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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 26



अब तक आपने पढ़ा:


अपने कमरे में लौट कर जब मैंने लाइट जलाई तो मेरा मुँह खुला का खुला रह गया! पूरा पलंग अस्त-व्यस्त था, चादर गद्दे के चारों कोनो से निकली पड़ी थी, ठीक बीचों बीच भौजी की योनि से निकला खून तथा हम दोनों के स्खलन से निकला हुआ कामरज चादर से होता हुआ गद्दे को भिगा रहा था, और तो और मैं अभी दरवाजे के पास खड़ा था, वहाँ भी ज़मीन पर भौजी का कामरज फैला हुआ था! ये दृश्य देख कर मैंने अपना सर पीट लिया; 'ओ बहनचोद! ये क्या गदर मचाया तूने?!' मेरा दिमाग मुझे गरियाते हुए बोला! मैंने फटाफट कमरे की खिड़की खोली ताकि ताज़ी हवा आये और कमरे में मौजूद दो जिस्मों के मिलन की महक को अपने साथ बाहर ले जाए वरना सुबह अगर माँ कमरे में आतीं तो उन्हें सब पता चल जाता! फिर मैंने बिस्तर पर पड़ी चादर समेटी और उसी चादर से दरवाजे के पास वाली ज़मीन पर घिस कर वहाँ पड़ा हुआ भौजी का कामरज साफ़ किया! ये गन्दी चादर मैंने अपने बाथरूम में कोने में छुपा दी, फिर नई चादर पलंग पर बिछाई और मुँह-हाथ धो कर पलंग पर पसर गया! थकावट मुझ पर असर दिखाने लगी थी, पहले सम्भोग और उसके बाद सफाई के कारन मैं बहुत थक चूका था, इसलिए लेटते ही मेरी आँख लग गई! मगर चैन तो मेरी क़िस्मत में लिखा ही नहीं था सो सुबह अलग ही कोहराम मचा जब भौजी उठी ही नहीं!



अब आगे:



मैं अपने मोबाइल में हमेशा छः बजे का alarm लगाए रखता हूँ, अगली सुबह इसी alarm ने मेरी नींद तोड़ी! Alarm का शोर सुन गुस्सा तो इतना आया की मन किया की फ़ोन उठा कर बाहर फेंक दूँ! मैं उठा और alarm बंद किया और फिर लेट गया, इतने में माँ मेरी चाय ले कर आ गईं! मैं कल रात से उम्मीद कर रहा था की भौजी सुबह उठ कर मेरे लिए चाय लाएँगी, लेकिन जब मैंने माँ को चाय लिए हुए देखा तो मैं सकपका कर उठ बैठा!

माँ: ले बेटा चाय!

माँ ने चाय का कप रखते हुए कहा|

मैं: आप चाय लाये हो? वो (भौजी) उठीं नहीं क्या?

मैंने फ़ौरन चाय का कप मुँह से लगाते हुए माँ से नजरें चुराते हुए पुछा|

माँ: नहीं बेटा| रोज तो जल्दी उठ जाती है, पता नहीं आज क्यों नहीं उठी? रात में कब सोये थे तुम लोग?

माँ के सवाल को सुनकर मैं थोड़ा हड़बड़ा गया था, एक पल को तो लगा की माँ ने हमारी (भौजी और मेरी) चोरी पकड़ ली हो!

मैं: माँ....आ....नौ बजे मैंने बच्चों को सुला दिया था! फिर मैं यहाँ आके सो गया, वो भी तभी सो गई होंगी! आपको रात में टी.वी. चलने की आवाज आई थी?

मेरा सवाल सिर्फ और सिर्फ ये जानने के लिए था की कहीं माँ ने रात को हमारी (मेरी और भौजी की) कामलीला तो देख या सुन तो नहीं ली?!

माँ: पता नहीं बेटा, कल तो मैं बहुत थक गई थी! एक बार लेटी तो फिर सीधा सुबह आँख खुली|

माँ का जवाब सुन मैं आश्वस्त हो गया की माँ को कल रात आये तूफ़ान के बारे में कुछ नहीं पता चला!



मैंने फटाफट अपनी चाय पी और पलंग से उठते हुए माँ से बोला;

मैं: मैं बच्चों को उठा दूँ, वरना वो स्कूल के लिए लेट हो जायेंगे|

माँ: ठीक है बेटा मैं दोनों का नाश्ता बना देती हूँ!

माँ नाश्ता बनाने उठीं तो मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: नहीं माँ, टाइम कम है| आप चिंता मत करो मैं बच्चों के लिए कुछ बना दुँगा!

इतना कह मैं भौजी के कमरे में आया| भौजी अब भी उसी हालत में लेटी थीं जिस हालत में मैंने उन्हें कल लिटाया था| मैंने भौजी को छूते हुए उन्हें जगाया मगर वो नहीं जागीं, मुझे डर लगने लगा की कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया इसलिए मैंने अपना कान भौजी के सीने से लगा कर उनके दिल की धड़कन check की| भौजी का दिल अब भी सामान्य रूप से धड़क रहा था, मैंने सोचा की भौजी को थोड़ी देर और सो लेने देता हूँ! अब मैंने एक-एक कर दोनों बच्चों को जगाया, दोनों बच्चे जाग तो गए लेकिन फिर भी मेरी गोदी में चढ़ कर सोने लगे! दोनों को लाड करते हुए मैं अपने कमरे में आया और बड़े प्यार से दोनों को ब्रश करने को कहा|

आयुष: पापा जी, मम्मी क्यों नहीं उठीं?

आयुष ने जिज्ञासा वश सवाल पुछा|

मैं: बेटा आपकी मम्मी थकी हुई हैं, थोड़ा आराम कर लें फिर वो उठ जाएँगी!

मैंने बच्चों को दिलासा दिया और एक बार फिर भौजी के दिल की धड़कन सुनने चल दिया| मैंने पुनः भौजी को आवाज दी मगर वो नहीं उठीं, उनकी धड़कन सामन्य तौर पर चल रही थी इसलिए मैं उन्हें आराम करने के लिए छोड़ कर बच्चों के कपडे इस्त्री करने लगा| बच्चे तैयार हो कर अपनी दादी जी के पास बैठ गए, मैंने दोनों के लिए दूध बनाया और एक बार फिर भौजी की धड़कन सुनने चुपके से चल दिया| भौजी अब भी बेसुध सोइ थीं, इधर बच्चों का नाश्ता बनाना था इसलिए मैं रसोई में नाश्ता बनाने घुस गया| समय कम था तो मैंने दोनों बच्चों के लिए सैंडविच बनाये| उधर माँ फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गईं और दोनों बच्चे मेरे आस-पास खड़े हो गए, मैंने दोनों बच्चों को उनका टिफ़िन दिया| मैं जानता था की एक-एक सैंडविच से दोनों का पेट नहीं भरेगा इसलिए मैंने नेहा को 50/- रुपये का नोट देते हुए कहा;

मैं: नेहा बेटा ये आप रखो|

नेहा: पापा ये तो पचास रूपय हैं? मैं इसका क्या करूँ?

नेहा ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: बेटा एक सैंडविच से आप दोनों का पेट नहीं भरेगा, आप दोनों को अगर भूख लगे तो इन पैसों से कुछ खरीद कर खा लेना|

मैंने नेहा को समझाते हुए कहा|

आयुष: नहीं पापा!

इतना कह आयुष ने नेहा से पैसे लेके मुझे दे दिए!

आयुष: ये आप रख लो! हमारा पेट सैंडविच से भर जायेगा!

मैंने आयुष से इतनी अक्लमंदी की उम्मीद नहीं की थी! जब उसने पैसे मुझे वापस दिए तो मुझे आयुष पर गर्व होने लगा! कोई और बच्चा होता तो झट से पैसे रख लेता, मगर भौजी ने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे! बच्चों को पैसे का लालच कतई नहीं था, उन्हें बस अपने पापा का प्यार चाहिए था!

मैं: नहीं बेटा रख लो! अगर कभी जर्रूरत पड़े, या भूख लगे, कुछ खरीदना हो तो ये पैसे काम आएंगे!

मैंने पैसे वापस नेहा को दिए और नेहा ने सँभालकर पैसे अपने geometry box में रख लिए| मैंने दोनों बच्चों के माथों को चूमा और दोनों को गोद में लिए उनकी school van वैन में बिठा आया|

घर वापस आके देखा तो माँ नाश्ता बना रही थीं, मैंने भौजी की चाय गर्म की और भौजी के कमरे में आ गया| मैंने सबसे पहले भौजी की धड़कन सुनी, फिर उनके माथे पर हाथ फिराया तब एहसास हुआ की उन्हें बुखार है! शुक्र है की उनका बुखार ज्यादा तेज नहीं था, बस mild fever था! भौजी के बुखार के कारण मैं घबरा गया और उनके लिए लाई हुई चाय sidetable पर रख दी! भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए मैं घबराई आवाज में उन्हें पुकारने लगा; "जान...जान....उठो...please" पर मेरे पुकारने का कोई असर भौजी पर नहीं हुआ! रात से अभी तक मैं भौजी की बेहोशी को हलके में ले कर बहुत बड़ी गलती कर चूका था, सुबह से मैं भौजी को कई बार जगाने की कोशिश कर चूका था लेकिन भौजी न तो हिल-डुल रहीं थीं और न ही कोई जवाब दे रहीं थीं! मैंने सोचा एक आखरीबार और उन्हें (भौजी को) पुकारता हूँ, अगर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो मैं डॉक्टर को बुला लूँगा!

मैं: जान....प्लीज उठो...I'm....sorry!

