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फुलवा कुछ पल वैसी ही पड़ी रही चूत से अनजान मर्द का रस बह कर बाहर टपक रहा था, वैसे तो इस उमर में चूत में रस गिराने से कोई खतरा नहीं था पिछले साल से ही उसके मासिक धर्म आने बंद हो गए थे, पर सूखी चूत पर अचानक से हुई बारिश ने उसके मन को भी भीगा कर रख दिया था, अपने आप को संभालने के बाद फुलवा ने मंत्रों को पूरा किया, और फिर पेड़ की ओट में कपड़े पहनकर घर की ओर चल दी, अब आगे...
घर की ओर कदम बढ़ाते हुए फुलवा के मन में विचारों का सैलाब आया हुआ था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो गया, और कौन था वो अज्ञात साया जिसने उसके साथ ये किया, उसने तो किसी को बताया भी नहीं था इस टोटके के बारे में, सिर्फ बाबा को पता था, तो क्या बाबा ने ये सब?
ये सोच फुलवा के कदम रुक गए और वो खेत की एक मेढ़ पर बैठ गई और सोचने लगी।
नहीं नहीं, बाबा ऐसा कभी नहीं कर सकते वैसे भी उसकी उमर बाबा जितनी तो नहीं लग रही थी, जो भी था बाबा से जवान ही था पर कौन था सबसे बड़ा सवाल ये है, कीड़े पड़ें उस हरामी को न जाने क्या मिला मुझ बुढ़िया के साथ ये सब करके उसे, इस उमर में आकर मेरा मुझे खराब कर गया, पूरा जीवन सिर्फ अपने पति के साथ बिताया मैंने, और किसी को छूना तो दूर उस नज़र से देखा भी नहीं, और इस उमर पर आकर ये सब, हाए दईया कहीं वो मेरी बदनामी न कर दे, बैठे हुए ही फुलवा को अपनी चूत से उसका रस अब भी रिसता हुआ महसूस हुआ, तो फुलवा उठी और खेत के अंदर की ओर चलने लगी साथ ही मन में सोच रही थी: हरामजादा अपना पानी भी अंदर गिरा गया, वो तो अच्छा है अब गाभिन नहीं हो सकती नहीं तो क्या ही मुंह दिखाती मैं किसी को,
खेत के अंदर जाकर एक घनी सी जगह देख कर फुलवा ने अपनी साड़ी को पकड़ कर कमर तक उठाया और नीचे बैठ गई और उसके रस को अपनी चूत से निकालने की कोशिश करने लगी, फुलवा अपनी उंगलियों को अपनी चूत में डाल कर रस को बाहर पोंछने की कोशिश करने लगी, और उंगलियों को चूत में चलाते हुए फुलवा के बदन में फिर से वही तरंगें उठने लगीं जो कि तब उठ रही थी जब वो अनजान साया उसे चोद रहा था, जिन्हें फुलवा अपने ही आप से छुपाने की कोशिश कर रही थी पर अभी दोबारा से चूत में उंगलियों ने उसे बापिस उसी मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया,
अह्ह्ह्ह कमीने ने वर्षों की बुझी हुई आग को भड़का दिया है, अह्ह्ह्ज मैं तो भूल ही गई थी कि चुदाई में ऐसा आनंद आता है, पूरा बदन झूम सा रहा है, फिर खुद ही अपनी उंगलियों को चूत से बाहर झटकते हुए मन ही मन बोली: छी छी ये मैं क्या सोच रही हूं, एक तो इतना बुरा हुआ और मैं उसमें अपने बदन के आनंद की बात सोच रही हूं, फिर मन से दूसरी आवाज़ आई कि खुद से ही झूठ कैसे बोलेगी फुलवा? झूठ कैसा झूठ।
अगर ये झूठ नहीं है और तुझे बुरा लग रहा था तो तूने उसे रोका क्यों नहीं?
रोकती कैसे वो तो अचानक से आकर धक्के लगाने लगा,
फिर भी तो रोक सकती थी, और सबसे बड़ी बात इतना ही बुरा लगा था तो इतने वर्षों बाद चूत ने पानी क्यों छोड़ दिया,
ये सोच कर तो फुलवा खुद से ही हार गई, और सोचने लगी सच तो ये ही है कि वो जो भी था उसने ऐसा सुख दिया जो की न जाने कब से मेरी चूत को नहीं मिला था तभी तो खुश होकर चूत ने पानी बहा दिया, अःह्ह्ह्ह्ह अपनी चूत पर तो मैंने ध्यान देना ही छोड़ दिया था ये सोच कर कि इस उमर में ये सब नहीं होता, पर उस साए ने तो जैसे मुझे दोबारा जवान कर दिया,
ये सोचते हुए फुलवा की उंगलियां बापिस उसकी चूत की गली में घुस गईं और शोर मचाने लगीं, और तब तक अंदर बाहर होती रहीं जब तक एक बार फ़िर से फुलवा की चूत ने पानी नहीं बहा दिया,
सुबह रोज के समय से ही लता की नींद खुली और आंखों को मलते हुए उठी और फिर जैसे ही खुद पर ध्यान गया तो चौंक गई खुद को नंगा पाकर फिर रात की सारी बातें ताजा होने लगीं और उसका सिर भारी होने लगा, बगल में सोती हुई बेटी के नंगे बदन पर निगाह डाली और सोचने लगी कि क्या होता जा रहा है ये मेरे साथ, क्यों मैं स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाती, क्यों अपनी ही बेटी के साथ ये सब हरकतें करती हूं, इतनी गर्मी क्यों आ रही है मेरे बदन में, ऐसा तो रंडियां भी नहीं करती होंगी जैसा मैं कर रही हूं, अपनी ही बेटी से अपनी चूत चटवाई, अपनी बेटी के मुंह पर मैंने मूता, छी छी छी एक मां इससे नीच काम और क्या कर सकती है,
लता अपनी बेटी के सोते हुए चेहरे को देखते हुए सोचने लगी, लता ने अपनी बेटी के नंगे बदन को ऊपर से नीचे तक निहारा और एक बात उसके मन में आई कि जिससे भी बेटी ब्याह करेगी उसका तो जीवन ही सफल हो जाएगा, इतना सुंदर और कामुक बदन है मेरी बिटिया का, सुंदर चेहरा, पतली कमर, इतने मोटे मोटे चूचे और फिर नीचे इतनी लुभावने गोल मटोल चूतड़।
ये सब सोचते हुए उसे फिर से अपने बदन में कुछ कुछ होने लगा और वो बेटी की ओर आकर्षित होने लगी तो बीच में ही उसने खुद को रोका और तुरंत बिस्तर से उठ गई और सोचने लगी कि अपनी इस गर्मी का मुझे कुछ करना ही पड़ेगा, आज रात ही नंदिनी के पापा से शांत करवाऊंगी।
वो अपने कपड़े पहनते हुए सोचने लगी, पर अभी नंदिनी को कैसे जगाऊं, अगर उठेगी तो मैं इसका सामना कैसे करूंगी, समझ नहीं आ रहा आंख भी कैसे मिलाऊंगी, सो भी तो नंगी रही है, कुछ समझ नहीं आ रहा।
कुछ सोचते हुए उसने शौच पर जाने वाला लोटा उठाया और आंगन के कोने में दरवाजे की ओर जाकर आवाज़ लगाने लगी: नंदिनी ए नंदिनी उठ जा, उठ सुबह हो गई।
कई बार आवाज़ लगाने पर नंदिनी की नींद हल्की खुली तो उसने सिर उठा कर देखा, आंखें अब भी आधी खुली आधी बंद थीं, लता ने जैसे ही देखा कि नंदिनी की नींद खुल गई है वो तुरंत घूम गई और दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाते हुए बोली: उठी जा मैं जा रहीं हूं खेत ठीक है।
इतना कह कर वो दरवाज़ा खोल कर और बाहर से ही कुंडी लगा कर चली गई, इधर उसने ये देखा ही नहीं कि नंदिनी तो बापिस सो चुकी थी , उसने पलभर को सिर उठा कर भले ही देखा था पर नींद में होने के कारण बापिस सो गई।
लता अपने घर से सीधा पहले रत्ना के यहां गई, और फिर पुष्पा के घर की ओर आई तो दरवाजे पर ही उसे सुधा और पुष्पा दोनों मिल गए तो फिर चारों की टोली हाथों में लोटा लिए चल पड़ी खेतों की ओर।
बीती रात एक और के लिए काफी भारी पड़ी थी और वो था लल्लू, जिस लल्लू का काम में पल भर को मन नहीं लगता था उस लल्लू को सारी रात खेत काटना पड़ा था तो मन ही मन भुनता हुआ और नींद से लड़ता हुआ मन मारकर काम में लगा रहा था। पर खेत था कि खतम होने का नाम ही नहीं ले रहा था, अभी भी थोड़ा हिस्सा बचा था, लल्लू को तो अब झपकियां आने लगी थीं, लल्लू को झपकी आते देख उसके दादा को उस पर दया आ गई और वो बोले: ए ललुआ अब थोड़ा ही रह गया है, जा तू घर हम लोग कर लेंगे,
मगन: अरे बापू तुम ही इसे चढ़ाए हो सिर पर, हम दोनों लोग भी तो लगे हुए हैं रात से ही ये तो जवान है हमें थकना चाहिए या इसे?
कुंवरपाल: अरे उसे झपकी आ रही हैं, कहीं दरांती गलत लग गई तो कट जायेगा।
मगन: अच्छा लल्लू फिर एक काम कर घर जा और अपनी मां से चाय बनवा ला, हमारी सुस्ती भी थोड़ी दूर हो जायेगी, क्यों बापू?
कुंवरपाल: हां ये ठीक रहेगा।
लल्लू की इतनी हिम्मत तो होती नहीं थी कि अपने बाप के आगे कुछ बोल सके तो जैसा बाप ने कहा वैसे ही ठीक है कह कर चल दिया तो पीछे से मगन ने सावधान भी कर दिया।
मगन: और सुन सीधा घर जा और घर से यहां लौट, अपने यारों के पास रुकना नहीं।
ये सुन तो लल्लू अंदर तक जल भुन गया, एक ही तो उम्मीद थी उसे, उसने सोचा था कि अभी सबसे पहले खेतों में छुपकर बैठूंगा और सुबह सुबह ही किसी के मस्त चूतड़ों के दर्शन हो जायेंगे तो कम से कम रात का दुख कम हो जायेगा पर उसके बाप ने उससे ये सुख भी छीन लिया, मन ही मन अपने भाग्य को कोसता हुआ वो घर की ओर चलने लगा और ये सब कम नहीं था कि उसके जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए उसे रास्ते में ही भूरा मिल गया,
भूरा: अरे मैं तेरे घर ही आ रहा था, चल चलते हैं, खेतों की ओर।
लल्लू: तू ही जा मुझे काम है,
लल्लू मुंह बनाते हुए बोला,
भूरा: ऐसा क्या काम है सुबह सुबह?
लल्लू: तेरी गांड मारनी है बोल मरवाएगा?
लल्लू अपना गुस्सा भूरा पर निकालते हुए बोला,
भूरा: तू मरा गांड भेंचों अपनी, बिना बात के नखरे कर रहा है लुगाई की तरह।
ये कह भूरा भी गुस्से से आगे बढ़ गया उसे छोड़ कर और लल्लू अपने घर की ओर।
भूरा भिनभिनाता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, साला अपने आप को समझता क्या है, बिना बात के मुझपर भड़क रहा था, गांड मराए चूतिया साला। भूरा आगे एक मोड पर पहुंचा जहां उसके सामने दो रास्ते कट रहे थे एक रास्ता था उस खेत का जहां गांव की औरतों को वो छोटू और लल्लू देखते थे और एक रास्ता था उस खेत का जहां उसने और लल्लू ने पुष्पा चाची की मोटी गांड पहली बार देखी थी, किस ओर चला जाए वो इस पर विचार करने लगा, और कुछ सोच विचार के बाद वो एक रास्ते पर मुड़ गया और थोड़ा आगे चलने के बाद इधर उधर देख कर एक अरहर के खेत में घुस गया, और फिर सावधानी से आगे बढ़ते हुए वहीं पहुंच गया जहां उसने पहली बार पुष्पा चाची की गांड का अदभुत दृश्य देखा था,
बिलकुल मेढ़ के किनारे पहुंच कर भूरा ने सावधानी से झाड़ियों को थोड़ा हटा कर देखा तो सामने का दृश्य देख कर उसकी आँखें फैल गईं। उसका मन खुशी से फूल उठा क्यूंकि आज उसे छप्पर फाड़ के जो मिला था, कहां वो पुष्पा चाची की गांड देखने की इच्छा से आया था और कहां आज उसके सामने चार चार औरतें अपनी साड़ी कमर पर चढ़ाए अपने चूतड़ दिखा कर उसके सामने बैठी थीं, उसका लंड तो तुरंत ही तन गया, और चारों की गांड एक से बढ़कर एक थी, भूरा को तो अपने भाग्य पर विश्वास नहीं हो रहा था, उसने खुद को समझाया कि भूरा ये सपना नहीं है तू सो नहीं रहा बल्कि तेरे भाग्य जागे हैं, तुंरत भूरा ने अपना पजामा नीचे कर के अपने तने हुए लंड को बाहर निकाला और उसे मुठियाते हुए सामने के दृश्य पर नज़र गढ़ा दी,
अह्ह्ह्ह क्या दृश्य है, एक से बढ़कर एक गांड, अह्ह्ह्ह पर ये हैं कौन, ये दूसरे नंबर वाली तो पुष्पा चाची हैं उनकी गांड को मैं नहीं भूल सकता, तभी उनमें से एक औरत हंसी तो उसकी हंसी सुनकर तो भूरा तुरंत समझ गया कि ये तो सुधा चाची हैं, अह्ह्ह सुधा चाची की गांड भी बड़ी मस्त है पुष्पा चाची से छोटी भले ही है पर बिल्कुल गोल मटोल है,
इतने में पुष्पा के दूसरी ओर बैठी औरत कुछ बोली तो भूरा चौंक गया क्योंकि वो तो लल्लू की मां यानी लता थी, भूरा थोड़ा सकुचा फिर सोचने लगा कि जब छोटू की मां की देख सकता हूं तो उस चूतिया लल्लू की मां की क्यों नहीं, साला अच्छा हुआ नहीं आया नहीं तो अपनी मां की गांड देख कर पागल हो जाता, वैसे लता ताई की गांड है भी पागल करने वाली, चूतड़ देखो कैसे मोटे मोटे हैं, लगता है ताई ने खूब मरवाई है,
अपनी दोस्तों की मां के बारे में ऐसी बातें सोच कर उसे बहुत उत्तेजना हो रही थी साथ ही उसे अच्छा भी लग रहा था, इसी बीच उसके कंधे पर एक हाथ पड़ा जिससे वो चौंक गया, उसने तुरंत पलट कर देखा और सामने वाले चेहरे को देख कर तो उसकी गांड और फट गई, सामने सत्तू था जो उसे देख कर उससे फुसफुसाते हुए बोला: क्यों बे किसके बिल देख कर अपना बीन बजा रहा है?
अब भूरा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले उसके तो गले से आवाज नहीं निकल रही थी वो सोच रहा था कि अगर सत्तू ने छोटू या लल्लू को ये बात बतादी कि मैं उनकी मांओं की गांड देख कर मुठ मार रहा था तो दोनों मेरी जान ले लेंगे। अब क्या होगा?
सत्तू: अरे गूंगा हो गया क्या? बहुत टेम हो गया मुझे भी ये खेल खेले हुए चल आज फिर से देख लेते हैं,
ये कहकर सत्तू ने भूरा को बगल किया और खुद भी उसके बगल में झुककर उसकी तरह सिर निकाल कर सामने देखने लगा,
सत्तू: अरे भेंचो, ये तो गजब की पिक्चर है बे,
सत्तू फुसफुसाते हुए बोला साथ ही अपने पजामे को खिसका कर अपना लंड भी बाहर निकाल लिया और उसे मुठियाने लगा,
भूरा को सत्तू पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था कि साला कहां से आ गया अच्छा खासा देखते हुए हिला रहा था,
पर बेचारा कर भी क्या सकता था सत्तू उससे बड़ा था लड़ भी नहीं सकता था ऊपर से उसने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया था वो तो बस मन ही मन ये मन ये मना रहा था कि सत्तू को ये पता न चले कि ये औरतें कौन हैं नहीं तो उसका मरना तय है।
सत्तू: अह्ह एक से एक मटके हैं ये तो, बिलकुल सही जगह ढूंढी है तूने,
भूरा से भी और रुका नहीं गया और उसने सोचा अब फंस तो गया ही हूं थोड़ा इसका साथ देता हूं क्या पता बच जाऊं। ये सोच भूरा भी वापस अपनी जगह आकर देखने लगा,
भूरा: हैं न सत्तू भैया एक से बढ़कर एक।
भूरा थोड़ी चापलूसी करते हुए सत्तू को अपनी ओर करने के लालच में बोला।
सत्तू: हां यार, एक से बढ़कर एक, ये कोने वाली की तो बिलकुल कसी हुई गांड है पर बाहर को निकली है ज़रूर घोड़ी बन कर चुदती होगी खूब।
भूरा समझ गया ये सुधा की बात कर रहा है।
भूरा: अरे पर ये कैसे कह सकते हो भाई?
सत्तू: अरे लल्ला ये ही तो हमारा हुनर है, और बताऊं उसके बगल वाली की गांड बड़ी है पर इसकी चुदाई कम हुई है।
भूरा: अरे भाई तुम तो जादूगर हो।
भूरा पुष्पा चाची के बारे में सुनते हुए मन ही मन खुश होते हुए बोला
सत्तू अपनी प्रशंसा सुन कर खुश होते हुए बोला: ये तीसरी वाली सबसे मोती गांड वाली इसकी चुदाई भी काफी समय से नहीं हुई है पर ये मरवाती बड़ी मस्त होगी।
भूरा: भाई ये तुम सच कह रहे हो?
