हम अपनी किताब खुद ही लिख कर पढ़ लेते है और प्रेक्टिकल भी कर लेते है। हम कोई जरूरत ना है मानू की किताब की। ये किताब akki and party के लिए ही ठीक है।वो किताब तो अमेज़न पर बेस्ट सेल्लिंग होगी.....................आप जर्रूर पढ़ना वो किताब...............ताकि अपनी पत्नी को खुश रख सको.........
.................तुम सब Akki ❸❸❸ सबसे बीच में............. journalist342 दाईं तरफ Abhi32 पीछे Lib am बाईं तरफ ........... तुम सब ऐसे बैठे होंगे..................... ................... |
Sangeeta Maurya ji main toh sabse aage baitha hu... Taki aap mujhse sabse pehle sawal kre..._______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
एक जर्रूरी सूचना उन लोगों के लिए जो मुझे जानते हैं मगर फिर भी मेरी लिखी पहली कहानी उन्होंने अभी तक नहीं पढ़ी............................अगर मेरी कहानी पढ़ कर रिव्यु नहीं दिया तो तुम सब से कट्टी..................कहानी का लिंक पाने के लिए मुझे मैसेज करो......................जिस जिस ने मेरी कहानी नहीं पढ़ी उन सब को मेरी अगली कहानी पढ़ने को नहीं मिलेगी...............बताये दे रही हूँ Akki ❸❸❸ तू जरा रिस्ट्रिक्टेड़वा से बोल की उसने अभी तक रिव्यु क्यों नहीं दिया...................और भी जितने तेरे दोस्त मित्र हैं सबसे कह की वो मेरी कहानी पढ़ें और रिव्यु थ्रेड में रिव्यु दें वरना तेरी शादी नहीं करवाऊंगी
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Rockstar_Rocky जी....................अगली अपडेट दे कर जल्दी से मेरे सर पर से बोझ उतारो ताकि मैं इत्मीनान से जी सकूँ......................यूँ डर डर कर मैं नहीं जी सकती
बहुत ही बढ़िया अपडेट है
Sorry site open nahi ho rahi thi aaj abhi open Hui h to ab post pad kar reply de Raha hu VPN se bhi nahi chali opera use Kiya usme bhi nahi chali ...........
जोश जोश में किया काम भारी पड़ गया और अपने और संगीता ने सारा दोष स्तुति पे मड़ दिया करे कोई और भरे कोई और ये तो गलत है वो तो अभी ना समझ ही नही तो आपकी तो पोल खुल जाती
Rockstar_Rocky जी....................अगली अपडेट दे कर जल्दी से मेरे सर पर से बोझ उतारो ताकि मैं इत्मीनान से जी सकूँ......................यूँ डर डर कर मैं नहीं जी सकती
चलो रात गई बात गई, अब ये बताओ Sangeeta Maurya की फरमाइश वाला अपडेट कब आएगा जिसको ना देने के लिए उन्होंने हाथ जोड़ लिए है। अब पढ़ना ही पड़ेगा की ऐसी क्या फरमाइश कर दी है उन्होंने।
Ek lekhak hokar aisi baat, unbelievable
Kitabo ka mukabla tv mobile se kbhi nhi ho sakta
Likhe hue ko pdte smay hum imagination karte h , jo ki ek khas anubhav h
Stuti ki traf se sirf jethiya wala h
Upar wla meri traf se
Stuti gali nhi degi
मुझे ऐसा क्यों लग रहा है Rockstar_Rocky की आपकी अगली स्टोरी का टाइटल हो सकता है
शादीशुदा जिंदगी को खुशहाल बनाने के मानू भैय्या के तरीके
इतनी मेहनत से टाइम निकाल कर कहानी लिखी मगर कुछ प्यारे लोगों को छोड़ कर किसी ने कहानी पढ़ी ही नहीं....................न ही रिव्यु दिया.................सब के सब डरपोक हैं....................यहाँ तक की एडमिन.....मोड्स....सूमोस.....सब के सब डर गए कुछ कहने से......................यहाँ तक की मैसेज कर के लोगों से कहानी पढ़ने को कहा मगर वो तरीका भी नाकामयाब रहा..............बस इसी सब में व्यस्त थी.................इसलिए तेरे से बात नहीं हो पाई...............जब समय मिला तो मैंने तुझे ख़ास कर मीम में टैग कर याद दिलाया..............यहाँ बुलाया जिस पर तूने कोई प्रतिक्रिया दी ही नहीं................फिर भी सारा दोष मेरे सर मढ़ दिया................ और मेरे हिस्से का आधे से ज्यादा प्यार लेखक जी को दे दिया................वाह बेटा वाह
ये तो मैं जानती ही हूँ की अक्कीवा और रिस्ट्रिक्टेड़वा..............दोनों मिल कर मुझे बुध्दू बना रहे हैं............................दोनों बड़े चंट हैं
आखिर तूने खुद ही ये साबित कर दिया की तुम दोनों शैतान मिले हुए हो................... .................... जा कर रिस्ट्रिक्टेड़वा से कह दे की अगर उसने मेरी लिखी कहानी पर रिव्यु सेक्शन में रिव्यु नहीं दिया तो मैं उससे कभी बात नहीं करूंगी और अगर तूने ये संदेसा रिस्ट्रक्टिव तक नहीं पहुंचाया तो तुझसे भी बता नहीं करुँगी
वो किताब तो अमेज़न पर बेस्ट सेल्लिंग होगी.....................आप जर्रूर पढ़ना वो किताब...............ताकि अपनी पत्नी को खुश रख सको.........
_______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________@Rockstar_Rocky जी........................कब दे रहे हो अपडेट?????????????? इतना तड़पाना अच्छी बात नहीं
हम अपनी किताब खुद ही लिख कर पढ़ लेते है और प्रेक्टिकल भी कर लेते है। हम कोई जरूरत ना है मानू की किताब की।ये किताब akki and party के लिए ही ठीक है।
Waiting for next update mitr …
Shandar update with full of masti by bap beta beti and one more beti .इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 17
अब तक अपने पढ़ा:
शादी की सालगिरह के बाद दिन ऐसे बीते की संगीता का जन्मदिन नज़दीक आ गया| मैं उस दिन के लिए कोई खुराफाती आईडिया सोचूँ, उससे पहले ही संगीता ने मुझे चेता दिया; "खबरदार जो आपने इस बार आपने मेरे जन्मदिन वाले दिन मुझे जलाने के लिए कोई काण्ड किया तो! मुझे मेरे जन्मदिन पर क्या चाहिए ये मैं बताऊँगी!" आगे संगीता ने जो माँग रखी उसे सुन कर मेरे तोते उड़ गए!
अब आगे:
संगीता: मुझे न...वो ट्राय (try) करना है!
संगीता शर्म से सर झुकाते हुए अपनी साडी का पल्लू अपनी ऊँगली पर लपेटते हुए बोली|
मैं: क्या ट्राय करना चाहती हो?
मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा| संगीता ने जब 'ट्राय' करने की बात कही तो मैं समझ गया की जर्रूर संगीता का मन जरूर कुछ नया करने का है मगर क्या ये मैं समझ नहीं पा रहा था|
संगीता: वो...
संगीता नजरें झुकाये हुए बोली और फिर अपनी बात अधूरी छोड़ कर अपने पॉंव के अँगूठे से फर्श कुरेदने लगी| संगीता को इस तरह लजाते हुए देख मैं समझ गया की जर्रूर कोई खुराफात संगीता के मन में पक रही है!
मैं: कुछ बताओ भी?
मैंने जिज्ञासु होते हुए पुछा|
संगीता: वही...
संगीता शर्माए जा रही थी और बातों को गोल-गोल घुमाने की कोशिश कर रही थी| घुमा-फिरा कर बात कहना कोई इन औरतों से सीखे!
संगीता: वही!
