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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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मानु मित्र कहानी को जल्दबाजी में खत्म मत करना ओर ये तोह एक मैराथन कहानी है जो इतनी जल्दी खत्म नहीं हो सकती ।
इसमे जिंदगी के इतने सारे रंग है मैं इस कहानी के अपडेट्स को हमेशा 2 बार पढ़ता हूँ ।।

बहुत ही जबर्दस्त आकर्षण है इस कहानी में ।।

:thank_you: :dost: :hug:
अहो भाग हमारे, जो आप इतने दिनों बाद पधारे! खैर चिंता न करिये मित्र, इतनी आसानी से खत्म नहीं होगी ये कथा, अभी तो बहुत सा रोमांच बाकी है!
 

Rockstar_Rocky

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Moh..... Trishna to chali bhi gayi hogi apki... Lekin moh nahin ja raha... Yahi man ki ashanti aur vishaad ka kaaran hai.... Ap apne mata pita ki iklauti santan hain... Isliye ap ek nischit parivesh mein bandh gaye... Gaon mein bhi sirf ana-jana ghumna raha.... Bade parivar ke beech rahte to emotional ki bajay vyavharik bante.... Soch logical banti...
Lekin apko wo mahaul nahi mila....
Isiliye ap thodi si khushi, thode se gam, thode se pyar, thode se tiraskar, thoda sa apnapan aur thodi si berukhi se hi overreact karne lagte hain..... Bahut jald hi impress aur depress ho jate hain.......

You said :-
"I feel I've reached a point in my life where I feel I've nothing left to live for."

But the fact is :-
"if you are alive, it's certain and proven that... There are a lot of things in your life"

Be positive.... Not possessive

जितना चाहोगे उतनी ही निखर जायेगी...
जिन्दगी ख्वाब नहीं है कि बिखर जायेगी....

सर जी,

मोह मुझे अब बस एक ही शक़्स का है, वो है मेरी माँ| अपनी माँ को छोड़ कर मुझे अब किसी से प्रेम नहीं, एक वो ही हैं जो मुझे संभालती हैं और मेरा ख्याल रखती हैं| वैसे ये मोह तो normal भी है, एक बीटा अपनी माँ से प्यार तो करता ही है|

I humbly accept your point that there's a lot of things in my life to live for and the most important reason is my MOM! This thought came to my mind because I've been feeling low, I became a prisoner of my thoughts!
As for possessiveness, I've stopped doing that when I realized that nobody owes my anything!

वो हर बार अगर चेहरा बदल कर न आया होता,
धोखा मैंने उस शख्स से यूँ न खाया होता,
रहता अगर याद कर मुझे लौट के आती नहीं,
ज़िन्दगी फिर मैंने तुझे यूं न गंवाया होता|

I'll try and be positive, thanks for the help Sir ji! :love3:
 

Rockstar_Rocky

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बीसवाँ अध्याय: बिछोह
भाग - 3


अब तक आपने पढ़ा:


पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे| उन्हें लगा की उनका लड़का प्यार-मोहब्बत के चक्कर में पड़ चूका है, घर आने तक पिताजी मुझसे कुछ नहीं बोले और घर में घुसते ही उन्होंने मुझे जो डाँट लगाई की पड़ोस के एक अंकल देखने आ गए की आखिर ऐसा क्या हो गया की गली के सबसे शरीफ लड़के को इतनी डाँट पड़ रही है|


अब आगे:

पिताजी की पूरी डाँट मैंने सर झुका कर ख़ामोशी से सुनी, बोलने के लिए जुबान तो थी पर बोलता क्या? आखिर में जब पिताजी ने अंकिता के बारे में पुछा तब जा आकर मेरे मुँह से बोल फूटे;

मैं: वो मेरे साथ क्लास में पढ़ती है|

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा|

पिताजी: सच सच बता, इसी लड़की के चक्कर में पद कर तो तेरे नम्बर कम नहीं आये न?

पिताजी ने बड़ी सख्ती से पुछा|

मैं: जी नहीं!

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा, इतने में माँ पीछे से आ गईं और मेरा बचाव करते हुए बोलीं;

माँ: अजी छोड़ दीजिये! पास तो हो गया न, आगे से मन लगा कर पढ़ेगा|

पर पिताजी को माँ का यूँ मेरा बीच बचाव करना अच्छा नहीं लगा और वो उन्हीं पर बरस पड़े;

पिताजी: तुम्ही ने इसे सर पर चढ़ाया|

मैं नहीं चाहता था की मेरे कारन माँ को डाँट पड़े इसलिए मैं सर झुकाये हुए ही बीच में बोल पड़ा;

मैं: पिताजी आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगा!

