बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन
भाग - 2
अब तक आपने पढ़ा:
कमरे में आ कर मैं बिस्तर पर पसर गया और सोचने लगा की आखिर भौजी क्यों मेरी जिंदगी में लौट कर आ रही हैं? आखिर अब क्या चाहिए उन्हें मुझसे? जाने क्यों मेरा मन उन्हें अपने सामने देखने से डर रहा था, ऐसा लगता था मानो उन्हें देखते ही मेरे सारे गम हरे हो जायेंगे! आंसुओं की जिन धाराओं पर मैंने शराब का बाँध बनाया था वो भौजी के देखते ही टूट जायेगा और फिर मुझे सब को अपने आंसुओं की सफाई देनी पड़ती! मुझ में अब भौजी को ले कर झूठ बोलने की ताक़त नहीं बची थी, सब के पैने सवाल सुन कर मैं सारा सच उगल देता और फिर जो परिवार पर बिजली गिरती वो पूरे परिवार को जला कर राख कर देती!
भौजी के इस अनपेक्षित आगमन के लिए मुझे आत्म्निक रूप से तैयार होना था, मुझे अपने बहुमूल्य आसुओं को संभाल कर रखना तथा अपने गुस्से की तलवार को अधिक धार लगानी थी क्योंकि भौजी की जुदाई में मैं जो दर्द भुगता था मुझे उसे कई गुना दुःख भौजी को देना था!
अब आगे:
अचानक नेहा का खिलखिलाता हुआ चेहरा मेरी आँखों के सामने आ गया और मेरा गुस्सा एकदम से शान्त हो गया! मेरी बेटी नेहा अब ९ साल की हो गई होगी, जब आखरी बार उसे देखा तब वो इतनी छोटी थी की मेरी गोद में आ जाया करती थी, अब तो नजाने कितनी बड़ी हो गई होगी, पता नहीं मैं उसे गोद में उठा भी पाऊँगा या नहीं?! ये सोचते हुए मैं अंदाजा लगाने लगा की नेहा मेरी गोद में फिट भी होगी या नहीं? 'गोद में नहीं ले पाया तो क्या हुआ, अपने सीने से लगा कर उसे प्यार तो कर पाऊँगा!' ये ख्याल मन में आते ही आँखें नम हो गईं| मैं मन ही मन कल्पना करने लगा की कितना मनोरम दृश्य होगा वो जब नेहा मुझे देखते ही भागती हुई आएगी और मैं उसे अपने सीने से लगा कर एक बाप का प्यार उस पर लुटा सकूँगा! इस दृश्य की कल्पना इतनी प्यारी थी की मैं स्वार्थी होने लगा था! 5 साल पहले नेहा ने कहा था की; "पापा मुझे भी अपने साथ ले चलो" तब मैं ने बेवकूफी कर के उसे मना कर दिया था पर इस बार मुझे अपनी गलती सुधारनी थी| 'चाहे कुछ भी हो मैं इस बार नेहा खुद से दूर नहीं जाने दूँगा!' एक बाप ने अपनी बेटी पर हक़ जताते हुए सोचा|
'पूरे 5 साल का प्यार मुझे नेहा पर उड़ेलना होगा, मुझे उस हर एक दिन की कमी पूरी करनी होगी जो हम बाप-बेटी ने उनके (भौजी) के कारन एक दूसरे से दूर रह कर काटे थे! नेहा मेरे साथ सोयेगी, मेरे साथ खायेगी, मैं उसके लिए ढेर सारे कपडे लाऊँगा, उसे उसकी मन पसंद रसमलाई खिलाऊँगा! नेहा को गाँव में चिप्स बहुत पसंद थे, तो कल ही मैं उसके लिए अंकल चिप्स का बड़ा पैकेट लाऊँगा! रोज नेहा को नई-नई कहानी सुनाऊँगा और उसे अपने से चिपकाए सुलाऊँगा|' अपनी बेटी को पुनः मिलने की चाहत में एक बाप आज बावरा हो चूका था, उसे सिवाए अपनी बेटी के आज कुछ नहीं सूझ रहा था| मैं पलंग से उठा और अपनी अलमारी में अपने सारे कपडे एक तरफ करने लगा ताकि नेहा के कपडे रखने के लिए जगह बना सकूँ| फिर मैंने अपने पलंग पर बिस्तर को अच्छे से बिछाया और मन ही मन बोलने लगा; 'जब नेहा आएगी तो उसे बताऊँगा की रोज मैं अपने तकिये को नेहा समझ कर अपनी छाती से चिपका कर सोता था|' मेरी बात सुन कर नेहा पलंग पर चढ़ कर मेरे सीने से लग कर अपने छोटे-छोटे हाथों में मुझे भरना चाहेगी और मैं नेहा के सर को चूमूँगा तथा उसे अपनी पीठ पर लाद कर घर में दौड़ लगाऊँगा| पूरा घर नेहा की किलकारियों से गूं गूँजेगा और मेरे इस नीरस जीवन में नेहा रुपी फूल फिर से महक भर देगा|
