वासना का तूफान थम चुका था सुभम ने एक बार फिर से अपनी मां की मदमस्त जवानी पर फतेह पाते हुए अपनी जीत का झंडा गाड़ दिया था,,, शुभम गहरी गहरी सांसे लेते हुए अपनी आंखों को मूंदकर उस जबरदस्त अतुल्य पल में खो चुका था,,, एक तरफ शुभम के चेहरे पर संतुष्टि भरा एहसास था तो दूसरी तरफ निर्मला के चेहरे पर चरम सुख पाने की तृप्ति के साथ साथ चिंता भरी लकीरें भी साफ नजर आ रही थी,,,,। उसके सामने अब हजार सवाल खड़े हो गए थे जिनमें से निकलने का कोई रास्ता उसे नजर नहीं आ रहा था,,,, उसे अपनी गलती पर पछतावा भी हो रहा था लेकिन अब पछताने से कुछ होने वाला नहीं था तीर कमान से निकल चुका था और ठीक शीतल के द्वारा निशानी पर ही लगा था,,,,
निर्मला भी गहरी गहरी सांसे ले रही थी चिंताओं के बादल तो उमड़ रहे थे लेकिन सावन की बूंदे अभी भी बरस रही थी,,, शुभम का मोटा तगड़ा लंड अभी भी उसकी मां की बुर के अंदर हरकत कर रहा था रह रहे थे उसमें से गरम पानी की बूंदे निकल रही थी जो कि इस समय निर्मला की बुर को पूरी तरह से भर दी थी। पानी निकलने के बावजूद भी शुभम का मोटा तगड़ा जबरजस्त लंड अभी भी पूरी तरह से खड़ा था ,,,बस उसमें हल्का-हल्का ढीलापन आ रहा था,,, लेकिन फिर भी इस अवस्था में अभी सुबह किसी भी औरत की जबरदस्त चुदाई करने में सक्षम था,,, निर्मला एकदम शांत अपने बेटे के लैंड पर बैठी हुई थी कोई और समय होता तो शायद इस अनमोल पल का भरपूर फायदा उठाती लेकिन एक बार बार चरम सुख को प्राप्त कर चुकी थी लेकिन यह चरम सुख के साथ-साथ उसे चिंताओं का दुख भी मिल चुका था अब आगे क्या होगा यह तो भगवान ही जानता था। अपनी गलती पर उसे बार-बार बहुत गुस्सा आ रहा था और अपने बेटे शुभम पर भी जो कि इस समय उसे जबरदस्त चुदाई का सुख देकर मस्ती में नींद की आगोश में जा रहा था,,,, वह मन ही मन सोच रही थी कि अगर वह घर का दरवाजा बंद करना भूल भी गई थी तो शुभम को तो कमरे का दरवाजा बंद करना था लेकिन ऐसे तो बस चुदाई चुदाई चुदाई नहीं दिखाई देती है एक बार इसे इतना समझा चुकी थी फिर भी वह नहीं माना और अपनी एक गलती के कारण जिंदगी बर्बाद कर दीया,,, अगर यह कमरे का दरवाजा भी बंद कर लेता तो आज यह सब ना होता जो कुछ हो चुका है,,, निर्मला यह सब बातें अपने मन में सोच रही थी अपने आप से ही बातें कर रही थी आज उसे अपने बेटे पर बहुत गुस्सा आ रहा था,,, लेकिन वह अपने बेटे को इस बात का एहसास भी नहीं होने देना चाहती थी कि शीतल ने हम दोनों को चुदाई करते हुए देख ली है,, इसलिए वह भी मन से अपने बेटे के खड़े लैंड पर से धीरे-धीरे अपनी गांड उठा कर उसे अपने बुर से बाहर निकालते हुए बिस्तर से नीचे खड़ी हो गई,,,, वह उसी तरह से एकदम नंगी ही अपने कमरे से बाहर निकल गई और बाथरूम में चली गई जहां पर जाकर वहां ठंडे पानी से अपने बुर को अच्छे से साफ करी,,,
Shubham ka taGDAA lund
एक तरफ आंखों से आंसू बह रहे तो तो दूसरी तरफ खुशियों के जाम छलक रहे थे,,, शीतल अपनी फ्रिज खोल कर उसमें से कोल्ड्रिंक्स निकाल कर पी रही थी और मन ही मन खुश हो रही थी,,,, क्योंकि आज ऐसा लग रहा था कि जैसे भगवान ने उसका दामन खुशियों से भर दिया हो मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई हो,, शीतल बहुत खुश थी वह कोल्ड ड्रिंक पीकर उसे वापस फ्रीज में रख कर ड्राइंग रूम में आकर कुर्सी पर बैठ गई और सारी घटनाओं के बारे में सोचने लगी,,,, वजह सोच रही थी कि अच्छा ही हुआ कि आज दिन में शीतल के घर चली गई वरना शीतल का इतना बड़ा राज वह कभी अपनी आंखों से देख नहीं पाती जिसे आज तक वह कभी सपने में सोच भी नहीं सकती थी,,,

उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि जो कुछ भी उसकी आंखों ने देखा है वह सच है क्योंकि शीतल के बारे में इस तरह का सोचना भी पाप था क्योंकि शीतल बेहद मर्यादा सेल और संस्कारों से भरी हुई औरत थी क्योंकि यह बात पूरा समाज पूरी स्कूल जानता था और एक सहेली होने के नाते शीतल बहुत ही अच्छी तरह से निर्मला से अवगत थी लेकिन आज की दिन वाली घटना ने शीतल के ख्यालों को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया था उसे यकीन नहीं हो रहा था कि निर्मला इस तरह से चुदवाती है और तो और एक मां होकर अपने ही बेटे का लंड अपनी बुर में लेकर कितनी मस्ती के साथ चुदवा रही थी यह नजारा अपनी आंखों से देख पाना ही सीतल के लिए बेहद रोमांचकारी था,,, शीतल कुर्सी पर बैठे बैठे अपने आप से ही सवाल करते हुए बोली क्या सच में एक मां अपने बेटे से इस तरह से चुदवा सकती है क्या उसे जरा भी शर्म नहीं आई अपने बेटे के मोटे तगड़े लंड़ को अपनी नंगी बुर के अंदर लेने में और तो और पूरी तरह से एकदम नंगी होकर अपने बेटे के ऊपर चढ़कर इस तरह से चुदवाने में क्या निर्मला को बिल्कुल भी झिझक नहीं हुई,,,, अगर यह शीतल का मात्र ख्याल पर होता तो इसका जवाब शायद उसके पास नहीं था लेकिन यह हकीकत थी जिसे वह अपनी आंखों से प्रत्यक्ष रूप से देख चुकी थी और उसे अपने मोबाइल में कैद भी कर चुकी थी इस बात का ख्याल आते ही वह अपने पर्स से मोबाइल निकाल कर उस बेहतरीन जबरदस्त नजारे को एक बार फिर से अपने मोबाइल की स्क्रीन पर देखने लगी जिसमें निर्मला खुद अपने बेटे शुभम के मोटे तगड़े लंड पर अपनी बड़ी बड़ी गांड रखकर उसके लंड पर उछाल रही थी और जोर-जोर से गर्म सिसकारी भर ले रही थी,,,। शीतल मोबाइल पर निर्मला की रंगीन काली करतूत को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी क्योंकि वह जानती थी कि इसी के सहारे वह अपनी मंजिल को पा सकती हैं । शुभम के मोटे तगड़े लंड को अपनी भी बुर में लेकर वह तृप्त हो सकती है,,,, मोबाइल की स्क्रीन पर शीतल निर्मला के छिपे हुए चेहरे को देख कर यकीन नहीं कर पा रही थी कि यह वही निर्मला है जो कि बार-बार संस्कारों और मर्यादा में रहने की डींगए हांका करती थी,,, उसे वह दिन याद आ गया जब इसी तरह से एक दिन वह क्लास में शुभम के मोटे लंड को अपने मुंह में लेकर चूस रही थी और उसी समय निर्मला आ गई थी तो वह शीतल को कितना भला बुरा खरी-खोटी सुनाई थी शीतल निर्मला के इस व्यवहार से इतना शर्मिंदा हुई थी कि वह अपने आपकी नजरों में गिरती हुई महसूस कर रही थी आईने में अपने चेहरे से नजर नहीं मिला पा रही थी,,, लेकिन आज उसी मर्यादा सीन संस्कारों से भरी हुई औरत का नया रूप देखकर शीतल मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे महसूस हो रहा था कि अब वह शुभम से आराम से चुदवा सकती है और संभोग का भरपूर आनंद ले सकती है,,,, अब निर्मला और शुभम दोनों उसे अपनी मुट्ठी में आते हुए महसूस होने लगे थे उसे पक्का यकीन था कि इस वीडियो के जरिए और जो कुछ भी उसने अपनी आंखों से गरमा गरम नजारा देखा है उससे वह शुभम को पूरी तरह से अपना बना सकती हैं आप निर्मला को इसमें जरा भी दिक्कत नहीं होगी और ना तो उसे कोई परेशानी होगी,,,, क्योंकि वह अपनी इज्जत बचाने के लिए कुछ भी कर सकती हो और उसे ज्यादा कुछ तो करना नहीं था बस जो कुछ भी अपने बेटे के साथ कर रही थी वही क्रिया शुभम के द्वारा उसे अपने साथ करना था यह ख्याल मन में आते ही शीतल के चेहरे पर कामुक मुस्कान तैरने लगी,,,
