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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गयाअध्याय 12पीठ के हिस्से की अच्छे से मालिश करने के बाद छोटू और तेल उंगलियों पर लेता है और उसे हाथों पर चुपड़ने के बाद फिर से लता की कमर पर लगाता है पर इस बार पीठ के बीच में नहीं बल्कि उसकी कमर की दोनों ओर, लता को अपनी कमर पर छोटू का हाथ का स्पर्श पाकर फिर से एक सिरहन होती है वहीं छोटू अपने हाथों में ताई की चिकनी कमर का स्पर्श पाकर उत्तेजित होने लगता है पजामे में उसका लंड सिर उठाने लगता है।
वो धीरे धीरे लता की कमर को मसलते हुए मालिश करने लगता है। अब आगे...
छोटू: आराम मिल रहा है ताई?
छोटू ने लता की मांसल कमर को मसलते हुए कहा,
लता: अह्ह बहुत आराम है लल्ला, तेरे हाथों ने तो कमाल कर दिया,
छोटू: बस थोड़ी देर में सारा दर्द गायब हो जाएगा ताई बस देखती जाओ।
ये कहते हुए छोटू ने अपनी उंगलियां लता की मांसल गदराई कमर में गड़ा दीं,
लता: हां लल्ला तू करता रह,
वैसे ध्यान देने वाली बात ये थी कि चोट तो पीछे पीठ के निचले हिस्से पर लगी थी पर छोटू अब उसे छोड़ कर लता की कमर को मसल रहा था, और लता उसे रोक भी नहीं रही थी, उसकी वजह थी लता को छोटू के हाथों का स्पर्श बहुत भा रहा था, लता मन ही मन सोच रही थी: ये मुझे क्या होता जा रहा है क्यों मैं अपने बदन को नियंत्रण में नहीं रख पाती, रात को अपनी बेटी के साथ इतना कुछ किया और अब ये छोटू में न जाने क्या है कल भी इसके साथ इतना कुछ कर गई और आज भी इसे रोकने की जगह इसको और उत्साहित कर रही हूं,
इधर छोटू के लिए ये सब नया था और उत्साहित करने वाला भी, उसका आत्मविश्वास आसमान को छू रहा था, रात को अपनी मां के साथ इतना कुछ करने से उसे लग रहा था कि वो बेकार में इतना डरता था, औरतें भी उतनी ही गरम होंती हैं जितने मर्द, ऐसा नहीं होता तो उसकी मां उसके साथ ऐसा क्यों करती, कल ताई उसका लंड क्यों मुठियाती।
ये ही आत्मविश्वास लिए उसकी हिम्मत भी बढ़ती जा रही थी, वो खिसक कर और आगे हो गया और पीछे से लता से चिपक गया, उसका सीना लता की पीठ से टकराया तो लता के तो बदन में मानो बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत फिर से गीली होने लगी, इधर छोटू ने अपने हाथों को और आगे बढ़ा कर लता के पेट तक ले जाना शुरू कर दिया और अब कमर के साथ साथ लता के गदराए पेट को भी मसलने लगा, लता का पेट भी कुछ ही पलों में उसकी कमर की तरह ही तेल से चिकना हो गया, जिस वजह से छोटू को और मजा आ रहा था लता के पेट को मसलने और सहलाने में,
लता के मुंह से न चाहते हुए भी हल्की हल्की सी सिसकियां निकल रहीं थी, जो कि छोटू के कानों में पड़ रहीं थी और उसका उत्साह बढ़ा रहीं थीं, छोटू का लंड भी पजामे में पूरी तरह से कड़क हो चुका था, पर अभी छोटू को लता के पेट को मसलने में जो आनंद मिल रहा था वो उसे छोड़ना नहीं चाह रहा था, इसीलिए लगातार पेट को मसल रहा था, पर इस आनंद को वो ज़्यादा देर तक नहीं ले पाया क्योंकि कुछ पल बाद ही किवाड़ों के खुलने की आवाज़ आई तो लता चौंक कर उठ गई और अपनी साड़ी को अपने सीने पर डाल कर अपनी हालत ठीक करने लगी, छोटू ने भी अपने तने लंड को नीचे की ओर कर दिया ताकि दिखे न,
दोनों कमरे से बाहर आए तो देखा आंगन में मगन, लल्लू और कुंवर पाल घुस रहे हैं, लल्लू ने छोटू को देखा तो तुरंत बोला: तू कब आया?
छोटू: थोड़ी देर हो गई, मैं ताई की सेवा कर रहा था।
छोटू ने मुस्कुराते हुए ये लता की ओर देख कर कहा, लता की नजरें भी पल भर को उससे मिली, और उसके कहने के तरीके से ही लता को बदन में सिहरन सी हुई, छोटू और लल्लू एक ओर जाकर बात करने लगे, दोनों के ही मन में बहुत कुछ था पर एक दूसरे से कह नहीं सकते थे, लल्लू के मन में उसके और उसकी बहन के बीच जो हुआ वो चल रहा था तो छोटू अपने और अपनी मां के साथ साथ लल्लू की मां के साथ की घटनाएं याद कर खुश हो रहा था,
लता घर के काम में लग चुकी थी, मगन और कुंवर पाल को भी नहाना था, लल्लू और छोटू एक दूसरे के साथ बातों में लगे थे।
दूसरी ओर नंदिनी अपनी सहेली नीलम के साथ खेत में जा रही थी, उसके दिमाग में जो कुछ रात में हुआ वो और फिर थोड़ी देर पहले उसके और लल्लू के बीच जो हुआ वो सब घूम रहा था, उसे लल्लू पर गुस्सा भी आ रहा तो साथ ही इन सभी नई घटनाओं को सोचकर एक उत्साह और उत्तेजना भी हो रही थी, खेत में पहुंच कर दोनों हमेशा की तरह अपनी अपनी सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार नीचे सरका कर एक दूसरे के बगल में बैठ गए, नीलम इधर उधर की बातें कर रही थी पर नंदिनी का ध्यान कहीं और ही था अपनी मां के बदन के साथ रात में खेल कर उसके मन में अपने अलावा दूसरी औरतों के बदन को लेकर एक नई जिज्ञासा जाग गई थी, हर किसी को वो एक नई नज़र से देख रही थी, और वही नई नज़र उसने अपनी बचपन की सहेली नीलम पर भी डालनी चाही, पर क्यों कि दोनों अगल बगल बैठती थीं, तो नंदिनी को नीलम का एक चूतड़ वो भी उसका थोड़ा सा ही हिस्सा नंगा नज़र आ रहा था, नंदिनी के मन में नीलम के अंग देखने की जिज्ञासा जागने लगी, नीलम तो लगातार बातों में लगी थी, और नंदिनी बस उसकी बातों पर हम्म ह्म्म्म किए जा रही थी,
इसी बीच नंदिनी ने कुछ सोचा और अपना लोटा लेकर उठी और कुछ कदम पीछे होकर बैठ गई,
नीलम: अरे क्या हुआ कहां भागी जा रही है?
नंदिनी: अरे कुछ नहीं बहन कांतर(कीड़ा) थी।
नीलम: हाय दैय्या, किधर?
नंदिनी: अरे यहीं थी मेरे पैरों के पास।
नीलम: मैं भी चली इधर से,
ये कह नीलम अपना लोटा उठती है तो नंदिनी को अपनी योजना असफल होती दिखी पर नीलम उठ कर उसके बगल में नहीं बैठी बल्कि घूम कर उसकी ओर मुंह कर बैठ गई, जो कि जो नंदिनी ने भी सोचा था उससे भी अच्छा हो गया, क्योंकि अब उसकी ठीक आंखों के सामने नीलम की कुंवारी चूत थी, और चूत क्या एक पतली सी फांक थी जिसके होंठ एक शर्मीली दुलहन के होंठों की तरह बिल्कुल बंद नजर आ रहे थे,
नंदिनी तो टक टकी लगाकर अपनी सहेली की चूत को देखने लगी,
नीलम की भी नजर जब नंदिनी के चेहरे पर पड़ी तो उसने उसे अपनी चूत को देखते पाया, एक पल को तो नीलम को गुस्सा भी आया और वो कुछ बोलने ही वाली थी कि उसकी स्वयं की आँखें भी नीचे होकर नंदिनी की चूत पर टिक गईं, नीलम के लिए भी नंदिनी की चूत पहली थी अपने अलावा जिसे वो देख रही थी, नंदिनी की चूत पर नज़र पड़ते ही नीलम चुप हो गई और वो भी कुछ पल तो लगातार नंदिनी की चूत को ही देखती रही, उसने देखा कि नंदिनी की चूत उसकी चूत से दिखने में अलग थी पर सुंदर थी,
इसी बीच नंदिनी ने एक बार अपनी नज़र उठा कर नीलम के चेहरे को देखा तो उसे अपनी टांगों के बीच देखते पाया, ये देख नंदिनी के चेहरे पर मुस्कान आ गई, नीलम को भी ये आभास हुआ कि वो लगातार नंदिनी की चूत को देख रही है तो उसने अपनी नज़र हटाई और उसके चेहरे की ओर देखा तो दोनों की नज़रें मिल गईं, नंदिनी उसकी ओर देख कर बेशर्मी से मुस्कुरा रही थी,
नंदिनी: देख ली या और अच्छे से दिखाऊं?
नीलम नंदिनी की बात समझ कर बुरी तरह झेंप गई
नीलम: धत्त वो तो तू तू भी तो मेरी देख रही थी इसलिए मेरी नज़र चली गई।
नंदिनी: अरे तो क्या हो गया मैं तो कह रही हूं अगर देखना हो अच्छे से तो बता और अच्छे से दिखा दूंगी। सहेली ही तो सहेली के काम आएगी।
नीलम: हट कमीनी, कितनी गंदी बातें करती है तू।
नंदिनी: अरे इसमें गंदा क्या है, जो तेरे पास है वही मेरे पास है, तो इसमें इतना शर्माना क्या?
नीलम: अच्छा माना दोनों के पास एक ही चीज है पर है तो हमारे गुप्तांग, उन्हें तो छुपा के ही रखना पड़ता है।
नीलम ने समझाते हुए कहा,
नंदिनी: अच्छा ऐसा किसने कहा?, सहेलियों में कुछ भी नहीं छिपाना चाहिए,
नीलम: ऐसा कुछ नहीं है।
नंदिनी: ऐसा ही है अच्छा जब तू नया सूट सलवार बनवाती है तो दिखाने लाती है कि नहीं,
नीलम: हां लाती हूं पर वो सूट सलवार होता है और ये..... ये...
नीलम ये कह चुप हो जाती है,
नंदिनी: ये चूत हैं, खुल के बोल न,
नीलम शर्म से अपना मुंह ढंक लेती है और मुंह बनाते हुए कहती है: सच में बहुत गंदी हो गई है तू, ज़रूर ये सब उस लफंगे सत्तू के साथ का असर है।
नंदिनी: अरे किसी का असर नहीं है, तू ही अम्मा बनी रहती है न जाने इतने संस्कार लेकर कहां जाएगी? चूत को चूत न बोलूं तो क्या बोलूं और सहेलियां आपस में ऐसे मज़ाक नहीं करेंगी तो कौन करेगा?
नंदिनी ने थोड़ा रूखे तरीके से बोला तो नीलम चुप हो गई और कुछ सोचने लगी, फिर धीरे से बोली: शायद तू सही कह रही है, सहेलियां ही तो आपस में मज़ाक करती हैं।
नंदिनी: वही तो मेरी लाड़ो, थोड़ा अपने आप को खोल, मज़े कर, हमेशा सही गलत में पड़ी रहेगी तो खुश नहीं रह पाएगी।
नीलम: ओहो देखो तो जानी अम्मा को
इस बात पर दोनों ही हंसने लगे, तब तक दोनों शौच निपटा चुके थे, और दोनों ने ही अपने अपने चूतड़ों को धोया और खड़े हो गए और खेत से बाहर निकल गए।
नंदिनी: क्या हुआ अब क्या सोच में पड़ी है?
नीलम: कुछ नहीं बस ऐसे ही।
नंदिनी: अब मुझे भी नहीं बताएगी।
नीलम: अरे बस वही सोच रही हूं कि मैं ज़्यादा सही गलत करती हूं क्या?
नंदिनी: हां करती तो है, और मैं ये नहीं कह रही कि ये गलत है, पर अभी हम जवान हैं ये उमर हमारी मज़े करने की है, अभी से अगर सिर्फ सही गलत करेंगे तो कुछ और नहीं कर पाएंगे।
नीलम: हां कह तो तू सही रही है,
नंदिनी: मैं तो हमेशा ही सही कहती हूं।
नीलम: हां हां दादी अम्मा।
दोनों हंसती हुई नल के पास आ जाती हैं जहां दोनों हाथ धोती हैं और फिर घर की ओर चल देती हैं, नंदिनी जैसे ही घर के द्वार पर पहुंचती है उसी समय घर से लल्लू और छोटू निकल रहे थे, लल्लू अपनी बड़ी बहन को देख कर मुंह नीचे कर लेता है वहीं नंदिनी उसकी ओर देखती है और मुंह बना कर अंदर चली जाती है।
छोटू: दीदी को क्या हुआ ये क्यों गुस्सा सी लग रही हैं।
लल्लू: कुछ कुछ नहीं यार पता नहीं कब किस बात पर गुस्सा हो जाती है।
छोटू: ये तो है ही, नीलम दीदी भी लगता है हमेशा गुस्से में ही रहती है।
दोनों बातें करते हुए आगे बढ़ जाते हैं, दूसरी ओर नदी के किनारे बैठ कर सत्तू चुदाई का जान बरसा रहा था और भूरा उसमें भीग रहा था,
सत्तू: तुझे बताऊं भूरा औरत में मर्द से ज़्यादा गरमी होती है, और जब औरत गरम होती है तो अच्छा खासा मर्द उसके आगे हल्का पढ़ जाता है।
भूरा: सही में सत्तू भैया? मैं तो सोचता था हमारे अंदर ही गरमी है सारी।
सत्तू: नहीं चेले, औरत का क्या है वो छुपाने में अच्छी होती है शर्माती है कभी खुल के नहीं कहती।
भूरा: पर ऐसा क्यों?
