Sanju@
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बहुत ही सुन्दर लाजवाब और अद्भुद रमणीय अपडेट है नेहा ने बड़े ही शांत मन से मानू भाई से सवाल किए और पीने की भी छूट दे दी नेहा ने मानू भाई को बहुत ही अच्छे से समझाया भौजी ने तो मां को भी अपनी तरफ मिलाकर मानू को डांट दिलाईअंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 6
अब तक अपने पढ़ा:
खैर, संगीता के मुझे झाड़ने का मैंने ज़रा भी बुरा नहीं लगाया, बल्कि मैंने तो उसकी झाड़ सर झुका कर सुनी| मुझे यूँ सर झुकाये देख संगीता ने अपनी झाड़ पर लगाम लगाई और गुस्से में तमतमाती हुई बिस्तर पर लेट गई| मैं भी सर झुकाये बिस्तर की तरफ बढ़ने लगा तो संगीता मुझ पर गरजते हुए बोली; "यहाँ नहीं सोओगे आप, जा कर अकेले बच्चों के मरे में सोओ! बहुत शौक है न हीरो बनने का!" संगीता मुझे ताना मरते हुए बोली और फिर दूसरी तरफ मुँह कर के सो गई| संगीता इस वक़्त गुस्से से तपी हुई थी और ऐसे में मैं उसे और गुस्सा नहीं दिलाना चाहता था इसलिए मैं बिना कुछ कहे सर झुकाये कमरे से बाहर आ गया|
अब आगे:
अपनी ही परिणीता द्वारा देर रात को कमरे से निकाला गया था, ऊपर से नींद भी आ रही थी इसलिए मैं बच्चों के कमरे में सोने चल दिया| जैसे ही मैंने कमरे की लाइट जलाई मैंने देखा की नेहा पलंग पर लेटी हुई सिसक रही है! "मेरा बच्चा!" कहते हुए मैंने नेहा को पुकारा तो नेहा बिजली की फुर्ती से उठी और मेरे सीने से लग कर रोने लगी! "बस मेरा बच्चा, बस! रोते नहीं! आपकी मम्मी ने तो बस यूँ ही आपको थोड़ा डाँट दिया था!" मैंने संगीता के डाँटने को नेहा के रोने का कारण समझा था, जबकि मेरी बिटिया मुझे ले कर चिंतित थी|
नेहा को लाड-प्यार कर मैंने चुप कराया तथा अपने सीने से लगाए लेट गया| कुछ पल बाद जब नेहा का रोना थमा तो उसने मुझसे बात शुरू की;
नेहा: पापा जी, आप बड़े दादा जी (मिश्रा अंकल जी) की मदद के लिए गए तब क्या हुआ था? आपने उनकी जान कैसे बचाई?
नेहा का सवाल सुन मैं उसे सारा सच नहीं बताना चाहता था क्योंकि सच जानकार मेरी बिटिया घबरा जाती इसलिए मैंने सचाई काट-पीट कर बताई;
मैं: बेटा, मिश्रा अंकल जी ने किसी को पैसे देने थे लेकिन पैसे लेने के लिए तीन गुंडे आ गए| अब अंकल जी थे अकेले, ऊपर से रात का समय इसलिए उन्होंने मुझे फ़ोन कर मुझसे मदद माँगी| मैं चूँकि साइट पर ही था इसलिए मैं उनकी मदद के लिए चला गया| मेरी उपस्थिति में उन गुंडों की हिम्मत नहीं पड़ी की वो अंकल जी को कुछ कर सकें, बस इसी के लिए मिश्रा अंकल जी मेरे शुक्रगुज़ार थे|
मैंने जितना हो सके उतनी बात को हलके में लेते हुए कहा था मगर मेरी बिटिया रानी इतना सुनते ही चिंतित हो गई थी| अगर मैंने उसे सारी बात बताई होती तो नेहा इतना डर जाती की वो मुझे कहीं अकेले जाने ही नहीं देती!
नेहा: आपने इतना बड़ा रिस्क (risk) क्यों लिया पापा जी? आप अकेले क्यों गए? आपको चोट लग जाती तो? और आपने मुझे ये बात क्यों नहीं बताई?
संगीता के मुक़ाबले नेहा ने शांत हो कर मुझसे अपने सवाल पूछे थे और मुझे अपनी बिटिया का ये शांत स्वभाव देख कर उस पर गर्व हो रहा था| मेरी चिंता सबसे ज्यादा नेहा करती थी और मेरे कारनामे को सुन उसे गुस्सा आना चाहिए था मगर मेरे प्रति नेहा का मोह उसे गुस्सा नहीं होने दे रहा था, बल्कि नेहा मुझसे अपने सवाल पूछ कर सारी बात जानने को इच्छुक थी|
मैं: बेटा, जैसे आप बच्चे गलतियाँ करते हो और अपनी गलतियों से सीखते हो, वैसे ही हम बड़े भी गलतियाँ कर के अपनी गलतियों से सीखते हैं| यूँ बिना सोचे-समझे एकदम से मिश्रा अंकल जी की मदद के लिए दौड़ जाना मेरी मूर्खता थी और मैंने अपनी इस मूर्खता से सबक सीख लिया है| किसी की भी मदद करने के लिए अपनी या अपने परिवार की जान-जोखम में नहीं डालनी चाहिए, मैंने ये सबक अच्छे से सीख लिया है!
आपको मैं इसलिए कुछ नहीं बता पाया क्योंकि ये सब सुन कर आप दुखी हो जाते, मुझे ले कर चिंता करने लगते और मैं अपनी लाड़ली बिटिया रानी को परेशान या दुखी थोड़े ही देख सकता हूँ? लेकिन मैं ये वादा करता हूँ की आगे से मैं आपको सब बात बताऊँगा|
मेरा हमेशा नेहा को सब बात बताने का आश्वासन पा कर मेरी बिटिया के दिल को चैन मिला| लेकिन मेरा अपनी बिटिया से यूँ वादा करना मेरे लिए थोड़ा कष्टदाई साबित हुआ;
नेहा: पापा जी, मैं एक बात पूछूँ?