ये सब एक बाप की प्रेमपूर्ण कल्पना थी जिसे जीने को वो मरा जा रहा था| हैरानी की बात ये थी की मैंने इतनी सब कल्पना तो की पर उसमें आयुष का नाम नहीं जोड़ा! जब मुझे ये एहसास हुआ तो मैं एक पल के लिए पलंग पर सर झुका कर बैठ गया| 'क्या आयुष मेरे बारे में जानता होगा? क्या उसे पता होगा की मैं उसका कौन हूँ?' ये सवाल दिमाग में गूँजा तो एक बार फिर भौजी के ऊपर गुस्सा फूट पड़ा| 'भौजी ने तेरा इस्तेमाल करना था, कर लिया अब वो क्यों आयुष को बताने लगीं की वो तेरा खून है?!' दिमाग की ये बात आग में घी के समान साबित हुई और मेरा गुस्सा और धधकने लगा! गुस्सा इस कदर भड़का की मन किया की आयुष को सब सच बता दूँ, उसे बता दूँ की वो मेरा बेटा है, मेरा खून है! लेकिन अंदर बसी अच्छाई ने मुझे समझाया की ऐसा कर के मैं आयुष के छोटे से दिमाग में उसकी अपनी माँ के प्रति नफरत पैदा कर दूँगा! भले ही मैं गुस्से की आग में जल रहा था पर एक बच्चे को उसकी माँ को नफरत करते हुए नहीं देखना चाहता था, मेरे लिए मेरी बेटी नेहा का प्यार ही काफी था!
रात का खाना खा कर, अपनी बेटी को पुनः देखने की लालसा लिए आज बिना कोई नशा किये मैं चैन से सो गया| अगले दिन से साइट पर मेरा जोश देखने लायक था, कान में headphones लगाए मैं चहक रहा था और साइट पर Micheal Jackson के moon walk वाले step को करने की कोशिश कर रहा था! लेबर आज पहलीबार मुझे इतना खुश देख रही थी और मिठाई खाने की माँग कर रही थी, पर मैं पहले अपनी प्यारी बेटी को अपने गले लगाना चाहता था और बाद में उन्हें मिठाई खिलाने वाला था! अपनी बेटी के प्यार में मैं भौजी से बदला लेना भूलने लगा था, मैंने तो पीना बंद करने तक की कसम खा ली थी क्योंकि मैं शराब पी कर अपनी बेटी को छूना नहीं चाहता था! नेहा को देखने से पहले मैं इतना सुधर रहा था तो उसे पा कर तो मैं एक आदर्श पिता बनने वाला था| 'चाहे कुछ भी कर, सीधा काम कर, उल्टा काम कर पर किसी भी हालत में नेहा को अपने से दूर मत जाने दियो!' मेरे दिल ने मेरा गिरेबान झिंझोड़ते हुए कहा| दिमाग ने मुझे ये कह कर डराना चाहा; 'अगर भौजी वापस चली गईं तब क्या होगा? नेहा भी उनके साथ चली जायेगी!' ये ख्याल आते ही मेरा मन मेरे दिमाग पर चढ़ बैठा; 'मैं नेहा को खुद से कभी दूर नहीं जाने दूँगा! मैं....मैं...मैं उसे गोद ले लूँगा!' मन की बात सुन कर तो मैं ख़ुशी से उड़ने लगा, पर ये रास्ता इतना आसान था नहीं लेकिन दिमाग ने परिवार से बगावत की इस चिंगारी की हवा देते हुए कहा; 'लड़ना आता है न? हाथों में चूड़ियाँ तो नहीं पहनी तूने? अब तो तू कमाता है, नेहा की परवरिश बहुत अच्छे से कर सकता है, भाग जाइयो उसे अपने साथ ले कर!' मेरा मोह कब मेरे दिमाग पर हावी हो गया मुझे पता ही नहीं चला और मैं ऊल-जुलूल बातें सोचने लगा|
शुक्रवार शाम को दिषु से मिल मैंने उसे सारी बात बताई, मेरी नेहा को अपने पास रखने की बात उसे खटकी और उसने मुझे समझाना चाहा पर एक बाप के जज्बातों ने उसकी सलाह को सुनने ही नहीं दिया| मैंने उसकी बात को तवज्जो नहीं दी और उसे कल के लिए बनाई मेरी नई योजना के बारे में बताने लगा, दिषु को कल फ़ोन पर मुसीबत में फँसे होने का अभिनय करना था ताकि पिताजी पिघल जाएँ!
