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अध्याय 16
लल्लू: हां यार ये तो सही कहा तूने। और दोनों ही कम नहीं हैं।
भूरा: पर तुझे क्या लगता है छुटुआ कभी हमारे जितना खुल पाएगा?
लल्लू: खुलेगा नहीं तो खोलना पड़ेगा, साले को अपने साथ लेना पड़ेगा।
भूरा: कुछ योजना बनानी पड़ेगी।
लल्लू: हां बनायेंगे पर मेरा फिर से खड़ा हो गया मां के बारे में सोच कर एक बार और हिलाते हैं।
दोनों फिर से एक एक बार अपना पानी गिराते हैं और फिर बातें करते हुए गांव के अंदर की ओर चल देते हैं। अब आगे...
चूल्हा चौका हो चुका था और लता अभी साफ सफाई कर रही थी, इधर आज लल्लू खाना खाने के बाद जो गांव में हांडने निकल जाता था वो घर पर ही था और छुप छुप कर अपनी मां के बदन को निहार रहा था, उसे आज पता चल रहा था कि उसकी मां कितनी कामुक है, इतना भरा हुआ बदन है कमर तो पूछो ही मत और ब्लाउज़ के अंदर कितनी मोटी मोटी चूचियां हैं, जबसे उसने अपनी मां की गांड आज सुबह देखी थी उसका तो मानो सोचने का तरीका ही बदल गया था, सुबह से ही उसका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था।
लता: तुझे का हुआ आज अभी तक घर में है वैसे तो तुरंत निकल जाता है?
लता ने चूल्हा साफ करते हुए कहा तो लल्लू अपने खयालों से बाहर आया और बोला: वो कुछ नहीं मां बस ऐसे ही। बाहर घूमने से कोई फायदा थोड़े ही है।
लल्लू अपनी मां के फैले हुए चूतड़ों पर आँखें लगाते हुए बोला,
लता: अरे वाह आज तो बड़ी समझदारी दिखा रहा है।
नंदिनी: हां मां समझदारी तो दिखाएगा ही, अब बड़ा जो हो रहा है।
नंदिनी दूसरी ओर से लल्लू को गुस्से से देखते हुए बोली, तो लल्लू की नज़र अपनी बड़ी बहन से मिली और फिर तुंरत झुक गईं।
लता: हां बड़ा तो होगा ही, तभी तो ब्याह करेगा और मेरे लिए बहुरिया लाएगा, और मुझे थोड़ा आराम मिलेगा।
लल्लू: अरे मां तुम भी न कहां ब्याह करवाने लगीं, और रही बात काम की तो मुझे बता दिया करो न मैं कर दूंगा।
लता: अरे देख तो नंदिनी इसकी तबीयत तो ठीक है न? ये घर के काम करवाएगा, जो गिलास भर न उठा के देता हो,
लल्लू: हां मां पर अब से करवाया करूंगा तुम देख लेना।
नंदिनी: अच्छा तो जा फिर अंदर वाला बिस्तर और ये सब खाट जो बिछी पड़ी हैं वो सब समेट।
लल्लू तुरंत उठता है और खाट के पास जाकर चादर उठा कर घड़ी करने लगता है।
नंदिनी और लता उसे देख हैरान भी हो रही होती हैं और खुश भी।
ऐसा ही हाल कुछ भूरा के घर में भी था आज उसकी नजर भी अपनी मां के भरे हुए बदन से नहीं हट रही थी, वहीं काम करते हुए भी रत्ना के दिमाग में रात में हुआ हादसा चल रहा था, उसे बेहद ग्लानि हो रही थी उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, राजू और उसके बाप सुबह का नाश्ता कर घर से निकल गए थे अब घर पर बस भूरा और रत्ना थे, भूरा को भी अपनी मां आज कुछ परेशान दिख रहीं थीं,
भूरा: क्या हुआ मां कोई परेशानी है क्या आज तुम कुछ परेशान लग रही हो,
भूरा का ये सवाल सुन कर रत्ना थोड़ा घबरा गई और खुद को संभालते हुए बोली: नहीं तो लल्ला ऐसा कुछ नहीं है।
भूरा: नहीं मां मैं जानता हूं तुम झूठ बोल रही हो।
रत्ना थोड़ा और डर जाती है और कहती है: झूठ कैसा झूठ?
भूरा: यही कि तुम परेशान हो और उस परेशानी की वजह क्या है वो भी जानता हूं।
ये सुन कर तो एक पल को रत्ना का सिर घूम जाता है उसे लहता है कि भूरा को रात के बारे में पता है क्या, कैसे, क्या उसने मुझे देख लिया?
एक साथ बहुत से खयाल उसके मन में घूमने लगते हैं, और वो चुप होकर ज्यों के त्यों रुक जाती है।
भूरा: मैं जानता हूं मां कि रानी दीदी के ब्याह के बाद तुम अकेली पड़ गई हो घर का सारा काम तुम पर आ गया है, और करते करते तुम थक जाती हो।
ये सुनकर रत्ना के मन में शांति पड़ती है और वो हल्की सी झूठी मुस्कान होंठो पर लाकर कहती है: नहीं लल्ला अब घर का काम तो मेरा ही है, इसमें क्या परेशानी।
भूरा: जानता हूं मां पर तुम कहो न कहो पर कभी कभी तो तुम भी परेशान हो जाती होगी, पर अब से चिंता मत करो अब मैं तुम्हारी मदद किया करूंगा काम में,
रत्ना को अपने बेटे की बात सुन हैरानी होती है और थोड़ा अच्छा भी लगता है
रत्ना: अरे लल्ला तू क्यों करेगा घर के काम? तू मत परेशान हो मैं कर लूंगी।
भूरा: क्यों नहीं कर सकता तुम मेरी प्यारी मां हो और अपनी मां का हाथ बटाने में क्या परेशानी।
भूरा के मुंह से ये सब सुनकर रत्ना को बहुत अच्छा लग रहा था, इतने गहरे मानसिक तनाव के बीच भूरा की सांत्वना भरी बातें उसके मन को पसीज रहीं थीं, वैसे भी रत्ना बहुत ही जल्दी घबराने और डरने वाले स्वभाव की थी, ऐसे स्वभाव वाले व्यक्ति को हमेशा ही किसी के सहारे या सांत्वना की आवश्यकता होती है जो उनका साथ दे या जो कहे कि सब ठीक है। और ऐसे में रत्ना को वो सांत्वना अपने बेटे से मिल रही थी तो उसका मन बहुत से भावों से भर गया,
रत्ना: सच्ची लल्ला?
भूरा: हां मां तुम्हारी कसम।
भूरा ने भी आगे होकर अपनी बाहें मां के बदन के चारों ओर फैलाकर उसको प्यार से गले लगाते हुए कहा,
अपने बेटे के सीने से लग कर रत्ना को एक अचानक से शांति मिली, उसे एक सुरक्षा का भाव मिला अपने बेटे की बाहों में, उसके मन के भाव उमड़ पड़े। रात से मानसिक तनाव को उसके वेग को कैसे भी उसने रोक रखा था वो बांध टूट पड़ा और अचानक से ही वो अपने बेटे के सीने से लग कर फूट पड़ी और रोने लगी।
अपनी मां का यूं रोना देख भूरा घबरा गया और परेशान हो गया उसे समझ नहीं आया कि वो क्यों रो रही है।
भूरा: अरे मां क्या हुआ तुम्हें क्यों रो रही हो? बताओ ना मुझे चिंता हो रही है।
अब रत्ना उसे बताए तो क्या बताए इसीलिए बिना बोले बस रोती रही और अपने दुख को आंसुओं के रास्ते बहाने लगी।
भूरा: मां मत रो मां, अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है, मैं हूं न मैं हूं हमेशा तुम्हारे साथ, तुम्हे कोई परेशानी नहीं होने दूंगा,
भूरा को लग रहा था कि घर के काम बहुत अधिक होने से उसकी मां के सब्र का बांध आज टूट पड़ा और इसलिए वो रो रही है, तो उसने भी अपनी बातों से अपनी मां को अपने सीने से लगाए हुए ढांढस बंधाना शुरू कर दिया, अभी उसके मन में अपनी मां के लिए कोई भी कामुक विचार नहीं थे वो बस चिंतित था,
रत्ना को अपने बेटे के साथ उसकी बातें उसके सीने से यूं लग कर रोना बहुत अच्छा लग रहा था, उसे ऐसा भाव दे रहा था कि वो अपने बेटे की बाहों में सुरक्षित है उसे किसी भी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
धीरे धीरे उसके आंसू हल्के होने लगे उसका सुबकना भी बंद हो गया, भूरा उसकी पीठ को सहलाते हुए अब भी उसे सांत्वना दे रहा था उसे समझा रहा था, रत्ना अब चुप हो चुकी थी पर उसका मन नहीं हो रहा था अपने बेटे से अलग होने का,
भूरा: अब तुम ठीक हो मां?
रत्ना ने ये सुन कर अपना चेहरा उसके सीने से हटाया और उठाकर हल्की सी मुस्कान के साथ भूरा को देखा, अपनी मां की प्यारी सी मुस्कान देख कर भूरा के मन को एक अथाह शांति मिली, उसने प्यार से चेहरा झुकाकर अपनी मां के माथे को चूम लिया, रत्ना अपने बेटे के इस प्यार से शर्मा गई और फिर से अपना चेहरा उसके सीने में छुपा लिया, अब भूरा के मन से मां की चिंता हटी तो तुरंत ही मन के कमरे में कामुक विचार घुस गए।
उसे फिर से सुबह का वो दृश्य दिखाई देने लगा, और आंखों के सामने मां के नंगे चूतड़ आ गए, बदन में उत्तेजना होने लगी एक तो वो दृश्य और फिर अभी उसकी मां उससे चिपकी हुई जो थी, उसे डर भी लग रहा था कि अपनी मां के इतने पास होने पर भी वो ऐसा सोच रहा है पजामे में उसका लंड भी कस चुका था, उसे डर था कि कहीं उसकी मां को न पता चल जाए कि उसका लंड खड़ा है, पर उसका डर और बढ़ता इससे पहले ही रत्ना ने अपना सिर उसके सीने से हटाया और फिर दूर हो गई।
रत्ना: चल अब काम करने हैं बहुत लाड़ हो गया।
भूरा: हां चलो न मैं भी मदद करता हूं,
रत्ना: चल आज बहुत से काम करवाऊंगी तुझसे।
दोनों मां बेटे काम में लग जाते हैं।
इधर छोटू आज काफी देर से उठा था, और उस वजह से उसे आज अकेले ही खेत में जाना पड़ा था हगने के लिए, वैसे भी उसका मन भी कुछ पल अकेले रहने का था, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि रात भर उसने अपनी सगी मां को चोदा है, अपना लंड उस चूत में डाला है जिससे वो कभी निकला था, ये सोच सोच कर उसका दिमाग़ घूम रहा था, ऐसा मज़ा उसे कभी नहीं आया था, जितना अपनी ही मां की चूत को चोदकर आया था वैसे तो उसने इससे पहले चूत सिर्फ छुप कर ही देखी थी उसने सोचा भी नहीं था कि उसकी पहली चुदाई उसकी मां के साथ ही होगी, और वो भी ऐसी होगी। हगते हुए उसके मन में यही सब चल रहा था हगने के बाद वापिस घर की ओर चलते हुए उसे रास्ते में जो अपनी उम्र के लड़के मिल रहे थे वो खुद की उनसे बड़ा और परिपक्व महसूस कर रहा था, और किस्मत वाला भी, और करे भी क्यों ना आख़िर उसके जैसी किस्मत हर किसी की कहां थी?
हर औरत को अब वो एक अलग ढंग से देख रहा था, अपनी किस्मत पर मन ही मन मुस्कुराते हुए वो घर की ओर चला आ रहा था, घर पहुंचा तो उसकी आँखें उसकी मां को ढूंढने लगी, जो उसे खाना बनाती दिखी, वो जाकर चूल्हे के पास बैठ गया और अपनी मां को एक प्रेमी की तरह देखने लगा, इसी बीच उसकी मां ने उसे देखा और बोली: आ गया लल्ला ले, चाय ले ले, परांठे खाएगा?
छोटू: वो हां मां?
पुष्पा: जा टोकरी से प्लेट लेकर आ अभी देती हूं,
छोटू अपनी मां के कहे अनुसार टोकरी से प्लेट लेने चल दिया और चलते हुए वो सोच में था क्योंकि उसकी मां तो ऐसे बर्ताव कर रही है जैसे कुछ हुआ ही नहीं, कहां उसे लगा था कि उसके और मां के बीच सब कुछ बदल गया पर मां तो कुछ और ही दिखा रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं, वो सोचने लगा कि बड़े बुजुर्ग सही ही कहते हैं स्त्री के मन की बात कोई नहीं जान सकता, पर मैं क्यों चिंता कर रहा हूं मुझे तो बस रात को मां अपनी चूत की सेवा करने दें दिन में चाहे कैसे भी करें, ये सोचते हुए वो परांठे लेकर बैठ गया। धीरे धीरे नाश्ता करके घर के मर्द घर से निकलने लगे छोटू ने भी नाश्ता कर लिया तो उसने सोचा अब घर पर तो कुछ होने वाला नहीं है लगता नहीं मां कुछ करना तो दूर उसके बारे में बात भी करेंगी तो इसलिए वो भी घर से निकल गया।
इधर लल्लू अपनी मां और बहन के साथ मिलकर पूरी लगन से घर के काम करवा रहा था, तो नंदिनी ने अपनी मां से कहा ये काम करवा रहा है तो मैं नहा लेती हूं, और फिर वो नहाने चली गई, नहाने के बाद नंदिनी सिलाई सीखने के लिए निकल गई, अब घर पर सिर्फ लल्लू और उसकी मां थे, काम लगभग निपट चुके थे,
लता: हो गए काम लल्ला सारे, अब तू भी नहा ले।
लल्लू: हां मां नहा लेता हूं तुम क्या करोगी,
लता: मैं भी बस कुछ कपड़े हैं इन्हें भीगा कर निकाल दूं फिर नहा लूंगी तू नहा ले तब तक,
लल्लू उसकी बात मान कर पटिया पर कपड़े उतार कर नहाने लगता है कुछ पल बाद ही लता भी पटिया पर कपड़े लेकर आ जाती है और एक बाल्टी में घुलने वाले कपड़े डाल देती है और फिर अपनी साड़ी भी उतार कर उसी बाल्टी में डाल देती है और लल्लू की नज़र तुरंत अपनी मां के बदन पर टिक जाती है, लता तो रोज़ ही ऐसे ही कपड़े धोती थी ब्लाउज़ और पेटीकोट में और आज भी बेटे के सामने क्या शर्माना था इसीलिए आज भी अपनी साड़ी को उतार कर बाल्टी में डाल दिया और नल चलाकर बाल्टी भरने लगी,
लल्लू तो अपनी मां को आज वैसे भी अलग दृष्टिकोण से देख रहा था और अभी मां के गदराए बदन को पेटिकोट और ब्लाउज़ में देख तो उसका बदन सिहरने लगा वो उसके हाथ धीरे हो गए, मां का गदराया पेट और कमर देख कर ब्लाउज़ में कसी हुई मोटी चुचियों को देख कर लल्लू का लंड चड्डी में सिर उठाने लगा, ऊपर से लता झुक कर नल चला रही थी तो उसकी मोटी सी गांड और फैल कर बाहर निकल गई थी साथ ही नल चलाने की वज़ह से ऊपर नीचे हो रही थी ये देख देख तो लल्लू का हाल बुरा होने लगा, उसका लंड चड्डी में पूरी तरह से तन चुका था और चड्डी भी गीली थी तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे छुपाए,
बाल्टी भरते ही लता ने अपना पेटीकोट का नाड़ा ढीला किया और उसे छाती तक चढ़ा लिया और अपने मुंह में एक छोर दबा लिया और बड़ी आसानी से पेटिकोट के अंदर से ही ब्लाउज़ खोला और उसे भी बाल्टी में डाल दिया, और फिर पेटिकोट को अपनी छाती के ऊपर बांध दिया, ये ऐसी कला है जिसमें हर महिला कुशल होती है, लल्लू के सामने जैसे ही ब्लाउज बाल्टी में गिरा उसने तुरंत आँखें उठा कर ऊपर देखा और अपनी मां को सिर्फ पेटीकोट में देख कर वो उत्तेजना में तड़प उठा, उसका लंड चड्डी में झटके खाने लगा जिसे वो किसी तरह से छुपाए हुए था,
लता: अरे लल्ला कितनी देर नहाएगा अभी मुझे भी नहाना है।
लल्लू: हां हां मां बस हो गया,
लल्लू खुद को संभालते बोला, और लोटे से पानी भरकर अपने बदन पर डालने लगा, लल्लू को डर था कि कहीं मां उसका खड़ा लंड न देख लें, इसलिए वो थोड़ा घूम कर नहाने लगा, इसी बीच लता की नज़र लल्लू की पीठ पर पड़ी,
लता: तू इतना बड़ा हो गया पर नहाने का सहूर नहीं आया तुझे देख पीठ पर मैल जमा पड़ा है।
लल्लू: कहां मां पीठ पर दिखता भी नहीं है और न ही हाथ पहुंचते हैं,
लता: रुक अभी, मैं कर देती हूं
ये कह कर लता उसके पीछे बैठ कर उसकी पीठ घिसने लगती है वहीं अपनी मां के हाथों को महसूस कर लल्लू के बदन में सिहरन होने लगती है, लता उसकी पीठ पर लगे मैल को घिस घिस कर उतारने लगती है,
लता: देख न जाने कब का जमा हुआ है इतना घिसना पड़ रहा है,
लल्लू: क्या करूं मां पीठ पर दिखता तो है नहीं इसीलिए जम गया है।
लता: चल आगे से मुझसे साफ करवा लिया करना।
ले हो गया साफ अब धो ले,
लल्लू ने तुरंत ही लोटे में पानी लिया और अपनी पीठ पर डालने लगा जो कि पीछे बैठी लता पर भी गिर रहा था, पीठ धोने के बाद लल्लू सावधानी से अपनी मां की ओर ही पीठ किए हुए ही खड़ा हुआ और फिर तुंरत अंगोछे को अपनी कमर से लपेट कर गीली चड्डी को उतारा और फिर अंगोछे को कमर से लपेट लिया और फिर मूड कर बैठ गया और अपनी उतारी हुई चड्डी को धोने लगा, लता भी बाल्टी से गिले कपड़े निकाल कर धो रही थी, चड्डी धोते हुए लल्लू की नज़र सामने मां पर पड़ी तो उसकी आँखें जमीं रह गईं, क्योंकि गीले होने की वजह से पेटीकोट लता की चूचियों से चिपक गया था और उसकी चूचियों के आकार को बड़ी कामुकता से दर्शा रहा था, हल्के पीले रंग का होने के कारण वो हल्का पारदर्शी हो चुका था और लल्लू को अपनी मां की मोटी चूचियों के दर्शन भी हल्के हल्के हो रहे थे, उसका लंड तो मानो लोहे का हो चुका था, उसके हाथ उसकी चड्डी पर हल्का हल्का चल रहे थे क्योंकि उसका ध्यान तो मां की चूचियों पर था,
इधर लता की नज़र भी उसके हाथों पर पड़ी तो बोली: अरे कैसे धो रहा है ला मुझे दे दे मैं धो लूंगी,
और हाथ बढ़ाकर उसके सामने से चड्डी उठा ली, अब लल्लू के पास कोई कारण नहीं बचा था रुकने का तो उसे उठना पड़ा और वो उठ कर धुले हुए कपड़े पहनने लगा, पर उसकी नज़र बार बार अपने मां के बदन पर ही जा रही थी, उसके लंड का बड़ा बुरा हाल हो चुका था, इधर लता कपड़े धोने में व्यस्त थी, लल्लू ने कपड़े पहने ही थे कि किवाड़ बजने लगे,
लता: लल्ला देख तो द्वार पर कौन है, कोई बड़ा हो तो बाहर ही रोक दियो मैं नहा रही हूं ना,
लल्लू: ठीक है मां,
ये कह लल्लू द्वार पर गया और किवाड़ खोल कर देखा तो सामने छोटू खड़ा था,
लल्लू: और छोटू साहब कहां रहते हो तुम आजकल मिलते ही नहीं?
छोटू: मैं तो यहीं रहता हूं तू ही नहीं मिलता,
लल्लू: साले मैं और भूरा बुलाने जाते है तुझे तो अम्मा बोलती है तू सो रहा तेरी तबीयत खराब है, अब ये क्या लगा रखा है तूने?
छोटू: अरे वो,
इतने में पीछे से लता की आवाज़ आती है : अरे कौन है लल्लू?
लल्लू: छुटुआ है मां, मैं जा रहा हूं इसके साथ।
लता: अरे रुक जा थोड़ी देर मैं नहा लूं फिर चले जाना, दोनों आ जाओ थोड़ी देर बैठ जाओ घर में ही।
लल्लू: चल आजा।
दोनों अंदर आते हैं छोटू पटिया पर कपड़े धोती लता को देखता है और उसे प्रणाम करता है, सारे बच्चे एक ही उमर के थे तो ऐसे पेटिकोट में रहना दोनों के लिए ही कोई बड़ी बात नहीं थी,
लता: बैठ जा छोटू थोड़ी देर फिर चले जाना, नहा लूं मैं नहीं तो बीच में कोई आए तो किवाड़ खोलने की दिक्कत हो।
छोटू: अरे कोई बात नहीं ताई,
दोनों आंगन में ही बैठ जाते हैं लल्लू अब भी नजरें छुपा छुपा कर अपनी मां को देख रहा था वहीं छोटू की भी नज़र जब से ताई की गीली चुचियों पर पड़ी थी तो वो भी छुप छुप कर उन्हें ताड़ने के मौके ढूंढ रहा था, कुछ ही पलों में दोनों के पजामें में उनके लंड सिर उठा रहे थे, लल्लू का तो खैर बैठा ही नहीं था,
लल्लू चालाकी दिखाते हुए कुछ न कुछ बातें छोटू से किए जा रहा था ताकि उसे या मां को शक न हो और छोटू भी उसकी हर बात का जवाब दे रहा था पर देख दोनों ही लता के बदन को रहे थे,
लता: ए लल्ला ज़रा नल तो चला दियो आकर।
लता ने बोला तो लल्लू खड़ा हुआ और जाकर नल चलाने लगा तो लता कपड़ों की बाल्टी खिसका कर आगे हुईं और नल से निकलती धार के नीचे बाल्टी लगा दी इधर उसके आगे होने से लल्लू की नज़र अपनी मां के पिछवाड़े पर गई और एक बार को तो उसके हाथ से नल का हत्था ही छूट गया, लता का पेटिकोट पीछे से भी गीला था और भीग कर उसके चूतड़ों से चिपका हुआ था, पेटिकोट का कुछ हिस्सा तो उसके चूतड़ों की दरार में भी घुस गया था, लल्लू को तो लग रहा था मानों उसकी मां सुबह की तरह ही जैसे खेत में बैठी थी वैसी ही उसके बगल में नंगी बैठी है, पजामे में उसका लंड ठुमके मारने लगा, वो तो सीधा अपनी मां के पिछवाड़े को घूरने लगा,
आंगन से छोटू भी लता को देख रहा था फिर उसने नज़र ऊपर करके देखा तो लल्लू की नज़र को अपनी मां के पिछवाड़े की ओर पाया तो छोटू सोचने लगा: साला हरामी अपनी मां के पिछवाड़े को देख रहा है, फिर उसके मन में आया मैं उससे क्या ही कह सकता हूं वो तो बस देख ही रहा है मैने तो अपनी मां को चोदा भी है, ये सोच कर छोटू और उत्तेजित होने लगा,
इसी बीच लता उठी और घूम कर बाल्टी में रखे कपड़े निचोड़ने लगी जिसका असर ये हुआ कि अब उसका मुंह लल्लू की ओर हो गया,
लता: रुक जा लल्ला बाल्टी भर गई,
लल्लू का तो ध्यान ही नहीं था अपनी मां की आवाज़ सुनकर उसने नल रोका और खड़ा हो गया, क्योंकि अब उसकी मां का मुंह उसी की ओर था तो उसने खुद को संभाला और अपनी नजर मां के बदन से हटाई और उसने छोटू को देखा जो कि आंखें फाड़े टक टकी लगाकर उन दोनों की ओर देखा जा रहा था उसने सोचा ये क्यों पागलों की तरह देख रहा है तभी उसे अचानक से समझ आया कि घूमने की वजह से उसकी मां का पिछवाड़ा अब छोटू की ओर हो गया था मतलब छोटू मेरी मां के चूतड़ों को देख रहा है, पर ये सोचकर भी उसे गुस्सा नहीं आ रहा था बल्कि उत्तेजना हो रही थी,
इधर छोटू ने जब लता ताई के पेटीकोट में भीगे चूतड़ देखे तो उसका तो लंड हिलोरे मारने लगा, वो सोचने लगा ऐसा नज़ारा हो तो कौन अपने आपको रोक सकता है बेटा हो या बाप, मेरी मां होती तो मैं तो अब तक चोदने लगता, इसमें बेचारे लल्लू का क्या दोष वो तो बस देख ही रहा था।
छोटू ये सोचते हुए देखने में इतना खो गया था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब लल्लू आ कर उसके बगल में बैठ गया,
अब दोनों दोस्तों के सामने एक ही नजारा था, लल्लू सोच रहा था अब मैने भी तो इसकी मां और चाची के चूतड़ों को देखा है तो ये तो कपड़े के ऊपर से देख रहा है, दोनों को ही लता के बदन ने उत्तेजित कर दिया था, दोनों के ही लंड बिल्कुल तन कर खड़े थे,
इसी बीच लता कपड़े रखने के लिए झुकी तो और उसकी गांड फैल गई जिसका असर दोनों ही दोस्तों पर हुआ और दोनों के मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई, लता कुछ देर तक कपड़े निचोड़ती रही और दोनों ही उसे टक टकी लगाकर देखते रहे, कपड़े निचोड़ने के बाद लता ने अपनी साड़ी और पेटीकोट उठाया और बगल में कच्चे से स्नानघर में घुस गई, तब जाकर दोनों की नजर उसके बदन से हटी, लल्लू को ये तो समझ आ गया था कि छोटू भी उसकी मां के चूतड़ों को देख रहा था पर इसकी गलती भी क्या है ऐसे चूतड़ देख कर कौन खुद को रोक सकता है, वैसे इससे इतना तो समझ आ गया कि साला हरामी ये भी है मेरे और भूरा की तरह जब मेरे सामने मेरी मां के चूतड़ों को देख सकता है तो हमारा साथ भी दे सकता है, पर साले से बात कैसे करूं समझ नहीं आ रहा?
