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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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Shandar Update Maanu Bhai..

Kisi ke dwara ignore ya dump kiye jaane ke baad kis tarah feel hota hain aur fir ek sachcha dost aapko is period me support karta hain in sab baato ka shandar chitran..

Waiting for next

बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
उस जमाने में 'dump' शब्द इस्तेमाल नहीं होता था, उस समय 'बेवफा' शब्द का चलन था! ये ऐसा शब्द था की इसे सुन कर सारे सच्चे आशिक़ इकठ्ठा हो जाय करते थे, शुक्र है की मैंने अभी तक इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया|
 

Rockstar_Rocky

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अगले भाग की प्रतीक्षा में ।
कहानी अब वक अलग मोड़ पर जा रही है हीरो को थोड़ा मज़बूत करो और कहानी को गति भी दो । बहुत स्लो हो गयी थी कहानी गावँ में जा कर ।

:writing:
गाँव में बिताये हर दिन को दर्शाना जर्रूरी था, ताकि सब को उस सच्चे का प्यार का एहसास हो जो मैंने किया था, उस हर एक दिन की याद का जिक्र होगा| साथ ही हर एक रिश्ते की परिभाषाएं तय होंगी! 'हीरो' मजबूत होगा या नहीं, ये आगे आने वाली अपडेट में पढ़ने को मिलेगा|
 

Rockstar_Rocky

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Nice update
As someone has said "Happiness and sorrow are two sides of the same coin called life". In the village, maanu was very happy with his lovely bhauji, after coming to delhi too only one thing was in maanu to mind to go to village in Dussehra holidays and spend more time with his child and lover and he was happy even remembering those moments. Ah! those expectations man, they bring happiness in life but when things go wrong it hurts more, don't they. Maanu was destined to go through with this pain but came very earlier than i guessed. the love between them did not even blossom completely.
Now we will see how manu goes through this kind of break up in his life. I wish, this story has a happy ending but more i read this one it seems like the ending is not gonna be a happy one, hope i am wrong though and it gets a happy ending which it deserves.
missing neha badly in this story now she added those beautiful moments of love and care.

First of all, thank you for writing such a beautiful review! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
The love that we had was supposed to go through the pain of 'living apart' but, I had no idea that she would simply give up that easy! I did a lot of things just to be with her and she didn't even tried. This feeling was killing me from inside, but I guess I was 'EXPECTING' too much from her! "EXPECTATIONS GETS YOU HURT!" That is the lesson this whole experience taught me.
Don't worry dear, the ending will be happy! I don't want to upset anyone. If you haven't read my other story called; "Kaala Ishq", I'd request you to read it in the meanwhile cause you'll see that I always give nice and happy endings. (The link to the story is in my signature.)
 

Rockstar_Rocky

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aman rathore

Enigma ke pankhe
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नेक्स्ट अपडेट कल अथवा परसों आ जाएगा| देरी के लिए माफ़ी चाहूँगा!
Koi baat nahin hai bhai,
aap pahle apni sehat ka khyal rakhiye,
aur update ke liye to hum hamesha intezaar mein hain hi
 

Rockstar_Rocky

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बीसवाँ अध्याय: बिछोह
भाग - 4 (1)


अब तक आपने पढ़ा:

भौजी को मैं कभी नहीं भूल सकता था इसलिए मैंने इन छुट्टियों में भौजी की सुनहरी यादों को मन में दबाना शुरू कर दिया| सब के सामने तो मैंने हँसी का मुखौटा ओढ़ना शुरू कर दिया, लेकिन जब अकेला होता तो ये सभी यादें मन की कब्र से बाहर निकल आतीं, फिर वही दर्द भरे गाने सुनना, रोना और कभी-कभी चोरी से पिताजी की शराब के 2-4 घुट पीना| ऐसे करते-करते third term के पेपर आ गए और इस बार मैं ठीक-ठाक नंबरों से पास हो गया|


अब आगे:


जनवरी में pre-boards हुए और मेरे नम्बर हमेशा की ही तरह आये, पिताजी बहुत खुश तो नहीं, पर ये था की मध्यावधि परीक्षा के मुक़ाबले तो नम्बर बहुत अच्छे थे| महीने गुजरे और फिर वो पल आया जब मेरा बच्चा, मेरा खून पैदा हुआ! फरवरी पूरा महीना छुट्टी था और मैं मन लगा कर पढ़ने लगा था, Boards के पपेरों का भूत जो डरा रहा था! 15 तारिख की सुबह के 10 बजे थे, मैं अपने कमरे में बैठा गणित के सवाल हल कर रहा था जब पिताजी का फ़ोन बजा| फ़ोन पर बात करते-करते ही पिताजी ने मुझे और माँ को आवाज मार के बुलाया, जब हम दोनों drawing room में पहुँचे तो देखा की पिताजी बहुत खुश हैं| फ़ोन काटते ही पिताजी ने मुझे 100/- दिए और कहा;

पिताजी: जल्दी से जा कर लड्डू ले कर आ|

पिताजी की चेहरे पर ख़ुशी देख मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और मैं पैसे ले कर बाहर दौड़ पड़ा| पिताजी की ख़ुशी का कारण तो मैं नहीं जानता था, पर इतने दिन बाद जो खुशियाँ घर आईं थीं उन्हें मनाने का मौका मैं नहीं छोड़ना चाहता था| जब मैं मिठाई ले कर घर पहुँचा तो पिताजी ने माँ को खुशखबरी दे दी थी, अब मेरा भी मन था की ये खुशखबरी मुझे भी पता चले;

माँ: बेटा तू चाचा बन गया, तेरी भौजी को लड़का हुआ है!

