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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Lib am

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इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 {5(ii)}



अब तक अपने पढ़ा:


खैर, आज रात दो बजे का जुगाड़ हो गया था और क्या जुगाड था वो! रात के सन्नाटे में हम दोनों प्रेमी सबसे नजरें छुपाते हुए ऊपर वाली छत पर पहुँचे| वहाँ टंकी के नीचे चुहलबाज़ी करने के लिए काफी जगह थी, ऊपर से रात के इस पल में कोई हमें देखने वाला भी नहीं था| अब जब हमें किसी का भय नहीं था तो प्रेम का वो तूफ़ान उठा की हम दोनों ही पसीने से लथ-पथ हो गए| आज के इस प्रेमपसंग में कुछ अलग ही आनंद था, शायद खुले आसमान के तले प्रेम समागम करने की उत्तेजना का असर था!

थक कर जब हम कुछ पल के लिए साँस ले रहे थे तब संगीता मेरे सीने पर सर रखते हुए बोली; "जानू...आज सबसे छुप कर छत पर आते समय ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई 18 साल की युवती हूँ जो अपने प्रेमी से मिलने चोरी-छुपे छत पर आ रही हो!" संगीता की बता ने मुझे आज फिर गाँव में हमारे छिप-छिप कर मिलने की याद दिला दी, जिस कारण मेरे दिल में प्यारी सी गुदगुदी उठी; "मेरे लिए तो तुम हमेशा अठरह की बाली उम्र की रहोगी!" ये कहते हुए मैंने संगीता के सर को चूम लिया| मेरी प्यारभरी बात का असर संगीता पर खुमारी बन कर छाने लगा और इस मौके का लाभ उठा कर हमने फिर एक बार प्रेम समागम किया!



अब आगे:


स्तुति
के जन्मदिन से एक दिन पहले की बात है, दोपहर को खाना खाने के लिए मैं साइट पर से निकल चूका था| इधर घर में मेरी स्तुति बिटिया को खाना खिलाया जाना था, परन्तु मेरी बिटिया मेरे और माँ के अलावा किसी के भी हाथ से खाना नहीं खाती थी| अब माँ और मेरी सासु माँ मंदिर गए थे पंडित जी से बात करने इसलिए स्तुति को खाना खिलाने की जिम्मेदारी भाभी जी ने अपने सर ले ली| एक कटोरी में सेरेलक्स बना कर भाभी जी स्तुति को खिलाने बैठक में पहुँची| स्तुति तब बैठक के फर्श पर बैठी अपनी गेंद के साथ खेल रही थी, जैसे ही उसने अपनी मामी जी को अपनी तरफ आते देखा स्तुति अपने दोनों हाथों-पाओं पर रेंगती हुई भागने लगी| वहीं भाभी जी ने जब देखा की स्तुति उनसे दूर भगा रही है तो वो हँसते हुए बोलीं; "स्तुति... बेटा रुक जा! खाना खा ले" मगर स्तुति अपनी मामी जी की सुने तब न, वो तो खदबद-खदबद माँ के कमरे की तरफ भाग रही थी| ऐसा नहीं था की स्तुति बहुत तेज़ भाग रही थी और भाभी जी उसे पकड़ नहीं सकती थीं, बल्कि भाभी जी तो एक छोटे से बच्चे के साथ पकड़ा-पकड़ी खेलने का लुत्फ़ उठा रही थीं|

आखिर भागते-भागते स्तुति माँ के कमरे में पहुँच गई और सीधा अपनी मन पसंद जगह यानी माँ के पलंग के नीचे जा छुपी! "ओ नानी! बाहर आजा!" भाभी जी ने स्तुति को पलंग के नीचे से निकलने को कहा मगर मेरी बिटिया ने अपनी मामी जी की बात को हँसी में उड़ा दिया और खिलखिलाकर हँसने लगी! जब भाभी जी के बुलाने पर भी स्तुति पलंग के नीचे से नहीं निकली तो भाभी जी ने आवाज़ दे कर भाईसाहब, विराट, नेहा, आयुष और संगीता को मदद के लिए बुलाया| सभी लोग पलंग को घेर कर खड़े हो गए और स्तुति को बाहर आने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देने लगे| भाईसाहब स्तुति को प्यार से पुकार रह थे, तो नेहा स्तुति को प्यारभरी डाँट से बाहर आने को कह रही थी, वहीं आयुष अपनी बॉल ले आया और स्तुति को ललचा कर बाहर आने को कहने लगा| विराट को कुछ समझ नहीं आया तो उसने अपना हाथ पलंग के नीचे बैठी स्तुति की तरफ बढ़ा दिया| लेकिन विराट का हाथ देख स्तुति और अंदर को खिसक गई! कहीं स्तुति चोटिल न हो जाए इसलिए कोई भी पलंग के नीचे नहीं जा रहा था, सब बाहर से ही स्तुति को आवाज़ दे कर पुकार रहे थे| वहीं दूसरी तरफ, स्तुति सभी की आवाज़ सुन रही थी मगर वो बस खिलखिलाकर हँस रही थी और सभी को अपनी प्यारी सी जीभ दिखा कर चिढ़ा रही थी|



वहीं, संगीता सबसे पीछे खड़ी, हाथ बाँधे अपनी बेटी द्वारा सभी को परेशान करते हुए देख कर हँसे जा रही थी| ठीक तभी मैं घर पहुँचा और संगीता ने दरवाजा खोलते हुए मुझसे स्तुति की शिकायत कर दी; "जा के देखिये अपनी लाड़ली को!" इतना कहते हुए संगीता ने माँ के कमरे की तरफ इशारा किया| मैं माँ के कमरे में पहुँचा तो देखा की सभी लोग पलंग को घेर कर अपने घुटनों के बल झुक कर स्तुति को बाहर निकलने को कह रहे हैं मगर मेरी लाड़ली बिटिया किसी की नहीं सुन रही! "आ गए जादूगर साहिब!" संगीता ने सबका ध्यान मेरी तरफ खींचते हुए कहा| वहीं मुझे देखते ही भाभी जी उठ खड़ी हुईं और मुझसे शिकायत करते हुए बोलीं; "जैसे ही मैं स्तुति को सेरेलक्स खिलाने आई, ये नानी जा के पलंग के नीचे छुप गई!" भाभी जी की बात सुन मैं मुस्कुराया और स्तुति को पुकारते हुए बोला; "मेरा बच्चा!" मेरी आवाज़ सुन स्तुति ने पलंग के नीचे से झाँक कर मुझे देखा और मुझे देखते ही स्तुति खदबद-खदबद करती हुई अपने दोनों हाथों-पाओं पर मेरे पास दौड़ आई| मैंने स्तुति को अपनी गोदी में उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "मेरा बच्चा सबको तंग करता है?!" मेरे पूछे इस सवाल के जवाब में स्तुति शर्मा गई और मुझसे लिपट कर किलकारियाँ मारने लगी|

"भाभी जी, ये शैतान सिर्फ इनके या माँ (मेरी) के हाथ से ही खाना खाती है| बड़ी नखड़ेलू है ये शैतान!" संगीता हँसते हुए बोली| भाभी जी ने स्तुति को अपना प्यारभरा गुस्सा दिखाते हुए सेरेलक्स की कटोरी मुझे दी| मैंने स्तुति को उसकी ख़ास कुर्सी पर बिठाया और एक कटोरी में सेरेलक्स और बना लाया| इस समय सभी की नजरें हम बाप-बेटी (मुझ पर और स्तुति) पर थीं, सभी जानना चाहते थे की मैं स्तुति को कैसे खाना खिलाता हूँ?!



मैंने सेरेलक्स की दोनों कटोरी स्तुति के सामने रखी और एक चम्मच से स्तुति को खिलाने लगा| स्तुति एक चम्मच खाती और फिर अपना दायाँ या बायाँ हाथ सेरेलक्स की कटोरी में डाल कर अपनी मुठ्ठी में सेरेलक्स उठा कर मुझे खिलाती| मुझे खाना खिलाना स्तुति ने अपने बड़े भैया और दीदी से सीखा था| तो इस तरह शुरू हुआ हम बाप-बेटी का एक दूसरे को खाना खिलाना| ये दृश्य इतना मनोरम था की भाईसाहब, भाभी जी और विराट इस दृश्य को बड़े प्यार से देख रहे थे| जब स्तुति का खाना और मुझे खिलाना हो गया तो भाभी जी मुझसे बोलीं; "मुझे नहीं पता था की तुम इतने छोटे हो की अभी तक छोटे बच्चों का खाना खाते हो!" भाभी जी ने मज़ाक करते हुए कहा जिस पर सभी ने जोर से ठहाका लगाया|



माँ और सासु माँ के लौटने पर हम सभी खाना खाने बैठ गए| बाकी दिन तो मैं स्तुति को गोदी लिए रहता था और मुझे खाना आयुष तथा नेहा मिल कर खिलाते थे, परन्तु आज दोनों बच्चे अपनी नानी जी को खाना खिलाने में व्यस्त थे इसलिए मैंने स्तुति को डाइनिंग टेबल के ऊपर मेरे सामने बिठा दिया और मैं अपने हाथ से खाना खाने लगा| अब स्तुति को सूझी मस्ती तो उसने मेरी प्लेट में अपने दोनों हाथों से कभी रोटी तो कभी सब्जी उठाने की कोशिश शुरू कर दी| "नहीं बेटा, अभी आपको दाँत नहीं आये हैं, जब दाँत आ जायेंगे तब खाना|" मैंने स्तुति को समझाया| मेरे समझाने पर स्तुति खिलखिलाकर हँसने लगी और बार-बार मेरी थाली में 'हस्तक्षेप' करने लगी! मैंने स्तुति को व्यस्त करने के लिए उसका ध्यान बँटाने लगा| डाइनिंग टेबल पर सारा खाना ढका हुआ था और अभी तक स्तुति ने बर्तन के ऊपर से ढक्क्न हटाना नहीं सीखा था| बस एक सलाद की प्लेट थी जो की खुली पड़ी थी, लाल-लाल टमाटर और खीरे को देख स्तुति का मन मचल उठा और उसने सलाद वाली प्लेट की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया| अगले ही पल स्तुति ने अपनी छोटी सी मुठ्ठी में खीरे का एक स्लाइस उठा लिया और मुझे दिखाने लगी की 'देखो पापा जी, मैंने सलाद उठा ली!' स्तुति की मस्ती को देखते हुए मैं मुस्कुरा दिया और सर हाँ में हिलाते हुए स्तुति को खीरा खाने का इशारा किया| स्तुति ने आव देखा न ताव, उसने सीधा वो खीरे का स्लाइस अपने मुँह में भर लिया| अब अगर स्तुति के दाँत होते तब तो वो खा पाती न?! स्तुति तो बस आधे खीरे के स्लाइस को अपने मुँह में भरकर अपने मसूड़ों से काटने की कोशिश करने लगी, जब वो स्लाइस नहीं कटा तो स्तुति ने उस स्लाइस को चूसना शुरू कर दिया और जब सारा रस उसने चूस लिया तो अपना झूठा स्लाइस मेरी थाली में डाल दिया|

संगीता ने जब स्तुति की ये हरकत देखि तो वो गुस्सा हो गई; "ऐ लड़की! ये क्या कर रही है! थाली में अपना झूठा डाल रही है!" संगीता ने स्तुति को डाँटा जिससे मेरी बिटिया घबरा गई| खाने को ले कर संगीता का टोकना मुझे हमेशा ही अखरा है इसलिए मैंने संगीता को गुस्से से देखा और अपने हाथ पोंछ कर स्तुति को गोदी में ले लिया| "कोई बात नहीं बेटा! ये लो आप टमाटर खाओ|" ये कहते हुए मैंने सलाद की प्लेट में से टमाटर का एक स्लाइस उठा कर स्तुति के हाथ में दिया| लाल-लाल टमाटर देख स्तुति का ध्यान बंट गया और वो नहीं रोई, स्तुति ने अपने दोनों हाथों से टमाटर के स्लाइस को पकड़ा और उसका रस निचोड़ने लगी| अच्छे से टमाटर का रस निचोड़ कर स्तुति ने वो टुकड़ा मुझे दे दिया जिसे मैंने स्तुति को दिखाते हुए खा लिया| मुझे टमाटर खाता हुआ देख स्तुति बहुत खुश हुई और अपनी किलकारियाँ मारने लगी|

खाना खाने के बाद संगीता ने मुझसे अपने किये व्यवहार की माफ़ी माँगी और मैंने भी संगीता को माफ़ करते हुए उसे प्यार से समझा दिया; "स्तुति छोटी सी बच्ची है, उसे क्या समझ की थाली में झूठा डालते हैं या नहीं?! आगे से बेकार में यूँ मेरी लाड़ली को डाँट कर डराया मत करो!" संगीता ने कान पकड़ कर मुझसे पुनः माफ़ी माँगी और साथ-साथ स्तुति को भी सॉरी बोला!



अगले दिन स्तुति का जन्मदिन था और आज रात मुझे स्तुति को सबसे पहले जन्मदिन की बधाई देने की उत्सुकता थी| दिन में सोने के कारण स्तुति करीब 10 बजे तक जागती रही और इधर-उधर दौड़ते हुए खिलखिलाती रही| दो दिन से स्तुति अपनी मामी जी, बड़े मामा जी, नानी जी और विराट भैया को देख रही थी इसलिए वो बिना नखरा किये सबकी गोदी में खेल रही थी| साढ़े दस हुए तो सभी बच्चों को नींद आने लगी तथा मेरी ड्यूटी सभी बच्चों को कहानी सुना कर सुलाने की लगी| बच्चों के कमरे में मैं, विराट, आयुष, नेहा और स्तुति लेट गए| जैसे ही मैंने कहानी सुनानी शुरू की, स्तुति ने अपनी बोली भासा में किलकारियाँ मारते हुए कहानी के बीच अपनी दखलंदाज़ी शुरू कर दी| स्तुति का ध्यान भटकाने के लिए मैं स्तुति की ठुड्डी को सहला देता जिससे स्तुति को गुदगुदी होती और वो खिलखिलाकर हँसते हुए मुझसे लिपट जाती|

खैर, कहानी खत्म होते-होते सभी बच्चे सो गए थे| समस्या ये थी की मैं चाहता था की स्तुति जागती रहे ताकि मैं उसे उसके पहले जन्मदिन की बधाई दे कर उसे लाड-प्यार कर सकूँ| परन्तु अपनी इस इच्छा के लिए मैं स्तुति की नींद नहीं खराब करना चाहता था इसलिए मैंने स्तुति को अपने सीने से लिपटाये हुए पीठ के बल लेट गया| मेरी नजरें घड़ी पर टिकी थी की कब बारह बजे और मैं स्तुति को उसके जन्मदिन की सबसे पहली पप्पी दूँ! जैसे ही रात के बारह बजे मैंने स्तुति के सर को चूमा और धीरे से खुसफुसा कर; "हैप्पी बर्थडे मेरा बच्चा" कहा| पता नहीं कैसे पर स्तुति नींद में भी मेरी इस पप्पी को महसूस करने लगी और उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान खिल गई! अपनी बिटिया की इस मुस्कान को देख मैं उस पर मोहित हो गया और स्तुति के सर को चूमते हुए जागता रहा| दरअसल मैं उम्मीद कर रहा था की स्तुति जागेगी और मैं उसकी पप्पी ले कर उसे जन्मदिन की बधाई दूँगा|



स्तुति तो जागी नहीं अलबत्ता मुझे सुबह के 3 बजे झपकी लग गई और मैंने एक बहुत ही प्यारा सा ख्वाब देखा| इस ख्वाब में मैं और स्तुति एक हरे-भरे बगीचे में थे और स्तुति मेरी ऊँगली थाम कर चल रही थी, "पापा जी" कहते हुए स्तुति मुझसे बात कर रही थी तथा मैं स्तुति की बातों में खोया हुआ था| इधर घड़ी ने बजाये सुबह के 5 और मेरी बिटिया सबसे पहले जाग गई| स्तुति ने जब देखा की वो मेरे सीने पर सो रही है तो मेरी बिटिया खिसकते-खिसकते मेरे चेहरे के पास पहुँची और मेरे बाएँ गाल पर अपने प्यारे-प्यारे होंठ रख "उम्म्म" का स्वर निकालते हुए मुझे गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी| स्तुति की आदत थी की वो मुझे पप्पी देते हुए अपनी लार से मेरा गाल गीला कर देती थी, नींद में जब मैंने अपने गालों पर नमी महसूस की तो मैं एकदम से जाग गया!

"मेला प्याला-प्याला बच्चा जाग गया?!" ये कहते हुए मैंने स्तुति को अपने दोनों हाथों से पकड़ अपने चेहरे के सामने उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "बेटा, आज है न आपका जन्मदिन है! आज से ठीक एक साल पहले आपने मुझे पूरा 9 महीना इंतज़ार करवाने के बाद आप मुझे मिले थे| आपको पहलीबार अपनी गोदी में ले कर मेरा छोटा सा दिल ख़ुशी से भर उठा था| मेरे सीने से लग कर आपके नाज़ुक से दिल को चैन मिला था और जब मैंने आपके नन्हे से दाहिने हाथ को चूमा था न तो अपने झट से मेरी ऊँगली अपनी मुठ्ठी में जकड़ ली थी! उस पल से हम बाप-बेटी का एक अनोखा रिश्ता...एक अनोखा बंधन बँध गया था| न मैं आपके बिना अपनी जिंदगी की कल्पना कर सकता हूँ और न ही आप मेरे बिना रह सकते हो|” स्तुति ने आज मेरी बातें बड़े ध्यान से मेरी आँखों में देखते हुए सुनी| उधर मैं स्तुति के पैदा होने के दिन को याद कर भाव विभोर हो रहा था, स्तुति से मेरे पहले मिलन की उस वेला को पुनः याद कर मेरे रोंगटे खड़े हो रहे थे| यदि मैं अधिक भाव विभोर हो जाता तो मेरी बिटिया रानी रो पड़ती इसलिए मैंने स्तुति के प्यारी-प्यारी आँखों को गौर से देखा और मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| "मेरे प्यारु बेटू, आपको आज के दिन की बहुत-बहुत मुबारकबाद! आपको मेरी भी उम्र लग जाए! आप धीरे-धीरे बड़े होना और इसी तरह अपनी प्यारी सी मुस्कान से मुझे हँसाते रहना| खूब पढ़ना, खूब खेलना और अपनी मस्तियों से सभी को खुश करना| आपका जीवन खुशियों से भरा हुआ हो और आपकी जिंदगी में ये खुशियों से भरा हुआ दिन हर साल आये! आई लव यू मेरा बच्चा!" मैंने स्तुति को दिल से बधाई देते हुए कहा| मेरे द्वारा अंत में आई लव यू कहने से मेरी बिटिया के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान फ़ैल गई और स्तुति ने आज पहलीबार कुछ बोलने की कोशिश की; "अव्व...ववव...व्वू!" स्तुति आई लव यू कहना चाह रही थी मगर चूँकि वो बोल नहीं सकती थी इसलिए वो इन शब्दों को गुनगुनाने की कोशिश कर रही थी|

इधर जब मैंने स्तुति को मुझे आई लव यू कहते हुए सुना तो मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ! मैं एकदम से उठ बैठा और स्तुति को अपने सीने से लगा कर ख़ुशी से भर उठा! "मेरा प्यारा बच्चा! आज आपने मुझे आई लव यू कह कर मुझे अबतक का सबसे अच्छा तोहफा दिया है!" मेरी लाड़ली बिटिया ने आज सुबह मेरे द्वारा देखा गया सपना की स्तुति मुझसे बात कर रही है, आई लव यू गुनगुना कर पूरा कर दिया था|



स्तुति को गले से लगाए हुए मैं उठा और कमरे से बाहर आ गया| कमरे से बहार आते ही मेरी बिटिया चहकने लगी और उसकी किलकारियाँ घर में गूँजने लगी| स्तुति की किलकारी सबसे पहले माँ और मेरी सासु माँ ने सुनी, माँ ने मुझे अपने पास बुलाया और स्तुति के मस्तक को चूम कर जन्मदिन की बधाई दी; "मेरी लाड़ली शूगी को जन्मदिन की ढेर सारी मुबारकबाद! जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ और पढ़-लिख कर हमारा नाम रोशन करो!" माँ ने अपनी बधाई में स्तुति को जल्दी से बड़ा होने को कहा था जबकि मैंने स्तुति से धीरे-धीरे बड़ा होने को कहा था, इन दोनों बधाइयों से स्तुति उलझन में पड़ गई थी की वो किसकी बात माने; मेरी या फिर अपनी दादी जी की! "क्या माँ, मैं चाहता हूँ की स्तुति धीरे-धीरे बड़ी हो ताकि मुझे उसके बचपन को जीने का पूरा मौका मिले और आप हो की स्तुति को जल्दी बड़ा होने को कह रहे हो?!" मैं मुँह फुलाते हुए माँ से प्यारभरी शिकायत करते हुए बोला| मेरी बचकानी शिकायत सुन माँ ने मेरे गाल पर हाथ फेरा और मुझे समझाते हुए बोलीं; "पगले, लड़कियाँ लड़कों के मुक़ाबले जल्दी बड़ी हो जाती हैं| तेरे कहने भर से थोड़े ही स्तुति खुद को बड़ा होने से रोक लेगी?!" माँ की बात सही थी मगर मेरा बावरा मन माने तब न!

खैर, माँ के बाद मेरी सासु माँ ने भी स्तुति को जन्मदिन की बधाई दी तथा स्तुति के गाल चूमते हुए बोलीं; "हमार मुन्ना (यानी मेरी) खतिर हमेसा नानमुन बने रहेओ ताकि मानु तोहका जी भरकर प्यार कर सके|" मेरी सासु माँ ने मेरे मन की बधाई स्तुति को दी तो मेरा चेहरा फिर से खिल गया|



धीरे-धीरे सभी लोग जागते गए और एक-एक कर स्तुति की पप्पी ले कर उसे जन्मदिन की बधाई देने लगे| रह गए थे तो दोनों बच्चे जिन्हें जगाने मुझे जाना पड़ा; "बेटा...उठो" मेरे इतना कहते ही नेहा झट से उठ बैठी और मेरी गोदी में स्तुति को देख ख़ुशी से झूमती हुई स्तुति की पप्पी ले कर बोली; "हैप्पी बर्थडे स्तुति! गॉड ब्लेस्स यू!" अपनी दीदी से जन्मदिन की बधाई पा कर स्तुति बहुत खुश हुई और अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| इधर कहीं मेरी बिटिया नेहा अकेला न महसूस करे इसलिए मैंने स्तुति के साथ-साथ उसे भी अपने सीने से लगा लिया| स्तुति की किलकारी सुन आयुष जाग गया और आँख मलते-मलते पलंग पर खड़ा हो गया| आयुष ने स्तुति की पप्पी ले कर उसे बधाई देनी चाही मगर स्तुति ने अपने बड़े भैया को पप्पी देने से मना करते हुए मुँह मोड़ लिया! "पापा जी, देखो स्तुति मुझे पप्पी नहीं दे रही!" आयुष अपनी छोटी बहन की शिकायत करते हुए बोला|

इतने में नेहा बड़ी हाज़िर जवाबी से स्तुति का पक्ष लेते हुए बोली; "इतना लेट क्यों उठा? लेट उठा है न इसलिए स्तुति की सारी पप्पी हमने ले ली और तेरे लिए कुछ नहीं बचा!” नेहा ने आयुष को चिढ़ाते हुए कहा तो आयुष ने अपना मुँह फुला लिया! आयुष को ऐसा लग रहा था मानो उसके सामने हम सब ने उसकी मनपसंद चाऊमीन खा ली हो और उस बेचारे को देखने को बस खाली प्लेट नज़र आ रही हों! आयुष का मुँह फूला हुआ देख नेहा खूब हँसी और उसकी पीठ पर थपकी मारते हुए बोली; "अच्छा जा कर पहले मुँह धो कर आ! स्तुति बासी मुँह किसी को अपनी मीठी-मीठी पप्पी नहीं देती|" अपनी दीदी की बात सुन आयुष बिजली की रफ्तार से दौड़ा और ब्रश कर के आ गया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर नीचे झुका और आयुष ने अपनी छोटी बहन के दाएँ गाल को चूमते हुए उसे जन्मदिन की प्यारभरी बधाई दी; "स्तुति, आपको जन्मदिन मुबारक हो! मैं आपका बड़ा भाई हूँ न, तो आज के दिन मैं आपके सारे काम करूँगा| आपको कुछ भी चाहिए हो तो मुझे बताना!" आयुष को अपने बड़े भाई होने पर बहुत गर्व था और वो आज अपने भाई होने का दायित्व निभाना चाहता था|

"बड़ा आया बड़ा भाई!" नेहा मुँह टेढ़ा करते हुए बोली और कमरे से जाते-जाते आयुष की पीठ पर एक मुक्का धर गई!