मैंने घबराते हुए कहा|

भौजी: हम्म्म्म ...!

भौजी कराहते हुए जागीं! भौजी की पलकों में हरकत हुई और मेरी जान में जान आई! भौजी ने लेटे-लेटे मुस्कुराते हुए मुझे देखा, अपनी बहाएँ फैला कर अंगड़ाई ली और धीरे से उठ कर बैठने लगीं! एक तो कल भौजी ने व्रत रखा था ऊपर से मैंने उन्हें रात को निचोड़ डाला था इसलिए भौजी का पूरा बदन थकान से चूर था! मैंने भौजी को सहारा दे कर ठीक से पीठ टिका कर बिठाया और उन्हें चाय का गिलास थमाया|

भौजी: Good Morning जानू!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं! मैंने गौर किया की भौजी आज कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रहीं थीं!

मैं: Good Morning जान! यार आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी

मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा|

भौजी: क्यों?

भौजी भौचक्की हो कर पूछने लगीं|

मैं: कल रात से मैं चार बार आपकी दिल की धड़कनें check कर चूका हूँ|

मैंने चिंतित स्वर में कहा, लेकिन पता नहीं भौजी को इसमें क्या मजाकिया लगा की वो खी-खी कर हँसने लगीं!

भौजी: तो आप ये check कर रहे थी की मैं जिन्दा हूँ की नहीं! ही..ही..ही!

भौजी फिर खी-खी कर हँसने लगीं और मैं उन्हें हक्का-बक्का हो कर देखने लगा की भला इसमें हँसने वाली बात क्या है?

भौजी: मैं इतनी जल्दी आपको छोड़ के नहीं जाने वाली!

भौजी बड़े गर्व से बोलीं!

भौजी: आपने बर्फी फिल्म देखि है न? बर्फी की प्रियंका चोपड़ा की तरह मरूँगी में, आपके साथ, हाथों में हाथ लिए!!

पता नहीं इसमें क्या गर्व की बात थी, लेकिन भौजी को ये बात कहते हुए बहुत गर्व हो रहा था! भौजी कई बार ऐसी बातें करतीं थीं की गुस्सा आ जाता था!

मैं: सुबह-सुबह मरने-मारने की बातें, हे भगवान इन्हें सत बुद्धि दो!

मैंने अपना गुस्सा दबाते हुए बात को थोड़ा मजाकिया बनाते हुए कहा| भौजी ने अपने कान पकड़े और मूक भाषा में माफ़ी माँगने लगीं, तो मैंने मुस्कुरा कर उन्हें माफ़ कर दिया| भौजी उठीं और उठ के बाथरूम जाने लगीं तो मैंने गौर किया की वो लँगड़ा रही हैं|

मैं: क्या हुआ जान? आप लँगड़ा क्यों रहे हो? रात को मैं अच्छा खासा तो लेटा के गया था!

मैंने चिंता जताते हुए पुछा| मेरा सवाल सुन भौजी एक सेकंड के लिए रुकीं और कुछ सोचने लगीं, अगले पल वो मुझे देख फिर मुस्कुराईं और बाथरूम में घुस गईं| कुछ पल बाद भौजी साडी पहन कर मुस्कुराते हुए बाहर आईं, उनकी मुस्कान में कुछ तो था जो मैं पकड़ नहीं पा रहा था; शर्म, हया, प्यार?!



भौजी: बच्चे कहाँ हैं?

भौजी ने बात बदलते हुए कहा| फिर उनकी नजर घडी पर पड़ी और वो एकदम से हड़बड़ा गईं;

भौजी: हे राम! सात कब के बज गए और बच्चे स्कूल नहीं गए?!

भौजी अपना सर पीटते हुए बोलीं!

मैं: मैंने बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया और साथ ही उनका tiffin भी बना दिया!

Tiffin का नाम सुनते ही भौजी की आँखें ख़ुशी से चमकने लगीं;

भौजी: आपने tiffin बनाया? अंडा बनाया था न?

अंडे के ख्याल से भौजी को लालच आ गया और वो अपने होठों पर जीभ फिराते हुए बोलीं|

मैं: हे भगवान! सुबह उठते ही अंडा खाना है आपको?

मैंने हँसते हुए कहा| इतने में माँ कमरे में आईं, भौजी बड़ी मुश्किल से झुकीं और उनके पाँव छुए|

माँ: जीती रह बहु!

माँ ने मुस्कुराते हुए कहा और भौजी के माथे से सर की ओर हाथ फेरा तो उन्हें भौजी के बुखार का एहसास हुआ;

माँ: बहु तुझे तो बुखार है!

माँ की बात सुन भौजी हड़बड़ा गईं और जैसे-तैसे झूठ बोलने लगीं;

भौजी: नहीं माँ...वो…बस हलकी सी हरारत है!

मैं जानता था की भौजी ये झूठ बोल कर घर का काम करने लगेंगी और बीमार पड़ जाएँगी, इसलिए मैंने तैश में आ कर भौजी का हाथ थामा और उन्हें खींच कर पलंग पर बिठा दिया;

मैं: आप लेटो यहाँ!

उस समय एक प्रेमी को उसकी परिणीता की सेहत की चिंता थी, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था की उसकी (मेरी) माँ सामने खड़ी है!

माँ: तू आराम कर बहु|

माँ ने भी अपनी चिंता जताते हुए कहा| शुक्र है की माँ मेरे भौजी के प्रति अधिकार की भावना (possessiveness) को दोस्ती की नजर से देख रहीं थीं!

भौजी: लेकिन माँ, मेरे होते हुए आप काम करो मुझे ये अच्छा नहीं लगता!

भौजी की बात सही भी थी, इसलिए मैंने रसोई सँभालने की सोची;

मैं: ठीक है, रसोई आज मैं सँभाल लूँगा|

जिस तरह मुझे अपनी परिणीता की सेहत की चिंता थी, उसी तरह भौजी को अपने प्रियतम की सेहत की चिंता थी;

भौजी: नहीं, आप भी थके हो|

भौजी अपने जोश में मेरे कल व्रत रखने की बात कहने वाली थीं, लेकिन मैंने किसी तरह बात बात सँभाली;

मैं: कम से कम मुझे बुखार तो नहीं है!

माँ: तू रहने दे! उस दिन मैगी बनाते-बनाते तूने और बच्चों ने रसोई की हालत खराब कर दी थी!

माँ ने मुझे प्यार से झिड़का! अब माँ ने भौजी को प्यार से समझाना शुरू किया;

माँ: बहु तू आराम कर, बस हम तीन लोग ही तो हैं! आज का दिन आराम कर और कल से तू काम सँभाल लिओ|

माँ भौजी को प्यार से समझा कर पड़ोस में जाने को तैयार होने लगीं और इधर मैंने भौजी को चाय के साथ crocin दे दी! माँ कपडे बदल कर आईं और मुझसे बोलीं;

माँ: बेटा मैं कमला आंटी के साथ उनकी बेटी को देखने अस्पताल जा रही हूँ| तुम दोनों का नाश्ता मैंने बना दिया है, याद से खा लेना| मैं 1-२ घंटे में आ जाऊँगी!

माँ के जाते ही मैंने भौजी पर अपना सवाल दागा;

मैं: अब बताओ की आप लंगड़ा क्यों रहे थे, कहीं चोट लगी है?

मेरा सवाल सुन भौजी की आँखों में लाल डोरे तैरने लगे और मुझे देखते हुए वो फिर मुस्कुराने लगीं!

मैं: बताओ न?

मैंने थोड़ा जोर दे कर पुछा|

भौजी: वो...वो..ना.....

भौजी के गाल शर्म से लाल हो चुके थे!

मैं: क्या वो-वो लगा रखा है|

मैंने बेसब्र होते हुए पुछा, लेकिन इतने में साइट से फोन अ गया| मैंने फोन उठा के कहा;

मैं: मैं बाद में करता हूँ|

इतना कह कर मैंने फ़ोन रख दिया और फिर से भौजी की ओर देखने लगा;

भौजी: पहले आप फोन निपटाओ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: वो जर्रुरी नहीं है, आप ज्यादा जर्रुरी हो|

मैंने चिंतित होते हुए कहा|

भौजी: अच्छा बाबा!

भौजी हँसते हुए बोलीं|

भौजी: मेरी....."वो" (सुकुमारी)...सूज...गई है!

भौजी शर्माते हुए बोलीं! हैरानी की बात थी की भौजी शिकायत नहीं कर रहीं थीं, बल्कि खुश थीं!

मैं: Oh Shit!

भौजी की बात सुन मैं एकदम से उठा और रसोई की तरफ भागा| मैंने पानी गर्म करने को रखा, घर का प्रमुख दरवाज़ा बंद किया और माँ के कमरे से रुई का बड़ा सा टुकड़ा ले आया| गर्म पानी का पतीला और रुई ले कर मैं भौजी के पास लौटा| मेरे हाथ में पतीला देख भौजी को हैरानी हुई;

भौजी: ये क्या है?

मैं: आपको सेंक देने के लिए पानी गर्म किया है|

सेंक देने की बात सुनते ही भौजी घबरा गईं और बोलीं;

भौजी: नहीं...नहीं रहने दो ...ठीक हो जायेगा!

भौजी शर्माते हुए नजरें चुराने लगी!

मैं: जान please जिद्द मत करो, आप लेट जाओ!

मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा| मैंने भौजी को जबरदस्ती लिटा दिया, फिर उनकी साडी सामने से उठा के उनके पेट पर रख दी और दोनों हाथों से उनकी टाँगें चौड़ी कीं| भौजी की 'फूलमती' सूज कर लाल हो चुकी थी, भौजी की ये हालत देख मुझे आत्मग्लानि हो रही थी की क्यों मैंने उत्तेजना में बहते हुए भौजी के साथ ऐसी बर्बरता की!

मैंने पतीले के पानी का तापमान check किया की कहीं वो अधिक गर्म तो नहीं?! पानी गुनगुना गर्म था, मैंने उसमें रुई का एक बड़ा टुकड़ा डुबाया और पानी निचोड़ कर रुई का टुकड़ा भौजी की फूलमती पर रख दिया! रुई के गर्म स्पर्श से भौजी की आँखें बंद हो गईं तथा उनके मुख से ठंडी सीत्कार निकली; "ससस...आह!" भौजी की आँखें बंद हो चुकी थीं, गर्म पानी की सिकाई से उन्हें काफी राहत मिल रही थी, इसलिए मैं चुपचाप सिकाईं करने लगा| हम दोनों ही खामोश थे और इस ख़ामोशी ने मुझे मेरी गलती का एहसास करा दिया था! जिंदगी में पहलीबार मैंने भौजी को ऐसा दर्द दिया था, पता नहीं रात को मुझ पर कौन सा भूत सवार हुआ था की मैंने अपना आपा खो दिया! 'बड़ा फक्र कर रहा था की तेरा खुद पर जबरदस्त control है? यही था control? देख तूने अपने प्यार की क्या हालत कर दी है?' मेरा दिल मुझे झिड़कने लगा था और ये झिड़की सुन मुझे बहुत बुरा लग रहा था| आत्मग्लानि मुझ पर इस कदर सवार हुई की मेरी आँखें भर आईं और मेरे आँसुओं का एक कतरा बहता हुआ भौजी की टाँग पर जा गिरा!



मेरे आँसू की बूँद के एहसास से भौजी की आँख खुल गई, मेरी भीगी आँखें देख वो एकदम से उठ बैठीं और मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेते हुए पूछने लगीं;

भौजी: क्या हुआ जानू?

मैं: I'm so sorry!!! कल रात मैंने अपना आपा खो दिया था और आपके साथ ये अत्याचार कर बैठा! मेरा विश्वास करो, मैं आपके साथ ये नहीं करना चाहता था!

मेरे ग्लानि भरे शब्द सुन भौजी को मेरी मनोस्थिति समझ आई|

भौजी: जानू आपने कुछ नहीं किया, मैंने जानबूझकर आपको उकसाया था! और ये कोई नासूर नहीं जो ठीक नहीं होगा, बस थोड़ी सी सूजन है जो एक-आध दिन में चली जायेगी| आप खाम्खा इतना परेशान हो जाते हो!

भौजी ने मेरे आँसूँ अपने आँचल से पोछे|

मैं: नहीं जान! मेरी गलती है....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही भौजी ने मेरी बात काट दी;

भौजी: Hey I actually kinda enjoyed this!

भौजी ने फिर शर्म से सर झुकाते हुए कहा|

भौजी: इसीलिए तो मैं सुबह से मुस्कुरा रही थी!

भौजी हँसते हुए मुझसे नजरें चुराते हुए बोलीं! भौजी की बात सुन मैं हैरान था की बजाए मुझसे नाराज होने या शिकायत करने के इनको कल रात का मेरा जंगलीपना देख मज़ा आ रहा है?

मैं: Enjoyed? What’s there to enjoy? आप बस बातें बना रहे हो ताकि मुझे बुरा न लगे!

मैंने भोयें सिकोड़ कर कहा|

भौजी: नहीं बाबा, आपकी कसम मैं झूठ नहीं बोल रही! उस रात जब आप मुझे अकेला छोड़ गए थे तब से मेरा मन आपके लिए प्यासा था! एक दिन मैंने hardcore वाला porn देखा था और उसी दिन से ये मेरी fantasy थी की हमारा मिलन जब हो तो मेरी यही हालत हो जो अभी हुई है!

भौजी लजाते हुए बोलीं| मैं ये तो जानता था की भौजी को porn देखना सिखा कर मैंने गलती की है, मगर वो ऐसी fantasy पाले बैठीं थीं मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी!

मैं: You’re getting kinky day by day!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा तो भौजी हँस पड़ीं!



सिकाईं के लिए लाया हुआ पानी ठंडा हो चूका था, इसलिए मैंने पतीला उठा कर नीचे रखा| इधर मेरा फोन दुबारा बज उठा था, इस बार दिषु ने कॉल किया था| मैंने भौजी के कपडे ठीक किये और फोन उठा कर बात करने लगा|

मैं: बोल भाई!

दिषु: यार मुझे गुडगाँव निकलना था, वापसी रात तक होगी इसलिए गाडी चाहिए थी, तुझे कोई काम तो नहीं?

मैं: यार गाडी तेरी है, जब चाहे ले जा| वैसे भी मुझे आज कोई काम नहीं, आज मैं घर पर ही हूँ!

मैंने घर पर रहने की बात भौजी की तरफ देखते हुए कहा|

दिषु: चल ठीक है मैं आ रहा हूँ|

मैंने फ़ोन रखा तो भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देख रहीं थीं!

भौजी: क्या मतलब घर पर ही हूँ, साइट पर नहीं जाना?

भौजी अपनी कमर पर हाथ रखते हुए झूठ गुस्सा दिखाते बोलीं|

मैं: भई आज तो मैं घर पर रह कर आपकी देखभाल करूँगा|

मैंने जिम्मेदार पति की तरह कहा| भौजी आगे कुछ कहतीं उसके पहले मेरा फ़ोन फिर बज उठा, इस बार लेबर का फ़ोन था;

मैं: हाँ बोलो भाई क्या दिक्कत है?

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा|

लेबर: साहब माल नहीं आया साइट पर और आप कब तक आएंगे?

मैं: संतोष कहाँ है?

लेबर ने संतोष को फ़ोन दिया;

मैं: संतोष भाई, आज प्लीज काम संभाल लो, मैं आज नहीं आ पाउँगा|

मैंने आने से मना किया तो संतोष को लगा की कोई चिंता की बात है;

संतोष: भैया कोई emergency तो नहीं है?

संतोष चिंतित होते हुए पूछने लगा|

मैं: नहीं यार! आज किसी के तबियत खराब है!

मैंने भौजी को कनखी आँखों से देखते हुए कहा|

संतोष: किस की साहब? माँ जी ठीक तो हैं?

मैं: हाँ-हाँ वो ठीक हैं! बस है कोई ख़ास!

मैंने मुस्कुरा कर भौजी को देखते हुए कहा| भौजी मेरी बातों का मतलब समझ रहीं थीं, मेरा उनको ले कर possessive हो जाना भौजी को अच्छा लगता था!

मैं: और वैसे भी आज मेरे पास गाडी नहीं है, अब यहाँ से गुडगाँव आऊँगा, एक घंटा उसमें खपेगा और फिर रात को रूक भी नहीं सकता, इसलिए बस आज का दिन काम सँभाल लो कल से मैं आ ही जाऊँगा|

संतोष: ठीक है भैया! आप जरा रोड़ी और बदरपुर के लिए बोल दो और मैं कल आपको सारा हिसाब दे दूँगा|

मैं: ठीक है, मैं अभी बोल देता हूँ|

मैंने फ़ोन रखा और सीधा supplier से बात कर के माल का order दे दिया! मैं फ़ोन रखा तो भौजी कुछ कहने वाली हुईं थीं;

मैं: हाँ जी बेगम साहिबा कहिये!

मैंने स्वयं ही भौजी से पूछा|

भौजी: आप पहले गाडी ले लो, बच्चों के लिए FD बाद में करा लेंगे!

मैं: Hey मेरा decision final है और मैं इसके बारे में मैं कुछ नहीं सुनना चाहता!

मैंने गुस्से से कहा|

भौजी: पर गाडी ज्यादा जर्रुरी है! उससे आपका काम आसान हो जाएगा!

भौजी ने मेरी बात काटनी चाही जो मुझे नगवार गुजरी;

मैं: NO AND END OF DISCUSSION!

मैंने गुस्से में बात खत्म करते हुए कहा| कई बार मैं भौजी के साथ गुस्से में बड़ा रुखा व्यवहार करता था, लेकिन इस बार मैं सही था! गाडी से ज्यादा जर्रूरी मेरे बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना था!



खैर मैंने गुस्सा कर के भौजी को नाराज कर दिया था और अब मुझे उन्हें मनाना था;

मैं: मैं नाश्ता ले के आता हूँ|

मैंने बात बनाते हुए कहा|

भौजी: मुझे नहीं खाना!

भौजी ने रुठते हुए अपना मुँह फुला कर कहा!

मैं: Awwwww मेरा बच्चा नाराज हो गया! Awwwww!!!

मैंने भौजी को मक्खन लगाने के लिए किसी छोटे बच्चे की तरह दुलार किया|

भौजी: आप मेरी बात कभी नहीं मानते!

भौजी आयुष की तरह अपना निचला होंठ फुलाते हुए बोलीं! मैंने अपनी आँखें बड़ी करके अपनी हैरानी जाहिर की;

भौजी: हाँ-हाँ कल रात आपने मेरी बात मानी थी|

कल रात जब मैं भौजी को तीसरे round के लिए मना कर रहा था तब उन्होंने विनती की थी की मैं न रुकूँ!

