• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Zamindar Boy

Zamindar Ji
19
112
28
उजड़ी हुई दुनिया को तू आबाद न कर,
बीते हुए लम्हों को अब तू याद न कर,
एक क़ैद परिंदे ने ये कह दिया हम से,
मैं भूल चुका हूँ उड़ना मुझे आजाद न कर।




Amazing update manu bhai

Excellent ???????

Wating next update
 

Zamindar Boy

Zamindar Ji
19
112
28
तकदीर… बता तू ने मुझको,
किस मोड़ पर लाके छोड़ दिया,
एक मोड़ तलक तो साथ दिया,
एक मोड़ पर ला के छोड़ दिया,
खुद प्यार किया खुद ठुकराया,
फिर प्यार भरा दिल तोड़ दिया,
उस मोड़ तलक तो साथ दिया,
इस मोड़ पर ला के छोड़ दिया।


Lovely update

Bhoji se phir mulakat hogi
 

Naik

Well-Known Member
20,769
76,342
258
8,00,000 + View पूरे होने पर मेरे सभी प्यारे पाठकों को बहुत-बहुत धन्यवाद!
giphy.gif
Aapko bhi bahot bahot mubarak baad bhai
 

Naik

Well-Known Member
20,769
76,342
258
बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन
भाग - 1

अब तक आपने पढ़ा:


फिर आया वो दिन जब करुणा हमेशा के लिए केरला जाने वाली थी, मैं सुबह जल्दी उसके हॉस्टल पहुँचा ताकि आखरी बार उसके साथ कुछ समय और व्यतीत कर पाऊँ| जाने से पहले मैंने करुणा को आखरीबार दिल्ली के छोले-भठूरे खिलाये और फिर उसका समान ले कर मैं एयरपोर्ट पहुँचा| एयरपोर्ट पहुँचने तक के रास्ते में मैं भावुक हो चूका था, मेरा नाजुक दिल करुणा को जाने नहीं देना चाहता था! ये तो मन था जो करुणा के अच्छे जीवन का बहना दे कर मेरे दिल को संभाल रहा था पर वो भी कब तक दिल को संभालता| एयरपोर्ट पहुँच कर करुणा के अंदर जाने का समय आ गया था, इस समय हम दोनों की आँखें नम हो चलीं थीं| मैंने करुणा को एकदम से अपने सीने से लगा लिया और मैं फफक कर रो पड़ा| आज पहलीबार मैंने करुणा को इस कदर छुआ था, वो भी तब जब हम हमेशा के लिए दूर हो रहे थे| मेरा रोना देख करुणा से भी नहीं रुका गया और वो भी रोने लगी| पिछले महीनों में भले ही हमारे बीच दरार आ गई हो पर करुणा को इस कदर खुद से दूर जाते हुए मुझसे नहीं देखा जा रहा था|

मैंने एक बार करुणा को फिर से उसकी बेहतरी के लिए बनाये अपने rules याद दिलाये और उसे अपना ध्यान रखने को कहा| करुणा ने सर हाँ में हिला कर उन rules को अपने पल्ले बाँधा, तब मैं नहीं जानता था की उस duffer के दिमाग में उसके फायदे की बातें कभी नहीं टिकतीं!

खैर करुणा एयरपोर्ट के भीतर गई तो मैं फ़ौरन वहाँ से घर की ओर चल दिया, वहाँ एक मिनट और रुकता तो फिर रो पड़ता| मेरे दिमाग ने मुझे वापस पुराना शराब पीने वाला मानु बनने की राह दिखाई जिस पर मैं हँसी-ख़ुशी चलने को तैयार था| मैं और मेरी शराब यही रह गया था मेरे पास अब!



अब आगे:


कहते हैं की जब खुद के सर पर पड़ती है तो आटे-दाल का भाव पता चल जाता है!

करुणा को अपनी नई नौकरी के लिए केरला में अकेले पापड़ बेलने पड़ रहे थे, धुप में अपनी एड़ियाँ घिस-घिस कर उसे मेरी असली कीमत समझ आने लगी थी| उसने मुझे फ़ोन कर के अपनी तकलीफें गिनाना शुरू कर दिया, मैं उससे कोसों दूर बैठा था और यहाँ से उसके लिए कुछ नहीं कर सकता था| उसकी तकलीफें सुन कर मैं उसे ढाँढस बँधा दिया करता और मन ही मन भगवान से प्रार्थना करता की इस नौकरी को पाने में वे उसकी मदद करें| उधर पूरा एक हफ्ते तक करुणा को धुप में दौड़ाने के बाद करुणा को नौकरी मिल ही गई, पर posting दूसरे शहर में मिली| मैंने सोचा कम से कम वो केरला में तो है, वहाँ उसे वो दिक्कत नहीं होगी जो राजस्थान में होती|