हम सभी चाय-नाश्ता कर के तैयार हुए तथा मैंने सभी के एक साथ जाने के लिए किराए पर इन्नोवा (Innova) गाडी मँगाई| गाडी बहुत बड़ी थी और मैंने आजतक इतनी बड़ी गाडी नहीं चलाई थी, कहीं मैं गाडी ठोक न दूँ इसके लिए मैंने भाईसाहब को गाडी चलाने को कहा| भाईसाहब की बगल में भाभी जी बैठीं थी और उनके पीछे माँ, संगीता और मेरी सासु माँ बैठे| मैं, मेरी गोदी में स्तुति, नेहा, आयुष और विराट सबसे पीछे सिकुड़ कर बैठे| सबसे पीछे बैठ कर हम पाँचों ने खूब धमा-चौकड़ी मचाई| करीबन पौने घंटे बाद हम सभी अपने गंतव्य स्थान यानी के एक अनाथ आश्रम पहुँचे| आज स्तुति के जन्मदिन के दिन हम स्तुति के हाथों उन बच्चों के लिए भोजन की सामग्री लाये थे जिनके सर पर परिवार का साया नहीं होता| गाडी खड़ी कर मैंने, भाईसाहब ने, आयुष, नेहा और विराट ने मिल कर खाने की सामग्री यानी आटा, दाल, सब्जी, मसाले, मिठाई, तेल, घी आदि गाडी से निकाल कर आश्रम की रसोई में रखे| इस आश्रम के प्रबंधक से माँ और मैं, आज की दिन की सेवा के लिए पहले ही बात कर चुके थे|

सभी खाने की सामग्री रखने के बाद हम प्रबंधक जी के साथ एक हॉल में पहुँचे जहाँ प्रबंधक जी ने सभी बच्चों से हमारा तार्रुफ़ करवाया| आश्रम में बच्चे आयुष की उम्र से ले कर विराट की उम्र के बीच के थे तथा सभी बच्चे बड़े ही सभ्य थे| जब सभी बच्चों को पता चला की आज स्तुति का जन्मदिन है तो सभी ने एक स्वर में स्तुति के लिए 'हैप्पी बर्थडे टू यू' का गाना गाया| इतने सारे बच्चों को गाना गाते देख स्तुति बड़ी खुश हुई और किलकारियाँ मार कर सभी बच्चों के साथ गाना गाने की कोशिश करने लगी| संगीता और भाभी जी ने जब स्तुति को; "अव्व्व...वववूऊ" कर के गाना गाते सूना तो दोनों आस्चर्यचकित रह गईं| तब मैंने उन्हें आज स्तुति के मुझे आई लव यू कहने के बारे में बताया, जिस पर भाभी चुटकी लेते हुए बोलीं; "ले संगीता, अब तो स्तुति मानु को आई लव यू कहने लगी! अब तेरा क्या होगा?!" भाभी जी ने केवल मज़ाक किया था मगर संगीता को इस बात से मीठी सी जलन होने लगी थी, तभी उसने स्तुति के गाल खींचते हुए खुसफुसा कर कहा; "खबरदार जो मेरे पति पर इस तरह हक़ जमाया तो! तेरे पापा होंगें बाद में, पहले तो मेरे पति हैं!" चूँकि स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैंने संगीता की सारी बात सुन ली थी और मेरे चेहरे पर खुद पर दो लोगों द्वारा हक़ जमाने की बात सुन गर्वपूर्ण मुस्कान तैरने लगी थी|



आश्रम से निकल कर हम घर के लिए निकले परन्तु इस यात्रा को दिलचस्प बनाने के लिए मैंने मेट्रो से जाने की बात रखी| मेरी सासु माँ, विराट, भाभी जी और संगीता ने आज तक मेट्रो से सफर नहीं किया था इसलिए उन्हें पहलीबार मेट्रो घुमाना तो बनता था| हमने तीन ऑटो किये और नज़दीकी मेट्रो स्टेशन पहुँचे| मेट्रो स्टेशन पहुँचते ही आयुष और नेहा ने चौधरी बनते हुए कमान सँभाली, अब देखा जाए तो दोनों बच्चे स्कूल में PREFECT और क्लास मॉनिटर थे तो दोनों ने हम सभी को अपनी क्लास के बच्चे समझ लिफ्ट में कैसे जाना है समझना शुरू कर दिया| लिफ्ट में हम सब दो झुण्ड में घुसे, पहले झुण्ड का नेतृत्व आयुष ने किया और दूसरे झुण्ड का नेतृत्व नेहा ने किया| मेरी सासु माँ, विराट और भाभी जी के लिए लिफ्ट का अनुभव नया था इसलिए वो इस छोटी सी यात्रा से थोड़े घबराये हुए थे| वो तो आयुष और नेहा उनके साथ थे इसलिए दोनों बच्चों ने अपनी नानी जी तथा अपनी बड़ी मामी जी को डरने नहीं दिया, बल्कि उन्हें लिफ्ट कैसे चलती है ये समझाने लगे|

नीचे मेट्रो स्टेशन के भीतर पहुँच कर नेहा ने सभी को एक जगह खड़े रहने को कहा तथा मेरी ड्यूटी सभी की टिकट लाने के लिए लगा दी| जबतक मैं सबकी टिकट ले कर आया तब तक दोनों बच्चों ने मेट्रो में कैसे सफर करना है ये सब बातें एक टीचर की तरह बाकी सब को समझाईं| जब मैं टिकट ले कर लौटा तो नेहा ने घर की सभी महिलाओं को अपने साथ ले कर महिलाओं की जहाँ सुरक्षा जाँच हो रही थी उस कतार में लग गई| बचे हम पुरुष तो हमें आयुष का कहा मानना था इसलिए हम सब आयुष के पीछे पुरुष सुरक्षा जाँच की कतार में लग गए| मैं सबसे आखिर में खड़ा था और मेरी गोदी में थी स्तुति, जब मेरी सुरक्षा जाँच का नंबर आया तो स्तुति को देख गार्ड साहब मुस्कुरा दिए; "बेटा, आप तो गलत लाइन में लग गए!" गार्ड साहब ने स्तुति से मज़ाक करते हुए कहा| आयुष ने जब देखा की स्तुति नेहा के साथ जाने की बजाए मेरे साथ है तो वो गार्ड साहब से बोला; "अंकल जी, ये मेरी छोटी बहन है और आज इसका जन्मदिन है| ये पापा जी के शिव किसी की गोदी में नहीं रहती इसलिए प्लीज मेरी छोटी बहन को माफ़ कर दीजिये|" आयुष ने हाथ जोड़ते हुए गार्ड साहब से अपनी छोटी बहन की वक़ालत की| एक छोटे से बच्चे को यूँ हाथ जोड़ कर विनती करते देख गार्ड साहब मुस्कुरा दिया और बोले; "कोई बात नहीं बेटा, हम बिटिया की सुरक्षा जाँच माफ़ कर देते हैं|" ये कहते हुए गार्ड साहब ने मेरी नाम मात्र की सुरक्षा जाँच की और हमें जाने दिया| गार्ड साहब की उदारता देख आयुष ने उन्हें हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा जिसपर गार्ड साहब ने आयुष को "खुश रहो बेटा" कहा|



सभी की सुरक्षा जाँच हुई और हम सभी एक झुण्ड बना कर मेट्रो के आटोमेटिक (automatic) गेट के सामने खड़े हो गए| आयुष और नेहा ने एक बार फिर कमान सँभाली और सभी को मेट्रो की टिकट के इस्तेमाल से गेट कैसे खोलते हैं ये सिखाया| सबसे पहले नेहा ने अपनी नानी जी की हथेली में मेट्रो का टिकट दिया और उनका हाथ पकड़ कर मशीन से छुआ दिया| जैसे ही मशीन ने टिकट को पढ़ा (read किया), गेट अपने आप खुल गये| मेरी सासु माँ इस अचम्भे को देखने में व्यस्त थीं की तभी पीछे से आयुष चिल्लाया; "जल्दी करो नानी जी, वरना गेट बंद हो जायेगा!" अपने नाती की बात सुन मेरी सासु माँ जल्दी से गेट के उस पार चली गईं| फिर बारी आई मेरी माँ की, मेरी माँ मेरे साथ 1-2 बार मेट्रो में गई थीं परन्तु उन्हें अब भी मेट्रो के इस गेट से डर लगता था इसलिए नेहा ने ठीक अपनी नानी जी की ही तरह अपनी दादी जी का हाथ पकड़ कर मेट्रो की टिकट मशीन से स्पर्श करवाई, जैसे ही गेट खुला माँ सर्रर से उस पार हो गईं! फिर बारी आई भाभी जी की और उन्होंने अभी जो देख कर सीखा था उसे ध्यान में रखते हुए वे भी बहुत आसानी से पार हो गईं| अगली बारी थी संगीता की मगर वो जाने से घबरा रही थी और बार-बार मेरी तरफ ही देख रही थी इसलिए मैंने विराट की पीठ पर हाथ रख उसे आगे जाने का इशारा किया| आयुष ने आगे आ कर अपने विराट भैया को एक बार सब समझाया, विराट समझदार था इसलिए वो भी फट से पार हो गया| विराट के जाने के बाद नेहा भी गेट से पार हो गई| अब बारी आई भाईसाहब की और उन्होंने घबराने का बेजोड़ अभिनय किया ताकि उनका भाँजा उन्हें एक बार फिर से सब समझाये| आयुष ने अपने बड़े मामा जी को छोटे बच्चों की तरह समझाया, ये दृश्य इतना प्यारा था की सभी लोग मुस्कुरा रहे थे|

भाईसाहब के गेट से पार होते ही आयुष अपनी मम्मी से बोला; "चलो मम्मी, अब आपकी बारी!" अब संगीता को जाना था मेरे साथ इसलिए वो थोड़ा चिढ़ते हुए बोली; "तुझे बड़ी जल्दी है! तू ही जा, मैं बाद में आती हूँ!" आयुष ने अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाया और फुर्र से गेट के पार हो गया| आयुष की जीभ चिढ़ाने का संगीता पर कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस आँखों में प्रेम लिए मुझे देख रही थी| मैंने संगीता के हाथ में उसकी टिकट दी और उसका हाथ पकड़ कर मशीन से स्पर्श करवाया तथा संगीता को उत्तेजित करने के इरादे से उसका हाथ पकड़ कर धीरे से मीस दिया! "ससस" करते हुए संगीता सीसियाई और आँखों ही आँखों में मुझे उलहाने देते हुए गेट से पार हो गई| अब केवल मैं बचा था और मेरे मन में भरा था बचनपना, मैंने स्तुति का ध्यान मशीन की तरफ खींचा और अपना पर्स मशीन से स्पर्श करवाया| अचानक से मशीन ने गेट खोला तो स्तुति हैरान हो गई, फिर जैसे ही मैं गेट से पार हुआ तो गेट पुनः बंद हो गया| स्तुति ने जब गेट बंद होते हुए देखा तो वो अस्चर्य से भर गई और मेरा ध्यान उस गेट की तरफ खींचने लगी| स्तुति की उत्सुकता देख, मैं अपनी सालभर की बिटिया को मेट्रो के गेट खुलने और बंद होने की प्रक्रिया के बारे में बताने लगा|



उधर मेरे दोनों बच्चे सभी को एस्केलेटर्स से नीचे कैसे उतरते हैं ये समझाने लगे| भाभी और मेरी सासु माँ को एस्केलेटर्स से उतरने में डर लग रहा था, यहाँ तक की मेरी माँ जो की एक बार मेरे साथ एस्केलेटर्स की सैर कर चुकी हैं वो भी घबरा रहीं थीं| "आप अब बिलकुल मत घबराओ, आपकी साड़ियाँ एस्केलेटर्स में नहीं फसेंगी क्योंकि ये मशीन बनाई ही इस तरह गई है की इसके बीच किसी भी प्रकार का कपड़ा नहीं फँस सकता|" मैंने तीनों महिलाओं को आश्वस्त किया और दो-दो की जोड़ियाँ बनाने लगा| "(सासु) माँ भाईसाहब को एस्केलेटर्स इस्तेमाल करना आता है इसलिए आप भाईसाहब के साथ उतरियेगा| भाभी जी, आप के साथ संगीता होगी, उसे मैंने एस्केलेटर्स पर कैसे चढ़ते-उतरते हैं ये सीखा रखा है और माँ आप मेरे साथ मेरा हाथ पकड़ कर रहना आपको बिलकुल डर नहीं लगेगा|" मैंने अपनी माँ का हाथ थमाते हुए उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा| सबसे पहले मैं और माँ एस्केलेटर्स के पास पहुँचे, माँ का ध्यान अब भी अपनी साडी के एस्केलेटर्स पर फँसने पर था इसलिए मैंने माँ को पुनः आश्वस्त किया; "माँ, साडी पर ध्यान मत दो| आप बस मेरा हाथ थामे रहो और जब मैं कहूँ तब अपने बायें हाथ से एस्कलेटर की बेल्ट थामते हुए अपना दाहिना पैर आगे रखना|" मैंने माँ को समझा दिया था मगर मेरी माँ फिर भी घबरा रहीं थीं| 4-5 कोशिशों के बाद आखिर माँ मेरे साथ एस्केलेटर्स पर सवार हो ही गईं| मैं, मेरी गोदी में स्तुति और माँ, हम तीनों जैसे ही एस्केलेटर्स पर सवार हुए की स्तुति ने ख़ुशी के मारे चिल्लाना शुरू कर दिया| स्तुति आज पहलीबार मेट्रो में आई थी इसलिए नई-नई चीजें, नए-नए अनुभव महसूस कर स्तुति सबसे ज्यादा खुश थी|

हम तीनों माँ- बेटा-बेटी (स्तुति) नीचे पहुँचे तो हमारे पीछे-पीछे भाभी जी और संगीता भी एस्केलेटर्स पर सवार हो कर नीचे आ गए, एस्केलेटर्स की सवारी भाभी जी को बहुत अच्छी लगी थी जो की उनके चेहरे पर एक बच्चे की मुस्कान के रूप में दिख रही थी| फिर आये भाईसाहब और उनका हाथ थामे मेरी सासु माँ, नीचे पहुँच सासु माँ ने चैन की साँस ली और अपने कान पकड़ते हुए बोलीं; "हमार तौबा, हमार बाप की तौबा! हम दुबारा ई मसीन (एस्केलेटर्स) पर न चढ़ब! हम तो ऊ…ऊ का होत है...ऊ मशीन जो ऊपर से नीचे लाइ रही?! (लिफ्ट) ऊ मसीन मा ही जाब!" मेरी सासु माँ द्वारा कही बात को सुन हमें बड़ी हंसी आई और हम ठहाका लगा कर हँसने लगे!



हम सब तो नीचे आ गए थे, रह गए थे तो तीनों बच्चे; "मानु, ये तीनों कहीं गिर न जाएँ?" भाभी जी तीनों बच्चों की चिंता करते हुए बोलीं|

"चिंता न करो भाभी जी, आयुष और नेहा बहुत समझदार हैं| देखना वो दोनों विराट का हाथ पकड़े आते होंगें|" मैंने अपने दोनों बच्चों की तारीफ की जिसपर संगीता चुटकी लेते हुए बोली; "हाँ भाभी, इन दोनों को इन्होने ऐसी ट्रेनिंग दी है की अगर इन दोनों शैतानों को अकेला छोड़ दिया जाए तो भी दोनों अकेले घर आ जाएँ|" संगीता की टिपण्णी सुन भाभी जी हँस पड़ीं और मेरी पीठ थपथपाने लगीं|



आखिर तीनों बच्चे एस्कलेटर पर धीरे-धीरे नीचे आने लगे और अपने भैया और दीदी को एस्केलेटर्स से नीचे आते देख स्तुति ने ख़ुशी से खिलखिलाना शुरू कर दिया| हम सब मेट्रो के आखरी वाले डिब्बे के सामने जो बैठने की जगह बनी होती है वहाँ जा कर बैठ गए| एक बार फिर आयुष और नेहा ने मिल कर सभी को मेट्रो ट्रैन में कैसे चढ़ना-उतरना है ये समझाना शुरू कर दिया| दोनों बच्चों की ज्ञान से भरी बातें सुन सासु माँ, भाभी जी और भाईसाहब बहुत खुश हुए और दोनों बच्चों की तारीफ करने लगे| अपनी तारीफ सुन दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए और मुझे सारा श्रेय देते हुए बोले; "ये सब हमें पापा जी ने सिखाया है!" नेहा बोली, मैंने भी एक अध्यापक की तरह गर्व करते हुए बारी-बारी से मेरे छात्रों...यानी अपने बच्चों को आशीर्वाद देते हुए प्यार किया|



हमारी ट्रैन आने तक बच्चे सभी को अपनी बातों में लगाए हुए थे और पीछे स्टेशन पर जो ट्रैन आ रहीं थीं उसके बारे में बता रहे थे| इधर मेरी लाड़ली बिटिया मेट्रो ट्रैन देख कर उत्साह से भरी हुई थी, वो बार-बार ट्रैन देख कर मेरी गोदी से उतरने के लिए छटपटाने लगती| आखिर मैं स्तुति को ले कर पीछे खड़ी मेट्रो ट्रैन के पास पहुँचा ताकि स्तुति मेट्रो ट्रैन को नज़दीक से देख सके| मेट्रो ट्रैन के नज़दीक पहुँचते ही स्तुति को लोग नज़र आये और उसने सभी को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया, लेकिन सभी जल्दी में थे इसलिए कुछ लोगों ने स्तुति को नज़रअंदाज़ किया तो कुछ ने हाथ हिला कर स्तुति को बाय (bye) कहा|
इतने में हमारी ट्रैन आ गई और जैसा की होता है, आखरी वाला डिब्बा लगभग खाली था| हम सभी सँभाल कर ट्रैन में चढ़े, आयुष उत्साही था तो उसने सबसे पहले सीट पकड़ी मगर वो अनजाने में महिलाओं तथा वृद्ध लोगों के लिए आरक्षित सीट पर बैठ गया! "आयुष! उठ वहाँ से, वो जगह दादी जी और नानी जी के लिए है!" नेहा ने आयुष को डाँट लगाई| आयुष को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो कान पकड़ते हुए नेहा से बोला; "सॉरी दीदी!" इतना कह आयुष ने अपनी दादी जी और नानी जी का हाथ पकड़ उन्हें उस सीट पर बिठाया तथा उनकी बगल में बैठ गया| नेहा ने आयुष को प्यार से समझाते हुए कहा; "ट्रैन में ये सीट केवल बड़े लोगों और लेडीज के लिए होती है| दुबारा ऐसी गलती करेगा न तो बाकी सब से मार खायेगा|" अपनी दीदी की दी हुई सीख समझ आयुष ने एक बार फिर सॉरी कहा|



ट्रैन में चल रहे AC की हवा, अपने आप खुलते बंद होते मेट्रो ट्रैन के दरवाजे और बार-बार हो रही अलग-अलग घोषणा सुन कर सभी हैरान थे, नेहा ने अपनी समझदारी दिखाते हुए सभी को समझाया की ये सारी घोषणाएं यात्रियों की जानकारी के लिए की जाती हैं तथा AC ट्रैन में इसलिए लगा है क्योंकि ट्रैन की खिड़कियाँ खुलती नहीं हैं ऐसे में किसी को गर्मी न लगे इसलिए AC चलाये जाते हैं और मेट्रो के दरवाजे ट्रैन चलाने वाले ड्राइवर साहब खोलते-बंद करते हैं|

वहीं मेरी सबसे छोटी लाड़ली बिटिया मेट्रो ट्रैन में आने के बाद से कुछ अधिक ही प्रसन्न थी| स्तुति मेरी गोदी से उतरने को छटपटा रही थी इसलिए मैं स्तुति को ले कर खिड़की की तरफ मुड़ गया और स्तुति को शीशे के नज़दीक कर दिया| शीशे से बाहर स्टेशन को देखना, गुजरती हुई दूसरी ट्रेनों को देखना और अन्य यात्रियों को देख स्तुति बहुत खुश हुई और किलकारियाँ मार कर मेरा ध्यान खींचने लगी| मेरे भीतर का भी बच्चा जाएगा और मैंने भी बच्चा बनते हुए स्तुति से तुतलाते हुए बात करनी शुरु कर दी| मेरे यूँ बच्चा बन जाने से स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो खिलखिलाकर हँसने लगी|

बहरहाल, हमारा स्टेशन आया और हम सभी मेट्रो ट्रैन से उतरे| अब फिर ऊपर चढ़ना था और मेरी सासु माँ ने एस्केलेटर्स पर जाने से साफ़ मना कर दिया| मेरी माँ ने भी अपनी समधन का साथ दिया और लिफ्ट से जाने की माँग की| मैंने तीनों बच्चों को माँ और मेरी सासु माँ के साथ लिफ्ट से जाने को कहा| बाकी बचे हम चार यानी मैं, संगीता, भाभी जी और भाईसाहब तो हम सब एस्केलेटर्स से ऊपर पहुँचे|

ऑटो कर हम सभी घर पहुँचे और बिना देर किये सभी लोग हवन की तैयारियों में लग गए| बैठक के बीचों बीच की जगह खाली कर सभी के बैठने के लिए आसनी बिछा दी गई| चूँकि मेरी माँ और सासु माँ ज़मीन पर नहीं बैठ सकतीं थीं इसलिए उनके लिए कुर्सियाँ लगा दी गई| कुछ ही समय में पंडित जी पधारे तो मैंने स्तुति को पंडित जी से मिलवाया, पंडित जी ने स्तुति के सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया; "जुग-जुग जियो मुन्नी!"



हवन के लिए सबसे आगे हम चारों यानी मैं, मेरी गोदी में स्तुति, मेरी दाईं तरफ नेहा और बाईं तरफ आयुष बैठे| हवन शुरू हुआ और पहले सभी को कलावा बाँधा गया, जब स्तुति के हाथ में कलावा बाँधा गया तो मेरी बिटिया अस्चर्य से अपने हाथ पर कलावा बँधते हुए देखने लगी| फिर स्तुति को लगाया गया टीका और स्तुति को इसमें भी बड़ा मज़ा आया| इधर पंडित जी ने हवन सामग्री मिलाने का काम बताया तो आयुष और नेहा आगे आये तथा पंडित जी द्वारा दिए निर्देशों का पालन करते हुए हवन सामग्री मिलाने लगे| अपने बड़े भैया और दीदी को हवन सामग्री मिलाते देख स्तुति को बड़ी जिज्ञासा हुई की आखिर ये हो क्या रहा है? अपनी बढ़ती जिज्ञासा के कारण स्तुति ने मेरी गोदी से उतरने के लिए मचलना शुरू कर दिया, अब यदि मैं स्तुति को छोड़ देता तो वो सीधा हवन सामग्री में अपने हाथ डालकर हवन सामग्री चखती इसलिए मुझे स्तुति का ध्यान बँटाना था| मैं स्तुति को ले कर घर के मंदिर के पास पहुँचा और मंदिर से घंटी निकाल कर स्तुति को दे दी| पीतल की चमकदार घंटी को देख सबसे पहले स्तुति ने उसे अपने मुँह में ले कर चखा, परन्तु जब उसे पीतल का स्वाद अच्छा नहीं लगा तो स्तुति मुँह बनाते हुए मुझे देखने लगी| मैंने स्तुति का हाथ पकड़ उसे घंटी बजाना सिखाया, घंटी की आवाज़ सुन स्तुति प्रसन्न हो गई और अपने हाथ झटकते हुए घंटी बजाने की कोशिश करने लगी| जब मैं स्तुति को ले कर बैठक में लौटा तो उसे घंटी बजाते देख भाभी जी मुस्कुराते हुए बोलीं; "तुम दोनों की अलग पूजा चल रही है क्या?" भाभी जी की बात सुन पंडित जी समेत हम सभी हँस पड़े|

अंततः पंडित जी ने हवन आरम्भ किया| जैसे ही पंडित जी ने मंत्रोचारण शुरू किया मेरी मस्ती करती हुई छोटी बिटिया एकदम से शांत हो गई और बड़े गौर से पंडित जी को देखने लगी| हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित की गई और अग्नि को देख स्तुति एक बार फिर अस्चर्य से भर गई! पंडित जी ने मुझे हवन कुंड में घी डालने का काम दिया तथा घर के बाकी सदस्यों को धीरे-धीरे हवन कुंड में हवन सामग्री डालने का काम दिया| "मेरे स्वाहा बोलने पर आप सभी लोग स्वाहा बोलते हुए हवन-सामग्री डालियेगा और मानु बेटा, तुम्हें मेरे स्वाह बोलने पर थोड़ा सा घी डालना होगा|" पंडित जी सभी को समझाते हुए बोले| मेरे हाथ में था एक ताम्बे का बड़ा सा चम्मच और स्तुति को ये चम्मच देख कर हैरत हो रही थी, स्तुति को खुश करने के लिए मैंने स्तुति का हाथ अपने हाथ में लिया और फिर स्तुति के नन्हे से हाथ में चम्मच पकड़ा दिया| चूँकि स्तुति का हाथ मेरे काबू में था इसलिए स्तुति मस्ती नहीं कर सकती थी|



जब मैं स्कूल में पढता था तब हमारे स्कूल में हफ्ते में एक बार हवन अवश्य होता था, ऐसे में शास्त्री जी द्वारा बोले जाने वाले कई मंत्र मैंने कंठस्त कर लिए थे| आज जब पंडित जी ने उन्हीं मंत्रों का उच्चारण किया तो मैंने भी पंडित जी के साथ-साथ वही मन्त्र दोहराये| मुझे मंत्र दोहराते हुए देख मेरी माँ को छोड़ सभी स्तब्ध थे| मेरी माँ मेरे मंत्रोचारण के गुण के बारे में जानती थीं क्योंकि घर में जब हवन होता था तब मैं पंडित जी के साथ मंत्र दोहराता था इसीलिए मेरी माँ को अस्चर्य नहीं हो रहा था| वहीं मेरी छोटी बिटिया रानी अपनी गर्दन मेरी तरफ घुमा कर मुझे मंत्रोचारण करते हुए बड़े गौर से देख रही थी| उधर मेरी बड़ी बिटिया नेहा को तो अपने पापा जी को पंडित जी के साथ मंत्रोचारण करते देख गर्व हो रहा था|

बहरहाल, हवन जारी था और आयुष तथा नेहा बड़े जोश से " स्वाहा" बोलते हुए हवन कुंड में हवन सामग्री डाल रहे थे| घर के बाकी सदस्य दोनों बच्चों का उत्साह देख मुस्कुरा रहे थे और स्वाहा बोलते हुए हवन कुंड में हवन सामग्री डाल रहे थे| वहीं हम बाप-बेटी ख़ुशी-ख़ुशी स्वाहा बोलते हुए हवन कुंड में घी डाल रहे थे| कमाल की बात ये थी की मेरी बिटिया रानी घी डालने के कार्य को करते हुए बहुत खुश थी, उसने इस कार्य को करते हुए ज़रा भी शरारत या मस्ती नहीं की थी|



हवन समाप्त हुआ तो सभी को प्रसाद मिला और हमेशा की तरह प्रसाद लेने के लिए आयुष सबसे आगे था| पंडित जी जब मुझे प्रसाद दे रहे थे तो स्तुति ने अपना हाथ आगे कर दिया इसलिए पंडित जी ने लड्डू स्तुति के हाथ में रख दिया| लाडू पा कर स्तुति बहुत खुश थी और इसी ख़ुशी में स्तुति ने अपनी मुठ्ठी कस ली जिससे लड्डू टूट कर मेरे हाथ में गिर गया! जो थोड़ा सा लड्डू स्तुति के हाथ में था उसे मेरी बिटिया ने ‘घप्प’ से खा लिया और लड्डू का जो हिस्सा मेरे हाथ में गिरा था वो मैंने खा लिया| स्तुति को लाडू का स्वाद बहुत पसंद आया और वो ख़ुशी से अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| दरअसल, स्तुति के लिए बिना किसी की बात सुने ‘गप्प’ से चीज़ खा लेना शरारत थी, जबकि हमारे लिए ये स्तुति का बालपन था जिसे देख कर हम सभी मोहित हो जाते थे|



पंडित जी के जाने के बाद सभी बैठ कर आराम कर रहे थे, इधर मेरी बिटिया रानी ने आज सुबह से जो मस्ती की थी उसके कारण उसे नींद आ रही थी| स्तुति इतनी थकी हुई थी की आधा सेरेलक्स खा कर ही सो गई| हम सभी ने भी खाना खाया और शाम के समारोह की तैयारी में लग गए| शाम 5 बजे मेरी लाड़ली बिटिया सो कर उठी और सीधा मेरी गोदी में आ गई| बारी-बारी से सब तैयार हुए और स्तुति को तैयार करने की जिम्मेदारी मैंने ली| गुलाबी रंग की जाली वाले फ्रॉक पहना कर, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर, हाथ में चांदी का कड़ा पहना कर और बालों में दो छोटी-छोटी चोटियाँ बना कर मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए निकला| स्तुति की सुंदरता देख मेरी माँ ने सबसे पहले स्तुति को काला टीका लगाया और स्तुति के हाथ चूमते हुए बोलीं; "मेरी लाड़ली को किसी की नज़र न लगे!" अपनी दादी जी के द्वारा हाथ चूमे जाने से स्तुति शर्मा गई और मेरे सीने से लिपट गई|



हम सभी तैयार हो कर बैंक्वेट हॉल (banquet hall) के लिए निकले क्योंकि वहीं तो स्तुति के जन्मदिन का समारोह रखा गया था| पूरा बैंक्वेट हॉल रंग-बिरंगे गुबारों से सजा हुआ था, बाहर गार्डन में बुफे तैयार था| बैंक्वेट हॉल में मौजूद Dj धड़ाधड़ गाने बजाए जा रहा था| बच्चों के खेल-कूद के लिए एक हवा भरा हुआ मिक्की माउस का किला था जिस पर बच्चे चढ़ कर फिसल सकते थे| बच्चों की पसंद की कॉटन कैंडी और मैजिक शो की भी व्यवस्था की गई थी| जैसे ही हम पहुँचे तो बैंक्वेट हॉल के मैनेजर ने हमें सारी तैयारियाँ दिखाईं|



धीरे-धीरे सारे मेहमान आने लगे और पूरा बैंक्वेट हॉल भर गया| आयुष और नेहा के सारे दोस्त अपने मम्मी-पापा जी के साथ आये थे, मिश्रा अंकल जी सपरिवार आये थे, दिषु भी अपनी परिवार के साथ आया था| मेरे साथ काम करने वाले कुछ ख़ास लोग भी मेरी बेटी के जन्मदिन में सम्मिलित होने आये थे| यहाँ तक की माधुरी भी सपरिवार सहित आई थी!