माँ ख़ुशी से चहकते हुए बोलीं|

ये खुशखबरी सुन कर मेरा दिल हवा में उड़ने लगा, दिल एकदम से भावुक हो उठा और इससे पहले की आँखें छलछला जातीं मैं मिठाई रख कर बाथरूम में घुस गया| वाशबेसिन के सामने खड़ा हो कर, शीशे में अपना अक्स देखते हुए मैं मुस्कुरा उठा, ठीक उसी समय मेरे आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बहने लगे| आज दिल में तड़प नहीं उठ रही थी, बल्कि बाप बनने की ख़ुशी हो रही थी|



मुँह धो कर मैं बाहर आया तो माँ ने मेरे इस बर्ताव के बारे में पुछा तो मैंने ये कह कर बात टाल दी की मुझे बहुत जोर से बाथरूम आ रही थी|

माँ: जानता है तेरे भतीजे का नाम तेरी भौजी ने क्या रखा है?

माँ की बात सुन मेरे मन में नाम जानने की लालसा जगी और मेरी आँखें ख़ुशी से बड़ी हो गईं;

माँ: आयुष!

ये नाम सुन कर मेरी आँखें चमकने लगीं, ये वही नाम था जो मैंने भौजी से कहा था| नाम सुन कर मन तो किया की भौजी को फ़ोन करूँ, पर फिर उनकी दी हुई कसम याद आ गई औरमैं रुक गया| मैंने मिठाई के डिब्बे से एक लड्डू निकाला और ये कल्पना करने लगा की कि भौजी मुझे मेरे बाप बनने की ख़ुशी में खुद लड्डू खिला रही हों|

इधर पिताजी लड्डू बाँटने चले गए और मैं अपने कमरे में आ कर बैठ गया, बैठे-बैठे दिमाग में कुछ पल याद आने लगे| जिस दिन भौजी रात को आत्महत्या करने जा रहीं थीं, उस दिन मैंने उनसे कहा था की उनकी डिलीवरी के समय मैं उनके साथ हूँगा| ये बात याद करते ही मुझे ग्लानि होने लगी की मैं अपनी बात पर कायम नहीं रह सका, पर तभी दिमाग बोला; 'साथ रहता कैसे? भौजी ने तुझे खुद से अलग कर दिया था न?' ये ख्याल आते ही मन ने दिमाग को लताड़ा; 'कम से कम आज के दिन तो ये बातें मत याद कर? आज तू बाप बना है, इस ख़ुशी को ढंग से महसूस कर!' मन की बात अच्छी लगी और मैं आँख बंद कर के बैठ गया| अपने दोनों हाथों को मैंने ठीक उसी तरह मोड़ा जैसे किसी छोटे बच्चे को गोद में उठाते समय मोड़ते हैं| आयसुह मेरी गोद में नहीं था, पर मेरा मन इस कल्पना को सच मान चूका था| इस प्यार भरे एहसास ने मेरे दिमाग में चढ़े गुस्से को शांत किया और मेरा दिमाग कल्पना करने लगा की आयुष मेरी गोद में मुस्कुरा रहा है! वो भोली से मुस्कान देख कर दिल में एक दर्द पैदा हुआ, दर्द अपने बच्चे को गोद में न ले पाने का, दर्द उसकी प्यारी सी मुस्कान कभी न देख पाने का, दर्द कभी उसकी किलकारी न सुनने का! ये दर्द महसूस होते ही दिल रो पड़ा और आँखों से आँसु फिर बह निकले|

बाप होते हुए अपने ही पुत्र को गोद में न ले पाने से इतना दुःख होता है इस दुःख की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी| अगर आज के दिन मैं गाँव में होता तो आयुष को गोद में ले पाता, उसके नन्हे-नन्हे हाथों को चूम पाता, उसे अपने सीने से लिपटा कर उसके सर को चूम पाता, उसके नन्हे-नन्हे पैरों को चूमता| एक बाप के सीने की अगन उसके पुत्र को पा कर शांत होती!



तभी दिल में एक उम्मीद पैदा हुई, एक ऐसी उम्मीद ने जिसने मेरे दिमाग से भौजी के प्रति सारा गुस्सा निकाल फेंका| आयुष के पैदा होने से नए आयाम खुल गए थे, मन ने कहा की हो न हो भौजी का दिल पसीज गया होगा और वो मुझे जर्रूर फ़ोन करेंगी| आखिर ये हमारा बच्चा था, हमारे प्यार की निशानी, वो एक बाप को उसके ही बच्चे से दूर नहीं रखेंगी| आज नहीं तो कल वो जर्रूर फ़ोन करेंगी और मुझसे वैसे ही बात करेंगी जैसे हम पहले किया करते थे| मैं भी उनके सारे गुनाह माफ़ कर दूँगा, भूल जाऊँगा जो उन्होंने मेरे साथ किया और फिर से उन्हें उसी तरह से अपना लूँगा जैसे पहले चाहता था! 'आखिर वो मेरी पत्नी हैं, गलती से कुछ कह दिया तो कोई बात नहीं!' दिल बोला और इस बार दिमाग ने इस बात को आदर सहित मान लिया| "हे भगवान्! मैं उनसे (भौजी से) बहुत प्यार करता हूँ, बीते कुछ महीनों में जो भी हुआ वो नहीं होना चाहिए था| पर अब मैं एक बाप बन चूका हूँ और पुरानी सारी बातें भूलना चाहता हूँ, आप बस कैसे भी उनसे (भौजी से) एक कॉल करवा दो! मैं वादा करता हूँ की सब कुछ भुला कर उनके (भौजी के) साथ एक नई शुरुआत करूँगा!" मैंने हाथ जोड़ते हुए भगवान से ये प्रार्थना की|