संगीता ने अपनी आँखें गोल नचाते हुए कहा| संगीता की इस बात में मैंने शरारत भाँप ली थी, लेकिन उसके बात साफ़-साफ़ न कहने से मैं बेसब्र हुआ जा रहा था|
मैं: यार साफ़-साफ़ बोलो न क्या चाहिए?
मैंने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा, आखिर एक आदमी कब तक जलेबी सी गोल बात को समझने की कोशिश करता?! मुझे बेसब्र देख संगीता ने अपने फ़ोन में कुछ टाइप किया और फ़ोन मेरी तरफ घुमा दिया|
“Fifthbase” (ANAL SEX) संगीता के मोबाइल में लिखे इन शब्दों को पढ़ मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं! मोबाइल में ये शब्द पढ़ कर जब मैंने संगीता की तरफ देखा तो वो लाजवंती बनी सर झुकाये खड़ी थी!
मैं: ये...तुम्हें...ये ट्राय करना है?
मैंने लड़खड़ाती हुई जुबान से संगीता से प्रश्न किया| मेरा सवाल सुन संगीता ने नजरें उठाईं और मेरी नजरों से मिलाते हुए बोली;
संगीता: हाँ!
इस एक शब्द को कहते हुए संगीता के दोनों गाल लालम-लाल हो चुके थे| शर्म की ये लालिमा हर पल बढ़ रही थी और संगीता के पूरे चेहरे को अपनी गिरफ्त में ले रही थी|
संगीता की ये माँग सुन कर मैंने अपना सर पीट लिया और कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगा| मुझे शुरू से ही सम्भोग के इस प्रकार से नफरत रही है, कारण है स्त्री के दूसरे द्वार को भेदन के समय उसे होने वाला दर्द असहनीय होता है| अब मुझे तो संगीता के चेहरे पर हलकी सी दर्द की लकीर देख कर ही चिंता होने लगती थी तो मैं भला इस 'काम' को करने के बारे में सोचना भी नहीं चाहता था| दूसरी बात ये की मुझे इस क्रिया से शुरू से ही घिन्न आती थी तो मैं स्वार्थी हो कर ये क्रिया करना ही नहीं चाहता था|
वहीं संगीता ने जब मेरी ये प्रतिक्रिया देखि तो उसने सोचा की गया उसका प्लान पानी में इसलिए संगीता ने मुझे मनाने के लिए अपने तर्क लगाने शुरू कर दिए;
संगीता: पति-पत्नी के जीवन में कुछ न कुछ नयापन अवश्य होना चाहिए वरना दोनों जल्दी ही ऊब जाते हैं|
मैं संगीता की सारी होशियारी जानता था इसलिए मैंने संगीता को अपनी बातों में उलझा कर भर्मित करने की सोची;
मैं: तो क्या तुम मुझसे ऊब चुकी हो?
मैंने भोयें सिकोड़ कर संगीता की बात बीच में काटते हुए कहा| मेरे पूछे इस सवाल से बेचारी संगीता हड़बड़ा गई और बोली;
संगीता: नहीं-नहीं, मेरा वो मतलब नहीं था| आप मुझे गलत समझ रहे हो, मेरा कहने का मतलब था की हमारे प्रेम-मिलाप के समय हमें कुछ न कुछ नया ट्राय करते रहना चाहिए!
संगीता अपनी बात को स्पष्ट करते हुए बोली|
मैं: क्या जर्रूरत है कुछ नया लाने की, सब कुछ ठीक से चल तो रहा है?!
मैंने संगीता को उलझाने के लिए उसकी कही बात को खींचना चाहा|
संगीता: सब ठीक चल रहा है मगर मैं कुछ नयापन चाहती हूँ!
संगीता चिढ़ते हुए बोली क्योंकि मैं उसे उसकी बात पूरी करने ही नहीं दे रहा था|
संगीता: आप ही ने मुझे पोर्न देखने की आदत लगाई थी न, उन्हीं दिनों मैंने 'ये' वाला पोर्न भी देखा था और अब मुझे ये ट्राय करना है!
संगीता नाराज़ होते हुए बोली| संगीता ने बड़ी चालाकी से अपनी ये इच्छा पैदा होने का सारा दोष मेरे सर पर मढ़ दिया था| मैं ये तो जानता था की संगीता को पोर्न देखना सीखा कर मैंने अपने ही जीवन में एक बम प्लांट कर दिया है जो टिक-टिक कर कभी न कभी मेरे मुँह पर ही फटेगा मगर ये बम इतनी जोर से फटेगा की मेरी ही फटने लगेगी इसका मुझे नहीं पता था!
अब जब सारा दोष मेरे सर मढ़ा जा चूका था तो समय था संगीता को प्यार से समझाने का;
मैं: जान समझने की कोशिश करो, मुझे 'वो' पसंद नहीं!
मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही संगीता मेरी बात काटते हुए बोली;
संगीता: आपने आजतक कभी 'वो' ट्राय किया है?
संगीता भोयें सिकोड़ कर मुझसे बोली, मैंने तुरंत अपनी गर्दन न में हिलाई|
संगीता: तो फिर एक बार ट्राय करने में क्या हर्ज़ है?
संगीता थोड़ा चिढ़ते हुए बोली|
मैं: क्योंकि इट विल बी वैरी पेनफुल फॉर यू एंड आई कांट सी यू इन पैंन! (It will be very painful for you and I can’t see you in pain!)
मैंने एकदम से अपनी भड़ास निकालते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता के चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान आ गई क्योंकि वो जानती थी की मेरे उसे बार-बार मना करने का कारण क्या है?! उसे बस मेरे मुँह से यही बात सुननी थी|
संगीता: जानू, मुझे कुछ नहीं होगा! थोड़ा बहुत दर्द तो होता ही है न?!
संगीता ने मुझे प्यार से समझाना चाहा और बात को बड़े हलके में लिया|
मैं: थोड़ा नहीं, बहुत दर्द होगा!
मैंने भोयें चढ़ाते हुए कहा|
संगीता: नहीं होगा! मैंने सारी रिसर्च कर रखी है| मुझे सब पता है!
संगीता बड़े आत्मविश्वास से बोली| मैं अपनी कोई दलील देता उससे पहले ही संगीता मुझे हुक्म देते हुए बोली;
संगीता: आई वांट माय बर्थडे प्रेजेंट एंड यू आर गोइंग तो गिव इट टू मि! (I want my birthday present and you are going to give it to me!)
