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धन्यवाद भाईRomanchak. Pratiksha agle rasprad update ki
धन्यवाद भाईRomanchak. Pratiksha agle rasprad update ki
धन्यवाद मित्रRomanchak. Pratiksha agle rasprad update
बहुत ही शानदार लाजवाब और कामुकता से भरा जबरदस्त मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया ये नाव में बैठकर बाजार गये सुभाष और झुमरी में कुछ होगा जो उनके बीच पहलें से ही चल रहा हैं और किसी को भी पता नहीं है क्या सत्तु को पता चलेगारानी: अरे मां क्या हुआ, उठ जाओ सुबह हो गई, देखो कबसे आवाज लगा रही हूं।
रत्ना: हां आवाज क्या,
रत्ना को तब समझ आता है वो सपना देख रही थी।
रानी: लो मां चाय पिलो नींद खुल जाएगी
रत्ना: हां दे।
वो उठ कर चाय पीते हुए अपने सपनो के बारे में सोचने लगी।
अध्याय 23 रत्ना चाय पीते हुए अपने अजीब और अश्लील सपनों के बारे में सोच रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसे सपने वो भी सुबह सुबह उसने क्यों देखे, उसका अंदविश्वासी स्वभाव उसे कुछ गलत की ओर इशारा कर रहा था वो इन सपनों को किसी अनहोनी का संकेत मान रही थी, और उससे कैसे बचा जाए वो सोच रही थी।
चाय खत्म कर वो बिस्तर से उठी और अपना ध्यान घर के कामों में लगाने की कोशिश करने लगी।
दूसरी ओर नाव वाले रात को ही निकल गए थे और भोर होते होते वो शहर के करीब पहुंच गए थे, सुभाष की नाव में थोड़ा सामान और सब आदमी लोग थे वहीं सत्तू की नाव में भी सब्जियां थी साथ ही सत्तू, उसकी मां झुमरी, राजेश और छोटू थे, राजेश और सत्तू मिलकर पतवार चला रहे थे वहीं छोटू नाव के किनारे लेटकर सो रहा था,
सत्तू: इसे देखो हमारी बाजू दुख गई चप्पू चलाते हुए और ये सेठ जी मजे की नींद ले रहे हैं।
रजनी: अरे सोने दे ना अब बस पहुंच ही गई।
राजेश: तभी तो ताई इसे उठाना पड़ेगा नहीं तो आलसी सोता ही रहेगा। ए छोटू उठ,
सत्तू: ये ऐसे नहीं उठेगा,
सत्तू ने फिर थोड़ा पानी हाथ में लिया और छोटू के ऊपर फेंका तो छोटू हड़बड़ा के उठा उसका चेहरा देख सत्तू और राजेश हंसने लगे।
कुछ ही देर में नाव शहर पहुंच चुकी थी, उन्हें अच्छे से बांध कर सारा सामान उतारा गया, अस्थियों को सिराने वाले जो लोग थे वो वहीं से बस अड्डे की ओर निकल गए बाकी लोग सब्जियों को बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी में भरकर मंडी की ओर चल पड़े,
मंडी में पहुंच कर सामान उतार कर अपनी अपनी दुकान सजाई गई, और फिर तब तक ग्राहकों का आना शुरू हो गया, सत्तू ने अपनी मां को दुकान पर बैठा दिया था और वो सब्जी तोलना, कट्टे खोलना आदि काम कर रहा था, वहीं सुभाष अपनी दुकान पर था और छोटू और राजेश दूसरे काम कर रहे थे।
सत्तू की दुकान पर थोड़ी भीड़ ज्यादा लग रही थी, कारण थी झुमरी, लोग झुमरी के भरे कामुक बदन को देख उसकी दुकान से सब्जियां खरीद रहे थे।
सत्तू भी खूब मेहनत कर जल्दी जल्दी अपना काम कर रहा था, दूसरी ओर सुभाष की भी अच्छी बिक्री हो रही थी, छोटू और राजेश उसका पूरा साथ दे रहे थे। बीच बीच में छुपकर सुभाष और झुमरी की आंख मिचौली भी चल रही थी, दोनों के बीच बने इस अनैतिक संबंध को करीब 2 वर्ष हो चले थे, सुभाष और झुमरी के पति अच्छे मित्र थे, झुमरी के पति के देहांत के बाद सुभाष ने जितनी हो सकी थी उतनी मदद की थी झुमरी और सत्तू की, झुमरी को भी धीरे धीरे सुभाष का सहारा भाने लगा था, झुमरी को जीवन में मर्द की कमी महसूस होने लगी तो उसने सबसे पहले सुभाष को खड़ा पाया और फिर धीरे धीरे दोनों करीब आने लगे और फिर एक दिन दोनों के बदन भी मिल गए। इस राज को दोनों के अलावा और कोई नहीं जानता था।
दूसरी ओर गांव में संजय खेत में पानी लगा रहा था सुबह से ही बादल छाए हुए थे, दोपहर का समय हो चला था, घर पर सुधा और पुष्पा ही थीं फुलवा सो रही थी,
सुधा: अरे जीजी किसी बालक को बुलाना पड़ेगा इनके लिए खाना पहुंचाना है।
पुष्पा: अरे हां, देवर जी भूखे होंगे,
सुधा: मैं देखती हूं भूरा या लल्लू हो तो बुला लाती हूं।
पुष्पा: अरे रहने दे जब तक उन्हें बुलाने जाएगी तब तक मैं ही दे आऊंगी। वैसे भी बादल हो रहे हैं।
सुधा: कह तो सही रही हो जीजी, तुम ही चली जाओ।
पुष्पा तुरंत एक पोटली में खाना बांधती है और घर से निकल जाती है आधे से ज्यादा रास्ता पर कर जाती है अब खेत बस दो खेत पार ही था लेकिन तभी अचानक बारिश आ जाती है बड़ी बड़ी बूंदें उसे भिगाने लगती हैं और कुछ ही कदम में वो भीग जाती है,
पुष्पा: अरे लो पूरी भीग गई बारिश भी थोड़ी देर बाद नहीं हो सकती थी क्या?
उसकी साड़ी पूरी गीली होकर उसके बदन से चिपक जाती है और वो किसी तरह से कपड़े और पोटली संभालते हुए मेढ़ पर आगे बढ़ती जाती है,
खेत पर पहुंच कर उसे संजय दिखता है जो, फावड़े से मेड काट रहा था, वो भी पूरा गीला था और सिर्फ अपने निक्कर को पहने हुए था, पुष्पा उसे देख उसकी ओर बढ़ जाती है, पुष्पा पास पहुंचने वाली होती है तो संजय उसे देखता है,
संजय: अरे भाभी तुम यहां क्या कर रही हो,
संजय उसे देखते हुए कहता है, पूरा बदन तर है, पल्लू गीला होकर एक ओर चिपक गया है जिससे उसका मांसल गोरा पेट और गहरी नाभी, और ब्लाउज़ के बीच से चूचियों की दरार दिख रही थी,
पुष्पा: अरे तुम्हारा खाना लेकर आई थी, पर रास्ते में ही मुई बारिश आ गई।
पुष्पा पास आते हुए कहती है, और फिर संजय के बगल की मेढ़ पर धम से बैठ कर हांफने लगती है,
संजय: अरे भाभी तुम भी न क्या ज़रूरत थी, किसी बच्चे के हाथों भेज देती या नहीं भी खाता तो क्या हो जाता आज।
संजय अपनी भाभी को देखते हुए बोला पर उसकी नजरें अपनी भाभी के बदन पर फिसल कर अपने आप जा रहीं थीं, पुष्पा का गोरा पेट, ब्लाउज में कसी हुई बड़ी बड़ी चूचियां, साड़ी में आकार दिखाती मोटी जांघें संजय के बदन में बारिश में भी गर्मी बढ़ाने लगे। वो ये तो हमेशा से देखता आया था कि उसकी भाभी सुंदर और कामुक हैं और अपनी शादी से पहले कई बार संजय ने पुष्पा के बारे में सोच कर हिलाया भी था पर शादी के बाद से उसने इन खयालों को मन से निकाल दिया था। क्योंकि उसे रिश्तों की और सम्मान की चिंता थी। पर आज पुष्पा को यूं देख उसके खयाल बापिस आ रहे थे।
पुष्पा: अरे नहीं सुबह से लगे हुए हो, भूख तो लगी होगी, और बादल हो रहे थे तो मैने सोचा मैं ही जल्दी दे आती हूं इसलिए आ गई।
संजय चलो कोई नहीं तुम उधर कोने के पेड़ के पास बैठो भाभी मैं अभी आया, संजय जैसे ही मुड़ता है, तो चौंक जाता है,
संजय: अरे तेरी, भाभी तुम यहीं रुकना और इस मेड को रोकना आगे मेढ़ कट गई है मैं बांधता हूं पर भाभी ध्यान से यहां से पानी न जा पाए आगे नहीं तो दूसरी फसल खराब हो जाएगी।
संजय ने आगे भागते हुए कहा, पुष्पा तुंरत फावड़े से मिट्टी दबाने लगी ताकि पानी उसे काट न सके, पर पानी का दबाव बढ़ता जा रहा था और मिट्टी कटती जा रही थी, पुष्पा ने फावड़ा छोड़ और हाथों से मिट्टी लगाने लगी पर उसके लगाते ही पानी तुरंत उसे बहा ले जाता ओर अगले पल ही सारी मिट्टी बह चली और पानी आगे बढ़ने लगा, पुष्पा ने सोचा देवर जी ने तो कहा था कि पानी आगे न जा पाए, अब क्या करूं, उसके दिमाग में एक उपाय आया और वो तुरंत आगे होकर खुद पानी के रास्ते में बैठ गई, उसके चौड़े चूतड़ों और भरे बदन ने रस्ते को घेर लिया और पानी रुक गया,
पुष्पा ने मन ही मन सोचा चलो पानी तो रुका कम से कम, थोड़ी देर में ही संजय आया और उसने पुष्पा को खुद को मेढ़ के बीच बैठे देखा तो हंसने लगा।
संजय: अरे भाभी तुम तो खुद ही बांध बन गई,
पुष्पा: क्या करती पानी रुक ही नहीं रहा था, तुमने ही कहा था पानी आगे न जा पाए।
संजय: चलो अच्छा किया अब उठ जाओ मैने आगे मेढ़ बांध दी है,
पुष्पा उठती है और मेढ़ से निकलने के लिए उसके किनारे पर पैर रखती है, पर उसका पैर फिसल जाता है और वो आगे की ओर गिरती है संजय उसे पकड़ने के लिए आगे कदम बढ़ाता है पर उसका पैर भी फिसल जाता है, अगले ही पल दोनों खेत में गिर जाते हैं, संजय नीचे होता है पुष्पा उसके ऊपर, दोनों के चेहरे बिल्कुल एक दूसरे के सामने, संजय के हाथ पुष्पा की नंगी कमर पर पुष्पा का बदन संजय के नंगे बदन पर, कुछ पल यूं ही रहता है दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हैं, पुष्पा को अपने देवर के बदन से चिपक कर बारिश में भी अपने बदन में गर्मी का एहसास होता है, संजय की भी उत्तेजना बढ़ने लगती है अपनी भाभी के बदन के एहसास से,
पुष्पा को जैसे होश आता है वो संजय के ऊपर से उठती है, दोनों ही थोड़ा असहज महसूस करते हैं
तुम्हारी साड़ी और कपड़े सब पर कीचड़ लग गया भाभी, संजय उठते हुए कहता है,
पुष्पा: देख लो सब तुम्हारे लिए खाना लाने का फल है, पुष्पा थोड़ा हंसकर असहजता को हटाने का प्रयास करती है,
संजय: इस मेहनत का फल तुम्हें जरूर मिलेगा, चलो मैं खाना खा लूंगा तुम अब घर जाकर नहा लेना नहीं तो बेकार में जाड़ा लग जाएगा।
संजय हंसते हुए मुड़ कर आगे की ओर बढ़ते हुए कहता है, और पोटली लेकर चलने लगता है,
पुष्पा: हां अब मेरे भी बस की नहीं है यहां रुकना।
पुष्पा हंसते हुए कहती है और घर की ओर बढ़ने लगती है,
संजय कोने वाले पेड़ की ओर जाने लगता है ताकि उसके नीचे बैठ कर कुछ खा सके, की तभी उसे अचानक से पुष्पा की चीख सुनाई देती है, वो पोटली और फावड़े को छोड़ भागता है अपने खेत के कोने में जाकर देखता है तो उसकी आँखें चौड़ी हो जाती हैं वो देखता है उसकी भाभी नीचे जमीन पर गिरी हुई है पूरी कीचड़ में सनी हुई, और दर्द की आहें भर रही है और फिर उठने की कोशिश करती है।
संजय एक पल को तो बस ज्यों का त्यों रह जाता है, पर फिर तुरंत आगे बढ़ता है और पुष्पा को सहारा देकर उठाया। संजय का एक हाथ पुष्पा के हाथ पर था तो दूसरा उसके मखमली पेट पर।
संजय: अरे भाभी आराम से, लगी तो नहीं?
पुष्पा: नहीं ज़्यादा तो नहीं बस फिसल गई इसलिए चीख निकल गई।
संजय: अच्छा हुआ कि लगी नहीं, आओ चलो मेढ़ पर पानी से साफ कर लो खुद को,
संजय ने उसे आगे सहारा देते हुए कहा, उसका हाथ पुष्पा के मखमली पेट पर था और संजय को वो एहसास बहुत अच्छा लग रहा था उसकी उत्तेजना बढ़ रही थी उसका लंड भी सख़्त होने लगा था, पुष्पा को भी देवर के गठीले बदन का एहसास उत्तेजित कर रहा था, कुछ पल बाद दोनों ही मेढ़ के पास थे, संजय उसे सहारा देकर मेढ़ के बीच घुसा देता है, पुष्पा अपनी साड़ी और पेटीकोट को घुटनों तक उठाकर वहीं घुटनों पर बैठ जाती है और खुद को धोने लगती है,
संजय खड़ा होकर अपनी भाभी को देखता है, पुष्पा के गदराए बदन को, उसके मखमली मांसल पेट को, जिस पर वो पानी डालकर उसे साफ करती है, उसकी गोल गहरी कामुक नाभी को, ब्लाउज़ में से झांकता चूचियों की लकीर को, ये सब देख उसका लंड तन जाता है।
पुष्पा खुद को साफ कर लेती है और फिर बैठे हुए ही संजय की ओर देखती है और पाती है वो भी उसे टकटकी लगाए देख रहा है
पुष्पा को उसका देखना थोड़ा अलग लगता है, कुछ देर तक दोनों ही एक दूसरे की आंखों में देखते रहते हैं फिर पुष्पा खड़ी होती है, और संजय उसे हाथ देकर मेढ़ से बाहर निकालता है, दोनों कुछ नहीं बोलते, पुष्पा नीचे उतर कर अपने पल्लू को सही करती है और सीने पर डालती है, दोनों आगे चलने लगते हैं दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी है, चलते हुए पुष्पा का पैर एक बार फिर हल्का सा फिसलता है पर संजय तुरंत उसे पकड़ लेता है, संजय के हाथ उसके पेट और पीठ पर आ जाते हैं।
संजय: भाभी संभल के।
संजय उसकी आंखों में देखते हुए कहता है, पुष्पा भी उसकी आंखों में देख सिर हिलाती है, संजय अभी भी उसे ऐसे ही पकड़े हुए है, उसका हाथ अभी पुष्पा के पेट पर है, संजय को अचानक मन ही मन कुछ विचार आता है और वो अपना चेहरा आगे कर पुष्पा के होठों को अपने होंठों में भर लेता है और चूसने लगता है।
पुष्पा को संजय के इस कदम से झटका लगता है वो पीछे होने की कौशिश करती है पर संजय के हाथ उसकी पीठ और पेट पर कस जाते हैं एक हाथ उसके पेट की मखमली त्वचा को सहलाने लगता है, पुष्पा जो काफी दिनों से प्यासी थी, संजय की लगाई हुई इस चिंगारी से सुलगने लगती है और फिर अगले ही पल संजय का साथ देने लगती है, दोनों एक दूसरे के होंठो को चूसने लगते हैं संजय के हाथ पुष्पा की पीठ और पेट को मसलने लगते हैं, कुछ देर होंठो को चूसने के बाद दोनों के होंठ अलग होते हैं पर आग बढ़ चुकी होती है, संजय उत्तेजना से पागल हो कर पुष्पा के बदन को चूमने लगता है, पुष्पा भी उत्तेजना में सिहरने लगती है,
पुष्पा: आह देवर जी ओह हम्म
संजय होंठो के बाद चेहरे को और फिर गर्दन को चूमते हुए नीचे बढ़ता है, वो पल्लू को सीने से हटा कर नीचे कर देता है, और सीने को चूमने लगता है, फिर ब्लाउज़ के ऊपर से ही चूचियों को चूमते हुए नीचे बैठ जाता है, और फिर पुष्पा के मखमली पेट को चाटने चूमने लगता है और पुष्पा इस एहसास इस गर्मी से पिघलने लगती हैं,
पुष्पा: ओह आह देवर जीईईईई ओह।
संजय भी खुद को रोक नहीं पा रहा था पुष्पा के मखमली बदन का स्वाद लेने से, पुष्पा की चूचियां उत्तेजित होकर ब्लाउज में तन गई थीं और ब्लाउज के ऊपर से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहीं थी,
संजय ने पुष्पा का पेट और कमर मसलते और चूमते हुए अपने हाथ ऊपर बढ़ाए और पुष्पा के ब्लाउज़ पर रख दिए और फिर धीरे से एक हुक खोल दिया और अगला खोलने लगा कि दोनों को दूसरे खेतों से आवाज़ सी आई किसी की तो दोनों तुरंत दूर हो गए, पुष्पा ने तुरंत अपना पल्लू ठीक से डाला और संजय भी इधर उधर देखने लगा, पुष्पा फिर तुरंत खेत से बिना कुछ बोले चल दी,
रास्ते भर पुष्पा के मन में जो कुछ हुआ उसके खयाल चल रहे थे उसकी चूत नम थी उसका बदन उत्तेजना में जल रहा था पर साथ ही वो जो हुआ उसके परिणाम और सही गलत सोच रही थी,
एक मन कह रहा था अच्छा हुआ जो वो लोग रुक गए और पाप नहीं हुआ, दूसरा मन कहता अपने बेटे से चुदने से बड़ा पाप क्या होगा, उसके मन में द्वंद चल रहा था। जल्दी ही वो घर पहुंच गई तो सुधा ने उसे गीला देखा और बोली: अरे जीजी तुम तो पूरी तर हो चलो जल्दी से खुद को सुखा लो नहीं तो बीमार पड़ जाओगी, चलो मैं सूखे कपड़े निकलती हूं तब तक तुम ये सब उतार दो, सुधा ने उसकी साथ कमरे में चलते हुए कहा, घर पर सिर्फ वो दोनों ही थीं, नंदिनी सिलाई सीखने गई थी और फुलवा रत्ना के यहां थी।
पुष्पा ने जल्दी से अपने गीले कपड़े उतारे और पूरी नंगी हो गई, और खुद को सूखे अंगोछे से पोंछने लगी, सुधा कपड़े निकाल कर अपनी जेठानी के नंगे बदन को देखने लगी, उसे देख उसे भी कुछ कुछ होने लगा,
पुष्पा ने भी सुधा को ऐसे देखते हुए पाया और बोली: क्या देख रही है, ऐसे?
