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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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Manu bhai kaha ho sab khairiyat to hai n .Aunty ji ki tabiyat kaisi hai

अभी भाई,

मेरी माँ की तबियत में पहले से सुधार है| उनकी बाईं जाँघ का दर्द अब पहले की तरह नहीं है, डॉक्टर ने x-ray करवाए के लिए कहा है मगर घर पर आ कर करने वाले व्यक्ति का इंतज़ाम नहीं हो पा रहा|

आपकी ओर बाकी सभी मित्रों की दुआओं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद| 🙏
 

Abhi32

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अभी भाई,

मेरी माँ की तबियत में पहले से सुधार है| उनकी बाईं जाँघ का दर्द अब पहले की तरह नहीं है, डॉक्टर ने x-ray करवाए के लिए कहा है मगर घर पर आ कर करने वाले व्यक्ति का इंतज़ाम नहीं हो पा रहा|

आपकी ओर बाकी सभी मित्रों की दुआओं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद| 🙏
Mata rani kare jaldi se apki mata ji theek ho jaye aur bhabhijee aur bachhe kaise hai .Sangeeta bhabhi bhi forum par nahi arahi hai
 

Rockstar_Rocky

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Mata rani kare jaldi se apki mata ji theek ho jaye aur bhabhijee aur bachhe kaise hai .Sangeeta bhabhi bhi forum par nahi arahi hai

आपकी प्रार्थनाओं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद भाई| 🙏

संगीता और बच्चे ठीक हैं, चरण काका के लड़की की लड़की की शादी है इसलिए सब वहीं व्यस्त हैं| कुछ दिनों में संगीता forum पर लौटेगी| अगली update लगबघ आधी लिखी जा चुकी है, कोशिश है की शनिवार रात तक post कर दूँ|
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 (3)



अब तक अपने पढ़ा:


शाम के समय जब बच्चे सो रहे थे तब संगीता ने आयुष की शादी करने की जिद्द को माँ से साझा किया तो माँ को खूब हँसी आई| जब आयुष सो कर उठा तो माँ उसे लाड करते हुए बोलीं; "बेटा, अभी तू छोटा है, अभी तेरा ध्यान पढ़ाई में और थोड़ा बहुत मौज-मस्ती करने में होना चाहिए| ये शादी-वादी की बात हम तब सोचेंगे जब तू बड़ा हो जायेगा!" आयुष को अपनी दादी जी की बात अच्छी लगी इसलिए वो खुश होते हुए अपनी दादी जी से लिपट गया|


अब आगे:


आयुष
तो जब बड़ा होता तब होता, अभी तो स्तुति की मस्तियाँ जारी थीं| स्तुति को अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलते देख आयुष को कुछ ज्यादा ही मज़ा आता था, वो अक्सर अपनी छोटी बहन की देखा-देखि अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलता तथा स्तुति का रास्ता रोक उसके सर से सर भिड़ा कर धीरे-धीरे स्तुति को पीछे धकेलने की कोशिश करता| दोनों बच्चों को यूँ एक दूसरे को पीछे धकेलते हुए देख माँ, मुझे और संगीता को बड़ा मज़ा आता, ऐसा लगता मानो हमारी आँखों के सामने एनिमल प्लेनेट (animal planet) चल रहा हो, जिसमें दो छोटी बकरियाँ एक दूसरे को पीछे धकेलने का खेल खेल रही हों!

ऐसे ही एक दिन की बात है, मैं शाम क लौटा तो दोनों भाई बहन सर से सर भिड़ाये एक दूसरे को पीछे धकेलने में लगे थे की तभी आयुष ने अपनी छोटी बहन से हारने का ड्रामा किया और मुझे भी अपने साथ ये खेल-खेलने को कहा| दोनों बच्चों को देख मेरे भीतर का बच्चा जाग गया और मैं भी अपने दोनों-हाथों-पाँव पर आ गया| "बेटा, हम है न रेलगाड़ी वाला खेल खेलते हैं|" मैंने उस दिन एक नए खेल का आविष्कार किया था और आयुष इस खेल के नियम जानने को उत्सुक था| मैंने आवाज़ दे कर नेहा को भी इस खेल से जुड़ने को बुलाया और सभी को सारे नियम समझाये|



