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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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चन्दर का देहांत

नवंबर माह में चन्दर यानी नेहा के बाप का देहांत हो गया! अत्यधिक शराब पीने और बीड़ी व् गाँजा फूकने के कारण उसका कलेजा और फेफड़ों ने जवाब दे दिया! ये खबर सुन कर मेरी माँ नहीं चाहती थीं की मैं गाँव जाऊँ, परन्तु चन्दर मेरी बेटी स्तुति का असली पिता है ये सोच कर उन्होंने मुझे स्तुति को साथ ले कर गाँव जाने को कहा| अब ये बात तो मैं ही जानता हूँ की स्तुति मेरा खून है, उस चन्दर का नहीं|

खैर, इस दुखद समय में मैं अपनी बड़की अम्मा का दुःख कम करने के लिए स्तुति को साथ ले कर गाँव पहुँचा| वहाँ पहुँच कर देखा तो सारा परिवार चन्दर के मरने का दुःख मनाने के लिए गॉँव पहुँचा है| चूँकि मैं अगले दिन पहुँचा था, तो तब तक चन्दर को 'फूँका' जा चूका था!

द्वारे पर बड़की अम्मा बैठीं सबसे पूजा आदि की बातें कर रहीं थीं| अब चन्दर के चारों भाई पहले ही मुझसे बोलना छोड़ चुके थे ऐसे में मैं किसी से मिलने नहीं गया और सीधा बड़की अम्मा के पास पहुँचा| बड़की अम्मा के चरणस्पर्श कर मैंने उनका आशीर्वाद लिया, वहीं स्तुति ने भी अपनी दादी जी (बड़ी दादी जी) के पैर छू आशीर्वाद माँगा परन्तु बड़की अम्मा ने मेरी बेटी को कुछ नहीं कहा! शायद उनके इस उखड़े हुए बर्ताव का कारण स्तुति के चेहरे पर चन्दर के मरने का कोई दुःख न होना था| अब जब स्तुति को कभी उस आदमी से कोई स्नेह मिला ही नहीं तो उसके चेहरे पर कहाँ से कोई दुःख होता?!
मैंने स्तुति के कंधे पर हाथ रख उसे अपने साथ बिठा लिया और बड़की अम्मा से उनके तथा घर के हाल-चाल पूछे|


बड़की अम्मा ने बताया की चन्दर की मृत्यु के बाद से ही संगीता किसी पत्थर की मूर्ती के समान खामोश बैठी है| न वो किसी से कोई बात करती है और न ही कुछ खाती-पीती है| पूरा परिवार उससे बात कर उसे रुलाना चाहता है मगर संगीता के चेहरे पर कोई भाव नहीं आ रहे|

इतने में नेहा अपनी मम्मी के घर से निकली और जैसे ही नेहा की नज़र मुझ पर पड़ी वो दौड़ती हुई मेरे पास आई और एकदम से मेरे गले लग कर रो पड़ी! नेहा को यूँ रोते देख बड़की अम्मा बोलीं; "ये औ मुन्नी कलिहान से कछु नाहीं बोलत रही! आज जाए के तोहसे गले लग रोविस ही!" स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को रोते हुए देखा तो वो भी मेरी टांगों से लिपट सिसकने लगी|


ये दृश्य देख बड़की अम्मा को लग रहा था की नेहा अपने पिता की मृत्यु का दुःख मेरे गले लग कर रो कर व्यक्त कर रही है| नेहा के आँसूँ पोंछ कर मैंने उसे चुप करवाया, फिर नेहा ने स्तुति के आँसूँ पोंछ कर उसके सर को चूम उसे चुप करवाया|
"पापा..." अपनी दादी जी के डर के कारण नेहा ने बड़ी दबी हुई आवाज़ में बोली ताकि कहीं बड़की अम्मा न सुन लें| "...मम्मी और आयुष घर के भीतर हैं|" नेहा ने संगीता के घर की ओर इशारा करते हुए कहा| "चलो" इतना कह मैं नेहा और स्तुति का हाथ पकडे संगीता के घर की ओर चल पड़ा|



संगीता के घर में पहुँच मैंने कमरे के भीतर देखा तो जो दृश्य देखा उसकी मैंने कभी कल्पना नहीं की थी| संगीता फर्श पर अपने दोनों घुटने अपनी छाती से लगाए और अपना चेहरा छुपाये एकदम खामोश बैठी थी! संगीता के ठीक सामने आयुष बैठा था, इस आस में की उसकी मम्मी शायद कुछ बोल दें| मेरे आंगन में दाखिल होने से जो आवाज़ हुई उससे से आयुष का ध्यान मेरी ओर गया| जैसे ही आयुष की नज़र मुझ पर पड़ी वो बिजली की रफ़्तार से दौड़ता हुआ आंगन में आया| मैंने नीचे झुक कर आयुष को अपने गले लगा लिया| "चाचू" आयुष रोते हुए बोला परन्तु वो आगे कुछ बोल पाता उससे पहले ही उसे एकदम से खाँसी आ गई| मैंने इशारे से नेहा को पानी लाने भेजा और आयुष को गले लगाए उसकी पीठ सहलाने लगा ताकि उसकी खाँसी रुक जाए|
“I’m sorry बेटा! चन्दर…” मैंने चन्दर के मरने का शोक प्रकट करना चाहा मगर आयुष ने मेरी बात काट दी; "चाचू...म...मम्मी...कुछ नहीं बोल रहीं!" आयुष ने रोते-रोते अपनी बात कही| "आप...आप प्लीज....मम्मी को..." इतना कहते हुए आयुष को फिर से खाँसी आ गई| आयुष को चन्दर के मरने का कोई दुःख नहीं था, उसे दुःख था तो बस ये की उसकी मम्मी एकदम से खामोश हो गई है| कहीं उन्हें कुछ हो गया तो?