नेहा ने झिझकते हुए कहा और मैंने भी अपना सर हाँ में हिला कर नेहा को अपनी स्वीकृति दे दी|
नेहा: पापा जी, आप ड्रिंक करते हो?
नेहा का सवाल सुन मैं सन्न रह गया! मुझे समझ नहीं आ रहा था की भला उसे किसने मेरे पीने के बारे में बता दिया? मेरे चेहरे पर उमड़े सवाल को समझ नेहा बोली;
नेहा: आज पार्टी में मैं आपसे बात करने आई थी, तब मैंने आपकी सारी बात सुनी|
नेहा ने मेरे मन में उमड़े सवाल का जवाब दे दिया था और अब मेरी बारी थी उसके सवाल का जवाब देने की;
मैं: बेटा, जब मैं आपको और आपकी मम्मी को गॉंव में छोड कर आया था तब मैं आपको याद कर के बहुत परेशान होता था| रात-रात भर मैं तकिये को खुद से लिपटाये रहता था ताकि किसी तरह आपकी कमी पूरी कर सकूँ लेकिन मेरी सारी कोशिशें बर्बाद जाती थीं, जिस कारण मैं ठीक से सो नहीं पाता था| आपकी मम्मी की किये गलत फैसले के कारण मैं आपसे दूर हुआ था इसलिए उस बात का गुस्सा मेरे दिल में भरने लगा था| आपको याद कर-कर के मैं बहुत रोया, लेकिन मेरा दुःख कभी कम नहीं हुआ बल्कि और बढ़ता गया!
अपने इसी दुःख को कम करने के लिए मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की और आपके दादा जी की घर पर रखी शराब की बोतल से छुपके थोड़ी-थोड़ी शराब पीनी शुरू कर दी| मैं नशे में धुत्त होने के लिए नहीं पीता था, मैं बस इसलिए पीता था ताकि नशे के कारण मुझे नींद आ जाये| मैं जानता था की शराब बुरी चीज़ है इसलिए मैंने शराब पीने की आदत नहीं लगाई, मैं सिर्फ तभी पीता था जब मेरा मन बहुत दुखी होता था| फिर जब मैं बड़ा होने लगा तो ऑफिस की पार्टी में थोड़ी बहुत पीने लगा, लेकिन मैंने पीने के बाद कभी किसी से कोई बदतमीज़ी नहीं की… कभी किसी से मार-पीट नहीं की| शराब पी कर मैं चुपचाप घर आ कर सो जाता था|
फिर एक दिन मुझे आपकी मम्मी का फ़ोन आया और उन्होंने कहा की आप दिल्ली आ रहे हो| अपनी लाड़ली बिटिया को पाने की लालसा में मैंने पीना छोड़ दिया क्योंकि मेरी सबसे बड़ी ख़ुशी मुझे मिलने वाले थी, ऐसे में मुझे शराब पीने की जर्रूरत ही नहीं थी! मैं आपको अपनी गोदी में ले कर लाड करने को तरस रहा था, लेकिन जब आप आये तो आप मुझसे नाराज़ थे और मेरा ये नाज़ुक सा दिल अपनी बिटिया की नाराज़गी बर्दश्त नहीं कर पाया नतीजन मैं फिर से टूट गया! आपके गुस्से से मैं इतना डरा हुआ था की मुझे लगा की अब आप कभी मुझसे बात नहीं करोगे…और मैंने आपको हमेशा के लिए खो दिया ये सोच कर उस दिन मैंने फिर शराब पी! लेकिन फिर कुछ दिन बीते और आपने मुझे माफ़ कर दिया तथा आपको पा कर मेरा मन ख़ुशी से भर गया|
फिर मेरा जन्मदिन आया और उस दिन आपके दिषु के साथ बैठ कर मैंने कुछ ज्यादा पी ली! ये बात आपके दादा जी और दादी जी को पता चल गई और उन्होंने मुझे बहुत डाँटा, मैंने उनसे उस दिन वादा किया की मैं अब कभी नहीं पीयूँगा! आपके दादाजी से किया वो वादा मैं आज तक निभा रहा हूँ, मैं आपकी कसम खा कर कहता हूँ बेटा की मैंने उस दिन से ले कर आजतक कभी शराब नहीं पी!
नेहा ने मेरी सारी बात बड़े इत्मीनान से सुनी| हम बाप-बेटी के बिछोह और नेहा के गुस्सा होने वाली बात से नेहा का दिल दुख था मगर जब मैंने कहा की मैंने आज तक शराब नहीं पी तो मेरी बिटिया के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान खिल आई|
नेहा: पापा जी, आपका मन करता है ड्रिंक करने का?