चूँकि मेरा डील-डोल बच्चों के मुक़ाबले बड़ा था इसलिए मैं बच्चों की रेलगाडी का इंजन बना, मेरे पीछे लगी छोटी सी डाक वाली बोगी यानी के स्तुति, फिर लगा फर्स्ट क्लास स्लीपर का डिब्बा यानी आयुष और अंत में रेलगाड़ी को झंडी दिखाने वाले गार्ड साहब का डिब्बा यानी नेहा| इस पूरे खेल में नेहा की अहम भूमिका थी क्योंकि उसे ही मेरे पीछे लगी डाक वाली बोगी यानी के स्तुति को सँभालना था क्योंकि ये वाली बोगी बड़ी नटखट थी और इंजन को छोड़ अलग पटरी पर दौड़ सकती थी!



खेल शुरू हुआ और मैंने इंजन बनते हुए आगे-आगे अपने दोनों पाँवों और हाथों के बल चलना शुरू किया| जब मैं आगे चला तो स्तुति भी मेरे पीछे-पीछे खिलखिलाकर हँसते हुए चलने लगी, स्तुति के पीछे आयुष चलने लगा और अंत में गार्ड साहब की बोगी यानी नेहा भी चल पड़ी| अभी हमारी ये रेल गाडी माँ के कमरे से निकल बैठक की तरफ मुड़ी ही थी की नटखट स्तुति ने अलग पटरी पकड़ी और वो रसोई की तरफ घूमने लगी! स्तुति को रसोई की तरफ जाते हुए देख आयुष और नेहा ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया; "पापा जी देखो, स्तुति दूसरी पटरी पर जा रही है!" बच्चों का शोर सुन मैंने स्तुति को अपने पीछे आने को कहा तो स्तुति जहाँ खड़ी थी वहीं बैठ गई और खिलखिलाकर हँसने लगी| स्तुति को अपने मन की करनी थी इसलिए मैंने स्तुति को ही इंजन बनाया और मैं उसके पीछे दूसरे इंजन के रूप में जुड़ गया|

मेरे, एक पुराने इंजन के मुक़ाबले स्तुति रुपी इंजन बहुत तेज़ था! उसे अपने पीछे लगे डब्बे खींचने का शौक नहीं था, उसे तो बस तेज़ी से दौड़ना पसंद था इसलिए स्तुति हम सभी को पीछे छोड़ छत की ओर दौड़ गई! पीछे रह गए हम बाप-बेटा-बेटी एक दूसरे को देख कर पेट पकड़ कर हँसने लगे! "ये कैसा इंजन है पापा जी, जो अपने डब्बों को छोड़ कर खुद अकेला आगे भाग गया!" नेहा हँसते हुए बोली| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ज़मीन पर बैठे हँस रहे थे की इतने में हमारा इंजन यानी की स्तुति वापस आ गई और हमें हँसते हुए देख अस्चर्य से हमें देखने लगी! ऐसा लगा मानो कह रही हो की मैं पूरा चक्कर लगा कर आ गई और आप सब यहीं बैठे हँस रहे हो?! "चलो भई, सब स्तुति के पीछे रेलगाडी बनाओ|" मैंने दोनों बच्चों का ध्यान वापस स्तुति के पीछे रेलगाड़ी बनाने में लगाया| हम तीनों (मैं, आयुष और नेहा) स्तुति के पीछे रेलगाड़ी के डिब्बे बन कर लग तो गए मगर स्तुति निकली बुलेट ट्रैन का इंजन, वो स्टेशन से ऐसे छूटी की सीधा छत पर जा कर रुकी| जबकि हम तीनों धीरे-धीरे उसके पीछे रेंगते-रेंगते बाहर छत पर आये|

अब छत पर माँ और संगीता पहले ही बैठे हुए थे इसलिए जब उन्होंने मुझे बच्चों के साथ बच्चा बन कर रेलगाड़ी का खेल खेलते हुए देखा तो दोनों सास-पतुआ बड़ी जोर से हँस पड़ीं! "पहुँच गई रेल गाडी प्लेटफार्म पर?!" माँ हँसते हुए बोलीं| फिर माँ ने मुझे अपने पास बैठने को कहा तो मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठ गया| मुझे घर आते ही बच्चों के साथ खेलते हुए देख संगीता मुझसे नाराज़ होते हुए माँ से मेरी शिकायत करते हुए बोली; "देखो न माँ, घर आते ही बिना मुँह-हाथ धोये भूखे पेट बच्चों के साथ खेलने लग गए!"