सुधा के मन में भी न जाने क्या आया कि उसने भी आगे बढ़ कर पुष्पा के होंठो को चूसना शुरू कर दिया, पुष्पा हैरान रह गई ये सब बिलकुल वैसे ही हुआ जैसे अभी उसके और सुधा के बीच खेत में हुआ था, पहले पति और अब पत्नी, पुष्पा के मन में कई खयाल थे पर अभी सुधा के चुम्बन ने उन खयालों पर ध्यान ही नहीं देने दिया और वो भी सुधा के होंठों को उसका साथ देते हुए चूसने लगी।
सुधा के हाथ जेठानी के नंगे और हल्के गीले बदन पर फिरने लगे, उनके होंठ आपस में जुड़े हुए थे, पुष्पा भी अब जोश में थी और होंठों को चूसते हुए उसने सुधा के पल्लू को नीचे गिरा कर उसके ब्लाउज़ के हुक खोल दिए थे, कुछ पल बाद दोनों के होंठ अलग हुए पर गर्मी कम नहीं थी, होंठ अलग होते ही पुष्पा ने सुधा के ब्लाउज़ को उतार कर अलग फेंक दिया अब सुधा ऊपर से नंगी थी पर सुधा ने खुद अपनी साड़ी भी उतार दी उसके बदन पर बस एक पेटीकोट रह गया, सुधा पुष्पा के पीछे आई और पीछे से उसके चूचों को पकड़ कर मसलने लगी उनसे खेलने लगी,
पुष्पा के मुंह से सिसकियां निकलने लगी। सुधा चूचियों को मसलते हुए फिर से पुष्पा के आगे आई और फिर से दोनों के होंठ मिले,
दोनों फिर से एक दूसरे के होंठो को चूमने लगी और फिर थोड़ी देर बाद अलग होकर सुधा नीचे सरकने लगी और पुष्पा की मोटी चूचियों को मसलने और चूसने लगी,
पुष्पा: अह सुधा आह, ओह अच्छा लग रहा है,
पुष्पा उसके सिर को सहलाते हुए बोली,
सुधा तो भूखों की तरह अपनी जेठानी की चूचियों को चूस रही थी।
और पुष्पा जिसकी प्यास पहले ही बड़ी हुई थी और बढ़ रही थी।
चूचियों को जी भर के चूसने के बाद सुधा और नीचे सरकी और पुष्पा के पेट को चाटने लगी, पुष्पा को यकीन नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले यही पेट उसका पति चाट रहा था और अब पत्नी चाट रही है, ये सोच कर उसकी उत्तेजना बढ़ रही थी, वहीं सुधा तो चाहती थी कि पुष्पा के बदन का कोई भी हिस्सा न रह जाए जिसे वो चाट न पाए, पुष्पा की नाभी में जीभ घुसाकर चूसने में सुधा को जैसे एक असीम आनंद मिला वहीं पुष्पा का बदन कांप कर रह गया,
सुधा: जीजी तुम्हारा बदन तो मक्खन है, इतना स्वाद है कि मन करता है चाटते जाओ,
सुधा ने उसकी नाभि से जीभ हटाते हुए कहा।
पुष्पा: आह तो खा जा ना आह,
पुष्पा ने अपनी टांगों को आपस में घिसते हुए कहा उसकी चूत गरम हो कर रस बहा रही थी, साथ ही बहुत खुजा रही थी अब उसकी चूत को भी कुछ सुकून चाहिए था, पुष्पा के लिए ये सहना मुश्किल होता जा रहा था, इसलिए वो अनजाने ही सुधा के सिर को पकड़कर नीचे अपनी टांगों के बीच ले जाने लगी, कुछ पल बाद सुधा का मुंह उसकी जेठानी की गीली चूत सामने था, सुधा जेठानी की चूत को ध्यान से देखने लगी और उसे चूत का गीलापन, उसके होंठों की चिकना हट अच्छी लगी, इससे आगे वो कुछ सोचती या करती, पुष्पा ने उसका मुंह अपनी चूत में घुसा दिया या यूं कहें कि अपनी चूत को सुधा के होंठों पर घिसने लगी। सुधा को अचानक झटका लगा उसके होंठों पर उसकी जेठानी की चूत का स्वाद आ रहा था, पर उसे जैसे इससे कोई परेशानी नहीं थी, जितनी गर्मी पुष्पा में थी उतनी ही सुधा में भी थी, सुधा ने भी स्वाभाविक ही अपनी जीभ निकाली और अपनी जेठानी की चूत चाटने लगी,
पुष्पा तो मानो जन्नत में पहुंच गई उसकी कमर और बदन मचल रहा था, वहीं सुधा को अपनी जेठानी की चूत मानो रस से भरा हुआ कोई फल लग रही थी जिस तरह वो उसे चाट रही थी,
पुष्पा: आह सुधा आह ऐसे ही चूस, खा जा मेरी चूत को, आह बहुत खुजली है इसमें।
पुष्पा की बातों ने सुधा का उत्साह और बढ़ा दिया और सुधा और लगन से अपनी जेठानी की सेवा करने लगी। और सेवा का फल भी उसे रस के रूप में जल्दी ही अपने मुंह में प्राप्त हुआ, पर सुधा उसे भी मलाई मान कर गटक गई, सुधा आज खुद को भी हैरान कर रही थी उसे भी नहीं पता था कि वो अंदर से इतनी प्यासी और उत्तेजना में जल रही है कि अपनी जेठानी की चूत से निकला रस भी उसने पी लिया,
पुष्पा बेजान सी होकर पीछे लेटी हुई थी और तेज तेज हाफ रही थी, सुधा भी उसके बगल में लेट गई, कुछ पल बाद पुष्पा को होश आया तो उसने बगल में लेटी अपनी देवरानी को देखा और उसे याद आया कि उसने कितनी अच्छी तरह अभी उसकी सेवा की थी, पुष्पा ने आगे बढ़ कर सुधा के होंठों को चूम लिया और बोली: आह आज तक ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ तूने तो मेरी जान ही निकाल दी थी।
सुधा: ऐसे कैसे जीजी, तुम्हारी जान में तो हमारी जान बसती है,
पुष्पा: अब मेरी बारी मैं भी तो स्वाद चख कर देखूं अपनी देवरानी का,
ये सुन कर सुधा के चेहरे की मुस्कान और बढ़ी हो गई, और उसके कुछ देर बाद ही
पुष्पा की जीभ सुधा की चूत पर चल रही थी या कहूं कि सुधा अपनी चूत को पुष्पा के मुंह पर घुस रही थी। और कुछ ही पलों में झड़ रही थी, उसका बदन अकड़ा और फिर वो भी थक कर नीचे गिर गई, तभी उन्हें दरवाज़े पर दस्तक सुनाई दी।
कुछ देर बाद दोनों आंगन में थी और बिल्कुल साधारण संस्कारी बहुएं लग रही थीं, फुलवा और नंदिनी घर आ चुके थे, सुधा चूल्हे पर चाय चढ़ा रही थी तो फुलवा रात के लिए चावल बीन रही थी, चाय लेकर सुधा भी पुष्पा के साथ बैठ गई दोनों के बीच एक रहस्य भरी मुस्कान तैर गई,
पुष्पा: क्यों मुस्कुरा रही हो देवरानी जी।
सुधा: कुछ सोच कर जेठानी जी?
पुष्पा: क्या सोच कर?
सुधा: यही कि इस चाय का स्वाद तुम्हारे रस जैसा नहीं है,
ये सुन पुष्पा शर्मा गई और बोली: वैसे ये बात तो मैं तेरे लिए भी कह सकती हूं।
पुष्पा ने चाय का घूंट भरते हुए कहा,
सुधा: अच्छा जीजी एक बात थोड़ी अजीब है।
पुष्पा: क्या?
सुधा: वैसे ये चूत को मूत्र द्वार कहते हैं और सब इसे गंदी और गलत चीज मानते हैं, पर आज चाटते हुए मुझे एक पल को भी ऐसा नहीं लगा कि मैं कुछ गलत या गंदा कर रहीं हूं।
पुष्पा: हां मेरे मन में भी एक भी बार जरा भी नहीं आया ये, शायद ये सब गलत हो।
सुधा: अब चाहे गलत हो या सही मैं तो तुम्हारा स्वाद चखती रहूंगी।
पुष्पा: तू भी मुझसे बच के नहीं रहेगी।
दोनों आपस में फुसफुसाते हुए खिल खिला रही थी।
दिन में लल्लू आंगन में बैठ कर रात के बारे में सोच रहा था कि कैसे उसने अपने मां पापा की चुदाई देखी थी साथ ही अपनी बहन को भी देखते हुए पकड़ा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इस बारे में अपनी बहन से बात करे जिससे उसे कुछ फायदा हो,
इतने में उसकी मां लता बाहर से आई और बोली: लल्ला बैठा है देख नहीं रहा बूंदे पड़ रही हैं कपड़े उतार ले,
और खुद आंगन में सूख रहे कपड़े उतारने लगती है, कपड़े उतारते हुए लता का पल्लू एक ओर को सरक जाता है जिससे उसका मांसल गोरा पेट उसकी नाभी और ब्लाउज़ में बंद बड़ी बड़ी चूचियां लल्लू के सामने आ जाती हैं,
लल्लू का लंड ये नज़ारा देख कड़क होने लगता है,
लता: अब बैठा क्या देख रहा है ले ये कपड़े ले जा और रख दे कमरे में,
लल्लू उठ कर जल्दी से कपड़े लेता है, और कमरे के अंदर जाता है दौड़ कर रख आता है, और बाहर आकर देखता है उसकी मां अभी भी आंगन में खड़ी है।
लल्लू: अरे मां क्यों वहां क्यों खड़ी हो भीग जाओगी आओ अंदर।
लता: अरे कितनी अच्छी बारिश हो रही है आज नहाऊंगी मैं तो बारिश में,
लल्लू: अरे वाह मां, फिर तो मैं भी नहाऊंगा,
लल्लू भी अपनी कमीज़ उतारते हुए बोला, लता ने भी अपनी साड़ी को खोलना शुरू कर दिया था और कुछ ही पलों में एक ओर टांग दिया, अब लता लल्लू के सामने पेटीकोट और ब्लाउज़ में खड़ी थी,
लता या गांव की कोई भी औरत ब्रा तो कभी कभी ही पहनती थी तो उस कारण से उसका ब्लाउज़ गीला होकर हल्का पारदर्शी हो गया था और उसकी चूचियों की हल्की झलक दिखा रहा था, ये देख तो लल्लू का और बुरा हाल हो रहा था।
वो सोचने लगा इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा मां के करीब आने का अभी घर पर भी कोई नहीं है, सिवाय हम दोनों के, और जब तक बारिश होगी कोई आने से भी रहा, ये सोचते हुए और बस एक निक्कर में लल्लू भी आंगन में जाकर बारिश में भीगने लगा, पर उसकी नजर अपनी मां के बदन पर बनी हुई थी,
लल्लू: मज़ा आ रहा है न मां बारिश में नहा कर।
लता: हां लल्ला मुझे बारिश हमेशा से ही पसंद रही है, बचपन में तो मैं बारिश में भीगते हुए खूब नाचती थी,
लल्लू: सच में मां तुम्हे इतना मज़ा आता है बारिश में?
लता: हां सच्ची।
लल्लू: तो मां अब भी नाचो न देखो कितनी अच्छी बारिश है।
लता: अभी न बाबा न अब इस उम्र में नाचना नहीं होगा, किसी ने देखा तो गांव भर में मजाक उड़ जाएगा।
लल्लू: अरे मां कौन उड़ाएगा मजाक हमारे अलावा कोई है यहां, और नाचने का उम्र से क्या लेना देना।
लता: अरे नहीं फिर भी अब नाचना नहीं होगा।
लल्लू: अरे क्यों नहीं होगा, मां नाचो न मैं भी साथ दूंगा तुम्हारा, नाचो ना, नाचो न।
लल्लू जिद करते हुए कहता है साथ ही लता जी कमर और पेट पकड़ कर उसे हिलाने लगता है।
लता: अरे लल्ला गिर जाऊंगी मैं आराम से तू तो बिल्कुल बावरा हो गया है अच्छा छोड़ मुझे करती हूं।
लल्लू अब भी उसे पकड़े हुए था और न चाहते हुए भी उसे छोड़ना पड़ता है।
लता भी अपने बचपन की याद करके धीरे धीरे बदन हिलाने लगती है उसे भी ये सब अच्छा लग रहा था भले ही लल्लू की ज़िद की वजह से पर वो अपने बचपन की याद को ताज़ा कर पा रही थी, वहीं लल्लू को अपनी मां का थिरकता बदन देख एक अलग ही आनंद आ रहा था, उसका लंड उसके निक्कर में कड़क हो चुका था जिसे उसने नीचे करके किसी तरह से छुपाया हुआ था
और लंड कड़क होने का कारण भी था उसकी मां अपने भरे बदन को जो पूरी तरह गीला था उसे उसके सामने थिरका रही थी,
लल्लू को लग रहा था जैसे वो किसी भरे बदन की फिल्मी हीरोइन को नाचते देख रहा है, सबसे बड़ी बात ये हीरोइन उसकी मां थी जिसे सिर्फ अभी वो ही देख रहा था, लल्लू को ये सोच बहुत अच्छा लग रहा था, वहीं लता लगातार नाच रही थी
लल्लू को अपनी मां का ये रूप बहुत भा रहा था कुछ देर और यूं ही नाचने के बाद लता हंसते हुए रुक कर बैठ गई।
लता: आह मैं तो थक गई, आखिर तूने अपनी ज़िद पूरी करवा ही ली।
लल्लू: जिद तो पूरी कराई मां। पर ये बताओ तुम्हे मज़ा आया कि नहीं?
लता: सच कहूं तो मज़ा तो आया, बचपन याद आ गया।
लल्लू: इसीलिए तो ज़िद की थी मां,
लता: हाय मेरा लल्ला कितनी फिकर करता है अपनी मां की, पर अब चल, और कपड़े बदल लेते हैं नहीं तो तबियत बिगड़ जाएगी
लल्लू: क्या इतनी जल्दी? थोड़ी देर और रुकते हैं न.
लता: हां अब बहुत हो गया, मैने तेरी बात मानी अब तू मेरी मान।
लल्लू: ठीक है मां चलते हैं, छप्पर के अंदर आकर लता लल्लू से कहती है तू ले ये अंगोछे से खुद को पौंछ कर साफ कर मैं तब तक कमरे से तेरी पेंट निकाल कर देती हूं।
लल्लू: ठीक है मां,
लता कमरे में चली जाती है और लल्लू अंगोछे से अपने बदन को पोंछने लगता है, वो अपने गीले निक्कर को उतारता है जिसके उतरते ही उसका खड़ा लंड उछल कर बाहर आ जाता है वो अपने निक्कर को पैरों से निकाल कर उतार देता है,
उसी समय लता उसके लिए सूखा पेंट लेकर कमरे के दरवाज़े तक आई थी, और उसकी नजर अंदर से ही बाहर पड़ती है सबसे पहले अपने बेटे के कड़क लंड पर, लता लल्लू का कड़क लंड देख कर ज्यों का त्यों रुक जाती है, वो देखती है उसके बेटे का लंड कितना मोटा और कड़क है, हाय मेरा लल्ला कितना बड़ा हो गया है बेटा भी और उसका लंड भी, उसे देख उसे अपनी जांघों के बीच एक हल्की सी खुजली महसूस होती है।
पर वो खुद के सिर को झटकती है और पीछे हो जाती है और आवाज़ देती है: लल्लू ले लल्ला अपनी पेंट,
और फिर कुछ पल बाद लल्लू की आवाज़ आती है,: लाओ मां,
लता कमरे से बाहर आती है तो देखती है लल्लू ने वो अंगोछा अपनी कमर पर बांध लिया था पर अब भी वो उसके उभार को अंगोछे के बीच साफ महसूद कर पा रही थी। लल्लू ने उसके हाथ से पैंट लिया और मूड कर जाते हुए लता ने एक बार फिर से उसके उभार पर नजर डाली और अंदर चली गई।
लता के मन में एक साथ कई विचार चल रहे थे, ये लल्लू का लंड कड़क क्यों था क्या वो उत्तेजित था पर अभी उत्तेजित क्यों घर में तो सिर्फ मैं और वो ही थे, क्या वो मुझे देख कर उत्तेजित हो रहा था, क्या अपनी मां को? लता अपना ब्लाउज़ खोलते हुए ये सोच रही थी, ब्लाउज उतार कर नीचे गिरा दिया और अपनी नंगी चूचियों को पौंछते हुए सोचने लगी, आखिर अपनी मां में मुझ बुढ़िया में उसे क्या मिलेगा ऐसा जो वो गर्म होगा मुझे देख कर, उसके हाथ उसकी चूचियां सुखाने की जगह दबाने लगे थे उसके बदन की गर्मी बढ़ रही थी, उसे अपनी चूत में भी खुजली हो रही थी,
क्या हो रहा है मुझे टांगों के बीच भी खुजली हो रही है जबकि रात को ही इसके पापा ने अच्छे से शांत की थी वो भी अपने बेटे के बारे में सोच कर, पहले छोटू के साथ वो सब और नंदिनी के साथ तो सारी हदें पार हो गई, और अब लल्लू, ये कहां जा रही हैं मैं, किस पाप के दलदल में गिरती जा रही हूं पर बदन को जैसे ये ही भा रहा है, गलत होकर भी अच्छा लग रहा है सब।
लल्लू: मां बारिश रुक गई।
लल्लू की आवाज़ ने उसे खयालों से निकाला और फिर सूखे कपड़े पहन कर वो कमरे से बाहर निकली, तो देखा लल्लू चूल्हे पर चाय चढ़ा रहा था,
लल्लू: मां चाय पियोगी आज मेरे हाथ की।
लता: हां बिल्कुल, बनाएगा तो क्यों नहीं।
लता ने लल्लू को देखते हुए कहा उसकी नजर अपने बेटे के लिए अब बदल चुकी थी।
जारी रहेगी।
Bhut shandaar update.... naye ladke to chodo a hi to purne khiladi bhi maidaan maar rahe hai..... गरमाअध्याय 24
बारिश की मंद-मंद बूंदें छप्पर की छत पर टपक रही थीं, और रत्ना उसकी ठंडी आहट को सुनते हुए गहरी सोच में डूबी थी। उसका मन उसके हाल के सपनों से भरा हुआ था—सपने जो उसे रातों को पसीने से तर-बतर कर देते थे।
छप्पर के नीचे पुरानी खाट पर बैठी, उसकी उंगलियां अनजाने में अपनी साड़ी के पल्लू को मरोड़ रही थीं। बारिश की हर बूंद उसके अंधविश्वासी स्वभाव को और गहरे में धकेल रही थी। क्या ये सपने कोई संकेत थे? क्या उसके ससुर प्यारेलाल की आत्मा उसे कुछ बताना चाहती थी, जिस रात उसने उनकी मृत्यु से पहले उनके साथ वो अनचाहा पल बिताया था? या फिर ये किसी और गहरे रहस्य की ओर इशारा था, जिसे वो समझ नहीं पा रही थी?
उसके सपनों में भूरा, लल्लू, और छोटू का चेहरा था—उसके बेटे और उसके दोस्त, जो उसे नंगी हालत में चोद रहे थे। फिर वो दृश्य बदलता, और राजू—उसका बड़ा बेटा—उसकी चूत में लंड डाले हुए था, जबकि रानी मां-मां चीख रही थी, और तीन पुरुष उसे घेरे हुए थे। ये सब सोचकर रत्ना का बदन कांप उठता था, और साथ ही उसकी चूत में एक अनचाही गर्मी भी महसूस होती थी। वो जानती थी कि ये सपने इतने अश्लील और निंदनीय थे कि इन्हें किसी से साझा नहीं कर सकती। उसने मन ही मन सोचा, "क्या कोई टोटका है जो इन सपनों को दूर कर सके? क्या केलाबाबा की मदद ली जाए?" लेकिन डर था कि उन्हें कहूंगी क्या? जो देखा वो तो नहीं कह सकती। बारिश की बूंदों के साथ उसकी सोच भी बह रही थी, और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।
दूसरी ओर शाम ढलते-ढलते बारिश की रफ्तार धीमी पड़ गई और आखिरकार थम गई। लता ने घर के लिए ताजी सब्जियां तोड़ने का फैसला किया और खेत की ओर चल पड़ी, जिससे लल्लू और नंदिनी को घर में अकेला समय मिल गया। नंदिनी का मन घबराया हुआ था। रात की घटना—जब लल्लू ने उसे मां-पापा की चुदाई देखते हुए पकड़ा था—उसके दिमाग में चक्कर काट रही थी। वो आंगन में खाट पर बैठी, अपने हाथों को सलवार के किनारे से मरोड़ रही थी, जबकि लल्लू भीतर से बाहर निकला और उसकी ओर देखने लगा।
लल्लू ने सोचा कि अगर वो नंदिनी को डराएगा या जोर-जबरदस्ती करेगा, तो सब बिगड़ सकता है। उसे प्यार से और समझदारी से कदम उठाने थे। वो धीरे से नंदिनी के पास जाकर बैठ गया और बोला, "दीदी, रात जो हुआ, उसके बारे में बात करना चाह रहा हूं, पर समझ नहीं आ रहा क्या बोलूं।" नंदिनी चुप रही, उसकी नजरें ज़मीन पर गड़ी थीं। लल्लू ने हिम्मत जुटाई और कहा, "वैसे जो तुम महसूस कर रही थी, मुझे भी होता है। कभी-कभी मेरे अंदर ऐसी उत्तेजना और गर्मी बढ़ जाती है कि काबू नहीं रहता।" नंदिनी ने उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं बोली।
लल्लू ने आगे बढ़ते हुए कहा, "मुझे पता है तुम्हारे साथ भी रात वही हुआ होगा, तभी तुम मां-पापा की... चुदाई देख रही थी।" चुदाई शब्द बोलते वक्त उसकी आवाज में हल्की झिझक थी, ताकि नंदिनी की प्रतिक्रिया देख सके। नंदिनी ने उसकी आंखों में देखा और फिर नजरें नीचे कर लीं, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।
लल्लू ने बात को और खोला, "शायद ये ही जवानी का जोश है। सच कहूं तो दीदी, मेरा तो हमेशा यही हाल रहता है। हर समय उत्तेजना बदन में महसूस होती है और नीचे तना हुआ रहता है।" उसने अपने लंड की ओर इशारा किया, जो निक्कर में साफ उभार बना रहा था।
नंदिनी ने पहली बार मुंह खोला, "तू इस बारे में किसी को कुछ कहेगा तो नहीं?" लल्लू के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई कि नंदिनी ने कुछ कहा।
वो बोला, "अरे नहीं दीदी, तुम्हारी और मेरी बात मैं क्यों कहूंगा किसी से? और हम भाई-बहन एक-दूसरे की परेशानी नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा, क्यों दीदी?"