नेहा को यक़ीन हो गया था की मैं चन्दर की तरह शराब पी कर किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करता था इसलिए उसके मन में ये भोला सा सवाल उठा|
मैं: बेटा, जैसे आपका मन कभी-कभी पिज़्ज़ा खाने का करता है वैसे ही मेरा भी कभी-कभी मन करता है| लेकिन मैं शराब पी कर आपने बच्चों के सामने नहीं आना चाहता इसीलिए मैं शराब नहीं पीता|
मेरी बात सुन मेरी बिटिया एक पल के लिए गंभीर हो गई लेकिन फिर अगले ही पल मेरी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई| नेहा ने मेरे दोनों गालों पर अपना हाथ रखा और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;
नेहा: पापा जी, आप कहते हो की कभी-कभार बाहर से कुछ खाने-पीने से कुछ नहीं होता इसलिए आज से मैं आपको इजाजत देती हूँ की जब भी आपका मन करे तो आप थोड़ी सी पी सकते हो|
जिस प्रकार मैं नेहा को कभी तरसाना नहीं चाहता था, उसी प्रकार नेहा भी मुझे किसी चीज़ के लिए तरसाना नहीं चाहती थी| उसके भोले मन ने आज मुझे पीने की इजाजत ख़ुशी-ख़ुशी दे दी थी और अपनी बिटिया की परवानगी पा कर मुझे आज अपनी बिटिया पर बहुत गर्व हो रहा था|
मैं: थैंक यू बेटा जी! लेकिन मैं फिर भी नहीं पीयूँगा क्योंकि मेरे पीने से मेरे बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और मैं नहीं चाहता की मेरे बच्चे अपने पापा जी से कोई गन्दी आदत सीखें|
मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाया मगर मेरी बिटिया थोड़ी सी ज़िद्दी थी इसलिए वो मुझसे तर्क-वितर्क करने लगी;
नेहा: लेकिन पापा जी, आपने ही हमें सिखाया है की हमें अपनी इच्छाओं को नहीं मारना चाहिए!
नेहा का तर्क सुन मैं मुस्कुरा दिया| जब अपने ही बच्चे आपकी सिखाई हुई बातों को तर्क के रूप में इस्तेमाल कर आपको समझते हैं तो माँ-बाप को अपने बच्चों पर बड़ा गर्व होता है, उसी तरह मुझे भी अपनी लाड़ली बिटिया पर गर्व हो रहा था|
मैं: बेटा जी, बच्चों को अपना मन नहीं मारना चाहिए| लेकिन, माँ-बाप का जीवन त्याग का जीवन होता है, उन्हें हमेशा अपने बच्चों के लिए छोटे-मोटे त्याग करने पड़ते हैं|
मैंने नेहा को माँ-बाप के दायित्वों के बारे में समझाते हुए कहा|
अब इसे विधि की विडंबना ही कहिये की जो आदमी परसों रात को अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारियों से लापरवाह हो गया था, कुछ देर पहले जो अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए बंदूक तक चला चूका था वो अपनी ही बिटिया को माँ-बाप की जिम्मेदारियाँ समझा रहा था|
खैर, मेरा तर्क सुन मेरी बिटिया सोच में पड़ गई थी| फिर अचानक से नेहा को एक तर्क सूझा;
नेहा: पापा जी, जब आपका मन अपने बच्चों को किसी चीज़ के लिए तरसते हुए देख कर दुखता है तो बच्चों का मन अपने माता-पता को तरसते हुए देख नहीं दुखेगा?
नेहा का तर्क सुन कर मैं निरुत्तर हो गया था, मुझे निरुत्तर देख मेरी बिटिया अपने ही पापा जी को समझाते हुए बोली;
नेहा: आपने अभी बताया की आप कभी जर्रूरत से ज्यादा नहीं पीते और आपका मन रोज़-रोज़ पीने का भी नहीं करता तो कभी-कभार पीने में क्या बुराई है? हाँ मैं आपकी ये बता मानती हूँ की आप पी कर हम बच्चों के सामने नहीं आना चाहते, तो ठीक है पापा जी आप जब भी कभी पार्टी कर के आओ तो वो रात मैं आयुष और स्तुति को आपके पास नहीं जाने दूँगी| अगली सुबह आप नहा-धो कर हमें फिर से गोदी में ले कर प्यार करना|
नेहा मेरे अपराध बोध को अच्छे से समझती थी इसीलिए उसने मुझे नहा-धो कर बच्चों को स्पर्श करने की बात कही थी| अपनी बिटिया के मुख से इतनी बड़ी बात सुन मेरा मन प्रसन्नता से भर गया था इसलिए मैंने नेहा के चेहरे को अपने हाथों में लिया और मुस्कुराते हुए बोला;
मैं: मेरा बच्चा इतना स्याना...इतना समझदार हो गया की अपने पापा जी की ख़ुशी के लिए उपाए सोचने लगा है?! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू बेटा!
ये कहते हुए मैंने नेहा के मस्तक को चूमा और उसे अपने सीने से लगा लिया| मैंने नेहा की बात का जवाब नहीं दिया था क्योंकि मेरा मन अब भी पीने के लिए गवाही नहीं दे रहा था इसलिए मैंने नेहा को अपनी बातों में बहला कर बात का रुख ही मोड़ दिया
अगली सुबह संगीता सबसे पहले जगी और नहा धो कर माँ के पास मेरी शिकायत ले कर पहुँच गई| संगीता ने माँ को सारी बात कह सुनाई और माँ के दिल में उनके ही बेटे के खिलाफ आग लगा दी| अपनी बहु की सारी बात सुन माँ भी गुस्से में तमतमा गईं, लेकिन उन्होंने बच्चों के सामने मुझ पर अपना ये गुस्सा निकालना ठीक नहीं समझा|
माँ को गुस्से में तपा कर संगीता बच्चों वाले कमरे में आई, जब उसने देखा की हम बाप-बेटी इत्मीनान से सो रहे हैं तो संगीता को मिर्ची लग गई| उसने नेहा का हाथ पकड़ उसे झकझोड़ कर उठाया और उस पर गरज पड़ी; "तेरे दिमाग में एक बार कही हुई बात घुसती नहीं है न? तुझे कहा था न की दादी जी के पास सोइयो और तू यहाँ आ कर सो गई!"