"मैं आ गया हूँ न बेटा, मैं बात करता हूँ आपकी मम्मी से|" मैंने आयुष को आश्वासन दिया| आयुष को स्तुति से आंगन में बात करता हुआ छोड़ मैंने संगीता के कमरे के भीतर प्रवेश किया| "जान" कहते हुए मैंने संगीता के सर पर हाथ फेरा|

जब से संगीता तीनों बच्चों को ले कर मेरे घर से गई थी, तभी से मुझे इस 'जान' शब्द से नफरत हो गई थी पर पता नहीं कैसे उस दिन ये शब्द मेरे मुख से निकला?!

बहरहाल, मेरी आवाज़ पहचानते ही संगीता ने सर उठा के फौरन मेरी तरफ देखा और उसकी आँखें एकदम से छलछला गईं! बस फिर अगले ही क्षण संगीता मेरे सीने से लग कर बिफर पड़ी और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी| अगले 1 मिनट तक संगीता फूट-फूट कर रोटी रही और मैं उसके सर पर हाथ फेरता रहा ताकि वो अपने भीतर का सारा गुबार आँसुओं के ज़रिये बहा दे|

“I’m so…sorry…मैं...." संगीता ने रोते हुए कुछ बोलना चाहा मगर वो ज्यादा कुछ बोल ही नहीं पाई और अगले ही पल वो मेरे सीने से लगे हुए ही बेहोश हो गई!

अपनी मम्मी को बेहोश देख आयुष और नेहा फौरन कमरे के भीतर आये| मैंने फौरन संगीता को गोद में उठाया और पलंग पर लिटाया| संगीता की ये हालत देख कर मैं बहुत डर गया था इसलिए आनन-फानन में जो समझ आया मैं वो करने लगा| मैंने आयुष को उसकी मम्मी का दाहिना हाथ की हथेली को रगड़ने को कहा और नेहा को उसकी मम्मी के दोनों पॉँव के तलवे रगड़ने को कहा| इधर मैं तेज़ी से संगीता के बाएँ हाथ की हथेलो को रगड़ रहा था|

अपनी मम्मी की ये हालत देख कर तीनों बच्चे बहुत घबरा गए थे और रोने लगे थे,पर सबसे ज्यादा आयुष डरा हुआ था| वहीं उस समय मेरे मन में भी गंदे विचार आने लगे थे की अगर संगीता को कुछ हो गया तो मैं तीनों बच्चों को अपने साथ ले जाऊँगा!

1 मिनट बाद मैंने संगीता की नाड़ी छू कर देखि तो पता चला की उसकी नव्ज़ अब भी चल रही है परन्तु बहुत धीमी है| "स्तुति बेटा पानी ले कर आओ|" मैंने स्तुति से कहा तो स्तुति फौरन पानी ले आई| जैसे ही मैंने पानी की कुछ छीटें संगीता के चेहरे पर मारी तो उसकी चेतना लौट आई| "आयुष बेटा, आप जा के बड़की अम्मा से कहो की वो तुरंत डॉक्टर को बुलाएं| आपकी मम्मी का ब्लड प्रेशर बहुत कम है और उन्हें बहुत कमज़ोरी भी है|" आयुष फौरन बाहर भागा और अपनी दादी जी को सब बताया| अम्मा ने फौरन आयुष को मामा के लड़के के साथ बाइक पर डॉक्टर को लाने भेज दिया और वो स्वयं संगीता के पास घर में आ गईं|



इधर संगीता ने अधखुली आँखों से मुझे देखा तो उसने कुछ कहना चाहा मगर तभी बड़की अम्मा आ गईं| मैं संगीता के पास से उठ गया और बड़की अम्मा मेरी जगह बैठ अपनी बहु के बाएँ हाथ को रगड़ने लगीं| "अच्छा हुआ मुन्ना जउन तू हियाँ रहेओ, नाहीं तो पता नाहीं बड़का का कछु हुई जात तो?!" अम्मा घबराते हुए मुझसे बोलीं|

"अम्मा...डॉक्टर...का रहय...दिहो!" संगीता बुदबुदाते हुए बोलीं| उसमें इस समय इतनी भी ताक़त नहीं थी की वो ठीक से बात कर सके| "अम्मा, मुझे लगता है की दो दिन से कुछ न खाने की वजह से संगीता का ब्लड प्रेशर कम हो गया है और कमज़ोरी भी बहुत हो गई है! बड़ी मुश्किल से हम चारों ने मिलकर ‘इन्हें’ पलंग पर लिटाया|" मैंने संगीता की शिकायत की तो अम्मा को थोड़ा गुस्सा आ गया!