शनिवार सुबह मैंने अपना फ़ोन बंद कर के हॉल में पिताजी के सामने चार्जिंग पर लगा दिया| पिताजी अखबार पढ़ रहे थे की तभी दिषु ने उनके नंबर पर कॉल किया| मैं जानता था की दिषु का कॉल है पर फिर भी मैं ऐसे दिखा रहा था जैसे मुझे पता ही न हो की किसका फ़ोन है, मैं मजे से चाय की चुस्की ले रहा था और वहाँ दिषु ने बड़ा कमाल का अभिनय किया;
दिषु: नमस्ते अंकल जी!
पिताजी: नमस्ते बेटा, कैसे हो?
दिषु: मैं ठीक हूँ अंकल जी| वो...मानु का फ़ोन बंद जा रहा था!
दिषु ने घबराने का नाटक करते हुए कहा|
पिताजी: हाँ वो तो मेरे सामने ही बैठा है, पर तु बता तू क्यों घबराया हुआ है?
पिताजी ने दिषु की नकली घबराहट को असली समझा, मतलब दिषु ने बेजोड़ अभिनय किया था| मैंने चाय का कप रखा और भोयें सिकोड़ कर पिताजी को अपनी दिलचस्पी दिखाई|
दिषु: अंकल जी मैं एक मुसीबत में फँस गया हूँ!
पिताजी: कैसी मुसीबत?
दिषु: अंकल जी, मैं license अथॉरिटी आया था अपने license के लिए, पर अभी मेरे बॉस ने फ़ोन कर जल्दी ऑफिस बुलाया है| मुझे किसी भी हालत में आज ये कागज अथॉरिटी में जमा करने हैं और लाइन बहुत लम्बी है, अगर कागज आज जमा नहीं हुए तो फिर एक हफ्ते बाद मेरा नंबर आएगा! आप please मानु को भेज दीजिये ताकि वो मेरी जगह लग कर कागज जमा करा दे और मैं ऑफिस जा सकूँ!
पिताजी: पर बेटा आज तो उसके भैया-भाभी गाँव से आ रहे हैं?
पिताजी की ये बात सुन कर मुझे लगा की गई मेरी योजना पानी में, पर दिषु ने मेरी योजना बचा ली;
दिषु: ओह...सॉरी अंकल... मैं...मैं फिर कभी करा दूँगा|
दिषु ने इतनी मरी हुई आवाज में कहा की पिताजी को उस पर तरस आ गया!
पिताजी: ठीक है बेटा मैं अभी भेजता हूँ|
पिताजी की बात सुन दिषु खुश हो गया और बोला;
दिषु: Thank you अंकल!
पिताजी: अरे बेटा थैंक यू कैसा, मैं अभी भेजता हूँ|
इतना कह पिताजी ने फोन काट दिया|
पिताजी: लाड-साहब, दिषु अथॉरिटी पर खड़ा है! अपना फ़ोन चालु कर और उसे फ़ोन कर, उसे तेरी जर्रूरत है, जल्दी जा!
पिताजी ने मुझे झिड़कते हुए कहा|
मैं: पर स्टेशन कौन जायेगा?
मैंने थोड़ा नाटक करते हुए कहा|
पिताजी: वो मैं देख लूँगा! मैं उन्हें ऑटो करा दूँगा और तेरी माँ उन्हें घर दिखा देगी साफ़-सफाई करवाई थी या वो भी मैं ही कराऊँ?