NIRMALA kursi par bethinhuyi
लेकिन एक पक्की सहेली होने के नाते उसे इस बात का भी एहसास था कि वह ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जिससे निर्मला की इज्जत पर कोई आंच आए जो कुछ भी होगा वह बड़े आराम से संभाल लेगी,,,, इस बात का हुआ दृढ़ निश्चय करके मोबाइल में एक बार फिर से दोनों मां-बेटे की जबरदस्त चुदाई के दिल से देखकर पूरी तरह से कामुकता के ज्वर में जलने लगी और खुद ही अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर अपनी दो उंगली एक साथ अपनी गीली बुर में डालकर उसे अंदर बाहर करने लगी,,, शीतल का ड्राइंग रूम उसकी गर्म सिसकारी से गुजरने लगा,,,, और देखते ही देखते अपनी दो उंगली के द्वारा ही वह चरम सुख को प्राप्त कर ली,,,
धीरे-धीरे शाम ढलने लगी थी और निर्मला का मन काम में बिल्कुल भी नहीं लग रहा था वह अभी भी कुर्सी पर बैठकर दिन वाली बात के बारे में सोच रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें उसे इस बात का डर था कि सीतल कहीं किसी को भी इन दोनों मां-बेटे के रिश्ते के बारे में बता दी तो उन दोनों का क्या होगा वह तो जीते जी मर जाएगी समाज में जितना रुतबा इज्जत उसने कमाई है सब मिट्टी में मिल जाएगी स्कूल में हो सकता है नौकरी से भी हाथ धोना पड़े समाज में कितनी बड़ी बदनामी होगी यही बात सोच सोच कर उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था उसे कमजोरी महसूस हो रही थी वह उसी तरह से कुर्सी पर बैठी हुई थी,,
और दूसरी तरफ शीतल के मन में लड्डू फूट रहा था वह अपनी छत पर खड़ी होकर शुभम का घर से जाने का इंतजार कर रही थी क्योंकि वह ऐसा कुछ भी नहीं चाहती थी किसी से इस बारे में कोई भी बात हो जो कि निर्मला की इज्जत पर बन आए,,, वह जल्द से जल्द निर्मला से मिलना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि अपने बेटे से चुदवाते समय किसी गैर की नजरों में पकड़े जाने पर उसके सामने आने पर चेहरे का भाव किस तरह से बदलता है,,,, शीतल अपनी छत पर चहलकदमी करते हुए नीचे निर्मला के घर की तरफ देख रही थी कि तभी उसे शुभम घर से बाहर निकलता हुआ नजर आया उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उमड़ पड़े,,, वह अपने मन में सोचने लगी कि सुभम को देख कर उसके मासूम चेहरे को देख कर कोई भी यह नहीं सोच सकता की लड़का अपनी मां की चुदाई करता होगा,,,, थोड़ी ही देर में शुभम अपने घर से बाहर निकल कर सड़क पर जाने लगा,,, शीतल खुश होते हुए जल्दी-जल्दी अपनी सीढ़ी से नीचे उतर कर अपने घर से बाहर आ गई निर्मला के घर की तरफ चल दी,,,,

दरवाजे के बाहर खड़ी होकर वह डोर बेल बजाने लगी,,,