माधुरी को देख संगीता हैरान थी, संगीता को हैरान देख माधुरी बोली; "भाभी जी, आपने तो बुलाया नहीं इसलिए मैं ही बेशर्म बन कर आ गई|" संगीता समझती थी की मैंने ही माधुरी को न्योता दिया होगा इसलिए संगीता ने बड़ी ही हाज़िर जवाबी से जवाब दिया; "अपनों को कहीं न्योता दिया जाता है?!" संगीता की हाज़िर जवाबी देख माधुरी बहुत खुश हुई|

माधुरी अपने पति और बेटे जो की उम्र में स्तुति से कुछ महीना ही बड़ा होगा के साथ आई थी| "हेल्लो वंश जी|" माधुरी के बेटे का नाम वंश था, जैसे ही मैंने वंश से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया की वंश ने मेरी गोदी में आने के लिए अपनी दोनों बाहें फैला दी| स्तुति तब अपनी मम्मी की गोदी में थी इसलिए मैंने वंश को गोदी ले लिया| तब मुझे नहीं पता था की वंश को गोदी ले कर मैं अपनी बिटिया रानी की नज़र में कितनी बड़ी गलती करने जा रहा हूँ! उसपर मेरी मैंने एक और गलती की, वंश को लाड करते हुए मैंने उसके मस्तक को चूम लिया!



अपने पापा जी को दूसरे बच्चे को गोदी में लिए हुए पप्पी करते देख स्तुति जल भून कर राख हो गई और मेरी गोदी में आने के लिए अपनी मम्मी की गोदी में छटपटाने लगी| जब मैंने स्तुति को यूँ बेचैन होते हुए देखा तो मुझे मेरी गलती का आभास हुआ| मैंने वंश को अपनी माँ की गोदी में दिया और फट से स्तुति को गोदी में लिया| मेरी गोदी में आते ही स्तुति ने अपनी मुट्ठी में मेरी कमीज जकड़ ली और अपना गुस्सा मुझे महसूस करवाने लगी! मैं स्तुति को टहलाने के बहाने से कुछ दूर ले आया और स्तुति से माफ़ी माँगते हुए बोला; "बेटा जी, मुझे माफ़ कर दो! लेकिन मैंने थोड़े ही वंश को गोदी लिया, मैं तो बस उससे हाथ मिलाना चाहता था, अब वही मेरी गोदी में आना चाहता था तो मैं उसे कैसे मना करता?!" मैंने स्तुति के सामने अपनी सफाई रखी|

मेरी बिटिया अपनी मम्मी की तरह नहीं थी, स्तुति ने मेरी पूरी बात सुनी और मुझे माफ़ करते हुए फिर से खिलखिलाने लगी| हम बाप-बेटी सबके पास वापस लौटे तो देखते क्या हैं की माँ ने वंश को खेलने के लिए स्तुति की मनपसंद लाल रंग की बॉल दे दी! अपनी बॉल को दूसरे बच्चे के पास देख स्तुति को गुस्सा आने लगा और वो वंश से बॉल छीनने को आतुर हो गई| माँ ने जब स्तुति को इस तरह मेरी गोदी से उतरने को मचलते देखा तो माँ मुझसे बोलीं; "बेटा, शूगी को यहाँ वंश के साथ बिठा दे, दोनों बच्चे साथ खेल लेंगे|" स्तुति का केक आने में समय था इसलिए टेबल पूरी तरह खाली था| मैंने स्तुति को वंश की बगल में टेबल पर बिठा दिया तथा मैं सबके साथ बातों में लग गया|



उधर मेरी बिटिया रानी ने जब अपनी मनपसंद बॉल को दूसरे बच्चे के मुख में देखा तो उसे गुस्सा आने लगा| "आए" कहते हुए स्तुति ने अपनी बोली भासा में वंश को पुकारा मगर वंश का ध्यान बॉल को कुतरने में लगा था| स्तुति को अनसुना किया जाना पसंद नहीं था इसलिए स्तुति अपने दोनों हाथों-पॉंव पर रेंगते हुए वंश की तरफ बढ़ने लगी| वंश के पास पहुँच स्तुति ने अपने दाहिने हाथ से वंश के हाथों से बॉल छीननी चाही मगर वंश बॉल लिए हुए दूसरी तरफ मुड़ गया|

वंश की प्रतिक्रिया पर स्तुति को और भी गुस्सा आने लगा इसलिए वो वंश को मारने के इरादे से आगे बढ़ी| ठीक उसी समय मैं दोनों बच्चों को देखने के लिए पलटा और मैंने देखा की स्तुति अपना दाहिना हाथ उठाये वंश पर हमला करने जा रही है! मैंने एकदम से भागते हुए स्तुति को पीछे से पकड़ कर गोदी में उठा लिया| मेरी गोदी में आ कर भी स्तुति अपनी बॉल वंश से वापस लेने के लिए छटपटा रही थी!



"चलो बेटा, हम घुम्मी कर के आते हैं!" ये बोलते हुए मैं स्तुति को अपनी गोदी में लिए हुए दूर आ गया| "बेटा, वंश आपका दोस्त है और दोस्तों को मारते नहीं हैं! छोटा बच्चा है, वो नहीं जनता की वो आपकी बॉल से खेल रहा है! माफ़ कर दो उसे बेटा प्लीज!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया| फिर स्तुति का मन बहलाने के लिए मैं उसे बुफे के पास ले आया, यहाँ स्तुति के खाने के लिए बस सलाद और फ्रूट चाट ही थी| मैंने एक दोने में 2-4 फल व सलाद लिए और स्तुति को खाने के लिए दिए| स्तुति अपने हाथों से फल या सलाद का एक पीस उठाती और अपने मुँह में रख रस चूसती और जब वो सारा रस चूस लेती तो वो फल या सलाद का टुकड़ा मुझे खिला देती! स्तुति को मेरे साथ देख कई लोग स्तुति को जन्द्मिन की बधाई देने आये, जो लोग उम्र में बड़े होते वो स्तुति को आशीर्वाद देते और छोटे बच्चे स्तुति से हाथ मिला कर उसे हैप्पी बर्थडे कहते| इसी तरह सबसे मिलते मिलाते हम बाप-बेटी दूर एक कोने में पहुँचे जहाँ एक पेड़ लगा था और पेड़ पर गिलहरी उछल-कूद कर रही थी| स्तुति को अपना मनपसंद जानवर दिखा तो स्तुति का ध्यान भटक गया और वो गिलहरी को देख किलकारियाँ मारने लगी|



हम बाप-बेटी लगभग आधे घंटे से गायब थे और केक काटने का समय हो रहा था इसलिए हमें ढूंढने के लिए नेहा ने Dj वाले के माइक से घोषणा की; "बर्थडे गर्ल स्तुति और पापा जी, जहाँ कहीं भी हैं फौरन स्टेज पर आइये!" नेहा ने ये घोषणा ठीक उसी तरह की जैसे की रेलवे स्टेशन पर होती है इसीलिए नेहा की ये घोषणा सुन सभी लोगों ने जोरदार ठहाका लगाया| वहीं स्तुति ने जब अपना नाम स्पीकर पर सुना तो स्तुति बहुत खुश हुई, मैं स्तुति को लेकर अंदर आ रहा था की तभी स्तुति ने गुब्बारा देखा और उसने मुझसे गुब्बारे की तरफ इशारा कर माँगा| मैंने गुब्बारा स्तुति की कलाई में बाँध कर लटका दिया, कलाई में गुब्बारा बँधे होने से स्तुति उस गुब्बारे को देख सकती थी मगर पकड़ कर फोड़ नहीं सकती थी|

खैर, मैं स्तुति को लेकर स्टेज पर पहुँचा तो माँ चिंता करते हुए बोलीं; "कहाँ गायब हो गया था तू?" माँ को चिंता करते देख मैं मुस्कुराया और उन्हें बाद में सब बताने का इशारा किया|



स्तुति के जन्मदिन का केक टेबल पर रखा जा चूका था| सफ़ेद रंग का केक और उसमें लगी रंग-बिरंगी मोमबत्तियाँ देख कर स्तुति बहुत खुश हुई| स्तुति के हाथ में प्लास्टिक का चाक़ू पकड़ा कर मैंने केक काटा और केक कटते ही सभी मेहमानों ने 'हैप्पी बर्थडे टू यू' वाला गीत गाते हुए ताली बजानी शुरू कर दी| सभी लोगों को एक साथ गाते और ताली बजाते देख स्तुति बहुत खुश हुई और "ददद" कहते हुए गाने लगी|

मैंने एक छोटी चमची से स्तुति के लिए चींटी के अकार का केक का टुकड़ा काटा और स्तुति को अपने हाथों से खिलाया| मीठे-मीठे केक का स्वाद स्तुति को भा गया और स्तुति और केक खाने के लिए अपने दोनों हाथ बढ़ा कर केक की ओर झपटने लगी| तभी एक-एक कर घर के सभी सदस्यों ने मेरी देखा-देखि छोटी चमची से स्तुति को केक खिला उसे आशीर्वाद दिया| पार्टी शुरू हुई और सभी को केक सर्व किया गया, सभी लोग खाने-पीने में मशगूल हो गए थे| इधर मेरी बिटिया मेरी गोदी में खेल रही थी, शायद स्तुति को डर था की अगर वो मेरी गोदी से उतरी तो मैं फिर से वंश को गोदी ले लूँगा! उधर Dj ने बड़े शानदार गाने बजाए और आयुष तथा नेहा ने मुझे अपने साथ डांस करने को खींचना शुरू कर दिया| स्तुति को गोदी लिए हुए मैं डांस करने जा पहुँचा, सभी बच्चों को नाचते हुए देख स्तुति का मन भी नाचने को कर रहा था| मैंने स्तुति को कमर से पकड़ कर खड़ा किया तो स्तुति ने सबकी देखा देखि अपने हाथ-पॉंव एक साथ हवा में चलाने शुरू कर दिए| स्तुति के लिए यही डांस था और उसे यूँ डांस करते देख सभी बच्चे एक तरफ हो गए और तालियाँ बजाते हुए स्तुति का उत्साह बढ़ाने लगे| अपनी छोटी बहन को नाचते हुए देख आयुष और नेहा ने अपनी बहन का हाथ पकड़ा तथा स्तुति के साथ कदम से कदम मिला कर नाचने लगे|



नाच-गा कर हम थक गए थे इसलिए मैं स्तुति को ले कर आराम करने लगा| मेरे कुर्सी पर बैठते ही मेरी बिटिया रानी मेरे सीने से लिपट गई और मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगी| स्तुति जब बहुत खुश हो जाती थी तो वो अक्सर मुझसे लिपट कर मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगती थी| स्तुति की इस प्रतिक्रिया का असली कारण मुझे कभी समझ नहीं आया, परन्तु मेरा मन कहता था की मेरी बेटी मुझसे इतना प्यार करती है की वो इतनी सारी खुशियाँ पा कर मुझे आँखों ही आँखों में धन्यवाद दे रही है| “मेरे प्यारे बेटू, पापा जी को थैंक यू थोड़े ही बोलते हैं! पापा जी को आई लव यू बोलते हैं|" मैंने स्तुति की ठुड्डी सहलाते हुए कहा| मेरी बात सुन स्तुति तुरंत अपनी बोली भासा में बोली; "आवववउउउ!" ये कहते हुए स्तुति ख़ुशी से खिलखिलाने लगी| उधर, अपनी बिटिया के मुख से आई लव यू सुन मेरा मन खुशियों से भर उठा!



कुछ ही देर में मैजिक शो शुरू होने वाला था इसलिए मैं स्तुति को ले कर सबसे आगे बैठ गया| जादूगर की कलाकारी स्तुति को कुछ ख़ास पसंद नहीं आई मगर जैसे ही जादूगर ने अपनी टोपी में से खरगोश निकाला, मेरी बिटिया मेरी गोदी में बैठे हुए फुदकने लगी| मैं स्तुति को ले कर जादूगर के पास पहुँचा ताकि स्तुति खरगोश को नज़दीक से देख सके| अपनी आँखों के सामने सफ़ेद रंग का खरगोश देख स्तुति का मन मचल उठा और वो उस जानवर को पकड़ने के लिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाने लगी| मैंने स्तुति का हाथ पकड़ स्तुति को खरगोश के ऊपर हाथ फेरना सिखाया| 1-2 बार हाथ फेर कर स्तुति ने अपनी मुठ्ठी में खरगोश की खाल जकड़ ली, कहीं खरगोश स्तुति को काट न ले इसलिए मैंने स्तुति के हाथ से बेचारे खरगोश की खाल को छुडवाया| मेरी बिटिया का दिल अब इस खरगोश पर आ गया था इसलिए स्तुति उसे पुनः पकड़ने को जिद्द करने लगी| मैंने नेहा को बहुत समझाया मगर स्तुति की नज़र उस खरगोश पर से हट ही नहीं रही थी, अतः मैंने जादूगर को ही खरगोश को गायब करने को कहा| जादूगर ने अपनी छड़ी को गोल घुमाया और खरगोश को गायब कर दिया| स्तुति का पसंददीदा जानवर जब गायब हुआ तो स्तुति उदास हो गई, अब स्तुति को फिर से हँसाना था इसलिए मैंने अपना फ़ोन निकाल कर कैमरा चालु कर स्तुति को दिखाया| फ़ोन में अपनी और मेरी छबि देख स्तुति फिर से खुश हो गई और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर फ़ोन पकड़ना चाहा| मैंने फ़ोन स्तुति को दिया तो स्तुति ने पहले तो फ़ोन को अच्छे से दबाया फिर सीधा उसे अपने मुँह में डालकर खाने की कोशिश करने लगी| अपनी बिटिया के बचपने को देख मैं हंस पड़ा और स्तुति के गाल चूमते हुए माँ के पास लौट आया| स्तुति के मुख से फ़ोन निकलवाने के लिए मैंने स्तुति को केक खाने को दिया| परन्तु तबतक मेरा फ़ोन स्तुति की लार से भीगने के कारन बंद हो चूका था!




बहरहाल स्तुति का ये पहला जन्मदिन सबके लिए यादगार था| सभी मेहमानों ने जाते हुए स्तुति को एक बार पुनः बधाई दी और सबके जाने के बाद हम सभी घर लौट आये|
एक और लाजवाब और प्रेम से परिपूर्ण अपडेट। स्तुति के जन्मदिन की तैयारिया, उसका मानू को अपनी भाषा में I love you कह कर मानू को जन्मदिन का रिटर्न गिफ्ट देना बहुत ही सुखद अनुभव था। परिवार का मेट्रो अनुभव और नेहा और आयुष का संचालन बहुत ही प्रशंसनीय था। जन्मदिन की तैयारियों की खुशियां और स्तुति का वंश के लिए बालसुलभ जलन और गुस्सा भी एक मजेदार अनुभव था। बस इसमें Rockstar_Rocky और Sangeeta Maurya के प्रेम और नोकझोंक के संवाद की थोड़ी कमी महसूस हुई। पता नही क्यों पीछे कुछ अपडेट्स में कहानी की नायिका को अवॉइड किया जा रहा है ऐसा लगता है, पर जब मिया बीवी राजी तो क्या करेगा पाठक

अब स्तुति के लिए एक गीत, ये जन्मदिन का गीत नही है मगर एक बेटी का बाप होने के नाते मेरे दिल के बहुत ही करीब है।

मेरी दुनिया मेरी दुनिया
मेरी दुनिया तू ही वे
मेरी खुशिया मेरी खुशिया
मेरी खुशिया तू ही वे

रात दिन तेरे लिए सज्दे करू
दुयायें माँगू रे
में यहाँ अप्पने लिए रब से
तेरी बलाएँ मांगु रे
हो ओ ओ ोू

तूने ही जीना सिखाया
हमलोगो को अच्छा इंसान बनाया
ज़िन्दगी है तेरा साया
अंजनाओ को सीधा रास्ता दिखाया

तू नै एक रौशनी ले आई है
जीवन की राहों में
हर घडी गुज़रे तेरी

सारी उम्र अब्ब अपने बाहों में
 

Ajju Landwalia

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Shandar, Behatreen Lajawab maanu Bhai, Stuti ka birthday ab sada yaad rahega....

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इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 {5(ii)}



अब तक अपने पढ़ा:


खैर, आज रात दो बजे का जुगाड़ हो गया था और क्या जुगाड था वो! रात के सन्नाटे में हम दोनों प्रेमी सबसे नजरें छुपाते हुए ऊपर वाली छत पर पहुँचे| वहाँ टंकी के नीचे चुहलबाज़ी करने के लिए काफी जगह थी, ऊपर से रात के इस पल में कोई हमें देखने वाला भी नहीं था| अब जब हमें किसी का भय नहीं था तो प्रेम का वो तूफ़ान उठा की हम दोनों ही पसीने से लथ-पथ हो गए| आज के इस प्रेमपसंग में कुछ अलग ही आनंद था, शायद खुले आसमान के तले प्रेम समागम करने की उत्तेजना का असर था!

थक कर जब हम कुछ पल के लिए साँस ले रहे थे तब संगीता मेरे सीने पर सर रखते हुए बोली; "जानू...आज सबसे छुप कर छत पर आते समय ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई 18 साल की युवती हूँ जो अपने प्रेमी से मिलने चोरी-छुपे छत पर आ रही हो!" संगीता की बता ने मुझे आज फिर गाँव में हमारे छिप-छिप कर मिलने की याद दिला दी, जिस कारण मेरे दिल में प्यारी सी गुदगुदी उठी; "मेरे लिए तो तुम हमेशा अठरह की बाली उम्र की रहोगी!" ये कहते हुए मैंने संगीता के सर को चूम लिया| मेरी प्यारभरी बात का असर संगीता पर खुमारी बन कर छाने लगा और इस मौके का लाभ उठा कर हमने फिर एक बार प्रेम समागम किया!



अब आगे:


स्तुति
के जन्मदिन से एक दिन पहले की बात है, दोपहर को खाना खाने के लिए मैं साइट पर से निकल चूका था| इधर घर में मेरी स्तुति बिटिया को खाना खिलाया जाना था, परन्तु मेरी बिटिया मेरे और माँ के अलावा किसी के भी हाथ से खाना नहीं खाती थी| अब माँ और मेरी सासु माँ मंदिर गए थे पंडित जी से बात करने इसलिए स्तुति को खाना खिलाने की जिम्मेदारी भाभी जी ने अपने सर ले ली| एक कटोरी में सेरेलक्स बना कर भाभी जी स्तुति को खिलाने बैठक में पहुँची| स्तुति तब बैठक के फर्श पर बैठी अपनी गेंद के साथ खेल रही थी, जैसे ही उसने अपनी मामी जी को अपनी तरफ आते देखा स्तुति अपने दोनों हाथों-पाओं पर रेंगती हुई भागने लगी| वहीं भाभी जी ने जब देखा की स्तुति उनसे दूर भगा रही है तो वो हँसते हुए बोलीं; "स्तुति... बेटा रुक जा! खाना खा ले" मगर स्तुति अपनी मामी जी की सुने तब न, वो तो खदबद-खदबद माँ के कमरे की तरफ भाग रही थी| ऐसा नहीं था की स्तुति बहुत तेज़ भाग रही थी और भाभी जी उसे पकड़ नहीं सकती थीं, बल्कि भाभी जी तो एक छोटे से बच्चे के साथ पकड़ा-पकड़ी खेलने का लुत्फ़ उठा रही थीं|

आखिर भागते-भागते स्तुति माँ के कमरे में पहुँच गई और सीधा अपनी मन पसंद जगह यानी माँ के पलंग के नीचे जा छुपी! "ओ नानी! बाहर आजा!" भाभी जी ने स्तुति को पलंग के नीचे से निकलने को कहा मगर मेरी बिटिया ने अपनी मामी जी की बात को हँसी में उड़ा दिया और खिलखिलाकर हँसने लगी! जब भाभी जी के बुलाने पर भी स्तुति पलंग के नीचे से नहीं निकली तो भाभी जी ने आवाज़ दे कर भाईसाहब, विराट, नेहा, आयुष और संगीता को मदद के लिए बुलाया| सभी लोग पलंग को घेर कर खड़े हो गए और स्तुति को बाहर आने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देने लगे| भाईसाहब स्तुति को प्यार से पुकार रह थे, तो नेहा स्तुति को प्यारभरी डाँट से बाहर आने को कह रही थी, वहीं आयुष अपनी बॉल ले आया और स्तुति को ललचा कर बाहर आने को कहने लगा| विराट को कुछ समझ नहीं आया तो उसने अपना हाथ पलंग के नीचे बैठी स्तुति की तरफ बढ़ा दिया| लेकिन विराट का हाथ देख स्तुति और अंदर को खिसक गई! कहीं स्तुति चोटिल न हो जाए इसलिए कोई भी पलंग के नीचे नहीं जा रहा था, सब बाहर से ही स्तुति को आवाज़ दे कर पुकार रहे थे| वहीं दूसरी तरफ, स्तुति सभी की आवाज़ सुन रही थी मगर वो बस खिलखिलाकर हँस रही थी और सभी को अपनी प्यारी सी जीभ दिखा कर चिढ़ा रही थी|



वहीं, संगीता सबसे पीछे खड़ी, हाथ बाँधे अपनी बेटी द्वारा सभी को परेशान करते हुए देख कर हँसे जा रही थी| ठीक तभी मैं घर पहुँचा और संगीता ने दरवाजा खोलते हुए मुझसे स्तुति की शिकायत कर दी; "जा के देखिये अपनी लाड़ली को!" इतना कहते हुए संगीता ने माँ के कमरे की तरफ इशारा किया| मैं माँ के कमरे में पहुँचा तो देखा की सभी लोग पलंग को घेर कर अपने घुटनों के बल झुक कर स्तुति को बाहर निकलने को कह रहे हैं मगर मेरी लाड़ली बिटिया किसी की नहीं सुन रही! "आ गए जादूगर साहिब!" संगीता ने सबका ध्यान मेरी तरफ खींचते हुए कहा| वहीं मुझे देखते ही भाभी जी उठ खड़ी हुईं और मुझसे शिकायत करते हुए बोलीं; "जैसे ही मैं स्तुति को सेरेलक्स खिलाने आई, ये नानी जा के पलंग के नीचे छुप गई!" भाभी जी की बात सुन मैं मुस्कुराया और स्तुति को पुकारते हुए बोला; "मेरा बच्चा!" मेरी आवाज़ सुन स्तुति ने पलंग के नीचे से झाँक कर मुझे देखा और मुझे देखते ही स्तुति खदबद-खदबद करती हुई अपने दोनों हाथों-पाओं पर मेरे पास दौड़ आई| मैंने स्तुति को अपनी गोदी में उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "मेरा बच्चा सबको तंग करता है?!" मेरे पूछे इस सवाल के जवाब में स्तुति शर्मा गई और मुझसे लिपट कर किलकारियाँ मारने लगी|

"भाभी जी, ये शैतान सिर्फ इनके या माँ (मेरी) के हाथ से ही खाना खाती है| बड़ी नखड़ेलू है ये शैतान!" संगीता हँसते हुए बोली| भाभी जी ने स्तुति को अपना प्यारभरा गुस्सा दिखाते हुए सेरेलक्स की कटोरी मुझे दी| मैंने स्तुति को उसकी ख़ास कुर्सी पर बिठाया और एक कटोरी में सेरेलक्स और बना लाया| इस समय सभी की नजरें हम बाप-बेटी (मुझ पर और स्तुति) पर थीं, सभी जानना चाहते थे की मैं स्तुति को कैसे खाना खिलाता हूँ?!



