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Adultery उल्टा सीधा

sunoanuj

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sunoanuj

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अध्याय 11
फुलवा कुछ पल वैसी ही पड़ी रही चूत से अनजान मर्द का रस बह कर बाहर टपक रहा था, वैसे तो इस उमर में चूत में रस गिराने से कोई खतरा नहीं था पिछले साल से ही उसके मासिक धर्म आने बंद हो गए थे, पर सूखी चूत पर अचानक से हुई बारिश ने उसके मन को भी भीगा कर रख दिया था, अपने आप को संभालने के बाद फुलवा ने मंत्रों को पूरा किया, और फिर पेड़ की ओट में कपड़े पहनकर घर की ओर चल दी, अब आगे...

घर की ओर कदम बढ़ाते हुए फुलवा के मन में विचारों का सैलाब आया हुआ था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो गया, और कौन था वो अज्ञात साया जिसने उसके साथ ये किया, उसने तो किसी को बताया भी नहीं था इस टोटके के बारे में, सिर्फ बाबा को पता था, तो क्या बाबा ने ये सब?
ये सोच फुलवा के कदम रुक गए और वो खेत की एक मेढ़ पर बैठ गई और सोचने लगी।
नहीं नहीं, बाबा ऐसा कभी नहीं कर सकते वैसे भी उसकी उमर बाबा जितनी तो नहीं लग रही थी, जो भी था बाबा से जवान ही था पर कौन था सबसे बड़ा सवाल ये है, कीड़े पड़ें उस हरामी को न जाने क्या मिला मुझ बुढ़िया के साथ ये सब करके उसे, इस उमर में आकर मेरा मुझे खराब कर गया, पूरा जीवन सिर्फ अपने पति के साथ बिताया मैंने, और किसी को छूना तो दूर उस नज़र से देखा भी नहीं, और इस उमर पर आकर ये सब, हाए दईया कहीं वो मेरी बदनामी न कर दे, बैठे हुए ही फुलवा को अपनी चूत से उसका रस अब भी रिसता हुआ महसूस हुआ, तो फुलवा उठी और खेत के अंदर की ओर चलने लगी साथ ही मन में सोच रही थी: हरामजादा अपना पानी भी अंदर गिरा गया, वो तो अच्छा है अब गाभिन नहीं हो सकती नहीं तो क्या ही मुंह दिखाती मैं किसी को,
खेत के अंदर जाकर एक घनी सी जगह देख कर फुलवा ने अपनी साड़ी को पकड़ कर कमर तक उठाया और नीचे बैठ गई और उसके रस को अपनी चूत से निकालने की कोशिश करने लगी, फुलवा अपनी उंगलियों को अपनी चूत में डाल कर रस को बाहर पोंछने की कोशिश करने लगी, और उंगलियों को चूत में चलाते हुए फुलवा के बदन में फिर से वही तरंगें उठने लगीं जो कि तब उठ रही थी जब वो अनजान साया उसे चोद रहा था, जिन्हें फुलवा अपने ही आप से छुपाने की कोशिश कर रही थी पर अभी दोबारा से चूत में उंगलियों ने उसे बापिस उसी मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया,

अह्ह्ह्ह कमीने ने वर्षों की बुझी हुई आग को भड़का दिया है, अह्ह्ह्ज मैं तो भूल ही गई थी कि चुदाई में ऐसा आनंद आता है, पूरा बदन झूम सा रहा है, फिर खुद ही अपनी उंगलियों को चूत से बाहर झटकते हुए मन ही मन बोली: छी छी ये मैं क्या सोच रही हूं, एक तो इतना बुरा हुआ और मैं उसमें अपने बदन के आनंद की बात सोच रही हूं, फिर मन से दूसरी आवाज़ आई कि खुद से ही झूठ कैसे बोलेगी फुलवा? झूठ कैसा झूठ।
अगर ये झूठ नहीं है और तुझे बुरा लग रहा था तो तूने उसे रोका क्यों नहीं?
रोकती कैसे वो तो अचानक से आकर धक्के लगाने लगा,
फिर भी तो रोक सकती थी, और सबसे बड़ी बात इतना ही बुरा लगा था तो इतने वर्षों बाद चूत ने पानी क्यों छोड़ दिया,
ये सोच कर तो फुलवा खुद से ही हार गई, और सोचने लगी सच तो ये ही है कि वो जो भी था उसने ऐसा सुख दिया जो की न जाने कब से मेरी चूत को नहीं मिला था तभी तो खुश होकर चूत ने पानी बहा दिया, अःह्ह्ह्ह्ह अपनी चूत पर तो मैंने ध्यान देना ही छोड़ दिया था ये सोच कर कि इस उमर में ये सब नहीं होता, पर उस साए ने तो जैसे मुझे दोबारा जवान कर दिया,
ये सोचते हुए फुलवा की उंगलियां बापिस उसकी चूत की गली में घुस गईं और शोर मचाने लगीं, और तब तक अंदर बाहर होती रहीं जब तक एक बार फ़िर से फुलवा की चूत ने पानी नहीं बहा दिया,