सत्तू: तुझे विश्वास न हो तो जाकर पूछ के देख ले.
सत्तू गंदी हंसी हंसता हुआ फुसफुसाया, भूरा को भी उसकी बात पर हंसी आ गई,
भूरा: नहीं भाई मुझे अपनी गांड नहीं तुड़वानी।
सत्तू: तो फिर शांत रह और सुन अह्ह्ह्ह चौथी वाली की गांड बड़ी मस्त है। सबसे ज्यादा मुझे ये हो अच्छी लगी
भूरा: क्यों भाई इसमें ऐसा क्या खास है?
सत्तू: अरे इसके चूतड़ देख बिल्कुल मिले हुए हैं गांड की दरार बैठने के बाद भी ठीक से नहीं दिख रही, ऐसी औरतों के छेद बड़े कसे हुए होते हैं लंड सटा सट जाता है अंदर।
भूरा: तुम्हें तो सब पता है सत्तू भाई। लगता है बहुत खेले खाए हो।
सत्तू: अरे खेले खाए हम कहां खेली खाई तो ये ही है कोने वाली, ये जरूर कई लंड ले चुकी है ऐसी औरतें कभी एक लंड से संतुष्ट नहीं होतीं। ये भी कई लौड़ों की सवारी करती होगी।
भूरा ने भी चौथी औरत पर अपना ध्यान लगाया और सोचने लगा सच में इसके चूतड़ बड़े मजेदार हैं न ज़्यादा छोटे और न ज़्यादा बड़े, बिल्कुल गोल मटोल और भरे हुए। उसकी गांड पर ध्यान लगाते हुए भूरा लंड को मसलने लगता है और सत्तू की कही बात सोचने लगता है कि कैसे लंड उसकी चूत में जाता होगा सटा सट।
इसी बीच सुधा फिर से कुछ बोली जो कि उन्हें ठीक से सुनाई नहीं दिया पर उसके बाद ही वो चौथी औरत जिसकी गांड देख कर वो लंड हिला रहा था वो भी हंसी और उसकी हंसी सुनकर तो भूरा के कान खड़े हो गए, उसका लंड उसके हाथ से छूट गया क्योंकि इस आवाज को वो बहुत अच्छे से पहचानता था ये किसी और की नहीं बल्कि उसकी मां रत्ना की आवाज़ थी,
भूरा का तो सिर चकराने लगा, जिसके लिए वो लंड हिला रहा था वो उसकी मां है, अपनी मां की गांड को देख कर मैं उत्तेजित हो रहा था, उसके मन में बार बार सत्तू की वो बात घूमने लगी कि इसकी चूत में लंड बड़ा मस्त जाता है, सटा सट।साथ ही ऐसी औरतें एक लंड से संतुष्ट नहीं होतीं है।
भूरा के लिए और सहना मुश्किल हो गया और उसके लंड के लिए भी,क्योंकि उसका लंड ठुमके मारते हुए पिचकारी छोड़ने लगा और झाड़ियों को गीला करने लगा, सत्तू ने भी ये देखा और बोला: अबे कहां अपना पानी इन झाड़ियों पर बहा रहा है, गांव में इतनी मस्त घोड़ियां हैं इनकी सवारी कर।
भूरा से कुछ कहते नहीं बना वो बस एक के बाद एक पिचकारी मारता रहा, स्खलन के बाद भूरा की सांसें धीरे हुई तो दिमाग घूमने लगा, उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या कर रहा है और ये क्या हो रहा है, पर उसने स्वयं को संभाला और सोचा अभी सबसे ज़रूरी ये है कि सत्तू को ये न पता चले कि ये औरते कौन हैं इसीलिए दिमाग लगाते हुए वो तुरंत उठा और सत्तू को पकड़ कर बाहर खींचने लगा,
सत्तू ने उसे इशारे में पूछा क्या हुआ तो उसने उसे चुपचाप बाहर आने का इशारा किया सत्तू भी अपना पजामा ऊपर करते हुए उसके पीछे पीछे खेत की दूसरी ओर चल दिया।
सत्तू: अरे क्या हुआ इतना मस्त दृश्य छोड़ कर उठा लाया।
भूरा: अरे इसी समय जिसका खेत है वो भी आता है एक दो बार तो मैं भी पकड़ने से बचा हूं
सत्तू: चल ठीक है, वैसे भी जो देखना था वो देख लिया।
भूरा: हां हां, अब मैं चलता हूं,
सत्तू: अरे रुक तो तुझे पता है ये औरतें कौन हैं यार बड़ी मस्त हैं।
भूरा ये सुन घबरा जाता है फिर संभालते हुए कहता है: ये ये ये तो पिछले मोहल्ले से आती हैं कौन हैं ये तो नहीं पता।
सत्तू: अच्छा लगता है पिछले मोहल्ले में चक्कर काटने पड़ेंगे। तभी काम बनेंगे।
इतने में दोनों अरहर के खेत से बाहर आ चुके थे, पर भूरा ये निश्चित कर लेना चाहता था कि जब तक औरतें घर तक न पहुंच जाएं, इसीलिए वो बातें बनाते हुए बोला: अरे सत्तू भाई ये औरतों को पटाने का हुनर मुझे भी सिखा दो।
सत्तू: अच्छा, बेटा तुम भी मजे लेना चाहते हो।
भूरा: हां भाई चलो नदी किनारे आराम से बातें करेंगे।
सत्तू: अरे वाह तू तो काफी गंभीर है भूरा सीखने के लिए।
भूरा: हां भाई मुझे अपना चेला बना लो।
सत्तू: चल फिर चेले, आज तुझे चुदाई का ज्ञान देता हूं।
सत्तू और भूरा नदी की ओर बढ़ जाते हैं।
खेत से बाहर निकलते हुए रत्ना ने पुष्पा से कहा,
रत्ना: ए पुष्पा रानी, का हुआ आज बड़ी चुप्पी साधी हुई है,
सुधा: हां और लता दीदी भी कहां बोल रही हैं कुछ।
सुधा और रत्ना ने लता और पुष्पा की चुप्पी देख कर आखिर पूछ ही लिया क्योंकि काफी देर से वो दोनों ही बातें किए जा रहीं थी,
पुष्पा: अरे वो कुछ नहीं वो तो बस थोड़ा सिर भारी था इसलिए।
लता: हां मुझे भी थोड़ी तबीयत ठीक नहीं लग रही इसलिए।
रत्ना: लगता है दोनों को ही अच्छी रगड़ाई की जरूरत है,
रत्ना और सुधा मजाक बनाते हुए हंसने लगीं तो चाहे अनचाहे भी पुष्पा और लता उनका साथ देने लगीं,
पुष्पा के मन में तो जो कुछ रात को हुआ वो किसी फिल्म की तरह चल रहा था, और जितना वो उसके बारे मे सोच रही थी उसका मन बैठा जा रहा था, वो स्वयं को इस समय दुनिया की सबसे गंदी और नीच औरत मान रही थी जो कि अपनी कोख से जन्मे बेटे के साथ ऐसी हरकतें करती है, उसे स्वयं से घिन आ रही थी।
ऐसा ही कुछ हाल लता का था वो भी उसी मनोदशा से गुज़र रही थी जो कि पुष्पा की थी।
लल्लू भारी कदमों से चलता हुआ अपने घर पहुंचा तो देखा कि किवाड़ पर बाहर से कुंडी लगी है, उसने सोचा शायद मां शौच पर गई हैं, इसलिए कुंडी खोल कर वो अंदर आया, नींद से उसकी आंखें भारी हो रहीं थी, घर में घुसने पर वो आंगन की ओर आया और देखा खाट अब भी पड़ी है तो वो उसकी ओर बढ़ा और कुछ कदम बढ़ाते ही रुक गया, उसकी नींद से भरी हुई आंखें अचानक से खुली की खुली रह गईं, सीने में तेजी से धक धक होने लगी, और आखें खाट पर जम सी गईं। बिस्तर पर अपनी बड़ी बहन को बिल्कुल नंगा देख उसे विश्वास नहीं हुआ कि वो सच में ये सब देख रहा है कि ये सपना है, पर ये सपना तो बिलकुल नहीं था, उसकी आंखो के सामने उसकी बड़ी बहन बिल्कुल नंगी हो कर सो रही थी, पहले प्रतिक्रिया तो उसकी यही हुई जो हर भाई की होनी चाहिए और उसने तुरंत अपनी आंखें हटा लीं,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी बहन ऐसे क्यों सो रही है, कोई नंगा भी सोता है क्या?
कहीं कुछ हो तो नहीं गया उसे कोई दिक्कत या परेशानी तो नहीं हो गई, ये सोचते हुए उसने बापिस अपनी आँखें बिस्तर पर डालीं और दो कदम बढ़ाते हुए खाट के बिल्कुल बगल में पहुंच गया, उसने नंदिनी का चेहरा देखा वो तो बड़े आराम से सो रही थी, धीरे धीरे लल्लू की आंखें नीचे की ओर फिसलने लगीं, सुराई दार गर्दन से होते हुए वो उसके सीने पर पड़ी और फिर नंदिनी की मोटी मोटी चुचियों पर जो कि उसकी हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहीं थीं, अपनी बहन की चूचियों को देख कर लल्लू का तो मुंह सूखने लगा, पहली बार वो नंगी चूचियां देख रहा था और वो भी अपनी बहन की, कितनी सुंदर और मोटी हैं, उसके मन में अपने ही खयाल आने लगे, दीदी की चूची तो फोटो वाली लड़की से भी अच्छी और बड़ी हैं, देखो कैसे ऊपर नीचे हो रही हैं, अगले ही पल लल्लू खुद को कोस भी रहा था कि अपनी बहन को ऐसे उसे नहीं देखना चाहिए, पर आंखे थीं हटने का नाम नहीं ले रहीं थी। पर हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और इसकी भी हो रही थी, उसे पता भी नहीं चला था कि उसका लंड उसके पजामे में पूरी तरह तन चुका था,
चूचियों को देखते हुए उसकी नज़रें नीचे आई तो अपनी बहन की गोरी कमर, सपाट पेट और उसके बीच गोल नाभी को देखा जो कि तालाब में कमल के समान सुन्दर लग रही थी, कुछ पल वो बस नाभी और उसकी सुंदरता को ही निहारता रहा, और फिर कुछ पल बाद उसकी नजर उसकी बहन की जांघों के बीच पहुंची, बिल्कुल चिकनी उसकी चूत देख कर तो लल्लू का बदन सिहर गया, बीच में एक हल्की सी लम्बी दरार थी जो कि लग नहीं रहा था आज तक खुली थी, ये देख तो लल्लू का हाथ अपने आप उसके लंड पर पहुंच गया और पजामे के ऊपर से ही उसे सहलाने लगा, वो धीरे धीरे भूलने लगा कि जिसे वो देख रहा है वो उसकी बड़ी बहन है बल्कि उसे तो सामने लेटी हुई एक कमसिन जवान नंगी लड़की दिख रही थी, इसी बीच नंदिनी ने दूसरी ओर करवट ले ली और लल्लू के लिए एक बार बाजी और पलट दी, लल्लू के सामने उसकी बहन के गोल मटोल चूतड़ आ गए, और उन्हें देख कर तो उसका लंड भी पजामे में ठुमक कर सलामी देने लगा, ऐसी मस्त गांड देख लल्लू अंदर तक हिल गया, हालांकि उसने गांव की कई औरतों की और फिर पुष्पा चाची की बड़ी सी फैली हुई गांड भी हाल ही में देखी थी, पर अपनी सगी बहन की गोल मटोल गांड के आगे उसे वो सब फीकी लगीं, कितने मोटे और गोल मटोल चूतड़ थे कि दरार को भी ढंक रहे थे,
लल्लू की तो सांसें ऊपर नीचे होने लगी थीं कहां वो छूपके खेत में दूसरी औरतों के चूतड़ देखता था और कहां अपनी ही जवान कामुक बहन का नंगा बदन उसके सामने था, एक ओर उसका मन कह रहा था कि ये सब गलत है ये तेरी बहन है बापिस मुड़ जा, वहीं दूसरा मन कह रहा था कि ऐसा मौका नहीं मिलेगा, बहन है तो क्या हुआ है तो लड़की ही और वो भी इतनी कामुक लड़की, वैसे भी किसी को कौन सा पता चला रह है, अपनी बहन का कामुक बदन देख कर वो खुद को रोक नहीं पा रहा था, अपने आप से ही लड़ाई चल रही थी कभी कदम पीछे रखता तो फिर बापिस रख लेता,
धीरे धीरे वासना ने उसकी बुद्धि पर नियन्त्रण कर लिया और वो पजामे के ऊपर से लंड मसलते हुए नंदिनी के नंगे बदन को अच्छे से निहारने लगा, उसका बड़ा मन होने लगा कि वो अपनी बहन के मखमली चूतड़ों को छुए पर इतना साहस नहीं हो रहा था, पर हर पल बढ़ती उत्तेजना ने उसके डर को कम कर दिया और उसने अपना हाथ आगे बढ़ाना शुरू कर दिया, ज्यों ज्यों उसका हाथ आगे बढ़ रहा था कांप रहा था कुछ ही पलों में उसका हाथ नंदिनी के कोमल गोल मटोल चूतड़ के करीब था, और वहीं रुक गया,
एक बार फिर से अंदर से आवाज आई कि लल्लू अभी भी समय है रुक जा ये पाप मत कर, अपनी सगी बहन के साथ ये सब करना महापाप है,
वहीं वासना ने भी उसे समझाया कि देख ले लल्लू सामने इतनी कामुक लड़की लेटी है आज तक तूने कभी ऐसा दृश्य नहीं देखा और न जाने कभी मौका मिले न मिले, भूलजा ये तेरी बहन है, और बस इसके मखमली बदन को देख, कितना कोमल है कितना सुंदर और कामुक है, इस मौके को अगर जाने दिया तो जीवन भर पछताएगा।
ये ही बात सोच कर बहुत सावधानी से लल्लू बहुत हल्के से अपना हाथ अपनी बहन के नंगे चूतड़ पर रख देता है, और स्पर्श होते ही उसके बदन में ऊर्जा का संचार सा हो जाता है उसे एक झटका सा महसूस होता है, उसका लंड इतना कड़क हो चुका था जितना आज तक नहीं हुआ था और पजामे में दुखने लगता है,
लल्लू का मुंह सूखने लगता है बार बार वो अपनी जीभ से होंठों को गीला करता है, साथ ही लंड की पीड़ा हर पल के साथ बढ़ती जा रही थी, वो बिना कुछ सोचे अपने पजामे को नीचे सरकाता हैं और अपने लंड को बाहर निकाल लेता है, लंड भी नंदिनी का बदन देख फुंकारने लगता है, लल्लू एक हाथ धीरे धीरे लंड पर चलाना शुरू कर देता है, वहीं दूसरा हाथ भी बहुत धीरे से नंदिनी के चूतड़ों पर फिराने लगता है पर बेहद सावधानी से, ऐसी उत्तेजना उसने आज तक महसूस नहीं की थी, अपनी बहन के चूतड़ों के स्पर्श मात्र से उसे लगता है जैसे उसका रस उसके लंड में भरने लगा है,
और होता भी कुछ ऐसा ही है, उसकी उत्तेजना बिल्कुल चरम पर होती है और वो कुछ बार मुठियांने पर ही स्खलन के करीब पहुंच जाता है, आनंद में उसकी आंखें बंद होने लगती हैं चेहरा ऊपर हो जाता है, एक हाथ को अपनी बहन के चूतड़ों पर फिराते हुए वो अपने स्खलन की ओर बढ़ने लगता है,
इसी पल नंदिनी की आंख भी खुलती है उसे अपने चूतड़ पर किसी का स्पर्श महसूस होता है तो वो गर्दन घुमा कर देखती है और अपने भाई को इस अवस्था में देख कर चौंक जाती है और तुरंत उठ कर बैठ जाती है, और कुछ करती या बोलती तब तक देर हो जाती है और लल्लू का लंड पिचकारी मारना शुरू कर देता है, और पहली पिचकारी सीधी उसके चेहरे से टकराती है तो दूसरी उसकी गर्दन पर और फिर तीसरी उसकी चूचियों पर,
नंदिनी आंखे फाड़े बुत सी बनी हुई देखती रहती है और उसका भाई उसे अपने रस में रंगता रहता है, झड़ने के बाद लल्लू हांफता हुआ अपनी आंखें खोलता है तो सामने का दृश्य देख उसके पैरों से धरती खिसक जाती है, सामने अपनी बड़ी बहन के जागा हुआ और अपने रस में सना हुआ देख लल्लू को अपना आखिरी समय लगने लगता है, झड़ने के बाद उत्तेजना का जादू वैसे भी सिर से उतर गया था और सच्चाई का बादल उसके सिर पर फट चुका था, अपने जीवन में वो शायद ही इतना डरा हो,
नंदिनी को तो विश्वास नहीं हो रहा था कि ये हुआ क्या है, उसके ऊपर उसके भाई का रस है, उसका भाई उसे देख कर अपना लिंग हिला रहा था। नंदिनी पल भर में ही गुस्से से भर गई,
नंदिनी: कुत्ते क्या कर रहा है तू ये।
लल्लू: दीदी वो दीदी मैं
लल्लू को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले, तो वो पजामा ऊपर चढ़ाता है और बाहर की ओर भागता है, नंदिनी बस गुस्से में उसे देखती रहती है, लल्लू किवाड़ के पास भाग कर पहुंचता है और उसी समय लता भी किवाड़ से अंदर घुसती है और दोनों आपस में टकरा जाते हैं, क्योंकि लल्लू की गति तेज होती है तो वो लता के ऊपर गिर पड़ता है जिससे लता भी पीछे गिर जाती है।
लता: अःह्ह्ह्, है हाय दैय्या मार डाला, ओह मेरी कमर गई, ऊंट कहीं का,
लल्लू तुरंत उठता है अपनी मां के ऊपर से और घबरा कर उसे भी उठने की कोशिश करने लगता है,
लल्लू: मां तुम ठीक तो हो न लगी तो नही?