मैंने सेरेलक्स की दोनों कटोरी स्तुति के सामने रखी और एक चम्मच से स्तुति को खिलाने लगा| स्तुति एक चम्मच खाती और फिर अपना दायाँ या बायाँ हाथ सेरेलक्स की कटोरी में डाल कर अपनी मुठ्ठी में सेरेलक्स उठा कर मुझे खिलाती| मुझे खाना खिलाना स्तुति ने अपने बड़े भैया और दीदी से सीखा था| तो इस तरह शुरू हुआ हम बाप-बेटी का एक दूसरे को खाना खिलाना| ये दृश्य इतना मनोरम था की भाईसाहब, भाभी जी और विराट इस दृश्य को बड़े प्यार से देख रहे थे| जब स्तुति का खाना और मुझे खिलाना हो गया तो भाभी जी मुझसे बोलीं; "मुझे नहीं पता था की तुम इतने छोटे हो की अभी तक छोटे बच्चों का खाना खाते हो!" भाभी जी ने मज़ाक करते हुए कहा जिस पर सभी ने जोर से ठहाका लगाया|



माँ और सासु माँ के लौटने पर हम सभी खाना खाने बैठ गए| बाकी दिन तो मैं स्तुति को गोदी लिए रहता था और मुझे खाना आयुष तथा नेहा मिल कर खिलाते थे, परन्तु आज दोनों बच्चे अपनी नानी जी को खाना खिलाने में व्यस्त थे इसलिए मैंने स्तुति को डाइनिंग टेबल के ऊपर मेरे सामने बिठा दिया और मैं अपने हाथ से खाना खाने लगा| अब स्तुति को सूझी मस्ती तो उसने मेरी प्लेट में अपने दोनों हाथों से कभी रोटी तो कभी सब्जी उठाने की कोशिश शुरू कर दी| "नहीं बेटा, अभी आपको दाँत नहीं आये हैं, जब दाँत आ जायेंगे तब खाना|" मैंने स्तुति को समझाया| मेरे समझाने पर स्तुति खिलखिलाकर हँसने लगी और बार-बार मेरी थाली में 'हस्तक्षेप' करने लगी! मैंने स्तुति को व्यस्त करने के लिए उसका ध्यान बँटाने लगा| डाइनिंग टेबल पर सारा खाना ढका हुआ था और अभी तक स्तुति ने बर्तन के ऊपर से ढक्क्न हटाना नहीं सीखा था| बस एक सलाद की प्लेट थी जो की खुली पड़ी थी, लाल-लाल टमाटर और खीरे को देख स्तुति का मन मचल उठा और उसने सलाद वाली प्लेट की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया| अगले ही पल स्तुति ने अपनी छोटी सी मुठ्ठी में खीरे का एक स्लाइस उठा लिया और मुझे दिखाने लगी की 'देखो पापा जी, मैंने सलाद उठा ली!' स्तुति की मस्ती को देखते हुए मैं मुस्कुरा दिया और सर हाँ में हिलाते हुए स्तुति को खीरा खाने का इशारा किया| स्तुति ने आव देखा न ताव, उसने सीधा वो खीरे का स्लाइस अपने मुँह में भर लिया| अब अगर स्तुति के दाँत होते तब तो वो खा पाती न?! स्तुति तो बस आधे खीरे के स्लाइस को अपने मुँह में भरकर अपने मसूड़ों से काटने की कोशिश करने लगी, जब वो स्लाइस नहीं कटा तो स्तुति ने उस स्लाइस को चूसना शुरू कर दिया और जब सारा रस उसने चूस लिया तो अपना झूठा स्लाइस मेरी थाली में डाल दिया|

संगीता ने जब स्तुति की ये हरकत देखि तो वो गुस्सा हो गई; "ऐ लड़की! ये क्या कर रही है! थाली में अपना झूठा डाल रही है!" संगीता ने स्तुति को डाँटा जिससे मेरी बिटिया घबरा गई| खाने को ले कर संगीता का टोकना मुझे हमेशा ही अखरा है इसलिए मैंने संगीता को गुस्से से देखा और अपने हाथ पोंछ कर स्तुति को गोदी में ले लिया| "कोई बात नहीं बेटा! ये लो आप टमाटर खाओ|" ये कहते हुए मैंने सलाद की प्लेट में से टमाटर का एक स्लाइस उठा कर स्तुति के हाथ में दिया| लाल-लाल टमाटर देख स्तुति का ध्यान बंट गया और वो नहीं रोई, स्तुति ने अपने दोनों हाथों से टमाटर के स्लाइस को पकड़ा और उसका रस निचोड़ने लगी| अच्छे से टमाटर का रस निचोड़ कर स्तुति ने वो टुकड़ा मुझे दे दिया जिसे मैंने स्तुति को दिखाते हुए खा लिया| मुझे टमाटर खाता हुआ देख स्तुति बहुत खुश हुई और अपनी किलकारियाँ मारने लगी|

खाना खाने के बाद संगीता ने मुझसे अपने किये व्यवहार की माफ़ी माँगी और मैंने भी संगीता को माफ़ करते हुए उसे प्यार से समझा दिया; "स्तुति छोटी सी बच्ची है, उसे क्या समझ की थाली में झूठा डालते हैं या नहीं?! आगे से बेकार में यूँ मेरी लाड़ली को डाँट कर डराया मत करो!" संगीता ने कान पकड़ कर मुझसे पुनः माफ़ी माँगी और साथ-साथ स्तुति को भी सॉरी बोला!



अगले दिन स्तुति का जन्मदिन था और आज रात मुझे स्तुति को सबसे पहले जन्मदिन की बधाई देने की उत्सुकता थी| दिन में सोने के कारण स्तुति करीब 10 बजे तक जागती रही और इधर-उधर दौड़ते हुए खिलखिलाती रही| दो दिन से स्तुति अपनी मामी जी, बड़े मामा जी, नानी जी और विराट भैया को देख रही थी इसलिए वो बिना नखरा किये सबकी गोदी में खेल रही थी| साढ़े दस हुए तो सभी बच्चों को नींद आने लगी तथा मेरी ड्यूटी सभी बच्चों को कहानी सुना कर सुलाने की लगी| बच्चों के कमरे में मैं, विराट, आयुष, नेहा और स्तुति लेट गए| जैसे ही मैंने कहानी सुनानी शुरू की, स्तुति ने अपनी बोली भासा में किलकारियाँ मारते हुए कहानी के बीच अपनी दखलंदाज़ी शुरू कर दी| स्तुति का ध्यान भटकाने के लिए मैं स्तुति की ठुड्डी को सहला देता जिससे स्तुति को गुदगुदी होती और वो खिलखिलाकर हँसते हुए मुझसे लिपट जाती|

खैर, कहानी खत्म होते-होते सभी बच्चे सो गए थे| समस्या ये थी की मैं चाहता था की स्तुति जागती रहे ताकि मैं उसे उसके पहले जन्मदिन की बधाई दे कर उसे लाड-प्यार कर सकूँ| परन्तु अपनी इस इच्छा के लिए मैं स्तुति की नींद नहीं खराब करना चाहता था इसलिए मैंने स्तुति को अपने सीने से लिपटाये हुए पीठ के बल लेट गया| मेरी नजरें घड़ी पर टिकी थी की कब बारह बजे और मैं स्तुति को उसके जन्मदिन की सबसे पहली पप्पी दूँ! जैसे ही रात के बारह बजे मैंने स्तुति के सर को चूमा और धीरे से खुसफुसा कर; "हैप्पी बर्थडे मेरा बच्चा" कहा| पता नहीं कैसे पर स्तुति नींद में भी मेरी इस पप्पी को महसूस करने लगी और उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान खिल गई! अपनी बिटिया की इस मुस्कान को देख मैं उस पर मोहित हो गया और स्तुति के सर को चूमते हुए जागता रहा| दरअसल मैं उम्मीद कर रहा था की स्तुति जागेगी और मैं उसकी पप्पी ले कर उसे जन्मदिन की बधाई दूँगा|



स्तुति तो जागी नहीं अलबत्ता मुझे सुबह के 3 बजे झपकी लग गई और मैंने एक बहुत ही प्यारा सा ख्वाब देखा| इस ख्वाब में मैं और स्तुति एक हरे-भरे बगीचे में थे और स्तुति मेरी ऊँगली थाम कर चल रही थी, "पापा जी" कहते हुए स्तुति मुझसे बात कर रही थी तथा मैं स्तुति की बातों में खोया हुआ था| इधर घड़ी ने बजाये सुबह के 5 और मेरी बिटिया सबसे पहले जाग गई| स्तुति ने जब देखा की वो मेरे सीने पर सो रही है तो मेरी बिटिया खिसकते-खिसकते मेरे चेहरे के पास पहुँची और मेरे बाएँ गाल पर अपने प्यारे-प्यारे होंठ रख "उम्म्म" का स्वर निकालते हुए मुझे गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी| स्तुति की आदत थी की वो मुझे पप्पी देते हुए अपनी लार से मेरा गाल गीला कर देती थी, नींद में जब मैंने अपने गालों पर नमी महसूस की तो मैं एकदम से जाग गया!

"मेला प्याला-प्याला बच्चा जाग गया?!" ये कहते हुए मैंने स्तुति को अपने दोनों हाथों से पकड़ अपने चेहरे के सामने उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "बेटा, आज है न आपका जन्मदिन है! आज से ठीक एक साल पहले आपने मुझे पूरा 9 महीना इंतज़ार करवाने के बाद आप मुझे मिले थे| आपको पहलीबार अपनी गोदी में ले कर मेरा छोटा सा दिल ख़ुशी से भर उठा था| मेरे सीने से लग कर आपके नाज़ुक से दिल को चैन मिला था और जब मैंने आपके नन्हे से दाहिने हाथ को चूमा था न तो अपने झट से मेरी ऊँगली अपनी मुठ्ठी में जकड़ ली थी! उस पल से हम बाप-बेटी का एक अनोखा रिश्ता...एक अनोखा बंधन बँध गया था| न मैं आपके बिना अपनी जिंदगी की कल्पना कर सकता हूँ और न ही आप मेरे बिना रह सकते हो|” स्तुति ने आज मेरी बातें बड़े ध्यान से मेरी आँखों में देखते हुए सुनी| उधर मैं स्तुति के पैदा होने के दिन को याद कर भाव विभोर हो रहा था, स्तुति से मेरे पहले मिलन की उस वेला को पुनः याद कर मेरे रोंगटे खड़े हो रहे थे| यदि मैं अधिक भाव विभोर हो जाता तो मेरी बिटिया रानी रो पड़ती इसलिए मैंने स्तुति के प्यारी-प्यारी आँखों को गौर से देखा और मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| "मेरे प्यारु बेटू, आपको आज के दिन की बहुत-बहुत मुबारकबाद! आपको मेरी भी उम्र लग जाए! आप धीरे-धीरे बड़े होना और इसी तरह अपनी प्यारी सी मुस्कान से मुझे हँसाते रहना| खूब पढ़ना, खूब खेलना और अपनी मस्तियों से सभी को खुश करना| आपका जीवन खुशियों से भरा हुआ हो और आपकी जिंदगी में ये खुशियों से भरा हुआ दिन हर साल आये! आई लव यू मेरा बच्चा!" मैंने स्तुति को दिल से बधाई देते हुए कहा| मेरे द्वारा अंत में आई लव यू कहने से मेरी बिटिया के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान फ़ैल गई और स्तुति ने आज पहलीबार कुछ बोलने की कोशिश की; "अव्व...ववव...व्वू!" स्तुति आई लव यू कहना चाह रही थी मगर चूँकि वो बोल नहीं सकती थी इसलिए वो इन शब्दों को गुनगुनाने की कोशिश कर रही थी|

इधर जब मैंने स्तुति को मुझे आई लव यू कहते हुए सुना तो मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ! मैं एकदम से उठ बैठा और स्तुति को अपने सीने से लगा कर ख़ुशी से भर उठा! "मेरा प्यारा बच्चा! आज आपने मुझे आई लव यू कह कर मुझे अबतक का सबसे अच्छा तोहफा दिया है!" मेरी लाड़ली बिटिया ने आज सुबह मेरे द्वारा देखा गया सपना की स्तुति मुझसे बात कर रही है, आई लव यू गुनगुना कर पूरा कर दिया था|



स्तुति को गले से लगाए हुए मैं उठा और कमरे से बाहर आ गया| कमरे से बहार आते ही मेरी बिटिया चहकने लगी और उसकी किलकारियाँ घर में गूँजने लगी| स्तुति की किलकारी सबसे पहले माँ और मेरी सासु माँ ने सुनी, माँ ने मुझे अपने पास बुलाया और स्तुति के मस्तक को चूम कर जन्मदिन की बधाई दी; "मेरी लाड़ली शूगी को जन्मदिन की ढेर सारी मुबारकबाद! जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ और पढ़-लिख कर हमारा नाम रोशन करो!" माँ ने अपनी बधाई में स्तुति को जल्दी से बड़ा होने को कहा था जबकि मैंने स्तुति से धीरे-धीरे बड़ा होने को कहा था, इन दोनों बधाइयों से स्तुति उलझन में पड़ गई थी की वो किसकी बात माने; मेरी या फिर अपनी दादी जी की! "क्या माँ, मैं चाहता हूँ की स्तुति धीरे-धीरे बड़ी हो ताकि मुझे उसके बचपन को जीने का पूरा मौका मिले और आप हो की स्तुति को जल्दी बड़ा होने को कह रहे हो?!" मैं मुँह फुलाते हुए माँ से प्यारभरी शिकायत करते हुए बोला| मेरी बचकानी शिकायत सुन माँ ने मेरे गाल पर हाथ फेरा और मुझे समझाते हुए बोलीं; "पगले, लड़कियाँ लड़कों के मुक़ाबले जल्दी बड़ी हो जाती हैं| तेरे कहने भर से थोड़े ही स्तुति खुद को बड़ा होने से रोक लेगी?!" माँ की बात सही थी मगर मेरा बावरा मन माने तब न!

खैर, माँ के बाद मेरी सासु माँ ने भी स्तुति को जन्मदिन की बधाई दी तथा स्तुति के गाल चूमते हुए बोलीं; "हमार मुन्ना (यानी मेरी) खतिर हमेसा नानमुन बने रहेओ ताकि मानु तोहका जी भरकर प्यार कर सके|" मेरी सासु माँ ने मेरे मन की बधाई स्तुति को दी तो मेरा चेहरा फिर से खिल गया|



धीरे-धीरे सभी लोग जागते गए और एक-एक कर स्तुति की पप्पी ले कर उसे जन्मदिन की बधाई देने लगे| रह गए थे तो दोनों बच्चे जिन्हें जगाने मुझे जाना पड़ा; "बेटा...उठो" मेरे इतना कहते ही नेहा झट से उठ बैठी और मेरी गोदी में स्तुति को देख ख़ुशी से झूमती हुई स्तुति की पप्पी ले कर बोली; "हैप्पी बर्थडे स्तुति! गॉड ब्लेस्स यू!" अपनी दीदी से जन्मदिन की बधाई पा कर स्तुति बहुत खुश हुई और अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| इधर कहीं मेरी बिटिया नेहा अकेला न महसूस करे इसलिए मैंने स्तुति के साथ-साथ उसे भी अपने सीने से लगा लिया| स्तुति की किलकारी सुन आयुष जाग गया और आँख मलते-मलते पलंग पर खड़ा हो गया| आयुष ने स्तुति की पप्पी ले कर उसे बधाई देनी चाही मगर स्तुति ने अपने बड़े भैया को पप्पी देने से मना करते हुए मुँह मोड़ लिया! "पापा जी, देखो स्तुति मुझे पप्पी नहीं दे रही!" आयुष अपनी छोटी बहन की शिकायत करते हुए बोला|

इतने में नेहा बड़ी हाज़िर जवाबी से स्तुति का पक्ष लेते हुए बोली; "इतना लेट क्यों उठा? लेट उठा है न इसलिए स्तुति की सारी पप्पी हमने ले ली और तेरे लिए कुछ नहीं बचा!” नेहा ने आयुष को चिढ़ाते हुए कहा तो आयुष ने अपना मुँह फुला लिया! आयुष को ऐसा लग रहा था मानो उसके सामने हम सब ने उसकी मनपसंद चाऊमीन खा ली हो और उस बेचारे को देखने को बस खाली प्लेट नज़र आ रही हों! आयुष का मुँह फूला हुआ देख नेहा खूब हँसी और उसकी पीठ पर थपकी मारते हुए बोली; "अच्छा जा कर पहले मुँह धो कर आ! स्तुति बासी मुँह किसी को अपनी मीठी-मीठी पप्पी नहीं देती|" अपनी दीदी की बात सुन आयुष बिजली की रफ्तार से दौड़ा और ब्रश कर के आ गया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर नीचे झुका और आयुष ने अपनी छोटी बहन के दाएँ गाल को चूमते हुए उसे जन्मदिन की प्यारभरी बधाई दी; "स्तुति, आपको जन्मदिन मुबारक हो! मैं आपका बड़ा भाई हूँ न, तो आज के दिन मैं आपके सारे काम करूँगा| आपको कुछ भी चाहिए हो तो मुझे बताना!" आयुष को अपने बड़े भाई होने पर बहुत गर्व था और वो आज अपने भाई होने का दायित्व निभाना चाहता था|

"बड़ा आया बड़ा भाई!" नेहा मुँह टेढ़ा करते हुए बोली और कमरे से जाते-जाते आयुष की पीठ पर एक मुक्का धर गई!



हम सभी चाय-नाश्ता कर के तैयार हुए तथा मैंने सभी के एक साथ जाने के लिए किराए पर इन्नोवा (Innova) गाडी मँगाई| गाडी बहुत बड़ी थी और मैंने आजतक इतनी बड़ी गाडी नहीं चलाई थी, कहीं मैं गाडी ठोक न दूँ इसके लिए मैंने भाईसाहब को गाडी चलाने को कहा| भाईसाहब की बगल में भाभी जी बैठीं थी और उनके पीछे माँ, संगीता और मेरी सासु माँ बैठे| मैं, मेरी गोदी में स्तुति, नेहा, आयुष और विराट सबसे पीछे सिकुड़ कर बैठे| सबसे पीछे बैठ कर हम पाँचों ने खूब धमा-चौकड़ी मचाई| करीबन पौने घंटे बाद हम सभी अपने गंतव्य स्थान यानी के एक अनाथ आश्रम पहुँचे| आज स्तुति के जन्मदिन के दिन हम स्तुति के हाथों उन बच्चों के लिए भोजन की सामग्री लाये थे जिनके सर पर परिवार का साया नहीं होता| गाडी खड़ी कर मैंने, भाईसाहब ने, आयुष, नेहा और विराट ने मिल कर खाने की सामग्री यानी आटा, दाल, सब्जी, मसाले, मिठाई, तेल, घी आदि गाडी से निकाल कर आश्रम की रसोई में रखे| इस आश्रम के प्रबंधक से माँ और मैं, आज की दिन की सेवा के लिए पहले ही बात कर चुके थे|

सभी खाने की सामग्री रखने के बाद हम प्रबंधक जी के साथ एक हॉल में पहुँचे जहाँ प्रबंधक जी ने सभी बच्चों से हमारा तार्रुफ़ करवाया| आश्रम में बच्चे आयुष की उम्र से ले कर विराट की उम्र के बीच के थे तथा सभी बच्चे बड़े ही सभ्य थे| जब सभी बच्चों को पता चला की आज स्तुति का जन्मदिन है तो सभी ने एक स्वर में स्तुति के लिए 'हैप्पी बर्थडे टू यू' का गाना गाया| इतने सारे बच्चों को गाना गाते देख स्तुति बड़ी खुश हुई और किलकारियाँ मार कर सभी बच्चों के साथ गाना गाने की कोशिश करने लगी| संगीता और भाभी जी ने जब स्तुति को; "अव्व्व...वववूऊ" कर के गाना गाते सूना तो दोनों आस्चर्यचकित रह गईं| तब मैंने उन्हें आज स्तुति के मुझे आई लव यू कहने के बारे में बताया, जिस पर भाभी चुटकी लेते हुए बोलीं; "ले संगीता, अब तो स्तुति मानु को आई लव यू कहने लगी! अब तेरा क्या होगा?!" भाभी जी ने केवल मज़ाक किया था मगर संगीता को इस बात से मीठी सी जलन होने लगी थी, तभी उसने स्तुति के गाल खींचते हुए खुसफुसा कर कहा; "खबरदार जो मेरे पति पर इस तरह हक़ जमाया तो! तेरे पापा होंगें बाद में, पहले तो मेरे पति हैं!" चूँकि स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैंने संगीता की सारी बात सुन ली थी और मेरे चेहरे पर खुद पर दो लोगों द्वारा हक़ जमाने की बात सुन गर्वपूर्ण मुस्कान तैरने लगी थी|



आश्रम से निकल कर हम घर के लिए निकले परन्तु इस यात्रा को दिलचस्प बनाने के लिए मैंने मेट्रो से जाने की बात रखी| मेरी सासु माँ, विराट, भाभी जी और संगीता ने आज तक मेट्रो से सफर नहीं किया था इसलिए उन्हें पहलीबार मेट्रो घुमाना तो बनता था| हमने तीन ऑटो किये और नज़दीकी मेट्रो स्टेशन पहुँचे| मेट्रो स्टेशन पहुँचते ही आयुष और नेहा ने चौधरी बनते हुए कमान सँभाली, अब देखा जाए तो दोनों बच्चे स्कूल में PREFECT और क्लास मॉनिटर थे तो दोनों ने हम सभी को अपनी क्लास के बच्चे समझ लिफ्ट में कैसे जाना है समझना शुरू कर दिया| लिफ्ट में हम सब दो झुण्ड में घुसे, पहले झुण्ड का नेतृत्व आयुष ने किया और दूसरे झुण्ड का नेतृत्व नेहा ने किया| मेरी सासु माँ, विराट और भाभी जी के लिए लिफ्ट का अनुभव नया था इसलिए वो इस छोटी सी यात्रा से थोड़े घबराये हुए थे| वो तो आयुष और नेहा उनके साथ थे इसलिए दोनों बच्चों ने अपनी नानी जी तथा अपनी बड़ी मामी जी को डरने नहीं दिया, बल्कि उन्हें लिफ्ट कैसे चलती है ये समझाने लगे|

नीचे मेट्रो स्टेशन के भीतर पहुँच कर नेहा ने सभी को एक जगह खड़े रहने को कहा तथा मेरी ड्यूटी सभी की टिकट लाने के लिए लगा दी| जबतक मैं सबकी टिकट ले कर आया तब तक दोनों बच्चों ने मेट्रो में कैसे सफर करना है ये सब बातें एक टीचर की तरह बाकी सब को समझाईं| जब मैं टिकट ले कर लौटा तो नेहा ने घर की सभी महिलाओं को अपने साथ ले कर महिलाओं की जहाँ सुरक्षा जाँच हो रही थी उस कतार में लग गई| बचे हम पुरुष तो हमें आयुष का कहा मानना था इसलिए हम सब आयुष के पीछे पुरुष सुरक्षा जाँच की कतार में लग गए| मैं सबसे आखिर में खड़ा था और मेरी गोदी में थी स्तुति, जब मेरी सुरक्षा जाँच का नंबर आया तो स्तुति को देख गार्ड साहब मुस्कुरा दिए; "बेटा, आप तो गलत लाइन में लग गए!" गार्ड साहब ने स्तुति से मज़ाक करते हुए कहा| आयुष ने जब देखा की स्तुति नेहा के साथ जाने की बजाए मेरे साथ है तो वो गार्ड साहब से बोला; "अंकल जी, ये मेरी छोटी बहन है और आज इसका जन्मदिन है| ये पापा जी के शिव किसी की गोदी में नहीं रहती इसलिए प्लीज मेरी छोटी बहन को माफ़ कर दीजिये|" आयुष ने हाथ जोड़ते हुए गार्ड साहब से अपनी छोटी बहन की वक़ालत की| एक छोटे से बच्चे को यूँ हाथ जोड़ कर विनती करते देख गार्ड साहब मुस्कुरा दिया और बोले; "कोई बात नहीं बेटा, हम बिटिया की सुरक्षा जाँच माफ़ कर देते हैं|" ये कहते हुए गार्ड साहब ने मेरी नाम मात्र की सुरक्षा जाँच की और हमें जाने दिया| गार्ड साहब की उदारता देख आयुष ने उन्हें हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा जिसपर गार्ड साहब ने आयुष को "खुश रहो बेटा" कहा|



सभी की सुरक्षा जाँच हुई और हम सभी एक झुण्ड बना कर मेट्रो के आटोमेटिक (automatic) गेट के सामने खड़े हो गए| आयुष और नेहा ने एक बार फिर कमान सँभाली और सभी को मेट्रो की टिकट के इस्तेमाल से गेट कैसे खोलते हैं ये सिखाया| सबसे पहले नेहा ने अपनी नानी जी की हथेली में मेट्रो का टिकट दिया और उनका हाथ पकड़ कर मशीन से छुआ दिया| जैसे ही मशीन ने टिकट को पढ़ा (read किया), गेट अपने आप खुल गये| मेरी सासु माँ इस अचम्भे को देखने में व्यस्त थीं की तभी पीछे से आयुष चिल्लाया; "जल्दी करो नानी जी, वरना गेट बंद हो जायेगा!" अपने नाती की बात सुन मेरी सासु माँ जल्दी से गेट के उस पार चली गईं| फिर बारी आई मेरी माँ की, मेरी माँ मेरे साथ 1-2 बार मेट्रो में गई थीं परन्तु उन्हें अब भी मेट्रो के इस गेट से डर लगता था इसलिए नेहा ने ठीक अपनी नानी जी की ही तरह अपनी दादी जी का हाथ पकड़ कर मेट्रो की टिकट मशीन से स्पर्श करवाई, जैसे ही गेट खुला माँ सर्रर से उस पार हो गईं! फिर बारी आई भाभी जी की और उन्होंने अभी जो देख कर सीखा था उसे ध्यान में रखते हुए वे भी बहुत आसानी से पार हो गईं| अगली बारी थी संगीता की मगर वो जाने से घबरा रही थी और बार-बार मेरी तरफ ही देख रही थी इसलिए मैंने विराट की पीठ पर हाथ रख उसे आगे जाने का इशारा किया| आयुष ने आगे आ कर अपने विराट भैया को एक बार सब समझाया, विराट समझदार था इसलिए वो भी फट से पार हो गया| विराट के जाने के बाद नेहा भी गेट से पार हो गई| अब बारी आई भाईसाहब की और उन्होंने घबराने का बेजोड़ अभिनय किया ताकि उनका भाँजा उन्हें एक बार फिर से सब समझाये| आयुष ने अपने बड़े मामा जी को छोटे बच्चों की तरह समझाया, ये दृश्य इतना प्यारा था की सभी लोग मुस्कुरा रहे थे|

भाईसाहब के गेट से पार होते ही आयुष अपनी मम्मी से बोला; "चलो मम्मी, अब आपकी बारी!" अब संगीता को जाना था मेरे साथ इसलिए वो थोड़ा चिढ़ते हुए बोली; "तुझे बड़ी जल्दी है! तू ही जा, मैं बाद में आती हूँ!" आयुष ने अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाया और फुर्र से गेट के पार हो गया| आयुष की जीभ चिढ़ाने का संगीता पर कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस आँखों में प्रेम लिए मुझे देख रही थी| मैंने संगीता के हाथ में उसकी टिकट दी और उसका हाथ पकड़ कर मशीन से स्पर्श करवाया तथा संगीता को उत्तेजित करने के इरादे से उसका हाथ पकड़ कर धीरे से मीस दिया! "ससस" करते हुए संगीता सीसियाई और आँखों ही आँखों में मुझे उलहाने देते हुए गेट से पार हो गई| अब केवल मैं बचा था और मेरे मन में भरा था बचनपना, मैंने स्तुति का ध्यान मशीन की तरफ खींचा और अपना पर्स मशीन से स्पर्श करवाया| अचानक से मशीन ने गेट खोला तो स्तुति हैरान हो गई, फिर जैसे ही मैं गेट से पार हुआ तो गेट पुनः बंद हो गया| स्तुति ने जब गेट बंद होते हुए देखा तो वो अस्चर्य से भर गई और मेरा ध्यान उस गेट की तरफ खींचने लगी| स्तुति की उत्सुकता देख, मैं अपनी सालभर की बिटिया को मेट्रो के गेट खुलने और बंद होने की प्रक्रिया के बारे में बताने लगा|



उधर मेरे दोनों बच्चे सभी को एस्केलेटर्स से नीचे कैसे उतरते हैं ये समझाने लगे| भाभी और मेरी सासु माँ को एस्केलेटर्स से उतरने में डर लग रहा था, यहाँ तक की मेरी माँ जो की एक बार मेरे साथ एस्केलेटर्स की सैर कर चुकी हैं वो भी घबरा रहीं थीं| "आप अब बिलकुल मत घबराओ, आपकी साड़ियाँ एस्केलेटर्स में नहीं फसेंगी क्योंकि ये मशीन बनाई ही इस तरह गई है की इसके बीच किसी भी प्रकार का कपड़ा नहीं फँस सकता|" मैंने तीनों महिलाओं को आश्वस्त किया और दो-दो की जोड़ियाँ बनाने लगा| "(सासु) माँ भाईसाहब को एस्केलेटर्स इस्तेमाल करना आता है इसलिए आप भाईसाहब के साथ उतरियेगा| भाभी जी, आप के साथ संगीता होगी, उसे मैंने एस्केलेटर्स पर कैसे चढ़ते-उतरते हैं ये सीखा रखा है और माँ आप मेरे साथ मेरा हाथ पकड़ कर रहना आपको बिलकुल डर नहीं लगेगा|" मैंने अपनी माँ का हाथ थमाते हुए उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा| सबसे पहले मैं और माँ एस्केलेटर्स के पास पहुँचे, माँ का ध्यान अब भी अपनी साडी के एस्केलेटर्स पर फँसने पर था इसलिए मैंने माँ को पुनः आश्वस्त किया; "माँ, साडी पर ध्यान मत दो| आप बस मेरा हाथ थामे रहो और जब मैं कहूँ तब अपने बायें हाथ से एस्कलेटर की बेल्ट थामते हुए अपना दाहिना पैर आगे रखना|" मैंने माँ को समझा दिया था मगर मेरी माँ फिर भी घबरा रहीं थीं| 4-5 कोशिशों के बाद आखिर माँ मेरे साथ एस्केलेटर्स पर सवार हो ही गईं| मैं, मेरी गोदी में स्तुति और माँ, हम तीनों जैसे ही एस्केलेटर्स पर सवार हुए की स्तुति ने ख़ुशी के मारे चिल्लाना शुरू कर दिया| स्तुति आज पहलीबार मेट्रो में आई थी इसलिए नई-नई चीजें, नए-नए अनुभव महसूस कर स्तुति सबसे ज्यादा खुश थी|

हम तीनों माँ- बेटा-बेटी (स्तुति) नीचे पहुँचे तो हमारे पीछे-पीछे भाभी जी और संगीता भी एस्केलेटर्स पर सवार हो कर नीचे आ गए, एस्केलेटर्स की सवारी भाभी जी को बहुत अच्छी लगी थी जो की उनके चेहरे पर एक बच्चे की मुस्कान के रूप में दिख रही थी| फिर आये भाईसाहब और उनका हाथ थामे मेरी सासु माँ, नीचे पहुँच सासु माँ ने चैन की साँस ली और अपने कान पकड़ते हुए बोलीं; "हमार तौबा, हमार बाप की तौबा! हम दुबारा ई मसीन (एस्केलेटर्स) पर न चढ़ब! हम तो ऊ…ऊ का होत है...ऊ मशीन जो ऊपर से नीचे लाइ रही?! (लिफ्ट) ऊ मसीन मा ही जाब!" मेरी सासु माँ द्वारा कही बात को सुन हमें बड़ी हंसी आई और हम ठहाका लगा कर हँसने लगे!