"डॉक्टर आवत है, ऊ से चुपये इलाज़ करवाओ और जउन मानु कहत है तउन करो नाहीं तो ठीक नाहीं होई!" अम्मा ने संगीता को गुस्से से घूरते हुए देखा| "मुन्ना, जउन तोका ठीक लगे तउन करो!" अम्मा ने मुझे खुली छूट देते हुए कहा| अब मुझे संगीता को हँसाना था इसलिए मैंने मौके का फायदा उठाया और अम्मा से बोला; "अम्मा अगर ये मेरी बात न सुने तो थपड़िया दूँ?!" मेरी बात सुन अम्मा तुरंत मुस्कुराते हुए बोलीं; "जैसे तू आपन घरे मा थपड़ियाय रहेओ?" अम्मा ने उस दिन की याद दिलाते हुए पुछा जब संगीता वाइन पी कर धुत्त हो गई थी और मैंने मामा-मामी के सामने संगीता को थप्पड़ मारा था| उस वाक़्या को याद करते ही मेरी हँसी छूट गई और मैं सर झुकाये मुस्कुराने लगा| वहीं मुझे मुस्कुराते देख बड़की अम्मा और संगीता के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई| बचे नेहा और स्तुति तो नेहा ने इस वाक़्या के बारे में मुझसे सुना था इसलिए उस पल की कल्पना कर नेहा भी मंद-मंद मुस्कुराने लगी| रह गई बेचारी स्तुति जिसे यक़ीन नहीं हो रहा था की मैं...जो की सबसे इतना प्यार से बात करता हूँ वो इंसान कभी उसकी मम्मी को झपड़िया चूका है! यही कारण था की स्तुति अवाक हो कर कभी अपनी दिद्दा को देखती तो कभी मेरी ओर ताकती!

"तोहका हियाँ आये एको घंटा नाहीं भवा और देखो तू आपन भौजी और हमका हँसाये दिहो!" बड़की अम्मा मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं|

बड़की अम्मा का मेरे प्रति इतना प्यार ‘था’ की उन्होंने कभी मेरे और संगीता के बीच बढ़ी हुई नज़दीकियों पर कभी शक नहीं किया|


आखिर डॉक्टर आया और उसने संगीता का उपचार शुरू कर दिया| ज्यादा घबराने वाली बात नहीं थी इसलिए दो हफ़्तों की दवाई लिख कर वो चला गया| डॉक्टर के जाने के बाद नेहा अपनी मम्मी के लिए चाय ले आई पर संगीता का मन कुछ खाने का नहीं था अतः उसने चाय पीने से मना करने के लिए न में सर हिला दिया| "पापा जी" नेहा ने थोड़ा गुस्से से मेरा नाम पुकारा और मुझे इशारे से बताया की उसकी मम्मी चाय नहीं पी रही|

"आयुष बेटा, बाहर आंगन में एक डंडा पड़ा है ज़रा दौड़ कर वो लाओ तो! आपकी मम्मी बिना मार खाये सुधरेंगी नहीं!" मैंने संगीता को अपना प्यारभरा गुस्सा दिखाया तो उसके चेहरे पर फिर मुस्कान तैरने लगी! दो दिन बाद अपनी मम्मी को यूँ मुस्कुराते देख आयुष का दिल भर आया और वो अपनी मम्मी के गले लग कर सिसकने लगा| "एक बेटा है तुम्हारा जो तुम्हें इतना प्यार करता है! कम से कम उसकी ख़ुशी के लिए तो जीना सीखो?! उसने तो कुछ गलती नहीं की जो तुम यूँ खामोश हो कर, खाना-पीना छोड़ कर उसे सजा दे रही हो!" मैंने जब आयुष का वास्ता दे कर संगीता को बात समझाई तो अंततः उसके भेजे में ये बात बैठी और संगीता ने आयुष को अपनी बाहों में कसते हुए उससे अपने किये अपराध की माफ़ी माँगी|



संगीता भले ही बाहर से खुद को संभालने की कोशिश करते दिख रही थी परन्तु भीतर से वो अब भी अपने दुःख के कारण उदासी से भरी पड़ी थी! संगीता की इस विफल कोशिश को भले ही परिवार के बाकी सदस्य न समझ पा रहे हों मगर मैं, नेहा और आयुष अच्छे से महसूस कर रहे थे|



दोपहर हो चुकी थी और सबके लिए पड़ोस के घर से खाना आ गया था| जब से मैं आया था तब से मैं, संगीता तथा तीनों बच्चे घर के भीतर बात कर रहे थे| बीच-बीच में कोई न कोई संगीता का हाल-चाल पूछने आता रहता था लेकिन मुझसे कोई बात नहीं करता था और न ही मैं किसी से बात करता था| खाना खा कर मैं जब हाथ-मुँह धोने बाहर आया तो पिताजी ने मुझे अपने पास बिठा लिया और माँ का हाल-चाल पूछने लगे| दरअसल बड़की अम्मा ने मेरे पिताजी को कुछ काम से पंडित जी के पास भेजा था और वो उसी समय घर लौटे थे|फिर क्या....वही उनका मुझसे ब्याह करने के लिए मनाना और मेरा बात गोल कर जाना|

कुछ देर बाद संगीता ने आयुष को मुझे बहाने से बुलाने भेजा| उस समय संगीता के पास कोई नहीं था इसलिए संगीता को अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया|
संगीता: जानू....आपके मुँह से 'जान' शब्द सुनने को मेरे कान तरस गए थे!

ये कहते हुए संगीता की आँखें नम हो गई थीं| वहीं जब मुझे इस बात का एहसास हुआ तो मैंने बात को बदलने की सोची;

मैं: चन्दर की मौत का दुःख...