संगीता मुझे हुक्म देते हुए बोली और उठ कर चली गई| वो मुझसे नाराज़ नहीं थी बस अपनी जिद्द पर अड़ी थी|
मैं संगीता की जिद्द को जानता था, वो एक बार अपनी जिद्द पर अड़ जाती थी तो फिर पीछे नहीं हटती थी|
'शादी के बाद पतियों की कहाँ चलती है|' इसी बात को सोचते हुए मैंने हार मान ली और अपना ध्यान स्तुति के साथ खेलने में लगा दिया| हाँ मन ही मन मैं ये जर्रूर उम्मीद कर रहा था की संगीता के सर पर से ये भूत अपने आप उतर जाए|
संगीता के जन्मदिन से एक दिन पहले की बात है, मैं स्तुति को ले कर बैठक में बैठा कार्टून देख रहा था जब दोनों बच्चे आ कर मेरे अगल-बगल बैठ गए| "पापा जी, कल मम्मी का जन्मदिन है!" आयुष खुश होते हुए बोला| तभी नेहा उसकी बात काटते हुए बोली; "पापा जी को सब पता है, तुझे याद दिलाने की कोई जर्रूरत नहीं| पापा जी ने तो कल के दिन मम्मी को सरप्राइज देने की प्लानिंग भी कर ली होगी|" नेहा जानती थी की जन्मदिन को ले कर मैं बहुत उत्सुक रहता हूँ और उसे विश्वास था की मैंने पहले ही कल के दिन की तैयारी कर रखी है|
"बेटा जी, इस बार हम आपकी मम्मी को सरप्राइज नहीं दे पाएंगे, क्योंकि आपकी मम्मी जी को न केवल अपना जन्मदिन याद है बल्कि उन्होंने मुझे साफ़ कहा है की मैं उन्हें तड़पाने के लिए कोई प्लानिंग नहीं कर सकता|” मैंने थोड़ा निराश होते हुए कहा| मेरी बातों से तीनों बच्चे निराश हो गए थे, लेकिन आयुष थोड़ा ज्यादा निराश था क्योंकि उसे केक खाने को नहीं मिलने वाला था| "बेटा, निराश नहीं होते| मम्मी ने सरप्राइज देने से मना किया है न पार्टी करने से तो मना नहीं किया न?!" ये कहते हुए मैंने तीनों बच्चों को अपना सारा प्लान बताया| स्तुति को भले ही कुछ समझ न आता हो मगर वो मेरी बातें बड़ी गौर से सुनती थी और मुस्कुरा कर अपनी हामी भी भर देती थी|
रात को खाना खा कर सोने की बरी आई तो दोनों बच्चे मुझसे कहानी सुनते हुए माँ के पास सो गए| जब मैं कमरे में आया तो संगीता के चेहरे पर शैतानी मुस्कान थी, ये मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज संगीता की इच्छा पूरी होने वाली थी! संगीता ने आँखों के इशारे से मुझे जल्दी से बिस्तर पर आने को कहा, लेकिन मेरी गोदी में थी स्तुति और उसकी मस्तियाँ जारी थीं! "जल्दी से सुलाओ इस शैतान को और जल्दी से पलंग पर आओ!" संगीता मुझे प्यार से डाँटते हुए बोली| अपनी मम्मी की प्यारभरी डाँट सुन कर स्तुति को जैसे मज़ा आ गया था इसलिए स्तुति की किलकारियाँ गूँजने लगीं| इधर मेरा मकसद स्तुति को जगाये रखना था इसलिए मैंने स्तुति के साथ खेलना शुरू कर दिया| कभी मैं स्तुति के हाथों को चूमता तो कभी स्तुति के पैरों को| कभी अपने होंठ गोल कर आवाज़ निकालता, ये देख स्तुति मेरे गोल होंठों को पकड़ने के लिए अपने हाथ उठा देती| मेरे गालों पर थोड़े-थोड़े बाल आने लगे थे और स्तुति को मेरे गालों पर हाथ फेरने में बड़ा मज़ा आता था इसलिए स्तुति मेरे दोनों गालों पर अपने हाथ फेरने लगी तथा बीच-बीच में मेरे गालों को अपनी छोटी सी मुठ्ठी में कैद करने की कोशिश करने लगी|
रात के पौने बारह बजे तक संगीता नाक पर प्यारा सा गुस्सा ले कर मेरा स्तुति के साथ ये खेल देखती रही और जब उसका सब्र जवाब दे गया तो वो चिढ़ते हुए बोली; "सब जानती हूँ! ये सब आप जानबूझ कर रहे हो ताकि आपको मेरी इच्छा पूरी न करनी पड़े!" इतना कह संगीता मुँह फेर कर लेट गई| घड़ी में बारह बजने में अभी 15 मिनट थे और मैं संगीता को अभी से नाराज़ नहीं करना चाहता था| मैं स्तुति को गोदी ले कर संगीता के पास पहुँचा और संगीता के मस्तक को चूमते हुए बोला; "जान, तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करना मेरा धर्म है! अभी तक बारह नहीं बजे हैं, तुम्हारे जन्मदिन का दिन नहीं चढ़ा है| थोड़ा इंतज़ार करो, तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी|" मेरी बात सुन संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसने ये गुस्सा बस इसलिए किया था ताकि मैं उसे मनाने आऊँ| संगीता लेटे हुए ही मेरी तरफ सरकी तथा हमारे होंठ एक दूसरे से मिल गए| हम दोनों ने धीरे-धीरे एक दूसरे के होठों को बस एक बार ही चखा था की मेरी प्यारी बिटिया जो अभी तक खामोशी से सब देख रही थी उसे ये सब पसंद नहीं आया और उसने अपनी मम्मी की लट के बाल पकड़ कर खींचने शुरू कर दिए! आज पहलीबार मेरी बिटिया ने मुझ पर अपना हक़ जमाया था और अपने पापा जी को अपनी मम्मी से छीन लिया था| स्तुति द्वारा बाल खींचे जाने से संगीता की नाक पर झूठ-मूठ का गुस्सा आ गया; "शैतान!" संगीता ने स्तुति को प्यार से डराना चाहा मगर स्तुति को अपनी मम्मी का ये झूठा गुस्सा देख हँसी आ गई| "पहले नेहा आप पर हक़ जमाती थी, फिर आयुष जमाने लगा और अब ये चुहिया भी आप पर हक़ जमाने लगी!" संगीता बुदबुदाई और दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गई|
स्तुति के इस तरह मेरे ऊपर हक़ जमाने से मुझे उस पर बहुत प्यार आ रहा था और मैं बार-बार स्तुति के मस्तक को चूम रहा था| जब मैं थक गया तो स्तुति ने मेरे गाल चूमने की मूक प्रस्तुति की, मैंने फौरन अपने गाल स्तुति के गुलाबी होठों के आगे कर दिए| मेरे गाल पर पप्पी करने का जितना जोश संगीता में था उतना ही जोश मेरी बेटी स्तुति में भी था| स्तुति ने अपने एक हाथ से मेरी नाक पकड़ी और दूसरे हाथ से मेरा कान पकड़ा तथा अपने प्यारे-प्यारे होंठ मेरे गाल से भिड़ा दिए| मेरे गाल से अपने होंठ भिड़ा कर स्तुति के मुख से किलकारियाँ निकलने लगीं, मानो कह रही हो; 'देखो पापा जी, मैंने आपको पप्पी की!'
उधर संगीता भोयें सिकोड़े हम बाप-बेटी का ये लाड देख रही थी और आँखों ही आँखों में मुझे हड़का रही थी; 'आना मेरे पास, फिर बताती हूँ आपको!' थी तो ये संगीता की बिलकुल खोखली धमकी मगर मैं फिर भी डरने का अभिनय कर रहा था और आँखों के इशारे से स्तुति के मस्ती करने का बहना दे कर अपने आपको निर्दोष साबित कर रहा था|
जैसे ही घडी में 11:59 संगीता मुझे किसी मास्टरनी की तरह आदेश देते हुए बोली; "चुप-चाप लेट जाओ अब! मेरा जन्मदिन वाला दिन शुरू होने वाला है!" संगीता का आदेश सुन मैं किसी आज्ञाकारी विद्यार्थी की तरह एकदम से बिस्तर पर लेट गया| मैंने स्तुति को हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच में लिटाया, इससे पहले की संगीता पूछे की मैंने स्तुति को हम दोनों के बीच में क्यों लिटाया है मैंने तुरंत संगीता के होठों को अपनी गिरफ्त में ले लिया| मैं जानता था की मेरे पास समय की कमी है इसलिए मैंने अपने चुंबन को छोटा रखा और चुंबन तोड़ते हुए संगीता की आँखों में देखते हुए बोला; "जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो जान! तुम्हें मेरी भी उम्र लग जाए!" मेरे मुख से बधाई पा कर संगीता बहुत खुश हुई थी परन्तु मेरे चुंबन इतना जल्दी तोड़ने से वो थोड़ी नाराज़ भी थी! इससे पहले की संगीता मेरे होठों को अपनी गिरफ्त में दुबारा ले पाए, दोनों बच्चे "हैप्पी बर्थडे मम्मी!" चिल्लाते हुए कमरे में घुसे और संगीता के ऊपर कूद पड़े! मैंने फुर्ती दिखाते हुए एकदम से स्तुति को अपनी गोदी में उठाया तथा थोड़ा किनारे सरक गया ताकि बच्चे आराम से अपनी मम्मी को आज के दिन की मुबारकबाद दे सकें|
दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी को अपने नीचे दबा दिया था तथा दोनों गालों को चूम-चूम कर बधाई देने लगे| बच्चों का ऐसा बचपना देख कर संगीता को बहुत हँसी आ रही थी और वो बच्चों को रोकना चाहा रही थी; "अच्छा-अच्छा...बस-बस..." मगर बच्चे माने तब न, नेहा और आयुष ने मिल कर अपनी मम्मी का गाल चूम-चूम कर गीला कर दिया था| सच बात बोलूँ तो इस समय मुझे भी वही जलन हो रही थी जो संगीता को होती थी जब वो मुझे बच्चों को पप्पी करते हुए देखती थी| मेरा मन चाह रहा था की मेरे बच्चे मुझे इसी तरह चूमें और प्यार करें! लेकिन मेरे पास स्तुति थी तो मैंने स्तुति के होठों के पास अपने गाल कर दिए, स्तुति ने फौरन मेरे नाक-कान पकड़ कर मेरे गालों को अपनी पप्पी से गीला करना शुरू कर दिया|
उधर जब दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी के गाल अपनी पप्पियों से अच्छी तरह से गीला कर दिए तब मैं स्तुति को ले कर संगीता के नज़दीक पहुँचा| "बेटा, आज आपकी मम्मी का जन्मदिन है, चलो अपनी मम्मी को पप्पी दो!" मैंने तुतलाते हुए स्तुति से कहा तो स्तुति अपनी ख़ुशी व्यक्त करते हुए अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| मैंने स्तुति को संगीता के गाल दिखाये तो स्तुति ने बिलकुल मेरे गालों की तरह संगीता के गालों को अपनी पप्पी से गीला कर दिया!