हम सब तो नीचे आ गए थे, रह गए थे तो तीनों बच्चे; "मानु, ये तीनों कहीं गिर न जाएँ?" भाभी जी तीनों बच्चों की चिंता करते हुए बोलीं|

"चिंता न करो भाभी जी, आयुष और नेहा बहुत समझदार हैं| देखना वो दोनों विराट का हाथ पकड़े आते होंगें|" मैंने अपने दोनों बच्चों की तारीफ की जिसपर संगीता चुटकी लेते हुए बोली; "हाँ भाभी, इन दोनों को इन्होने ऐसी ट्रेनिंग दी है की अगर इन दोनों शैतानों को अकेला छोड़ दिया जाए तो भी दोनों अकेले घर आ जाएँ|" संगीता की टिपण्णी सुन भाभी जी हँस पड़ीं और मेरी पीठ थपथपाने लगीं|



आखिर तीनों बच्चे एस्कलेटर पर धीरे-धीरे नीचे आने लगे और अपने भैया और दीदी को एस्केलेटर्स से नीचे आते देख स्तुति ने ख़ुशी से खिलखिलाना शुरू कर दिया| हम सब मेट्रो के आखरी वाले डिब्बे के सामने जो बैठने की जगह बनी होती है वहाँ जा कर बैठ गए| एक बार फिर आयुष और नेहा ने मिल कर सभी को मेट्रो ट्रैन में कैसे चढ़ना-उतरना है ये समझाना शुरू कर दिया| दोनों बच्चों की ज्ञान से भरी बातें सुन सासु माँ, भाभी जी और भाईसाहब बहुत खुश हुए और दोनों बच्चों की तारीफ करने लगे| अपनी तारीफ सुन दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए और मुझे सारा श्रेय देते हुए बोले; "ये सब हमें पापा जी ने सिखाया है!" नेहा बोली, मैंने भी एक अध्यापक की तरह गर्व करते हुए बारी-बारी से मेरे छात्रों...यानी अपने बच्चों को आशीर्वाद देते हुए प्यार किया|



हमारी ट्रैन आने तक बच्चे सभी को अपनी बातों में लगाए हुए थे और पीछे स्टेशन पर जो ट्रैन आ रहीं थीं उसके बारे में बता रहे थे| इधर मेरी लाड़ली बिटिया मेट्रो ट्रैन देख कर उत्साह से भरी हुई थी, वो बार-बार ट्रैन देख कर मेरी गोदी से उतरने के लिए छटपटाने लगती| आखिर मैं स्तुति को ले कर पीछे खड़ी मेट्रो ट्रैन के पास पहुँचा ताकि स्तुति मेट्रो ट्रैन को नज़दीक से देख सके| मेट्रो ट्रैन के नज़दीक पहुँचते ही स्तुति को लोग नज़र आये और उसने सभी को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया, लेकिन सभी जल्दी में थे इसलिए कुछ लोगों ने स्तुति को नज़रअंदाज़ किया तो कुछ ने हाथ हिला कर स्तुति को बाय (bye) कहा|
इतने में हमारी ट्रैन आ गई और जैसा की होता है, आखरी वाला डिब्बा लगभग खाली था| हम सभी सँभाल कर ट्रैन में चढ़े, आयुष उत्साही था तो उसने सबसे पहले सीट पकड़ी मगर वो अनजाने में महिलाओं तथा वृद्ध लोगों के लिए आरक्षित सीट पर बैठ गया! "आयुष! उठ वहाँ से, वो जगह दादी जी और नानी जी के लिए है!" नेहा ने आयुष को डाँट लगाई| आयुष को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो कान पकड़ते हुए नेहा से बोला; "सॉरी दीदी!" इतना कह आयुष ने अपनी दादी जी और नानी जी का हाथ पकड़ उन्हें उस सीट पर बिठाया तथा उनकी बगल में बैठ गया| नेहा ने आयुष को प्यार से समझाते हुए कहा; "ट्रैन में ये सीट केवल बड़े लोगों और लेडीज के लिए होती है| दुबारा ऐसी गलती करेगा न तो बाकी सब से मार खायेगा|" अपनी दीदी की दी हुई सीख समझ आयुष ने एक बार फिर सॉरी कहा|



ट्रैन में चल रहे AC की हवा, अपने आप खुलते बंद होते मेट्रो ट्रैन के दरवाजे और बार-बार हो रही अलग-अलग घोषणा सुन कर सभी हैरान थे, नेहा ने अपनी समझदारी दिखाते हुए सभी को समझाया की ये सारी घोषणाएं यात्रियों की जानकारी के लिए की जाती हैं तथा AC ट्रैन में इसलिए लगा है क्योंकि ट्रैन की खिड़कियाँ खुलती नहीं हैं ऐसे में किसी को गर्मी न लगे इसलिए AC चलाये जाते हैं और मेट्रो के दरवाजे ट्रैन चलाने वाले ड्राइवर साहब खोलते-बंद करते हैं|

वहीं मेरी सबसे छोटी लाड़ली बिटिया मेट्रो ट्रैन में आने के बाद से कुछ अधिक ही प्रसन्न थी| स्तुति मेरी गोदी से उतरने को छटपटा रही थी इसलिए मैं स्तुति को ले कर खिड़की की तरफ मुड़ गया और स्तुति को शीशे के नज़दीक कर दिया| शीशे से बाहर स्टेशन को देखना, गुजरती हुई दूसरी ट्रेनों को देखना और अन्य यात्रियों को देख स्तुति बहुत खुश हुई और किलकारियाँ मार कर मेरा ध्यान खींचने लगी| मेरे भीतर का भी बच्चा जाएगा और मैंने भी बच्चा बनते हुए स्तुति से तुतलाते हुए बात करनी शुरु कर दी| मेरे यूँ बच्चा बन जाने से स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो खिलखिलाकर हँसने लगी|

बहरहाल, हमारा स्टेशन आया और हम सभी मेट्रो ट्रैन से उतरे| अब फिर ऊपर चढ़ना था और मेरी सासु माँ ने एस्केलेटर्स पर जाने से साफ़ मना कर दिया| मेरी माँ ने भी अपनी समधन का साथ दिया और लिफ्ट से जाने की माँग की| मैंने तीनों बच्चों को माँ और मेरी सासु माँ के साथ लिफ्ट से जाने को कहा| बाकी बचे हम चार यानी मैं, संगीता, भाभी जी और भाईसाहब तो हम सब एस्केलेटर्स से ऊपर पहुँचे|

ऑटो कर हम सभी घर पहुँचे और बिना देर किये सभी लोग हवन की तैयारियों में लग गए| बैठक के बीचों बीच की जगह खाली कर सभी के बैठने के लिए आसनी बिछा दी गई| चूँकि मेरी माँ और सासु माँ ज़मीन पर नहीं बैठ सकतीं थीं इसलिए उनके लिए कुर्सियाँ लगा दी गई| कुछ ही समय में पंडित जी पधारे तो मैंने स्तुति को पंडित जी से मिलवाया, पंडित जी ने स्तुति के सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया; "जुग-जुग जियो मुन्नी!"



हवन के लिए सबसे आगे हम चारों यानी मैं, मेरी गोदी में स्तुति, मेरी दाईं तरफ नेहा और बाईं तरफ आयुष बैठे| हवन शुरू हुआ और पहले सभी को कलावा बाँधा गया, जब स्तुति के हाथ में कलावा बाँधा गया तो मेरी बिटिया अस्चर्य से अपने हाथ पर कलावा बँधते हुए देखने लगी| फिर स्तुति को लगाया गया टीका और स्तुति को इसमें भी बड़ा मज़ा आया| इधर पंडित जी ने हवन सामग्री मिलाने का काम बताया तो आयुष और नेहा आगे आये तथा पंडित जी द्वारा दिए निर्देशों का पालन करते हुए हवन सामग्री मिलाने लगे| अपने बड़े भैया और दीदी को हवन सामग्री मिलाते देख स्तुति को बड़ी जिज्ञासा हुई की आखिर ये हो क्या रहा है? अपनी बढ़ती जिज्ञासा के कारण स्तुति ने मेरी गोदी से उतरने के लिए मचलना शुरू कर दिया, अब यदि मैं स्तुति को छोड़ देता तो वो सीधा हवन सामग्री में अपने हाथ डालकर हवन सामग्री चखती इसलिए मुझे स्तुति का ध्यान बँटाना था| मैं स्तुति को ले कर घर के मंदिर के पास पहुँचा और मंदिर से घंटी निकाल कर स्तुति को दे दी| पीतल की चमकदार घंटी को देख सबसे पहले स्तुति ने उसे अपने मुँह में ले कर चखा, परन्तु जब उसे पीतल का स्वाद अच्छा नहीं लगा तो स्तुति मुँह बनाते हुए मुझे देखने लगी| मैंने स्तुति का हाथ पकड़ उसे घंटी बजाना सिखाया, घंटी की आवाज़ सुन स्तुति प्रसन्न हो गई और अपने हाथ झटकते हुए घंटी बजाने की कोशिश करने लगी| जब मैं स्तुति को ले कर बैठक में लौटा तो उसे घंटी बजाते देख भाभी जी मुस्कुराते हुए बोलीं; "तुम दोनों की अलग पूजा चल रही है क्या?" भाभी जी की बात सुन पंडित जी समेत हम सभी हँस पड़े|

अंततः पंडित जी ने हवन आरम्भ किया| जैसे ही पंडित जी ने मंत्रोचारण शुरू किया मेरी मस्ती करती हुई छोटी बिटिया एकदम से शांत हो गई और बड़े गौर से पंडित जी को देखने लगी| हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित की गई और अग्नि को देख स्तुति एक बार फिर अस्चर्य से भर गई! पंडित जी ने मुझे हवन कुंड में घी डालने का काम दिया तथा घर के बाकी सदस्यों को धीरे-धीरे हवन कुंड में हवन सामग्री डालने का काम दिया| "मेरे स्वाहा बोलने पर आप सभी लोग स्वाहा बोलते हुए हवन-सामग्री डालियेगा और मानु बेटा, तुम्हें मेरे स्वाह बोलने पर थोड़ा सा घी डालना होगा|" पंडित जी सभी को समझाते हुए बोले| मेरे हाथ में था एक ताम्बे का बड़ा सा चम्मच और स्तुति को ये चम्मच देख कर हैरत हो रही थी, स्तुति को खुश करने के लिए मैंने स्तुति का हाथ अपने हाथ में लिया और फिर स्तुति के नन्हे से हाथ में चम्मच पकड़ा दिया| चूँकि स्तुति का हाथ मेरे काबू में था इसलिए स्तुति मस्ती नहीं कर सकती थी|



जब मैं स्कूल में पढता था तब हमारे स्कूल में हफ्ते में एक बार हवन अवश्य होता था, ऐसे में शास्त्री जी द्वारा बोले जाने वाले कई मंत्र मैंने कंठस्त कर लिए थे| आज जब पंडित जी ने उन्हीं मंत्रों का उच्चारण किया तो मैंने भी पंडित जी के साथ-साथ वही मन्त्र दोहराये| मुझे मंत्र दोहराते हुए देख मेरी माँ को छोड़ सभी स्तब्ध थे| मेरी माँ मेरे मंत्रोचारण के गुण के बारे में जानती थीं क्योंकि घर में जब हवन होता था तब मैं पंडित जी के साथ मंत्र दोहराता था इसीलिए मेरी माँ को अस्चर्य नहीं हो रहा था| वहीं मेरी छोटी बिटिया रानी अपनी गर्दन मेरी तरफ घुमा कर मुझे मंत्रोचारण करते हुए बड़े गौर से देख रही थी| उधर मेरी बड़ी बिटिया नेहा को तो अपने पापा जी को पंडित जी के साथ मंत्रोचारण करते देख गर्व हो रहा था|

बहरहाल, हवन जारी था और आयुष तथा नेहा बड़े जोश से " स्वाहा" बोलते हुए हवन कुंड में हवन सामग्री डाल रहे थे| घर के बाकी सदस्य दोनों बच्चों का उत्साह देख मुस्कुरा रहे थे और स्वाहा बोलते हुए हवन कुंड में हवन सामग्री डाल रहे थे| वहीं हम बाप-बेटी ख़ुशी-ख़ुशी स्वाहा बोलते हुए हवन कुंड में घी डाल रहे थे| कमाल की बात ये थी की मेरी बिटिया रानी घी डालने के कार्य को करते हुए बहुत खुश थी, उसने इस कार्य को करते हुए ज़रा भी शरारत या मस्ती नहीं की थी|



हवन समाप्त हुआ तो सभी को प्रसाद मिला और हमेशा की तरह प्रसाद लेने के लिए आयुष सबसे आगे था| पंडित जी जब मुझे प्रसाद दे रहे थे तो स्तुति ने अपना हाथ आगे कर दिया इसलिए पंडित जी ने लड्डू स्तुति के हाथ में रख दिया| लाडू पा कर स्तुति बहुत खुश थी और इसी ख़ुशी में स्तुति ने अपनी मुठ्ठी कस ली जिससे लड्डू टूट कर मेरे हाथ में गिर गया! जो थोड़ा सा लड्डू स्तुति के हाथ में था उसे मेरी बिटिया ने ‘घप्प’ से खा लिया और लड्डू का जो हिस्सा मेरे हाथ में गिरा था वो मैंने खा लिया| स्तुति को लाडू का स्वाद बहुत पसंद आया और वो ख़ुशी से अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| दरअसल, स्तुति के लिए बिना किसी की बात सुने ‘गप्प’ से चीज़ खा लेना शरारत थी, जबकि हमारे लिए ये स्तुति का बालपन था जिसे देख कर हम सभी मोहित हो जाते थे|



पंडित जी के जाने के बाद सभी बैठ कर आराम कर रहे थे, इधर मेरी बिटिया रानी ने आज सुबह से जो मस्ती की थी उसके कारण उसे नींद आ रही थी| स्तुति इतनी थकी हुई थी की आधा सेरेलक्स खा कर ही सो गई| हम सभी ने भी खाना खाया और शाम के समारोह की तैयारी में लग गए| शाम 5 बजे मेरी लाड़ली बिटिया सो कर उठी और सीधा मेरी गोदी में आ गई| बारी-बारी से सब तैयार हुए और स्तुति को तैयार करने की जिम्मेदारी मैंने ली| गुलाबी रंग की जाली वाले फ्रॉक पहना कर, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर, हाथ में चांदी का कड़ा पहना कर और बालों में दो छोटी-छोटी चोटियाँ बना कर मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए निकला| स्तुति की सुंदरता देख मेरी माँ ने सबसे पहले स्तुति को काला टीका लगाया और स्तुति के हाथ चूमते हुए बोलीं; "मेरी लाड़ली को किसी की नज़र न लगे!" अपनी दादी जी के द्वारा हाथ चूमे जाने से स्तुति शर्मा गई और मेरे सीने से लिपट गई|



हम सभी तैयार हो कर बैंक्वेट हॉल (banquet hall) के लिए निकले क्योंकि वहीं तो स्तुति के जन्मदिन का समारोह रखा गया था| पूरा बैंक्वेट हॉल रंग-बिरंगे गुबारों से सजा हुआ था, बाहर गार्डन में बुफे तैयार था| बैंक्वेट हॉल में मौजूद Dj धड़ाधड़ गाने बजाए जा रहा था| बच्चों के खेल-कूद के लिए एक हवा भरा हुआ मिक्की माउस का किला था जिस पर बच्चे चढ़ कर फिसल सकते थे| बच्चों की पसंद की कॉटन कैंडी और मैजिक शो की भी व्यवस्था की गई थी| जैसे ही हम पहुँचे तो बैंक्वेट हॉल के मैनेजर ने हमें सारी तैयारियाँ दिखाईं|



धीरे-धीरे सारे मेहमान आने लगे और पूरा बैंक्वेट हॉल भर गया| आयुष और नेहा के सारे दोस्त अपने मम्मी-पापा जी के साथ आये थे, मिश्रा अंकल जी सपरिवार आये थे, दिषु भी अपनी परिवार के साथ आया था| मेरे साथ काम करने वाले कुछ ख़ास लोग भी मेरी बेटी के जन्मदिन में सम्मिलित होने आये थे| यहाँ तक की माधुरी भी सपरिवार सहित आई थी!

माधुरी को देख संगीता हैरान थी, संगीता को हैरान देख माधुरी बोली; "भाभी जी, आपने तो बुलाया नहीं इसलिए मैं ही बेशर्म बन कर आ गई|" संगीता समझती थी की मैंने ही माधुरी को न्योता दिया होगा इसलिए संगीता ने बड़ी ही हाज़िर जवाबी से जवाब दिया; "अपनों को कहीं न्योता दिया जाता है?!" संगीता की हाज़िर जवाबी देख माधुरी बहुत खुश हुई|

माधुरी अपने पति और बेटे जो की उम्र में स्तुति से कुछ महीना ही बड़ा होगा के साथ आई थी| "हेल्लो वंश जी|" माधुरी के बेटे का नाम वंश था, जैसे ही मैंने वंश से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया की वंश ने मेरी गोदी में आने के लिए अपनी दोनों बाहें फैला दी| स्तुति तब अपनी मम्मी की गोदी में थी इसलिए मैंने वंश को गोदी ले लिया| तब मुझे नहीं पता था की वंश को गोदी ले कर मैं अपनी बिटिया रानी की नज़र में कितनी बड़ी गलती करने जा रहा हूँ! उसपर मेरी मैंने एक और गलती की, वंश को लाड करते हुए मैंने उसके मस्तक को चूम लिया!



अपने पापा जी को दूसरे बच्चे को गोदी में लिए हुए पप्पी करते देख स्तुति जल भून कर राख हो गई और मेरी गोदी में आने के लिए अपनी मम्मी की गोदी में छटपटाने लगी| जब मैंने स्तुति को यूँ बेचैन होते हुए देखा तो मुझे मेरी गलती का आभास हुआ| मैंने वंश को अपनी माँ की गोदी में दिया और फट से स्तुति को गोदी में लिया| मेरी गोदी में आते ही स्तुति ने अपनी मुट्ठी में मेरी कमीज जकड़ ली और अपना गुस्सा मुझे महसूस करवाने लगी! मैं स्तुति को टहलाने के बहाने से कुछ दूर ले आया और स्तुति से माफ़ी माँगते हुए बोला; "बेटा जी, मुझे माफ़ कर दो! लेकिन मैंने थोड़े ही वंश को गोदी लिया, मैं तो बस उससे हाथ मिलाना चाहता था, अब वही मेरी गोदी में आना चाहता था तो मैं उसे कैसे मना करता?!" मैंने स्तुति के सामने अपनी सफाई रखी|

मेरी बिटिया अपनी मम्मी की तरह नहीं थी, स्तुति ने मेरी पूरी बात सुनी और मुझे माफ़ करते हुए फिर से खिलखिलाने लगी| हम बाप-बेटी सबके पास वापस लौटे तो देखते क्या हैं की माँ ने वंश को खेलने के लिए स्तुति की मनपसंद लाल रंग की बॉल दे दी! अपनी बॉल को दूसरे बच्चे के पास देख स्तुति को गुस्सा आने लगा और वो वंश से बॉल छीनने को आतुर हो गई| माँ ने जब स्तुति को इस तरह मेरी गोदी से उतरने को मचलते देखा तो माँ मुझसे बोलीं; "बेटा, शूगी को यहाँ वंश के साथ बिठा दे, दोनों बच्चे साथ खेल लेंगे|" स्तुति का केक आने में समय था इसलिए टेबल पूरी तरह खाली था| मैंने स्तुति को वंश की बगल में टेबल पर बिठा दिया तथा मैं सबके साथ बातों में लग गया|



उधर मेरी बिटिया रानी ने जब अपनी मनपसंद बॉल को दूसरे बच्चे के मुख में देखा तो उसे गुस्सा आने लगा| "आए" कहते हुए स्तुति ने अपनी बोली भासा में वंश को पुकारा मगर वंश का ध्यान बॉल को कुतरने में लगा था| स्तुति को अनसुना किया जाना पसंद नहीं था इसलिए स्तुति अपने दोनों हाथों-पॉंव पर रेंगते हुए वंश की तरफ बढ़ने लगी| वंश के पास पहुँच स्तुति ने अपने दाहिने हाथ से वंश के हाथों से बॉल छीननी चाही मगर वंश बॉल लिए हुए दूसरी तरफ मुड़ गया|

वंश की प्रतिक्रिया पर स्तुति को और भी गुस्सा आने लगा इसलिए वो वंश को मारने के इरादे से आगे बढ़ी| ठीक उसी समय मैं दोनों बच्चों को देखने के लिए पलटा और मैंने देखा की स्तुति अपना दाहिना हाथ उठाये वंश पर हमला करने जा रही है! मैंने एकदम से भागते हुए स्तुति को पीछे से पकड़ कर गोदी में उठा लिया| मेरी गोदी में आ कर भी स्तुति अपनी बॉल वंश से वापस लेने के लिए छटपटा रही थी!



