शुभम की नजर अब तीन औरतों पर थी एक तो थी उसकी शीतल मैडम जिसकी मदहोश जवानी को वह एकदम करीब से देख पाया था उसकी मदहोश कर देने वाली खुशबू हर पल उसके बारे में सोचने से ही मादकता का एहसास दिलाती थी वह किसी भी हाल में शीतल से संभोग सुख प्राप्त करना चाहता था हालांकि उसे मंजिल दूर लग रही थी लेकिन नामुमकिन नहीं।अच्छी तरह से जानता था कि एक ना एक दिन शीतल को अपनी बाहों में लेकर उसकी भरपूर चुदाई का सुख भोगेगा।
Sheetal ki badi badi gol chuchiya
शीतल के साथ-साथ आप उसकी नजर उसकी पड़ोस की सरला चाची और उसकी बहू रुचि थी जिसे देखते ही उसके तन बदन में झंकार बजने लगे थे वह रुचि का केवल मुखड़ा ही देख पाया था और जाते समय उसके नितंबों का सीमित घेराव जिस पर नजर पड़ते ही उसे इस बात का आभास हो चुका था कि रुचि की मदहोश जवानी अभी तक पंखुड़ियों के भीतर ही छुपी हुई है वह पंख लेकर बाहर उड़ने के लिए तड़प रही है। और सरला चाची जिसकी परिपक्व जवानी का रस पीना चाहता था। उसके बड़े बड़े नितंबों को अपनी दोनों हथेली में भर कर उसे अपने लंड पर बिठाकर जवानी की शेर कराना चाहता था।अब उसके सामने सवाल ये था कि आप यह काम कैसे पूरा किया जाए और उसे उम्मीद थी कि वह अपनी मंजिल को जरूर प्राप्त कर लेगा क्योंकि अभी तक उसकी जिंदगी में सब कुछ अच्छा ही होता आ रहा था जो शुरुआत उसने अपनी मां के साथ संभोग करके शुरू किया था उस कारवा में अब तक उसकी तीनों मामी और बड़ी मामी की खूबसूरत लड़की के साथ साथ खुद उसकी बुआ जुड़ी हुई थी। और जब से उसकी मुलाकात सर लाचारी और उसकी बाहों से हुई थी तब से उसे लगने लगा था कि उसके कारवां में शीतल सरला और रुचि के भी जुड़ने की उम्मीद हो गई है। अब वह इसी ताक झांक में हमेशा लगा हुआ था।
आए दिन वह हमेशा जब भी चलना चाची को देखता था तो किसी ना किसी बहाने उनसे मुलाकात कर लेता था और आए दिन उनके छोटे-मोटे काम भी कर दिया करता था।अब तो ऐसा लगने लगा था कि सरला चाची जैसे खुद उत्सुक थी उससे अपना काम कराने के लिए क्योंकि जिस तरह का अनुभव शुभम के द्वारा उसे महसूस हुआ था उम्र गुजर गई थी उस तरह का अनुभव उसे कभी नहीं हुआ था शुभम की कही बातों की वजह से वह बरसों के बाद अपनी सूखी पड़ी बुर में नमी महसूस कर पाई थी उसे भी यह सब अच्छा लगने लगा था तभी तो वह दूसरे दिन से ही ब्रा और पैंटी पहनना शुरू कर दी थी और अब तो वह अपना कुछ ज्यादा ही ध्यान देती थी पहले वह साधारण रूप से तैयार होती थी लेकिन अब थोड़ा सा बदलाव लाई थी। और थोड़ा सा बदलाव लाने के बाद वह और ज्यादा सुंदर लगने लगी थी यह सब देख कर उसकी बहू खुद टोकते हुए बोलती थी कि।
वाह मम्मी अब तो तुम बहुत खूबसूरत लगने लगी हो क्या बात है।...