इतने सुन कर पिताजी गुस्से में बाहर चले गए और मैं सर झुकाये हुए ही अपने कमरे में आ कर बैठ गया| माँ मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख के समझ गईं थीं की कुछ तो बात है जो मैं सब से छुपा रहा हूँ. इसलिए वो मेरे कमरे में आईं और मेरी बगल में बैठ गईं| माँ मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

माँ: क्या बात है बेटा, आजकल तू बहुत गुम-सुम रहता है?!

मैं: कुछ नहीं माँ...वो....

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा, मैं जानता था की अगर मैंने सर उठा आकर माँ की आँखों में देख कर कुछ कहाः तो माँ सब समझ जाएंगी, पर माँ सर्वज्ञानी थीं!

माँ: मुझसे मत छुपा! तेरे पेपरों में अचानक से कम नंबर आये और जब तेरे पिताजी ने कारण पूछा तब भी तू इसी तरह चुप था! देख मैं जानती हूँ की तुझे अपनी भौजी और नेहा की बहुत याद आ रही है, ये ले फ़ोन कर ले उन्हें बात करेगा तो तेरा मन हल्का हो जायेगा! कितने दिन से तूने उनसे बात नहीं की, ले कर ले फ़ोन!

माँ की बात सुन कर मैं आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा, मैं तो भौजी से बात करते समय बड़ी चौकसी बर्तता था तो फिर उन्हीं कैसे पता?

माँ: मैं सब जानती हूँ बेटा! एक दिन तू अपनी लाड़ली नेहा से बात कर रहा था तब मैं अपने कमरे में कुछ काम से जा रही थी, तब मैंने तेरी बातें सुनी थीं!

माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, शुक्र है की माँ ने मेरी और भौजी की बातें नहीं सुनी थीं वरना माँ मुझसे प्यार से नहीं बल्कि चप्पल से पीटते हुए बात करतीं!

माँ: ये ले फ़ोन और बात कर ले अपनी दोस्त से!

माँ ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा, पर मेरा मन अब भौजी की तरफ से फ़ट चूका था;

मैं: नहीं माँ... मैं कोई फोन नहीं करूँगा!

मैंने तुनकते हुए कहा|

माँ: क्यों फिर लड़ाई हो गई तुम दोनों की?

माँ हँसते हुए बोलीं|

मैं: नहीं तो......

मुझे एहसास हुआ की मुझे इस तरह तुनक कर जवाब नहीं देना चाहिए था, इसलिए मैंने बात सम्भालिनी चाही पर तबतक तो बहुत देर हो चुकी थी|

माँ: हम्म्म .....समझी...तो दोनों में लड़ाई हुई है!

माँ ने गर्दन हिलाते हुए कहा, पर मुझे अब ये बात खत्म करनी थी क्योंकि भौजी को याद कर के मुझे बस गुस्सा ही आता था|

मैं: नहीं माँ, ऐसा कुछ नहीं है| Thank you माँ की आप मेरे पास आके बैठे, अब मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ|

मैंने एक नकली मुस्कान लिए हुए कहा और उठ कर बाथरूम में घुस गया, माँ को कुछ-कुछ यक़ीन हो गया था की उनका बच्चा अब फिर से पहले की तरह चहकने लगेगा| बाथरूम में घुस कर मैंने अपना मुँह धोया और बाहर आ कर पढ़ाई करने बैठ गया|



माँ से बात छुपाना इतना आसान नहीं होता, इसलिए घर पर होते हुए मुझे पहले की ही तरह नार्मल दिखना था| मेरी माँ की एक ख़ास बात ये थी की वो कभी किसी बात पर अड़ नहीं जाती थी, इसीलिए उन्होंने भौजी से फ़ोन पर बात न करने की बात को ज्यादा नहीं दबाया| वो इतने से ही खुश थीं की उनका बेटा अब मन लगा कर पढ़ेगा|