अब ज़रा कल्पना कीजिये, आप बड़ी अच्छी नींद सो रहे हैं और कोई एकदम से आपको झकझोड़ कर उठा कर बिठा दे, फिर आप ही पर चिल्लाये तो आपको कैसा लगेगा? यदि आप उस व्यक्ति से उम्र में बड़े हो तो उस पर हाथ उठा दोगे या गाली-गलौज करोगे, यदि आप उस व्यक्ति से छोटे हो तो आप रोने लगोगे|
यही हुआ नेहा के साथ, बेचारी को उसी की मम्मी ने एकदम से झकझोड़ कर उठाया था, ऊपर से उस पर बिना किसी गलती के संगीता गुस्से से चिल्ला भी रही थी इसलिए मेरी बिटिया एकदम से घबरा कर रोने लगी! संगीता के गरजने से मेरी नींद खुल गई थी लेकिन जब मैंने नेहा का रोना सुना तो मैं एकदम से उठ बैठा और नेहा को अपने गले लगा कर संगीता पर चिल्लाया; "Enough संगीता! मैंने तुम्हें पहले भी कहा था की मेरे ऊपर आया गुस्सा मुझ पर निकालो, मेरे बच्चों पर नहीं!" अब संगीता की नज़र में मैं पहले ही कसूरवार था, ऊपर से मैंने उसे उसी की बेटी के सामने झिड़क दिया था इसलिए संगीता गुस्से से तमतमा गई और मुझे घूर कर देखने लगी| हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच तू-तू मैं-मैं शुरू होती उससे पहले ही माँ उठ कर आ गईं और संगीता से बोलीं; "बहु, चल मेरे साथ!" माँ की बात सुन संगीता चुप-चाप चली गई और इधर मैं नेहा को लाड कर बहलाने लगा; "बस मेरा बच्चा! बस...रोते नहीं वरना सुबह-सुबह रोने से सारा दिन खराब जाता है|" ये कहते हुए मैंने नेहा को लाड करना शुरू किया| इतने में आयुष कमरे में आ गया और अपनी दीदी का रो-रो कर बेहाल हुआ चेहरा देख कर चिंतित हो गया| "पापा जी, दीदी क्यों रो रही है?" आयुष को घर में हो रही घटनाओं के बारे में कुछ नहीं पता था इसलिए मैंने आयुष से झूठ कहा; "कुछ नहीं बेटा, आपकी दीदी स्कूल जाने के लिए उठी नहीं न इसलिए आपकी मम्मी ने डाँटा|" सुबह जल्दी न उठने के लिए आजतक केवल आयुष को डाँट पड़ती थी इसलिए आयुष अपनी दीदी का दुःख समझ अपनी दीदी को सांत्वना देने लगा; "दीदी, मम्मी की डाँट का बुरा नहीं लगाते| अब मुझे भी तो वो रोज़ डाँटती हैं, मैं थोड़े ही रोने लगता हूँ|" आयुष की बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और उसे भी नेहा के साथ गले लगा लिया| "मेरा बहादुर बच्चा!" मैंने आयुष की तारीफ करते हुए उसके सर को चूमा| सुबह-सुबह अपनी तारीफ सुन आयुष बड़ा खुश हुआ और ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल के लिए तैयार होने भाग गया|
दोनों बच्चों को आज मैंने स्कूल के लिए तैयार किया और उन्हें उनकी स्कूल वैन में बिठाने भी गया| जब मैं लौटा तो माँ ने गुस्से में मुझे पुकारा तथा अपने कमरे में बुला अपने सामने बैठने को कहा| माँ का गुस्सा देख मैं समझ गया था की संगीता ने घर में आग लगाने का काम कर दिया है और अब मेरी शामत है!
“सबसे पहले तो तू ये बता की तूने मुझसे इतनी बड़ी बात क्यों छुपाई?” माँ ने गुस्से से चिल्लाते हुए अपना पहला सवाल दागा|
“मुझे माफ़ कर दीजिये माँ, लेकिन मैं आपसे ये बात छुपाना नहीं चाहता था| दो दिन पहले जब मैं रात को लौटा तो आप सो चुके थे, फिर मुझे संगीता ने बताया की स्तुति मुझसे नाराज़ है इसलिए स्तुति को लाड करने के चक्कर में मैं ये बात किसी को नहीं बता पाया| अगली सुबह जब मैं उठा तो अपने मुझे मेरे देर रात घर आने को ले कर डाँटा और फिर आप संगीता के साथ सब्जी लेने चले गए| आपके जाने के बाद मैंने रात हुए काण्ड के बारे में सोचा और खुद को बहुत लताड़ा भी की मैं इतना गैरजिम्मेदार आदमी हूँ की मैंने अपने परिवार तक की नहीं सोची! लेकिन फिर स्तुति अचानक से अपने दोनों पॉंव पर चलने लगी और मेरा ध्यान इस बात पर से हट गया| जब आप दोनों सब्जी ले कर लौटे उस वक़्त तक मैं स्तुति के अपने पॉंव पर खड़े होने और खुद चलने को ले कर इस कदर खुश था की मैं ये बात आपको बताना फिर भूल गया| उसके बाद जब हम मिश्रा अंकल जी की पार्टी में पहुँचे तो वहाँ आपको ये सच उनसे सुनने को मिला|” मैंने अपनी सफाई दी जो की दोनों सास-पतुआ को पसंद न आई!
“तो बच्चों को लाड-प्यार करने के चक्कर में तू सब भूल गया? ये ही कहना चाहता है न? इसका मतलब की बच्चे दोषी हुए?” माँ गुस्से में मुझ पर गरज पड़ीं| अब माँ के इस सवाल का जवाब देना मतलब माँ से मार खाना इसलिए मैंने चुप रहकर गर्दन झुकाने में ही अपनी भलाई समझी|
“अभी तक बातें छुपाता था, अब बहाने भी मारने लगा है!” माँ मुझे सुनाते हुए बोलीं| तीन बच्चों का बाप होने के बावजूद भी मैं अपनी माँ के डर के मारे सर झुकाये बैठा था| इधर माँ ने जब मुझे यूँ सर झुकाये देखा तो उनका गुस्सा कम होने के बजाए और बढ़ गया;
“क्यों गया था तू उनकी (मिश्रा अंकल जी की) मदद करने के लिए? एक फ़ोन पा कर तू एकदम से दौड़ गया, ये भी नहीं सोचा की तेरी माँ का क्या होगा? मैं पूछती हूँ की अगर तुझे कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता? मुझ बुढ़िया की देख-भाल कौन करता? वो सब (मिश्रा अंकल जी का परिवार) आते यहाँ मेरी देख भाल को? तुझे कितनी बार समझाया है की दूसरों के लड़ाई-झगड़े में मत पड़ा कर मगर तेरी अक्ल में ये बात घुसती ही नहीं!” माँ की कही बात सही थी, मैं मिश्रा अंकल जी की मदद करने के लिए उतावला हो गया था, लेकिन अगर उनकी जगह मुझे ये मदद चाहिए होती तो वो नहीं आते!
