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Adultery उल्टा सीधा

Arthur Morgan

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अध्याय 25
पुष्पा बिना उसकी ओर देखे बोली, संजय को भी यही सही लगा, अभी इस हालत में उसे अकेला ही छोड़ देना सही होगा, संजय उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर से किवाड़ भिड़ा कर चला गया, पुष्पा अभी भी छत की ओर देखे जा रहीथी और फिर अचानक उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई। अब आगे...


अगली सुबह गांव में पक्षियों की चहचहाहट के साथ दिन की शुरुआत हुई। सूरज की पहली किरणें धीरे-धीरे खेतों पर पड़ रही थीं, और गांव के लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो गए थे। कुछ लोग हाथ में लोटा लिए नहाने जा रहे थे, तो कुछ खेतों की ओर बढ़ रहे थे। उसी बीच लता, रत्ना, पुष्पा और सुधा—चारों औरतें—हाथ में लोटा लिए बातें करती हुई नल की ओर चल पड़ीं।

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उनकी बातें मज़ाकिया थीं—किसी की सास की शिकायत से लेकर गांव की नई-नई खबरों तक—पर रत्ना और खासकर पुष्पा के मन में अंदर ही अंदर एक अजीब-सी बेचैनी चल रही थी। रत्ना के सपनों का बोझ और पुष्पा की रात की घटना—दोनों अपने-अपने द्वंद्व में डूबी थीं, पर चेहरों पर मुस्कान बनाए रखी। जल्दी ही चारों ने नल से हाथ धोकर अपने-अपने घरों की ओर रुख किया, और दिन की दिनचर्या शुरू हो गई।


रत्ना के घर में माहौल सामान्य था, लेकिन उसका मन आज भी अशांत था। रात को उसने फिर से वही सपना देखा था—जिसमें वो और उसकी बेटी रानी नंगी थीं, भूरा और राजू उसे चोद रहे थे, और राजकुमार रानी को। ये सपने उसे अंदर से खाए जा रहे थे। वो समझ नहीं पा रही थी कि ये अंधविश्वास है या कोई संकेत।
इसी बीच रानी ने उसकी तंद्रा तोड़ी, "मां, जब तक भूरा और राजू आएं, तुम नहा लो। मैं चाय चढ़ा देती हूं।"
रत्ना ने सिर हिलाया और नहाने के लिए साड़ी उतारकर नल की ओर चल दी, सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में।


भूरा और लल्लू साथ में शौच से लौट रहे थे। भूरा ने बात शुरू की, "वैसे छुटुआ के बिना अजीब लगता है न?"
लल्लू, जो अपनी सोच में डूबा था—नंदिनी के साथ कल की घटना और उनकी आंखमिचौली—ध्यान वापस लाते हुए बोला, "हां यार, हम हर काम साथ में ही करते हैं न इसलिए।"
उसके दिमाग में नंदिनी के स्पर्श और उनके चूमने का आनंद घूम रहा था, हालांकि कल शाम के बाद उन्हें अकेला वक्त नहीं मिला था।
भूरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "पर न जाने कब हम लोग साथ में वो करेंगे जो सोचा है।" लल्लू एक पल के लिए असहज हुआ, मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो, लेकिन फिर हंसते हुए बोला, "हां यार, उसी पल की तो राह देख रहा हूं।"

तीनों दोस्तों—भूरा, लल्लू और छोटू—ने मिलकर अपनी मांओं को चोदने की योजना बनाई थी, लेकिन लल्लू अभी नंदिनी के साथ हुए अपने अनुभव को साझा करने के लिए सहज नहीं था। बातों-बातों में दोनों घर की ओर बढ़े।

भूरा अपने घर में घुसा और नल के पास अपनी मां रत्ना को देखकर ठिठक गया। रत्ना झुकी हुई नल चला रही थी, उसका ब्लाउज और पेटीकोट में लिपटा हुआ बदन—चौड़े चूतड़ उभरे हुए, कमर की कामुक सिलवटें—भूरा के सामने था। उसका लंड तुरंत सिर उठाने लगा। वो दरवाजे के पास रुककर इस नजारे को देखने लगा, उसकी सांसें तेज हो रही थीं।

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रत्ना अभी भी सपनों में खोई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सपने क्यों आते हैं—क्या ये उसकी वासना है या किसी बुरी आत्मा का प्रभाव? इसी बीच रानी बाहर आई और चिल्लाई, "मां ओ मां? ये क्या कर रही हो?"
रत्ना चौंकी, "हैं? का क्या हुआ?" रानी हंसी, "अरे नल चलाए जा रही हो, पर नीचे बाल्टी तो लगाओ, खाली ही चला रही हो!" रत्ना का ध्यान टूटा, और वो रुक गई।
रानी की आवाज सुनकर भूरा भी सावधान हो गया और बिना मां की ओर देखे घर में घुस गया, ताकि रानी को शक न हो।


लल्लू के घर में माहौल साधारण था, लेकिन हवा में एक अनकही उत्तेजना थी। नंदिनी और लल्लू एक-दूसरे से नजरें मिला रहे थे, जैसे नए-नए प्रेमी हों। नंदिनी को भी इस आंखमिचौली में मजा आ रहा था, और उसका दिल तेज धड़क रहा था। लता बीच-बीच में अपने बेटे को देख रही थी। जब से उसने लल्लू का लंड देखा था, वो ख्याल उसके दिमाग में घूम रहा था। वो जानती थी कि ये गलत है, लेकिन उसकी ममता और उत्तेजना के बीच एक अजीब सा संघर्ष चल रहा था।


फुलवा के घर पर भी चाय की चुस्कियां चल रही थीं। जो भी घर पर थे, वो अपने-अपने काम में लगे थे, लेकिन हवा में एक तनाव था। पुष्पा अपने देवर संजय से आंखें नहीं मिला रही थी, रात की घटना—उनकी चुदाई—उसके दिमाग में घूम रही थी। संजय अपनी भाभी के बदन को छुप-छुपकर देख रहा था, उसकी चाहत और ग्लानि के बीच झूल रहा था। सुधा और बाकी लोग इस सब से अनजान थे।

सुधा ने पूछा, "ठीक से सोईं अम्मा तुम उनके यहां?"
फुलवा हंसी, "हां, हम तो ठीक से सोएं, हमें किसका डर?"

नीलम ने पूछा, "और रत्ना ताई?" फुलवा बोली, "उसको मन में डर बैठ गया है, बोला है आज उसे झाड़ा लगवाने ले जाऊंगी।"

पुष्पा ने सहमति दी, "हां अम्मा, बेचारी को आराम मिल जाए तो अच्छा है।"

शहर


शहर में मंडी में सुबह का समय शुरू हो चुका था। लोग अपने-अपने काम में लगे थे। राजेश काम करते हुए बीच-बीच में झुमरी और सुभाष को ताक रहा था, कल शाम की घटना—उनकी चुदाई—उसके दिमाग में थी। छोटू मंडी में आने-जाने वाली औरतों को देख रहा था, और सत्तू का ध्यान भी इसी ओर था। मंडी में सुबह और शाम को ही ज्यादा भीड़ होती थी, लेकिन 10 बजे तक ग्राहक कम हो गए थे।
सत्तू ने अपनी मां से कहा, "मां, अब काम भी कम है, तुम जाकर दवाई क्यों नहीं ले आती अपनी?"
झुमरी ने टालमटोल की, "मैं अकेली कैसी जाऊंगी?"
सत्तू बोला, "अब दुकान छोड़ मैं नहीं जा सकता, एक काम करो, छोटू या राजेश में से किसी को ले जाओ।"
झुमरी ने कहा, "अरे छोड़, दवाई की जरूरत नहीं है मुझे।"

सत्तू ने सख्ती से कहा, "मां उल्टी बात मत करो, अब आई हो शहर तक तो ले लो दवाई, नहीं तो फिर तुम्हारा रक्तचाप बढ़ जाता है। तुम बैठो, अभी आया।"

सत्तू तुरंत उठा और सुभाष को बताने गया। सुभाष ने कहा, "हां, भेज दे, अभी इतना काम भी नहीं है।"
सत्तू ने पूछा, "तो बताओ, तुम दोनों में से कौन जाएगा मां के साथ?"
छोटू बोला, "भैया, मैं चला तो जाऊं, लेकिन पहली बार आया हूं, बस का रास्ता नहीं पता।" सत्तू हंसा, "तू छोड़, तू बावरा है। राजेश, तू चल, मैं तुझे सब समझा देता हूं।" राजेश ने हामी भरी और सत्तू की बात ध्यान से सुनी।
कुछ देर बाद राजेश और झुमरी बस अड्डे पर खड़े थे। अस्पताल शहर के दूसरी ओर था, इसलिए उन्हें बस से जाना था।
दोनों बस का इंतजार कर रहे थे। राजेश झुमरी के साथ चलते हुए थोड़ा असहज था, क्योंकि उसकी नजरें अनजाने में झुमरी के बदन पर चली जाती थीं—उसकी साड़ी में लिपटी कमर और चूचियों का उभार, कल उसे उसने जिस तरीके से देखा था अपने ताऊ के साथ वो सब दिमाग में घूम रहा था। झुमरी को इसकी भनक नहीं थी, वो बस अपने रक्तचाप की दवा के बारे में सोच रही थी।


बस में सवार होते ही राजेश और झुमरी को भीड़ का सामना करना पड़ा। सुबह का समय था, और शहर की सड़कों पर लोग अपने-अपने कामों की ओर दौड़ रहे थे।
बस में जगह की कमी थी, सीट तो दूर की बात, खड़े होने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ी। किसी तरह दोनों आगे बढ़े और बस के बीच में जाकर खड़े हो गए। झुमरी आगे थी, और राजेश उसके ठीक पीछे खड़ा था। अगले अड्डे पर बस रुकी, और भीड़ और बढ़ गई। धक्का-मुक्की में राजेश पीछे से झुमरी से चिपक गया, जबकि झुमरी को भी मजबूरी में पीछे की ओर झुकना पड़ा। उसने चेहरा घुमा कर राजेश को देखा और हल्के गुस्से से बोली, "आराम से खड़ा है न लल्ला?"
राजेश ने तुरंत जवाब दिया, "हां ताई, ठीक से खड़ा हूं।"

इसी बीच एक जोर का धक्का आया। खुद को और झुमरी को गिरने से बचाने के चक्कर में राजेश का हाथ अनजाने में झुमरी की कमर पर चला गया, और उसने उसे सहारा देने के लिए पकड़ लिया। झुमरी को ये अजीब नहीं लगा; उसने सोचा शायद भीड़ की वजह से ऐसा हुआ, और वो ऐसे ही खड़ी रही।

लेकिन राजेश के लिए ये स्पर्श एकदम अलग था। जैसे ही उसके हाथों में झुमरी की कामुक कमर का स्पर्श हुआ, कल शाम के दृश्य—गोदाम में सुभाष और झुमरी की चुदाई—उसके दिमाग में फिर से कौंध गए। ये सब सोचते हुए और झुमरी के इतने करीब होने से उसके बदन में सनसनी दौड़ गई। पैंट के अंदर उसका लंड कड़क होने लगा और कुछ ही पलों में पूरी तरह तन गया।

अगला धक्का आते ही झुमरी को अपने चूतड़ों के बीच कुछ चुभने का आभास हुआ। वो हैरान रह गई और समझ गई कि ये क्या है। उसने तुरंत पलट कर देखा, और उसकी नजरें राजेश की नजरों से टकराईं। लेकिन शर्मिंदगी में उसने तुरंत चेहरा आगे कर लिया। राजेश का हाथ अभी भी उसकी कमर पर था, और बस के हिलने-डुलने के साथ उसका लंड झुमरी के चूतड़ों में चुभ रहा था। राजेश ने जब झुमरी की ओर से कोई विरोध नहीं देखा, तो उसकी हिम्मत बढ़ गई।

उसने अपना चेहरा झुमरी के चेहरे के पास लाया और फुसफुसाते हुए बोला, "ताई, मज़ा आ रहा है ना, शहर में घूमने में?"
झुमरी इस बात से हैरान थी—एक ओर उसका लंड उसके चूतड़ों में बार-बार चुभ रहा था, और दूसरी ओर राजेश इतने बेशर्मी से बात कर रहा था, मानो कुछ हो ही नहीं रहा हो।
इसी बीच राजेश थोड़ा सा पीछे हिला और फिर अपने लंड को झुमरी के चूतड़ों की दरार के बीच सटा दिया। झुमरी की आंखें चौड़ी हो गईं। ये सब उसके लिए बहुत ज्यादा हो गया। गुस्से से उसने राजेश को देखा और धीरे से फुसफुसाई, "राजेश, ये क्या कर रहा है तू, नाशपीटे!" साथ ही उसने गुस्से में राजेश का हाथ अपनी कमर से झटक दिया।

झुमरी के गुस्से से राजेश एक पल के लिए घबरा गया और चुप हो गया। लेकिन कुछ देर सोचने के बाद उसने फिर हिम्मत जुटाई और दोबारा अपना हाथ झुमरी की कमर पर रख दिया। झुमरी ने गुस्से से उसे देखा, लेकिन इससे पहले कि वो कुछ बोलती, राजेश ने उसके कान में फुसफुसाया, "कल शाम को गोदाम में अच्छे से आराम किया था ना ताई? ताऊजी के साथ?"
ये सुनते ही झुमरी का सिर घूम गया। उसकी आंखें बड़ी हो गईं, और उसे समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ और अब क्या करे। उसकी दुनिया पल भर में उलट गई। वो चुपचाप खड़ी रही, मन में शर्मिंदगी और डर का मेल था।

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आगे दवाई लेने से लेकर वापस आने तक झुमरी ने राजेश से एक शब्द नहीं बोला। उसका चेहरा उतरा हुआ था, जैसे कोई भारी बोझ उस पर डाल दिया गया हो।
वहीं राजेश के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी—वो खुद को इस हिम्मत के लिए शाबाशी दे रहा था। दोनों दवाई लेकर शाम तक मंडी में वापस आ गए।
सत्तू ने अपनी मां का चेहरा देखा और चिंता से पूछा, "अरे मां, क्या हुआ? कुछ परेशान लग रही हो?"
झुमरी ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा, "कुछ नहीं लल्ला, शायद थकावट की वजह से लग रहा होगा।"
सत्तू ने कहा, "कोई बात नहीं, काम खत्म हो चुका है, थोड़ी देर में निकल लेंगे गांव के लिए। क्यों चाचा?" सुभाष ने हामी भरी, "हां और क्या, बस खाली बोरे इकट्ठे करो और सब लपेटो।"
राजेश और छोटू तुरंत काम में जुट गए, जबकि सत्तू और सुभाष भी मदद करने लगे। झुमरी को बार-बार राजेश की नजरें अपने ऊपर महसूस हो रही थीं, और उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी। राजेश मन ही मन सोच रहा था कि आज उसने हिम्मत दिखाई, और अब झुमरी उसके वश में लग रही थी। बस अब उसे समझदारी से आगे बढ़ना था।
अंधेरा होने तक मंडी का काम खत्म हो गया, और दो नावें गांव की ओर चल पड़ीं। एक नाव में सुभाष और छोटू थे, जबकि दूसरी में झुमरी, सत्तू और राजेश। हर नाव के लिए दो चप्पू चलाने वालों की जरूरत थी, और राजेश ने खुद कहा था कि वो सत्तू के साथ जाएगा। नाव में झुमरी राजेश से नजरें बचाने की कोशिश कर रही थी, उसका मन अशांत था। वो सत्तू के साथ बातें कर रही थी, लेकिन उसकी नजरें बार-बार राजेश की ओर चली जाती थीं, जो चप्पू चलाते हुए उसे देख रहा था।

सत्तू ने बात शुरू की, "मां, दवाई ले ली ना? अब ठीक लग रहा है?"