सत्तू: ऐसा इसलिए क्यूंकि अगर औरत खुल कर चुदाई की बातें या चुदाई करने लगे तो मर्द उसे रंडी का नाम दे देते हैं, क्योंकि गरम और खुली औरत को संभालना आसान नहीं होता, इसलिए समाज ने ही ऐसी धारणा बना दी और औरत को शर्म की बंदिशों में बांध दिया।
भूरा: सही में अब सही समझ आ रहा है सत्तू भैया। पर भैया एक और सवाल है।
सत्तू: पूछ पूछ आज सारे संशय मिटा ले।
भूरा: कोई भी औरत अपने पति को धोखा क्यों देती है, मतलब पति को छोड़ कर किसी और से क्यों चुदवाती है।
सत्तू: तगड़ा सवाल पूछा है तूने, इसका जवाब भी तू मुझे देगा.
भूरा: मैं मैं कैसे?
सत्तू: तुझे प्यास लगी हो और तेरे घर का नल पानी नहीं दे रहा हो तो क्या करेगा?
भूरा: बाहर के नल से पानी पियूंगा।
सत्तू: समझ गया?
भूरा थोड़ा सोचता है और फिर जब उसे समझ आता है तो उसकी आंखें चौड़ी हो जाती है और चेहरे पर बड़ी मुस्कान आ जाती है।
भूरा: सही में सत्तू भाई तुम तो गुरु आदमी हो यार।
सत्तू: सही समझा, जब औरत को घर पर वैसी रगड़ाई नहीं मिलती पति से तब वो बाहर वालों के लिए टांगे खोलती है, पर सुन ऐसा नहीं है कि तब भी वो किसी से भी जाकर चुद जाएगी, बोलेगी तब भी नहीं,
भूरा: अच्छा फिर?
सत्तू: फिर क्या, यहीं मर्द की नज़र परखी होनी चाहिए, जो औरत की प्यास को समझ लेता है, और जान जाता है कि ये औरत प्यासी है, वो फिर मलाई मारता है।
भूरा सत्तू के ज्ञान से हैरत में था और उसकी एक एक बात को अच्छे से समझ रहा था।
भूरा: पर भाई हर औरत ऐसी थोड़ी होती होगी।
सत्तू: हां हर औरत ऐसी नहीं होती, पर हर औरत, एक औरत तो होती है, और औरत है तो बदन की प्यास भी है, सिर्फ समय और कोशिश की बात है कुछ जल्दी तांगे खोल देती हैं कुछ थोड़ा नखरा करती हैं।
भूरा: ये बात तो सही कही भईया।
सत्तू: और बताऊं जो जितना नखरे करती है उसको चोदने में उतना ही मज़ा आता है।
भूरा: सही में सत्तू भैया, तुम्हारे पास तो चुदाई के ज्ञान का भंडार है।
सत्तू अपनी प्रशंसा सुनकर खुश होता है और ज्यादा भूरा पर अपने जान की छींटे मारता है।
दूसरी ओर गांव में ही अरहर के खेत में एक औरत घोड़ी बनी होती है और उसके पीछे एक आदमी उसकी साड़ी को उसकी कमर पर इकट्ठी करके पकड़े हुए उसके पीछे घुटनो पर बैठ कर औरत के मोटे मोटे चूतड़ों के बीच अपना लंड सटा सट अंदर बाहर कर रहा होता है, हर झटके पर जैसे ही आदमी की जांघें औरत के चूतड़ों से टकराती हैं तो उसके चूतड़ों में लहर उठ जाती, औरत के मुंह से लगातार अह्ह अह्ह की आवाज़ आ रही थी,
पीछे से चोदता हुआ आदमी भी सिसकियां लेते हुए फुसफुसा रहा था,
आदमी: अह्ह भाभी अह्ह्ह्ह क्या गजब की चूत है तुम्हारी, जितना भी चोद लो मन नहीं भरता अह्ह।
औरत: उहम्म ह्म्म्म अह्ह देवर जी जल्दी करो अह्ह कोई आ गया तो गड़बड़ हो जाएगी।
आदमी: कोई नहीं आएगा भाभी, आज तक कोई आया क्या?
औरत: अह्ह छोटू और उसके दोस्त यहीं घूमते रहते हैं देवर जी।
आदमी: अरे भाभी तुम वो सब छोड़ो और ये बताओ ये द्वार कब खुलेगा।
आदमी ने अपनी उंगली औरत की गांड के छेद पर घुमाते हुए कहा, तो औरत और सिहरने लगी, औरत को गरम देख आदमी ने अपनी उंगली थोड़ी थूक से गीली कर गांड के अंदर सरका दी, जिससे औरत मचल पड़ी,
औरत: अह्ह वहां नहीं, बाहर निकालो अह्ह।
आदमी: ओह भाभी अह्ह्ह्ह काहे बचाती फिरती हो इतनी मस्त गांड को एक बार इसकी भी सैर कर लेने दो,
औरत: न नहीं वहां अह्ह्ह्ह तो मैने कभी उनको भी नहीं छूने दिया,
आदमी: अरे कौनसा लंड घुसाया है उंगली ही तो डाली है इतना क्यों मचल रही है मेरी रांड भाभी, अह क्या मस्त गांड है तेरी छिनाल कुत्तिया, अह्ह।
आदमी ने उंगली को लगातार अंदर बाहर करते हुए कहा साथ ही चूत में लंड लगातार अंदर बाहर हो ही रहा था, औरत भी दोहरे हमले साथ ही अपने लिए गालियां सुन कर खुद की उत्तेजना को संभाल नहीं पाई और थर्राते हुए झड़ने लगी, उसका बदन कांपने लगा और वो आगे गिर गई, लंड चूत से निकल गया, आदमी के लिए भी ये चरम का ही समय था उसके लंड ने भी पिचकारी छोड़ना शुरू कर दिया जो कि औरत के चूतड़ों को भिगाने लगी, एक के बाद एक रस की धार औरत के मोटे चूतड़ों पर गिर रही थी, जो कि खुद नीचे औंधी पड़ी हुई मचल रही थी। झड़ने के बाद दोनों ही जल्दी जल्दी से अपने अपने कपड़े सही करते हैं और पहले औरत एक तरफ से निकल जाती है और आदमी दूसरी ओर से।
दोपहर का समय हो चुका था घर के सारे मर्द बाहर निकल गए थे, नीलम भी नंदिनी के साथ कढ़ाई सीखने गई थी घर पर सिर्फ जेठानी और देवरानी साथ ही उनकी सास थी, यानी पुष्पा, सुधा और फुलवा।
फुलवा तो खाट पर लेटी हुई झटकी मार रहीं थी दोनों बहुएं पटिया पर बैठीं कपड़े धो रही थीं। पुष्पा अभी भी उसी ग्लानि और सोच में थी जो कुछ रात में उसके और उसके बेटे के बीच हुआ था, वहीं सुधा भी अपनी जेठानी को सोच में देख रही थी, सुधा को लग रहा था कि जेठानी अभी भी उनके बीच जो हुआ उस वजह से मुंह बनाए हुए हैं।
सुधा: दीदी ओ दीदी।
पुष्पा: हां? हां हां क्या हुआ?
सुधा: दीदी मुझे पता है तुम परेशान हो उस बात को लेकर पर ऐसे कब तक चलेगा। कब तक हम ऐसे ही रहेंगे?
पुष्पा: मतलब? कौन कौनसी बात?
सुधा: वही जो हमारे बीच हुआ, जानती हूं वो सही नहीं था, पर उस वजह से कब तक हम एक दूसरे से बात नहीं करेंगे, हमें जीवन भर साथ रहना है तो कुछ तो तरीका निकालना पड़ेगा ना।
सुधा ने अपनी बात रखते हुए कहा।
पुष्पा उसकी बात सुन सोचने लगी: बेचारी को लग रहा है मैं इस वजह से परेशान हूं, पर नहीं जानती कि मुझसे कितना बड़ा पाप हुआ है, पर इन सब में इसकी क्या गलती, ये सही कह रही है एक ये ही तो है जिससे अपने मन की बात कर पाती हूं, इससे भी बात नहीं होगी तो मैं सोच सोच कर बावरी हो जाऊंगी।
पुष्पा: वो बात नहीं है, मैं बस ऐसे ही चुप थी, उस बात को लेकर नहीं।
सुधा: मतलब तुम मुझसे गुस्सा नहीं हो,
पुष्पा: धत्त तुझसे भी गुस्सा हो सकती हूं मैं? तू मेरी छोटी बहन, सहेली सब कुछ है।
ये सुनकर सुधा खुश हो गई,
सुधा: अरे दीदी ये सुनकर बड़ा अच्छा लग रहा है मन कर रहा है तुम्हारी पुच्ची ले लूं।
पुष्पा: ले ले किसने रोका है।
सुधा ने आगे हो कर पुष्पा का गाल चूम लिया। और दोनों हंसने लगीं।
सुधा: अरे दीदी तुमने तो मेरे मन का भार हल्का कर दिया पता है तुमसे बात नहीं होती तो मेरा मन परेशान रहता है।
पुष्पा: मेरे साथ भी ऐसा ही है बहना।
सुधा: अच्छा दीदी एक बात पूछूं?
पुष्पा: हां बोल न।
सुधा: तो हम जो हुआ हमारे बीच उस बारे में बात कर सकते हैं या बुरा सपना समझ कर भूल जाना है।
पुष्पा: उसे भूलना इतना आसान नहीं है, वैसे सच कहूं तो भूलना ही कौन चाहता है।
इस पर दोनों तेजी से हंसने लगीं, पुष्पा को भी अपनी चिंता छोड़ कर कुछ पल सुधा के साथ हंसी के बिताना अच्छा लग रहा था, इधर फुलवा की नींद तो पहले ही खुल गई थी वो बस खाट पर लेटी हुई छप्पर को निहारते हुए बस जो कुछ हुआ था उसके बारे में सोच रही थी, तभी उसे अपनी बहुओं के खिलखिलाने की आवाज आई। यहां घर पर कोई समस्या न आए उसके लिए मैं परेशान हूं, उस चक्कर में न जाने किसी से चुदवा भी बैठी, सोच सोच कर ही मेरा सिर घूम रहा है और इन दोनों की हंसी ठिठोली चल रही है अभी बताती हूं।
फुलवा: अरे कपड़े धुल गए हों तो कोई एक इधर आओ।
सुधा: लो हम इतनी तेज हंसे क्या कि अम्मा भी उठ गई।
पुष्पा: उठ भी गईं और बुला भी रही हैं।
सुधा: जाऊं मैं?
पुष्पा: नहीं तू रुक मैं पूछ आती हूं,
पुष्पा हाथ धोकर अपनी सास के पास जाकर बोली: हां अम्मा क्या हुआ?
फुलवा: हुआ का, सिर पिरा रहा है थोड़ा मालिश कर दे।
पुष्पा: हां अम्मा अभी तेल लाई मैं।
पुष्पा जल्दी से तेल लेकर आती है और फुलवा के सिर की मालिश करने लगती है फुलवा को भी आराम मिलता है
पुष्पा: कैसा लग रहा है अम्मा?
फुलवा: आराम मिल रहा है बहुरिया, मालिश अच्छी करती है तू।
पुष्पा: तुम्हें आराम मिलना चाहिए अम्मा ।
फिर फुलवा को जैसे कुछ ध्यान आता है तो कहती है: क्यों बहुरिया जब हमने तुझसे कहा था रात को लल्ला के साथ ही सोना है तो तू नीचे क्यों सो रही थी।
इस सवाल से पुष्पा थोड़ा घबरा जाती है साथ ही उसे फिर से वो सब ध्यान आने लगता है
पुष्पा: वो अम्मा मैं साथ ही सोई थी रात भर पर खाट न बहुत छोटी है दो लोग उस पर आ ही नहीं रहे थें
फुलवा: हां खटिया छोटी तो है अब तो लल्ला भी बड़ा हो गया है ना।
पुष्पा: हां अम्मा बड़ा तो बहुत हो गया है,
पुष्पा ने ये जवाब दिया तो उसकी आंखो के सामने छोटू का कड़क लम्बा लंड आ गया और उसे फिर से अपनी चूत नम होती महसूस हुई।
फुलवा: एक काम कर बहु फिर दो चार दिन तुम दोनों कमरे में ही सो जाओ। वहां तो कोई परेशानी नहीं होगी?
पुष्पा: ठीक है अम्मा कमरे में ही सो जाएंगे।
अब पुष्पा चाहती तो मना करना था पर अपनी सास को कैसे बोलती इसलिए न चाहते हुए भी हां करनी पड़ी। खैर सिर की मालिश करके बापिस घर के कामों में लग गई दोनों देवरानी जेठानी एक दूसरे से बातें करते हुए सारे काम निपटाती गईं।
सूरज ढल रहा था और तीनों बूढ़े एक चबूतरे पर बैठे चिलम पी रहे थे,
सोमपाल: अरे बहुत दिन हो गए ताड़ी मुंह से नहीं लगी, सुभाष से मंगवानी पड़ेगी।
कुंवर पाल: अरे मंगवाने की जरूरत नहीं है घर पर रखी है।
सोमपाल:अरे फिर मंगा, कोई लड़का दिख रहा है का? अरे ये रहा राजेश ओ राजेश इधर आ।
राजेश: हां बाबा का हुआ?