पोस्टिंग तो मिल गई थी पर उस शहर में रहने का इंतजाम होना बाकी था| अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए करुणा अपनी माँ को ले कर रविवार के दिन उस शहर पहुँची जहाँ उसे posting मिली थी और वहाँ अपने रहने के लिए हॉस्टल ढूँढने लगी| एक hostel में उसने खुद बात की और दो दिन बाद आने का कह दोनों माँ-बेटी घर वापस आ गए| घर लौट कर करुणा की अपनी माँ से पैसों को ले कर लड़ाई हो गई, उसे अपनी माँ पर इतना गुस्सा आया की सोमवार रात को करुणा ने अपना समान समेट कर ट्रैन में बैठ गई और अगले दिन तड़के 5 बजे अपने posting वाले शहर पहुँच गई| अपना सूटकेस ले कर करुणा उस हॉस्टल में पहुँची जहाँ उसने बात की थी, इतने तड़के सुबह करुणा को हॉस्टल में देख उस हॉस्टल की वार्डन को लगा की करुणा अपने घर से भाग कर आई है, इस बात पर उन्होंने करुणा को खूब झाड़ा और तब तक admission नहीं दिया जब तक उसके घर वाले नहीं आ जाते! वार्डन की झाड़ सुन करुणा का मुँह बन गया और वो अपना समान उठा कर बाहर आ गई, उसे समझ आया की इतनी सुबह कोई भी हॉस्टल उसे एडमिट नहीं करेगा इसलिए उसने अपनी कुंज्जु (मौसी) को बुलाया| उनके आने तक वो एक पार्क में बैठी रही और मुझे फ़ोन कर के अपना रोना सुनाती रही| मुझे शुरू से ही उसका रोना सुन्ना पसंद नहीं था पर क्या करें दोस्ती की थी और करुणा से किये अपने वादे से बँधा था| करुणा ने दूसरे हॉस्टल में कमरा ले लिया और उसकी नई नौकरी पर उसका पहला दोस्त एक लड़का बना! लेकिन इस बार मुझे इससे कोई परेशानी नहीं हुई, कोई चिढ नहीं, कोई जलन नहीं हुई| शुरू-शुरू में करुणा मुझे रोज फ़ोन करती, उसकी बातों में केरला को ले कर बस शिकायत होती थी! जबकि जब वो दिल्ली में थी तो केरला की तारीफ करते नहीं थकती थी, मैंने उसके बदले हुए नजरिये का बहुत मजाक उड़ाया| करुणा ने बताया की मलयाली लोग बड़े उखड़े लोग हैं, उन्हें दूसरों को तरक्की करता देख कर जलन होती है तथा वे औरों की मदद करने से कतराते हैं! वहाँ के ऑटो वाले बड़े लालची हैं और थोड़ी सी दूर जाने के 100/- रुपये ले लेते हैं! इन सब के अलावा वहाँ पर एक समस्या और है, "पट्टी" यानी सड़क के कुत्ते! मैंने करुणा से मजाक करते हुए कहा की वो कुत्तों को दूर रखने के लिए उन्हें हिंदी में डाँटती है या मलयालम में?! :lol: फिर एक दिन उसने ये शिकायत करनी शुरू की कि वहाँ के आदमी उसे देख कर बहुत घूरते हैं! मैंने मन ही मन सोचा की राजस्थान में लोगों का घूरना जायज था क्योंकि वो अपने सामने एक मलयाली लड़की पहली बार देख रहे थे, पर मलयाली मर्दों का उसे घूरना एक सामान्य मर्दों की आदत थी जिसे करुणा नहीं समझ रही थी! इस तरह हर रोज करुणा अपनी शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाती और मैं; "हाँ ...हम्म्म" करते हुए उसकी बात सुनता रहता|



हमारा यूँ देर तक बात करना करुणा के आस-पास वाले लोग, जैसे की उसके अस्पताल के सहकर्मी और उसकी roommate गौर करने लगे थे| वे सभी करुणा से पूछने लगे थे की वो किस से हिन्दी में इतनी लम्बी बातें करती है? करुणा ने उन्हें मेरे बारे में बताना शुरू कर दिया जिससे उनकी मुझसे बात करने की इच्छा जागने लगी, लेकिन उनमें से किसी को भी हिंदी नहीं आती थी इसलिए मैं उनसे अंग्रेजी में बात करने लगा| मेरी अंग्रेजी उनकी अंग्रेजी के मुक़ाबले अच्छी थी तो मैं थोड़ा बहुत दिखावा करने लगा! वो सब लोग मुझसे बहुत प्रभावित थे और मुझसे बात करना बहुत पसंद करते थे| करुणा ने उन्हें मेरे बारे में सब कुछ बताया था जिस कारन वो मुझे अच्छा लड़का समझते थे| मैंने उनसे बात करते हुए ये साफ़ कर दिया था की मैं और करुणा बस अच्छे दोस्त हैं ताकि उनके दिमाग में हम दोनों को ले कर कोई शंका न रहे!

फिर एक दिन करुणा ने मुझे बताया की सुकुमार उसे porn videos भेजता है| ये सुन कर मैंने कटाक्ष करते हुए करुणा से कहा; "और देखो उसके साथ porn?!" मेरी बात सुनकर करुणा अपनी सफाई देते हुए बोली की वो उसकी भेजी हुई porn videos download कर के नहीं देखती| मुझे कटाक्ष करने में मजा आ रहा था तो मैंने कहा; "जंगल में मोर नाचा किसने देखा!" जाहिर सी बात थी की मेरा मुहावरा करुणा के पल्ले पड़ने से रहा| उसने कई बार इस मुहावरे का अर्थ पुछा, मैंने उसे "google" करने की सलाह देते हुए बात खत्म करनी चाही लेकिन अभी करुणा की बात खत्म नहीं हुई थी, जिस सुकुमार के वो दिल्ली में कसीदे पढ़ती थी आज वो उसके porn भेजने को ले कर नराज हो रही थी| मैंने करुणा से कहा की अगर उसे porn देखना नहीं पसंद तो वो सुकुमार को मना कर दे, पर करुणा में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो उसे मना कर सके| दो दिन बाद करुणा ने हिम्मत कर के सुकुमार से porn नहीं भेजने को कहा तो उस ठरकी ने पलट कर करुणा से कहा; "ये तेरे मतलब की चीज है! अभी नहीं देखेगी तो कब देखेगी?" करुणा मंद बुद्धि ने इसे सुकुमार का मजाक समझा और उसकी बात को हलके में लिया, पर तभी सुकुमार ने कुछ ऐसा कहा जिसे सुन कर करुणा के होश फाख्ता हो गए; "उस दिन जब हम दोनों ने कमरे में बैठ कर बियर पी, तब मैंने तुझे porn इसलिए दिखाया था ताकि तो गर्म हो जाए! अगर तू उस दिन मुझसे sex करने को कह देती तो मैं तुझे जन्नत की सैर करा देता!" सुकुमार की बात सुन कर करुणा को बहुत बड़ा धक्का लगा| करुणा को मेरी दयनाददारी (ईमानदारी) समझ आई और उसने शाम को मुझे फ़ोन कर के माफ़ी माँगना शुरू किया| मौका अच्छा था तो मैंने करुणा को उसके मेरे साथ किये उखड़े व्यवहार के बारे में याद दिला कर शर्मिंदा कर दिया, वो बेचारी बस माफियाँ माँगती रह गई!