नंदिनी थोड़ी असमंजस में बोली, "हां... सही कह रहा है।"
लल्लू ने मौके का फायदा उठाया, "अब देखो, मेरी परेशानी तो अब भी सिर उठाए हुए खड़ी है।" उसने अपने निक्कर में बने तंबू की ओर इशारा किया। नंदिनी की नजर उस उभार पर पड़ी, और वो हैरान रह गई। फिर सकुचाकर नजर हटा ली, लेकिन उसके बदन में एक सिहरन दौड़ गई। नंदिनी ने कहा, "तू ये सब क्या बातें कर रहा है? भाई-बहन को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।" लल्लू जानता था कि नंदिनी को मनाना आसान नहीं होगा।
वो बोला, "अरे दीदी, फिर मैं ऐसी बातें किससे करूं? तुम भी मेरी तरह उत्तेजित थी, तभी तो उस दिन नंगी सो रही थी और फिर रात को मां-पापा को देख रही थी। अब तुमसे अच्छा कौन मेरी परेशानी समझेगा?" नंदिनी उसकी बातें सुनकर सकुचाई, क्योंकि लल्लू ने उसकी गलतियों को याद दिला दिया था और ये भी साफ कर दिया कि अभी उसका पलड़ा भारी था। नंदिनी ने धीरे से कहा, "हां, वो मैं मानती हूं। और तेरी बात समझती हूं।"
लल्लू ने मौका देखते हुए कहा, "अरे दीदी, तुम नहीं समझती, मैं इस वजह से कितना परेशान रहता हूं। लगता है तुम्हें दिखाना पड़ेगा तभी तुम मानोगी।" नंदिनी ने घबराते हुए कहा, "अरे नहीं भाई, उसकी कोई जरूरत न..." लेकिन उसकी बात पूरी होने से पहले लल्लू खड़ा हो गया, अपनी ओर मुंह करके निक्कर नीचे खिसका दिया, और अपना कड़क लंड बाहर निकाल लिया, जो नंदिनी के चेहरे के सामने झूलने लगा।
नंदिनी हैरान रह गई। उसकी नजर लल्लू के लंड पर टिक गई—मोटा आकार, गुलाबी-जामुनी टोपा, पीछे काली खाल, और उभरी हुई नसें। उसके बदन में बिजली दौड़ गई, और टांगों के बीच गीलापन महसूस हुआ। उस सुबह की झलक से अलग, आज वो इसे बारीकी से देख रही थी, हर हिस्से को अपनी आंखों में भर रही थी। लेकिन फिर उसे होश आया कि ये उसका भाई है। वो चेहरा घुमा ली और बोली, "ये तू क्या कर रहा है? इसे अंदर कर!"
लल्लू हंसते हुए बोला, "अरे दीदी, इतना शर्माओगी तो कैसे काम चलेगा? हमें भाई-बहन के साथ-साथ दोस्त भी बनना होगा।" नंदिनी ने चेहरा दूसरी ओर कर लिया, मन में द्वंद्व चल रहा था। एक ओर उसकी वासना जाग रही थी—जवान और गरम लड़की के सामने नंगा लंड, और पिछले दिनों सत्तू से दूर होने का असर।
दूसरी ओर सही-गलत का बोध उसे रोक रहा था। एक आवाज कह रही थी, "ये महापाप है, तेरा भाई है, समझदारी दिखाओ।" दूसरी आवाज गूंजी, "नीलम को सीख देती थी, अब खुद क्यों नहीं मानती? मां के साथ सबकुछ करने के बाद अब पाप पुण्य का डर?"
इतने में लल्लू ने उसका एक हाथ पकड़ा और अपने लंड पर रख दिया। उंगलियों पर लंड का स्पर्श होते ही नंदिनी के बदन में करंट दौड़ा। उसकी उत्तेजना कई गुना बढ़ गई। वो चेहरा फिर से लंड की ओर घुमा ली और उसे नशीली आंखों से देखने लगी। लल्लू ने अपना हाथ हटा लिया, लेकिन नंदिनी का हाथ वहीं रहा।
धीरे-धीरे उसने हाथ को आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। लल्लू अपनी बहन की उंगलियों के स्पर्श से पागल हो रहा था, आंखें बंद कर आनंद में डूब गया।
नंदिनी ने एक पल लल्लू के आनंदमग्न चेहरे को देखा, और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान खिल गई। उसकी खुद की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। वो खड़ी हो गई, लेकिन उसका हाथ लंड पर चलता रहा।
लल्लू ने आंखें खोली और अपनी बहन को खड़ी देखा। दोनों की आंखों में वासना साफ झलक रही थी। नंदिनी लल्लू के चेहरे पर बदलते भाव देखकर मन ही मन आनंदित हो रही थी। लल्लू समझ गया कि उसकी योजना कामयाब हो रही है। उसने हिम्मत दिखाई और अपना हाथ बढ़ाकर नंदिनी की कमर पर रख दिया, सूट के ऊपर से ही उसकी कमर और पीठ को सहलाने लगा।
नंदिनी की उत्तेजना हर पल बढ़ रही थी। वो पहली बार लंड को हाथ में ले रही थी। सत्तू के साथ उसके चक्कर थे, लेकिन इतनी दूर तक नहीं पहुंची थी। आज उसके हाथ में अपने सगे छोटे भाई का बड़ा लंड था। ये सोचकर उसकी चूत और गीली हो रही थी—पहले मां, अब भाई। सही-गलत का बोध धीरे-धीरे वासना के बादलों में खो गया। कुछ पल बाद दोनों के होंठ आपस में मिल गए, और उस मिलन की चिंगारी से उत्तेजना की आग जल उठी।
दोनों एक-दूसरे के होंठों को पागलों की तरह चूसने लगे। नंदिनी के चूसने में थोड़ा अनुभव था, जबकि लल्लू का जोश और उत्साह छलक रहा था। लल्लू अपनी बहन के रसीले होंठ चूसते हुए खुद को धन्य महसूस कर रहा था। उसकी उत्तेजना अब सीमा पार कर चुकी थी।
लंड पर नंदिनी का हाथ चल रहा था, और उसके हाथ नंदिनी की कामुक कमर और पीठ पर फिसल रहे थे। इसके लिए ये सब बहुत ज्यादा हो गया। नंदिनी ने अपने हाथ में लंड के ठुमके महसूस किए, और फिर उससे एक के बाद एक पिचकारी निकली—कुछ उसके हाथ को सना गई, कुछ जमीन पर गिरी। हांफते हुए दोनों के होंठ अलग हुए। लल्लू की आंखें बंद थीं, जबकि नंदिनी मुस्कुराते हुए कभी लंड, कभी अपने हाथ को देख रही थी।
कुछ पल बाद दोनों की सांसें सामान्य हुईं। लल्लू कुछ बोलने ही वाला था कि दरवाजे से लता की आवाज आई, "लल्ला, मैं आ गई!" नंदिनी तुरंत बोली, "धत्त, तेरी मां आ गई! जा, तू किवाड़ खोल, मैं ये साफ करती हूं।" लल्लू ने तुरंत अपना निक्कर ऊपर चढ़ाया, थोड़ी हालत सही की, और दरवाजे की ओर दौड़ पड़ा।
वहीं शहर में भी शाम होते होते आधी के करीब सब्जियां आदि बिक चुकी थी, और अभी सत्तू, उसकी मां झूमरी, छोटू, राजेश और सुभाष सब साथ में बैठ कर चाय की चुस्कियां लगा रहे थे।
सत्तू: पूरे दिन की मेहनत के बाद गरम चाय का मज़ा ही कुछ और है,
सुभाष: सही कहा लल्ला।
छोटू: पापा यहां कब तक का काम रह गया है और,
छोटू ने चाय सुड़कते हुए कहा,
सत्तू: क्यों छोटू उस्ताद एक दिन में ही गांव याद आ गया क्या?
राजेश: हां भैया इसे तो दोपहर में ही आ गया था।
सत्तू: अरे तुमने अभी शहर देखा नहीं है नहीं तो गांव को भूल जाओगे।
राजेश: सही में भैया?
सत्तू: और क्या, अरे चाचा अब कोई काम तो है नहीं तो मैं इन दोनों को घुमा लाता हूं थोड़ा शहर ? पहली बार आए हैं और शहर न देखें तो बेचारे मन ही मन दुखी होंगे।
सुभाष: अरे हां बिल्कुल, घूमेंगे तभी तो शहर के बारे में थोड़ा जानेंगे।
सुभाष ने हंसते हुए कहा, झुमरी भी चाय पीते हुए सबकी बातें सुन मुस्कुरा रही है,
सत्तू: तो क्या कहते हो दोनों चले?
छोटू को भी शहर देखने की उत्सुकता होती है और राजेश और छोटू दोनों साथ में कहते हैं चलो।
सुभाष: चलो तुम लोग घूम आओ तब तक मैं बचे एक दो बोरे अंदर गोदाम में रख दूंगा।
सत्तू: ठीक है चाचा, हम लोग आते हुए कुछ खाने के लिए ले आएंगे।
सत्तू राजेश और छोटू को लेकर निकल जाता है, सुभाष बचे हुए बोरे एक छोटी दुकान जो दो तीन घरों ने मिलकर किराए पर ले रखी थी सामान रखने के लिए उसमें रख देता है, झुमरी उसकी मदद करती है, दूसरी ओर सत्तू राजेश और छोटू को शहर घुमाता है दोनों पहली बार शहर की चकाचौंध देखकर आश्चर्यचकित थे, बड़ी बड़ी गाड़ियां, ऊंचे ऊंचे पक्के मकान, पक्की सड़क, अलग अलग तरह की दुकानें, शहर की औरतें और आदमी जिनकी वेशभूषा उनसे अलग जान पड़ रही थी, सत्तू एक ज्ञानी और अच्छे गुरु की तरह उन्हें सब कुछ बताता जा रहा था, शायद ये भी दिखा रहा था कि वो इस शहर को कितने अच्छे से जानता है।
अंधेरा हो चुका था सत्तू और छोटू और राजेश अभी तक शहर में घूम ही रहे थे वहीं गोदाम में एक अलग दृश्य चल रहा था, गोदाम के एक कोने में खाली बोरे बिछे हुए थे और उन पर सत्तू की मां झुमरी लेटी हुई थी, ब्लाउज़ खुला हुआ था और दोनों मोटी चूचियां ब्रा के बाहर थी जिन पर सुभाष के हाथ चल रहे थे, सुभाष उन्हें मसल रहा था।
झुमरी भी आंखें बंद कर अपनी चूचियों को मसलवाने का आनन्द ले रही थी और सुभाष के हाथों पर अपने हाथ रख उसका हौसला बढ़ा रही थी।
सुभाष: आह भाभी तुम्हारी इन चूचियों के तो हम हमेशा से ही दीवाने हैं आह इन्हे छूकर ऐसा लगता है मानो मक्खन की पोटलिया हैं।
सुभाष धीरे से फुसफुसाते हुए बोला।
झुमरी: उम्म तुमने ही दबा दबा कर इतनी बड़ी कर दी हैं कि सारे ब्लाउज़ कस के आते हैं।
सुभाष: अब हम मेहनत करें और फसल भी न बड़े तो किस बात के किसान हुए हम।
सुभाष ने हंसते हुए कहा। झुमरी पर इतनी भी जुताई मत करो न कि नई फसल उग जाए। भूलो मत ये खेत किसी और का है।
सुभाष: जानते हैं हमारे स्वर्गीय परम मित्र का है, पर अभी तो हमारे हवाले है, तो अब जुताई करें या बुवाई हमारे हाथ में हैं।
सुभाष ने झुमरी की साड़ी और पेटीकोट को उसकी कमर तक उठा दिया और झुमरी की नंगी गीली चूत उसके सामने आ गई जिसे वो अपनी उंगलियों से सहलाने लगा।
झुमरी: आह उम्म नहीं,
झुमरी उसकी हरकतों से सिसकते हुए बोली।
सुभाष: ऐसे कैसे नहीं भाभी, जुताई से पहले थोड़ा खेत को जांच तो लें कि कैसा हैं।
सुभाष ने अपनी उंगली झुमरी की चूत में उतारते हुए कहा।
झुमरी: आह आराम से,
कुछ पल यूं ही उंगली से झुमरी की चूत को छेड़ने के बाद सुभाष ने अपना पजामा नीचे खिसका कर उतार दिया और झुमरी की टांगों को फैलाते हुए उनके बीच आ गया, और फिर अपने लंड को पकड़ कर झुमरी की चूत पर लगाया तो झुमरी तड़प उठी।
सुभाष: डाल दूं? उसने झुमरी के तड़पते चेहरे को देख कर कहा।
झुमरी: हां जल्दी करो बच्चे आते ही होंगे। न जाने क्या मजा आता है यूं तड़पाने में।
सुभाष: ये ही तो मजा है भाभी, तुम्हारे चेहरे पर लंड की प्यास देख एक अलग सुख मिलता है।
झुमरी: आह जल्दी करो न।
सुभाष: फिर ये लो।
ये कह सुभाष अपना लंड झुमरी की चूत में घुसा देता है, झुमरी के मुंह से आह निकलती है और सुभाष झुमरी के पैरों को थाम कर धक्के लगा कर उसे चोदने लगता है।
इधर छोटू और सत्तू खाना लेकर चले आ रहे थे, मंडी के बाहर ही उन्हें राजेश मिलता है,
सत्तू: अरे तू गया नहीं अंदर?
राजेश: अरे भैया मैं भूल गया था, किस ओर से आएगी अपनी दुकान और किधर है, तो खो न जाऊं इसलिए रुक गया,
छोटू: अरे यार तू भी इसमें कहां खो जाएगा, बुद्धू, आ चल मैं दिखाता हूं रास्ता।
राजेश कुछ नहीं कहता और कुछ सोचते हुए आगे बढ़ जाता है गोदाम के बाहर ही उन्हें सुभाष और झुमरी मिलते हैं जो बैठ कर बातें कर रहे थे, फिर सब मिलकर खाना खाने लगते हैं, राजेश थोड़ा सोच में होता है।
गांव में अंधेरा होते तक संजय भी पानी लगा कर घर आता है, तब तक औरतों ने भैंसों और खाने पीने का सारा काम निपटा लिया था, संजय अंदर आकर नल पर हाथ पैर धोता है नीलम अपने पापा के लिए नल चलाती है, इसी बीच उसकी नजर एक बार पुष्पा से मिलती है जो चूल्हे के पास बैठी दूध उबाल रही थी, दोनों की नज़र मिलती है वैसे ही दोनों अपनी अपनी नजर फेर लेते हैं दोनों जानते थे आज खेत में जो हुआ वो उनके परिवार के लिए सही नहीं था, पुष्पा के मन में भी बहुत से विचारों का तूफान आया हुआ था एक ओर अपनी बहन जैसी देवरानी जिसके साथ आज उसने वो सब किया था जो कभी सोचा भी नहीं था, और फिर दोपहर में देवर के साथ जो हुआ वो, उसे समझ नहीं आ रहा था वो किसके साथ धोखा कर रही थी, देवरानी सुधा के साथ, देवर संजय के साथ या अपने पति सुभाष के साथ, अपने पति के साथ तो वो तभी धोखा कर चुकी थी जब बेटे के साथ सब कुछ किया था। उसे समझ नहीं आ रहा था उसके साथ हो क्या रहा है। खैर खाना पीना हो ही रहा था कि तभी रत्ना आई।
सुधा: अरे रत्ना जीजी, आओ आओ बैठो।
रत्ना: और सब काम निपट गए?
पुष्पा: हां सब निपट गया तुम बताओ, सब हो गया।
रत्ना: हां रानी संभाल लेती है अभी तो सब।
फुलवा: चल अच्छा है बिटिया है तो तुझे थोड़ा आराम मिल रहा है।
रत्ना: हां चाची ये तो है, अरे चाची मैं कह रही थी कि आज तुम हमारे यहां सो जाती तो, भूरा के पापा भी नहीं है और राजू खेत पर है, बस भूरा है वो भी अभी बालक है।
फुलवा: हां क्यों नहीं इसमें क्या संकोच की बात, और कोई चिंता की बात तो नहीं है न?
पुष्पा: हां जीजी सब ठीक है न?
रत्ना: हां बस थोड़े अजीब और डरावने सपने आते हैं।
सुधा: कैसे सपने जीजी?