पिताजी ने मुझे टॉन्ट मारते हुए कहा|
मैं: जी करवा दी थी!
इतना कह मैं फटाफट घर से निकल भागा|
दिषु अपने ऑफिस में बहाना कर के निकल चूका था, मैं उसे अथॉरिटी मिला और वहाँ से हम Saket Select City Walk Mall चले गए| गर्मी का दिन था तो Mall से अच्छी कोई जगह थी नहीं, हमने एक फिल्म देखि और फिर वहीं घूमने-फिरने लगे| दिषु ने नैन सुख लेना शुरू कर दिया और मैंने घडी देखते हुए सोचना शुरू कर दिया की क्या अब तक नेहा घर पहुँच चुकी होगी?! दिषु ने मुझे खामोश देखा तो मेरा ध्यान भंग करते हुए उसने खाने का आर्डर दे दिया|
भौजी के आने से मेरा दिमागी संतुलन हिल चूका था और दिषु का डर था की कहीं मैं पहले की तरह मायूस न हो जाऊँ, इसीलिए वो मेरा ध्यान भटक रहा था| तभी मुझे याद आया की आज की तफऱी के लिए जो पिताजी से बहाना मारा था वो कहीं पकड़ा न जाए;
मैं: यार घर जाके पिताजी ने अगर पुछा की दिषु के जमा किये हुए document कहाँ हैं तो? अब पिताजी से ये तो कह नहीं सकता की मैं अथॉरिटी से तुझे कागज़ देने तेरे दफ्तर गया था, वरना वो शक करेंगे की हम तफ़री मार रहे थे!
दिषु ने अपने बैग से अपने जमा कराये कागजों की कॉपी और रसीद निकाल कर मुझे दी और बोला;
दिषु: यार चिंता न कर! मैंने document पहले ही जमा करा दिए थे| ये कॉपी और रसीद रख ले, मैं शाम को तुझसे लेने आ जाऊँगा!
दिषु ने मेरी मुश्किल आसान कर दी थी, अब बस इंतजार था तो बस शाम को फिर से गोल होने का!
भौजी को तड़पाने का यही सबसे अच्छा तरीका था, मैं उनके पास तो होता पर फिर भी उनसे दूर रहता! उन्हें भी तो पता चले की आखिर तड़प क्या होती है? कैसा लगता है जब आप किसी से अपने दिल की बात कहना चाहो, अपने किये गुनाह की सफाई देना चाहो पर आपकी कोई सुनने वाला ही न हो!
शाम को पाँच बजे मैं घर में घुसा, भौजी अपने सह परिवार संग दिल्ली आ चुकीं थीं पर मेरी नजरें नेहा को ढूँढ रही थी! मैंने माँ से जान कर चन्दर के बारे में पुछा क्योंकि भौजी का नाम लेता तो आगे चलकर जब मेरा भौजी को तड़पाने का खेल शुरू होता तो माँ के पास मुझे सुनाने का एक मौका होता! खैर माँ ने बताया की चन्दर गाँव के कुछ जानकर जो यहाँ रहते हैं, उनके घर गया है, भौजी और बच्चे अपने नए घर में सामान सेट कर रहे थे| मैं नेहा से मिलने के लिए जाने को मुड़ा पर फिर भौजी का ख्याल आ गया और मैं गुस्से से भरने लगा| मैं हॉल में ही पसर गया तथा माँ को ऐसा दिखाया की सुबह से ले कर अभी तक मैं अथॉरिटी पर लाइन में खड़ा हो कर थक कर चूर हो गया हूँ| माँ ने चाय बनाई और इसी बीच मैंने दिषु को मैसेज कर दिया की वो घर आ जाए| उधर दिषु भी मेरी तरह अपने घर में थक कर ऑफिस से आने की नौटंकी कर रहा था| 6 बजे दिषु अपनी बाइक ले कर घर आया;
दिषु: नमस्ते आंटी जी|
माँ: नमस्ते बेटा! कैसे हो? घर में सब कैसे हैं?