इधर मुझे मेरे सवालों का जवाब अब तक नहीं मिला था, आखिर क्यों भौजी ने मुझे अपने जीवन से इस तरह निकाल के फेंक दिया? कसूर क्या था मेरा जिसकी मुझे इतनी बड़ी सजा दी गई? मेरा जिज्ञासु मन बस इन सवालों के जवाब के लिए तड़पे जा रहा था| ग्यारहवीं में मैंने पिताजी से जिद्द करके एक MP3 CD Player लिया था, बजार से 30/- रुपये में mp3 की CD मिल जाती थी जिसमें 1000 तक गाने होते थे, इन CDs में मैं मेरे कुछ चुनिंदा दुःख भरे गाने सुन के जीये जा रहा था| वो चुनिंदा गानों के नाम थे;

1. जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए - द ट्रेन (2007) : वैसे तो ये गाना पूरा का पूरा मुझ पर उतरता था, पर इस गाने की कुछ ख़ास पंक्तियाँ जो मुझे छू जातीं थीं वो थीं;

"अपने भी पेश आये हमसे अजनबी

वक़्त की साजिश कोई समझा नहीं

बेइरादा कुछ खताएं हमसे हो गयी

राह में पत्थर मेरी हरदम दिए

ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी भर..."



2. मैं जहाँ रहूँ - नमस्ते लन्दन (2007) : इस गाने का एक-एक शब्द ऐसा था, जो मेरी हालत ब्यान करता था|

"कहीं तो दिल में यादों की इक सूली गढ़ जाती है,

कहीं हर एक तस्वीर बहुत ही धुंधली पड़ जाती है" - ये पंक्ति मेरी पसंदीदा थी, क्योंकि ये मुझे भौजी के संग बिठाये उन हसीं लम्हों को याद दिलाती थी|

"कोई नयी दुनिया के नए रंगों में खुश रहता है" - ये वो पंक्ति थी जो मुझे एहसास कराती थी की मेरे बिना भौजी वहाँ ख़ुशी से जी रही होंगी!



3. जीना यहाँ - मेरा नाम जोकर (1970) :

"कल खेल में, हम हों न हों

गर्दिश में तारे रहेंगे सदा

भूलोगे तुम, भूलेंगे वो

पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा

रहेंगे यहीं, अपने निशाँ

इसके सिवा जाना कहाँ" - ये पंक्तियाँ सुन कर कभी-कभी मन करता था की चाक़ू उठा कर नस काट लूँ, पर फिर माँ-पिताजी का चहेरा सामने आ जाता और आत्महत्या का ख्याल मन से निकल जाता!



4. कसमें वादे प्यार वफ़ा सब - उपकार (1967) :

"सुख में तेरे साथ चलेंगे

दुख में सब मुख मोड़ेंगे

दुनिया वाले तेरे बनकर

तेरा ही दिल तोड़ेंगे

देते हैं भगवान को धोखा

इन्सां को क्या छोड़ेंगे" ये पंक्तियाँ मुझे मेरे साथ हुए धोखे की याद दिलाते थे! हालाँकि अभी तक मैंने भौजी को 'धोखेबाज' की उपाधि नहीं दी थी!



कुछ दिन बीते और एक दिन पिताजी रात को बड़े गुस्से में घर लौटे, जब माँ ने उनसे गुस्से का कारन पुछा तो पिताजी बड़े गुस्से में बोले;

पिताजी: वो हरामजादा….. रौशन….. उस कुत्ते को सारा काम सिखाया मैंने…. और अब वो @@#$&@#$@ मेरे बराबर में कंपनी खोल कर बैठ गया!

पिताजी गुस्से में उस आदमी को गाली देते हुए बोले|

पिताजी: आजकल के टाइम में कोई किसी का नहीं होता, हर कोई बस 'फायदा' उठाना चाहता है!