लल्लू अपनी उधेड़बुन में था तो छोटू ये सोच घबरा रहा था कि कहीं लल्लू ने उसे ताई के पिछवाड़े को घूरते हुए देख तो नहीं लिया, साला वैसे भी गुस्सा जल्दी हो जाता है क्या करूं?
दोनों ही अपनी अपनी सोच में लगे हुए थे, इतने में लता नहा कर निकली और बोली: अब जा सकते हो तुम लोग।
लल्लू ने अपनी मां की बात सुनी और फिर छोटू को बोला: चल।
छोटू भी उसके पीछे पीछे चल दिया।
सत्तू अपने घर में एक खाट पर लेता हुआ था और नंगे चित्रों वाली किताब को देख देख कर अपने लंड को सहला रहा था तभी बाहर किवाड़ पर कुछ आहट हुई तो उसने तुंरत किताब को तकिए के नीचे सरका दिया इतने में ही एक भरे बदन की औरत आंगन में प्रवेश करती है।
सत्तू: अब आई हो मां इतना टेम लगा देती हो तुम तो।
झुमरी: अरे वो वो तुझे तो पता है न औरतें बातों में लग जाती हैं तो रुकती कहां हैं।
सत्तू: अच्छा तुम वहां बातों में लगी रहो और मुझे अभी तक चाय भी नहीं मिली।
झुमरी: चढ़ा रही हूं तेरी चाय, ये नहीं कि खुद ही बना ले कभी सब काम मैं ही कर के दूं तुझे।
झुमरी चाय चढ़ाते हुए कहती है,
सत्तू: अरे मां तुम्हें पता है ना बाहर के सारे काम कर लेता हूं मैं बस घर के काम नहीं होते मुझसे।
सत्तू भी उठ कर अपनी मां के पास चूल्हे के बगल में आकर बैठ जाता है
झुमरी: तभी कहती हूं अब ब्याह करले, बहु आ जाएगी तो मुझे भी आराम मिल जाएगा, और तुझे भी बिस्तर पर चाय मिल जाया करेगी।
सत्तू: का मां तुम भी ऐसे थोड़े ही होता है ब्याह, उसके लिए लड़की चाहिए अच्छी सी और फिर बहुत सारा पैसा भी लगता है ब्याह में,
झुमरी: तो लड़की मैं ढूंढ लूंगी पैसा तू कमा।
दोनों हंसने लगते हैं,
सत्तू: पैसा कमाना है तभी तो शहर के सबसे ज़्यादा चक्कर लगाता हूं पूरे गांव में।
झुमरी: जानती हूं लल्ला, तूने ही तो सब संभाल रखा है,
झुमरी उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहती है,
सत्तू: अच्छा मां कल तुम खेत गई थी क्या?
ये सुनते ही झुमरी के चेहरे का रंग उड़ जाता है,
झुमरी: मैं न नहीं तो क्या क्या हुआ क्यों पूछ रहा है?
सत्तू: कुछ नहीं वो एक बार देखना था सब्जियों की क्या हालत है, चलो कोई नहीं आज मैं ही देख आऊंगा।
झुमरी: हां वो घर के काम से समय ही नहीं मिला पूरे दिन इसलिए नहीं जा पाई।
सत्तू: कोई बात नहीं मां मैं देख आऊंगा आज।
झुमरी: ठीक ले बन गई तेरी चाय,
झुमरी उसे चाय देती है और सत्तू चाय लेकर बापिस खाट पर बैठ जाता है वहीं झुमरी चूल्हे की ओर देखते हुए किसी सोच में डूब जाती है।
झुमरी का परिवार हमेशा से ही छोटा था सत्तू के बाप से ब्याह होकर आई थी तो घर में उसकी सास और उसके पति ही थे, ससुर पहले ही पधार गए थे उसके पति की बड़ी बहन थी उसका भी ब्याह हो चुका था, और अभी तो उसके घर में सिर्फ दो ही लोग बचे थे, उसके पति और सत्तू के बाप का निधन तो 8 साल पहले ही नदी में डूब कर हो गया था शव तक नहीं मिला था बेचारे का, तब तो सत्तू बहुत छोटा था फिर भी बेचारे को उमर से पहले बढ़ा होना पड़ा, खूब मेहनत की और अपनी मां का भरपूर साथ दिया था तब जाकर उन्होंने वो कठिन समय काटा था, यूं तो झुमरी सत्तू को दिखाती थी कि उससे अब मेहनत नहीं होती और उसकी उम्र हो चुकी है पर अभी उसकी उमर ही क्या था छत्तीस वर्ष, और बदन पूरा भरा हुआ, खेतों में खूब काम किया था उसने तो बदन बिल्कुल कसा हुआ था, नितम्ब फैले हुए जो साड़ी के अंदर होते हुए भी लोगों पर अलग ही जादू करते थे, वहीं मोटी मोटी चूचियां थीं जिनकी कसावट अब भी बाकी थी, कमर और पेट गदराया हुआ था पर मोटापा बिलकुल नहीं था, पति की मौत के बाद कुछ समय तो वो सूखती सी गई पर फिर उसने अपना सारा ध्यान अपने बेटे और खेतों में लगा दिया था और जबसे सत्तू ने काम संभाला तब से तो उसका बदन भरता चला गया और अब ये कहना गलत नहीं होगा कि वो गांव की सबसे कामुक औरतों में से एक थी।
नीलम और नंदिनी रजनी भाभी के पास बैठे हुए थे और सिलाई सीख रहे थे पर आज मशीन ने उन्हें धोखा दे दिया था और चल नहीं रही थी,
नीलम: क्या हुआ भाभी नहीं चलेगी क्या?
रजनी: नहीं भाभी की ननद लग तो नहीं रहा,
रजनी मशीन को ठीक करने की कोशिश करते हुए बोली...
नीलम: लो गया आज का दिन बेकार।
नंदिनी: अरे तू चुप कर गलत ही बोलेगी।
रजनी मशीन को एक ओर सरका देती है और कहती है: अब इसे तो तुम्हारे भैया ही सही करवा कर लायेंगे, अब बताओ तुम क्यों लड़ रही हो आपस में।
नंदिनी: ये नीलम है भाभी हमेशा उल्टा ही बोलती है, अब बोल रही है दिन खराब हो गया,
नीलम: ठीक ही तो बोल रही हूं, अब मशीन खराब हो गई तो और कहां सीख पाएंगे।
नंदिनी: अरे सिलाई ही तो नहीं सीख सकते और भी बहुत कुछ सिखा सकती हैं भाभी क्यों भाभी?
रजनी: हां बिल्कुल बताओ तुम्हें क्या सीखना है सब कुछ सिखा सकती हूं।
नंदिनी: भाभी सिखाना है तो इस नीलम को कुछ गुण सिखाओ के पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना होता है।
नीलम: धत्त कितनी कुतिया है तू, मेरा नाम लगा कर अपने मन की क्यों पूछ रही है तुझे जानना है तो अपने लिए पूछ।
नंदिनी: क्यों तुझे नहीं रखना अपने पति को खुश?
नीलम: वो मैं रख लूंगी जब पति होगा तब, तू अपनी सोच।
नंदिनी: कामुक बातों से जैसे तू दूर भागती है न पति तुझे छोड़ कर भाग जाएगा। हैं न भाभी?
नीलम: भाग जाए तो भाग जाए मुझे क्या?
नंदिनी: भाभी अभी ये मज़ाक समझ रही है मेरी बातों को, तुम ही बताओ इसे।
रजनी: अच्छा तो आज तुम दोनों को ये सीखना है कि पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना है।
नीलम: मुझे नहीं भाभी इसे ही सीखना है।
नंदिनी: हां मुझे ही सीखना है तू अपने कान बंद कर ले, बताओ भाभी तुम।
रजनी: वैसे नीलम नंदिनी की ये बात सच है कि अगर पति बिस्तर पर खुश नहीं है तो फिर वो उखड़ा उखड़ा सा रहता है और हो सकता है बाहर भी मुंह मारने लगे।
नंदिनी: देखा अब बोल?
नीलम: मतलब भाभी, ये तो पत्नी के साथ गलत हुआ ना।
रजनी: देख जैसे पेट की भूख होती है न वैसे ही मर्दों को बदन की भूख भी होती है और अगर पत्नी से वो शांत नहीं होती तो पति बाहर ही जाएगा ना।
नंदिनी: बिल्कुल भाभी, सीधी सी बात है ये तो।
नीलम: तो भाभी पति ऐसा न करे उसके लिए पत्नी को क्या करना चाहिए?
रजनी: देखो हर आदमी को ऐसी औरत पसंद आती है जो सबके सामने खूब शर्माए, और बिल्कुल संस्कारी बन कर रहे पर बिस्तर पर बिल्कुल इसकी उलट हो।
नंदिनी: उलट मतलब?
रजनी: मतलब कि जो बिस्तर पर गरम हो, खुल कर अपने पति का साथ दे, उसके सामने शर्माती ही न रहे, बल्कि बिस्तर पर पहुंच कर शर्म को कपड़े के साथ ही उतार देना चाहिए। पति के साथ गंदी गंदी बातें करनी चाहिए, वो जैसा चाहे वैसा करोगे तो पति तुम्हें बहुत खुश रखेगा।
नंदिनी: सही में भाभी मैं तो बिल्कुल नहीं शर्माऊंगी।
रजनी: हां तुझे देख कर लगता है शर्माना तो तेरे पति को पड़ेगा।
इस पर तीनों हंसने लगती हैं,
नीलम: पर भाभी अगर शर्म आती हो तो अचानक से कैसे चली जाएगी वो तो आएगी ही न।
रजनी: बिल्कुल आएगी, तभी तो उसे धीरे धीरे कम करना चाहिए,
नीलम: पर भाभी कैसे? मुझे तो तुम दोनों के सामने भी शर्म आती है ऐसी बातें करने में।
नंदिनी: और पति तो शुरू शुरू में अनजान होगा भाभी, उसके सामने तो ये बोल भी नहीं पाएगी।
रजनी: वही तो, इसीलिए तुझे अभी से शुरुआत करनी होगी नीलम, नहीं तो बाद में परेशानी होगी।
नीलम: पर अभी से कैसे करूं भाभी यही तो समझ नहीं आता।
नंदिनी: मैं बताऊं, पहले तो तुझे ये नाटक करना बंद करना होगा कि तुझे ये सब पसंद नहीं आता या तेरा मन नहीं करता ये बातें करने का।
नंदिनी की बातें सुनकर नीलम चुप हो गई और रजनी की ओर देखने लगी।
रजनी: नंदिनी सही कह रही है नीलम, मैं मानती हूं हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि ये सब गंदी बाते हैं और इन सब से दूर रहना चाहिए, पर सच्चाई इससे अलग है।
नीलम: क्या है सच्चाई,
रजनी: यही कि हर कोई ये बातें करना चाहता है और करता भी है बस मना इसीलिए किया जाता है ताकि शर्म बनी रही, बाकी ऐसी कौन सी सहेलियां नहीं होंगी जो एक दूसरे की रात की कहानियां नहीं सुनती होंगी।
नंदिनी: समझी तो सबसे पहले हमारे साथ खुल, और खुल कर बात किया कर, इतना तो मैं भी तुझे समझती हूं कि मज़ा तुझे भी आता है बस मानना नहीं चाहती।
रजनी: सच में नीलम ये सब समाज की बातें खोखली हैं अगर पति खुश रहेगा साथ रहेगा तो समाज का फर्क नहीं पड़ता पर अगर पति ही अलग होने लगा तो समाज जीना मुश्किल कर देगा चाहे कितनी ही संस्कारी बन के रहो।
नीलम: सही कह रही हो भाभी।
रजनी: अब मुझे ही देख लो, अपने पति को पिता बनने का सुख नहीं दे पाई आज तक, समाज मुझे क्या क्या कहता है ये तुमसे छुपा नहीं पर मैंने अपने पति को कभी बिस्तर से असंतुष्ट होकर नहीं उठने दिया और शायद उसी के कारण हम आज तक साथ हैं नहीं तो समाज तो अब तक मुझे बांझ बना कर उनकी दूसरी शादी करा देता।
रजनी ने गंभीर होते हुए कहा तो वो दोनों भी गंभीर हो गईं, कुछ देर सन्नाटा रहा फिर रजनी बोली: अरे तुम लोग क्यों मुंह बना कर बैठ गईं, सीखना नहीं हैं क्या क्या करना होता है बिस्तर पर।
ये सुन कर दोनों हीं मुस्कुराने लगीं और रजनी उन्हें संभोग का ज्ञान देने लगी।
फुलवा आंगन में लेटी थी उसके बदन में हल्का हल्का दर्द था वह आंखें बंद करके लेटी थी और उसके सामने बस अपनी सुबह की चुदाई आ रही थी, पिछले दो दिनों से कोई अनजान साया उसे चोद रहा था और फुलवा उसकी चुदाई से पागल सी होती जा रही थी, खैर सुबह जल्दी उठने और फिर चुदाई की थकान से लेट कर उसे कुछ ही देर में नींद आ गई, घर के सारे मर्द बाहर थे नीलम सिलाई सीखने गई थी, घर पर सिर्फ दोनों बहुएं और फुलवा थीं,
सुधा: जीजी मैं का कह रही हूं आज फुर्सत है तो चलो कमरा ही साफ कर लेते हैं।
पुष्पा: कह तो सही रही है नहीं तो रोज ये काम टलता रहता है, जाले भी बहुत हो गए हैं कमरों में, पहले कौनसा करें?
सुधा: पहले तुम्हारा वाला कर लेते हैं
पुष्पा: चल ठीक है, आजा।
दोनों जल्दी से कमरे में पहुंचते हैं,
पुष्पा: मैं बिस्तर समेटती हूं तू तब तक संदूक के ऊपर से कपड़े हटा,
सुधा: ठीक है दीदी,
पुष्पा बिस्तर की ओर बढ़ती है और पास जाती है तो उसे बिस्तर पर हुई उसकी और उसके बेटे के बीच की चुदाई के दृश्य दिखाई देने लगते हैं और उसका बदन सिहरने लगता है, फिर से वो उत्तेजित होने लगती है, उसकी चूत नम होने लगती है, वो एक पल को रुक जाती है, बिस्तर को देखते हुए उसे एक एक पल याद आने लगता है कि कैसे इसी बिस्तर पर रात पर उसने अपने बेटे का लंड अपनी चूत में लिया और चुदवाया, अभी भी एक कम्पन उसकी चूत में उसे महसूस हो रहा था, और उसकी उत्तेजना को बढ़ा रहा था, इधर सुधा ने संदूक के ऊपर से कपड़े हटाए और बोली: दीदी इन्हें कहां रखूं?
पर पुष्पा ने कुछ जवाब नहीं दिया तो सुधा ने पुष्पा की ओर देखा जो बैठ कर बिस्तर को देखे जा रही थी, सुधा को समझ नहीं आया कि उसकी जेठानी क्या कर रही है तो उसने कपड़ों को अलग रखा और पुष्पा के पास गई और बगल में बैठते हुए उसके कंधे पर हाथ रख कर हिलाया और पूछा: क्या हुआ दीदी कहां खो गई,
तब जाकर पुष्पा अपने खयालों से बाहर निकली और बगल में अपनी देवरानी को बैठा पाया,
सुधा: क्या हुआ दीदी ऐसे क्यों बैठी हो?
पुष्पा को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले वो कभी सुधा को देखती तो कभी बिस्तर को, और फिर अचानक से उसके मन में न जाने क्या आया कि उसने आगे झुक कर अपने होंठ सुधा के होंठों से जोड़ दिए।
जारी रहेगी।
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अध्याय 16
लल्लू: हां यार ये तो सही कहा तूने। और दोनों ही कम नहीं हैं।
भूरा: पर तुझे क्या लगता है छुटुआ कभी हमारे जितना खुल पाएगा?
लल्लू: खुलेगा नहीं तो खोलना पड़ेगा, साले को अपने साथ लेना पड़ेगा।
भूरा: कुछ योजना बनानी पड़ेगी।
लल्लू: हां बनायेंगे पर मेरा फिर से खड़ा हो गया मां के बारे में सोच कर एक बार और हिलाते हैं।
दोनों फिर से एक एक बार अपना पानी गिराते हैं और फिर बातें करते हुए गांव के अंदर की ओर चल देते हैं। अब आगे...
चूल्हा चौका हो चुका था और लता अभी साफ सफाई कर रही थी, इधर आज लल्लू खाना खाने के बाद जो गांव में हांडने निकल जाता था वो घर पर ही था और छुप छुप कर अपनी मां के बदन को निहार रहा था, उसे आज पता चल रहा था कि उसकी मां कितनी कामुक है, इतना भरा हुआ बदन है कमर तो पूछो ही मत और ब्लाउज़ के अंदर कितनी मोटी मोटी चूचियां हैं, जबसे उसने अपनी मां की गांड आज सुबह देखी थी उसका तो मानो सोचने का तरीका ही बदल गया था, सुबह से ही उसका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था।
लता: तुझे का हुआ आज अभी तक घर में है वैसे तो तुरंत निकल जाता है?
लता ने चूल्हा साफ करते हुए कहा तो लल्लू अपने खयालों से बाहर आया और बोला: वो कुछ नहीं मां बस ऐसे ही। बाहर घूमने से कोई फायदा थोड़े ही है।
लल्लू अपनी मां के फैले हुए चूतड़ों पर आँखें लगाते हुए बोला,
लता: अरे वाह आज तो बड़ी समझदारी दिखा रहा है।
नंदिनी: हां मां समझदारी तो दिखाएगा ही, अब बड़ा जो हो रहा है।
नंदिनी दूसरी ओर से लल्लू को गुस्से से देखते हुए बोली, तो लल्लू की नज़र अपनी बड़ी बहन से मिली और फिर तुंरत झुक गईं।
लता: हां बड़ा तो होगा ही, तभी तो ब्याह करेगा और मेरे लिए बहुरिया लाएगा, और मुझे थोड़ा आराम मिलेगा।
लल्लू: अरे मां तुम भी न कहां ब्याह करवाने लगीं, और रही बात काम की तो मुझे बता दिया करो न मैं कर दूंगा।
लता: अरे देख तो नंदिनी इसकी तबीयत तो ठीक है न? ये घर के काम करवाएगा, जो गिलास भर न उठा के देता हो,
लल्लू: हां मां पर अब से करवाया करूंगा तुम देख लेना।
नंदिनी: अच्छा तो जा फिर अंदर वाला बिस्तर और ये सब खाट जो बिछी पड़ी हैं वो सब समेट।
लल्लू तुरंत उठता है और खाट के पास जाकर चादर उठा कर घड़ी करने लगता है।
नंदिनी और लता उसे देख हैरान भी हो रही होती हैं और खुश भी।
ऐसा ही हाल कुछ भूरा के घर में भी था आज उसकी नजर भी अपनी मां के भरे हुए बदन से नहीं हट रही थी, वहीं काम करते हुए भी रत्ना के दिमाग में रात में हुआ हादसा चल रहा था, उसे बेहद ग्लानि हो रही थी उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, राजू और उसके बाप सुबह का नाश्ता कर घर से निकल गए थे अब घर पर बस भूरा और रत्ना थे, भूरा को भी अपनी मां आज कुछ परेशान दिख रहीं थीं,
भूरा: क्या हुआ मां कोई परेशानी है क्या आज तुम कुछ परेशान लग रही हो,
भूरा का ये सवाल सुन कर रत्ना थोड़ा घबरा गई और खुद को संभालते हुए बोली: नहीं तो लल्ला ऐसा कुछ नहीं है।
भूरा: नहीं मां मैं जानता हूं तुम झूठ बोल रही हो।
रत्ना थोड़ा और डर जाती है और कहती है: झूठ कैसा झूठ?
भूरा: यही कि तुम परेशान हो और उस परेशानी की वजह क्या है वो भी जानता हूं।
ये सुन कर तो एक पल को रत्ना का सिर घूम जाता है उसे लहता है कि भूरा को रात के बारे में पता है क्या, कैसे, क्या उसने मुझे देख लिया?
एक साथ बहुत से खयाल उसके मन में घूमने लगते हैं, और वो चुप होकर ज्यों के त्यों रुक जाती है।
भूरा: मैं जानता हूं मां कि रानी दीदी के ब्याह के बाद तुम अकेली पड़ गई हो घर का सारा काम तुम पर आ गया है, और करते करते तुम थक जाती हो।
ये सुनकर रत्ना के मन में शांति पड़ती है और वो हल्की सी झूठी मुस्कान होंठो पर लाकर कहती है: नहीं लल्ला अब घर का काम तो मेरा ही है, इसमें क्या परेशानी।
भूरा: जानता हूं मां पर तुम कहो न कहो पर कभी कभी तो तुम भी परेशान हो जाती होगी, पर अब से चिंता मत करो अब मैं तुम्हारी मदद किया करूंगा काम में,
रत्ना को अपने बेटे की बात सुन हैरानी होती है और थोड़ा अच्छा भी लगता है
रत्ना: अरे लल्ला तू क्यों करेगा घर के काम? तू मत परेशान हो मैं कर लूंगी।
भूरा: क्यों नहीं कर सकता तुम मेरी प्यारी मां हो और अपनी मां का हाथ बटाने में क्या परेशानी।
भूरा के मुंह से ये सब सुनकर रत्ना को बहुत अच्छा लग रहा था, इतने गहरे मानसिक तनाव के बीच भूरा की सांत्वना भरी बातें उसके मन को पसीज रहीं थीं, वैसे भी रत्ना बहुत ही जल्दी घबराने और डरने वाले स्वभाव की थी, ऐसे स्वभाव वाले व्यक्ति को हमेशा ही किसी के सहारे या सांत्वना की आवश्यकता होती है जो उनका साथ दे या जो कहे कि सब ठीक है। और ऐसे में रत्ना को वो सांत्वना अपने बेटे से मिल रही थी तो उसका मन बहुत से भावों से भर गया,
रत्ना: सच्ची लल्ला?
भूरा: हां मां तुम्हारी कसम।
भूरा ने भी आगे होकर अपनी बाहें मां के बदन के चारों ओर फैलाकर उसको प्यार से गले लगाते हुए कहा,
अपने बेटे के सीने से लग कर रत्ना को एक अचानक से शांति मिली, उसे एक सुरक्षा का भाव मिला अपने बेटे की बाहों में, उसके मन के भाव उमड़ पड़े। रात से मानसिक तनाव को उसके वेग को कैसे भी उसने रोक रखा था वो बांध टूट पड़ा और अचानक से ही वो अपने बेटे के सीने से लग कर फूट पड़ी और रोने लगी।
अपनी मां का यूं रोना देख भूरा घबरा गया और परेशान हो गया उसे समझ नहीं आया कि वो क्यों रो रही है।
भूरा: अरे मां क्या हुआ तुम्हें क्यों रो रही हो? बताओ ना मुझे चिंता हो रही है।
अब रत्ना उसे बताए तो क्या बताए इसीलिए बिना बोले बस रोती रही और अपने दुख को आंसुओं के रास्ते बहाने लगी।
भूरा: मां मत रो मां, अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है, मैं हूं न मैं हूं हमेशा तुम्हारे साथ, तुम्हे कोई परेशानी नहीं होने दूंगा,
भूरा को लग रहा था कि घर के काम बहुत अधिक होने से उसकी मां के सब्र का बांध आज टूट पड़ा और इसलिए वो रो रही है, तो उसने भी अपनी बातों से अपनी मां को अपने सीने से लगाए हुए ढांढस बंधाना शुरू कर दिया, अभी उसके मन में अपनी मां के लिए कोई भी कामुक विचार नहीं थे वो बस चिंतित था,
रत्ना को अपने बेटे के साथ उसकी बातें उसके सीने से यूं लग कर रोना बहुत अच्छा लग रहा था, उसे ऐसा भाव दे रहा था कि वो अपने बेटे की बाहों में सुरक्षित है उसे किसी भी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
धीरे धीरे उसके आंसू हल्के होने लगे उसका सुबकना भी बंद हो गया, भूरा उसकी पीठ को सहलाते हुए अब भी उसे सांत्वना दे रहा था उसे समझा रहा था, रत्ना अब चुप हो चुकी थी पर उसका मन नहीं हो रहा था अपने बेटे से अलग होने का,
भूरा: अब तुम ठीक हो मां?
रत्ना ने ये सुन कर अपना चेहरा उसके सीने से हटाया और उठाकर हल्की सी मुस्कान के साथ भूरा को देखा, अपनी मां की प्यारी सी मुस्कान देख कर भूरा के मन को एक अथाह शांति मिली, उसने प्यार से चेहरा झुकाकर अपनी मां के माथे को चूम लिया, रत्ना अपने बेटे के इस प्यार से शर्मा गई और फिर से अपना चेहरा उसके सीने में छुपा लिया, अब भूरा के मन से मां की चिंता हटी तो तुरंत ही मन के कमरे में कामुक विचार घुस गए।
उसे फिर से सुबह का वो दृश्य दिखाई देने लगा, और आंखों के सामने मां के नंगे चूतड़ आ गए, बदन में उत्तेजना होने लगी एक तो वो दृश्य और फिर अभी उसकी मां उससे चिपकी हुई जो थी, उसे डर भी लग रहा था कि अपनी मां के इतने पास होने पर भी वो ऐसा सोच रहा है पजामे में उसका लंड भी कस चुका था, उसे डर था कि कहीं उसकी मां को न पता चल जाए कि उसका लंड खड़ा है, पर उसका डर और बढ़ता इससे पहले ही रत्ना ने अपना सिर उसके सीने से हटाया और फिर दूर हो गई।
रत्ना: चल अब काम करने हैं बहुत लाड़ हो गया।
भूरा: हां चलो न मैं भी मदद करता हूं,
रत्ना: चल आज बहुत से काम करवाऊंगी तुझसे।
दोनों मां बेटे काम में लग जाते हैं।
इधर छोटू आज काफी देर से उठा था, और उस वजह से उसे आज अकेले ही खेत में जाना पड़ा था हगने के लिए, वैसे भी उसका मन भी कुछ पल अकेले रहने का था, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि रात भर उसने अपनी सगी मां को चोदा है, अपना लंड उस चूत में डाला है जिससे वो कभी निकला था, ये सोच सोच कर उसका दिमाग़ घूम रहा था, ऐसा मज़ा उसे कभी नहीं आया था, जितना अपनी ही मां की चूत को चोदकर आया था वैसे तो उसने इससे पहले चूत सिर्फ छुप कर ही देखी थी उसने सोचा भी नहीं था कि उसकी पहली चुदाई उसकी मां के साथ ही होगी, और वो भी ऐसी होगी। हगते हुए उसके मन में यही सब चल रहा था हगने के बाद वापिस घर की ओर चलते हुए उसे रास्ते में जो अपनी उम्र के लड़के मिल रहे थे वो खुद की उनसे बड़ा और परिपक्व महसूस कर रहा था, और किस्मत वाला भी, और करे भी क्यों ना आख़िर उसके जैसी किस्मत हर किसी की कहां थी?
