकर अपनी एक चूची पर रख दिया,
चूची पर हाथ का स्पर्श होते ही पुष्पा का बदन पूरा एक पल के थरथरा गया, और अब तो जो भी विचार उसे रोक रहे थे सब धुआं हो गए,
छोटू ने अनुभव किया कि मां उसका हाथ पकड़ रही हैं और फिर उसका हाथ उठाकर कहीं रखा किसी मुलायम सी चीज पर और फिर अगले ही पल छोटू को जैसे ही समझ आया ये क्या है वो तो अंदर तक हिल गया उसकी आंखें झट से खुल गईं, और खुल कर फटी की फटी रह गईं, उसने देखा कि उसके चेहरे के सामने ही उसकी मां का ब्लाऊज खुला हुआ है उनकी दोनों मोटी चूचियां बाहर हैं और एक पर उसका हाथ है ये विचार आते ही उसका पूरा बदन सिहर गया उसका लंड पुष्पा के हाथ में झटके मारने लगा, अब छोटू को भी खुद पर काबू करना मुश्किल होने लगा, जो कि स्वाभाविक ही था जब पुष्पा जैसी परिपक्व औरत खुद पर नियंत्रण नहीं कर पा रही थी तो किशोर अवस्था का छोटू ऐसी परिस्थिति में वो भी दवाई के असर के साथ खुद को कैसे संभाले?
पुष्पा की आँखें बंद थी वो छोटू के हाथ को अपनी चूची पर रख कर उसका स्पर्श महसूस कर अंदर ही अंदर सिहर रही थी, इसी बीच उसे महसूस हुआ कि छोटू की उंगलियां उसकी चूची पर कस गईं, और मानो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो उत्तेजना से होश खो बैठेगी,
छोटू ने भी सब सोच विचार त्याग दिए और अपनी मां की मोटी मस्त मांसल कोमल चूची पर ध्यान लगाया और उसे मसलने लगा, इस एहसास से ही वो बावरा सा होने लगा, पहली बार वो जीवन में किसी चूची को दबा रहा था वो भी अपनी मां की पपीते जैसी चूचियों को, ये विचार कर ही उसका पूरा बदन मचलने लगा, उसकी कमर खुद ब खुद हिलने लगी और वो पुष्पा की मुट्ठी को मानो धीरे धीरे चोदने लगा, अपने हाथों में मां की चूची उसे मानो माखन की पोटली जैसी लग रही थी, इतना कोमल एहसास, अःह्ह्ह्ह्ह, वो बार बार अपनी उंगलियों से माखन की पोटली को आटे की तरह गूंथने लगा, साथ ही उसकी नजर कभी मां की दूसरी चूची पर रहती
पुष्पा के लिए तो अब उत्तेजना इतनी हो गई थी कि उसके लिए अब खुद को रोकना संभव नहीं हो रहा था, बेटे दारा चूची के मर्दन ने तो उसकी आग को कुछ ज़्यादा ही भड़का दिया था, उसने अपना हाथ छोटू के हाथ के ऊपर से हटा दिया और नीचे कर अपने पेट को मसलने लगी, छोटू ने मां का हाथ हटने के बाद भी अपनी मां की चूची को दबाना जारी रखा, पुष्पा का हाथ छोटू के लंड पर लगातार चल रहा था पर छोटू एक बार स्खलित हो चुका था साथ ही दवाई का असर भी था इसीलिए वो मां की चूची को मसलने के बाद भी टिका हुआ था,
अब छोटू को जब ये पता चल गया था कि उसकी मां जान कर ये सब उसके साथ कर रही है तो उसके मन में भी विश्वास बढ़ा, उसे लगने लगा कि मां अब उसपर गुस्सा नहीं करेगी, तो उसने अपना दूसरा हाथ भी सिर के नीचे से निकाला और उसे पुष्पा की गर्दन के नीचे से निकालते हुए दूसरी ओर ले गया और गर्दन के बगल से निकालते हुए दूसरी चूची पर रख दिया, अब छोटू के दोनों हाथ उसकी मां की दोनों चुचियों पर थे, और इस अनुभव से वो पागल सा होने लगा, और दोनों चुचियों को उत्तेजना के वेग में आते हुए मसलने लगा,
दूसरी चूची पर भी बेटे का हाथ पाकर तो पुष्पा का बदन डोलने लगा, उसकी कमर भी धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी,
जो हाथ उसका पेट पर था वो सरकते हुए नीचे जाने लगा और कब पेटिकोट के ऊपर से वो अपनी चूत को सहलाने लगी उसे खुद पता ही नहीं चला, वो तो बस अपने बदन की गर्मी को कम करने के लिए सारे जतन कर रही थी,
चूत पर अपनी उंगलियों का स्पर्श होते ही पुष्पा के पूरे बदन में बिजली दौड़ गई, उसका बदन कांपने लगा यहां तक कि छोटू के लंड पर भी उसकी पकड़ ढीली हो गई, जो मां अपने बेटे को हवस और उत्तेजना के जादू से बचाना चाहती थी वो स्वयं ही उस जादू के आगे बेवश हो कर अपने बदन की उत्तेजना और हवस शांत करने का भरसक प्रयास करने लगी,
सीना और उठकर छोटू के हाथों में समाने लगा, तपते होंठ कांपने लगे,
छोटू के हाथ लगातार मां की चुचियों का मर्दन कर रहे थे वहीं छोटू की आंखें अपनी मां के सुंदर चेहरे पर टिकी थीं, चांद की चांदनी में वो मां के मुखड़े पर बदलते भावों को साफ देख पा रहा था, तपते होंठों का कंपन जिन पर बार बार पुष्पा की जीभ आती और उन्हें नम करने का प्रयास करती, छोटू से ये देख कर स्वयं पर से नियंत्रण खो गया और उसने ऐसा कदम उठा लिया जो होश में वो कभी उठाने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, छोटू ने अपना चेहरा आगे बढ़ा कर अपने होंठ अपनी मां के रसीले कामुक तपते होंठो से मिला दिए, और जोश में आते हुए उन्हें चूसने लगा, पुष्पा को भी जैसे ही होंठों पर बेटे के होंठों का स्पर्श हुआ उसके पहले से तपते बदन में मानो और गर्मी भर गई, और उसके होंठ अपने आप खुल गए और स्वयं को अचम्भित करते हुए वो भी अपने बेटे के होंठों को चूसने लगी, छोटू तो अपनी मां का साथ पाकर फूला नहीं समा रहा था और पागलों की तरह उनके होंठों को चूस रहा था, पुष्पा भी वासना में इस कदर डूब गई की अपने ही बेटे के साथ प्रेमी की तरह चुम्बन कर रही थी, छोटू मां के होंठों को चूमते हुए उसकी दोनों चूचियों को लगातार मसल रहा था, साथ ही उसका लंड जो कि पुष्पा की मुठ्ठी से आज़ाद हो चुका था उसे अपनी कमर हिला हिला कर पुष्पा के नंगे पेट पर घिस रहा था।
पुष्पा का हाथ जो छोटू के लंड से खाली हुआ था वो भी सीधा उसकी जांघों के बीच पहुंचा और सीधा पेटिकोट पर पड़ा और अगले ही पल वो पेटिकोट को ऊपर खींचने लगी, पेटीकोट को अगले ही पल ऊपर खींचते हुए पुष्पा ने अपने हाथ को पेटिकोट के अंदर जांघो के बीच घुसाया और अपनी नंगी चूत पर अपनी उंगलियों का स्पर्श कराया, और गीली चूत को तुरंत ही घिसने लगी,
चूत को स्पर्श मिलते ही पुष्पा का बदन ऐंठने लगा उसकी कमर ऊपर नीचे होने लगी, उसका सीना भी अकड़कने लगा, उसके होंठों की पकड़ छोटू को अपने होंठों पर बढ़ती हुई महसूस हुई और जिससे उसे भी और जोश मिला और वो भी अपनी कमर आगे पीछे कर अपने लंड को पुष्पा की कमर और गांड पर घिसने लगा,
पुष्पा की चूत से उंगलियों का परिचय होते ही चूत ने उंगलियों के लिए चूत की चासनी परोस दी, और पुष्पा कांपते हुए स्खलित होने लगी, वो तो अच्छा था उसके होंठ छोटू के होंठों से बंद थे नहीं तो उसकी सिसकियां बाहर चबूतरे तक सुनाई देती,
छोटू ने भी अपनी मां को स्खलित होते महसूस किया तो उसके मन में भी ये विचार आया कि उसकी मां उसकी वजह स्खलित हो रही है, और बस इतना काफी था उसे भी उसके चरम पर पहुंचाने के लिए,
दोनों मां बेटे एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए स्खलित हो रहे थे, और दोनो के ही जीवन का ये सबसे ताकतवर स्खलन था, छोटू के लंड ने पिचकारी मार कर पुष्पा के पेट और कमर को रस से रंग दिया, वहीं पुष्पा का रस भी पेटिकोट और उसकी उंगलियों पर था और अपनी अलग कहानी कह रहा था, स्खलित होने के बाद दोनों के होंठ अलग हुए, पुष्पा को तो लग रहा था उसके बदन में जान ही नहीं बची, उसके मन में बहुत से विचार चल रहे थे पर उन पर ध्यान देने की शक्ति नहीं मिल पा रही थी, वहीं छोटू तो अपनी मां से चिपक कर सो भी चुका था, पुष्पा के बदन से जैसे ही हवस रस बन कर चूत की मोरी से निकली तो वास्तविकता का साफ पानी दिखने लगा,
पुष्पा का तो सिर चकराने लगा ये सोच कर कि उसने आज क्या महापाप कर दिया, अपने ही बेटे के साथ ऐसी हरकत, उसे खुद से घिन आने लगी, उसने एक नजर छोटू पर डाली पर वो सो चुका था, पुष्पा के मन में एक साथ लाख विचार आने लगे, एक पल सोचती कि कैसी मां है तू, तो अगले पल सोचती मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं मेरे जैसी पापी को तो मर जाना चाहिए, पर इतनी हिम्मत भी उसमें नहीं थी, तभी उसे अपनी कमर से कुछ नीचे सरकने का आभास हुआ तो उसे याद आया कि छोटू का रस उसकी कमर और पेट पर अब भी है वो तुरंत उठी और खाट से उतर कर नीचे बैठ गई, उसने तुरंत सिरहाने से अपनी साड़ी उठाई और अपने पेट कमर और बदन को पोंछने लगी और खुद को कोसते हुए उसकी आंखों में पानी आ गया, खुद को मन ही मन गालियां देते हुए, अपने आप पर घिन करते हुए वो खुद को पोंछ रही थी, आंखों से लगातार अश्रु धारा बह रही थी, खाट के नीचे बैठे हुए कुछ देर रोती रही, फिर खुद को समझाया, अपने कपड़े सही किए, छोटू का कच्छा भी लंड पर चढ़ाया और फिर साड़ी बांधी पर उसका मन फिर से छोटू के बगल में सोने को नहीं मान रहा था इसलिए वो एक चादर को जमीन पर ही बिछा कर लेट गई और सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।
सुबह तड़के ही फुलवा की हमेशा की तरह आंख खुल गई और उठते ही अपने पूर्वजों और पृथ्वी को प्रणाम कर वो बिस्तर से उठी और उठ कर ज्यों ही नित क्रिया के लिए वो आगे बढ़ती उसकी नजर छोटू की खाट पर पड़ी और फिर बगल में सोती हुई पुष्पा पर, पुष्पा को नीचे सोते देख फुलवा का पारा चढ़ने लगा, इस बहुरिया से एक काम नहीं होता बाबा ने बोला था साथ सोने को पर ये महारानी नीचे सो रही हैं, ऊपर से अगर कोई कीड़ा मकोड़ा काट ले तो और आफत, सोचते हुए फुलवा सीधा पुष्पा की ओर बढ़ गई, और उसके पास जाकर उसे हिलाकर जगाया तो पुष्पा चौंकते हुए उठी,
फुलवा: ए बहू नीचे क्यों सो रही है, लल्ला की साथ सोने को कहा था ना,
पुष्पा: आएं? का? मैं? अम्मा?