पिताजी के वाक्य में कहे 'फायदे' शब्द को सुन कर मेरे कान खड़े हो गए| ये ऐसा शब्द था जो मेरे दिमाग में अटक गया, मैंने इस शब्द के ऊपर बहुत सोचा और इसे हम दोनों (मेरे और भौजी) के रिश्ते के बीच में रख दिया! मेरा मन इस शब्द को स्वीकारना नहीं चाहता पर दिल में उठ रहे दर्द ने इस शब्द के इर्द-गिर्द दिवार खड़ी कर नफरत की ईमारत बनानी शुरू कर दी; 'भौजी ने मेरा फायदा नहीं उठाया तो क्या था ये सब? गाँव में इतना प्यार दिखाना और शहर आते ही एकदम से बात करना बंद कर देना, ये भौजी का स्वार्थ नहीं तो और क्या था? उन्हें मुझसे बस एक बच्चा चाहिए था, वो उन्हें मिल गया तभी तो मुझे दूध में से माखी की तरह निकाल कर यूँ फेंक दिया!' दिल ने जब नफरत की इस ईमारत का ढाँचा बना दिया तो, दिमाग में शक का कीड़ा पैदा हो गया! ये तो मेरा मन था जो अब भी इस 'फायदे' वाली बात को नामंजूर कर रहा था, वरना दिल की बनाई इस इमारत पर बस यक़ीन की छत पड़नी बाकी थी!

शक पैदा हुआ तो मुझे खुद को सुधारने का मौका मिला, दिल ने कहा की जब भौजी को ही तेरी कुछ नहीं पड़ी तो तू क्यों यूँ तड़प रहा है? मुझे सम्भलना था, अपने लिए नहीं बल्कि अपनी माँ के लिए| मेरी उदासी ही मेरी माँ के चेहरे से हँसी चुरा लिया करती थी, इसलिए मैंने निर्णय लिया की मैं कभी भी माँ को दुखी नहीं करूँगा, पहले ही माँ ने बहुत तकलीफें सही हैं, अब उन्हें और तकलीफ नहीं दूँगा!



मैंने गिर कर उठने का निर्णय लिया तो जो हाथ सबसे पहले आगे आया, वो था दिषु का! उसने मुझे सहारा दिया, होंसला दिया और मेरे मन को वापस भौजी के प्यार की तरफ भटकने से रोका! लेकिन मैं बहुत भावुक व्यक्ति था, तो ये सब मेरे लिए आसान कतई नहीं था| दिषु की मौजूदगी में मेरा मन शांत रहता पर जब घर में अकेला होता तो फिर वही सब याद करने लगता| भौजी संग बिताये लम्हे याद कर के बहुत दुःख होता था तो वहीं नेहा की मुस्कान याद करके दिल को सुकून मिलता था| वो नेहा को कहानी सुनना, उसका यूँ कस कर मुझसे लिपट कर सोना, सुबह होते ही प्यारी-प्यारी पप्पी देना, उसे स्कूल छोड़ने जाना, फिर उसे स्कूल से लाना, मेरा उसे खाना खिलाना, कभी-कभी उसके नन्हें हाथों से कौर खाना, फिर वो दिन जब मैंने नेहा के बाल बनाये थे और वो मुझे सीखा रहे थी की बाल कैसे बनाये जाते हैं! फिर वो दिन जब मैं खेतों में पानी लगा रहा था तब नेहा ने मुझे टमाटर तोडना सिखाया था! इन सब बातों को याद कर के चेहरे पर मुस्कान आ जाती और दिमाग एक कल्पना गढ़ने लगता की नेहा अभी पीछे से आएगी और बोलेगी; "पापा!"

लेकिन नेहा की एक ऐसी याद भी थी, जिसे याद कर के आँखों में आँसूँ आ जाया करते थे| कभी-कभी नेहा जब मेरी छाती पर सर रख कर सोती थी तो वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मुझे अपनी बाहों में जकड़ना चाहती थी, वो एहसास याद करके मैं कई बार रोता था क्योंकि ये एहसास में शायद अब कभी महसूस न कर पाऊँ!


कुछ दिन बीते और फिर दशहरे की छुटियाँ हो गईं, इन छुट्टियों ने जैसे मेरा जख्म हरा कर दिया! अगर भौजी ने मुझे यूँ खुद से अलग न किया होता तो मैं आज गाँव में होता| एक बार मन में ख़याल आया की भौजी के लिए न सही तो कम से कम अपनी बेटी के लिए ही सही गाँव चलता हूँ, पर फिर डर लगने लगा की कहीं भौजी ये न बोल दें की मैं क्यों गाँव आया हूँ? या मेरा नेहा पर कोई हक़ नहीं! ये सुनकर मैं अपना आपा खो देता और या तो उन पर हाथ उठा देता, या फिर मैं इस कदर टूट जाता की अपनी जान देता! इसी कारन मैं गाँव नहीं गया, क्योंकि मैं अब टूटना नहीं चाहता था|