लता: नाशपीटे अंधे सांड की तरह आकर टक्कर मार दी और बोला है लगी तो नहीं कमीने कहां अंधों की तरह भाग रहा था,
अब लल्लू क्या बोलता उसकी ये सोच फट रही थी कि कहीं मां ने अंदर जाकर दीदी को उस हालत में देख लिया और दीदी ने बता दिया कि उसने क्या किया तो वो तो गया,
लल्लू: वो मां मैं तो वो मैं तुम्हें ही ढूंढ रहा था,
लता: आह्ह्हह मुझे क्यों?
लल्लू: वो पापा ने वो हां चाय हां चाय मंगाई थी खेत पर।
लल्लू ने अपनी मां को सहारा देकर उठते हुए कहा,
लता: अरे तो नंदिनी से बनवा लेता ना वो क्या कर रही है,
लल्लू: वो मां दीदी तो मां वो दीदी,
लता: अरे क्या मैं वो दीदी कर रहा है, चल अंदर।
लल्लू की ये सोच कर फटने लगी कि अंदर दीदी की हालत देख कर उसकी मां उसे आज मार डालेगी,
लल्लू: मां चोट लगी है तो चलो वो बाबा से दवाई ले आते हैं।
लता: अरे रहने दे इतनी भी नहीं लगी है गरम तेल से मालिश करूंगी हो जायेगा ठीक।
लता अंदर की ओर जोर डालने लगी तो लल्लू को भी न चाहते हुए लता को सहारा देते हुए अंदर चलना पड़ा, हर कदम पर लल्लू के मन में प्रार्थना चल रही थी, अंदर घुसते ही लल्लू ने देखा आंगन में तो नंदिनी नहीं थी लल्लू ने धीरे धीरे ले जा कर लता को आंगन में पड़ी खाट पर बिठा दिया।
लता: अब ये नंदिनी कहां गई? बुला तो?
लल्लू ये सुनकर डरते हुए आवाज देने लगा,
लल्लू: दीदी ओ दीदी।
कुछ ही पल में कमरे से नंदिनी निकली जिसे देख लल्लू को थोड़ी हैरानी हुई और चैन भी आया क्योंकि नन्दिनी ने कपड़े पहने हुए थे और उसका चेहरा भी साफ था मतलब उसका रस नहीं लगा था,
नंदिनी: क्या हुआ मां कमर में ऐसे क्यों पकड़ी हुई है?
नंदिनी ने पास आते हुए कहा,
लता: ये है न सांड भागते हुए मुझसे द्वार पर टकरा गया, गिरा दिया मुझे।
नंदिनी: इसकी हरकतें तो बस बढ़ती ही जा रही हैं सारे काम ऐसे ही करता है ये मां।
नंदिनी ने लल्लू को गुस्से से घूरते हुए कहा तो लल्लू की तो हिम्मत नहीं हो रही थी उसकी आंखों में देख सके इसलिए आँखें झुका के बैठा रहा,
लता: अरे वो चाय चढ़ा दे तेरे पापा ने खेत पर मंगाई है वही लेने आया था ये,
नंदिनी: अभी चढ़ाती हूं,
नंदिनी ने एक बार और लल्लू को गुस्से से देखा और फिर चूल्हे की ओर बढ़ गई।
छोटू सुबह जब उठा तो बिस्तर पर अकेला था आंखें मल के बैठ गया और कुछ पल लगे उसे नींद की चादर से निकलने में, धीरे धीरे नींद हटी तो उसे रात की बातें याद आने लगी वो सब जो उसने अपनी मां के साथ किया, उसे याद आने लगा, और उसकी धड़कनें तेज होने लगीं,उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि रात में उसके और उसकी मां के बीच इतना कुछ हो गया, एक तरफ सोच कर उसे बुरा भी लग रहा था कि ये सब पाप उससे हो गया, वहीं उसने नीचे देखा तो खड़ा लंड पाया जो कि इस बात की गवाही दे रहा था कि जो हुआ उसे बहुत अच्छा लगा था,
छोटू ने भी ये बात सच्चाई से सोची और उसने भी पाया कि सच में रात जैसा आनंद उसे कभी नहीं आया था, भले ही अपनी मां के साथ उसने ये सब किया था पर मज़ा सच में बहुत आया था फिर स्वयं ही वो रुक कर सोचने लगा, शायद मां के साथ किया इसलिए ही और आनंद आया, और आए भी क्यों न मां कितनी सुंदर है कितनी कामुक है, कितना भरा हुआ बदन है, उनका बदन तो दुकान वाली चाची से भी ज़्यादा मस्त है।
मन में रात जो हुआ उसे लेकर उसे एक गुदगुदी सी हो रही थी, जैसे किसी बच्चे को कोई पसंद का खिलौना मिल जाए तो वो कैसे खुश हुआ फिरता है वही अवस्था अभी छोटू की हो रही थी, रात में इतना सब हो गया था कि उसकी खुशी उससे संभाले नहीं संभल रही थी, पर बात कुछ ऐसी थी कि किसी को बता भी नहीं सकता था, खुशी खुशी में ही उसने कपड़े पहने और सोचने लगा चलो दोनों यारों से मिलता हूं ज़रूर दोनों सुबह सुबह चूतड़ देखने का जुगाड़ लगा रहे होंगे।
ये सोच कर छोटू घर से निकलता है और सबसे पहले लल्लू के घर की ओर बढ़ जाता है द्वार पर पहुंच कर किवाड़ खुले हुए देखता है तो अंदर बढ़ने से पहले उसे कल जो उसके और लता ताई के बीच हुआ वो याद आता है और सोचने लगता है कहीं ताई गुस्सा तो नहीं होंगी?
पर क्यों होंगी? मेरी क्या गलती थी, वैसे भी आज छोटू का आत्मविश्वास कुछ अलग ही था, आखिर मां का ऐसा प्रेम पाकर किस बेटे का आत्मविश्वास नहीं बढ़ेगा, वहीं उसका औरतों को देखने का भाव थोड़ा बदल गया था, वो मन में सोच रहा था कि औरत से डर कर नहीं पास जाकर ही असली सुख की प्राप्ति हो सकती है, आखिर रात मां के साथ भी तो वही हुआ, वैसे भी अपनी मां के साथ यदि मैं इतना कुछ कर सकता हूं तो ताई के साथ क्या ही ज़्यादा हुआ था।
इतना सोचते हुए वो अंदर घुस गया देखा आंगन खाली था, तो उसने आवाज लगाई: लल्लू ओ लल्लू।
अंदर से लता की आवाज़ आई: लल्लू नहीं है घर कौन छोटू, अंदर आ जा लल्ला।
लता घर पर अकेली ही थी लल्लू चाय लेकर चला गया था और नंदिनी नीलम के साथ खेत की ओर निकल गई थी।
छोटू लता की आवाज़ सुन थोड़ा सकुचाया पर फिर अपनी बातें याद कर अंदर बढ़ गया, लता चूल्हे के पास बैठी थी, छोटू भी उसके पास जाकर बैठते हुए बोला: लल्लू कहां है ताई?
लता भी थोड़ा सोच में पड़ी लल्लू को देख कल की बातें याद कर साथ ही ये सोच कि क्या सच में इस पर उदयभान की लुगाई का साया है, जिस तरह से ये बिल्कुल आराम से बात कर रहा है लगता नहीं कल की बात से कुछ अंतर पड़ा है लता ये ही सोच में पड़ी हुई थी।
छोटू: क्या हुआ ताई कहां खोई हो?
लता: लल्लू खेत गया है लल्ला, रात से तेरे ताऊ और बाबा खेत काट रहे हैं तो वो भी रात से उन्हीं के साथ था।
छोटू: अरे वाह अपना लल्लू भी आज कल मेहनत कर रहा है कितना अच्छा है।
लता: हां पर काहे का अच्छा, सुबह सुबह ही मेरी कमर तोड़ दी कमीने ने।
छोटू: अरे ऐसा क्या हो गया? क्या हुआ ताई तुम्हारी कमर में?
लता: ये लल्लू है न बिल्कुल अंधे सांड की तरह भागता है, पता नहीं कैसे सुबह भाग रहा था द्वार पर मुझसे टकरा पड़ा और मुझे गिरा दिया.
छोटू: अरे रे ताई, ज़्यादा लग गई क्या?
लता: हां लल्ला कमर में और कूल्हे में लगी है चलने में भी दिक्कत हो रही है, उसी के लिए तो तेल गरम किया है।
लता ने तेल की कटोरी की ओर इशारा करते हुए कहा,
छोटू: हां ताई इससे मालिश से आराम पड़ेगा।
लता: हां लल्ला अब इसी का सहारा है, अह्ह हाय दैय्या उठते भी नहीं बनता अब तो,
छोटू: आओ ताई मैं उठाता हूं,
ये कहकर छोटू सहारा देकर लता को उठाता है, और उसके एक ओर आकर उसे अपने कंधे से सहारा देता है और अपने हाथ से लता को पकड़ने के लिए उसकी कमर पर रख देता है, लता की गदराई कमर हाथ में महसूस कर छोटू को सिहरन होती है वहीं लता को भी कुछ अलग सा अहसास होता है,
छोटू लता को सहारा देते हुए अंदर कमरे में ले जाकर खाट पर बिठा देता है।
लता: अह्ह अच्छा हुआ तू आ गया लल्ला नहीं तो मुझसे तो उठा ही नहीं जाता।
छोटू: अरे ताई इसमें क्या है, मैं तुम्हारी सेवा नहीं करूंगा तो कौन करेगा।
लता को आज छोटू की बातों में अलग ही आत्मविश्वास दिखाई दे रहा था
लता: ये तो सही कहा लला, अब हमें तो तुम बच्चों का ही सहारा है, एक तेरा दोस्त है जो चोट देकर चला गया और एक तू है जो सहारा दे रहा है।
छोटू: अरे ताई क्यों ऐसे बोलती हो, मैं भी तो तुम्हारा अपना हूं, अच्छा बताओ मालिश करूं तुम्हारी कमर की?
लता उसके इस प्रश्न से थोड़ा चौंकती है।
लता: अरे नहीं लल्ला तू रहने दे मैं कर लूंगी।
छोटू: कैसे कर लोगी ताई तुम्हारा हाथ पीछे कैसे पहुंचेगा।
लता ने भी सोचा ये कह तो सही रहा है बिना हाथ पहुंचे कैसे लगाऊंगी।
लता: अच्छा ठीक है तू कह रहा है तो लगा दे।
छोटू: ठीक है ताई तुम उधर घूम जाओ,
लता उसकी बात सुन कर अपनी पीठ उसकी ओर करके घूम कर बैठ जाती है, छोटू उसके पीछे आकर अपनी उंगलियों को तेल की कटोरी में डुबाता है और फिर अंगुलियों में तेल लेकर अपने दोनों हाथों पर मल कर हाथ आगे बढ़ा कर लता की पीठ पर जो साड़ी और ब्लाउज़ के बीच की जगह थी उस पर रखता है तो पल भर के लिए दोनों के बदन में ही एक सरसरी सी होती है, छोटू अपनी उंगलियां और हथेली का प्रयोग करके लता की पीठ पर तेल मलने लगता है और मालिश करने लगता है, जिससे लता को भी आराम मिलता है, छोटू अपनी पूरी कोशिश करता है लता को आराम पहुंचाने की।
पीठ के हिस्से की अच्छे से मालिश करने के बाद छोटू और तेल उंगलियों पर लेता है और उसे हाथों पर चुपड़ने के बाद फिर से लता की कमर पर लगाता है पर इस बार पीठ के बीच में नहीं बल्कि उसकी कमर की दोनों ओर, लता को अपनी कमर पर छोटू का हाथ का स्पर्श पाकर फिर से एक सिरहन होती है वहीं छोटू अपने हाथों में ताई की चिकनी कमर का स्पर्श पाकर उत्तेजित होने लगता है पजामे में उसका लंड सिर उठाने लगता है।
वो धीरे धीरे लता की कमर को मसलते हुए मालिश करने लगता है।
फुलवा कुछ पल वैसी ही पड़ी रही चूत से अनजान मर्द का रस बह कर बाहर टपक रहा था, वैसे तो इस उमर में चूत में रस गिराने से कोई खतरा नहीं था पिछले साल से ही उसके मासिक धर्म आने बंद हो गए थे, पर सूखी चूत पर अचानक से हुई बारिश ने उसके मन को भी भीगा कर रख दिया था, अपने आप को संभालने के बाद फुलवा ने मंत्रों को पूरा किया, और फिर पेड़ की ओट में कपड़े पहनकर घर की ओर चल दी, अब आगे...
घर की ओर कदम बढ़ाते हुए फुलवा के मन में विचारों का सैलाब आया हुआ था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो गया, और कौन था वो अज्ञात साया जिसने उसके साथ ये किया, उसने तो किसी को बताया भी नहीं था इस टोटके के बारे में, सिर्फ बाबा को पता था, तो क्या बाबा ने ये सब?
ये सोच फुलवा के कदम रुक गए और वो खेत की एक मेढ़ पर बैठ गई और सोचने लगी।
नहीं नहीं, बाबा ऐसा कभी नहीं कर सकते वैसे भी उसकी उमर बाबा जितनी तो नहीं लग रही थी, जो भी था बाबा से जवान ही था पर कौन था सबसे बड़ा सवाल ये है, कीड़े पड़ें उस हरामी को न जाने क्या मिला मुझ बुढ़िया के साथ ये सब करके उसे, इस उमर में आकर मेरा मुझे खराब कर गया, पूरा जीवन सिर्फ अपने पति के साथ बिताया मैंने, और किसी को छूना तो दूर उस नज़र से देखा भी नहीं, और इस उमर पर आकर ये सब, हाए दईया कहीं वो मेरी बदनामी न कर दे, बैठे हुए ही फुलवा को अपनी चूत से उसका रस अब भी रिसता हुआ महसूस हुआ, तो फुलवा उठी और खेत के अंदर की ओर चलने लगी साथ ही मन में सोच रही थी: हरामजादा अपना पानी भी अंदर गिरा गया, वो तो अच्छा है अब गाभिन नहीं हो सकती नहीं तो क्या ही मुंह दिखाती मैं किसी को,
खेत के अंदर जाकर एक घनी सी जगह देख कर फुलवा ने अपनी साड़ी को पकड़ कर कमर तक उठाया और नीचे बैठ गई और उसके रस को अपनी चूत से निकालने की कोशिश करने लगी, फुलवा अपनी उंगलियों को अपनी चूत में डाल कर रस को बाहर पोंछने की कोशिश करने लगी, और उंगलियों को चूत में चलाते हुए फुलवा के बदन में फिर से वही तरंगें उठने लगीं जो कि तब उठ रही थी जब वो अनजान साया उसे चोद रहा था, जिन्हें फुलवा अपने ही आप से छुपाने की कोशिश कर रही थी पर अभी दोबारा से चूत में उंगलियों ने उसे बापिस उसी मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया,
अह्ह्ह्ह कमीने ने वर्षों की बुझी हुई आग को भड़का दिया है, अह्ह्ह्ज मैं तो भूल ही गई थी कि चुदाई में ऐसा आनंद आता है, पूरा बदन झूम सा रहा है, फिर खुद ही अपनी उंगलियों को चूत से बाहर झटकते हुए मन ही मन बोली: छी छी ये मैं क्या सोच रही हूं, एक तो इतना बुरा हुआ और मैं उसमें अपने बदन के आनंद की बात सोच रही हूं, फिर मन से दूसरी आवाज़ आई कि खुद से ही झूठ कैसे बोलेगी फुलवा? झूठ कैसा झूठ।
अगर ये झूठ नहीं है और तुझे बुरा लग रहा था तो तूने उसे रोका क्यों नहीं?