वह अपनी बाहों की बात सुनकर हंस देती थी और इतना कहती थी कि क्या मैं सजने सवरने लायक नहीं हूं क्या तो जवाब नहीं उसकी बहू यह कहकर उसका हौसला बढ़ा दी थी कि
क्यों नहीं मम्मी आप तो बहुत खूबसूरत लगती हो आजकल तो कितनी उम्र होने के बाद भी औरतें सजना सवरना नहीं छोड़ती लेकिन अभी तो आप मेरी बड़ी बहन जैसी लगती हो मैं भी यही चाहती थी कि आप सज संवर कर अच्छी तरह से रहे।
अपनी बहू की बातें सुनकर वह जवाब में मुस्कुरा देती थी।
उसकी जिंदगी में यह बदलाव शुभम के द्वारा आया था लेकिन फिर भी वह निर्मला के घर पर ताक झाक बनाए हुए थी। कोई और बात होती तो वह कब से भूल जाती लेकिन उसकी संका मां बेटे के बीच में अनैतिक संबंध को लेकर था इसलिए ना चाहते हुए भी उसके मन की उत्सुकता उसे बार बार उन दोनों पर नजर रखने को उकसा रही थी और वह लगातार उन पर नजर बनाए हुए थी इस बात से वाकिफ निर्मला अब कदम कदम पर बचकर चलती थी उसे इस बात का डर बराबर बना हुआ था कि कहीं उसके और उसके बेटे के बीच के संबंध के बारे में सरला को कुछ पता ना चल जाए।
दूसरी तरफ शीतल जो कि अपनी गलती के कारण अब हाथ मलने के सिवा उसके पास कोई दूसरा रास्ता ना होता देखकर वह बार-बार निर्मला से माफी मांगने की कोशिश कर रही थी लेकिन निर्मला थी कि उसकी तरफ जरा भी ध्यान नहीं दे रही थी। आखिरकार निर्मला भी एक औरत थी और एक औरत होने के नाते वा चित्र से जानती थी कि मर्दों का झुकाव हमेशा औरतों की तरफ बढ़ता ही रहता है भले ही उनकी झोली में दुनिया की सबसे हसीन औरत ही क्यों ना हो। इसलिए वह यही चाहती थी कि शीतल से वह और उसका बेटा जितना दूर रहेंगे उतना खुश रहेंगे और उतना ही निर्मला खुद निश्चिंत रहेगी। इसलिए शीतल के लाख कोशिश के बावजूद भी वह निर्मला से ना तो बात ही कर पा रही थी और ना ही उससे माफी मांग पा रही थी वह अंदर ही अंदर घुट रही थी।
हालांकि जब भी उसकी आंखों के सामने शुभम नजर आता था उसके अंदर के सारे दुख दर्द गायब हो जाते थे उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगती थी और यही हाल शुभम का भी था जब भी वह शीतल को देखता तो उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगती थी वह शीतल के मजबूत बदन को अपनी बाहों में भर कर उन्हें प्यार करने के लिए मचलने लगता था लेकिन अपनी मां की उपस्थिति में वह केवल नजरों से ही शीतल के सुंदरता का रसपान कर पा रहा था।
ऐसे ही एक दिन सीढ़ियों से उतरते समय शीतल की मुलाकात शुभम से हो गई और उसका दिल फिर से जोरो से धड़कने लगा क्योंकि उस समय सीढ़ियों पर दूसरा कोई नहीं था क्योंकि क्लास चालू था और किसी काम की वजह से शीतल ऊपर की तरफ जा रही थी और शुभम नीचे आ रहा था और दोनों की मुलाकात सीढ़ीयो के बीच हो गई दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे ....