इधर माँ को मेरे इस बचपने को देख मुझ पर प्यार आ रहा था इसलिए वो मेरा बचाव करते हुए बोलीं; " बेटा, बच्चों का मन बहलाने के लिए कई बार माँ-बाप को उनके साथ खेलना पड़ता है| जब ये शैतान (मैं) छोटा था तो मुझे अपने साथ बैट-बॉल, चिड़ी-छक्का (badminton), कर्रम (carrom), साँप-सीढ़ी, लूडो और पता नहीं क्या-क्या खेलने को कहता था| अब इसके साथ कोई दूसरा खेलने वाला बच्चा नहीं था इसलिए मैं ही इसके साथ थोड़ा-बहुत खेलती थी|" माँ की बात सुन बच्चों की मेरे बचपने के किस्से सुनने की उत्सुकता जाग गई और माँ भी पीछे नहीं रहीं, उन्होंने बड़े मज़े ले-ले कर मेरे बचपन के किस्से सुनाने शुरू किये| मेरे बचपने का सबसे अच्छा किस्सा वो था जब मैं लगभग 2 साल का था और छत पर पड़े गमले में पानी डालकर, उसमें लकड़ी घुसेड़ कर मिटटी को मथने का खेल खेलता| जब माँ पूछतीं की मैं क्या कर रहा हूँ तो मैं कहता की; "मैं खिचड़ी बना रहा हूँ!" मेरे जवाब सुन माँ को बहुत हँसी आती| वो बात अलग है की मैं अपनी बनाई ये मिटटी की खिचड़ी न कभी खुद खाता था न माँ-पिताजी को खाने को कहता था!



खैर, स्तुति को बच्चों के साथ खेलने को छोड़ कर मैं जैसे ही उठा की स्तुति मेरे पीछे-पीछे अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगी; "बेटा, मैं बाथरूम हो कर कपड़े बदलकर आ रहा हूँ|" मैंने स्तुति को समझाते हुए कहा| मुझे लगा था की स्तुति मेरी बात समझ गई होगी मगर मेरी लाड़ली को मेरे बिना चैन कहाँ पड़ता था?! इधर मैं बाथरूम में घुस कमोड पर बैठ कर शौच कर रहा था, उधर स्तुति रेंगते-रेंगते मेरे पीछे आ गई| वैसे तो बाथरूम का दरवाजा बंद था परन्तु दरवाजे पर से कुण्डी मैंने स्तुति के गलती से बाथरूम में बंद हो जाने के डर से हटवा दी थी इस कारण दरवाजा केवल उढ़का हुआ था| स्तुति खदबद-खदबद कर दरवाजे तक आई और दरवाजे के नीचे से आ रही रौशनी को देख स्तुति ने अपना हाथ दरवाजे के नीचे से अंदर की ओर खिसका दिया| जैसे ही मुझे स्तुति का छोटा सा हाथ नज़र आया मैं समझ गया की मेरी शैतान बिटिया मेरे पीछे-पीछे बाथरूम तक आ गई है!

"बेटा मैं छी-छी कर रहा हूँ, आप थोड़ी देर रुको मैं आता हूँ!" मैं बाथरूम के भीतर से मुस्कुराते हुए बोला| परन्तु मेरी बिटिया को कहाँ कुछ समझ आता उसने सोचा की मैं उसे अंदर बुला रहा हूँ इसलिए स्तुति बहुत खुश हुई| स्तुति ने अब तक ये सीख लिया था की दरवाजे को धक्का दो तो दरवाजा खुल जाता है इसलिए मेरी बिटिया बाथरूम का दरवाज़ा भीतर की ओर धकेलते हुए अंदर आ गई| मुझे कमोड पर बैठा देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो मेरे सामने ही बैठ कर हँसने लगी! "बेटा, आप बहार जाओ, पापा जी को छी-छी करनी है!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया मगर स्तुति कुछ समझे तब न?! वो तो खी-खी कर हँसने लगी! स्तुति को हँसते हुए देख मेरी भी हँसी छूट गई! मुझे हँसते हुए देख स्तुति को बहुत मज़ा आया और वो हँसते हुए मेरे नज़दीक आने लगी! अब मैं जिस हालत में था उस हालत में मैं स्तुति को अपने नज़दीक नहीं आने देना चाहता था इसलिए मैंने अपने दोनों हाथ स्तुति को दिखा कर रोकते हुए बोला; "नहीं-नहीं बेटा! वहीं रुको!" इस बार स्तुति ने मेरी बात मान ली और अपनी जगह बैठ कर ही खी-खी कर हँसने लगी!