हर औरत को अब वो एक अलग ढंग से देख रहा था, अपनी किस्मत पर मन ही मन मुस्कुराते हुए वो घर की ओर चला आ रहा था, घर पहुंचा तो उसकी आँखें उसकी मां को ढूंढने लगी, जो उसे खाना बनाती दिखी, वो जाकर चूल्हे के पास बैठ गया और अपनी मां को एक प्रेमी की तरह देखने लगा, इसी बीच उसकी मां ने उसे देखा और बोली: आ गया लल्ला ले, चाय ले ले, परांठे खाएगा?
छोटू: वो हां मां?
पुष्पा: जा टोकरी से प्लेट लेकर आ अभी देती हूं,
छोटू अपनी मां के कहे अनुसार टोकरी से प्लेट लेने चल दिया और चलते हुए वो सोच में था क्योंकि उसकी मां तो ऐसे बर्ताव कर रही है जैसे कुछ हुआ ही नहीं, कहां उसे लगा था कि उसके और मां के बीच सब कुछ बदल गया पर मां तो कुछ और ही दिखा रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं, वो सोचने लगा कि बड़े बुजुर्ग सही ही कहते हैं स्त्री के मन की बात कोई नहीं जान सकता, पर मैं क्यों चिंता कर रहा हूं मुझे तो बस रात को मां अपनी चूत की सेवा करने दें दिन में चाहे कैसे भी करें, ये सोचते हुए वो परांठे लेकर बैठ गया। धीरे धीरे नाश्ता करके घर के मर्द घर से निकलने लगे छोटू ने भी नाश्ता कर लिया तो उसने सोचा अब घर पर तो कुछ होने वाला नहीं है लगता नहीं मां कुछ करना तो दूर उसके बारे में बात भी करेंगी तो इसलिए वो भी घर से निकल गया।
इधर लल्लू अपनी मां और बहन के साथ मिलकर पूरी लगन से घर के काम करवा रहा था, तो नंदिनी ने अपनी मां से कहा ये काम करवा रहा है तो मैं नहा लेती हूं, और फिर वो नहाने चली गई, नहाने के बाद नंदिनी सिलाई सीखने के लिए निकल गई, अब घर पर सिर्फ लल्लू और उसकी मां थे, काम लगभग निपट चुके थे,
लता: हो गए काम लल्ला सारे, अब तू भी नहा ले।
लल्लू: हां मां नहा लेता हूं तुम क्या करोगी,
लता: मैं भी बस कुछ कपड़े हैं इन्हें भीगा कर निकाल दूं फिर नहा लूंगी तू नहा ले तब तक,
लल्लू उसकी बात मान कर पटिया पर कपड़े उतार कर नहाने लगता है कुछ पल बाद ही लता भी पटिया पर कपड़े लेकर आ जाती है और एक बाल्टी में घुलने वाले कपड़े डाल देती है और फिर अपनी साड़ी भी उतार कर उसी बाल्टी में डाल देती है और लल्लू की नज़र तुरंत अपनी मां के बदन पर टिक जाती है, लता तो रोज़ ही ऐसे ही कपड़े धोती थी ब्लाउज़ और पेटीकोट में और आज भी बेटे के सामने क्या शर्माना था इसीलिए आज भी अपनी साड़ी को उतार कर बाल्टी में डाल दिया और नल चलाकर बाल्टी भरने लगी,
लल्लू तो अपनी मां को आज वैसे भी अलग दृष्टिकोण से देख रहा था और अभी मां के गदराए बदन को पेटिकोट और ब्लाउज़ में देख तो उसका बदन सिहरने लगा वो उसके हाथ धीरे हो गए, मां का गदराया पेट और कमर देख कर ब्लाउज़ में कसी हुई मोटी चुचियों को देख कर लल्लू का लंड चड्डी में सिर उठाने लगा, ऊपर से लता झुक कर नल चला रही थी तो उसकी मोटी सी गांड और फैल कर बाहर निकल गई थी साथ ही नल चलाने की वज़ह से ऊपर नीचे हो रही थी ये देख देख तो लल्लू का हाल बुरा होने लगा, उसका लंड चड्डी में पूरी तरह से तन चुका था और चड्डी भी गीली थी तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे छुपाए,
बाल्टी भरते ही लता ने अपना पेटीकोट का नाड़ा ढीला किया और उसे छाती तक चढ़ा लिया और अपने मुंह में एक छोर दबा लिया और बड़ी आसानी से पेटिकोट के अंदर से ही ब्लाउज़ खोला और उसे भी बाल्टी में डाल दिया, और फिर पेटिकोट को अपनी छाती के ऊपर बांध दिया, ये ऐसी कला है जिसमें हर महिला कुशल होती है, लल्लू के सामने जैसे ही ब्लाउज बाल्टी में गिरा उसने तुरंत आँखें उठा कर ऊपर देखा और अपनी मां को सिर्फ पेटीकोट में देख कर वो उत्तेजना में तड़प उठा, उसका लंड चड्डी में झटके खाने लगा जिसे वो किसी तरह से छुपाए हुए था,
लता: अरे लल्ला कितनी देर नहाएगा अभी मुझे भी नहाना है।
लल्लू: हां हां मां बस हो गया,
लल्लू खुद को संभालते बोला, और लोटे से पानी भरकर अपने बदन पर डालने लगा, लल्लू को डर था कि कहीं मां उसका खड़ा लंड न देख लें, इसलिए वो थोड़ा घूम कर नहाने लगा, इसी बीच लता की नज़र लल्लू की पीठ पर पड़ी,
लता: तू इतना बड़ा हो गया पर नहाने का सहूर नहीं आया तुझे देख पीठ पर मैल जमा पड़ा है।
लल्लू: कहां मां पीठ पर दिखता भी नहीं है और न ही हाथ पहुंचते हैं,
लता: रुक अभी, मैं कर देती हूं
ये कह कर लता उसके पीछे बैठ कर उसकी पीठ घिसने लगती है वहीं अपनी मां के हाथों को महसूस कर लल्लू के बदन में सिहरन होने लगती है, लता उसकी पीठ पर लगे मैल को घिस घिस कर उतारने लगती है,
लता: देख न जाने कब का जमा हुआ है इतना घिसना पड़ रहा है,
लल्लू: क्या करूं मां पीठ पर दिखता तो है नहीं इसीलिए जम गया है।
लता: चल आगे से मुझसे साफ करवा लिया करना।
ले हो गया साफ अब धो ले,
लल्लू ने तुरंत ही लोटे में पानी लिया और अपनी पीठ पर डालने लगा जो कि पीछे बैठी लता पर भी गिर रहा था, पीठ धोने के बाद लल्लू सावधानी से अपनी मां की ओर ही पीठ किए हुए ही खड़ा हुआ और फिर तुंरत अंगोछे को अपनी कमर से लपेट कर गीली चड्डी को उतारा और फिर अंगोछे को कमर से लपेट लिया और फिर मूड कर बैठ गया और अपनी उतारी हुई चड्डी को धोने लगा, लता भी बाल्टी से गिले कपड़े निकाल कर धो रही थी, चड्डी धोते हुए लल्लू की नज़र सामने मां पर पड़ी तो उसकी आँखें जमीं रह गईं, क्योंकि गीले होने की वजह से पेटीकोट लता की चूचियों से चिपक गया था और उसकी चूचियों के आकार को बड़ी कामुकता से दर्शा रहा था, हल्के पीले रंग का होने के कारण वो हल्का पारदर्शी हो चुका था और लल्लू को अपनी मां की मोटी चूचियों के दर्शन भी हल्के हल्के हो रहे थे, उसका लंड तो मानो लोहे का हो चुका था, उसके हाथ उसकी चड्डी पर हल्का हल्का चल रहे थे क्योंकि उसका ध्यान तो मां की चूचियों पर था,
इधर लता की नज़र भी उसके हाथों पर पड़ी तो बोली: अरे कैसे धो रहा है ला मुझे दे दे मैं धो लूंगी,
और हाथ बढ़ाकर उसके सामने से चड्डी उठा ली, अब लल्लू के पास कोई कारण नहीं बचा था रुकने का तो उसे उठना पड़ा और वो उठ कर धुले हुए कपड़े पहनने लगा, पर उसकी नज़र बार बार अपने मां के बदन पर ही जा रही थी, उसके लंड का बड़ा बुरा हाल हो चुका था, इधर लता कपड़े धोने में व्यस्त थी, लल्लू ने कपड़े पहने ही थे कि किवाड़ बजने लगे,
लता: लल्ला देख तो द्वार पर कौन है, कोई बड़ा हो तो बाहर ही रोक दियो मैं नहा रही हूं ना,
लल्लू: ठीक है मां,
ये कह लल्लू द्वार पर गया और किवाड़ खोल कर देखा तो सामने छोटू खड़ा था,
लल्लू: और छोटू साहब कहां रहते हो तुम आजकल मिलते ही नहीं?
छोटू: मैं तो यहीं रहता हूं तू ही नहीं मिलता,
लल्लू: साले मैं और भूरा बुलाने जाते है तुझे तो अम्मा बोलती है तू सो रहा तेरी तबीयत खराब है, अब ये क्या लगा रखा है तूने?
छोटू: अरे वो,
इतने में पीछे से लता की आवाज़ आती है : अरे कौन है लल्लू?
लल्लू: छुटुआ है मां, मैं जा रहा हूं इसके साथ।
लता: अरे रुक जा थोड़ी देर मैं नहा लूं फिर चले जाना, दोनों आ जाओ थोड़ी देर बैठ जाओ घर में ही।
लल्लू: चल आजा।
दोनों अंदर आते हैं छोटू पटिया पर कपड़े धोती लता को देखता है और उसे प्रणाम करता है, सारे बच्चे एक ही उमर के थे तो ऐसे पेटिकोट में रहना दोनों के लिए ही कोई बड़ी बात नहीं थी,
लता: बैठ जा छोटू थोड़ी देर फिर चले जाना, नहा लूं मैं नहीं तो बीच में कोई आए तो किवाड़ खोलने की दिक्कत हो।
छोटू: अरे कोई बात नहीं ताई,
दोनों आंगन में ही बैठ जाते हैं लल्लू अब भी नजरें छुपा छुपा कर अपनी मां को देख रहा था वहीं छोटू की भी नज़र जब से ताई की गीली चुचियों पर पड़ी थी तो वो भी छुप छुप कर उन्हें ताड़ने के मौके ढूंढ रहा था, कुछ ही पलों में दोनों के पजामें में उनके लंड सिर उठा रहे थे, लल्लू का तो खैर बैठा ही नहीं था,
लल्लू चालाकी दिखाते हुए कुछ न कुछ बातें छोटू से किए जा रहा था ताकि उसे या मां को शक न हो और छोटू भी उसकी हर बात का जवाब दे रहा था पर देख दोनों ही लता के बदन को रहे थे,
लता: ए लल्ला ज़रा नल तो चला दियो आकर।
लता ने बोला तो लल्लू खड़ा हुआ और जाकर नल चलाने लगा तो लता कपड़ों की बाल्टी खिसका कर आगे हुईं और नल से निकलती धार के नीचे बाल्टी लगा दी इधर उसके आगे होने से लल्लू की नज़र अपनी मां के पिछवाड़े पर गई और एक बार को तो उसके हाथ से नल का हत्था ही छूट गया, लता का पेटिकोट पीछे से भी गीला था और भीग कर उसके चूतड़ों से चिपका हुआ था, पेटिकोट का कुछ हिस्सा तो उसके चूतड़ों की दरार में भी घुस गया था, लल्लू को तो लग रहा था मानों उसकी मां सुबह की तरह ही जैसे खेत में बैठी थी वैसी ही उसके बगल में नंगी बैठी है, पजामे में उसका लंड ठुमके मारने लगा, वो तो सीधा अपनी मां के पिछवाड़े को घूरने लगा,
आंगन से छोटू भी लता को देख रहा था फिर उसने नज़र ऊपर करके देखा तो लल्लू की नज़र को अपनी मां के पिछवाड़े की ओर पाया तो छोटू सोचने लगा: साला हरामी अपनी मां के पिछवाड़े को देख रहा है, फिर उसके मन में आया मैं उससे क्या ही कह सकता हूं वो तो बस देख ही रहा है मैने तो अपनी मां को चोदा भी है, ये सोच कर छोटू और उत्तेजित होने लगा,
इसी बीच लता उठी और घूम कर बाल्टी में रखे कपड़े निचोड़ने लगी जिसका असर ये हुआ कि अब उसका मुंह लल्लू की ओर हो गया,
लता: रुक जा लल्ला बाल्टी भर गई,
लल्लू का तो ध्यान ही नहीं था अपनी मां की आवाज़ सुनकर उसने नल रोका और खड़ा हो गया, क्योंकि अब उसकी मां का मुंह उसी की ओर था तो उसने खुद को संभाला और अपनी नजर मां के बदन से हटाई और उसने छोटू को देखा जो कि आंखें फाड़े टक टकी लगाकर उन दोनों की ओर देखा जा रहा था उसने सोचा ये क्यों पागलों की तरह देख रहा है तभी उसे अचानक से समझ आया कि घूमने की वजह से उसकी मां का पिछवाड़ा अब छोटू की ओर हो गया था मतलब छोटू मेरी मां के चूतड़ों को देख रहा है, पर ये सोचकर भी उसे गुस्सा नहीं आ रहा था बल्कि उत्तेजना हो रही थी,
इधर छोटू ने जब लता ताई के पेटीकोट में भीगे चूतड़ देखे तो उसका तो लंड हिलोरे मारने लगा, वो सोचने लगा ऐसा नज़ारा हो तो कौन अपने आपको रोक सकता है बेटा हो या बाप, मेरी मां होती तो मैं तो अब तक चोदने लगता, इसमें बेचारे लल्लू का क्या दोष वो तो बस देख ही रहा था।
छोटू ये सोचते हुए देखने में इतना खो गया था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब लल्लू आ कर उसके बगल में बैठ गया,
अब दोनों दोस्तों के सामने एक ही नजारा था, लल्लू सोच रहा था अब मैने भी तो इसकी मां और चाची के चूतड़ों को देखा है तो ये तो कपड़े के ऊपर से देख रहा है, दोनों को ही लता के बदन ने उत्तेजित कर दिया था, दोनों के ही लंड बिल्कुल तन कर खड़े थे,
इसी बीच लता कपड़े रखने के लिए झुकी तो और उसकी गांड फैल गई जिसका असर दोनों ही दोस्तों पर हुआ और दोनों के मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई, लता कुछ देर तक कपड़े निचोड़ती रही और दोनों ही उसे टक टकी लगाकर देखते रहे, कपड़े निचोड़ने के बाद लता ने अपनी साड़ी और पेटीकोट उठाया और बगल में कच्चे से स्नानघर में घुस गई, तब जाकर दोनों की नजर उसके बदन से हटी, लल्लू को ये तो समझ आ गया था कि छोटू भी उसकी मां के चूतड़ों को देख रहा था पर इसकी गलती भी क्या है ऐसे चूतड़ देख कर कौन खुद को रोक सकता है, वैसे इससे इतना तो समझ आ गया कि साला हरामी ये भी है मेरे और भूरा की तरह जब मेरे सामने मेरी मां के चूतड़ों को देख सकता है तो हमारा साथ भी दे सकता है, पर साले से बात कैसे करूं समझ नहीं आ रहा?
लल्लू अपनी उधेड़बुन में था तो छोटू ये सोच घबरा रहा था कि कहीं लल्लू ने उसे ताई के पिछवाड़े को घूरते हुए देख तो नहीं लिया, साला वैसे भी गुस्सा जल्दी हो जाता है क्या करूं?
दोनों ही अपनी अपनी सोच में लगे हुए थे, इतने में लता नहा कर निकली और बोली: अब जा सकते हो तुम लोग।
लल्लू ने अपनी मां की बात सुनी और फिर छोटू को बोला: चल।
छोटू भी उसके पीछे पीछे चल दिया।
सत्तू अपने घर में एक खाट पर लेता हुआ था और नंगे चित्रों वाली किताब को देख देख कर अपने लंड को सहला रहा था तभी बाहर किवाड़ पर कुछ आहट हुई तो उसने तुंरत किताब को तकिए के नीचे सरका दिया इतने में ही एक भरे बदन की औरत आंगन में प्रवेश करती है।
सत्तू: अब आई हो मां इतना टेम लगा देती हो तुम तो।
झुमरी: अरे वो वो तुझे तो पता है न औरतें बातों में लग जाती हैं तो रुकती कहां हैं।
सत्तू: अच्छा तुम वहां बातों में लगी रहो और मुझे अभी तक चाय भी नहीं मिली।
झुमरी: चढ़ा रही हूं तेरी चाय, ये नहीं कि खुद ही बना ले कभी सब काम मैं ही कर के दूं तुझे।
झुमरी चाय चढ़ाते हुए कहती है,
सत्तू: अरे मां तुम्हें पता है ना बाहर के सारे काम कर लेता हूं मैं बस घर के काम नहीं होते मुझसे।
सत्तू भी उठ कर अपनी मां के पास चूल्हे के बगल में आकर बैठ जाता है
झुमरी: तभी कहती हूं अब ब्याह करले, बहु आ जाएगी तो मुझे भी आराम मिल जाएगा, और तुझे भी बिस्तर पर चाय मिल जाया करेगी।
सत्तू: का मां तुम भी ऐसे थोड़े ही होता है ब्याह, उसके लिए लड़की चाहिए अच्छी सी और फिर बहुत सारा पैसा भी लगता है ब्याह में,
झुमरी: तो लड़की मैं ढूंढ लूंगी पैसा तू कमा।
दोनों हंसने लगते हैं,
सत्तू: पैसा कमाना है तभी तो शहर के सबसे ज़्यादा चक्कर लगाता हूं पूरे गांव में।
झुमरी: जानती हूं लल्ला, तूने ही तो सब संभाल रखा है,
झुमरी उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहती है,
सत्तू: अच्छा मां कल तुम खेत गई थी क्या?
ये सुनते ही झुमरी के चेहरे का रंग उड़ जाता है,
झुमरी: मैं न नहीं तो क्या क्या हुआ क्यों पूछ रहा है?
सत्तू: कुछ नहीं वो एक बार देखना था सब्जियों की क्या हालत है, चलो कोई नहीं आज मैं ही देख आऊंगा।
झुमरी: हां वो घर के काम से समय ही नहीं मिला पूरे दिन इसलिए नहीं जा पाई।
सत्तू: कोई बात नहीं मां मैं देख आऊंगा आज।
झुमरी: ठीक ले बन गई तेरी चाय,
झुमरी उसे चाय देती है और सत्तू चाय लेकर बापिस खाट पर बैठ जाता है वहीं झुमरी चूल्हे की ओर देखते हुए किसी सोच में डूब जाती है।
झुमरी का परिवार हमेशा से ही छोटा था सत्तू के बाप से ब्याह होकर आई थी तो घर में उसकी सास और उसके पति ही थे, ससुर पहले ही पधार गए थे उसके पति की बड़ी बहन थी उसका भी ब्याह हो चुका था, और अभी तो उसके घर में सिर्फ दो ही लोग बचे थे, उसके पति और सत्तू के बाप का निधन तो 8 साल पहले ही नदी में डूब कर हो गया था शव तक नहीं मिला था बेचारे का, तब तो सत्तू बहुत छोटा था फिर भी बेचारे को उमर से पहले बढ़ा होना पड़ा, खूब मेहनत की और अपनी मां का भरपूर साथ दिया था तब जाकर उन्होंने वो कठिन समय काटा था, यूं तो झुमरी सत्तू को दिखाती थी कि उससे अब मेहनत नहीं होती और उसकी उम्र हो चुकी है पर अभी उसकी उमर ही क्या था छत्तीस वर्ष, और बदन पूरा भरा हुआ, खेतों में खूब काम किया था उसने तो बदन बिल्कुल कसा हुआ था, नितम्ब फैले हुए जो साड़ी के अंदर होते हुए भी लोगों पर अलग ही जादू करते थे, वहीं मोटी मोटी चूचियां थीं जिनकी कसावट अब भी बाकी थी, कमर और पेट गदराया हुआ था पर मोटापा बिलकुल नहीं था, पति की मौत के बाद कुछ समय तो वो सूखती सी गई पर फिर उसने अपना सारा ध्यान अपने बेटे और खेतों में लगा दिया था और जबसे सत्तू ने काम संभाला तब से तो उसका बदन भरता चला गया और अब ये कहना गलत नहीं होगा कि वो गांव की सबसे कामुक औरतों में से एक थी।
नीलम और नंदिनी रजनी भाभी के पास बैठे हुए थे और सिलाई सीख रहे थे पर आज मशीन ने उन्हें धोखा दे दिया था और चल नहीं रही थी,
नीलम: क्या हुआ भाभी नहीं चलेगी क्या?
रजनी: नहीं भाभी की ननद लग तो नहीं रहा,
रजनी मशीन को ठीक करने की कोशिश करते हुए बोली...
नीलम: लो गया आज का दिन बेकार।
नंदिनी: अरे तू चुप कर गलत ही बोलेगी।
रजनी मशीन को एक ओर सरका देती है और कहती है: अब इसे तो तुम्हारे भैया ही सही करवा कर लायेंगे, अब बताओ तुम क्यों लड़ रही हो आपस में।
नंदिनी: ये नीलम है भाभी हमेशा उल्टा ही बोलती है, अब बोल रही है दिन खराब हो गया,
नीलम: ठीक ही तो बोल रही हूं, अब मशीन खराब हो गई तो और कहां सीख पाएंगे।
नंदिनी: अरे सिलाई ही तो नहीं सीख सकते और भी बहुत कुछ सिखा सकती हैं भाभी क्यों भाभी?
रजनी: हां बिल्कुल बताओ तुम्हें क्या सीखना है सब कुछ सिखा सकती हूं।
नंदिनी: भाभी सिखाना है तो इस नीलम को कुछ गुण सिखाओ के पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना होता है।
नीलम: धत्त कितनी कुतिया है तू, मेरा नाम लगा कर अपने मन की क्यों पूछ रही है तुझे जानना है तो अपने लिए पूछ।
नंदिनी: क्यों तुझे नहीं रखना अपने पति को खुश?
नीलम: वो मैं रख लूंगी जब पति होगा तब, तू अपनी सोच।
नंदिनी: कामुक बातों से जैसे तू दूर भागती है न पति तुझे छोड़ कर भाग जाएगा। हैं न भाभी?
नीलम: भाग जाए तो भाग जाए मुझे क्या?
नंदिनी: भाभी अभी ये मज़ाक समझ रही है मेरी बातों को, तुम ही बताओ इसे।
रजनी: अच्छा तो आज तुम दोनों को ये सीखना है कि पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना है।
नीलम: मुझे नहीं भाभी इसे ही सीखना है।
नंदिनी: हां मुझे ही सीखना है तू अपने कान बंद कर ले, बताओ भाभी तुम।
रजनी: वैसे नीलम नंदिनी की ये बात सच है कि अगर पति बिस्तर पर खुश नहीं है तो फिर वो उखड़ा उखड़ा सा रहता है और हो सकता है बाहर भी मुंह मारने लगे।
नंदिनी: देखा अब बोल?
नीलम: मतलब भाभी, ये तो पत्नी के साथ गलत हुआ ना।
रजनी: देख जैसे पेट की भूख होती है न वैसे ही मर्दों को बदन की भूख भी होती है और अगर पत्नी से वो शांत नहीं होती तो पति बाहर ही जाएगा ना।
नंदिनी: बिल्कुल भाभी, सीधी सी बात है ये तो।
नीलम: तो भाभी पति ऐसा न करे उसके लिए पत्नी को क्या करना चाहिए?
रजनी: देखो हर आदमी को ऐसी औरत पसंद आती है जो सबके सामने खूब शर्माए, और बिल्कुल संस्कारी बन कर रहे पर बिस्तर पर बिल्कुल इसकी उलट हो।
नंदिनी: उलट मतलब?