जैसे ही मैंने चन्दर की मौत का ज़िक्र किया वैसे ही संगीता की आँखों का पानी मर गया और उसने एकदम से मेरी बात काट दी;

संगीता: मुझे या मेरे बच्चों को उस आदमी की मौत का रत्ती भर दुःख नहीं! नेहा, जिसकी रगों में उस गंदे आदमी का गन्दा खून बह रहा है उसने कभी उस आदमी को अपना पापा माना ही नहीं तो फिर मुझे उस आदमी की मौत का कैसा दुःख?...और आयुष...उसे तो मैंने उस आदमी की परछाई से भी दूर रखा है तो मेरे बेटे को भी उस आदमी के मरने का ज़रा भी दुःख नहीं| ये तो समाज का दबाव था जो मैंने न चाहते हुए आयुष को उस जानवर के क्रियाकर्म के लिए जाने दिया वरना अगर मेरा बस चलता तो मैं अपने बेटे को उस आदमी का आखरीबार मुँह तक न देखने देती!

मैंने उस आदमी से सारे रिश्ते उसी पल तोड़ लिए थे जब नशे में उसने मेरे सामने अपने घिनोने पाप का स्वीकार किया था! यहाँ सबको...और यहाँ तक की...शायद आपको भी लग रहा है की मैं चन्दर के मरने का शोक मना रही हूँ, पर सच ये है की मैं उस दिन को याद कर के खुद को कोस रही हूँ जब मैंने आपका शादी का प्रस्ताव ठुकराया था| काश मैंने उस दिन हिम्मत दिखाई होती, आप पर विश्वास कर आपके साथ खड़ी हुई होती तो आज मुझे ये दिन न देखना पड़ता!
अपने दिल की बात कहते हुए संगीता फिर से मायूस हो गई थी तथा उसकी आँखों से आँसूँ बह निकले थे| मैं जानता था की संगीता मुझसे जर्रूर पूछेगी की क्या अब हम शादी नहीं कर सकते इसलिए मैंने उसके इस सवाल का गला घोंटते हुए कहा;

मैं: जो हो गया उसे न तो तुम बदल सकती हो और न ही मैं! अभी जर्रूरी ये है की तुम वर्तमान को स्वीकारो और अपनी ज़िन्दगी अपने लिए न सही परन्तु अपने फर्माबरदार बेटे की ख़ुशी के लिए अच्छे से जियो| वो बेटा जो तुम्हें मायूस और हताश देख गुमसुम हो जाता है| वो बेटा जो तुम्हारी हर बात मानता है, जिसके लिए तुम ही उसकी सारी दुनिया हो, जिसे बेटे को पाने के लिए तुमने क्या-क्या नहीं सहा| अपने उस बेटे के लिए तुम्हें फिर से जीना होगा वरना तुम्हें यूँ उदास देख वो भी उदास हो जायेगा और अपनी ज़िन्दगी से हार मानकर बैठ जायेगा|
हम अभी बात कर ही रहे थे की वहाँ तीनों बच्चे प्रकट हो गए| आयुष ने जब अपनी मम्मी को यूँ उदास देखा तो वो उदास हो कर आंगन में दूर खड़ा हो गया| आयुष को उम्मीद देना ज़र्रूरी था इसलिए मैंने आयुष को दिलासा देने के लिए बाहर आया| मैं आयुष को कुछ समझाता उससे पहले ही वो एकदम से मेरे गले लग गया और रूँधे गले से बोला;

आयुष: चाचू, आप मम्मी के सबसे अच्छे दोस्त हो और मम्मी सिर्फ आपकी ही सारी बातें मानती है| आप प्लीज मेरी मम्मी को फिर से हँसा दो? प्लीज चाचू!

ये विनती करते हुए आयुष ने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए| मैंने तुरंत आयुष के दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों के बीच थामा और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला;

मैं: बेटा, जब यहाँ गाँव में सब पूजा-पाठ हो जाए न तब आप अपनी मम्मी के साथ मेरे घर दिल्ली आना| आई प्रॉमिस (I promise) की आपकी मम्मी पहले की तरह खुश रहेंगी और आपसे हँसी-ख़ुशी बात भी करेंगी|

मेरी आस से भरी बातें सुन आयुष का मन प्रसनत्ता से भर गया और उसने अपनी बाहें मेरे इर्द-गिर्द कस ली|

कमरे में लेते हुए जब संगीता ने हम बाप-बेटे को यूँ मुस्कुराते हुए देखा तो उसके संगीता के चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान तैरने लगी| तभी उसकी नज़र पड़ी स्तुति पर, उसने इशारे से स्तुति को अपने पास बुलाया मगर स्तुति को अपनी मम्मी के चेहरे पर आई ये मुस्कान पसंद न आई और वो आ कर मेरे पीछे छुप गई| अपनी छोटी बेटी द्वारा किये इस तिरस्कार से संगीता के चेहरे पर आई मुस्कान गायब हो गई और उसे एक बेटी को उसके पिता से जुदा करने का अपना पाप फिर याद आ गया|