ये प्रार्थना कर मेरा दिल उमीदों के तेल से भर गया, जो मायूसी मेरे दिल में थी वो गायब हो गई और मेरा चहेरा फिर से खिल गया| उसी दिन शाम को दिषु मुझे मिला तो मैंने उसे ये खुशखबरी दी, उसे वो ख़ुशी नहीं हुई जो मैं उम्मीद कर रहा था! कारन थी उसकी व्यवहारिक सोच, जो की सही भी थी पर फिर भी उसने मुझे ये महसूस नहीं होने दिया की उसे कम ख़ुशी हो रही है| "यार हो सकता है की तेरे फ़ोन पर उनका (भौजी का) कॉल आये, अगर मैं तेरे साथ न हुआ तो तू प्लीज उन्हें कह दियो की वो मुझे पिताजी वाले नम्बर पर रात में कॉल करें|" मैंने उत्साहित होते हुए कहा| मेरा उत्साह से खिला चेहरा देख दिषु मुस्कुरा दिया और सर हाँ में हिला कर अपनी स्वीकृति दी| अब अपने बाप बनने की ख़ुशी में दिषु को पार्टी देना तो बनता था, इसलिए मैंने उसे चाऊमीन खिलाई| यही हम दोनों के खुशियाँ मनाने का जरिया था, दिन चाहे जो भी हो अगर ख़ुशी मनानी है तो 20/- की फुल प्लेट चाऊमीन घर ले आओ, साथ में कोल्ड्रिंक और हो गई शानदार पार्टी!



खैर पार्टी हुई और अब मेरा इंतजार शुरू हो गया| मैं जानता था की भौजी फ़ोन कर के अवश्य पूछतीं की मैंने उनके कॉल के इंतजार में मैंने पढ़ाई का त्याग तो नहीं कर दिया, इसलिए मैंने अपनी पढ़ाई भी उसी जोश से जारी रखी| पढ़ाई और भौजी के कॉल के इंतजार में मैंने खाना-पीना लगभग छोड़ दिया, दिन में बस रात को खाना खाता और वो भी ढंग से नहीं खाता था| माँ ने कई बार टोका पर मैंने उन्हें पढ़ाई के लिए जागने का बहाना कर के मना कर दिया| वहीं पिताजी मेरी पढ़ाई की तरफ इतनी ईमानदारी देख बहुत खुश थे, वो उम्मीद लगाए बैठे थे की उनका लड़का इस बार 85% तो मारेगा ही मारेगा! लेकिन वो नहीं जानते थे की मेरे इस जोश के पीछे का कारन सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि भौजी के कॉल का इंतेहजार भी है|

उधर गाँव में बड़के दादा ने अपने दादा बनने की ख़ुशी में भण्डारा रख दिया| भौजी भी दूसरे दिन घर लौट आईं और अम्मा और बाकी की सभी औरतों ने उन्हीं घेर लिया था| आखिर उन्होंने इस घर को उसका वारिस, उसका चश्म-ओ-चिराग दिया था| बचा पैदा होने के 15 दिन तक घर का कोई भी बुजुर्ग पुरुष उसे नहीं छूता, इसी कारन बड़के दादा ने अभी तक आयुष को गोद में नहीं लिया था, बड़की अम्मा ने ही उसे गोद में ले कर बड़के दादा को दिखाया था| सारे घर-परिवार ने उन्हें सर आँखों पर बिठा लिया, बड़की अम्मा ने उनकी पसंद के पकवान बनाने शुरू कर दिए| अशोक भैया, मधु भाभी, अनिल, गट्टू सब के सब घर पहुँचे हुए थे और भौजी को घेरे बैठे थे| सारा घर महमानों से भरा हुआ था, इन्हीं खुशियों में भौजी लीन हो गईं और मुझे…अपने चाहने वाले, अपने पति को बधाई देना ही भूल गईं|

वहीं बड़के दादा ने पिताजी को गाँव आने के लिए नहीं कहा, पिताजी ठहरे अपने भाई के भक्त तो उन्होंने इस बात को कोई तवज्जो नहीं दी| हालाँकि पिताजी को फ़ोन पर सभी खबर मिल रही थी और वो बड़ी ख़ुशी से ये बातें हमें (मुझे और माँ को) बताते थे| माँ चाहतीं तो पिताजी को कह सकतीं थीं की भला हमें क्यों नहीं बुलाया गया, पर वो जानती थीं की पिताजी उनकी बात को दबा देंगे और अपने भाई को ही सही ठहराएंगे!