रोकती कैसे वो तो अचानक से आकर धक्के लगाने लगा,
फिर भी तो रोक सकती थी, और सबसे बड़ी बात इतना ही बुरा लगा था तो इतने वर्षों बाद चूत ने पानी क्यों छोड़ दिया,
ये सोच कर तो फुलवा खुद से ही हार गई, और सोचने लगी सच तो ये ही है कि वो जो भी था उसने ऐसा सुख दिया जो की न जाने कब से मेरी चूत को नहीं मिला था तभी तो खुश होकर चूत ने पानी बहा दिया, अःह्ह्ह्ह्ह अपनी चूत पर तो मैंने ध्यान देना ही छोड़ दिया था ये सोच कर कि इस उमर में ये सब नहीं होता, पर उस साए ने तो जैसे मुझे दोबारा जवान कर दिया,
ये सोचते हुए फुलवा की उंगलियां बापिस उसकी चूत की गली में घुस गईं और शोर मचाने लगीं, और तब तक अंदर बाहर होती रहीं जब तक एक बार फ़िर से फुलवा की चूत ने पानी नहीं बहा दिया,
सुबह रोज के समय से ही लता की नींद खुली और आंखों को मलते हुए उठी और फिर जैसे ही खुद पर ध्यान गया तो चौंक गई खुद को नंगा पाकर फिर रात की सारी बातें ताजा होने लगीं और उसका सिर भारी होने लगा, बगल में सोती हुई बेटी के नंगे बदन पर निगाह डाली और सोचने लगी कि क्या होता जा रहा है ये मेरे साथ, क्यों मैं स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाती, क्यों अपनी ही बेटी के साथ ये सब हरकतें करती हूं, इतनी गर्मी क्यों आ रही है मेरे बदन में, ऐसा तो रंडियां भी नहीं करती होंगी जैसा मैं कर रही हूं, अपनी ही बेटी से अपनी चूत चटवाई, अपनी बेटी के मुंह पर मैंने मूता, छी छी छी एक मां इससे नीच काम और क्या कर सकती है,
लता अपनी बेटी के सोते हुए चेहरे को देखते हुए सोचने लगी, लता ने अपनी बेटी के नंगे बदन को ऊपर से नीचे तक निहारा और एक बात उसके मन में आई कि जिससे भी बेटी ब्याह करेगी उसका तो जीवन ही सफल हो जाएगा, इतना सुंदर और कामुक बदन है मेरी बिटिया का, सुंदर चेहरा, पतली कमर, इतने मोटे मोटे चूचे और फिर नीचे इतनी लुभावने गोल मटोल चूतड़।
ये सब सोचते हुए उसे फिर से अपने बदन में कुछ कुछ होने लगा और वो बेटी की ओर आकर्षित होने लगी तो बीच में ही उसने खुद को रोका और तुरंत बिस्तर से उठ गई और सोचने लगी कि अपनी इस गर्मी का मुझे कुछ करना ही पड़ेगा, आज रात ही नंदिनी के पापा से शांत करवाऊंगी।
वो अपने कपड़े पहनते हुए सोचने लगी, पर अभी नंदिनी को कैसे जगाऊं, अगर उठेगी तो मैं इसका सामना कैसे करूंगी, समझ नहीं आ रहा आंख भी कैसे मिलाऊंगी, सो भी तो नंगी रही है, कुछ समझ नहीं आ रहा।
कुछ सोचते हुए उसने शौच पर जाने वाला लोटा उठाया और आंगन के कोने में दरवाजे की ओर जाकर आवाज़ लगाने लगी: नंदिनी ए नंदिनी उठ जा, उठ सुबह हो गई।
कई बार आवाज़ लगाने पर नंदिनी की नींद हल्की खुली तो उसने सिर उठा कर देखा, आंखें अब भी आधी खुली आधी बंद थीं, लता ने जैसे ही देखा कि नंदिनी की नींद खुल गई है वो तुरंत घूम गई और दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाते हुए बोली: उठी जा मैं जा रहीं हूं खेत ठीक है।
इतना कह कर वो दरवाज़ा खोल कर और बाहर से ही कुंडी लगा कर चली गई, इधर उसने ये देखा ही नहीं कि नंदिनी तो बापिस सो चुकी थी , उसने पलभर को सिर उठा कर भले ही देखा था पर नींद में होने के कारण बापिस सो गई।
लता अपने घर से सीधा पहले रत्ना के यहां गई, और फिर पुष्पा के घर की ओर आई तो दरवाजे पर ही उसे सुधा और पुष्पा दोनों मिल गए तो फिर चारों की टोली हाथों में लोटा लिए चल पड़ी खेतों की ओर।
बीती रात एक और के लिए काफी भारी पड़ी थी और वो था लल्लू, जिस लल्लू का काम में पल भर को मन नहीं लगता था उस लल्लू को सारी रात खेत काटना पड़ा था तो मन ही मन भुनता हुआ और नींद से लड़ता हुआ मन मारकर काम में लगा रहा था। पर खेत था कि खतम होने का नाम ही नहीं ले रहा था, अभी भी थोड़ा हिस्सा बचा था, लल्लू को तो अब झपकियां आने लगी थीं, लल्लू को झपकी आते देख उसके दादा को उस पर दया आ गई और वो बोले: ए ललुआ अब थोड़ा ही रह गया है, जा तू घर हम लोग कर लेंगे,
मगन: अरे बापू तुम ही इसे चढ़ाए हो सिर पर, हम दोनों लोग भी तो लगे हुए हैं रात से ही ये तो जवान है हमें थकना चाहिए या इसे?
कुंवरपाल: अरे उसे झपकी आ रही हैं, कहीं दरांती गलत लग गई तो कट जायेगा।
मगन: अच्छा लल्लू फिर एक काम कर घर जा और अपनी मां से चाय बनवा ला, हमारी सुस्ती भी थोड़ी दूर हो जायेगी, क्यों बापू?
कुंवरपाल: हां ये ठीक रहेगा।
लल्लू की इतनी हिम्मत तो होती नहीं थी कि अपने बाप के आगे कुछ बोल सके तो जैसा बाप ने कहा वैसे ही ठीक है कह कर चल दिया तो पीछे से मगन ने सावधान भी कर दिया।
मगन: और सुन सीधा घर जा और घर से यहां लौट, अपने यारों के पास रुकना नहीं।
ये सुन तो लल्लू अंदर तक जल भुन गया, एक ही तो उम्मीद थी उसे, उसने सोचा था कि अभी सबसे पहले खेतों में छुपकर बैठूंगा और सुबह सुबह ही किसी के मस्त चूतड़ों के दर्शन हो जायेंगे तो कम से कम रात का दुख कम हो जायेगा पर उसके बाप ने उससे ये सुख भी छीन लिया, मन ही मन अपने भाग्य को कोसता हुआ वो घर की ओर चलने लगा और ये सब कम नहीं था कि उसके जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए उसे रास्ते में ही भूरा मिल गया,
भूरा: अरे मैं तेरे घर ही आ रहा था, चल चलते हैं, खेतों की ओर।
लल्लू: तू ही जा मुझे काम है,
लल्लू मुंह बनाते हुए बोला,
भूरा: ऐसा क्या काम है सुबह सुबह?
लल्लू: तेरी गांड मारनी है बोल मरवाएगा?
लल्लू अपना गुस्सा भूरा पर निकालते हुए बोला,
भूरा: तू मरा गांड भेंचों अपनी, बिना बात के नखरे कर रहा है लुगाई की तरह।
ये कह भूरा भी गुस्से से आगे बढ़ गया उसे छोड़ कर और लल्लू अपने घर की ओर।
भूरा भिनभिनाता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, साला अपने आप को समझता क्या है, बिना बात के मुझपर भड़क रहा था, गांड मराए चूतिया साला। भूरा आगे एक मोड पर पहुंचा जहां उसके सामने दो रास्ते कट रहे थे एक रास्ता था उस खेत का जहां गांव की औरतों को वो छोटू और लल्लू देखते थे और एक रास्ता था उस खेत का जहां उसने और लल्लू ने पुष्पा चाची की मोटी गांड पहली बार देखी थी, किस ओर चला जाए वो इस पर विचार करने लगा, और कुछ सोच विचार के बाद वो एक रास्ते पर मुड़ गया और थोड़ा आगे चलने के बाद इधर उधर देख कर एक अरहर के खेत में घुस गया, और फिर सावधानी से आगे बढ़ते हुए वहीं पहुंच गया जहां उसने पहली बार पुष्पा चाची की गांड का अदभुत दृश्य देखा था,
बिलकुल मेढ़ के किनारे पहुंच कर भूरा ने सावधानी से झाड़ियों को थोड़ा हटा कर देखा तो सामने का दृश्य देख कर उसकी आँखें फैल गईं। उसका मन खुशी से फूल उठा क्यूंकि आज उसे छप्पर फाड़ के जो मिला था, कहां वो पुष्पा चाची की गांड देखने की इच्छा से आया था और कहां आज उसके सामने चार चार औरतें अपनी साड़ी कमर पर चढ़ाए अपने चूतड़ दिखा कर उसके सामने बैठी थीं, उसका लंड तो तुरंत ही तन गया, और चारों की गांड एक से बढ़कर एक थी, भूरा को तो अपने भाग्य पर विश्वास नहीं हो रहा था, उसने खुद को समझाया कि भूरा ये सपना नहीं है तू सो नहीं रहा बल्कि तेरे भाग्य जागे हैं, तुंरत भूरा ने अपना पजामा नीचे कर के अपने तने हुए लंड को बाहर निकाला और उसे मुठियाते हुए सामने के दृश्य पर नज़र गढ़ा दी,
अह्ह्ह्ह क्या दृश्य है, एक से बढ़कर एक गांड, अह्ह्ह्ह पर ये हैं कौन, ये दूसरे नंबर वाली तो पुष्पा चाची हैं उनकी गांड को मैं नहीं भूल सकता, तभी उनमें से एक औरत हंसी तो उसकी हंसी सुनकर तो भूरा तुरंत समझ गया कि ये तो सुधा चाची हैं, अह्ह्ह सुधा चाची की गांड भी बड़ी मस्त है पुष्पा चाची से छोटी भले ही है पर बिल्कुल गोल मटोल है,
इतने में पुष्पा के दूसरी ओर बैठी औरत कुछ बोली तो भूरा चौंक गया क्योंकि वो तो लल्लू की मां यानी लता थी, भूरा थोड़ा सकुचा फिर सोचने लगा कि जब छोटू की मां की देख सकता हूं तो उस चूतिया लल्लू की मां की क्यों नहीं, साला अच्छा हुआ नहीं आया नहीं तो अपनी मां की गांड देख कर पागल हो जाता, वैसे लता ताई की गांड है भी पागल करने वाली, चूतड़ देखो कैसे मोटे मोटे हैं, लगता है ताई ने खूब मरवाई है,
अपनी दोस्तों की मां के बारे में ऐसी बातें सोच कर उसे बहुत उत्तेजना हो रही थी साथ ही उसे अच्छा भी लग रहा था, इसी बीच उसके कंधे पर एक हाथ पड़ा जिससे वो चौंक गया, उसने तुरंत पलट कर देखा और सामने वाले चेहरे को देख कर तो उसकी गांड और फट गई, सामने सत्तू था जो उसे देख कर उससे फुसफुसाते हुए बोला: क्यों बे किसके बिल देख कर अपना बीन बजा रहा है?
अब भूरा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले उसके तो गले से आवाज नहीं निकल रही थी वो सोच रहा था कि अगर सत्तू ने छोटू या लल्लू को ये बात बतादी कि मैं उनकी मांओं की गांड देख कर मुठ मार रहा था तो दोनों मेरी जान ले लेंगे। अब क्या होगा?
सत्तू: अरे गूंगा हो गया क्या? बहुत टेम हो गया मुझे भी ये खेल खेले हुए चल आज फिर से देख लेते हैं,
ये कहकर सत्तू ने भूरा को बगल किया और खुद भी उसके बगल में झुककर उसकी तरह सिर निकाल कर सामने देखने लगा,
सत्तू: अरे भेंचो, ये तो गजब की पिक्चर है बे,
सत्तू फुसफुसाते हुए बोला साथ ही अपने पजामे को खिसका कर अपना लंड भी बाहर निकाल लिया और उसे मुठियाने लगा,
भूरा को सत्तू पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था कि साला कहां से आ गया अच्छा खासा देखते हुए हिला रहा था,
पर बेचारा कर भी क्या सकता था सत्तू उससे बड़ा था लड़ भी नहीं सकता था ऊपर से उसने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया था वो तो बस मन ही मन ये मन ये मना रहा था कि सत्तू को ये पता न चले कि ये औरतें कौन हैं नहीं तो उसका मरना तय है।
सत्तू: अह्ह एक से एक मटके हैं ये तो, बिलकुल सही जगह ढूंढी है तूने,
भूरा से भी और रुका नहीं गया और उसने सोचा अब फंस तो गया ही हूं थोड़ा इसका साथ देता हूं क्या पता बच जाऊं। ये सोच भूरा भी वापस अपनी जगह आकर देखने लगा,
भूरा: हैं न सत्तू भैया एक से बढ़कर एक।
भूरा थोड़ी चापलूसी करते हुए सत्तू को अपनी ओर करने के लालच में बोला।
सत्तू: हां यार, एक से बढ़कर एक, ये कोने वाली की तो बिलकुल कसी हुई गांड है पर बाहर को निकली है ज़रूर घोड़ी बन कर चुदती होगी खूब।
भूरा समझ गया ये सुधा की बात कर रहा है।
भूरा: अरे पर ये कैसे कह सकते हो भाई?
सत्तू: अरे लल्ला ये ही तो हमारा हुनर है, और बताऊं उसके बगल वाली की गांड बड़ी है पर इसकी चुदाई कम हुई है।
भूरा: अरे भाई तुम तो जादूगर हो।
भूरा पुष्पा चाची के बारे में सुनते हुए मन ही मन खुश होते हुए बोला
सत्तू अपनी प्रशंसा सुन कर खुश होते हुए बोला: ये तीसरी वाली सबसे मोती गांड वाली इसकी चुदाई भी काफी समय से नहीं हुई है पर ये मरवाती बड़ी मस्त होगी।
भूरा: भाई ये तुम सच कह रहे हो?
सत्तू: तुझे विश्वास न हो तो जाकर पूछ के देख ले.
सत्तू गंदी हंसी हंसता हुआ फुसफुसाया, भूरा को भी उसकी बात पर हंसी आ गई,
भूरा: नहीं भाई मुझे अपनी गांड नहीं तुड़वानी।
सत्तू: तो फिर शांत रह और सुन अह्ह्ह्ह चौथी वाली की गांड बड़ी मस्त है। सबसे ज्यादा मुझे ये हो अच्छी लगी
भूरा: क्यों भाई इसमें ऐसा क्या खास है?
सत्तू: अरे इसके चूतड़ देख बिल्कुल मिले हुए हैं गांड की दरार बैठने के बाद भी ठीक से नहीं दिख रही, ऐसी औरतों के छेद बड़े कसे हुए होते हैं लंड सटा सट जाता है अंदर।
भूरा: तुम्हें तो सब पता है सत्तू भाई। लगता है बहुत खेले खाए हो।
सत्तू: अरे खेले खाए हम कहां खेली खाई तो ये ही है कोने वाली, ये जरूर कई लंड ले चुकी है ऐसी औरतें कभी एक लंड से संतुष्ट नहीं होतीं। ये भी कई लौड़ों की सवारी करती होगी।
भूरा ने भी चौथी औरत पर अपना ध्यान लगाया और सोचने लगा सच में इसके चूतड़ बड़े मजेदार हैं न ज़्यादा छोटे और न ज़्यादा बड़े, बिल्कुल गोल मटोल और भरे हुए। उसकी गांड पर ध्यान लगाते हुए भूरा लंड को मसलने लगता है और सत्तू की कही बात सोचने लगता है कि कैसे लंड उसकी चूत में जाता होगा सटा सट।
इसी बीच सुधा फिर से कुछ बोली जो कि उन्हें ठीक से सुनाई नहीं दिया पर उसके बाद ही वो चौथी औरत जिसकी गांड देख कर वो लंड हिला रहा था वो भी हंसी और उसकी हंसी सुनकर तो भूरा के कान खड़े हो गए, उसका लंड उसके हाथ से छूट गया क्योंकि इस आवाज को वो बहुत अच्छे से पहचानता था ये किसी और की नहीं बल्कि उसकी मां रत्ना की आवाज़ थी,
भूरा का तो सिर चकराने लगा, जिसके लिए वो लंड हिला रहा था वो उसकी मां है, अपनी मां की गांड को देख कर मैं उत्तेजित हो रहा था, उसके मन में बार बार सत्तू की वो बात घूमने लगी कि इसकी चूत में लंड बड़ा मस्त जाता है, सटा सट।साथ ही ऐसी औरतें एक लंड से संतुष्ट नहीं होतीं है।
भूरा के लिए और सहना मुश्किल हो गया और उसके लंड के लिए भी,क्योंकि उसका लंड ठुमके मारते हुए पिचकारी छोड़ने लगा और झाड़ियों को गीला करने लगा, सत्तू ने भी ये देखा और बोला: अबे कहां अपना पानी इन झाड़ियों पर बहा रहा है, गांव में इतनी मस्त घोड़ियां हैं इनकी सवारी कर।
भूरा से कुछ कहते नहीं बना वो बस एक के बाद एक पिचकारी मारता रहा, स्खलन के बाद भूरा की सांसें धीरे हुई तो दिमाग घूमने लगा, उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या कर रहा है और ये क्या हो रहा है, पर उसने स्वयं को संभाला और सोचा अभी सबसे ज़रूरी ये है कि सत्तू को ये न पता चले कि ये औरते कौन हैं इसीलिए दिमाग लगाते हुए वो तुरंत उठा और सत्तू को पकड़ कर बाहर खींचने लगा,
सत्तू ने उसे इशारे में पूछा क्या हुआ तो उसने उसे चुपचाप बाहर आने का इशारा किया सत्तू भी अपना पजामा ऊपर करते हुए उसके पीछे पीछे खेत की दूसरी ओर चल दिया।
सत्तू: अरे क्या हुआ इतना मस्त दृश्य छोड़ कर उठा लाया।
भूरा: अरे इसी समय जिसका खेत है वो भी आता है एक दो बार तो मैं भी पकड़ने से बचा हूं
सत्तू: चल ठीक है, वैसे भी जो देखना था वो देख लिया।
भूरा: हां हां, अब मैं चलता हूं,
सत्तू: अरे रुक तो तुझे पता है ये औरतें कौन हैं यार बड़ी मस्त हैं।
भूरा ये सुन घबरा जाता है फिर संभालते हुए कहता है: ये ये ये तो पिछले मोहल्ले से आती हैं कौन हैं ये तो नहीं पता।
सत्तू: अच्छा लगता है पिछले मोहल्ले में चक्कर काटने पड़ेंगे। तभी काम बनेंगे।
इतने में दोनों अरहर के खेत से बाहर आ चुके थे, पर भूरा ये निश्चित कर लेना चाहता था कि जब तक औरतें घर तक न पहुंच जाएं, इसीलिए वो बातें बनाते हुए बोला: अरे सत्तू भाई ये औरतों को पटाने का हुनर मुझे भी सिखा दो।
सत्तू: अच्छा, बेटा तुम भी मजे लेना चाहते हो।
भूरा: हां भाई चलो नदी किनारे आराम से बातें करेंगे।
सत्तू: अरे वाह तू तो काफी गंभीर है भूरा सीखने के लिए।
भूरा: हां भाई मुझे अपना चेला बना लो।
सत्तू: चल फिर चेले, आज तुझे चुदाई का ज्ञान देता हूं।
सत्तू और भूरा नदी की ओर बढ़ जाते हैं।
खेत से बाहर निकलते हुए रत्ना ने पुष्पा से कहा,
रत्ना: ए पुष्पा रानी, का हुआ आज बड़ी चुप्पी साधी हुई है,
सुधा: हां और लता दीदी भी कहां बोल रही हैं कुछ।
सुधा और रत्ना ने लता और पुष्पा की चुप्पी देख कर आखिर पूछ ही लिया क्योंकि काफी देर से वो दोनों ही बातें किए जा रहीं थी,
पुष्पा: अरे वो कुछ नहीं वो तो बस थोड़ा सिर भारी था इसलिए।
लता: हां मुझे भी थोड़ी तबीयत ठीक नहीं लग रही इसलिए।
रत्ना: लगता है दोनों को ही अच्छी रगड़ाई की जरूरत है,
रत्ना और सुधा मजाक बनाते हुए हंसने लगीं तो चाहे अनचाहे भी पुष्पा और लता उनका साथ देने लगीं,
पुष्पा के मन में तो जो कुछ रात को हुआ वो किसी फिल्म की तरह चल रहा था, और जितना वो उसके बारे मे सोच रही थी उसका मन बैठा जा रहा था, वो स्वयं को इस समय दुनिया की सबसे गंदी और नीच औरत मान रही थी जो कि अपनी कोख से जन्मे बेटे के साथ ऐसी हरकतें करती है, उसे स्वयं से घिन आ रही थी।
ऐसा ही कुछ हाल लता का था वो भी उसी मनोदशा से गुज़र रही थी जो कि पुष्पा की थी।
लल्लू भारी कदमों से चलता हुआ अपने घर पहुंचा तो देखा कि किवाड़ पर बाहर से कुंडी लगी है, उसने सोचा शायद मां शौच पर गई हैं, इसलिए कुंडी खोल कर वो अंदर आया, नींद से उसकी आंखें भारी हो रहीं थी, घर में घुसने पर वो आंगन की ओर आया और देखा खाट अब भी पड़ी है तो वो उसकी ओर बढ़ा और कुछ कदम बढ़ाते ही रुक गया, उसकी नींद से भरी हुई आंखें अचानक से खुली की खुली रह गईं, सीने में तेजी से धक धक होने लगी, और आखें खाट पर जम सी गईं। बिस्तर पर अपनी बड़ी बहन को बिल्कुल नंगा देख उसे विश्वास नहीं हुआ कि वो सच में ये सब देख रहा है कि ये सपना है, पर ये सपना तो बिलकुल नहीं था, उसकी आंखो के सामने उसकी बड़ी बहन बिल्कुल नंगी हो कर सो रही थी, पहले प्रतिक्रिया तो उसकी यही हुई जो हर भाई की होनी चाहिए और उसने तुरंत अपनी आंखें हटा लीं,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी बहन ऐसे क्यों सो रही है, कोई नंगा भी सोता है क्या?