भौजी को मैं कभी नहीं भूल सकता था इसलिए मैंने इन छुट्टियों में भौजी की सुनहरी यादों को मन में दबाना शुरू कर दिया| सब के सामने तो मैंने हँसी का मुखौटा ओढ़ना शुरू कर दिया, लेकिन जब अकेला होता तो ये सभी यादें मन की कब्र से बाहर निकल आतीं, फिर वही दर्द भरे गाने सुनना, रोना और कभी-कभी चोरी से पिताजी की शराब के 2-4 घुट पीना| ऐसे करते-करते third term के पेपर आ गए और इस बार मैं ठीक-ठाक नंबरों से पास हो गया|


जारी रहेगा भाग - 4 में
 
Last edited:

Beyounick

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Rockstar_Rocky

• Fantastic update
• पढ़ते पढ़ते पता ही नहीं चलता की कब अप्डेट ख़त्म हो
गया ।
• Twist kafi khatarnak diya hai was no expecting this to happen this early.
• Hope this mental trauma get recovered soon.
•Waiting eagerly for the next update.

Take care of your health too ?
 

Rahul

Kingkong
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wonderfull update mitra dil ki gahrai ko chu liya aapne ye duniya bahut matlabi hoti hai ye kewal khud ke bare me sonchti hain mera bhala mera bhala aapka man komal hai ishiliye aap har pahlu se sonchte ho.last me mai kahunga jo bhi hota achche ke liye hota har dard hame aur majbut kar deta hai
 

PK@yadav

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Lagta hai Manu bhaiya ne halaat se samjhauta kar liya.. Pitaji ke kahe gaye faayde wale word ne dil aur dimag me ek deewar banane ka kaam kiya bhabhi ko lekar.
Parents ko khush rakhna bhi jaruri hota hai.. Kul milaakar Manu bhaiya ne jo bhi socha tha lekin sab kuchh ho rahaa hai bilkul uske ulta nahi filhaal Dasehara ki chhuttiyo me Manu bhaiya Bhabhi aur Neha ke paas hote..
Neha ke abodh dil me kya bit rahi hogi ye to shayad hi koi jaanta hogaa.
Dekhte bhi bhouji ke haalaat kaise hai..
 

aman rathore

Enigma ke pankhe
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बीसवाँ अध्याय: बिछोह
भाग - 3


अब तक आपने पढ़ा:


पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे| उन्हें लगा की उनका लड़का प्यार-मोहब्बत के चक्कर में पड़ चूका है, घर आने तक पिताजी मुझसे कुछ नहीं बोले और घर में घुसते ही उन्होंने मुझे जो डाँट लगाई की पड़ोस के एक अंकल देखने आ गए की आखिर ऐसा क्या हो गया की गली के सबसे शरीफ लड़के को इतनी डाँट पड़ रही है|


अब आगे:

पिताजी की पूरी डाँट मैंने सर झुका कर ख़ामोशी से सुनी, बोलने के लिए जुबान तो थी पर बोलता क्या? आखिर में जब पिताजी ने अंकिता के बारे में पुछा तब जा आकर मेरे मुँह से बोल फूटे;

मैं: वो मेरे साथ क्लास में पढ़ती है|

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा|

पिताजी: सच सच बता, इसी लड़की के चक्कर में पद कर तो तेरे नम्बर कम नहीं आये न?

पिताजी ने बड़ी सख्ती से पुछा|

मैं: जी नहीं!

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा, इतने में माँ पीछे से आ गईं और मेरा बचाव करते हुए बोलीं;

माँ: अजी छोड़ दीजिये! पास तो हो गया न, आगे से मन लगा कर पढ़ेगा|

पर पिताजी को माँ का यूँ मेरा बीच बचाव करना अच्छा नहीं लगा और वो उन्हीं पर बरस पड़े;

पिताजी: तुम्ही ने इसे सर पर चढ़ाया|

मैं नहीं चाहता था की मेरे कारन माँ को डाँट पड़े इसलिए मैं सर झुकाये हुए ही बीच में बोल पड़ा;

मैं: पिताजी आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगा!

इतने सुन कर पिताजी गुस्से में बाहर चले गए और मैं सर झुकाये हुए ही अपने कमरे में आ कर बैठ गया| माँ मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख के समझ गईं थीं की कुछ तो बात है जो मैं सब से छुपा रहा हूँ. इसलिए वो मेरे कमरे में आईं और मेरी बगल में बैठ गईं| माँ मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

माँ: क्या बात है बेटा, आजकल तू बहुत गुम-सुम रहता है?!