मैंने फिर से वैसे ही आँखें बड़ी कर के हैरानी जताई;

भौजी: हाँ-हाँ! आपने पाँच साल पहले भी मेरी बात मानी थी|

पाँच साल पहले भौजी ने मुझे खुद से दूर रहने को कहा था और मैंने तब भी उनकी बात मानी थी| मैंने तीसरी बार फिर भौजी को अपनी हैरानी जताई;

भौजी: ठीक है बाबा! आप मेरी सब बात मानते हो, बस! अब नाश्ता ले आओ और मेरे साथ बैठ के खाओ|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| उनका गुस्सा उतर चूका था और वो पहले की तरह मुस्कुराने लगीं थीं|

मैं नाश्ता लेने गया और घर का प्रमुख दरवाजा खोल दिया| इतने में दिषु आ गया और चाभी ले कर निकलने लगा, मैंने उसे नाश्ते के लिए पुछा तो उसने पराँठा हाथ में पकड़ा और खाते हुए चला गया! मैं हम दोनों का (भौजी और मेरा) नाश्ता लेकर भौजी के पास आ गया| हमने बड़े प्यार से एक-दूसरे को खाना खिलाया और थोड़ा हँसी-मजाक करने लगे! थोड़ी देर में माँ घर लौट आईं और सीधा भौजी वाले कमरे में आ गईं;

माँ: बहु अब कैसा लग रहा है?

माँ ने भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए पुछा|

माँ: मानु, तूने दवाई दी बहु को?

माँ ने पुछा|

मैं: जी चाय के साथ दी थी|

भौजी: माँ मुझे अब बेहतर लग रहा है, आप बैठो मैं खाना बनाना शुरू करती हूँ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और उठने लगीं, मैंने भौजी का हाथ पकड़ उन्हें फिर से बिठा दिया और उनपर हक़ जताते हुए बोला;

मैं: अभी आपका बुखार उतरा नहीं है, चुपचाप आराम करो! मैं खाना बाहर से मँगा लेता हूँ|

मैंने चौधरी बनते हुए कहा|

माँ: ठीक है बेटा, मगर कुछ अटर-पटर खाना मत मँगा लिओ| पता चले तू बहु का पेट भी ख़राब कर दे!

माँ मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं!

माँ: और बहु तू आराम कर!

माँ ने भौजी को आराम करने को कहा लेकिन भौजी को माँ के साथ समय बिताना था;

भौजी: माँ मैं अकेली यहाँ bore हो जाऊँगी!

मैं: तो आप और मैं tablet पर फिल्म देखते हैं?!

मैं बीच में बोल पड़ा|

माँ: जो देखना है देखो, मैं चली CID देखने|

माँ हँसते हुए बोलीं!

भौजी: माँ, मैं भी आपके पास ही बैठ जाती हूँ|

भौजी की बात सुन मैं आश्चर्यचकित हो कर उन्हें देखने लगा, क्योंकि मैं सोच रहा था की भौजी और मैं साथ बैठ कर फिल्म देखें, लेकिन भौजी की बात सुन मेरा plan खराब हो चूका था!

माँ: ठीक है बहु, तू सोफे पर लेट जा और मैं कुर्सी पर बैठ जाती हूँ|

माँ भौजी के साथ CID देखने के लिए राजी हो गईं थीं|

मैं: ठीक है भई आप सास-बहु का तो program set हो गया, मैं चला अपने कमरे में!

मेरी बात सुन सास-बहु हँसने लगे| मेरा माँ को भौजी की सास कहना उन्हें (भौजी को) बहुत अच्छा लगता था| मैं अपने कमरे की तरफ घूमा ही था की माँ ने पीछे से पुछा;

माँ: बेटा, आज काम पर नहीं जाना?

मैं: नहीं! संतोष आज काम सँभाल लेगा, कल चला जाऊँगा|

भौजी के सामने माँ से झूठ नहीं बोल सकता था, इसलिए मैंने बात घुमा दी!

माँ: जैसी तेरी मर्जी|

मैं अपने कमरे में आ गया और कुछ bill और accounts लिखने लगा, उधर भौजी तथा माँ बैठक में CID देखने लगे!



कुछ देर बाद मुझे प्यास लगी तो मैं पानी लेने के लिए रसोई में जाने लगा तो बैठक का नजारा देख के चौखट पर चुपचाप खड़ा हो गया| भौजी ने माँ की गोद में सर रख रखा था और माँ टी.वी. देखते हुए उनका सर थपथपा रहीं थीं| मैं धीरे-धीरे चलते हुए माँ के पास आया, जैसे ही माँ की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे चुप रहने का इशारा किया| भौजी माँ की गोदी में सर रखे हुए सो चुकी थीं| भौजी को यूँ माँ की गोदी में सर रख कर सोता देख मेरे दिल में गुदगुदी होने लगी थी! मैं चुपचाप पानी ले कर अपने कमरे में लौट आया और पानी पीते हुए अभी देखे हुए मनोरम दृश्य के बारे में सोचने लगा| भौजी ने मेरे दिल के साथ-साथ इस घर में भी अपनी जगह धीरे-धीरे बना ली थी! मेरे माँ-पिताजी को भौजी अपने माँ-पिताजी मानती थीं| पिताजी के दिल में भौजी के लिए बेटी वाला प्यार था, वहीं दोनों बच्चों को पिताजी खूब लाड करते थे, हमेशा उनके लिए चॉकलेट या टॉफी लाया करते थे! उधर माँ के लिए तो भौजी बेटी समान ही थीं, मेरे से ज्यादा तो माँ की भौजी से बनने लगी थी!

'क्या भौजी इस घर का हिस्सा बन सकती हैं?' एक सवाल मेरे ज़ेहन में उठा! ये था तो बड़ा ही नामुमकिन सा सवाल; 'Impossible!' दिमाग बोला, लेकिन दिल को ये सवाल बहुत अच्छा लगा था! इस सवाल को सोचते हुए मैं कल्पना करने लगा की कैसा होता अगर भौजी इस घर का हिस्सा होती हैं? किसी की कल्पना पर किसका जोर चलता है? अपनी इस कल्पना में खो कर मेरी आँख लग गई|



दो घंटे बड़े चैन की नींद आई, फिर एक डरावना सपने ने मेरी नींद तोड़ दी! मैंने सपना देखा की मैं भौजी को i-pill देना भूल गया और उनकी pregnancy ने घर में बवाल खड़ा कर दिया! ऐसा बवाल की बात मार-काट पर आ गई! मैं चौंक कर उठ बैठा और फटाफट घडी देखि, पौने एक हो रहा था मतलब खाने का समय हो चूका था| मैं फटाफट कपडे पहन कर बाहर बैठक में आया, भौजी तो पहले ही सो चुकी थीं लेकिन अब माँ की भी आँख लग चुकी थी और टी.वी. चालु था| मैं दबे पाँव बाहर जाने लगा तो दरवाजा खुलने की आहट से माँ की आँख खुल गई, उन्होंने इशारे से पुछा की मैं कहाँ जा रहा हूँ? मैंने इशारे से बता दिया की मैं खाना लेने जा रहा हूँ, माँ ने सर हाँ में हिलाते हुए मुझे जाने की आज्ञा दी और मैं चुप-चाप बाहर निकल गया| मुझे सबसे पहले लेनी थी i-pill जो मैं अपने घर के पास वाली दवाई की दूकान से नहीं ले सकता था क्योंकि वे सब मुझे और पिताजी को जानते थे| अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए मैंने दूसरी colony जाने के लिए ऑटो किया, वहाँ पहुँच कर मैंने दवाई की दूकान ढूँढी और भौजी के लिए i-pill का पत्ता लिया| फिर मैंने घर के लिए खाना पैक कराया और वापस अपनी colony लौट आया| खाना हाथ में लिए मैं बच्चों के आने का इंतजार करने लगा, 5 मिनट में बच्चों की school van आ गई और मुझे खड़ा हुआ देख दोनों कूदते हुए आ कर मुझसे लिपट गए| खाने की खुशबु से दोनों जान गए की मेरे हाथ में खाना है, आयुष ने तो चाऊमीन की रट लगा ली मगर नेहा ने उसे प्यार से डाँटते हुए कहा:

नेहा: चुप! जब देखो चाऊमीन खानी है तुझे!

आयुष बेचारा खामोश हो गया, मैंने प्यार से उसे समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा आपकी दादी जी चाऊमीन नहीं खातीं न, इसलिए मैंने सिर्फ खाना पैक करवाया है|

आयुष मेरी बात समझ गया और मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: ठीक है पापा जी, चाऊमीन फिर कभी खाएँगे!

आयुष बिलकुल जिद्दी नहीं था, मेरी कही हर बात समझ जाता था!



खैर मैं खाना और बच्चों को ले कर घर पहुँचा, घर का दरवाजा खुला तो बच्चों ने अपनी मम्मी को अपनी दादी जी की गोदी में सर रख कर सोये हुए पाया! दोनों बच्चे चुप-चाप खड़े हो गए, आज जिंदगी में पहलीबार वो अपनी मम्मी को इस तरह सोते हुए देख रहे थे! माँ ने जब हम तीनों को देखा तो बड़े प्यार से भौजी के बालों में हाथ फिराते हुए उठाया;

माँ: बहु......बेटा......उठ...खाना खा ले|

भौजी ने धीरे से अपनी आँख खोली और मुझे तथा बच्चों को चुपचाप खुद को निहारते हुए पाया! फिर उन्हें एहसास हुआ की वो माँ की गोदी में सर रख कर सो गईं थीं, वो धीरे से उठ कर बैठने लगीं और आँखों के इशारे से मुझसे पूछने लगीं की; 'की क्या देख रहे हो?' जिसका जवाब मैंने मुस्कुरा कर सर न में हिलाते हुए दिया! जाने मुझे ऐसा क्यों लगा की माँ की गोदी में सर रख कर सोने से भौजी को खुद पर बहुत गर्व हो रहा है!