केरला में रह कर करुणा को दिल्ली में मेरे साथ बिताया हर एक दिन याद आने लगा था और वो मुझे रोज फ़ोन कर के उन दिनों को याद दिलाया करती थी| वहीं मेरा दिल इन यादों को बस ख़ुशी के पल मान कर याद करता था, मेरे मन में जो करुणा के प्रति थोड़ा बहुत रोष था वो कम होने लगा था पर हमारा ये दोस्ती का रिश्ता एक बार फिर खींचने लगा| अपने काम के प्रति समर्पित करुणा अब हरामखोरी करने लगी थी, झूठी हाजरी लगा कर वो गोल होने लगी थी| फिर एक दिन सुबह 11 बजे मुझे करुणा का फ़ोन आया और उसने कहा की; "आज मेरा बियर पीने का मन है, अस्पताल का कम्पाउण्डर सब के लिए बियर लाने जा रे, मैं भी उससे अपने लिए बियर मँगाऊँ?" मैंने गुस्सा करते हुए करुणा को साफ़ शब्दों में मना किया पर उसे चढ़ी थी पीने की धुन तो उसने मेरा बनाया हुआ कायदा तोड़ दिया| उसी रात को उसने जब मुझे फ़ोन किया तो वो पी के धुत्त थी और शराबियों की तरह मुझसे बात कर रही थी| मैं उस वक़्त दिल्ली से बाहर आया था और स्टेशन पर अपनी ट्रैन का इंतजार कर रहा था, करुणा की फ़ोन पर शराबियों जैसी आवाज सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन करुणा के अंदर अचानक ही मेरे लिए चिंता जाग गई थी! वो मुझसे ऐसे बात कर रही थी जैसे की मैं कोई छोटा बच्चा हूँ जो जिंदगी में पहलीबार घर से बाहर अकेला आया हो! करुणा को मुझसे ऐसे बात करने पर बहुत मजा आ रहा था और मेरे गुस्से का पारा चढ़ रहा था| मैंने उसकी कॉल काटनी शुरू की पर वो बाज नहीं आई और बार-बार फ़ोन कर के मेरी जान खाती रही! हारकर मैंने फ़ोन ही switch off कर दिया, पर आधे घंटे बाद मुझे फिर से फ़ोन चालु करना पड़ा क्योंकि माँ-पिताजी का फ़ोन भी तो आ सकता था?! शुक्र है की करुणा का फ़ोन दुबारा नहीं आया, मैंने अपनी ट्रैन पकड़ी और घर की ओर चल पड़ा| रात का समय था और कुछ करने को था नहीं तो मैंने सोचना शुरू कर दिया की करुणा के दिमाग में आखिर चल क्या रहा है? श्री विजय नगर से वापस आने के बाद करुणा एकदम से उखड गई थी और अब वो मुझे फ़ोन करते नहीं थकती?! शायद उसे मेरी कीमत का एहसास हो रहा हो या फिर वो मेरे साथ किये व्यवहार के लिए शर्मिंदा हो?! अब उसके मन की तो मैं कुछ कह नहीं सकता था, तो बात आई मेरे गुस्से की? मेरा दिमाग करुणा की बेवकूफियों से थक गया था, पर दिल को अब भी लगता था की उसमें कुछ तो अच्छा है, शायद अब भी देर नहीं हुई करुणा के बदलने की? 'लेकिन तू उसे क्यों बदलना चाहता है?' मेरा दिमाग बोला| दिमाग की बात सही थी इसलिए मैंने अपने जज्बातों पर काबू करने का फैसला किया, आखिर क्यों मैं उसके चक्कर में अपना खून जलाऊँ?

अगले दिन सुबह करुणा ने मुझे फ़ोन किया, संडे था और मैं छत पर सैर कर रहा था| मैंने फ़ोन उठाया तो करुणा ने अपनी माफ़ी की गठरी मेरे सामने रख दी और मुझसे झूठ बोलते हुए कहने लगी की उसने बियर खरीदी थी पर पी नहीं थी! मैं उसकी बात मानने से रहा इसलिए मैंने अपनी बात बड़ी सख्ती से उसके सामने रखी! मेरा उस पर भरोसा न करने की बात सुन कर करुणा को मिर्ची लगी और वो तुनक कर मुझसे बोली; "आपको मेरा से इतना problem हो रे तो हम ये friendship end कर देते!" इतना सुनना था की मैंने फ़ोन काट दिया| करुणा को लगा था की मैं उसे समझाऊँगा, गिड़गिड़ाऊँगा पर मैंने तो फ़ोन काट कर बात ही खत्म कर दी थी!



मुझे एक पार्टी को कुछ पिक्चर भेजनी थी तो मैंने अपना what's app खोला, पार्टी का नाम ढूँढ़ते हुए मुझे पता चला की करुणा ने मुझे block कर दिया है! ये देख कर मुझे गुस्सा नहीं आया बल्कि मुझे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा| मैं अपने काम में लग गया, पर 15 मिनट बाद ही करुणा का फ़ोन आया और वो फिर से sorry वाला गाना गाने लगी| उसने बताया की उसने दिल्ली वाले चर्च के father से बात की और उन्होंने करुणा को मेरे 'अच्छे कर्मों' के बारे में याद दिलाया| मैं खामोश रहा और वो बड़बड़ करती रही, तभी उसने मुझसे पुछा की क्या मैंने what's app पर देखा की उसने मुझे block कर दिया है? मैंने हाँ कहा तो उसे ये जानकर हैरानी हुई की मैंने उसे मुझे block करने पर कुछ कहा क्यों नहीं? मैं खामोश रहा और वो मुझ पर अपना झूठा गुस्सा निकालती रही! तब मुझे एहसास हुआ की मेरा दिल अब करुणा के प्रति सुन्न हो चूका है!