मैं: कुछ नहीं माँ...वो....

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा, मैं जानता था की अगर मैंने सर उठा आकर माँ की आँखों में देख कर कुछ कहाः तो माँ सब समझ जाएंगी, पर माँ सर्वज्ञानी थीं!

माँ: मुझसे मत छुपा! तेरे पेपरों में अचानक से कम नंबर आये और जब तेरे पिताजी ने कारण पूछा तब भी तू इसी तरह चुप था! देख मैं जानती हूँ की तुझे अपनी भौजी और नेहा की बहुत याद आ रही है, ये ले फ़ोन कर ले उन्हें बात करेगा तो तेरा मन हल्का हो जायेगा! कितने दिन से तूने उनसे बात नहीं की, ले कर ले फ़ोन!

माँ की बात सुन कर मैं आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा, मैं तो भौजी से बात करते समय बड़ी चौकसी बर्तता था तो फिर उन्हीं कैसे पता?

माँ: मैं सब जानती हूँ बेटा! एक दिन तू अपनी लाड़ली नेहा से बात कर रहा था तब मैं अपने कमरे में कुछ काम से जा रही थी, तब मैंने तेरी बातें सुनी थीं!

माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, शुक्र है की माँ ने मेरी और भौजी की बातें नहीं सुनी थीं वरना माँ मुझसे प्यार से नहीं बल्कि चप्पल से पीटते हुए बात करतीं!

माँ: ये ले फ़ोन और बात कर ले अपनी दोस्त से!

माँ ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा, पर मेरा मन अब भौजी की तरफ से फ़ट चूका था;

मैं: नहीं माँ... मैं कोई फोन नहीं करूँगा!

मैंने तुनकते हुए कहा|

माँ: क्यों फिर लड़ाई हो गई तुम दोनों की?

माँ हँसते हुए बोलीं|

मैं: नहीं तो......

मुझे एहसास हुआ की मुझे इस तरह तुनक कर जवाब नहीं देना चाहिए था, इसलिए मैंने बात सम्भालिनी चाही पर तबतक तो बहुत देर हो चुकी थी|

माँ: हम्म्म .....समझी...तो दोनों में लड़ाई हुई है!

माँ ने गर्दन हिलाते हुए कहा, पर मुझे अब ये बात खत्म करनी थी क्योंकि भौजी को याद कर के मुझे बस गुस्सा ही आता था|

मैं: नहीं माँ, ऐसा कुछ नहीं है| Thank you माँ की आप मेरे पास आके बैठे, अब मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ|

मैंने एक नकली मुस्कान लिए हुए कहा और उठ कर बाथरूम में घुस गया, माँ को कुछ-कुछ यक़ीन हो गया था की उनका बच्चा अब फिर से पहले की तरह चहकने लगेगा| बाथरूम में घुस कर मैंने अपना मुँह धोया और बाहर आ कर पढ़ाई करने बैठ गया|



माँ से बात छुपाना इतना आसान नहीं होता, इसलिए घर पर होते हुए मुझे पहले की ही तरह नार्मल दिखना था| मेरी माँ की एक ख़ास बात ये थी की वो कभी किसी बात पर अड़ नहीं जाती थी, इसीलिए उन्होंने भौजी से फ़ोन पर बात न करने की बात को ज्यादा नहीं दबाया| वो इतने से ही खुश थीं की उनका बेटा अब मन लगा कर पढ़ेगा|

इधर मुझे मेरे सवालों का जवाब अब तक नहीं मिला था, आखिर क्यों भौजी ने मुझे अपने जीवन से इस तरह निकाल के फेंक दिया? कसूर क्या था मेरा जिसकी मुझे इतनी बड़ी सजा दी गई? मेरा जिज्ञासु मन बस इन सवालों के जवाब के लिए तड़पे जा रहा था| ग्यारहवीं में मैंने पिताजी से जिद्द करके एक MP3 CD Player लिया था, बजार से 30/- रुपये में mp3 की CD मिल जाती थी जिसमें 1000 तक गाने होते थे, इन CDs में मैं मेरे कुछ चुनिंदा दुःख भरे गाने सुन के जीये जा रहा था| वो चुनिंदा गानों के नाम थे;

1. जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए - द ट्रेन (2007) : वैसे तो ये गाना पूरा का पूरा मुझ पर उतरता था, पर इस गाने की कुछ ख़ास पंक्तियाँ जो मुझे छू जातीं थीं वो थीं;

"अपने भी पेश आये हमसे अजनबी

वक़्त की साजिश कोई समझा नहीं

बेइरादा कुछ खताएं हमसे हो गयी

राह में पत्थर मेरी हरदम दिए

ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी भर..."