रजनी: मतलब कि जो बिस्तर पर गरम हो, खुल कर अपने पति का साथ दे, उसके सामने शर्माती ही न रहे, बल्कि बिस्तर पर पहुंच कर शर्म को कपड़े के साथ ही उतार देना चाहिए। पति के साथ गंदी गंदी बातें करनी चाहिए, वो जैसा चाहे वैसा करोगे तो पति तुम्हें बहुत खुश रखेगा।
नंदिनी: सही में भाभी मैं तो बिल्कुल नहीं शर्माऊंगी।
रजनी: हां तुझे देख कर लगता है शर्माना तो तेरे पति को पड़ेगा।
इस पर तीनों हंसने लगती हैं,
नीलम: पर भाभी अगर शर्म आती हो तो अचानक से कैसे चली जाएगी वो तो आएगी ही न।
रजनी: बिल्कुल आएगी, तभी तो उसे धीरे धीरे कम करना चाहिए,
नीलम: पर भाभी कैसे? मुझे तो तुम दोनों के सामने भी शर्म आती है ऐसी बातें करने में।
नंदिनी: और पति तो शुरू शुरू में अनजान होगा भाभी, उसके सामने तो ये बोल भी नहीं पाएगी।
रजनी: वही तो, इसीलिए तुझे अभी से शुरुआत करनी होगी नीलम, नहीं तो बाद में परेशानी होगी।
नीलम: पर अभी से कैसे करूं भाभी यही तो समझ नहीं आता।
नंदिनी: मैं बताऊं, पहले तो तुझे ये नाटक करना बंद करना होगा कि तुझे ये सब पसंद नहीं आता या तेरा मन नहीं करता ये बातें करने का।
नंदिनी की बातें सुनकर नीलम चुप हो गई और रजनी की ओर देखने लगी।
रजनी: नंदिनी सही कह रही है नीलम, मैं मानती हूं हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि ये सब गंदी बाते हैं और इन सब से दूर रहना चाहिए, पर सच्चाई इससे अलग है।
नीलम: क्या है सच्चाई,
रजनी: यही कि हर कोई ये बातें करना चाहता है और करता भी है बस मना इसीलिए किया जाता है ताकि शर्म बनी रही, बाकी ऐसी कौन सी सहेलियां नहीं होंगी जो एक दूसरे की रात की कहानियां नहीं सुनती होंगी।
नंदिनी: समझी तो सबसे पहले हमारे साथ खुल, और खुल कर बात किया कर, इतना तो मैं भी तुझे समझती हूं कि मज़ा तुझे भी आता है बस मानना नहीं चाहती।
रजनी: सच में नीलम ये सब समाज की बातें खोखली हैं अगर पति खुश रहेगा साथ रहेगा तो समाज का फर्क नहीं पड़ता पर अगर पति ही अलग होने लगा तो समाज जीना मुश्किल कर देगा चाहे कितनी ही संस्कारी बन के रहो।
नीलम: सही कह रही हो भाभी।
रजनी: अब मुझे ही देख लो, अपने पति को पिता बनने का सुख नहीं दे पाई आज तक, समाज मुझे क्या क्या कहता है ये तुमसे छुपा नहीं पर मैंने अपने पति को कभी बिस्तर से असंतुष्ट होकर नहीं उठने दिया और शायद उसी के कारण हम आज तक साथ हैं नहीं तो समाज तो अब तक मुझे बांझ बना कर उनकी दूसरी शादी करा देता।
रजनी ने गंभीर होते हुए कहा तो वो दोनों भी गंभीर हो गईं, कुछ देर सन्नाटा रहा फिर रजनी बोली: अरे तुम लोग क्यों मुंह बना कर बैठ गईं, सीखना नहीं हैं क्या क्या करना होता है बिस्तर पर।
ये सुन कर दोनों हीं मुस्कुराने लगीं और रजनी उन्हें संभोग का ज्ञान देने लगी।
फुलवा आंगन में लेटी थी उसके बदन में हल्का हल्का दर्द था वह आंखें बंद करके लेटी थी और उसके सामने बस अपनी सुबह की चुदाई आ रही थी, पिछले दो दिनों से कोई अनजान साया उसे चोद रहा था और फुलवा उसकी चुदाई से पागल सी होती जा रही थी, खैर सुबह जल्दी उठने और फिर चुदाई की थकान से लेट कर उसे कुछ ही देर में नींद आ गई, घर के सारे मर्द बाहर थे नीलम सिलाई सीखने गई थी, घर पर सिर्फ दोनों बहुएं और फुलवा थीं,
सुधा: जीजी मैं का कह रही हूं आज फुर्सत है तो चलो कमरा ही साफ कर लेते हैं।
पुष्पा: कह तो सही रही है नहीं तो रोज ये काम टलता रहता है, जाले भी बहुत हो गए हैं कमरों में, पहले कौनसा करें?
सुधा: पहले तुम्हारा वाला कर लेते हैं
पुष्पा: चल ठीक है, आजा।
दोनों जल्दी से कमरे में पहुंचते हैं,
पुष्पा: मैं बिस्तर समेटती हूं तू तब तक संदूक के ऊपर से कपड़े हटा,
सुधा: ठीक है दीदी,
पुष्पा बिस्तर की ओर बढ़ती है और पास जाती है तो उसे बिस्तर पर हुई उसकी और उसके बेटे के बीच की चुदाई के दृश्य दिखाई देने लगते हैं और उसका बदन सिहरने लगता है, फिर से वो उत्तेजित होने लगती है, उसकी चूत नम होने लगती है, वो एक पल को रुक जाती है, बिस्तर को देखते हुए उसे एक एक पल याद आने लगता है कि कैसे इसी बिस्तर पर रात पर उसने अपने बेटे का लंड अपनी चूत में लिया और चुदवाया, अभी भी एक कम्पन उसकी चूत में उसे महसूस हो रहा था, और उसकी उत्तेजना को बढ़ा रहा था, इधर सुधा ने संदूक के ऊपर से कपड़े हटाए और बोली: दीदी इन्हें कहां रखूं?
पर पुष्पा ने कुछ जवाब नहीं दिया तो सुधा ने पुष्पा की ओर देखा जो बैठ कर बिस्तर को देखे जा रही थी, सुधा को समझ नहीं आया कि उसकी जेठानी क्या कर रही है तो उसने कपड़ों को अलग रखा और पुष्पा के पास गई और बगल में बैठते हुए उसके कंधे पर हाथ रख कर हिलाया और पूछा: क्या हुआ दीदी कहां खो गई,
तब जाकर पुष्पा अपने खयालों से बाहर निकली और बगल में अपनी देवरानी को बैठा पाया,
सुधा: क्या हुआ दीदी ऐसे क्यों बैठी हो?
पुष्पा को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले वो कभी सुधा को देखती तो कभी बिस्तर को, और फिर अचानक से उसके मन में न जाने क्या आया कि उसने आगे झुक कर अपने होंठ सुधा के होंठों से जोड़ दिए।
जारी रहेगी।
Shaandar jabardast super hot Kamuk Update
अध्याय 16
लल्लू: हां यार ये तो सही कहा तूने। और दोनों ही कम नहीं हैं।
भूरा: पर तुझे क्या लगता है छुटुआ कभी हमारे जितना खुल पाएगा?
लल्लू: खुलेगा नहीं तो खोलना पड़ेगा, साले को अपने साथ लेना पड़ेगा।
भूरा: कुछ योजना बनानी पड़ेगी।
लल्लू: हां बनायेंगे पर मेरा फिर से खड़ा हो गया मां के बारे में सोच कर एक बार और हिलाते हैं।
दोनों फिर से एक एक बार अपना पानी गिराते हैं और फिर बातें करते हुए गांव के अंदर की ओर चल देते हैं। अब आगे...
चूल्हा चौका हो चुका था और लता अभी साफ सफाई कर रही थी, इधर आज लल्लू खाना खाने के बाद जो गांव में हांडने निकल जाता था वो घर पर ही था और छुप छुप कर अपनी मां के बदन को निहार रहा था, उसे आज पता चल रहा था कि उसकी मां कितनी कामुक है, इतना भरा हुआ बदन है कमर तो पूछो ही मत और ब्लाउज़ के अंदर कितनी मोटी मोटी चूचियां हैं, जबसे उसने अपनी मां की गांड आज सुबह देखी थी उसका तो मानो सोचने का तरीका ही बदल गया था, सुबह से ही उसका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था।
लता: तुझे का हुआ आज अभी तक घर में है वैसे तो तुरंत निकल जाता है?
लता ने चूल्हा साफ करते हुए कहा तो लल्लू अपने खयालों से बाहर आया और बोला: वो कुछ नहीं मां बस ऐसे ही। बाहर घूमने से कोई फायदा थोड़े ही है।
लल्लू अपनी मां के फैले हुए चूतड़ों पर आँखें लगाते हुए बोला,
लता: अरे वाह आज तो बड़ी समझदारी दिखा रहा है।
नंदिनी: हां मां समझदारी तो दिखाएगा ही, अब बड़ा जो हो रहा है।
नंदिनी दूसरी ओर से लल्लू को गुस्से से देखते हुए बोली, तो लल्लू की नज़र अपनी बड़ी बहन से मिली और फिर तुंरत झुक गईं।
लता: हां बड़ा तो होगा ही, तभी तो ब्याह करेगा और मेरे लिए बहुरिया लाएगा, और मुझे थोड़ा आराम मिलेगा।
लल्लू: अरे मां तुम भी न कहां ब्याह करवाने लगीं, और रही बात काम की तो मुझे बता दिया करो न मैं कर दूंगा।
लता: अरे देख तो नंदिनी इसकी तबीयत तो ठीक है न? ये घर के काम करवाएगा, जो गिलास भर न उठा के देता हो,
लल्लू: हां मां पर अब से करवाया करूंगा तुम देख लेना।
नंदिनी: अच्छा तो जा फिर अंदर वाला बिस्तर और ये सब खाट जो बिछी पड़ी हैं वो सब समेट।
लल्लू तुरंत उठता है और खाट के पास जाकर चादर उठा कर घड़ी करने लगता है।
नंदिनी और लता उसे देख हैरान भी हो रही होती हैं और खुश भी।
ऐसा ही हाल कुछ भूरा के घर में भी था आज उसकी नजर भी अपनी मां के भरे हुए बदन से नहीं हट रही थी, वहीं काम करते हुए भी रत्ना के दिमाग में रात में हुआ हादसा चल रहा था, उसे बेहद ग्लानि हो रही थी उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, राजू और उसके बाप सुबह का नाश्ता कर घर से निकल गए थे अब घर पर बस भूरा और रत्ना थे, भूरा को भी अपनी मां आज कुछ परेशान दिख रहीं थीं,
भूरा: क्या हुआ मां कोई परेशानी है क्या आज तुम कुछ परेशान लग रही हो,
भूरा का ये सवाल सुन कर रत्ना थोड़ा घबरा गई और खुद को संभालते हुए बोली: नहीं तो लल्ला ऐसा कुछ नहीं है।
भूरा: नहीं मां मैं जानता हूं तुम झूठ बोल रही हो।
रत्ना थोड़ा और डर जाती है और कहती है: झूठ कैसा झूठ?
भूरा: यही कि तुम परेशान हो और उस परेशानी की वजह क्या है वो भी जानता हूं।
ये सुन कर तो एक पल को रत्ना का सिर घूम जाता है उसे लहता है कि भूरा को रात के बारे में पता है क्या, कैसे, क्या उसने मुझे देख लिया?
एक साथ बहुत से खयाल उसके मन में घूमने लगते हैं, और वो चुप होकर ज्यों के त्यों रुक जाती है।
भूरा: मैं जानता हूं मां कि रानी दीदी के ब्याह के बाद तुम अकेली पड़ गई हो घर का सारा काम तुम पर आ गया है, और करते करते तुम थक जाती हो।
ये सुनकर रत्ना के मन में शांति पड़ती है और वो हल्की सी झूठी मुस्कान होंठो पर लाकर कहती है: नहीं लल्ला अब घर का काम तो मेरा ही है, इसमें क्या परेशानी।
भूरा: जानता हूं मां पर तुम कहो न कहो पर कभी कभी तो तुम भी परेशान हो जाती होगी, पर अब से चिंता मत करो अब मैं तुम्हारी मदद किया करूंगा काम में,
रत्ना को अपने बेटे की बात सुन हैरानी होती है और थोड़ा अच्छा भी लगता है
रत्ना: अरे लल्ला तू क्यों करेगा घर के काम? तू मत परेशान हो मैं कर लूंगी।
भूरा: क्यों नहीं कर सकता तुम मेरी प्यारी मां हो और अपनी मां का हाथ बटाने में क्या परेशानी।
भूरा के मुंह से ये सब सुनकर रत्ना को बहुत अच्छा लग रहा था, इतने गहरे मानसिक तनाव के बीच भूरा की सांत्वना भरी बातें उसके मन को पसीज रहीं थीं, वैसे भी रत्ना बहुत ही जल्दी घबराने और डरने वाले स्वभाव की थी, ऐसे स्वभाव वाले व्यक्ति को हमेशा ही किसी के सहारे या सांत्वना की आवश्यकता होती है जो उनका साथ दे या जो कहे कि सब ठीक है। और ऐसे में रत्ना को वो सांत्वना अपने बेटे से मिल रही थी तो उसका मन बहुत से भावों से भर गया,
रत्ना: सच्ची लल्ला?
भूरा: हां मां तुम्हारी कसम।
भूरा ने भी आगे होकर अपनी बाहें मां के बदन के चारों ओर फैलाकर उसको प्यार से गले लगाते हुए कहा,
अपने बेटे के सीने से लग कर रत्ना को एक अचानक से शांति मिली, उसे एक सुरक्षा का भाव मिला अपने बेटे की बाहों में, उसके मन के भाव उमड़ पड़े। रात से मानसिक तनाव को उसके वेग को कैसे भी उसने रोक रखा था वो बांध टूट पड़ा और अचानक से ही वो अपने बेटे के सीने से लग कर फूट पड़ी और रोने लगी।
अपनी मां का यूं रोना देख भूरा घबरा गया और परेशान हो गया उसे समझ नहीं आया कि वो क्यों रो रही है।
भूरा: अरे मां क्या हुआ तुम्हें क्यों रो रही हो? बताओ ना मुझे चिंता हो रही है।
अब रत्ना उसे बताए तो क्या बताए इसीलिए बिना बोले बस रोती रही और अपने दुख को आंसुओं के रास्ते बहाने लगी।
भूरा: मां मत रो मां, अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है, मैं हूं न मैं हूं हमेशा तुम्हारे साथ, तुम्हे कोई परेशानी नहीं होने दूंगा,
भूरा को लग रहा था कि घर के काम बहुत अधिक होने से उसकी मां के सब्र का बांध आज टूट पड़ा और इसलिए वो रो रही है, तो उसने भी अपनी बातों से अपनी मां को अपने सीने से लगाए हुए ढांढस बंधाना शुरू कर दिया, अभी उसके मन में अपनी मां के लिए कोई भी कामुक विचार नहीं थे वो बस चिंतित था,
रत्ना को अपने बेटे के साथ उसकी बातें उसके सीने से यूं लग कर रोना बहुत अच्छा लग रहा था, उसे ऐसा भाव दे रहा था कि वो अपने बेटे की बाहों में सुरक्षित है उसे किसी भी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
धीरे धीरे उसके आंसू हल्के होने लगे उसका सुबकना भी बंद हो गया, भूरा उसकी पीठ को सहलाते हुए अब भी उसे सांत्वना दे रहा था उसे समझा रहा था, रत्ना अब चुप हो चुकी थी पर उसका मन नहीं हो रहा था अपने बेटे से अलग होने का,
भूरा: अब तुम ठीक हो मां?
रत्ना ने ये सुन कर अपना चेहरा उसके सीने से हटाया और उठाकर हल्की सी मुस्कान के साथ भूरा को देखा, अपनी मां की प्यारी सी मुस्कान देख कर भूरा के मन को एक अथाह शांति मिली, उसने प्यार से चेहरा झुकाकर अपनी मां के माथे को चूम लिया, रत्ना अपने बेटे के इस प्यार से शर्मा गई और फिर से अपना चेहरा उसके सीने में छुपा लिया, अब भूरा के मन से मां की चिंता हटी तो तुरंत ही मन के कमरे में कामुक विचार घुस गए।
उसे फिर से सुबह का वो दृश्य दिखाई देने लगा, और आंखों के सामने मां के नंगे चूतड़ आ गए, बदन में उत्तेजना होने लगी एक तो वो दृश्य और फिर अभी उसकी मां उससे चिपकी हुई जो थी, उसे डर भी लग रहा था कि अपनी मां के इतने पास होने पर भी वो ऐसा सोच रहा है पजामे में उसका लंड भी कस चुका था, उसे डर था कि कहीं उसकी मां को न पता चल जाए कि उसका लंड खड़ा है, पर उसका डर और बढ़ता इससे पहले ही रत्ना ने अपना सिर उसके सीने से हटाया और फिर दूर हो गई।
रत्ना: चल अब काम करने हैं बहुत लाड़ हो गया।
भूरा: हां चलो न मैं भी मदद करता हूं,
रत्ना: चल आज बहुत से काम करवाऊंगी तुझसे।
दोनों मां बेटे काम में लग जाते हैं।
इधर छोटू आज काफी देर से उठा था, और उस वजह से उसे आज अकेले ही खेत में जाना पड़ा था हगने के लिए, वैसे भी उसका मन भी कुछ पल अकेले रहने का था, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि रात भर उसने अपनी सगी मां को चोदा है, अपना लंड उस चूत में डाला है जिससे वो कभी निकला था, ये सोच सोच कर उसका दिमाग़ घूम रहा था, ऐसा मज़ा उसे कभी नहीं आया था, जितना अपनी ही मां की चूत को चोदकर आया था वैसे तो उसने इससे पहले चूत सिर्फ छुप कर ही देखी थी उसने सोचा भी नहीं था कि उसकी पहली चुदाई उसकी मां के साथ ही होगी, और वो भी ऐसी होगी। हगते हुए उसके मन में यही सब चल रहा था हगने के बाद वापिस घर की ओर चलते हुए उसे रास्ते में जो अपनी उम्र के लड़के मिल रहे थे वो खुद की उनसे बड़ा और परिपक्व महसूस कर रहा था, और किस्मत वाला भी, और करे भी क्यों ना आख़िर उसके जैसी किस्मत हर किसी की कहां थी?
हर औरत को अब वो एक अलग ढंग से देख रहा था, अपनी किस्मत पर मन ही मन मुस्कुराते हुए वो घर की ओर चला आ रहा था, घर पहुंचा तो उसकी आँखें उसकी मां को ढूंढने लगी, जो उसे खाना बनाती दिखी, वो जाकर चूल्हे के पास बैठ गया और अपनी मां को एक प्रेमी की तरह देखने लगा, इसी बीच उसकी मां ने उसे देखा और बोली: आ गया लल्ला ले, चाय ले ले, परांठे खाएगा?
छोटू: वो हां मां?
पुष्पा: जा टोकरी से प्लेट लेकर आ अभी देती हूं,
छोटू अपनी मां के कहे अनुसार टोकरी से प्लेट लेने चल दिया और चलते हुए वो सोच में था क्योंकि उसकी मां तो ऐसे बर्ताव कर रही है जैसे कुछ हुआ ही नहीं, कहां उसे लगा था कि उसके और मां के बीच सब कुछ बदल गया पर मां तो कुछ और ही दिखा रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं, वो सोचने लगा कि बड़े बुजुर्ग सही ही कहते हैं स्त्री के मन की बात कोई नहीं जान सकता, पर मैं क्यों चिंता कर रहा हूं मुझे तो बस रात को मां अपनी चूत की सेवा करने दें दिन में चाहे कैसे भी करें, ये सोचते हुए वो परांठे लेकर बैठ गया। धीरे धीरे नाश्ता करके घर के मर्द घर से निकलने लगे छोटू ने भी नाश्ता कर लिया तो उसने सोचा अब घर पर तो कुछ होने वाला नहीं है लगता नहीं मां कुछ करना तो दूर उसके बारे में बात भी करेंगी तो इसलिए वो भी घर से निकल गया।
इधर लल्लू अपनी मां और बहन के साथ मिलकर पूरी लगन से घर के काम करवा रहा था, तो नंदिनी ने अपनी मां से कहा ये काम करवा रहा है तो मैं नहा लेती हूं, और फिर वो नहाने चली गई, नहाने के बाद नंदिनी सिलाई सीखने के लिए निकल गई, अब घर पर सिर्फ लल्लू और उसकी मां थे, काम लगभग निपट चुके थे,
लता: हो गए काम लल्ला सारे, अब तू भी नहा ले।
लल्लू: हां मां नहा लेता हूं तुम क्या करोगी,
लता: मैं भी बस कुछ कपड़े हैं इन्हें भीगा कर निकाल दूं फिर नहा लूंगी तू नहा ले तब तक,
लल्लू उसकी बात मान कर पटिया पर कपड़े उतार कर नहाने लगता है कुछ पल बाद ही लता भी पटिया पर कपड़े लेकर आ जाती है और एक बाल्टी में घुलने वाले कपड़े डाल देती है और फिर अपनी साड़ी भी उतार कर उसी बाल्टी में डाल देती है और लल्लू की नज़र तुरंत अपनी मां के बदन पर टिक जाती है, लता तो रोज़ ही ऐसे ही कपड़े धोती थी ब्लाउज़ और पेटीकोट में और आज भी बेटे के सामने क्या शर्माना था इसीलिए आज भी अपनी साड़ी को उतार कर बाल्टी में डाल दिया और नल चलाकर बाल्टी भरने लगी,
लल्लू तो अपनी मां को आज वैसे भी अलग दृष्टिकोण से देख रहा था और अभी मां के गदराए बदन को पेटिकोट और ब्लाउज़ में देख तो उसका बदन सिहरने लगा वो उसके हाथ धीरे हो गए, मां का गदराया पेट और कमर देख कर ब्लाउज़ में कसी हुई मोटी चुचियों को देख कर लल्लू का लंड चड्डी में सिर उठाने लगा, ऊपर से लता झुक कर नल चला रही थी तो उसकी मोटी सी गांड और फैल कर बाहर निकल गई थी साथ ही नल चलाने की वज़ह से ऊपर नीचे हो रही थी ये देख देख तो लल्लू का हाल बुरा होने लगा, उसका लंड चड्डी में पूरी तरह से तन चुका था और चड्डी भी गीली थी तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे छुपाए,
बाल्टी भरते ही लता ने अपना पेटीकोट का नाड़ा ढीला किया और उसे छाती तक चढ़ा लिया और अपने मुंह में एक छोर दबा लिया और बड़ी आसानी से पेटिकोट के अंदर से ही ब्लाउज़ खोला और उसे भी बाल्टी में डाल दिया, और फिर पेटिकोट को अपनी छाती के ऊपर बांध दिया, ये ऐसी कला है जिसमें हर महिला कुशल होती है, लल्लू के सामने जैसे ही ब्लाउज बाल्टी में गिरा उसने तुरंत आँखें उठा कर ऊपर देखा और अपनी मां को सिर्फ पेटीकोट में देख कर वो उत्तेजना में तड़प उठा, उसका लंड चड्डी में झटके खाने लगा जिसे वो किसी तरह से छुपाए हुए था,
लता: अरे लल्ला कितनी देर नहाएगा अभी मुझे भी नहाना है।
लल्लू: हां हां मां बस हो गया,
लल्लू खुद को संभालते बोला, और लोटे से पानी भरकर अपने बदन पर डालने लगा, लल्लू को डर था कि कहीं मां उसका खड़ा लंड न देख लें, इसलिए वो थोड़ा घूम कर नहाने लगा, इसी बीच लता की नज़र लल्लू की पीठ पर पड़ी,
लता: तू इतना बड़ा हो गया पर नहाने का सहूर नहीं आया तुझे देख पीठ पर मैल जमा पड़ा है।
लल्लू: कहां मां पीठ पर दिखता भी नहीं है और न ही हाथ पहुंचते हैं,
लता: रुक अभी, मैं कर देती हूं
ये कह कर लता उसके पीछे बैठ कर उसकी पीठ घिसने लगती है वहीं अपनी मां के हाथों को महसूस कर लल्लू के बदन में सिहरन होने लगती है, लता उसकी पीठ पर लगे मैल को घिस घिस कर उतारने लगती है,
लता: देख न जाने कब का जमा हुआ है इतना घिसना पड़ रहा है,
लल्लू: क्या करूं मां पीठ पर दिखता तो है नहीं इसीलिए जम गया है।
लता: चल आगे से मुझसे साफ करवा लिया करना।
ले हो गया साफ अब धो ले,
लल्लू ने तुरंत ही लोटे में पानी लिया और अपनी पीठ पर डालने लगा जो कि पीछे बैठी लता पर भी गिर रहा था, पीठ धोने के बाद लल्लू सावधानी से अपनी मां की ओर ही पीठ किए हुए ही खड़ा हुआ और फिर तुंरत अंगोछे को अपनी कमर से लपेट कर गीली चड्डी को उतारा और फिर अंगोछे को कमर से लपेट लिया और फिर मूड कर बैठ गया और अपनी उतारी हुई चड्डी को धोने लगा, लता भी बाल्टी से गिले कपड़े निकाल कर धो रही थी, चड्डी धोते हुए लल्लू की नज़र सामने मां पर पड़ी तो उसकी आँखें जमीं रह गईं, क्योंकि गीले होने की वजह से पेटीकोट लता की चूचियों से चिपक गया था और उसकी चूचियों के आकार को बड़ी कामुकता से दर्शा रहा था, हल्के पीले रंग का होने के कारण वो हल्का पारदर्शी हो चुका था और लल्लू को अपनी मां की मोटी चूचियों के दर्शन भी हल्के हल्के हो रहे थे, उसका लंड तो मानो लोहे का हो चुका था, उसके हाथ उसकी चड्डी पर हल्का हल्का चल रहे थे क्योंकि उसका ध्यान तो मां की चूचियों पर था,
इधर लता की नज़र भी उसके हाथों पर पड़ी तो बोली: अरे कैसे धो रहा है ला मुझे दे दे मैं धो लूंगी,
और हाथ बढ़ाकर उसके सामने से चड्डी उठा ली, अब लल्लू के पास कोई कारण नहीं बचा था रुकने का तो उसे उठना पड़ा और वो उठ कर धुले हुए कपड़े पहनने लगा, पर उसकी नज़र बार बार अपने मां के बदन पर ही जा रही थी, उसके लंड का बड़ा बुरा हाल हो चुका था, इधर लता कपड़े धोने में व्यस्त थी, लल्लू ने कपड़े पहने ही थे कि किवाड़ बजने लगे,
लता: लल्ला देख तो द्वार पर कौन है, कोई बड़ा हो तो बाहर ही रोक दियो मैं नहा रही हूं ना,
लल्लू: ठीक है मां,
ये कह लल्लू द्वार पर गया और किवाड़ खोल कर देखा तो सामने छोटू खड़ा था,
लल्लू: और छोटू साहब कहां रहते हो तुम आजकल मिलते ही नहीं?
छोटू: मैं तो यहीं रहता हूं तू ही नहीं मिलता,
लल्लू: साले मैं और भूरा बुलाने जाते है तुझे तो अम्मा बोलती है तू सो रहा तेरी तबीयत खराब है, अब ये क्या लगा रखा है तूने?
छोटू: अरे वो,
इतने में पीछे से लता की आवाज़ आती है : अरे कौन है लल्लू?