झुमरी ने हल्का सा सिर हिलाया, "हां लल्ला, ठीक है।" लेकिन उसका मन कहीं और था। राजेश की शरारती मुस्कान और उसकी बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं। नाव की हल्की लहरों के साथ उसकी चिंता भी बढ़ रही थी, और वो सोच रही थी कि इस घटना का क्या हश्र होगा।
राजेश, दूसरी ओर, मौके की तलाश में था, लेकिन अभी चुपचाप चप्पू चलाता रहा, अपने अगले कदम की योजना बनाते हुए।



दूसरी ओर गांव में, नहा-धोकर रत्ना और फुलवा केला बाबा की झोपड़ी की ओर चल पड़ीं। सुबह की ठंडी हवा और खेतों की सोंधी महक उनके साथ थी, लेकिन रत्ना के मन में भारीपन था। फुलवा ने उसे हौसला देते हुए कहा, "तू घबरा मत बहू, एक बार झाड़ा लग जाएगा तो सब सही हो जाएगा।"
रत्ना ने थकी आवाज में जवाब दिया, "ऐसा ही हो चाची, मेरा तो सिर घूमता रहता है सोच-सोच कर।"
दोनों जल्दी ही केला बाबा की झोपड़ी में पहुंच गईं। रत्ना ने उनके सामने आते ही पल्लू कर लिया, सम्मान और डर के मिश्रण में।
केला बाबा ने फुलवा को देखा और पूछा, "क्या हुआ अम्मा, बताओ?"
फुलवा ने जवाब दिया, "अरे बाबा, ये बहुरिया को रात को अजीब-अजीब सपने आते हैं, जबसे राजकुमार के बाबा सिधारे हैं।"
केला बाबा ने रत्ना की ओर देखा और पूछा, "अच्छा बहू, किस तरह के सपने? कुछ बता सकती हो?"
रत्ना ने धीरे से कहा, "हर बार अलग-अलग तरह के होते हैं, ऐसे जो सच्चाई से बिल्कुल उलट हैं। सपनों से फिर घबराहट होने लगती है और नींद भी नहीं आती।" उसने अपने सपनों का असली विवरण छिपा लिया, शर्मिंदगी और डर के मारे।

केला बाबा ने गंभीरता से कहा, "अच्छा, वैसे अभी तुम्हारे घर में एक मृत्यु हुई है, वो भी अकाल मृत्यु। तो कभी-कभी उनकी आत्माएं हमें सपनों में संकेत देती हैं, जैसे उनकी कुछ आखिरी इच्छाएं जो अधूरी रह गई हों।"
ये सुनकर रत्ना थोड़ी डर गई और मन ही मन सोचने लगी—क्या प्यारेलाल की आत्मा सचमुच उसे कुछ कहना चाहती है?
फुलवा ने पूछा, "तो ऐसे में हमें क्या करना चाहिए बाबा?"
केला बाबा बोले, "कोशिश तो ये करनी चाहिए कि जो आत्मा चाह रही है, वो करो और उसकी इच्छा पूरी करो।"
रत्ना ने घबराते हुए पूछा, "बाबा, और वो पूरी न हो सके तो?"
केला बाबा ने शांत स्वर में कहा, "कोई घबराने की बात नहीं है बहू, सपने ही तो हैं। मैं एक पुड़िया देता हूं, सोने से पहले ले लेना तो नींद आ जाएगी।"
फुलवा ने जोड़ा, "एक बार झाड़ा भी लगादो बाबा।"
केला बाबा ने सहमति दी, "ठीक है, अभी लगा देता हूं।"
झाड़ा लगवाकर दोनों घर की ओर चल पड़ीं। फुलवा ने रत्ना को दिलासा दिया, "परेशान मत हो बहू, अब सब ठीक हो जाएगा।"

रत्ना ने ऊपरी मन से कहा, "हां अम्मा," लेकिन उसके मन में वही सवाल घूम रहे थे—क्या प्यारेलाल की अधूरी वासना उसके सपनों में दिख रही है? ये सोचते हुए वो घर पहुंची। फुलवा थोड़ी देर उसके पास बैठी और फिर अपने घर चली गई, छोड़कर रत्ना को अपने विचारों के साथ अकेला।



फुलवा के घर में सुबह का माहौल सामान्य था। सब लोग नहा-धोकर अपने काम पर निकल गए थे। फुलवा रत्ना के घर के लिए चली गई थी, संजय खेतों की ओर चला गया था, और नीलम सिलाई सीखने चली गई थी।
घर पर अब सिर्फ सुधा और पुष्पा—दोनों देवरानी-जेठानी—ही थीं। सुधा हमेशा की तरह चुलबुली थी, लेकिन पुष्पा थोड़ी चुपचाप थी। उसका मन रात की घटना—संजय के साथ चुदाई—से भरा था। उसे ग्लानि हो रही थी कि वो अपनी देवरानी सुधा के साथ धोखा कर रही है। वो सोच में डूबी घर के काम निपटा रही थी।

सुधा ने उसकी इस हालत को देखा और चेहरे पर एक शरारती मुस्कान लाकर दबे पांव उसके पीछे गई। उसने पुष्पा के पेट को हाथों से पकड़ा और उसकी गर्दन को चूमने लगी। पहले तो पुष्पा चौंकी, लेकिन फिर समझ गई कि सुधा है। सुधा के स्पर्श से उसके बदन में सिहरन दौड़ गई, और आंखें हल्की-हल्की बंद हो गईं। वो सुधा के स्पर्श का आनंद लेने लगी।

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पुष्पा का दिमाग तेजी से चल रहा था, और तभी उसे एक योजना सूझी। उसने पलट कर सुधा के होंठों पर अपने होंठ रख दिए। दोनों के बीच एक कामुक और जोशीला चुम्बन शुरू हो गया। दोनों एक-दूसरे के होंठों को प्यासे की तरह चूसने लगीं।


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पुष्पा के हाथ सुधा के बदन पर चल रहे थे और उसके कपड़ों को खोल रहे थे। सुधा पुष्पा की आक्रामकता से हैरान थी, लेकिन उसे मजा भी आ रहा था। कुछ ही देर में सुधा आंगन में बिल्कुल नंगी खड़ी थी। पुष्पा ने उसके होंठों को छोड़ा और उसकी चूचियों पर टूट पड़ी।
सुधा के लिए ये एक नया एहसास था—आंगन में खुले में नंगी होना उसे उत्तेजित कर रहा था, और पुष्पा की चूसाई उसे और गर्म कर रही थी। चूचियों के बाद सुधा ने पुष्पा को अलग किया और अब खुद पुष्पा के कपड़े उतारने लगी। कुछ पलों में पुष्पा भी नंगी हो गई। सुधा ने भी पुष्पा की चूचियों पर हमला बोला और उन्हें चूसने लगी। पुष्पा आंखें बंद कर सुधा के चेहरे और पीठ को सहला रही थी।
सुधा ने अपनी जेठानी की चूचियों को मन भर के चूसा और फिर नीचे सरककर उसके पेट और नाभि को चूसने लगी। पुष्पा "आह सुधा, ओह" की आवाजें निकालने लगी। सुधा ने अपनी जीभ पुष्पा की नाभि में डाली, और पुष्पा का बदन अकड़ गया। कुछ देर में पुष्पा आंगन की जमीन पर लेट गई।
सुधा उसके टांगों के बीच थी और पुष्पा की चूत को चाट रही थी। दोनों इससे पहले भी एक-दूसरे के बदन से खेल चुकी थीं, इसलिए अब और अनुभव के साथ मज़ा ले रही थीं। पुष्पा जल्दी ही सुधा की जीभ से स्खलित हो गई और हांफने लगी।

कुछ पल सांस लेने के बाद पुष्पा ने सुधा को पलटकर लिटा लिया। अब उसका दिमाग शांत था, और उसने सुधा के लिए एक योजना बनाई। उसने झुककर सुधा की चूची को चूसना शुरू किया और एक हाथ से दबाने लगी। सुधा "आह" की आवाजें निकालने लगी। पुष्पा ने चूची को मुंह से निकाला और दोनों चूचियों को मसलते हुए धीरे से बोली, "आह सुधा, हम लोग ये क्यों करते हैं? एक-दूसरे की चूत चाटना, चूची चूसना, ये सब कितना गलत है।"
सुधा, जो पहले से उत्तेजित थी, बोली, "आह मज़ा आता है जीजी, ऐसा आनंद मिलता है।"
पुष्पा ने कहा, "तुझे इस गंदे काम में मज़ा आता है? सच कहूं तो मुझे भी आता है। इसका मतलब हम दोनों गंदी औरतें हैं।"
सुधा ने हां में सिर हिलाया, "आह हां जीजी, हम दोनों आह गंदी हैं।"
पुष्पा ने नाभि में जीभ डालते हुए कहा, "गंदी नहीं, सिर्फ गंदी नहीं हो सकती, हमें तो कुछ और ही कहना चाहिए।"
सुधा ने उत्तेजित होकर कहा, "हम्म सही में हम दोनों बहुत गंदी हैं।" पुष्पा ने पूछा, "तुझे पता है हम कैसी औरतें हैं सुधा?"
सुधा ने जिज्ञासा से पूछा, "कैसी जीजी?"
पुष्पा ने धीरे से कहा, "चुदक्कड़ औरतें हैं हम सुधा, तू और मैं चुदक्कड़ हैं। हमारी चूतें प्यासी और गरम ही रहती हैं।"

सुधा ने सहमति में कहा, "आह जीजी सही कह रही हो, हम दोनों चुदक्कड़ हैं। हमारी चूत की खुजली नहीं मिटती, तभी तो देखो कैसे आंगन में एक-दूसरे के साथ मिटा रहे हैं।"

पुष्पा ने नाभि चूसते हुए पूछा, "आह सुधा, तू और मैं चुदक्कड़ प्यासी गर्म चूत वाली हैं। तुझे ऐसा ही बनना था या तुझे संस्कारी सीधी बनना है?"
सुधा ने जवाब दिया, "आह जीजी, मुझे गंदी ही बनना है। सीधेपन में ऐसा मज़ा नहीं, मुझे तो गंदी चुदक्कड़ औरत ही रहना है।"

पुष्पा ने पूछा, "आह अभी जितनी गंदी है, उतनी गंदी या इससे भी ज्यादा गंदी?"
सुधा मचलते हुए बोली, "हां जीजी, इससे भी गंदी, बहुत गंदी, जितनी गंदी बन सकती हूं उतनी बनूंगी।"
पुष्पा ने चूत के पास चूमते हुए कहा, "क्या तू ऐसी बनेगी जिसकी कोई सीमा न हो, जो कुछ भी कर सके, बस उसकी चूत की खुजली मिटाना ही जरूरी हो?"
सुधा ने जवाब दिया, "हां जीजी, बिल्कुल ऐसी ही, और सिर्फ मैं नहीं, तुम्हें भी वैसा ही बनाऊंगी।"
पुष्पा ने कहा, "आह हां सुधा, हम दोनों ऐसी चुदक्कड़ औरतें जो किसी भी हद को पार कर जाएंगी अपनी चूत के सुख के लिए, सही-गलत कुछ नहीं सोचेंगी। क्या हम दोनों ऐसी बनेगीं?"

सुधा ने उत्साह से कहा, "अहम्म हां जीजी, ऐसी ही बनेगीं—चुदक्कड़, गंदी, प्यासी औरतें।"
पुष्पा ने चूत को तड़पाते हुए पूछा, "देख ले, फिर ये तो नहीं होगा कि बाद में पछतावा हो कि हमने ये गलत किया?"
सुधा ने कहा, "नहीं आह जीजी, कोई पछतावा नहीं होगा, बस चूत की प्यास बुझाएंगे।"
ये कहकर सुधा ने पुष्पा का सिर अपनी चूत में दबा दिया। पुष्पा ने जीभ निकालकर चाटना शुरू कर दिया। सुधा की सिसकियां गूंजने लगीं, और कुछ देर में वो फिर स्खलित हो गई। लेकिन पुष्पा ने उसे नहीं छोड़ा और लगातार चाटती रही, जिससे सुधा फिर उत्तेजना में जलने लगी।

पुष्पा ने कुछ देर बाद सुधा की चूत को चाटा और फिर उठकर उसकी टांगों में अपनी टांगें फंसा ली। वो आगे झुकी, ताकि दोनों की चूतें एक-दूसरे से छू रही हों और चेहरे आमने-सामने हों।
पुष्पा ने सुधा के होंठ चूसे और कमर हिलानी शुरू की, जिससे चूतें आपस में घिसने लगीं। दोनों को एक अद्भुत आनंद मिला। सुधा और पुष्पा एक-दूसरे की आंखों में देख रही थीं।
पुष्पा ने कहा, "आह हैं न हम गंदी चुदक्कड़ और प्यासी औरतें?"