स्तुति मेरी हर बात मानती थी मगर जब-जब मैंने उसके कोमल मन के भीतर भरे अपनी मम्मी के प्रति गुस्से को अपने लाड-प्यार से ठंडा करने की कोशिश की तो स्तुति एकदम से उदास हो जाया करती थी| स्तुति में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो मुझसे कुछ कहे इसलिए वो उदास हो कर मेरे गले लग जाती थी| तब मुझे ऐसा लगता था की मैं स्तुति के नाज़ुक से दिल को आहात कर रहा हूँ इसलिए मैं उस बात को वहीं छोड़ देता था|
वहीं जब कभी माँ स्तुति को समझाती की वो अपनी मम्मी से अच्छे से बात करे तब स्तुति अपनी दादी जी के पॉँव छूते हुए साफ़ कह देती की; "दादी जी, मैं आपकी सब बात मानूँगी पर आप प्लीज मुझे मम्मी से बात करने को न कहो| उन्होंने मुझे मेरे पापा जी से और आपसे जुदा किया है, मुझसे झूठ बोला है...गुमराह किया है और इस सबके लिए मैं उन्हें कभी माफ़ नहीं कर सकती!" माँ अपनी पोती के भीतर मौजूद अपनी मम्मी के प्रति गुस्से से थोड़ा डरती थीं और बात को ये कहते हुए छोड़ देतीं; "अच्छा बाबा, लेकिन मुझसे तो तू नाराज़ नहीं?" अपनी दादी जी के पूछे इस सवाल के जवाब में स्तुति का गुस्सा काफूर हो जाता और वो अपनी दादी जी से लिपट कर कहती; "दादी जी, आप तो मेरे पापा जी की मम्मी हो यानी मेरी 'डबल मम्मी' तो आपसे मैं नाराज़ कैसे हो सकती हूँ? पापा जी के बाद आप मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते हो इसलिए चाहे कुछ हो मैं आपसे कभी नाराज़ नहीं हूँगी! आई प्रॉमिस (I promise!)!!!"

नेहा अपनी छोटी बहन से इस विषय में कोई बात नहीं करती थी, कारण था की नेहा ने ही स्तुति को सारा सच बताया था तो अब वो किस मुँह से अपनी ही मम्मी का बचाव करती?!| बचा आयुष तो वो अपनी छोटी बहना के गुस्से से डरता था इसलिए वो चाह कर भी स्तुति को नहीं समझा पाता था की वो (स्तुति) अपना गुस्सा थूक दे!





खैर, माहौल फिर से ग़मगीन न हो इसलिए मैंने बात बनाई और सबको माँ का हाल-चाल बताने लगा| मैंने माँ को फ़ोन किया परन्तु रोमिंग पर होने के कारण मेरा फ़ोन नेटवर्क नहीं पकड़ रहा था इसलिए माँ से बात नहीं हो पाई|

"जैसे ही यहाँ पूजा-पाठ खत्म होंगें मैं अपने 'मायके' आऊँगी और माँ की देखभाल करुँगी| आयुष की नानी जी के बाद अब मेरे पास बस एक ही माँ हैं!" ये कहते हुए संगीता बहुत भावुक हो गई थी, कहीं वो फिर से न रो पड़े इसके लिए नेहा ने माहौल को हलक करने के लिए स्तुति को प्यारभरी डाँट लगा दी; "पिद्दा की बच्ची! तू वहाँ रह कर दादी जी की सेवा करती भी है या सारा दिन मस्ती कर दादी जी को तंग करती है?!"



"दिद्दा, मैं रोज़ दादी जी के पॉँव की मालिश करती हूँ और रात को उन्हें कहानी भी सुनाती हूँ| कभी-कभी जब रात में दादी जी को बाथरूम जाना होता है तो वो पापा जी को आवाज़ लगाने वाली होती हैं, लेकिन मैं उससे पहले उठ कर दादी जी का हाथ पकड़ कर उन्हें बाथरूम ले जाती हूँ और फिर वापस ला कर लिटा कर कम्बल ओढ़ा कर उनको झप्पी डालकर सो जाती हूँ|" स्तुति ने बड़े अभिमान से कहा| स्तुति का ये बचपना देख हम सभी के चेहरे पर मुस्कान आ गई|


शाम के चार बज रहे थे और अब मुझे घर निकलना था क्योंकि घर पर माँ अकेली थीं इसलिए मैंने संगीता से विदा माँगी; "अच्छा यार, मैं चलता हूँ| तुम यहाँ अपना ध्यान रखना और समय पर दवाई लेना|" संगीता जानती थी की मेरा घर जाना बहुत जर्रूरी है इसलिए उसने मुझे नहीं रोका| एक अच्छे दोस्त के नाते मैंने संगीता से हाथ मिलाया तो उसने मेरा हाथ थोड़ा दबा दिया| संगीता की इस प्रतिक्रिया का मतलब मैं जानता था परन्तु मेरे अंदर कोई जज़्बात नहीं थे इसलिए मैंने ये सब देख कर भी अनदेखा कर दिया तथा आयुष को अपने गले लगाया और उसे लाड करते हुए बोला; "बेटा, अगर आपकी मम्मी आपकी बात न सुनें, दवाई न खायें, खाना न खायें या फिर से उदास हो जाएँ तो आप मुझे फ़ोन करना| मैं आपकी दादी जी (मेरी माँ) से कहूँगा और वो आपकी मम्मी को खूब डाटेंगी!!!" मेरे किये इस छोटे से मज़ाक के कारण आयुष हँस पड़ा और अपनी मम्मी को चिढ़ाने लगा की अगर संगीता ने उसकी बात नहीं मानी तो वो मुझे फ़ोन कर देगा!
अंत में बारी आई नेहा की और मेरे गले लग कर नेहा का गला भर आया| "पापा जी, आप ही मेरे पापा जी और मेरे लिए सबकुछ आप ही हो| जो हुआ उसे प्लीज भूल जाना और मुझे हमेशा ऐसे ही प्यार करते रहना|" नेहा ने जो ज़हरीले शब्द कह कर मेरा दिल दुखाया था, उसकी ग्लानि अब भी नेहा के भीतर भरी हुई थी| जब नेहा बड़की अम्मा के सामने मेरे गले लग कर रोइ थी उसका असली कारण ये था! मैं अपनी बेटी को और दुखी नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने नेहा के सर को चूम लिया| मेरी ये प्यारी नेहा के लिए सब कुछ थी और वो इस प्यारी से खुश हो गई थी|



स्तुति जो हम बाप-बेटी का प्यार देख रही थी उसे थोड़ी जलन होने लगी थी! "दिद्दा, ये मेरे पापा जी हैं| इनकी सारी प्यारी पर मेरा हक़ है! आप बड़े हो इसलिए आपको कोई प्यारी नहीं मिलेगी! सब प्यारी मेरी है!!!" ये कहते हुए स्तुति ने नेहा को धीरे से मुझसे दूर कर दिया| जब स्तुति छोटी थी तभी से वो अपनी दीदा को मेरे पास बैठने नहीं देती थी और मुझ पर हक़ जमाते हुए इसी तरह धक्का दे देती थी!