उधर, संगीता चाय बनाने के लिए अंदर आई थी और बाथरूम से आ रही हम बाप-बेटी के हँसी-ठहाके की आवाज़ सुन वो बाथरूम में आ गई| मुझे कमोड पर हँसता हुआ सिकुड़ कर बैठा देख और स्तुति को बाथरूम के फर्श पर ठहाका लगा कर हँसते हुए देख संगीता भी खी-खी कर हँसने लगी! "जान, प्लीज स्तुति को बहार ले जाओ वरना अभी दोनों बच्चे यहाँ आ जायेंगे!" मैंने अपनी हँसी रोकते हुए कहा| "आजा मेरी लाडो!" ये कहते हुए संगीता ने स्तुति को उठाया और बाहर छत पर ले जा कर सबको ये किस्सा बताने लगी| जब मैं कपड़े बदलकर छत पर आया तो सभी हँस रहे थे| "ये शैतान की नानी किसी को चैन से साँस नहीं लेने देती!" माँ हँसते हुए बोलीं| स्तुति को कुछ समझ नहीं आया था मगर वो कहकहे लगाने में व्यस्त थी|



बच्चों को मैं हर प्रकार से खुश रख रहा था, उन्हें इतना लाड-प्यार दे रहा था जिसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं की थी| परन्तु अभी भी एक सुख था जिससे मेरे बच्चे और मैं वंचित थे, लेकिन नियति ने मुझे और मेरे बच्चों को इस सुख को भोगने का भी मौका दे दिय| एक दिन की बात है, मैं और स्तुति अकेले रेलगाड़ी वाला खेल खेलने में व्यस्त थे जबकि दोनों बच्चे अपना-अपना होमवर्क करने में व्यस्त थे| मेरी और स्तुति की हँसने की आवाज़ सुन आयुष अपना आधा होमवर्क छोड़ कर आ गया, उसने मुझे स्तुति के साथ रेल गाडी वाला खेल खेलते हुए देखा तो पता नहीं अचानक आयुष को क्या सूझा की वो दबे पॉंव मेरे पास आया और मेरी पीठ पर बैठ गया! आयुष के मेरे पीठ पर बैठते ही एक पिता के मन में अपने बच्चों को घोडा बनकर सैर कराने की इच्छा ने जन्म ले लिया| "बेटा मुझे कस कर पकड़ना|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और धीरे-धीरे चलने लगा| मेरे धीरे-धीरे चलने से आयुष को मज़ा आने लगा और वो ख़ुशी से खिलखिलाने लगा| स्तुति ज़मीन पर बैठी हुई अपने बड़े भैया को मेरी पीठ पर सवारी करते देख बहुत प्रसन्न हुई और उसने मेरे पीछे-पीछे चलना शुरू कर दिया| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी का हँसी-ठहाका सुन नेहा अपनी पढ़ाई छोड़ कर आई और ये अद्भुत दृश्य देख कर बहुत खुश हुई| जब मैंने नेहा को देखा तो मैंने उसे अपने पास बुलाया; "आयुष बेटा, अब आपकी दीदी की बारी|" मैंने कहा तो आयुष नीचे उतर गया और उसकी जगह नेहा मेरी पीठ पर बैठ गई|

जब नेहा छोटी थी और मैं गाँव में था, तब मैंने नेहा को अपनी पद्दी अर्थात अपनी पीठ पर लाद कर खेलता था, परन्तु आज मेरी पीठ पर घोड़े की सवारी करना नेहा को कुछ अधिक ही पसंद आया था| नेहा को एक चक्कर घुमा कर मैंने दोनों बच्चों से स्तुति को पकड़ कर मेरी पीठ पर बिठाने को कहा, ताकि मेरी बिटिया रानी भी अपने पापा जी की पीठ की सवारी कर ले| आयुष और नेहा दोनों ने स्तुति को दाहिने-बहिने तरफ से सँभाला और मेरी पीठ पर बिठा दिया| मेरी पीठ पर बैठते ही स्तुति ने मेरी टी-शर्ट अपनी दोनों मुट्ठी में जकड़ ली| जैसे ही मैं धीरे-धीरे चलने लगा स्तुति को मज़ा आने लगा और उसकी किलकारियाँ गूँजने लगी! स्तुति के लिए ये एक नया खेल था और उसे इस खेल में बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था|