अब पप्पियों का आदान-प्रदान हो चूका था इसलिए मैं स्तुति को ले कर उठ गया| जैसे ही मैं दरवाजे तक पहुँचा की संगीता परेशान हो कर मुझे रोकते हुए बोली; "आप कहाँ चल दिए?" संगीता के सवाल में उसकी अपनी इच्छा पूरी करवाने की बेसब्री थी| "अरे भई, आज तुम्हारा जन्मदिन है तो बच्चे तुम्हारे पास सोयेंगे न?!" मैंने मुस्कुरा कर जानबूझ कर संगीता को छेड़ते हुए कहा| संगीता समझ गई की मैं उसे छेड़ रहा हूँ इसलिए वो भी नाक पर प्यारा सा गुस्सा ले कर बोली; "मुझे कहाँ इन शैतानों के साथ छोड़े जा रहे हो?! ये दोनों शैतान मुझे सोने नहीं देंगे!"
"ये तुम जानो और तुम्हारे दोनों शैतान जाने, मैं तो अपनी लाड़ली के साथ सोऊँगा?!" मैंने संगीता को सताते हुए कहा और दोनों बच्चों को चिढ़ाने के लिए स्तुति के गाल चूमने लगा| "और मेरे गिफ्ट का क्या?" संगीता भोयें सिकोड़ कर प्यारभरे गुस्से से बोली| "वो कल रात को मिलेगा!" इतना कह मैं हँसता हुआ कमरे से बाहर निकल गया| मैं जानता था की मेरे इस छोटे से मज़ाक पर संगीता भड़क जाएगी और बच्चों के सोते ही मेरे पास आएगी इसलिए मैं स्तुति को ले कर बच्चों के कमरे में लेट गया|
मैंने स्तुति को लोरी सुनाई जिसे सुनते हुए स्तुति आराम से सो गई| फिर मैं दबे पॉंव माँ के कमरे में घुसा और स्तुति को माँ की बगल में धीरे से लिटा कर वापस बच्चों के कमरे में आ कर लेट गया| मैं जानता था की अपनी इच्छा पूरी करवाने के लिए संगीता बहुत उतावली है और वो चैन से सोने वाली नहीं| संगीता मुझे ढूँढ़ते हुए कहीं माँ के कमरे में न घुसे इसलिए मैंने बच्चों के कमरे में जीरो वॉट का बल्ब पहले ही जला दिया था|
रात के सवा एक हुए थे और संगीता ने बच्चों को अत्यधिक लाड कर सुला दिया था| फिर संगीता दबे पॉंव उठी और मुझे ढूँढ़ते हुए बच्चों वाले कमरे में आ गई| मैंने जो अपनी चपलता दिखाते हुए बच्चों को आगे कर खुद को संगीता से दूर किया था उस पर संगीता को प्यारा सा गुस्सा आया था मगर जब संगीता ने मुझे कमरे में अकेले लेटे हुए अपना इंतज़ार करते हुए देखा तो संगीता का ये प्यारा सा गुस्सा काफूर हो गया|
"आप मुझे बहुत सताते हो!" संगीता मेरी बगल में लेटते हुए बोली| संगीता के हाथ में कुछ था जिसे संगीता ने तकिये के नीचे सरका दिया था| “तुम्हीं से सीखा है की अपनी प्रेयसी को थोड़ा तड़पाना चाहिए, इतनी आसानी से उसे सब कुछ दे दिया जाए तो प्रेयसी सर पर चढ़ जाती है!" मैंने संगीता की तरफ करवट लेते हुए कहा| मैंने संगीता की आँखों में देखा तो पाया की उसकी आँखों में प्यास से ज्यादा उतावलापन है, तभी तो संगीता ने अपनी नाइटी के नीचे कुछ नहीं पहना था!
संगीता ने आव देखा न ताव, उसने सीधा मेरे होठों पर हमला कर दिया, मेरे होठों को गिरफ्त में लेते हुए संगीता के दोनों हाथ मेरे कुर्ते के भीतर पहुँच गए| चोरी-छुपे प्यार करने में समय की कमी एक बहुत बड़ी बाधा थी इसलिए मैंने जल्दी से अपना कुर्ता निकाल फेंका| फिर बारी आई मेरे पजामे और मेरे कच्छे की जिसे संगीता ने इस कदर खींच कर निकाला मानो कोई मक्की (भुट्टा) छील रही हो! संगीता ने पहनी थी सिर्फ नाइटी जिसे उसने एक ही बार में निकाल फेंका|
संगीता ने तकिये के नीचे से वेसिलीन जेली निकाली और काफी भारी मात्रा में मेरे कामदण्ड पर चुपड़ने लगी, मेरे कामदण्ड को स्पर्श करते हुए संगीता के चेहरे पर अपनी इच्छा पूरी होने की विजयी मुस्कान खिली हुई थी| मेरे कामदण्ड पर वेसिलीन जेली अच्छे से चुपड़ने के बाद संगीता ने अच्छी मात्रा में जेली अपने जिस्म के उस हिस्से पर लगाई जिस पर आज कहर बरपाया जाना था!