2. मैं जहाँ रहूँ - नमस्ते लन्दन (2007) : इस गाने का एक-एक शब्द ऐसा था, जो मेरी हालत ब्यान करता था|

"कहीं तो दिल में यादों की इक सूली गढ़ जाती है,

कहीं हर एक तस्वीर बहुत ही धुंधली पड़ जाती है" - ये पंक्ति मेरी पसंदीदा थी, क्योंकि ये मुझे भौजी के संग बिठाये उन हसीं लम्हों को याद दिलाती थी|

"कोई नयी दुनिया के नए रंगों में खुश रहता है" - ये वो पंक्ति थी जो मुझे एहसास कराती थी की मेरे बिना भौजी वहाँ ख़ुशी से जी रही होंगी!



3. जीना यहाँ - मेरा नाम जोकर (1970) :

"कल खेल में, हम हों न हों

गर्दिश में तारे रहेंगे सदा

भूलोगे तुम, भूलेंगे वो

पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा

रहेंगे यहीं, अपने निशाँ

इसके सिवा जाना कहाँ" - ये पंक्तियाँ सुन कर कभी-कभी मन करता था की चाक़ू उठा कर नस काट लूँ, पर फिर माँ-पिताजी का चहेरा सामने आ जाता और आत्महत्या का ख्याल मन से निकल जाता!



4. कसमें वादे प्यार वफ़ा सब - उपकार (1967) :

"सुख में तेरे साथ चलेंगे

दुख में सब मुख मोड़ेंगे

दुनिया वाले तेरे बनकर

तेरा ही दिल तोड़ेंगे

देते हैं भगवान को धोखा

इन्सां को क्या छोड़ेंगे" ये पंक्तियाँ मुझे मेरे साथ हुए धोखे की याद दिलाते थे! हालाँकि अभी तक मैंने भौजी को 'धोखेबाज' की उपाधि नहीं दी थी!



कुछ दिन बीते और एक दिन पिताजी रात को बड़े गुस्से में घर लौटे, जब माँ ने उनसे गुस्से का कारन पुछा तो पिताजी बड़े गुस्से में बोले;

पिताजी: वो हरामजादा….. रौशन….. उस कुत्ते को सारा काम सिखाया मैंने…. और अब वो @@#$&@#$@ मेरे बराबर में कंपनी खोल कर बैठ गया!

पिताजी गुस्से में उस आदमी को गाली देते हुए बोले|

पिताजी: आजकल के टाइम में कोई किसी का नहीं होता, हर कोई बस 'फायदा' उठाना चाहता है!

पिताजी के वाक्य में कहे 'फायदे' शब्द को सुन कर मेरे कान खड़े हो गए| ये ऐसा शब्द था जो मेरे दिमाग में अटक गया, मैंने इस शब्द के ऊपर बहुत सोचा और इसे हम दोनों (मेरे और भौजी) के रिश्ते के बीच में रख दिया! मेरा मन इस शब्द को स्वीकारना नहीं चाहता पर दिल में उठ रहे दर्द ने इस शब्द के इर्द-गिर्द दिवार खड़ी कर नफरत की ईमारत बनानी शुरू कर दी; 'भौजी ने मेरा फायदा नहीं उठाया तो क्या था ये सब? गाँव में इतना प्यार दिखाना और शहर आते ही एकदम से बात करना बंद कर देना, ये भौजी का स्वार्थ नहीं तो और क्या था? उन्हें मुझसे बस एक बच्चा चाहिए था, वो उन्हें मिल गया तभी तो मुझे दूध में से माखी की तरह निकाल कर यूँ फेंक दिया!' दिल ने जब नफरत की इस ईमारत का ढाँचा बना दिया तो, दिमाग में शक का कीड़ा पैदा हो गया! ये तो मेरा मन था जो अब भी इस 'फायदे' वाली बात को नामंजूर कर रहा था, वरना दिल की बनाई इस इमारत पर बस यक़ीन की छत पड़नी बाकी थी!