स्तुति को मस्ती से किलकारियाँ मारते हुए देख दोनों भाई-बहन भी ख़ुशी से हँस रहे थे| पूरे घर में जब बच्चों की खिलखिलाहट गूँजी तो माँ और संगीता इस आवाज़ को सुन खींचे चले आये| दोनों सास-पतुआ मुझे घोडा बना हुआ देख और मेरी पीठ पर स्तुति को सवारी करते देख ठहाका लगाने लगे| पूरे घर भर में मेरी बिटिया रानी के कारण हँसी का ठहाका गूँजने लगा था|

उस दिन से बच्चों को मेरी पीठ पर सवारी करने का नियम बन गया| तीनों बच्चे बारी-बारी से मेरी पीठ पर सवारी करते और 'चल मेरे घोड़े टिक-टिक' कहते हुए ख़ुशी से खिलखिलाते| बच्चों को अपनी पीठ की सवारी करा कर मुझे मेहताने के रूप में तीनों बच्चों से पेट भर पप्पी मिलती थी जो की मेरे लिए सब कुछ था| घोड़ सवारी करने के बाद तीनों बच्चे मुझे ज़मीन पर लिटा देते और मुझसे लिपटते हुए मेरे दोनों गाल अपनी मीठी-मीठी पप्पियों से गीली कर देते| कई बार मुझे यूँ ज़मीन पर लिटा कर पप्पियाँ देने में तीनों बच्चों के बीच पर्तिस्पर्धा हो जाती थी|

ऐसे ही एक दिन की बात है, दोपहर का समय था और स्तुति सोइ हुई थी| मैं जल्दी घर पहुँचा था इसलिए थकान मिटाने के लिए कपड़े बदल कर स्तुति की बगल में लेटा था| स्तुति को देखकर मेरा मन उसकी पप्पी लेने को किया इसलिए मैंने स्तुति को गोल-मटोल गालों को चूम लिया| मेरे इस लालच ने मेरी बिटिया की नींद तोड़ दी और स्तुति जाग गई| मुझे अपने पास देख स्तुति करवट ले कर उठी और अपने दोनों हाथों-पाँवों पर चलते हुए मेरे पास आई तथा मेरी छाती पर चढ़ कर मेरे दाएँ गाल पर अपने छोटे-छोटे होंठ टिका कर मेरी पप्पी लेने लगी| अपनी मम्मी की तरह स्तुति को भी मेरे गाल गीले करने में मज़ा आता था इसलिए स्तुति बड़े मजे ले कर अपनी किलकारियों से शोर मचा कर मेरी पप्पी लेने लगी| स्तुति की किलकारियाँ सुन आयुष कमरे में दौड़ा आया और स्तुति को मेरी पप्पी लेता देख शोर मचाते हुए बाहर भाग गया; "दीदी...मम्मी...देखो स्तुति को...वो अकेले पापा जी की सारी पप्पी ले रही है!" आयुष के हल्ला मचाने से नेहा उसके साथ दौड़ती हुई कमरे में आई और स्तुति को प्यार से धमकाते हुए बोली; "शैतान लड़की! अकेले-अकेले पापा जी की सारी पप्पियाँ ले रही है!" इतना कह नेहा ने स्तुति को पीछे से गोदी में उठाया और उसे मुझसे दूर कर मेरे दाएँ गाल की पप्पी लेने लगी| वहीं, आयुष भी पीछे नहीं रहा उसने भी मेरे बाएँ गाल की पप्पी लेनी शुरू कर दी| अब रह गई बेचारी स्तुति जिसे उसी की बड़ी बहन ने उसी के पापा जी की पप्पी लेने से रोकने के लिए दूर कर दिया था|
जिस प्रकार संगीता मुझ पर हक़ जताती थी, नेहा मुझ पर हक़ जताती थी उसी प्रकार स्तुति भी मुझ पर अभी से हक़ जताने लगी थी| जब वो मेरी गोदी में होती तो वो किसी को भी मेरे आस-पास नहीं रहने देती थी| ऐसे में जब नेहा ने उसे पीछे से उठा कर मेरी पप्पी लेने से रोका तो स्तुति को गुस्सा आ गया! मेरी बिटिया रानी हार न मानते हुए अपने दोनों हाथों-पाँवों पर रेंगते हुए मेरे नज़दीक आई और सबसे पहले अपने बड़े भैया को दूर धकेलते हुए मेरे पेट पर चढ़ गई तथा धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरे गाल तक पहुँची और फिर अपनी बड़ी दीदी को मुझसे दूर धकेलने की कोशिश करने लगी|