"ओ पिद्दा! मेरे पापा जी पहले हैं! तू बाद में पैदा हुई है इसलिए मुझसे जो प्यारी बचेगी वो तुझे मिलेगी!" नेहा ने जानबूझ कर स्तुति को चिढ़ाने के मकसद से ऐसा बोला था और उसका ये मकसद कामयाब भी हुआ| अपनी दिद्दा की बात सुन स्तुति ने झूठ-मूठ का रोने का ड्रामा शुरू कर दिया!



"ये झूठ-मूठ का रोने का ड्रामा मत कर! तेरे इस ड्रामे से हम तब डरते थे जब मैं और आयुष छोटे थे, अब हम तेरी सारी चालकियाँ अच्छे से जानते हैं!" नेहा ने प्यार से स्तुति के कान पकड़ते हुए कहा, जिस वजह से स्तुति ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|

तो इस तरह से हँसी-ख़ुशी मैंने संगीता, नेहा और आयुष से विदा ली|





संगीता के घर से निकल मैंने बड़की अम्मा और अपने पिताजी से दिल्ली लौटने की इजाजत माँगी| बड़की अम्मा के पैर छू मैंने उनके आशीर्वाद लिया, उसके बाद पिताजी के पॉँव छू मैंने उनका भी आशीर्वाद लिया| मेरी देखा-देखि स्तुति ने भी अपनी दादी जी और दादा जी के पॉँव छुए, जिसका मतलब था की वो भी मेरे साथ जाएगी| अब मेरे रहने न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता परन्तु सबकी नज़र में स्तुति तो चन्दर की बेटी थी ऐसे में तेहरवीं से पहले स्तुति घर से कैसे जा सकती थी?!

बड़की अम्मा: ई मुन्नी का कहाँ ले जावत हो?

बड़की अम्मा ने भवें सिकोड़ते हुए पुछा| अपनी दादी द्वारा पूछे गए सवाल के कारण स्तुति घबरा गई की कहीं मैं उसे यहाँ अकेला न छोड़ दूँ इसलिए डर के मारे उसने मेरे दाहिने हाथ की उँगलियाँ कस कर पकड़ लीं और मेरे पीछे छुप गई| मैं स्तुति के भय से रूबरू था, ऊपर से मेरा भी मन नहीं था की मैं स्तुति को गाँव में अकेला छोड़ूँ इसलिए मैंने फौरन झूठ का जाल बुन दिया;

मैं: अम्मा, स्तुति के अर्धवार्षिक परीक्षायें मतलब आधे साल की परीक्षाएं चल रही हैं| स्तुति ने अगर एक भी परीक्षा नहीं दी तो अंतिम सत्र की परीक्षा यानी साल के आखिर में होने वाली परीक्षाएं जो की फरवरी में होंगी उसमें बैठने नहीं दिया जाएगा और इस तरह स्तुति का पूरा साल बर्बाद हो जायेगा! आज स्तुति का अंग्रेजी का पेपर था जो मैंने छुड़वा दिया और इसके लिए भी मुझे स्कूल के प्रधानाचार्य जी को लिखित में देना पड़ा की स्तुति आज क्यों पेपर देने नहीं आ सकती| कल स्तुति का गणित का पेपर है और अगर स्तुति ने वो पेपर नहीं दिया तो...

मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी|
बड़की अम्मा: अरे तो एकरा बाप मरी गवा है! रोज़-रोज़ तो नाहीं मरत है की जउन एकरी पढ़ाई बर्बाद हुई जाई! ई कौन मेर का स्कूल है जो बाप के मरे पर भी छुट्टी नाहीं देत है!
बड़की अम्मा थोड़ा गुस्से से बोलीं| उनकी बात सुन मामा-मामी जी भी आ गए और पिताजी ने उन्हें संक्षेप में सारी बात बताई|

देखा जाए तो कह तो बड़की अम्मा सही रही थीं, पर चन्दर स्तुति का असली बाप तो था नहीं जो मैं अपनी बेटी को यहाँ छोड़ देता!

मैं: अम्मा, ये स्कूल दिल्ली को बहुत अच्छा स्कूल है और आपको पता है हज़ारों में फीस लेते हैं महीने की इसी वजह से इनके नियम कानून बड़े सख्त हैं| बिना बताये बच्चा छुट्टी कर ले तो स्कूल वाले लिखित में जवाब माँगते हैं की आखिर बच्चे ने क्यों छुट्टी की? परीक्षा के दिनों में तो बच्चे को कैसे भी स्कूल आना ही है वरना बच्चे के अभिभावकों को बुला कर स्कूल में डाँटा जाता है की वो अपने बच्चे के जीवन के प्रति इतने लापरवाह कैसे हैं?! अगर कोई बच्चा ज्यादा छुट्टी कर ले तो स्कूल वाले बच्चे का नाम तक काट देते हैं और अगर इतना अच्छा स्कूल अगर किसी बच्चे को स्कूल से निकाल दे तो पूरा साल बर्बाद तो होता ही है ऊपर से दूसरे स्कूल में दाखिला नहीं होता क्योंकि दूसरे स्कूल वाले सबसे पहले पूछते हैं की पिछले स्कूल ने आपके बच्चे को क्यों निकाला?