पुष्पा तो समझ नही पा रही थी क्या बोले वो गहरी नींद से उठी थी, जो कि फुलवा भी समझ रही थी इसलिए फुलवा ने सोचा अभी रहने देती हूं दिन में बात करती हूं इससे,
फुलवा: चल ऊपर सो जा खाट पर।
पुष्पा भी फुलवा की बात मान तुरंत ऊपर लेट कर सो गई।
फुलवा ने सोचा चलो ये अभी समय है बाबा का बताया हुआ टोटका भी करना है ये सोच वो कमरे की ओर बढ़ गई।
अभी ठीक से सुबह भी नहीं हुई थी कि गांव के सम्मान नीय पुड़िया बाबा यानी केलालाल जी अपनी कुटिया से निकल कर लपक कर चले जा रहे थे, कदमों में तेजी साफ दर्शा रही थी कि कहीं जाने की जल्दी थी, लपक कर चलते हुए वो जल्दी ही नदी की ओर पहुंचे फिर एक पेड़ की आड़ में झांक कर देखा पर सामने देख कर थोड़े निराश हुए फिर मन में कुछ और सोचा और दबे पांव आगे बढ़ते हुए पेड़ों की ओट लेकर आगे बढ़े और फिर एक जगह जाकर रुक गए और फिर एक पेड़ से बड़ी सावधानी से इधर उधर देखते हुए आगे छुप कर देखने लगे और जो दृश्य सामने देखा उसे देख कर उनकी आंखें चौड़ी हो गई,
सामने थी बिल्कुल नंगी फुलवा पानी से भीगी हुई, उसका भरा बदन देख बाबा की सांसें भारी होने लगीं, ऊपर से नीचे तक बाबा फुलवा के बदन को निहारने लगे, सांवले सुडौल कंधों के नीचे पपीते से भी बड़ी बड़ी चूचियां थीं, पपीता क्या तरबूज भी कह सकते थे, गीली होकर चांद की हल्की रोशनी में दोनों चूचियां कार की बत्ती की तरह चमक रहीं थी, चूचियों के नीचे मांसल हल्का बाहर को निकला हुआ पेट जिसके बीच गहरी बड़ी नाभी थी और उसके नीचे झांटों का झुरमुट।
फुलवा का कामुक बदन बच्चे से बूढ़े किसी के भी लंड को उठाने लायक था और उसकी स्वीकृति खुद बाबा का लंड उनकी धोती के अंदर से दे रहा था, जिसे धोती के ऊपर से ही मसलते हुए वो मन ही मन बोले: अःह्ह्ह्ह् फुलवा रानी इस उमर में भी क्या जलवे हैं तेरे, अह्ह्ह्ह मज़ा आ गया, झूठ का टोटका बताना सफल हो गया,
बाबा ये सब सोच ही रहे थे कि फुलवा घूम गई और बाबा को फुलवा के मटके के आकार के चूतड़ आ गए जिन्हें देख बाबा ने अपना लंड बाहर निकाल लिया, और उसे देख सहलाने लगे।
फुलवा बाबा के कहे अनुसार अनुष्ठान करने लगी, पहले पेड़ की पूजा की फिर बाबा के कर अनुसार पेड़ की जड़ में झुककर माथा टेका और वैसे ही मंत्र पढ़ने लगी, झुकने से उसके चूतड़ खुल कर उसकी गांड के छेद और बालों से भरी चूत के दर्शन होने लगे, जिन्हें देख बाबा की बैचैनी और बढ़ गई और उन्होंने अपने कड़क होते लंड को धोती के बाहर निकाल लिया, फुलवा वैसे ही झुकी हुई बाबा ने जो मंत्र बताया था वो जपने लगी, बाबा उसे देखते हुए अपना लंड हिलाने लगे, तभी आंख के कोने से बाबा को कुछ दिखा और उन्होंने तुरंत उस ओर देखा तो चौंक गए, एक साया जिसने अपने को गमछे से ढंक रखा था फुलवा की ओर बढ़ रहा था, बाबा को उसका चेहरा नहीं दिख रहा था, क्योंकि चेहरे पर गमछा बंधा था धीरे धीरे वो साया फुलवा की ओर बढ़ने लगा पर फुलवा तो इस सब से बेखबर होकर मंत्र जपने में लगी हुई थी, बाबा की सांसें तेज़ हो रही थी ये सोच कर कि ये कौन है और क्या करने वाला है, वो साया धीर से फुलवा के ठीक पीछे पहुंच गया और बाबा ने देखा कि फुलवा के पीछे घुटनो पर बैठ भी गया, पर बाबा को सिर्फ उसकी पीठ दिख रही थी इसलिए बाबा ने तुरंत अपनी जगह किसी तरह बदली और आहिस्ता आहिस्ता वो एक तरफ आ गए और देखा तो चौंक गए वो साया फुलवा के बिल्कुल पीछे बैठ कर उसके चूतड़ों को निहारते हुए अपना लंड बाहर निकाल कर सहला रहा है, उसका लंड भी बिल्कुल कड़क है इसी बीच वो थोड़ा सा आगे सरकता है साथ ही अपने लंड पर थूक लगाता है, और फिर बाबा को अचंभित करते हुए वो साया अपने लंड को पकड़ कर उसका टोपा फुलवा की बालों भरी चूत के मुहाने पर लगाता है और फिर इससे पहले बाबा या स्वयं फुलवा कुछ कर पाते या उसे रोकते वो फुलवा की कमर थाम कर एक जोरदार धक्का लगाता है और अपना लंड फुलवा की चूत में ठूंस देता है,
जिसके साथ ही फुलवा की एक तेज़ चीख जंगल में गूंज जाती है वो तुरंत अपना चेहरा घुमा कर पीछे देखने की कोशिश करती है तो उसे गमछे में लिपटा एक चेहरा दिखता है और वो सिर्फ उसकी आंखें देख पाती है, वो अगले ही पल उठने का प्रयास करती है पर उस साए के सख्त हाथ उसकी कमर को थाम कर उसे वैसे ही रोक कर रखते हैं वो अपना लंड बाहर खींचता है और फिर से जड़ तक ठूंस देता है और ऐसे ही करते हुए फुलवा को चोदने लगता है, फुलवा के मुंह से हर धक्के पर आह्ह्ह्ह्ह निकलने लगती है, बाबा भी अपने सामने फुलवा की चुदाई देख कुछ नहीं कर पाते बल्कि अपना लंड हिलाने लगते हैं, वो साया लगातार तगड़े धक्कों से फुलवा की परिपक्व चूत को चोदने लगता है,
फुलवा को जवानी से अधेड़ उमर तक खूब चोदा था पर नाती पोता बढ़े होने लगे तो उसने स्वयं ही ये सब कम कर दिया था, उसके पति सोमपाल तो अभी भी उसे कभी कभी पकड़ लेते थे पर वो ही समाज का और उमर का उलाहना देकर टाल देती थी, इसलिए आज जब अचानक से इतने दिनो से सूखी चूत में लंड का प्रवेश हुआ तो उसे आरंभ में तकलीफ हुई पर अब लगातार लंड के घर्षण ने उसकी चूत की मांसपेशियों को जाग्रत कर दिया और उसकी चूत भी अब गीली होने लगी और अपने पानी से उस अनजान साए के लंड को चुपड़ने लगी,
चूत के गीले होने से लंड और अच्छे से अंदर बाहर होने लगा, और न चाहते हुए भी फुलवा को इतने दिनों बाद चुदाई का आनंद आने लगा, बदन में इतनी तरंगे उठने लगीं, उसके मुंह से न चाहते हुए भी आह्ह्ह्ह अअह्ह्ह्ह की कामुक आहें निकलने लगी,
वहीं वो साया तो उसकी कमर थामे लगातार दनादन धक्के लगा रहा था हर पल के साथ उसके धक्कों की गति और बढ़ती जा रही थी,
और कुछ ही पलों में वो साया गुर्राने लगा और उसने अपना लंड जड़ तक फुलवा की चूत में गाड़ दिया और फिर अपना रस छोड़ने लगा,
फुलवा ने भी जब अपनी चूत की वर्षों से सूखी माटी पर रस की बारिश होती देखी वो भी एक अनजान मर्द के लंड से तो इस विचार को वो भी संभाल नहीं पाई और उस साए के साथ ही स्खलित होने लगी, अपना रस फुलवा की चूत में भरने के बाद उस अनजान साए ने अपना लंड उसकी चूत से निकाला और फिर कुछ ही पलों में पेड़ों के पीछे गायब हो गया, फुलवा को जब तक होश आया तब तक तो वो गायब हो चुका था वहीं बाबा के लिए भी उसकी गति का पीछा करना असंभव ही था, और वो भी तब था न जब वो पीछा करते वो खुद पेड़ के तने से टिके हुए थे और अपने लंड की पिचकारी घास पर छोड़ रहे थे, अपने लंड से रस निचोड़ने के बाद बाबा का दिमाग चलने लगा और वो तुरंत वहां से निकल लिया लपकते हुए, ये सोचते हुए कि निकल ले बेटा नहीं तो फुलवा ने या किसी और ने तुझे इस ओर देख लिया तो बिना मजे लिए ही तू फंस जायेगा।
फुलवा कुछ पल वैसी ही पड़ी रही चूत से अनजान मर्द का रस बह कर बाहर टपक रहा था, वैसे तो इस उमर में चूत में रस गिराने से कोई खतरा नहीं था पिछले साल से ही उसके मासिक धर्म आने बंद हो गए थे, पर सूखी चूत पर अचानक से हुई बारिश ने उसके मन को भी भीगा कर रख दिया था, अपने आप को संभालने के बाद फुलवा ने मंत्रों को पूरा किया, और फिर पेड़ की ओट में कपड़े पहनकर घर की ओर चल दी,
जारी रहेगी।
Mast jabardast updateअध्याय 10
इससे पहले पुष्पा कुछ समझ पाती कि क्या हो रहा है छोटू का लंड पिचकारी छोड़ने लगा और पिचकारी सीधी उसके बदन पर गिरने लगी कोई पेट पर गिरती तो कोई ब्लाउज पर और कोई पेटिकोट पर, कुछ देर में छोटू का झड़ना खत्म हुआ तब तक उसके लंड ने अच्छे से मां के बदन को रंग दिया था। आगे..