तजुर्बे की कमी और संगीता के अति-उतावलेपन में संगीता एक भारी गलती करने जा रही थी| इस क्रिया को प्रारम्भ करने से पहले संभोग पूर्व क्रीड़ा अर्थात फोरप्ले (foreplay) करना अनिवार्य होता है, ताकि दोनों जिस्मों में पर्याप्त कामुकता जगी हो! अपनी आतुरता के कारण संगीता ये अहम् बात भूल चुकी थी, लेकिन मुझे इस बारे में ध्यान था| हालाँकि मुझे ये क्रिया (anal sex) नपसंद है पर मैंने इसके बारे में कुछ एडल्ट वेबसाइट्स पर मौजूद कहानियों में पढ़ रखा था| गाँव में अपना कुंवारापन संगीता को सौंपने से पहले मैंने दिषु से एक सस्ती सी किताब ली थी जिसमें मैंने एक कहानी पढ़ी थी, उस कहानी में इस क्रिया पर काफी विस्तार से बताया गया था| आज समय था मेरे मस्तिष्क में अर्जित उस ज्ञान का उपयोग करने का| वहीं संगीता मेरी ओर पीठ कर के अश्व रुपी आसन जमा चुकी थी|
"जान, ऐसे नहीं…करवट ले कर लेटो वरना तुम्हें बहुत ज्यादा दर्द होगा!" मैंने संगीता को समझाते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखने लगी| संगीता की इस मुस्कान का कारण ये था की कहाँ तो मैं संगीता को इस क्रिया के लिए मना कर रहा था और कहाँ मैं उसे आराम से क्रिया करने का आसन सीखा रहा था! संगीता के इस तरह मुस्कुरा कर मुझे देखने से मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया था क्योंकि मेरी बात संगीता को मेरे इस क्रिया को करने में इच्छुक होने का गलत संकेत दे रही थी, पहले तो मैंने सोचा की मैं संगीता की ये गलतफैमी दूर कर दूँ, लेकिन मेरे कुछ कहने से संगीता का मूड खराब हो जाता इसलिए मैंने मुस्कुरा कर बात खत्म कर दी|
बहरहाल संगीता मेरी ओर पीठ कर के करवट ले कर लेट गई| मैं भी संगीता से सट कर लेट गया| मैंने आहिस्ते से अपने दाहिने हाथ को संगीता की कमर से होते हुए उसके मुलायम पहाड़ों को दबोच कर बारी-बारी धीरे से सहलाने लगा ताकि संगीता के बदन में कामुकता की अगन दहका सकूँ| फिर मैंने संगीता की गर्दन पर पीछे से अपने होंठ टिका दिए, मेरे गीले होठों के स्पर्श से संगीता की सिसकारी छूट गई; "ससस!" संगीता मेरा मकसद समझ रही थी इसलिए वो मेरा साथ देते हुए मेरे हाथ की मध्यमा ऊँगली को अपने मुख में भर अपनी जीभ से चुभला रही थी| इधर मैंने धीरे से संगीता की गर्दन पर अपने दाँत गड़ा दिए तथा अपनी जीभ से संगीता की गर्दन को गोल-आकार में सहलाने लगा|
करीब 5 मिनट के भीतर ही हम दोनों की दिल की धड़कनें गति पकड़ने लगीं थीं| मैंने अपने दाएँ हाथ से संगीता की दाहिनी टाँग उठाई तो संगीता को लगा की उसकी इच्छा अब पूरी होने वाली है मगर मैंने संगीता के दूसरे द्वार की बजाए, मधु भंडार के भीतर अपने कामदण्ड को प्रवेश करा दिया| जैसे ही मैंने आधारास्ता तय किया की तभी संगीता गर्दन मोड़ कर मुझे देखने लगी! उसकी आँखों में शिकायत थी, कुछ वैसी ही शक़यत जो आपको होती है जब टैक्सी वाला आपके बताये हुए दाएँ मोड़ पर मुड़ने की बजाए बाएँ मोड़ पर मुड़ जाए!
"थोड़ा सब्र करो जान!" मैंने नकली मुस्कान के साथ कहा| दरअसल मेरा मन उस दूसरे द्वार को भेदने का था ही नहीं, मैं तो इस मधु भंडार का दीवाना था! संगीता ने सोचा की उसकी इच्छा पूरी होने से पहले अगर मैं अपना थोड़ा शौक पूरा कर रहा हूँ तो क्या दिक्कत है?! संगीता पुनः करवट ले कर लेटी रही और मेरा सहयोग देती रही, परन्तु वो इस बात का ख़ास ध्यान रख रही थी की मेरी गाडी अधिक तेज़ न भागने पाए वरना फिर मैं जल्दी थक जाता और वीरगति को प्राप्त हो कर मैदान से बाहर हो जाता|
जब मेरे भीतर जोश उबाले मारता और मेरी गति तेज़ होने लगती तो संगीता अपनी दोनों टाँगों को कस कर बंद कर लेती, जिससे मेरे कामदण्ड का दम घुटने लगता और मुझे ना चाहते हुए भी अपनी गति धीमी करनी पड़ती| वहीं मेरी इस इच्छा का मान रखते हुए संगीता ने भले ही मुझे थोड़ी छूट दे दी थी मगर वो बेचारी खुद पर काबू करने में लगी हुई थी की कहीं वो जल्दी से चरम पर पहुँच स्खलित न हो जाए, क्योंकि अगर संगीता चरम पर पहुँच जाती तो वो खुद को स्खलित होने से न रोक पाती और फिर संगीता की इच्छा आज उसके जन्मदिन पर पूरी नहीं होती!
करीब 15 मिनट बीते होंगे और संगीता का सब्र अब जवाब दे चूका था, उसे अब अपनी इच्छा पूरी करवानी थी| संगीता ने कुनमुनाते हुए मुझसे मूक शिकायत की कि मैं और समय व्यर्थ न करूँ| अपनी परिणीता की इस शिकायत ने मुझे थोड़ा नाराज़ कर दिया था क्योंकि मेरा मन ये 'वहशियाना क्रिया' करने का कतई नहीं था, लेकिन संगीता की इस शिकायत ने मुझे मज़बूर कर दिया था|
मैंने अपने कामदण्ड को पकड़ बड़े बेमन से बाहर निकाला| इससे पहले मैं आगे बढ़ूँ संगीता ने फौरन करवट मेरी तरफ ली तथा फिर से मेरे कामदण्ड पर वेसिलीन जेली चुपड़ दी और एक बार फिर मेरी तरफ पीठ कर के करवट ले कर लेट गई| मैंने अपने कामदण्ड को पकड़ कर संगीता के दूसरे द्वार का रास्ता दिखाया मगर तजुर्बे की कमी होने के कारण मुझे द्वार नहीं मिला और मेरा निशाना सही नहीं लगा| जब आपका मन किसी काम को करने का न हो तो जिस्म भी आपका साथ नहीं देता, वही हाल मेरा था| मैं बेमन से ये कोशिश कर रहा था इसलिए दूसरीबार भी मैं द्वार नहीं खोज पाया|
आखिर संगीता को ही पहल करनी पड़ी और उसने मेरे कामदण्ड को पकड़ कर अपना दूसरा द्वार दिखाया| द्वार मिला तो मैंने पहली कोशिश बड़ी सम्भल कर की और भेदन कार्य आरम्भ करते हुए थोड़ा सा ही धक्का लगाया| अभी भेदन कार्य शुरू ही हुआ था की दर्द की सीत्कार संगीता के मुख से फुट पड़ी; "आह!" संगीता की ये दर्द भरी कराह सुन मैं रुक गया| मुझे रुका हुआ देख संगीता ने अपना दायाँ हाथ पीछे किया और मेरे दाएँ कूल्हे पर प्यारभरी चपत लगाई| ये चपत बिलकुल वैसी थी जैसे की घोड़े वाला घोड़े को आगे चलने के लिए उसके कूल्हे पर थपकी देता है|
अपने मालिक यानी संगीता का आदेश पा कर मैंने इस बार थोड़ा सा दम लगा कर भेदन कार्य पूरा करने के लिए थोड़ा दम लगा कर धक्का लगाया| वेसिलीन जेली की चिकनाई के कारण मेरा कामदण्ड भीतर की ओर फिसल गया और मैंने एक ही बार में लगभग आधा रास्ता तय कर लिया| लेकिन ये आधा रास्ता तय करते ही हम दोनों मियाँ-बीवी का हाल बुरा हो गया! मेरे कामदण्ड के भीतर प्रवेश करने से संगीता के जिस्म में दर्द की बिजली दौड़ गई! इस असहनीय दर्द के कारण संगीता ने अपने कूल्हों को मुझसे दूर कर एकदम से अपनी दोनों टाँगें आपस में जकड़ लीं, जिससे संगीता के दूसरे द्वार ने मेरे कामदण्ड को कुछ अधिक जोर से जकड़ लिया! अब संगीता दर्द के कारण चिल्ला तो सकती नहीं थी इसलिए उसने मेरे दाहिने हाथ की गादी पर अपने दाँत गड़ा कर कचकचा कर काट लिया!