सुधा ने जवाब दिया, "हां जीजी, हम हैं। आह ऐसा मज़ा चुदक्कड़ औरतें ही तो करती हैं।"
पुष्पा ने कहा, "आह चुदक्कड़ है तो और भी बहुत कुछ है जो हम कर सकते हैं।"
सुधा ने उत्सुकता से पूछा, "और क्या जीजी? बताओ क्या करेंगे हम?"
पुष्पा ने कहा, "चूत की प्यास सिर्फ चाटने से नहीं बुझती मेरी चुदक्कड़ देवरानी, इसके लिए मोटे लंड से इसकी पिटाई भी जरूरी है।"
सुधा ने सहमति में कहा, "हां जीजी, अह सच में, बिना लंड के चूत की प्यास नहीं बुझती, मुझे भी रोज लंड की जरूरत पड़ती है।"
पुष्पा ने पूछा, "आह तो तू रोज चुदवाती है अपनी चूत को मोटे लंड से?"
सुधा बोली, "हां जीजी, रोज। जिस रात नहीं चुदवाती, उस रात तड़पती रहती हूं, जैसे आज रात में नहीं चुदवाया, तो देख ही रही हो मेरी हालत।"

पुष्पा ने कहा, "आह होगी ही, हम दोनों की चूत इतनी प्यासी जो रहती हैं। आह क्या इनकी प्यास सिर्फ एक लंड से बुझ सकती है?"
सुधा थोड़ी सकुचाई, लेकिन पुष्पा ने उसे प्रोत्साहित किया।
सुधा बोली, "नहीं जीजी, आह इसीलिए तो हमारी चूत प्यासी रहती हैं, और हम एक-दूसरे की प्यास बुझा रहे हैं।"

पुष्पा ने कहा, "सोच इससे भी गंदा कुछ हो तो, इससे भी गंदा करें हम दोनों?"
सुधा ने उत्साह से पूछा, "जैसे क्या जीजी?"
पुष्पा ने कहा, "सोच अभी मेरी चूत की जगह लंड होता किसी मर्द का, तेरे पति के अलावा, और तेरी चूत को भेद रहा होता।"
सुधा एक पल को कांप गई, लेकिन पुष्पा की बातों से उत्तेजना बढ़ गई। पुष्पा ने पूछा, "बता, चुदवाएगी पराए नए लंड से?"
सुधा ने कहा, "आह हां जीजी, अगर मोटा लंड मेरी चूत की प्यास बुझाएगा तो जरूर चुदवाऊंगी।"
पुष्पा ने कहा, "बिल्कुल बुझाएगा मेरी चुदक्कड़ देवरानी। किसका लंड लेना चाहेगी तू, बिना शर्म के?"
सुधा बोली, "आह जीजी, बस लंड दमदार होना चाहिए, किसी का भी हो, चुदवा लूंगी।"
पुष्पा ने कहा, "अच्छा तो आंखें बंद कर और सोच।"
सुधा ने आंखें बंद कीं। पुष्पा ने अपनी उंगलियों से सुधा की चूत को छूते हुए कहा, "सोच, अभी तेरे ऊपर एक मर्द है, उसका बदन तेरे नंगे बदन को ढके हुए है, उसका लंड तेरी चूत के ऊपर है, तेरी प्यासी गरम चूत को छू रहा है।"
सुधा तड़पते हुए "आह हां जीजी" कहने लगी। पुष्पा ने पूछा, "तू लेगी गैर मर्द का मोटा लंड अपनी चूत में?"
सुधा ने कहा, "हां जीजी, मैं लूंगी अपनी प्यासी गरम चूत में।"

पुष्पा ने कहा, "आह ये लंड, ये गरम मोटा लंड तेरे जेठ जी का है सुधा, जो तेरी चूत को छू रहा है। बता, अब क्या करेगी?"
सुधा अपने जेठ का नाम सुनकर कांप गई, लेकिन वर्जित उत्तेजना ने उसे रोकने नहीं दिया। वो बोली, "ओह जीजी, अह जेठ जी का मोटा लंड, आह लूंगी मैं अपनी चूत में।"
पुष्पा ने कहा, "तो मांग अपने जेठ जी से अपनी चूत में लंड मांग, बता तेरी चूत को लंड की कितनी जरूरत है।"
सुधा ने चिल्लाया, "आह हां जेठ जी, ओह चोदो मुझे, आह घुसा दो अपना लंड अपनी बहू की चूत में, आह चोद-चोद के मेरी चूत की खुजली मिटा दो।"
पुष्पा ने सुधा की चूत में उंगलियां डाल दीं और अंदर-बाहर करने लगी। सुधा वर्जित काल्पनिक चुदाई के आनंद में डूब गई, आंखें मूंदकर सोच रही थी कि उसके जेठ का लंड उसकी चूत में है। कुछ देर बाद वो इतने वेग से स्खलित हुई कि एक पल को बेहोश-सी हो गई।
पुष्पा ने उंगलियां निकाल लीं, और दोनों लेटकर सांसें बटोरने लगीं। शांत होने पर सुधा को ख्याल आया कि उसने जेठ के बारे में सोचकर स्खलित हुई। दोनों की आंखें मिलीं, और चेहरों पर मुस्कान आ गई।
लेकिन दोनों को इस बात का इल्म नहीं था कि एक साया उन्हें देख रहा था, जो तुरंत घर से बाहर निकल गया।

जारी रहेगी
 
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Arthur Morgan

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बहुत ही शानदार लाजवाब और कामुकता से भरा जबरदस्त मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया ये नाव में बैठकर बाजार गये सुभाष और झुमरी में कुछ होगा जो उनके बीच पहलें से ही चल रहा हैं और किसी को भी पता नहीं है क्या सत्तु को पता चलेगा
क्या संजय और उसकी भाभी पुष्पा खेत में हुए वाकयें बाद आगे बढकर एकाकार हो पायेगे
ये पुष्पा और सुधा का लेस्बिअन खेल जो दोनों के बीच पहली बार हुआ और दोनों को मजा दे गया वो कोनसी करवट लेगा
लल्लु और उसकी माँ लता के बीच चुदाई का खेल शुरु होगा क्यो की लता का लल्लू के लंड के उभार देखकर उसका अपने बेटे की ओर देखने का नजरीया बदल जो गया है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

Bhut shandaar update.... naye ladke to chodo a hi to purne khiladi bhi maidaan maar rahe hai..... गरमा
गरम update

Last update hai
Maja a Gaya

बहुत ही रोमांचक और कामुक अपडेट

अगले भाग की प्रतीक्षा है !

NICE TURN OF EVENTS MATE. CARRY ON

Mast jabardast update bhai

Gazab ki update he Arthur Morgan Bro,

Mast, Garmagaram...........

Keep rocking Bro

Waiting for next update

Next update


Ok will be waiting

Waiting for next update

waiting for next update

Update pl

Bahut khoob.

Update pls

Eagerly awaiting for update guruji

Waiting for next update 😔 😔

Ye story band ho gayi h kya
अध्याय 25 पोस्ट कर दिया है, पढ़ कर प्रतिक्रिया अवश्य दें, बहुत बहुत धन्यवाद ।
 

Ek number

Well-Known Member
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अध्याय 25
पुष्पा बिना उसकी ओर देखे बोली, संजय को भी यही सही लगा, अभी इस हालत में उसे अकेला ही छोड़ देना सही होगा, संजय उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर से किवाड़ भिड़ा कर चला गया, पुष्पा अभी भी छत की ओर देखे जा रहीथी और फिर अचानक उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई। अब आगे...


अगली सुबह गांव में पक्षियों की चहचहाहट के साथ दिन की शुरुआत हुई। सूरज की पहली किरणें धीरे-धीरे खेतों पर पड़ रही थीं, और गांव के लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो गए थे। कुछ लोग हाथ में लोटा लिए नहाने जा रहे थे, तो कुछ खेतों की ओर बढ़ रहे थे। उसी बीच लता, रत्ना, पुष्पा और सुधा—चारों औरतें—हाथ में लोटा लिए बातें करती हुई नल की ओर चल पड़ीं।

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उनकी बातें मज़ाकिया थीं—किसी की सास की शिकायत से लेकर गांव की नई-नई खबरों तक—पर रत्ना और खासकर पुष्पा के मन में अंदर ही अंदर एक अजीब-सी बेचैनी चल रही थी। रत्ना के सपनों का बोझ और पुष्पा की रात की घटना—दोनों अपने-अपने द्वंद्व में डूबी थीं, पर चेहरों पर मुस्कान बनाए रखी। जल्दी ही चारों ने नल से हाथ धोकर अपने-अपने घरों की ओर रुख किया, और दिन की दिनचर्या शुरू हो गई।


रत्ना के घर में माहौल सामान्य था, लेकिन उसका मन आज भी अशांत था। रात को उसने फिर से वही सपना देखा था—जिसमें वो और उसकी बेटी रानी नंगी थीं, भूरा और राजू उसे चोद रहे थे, और राजकुमार रानी को। ये सपने उसे अंदर से खाए जा रहे थे। वो समझ नहीं पा रही थी कि ये अंधविश्वास है या कोई संकेत।
इसी बीच रानी ने उसकी तंद्रा तोड़ी, "मां, जब तक भूरा और राजू आएं, तुम नहा लो। मैं चाय चढ़ा देती हूं।"
रत्ना ने सिर हिलाया और नहाने के लिए साड़ी उतारकर नल की ओर चल दी, सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में।


भूरा और लल्लू साथ में शौच से लौट रहे थे। भूरा ने बात शुरू की, "वैसे छुटुआ के बिना अजीब लगता है न?"
लल्लू, जो अपनी सोच में डूबा था—नंदिनी के साथ कल की घटना और उनकी आंखमिचौली—ध्यान वापस लाते हुए बोला, "हां यार, हम हर काम साथ में ही करते हैं न इसलिए।"
उसके दिमाग में नंदिनी के स्पर्श और उनके चूमने का आनंद घूम रहा था, हालांकि कल शाम के बाद उन्हें अकेला वक्त नहीं मिला था।
भूरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "पर न जाने कब हम लोग साथ में वो करेंगे जो सोचा है।" लल्लू एक पल के लिए असहज हुआ, मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो, लेकिन फिर हंसते हुए बोला, "हां यार, उसी पल की तो राह देख रहा हूं।"

तीनों दोस्तों—भूरा, लल्लू और छोटू—ने मिलकर अपनी मांओं को चोदने की योजना बनाई थी, लेकिन लल्लू अभी नंदिनी के साथ हुए अपने अनुभव को साझा करने के लिए सहज नहीं था। बातों-बातों में दोनों घर की ओर बढ़े।

भूरा अपने घर में घुसा और नल के पास अपनी मां रत्ना को देखकर ठिठक गया। रत्ना झुकी हुई नल चला रही थी, उसका ब्लाउज और पेटीकोट में लिपटा हुआ बदन—चौड़े चूतड़ उभरे हुए, कमर की कामुक सिलवटें—भूरा के सामने था। उसका लंड तुरंत सिर उठाने लगा। वो दरवाजे के पास रुककर इस नजारे को देखने लगा, उसकी सांसें तेज हो रही थीं।

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रत्ना अभी भी सपनों में खोई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सपने क्यों आते हैं—क्या ये उसकी वासना है या किसी बुरी आत्मा का प्रभाव? इसी बीच रानी बाहर आई और चिल्लाई, "मां ओ मां? ये क्या कर रही हो?"
रत्ना चौंकी, "हैं? का क्या हुआ?" रानी हंसी, "अरे नल चलाए जा रही हो, पर नीचे बाल्टी तो लगाओ, खाली ही चला रही हो!" रत्ना का ध्यान टूटा, और वो रुक गई।
रानी की आवाज सुनकर भूरा भी सावधान हो गया और बिना मां की ओर देखे घर में घुस गया, ताकि रानी को शक न हो।


लल्लू के घर में माहौल साधारण था, लेकिन हवा में एक अनकही उत्तेजना थी। नंदिनी और लल्लू एक-दूसरे से नजरें मिला रहे थे, जैसे नए-नए प्रेमी हों। नंदिनी को भी इस आंखमिचौली में मजा आ रहा था, और उसका दिल तेज धड़क रहा था। लता बीच-बीच में अपने बेटे को देख रही थी। जब से उसने लल्लू का लंड देखा था, वो ख्याल उसके दिमाग में घूम रहा था। वो जानती थी कि ये गलत है, लेकिन उसकी ममता और उत्तेजना के बीच एक अजीब सा संघर्ष चल रहा था।


फुलवा के घर पर भी चाय की चुस्कियां चल रही थीं। जो भी घर पर थे, वो अपने-अपने काम में लगे थे, लेकिन हवा में एक तनाव था। पुष्पा अपने देवर संजय से आंखें नहीं मिला रही थी, रात की घटना—उनकी चुदाई—उसके दिमाग में घूम रही थी। संजय अपनी भाभी के बदन को छुप-छुपकर देख रहा था, उसकी चाहत और ग्लानि के बीच झूल रहा था। सुधा और बाकी लोग इस सब से अनजान थे।

सुधा ने पूछा, "ठीक से सोईं अम्मा तुम उनके यहां?"
फुलवा हंसी, "हां, हम तो ठीक से सोएं, हमें किसका डर?"

नीलम ने पूछा, "और रत्ना ताई?" फुलवा बोली, "उसको मन में डर बैठ गया है, बोला है आज उसे झाड़ा लगवाने ले जाऊंगी।"

पुष्पा ने सहमति दी, "हां अम्मा, बेचारी को आराम मिल जाए तो अच्छा है।"

शहर


शहर में मंडी में सुबह का समय शुरू हो चुका था। लोग अपने-अपने काम में लगे थे। राजेश काम करते हुए बीच-बीच में झुमरी और सुभाष को ताक रहा था, कल शाम की घटना—उनकी चुदाई—उसके दिमाग में थी। छोटू मंडी में आने-जाने वाली औरतों को देख रहा था, और सत्तू का ध्यान भी इसी ओर था। मंडी में सुबह और शाम को ही ज्यादा भीड़ होती थी, लेकिन 10 बजे तक ग्राहक कम हो गए थे।
सत्तू ने अपनी मां से कहा, "मां, अब काम भी कम है, तुम जाकर दवाई क्यों नहीं ले आती अपनी?"
झुमरी ने टालमटोल की, "मैं अकेली कैसी जाऊंगी?"
सत्तू बोला, "अब दुकान छोड़ मैं नहीं जा सकता, एक काम करो, छोटू या राजेश में से किसी को ले जाओ।"
झुमरी ने कहा, "अरे छोड़, दवाई की जरूरत नहीं है मुझे।"

सत्तू ने सख्ती से कहा, "मां उल्टी बात मत करो, अब आई हो शहर तक तो ले लो दवाई, नहीं तो फिर तुम्हारा रक्तचाप बढ़ जाता है। तुम बैठो, अभी आया।"

सत्तू तुरंत उठा और सुभाष को बताने गया। सुभाष ने कहा, "हां, भेज दे, अभी इतना काम भी नहीं है।"
सत्तू ने पूछा, "तो बताओ, तुम दोनों में से कौन जाएगा मां के साथ?"
छोटू बोला, "भैया, मैं चला तो जाऊं, लेकिन पहली बार आया हूं, बस का रास्ता नहीं पता।" सत्तू हंसा, "तू छोड़, तू बावरा है। राजेश, तू चल, मैं तुझे सब समझा देता हूं।" राजेश ने हामी भरी और सत्तू की बात ध्यान से सुनी।
कुछ देर बाद राजेश और झुमरी बस अड्डे पर खड़े थे। अस्पताल शहर के दूसरी ओर था, इसलिए उन्हें बस से जाना था।
दोनों बस का इंतजार कर रहे थे। राजेश झुमरी के साथ चलते हुए थोड़ा असहज था, क्योंकि उसकी नजरें अनजाने में झुमरी के बदन पर चली जाती थीं—उसकी साड़ी में लिपटी कमर और चूचियों का उभार, कल उसे उसने जिस तरीके से देखा था अपने ताऊ के साथ वो सब दिमाग में घूम रहा था। झुमरी को इसकी भनक नहीं थी, वो बस अपने रक्तचाप की दवा के बारे में सोच रही थी।