दिषु: जी सब ठीक हैं, आप सब को बहुत याद करते हैं|
माँ: बेटा समय नहीं मिल पाता वरना मैं भी सोच रही थी की बड़े दिन हुए तेरी मम्मी से मिल आऊँ|
इतना कह माँ रसोई में पानी लेने चली गईं| इस मौके का फायदा उठा कर मैंने दिषु को समझा दिया की उसे क्या कहना है| इतने में माँ दिषु के लिए रूहअफजा और थेपला ले आईं;
माँ: ये लो बेटा नाश्ता करो|
दिषु ने थेपला खाते हुए मेरी योजना के अनुसार मुझसे बात शुरू की|
दिषु: यार documents जमा हो गए थे?
मैं उठा और कमरे से उसे दिए हुए documents ला कर उसे दिए|
मैं: ये रही उसकी कॉपी|
दिषु: Thank you यार! अगर तू नहीं होतो तो एक हफ्ता और लगता|
मैं: Thank you मत बोल...
दिषु: चल ठीक है, इस ख़ुशी में पार्टी देता हूँ तुझे|
दिषु जोश-जोश में मेरी बात काटते हुए बोला|
मैं: ये हुई ना बात, कब देगा?
मैं ने किसी तरह से बात संभाली ताकि माँ को ये न लगे की हमारी बातें पहले से ही सुनियोजित है!
दिषु: अभी चल!
ये सुन कर मैंने खुश होने का नाटक किया और एकदम से माँ से बोला;
मैं: माँ, मैं और दिषु जा रहे हैं|
माँ: अरे अभी तो कह रहा था की टांगें टूट रहीं हैं?
माँ ने शक करते हुए पुछा|
मैं: पार्टी के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूँ| तू बैठ यार मैं अभी कपडे बदल कर आया|
मुझे समझ आया की मैंने थकने की कुछ ज्यादा ही overacting कर दी, फिर भी मैंने जैसे-तैसे बात संभाली और माँ को ऐसे दिखाया की मैं पार्टी खाने के लिए मरा जा रहा हूँ|
माँ: ठीक है जा, पर कब तक आएगा?
माँ को अपने बेटे पर विश्वास था इसलिए उन्होंने जाने दिया, बस अपनी तसल्ली के लिए मेरे आने का समय पुछा|
दिषु: आंटी जी नौ बजे तक, डिनर करके मैं इसे घर छोड़ जाऊँगा|
दिषु ने माँ की बात का जवाब देते हुए कहा|
माँ: ठीक है बेटा, पर मोटर साइकिल धीरे चलाना|
माँ ने प्यार से दिषु को आगाह करते हुए कहा|
दिषु: जी आंटी जी|
मैं फटाफट तैयार हुआ और हम दोनों घर से निकले, दिषु की बाइक घर के सामने गली में खड़ी थी| उसने बैठते ही बाइक को kick मारी और बाइक स्टार्ट हो गई, मैं उसके पीछे बैठा ही था की मेरी नजर सामने की ओर पड़ी! सामने से जो शक़्स आ रहा था उसे देखते ही नजरें पहचान गई, ये वो शक़्स था जिसे नजरें देखते ही ख़ुशी से बड़ी हो जाती थीं, दिल जब उन्हें अपने नजदीक महसूस करता था तो किसी फूल की तरह खिल जाया करता था पर आज उन्हें अपने सामने देख कर दिल की धड़कन असमान्य ढंग से बढ़ गई थी, जैसे की कोई दिल दुखाने वाली चीज देख ली हो! इतनी नफरत दिल में भरी थी की उस शक़्स को अपने सामने देख मन नहीं किया की मैं उसका नाम तक अपनी जुबान पर लूँ! 'भौजी' दिमाग ने ये शब्द बोल कर गुस्से का बिगुल बजा दिया, मन किया की मैं बाइक से उतरूँ और जा कर भौजी के खींच कर एक तमाचा लगा दूँ पर मन बावरा ससुर अब भी उन्हें चाहता था! मैंने भोयें सिकोड़ कर भौजी को गुस्से से फाड़ कर खाने वाली आँखों से घूर कर देखा और अपनी आँखों के जरिये ही उन्हें जला कर राख करना चाहा!