खैर करुणा ने एक-एक कर मेरे बनाये सारे कायदे-कानून तोड़ने शुरू कर दिए, मुझे बिना बताये उसने बाहर जाना शुरू कर दिया, छुट्टी वाले दिन मुझसे झूठ बोल कर उसने अपने अस्पताल में काम करने वाले आदमी के घर खाना खाने जाना शुरू कर दिया, कभी-कभार मैं अगर उसे फ़ोन करता तो वो फ़ोन नहीं उठाती! पर मुझे अब करुणा पर गुस्सा नहीं आ रहा था, शायद मैं अब दिल से चाहने लगा था की करुणा ये friendship खत्म कर दे! कुछ समय बाद धीरे-धीरे हमारी दोस्ती इस कदर खींच गई की हमारी बातें होनी बंद हो गई!

मैंने खुद को पिताजी के बिज़नेस और कभी-कभार दिषु के साथ ऑडिट पर बिजी कर लिया| रोज शाम को मेरा एक निश्चित कार्यक्रम था, काम से निकलो तथा किसी पार्क या कभी-कभार pub जा कर शराब पियो| लेकिन मेरा पीना हमेशा काबू में रहा क्योंकि पी कर मुझे घर जाना था और कहीं माँ-पिताजी को शक न हो इसलिए मैंने कभी भी ज्यादा नहीं चढ़ाई| पी कर मैं हमेशा लेट पहुँचता था, शराब की हलकी-हलकी खुमारी मुझे पसंद थी इसलिए उस खुमारी के उतरने से पहले ही मैं अपने कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर के सो जाता था| माँ-पिताजी लेट आने का कारन पूछते तो मैं कह देता की दिषु के साथ ऑडिट का थोड़ा काम निपटा रहा था| चूँकि मैं बड़ा शांत स्वभाव का था और अब माँ-पिताजी के काबू में आ गया था तो वे मुझसे ज्यादा सवाल-जवाब नहीं करते थे|



बिज़नेस की बात करूँ तो मेरे पूरा समय देने से काम अच्छा चल निकला था, बीच में मुझे नौकरी के दो offer आये पर पिताजी ने मुझे नौकरी करने से साफ़ मना कर दिया| मैंने भी उनसे कोई बहस नहीं की क्योंकि मेरे लिए दिषु के साथ छोटी-मोटी ऑडिट ही काफी थीं| वहीं मिश्रा अंकल जी से मिलने वाला बड़ा contract थोड़ा लटक गया था क्योंकि प्लाट कोई कानूनी पचड़े में फँस गया था| कानूनी पचड़ा सुलझाने के लिए उन्होंने एक निजी वकील किया जिनका नाम सतीश था, अब वकील तो पैदाइशी दिमाग से तेज होते हैं तो सतीश जी ने मिश्रा अंकल जी का काम चुटकियों में सुलझा दिया| मिश्रा अंकल की मुसीबत दूर हुई तो उन्होंने एक पार्टी दे डाली और पिताजी को सह कुटुम्भ न्योता दिया| पार्टी में मिश्रा अंकल जी ने हमारा तार्रुफ़ सतीश जी से करवाया और मेरी तारीफ करते हुए बोले;

मिश्रा अंकल जी: ई हमार मुन्ना है, तोहका जौनो काम है ऊ ईका बताई दिहो!

इतना सुनना था की सतीश जी ने मुझे अपने साथ बिठा लिया और मुझे अपने फ्लैट में क्या-क्या काम करवाना है उसकी बात शुरू कर दी| सतीश जी का एक छोटा ऑफिस उनके फ्लैट में था जिसमें वो बहुत महँगी वाली lighting लगवाना चाहते थे जैसे की बड़े-बड़े घरों के study room में होती हैं! उनकी फरमाइशें सुन मैं मन ही मन सोच रहा था की इसका पैसा कौन देगा? कहीं ऐसा न हो की मिश्रा अंकल जी हमें काम देने के एवज में ये काम हमारे सर डाल दें? ये ख्याल आते ही मैंने सतीश जी को अपनी ओर से कोई सुझाव नहीं दिया और उनकी बातों में हाँ मिलाता रहा|



पार्टी शुरू हुई और पीने-पाने का कारकर्म शुरू हुआ, लेकिन पिताजी की मौजूदगी में पियूँ कैसे? इतने में सतीश जी उठे और अपने तथा मेरे लिए एक drink बना कर ले आये, सतीश जी ने drink मेरी ओर बढ़ाया पर मैंने गर्दन न में हिला कर पीने से मना कर दिया| मेरी 'न' कितनी मुश्किल से निकली ये बस मैं ही जानता था, दिल कह रहा था की मर्द बन और एक साँस में गटक जा पर दिमाग ने आगाह किया की पिताजी यहीं मौजूद हैं! उन्होंने अगर पीते हुए देख लिया तो ऐसा कस कर थप्पड़ मारेंगे की शराब और इज्जत दोनों उतर जायेगी! तभी पीछे से मिश्रा अंकल जी आ गए, उन्होंने मेरी न में हिलती हुई गर्दन देख ली थी इसलिए वो मुझे पीने के लिए थोड़ा प्रोत्साहन देते हुए बोले;

मिश्रा अंकल जी: अरे पी लिहो मुन्ना, तोहार पिताजी का हम समझा देब!

मन तो बहुत था पीने का पर मैंने फिर भी चेहरे पर नकली मुस्कान लिए न में गर्दन हिलाई|

सतीश जी: अरे यार तुम्हारी उम्र में तो लड़के सब पीते-खाते हैं! ये ही उम्र है खा-पी लो वरना मेरी तरह 40 पार किया नहीं की बीमारियाँ ले कर बैठ जाओगे!

अब पिताजी की मौजूदगी में मुझे खुद को 'शुद्ध' साबित करना था तो मैंने भोलेपन का नाटक करते हुए कहा;

मैं: सर जी मैं ये सब नहीं पीता|

इतने में पीछे से पिताजी आ गए और समझ गए की यहाँ क्या चल रहा है;

पिताजी: सतीश जी, मैंने अपने बेटे की लगाम बचपन से बहुत खींच कर रखी है, इसलिए ये किसी भी तरह का कोई नशा-वशा नहीं करता!