कुंवरपाल: अरे घर चला जा और अपनी ताई से ताड़ी की डोलची मांग कर ले आ।
राजेश: अरे बाबा तुम भी न इस उमर में नशा करोगे।
सोमपाल: जा चुपचाप, जितना कहा जाए उतना कर बढ़ो से मुंह नहीं लड़ाते।
राजेश: तुम भी बाबा मान जाओ फिर तबीयत खराब होती है तुम्हारी।
सोमपाल: जा रहा है कि निकालू डंडा?
राजेश: जा तो रहा हूं। देखना अम्मा से कहूंगा तुम पियो आज। राजेश ये कह कर भाग जाता है।
सोमपाल: देख रहे हो नाती पोते को समझा रहा है।
कुंवरपाल: अपने बाप के बाप को ज्ञान दे रहा है।
इस पर तीनों तेजी से हंसने लगते हैं, कुछ ही देर में राजेश डोलची और तीन गिलास लेकर आ के रख देता है
राजेश: लो तुम्हारी ताड़ी, और बाबा ताई ने कहा है डोलची और गिलास खो मत देना।
कुंवरपाल: हां भाई नहीं खोएंगे, अब जा तू।
प्यारेलाल: अरे तुम दोनों ही पियो ताड़ी पीकर मेरा पेट खराब हो जाता है।
सोमपाल: अरे यार कुंवरपाल देख इसने फिर रोना शुरू कर दिया।
कुंवरपाल: कुछ नहीं होगा प्यारे पीले।
प्यारेलाल: पिछली बार पी थी तो बड़ी तकलीफ हुई थी अगले दिन तक पेट में पीर रही थी।
सोमपाल: अच्छा बस इतनी सी तकलीफ है मेरे पास पुड़िया है बाबा की, मेरे भी पेट दर्द की समस्या रहती है, घर जाकर गुनगुने पानी से पी लियो।
कुंवरपाल: ले हो गया इलाज। अब तो पियेगा?
प्यारेलाल: अब तुम बिना पिलाए मानोगे कहां?
इस पर तीनों ठहाका लगा कर हंसते हैं और फिर ताड़ी चलने लगती है, पीते पीते बातें करते हुए अंधेरा हो जाता है तब जाकर खत्म होती है।
प्यारेलाल: चलो भाई अंधेरा हो गया अब चलें घर।
सोमपाल: हां हां चलो नहीं तो तुम्हारी भाभी आज बच्चों के सामने सुनाने लग जाएगी।
कुंवरपाल: ठीक है लाओ भाई डोलची और गिलास समेत लूं नहीं तो हमें भी सुननी पड़ेगी।
इस पर तीनों एक बार फिर से हंसे।
प्यारेलाल: अरे सोमपाल, वो पुड़िया तो दो नहीं तो रात में कहीं तकलीफ हुई तो कहां भागता रहूंगा।
सोमपाल: अरे हां ये ले। खाना खा कर पानी के साथ पी लेना।
सोमपाल ने पुड़िया देते हुए कहा, प्यारेलाल पुड़िया लेकर चल दिया तो कुंवरपाल और सोमपाल भी अपने घर की ओर चल दिए, और प्यारेलाल के थोड़ा दूर जाते ही सोमपाल हंसी दबा कर हंसने लगा।
कुंवरपाल: क्या हो गया हंस क्यों रहा है?
सोमपाल: प्यारेलाल का सोच कर।
कुंवरपाल: ऐसा क्या हो गया।
सोमपाल: बेचारा पेट लिए पुड़िया खाएगा और होगा कुछ और।
कुंवरपाल: मतलब, वो पुड़िया पेट की पीर की नहीं है?
सोमपाल: अरे नहीं यार वो हल तैयार करने वाली पुड़िया है जुताई के लिए।
कुंवरपाल उसकी बात समझते हुए तेजी से हंसने लगा: अरे भेंचो, तेरी आदत नहीं सुधरी बालपन से ही उसके साथ मज़ाक करने की।
सोमपाल: अरे तुझे पता है न कितना वहमी है वो, अगर पुड़िया की नहीं बोलता न तो मन होने के बाद भी नहीं पीता।
कुंवरपाल: ये तो सही कहा धी का लंड है तो इसी लायक, पर अब रात को इसका हल तैयार हो गया तो क्या करेगा? बेचारे के पास खेत तो है नहीं।
सोमपाल: तभी तो मजा आएगा, रात भर तड़पेगा ससुरा।
कुंवरपाल: चल अब हम भी चलें खोपड़ी घूम रही है।
सोमपाल: हां हां चल सही कह रहा है।
दोनों भी अपने अपने घर की ओर बढ़ जाते हैं।
तीनों घरों में खाना बन चुका था और खाया जा चुका था, और रोज़ की तरह बिस्तर लगाए जा रहे थे, इसी बीच पुष्पा की परेशानी बढ़ती जा रही थी, कल जो कुछ हुआ उससे वो पहले से ही परेशान थी, और आज अम्मा ने कह दिया था कि वो और छोटू कमरे में सोएंगे, उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे अपने बेटे का सामना करेगी जिससे सुबह से ही वो नजर बचाती आई थी। पर मना करे तो कैसे करे। क्या कारण दे, अगर कुछ कहती है तो अम्मा के भड़कने का डर भी था,
रसोई में सबके लिए दूध निकालते हुए उसका दिमाग इसी सब में लगा हुआ था, इतने में बर्तन धो कर सुधा पीछे से आई,
सुधा: अरे कर दिया दूध दीदी?
पुष्पा: हां सबके लिए निकाल दिया है,मैं राजेश और बाबा को देकर आती हूं तू तब तक लल्ला के लिए एक गिलास में दवाई घोल दे पुड़िया में से। और अपना और नीलम का ले लियो।
सुधा: ठीक है दीदी, कहां रखी है पुड़िया?
पुष्पा: वो ऊपर डिब्बे में।
पुष्पा बता कर दोनों दूध के गिलास लेकर चबूतरे पर अपने ससुर और भतीजे को दूध देकर आती है तब तक सुधा भी अपना और नीलम का दूध का गिलास लेकर जा चुकी थी।
पुष्पा बापिस आकर ये भूल जाती है कि उसने सुधा को भी पुड़िया की दवाई घोलने को बोला था, इसलिए वो भी पुड़िया निकालती है और बचे हुए दो गिलासों में से एक गिलास में पुड़िया घोली और फिर दोनों गिलास लेकर कमरे में आ गई जहां बिस्तर पर छोटू पहले से ही लेटा हुआ था, और उत्सुक होकर अपनी मां की प्रतीक्षा कर रहा था,
पुष्पा: ले दूध पीले।
पुष्पा ने छोटू के चेहरे की ओर न देखते हुए ही उसके आगे दूध का गिलास कर दिया।
छोटू: हां मा लाओ,
छोटू ने बिल्कुल आज्ञाकारी बच्चे की तरह दूध का गिलास लिया और तुरंत अपने मुंह में लगाकर दूध गटकने लगा, जो कि दूध पीने के नाम पर नाटक करने वाले छोटू के लिए अलग बात थी, पर पुष्पा का ध्यान अभी कहीं और ही था इसलिए उसका ध्यान इस बात पर नहीं गया। और वो भी एक गिलास से दूध पीने लगी।
छोटू के मन में बहुत से सवाल थे, वो आज की रात के लिए बहुत उत्साहित और उत्तेजना था, एक तो कल रात जो हुआ वो सब फिर शाम को उसकी अम्मा ने ये और कहा कि वो और उसकी मां कमरे में सोएंगे, ये सुन कर तो उसका मन खुशी से छलांगें मार रहा था, मन में हर तरह के सपने सजा रहा था कि क्या क्या होगा कैसे कैसे होगा, पर मन की बात को प्रत्यक्ष में पेश करना बहुत कठिन होता है और वैसा ही छोटू के साथ हो रहा था, उसने तो सोचा था मां के आते ही उससे चिपक जाएगा, पर इतना सब होने के बाद भी वो उसकी मां थी और एक झिझक एक डर उसे अब भी अपनी मां से था खासकर सुबह से जैसे वो पेश आ रही थी तो उसे देखकर तो छोटू ने स्वयं को रोकना ही ठीक समझा।
पुष्पा ने भी अपना दूध का गिलास खाली कर दिया और एक ओर रख दिया और फिर बिना छोटू की ओर देखे लेट गई और अपने हाथ को अपने माथे पर रख कर अपना चेहरा ढंक लिया, छोटू ने अपनी मां को लेटते देखा फिर उसकी नज़र खुले हुए किवाड़ों पर गई, वो सोचने लगा कि ऐसे खुले किवाड़ रहे तो कुछ होने से रहा, पर ऐसे कैसे बंद करूं? पर तभी उसके मन में एक योजना आई और वो बिस्तर से खड़ा हुआ और फिर कमरे से बाहर निकल गया, पुष्पा ने भी छोटू को कमरे से जाते देखा तो सोचने लगी ये क्यों बाहर गया है? चाहे जिस लिए भी गया हो, पर आज मुझे कुछ भी गलत नहीं होने देना है, आज स्वयं पर पूरा नियंत्रण रखना है कल जो पाप हुआ उसका पश्चाताप करने का यही तरीका है।
जारी रहेगी।
अध्याय 12पीठ के हिस्से की अच्छे से मालिश करने के बाद छोटू और तेल उंगलियों पर लेता है और उसे हाथों पर चुपड़ने के बाद फिर से लता की कमर पर लगाता है पर इस बार पीठ के बीच में नहीं बल्कि उसकी कमर की दोनों ओर, लता को अपनी कमर पर छोटू का हाथ का स्पर्श पाकर फिर से एक सिरहन होती है वहीं छोटू अपने हाथों में ताई की चिकनी कमर का स्पर्श पाकर उत्तेजित होने लगता है पजामे में उसका लंड सिर उठाने लगता है।
वो धीरे धीरे लता की कमर को मसलते हुए मालिश करने लगता है। अब आगे...
छोटू: आराम मिल रहा है ताई?
छोटू ने लता की मांसल कमर को मसलते हुए कहा,
लता: अह्ह बहुत आराम है लल्ला, तेरे हाथों ने तो कमाल कर दिया,
छोटू: बस थोड़ी देर में सारा दर्द गायब हो जाएगा ताई बस देखती जाओ।
ये कहते हुए छोटू ने अपनी उंगलियां लता की मांसल गदराई कमर में गड़ा दीं,
लता: हां लल्ला तू करता रह,
वैसे ध्यान देने वाली बात ये थी कि चोट तो पीछे पीठ के निचले हिस्से पर लगी थी पर छोटू अब उसे छोड़ कर लता की कमर को मसल रहा था, और लता उसे रोक भी नहीं रही थी, उसकी वजह थी लता को छोटू के हाथों का स्पर्श बहुत भा रहा था, लता मन ही मन सोच रही थी: ये मुझे क्या होता जा रहा है क्यों मैं अपने बदन को नियंत्रण में नहीं रख पाती, रात को अपनी बेटी के साथ इतना कुछ किया और अब ये छोटू में न जाने क्या है कल भी इसके साथ इतना कुछ कर गई और आज भी इसे रोकने की जगह इसको और उत्साहित कर रही हूं,
इधर छोटू के लिए ये सब नया था और उत्साहित करने वाला भी, उसका आत्मविश्वास आसमान को छू रहा था, रात को अपनी मां के साथ इतना कुछ करने से उसे लग रहा था कि वो बेकार में इतना डरता था, औरतें भी उतनी ही गरम होंती हैं जितने मर्द, ऐसा नहीं होता तो उसकी मां उसके साथ ऐसा क्यों करती, कल ताई उसका लंड क्यों मुठियाती।
ये ही आत्मविश्वास लिए उसकी हिम्मत भी बढ़ती जा रही थी, वो खिसक कर और आगे हो गया और पीछे से लता से चिपक गया, उसका सीना लता की पीठ से टकराया तो लता के तो बदन में मानो बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत फिर से गीली होने लगी, इधर छोटू ने अपने हाथों को और आगे बढ़ा कर लता के पेट तक ले जाना शुरू कर दिया और अब कमर के साथ साथ लता के गदराए पेट को भी मसलने लगा, लता का पेट भी कुछ ही पलों में उसकी कमर की तरह ही तेल से चिकना हो गया, जिस वजह से छोटू को और मजा आ रहा था लता के पेट को मसलने और सहलाने में,
लता के मुंह से न चाहते हुए भी हल्की हल्की सी सिसकियां निकल रहीं थी, जो कि छोटू के कानों में पड़ रहीं थी और उसका उत्साह बढ़ा रहीं थीं, छोटू का लंड भी पजामे में पूरी तरह से कड़क हो चुका था, पर अभी छोटू को लता के पेट को मसलने में जो आनंद मिल रहा था वो उसे छोड़ना नहीं चाह रहा था, इसीलिए लगातार पेट को मसल रहा था, पर इस आनंद को वो ज़्यादा देर तक नहीं ले पाया क्योंकि कुछ पल बाद ही किवाड़ों के खुलने की आवाज़ आई तो लता चौंक कर उठ गई और अपनी साड़ी को अपने सीने पर डाल कर अपनी हालत ठीक करने लगी, छोटू ने भी अपने तने लंड को नीचे की ओर कर दिया ताकि दिखे न,
दोनों कमरे से बाहर आए तो देखा आंगन में मगन, लल्लू और कुंवर पाल घुस रहे हैं, लल्लू ने छोटू को देखा तो तुरंत बोला: तू कब आया?