हथेली पर संगीता के काटने का दर्द और मेरे कामदण्ड को संगीता के दूसरे द्वार ने जो एकदम से कस लिया था उससे मेरे कामदने के भीतर जलन पैदा हो चुकी थी जिससे मेरा बुरा हाल हो चूका था| भेदन कार्य अभी आधा ही हुआ था और अभी से मुझे गुस्सा और पछतावा दोनों हो रहे थे! अगर मैं गलत नहीं तो संगीता को भी यही दोनों भावनायेँ महसूस हो रहीं होंगीं!
'लोग कुल्हाड़ी पैर पर मारते हैं, मैंने तो साला पैर ही कुल्हाड़ी पर दे मारा!' मैं मन ही मन बुदबुदाया! उधर मुझसे ज्यादा दर्द संगीता को हो रहा था और उसकी आँखों से तो आँसूँ भी निकलने लगे थे जो की बहते हुए मेरे हाथ पर गिर रहे थे| "ससस.ससस...मैंने कहा था न की बहुत दर्द होगा!" मैंने संगीता को दोष देते हुए कहा, ठीक उसी तरह जैसे पत्नियाँ अपने पति को कोई गलती करने पर दोष देती हैं|
मेरी बात सुन संगीता ने अपने आँसूँ पोछे और अपनी कराह दबाते हुए बोली; "क...कोई बता नहीं...थोड़ी देर रुको फिर बाकी का ‘काम’ पूरा करो!" संगीता की बात सुन मैं दंग रह गया| "जान, तुम्हें अभी आधे काम में इतना दर्द हो रहा है, पूरा काम करूँगा तो कल तुम्हारी तबियत खराब हो जाएगी!" मैंने संगीता को समझना चाहा मगर संगीता ने आज तक मेरी सुनी है जो अब सुनेगी, वो तो अपनी जिद्द पर अड़ी रही; "कुछ नहीं होगा! फिनिश व्हाट यू स्टार्टेड! (Finish what you started!)” संगीता मुझे आदेश देते हुए बोली|
आदेश मिला था तो मैंने धीरे-धीरे 'काम' शुरू किया ताकि संगीता को पहले मेरे आधे कामदण्ड की आदत पड़ जाए| संगीता ने भी धीरे-धीरे अपने द्वार को ढेला किया जिससे मेरे कामदण्ड पर दबाव कम हुआ| हालात की नज़ाक़त को देखते हुए मैं इस वक़्त इतना सम्भल-सम्भल कर अपनी कमर चला रहा था की संगीता को और मुझे कम से कम पीड़ा हो|
करीब 10 मिनट में संगीता थोड़ी अभ्यस्त हो गई थी और मुझे आगे बढ़ने के लिए कहने लगी; "जानू...थोड़ा और!!!" अपनी प्रेयसी की इच्छा मानते हुए मैंने धीरे-धीरे भेदन कार्य आगे बढ़ाया| हाँ मैं इस बात का पूरा ध्यान रख रहा था की कहीं फिसलन होने के कारण मैं एक ही बार में जड़ तक संगीता के भीतर न उतर जाऊँ, क्योंकि यदि ऐसा होता तो संगीता दर्द से चीख पड़ती!
धीरे-धीरे मैंने आखिर पूरी गहराई तय कर ही ली, संगीता का इस वक़्त दर्द से बुरा हाल था| दर्द के मारे संगीता ने अपन दूसरे द्वार का मुख फिर से सिकोड़ लिया था जिससे मेरा कामदण्ड एकबार फिर कैद हो चूका था तथा मैं भी दर्द महसूस कर रहा था! संगीता की सांसें भारी हो चुकीं थीं तथा आँखें फिर से पनिया गई थीं| मैं भले ही अपने दर्द से जूझ रहा था मगर मुझे सबसे ज्यादा चिंता संगीता की थी| संगीता को दर्द से आराम दिलाने के लिए मुझे उसके बदन में कामुकता पुनः जगानी थी ताकि संगीता का ध्यान दर्द पर से हट जाए|
मैंने अपनी कमर को एक जगह स्थिर रखा और अपने दाएँ हाथ से संगीता के मुलायम पहाड़ों को धीरे-धीरे मींजने लगा| एक हाथ से ये काम कर पाने में थोड़ी दिक्कत थी इसलिए मैंने दूसरा हाथ संगीता की गर्दन के नीचे से आगे की ओर बढ़ा दिया, अब मेरे दोनों हथेलियों ने संगीता के मुलायम पहाड़ों को दबोच लिया था और मैं लय बद्धतरीके से दोनों पहाड़ों को मींस रहा था| कुछ समय बाद आखिर मेरी मेहनत रंग लाई और संगीता के दर्द से ठंडे पड़े शरीर में कामुकता की अग्नि की चिंगारी फूट पड़ी| धीरे-धीरे संगीता के बदन ने अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू की और संगीता के मुख से आनंद की एक मीठी सी सिसकी फूट पड़ी; "स्स्स्सस्स्स्स!!!"
कुछ पल बाद संगीता ने अपनी कमर से पीछे की ओर ठुमका लगा कर मुझे अपनी मूक स्वविकृति दी की मैं हमारी प्यार की गाडी में पहला गियर लगा कर गाडी आगे की ओर बढ़ाऊँ| संगीता ने अपन द्वार को कुछ ढीला किया ताकि मुझे अंदर-बाहर होने में आसानी हो, इधर मैंने धीरे-धीरे लय बद्ध तरीके से अपनी कमर आगे-पीछे करनी शुरू की| कुछ ही पलों में संगीता के मुख से संतुष्टि रुपी सिसकियाँ निकलने लगीं, मतलब की संगीता की पीड़ा अब सुखद एहसास में बदल चुकी थी!
पहले गियर में गाडी काफी देर से चल रही थी, मुझे वैसे ही ये कार्य करने का मन नहीं था इसलिए मैं अब ऊबने लगा था| उधर संगीता को अपने आनंद को अगले पड़ाव पर ले जाना था इसलिए उसने अपना दाहिना हाथ पीछे कर मेरे कूल्हों पर फिर चपत लगाई| संगीता का इशारा समझ मैंने अपनी गति बढ़ाई और अपनी कमर को थोड़ा तेज़ी से चलाने लगा| अगले कुछ ही पलों में संगीता के भीतर कामज्वर अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच गया और संगीता भरभरा कर स्खलित हो गई! अब चूँकि संगीता स्खलित हुई थी इसलिए मैंने कुछ पल रुक कर साँस लेने की सोची|
परन्तु मात्र 10 मिनट में संगीता अपने स्खलन से उबर गई और अपनी कमर पीछे की ओर मेरे कामदण्ड पर मारने लगी| मेरा मन इस क्रिया को समाप्त करने का था इसलिए संगीता का इशारा पाते ही मैंने एकदम से अपनी गति बढ़ाई! मैं कोई बर्बरता नहीं दिखा रहा था, मैं तो बस इस क्रिया को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहता था| करीब 15 मिनट बीते होंगे की संगीता अपने दूसरे स्खलन पर पहुँच गई और हाँफते हुए निढाल हो गई| मैं उस वक़्त अपने स्खलन के बहुत नज़दीक था परन्तु मैं इस दूसरे द्वार में कतई स्खलित नहीं होना चाहता था इसलिए मैंने अपना कामदण्ड बाहर निकाल लिया और हाथ से हिला कर अपने स्खलन प्राप्त किया! संगीता कुछ समझ पाती उससे पहले ही उसे अपने कूल्हों पर मेरे कामरस का एहसास हुआ, जिससे वो सब समझ गई की मैंने अपना स्खलन संगीता के भीतर करने की बजाए बाहर किया है!