पिताजी बड़े गर्व से बोले| अब उन्हें क्या पता की उनके लड़के ने ऐसी-ऐसी शराब पी है जिसका उन्होंने नाम तक नहीं सुना होगा और काण्ड तो ऐसे किये हैं की उस पर किताब लिखी जा सके!

पिताजी ने मुझे माँ के लिए कुछ खाने को ले जाने को कहा और खुद सतीश जी के साथ बैठ कर पीने लगे| मैं माँ के लिए कुछ खाने को लाया तो देखा की माँ मिश्रा आंटी जी के साथ बैठीं बात कर रहीं हैं| मुझे देखते ही मिश्रा आंटी जी ने मुझे अपने सामने बिठा लिया और माँ से मेरी शादी की बात छेड़ते हुए बोलीं;

मिश्रा आंटी जी: अब तो तोहार लड़का कमाए लगिस है, अब तो ई का बियाह कर दिहो!

महिलाओं को अपना मन पसंद चर्चा का विषय मिला तो दोनों ने गप्पें लड़ानी शुरू कर दी, मैं वहाँ से खिसकने को हुआ तो माँ ने मुझे खींच कर अपने पास बिठा लिया|

मिश्रा आंटी जी: हमार पूरबी ब्याह लायक हुई गई रही वरना तो हम पूरबी के पिताजी से कहिन रहन की ऊ तोहरे घरे बात करें!

मिश्रा आंटी जी की बात सुन माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: अरे बहन जी, सादी ब्याह के रिश्ते तो ऊपर से बन के आवत हैं!

ये बात माँ ने बात को संभालने के लिए कही थी, असल बात ये थी की पूरबी ने प्रेम-विवाह किया था|



खैर पार्टी खत्म हुई और हम सब घर आये, घर आने पर पिताजी ने बताया की मिश्रा जी ने हमें दो साइट के प्रोजेक्ट दिए हैं| एक साइट गुडगाँव में है और दूसरी नॉएडा में तथा दोनों ही साइटों पर हमें सारा काम संभालना है क्योंकि मिश्रा जी अपने दामाद के साथ मथुरा में किसी अन्य प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं! पिताजी और मैंने बहुत दिमाग मारी कर के दोनों साइटों के बजट बनाये, जो बजट हमारे सामने था उसमें मुनाफा बहुत तगड़ा था! मुनाफे की सोच कर ही मैं बहुत खुश था, जो सबसे पहली चीज मेरे दिमाग में आई थी वो थी गाडी! गाडी की लालसा में मैंने इस प्रोजेक्ट में अपना तन-मन लगाने की तैयारी कर ने लगा पर नियति को कुछ और ही मंजूर था!

मैंने सबसे पहले सतीश जी का काम पकड़ा, पिताजी ने बताया की मिश्रा अंकल जी ने सतीश जी के काम के लिए अलग से पैसे दिए हैं| मिश्रा अंकल जी ने जो पैसे दिए थे वो काम के हिसाब से ज्यादा थे, साफ़ था की बे चाहते थे की इस काम से पिताजी मुनाफा कमाएं पर पिताजी बहुत ईमानदार थे और साथ ही मिश्रा अंकल जी के दिए प्रोजेक्ट्स के लिए एहसानमंद भी| उन्होंने मुझे सतीश जी का ये काम rate to rate करवाने को कहा, मैंने पिताजी की आज्ञा का पालन करते हुए सारा काम सतीश जी की पसंद के अनुसार करवाया| दो दिन के अंदर मैंने सतीश जी का ऑफिस वाला कमरा ऐसा जगमगा दिया मानो किसी रहीस का study room हो! फिर इस काम से जुड़े सभी बिल इकठ्ठा कर के और अपनी छोटी सी project report बना कर पिताजी को दे दी| पिताजी ने बचे हुए पैसे और बिल सहित मेरी बनाई project report मिश्रा अंकल जी को सौंपनी चाही ताकि उन्हें पता रहे की कितना पैसा खर्चा हुआ| लेकिन मिश्रा अंकल जी ने न तो report देखि और न ही पैसे वापस नहीं लिए| मेरे पिताजी उनसे उम्र में थोड़े छोटे थे तो उन्होंने पिताजी की पीठ थपथपाई और;

मिश्रा अंकल जी: तू हमार छोट भाई हो, आज तक हम तोहरे संगे कभौं पैसा को ले कर भाव-ताव किहिन है? तोहार मुन्ना जउन बजट बनावट है और आपन जो report हमका बनाये के देत है ऊ हमार दामाद का बहुत पसंद आवत है, जानत हो ऊ तोहार मुन्ना की कितनी बड़ाई करत है?! फिर हम जानित है तू कितना ईमानदार हो और तोहार मुन्ना भी तोहरे दिखाए रास्ता पर चलत है, इसलिए ई पैसा तोहार मेहनत का है!

मिश्रा अंकल जी की बात सुन कर पिताजी मुस्कुरा दिए और घर लौट आये|



अगस्त का दूसरा हफ्ता शुरू हो रहा था और दोनों साइट पर काम धीमी रफ्तार से काम शुरू हो गया था| गुडगाँव से नॉएडा जाने-आने में खासी दिक्कत होती थी, इसलिए मैंने पिताजी को ज्यादा मेहनत करने से मना कर दिया और सारा काम खुद संभालने लगा| इसी बीच मुझे एक प्राइवेट कॉन्ट्रैक्ट मिला, काम ज्यादा बड़ा नहीं था और दिल्ली में था, घर पर ऊबने से अच्छा था की पिताजी वो कॉन्ट्रैक्ट संभालें| तो इसी कॉन्ट्रैक्ट के सिलसिले में मुझे और पिताजी को मिलने बुलाया गया, दोनों बाप-बेटे आज मीटिंग के लिए बहुत अच्छे से तैयार हो कर ऑफिस पहुँचे| हमारी मीटिंग अभी शुरू ही हुई थी की तभी अचानक मेरे फ़ोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आया, मुझे लगा की कहीं गुडगाँव या नॉएडा की साइट से तो नहीं इसलिए मैं "excuse me for a sec" बोल कर केबिन से बाहर आ गया|

मैं: हेल्लो|

मैंने फ़ोन कान पर लगाते हुए कहा, पर जब अगली आवाज मेरे कान में पड़ी तो मेरे दिल की धड़कन मानो रुक सी गई!