छोटू: थोड़ी देर हो गई, मैं ताई की सेवा कर रहा था।
छोटू ने मुस्कुराते हुए ये लता की ओर देख कर कहा, लता की नजरें भी पल भर को उससे मिली, और उसके कहने के तरीके से ही लता को बदन में सिहरन सी हुई, छोटू और लल्लू एक ओर जाकर बात करने लगे, दोनों के ही मन में बहुत कुछ था पर एक दूसरे से कह नहीं सकते थे, लल्लू के मन में उसके और उसकी बहन के बीच जो हुआ वो चल रहा था तो छोटू अपने और अपनी मां के साथ साथ लल्लू की मां के साथ की घटनाएं याद कर खुश हो रहा था,
लता घर के काम में लग चुकी थी, मगन और कुंवर पाल को भी नहाना था, लल्लू और छोटू एक दूसरे के साथ बातों में लगे थे।
दूसरी ओर नंदिनी अपनी सहेली नीलम के साथ खेत में जा रही थी, उसके दिमाग में जो कुछ रात में हुआ वो और फिर थोड़ी देर पहले उसके और लल्लू के बीच जो हुआ वो सब घूम रहा था, उसे लल्लू पर गुस्सा भी आ रहा तो साथ ही इन सभी नई घटनाओं को सोचकर एक उत्साह और उत्तेजना भी हो रही थी, खेत में पहुंच कर दोनों हमेशा की तरह अपनी अपनी सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार नीचे सरका कर एक दूसरे के बगल में बैठ गए, नीलम इधर उधर की बातें कर रही थी पर नंदिनी का ध्यान कहीं और ही था अपनी मां के बदन के साथ रात में खेल कर उसके मन में अपने अलावा दूसरी औरतों के बदन को लेकर एक नई जिज्ञासा जाग गई थी, हर किसी को वो एक नई नज़र से देख रही थी, और वही नई नज़र उसने अपनी बचपन की सहेली नीलम पर भी डालनी चाही, पर क्यों कि दोनों अगल बगल बैठती थीं, तो नंदिनी को नीलम का एक चूतड़ वो भी उसका थोड़ा सा ही हिस्सा नंगा नज़र आ रहा था, नंदिनी के मन में नीलम के अंग देखने की जिज्ञासा जागने लगी, नीलम तो लगातार बातों में लगी थी, और नंदिनी बस उसकी बातों पर हम्म ह्म्म्म किए जा रही थी,
इसी बीच नंदिनी ने कुछ सोचा और अपना लोटा लेकर उठी और कुछ कदम पीछे होकर बैठ गई,
नीलम: अरे क्या हुआ कहां भागी जा रही है?
नंदिनी: अरे कुछ नहीं बहन कांतर(कीड़ा) थी।
नीलम: हाय दैय्या, किधर?
नंदिनी: अरे यहीं थी मेरे पैरों के पास।
नीलम: मैं भी चली इधर से,
ये कह नीलम अपना लोटा उठती है तो नंदिनी को अपनी योजना असफल होती दिखी पर नीलम उठ कर उसके बगल में नहीं बैठी बल्कि घूम कर उसकी ओर मुंह कर बैठ गई, जो कि जो नंदिनी ने भी सोचा था उससे भी अच्छा हो गया, क्योंकि अब उसकी ठीक आंखों के सामने नीलम की कुंवारी चूत थी, और चूत क्या एक पतली सी फांक थी जिसके होंठ एक शर्मीली दुलहन के होंठों की तरह बिल्कुल बंद नजर आ रहे थे,
नंदिनी तो टक टकी लगाकर अपनी सहेली की चूत को देखने लगी,
नीलम की भी नजर जब नंदिनी के चेहरे पर पड़ी तो उसने उसे अपनी चूत को देखते पाया, एक पल को तो नीलम को गुस्सा भी आया और वो कुछ बोलने ही वाली थी कि उसकी स्वयं की आँखें भी नीचे होकर नंदिनी की चूत पर टिक गईं, नीलम के लिए भी नंदिनी की चूत पहली थी अपने अलावा जिसे वो देख रही थी, नंदिनी की चूत पर नज़र पड़ते ही नीलम चुप हो गई और वो भी कुछ पल तो लगातार नंदिनी की चूत को ही देखती रही, उसने देखा कि नंदिनी की चूत उसकी चूत से दिखने में अलग थी पर सुंदर थी,
इसी बीच नंदिनी ने एक बार अपनी नज़र उठा कर नीलम के चेहरे को देखा तो उसे अपनी टांगों के बीच देखते पाया, ये देख नंदिनी के चेहरे पर मुस्कान आ गई, नीलम को भी ये आभास हुआ कि वो लगातार नंदिनी की चूत को देख रही है तो उसने अपनी नज़र हटाई और उसके चेहरे की ओर देखा तो दोनों की नज़रें मिल गईं, नंदिनी उसकी ओर देख कर बेशर्मी से मुस्कुरा रही थी,
नंदिनी: देख ली या और अच्छे से दिखाऊं?
नीलम नंदिनी की बात समझ कर बुरी तरह झेंप गई
नीलम: धत्त वो तो तू तू भी तो मेरी देख रही थी इसलिए मेरी नज़र चली गई।
नंदिनी: अरे तो क्या हो गया मैं तो कह रही हूं अगर देखना हो अच्छे से तो बता और अच्छे से दिखा दूंगी। सहेली ही तो सहेली के काम आएगी।
नीलम: हट कमीनी, कितनी गंदी बातें करती है तू।
नंदिनी: अरे इसमें गंदा क्या है, जो तेरे पास है वही मेरे पास है, तो इसमें इतना शर्माना क्या?
नीलम: अच्छा माना दोनों के पास एक ही चीज है पर है तो हमारे गुप्तांग, उन्हें तो छुपा के ही रखना पड़ता है।
नीलम ने समझाते हुए कहा,
नंदिनी: अच्छा ऐसा किसने कहा?, सहेलियों में कुछ भी नहीं छिपाना चाहिए,
नीलम: ऐसा कुछ नहीं है।
नंदिनी: ऐसा ही है अच्छा जब तू नया सूट सलवार बनवाती है तो दिखाने लाती है कि नहीं,
नीलम: हां लाती हूं पर वो सूट सलवार होता है और ये..... ये...
नीलम ये कह चुप हो जाती है,
नंदिनी: ये चूत हैं, खुल के बोल न,
नीलम शर्म से अपना मुंह ढंक लेती है और मुंह बनाते हुए कहती है: सच में बहुत गंदी हो गई है तू, ज़रूर ये सब उस लफंगे सत्तू के साथ का असर है।
नंदिनी: अरे किसी का असर नहीं है, तू ही अम्मा बनी रहती है न जाने इतने संस्कार लेकर कहां जाएगी? चूत को चूत न बोलूं तो क्या बोलूं और सहेलियां आपस में ऐसे मज़ाक नहीं करेंगी तो कौन करेगा?
नंदिनी ने थोड़ा रूखे तरीके से बोला तो नीलम चुप हो गई और कुछ सोचने लगी, फिर धीरे से बोली: शायद तू सही कह रही है, सहेलियां ही तो आपस में मज़ाक करती हैं।
नंदिनी: वही तो मेरी लाड़ो, थोड़ा अपने आप को खोल, मज़े कर, हमेशा सही गलत में पड़ी रहेगी तो खुश नहीं रह पाएगी।
नीलम: ओहो देखो तो जानी अम्मा को
इस बात पर दोनों ही हंसने लगे, तब तक दोनों शौच निपटा चुके थे, और दोनों ने ही अपने अपने चूतड़ों को धोया और खड़े हो गए और खेत से बाहर निकल गए।
नंदिनी: क्या हुआ अब क्या सोच में पड़ी है?
नीलम: कुछ नहीं बस ऐसे ही।
नंदिनी: अब मुझे भी नहीं बताएगी।
नीलम: अरे बस वही सोच रही हूं कि मैं ज़्यादा सही गलत करती हूं क्या?
नंदिनी: हां करती तो है, और मैं ये नहीं कह रही कि ये गलत है, पर अभी हम जवान हैं ये उमर हमारी मज़े करने की है, अभी से अगर सिर्फ सही गलत करेंगे तो कुछ और नहीं कर पाएंगे।
नीलम: हां कह तो तू सही रही है,
नंदिनी: मैं तो हमेशा ही सही कहती हूं।
नीलम: हां हां दादी अम्मा।
दोनों हंसती हुई नल के पास आ जाती हैं जहां दोनों हाथ धोती हैं और फिर घर की ओर चल देती हैं, नंदिनी जैसे ही घर के द्वार पर पहुंचती है उसी समय घर से लल्लू और छोटू निकल रहे थे, लल्लू अपनी बड़ी बहन को देख कर मुंह नीचे कर लेता है वहीं नंदिनी उसकी ओर देखती है और मुंह बना कर अंदर चली जाती है।
छोटू: दीदी को क्या हुआ ये क्यों गुस्सा सी लग रही हैं।
लल्लू: कुछ कुछ नहीं यार पता नहीं कब किस बात पर गुस्सा हो जाती है।
छोटू: ये तो है ही, नीलम दीदी भी लगता है हमेशा गुस्से में ही रहती है।
दोनों बातें करते हुए आगे बढ़ जाते हैं, दूसरी ओर नदी के किनारे बैठ कर सत्तू चुदाई का जान बरसा रहा था और भूरा उसमें भीग रहा था,
सत्तू: तुझे बताऊं भूरा औरत में मर्द से ज़्यादा गरमी होती है, और जब औरत गरम होती है तो अच्छा खासा मर्द उसके आगे हल्का पढ़ जाता है।
भूरा: सही में सत्तू भैया? मैं तो सोचता था हमारे अंदर ही गरमी है सारी।
सत्तू: नहीं चेले, औरत का क्या है वो छुपाने में अच्छी होती है शर्माती है कभी खुल के नहीं कहती।
भूरा: पर ऐसा क्यों?
सत्तू: ऐसा इसलिए क्यूंकि अगर औरत खुल कर चुदाई की बातें या चुदाई करने लगे तो मर्द उसे रंडी का नाम दे देते हैं, क्योंकि गरम और खुली औरत को संभालना आसान नहीं होता, इसलिए समाज ने ही ऐसी धारणा बना दी और औरत को शर्म की बंदिशों में बांध दिया।
भूरा: सही में अब सही समझ आ रहा है सत्तू भैया। पर भैया एक और सवाल है।
सत्तू: पूछ पूछ आज सारे संशय मिटा ले।
भूरा: कोई भी औरत अपने पति को धोखा क्यों देती है, मतलब पति को छोड़ कर किसी और से क्यों चुदवाती है।
सत्तू: तगड़ा सवाल पूछा है तूने, इसका जवाब भी तू मुझे देगा.
भूरा: मैं मैं कैसे?
सत्तू: तुझे प्यास लगी हो और तेरे घर का नल पानी नहीं दे रहा हो तो क्या करेगा?
भूरा: बाहर के नल से पानी पियूंगा।
सत्तू: समझ गया?
भूरा थोड़ा सोचता है और फिर जब उसे समझ आता है तो उसकी आंखें चौड़ी हो जाती है और चेहरे पर बड़ी मुस्कान आ जाती है।
भूरा: सही में सत्तू भाई तुम तो गुरु आदमी हो यार।
सत्तू: सही समझा, जब औरत को घर पर वैसी रगड़ाई नहीं मिलती पति से तब वो बाहर वालों के लिए टांगे खोलती है, पर सुन ऐसा नहीं है कि तब भी वो किसी से भी जाकर चुद जाएगी, बोलेगी तब भी नहीं,
भूरा: अच्छा फिर?
सत्तू: फिर क्या, यहीं मर्द की नज़र परखी होनी चाहिए, जो औरत की प्यास को समझ लेता है, और जान जाता है कि ये औरत प्यासी है, वो फिर मलाई मारता है।
भूरा सत्तू के ज्ञान से हैरत में था और उसकी एक एक बात को अच्छे से समझ रहा था।
भूरा: पर भाई हर औरत ऐसी थोड़ी होती होगी।
सत्तू: हां हर औरत ऐसी नहीं होती, पर हर औरत, एक औरत तो होती है, और औरत है तो बदन की प्यास भी है, सिर्फ समय और कोशिश की बात है कुछ जल्दी तांगे खोल देती हैं कुछ थोड़ा नखरा करती हैं।
भूरा: ये बात तो सही कही भईया।
सत्तू: और बताऊं जो जितना नखरे करती है उसको चोदने में उतना ही मज़ा आता है।
भूरा: सही में सत्तू भैया, तुम्हारे पास तो चुदाई के ज्ञान का भंडार है।
सत्तू अपनी प्रशंसा सुनकर खुश होता है और ज्यादा भूरा पर अपने जान की छींटे मारता है।
दूसरी ओर गांव में ही अरहर के खेत में एक औरत घोड़ी बनी होती है और उसके पीछे एक आदमी उसकी साड़ी को उसकी कमर पर इकट्ठी करके पकड़े हुए उसके पीछे घुटनो पर बैठ कर औरत के मोटे मोटे चूतड़ों के बीच अपना लंड सटा सट अंदर बाहर कर रहा होता है, हर झटके पर जैसे ही आदमी की जांघें औरत के चूतड़ों से टकराती हैं तो उसके चूतड़ों में लहर उठ जाती, औरत के मुंह से लगातार अह्ह अह्ह की आवाज़ आ रही थी,
पीछे से चोदता हुआ आदमी भी सिसकियां लेते हुए फुसफुसा रहा था,
आदमी: अह्ह भाभी अह्ह्ह्ह क्या गजब की चूत है तुम्हारी, जितना भी चोद लो मन नहीं भरता अह्ह।
औरत: उहम्म ह्म्म्म अह्ह देवर जी जल्दी करो अह्ह कोई आ गया तो गड़बड़ हो जाएगी।
आदमी: कोई नहीं आएगा भाभी, आज तक कोई आया क्या?