आयुष छोटा था और स्तुति को चोट न लग जाये इसलिए वो अपने आप पीछे हट गया था मगर नेहा बड़ी थी और थोड़ी जिद्दी भी इसलिए स्तुति के उसे मुझसे परे धकेलने पर भी वो चट्टान की तरह कठोर बन कर रही और मेरे दाएँ गाल से अपने होंठ भिड़ाये हँसने लगी| इधर जब स्तुति ने देखा की उसकी दीदी अपनी जगह से हट नहीं रही तो उसने अपना झूठ-मूठ का रोना शुरू कर दिया! ये झूठ-मूठ का रोना स्तुति तब रोती थी जब वो किसी का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करवाना चाहती हो|
खैर, स्तुति के रोने से हम सभी डरते थे क्योंकि एक बार स्तुति का साईरन बज जाता तो फिर जल्दी ये साईरन बंद नहीं होता था इसीलिए स्तुति का झूठ-मूठ का रोना सुन नेहा डर के मारे खुद दूर हो गई| अब स्तुति को उसके पापा जी के दोनों गाल पप्पी देने के लिए मिल गए थे इसलिए स्तुति ने मेरे दाएँ गाल पर अपने नाज़ुक होंठ टिकाये और मेरी पप्पी लेते हुए किलकारी मारने लगी| मेरी शैतान बिटिया रानी को आज अपनी इस छोटी सी जीत पर बहुत गर्व हो रहा था|
इधर, बेचारे आयुष और नेहा मुँह बाए स्तुति को देखते रहे की कैसे उनकी छोटी सी बहना इतनी चंट निकली की उसने अपने बड़े भैया और दीदी को अपने पापा जी से दूर कर कब्ज़ा जमा लिया!

उसी दिन से स्तुति ने मुझ पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया था| कहने की जर्रूरत तो नहीं की स्तुति ने ये गुण अपनी मम्मी से ही सीखा था| जिस प्रकार संगीता मेरे ऊपर हक़ जमाती थी, अपनी प्रेगनेंसी के दिनों में हमेशा मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचने की कोशिश करती थी, उसी प्रकार स्तुति भी बस यही चाहती की मैं बस उसी को लाड-प्यार करूँ| मेरी बिटिया रानी ने ये हक़ जमाने वाला गुण अपनी मम्मी से पाया था! उसके (स्तुति के) अलावा अगर मेरा ध्यान नेहा या आयुष की तरफ जाता तो स्तुति कुछ न कुछ कर के फौरन मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचती|



ऐसे ही एक दिन की बात है, रविवार का दिन था और हम बाप-बेटी टी.वी. पर कार्टून देख रहे थे| मैं आलथी-पालथी मारकर सोफे पर बैठा था और स्तुति मेरी गोदी में बैठी थी| मेरा बायाँ हाथ स्तुति के सामने गाडी की सीटबेल्ट की तरह था ताकि कहीं स्तुति आगे की ओर न फुदके तथा नीचे गिर कर चोटिल हो जाये| वहीं मेरी चुलबुली बिटिया रानी कार्टून देखते हुए बार-बार मेरा ध्यान टी.वी. की ओर खींचती और अपने हाथ के इशारे से कुछ समझाने की कोशिश करती| अब मेरे कुछ पल्ले तो पड़ता नहीं था की मेरी बिटिया रानी क्या कहना चाह रही है परन्तु अपनी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैं "हैं? अच्छा? भई वाह!" कह स्तुति की बातों में अपनी दिलचस्पी दिखाता|