Sheetal or Shubham sidhiyo par kuch is tarah se
क्या शुभम तू तो अब मुझ पर ध्यान ही नहीं देता क्या मैं तुझे खराब लगने लगी हूं या ....(इतना कहने के साथ है उसके चेहरे पर उदासी की लकीर साफ नजर आने लगी)
नहीं नहीं मैडम ऐसी कोई भी बात नहीं है। (शुभम उसके ब्लाउज में से झांकते दोनों कबूतरों को देखते हुए बोला)
नहीं ऐसी ही बात है तभी तो तू मुझे मैडम कह रहा है वरना मैं तुझे कितनी बार कहीं हूं कि तुम मुझे अकेले में शीतल बोला कर।
देखो शीतल तुम भी अच्छी तरह से जानती हो कि अभी हालात कुछ ठीक नहीं है मम्मी ने जिस दिन से हम दोनों को उस अवस्था में देखी है तब से वह मुझसे और तुमसे दोनों से खफा है इसलिए अभी हम दोनों का मिलना और मुश्किलें बढ़ा सकता है।
मैं जानती हूं शुभम मेरी गलती की वजह से हम दोनों आज इतनी दूर है वरना हम दोनों का मिलन अब तक हो चुका होता (शीतल तिरछी नजरों से शुभम के पेंट में बन रहे तंबू को देखते हुए बोली और उस तंबू को देखकर उसकी बुर कुल बुलाने लगी)
देखो शीतल अपने आप को दोषी मत ठहराओ जो होना था हो गया....
लेकिन मैं तो तुमसे दूर हो गई ना पहले तो मैं तुमसे बात भी कर लेती थी लेकिन अब वह भी मुश्किल होता जा रहा है। (शीतल बात तो कर रही थी शुभम से लेकिन उसकी नजरों पर अपनी नजर गड़ाए हुए थे क्योंकि वह अच्छी तरह से जान रहे थे कि शुभम उससे बात करते समय उसकी चूचियों को घूर घूर कर देख रहा था जो कि इस समय ट्रांसपेरेंट साड़ी में से साफ साफ नजर आ रही थी और यह देखकर वह खुश भी हो रही थी।)
देखो शीतल सब कुछ ठीक हो जाएगा बस सब्र करो मुझे भी तुमसे मिले बिना चैन नहीं मिलता लेकिन क्या करूं मजबूर हूं। (काफी समय बाद शीतल को अपने इतने करीब पाकर शुभम काफी उत्तेजित होने लगा था शीतल के बदन से उठ रही माधव खुशबू का अहसास शुभम को उत्तेजना के सागर में लिए जा रहा था वह अपने आप पर कंट्रोल नहीं कर पा रहा था और इसीलिए इतना बोलते समय वह एक कदम आगे बढ़ाकर शीतल के और करीब आने की कोशिश करने लगा और शीतल भी उसके बढ़ाए कदम को देखकर अपने चारों तरफ नजर दौड़ाते ही तुरंत उसे अपनी बाहों में कस ली और बिना एक पल गांव आए ही अपने होठों को उसके होठों पर रखकर चूसना शुरू कर दी .. शीतल के मन में और उसके बदन में अजीब सी भावनाएं उठ रही थी कि एक शिक्षिका होने के बावजूद स्कूल के अंदर वह एकांत पाकर शुभम के सामने वह अपनी भावनाओं पर बिल्कुल भी काबू नहीं कर पाई थी और इसी के चलते वह उसे अपनी बाहों में लेकर लोक लाज शर्म सब कुछ त्याग कर उसके होठों का रसपान कर रही थी शीतल की इस कामुक हरकत की वजह से शुभम के तन बदन में आग लग गई थी और वह भी तुरंत शीतल के मजबूत खूबसूरत बदन को अपनी बाहों में करते हुए अपनी दोनों हथेलियों को पीठ पर से फीसलाते हुए नीचे की तरफ लेकर आया और तुरंतअपनी दोनों हथेलियों में जितना हो सकता था उतना साड़ी के