जारी रहेगा भाग - 27 में...
 

aman rathore

Enigma ke pankhe
4,853
20,198
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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 26



अब तक आपने पढ़ा:


अपने कमरे में लौट कर जब मैंने लाइट जलाई तो मेरा मुँह खुला का खुला रह गया! पूरा पलंग अस्त-व्यस्त था, चादर गद्दे के चारों कोनो से निकली पड़ी थी, ठीक बीचों बीच भौजी की योनि से निकला खून तथा हम दोनों के स्खलन से निकला हुआ कामरज चादर से होता हुआ गद्दे को भिगा रहा था, और तो और मैं अभी दरवाजे के पास खड़ा था, वहाँ भी ज़मीन पर भौजी का कामरज फैला हुआ था! ये दृश्य देख कर मैंने अपना सर पीट लिया; 'ओ बहनचोद! ये क्या गदर मचाया तूने?!' मेरा दिमाग मुझे गरियाते हुए बोला! मैंने फटाफट कमरे की खिड़की खोली ताकि ताज़ी हवा आये और कमरे में मौजूद दो जिस्मों के मिलन की महक को अपने साथ बाहर ले जाए वरना सुबह अगर माँ कमरे में आतीं तो उन्हें सब पता चल जाता! फिर मैंने बिस्तर पर पड़ी चादर समेटी और उसी चादर से दरवाजे के पास वाली ज़मीन पर घिस कर वहाँ पड़ा हुआ भौजी का कामरज साफ़ किया! ये गन्दी चादर मैंने अपने बाथरूम में कोने में छुपा दी, फिर नई चादर पलंग पर बिछाई और मुँह-हाथ धो कर पलंग पर पसर गया! थकावट मुझ पर असर दिखाने लगी थी, पहले सम्भोग और उसके बाद सफाई के कारन मैं बहुत थक चूका था, इसलिए लेटते ही मेरी आँख लग गई! मगर चैन तो मेरी क़िस्मत में लिखा ही नहीं था सो सुबह अलग ही कोहराम मचा जब भौजी उठी ही नहीं!



अब आगे:



मैं अपने मोबाइल में हमेशा छः बजे का alarm लगाए रखता हूँ, अगली सुबह इसी alarm ने मेरी नींद तोड़ी! Alarm का शोर सुन गुस्सा तो इतना आया की मन किया की फ़ोन उठा कर बाहर फेंक दूँ! मैं उठा और alarm बंद किया और फिर लेट गया, इतने में माँ मेरी चाय ले कर आ गईं! मैं कल रात से उम्मीद कर रहा था की भौजी सुबह उठ कर मेरे लिए चाय लाएँगी, लेकिन जब मैंने माँ को चाय लिए हुए देखा तो मैं सकपका कर उठ बैठा!

माँ: ले बेटा चाय!

माँ ने चाय का कप रखते हुए कहा|

मैं: आप चाय लाये हो? वो (भौजी) उठीं नहीं क्या?

मैंने फ़ौरन चाय का कप मुँह से लगाते हुए माँ से नजरें चुराते हुए पुछा|

माँ: नहीं बेटा| रोज तो जल्दी उठ जाती है, पता नहीं आज क्यों नहीं उठी? रात में कब सोये थे तुम लोग?

माँ के सवाल को सुनकर मैं थोड़ा हड़बड़ा गया था, एक पल को तो लगा की माँ ने हमारी (भौजी और मेरी) चोरी पकड़ ली हो!

मैं: माँ....आ....नौ बजे मैंने बच्चों को सुला दिया था! फिर मैं यहाँ आके सो गया, वो भी तभी सो गई होंगी! आपको रात में टी.वी. चलने की आवाज आई थी?

मेरा सवाल सिर्फ और सिर्फ ये जानने के लिए था की कहीं माँ ने रात को हमारी (मेरी और भौजी की) कामलीला तो देख या सुन तो नहीं ली?!

माँ: पता नहीं बेटा, कल तो मैं बहुत थक गई थी! एक बार लेटी तो फिर सीधा सुबह आँख खुली|

माँ का जवाब सुन मैं आश्वस्त हो गया की माँ को कल रात आये तूफ़ान के बारे में कुछ नहीं पता चला!



मैंने फटाफट अपनी चाय पी और पलंग से उठते हुए माँ से बोला;

मैं: मैं बच्चों को उठा दूँ, वरना वो स्कूल के लिए लेट हो जायेंगे|

माँ: ठीक है बेटा मैं दोनों का नाश्ता बना देती हूँ!

माँ नाश्ता बनाने उठीं तो मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: नहीं माँ, टाइम कम है| आप चिंता मत करो मैं बच्चों के लिए कुछ बना दुँगा!

इतना कह मैं भौजी के कमरे में आया| भौजी अब भी उसी हालत में लेटी थीं जिस हालत में मैंने उन्हें कल लिटाया था| मैंने भौजी को छूते हुए उन्हें जगाया मगर वो नहीं जागीं, मुझे डर लगने लगा की कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया इसलिए मैंने अपना कान भौजी के सीने से लगा कर उनके दिल की धड़कन check की| भौजी का दिल अब भी सामान्य रूप से धड़क रहा था, मैंने सोचा की भौजी को थोड़ी देर और सो लेने देता हूँ! अब मैंने एक-एक कर दोनों बच्चों को जगाया, दोनों बच्चे जाग तो गए लेकिन फिर भी मेरी गोदी में चढ़ कर सोने लगे! दोनों को लाड करते हुए मैं अपने कमरे में आया और बड़े प्यार से दोनों को ब्रश करने को कहा|

आयुष: पापा जी, मम्मी क्यों नहीं उठीं?

आयुष ने जिज्ञासा वश सवाल पुछा|

मैं: बेटा आपकी मम्मी थकी हुई हैं, थोड़ा आराम कर लें फिर वो उठ जाएँगी!

मैंने बच्चों को दिलासा दिया और एक बार फिर भौजी के दिल की धड़कन सुनने चल दिया| मैंने पुनः भौजी को आवाज दी मगर वो नहीं उठीं, उनकी धड़कन सामन्य तौर पर चल रही थी इसलिए मैं उन्हें आराम करने के लिए छोड़ कर बच्चों के कपडे इस्त्री करने लगा| बच्चे तैयार हो कर अपनी दादी जी के पास बैठ गए, मैंने दोनों के लिए दूध बनाया और एक बार फिर भौजी की धड़कन सुनने चुपके से चल दिया| भौजी अब भी बेसुध सोइ थीं, इधर बच्चों का नाश्ता बनाना था इसलिए मैं रसोई में नाश्ता बनाने घुस गया| समय कम था तो मैंने दोनों बच्चों के लिए सैंडविच बनाये| उधर माँ फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गईं और दोनों बच्चे मेरे आस-पास खड़े हो गए, मैंने दोनों बच्चों को उनका टिफ़िन दिया| मैं जानता था की एक-एक सैंडविच से दोनों का पेट नहीं भरेगा इसलिए मैंने नेहा को 50/- रुपये का नोट देते हुए कहा;

मैं: नेहा बेटा ये आप रखो|

नेहा: पापा ये तो पचास रूपय हैं? मैं इसका क्या करूँ?

नेहा ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: बेटा एक सैंडविच से आप दोनों का पेट नहीं भरेगा, आप दोनों को अगर भूख लगे तो इन पैसों से कुछ खरीद कर खा लेना|

मैंने नेहा को समझाते हुए कहा|

आयुष: नहीं पापा!

इतना कह आयुष ने नेहा से पैसे लेके मुझे दे दिए!

आयुष: ये आप रख लो! हमारा पेट सैंडविच से भर जायेगा!

मैंने आयुष से इतनी अक्लमंदी की उम्मीद नहीं की थी! जब उसने पैसे मुझे वापस दिए तो मुझे आयुष पर गर्व होने लगा! कोई और बच्चा होता तो झट से पैसे रख लेता, मगर भौजी ने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे! बच्चों को पैसे का लालच कतई नहीं था, उन्हें बस अपने पापा का प्यार चाहिए था!

मैं: नहीं बेटा रख लो! अगर कभी जर्रूरत पड़े, या भूख लगे, कुछ खरीदना हो तो ये पैसे काम आएंगे!

मैंने पैसे वापस नेहा को दिए और नेहा ने सँभालकर पैसे अपने geometry box में रख लिए| मैंने दोनों बच्चों के माथों को चूमा और दोनों को गोद में लिए उनकी school van वैन में बिठा आया|

घर वापस आके देखा तो माँ नाश्ता बना रही थीं, मैंने भौजी की चाय गर्म की और भौजी के कमरे में आ गया| मैंने सबसे पहले भौजी की धड़कन सुनी, फिर उनके माथे पर हाथ फिराया तब एहसास हुआ की उन्हें बुखार है! शुक्र है की उनका बुखार ज्यादा तेज नहीं था, बस mild fever था! भौजी के बुखार के कारण मैं घबरा गया और उनके लिए लाई हुई चाय sidetable पर रख दी! भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए मैं घबराई आवाज में उन्हें पुकारने लगा; "जान...जान....उठो...please" पर मेरे पुकारने का कोई असर भौजी पर नहीं हुआ! रात से अभी तक मैं भौजी की बेहोशी को हलके में ले कर बहुत बड़ी गलती कर चूका था, सुबह से मैं भौजी को कई बार जगाने की कोशिश कर चूका था लेकिन भौजी न तो हिल-डुल रहीं थीं और न ही कोई जवाब दे रहीं थीं! मैंने सोचा एक आखरीबार और उन्हें (भौजी को) पुकारता हूँ, अगर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो मैं डॉक्टर को बुला लूँगा!