पुष्पा अपने बेटे के लंड को थामें ज्यों की त्यों पड़ी थी और अभी जो हुआ उसे समझने का प्रयास कर रही थी, उसके बदन पर उसके बेटे के लंड की मलाई लगी हुई थी और जहां जहां उसके बदन पर उसके बेटे के लंड का रस लगा हुआ था उस जगह मानो उसका बदन जल सा रहा था,
छोटू तो आंखें मूंदे डर के मारे लेटा हुआ था उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी मां ने उसके लंड को अपने हाथ में लिया और फिर हिलाया भी पर उसके आगे क्या हुआ उसके बाद उसने अपना रस मां के बदन पर गिरा दिया अब मां ज़रूर बहुत गुस्से में होगी, छोटू बेटा आज तो तू गया आज तेरा आखिरी दिन समझ। जहां छोटू डर से सहमा हुआ था वहीं उसकी मां अलग दुविधा में थी, उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बेटे के साथ सोना इतना मुश्किल होने वाला था और उसे ये सब करना पड़ेगा जिसकी कल्पना भी एक मां नहीं कर सकती।
पर वास्तविकता तो ये थी कि उसके हाथ में उसके बेटे का कड़क तन्नाया लंड था, उसके बदन पर उसके लंड का रस था,
पुष्पा इन्हीं सब विचारों में खोई थी उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, फिर उसके मन में विचार आया चलो कम से कम इसका रस तो निकला अब आराम से सो पाएगा, पर फिर खुद ही अपने हाथ में उसका लंड महसूस कर हैरान हो गई,
हाय दईया पर इसका लंड तो अब भी बिल्कुल वैसे ही कड़क है रस निकलने के बाद भी कोई असर नहीं हुआ, इसके पापा का तो रस निकलने के बाद ढीला हो जाता है पर इसका क्यों नहीं हो रहा, अब तो मुझे पक्का विश्वास होता जा रहा है लल्ला के ऊपर उस चुड़ैल का साया है नहीं तो ऐसा क्यों होता।
पुष्पा ये सोच घबराने लगी और आगे क्या करे ये सोचने लगी, कुछ तो करना पड़ेगा ही मैं अपने लल्ला को उसके चंगुल में नहीं रहने दे सकती, वो भले ही चुड़ैल सही पर वो एक मां से नहीं जीत सकती,
मन में ऐसा विचार कर पुष्पा ने खुद को संभाला और फिर धीरे धीरे उसका हाथ दोबारा से बेटे के लंड को मुठियाने लगा,
छोटू जो कि डर से अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रहा था वो अचानक अपनी मां की इस हरकत से अचम्भे में पड़ गया उसे तो लगा था कि उसकी मां उसे मारेगी पीटेगी गालियां देगी पर यहां तो उसकी मां अब भी उसका लंड मुठिया रही थी, वो सोचने लगा आज उसके साथ भाग्य है, लगता है मां उसे नहीं मारेगी बल्कि मां के मन में कुछ और ही चल रहा है,
क्या मां को मेरा लंड अच्छा लग गया है क्या वो मेरा लंड देख कर खुद को नियंत्रित नहीं कर पा रही हैं,
नहीं नहीं मेरी मां ऐसी औरत तो नहीं है, कितनी संस्कारी हैं कोई भी काम ऐसा नहीं करती जो गलत हो तो अपने ही बेटे के साथ ऐसा क्यों करेंगी, अह्ह्ह्ह पर मां का हाथ लंड पर कितना अच्छा लग रहा है अह्ह्ह्ह अपने हाथ से हिलाने से तो हजार गुना ज्यादा अच्छा है ये अनुभव। अभी ये सोचने से कि मां ये सब क्यों कर रही हैं उससे अच्छा है कि जो कर रही हैं उसका आनंद लूं, शायद ही कभी ऐसा जीवन में दोबारा संयोग बने, ये सोच छोटू भी अपने लंड पर अपनी मां के हाथ का आनंद लेने लगा,
पुष्पा अपने आप को शांत करते हुए छोटू का लंड मुठिया रही थी मन में यही सोच रही थी कि किसी भी प्रकार से अपने लल्ला को उस चुड़ैल से बचाना है, पर धीरे धीरे उसके बदन पर भी उत्तेजना चढ़ती जा रही थी, जैसे जैसे वो अपने बेटे का लंड मुठिया रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ती जा रही थी, उसकी चूत में खुजली होने लगी थी उसकी चूचियां तन कर मानो ब्लाउज में छेद करने को तैयार थीं, इसी बीच उसके मन में उसके बदन पर पड़े छोटू के लंड रस का विचार आया तो वो उसे पोंछने का सोचने लगी और उसने अपना दूसरा हाथ अपनी गर्दन पर रखा जहां छोटू के लंड ने पिचकारी मारी थी, जैसे ही उसकी उंगलियों ने बेटे के गाढ़े वीर्य को छुआ तो उसके बदन में सिरहन सी हुई, इस विचार से कि उसकी उंगलियों पर उसके बेटे का वीर्य है,
पुष्पा ने इस विचार को थोड़ा दबाया और अपनी गर्दन से छोटू के रस को उंगलियों से पोंछने लगी साथ ही एक हाथ छोटू के लंड पर भी लगातार चल रहा था, रस को पोंछते हुए पुष्पा का बदन हर पल के साथ उत्तेजित होता जा रहा था, उसे लग रहा था मानो छोटू के वीर्य में कुछ जादू है जो उसके बदन को उत्तेजित कर रहा है, उसकी गर्मी को भड़का रहा है उसके बदन में एक प्यास जगा रहा है और हो भी ऐसा ही रहा था, उसकी चूत भी नम होकर पानी बहाने लगी थी, चूचियां बिल्कुल तनी हुई थीं जो कि ब्लाउज के ऊपर से ही पता चल रही थीं,
गर्दन से वीर्य पोंछने के बाद पुष्पा ने अपने पेट पर हाथ लगाया और पेट पर हाथ फिराते हुए वीर्य को पोंछने लगी, पर उसकी उत्तेजना इतनी बढ़ गई कि उसने धीरे धीरे वीर्य को पोंछने की जगह उसे अपने पेट पर ही मलना शुरू कर दिया, और ये वो बिना सोचे ही करने लगी, हर बढ़ते पल के साथ उसकी उत्तेजना और बढ़ रही थी, वो अपने बदन और मन से नियंत्रण खोने लगी, अचानक से उसे विचार आया कि ये क्या कर रही है पुष्पा बेटे के वीर्य को पोंछने की जगह उसे अपने बदन पर मल रही है, ये सोच कर तो वो और गरम हो गई और स्वयं को रोकने की जगह वो खुल कर छोटू के वीर्य को अपने पेट पर मलते हुए मसलने लगी, साथ ही हर पल के साथ और उत्तेजित होती जा रही थी,
छोटू के लंड पर उसकी पकड़ और बढ़ती जा रही थी पेट पर वीर्य मलने के बाद उसने अपने ब्लाउज पर लगे वीर्य को भी उंगलियों से बटोरा और उसे अपनी छाती और गर्दन पर लगाने लगी, बेटे के लंड रस को पुष्पा ऐसे बदन से मल रही थी जैसे औरतें महंगी क्रीम भी नहीं मलती होंगी।
छोटू भी अलग आनंद में था और हो भी क्यूं ना उसकी मां उसका लंड पकड़ कर मुठिया रही थी, वो तो छोटू सोने का नाटक कर रहा था नहीं तो मां को अपने रस को बदन पर मलते देखता तो आंखें फटी की फटी रह जाती।
पुष्पा के लिए हर आने वाला पल उसकी गर्मी बढ़ा रहा था और उसके लिए खुद को संभालना मुश्किल होता जा रहा था, उसकी चूत में मानों हज़ारों चीटियां रेंग कर उसे तड़पा रहीं थी, उसकी चूचियां ऐसे अकड़ गई थीं मानों ब्लाउज में छेद करके बाहर निकल आएंगी, अपनी गर्दन पर रस मलते हुए उसका हाथ थोड़ा नीचे आया और वो ब्लाउज के ऊपर से ही अपनी चूचियों को हल्का हल्का मसलने लगी, पर ज्यों ज्यों वो चुचियों को मसलती वो उतना ही और स्पर्श के लिए तड़प उठती, उसका मसलना उसके अंदर की आग को शांत करने की जगह और भड़का रहा था।
इसी तड़पन में पुष्पा ने बिना विचारे ही एक कदम उठाया और अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी, एक एक करके बटन अलग होते गए और कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज खुल चुका था। पर ब्लाउज खोलते हुए भी पुष्पा ने एक ग्रहणी की मुख्य विशेषता का परिचय दिया और वो थी बहुकार्यन, एक ही साथ कई कार्य करने की खास शक्ति एक नारी में होती है और पुष्पा भी अभी वही कर रही थी, भले ही वो अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी पर उसने अपना हाथ छोटू के लंड से तनिक भी नहीं हटाया बल्कि उसे लगातार मुठियाती रही।
ब्लाउज खुलने के बाद पुष्पा ने दोनों पाटों को अलग किया और चांदनी में उसकी उन्नत चूचियां बाहर आ गईं जिन्हें बारी बारी पकड़ कर वो मसलने लगी, उसने खुद को किसी तरह सिसकियां लेने से रोका, अच्छा था छोटू की आंखें बंद थी नहीं तो इतनी पास से अपनी मां की मोटी मोटी चूचियों को देख कर न जाने उसका क्या हाल होता,
पर हाल तो पुष्पा का खराब हो रहा था चुचियों को नंगा कर मसलने के बाद भी उसके बदन में तडपन और बढ़ती जा रही थी उसकी चूत की खुजली उसे तड़पा रही थी, पर वो क्या करे उसकी समझ नहीं आ रहा था चुचियों की तडपन संभाले या चूत की खुजली, लल्ला के लंड को भी नहीं छोड़ सकती थी या कहें तो छोड़ना ही नहीं चाहती थी,
इसका जवाब खुद ही उसे मिल गया पर अगले ही पल वो खुद को मना करने लगी, मन में एक द्वंद होने लगा, सही और हवस में, संस्कार और उत्तेजना में,
बुद्धि और बदन में, और अंत में बदन के सुख के आगे बुद्धि को हार स्वीकार करनी पड़ी और पुष्पा ने अपने ब्लाउज से हाथ उठाया और उससे छोटू का एक हाथ जो कि उसने अपनी कमर पर रखा हुआ था उसे उठाकर अपनी एक चूची पर रख दिया,
चूची पर हाथ का स्पर्श होते ही पुष्पा का बदन पूरा एक पल के थरथरा गया, और अब तो जो भी विचार उसे रोक रहे थे सब धुआं हो गए,
छोटू ने अनुभव किया कि मां उसका हाथ पकड़ रही हैं और फिर उसका हाथ उठाकर कहीं रखा किसी मुलायम सी चीज पर और फिर अगले ही पल छोटू को जैसे ही समझ आया ये क्या है वो तो अंदर तक हिल गया उसकी आंखें झट से खुल गईं, और खुल कर फटी की फटी रह गईं, उसने देखा कि उसके चेहरे के सामने ही उसकी मां का ब्लाऊज खुला हुआ है उनकी दोनों मोटी चूचियां बाहर हैं और एक पर उसका हाथ है ये विचार आते ही उसका पूरा बदन सिहर गया उसका लंड पुष्पा के हाथ में झटके मारने लगा, अब छोटू को भी खुद पर काबू करना मुश्किल होने लगा, जो कि स्वाभाविक ही था जब पुष्पा जैसी परिपक्व औरत खुद पर नियंत्रण नहीं कर पा रही थी तो किशोर अवस्था का छोटू ऐसी परिस्थिति में वो भी दवाई के असर के साथ खुद को कैसे संभाले?