पूरे सात दिन तक मैंने भौजी के फ़ोन का इंतजार किया, पर उनका कोई कॉल नहीं आया| ऐसा नहीं था की वो मेहमानों के डर से फ़ोन न कर रहीं हों, जिसे सच में फ़ोन करना होता है वो टेलीफोन के खम्बे पर भी चढ़ कर फ़ोन कर सकता है| लेकिन भौजी की नियत ही नहीं थी कॉल करने की इसीलिए उन्होंने मुझे कॉल करना जर्रूरी नहीं समझा| सातवें दिन एक बाप का दिल आखिर टूट ही गया, उससे अब और इंतजार नहीं होता था! मैं अपने बिस्तर पर अपने घुटने अपनी छाती से मोड़, बुरी तरह से रो पड़ा! भौजी इस तरह मुझसे मुँह मोड़ लेंगी, ये मैंने कभी नहीं सोचा था! क्या उनके मन में मेरे लिए, अपने पति के लिए जरा सा भी प्यार नहीं? अगर था तो एक कॉल तो कर सकतीं थीं? 'मैंने कहा था, उन्हें बस तेरा इस्तेमाल करना था, वो उन्होंने कर लिया और जब काम पूरा हो गया तो छोड़ दिया तुझे मरने को! फिर सब तो मिल गया उन्हें, परिवार में नाम, प्यार, इज्जत तो अब भला तेरी क्या जर्रूरत रही!' ये बात दिमाग में आते ही मन को झटका लगा, पिछली बार तो उसने इस बात को नहीं माना था पर इस बार मन भी कमजोर पड़ने लगा था! जो शक की ईमारत दिमाग ने खड़ी की थी आज मन ने उस पर RCC Concrete की छत डाल कर उसे नफरत का पक्का घर बना दिया था, जिसमें मेरा बेचारा टूटा हुआ दिल कैद हो चूका था| मन से एक शब्द निकला जो जुबान पर आ गया; 'बेवफा!' ये वो शब्द था जिसने आज भौजी को मेरा दिल तोड़ने का गुनहगार बना दिया था, जिस दिल में कभी प्यार भरा था आज उसमें बस नफरत भरी थी| ये शब्द इतना ताक़तवर था की इसके मन में आते ही मेरे जिस्म में कोहराम छिड़ गया था, दिमाग में गुस्सा भरा हुआ था और दिल में नफरत! इस सब का बुरा असर मेरी सेहत पर पड़ा, पहले ही पिछले 1 हफ्ते से मैंने ढंग से खाना नहीं खाया था उस पर ये सब मेरा जिस्म बर्दाश्त नहीं कर पाया और मैं बेहोश हो गया|

जब होश आया तो मेरे पास, पिताजी, माँ, दिषु और डॉक्टर सरिता बैठीं थीं| डॉक्टर सरिता हमारी फॅमिली डॉक्टर थीं, जब वो बोलने लगीं तो उनकी बातें सुन कर सब हैरान रह गए;

डॉक्टर सरिता: अंकल जी, मानु को High B.P. है!

उनकी बात सुन कर सब मुँह बाए उन्हें देखने लगे;

पिताजी: बेटा ये कैसे हो सकता है? ये तो तंदुरुस्त बच्चा है, दौड़ता, खेलता रहता है....

पिताजी घबराते हुए बोले|

डॉक्टर सरिता: अंकल जी दरअसल मानु को ये बिमारी अनुवांशिक है| मतलब आपको High B.P. है और आंटी जी को Low B.P. है, कई बार माँ-बाप को ऐसी कोई बिमारी हो तो वो बच्चों में अनुवांशिक तौर पर आ जातीं| फिर मानु का metabolism भी थोड़ा weak है, exams के टेंशन के कारन वो ठीक से खाता-पीता नहीं था और इन बीमारियों के कारन वो बेहोश हो गया था|

डॉक्टर सरिता की बात सुन कर सब बहुत घबरा गए थे|

पिताजी: तो मानु दवाई से तो ठीक हो जायेगा न?!

पिताजी ने घबराते हुए कहा|

डॉक्टर सरिता: देखिये अंकल जी B.P. की बिमारी दवाइयों से काबू में रहती है, पर ये पूरी तरह कभी ठीक नहीं होती| जब तक मानु दवाइयाँ समय पर लेगा, योग, इत्यादि, ढंग से खाना खायेगा ये बिमारी कोई नुकसान नहीं करेगी|

डॉक्टर सरिता की बात सुन कर सब को थोड़ा इत्मीनान तो हुआ, पर माँ जानती थीं की मैं ने बचपन से लगतार कभी दवाई नहीं खाई है तो उन्होंने डॉक्टर सरिता से पुछा;

माँ: बेटा मानु ने कभी इतनी दवाइयाँ नहीं खाई, बचपन में जब भी ये बीमार पड़ा तो ज्यादातर ये अपने आप स्वस्थ हो जाता था, तोअगर ये दवाई लेना बंद कर दे तो?

डॉक्टर सरिता: आंटी जी अगर मानु दवाई नहीं लेगा, लापरवाही करेगा तो ये बिमारी और भी बढ़ सकती है! Paralysis या Heart problem जैसी समस्याएँ खड़ी हो जाएँगी!

ये सुनते ही सब बहुत घबरा गए, माँ के चेहरे पर डर के बादल छा गए;

मैं: माँ आप चिंता मत करो, मैं कोई लापरवाही नहीं बरतूँगा!

मैं कुछ भी देख सकता था पर माँ के चेहरे पर डर और आँसूँ नहीं देख सकता था, इसलिए मैंने उस पल निश्चय किया की मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिससे मेरी जान पर बन आये|



डॉक्टर सरिता ने एक पर्चे पर कुछ दवाइयाँ लिखीं और कुछ हिदायततें दे कर चली गईं| पिताजी दवाई लेने चले गए और माँ को उन्होंने सूप बनाने को कहा| मेरे कमरे में बस मैं और दिषु ही बचे थे;

दिषु: तू ने भाभी के कारन ही खाना-पीना छोड़ दिया था न?

दिषु ने सख्ती से पुछा तो मैं बिफर पड़ा और उसके गले लग कर रो पड़ा| दिषु ने कस कर मुझे जकड़ लिया और मेरी पीठ सहलाते हुए बोला;

दिषु: यार तू क्यों इस तरह पागल हुआ जा रहा है? अपनी न सही तो कम से कम अपने माँ-पिताजी की तो सोच? वो move-on कर चुकी हैं, उनकी जिंदगी में अब तेरे लिए कोई जगह नहीं, तो तू क्यों इस तरह अपनी जान देने पर तुला है? भूल जा उन्हें और अपनी life पर focus कर!