सुबह रोज के समय से ही लता की नींद खुली और आंखों को मलते हुए उठी और फिर जैसे ही खुद पर ध्यान गया तो चौंक गई खुद को नंगा पाकर फिर रात की सारी बातें ताजा होने लगीं और उसका सिर भारी होने लगा, बगल में सोती हुई बेटी के नंगे बदन पर निगाह डाली और सोचने लगी कि क्या होता जा रहा है ये मेरे साथ, क्यों मैं स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाती, क्यों अपनी ही बेटी के साथ ये सब हरकतें करती हूं, इतनी गर्मी क्यों आ रही है मेरे बदन में, ऐसा तो रंडियां भी नहीं करती होंगी जैसा मैं कर रही हूं, अपनी ही बेटी से अपनी चूत चटवाई, अपनी बेटी के मुंह पर मैंने मूता, छी छी छी एक मां इससे नीच काम और क्या कर सकती है,
लता अपनी बेटी के सोते हुए चेहरे को देखते हुए सोचने लगी, लता ने अपनी बेटी के नंगे बदन को ऊपर से नीचे तक निहारा और एक बात उसके मन में आई कि जिससे भी बेटी ब्याह करेगी उसका तो जीवन ही सफल हो जाएगा, इतना सुंदर और कामुक बदन है मेरी बिटिया का, सुंदर चेहरा, पतली कमर, इतने मोटे मोटे चूचे और फिर नीचे इतनी लुभावने गोल मटोल चूतड़।
ये सब सोचते हुए उसे फिर से अपने बदन में कुछ कुछ होने लगा और वो बेटी की ओर आकर्षित होने लगी तो बीच में ही उसने खुद को रोका और तुरंत बिस्तर से उठ गई और सोचने लगी कि अपनी इस गर्मी का मुझे कुछ करना ही पड़ेगा, आज रात ही नंदिनी के पापा से शांत करवाऊंगी।
वो अपने कपड़े पहनते हुए सोचने लगी, पर अभी नंदिनी को कैसे जगाऊं, अगर उठेगी तो मैं इसका सामना कैसे करूंगी, समझ नहीं आ रहा आंख भी कैसे मिलाऊंगी, सो भी तो नंगी रही है, कुछ समझ नहीं आ रहा।
कुछ सोचते हुए उसने शौच पर जाने वाला लोटा उठाया और आंगन के कोने में दरवाजे की ओर जाकर आवाज़ लगाने लगी: नंदिनी ए नंदिनी उठ जा, उठ सुबह हो गई।
कई बार आवाज़ लगाने पर नंदिनी की नींद हल्की खुली तो उसने सिर उठा कर देखा, आंखें अब भी आधी खुली आधी बंद थीं, लता ने जैसे ही देखा कि नंदिनी की नींद खुल गई है वो तुरंत घूम गई और दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाते हुए बोली: उठी जा मैं जा रहीं हूं खेत ठीक है।
इतना कह कर वो दरवाज़ा खोल कर और बाहर से ही कुंडी लगा कर चली गई, इधर उसने ये देखा ही नहीं कि नंदिनी तो बापिस सो चुकी थी , उसने पलभर को सिर उठा कर भले ही देखा था पर नींद में होने के कारण बापिस सो गई।
लता अपने घर से सीधा पहले रत्ना के यहां गई, और फिर पुष्पा के घर की ओर आई तो दरवाजे पर ही उसे सुधा और पुष्पा दोनों मिल गए तो फिर चारों की टोली हाथों में लोटा लिए चल पड़ी खेतों की ओर।