लल्लू: छुटुआ है मां, मैं जा रहा हूं इसके साथ।
लता: अरे रुक जा थोड़ी देर मैं नहा लूं फिर चले जाना, दोनों आ जाओ थोड़ी देर बैठ जाओ घर में ही।
लल्लू: चल आजा।
दोनों अंदर आते हैं छोटू पटिया पर कपड़े धोती लता को देखता है और उसे प्रणाम करता है, सारे बच्चे एक ही उमर के थे तो ऐसे पेटिकोट में रहना दोनों के लिए ही कोई बड़ी बात नहीं थी,
लता: बैठ जा छोटू थोड़ी देर फिर चले जाना, नहा लूं मैं नहीं तो बीच में कोई आए तो किवाड़ खोलने की दिक्कत हो।
छोटू: अरे कोई बात नहीं ताई,
दोनों आंगन में ही बैठ जाते हैं लल्लू अब भी नजरें छुपा छुपा कर अपनी मां को देख रहा था वहीं छोटू की भी नज़र जब से ताई की गीली चुचियों पर पड़ी थी तो वो भी छुप छुप कर उन्हें ताड़ने के मौके ढूंढ रहा था, कुछ ही पलों में दोनों के पजामें में उनके लंड सिर उठा रहे थे, लल्लू का तो खैर बैठा ही नहीं था,
लल्लू चालाकी दिखाते हुए कुछ न कुछ बातें छोटू से किए जा रहा था ताकि उसे या मां को शक न हो और छोटू भी उसकी हर बात का जवाब दे रहा था पर देख दोनों ही लता के बदन को रहे थे,
लता: ए लल्ला ज़रा नल तो चला दियो आकर।
लता ने बोला तो लल्लू खड़ा हुआ और जाकर नल चलाने लगा तो लता कपड़ों की बाल्टी खिसका कर आगे हुईं और नल से निकलती धार के नीचे बाल्टी लगा दी इधर उसके आगे होने से लल्लू की नज़र अपनी मां के पिछवाड़े पर गई और एक बार को तो उसके हाथ से नल का हत्था ही छूट गया, लता का पेटिकोट पीछे से भी गीला था और भीग कर उसके चूतड़ों से चिपका हुआ था, पेटिकोट का कुछ हिस्सा तो उसके चूतड़ों की दरार में भी घुस गया था, लल्लू को तो लग रहा था मानों उसकी मां सुबह की तरह ही जैसे खेत में बैठी थी वैसी ही उसके बगल में नंगी बैठी है, पजामे में उसका लंड ठुमके मारने लगा, वो तो सीधा अपनी मां के पिछवाड़े को घूरने लगा,
आंगन से छोटू भी लता को देख रहा था फिर उसने नज़र ऊपर करके देखा तो लल्लू की नज़र को अपनी मां के पिछवाड़े की ओर पाया तो छोटू सोचने लगा: साला हरामी अपनी मां के पिछवाड़े को देख रहा है, फिर उसके मन में आया मैं उससे क्या ही कह सकता हूं वो तो बस देख ही रहा है मैने तो अपनी मां को चोदा भी है, ये सोच कर छोटू और उत्तेजित होने लगा,
इसी बीच लता उठी और घूम कर बाल्टी में रखे कपड़े निचोड़ने लगी जिसका असर ये हुआ कि अब उसका मुंह लल्लू की ओर हो गया,
लता: रुक जा लल्ला बाल्टी भर गई,
लल्लू का तो ध्यान ही नहीं था अपनी मां की आवाज़ सुनकर उसने नल रोका और खड़ा हो गया, क्योंकि अब उसकी मां का मुंह उसी की ओर था तो उसने खुद को संभाला और अपनी नजर मां के बदन से हटाई और उसने छोटू को देखा जो कि आंखें फाड़े टक टकी लगाकर उन दोनों की ओर देखा जा रहा था उसने सोचा ये क्यों पागलों की तरह देख रहा है तभी उसे अचानक से समझ आया कि घूमने की वजह से उसकी मां का पिछवाड़ा अब छोटू की ओर हो गया था मतलब छोटू मेरी मां के चूतड़ों को देख रहा है, पर ये सोचकर भी उसे गुस्सा नहीं आ रहा था बल्कि उत्तेजना हो रही थी,
इधर छोटू ने जब लता ताई के पेटीकोट में भीगे चूतड़ देखे तो उसका तो लंड हिलोरे मारने लगा, वो सोचने लगा ऐसा नज़ारा हो तो कौन अपने आपको रोक सकता है बेटा हो या बाप, मेरी मां होती तो मैं तो अब तक चोदने लगता, इसमें बेचारे लल्लू का क्या दोष वो तो बस देख ही रहा था।
छोटू ये सोचते हुए देखने में इतना खो गया था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब लल्लू आ कर उसके बगल में बैठ गया,
अब दोनों दोस्तों के सामने एक ही नजारा था, लल्लू सोच रहा था अब मैने भी तो इसकी मां और चाची के चूतड़ों को देखा है तो ये तो कपड़े के ऊपर से देख रहा है, दोनों को ही लता के बदन ने उत्तेजित कर दिया था, दोनों के ही लंड बिल्कुल तन कर खड़े थे,
इसी बीच लता कपड़े रखने के लिए झुकी तो और उसकी गांड फैल गई जिसका असर दोनों ही दोस्तों पर हुआ और दोनों के मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई, लता कुछ देर तक कपड़े निचोड़ती रही और दोनों ही उसे टक टकी लगाकर देखते रहे, कपड़े निचोड़ने के बाद लता ने अपनी साड़ी और पेटीकोट उठाया और बगल में कच्चे से स्नानघर में घुस गई, तब जाकर दोनों की नजर उसके बदन से हटी, लल्लू को ये तो समझ आ गया था कि छोटू भी उसकी मां के चूतड़ों को देख रहा था पर इसकी गलती भी क्या है ऐसे चूतड़ देख कर कौन खुद को रोक सकता है, वैसे इससे इतना तो समझ आ गया कि साला हरामी ये भी है मेरे और भूरा की तरह जब मेरे सामने मेरी मां के चूतड़ों को देख सकता है तो हमारा साथ भी दे सकता है, पर साले से बात कैसे करूं समझ नहीं आ रहा?
लल्लू अपनी उधेड़बुन में था तो छोटू ये सोच घबरा रहा था कि कहीं लल्लू ने उसे ताई के पिछवाड़े को घूरते हुए देख तो नहीं लिया, साला वैसे भी गुस्सा जल्दी हो जाता है क्या करूं?
दोनों ही अपनी अपनी सोच में लगे हुए थे, इतने में लता नहा कर निकली और बोली: अब जा सकते हो तुम लोग।
लल्लू ने अपनी मां की बात सुनी और फिर छोटू को बोला: चल।
छोटू भी उसके पीछे पीछे चल दिया।
सत्तू अपने घर में एक खाट पर लेता हुआ था और नंगे चित्रों वाली किताब को देख देख कर अपने लंड को सहला रहा था तभी बाहर किवाड़ पर कुछ आहट हुई तो उसने तुंरत किताब को तकिए के नीचे सरका दिया इतने में ही एक भरे बदन की औरत आंगन में प्रवेश करती है।
सत्तू: अब आई हो मां इतना टेम लगा देती हो तुम तो।
झुमरी: अरे वो वो तुझे तो पता है न औरतें बातों में लग जाती हैं तो रुकती कहां हैं।
सत्तू: अच्छा तुम वहां बातों में लगी रहो और मुझे अभी तक चाय भी नहीं मिली।
झुमरी: चढ़ा रही हूं तेरी चाय, ये नहीं कि खुद ही बना ले कभी सब काम मैं ही कर के दूं तुझे।
झुमरी चाय चढ़ाते हुए कहती है,
सत्तू: अरे मां तुम्हें पता है ना बाहर के सारे काम कर लेता हूं मैं बस घर के काम नहीं होते मुझसे।
सत्तू भी उठ कर अपनी मां के पास चूल्हे के बगल में आकर बैठ जाता है
झुमरी: तभी कहती हूं अब ब्याह करले, बहु आ जाएगी तो मुझे भी आराम मिल जाएगा, और तुझे भी बिस्तर पर चाय मिल जाया करेगी।
सत्तू: का मां तुम भी ऐसे थोड़े ही होता है ब्याह, उसके लिए लड़की चाहिए अच्छी सी और फिर बहुत सारा पैसा भी लगता है ब्याह में,
झुमरी: तो लड़की मैं ढूंढ लूंगी पैसा तू कमा।
दोनों हंसने लगते हैं,
सत्तू: पैसा कमाना है तभी तो शहर के सबसे ज़्यादा चक्कर लगाता हूं पूरे गांव में।
झुमरी: जानती हूं लल्ला, तूने ही तो सब संभाल रखा है,
झुमरी उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहती है,
सत्तू: अच्छा मां कल तुम खेत गई थी क्या?
ये सुनते ही झुमरी के चेहरे का रंग उड़ जाता है,
झुमरी: मैं न नहीं तो क्या क्या हुआ क्यों पूछ रहा है?
सत्तू: कुछ नहीं वो एक बार देखना था सब्जियों की क्या हालत है, चलो कोई नहीं आज मैं ही देख आऊंगा।
झुमरी: हां वो घर के काम से समय ही नहीं मिला पूरे दिन इसलिए नहीं जा पाई।
सत्तू: कोई बात नहीं मां मैं देख आऊंगा आज।
झुमरी: ठीक ले बन गई तेरी चाय,
झुमरी उसे चाय देती है और सत्तू चाय लेकर बापिस खाट पर बैठ जाता है वहीं झुमरी चूल्हे की ओर देखते हुए किसी सोच में डूब जाती है।
झुमरी का परिवार हमेशा से ही छोटा था सत्तू के बाप से ब्याह होकर आई थी तो घर में उसकी सास और उसके पति ही थे, ससुर पहले ही पधार गए थे उसके पति की बड़ी बहन थी उसका भी ब्याह हो चुका था, और अभी तो उसके घर में सिर्फ दो ही लोग बचे थे, उसके पति और सत्तू के बाप का निधन तो 8 साल पहले ही नदी में डूब कर हो गया था शव तक नहीं मिला था बेचारे का, तब तो सत्तू बहुत छोटा था फिर भी बेचारे को उमर से पहले बढ़ा होना पड़ा, खूब मेहनत की और अपनी मां का भरपूर साथ दिया था तब जाकर उन्होंने वो कठिन समय काटा था, यूं तो झुमरी सत्तू को दिखाती थी कि उससे अब मेहनत नहीं होती और उसकी उम्र हो चुकी है पर अभी उसकी उमर ही क्या था छत्तीस वर्ष, और बदन पूरा भरा हुआ, खेतों में खूब काम किया था उसने तो बदन बिल्कुल कसा हुआ था, नितम्ब फैले हुए जो साड़ी के अंदर होते हुए भी लोगों पर अलग ही जादू करते थे, वहीं मोटी मोटी चूचियां थीं जिनकी कसावट अब भी बाकी थी, कमर और पेट गदराया हुआ था पर मोटापा बिलकुल नहीं था, पति की मौत के बाद कुछ समय तो वो सूखती सी गई पर फिर उसने अपना सारा ध्यान अपने बेटे और खेतों में लगा दिया था और जबसे सत्तू ने काम संभाला तब से तो उसका बदन भरता चला गया और अब ये कहना गलत नहीं होगा कि वो गांव की सबसे कामुक औरतों में से एक थी।
नीलम और नंदिनी रजनी भाभी के पास बैठे हुए थे और सिलाई सीख रहे थे पर आज मशीन ने उन्हें धोखा दे दिया था और चल नहीं रही थी,
नीलम: क्या हुआ भाभी नहीं चलेगी क्या?
रजनी: नहीं भाभी की ननद लग तो नहीं रहा,
रजनी मशीन को ठीक करने की कोशिश करते हुए बोली...
नीलम: लो गया आज का दिन बेकार।
नंदिनी: अरे तू चुप कर गलत ही बोलेगी।
रजनी मशीन को एक ओर सरका देती है और कहती है: अब इसे तो तुम्हारे भैया ही सही करवा कर लायेंगे, अब बताओ तुम क्यों लड़ रही हो आपस में।
नंदिनी: ये नीलम है भाभी हमेशा उल्टा ही बोलती है, अब बोल रही है दिन खराब हो गया,
नीलम: ठीक ही तो बोल रही हूं, अब मशीन खराब हो गई तो और कहां सीख पाएंगे।
नंदिनी: अरे सिलाई ही तो नहीं सीख सकते और भी बहुत कुछ सिखा सकती हैं भाभी क्यों भाभी?
रजनी: हां बिल्कुल बताओ तुम्हें क्या सीखना है सब कुछ सिखा सकती हूं।
नंदिनी: भाभी सिखाना है तो इस नीलम को कुछ गुण सिखाओ के पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना होता है।
नीलम: धत्त कितनी कुतिया है तू, मेरा नाम लगा कर अपने मन की क्यों पूछ रही है तुझे जानना है तो अपने लिए पूछ।
नंदिनी: क्यों तुझे नहीं रखना अपने पति को खुश?
नीलम: वो मैं रख लूंगी जब पति होगा तब, तू अपनी सोच।
नंदिनी: कामुक बातों से जैसे तू दूर भागती है न पति तुझे छोड़ कर भाग जाएगा। हैं न भाभी?
नीलम: भाग जाए तो भाग जाए मुझे क्या?
नंदिनी: भाभी अभी ये मज़ाक समझ रही है मेरी बातों को, तुम ही बताओ इसे।
रजनी: अच्छा तो आज तुम दोनों को ये सीखना है कि पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना है।
नीलम: मुझे नहीं भाभी इसे ही सीखना है।
नंदिनी: हां मुझे ही सीखना है तू अपने कान बंद कर ले, बताओ भाभी तुम।
रजनी: वैसे नीलम नंदिनी की ये बात सच है कि अगर पति बिस्तर पर खुश नहीं है तो फिर वो उखड़ा उखड़ा सा रहता है और हो सकता है बाहर भी मुंह मारने लगे।
नंदिनी: देखा अब बोल?
नीलम: मतलब भाभी, ये तो पत्नी के साथ गलत हुआ ना।
रजनी: देख जैसे पेट की भूख होती है न वैसे ही मर्दों को बदन की भूख भी होती है और अगर पत्नी से वो शांत नहीं होती तो पति बाहर ही जाएगा ना।
नंदिनी: बिल्कुल भाभी, सीधी सी बात है ये तो।
नीलम: तो भाभी पति ऐसा न करे उसके लिए पत्नी को क्या करना चाहिए?
रजनी: देखो हर आदमी को ऐसी औरत पसंद आती है जो सबके सामने खूब शर्माए, और बिल्कुल संस्कारी बन कर रहे पर बिस्तर पर बिल्कुल इसकी उलट हो।
नंदिनी: उलट मतलब?
रजनी: मतलब कि जो बिस्तर पर गरम हो, खुल कर अपने पति का साथ दे, उसके सामने शर्माती ही न रहे, बल्कि बिस्तर पर पहुंच कर शर्म को कपड़े के साथ ही उतार देना चाहिए। पति के साथ गंदी गंदी बातें करनी चाहिए, वो जैसा चाहे वैसा करोगे तो पति तुम्हें बहुत खुश रखेगा।
नंदिनी: सही में भाभी मैं तो बिल्कुल नहीं शर्माऊंगी।
रजनी: हां तुझे देख कर लगता है शर्माना तो तेरे पति को पड़ेगा।
इस पर तीनों हंसने लगती हैं,
नीलम: पर भाभी अगर शर्म आती हो तो अचानक से कैसे चली जाएगी वो तो आएगी ही न।
रजनी: बिल्कुल आएगी, तभी तो उसे धीरे धीरे कम करना चाहिए,
नीलम: पर भाभी कैसे? मुझे तो तुम दोनों के सामने भी शर्म आती है ऐसी बातें करने में।
नंदिनी: और पति तो शुरू शुरू में अनजान होगा भाभी, उसके सामने तो ये बोल भी नहीं पाएगी।
रजनी: वही तो, इसीलिए तुझे अभी से शुरुआत करनी होगी नीलम, नहीं तो बाद में परेशानी होगी।
नीलम: पर अभी से कैसे करूं भाभी यही तो समझ नहीं आता।
नंदिनी: मैं बताऊं, पहले तो तुझे ये नाटक करना बंद करना होगा कि तुझे ये सब पसंद नहीं आता या तेरा मन नहीं करता ये बातें करने का।
नंदिनी की बातें सुनकर नीलम चुप हो गई और रजनी की ओर देखने लगी।
रजनी: नंदिनी सही कह रही है नीलम, मैं मानती हूं हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि ये सब गंदी बाते हैं और इन सब से दूर रहना चाहिए, पर सच्चाई इससे अलग है।
नीलम: क्या है सच्चाई,
रजनी: यही कि हर कोई ये बातें करना चाहता है और करता भी है बस मना इसीलिए किया जाता है ताकि शर्म बनी रही, बाकी ऐसी कौन सी सहेलियां नहीं होंगी जो एक दूसरे की रात की कहानियां नहीं सुनती होंगी।
नंदिनी: समझी तो सबसे पहले हमारे साथ खुल, और खुल कर बात किया कर, इतना तो मैं भी तुझे समझती हूं कि मज़ा तुझे भी आता है बस मानना नहीं चाहती।
रजनी: सच में नीलम ये सब समाज की बातें खोखली हैं अगर पति खुश रहेगा साथ रहेगा तो समाज का फर्क नहीं पड़ता पर अगर पति ही अलग होने लगा तो समाज जीना मुश्किल कर देगा चाहे कितनी ही संस्कारी बन के रहो।
नीलम: सही कह रही हो भाभी।
रजनी: अब मुझे ही देख लो, अपने पति को पिता बनने का सुख नहीं दे पाई आज तक, समाज मुझे क्या क्या कहता है ये तुमसे छुपा नहीं पर मैंने अपने पति को कभी बिस्तर से असंतुष्ट होकर नहीं उठने दिया और शायद उसी के कारण हम आज तक साथ हैं नहीं तो समाज तो अब तक मुझे बांझ बना कर उनकी दूसरी शादी करा देता।
रजनी ने गंभीर होते हुए कहा तो वो दोनों भी गंभीर हो गईं, कुछ देर सन्नाटा रहा फिर रजनी बोली: अरे तुम लोग क्यों मुंह बना कर बैठ गईं, सीखना नहीं हैं क्या क्या करना होता है बिस्तर पर।
ये सुन कर दोनों हीं मुस्कुराने लगीं और रजनी उन्हें संभोग का ज्ञान देने लगी।
फुलवा आंगन में लेटी थी उसके बदन में हल्का हल्का दर्द था वह आंखें बंद करके लेटी थी और उसके सामने बस अपनी सुबह की चुदाई आ रही थी, पिछले दो दिनों से कोई अनजान साया उसे चोद रहा था और फुलवा उसकी चुदाई से पागल सी होती जा रही थी, खैर सुबह जल्दी उठने और फिर चुदाई की थकान से लेट कर उसे कुछ ही देर में नींद आ गई, घर के सारे मर्द बाहर थे नीलम सिलाई सीखने गई थी, घर पर सिर्फ दोनों बहुएं और फुलवा थीं,
सुधा: जीजी मैं का कह रही हूं आज फुर्सत है तो चलो कमरा ही साफ कर लेते हैं।
पुष्पा: कह तो सही रही है नहीं तो रोज ये काम टलता रहता है, जाले भी बहुत हो गए हैं कमरों में, पहले कौनसा करें?
सुधा: पहले तुम्हारा वाला कर लेते हैं
पुष्पा: चल ठीक है, आजा।
दोनों जल्दी से कमरे में पहुंचते हैं,
पुष्पा: मैं बिस्तर समेटती हूं तू तब तक संदूक के ऊपर से कपड़े हटा,
सुधा: ठीक है दीदी,
पुष्पा बिस्तर की ओर बढ़ती है और पास जाती है तो उसे बिस्तर पर हुई उसकी और उसके बेटे के बीच की चुदाई के दृश्य दिखाई देने लगते हैं और उसका बदन सिहरने लगता है, फिर से वो उत्तेजित होने लगती है, उसकी चूत नम होने लगती है, वो एक पल को रुक जाती है, बिस्तर को देखते हुए उसे एक एक पल याद आने लगता है कि कैसे इसी बिस्तर पर रात पर उसने अपने बेटे का लंड अपनी चूत में लिया और चुदवाया, अभी भी एक कम्पन उसकी चूत में उसे महसूस हो रहा था, और उसकी उत्तेजना को बढ़ा रहा था, इधर सुधा ने संदूक के ऊपर से कपड़े हटाए और बोली: दीदी इन्हें कहां रखूं?
पर पुष्पा ने कुछ जवाब नहीं दिया तो सुधा ने पुष्पा की ओर देखा जो बैठ कर बिस्तर को देखे जा रही थी, सुधा को समझ नहीं आया कि उसकी जेठानी क्या कर रही है तो उसने कपड़ों को अलग रखा और पुष्पा के पास गई और बगल में बैठते हुए उसके कंधे पर हाथ रख कर हिलाया और पूछा: क्या हुआ दीदी कहां खो गई,
तब जाकर पुष्पा अपने खयालों से बाहर निकली और बगल में अपनी देवरानी को बैठा पाया,
सुधा: क्या हुआ दीदी ऐसे क्यों बैठी हो?
पुष्पा को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले वो कभी सुधा को देखती तो कभी बिस्तर को, और फिर अचानक से उसके मन में न जाने क्या आया कि उसने आगे झुक कर अपने होंठ सुधा के होंठों से जोड़ दिए।
जारी रहेगी।
Behtreen update
अध्याय 16
लल्लू: हां यार ये तो सही कहा तूने। और दोनों ही कम नहीं हैं।
भूरा: पर तुझे क्या लगता है छुटुआ कभी हमारे जितना खुल पाएगा?
लल्लू: खुलेगा नहीं तो खोलना पड़ेगा, साले को अपने साथ लेना पड़ेगा।
भूरा: कुछ योजना बनानी पड़ेगी।
लल्लू: हां बनायेंगे पर मेरा फिर से खड़ा हो गया मां के बारे में सोच कर एक बार और हिलाते हैं।
दोनों फिर से एक एक बार अपना पानी गिराते हैं और फिर बातें करते हुए गांव के अंदर की ओर चल देते हैं। अब आगे...
चूल्हा चौका हो चुका था और लता अभी साफ सफाई कर रही थी, इधर आज लल्लू खाना खाने के बाद जो गांव में हांडने निकल जाता था वो घर पर ही था और छुप छुप कर अपनी मां के बदन को निहार रहा था, उसे आज पता चल रहा था कि उसकी मां कितनी कामुक है, इतना भरा हुआ बदन है कमर तो पूछो ही मत और ब्लाउज़ के अंदर कितनी मोटी मोटी चूचियां हैं, जबसे उसने अपनी मां की गांड आज सुबह देखी थी उसका तो मानो सोचने का तरीका ही बदल गया था, सुबह से ही उसका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था।
लता: तुझे का हुआ आज अभी तक घर में है वैसे तो तुरंत निकल जाता है?
लता ने चूल्हा साफ करते हुए कहा तो लल्लू अपने खयालों से बाहर आया और बोला: वो कुछ नहीं मां बस ऐसे ही। बाहर घूमने से कोई फायदा थोड़े ही है।
लल्लू अपनी मां के फैले हुए चूतड़ों पर आँखें लगाते हुए बोला,
लता: अरे वाह आज तो बड़ी समझदारी दिखा रहा है।
नंदिनी: हां मां समझदारी तो दिखाएगा ही, अब बड़ा जो हो रहा है।
नंदिनी दूसरी ओर से लल्लू को गुस्से से देखते हुए बोली, तो लल्लू की नज़र अपनी बड़ी बहन से मिली और फिर तुंरत झुक गईं।
लता: हां बड़ा तो होगा ही, तभी तो ब्याह करेगा और मेरे लिए बहुरिया लाएगा, और मुझे थोड़ा आराम मिलेगा।
लल्लू: अरे मां तुम भी न कहां ब्याह करवाने लगीं, और रही बात काम की तो मुझे बता दिया करो न मैं कर दूंगा।
लता: अरे देख तो नंदिनी इसकी तबीयत तो ठीक है न? ये घर के काम करवाएगा, जो गिलास भर न उठा के देता हो,
लल्लू: हां मां पर अब से करवाया करूंगा तुम देख लेना।
नंदिनी: अच्छा तो जा फिर अंदर वाला बिस्तर और ये सब खाट जो बिछी पड़ी हैं वो सब समेट।
लल्लू तुरंत उठता है और खाट के पास जाकर चादर उठा कर घड़ी करने लगता है।
नंदिनी और लता उसे देख हैरान भी हो रही होती हैं और खुश भी।
ऐसा ही हाल कुछ भूरा के घर में भी था आज उसकी नजर भी अपनी मां के भरे हुए बदन से नहीं हट रही थी, वहीं काम करते हुए भी रत्ना के दिमाग में रात में हुआ हादसा चल रहा था, उसे बेहद ग्लानि हो रही थी उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, राजू और उसके बाप सुबह का नाश्ता कर घर से निकल गए थे अब घर पर बस भूरा और रत्ना थे, भूरा को भी अपनी मां आज कुछ परेशान दिख रहीं थीं,
भूरा: क्या हुआ मां कोई परेशानी है क्या आज तुम कुछ परेशान लग रही हो,
भूरा का ये सवाल सुन कर रत्ना थोड़ा घबरा गई और खुद को संभालते हुए बोली: नहीं तो लल्ला ऐसा कुछ नहीं है।
भूरा: नहीं मां मैं जानता हूं तुम झूठ बोल रही हो।
रत्ना थोड़ा और डर जाती है और कहती है: झूठ कैसा झूठ?
भूरा: यही कि तुम परेशान हो और उस परेशानी की वजह क्या है वो भी जानता हूं।
ये सुन कर तो एक पल को रत्ना का सिर घूम जाता है उसे लहता है कि भूरा को रात के बारे में पता है क्या, कैसे, क्या उसने मुझे देख लिया?