पुष्पा की आँखें बंद थी वो छोटू के हाथ को अपनी चूची पर रख कर उसका स्पर्श महसूस कर अंदर ही अंदर सिहर रही थी, इसी बीच उसे महसूस हुआ कि छोटू की उंगलियां उसकी चूची पर कस गईं, और मानो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो उत्तेजना से होश खो बैठेगी,
छोटू ने भी सब सोच विचार त्याग दिए और अपनी मां की मोटी मस्त मांसल कोमल चूची पर ध्यान लगाया और उसे मसलने लगा, इस एहसास से ही वो बावरा सा होने लगा, पहली बार वो जीवन में किसी चूची को दबा रहा था वो भी अपनी मां की पपीते जैसी चूचियों को, ये विचार कर ही उसका पूरा बदन मचलने लगा, उसकी कमर खुद ब खुद हिलने लगी और वो पुष्पा की मुट्ठी को मानो धीरे धीरे चोदने लगा, अपने हाथों में मां की चूची उसे मानो माखन की पोटली जैसी लग रही थी, इतना कोमल एहसास, अःह्ह्ह्ह्ह, वो बार बार अपनी उंगलियों से माखन की पोटली को आटे की तरह गूंथने लगा, साथ ही उसकी नजर कभी मां की दूसरी चूची पर रहती
पुष्पा के लिए तो अब उत्तेजना इतनी हो गई थी कि उसके लिए अब खुद को रोकना संभव नहीं हो रहा था, बेटे दारा चूची के मर्दन ने तो उसकी आग को कुछ ज़्यादा ही भड़का दिया था, उसने अपना हाथ छोटू के हाथ के ऊपर से हटा दिया और नीचे कर अपने पेट को मसलने लगी, छोटू ने मां का हाथ हटने के बाद भी अपनी मां की चूची को दबाना जारी रखा, पुष्पा का हाथ छोटू के लंड पर लगातार चल रहा था पर छोटू एक बार स्खलित हो चुका था साथ ही दवाई का असर भी था इसीलिए वो मां की चूची को मसलने के बाद भी टिका हुआ था,
अब छोटू को जब ये पता चल गया था कि उसकी मां जान कर ये सब उसके साथ कर रही है तो उसके मन में भी विश्वास बढ़ा, उसे लगने लगा कि मां अब उसपर गुस्सा नहीं करेगी, तो उसने अपना दूसरा हाथ भी सिर के नीचे से निकाला और उसे पुष्पा की गर्दन के नीचे से निकालते हुए दूसरी ओर ले गया और गर्दन के बगल से निकालते हुए दूसरी चूची पर रख दिया, अब छोटू के दोनों हाथ उसकी मां की दोनों चुचियों पर थे, और इस अनुभव से वो पागल सा होने लगा, और दोनों चुचियों को उत्तेजना के वेग में आते हुए मसलने लगा,
दूसरी चूची पर भी बेटे का हाथ पाकर तो पुष्पा का बदन डोलने लगा, उसकी कमर भी धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी,
जो हाथ उसका पेट पर था वो सरकते हुए नीचे जाने लगा और कब पेटिकोट के ऊपर से वो अपनी चूत को सहलाने लगी उसे खुद पता ही नहीं चला, वो तो बस अपने बदन की गर्मी को कम करने के लिए सारे जतन कर रही थी,
चूत पर अपनी उंगलियों का स्पर्श होते ही पुष्पा के पूरे बदन में बिजली दौड़ गई, उसका बदन कांपने लगा यहां तक कि छोटू के लंड पर भी उसकी पकड़ ढीली हो गई, जो मां अपने बेटे को हवस और उत्तेजना के जादू से बचाना चाहती थी वो स्वयं ही उस जादू के आगे बेवश हो कर अपने बदन की उत्तेजना और हवस शांत करने का भरसक प्रयास करने लगी,
सीना और उठकर छोटू के हाथों में समाने लगा, तपते होंठ कांपने लगे,
छोटू के हाथ लगातार मां की चुचियों का मर्दन कर रहे थे वहीं छोटू की आंखें अपनी मां के सुंदर चेहरे पर टिकी थीं, चांद की चांदनी में वो मां के मुखड़े पर बदलते भावों को साफ देख पा रहा था, तपते होंठों का कंपन जिन पर बार बार पुष्पा की जीभ आती और उन्हें नम करने का प्रयास करती, छोटू से ये देख कर स्वयं पर से नियंत्रण खो गया और उसने ऐसा कदम उठा लिया जो होश में वो कभी उठाने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, छोटू ने अपना चेहरा आगे बढ़ा कर अपने होंठ अपनी मां के रसीले कामुक तपते होंठो से मिला दिए, और जोश में आते हुए उन्हें चूसने लगा, पुष्पा को भी जैसे ही होंठों पर बेटे के होंठों का स्पर्श हुआ उसके पहले से तपते बदन में मानो और गर्मी भर गई, और उसके होंठ अपने आप खुल गए और स्वयं को अचम्भित करते हुए वो भी अपने बेटे के होंठों को चूसने लगी, छोटू तो अपनी मां का साथ पाकर फूला नहीं समा रहा था और पागलों की तरह उनके होंठों को चूस रहा था, पुष्पा भी वासना में इस कदर डूब गई की अपने ही बेटे के साथ प्रेमी की तरह चुम्बन कर रही थी, छोटू मां के होंठों को चूमते हुए उसकी दोनों चूचियों को लगातार मसल रहा था, साथ ही उसका लंड जो कि पुष्पा की मुठ्ठी से आज़ाद हो चुका था उसे अपनी कमर हिला हिला कर पुष्पा के नंगे पेट पर घिस रहा था।
पुष्पा का हाथ जो छोटू के लंड से खाली हुआ था वो भी सीधा उसकी जांघों के बीच पहुंचा और सीधा पेटिकोट पर पड़ा और अगले ही पल वो पेटिकोट को ऊपर खींचने लगी, पेटीकोट को अगले ही पल ऊपर खींचते हुए पुष्पा ने अपने हाथ को पेटिकोट के अंदर जांघो के बीच घुसाया और अपनी नंगी चूत पर अपनी उंगलियों का स्पर्श कराया, और गीली चूत को तुरंत ही घिसने लगी,
चूत को स्पर्श मिलते ही पुष्पा का बदन ऐंठने लगा उसकी कमर ऊपर नीचे होने लगी, उसका सीना भी अकड़कने लगा, उसके होंठों की पकड़ छोटू को अपने होंठों पर बढ़ती हुई महसूस हुई और जिससे उसे भी और जोश मिला और वो भी अपनी कमर आगे पीछे कर अपने लंड को पुष्पा की कमर और गांड पर घिसने लगा,
पुष्पा की चूत से उंगलियों का परिचय होते ही चूत ने उंगलियों के लिए चूत की चासनी परोस दी, और पुष्पा कांपते हुए स्खलित होने लगी, वो तो अच्छा था उसके होंठ छोटू के होंठों से बंद थे नहीं तो उसकी सिसकियां बाहर चबूतरे तक सुनाई देती,
छोटू ने भी अपनी मां को स्खलित होते महसूस किया तो उसके मन में भी ये विचार आया कि उसकी मां उसकी वजह स्खलित हो रही है, और बस इतना काफी था उसे भी उसके चरम पर पहुंचाने के लिए,
दोनों मां बेटे एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए स्खलित हो रहे थे, और दोनो के ही जीवन का ये सबसे ताकतवर स्खलन था, छोटू के लंड ने पिचकारी मार कर पुष्पा के पेट और कमर को रस से रंग दिया, वहीं पुष्पा का रस भी पेटिकोट और उसकी उंगलियों पर था और अपनी अलग कहानी कह रहा था, स्खलित होने के बाद दोनों के होंठ अलग हुए, पुष्पा को तो लग रहा था उसके बदन में जान ही नहीं बची, उसके मन में बहुत से विचार चल रहे थे पर उन पर ध्यान देने की शक्ति नहीं मिल पा रही थी, वहीं छोटू तो अपनी मां से चिपक कर सो भी चुका था, पुष्पा के बदन से जैसे ही हवस रस बन कर चूत की मोरी से निकली तो वास्तविकता का साफ पानी दिखने लगा,
पुष्पा का तो सिर चकराने लगा ये सोच कर कि उसने आज क्या महापाप कर दिया, अपने ही बेटे के साथ ऐसी हरकत, उसे खुद से घिन आने लगी, उसने एक नजर छोटू पर डाली पर वो सो चुका था, पुष्पा के मन में एक साथ लाख विचार आने लगे, एक पल सोचती कि कैसी मां है तू, तो अगले पल सोचती मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं मेरे जैसी पापी को तो मर जाना चाहिए, पर इतनी हिम्मत भी उसमें नहीं थी, तभी उसे अपनी कमर से कुछ नीचे सरकने का आभास हुआ तो उसे याद आया कि छोटू का रस उसकी कमर और पेट पर अब भी है वो तुरंत उठी और खाट से उतर कर नीचे बैठ गई, उसने तुरंत सिरहाने से अपनी साड़ी उठाई और अपने पेट कमर और बदन को पोंछने लगी और खुद को कोसते हुए उसकी आंखों में पानी आ गया, खुद को मन ही मन गालियां देते हुए, अपने आप पर घिन करते हुए वो खुद को पोंछ रही थी, आंखों से लगातार अश्रु धारा बह रही थी, खाट के नीचे बैठे हुए कुछ देर रोती रही, फिर खुद को समझाया, अपने कपड़े सही किए, छोटू का कच्छा भी लंड पर चढ़ाया और फिर साड़ी बांधी पर उसका मन फिर से छोटू के बगल में सोने को नहीं मान रहा था इसलिए वो एक चादर को जमीन पर ही बिछा कर लेट गई और सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।
सुबह तड़के ही फुलवा की हमेशा की तरह आंख खुल गई और उठते ही अपने पूर्वजों और पृथ्वी को प्रणाम कर वो बिस्तर से उठी और उठ कर ज्यों ही नित क्रिया के लिए वो आगे बढ़ती उसकी नजर छोटू की खाट पर पड़ी और फिर बगल में सोती हुई पुष्पा पर, पुष्पा को नीचे सोते देख फुलवा का पारा चढ़ने लगा, इस बहुरिया से एक काम नहीं होता बाबा ने बोला था साथ सोने को पर ये महारानी नीचे सो रही हैं, ऊपर से अगर कोई कीड़ा मकोड़ा काट ले तो और आफत, सोचते हुए फुलवा सीधा पुष्पा की ओर बढ़ गई, और उसके पास जाकर उसे हिलाकर जगाया तो पुष्पा चौंकते हुए उठी,
फुलवा: ए बहू नीचे क्यों सो रही है, लल्ला की साथ सोने को कहा था ना,
पुष्पा: आएं? का? मैं? अम्मा?