बीती रात एक और के लिए काफी भारी पड़ी थी और वो था लल्लू, जिस लल्लू का काम में पल भर को मन नहीं लगता था उस लल्लू को सारी रात खेत काटना पड़ा था तो मन ही मन भुनता हुआ और नींद से लड़ता हुआ मन मारकर काम में लगा रहा था। पर खेत था कि खतम होने का नाम ही नहीं ले रहा था, अभी भी थोड़ा हिस्सा बचा था, लल्लू को तो अब झपकियां आने लगी थीं, लल्लू को झपकी आते देख उसके दादा को उस पर दया आ गई और वो बोले: ए ललुआ अब थोड़ा ही रह गया है, जा तू घर हम लोग कर लेंगे,
मगन: अरे बापू तुम ही इसे चढ़ाए हो सिर पर, हम दोनों लोग भी तो लगे हुए हैं रात से ही ये तो जवान है हमें थकना चाहिए या इसे?
कुंवरपाल: अरे उसे झपकी आ रही हैं, कहीं दरांती गलत लग गई तो कट जायेगा।
मगन: अच्छा लल्लू फिर एक काम कर घर जा और अपनी मां से चाय बनवा ला, हमारी सुस्ती भी थोड़ी दूर हो जायेगी, क्यों बापू?
कुंवरपाल: हां ये ठीक रहेगा।
लल्लू की इतनी हिम्मत तो होती नहीं थी कि अपने बाप के आगे कुछ बोल सके तो जैसा बाप ने कहा वैसे ही ठीक है कह कर चल दिया तो पीछे से मगन ने सावधान भी कर दिया।
मगन: और सुन सीधा घर जा और घर से यहां लौट, अपने यारों के पास रुकना नहीं।
ये सुन तो लल्लू अंदर तक जल भुन गया, एक ही तो उम्मीद थी उसे, उसने सोचा था कि अभी सबसे पहले खेतों में छुपकर बैठूंगा और सुबह सुबह ही किसी के मस्त चूतड़ों के दर्शन हो जायेंगे तो कम से कम रात का दुख कम हो जायेगा पर उसके बाप ने उससे ये सुख भी छीन लिया, मन ही मन अपने भाग्य को कोसता हुआ वो घर की ओर चलने लगा और ये सब कम नहीं था कि उसके जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए उसे रास्ते में ही भूरा मिल गया,
भूरा: अरे मैं तेरे घर ही आ रहा था, चल चलते हैं, खेतों की ओर।
लल्लू: तू ही जा मुझे काम है,
लल्लू मुंह बनाते हुए बोला,
भूरा: ऐसा क्या काम है सुबह सुबह?
लल्लू: तेरी गांड मारनी है बोल मरवाएगा?
लल्लू अपना गुस्सा भूरा पर निकालते हुए बोला,
भूरा: तू मरा गांड भेंचों अपनी, बिना बात के नखरे कर रहा है लुगाई की तरह।
ये कह भूरा भी गुस्से से आगे बढ़ गया उसे छोड़ कर और लल्लू अपने घर की ओर।
भूरा भिनभिनाता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, साला अपने आप को समझता क्या है, बिना बात के मुझपर भड़क रहा था, गांड मराए चूतिया साला। भूरा आगे एक मोड पर पहुंचा जहां उसके सामने दो रास्ते कट रहे थे एक रास्ता था उस खेत का जहां गांव की औरतों को वो छोटू और लल्लू देखते थे और एक रास्ता था उस खेत का जहां उसने और लल्लू ने पुष्पा चाची की मोटी गांड पहली बार देखी थी, किस ओर चला जाए वो इस पर विचार करने लगा, और कुछ सोच विचार के बाद वो एक रास्ते पर मुड़ गया और थोड़ा आगे चलने के बाद इधर उधर देख कर एक अरहर के खेत में घुस गया, और फिर सावधानी से आगे बढ़ते हुए वहीं पहुंच गया जहां उसने पहली बार पुष्पा चाची की गांड का अदभुत दृश्य देखा था,
बिलकुल मेढ़ के किनारे पहुंच कर भूरा ने सावधानी से झाड़ियों को थोड़ा हटा कर देखा तो सामने का दृश्य देख कर उसकी आँखें फैल गईं। उसका मन खुशी से फूल उठा क्यूंकि आज उसे छप्पर फाड़ के जो मिला था, कहां वो पुष्पा चाची की गांड देखने की इच्छा से आया था और कहां आज उसके सामने चार चार औरतें अपनी साड़ी कमर पर चढ़ाए अपने चूतड़ दिखा कर उसके सामने बैठी थीं, उसका लंड तो तुरंत ही तन गया, और चारों की गांड एक से बढ़कर एक थी, भूरा को तो अपने भाग्य पर विश्वास नहीं हो रहा था, उसने खुद को समझाया कि भूरा ये सपना नहीं है तू सो नहीं रहा बल्कि तेरे भाग्य जागे हैं, तुंरत भूरा ने अपना पजामा नीचे कर के अपने तने हुए लंड को बाहर निकाला और उसे मुठियाते हुए सामने के दृश्य पर नज़र गढ़ा दी,
अह्ह्ह्ह क्या दृश्य है, एक से बढ़कर एक गांड, अह्ह्ह्ह पर ये हैं कौन, ये दूसरे नंबर वाली तो पुष्पा चाची हैं उनकी गांड को मैं नहीं भूल सकता, तभी उनमें से एक औरत हंसी तो उसकी हंसी सुनकर तो भूरा तुरंत समझ गया कि ये तो सुधा चाची हैं, अह्ह्ह सुधा चाची की गांड भी बड़ी मस्त है पुष्पा चाची से छोटी भले ही है पर बिल्कुल गोल मटोल है,
इतने में पुष्पा के दूसरी ओर बैठी औरत कुछ बोली तो भूरा चौंक गया क्योंकि वो तो लल्लू की मां यानी लता थी, भूरा थोड़ा सकुचा फिर सोचने लगा कि जब छोटू की मां की देख सकता हूं तो उस चूतिया लल्लू की मां की क्यों नहीं, साला अच्छा हुआ नहीं आया नहीं तो अपनी मां की गांड देख कर पागल हो जाता, वैसे लता ताई की गांड है भी पागल करने वाली, चूतड़ देखो कैसे मोटे मोटे हैं, लगता है ताई ने खूब मरवाई है,
अपनी दोस्तों की मां के बारे में ऐसी बातें सोच कर उसे बहुत उत्तेजना हो रही थी साथ ही उसे अच्छा भी लग रहा था, इसी बीच उसके कंधे पर एक हाथ पड़ा जिससे वो चौंक गया, उसने तुरंत पलट कर देखा और सामने वाले चेहरे को देख कर तो उसकी गांड और फट गई, सामने सत्तू था जो उसे देख कर उससे फुसफुसाते हुए बोला: क्यों बे किसके बिल देख कर अपना बीन बजा रहा है?
अब भूरा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले उसके तो गले से आवाज नहीं निकल रही थी वो सोच रहा था कि अगर सत्तू ने छोटू या लल्लू को ये बात बतादी कि मैं उनकी मांओं की गांड देख कर मुठ मार रहा था तो दोनों मेरी जान ले लेंगे। अब क्या होगा?
सत्तू: अरे गूंगा हो गया क्या? बहुत टेम हो गया मुझे भी ये खेल खेले हुए चल आज फिर से देख लेते हैं,
ये कहकर सत्तू ने भूरा को बगल किया और खुद भी उसके बगल में झुककर उसकी तरह सिर निकाल कर सामने देखने लगा,
सत्तू: अरे भेंचो, ये तो गजब की पिक्चर है बे,
सत्तू फुसफुसाते हुए बोला साथ ही अपने पजामे को खिसका कर अपना लंड भी बाहर निकाल लिया और उसे मुठियाने लगा,
भूरा को सत्तू पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था कि साला कहां से आ गया अच्छा खासा देखते हुए हिला रहा था,
पर बेचारा कर भी क्या सकता था सत्तू उससे बड़ा था लड़ भी नहीं सकता था ऊपर से उसने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया था वो तो बस मन ही मन ये मन ये मना रहा था कि सत्तू को ये पता न चले कि ये औरतें कौन हैं नहीं तो उसका मरना तय है।
सत्तू: अह्ह एक से एक मटके हैं ये तो, बिलकुल सही जगह ढूंढी है तूने,
भूरा से भी और रुका नहीं गया और उसने सोचा अब फंस तो गया ही हूं थोड़ा इसका साथ देता हूं क्या पता बच जाऊं। ये सोच भूरा भी वापस अपनी जगह आकर देखने लगा,
भूरा: हैं न सत्तू भैया एक से बढ़कर एक।
भूरा थोड़ी चापलूसी करते हुए सत्तू को अपनी ओर करने के लालच में बोला।
सत्तू: हां यार, एक से बढ़कर एक, ये कोने वाली की तो बिलकुल कसी हुई गांड है पर बाहर को निकली है ज़रूर घोड़ी बन कर चुदती होगी खूब।
भूरा समझ गया ये सुधा की बात कर रहा है।
भूरा: अरे पर ये कैसे कह सकते हो भाई?
सत्तू: अरे लल्ला ये ही तो हमारा हुनर है, और बताऊं उसके बगल वाली की गांड बड़ी है पर इसकी चुदाई कम हुई है।
भूरा: अरे भाई तुम तो जादूगर हो।
भूरा पुष्पा चाची के बारे में सुनते हुए मन ही मन खुश होते हुए बोला
सत्तू अपनी प्रशंसा सुन कर खुश होते हुए बोला: ये तीसरी वाली सबसे मोती गांड वाली इसकी चुदाई भी काफी समय से नहीं हुई है पर ये मरवाती बड़ी मस्त होगी।
भूरा: भाई ये तुम सच कह रहे हो?
सत्तू: तुझे विश्वास न हो तो जाकर पूछ के देख ले.
सत्तू गंदी हंसी हंसता हुआ फुसफुसाया, भूरा को भी उसकी बात पर हंसी आ गई,
भूरा: नहीं भाई मुझे अपनी गांड नहीं तुड़वानी।
सत्तू: तो फिर शांत रह और सुन अह्ह्ह्ह चौथी वाली की गांड बड़ी मस्त है। सबसे ज्यादा मुझे ये हो अच्छी लगी
भूरा: क्यों भाई इसमें ऐसा क्या खास है?
सत्तू: अरे इसके चूतड़ देख बिल्कुल मिले हुए हैं गांड की दरार बैठने के बाद भी ठीक से नहीं दिख रही, ऐसी औरतों के छेद बड़े कसे हुए होते हैं लंड सटा सट जाता है अंदर।
भूरा: तुम्हें तो सब पता है सत्तू भाई। लगता है बहुत खेले खाए हो।
सत्तू: अरे खेले खाए हम कहां खेली खाई तो ये ही है कोने वाली, ये जरूर कई लंड ले चुकी है ऐसी औरतें कभी एक लंड से संतुष्ट नहीं होतीं। ये भी कई लौड़ों की सवारी करती होगी।