बस में सवार होते ही राजेश और झुमरी को भीड़ का सामना करना पड़ा। सुबह का समय था, और शहर की सड़कों पर लोग अपने-अपने कामों की ओर दौड़ रहे थे।
बस में जगह की कमी थी, सीट तो दूर की बात, खड़े होने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ी। किसी तरह दोनों आगे बढ़े और बस के बीच में जाकर खड़े हो गए। झुमरी आगे थी, और राजेश उसके ठीक पीछे खड़ा था। अगले अड्डे पर बस रुकी, और भीड़ और बढ़ गई। धक्का-मुक्की में राजेश पीछे से झुमरी से चिपक गया, जबकि झुमरी को भी मजबूरी में पीछे की ओर झुकना पड़ा। उसने चेहरा घुमा कर राजेश को देखा और हल्के गुस्से से बोली, "आराम से खड़ा है न लल्ला?"
राजेश ने तुरंत जवाब दिया, "हां ताई, ठीक से खड़ा हूं।"

इसी बीच एक जोर का धक्का आया। खुद को और झुमरी को गिरने से बचाने के चक्कर में राजेश का हाथ अनजाने में झुमरी की कमर पर चला गया, और उसने उसे सहारा देने के लिए पकड़ लिया। झुमरी को ये अजीब नहीं लगा; उसने सोचा शायद भीड़ की वजह से ऐसा हुआ, और वो ऐसे ही खड़ी रही।

लेकिन राजेश के लिए ये स्पर्श एकदम अलग था। जैसे ही उसके हाथों में झुमरी की कामुक कमर का स्पर्श हुआ, कल शाम के दृश्य—गोदाम में सुभाष और झुमरी की चुदाई—उसके दिमाग में फिर से कौंध गए। ये सब सोचते हुए और झुमरी के इतने करीब होने से उसके बदन में सनसनी दौड़ गई। पैंट के अंदर उसका लंड कड़क होने लगा और कुछ ही पलों में पूरी तरह तन गया।

अगला धक्का आते ही झुमरी को अपने चूतड़ों के बीच कुछ चुभने का आभास हुआ। वो हैरान रह गई और समझ गई कि ये क्या है। उसने तुरंत पलट कर देखा, और उसकी नजरें राजेश की नजरों से टकराईं। लेकिन शर्मिंदगी में उसने तुरंत चेहरा आगे कर लिया। राजेश का हाथ अभी भी उसकी कमर पर था, और बस के हिलने-डुलने के साथ उसका लंड झुमरी के चूतड़ों में चुभ रहा था। राजेश ने जब झुमरी की ओर से कोई विरोध नहीं देखा, तो उसकी हिम्मत बढ़ गई।

उसने अपना चेहरा झुमरी के चेहरे के पास लाया और फुसफुसाते हुए बोला, "ताई, मज़ा आ रहा है ना, शहर में घूमने में?"
झुमरी इस बात से हैरान थी—एक ओर उसका लंड उसके चूतड़ों में बार-बार चुभ रहा था, और दूसरी ओर राजेश इतने बेशर्मी से बात कर रहा था, मानो कुछ हो ही नहीं रहा हो।
इसी बीच राजेश थोड़ा सा पीछे हिला और फिर अपने लंड को झुमरी के चूतड़ों की दरार के बीच सटा दिया। झुमरी की आंखें चौड़ी हो गईं। ये सब उसके लिए बहुत ज्यादा हो गया। गुस्से से उसने राजेश को देखा और धीरे से फुसफुसाई, "राजेश, ये क्या कर रहा है तू, नाशपीटे!" साथ ही उसने गुस्से में राजेश का हाथ अपनी कमर से झटक दिया।

झुमरी के गुस्से से राजेश एक पल के लिए घबरा गया और चुप हो गया। लेकिन कुछ देर सोचने के बाद उसने फिर हिम्मत जुटाई और दोबारा अपना हाथ झुमरी की कमर पर रख दिया। झुमरी ने गुस्से से उसे देखा, लेकिन इससे पहले कि वो कुछ बोलती, राजेश ने उसके कान में फुसफुसाया, "कल शाम को गोदाम में अच्छे से आराम किया था ना ताई? ताऊजी के साथ?"
ये सुनते ही झुमरी का सिर घूम गया। उसकी आंखें बड़ी हो गईं, और उसे समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ और अब क्या करे। उसकी दुनिया पल भर में उलट गई। वो चुपचाप खड़ी रही, मन में शर्मिंदगी और डर का मेल था।

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आगे दवाई लेने से लेकर वापस आने तक झुमरी ने राजेश से एक शब्द नहीं बोला। उसका चेहरा उतरा हुआ था, जैसे कोई भारी बोझ उस पर डाल दिया गया हो।
वहीं राजेश के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी—वो खुद को इस हिम्मत के लिए शाबाशी दे रहा था। दोनों दवाई लेकर शाम तक मंडी में वापस आ गए।
सत्तू ने अपनी मां का चेहरा देखा और चिंता से पूछा, "अरे मां, क्या हुआ? कुछ परेशान लग रही हो?"
झुमरी ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा, "कुछ नहीं लल्ला, शायद थकावट की वजह से लग रहा होगा।"
सत्तू ने कहा, "कोई बात नहीं, काम खत्म हो चुका है, थोड़ी देर में निकल लेंगे गांव के लिए। क्यों चाचा?" सुभाष ने हामी भरी, "हां और क्या, बस खाली बोरे इकट्ठे करो और सब लपेटो।"
राजेश और छोटू तुरंत काम में जुट गए, जबकि सत्तू और सुभाष भी मदद करने लगे। झुमरी को बार-बार राजेश की नजरें अपने ऊपर महसूस हो रही थीं, और उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी। राजेश मन ही मन सोच रहा था कि आज उसने हिम्मत दिखाई, और अब झुमरी उसके वश में लग रही थी। बस अब उसे समझदारी से आगे बढ़ना था।
अंधेरा होने तक मंडी का काम खत्म हो गया, और दो नावें गांव की ओर चल पड़ीं। एक नाव में सुभाष और छोटू थे, जबकि दूसरी में झुमरी, सत्तू और राजेश। हर नाव के लिए दो चप्पू चलाने वालों की जरूरत थी, और राजेश ने खुद कहा था कि वो सत्तू के साथ जाएगा। नाव में झुमरी राजेश से नजरें बचाने की कोशिश कर रही थी, उसका मन अशांत था। वो सत्तू के साथ बातें कर रही थी, लेकिन उसकी नजरें बार-बार राजेश की ओर चली जाती थीं, जो चप्पू चलाते हुए उसे देख रहा था।

सत्तू ने बात शुरू की, "मां, दवाई ले ली ना? अब ठीक लग रहा है?"

झुमरी ने हल्का सा सिर हिलाया, "हां लल्ला, ठीक है।" लेकिन उसका मन कहीं और था। राजेश की शरारती मुस्कान और उसकी बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं। नाव की हल्की लहरों के साथ उसकी चिंता भी बढ़ रही थी, और वो सोच रही थी कि इस घटना का क्या हश्र होगा।
राजेश, दूसरी ओर, मौके की तलाश में था, लेकिन अभी चुपचाप चप्पू चलाता रहा, अपने अगले कदम की योजना बनाते हुए।



दूसरी ओर गांव में, नहा-धोकर रत्ना और फुलवा केला बाबा की झोपड़ी की ओर चल पड़ीं। सुबह की ठंडी हवा और खेतों की सोंधी महक उनके साथ थी, लेकिन रत्ना के मन में भारीपन था। फुलवा ने उसे हौसला देते हुए कहा, "तू घबरा मत बहू, एक बार झाड़ा लग जाएगा तो सब सही हो जाएगा।"
रत्ना ने थकी आवाज में जवाब दिया, "ऐसा ही हो चाची, मेरा तो सिर घूमता रहता है सोच-सोच कर।"
दोनों जल्दी ही केला बाबा की झोपड़ी में पहुंच गईं। रत्ना ने उनके सामने आते ही पल्लू कर लिया, सम्मान और डर के मिश्रण में।
केला बाबा ने फुलवा को देखा और पूछा, "क्या हुआ अम्मा, बताओ?"
फुलवा ने जवाब दिया, "अरे बाबा, ये बहुरिया को रात को अजीब-अजीब सपने आते हैं, जबसे राजकुमार के बाबा सिधारे हैं।"
केला बाबा ने रत्ना की ओर देखा और पूछा, "अच्छा बहू, किस तरह के सपने? कुछ बता सकती हो?"
रत्ना ने धीरे से कहा, "हर बार अलग-अलग तरह के होते हैं, ऐसे जो सच्चाई से बिल्कुल उलट हैं। सपनों से फिर घबराहट होने लगती है और नींद भी नहीं आती।" उसने अपने सपनों का असली विवरण छिपा लिया, शर्मिंदगी और डर के मारे।

केला बाबा ने गंभीरता से कहा, "अच्छा, वैसे अभी तुम्हारे घर में एक मृत्यु हुई है, वो भी अकाल मृत्यु। तो कभी-कभी उनकी आत्माएं हमें सपनों में संकेत देती हैं, जैसे उनकी कुछ आखिरी इच्छाएं जो अधूरी रह गई हों।"
ये सुनकर रत्ना थोड़ी डर गई और मन ही मन सोचने लगी—क्या प्यारेलाल की आत्मा सचमुच उसे कुछ कहना चाहती है?
फुलवा ने पूछा, "तो ऐसे में हमें क्या करना चाहिए बाबा?"
केला बाबा बोले, "कोशिश तो ये करनी चाहिए कि जो आत्मा चाह रही है, वो करो और उसकी इच्छा पूरी करो।"
रत्ना ने घबराते हुए पूछा, "बाबा, और वो पूरी न हो सके तो?"
केला बाबा ने शांत स्वर में कहा, "कोई घबराने की बात नहीं है बहू, सपने ही तो हैं। मैं एक पुड़िया देता हूं, सोने से पहले ले लेना तो नींद आ जाएगी।"
फुलवा ने जोड़ा, "एक बार झाड़ा भी लगादो बाबा।"
केला बाबा ने सहमति दी, "ठीक है, अभी लगा देता हूं।"
झाड़ा लगवाकर दोनों घर की ओर चल पड़ीं। फुलवा ने रत्ना को दिलासा दिया, "परेशान मत हो बहू, अब सब ठीक हो जाएगा।"

रत्ना ने ऊपरी मन से कहा, "हां अम्मा," लेकिन उसके मन में वही सवाल घूम रहे थे—क्या प्यारेलाल की अधूरी वासना उसके सपनों में दिख रही है? ये सोचते हुए वो घर पहुंची। फुलवा थोड़ी देर उसके पास बैठी और फिर अपने घर चली गई, छोड़कर रत्ना को अपने विचारों के साथ अकेला।



फुलवा के घर में सुबह का माहौल सामान्य था। सब लोग नहा-धोकर अपने काम पर निकल गए थे। फुलवा रत्ना के घर के लिए चली गई थी, संजय खेतों की ओर चला गया था, और नीलम सिलाई सीखने चली गई थी।
घर पर अब सिर्फ सुधा और पुष्पा—दोनों देवरानी-जेठानी—ही थीं। सुधा हमेशा की तरह चुलबुली थी, लेकिन पुष्पा थोड़ी चुपचाप थी। उसका मन रात की घटना—संजय के साथ चुदाई—से भरा था। उसे ग्लानि हो रही थी कि वो अपनी देवरानी सुधा के साथ धोखा कर रही है। वो सोच में डूबी घर के काम निपटा रही थी।

सुधा ने उसकी इस हालत को देखा और चेहरे पर एक शरारती मुस्कान लाकर दबे पांव उसके पीछे गई। उसने पुष्पा के पेट को हाथों से पकड़ा और उसकी गर्दन को चूमने लगी। पहले तो पुष्पा चौंकी, लेकिन फिर समझ गई कि सुधा है। सुधा के स्पर्श से उसके बदन में सिहरन दौड़ गई, और आंखें हल्की-हल्की बंद हो गईं। वो सुधा के स्पर्श का आनंद लेने लगी।

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पुष्पा का दिमाग तेजी से चल रहा था, और तभी उसे एक योजना सूझी। उसने पलट कर सुधा के होंठों पर अपने होंठ रख दिए। दोनों के बीच एक कामुक और जोशीला चुम्बन शुरू हो गया। दोनों एक-दूसरे के होंठों को प्यासे की तरह चूसने लगीं।

पुष्पा के हाथ सुधा के बदन पर चल रहे थे और उसके कपड़ों को खोल रहे थे। सुधा पुष्पा की आक्रामकता से हैरान थी, लेकिन उसे मजा भी आ रहा था। कुछ ही देर में सुधा आंगन में बिल्कुल नंगी खड़ी थी। पुष्पा ने उसके होंठों को छोड़ा और उसकी चूचियों पर टूट पड़ी।
सुधा के लिए ये एक नया एहसास था—आंगन में खुले में नंगी होना उसे उत्तेजित कर रहा था, और पुष्पा की चूसाई उसे और गर्म कर रही थी। चूचियों के बाद सुधा ने पुष्पा को अलग किया और अब खुद पुष्पा के कपड़े उतारने लगी। कुछ पलों में पुष्पा भी नंगी हो गई। सुधा ने भी पुष्पा की चूचियों पर हमला बोला और उन्हें चूसने लगी। पुष्पा आंखें बंद कर सुधा के चेहरे और पीठ को सहला रही थी।
सुधा ने अपनी जेठानी की चूचियों को मन भर के चूसा और फिर नीचे सरककर उसके पेट और नाभि को चूसने लगी। पुष्पा "आह सुधा, ओह" की आवाजें निकालने लगी। सुधा ने अपनी जीभ पुष्पा की नाभि में डाली, और पुष्पा का बदन अकड़ गया। कुछ देर में पुष्पा आंगन की जमीन पर लेट गई।
सुधा उसके टांगों के बीच थी और पुष्पा की चूत को चाट रही थी। दोनों इससे पहले भी एक-दूसरे के बदन से खेल चुकी थीं, इसलिए अब और अनुभव के साथ मज़ा ले रही थीं। पुष्पा जल्दी ही सुधा की जीभ से स्खलित हो गई और हांफने लगी।