इस वक़्त माँ केवल खुद को सामने रख कर सवाल-जवाब कर रहीं थीं, दरअसल वो मुझे एक बेटे के बिना माँ की क्या हालत होती है उस पीड़ा से अवगत करवाना चाहती थीं|
“तेरे पिताजी ने आज तक किसी से एक पैसे का एहसान नहीं लिया| ख़ास तौर पर मिश्रा भाईसाहब से तो बिलकुल नहीं क्योंकि तेरे पिताजी जानते थे की उनका एहसान हम चूका नहीं पाएंगे इसलिए तुझे भी उन पर कोई एहसान करने की जर्रूरत नहीं थी!” माँ को लग रहा था की मैं मिश्रा अंकल जी की मदद करने के लिए कोई एहसान चुकाने गया हूँगा इसीलिए वो मुझे ये नसीहत दे रहीं थीं, परन्तु मेरे मन में ऐसा कोई ख्याल नहीं आया था| मेरा मिश्रा अंकल जी की मदद करने जाने का सिर्फ एक कारण था और वो थी पिस्तौल! अब ये कारण मैं माँ को बताता तो माँ चप्पल से पीटती मुझे!
"और ये बताइयो ज़रा मुझे, ये पिस्तौल चलाने का शौक कहाँ से चढ़ा तुझे? अब क्या तूने चंबल का डाकू बनना है जो ये पिस्तौल चलाने का शौक पाल लिया तूने?" माँ गुस्से से फिर गरज पड़ीं|
जब माँ ने चंबल का नाम लिया तो मुझे हँसी आ रही थी, क्योंकि मैंने खुद को डाकू की पोशाक पहने घोड़े पर बैठा हुए कल्पना कर ली थी| इधर मेरे चेहरे पर हँसी के निशान देख माँ का गुस्सा भड़क गया और वो मुझ पर गुस्से से चीख पड़ीं; "बद्तमीज़ लड़के, दाँत दिखा कर हँस रहा है! अपनी गलती का एहसास भी है तुझे?" माँ के गुस्से को देख कर मेरी फट के आठ हो गई और मैं सर झुकाये हुए ही धीरे से बुदबुदाया; "माफ़ कर दो माँ!"
"माफ़ कर दूँ?...कोई भी आएगा और तुझे उकसायेगा और तू कुछ भी कर देगा?...सब मेरी ही गलती है, न मैं तुझे छूट देती न तू यूँ हवा में उड़ने लगता! कैसे-कैसे गुंडों के साथ काम करता फिरता है, हमें क्या पता? यही गुंडे-मवालियों की संगत है तेरी?...‘संगत से गुण आवत हैं, संगत से गुण जावत हैं!’ तेरे पिताजी की सिखाई ये बात तुझे याद भी है की नहीं? ऐसे गंदे लोगों के साथ काम करता है तू? तेरे पिताजी ने आज तक किसी गलत इंसान के साथ काम नहीं किया और तू ऐसी महफ़िलों में जाने लगा है जहाँ पिस्तौल, तमंचे, चाक़ू सब हाथ में ले कर देखते हैं! आज से तेरा ऐसे लोगों के साथ उठना-बैठना बंद! तू मिश्रा भाईसाहब या उनके परिवार से कोई तालुक्कात नहीं रखेगा!" माँ ने मेरे रिवाल्वर चलाने को ले कर बहुत सुनाया और अंत में मुझे आदेश भी दे दिया की मैं मिश्रा अंकल जी से सारे तलुकाकत खत्म कर लूँ|
मेरा मन पहले ही ठेकेदारी से उठ चूका था, उसपर माँ का आदेश हुआ तो मेरी तो जैसे लाटरी निकल गई! मैंने माँ के सामने ही संतोष को फ़ोन किया और उसे बात करने के लिए घर बुलाया| फ़ोन रख मैं माँ से बोला; "माँ, संतोष अभी थोड़ी देर में आएगा और मैं मिश्रा अंकल जी का सारा काम उसके सुपुर्द कर दूँगा|" मेरी बात सुन माँ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बल्कि वो बिना कुछ कहे उठ कर चली गईं|
मेरी माँ जब भी मुझसे नाराज़ होती थीं तो वो मुझसे बात करना बंद कर देती थीं| माँ के इस बर्ताव से मेरे मन बहुत दुखता था और मैं उनसे कुछ बुलवाने को तड़पता रहता था| जबतक स्तुति नहीं उठी तबतक मैं माँ से कुछ न कुछ बात करने की कोशिश करता रहा मगर मेरी माँ के मुख से कोई बोल नहीं फूटे! अपने प्रति माँ के इस रूखे व्यवहार से मैं बहुत दुखी था, मुझे पछतावा हो रहा था की मैंने अपनी माँ का दिल इस कदर दुखाया की वो मुझसे बात तक नहीं कर रहीं|
मैं बैठक में बैठ कर मिश्रा अंकल जी की साइट का बजट बना रहा था जब मेरी बिटिया रानी उठ गई और बिना किसी की मदद के बिस्तर से उतर कर मेरे पास आ गई| अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलते हुए स्तुति आई और मेरी टाँग से लिपट गई| "अरे मेरा बच्चा, अपने आप उठ गया?" मैंने स्तुति को गोदी में उठाते हुए उसे लाड-प्यार किया तथा स्तुति ने भी मुझे मेरी सुबह की प्यारी-प्यारी पप्पी दी! "बेटू, आप खेलो तबतक पापा जी को थोड़ा हिसाब करना है|" मैंने स्तुति प्यार से समझते हुए गोदी से नीचे उतारा और उसे खेलने के लिए उसके कुछ खिलोने दे दिए| स्तुति खेलने में व्यस्त हो गई तो मैं अपने काम में लग गया| स्तुति ने जब देखा की मेरा ध्यान काम पर है तो वो नाराज़ हो गई और मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचने के लिए स्तुति मेरे पास आ गई| "पपई...