कहीं कुछ हो तो नहीं गया उसे कोई दिक्कत या परेशानी तो नहीं हो गई, ये सोचते हुए उसने बापिस अपनी आँखें बिस्तर पर डालीं और दो कदम बढ़ाते हुए खाट के बिल्कुल बगल में पहुंच गया, उसने नंदिनी का चेहरा देखा वो तो बड़े आराम से सो रही थी, धीरे धीरे लल्लू की आंखें नीचे की ओर फिसलने लगीं, सुराई दार गर्दन से होते हुए वो उसके सीने पर पड़ी और फिर नंदिनी की मोटी मोटी चुचियों पर जो कि उसकी हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहीं थीं, अपनी बहन की चूचियों को देख कर लल्लू का तो मुंह सूखने लगा, पहली बार वो नंगी चूचियां देख रहा था और वो भी अपनी बहन की, कितनी सुंदर और मोटी हैं, उसके मन में अपने ही खयाल आने लगे, दीदी की चूची तो फोटो वाली लड़की से भी अच्छी और बड़ी हैं, देखो कैसे ऊपर नीचे हो रही हैं, अगले ही पल लल्लू खुद को कोस भी रहा था कि अपनी बहन को ऐसे उसे नहीं देखना चाहिए, पर आंखे थीं हटने का नाम नहीं ले रहीं थी। पर हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और इसकी भी हो रही थी, उसे पता भी नहीं चला था कि उसका लंड उसके पजामे में पूरी तरह तन चुका था,
चूचियों को देखते हुए उसकी नज़रें नीचे आई तो अपनी बहन की गोरी कमर, सपाट पेट और उसके बीच गोल नाभी को देखा जो कि तालाब में कमल के समान सुन्दर लग रही थी, कुछ पल वो बस नाभी और उसकी सुंदरता को ही निहारता रहा, और फिर कुछ पल बाद उसकी नजर उसकी बहन की जांघों के बीच पहुंची, बिल्कुल चिकनी उसकी चूत देख कर तो लल्लू का बदन सिहर गया, बीच में एक हल्की सी लम्बी दरार थी जो कि लग नहीं रहा था आज तक खुली थी, ये देख तो लल्लू का हाथ अपने आप उसके लंड पर पहुंच गया और पजामे के ऊपर से ही उसे सहलाने लगा, वो धीरे धीरे भूलने लगा कि जिसे वो देख रहा है वो उसकी बड़ी बहन है बल्कि उसे तो सामने लेटी हुई एक कमसिन जवान नंगी लड़की दिख रही थी, इसी बीच नंदिनी ने दूसरी ओर करवट ले ली और लल्लू के लिए एक बार बाजी और पलट दी, लल्लू के सामने उसकी बहन के गोल मटोल चूतड़ आ गए, और उन्हें देख कर तो उसका लंड भी पजामे में ठुमक कर सलामी देने लगा, ऐसी मस्त गांड देख लल्लू अंदर तक हिल गया, हालांकि उसने गांव की कई औरतों की और फिर पुष्पा चाची की बड़ी सी फैली हुई गांड भी हाल ही में देखी थी, पर अपनी सगी बहन की गोल मटोल गांड के आगे उसे वो सब फीकी लगीं, कितने मोटे और गोल मटोल चूतड़ थे कि दरार को भी ढंक रहे थे,
लल्लू की तो सांसें ऊपर नीचे होने लगी थीं कहां वो छूपके खेत में दूसरी औरतों के चूतड़ देखता था और कहां अपनी ही जवान कामुक बहन का नंगा बदन उसके सामने था, एक ओर उसका मन कह रहा था कि ये सब गलत है ये तेरी बहन है बापिस मुड़ जा, वहीं दूसरा मन कह रहा था कि ऐसा मौका नहीं मिलेगा, बहन है तो क्या हुआ है तो लड़की ही और वो भी इतनी कामुक लड़की, वैसे भी किसी को कौन सा पता चला रह है, अपनी बहन का कामुक बदन देख कर वो खुद को रोक नहीं पा रहा था, अपने आप से ही लड़ाई चल रही थी कभी कदम पीछे रखता तो फिर बापिस रख लेता,
धीरे धीरे वासना ने उसकी बुद्धि पर नियन्त्रण कर लिया और वो पजामे के ऊपर से लंड मसलते हुए नंदिनी के नंगे बदन को अच्छे से निहारने लगा, उसका बड़ा मन होने लगा कि वो अपनी बहन के मखमली चूतड़ों को छुए पर इतना साहस नहीं हो रहा था, पर हर पल बढ़ती उत्तेजना ने उसके डर को कम कर दिया और उसने अपना हाथ आगे बढ़ाना शुरू कर दिया, ज्यों ज्यों उसका हाथ आगे बढ़ रहा था कांप रहा था कुछ ही पलों में उसका हाथ नंदिनी के कोमल गोल मटोल चूतड़ के करीब था, और वहीं रुक गया,
एक बार फिर से अंदर से आवाज आई कि लल्लू अभी भी समय है रुक जा ये पाप मत कर, अपनी सगी बहन के साथ ये सब करना महापाप है,
वहीं वासना ने भी उसे समझाया कि देख ले लल्लू सामने इतनी कामुक लड़की लेटी है आज तक तूने कभी ऐसा दृश्य नहीं देखा और न जाने कभी मौका मिले न मिले, भूलजा ये तेरी बहन है, और बस इसके मखमली बदन को देख, कितना कोमल है कितना सुंदर और कामुक है, इस मौके को अगर जाने दिया तो जीवन भर पछताएगा।
ये ही बात सोच कर बहुत सावधानी से लल्लू बहुत हल्के से अपना हाथ अपनी बहन के नंगे चूतड़ पर रख देता है, और स्पर्श होते ही उसके बदन में ऊर्जा का संचार सा हो जाता है उसे एक झटका सा महसूस होता है, उसका लंड इतना कड़क हो चुका था जितना आज तक नहीं हुआ था और पजामे में दुखने लगता है,
लल्लू का मुंह सूखने लगता है बार बार वो अपनी जीभ से होंठों को गीला करता है, साथ ही लंड की पीड़ा हर पल के साथ बढ़ती जा रही थी, वो बिना कुछ सोचे अपने पजामे को नीचे सरकाता हैं और अपने लंड को बाहर निकाल लेता है, लंड भी नंदिनी का बदन देख फुंकारने लगता है, लल्लू एक हाथ धीरे धीरे लंड पर चलाना शुरू कर देता है, वहीं दूसरा हाथ भी बहुत धीरे से नंदिनी के चूतड़ों पर फिराने लगता है पर बेहद सावधानी से, ऐसी उत्तेजना उसने आज तक महसूस नहीं की थी, अपनी बहन के चूतड़ों के स्पर्श मात्र से उसे लगता है जैसे उसका रस उसके लंड में भरने लगा है,
और होता भी कुछ ऐसा ही है, उसकी उत्तेजना बिल्कुल चरम पर होती है और वो कुछ बार मुठियांने पर ही स्खलन के करीब पहुंच जाता है, आनंद में उसकी आंखें बंद होने लगती हैं चेहरा ऊपर हो जाता है, एक हाथ को अपनी बहन के चूतड़ों पर फिराते हुए वो अपने स्खलन की ओर बढ़ने लगता है,
इसी पल नंदिनी की आंख भी खुलती है उसे अपने चूतड़ पर किसी का स्पर्श महसूस होता है तो वो गर्दन घुमा कर देखती है और अपने भाई को इस अवस्था में देख कर चौंक जाती है और तुरंत उठ कर बैठ जाती है, और कुछ करती या बोलती तब तक देर हो जाती है और लल्लू का लंड पिचकारी मारना शुरू कर देता है, और पहली पिचकारी सीधी उसके चेहरे से टकराती है तो दूसरी उसकी गर्दन पर और फिर तीसरी उसकी चूचियों पर,
नंदिनी आंखे फाड़े बुत सी बनी हुई देखती रहती है और उसका भाई उसे अपने रस में रंगता रहता है, झड़ने के बाद लल्लू हांफता हुआ अपनी आंखें खोलता है तो सामने का दृश्य देख उसके पैरों से धरती खिसक जाती है, सामने अपनी बड़ी बहन के जागा हुआ और अपने रस में सना हुआ देख लल्लू को अपना आखिरी समय लगने लगता है, झड़ने के बाद उत्तेजना का जादू वैसे भी सिर से उतर गया था और सच्चाई का बादल उसके सिर पर फट चुका था, अपने जीवन में वो शायद ही इतना डरा हो,
नंदिनी को तो विश्वास नहीं हो रहा था कि ये हुआ क्या है, उसके ऊपर उसके भाई का रस है, उसका भाई उसे देख कर अपना लिंग हिला रहा था। नंदिनी पल भर में ही गुस्से से भर गई,
नंदिनी: कुत्ते क्या कर रहा है तू ये।
लल्लू: दीदी वो दीदी मैं
लल्लू को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले, तो वो पजामा ऊपर चढ़ाता है और बाहर की ओर भागता है, नंदिनी बस गुस्से में उसे देखती रहती है, लल्लू किवाड़ के पास भाग कर पहुंचता है और उसी समय लता भी किवाड़ से अंदर घुसती है और दोनों आपस में टकरा जाते हैं, क्योंकि लल्लू की गति तेज होती है तो वो लता के ऊपर गिर पड़ता है जिससे लता भी पीछे गिर जाती है।
लता: अःह्ह्ह्, है हाय दैय्या मार डाला, ओह मेरी कमर गई, ऊंट कहीं का,
लल्लू तुरंत उठता है अपनी मां के ऊपर से और घबरा कर उसे भी उठने की कोशिश करने लगता है,
लल्लू: मां तुम ठीक तो हो न लगी तो नही?
लता: नाशपीटे अंधे सांड की तरह आकर टक्कर मार दी और बोला है लगी तो नहीं कमीने कहां अंधों की तरह भाग रहा था,
अब लल्लू क्या बोलता उसकी ये सोच फट रही थी कि कहीं मां ने अंदर जाकर दीदी को उस हालत में देख लिया और दीदी ने बता दिया कि उसने क्या किया तो वो तो गया,
लल्लू: वो मां मैं तो वो मैं तुम्हें ही ढूंढ रहा था,
लता: आह्ह्हह मुझे क्यों?
लल्लू: वो पापा ने वो हां चाय हां चाय मंगाई थी खेत पर।
लल्लू ने अपनी मां को सहारा देकर उठते हुए कहा,
लता: अरे तो नंदिनी से बनवा लेता ना वो क्या कर रही है,
लल्लू: वो मां दीदी तो मां वो दीदी,
लता: अरे क्या मैं वो दीदी कर रहा है, चल अंदर।
लल्लू की ये सोच कर फटने लगी कि अंदर दीदी की हालत देख कर उसकी मां उसे आज मार डालेगी,
लल्लू: मां चोट लगी है तो चलो वो बाबा से दवाई ले आते हैं।
लता: अरे रहने दे इतनी भी नहीं लगी है गरम तेल से मालिश करूंगी हो जायेगा ठीक।
लता अंदर की ओर जोर डालने लगी तो लल्लू को भी न चाहते हुए लता को सहारा देते हुए अंदर चलना पड़ा, हर कदम पर लल्लू के मन में प्रार्थना चल रही थी, अंदर घुसते ही लल्लू ने देखा आंगन में तो नंदिनी नहीं थी लल्लू ने धीरे धीरे ले जा कर लता को आंगन में पड़ी खाट पर बिठा दिया।
लता: अब ये नंदिनी कहां गई? बुला तो?
लल्लू ये सुनकर डरते हुए आवाज देने लगा,
लल्लू: दीदी ओ दीदी।
कुछ ही पल में कमरे से नंदिनी निकली जिसे देख लल्लू को थोड़ी हैरानी हुई और चैन भी आया क्योंकि नन्दिनी ने कपड़े पहने हुए थे और उसका चेहरा भी साफ था मतलब उसका रस नहीं लगा था,
नंदिनी: क्या हुआ मां कमर में ऐसे क्यों पकड़ी हुई है?
नंदिनी ने पास आते हुए कहा,
लता: ये है न सांड भागते हुए मुझसे द्वार पर टकरा गया, गिरा दिया मुझे।
नंदिनी: इसकी हरकतें तो बस बढ़ती ही जा रही हैं सारे काम ऐसे ही करता है ये मां।
नंदिनी ने लल्लू को गुस्से से घूरते हुए कहा तो लल्लू की तो हिम्मत नहीं हो रही थी उसकी आंखों में देख सके इसलिए आँखें झुका के बैठा रहा,
लता: अरे वो चाय चढ़ा दे तेरे पापा ने खेत पर मंगाई है वही लेने आया था ये,
नंदिनी: अभी चढ़ाती हूं,
नंदिनी ने एक बार और लल्लू को गुस्से से देखा और फिर चूल्हे की ओर बढ़ गई।
छोटू सुबह जब उठा तो बिस्तर पर अकेला था आंखें मल के बैठ गया और कुछ पल लगे उसे नींद की चादर से निकलने में, धीरे धीरे नींद हटी तो उसे रात की बातें याद आने लगी वो सब जो उसने अपनी मां के साथ किया, उसे याद आने लगा, और उसकी धड़कनें तेज होने लगीं,उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि रात में उसके और उसकी मां के बीच इतना कुछ हो गया, एक तरफ सोच कर उसे बुरा भी लग रहा था कि ये सब पाप उससे हो गया, वहीं उसने नीचे देखा तो खड़ा लंड पाया जो कि इस बात की गवाही दे रहा था कि जो हुआ उसे बहुत अच्छा लगा था,
छोटू ने भी ये बात सच्चाई से सोची और उसने भी पाया कि सच में रात जैसा आनंद उसे कभी नहीं आया था, भले ही अपनी मां के साथ उसने ये सब किया था पर मज़ा सच में बहुत आया था फिर स्वयं ही वो रुक कर सोचने लगा, शायद मां के साथ किया इसलिए ही और आनंद आया, और आए भी क्यों न मां कितनी सुंदर है कितनी कामुक है, कितना भरा हुआ बदन है, उनका बदन तो दुकान वाली चाची से भी ज़्यादा मस्त है।
मन में रात जो हुआ उसे लेकर उसे एक गुदगुदी सी हो रही थी, जैसे किसी बच्चे को कोई पसंद का खिलौना मिल जाए तो वो कैसे खुश हुआ फिरता है वही अवस्था अभी छोटू की हो रही थी, रात में इतना सब हो गया था कि उसकी खुशी उससे संभाले नहीं संभल रही थी, पर बात कुछ ऐसी थी कि किसी को बता भी नहीं सकता था, खुशी खुशी में ही उसने कपड़े पहने और सोचने लगा चलो दोनों यारों से मिलता हूं ज़रूर दोनों सुबह सुबह चूतड़ देखने का जुगाड़ लगा रहे होंगे।
ये सोच कर छोटू घर से निकलता है और सबसे पहले लल्लू के घर की ओर बढ़ जाता है द्वार पर पहुंच कर किवाड़ खुले हुए देखता है तो अंदर बढ़ने से पहले उसे कल जो उसके और लता ताई के बीच हुआ वो याद आता है और सोचने लगता है कहीं ताई गुस्सा तो नहीं होंगी?