मैं: जान....प्लीज उठो...I'm....sorry!

मैंने घबराते हुए कहा|

भौजी: हम्म्म्म ...!

भौजी कराहते हुए जागीं! भौजी की पलकों में हरकत हुई और मेरी जान में जान आई! भौजी ने लेटे-लेटे मुस्कुराते हुए मुझे देखा, अपनी बहाएँ फैला कर अंगड़ाई ली और धीरे से उठ कर बैठने लगीं! एक तो कल भौजी ने व्रत रखा था ऊपर से मैंने उन्हें रात को निचोड़ डाला था इसलिए भौजी का पूरा बदन थकान से चूर था! मैंने भौजी को सहारा दे कर ठीक से पीठ टिका कर बिठाया और उन्हें चाय का गिलास थमाया|

भौजी: Good Morning जानू!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं! मैंने गौर किया की भौजी आज कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रहीं थीं!

मैं: Good Morning जान! यार आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी

मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा|

भौजी: क्यों?

भौजी भौचक्की हो कर पूछने लगीं|

मैं: कल रात से मैं चार बार आपकी दिल की धड़कनें check कर चूका हूँ|

मैंने चिंतित स्वर में कहा, लेकिन पता नहीं भौजी को इसमें क्या मजाकिया लगा की वो खी-खी कर हँसने लगीं!

भौजी: तो आप ये check कर रहे थी की मैं जिन्दा हूँ की नहीं! ही..ही..ही!

भौजी फिर खी-खी कर हँसने लगीं और मैं उन्हें हक्का-बक्का हो कर देखने लगा की भला इसमें हँसने वाली बात क्या है?

भौजी: मैं इतनी जल्दी आपको छोड़ के नहीं जाने वाली!

भौजी बड़े गर्व से बोलीं!

भौजी: आपने बर्फी फिल्म देखि है न? बर्फी की प्रियंका चोपड़ा की तरह मरूँगी में, आपके साथ, हाथों में हाथ लिए!!

पता नहीं इसमें क्या गर्व की बात थी, लेकिन भौजी को ये बात कहते हुए बहुत गर्व हो रहा था! भौजी कई बार ऐसी बातें करतीं थीं की गुस्सा आ जाता था!

मैं: सुबह-सुबह मरने-मारने की बातें, हे भगवान इन्हें सत बुद्धि दो!

मैंने अपना गुस्सा दबाते हुए बात को थोड़ा मजाकिया बनाते हुए कहा| भौजी ने अपने कान पकड़े और मूक भाषा में माफ़ी माँगने लगीं, तो मैंने मुस्कुरा कर उन्हें माफ़ कर दिया| भौजी उठीं और उठ के बाथरूम जाने लगीं तो मैंने गौर किया की वो लँगड़ा रही हैं|

मैं: क्या हुआ जान? आप लँगड़ा क्यों रहे हो? रात को मैं अच्छा खासा तो लेटा के गया था!

मैंने चिंता जताते हुए पुछा| मेरा सवाल सुन भौजी एक सेकंड के लिए रुकीं और कुछ सोचने लगीं, अगले पल वो मुझे देख फिर मुस्कुराईं और बाथरूम में घुस गईं| कुछ पल बाद भौजी साडी पहन कर मुस्कुराते हुए बाहर आईं, उनकी मुस्कान में कुछ तो था जो मैं पकड़ नहीं पा रहा था; शर्म, हया, प्यार?!



भौजी: बच्चे कहाँ हैं?

भौजी ने बात बदलते हुए कहा| फिर उनकी नजर घडी पर पड़ी और वो एकदम से हड़बड़ा गईं;

भौजी: हे राम! सात कब के बज गए और बच्चे स्कूल नहीं गए?!

भौजी अपना सर पीटते हुए बोलीं!

मैं: मैंने बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया और साथ ही उनका tiffin भी बना दिया!

Tiffin का नाम सुनते ही भौजी की आँखें ख़ुशी से चमकने लगीं;

भौजी: आपने tiffin बनाया? अंडा बनाया था न?

अंडे के ख्याल से भौजी को लालच आ गया और वो अपने होठों पर जीभ फिराते हुए बोलीं|

मैं: हे भगवान! सुबह उठते ही अंडा खाना है आपको?

मैंने हँसते हुए कहा| इतने में माँ कमरे में आईं, भौजी बड़ी मुश्किल से झुकीं और उनके पाँव छुए|

माँ: जीती रह बहु!

माँ ने मुस्कुराते हुए कहा और भौजी के माथे से सर की ओर हाथ फेरा तो उन्हें भौजी के बुखार का एहसास हुआ;

माँ: बहु तुझे तो बुखार है!

माँ की बात सुन भौजी हड़बड़ा गईं और जैसे-तैसे झूठ बोलने लगीं;

भौजी: नहीं माँ...वो…बस हलकी सी हरारत है!

मैं जानता था की भौजी ये झूठ बोल कर घर का काम करने लगेंगी और बीमार पड़ जाएँगी, इसलिए मैंने तैश में आ कर भौजी का हाथ थामा और उन्हें खींच कर पलंग पर बिठा दिया;

मैं: आप लेटो यहाँ!

उस समय एक प्रेमी को उसकी परिणीता की सेहत की चिंता थी, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था की उसकी (मेरी) माँ सामने खड़ी है!

माँ: तू आराम कर बहु|

माँ ने भी अपनी चिंता जताते हुए कहा| शुक्र है की माँ मेरे भौजी के प्रति अधिकार की भावना (possessiveness) को दोस्ती की नजर से देख रहीं थीं!

भौजी: लेकिन माँ, मेरे होते हुए आप काम करो मुझे ये अच्छा नहीं लगता!

भौजी की बात सही भी थी, इसलिए मैंने रसोई सँभालने की सोची;

मैं: ठीक है, रसोई आज मैं सँभाल लूँगा|

जिस तरह मुझे अपनी परिणीता की सेहत की चिंता थी, उसी तरह भौजी को अपने प्रियतम की सेहत की चिंता थी;

भौजी: नहीं, आप भी थके हो|

भौजी अपने जोश में मेरे कल व्रत रखने की बात कहने वाली थीं, लेकिन मैंने किसी तरह बात बात सँभाली;

मैं: कम से कम मुझे बुखार तो नहीं है!

माँ: तू रहने दे! उस दिन मैगी बनाते-बनाते तूने और बच्चों ने रसोई की हालत खराब कर दी थी!

माँ ने मुझे प्यार से झिड़का! अब माँ ने भौजी को प्यार से समझाना शुरू किया;

माँ: बहु तू आराम कर, बस हम तीन लोग ही तो हैं! आज का दिन आराम कर और कल से तू काम सँभाल लिओ|

माँ भौजी को प्यार से समझा कर पड़ोस में जाने को तैयार होने लगीं और इधर मैंने भौजी को चाय के साथ crocin दे दी! माँ कपडे बदल कर आईं और मुझसे बोलीं;

माँ: बेटा मैं कमला आंटी के साथ उनकी बेटी को देखने अस्पताल जा रही हूँ| तुम दोनों का नाश्ता मैंने बना दिया है, याद से खा लेना| मैं 1-२ घंटे में आ जाऊँगी!

माँ के जाते ही मैंने भौजी पर अपना सवाल दागा;

मैं: अब बताओ की आप लंगड़ा क्यों रहे थे, कहीं चोट लगी है?

मेरा सवाल सुन भौजी की आँखों में लाल डोरे तैरने लगे और मुझे देखते हुए वो फिर मुस्कुराने लगीं!

मैं: बताओ न?

मैंने थोड़ा जोर दे कर पुछा|

भौजी: वो...वो..ना.....

भौजी के गाल शर्म से लाल हो चुके थे!

मैं: क्या वो-वो लगा रखा है|

मैंने बेसब्र होते हुए पुछा, लेकिन इतने में साइट से फोन अ गया| मैंने फोन उठा के कहा;

मैं: मैं बाद में करता हूँ|

इतना कह कर मैंने फ़ोन रख दिया और फिर से भौजी की ओर देखने लगा;

भौजी: पहले आप फोन निपटाओ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: वो जर्रुरी नहीं है, आप ज्यादा जर्रुरी हो|

मैंने चिंतित होते हुए कहा|

भौजी: अच्छा बाबा!

भौजी हँसते हुए बोलीं|

भौजी: मेरी....."वो" (सुकुमारी)...सूज...गई है!

भौजी शर्माते हुए बोलीं! हैरानी की बात थी की भौजी शिकायत नहीं कर रहीं थीं, बल्कि खुश थीं!

मैं: Oh Shit!

भौजी की बात सुन मैं एकदम से उठा और रसोई की तरफ भागा| मैंने पानी गर्म करने को रखा, घर का प्रमुख दरवाज़ा बंद किया और माँ के कमरे से रुई का बड़ा सा टुकड़ा ले आया| गर्म पानी का पतीला और रुई ले कर मैं भौजी के पास लौटा| मेरे हाथ में पतीला देख भौजी को हैरानी हुई;

भौजी: ये क्या है?

मैं: आपको सेंक देने के लिए पानी गर्म किया है|

सेंक देने की बात सुनते ही भौजी घबरा गईं और बोलीं;

भौजी: नहीं...नहीं रहने दो ...ठीक हो जायेगा!

भौजी शर्माते हुए नजरें चुराने लगी!