शक पैदा हुआ तो मुझे खुद को सुधारने का मौका मिला, दिल ने कहा की जब भौजी को ही तेरी कुछ नहीं पड़ी तो तू क्यों यूँ तड़प रहा है? मुझे सम्भलना था, अपने लिए नहीं बल्कि अपनी माँ के लिए| मेरी उदासी ही मेरी माँ के चेहरे से हँसी चुरा लिया करती थी, इसलिए मैंने निर्णय लिया की मैं कभी भी माँ को दुखी नहीं करूँगा, पहले ही माँ ने बहुत तकलीफें सही हैं, अब उन्हें और तकलीफ नहीं दूँगा!



मैंने गिर कर उठने का निर्णय लिया तो जो हाथ सबसे पहले आगे आया, वो था दिषु का! उसने मुझे सहारा दिया, होंसला दिया और मेरे मन को वापस भौजी के प्यार की तरफ भटकने से रोका! लेकिन मैं बहुत भावुक व्यक्ति था, तो ये सब मेरे लिए आसान कतई नहीं था| दिषु की मौजूदगी में मेरा मन शांत रहता पर जब घर में अकेला होता तो फिर वही सब याद करने लगता| भौजी संग बिताये लम्हे याद कर के बहुत दुःख होता था तो वहीं नेहा की मुस्कान याद करके दिल को सुकून मिलता था| वो नेहा को कहानी सुनना, उसका यूँ कस कर मुझसे लिपट कर सोना, सुबह होते ही प्यारी-प्यारी पप्पी देना, उसे स्कूल छोड़ने जाना, फिर उसे स्कूल से लाना, मेरा उसे खाना खिलाना, कभी-कभी उसके नन्हें हाथों से कौर खाना, फिर वो दिन जब मैंने नेहा के बाल बनाये थे और वो मुझे सीखा रहे थी की बाल कैसे बनाये जाते हैं! फिर वो दिन जब मैं खेतों में पानी लगा रहा था तब नेहा ने मुझे टमाटर तोडना सिखाया था! इन सब बातों को याद कर के चेहरे पर मुस्कान आ जाती और दिमाग एक कल्पना गढ़ने लगता की नेहा अभी पीछे से आएगी और बोलेगी; "पापा!"

लेकिन नेहा की एक ऐसी याद भी थी, जिसे याद कर के आँखों में आँसूँ आ जाया करते थे| कभी-कभी नेहा जब मेरी छाती पर सर रख कर सोती थी तो वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मुझे अपनी बाहों में जकड़ना चाहती थी, वो एहसास याद करके मैं कई बार रोता था क्योंकि ये एहसास में शायद अब कभी महसूस न कर पाऊँ!


कुछ दिन बीते और फिर दशहरे की छुटियाँ हो गईं, इन छुट्टियों ने जैसे मेरा जख्म हरा कर दिया! अगर भौजी ने मुझे यूँ खुद से अलग न किया होता तो मैं आज गाँव में होता| एक बार मन में ख़याल आया की भौजी के लिए न सही तो कम से कम अपनी बेटी के लिए ही सही गाँव चलता हूँ, पर फिर डर लगने लगा की कहीं भौजी ये न बोल दें की मैं क्यों गाँव आया हूँ? या मेरा नेहा पर कोई हक़ नहीं! ये सुनकर मैं अपना आपा खो देता और या तो उन पर हाथ उठा देता, या फिर मैं इस कदर टूट जाता की अपनी जान देता! इसी कारन मैं गाँव नहीं गया, क्योंकि मैं अब टूटना नहीं चाहता था|

भौजी को मैं कभी नहीं भूल सकता था इसलिए मैंने इन छुट्टियों में भौजी की सुनहरी यादों को मन में दबाना शुरू कर दिया| सब के सामने तो मैंने हँसी का मुखौटा ओढ़ना शुरू कर दिया, लेकिन जब अकेला होता तो ये सभी यादें मन की कब्र से बाहर निकल आतीं, फिर वही दर्द भरे गाने सुनना, रोना और कभी-कभी चोरी से पिताजी की शराब के 2-4 घुट पीना| ऐसे करते-करते third term के पेपर आ गए और इस बार मैं ठीक-ठाक नंबरों से पास हो गया|


जारी रहेगा भाग - 4 में
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