औरत: अह्ह छोटू और उसके दोस्त यहीं घूमते रहते हैं देवर जी।
आदमी: अरे भाभी तुम वो सब छोड़ो और ये बताओ ये द्वार कब खुलेगा।
आदमी ने अपनी उंगली औरत की गांड के छेद पर घुमाते हुए कहा, तो औरत और सिहरने लगी, औरत को गरम देख आदमी ने अपनी उंगली थोड़ी थूक से गीली कर गांड के अंदर सरका दी, जिससे औरत मचल पड़ी,
औरत: अह्ह वहां नहीं, बाहर निकालो अह्ह।
आदमी: ओह भाभी अह्ह्ह्ह काहे बचाती फिरती हो इतनी मस्त गांड को एक बार इसकी भी सैर कर लेने दो,
औरत: न नहीं वहां अह्ह्ह्ह तो मैने कभी उनको भी नहीं छूने दिया,
आदमी: अरे कौनसा लंड घुसाया है उंगली ही तो डाली है इतना क्यों मचल रही है मेरी रांड भाभी, अह क्या मस्त गांड है तेरी छिनाल कुत्तिया, अह्ह।
आदमी ने उंगली को लगातार अंदर बाहर करते हुए कहा साथ ही चूत में लंड लगातार अंदर बाहर हो ही रहा था, औरत भी दोहरे हमले साथ ही अपने लिए गालियां सुन कर खुद की उत्तेजना को संभाल नहीं पाई और थर्राते हुए झड़ने लगी, उसका बदन कांपने लगा और वो आगे गिर गई, लंड चूत से निकल गया, आदमी के लिए भी ये चरम का ही समय था उसके लंड ने भी पिचकारी छोड़ना शुरू कर दिया जो कि औरत के चूतड़ों को भिगाने लगी, एक के बाद एक रस की धार औरत के मोटे चूतड़ों पर गिर रही थी, जो कि खुद नीचे औंधी पड़ी हुई मचल रही थी। झड़ने के बाद दोनों ही जल्दी जल्दी से अपने अपने कपड़े सही करते हैं और पहले औरत एक तरफ से निकल जाती है और आदमी दूसरी ओर से।
दोपहर का समय हो चुका था घर के सारे मर्द बाहर निकल गए थे, नीलम भी नंदिनी के साथ कढ़ाई सीखने गई थी घर पर सिर्फ जेठानी और देवरानी साथ ही उनकी सास थी, यानी पुष्पा, सुधा और फुलवा।
फुलवा तो खाट पर लेटी हुई झटकी मार रहीं थी दोनों बहुएं पटिया पर बैठीं कपड़े धो रही थीं। पुष्पा अभी भी उसी ग्लानि और सोच में थी जो कुछ रात में उसके और उसके बेटे के बीच हुआ था, वहीं सुधा भी अपनी जेठानी को सोच में देख रही थी, सुधा को लग रहा था कि जेठानी अभी भी उनके बीच जो हुआ उस वजह से मुंह बनाए हुए हैं।
सुधा: दीदी ओ दीदी।
पुष्पा: हां? हां हां क्या हुआ?
सुधा: दीदी मुझे पता है तुम परेशान हो उस बात को लेकर पर ऐसे कब तक चलेगा। कब तक हम ऐसे ही रहेंगे?
पुष्पा: मतलब? कौन कौनसी बात?
सुधा: वही जो हमारे बीच हुआ, जानती हूं वो सही नहीं था, पर उस वजह से कब तक हम एक दूसरे से बात नहीं करेंगे, हमें जीवन भर साथ रहना है तो कुछ तो तरीका निकालना पड़ेगा ना।
सुधा ने अपनी बात रखते हुए कहा।
पुष्पा उसकी बात सुन सोचने लगी: बेचारी को लग रहा है मैं इस वजह से परेशान हूं, पर नहीं जानती कि मुझसे कितना बड़ा पाप हुआ है, पर इन सब में इसकी क्या गलती, ये सही कह रही है एक ये ही तो है जिससे अपने मन की बात कर पाती हूं, इससे भी बात नहीं होगी तो मैं सोच सोच कर बावरी हो जाऊंगी।
पुष्पा: वो बात नहीं है, मैं बस ऐसे ही चुप थी, उस बात को लेकर नहीं।
सुधा: मतलब तुम मुझसे गुस्सा नहीं हो,
पुष्पा: धत्त तुझसे भी गुस्सा हो सकती हूं मैं? तू मेरी छोटी बहन, सहेली सब कुछ है।
ये सुनकर सुधा खुश हो गई,
सुधा: अरे दीदी ये सुनकर बड़ा अच्छा लग रहा है मन कर रहा है तुम्हारी पुच्ची ले लूं।
पुष्पा: ले ले किसने रोका है।
सुधा ने आगे हो कर पुष्पा का गाल चूम लिया। और दोनों हंसने लगीं।
सुधा: अरे दीदी तुमने तो मेरे मन का भार हल्का कर दिया पता है तुमसे बात नहीं होती तो मेरा मन परेशान रहता है।
पुष्पा: मेरे साथ भी ऐसा ही है बहना।
सुधा: अच्छा दीदी एक बात पूछूं?
पुष्पा: हां बोल न।
सुधा: तो हम जो हुआ हमारे बीच उस बारे में बात कर सकते हैं या बुरा सपना समझ कर भूल जाना है।
पुष्पा: उसे भूलना इतना आसान नहीं है, वैसे सच कहूं तो भूलना ही कौन चाहता है।
इस पर दोनों तेजी से हंसने लगीं, पुष्पा को भी अपनी चिंता छोड़ कर कुछ पल सुधा के साथ हंसी के बिताना अच्छा लग रहा था, इधर फुलवा की नींद तो पहले ही खुल गई थी वो बस खाट पर लेटी हुई छप्पर को निहारते हुए बस जो कुछ हुआ था उसके बारे में सोच रही थी, तभी उसे अपनी बहुओं के खिलखिलाने की आवाज आई। यहां घर पर कोई समस्या न आए उसके लिए मैं परेशान हूं, उस चक्कर में न जाने किसी से चुदवा भी बैठी, सोच सोच कर ही मेरा सिर घूम रहा है और इन दोनों की हंसी ठिठोली चल रही है अभी बताती हूं।
फुलवा: अरे कपड़े धुल गए हों तो कोई एक इधर आओ।
सुधा: लो हम इतनी तेज हंसे क्या कि अम्मा भी उठ गई।
पुष्पा: उठ भी गईं और बुला भी रही हैं।
सुधा: जाऊं मैं?
पुष्पा: नहीं तू रुक मैं पूछ आती हूं,
पुष्पा हाथ धोकर अपनी सास के पास जाकर बोली: हां अम्मा क्या हुआ?
फुलवा: हुआ का, सिर पिरा रहा है थोड़ा मालिश कर दे।
पुष्पा: हां अम्मा अभी तेल लाई मैं।
पुष्पा जल्दी से तेल लेकर आती है और फुलवा के सिर की मालिश करने लगती है फुलवा को भी आराम मिलता है
पुष्पा: कैसा लग रहा है अम्मा?
फुलवा: आराम मिल रहा है बहुरिया, मालिश अच्छी करती है तू।
पुष्पा: तुम्हें आराम मिलना चाहिए अम्मा ।
फिर फुलवा को जैसे कुछ ध्यान आता है तो कहती है: क्यों बहुरिया जब हमने तुझसे कहा था रात को लल्ला के साथ ही सोना है तो तू नीचे क्यों सो रही थी।
इस सवाल से पुष्पा थोड़ा घबरा जाती है साथ ही उसे फिर से वो सब ध्यान आने लगता है
पुष्पा: वो अम्मा मैं साथ ही सोई थी रात भर पर खाट न बहुत छोटी है दो लोग उस पर आ ही नहीं रहे थें
फुलवा: हां खटिया छोटी तो है अब तो लल्ला भी बड़ा हो गया है ना।
पुष्पा: हां अम्मा बड़ा तो बहुत हो गया है,
पुष्पा ने ये जवाब दिया तो उसकी आंखो के सामने छोटू का कड़क लम्बा लंड आ गया और उसे फिर से अपनी चूत नम होती महसूस हुई।
फुलवा: एक काम कर बहु फिर दो चार दिन तुम दोनों कमरे में ही सो जाओ। वहां तो कोई परेशानी नहीं होगी?
पुष्पा: ठीक है अम्मा कमरे में ही सो जाएंगे।
अब पुष्पा चाहती तो मना करना था पर अपनी सास को कैसे बोलती इसलिए न चाहते हुए भी हां करनी पड़ी। खैर सिर की मालिश करके बापिस घर के कामों में लग गई दोनों देवरानी जेठानी एक दूसरे से बातें करते हुए सारे काम निपटाती गईं।
सूरज ढल रहा था और तीनों बूढ़े एक चबूतरे पर बैठे चिलम पी रहे थे,
सोमपाल: अरे बहुत दिन हो गए ताड़ी मुंह से नहीं लगी, सुभाष से मंगवानी पड़ेगी।
कुंवर पाल: अरे मंगवाने की जरूरत नहीं है घर पर रखी है।
सोमपाल:अरे फिर मंगा, कोई लड़का दिख रहा है का? अरे ये रहा राजेश ओ राजेश इधर आ।
राजेश: हां बाबा का हुआ?
कुंवरपाल: अरे घर चला जा और अपनी ताई से ताड़ी की डोलची मांग कर ले आ।
राजेश: अरे बाबा तुम भी न इस उमर में नशा करोगे।
सोमपाल: जा चुपचाप, जितना कहा जाए उतना कर बढ़ो से मुंह नहीं लड़ाते।
राजेश: तुम भी बाबा मान जाओ फिर तबीयत खराब होती है तुम्हारी।
सोमपाल: जा रहा है कि निकालू डंडा?
राजेश: जा तो रहा हूं। देखना अम्मा से कहूंगा तुम पियो आज। राजेश ये कह कर भाग जाता है।
सोमपाल: देख रहे हो नाती पोते को समझा रहा है।
कुंवरपाल: अपने बाप के बाप को ज्ञान दे रहा है।
इस पर तीनों तेजी से हंसने लगते हैं, कुछ ही देर में राजेश डोलची और तीन गिलास लेकर आ के रख देता है
राजेश: लो तुम्हारी ताड़ी, और बाबा ताई ने कहा है डोलची और गिलास खो मत देना।
कुंवरपाल: हां भाई नहीं खोएंगे, अब जा तू।
प्यारेलाल: अरे तुम दोनों ही पियो ताड़ी पीकर मेरा पेट खराब हो जाता है।
सोमपाल: अरे यार कुंवरपाल देख इसने फिर रोना शुरू कर दिया।
कुंवरपाल: कुछ नहीं होगा प्यारे पीले।
प्यारेलाल: पिछली बार पी थी तो बड़ी तकलीफ हुई थी अगले दिन तक पेट में पीर रही थी।
सोमपाल: अच्छा बस इतनी सी तकलीफ है मेरे पास पुड़िया है बाबा की, मेरे भी पेट दर्द की समस्या रहती है, घर जाकर गुनगुने पानी से पी लियो।
कुंवरपाल: ले हो गया इलाज। अब तो पियेगा?
प्यारेलाल: अब तुम बिना पिलाए मानोगे कहां?
इस पर तीनों ठहाका लगा कर हंसते हैं और फिर ताड़ी चलने लगती है, पीते पीते बातें करते हुए अंधेरा हो जाता है तब जाकर खत्म होती है।
प्यारेलाल: चलो भाई अंधेरा हो गया अब चलें घर।
सोमपाल: हां हां चलो नहीं तो तुम्हारी भाभी आज बच्चों के सामने सुनाने लग जाएगी।
कुंवरपाल: ठीक है लाओ भाई डोलची और गिलास समेत लूं नहीं तो हमें भी सुननी पड़ेगी।
इस पर तीनों एक बार फिर से हंसे।
प्यारेलाल: अरे सोमपाल, वो पुड़िया तो दो नहीं तो रात में कहीं तकलीफ हुई तो कहां भागता रहूंगा।
सोमपाल: अरे हां ये ले। खाना खा कर पानी के साथ पी लेना।
सोमपाल ने पुड़िया देते हुए कहा, प्यारेलाल पुड़िया लेकर चल दिया तो कुंवरपाल और सोमपाल भी अपने घर की ओर चल दिए, और प्यारेलाल के थोड़ा दूर जाते ही सोमपाल हंसी दबा कर हंसने लगा।
कुंवरपाल: क्या हो गया हंस क्यों रहा है?
सोमपाल: प्यारेलाल का सोच कर।
कुंवरपाल: ऐसा क्या हो गया।
सोमपाल: बेचारा पेट लिए पुड़िया खाएगा और होगा कुछ और।
कुंवरपाल: मतलब, वो पुड़िया पेट की पीर की नहीं है?
सोमपाल: अरे नहीं यार वो हल तैयार करने वाली पुड़िया है जुताई के लिए।
कुंवरपाल उसकी बात समझते हुए तेजी से हंसने लगा: अरे भेंचो, तेरी आदत नहीं सुधरी बालपन से ही उसके साथ मज़ाक करने की।
सोमपाल: अरे तुझे पता है न कितना वहमी है वो, अगर पुड़िया की नहीं बोलता न तो मन होने के बाद भी नहीं पीता।
कुंवरपाल: ये तो सही कहा धी का लंड है तो इसी लायक, पर अब रात को इसका हल तैयार हो गया तो क्या करेगा? बेचारे के पास खेत तो है नहीं।
सोमपाल: तभी तो मजा आएगा, रात भर तड़पेगा ससुरा।
कुंवरपाल: चल अब हम भी चलें खोपड़ी घूम रही है।
सोमपाल: हां हां चल सही कह रहा है।
दोनों भी अपने अपने घर की ओर बढ़ जाते हैं।
तीनों घरों में खाना बन चुका था और खाया जा चुका था, और रोज़ की तरह बिस्तर लगाए जा रहे थे, इसी बीच पुष्पा की परेशानी बढ़ती जा रही थी, कल जो कुछ हुआ उससे वो पहले से ही परेशान थी, और आज अम्मा ने कह दिया था कि वो और छोटू कमरे में सोएंगे, उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे अपने बेटे का सामना करेगी जिससे सुबह से ही वो नजर बचाती आई थी। पर मना करे तो कैसे करे। क्या कारण दे, अगर कुछ कहती है तो अम्मा के भड़कने का डर भी था,
रसोई में सबके लिए दूध निकालते हुए उसका दिमाग इसी सब में लगा हुआ था, इतने में बर्तन धो कर सुधा पीछे से आई,
सुधा: अरे कर दिया दूध दीदी?