भूरा ने भी चौथी औरत पर अपना ध्यान लगाया और सोचने लगा सच में इसके चूतड़ बड़े मजेदार हैं न ज़्यादा छोटे और न ज़्यादा बड़े, बिल्कुल गोल मटोल और भरे हुए। उसकी गांड पर ध्यान लगाते हुए भूरा लंड को मसलने लगता है और सत्तू की कही बात सोचने लगता है कि कैसे लंड उसकी चूत में जाता होगा सटा सट।
इसी बीच सुधा फिर से कुछ बोली जो कि उन्हें ठीक से सुनाई नहीं दिया पर उसके बाद ही वो चौथी औरत जिसकी गांड देख कर वो लंड हिला रहा था वो भी हंसी और उसकी हंसी सुनकर तो भूरा के कान खड़े हो गए, उसका लंड उसके हाथ से छूट गया क्योंकि इस आवाज को वो बहुत अच्छे से पहचानता था ये किसी और की नहीं बल्कि उसकी मां रत्ना की आवाज़ थी,
भूरा का तो सिर चकराने लगा, जिसके लिए वो लंड हिला रहा था वो उसकी मां है, अपनी मां की गांड को देख कर मैं उत्तेजित हो रहा था, उसके मन में बार बार सत्तू की वो बात घूमने लगी कि इसकी चूत में लंड बड़ा मस्त जाता है, सटा सट।साथ ही ऐसी औरतें एक लंड से संतुष्ट नहीं होतीं है।
भूरा के लिए और सहना मुश्किल हो गया और उसके लंड के लिए भी,क्योंकि उसका लंड ठुमके मारते हुए पिचकारी छोड़ने लगा और झाड़ियों को गीला करने लगा, सत्तू ने भी ये देखा और बोला: अबे कहां अपना पानी इन झाड़ियों पर बहा रहा है, गांव में इतनी मस्त घोड़ियां हैं इनकी सवारी कर।
भूरा से कुछ कहते नहीं बना वो बस एक के बाद एक पिचकारी मारता रहा, स्खलन के बाद भूरा की सांसें धीरे हुई तो दिमाग घूमने लगा, उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या कर रहा है और ये क्या हो रहा है, पर उसने स्वयं को संभाला और सोचा अभी सबसे ज़रूरी ये है कि सत्तू को ये न पता चले कि ये औरते कौन हैं इसीलिए दिमाग लगाते हुए वो तुरंत उठा और सत्तू को पकड़ कर बाहर खींचने लगा,
सत्तू ने उसे इशारे में पूछा क्या हुआ तो उसने उसे चुपचाप बाहर आने का इशारा किया सत्तू भी अपना पजामा ऊपर करते हुए उसके पीछे पीछे खेत की दूसरी ओर चल दिया।
सत्तू: अरे क्या हुआ इतना मस्त दृश्य छोड़ कर उठा लाया।
भूरा: अरे इसी समय जिसका खेत है वो भी आता है एक दो बार तो मैं भी पकड़ने से बचा हूं
सत्तू: चल ठीक है, वैसे भी जो देखना था वो देख लिया।
भूरा: हां हां, अब मैं चलता हूं,
सत्तू: अरे रुक तो तुझे पता है ये औरतें कौन हैं यार बड़ी मस्त हैं।
भूरा ये सुन घबरा जाता है फिर संभालते हुए कहता है: ये ये ये तो पिछले मोहल्ले से आती हैं कौन हैं ये तो नहीं पता।
सत्तू: अच्छा लगता है पिछले मोहल्ले में चक्कर काटने पड़ेंगे। तभी काम बनेंगे।
इतने में दोनों अरहर के खेत से बाहर आ चुके थे, पर भूरा ये निश्चित कर लेना चाहता था कि जब तक औरतें घर तक न पहुंच जाएं, इसीलिए वो बातें बनाते हुए बोला: अरे सत्तू भाई ये औरतों को पटाने का हुनर मुझे भी सिखा दो।
सत्तू: अच्छा, बेटा तुम भी मजे लेना चाहते हो।
भूरा: हां भाई चलो नदी किनारे आराम से बातें करेंगे।
सत्तू: अरे वाह तू तो काफी गंभीर है भूरा सीखने के लिए।
भूरा: हां भाई मुझे अपना चेला बना लो।
सत्तू: चल फिर चेले, आज तुझे चुदाई का ज्ञान देता हूं।
सत्तू और भूरा नदी की ओर बढ़ जाते हैं।


खेत से बाहर निकलते हुए रत्ना ने पुष्पा से कहा,
रत्ना: ए पुष्पा रानी, का हुआ आज बड़ी चुप्पी साधी हुई है,
सुधा: हां और लता दीदी भी कहां बोल रही हैं कुछ।
सुधा और रत्ना ने लता और पुष्पा की चुप्पी देख कर आखिर पूछ ही लिया क्योंकि काफी देर से वो दोनों ही बातें किए जा रहीं थी,
पुष्पा: अरे वो कुछ नहीं वो तो बस थोड़ा सिर भारी था इसलिए।
लता: हां मुझे भी थोड़ी तबीयत ठीक नहीं लग रही इसलिए।
रत्ना: लगता है दोनों को ही अच्छी रगड़ाई की जरूरत है,
रत्ना और सुधा मजाक बनाते हुए हंसने लगीं तो चाहे अनचाहे भी पुष्पा और लता उनका साथ देने लगीं,
पुष्पा के मन में तो जो कुछ रात को हुआ वो किसी फिल्म की तरह चल रहा था, और जितना वो उसके बारे मे सोच रही थी उसका मन बैठा जा रहा था, वो स्वयं को इस समय दुनिया की सबसे गंदी और नीच औरत मान रही थी जो कि अपनी कोख से जन्मे बेटे के साथ ऐसी हरकतें करती है, उसे स्वयं से घिन आ रही थी।
ऐसा ही कुछ हाल लता का था वो भी उसी मनोदशा से गुज़र रही थी जो कि पुष्पा की थी।