भौजी: Hi!

भौजी ने ख़ुशी से चहकते हुए कहा| मैं भौजी की आवाज तो पहचान गया था पर नजाने क्यों मेरा दिमाग इस 'अनचाही आवाज' को सुन कर यक़ीन नहीं कर रहा था!

मैं: Who's this?

मैंने ये सवाल इस उम्मीद से पुछा की शायद ये आवाज किसी और इंसान की हो, पर ऐसा नहीं था!

भौजी: पहचाना नहीं?

भौजी ने बनावटी गुस्से से कहा| मेरा डर सही साबित हुआ, ये उसी शक़्स की आवाज थी जिसे मैं सुनना नहीं चाहता था! भौजी की आवाज सुनने के बाद मेरे मन से आवाज आई;'oh shit!'

मैं: हाँ!

ये शब्द मेरे दिल से निकला था जो भौजी की आवाज सुन कर बावरा होने लगा था, तभी मेरे दिमाग ने मेरे साथ हुए धोके की याद दिलाई जिसे याद कर के दिल सुन्न हो गया!

भौजी: तो?

भौजी ने मेरी ख़ामोशी तोड़ने के इरादे से बात शुरू की| लेकिन उस समय बस भौजी द्वारा किये धोके को याद किये जा रहा था, मेरी तड़प, मेरे आँसूँ, मेरा दुःख सब के सब मुझे एक साथ याद आ गये थे| वहीं भौजी को मेरे अंदर भरे गुस्से का एहसास होने लगा था इसलिए वो भी कुछ पल के लिए खामोश हो गईं, उन्होंने मन ही मन ये मनाना शुरू किया की मैं उनसे बात करना शुरू करूँ ताकि वो मुझसे बात कर सकें| इधर मेरी ख़ामोशी से भौजी को लगने लगा की कहीं मैंने फ़ोन उठा कर रख तो नहीं दिया?

भौजी: हेल्लो? Are you there?

मैं: हाँ|

मैंने बेमन से जवाब देते हुए कहा| तभी पीछे से पिताजी आ गए और मेरे पास खड़े हो गए, उन्होंने मुझे जल्दी से बात खत्म करने को कहा क्योंकि अंदर मीटिंग मेरी वजह से रुकी हुई थी|

भौजी: मैं आपसे मिलने आ रही हूँ!

भौजी ने उमंग से भरते हुए कहा! उन्हें लगा की उनकी बात सुन कर मैं भी उनकी तरह ख़ुशी से फूला नहीं समाऊँगा पर मेरे अंदर तो जैसे जज्बात मर चुके थे इसलिए मैंने एक ठंडी आह भरते हुए कहा;

मैं: हम्म्म्म!

मेरा हम्म्म सुन भौजी को बहुत हैरानी हुई और वो मुझे अपना प्यार भरा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं;

भौजी: बस "हम्म्म्म" मुझे तो लगा आप ख़ुशी से कहोगे कब?

इधर पिताजी की नजर मुझ पर थी की मैं जल्दी से ये कॉल निपटाऊँ इसलिए मैंने बात को जल्दी खत्म करने के लिए रूखे स्वर में कहा;

मैं: कब?

मेरा रुखा सा 'कब' सुन भौजी समझ चुकीं थीं की मैं उनसे खफा हूँ और फोन पर वो मुझे नहीं मना पाएँगी फिर भी उन्होंने मुझ पर ऐसे हक़ जताया जैसे की हमारे बीच सब कुछ पहले की तरह सामान्य है|

भौजी: इस शनिवार को! आप मुझे लेने आओगे न?

भौजी ने बड़ी आस लिए मुझसे पुछा|

मैं: शायद ...नहीं.....उस दिन मुझे अपने दोस्त के साथ जाना है!

भौजी के सवाल ने मेरे दिल और दिमाग में जंग छेड़ दी थी| बुद्धू दिल भौजी को लेने जाना चाहता पर दिमाग ने मेरे से मेरे साथ हुआ दगा दिल को याद दिलाया तो दिल ने मुरझा कर 'शायद' कहा, तभी दिमाग ने दिल को एक जोरदार तमाचा मारा इसलिए मेरे मुँह से 'नहीं' निकला| साथ ही मैंने बेवजह अपने न आने के लिए बहाना भी मार दिया!

भौजी: नहीं मैं नहीं जानती, आपको आना होगा!

भौजी ने गुस्से से मुझे हुक्म देते हुए कहा| मन तो किया की अभी चिल्ला कर उन्हें झाड़ दूँ पर फिर पिताजी का ख्याल आ गया और मैंने बात खत्म करते हुए कहा;

मैं: देखता हूँ!

मेरा जवाब सुन भौजी को विश्वास नहीं हुआ इसलिए वो बोलीं;

भौजी: मैं जानती हूँ की आपको बहुत गुस्सा आ रहा है, पर मैं मिलके आपको सब बताती हूँ|

मुझे बस फ़ोन काटना था इसलिए मैंने बात को और आगे नहीं बढ़ाया;

मैं: हम्म्म्म!