पुष्पा: हां सबके लिए निकाल दिया है,मैं राजेश और बाबा को देकर आती हूं तू तब तक लल्ला के लिए एक गिलास में दवाई घोल दे पुड़िया में से। और अपना और नीलम का ले लियो।
सुधा: ठीक है दीदी, कहां रखी है पुड़िया?
पुष्पा: वो ऊपर डिब्बे में।
पुष्पा बता कर दोनों दूध के गिलास लेकर चबूतरे पर अपने ससुर और भतीजे को दूध देकर आती है तब तक सुधा भी अपना और नीलम का दूध का गिलास लेकर जा चुकी थी।
पुष्पा बापिस आकर ये भूल जाती है कि उसने सुधा को भी पुड़िया की दवाई घोलने को बोला था, इसलिए वो भी पुड़िया निकालती है और बचे हुए दो गिलासों में से एक गिलास में पुड़िया घोली और फिर दोनों गिलास लेकर कमरे में आ गई जहां बिस्तर पर छोटू पहले से ही लेटा हुआ था, और उत्सुक होकर अपनी मां की प्रतीक्षा कर रहा था,
पुष्पा: ले दूध पीले।
पुष्पा ने छोटू के चेहरे की ओर न देखते हुए ही उसके आगे दूध का गिलास कर दिया।
छोटू: हां मा लाओ,
छोटू ने बिल्कुल आज्ञाकारी बच्चे की तरह दूध का गिलास लिया और तुरंत अपने मुंह में लगाकर दूध गटकने लगा, जो कि दूध पीने के नाम पर नाटक करने वाले छोटू के लिए अलग बात थी, पर पुष्पा का ध्यान अभी कहीं और ही था इसलिए उसका ध्यान इस बात पर नहीं गया। और वो भी एक गिलास से दूध पीने लगी।
छोटू के मन में बहुत से सवाल थे, वो आज की रात के लिए बहुत उत्साहित और उत्तेजना था, एक तो कल रात जो हुआ वो सब फिर शाम को उसकी अम्मा ने ये और कहा कि वो और उसकी मां कमरे में सोएंगे, ये सुन कर तो उसका मन खुशी से छलांगें मार रहा था, मन में हर तरह के सपने सजा रहा था कि क्या क्या होगा कैसे कैसे होगा, पर मन की बात को प्रत्यक्ष में पेश करना बहुत कठिन होता है और वैसा ही छोटू के साथ हो रहा था, उसने तो सोचा था मां के आते ही उससे चिपक जाएगा, पर इतना सब होने के बाद भी वो उसकी मां थी और एक झिझक एक डर उसे अब भी अपनी मां से था खासकर सुबह से जैसे वो पेश आ रही थी तो उसे देखकर तो छोटू ने स्वयं को रोकना ही ठीक समझा।
पुष्पा ने भी अपना दूध का गिलास खाली कर दिया और एक ओर रख दिया और फिर बिना छोटू की ओर देखे लेट गई और अपने हाथ को अपने माथे पर रख कर अपना चेहरा ढंक लिया, छोटू ने अपनी मां को लेटते देखा फिर उसकी नज़र खुले हुए किवाड़ों पर गई, वो सोचने लगा कि ऐसे खुले किवाड़ रहे तो कुछ होने से रहा, पर ऐसे कैसे बंद करूं? पर तभी उसके मन में एक योजना आई और वो बिस्तर से खड़ा हुआ और फिर कमरे से बाहर निकल गया, पुष्पा ने भी छोटू को कमरे से जाते देखा तो सोचने लगी ये क्यों बाहर गया है? चाहे जिस लिए भी गया हो, पर आज मुझे कुछ भी गलत नहीं होने देना है, आज स्वयं पर पूरा नियंत्रण रखना है कल जो पाप हुआ उसका पश्चाताप करने का यही तरीका है।
जारी रहेगी।
Lovely update bro isi tarah update dete rahiye yahi hamari aapse vinti haiअध्याय 12पीठ के हिस्से की अच्छे से मालिश करने के बाद छोटू और तेल उंगलियों पर लेता है और उसे हाथों पर चुपड़ने के बाद फिर से लता की कमर पर लगाता है पर इस बार पीठ के बीच में नहीं बल्कि उसकी कमर की दोनों ओर, लता को अपनी कमर पर छोटू का हाथ का स्पर्श पाकर फिर से एक सिरहन होती है वहीं छोटू अपने हाथों में ताई की चिकनी कमर का स्पर्श पाकर उत्तेजित होने लगता है पजामे में उसका लंड सिर उठाने लगता है।
वो धीरे धीरे लता की कमर को मसलते हुए मालिश करने लगता है। अब आगे...
छोटू: आराम मिल रहा है ताई?
छोटू ने लता की मांसल कमर को मसलते हुए कहा,
लता: अह्ह बहुत आराम है लल्ला, तेरे हाथों ने तो कमाल कर दिया,
छोटू: बस थोड़ी देर में सारा दर्द गायब हो जाएगा ताई बस देखती जाओ।
ये कहते हुए छोटू ने अपनी उंगलियां लता की मांसल गदराई कमर में गड़ा दीं,
लता: हां लल्ला तू करता रह,
वैसे ध्यान देने वाली बात ये थी कि चोट तो पीछे पीठ के निचले हिस्से पर लगी थी पर छोटू अब उसे छोड़ कर लता की कमर को मसल रहा था, और लता उसे रोक भी नहीं रही थी, उसकी वजह थी लता को छोटू के हाथों का स्पर्श बहुत भा रहा था, लता मन ही मन सोच रही थी: ये मुझे क्या होता जा रहा है क्यों मैं अपने बदन को नियंत्रण में नहीं रख पाती, रात को अपनी बेटी के साथ इतना कुछ किया और अब ये छोटू में न जाने क्या है कल भी इसके साथ इतना कुछ कर गई और आज भी इसे रोकने की जगह इसको और उत्साहित कर रही हूं,
इधर छोटू के लिए ये सब नया था और उत्साहित करने वाला भी, उसका आत्मविश्वास आसमान को छू रहा था, रात को अपनी मां के साथ इतना कुछ करने से उसे लग रहा था कि वो बेकार में इतना डरता था, औरतें भी उतनी ही गरम होंती हैं जितने मर्द, ऐसा नहीं होता तो उसकी मां उसके साथ ऐसा क्यों करती, कल ताई उसका लंड क्यों मुठियाती।
ये ही आत्मविश्वास लिए उसकी हिम्मत भी बढ़ती जा रही थी, वो खिसक कर और आगे हो गया और पीछे से लता से चिपक गया, उसका सीना लता की पीठ से टकराया तो लता के तो बदन में मानो बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत फिर से गीली होने लगी, इधर छोटू ने अपने हाथों को और आगे बढ़ा कर लता के पेट तक ले जाना शुरू कर दिया और अब कमर के साथ साथ लता के गदराए पेट को भी मसलने लगा, लता का पेट भी कुछ ही पलों में उसकी कमर की तरह ही तेल से चिकना हो गया, जिस वजह से छोटू को और मजा आ रहा था लता के पेट को मसलने और सहलाने में,
लता के मुंह से न चाहते हुए भी हल्की हल्की सी सिसकियां निकल रहीं थी, जो कि छोटू के कानों में पड़ रहीं थी और उसका उत्साह बढ़ा रहीं थीं, छोटू का लंड भी पजामे में पूरी तरह से कड़क हो चुका था, पर अभी छोटू को लता के पेट को मसलने में जो आनंद मिल रहा था वो उसे छोड़ना नहीं चाह रहा था, इसीलिए लगातार पेट को मसल रहा था, पर इस आनंद को वो ज़्यादा देर तक नहीं ले पाया क्योंकि कुछ पल बाद ही किवाड़ों के खुलने की आवाज़ आई तो लता चौंक कर उठ गई और अपनी साड़ी को अपने सीने पर डाल कर अपनी हालत ठीक करने लगी, छोटू ने भी अपने तने लंड को नीचे की ओर कर दिया ताकि दिखे न,
दोनों कमरे से बाहर आए तो देखा आंगन में मगन, लल्लू और कुंवर पाल घुस रहे हैं, लल्लू ने छोटू को देखा तो तुरंत बोला: तू कब आया?
छोटू: थोड़ी देर हो गई, मैं ताई की सेवा कर रहा था।
छोटू ने मुस्कुराते हुए ये लता की ओर देख कर कहा, लता की नजरें भी पल भर को उससे मिली, और उसके कहने के तरीके से ही लता को बदन में सिहरन सी हुई, छोटू और लल्लू एक ओर जाकर बात करने लगे, दोनों के ही मन में बहुत कुछ था पर एक दूसरे से कह नहीं सकते थे, लल्लू के मन में उसके और उसकी बहन के बीच जो हुआ वो चल रहा था तो छोटू अपने और अपनी मां के साथ साथ लल्लू की मां के साथ की घटनाएं याद कर खुश हो रहा था,
लता घर के काम में लग चुकी थी, मगन और कुंवर पाल को भी नहाना था, लल्लू और छोटू एक दूसरे के साथ बातों में लगे थे।
दूसरी ओर नंदिनी अपनी सहेली नीलम के साथ खेत में जा रही थी, उसके दिमाग में जो कुछ रात में हुआ वो और फिर थोड़ी देर पहले उसके और लल्लू के बीच जो हुआ वो सब घूम रहा था, उसे लल्लू पर गुस्सा भी आ रहा तो साथ ही इन सभी नई घटनाओं को सोचकर एक उत्साह और उत्तेजना भी हो रही थी, खेत में पहुंच कर दोनों हमेशा की तरह अपनी अपनी सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार नीचे सरका कर एक दूसरे के बगल में बैठ गए, नीलम इधर उधर की बातें कर रही थी पर नंदिनी का ध्यान कहीं और ही था अपनी मां के बदन के साथ रात में खेल कर उसके मन में अपने अलावा दूसरी औरतों के बदन को लेकर एक नई जिज्ञासा जाग गई थी, हर किसी को वो एक नई नज़र से देख रही थी, और वही नई नज़र उसने अपनी बचपन की सहेली नीलम पर भी डालनी चाही, पर क्यों कि दोनों अगल बगल बैठती थीं, तो नंदिनी को नीलम का एक चूतड़ वो भी उसका थोड़ा सा ही हिस्सा नंगा नज़र आ रहा था, नंदिनी के मन में नीलम के अंग देखने की जिज्ञासा जागने लगी, नीलम तो लगातार बातों में लगी थी, और नंदिनी बस उसकी बातों पर हम्म ह्म्म्म किए जा रही थी,
इसी बीच नंदिनी ने कुछ सोचा और अपना लोटा लेकर उठी और कुछ कदम पीछे होकर बैठ गई,
नीलम: अरे क्या हुआ कहां भागी जा रही है?
नंदिनी: अरे कुछ नहीं बहन कांतर(कीड़ा) थी।
नीलम: हाय दैय्या, किधर?
नंदिनी: अरे यहीं थी मेरे पैरों के पास।
नीलम: मैं भी चली इधर से,
ये कह नीलम अपना लोटा उठती है तो नंदिनी को अपनी योजना असफल होती दिखी पर नीलम उठ कर उसके बगल में नहीं बैठी बल्कि घूम कर उसकी ओर मुंह कर बैठ गई, जो कि जो नंदिनी ने भी सोचा था उससे भी अच्छा हो गया, क्योंकि अब उसकी ठीक आंखों के सामने नीलम की कुंवारी चूत थी, और चूत क्या एक पतली सी फांक थी जिसके होंठ एक शर्मीली दुलहन के होंठों की तरह बिल्कुल बंद नजर आ रहे थे,
नंदिनी तो टक टकी लगाकर अपनी सहेली की चूत को देखने लगी,
नीलम की भी नजर जब नंदिनी के चेहरे पर पड़ी तो उसने उसे अपनी चूत को देखते पाया, एक पल को तो नीलम को गुस्सा भी आया और वो कुछ बोलने ही वाली थी कि उसकी स्वयं की आँखें भी नीचे होकर नंदिनी की चूत पर टिक गईं, नीलम के लिए भी नंदिनी की चूत पहली थी अपने अलावा जिसे वो देख रही थी, नंदिनी की चूत पर नज़र पड़ते ही नीलम चुप हो गई और वो भी कुछ पल तो लगातार नंदिनी की चूत को ही देखती रही, उसने देखा कि नंदिनी की चूत उसकी चूत से दिखने में अलग थी पर सुंदर थी,
इसी बीच नंदिनी ने एक बार अपनी नज़र उठा कर नीलम के चेहरे को देखा तो उसे अपनी टांगों के बीच देखते पाया, ये देख नंदिनी के चेहरे पर मुस्कान आ गई, नीलम को भी ये आभास हुआ कि वो लगातार नंदिनी की चूत को देख रही है तो उसने अपनी नज़र हटाई और उसके चेहरे की ओर देखा तो दोनों की नज़रें मिल गईं, नंदिनी उसकी ओर देख कर बेशर्मी से मुस्कुरा रही थी,
नंदिनी: देख ली या और अच्छे से दिखाऊं?