लल्लू भारी कदमों से चलता हुआ अपने घर पहुंचा तो देखा कि किवाड़ पर बाहर से कुंडी लगी है, उसने सोचा शायद मां शौच पर गई हैं, इसलिए कुंडी खोल कर वो अंदर आया, नींद से उसकी आंखें भारी हो रहीं थी, घर में घुसने पर वो आंगन की ओर आया और देखा खाट अब भी पड़ी है तो वो उसकी ओर बढ़ा और कुछ कदम बढ़ाते ही रुक गया, उसकी नींद से भरी हुई आंखें अचानक से खुली की खुली रह गईं, सीने में तेजी से धक धक होने लगी, और आखें खाट पर जम सी गईं। बिस्तर पर अपनी बड़ी बहन को बिल्कुल नंगा देख उसे विश्वास नहीं हुआ कि वो सच में ये सब देख रहा है कि ये सपना है, पर ये सपना तो बिलकुल नहीं था, उसकी आंखो के सामने उसकी बड़ी बहन बिल्कुल नंगी हो कर सो रही थी, पहले प्रतिक्रिया तो उसकी यही हुई जो हर भाई की होनी चाहिए और उसने तुरंत अपनी आंखें हटा लीं,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी बहन ऐसे क्यों सो रही है, कोई नंगा भी सोता है क्या?
कहीं कुछ हो तो नहीं गया उसे कोई दिक्कत या परेशानी तो नहीं हो गई, ये सोचते हुए उसने बापिस अपनी आँखें बिस्तर पर डालीं और दो कदम बढ़ाते हुए खाट के बिल्कुल बगल में पहुंच गया, उसने नंदिनी का चेहरा देखा वो तो बड़े आराम से सो रही थी, धीरे धीरे लल्लू की आंखें नीचे की ओर फिसलने लगीं, सुराई दार गर्दन से होते हुए वो उसके सीने पर पड़ी और फिर नंदिनी की मोटी मोटी चुचियों पर जो कि उसकी हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहीं थीं, अपनी बहन की चूचियों को देख कर लल्लू का तो मुंह सूखने लगा, पहली बार वो नंगी चूचियां देख रहा था और वो भी अपनी बहन की, कितनी सुंदर और मोटी हैं, उसके मन में अपने ही खयाल आने लगे, दीदी की चूची तो फोटो वाली लड़की से भी अच्छी और बड़ी हैं, देखो कैसे ऊपर नीचे हो रही हैं, अगले ही पल लल्लू खुद को कोस भी रहा था कि अपनी बहन को ऐसे उसे नहीं देखना चाहिए, पर आंखे थीं हटने का नाम नहीं ले रहीं थी। पर हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और इसकी भी हो रही थी, उसे पता भी नहीं चला था कि उसका लंड उसके पजामे में पूरी तरह तन चुका था,

चूचियों को देखते हुए उसकी नज़रें नीचे आई तो अपनी बहन की गोरी कमर, सपाट पेट और उसके बीच गोल नाभी को देखा जो कि तालाब में कमल के समान सुन्दर लग रही थी, कुछ पल वो बस नाभी और उसकी सुंदरता को ही निहारता रहा, और फिर कुछ पल बाद उसकी नजर उसकी बहन की जांघों के बीच पहुंची, बिल्कुल चिकनी उसकी चूत देख कर तो लल्लू का बदन सिहर गया, बीच में एक हल्की सी लम्बी दरार थी जो कि लग नहीं रहा था आज तक खुली थी, ये देख तो लल्लू का हाथ अपने आप उसके लंड पर पहुंच गया और पजामे के ऊपर से ही उसे सहलाने लगा, वो धीरे धीरे भूलने लगा कि जिसे वो देख रहा है वो उसकी बड़ी बहन है बल्कि उसे तो सामने लेटी हुई एक कमसिन जवान नंगी लड़की दिख रही थी, इसी बीच नंदिनी ने दूसरी ओर करवट ले ली और लल्लू के लिए एक बार बाजी और पलट दी, लल्लू के सामने उसकी बहन के गोल मटोल चूतड़ आ गए, और उन्हें देख कर तो उसका लंड भी पजामे में ठुमक कर सलामी देने लगा, ऐसी मस्त गांड देख लल्लू अंदर तक हिल गया, हालांकि उसने गांव की कई औरतों की और फिर पुष्पा चाची की बड़ी सी फैली हुई गांड भी हाल ही में देखी थी, पर अपनी सगी बहन की गोल मटोल गांड के आगे उसे वो सब फीकी लगीं, कितने मोटे और गोल मटोल चूतड़ थे कि दरार को भी ढंक रहे थे,
लल्लू की तो सांसें ऊपर नीचे होने लगी थीं कहां वो छूपके खेत में दूसरी औरतों के चूतड़ देखता था और कहां अपनी ही जवान कामुक बहन का नंगा बदन उसके सामने था, एक ओर उसका मन कह रहा था कि ये सब गलत है ये तेरी बहन है बापिस मुड़ जा, वहीं दूसरा मन कह रहा था कि ऐसा मौका नहीं मिलेगा, बहन है तो क्या हुआ है तो लड़की ही और वो भी इतनी कामुक लड़की, वैसे भी किसी को कौन सा पता चला रह है, अपनी बहन का कामुक बदन देख कर वो खुद को रोक नहीं पा रहा था, अपने आप से ही लड़ाई चल रही थी कभी कदम पीछे रखता तो फिर बापिस रख लेता,