पर क्यों होंगी? मेरी क्या गलती थी, वैसे भी आज छोटू का आत्मविश्वास कुछ अलग ही था, आखिर मां का ऐसा प्रेम पाकर किस बेटे का आत्मविश्वास नहीं बढ़ेगा, वहीं उसका औरतों को देखने का भाव थोड़ा बदल गया था, वो मन में सोच रहा था कि औरत से डर कर नहीं पास जाकर ही असली सुख की प्राप्ति हो सकती है, आखिर रात मां के साथ भी तो वही हुआ, वैसे भी अपनी मां के साथ यदि मैं इतना कुछ कर सकता हूं तो ताई के साथ क्या ही ज़्यादा हुआ था।
इतना सोचते हुए वो अंदर घुस गया देखा आंगन खाली था, तो उसने आवाज लगाई: लल्लू ओ लल्लू।
अंदर से लता की आवाज़ आई: लल्लू नहीं है घर कौन छोटू, अंदर आ जा लल्ला।
लता घर पर अकेली ही थी लल्लू चाय लेकर चला गया था और नंदिनी नीलम के साथ खेत की ओर निकल गई थी।
छोटू लता की आवाज़ सुन थोड़ा सकुचाया पर फिर अपनी बातें याद कर अंदर बढ़ गया, लता चूल्हे के पास बैठी थी, छोटू भी उसके पास जाकर बैठते हुए बोला: लल्लू कहां है ताई?
लता भी थोड़ा सोच में पड़ी लल्लू को देख कल की बातें याद कर साथ ही ये सोच कि क्या सच में इस पर उदयभान की लुगाई का साया है, जिस तरह से ये बिल्कुल आराम से बात कर रहा है लगता नहीं कल की बात से कुछ अंतर पड़ा है लता ये ही सोच में पड़ी हुई थी।
छोटू: क्या हुआ ताई कहां खोई हो?
लता: लल्लू खेत गया है लल्ला, रात से तेरे ताऊ और बाबा खेत काट रहे हैं तो वो भी रात से उन्हीं के साथ था।
छोटू: अरे वाह अपना लल्लू भी आज कल मेहनत कर रहा है कितना अच्छा है।
लता: हां पर काहे का अच्छा, सुबह सुबह ही मेरी कमर तोड़ दी कमीने ने।
छोटू: अरे ऐसा क्या हो गया? क्या हुआ ताई तुम्हारी कमर में?
लता: ये लल्लू है न बिल्कुल अंधे सांड की तरह भागता है, पता नहीं कैसे सुबह भाग रहा था द्वार पर मुझसे टकरा पड़ा और मुझे गिरा दिया.
छोटू: अरे रे ताई, ज़्यादा लग गई क्या?
लता: हां लल्ला कमर में और कूल्हे में लगी है चलने में भी दिक्कत हो रही है, उसी के लिए तो तेल गरम किया है।
लता ने तेल की कटोरी की ओर इशारा करते हुए कहा,
छोटू: हां ताई इससे मालिश से आराम पड़ेगा।
लता: हां लल्ला अब इसी का सहारा है, अह्ह हाय दैय्या उठते भी नहीं बनता अब तो,
छोटू: आओ ताई मैं उठाता हूं,
ये कहकर छोटू सहारा देकर लता को उठाता है, और उसके एक ओर आकर उसे अपने कंधे से सहारा देता है और अपने हाथ से लता को पकड़ने के लिए उसकी कमर पर रख देता है, लता की गदराई कमर हाथ में महसूस कर छोटू को सिहरन होती है वहीं लता को भी कुछ अलग सा अहसास होता है,
छोटू लता को सहारा देते हुए अंदर कमरे में ले जाकर खाट पर बिठा देता है।
लता: अह्ह अच्छा हुआ तू आ गया लल्ला नहीं तो मुझसे तो उठा ही नहीं जाता।
छोटू: अरे ताई इसमें क्या है, मैं तुम्हारी सेवा नहीं करूंगा तो कौन करेगा।
लता को आज छोटू की बातों में अलग ही आत्मविश्वास दिखाई दे रहा था
लता: ये तो सही कहा लला, अब हमें तो तुम बच्चों का ही सहारा है, एक तेरा दोस्त है जो चोट देकर चला गया और एक तू है जो सहारा दे रहा है।
छोटू: अरे ताई क्यों ऐसे बोलती हो, मैं भी तो तुम्हारा अपना हूं, अच्छा बताओ मालिश करूं तुम्हारी कमर की?
लता उसके इस प्रश्न से थोड़ा चौंकती है।
लता: अरे नहीं लल्ला तू रहने दे मैं कर लूंगी।
छोटू: कैसे कर लोगी ताई तुम्हारा हाथ पीछे कैसे पहुंचेगा।
लता ने भी सोचा ये कह तो सही रहा है बिना हाथ पहुंचे कैसे लगाऊंगी।
लता: अच्छा ठीक है तू कह रहा है तो लगा दे।
छोटू: ठीक है ताई तुम उधर घूम जाओ,
लता उसकी बात सुन कर अपनी पीठ उसकी ओर करके घूम कर बैठ जाती है, छोटू उसके पीछे आकर अपनी उंगलियों को तेल की कटोरी में डुबाता है और फिर अंगुलियों में तेल लेकर अपने दोनों हाथों पर मल कर हाथ आगे बढ़ा कर लता की पीठ पर जो साड़ी और ब्लाउज़ के बीच की जगह थी उस पर रखता है तो पल भर के लिए दोनों के बदन में ही एक सरसरी सी होती है, छोटू अपनी उंगलियां और हथेली का प्रयोग करके लता की पीठ पर तेल मलने लगता है और मालिश करने लगता है, जिससे लता को भी आराम मिलता है, छोटू अपनी पूरी कोशिश करता है लता को आराम पहुंचाने की।
पीठ के हिस्से की अच्छे से मालिश करने के बाद छोटू और तेल उंगलियों पर लेता है और उसे हाथों पर चुपड़ने के बाद फिर से लता की कमर पर लगाता है पर इस बार पीठ के बीच में नहीं बल्कि उसकी कमर की दोनों ओर, लता को अपनी कमर पर छोटू का हाथ का स्पर्श पाकर फिर से एक सिरहन होती है वहीं छोटू अपने हाथों में ताई की चिकनी कमर का स्पर्श पाकर उत्तेजित होने लगता है पजामे में उसका लंड सिर उठाने लगता है।
वो धीरे धीरे लता की कमर को मसलते हुए मालिश करने लगता है।
लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई। आगे...
छोटू फुर्ती में लल्लू के घर से निकला था, दिमाग में भूचाल आया हुआ था कि अभी ताई के साथ क्या हुआ था ये सोच सोच कर उसका दिमाग घूम रहा था, इसी सोच विचार में खोया हुआ वो आगे बढ़ रहा था और तभी अचानक से कोई उसे पीछे से पकड़ के रोकता है तो वो होश में आकर पीछे देखता है तो पाता है लल्लू और भूरा थे, उन्हें देख कर तो छोटू का चेहरा सफेद पढ़ जाता है, अभी अभी जो इसकी मां के साथ करके आया था उसके बाद लल्लू का सामने पड़ जाना छोटू का दिल धड़कने लगता है।
लल्लू: क्यों बे कहां है सुबह से एक बार भी मिला नहीं अबतक।
भूरा: और क्या हुआ तुझे चाची कह रही थीं कि तेरी तबीयत ठीक नहीं है।
छोटू उनकी बात सुनकर खुद को थोड़ा शांत करता है फिर भी उसके मन में घबराहट अभी भी थी,
छोटू: कक्कुछ भी तो न नहीं, वो रात को थोड़ा चक्कर आ गए थे बस। और तुम्हें पता ही है घरवाले जरा सी बात को बड़ा बना लेते हैं।
लल्लू: साले मुट्ठी ही इतनी मारता है तू कमज़ोर हो गया है,
भूरा: सारा माल हिला कर निकाल देगा तो चक्कर तो आयेंगे ही।
छोटू: अरे नहीं यार ऐसा नहीं है, बस तुम लोगों के साथ ही तो करता हूं।
भूरा: झूठ बोल रहा है, ये अभी भी हिला कर आया है।
ये सुन तो छोटू सुन्न पड़ जाता है,उसे कुछ बोलते नहीं पड़ता,
लल्लू: क्यूं छोटू सही में?
भूरा: अरे तू खुद देख पसीना पसीना हो रखा है थका हुआ भी लग रहा है
तभी लल्लू उसे ध्यान से देखते हुए बोल पड़ता है: और तूने मेरा निक्कर क्यूं पहना है भेंचो?
छोटू ये सुन डर जाता है उसे लगता है कहीं सच बाहर न आ जाए, वैसे भी जिसके मन में कोई ऐसी बात होती है जिसके बाहर आने पर बड़े कांड हो जाएं उसके मन में हमेशा यही डर रहता है कि बात बाहर न आ जाए यही हाल छोटू का था, छोटू घबराया हुआ जरूर था पर उसका दिमाग भी तेज चलता था, और उसे ही चला कर उसने बड़ी सावधानी से सोच कर बोलना शुरू किया।
छोटू: अरे यार तुम लोग भी ना, मैं तो तुम दोनों को ही ढूंढ रहा था और ढूंढ़ते हुए तेरे घर पहुंचा, तू तो मिला नहीं पर ताई ने गेहूं साफ करवाने के लिए रोक लिया मुझे उसी से पसीना पसीना हो गया और फिर ताई ने मुझे दही दिया था पीने को वो मेरे पजामे पर गिर गया इसलिए तेरा निक्कर पहन लिया।
लल्लू और भूरा ये सुनकर हंसने लगे।
लल्लू: सही फंसा बेटा तू आज मां के चक्कर में। मां सुबह मुझे बोल ही रही थी मैं चुपचाप भाग आया था,
भूरा: छोटू बेचारा फंस गया तेरी वजह से, जो काम तुझे करना था छोटू ने किया।
भूरा ने हंस कर कहा, पर उसकी बातें सुन कर और ये सुन के वो काम छोटू को करना पड़ा था ये सोच कर छोटू के मन में तो लता का वो ही रूप सामने आ रहा था जो उसने अंत में देखा था जिसमें लता का चेहरा उसके रस में भीगा हुआ नज़र आ रहा था, वो जितना उस दृश्य को हटाने की कोशिश करता उतना उसकी आंखों के सामने वो दृश्य आ रहा था। फिर भी उसने किसी तरह बात को संभाला।
छोटू: अब तो कर दिया मैंने तुम लोग कहां जा रहे थे?
लल्लू: अरे हम तो तुझे ही ढूंढ रहे थे, और कहां जाएंगे। और सुन एक मस्त चीज़ मिली है चल तुझे दिखाते हैं।
छोटू: क्या?
भूरा: अरे चल तो सब पता चल जायेगा।
छोटू उनके साथ चल देता है तीनों दोस्त जल्दी ही नदी के किनारे होते हैं, और एक ओर पेड़ों की ओट में छिप कर बैठ जाते हैं, और फिर किसी खजाने की तरह लल्लू और भूरा उसे सत्तू के द्वारा दिए हुए पृष्ठ निकाल कर दिखाते हैं, छोटू भी उन पर बने हुए चित्रों को देख कर चौंक जाता है और बड़े ध्यान से आंखें बड़ी कर कर के उन्हें देखने लगता है, वो पहली बार ऐसा कुछ देख रहा था इसलिए हैरान होना स्वाभाविक ही था,
छोटू: ये तुम दोनों को कहां से मिले बे?
भूरा: मस्त हैं ना?
छोटू: हां पर आए कहां से?
लल्लू: सत्तू ने दिए हैं, उसे शहर में मिले थे किसी से।
छोटू: सही है यार पता नहीं था औरतें ऐसी फोटो भी खिंचवाती हैं।
भूरा: अरे ये अंग्रेजन हैं, वहां तो सब कुछ चलता है।
लल्लू: और का, सत्तू ने बोला है और भी बातें बताएगा साथ ही शायद और भी तस्वीरें हों उसके पास।
छोटू: मज़ेदार हैं यार। कैसी बातें?
भूरा: औरतों के बारे में,
छोटू: मतलब?
लल्लू और भूरा फिर मिलकर जो ज्ञान सत्तू ने उनके साथ सांझा किया था वो उसे छोटू तक भी पहुंचाते हैं, छोटू भी उनकी बातों को ध्यान से सुनता और समझता है, लल्लू और भूरा छोटू को अपनी बातों में और अपने साथ शामिल कर, जो सुबह हुआ था जब उन्होने छोटू की मां पुष्पा की गांड को नंगा देखा था उसकी ग्लानि को मिटाने की कोशिश कर रहे थे, वहीं छोटू के मन में अपना अलग डर और पछतावा था, वहीं भूरा भी मन ही मन में एक बात से व्यथित था जब से उसके मन में उसकी मां के लिए ही अलग तरह के विचार आए थे।
खैर इस तरह थोड़ा समय बीता तो फिर तीनों जानवरों के लेकर चराने के लिए निकल गए। पुष्पा, सुधा और रत्ना साथ में रत्ना के यहां बैठे हुए बातें कर रहे थे, कुछ ही देर में लता भी वहां आ गई, गांव की औरतों की किट्टी पार्टी तो होती नहीं थी और होती थी तो वो भी शायद ऐसे ही होती थी, दोपहर में जब किसी दिन समय खाली मिला तो किसी के घर बैठकर इधर उधर की बातें कर लीं, अपने दुख सुख बांट लिए, मज़ाक कर लिए, और दूसरी औरतों की बुराई यही सब होता था। ऐसे ही आज भी चारों एक साथ थीं।
खूब बातें चल रहीं थीं लता आज थोड़ा चुप ही थी, उसके दिमाग में तो वही सब चल रहा था, जो आज हुआ था, वहीं पुष्पा और सुधा भी एक दूसरे से नज़रें तो चुरा रहीं थी पर वो भी जानती थीं कि एक ही घर में रहना है तो चाहे अनचाहे बात तो करनी ही पड़ेगी, इसलिए जो हुआ उसको छोड़कर बाकी बातों पर बिल्कुल साधारण तरह से बातें कर रही थीं। इसी बीच बात छिड़ गई बच्चों की अब त्रिया चरित्र होता ही है कि पेट में कोई बात पचती नहीं, तो पुष्पा सुधा से भी नहीं पची और घर की बात है बाहर ना जाए ये बोलकर रत्ना और लता को सारी बात बता दी,
छोटू का नाम आने पर लता थोड़ी चौंकी ज़रूर पर जब उसने पूरी बात सुनी तो सोचने लगी कि एक चीज तो मैंने सोची ही नहीं थी कि जब छोटू का पजामा मैंने उतारा था तब उसका लंड पहले से ही खड़ा हुआ था, और वहां कुछ ऐसा भी नहीं हो रहा था जिससे लंड खड़ा हो, सिर्फ मैं ही थी वहां पर लंड तो तब खड़ा होता है जब कोई उत्तेजित करने वाली चीज देखी जाए, पर ऐसा कुछ नहीं था,
लता मन ही मन में गुणा भाग कर रही थी, और एक निष्कर्ष पर पहुंची, इसका मतलब ये सही है ज़रूर छुटुआ पर उदयभान की लुगाई ने कुछ किया है तभी उसका लंड ऐसे खड़ा था, और कितना बड़ा भी लग रहा था, नहीं तो इतनी सी उमर में ऐसी लंबाई, वो भी छुटूआ की जिसकी कद काठी इतनी ज्यादा भी नहीं है।
लता: हाय दैय्या और उसका रस हमने अपने ऊपर लिया और लिया तो लिया साथ में मैंने और नंदिनी ने चखा भी, कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए।
लता मन ही मन सोच कर घबराने लगी, इधर रत्ना के साथ तो कुछ नहीं हुआ था पर उसका डरने वाला स्वभाव था ही तो ये सुनकर तो उसके मन में भी डर बैठने लगा, उसे ये भी पता था कि उसका बेटा भूरा भी तो छोटू के साथ जंगल में गया था कहीं उसके साथ तो कुछ नहीं हुआ, वो भी मन में नई नई कहानियां गड़ने लगी।
शाम होने से पहले ही सारी औरतें घर को चल दीं, पर सबके मन में ही अपनी अपनी व्यथा थीं।
सूरज ढलने से पहले ही सारे घरों में खाना बन चुका था, आज छोटू भूरा और लल्लू भी भैंसों को चराकर जल्दी घर लौट आए थे, जैसा कि उन्हें समझाया गया था, रत्ना ने अपने दोनों बेटों और पति और ससुर को खाना खिला दिया था और खुद खाकर अब पटिया पर बैठे बैठे बर्तन माँझ रही थी, उसके मन में वही सब चल रहा था जो आज दोपहर में बातें हुई थीं, उसका मन अंदर ही अंदर घबरा रहा था, बर्तन माँझने के बाद रत्ना कमरे के अंदर गई और दिए की रोशनी में उसने अपनी टोटके वाली किताब निकाली और उसमें ऐसी परिस्थिति के लिए कोई उपाय ढूंढने लगी, काफी ढूंढने के बाद उसे एक उपाय मिला, जिसमें लिखा था कि अपने परिवार को भटकती आत्माओं से बचाने के लिए, अपने ही परिवार के गुजरे हुए पूर्वज जिनका निधन सबसे अंत में हुआ हो उनसे ही रक्षा करने के लिए पूजा करनी चाहिए।
पूजा की विधि: जिस मृत व्यक्ति की पूजा करनी है उनका रखा हुआ वस्त्र और गहने आदि जो भी मिल सकें उसे धारण कर, एक कटोरी में सरसों का तेल एक नींबू लेकर अपने सामने रखें और फिर आंखें बंद कर के उनकी आत्मा का आहवान करें और उन्हें अपनी मदद के लिए मन ही मन पुकारें, फिर आंखे खोल कर नींबू को तेल की कटोरी में डाल कर पुनः आंखे बंद कर उनसे रक्षा की प्रार्थना करें और फिर उठ जाएं और उस सरसों के तेल को लेकर परिवार के सभी सदस्यों के बिस्तर के चारों कोनों पर लगा दें, जिससे कोई भी बाहरी आत्मा से परिवार की रक्षा होगी ऐसा लगातार सात दिन करना होगा। परंतु यह सब कार्य रात्रि में सबके सोने के बाद ही करें।