नीलम नंदिनी की बात समझ कर बुरी तरह झेंप गई
नीलम: धत्त वो तो तू तू भी तो मेरी देख रही थी इसलिए मेरी नज़र चली गई।
नंदिनी: अरे तो क्या हो गया मैं तो कह रही हूं अगर देखना हो अच्छे से तो बता और अच्छे से दिखा दूंगी। सहेली ही तो सहेली के काम आएगी।
नीलम: हट कमीनी, कितनी गंदी बातें करती है तू।
नंदिनी: अरे इसमें गंदा क्या है, जो तेरे पास है वही मेरे पास है, तो इसमें इतना शर्माना क्या?
नीलम: अच्छा माना दोनों के पास एक ही चीज है पर है तो हमारे गुप्तांग, उन्हें तो छुपा के ही रखना पड़ता है।
नीलम ने समझाते हुए कहा,
नंदिनी: अच्छा ऐसा किसने कहा?, सहेलियों में कुछ भी नहीं छिपाना चाहिए,
नीलम: ऐसा कुछ नहीं है।
नंदिनी: ऐसा ही है अच्छा जब तू नया सूट सलवार बनवाती है तो दिखाने लाती है कि नहीं,
नीलम: हां लाती हूं पर वो सूट सलवार होता है और ये..... ये...
नीलम ये कह चुप हो जाती है,
नंदिनी: ये चूत हैं, खुल के बोल न,
नीलम शर्म से अपना मुंह ढंक लेती है और मुंह बनाते हुए कहती है: सच में बहुत गंदी हो गई है तू, ज़रूर ये सब उस लफंगे सत्तू के साथ का असर है।
नंदिनी: अरे किसी का असर नहीं है, तू ही अम्मा बनी रहती है न जाने इतने संस्कार लेकर कहां जाएगी? चूत को चूत न बोलूं तो क्या बोलूं और सहेलियां आपस में ऐसे मज़ाक नहीं करेंगी तो कौन करेगा?
नंदिनी ने थोड़ा रूखे तरीके से बोला तो नीलम चुप हो गई और कुछ सोचने लगी, फिर धीरे से बोली: शायद तू सही कह रही है, सहेलियां ही तो आपस में मज़ाक करती हैं।
नंदिनी: वही तो मेरी लाड़ो, थोड़ा अपने आप को खोल, मज़े कर, हमेशा सही गलत में पड़ी रहेगी तो खुश नहीं रह पाएगी।
नीलम: ओहो देखो तो जानी अम्मा को
इस बात पर दोनों ही हंसने लगे, तब तक दोनों शौच निपटा चुके थे, और दोनों ने ही अपने अपने चूतड़ों को धोया और खड़े हो गए और खेत से बाहर निकल गए।
नंदिनी: क्या हुआ अब क्या सोच में पड़ी है?
नीलम: कुछ नहीं बस ऐसे ही।
नंदिनी: अब मुझे भी नहीं बताएगी।
नीलम: अरे बस वही सोच रही हूं कि मैं ज़्यादा सही गलत करती हूं क्या?
नंदिनी: हां करती तो है, और मैं ये नहीं कह रही कि ये गलत है, पर अभी हम जवान हैं ये उमर हमारी मज़े करने की है, अभी से अगर सिर्फ सही गलत करेंगे तो कुछ और नहीं कर पाएंगे।
नीलम: हां कह तो तू सही रही है,
नंदिनी: मैं तो हमेशा ही सही कहती हूं।
नीलम: हां हां दादी अम्मा।
दोनों हंसती हुई नल के पास आ जाती हैं जहां दोनों हाथ धोती हैं और फिर घर की ओर चल देती हैं, नंदिनी जैसे ही घर के द्वार पर पहुंचती है उसी समय घर से लल्लू और छोटू निकल रहे थे, लल्लू अपनी बड़ी बहन को देख कर मुंह नीचे कर लेता है वहीं नंदिनी उसकी ओर देखती है और मुंह बना कर अंदर चली जाती है।
छोटू: दीदी को क्या हुआ ये क्यों गुस्सा सी लग रही हैं।
लल्लू: कुछ कुछ नहीं यार पता नहीं कब किस बात पर गुस्सा हो जाती है।
छोटू: ये तो है ही, नीलम दीदी भी लगता है हमेशा गुस्से में ही रहती है।
दोनों बातें करते हुए आगे बढ़ जाते हैं, दूसरी ओर नदी के किनारे बैठ कर सत्तू चुदाई का जान बरसा रहा था और भूरा उसमें भीग रहा था,
सत्तू: तुझे बताऊं भूरा औरत में मर्द से ज़्यादा गरमी होती है, और जब औरत गरम होती है तो अच्छा खासा मर्द उसके आगे हल्का पढ़ जाता है।
भूरा: सही में सत्तू भैया? मैं तो सोचता था हमारे अंदर ही गरमी है सारी।
सत्तू: नहीं चेले, औरत का क्या है वो छुपाने में अच्छी होती है शर्माती है कभी खुल के नहीं कहती।
भूरा: पर ऐसा क्यों?
सत्तू: ऐसा इसलिए क्यूंकि अगर औरत खुल कर चुदाई की बातें या चुदाई करने लगे तो मर्द उसे रंडी का नाम दे देते हैं, क्योंकि गरम और खुली औरत को संभालना आसान नहीं होता, इसलिए समाज ने ही ऐसी धारणा बना दी और औरत को शर्म की बंदिशों में बांध दिया।
भूरा: सही में अब सही समझ आ रहा है सत्तू भैया। पर भैया एक और सवाल है।
सत्तू: पूछ पूछ आज सारे संशय मिटा ले।
भूरा: कोई भी औरत अपने पति को धोखा क्यों देती है, मतलब पति को छोड़ कर किसी और से क्यों चुदवाती है।
सत्तू: तगड़ा सवाल पूछा है तूने, इसका जवाब भी तू मुझे देगा.
भूरा: मैं मैं कैसे?
सत्तू: तुझे प्यास लगी हो और तेरे घर का नल पानी नहीं दे रहा हो तो क्या करेगा?
भूरा: बाहर के नल से पानी पियूंगा।
सत्तू: समझ गया?
भूरा थोड़ा सोचता है और फिर जब उसे समझ आता है तो उसकी आंखें चौड़ी हो जाती है और चेहरे पर बड़ी मुस्कान आ जाती है।
भूरा: सही में सत्तू भाई तुम तो गुरु आदमी हो यार।
सत्तू: सही समझा, जब औरत को घर पर वैसी रगड़ाई नहीं मिलती पति से तब वो बाहर वालों के लिए टांगे खोलती है, पर सुन ऐसा नहीं है कि तब भी वो किसी से भी जाकर चुद जाएगी, बोलेगी तब भी नहीं,
भूरा: अच्छा फिर?
सत्तू: फिर क्या, यहीं मर्द की नज़र परखी होनी चाहिए, जो औरत की प्यास को समझ लेता है, और जान जाता है कि ये औरत प्यासी है, वो फिर मलाई मारता है।
भूरा सत्तू के ज्ञान से हैरत में था और उसकी एक एक बात को अच्छे से समझ रहा था।
भूरा: पर भाई हर औरत ऐसी थोड़ी होती होगी।
सत्तू: हां हर औरत ऐसी नहीं होती, पर हर औरत, एक औरत तो होती है, और औरत है तो बदन की प्यास भी है, सिर्फ समय और कोशिश की बात है कुछ जल्दी तांगे खोल देती हैं कुछ थोड़ा नखरा करती हैं।
भूरा: ये बात तो सही कही भईया।
सत्तू: और बताऊं जो जितना नखरे करती है उसको चोदने में उतना ही मज़ा आता है।
भूरा: सही में सत्तू भैया, तुम्हारे पास तो चुदाई के ज्ञान का भंडार है।
सत्तू अपनी प्रशंसा सुनकर खुश होता है और ज्यादा भूरा पर अपने जान की छींटे मारता है।
दूसरी ओर गांव में ही अरहर के खेत में एक औरत घोड़ी बनी होती है और उसके पीछे एक आदमी उसकी साड़ी को उसकी कमर पर इकट्ठी करके पकड़े हुए उसके पीछे घुटनो पर बैठ कर औरत के मोटे मोटे चूतड़ों के बीच अपना लंड सटा सट अंदर बाहर कर रहा होता है, हर झटके पर जैसे ही आदमी की जांघें औरत के चूतड़ों से टकराती हैं तो उसके चूतड़ों में लहर उठ जाती, औरत के मुंह से लगातार अह्ह अह्ह की आवाज़ आ रही थी,
पीछे से चोदता हुआ आदमी भी सिसकियां लेते हुए फुसफुसा रहा था,
आदमी: अह्ह भाभी अह्ह्ह्ह क्या गजब की चूत है तुम्हारी, जितना भी चोद लो मन नहीं भरता अह्ह।
औरत: उहम्म ह्म्म्म अह्ह देवर जी जल्दी करो अह्ह कोई आ गया तो गड़बड़ हो जाएगी।
आदमी: कोई नहीं आएगा भाभी, आज तक कोई आया क्या?
औरत: अह्ह छोटू और उसके दोस्त यहीं घूमते रहते हैं देवर जी।
आदमी: अरे भाभी तुम वो सब छोड़ो और ये बताओ ये द्वार कब खुलेगा।
आदमी ने अपनी उंगली औरत की गांड के छेद पर घुमाते हुए कहा, तो औरत और सिहरने लगी, औरत को गरम देख आदमी ने अपनी उंगली थोड़ी थूक से गीली कर गांड के अंदर सरका दी, जिससे औरत मचल पड़ी,
औरत: अह्ह वहां नहीं, बाहर निकालो अह्ह।
आदमी: ओह भाभी अह्ह्ह्ह काहे बचाती फिरती हो इतनी मस्त गांड को एक बार इसकी भी सैर कर लेने दो,
औरत: न नहीं वहां अह्ह्ह्ह तो मैने कभी उनको भी नहीं छूने दिया,
आदमी: अरे कौनसा लंड घुसाया है उंगली ही तो डाली है इतना क्यों मचल रही है मेरी रांड भाभी, अह क्या मस्त गांड है तेरी छिनाल कुत्तिया, अह्ह।
आदमी ने उंगली को लगातार अंदर बाहर करते हुए कहा साथ ही चूत में लंड लगातार अंदर बाहर हो ही रहा था, औरत भी दोहरे हमले साथ ही अपने लिए गालियां सुन कर खुद की उत्तेजना को संभाल नहीं पाई और थर्राते हुए झड़ने लगी, उसका बदन कांपने लगा और वो आगे गिर गई, लंड चूत से निकल गया, आदमी के लिए भी ये चरम का ही समय था उसके लंड ने भी पिचकारी छोड़ना शुरू कर दिया जो कि औरत के चूतड़ों को भिगाने लगी, एक के बाद एक रस की धार औरत के मोटे चूतड़ों पर गिर रही थी, जो कि खुद नीचे औंधी पड़ी हुई मचल रही थी। झड़ने के बाद दोनों ही जल्दी जल्दी से अपने अपने कपड़े सही करते हैं और पहले औरत एक तरफ से निकल जाती है और आदमी दूसरी ओर से।
दोपहर का समय हो चुका था घर के सारे मर्द बाहर निकल गए थे, नीलम भी नंदिनी के साथ कढ़ाई सीखने गई थी घर पर सिर्फ जेठानी और देवरानी साथ ही उनकी सास थी, यानी पुष्पा, सुधा और फुलवा।
फुलवा तो खाट पर लेटी हुई झटकी मार रहीं थी दोनों बहुएं पटिया पर बैठीं कपड़े धो रही थीं। पुष्पा अभी भी उसी ग्लानि और सोच में थी जो कुछ रात में उसके और उसके बेटे के बीच हुआ था, वहीं सुधा भी अपनी जेठानी को सोच में देख रही थी, सुधा को लग रहा था कि जेठानी अभी भी उनके बीच जो हुआ उस वजह से मुंह बनाए हुए हैं।
सुधा: दीदी ओ दीदी।
पुष्पा: हां? हां हां क्या हुआ?
सुधा: दीदी मुझे पता है तुम परेशान हो उस बात को लेकर पर ऐसे कब तक चलेगा। कब तक हम ऐसे ही रहेंगे?
पुष्पा: मतलब? कौन कौनसी बात?
सुधा: वही जो हमारे बीच हुआ, जानती हूं वो सही नहीं था, पर उस वजह से कब तक हम एक दूसरे से बात नहीं करेंगे, हमें जीवन भर साथ रहना है तो कुछ तो तरीका निकालना पड़ेगा ना।
सुधा ने अपनी बात रखते हुए कहा।
पुष्पा उसकी बात सुन सोचने लगी: बेचारी को लग रहा है मैं इस वजह से परेशान हूं, पर नहीं जानती कि मुझसे कितना बड़ा पाप हुआ है, पर इन सब में इसकी क्या गलती, ये सही कह रही है एक ये ही तो है जिससे अपने मन की बात कर पाती हूं, इससे भी बात नहीं होगी तो मैं सोच सोच कर बावरी हो जाऊंगी।
पुष्पा: वो बात नहीं है, मैं बस ऐसे ही चुप थी, उस बात को लेकर नहीं।
सुधा: मतलब तुम मुझसे गुस्सा नहीं हो,
पुष्पा: धत्त तुझसे भी गुस्सा हो सकती हूं मैं? तू मेरी छोटी बहन, सहेली सब कुछ है।
ये सुनकर सुधा खुश हो गई,
सुधा: अरे दीदी ये सुनकर बड़ा अच्छा लग रहा है मन कर रहा है तुम्हारी पुच्ची ले लूं।
पुष्पा: ले ले किसने रोका है।
सुधा ने आगे हो कर पुष्पा का गाल चूम लिया। और दोनों हंसने लगीं।
सुधा: अरे दीदी तुमने तो मेरे मन का भार हल्का कर दिया पता है तुमसे बात नहीं होती तो मेरा मन परेशान रहता है।
पुष्पा: मेरे साथ भी ऐसा ही है बहना।
सुधा: अच्छा दीदी एक बात पूछूं?