ठीक तभी नेहा भी अपनी पढ़ाई खत्म कर के मेरे पास बैठ गई और कार्टून देखने लगी| नेहा को देख मैंने अपना दाहिना हाथ उठा कर नेहा के कँधे पर रख दिया| कुछ पल बाद जब स्तुति ने देखा की मेरा एक हाथ नेहा के कँधे पर है तो मेरी छोटी सी बिटिया रानी को जलन हुई और वो अपनी दीदी को दूर धकेलने लगी| अपनी छोटी बहन द्वारा धकेले जाने पर नेहा सब समझ गई और चिढ़ते हुए बोली; "छटाँक भर की है तू और मेरे पापा जी पर हक़ जमा रही है?! सुधर जा वरना मारब एक ठो तो सोझाये जैहो!" नेहा के मुँह से देहाती सुनना मुझे बड़ा अच्छा लगता था इसलिए मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, वहीं अपनी बड़ी दीदी द्वारा धमकाए जाने पर स्तुति डर के मारे रोने लगी| अतः मुझे ही बीच में बोल कर सुलाह करानी पड़ी; "नहीं-नहीं बेटा! रोते नहीं है!" मैंने स्तुति को अपने गले लगा कर थोड़े लाड कर रोने से रोका और नेहा को मूक इशारे से शांत रहने को कहा|



स्तुति का रोना सुन माँ, आयुष और संगीता बैठक में आये तो नेहा ने सबको सारी बात बताई| नेहा की सारी बात सुन आयुष और संगीता ने भी स्तुति की शिकायतें शुरू कर दी;

आयुष: दादी जी, ये छोटी सी बच्ची है न बहुत तंग करती है मुझे! मैं अगर पापा के पास जाऊँ न तो ये मेरे बाल खींचने लगती है! मैं और पापा अगर छत पर बैट-बॉल खेल रहे हों तो ये वहाँ रेंगते हुए आ जाती है, फिर ये पापा जी की टांगों से लिपट कर हमारा खेल रोक देती है!

आयुष ने पहल करते हुए अपनी छोटी बहन की शिकायत की|

संगीता: मेरे साथ भी ये यही करती है माँ! रात को सोते समय ये मुझे दूर धकलने लगती है, मानो पूरा पलंग इसी का हो! इनकी (मेरी) गैरहाजरी में अगर मैं इस शैतान को खाना खिलाऊँ तो ये खाने में इतने ड्रामे करती है की क्या बताऊँ?! एक दिन तो इसने सारा खाना गिरा दिया था!

संगीता ने भी अपनी बात में थोड़ा नमक-मिर्च लगा कर स्तुति की शिकायत की|

नेहा: दादी जी, जब भी मैं पापा जी के पास कहानी सुनने जाती हूँ तो ये शैतान मुझे कहानी सुनने नहीं देती| बीच में "आवव ववव...ददद...आ" बोलकर कहानी सुनने ही नहीं देती, अगर इसे (स्तुति को) रोको तो ये मुझे जीभ दिखा कर खी-खी करने लगती है!

जब सब स्तुति की शिकायत कर रहे थे तो नेहा ने भी स्तुति की एक और शैतानी माँ को गिना दी!

मम्मी, बहन, भाई सब के सब एक नन्ही सी जान की शिकायत करने में लगे थे| ऐसे में बेचारी बच्ची का उदास हो जाना तो बनता था न?! स्तुति एकदम से खामोश हो कर मेरे सीने से लिपट गई| माँ ने जब स्तुति को यूँ चुप-चाप देखा तो वो माँ-बेटा-बेटी को चुप कराते हुए बोलीं;

माँ: अच्छा बस! अब कोई मेरी शूगी (स्तुति) की शिकायत नहीं करेगा|

संगीता, नेहा और आयुष को चुप करवा माँ ने स्तुति को पुकारा;

माँ: शूगी ...ओ शूगी!