इतना कह कर मैंने फ़ोन काट दिया| पिताजी ने जब पुछा की किस का फ़ोन था तो मैंने कह दिया की ऑडिट के लिए फ़ोन आया था, इसके आगे मैंने पिताजी से कुछ नहीं कहा और उनका ध्यान मीटिंग की तरफ मोड़ दिया| मैंने ये तो सोच लिया था की मैं भौजी को लेने नहीं जाऊँगा पर उसके लिए मुझे पहले योजना बनानी थी और योजना के बनाने से पहले मुझे पिताजी से बात छुपानी थी वरना मैं अपनी कही बातों में फँस जाता|



खैर मीटिंग खत्म हुई और मैं गुडगाँव का बहाना कर के निकल लिया, रास्ते भर मैं बहाना सोचने लगा| भौजी ज्यादा से ज्यादा एक दिन के लिए आने वालीं थीं और वो पूरा दिन मैं उनकी शक्ल नहीं देखना चाहता इसलिए मुझे घर से गोल रहने का बहाना सोचना था| बहाना इतना जबरदस्त होना चाहिए की पिताजी किसी भी तरह से मुझे गोल होने से रोक न पाएँ| अब चूँकि मैंने पिताजी के सामने ही दिषु के साथ कहीं जाने की बात कही थी तो मैंने उसी बात को आधार बना कर शनिवार भौजी को न लेने जाने का बहाना तैयार किया| मैंने दिषु को फ़ोन किया और उसे मिलने को कहा, लंच टाइम होने वाला था तो उसने मुझे छोले- भठूरे खाने का लालच दे कर अपने ऑफिस बुलाया| छोले-भठूरे खाते हुए मैंने दिषु को सारी बात बताई, मेरी बात सुन कर वो शनिवार को मेरे साथ निकलने के लिए तैयार हो गया| उसने कहा की मैं शनिवार को उसके ऑफिस आ जाऊँ, फिर वो अपने बॉस को मेरे साथ किसी जर्रूरी काम से जाने का झाँसा दे देगा और हम दोनों तफ़री मरने निकल जायेंगे|

छोले-भठूरे खा कर मैं घर लौट आया और अपने कमरे में कुछ काम ले कर बैठ गया| शाम को पिताजी जब लौटे तो उन्होंने चाय पीते हुए चन्दर के आने की खबर सुनाई;

पिताजी: भाईसाहब (बड़के दादा) का आज फ़ोन आया था|

इतना कह पिताजी की नजरें मुझ पर टिक गईं;

पिताजी: इस शनिवार को गाँव से तेरे चन्दर भैया आ रह है, तो उन्हें लेने स्टेशन चला जईओ|

पिताजी की बात सुन कर मैंने हैरान होने का बेजोड़ अभिनय किया| तभी मेरा ध्यान गया पिताजी की बात पर, मैंने गौर किया तो पाया की उन्होंने ये बात मुझे 'विशेष कर' बताई है| मैं समझ गया की माजरा क्या है, दरअसल भौजी चाहतीं थीं की मैं उन्हें लेने स्टेशन आऊँ, इसीलिए उन्होंने बड़ी चालाकी से पिताजी को मेरे स्टेशन आने की अपनी ख्वाइश बड़के दादा के जरिये पहुँचाई थी| इधर मैं अपना मन बना चूका था की मैं उन्हें लेने स्टेशन नहीं जाने वाला इसलिए मैंने अपना पहले से ही सेट बहाना पिताजी को सुना दिया;

मैं: पर पिताजी उस दिन मुझे दिषु से मिलने जाना है?

ये सुन कर पिताजी एकदम से बोले;

पिताजी: तू उसे बाद में भी मिल सकता है! इतने सालों बाद तेरी भौजी आ रहीं है और तू है की बहाने मार रहा है|

पिताजी ने भौजी का नाम ये सोच कर लिया की शायद मेरे चेहरे पर पहले की तरह मुस्कान आ जाए, पर मेरे चेहरे पर तो चिढ के निशान बने हुए थे! लेकिन एक बात तो थी, देर से ही सही पर पिताजी ने मेरा बहाना पकड़ लिया था, अब मुझे अपने बहाने को सच साबित करना था तो मैंने उनसे साफ़ कहा;

मैं: बहाना नहीं मार रहा पिताजी, आप चाहो तो दिषु को फ़ोन कर लो|

पर पिताजी को मेरा झूठ परखने का मन नहीं था, उन्होंने सीधा अपना हुक्म सुनाते हुए कहा;

पिताजी: मैं कुछ नहीं जानता, तू लेने जाएगा मतलब जाएगा!

मैं खामोश हो गया क्योंकि मैंने मन ही मन दूसरी योजना बना ली थी, ऐसी योजना जिसे पिताजी मना कर ही नहीं सकते! लेकिन अभी पिताजी का हुक्म पूरा कहाँ हुआ था, उनकी आगे की बात सुन कर मेरे होश फाख्ता हो गए;

पिताजी: और हाँ चौथी गली में जो गर्ग आंटी का मकान खाली है, उसे खुलवा कर अच्छे से साफ़-सफाई करवा दियो|

पिताजी की बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी तो मैंने भोयें सिकोड़ कर सड़ा हुआ सा मुँह बना कर उनसे पुछा;

मैं: क्यों?

मेरी सड़ी हुई सी शक्ल देख पिताजी बोले;

पिताजी: तेरे भैया-भौजी अब दिल्ली में ही रहेंगे और चन्दर हमारे साथ ही काम करेगा|

ये सुन कर तो मेरी हवा खिसक गई, कहाँ तो मैं सोच रहा था की भौजी बस एक दिन के लिए आएँगी तथा वो पूरा एक दिन मैं दिषु के साथ गोल हो लूँगा और कहाँ भौजी तो अपना बोरिया-बिस्तर बाँध कर यहाँ आ रहीं हैं? इधर मैं अपने दिमाग में ये आंकलन करने में व्यस्त था की तभी पिताजी ने माँ को अपना फरमान सुनाते हुए तीसरा बम फोड़ा;

पिताजी: और आप भी सुन लो, जबतक बहु की रसोई का काम सेट नहीं होता चारों यहीं खाना खाएंगे!