कुछ पल सांस लेने के बाद पुष्पा ने सुधा को पलटकर लिटा लिया। अब उसका दिमाग शांत था, और उसने सुधा के लिए एक योजना बनाई। उसने झुककर सुधा की चूची को चूसना शुरू किया और एक हाथ से दबाने लगी। सुधा "आह" की आवाजें निकालने लगी। पुष्पा ने चूची को मुंह से निकाला और दोनों चूचियों को मसलते हुए धीरे से बोली, "आह सुधा, हम लोग ये क्यों करते हैं? एक-दूसरे की चूत चाटना, चूची चूसना, ये सब कितना गलत है।"
सुधा, जो पहले से उत्तेजित थी, बोली, "आह मज़ा आता है जीजी, ऐसा आनंद मिलता है।"
पुष्पा ने कहा, "तुझे इस गंदे काम में मज़ा आता है? सच कहूं तो मुझे भी आता है। इसका मतलब हम दोनों गंदी औरतें हैं।"
सुधा ने हां में सिर हिलाया, "आह हां जीजी, हम दोनों आह गंदी हैं।"
पुष्पा ने नाभि में जीभ डालते हुए कहा, "गंदी नहीं, सिर्फ गंदी नहीं हो सकती, हमें तो कुछ और ही कहना चाहिए।"
सुधा ने उत्तेजित होकर कहा, "हम्म सही में हम दोनों बहुत गंदी हैं।" पुष्पा ने पूछा, "तुझे पता है हम कैसी औरतें हैं सुधा?"
सुधा ने जिज्ञासा से पूछा, "कैसी जीजी?"
पुष्पा ने धीरे से कहा, "चुदक्कड़ औरतें हैं हम सुधा, तू और मैं चुदक्कड़ हैं। हमारी चूतें प्यासी और गरम ही रहती हैं।"

सुधा ने सहमति में कहा, "आह जीजी सही कह रही हो, हम दोनों चुदक्कड़ हैं। हमारी चूत की खुजली नहीं मिटती, तभी तो देखो कैसे आंगन में एक-दूसरे के साथ मिटा रहे हैं।"

पुष्पा ने नाभि चूसते हुए पूछा, "आह सुधा, तू और मैं चुदक्कड़ प्यासी गर्म चूत वाली हैं। तुझे ऐसा ही बनना था या तुझे संस्कारी सीधी बनना है?"
सुधा ने जवाब दिया, "आह जीजी, मुझे गंदी ही बनना है। सीधेपन में ऐसा मज़ा नहीं, मुझे तो गंदी चुदक्कड़ औरत ही रहना है।"

पुष्पा ने पूछा, "आह अभी जितनी गंदी है, उतनी गंदी या इससे भी ज्यादा गंदी?"
सुधा मचलते हुए बोली, "हां जीजी, इससे भी गंदी, बहुत गंदी, जितनी गंदी बन सकती हूं उतनी बनूंगी।"
पुष्पा ने चूत के पास चूमते हुए कहा, "क्या तू ऐसी बनेगी जिसकी कोई सीमा न हो, जो कुछ भी कर सके, बस उसकी चूत की खुजली मिटाना ही जरूरी हो?"
सुधा ने जवाब दिया, "हां जीजी, बिल्कुल ऐसी ही, और सिर्फ मैं नहीं, तुम्हें भी वैसा ही बनाऊंगी।"
पुष्पा ने कहा, "आह हां सुधा, हम दोनों ऐसी चुदक्कड़ औरतें जो किसी भी हद को पार कर जाएंगी अपनी चूत के सुख के लिए, सही-गलत कुछ नहीं सोचेंगी। क्या हम दोनों ऐसी बनेगीं?"

सुधा ने उत्साह से कहा, "अहम्म हां जीजी, ऐसी ही बनेगीं—चुदक्कड़, गंदी, प्यासी औरतें।"
पुष्पा ने चूत को तड़पाते हुए पूछा, "देख ले, फिर ये तो नहीं होगा कि बाद में पछतावा हो कि हमने ये गलत किया?"
सुधा ने कहा, "नहीं आह जीजी, कोई पछतावा नहीं होगा, बस चूत की प्यास बुझाएंगे।"
ये कहकर सुधा ने पुष्पा का सिर अपनी चूत में दबा दिया। पुष्पा ने जीभ निकालकर चाटना शुरू कर दिया। सुधा की सिसकियां गूंजने लगीं, और कुछ देर में वो फिर स्खलित हो गई। लेकिन पुष्पा ने उसे नहीं छोड़ा और लगातार चाटती रही, जिससे सुधा फिर उत्तेजना में जलने लगी।

पुष्पा ने कुछ देर बाद सुधा की चूत को चाटा और फिर उठकर उसकी टांगों में अपनी टांगें फंसा ली। वो आगे झुकी, ताकि दोनों की चूतें एक-दूसरे से छू रही हों और चेहरे आमने-सामने हों।
पुष्पा ने सुधा के होंठ चूसे और कमर हिलानी शुरू की, जिससे चूतें आपस में घिसने लगीं। दोनों को एक अद्भुत आनंद मिला। सुधा और पुष्पा एक-दूसरे की आंखों में देख रही थीं।
पुष्पा ने कहा, "आह हैं न हम गंदी चुदक्कड़ और प्यासी औरतें?"

सुधा ने जवाब दिया, "हां जीजी, हम हैं। आह ऐसा मज़ा चुदक्कड़ औरतें ही तो करती हैं।"
पुष्पा ने कहा, "आह चुदक्कड़ है तो और भी बहुत कुछ है जो हम कर सकते हैं।"
सुधा ने उत्सुकता से पूछा, "और क्या जीजी? बताओ क्या करेंगे हम?"
पुष्पा ने कहा, "चूत की प्यास सिर्फ चाटने से नहीं बुझती मेरी चुदक्कड़ देवरानी, इसके लिए मोटे लंड से इसकी पिटाई भी जरूरी है।"
सुधा ने सहमति में कहा, "हां जीजी, अह सच में, बिना लंड के चूत की प्यास नहीं बुझती, मुझे भी रोज लंड की जरूरत पड़ती है।"
पुष्पा ने पूछा, "आह तो तू रोज चुदवाती है अपनी चूत को मोटे लंड से?"
सुधा बोली, "हां जीजी, रोज। जिस रात नहीं चुदवाती, उस रात तड़पती रहती हूं, जैसे आज रात में नहीं चुदवाया, तो देख ही रही हो मेरी हालत।"

पुष्पा ने कहा, "आह होगी ही, हम दोनों की चूत इतनी प्यासी जो रहती हैं। आह क्या इनकी प्यास सिर्फ एक लंड से बुझ सकती है?"
सुधा थोड़ी सकुचाई, लेकिन पुष्पा ने उसे प्रोत्साहित किया।
सुधा बोली, "नहीं जीजी, आह इसीलिए तो हमारी चूत प्यासी रहती हैं, और हम एक-दूसरे की प्यास बुझा रहे हैं।"

पुष्पा ने कहा, "सोच इससे भी गंदा कुछ हो तो, इससे भी गंदा करें हम दोनों?"
सुधा ने उत्साह से पूछा, "जैसे क्या जीजी?"
पुष्पा ने कहा, "सोच अभी मेरी चूत की जगह लंड होता किसी मर्द का, तेरे पति के अलावा, और तेरी चूत को भेद रहा होता।"
सुधा एक पल को कांप गई, लेकिन पुष्पा की बातों से उत्तेजना बढ़ गई। पुष्पा ने पूछा, "बता, चुदवाएगी पराए नए लंड से?"
सुधा ने कहा, "आह हां जीजी, अगर मोटा लंड मेरी चूत की प्यास बुझाएगा तो जरूर चुदवाऊंगी।"
पुष्पा ने कहा, "बिल्कुल बुझाएगा मेरी चुदक्कड़ देवरानी। किसका लंड लेना चाहेगी तू, बिना शर्म के?"
सुधा बोली, "आह जीजी, बस लंड दमदार होना चाहिए, किसी का भी हो, चुदवा लूंगी।"
पुष्पा ने कहा, "अच्छा तो आंखें बंद कर और सोच।"
सुधा ने आंखें बंद कीं। पुष्पा ने अपनी उंगलियों से सुधा की चूत को छूते हुए कहा, "सोच, अभी तेरे ऊपर एक मर्द है, उसका बदन तेरे नंगे बदन को ढके हुए है, उसका लंड तेरी चूत के ऊपर है, तेरी प्यासी गरम चूत को छू रहा है।"
सुधा तड़पते हुए "आह हां जीजी" कहने लगी। पुष्पा ने पूछा, "तू लेगी गैर मर्द का मोटा लंड अपनी चूत में?"
सुधा ने कहा, "हां जीजी, मैं लूंगी अपनी प्यासी गरम चूत में।"

पुष्पा ने कहा, "आह ये लंड, ये गरम मोटा लंड तेरे जेठ जी का है सुधा, जो तेरी चूत को छू रहा है। बता, अब क्या करेगी?"
सुधा अपने जेठ का नाम सुनकर कांप गई, लेकिन वर्जित उत्तेजना ने उसे रोकने नहीं दिया। वो बोली, "ओह जीजी, अह जेठ जी का मोटा लंड, आह लूंगी मैं अपनी चूत में।"
पुष्पा ने कहा, "तो मांग अपने जेठ जी से अपनी चूत में लंड मांग, बता तेरी चूत को लंड की कितनी जरूरत है।"
सुधा ने चिल्लाया, "आह हां जेठ जी, ओह चोदो मुझे, आह घुसा दो अपना लंड अपनी बहू की चूत में, आह चोद-चोद के मेरी चूत की खुजली मिटा दो।"
पुष्पा ने सुधा की चूत में उंगलियां डाल दीं और अंदर-बाहर करने लगी। सुधा वर्जित काल्पनिक चुदाई के आनंद में डूब गई, आंखें मूंदकर सोच रही थी कि उसके जेठ का लंड उसकी चूत में है। कुछ देर बाद वो इतने वेग से स्खलित हुई कि एक पल को बेहोश-सी हो गई।
पुष्पा ने उंगलियां निकाल लीं, और दोनों लेटकर सांसें बटोरने लगीं। शांत होने पर सुधा को ख्याल आया कि उसने जेठ के बारे में सोचकर स्खलित हुई। दोनों की आंखें मिलीं, और चेहरों पर मुस्कान आ गई।
लेकिन दोनों को इस बात का इल्म नहीं था कि एक साया उन्हें देख रहा था, जो तुरंत घर से बाहर निकल गया।

जारी रहेगी
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bigbolls5

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अध्याय 21


बरहपुर गांव में प्यारेलाल की मौत ने हर किसी को हिला दिया था। उनके चबूतरे पर पूरा गांव इकट्ठा हो गया था। मर्द बाहर खड़े थे, जहां प्यारेलाल की लाश पड़ी थी, और औरतें घर के आंगन में जमा होकर रो रही थीं। पुष्पा, सुधा, लता, झुमरी, रजनी—गांव की सारी औरतें रत्ना को संभालने की कोशिश कर रही थीं।

रत्ना का चेहरा पीला पड़ गया था। उसका बुखार तो हल्का हो गया था, लेकिन ससुर की मौत की खबर ने उसे तोड़ दिया था। वो औरतों के बीच बैठी थी, लेकिन उसका दिमाग कहीं और भटक रहा था। रात को प्यारेलाल, सोमपाल, और कुंवरपाल ने उसे चोदा था, और अब उसका ससुर इस दुनिया में नहीं था। उसके बदन में अभी भी उनके लंड का एहसास बाकी था, और ये सोचकर उसका मन डर और ग्लानि से भर जाता था। उसे शक हो रहा था कि कहीं रात की घटना के बाद सोमपाल और कुंवरपाल से झगड़ा तो नहीं हो गया। लेकिन अभी कुछ कह पाना संभव नहीं था।

फुलवा भी आंगन में बैठी थी, लेकिन उसका मन भी उलझन में था। रात को वो नदी किनारे टोटका कर रही थी, जहां से प्यारेलाल की लाश कुछ दूरी पर मिली थी। उसे डर था कि कहीं उस टोटके या अनजान साए का इससे कोई संबंध तो नहीं। वो चुपचाप सोचती रही, अपने डर को किसी से जाहिर न करने की कोशिश करती हुई।

इसी बीच, रत्ना और राजकुमार की बेटी रानी अपने पति और सास के साथ वहां पहुंची। रानी ने अपने दादा की लाश देखते ही बिलख-बिलख कर रोना शुरू कर दिया। "हाय बाबा! मुझे छोड़कर कहां चले गए!" उसकी चीखें आंगन में गूंज उठीं। रानी की सास ने उसे संभालने की कोशिश की, लेकिन वो बार-बार अपनी मां रत्ना की गोद में सिर रखकर रोती रही।

रिश्तेदारों के आने के बाद प्यारेलाल का अंतिम संस्कार किया गया। नदी किनारे चिता की आग ने सबको भावुक कर दिया।अगले कुछ दिनों तक गांव में शोक का माहौल रहा। राजकुमार के घर में चूल्हा नहीं जला, और गांव के बड़े-बुजुर्ग उसे सांत्वना देते रहे। एक बुजुर्ग ने कहा, "देख बेटा, अब उनका समय आ गया था। वो चले गए। तुम अब घर के बड़े हो, खुद को और परिवार को संभालो।" दूसरा बोला, "उम्र हो गई थी, एक न एक दिन तो जाना ही था। अच्छा हुआ बिना तकलीफ के चले गए।" राजकुमार चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा, लेकिन उसका मन भारी था।

रात ढल चुकी थी। पुष्पा ने खाना बनाया और रत्ना के घर ले गई। फुलवा भी उसके साथ थी। दोनों ने तय किया कि आज वो रत्ना के साथ ही सोएंगी, ताकि उसे अकेलेपन का एहसास न हो। फुलवा ने सुधा को पहले ही समझा दिया था कि वो घर पर छोटू का ध्यान रखे। उसने सुधा को कहा कि वो छोटू को पुड़िया वाली दवाई दे दे, ताकि वो उत्तेजित न हो, और आज रात छोटू के साथ सो जाए, क्योंकि पुष्पा घर पर नहीं होगी। सुधा ने घर के सारे काम निपटा लिए। उसने सबको खाना खिलाया और बाहर सो रहे लोगों को दूध पिलाया। फिर उसने छोटू के लिए दूध में पुड़िया मिलाई और कमरे में गई, जहां छोटू पहले से लेटा हुआ था।"ले लल्ला, दूध पी ले," सुधा ने प्यार भरे लहजे में कहा, एक मिट्टी का गिलास छोटू की ओर बढ़ाते हुए।

छोटू ने सिर हिलाया, "मन नहीं कर रहा चाची, मुझे भी भूरा के यहां सोना था।" उसकी आवाज में उदासी थी। प्यारेलाल की मौत और गांव का शोक उस पर भी असर छोड़ गया था।सुधा ने उसे समझाया, "अरे लल्ला, मैं समझती हूं तू अपने दोस्त के लिए दुखी है। पर वहां सब बड़े हैं ही। दूध पिएगा तभी तो ताकत आएगी, और अपने दोस्त की हर काम में मदद कर पाएगा। ले, चल पी ले।" उसकी आवाज में ममता थी, और उसने छोटू को प्यार से मनाया।छोटू ने चाची की बात मान ली। उसने गिलास लिया और एक ही सांस में सारा दूध पी गया। सुधा ने तुरंत किवाड़ बंद कर दिए और बिस्तर के पास आ गई। उसने अपनी साड़ी उतारी और एक ओर रख दी। सुधा की हमेशा से आदत थी कि वो पेटीकोट और ब्लाउज में ही सोती थी। उसने अपना भरा हुआ बदन बिस्तर पर लिटाया और आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी।