आमतौर पर हमारे प्रेम-मिलाप के बाद मैं अपने कामदण्ड की धुलाई किये बिना ही अलसा कर सो जाता हूँ मगर आज मुझे घिन्न सी आ रही थी इसलिए मैं तुरंत ही बाथरूम में घुस कर अपने कामदण्ड को साफ़ करने लगा| ठंडे-ठंडे पानी ने जब मेरे कामदण्ड को छुआ तो जो कुछ पल पहले दर्द हो रहा था उस दर्द को राहत मिली| मैंने अपने इस दर्द को संगीता से छुपाने की सोची क्योंकि अगर संगीता को पता चलता की उसकी इच्छा पूरी करने में मुझे पीड़ा हुई है तो संगीता खुद को दोष देते हुए ग्लानि महसूस करने लगती|
जब मैं बाथरूम से बाहर निकला तो देखा की संगीता पीठ के बल लेटी सुस्ता रही है| संगीता के चेहरे पर परम् संतुष्टि के निशान थे, कुछ वैसे ही निशान जो प्रेम-मिलाप के बाद मेरे चेहरे पर आते थे| मैंने घड़ी देखि तो रात के दो बज रहे थे, मैंने तुरंत अपने कपड़े पहने और संगीता की नाइटी उठा कर संगीता को देते हुए कहा; "जान, ये नाइटी पहन लो और आराम से सो जाओ| मैं बच्चों के पास सोने जा रहा हूँ|" मेरी बात सुन संगीता ने मेरा हाथ पकड़ लिया और चिढ़ते हुए बोली; "जब देखो बच्चों के पास जा रहा हूँ कहते हो! आज मेरा जन्मदिन है, चुपचाप मुझे अपनी बाहों में ले कर सो जाओ वरना मैं आपसे बात नहीं करुँगी!" संगीता के इस तरह मुझे आदेश देने पर मुझ हँसी आ गई| आज पत्नी जी का जन्मदिन था और आज के दिन उन्हें नाराज़ करना जायज नहीं था! मैंने पहले संगीता को उठा कर बिठाया और उसे नाइटी पहना कर मैं उसी के साथ लेट गया| संगीता ने अपने दोनों हाथों का फंदा मेरे जिस्म के इर्द-गिर्द बनाया और मुझसे कस कर लिपट गई ताकि कहीं मैं उसे सोता हुआ छोड़ कर न चला जाऊँ| थकावट मुझे भी थी, उसपर संगीता के मुझे अपनी बाहों में जकड़ने से मेरा मन अब बस सोने का कर रहा था| मैंने संगीता के मस्तक को चूमा और उसे अपनी बाहों में कस कर सो गया|
अगली सुबह 6 बजे मुझे नेहा और आयुष ने चुपचाप जगाया, मैंने धीरे से संगीता की पकड़ से खुद को छुड़ाया तथा अपने आज के प्लान पर काम करने लगा| एक तो आज संगीता का जन्मदिन था इसलिए आज संगीता से घर का कोई भी काम करवाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था और दूसरा, कल रात जो दर्दभरी क्रिया की गई थी उसके बाद संगीता से काम कर पाना मुश्किल हो जाता इसलिए मैंने बच्चों के साथ मिल कर ये प्लान पहले ही बना लिया था की आज के दिन संगीता बस आराम करेगी तथा घर के सारे काम हम बाप-बेटा-बेटी मिल कर करेंगे| मैं और बच्चे दबे पॉंव कमरे से बाहर आये, बाहर आते ही आयुष ने अपना सवाल दाग दिया; "पापा जी, मम्मी तो रात में हमारे पास सोईं थीं, फिर मम्मी इधर कैसे आईं?" आयुष का सवाल सुन मैं झेंप गया और जवाब सोचने लगा| इतने में नेहा मेरा बचाव करते हुए बोली; "आज मम्मी का जन्मदिन है और हमें पापा जी की मदद करनी है, न की फालतू के सवाल पूछ कर समय बर्बाद करना है| चुपचाप रसोई में जा और चायदानी में 4 कप पानी डाल, मैं और पापा जी अभी आ रहे हैं!" नेहा ने आयुष को बिलकुल अपनी मम्मी की तरह हुक्म देते हुए कहा| अपनी दीदी का हुक्म सुन आयुष रसोई में दौड़ गया और चायदानी में नापकर पानी डालने लगा|
आयुष के जाने के बाद मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "मेरी सयानी बिटिया!" मेरे मुँह से अपनी तारीफ सुन मेरी बिटिया शर्मा गई और मेरे कँधे पर अपना मुख छुपा लिया| मुँह-हाथ धो कर हम बाप-बेटा-बेटी ने मिलकर चाय बनाई और सबसे पहले चाय देने के लिए माँ के पास पहुँचे| माँ ने जब हम तीनों को चाय का कप उठाये देखा तो माँ हँस पड़ीं; "तो आज एक नहीं तीनों खानसामों ने मिलकर रसोई सँभालनी है?!" माँ की बात सुन हम तीनों हँस पड़े|
फिर हम तीनों चाय ले कर संगीता के पास पहुँचे, सबसे पहले आयुष ने अपनी मम्मी के गाल पर गुडमॉर्निंग वाली पप्पी दी पर संगीता की नींद नहीं टूटी| फिर बारी आई नेहा की और नेहा ने भी आयुष की तरह अपनी मम्मी के दूसरे गाल पर पप्पी दी, परन्तु इस बार भी संगीता नहीं जागी| अंत में मैंने कोशिश की और मैंने संगीता के दाएँ गाल पर पप्पी दी और तब जा कर संगीता की नींद टूटी और वो कुनमुनाई! मुझे अपनी आँखों के सामने देख संगीता के चेहरे पर मादक मुस्कान तैरने लगी| संगीता का मन ललचाया और उसने मेरे होठों को चूमने के लिए आगे बढ़ना चाहा मगर मैंने आँखों के इशारे से संगीता को बच्चों की तरफ देखने को कहा| बच्चों को देख संगीता के चेहरे पर प्यारा सा गुस्सा आ गया, उसने जब उठ कर बैठने की कोशिश की तब उसके चेहरे पर दर्द की एक लकीर उभर आई!