धीरे धीरे वासना ने उसकी बुद्धि पर नियन्त्रण कर लिया और वो पजामे के ऊपर से लंड मसलते हुए नंदिनी के नंगे बदन को अच्छे से निहारने लगा, उसका बड़ा मन होने लगा कि वो अपनी बहन के मखमली चूतड़ों को छुए पर इतना साहस नहीं हो रहा था, पर हर पल बढ़ती उत्तेजना ने उसके डर को कम कर दिया और उसने अपना हाथ आगे बढ़ाना शुरू कर दिया, ज्यों ज्यों उसका हाथ आगे बढ़ रहा था कांप रहा था कुछ ही पलों में उसका हाथ नंदिनी के कोमल गोल मटोल चूतड़ के करीब था, और वहीं रुक गया,
एक बार फिर से अंदर से आवाज आई कि लल्लू अभी भी समय है रुक जा ये पाप मत कर, अपनी सगी बहन के साथ ये सब करना महापाप है,
वहीं वासना ने भी उसे समझाया कि देख ले लल्लू सामने इतनी कामुक लड़की लेटी है आज तक तूने कभी ऐसा दृश्य नहीं देखा और न जाने कभी मौका मिले न मिले, भूलजा ये तेरी बहन है, और बस इसके मखमली बदन को देख, कितना कोमल है कितना सुंदर और कामुक है, इस मौके को अगर जाने दिया तो जीवन भर पछताएगा।
ये ही बात सोच कर बहुत सावधानी से लल्लू बहुत हल्के से अपना हाथ अपनी बहन के नंगे चूतड़ पर रख देता है, और स्पर्श होते ही उसके बदन में ऊर्जा का संचार सा हो जाता है उसे एक झटका सा महसूस होता है, उसका लंड इतना कड़क हो चुका था जितना आज तक नहीं हुआ था और पजामे में दुखने लगता है,
लल्लू का मुंह सूखने लगता है बार बार वो अपनी जीभ से होंठों को गीला करता है, साथ ही लंड की पीड़ा हर पल के साथ बढ़ती जा रही थी, वो बिना कुछ सोचे अपने पजामे को नीचे सरकाता हैं और अपने लंड को बाहर निकाल लेता है, लंड भी नंदिनी का बदन देख फुंकारने लगता है, लल्लू एक हाथ धीरे धीरे लंड पर चलाना शुरू कर देता है, वहीं दूसरा हाथ भी बहुत धीरे से नंदिनी के चूतड़ों पर फिराने लगता है पर बेहद सावधानी से, ऐसी उत्तेजना उसने आज तक महसूस नहीं की थी, अपनी बहन के चूतड़ों के स्पर्श मात्र से उसे लगता है जैसे उसका रस उसके लंड में भरने लगा है,
और होता भी कुछ ऐसा ही है, उसकी उत्तेजना बिल्कुल चरम पर होती है और वो कुछ बार मुठियांने पर ही स्खलन के करीब पहुंच जाता है, आनंद में उसकी आंखें बंद होने लगती हैं चेहरा ऊपर हो जाता है, एक हाथ को अपनी बहन के चूतड़ों पर फिराते हुए वो अपने स्खलन की ओर बढ़ने लगता है,
इसी पल नंदिनी की आंख भी खुलती है उसे अपने चूतड़ पर किसी का स्पर्श महसूस होता है तो वो गर्दन घुमा कर देखती है और अपने भाई को इस अवस्था में देख कर चौंक जाती है और तुरंत उठ कर बैठ जाती है, और कुछ करती या बोलती तब तक देर हो जाती है और लल्लू का लंड पिचकारी मारना शुरू कर देता है, और पहली पिचकारी सीधी उसके चेहरे से टकराती है तो दूसरी उसकी गर्दन पर और फिर तीसरी उसकी चूचियों पर,
नंदिनी आंखे फाड़े बुत सी बनी हुई देखती रहती है और उसका भाई उसे अपने रस में रंगता रहता है, झड़ने के बाद लल्लू हांफता हुआ अपनी आंखें खोलता है तो सामने का दृश्य देख उसके पैरों से धरती खिसक जाती है, सामने अपनी बड़ी बहन के जागा हुआ और अपने रस में सना हुआ देख लल्लू को अपना आखिरी समय लगने लगता है, झड़ने के बाद उत्तेजना का जादू वैसे भी सिर से उतर गया था और सच्चाई का बादल उसके सिर पर फट चुका था, अपने जीवन में वो शायद ही इतना डरा हो,
नंदिनी को तो विश्वास नहीं हो रहा था कि ये हुआ क्या है, उसके ऊपर उसके भाई का रस है, उसका भाई उसे देख कर अपना लिंग हिला रहा था। नंदिनी पल भर में ही गुस्से से भर गई,
नंदिनी: कुत्ते क्या कर रहा है तू ये।
लल्लू: दीदी वो दीदी मैं
लल्लू को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले, तो वो पजामा ऊपर चढ़ाता है और बाहर की ओर भागता है, नंदिनी बस गुस्से में उसे देखती रहती है, लल्लू किवाड़ के पास भाग कर पहुंचता है और उसी समय लता भी किवाड़ से अंदर घुसती है और दोनों आपस में टकरा जाते हैं, क्योंकि लल्लू की गति तेज होती है तो वो लता के ऊपर गिर पड़ता है जिससे लता भी पीछे गिर जाती है।
लता: अःह्ह्ह्, है हाय दैय्या मार डाला, ओह मेरी कमर गई, ऊंट कहीं का,
लल्लू तुरंत उठता है अपनी मां के ऊपर से और घबरा कर उसे भी उठने की कोशिश करने लगता है,
लल्लू: मां तुम ठीक तो हो न लगी तो नही?
लता: नाशपीटे अंधे सांड की तरह आकर टक्कर मार दी और बोला है लगी तो नहीं कमीने कहां अंधों की तरह भाग रहा था,
अब लल्लू क्या बोलता उसकी ये सोच फट रही थी कि कहीं मां ने अंदर जाकर दीदी को उस हालत में देख लिया और दीदी ने बता दिया कि उसने क्या किया तो वो तो गया,
लल्लू: वो मां मैं तो वो मैं तुम्हें ही ढूंढ रहा था,
लता: आह्ह्हह मुझे क्यों?
लल्लू: वो पापा ने वो हां चाय हां चाय मंगाई थी खेत पर।
लल्लू ने अपनी मां को सहारा देकर उठते हुए कहा,
लता: अरे तो नंदिनी से बनवा लेता ना वो क्या कर रही है,
लल्लू: वो मां दीदी तो मां वो दीदी,
लता: अरे क्या मैं वो दीदी कर रहा है, चल अंदर।
लल्लू की ये सोच कर फटने लगी कि अंदर दीदी की हालत देख कर उसकी मां उसे आज मार डालेगी,
लल्लू: मां चोट लगी है तो चलो वो बाबा से दवाई ले आते हैं।
लता: अरे रहने दे इतनी भी नहीं लगी है गरम तेल से मालिश करूंगी हो जायेगा ठीक।
लता अंदर की ओर जोर डालने लगी तो लल्लू को भी न चाहते हुए लता को सहारा देते हुए अंदर चलना पड़ा, हर कदम पर लल्लू के मन में प्रार्थना चल रही थी, अंदर घुसते ही लल्लू ने देखा आंगन में तो नंदिनी नहीं थी लल्लू ने धीरे धीरे ले जा कर लता को आंगन में पड़ी खाट पर बिठा दिया।
लता: अब ये नंदिनी कहां गई? बुला तो?
लल्लू ये सुनकर डरते हुए आवाज देने लगा,
लल्लू: दीदी ओ दीदी।
कुछ ही पल में कमरे से नंदिनी निकली जिसे देख लल्लू को थोड़ी हैरानी हुई और चैन भी आया क्योंकि नन्दिनी ने कपड़े पहने हुए थे और उसका चेहरा भी साफ था मतलब उसका रस नहीं लगा था,
नंदिनी: क्या हुआ मां कमर में ऐसे क्यों पकड़ी हुई है?
नंदिनी ने पास आते हुए कहा,
लता: ये है न सांड भागते हुए मुझसे द्वार पर टकरा गया, गिरा दिया मुझे।
नंदिनी: इसकी हरकतें तो बस बढ़ती ही जा रही हैं सारे काम ऐसे ही करता है ये मां।
नंदिनी ने लल्लू को गुस्से से घूरते हुए कहा तो लल्लू की तो हिम्मत नहीं हो रही थी उसकी आंखों में देख सके इसलिए आँखें झुका के बैठा रहा,
लता: अरे वो चाय चढ़ा दे तेरे पापा ने खेत पर मंगाई है वही लेने आया था ये,
नंदिनी: अभी चढ़ाती हूं,
नंदिनी ने एक बार और लल्लू को गुस्से से देखा और फिर चूल्हे की ओर बढ़ गई।