रत्ना सोच कर बोलती है: थोड़े डरावने से आते हैं और अजीब से उन्हें समझाना मुश्किल है।
फुलवा: अच्छा कोई नहीं कल सुबह ही चल मेरे साथ बहू, झाड़ा लगवा लेंगे सब सही हो जाएगा।
रत्ना को भी फुलवा की बात ठीक लगी और सोच कर बोली: ठीक है चाची, कल चलते हैं।
कुछ ही देर में फुलवा रत्ना के साथ चली गई, और घर पर बाकी लोग भी खा पी कर सोने की तैयारी करने लगे,
संजय खाना खा चुका तो सुधा उसकी थाली लेने आई तो संजय बोला: सुनो आज घर पर कोई और नहीं है तो सोच रहा हूं मैं आंगन में सो जाता हूं।
सुधा: ठीक है नीलम भी कह रही थी उसे डर लग रहा है तो वो मेरे साथ कमरे में सो जाएगी।
संजय: भाभी से भी पूछ लो अगर उन्हें डर लगे तो उन्हें भी अपने पास ही सुला लेना।
पुष्पा: पूछा मैंने वो नहीं डरती बिल्कुल, वैसे भी कमरे को खाली नहीं छोड़ सकते।
संजय: हां चलो ठीक है जैसा तुम्हे सही लगे, मेरा बिस्तर ला दो।
सुधा: नीलाम ओह नीलम अपने पापा का बिस्तर लगा दे ज़रा।
नीलम: अभी लाई मां।
सब दूध वगैरह पी कर लेट चुके थे, और कुछ तो सो भी चुके थे, पर संजय की आँखों से नींद गायब थी, उसके सामने बार बार जो कुछ दोपहर को हुआ वो आ रहा था, उसकी भाभी का कामुक बदन, उनके होंठों का रस, उनके पेट का वो मखमली स्वाद ये सोच कर ही उसके बदन में अजीब सी सिहरन हो रही थी, उसका लंड भी अकड़ रहा था, पर साथ ही वो ये भी जानता था कि कोई भी गलत कदम उसके परिवार के लिए कितना बुरा हो सकता था, उसने फिर सोचा क्यों न अपनी गर्मी सुधा पर मिटा ली जाए जब तक जाऊंगा तो ये सब विचार ही नहीं आएंगे। ये सोच वो बिस्तर से उठा और अपने कमरे की ओर बढ़ा, कमरे के दरवाज़े को हल्का सा खोल कर उसने अंदर झांका तो देखा कि नीलम और सुधा दोनों ही सो चुके थे और नीलम अपनी मां से चिपक कर सो रही थी, तो सुधा को जगाने का प्रयास भी करता तो नीलम का जागना तय था।
वो बापिस अपने बिस्तर पर आ गया एक बेचैनी सी उसके मन में हो रही थी, वो फिर से लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा, करीब एक घंटा बीत गया उसे करवट बदलते बदलते पर आज नींद उसकी आंखों से भाग रही थी, बार बार उसकी भाभी का बदन उसे सोने नहीं दे रहा था, वो एक बार फिर से उठा और अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ, और धीरे धीरे कुछ सोचते हुए कदम बढ़ाने लगा, पद पर इस बार उसके कदम अपनी भाभी के कमरे की ओर बढ़ रहे थे,
धीरे धीरे वो कमरे के बाहर पहुंच गया और उसने हल्का सा दरवाज़ा धकेला तो उसे खुला पाया उसने दरवाज़े को थोड़ा सा और बड़ी सावधानी से खोला उतना की जितने से वो अंदर झांक सके, उसने सिर आगे कर अंदर झांका तो सामने के नज़ारे पर उसकी आँखें जमीं रह गईं,
दिए की हल्की रोशनी में उसने देखा कि उसकी भाभी पुष्पा दरवाज़े की ओर ही करवट लेकर सो रही है, पल्लू एक ओर को ढलका हुआ है जिससे उसका मखमली पेट, गोल गहरी नाभी दिखाई दे रही है, तभी हवा का एक झोंका आता है और पुष्पा के पल्लू को और हटा देता है जिससे उसका पेट और ब्लाउज में कसी बड़ी चूची उजागर हो जाती है,
वहीं वो उसके चेहरे को देखता है जिस पर कामुक भाव हैं उसका बदन भी ऐसे हिल रहा है ऐसे मचल रहा है जैसे सपने में ज़रूर कुछ कामुक घटना को देख रही है, सोते हुए ही पुष्पा अपने होंठों को हल्का सा काटती है, जिससे संजय को अंदाज़ा हो जाता है कि पुष्पा किस तरह का सपना देख रही है।
संजय दरवाजे से झांकते हुए ये सब देखता रहता है, वो अभी भी वहीं खड़ा है शायद मन में तय कर रहा है आगे क्या करना चाहिए, मन में खयाल आता है अपने बिस्तर पर बापिस चला जाए, पर सामने पुष्पा का बदन उसे जाने से रोक रहा है। संजय फिर से सोच में पड़ जाता है उसके कदम कुछ पीछे होते है पर फिर अगले ही पल वो कमरे के अंदर घुस जाता है और किवाड़ अंदर से बंद कर लेता है सावधानी से, धीरे से वो पुष्पा के पास आता है पुष्पा अभी भी सपनों की दुनिया में खोई हुई है, संजय पास आकर धीरे से है हाथ बढ़ाता है उसका हाथ आगे जाते हुए कांप रहा है थोड़ा आगे बढ़ा कर वो हाथ को बापिस खींच लेता है,
और अपने फैसले पर दोबारा सोचने लगता है, कुछ पल बाद फिर से हाथ बढ़ाता है और बहुत धीरे से पुष्पा का पल्लू पकड़ लेता है और उसके सीने और पेट से हटा देता है एक बार फिर से पुष्पा का पूरा पेट और ब्लाउज़ से झांकती उसकी चूचियां संजय की आंखों के सामने होती हैं वो पुष्पा के बगल में बिस्तर पर बहुत आराम से चढ़ जाता है और धीरे से अपने हाथ को पुष्पा के पेट पर रखता है, उसके पेट का स्पर्श पाते ही मानो संजय के बदन में बिजली दौड़ जाती है उत्तेजना की, वो अगले ही पल सब मर्यादा और डर भूलने लगता है और पुष्पा के ऊपर झुकता चला जाता है, उसके पेट को सहलाते हुए वो चूमने लगता है, और अपनी प्यास को पुष्पा के बदन से मिटाने की कोशिश करने लगत है।
पुष्पा जो कामुक सपने देख रही थी उसे ये भी सपने का हिस्सा ह
हिस्सा समझती है और संजय पुष्पा की ओर से विरोध न देख इसे आगे के लिए अच्छा संकेत समझता है और उत्तेजित होकर पुष्पा के मखमली पेट और कमर को मसलने लगता है जो पुष्पा की नींद की अवस्था के लिए भी थोड़ा ज़्यादा हो गया और पुष्पा की आंख खुल जाती है, वो चौंक कर देखती है और पाती है कि उसके बदन से कोई खेल रहा है और जैसे ही चेहरा दिखता है वो थोड़ा चौंकती है अपने देवर को देख कर।
वो पल भर के लिए सुन्न रह जाती है और समझ नहीं पाती क्या करे, उसका बदन उसकी उत्तेजना उसके देवर के द्वारा उसके बदन को मसले जाने पर कुछ अलग ही आनंद में मचलने लगते हैं, वो समझ नहीं पाती क्या करूं? रोकूं देवर को या नहीं, दिमाग कहता है रोक ले इस महापाप को होने से, इससे बहुत से रिश्ते पूरा परिवार बिखर सकता है, तो बदन और मन कह रहा था इतने दिनों से जो प्यासी है वो प्यास बुझा ले, कब तक तड़पाएगी खुद को।
पुष्पा कुछ सोच कर अपने हाथ बढ़ाती है और संजय का सिर अपने पेट पर पकड़ लेती है और उसे खींच कर ऊपर लाती है, अपने चेहरे के सामने, संजय पुष्पा को जागते हुए देखता है तो घबरा जाता है उसे सब खराब होता नज़र आने लगता है, पुष्पा उसकी आंखों में देख कर ना में सिर हिलाती है,
पुष्पा: देवर जी नहीं, जाओ यहां से।
संजय: भाभी मैं वो।
पुष्पा: सब के लिए यही अच्छा हो..
पुष्पा इतना ही बोल पाती है कि संजय अपने होंठों को उसके होंठों पर रख देता है और चूसने लगता है, पुष्पा थोड़ा मचलती है पर वो बिना फिक्र के अपनी भाभी के होंठों को चूसने लगता है, कुछ ही पलों में संजय को हैरानी होती है। जब पुष्पा उसका साथ देने लगती है, पुष्पा भी उतनी ही उत्तेजित थी शायद ज़्यादा संजय को रोकने की कोशिश उसकी आखिरी कोशिश साबित होती है खुद को रोकने की भी और अब वो भी खुल कर संजय का साथ दे रही होती है, संजय अपनी भाभी का साथ पाकर और मस्त हो जाता है और उसके रसीले होंठों का रस दोपहर के बाद दोबारा पीने लगता है।
कुछ देर बाद होंठ अलग होते हैं दोनों हाँफ रहे होते हैं पर उत्तेजना कम नहीं होती, संजय पुष्पा की गर्दन को चूमते हुए नीचे सरकता है और पुष्पा के ब्लाउज में से झांकती मोटी चूचियों के बीच अपना मुंह घुसा कर चाटने लगता है।
पुष्पा: आह देवर जी उम्म आह
संजय: अहम्म भाभी उम्म।
संजय पुष्पा के बदन को लगातार चाटते हुए आहें भरते हुए कहता है, साथ ही उसके हाथ ब्लाउज के ऊपर से ही पुष्पा की मोटी और कोमल चूचियों को दबा रहे थे,
दोनों की उत्तेजना की सीमा नहीं थी, पुष्पा को तो जैसे ऐसा लग रहा था जैसे कितने समय की प्यास आज मिट रही थी, बदन की गर्मी को संजय का साथ मिटा रहा था, वहीं संजय तो अपनी भाभी का बदन पाकर जन्नत में था, और उसके कामुक बदन को भोग रहा था,
चूचियों के बाद संजय नीचे सरकता है और अपने होंठ पुष्पा के पेट पर रख लेता है और पागलों की तरह उसे चाटने चूमने लगता है, उसके हाथ पुष्पा की केले के तने जैसी जांघों पर घूमने लगते हैं और वो धीरे धीरे से पुष्पा की साड़ी और पेटीकोट को ऊपर सरकाने लगता है और घुटनों के ऊपर ले आता है, पुष्पा की गोरी टांगें और जांघों का कुछ हिस्सा दिए की रोशनी में चमकने लगता है, पुष्पा के मुंह से लगातार सिसकियां निकल रही है उसके हाथ लगातार संजय के सिर और पीठ पर चल रहे हैं।
पुष्पा: आह संजय, ओह देवर जी ऐसे ही आह।
संजय तो जैसे सब कुछ भूल चुका था उसे अभी बस अपनी भाभी का कामुक बदन नज़र आ रहा था, जिसका स्वाद वो लेने की हर पूरी कोशिश कर रहा था, कभी उसके पेट को चाटता तो कभी नाभी में जीभ डाल कर चूसता तो कभी उसके पेट की मखमली त्वचा को अपने चेहरे पर महसूस करता।
उसके नीचे पड़ी पुष्पा उसकी हरकतों से मचल रही थी, संजय की उत्तेजना अब बढ़ती जा रही थी पर वो पुष्पा के बदन को बहुत धीरज के साथ भोग रहा था, मानो उसके एक एक अंग का स्वाद लेना चाहता हो।
पेट को चूसते हुए ही उसके हाथ पुष्पा की साड़ी में चलने लगे और उसने जल्दी ही पुष्पा की साड़ी को बिस्तर के नीचे फेंक दिया अब पुष्पा नीचे सिर्फ पेटीकोट में थी और वो भी उसकी जांघों में इक्कठा हो रखा था।
बाहर दिन में हुईं बारिश के कारण मौसम ठंडा था, ठंडी हवा चल रही थी, पर कमरे के अंदर उतनी ही गर्मी हो रही थी,दोनों बदन मिल कर गर्मी को और बढ़ा रहे थे,
संजय ने हाथ ऊपर की ओर बढ़ाया और खुद भी ऊपर आया और एक बार फिर से पुष्पा के होंठों को चूसने लगा वहीं उसके हाथ पुष्पा के ब्लाउज़ के बटनों को खोलने लगे, जल्दी ही सारे बटन खुल गए तो संजय ने अपने होंठ अलग किए और फिर नीचे सरक कर अपने चेहरे को पुष्पा की छाती के सामने लाया और फिर धीरे से दोनों पाटों को अलग किया तो पुष्पा की मोटी और बड़ी चूचियां उसके सामने आ गईं जिन्हें देख उसकी आँखें चौड़ी हो गईं उसने कुछ ही पलों में ब्लाउज़ को भी उसके बदन से अलग कर नीचे साड़ी के पास फेंक दिया,
पुष्पा के बदन पर सिर्फ पेटीकोट था जो उसकी जांघों तक सिमटा हुआ था, पुष्पा के नंगे चूचों को देख कर संजय भूखे की तरह उन पर टूट पड़ा और मसलते हुए उन्हें चूसने लगा, पुष्पा उसकी हर हरकत से मछली की तरह मचल रही थी, कभी चूची को चूसता तो कभी पेट को चाटता वहीं उसके हाथ पुष्पा के पेट से लेकर जांघों और फिर उसकी चूत के आस पास घूम रहे थे जिससे पुष्पा और मचल रही थी।
पुष्पा के बदन से खेलते हुए ही संजय ने अपने कपड़े निकालने भी शुरू कर दिए और जल्दी ही पूरा नंगा हो गया था, उसका लंड बिलकुल अकड़ कर खड़ा था और पुष्पा के नंगे बदन को देख देख ठुमके मार रहा था, खुद नंगा होकर संजय ने पुष्पा के पेटीकोट को भी उसके बदन से दूर कर दिया, अब दोनों देवर भाभी नंगे थे एक दूसरे के सामने एक ही बिस्तर पर, दोनों के ही साथी इस बात से अनजान थे,
संजय की पत्नी तो उनसे कुछ दूर दूसरे कमरे में आराम से सो रही थी इस बात से बेखबर कि उसका पति और उसकी जेठानी एक ऐसे रास्ते पर थे जो उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल सकता था, वहीं उनसे मीलों दूर पुष्पा का पति सुभाष मंडी में गोदाम के बाहर बोरे बिछा कर सो रहा था उसके साथ उनका बेटा छोटू और संजय का बेटा राजेश भी था, सब लोग कमरे में चल रहे काम के खेल से अनजान हो कर सो रहे थे।
संजय ने फिर अपने लंड को पकड़ा और पुष्पा की टांगों को फैलाकर उनके बीच जगह ली, और अपने लंड को पुष्पा की चूत पर रखा, पुष्पा की गरम गीली चूत पर लंड का स्पर्श होते ही दोनों के मुंह से आह निकल गई,
संजय: आह भाभी मैंने इस पल के बारे में न जाने कितनी बार सोचा है,
पुष्पा: क्या सच में तुम पहले से ये सब करना चाहते थे मेरे साथ?
संजय: हां भाभी जबसे तुम ब्याह के घर में आई तब से ही, पर संस्कारों और मर्यादा के चलते ये सब छुपा कर रखा हमेशा हमेशा खुद को रोक लिया,
संजय अपने लंड को पुष्पा की चूत पर घिसते हुए कहता है।
पुष्पा: अब आह अब रुकने की जरूरत नहीं है देवर जी, आह घुसा दो और पूरी कर लो अपनी इच्छा,
संजय: हां भाभी अब नहीं रुकूंगा।
ये कह संजय क़मर को झटका देता है और उसका लंड पुष्पा की गरम चूत में समा जाता है, दोनोके मुंह से गरम आहें निकलने लगती हैं, दोनों इस अदभुत पल के अहसास को इस आनंद को अपने अंदर समाने लगते हैं, इस अनैतिक संबंध की सोच इस वर्जित संबंध का अहसास उन्हें और उत्तेजित कर रहा था, संजय धीरे धीरे पुष्पा की चूत में धक्के लगाने लगता है पुष्पा हर धक्के पर सिसकने लगती है, हर पल के साथ संजय के धक्कों की गति बढ़ती जाती है, और कुछ ही देर में संजय ताबड़तोड़ धक्कों के साथ अपनी भाभी को चोद रहा था, पुष्पा की लगातार आहें और सिसकियां निकल रही थी
पुष्पा कभी उत्तेजित होकर अपनी चूचियां मसलती तो कभी संजय का हाथ पकड़ कर उसे थोड़ा धीरे करने को कहती पर संजय तो जैसे एक अलग ही दुनिया में था, इतना उत्तेजित वो कभी नहीं हुआ था, ऐसा आनंद उसे कभी नहीं आया था जो उसे अपनी भाभी की चूत में मिल रहा था, वो चाहता भी तो अब खुद को नहीं रोक सकता था, उसकी कमर मशीन की तरह आगे पीछे हो रही थी और उसका लंड उसकी भाभी की चूत में अंदर बाहर हो रहा था,
शहर में सुभाष और छोटू चैन से सो रहे थे इस बात से बेखबर होकर कि गांव में उनकी पत्नी और मां नंगी होकर, उनके भाई या चाचा से चुद रही थी। शहर में भी ऐसा नहीं था जो हर कोई सो रहा था, संजय जहां गांव में जाग रहा था तो उसका बेटा राजेश भी सो नहीं पा रहा था, उसे नींद नहीं आ रही थी, उसकी आंखों के सामने कुछ दृश्य बार बार आ रहे थे, वो दृश्य पुराने नहीं थे बल्कि आज शाम के ही थे जब वो छोटू और सत्तू शहर घूम कर बापिस आ रहे थे तो सत्तू और छोटू खाना लेने के लिए ढाबे पर रुक गए थे और वो मंडी में चला आया था, उसने इधर उधर देखा तो उसे अपने ताऊ यानि सुभाष और सत्तू की मां झुमरी कहीं नहीं दिखाई दी वो गोदाम के पास पहुंचा तो देखा कि उसके किवाड़ लगे हुए थे, पर उसे अंदर से हल्की हल्की आवाज़ आ रही थी, राजेश ने पास जाकर किवाड़ को ध्यान से देखा तो उसे एक छोटा सा छेद दिखा,उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई की कोई उसे देख तो नहीं रहा और फिर अपनी आंख उस छेद पर लगा दी और जो उसे अंदर दिखा उसे देख वो चौंक गया। अंदर उसके ताऊजी सत्तू की मां को नीचे लिटाकर चोद रहे थे। ये सब देख राजेश तब से सोच में था उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, क्या किसी को बताए इस बारे में, क्या सत्तू को? नहीं नहीं गड़बड़ हो जाएगी, क्या छोटू को? पर कैसे? साथ ही उसका जवान बदन ये नज़ारा सोच सोच कर उत्तेजित भी हो रहा था।
इधर गांव में संजय के धक्के बिल्कुल लगभग बेकाबू हो गए थे और वो गुर्राते हुए पुष्पा की चूत में झड़ रहा था, पुष्पा भी इस तगड़ी चुदाई के दौरान झड़ चुकी थी, और अभी अपनी चूत में अपने देवर के रस को भरता हुआ महसूस कर रही थी, संजय झड़ने के बाद पुष्पा के ऊपर ही पसर गया और कुछ देर यूं ही लेटा रहा और जब पुष्पा ने उससे कहा वो दब रही है तो वो उसके ऊपर से हटा और उसका लंड भी पुष्पा की चूत से निकल गया, दोनों लेट कर हांफने लगे। धीरे धीरे शांत होने पर दोनों के अब दिमाग में चलने लगा कि उन्होंने अभी क्या किया है, और ग्लानि के भाव आने लगे, अक्सर ऐसा होता है वासना के बादल हटने पर सच्चाई की धूप अक्सर ग्लानि की गर्मी में लोगों को जलाती है। यही दोनों के साथ हो रहा था।
संजय ने पुष्पा की ओर देखा तो वो छत की ओर खुली आंखों से देखे जा रही थी, उसकी मोटी चूचियां उसकी सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रहीं थीं, संजय ने उसकी ओर करवट ली और अपना हाथ उसने पुष्पा के पेट पर रखा, जिसे रखते ही पुष्पा ने उसे अपने ऊपर से झटक दिया, जिससे संजय को हैरानी हुई।
पुष्पा: अब जाओ संजय।
पुष्पा बिना उसकी ओर देखे बोली, संजय को भी यही सही लगा, अभी इस हालत में उसे अकेला ही छोड़ देना सही होगा, संजय उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर से किवाड़ भिड़ा कर चला गया, पुष्पा अभी भी छत की ओर देखे जा रहीथी और फिर अचानक उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई।
जारी रहेगी।
बहुत ही शानदार और कामुक अपडेट दिया है ! अब तो राजेश का नज़रिया बदल जाएगा सत्तू की माँ के लिए लग रहा है अब जल्दी ही कहानी में नया मोड़ आएगा !!अध्याय 24
बारिश की मंद-मंद बूंदें छप्पर की छत पर टपक रही थीं, और रत्ना उसकी ठंडी आहट को सुनते हुए गहरी सोच में डूबी थी। उसका मन उसके हाल के सपनों से भरा हुआ था—सपने जो उसे रातों को पसीने से तर-बतर कर देते थे।
छप्पर के नीचे पुरानी खाट पर बैठी, उसकी उंगलियां अनजाने में अपनी साड़ी के पल्लू को मरोड़ रही थीं। बारिश की हर बूंद उसके अंधविश्वासी स्वभाव को और गहरे में धकेल रही थी। क्या ये सपने कोई संकेत थे? क्या उसके ससुर प्यारेलाल की आत्मा उसे कुछ बताना चाहती थी, जिस रात उसने उनकी मृत्यु से पहले उनके साथ वो अनचाहा पल बिताया था? या फिर ये किसी और गहरे रहस्य की ओर इशारा था, जिसे वो समझ नहीं पा रही थी?