दिषु की दी हुई ये सलाह मैंने मान ली, मैंने अपने आँसूँ पोछे और बोला;

मैं: तू सही कह रहा है यार! बहुत तिल-तिल कर मर लिया मैं, अब उस 'बेवफा' के चक्कर में अपनी जिंदगी और नर्क नहीं करूँगा|

मैंने अपना आत्मविश्वास दिखाते हुए कहा|



उस दिन से मैंने खुद को और गिरने नहीं दिया, मैंने अपना पूरा focus पढ़ाई पर लगाया| भौजी को मन ने बेवफा करार दे दिया था, तो उन्हीं याद करने से दिल जलता था पर सोते समय अब भी उन्हें और नेहा को सपने में देखता था| कई बार रात में नींद खुल जाती थी और मैं चौंक कर उठ जाया करता था, भौजी को सपने में देख कर गुस्सा आता था तो नेहा को देख कर फिर दर्द टीस मार उठता था| ये दर्द इसलिए था की मैं नेहा से किया अपना वादा तोड़ चूका था और अपनी इस वादा खिलाफी के लिए उठता था| भौजी के प्रति मेरे गुस्से की आग में बेचारी नेहा जल रही थी, एक बस नेहा ही थी जिसके लिए मन में कभी किसी संदेह ने जन्म नहीं लिया| मेरा मन जानता था की वो मुझे बहुत याद कर रही होगी और रोती भी होगी, पर इस सब की कसूरवार सिर्फ भौजी थीं! अगर उन्होंने ये काण्ड न किया होता तो मैं गाँव में होता, नेहा और आयुष को अपनी छाती से समेटे हुए खुश हो रहा होता| अचानक दिमाग ने एक बड़ी ही मनोरम कल्पना की, नेहा अपने छोटी-छोटी बाहों में आयुष को गोद ले कर मुस्कुरा रही है| इस दृश्य की कल्पना से ही आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बह निकले| मन जोश में भर गया और मैंने सोचा की भौजी के लिए नहीं बल्कि मैं नेहा के लिए गाँव जर्रूर जाऊँगा, उससे अपने तोड़े वादे के लिए माफ़ी माँगूंगा| मेरी बेटी का दिल इतना बड़ा है की वो मुझे जर्रूर माफ़ कर देगी, लेकिन तभी दिमाग में एक ऐसा ख्याल आया की मैं थक कर हार गया; 'किस हक़ से नेहा को अपनी बेटी मान रहा है? ये तेरा खून थोड़े ही है?!' ये ऐसे जहरीले शब्द थे जो मेरे नहीं थे, बल्कि भौजी के प्रति मेरी नफरत ने मेरे दिमाग में भर दिए थे| मेरे अंदर बिलकुल ताक़त नहीं थी इन शब्दों को भौजी के मुँह से सुनने की और इसी कारन मैंने कभी गाँव न जाने का फैसला किया| जानता था की ये फैसला ले कर मैं नेहा के साथ गलत कर रहा हूँ, पर दिमाग में चढ़ा गुस्सा इतना था की उसने इस अन्याय की ओर ध्यान जाने ही नहीं दिया|



बस फिर उस दिन से मैंने अपना ध्यान पढ़ाई में लगाया, दवाई टाइम पर लेने लगा, खान ठीक से खाने लगा और जब कभी भौजी की याद आती तो उसे दबाने के लिए मैं माँ के पास बैठ जाता| माँ प्यार से सर सहलाती और मैं भौजी की याद को दबा कर फिर पढ़ाई में लग जाता| 7 मार्च से बोर्ड के पेपर शुरू हुए, पहले दिन पिताजी साथ आये और उनका आशीर्वाद ले कर मैं पेपर देने सेंटर में घुसा| दोपहर को जब मैं पेपर दे कर घर पहुँचा तो पिताजी बड़ी बेसब्री से मेरा इंतजार कर रहे थे, मैंने उन्हें बताया की पेपर बहुत अच्छा हुआ है तो वो बड़े खुश हुए| इसी प्रकार सभी पेपर अच्छे गए, आखरी पेपर वाले दिन मैं दोपहर को घर लौट रहा था की पीछे से किसी ने मुझे आवाज दी; "मानु जी!" ये आवाज जानी-पहचानी लगी तो मैंने चौंकते हुए पीछे मुड़ कर देखा तो पाया की ये तो सुनीता है!

सुनीता: आप यहाँ क्या कर रहे हो?

उसने ख़ुशी-ख़ुशी पुछा|

मैं: पेपर देने आया था!

तब जा कर सुनीता का ध्यान मेरे स्कूल के कपड़ों और स्कूल बैग पर गया, वो अपना माथा पीटते हुए हँसते हुए बोली;

सुनीता: आपकी हड़बड़ाने की बिमारी मुझे भी लग गई!

उसकी बात सुन कर मुझे भी एक आरसे बाद हँसी आ गई|

सुनीता: मेरे स्कुल में पेपर देने आते हो. मुझे बताया क्यों नहीं?

उसने थोड़ा नाराज होते हुए कहा|

मैं: आपने थोड़े ही बताया था की ये आपका स्कूल है, वरना मैं पहले ही आपसे कह देता की मेरी चीटिंग का कोई जुगाड़ बिठा दो!