पपई?" कहते हुए स्तुति मुझे पुकारने लगी, दरअसल वो चाहती थी की मैं अपना काम छोड़कर उसके साथ खेलूँ मगर मेरा हिसाब-किताब करना जर्रूरी था इसलिए मैंने स्तुति को फिर प्यार से समझाया; "बेटू, जर्रूरी काम है| आप खेलो मैं थोड़ी देर में आता हूँ|" स्तुति को यूँ मेरे द्वारा नज़रअंदाज़ किया जाना पसंद नहीं आया और वो मेरी शिकायत ले कर अपनी दादी जी के पास पहुँच गई; "दाई...पपई!" स्तुति मुँह फुलाये मेरी ओर ऊँगली से इशारा करते हुए बोली| माँ अपनी पोती की शिकायत सुन मुस्कुराईं और उसके सर को चूमते हुए बोलीं; "तेरे बाप के पर निकल आये हैं इसलिए मैं उसे सीधा कर रही हूँ!" पता नहीं स्तुति को अपनी दादी जी की बात समझ आई या नहीं मगर वो मुस्कुराने लगी| इधर मैं दादी-पोती की बातों से अनजान अपना हिसाब-किताब करने में लगा हुआ था!
कुछ देर बाद संतोष घर आया और हम दोनों माँ के सामने बैठक में बैठ कर बातें करने लगे; "संतोष, मैं आज तुझे मिश्रा अंकल जी की साइट का सारा काम सौंप रहा हूँ इसलिए इस साइट से जितना मुनाफ़ा होगा वो सिर्फ और सिर्फ तेरा होगा!" मेरी बात सुन संतोष एकदम से घबरा गया| उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं थीं, दरअसल वो बेचारा इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने के लिए खुद अक्षम समझ रहा था| "देख यार, घबराने की जर्रूरत नहीं है| मैं हूँ तेरे साथ, तुझे हर कदम में मैं दिशानिर्देश देता रहूँगा| सबसे जर्रूरी होता है पैसे का लेन-देन करना, उसमें मैं तेरी पूरी मदद करूँगा| मिश्रा अंकल जी सारे पैसे मुझे ही देंगे तो वो पैसे कैसे इस्तेमाल करने हैं ये मैं तुझे अच्छे से सीखा दूँगा| मेरी दी जा रही इस ट्रेनिंग से भविष्य में तू अकेले ठेके उठा सकेगा|" मैंने संतोष को आश्वस्त करना चाहा मगर उसके दिमाग में मेरे बर्ताव में अचानक आये बदलाव को जानने की जिज्ञासा पैदा हो गई थी| "लेकिन भैया, आप अचानक सारा काम मुझे क्यों दे रहे हो?" संतोष ने झिझकते हुए सवाल पुछा|
"यार, ये रात-रात भर काम करने से मैं घर पर समय नहीं दे पाता, जिस कारण पूरा घर मुझसे नाराज़ है| अब मैं बस अपनी साइट वाले काम को पूरा करने पर ध्यान दूँगा| एक बार साइट पूरी तैयार हो गई, मैंने पार्टियों को कब्ज़ा दे दिया तो मैं कुछ समय के लिए छुट्टी ले लूँगा| अब मैं तो छुट्टी मना सकता हूँ, लेकिन तू थोड़ी ही खाली बैठेगा? तेरे पास भी तेरी जिम्मेदारियाँ हैं इसलिए मैं तुझे धीरे-धीरे ठेकेदारी का काम सीखा रहा हूँ ताकि मेरे चक्कर में तुझे खाली न बैठना पड़े|
वैसे भी इतने साल साथ काम करने से तू काफी काम सीख चूका है और अब समय है की तू थोड़ा सा रिस्क उठाये और अपना काम फैलाये| अभी मैं तेरे साथ खड़ा हूँ तेरी मदद करने को इसलिए तुझे ज़रा भी डरने की जर्रूरत नहीं|" थोड़ा समय लगा परन्तु संतोष मेरी बात मान गया, अब बात आई मुनाफे की और संतोष चाहता था की मिश्रा अंकल जी के साइट का मुनाफ़ा हम दोनों आधा-आधा बांटें| "देख यार, इस मुनाफे में मेरा कोई हक़ नहीं लेकिन फिर भी तेरी बात का मान रखते हुए मैं बस 10% लूँगा|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा|
"भैया, आप मेरे मालिक हो और मैं आपको 10% दूँगा? ये तो कमीशन वाली बात हुई जो की आपको सख्त नपसंद है!" संतोष थोड़ा जिद्द करते हुए बोला| उसकी बात सही थी, मुझे कमीशन लेने या देना पसंद नहीं था| संतोष अपनी ओर से तर्क देते हुए मुझे मुनाफे का आधा हिस्सा देना चाहता था मगर मैं इसके लिए मान नहीं रहा था|
आखिर माँ जो अभी तक चुप-चाप बैठीं थीं वो ही बीच में बोलीं; "देख बेटा संतोष, जब मेहनत तेरी है तो तेरी मेहनत के मुनाफे में आधा हिस्सा मानु कैसे ले सकता है? तेरी बात का मान रखते हुए मानु 20% हिस्सा लेगा, लेकिन इससे ज्यादा बिलकुल नहीं!" माँ का फैसला अंतिम था जिसके आगे न मैं बोल सकता था और न ही संतोष| "ठीक है माँ जी|" संतोष मुस्कुराते हुए बोला| संतोष ने मुझे मेरी साइट का हिसाब दिया और मिश्रा अंकल जी की साइट का काम शुरू करने के लिए क्या-क्या माल मँगवाना है उसकी लिस्ट ले कर चला गया|