पुष्पा तो समझ नही पा रही थी क्या बोले वो गहरी नींद से उठी थी, जो कि फुलवा भी समझ रही थी इसलिए फुलवा ने सोचा अभी रहने देती हूं दिन में बात करती हूं इससे,
फुलवा: चल ऊपर सो जा खाट पर।
पुष्पा भी फुलवा की बात मान तुरंत ऊपर लेट कर सो गई।
फुलवा ने सोचा चलो ये अभी समय है बाबा का बताया हुआ टोटका भी करना है ये सोच वो कमरे की ओर बढ़ गई।
अभी ठीक से सुबह भी नहीं हुई थी कि गांव के सम्मान नीय पुड़िया बाबा यानी केलालाल जी अपनी कुटिया से निकल कर लपक कर चले जा रहे थे, कदमों में तेजी साफ दर्शा रही थी कि कहीं जाने की जल्दी थी, लपक कर चलते हुए वो जल्दी ही नदी की ओर पहुंचे फिर एक पेड़ की आड़ में झांक कर देखा पर सामने देख कर थोड़े निराश हुए फिर मन में कुछ और सोचा और दबे पांव आगे बढ़ते हुए पेड़ों की ओट लेकर आगे बढ़े और फिर एक जगह जाकर रुक गए और फिर एक पेड़ से बड़ी सावधानी से इधर उधर देखते हुए आगे छुप कर देखने लगे और जो दृश्य सामने देखा उसे देख कर उनकी आंखें चौड़ी हो गई,
सामने थी बिल्कुल नंगी फुलवा पानी से भीगी हुई, उसका भरा बदन देख बाबा की सांसें भारी होने लगीं, ऊपर से नीचे तक बाबा फुलवा के बदन को निहारने लगे, सांवले सुडौल कंधों के नीचे पपीते से भी बड़ी बड़ी चूचियां थीं, पपीता क्या तरबूज भी कह सकते थे, गीली होकर चांद की हल्की रोशनी में दोनों चूचियां कार की बत्ती की तरह चमक रहीं थी, चूचियों के नीचे मांसल हल्का बाहर को निकला हुआ पेट जिसके बीच गहरी बड़ी नाभी थी और उसके नीचे झांटों का झुरमुट।
फुलवा का कामुक बदन बच्चे से बूढ़े किसी के भी लंड को उठाने लायक था और उसकी स्वीकृति खुद बाबा का लंड उनकी धोती के अंदर से दे रहा था, जिसे धोती के ऊपर से ही मसलते हुए वो मन ही मन बोले: अःह्ह्ह्ह् फुलवा रानी इस उमर में भी क्या जलवे हैं तेरे, अह्ह्ह्ह मज़ा आ गया, झूठ का टोटका बताना सफल हो गया,
बाबा ये सब सोच ही रहे थे कि फुलवा घूम गई और बाबा को फुलवा के मटके के आकार के चूतड़ आ गए जिन्हें देख बाबा ने अपना लंड बाहर निकाल लिया, और उसे देख सहलाने लगे।
फुलवा बाबा के कहे अनुसार अनुष्ठान करने लगी, पहले पेड़ की पूजा की फिर बाबा के कर अनुसार पेड़ की जड़ में झुककर माथा टेका और वैसे ही मंत्र पढ़ने लगी, झुकने से उसके चूतड़ खुल कर उसकी गांड के छेद और बालों से भरी चूत के दर्शन होने लगे, जिन्हें देख बाबा की बैचैनी और बढ़ गई और उन्होंने अपने कड़क होते लंड को धोती के बाहर निकाल लिया, फुलवा वैसे ही झुकी हुई बाबा ने जो मंत्र बताया था वो जपने लगी, बाबा उसे देखते हुए अपना लंड हिलाने लगे, तभी आंख के कोने से बाबा को कुछ दिखा और उन्होंने तुरंत उस ओर देखा तो चौंक गए, एक साया जिसने अपने को गमछे से ढंक रखा था फुलवा की ओर बढ़ रहा था, बाबा को उसका चेहरा नहीं दिख रहा था, क्योंकि चेहरे पर गमछा बंधा था धीरे धीरे वो साया फुलवा की ओर बढ़ने लगा पर फुलवा तो इस सब से बेखबर होकर मंत्र जपने में लगी हुई थी, बाबा की सांसें तेज़ हो रही थी ये सोच कर कि ये कौन है और क्या करने वाला है, वो साया धीर से फुलवा के ठीक पीछे पहुंच गया और बाबा ने देखा कि फुलवा के पीछे घुटनो पर बैठ भी गया, पर बाबा को सिर्फ उसकी पीठ दिख रही थी इसलिए बाबा ने तुरंत अपनी जगह किसी तरह बदली और आहिस्ता आहिस्ता वो एक तरफ आ गए और देखा तो चौंक गए वो साया फुलवा के बिल्कुल पीछे बैठ कर उसके चूतड़ों को निहारते हुए अपना लंड बाहर निकाल कर सहला रहा है, उसका लंड भी बिल्कुल कड़क है इसी बीच वो थोड़ा सा आगे सरकता है साथ ही अपने लंड पर थूक लगाता है, और फिर बाबा को अचंभित करते हुए वो साया अपने लंड को पकड़ कर उसका टोपा फुलवा की बालों भरी चूत के मुहाने पर लगाता है और फिर इससे पहले बाबा या स्वयं फुलवा कुछ कर पाते या उसे रोकते वो फुलवा की कमर थाम कर एक जोरदार धक्का लगाता है और अपना लंड फुलवा की चूत में ठूंस देता है,
जिसके साथ ही फुलवा की एक तेज़ चीख जंगल में गूंज जाती है वो तुरंत अपना चेहरा घुमा कर पीछे देखने की कोशिश करती है तो उसे गमछे में लिपटा एक चेहरा दिखता है और वो सिर्फ उसकी आंखें देख पाती है, वो अगले ही पल उठने का प्रयास करती है पर उस साए के सख्त हाथ उसकी कमर को थाम कर उसे वैसे ही रोक कर रखते हैं वो अपना लंड बाहर खींचता है और फिर से जड़ तक ठूंस देता है और ऐसे ही करते हुए फुलवा को चोदने लगता है, फुलवा के मुंह से हर धक्के पर आह्ह्ह्ह्ह निकलने लगती है, बाबा भी अपने सामने फुलवा की चुदाई देख कुछ नहीं कर पाते बल्कि अपना लंड हिलाने लगते हैं, वो साया लगातार तगड़े धक्कों से फुलवा की परिपक्व चूत को चोदने लगता है,
फुलवा को जवानी से अधेड़ उमर तक खूब चोदा था पर नाती पोता बढ़े होने लगे तो उसने स्वयं ही ये सब कम कर दिया था, उसके पति सोमपाल तो अभी भी उसे कभी कभी पकड़ लेते थे पर वो ही समाज का और उमर का उलाहना देकर टाल देती थी, इसलिए आज जब अचानक से इतने दिनो से सूखी चूत में लंड का प्रवेश हुआ तो उसे आरंभ में तकलीफ हुई पर अब लगातार लंड के घर्षण ने उसकी चूत की मांसपेशियों को जाग्रत कर दिया और उसकी चूत भी अब गीली होने लगी और अपने पानी से उस अनजान साए के लंड को चुपड़ने लगी,
चूत के गीले होने से लंड और अच्छे से अंदर बाहर होने लगा, और न चाहते हुए भी फुलवा को इतने दिनों बाद चुदाई का आनंद आने लगा, बदन में इतनी तरंगे उठने लगीं, उसके मुंह से न चाहते हुए भी आह्ह्ह्ह अअह्ह्ह्ह की कामुक आहें निकलने लगी,
वहीं वो साया तो उसकी कमर थामे लगातार दनादन धक्के लगा रहा था हर पल के साथ उसके धक्कों की गति और बढ़ती जा रही थी,
और कुछ ही पलों में वो साया गुर्राने लगा और उसने अपना लंड जड़ तक फुलवा की चूत में गाड़ दिया और फिर अपना रस छोड़ने लगा,
फुलवा ने भी जब अपनी चूत की वर्षों से सूखी माटी पर रस की बारिश होती देखी वो भी एक अनजान मर्द के लंड से तो इस विचार को वो भी संभाल नहीं पाई और उस साए के साथ ही स्खलित होने लगी, अपना रस फुलवा की चूत में भरने के बाद उस अनजान साए ने अपना लंड उसकी चूत से निकाला और फिर कुछ ही पलों में पेड़ों के पीछे गायब हो गया, फुलवा को जब तक होश आया तब तक तो वो गायब हो चुका था वहीं बाबा के लिए भी उसकी गति का पीछा करना असंभव ही था, और वो भी तब था न जब वो पीछा करते वो खुद पेड़ के तने से टिके हुए थे और अपने लंड की पिचकारी घास पर छोड़ रहे थे, अपने लंड से रस निचोड़ने के बाद बाबा का दिमाग चलने लगा और वो तुरंत वहां से निकल लिया लपकते हुए, ये सोचते हुए कि निकल ले बेटा नहीं तो फुलवा ने या किसी और ने तुझे इस ओर देख लिया तो बिना मजे लिए ही तू फंस जायेगा।
फुलवा कुछ पल वैसी ही पड़ी रही चूत से अनजान मर्द का रस बह कर बाहर टपक रहा था, वैसे तो इस उमर में चूत में रस गिराने से कोई खतरा नहीं था पिछले साल से ही उसके मासिक धर्म आने बंद हो गए थे, पर सूखी चूत पर अचानक से हुई बारिश ने उसके मन को भी भीगा कर रख दिया था, अपने आप को संभालने के बाद फुलवा ने मंत्रों को पूरा किया, और फिर पेड़ की ओट में कपड़े पहनकर घर की ओर चल दी,
जारी रहेगी।
Shandar super hot seductive updateअध्याय 10
इससे पहले पुष्पा कुछ समझ पाती कि क्या हो रहा है छोटू का लंड पिचकारी छोड़ने लगा और पिचकारी सीधी उसके बदन पर गिरने लगी कोई पेट पर गिरती तो कोई ब्लाउज पर और कोई पेटिकोट पर, कुछ देर में छोटू का झड़ना खत्म हुआ तब तक उसके लंड ने अच्छे से मां के बदन को रंग दिया था। आगे..