ऊपर से ही सीतल की मत मस्त बड़ी बड़ी गांड को भर कर दबाना शुरू कर दिया रुई से भी नरम मुलायम गांड को अपनी हथेली भरकर दबाते हुए शुभम पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था और उसके पेंट में तुरंत तंबू बन गया था जो कि इस समय उसकी ठोकर शीतल को अपनी टांगों के बीच अपनी रसीली फूली हुई बुर के ऊपर बराबर हो रही थी जिसका अहसास होते ही उसकी बुर ने समर्पण की भावना के अधीन होकर अपनी बुर में से मधुर रस की दो बूंदे नीचे टपका दी जो कि उसके बदन की स्वीकृति थी।
करीब-करीब केवल दोनों के मिलन मैं अभी 1 मिनट भी नहीं हुआ था कि सीढ़ियों पर किसी के कदमों की आहट सुनते ही दोनों फिर से अलग हो गए ना तो शीतल ही उसे अपनी बाहों से अलग करना चाहती थी और ना ही शुभम शीतल को अपने से जुदा करना चाहता था लेकिन मजबूरी थी दोनों अलग हो गए और अपने अपने रास्ते पर चलते बने लेकिन दोनों पीछे पलट कर एक दूसरे को देखने लगे जोकि शुभम तो काफी खुश नजर आ रहा था लेकिन इस बिछड़ने के पल की वेदना शीतल की आंखों में साफ नजर आ रही थी। वह भारी मन से अपने रास्ते चली गई और शुभम अपने रास्ते शुभम को इस बात से राहत थी कि मौका मिलते ही जब चाहे तब शीतल के खूबसूरत बदन कुआं भोग सकता था लेकिन खासा मेहनत उसे सरला चाची और उसकी बहू को पाने में करनी थी इस बात का अंदाजा उसे अच्छी तरह से था इसलिए वह अपने काम में जुटा हुआ था।
आए दिन वह छत पर टहलने के लिए चला जाया करता था जहां से सरला चाची की छत आपस में जुड़ी हुई थी और एक दूसरे की छत पर बिना अड़चन के आया जा सकता था । क्योंकि छत पर ढेर सारे कपड़े हमेशा सूखने के लिए तंगी रहते थे और वह चित्र से जानता था कि उन्हें लेने के लिए सरला चाची या उनकी बहू जरूर आएगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा था।
वह रोज छत पर इसी तरह से टहलने के लिए चला जाया करता था कि उन दोनों का दीदार हो जाए और उनसे बातें करके कुछ रास्ता निकले लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा था एक दिन ऐसे ही वह छत पर टहल रहा था उसे उम्मीद थी कि आज सरला चाची जरूर कपड़े उतारने के लिए आएगी। वह ईसी ताक में इधर से उधर छत पर टहल रहा था। कि तभी उसे सरला चाची की बहू रुचि नजर आ गई जोकि आते ही कपड़े उतारने लगी रस्सी पर टंगे हुए सारे कपड़ों को एक-एक करके उतार कर संभाल कर रख रही थी मौका देख कर शुभम तुरंत रुचि के करीब गया। उसका कसा हुआ और सीमित पिछवाड़ा देखकर वह एकदम पागल हो गया था।
अब तक कई औरतों के संगत और उनसे संभोग के कारण वह काफी परिपक्व हो चुका था और खास करके औरतों के मामले में तो कुछ ज्यादा ही परित कहो गया था उनसे बात करने का ढंग से किया था उन्हें कैसे अपनी बातों के जादू में उलझाना है यह उसे अच्छी तरह से आने लगा था इसलिए वह रुचि के करीब पहुंचते ही बोला।
और भाभी क्या कर रही हो...