अपनी दादी जी द्वारा नाम पुकारे जाने पर स्तुति अपनी दादी जी को देखने लगी| माँ ने अपनी दोनों बाहें खोल कर स्तुति को अपने पास बुलाया मगर स्तुति माँ की गोदी में नहीं गई, बल्कि उसके चेहरे पर अपनी दादी जी के चेहरे पर मुस्कान देख प्यारी सी मुस्कान दौड़ गई! मैं स्तुति को ले कर माँ की बगल में बैठ गया, माँ ने स्तुति का हाथ पकड़ कर चूमा और स्तुति का बचाव करने लग पड़ीं;

माँ: मेरी शूगी इतनी छोटी सी बच्ची है, उसे क्या समझ की क्या सही है और क्या गलत?! हाँ वो बेचारी मानु से ज्यादा प्यार करती है तो क्या ये उसकी गलती हो गई?! नेहा बेटा, तू तो सबसे बड़ी है और तुझे स्तुति को गुस्सा करने की बजाए उसे प्यार से समझना चाहिए| ये दिन ही हैं स्तुति के बोलना सीखने के इसलिए वो बेचारी कुछ न कुछ बोलने की कोशिश करती रहती है, अरे तुझे तो स्तुति को बोलना सीखना चाहिए|

और तू आयुष, अगर स्तुति तुझे और मानु को बैट-बॉल नहीं खेलने देती तो उसे भी अपने साथ खिलाओ| स्तुति बैटिंग नहीं कर सकती मगर बॉल पकड़ कर तो ला सकती है न?! फिर तुम दोनों बाप-बेटे उसके साथ कोई दूसरा खेल खेलो!

और तू संगीता बहु, छोटे बच्चे नींद में लात मारते ही हैं| ये मानु क्या कम था, अरे जब ये छोटा था तो तो नींद में मुझसे लिपट कर मुझे ही लात मार देता था| लेकिन जब बड़ा होने लगा तो समझदार हो गया और सुधर गया, उसी तरह स्तुति भी बड़ी हो कर समझदार हो जाएगी और लात मारना बंद कर देगी|

माँ ने एक-एक कर तीनों माँ-बेटा-बेटी को प्यार से समझा दिया था, जिसका तीनों ने बुरा नहीं माना| हाँ इतना जर्रूर था की तीनों प्यारभरे गुस्से से स्तुति को देख रहे थे| जब माँ ने तीनों को स्तुति को इस तरह देखते हुए पाया तो उन्होंने किसी आर्मी के जर्नल की तरह तीनों को काम पर लगा दिया;

माँ: बस! अब कोई मेरी शूगी को नहीं घूरेगा! चलो तीनों अपने-अपने काम करो, वरना तीनों को बाथरूम में बंद कर दूँगी!

माँ की इस प्यारभरी धमकी को सुन तीनों बहुत हँसे और कमाल की बात ये की अपनी मम्मी, बड़े भैया तथा दीदी को हँसता हुआ देख स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी!


जारी रहेगा भाग - 20 (4) में...
Bhut bdiya, pyara update gurujii :love:
 

Rockstar_Rocky

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वाव इससे ज्यादा क्या लिखूँ
बचपन जो हम सबने खोया है उसे पहले नेहा के जरिए फिर आयुष के जरिए स्वल्प जिया था अब स्तुति के जरिए विस्तृत जी रहे हैं
भाई वाह

आपके प्यारभरे शब्दों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
अगली update मियाँ-बीवी के छोटे से वाक़्य और बच्चों के भसपने से जुडी होगी|
 

Abhi32

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आपकी प्रार्थनाओं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद भाई| 🙏

संगीता और बच्चे ठीक हैं, चरण काका के लड़की की लड़की की शादी है इसलिए सब वहीं व्यस्त हैं| कुछ दिनों में संगीता forum पर लौटेगी| अगली update लगबघ आधी लिखी जा चुकी है, कोशिश है की शनिवार रात तक post कर दूँ|
Ok bhai
 

Sanju@

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अभी भाई,

मेरी माँ की तबियत में पहले से सुधार है| उनकी बाईं जाँघ का दर्द अब पहले की तरह नहीं है, डॉक्टर ने x-ray करवाए के लिए कहा है मगर घर पर आ कर करने वाले व्यक्ति का इंतज़ाम नहीं हो पा रहा|

आपकी ओर बाकी सभी मित्रों की दुआओं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद| 🙏
मां का ख्याल रखिए भगवान से दुआ करते हैं कि मां जल्दी ठीक हो जाए 🙏🙏🙏🙏🙏
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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Nice and pyar bhara update.stuti ki shaitani ya masti bahut hi achhi .mataji ne sahi kaha ki choti bachhi hai use kya samajh hai baki update is too good.

आपके प्यारभरे शब्दों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
 
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