पुष्पा अपने बेटे के लंड को थामें ज्यों की त्यों पड़ी थी और अभी जो हुआ उसे समझने का प्रयास कर रही थी, उसके बदन पर उसके बेटे के लंड की मलाई लगी हुई थी और जहां जहां उसके बदन पर उसके बेटे के लंड का रस लगा हुआ था उस जगह मानो उसका बदन जल सा रहा था,
छोटू तो आंखें मूंदे डर के मारे लेटा हुआ था उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी मां ने उसके लंड को अपने हाथ में लिया और फिर हिलाया भी पर उसके आगे क्या हुआ उसके बाद उसने अपना रस मां के बदन पर गिरा दिया अब मां ज़रूर बहुत गुस्से में होगी, छोटू बेटा आज तो तू गया आज तेरा आखिरी दिन समझ। जहां छोटू डर से सहमा हुआ था वहीं उसकी मां अलग दुविधा में थी, उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बेटे के साथ सोना इतना मुश्किल होने वाला था और उसे ये सब करना पड़ेगा जिसकी कल्पना भी एक मां नहीं कर सकती।
पर वास्तविकता तो ये थी कि उसके हाथ में उसके बेटे का कड़क तन्नाया लंड था, उसके बदन पर उसके लंड का रस था,
पुष्पा इन्हीं सब विचारों में खोई थी उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, फिर उसके मन में विचार आया चलो कम से कम इसका रस तो निकला अब आराम से सो पाएगा, पर फिर खुद ही अपने हाथ में उसका लंड महसूस कर हैरान हो गई,
हाय दईया पर इसका लंड तो अब भी बिल्कुल वैसे ही कड़क है रस निकलने के बाद भी कोई असर नहीं हुआ, इसके पापा का तो रस निकलने के बाद ढीला हो जाता है पर इसका क्यों नहीं हो रहा, अब तो मुझे पक्का विश्वास होता जा रहा है लल्ला के ऊपर उस चुड़ैल का साया है नहीं तो ऐसा क्यों होता।
पुष्पा ये सोच घबराने लगी और आगे क्या करे ये सोचने लगी, कुछ तो करना पड़ेगा ही मैं अपने लल्ला को उसके चंगुल में नहीं रहने दे सकती, वो भले ही चुड़ैल सही पर वो एक मां से नहीं जीत सकती,
मन में ऐसा विचार कर पुष्पा ने खुद को संभाला और फिर धीरे धीरे उसका हाथ दोबारा से बेटे के लंड को मुठियाने लगा,
छोटू जो कि डर से अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रहा था वो अचानक अपनी मां की इस हरकत से अचम्भे में पड़ गया उसे तो लगा था कि उसकी मां उसे मारेगी पीटेगी गालियां देगी पर यहां तो उसकी मां अब भी उसका लंड मुठिया रही थी, वो सोचने लगा आज उसके साथ भाग्य है, लगता है मां उसे नहीं मारेगी बल्कि मां के मन में कुछ और ही चल रहा है,
क्या मां को मेरा लंड अच्छा लग गया है क्या वो मेरा लंड देख कर खुद को नियंत्रित नहीं कर पा रही हैं,
नहीं नहीं मेरी मां ऐसी औरत तो नहीं है, कितनी संस्कारी हैं कोई भी काम ऐसा नहीं करती जो गलत हो तो अपने ही बेटे के साथ ऐसा क्यों करेंगी, अह्ह्ह्ह पर मां का हाथ लंड पर कितना अच्छा लग रहा है अह्ह्ह्ह अपने हाथ से हिलाने से तो हजार गुना ज्यादा अच्छा है ये अनुभव। अभी ये सोचने से कि मां ये सब क्यों कर रही हैं उससे अच्छा है कि जो कर रही हैं उसका आनंद लूं, शायद ही कभी ऐसा जीवन में दोबारा संयोग बने, ये सोच छोटू भी अपने लंड पर अपनी मां के हाथ का आनंद लेने लगा,
पुष्पा अपने आप को शांत करते हुए छोटू का लंड मुठिया रही थी मन में यही सोच रही थी कि किसी भी प्रकार से अपने लल्ला को उस चुड़ैल से बचाना है, पर धीरे धीरे उसके बदन पर भी उत्तेजना चढ़ती जा रही थी, जैसे जैसे वो अपने बेटे का लंड मुठिया रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ती जा रही थी, उसकी चूत में खुजली होने लगी थी उसकी चूचियां तन कर मानो ब्लाउज में छेद करने को तैयार थीं, इसी बीच उसके मन में उसके बदन पर पड़े छोटू के लंड रस का विचार आया तो वो उसे पोंछने का सोचने लगी और उसने अपना दूसरा हाथ अपनी गर्दन पर रखा जहां छोटू के लंड ने पिचकारी मारी थी, जैसे ही उसकी उंगलियों ने बेटे के गाढ़े वीर्य को छुआ तो उसके बदन में सिरहन सी हुई, इस विचार से कि उसकी उंगलियों पर उसके बेटे का वीर्य है,
पुष्पा ने इस विचार को थोड़ा दबाया और अपनी गर्दन से छोटू के रस को उंगलियों से पोंछने लगी साथ ही एक हाथ छोटू के लंड पर भी लगातार चल रहा था, रस को पोंछते हुए पुष्पा का बदन हर पल के साथ उत्तेजित होता जा रहा था, उसे लग रहा था मानो छोटू के वीर्य में कुछ जादू है जो उसके बदन को उत्तेजित कर रहा है, उसकी गर्मी को भड़का रहा है उसके बदन में एक प्यास जगा रहा है और हो भी ऐसा ही रहा था, उसकी चूत भी नम होकर पानी बहाने लगी थी, चूचियां बिल्कुल तनी हुई थीं जो कि ब्लाउज के ऊपर से ही पता चल रही थीं,
गर्दन से वीर्य पोंछने के बाद पुष्पा ने अपने पेट पर हाथ लगाया और पेट पर हाथ फिराते हुए वीर्य को पोंछने लगी, पर उसकी उत्तेजना इतनी बढ़ गई कि उसने धीरे धीरे वीर्य को पोंछने की जगह उसे अपने पेट पर ही मलना शुरू कर दिया, और ये वो बिना सोचे ही करने लगी, हर बढ़ते पल के साथ उसकी उत्तेजना और बढ़ रही थी, वो अपने बदन और मन से नियंत्रण खोने लगी, अचानक से उसे विचार आया कि ये क्या कर रही है पुष्पा बेटे के वीर्य को पोंछने की जगह उसे अपने बदन पर मल रही है, ये सोच कर तो वो और गरम हो गई और स्वयं को रोकने की जगह वो खुल कर छोटू के वीर्य को अपने पेट पर मलते हुए मसलने लगी, साथ ही हर पल के साथ और उत्तेजित होती जा रही थी,
छोटू के लंड पर उसकी पकड़ और बढ़ती जा रही थी पेट पर वीर्य मलने के बाद उसने अपने ब्लाउज पर लगे वीर्य को भी उंगलियों से बटोरा और उसे अपनी छाती और गर्दन पर लगाने लगी, बेटे के लंड रस को पुष्पा ऐसे बदन से मल रही थी जैसे औरतें महंगी क्रीम भी नहीं मलती होंगी।
छोटू भी अलग आनंद में था और हो भी क्यूं ना उसकी मां उसका लंड पकड़ कर मुठिया रही थी, वो तो छोटू सोने का नाटक कर रहा था नहीं तो मां को अपने रस को बदन पर मलते देखता तो आंखें फटी की फटी रह जाती।
पुष्पा के लिए हर आने वाला पल उसकी गर्मी बढ़ा रहा था और उसके लिए खुद को संभालना मुश्किल होता जा रहा था, उसकी चूत में मानों हज़ारों चीटियां रेंग कर उसे तड़पा रहीं थी, उसकी चूचियां ऐसे अकड़ गई थीं मानों ब्लाउज में छेद करके बाहर निकल आएंगी, अपनी गर्दन पर रस मलते हुए उसका हाथ थोड़ा नीचे आया और वो ब्लाउज के ऊपर से ही अपनी चूचियों को हल्का हल्का मसलने लगी, पर ज्यों ज्यों वो चुचियों को मसलती वो उतना ही और स्पर्श के लिए तड़प उठती, उसका मसलना उसके अंदर की आग को शांत करने की जगह और भड़का रहा था।
इसी तड़पन में पुष्पा ने बिना विचारे ही एक कदम उठाया और अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी, एक एक करके बटन अलग होते गए और कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज खुल चुका था। पर ब्लाउज खोलते हुए भी पुष्पा ने एक ग्रहणी की मुख्य विशेषता का परिचय दिया और वो थी बहुकार्यन, एक ही साथ कई कार्य करने की खास शक्ति एक नारी में होती है और पुष्पा भी अभी वही कर रही थी, भले ही वो अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी पर उसने अपना हाथ छोटू के लंड से तनिक भी नहीं हटाया बल्कि उसे लगातार मुठियाती रही।
ब्लाउज खुलने के बाद पुष्पा ने दोनों पाटों को अलग किया और चांदनी में उसकी उन्नत चूचियां बाहर आ गईं जिन्हें बारी बारी पकड़ कर वो मसलने लगी, उसने खुद को किसी तरह सिसकियां लेने से रोका, अच्छा था छोटू की आंखें बंद थी नहीं तो इतनी पास से अपनी मां की मोटी मोटी चूचियों को देख कर न जाने उसका क्या हाल होता,
पर हाल तो पुष्पा का खराब हो रहा था चुचियों को नंगा कर मसलने के बाद भी उसके बदन में तडपन और बढ़ती जा रही थी उसकी चूत की खुजली उसे तड़पा रही थी, पर वो क्या करे उसकी समझ नहीं आ रहा था चुचियों की तडपन संभाले या चूत की खुजली, लल्ला के लंड को भी नहीं छोड़ सकती थी या कहें तो छोड़ना ही नहीं चाहती थी,
इसका जवाब खुद ही उसे मिल गया पर अगले ही पल वो खुद को मना करने लगी, मन में एक द्वंद होने लगा, सही और हवस में, संस्कार और उत्तेजना में,
बुद्धि और बदन में, और अंत में बदन के सुख के आगे बुद्धि को हार स्वीकार करनी पड़ी और पुष्पा ने अपने ब्लाउज से हाथ उठाया और उससे छोटू का एक हाथ जो कि उसने अपनी कमर पर रखा हुआ था उसे उठाकर अपनी एक चूची पर रख दिया,
चूची पर हाथ का स्पर्श होते ही पुष्पा का बदन पूरा एक पल के थरथरा गया, और अब तो जो भी विचार उसे रोक रहे थे सब धुआं हो गए,
छोटू ने अनुभव किया कि मां उसका हाथ पकड़ रही हैं और फिर उसका हाथ उठाकर कहीं रखा किसी मुलायम सी चीज पर और फिर अगले ही पल छोटू को जैसे ही समझ आया ये क्या है वो तो अंदर तक हिल गया उसकी आंखें झट से खुल गईं, और खुल कर फटी की फटी रह गईं, उसने देखा कि उसके चेहरे के सामने ही उसकी मां का ब्लाऊज खुला हुआ है उनकी दोनों मोटी चूचियां बाहर हैं और एक पर उसका हाथ है ये विचार आते ही उसका पूरा बदन सिहर गया उसका लंड पुष्पा के हाथ में झटके मारने लगा, अब छोटू को भी खुद पर काबू करना मुश्किल होने लगा, जो कि स्वाभाविक ही था जब पुष्पा जैसी परिपक्व औरत खुद पर नियंत्रण नहीं कर पा रही थी तो किशोर अवस्था का छोटू ऐसी परिस्थिति में वो भी दवाई के असर के साथ खुद को कैसे संभाले?