लेकिन छोटू के लिए ये नजारा मुश्किल हो गया। अपनी चाची को इस तरह देखकर उसकी आंखें फैल गईं। सुधा का नंगा पेट, उसकी गहरी नाभि, और ब्लाउज में से झांकती चूचियों की दरार—ये सब देखकर छोटू के दिमाग में वो पुरानी यादें ताजा हो गईं, जब उसने चाची को चाचा के साथ चुदाई करते देखा था। उस रात की चीखें, सुधा की नंगी चूचियां, और उसकी मोटी गांड—सब कुछ उसके सामने घूमने लगा और उसका लंड धीरे-धीरे तनने लगा। वो नहीं चाहता था कि चाची को उसकी उत्तेजना का पता चले, इसलिए उसने जल्दी से करवट ले ली और दूसरी ओर मुंह करके लेट गया।

सुधा ने आंखें बंद कर लीं और सोने की कोशिश करने लगी। उसे लगा कि छोटू भी सो गया होगा। लेकिन छोटू का मन उथल-पुथल मचा रहा था। एक तरफ उसका मन कह रहा था कि उसे चुपचाप सो जाना चाहिए, लेकिन दूसरी तरफ उसकी हवस उसे उकसा रही थी। उसने सोचा, "मैंने तो अपनी मां को चोद लिया है, फिर चाची से डरने की क्या बात है? चाची तो वैसे भी कितनी गरम है, मैंने उसे चाचा के साथ देखा है।" ये सोचकर उसने हिम्मत जुटाई और धीरे से सुधा की ओर करवट ले ली। उसने सोने का नाटक करते हुए अपना हाथ सुधा के नंगे पेट पर रख दिया।

सुधा ने पहले छोटू के स्पर्श को अनदेखा किया। उसे लगा कि शायद छोटू नींद में ऐसा कर रहा है। लेकिन जैसे ही छोटू का हाथ उसके पेट पर हल्के-हल्के सहलाने लगा, सुधा के बदन में एक सिहरन दौड़ गई। उसे अपनी जेठानी पुष्पा के साथ बिताए वो पल याद आने लगे, जब वो दोनों एक-दूसरे के बदन को सहलाती थीं। सुधा की सांसें तेज होने लगीं, और उसकी चूत में एक हल्की सी गीलापन महसूस होने लगा। लेकिन फिर उसे अहसास हुआ कि ये छोटू है, उसका भतीजा। उसने जल्दी से छोटू का हाथ पकड़ा और अपने पेट से हटा दिया। उसने छोटू को सीधा कर दिया और खुद भी सीधी होकर लेट गई।

छोटू डर गया। उसे लगा कि चाची को उसकी हरकत का पता चल गया है। उसने तुरंत सोने का नाटक शुरू कर दिया और चुपचाप लेट गया। सुधा ने एक बार छोटू के चेहरे की ओर देखा। उसे वो सोता हुआ नजर आया। उसने राहत की सांस ली और फिर से आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन तभी उसकी नजर छोटू के निक्कर पर पड़ी, जहां एक तंबू साफ दिख रहा था। सुधा का मुंह हैरानी से खुल गया।

अपने भतीजे के कच्छे में इतना बड़ा तंबू देखकर सुधा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वो हैरान रह गई कि इतनी सी उम्र में छोटू का लंड इतना बड़ा कैसे हो सकता है। उसकी जिज्ञासा जाग उठी—अगर कच्छे के ऊपर से ऐसा दिख रहा है, तो सामने से कैसा होगा? उसने अपने सिर को झटककर इन विचारों को बाहर निकालने की कोशिश की। वो जानती थी कि वो एक कामुक औरत है, लेकिन आज उसे छोटू के साथ कुछ अलग ही आभास हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि उसके बदन पर उसका कोई काबू नहीं है। उसने मन ही मन सोचा, "क्या सच में छोटू के ऊपर कोई साया है? नींद में वो मेरे पेट से खेल रहा था... कुछ समझ नहीं आ रहा। ऊपर से उसका ये इतना अकड़ा हुआ है—क्या ये मेरे पास होने की वजह से है?" फिर उसने खुद को डांटा, "नहीं-नहीं, छोटू तो मेरा भतीजा है। वो मुझे देखकर उत्तेजित क्यों होगा?" सुधा के मन में सवालों का तूफान मचा था। वो दोबारा सोने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसकी सांसें अब भी तेज थीं।

छोटू भी सोने का नाटक कर रहा था। लेकिन उसे भी ग्लानि हो रही थी। उसने सोचा, "प्यारेलाल चाचा की मौत जैसे बड़े हादसे के बाद मैं हवस के चक्कर में क्यों पड़ रहा हूं?" उसने खुद को समझाया कि उसे शांत रहना चाहिए। उसने अपनी सांसों को नियंत्रित करने की कोशिश की और नींद लेने का प्रयास किया। कुछ ही देर में दोनों की नींद लग गई, और कमरे में सन्नाटा छा गया।अगली सुबह जब सूरज की किरणें कमरे में झांकने लगीं, सुधा की आंखें खुलीं। उसका मन अभी भी छोटू के साथ हुई उस घटना के विचारों से भरा था, लेकिन उसने उन्हें मन से निकालने की ठान ली। वो उठकर घर के काम में जुट गई, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

छोटू भी सामान्य व्यवहार करने की कोशिश कर रहा था। उसने रात की ग्लानि को पीछे छोड़ दिया और दिन की दिनचर्या में लौट आया।
अगले दो-तीन दिन गांव में शोक के माहौल में बीते। छोटू कभी सुधा के साथ, तो कभी पुष्पा के साथ सोया, लेकिन उसने अपनी हवस पर काबू रखा। उसने अच्छाई दिखाई और कुछ भी करने की कोशिश नहीं की। इन दिनों फुलवा ने भी टोटका करना बंद कर दिया था, क्योंकि प्यारेलाल की मौत ने उसे डरा दिया था। सोमपाल और कुंवरपाल भी रत्ना से आंखें मिलाने से बच रहे थे। उन्हें रात की घटना की ग्लानि सता रही थी, और वो अपने आपको दोषी महसूस कर रहे थे।

उधर, पुष्पा को हैरानी हो रही थी कि छोटू अब उसके साथ कुछ करने की कोशिश नहीं करता। उसे लगा कि प्यारेलाल की मौत ने उसे बदल दिया है। लेकिन पुष्पा की अपनी उत्तेजना दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी। उसका बदन सुलग रहा था, और वो छोटू की अनुपस्थिति में खुद को संभाल नहीं पा रही थी। लता की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। उसकी उत्तेजना भी बढ़ रही थी, लेकिन वो लगातार रत्ना के घर सो रही थी, इसलिए अपने मन पर ध्यान नहीं दे पा रही थी।

नंदिनी भी खुद को शांत करने की कोशिश कर रही थी। उसने नीलम के साथ हुई घटना को भुलाने की ठानी थी, लेकिन दोनों की बोलचाल अब भी बंद थी। जब भी वो एक-दूसरे के सामने आतीं, नजरें चुरा लेतीं। इस बीच, भूरा का भाई राजू और नंदिनी थोड़ा-थोड़ा खुल गए थे। नंदिनी को राजू का शर्मीला व्यक्तित्व पसंद आ रहा था, जो उसके अपने खुले स्वभाव से बिल्कुल उलट था। साथ ही, प्यारेलाल की मौत के बाद राजू के परिवार के प्रति उसकी सहानुभूति बढ़ रही थी।

ऐसे ही तेरहवीं का दिन भी बीत गया। गांव का माहौल धीरे-धीरे सामान्य होने लगा। तेरहवीं के अगले दिन सुबह की शौच से लौटते हुए लल्लू, भूरा, और छोटू साथ-साथ थे। ताजा हवा और सुबह की ठंडक उनके चेहरों पर थोड़ी राहत ला रही थी।

लल्लू ने बात शुरू की, "अब क्या करना है आज पूरे दिन?"छोटू ने सिर खुजलाते हुए कहा, "पता नहीं यार, कुछ सूझ ही नहीं रहा। करने को कुछ है ही नहीं।

भूरा ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "है तो बहुत कुछ करने को, बहुत दिनों से कुछ किया ही कहां है?" उसकी आंखों में एक चमक थी, जो उसके दोस्तों को तुरंत समझ आ गई।

लल्लू और छोटू एक साथ मुस्कुरा पड़े। लल्लू ने कहा, "अरे यार, मन की बात कह दी तूने तो!
"छोटू ने जोड़ा, "सही में यार।"भूरा ने हंसते हुए कहा, "अरे मन में थी तो अब तक बाहर क्यों नहीं आई?

लल्लू ने ठहाका लगाया, "यार, इतना बड़ा कांड तेरे घर में हो गया था, इसलिए हम लोग खुद को रोक रहे थे।

भूरा ने सिर हिलाया, "अरे अब जो हो गया सो हो गया। बाबा चले गए, और अब वापस आने से रहे। पर इसका ये मतलब तो नहीं कि हम जिंदगी ही न जिएं।
छोटू ने तारीफ की, "अरे वाह भाई, क्या समझदारी वाली बात कही!
लल्लू ने उत्साह से कहा, "हां यार, वैसे अब बताओ क्या करना है। मुझसे रुका नहीं जा रहा।

छोटू ने जोड़ा, "हां यार, और हमारी योजना भी तो अधूरी रह गई।

भूरा ने सुझाव दिया, "उस पर भी काम करेंगे, बस थोड़े दिन के लिए विराम लिया था।
लल्लू ने उत्साहित होकर कहा, "तो फिर चलो खेत की तरफ। देखते हैं, कोई नजारा मिल जाए।

तीनों दोस्तों की आंखों में शरारत की चमक थी। वो तुरंत खेत की ओर दौड़ पड़े, हल्की ठंडी हवा उनके चेहरों को छू रही थी, और उनके मन में पुरानी हवस फिर से जागने लगी थी।

जारी रहेगी, आपकी प्रतिक्रिया का बहुत बेसब्री से इंतजार है, प्रतिक्रिया कम हो रही हैं तो लिखने का भी मन नहीं होता।
बकचोदी कम ओर चुदाइ ज्यादा दिखाओ भाई🙏💐💐🔥❤️
 

raj453

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अध्याय 25
पुष्पा बिना उसकी ओर देखे बोली, संजय को भी यही सही लगा, अभी इस हालत में उसे अकेला ही छोड़ देना सही होगा, संजय उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर से किवाड़ भिड़ा कर चला गया, पुष्पा अभी भी छत की ओर देखे जा रहीथी और फिर अचानक उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई। अब आगे...


अगली सुबह गांव में पक्षियों की चहचहाहट के साथ दिन की शुरुआत हुई। सूरज की पहली किरणें धीरे-धीरे खेतों पर पड़ रही थीं, और गांव के लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो गए थे। कुछ लोग हाथ में लोटा लिए नहाने जा रहे थे, तो कुछ खेतों की ओर बढ़ रहे थे। उसी बीच लता, रत्ना, पुष्पा और सुधा—चारों औरतें—हाथ में लोटा लिए बातें करती हुई नल की ओर चल पड़ीं।

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उनकी बातें मज़ाकिया थीं—किसी की सास की शिकायत से लेकर गांव की नई-नई खबरों तक—पर रत्ना और खासकर पुष्पा के मन में अंदर ही अंदर एक अजीब-सी बेचैनी चल रही थी। रत्ना के सपनों का बोझ और पुष्पा की रात की घटना—दोनों अपने-अपने द्वंद्व में डूबी थीं, पर चेहरों पर मुस्कान बनाए रखी। जल्दी ही चारों ने नल से हाथ धोकर अपने-अपने घरों की ओर रुख किया, और दिन की दिनचर्या शुरू हो गई।


रत्ना के घर में माहौल सामान्य था, लेकिन उसका मन आज भी अशांत था। रात को उसने फिर से वही सपना देखा था—जिसमें वो और उसकी बेटी रानी नंगी थीं, भूरा और राजू उसे चोद रहे थे, और राजकुमार रानी को। ये सपने उसे अंदर से खाए जा रहे थे। वो समझ नहीं पा रही थी कि ये अंधविश्वास है या कोई संकेत।
इसी बीच रानी ने उसकी तंद्रा तोड़ी, "मां, जब तक भूरा और राजू आएं, तुम नहा लो। मैं चाय चढ़ा देती हूं।"
रत्ना ने सिर हिलाया और नहाने के लिए साड़ी उतारकर नल की ओर चल दी, सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में।


भूरा और लल्लू साथ में शौच से लौट रहे थे। भूरा ने बात शुरू की, "वैसे छुटुआ के बिना अजीब लगता है न?"
लल्लू, जो अपनी सोच में डूबा था—नंदिनी के साथ कल की घटना और उनकी आंखमिचौली—ध्यान वापस लाते हुए बोला, "हां यार, हम हर काम साथ में ही करते हैं न इसलिए।"
उसके दिमाग में नंदिनी के स्पर्श और उनके चूमने का आनंद घूम रहा था, हालांकि कल शाम के बाद उन्हें अकेला वक्त नहीं मिला था।
भूरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "पर न जाने कब हम लोग साथ में वो करेंगे जो सोचा है।" लल्लू एक पल के लिए असहज हुआ, मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो, लेकिन फिर हंसते हुए बोला, "हां यार, उसी पल की तो राह देख रहा हूं।"

तीनों दोस्तों—भूरा, लल्लू और छोटू—ने मिलकर अपनी मांओं को चोदने की योजना बनाई थी, लेकिन लल्लू अभी नंदिनी के साथ हुए अपने अनुभव को साझा करने के लिए सहज नहीं था। बातों-बातों में दोनों घर की ओर बढ़े।

भूरा अपने घर में घुसा और नल के पास अपनी मां रत्ना को देखकर ठिठक गया। रत्ना झुकी हुई नल चला रही थी, उसका ब्लाउज और पेटीकोट में लिपटा हुआ बदन—चौड़े चूतड़ उभरे हुए, कमर की कामुक सिलवटें—भूरा के सामने था। उसका लंड तुरंत सिर उठाने लगा। वो दरवाजे के पास रुककर इस नजारे को देखने लगा, उसकी सांसें तेज हो रही थीं।

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रत्ना अभी भी सपनों में खोई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सपने क्यों आते हैं—क्या ये उसकी वासना है या किसी बुरी आत्मा का प्रभाव? इसी बीच रानी बाहर आई और चिल्लाई, "मां ओ मां? ये क्या कर रही हो?"
रत्ना चौंकी, "हैं? का क्या हुआ?" रानी हंसी, "अरे नल चलाए जा रही हो, पर नीचे बाल्टी तो लगाओ, खाली ही चला रही हो!" रत्ना का ध्यान टूटा, और वो रुक गई।
रानी की आवाज सुनकर भूरा भी सावधान हो गया और बिना मां की ओर देखे घर में घुस गया, ताकि रानी को शक न हो।


लल्लू के घर में माहौल साधारण था, लेकिन हवा में एक अनकही उत्तेजना थी। नंदिनी और लल्लू एक-दूसरे से नजरें मिला रहे थे, जैसे नए-नए प्रेमी हों। नंदिनी को भी इस आंखमिचौली में मजा आ रहा था, और उसका दिल तेज धड़क रहा था। लता बीच-बीच में अपने बेटे को देख रही थी। जब से उसने लल्लू का लंड देखा था, वो ख्याल उसके दिमाग में घूम रहा था। वो जानती थी कि ये गलत है, लेकिन उसकी ममता और उत्तेजना के बीच एक अजीब सा संघर्ष चल रहा था।


फुलवा के घर पर भी चाय की चुस्कियां चल रही थीं। जो भी घर पर थे, वो अपने-अपने काम में लगे थे, लेकिन हवा में एक तनाव था। पुष्पा अपने देवर संजय से आंखें नहीं मिला रही थी, रात की घटना—उनकी चुदाई—उसके दिमाग में घूम रही थी। संजय अपनी भाभी के बदन को छुप-छुपकर देख रहा था, उसकी चाहत और ग्लानि के बीच झूल रहा था। सुधा और बाकी लोग इस सब से अनजान थे।

सुधा ने पूछा, "ठीक से सोईं अम्मा तुम उनके यहां?"
फुलवा हंसी, "हां, हम तो ठीक से सोएं, हमें किसका डर?"