छोटू सुबह जब उठा तो बिस्तर पर अकेला था आंखें मल के बैठ गया और कुछ पल लगे उसे नींद की चादर से निकलने में, धीरे धीरे नींद हटी तो उसे रात की बातें याद आने लगी वो सब जो उसने अपनी मां के साथ किया, उसे याद आने लगा, और उसकी धड़कनें तेज होने लगीं,उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि रात में उसके और उसकी मां के बीच इतना कुछ हो गया, एक तरफ सोच कर उसे बुरा भी लग रहा था कि ये सब पाप उससे हो गया, वहीं उसने नीचे देखा तो खड़ा लंड पाया जो कि इस बात की गवाही दे रहा था कि जो हुआ उसे बहुत अच्छा लगा था,
छोटू ने भी ये बात सच्चाई से सोची और उसने भी पाया कि सच में रात जैसा आनंद उसे कभी नहीं आया था, भले ही अपनी मां के साथ उसने ये सब किया था पर मज़ा सच में बहुत आया था फिर स्वयं ही वो रुक कर सोचने लगा, शायद मां के साथ किया इसलिए ही और आनंद आया, और आए भी क्यों न मां कितनी सुंदर है कितनी कामुक है, कितना भरा हुआ बदन है, उनका बदन तो दुकान वाली चाची से भी ज़्यादा मस्त है।
मन में रात जो हुआ उसे लेकर उसे एक गुदगुदी सी हो रही थी, जैसे किसी बच्चे को कोई पसंद का खिलौना मिल जाए तो वो कैसे खुश हुआ फिरता है वही अवस्था अभी छोटू की हो रही थी, रात में इतना सब हो गया था कि उसकी खुशी उससे संभाले नहीं संभल रही थी, पर बात कुछ ऐसी थी कि किसी को बता भी नहीं सकता था, खुशी खुशी में ही उसने कपड़े पहने और सोचने लगा चलो दोनों यारों से मिलता हूं ज़रूर दोनों सुबह सुबह चूतड़ देखने का जुगाड़ लगा रहे होंगे।

ये सोच कर छोटू घर से निकलता है और सबसे पहले लल्लू के घर की ओर बढ़ जाता है द्वार पर पहुंच कर किवाड़ खुले हुए देखता है तो अंदर बढ़ने से पहले उसे कल जो उसके और लता ताई के बीच हुआ वो याद आता है और सोचने लगता है कहीं ताई गुस्सा तो नहीं होंगी?
पर क्यों होंगी? मेरी क्या गलती थी, वैसे भी आज छोटू का आत्मविश्वास कुछ अलग ही था, आखिर मां का ऐसा प्रेम पाकर किस बेटे का आत्मविश्वास नहीं बढ़ेगा, वहीं उसका औरतों को देखने का भाव थोड़ा बदल गया था, वो मन में सोच रहा था कि औरत से डर कर नहीं पास जाकर ही असली सुख की प्राप्ति हो सकती है, आखिर रात मां के साथ भी तो वही हुआ, वैसे भी अपनी मां के साथ यदि मैं इतना कुछ कर सकता हूं तो ताई के साथ क्या ही ज़्यादा हुआ था।
इतना सोचते हुए वो अंदर घुस गया देखा आंगन खाली था, तो उसने आवाज लगाई: लल्लू ओ लल्लू।
अंदर से लता की आवाज़ आई: लल्लू नहीं है घर कौन छोटू, अंदर आ जा लल्ला।
लता घर पर अकेली ही थी लल्लू चाय लेकर चला गया था और नंदिनी नीलम के साथ खेत की ओर निकल गई थी।
छोटू लता की आवाज़ सुन थोड़ा सकुचाया पर फिर अपनी बातें याद कर अंदर बढ़ गया, लता चूल्हे के पास बैठी थी, छोटू भी उसके पास जाकर बैठते हुए बोला: लल्लू कहां है ताई?
लता भी थोड़ा सोच में पड़ी लल्लू को देख कल की बातें याद कर साथ ही ये सोच कि क्या सच में इस पर उदयभान की लुगाई का साया है, जिस तरह से ये बिल्कुल आराम से बात कर रहा है लगता नहीं कल की बात से कुछ अंतर पड़ा है लता ये ही सोच में पड़ी हुई थी।
छोटू: क्या हुआ ताई कहां खोई हो?
लता: लल्लू खेत गया है लल्ला, रात से तेरे ताऊ और बाबा खेत काट रहे हैं तो वो भी रात से उन्हीं के साथ था।
छोटू: अरे वाह अपना लल्लू भी आज कल मेहनत कर रहा है कितना अच्छा है।
लता: हां पर काहे का अच्छा, सुबह सुबह ही मेरी कमर तोड़ दी कमीने ने।
छोटू: अरे ऐसा क्या हो गया? क्या हुआ ताई तुम्हारी कमर में?
लता: ये लल्लू है न बिल्कुल अंधे सांड की तरह भागता है, पता नहीं कैसे सुबह भाग रहा था द्वार पर मुझसे टकरा पड़ा और मुझे गिरा दिया.
छोटू: अरे रे ताई, ज़्यादा लग गई क्या?
लता: हां लल्ला कमर में और कूल्हे में लगी है चलने में भी दिक्कत हो रही है, उसी के लिए तो तेल गरम किया है।