घंटी की आवाज सुनते ही निर्मला एकदम से डर गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इस वक्त दरवाजे पर कौन होगा क्योंकि अभी अभी तो शुभम घर से बाहर गया था तो इतनी जल्दी वापस लौट कर आने वाला देखा नहीं उसे यकीन हो गया कि हो ना हो दरवाजे पर शीतल ही खड़ी है उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अगर शीतल होगी तो वह कैसे उसे नजरे मिला पाएगी,,, उससे क्या कहेगी कि क्या सफाई देगी,,,, यह सोच सोच कर ही उसका बुरा हाल हुए जा रहा था बार-बार शीतल डोरबेल बजाई जा रही थी आखिरकार उसे शीतल का सामना तो करना ही था इसलिए वह अपना मन करत करके कुर्सी पर से खड़ी हुई और दरवाजे पर जाकर कुछ सोचने के बाद दरवाजा खोल दी उसके सोचने के अनुसार दरवाजे पर शीतल ही खड़ी थी लेकिन वह शीतल से नजरें नहीं बना पा रही थी सर मैं सी गाड़ी जा रही थी आखिरकार एक औरत उस औरत के सामने कैसे नजरे मिला सकती है जो कि उस औरत ने उसे अपने ही बेटे से एकदम नंगी होकर चुदवाते हुए देखा हो,,,
क्या हुआ इतनी देर क्यों लगी दरवाजा खोलने में मैं कब से घंटी बजाए जा रही हूं,,,
ककककक,,, कुछ नहीं बस थोड़ा सा आंख लग गई थी,,,,
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आंख लग गई थी लेकिन तुम तो पसीने से भीगी हुई हो क्या हुआ,,,
नहीं कुछ नहीं यूं ही थोड़ी तबीयत खराब लग रही थी थोड़ा चक्कर जैसा आ रहा था( निर्मला शीतल से नजरे मिलाए बिना ही इधर-उधर देखते हुए बोली।)
अब ऐसे काम करोगी तो चक्कर तो आएगा ही,,,
( शीतल के कहने के मतलब को निर्मला अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए कुछ बोली नहीं बस रोने लगी उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे,,,, निर्मला को इस तरह से रोता हुआ देखकर शीतल से रहा नहीं क्या हुआ जिंदगी में पहली बार निर्मला को रोते हुए देख रही थी इसलिए वह तुरंत अपनी साड़ी का आंचल थाम कर उसके आंसू को पोंछते हुए बोली,,,)
अरे अरे रो क्यों रही हो मैं कुछ कह थोड़ी रही हूं,,,,,
( लेकिन निर्मला के पास अब बोलने के लिए शब्द नहीं थे वह बहुत रोती जा रही थी वह शीतल के गले लग कर रोने लगी उसे शीतल बार-बार चुप कराने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह रोए जा रही थी,, निर्मला के आंखों से आंसू का इस तरह से निकलना शीतल के सामने पूरी तरह से समर्पण की भावना दर्शा रही थी जोकि उसकी आंखों से बहते हुए आंसू को देखकर शीतल समझ गई कि अब उठ पूरी तरह से पहाड़ के नीचे आ गया है,,, निर्मला रो रही थी लेकिन शीतल मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, आखिर वह प्रसन्न क्यों ना होती उसका सपना जो पूरा होने वाला था मर्दाना ताकत से भरा हुआ लंड उसे अब अपनी बुर में महसूस होने लगा था क्योंकि वह जानती थी कि निर्मला को अब बनाना कोई बड़ी बात नहीं है और नहीं मानी तो उसके पास उन दोनों का वीडियो तो है ही वह उंगली सीधी नहीं तो उंगली टेढ़ी करके भी अपना काम बना लेगी,,, शीतल शुभम से शारीरिक संबंध बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी यह उसके मन में आए इस ख्याल से प्रतीत हो रहा था,,, शीतल बार-बार निर्मला को चुप कराने की कोशिश कर रही थी लेकिन रंजना ठीक ही चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी,,, और निर्मला भी यही चाह रही थी कि किसी भी तरह से शीतल मान जाए और यह बात कमरे के बाहर ना जा पाए इसलिए वह चुप होने का नाम नहीं ले रही थी मुंह से तो शब्द निकल नहीं रहे थे इसलिए आंसू के जरिए ही अपना बयान शीतल को दे रही थी।)