उसके सपनों में भूरा, लल्लू, और छोटू का चेहरा था—उसके बेटे और उसके दोस्त, जो उसे नंगी हालत में चोद रहे थे। फिर वो दृश्य बदलता, और राजू—उसका बड़ा बेटा—उसकी चूत में लंड डाले हुए था, जबकि रानी मां-मां चीख रही थी, और तीन पुरुष उसे घेरे हुए थे। ये सब सोचकर रत्ना का बदन कांप उठता था, और साथ ही उसकी चूत में एक अनचाही गर्मी भी महसूस होती थी। वो जानती थी कि ये सपने इतने अश्लील और निंदनीय थे कि इन्हें किसी से साझा नहीं कर सकती। उसने मन ही मन सोचा, "क्या कोई टोटका है जो इन सपनों को दूर कर सके? क्या केलाबाबा की मदद ली जाए?" लेकिन डर था कि उन्हें कहूंगी क्या? जो देखा वो तो नहीं कह सकती। बारिश की बूंदों के साथ उसकी सोच भी बह रही थी, और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।
दूसरी ओर शाम ढलते-ढलते बारिश की रफ्तार धीमी पड़ गई और आखिरकार थम गई। लता ने घर के लिए ताजी सब्जियां तोड़ने का फैसला किया और खेत की ओर चल पड़ी, जिससे लल्लू और नंदिनी को घर में अकेला समय मिल गया। नंदिनी का मन घबराया हुआ था। रात की घटना—जब लल्लू ने उसे मां-पापा की चुदाई देखते हुए पकड़ा था—उसके दिमाग में चक्कर काट रही थी। वो आंगन में खाट पर बैठी, अपने हाथों को सलवार के किनारे से मरोड़ रही थी, जबकि लल्लू भीतर से बाहर निकला और उसकी ओर देखने लगा।
लल्लू ने सोचा कि अगर वो नंदिनी को डराएगा या जोर-जबरदस्ती करेगा, तो सब बिगड़ सकता है। उसे प्यार से और समझदारी से कदम उठाने थे। वो धीरे से नंदिनी के पास जाकर बैठ गया और बोला, "दीदी, रात जो हुआ, उसके बारे में बात करना चाह रहा हूं, पर समझ नहीं आ रहा क्या बोलूं।" नंदिनी चुप रही, उसकी नजरें ज़मीन पर गड़ी थीं। लल्लू ने हिम्मत जुटाई और कहा, "वैसे जो तुम महसूस कर रही थी, मुझे भी होता है। कभी-कभी मेरे अंदर ऐसी उत्तेजना और गर्मी बढ़ जाती है कि काबू नहीं रहता।" नंदिनी ने उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं बोली।
लल्लू ने आगे बढ़ते हुए कहा, "मुझे पता है तुम्हारे साथ भी रात वही हुआ होगा, तभी तुम मां-पापा की... चुदाई देख रही थी।" चुदाई शब्द बोलते वक्त उसकी आवाज में हल्की झिझक थी, ताकि नंदिनी की प्रतिक्रिया देख सके। नंदिनी ने उसकी आंखों में देखा और फिर नजरें नीचे कर लीं, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।
लल्लू ने बात को और खोला, "शायद ये ही जवानी का जोश है। सच कहूं तो दीदी, मेरा तो हमेशा यही हाल रहता है। हर समय उत्तेजना बदन में महसूस होती है और नीचे तना हुआ रहता है।" उसने अपने लंड की ओर इशारा किया, जो निक्कर में साफ उभार बना रहा था।
नंदिनी ने पहली बार मुंह खोला, "तू इस बारे में किसी को कुछ कहेगा तो नहीं?" लल्लू के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई कि नंदिनी ने कुछ कहा।
वो बोला, "अरे नहीं दीदी, तुम्हारी और मेरी बात मैं क्यों कहूंगा किसी से? और हम भाई-बहन एक-दूसरे की परेशानी नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा, क्यों दीदी?"
नंदिनी थोड़ी असमंजस में बोली, "हां... सही कह रहा है।"
लल्लू ने मौके का फायदा उठाया, "अब देखो, मेरी परेशानी तो अब भी सिर उठाए हुए खड़ी है।" उसने अपने निक्कर में बने तंबू की ओर इशारा किया। नंदिनी की नजर उस उभार पर पड़ी, और वो हैरान रह गई। फिर सकुचाकर नजर हटा ली, लेकिन उसके बदन में एक सिहरन दौड़ गई। नंदिनी ने कहा, "तू ये सब क्या बातें कर रहा है? भाई-बहन को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।" लल्लू जानता था कि नंदिनी को मनाना आसान नहीं होगा।
वो बोला, "अरे दीदी, फिर मैं ऐसी बातें किससे करूं? तुम भी मेरी तरह उत्तेजित थी, तभी तो उस दिन नंगी सो रही थी और फिर रात को मां-पापा को देख रही थी। अब तुमसे अच्छा कौन मेरी परेशानी समझेगा?" नंदिनी उसकी बातें सुनकर सकुचाई, क्योंकि लल्लू ने उसकी गलतियों को याद दिला दिया था और ये भी साफ कर दिया कि अभी उसका पलड़ा भारी था। नंदिनी ने धीरे से कहा, "हां, वो मैं मानती हूं। और तेरी बात समझती हूं।"
लल्लू ने मौका देखते हुए कहा, "अरे दीदी, तुम नहीं समझती, मैं इस वजह से कितना परेशान रहता हूं। लगता है तुम्हें दिखाना पड़ेगा तभी तुम मानोगी।" नंदिनी ने घबराते हुए कहा, "अरे नहीं भाई, उसकी कोई जरूरत न..." लेकिन उसकी बात पूरी होने से पहले लल्लू खड़ा हो गया, अपनी ओर मुंह करके निक्कर नीचे खिसका दिया, और अपना कड़क लंड बाहर निकाल लिया, जो नंदिनी के चेहरे के सामने झूलने लगा।
नंदिनी हैरान रह गई। उसकी नजर लल्लू के लंड पर टिक गई—मोटा आकार, गुलाबी-जामुनी टोपा, पीछे काली खाल, और उभरी हुई नसें। उसके बदन में बिजली दौड़ गई, और टांगों के बीच गीलापन महसूस हुआ। उस सुबह की झलक से अलग, आज वो इसे बारीकी से देख रही थी, हर हिस्से को अपनी आंखों में भर रही थी। लेकिन फिर उसे होश आया कि ये उसका भाई है। वो चेहरा घुमा ली और बोली, "ये तू क्या कर रहा है? इसे अंदर कर!"
लल्लू हंसते हुए बोला, "अरे दीदी, इतना शर्माओगी तो कैसे काम चलेगा? हमें भाई-बहन के साथ-साथ दोस्त भी बनना होगा।" नंदिनी ने चेहरा दूसरी ओर कर लिया, मन में द्वंद्व चल रहा था। एक ओर उसकी वासना जाग रही थी—जवान और गरम लड़की के सामने नंगा लंड, और पिछले दिनों सत्तू से दूर होने का असर।
दूसरी ओर सही-गलत का बोध उसे रोक रहा था। एक आवाज कह रही थी, "ये महापाप है, तेरा भाई है, समझदारी दिखाओ।" दूसरी आवाज गूंजी, "नीलम को सीख देती थी, अब खुद क्यों नहीं मानती? मां के साथ सबकुछ करने के बाद अब पाप पुण्य का डर?"
इतने में लल्लू ने उसका एक हाथ पकड़ा और अपने लंड पर रख दिया। उंगलियों पर लंड का स्पर्श होते ही नंदिनी के बदन में करंट दौड़ा। उसकी उत्तेजना कई गुना बढ़ गई। वो चेहरा फिर से लंड की ओर घुमा ली और उसे नशीली आंखों से देखने लगी। लल्लू ने अपना हाथ हटा लिया, लेकिन नंदिनी का हाथ वहीं रहा।
धीरे-धीरे उसने हाथ को आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। लल्लू अपनी बहन की उंगलियों के स्पर्श से पागल हो रहा था, आंखें बंद कर आनंद में डूब गया।
नंदिनी ने एक पल लल्लू के आनंदमग्न चेहरे को देखा, और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान खिल गई। उसकी खुद की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। वो खड़ी हो गई, लेकिन उसका हाथ लंड पर चलता रहा।
लल्लू ने आंखें खोली और अपनी बहन को खड़ी देखा। दोनों की आंखों में वासना साफ झलक रही थी। नंदिनी लल्लू के चेहरे पर बदलते भाव देखकर मन ही मन आनंदित हो रही थी। लल्लू समझ गया कि उसकी योजना कामयाब हो रही है। उसने हिम्मत दिखाई और अपना हाथ बढ़ाकर नंदिनी की कमर पर रख दिया, सूट के ऊपर से ही उसकी कमर और पीठ को सहलाने लगा।
नंदिनी की उत्तेजना हर पल बढ़ रही थी। वो पहली बार लंड को हाथ में ले रही थी। सत्तू के साथ उसके चक्कर थे, लेकिन इतनी दूर तक नहीं पहुंची थी। आज उसके हाथ में अपने सगे छोटे भाई का बड़ा लंड था। ये सोचकर उसकी चूत और गीली हो रही थी—पहले मां, अब भाई। सही-गलत का बोध धीरे-धीरे वासना के बादलों में खो गया। कुछ पल बाद दोनों के होंठ आपस में मिल गए, और उस मिलन की चिंगारी से उत्तेजना की आग जल उठी।
दोनों एक-दूसरे के होंठों को पागलों की तरह चूसने लगे। नंदिनी के चूसने में थोड़ा अनुभव था, जबकि लल्लू का जोश और उत्साह छलक रहा था। लल्लू अपनी बहन के रसीले होंठ चूसते हुए खुद को धन्य महसूस कर रहा था। उसकी उत्तेजना अब सीमा पार कर चुकी थी।
लंड पर नंदिनी का हाथ चल रहा था, और उसके हाथ नंदिनी की कामुक कमर और पीठ पर फिसल रहे थे। इसके लिए ये सब बहुत ज्यादा हो गया। नंदिनी ने अपने हाथ में लंड के ठुमके महसूस किए, और फिर उससे एक के बाद एक पिचकारी निकली—कुछ उसके हाथ को सना गई, कुछ जमीन पर गिरी। हांफते हुए दोनों के होंठ अलग हुए। लल्लू की आंखें बंद थीं, जबकि नंदिनी मुस्कुराते हुए कभी लंड, कभी अपने हाथ को देख रही थी।
कुछ पल बाद दोनों की सांसें सामान्य हुईं। लल्लू कुछ बोलने ही वाला था कि दरवाजे से लता की आवाज आई, "लल्ला, मैं आ गई!" नंदिनी तुरंत बोली, "धत्त, तेरी मां आ गई! जा, तू किवाड़ खोल, मैं ये साफ करती हूं।" लल्लू ने तुरंत अपना निक्कर ऊपर चढ़ाया, थोड़ी हालत सही की, और दरवाजे की ओर दौड़ पड़ा।
वहीं शहर में भी शाम होते होते आधी के करीब सब्जियां आदि बिक चुकी थी, और अभी सत्तू, उसकी मां झूमरी, छोटू, राजेश और सुभाष सब साथ में बैठ कर चाय की चुस्कियां लगा रहे थे।
सत्तू: पूरे दिन की मेहनत के बाद गरम चाय का मज़ा ही कुछ और है,
सुभाष: सही कहा लल्ला।
छोटू: पापा यहां कब तक का काम रह गया है और,
छोटू ने चाय सुड़कते हुए कहा,
सत्तू: क्यों छोटू उस्ताद एक दिन में ही गांव याद आ गया क्या?
राजेश: हां भैया इसे तो दोपहर में ही आ गया था।
सत्तू: अरे तुमने अभी शहर देखा नहीं है नहीं तो गांव को भूल जाओगे।
राजेश: सही में भैया?
सत्तू: और क्या, अरे चाचा अब कोई काम तो है नहीं तो मैं इन दोनों को घुमा लाता हूं थोड़ा शहर ? पहली बार आए हैं और शहर न देखें तो बेचारे मन ही मन दुखी होंगे।
सुभाष: अरे हां बिल्कुल, घूमेंगे तभी तो शहर के बारे में थोड़ा जानेंगे।
सुभाष ने हंसते हुए कहा, झुमरी भी चाय पीते हुए सबकी बातें सुन मुस्कुरा रही है,
सत्तू: तो क्या कहते हो दोनों चले?
छोटू को भी शहर देखने की उत्सुकता होती है और राजेश और छोटू दोनों साथ में कहते हैं चलो।
सुभाष: चलो तुम लोग घूम आओ तब तक मैं बचे एक दो बोरे अंदर गोदाम में रख दूंगा।
सत्तू: ठीक है चाचा, हम लोग आते हुए कुछ खाने के लिए ले आएंगे।
सत्तू राजेश और छोटू को लेकर निकल जाता है, सुभाष बचे हुए बोरे एक छोटी दुकान जो दो तीन घरों ने मिलकर किराए पर ले रखी थी सामान रखने के लिए उसमें रख देता है, झुमरी उसकी मदद करती है, दूसरी ओर सत्तू राजेश और छोटू को शहर घुमाता है दोनों पहली बार शहर की चकाचौंध देखकर आश्चर्यचकित थे, बड़ी बड़ी गाड़ियां, ऊंचे ऊंचे पक्के मकान, पक्की सड़क, अलग अलग तरह की दुकानें, शहर की औरतें और आदमी जिनकी वेशभूषा उनसे अलग जान पड़ रही थी, सत्तू एक ज्ञानी और अच्छे गुरु की तरह उन्हें सब कुछ बताता जा रहा था, शायद ये भी दिखा रहा था कि वो इस शहर को कितने अच्छे से जानता है।
अंधेरा हो चुका था सत्तू और छोटू और राजेश अभी तक शहर में घूम ही रहे थे वहीं गोदाम में एक अलग दृश्य चल रहा था, गोदाम के एक कोने में खाली बोरे बिछे हुए थे और उन पर सत्तू की मां झुमरी लेटी हुई थी, ब्लाउज़ खुला हुआ था और दोनों मोटी चूचियां ब्रा के बाहर थी जिन पर सुभाष के हाथ चल रहे थे, सुभाष उन्हें मसल रहा था।
झुमरी भी आंखें बंद कर अपनी चूचियों को मसलवाने का आनन्द ले रही थी और सुभाष के हाथों पर अपने हाथ रख उसका हौसला बढ़ा रही थी।
सुभाष: आह भाभी तुम्हारी इन चूचियों के तो हम हमेशा से ही दीवाने हैं आह इन्हे छूकर ऐसा लगता है मानो मक्खन की पोटलिया हैं।
सुभाष धीरे से फुसफुसाते हुए बोला।
झुमरी: उम्म तुमने ही दबा दबा कर इतनी बड़ी कर दी हैं कि सारे ब्लाउज़ कस के आते हैं।
सुभाष: अब हम मेहनत करें और फसल भी न बड़े तो किस बात के किसान हुए हम।
सुभाष ने हंसते हुए कहा। झुमरी पर इतनी भी जुताई मत करो न कि नई फसल उग जाए। भूलो मत ये खेत किसी और का है।
सुभाष: जानते हैं हमारे स्वर्गीय परम मित्र का है, पर अभी तो हमारे हवाले है, तो अब जुताई करें या बुवाई हमारे हाथ में हैं।
सुभाष ने झुमरी की साड़ी और पेटीकोट को उसकी कमर तक उठा दिया और झुमरी की नंगी गीली चूत उसके सामने आ गई जिसे वो अपनी उंगलियों से सहलाने लगा।
झुमरी: आह उम्म नहीं,
झुमरी उसकी हरकतों से सिसकते हुए बोली।
सुभाष: ऐसे कैसे नहीं भाभी, जुताई से पहले थोड़ा खेत को जांच तो लें कि कैसा हैं।
सुभाष ने अपनी उंगली झुमरी की चूत में उतारते हुए कहा।
झुमरी: आह आराम से,
कुछ पल यूं ही उंगली से झुमरी की चूत को छेड़ने के बाद सुभाष ने अपना पजामा नीचे खिसका कर उतार दिया और झुमरी की टांगों को फैलाते हुए उनके बीच आ गया, और फिर अपने लंड को पकड़ कर झुमरी की चूत पर लगाया तो झुमरी तड़प उठी।
सुभाष: डाल दूं? उसने झुमरी के तड़पते चेहरे को देख कर कहा।
झुमरी: हां जल्दी करो बच्चे आते ही होंगे। न जाने क्या मजा आता है यूं तड़पाने में।
सुभाष: ये ही तो मजा है भाभी, तुम्हारे चेहरे पर लंड की प्यास देख एक अलग सुख मिलता है।
झुमरी: आह जल्दी करो न।
सुभाष: फिर ये लो।
ये कह सुभाष अपना लंड झुमरी की चूत में घुसा देता है, झुमरी के मुंह से आह निकलती है और सुभाष झुमरी के पैरों को थाम कर धक्के लगा कर उसे चोदने लगता है।
इधर छोटू और सत्तू खाना लेकर चले आ रहे थे, मंडी के बाहर ही उन्हें राजेश मिलता है,
सत्तू: अरे तू गया नहीं अंदर?
राजेश: अरे भैया मैं भूल गया था, किस ओर से आएगी अपनी दुकान और किधर है, तो खो न जाऊं इसलिए रुक गया,
छोटू: अरे यार तू भी इसमें कहां खो जाएगा, बुद्धू, आ चल मैं दिखाता हूं रास्ता।
राजेश कुछ नहीं कहता और कुछ सोचते हुए आगे बढ़ जाता है गोदाम के बाहर ही उन्हें सुभाष और झुमरी मिलते हैं जो बैठ कर बातें कर रहे थे, फिर सब मिलकर खाना खाने लगते हैं, राजेश थोड़ा सोच में होता है।
गांव में अंधेरा होते तक संजय भी पानी लगा कर घर आता है, तब तक औरतों ने भैंसों और खाने पीने का सारा काम निपटा लिया था, संजय अंदर आकर नल पर हाथ पैर धोता है नीलम अपने पापा के लिए नल चलाती है, इसी बीच उसकी नजर एक बार पुष्पा से मिलती है जो चूल्हे के पास बैठी दूध उबाल रही थी, दोनों की नज़र मिलती है वैसे ही दोनों अपनी अपनी नजर फेर लेते हैं दोनों जानते थे आज खेत में जो हुआ वो उनके परिवार के लिए सही नहीं था, पुष्पा के मन में भी बहुत से विचारों का तूफान आया हुआ था एक ओर अपनी बहन जैसी देवरानी जिसके साथ आज उसने वो सब किया था जो कभी सोचा भी नहीं था, और फिर दोपहर में देवर के साथ जो हुआ वो, उसे समझ नहीं आ रहा था वो किसके साथ धोखा कर रही थी, देवरानी सुधा के साथ, देवर संजय के साथ या अपने पति सुभाष के साथ, अपने पति के साथ तो वो तभी धोखा कर चुकी थी जब बेटे के साथ सब कुछ किया था। उसे समझ नहीं आ रहा था उसके साथ हो क्या रहा है। खैर खाना पीना हो ही रहा था कि तभी रत्ना आई।
सुधा: अरे रत्ना जीजी, आओ आओ बैठो।
रत्ना: और सब काम निपट गए?
पुष्पा: हां सब निपट गया तुम बताओ, सब हो गया।
रत्ना: हां रानी संभाल लेती है अभी तो सब।
फुलवा: चल अच्छा है बिटिया है तो तुझे थोड़ा आराम मिल रहा है।
रत्ना: हां चाची ये तो है, अरे चाची मैं कह रही थी कि आज तुम हमारे यहां सो जाती तो, भूरा के पापा भी नहीं है और राजू खेत पर है, बस भूरा है वो भी अभी बालक है।
फुलवा: हां क्यों नहीं इसमें क्या संकोच की बात, और कोई चिंता की बात तो नहीं है न?
पुष्पा: हां जीजी सब ठीक है न?
रत्ना: हां बस थोड़े अजीब और डरावने सपने आते हैं।
सुधा: कैसे सपने जीजी?