रत्ना ये पढ़ मन ही मन खुश हो जाती है और सोचती है अभी समय है आज से ही शुरू कर देती हूं, पर किसकी पूजा करूं? सबसे आखिर में तो भूरा की दादी ही सिधारी हैं, सही है उन्हीं की करती हूं। वो तुरंत कमरे में रखा पुराना संदूक खोलने लगती है, और कुछ देर बाद उसे अपनी सास की एक पुरानी साड़ी नजर आती है, साड़ी के बाद वो बाकी कपड़े भी ढूंढती है पर उसे और कुछ नहीं मिलता ना ब्लाउज और न ही पेटीकोट। रत्ना सोचती है अरे उससे ही गलती हो गई महीने भर पहले ही उसने बाकी कपड़े खुद ही सफाई के दौरान फेंक दिए थे, पर कोई नहीं साड़ी से ही काम चलाना होगा।
साड़ी को रख वो बाहर आकर देखती है तो उसके दोनों बेटे और पति आंगन में सो रहे थे, वहीं उसके ससुर चबूतरे पर सोते थे, ताकि बहु आंगन में सो सके इसलिए या तो दरवाज़े के बाहर चबूतरे पर या छत पर ही सोते थे।
उसने दरवाजे पर झांक कर देखा तो ससुर प्यारेलाल भी से रहे थे। रत्ना ने सही समय जान कर जैसा जैसा लिखा था वैसे ही करने की ठानी और अपने कमरे में आकर सास की साड़ी उठाई, पर ब्लाउज और पेटीकोट नहीं था तो उसने सोचा थोड़ी देर की ही तो बात है सिर्फ साड़ी से ही काम चलाती हूं पर पूजा अच्छे से होनी चाहिए ये सोच उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपने बदन पर सिर्फ अपनी सास की साड़ी लपेट ली और फिर जैसे पूजा की विधि थी वैसे ही पूजा की और फिर तेल को लेकर आंगन में चारों खाट के चारों कोनों पर लगाया और फिर चुपके दबे पांव जाकर अपने ससुर की खाट के भी चारों पांओं पर लगा आई,
और फिर साड़ी को उतार कर अपने कपड़े पहन लेट गई,उसके मन में एक संतुष्टी हुई की अब उसके परिवार को उदयभान की लुगाई की आत्मा यदि कुछ करना चाहेगी तो उसकी सास की आत्मा उनकी रक्षा करेगी।
दूसरी ओर लता ने भी अपने यहां सबको खिला पिला दिया था, बस वो नंदिनी से थोड़ा आंखें चुरा रही थी, उसका सामना करने में लता को शर्म आ रही थी, वहीं नंदिनी तो आज जो कुछ हुआ उसे सोच सोच कर उत्तेजित हो रही थी वो अपनी मां के करीब जाने की उनसे बातें करने की कोशिश कर रही थी पर लता उससे दूर दूर रह रही थी। वहीं लता भले ही खुद को नंदिनी से दूर रख रही थी पर खुद को उत्तेजित होने से रोक नहीं पा रही थी, दोपहर को जो भी हुआ उसे सोच सोच कर उसका बदन गरम हो रहा था,उसकी चूत फिर से गीली महसूस हो रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसा क्यूं हो रहा है, क्या ये सब उदयभान की लुगाई की वजह से है, उसी ने कुछ किया है जो मेरा बदन ऐसे तड़प रहा है, हो भी सकता है जब से छोटू का रस मेरे अंदर गया है एक आग सी अंदर भड़क गई है, कहीं नंदिनी को भी तो ऐसा ही नहीं लग रहा, हाय क्या करूं, कैसे बचूं, कैसे बचाऊं अपनी बिटिया को, मुझे तो उसके सामने जाने में भी शर्म आ रही है, पर कब तक उससे दूर रहूंगी।
लता ये सब सोचते हुए काम निपटा रही थी, वहीं नंदिनी सब को खाना परोस रही थी, खाना खाने के बाद मगन और कुंवरपाल खेत पर चल दिए क्योंकि गेहूं कट रहे थे और आधा खेत अभी भी बाकी था, तो सोचा कल दिन में धूप में काटने से अच्छा है अभी रात में ही ठंडा ठंडा निपटा लेते हैं। चांदनी रात थी तो अच्छा खासा उजाला भी होगा।
लता: अरे लल्लू को भी ले जाओ ना थोड़ी मदद हो जायेगी।
लल्लू का तो ये सुनकर मुंह बन गया, सोचने लगा मां ने फंसा दिया,
कुंवरपाल: अरे रहने दे बहू ये कहां रात भर जागेगा।
मगन: अरे नहीं पिताजी, दिन में कौनसा काम करता है ये, चल लल्लू उठा दरांती,
लल्लू अब क्या बोलता बाप को मना करने का मतलब था मार इसलिए जल भुन कर दरांती उठाई और चलने लगा, नंदिनी ने रात के लिए भी खाना बांध दिया था तीनों सारा सामान लेकर निकल लिए कुंवर पाल ने पीछे से आवाज लगाई: नंदिनी बिटिया, किवाड़ लगा ले।
नंदिनी भाग कर किवाड़ और उन पर कुंडी लगा आई अब घर में सिर्फ मां बेटी थे, रसोई का काम निपटा कर लता जब खाली हुई तो नंदिनी बोली: मां बिस्तर कहां लगाऊं? कमरे में सोना है या आंगन में।
नंदिनी की बात सुनकर अचानक से लता को एहसास हुआ कि घर पर रात भर सिर्फ वो और उसकी बेटी है और ये सोचकर ही उसके बदन में एक सिहरन सी हुई, उसे बदन में उत्तेजना होने लगी, वो मन ही मन विचार करने लगी कि ऐसा क्यूं हो रहा है मेरे साथ, क्यों मेरे मन में अपनी ही बिटिया के लिए ये सब खयाल आ रहे हैं,
ये सब विचार करते हुए उसने कहा: आंगन में ही सोएंगे।
नंदिनी ये सुन आंगन में बिस्तर बिछाने लगी,
वैसे उत्तेजित तो नंदिनी भी हो रही थी, साथ में उत्साहित भी जबसे दोपहर में उसकी मां और उसके बीच जो हुआ था वो उसे भुला नहीं पा रही थी या कहें भुलाना ही नहीं चाह रही थी। ऐसी उत्तेजना तो उसे सत्तू के साथ होने पर भी नहीं होती थी, जैसी मां के साथ हुई थी।
जल्दी ही लता ने सारे काम निपटाए और कमरे के किवाड़ लगाकर बाहर के किवाड़ भी देखे कि बंद हैं कि नहीं और फिर वहीं किवाड़ के बगल से निकलती नाली पर अपनी साड़ी उठाकर बैठ गई और मूतने लगी, मूतते हुए उसका बड़ा मन हुआ कि अपनी चूत को छूकर थोड़ा सा सहला दे ताकि उसकी खुजली से थोड़ा उसे आराम मिले पर उसने खुद को रोका, अब वो कोई भी गलत कदम नहीं रखना चाहती थी।
मूतने के बाद लता आंगन में वापिस आई तो आंगन में बिस्तर देख कर थोड़ा सकुची क्योंकि नंदिनी ने सिर्फ एक ही बड़ी खाट बिछाई थी और उसी पर बिस्तर लगाकर एक ओर लेटी हुई थी, नंदिनी के साथ एक ही बिस्तर पर सोने का सोच कर लता सकुचाने लगी, ऐसा नहीं था कि वो और नंदिनी एक खाट पर कभी सोते नहीं थे बल्कि अक्सर ही ऐसा होता था, पर आज की बार अलग थी, आज जो कुछ हुआ उससे उनके रिश्ते में बदलाव आ गया था, लता बिस्तर के पास खड़ी होकर सोच में व्यस्त थी, तो नंदिनी ने उसे देखा और कहा: मां खड़ी क्यूं हो, आओ लेटो ना।
नंदिनी ने बिस्तर पर खाली जगह को थपथपा कर उसे दिखाते हुए कहा, लता अपने आप को एक नई नवेली दुल्हन की तरह महसूस कर रही थी जो कि बिस्तर के बगल में खड़ी सकुचाती है और उसका पति उसे बिस्तर पर आने के लिए कहता है, पर अभी अंतर इतना था कि ना तो वो नई नवेली दुल्हन थी बल्कि और न ही बिस्तर पर उसका पति, बल्कि बिस्तर पर तो उसकी खुद की जन्मी बिटिया थी पर लता उसके साथ सोने में भी झिझक रही थी। लता ने सोचा अगर अलग सोऊंगी तो बेकार में नंदिनी दस सवाल करेगी और फिर से दोपहर वाली बात आ जायेगी इससे अच्छा है चुपचाप सो ही जाती हूं।
हल्के कदमों से आगे बढ़ कर लता नंदिनी के बगल में बैठी तो नंदिनी उसे रोकते हुए बोली: अरे मां आज तुम्हें गर्मी नहीं लग रही का आज साड़ी पहन कर ही सोउगी?
लता के ऊपर एक और समस्या आ गई क्योंकि वो अक्सर सिर्फ पेटीकोट ब्लाउज में ही सोती थी, साड़ी पहनकर तभी सोती थी जब उसके ससुर घर में ही सोते थे या कोई अतिथि आया हो, पति और बच्चों के आगे तो साड़ी उतारकर ही सोती थी, अब नंदिनी ने जब ये पूछा तो उसके बदन में फिर से सिरहन हुई, उसे समझ नहीं आया कि नंदिनी की बात का क्या जवाब दे तो उसने खड़े होकर अपनी साड़ी को खोलना शुरू कर दिया, जैसे जैसे वो साड़ी खोल रही थी उसे उसकी चूत गीली होती महसूस हो रही थी, उसे लग रहा था जैसे उसका बदन फिर से कामाग्नि में जल रहा है।
नंदिनी बिस्तर पर लेटे हुए अपनी मां को साड़ी उतारते देख रही थी, चांद की दूधिया चांदनी में उसकी मां का गोरा बदन चमक रहा था, नंदिनी की आंखें अपने मां के बदन पर ही टिकी हुई थीं, उसे लग रहा था कि उसने आज से पहले अपनी मां के बदन पर कभी ध्यान ही नहीं दिया, कितना सुंदर और कामुक बदन है मां का, हर ओर से गदराया हुआ, फिर उसके मन में विचार आया कि पर उसे अपनी मां के बदन से ये आकर्षण क्यों हो रहा है, भले ही मां कितनी भी सुंदर क्यों न हो, पर मैं एक लड़की हूं और एक लड़की का आकर्षण तो लड़के से होना चाहिए पर मुझे ऐसा क्यूं हो रहा है?ये कुछ सवाल थे जिनका जवाब उसके पास नहीं था।।
कुछ ही पलों में लता की साड़ी उसके बदन से अलग हुई तो उसने साड़ी को बगल में ही रस्सी पर टांग दिया, और फिर बिना नंदिनी की ओर देखे खाट पर लेट गई और तुरंत आंखें मूंद लीं, वो किसी भी तरह से नंदिनी का सामना करने से बच रही थी।
नंदिनी तो पहले ही उसकी ओर करवट लेकर सो रही थी, उसने देखा की उसकी मां लेट कर तुरंत आंखें बंद कर सोने लगी है तो उसे कुछ ठीक नहीं लगा, वो चाह रही थी कुछ अलग हो, जो कुछ दोपहर में हुआ उसके बाद वो सब भुला कर सो तो नहीं सकती थी,पर उसे मां के गुस्सा होने का डर भी था,
वहीं लता ने सोचा था मैं सोने का नाटक करती हूं जल्दी ही ये भी सो जायेगी तो सब सही रहेगा। पर मन ही मन न जाने उसका मन भी चाह रहा था कि ये रात बस ऐसे ही न बीत जाए। नंदिनी ने कुछ सोचा और फिर अपना एक हाथ अपनी मां के नंगे पेट पर रख दिया, लता को जैसे ही पेट पर नंदिनी का हाथ महसोस हुआ उसके बदन में तरंगें उठने लगी, पर उसने खुद को संभाला और वैसे ही सोने का नाटक करने लगी, नंदिनी को भी अपने बदन में मां के पेट का स्पर्श पाकर एक अदभुत आनंद हुआ, उसके बदन में भी फिर से वही उत्तेजना होने लगी जो उसने दिन में महसूस की थी।
नंदिनी ने लता के चेहरे की ओर देखा तो पाया कि वो वैसे ही सो रही है, तो नंदिनी ने अपने हाथ को मां के चिकने पेट पर फिराना शुरू कर दिया, उसे अच्छा लग रहा था अपनी मां के चिकने पेट पर हाथ फिराकर, लता भी अपनी बिटिया के हाथ को अपने पेट पर चलता महसूस कर मन ही मन खुश हो रही थी पर बाहर से सोने का नाटक जारी था। पर उसकी सांसें गहरी होने लगीं थीं। नंदिनी भी देख रही थी कि कैसे उसकी मां की छाती ऊपर नीचे हो रही थी, उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को यूं ऊपर नीचे होते देख नंदिनी को अच्छा लग रहा था, नंदिनी का हाथ अब लता के पूरे नंगे पेट पर चल रहा था एक ओर से कमर से लेकर दूसरी ओर तक ऊपर ब्लाउज से लेकर पेटिकोट तक। कुछ देर तक वो यूं ही पेट को सहलाती रही फिर जब उसका सहलाने से मन भर गया तो उसने लता के पेट को हल्के हल्के मसलना शुरू कर दिया, अपनी मां के गदराए पेट की कोमल त्वचा को मसलने में उसे अच्छा भी लग रहा था,
वहीं लता को भी बेटी के द्वारा यूं मसले जाना अच्छा लग रहा था, जहां जहां नंदिनी के हाथ उसके पेट को मसलते मानो उस जगह से एक आनंद की तरंग उठती और पूरे बदन में उत्तेजना बनकर फैल जाती, सोने का नाटक करते रहना लता के लिए मुश्किल होता जा रहा था, नंदिनी लगातार उसके बदन को अपनी इच्छानुसार मसल रही थी उससे खेल रही थी। अपनी मां के बदन के साथ ऐसे छेड़ छाड़ करने में नंदिनी को बहुत मज़ा आ रहा था, लता को भी एक अदभुत आनंद मिल रहा था पर वो उसे मन में दबाए हुए सोने का नाटक कर रही थी, उसका एक मन कर रहा था कि अपनी बेटी से खुल कर अपने बदन को मसलवाए पर एक मां होने के नाते कैसे अपनी बेटी के आगे लाज शर्म को त्याग दे, कैसे समाज के बनाए हुए सारे नियमों को अपने बदन की आग में जला दे, कैसे अब तक मिले संस्कारों को मसल कर रख दे।
इसी बीच लता के पेट से नंदिनी का हाथ हट गया तो लता मन ही मन सोचने लगी कि क्या हुआ नंदिनी ने हाथ क्यों हटा लिया, हालांकि जहां शुरुआत में वो खुद यही चाह रही थी कि उसके और बेटी के बीच कुछ ना हो वो अभी बेटी का हाथ पेट पर से हटने से बेचैन होने लगी, उसे नंदिनी का हाथ हटना बिल्कुल भी नहीं भा रहा था, वो सोचने लगी कि ये क्या हो रहा है, नंदिनी ने हाथ क्यों हटा लिया, कहीं उसका मन तो नहीं बदल गया, कहीं मेरी ओर से कोई साथ ना मिलने की वजह से तो नहीं उसने खुद को अलग कर लिया, क्या पता उसे लग रहा हो मैं सो गई हूं, क्या करूं? आंख खोल कर देखूं? लता के मन में ऐसी ही कई सारे प्रश्न आने लगे साथ ही हर बढ़ते पल के साथ वो बेटी के स्पर्श के लिए तड़पने लगी।
नंदिनी इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं थी, खाट के बगल में रखे लोटे से पानी पीते हुए भी उसकी लगातार नजर अपनी मां के कामुक बदन पर ही थी, उसे मां का बदन ऐसा लग रहा था कि जिससे वो जितना भी खेल ले उसका मन नहीं भर रहा था, बिस्तर पर बैठी नंदिनी पानी से अपनी प्यास बुझा रही थी तो बगल में लेटी हुई उसकी मां बदन अंदर ही अंदर बदन की गर्मी से जल रही थी, पानी पीने के बाद नंदिनी ने दोबारा ध्यान अपनी मां पर दिया पर इस बार मां के बगल में लेटी नहीं बल्कि लता के पैरों की ओर बैठ कर वो उसके ऊपर झुक गई, इधर बेचैन लता को पहले खाट पर कुछ हरकत महसूस हुई और फिर उसे अगले ही पल अपने पेट पर हाथ का स्पर्श हुआ जिसे पाकर लता का बदन फिर से सिहर उठा, उसके बेचैन बदन को चैन मिला, पर अगले ही पल उसे हाथ के साथ ही कुछ और स्पर्श महसूस हुआ और जैसे ही उसे एहसास हुआ कि ये क्या है उसका पूरा बदन उत्तेजना में जल उठा, क्यूंकि नंदिनी ने अपनी मां के मक्खन जैसे पेट पर अपने होंठ लगा दिए थे और पेट को चाटने लगी, लता बेटी की इस हरकत से पागल होने लगी, उसके लिए सोने का नाटक करते रहना बहुत मुश्किल होने लगा, फिर भी बड़ी मुश्किल से लता ने खुद को संभाला,
नंदिनी को तो जैसे मां के जागने का कोई डर ही नहीं था या यूं कहें वो जानती थी कि उसकी मां जाग रही है, बस सोने का नाटक कर रही है, एक औरत होने के नाते नंदिनी लता की मनोदशा भी समझ रही थी और उसके बदन के इशारे भी, उसकी मां की तेज चलती हुई सांसें चेहरे के भाव सब बता रहे थे कि उसकी मां कितनी उत्तेजित है चाहे वो उसे छुपाने का कितना भी प्रयास कर रही थी, नंदिनी को इस खेल में भी मजा आ रहा था वो देखना चाहती थी कि उसकी मां कब तक सोने का नाटक करती रहेगी। अगली कुछ देर तक नंदिनी ने लता के पेट के हर हिस्से को खूब अच्छे से चाटा जितना भी पेट ब्लाउज और पेटीकोट नंगा था उसने कोई भी हिस्सा बिना चाटे नहीं छोड़ा। वहीं नीचे पड़ी हुई लता बेटी की हरकतों से तड़पती रही, उसकी उत्तेजना को वो कैसे संभाल रही थी वो खुद ही जानती थी,