"चलो बेटा, हम घुम्मी कर के आते हैं!" ये बोलते हुए मैं स्तुति को अपनी गोदी में लिए हुए दूर आ गया| "बेटा, वंश आपका दोस्त है और दोस्तों को मारते नहीं हैं! छोटा बच्चा है, वो नहीं जनता की वो आपकी बॉल से खेल रहा है! माफ़ कर दो उसे बेटा प्लीज!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया| फिर स्तुति का मन बहलाने के लिए मैं उसे बुफे के पास ले आया, यहाँ स्तुति के खाने के लिए बस सलाद और फ्रूट चाट ही थी| मैंने एक दोने में 2-4 फल व सलाद लिए और स्तुति को खाने के लिए दिए| स्तुति अपने हाथों से फल या सलाद का एक पीस उठाती और अपने मुँह में रख रस चूसती और जब वो सारा रस चूस लेती तो वो फल या सलाद का टुकड़ा मुझे खिला देती! स्तुति को मेरे साथ देख कई लोग स्तुति को जन्द्मिन की बधाई देने आये, जो लोग उम्र में बड़े होते वो स्तुति को आशीर्वाद देते और छोटे बच्चे स्तुति से हाथ मिला कर उसे हैप्पी बर्थडे कहते| इसी तरह सबसे मिलते मिलाते हम बाप-बेटी दूर एक कोने में पहुँचे जहाँ एक पेड़ लगा था और पेड़ पर गिलहरी उछल-कूद कर रही थी| स्तुति को अपना मनपसंद जानवर दिखा तो स्तुति का ध्यान भटक गया और वो गिलहरी को देख किलकारियाँ मारने लगी|



हम बाप-बेटी लगभग आधे घंटे से गायब थे और केक काटने का समय हो रहा था इसलिए हमें ढूंढने के लिए नेहा ने Dj वाले के माइक से घोषणा की; "बर्थडे गर्ल स्तुति और पापा जी, जहाँ कहीं भी हैं फौरन स्टेज पर आइये!" नेहा ने ये घोषणा ठीक उसी तरह की जैसे की रेलवे स्टेशन पर होती है इसीलिए नेहा की ये घोषणा सुन सभी लोगों ने जोरदार ठहाका लगाया| वहीं स्तुति ने जब अपना नाम स्पीकर पर सुना तो स्तुति बहुत खुश हुई, मैं स्तुति को लेकर अंदर आ रहा था की तभी स्तुति ने गुब्बारा देखा और उसने मुझसे गुब्बारे की तरफ इशारा कर माँगा| मैंने गुब्बारा स्तुति की कलाई में बाँध कर लटका दिया, कलाई में गुब्बारा बँधे होने से स्तुति उस गुब्बारे को देख सकती थी मगर पकड़ कर फोड़ नहीं सकती थी|

खैर, मैं स्तुति को लेकर स्टेज पर पहुँचा तो माँ चिंता करते हुए बोलीं; "कहाँ गायब हो गया था तू?" माँ को चिंता करते देख मैं मुस्कुराया और उन्हें बाद में सब बताने का इशारा किया|



स्तुति के जन्मदिन का केक टेबल पर रखा जा चूका था| सफ़ेद रंग का केक और उसमें लगी रंग-बिरंगी मोमबत्तियाँ देख कर स्तुति बहुत खुश हुई| स्तुति के हाथ में प्लास्टिक का चाक़ू पकड़ा कर मैंने केक काटा और केक कटते ही सभी मेहमानों ने 'हैप्पी बर्थडे टू यू' वाला गीत गाते हुए ताली बजानी शुरू कर दी| सभी लोगों को एक साथ गाते और ताली बजाते देख स्तुति बहुत खुश हुई और "ददद" कहते हुए गाने लगी|

मैंने एक छोटी चमची से स्तुति के लिए चींटी के अकार का केक का टुकड़ा काटा और स्तुति को अपने हाथों से खिलाया| मीठे-मीठे केक का स्वाद स्तुति को भा गया और स्तुति और केक खाने के लिए अपने दोनों हाथ बढ़ा कर केक की ओर झपटने लगी| तभी एक-एक कर घर के सभी सदस्यों ने मेरी देखा-देखि छोटी चमची से स्तुति को केक खिला उसे आशीर्वाद दिया| पार्टी शुरू हुई और सभी को केक सर्व किया गया, सभी लोग खाने-पीने में मशगूल हो गए थे| इधर मेरी बिटिया मेरी गोदी में खेल रही थी, शायद स्तुति को डर था की अगर वो मेरी गोदी से उतरी तो मैं फिर से वंश को गोदी ले लूँगा! उधर Dj ने बड़े शानदार गाने बजाए और आयुष तथा नेहा ने मुझे अपने साथ डांस करने को खींचना शुरू कर दिया| स्तुति को गोदी लिए हुए मैं डांस करने जा पहुँचा, सभी बच्चों को नाचते हुए देख स्तुति का मन भी नाचने को कर रहा था| मैंने स्तुति को कमर से पकड़ कर खड़ा किया तो स्तुति ने सबकी देखा देखि अपने हाथ-पॉंव एक साथ हवा में चलाने शुरू कर दिए| स्तुति के लिए यही डांस था और उसे यूँ डांस करते देख सभी बच्चे एक तरफ हो गए और तालियाँ बजाते हुए स्तुति का उत्साह बढ़ाने लगे| अपनी छोटी बहन को नाचते हुए देख आयुष और नेहा ने अपनी बहन का हाथ पकड़ा तथा स्तुति के साथ कदम से कदम मिला कर नाचने लगे|



नाच-गा कर हम थक गए थे इसलिए मैं स्तुति को ले कर आराम करने लगा| मेरे कुर्सी पर बैठते ही मेरी बिटिया रानी मेरे सीने से लिपट गई और मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगी| स्तुति जब बहुत खुश हो जाती थी तो वो अक्सर मुझसे लिपट कर मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगती थी| स्तुति की इस प्रतिक्रिया का असली कारण मुझे कभी समझ नहीं आया, परन्तु मेरा मन कहता था की मेरी बेटी मुझसे इतना प्यार करती है की वो इतनी सारी खुशियाँ पा कर मुझे आँखों ही आँखों में धन्यवाद दे रही है| “मेरे प्यारे बेटू, पापा जी को थैंक यू थोड़े ही बोलते हैं! पापा जी को आई लव यू बोलते हैं|" मैंने स्तुति की ठुड्डी सहलाते हुए कहा| मेरी बात सुन स्तुति तुरंत अपनी बोली भासा में बोली; "आवववउउउ!" ये कहते हुए स्तुति ख़ुशी से खिलखिलाने लगी| उधर, अपनी बिटिया के मुख से आई लव यू सुन मेरा मन खुशियों से भर उठा!



कुछ ही देर में मैजिक शो शुरू होने वाला था इसलिए मैं स्तुति को ले कर सबसे आगे बैठ गया| जादूगर की कलाकारी स्तुति को कुछ ख़ास पसंद नहीं आई मगर जैसे ही जादूगर ने अपनी टोपी में से खरगोश निकाला, मेरी बिटिया मेरी गोदी में बैठे हुए फुदकने लगी| मैं स्तुति को ले कर जादूगर के पास पहुँचा ताकि स्तुति खरगोश को नज़दीक से देख सके| अपनी आँखों के सामने सफ़ेद रंग का खरगोश देख स्तुति का मन मचल उठा और वो उस जानवर को पकड़ने के लिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाने लगी| मैंने स्तुति का हाथ पकड़ स्तुति को खरगोश के ऊपर हाथ फेरना सिखाया| 1-2 बार हाथ फेर कर स्तुति ने अपनी मुठ्ठी में खरगोश की खाल जकड़ ली, कहीं खरगोश स्तुति को काट न ले इसलिए मैंने स्तुति के हाथ से बेचारे खरगोश की खाल को छुडवाया| मेरी बिटिया का दिल अब इस खरगोश पर आ गया था इसलिए स्तुति उसे पुनः पकड़ने को जिद्द करने लगी| मैंने नेहा को बहुत समझाया मगर स्तुति की नज़र उस खरगोश पर से हट ही नहीं रही थी, अतः मैंने जादूगर को ही खरगोश को गायब करने को कहा| जादूगर ने अपनी छड़ी को गोल घुमाया और खरगोश को गायब कर दिया| स्तुति का पसंददीदा जानवर जब गायब हुआ तो स्तुति उदास हो गई, अब स्तुति को फिर से हँसाना था इसलिए मैंने अपना फ़ोन निकाल कर कैमरा चालु कर स्तुति को दिखाया| फ़ोन में अपनी और मेरी छबि देख स्तुति फिर से खुश हो गई और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर फ़ोन पकड़ना चाहा| मैंने फ़ोन स्तुति को दिया तो स्तुति ने पहले तो फ़ोन को अच्छे से दबाया फिर सीधा उसे अपने मुँह में डालकर खाने की कोशिश करने लगी| अपनी बिटिया के बचपने को देख मैं हंस पड़ा और स्तुति के गाल चूमते हुए माँ के पास लौट आया| स्तुति के मुख से फ़ोन निकलवाने के लिए मैंने स्तुति को केक खाने को दिया| परन्तु तबतक मेरा फ़ोन स्तुति की लार से भीगने के कारन बंद हो चूका था!




बहरहाल स्तुति का ये पहला जन्मदिन सबके लिए यादगार था| सभी मेहमानों ने जाते हुए स्तुति को एक बार पुनः बधाई दी और सबके जाने के बाद हम सभी घर लौट आये|
बहुत ही सुंदर लाजवाब और रमणिय अपडेट है स्तुति के bithday पर सब ने ढेर सारी मस्तियां की मजा आ गया मैं भी होता उस मस्ती में कोई नहीं नेहा और आयुष ने मेट्रो के सफर में समझदार बनकर सबको बताया कि कैसे क्या करना है स्तुति भी नई चीज देखकर बहुत ही खुश हुई और मस्ती की छोटे बच्चो के मुंह से कुछ नया वर्ड सुनकर बहुत ही खुशी होती हैं जिसे शब्दों में बया नही कर सकते है स्तुति का मां के पलंग के नीचे चले जाना और सब को परेशान करना ये दृश्य बहुत ही मनोहरकारी था
 

Sanju@

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इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 {5(ii)}



अब तक अपने पढ़ा:


खैर, आज रात दो बजे का जुगाड़ हो गया था और क्या जुगाड था वो! रात के सन्नाटे में हम दोनों प्रेमी सबसे नजरें छुपाते हुए ऊपर वाली छत पर पहुँचे| वहाँ टंकी के नीचे चुहलबाज़ी करने के लिए काफी जगह थी, ऊपर से रात के इस पल में कोई हमें देखने वाला भी नहीं था| अब जब हमें किसी का भय नहीं था तो प्रेम का वो तूफ़ान उठा की हम दोनों ही पसीने से लथ-पथ हो गए| आज के इस प्रेमपसंग में कुछ अलग ही आनंद था, शायद खुले आसमान के तले प्रेम समागम करने की उत्तेजना का असर था!

थक कर जब हम कुछ पल के लिए साँस ले रहे थे तब संगीता मेरे सीने पर सर रखते हुए बोली; "जानू...आज सबसे छुप कर छत पर आते समय ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई 18 साल की युवती हूँ जो अपने प्रेमी से मिलने चोरी-छुपे छत पर आ रही हो!" संगीता की बता ने मुझे आज फिर गाँव में हमारे छिप-छिप कर मिलने की याद दिला दी, जिस कारण मेरे दिल में प्यारी सी गुदगुदी उठी; "मेरे लिए तो तुम हमेशा अठरह की बाली उम्र की रहोगी!" ये कहते हुए मैंने संगीता के सर को चूम लिया| मेरी प्यारभरी बात का असर संगीता पर खुमारी बन कर छाने लगा और इस मौके का लाभ उठा कर हमने फिर एक बार प्रेम समागम किया!



अब आगे:


स्तुति
के जन्मदिन से एक दिन पहले की बात है, दोपहर को खाना खाने के लिए मैं साइट पर से निकल चूका था| इधर घर में मेरी स्तुति बिटिया को खाना खिलाया जाना था, परन्तु मेरी बिटिया मेरे और माँ के अलावा किसी के भी हाथ से खाना नहीं खाती थी| अब माँ और मेरी सासु माँ मंदिर गए थे पंडित जी से बात करने इसलिए स्तुति को खाना खिलाने की जिम्मेदारी भाभी जी ने अपने सर ले ली| एक कटोरी में सेरेलक्स बना कर भाभी जी स्तुति को खिलाने बैठक में पहुँची| स्तुति तब बैठक के फर्श पर बैठी अपनी गेंद के साथ खेल रही थी, जैसे ही उसने अपनी मामी जी को अपनी तरफ आते देखा स्तुति अपने दोनों हाथों-पाओं पर रेंगती हुई भागने लगी| वहीं भाभी जी ने जब देखा की स्तुति उनसे दूर भगा रही है तो वो हँसते हुए बोलीं; "स्तुति... बेटा रुक जा! खाना खा ले" मगर स्तुति अपनी मामी जी की सुने तब न, वो तो खदबद-खदबद माँ के कमरे की तरफ भाग रही थी| ऐसा नहीं था की स्तुति बहुत तेज़ भाग रही थी और भाभी जी उसे पकड़ नहीं सकती थीं, बल्कि भाभी जी तो एक छोटे से बच्चे के साथ पकड़ा-पकड़ी खेलने का लुत्फ़ उठा रही थीं|

आखिर भागते-भागते स्तुति माँ के कमरे में पहुँच गई और सीधा अपनी मन पसंद जगह यानी माँ के पलंग के नीचे जा छुपी! "ओ नानी! बाहर आजा!" भाभी जी ने स्तुति को पलंग के नीचे से निकलने को कहा मगर मेरी बिटिया ने अपनी मामी जी की बात को हँसी में उड़ा दिया और खिलखिलाकर हँसने लगी! जब भाभी जी के बुलाने पर भी स्तुति पलंग के नीचे से नहीं निकली तो भाभी जी ने आवाज़ दे कर भाईसाहब, विराट, नेहा, आयुष और संगीता को मदद के लिए बुलाया| सभी लोग पलंग को घेर कर खड़े हो गए और स्तुति को बाहर आने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देने लगे| भाईसाहब स्तुति को प्यार से पुकार रह थे, तो नेहा स्तुति को प्यारभरी डाँट से बाहर आने को कह रही थी, वहीं आयुष अपनी बॉल ले आया और स्तुति को ललचा कर बाहर आने को कहने लगा| विराट को कुछ समझ नहीं आया तो उसने अपना हाथ पलंग के नीचे बैठी स्तुति की तरफ बढ़ा दिया| लेकिन विराट का हाथ देख स्तुति और अंदर को खिसक गई! कहीं स्तुति चोटिल न हो जाए इसलिए कोई भी पलंग के नीचे नहीं जा रहा था, सब बाहर से ही स्तुति को आवाज़ दे कर पुकार रहे थे| वहीं दूसरी तरफ, स्तुति सभी की आवाज़ सुन रही थी मगर वो बस खिलखिलाकर हँस रही थी और सभी को अपनी प्यारी सी जीभ दिखा कर चिढ़ा रही थी|



वहीं, संगीता सबसे पीछे खड़ी, हाथ बाँधे अपनी बेटी द्वारा सभी को परेशान करते हुए देख कर हँसे जा रही थी| ठीक तभी मैं घर पहुँचा और संगीता ने दरवाजा खोलते हुए मुझसे स्तुति की शिकायत कर दी; "जा के देखिये अपनी लाड़ली को!" इतना कहते हुए संगीता ने माँ के कमरे की तरफ इशारा किया| मैं माँ के कमरे में पहुँचा तो देखा की सभी लोग पलंग को घेर कर अपने घुटनों के बल झुक कर स्तुति को बाहर निकलने को कह रहे हैं मगर मेरी लाड़ली बिटिया किसी की नहीं सुन रही! "आ गए जादूगर साहिब!" संगीता ने सबका ध्यान मेरी तरफ खींचते हुए कहा| वहीं मुझे देखते ही भाभी जी उठ खड़ी हुईं और मुझसे शिकायत करते हुए बोलीं; "जैसे ही मैं स्तुति को सेरेलक्स खिलाने आई, ये नानी जा के पलंग के नीचे छुप गई!" भाभी जी की बात सुन मैं मुस्कुराया और स्तुति को पुकारते हुए बोला; "मेरा बच्चा!" मेरी आवाज़ सुन स्तुति ने पलंग के नीचे से झाँक कर मुझे देखा और मुझे देखते ही स्तुति खदबद-खदबद करती हुई अपने दोनों हाथों-पाओं पर मेरे पास दौड़ आई| मैंने स्तुति को अपनी गोदी में उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "मेरा बच्चा सबको तंग करता है?!" मेरे पूछे इस सवाल के जवाब में स्तुति शर्मा गई और मुझसे लिपट कर किलकारियाँ मारने लगी|

"भाभी जी, ये शैतान सिर्फ इनके या माँ (मेरी) के हाथ से ही खाना खाती है| बड़ी नखड़ेलू है ये शैतान!" संगीता हँसते हुए बोली| भाभी जी ने स्तुति को अपना प्यारभरा गुस्सा दिखाते हुए सेरेलक्स की कटोरी मुझे दी| मैंने स्तुति को उसकी ख़ास कुर्सी पर बिठाया और एक कटोरी में सेरेलक्स और बना लाया| इस समय सभी की नजरें हम बाप-बेटी (मुझ पर और स्तुति) पर थीं, सभी जानना चाहते थे की मैं स्तुति को कैसे खाना खिलाता हूँ?!



मैंने सेरेलक्स की दोनों कटोरी स्तुति के सामने रखी और एक चम्मच से स्तुति को खिलाने लगा| स्तुति एक चम्मच खाती और फिर अपना दायाँ या बायाँ हाथ सेरेलक्स की कटोरी में डाल कर अपनी मुठ्ठी में सेरेलक्स उठा कर मुझे खिलाती| मुझे खाना खिलाना स्तुति ने अपने बड़े भैया और दीदी से सीखा था| तो इस तरह शुरू हुआ हम बाप-बेटी का एक दूसरे को खाना खिलाना| ये दृश्य इतना मनोरम था की भाईसाहब, भाभी जी और विराट इस दृश्य को बड़े प्यार से देख रहे थे| जब स्तुति का खाना और मुझे खिलाना हो गया तो भाभी जी मुझसे बोलीं; "मुझे नहीं पता था की तुम इतने छोटे हो की अभी तक छोटे बच्चों का खाना खाते हो!" भाभी जी ने मज़ाक करते हुए कहा जिस पर सभी ने जोर से ठहाका लगाया|



माँ और सासु माँ के लौटने पर हम सभी खाना खाने बैठ गए| बाकी दिन तो मैं स्तुति को गोदी लिए रहता था और मुझे खाना आयुष तथा नेहा मिल कर खिलाते थे, परन्तु आज दोनों बच्चे अपनी नानी जी को खाना खिलाने में व्यस्त थे इसलिए मैंने स्तुति को डाइनिंग टेबल के ऊपर मेरे सामने बिठा दिया और मैं अपने हाथ से खाना खाने लगा| अब स्तुति को सूझी मस्ती तो उसने मेरी प्लेट में अपने दोनों हाथों से कभी रोटी तो कभी सब्जी उठाने की कोशिश शुरू कर दी| "नहीं बेटा, अभी आपको दाँत नहीं आये हैं, जब दाँत आ जायेंगे तब खाना|" मैंने स्तुति को समझाया| मेरे समझाने पर स्तुति खिलखिलाकर हँसने लगी और बार-बार मेरी थाली में 'हस्तक्षेप' करने लगी! मैंने स्तुति को व्यस्त करने के लिए उसका ध्यान बँटाने लगा| डाइनिंग टेबल पर सारा खाना ढका हुआ था और अभी तक स्तुति ने बर्तन के ऊपर से ढक्क्न हटाना नहीं सीखा था| बस एक सलाद की प्लेट थी जो की खुली पड़ी थी, लाल-लाल टमाटर और खीरे को देख स्तुति का मन मचल उठा और उसने सलाद वाली प्लेट की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया| अगले ही पल स्तुति ने अपनी छोटी सी मुठ्ठी में खीरे का एक स्लाइस उठा लिया और मुझे दिखाने लगी की 'देखो पापा जी, मैंने सलाद उठा ली!' स्तुति की मस्ती को देखते हुए मैं मुस्कुरा दिया और सर हाँ में हिलाते हुए स्तुति को खीरा खाने का इशारा किया| स्तुति ने आव देखा न ताव, उसने सीधा वो खीरे का स्लाइस अपने मुँह में भर लिया| अब अगर स्तुति के दाँत होते तब तो वो खा पाती न?! स्तुति तो बस आधे खीरे के स्लाइस को अपने मुँह में भरकर अपने मसूड़ों से काटने की कोशिश करने लगी, जब वो स्लाइस नहीं कटा तो स्तुति ने उस स्लाइस को चूसना शुरू कर दिया और जब सारा रस उसने चूस लिया तो अपना झूठा स्लाइस मेरी थाली में डाल दिया|

संगीता ने जब स्तुति की ये हरकत देखि तो वो गुस्सा हो गई; "ऐ लड़की! ये क्या कर रही है! थाली में अपना झूठा डाल रही है!" संगीता ने स्तुति को डाँटा जिससे मेरी बिटिया घबरा गई| खाने को ले कर संगीता का टोकना मुझे हमेशा ही अखरा है इसलिए मैंने संगीता को गुस्से से देखा और अपने हाथ पोंछ कर स्तुति को गोदी में ले लिया| "कोई बात नहीं बेटा! ये लो आप टमाटर खाओ|" ये कहते हुए मैंने सलाद की प्लेट में से टमाटर का एक स्लाइस उठा कर स्तुति के हाथ में दिया| लाल-लाल टमाटर देख स्तुति का ध्यान बंट गया और वो नहीं रोई, स्तुति ने अपने दोनों हाथों से टमाटर के स्लाइस को पकड़ा और उसका रस निचोड़ने लगी| अच्छे से टमाटर का रस निचोड़ कर स्तुति ने वो टुकड़ा मुझे दे दिया जिसे मैंने स्तुति को दिखाते हुए खा लिया| मुझे टमाटर खाता हुआ देख स्तुति बहुत खुश हुई और अपनी किलकारियाँ मारने लगी|

खाना खाने के बाद संगीता ने मुझसे अपने किये व्यवहार की माफ़ी माँगी और मैंने भी संगीता को माफ़ करते हुए उसे प्यार से समझा दिया; "स्तुति छोटी सी बच्ची है, उसे क्या समझ की थाली में झूठा डालते हैं या नहीं?! आगे से बेकार में यूँ मेरी लाड़ली को डाँट कर डराया मत करो!" संगीता ने कान पकड़ कर मुझसे पुनः माफ़ी माँगी और साथ-साथ स्तुति को भी सॉरी बोला!



अगले दिन स्तुति का जन्मदिन था और आज रात मुझे स्तुति को सबसे पहले जन्मदिन की बधाई देने की उत्सुकता थी| दिन में सोने के कारण स्तुति करीब 10 बजे तक जागती रही और इधर-उधर दौड़ते हुए खिलखिलाती रही| दो दिन से स्तुति अपनी मामी जी, बड़े मामा जी, नानी जी और विराट भैया को देख रही थी इसलिए वो बिना नखरा किये सबकी गोदी में खेल रही थी| साढ़े दस हुए तो सभी बच्चों को नींद आने लगी तथा मेरी ड्यूटी सभी बच्चों को कहानी सुना कर सुलाने की लगी| बच्चों के कमरे में मैं, विराट, आयुष, नेहा और स्तुति लेट गए| जैसे ही मैंने कहानी सुनानी शुरू की, स्तुति ने अपनी बोली भासा में किलकारियाँ मारते हुए कहानी के बीच अपनी दखलंदाज़ी शुरू कर दी| स्तुति का ध्यान भटकाने के लिए मैं स्तुति की ठुड्डी को सहला देता जिससे स्तुति को गुदगुदी होती और वो खिलखिलाकर हँसते हुए मुझसे लिपट जाती|

खैर, कहानी खत्म होते-होते सभी बच्चे सो गए थे| समस्या ये थी की मैं चाहता था की स्तुति जागती रहे ताकि मैं उसे उसके पहले जन्मदिन की बधाई दे कर उसे लाड-प्यार कर सकूँ| परन्तु अपनी इस इच्छा के लिए मैं स्तुति की नींद नहीं खराब करना चाहता था इसलिए मैंने स्तुति को अपने सीने से लिपटाये हुए पीठ के बल लेट गया| मेरी नजरें घड़ी पर टिकी थी की कब बारह बजे और मैं स्तुति को उसके जन्मदिन की सबसे पहली पप्पी दूँ! जैसे ही रात के बारह बजे मैंने स्तुति के सर को चूमा और धीरे से खुसफुसा कर; "हैप्पी बर्थडे मेरा बच्चा" कहा| पता नहीं कैसे पर स्तुति नींद में भी मेरी इस पप्पी को महसूस करने लगी और उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान खिल गई! अपनी बिटिया की इस मुस्कान को देख मैं उस पर मोहित हो गया और स्तुति के सर को चूमते हुए जागता रहा| दरअसल मैं उम्मीद कर रहा था की स्तुति जागेगी और मैं उसकी पप्पी ले कर उसे जन्मदिन की बधाई दूँगा|



स्तुति तो जागी नहीं अलबत्ता मुझे सुबह के 3 बजे झपकी लग गई और मैंने एक बहुत ही प्यारा सा ख्वाब देखा| इस ख्वाब में मैं और स्तुति एक हरे-भरे बगीचे में थे और स्तुति मेरी ऊँगली थाम कर चल रही थी, "पापा जी" कहते हुए स्तुति मुझसे बात कर रही थी तथा मैं स्तुति की बातों में खोया हुआ था| इधर घड़ी ने बजाये सुबह के 5 और मेरी बिटिया सबसे पहले जाग गई| स्तुति ने जब देखा की वो मेरे सीने पर सो रही है तो मेरी बिटिया खिसकते-खिसकते मेरे चेहरे के पास पहुँची और मेरे बाएँ गाल पर अपने प्यारे-प्यारे होंठ रख "उम्म्म" का स्वर निकालते हुए मुझे गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी| स्तुति की आदत थी की वो मुझे पप्पी देते हुए अपनी लार से मेरा गाल गीला कर देती थी, नींद में जब मैंने अपने गालों पर नमी महसूस की तो मैं एकदम से जाग गया!

"मेला प्याला-प्याला बच्चा जाग गया?!" ये कहते हुए मैंने स्तुति को अपने दोनों हाथों से पकड़ अपने चेहरे के सामने उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "बेटा, आज है न आपका जन्मदिन है! आज से ठीक एक साल पहले आपने मुझे पूरा 9 महीना इंतज़ार करवाने के बाद आप मुझे मिले थे| आपको पहलीबार अपनी गोदी में ले कर मेरा छोटा सा दिल ख़ुशी से भर उठा था| मेरे सीने से लग कर आपके नाज़ुक से दिल को चैन मिला था और जब मैंने आपके नन्हे से दाहिने हाथ को चूमा था न तो अपने झट से मेरी ऊँगली अपनी मुठ्ठी में जकड़ ली थी! उस पल से हम बाप-बेटी का एक अनोखा रिश्ता...एक अनोखा बंधन बँध गया था| न मैं आपके बिना अपनी जिंदगी की कल्पना कर सकता हूँ और न ही आप मेरे बिना रह सकते हो|” स्तुति ने आज मेरी बातें बड़े ध्यान से मेरी आँखों में देखते हुए सुनी| उधर मैं स्तुति के पैदा होने के दिन को याद कर भाव विभोर हो रहा था, स्तुति से मेरे पहले मिलन की उस वेला को पुनः याद कर मेरे रोंगटे खड़े हो रहे थे| यदि मैं अधिक भाव विभोर हो जाता तो मेरी बिटिया रानी रो पड़ती इसलिए मैंने स्तुति के प्यारी-प्यारी आँखों को गौर से देखा और मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| "मेरे प्यारु बेटू, आपको आज के दिन की बहुत-बहुत मुबारकबाद! आपको मेरी भी उम्र लग जाए! आप धीरे-धीरे बड़े होना और इसी तरह अपनी प्यारी सी मुस्कान से मुझे हँसाते रहना| खूब पढ़ना, खूब खेलना और अपनी मस्तियों से सभी को खुश करना| आपका जीवन खुशियों से भरा हुआ हो और आपकी जिंदगी में ये खुशियों से भरा हुआ दिन हर साल आये! आई लव यू मेरा बच्चा!" मैंने स्तुति को दिल से बधाई देते हुए कहा| मेरे द्वारा अंत में आई लव यू कहने से मेरी बिटिया के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान फ़ैल गई और स्तुति ने आज पहलीबार कुछ बोलने की कोशिश की; "अव्व...ववव...व्वू!" स्तुति आई लव यू कहना चाह रही थी मगर चूँकि वो बोल नहीं सकती थी इसलिए वो इन शब्दों को गुनगुनाने की कोशिश कर रही थी|

इधर जब मैंने स्तुति को मुझे आई लव यू कहते हुए सुना तो मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ! मैं एकदम से उठ बैठा और स्तुति को अपने सीने से लगा कर ख़ुशी से भर उठा! "मेरा प्यारा बच्चा! आज आपने मुझे आई लव यू कह कर मुझे अबतक का सबसे अच्छा तोहफा दिया है!" मेरी लाड़ली बिटिया ने आज सुबह मेरे द्वारा देखा गया सपना की स्तुति मुझसे बात कर रही है, आई लव यू गुनगुना कर पूरा कर दिया था|



स्तुति को गले से लगाए हुए मैं उठा और कमरे से बाहर आ गया| कमरे से बहार आते ही मेरी बिटिया चहकने लगी और उसकी किलकारियाँ घर में गूँजने लगी| स्तुति की किलकारी सबसे पहले माँ और मेरी सासु माँ ने सुनी, माँ ने मुझे अपने पास बुलाया और स्तुति के मस्तक को चूम कर जन्मदिन की बधाई दी; "मेरी लाड़ली शूगी को जन्मदिन की ढेर सारी मुबारकबाद! जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ और पढ़-लिख कर हमारा नाम रोशन करो!" माँ ने अपनी बधाई में स्तुति को जल्दी से बड़ा होने को कहा था जबकि मैंने स्तुति से धीरे-धीरे बड़ा होने को कहा था, इन दोनों बधाइयों से स्तुति उलझन में पड़ गई थी की वो किसकी बात माने; मेरी या फिर अपनी दादी जी की! "क्या माँ, मैं चाहता हूँ की स्तुति धीरे-धीरे बड़ी हो ताकि मुझे उसके बचपन को जीने का पूरा मौका मिले और आप हो की स्तुति को जल्दी बड़ा होने को कह रहे हो?!" मैं मुँह फुलाते हुए माँ से प्यारभरी शिकायत करते हुए बोला| मेरी बचकानी शिकायत सुन माँ ने मेरे गाल पर हाथ फेरा और मुझे समझाते हुए बोलीं; "पगले, लड़कियाँ लड़कों के मुक़ाबले जल्दी बड़ी हो जाती हैं| तेरे कहने भर से थोड़े ही स्तुति खुद को बड़ा होने से रोक लेगी?!" माँ की बात सही थी मगर मेरा बावरा मन माने तब न!