रत्ना सोच कर बोलती है: थोड़े डरावने से आते हैं और अजीब से उन्हें समझाना मुश्किल है।
फुलवा: अच्छा कोई नहीं कल सुबह ही चल मेरे साथ बहू, झाड़ा लगवा लेंगे सब सही हो जाएगा।
रत्ना को भी फुलवा की बात ठीक लगी और सोच कर बोली: ठीक है चाची, कल चलते हैं।
कुछ ही देर में फुलवा रत्ना के साथ चली गई, और घर पर बाकी लोग भी खा पी कर सोने की तैयारी करने लगे,
संजय खाना खा चुका तो सुधा उसकी थाली लेने आई तो संजय बोला: सुनो आज घर पर कोई और नहीं है तो सोच रहा हूं मैं आंगन में सो जाता हूं।
सुधा: ठीक है नीलम भी कह रही थी उसे डर लग रहा है तो वो मेरे साथ कमरे में सो जाएगी।
संजय: भाभी से भी पूछ लो अगर उन्हें डर लगे तो उन्हें भी अपने पास ही सुला लेना।
पुष्पा: पूछा मैंने वो नहीं डरती बिल्कुल, वैसे भी कमरे को खाली नहीं छोड़ सकते।
संजय: हां चलो ठीक है जैसा तुम्हे सही लगे, मेरा बिस्तर ला दो।
सुधा: नीलाम ओह नीलम अपने पापा का बिस्तर लगा दे ज़रा।
नीलम: अभी लाई मां।
सब दूध वगैरह पी कर लेट चुके थे, और कुछ तो सो भी चुके थे, पर संजय की आँखों से नींद गायब थी, उसके सामने बार बार जो कुछ दोपहर को हुआ वो आ रहा था, उसकी भाभी का कामुक बदन, उनके होंठों का रस, उनके पेट का वो मखमली स्वाद ये सोच कर ही उसके बदन में अजीब सी सिहरन हो रही थी, उसका लंड भी अकड़ रहा था, पर साथ ही वो ये भी जानता था कि कोई भी गलत कदम उसके परिवार के लिए कितना बुरा हो सकता था, उसने फिर सोचा क्यों न अपनी गर्मी सुधा पर मिटा ली जाए जब तक जाऊंगा तो ये सब विचार ही नहीं आएंगे। ये सोच वो बिस्तर से उठा और अपने कमरे की ओर बढ़ा, कमरे के दरवाज़े को हल्का सा खोल कर उसने अंदर झांका तो देखा कि नीलम और सुधा दोनों ही सो चुके थे और नीलम अपनी मां से चिपक कर सो रही थी, तो सुधा को जगाने का प्रयास भी करता तो नीलम का जागना तय था।
वो बापिस अपने बिस्तर पर आ गया एक बेचैनी सी उसके मन में हो रही थी, वो फिर से लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा, करीब एक घंटा बीत गया उसे करवट बदलते बदलते पर आज नींद उसकी आंखों से भाग रही थी, बार बार उसकी भाभी का बदन उसे सोने नहीं दे रहा था, वो एक बार फिर से उठा और अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ, और धीरे धीरे कुछ सोचते हुए कदम बढ़ाने लगा, पद पर इस बार उसके कदम अपनी भाभी के कमरे की ओर बढ़ रहे थे,
धीरे धीरे वो कमरे के बाहर पहुंच गया और उसने हल्का सा दरवाज़ा धकेला तो उसे खुला पाया उसने दरवाज़े को थोड़ा सा और बड़ी सावधानी से खोला उतना की जितने से वो अंदर झांक सके, उसने सिर आगे कर अंदर झांका तो सामने के नज़ारे पर उसकी आँखें जमीं रह गईं,
दिए की हल्की रोशनी में उसने देखा कि उसकी भाभी पुष्पा दरवाज़े की ओर ही करवट लेकर सो रही है, पल्लू एक ओर को ढलका हुआ है जिससे उसका मखमली पेट, गोल गहरी नाभी दिखाई दे रही है, तभी हवा का एक झोंका आता है और पुष्पा के पल्लू को और हटा देता है जिससे उसका पेट और ब्लाउज में कसी बड़ी चूची उजागर हो जाती है,
वहीं वो उसके चेहरे को देखता है जिस पर कामुक भाव हैं उसका बदन भी ऐसे हिल रहा है ऐसे मचल रहा है जैसे सपने में ज़रूर कुछ कामुक घटना को देख रही है, सोते हुए ही पुष्पा अपने होंठों को हल्का सा काटती है, जिससे संजय को अंदाज़ा हो जाता है कि पुष्पा किस तरह का सपना देख रही है।
संजय दरवाजे से झांकते हुए ये सब देखता रहता है, वो अभी भी वहीं खड़ा है शायद मन में तय कर रहा है आगे क्या करना चाहिए, मन में खयाल आता है अपने बिस्तर पर बापिस चला जाए, पर सामने पुष्पा का बदन उसे जाने से रोक रहा है। संजय फिर से सोच में पड़ जाता है उसके कदम कुछ पीछे होते है पर फिर अगले ही पल वो कमरे के अंदर घुस जाता है और किवाड़ अंदर से बंद कर लेता है सावधानी से, धीरे से वो पुष्पा के पास आता है पुष्पा अभी भी सपनों की दुनिया में खोई हुई है, संजय पास आकर धीरे से है हाथ बढ़ाता है उसका हाथ आगे जाते हुए कांप रहा है थोड़ा आगे बढ़ा कर वो हाथ को बापिस खींच लेता है,
और अपने फैसले पर दोबारा सोचने लगता है, कुछ पल बाद फिर से हाथ बढ़ाता है और बहुत धीरे से पुष्पा का पल्लू पकड़ लेता है और उसके सीने और पेट से हटा देता है एक बार फिर से पुष्पा का पूरा पेट और ब्लाउज़ से झांकती उसकी चूचियां संजय की आंखों के सामने होती हैं वो पुष्पा के बगल में बिस्तर पर बहुत आराम से चढ़ जाता है और धीरे से अपने हाथ को पुष्पा के पेट पर रखता है, उसके पेट का स्पर्श पाते ही मानो संजय के बदन में बिजली दौड़ जाती है उत्तेजना की, वो अगले ही पल सब मर्यादा और डर भूलने लगता है और पुष्पा के ऊपर झुकता चला जाता है, उसके पेट को सहलाते हुए वो चूमने लगता है, और अपनी प्यास को पुष्पा के बदन से मिटाने की कोशिश करने लगत है।
पुष्पा जो कामुक सपने देख रही थी उसे ये भी सपने का हिस्सा ह
हिस्सा समझती है और संजय पुष्पा की ओर से विरोध न देख इसे आगे के लिए अच्छा संकेत समझता है और उत्तेजित होकर पुष्पा के मखमली पेट और कमर को मसलने लगता है जो पुष्पा की नींद की अवस्था के लिए भी थोड़ा ज़्यादा हो गया और पुष्पा की आंख खुल जाती है, वो चौंक कर देखती है और पाती है कि उसके बदन से कोई खेल रहा है और जैसे ही चेहरा दिखता है वो थोड़ा चौंकती है अपने देवर को देख कर।
वो पल भर के लिए सुन्न रह जाती है और समझ नहीं पाती क्या करे, उसका बदन उसकी उत्तेजना उसके देवर के द्वारा उसके बदन को मसले जाने पर कुछ अलग ही आनंद में मचलने लगते हैं, वो समझ नहीं पाती क्या करूं? रोकूं देवर को या नहीं, दिमाग कहता है रोक ले इस महापाप को होने से, इससे बहुत से रिश्ते पूरा परिवार बिखर सकता है, तो बदन और मन कह रहा था इतने दिनों से जो प्यासी है वो प्यास बुझा ले, कब तक तड़पाएगी खुद को।
पुष्पा कुछ सोच कर अपने हाथ बढ़ाती है और संजय का सिर अपने पेट पर पकड़ लेती है और उसे खींच कर ऊपर लाती है, अपने चेहरे के सामने, संजय पुष्पा को जागते हुए देखता है तो घबरा जाता है उसे सब खराब होता नज़र आने लगता है, पुष्पा उसकी आंखों में देख कर ना में सिर हिलाती है,
पुष्पा: देवर जी नहीं, जाओ यहां से।
संजय: भाभी मैं वो।
पुष्पा: सब के लिए यही अच्छा हो..
पुष्पा इतना ही बोल पाती है कि संजय अपने होंठों को उसके होंठों पर रख देता है और चूसने लगता है, पुष्पा थोड़ा मचलती है पर वो बिना फिक्र के अपनी भाभी के होंठों को चूसने लगता है, कुछ ही पलों में संजय को हैरानी होती है। जब पुष्पा उसका साथ देने लगती है, पुष्पा भी उतनी ही उत्तेजित थी शायद ज़्यादा संजय को रोकने की कोशिश उसकी आखिरी कोशिश साबित होती है खुद को रोकने की भी और अब वो भी खुल कर संजय का साथ दे रही होती है, संजय अपनी भाभी का साथ पाकर और मस्त हो जाता है और उसके रसीले होंठों का रस दोपहर के बाद दोबारा पीने लगता है।
कुछ देर बाद होंठ अलग होते हैं दोनों हाँफ रहे होते हैं पर उत्तेजना कम नहीं होती, संजय पुष्पा की गर्दन को चूमते हुए नीचे सरकता है और पुष्पा के ब्लाउज में से झांकती मोटी चूचियों के बीच अपना मुंह घुसा कर चाटने लगता है।
पुष्पा: आह देवर जी उम्म आह
संजय: अहम्म भाभी उम्म।
संजय पुष्पा के बदन को लगातार चाटते हुए आहें भरते हुए कहता है, साथ ही उसके हाथ ब्लाउज के ऊपर से ही पुष्पा की मोटी और कोमल चूचियों को दबा रहे थे,
दोनों की उत्तेजना की सीमा नहीं थी, पुष्पा को तो जैसे ऐसा लग रहा था जैसे कितने समय की प्यास आज मिट रही थी, बदन की गर्मी को संजय का साथ मिटा रहा था, वहीं संजय तो अपनी भाभी का बदन पाकर जन्नत में था, और उसके कामुक बदन को भोग रहा था,
चूचियों के बाद संजय नीचे सरकता है और अपने होंठ पुष्पा के पेट पर रख लेता है और पागलों की तरह उसे चाटने चूमने लगता है, उसके हाथ पुष्पा की केले के तने जैसी जांघों पर घूमने लगते हैं और वो धीरे धीरे से पुष्पा की साड़ी और पेटीकोट को ऊपर सरकाने लगता है और घुटनों के ऊपर ले आता है, पुष्पा की गोरी टांगें और जांघों का कुछ हिस्सा दिए की रोशनी में चमकने लगता है, पुष्पा के मुंह से लगातार सिसकियां निकल रही है उसके हाथ लगातार संजय के सिर और पीठ पर चल रहे हैं।
पुष्पा: आह संजय, ओह देवर जी ऐसे ही आह।
संजय तो जैसे सब कुछ भूल चुका था उसे अभी बस अपनी भाभी का कामुक बदन नज़र आ रहा था, जिसका स्वाद वो लेने की हर पूरी कोशिश कर रहा था, कभी उसके पेट को चाटता तो कभी नाभी में जीभ डाल कर चूसता तो कभी उसके पेट की मखमली त्वचा को अपने चेहरे पर महसूस करता।
उसके नीचे पड़ी पुष्पा उसकी हरकतों से मचल रही थी, संजय की उत्तेजना अब बढ़ती जा रही थी पर वो पुष्पा के बदन को बहुत धीरज के साथ भोग रहा था, मानो उसके एक एक अंग का स्वाद लेना चाहता हो।
पेट को चूसते हुए ही उसके हाथ पुष्पा की साड़ी में चलने लगे और उसने जल्दी ही पुष्पा की साड़ी को बिस्तर के नीचे फेंक दिया अब पुष्पा नीचे सिर्फ पेटीकोट में थी और वो भी उसकी जांघों में इक्कठा हो रखा था।
बाहर दिन में हुईं बारिश के कारण मौसम ठंडा था, ठंडी हवा चल रही थी, पर कमरे के अंदर उतनी ही गर्मी हो रही थी,दोनों बदन मिल कर गर्मी को और बढ़ा रहे थे,
संजय ने हाथ ऊपर की ओर बढ़ाया और खुद भी ऊपर आया और एक बार फिर से पुष्पा के होंठों को चूसने लगा वहीं उसके हाथ पुष्पा के ब्लाउज़ के बटनों को खोलने लगे, जल्दी ही सारे बटन खुल गए तो संजय ने अपने होंठ अलग किए और फिर नीचे सरक कर अपने चेहरे को पुष्पा की छाती के सामने लाया और फिर धीरे से दोनों पाटों को अलग किया तो पुष्पा की मोटी और बड़ी चूचियां उसके सामने आ गईं जिन्हें देख उसकी आँखें चौड़ी हो गईं उसने कुछ ही पलों में ब्लाउज़ को भी उसके बदन से अलग कर नीचे साड़ी के पास फेंक दिया,
पुष्पा के बदन पर सिर्फ पेटीकोट था जो उसकी जांघों तक सिमटा हुआ था, पुष्पा के नंगे चूचों को देख कर संजय भूखे की तरह उन पर टूट पड़ा और मसलते हुए उन्हें चूसने लगा, पुष्पा उसकी हर हरकत से मछली की तरह मचल रही थी, कभी चूची को चूसता तो कभी पेट को चाटता वहीं उसके हाथ पुष्पा के पेट से लेकर जांघों और फिर उसकी चूत के आस पास घूम रहे थे जिससे पुष्पा और मचल रही थी।
पुष्पा के बदन से खेलते हुए ही संजय ने अपने कपड़े निकालने भी शुरू कर दिए और जल्दी ही पूरा नंगा हो गया था, उसका लंड बिलकुल अकड़ कर खड़ा था और पुष्पा के नंगे बदन को देख देख ठुमके मार रहा था, खुद नंगा होकर संजय ने पुष्पा के पेटीकोट को भी उसके बदन से दूर कर दिया, अब दोनों देवर भाभी नंगे थे एक दूसरे के सामने एक ही बिस्तर पर, दोनों के ही साथी इस बात से अनजान थे,
संजय की पत्नी तो उनसे कुछ दूर दूसरे कमरे में आराम से सो रही थी इस बात से बेखबर कि उसका पति और उसकी जेठानी एक ऐसे रास्ते पर थे जो उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल सकता था, वहीं उनसे मीलों दूर पुष्पा का पति सुभाष मंडी में गोदाम के बाहर बोरे बिछा कर सो रहा था उसके साथ उनका बेटा छोटू और संजय का बेटा राजेश भी था, सब लोग कमरे में चल रहे काम के खेल से अनजान हो कर सो रहे थे।
संजय ने फिर अपने लंड को पकड़ा और पुष्पा की टांगों को फैलाकर उनके बीच जगह ली, और अपने लंड को पुष्पा की चूत पर रखा, पुष्पा की गरम गीली चूत पर लंड का स्पर्श होते ही दोनों के मुंह से आह निकल गई,
संजय: आह भाभी मैंने इस पल के बारे में न जाने कितनी बार सोचा है,
पुष्पा: क्या सच में तुम पहले से ये सब करना चाहते थे मेरे साथ?
संजय: हां भाभी जबसे तुम ब्याह के घर में आई तब से ही, पर संस्कारों और मर्यादा के चलते ये सब छुपा कर रखा हमेशा हमेशा खुद को रोक लिया,
संजय अपने लंड को पुष्पा की चूत पर घिसते हुए कहता है।
पुष्पा: अब आह अब रुकने की जरूरत नहीं है देवर जी, आह घुसा दो और पूरी कर लो अपनी इच्छा,
संजय: हां भाभी अब नहीं रुकूंगा।
ये कह संजय क़मर को झटका देता है और उसका लंड पुष्पा की गरम चूत में समा जाता है, दोनोके मुंह से गरम आहें निकलने लगती हैं, दोनों इस अदभुत पल के अहसास को इस आनंद को अपने अंदर समाने लगते हैं, इस अनैतिक संबंध की सोच इस वर्जित संबंध का अहसास उन्हें और उत्तेजित कर रहा था, संजय धीरे धीरे पुष्पा की चूत में धक्के लगाने लगता है पुष्पा हर धक्के पर सिसकने लगती है, हर पल के साथ संजय के धक्कों की गति बढ़ती जाती है, और कुछ ही देर में संजय ताबड़तोड़ धक्कों के साथ अपनी भाभी को चोद रहा था, पुष्पा की लगातार आहें और सिसकियां निकल रही थी
पुष्पा कभी उत्तेजित होकर अपनी चूचियां मसलती तो कभी संजय का हाथ पकड़ कर उसे थोड़ा धीरे करने को कहती पर संजय तो जैसे एक अलग ही दुनिया में था, इतना उत्तेजित वो कभी नहीं हुआ था, ऐसा आनंद उसे कभी नहीं आया था जो उसे अपनी भाभी की चूत में मिल रहा था, वो चाहता भी तो अब खुद को नहीं रोक सकता था, उसकी कमर मशीन की तरह आगे पीछे हो रही थी और उसका लंड उसकी भाभी की चूत में अंदर बाहर हो रहा था,
शहर में सुभाष और छोटू चैन से सो रहे थे इस बात से बेखबर होकर कि गांव में उनकी पत्नी और मां नंगी होकर, उनके भाई या चाचा से चुद रही थी। शहर में भी ऐसा नहीं था जो हर कोई सो रहा था, संजय जहां गांव में जाग रहा था तो उसका बेटा राजेश भी सो नहीं पा रहा था, उसे नींद नहीं आ रही थी, उसकी आंखों के सामने कुछ दृश्य बार बार आ रहे थे, वो दृश्य पुराने नहीं थे बल्कि आज शाम के ही थे जब वो छोटू और सत्तू शहर घूम कर बापिस आ रहे थे तो सत्तू और छोटू खाना लेने के लिए ढाबे पर रुक गए थे और वो मंडी में चला आया था, उसने इधर उधर देखा तो उसे अपने ताऊ यानि सुभाष और सत्तू की मां झुमरी कहीं नहीं दिखाई दी वो गोदाम के पास पहुंचा तो देखा कि उसके किवाड़ लगे हुए थे, पर उसे अंदर से हल्की हल्की आवाज़ आ रही थी, राजेश ने पास जाकर किवाड़ को ध्यान से देखा तो उसे एक छोटा सा छेद दिखा,उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई की कोई उसे देख तो नहीं रहा और फिर अपनी आंख उस छेद पर लगा दी और जो उसे अंदर दिखा उसे देख वो चौंक गया। अंदर उसके ताऊजी सत्तू की मां को नीचे लिटाकर चोद रहे थे। ये सब देख राजेश तब से सोच में था उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, क्या किसी को बताए इस बारे में, क्या सत्तू को? नहीं नहीं गड़बड़ हो जाएगी, क्या छोटू को? पर कैसे? साथ ही उसका जवान बदन ये नज़ारा सोच सोच कर उत्तेजित भी हो रहा था।
इधर गांव में संजय के धक्के बिल्कुल लगभग बेकाबू हो गए थे और वो गुर्राते हुए पुष्पा की चूत में झड़ रहा था, पुष्पा भी इस तगड़ी चुदाई के दौरान झड़ चुकी थी, और अभी अपनी चूत में अपने देवर के रस को भरता हुआ महसूस कर रही थी, संजय झड़ने के बाद पुष्पा के ऊपर ही पसर गया और कुछ देर यूं ही लेटा रहा और जब पुष्पा ने उससे कहा वो दब रही है तो वो उसके ऊपर से हटा और उसका लंड भी पुष्पा की चूत से निकल गया, दोनों लेट कर हांफने लगे। धीरे धीरे शांत होने पर दोनों के अब दिमाग में चलने लगा कि उन्होंने अभी क्या किया है, और ग्लानि के भाव आने लगे, अक्सर ऐसा होता है वासना के बादल हटने पर सच्चाई की धूप अक्सर ग्लानि की गर्मी में लोगों को जलाती है। यही दोनों के साथ हो रहा था।
संजय ने पुष्पा की ओर देखा तो वो छत की ओर खुली आंखों से देखे जा रही थी, उसकी मोटी चूचियां उसकी सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रहीं थीं, संजय ने उसकी ओर करवट ली और अपना हाथ उसने पुष्पा के पेट पर रखा, जिसे रखते ही पुष्पा ने उसे अपने ऊपर से झटक दिया, जिससे संजय को हैरानी हुई।
पुष्पा: अब जाओ संजय।
पुष्पा बिना उसकी ओर देखे बोली, संजय को भी यही सही लगा, अभी इस हालत में उसे अकेला ही छोड़ देना सही होगा, संजय उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर से किवाड़ भिड़ा कर चला गया, पुष्पा अभी भी छत की ओर देखे जा रहीथी और फिर अचानक उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई।
जारी रहेगी।
Shandaar updateअध्याय 24
बारिश की मंद-मंद बूंदें छप्पर की छत पर टपक रही थीं, और रत्ना उसकी ठंडी आहट को सुनते हुए गहरी सोच में डूबी थी। उसका मन उसके हाल के सपनों से भरा हुआ था—सपने जो उसे रातों को पसीने से तर-बतर कर देते थे।
छप्पर के नीचे पुरानी खाट पर बैठी, उसकी उंगलियां अनजाने में अपनी साड़ी के पल्लू को मरोड़ रही थीं। बारिश की हर बूंद उसके अंधविश्वासी स्वभाव को और गहरे में धकेल रही थी। क्या ये सपने कोई संकेत थे? क्या उसके ससुर प्यारेलाल की आत्मा उसे कुछ बताना चाहती थी, जिस रात उसने उनकी मृत्यु से पहले उनके साथ वो अनचाहा पल बिताया था? या फिर ये किसी और गहरे रहस्य की ओर इशारा था, जिसे वो समझ नहीं पा रही थी?