‘स्कूल के सख्त नियम-कानून की वजह से ही तो पिताजी मुझे गाँव नहीं लाते थे|’
मैंने अपनी बात थोड़ी बढ़ा-चढ़ा कर रखी तथा अपनी बात को पुख्ता करने के लिए अंत में पिताजी का नाम ले कर मेरे पक्ष में झूठी गवाही देने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया|
पिताजी: मानु सही कह रहा है भाभी| जब मानु स्कूल में पढता था तब इसकी तीन महीने की फीस दस हज़ार की होती थी! अब तो महंगाई और बढ़ गई है तो गुड़िया की स्कूल की फीस तो दुगनी-तिगुनी हो गई होगी!
फीस का नाम सुन कर बड़की अम्मा हक्की-बक्की थीं क्योंकि उनके अनुसार आयुष की स्कूल की फीस सबसे ज्यादा थी| अब जब उन्हें पता चला की स्तुति के स्कूल की फीस आयुष के स्कूल से भी ज्यादा है तो बड़की अम्मा सोच में पड़ गईं!





मेरी बातों का जादू बदली अम्मा पर चल जाता लेकिन वो क्या है न की हर घर में एक मंथरा होती है, जिसका काम होता है घर वालों के दिलों में आग लगाना| हमारे घर की मंथरा हैं मामा-मामी जी| मेरा और चन्दर का हमेशा से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है और चूँकि चन्दर मामा जी का लाडला था इसलिए मैं उन्हें ज़रा भी नहीं पसंद था| वो हर समय मेरी गलती ढूँढ़ते रहते थे और आज उन्हें मेरी गलती निकालने का सुनेहरा मौका मिल गया था;

मामा जी: अरे भाई हम बताई का माज़रा है?! मानु का आपन माँ का देखभाल करे खातिर जाए का है और मानु के बिना मुन्नी रही न पाई एहि से मानु ई सब बात बनावत है!

मामी जी: जउन रीति-रिवाज़ निभाए का रहा, ऊ सब तो आयुष बेटा होये खातिर निभाए दिहिस है| अब मुन्नी हियाँ रही के भी का करि जब ऊ न कभौं चन्दर का आपन पापा कहिस और न आपन मम्मी से बतुआत है!

मामा-मामी ने अपने तानों का तड़का लगाते हुए कहा|

पिताजी: अरे नाहीं ननकऊ, अइसन नाहीं है! गुड़िया मानु का बहुत मोहात है, काहे से की दुइ साल तलक मानु ही ओकरी देख-भाल किहिस| ओका अतना लाड-प्यार दिहिस, जे अभऊँ तक हम मानु का नाहीं किहिन| एहि मोह ही के कारण से मानु गुड़िया की पढ़ाई पर अतना खर्चा करत है|

तू नाहीं जानत हो हुआँ दिल्ली मा पढ़ाई अतना आसान नाहीं है| स्कूल मा बिना बिताये छुट्टी करे पर स्कूल वाले दंड के रूप मा पइसवा लेत हैं, एहि डर से तो हम मानु का कभौं गाँव नाहीं लावत रहन|

आज पहलीबार पिताजी मेरे बचाव में कुछ बोले थे वरना वो या तो खामोश हो जाया करते थे या फिर मुझे ही डाँट दिया करते थे!
खैर, मामा-मामी जी ने हम बाप-बेटी को ताना मारा था तो उसका तर्क पूर्ण जवाब देना तो बनता था इसलिए मैंने थोड़े गड़े मुर्दे उखाड़ने शुरू कर दिए;

मैं: मामा जी, जब आपके पिताजी का स्वर्गवास हुआ था तब आप कितने दिन की छुट्टी ले कर घर आये थे? आप भी तो अंतिमबार अपने पिताजी का मुख तक नहीं देख पाए थे क्योंकि आप तो सारा क्रियाकर्म होने के अगले दिन घर पहुँचे थे और वो भी सिर्फ 1 दिन के लिए! तब आपने यही कहा था न की आपके खड़ूस सेठ के यहाँ शादी है और उसने आपको बस एक दिन कि छुट्टी दी है और आपको अगले दिन, यानी चौथे से पहले वापस जाना था वरना आपका सेठ आपको नौकरी से निकाल देता| वो तो आपके बड़े भाई थे जिन्होंने आपने पिताजी का सारा क्रियाकर्म किया|

तो क्या आपका आपके पिताजी के प्रति प्यार तथा आदर भाव कम हो गया था? आप चाहते तो अपनी नौकरी को लात मार देते क्योंकि नौकरी तो आपको दूसरी भी मिल जाती! आखिर मैंने भी तो अपनी माँ के बीमार पड़ने पर विदेशी कंपनी की नौकरी लात मार दी थी! लेकिन आपके पूरे परिवार ने आपके दूसरे दिन ड्यूटी पर वापस जाने पर एक तंज़ नहीं कसा| फिर आप कैसे स्तुति के कल परीक्षा देने पर तंज़ कस सकते हैं? आपको दूसरी नौकरी मिल सकती थी मगर स्तुति अगर कल की परीक्षा नहीं देगी तो उसकी ज़िन्दगी का पूरा साल खराब हो जायेगा!