मेरा मजाक सुन कर दोनों ठहाका मार के हँसने लगे| दोनों में कुछ ऐसे ही बातें हुई और फिर मैंने उसे मेरे घर आने का निमंत्रण दिया तो वो झट से मान गई| उसने अपने फ़ोन से घर फ़ोन किया और मेरे साथ मेरे घर पहुँच गई|

हम दोनों घर पहुँचे तो माँ-पिताजी मेरा इंतजार कर रहे थे, सुनीता को साथ देख कर वो बहुत खुश हुए और मेरे पेपर के बारे में पूछना ही भूल गए| सुनीता की बड़ी आव-बघत हुई और उसे जबरदस्ती खाना भी खिलाया गया| फिर उससे उसके पपेरों के बारे में पुछा गया तो वो मुस्कुराते हुए बोली;

सुनीता: अंकल जी, मेरे पेपर बहुत अच्छे हुए थे और अगले हफ्ते ही result भी आ जायेगा|

अब पिताजी को मेरे पेपर की याद आई और वो हँसते हुए मुझे देखने लगे, वो कुछ पूछते उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: जी आज वाला पेपर भी बहुत अच्छा गया है!

मेरा जवाब सुन कर पिताजी और माँ को इत्मीनान हो गया की मैं अच्छे नम्बरों से पास हो जाऊँगा| कुछ देर बाद सुनीता के पिताजी का फ़ोन आया और पिताजी ने खुद बात की| उनसे बात होने के बाद माँ-पिताजी सुनीता को घर छोड़ने जाने वाले थे, मुझे भी बोलै गया की मैं भी साथ चलूँ तो मैंने बाहना मारते हुए कहा;

मैं: पिताजी वो कुछ entrance exams का पता करने के लिए दिषु के साथ जाना है|

सुनीता मेरा बहाना ताड़ गई और बीच में बोल पड़ी;

सुनीता: आज ही तो पेपर खत्म हुए हैं? ऐसे भी कौन से entrance exams का पता करना है आपको, कल चले जाना?

पर उसका जवाब माँ ने दिया, उन्होंने मेरे गाल पर प्यार से चपत लगाई और बोलीं;

माँ: बेटी ये ऐसा ही है, कहीं बाहर आता-जाता नहीं| या तो पढ़ाई में घुसा रहता है या फिर game खेलता रहता है|

माँ की कही बात सुन कर मैं नकली हँसी हँसने लगा, वहीं सुनीता जान गई की कुछ तो गड़बड़ है|

माँ तैयार होने चली गईं, पिताजी बाहर फ़ोन करने लगे तो सुनीता को मुझसे बात करने का मौका मिल गया;

सुनीता: किसी girlfriend का चक्कर है क्या?

सुनीता ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा|

मैं: क्या मतलब?

मैंने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा|

सुनीता: पहले से काफी कमजोर हो गए हो, कहीं बाहर आते-जाते नहीं, मतलब कोई प्यार-व्यार का चक्कर ही है!

सुनीता ने होशियारी जताते हुए अटकलें लगाईं|

मैं: ऐसा कुछ नहीं है, पढ़ाई का बहुत प्रेशर था और कुछ दिन पहले बीमार पड़ गया था|

मैंने बड़े तरीके से सफाई दी जिससे सुनीता को यक़ीन हो जाए की मैं कोई आशिक़ नहीं हूँ|

सुनीता: अच्छा?

उसने आँखें तर्रेर कर कहा|

मैं: मेरी शक़्ल देख कर लगता है की मेरी कोई गर्लफ्रेंड होगी? पिताजी को पता चल गया न तो वो मेरी खाल खींच कर भूसा भर देंगे! फिर भी यक़ीन न हो तो माँ से मेरी बिमारी के बारे में पूछ लेना, वो आपको सब सच बता देंगी|

इस बार मैंने अपनी सफाई इस कदर दी की सुनीता डर गई और मेरी बात पर यक़ीन कर बैठी|

सुनीता: वैसे आप झूठ तो बोलोगे नहीं मुझसे!

मैंने हाँ में सर हिला कर उसे पूरा विश्वास दिला दिया|

सुनीता: अरे मैं तो पूछना ही भूल गई, मैंने सुना की आप चाचा बन गए?

सुनीता ने खुश होते हुए कहा, पर उसकी बात सुन कर मेरा जख्म फिर हरा हो गया| बहुत ताक़त लगा कर मैंने एक नकली मुस्कान उसे दी और हाँ में सर हिलाया, जबकि मेरा दर्द सिर्फ मैं ही जानता था!

सुनिता: तो कैसा है वो?

अब ये एक ऐसा सवाल था जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था, तो मैं आँखों में सवाल लिए उसे देखने लगा और अंदर ही अंदर अपने आँसुओं को आँखों की दहलीज पर आने से रोकने लगा|

सुनीता: अरे भई आपकी सबसे अच्छी दोस्त का बेटा और आप गए नहीं उससे मिलने?

ये सुन कर मेरा दिल रो पड़ा, जिसे वो मेरा भतीजा समझ रही थी वो दरअसल मेरा बेटा है, पर ये बात मैं उसे कह नहीं सकता था! मेरी ख़ामोशी देख सुनीता को शक होने लगा की जर्रूर मेरे और भौजी के बीच अनबन हैं;

सुनीता: ओह समझी! मतलब आप दोनों में कोई नाराजगी चल रही है?!

सुनीता ने बड़ी चालाकी से भौजी का नाम लिए बिना ही बात कही और मैं उसके जाल में फँस गया;

मैं: Exams थे तो कैसे जाता!

सुनीता: मैंने तो भौजी का नाम तक नहीं लिया, फिर आपने ये सफाई कैसे दे दी?