नीलम ने पूछा, "और रत्ना ताई?" फुलवा बोली, "उसको मन में डर बैठ गया है, बोला है आज उसे झाड़ा लगवाने ले जाऊंगी।"

पुष्पा ने सहमति दी, "हां अम्मा, बेचारी को आराम मिल जाए तो अच्छा है।"

शहर


शहर में मंडी में सुबह का समय शुरू हो चुका था। लोग अपने-अपने काम में लगे थे। राजेश काम करते हुए बीच-बीच में झुमरी और सुभाष को ताक रहा था, कल शाम की घटना—उनकी चुदाई—उसके दिमाग में थी। छोटू मंडी में आने-जाने वाली औरतों को देख रहा था, और सत्तू का ध्यान भी इसी ओर था। मंडी में सुबह और शाम को ही ज्यादा भीड़ होती थी, लेकिन 10 बजे तक ग्राहक कम हो गए थे।
सत्तू ने अपनी मां से कहा, "मां, अब काम भी कम है, तुम जाकर दवाई क्यों नहीं ले आती अपनी?"
झुमरी ने टालमटोल की, "मैं अकेली कैसी जाऊंगी?"
सत्तू बोला, "अब दुकान छोड़ मैं नहीं जा सकता, एक काम करो, छोटू या राजेश में से किसी को ले जाओ।"
झुमरी ने कहा, "अरे छोड़, दवाई की जरूरत नहीं है मुझे।"

सत्तू ने सख्ती से कहा, "मां उल्टी बात मत करो, अब आई हो शहर तक तो ले लो दवाई, नहीं तो फिर तुम्हारा रक्तचाप बढ़ जाता है। तुम बैठो, अभी आया।"

सत्तू तुरंत उठा और सुभाष को बताने गया। सुभाष ने कहा, "हां, भेज दे, अभी इतना काम भी नहीं है।"
सत्तू ने पूछा, "तो बताओ, तुम दोनों में से कौन जाएगा मां के साथ?"
छोटू बोला, "भैया, मैं चला तो जाऊं, लेकिन पहली बार आया हूं, बस का रास्ता नहीं पता।" सत्तू हंसा, "तू छोड़, तू बावरा है। राजेश, तू चल, मैं तुझे सब समझा देता हूं।" राजेश ने हामी भरी और सत्तू की बात ध्यान से सुनी।
कुछ देर बाद राजेश और झुमरी बस अड्डे पर खड़े थे। अस्पताल शहर के दूसरी ओर था, इसलिए उन्हें बस से जाना था।
दोनों बस का इंतजार कर रहे थे। राजेश झुमरी के साथ चलते हुए थोड़ा असहज था, क्योंकि उसकी नजरें अनजाने में झुमरी के बदन पर चली जाती थीं—उसकी साड़ी में लिपटी कमर और चूचियों का उभार, कल उसे उसने जिस तरीके से देखा था अपने ताऊ के साथ वो सब दिमाग में घूम रहा था। झुमरी को इसकी भनक नहीं थी, वो बस अपने रक्तचाप की दवा के बारे में सोच रही थी।


बस में सवार होते ही राजेश और झुमरी को भीड़ का सामना करना पड़ा। सुबह का समय था, और शहर की सड़कों पर लोग अपने-अपने कामों की ओर दौड़ रहे थे।
बस में जगह की कमी थी, सीट तो दूर की बात, खड़े होने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ी। किसी तरह दोनों आगे बढ़े और बस के बीच में जाकर खड़े हो गए। झुमरी आगे थी, और राजेश उसके ठीक पीछे खड़ा था। अगले अड्डे पर बस रुकी, और भीड़ और बढ़ गई। धक्का-मुक्की में राजेश पीछे से झुमरी से चिपक गया, जबकि झुमरी को भी मजबूरी में पीछे की ओर झुकना पड़ा। उसने चेहरा घुमा कर राजेश को देखा और हल्के गुस्से से बोली, "आराम से खड़ा है न लल्ला?"
राजेश ने तुरंत जवाब दिया, "हां ताई, ठीक से खड़ा हूं।"

इसी बीच एक जोर का धक्का आया। खुद को और झुमरी को गिरने से बचाने के चक्कर में राजेश का हाथ अनजाने में झुमरी की कमर पर चला गया, और उसने उसे सहारा देने के लिए पकड़ लिया। झुमरी को ये अजीब नहीं लगा; उसने सोचा शायद भीड़ की वजह से ऐसा हुआ, और वो ऐसे ही खड़ी रही।

लेकिन राजेश के लिए ये स्पर्श एकदम अलग था। जैसे ही उसके हाथों में झुमरी की कामुक कमर का स्पर्श हुआ, कल शाम के दृश्य—गोदाम में सुभाष और झुमरी की चुदाई—उसके दिमाग में फिर से कौंध गए। ये सब सोचते हुए और झुमरी के इतने करीब होने से उसके बदन में सनसनी दौड़ गई। पैंट के अंदर उसका लंड कड़क होने लगा और कुछ ही पलों में पूरी तरह तन गया।

अगला धक्का आते ही झुमरी को अपने चूतड़ों के बीच कुछ चुभने का आभास हुआ। वो हैरान रह गई और समझ गई कि ये क्या है। उसने तुरंत पलट कर देखा, और उसकी नजरें राजेश की नजरों से टकराईं। लेकिन शर्मिंदगी में उसने तुरंत चेहरा आगे कर लिया। राजेश का हाथ अभी भी उसकी कमर पर था, और बस के हिलने-डुलने के साथ उसका लंड झुमरी के चूतड़ों में चुभ रहा था। राजेश ने जब झुमरी की ओर से कोई विरोध नहीं देखा, तो उसकी हिम्मत बढ़ गई।

उसने अपना चेहरा झुमरी के चेहरे के पास लाया और फुसफुसाते हुए बोला, "ताई, मज़ा आ रहा है ना, शहर में घूमने में?"
झुमरी इस बात से हैरान थी—एक ओर उसका लंड उसके चूतड़ों में बार-बार चुभ रहा था, और दूसरी ओर राजेश इतने बेशर्मी से बात कर रहा था, मानो कुछ हो ही नहीं रहा हो।
इसी बीच राजेश थोड़ा सा पीछे हिला और फिर अपने लंड को झुमरी के चूतड़ों की दरार के बीच सटा दिया। झुमरी की आंखें चौड़ी हो गईं। ये सब उसके लिए बहुत ज्यादा हो गया। गुस्से से उसने राजेश को देखा और धीरे से फुसफुसाई, "राजेश, ये क्या कर रहा है तू, नाशपीटे!" साथ ही उसने गुस्से में राजेश का हाथ अपनी कमर से झटक दिया।

झुमरी के गुस्से से राजेश एक पल के लिए घबरा गया और चुप हो गया। लेकिन कुछ देर सोचने के बाद उसने फिर हिम्मत जुटाई और दोबारा अपना हाथ झुमरी की कमर पर रख दिया। झुमरी ने गुस्से से उसे देखा, लेकिन इससे पहले कि वो कुछ बोलती, राजेश ने उसके कान में फुसफुसाया, "कल शाम को गोदाम में अच्छे से आराम किया था ना ताई? ताऊजी के साथ?"
ये सुनते ही झुमरी का सिर घूम गया। उसकी आंखें बड़ी हो गईं, और उसे समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ और अब क्या करे। उसकी दुनिया पल भर में उलट गई। वो चुपचाप खड़ी रही, मन में शर्मिंदगी और डर का मेल था।

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आगे दवाई लेने से लेकर वापस आने तक झुमरी ने राजेश से एक शब्द नहीं बोला। उसका चेहरा उतरा हुआ था, जैसे कोई भारी बोझ उस पर डाल दिया गया हो।
वहीं राजेश के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी—वो खुद को इस हिम्मत के लिए शाबाशी दे रहा था। दोनों दवाई लेकर शाम तक मंडी में वापस आ गए।
सत्तू ने अपनी मां का चेहरा देखा और चिंता से पूछा, "अरे मां, क्या हुआ? कुछ परेशान लग रही हो?"
झुमरी ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा, "कुछ नहीं लल्ला, शायद थकावट की वजह से लग रहा होगा।"
सत्तू ने कहा, "कोई बात नहीं, काम खत्म हो चुका है, थोड़ी देर में निकल लेंगे गांव के लिए। क्यों चाचा?" सुभाष ने हामी भरी, "हां और क्या, बस खाली बोरे इकट्ठे करो और सब लपेटो।"
राजेश और छोटू तुरंत काम में जुट गए, जबकि सत्तू और सुभाष भी मदद करने लगे। झुमरी को बार-बार राजेश की नजरें अपने ऊपर महसूस हो रही थीं, और उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी। राजेश मन ही मन सोच रहा था कि आज उसने हिम्मत दिखाई, और अब झुमरी उसके वश में लग रही थी। बस अब उसे समझदारी से आगे बढ़ना था।
अंधेरा होने तक मंडी का काम खत्म हो गया, और दो नावें गांव की ओर चल पड़ीं। एक नाव में सुभाष और छोटू थे, जबकि दूसरी में झुमरी, सत्तू और राजेश। हर नाव के लिए दो चप्पू चलाने वालों की जरूरत थी, और राजेश ने खुद कहा था कि वो सत्तू के साथ जाएगा। नाव में झुमरी राजेश से नजरें बचाने की कोशिश कर रही थी, उसका मन अशांत था। वो सत्तू के साथ बातें कर रही थी, लेकिन उसकी नजरें बार-बार राजेश की ओर चली जाती थीं, जो चप्पू चलाते हुए उसे देख रहा था।

सत्तू ने बात शुरू की, "मां, दवाई ले ली ना? अब ठीक लग रहा है?"

झुमरी ने हल्का सा सिर हिलाया, "हां लल्ला, ठीक है।" लेकिन उसका मन कहीं और था। राजेश की शरारती मुस्कान और उसकी बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं। नाव की हल्की लहरों के साथ उसकी चिंता भी बढ़ रही थी, और वो सोच रही थी कि इस घटना का क्या हश्र होगा।
राजेश, दूसरी ओर, मौके की तलाश में था, लेकिन अभी चुपचाप चप्पू चलाता रहा, अपने अगले कदम की योजना बनाते हुए।



दूसरी ओर गांव में, नहा-धोकर रत्ना और फुलवा केला बाबा की झोपड़ी की ओर चल पड़ीं। सुबह की ठंडी हवा और खेतों की सोंधी महक उनके साथ थी, लेकिन रत्ना के मन में भारीपन था। फुलवा ने उसे हौसला देते हुए कहा, "तू घबरा मत बहू, एक बार झाड़ा लग जाएगा तो सब सही हो जाएगा।"
रत्ना ने थकी आवाज में जवाब दिया, "ऐसा ही हो चाची, मेरा तो सिर घूमता रहता है सोच-सोच कर।"
दोनों जल्दी ही केला बाबा की झोपड़ी में पहुंच गईं। रत्ना ने उनके सामने आते ही पल्लू कर लिया, सम्मान और डर के मिश्रण में।
केला बाबा ने फुलवा को देखा और पूछा, "क्या हुआ अम्मा, बताओ?"
फुलवा ने जवाब दिया, "अरे बाबा, ये बहुरिया को रात को अजीब-अजीब सपने आते हैं, जबसे राजकुमार के बाबा सिधारे हैं।"
केला बाबा ने रत्ना की ओर देखा और पूछा, "अच्छा बहू, किस तरह के सपने? कुछ बता सकती हो?"
रत्ना ने धीरे से कहा, "हर बार अलग-अलग तरह के होते हैं, ऐसे जो सच्चाई से बिल्कुल उलट हैं। सपनों से फिर घबराहट होने लगती है और नींद भी नहीं आती।" उसने अपने सपनों का असली विवरण छिपा लिया, शर्मिंदगी और डर के मारे।

केला बाबा ने गंभीरता से कहा, "अच्छा, वैसे अभी तुम्हारे घर में एक मृत्यु हुई है, वो भी अकाल मृत्यु। तो कभी-कभी उनकी आत्माएं हमें सपनों में संकेत देती हैं, जैसे उनकी कुछ आखिरी इच्छाएं जो अधूरी रह गई हों।"
ये सुनकर रत्ना थोड़ी डर गई और मन ही मन सोचने लगी—क्या प्यारेलाल की आत्मा सचमुच उसे कुछ कहना चाहती है?
फुलवा ने पूछा, "तो ऐसे में हमें क्या करना चाहिए बाबा?"
केला बाबा बोले, "कोशिश तो ये करनी चाहिए कि जो आत्मा चाह रही है, वो करो और उसकी इच्छा पूरी करो।"
रत्ना ने घबराते हुए पूछा, "बाबा, और वो पूरी न हो सके तो?"
केला बाबा ने शांत स्वर में कहा, "कोई घबराने की बात नहीं है बहू, सपने ही तो हैं। मैं एक पुड़िया देता हूं, सोने से पहले ले लेना तो नींद आ जाएगी।"
फुलवा ने जोड़ा, "एक बार झाड़ा भी लगादो बाबा।"
केला बाबा ने सहमति दी, "ठीक है, अभी लगा देता हूं।"
झाड़ा लगवाकर दोनों घर की ओर चल पड़ीं। फुलवा ने रत्ना को दिलासा दिया, "परेशान मत हो बहू, अब सब ठीक हो जाएगा।"