खैर, माँ के बाद मेरी सासु माँ ने भी स्तुति को जन्मदिन की बधाई दी तथा स्तुति के गाल चूमते हुए बोलीं; "हमार मुन्ना (यानी मेरी) खतिर हमेसा नानमुन बने रहेओ ताकि मानु तोहका जी भरकर प्यार कर सके|" मेरी सासु माँ ने मेरे मन की बधाई स्तुति को दी तो मेरा चेहरा फिर से खिल गया|



धीरे-धीरे सभी लोग जागते गए और एक-एक कर स्तुति की पप्पी ले कर उसे जन्मदिन की बधाई देने लगे| रह गए थे तो दोनों बच्चे जिन्हें जगाने मुझे जाना पड़ा; "बेटा...उठो" मेरे इतना कहते ही नेहा झट से उठ बैठी और मेरी गोदी में स्तुति को देख ख़ुशी से झूमती हुई स्तुति की पप्पी ले कर बोली; "हैप्पी बर्थडे स्तुति! गॉड ब्लेस्स यू!" अपनी दीदी से जन्मदिन की बधाई पा कर स्तुति बहुत खुश हुई और अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| इधर कहीं मेरी बिटिया नेहा अकेला न महसूस करे इसलिए मैंने स्तुति के साथ-साथ उसे भी अपने सीने से लगा लिया| स्तुति की किलकारी सुन आयुष जाग गया और आँख मलते-मलते पलंग पर खड़ा हो गया| आयुष ने स्तुति की पप्पी ले कर उसे बधाई देनी चाही मगर स्तुति ने अपने बड़े भैया को पप्पी देने से मना करते हुए मुँह मोड़ लिया! "पापा जी, देखो स्तुति मुझे पप्पी नहीं दे रही!" आयुष अपनी छोटी बहन की शिकायत करते हुए बोला|

इतने में नेहा बड़ी हाज़िर जवाबी से स्तुति का पक्ष लेते हुए बोली; "इतना लेट क्यों उठा? लेट उठा है न इसलिए स्तुति की सारी पप्पी हमने ले ली और तेरे लिए कुछ नहीं बचा!” नेहा ने आयुष को चिढ़ाते हुए कहा तो आयुष ने अपना मुँह फुला लिया! आयुष को ऐसा लग रहा था मानो उसके सामने हम सब ने उसकी मनपसंद चाऊमीन खा ली हो और उस बेचारे को देखने को बस खाली प्लेट नज़र आ रही हों! आयुष का मुँह फूला हुआ देख नेहा खूब हँसी और उसकी पीठ पर थपकी मारते हुए बोली; "अच्छा जा कर पहले मुँह धो कर आ! स्तुति बासी मुँह किसी को अपनी मीठी-मीठी पप्पी नहीं देती|" अपनी दीदी की बात सुन आयुष बिजली की रफ्तार से दौड़ा और ब्रश कर के आ गया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर नीचे झुका और आयुष ने अपनी छोटी बहन के दाएँ गाल को चूमते हुए उसे जन्मदिन की प्यारभरी बधाई दी; "स्तुति, आपको जन्मदिन मुबारक हो! मैं आपका बड़ा भाई हूँ न, तो आज के दिन मैं आपके सारे काम करूँगा| आपको कुछ भी चाहिए हो तो मुझे बताना!" आयुष को अपने बड़े भाई होने पर बहुत गर्व था और वो आज अपने भाई होने का दायित्व निभाना चाहता था|

"बड़ा आया बड़ा भाई!" नेहा मुँह टेढ़ा करते हुए बोली और कमरे से जाते-जाते आयुष की पीठ पर एक मुक्का धर गई!



हम सभी चाय-नाश्ता कर के तैयार हुए तथा मैंने सभी के एक साथ जाने के लिए किराए पर इन्नोवा (Innova) गाडी मँगाई| गाडी बहुत बड़ी थी और मैंने आजतक इतनी बड़ी गाडी नहीं चलाई थी, कहीं मैं गाडी ठोक न दूँ इसके लिए मैंने भाईसाहब को गाडी चलाने को कहा| भाईसाहब की बगल में भाभी जी बैठीं थी और उनके पीछे माँ, संगीता और मेरी सासु माँ बैठे| मैं, मेरी गोदी में स्तुति, नेहा, आयुष और विराट सबसे पीछे सिकुड़ कर बैठे| सबसे पीछे बैठ कर हम पाँचों ने खूब धमा-चौकड़ी मचाई| करीबन पौने घंटे बाद हम सभी अपने गंतव्य स्थान यानी के एक अनाथ आश्रम पहुँचे| आज स्तुति के जन्मदिन के दिन हम स्तुति के हाथों उन बच्चों के लिए भोजन की सामग्री लाये थे जिनके सर पर परिवार का साया नहीं होता| गाडी खड़ी कर मैंने, भाईसाहब ने, आयुष, नेहा और विराट ने मिल कर खाने की सामग्री यानी आटा, दाल, सब्जी, मसाले, मिठाई, तेल, घी आदि गाडी से निकाल कर आश्रम की रसोई में रखे| इस आश्रम के प्रबंधक से माँ और मैं, आज की दिन की सेवा के लिए पहले ही बात कर चुके थे|

सभी खाने की सामग्री रखने के बाद हम प्रबंधक जी के साथ एक हॉल में पहुँचे जहाँ प्रबंधक जी ने सभी बच्चों से हमारा तार्रुफ़ करवाया| आश्रम में बच्चे आयुष की उम्र से ले कर विराट की उम्र के बीच के थे तथा सभी बच्चे बड़े ही सभ्य थे| जब सभी बच्चों को पता चला की आज स्तुति का जन्मदिन है तो सभी ने एक स्वर में स्तुति के लिए 'हैप्पी बर्थडे टू यू' का गाना गाया| इतने सारे बच्चों को गाना गाते देख स्तुति बड़ी खुश हुई और किलकारियाँ मार कर सभी बच्चों के साथ गाना गाने की कोशिश करने लगी| संगीता और भाभी जी ने जब स्तुति को; "अव्व्व...वववूऊ" कर के गाना गाते सूना तो दोनों आस्चर्यचकित रह गईं| तब मैंने उन्हें आज स्तुति के मुझे आई लव यू कहने के बारे में बताया, जिस पर भाभी चुटकी लेते हुए बोलीं; "ले संगीता, अब तो स्तुति मानु को आई लव यू कहने लगी! अब तेरा क्या होगा?!" भाभी जी ने केवल मज़ाक किया था मगर संगीता को इस बात से मीठी सी जलन होने लगी थी, तभी उसने स्तुति के गाल खींचते हुए खुसफुसा कर कहा; "खबरदार जो मेरे पति पर इस तरह हक़ जमाया तो! तेरे पापा होंगें बाद में, पहले तो मेरे पति हैं!" चूँकि स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैंने संगीता की सारी बात सुन ली थी और मेरे चेहरे पर खुद पर दो लोगों द्वारा हक़ जमाने की बात सुन गर्वपूर्ण मुस्कान तैरने लगी थी|



आश्रम से निकल कर हम घर के लिए निकले परन्तु इस यात्रा को दिलचस्प बनाने के लिए मैंने मेट्रो से जाने की बात रखी| मेरी सासु माँ, विराट, भाभी जी और संगीता ने आज तक मेट्रो से सफर नहीं किया था इसलिए उन्हें पहलीबार मेट्रो घुमाना तो बनता था| हमने तीन ऑटो किये और नज़दीकी मेट्रो स्टेशन पहुँचे| मेट्रो स्टेशन पहुँचते ही आयुष और नेहा ने चौधरी बनते हुए कमान सँभाली, अब देखा जाए तो दोनों बच्चे स्कूल में PREFECT और क्लास मॉनिटर थे तो दोनों ने हम सभी को अपनी क्लास के बच्चे समझ लिफ्ट में कैसे जाना है समझना शुरू कर दिया| लिफ्ट में हम सब दो झुण्ड में घुसे, पहले झुण्ड का नेतृत्व आयुष ने किया और दूसरे झुण्ड का नेतृत्व नेहा ने किया| मेरी सासु माँ, विराट और भाभी जी के लिए लिफ्ट का अनुभव नया था इसलिए वो इस छोटी सी यात्रा से थोड़े घबराये हुए थे| वो तो आयुष और नेहा उनके साथ थे इसलिए दोनों बच्चों ने अपनी नानी जी तथा अपनी बड़ी मामी जी को डरने नहीं दिया, बल्कि उन्हें लिफ्ट कैसे चलती है ये समझाने लगे|

नीचे मेट्रो स्टेशन के भीतर पहुँच कर नेहा ने सभी को एक जगह खड़े रहने को कहा तथा मेरी ड्यूटी सभी की टिकट लाने के लिए लगा दी| जबतक मैं सबकी टिकट ले कर आया तब तक दोनों बच्चों ने मेट्रो में कैसे सफर करना है ये सब बातें एक टीचर की तरह बाकी सब को समझाईं| जब मैं टिकट ले कर लौटा तो नेहा ने घर की सभी महिलाओं को अपने साथ ले कर महिलाओं की जहाँ सुरक्षा जाँच हो रही थी उस कतार में लग गई| बचे हम पुरुष तो हमें आयुष का कहा मानना था इसलिए हम सब आयुष के पीछे पुरुष सुरक्षा जाँच की कतार में लग गए| मैं सबसे आखिर में खड़ा था और मेरी गोदी में थी स्तुति, जब मेरी सुरक्षा जाँच का नंबर आया तो स्तुति को देख गार्ड साहब मुस्कुरा दिए; "बेटा, आप तो गलत लाइन में लग गए!" गार्ड साहब ने स्तुति से मज़ाक करते हुए कहा| आयुष ने जब देखा की स्तुति नेहा के साथ जाने की बजाए मेरे साथ है तो वो गार्ड साहब से बोला; "अंकल जी, ये मेरी छोटी बहन है और आज इसका जन्मदिन है| ये पापा जी के शिव किसी की गोदी में नहीं रहती इसलिए प्लीज मेरी छोटी बहन को माफ़ कर दीजिये|" आयुष ने हाथ जोड़ते हुए गार्ड साहब से अपनी छोटी बहन की वक़ालत की| एक छोटे से बच्चे को यूँ हाथ जोड़ कर विनती करते देख गार्ड साहब मुस्कुरा दिया और बोले; "कोई बात नहीं बेटा, हम बिटिया की सुरक्षा जाँच माफ़ कर देते हैं|" ये कहते हुए गार्ड साहब ने मेरी नाम मात्र की सुरक्षा जाँच की और हमें जाने दिया| गार्ड साहब की उदारता देख आयुष ने उन्हें हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा जिसपर गार्ड साहब ने आयुष को "खुश रहो बेटा" कहा|



सभी की सुरक्षा जाँच हुई और हम सभी एक झुण्ड बना कर मेट्रो के आटोमेटिक (automatic) गेट के सामने खड़े हो गए| आयुष और नेहा ने एक बार फिर कमान सँभाली और सभी को मेट्रो की टिकट के इस्तेमाल से गेट कैसे खोलते हैं ये सिखाया| सबसे पहले नेहा ने अपनी नानी जी की हथेली में मेट्रो का टिकट दिया और उनका हाथ पकड़ कर मशीन से छुआ दिया| जैसे ही मशीन ने टिकट को पढ़ा (read किया), गेट अपने आप खुल गये| मेरी सासु माँ इस अचम्भे को देखने में व्यस्त थीं की तभी पीछे से आयुष चिल्लाया; "जल्दी करो नानी जी, वरना गेट बंद हो जायेगा!" अपने नाती की बात सुन मेरी सासु माँ जल्दी से गेट के उस पार चली गईं| फिर बारी आई मेरी माँ की, मेरी माँ मेरे साथ 1-2 बार मेट्रो में गई थीं परन्तु उन्हें अब भी मेट्रो के इस गेट से डर लगता था इसलिए नेहा ने ठीक अपनी नानी जी की ही तरह अपनी दादी जी का हाथ पकड़ कर मेट्रो की टिकट मशीन से स्पर्श करवाई, जैसे ही गेट खुला माँ सर्रर से उस पार हो गईं! फिर बारी आई भाभी जी की और उन्होंने अभी जो देख कर सीखा था उसे ध्यान में रखते हुए वे भी बहुत आसानी से पार हो गईं| अगली बारी थी संगीता की मगर वो जाने से घबरा रही थी और बार-बार मेरी तरफ ही देख रही थी इसलिए मैंने विराट की पीठ पर हाथ रख उसे आगे जाने का इशारा किया| आयुष ने आगे आ कर अपने विराट भैया को एक बार सब समझाया, विराट समझदार था इसलिए वो भी फट से पार हो गया| विराट के जाने के बाद नेहा भी गेट से पार हो गई| अब बारी आई भाईसाहब की और उन्होंने घबराने का बेजोड़ अभिनय किया ताकि उनका भाँजा उन्हें एक बार फिर से सब समझाये| आयुष ने अपने बड़े मामा जी को छोटे बच्चों की तरह समझाया, ये दृश्य इतना प्यारा था की सभी लोग मुस्कुरा रहे थे|

भाईसाहब के गेट से पार होते ही आयुष अपनी मम्मी से बोला; "चलो मम्मी, अब आपकी बारी!" अब संगीता को जाना था मेरे साथ इसलिए वो थोड़ा चिढ़ते हुए बोली; "तुझे बड़ी जल्दी है! तू ही जा, मैं बाद में आती हूँ!" आयुष ने अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाया और फुर्र से गेट के पार हो गया| आयुष की जीभ चिढ़ाने का संगीता पर कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस आँखों में प्रेम लिए मुझे देख रही थी| मैंने संगीता के हाथ में उसकी टिकट दी और उसका हाथ पकड़ कर मशीन से स्पर्श करवाया तथा संगीता को उत्तेजित करने के इरादे से उसका हाथ पकड़ कर धीरे से मीस दिया! "ससस" करते हुए संगीता सीसियाई और आँखों ही आँखों में मुझे उलहाने देते हुए गेट से पार हो गई| अब केवल मैं बचा था और मेरे मन में भरा था बचनपना, मैंने स्तुति का ध्यान मशीन की तरफ खींचा और अपना पर्स मशीन से स्पर्श करवाया| अचानक से मशीन ने गेट खोला तो स्तुति हैरान हो गई, फिर जैसे ही मैं गेट से पार हुआ तो गेट पुनः बंद हो गया| स्तुति ने जब गेट बंद होते हुए देखा तो वो अस्चर्य से भर गई और मेरा ध्यान उस गेट की तरफ खींचने लगी| स्तुति की उत्सुकता देख, मैं अपनी सालभर की बिटिया को मेट्रो के गेट खुलने और बंद होने की प्रक्रिया के बारे में बताने लगा|



उधर मेरे दोनों बच्चे सभी को एस्केलेटर्स से नीचे कैसे उतरते हैं ये समझाने लगे| भाभी और मेरी सासु माँ को एस्केलेटर्स से उतरने में डर लग रहा था, यहाँ तक की मेरी माँ जो की एक बार मेरे साथ एस्केलेटर्स की सैर कर चुकी हैं वो भी घबरा रहीं थीं| "आप अब बिलकुल मत घबराओ, आपकी साड़ियाँ एस्केलेटर्स में नहीं फसेंगी क्योंकि ये मशीन बनाई ही इस तरह गई है की इसके बीच किसी भी प्रकार का कपड़ा नहीं फँस सकता|" मैंने तीनों महिलाओं को आश्वस्त किया और दो-दो की जोड़ियाँ बनाने लगा| "(सासु) माँ भाईसाहब को एस्केलेटर्स इस्तेमाल करना आता है इसलिए आप भाईसाहब के साथ उतरियेगा| भाभी जी, आप के साथ संगीता होगी, उसे मैंने एस्केलेटर्स पर कैसे चढ़ते-उतरते हैं ये सीखा रखा है और माँ आप मेरे साथ मेरा हाथ पकड़ कर रहना आपको बिलकुल डर नहीं लगेगा|" मैंने अपनी माँ का हाथ थमाते हुए उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा| सबसे पहले मैं और माँ एस्केलेटर्स के पास पहुँचे, माँ का ध्यान अब भी अपनी साडी के एस्केलेटर्स पर फँसने पर था इसलिए मैंने माँ को पुनः आश्वस्त किया; "माँ, साडी पर ध्यान मत दो| आप बस मेरा हाथ थामे रहो और जब मैं कहूँ तब अपने बायें हाथ से एस्कलेटर की बेल्ट थामते हुए अपना दाहिना पैर आगे रखना|" मैंने माँ को समझा दिया था मगर मेरी माँ फिर भी घबरा रहीं थीं| 4-5 कोशिशों के बाद आखिर माँ मेरे साथ एस्केलेटर्स पर सवार हो ही गईं| मैं, मेरी गोदी में स्तुति और माँ, हम तीनों जैसे ही एस्केलेटर्स पर सवार हुए की स्तुति ने ख़ुशी के मारे चिल्लाना शुरू कर दिया| स्तुति आज पहलीबार मेट्रो में आई थी इसलिए नई-नई चीजें, नए-नए अनुभव महसूस कर स्तुति सबसे ज्यादा खुश थी|

हम तीनों माँ- बेटा-बेटी (स्तुति) नीचे पहुँचे तो हमारे पीछे-पीछे भाभी जी और संगीता भी एस्केलेटर्स पर सवार हो कर नीचे आ गए, एस्केलेटर्स की सवारी भाभी जी को बहुत अच्छी लगी थी जो की उनके चेहरे पर एक बच्चे की मुस्कान के रूप में दिख रही थी| फिर आये भाईसाहब और उनका हाथ थामे मेरी सासु माँ, नीचे पहुँच सासु माँ ने चैन की साँस ली और अपने कान पकड़ते हुए बोलीं; "हमार तौबा, हमार बाप की तौबा! हम दुबारा ई मसीन (एस्केलेटर्स) पर न चढ़ब! हम तो ऊ…ऊ का होत है...ऊ मशीन जो ऊपर से नीचे लाइ रही?! (लिफ्ट) ऊ मसीन मा ही जाब!" मेरी सासु माँ द्वारा कही बात को सुन हमें बड़ी हंसी आई और हम ठहाका लगा कर हँसने लगे!



हम सब तो नीचे आ गए थे, रह गए थे तो तीनों बच्चे; "मानु, ये तीनों कहीं गिर न जाएँ?" भाभी जी तीनों बच्चों की चिंता करते हुए बोलीं|

"चिंता न करो भाभी जी, आयुष और नेहा बहुत समझदार हैं| देखना वो दोनों विराट का हाथ पकड़े आते होंगें|" मैंने अपने दोनों बच्चों की तारीफ की जिसपर संगीता चुटकी लेते हुए बोली; "हाँ भाभी, इन दोनों को इन्होने ऐसी ट्रेनिंग दी है की अगर इन दोनों शैतानों को अकेला छोड़ दिया जाए तो भी दोनों अकेले घर आ जाएँ|" संगीता की टिपण्णी सुन भाभी जी हँस पड़ीं और मेरी पीठ थपथपाने लगीं|



आखिर तीनों बच्चे एस्कलेटर पर धीरे-धीरे नीचे आने लगे और अपने भैया और दीदी को एस्केलेटर्स से नीचे आते देख स्तुति ने ख़ुशी से खिलखिलाना शुरू कर दिया| हम सब मेट्रो के आखरी वाले डिब्बे के सामने जो बैठने की जगह बनी होती है वहाँ जा कर बैठ गए| एक बार फिर आयुष और नेहा ने मिल कर सभी को मेट्रो ट्रैन में कैसे चढ़ना-उतरना है ये समझाना शुरू कर दिया| दोनों बच्चों की ज्ञान से भरी बातें सुन सासु माँ, भाभी जी और भाईसाहब बहुत खुश हुए और दोनों बच्चों की तारीफ करने लगे| अपनी तारीफ सुन दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए और मुझे सारा श्रेय देते हुए बोले; "ये सब हमें पापा जी ने सिखाया है!" नेहा बोली, मैंने भी एक अध्यापक की तरह गर्व करते हुए बारी-बारी से मेरे छात्रों...यानी अपने बच्चों को आशीर्वाद देते हुए प्यार किया|



हमारी ट्रैन आने तक बच्चे सभी को अपनी बातों में लगाए हुए थे और पीछे स्टेशन पर जो ट्रैन आ रहीं थीं उसके बारे में बता रहे थे| इधर मेरी लाड़ली बिटिया मेट्रो ट्रैन देख कर उत्साह से भरी हुई थी, वो बार-बार ट्रैन देख कर मेरी गोदी से उतरने के लिए छटपटाने लगती| आखिर मैं स्तुति को ले कर पीछे खड़ी मेट्रो ट्रैन के पास पहुँचा ताकि स्तुति मेट्रो ट्रैन को नज़दीक से देख सके| मेट्रो ट्रैन के नज़दीक पहुँचते ही स्तुति को लोग नज़र आये और उसने सभी को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया, लेकिन सभी जल्दी में थे इसलिए कुछ लोगों ने स्तुति को नज़रअंदाज़ किया तो कुछ ने हाथ हिला कर स्तुति को बाय (bye) कहा|
इतने में हमारी ट्रैन आ गई और जैसा की होता है, आखरी वाला डिब्बा लगभग खाली था| हम सभी सँभाल कर ट्रैन में चढ़े, आयुष उत्साही था तो उसने सबसे पहले सीट पकड़ी मगर वो अनजाने में महिलाओं तथा वृद्ध लोगों के लिए आरक्षित सीट पर बैठ गया! "आयुष! उठ वहाँ से, वो जगह दादी जी और नानी जी के लिए है!" नेहा ने आयुष को डाँट लगाई| आयुष को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो कान पकड़ते हुए नेहा से बोला; "सॉरी दीदी!" इतना कह आयुष ने अपनी दादी जी और नानी जी का हाथ पकड़ उन्हें उस सीट पर बिठाया तथा उनकी बगल में बैठ गया| नेहा ने आयुष को प्यार से समझाते हुए कहा; "ट्रैन में ये सीट केवल बड़े लोगों और लेडीज के लिए होती है| दुबारा ऐसी गलती करेगा न तो बाकी सब से मार खायेगा|" अपनी दीदी की दी हुई सीख समझ आयुष ने एक बार फिर सॉरी कहा|



ट्रैन में चल रहे AC की हवा, अपने आप खुलते बंद होते मेट्रो ट्रैन के दरवाजे और बार-बार हो रही अलग-अलग घोषणा सुन कर सभी हैरान थे, नेहा ने अपनी समझदारी दिखाते हुए सभी को समझाया की ये सारी घोषणाएं यात्रियों की जानकारी के लिए की जाती हैं तथा AC ट्रैन में इसलिए लगा है क्योंकि ट्रैन की खिड़कियाँ खुलती नहीं हैं ऐसे में किसी को गर्मी न लगे इसलिए AC चलाये जाते हैं और मेट्रो के दरवाजे ट्रैन चलाने वाले ड्राइवर साहब खोलते-बंद करते हैं|

वहीं मेरी सबसे छोटी लाड़ली बिटिया मेट्रो ट्रैन में आने के बाद से कुछ अधिक ही प्रसन्न थी| स्तुति मेरी गोदी से उतरने को छटपटा रही थी इसलिए मैं स्तुति को ले कर खिड़की की तरफ मुड़ गया और स्तुति को शीशे के नज़दीक कर दिया| शीशे से बाहर स्टेशन को देखना, गुजरती हुई दूसरी ट्रेनों को देखना और अन्य यात्रियों को देख स्तुति बहुत खुश हुई और किलकारियाँ मार कर मेरा ध्यान खींचने लगी| मेरे भीतर का भी बच्चा जाएगा और मैंने भी बच्चा बनते हुए स्तुति से तुतलाते हुए बात करनी शुरु कर दी| मेरे यूँ बच्चा बन जाने से स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो खिलखिलाकर हँसने लगी|

बहरहाल, हमारा स्टेशन आया और हम सभी मेट्रो ट्रैन से उतरे| अब फिर ऊपर चढ़ना था और मेरी सासु माँ ने एस्केलेटर्स पर जाने से साफ़ मना कर दिया| मेरी माँ ने भी अपनी समधन का साथ दिया और लिफ्ट से जाने की माँग की| मैंने तीनों बच्चों को माँ और मेरी सासु माँ के साथ लिफ्ट से जाने को कहा| बाकी बचे हम चार यानी मैं, संगीता, भाभी जी और भाईसाहब तो हम सब एस्केलेटर्स से ऊपर पहुँचे|

ऑटो कर हम सभी घर पहुँचे और बिना देर किये सभी लोग हवन की तैयारियों में लग गए| बैठक के बीचों बीच की जगह खाली कर सभी के बैठने के लिए आसनी बिछा दी गई| चूँकि मेरी माँ और सासु माँ ज़मीन पर नहीं बैठ सकतीं थीं इसलिए उनके लिए कुर्सियाँ लगा दी गई| कुछ ही समय में पंडित जी पधारे तो मैंने स्तुति को पंडित जी से मिलवाया, पंडित जी ने स्तुति के सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया; "जुग-जुग जियो मुन्नी!"