उसके सपनों में भूरा, लल्लू, और छोटू का चेहरा था—उसके बेटे और उसके दोस्त, जो उसे नंगी हालत में चोद रहे थे। फिर वो दृश्य बदलता, और राजू—उसका बड़ा बेटा—उसकी चूत में लंड डाले हुए था, जबकि रानी मां-मां चीख रही थी, और तीन पुरुष उसे घेरे हुए थे। ये सब सोचकर रत्ना का बदन कांप उठता था, और साथ ही उसकी चूत में एक अनचाही गर्मी भी महसूस होती थी। वो जानती थी कि ये सपने इतने अश्लील और निंदनीय थे कि इन्हें किसी से साझा नहीं कर सकती। उसने मन ही मन सोचा, "क्या कोई टोटका है जो इन सपनों को दूर कर सके? क्या केलाबाबा की मदद ली जाए?" लेकिन डर था कि उन्हें कहूंगी क्या? जो देखा वो तो नहीं कह सकती। बारिश की बूंदों के साथ उसकी सोच भी बह रही थी, और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।
दूसरी ओर शाम ढलते-ढलते बारिश की रफ्तार धीमी पड़ गई और आखिरकार थम गई। लता ने घर के लिए ताजी सब्जियां तोड़ने का फैसला किया और खेत की ओर चल पड़ी, जिससे लल्लू और नंदिनी को घर में अकेला समय मिल गया। नंदिनी का मन घबराया हुआ था। रात की घटना—जब लल्लू ने उसे मां-पापा की चुदाई देखते हुए पकड़ा था—उसके दिमाग में चक्कर काट रही थी। वो आंगन में खाट पर बैठी, अपने हाथों को सलवार के किनारे से मरोड़ रही थी, जबकि लल्लू भीतर से बाहर निकला और उसकी ओर देखने लगा।
लल्लू ने सोचा कि अगर वो नंदिनी को डराएगा या जोर-जबरदस्ती करेगा, तो सब बिगड़ सकता है। उसे प्यार से और समझदारी से कदम उठाने थे। वो धीरे से नंदिनी के पास जाकर बैठ गया और बोला, "दीदी, रात जो हुआ, उसके बारे में बात करना चाह रहा हूं, पर समझ नहीं आ रहा क्या बोलूं।" नंदिनी चुप रही, उसकी नजरें ज़मीन पर गड़ी थीं। लल्लू ने हिम्मत जुटाई और कहा, "वैसे जो तुम महसूस कर रही थी, मुझे भी होता है। कभी-कभी मेरे अंदर ऐसी उत्तेजना और गर्मी बढ़ जाती है कि काबू नहीं रहता।" नंदिनी ने उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं बोली।
लल्लू ने आगे बढ़ते हुए कहा, "मुझे पता है तुम्हारे साथ भी रात वही हुआ होगा, तभी तुम मां-पापा की... चुदाई देख रही थी।" चुदाई शब्द बोलते वक्त उसकी आवाज में हल्की झिझक थी, ताकि नंदिनी की प्रतिक्रिया देख सके। नंदिनी ने उसकी आंखों में देखा और फिर नजरें नीचे कर लीं, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।
लल्लू ने बात को और खोला, "शायद ये ही जवानी का जोश है। सच कहूं तो दीदी, मेरा तो हमेशा यही हाल रहता है। हर समय उत्तेजना बदन में महसूस होती है और नीचे तना हुआ रहता है।" उसने अपने लंड की ओर इशारा किया, जो निक्कर में साफ उभार बना रहा था।
नंदिनी ने पहली बार मुंह खोला, "तू इस बारे में किसी को कुछ कहेगा तो नहीं?" लल्लू के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई कि नंदिनी ने कुछ कहा।
वो बोला, "अरे नहीं दीदी, तुम्हारी और मेरी बात मैं क्यों कहूंगा किसी से? और हम भाई-बहन एक-दूसरे की परेशानी नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा, क्यों दीदी?"
नंदिनी थोड़ी असमंजस में बोली, "हां... सही कह रहा है।"
लल्लू ने मौके का फायदा उठाया, "अब देखो, मेरी परेशानी तो अब भी सिर उठाए हुए खड़ी है।" उसने अपने निक्कर में बने तंबू की ओर इशारा किया। नंदिनी की नजर उस उभार पर पड़ी, और वो हैरान रह गई। फिर सकुचाकर नजर हटा ली, लेकिन उसके बदन में एक सिहरन दौड़ गई। नंदिनी ने कहा, "तू ये सब क्या बातें कर रहा है? भाई-बहन को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।" लल्लू जानता था कि नंदिनी को मनाना आसान नहीं होगा।
वो बोला, "अरे दीदी, फिर मैं ऐसी बातें किससे करूं? तुम भी मेरी तरह उत्तेजित थी, तभी तो उस दिन नंगी सो रही थी और फिर रात को मां-पापा को देख रही थी। अब तुमसे अच्छा कौन मेरी परेशानी समझेगा?" नंदिनी उसकी बातें सुनकर सकुचाई, क्योंकि लल्लू ने उसकी गलतियों को याद दिला दिया था और ये भी साफ कर दिया कि अभी उसका पलड़ा भारी था। नंदिनी ने धीरे से कहा, "हां, वो मैं मानती हूं। और तेरी बात समझती हूं।"
लल्लू ने मौका देखते हुए कहा, "अरे दीदी, तुम नहीं समझती, मैं इस वजह से कितना परेशान रहता हूं। लगता है तुम्हें दिखाना पड़ेगा तभी तुम मानोगी।" नंदिनी ने घबराते हुए कहा, "अरे नहीं भाई, उसकी कोई जरूरत न..." लेकिन उसकी बात पूरी होने से पहले लल्लू खड़ा हो गया, अपनी ओर मुंह करके निक्कर नीचे खिसका दिया, और अपना कड़क लंड बाहर निकाल लिया, जो नंदिनी के चेहरे के सामने झूलने लगा।
नंदिनी हैरान रह गई। उसकी नजर लल्लू के लंड पर टिक गई—मोटा आकार, गुलाबी-जामुनी टोपा, पीछे काली खाल, और उभरी हुई नसें। उसके बदन में बिजली दौड़ गई, और टांगों के बीच गीलापन महसूस हुआ। उस सुबह की झलक से अलग, आज वो इसे बारीकी से देख रही थी, हर हिस्से को अपनी आंखों में भर रही थी। लेकिन फिर उसे होश आया कि ये उसका भाई है। वो चेहरा घुमा ली और बोली, "ये तू क्या कर रहा है? इसे अंदर कर!"
लल्लू हंसते हुए बोला, "अरे दीदी, इतना शर्माओगी तो कैसे काम चलेगा? हमें भाई-बहन के साथ-साथ दोस्त भी बनना होगा।" नंदिनी ने चेहरा दूसरी ओर कर लिया, मन में द्वंद्व चल रहा था। एक ओर उसकी वासना जाग रही थी—जवान और गरम लड़की के सामने नंगा लंड, और पिछले दिनों सत्तू से दूर होने का असर।
दूसरी ओर सही-गलत का बोध उसे रोक रहा था। एक आवाज कह रही थी, "ये महापाप है, तेरा भाई है, समझदारी दिखाओ।" दूसरी आवाज गूंजी, "नीलम को सीख देती थी, अब खुद क्यों नहीं मानती? मां के साथ सबकुछ करने के बाद अब पाप पुण्य का डर?"
इतने में लल्लू ने उसका एक हाथ पकड़ा और अपने लंड पर रख दिया। उंगलियों पर लंड का स्पर्श होते ही नंदिनी के बदन में करंट दौड़ा। उसकी उत्तेजना कई गुना बढ़ गई। वो चेहरा फिर से लंड की ओर घुमा ली और उसे नशीली आंखों से देखने लगी। लल्लू ने अपना हाथ हटा लिया, लेकिन नंदिनी का हाथ वहीं रहा।
धीरे-धीरे उसने हाथ को आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। लल्लू अपनी बहन की उंगलियों के स्पर्श से पागल हो रहा था, आंखें बंद कर आनंद में डूब गया।
नंदिनी ने एक पल लल्लू के आनंदमग्न चेहरे को देखा, और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान खिल गई। उसकी खुद की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। वो खड़ी हो गई, लेकिन उसका हाथ लंड पर चलता रहा।
लल्लू ने आंखें खोली और अपनी बहन को खड़ी देखा। दोनों की आंखों में वासना साफ झलक रही थी। नंदिनी लल्लू के चेहरे पर बदलते भाव देखकर मन ही मन आनंदित हो रही थी। लल्लू समझ गया कि उसकी योजना कामयाब हो रही है। उसने हिम्मत दिखाई और अपना हाथ बढ़ाकर नंदिनी की कमर पर रख दिया, सूट के ऊपर से ही उसकी कमर और पीठ को सहलाने लगा।
नंदिनी की उत्तेजना हर पल बढ़ रही थी। वो पहली बार लंड को हाथ में ले रही थी। सत्तू के साथ उसके चक्कर थे, लेकिन इतनी दूर तक नहीं पहुंची थी। आज उसके हाथ में अपने सगे छोटे भाई का बड़ा लंड था। ये सोचकर उसकी चूत और गीली हो रही थी—पहले मां, अब भाई। सही-गलत का बोध धीरे-धीरे वासना के बादलों में खो गया। कुछ पल बाद दोनों के होंठ आपस में मिल गए, और उस मिलन की चिंगारी से उत्तेजना की आग जल उठी।
दोनों एक-दूसरे के होंठों को पागलों की तरह चूसने लगे। नंदिनी के चूसने में थोड़ा अनुभव था, जबकि लल्लू का जोश और उत्साह छलक रहा था। लल्लू अपनी बहन के रसीले होंठ चूसते हुए खुद को धन्य महसूस कर रहा था। उसकी उत्तेजना अब सीमा पार कर चुकी थी।
लंड पर नंदिनी का हाथ चल रहा था, और उसके हाथ नंदिनी की कामुक कमर और पीठ पर फिसल रहे थे। इसके लिए ये सब बहुत ज्यादा हो गया। नंदिनी ने अपने हाथ में लंड के ठुमके महसूस किए, और फिर उससे एक के बाद एक पिचकारी निकली—कुछ उसके हाथ को सना गई, कुछ जमीन पर गिरी। हांफते हुए दोनों के होंठ अलग हुए। लल्लू की आंखें बंद थीं, जबकि नंदिनी मुस्कुराते हुए कभी लंड, कभी अपने हाथ को देख रही थी।
कुछ पल बाद दोनों की सांसें सामान्य हुईं। लल्लू कुछ बोलने ही वाला था कि दरवाजे से लता की आवाज आई, "लल्ला, मैं आ गई!" नंदिनी तुरंत बोली, "धत्त, तेरी मां आ गई! जा, तू किवाड़ खोल, मैं ये साफ करती हूं।" लल्लू ने तुरंत अपना निक्कर ऊपर चढ़ाया, थोड़ी हालत सही की, और दरवाजे की ओर दौड़ पड़ा।
वहीं शहर में भी शाम होते होते आधी के करीब सब्जियां आदि बिक चुकी थी, और अभी सत्तू, उसकी मां झूमरी, छोटू, राजेश और सुभाष सब साथ में बैठ कर चाय की चुस्कियां लगा रहे थे।
सत्तू: पूरे दिन की मेहनत के बाद गरम चाय का मज़ा ही कुछ और है,
सुभाष: सही कहा लल्ला।
छोटू: पापा यहां कब तक का काम रह गया है और,
छोटू ने चाय सुड़कते हुए कहा,
सत्तू: क्यों छोटू उस्ताद एक दिन में ही गांव याद आ गया क्या?
राजेश: हां भैया इसे तो दोपहर में ही आ गया था।
सत्तू: अरे तुमने अभी शहर देखा नहीं है नहीं तो गांव को भूल जाओगे।
राजेश: सही में भैया?
सत्तू: और क्या, अरे चाचा अब कोई काम तो है नहीं तो मैं इन दोनों को घुमा लाता हूं थोड़ा शहर ? पहली बार आए हैं और शहर न देखें तो बेचारे मन ही मन दुखी होंगे।
सुभाष: अरे हां बिल्कुल, घूमेंगे तभी तो शहर के बारे में थोड़ा जानेंगे।
सुभाष ने हंसते हुए कहा, झुमरी भी चाय पीते हुए सबकी बातें सुन मुस्कुरा रही है,
सत्तू: तो क्या कहते हो दोनों चले?
छोटू को भी शहर देखने की उत्सुकता होती है और राजेश और छोटू दोनों साथ में कहते हैं चलो।
सुभाष: चलो तुम लोग घूम आओ तब तक मैं बचे एक दो बोरे अंदर गोदाम में रख दूंगा।
सत्तू: ठीक है चाचा, हम लोग आते हुए कुछ खाने के लिए ले आएंगे।
सत्तू राजेश और छोटू को लेकर निकल जाता है, सुभाष बचे हुए बोरे एक छोटी दुकान जो दो तीन घरों ने मिलकर किराए पर ले रखी थी सामान रखने के लिए उसमें रख देता है, झुमरी उसकी मदद करती है, दूसरी ओर सत्तू राजेश और छोटू को शहर घुमाता है दोनों पहली बार शहर की चकाचौंध देखकर आश्चर्यचकित थे, बड़ी बड़ी गाड़ियां, ऊंचे ऊंचे पक्के मकान, पक्की सड़क, अलग अलग तरह की दुकानें, शहर की औरतें और आदमी जिनकी वेशभूषा उनसे अलग जान पड़ रही थी, सत्तू एक ज्ञानी और अच्छे गुरु की तरह उन्हें सब कुछ बताता जा रहा था, शायद ये भी दिखा रहा था कि वो इस शहर को कितने अच्छे से जानता है।
अंधेरा हो चुका था सत्तू और छोटू और राजेश अभी तक शहर में घूम ही रहे थे वहीं गोदाम में एक अलग दृश्य चल रहा था, गोदाम के एक कोने में खाली बोरे बिछे हुए थे और उन पर सत्तू की मां झुमरी लेटी हुई थी, ब्लाउज़ खुला हुआ था और दोनों मोटी चूचियां ब्रा के बाहर थी जिन पर सुभाष के हाथ चल रहे थे, सुभाष उन्हें मसल रहा था।
झुमरी भी आंखें बंद कर अपनी चूचियों को मसलवाने का आनन्द ले रही थी और सुभाष के हाथों पर अपने हाथ रख उसका हौसला बढ़ा रही थी।
सुभाष: आह भाभी तुम्हारी इन चूचियों के तो हम हमेशा से ही दीवाने हैं आह इन्हे छूकर ऐसा लगता है मानो मक्खन की पोटलिया हैं।
सुभाष धीरे से फुसफुसाते हुए बोला।
झुमरी: उम्म तुमने ही दबा दबा कर इतनी बड़ी कर दी हैं कि सारे ब्लाउज़ कस के आते हैं।
सुभाष: अब हम मेहनत करें और फसल भी न बड़े तो किस बात के किसान हुए हम।
सुभाष ने हंसते हुए कहा। झुमरी पर इतनी भी जुताई मत करो न कि नई फसल उग जाए। भूलो मत ये खेत किसी और का है।
सुभाष: जानते हैं हमारे स्वर्गीय परम मित्र का है, पर अभी तो हमारे हवाले है, तो अब जुताई करें या बुवाई हमारे हाथ में हैं।
सुभाष ने झुमरी की साड़ी और पेटीकोट को उसकी कमर तक उठा दिया और झुमरी की नंगी गीली चूत उसके सामने आ गई जिसे वो अपनी उंगलियों से सहलाने लगा।
झुमरी: आह उम्म नहीं,
झुमरी उसकी हरकतों से सिसकते हुए बोली।
सुभाष: ऐसे कैसे नहीं भाभी, जुताई से पहले थोड़ा खेत को जांच तो लें कि कैसा हैं।
सुभाष ने अपनी उंगली झुमरी की चूत में उतारते हुए कहा।
झुमरी: आह आराम से,
कुछ पल यूं ही उंगली से झुमरी की चूत को छेड़ने के बाद सुभाष ने अपना पजामा नीचे खिसका कर उतार दिया और झुमरी की टांगों को फैलाते हुए उनके बीच आ गया, और फिर अपने लंड को पकड़ कर झुमरी की चूत पर लगाया तो झुमरी तड़प उठी।
सुभाष: डाल दूं? उसने झुमरी के तड़पते चेहरे को देख कर कहा।
झुमरी: हां जल्दी करो बच्चे आते ही होंगे। न जाने क्या मजा आता है यूं तड़पाने में।
सुभाष: ये ही तो मजा है भाभी, तुम्हारे चेहरे पर लंड की प्यास देख एक अलग सुख मिलता है।
झुमरी: आह जल्दी करो न।
सुभाष: फिर ये लो।
ये कह सुभाष अपना लंड झुमरी की चूत में घुसा देता है, झुमरी के मुंह से आह निकलती है और सुभाष झुमरी के पैरों को थाम कर धक्के लगा कर उसे चोदने लगता है।
इधर छोटू और सत्तू खाना लेकर चले आ रहे थे, मंडी के बाहर ही उन्हें राजेश मिलता है,
सत्तू: अरे तू गया नहीं अंदर?
राजेश: अरे भैया मैं भूल गया था, किस ओर से आएगी अपनी दुकान और किधर है, तो खो न जाऊं इसलिए रुक गया,
छोटू: अरे यार तू भी इसमें कहां खो जाएगा, बुद्धू, आ चल मैं दिखाता हूं रास्ता।
राजेश कुछ नहीं कहता और कुछ सोचते हुए आगे बढ़ जाता है गोदाम के बाहर ही उन्हें सुभाष और झुमरी मिलते हैं जो बैठ कर बातें कर रहे थे, फिर सब मिलकर खाना खाने लगते हैं, राजेश थोड़ा सोच में होता है।
गांव में अंधेरा होते तक संजय भी पानी लगा कर घर आता है, तब तक औरतों ने भैंसों और खाने पीने का सारा काम निपटा लिया था, संजय अंदर आकर नल पर हाथ पैर धोता है नीलम अपने पापा के लिए नल चलाती है, इसी बीच उसकी नजर एक बार पुष्पा से मिलती है जो चूल्हे के पास बैठी दूध उबाल रही थी, दोनों की नज़र मिलती है वैसे ही दोनों अपनी अपनी नजर फेर लेते हैं दोनों जानते थे आज खेत में जो हुआ वो उनके परिवार के लिए सही नहीं था, पुष्पा के मन में भी बहुत से विचारों का तूफान आया हुआ था एक ओर अपनी बहन जैसी देवरानी जिसके साथ आज उसने वो सब किया था जो कभी सोचा भी नहीं था, और फिर दोपहर में देवर के साथ जो हुआ वो, उसे समझ नहीं आ रहा था वो किसके साथ धोखा कर रही थी, देवरानी सुधा के साथ, देवर संजय के साथ या अपने पति सुभाष के साथ, अपने पति के साथ तो वो तभी धोखा कर चुकी थी जब बेटे के साथ सब कुछ किया था। उसे समझ नहीं आ रहा था उसके साथ हो क्या रहा है। खैर खाना पीना हो ही रहा था कि तभी रत्ना आई।
सुधा: अरे रत्ना जीजी, आओ आओ बैठो।
रत्ना: और सब काम निपट गए?
पुष्पा: हां सब निपट गया तुम बताओ, सब हो गया।
रत्ना: हां रानी संभाल लेती है अभी तो सब।
फुलवा: चल अच्छा है बिटिया है तो तुझे थोड़ा आराम मिल रहा है।
रत्ना: हां चाची ये तो है, अरे चाची मैं कह रही थी कि आज तुम हमारे यहां सो जाती तो, भूरा के पापा भी नहीं है और राजू खेत पर है, बस भूरा है वो भी अभी बालक है।
फुलवा: हां क्यों नहीं इसमें क्या संकोच की बात, और कोई चिंता की बात तो नहीं है न?
पुष्पा: हां जीजी सब ठीक है न?
रत्ना: हां बस थोड़े अजीब और डरावने सपने आते हैं।
सुधा: कैसे सपने जीजी?