(यू एकाएक आवाज सुनते ही रुचि एकदम से डर गई और चौक ते हुए बोली।)
बाप रे तुम तो मुझे डरा ही दिया इस तरह से कोई बोलता है क्या।
मैं तो इसी तरह से बोलता हूं।
अरे मेरा मतलब है अपने आने का कुछ तो आहट देते मैं तो डर ही गई कि यह कौन सी बला टपक पड़ी। (रुचि रस्सी पर से कपड़ों को उतारते हुए बोली।)
अच्छा भाभी तो मैं आपके लिए बला हो गया। (शुभम रुचि के सामने तकरीबन 3 _ 4 की फीट की दूरी पर रस्सी पकड़कर खड़े होते हुए बोला)
इस तरह से आकर किसी को डर आओगे तो वह तुम्हें बला ही कहेगी।
अच्छा चलो कोई बात नहीं बला ही सही...(शुभम रुचि के खूबसूरत चेहरे को देख रहा था रुचि किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी पतली सी काया चर्बी ओ का नामोनिशान नहीं था चर्बी उतनी ही थी जितनी की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे ब्लाउज में कैद दोनों कबूतर अभी खा पीकर बड़े नहीं हुए थे लेकिन इतने बड़े तो हो ही गए थे कि हवा में उड़ सके जिन्हें देखकर शुभम को ऐसा लग रहा था कि जैसे भाभी ने हथेली में आ सके उतने साइज के संतरे अपनी ब्लाउज में कैद करके रखे हो. होठों की लालीमां बदन के लहू की तरह लग रही थी.. जिसे शुभम अपने होंठों में भर कर पीना चाहता था... कलाइयों में लाल रंग की चूड़ी बेहद खूबसूरत लग रही थी और उससे भी ज्यादा खूबसूरत चूड़ियों की खनक से उठ रही मधुर ध्वनि की थी जो कि उसके कानों में मादकता का एहसास दिला रही थी। शुभम रुचि की खूबसूरती के रसपान करने में इतना खो गया कि वह एकटक बस उसे ही देखे जा रहा था और रुचि सुभम की इस हरकत से शर्मा आ रही थी। इसलिए वह बोल दी।)
ऐसे क्या देख रहे हो?
(रुचि की बात सुनते ही शुभम हड़बड़ाते हुए बोला)
ककककक... कुछ नहीं बस यह देख रहा हूं कि मेरे बगल में इतनी खूबसूरत औरत है और मेरी नजर उस पर पड़ी ही नहीं। (शुभम अपनी बातों का जाल बुनता हुआ बोला। शुभम की ऐसी बातें सुनते ही रूचि एकदम से जीत गई वह रस्सी पर से कपड़े उतारते उतारते वैसे ही खड़ी रह गई उसे समझ में नहीं आया कि यह शुभम ने क्या कह दिया वह आश्चर्य से शुभम की तरफ देखने लगी तो शुभम अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।)
क्यों क्या हुआ ऐसे क्यों देख रही हो मैं जो कुछ भी कह रहा हूं एकदम सच कह रहा हूं मेरी बातों में इतनी सी भी झूठा पर नहीं है एक एक शब्द शतप्रतिशत खरा है...
Ruchi kapde rassi par se utarte huye
ऐसे मत कहो कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा...(रुचि अपने चारों तरफ नजर दौड़ आते हुए बोली जिसका मतलब एकदम साफ था कि शुभम की कही बातें उसे अच्छी लग रही थी..)