मैं: जान please जिद्द मत करो, आप लेट जाओ!

मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा| मैंने भौजी को जबरदस्ती लिटा दिया, फिर उनकी साडी सामने से उठा के उनके पेट पर रख दी और दोनों हाथों से उनकी टाँगें चौड़ी कीं| भौजी की 'फूलमती' सूज कर लाल हो चुकी थी, भौजी की ये हालत देख मुझे आत्मग्लानि हो रही थी की क्यों मैंने उत्तेजना में बहते हुए भौजी के साथ ऐसी बर्बरता की!

मैंने पतीले के पानी का तापमान check किया की कहीं वो अधिक गर्म तो नहीं?! पानी गुनगुना गर्म था, मैंने उसमें रुई का एक बड़ा टुकड़ा डुबाया और पानी निचोड़ कर रुई का टुकड़ा भौजी की फूलमती पर रख दिया! रुई के गर्म स्पर्श से भौजी की आँखें बंद हो गईं तथा उनके मुख से ठंडी सीत्कार निकली; "ससस...आह!" भौजी की आँखें बंद हो चुकी थीं, गर्म पानी की सिकाई से उन्हें काफी राहत मिल रही थी, इसलिए मैं चुपचाप सिकाईं करने लगा| हम दोनों ही खामोश थे और इस ख़ामोशी ने मुझे मेरी गलती का एहसास करा दिया था! जिंदगी में पहलीबार मैंने भौजी को ऐसा दर्द दिया था, पता नहीं रात को मुझ पर कौन सा भूत सवार हुआ था की मैंने अपना आपा खो दिया! 'बड़ा फक्र कर रहा था की तेरा खुद पर जबरदस्त control है? यही था control? देख तूने अपने प्यार की क्या हालत कर दी है?' मेरा दिल मुझे झिड़कने लगा था और ये झिड़की सुन मुझे बहुत बुरा लग रहा था| आत्मग्लानि मुझ पर इस कदर सवार हुई की मेरी आँखें भर आईं और मेरे आँसुओं का एक कतरा बहता हुआ भौजी की टाँग पर जा गिरा!



मेरे आँसू की बूँद के एहसास से भौजी की आँख खुल गई, मेरी भीगी आँखें देख वो एकदम से उठ बैठीं और मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेते हुए पूछने लगीं;

भौजी: क्या हुआ जानू?

मैं: I'm so sorry!!! कल रात मैंने अपना आपा खो दिया था और आपके साथ ये अत्याचार कर बैठा! मेरा विश्वास करो, मैं आपके साथ ये नहीं करना चाहता था!

मेरे ग्लानि भरे शब्द सुन भौजी को मेरी मनोस्थिति समझ आई|

भौजी: जानू आपने कुछ नहीं किया, मैंने जानबूझकर आपको उकसाया था! और ये कोई नासूर नहीं जो ठीक नहीं होगा, बस थोड़ी सी सूजन है जो एक-आध दिन में चली जायेगी| आप खाम्खा इतना परेशान हो जाते हो!

भौजी ने मेरे आँसूँ अपने आँचल से पोछे|

मैं: नहीं जान! मेरी गलती है....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही भौजी ने मेरी बात काट दी;

भौजी: Hey I actually kinda enjoyed this!

भौजी ने फिर शर्म से सर झुकाते हुए कहा|

भौजी: इसीलिए तो मैं सुबह से मुस्कुरा रही थी!

भौजी हँसते हुए मुझसे नजरें चुराते हुए बोलीं! भौजी की बात सुन मैं हैरान था की बजाए मुझसे नाराज होने या शिकायत करने के इनको कल रात का मेरा जंगलीपना देख मज़ा आ रहा है?

मैं: Enjoyed? What’s there to enjoy? आप बस बातें बना रहे हो ताकि मुझे बुरा न लगे!

मैंने भोयें सिकोड़ कर कहा|

भौजी: नहीं बाबा, आपकी कसम मैं झूठ नहीं बोल रही! उस रात जब आप मुझे अकेला छोड़ गए थे तब से मेरा मन आपके लिए प्यासा था! एक दिन मैंने hardcore वाला porn देखा था और उसी दिन से ये मेरी fantasy थी की हमारा मिलन जब हो तो मेरी यही हालत हो जो अभी हुई है!

भौजी लजाते हुए बोलीं| मैं ये तो जानता था की भौजी को porn देखना सिखा कर मैंने गलती की है, मगर वो ऐसी fantasy पाले बैठीं थीं मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी!

मैं: You’re getting kinky day by day!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा तो भौजी हँस पड़ीं!



सिकाईं के लिए लाया हुआ पानी ठंडा हो चूका था, इसलिए मैंने पतीला उठा कर नीचे रखा| इधर मेरा फोन दुबारा बज उठा था, इस बार दिषु ने कॉल किया था| मैंने भौजी के कपडे ठीक किये और फोन उठा कर बात करने लगा|

मैं: बोल भाई!

दिषु: यार मुझे गुडगाँव निकलना था, वापसी रात तक होगी इसलिए गाडी चाहिए थी, तुझे कोई काम तो नहीं?

मैं: यार गाडी तेरी है, जब चाहे ले जा| वैसे भी मुझे आज कोई काम नहीं, आज मैं घर पर ही हूँ!

मैंने घर पर रहने की बात भौजी की तरफ देखते हुए कहा|

दिषु: चल ठीक है मैं आ रहा हूँ|

मैंने फ़ोन रखा तो भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देख रहीं थीं!

भौजी: क्या मतलब घर पर ही हूँ, साइट पर नहीं जाना?

भौजी अपनी कमर पर हाथ रखते हुए झूठ गुस्सा दिखाते बोलीं|

मैं: भई आज तो मैं घर पर रह कर आपकी देखभाल करूँगा|

मैंने जिम्मेदार पति की तरह कहा| भौजी आगे कुछ कहतीं उसके पहले मेरा फ़ोन फिर बज उठा, इस बार लेबर का फ़ोन था;

मैं: हाँ बोलो भाई क्या दिक्कत है?

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा|

लेबर: साहब माल नहीं आया साइट पर और आप कब तक आएंगे?

मैं: संतोष कहाँ है?

लेबर ने संतोष को फ़ोन दिया;

मैं: संतोष भाई, आज प्लीज काम संभाल लो, मैं आज नहीं आ पाउँगा|

मैंने आने से मना किया तो संतोष को लगा की कोई चिंता की बात है;

संतोष: भैया कोई emergency तो नहीं है?

संतोष चिंतित होते हुए पूछने लगा|

मैं: नहीं यार! आज किसी के तबियत खराब है!

मैंने भौजी को कनखी आँखों से देखते हुए कहा|

संतोष: किस की साहब? माँ जी ठीक तो हैं?

मैं: हाँ-हाँ वो ठीक हैं! बस है कोई ख़ास!

मैंने मुस्कुरा कर भौजी को देखते हुए कहा| भौजी मेरी बातों का मतलब समझ रहीं थीं, मेरा उनको ले कर possessive हो जाना भौजी को अच्छा लगता था!

मैं: और वैसे भी आज मेरे पास गाडी नहीं है, अब यहाँ से गुडगाँव आऊँगा, एक घंटा उसमें खपेगा और फिर रात को रूक भी नहीं सकता, इसलिए बस आज का दिन काम सँभाल लो कल से मैं आ ही जाऊँगा|

संतोष: ठीक है भैया! आप जरा रोड़ी और बदरपुर के लिए बोल दो और मैं कल आपको सारा हिसाब दे दूँगा|

मैं: ठीक है, मैं अभी बोल देता हूँ|

मैंने फ़ोन रखा और सीधा supplier से बात कर के माल का order दे दिया! मैं फ़ोन रखा तो भौजी कुछ कहने वाली हुईं थीं;

मैं: हाँ जी बेगम साहिबा कहिये!

मैंने स्वयं ही भौजी से पूछा|

भौजी: आप पहले गाडी ले लो, बच्चों के लिए FD बाद में करा लेंगे!

मैं: Hey मेरा decision final है और मैं इसके बारे में मैं कुछ नहीं सुनना चाहता!

मैंने गुस्से से कहा|

भौजी: पर गाडी ज्यादा जर्रुरी है! उससे आपका काम आसान हो जाएगा!

भौजी ने मेरी बात काटनी चाही जो मुझे नगवार गुजरी;

मैं: NO AND END OF DISCUSSION!

मैंने गुस्से में बात खत्म करते हुए कहा| कई बार मैं भौजी के साथ गुस्से में बड़ा रुखा व्यवहार करता था, लेकिन इस बार मैं सही था! गाडी से ज्यादा जर्रूरी मेरे बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना था!



खैर मैंने गुस्सा कर के भौजी को नाराज कर दिया था और अब मुझे उन्हें मनाना था;

मैं: मैं नाश्ता ले के आता हूँ|

मैंने बात बनाते हुए कहा|

भौजी: मुझे नहीं खाना!

भौजी ने रुठते हुए अपना मुँह फुला कर कहा!

मैं: Awwwww मेरा बच्चा नाराज हो गया! Awwwww!!!

मैंने भौजी को मक्खन लगाने के लिए किसी छोटे बच्चे की तरह दुलार किया|

भौजी: आप मेरी बात कभी नहीं मानते!

भौजी आयुष की तरह अपना निचला होंठ फुलाते हुए बोलीं! मैंने अपनी आँखें बड़ी करके अपनी हैरानी जाहिर की;

भौजी: हाँ-हाँ कल रात आपने मेरी बात मानी थी|

कल रात जब मैं भौजी को तीसरे round के लिए मना कर रहा था तब उन्होंने विनती की थी की मैं न रुकूँ!