पुष्पा: हां बोल न।
सुधा: तो हम जो हुआ हमारे बीच उस बारे में बात कर सकते हैं या बुरा सपना समझ कर भूल जाना है।
पुष्पा: उसे भूलना इतना आसान नहीं है, वैसे सच कहूं तो भूलना ही कौन चाहता है।
इस पर दोनों तेजी से हंसने लगीं, पुष्पा को भी अपनी चिंता छोड़ कर कुछ पल सुधा के साथ हंसी के बिताना अच्छा लग रहा था, इधर फुलवा की नींद तो पहले ही खुल गई थी वो बस खाट पर लेटी हुई छप्पर को निहारते हुए बस जो कुछ हुआ था उसके बारे में सोच रही थी, तभी उसे अपनी बहुओं के खिलखिलाने की आवाज आई। यहां घर पर कोई समस्या न आए उसके लिए मैं परेशान हूं, उस चक्कर में न जाने किसी से चुदवा भी बैठी, सोच सोच कर ही मेरा सिर घूम रहा है और इन दोनों की हंसी ठिठोली चल रही है अभी बताती हूं।
फुलवा: अरे कपड़े धुल गए हों तो कोई एक इधर आओ।
सुधा: लो हम इतनी तेज हंसे क्या कि अम्मा भी उठ गई।
पुष्पा: उठ भी गईं और बुला भी रही हैं।
सुधा: जाऊं मैं?
पुष्पा: नहीं तू रुक मैं पूछ आती हूं,
पुष्पा हाथ धोकर अपनी सास के पास जाकर बोली: हां अम्मा क्या हुआ?
फुलवा: हुआ का, सिर पिरा रहा है थोड़ा मालिश कर दे।
पुष्पा: हां अम्मा अभी तेल लाई मैं।
पुष्पा जल्दी से तेल लेकर आती है और फुलवा के सिर की मालिश करने लगती है फुलवा को भी आराम मिलता है
पुष्पा: कैसा लग रहा है अम्मा?
फुलवा: आराम मिल रहा है बहुरिया, मालिश अच्छी करती है तू।
पुष्पा: तुम्हें आराम मिलना चाहिए अम्मा ।
फिर फुलवा को जैसे कुछ ध्यान आता है तो कहती है: क्यों बहुरिया जब हमने तुझसे कहा था रात को लल्ला के साथ ही सोना है तो तू नीचे क्यों सो रही थी।
इस सवाल से पुष्पा थोड़ा घबरा जाती है साथ ही उसे फिर से वो सब ध्यान आने लगता है
पुष्पा: वो अम्मा मैं साथ ही सोई थी रात भर पर खाट न बहुत छोटी है दो लोग उस पर आ ही नहीं रहे थें
फुलवा: हां खटिया छोटी तो है अब तो लल्ला भी बड़ा हो गया है ना।
पुष्पा: हां अम्मा बड़ा तो बहुत हो गया है,
पुष्पा ने ये जवाब दिया तो उसकी आंखो के सामने छोटू का कड़क लम्बा लंड आ गया और उसे फिर से अपनी चूत नम होती महसूस हुई।
फुलवा: एक काम कर बहु फिर दो चार दिन तुम दोनों कमरे में ही सो जाओ। वहां तो कोई परेशानी नहीं होगी?
पुष्पा: ठीक है अम्मा कमरे में ही सो जाएंगे।
अब पुष्पा चाहती तो मना करना था पर अपनी सास को कैसे बोलती इसलिए न चाहते हुए भी हां करनी पड़ी। खैर सिर की मालिश करके बापिस घर के कामों में लग गई दोनों देवरानी जेठानी एक दूसरे से बातें करते हुए सारे काम निपटाती गईं।
सूरज ढल रहा था और तीनों बूढ़े एक चबूतरे पर बैठे चिलम पी रहे थे,
सोमपाल: अरे बहुत दिन हो गए ताड़ी मुंह से नहीं लगी, सुभाष से मंगवानी पड़ेगी।
कुंवर पाल: अरे मंगवाने की जरूरत नहीं है घर पर रखी है।
सोमपाल:अरे फिर मंगा, कोई लड़का दिख रहा है का? अरे ये रहा राजेश ओ राजेश इधर आ।
राजेश: हां बाबा का हुआ?
कुंवरपाल: अरे घर चला जा और अपनी ताई से ताड़ी की डोलची मांग कर ले आ।
राजेश: अरे बाबा तुम भी न इस उमर में नशा करोगे।
सोमपाल: जा चुपचाप, जितना कहा जाए उतना कर बढ़ो से मुंह नहीं लड़ाते।
राजेश: तुम भी बाबा मान जाओ फिर तबीयत खराब होती है तुम्हारी।
सोमपाल: जा रहा है कि निकालू डंडा?
राजेश: जा तो रहा हूं। देखना अम्मा से कहूंगा तुम पियो आज। राजेश ये कह कर भाग जाता है।
सोमपाल: देख रहे हो नाती पोते को समझा रहा है।
कुंवरपाल: अपने बाप के बाप को ज्ञान दे रहा है।
इस पर तीनों तेजी से हंसने लगते हैं, कुछ ही देर में राजेश डोलची और तीन गिलास लेकर आ के रख देता है
राजेश: लो तुम्हारी ताड़ी, और बाबा ताई ने कहा है डोलची और गिलास खो मत देना।
कुंवरपाल: हां भाई नहीं खोएंगे, अब जा तू।
प्यारेलाल: अरे तुम दोनों ही पियो ताड़ी पीकर मेरा पेट खराब हो जाता है।
सोमपाल: अरे यार कुंवरपाल देख इसने फिर रोना शुरू कर दिया।
कुंवरपाल: कुछ नहीं होगा प्यारे पीले।
प्यारेलाल: पिछली बार पी थी तो बड़ी तकलीफ हुई थी अगले दिन तक पेट में पीर रही थी।
सोमपाल: अच्छा बस इतनी सी तकलीफ है मेरे पास पुड़िया है बाबा की, मेरे भी पेट दर्द की समस्या रहती है, घर जाकर गुनगुने पानी से पी लियो।
कुंवरपाल: ले हो गया इलाज। अब तो पियेगा?
प्यारेलाल: अब तुम बिना पिलाए मानोगे कहां?
इस पर तीनों ठहाका लगा कर हंसते हैं और फिर ताड़ी चलने लगती है, पीते पीते बातें करते हुए अंधेरा हो जाता है तब जाकर खत्म होती है।
प्यारेलाल: चलो भाई अंधेरा हो गया अब चलें घर।
सोमपाल: हां हां चलो नहीं तो तुम्हारी भाभी आज बच्चों के सामने सुनाने लग जाएगी।
कुंवरपाल: ठीक है लाओ भाई डोलची और गिलास समेत लूं नहीं तो हमें भी सुननी पड़ेगी।
इस पर तीनों एक बार फिर से हंसे।
प्यारेलाल: अरे सोमपाल, वो पुड़िया तो दो नहीं तो रात में कहीं तकलीफ हुई तो कहां भागता रहूंगा।
सोमपाल: अरे हां ये ले। खाना खा कर पानी के साथ पी लेना।
सोमपाल ने पुड़िया देते हुए कहा, प्यारेलाल पुड़िया लेकर चल दिया तो कुंवरपाल और सोमपाल भी अपने घर की ओर चल दिए, और प्यारेलाल के थोड़ा दूर जाते ही सोमपाल हंसी दबा कर हंसने लगा।
कुंवरपाल: क्या हो गया हंस क्यों रहा है?
सोमपाल: प्यारेलाल का सोच कर।
कुंवरपाल: ऐसा क्या हो गया।
सोमपाल: बेचारा पेट लिए पुड़िया खाएगा और होगा कुछ और।
कुंवरपाल: मतलब, वो पुड़िया पेट की पीर की नहीं है?
सोमपाल: अरे नहीं यार वो हल तैयार करने वाली पुड़िया है जुताई के लिए।
कुंवरपाल उसकी बात समझते हुए तेजी से हंसने लगा: अरे भेंचो, तेरी आदत नहीं सुधरी बालपन से ही उसके साथ मज़ाक करने की।
सोमपाल: अरे तुझे पता है न कितना वहमी है वो, अगर पुड़िया की नहीं बोलता न तो मन होने के बाद भी नहीं पीता।
कुंवरपाल: ये तो सही कहा धी का लंड है तो इसी लायक, पर अब रात को इसका हल तैयार हो गया तो क्या करेगा? बेचारे के पास खेत तो है नहीं।
सोमपाल: तभी तो मजा आएगा, रात भर तड़पेगा ससुरा।
कुंवरपाल: चल अब हम भी चलें खोपड़ी घूम रही है।
सोमपाल: हां हां चल सही कह रहा है।
दोनों भी अपने अपने घर की ओर बढ़ जाते हैं।
तीनों घरों में खाना बन चुका था और खाया जा चुका था, और रोज़ की तरह बिस्तर लगाए जा रहे थे, इसी बीच पुष्पा की परेशानी बढ़ती जा रही थी, कल जो कुछ हुआ उससे वो पहले से ही परेशान थी, और आज अम्मा ने कह दिया था कि वो और छोटू कमरे में सोएंगे, उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे अपने बेटे का सामना करेगी जिससे सुबह से ही वो नजर बचाती आई थी। पर मना करे तो कैसे करे। क्या कारण दे, अगर कुछ कहती है तो अम्मा के भड़कने का डर भी था,
रसोई में सबके लिए दूध निकालते हुए उसका दिमाग इसी सब में लगा हुआ था, इतने में बर्तन धो कर सुधा पीछे से आई,
सुधा: अरे कर दिया दूध दीदी?
पुष्पा: हां सबके लिए निकाल दिया है,मैं राजेश और बाबा को देकर आती हूं तू तब तक लल्ला के लिए एक गिलास में दवाई घोल दे पुड़िया में से। और अपना और नीलम का ले लियो।
सुधा: ठीक है दीदी, कहां रखी है पुड़िया?
पुष्पा: वो ऊपर डिब्बे में।
पुष्पा बता कर दोनों दूध के गिलास लेकर चबूतरे पर अपने ससुर और भतीजे को दूध देकर आती है तब तक सुधा भी अपना और नीलम का दूध का गिलास लेकर जा चुकी थी।
पुष्पा बापिस आकर ये भूल जाती है कि उसने सुधा को भी पुड़िया की दवाई घोलने को बोला था, इसलिए वो भी पुड़िया निकालती है और बचे हुए दो गिलासों में से एक गिलास में पुड़िया घोली और फिर दोनों गिलास लेकर कमरे में आ गई जहां बिस्तर पर छोटू पहले से ही लेटा हुआ था, और उत्सुक होकर अपनी मां की प्रतीक्षा कर रहा था,
पुष्पा: ले दूध पीले।
पुष्पा ने छोटू के चेहरे की ओर न देखते हुए ही उसके आगे दूध का गिलास कर दिया।
छोटू: हां मा लाओ,
छोटू ने बिल्कुल आज्ञाकारी बच्चे की तरह दूध का गिलास लिया और तुरंत अपने मुंह में लगाकर दूध गटकने लगा, जो कि दूध पीने के नाम पर नाटक करने वाले छोटू के लिए अलग बात थी, पर पुष्पा का ध्यान अभी कहीं और ही था इसलिए उसका ध्यान इस बात पर नहीं गया। और वो भी एक गिलास से दूध पीने लगी।
छोटू के मन में बहुत से सवाल थे, वो आज की रात के लिए बहुत उत्साहित और उत्तेजना था, एक तो कल रात जो हुआ वो सब फिर शाम को उसकी अम्मा ने ये और कहा कि वो और उसकी मां कमरे में सोएंगे, ये सुन कर तो उसका मन खुशी से छलांगें मार रहा था, मन में हर तरह के सपने सजा रहा था कि क्या क्या होगा कैसे कैसे होगा, पर मन की बात को प्रत्यक्ष में पेश करना बहुत कठिन होता है और वैसा ही छोटू के साथ हो रहा था, उसने तो सोचा था मां के आते ही उससे चिपक जाएगा, पर इतना सब होने के बाद भी वो उसकी मां थी और एक झिझक एक डर उसे अब भी अपनी मां से था खासकर सुबह से जैसे वो पेश आ रही थी तो उसे देखकर तो छोटू ने स्वयं को रोकना ही ठीक समझा।
पुष्पा ने भी अपना दूध का गिलास खाली कर दिया और एक ओर रख दिया और फिर बिना छोटू की ओर देखे लेट गई और अपने हाथ को अपने माथे पर रख कर अपना चेहरा ढंक लिया, छोटू ने अपनी मां को लेटते देखा फिर उसकी नज़र खुले हुए किवाड़ों पर गई, वो सोचने लगा कि ऐसे खुले किवाड़ रहे तो कुछ होने से रहा, पर ऐसे कैसे बंद करूं? पर तभी उसके मन में एक योजना आई और वो बिस्तर से खड़ा हुआ और फिर कमरे से बाहर निकल गया, पुष्पा ने भी छोटू को कमरे से जाते देखा तो सोचने लगी ये क्यों बाहर गया है? चाहे जिस लिए भी गया हो, पर आज मुझे कुछ भी गलत नहीं होने देना है, आज स्वयं पर पूरा नियंत्रण रखना है कल जो पाप हुआ उसका पश्चाताप करने का यही तरीका है।
जारी रहेगी।