लता ने तेल की कटोरी की ओर इशारा करते हुए कहा,
छोटू: हां ताई इससे मालिश से आराम पड़ेगा।
लता: हां लल्ला अब इसी का सहारा है, अह्ह हाय दैय्या उठते भी नहीं बनता अब तो,
छोटू: आओ ताई मैं उठाता हूं,
ये कहकर छोटू सहारा देकर लता को उठाता है, और उसके एक ओर आकर उसे अपने कंधे से सहारा देता है और अपने हाथ से लता को पकड़ने के लिए उसकी कमर पर रख देता है, लता की गदराई कमर हाथ में महसूस कर छोटू को सिहरन होती है वहीं लता को भी कुछ अलग सा अहसास होता है,
छोटू लता को सहारा देते हुए अंदर कमरे में ले जाकर खाट पर बिठा देता है।
लता: अह्ह अच्छा हुआ तू आ गया लल्ला नहीं तो मुझसे तो उठा ही नहीं जाता।
छोटू: अरे ताई इसमें क्या है, मैं तुम्हारी सेवा नहीं करूंगा तो कौन करेगा।
लता को आज छोटू की बातों में अलग ही आत्मविश्वास दिखाई दे रहा था
लता: ये तो सही कहा लला, अब हमें तो तुम बच्चों का ही सहारा है, एक तेरा दोस्त है जो चोट देकर चला गया और एक तू है जो सहारा दे रहा है।
छोटू: अरे ताई क्यों ऐसे बोलती हो, मैं भी तो तुम्हारा अपना हूं, अच्छा बताओ मालिश करूं तुम्हारी कमर की?
लता उसके इस प्रश्न से थोड़ा चौंकती है।
लता: अरे नहीं लल्ला तू रहने दे मैं कर लूंगी।
छोटू: कैसे कर लोगी ताई तुम्हारा हाथ पीछे कैसे पहुंचेगा।
लता ने भी सोचा ये कह तो सही रहा है बिना हाथ पहुंचे कैसे लगाऊंगी।
लता: अच्छा ठीक है तू कह रहा है तो लगा दे।
छोटू: ठीक है ताई तुम उधर घूम जाओ,
लता उसकी बात सुन कर अपनी पीठ उसकी ओर करके घूम कर बैठ जाती है, छोटू उसके पीछे आकर अपनी उंगलियों को तेल की कटोरी में डुबाता है और फिर अंगुलियों में तेल लेकर अपने दोनों हाथों पर मल कर हाथ आगे बढ़ा कर लता की पीठ पर जो साड़ी और ब्लाउज़ के बीच की जगह थी उस पर रखता है तो पल भर के लिए दोनों के बदन में ही एक सरसरी सी होती है, छोटू अपनी उंगलियां और हथेली का प्रयोग करके लता की पीठ पर तेल मलने लगता है और मालिश करने लगता है, जिससे लता को भी आराम मिलता है, छोटू अपनी पूरी कोशिश करता है लता को आराम पहुंचाने की।
पीठ के हिस्से की अच्छे से मालिश करने के बाद छोटू और तेल उंगलियों पर लेता है और उसे हाथों पर चुपड़ने के बाद फिर से लता की कमर पर लगाता है पर इस बार पीठ के बीच में नहीं बल्कि उसकी कमर की दोनों ओर, लता को अपनी कमर पर छोटू का हाथ का स्पर्श पाकर फिर से एक सिरहन होती है वहीं छोटू अपने हाथों में ताई की चिकनी कमर का स्पर्श पाकर उत्तेजित होने लगता है पजामे में उसका लंड सिर उठाने लगता है।
वो धीरे धीरे लता की कमर को मसलते हुए मालिश करने लगता है।


जारी रहेगी।
 
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Story bhut achi hai..... But Jis trah se update de rhe hai........Lgta hai ye story v jld hi bnd ho jayegi......so sad

Mast update guruji thanks guruji

बहुत शानदार रोमांटिक अपडेट

Bhut badiya story hain bhai regular update Diya karo daily

फुलवा और बाबा ने बवाल मचा दिया.. बड़ा ही जबरदस्त अपडेट

Mast jabardast update

Shandar super hot seductive update 🔥 🔥 🔥
Chhotu ke maze ho gaye.
Baba ji Pooja katre rah gaye bhog koi aur lagaya Gaya 😀😀 :fuck1:

Jhakkas Rommanchak. Pratiksha agle rasprad update k

Excellent update bhai, maa bete ka khel sach mein bada kaamuk tha, jungle mein fulwa ke sath khel ho gaya baba darshak bana raha, waise ye khiladi tha kaun.

Behtreen update

Kya update diye Ho maja a Gaya
Khatarnak update

बहुत ही गरमागरम कामुक और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

Nice

Nice update bro 👍🎉👍


केला बाबा के चक्कर मे दोनो सास - बहू ( फुलवा - पुष्पा ) का कल्याण हो गया । पुष्पा का कल्याण घर मे ही हुआ तो फुलवा की चांदी घर के बाहर एक घने जंगल मे स्थित नदी के किनारे पर हो गई ।
इन दोनो महिलाओं को बाबा का शुक्रगुजार होना चाहिए जिनकी वजह से इस उम्र मे इन्हे थोड़ा-बहुत ही सही , पर कुछ तो सेक्सुअल सुख नसीब हुआ । :D
आउटस्टैंडिंग अपडेट भाई ।

Bhai update de do

Update thoda fast diya kro bhai.......khani achi ho to jyada intjar nhi hota...... Or plzz bich me story bnd mt kr dena....... Or ekdum erotic bnao......... 👍👍

Bhut shandaar update

बेचो बेचो
मोमबत्ती झालर पटाखे पोस्टर 🤣

मिठाई मेरी ओर से सबको :celebconf:


hope update jaldi hi aayega..thx.

Arthur Morgan

Waiting for update guruji

Waiting for next update…
अध्याय 11 पोस्ट कर दिया है, पढ़ कर प्रतिक्रिया अवश्य दें।
 
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