रत्ना सोच कर बोलती है: थोड़े डरावने से आते हैं और अजीब से उन्हें समझाना मुश्किल है।
फुलवा: अच्छा कोई नहीं कल सुबह ही चल मेरे साथ बहू, झाड़ा लगवा लेंगे सब सही हो जाएगा।
रत्ना को भी फुलवा की बात ठीक लगी और सोच कर बोली: ठीक है चाची, कल चलते हैं।
कुछ ही देर में फुलवा रत्ना के साथ चली गई, और घर पर बाकी लोग भी खा पी कर सोने की तैयारी करने लगे,
संजय खाना खा चुका तो सुधा उसकी थाली लेने आई तो संजय बोला: सुनो आज घर पर कोई और नहीं है तो सोच रहा हूं मैं आंगन में सो जाता हूं।
सुधा: ठीक है नीलम भी कह रही थी उसे डर लग रहा है तो वो मेरे साथ कमरे में सो जाएगी।
संजय: भाभी से भी पूछ लो अगर उन्हें डर लगे तो उन्हें भी अपने पास ही सुला लेना।
पुष्पा: पूछा मैंने वो नहीं डरती बिल्कुल, वैसे भी कमरे को खाली नहीं छोड़ सकते।
संजय: हां चलो ठीक है जैसा तुम्हे सही लगे, मेरा बिस्तर ला दो।
सुधा: नीलाम ओह नीलम अपने पापा का बिस्तर लगा दे ज़रा।
नीलम: अभी लाई मां।
सब दूध वगैरह पी कर लेट चुके थे, और कुछ तो सो भी चुके थे, पर संजय की आँखों से नींद गायब थी, उसके सामने बार बार जो कुछ दोपहर को हुआ वो आ रहा था, उसकी भाभी का कामुक बदन, उनके होंठों का रस, उनके पेट का वो मखमली स्वाद ये सोच कर ही उसके बदन में अजीब सी सिहरन हो रही थी, उसका लंड भी अकड़ रहा था, पर साथ ही वो ये भी जानता था कि कोई भी गलत कदम उसके परिवार के लिए कितना बुरा हो सकता था, उसने फिर सोचा क्यों न अपनी गर्मी सुधा पर मिटा ली जाए जब तक जाऊंगा तो ये सब विचार ही नहीं आएंगे। ये सोच वो बिस्तर से उठा और अपने कमरे की ओर बढ़ा, कमरे के दरवाज़े को हल्का सा खोल कर उसने अंदर झांका तो देखा कि नीलम और सुधा दोनों ही सो चुके थे और नीलम अपनी मां से चिपक कर सो रही थी, तो सुधा को जगाने का प्रयास भी करता तो नीलम का जागना तय था।
वो बापिस अपने बिस्तर पर आ गया एक बेचैनी सी उसके मन में हो रही थी, वो फिर से लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा, करीब एक घंटा बीत गया उसे करवट बदलते बदलते पर आज नींद उसकी आंखों से भाग रही थी, बार बार उसकी भाभी का बदन उसे सोने नहीं दे रहा था, वो एक बार फिर से उठा और अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ, और धीरे धीरे कुछ सोचते हुए कदम बढ़ाने लगा, पद पर इस बार उसके कदम अपनी भाभी के कमरे की ओर बढ़ रहे थे,
धीरे धीरे वो कमरे के बाहर पहुंच गया और उसने हल्का सा दरवाज़ा धकेला तो उसे खुला पाया उसने दरवाज़े को थोड़ा सा और बड़ी सावधानी से खोला उतना की जितने से वो अंदर झांक सके, उसने सिर आगे कर अंदर झांका तो सामने के नज़ारे पर उसकी आँखें जमीं रह गईं,
दिए की हल्की रोशनी में उसने देखा कि उसकी भाभी पुष्पा दरवाज़े की ओर ही करवट लेकर सो रही है, पल्लू एक ओर को ढलका हुआ है जिससे उसका मखमली पेट, गोल गहरी नाभी दिखाई दे रही है, तभी हवा का एक झोंका आता है और पुष्पा के पल्लू को और हटा देता है जिससे उसका पेट और ब्लाउज में कसी बड़ी चूची उजागर हो जाती है,
वहीं वो उसके चेहरे को देखता है जिस पर कामुक भाव हैं उसका बदन भी ऐसे हिल रहा है ऐसे मचल रहा है जैसे सपने में ज़रूर कुछ कामुक घटना को देख रही है, सोते हुए ही पुष्पा अपने होंठों को हल्का सा काटती है, जिससे संजय को अंदाज़ा हो जाता है कि पुष्पा किस तरह का सपना देख रही है।
संजय दरवाजे से झांकते हुए ये सब देखता रहता है, वो अभी भी वहीं खड़ा है शायद मन में तय कर रहा है आगे क्या करना चाहिए, मन में खयाल आता है अपने बिस्तर पर बापिस चला जाए, पर सामने पुष्पा का बदन उसे जाने से रोक रहा है। संजय फिर से सोच में पड़ जाता है उसके कदम कुछ पीछे होते है पर फिर अगले ही पल वो कमरे के अंदर घुस जाता है और किवाड़ अंदर से बंद कर लेता है सावधानी से, धीरे से वो पुष्पा के पास आता है पुष्पा अभी भी सपनों की दुनिया में खोई हुई है, संजय पास आकर धीरे से है हाथ बढ़ाता है उसका हाथ आगे जाते हुए कांप रहा है थोड़ा आगे बढ़ा कर वो हाथ को बापिस खींच लेता है,
और अपने फैसले पर दोबारा सोचने लगता है, कुछ पल बाद फिर से हाथ बढ़ाता है और बहुत धीरे से पुष्पा का पल्लू पकड़ लेता है और उसके सीने और पेट से हटा देता है एक बार फिर से पुष्पा का पूरा पेट और ब्लाउज़ से झांकती उसकी चूचियां संजय की आंखों के सामने होती हैं वो पुष्पा के बगल में बिस्तर पर बहुत आराम से चढ़ जाता है और धीरे से अपने हाथ को पुष्पा के पेट पर रखता है, उसके पेट का स्पर्श पाते ही मानो संजय के बदन में बिजली दौड़ जाती है उत्तेजना की, वो अगले ही पल सब मर्यादा और डर भूलने लगता है और पुष्पा के ऊपर झुकता चला जाता है, उसके पेट को सहलाते हुए वो चूमने लगता है, और अपनी प्यास को पुष्पा के बदन से मिटाने की कोशिश करने लगत है।
पुष्पा जो कामुक सपने देख रही थी उसे ये भी सपने का हिस्सा ह
हिस्सा समझती है और संजय पुष्पा की ओर से विरोध न देख इसे आगे के लिए अच्छा संकेत समझता है और उत्तेजित होकर पुष्पा के मखमली पेट और कमर को मसलने लगता है जो पुष्पा की नींद की अवस्था के लिए भी थोड़ा ज़्यादा हो गया और पुष्पा की आंख खुल जाती है, वो चौंक कर देखती है और पाती है कि उसके बदन से कोई खेल रहा है और जैसे ही चेहरा दिखता है वो थोड़ा चौंकती है अपने देवर को देख कर।
वो पल भर के लिए सुन्न रह जाती है और समझ नहीं पाती क्या करे, उसका बदन उसकी उत्तेजना उसके देवर के द्वारा उसके बदन को मसले जाने पर कुछ अलग ही आनंद में मचलने लगते हैं, वो समझ नहीं पाती क्या करूं? रोकूं देवर को या नहीं, दिमाग कहता है रोक ले इस महापाप को होने से, इससे बहुत से रिश्ते पूरा परिवार बिखर सकता है, तो बदन और मन कह रहा था इतने दिनों से जो प्यासी है वो प्यास बुझा ले, कब तक तड़पाएगी खुद को।
पुष्पा कुछ सोच कर अपने हाथ बढ़ाती है और संजय का सिर अपने पेट पर पकड़ लेती है और उसे खींच कर ऊपर लाती है, अपने चेहरे के सामने, संजय पुष्पा को जागते हुए देखता है तो घबरा जाता है उसे सब खराब होता नज़र आने लगता है, पुष्पा उसकी आंखों में देख कर ना में सिर हिलाती है,
पुष्पा: देवर जी नहीं, जाओ यहां से।
संजय: भाभी मैं वो।
पुष्पा: सब के लिए यही अच्छा हो..
पुष्पा इतना ही बोल पाती है कि संजय अपने होंठों को उसके होंठों पर रख देता है और चूसने लगता है, पुष्पा थोड़ा मचलती है पर वो बिना फिक्र के अपनी भाभी के होंठों को चूसने लगता है, कुछ ही पलों में संजय को हैरानी होती है। जब पुष्पा उसका साथ देने लगती है, पुष्पा भी उतनी ही उत्तेजित थी शायद ज़्यादा संजय को रोकने की कोशिश उसकी आखिरी कोशिश साबित होती है खुद को रोकने की भी और अब वो भी खुल कर संजय का साथ दे रही होती है, संजय अपनी भाभी का साथ पाकर और मस्त हो जाता है और उसके रसीले होंठों का रस दोपहर के बाद दोबारा पीने लगता है।
कुछ देर बाद होंठ अलग होते हैं दोनों हाँफ रहे होते हैं पर उत्तेजना कम नहीं होती, संजय पुष्पा की गर्दन को चूमते हुए नीचे सरकता है और पुष्पा के ब्लाउज में से झांकती मोटी चूचियों के बीच अपना मुंह घुसा कर चाटने लगता है।
पुष्पा: आह देवर जी उम्म आह
संजय: अहम्म भाभी उम्म।
संजय पुष्पा के बदन को लगातार चाटते हुए आहें भरते हुए कहता है, साथ ही उसके हाथ ब्लाउज के ऊपर से ही पुष्पा की मोटी और कोमल चूचियों को दबा रहे थे,
दोनों की उत्तेजना की सीमा नहीं थी, पुष्पा को तो जैसे ऐसा लग रहा था जैसे कितने समय की प्यास आज मिट रही थी, बदन की गर्मी को संजय का साथ मिटा रहा था, वहीं संजय तो अपनी भाभी का बदन पाकर जन्नत में था, और उसके कामुक बदन को भोग रहा था,
चूचियों के बाद संजय नीचे सरकता है और अपने होंठ पुष्पा के पेट पर रख लेता है और पागलों की तरह उसे चाटने चूमने लगता है, उसके हाथ पुष्पा की केले के तने जैसी जांघों पर घूमने लगते हैं और वो धीरे धीरे से पुष्पा की साड़ी और पेटीकोट को ऊपर सरकाने लगता है और घुटनों के ऊपर ले आता है, पुष्पा की गोरी टांगें और जांघों का कुछ हिस्सा दिए की रोशनी में चमकने लगता है, पुष्पा के मुंह से लगातार सिसकियां निकल रही है उसके हाथ लगातार संजय के सिर और पीठ पर चल रहे हैं।
पुष्पा: आह संजय, ओह देवर जी ऐसे ही आह।
संजय तो जैसे सब कुछ भूल चुका था उसे अभी बस अपनी भाभी का कामुक बदन नज़र आ रहा था, जिसका स्वाद वो लेने की हर पूरी कोशिश कर रहा था, कभी उसके पेट को चाटता तो कभी नाभी में जीभ डाल कर चूसता तो कभी उसके पेट की मखमली त्वचा को अपने चेहरे पर महसूस करता।
उसके नीचे पड़ी पुष्पा उसकी हरकतों से मचल रही थी, संजय की उत्तेजना अब बढ़ती जा रही थी पर वो पुष्पा के बदन को बहुत धीरज के साथ भोग रहा था, मानो उसके एक एक अंग का स्वाद लेना चाहता हो।
पेट को चूसते हुए ही उसके हाथ पुष्पा की साड़ी में चलने लगे और उसने जल्दी ही पुष्पा की साड़ी को बिस्तर के नीचे फेंक दिया अब पुष्पा नीचे सिर्फ पेटीकोट में थी और वो भी उसकी जांघों में इक्कठा हो रखा था।
बाहर दिन में हुईं बारिश के कारण मौसम ठंडा था, ठंडी हवा चल रही थी, पर कमरे के अंदर उतनी ही गर्मी हो रही थी,दोनों बदन मिल कर गर्मी को और बढ़ा रहे थे,
संजय ने हाथ ऊपर की ओर बढ़ाया और खुद भी ऊपर आया और एक बार फिर से पुष्पा के होंठों को चूसने लगा वहीं उसके हाथ पुष्पा के ब्लाउज़ के बटनों को खोलने लगे, जल्दी ही सारे बटन खुल गए तो संजय ने अपने होंठ अलग किए और फिर नीचे सरक कर अपने चेहरे को पुष्पा की छाती के सामने लाया और फिर धीरे से दोनों पाटों को अलग किया तो पुष्पा की मोटी और बड़ी चूचियां उसके सामने आ गईं जिन्हें देख उसकी आँखें चौड़ी हो गईं उसने कुछ ही पलों में ब्लाउज़ को भी उसके बदन से अलग कर नीचे साड़ी के पास फेंक दिया,
पुष्पा के बदन पर सिर्फ पेटीकोट था जो उसकी जांघों तक सिमटा हुआ था, पुष्पा के नंगे चूचों को देख कर संजय भूखे की तरह उन पर टूट पड़ा और मसलते हुए उन्हें चूसने लगा, पुष्पा उसकी हर हरकत से मछली की तरह मचल रही थी, कभी चूची को चूसता तो कभी पेट को चाटता वहीं उसके हाथ पुष्पा के पेट से लेकर जांघों और फिर उसकी चूत के आस पास घूम रहे थे जिससे पुष्पा और मचल रही थी।
पुष्पा के बदन से खेलते हुए ही संजय ने अपने कपड़े निकालने भी शुरू कर दिए और जल्दी ही पूरा नंगा हो गया था, उसका लंड बिलकुल अकड़ कर खड़ा था और पुष्पा के नंगे बदन को देख देख ठुमके मार रहा था, खुद नंगा होकर संजय ने पुष्पा के पेटीकोट को भी उसके बदन से दूर कर दिया, अब दोनों देवर भाभी नंगे थे एक दूसरे के सामने एक ही बिस्तर पर, दोनों के ही साथी इस बात से अनजान थे,
संजय की पत्नी तो उनसे कुछ दूर दूसरे कमरे में आराम से सो रही थी इस बात से बेखबर कि उसका पति और उसकी जेठानी एक ऐसे रास्ते पर थे जो उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल सकता था, वहीं उनसे मीलों दूर पुष्पा का पति सुभाष मंडी में गोदाम के बाहर बोरे बिछा कर सो रहा था उसके साथ उनका बेटा छोटू और संजय का बेटा राजेश भी था, सब लोग कमरे में चल रहे काम के खेल से अनजान हो कर सो रहे थे।
संजय ने फिर अपने लंड को पकड़ा और पुष्पा की टांगों को फैलाकर उनके बीच जगह ली, और अपने लंड को पुष्पा की चूत पर रखा, पुष्पा की गरम गीली चूत पर लंड का स्पर्श होते ही दोनों के मुंह से आह निकल गई,
संजय: आह भाभी मैंने इस पल के बारे में न जाने कितनी बार सोचा है,
पुष्पा: क्या सच में तुम पहले से ये सब करना चाहते थे मेरे साथ?
संजय: हां भाभी जबसे तुम ब्याह के घर में आई तब से ही, पर संस्कारों और मर्यादा के चलते ये सब छुपा कर रखा हमेशा हमेशा खुद को रोक लिया,
संजय अपने लंड को पुष्पा की चूत पर घिसते हुए कहता है।
पुष्पा: अब आह अब रुकने की जरूरत नहीं है देवर जी, आह घुसा दो और पूरी कर लो अपनी इच्छा,
संजय: हां भाभी अब नहीं रुकूंगा।
ये कह संजय क़मर को झटका देता है और उसका लंड पुष्पा की गरम चूत में समा जाता है, दोनोके मुंह से गरम आहें निकलने लगती हैं, दोनों इस अदभुत पल के अहसास को इस आनंद को अपने अंदर समाने लगते हैं, इस अनैतिक संबंध की सोच इस वर्जित संबंध का अहसास उन्हें और उत्तेजित कर रहा था, संजय धीरे धीरे पुष्पा की चूत में धक्के लगाने लगता है पुष्पा हर धक्के पर सिसकने लगती है, हर पल के साथ संजय के धक्कों की गति बढ़ती जाती है, और कुछ ही देर में संजय ताबड़तोड़ धक्कों के साथ अपनी भाभी को चोद रहा था, पुष्पा की लगातार आहें और सिसकियां निकल रही थी
पुष्पा कभी उत्तेजित होकर अपनी चूचियां मसलती तो कभी संजय का हाथ पकड़ कर उसे थोड़ा धीरे करने को कहती पर संजय तो जैसे एक अलग ही दुनिया में था, इतना उत्तेजित वो कभी नहीं हुआ था, ऐसा आनंद उसे कभी नहीं आया था जो उसे अपनी भाभी की चूत में मिल रहा था, वो चाहता भी तो अब खुद को नहीं रोक सकता था, उसकी कमर मशीन की तरह आगे पीछे हो रही थी और उसका लंड उसकी भाभी की चूत में अंदर बाहर हो रहा था,
शहर में सुभाष और छोटू चैन से सो रहे थे इस बात से बेखबर होकर कि गांव में उनकी पत्नी और मां नंगी होकर, उनके भाई या चाचा से चुद रही थी। शहर में भी ऐसा नहीं था जो हर कोई सो रहा था, संजय जहां गांव में जाग रहा था तो उसका बेटा राजेश भी सो नहीं पा रहा था, उसे नींद नहीं आ रही थी, उसकी आंखों के सामने कुछ दृश्य बार बार आ रहे थे, वो दृश्य पुराने नहीं थे बल्कि आज शाम के ही थे जब वो छोटू और सत्तू शहर घूम कर बापिस आ रहे थे तो सत्तू और छोटू खाना लेने के लिए ढाबे पर रुक गए थे और वो मंडी में चला आया था, उसने इधर उधर देखा तो उसे अपने ताऊ यानि सुभाष और सत्तू की मां झुमरी कहीं नहीं दिखाई दी वो गोदाम के पास पहुंचा तो देखा कि उसके किवाड़ लगे हुए थे, पर उसे अंदर से हल्की हल्की आवाज़ आ रही थी, राजेश ने पास जाकर किवाड़ को ध्यान से देखा तो उसे एक छोटा सा छेद दिखा,उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई की कोई उसे देख तो नहीं रहा और फिर अपनी आंख उस छेद पर लगा दी और जो उसे अंदर दिखा उसे देख वो चौंक गया। अंदर उसके ताऊजी सत्तू की मां को नीचे लिटाकर चोद रहे थे। ये सब देख राजेश तब से सोच में था उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, क्या किसी को बताए इस बारे में, क्या सत्तू को? नहीं नहीं गड़बड़ हो जाएगी, क्या छोटू को? पर कैसे? साथ ही उसका जवान बदन ये नज़ारा सोच सोच कर उत्तेजित भी हो रहा था।
इधर गांव में संजय के धक्के बिल्कुल लगभग बेकाबू हो गए थे और वो गुर्राते हुए पुष्पा की चूत में झड़ रहा था, पुष्पा भी इस तगड़ी चुदाई के दौरान झड़ चुकी थी, और अभी अपनी चूत में अपने देवर के रस को भरता हुआ महसूस कर रही थी, संजय झड़ने के बाद पुष्पा के ऊपर ही पसर गया और कुछ देर यूं ही लेटा रहा और जब पुष्पा ने उससे कहा वो दब रही है तो वो उसके ऊपर से हटा और उसका लंड भी पुष्पा की चूत से निकल गया, दोनों लेट कर हांफने लगे। धीरे धीरे शांत होने पर दोनों के अब दिमाग में चलने लगा कि उन्होंने अभी क्या किया है, और ग्लानि के भाव आने लगे, अक्सर ऐसा होता है वासना के बादल हटने पर सच्चाई की धूप अक्सर ग्लानि की गर्मी में लोगों को जलाती है। यही दोनों के साथ हो रहा था।
संजय ने पुष्पा की ओर देखा तो वो छत की ओर खुली आंखों से देखे जा रही थी, उसकी मोटी चूचियां उसकी सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रहीं थीं, संजय ने उसकी ओर करवट ली और अपना हाथ उसने पुष्पा के पेट पर रखा, जिसे रखते ही पुष्पा ने उसे अपने ऊपर से झटक दिया, जिससे संजय को हैरानी हुई।
पुष्पा: अब जाओ संजय।
पुष्पा बिना उसकी ओर देखे बोली, संजय को भी यही सही लगा, अभी इस हालत में उसे अकेला ही छोड़ देना सही होगा, संजय उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर से किवाड़ भिड़ा कर चला गया, पुष्पा अभी भी छत की ओर देखे जा रहीथी और फिर अचानक उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई।
जारी रहेगी।