रत्ना ने ऊपरी मन से कहा, "हां अम्मा," लेकिन उसके मन में वही सवाल घूम रहे थे—क्या प्यारेलाल की अधूरी वासना उसके सपनों में दिख रही है? ये सोचते हुए वो घर पहुंची। फुलवा थोड़ी देर उसके पास बैठी और फिर अपने घर चली गई, छोड़कर रत्ना को अपने विचारों के साथ अकेला।



फुलवा के घर में सुबह का माहौल सामान्य था। सब लोग नहा-धोकर अपने काम पर निकल गए थे। फुलवा रत्ना के घर के लिए चली गई थी, संजय खेतों की ओर चला गया था, और नीलम सिलाई सीखने चली गई थी।
घर पर अब सिर्फ सुधा और पुष्पा—दोनों देवरानी-जेठानी—ही थीं। सुधा हमेशा की तरह चुलबुली थी, लेकिन पुष्पा थोड़ी चुपचाप थी। उसका मन रात की घटना—संजय के साथ चुदाई—से भरा था। उसे ग्लानि हो रही थी कि वो अपनी देवरानी सुधा के साथ धोखा कर रही है। वो सोच में डूबी घर के काम निपटा रही थी।

सुधा ने उसकी इस हालत को देखा और चेहरे पर एक शरारती मुस्कान लाकर दबे पांव उसके पीछे गई। उसने पुष्पा के पेट को हाथों से पकड़ा और उसकी गर्दन को चूमने लगी। पहले तो पुष्पा चौंकी, लेकिन फिर समझ गई कि सुधा है। सुधा के स्पर्श से उसके बदन में सिहरन दौड़ गई, और आंखें हल्की-हल्की बंद हो गईं। वो सुधा के स्पर्श का आनंद लेने लगी।

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पुष्पा का दिमाग तेजी से चल रहा था, और तभी उसे एक योजना सूझी। उसने पलट कर सुधा के होंठों पर अपने होंठ रख दिए। दोनों के बीच एक कामुक और जोशीला चुम्बन शुरू हो गया। दोनों एक-दूसरे के होंठों को प्यासे की तरह चूसने लगीं।


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पुष्पा के हाथ सुधा के बदन पर चल रहे थे और उसके कपड़ों को खोल रहे थे। सुधा पुष्पा की आक्रामकता से हैरान थी, लेकिन उसे मजा भी आ रहा था। कुछ ही देर में सुधा आंगन में बिल्कुल नंगी खड़ी थी। पुष्पा ने उसके होंठों को छोड़ा और उसकी चूचियों पर टूट पड़ी।
सुधा के लिए ये एक नया एहसास था—आंगन में खुले में नंगी होना उसे उत्तेजित कर रहा था, और पुष्पा की चूसाई उसे और गर्म कर रही थी। चूचियों के बाद सुधा ने पुष्पा को अलग किया और अब खुद पुष्पा के कपड़े उतारने लगी। कुछ पलों में पुष्पा भी नंगी हो गई। सुधा ने भी पुष्पा की चूचियों पर हमला बोला और उन्हें चूसने लगी। पुष्पा आंखें बंद कर सुधा के चेहरे और पीठ को सहला रही थी।
सुधा ने अपनी जेठानी की चूचियों को मन भर के चूसा और फिर नीचे सरककर उसके पेट और नाभि को चूसने लगी। पुष्पा "आह सुधा, ओह" की आवाजें निकालने लगी। सुधा ने अपनी जीभ पुष्पा की नाभि में डाली, और पुष्पा का बदन अकड़ गया। कुछ देर में पुष्पा आंगन की जमीन पर लेट गई।
सुधा उसके टांगों के बीच थी और पुष्पा की चूत को चाट रही थी। दोनों इससे पहले भी एक-दूसरे के बदन से खेल चुकी थीं, इसलिए अब और अनुभव के साथ मज़ा ले रही थीं। पुष्पा जल्दी ही सुधा की जीभ से स्खलित हो गई और हांफने लगी।

कुछ पल सांस लेने के बाद पुष्पा ने सुधा को पलटकर लिटा लिया। अब उसका दिमाग शांत था, और उसने सुधा के लिए एक योजना बनाई। उसने झुककर सुधा की चूची को चूसना शुरू किया और एक हाथ से दबाने लगी। सुधा "आह" की आवाजें निकालने लगी। पुष्पा ने चूची को मुंह से निकाला और दोनों चूचियों को मसलते हुए धीरे से बोली, "आह सुधा, हम लोग ये क्यों करते हैं? एक-दूसरे की चूत चाटना, चूची चूसना, ये सब कितना गलत है।"
सुधा, जो पहले से उत्तेजित थी, बोली, "आह मज़ा आता है जीजी, ऐसा आनंद मिलता है।"
पुष्पा ने कहा, "तुझे इस गंदे काम में मज़ा आता है? सच कहूं तो मुझे भी आता है। इसका मतलब हम दोनों गंदी औरतें हैं।"
सुधा ने हां में सिर हिलाया, "आह हां जीजी, हम दोनों आह गंदी हैं।"
पुष्पा ने नाभि में जीभ डालते हुए कहा, "गंदी नहीं, सिर्फ गंदी नहीं हो सकती, हमें तो कुछ और ही कहना चाहिए।"
सुधा ने उत्तेजित होकर कहा, "हम्म सही में हम दोनों बहुत गंदी हैं।" पुष्पा ने पूछा, "तुझे पता है हम कैसी औरतें हैं सुधा?"
सुधा ने जिज्ञासा से पूछा, "कैसी जीजी?"
पुष्पा ने धीरे से कहा, "चुदक्कड़ औरतें हैं हम सुधा, तू और मैं चुदक्कड़ हैं। हमारी चूतें प्यासी और गरम ही रहती हैं।"

सुधा ने सहमति में कहा, "आह जीजी सही कह रही हो, हम दोनों चुदक्कड़ हैं। हमारी चूत की खुजली नहीं मिटती, तभी तो देखो कैसे आंगन में एक-दूसरे के साथ मिटा रहे हैं।"

पुष्पा ने नाभि चूसते हुए पूछा, "आह सुधा, तू और मैं चुदक्कड़ प्यासी गर्म चूत वाली हैं। तुझे ऐसा ही बनना था या तुझे संस्कारी सीधी बनना है?"
सुधा ने जवाब दिया, "आह जीजी, मुझे गंदी ही बनना है। सीधेपन में ऐसा मज़ा नहीं, मुझे तो गंदी चुदक्कड़ औरत ही रहना है।"

पुष्पा ने पूछा, "आह अभी जितनी गंदी है, उतनी गंदी या इससे भी ज्यादा गंदी?"
सुधा मचलते हुए बोली, "हां जीजी, इससे भी गंदी, बहुत गंदी, जितनी गंदी बन सकती हूं उतनी बनूंगी।"
पुष्पा ने चूत के पास चूमते हुए कहा, "क्या तू ऐसी बनेगी जिसकी कोई सीमा न हो, जो कुछ भी कर सके, बस उसकी चूत की खुजली मिटाना ही जरूरी हो?"
सुधा ने जवाब दिया, "हां जीजी, बिल्कुल ऐसी ही, और सिर्फ मैं नहीं, तुम्हें भी वैसा ही बनाऊंगी।"
पुष्पा ने कहा, "आह हां सुधा, हम दोनों ऐसी चुदक्कड़ औरतें जो किसी भी हद को पार कर जाएंगी अपनी चूत के सुख के लिए, सही-गलत कुछ नहीं सोचेंगी। क्या हम दोनों ऐसी बनेगीं?"

सुधा ने उत्साह से कहा, "अहम्म हां जीजी, ऐसी ही बनेगीं—चुदक्कड़, गंदी, प्यासी औरतें।"
पुष्पा ने चूत को तड़पाते हुए पूछा, "देख ले, फिर ये तो नहीं होगा कि बाद में पछतावा हो कि हमने ये गलत किया?"
सुधा ने कहा, "नहीं आह जीजी, कोई पछतावा नहीं होगा, बस चूत की प्यास बुझाएंगे।"
ये कहकर सुधा ने पुष्पा का सिर अपनी चूत में दबा दिया। पुष्पा ने जीभ निकालकर चाटना शुरू कर दिया। सुधा की सिसकियां गूंजने लगीं, और कुछ देर में वो फिर स्खलित हो गई। लेकिन पुष्पा ने उसे नहीं छोड़ा और लगातार चाटती रही, जिससे सुधा फिर उत्तेजना में जलने लगी।

पुष्पा ने कुछ देर बाद सुधा की चूत को चाटा और फिर उठकर उसकी टांगों में अपनी टांगें फंसा ली। वो आगे झुकी, ताकि दोनों की चूतें एक-दूसरे से छू रही हों और चेहरे आमने-सामने हों।
पुष्पा ने सुधा के होंठ चूसे और कमर हिलानी शुरू की, जिससे चूतें आपस में घिसने लगीं। दोनों को एक अद्भुत आनंद मिला। सुधा और पुष्पा एक-दूसरे की आंखों में देख रही थीं।
पुष्पा ने कहा, "आह हैं न हम गंदी चुदक्कड़ और प्यासी औरतें?"

सुधा ने जवाब दिया, "हां जीजी, हम हैं। आह ऐसा मज़ा चुदक्कड़ औरतें ही तो करती हैं।"
पुष्पा ने कहा, "आह चुदक्कड़ है तो और भी बहुत कुछ है जो हम कर सकते हैं।"
सुधा ने उत्सुकता से पूछा, "और क्या जीजी? बताओ क्या करेंगे हम?"
पुष्पा ने कहा, "चूत की प्यास सिर्फ चाटने से नहीं बुझती मेरी चुदक्कड़ देवरानी, इसके लिए मोटे लंड से इसकी पिटाई भी जरूरी है।"
सुधा ने सहमति में कहा, "हां जीजी, अह सच में, बिना लंड के चूत की प्यास नहीं बुझती, मुझे भी रोज लंड की जरूरत पड़ती है।"
पुष्पा ने पूछा, "आह तो तू रोज चुदवाती है अपनी चूत को मोटे लंड से?"
सुधा बोली, "हां जीजी, रोज। जिस रात नहीं चुदवाती, उस रात तड़पती रहती हूं, जैसे आज रात में नहीं चुदवाया, तो देख ही रही हो मेरी हालत।"

पुष्पा ने कहा, "आह होगी ही, हम दोनों की चूत इतनी प्यासी जो रहती हैं। आह क्या इनकी प्यास सिर्फ एक लंड से बुझ सकती है?"
सुधा थोड़ी सकुचाई, लेकिन पुष्पा ने उसे प्रोत्साहित किया।
सुधा बोली, "नहीं जीजी, आह इसीलिए तो हमारी चूत प्यासी रहती हैं, और हम एक-दूसरे की प्यास बुझा रहे हैं।"

पुष्पा ने कहा, "सोच इससे भी गंदा कुछ हो तो, इससे भी गंदा करें हम दोनों?"
सुधा ने उत्साह से पूछा, "जैसे क्या जीजी?"
पुष्पा ने कहा, "सोच अभी मेरी चूत की जगह लंड होता किसी मर्द का, तेरे पति के अलावा, और तेरी चूत को भेद रहा होता।"
सुधा एक पल को कांप गई, लेकिन पुष्पा की बातों से उत्तेजना बढ़ गई। पुष्पा ने पूछा, "बता, चुदवाएगी पराए नए लंड से?"
सुधा ने कहा, "आह हां जीजी, अगर मोटा लंड मेरी चूत की प्यास बुझाएगा तो जरूर चुदवाऊंगी।"
पुष्पा ने कहा, "बिल्कुल बुझाएगा मेरी चुदक्कड़ देवरानी। किसका लंड लेना चाहेगी तू, बिना शर्म के?"
सुधा बोली, "आह जीजी, बस लंड दमदार होना चाहिए, किसी का भी हो, चुदवा लूंगी।"
पुष्पा ने कहा, "अच्छा तो आंखें बंद कर और सोच।"
सुधा ने आंखें बंद कीं। पुष्पा ने अपनी उंगलियों से सुधा की चूत को छूते हुए कहा, "सोच, अभी तेरे ऊपर एक मर्द है, उसका बदन तेरे नंगे बदन को ढके हुए है, उसका लंड तेरी चूत के ऊपर है, तेरी प्यासी गरम चूत को छू रहा है।"
सुधा तड़पते हुए "आह हां जीजी" कहने लगी। पुष्पा ने पूछा, "तू लेगी गैर मर्द का मोटा लंड अपनी चूत में?"
सुधा ने कहा, "हां जीजी, मैं लूंगी अपनी प्यासी गरम चूत में।"

पुष्पा ने कहा, "आह ये लंड, ये गरम मोटा लंड तेरे जेठ जी का है सुधा, जो तेरी चूत को छू रहा है। बता, अब क्या करेगी?"
सुधा अपने जेठ का नाम सुनकर कांप गई, लेकिन वर्जित उत्तेजना ने उसे रोकने नहीं दिया। वो बोली, "ओह जीजी, अह जेठ जी का मोटा लंड, आह लूंगी मैं अपनी चूत में।"
पुष्पा ने कहा, "तो मांग अपने जेठ जी से अपनी चूत में लंड मांग, बता तेरी चूत को लंड की कितनी जरूरत है।"
सुधा ने चिल्लाया, "आह हां जेठ जी, ओह चोदो मुझे, आह घुसा दो अपना लंड अपनी बहू की चूत में, आह चोद-चोद के मेरी चूत की खुजली मिटा दो।"
पुष्पा ने सुधा की चूत में उंगलियां डाल दीं और अंदर-बाहर करने लगी। सुधा वर्जित काल्पनिक चुदाई के आनंद में डूब गई, आंखें मूंदकर सोच रही थी कि उसके जेठ का लंड उसकी चूत में है। कुछ देर बाद वो इतने वेग से स्खलित हुई कि एक पल को बेहोश-सी हो गई।
पुष्पा ने उंगलियां निकाल लीं, और दोनों लेटकर सांसें बटोरने लगीं। शांत होने पर सुधा को ख्याल आया कि उसने जेठ के बारे में सोचकर स्खलित हुई। दोनों की आंखें मिलीं, और चेहरों पर मुस्कान आ गई।
लेकिन दोनों को इस बात का इल्म नहीं था कि एक साया उन्हें देख रहा था, जो तुरंत घर से बाहर निकल गया।

जारी रहेगी
Kya hi update diya h arthur bhai maja aagaya aisehi update likhte rhyea aur kuch doston ka scene likhya sath me bahut dino se gandi baatein ni hui inki aur 2nd story p bhi dhyan dijyea ..💦🙌🏻
 
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