नंदिनी को भी अपनी मां का पेट चाटने में ऐसा अद्भुत आनंद आ रहा था जिसे उसने आजतक महसूस नहीं किया था, उसकी खुद की उत्तेजना और बदन में गर्मी हद से ज्यादा बड़ गई थी, साथ ही उसकी चूत में इतनी खुजली हो रही थी कि उसके लिए सहना मुश्किल हो रहा था, साथ ही उसे इस के साथ साथ मूत भी आ रहा था, पर उसके लिए मां का पेट छोड़ना मुश्किल हो रहा था, पर कुछ पल बाद उससे सहना मुश्किल हो गया तो वो खाट से उठी और बाहर किवाड़ की ओर मूतने के लिए लपकी, और अपनी पजामी को खोल वहीं बैठ गई जहां कुछ देर पहले उसकी मां मूत कर गई थी, मूतने के बाद नंदिनी को थोड़ा आराम मिला, काफी देर से उसने मूत रोक कर रखा हुआ था, मूतने के बाद पजामी ऊपर कर वो बापिस खाट के पास आई और उसने फिर से अपनी मां पर नजर डाली तो देखा कि मां की सोने की स्थिति थोड़ी बदल गई थी पहले जो हाथ अगल बगल थे अब उनसे लता ने अपने सिर के ऊपर रख लिया था जिससे उसका माथा खासकर आंखें ढंक गई थी, शायद ये इसलिए था कि वो आंखे खोले भी तो नंदिनी को न दिखें।
नंदिनी बापिस खाट पर चढ़ कर बैठ गई और उसने दोबारा से हाथ अपनी मां के पेट पर रखा और वो फिर से पर पर हाथ चलाने लगी, उसने हाथ ऊपर की ओर चलाया तो उसका हाथ ब्लाउज के किनारे से लगा तो उसे कुछ अलग सा महसूस हुआ उसने तुरंत ब्लाऊज की ओर देखा तो उसकी आंखे फैल गई उसने तुरंत उंगली आगे कर के देखा तो पाया कि उसकी मां का ब्लाऊज खुला ही था जो की उसकी उंगली लगते ही अलग होने लगा, मतलब ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए थे बस सिर्फ दोनों पट ऐसे रखे हुए थे जैसे कि ब्लाउज बंद हो, नंदिनी की तो ये जानकर आंखें और मुंह दोनों खुल गए। वो सोचने लगी कि अभी जाने से पहले जब वो मां का पेट चाट रही थी तो ब्लाउज के सारे बटन बंद थे उसे अच्छे से याद है मतलब मां ने मेरे पेशाब करने जाने पर ब्लाउज खोला है ये सोच कर ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो सोचने लगी मां भी वही चाहती है बस शर्मा रही है, ये सोच उसने तुरंत ब्लाऊज के पाटों को फैला दिया और उसकी मां के बड़े बड़े नंगे चूंचे चांद की चांदनी में उसके सामने आ गए जिन पर उसने तुरंत ही अपने हाथ जमा दिए और उन्हें मसलने लगी, और उन्हें मसलते हुए अपनी मां के चेहरे के भावों को देखने लगी वो देख पा रही थी कि उसकी मां कितना प्रयास कर रही है कुछ भी न जताने का,
लता के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था खुद को संभालना नंदिनी के हाथ ज्यों ज्यों उसकी चूचियों को मसल रहे थे वो पागल हो रही थी और फिर कुछ ऐसा हुआ कि उसका मुंह खुल गया और न चाहते हुए भी उसके मुंह से एक आह निकल गई और वो हुआ इसलिए क्योंकि नंदिनी ने अपनी मां की चूची को मुंह में जो भर लिया था, और चूसने लगी थी,
लता की आह ज़रूर निकली थी, पर नंदिनी का तो उस आह पर ध्यान ही नहीं गया उसका सारा ध्यान तो अपनी मां की मोटी मोटी चूचियों पर था, वो पागलों की तरह अपनी मां की चुचियों को चूसने में लगी हुई थी, उसकी मां भी उसकी हरकतों से पागल हो रही थी, नंदिनी को इस बात की और खुशी थी कि उसकी मां ने खुद से ब्लाउज खोला था ताकि वो उसकी चूचियों की पी सके, इस बात से उसे और जोश आ रहा था, और बदल बदल कर वो दोनों चुचियों को चूस रही थी, दोनों चूचियों को जी भर चूसने के बाद भी नंदिनी रुकी नहीं और फिर से लता के पेट को चाटने लगी हर ओर चूमती चाटती हुई वो पेटिकोट के ऊपर पहुंची और पेटीकोट के ऊपर से ही लता की नाभी को महसूस कर उसे चाटने लगी, क्योंकि लता साड़ी और पेटीकोट नाभी से ऊपर बांधती थी तो उसकी नाभी पेटिकोट के नीचे छिपी हुई थी, जिसे पेटिकोट के ऊपर से ही नंदिनी चूमने लगी,
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने ऐसा पहले कभी किया हो या उसे संभोग का कोई ज्ञान हो वो सब स्वभाविक ही किए जा रही थी, वैसे भी सम्भोग भी एक स्वाभाविक क्रिया है, जानवरों को कौन सिखाता है सब कुछ अपने आप होता चला जाता है, उसी प्रकार नंदिनी भी सब कुछ किए जा रही थी।
लता तो अपनी नाभी के कपड़े के ऊपर के चुम्बन से ही आहें भर रही थी, उसके बदन में एक करंट सा दौड़ रहा था जिसे वो पूरी तरह से महसूस नहीं कर पा रही थी क्योंकि बीच में पेटिकोट जो आ रहा था, लता ने अगले ही पल वो किया जो वो शायद कभी होश में करने का सोचती भी नहीं, पर अभी होश की जगह ही कहां थी अभी तो सिर्फ वासना का नशा था, और उसी नशे में बहकते हुए लता ने अपने कांपते हाथों से अपने पेटिकोट का नाड़े में लगी गांठ खोलदी, नंदिनी ने अपनी आंखों के सामने अपनी मां की उंगलियों को नाड़े को खोलते देखा तो नंदिनी के बदन में भी बिजली दौड़ गई उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी मां खुद से ये सब कर रही हैं, नाड़े की गांठ खुलते ही नंदिनी ने पेटिकोट को थोड़ा सा नीचे किया और उसके सामने उसकी मां की गहरी नाभी आ गई जिसे देखते ही नंदिनी ने अपने होंठ उस पर लगा दिए और अपनी जीभ उसके बीच में घुसा दी।
बिटिया के होंठ नाभी पर लगते ही और जीभ का नाभी की गहराई में स्पर्श होते ही लता की कमर झटके खाने लगी और कुछ पल के लिए ऊपर उठ गई, ये देख नंदिनी को बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था कि वो अपनी मां को ऐसा आनंद दे पा रही है कि जिसे पाकर वो स्वयं पर भी नियंत्रण नहीं रख पा रही हैं,
वहीं लता का तो बुरा हाल था उसने आज तक ऐसा आनंद ऐसी उत्तेजना कभी महसूस नहीं की थी जो कि वो आज अपनी बेटी के साथ कर रही थी, उसे पता ही नहीं था कि संभोग में बिना लंड के चूत में घुसाए भी इतना मज़ा आ सकता है, उसकी चूत गीली होकर बार बार रो रही थी, उसकी चूत में मानों हज़ारों चीटियां अब रेंग रहीं थी, हर पल उसकी ये चूत की खुजली असहनीय होती जा रही थी,
नंदिनी अपनी जीभ को मां की नाभी में घुसा कर ऐसे चूस रही थी मानो उसने से रस निकल कर उसके मुंह में घुल रहा हो, और उसके पूरा बदन में उत्तेजना का नशा गोल रहा हो, लता को भी ऐसा ही लग रहा था जैसे उसकी बेटी की जीभ से उसकी नाभी में कुछ तरंगे निकल रहीं थी और वो तरंगें नाभी से सीधी उसकी चूत में जा रही थीं और उसकी चूत की खुजली को और बड़ा रहीं थीं। लता की चूत भी अब सेवा मांग रही थी चूचियों और पेट को मिले ध्यान ने उसकी निगोड़ी चूत को जला भुना दिया था। वहीं नंदिनी की जीभ से उसकी नाभी में ऐसी तरंगें उठ रहीं थी जो उसके पूरे बदन को कांपने पर मजबूर कर रही थी, लता की चूत में अब असहनीय खुजली होने लगी और उसी के चलते वो खाट पर पड़ी हुई तड़पने लगी उसके हाथ नंदिनी के सिर पर कस गए और वो उसके सिर को अपनी नाभी में दबाने लगी।
जबसे ये सब शुरू हुआ था तबसे पहली बार कोई हरकत लता ने की थी बेटी के सामने, नंदिनी को खुशी हुई कि उसने उसकी मां को नाटक छोड़ने पर मजबूर कर दिया, लता के दिमाग में तो अभी नाटक, शर्म, लाज कुछ भी नहीं था अभी तो उसे सिर्फ उसकी चूत की खुजली, चूत की प्यास पागल कर रही थी वो चाह रही थी जल्दी से उसे इस असहनीय पीढ़ा से राहत मिले, और इसी वश वो नंदिनी के सिर को नीचे की ओर धकेलने लगी, अपनी मां से नीचे की ओर का दबाब देख नंदिनी को समझ नहीं आया कि उसकी मां क्या चाहती है पर वो नीचे होने लगी, वैसे पता तो लता क्रो भी नहीं था कि वो क्या चाहती है वो तो बस इस असहनीय खुजली से राहत चाहती थी जो उसकी चूत में हो रही थी,
नंदिनी ने नाभी को छोड़ा और नीचे की ओर बढ़ी पर अपने साथ साथ मां का ढीला और खुला हुआ पेटिकोट भी सरकाने लगी, उसकी मां उसके सिर को नीचे की ओर दबा रही थी, जल्दी ही पेटीकोट और नंदिनी का सिर लता की चूत से नीचे था और नंदिनी के सामने उसका जन्म द्वार था, अपनी मां की चूत देख कर नंदिनी की आंखें फट हुईं, उसे यकीन नहीं हुआ कि वो सच में अपनी मां की चूत देख पा रही है, वही चूत जिससे सालों पहले निकल कर वो इस दुनिया में आई थी, उसने देखा कि उसकी मां की चूत कितनी गीली है और रस बहा रही है, लड़की होने के नाते वो जानती थी कि ये मूत नहीं है, कभी कभी उसकी चूत से भी ऐसा बहाव होता था, जब वो बहुत उत्तेजित होती थी तब। उसकी मां की कमर उसके नीचे मछली की तरह तड़प रही थी लता की कमर बार बार उठकर नीचे गिरती जैसे अक्सर चुदाई के दौरान उत्तेजित होने पर औरतें करती हैं, नंदिनी ने ऊपर से नीचे तक एक बार अपनी मां के तड़पते बदन को देखा और फिर उसके ऊपर से हट गई, एक हाथ से पेटिकोट को पकड़ा और उसे लता की टांगों में से निकाल दिया और अपनी मां को नीचे से पूर्ण नग्न कर दिया, पर लता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा उसे अभी सिर्फ़ अपनी चूत की बैचैनी से मतलब था। नंदिनी इतने पर भी नहीं रुकी और उसने ऊपर की ओर आकर लता की बाहों मे उलझे ब्लाउज को भी उतार दिया, और उसके लिए उसने एक गुड़िया की तरह अपनी मां के बदन की इधर उधर हिलाया और बाहों से ब्लाउज अलग कर दिया।
अब लता अपनी बेटी के सामने खाट पर बिल्कुल नंगी पड़ी तड़प रही थी, नंदनी ने बापिस उसकी टांगों के बीच जगह ली और उसकी दोनों टांगों को पकड़कर फैला दिया जिससे उसकी चूत और खुल कर सामने आ गई, नंदिनी को अपनी मां की चूत से एक अजीब सी सौंधी सी गंध आ रही थी जो उसके बदन को उत्तेजित कर रही थी। वो सोचते लगी ये कैसी गंध है मां की चूत की और ये ही सोच उसने अपना मुंह आगे किया और लता की चूत के पास नाक लेजाकर सूंघने लगी, अपनी मां की चूत की गंध सूंघकर उसके पूरे बदन में कंपन्न सा होने लगा,
वहीं नीचे लेटी लता की चूत पर ज्यों ही नंदिनी की गरम सांसे पड़ीं तो वो और तड़पने लगी, उसकी चूत की बैचैनी और बढ़ गई, उसे लगा इस बेचैनी से वो पागल हो जायेगी, वो चाहती थी कि उसकी बेटी उसकी चूत को भी कैसे भी करके शांत कर दे पर नंदिनी तो उसी तड़प और बढ़ा रही थी, इसी तड़प के चलते लता के हाथ फिर से नीचे आकर नंदिनी के सिर पर कस गए और इससे पहले नंदिनी कुछ करती या समझती लता ने उसका चेहरा अपनी चूत में दबा दिया नंदिनी के होंठ सीधे उसकी मां की चूत से लगे और लता होंठ लगते ही अपनी कमर को पागलों की तरह घुमा घुमा कर अपनी चूत को नंदिनी के होंठों पर घिसने लगी।
अब तक नंदिनी ही सारथी थी इस हवस के रथ की पर पहली बार लता ने आक्रामक होते हुए कमान अपने हाथों में ले ली।
नंदिनी को यूं तो अब तक हर चीज में मज़ा आ रहा था पर अपने होंठ मां की चूत से लगते ही वो परेशान होने लगी, उसके मन में घिन आने लगी क्यूंकि जहां से उसकी मां पेशाब करती है उसका मुंह वहां लगा था, भले ही वो हवस में कितनी भी आगे बढ़ गई हो पर अब तक उसने जो सीखा था समाज से उसे कैसे पल भर में भूल जाती, कि पेशाब की जगह गंदी होती है उसमें तो हाथ लगाने के बाद भी लोग हाथ धोते हैं और यहां उसका मुंह उसकी मां की चूत में घुसा हुआ था, वो छूटने की कोशिश करने लगी पर लता ने उसका सिर मजबूती से चूत में दबा रखा था। उसने घबरा कर अपना मुंह खोला कुछ बोलने के लिए तो उसकी मां की चूत का दाना उसके मुंह में घुस गया और उसकी जीभ से टकराया, जिससे नंदिनी को तो जैसे उल्टी जैसा मन हुआ और उसकी जीभ बाहर निकल आई। इधर लता की कमर लगातार घूम रही थी तो नंदिनी की जीभ बाहर आते ही सीधा उसकी मां की चूत से टकराई और बाकी का काम लता की घूमती कमर ने कर दिया और लता की चूत बेटी की जीभ पर घिसने लगी,
इधर नंदिनी की तो हर चाल उल्टी ही पड़ रही थी, उसे अपनी जीभ पर मां की चूत का स्वाद महसूस हो रहा था कुछ ही पल बाद उसे आभास हुआ कि उसकी मां की चूत का स्वाद इतना बुरा नहीं जैसा उसे लग रहा था, और कुछ ही पलों में उसके अंदर की घिन फिर से हवस में बदल गई अब वो खुद से मां की चूत चाटने लगी क्योंकि उसे स्वयं को आनंद आ रहा था, वहीं लता तो और उत्तेजना के शिखर पर पहुंच गई, नंदिनी जिस तरह से मां की चूचियों और पेट को चाट रही थी अब उसकी चूत को भी चाटने लगी, और जितने अच्छे से वो चूत चाटती उसके स्वयं के बदन में उतनी उत्तेजना बढ़ती,
कुछ ही पलों में लता की आँखें ऊपर की ओर खिंच गईं, उसकी कमर बिस्तर से उठ कर धनुष की तरह तन गई, और झटके खानेलागी, एक पल को तो नंदिनी को डर लगा कि मां को कुछ हो तो नहीं गया पर उसने चूत पर जीभ चलाना जारी रखा, लता थरथराते हुए झड़ने लगी, उसने आज तक ऐसा स्खलन महसूस नहीं किया था जैसा आज कर रही थी उसे लग रहा था कि उसके बदन की सारी ऊर्जा आज चूत के रास्ते निकल जाएगी।
नंदिनी को अपनी जीभ पर मां की चूत का रस महसूस हो रहा था जिसे भी वो चाट गई क्यूंकि उसे उसका स्वाद पसंद आया और फिर अगले ही पल उसके चेहरे पर लता के मूत की धार टकराई, उसे समझ नही आया ये क्या हो रहा है, लता की कमर झटके खा रही थी और झटके के साथ उसकी चूत से पेशाब की एक छोटी धार निकलती और नंदिनी के चेहरे और जीभ को भीगा जाती, दो चार बार ऐसा हुआ और फिर लता एक कटे पेड़ के समान धम्म से बिस्तर पर गिर पड़ी, और बिल्कुल बेहोश सी हो गई, नंदिनी अपनी मां को देखते हुए सुन्न बैठी थी उसे समझ नही आ रहा था कि आज उसने क्या क्या किया था बाकी सब तो छोड़ो अपनी ही मां की चूत को चाटा और अंत में उनके मूत को भी अपने मुंह में लिया,
ये सोच कर ही उसका हाथ खुद की चूत पर पहुंच गया वो अपने हाथ से अपनी चूत को मसलती हुई सोचने लगी कि क्या सच में आज उसने अपनी मां का मूत चख लिया, पर उससे भी बड़ी बात उसे ये सब गलत क्यूं नहीं लग रहा, अच्छा क्यूं लग रहा है। ये ही सोच उसने अपनी जीभ होंठों पर फिराई तो उसे अपनी मां के पेशाब का स्वाद मिला जिसे चख कर उसके बदन में बिजली दौड़ गई।