मैंने बड़े इत्मीनान से अपनी बात रखी और मामा-मामी जी को करारा जवाब दिया| मां-मामी जी को मुझसे ऐसे सीधे मुँह जवाब की उम्मीद नहीं थी इसलिए दोनों प्राणी चिढ कर चले गए| वहीं बड़की अम्मा और पिताजी हैरान हो कर मुझे देख रहे थे की कैसे मैं उल्टा जवाब देना सीख गया हूँ!



बहहरहाल, मामा-मामी जी के कहे ज़हरीले शब्द बड़की अम्मा को चुभ गए थे और आज एक माँ के दिल में उन्हीं के बेटे के प्रति गुस्सा पनप चूका था| इधर मैं इस बात से अनजान अपनी बिटिया को ले कर घर आने के लिए निकल पड़ा|
 

kamdev99008

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March last week mein Sangeeta ki mata ji ki death ho gai thi. Sangeeta ki mata ji ki death ke din main gaaonv gya tha, kriya ke baad main wapas Delhi aane lgaa to Stuti to ro-ro kar kohraam mcha diya. Stuti ne mere saath Delhi aane ki zidd pakd li thi. Stuti apni naani ji se bahut close thi or uske dukh ko dekhte hue hi Sangeeta ne use mere saath jaane ki ijaajat de di.
Wapas aa kar mujhe Vaishno Devi jaanaa tha or Stuti ne zidd ki to use bhi saath le gya. Maa saath nahin jaa sakti thin isliye wo yahin akeli rahin. Wahin yaatra mein Stuti ko bahut anand aayaa. Jab hum laute to kuch din baad bhaisahab or Sangeeta ghar aaye taaki Stuti ko le jaa sakein. Magar meri bitiya raani ka apni mummy ke upar gussa fat pda or usne wapas jaane se saaf mnaa kar diya!

Darasl, Neha ne Stuti ko saara sch btaa diya tha ki kaise Snageeta dhoke se use mujhse door le gai. Ab gaaon mein to Stuti ko koi pyaar karta nahin tha isliye mera pyaar na paane ka gussa Stuti ne apni mummy par nikaala! Meri chhoti si bitiya itni badi ho gai ki usne rote hue apni daadi ji (yaani meri maa) ke paonv pkd liye ki wo ab kabhi wapas nahin jaayegi! Maa pyaar se Stuti ko bahlaa rahi thin taaki Stuti zidd chhod de mgr Stuti ne khud ko bathroom mein band kar liya.
Badi mushqil se usne darwajaa khola or meri godi mein aane ko apne hath khole. Meri godi mein aate hi Stuti rote hue boli ki main use kanooni roop se god le lun! Itni badi baat sun hm abhi sakhte mein the magar Stuti ki is zidd ke aage hum mein se kisi ki nahin chali.

Mujhse Stuti ko rota hua nahin dekha gya isliye maine kah diya ki Stuti mere paas rahegi. Fatafat maine jugaad lgaaye or kisi trh Stuti ka admission apne school mein karwaaya. To ab meri pyaari Gudiya mere paas hi rahti hai or saara time chahkti rahti hai.

Stuti ko god dene ke liye Sangeeta taiyaar hai magar kanooni roop se ye itna saan nahin isliye filhaal intezaar kar raha hun ki iska koi hal nikaalaa ja sake.

Ye sab main yahan likhna chahta tha magar fir laga ki shayad ab kisi ko interest nahin hoga isliye kuch nahin likha.
Bhai jindgi me santulan ke liye sabkuchh achchha hona hi kafi nahi.....
Sabkuchh sahi hona jyada jaruri hai....
Aur jo sahi yani uchit hai.... Usme kuchh achchha bhi hoga aur kuchh bura bhi....
Isiliye stree aur purush ka joda hota hai....
Uchit me jo achchha lage sabko, vo stree ko karne do..... Jo bura lage, vo karne ka sahas hi purusharth kahlata hai....isliye purush ko sadosh aur stree ko nirdosh bana rahna hi santulan hai...

Sangita ki achchhaiyon ko aur apni buraiyon samne rakhkar faisla lena..... Abhi aap dono ke pas bahut kuchh aur bahut samay hai..pane ke liye,........... Aur khone ke liye bhi utna hi bahut kuchh aur bahut samay hai........
Faisle apko lene hain apni khushi ke liye pana hai ya dusron ki khushi ke liye khona hai.... Bure lekin uchit Faisle apko lene honge... Sangita ko nahin

Jo ap aj batane ki bajaye kah rahe hain ki 'shayad kisi ko dilchaspi nahin'....
Vahi janne ke liye aaj se 8-10 ya shayad 11-12 sal pahle meine Xossip par ap dono ki kahaniyon par na sirf comment balki dono ko itne message bhi kiye.....

Rahi bat is thread ki... Jab mujhe ye apki aapbiti se jyada ek rachnatmak kalpana lagne lagi.... To meine padhna chhod diya.... Meine apne yad me pura jeevan sangarsh se gujara hai.... Tathya aur bhram me antar bahut jaldi kar leta hu....

Yahan in forums par bhi me romance ya sex nahin.... Tragedies, problems aur solutions surf padhne hi nahi, samajhne aur samjhane ke liye bhi aata hu.... Isiliye apki kahani se juda... Aur apse bhi....

Be in touch, don't be a stranger.... Give my blessings to Sangita and children... and my respect to your mother and father....


Your's own one
forever
 
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