एक साथ बहुत से खयाल उसके मन में घूमने लगते हैं, और वो चुप होकर ज्यों के त्यों रुक जाती है।
भूरा: मैं जानता हूं मां कि रानी दीदी के ब्याह के बाद तुम अकेली पड़ गई हो घर का सारा काम तुम पर आ गया है, और करते करते तुम थक जाती हो।
ये सुनकर रत्ना के मन में शांति पड़ती है और वो हल्की सी झूठी मुस्कान होंठो पर लाकर कहती है: नहीं लल्ला अब घर का काम तो मेरा ही है, इसमें क्या परेशानी।
भूरा: जानता हूं मां पर तुम कहो न कहो पर कभी कभी तो तुम भी परेशान हो जाती होगी, पर अब से चिंता मत करो अब मैं तुम्हारी मदद किया करूंगा काम में,
रत्ना को अपने बेटे की बात सुन हैरानी होती है और थोड़ा अच्छा भी लगता है
रत्ना: अरे लल्ला तू क्यों करेगा घर के काम? तू मत परेशान हो मैं कर लूंगी।
भूरा: क्यों नहीं कर सकता तुम मेरी प्यारी मां हो और अपनी मां का हाथ बटाने में क्या परेशानी।
भूरा के मुंह से ये सब सुनकर रत्ना को बहुत अच्छा लग रहा था, इतने गहरे मानसिक तनाव के बीच भूरा की सांत्वना भरी बातें उसके मन को पसीज रहीं थीं, वैसे भी रत्ना बहुत ही जल्दी घबराने और डरने वाले स्वभाव की थी, ऐसे स्वभाव वाले व्यक्ति को हमेशा ही किसी के सहारे या सांत्वना की आवश्यकता होती है जो उनका साथ दे या जो कहे कि सब ठीक है। और ऐसे में रत्ना को वो सांत्वना अपने बेटे से मिल रही थी तो उसका मन बहुत से भावों से भर गया,
रत्ना: सच्ची लल्ला?
भूरा: हां मां तुम्हारी कसम।
भूरा ने भी आगे होकर अपनी बाहें मां के बदन के चारों ओर फैलाकर उसको प्यार से गले लगाते हुए कहा,
अपने बेटे के सीने से लग कर रत्ना को एक अचानक से शांति मिली, उसे एक सुरक्षा का भाव मिला अपने बेटे की बाहों में, उसके मन के भाव उमड़ पड़े। रात से मानसिक तनाव को उसके वेग को कैसे भी उसने रोक रखा था वो बांध टूट पड़ा और अचानक से ही वो अपने बेटे के सीने से लग कर फूट पड़ी और रोने लगी।
अपनी मां का यूं रोना देख भूरा घबरा गया और परेशान हो गया उसे समझ नहीं आया कि वो क्यों रो रही है।
भूरा: अरे मां क्या हुआ तुम्हें क्यों रो रही हो? बताओ ना मुझे चिंता हो रही है।
अब रत्ना उसे बताए तो क्या बताए इसीलिए बिना बोले बस रोती रही और अपने दुख को आंसुओं के रास्ते बहाने लगी।
भूरा: मां मत रो मां, अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है, मैं हूं न मैं हूं हमेशा तुम्हारे साथ, तुम्हे कोई परेशानी नहीं होने दूंगा,
भूरा को लग रहा था कि घर के काम बहुत अधिक होने से उसकी मां के सब्र का बांध आज टूट पड़ा और इसलिए वो रो रही है, तो उसने भी अपनी बातों से अपनी मां को अपने सीने से लगाए हुए ढांढस बंधाना शुरू कर दिया, अभी उसके मन में अपनी मां के लिए कोई भी कामुक विचार नहीं थे वो बस चिंतित था,
रत्ना को अपने बेटे के साथ उसकी बातें उसके सीने से यूं लग कर रोना बहुत अच्छा लग रहा था, उसे ऐसा भाव दे रहा था कि वो अपने बेटे की बाहों में सुरक्षित है उसे किसी भी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
धीरे धीरे उसके आंसू हल्के होने लगे उसका सुबकना भी बंद हो गया, भूरा उसकी पीठ को सहलाते हुए अब भी उसे सांत्वना दे रहा था उसे समझा रहा था, रत्ना अब चुप हो चुकी थी पर उसका मन नहीं हो रहा था अपने बेटे से अलग होने का,
भूरा: अब तुम ठीक हो मां?
रत्ना ने ये सुन कर अपना चेहरा उसके सीने से हटाया और उठाकर हल्की सी मुस्कान के साथ भूरा को देखा, अपनी मां की प्यारी सी मुस्कान देख कर भूरा के मन को एक अथाह शांति मिली, उसने प्यार से चेहरा झुकाकर अपनी मां के माथे को चूम लिया, रत्ना अपने बेटे के इस प्यार से शर्मा गई और फिर से अपना चेहरा उसके सीने में छुपा लिया, अब भूरा के मन से मां की चिंता हटी तो तुरंत ही मन के कमरे में कामुक विचार घुस गए।
उसे फिर से सुबह का वो दृश्य दिखाई देने लगा, और आंखों के सामने मां के नंगे चूतड़ आ गए, बदन में उत्तेजना होने लगी एक तो वो दृश्य और फिर अभी उसकी मां उससे चिपकी हुई जो थी, उसे डर भी लग रहा था कि अपनी मां के इतने पास होने पर भी वो ऐसा सोच रहा है पजामे में उसका लंड भी कस चुका था, उसे डर था कि कहीं उसकी मां को न पता चल जाए कि उसका लंड खड़ा है, पर उसका डर और बढ़ता इससे पहले ही रत्ना ने अपना सिर उसके सीने से हटाया और फिर दूर हो गई।
रत्ना: चल अब काम करने हैं बहुत लाड़ हो गया।
भूरा: हां चलो न मैं भी मदद करता हूं,
रत्ना: चल आज बहुत से काम करवाऊंगी तुझसे।
दोनों मां बेटे काम में लग जाते हैं।
इधर छोटू आज काफी देर से उठा था, और उस वजह से उसे आज अकेले ही खेत में जाना पड़ा था हगने के लिए, वैसे भी उसका मन भी कुछ पल अकेले रहने का था, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि रात भर उसने अपनी सगी मां को चोदा है, अपना लंड उस चूत में डाला है जिससे वो कभी निकला था, ये सोच सोच कर उसका दिमाग़ घूम रहा था, ऐसा मज़ा उसे कभी नहीं आया था, जितना अपनी ही मां की चूत को चोदकर आया था वैसे तो उसने इससे पहले चूत सिर्फ छुप कर ही देखी थी उसने सोचा भी नहीं था कि उसकी पहली चुदाई उसकी मां के साथ ही होगी, और वो भी ऐसी होगी। हगते हुए उसके मन में यही सब चल रहा था हगने के बाद वापिस घर की ओर चलते हुए उसे रास्ते में जो अपनी उम्र के लड़के मिल रहे थे वो खुद की उनसे बड़ा और परिपक्व महसूस कर रहा था, और किस्मत वाला भी, और करे भी क्यों ना आख़िर उसके जैसी किस्मत हर किसी की कहां थी?
हर औरत को अब वो एक अलग ढंग से देख रहा था, अपनी किस्मत पर मन ही मन मुस्कुराते हुए वो घर की ओर चला आ रहा था, घर पहुंचा तो उसकी आँखें उसकी मां को ढूंढने लगी, जो उसे खाना बनाती दिखी, वो जाकर चूल्हे के पास बैठ गया और अपनी मां को एक प्रेमी की तरह देखने लगा, इसी बीच उसकी मां ने उसे देखा और बोली: आ गया लल्ला ले, चाय ले ले, परांठे खाएगा?
छोटू: वो हां मां?
पुष्पा: जा टोकरी से प्लेट लेकर आ अभी देती हूं,
छोटू अपनी मां के कहे अनुसार टोकरी से प्लेट लेने चल दिया और चलते हुए वो सोच में था क्योंकि उसकी मां तो ऐसे बर्ताव कर रही है जैसे कुछ हुआ ही नहीं, कहां उसे लगा था कि उसके और मां के बीच सब कुछ बदल गया पर मां तो कुछ और ही दिखा रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं, वो सोचने लगा कि बड़े बुजुर्ग सही ही कहते हैं स्त्री के मन की बात कोई नहीं जान सकता, पर मैं क्यों चिंता कर रहा हूं मुझे तो बस रात को मां अपनी चूत की सेवा करने दें दिन में चाहे कैसे भी करें, ये सोचते हुए वो परांठे लेकर बैठ गया। धीरे धीरे नाश्ता करके घर के मर्द घर से निकलने लगे छोटू ने भी नाश्ता कर लिया तो उसने सोचा अब घर पर तो कुछ होने वाला नहीं है लगता नहीं मां कुछ करना तो दूर उसके बारे में बात भी करेंगी तो इसलिए वो भी घर से निकल गया।
इधर लल्लू अपनी मां और बहन के साथ मिलकर पूरी लगन से घर के काम करवा रहा था, तो नंदिनी ने अपनी मां से कहा ये काम करवा रहा है तो मैं नहा लेती हूं, और फिर वो नहाने चली गई, नहाने के बाद नंदिनी सिलाई सीखने के लिए निकल गई, अब घर पर सिर्फ लल्लू और उसकी मां थे, काम लगभग निपट चुके थे,
लता: हो गए काम लल्ला सारे, अब तू भी नहा ले।
लल्लू: हां मां नहा लेता हूं तुम क्या करोगी,
लता: मैं भी बस कुछ कपड़े हैं इन्हें भीगा कर निकाल दूं फिर नहा लूंगी तू नहा ले तब तक,
लल्लू उसकी बात मान कर पटिया पर कपड़े उतार कर नहाने लगता है कुछ पल बाद ही लता भी पटिया पर कपड़े लेकर आ जाती है और एक बाल्टी में घुलने वाले कपड़े डाल देती है और फिर अपनी साड़ी भी उतार कर उसी बाल्टी में डाल देती है और लल्लू की नज़र तुरंत अपनी मां के बदन पर टिक जाती है, लता तो रोज़ ही ऐसे ही कपड़े धोती थी ब्लाउज़ और पेटीकोट में और आज भी बेटे के सामने क्या शर्माना था इसीलिए आज भी अपनी साड़ी को उतार कर बाल्टी में डाल दिया और नल चलाकर बाल्टी भरने लगी,
लल्लू तो अपनी मां को आज वैसे भी अलग दृष्टिकोण से देख रहा था और अभी मां के गदराए बदन को पेटिकोट और ब्लाउज़ में देख तो उसका बदन सिहरने लगा वो उसके हाथ धीरे हो गए, मां का गदराया पेट और कमर देख कर ब्लाउज़ में कसी हुई मोटी चुचियों को देख कर लल्लू का लंड चड्डी में सिर उठाने लगा, ऊपर से लता झुक कर नल चला रही थी तो उसकी मोटी सी गांड और फैल कर बाहर निकल गई थी साथ ही नल चलाने की वज़ह से ऊपर नीचे हो रही थी ये देख देख तो लल्लू का हाल बुरा होने लगा, उसका लंड चड्डी में पूरी तरह से तन चुका था और चड्डी भी गीली थी तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे छुपाए,
बाल्टी भरते ही लता ने अपना पेटीकोट का नाड़ा ढीला किया और उसे छाती तक चढ़ा लिया और अपने मुंह में एक छोर दबा लिया और बड़ी आसानी से पेटिकोट के अंदर से ही ब्लाउज़ खोला और उसे भी बाल्टी में डाल दिया, और फिर पेटिकोट को अपनी छाती के ऊपर बांध दिया, ये ऐसी कला है जिसमें हर महिला कुशल होती है, लल्लू के सामने जैसे ही ब्लाउज बाल्टी में गिरा उसने तुरंत आँखें उठा कर ऊपर देखा और अपनी मां को सिर्फ पेटीकोट में देख कर वो उत्तेजना में तड़प उठा, उसका लंड चड्डी में झटके खाने लगा जिसे वो किसी तरह से छुपाए हुए था,
लता: अरे लल्ला कितनी देर नहाएगा अभी मुझे भी नहाना है।
लल्लू: हां हां मां बस हो गया,
लल्लू खुद को संभालते बोला, और लोटे से पानी भरकर अपने बदन पर डालने लगा, लल्लू को डर था कि कहीं मां उसका खड़ा लंड न देख लें, इसलिए वो थोड़ा घूम कर नहाने लगा, इसी बीच लता की नज़र लल्लू की पीठ पर पड़ी,
लता: तू इतना बड़ा हो गया पर नहाने का सहूर नहीं आया तुझे देख पीठ पर मैल जमा पड़ा है।
लल्लू: कहां मां पीठ पर दिखता भी नहीं है और न ही हाथ पहुंचते हैं,
लता: रुक अभी, मैं कर देती हूं
ये कह कर लता उसके पीछे बैठ कर उसकी पीठ घिसने लगती है वहीं अपनी मां के हाथों को महसूस कर लल्लू के बदन में सिहरन होने लगती है, लता उसकी पीठ पर लगे मैल को घिस घिस कर उतारने लगती है,
लता: देख न जाने कब का जमा हुआ है इतना घिसना पड़ रहा है,
लल्लू: क्या करूं मां पीठ पर दिखता तो है नहीं इसीलिए जम गया है।
लता: चल आगे से मुझसे साफ करवा लिया करना।
ले हो गया साफ अब धो ले,
लल्लू ने तुरंत ही लोटे में पानी लिया और अपनी पीठ पर डालने लगा जो कि पीछे बैठी लता पर भी गिर रहा था, पीठ धोने के बाद लल्लू सावधानी से अपनी मां की ओर ही पीठ किए हुए ही खड़ा हुआ और फिर तुंरत अंगोछे को अपनी कमर से लपेट कर गीली चड्डी को उतारा और फिर अंगोछे को कमर से लपेट लिया और फिर मूड कर बैठ गया और अपनी उतारी हुई चड्डी को धोने लगा, लता भी बाल्टी से गिले कपड़े निकाल कर धो रही थी, चड्डी धोते हुए लल्लू की नज़र सामने मां पर पड़ी तो उसकी आँखें जमीं रह गईं, क्योंकि गीले होने की वजह से पेटीकोट लता की चूचियों से चिपक गया था और उसकी चूचियों के आकार को बड़ी कामुकता से दर्शा रहा था, हल्के पीले रंग का होने के कारण वो हल्का पारदर्शी हो चुका था और लल्लू को अपनी मां की मोटी चूचियों के दर्शन भी हल्के हल्के हो रहे थे, उसका लंड तो मानो लोहे का हो चुका था, उसके हाथ उसकी चड्डी पर हल्का हल्का चल रहे थे क्योंकि उसका ध्यान तो मां की चूचियों पर था,
इधर लता की नज़र भी उसके हाथों पर पड़ी तो बोली: अरे कैसे धो रहा है ला मुझे दे दे मैं धो लूंगी,
और हाथ बढ़ाकर उसके सामने से चड्डी उठा ली, अब लल्लू के पास कोई कारण नहीं बचा था रुकने का तो उसे उठना पड़ा और वो उठ कर धुले हुए कपड़े पहनने लगा, पर उसकी नज़र बार बार अपने मां के बदन पर ही जा रही थी, उसके लंड का बड़ा बुरा हाल हो चुका था, इधर लता कपड़े धोने में व्यस्त थी, लल्लू ने कपड़े पहने ही थे कि किवाड़ बजने लगे,
लता: लल्ला देख तो द्वार पर कौन है, कोई बड़ा हो तो बाहर ही रोक दियो मैं नहा रही हूं ना,
लल्लू: ठीक है मां,
ये कह लल्लू द्वार पर गया और किवाड़ खोल कर देखा तो सामने छोटू खड़ा था,
लल्लू: और छोटू साहब कहां रहते हो तुम आजकल मिलते ही नहीं?
छोटू: मैं तो यहीं रहता हूं तू ही नहीं मिलता,
लल्लू: साले मैं और भूरा बुलाने जाते है तुझे तो अम्मा बोलती है तू सो रहा तेरी तबीयत खराब है, अब ये क्या लगा रखा है तूने?
छोटू: अरे वो,
इतने में पीछे से लता की आवाज़ आती है : अरे कौन है लल्लू?
लल्लू: छुटुआ है मां, मैं जा रहा हूं इसके साथ।
लता: अरे रुक जा थोड़ी देर मैं नहा लूं फिर चले जाना, दोनों आ जाओ थोड़ी देर बैठ जाओ घर में ही।
लल्लू: चल आजा।
दोनों अंदर आते हैं छोटू पटिया पर कपड़े धोती लता को देखता है और उसे प्रणाम करता है, सारे बच्चे एक ही उमर के थे तो ऐसे पेटिकोट में रहना दोनों के लिए ही कोई बड़ी बात नहीं थी,
लता: बैठ जा छोटू थोड़ी देर फिर चले जाना, नहा लूं मैं नहीं तो बीच में कोई आए तो किवाड़ खोलने की दिक्कत हो।
छोटू: अरे कोई बात नहीं ताई,
दोनों आंगन में ही बैठ जाते हैं लल्लू अब भी नजरें छुपा छुपा कर अपनी मां को देख रहा था वहीं छोटू की भी नज़र जब से ताई की गीली चुचियों पर पड़ी थी तो वो भी छुप छुप कर उन्हें ताड़ने के मौके ढूंढ रहा था, कुछ ही पलों में दोनों के पजामें में उनके लंड सिर उठा रहे थे, लल्लू का तो खैर बैठा ही नहीं था,
लल्लू चालाकी दिखाते हुए कुछ न कुछ बातें छोटू से किए जा रहा था ताकि उसे या मां को शक न हो और छोटू भी उसकी हर बात का जवाब दे रहा था पर देख दोनों ही लता के बदन को रहे थे,
लता: ए लल्ला ज़रा नल तो चला दियो आकर।
लता ने बोला तो लल्लू खड़ा हुआ और जाकर नल चलाने लगा तो लता कपड़ों की बाल्टी खिसका कर आगे हुईं और नल से निकलती धार के नीचे बाल्टी लगा दी इधर उसके आगे होने से लल्लू की नज़र अपनी मां के पिछवाड़े पर गई और एक बार को तो उसके हाथ से नल का हत्था ही छूट गया, लता का पेटिकोट पीछे से भी गीला था और भीग कर उसके चूतड़ों से चिपका हुआ था, पेटिकोट का कुछ हिस्सा तो उसके चूतड़ों की दरार में भी घुस गया था, लल्लू को तो लग रहा था मानों उसकी मां सुबह की तरह ही जैसे खेत में बैठी थी वैसी ही उसके बगल में नंगी बैठी है, पजामे में उसका लंड ठुमके मारने लगा, वो तो सीधा अपनी मां के पिछवाड़े को घूरने लगा,
आंगन से छोटू भी लता को देख रहा था फिर उसने नज़र ऊपर करके देखा तो लल्लू की नज़र को अपनी मां के पिछवाड़े की ओर पाया तो छोटू सोचने लगा: साला हरामी अपनी मां के पिछवाड़े को देख रहा है, फिर उसके मन में आया मैं उससे क्या ही कह सकता हूं वो तो बस देख ही रहा है मैने तो अपनी मां को चोदा भी है, ये सोच कर छोटू और उत्तेजित होने लगा,
इसी बीच लता उठी और घूम कर बाल्टी में रखे कपड़े निचोड़ने लगी जिसका असर ये हुआ कि अब उसका मुंह लल्लू की ओर हो गया,
लता: रुक जा लल्ला बाल्टी भर गई,
लल्लू का तो ध्यान ही नहीं था अपनी मां की आवाज़ सुनकर उसने नल रोका और खड़ा हो गया, क्योंकि अब उसकी मां का मुंह उसी की ओर था तो उसने खुद को संभाला और अपनी नजर मां के बदन से हटाई और उसने छोटू को देखा जो कि आंखें फाड़े टक टकी लगाकर उन दोनों की ओर देखा जा रहा था उसने सोचा ये क्यों पागलों की तरह देख रहा है तभी उसे अचानक से समझ आया कि घूमने की वजह से उसकी मां का पिछवाड़ा अब छोटू की ओर हो गया था मतलब छोटू मेरी मां के चूतड़ों को देख रहा है, पर ये सोचकर भी उसे गुस्सा नहीं आ रहा था बल्कि उत्तेजना हो रही थी,
इधर छोटू ने जब लता ताई के पेटीकोट में भीगे चूतड़ देखे तो उसका तो लंड हिलोरे मारने लगा, वो सोचने लगा ऐसा नज़ारा हो तो कौन अपने आपको रोक सकता है बेटा हो या बाप, मेरी मां होती तो मैं तो अब तक चोदने लगता, इसमें बेचारे लल्लू का क्या दोष वो तो बस देख ही रहा था।
छोटू ये सोचते हुए देखने में इतना खो गया था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब लल्लू आ कर उसके बगल में बैठ गया,
अब दोनों दोस्तों के सामने एक ही नजारा था, लल्लू सोच रहा था अब मैने भी तो इसकी मां और चाची के चूतड़ों को देखा है तो ये तो कपड़े के ऊपर से देख रहा है, दोनों को ही लता के बदन ने उत्तेजित कर दिया था, दोनों के ही लंड बिल्कुल तन कर खड़े थे,
इसी बीच लता कपड़े रखने के लिए झुकी तो और उसकी गांड फैल गई जिसका असर दोनों ही दोस्तों पर हुआ और दोनों के मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई, लता कुछ देर तक कपड़े निचोड़ती रही और दोनों ही उसे टक टकी लगाकर देखते रहे, कपड़े निचोड़ने के बाद लता ने अपनी साड़ी और पेटीकोट उठाया और बगल में कच्चे से स्नानघर में घुस गई, तब जाकर दोनों की नजर उसके बदन से हटी, लल्लू को ये तो समझ आ गया था कि छोटू भी उसकी मां के चूतड़ों को देख रहा था पर इसकी गलती भी क्या है ऐसे चूतड़ देख कर कौन खुद को रोक सकता है, वैसे इससे इतना तो समझ आ गया कि साला हरामी ये भी है मेरे और भूरा की तरह जब मेरे सामने मेरी मां के चूतड़ों को देख सकता है तो हमारा साथ भी दे सकता है, पर साले से बात कैसे करूं समझ नहीं आ रहा?
लल्लू अपनी उधेड़बुन में था तो छोटू ये सोच घबरा रहा था कि कहीं लल्लू ने उसे ताई के पिछवाड़े को घूरते हुए देख तो नहीं लिया, साला वैसे भी गुस्सा जल्दी हो जाता है क्या करूं?
दोनों ही अपनी अपनी सोच में लगे हुए थे, इतने में लता नहा कर निकली और बोली: अब जा सकते हो तुम लोग।
लल्लू ने अपनी मां की बात सुनी और फिर छोटू को बोला: चल।
छोटू भी उसके पीछे पीछे चल दिया।
सत्तू अपने घर में एक खाट पर लेता हुआ था और नंगे चित्रों वाली किताब को देख देख कर अपने लंड को सहला रहा था तभी बाहर किवाड़ पर कुछ आहट हुई तो उसने तुंरत किताब को तकिए के नीचे सरका दिया इतने में ही एक भरे बदन की औरत आंगन में प्रवेश करती है।
सत्तू: अब आई हो मां इतना टेम लगा देती हो तुम तो।
झुमरी: अरे वो वो तुझे तो पता है न औरतें बातों में लग जाती हैं तो रुकती कहां हैं।
सत्तू: अच्छा तुम वहां बातों में लगी रहो और मुझे अभी तक चाय भी नहीं मिली।
झुमरी: चढ़ा रही हूं तेरी चाय, ये नहीं कि खुद ही बना ले कभी सब काम मैं ही कर के दूं तुझे।
झुमरी चाय चढ़ाते हुए कहती है,
सत्तू: अरे मां तुम्हें पता है ना बाहर के सारे काम कर लेता हूं मैं बस घर के काम नहीं होते मुझसे।
सत्तू भी उठ कर अपनी मां के पास चूल्हे के बगल में आकर बैठ जाता है
झुमरी: तभी कहती हूं अब ब्याह करले, बहु आ जाएगी तो मुझे भी आराम मिल जाएगा, और तुझे भी बिस्तर पर चाय मिल जाया करेगी।
सत्तू: का मां तुम भी ऐसे थोड़े ही होता है ब्याह, उसके लिए लड़की चाहिए अच्छी सी और फिर बहुत सारा पैसा भी लगता है ब्याह में,
झुमरी: तो लड़की मैं ढूंढ लूंगी पैसा तू कमा।
दोनों हंसने लगते हैं,
सत्तू: पैसा कमाना है तभी तो शहर के सबसे ज़्यादा चक्कर लगाता हूं पूरे गांव में।
झुमरी: जानती हूं लल्ला, तूने ही तो सब संभाल रखा है,
झुमरी उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहती है,
सत्तू: अच्छा मां कल तुम खेत गई थी क्या?
ये सुनते ही झुमरी के चेहरे का रंग उड़ जाता है,
झुमरी: मैं न नहीं तो क्या क्या हुआ क्यों पूछ रहा है?
सत्तू: कुछ नहीं वो एक बार देखना था सब्जियों की क्या हालत है, चलो कोई नहीं आज मैं ही देख आऊंगा।
झुमरी: हां वो घर के काम से समय ही नहीं मिला पूरे दिन इसलिए नहीं जा पाई।
सत्तू: कोई बात नहीं मां मैं देख आऊंगा आज।
झुमरी: ठीक ले बन गई तेरी चाय,
झुमरी उसे चाय देती है और सत्तू चाय लेकर बापिस खाट पर बैठ जाता है वहीं झुमरी चूल्हे की ओर देखते हुए किसी सोच में डूब जाती है।
झुमरी का परिवार हमेशा से ही छोटा था सत्तू के बाप से ब्याह होकर आई थी तो घर में उसकी सास और उसके पति ही थे, ससुर पहले ही पधार गए थे उसके पति की बड़ी बहन थी उसका भी ब्याह हो चुका था, और अभी तो उसके घर में सिर्फ दो ही लोग बचे थे, उसके पति और सत्तू के बाप का निधन तो 8 साल पहले ही नदी में डूब कर हो गया था शव तक नहीं मिला था बेचारे का, तब तो सत्तू बहुत छोटा था फिर भी बेचारे को उमर से पहले बढ़ा होना पड़ा, खूब मेहनत की और अपनी मां का भरपूर साथ दिया था तब जाकर उन्होंने वो कठिन समय काटा था, यूं तो झुमरी सत्तू को दिखाती थी कि उससे अब मेहनत नहीं होती और उसकी उम्र हो चुकी है पर अभी उसकी उमर ही क्या था छत्तीस वर्ष, और बदन पूरा भरा हुआ, खेतों में खूब काम किया था उसने तो बदन बिल्कुल कसा हुआ था, नितम्ब फैले हुए जो साड़ी के अंदर होते हुए भी लोगों पर अलग ही जादू करते थे, वहीं मोटी मोटी चूचियां थीं जिनकी कसावट अब भी बाकी थी, कमर और पेट गदराया हुआ था पर मोटापा बिलकुल नहीं था, पति की मौत के बाद कुछ समय तो वो सूखती सी गई पर फिर उसने अपना सारा ध्यान अपने बेटे और खेतों में लगा दिया था और जबसे सत्तू ने काम संभाला तब से तो उसका बदन भरता चला गया और अब ये कहना गलत नहीं होगा कि वो गांव की सबसे कामुक औरतों में से एक थी।
नीलम और नंदिनी रजनी भाभी के पास बैठे हुए थे और सिलाई सीख रहे थे पर आज मशीन ने उन्हें धोखा दे दिया था और चल नहीं रही थी,
नीलम: क्या हुआ भाभी नहीं चलेगी क्या?