सुनीता ने फिर से आँखें तर्रेर कर पुछा, अब मैं फँस गया था| मुझे कैसे भी ये बात यहीं के यहीं खत्म करनी थी, इसलिए मैं बातें बनाते हुए बोला;

मैं: वो क्या है न, अब मैं न पहले की तरह बुद्धू नहीं रहा!

मैंने ये बात मुस्कुराते हुए कही, जिसे सुन सुनीता खिलखिला कर हँस पड़ी|

मैं: Honestly यार, मुझे BBA और CPT की कोचिंग का पता करना था, इसीलिए अपने दोस्त के साथ शाम को जाना है|

सुनीता को मेरी बात पर विश्वास हो गया और उसने मुझे इस बारे में और कुछ नहीं कहा|



कुछ देर बाद माँ-पिताजी उसे छोड़ने चले गए और मुझे duplicate चाभी दे गए| 2 घंटे बाद दिषु आया और पहले से ही सब कुछ पूछ-पाछ कर आया था, इधर मैं सुनीता द्वारा अनजाने में कुरेदे हुए जख्मों को समेत कर खामोश बैठा था| मुझे देखते ही दिषु समझ गया की क्या माजरा है;

दिषु: क्या हुआ? भाभी का फ़ोन आया था?

उसने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: कुछ नहीं यार, एक दोस्त आई थी उसी ने सब कुछ याद दिला दिया|

मैंने दिषु से नजरें चुराते हुए कहा| जिस तरह से दिषु ने हिम्मत दे कर मुझे संभाला था उसके बाद फिर टूटना उसकी दोस्ती पर थूकना होता, बस इसीलिए मैं उससे नजर नहीं मिला पा रहा था|

मैं: छोड़ ये सब, तूने पता किया कुछ?

मैंने बात घुमाते हुए कहा|

दिषु: हाँ सब कर लिया, करकरडूमा के पास बहुत सारे कोचिंग सेंटर वो तेरे दोनों एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी कराते हैं|

मैं: 'तेरे'? क्यों तू नहीं देगा entrance exams?

मैंने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा|

दिषु: न यार, मैं तो office असिस्टेंट का कोर्स कर रहा हूँ|

मैं: क्या? अबे रिजल्ट तो आने दे?

मैंने चौंकते हुए कहा|

दिषु: यार मैं तेरी तरह तो पढता नहीं जो मेरा admission regular (college) में हो जाए| मैंने तो just पास होना है, इससे पहले की पिताजी कुछ सुनाएं मैं correspondence का फॉर्म भर कर जॉब ज्वाइन कर लूँगा|

दिषु planning के मामले में बहुत होशियार था, इसीलिए उसने अपने पिताजी की डाँट से बचने के लिए ये plan पहले ही बना लिया था| इधर मैं सोच में पड़ गया था की मुझे अकेले ही कोचिंग जाना होगा, तभी वो मेरा ध्यान भंग करते हुए बोला;

दिषु: तू भी ज्वाइन कर ले मेरे साथ!

पर मैं तो regular college सोच कर बैठा था;

मैं: यार....मैं तो regular.....

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही वो बोला;

दिषु: देख यार मैं सिर्फ suggestion दे रहा हूँ, तू अपने entrance exams के साथ-साथ office assistant का कोर्स ज्वाइन कर ले| हाँ तेरे लिए थोड़ा hectic होगा दोनों एक साथ, पर कोर्स काफी हद्द तक एक जैसा ही है| रिजल्ट के बाद तू regular college ज्वाइन कर लियो और जब कॉलेज खत्म होगा तब तेरे हाथ में दोनों चीजें होंगी, कॉलेज की डिग्री और office assistant कोर्स का डिप्लोमा, तुझे जॉब बड़ी आसानी से मिल जाएगी|

दिषु का सुझाव काफी अच्छा था और मैंने इसे तुरंत मान लिया;

मैं: ये ठीक है, मैं इस बारे में पिताजी से पूछ लूँगा|

मेरे भविष्य का फैसला तो हो चूका था, अब दिषु को मेरा मूड ठीक करना था तो उसने मुझसे पुछा;

दिषु: बियर पियेगा?

ये दो जादुई शब्द सुन कर मेरी आँखें चमक उठीं और मैंने फ़ौरन हाँ में सर हिला कर सहमति दी!

दिषु: बियर का नाम सुनते ही तबियत खुश हो गई लौंडे की!

उसने मेरी पीठ पर जोर से हाथ मारते हुए कहा| हम दोनों घर से निकले और पहले विश्वास नगर पहुँचे और एक दो Institue से कुछ पूछ कर घंटे भर में ही फ्री हो गए| घडी में बजे थे 5 की तभी घर से फ़ोन आया और मैंने कह दिया की हमें थोड़ा और समय लगेगा| पिताजी ने 8 बजे तक लौट आने की हिदायत दी और फ़ोन रख दिया| अब दोनों को बियर लेनी थी, पर आज तक हमने ये काम कभी नहीं किया था| जब भी हमने पी तो दिषु का एक जानकार था जो हमें बियर ला दिया कर देता था और हम उसके घर पर छुप कर पी लिया करते थे| लेकिन आज बियर हमें लेनी थी और पकडे जाने के डर से 'गाँव' फ़ट रही थी!

दिषु: अबे हिम्मत कर और जा कर ले आ|

मैं: साले मैं ही क्यों हिम्मत करूँ, तू हिम्मत नहीं कर सकता?