उधर भौजी ने मुझे बाइक पर बैठे देखा तो वो एकदम से जड़वत हो गईं, उन्हें 5-7 सेकंड का समय लगा मुझे पेहचान ने में! जिस शक़्स को उन्होंने चाहा, वो भोला भला लड़का, गोल-मटोल गबरू अब कद-काठी में बड़ा हो चूका था! चेहरे पर उगी दाढ़ी के पीछे मेरी वो मासूमियत छुप गई थी, शरीर अब दुबला-पतला हो चूका था पर कपडे पहनने के मामले में हीरो लगता था! चेक शर्ट और जीन्स में मैं बहुत जच रहा था, लेकिन फिर भौजी की आँखें मेरी आँखों से मिली तो भौजी को मेरे दिल में उठ रहे दर्द का कुछ हिस्सा महसूस हुआ! मेरी आँखों से बरस रही गुस्से की आग को महसूस कर उन्हें गरमा गर्म सेंक लगा पर अभी तो उन्होंने मेरे गुस्से की आग की हलकी सी आँच महसूस की थी, अभी तो मुझे उन्हें जला कर राख करना था!
वहीं भौजी उम्मीद कर रहीं थीं की मैं बाइक से उतर कर उनके करीब आऊँगा, उन्हें अपने सीने से लगा कर गिला-शिकवा करूँगा पर मैंने भौजी की आँखों में देखते हुए बाइक पर बैठे-बैठे बड़े गुस्से से अकड़ दिखाते हुए हेलमेट पहना| मुझे हेलमेट पहनता देख भौजी जान गईं की मैं उन्हें मिले बिना ही निकलने वाला हूँ इसलिए वो तेजी से मेरी ओर चल कर आने लगीं|
मैं: भाई बाइक तेजी से निकाल!
मैंने दिषु के कान में खुसफुसाते हुए कहा| दिषु अभी तक नहीं जान पाया था की क्या हो रहा है! भौजी हम दोनों (मेरे ओर दिषु) के कुछ नजदीक पहुँची थीं, उन्होंने मुझे रोकने के लिए बस मुँह भर ही खोला था की दिषु ने बाइक भौजी की बगल से सरसराती हुई निकाली| बेचारी भौजी आँखों में आँसूँ लिए मुझे बाइक पर जाता हुआ देखती रही, उनके दिल में मुझसे बात करने की इच्छा, मुझे छूने की इच्छा दब के रह गई! वो नहीं जानती थीं की दुःख तो अभी मैंने बस देना शुरू किया है!
गुस्सा दिमाग पर हावी था तो मैंने दिषु से बाइक पब की ओर मोड़ने को कहा, पूरे रास्ता मेरे दिमाग बस भौजी और उनके साथ बिताये वो दिन याद आने लगे| मन के जिस कोने में भौजी के लिए प्यार दबा था वहाँ से आवाज आने लगी की मुझे भौजी से ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए था पर दिमाग गुस्से से भरा हुआ था और वो मन की बात को दबाने लगा था! हम एक पब पहुँचे तो मुझे याद आया की मैंने तो न पीने की कसम खाई थी! मैंने दिषु से कहा की मेरा पीने का मन नहीं है, मेरे पीने से मना करने से और उतरी हुई सूरत देख दिषु जान गया की मामला गड़बड़ है| मैंने उसे सारा सच बयान किया तो उसे मेरा दुःख समझ में आया, उसने मुझे बिठा कर बहुत समझाया और मोमोस आर्डर कर दिया| मुझे अब भौजी से कोई सरोकार नहीं था, मुझे उन्हें ignore करना था और साथ में अपने साथ हुए अन्याय के लिए जला कर राख करना था|
खैर रात का खाना खा कर मैं जानबूझ कर घर लेट पहुँचा ताकि मेरे आने तक भौजी अपने घर (गर्ग आंटी वाले घर) चली जाएँ, पर भौजी माँ के साथ बैठीं टी.वी देख रहीं थीं| मुझे देखते ही भौजी एकदम से उठ खड़ी हुईं, उन्होंने बोलने के लिए मुँह खोला ही था की मैंने उन्हें ऐसे 'नजर अंदाज' (ignore) किया जैसे वो वहाँ हों ही न!
मैं: Good night माँ!