रजनी: नहीं भाभी की ननद लग तो नहीं रहा,
रजनी मशीन को ठीक करने की कोशिश करते हुए बोली...
नीलम: लो गया आज का दिन बेकार।
नंदिनी: अरे तू चुप कर गलत ही बोलेगी।
रजनी मशीन को एक ओर सरका देती है और कहती है: अब इसे तो तुम्हारे भैया ही सही करवा कर लायेंगे, अब बताओ तुम क्यों लड़ रही हो आपस में।
नंदिनी: ये नीलम है भाभी हमेशा उल्टा ही बोलती है, अब बोल रही है दिन खराब हो गया,
नीलम: ठीक ही तो बोल रही हूं, अब मशीन खराब हो गई तो और कहां सीख पाएंगे।
नंदिनी: अरे सिलाई ही तो नहीं सीख सकते और भी बहुत कुछ सिखा सकती हैं भाभी क्यों भाभी?
रजनी: हां बिल्कुल बताओ तुम्हें क्या सीखना है सब कुछ सिखा सकती हूं।
नंदिनी: भाभी सिखाना है तो इस नीलम को कुछ गुण सिखाओ के पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना होता है।
नीलम: धत्त कितनी कुतिया है तू, मेरा नाम लगा कर अपने मन की क्यों पूछ रही है तुझे जानना है तो अपने लिए पूछ।
नंदिनी: क्यों तुझे नहीं रखना अपने पति को खुश?
नीलम: वो मैं रख लूंगी जब पति होगा तब, तू अपनी सोच।
नंदिनी: कामुक बातों से जैसे तू दूर भागती है न पति तुझे छोड़ कर भाग जाएगा। हैं न भाभी?
नीलम: भाग जाए तो भाग जाए मुझे क्या?
नंदिनी: भाभी अभी ये मज़ाक समझ रही है मेरी बातों को, तुम ही बताओ इसे।
रजनी: अच्छा तो आज तुम दोनों को ये सीखना है कि पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना है।
नीलम: मुझे नहीं भाभी इसे ही सीखना है।
नंदिनी: हां मुझे ही सीखना है तू अपने कान बंद कर ले, बताओ भाभी तुम।
रजनी: वैसे नीलम नंदिनी की ये बात सच है कि अगर पति बिस्तर पर खुश नहीं है तो फिर वो उखड़ा उखड़ा सा रहता है और हो सकता है बाहर भी मुंह मारने लगे।
नंदिनी: देखा अब बोल?
नीलम: मतलब भाभी, ये तो पत्नी के साथ गलत हुआ ना।
रजनी: देख जैसे पेट की भूख होती है न वैसे ही मर्दों को बदन की भूख भी होती है और अगर पत्नी से वो शांत नहीं होती तो पति बाहर ही जाएगा ना।
नंदिनी: बिल्कुल भाभी, सीधी सी बात है ये तो।
नीलम: तो भाभी पति ऐसा न करे उसके लिए पत्नी को क्या करना चाहिए?
रजनी: देखो हर आदमी को ऐसी औरत पसंद आती है जो सबके सामने खूब शर्माए, और बिल्कुल संस्कारी बन कर रहे पर बिस्तर पर बिल्कुल इसकी उलट हो।
नंदिनी: उलट मतलब?
रजनी: मतलब कि जो बिस्तर पर गरम हो, खुल कर अपने पति का साथ दे, उसके सामने शर्माती ही न रहे, बल्कि बिस्तर पर पहुंच कर शर्म को कपड़े के साथ ही उतार देना चाहिए। पति के साथ गंदी गंदी बातें करनी चाहिए, वो जैसा चाहे वैसा करोगे तो पति तुम्हें बहुत खुश रखेगा।
नंदिनी: सही में भाभी मैं तो बिल्कुल नहीं शर्माऊंगी।
रजनी: हां तुझे देख कर लगता है शर्माना तो तेरे पति को पड़ेगा।
इस पर तीनों हंसने लगती हैं,
नीलम: पर भाभी अगर शर्म आती हो तो अचानक से कैसे चली जाएगी वो तो आएगी ही न।
रजनी: बिल्कुल आएगी, तभी तो उसे धीरे धीरे कम करना चाहिए,
नीलम: पर भाभी कैसे? मुझे तो तुम दोनों के सामने भी शर्म आती है ऐसी बातें करने में।
नंदिनी: और पति तो शुरू शुरू में अनजान होगा भाभी, उसके सामने तो ये बोल भी नहीं पाएगी।
रजनी: वही तो, इसीलिए तुझे अभी से शुरुआत करनी होगी नीलम, नहीं तो बाद में परेशानी होगी।
नीलम: पर अभी से कैसे करूं भाभी यही तो समझ नहीं आता।
नंदिनी: मैं बताऊं, पहले तो तुझे ये नाटक करना बंद करना होगा कि तुझे ये सब पसंद नहीं आता या तेरा मन नहीं करता ये बातें करने का।
नंदिनी की बातें सुनकर नीलम चुप हो गई और रजनी की ओर देखने लगी।
रजनी: नंदिनी सही कह रही है नीलम, मैं मानती हूं हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि ये सब गंदी बाते हैं और इन सब से दूर रहना चाहिए, पर सच्चाई इससे अलग है।
नीलम: क्या है सच्चाई,
रजनी: यही कि हर कोई ये बातें करना चाहता है और करता भी है बस मना इसीलिए किया जाता है ताकि शर्म बनी रही, बाकी ऐसी कौन सी सहेलियां नहीं होंगी जो एक दूसरे की रात की कहानियां नहीं सुनती होंगी।
नंदिनी: समझी तो सबसे पहले हमारे साथ खुल, और खुल कर बात किया कर, इतना तो मैं भी तुझे समझती हूं कि मज़ा तुझे भी आता है बस मानना नहीं चाहती।
रजनी: सच में नीलम ये सब समाज की बातें खोखली हैं अगर पति खुश रहेगा साथ रहेगा तो समाज का फर्क नहीं पड़ता पर अगर पति ही अलग होने लगा तो समाज जीना मुश्किल कर देगा चाहे कितनी ही संस्कारी बन के रहो।
नीलम: सही कह रही हो भाभी।
रजनी: अब मुझे ही देख लो, अपने पति को पिता बनने का सुख नहीं दे पाई आज तक, समाज मुझे क्या क्या कहता है ये तुमसे छुपा नहीं पर मैंने अपने पति को कभी बिस्तर से असंतुष्ट होकर नहीं उठने दिया और शायद उसी के कारण हम आज तक साथ हैं नहीं तो समाज तो अब तक मुझे बांझ बना कर उनकी दूसरी शादी करा देता।
रजनी ने गंभीर होते हुए कहा तो वो दोनों भी गंभीर हो गईं, कुछ देर सन्नाटा रहा फिर रजनी बोली: अरे तुम लोग क्यों मुंह बना कर बैठ गईं, सीखना नहीं हैं क्या क्या करना होता है बिस्तर पर।
ये सुन कर दोनों हीं मुस्कुराने लगीं और रजनी उन्हें संभोग का ज्ञान देने लगी।
फुलवा आंगन में लेटी थी उसके बदन में हल्का हल्का दर्द था वह आंखें बंद करके लेटी थी और उसके सामने बस अपनी सुबह की चुदाई आ रही थी, पिछले दो दिनों से कोई अनजान साया उसे चोद रहा था और फुलवा उसकी चुदाई से पागल सी होती जा रही थी, खैर सुबह जल्दी उठने और फिर चुदाई की थकान से लेट कर उसे कुछ ही देर में नींद आ गई, घर के सारे मर्द बाहर थे नीलम सिलाई सीखने गई थी, घर पर सिर्फ दोनों बहुएं और फुलवा थीं,
सुधा: जीजी मैं का कह रही हूं आज फुर्सत है तो चलो कमरा ही साफ कर लेते हैं।
पुष्पा: कह तो सही रही है नहीं तो रोज ये काम टलता रहता है, जाले भी बहुत हो गए हैं कमरों में, पहले कौनसा करें?
सुधा: पहले तुम्हारा वाला कर लेते हैं
पुष्पा: चल ठीक है, आजा।
दोनों जल्दी से कमरे में पहुंचते हैं,
पुष्पा: मैं बिस्तर समेटती हूं तू तब तक संदूक के ऊपर से कपड़े हटा,
सुधा: ठीक है दीदी,
पुष्पा बिस्तर की ओर बढ़ती है और पास जाती है तो उसे बिस्तर पर हुई उसकी और उसके बेटे के बीच की चुदाई के दृश्य दिखाई देने लगते हैं और उसका बदन सिहरने लगता है, फिर से वो उत्तेजित होने लगती है, उसकी चूत नम होने लगती है, वो एक पल को रुक जाती है, बिस्तर को देखते हुए उसे एक एक पल याद आने लगता है कि कैसे इसी बिस्तर पर रात पर उसने अपने बेटे का लंड अपनी चूत में लिया और चुदवाया, अभी भी एक कम्पन उसकी चूत में उसे महसूस हो रहा था, और उसकी उत्तेजना को बढ़ा रहा था, इधर सुधा ने संदूक के ऊपर से कपड़े हटाए और बोली: दीदी इन्हें कहां रखूं?
पर पुष्पा ने कुछ जवाब नहीं दिया तो सुधा ने पुष्पा की ओर देखा जो बैठ कर बिस्तर को देखे जा रही थी, सुधा को समझ नहीं आया कि उसकी जेठानी क्या कर रही है तो उसने कपड़ों को अलग रखा और पुष्पा के पास गई और बगल में बैठते हुए उसके कंधे पर हाथ रख कर हिलाया और पूछा: क्या हुआ दीदी कहां खो गई,
तब जाकर पुष्पा अपने खयालों से बाहर निकली और बगल में अपनी देवरानी को बैठा पाया,
सुधा: क्या हुआ दीदी ऐसे क्यों बैठी हो?
पुष्पा को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले वो कभी सुधा को देखती तो कभी बिस्तर को, और फिर अचानक से उसके मन में न जाने क्या आया कि उसने आगे झुक कर अपने होंठ सुधा के होंठों से जोड़ दिए।
जारी रहेगी।
Lata ne chottu ko blowjob diya tha pehle .
अध्याय 16
लल्लू: हां यार ये तो सही कहा तूने। और दोनों ही कम नहीं हैं।
भूरा: पर तुझे क्या लगता है छुटुआ कभी हमारे जितना खुल पाएगा?
लल्लू: खुलेगा नहीं तो खोलना पड़ेगा, साले को अपने साथ लेना पड़ेगा।
भूरा: कुछ योजना बनानी पड़ेगी।
लल्लू: हां बनायेंगे पर मेरा फिर से खड़ा हो गया मां के बारे में सोच कर एक बार और हिलाते हैं।
दोनों फिर से एक एक बार अपना पानी गिराते हैं और फिर बातें करते हुए गांव के अंदर की ओर चल देते हैं। अब आगे...
चूल्हा चौका हो चुका था और लता अभी साफ सफाई कर रही थी, इधर आज लल्लू खाना खाने के बाद जो गांव में हांडने निकल जाता था वो घर पर ही था और छुप छुप कर अपनी मां के बदन को निहार रहा था, उसे आज पता चल रहा था कि उसकी मां कितनी कामुक है, इतना भरा हुआ बदन है कमर तो पूछो ही मत और ब्लाउज़ के अंदर कितनी मोटी मोटी चूचियां हैं, जबसे उसने अपनी मां की गांड आज सुबह देखी थी उसका तो मानो सोचने का तरीका ही बदल गया था, सुबह से ही उसका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था।
लता: तुझे का हुआ आज अभी तक घर में है वैसे तो तुरंत निकल जाता है?
लता ने चूल्हा साफ करते हुए कहा तो लल्लू अपने खयालों से बाहर आया और बोला: वो कुछ नहीं मां बस ऐसे ही। बाहर घूमने से कोई फायदा थोड़े ही है।
लल्लू अपनी मां के फैले हुए चूतड़ों पर आँखें लगाते हुए बोला,
लता: अरे वाह आज तो बड़ी समझदारी दिखा रहा है।
नंदिनी: हां मां समझदारी तो दिखाएगा ही, अब बड़ा जो हो रहा है।
नंदिनी दूसरी ओर से लल्लू को गुस्से से देखते हुए बोली, तो लल्लू की नज़र अपनी बड़ी बहन से मिली और फिर तुंरत झुक गईं।
लता: हां बड़ा तो होगा ही, तभी तो ब्याह करेगा और मेरे लिए बहुरिया लाएगा, और मुझे थोड़ा आराम मिलेगा।
लल्लू: अरे मां तुम भी न कहां ब्याह करवाने लगीं, और रही बात काम की तो मुझे बता दिया करो न मैं कर दूंगा।
लता: अरे देख तो नंदिनी इसकी तबीयत तो ठीक है न? ये घर के काम करवाएगा, जो गिलास भर न उठा के देता हो,
लल्लू: हां मां पर अब से करवाया करूंगा तुम देख लेना।
नंदिनी: अच्छा तो जा फिर अंदर वाला बिस्तर और ये सब खाट जो बिछी पड़ी हैं वो सब समेट।
लल्लू तुरंत उठता है और खाट के पास जाकर चादर उठा कर घड़ी करने लगता है।
नंदिनी और लता उसे देख हैरान भी हो रही होती हैं और खुश भी।
ऐसा ही हाल कुछ भूरा के घर में भी था आज उसकी नजर भी अपनी मां के भरे हुए बदन से नहीं हट रही थी, वहीं काम करते हुए भी रत्ना के दिमाग में रात में हुआ हादसा चल रहा था, उसे बेहद ग्लानि हो रही थी उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, राजू और उसके बाप सुबह का नाश्ता कर घर से निकल गए थे अब घर पर बस भूरा और रत्ना थे, भूरा को भी अपनी मां आज कुछ परेशान दिख रहीं थीं,
भूरा: क्या हुआ मां कोई परेशानी है क्या आज तुम कुछ परेशान लग रही हो,
भूरा का ये सवाल सुन कर रत्ना थोड़ा घबरा गई और खुद को संभालते हुए बोली: नहीं तो लल्ला ऐसा कुछ नहीं है।
भूरा: नहीं मां मैं जानता हूं तुम झूठ बोल रही हो।
रत्ना थोड़ा और डर जाती है और कहती है: झूठ कैसा झूठ?
भूरा: यही कि तुम परेशान हो और उस परेशानी की वजह क्या है वो भी जानता हूं।
ये सुन कर तो एक पल को रत्ना का सिर घूम जाता है उसे लहता है कि भूरा को रात के बारे में पता है क्या, कैसे, क्या उसने मुझे देख लिया?
एक साथ बहुत से खयाल उसके मन में घूमने लगते हैं, और वो चुप होकर ज्यों के त्यों रुक जाती है।
भूरा: मैं जानता हूं मां कि रानी दीदी के ब्याह के बाद तुम अकेली पड़ गई हो घर का सारा काम तुम पर आ गया है, और करते करते तुम थक जाती हो।
ये सुनकर रत्ना के मन में शांति पड़ती है और वो हल्की सी झूठी मुस्कान होंठो पर लाकर कहती है: नहीं लल्ला अब घर का काम तो मेरा ही है, इसमें क्या परेशानी।
भूरा: जानता हूं मां पर तुम कहो न कहो पर कभी कभी तो तुम भी परेशान हो जाती होगी, पर अब से चिंता मत करो अब मैं तुम्हारी मदद किया करूंगा काम में,
रत्ना को अपने बेटे की बात सुन हैरानी होती है और थोड़ा अच्छा भी लगता है
रत्ना: अरे लल्ला तू क्यों करेगा घर के काम? तू मत परेशान हो मैं कर लूंगी।
भूरा: क्यों नहीं कर सकता तुम मेरी प्यारी मां हो और अपनी मां का हाथ बटाने में क्या परेशानी।
भूरा के मुंह से ये सब सुनकर रत्ना को बहुत अच्छा लग रहा था, इतने गहरे मानसिक तनाव के बीच भूरा की सांत्वना भरी बातें उसके मन को पसीज रहीं थीं, वैसे भी रत्ना बहुत ही जल्दी घबराने और डरने वाले स्वभाव की थी, ऐसे स्वभाव वाले व्यक्ति को हमेशा ही किसी के सहारे या सांत्वना की आवश्यकता होती है जो उनका साथ दे या जो कहे कि सब ठीक है। और ऐसे में रत्ना को वो सांत्वना अपने बेटे से मिल रही थी तो उसका मन बहुत से भावों से भर गया,
रत्ना: सच्ची लल्ला?
भूरा: हां मां तुम्हारी कसम।
भूरा ने भी आगे होकर अपनी बाहें मां के बदन के चारों ओर फैलाकर उसको प्यार से गले लगाते हुए कहा,
अपने बेटे के सीने से लग कर रत्ना को एक अचानक से शांति मिली, उसे एक सुरक्षा का भाव मिला अपने बेटे की बाहों में, उसके मन के भाव उमड़ पड़े। रात से मानसिक तनाव को उसके वेग को कैसे भी उसने रोक रखा था वो बांध टूट पड़ा और अचानक से ही वो अपने बेटे के सीने से लग कर फूट पड़ी और रोने लगी।
अपनी मां का यूं रोना देख भूरा घबरा गया और परेशान हो गया उसे समझ नहीं आया कि वो क्यों रो रही है।
भूरा: अरे मां क्या हुआ तुम्हें क्यों रो रही हो? बताओ ना मुझे चिंता हो रही है।
अब रत्ना उसे बताए तो क्या बताए इसीलिए बिना बोले बस रोती रही और अपने दुख को आंसुओं के रास्ते बहाने लगी।
भूरा: मां मत रो मां, अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है, मैं हूं न मैं हूं हमेशा तुम्हारे साथ, तुम्हे कोई परेशानी नहीं होने दूंगा,
भूरा को लग रहा था कि घर के काम बहुत अधिक होने से उसकी मां के सब्र का बांध आज टूट पड़ा और इसलिए वो रो रही है, तो उसने भी अपनी बातों से अपनी मां को अपने सीने से लगाए हुए ढांढस बंधाना शुरू कर दिया, अभी उसके मन में अपनी मां के लिए कोई भी कामुक विचार नहीं थे वो बस चिंतित था,
रत्ना को अपने बेटे के साथ उसकी बातें उसके सीने से यूं लग कर रोना बहुत अच्छा लग रहा था, उसे ऐसा भाव दे रहा था कि वो अपने बेटे की बाहों में सुरक्षित है उसे किसी भी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
धीरे धीरे उसके आंसू हल्के होने लगे उसका सुबकना भी बंद हो गया, भूरा उसकी पीठ को सहलाते हुए अब भी उसे सांत्वना दे रहा था उसे समझा रहा था, रत्ना अब चुप हो चुकी थी पर उसका मन नहीं हो रहा था अपने बेटे से अलग होने का,
भूरा: अब तुम ठीक हो मां?
रत्ना ने ये सुन कर अपना चेहरा उसके सीने से हटाया और उठाकर हल्की सी मुस्कान के साथ भूरा को देखा, अपनी मां की प्यारी सी मुस्कान देख कर भूरा के मन को एक अथाह शांति मिली, उसने प्यार से चेहरा झुकाकर अपनी मां के माथे को चूम लिया, रत्ना अपने बेटे के इस प्यार से शर्मा गई और फिर से अपना चेहरा उसके सीने में छुपा लिया, अब भूरा के मन से मां की चिंता हटी तो तुरंत ही मन के कमरे में कामुक विचार घुस गए।
उसे फिर से सुबह का वो दृश्य दिखाई देने लगा, और आंखों के सामने मां के नंगे चूतड़ आ गए, बदन में उत्तेजना होने लगी एक तो वो दृश्य और फिर अभी उसकी मां उससे चिपकी हुई जो थी, उसे डर भी लग रहा था कि अपनी मां के इतने पास होने पर भी वो ऐसा सोच रहा है पजामे में उसका लंड भी कस चुका था, उसे डर था कि कहीं उसकी मां को न पता चल जाए कि उसका लंड खड़ा है, पर उसका डर और बढ़ता इससे पहले ही रत्ना ने अपना सिर उसके सीने से हटाया और फिर दूर हो गई।
रत्ना: चल अब काम करने हैं बहुत लाड़ हो गया।
भूरा: हां चलो न मैं भी मदद करता हूं,
रत्ना: चल आज बहुत से काम करवाऊंगी तुझसे।
दोनों मां बेटे काम में लग जाते हैं।
इधर छोटू आज काफी देर से उठा था, और उस वजह से उसे आज अकेले ही खेत में जाना पड़ा था हगने के लिए, वैसे भी उसका मन भी कुछ पल अकेले रहने का था, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि रात भर उसने अपनी सगी मां को चोदा है, अपना लंड उस चूत में डाला है जिससे वो कभी निकला था, ये सोच सोच कर उसका दिमाग़ घूम रहा था, ऐसा मज़ा उसे कभी नहीं आया था, जितना अपनी ही मां की चूत को चोदकर आया था वैसे तो उसने इससे पहले चूत सिर्फ छुप कर ही देखी थी उसने सोचा भी नहीं था कि उसकी पहली चुदाई उसकी मां के साथ ही होगी, और वो भी ऐसी होगी। हगते हुए उसके मन में यही सब चल रहा था हगने के बाद वापिस घर की ओर चलते हुए उसे रास्ते में जो अपनी उम्र के लड़के मिल रहे थे वो खुद की उनसे बड़ा और परिपक्व महसूस कर रहा था, और किस्मत वाला भी, और करे भी क्यों ना आख़िर उसके जैसी किस्मत हर किसी की कहां थी?
हर औरत को अब वो एक अलग ढंग से देख रहा था, अपनी किस्मत पर मन ही मन मुस्कुराते हुए वो घर की ओर चला आ रहा था, घर पहुंचा तो उसकी आँखें उसकी मां को ढूंढने लगी, जो उसे खाना बनाती दिखी, वो जाकर चूल्हे के पास बैठ गया और अपनी मां को एक प्रेमी की तरह देखने लगा, इसी बीच उसकी मां ने उसे देखा और बोली: आ गया लल्ला ले, चाय ले ले, परांठे खाएगा?
छोटू: वो हां मां?