मैंने माँ की बता मानते हुए मिश्रा अंकल जी के परिवार से अपने तालुक्कात तोड़ने की दिशा में कदम बढ़ाया तो माँ के दिल को सुकून मिला| इधर नाश्ता बनने लगा और उस पूरे दौरान मैंने किसी न किसी बहाने से माँ से बात करनी चाही मगर माँ ने कोई जवाब नहीं दिया, वो तो मुँह मोड टी.वी. देखने में लगी थीं| जब नाश्ता बना तो संगीता ने सब का नाश्ता माँ के कमरे में परोस दिया| स्तुति को मैंने सुबह से लाड-प्यार कम किया था इसलिए मैं स्तुति को अपने सामने बिठा कर सेरेलक्स खिलाने लगा, सेरेलक्स खाते हुए स्तुति बहुत खुश थी मगर मेरे चेहरे पर ख़ुशी का नामोनिशान न था| माँ के मुझसे बात न करने के कारण मैं गुम-सुम था| मेरी उदासी सबसे पहले मेरी बिटिया ने पकड़ी और मुझे हँसाने-बुलाने के लिए स्तुति ने अपने दोनों हाथ सेरेलक्स में लबेडे और अपना पूरा चेहरा पोत लिया! स्तुति को ऐसा करते देख माँ को बहुत हँसी आई! माँ को यूँ हँसते देख दो पल के लिए मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई|
नाश्ता कर मैं स्तुति को गोदी में लिए कंप्यूटर पर काम कर रहा था जब स्तुति ने मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचना शुरू किया| स्तुति को जानना था की आखिर क्यों मैं सुबह से उसे लाड-प्यार नहीं कर रहा, क्यों उसके साथ खेल नहीं खेल रहा, क्यों उससे हँसते हुए बात नहीं कर रहा| अपनी बिटिया के मन में उठे इन सवालों को महसूस कर मैं स्तुति को समझाते हुए बोला; "बेटा, आपकी दादी जी यानी मेरी माँ मुझसे नाराज़ हैं और मुझसे बात नहीं कर रहीं इसलिए मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा|" मेरी बात सुन स्तुति जैसे सब समझ गई और एकदम से मेरी ओर ऊँगली से इशारा करते हुए बोली; "मम (यानी मेरी माँ) no...no" लेकिन मुझे स्तुति की ये बात समझ नहीं आई, मेरा मन पहले ही उचाट था इसलिए मैंने अपना ध्यान काम में लगा दिया|
अब स्तुति हो रही थी बोर इसलिए वो मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाई, मैंने स्तुति को नीचे उतारा तो वो सीधा अपनी दादी जी के पास खदबद-खदबद दौड़ गई| "दाई...दाई...पपई...पपई...मम..मम..no...no...no" स्तुति ने अपनी दादी जी का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करते हुए इशारों से अपनी बात कहनी शुरू की| स्तुति की बात का असली मतलब था की; 'दादी जी आप पापा जी से बात क्यों नहीं कर रहे?' स्तुति बहुत गंभीर होते हुए अपनी बात दोहरा रही थी इसलिए माँ को उसकी बात का अर्थ समझने में थोड़ा समय लगा| जब माँ को अपनी पोती की सारी बात समझ आई तो उन्होंने मुझे बड़े प्यार से आवाज़ लगाई; "ओ मेरी शूगी के पपई?" माँ के इस प्रकार प्यार से बुलाने पर मैं सारा काम छोड़ कर उनके सामने हाज़िर हो गया| जैसे ही मैंने माँ के चेहरे पर मुस्कान देखि मेरे दिल ने चैन की साँस ली| माँ ने मुझे अपनी बगल में बैठने का इशारा किया, मेरे बैठते ही स्तुति मेरी गोदी में आ गई और मेरे सीने से लिपट गई| ऐसा लगता था मानो मेरी बिटिया कह रही हो की; 'पापा जी, मैंने अपना काम कर दिया| दादी जी अब आपसे नाराज़ नहीं हैं!'
माँ ने संगीता को आवाज़ दे कर बुलाया और अपने सामने बिठा कर मुझसे बोलीं; "बेटा, तू अब बड़ा हो गया है...समझदार हो गया है...तुझ पर सब जिम्मेदारियाँ आ गई हैं इसलिए अब तेरे यूँ किसी दूसरे के लिए अपनी जान खतरे में डालना सही बात नहीं| तू अपनी जिंदगी के फैसले सोच-समझ कर लेता आया है ऐसे में ये बंदूक और ये गंदी संगत से दूर रह ताकि तू इनके चक्करों में पड़ कर कोई गलत कदम न उठा ले|" माँ ने बड़े आराम से मुझे बात समझाई|
अब चूँकि माँ शांत थीं तो मेरा मन उनसे और संगीता से माफ़ी माँगने का था; "माँ, मैंने जो किया उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ| मुझे कुछ भी करने से पहले अपने परिवार के बारे में सोचना चाहिए था| मेरा परिवार जिसका मेरे सिवा और कोई नहीं है उस परिवार की जिम्मेदारी उठाना मेरा ही कर्तव्य है| मैं जानता हूँ की जो मैंने किया वो माफ़ी के काबिल नहीं है लेकिन माँ मुझे आप बस एक मौका दे दीजिये ताकि मैं अपनी गलती सुधार सकूँ| आज के बाद मैं ऐसा कोई काम नहीं करूँगा जिससे मेरी या मेरे परिवार की जान पर बात बन पड़े!" मेरी पूरी बात सुन माँ ने तो मुझे माफ़ कर दिया मगर संगीता के हाव-भाव अब भी वैसे थे जैसे कल रात थे, उसका गुस्सा शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था|
इंसान एक समय में जंग के एक ही मोर्चे पर जीत हासिल कर सकता था इसीलिए मैंने केवल माँ को मनाने पर ध्यान केंद्रित किया तथा उन्हें अपने आगे के भविष्य के बारे में बताने लगा| "माँ आपको याद है मैं और संगीता आगरा गए थे?" मेरे अचानक पूछे इस सवाल से माँ के चेहरे पर शिकन की लकीरें उभर आईं| उधर संगीता को आगरा में की गई उसकी मस्ती याद आ गई जिस कारन संगीता के चेहरे पर शरारती मुस्कान की एक झलक उभर आई थी!