मुझे तुम पागल समझी हो क्या कि मैं किसी के सामने तुम से ऐसी बातें कहूंगा मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि घर में बहू की क्या मर्यादा होती है इसलिए मैं दुनिया की नजरो से बचकर तुमसे यह बात कह रहा हूं अगर मेरी बात से तुम्हें जरा भी दुख पहुंचा हो या बुरा लगा हो तो मैं माफी चाहता हूं (शुभम जानबूझकर हाथ जोड़कर माफी मांगते हैं बोला।)
नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है । देखो मुझे इस तरह की बातें पसंद नहीं अगर मम्मी जी आ गई और इस तरह की बातें करते हुए सुन ली तो क्या कहेंगी।
चलो कोई बात नहीं अगर तुम्हें इस तरह की बातें पसंद नहीं है तो मैं अब कभी नहीं कहूंगा लेकिन जो मैंने कहा वह बिल्कुल सच है तुम बहुत खूबसूरत हो।
(इस बार रुचि के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई और वह मंद मंद मुस्कुराने लगी उसकी मुस्कुराहट में भी एक अद्भुत आकर्षण था जिस के आकर्षण में शुभम पूरी तरह से बंधता चला जा रहा था। रुचि को हंसता हुआ देखकर शुभम तुरंत बोला ।)
तुम हंसती मतलब कि तुम्हें मेरी बात अच्छी लग रही है और वैसे भी कही हुई सच्ची बात हमेशा अच्छी ही लगती है यह बात तुम भी अच्छी तरह से जानती हो।
चलो सब बात छोड़ो तुम मुझे यह बताओ कि यहां क्या करने आए हो। (रुचि उसी तरह से अपने स्थान पर खड़े होकर बोल रही थी वह रस्सी से कपड़े उतारना भूल चुकी थी ऐसा लग रहा था कि उसे भी शुभम का यह साथ अच्छा लग रहा है इसलिए तो वह उसी तरह से खड़े होकर उससे बातें कर रही थी।)
कुछ नहीं बस ऐसे ही छत पर डाल रहा था थोड़ा व्यायाम कर रहा था। और तुमको देखा तो सोचा चलो अपनी भाभी से थोड़ी गपशप कर लिया जाए वैसे भी मैं पहली बार तुमसे मिल रहा हूं जबकि हम दोनों इतने पास में रहते हैं फिर भी।
अच्छा तो जनाब मुझसे मिलने आए हैं और तुम व्ययाम करते हो लगता तो बिल्कुल भी नहीं है कि तुम व्यायाम करते हो.. ( रुचि शुभम को ऊपर से नीचे की तरफ देखते हुए बोली।.... रुचि की बात सुनकर शुभम को यही सही मौका लगा अपना खूबसूरत और गठीला बदन दिखाने के लिए ... क्योंकि यह बात शुभम अच्छी तरह से जानता था कि औरतें हमेशा गठीले बदन को पसंद करती हैं उन्हें हट्टी कट्टी चौड़ी और मजबूत शरीर वाले मर्द पसंद होते हैं और वह उनके प्रति आकर्षित भी होती हैं। और शुभम को अपनी जवान मजबूत बदन पर भरोसा और विश्वास दोनों था वह अच्छी तरह से जानता था कि अगर वह किसी तरह से अपनी चौड़ी छाती खूबसूरत शरीर को वह रुचि को दिखा दे तो रुचि उसके प्रति आकर्षित हो जाएगी और रुचि कि कहीं बात का फायदा उठाते हुए बिना एक शब्द बोले वह तुरंत अपनी टीशर्ट को ऊपर की तरफ करते हुए बोला।)
तुम्हें विश्वास नहीं होता ना रुको रुको मैं बताता हूं कि मैं व्ययाम करता हूं कि नहीं...(शुभम को अपनी टीशर्ट निकालता हुआ देखकर वह उसे रोकते हुए बोली।)
अरे अरे अरे यह क्या कर रहा है अरे मत निकाल टीशर्ट कोई देखेगा तो क्या कहेगा ...(रुचि अपने चारों तरफ नजर दौड़ते हुए बोली।.. वह अपनी बात पूरी कर पाती इससे पहले ही फुर्ती दिखाते हुए शुभम अपनी टीशर्ट निकाल दिया और टीशर्ट निकालते ही वह दोनों हाथ फेरते हुए अपने बदन को रुचि को दिखाते हुए बोला..)