पुष्पा की आँखें बंद थी वो छोटू के हाथ को अपनी चूची पर रख कर उसका स्पर्श महसूस कर अंदर ही अंदर सिहर रही थी, इसी बीच उसे महसूस हुआ कि छोटू की उंगलियां उसकी चूची पर कस गईं, और मानो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो उत्तेजना से होश खो बैठेगी,
छोटू ने भी सब सोच विचार त्याग दिए और अपनी मां की मोटी मस्त मांसल कोमल चूची पर ध्यान लगाया और उसे मसलने लगा, इस एहसास से ही वो बावरा सा होने लगा, पहली बार वो जीवन में किसी चूची को दबा रहा था वो भी अपनी मां की पपीते जैसी चूचियों को, ये विचार कर ही उसका पूरा बदन मचलने लगा, उसकी कमर खुद ब खुद हिलने लगी और वो पुष्पा की मुट्ठी को मानो धीरे धीरे चोदने लगा, अपने हाथों में मां की चूची उसे मानो माखन की पोटली जैसी लग रही थी, इतना कोमल एहसास, अःह्ह्ह्ह्ह, वो बार बार अपनी उंगलियों से माखन की पोटली को आटे की तरह गूंथने लगा, साथ ही उसकी नजर कभी मां की दूसरी चूची पर रहती
पुष्पा के लिए तो अब उत्तेजना इतनी हो गई थी कि उसके लिए अब खुद को रोकना संभव नहीं हो रहा था, बेटे दारा चूची के मर्दन ने तो उसकी आग को कुछ ज़्यादा ही भड़का दिया था, उसने अपना हाथ छोटू के हाथ के ऊपर से हटा दिया और नीचे कर अपने पेट को मसलने लगी, छोटू ने मां का हाथ हटने के बाद भी अपनी मां की चूची को दबाना जारी रखा, पुष्पा का हाथ छोटू के लंड पर लगातार चल रहा था पर छोटू एक बार स्खलित हो चुका था साथ ही दवाई का असर भी था इसीलिए वो मां की चूची को मसलने के बाद भी टिका हुआ था,
अब छोटू को जब ये पता चल गया था कि उसकी मां जान कर ये सब उसके साथ कर रही है तो उसके मन में भी विश्वास बढ़ा, उसे लगने लगा कि मां अब उसपर गुस्सा नहीं करेगी, तो उसने अपना दूसरा हाथ भी सिर के नीचे से निकाला और उसे पुष्पा की गर्दन के नीचे से निकालते हुए दूसरी ओर ले गया और गर्दन के बगल से निकालते हुए दूसरी चूची पर रख दिया, अब छोटू के दोनों हाथ उसकी मां की दोनों चुचियों पर थे, और इस अनुभव से वो पागल सा होने लगा, और दोनों चुचियों को उत्तेजना के वेग में आते हुए मसलने लगा,
दूसरी चूची पर भी बेटे का हाथ पाकर तो पुष्पा का बदन डोलने लगा, उसकी कमर भी धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी,
जो हाथ उसका पेट पर था वो सरकते हुए नीचे जाने लगा और कब पेटिकोट के ऊपर से वो अपनी चूत को सहलाने लगी उसे खुद पता ही नहीं चला, वो तो बस अपने बदन की गर्मी को कम करने के लिए सारे जतन कर रही थी,
चूत पर अपनी उंगलियों का स्पर्श होते ही पुष्पा के पूरे बदन में बिजली दौड़ गई, उसका बदन कांपने लगा यहां तक कि छोटू के लंड पर भी उसकी पकड़ ढीली हो गई, जो मां अपने बेटे को हवस और उत्तेजना के जादू से बचाना चाहती थी वो स्वयं ही उस जादू के आगे बेवश हो कर अपने बदन की उत्तेजना और हवस शांत करने का भरसक प्रयास करने लगी,
सीना और उठकर छोटू के हाथों में समाने लगा, तपते होंठ कांपने लगे,
छोटू के हाथ लगातार मां की चुचियों का मर्दन कर रहे थे वहीं छोटू की आंखें अपनी मां के सुंदर चेहरे पर टिकी थीं, चांद की चांदनी में वो मां के मुखड़े पर बदलते भावों को साफ देख पा रहा था, तपते होंठों का कंपन जिन पर बार बार पुष्पा की जीभ आती और उन्हें नम करने का प्रयास करती, छोटू से ये देख कर स्वयं पर से नियंत्रण खो गया और उसने ऐसा कदम उठा लिया जो होश में वो कभी उठाने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, छोटू ने अपना चेहरा आगे बढ़ा कर अपने होंठ अपनी मां के रसीले कामुक तपते होंठो से मिला दिए, और जोश में आते हुए उन्हें चूसने लगा, पुष्पा को भी जैसे ही होंठों पर बेटे के होंठों का स्पर्श हुआ उसके पहले से तपते बदन में मानो और गर्मी भर गई, और उसके होंठ अपने आप खुल गए और स्वयं को अचम्भित करते हुए वो भी अपने बेटे के होंठों को चूसने लगी, छोटू तो अपनी मां का साथ पाकर फूला नहीं समा रहा था और पागलों की तरह उनके होंठों को चूस रहा था, पुष्पा भी वासना में इस कदर डूब गई की अपने ही बेटे के साथ प्रेमी की तरह चुम्बन कर रही थी, छोटू मां के होंठों को चूमते हुए उसकी दोनों चूचियों को लगातार मसल रहा था, साथ ही उसका लंड जो कि पुष्पा की मुठ्ठी से आज़ाद हो चुका था उसे अपनी कमर हिला हिला कर पुष्पा के नंगे पेट पर घिस रहा था।
पुष्पा का हाथ जो छोटू के लंड से खाली हुआ था वो भी सीधा उसकी जांघों के बीच पहुंचा और सीधा पेटिकोट पर पड़ा और अगले ही पल वो पेटिकोट को ऊपर खींचने लगी, पेटीकोट को अगले ही पल ऊपर खींचते हुए पुष्पा ने अपने हाथ को पेटिकोट के अंदर जांघो के बीच घुसाया और अपनी नंगी चूत पर अपनी उंगलियों का स्पर्श कराया, और गीली चूत को तुरंत ही घिसने लगी,
चूत को स्पर्श मिलते ही पुष्पा का बदन ऐंठने लगा उसकी कमर ऊपर नीचे होने लगी, उसका सीना भी अकड़कने लगा, उसके होंठों की पकड़ छोटू को अपने होंठों पर बढ़ती हुई महसूस हुई और जिससे उसे भी और जोश मिला और वो भी अपनी कमर आगे पीछे कर अपने लंड को पुष्पा की कमर और गांड पर घिसने लगा,
पुष्पा की चूत से उंगलियों का परिचय होते ही चूत ने उंगलियों के लिए चूत की चासनी परोस दी, और पुष्पा कांपते हुए स्खलित होने लगी, वो तो अच्छा था उसके होंठ छोटू के होंठों से बंद थे नहीं तो उसकी सिसकियां बाहर चबूतरे तक सुनाई देती,
छोटू ने भी अपनी मां को स्खलित होते महसूस किया तो उसके मन में भी ये विचार आया कि उसकी मां उसकी वजह स्खलित हो रही है, और बस इतना काफी था उसे भी उसके चरम पर पहुंचाने के लिए,
दोनों मां बेटे एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए स्खलित हो रहे थे, और दोनो के ही जीवन का ये सबसे ताकतवर स्खलन था, छोटू के लंड ने पिचकारी मार कर पुष्पा के पेट और कमर को रस से रंग दिया, वहीं पुष्पा का रस भी पेटिकोट और उसकी उंगलियों पर था और अपनी अलग कहानी कह रहा था, स्खलित होने के बाद दोनों के होंठ अलग हुए, पुष्पा को तो लग रहा था उसके बदन में जान ही नहीं बची, उसके मन में बहुत से विचार चल रहे थे पर उन पर ध्यान देने की शक्ति नहीं मिल पा रही थी, वहीं छोटू तो अपनी मां से चिपक कर सो भी चुका था, पुष्पा के बदन से जैसे ही हवस रस बन कर चूत की मोरी से निकली तो वास्तविकता का साफ पानी दिखने लगा,
पुष्पा का तो सिर चकराने लगा ये सोच कर कि उसने आज क्या महापाप कर दिया, अपने ही बेटे के साथ ऐसी हरकत, उसे खुद से घिन आने लगी, उसने एक नजर छोटू पर डाली पर वो सो चुका था, पुष्पा के मन में एक साथ लाख विचार आने लगे, एक पल सोचती कि कैसी मां है तू, तो अगले पल सोचती मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं मेरे जैसी पापी को तो मर जाना चाहिए, पर इतनी हिम्मत भी उसमें नहीं थी, तभी उसे अपनी कमर से कुछ नीचे सरकने का आभास हुआ तो उसे याद आया कि छोटू का रस उसकी कमर और पेट पर अब भी है वो तुरंत उठी और खाट से उतर कर नीचे बैठ गई, उसने तुरंत सिरहाने से अपनी साड़ी उठाई और अपने पेट कमर और बदन को पोंछने लगी और खुद को कोसते हुए उसकी आंखों में पानी आ गया, खुद को मन ही मन गालियां देते हुए, अपने आप पर घिन करते हुए वो खुद को पोंछ रही थी, आंखों से लगातार अश्रु धारा बह रही थी, खाट के नीचे बैठे हुए कुछ देर रोती रही, फिर खुद को समझाया, अपने कपड़े सही किए, छोटू का कच्छा भी लंड पर चढ़ाया और फिर साड़ी बांधी पर उसका मन फिर से छोटू के बगल में सोने को नहीं मान रहा था इसलिए वो एक चादर को जमीन पर ही बिछा कर लेट गई और सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।
सुबह तड़के ही फुलवा की हमेशा की तरह आंख खुल गई और उठते ही अपने पूर्वजों और पृथ्वी को प्रणाम कर वो बिस्तर से उठी और उठ कर ज्यों ही नित क्रिया के लिए वो आगे बढ़ती उसकी नजर छोटू की खाट पर पड़ी और फिर बगल में सोती हुई पुष्पा पर, पुष्पा को नीचे सोते देख फुलवा का पारा चढ़ने लगा, इस बहुरिया से एक काम नहीं होता बाबा ने बोला था साथ सोने को पर ये महारानी नीचे सो रही हैं, ऊपर से अगर कोई कीड़ा मकोड़ा काट ले तो और आफत, सोचते हुए फुलवा सीधा पुष्पा की ओर बढ़ गई, और उसके पास जाकर उसे हिलाकर जगाया तो पुष्पा चौंकते हुए उठी,
फुलवा: ए बहू नीचे क्यों सो रही है, लल्ला की साथ सोने को कहा था ना,
पुष्पा: आएं? का? मैं? अम्मा?