जैसे ही पिताजी ने चारों कहा मुझे नेहा की याद आई और आखिरकर मेरे चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान तैरने लगी|

माँ: ठीक है, मुझे क्या परेशानी होगी?! इसी बहाने मेरा भी मन लगा रहेगा|

माँ की बात सुन कर मैं नेहा के ख्याल से बाहर आया|



चाय पी कर पिताजी सब्जी लेने चले गए, इधर मेरे चेहरे पर सवाल थे जो कुछ-कुछ मेरी माँ ने पढ़ लिए थे, लेकिन उन्होंने उन सवालों को उल्टा पढ़ा था, उन्हें लग रहा था की मैं चन्दर, भौजी और बच्चों के आने से परेशान हूँ, इसलिए मुझे समझाने के लिए माँ मेरे पास बैठते हुए बोलीं;

माँ: दरअसल बेटा, जब हम गट्टू की शादी पर गाँव गए थे तब घर में हर एक की जुबान पर बस तेरा ही नाम था| तेरे जैसा फर्माबरदार बेटा पूरे खानदान में नहीं, तेरे गुण पूरा परिवार गाता था| अपने भाई की देखा-देखि तेरे बड़के दादा के मन में इच्छा जगी की वो अपने पोते आयुष को अंग्रेजी स्कूल में पढायें, ताकि उनका जो सपना गट्टू पूरा न कर पाया उसे आयुष पूरा करे| वहीं खेती-किसानी से अब कुछ निकल नहीं रहा था तो तेरे बड़के दादा ने सोचा की शहर रह कर चन्दर भी अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाना शुरू कर देगा| उन्होंने ये दोनों बातें तेरे पिताजी से की और तेरे पिताजी ने उन्हें कहा की चन्दर तेरे (मेरे) साथ काम संभाल सकता है और चूँकि वो (चन्दर) यहीं रहेगा तो आयुष भी अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ सकता है|

मुझे बच्चों के आने से कोई आपत्ति नहीं थी, बल्कि नेहा से पुनः मिलने को मेरा आतुर हो गया था लेकिन मैं नेहा से भौजी के सामने नहीं मिलना चाहता था इसलिए मैंने अपने दिषु के साथ जाने की योजना को नहीं बदला, क्योंकि मेरा मकसद था की भौजी को नहीं लेने जा कर मैं उन्हें अपने गुस्से से अवगत कराना था! उधर मेरी ख़ामोशी देख कर माँ बोलीं;

माँ: क्या हुआ बेटा?

अब मैं माँ से क्या कहता, मैंने न में सर हिलाया और उठ कर अपने कमरे में आ गया|



कमरे में आ कर मैं बिस्तर पर पसर गया और सोचने लगा की आखिर भौजी क्यों मेरी जिंदगी में लौट कर आ रही हैं? आखिर अब क्या चाहिए उन्हें मुझसे? जाने क्यों मेरा मन उन्हें अपने सामने देखने से डर रहा था, ऐसा लगता था मानो उन्हें देखते ही मेरे सारे गम हरे हो जायेंगे! आंसुओं की जिन धाराओं पर मैंने शराब का बाँध बनाया था वो भौजी के देखते ही टूट जायेगा और फिर मुझे सब को अपने आंसुओं की सफाई देनी पड़ती! मुझ में अब भौजी को ले कर झूठ बोलने की ताक़त नहीं बची थी, सब के पैने सवाल सुन कर मैं सारा सच उगल देता और फिर जो परिवार पर बिजली गिरती वो पूरे परिवार को जला कर राख कर देती!
भौजी के इस अनपेक्षित आगमन के लिए मुझे आत्म्निक रूप से तैयार होना था, मुझे अपने बहुमूल्य आसुओं को संभाल कर रखना तथा अपने गुस्से की तलवार को अधिक धार लगानी थी क्योंकि भौजी की जुदाई में मैं जो दर्द भुगता था मुझे उसे कई गुना दुःख भौजी को देना था!


जारी रहेगा भाग - 2 में....
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
Tow aakhir bhaiji ki wapsi ho rahi h dekhte h bhauji kaise manu ka gusse ko face karengi
Intizar rehega bhai agle dhamake daar update ka
Thanks for lovely update
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
8,942
36,771
219
Is baar to Manu bhai kehar dhana hai ,itne aasani se milap nahi hona chahiye,

बदला इस तरह से लेंगे हम,
तेरी जिन्दगी में दुःख नहीं होगा कम|
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
8,942
36,771
219
उजड़ी हुई दुनिया को तू आबाद न कर,
बीते हुए लम्हों को अब तू याद न कर,
एक क़ैद परिंदे ने ये कह दिया हम से,
मैं भूल चुका हूँ उड़ना मुझे आजाद न कर।




Amazing update manu bhai

Excellent ???????

Wating next update
तकदीर… बता तू ने मुझको,
किस मोड़ पर लाके छोड़ दिया,
एक मोड़ तलक तो साथ दिया,
एक मोड़ पर ला के छोड़ दिया,
खुद प्यार किया खुद ठुकराया,
फिर प्यार भरा दिल तोड़ दिया,
उस मोड़ तलक तो साथ दिया,
इस मोड़ पर ला के छोड़ दिया।


Lovely update

Bhoji se phir mulakat hogi

धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

आपकी शायरी पढ़ कर मुझे रहत इंदौरी साहब की चंद पंक्तियाँ याद आती हैं;

मुझसे पहले वो किसी और की थी,
मगर कुछ शायराना चाहिए था|
चलो माना ये छोटी बात है,
पर तुम्हें सब कुछ बताना चाहिए था!
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
8,942
36,771
219

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
8,942
36,771
219
Aapko bhi bahot bahot mubarak baad bhai

आपको भी बहुत-बहुत मुबारक हो!

Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
Tow aakhir bhaiji ki wapsi ho rahi h dekhte h bhauji kaise manu ka gusse ko face karengi
Intizar rehega bhai agle dhamake daar update ka
Thanks for lovely update

धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
गुस्सा सिर्फ नाराजगी जाहिर नहीं करता, हद से गुजरा हुआ दर्द भी ब्यान करता है!
 
Top