लो देख लो भाभी क्या मैं झूठ कह रहा था ।
(रुचि अभी भी इधर उधर देख ले रही थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई यह देखकर कुछ भी कहे लेकिन चारों तरफ देखने के बाद वह जब सुभम की तरफ नजर दौड़ाई तो वह उसे देखते ही रह गई.... मजबूत शरीर आकर्षक चेहरा चौड़ी छाती चर्बी का नामोनिशान नहीं एकदम किसी हीरो की तरह उसका बदन एकदम फिट देखकर रूचि के तन बदन में एक अजीब सी हलचल होने लगी उसके मन के कोने के साथ-साथ उसकी टांगों के बीच भी झंकार बजने लगी जैसे मर्दे कि वह कल्पना करते आ रहे थे उस कल्पना को साक्षात रुप शुभम देता हुआ नजर आ रहा था वह उसे एकटक देखती ही रह गई । शुभम के लाजवाब और मजबूत शरीर को देखकर उसे अपना पति याद आ गया जिसके पतले शरीर की ओट में वह अपनी जवानी पिघला नहीं पा रही थी उसकी कमजोर भुजाओं में अपनी प्यास नहीं बुझा पा रही थी इस दौरान उसकी नजर उसके पैंट में बने हल्के से तंबू की तरफ गई जो कि हल्का सा उठा हुआ था जो इस बात को साबित कर रहा था कि शुभम रुचि के संदिग्ध में उत्तेजित हुआ जा रहा था रुचि शुभम के पेंट में बने हल्के से उठाव को देखकर उत्तेजित होने लगी उसकी टांगों के बीच पेंटी के अंदर हलचल होने लगी। वह शुभम की खूबसूरत बदन को देखती ही जा रही थी कभी चौड़ी छाती को देखती तो कभी पेंट में बने उभार को देखती रहती जोकि हल्का-हल्का ऊठ रहा था यह देख कर रुचि शर्म से लाल हो गई उसके गालों पर सूर्ख लालिमा छाने लगी।
दूर आसमान में सूरज ढल रहा था जिसकी पीली रोशनी छत पर बिक्री हुई थी और पीली रोशनी में रुचि का खूबसूरत बदन सोने की तरह चमक रहा था और साथ ही शुभम की नंगी छाती मर्दाना ताकत को उजागर कर रही थी रुचि तो शुभम को देखती रह गई उस पर से नजर हटाने का उसका मन नहीं हो रहा था वह उसी तरह से रस्सी पकड़े खड़ी होकर शुभम की जवानी भरे बदन को देख रही थी।
शुभम भी जानबूझकर उसी तरह से खड़ा था वह अच्छी तरह से जानता था कि रुचि की नजर उसके पैंट में बने उभार पर भी चली जा रही थी जिससे शुभम भी अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव कर रहा था और वह इस पल को जी लेना चाहता था इसलिए अपने बदन को ढकने की बिल्कुल भी दरकार नहीं ले रहा था रुचि ही इस तंद्रा को भंग करते हुए बोली।
बस बस शुभम टी शर्ट पहन ले मैं अच्छी तरह से समझ गई हूं कि तू बहुत कसरत करता है तभी तेरा बदन इतना गठीला हो गया है। (रुचि के मुंह से अपने बदन की तारीफ सुनकर शुभम पूरी तरह से गदगद हो गया हुआ अच्छी तरह से समझ गया कि थोड़ी सी और मेहनत करने पर रुचि उसके जाल में आ जाएगी। इसलिए वह खुद रस्सी पर से कपड़ों को उतारते हुए रुचि को दबाने लगा और रुचि भी शुभम की मदहोश जवानी के आकर्षण में आकर्षित होते हुए उसके हाथ से कपड़े ले रही थी।
भाभी तुम रोज शाम को इसी तरह से कपड़े उतारने आती हो।...