"दरअसल आगरा जाने का एक ख़ास कारण था और वो था की मैं अपना अलग काम शुरू करना चाहता था| मेरा मन पिताजी के साथ ठेकेदारी में नहीं लगता था और मैं अपना अलग काम शुरू करने की सोच रहा था इसीलिए मैं जानकारी लेने हेतु आगरा गया था| लेकिन फिर अचानक संगीता के पिताजी की मृत्यु हो गई, पिताजी हमें छोड़कर अपने भाई-भाभी के पास रहने लगे और मुझ पर सारे काम की जिम्मेदारी आ गई, जिस कारण मैंने अपने इस नए बिज़नेस के प्लान के ऊपर काम करना बंद कर दिया|" मेरी बात सुन माँ और संगीता के साथ-साथ स्तुति का मुख भी खुला का खुला रह गया! मैंने एक गहरी साँस ली और माँ को अपनी अभी तक बनाई गई योजना सुनाने लगा; "माँ, आजकल ऑनलाइन (online)...मतलब इंटरनेट पर लोग सामान बेचने लगे हैं| इस काम में मुनाफ़ा बहुत है और लागत भी कम है| मैंने सोचा है की मैं अपना खुद का ब्रांड बना कर, पुरुषों के लिए असली चमड़े के जूते बनवाकर ऑनलाइन बेचूँगा|" माँ को इस विषय के बारे में जानकारी नहीं थी इसलिए मैंने उन्हें माल खरीदने से लेकर बेचने तक की सारी जानकारी बड़े विस्तार से दी| दोनों सास-पतुआ ने मेरी बात बड़े गौर से सुनी थीं, लेकिन सबसे गौर से बातें केवल स्तुति ने सुनी!
अगर ये शार्क टैंक का एपिसोड होता तो स्तुति भी अमन गुप्ता की तरह बोलती; "आप चिंता मत करो, फंड्स मैं दूँगी!"
मैंने अपना बिज़नेस आईडिया पिच (business idea pitch) कर दिया था, अब बस माँ की मंज़ूरी चाहिए थी| मेरी नज़रों में माँ की हाँ सुनने की ललक थी और मेरी उत्सुकता देख माँ मुस्कुराई और बोलीं; "ठीक है बेटा, इस काम में तेरी अपनी मेहनत होगी| शाबाश!" माँ ने मेरी पीठ थपथपाते हुए मुझे आशीर्वाद दिया तो मुझे ऐसा लगा मानो मेरे इस नए व्यपार के लिए माँ ने मुझे पूँजी (capital) दे दी हो!
इधर मैंने जब संगीता की तरफ देखा तो उसके चेहरे पर ख़ुशी की मुस्कान थी जिसका मतलब था की संगीता को मेरा ये बिज़नेस आईडिया बहुत पसंद आया है मगर जैसे ही हमारी नजरें मिलीं, संगीता के चेहरे पर पुनः मेरे प्रति गुस्से के भाव आ गए| दरअसल संगीता को मनाना समय लगाने वाला काम था, ये काम इत्मीनान से किया जाए तो ही अच्छा था जल्दबाज़ी में सारी बाज़ी उलटी पड़ सकती थी!
इधर मेरा नया बिज़नेस आईडिया सुन और माँ द्वारा मिली आज्ञा से सबसे ज्यादा स्तुति खुश थी| स्तुति अपने मसूड़े दिखा कर हँस रही थी और ख़ुशी की किलकारियाँ मारने में व्यस्त थी| माँ ने जब स्तुति को यूँ खुश देखा तो वो स्तुति की नाक पकड़ते हुए बोलीं; "नानी, तू बड़ी खुश है? तूने भी अपने पापा के साथ बिज़नेस करना है?" माँ के पूछे इस मज़ाकिया सवाल का जवाब स्तुति ने ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाते हुए दिया| स्तुति की हाँ सुन कर हम सभी को हँसी आ गई और स्तुति भी हमारे साथ खिलखिला कर हँसने लगी|
"मेरी लाड़ली इसलिए खुश है क्योंकि उसे आज रसमलाई खाने को मिलेगी!" मैंने स्तुति के मन की बात कही तो स्तुति फौरन अपना सर हाँ में हिलाने लगी|
जारी रहेगा भाग - 7 में...
मानू भाई भौजी को आगरा घुमाने नही बल्कि बिजनेस के बारे में जानने के लिए ले गए थे ये तो गलत है जब घूमने गए थे तो थोड़ा बहुत रोमांस तो होना चाहिए था
आखिर हमारी प्यारी स्तुति ने मां को मना ही लिया और उनका गुस्सा खत्म कर दिया लेकिन भौजी तो अभी तक गुस्सा है देखते हैं उनका गुस्सा केसे शांत होता है