इतना कह कर मैं सीधा अपने कमरे में आ गया, भौजी मेरे पीछे-पीछे कमरे के भीतर आना चाहतीं थीं पर मैंने दरवाजा उनके मुँह पर बंद कर दिया| कपडे बदल कर मैं लेटा पर एक पल को भी चैन नहीं मिला, मेरा दिल बहुत बेचैनी महसूस कर रहा था! मैंने अनेकों करवटें बदलीं पर एक पल को आँख नहीं लगी, मन कर रहा था की मैं खूब जोर से रोऊँ पर आँखों में जैसे पानी बचा ही नहीं था! ऐसा ही हाल मेरा तब हुआ था जब भौजी से मेरी आखरी बार बात हुई थी, मुझे लगा की शायद ये नेहा को न मिलने के कारन मेरा बुरा हाल हो रहा है! कल सुबह होते ही मैं नेहा से मिलूँगा ये सोच कर मैंने दिल को तसल्ली देना शुरू कर दिया|
जारी रहेगा भाग - 3 में....
Namste Sir ji ..... Sir me apke is khoobsurat safar me saath nahi diya iske liye mujhe afsos bhi hai aur me maafi bhi maangta hu ..... I know as a writer aap apne readers se umeed karte ho ki wo padh k review denge aur jab nahi milte to kitna nirasha hoti hai meko pata hai isiliye sorry sir..... Aur me silent reader nahi hu bus regular nahi hu ..... Kuch studies ka burden kuch middle class hone ka ......Sir wese to meko review dena ata nahi hai to kuch galat kahu to maaf karna
Ab ata hu story par to sir ye story se pehle jab apki 'काला इश्क़' tabhi se apki writing skills bhot achi lagi thi aur phir uske bad me aapki aur stories dekh raha tha phir ye mili
Aur dil lag gayaapli ye story se ....khaskar us story ki lead character ritika se ek lagav sa ho gaya tha ....lekin fir uska twist ek sawal chodh gaya ki kya sahi me itna pyaar karne ke bad bhi koi badal sakta hai ....khair wo complete ho gayi lekin ..
Is story me bhi yahi dar lag raha tha ki kahi wesa hi kuch twist aap yaha na laa do aur aapne laya ..... Ab bus ye dekhna hai ki anjaam kya hoga .....
Sir aap jis tarha se likhte hai usko words me describe nahi kar sakta... Jis baariki se aap likhte ho jis tarha se aap conversation ko represent karte ho wo + Apki story se bhot kuch seekha bhi hu kyu ki jese karuna laparwah thi wese hi me bhi hu kuch kuch .... Sir mera bhi kuch kuch maanu jesa hi hai dosti karta hu to use dil se nibhata bhi hu ab wo baat alag hai ki saamne wala use wese hi nibhata hai ki nahi .....aur jab karuna Kerala gayi us time jitna dukh maanu ko hua hoga mujhe kuch kuch to andaja hai kyu ki abhi hi meri dosti tuti hai .....
Jo insaan aapko din bhar Pareshan karta ho wohi ignore karne lage to bhot bura lagta hai .....
Bhot dino se wait tha ki kab bhauji ko vapis layenge is story me aur wo aa gayi to me bhi apne aap ko review dene se rok nahi paya ..... Isse pichle update me jab maanu bhauji ka delhi ana sun ke Pareshan ho gaya tha aur unhi ke baare me soch raha tha tab meko laga ki Neha ki yaad bhi aayegi lekin nahi aayi ....lekin phir is update me maanu ko aa hi gayi Neha ki yaad
Haa ayush se itna lagav nahi hai maanu ko kyu ki na usko dekha hai na god me liya hai ek lalak ho sakti hai bus jab ki Neha ko to wo apne saath sulata tha usko apne haatho se khilata tha ..... Ab me bada excited hu ye dekhne ki kya hoga jab maanu neha se milega ...aur kya neha wese hi rahegi jesi thi ya uske behaviour me bhi change aa gaya hoga.....finger crossed ki esa na ho .......
Aur maanu ka gussa hona jayaz hai aur fir uski soch ki bhauji ne ye apne matlb ke liye kiya uske gusse ko hawa de raha hai .... Kyu ki pehle bhauji ki Payal ki awaj se hi maanu ke chehre pe mushkurahat aa jaya karti thi wohi maanu ko ab gussa aur nafrat hone lagi hai bhauji ko saamne dekh kr ....
Lekin kya maanu ke dimaag me ek baar bhi ye khayal nahi aya ki usko bhauji se puchna chahiye ki unhone esa kyu kiya ......
Bhot hi acha update tha sir kosis karunga ab se regular review du