क्या कह रहा है तू तुझे जरा भी अंदाजा है।
(रुचि की बात सुनकर वह अपने कहे गए शब्दों पर ध्यान देता हुआ बोला।)
मुझे माफ करना मेरा मतलब वह नहीं था मैं कहना चाहता हूं कि तुम इसी तरह से रस्सी पर से सूखे हुए कपड़े उतारने आती हो।(शुभम रस्सी पर से रुचि की साड़ी को उतारते हुए बोला... और रूचि भी शुभम की हड़बड़ाहट देख कर मुस्कुराते हुए बोली।)
हां मेरा तो काम ही यही है मैं रोज इसी तरह से शाम को रस्सी पर से सूखे हुए कपड़े इकट्ठे करके वापस ले जाते हैं क्यों कोई काम है क्या।
नहीं काम तो नहीं है बस तुमसे मुलाकात होती रहेगी तो मुझे भी अच्छा लगेगा। (शुभम साड़ी को रुचि के हाथों में थमाते हुए बोला।)
लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगेगा तुम्हारी इस तरह की मुलाकात के बारे में अगर मम्मी जी को पता चल गया तो वह क्या समझेंगी।
अरे कुछ नहीं समझेंगी मैं सब संभाल लूंगा...(इतना कहते हुए शुभम रस्सी पर से रुचि की सूखी हुई पेटीकोट को उतारने लगा जो कि यह देखकर रुचि शर्मिंदा होने लगी लेकिन वह कुछ कह पाती इससे पहले ही वह रस्सी पर से पेटिकोट उतार कर रुचि को थमाने लगा लेकिन तभी पेटिकोट के नीचे रखी हुई जोकि रुचि ने खुद अपने हाथों से सूखने के लिए रखी थी वह पैंटी और ब्रा हाथ से छूट कर नीचे गिर गई। जिस पर नजर पड़ते ही रूचि एकदम से हड़बड़ा गई लेकिन वह कुछ कह पाती इससे पहले ही शुभम नीचे झुक कर उसे अपने हाथों में उठा लिया और अपने दोनों हाथ में उसे पकड़ कर रुचि को थमाने लगा जो कि रुचि तुरंत अपना हाथ आगे बढ़ाकर एक झटके से शुभम के हाथ में से अपनी ब्रा और पेंटी को खींचकर कपड़ों में छुपा ली और हंसते हुए वहां से चली गई... शुभम पूरी तरह से उसकी खूबसूरती के आकर्षण में जकड़ चुका था उसे इस बात का अंदाजा बिल्कुल भी नहीं था कि वह नीचे झुककर जिससे कपड़े को उठा रहा है वह रोजी की पैंटी और ब्रा थी जब इस बात का एहसास उसे हुआ तो वह पूरी तरह से उत्तेजित हो गया कि रुचि के खूबसूरत बदन को ढकने वाले अंग वस्त्र जो कि वह उसके बदन से लिपटे हुए रहते थे उन कपड़ों को अपने हाथों में उठाया था इस बात का एहसास उसे पूरी तरह से उत्तेजित कर गया और जो उधार उसकी पेंट में हल्का सा उठा हुआ था वह पूरी तरह से तंबु बन गया।
रुचि जिस तरह से उसके हाथ से अपनी ब्रा और पेंटी को छीन कर हंसते हुए गई थी उसे देखते हुए शुभम को इस बात का अंदाजा लग गया कि उसके जाल में एक और नई चिड़िया फंसने वाली है बस अब दाना डालने की जरूरत है। रुचि से बात करता हुआ पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था। पेंट में उसका लंड पूरी तरह से तन कर खड़ा हो गया था अब उसको शांत करना उसके लिए बेहद जरूरी हो गया था और वह तुरंत अपने कमरे में गया जो कि वह अच्छी तरह से जानता था कि इस समय उसकी मां बाजार से सब्जी लेने गई थी।
वह अपने कमरे में जाते ही दरवाजा बंद करके एकदम नंगा हो गया और रूचि के खूबसूरत बदन की कल्पना करते हुए अपने लंड को हिलाने लगा और तब तक हिलाता रहा जब तक की रुचि के नाम से उसके लंड ने पानी नहीं फेंक दिया।........