हम दोनों ठेके के बाहर खड़े हो कर तर्क-वितर्क करने लगे, पर दोनों ही की हिम्मत नहीं पड़ रही थी की जा कर बीयर ला सकें|

मैं: देख भाई, पीनी तो है और इस तरह 'फट्टालों' की तरह बहस करेंगे तो हो गया!

मैंने दिषु को हिम्मत देते हुए कहा ताकि वो बियर लाने को मान जाए, पर वो मेरे से होशियार निकला और पलट कर मुझे ही उकसाने लगा;

दिषु: सही कह रहा है, देख दाढ़ी तो दोनों की आई हुई है, ऊपर से दूकान में अभी लोग भी कम हैं! तू दौड़ कर जा और दो बियर ले आ!

मैं: अबे भोसड़ी के, मैं तुझे चढ़ा रहा हूँ और तू साले मेरे रास्ते लगा रहा है!

ये सुन कर दोनों खूब हँसे और अंत में दोनों ने एक लम्बी साँस ले कर फ़ैसला किया की बियर तो आज खरीदकर ही रहेंगे| दोनों काउंटर पर पहुँचे, वहाँ खड़ा था एक लड़का जो हमसे 1-2 साल ही बड़ा होगा, उसे देख कर हम आत्मविश्वास से भरने लगे|

मैं: दो किंगफ़िशर लाल वाली!

मैंने ऐसे आर्डर दिया जैसे मैं कहीं का चौधरी हूँ, मेरी आवाज में रोब देख उस लड़के ने हमें दो ठंडी कैन निकाल कर दी जिसे दिषु ने फटाफट बैग में डाल लिया| हम दोनों बड़ा रुबाब दिखाते हुए चल दिए, जैसे की ये हमारे लिए रोज की बात हो| हमारे बाहर आते ही हमसे उम्र में छोटे दो लौंडे, जिनकी दाढ़ी भी नहीं आई थी वो अंदर घुसे और बियर ले कर चल दिए| अब हम दोनों आँखें फाड़े एक दूसरे को देखने लगे की बहनचोद यहाँ हमारी फ़ट रही थी और ये दोनों तो बियर ऐसे खरीद कर ले आये. मानो आटा-चावल ले रहे हों! दरअसल उस समय तक शराब, पान-मसाला आदि खरीदने के लिए नियम-कानून इतने सख्त नहीं थे, जितने अब हैं| तब आज की तरह दूकान पर वो warning नहीं होती थी की; '18 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को नशीले पदार्थ बेचना सख्त मना है!'

खैर बियर ले तो ली अब पीयें कहाँ? दिषु ने एक पार्क की तरफ इशारा किया और हम बैग ले कर उसी तरफ चल दिए, रास्ते में हमने चिप्स के दो पैकेट भी ले लिए| पार्क पहुँच कर हमने एक जगह ढूँढी जहाँ बहुत से लौंडे-लौंडिया बैठे इश्क़ फरमा रहे थे, जीने-मरने की कसमें खा रहे थे और उन्हीं देख कर मुझे आज बहुत हँसी आ रही थी| जब दिषु ने मुझसे मेरी हँसी का कारन पुछा तो मैं कुछ इतनी आवाज में बोला की सभी सुन लें;

मैं: अरे बहनचोद 'सब रोयेंगे' एक दिन!

ये सुन कर दिषु भी ठहाका मार के हँसने लगा| हमने फटाफट बियर की कैन खोली और आधे घंटे में खत्म कर के घर की ओर चल पड़े तथा रास्ते में हमने chewing gum भी खा ली ताकि किसी को कोई शक न हो|



घर आ कर मैंने पिताजी को सारी बातें बताईं, पर उन्होंने मेरी नौकरी करने की बात पर मुझे झाड़ दिया;

पिताजी: कोई जर्रूरत नहीं है तुझे नौकरी करने की, जितना पढ़ना है उतना पढ़ और फिर मेरे काम में हाथ बँटा!

मैंने ज्यादा बहस न करते हुए फिलहाल के लिए उनकी बात मान ली और बात यहीं खत्म हो गई| Entrance exams के लिए मैं पहले ही रजिस्टर कर चूका था और उसकी सारी किताबें भी ला चूका था, तो अगले ही दिन से मैं किताबें बैग में डाले पहले institute में trial क्लास लेने पहुँच गया| दिषु ने कहा था की किसी भी कोचिंग सेण्टर को ज्वाइन करने से पहले ट्रायल क्लास ले लिओ, ताकि पता चल जाए की वो पढ़ाते कैसे हैं| यही सोच कर मैं आया था की आज 1-2 institute में trial क्लास ले कर देखता हूँ, जहाँ सही से पढ़ाते होंगे वहीं ज्वाइन कर लूँगा|



जारी रहेगा भाग - 4 (2)
 
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PK@yadav

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Behad hi sukhad update tha ye har kisi ke liye... Manu bhaiya dukhi hai iske peechhe bahut hi genuine reason hai.. Kahi naa kahi ab ye lagta hai jaise bhabhi badal gayi hai.. Kyoki koi bhi aurat apne bacche ke asli peeta ko is tarah to ignore nahi kar sakti hai..
Ye bhi ek genuine point hai ki sabhi family wale ghar gaye hai khushiyon me shaamil hone ke liye but Manu bhaiya je pitaaji ko kisi ne bhi ghar aane ke liye ek baar bhi nahi kahaa.
Sunita ki re-entry, shayad sunita bahut dur tak jaayegi is kahaani mein. Shayad wo bahut hi badaa role play karegi Manu bhaiya ki zindagi mein aisa kuchh lagta hai.
Bahut hi lajawaab update bhai ji...
 
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