पुष्पा तो समझ नही पा रही थी क्या बोले वो गहरी नींद से उठी थी, जो कि फुलवा भी समझ रही थी इसलिए फुलवा ने सोचा अभी रहने देती हूं दिन में बात करती हूं इससे,
फुलवा: चल ऊपर सो जा खाट पर।
पुष्पा भी फुलवा की बात मान तुरंत ऊपर लेट कर सो गई।
फुलवा ने सोचा चलो ये अभी समय है बाबा का बताया हुआ टोटका भी करना है ये सोच वो कमरे की ओर बढ़ गई।
अभी ठीक से सुबह भी नहीं हुई थी कि गांव के सम्मान नीय पुड़िया बाबा यानी केलालाल जी अपनी कुटिया से निकल कर लपक कर चले जा रहे थे, कदमों में तेजी साफ दर्शा रही थी कि कहीं जाने की जल्दी थी, लपक कर चलते हुए वो जल्दी ही नदी की ओर पहुंचे फिर एक पेड़ की आड़ में झांक कर देखा पर सामने देख कर थोड़े निराश हुए फिर मन में कुछ और सोचा और दबे पांव आगे बढ़ते हुए पेड़ों की ओट लेकर आगे बढ़े और फिर एक जगह जाकर रुक गए और फिर एक पेड़ से बड़ी सावधानी से इधर उधर देखते हुए आगे छुप कर देखने लगे और जो दृश्य सामने देखा उसे देख कर उनकी आंखें चौड़ी हो गई,
सामने थी बिल्कुल नंगी फुलवा पानी से भीगी हुई, उसका भरा बदन देख बाबा की सांसें भारी होने लगीं, ऊपर से नीचे तक बाबा फुलवा के बदन को निहारने लगे, सांवले सुडौल कंधों के नीचे पपीते से भी बड़ी बड़ी चूचियां थीं, पपीता क्या तरबूज भी कह सकते थे, गीली होकर चांद की हल्की रोशनी में दोनों चूचियां कार की बत्ती की तरह चमक रहीं थी, चूचियों के नीचे मांसल हल्का बाहर को निकला हुआ पेट जिसके बीच गहरी बड़ी नाभी थी और उसके नीचे झांटों का झुरमुट।
फुलवा का कामुक बदन बच्चे से बूढ़े किसी के भी लंड को उठाने लायक था और उसकी स्वीकृति खुद बाबा का लंड उनकी धोती के अंदर से दे रहा था, जिसे धोती के ऊपर से ही मसलते हुए वो मन ही मन बोले: अःह्ह्ह्ह् फुलवा रानी इस उमर में भी क्या जलवे हैं तेरे, अह्ह्ह्ह मज़ा आ गया, झूठ का टोटका बताना सफल हो गया,
बाबा ये सब सोच ही रहे थे कि फुलवा घूम गई और बाबा को फुलवा के मटके के आकार के चूतड़ आ गए जिन्हें देख बाबा ने अपना लंड बाहर निकाल लिया, और उसे देख सहलाने लगे।
फुलवा बाबा के कहे अनुसार अनुष्ठान करने लगी, पहले पेड़ की पूजा की फिर बाबा के कर अनुसार पेड़ की जड़ में झुककर माथा टेका और वैसे ही मंत्र पढ़ने लगी, झुकने से उसके चूतड़ खुल कर उसकी गांड के छेद और बालों से भरी चूत के दर्शन होने लगे, जिन्हें देख बाबा की बैचैनी और बढ़ गई और उन्होंने अपने कड़क होते लंड को धोती के बाहर निकाल लिया, फुलवा वैसे ही झुकी हुई बाबा ने जो मंत्र बताया था वो जपने लगी, बाबा उसे देखते हुए अपना लंड हिलाने लगे, तभी आंख के कोने से बाबा को कुछ दिखा और उन्होंने तुरंत उस ओर देखा तो चौंक गए, एक साया जिसने अपने को गमछे से ढंक रखा था फुलवा की ओर बढ़ रहा था, बाबा को उसका चेहरा नहीं दिख रहा था, क्योंकि चेहरे पर गमछा बंधा था धीरे धीरे वो साया फुलवा की ओर बढ़ने लगा पर फुलवा तो इस सब से बेखबर होकर मंत्र जपने में लगी हुई थी, बाबा की सांसें तेज़ हो रही थी ये सोच कर कि ये कौन है और क्या करने वाला है, वो साया धीर से फुलवा के ठीक पीछे पहुंच गया और बाबा ने देखा कि फुलवा के पीछे घुटनो पर बैठ भी गया, पर बाबा को सिर्फ उसकी पीठ दिख रही थी इसलिए बाबा ने तुरंत अपनी जगह किसी तरह बदली और आहिस्ता आहिस्ता वो एक तरफ आ गए और देखा तो चौंक गए वो साया फुलवा के बिल्कुल पीछे बैठ कर उसके चूतड़ों को निहारते हुए अपना लंड बाहर निकाल कर सहला रहा है, उसका लंड भी बिल्कुल कड़क है इसी बीच वो थोड़ा सा आगे सरकता है साथ ही अपने लंड पर थूक लगाता है, और फिर बाबा को अचंभित करते हुए वो साया अपने लंड को पकड़ कर उसका टोपा फुलवा की बालों भरी चूत के मुहाने पर लगाता है और फिर इससे पहले बाबा या स्वयं फुलवा कुछ कर पाते या उसे रोकते वो फुलवा की कमर थाम कर एक जोरदार धक्का लगाता है और अपना लंड फुलवा की चूत में ठूंस देता है,
जिसके साथ ही फुलवा की एक तेज़ चीख जंगल में गूंज जाती है वो तुरंत अपना चेहरा घुमा कर पीछे देखने की कोशिश करती है तो उसे गमछे में लिपटा एक चेहरा दिखता है और वो सिर्फ उसकी आंखें देख पाती है, वो अगले ही पल उठने का प्रयास करती है पर उस साए के सख्त हाथ उसकी कमर को थाम कर उसे वैसे ही रोक कर रखते हैं वो अपना लंड बाहर खींचता है और फिर से जड़ तक ठूंस देता है और ऐसे ही करते हुए फुलवा को चोदने लगता है, फुलवा के मुंह से हर धक्के पर आह्ह्ह्ह्ह निकलने लगती है, बाबा भी अपने सामने फुलवा की चुदाई देख कुछ नहीं कर पाते बल्कि अपना लंड हिलाने लगते हैं, वो साया लगातार तगड़े धक्कों से फुलवा की परिपक्व चूत को चोदने लगता है,
फुलवा को जवानी से अधेड़ उमर तक खूब चोदा था पर नाती पोता बढ़े होने लगे तो उसने स्वयं ही ये सब कम कर दिया था, उसके पति सोमपाल तो अभी भी उसे कभी कभी पकड़ लेते थे पर वो ही समाज का और उमर का उलाहना देकर टाल देती थी, इसलिए आज जब अचानक से इतने दिनो से सूखी चूत में लंड का प्रवेश हुआ तो उसे आरंभ में तकलीफ हुई पर अब लगातार लंड के घर्षण ने उसकी चूत की मांसपेशियों को जाग्रत कर दिया और उसकी चूत भी अब गीली होने लगी और अपने पानी से उस अनजान साए के लंड को चुपड़ने लगी,
चूत के गीले होने से लंड और अच्छे से अंदर बाहर होने लगा, और न चाहते हुए भी फुलवा को इतने दिनों बाद चुदाई का आनंद आने लगा, बदन में इतनी तरंगे उठने लगीं, उसके मुंह से न चाहते हुए भी आह्ह्ह्ह अअह्ह्ह्ह की कामुक आहें निकलने लगी,
वहीं वो साया तो उसकी कमर थामे लगातार दनादन धक्के लगा रहा था हर पल के साथ उसके धक्कों की गति और बढ़ती जा रही थी,
और कुछ ही पलों में वो साया गुर्राने लगा और उसने अपना लंड जड़ तक फुलवा की चूत में गाड़ दिया और फिर अपना रस छोड़ने लगा,
फुलवा ने भी जब अपनी चूत की वर्षों से सूखी माटी पर रस की बारिश होती देखी वो भी एक अनजान मर्द के लंड से तो इस विचार को वो भी संभाल नहीं पाई और उस साए के साथ ही स्खलित होने लगी, अपना रस फुलवा की चूत में भरने के बाद उस अनजान साए ने अपना लंड उसकी चूत से निकाला और फिर कुछ ही पलों में पेड़ों के पीछे गायब हो गया, फुलवा को जब तक होश आया तब तक तो वो गायब हो चुका था वहीं बाबा के लिए भी उसकी गति का पीछा करना असंभव ही था, और वो भी तब था न जब वो पीछा करते वो खुद पेड़ के तने से टिके हुए थे और अपने लंड की पिचकारी घास पर छोड़ रहे थे, अपने लंड से रस निचोड़ने के बाद बाबा का दिमाग चलने लगा और वो तुरंत वहां से निकल लिया लपकते हुए, ये सोचते हुए कि निकल ले बेटा नहीं तो फुलवा ने या किसी और ने तुझे इस ओर देख लिया तो बिना मजे लिए ही तू फंस जायेगा।
फुलवा कुछ पल वैसी ही पड़ी रही चूत से अनजान मर्द का रस बह कर बाहर टपक रहा था, वैसे तो इस उमर में चूत में रस गिराने से कोई खतरा नहीं था पिछले साल से ही उसके मासिक धर्म आने बंद हो गए थे, पर सूखी चूत पर अचानक से हुई बारिश ने उसके मन को भी भीगा कर रख दिया था, अपने आप को संभालने के बाद फुलवा ने मंत्रों को पूरा किया, और फिर पेड़ की ओट में कपड़े पहनकर घर की ओर चल दी,
जारी रहेगी।