हवन के लिए सबसे आगे हम चारों यानी मैं, मेरी गोदी में स्तुति, मेरी दाईं तरफ नेहा और बाईं तरफ आयुष बैठे| हवन शुरू हुआ और पहले सभी को कलावा बाँधा गया, जब स्तुति के हाथ में कलावा बाँधा गया तो मेरी बिटिया अस्चर्य से अपने हाथ पर कलावा बँधते हुए देखने लगी| फिर स्तुति को लगाया गया टीका और स्तुति को इसमें भी बड़ा मज़ा आया| इधर पंडित जी ने हवन सामग्री मिलाने का काम बताया तो आयुष और नेहा आगे आये तथा पंडित जी द्वारा दिए निर्देशों का पालन करते हुए हवन सामग्री मिलाने लगे| अपने बड़े भैया और दीदी को हवन सामग्री मिलाते देख स्तुति को बड़ी जिज्ञासा हुई की आखिर ये हो क्या रहा है? अपनी बढ़ती जिज्ञासा के कारण स्तुति ने मेरी गोदी से उतरने के लिए मचलना शुरू कर दिया, अब यदि मैं स्तुति को छोड़ देता तो वो सीधा हवन सामग्री में अपने हाथ डालकर हवन सामग्री चखती इसलिए मुझे स्तुति का ध्यान बँटाना था| मैं स्तुति को ले कर घर के मंदिर के पास पहुँचा और मंदिर से घंटी निकाल कर स्तुति को दे दी| पीतल की चमकदार घंटी को देख सबसे पहले स्तुति ने उसे अपने मुँह में ले कर चखा, परन्तु जब उसे पीतल का स्वाद अच्छा नहीं लगा तो स्तुति मुँह बनाते हुए मुझे देखने लगी| मैंने स्तुति का हाथ पकड़ उसे घंटी बजाना सिखाया, घंटी की आवाज़ सुन स्तुति प्रसन्न हो गई और अपने हाथ झटकते हुए घंटी बजाने की कोशिश करने लगी| जब मैं स्तुति को ले कर बैठक में लौटा तो उसे घंटी बजाते देख भाभी जी मुस्कुराते हुए बोलीं; "तुम दोनों की अलग पूजा चल रही है क्या?" भाभी जी की बात सुन पंडित जी समेत हम सभी हँस पड़े|

अंततः पंडित जी ने हवन आरम्भ किया| जैसे ही पंडित जी ने मंत्रोचारण शुरू किया मेरी मस्ती करती हुई छोटी बिटिया एकदम से शांत हो गई और बड़े गौर से पंडित जी को देखने लगी| हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित की गई और अग्नि को देख स्तुति एक बार फिर अस्चर्य से भर गई! पंडित जी ने मुझे हवन कुंड में घी डालने का काम दिया तथा घर के बाकी सदस्यों को धीरे-धीरे हवन कुंड में हवन सामग्री डालने का काम दिया| "मेरे स्वाहा बोलने पर आप सभी लोग स्वाहा बोलते हुए हवन-सामग्री डालियेगा और मानु बेटा, तुम्हें मेरे स्वाह बोलने पर थोड़ा सा घी डालना होगा|" पंडित जी सभी को समझाते हुए बोले| मेरे हाथ में था एक ताम्बे का बड़ा सा चम्मच और स्तुति को ये चम्मच देख कर हैरत हो रही थी, स्तुति को खुश करने के लिए मैंने स्तुति का हाथ अपने हाथ में लिया और फिर स्तुति के नन्हे से हाथ में चम्मच पकड़ा दिया| चूँकि स्तुति का हाथ मेरे काबू में था इसलिए स्तुति मस्ती नहीं कर सकती थी|



जब मैं स्कूल में पढता था तब हमारे स्कूल में हफ्ते में एक बार हवन अवश्य होता था, ऐसे में शास्त्री जी द्वारा बोले जाने वाले कई मंत्र मैंने कंठस्त कर लिए थे| आज जब पंडित जी ने उन्हीं मंत्रों का उच्चारण किया तो मैंने भी पंडित जी के साथ-साथ वही मन्त्र दोहराये| मुझे मंत्र दोहराते हुए देख मेरी माँ को छोड़ सभी स्तब्ध थे| मेरी माँ मेरे मंत्रोचारण के गुण के बारे में जानती थीं क्योंकि घर में जब हवन होता था तब मैं पंडित जी के साथ मंत्र दोहराता था इसीलिए मेरी माँ को अस्चर्य नहीं हो रहा था| वहीं मेरी छोटी बिटिया रानी अपनी गर्दन मेरी तरफ घुमा कर मुझे मंत्रोचारण करते हुए बड़े गौर से देख रही थी| उधर मेरी बड़ी बिटिया नेहा को तो अपने पापा जी को पंडित जी के साथ मंत्रोचारण करते देख गर्व हो रहा था|

बहरहाल, हवन जारी था और आयुष तथा नेहा बड़े जोश से " स्वाहा" बोलते हुए हवन कुंड में हवन सामग्री डाल रहे थे| घर के बाकी सदस्य दोनों बच्चों का उत्साह देख मुस्कुरा रहे थे और स्वाहा बोलते हुए हवन कुंड में हवन सामग्री डाल रहे थे| वहीं हम बाप-बेटी ख़ुशी-ख़ुशी स्वाहा बोलते हुए हवन कुंड में घी डाल रहे थे| कमाल की बात ये थी की मेरी बिटिया रानी घी डालने के कार्य को करते हुए बहुत खुश थी, उसने इस कार्य को करते हुए ज़रा भी शरारत या मस्ती नहीं की थी|



हवन समाप्त हुआ तो सभी को प्रसाद मिला और हमेशा की तरह प्रसाद लेने के लिए आयुष सबसे आगे था| पंडित जी जब मुझे प्रसाद दे रहे थे तो स्तुति ने अपना हाथ आगे कर दिया इसलिए पंडित जी ने लड्डू स्तुति के हाथ में रख दिया| लाडू पा कर स्तुति बहुत खुश थी और इसी ख़ुशी में स्तुति ने अपनी मुठ्ठी कस ली जिससे लड्डू टूट कर मेरे हाथ में गिर गया! जो थोड़ा सा लड्डू स्तुति के हाथ में था उसे मेरी बिटिया ने ‘घप्प’ से खा लिया और लड्डू का जो हिस्सा मेरे हाथ में गिरा था वो मैंने खा लिया| स्तुति को लाडू का स्वाद बहुत पसंद आया और वो ख़ुशी से अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| दरअसल, स्तुति के लिए बिना किसी की बात सुने ‘गप्प’ से चीज़ खा लेना शरारत थी, जबकि हमारे लिए ये स्तुति का बालपन था जिसे देख कर हम सभी मोहित हो जाते थे|



पंडित जी के जाने के बाद सभी बैठ कर आराम कर रहे थे, इधर मेरी बिटिया रानी ने आज सुबह से जो मस्ती की थी उसके कारण उसे नींद आ रही थी| स्तुति इतनी थकी हुई थी की आधा सेरेलक्स खा कर ही सो गई| हम सभी ने भी खाना खाया और शाम के समारोह की तैयारी में लग गए| शाम 5 बजे मेरी लाड़ली बिटिया सो कर उठी और सीधा मेरी गोदी में आ गई| बारी-बारी से सब तैयार हुए और स्तुति को तैयार करने की जिम्मेदारी मैंने ली| गुलाबी रंग की जाली वाले फ्रॉक पहना कर, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर, हाथ में चांदी का कड़ा पहना कर और बालों में दो छोटी-छोटी चोटियाँ बना कर मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए निकला| स्तुति की सुंदरता देख मेरी माँ ने सबसे पहले स्तुति को काला टीका लगाया और स्तुति के हाथ चूमते हुए बोलीं; "मेरी लाड़ली को किसी की नज़र न लगे!" अपनी दादी जी के द्वारा हाथ चूमे जाने से स्तुति शर्मा गई और मेरे सीने से लिपट गई|



हम सभी तैयार हो कर बैंक्वेट हॉल (banquet hall) के लिए निकले क्योंकि वहीं तो स्तुति के जन्मदिन का समारोह रखा गया था| पूरा बैंक्वेट हॉल रंग-बिरंगे गुबारों से सजा हुआ था, बाहर गार्डन में बुफे तैयार था| बैंक्वेट हॉल में मौजूद Dj धड़ाधड़ गाने बजाए जा रहा था| बच्चों के खेल-कूद के लिए एक हवा भरा हुआ मिक्की माउस का किला था जिस पर बच्चे चढ़ कर फिसल सकते थे| बच्चों की पसंद की कॉटन कैंडी और मैजिक शो की भी व्यवस्था की गई थी| जैसे ही हम पहुँचे तो बैंक्वेट हॉल के मैनेजर ने हमें सारी तैयारियाँ दिखाईं|



धीरे-धीरे सारे मेहमान आने लगे और पूरा बैंक्वेट हॉल भर गया| आयुष और नेहा के सारे दोस्त अपने मम्मी-पापा जी के साथ आये थे, मिश्रा अंकल जी सपरिवार आये थे, दिषु भी अपनी परिवार के साथ आया था| मेरे साथ काम करने वाले कुछ ख़ास लोग भी मेरी बेटी के जन्मदिन में सम्मिलित होने आये थे| यहाँ तक की माधुरी भी सपरिवार सहित आई थी!

माधुरी को देख संगीता हैरान थी, संगीता को हैरान देख माधुरी बोली; "भाभी जी, आपने तो बुलाया नहीं इसलिए मैं ही बेशर्म बन कर आ गई|" संगीता समझती थी की मैंने ही माधुरी को न्योता दिया होगा इसलिए संगीता ने बड़ी ही हाज़िर जवाबी से जवाब दिया; "अपनों को कहीं न्योता दिया जाता है?!" संगीता की हाज़िर जवाबी देख माधुरी बहुत खुश हुई|

माधुरी अपने पति और बेटे जो की उम्र में स्तुति से कुछ महीना ही बड़ा होगा के साथ आई थी| "हेल्लो वंश जी|" माधुरी के बेटे का नाम वंश था, जैसे ही मैंने वंश से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया की वंश ने मेरी गोदी में आने के लिए अपनी दोनों बाहें फैला दी| स्तुति तब अपनी मम्मी की गोदी में थी इसलिए मैंने वंश को गोदी ले लिया| तब मुझे नहीं पता था की वंश को गोदी ले कर मैं अपनी बिटिया रानी की नज़र में कितनी बड़ी गलती करने जा रहा हूँ! उसपर मेरी मैंने एक और गलती की, वंश को लाड करते हुए मैंने उसके मस्तक को चूम लिया!



अपने पापा जी को दूसरे बच्चे को गोदी में लिए हुए पप्पी करते देख स्तुति जल भून कर राख हो गई और मेरी गोदी में आने के लिए अपनी मम्मी की गोदी में छटपटाने लगी| जब मैंने स्तुति को यूँ बेचैन होते हुए देखा तो मुझे मेरी गलती का आभास हुआ| मैंने वंश को अपनी माँ की गोदी में दिया और फट से स्तुति को गोदी में लिया| मेरी गोदी में आते ही स्तुति ने अपनी मुट्ठी में मेरी कमीज जकड़ ली और अपना गुस्सा मुझे महसूस करवाने लगी! मैं स्तुति को टहलाने के बहाने से कुछ दूर ले आया और स्तुति से माफ़ी माँगते हुए बोला; "बेटा जी, मुझे माफ़ कर दो! लेकिन मैंने थोड़े ही वंश को गोदी लिया, मैं तो बस उससे हाथ मिलाना चाहता था, अब वही मेरी गोदी में आना चाहता था तो मैं उसे कैसे मना करता?!" मैंने स्तुति के सामने अपनी सफाई रखी|

मेरी बिटिया अपनी मम्मी की तरह नहीं थी, स्तुति ने मेरी पूरी बात सुनी और मुझे माफ़ करते हुए फिर से खिलखिलाने लगी| हम बाप-बेटी सबके पास वापस लौटे तो देखते क्या हैं की माँ ने वंश को खेलने के लिए स्तुति की मनपसंद लाल रंग की बॉल दे दी! अपनी बॉल को दूसरे बच्चे के पास देख स्तुति को गुस्सा आने लगा और वो वंश से बॉल छीनने को आतुर हो गई| माँ ने जब स्तुति को इस तरह मेरी गोदी से उतरने को मचलते देखा तो माँ मुझसे बोलीं; "बेटा, शूगी को यहाँ वंश के साथ बिठा दे, दोनों बच्चे साथ खेल लेंगे|" स्तुति का केक आने में समय था इसलिए टेबल पूरी तरह खाली था| मैंने स्तुति को वंश की बगल में टेबल पर बिठा दिया तथा मैं सबके साथ बातों में लग गया|



उधर मेरी बिटिया रानी ने जब अपनी मनपसंद बॉल को दूसरे बच्चे के मुख में देखा तो उसे गुस्सा आने लगा| "आए" कहते हुए स्तुति ने अपनी बोली भासा में वंश को पुकारा मगर वंश का ध्यान बॉल को कुतरने में लगा था| स्तुति को अनसुना किया जाना पसंद नहीं था इसलिए स्तुति अपने दोनों हाथों-पॉंव पर रेंगते हुए वंश की तरफ बढ़ने लगी| वंश के पास पहुँच स्तुति ने अपने दाहिने हाथ से वंश के हाथों से बॉल छीननी चाही मगर वंश बॉल लिए हुए दूसरी तरफ मुड़ गया|

वंश की प्रतिक्रिया पर स्तुति को और भी गुस्सा आने लगा इसलिए वो वंश को मारने के इरादे से आगे बढ़ी| ठीक उसी समय मैं दोनों बच्चों को देखने के लिए पलटा और मैंने देखा की स्तुति अपना दाहिना हाथ उठाये वंश पर हमला करने जा रही है! मैंने एकदम से भागते हुए स्तुति को पीछे से पकड़ कर गोदी में उठा लिया| मेरी गोदी में आ कर भी स्तुति अपनी बॉल वंश से वापस लेने के लिए छटपटा रही थी!



"चलो बेटा, हम घुम्मी कर के आते हैं!" ये बोलते हुए मैं स्तुति को अपनी गोदी में लिए हुए दूर आ गया| "बेटा, वंश आपका दोस्त है और दोस्तों को मारते नहीं हैं! छोटा बच्चा है, वो नहीं जनता की वो आपकी बॉल से खेल रहा है! माफ़ कर दो उसे बेटा प्लीज!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया| फिर स्तुति का मन बहलाने के लिए मैं उसे बुफे के पास ले आया, यहाँ स्तुति के खाने के लिए बस सलाद और फ्रूट चाट ही थी| मैंने एक दोने में 2-4 फल व सलाद लिए और स्तुति को खाने के लिए दिए| स्तुति अपने हाथों से फल या सलाद का एक पीस उठाती और अपने मुँह में रख रस चूसती और जब वो सारा रस चूस लेती तो वो फल या सलाद का टुकड़ा मुझे खिला देती! स्तुति को मेरे साथ देख कई लोग स्तुति को जन्द्मिन की बधाई देने आये, जो लोग उम्र में बड़े होते वो स्तुति को आशीर्वाद देते और छोटे बच्चे स्तुति से हाथ मिला कर उसे हैप्पी बर्थडे कहते| इसी तरह सबसे मिलते मिलाते हम बाप-बेटी दूर एक कोने में पहुँचे जहाँ एक पेड़ लगा था और पेड़ पर गिलहरी उछल-कूद कर रही थी| स्तुति को अपना मनपसंद जानवर दिखा तो स्तुति का ध्यान भटक गया और वो गिलहरी को देख किलकारियाँ मारने लगी|



हम बाप-बेटी लगभग आधे घंटे से गायब थे और केक काटने का समय हो रहा था इसलिए हमें ढूंढने के लिए नेहा ने Dj वाले के माइक से घोषणा की; "बर्थडे गर्ल स्तुति और पापा जी, जहाँ कहीं भी हैं फौरन स्टेज पर आइये!" नेहा ने ये घोषणा ठीक उसी तरह की जैसे की रेलवे स्टेशन पर होती है इसीलिए नेहा की ये घोषणा सुन सभी लोगों ने जोरदार ठहाका लगाया| वहीं स्तुति ने जब अपना नाम स्पीकर पर सुना तो स्तुति बहुत खुश हुई, मैं स्तुति को लेकर अंदर आ रहा था की तभी स्तुति ने गुब्बारा देखा और उसने मुझसे गुब्बारे की तरफ इशारा कर माँगा| मैंने गुब्बारा स्तुति की कलाई में बाँध कर लटका दिया, कलाई में गुब्बारा बँधे होने से स्तुति उस गुब्बारे को देख सकती थी मगर पकड़ कर फोड़ नहीं सकती थी|

खैर, मैं स्तुति को लेकर स्टेज पर पहुँचा तो माँ चिंता करते हुए बोलीं; "कहाँ गायब हो गया था तू?" माँ को चिंता करते देख मैं मुस्कुराया और उन्हें बाद में सब बताने का इशारा किया|



स्तुति के जन्मदिन का केक टेबल पर रखा जा चूका था| सफ़ेद रंग का केक और उसमें लगी रंग-बिरंगी मोमबत्तियाँ देख कर स्तुति बहुत खुश हुई| स्तुति के हाथ में प्लास्टिक का चाक़ू पकड़ा कर मैंने केक काटा और केक कटते ही सभी मेहमानों ने 'हैप्पी बर्थडे टू यू' वाला गीत गाते हुए ताली बजानी शुरू कर दी| सभी लोगों को एक साथ गाते और ताली बजाते देख स्तुति बहुत खुश हुई और "ददद" कहते हुए गाने लगी|

मैंने एक छोटी चमची से स्तुति के लिए चींटी के अकार का केक का टुकड़ा काटा और स्तुति को अपने हाथों से खिलाया| मीठे-मीठे केक का स्वाद स्तुति को भा गया और स्तुति और केक खाने के लिए अपने दोनों हाथ बढ़ा कर केक की ओर झपटने लगी| तभी एक-एक कर घर के सभी सदस्यों ने मेरी देखा-देखि छोटी चमची से स्तुति को केक खिला उसे आशीर्वाद दिया| पार्टी शुरू हुई और सभी को केक सर्व किया गया, सभी लोग खाने-पीने में मशगूल हो गए थे| इधर मेरी बिटिया मेरी गोदी में खेल रही थी, शायद स्तुति को डर था की अगर वो मेरी गोदी से उतरी तो मैं फिर से वंश को गोदी ले लूँगा! उधर Dj ने बड़े शानदार गाने बजाए और आयुष तथा नेहा ने मुझे अपने साथ डांस करने को खींचना शुरू कर दिया| स्तुति को गोदी लिए हुए मैं डांस करने जा पहुँचा, सभी बच्चों को नाचते हुए देख स्तुति का मन भी नाचने को कर रहा था| मैंने स्तुति को कमर से पकड़ कर खड़ा किया तो स्तुति ने सबकी देखा देखि अपने हाथ-पॉंव एक साथ हवा में चलाने शुरू कर दिए| स्तुति के लिए यही डांस था और उसे यूँ डांस करते देख सभी बच्चे एक तरफ हो गए और तालियाँ बजाते हुए स्तुति का उत्साह बढ़ाने लगे| अपनी छोटी बहन को नाचते हुए देख आयुष और नेहा ने अपनी बहन का हाथ पकड़ा तथा स्तुति के साथ कदम से कदम मिला कर नाचने लगे|



नाच-गा कर हम थक गए थे इसलिए मैं स्तुति को ले कर आराम करने लगा| मेरे कुर्सी पर बैठते ही मेरी बिटिया रानी मेरे सीने से लिपट गई और मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगी| स्तुति जब बहुत खुश हो जाती थी तो वो अक्सर मुझसे लिपट कर मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगती थी| स्तुति की इस प्रतिक्रिया का असली कारण मुझे कभी समझ नहीं आया, परन्तु मेरा मन कहता था की मेरी बेटी मुझसे इतना प्यार करती है की वो इतनी सारी खुशियाँ पा कर मुझे आँखों ही आँखों में धन्यवाद दे रही है| “मेरे प्यारे बेटू, पापा जी को थैंक यू थोड़े ही बोलते हैं! पापा जी को आई लव यू बोलते हैं|" मैंने स्तुति की ठुड्डी सहलाते हुए कहा| मेरी बात सुन स्तुति तुरंत अपनी बोली भासा में बोली; "आवववउउउ!" ये कहते हुए स्तुति ख़ुशी से खिलखिलाने लगी| उधर, अपनी बिटिया के मुख से आई लव यू सुन मेरा मन खुशियों से भर उठा!



कुछ ही देर में मैजिक शो शुरू होने वाला था इसलिए मैं स्तुति को ले कर सबसे आगे बैठ गया| जादूगर की कलाकारी स्तुति को कुछ ख़ास पसंद नहीं आई मगर जैसे ही जादूगर ने अपनी टोपी में से खरगोश निकाला, मेरी बिटिया मेरी गोदी में बैठे हुए फुदकने लगी| मैं स्तुति को ले कर जादूगर के पास पहुँचा ताकि स्तुति खरगोश को नज़दीक से देख सके| अपनी आँखों के सामने सफ़ेद रंग का खरगोश देख स्तुति का मन मचल उठा और वो उस जानवर को पकड़ने के लिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाने लगी| मैंने स्तुति का हाथ पकड़ स्तुति को खरगोश के ऊपर हाथ फेरना सिखाया| 1-2 बार हाथ फेर कर स्तुति ने अपनी मुठ्ठी में खरगोश की खाल जकड़ ली, कहीं खरगोश स्तुति को काट न ले इसलिए मैंने स्तुति के हाथ से बेचारे खरगोश की खाल को छुडवाया| मेरी बिटिया का दिल अब इस खरगोश पर आ गया था इसलिए स्तुति उसे पुनः पकड़ने को जिद्द करने लगी| मैंने नेहा को बहुत समझाया मगर स्तुति की नज़र उस खरगोश पर से हट ही नहीं रही थी, अतः मैंने जादूगर को ही खरगोश को गायब करने को कहा| जादूगर ने अपनी छड़ी को गोल घुमाया और खरगोश को गायब कर दिया| स्तुति का पसंददीदा जानवर जब गायब हुआ तो स्तुति उदास हो गई, अब स्तुति को फिर से हँसाना था इसलिए मैंने अपना फ़ोन निकाल कर कैमरा चालु कर स्तुति को दिखाया| फ़ोन में अपनी और मेरी छबि देख स्तुति फिर से खुश हो गई और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर फ़ोन पकड़ना चाहा| मैंने फ़ोन स्तुति को दिया तो स्तुति ने पहले तो फ़ोन को अच्छे से दबाया फिर सीधा उसे अपने मुँह में डालकर खाने की कोशिश करने लगी| अपनी बिटिया के बचपने को देख मैं हंस पड़ा और स्तुति के गाल चूमते हुए माँ के पास लौट आया| स्तुति के मुख से फ़ोन निकलवाने के लिए मैंने स्तुति को केक खाने को दिया| परन्तु तबतक मेरा फ़ोन स्तुति की लार से भीगने के कारन बंद हो चूका था!




बहरहाल स्तुति का ये पहला जन्मदिन सबके लिए यादगार था| सभी मेहमानों ने जाते हुए स्तुति को एक बार पुनः बधाई दी और सबके जाने के बाद हम सभी घर लौट आये|

itchy-cute baby-eating
 

Sangeeta Maurya

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Wo emojis stuti ke liye nhi, apke liye thi :redface:
Ab stuti ko kya pta kya jhootha h, nhi rakhna h, aur bacho ka jhootha bhi khi jhootha hota h
वो इमोजी मेरे लिए था :girlmad: :spank:

Btaiye ye koi bdla hua, ye to bhut mhnga upkar kar diya nimbu ras dalkar wo bhi garmi me :D

E nimbu wala prank hmka bhi chahi :weep:
निम्बू खाने हैं न तुझे तो भेज दूँगी मैं तेरे घर :alright3:

एक और लाजवाब और प्रेम से परिपूर्ण अपडेट। स्तुति के जन्मदिन की तैयारिया, उसका मानू को अपनी भाषा में I love you कह कर मानू को जन्मदिन का रिटर्न गिफ्ट देना बहुत ही सुखद अनुभव था। परिवार का मेट्रो अनुभव और नेहा और आयुष का संचालन बहुत ही प्रशंसनीय था। जन्मदिन की तैयारियों की खुशियां और स्तुति का वंश के लिए बालसुलभ जलन और गुस्सा भी एक मजेदार अनुभव था। बस इसमें Rockstar_Rocky और Sangeeta Maurya के प्रेम और नोकझोंक के संवाद की थोड़ी कमी महसूस हुई। पता नही क्यों पीछे कुछ अपडेट्स में कहानी की नायिका को अवॉइड किया जा रहा है ऐसा लगता है, पर जब मिया बीवी राजी तो क्या करेगा पाठक

अब स्तुति के लिए एक गीत, ये जन्मदिन का गीत नही है मगर एक बेटी का बाप होने के नाते मेरे दिल के बहुत ही करीब है।

मेरी दुनिया मेरी दुनिया
मेरी दुनिया तू ही वे
मेरी खुशिया मेरी खुशिया
मेरी खुशिया तू ही वे

रात दिन तेरे लिए सज्दे करू
दुयायें माँगू रे
में यहाँ अप्पने लिए रब से
तेरी बलाएँ मांगु रे
हो ओ ओ ोू

तूने ही जीना सिखाया
हमलोगो को अच्छा इंसान बनाया
ज़िन्दगी है तेरा साया
अंजनाओ को सीधा रास्ता दिखाया

तू नै एक रौशनी ले आई है
जीवन की राहों में
हर घडी गुज़रे तेरी

सारी उम्र अब्ब अपने बाहों में
कहानी की नायिका को आप जलाने की कोशिश कर रहे हैं अमित जी..................मगर मैं जलूँगी नहीं............... :makeup:
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Rockstar_Rocky लेखक जी........................अगली अपडेट की घोषणा कर दीजिये 🙏
 

Rockstar_Rocky

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Rockstar_Rocky manu bhaiya... Hmesha ki tarah ek or bhut pyara update... Stuti ki Shaitaniyan or aapka uske liye pyar... That's a lovely moment in every update for me... Mujhe bhut special feel hota hai... Birthday shaandar rha... Bhut maza aaya... Waise ye agla bhaag last part hone wala hai kya... Waiting for next super update...

आपके प्यारभरे प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद| :thank_you: :dost: :hug: :love3:

अब अंतिम अध्याय शुरू होगा और इसमें कितने भाग होंगें ये फिलहाल तय नहीं किया मैंने|
इस अध्याय के खत्म होने पर एक BIG REVEAL होगा और तब जा कर ये कहानी समाप्त होगी!
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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31,029
304
Waiting for next update :bored:
 
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