पुष्पा: जा टोकरी से प्लेट लेकर आ अभी देती हूं,
छोटू अपनी मां के कहे अनुसार टोकरी से प्लेट लेने चल दिया और चलते हुए वो सोच में था क्योंकि उसकी मां तो ऐसे बर्ताव कर रही है जैसे कुछ हुआ ही नहीं, कहां उसे लगा था कि उसके और मां के बीच सब कुछ बदल गया पर मां तो कुछ और ही दिखा रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं, वो सोचने लगा कि बड़े बुजुर्ग सही ही कहते हैं स्त्री के मन की बात कोई नहीं जान सकता, पर मैं क्यों चिंता कर रहा हूं मुझे तो बस रात को मां अपनी चूत की सेवा करने दें दिन में चाहे कैसे भी करें, ये सोचते हुए वो परांठे लेकर बैठ गया। धीरे धीरे नाश्ता करके घर के मर्द घर से निकलने लगे छोटू ने भी नाश्ता कर लिया तो उसने सोचा अब घर पर तो कुछ होने वाला नहीं है लगता नहीं मां कुछ करना तो दूर उसके बारे में बात भी करेंगी तो इसलिए वो भी घर से निकल गया।
इधर लल्लू अपनी मां और बहन के साथ मिलकर पूरी लगन से घर के काम करवा रहा था, तो नंदिनी ने अपनी मां से कहा ये काम करवा रहा है तो मैं नहा लेती हूं, और फिर वो नहाने चली गई, नहाने के बाद नंदिनी सिलाई सीखने के लिए निकल गई, अब घर पर सिर्फ लल्लू और उसकी मां थे, काम लगभग निपट चुके थे,
लता: हो गए काम लल्ला सारे, अब तू भी नहा ले।
लल्लू: हां मां नहा लेता हूं तुम क्या करोगी,
लता: मैं भी बस कुछ कपड़े हैं इन्हें भीगा कर निकाल दूं फिर नहा लूंगी तू नहा ले तब तक,
लल्लू उसकी बात मान कर पटिया पर कपड़े उतार कर नहाने लगता है कुछ पल बाद ही लता भी पटिया पर कपड़े लेकर आ जाती है और एक बाल्टी में घुलने वाले कपड़े डाल देती है और फिर अपनी साड़ी भी उतार कर उसी बाल्टी में डाल देती है और लल्लू की नज़र तुरंत अपनी मां के बदन पर टिक जाती है, लता तो रोज़ ही ऐसे ही कपड़े धोती थी ब्लाउज़ और पेटीकोट में और आज भी बेटे के सामने क्या शर्माना था इसीलिए आज भी अपनी साड़ी को उतार कर बाल्टी में डाल दिया और नल चलाकर बाल्टी भरने लगी,
लल्लू तो अपनी मां को आज वैसे भी अलग दृष्टिकोण से देख रहा था और अभी मां के गदराए बदन को पेटिकोट और ब्लाउज़ में देख तो उसका बदन सिहरने लगा वो उसके हाथ धीरे हो गए, मां का गदराया पेट और कमर देख कर ब्लाउज़ में कसी हुई मोटी चुचियों को देख कर लल्लू का लंड चड्डी में सिर उठाने लगा, ऊपर से लता झुक कर नल चला रही थी तो उसकी मोटी सी गांड और फैल कर बाहर निकल गई थी साथ ही नल चलाने की वज़ह से ऊपर नीचे हो रही थी ये देख देख तो लल्लू का हाल बुरा होने लगा, उसका लंड चड्डी में पूरी तरह से तन चुका था और चड्डी भी गीली थी तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे छुपाए,
बाल्टी भरते ही लता ने अपना पेटीकोट का नाड़ा ढीला किया और उसे छाती तक चढ़ा लिया और अपने मुंह में एक छोर दबा लिया और बड़ी आसानी से पेटिकोट के अंदर से ही ब्लाउज़ खोला और उसे भी बाल्टी में डाल दिया, और फिर पेटिकोट को अपनी छाती के ऊपर बांध दिया, ये ऐसी कला है जिसमें हर महिला कुशल होती है, लल्लू के सामने जैसे ही ब्लाउज बाल्टी में गिरा उसने तुरंत आँखें उठा कर ऊपर देखा और अपनी मां को सिर्फ पेटीकोट में देख कर वो उत्तेजना में तड़प उठा, उसका लंड चड्डी में झटके खाने लगा जिसे वो किसी तरह से छुपाए हुए था,
लता: अरे लल्ला कितनी देर नहाएगा अभी मुझे भी नहाना है।
लल्लू: हां हां मां बस हो गया,
लल्लू खुद को संभालते बोला, और लोटे से पानी भरकर अपने बदन पर डालने लगा, लल्लू को डर था कि कहीं मां उसका खड़ा लंड न देख लें, इसलिए वो थोड़ा घूम कर नहाने लगा, इसी बीच लता की नज़र लल्लू की पीठ पर पड़ी,
लता: तू इतना बड़ा हो गया पर नहाने का सहूर नहीं आया तुझे देख पीठ पर मैल जमा पड़ा है।
लल्लू: कहां मां पीठ पर दिखता भी नहीं है और न ही हाथ पहुंचते हैं,
लता: रुक अभी, मैं कर देती हूं
ये कह कर लता उसके पीछे बैठ कर उसकी पीठ घिसने लगती है वहीं अपनी मां के हाथों को महसूस कर लल्लू के बदन में सिहरन होने लगती है, लता उसकी पीठ पर लगे मैल को घिस घिस कर उतारने लगती है,
लता: देख न जाने कब का जमा हुआ है इतना घिसना पड़ रहा है,
लल्लू: क्या करूं मां पीठ पर दिखता तो है नहीं इसीलिए जम गया है।
लता: चल आगे से मुझसे साफ करवा लिया करना।
ले हो गया साफ अब धो ले,
लल्लू ने तुरंत ही लोटे में पानी लिया और अपनी पीठ पर डालने लगा जो कि पीछे बैठी लता पर भी गिर रहा था, पीठ धोने के बाद लल्लू सावधानी से अपनी मां की ओर ही पीठ किए हुए ही खड़ा हुआ और फिर तुंरत अंगोछे को अपनी कमर से लपेट कर गीली चड्डी को उतारा और फिर अंगोछे को कमर से लपेट लिया और फिर मूड कर बैठ गया और अपनी उतारी हुई चड्डी को धोने लगा, लता भी बाल्टी से गिले कपड़े निकाल कर धो रही थी, चड्डी धोते हुए लल्लू की नज़र सामने मां पर पड़ी तो उसकी आँखें जमीं रह गईं, क्योंकि गीले होने की वजह से पेटीकोट लता की चूचियों से चिपक गया था और उसकी चूचियों के आकार को बड़ी कामुकता से दर्शा रहा था, हल्के पीले रंग का होने के कारण वो हल्का पारदर्शी हो चुका था और लल्लू को अपनी मां की मोटी चूचियों के दर्शन भी हल्के हल्के हो रहे थे, उसका लंड तो मानो लोहे का हो चुका था, उसके हाथ उसकी चड्डी पर हल्का हल्का चल रहे थे क्योंकि उसका ध्यान तो मां की चूचियों पर था,
इधर लता की नज़र भी उसके हाथों पर पड़ी तो बोली: अरे कैसे धो रहा है ला मुझे दे दे मैं धो लूंगी,
और हाथ बढ़ाकर उसके सामने से चड्डी उठा ली, अब लल्लू के पास कोई कारण नहीं बचा था रुकने का तो उसे उठना पड़ा और वो उठ कर धुले हुए कपड़े पहनने लगा, पर उसकी नज़र बार बार अपने मां के बदन पर ही जा रही थी, उसके लंड का बड़ा बुरा हाल हो चुका था, इधर लता कपड़े धोने में व्यस्त थी, लल्लू ने कपड़े पहने ही थे कि किवाड़ बजने लगे,
लता: लल्ला देख तो द्वार पर कौन है, कोई बड़ा हो तो बाहर ही रोक दियो मैं नहा रही हूं ना,
लल्लू: ठीक है मां,
ये कह लल्लू द्वार पर गया और किवाड़ खोल कर देखा तो सामने छोटू खड़ा था,
लल्लू: और छोटू साहब कहां रहते हो तुम आजकल मिलते ही नहीं?
छोटू: मैं तो यहीं रहता हूं तू ही नहीं मिलता,
लल्लू: साले मैं और भूरा बुलाने जाते है तुझे तो अम्मा बोलती है तू सो रहा तेरी तबीयत खराब है, अब ये क्या लगा रखा है तूने?
छोटू: अरे वो,
इतने में पीछे से लता की आवाज़ आती है : अरे कौन है लल्लू?
लल्लू: छुटुआ है मां, मैं जा रहा हूं इसके साथ।
लता: अरे रुक जा थोड़ी देर मैं नहा लूं फिर चले जाना, दोनों आ जाओ थोड़ी देर बैठ जाओ घर में ही।
लल्लू: चल आजा।
दोनों अंदर आते हैं छोटू पटिया पर कपड़े धोती लता को देखता है और उसे प्रणाम करता है, सारे बच्चे एक ही उमर के थे तो ऐसे पेटिकोट में रहना दोनों के लिए ही कोई बड़ी बात नहीं थी,
लता: बैठ जा छोटू थोड़ी देर फिर चले जाना, नहा लूं मैं नहीं तो बीच में कोई आए तो किवाड़ खोलने की दिक्कत हो।
छोटू: अरे कोई बात नहीं ताई,
दोनों आंगन में ही बैठ जाते हैं लल्लू अब भी नजरें छुपा छुपा कर अपनी मां को देख रहा था वहीं छोटू की भी नज़र जब से ताई की गीली चुचियों पर पड़ी थी तो वो भी छुप छुप कर उन्हें ताड़ने के मौके ढूंढ रहा था, कुछ ही पलों में दोनों के पजामें में उनके लंड सिर उठा रहे थे, लल्लू का तो खैर बैठा ही नहीं था,
लल्लू चालाकी दिखाते हुए कुछ न कुछ बातें छोटू से किए जा रहा था ताकि उसे या मां को शक न हो और छोटू भी उसकी हर बात का जवाब दे रहा था पर देख दोनों ही लता के बदन को रहे थे,
लता: ए लल्ला ज़रा नल तो चला दियो आकर।
लता ने बोला तो लल्लू खड़ा हुआ और जाकर नल चलाने लगा तो लता कपड़ों की बाल्टी खिसका कर आगे हुईं और नल से निकलती धार के नीचे बाल्टी लगा दी इधर उसके आगे होने से लल्लू की नज़र अपनी मां के पिछवाड़े पर गई और एक बार को तो उसके हाथ से नल का हत्था ही छूट गया, लता का पेटिकोट पीछे से भी गीला था और भीग कर उसके चूतड़ों से चिपका हुआ था, पेटिकोट का कुछ हिस्सा तो उसके चूतड़ों की दरार में भी घुस गया था, लल्लू को तो लग रहा था मानों उसकी मां सुबह की तरह ही जैसे खेत में बैठी थी वैसी ही उसके बगल में नंगी बैठी है, पजामे में उसका लंड ठुमके मारने लगा, वो तो सीधा अपनी मां के पिछवाड़े को घूरने लगा,
आंगन से छोटू भी लता को देख रहा था फिर उसने नज़र ऊपर करके देखा तो लल्लू की नज़र को अपनी मां के पिछवाड़े की ओर पाया तो छोटू सोचने लगा: साला हरामी अपनी मां के पिछवाड़े को देख रहा है, फिर उसके मन में आया मैं उससे क्या ही कह सकता हूं वो तो बस देख ही रहा है मैने तो अपनी मां को चोदा भी है, ये सोच कर छोटू और उत्तेजित होने लगा,
इसी बीच लता उठी और घूम कर बाल्टी में रखे कपड़े निचोड़ने लगी जिसका असर ये हुआ कि अब उसका मुंह लल्लू की ओर हो गया,
लता: रुक जा लल्ला बाल्टी भर गई,
लल्लू का तो ध्यान ही नहीं था अपनी मां की आवाज़ सुनकर उसने नल रोका और खड़ा हो गया, क्योंकि अब उसकी मां का मुंह उसी की ओर था तो उसने खुद को संभाला और अपनी नजर मां के बदन से हटाई और उसने छोटू को देखा जो कि आंखें फाड़े टक टकी लगाकर उन दोनों की ओर देखा जा रहा था उसने सोचा ये क्यों पागलों की तरह देख रहा है तभी उसे अचानक से समझ आया कि घूमने की वजह से उसकी मां का पिछवाड़ा अब छोटू की ओर हो गया था मतलब छोटू मेरी मां के चूतड़ों को देख रहा है, पर ये सोचकर भी उसे गुस्सा नहीं आ रहा था बल्कि उत्तेजना हो रही थी,
इधर छोटू ने जब लता ताई के पेटीकोट में भीगे चूतड़ देखे तो उसका तो लंड हिलोरे मारने लगा, वो सोचने लगा ऐसा नज़ारा हो तो कौन अपने आपको रोक सकता है बेटा हो या बाप, मेरी मां होती तो मैं तो अब तक चोदने लगता, इसमें बेचारे लल्लू का क्या दोष वो तो बस देख ही रहा था।
छोटू ये सोचते हुए देखने में इतना खो गया था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब लल्लू आ कर उसके बगल में बैठ गया,
अब दोनों दोस्तों के सामने एक ही नजारा था, लल्लू सोच रहा था अब मैने भी तो इसकी मां और चाची के चूतड़ों को देखा है तो ये तो कपड़े के ऊपर से देख रहा है, दोनों को ही लता के बदन ने उत्तेजित कर दिया था, दोनों के ही लंड बिल्कुल तन कर खड़े थे,
इसी बीच लता कपड़े रखने के लिए झुकी तो और उसकी गांड फैल गई जिसका असर दोनों ही दोस्तों पर हुआ और दोनों के मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई, लता कुछ देर तक कपड़े निचोड़ती रही और दोनों ही उसे टक टकी लगाकर देखते रहे, कपड़े निचोड़ने के बाद लता ने अपनी साड़ी और पेटीकोट उठाया और बगल में कच्चे से स्नानघर में घुस गई, तब जाकर दोनों की नजर उसके बदन से हटी, लल्लू को ये तो समझ आ गया था कि छोटू भी उसकी मां के चूतड़ों को देख रहा था पर इसकी गलती भी क्या है ऐसे चूतड़ देख कर कौन खुद को रोक सकता है, वैसे इससे इतना तो समझ आ गया कि साला हरामी ये भी है मेरे और भूरा की तरह जब मेरे सामने मेरी मां के चूतड़ों को देख सकता है तो हमारा साथ भी दे सकता है, पर साले से बात कैसे करूं समझ नहीं आ रहा?
लल्लू अपनी उधेड़बुन में था तो छोटू ये सोच घबरा रहा था कि कहीं लल्लू ने उसे ताई के पिछवाड़े को घूरते हुए देख तो नहीं लिया, साला वैसे भी गुस्सा जल्दी हो जाता है क्या करूं?
दोनों ही अपनी अपनी सोच में लगे हुए थे, इतने में लता नहा कर निकली और बोली: अब जा सकते हो तुम लोग।
लल्लू ने अपनी मां की बात सुनी और फिर छोटू को बोला: चल।
छोटू भी उसके पीछे पीछे चल दिया।
सत्तू अपने घर में एक खाट पर लेता हुआ था और नंगे चित्रों वाली किताब को देख देख कर अपने लंड को सहला रहा था तभी बाहर किवाड़ पर कुछ आहट हुई तो उसने तुंरत किताब को तकिए के नीचे सरका दिया इतने में ही एक भरे बदन की औरत आंगन में प्रवेश करती है।
सत्तू: अब आई हो मां इतना टेम लगा देती हो तुम तो।
झुमरी: अरे वो वो तुझे तो पता है न औरतें बातों में लग जाती हैं तो रुकती कहां हैं।
सत्तू: अच्छा तुम वहां बातों में लगी रहो और मुझे अभी तक चाय भी नहीं मिली।
झुमरी: चढ़ा रही हूं तेरी चाय, ये नहीं कि खुद ही बना ले कभी सब काम मैं ही कर के दूं तुझे।
झुमरी चाय चढ़ाते हुए कहती है,
सत्तू: अरे मां तुम्हें पता है ना बाहर के सारे काम कर लेता हूं मैं बस घर के काम नहीं होते मुझसे।
सत्तू भी उठ कर अपनी मां के पास चूल्हे के बगल में आकर बैठ जाता है
झुमरी: तभी कहती हूं अब ब्याह करले, बहु आ जाएगी तो मुझे भी आराम मिल जाएगा, और तुझे भी बिस्तर पर चाय मिल जाया करेगी।
सत्तू: का मां तुम भी ऐसे थोड़े ही होता है ब्याह, उसके लिए लड़की चाहिए अच्छी सी और फिर बहुत सारा पैसा भी लगता है ब्याह में,
झुमरी: तो लड़की मैं ढूंढ लूंगी पैसा तू कमा।
दोनों हंसने लगते हैं,
सत्तू: पैसा कमाना है तभी तो शहर के सबसे ज़्यादा चक्कर लगाता हूं पूरे गांव में।
झुमरी: जानती हूं लल्ला, तूने ही तो सब संभाल रखा है,
झुमरी उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहती है,
सत्तू: अच्छा मां कल तुम खेत गई थी क्या?
ये सुनते ही झुमरी के चेहरे का रंग उड़ जाता है,
झुमरी: मैं न नहीं तो क्या क्या हुआ क्यों पूछ रहा है?
सत्तू: कुछ नहीं वो एक बार देखना था सब्जियों की क्या हालत है, चलो कोई नहीं आज मैं ही देख आऊंगा।
झुमरी: हां वो घर के काम से समय ही नहीं मिला पूरे दिन इसलिए नहीं जा पाई।
सत्तू: कोई बात नहीं मां मैं देख आऊंगा आज।
झुमरी: ठीक ले बन गई तेरी चाय,
झुमरी उसे चाय देती है और सत्तू चाय लेकर बापिस खाट पर बैठ जाता है वहीं झुमरी चूल्हे की ओर देखते हुए किसी सोच में डूब जाती है।
झुमरी का परिवार हमेशा से ही छोटा था सत्तू के बाप से ब्याह होकर आई थी तो घर में उसकी सास और उसके पति ही थे, ससुर पहले ही पधार गए थे उसके पति की बड़ी बहन थी उसका भी ब्याह हो चुका था, और अभी तो उसके घर में सिर्फ दो ही लोग बचे थे, उसके पति और सत्तू के बाप का निधन तो 8 साल पहले ही नदी में डूब कर हो गया था शव तक नहीं मिला था बेचारे का, तब तो सत्तू बहुत छोटा था फिर भी बेचारे को उमर से पहले बढ़ा होना पड़ा, खूब मेहनत की और अपनी मां का भरपूर साथ दिया था तब जाकर उन्होंने वो कठिन समय काटा था, यूं तो झुमरी सत्तू को दिखाती थी कि उससे अब मेहनत नहीं होती और उसकी उम्र हो चुकी है पर अभी उसकी उमर ही क्या था छत्तीस वर्ष, और बदन पूरा भरा हुआ, खेतों में खूब काम किया था उसने तो बदन बिल्कुल कसा हुआ था, नितम्ब फैले हुए जो साड़ी के अंदर होते हुए भी लोगों पर अलग ही जादू करते थे, वहीं मोटी मोटी चूचियां थीं जिनकी कसावट अब भी बाकी थी, कमर और पेट गदराया हुआ था पर मोटापा बिलकुल नहीं था, पति की मौत के बाद कुछ समय तो वो सूखती सी गई पर फिर उसने अपना सारा ध्यान अपने बेटे और खेतों में लगा दिया था और जबसे सत्तू ने काम संभाला तब से तो उसका बदन भरता चला गया और अब ये कहना गलत नहीं होगा कि वो गांव की सबसे कामुक औरतों में से एक थी।
नीलम और नंदिनी रजनी भाभी के पास बैठे हुए थे और सिलाई सीख रहे थे पर आज मशीन ने उन्हें धोखा दे दिया था और चल नहीं रही थी,
नीलम: क्या हुआ भाभी नहीं चलेगी क्या?
रजनी: नहीं भाभी की ननद लग तो नहीं रहा,
रजनी मशीन को ठीक करने की कोशिश करते हुए बोली...
नीलम: लो गया आज का दिन बेकार।
नंदिनी: अरे तू चुप कर गलत ही बोलेगी।
रजनी मशीन को एक ओर सरका देती है और कहती है: अब इसे तो तुम्हारे भैया ही सही करवा कर लायेंगे, अब बताओ तुम क्यों लड़ रही हो आपस में।
नंदिनी: ये नीलम है भाभी हमेशा उल्टा ही बोलती है, अब बोल रही है दिन खराब हो गया,
नीलम: ठीक ही तो बोल रही हूं, अब मशीन खराब हो गई तो और कहां सीख पाएंगे।
नंदिनी: अरे सिलाई ही तो नहीं सीख सकते और भी बहुत कुछ सिखा सकती हैं भाभी क्यों भाभी?
रजनी: हां बिल्कुल बताओ तुम्हें क्या सीखना है सब कुछ सिखा सकती हूं।
नंदिनी: भाभी सिखाना है तो इस नीलम को कुछ गुण सिखाओ के पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना होता है।
नीलम: धत्त कितनी कुतिया है तू, मेरा नाम लगा कर अपने मन की क्यों पूछ रही है तुझे जानना है तो अपने लिए पूछ।
नंदिनी: क्यों तुझे नहीं रखना अपने पति को खुश?
नीलम: वो मैं रख लूंगी जब पति होगा तब, तू अपनी सोच।
नंदिनी: कामुक बातों से जैसे तू दूर भागती है न पति तुझे छोड़ कर भाग जाएगा। हैं न भाभी?
नीलम: भाग जाए तो भाग जाए मुझे क्या?
नंदिनी: भाभी अभी ये मज़ाक समझ रही है मेरी बातों को, तुम ही बताओ इसे।
रजनी: अच्छा तो आज तुम दोनों को ये सीखना है कि पति को बिस्तर पर कैसे खुश रखना है।
नीलम: मुझे नहीं भाभी इसे ही सीखना है।
नंदिनी: हां मुझे ही सीखना है तू अपने कान बंद कर ले, बताओ भाभी तुम।
रजनी: वैसे नीलम नंदिनी की ये बात सच है कि अगर पति बिस्तर पर खुश नहीं है तो फिर वो उखड़ा उखड़ा सा रहता है और हो सकता है बाहर भी मुंह मारने लगे।
नंदिनी: देखा अब बोल?
नीलम: मतलब भाभी, ये तो पत्नी के साथ गलत हुआ ना।
रजनी: देख जैसे पेट की भूख होती है न वैसे ही मर्दों को बदन की भूख भी होती है और अगर पत्नी से वो शांत नहीं होती तो पति बाहर ही जाएगा ना।
नंदिनी: बिल्कुल भाभी, सीधी सी बात है ये तो।
नीलम: तो भाभी पति ऐसा न करे उसके लिए पत्नी को क्या करना चाहिए?
रजनी: देखो हर आदमी को ऐसी औरत पसंद आती है जो सबके सामने खूब शर्माए, और बिल्कुल संस्कारी बन कर रहे पर बिस्तर पर बिल्कुल इसकी उलट हो।
नंदिनी: उलट मतलब?
रजनी: मतलब कि जो बिस्तर पर गरम हो, खुल कर अपने पति का साथ दे, उसके सामने शर्माती ही न रहे, बल्कि बिस्तर पर पहुंच कर शर्म को कपड़े के साथ ही उतार देना चाहिए। पति के साथ गंदी गंदी बातें करनी चाहिए, वो जैसा चाहे वैसा करोगे तो पति तुम्हें बहुत खुश रखेगा।
नंदिनी: सही में भाभी मैं तो बिल्कुल नहीं शर्माऊंगी।
रजनी: हां तुझे देख कर लगता है शर्माना तो तेरे पति को पड़ेगा।
इस पर तीनों हंसने लगती हैं,
नीलम: पर भाभी अगर शर्म आती हो तो अचानक से कैसे चली जाएगी वो तो आएगी ही न।
रजनी: बिल्कुल आएगी, तभी तो उसे धीरे धीरे कम करना चाहिए,
नीलम: पर भाभी कैसे? मुझे तो तुम दोनों के सामने भी शर्म आती है ऐसी बातें करने में।
नंदिनी: और पति तो शुरू शुरू में अनजान होगा भाभी, उसके सामने तो ये बोल भी नहीं पाएगी।
रजनी: वही तो, इसीलिए तुझे अभी से शुरुआत करनी होगी नीलम, नहीं तो बाद में परेशानी होगी।
नीलम: पर अभी से कैसे करूं भाभी यही तो समझ नहीं आता।
नंदिनी: मैं बताऊं, पहले तो तुझे ये नाटक करना बंद करना होगा कि तुझे ये सब पसंद नहीं आता या तेरा मन नहीं करता ये बातें करने का।
नंदिनी की बातें सुनकर नीलम चुप हो गई और रजनी की ओर देखने लगी।
रजनी: नंदिनी सही कह रही है नीलम, मैं मानती हूं हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि ये सब गंदी बाते हैं और इन सब से दूर रहना चाहिए, पर सच्चाई इससे अलग है।
नीलम: क्या है सच्चाई,
रजनी: यही कि हर कोई ये बातें करना चाहता है और करता भी है बस मना इसीलिए किया जाता है ताकि शर्म बनी रही, बाकी ऐसी कौन सी सहेलियां नहीं होंगी जो एक दूसरे की रात की कहानियां नहीं सुनती होंगी।
नंदिनी: समझी तो सबसे पहले हमारे साथ खुल, और खुल कर बात किया कर, इतना तो मैं भी तुझे समझती हूं कि मज़ा तुझे भी आता है बस मानना नहीं चाहती।
रजनी: सच में नीलम ये सब समाज की बातें खोखली हैं अगर पति खुश रहेगा साथ रहेगा तो समाज का फर्क नहीं पड़ता पर अगर पति ही अलग होने लगा तो समाज जीना मुश्किल कर देगा चाहे कितनी ही संस्कारी बन के रहो।
नीलम: सही कह रही हो भाभी।
रजनी: अब मुझे ही देख लो, अपने पति को पिता बनने का सुख नहीं दे पाई आज तक, समाज मुझे क्या क्या कहता है ये तुमसे छुपा नहीं पर मैंने अपने पति को कभी बिस्तर से असंतुष्ट होकर नहीं उठने दिया और शायद उसी के कारण हम आज तक साथ हैं नहीं तो समाज तो अब तक मुझे बांझ बना कर उनकी दूसरी शादी करा देता।
रजनी ने गंभीर होते हुए कहा तो वो दोनों भी गंभीर हो गईं, कुछ देर सन्नाटा रहा फिर रजनी बोली: अरे तुम लोग क्यों मुंह बना कर बैठ गईं, सीखना नहीं हैं क्या क्या करना होता है बिस्तर पर।
ये सुन कर दोनों हीं मुस्कुराने लगीं और रजनी उन्हें संभोग का ज्ञान देने लगी।
फुलवा आंगन में लेटी थी उसके बदन में हल्का हल्का दर्द था वह आंखें बंद करके लेटी थी और उसके सामने बस अपनी सुबह की चुदाई आ रही थी, पिछले दो दिनों से कोई अनजान साया उसे चोद रहा था और फुलवा उसकी चुदाई से पागल सी होती जा रही थी, खैर सुबह जल्दी उठने और फिर चुदाई की थकान से लेट कर उसे कुछ ही देर में नींद आ गई, घर के सारे मर्द बाहर थे नीलम सिलाई सीखने गई थी, घर पर सिर्फ दोनों बहुएं और फुलवा थीं,
सुधा: जीजी मैं का कह रही हूं आज फुर्सत है तो चलो कमरा ही साफ कर लेते हैं।
पुष्पा: कह तो सही रही है नहीं तो रोज ये काम टलता रहता है, जाले भी बहुत हो गए हैं कमरों में, पहले कौनसा करें?
सुधा: पहले तुम्हारा वाला कर लेते हैं
पुष्पा: चल ठीक है, आजा।
दोनों जल्दी से कमरे में पहुंचते हैं,
पुष्पा: मैं बिस्तर समेटती हूं तू तब तक संदूक के ऊपर से कपड़े हटा,
सुधा: ठीक है दीदी,
पुष्पा बिस्तर की ओर बढ़ती है और पास जाती है तो उसे बिस्तर पर हुई उसकी और उसके बेटे के बीच की चुदाई के दृश्य दिखाई देने लगते हैं और उसका बदन सिहरने लगता है, फिर से वो उत्तेजित होने लगती है, उसकी चूत नम होने लगती है, वो एक पल को रुक जाती है, बिस्तर को देखते हुए उसे एक एक पल याद आने लगता है कि कैसे इसी बिस्तर पर रात पर उसने अपने बेटे का लंड अपनी चूत में लिया और चुदवाया, अभी भी एक कम्पन उसकी चूत में उसे महसूस हो रहा था, और उसकी उत्तेजना को बढ़ा रहा था, इधर सुधा ने संदूक के ऊपर से कपड़े हटाए और बोली: दीदी इन्हें कहां रखूं?
पर पुष्पा ने कुछ जवाब नहीं दिया तो सुधा ने पुष्पा की ओर देखा जो बैठ कर बिस्तर को देखे जा रही थी, सुधा को समझ नहीं आया कि उसकी जेठानी क्या कर रही है तो उसने कपड़ों को अलग रखा और पुष्पा के पास गई और बगल में बैठते हुए उसके कंधे पर हाथ रख कर हिलाया और पूछा: क्या हुआ दीदी कहां खो गई,
तब जाकर पुष्पा अपने खयालों से बाहर निकली और बगल में अपनी देवरानी को बैठा पाया,
सुधा: क्या हुआ दीदी ऐसे क्यों बैठी हो?
पुष्पा को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले वो कभी सुधा को देखती तो कभी बिस्तर को, और फिर अचानक से उसके मन में न जाने क्या आया कि उसने आगे झुक कर अपने होंठ सुधा के होंठों से जोड़ दिए।
जारी रहेगी।