कल रात जो ताबड़तोड़, धमाकेदार, धुआँदार जन्मदिन मनाया गया था उसका दर्द अब संगीता को परेशान करने लगा था| संगीता ये दर्द मुझसे छुपाना चाह रही थी क्योंकि वो जानती थी की उसे दर्द में देख मैं दुखी हो जाऊँगा| लेकिन संगीता चाहे कितनी कोशिश करे, मैं तो उसका दर्द महसूस कर ही चूका था और मेरे चेहरे पर भी चिंता की लकीरें पड़ने लगी थीं| मुझे चिंतित देख संगीता नक़ली मुस्कान लिए हुए आँखों ही आँखों में बोली; 'कुछ नहीं हुआ, आप चिंता मत करो!' इतना कह संगीता उठ कर बैठी| मैं कुछ कहता उसके पहले ही माँ कमरे में आ गईं और बोलीं; "जन्मदिन मुबारक हो बहु! जुग-जुग जियो बेटा!' माँ ने संगीता के सर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद सहित जन्मदिन की मुबारकबाद दी| संगीता ने भी माँ के पॉंव छू कर आशीर्वाद लिया| "अरे बहु, तू यहाँ बच्चों के कमरे में क्यों सोई? ये दोनों शैतान तो तेरे कमरे में सोने गए थे?!" माँ ने भोयें सिकोड़ कर ये सवाल पुछा तो संगीता ने बड़ी चपलता से आयुष को दोषी बना दिया; "ये है न शैतान! रात में सोते हुए मुझे लात मार रहा था इसलिए मैं उठ कर यहाँ बच्चों के कमरे में सो गई!" संगीता ने नाक पर प्यारा सा गुस्सा लिए आयुष की तरफ देखते हुए कहा| मेरा भोला-भाला बेटा अपनी मम्मी के झूठी बात को सच मान बैठा और कान पकड़ कर सॉरी बोलने लगा| मैंने आयुष को गोदी लिया और उसका बचाव करते हुए बोला; "बेटा, जब मैं छोटा था न तो मैं भी कभी-कभी माँ को लात मारता था| लेकिन जब मैं बड़ा हुआ तो ये आदत छूट गई|" मेरी बात सुन आयुष को इत्मीनान हुआ और वो फिर से चहकने लगा|
हम सब ने चाय पी और फिर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी रसोई में नाश्ते की तैयारी करने लगे| संगीता ने बहुत कहा की वो नाश्ता बना लेगी मगर हम तीनों अपनी जिद्द पर अड़े रहे और घुस गए रसोई में| उधर संगीता को मुँह धोना था इसलिए वो बाथरूम जाने के लिए उठी, परन्तु समस्या ये की संगीता से ठीक से चला नहीं जा रहा था| मैं कुछ सामान लेने रसोई से बाहर निकला तो मैंने संगीता को लंगड़ाते हुए देखा| ठीक तभी हम दोनों मियाँ-बीवी की नजरें मिलीं और मैंने चिंतित होते हुए एकदम से अपना सर पीट लिया! अपनी एक ख़ुशी को पाने के लिए संगीता ने ये दर्द मोल ले लिया था! मुझे अपना सर पीटते हुए देख संगीता को हँसी आ गई और वो खिलखिलाते हुए बाथरूम में घुस गई|
नाश्ते में मैंने संगीता का मनपसंद अंडे का आमलेट बनाया और माँ के लिए बेसन का आमलेट अर्थात चीला बनाया| नाश्ता करने के बाद मैंने संगीता को दर्द से आराम के लिए चुपके से एक गोली दी तथा आराम करने को कहा|
कुछ देर बाद भाईसाहब का फ़ोन आया और वो संगीता को उसके जन्मदिन की मुबारकबाद देते हुए काफी भावुक हो गए थे| आज कई सालों बाद भाईसाहब अपने लाड़ली बहन को जन्मदिन की बधाई फ़ोन पर दे रहे थे, वही हाल संगीता का भी था वो भी अपने भाईसाहब के बधाई देने पर रुनवासी हो गई थी| जब संगीता छोटी थी तब उसके जन्मदिन के दिन भाईसाहब उसे एक टॉफ़ी ला कर देते थे और गोदी में ले कर दूसरे गाँव तक टहला लाते थे| उन प्यारे दिनों को याद कर दोनों भाई-बहन रुनवासे हो गए थे| मैंने संगीता को अपने गले लगा कर रोने नहीं दिया तथा स्तुति को दूध पिलाने का काम दे संगीता का ध्यान भटकाते हुए रसोई में आ गया| फिर हम बाप-बेटा-बेटी ने मिलकर खाना बनाना शुरू किया| जब आटा गूँदने के बारी आई तो आयुष उत्साहित हो कर बोला की वो भी आटा गूंदेगा| अब मुझे सूझी थी मस्ती इसलिए मैंने परात उठाई और ज़मीन पर रख दी, फिर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी परात के इर्द-गिर्द अपने घुटने टेक कर बैठ गए| मैंने दोनों बच्चों की तरफ देखा और इशारा किया, हम तीनों ने अपने-अपने दाहिने हाथ आटे में साने और लगे आटा गूँदने! शुरू-शुर में हम तीनों के हाथ आटे से सन गए और हम तीनों ने खी-खी कर हँसना शुरू कर दिया| हमारी हँसी-ठहाका सुन संगीता और माँ रसोई में आये और ये अध्भुत दृश्य देख दोनों सास-पतुआ की भी हँसी छूट गई!
“तू शैतानी से बाज़ नहीं आएगा, अपने साथ दोनों बच्चों को भी मिला लिया!" माँ ने मेरी पीठ पर प्यारी सी थपकी मारते हुए कहा| उधर मुझे और अपने भैया-दीदी को आटा गूंदते हुए देख मेरी बिटिया स्तुति ने संगीता की गोदी से छटपटाना शुरू कर दिया| "ये लो, इस शैतान को भी आटा गूँदना सिखाओ अब!" संगीता ने स्तुति को मेरी गोदी में दे दिया, मैं आलथी-पालथी मारकर बैठ गया और स्तुति को भी अपने सीने से लगा कर बिठा लिया| स्तुति ने अपने नज़दीक आटा देखा तो उसने अपने दोनों हाथ आटे को पकड़ने के लिए बढ़ा दिए| तभी आयुष ने भी शैतानी करते हुए थोड़ा सा आटा स्तुति के हाथ में लगा दिया, स्तुति ने फट से आटे से सने अपने हाथ को अपने मुँह की तरफ घुमाया तो नेहा ने झपट कर स्तुति का हाथ पकड़ लिया और उसे समझाने लगी; "अभी आप छोटे हो, कच्चा आटा खाओगे तो पेट खराब होगा!" ये कहते हुए नेहा ने स्तुति के हाथों से आटा छुड़ाया और कपड़े से स्तुति के हाथ साफ़ कर दिए| गौर करने वाले बात ये थी की स्तुति ने आज अपनी दीदी की बात बड़े ध्यान से सुनी और मानी भी थी| फिर नेहा ने आयुष को डाँट लगाई; "तू बुद्धू है क्या जो इतनी छोटी सी बच्ची के हाथ में आटा लगा दिया?! तुझे पता नहीं स्तुति हर चीज़ अपने मुँह में ले लेती है?! कच्चा आता खा कर वो बीमार पड़ जाती तो?!" आयुष को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने फौरन अपने कान पकड़ कर माफ़ी माँग ली, नेहा ने भी बड़ी बहन होते हुए आयुष को माफ़ कर दिया|
शाम को हम बाप-बेटा-बेटी जा कर एक बढ़िया सा केक ले कर आये| तबतक दिषु भी घर आ चूका था और वो संगीता के लिए गिफ्ट में साडी लाया था| "अबे साले! तूने मेरे जन्मदिन पर तो मुझे कभी गिफ्ट नहीं दिया और संगीता को उसके जन्मदिन पर साडी गिफ्ट दे रहा है?!" मैंने दिषु के मज़े लेते हुए कहा| मेरे पूछे सवाल पर दिषु हँसते हुए बोला; "तूने मुझे चिकन बना कर खिलाया कभी, जो मैं तुझे गिफ्ट दूँ?! भाभी ने अगले संडे को मेरे लिए चिकन बनाना है इसलिए एक गिफ्ट तो बनता है|" जैसे ही दिषु ने चिकन का नाम लिया, आयुष ख़ुशी के मारे कूदने लगा|
खैर, संगीता के द्वारा केक काटा गया और केक का सबसे बड़ा टुकड़ा आयुष ने खाया, बेचारे ने सुबह से बहुत मेहनत जो की थी| पार्टी कोई बहुत बड़ी नहीं थीं, बस मैं, माँ, दोनों बच्चे, संगीता और दिषु ही थे| बाहर से खाना मँगा लिया था तो पेट भरकर सबने खाना खाया और इसी के साथ हमारी पार्टी खत्म हुई|
सोने के समय संगीता का मन मुझे आज पूरे दिन की गई मेहनत का मेहनताना देने का था| फिर कल रात मैंने केवल संगीता की इच्छा पूरी की थी इसलिए आज रात संगीता का मन मेरी इच्छा पूरी करने का भी था| लेकिन मैं इतना स्वार्थी नहीं था, मुझे पता था की संगीता का दर्द अभी खत्म नहीं हुआ है इसलिए मैंने संगीता को समझाते हुए कहा; "जान, पहले अपनी बिगड़ी हुई चाल दुरुस्त करो वरना तुम माँ से खुद भी डाँट खाओगी और मुझे भी डाँट खिलवाओगी!" मेरी बात पर संगीता अपना निचला होंठ दबा कर मुस्कुराने लगी| अंततः आज की रात कोई हँगामा नहीं हुआ, हम दोनों प्रेमी बस एक दूसरे से लिपट कर आराम से सोये|
जारी रहेगा भाग - 18 में...