मैंने फिर से वैसे ही आँखें बड़ी कर के हैरानी जताई;

भौजी: हाँ-हाँ! आपने पाँच साल पहले भी मेरी बात मानी थी|

पाँच साल पहले भौजी ने मुझे खुद से दूर रहने को कहा था और मैंने तब भी उनकी बात मानी थी| मैंने तीसरी बार फिर भौजी को अपनी हैरानी जताई;

भौजी: ठीक है बाबा! आप मेरी सब बात मानते हो, बस! अब नाश्ता ले आओ और मेरे साथ बैठ के खाओ|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| उनका गुस्सा उतर चूका था और वो पहले की तरह मुस्कुराने लगीं थीं|

मैं नाश्ता लेने गया और घर का प्रमुख दरवाजा खोल दिया| इतने में दिषु आ गया और चाभी ले कर निकलने लगा, मैंने उसे नाश्ते के लिए पुछा तो उसने पराँठा हाथ में पकड़ा और खाते हुए चला गया! मैं हम दोनों का (भौजी और मेरा) नाश्ता लेकर भौजी के पास आ गया| हमने बड़े प्यार से एक-दूसरे को खाना खिलाया और थोड़ा हँसी-मजाक करने लगे! थोड़ी देर में माँ घर लौट आईं और सीधा भौजी वाले कमरे में आ गईं;

माँ: बहु अब कैसा लग रहा है?

माँ ने भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए पुछा|

माँ: मानु, तूने दवाई दी बहु को?

माँ ने पुछा|

मैं: जी चाय के साथ दी थी|

भौजी: माँ मुझे अब बेहतर लग रहा है, आप बैठो मैं खाना बनाना शुरू करती हूँ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और उठने लगीं, मैंने भौजी का हाथ पकड़ उन्हें फिर से बिठा दिया और उनपर हक़ जताते हुए बोला;

मैं: अभी आपका बुखार उतरा नहीं है, चुपचाप आराम करो! मैं खाना बाहर से मँगा लेता हूँ|

मैंने चौधरी बनते हुए कहा|

माँ: ठीक है बेटा, मगर कुछ अटर-पटर खाना मत मँगा लिओ| पता चले तू बहु का पेट भी ख़राब कर दे!

माँ मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं!

माँ: और बहु तू आराम कर!

माँ ने भौजी को आराम करने को कहा लेकिन भौजी को माँ के साथ समय बिताना था;

भौजी: माँ मैं अकेली यहाँ bore हो जाऊँगी!

मैं: तो आप और मैं tablet पर फिल्म देखते हैं?!

मैं बीच में बोल पड़ा|

माँ: जो देखना है देखो, मैं चली CID देखने|

माँ हँसते हुए बोलीं!

भौजी: माँ, मैं भी आपके पास ही बैठ जाती हूँ|

भौजी की बात सुन मैं आश्चर्यचकित हो कर उन्हें देखने लगा, क्योंकि मैं सोच रहा था की भौजी और मैं साथ बैठ कर फिल्म देखें, लेकिन भौजी की बात सुन मेरा plan खराब हो चूका था!

माँ: ठीक है बहु, तू सोफे पर लेट जा और मैं कुर्सी पर बैठ जाती हूँ|

माँ भौजी के साथ CID देखने के लिए राजी हो गईं थीं|

मैं: ठीक है भई आप सास-बहु का तो program set हो गया, मैं चला अपने कमरे में!

मेरी बात सुन सास-बहु हँसने लगे| मेरा माँ को भौजी की सास कहना उन्हें (भौजी को) बहुत अच्छा लगता था| मैं अपने कमरे की तरफ घूमा ही था की माँ ने पीछे से पुछा;

माँ: बेटा, आज काम पर नहीं जाना?

मैं: नहीं! संतोष आज काम सँभाल लेगा, कल चला जाऊँगा|

भौजी के सामने माँ से झूठ नहीं बोल सकता था, इसलिए मैंने बात घुमा दी!

माँ: जैसी तेरी मर्जी|

मैं अपने कमरे में आ गया और कुछ bill और accounts लिखने लगा, उधर भौजी तथा माँ बैठक में CID देखने लगे!



कुछ देर बाद मुझे प्यास लगी तो मैं पानी लेने के लिए रसोई में जाने लगा तो बैठक का नजारा देख के चौखट पर चुपचाप खड़ा हो गया| भौजी ने माँ की गोद में सर रख रखा था और माँ टी.वी. देखते हुए उनका सर थपथपा रहीं थीं| मैं धीरे-धीरे चलते हुए माँ के पास आया, जैसे ही माँ की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे चुप रहने का इशारा किया| भौजी माँ की गोदी में सर रखे हुए सो चुकी थीं| भौजी को यूँ माँ की गोदी में सर रख कर सोता देख मेरे दिल में गुदगुदी होने लगी थी! मैं चुपचाप पानी ले कर अपने कमरे में लौट आया और पानी पीते हुए अभी देखे हुए मनोरम दृश्य के बारे में सोचने लगा| भौजी ने मेरे दिल के साथ-साथ इस घर में भी अपनी जगह धीरे-धीरे बना ली थी! मेरे माँ-पिताजी को भौजी अपने माँ-पिताजी मानती थीं| पिताजी के दिल में भौजी के लिए बेटी वाला प्यार था, वहीं दोनों बच्चों को पिताजी खूब लाड करते थे, हमेशा उनके लिए चॉकलेट या टॉफी लाया करते थे! उधर माँ के लिए तो भौजी बेटी समान ही थीं, मेरे से ज्यादा तो माँ की भौजी से बनने लगी थी!

'क्या भौजी इस घर का हिस्सा बन सकती हैं?' एक सवाल मेरे ज़ेहन में उठा! ये था तो बड़ा ही नामुमकिन सा सवाल; 'Impossible!' दिमाग बोला, लेकिन दिल को ये सवाल बहुत अच्छा लगा था! इस सवाल को सोचते हुए मैं कल्पना करने लगा की कैसा होता अगर भौजी इस घर का हिस्सा होती हैं? किसी की कल्पना पर किसका जोर चलता है? अपनी इस कल्पना में खो कर मेरी आँख लग गई|



दो घंटे बड़े चैन की नींद आई, फिर एक डरावना सपने ने मेरी नींद तोड़ दी! मैंने सपना देखा की मैं भौजी को i-pill देना भूल गया और उनकी pregnancy ने घर में बवाल खड़ा कर दिया! ऐसा बवाल की बात मार-काट पर आ गई! मैं चौंक कर उठ बैठा और फटाफट घडी देखि, पौने एक हो रहा था मतलब खाने का समय हो चूका था| मैं फटाफट कपडे पहन कर बाहर बैठक में आया, भौजी तो पहले ही सो चुकी थीं लेकिन अब माँ की भी आँख लग चुकी थी और टी.वी. चालु था| मैं दबे पाँव बाहर जाने लगा तो दरवाजा खुलने की आहट से माँ की आँख खुल गई, उन्होंने इशारे से पुछा की मैं कहाँ जा रहा हूँ? मैंने इशारे से बता दिया की मैं खाना लेने जा रहा हूँ, माँ ने सर हाँ में हिलाते हुए मुझे जाने की आज्ञा दी और मैं चुप-चाप बाहर निकल गया| मुझे सबसे पहले लेनी थी i-pill जो मैं अपने घर के पास वाली दवाई की दूकान से नहीं ले सकता था क्योंकि वे सब मुझे और पिताजी को जानते थे| अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए मैंने दूसरी colony जाने के लिए ऑटो किया, वहाँ पहुँच कर मैंने दवाई की दूकान ढूँढी और भौजी के लिए i-pill का पत्ता लिया| फिर मैंने घर के लिए खाना पैक कराया और वापस अपनी colony लौट आया| खाना हाथ में लिए मैं बच्चों के आने का इंतजार करने लगा, 5 मिनट में बच्चों की school van आ गई और मुझे खड़ा हुआ देख दोनों कूदते हुए आ कर मुझसे लिपट गए| खाने की खुशबु से दोनों जान गए की मेरे हाथ में खाना है, आयुष ने तो चाऊमीन की रट लगा ली मगर नेहा ने उसे प्यार से डाँटते हुए कहा:

नेहा: चुप! जब देखो चाऊमीन खानी है तुझे!

आयुष बेचारा खामोश हो गया, मैंने प्यार से उसे समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा आपकी दादी जी चाऊमीन नहीं खातीं न, इसलिए मैंने सिर्फ खाना पैक करवाया है|

आयुष मेरी बात समझ गया और मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: ठीक है पापा जी, चाऊमीन फिर कभी खाएँगे!

आयुष बिलकुल जिद्दी नहीं था, मेरी कही हर बात समझ जाता था!



खैर मैं खाना और बच्चों को ले कर घर पहुँचा, घर का दरवाजा खुला तो बच्चों ने अपनी मम्मी को अपनी दादी जी की गोदी में सर रख कर सोये हुए पाया! दोनों बच्चे चुप-चाप खड़े हो गए, आज जिंदगी में पहलीबार वो अपनी मम्मी को इस तरह सोते हुए देख रहे थे! माँ ने जब हम तीनों को देखा तो बड़े प्यार से भौजी के बालों में हाथ फिराते हुए उठाया;

माँ: बहु......बेटा......उठ...खाना खा ले|

भौजी ने धीरे से अपनी आँख खोली और मुझे तथा बच्चों को चुपचाप खुद को निहारते हुए पाया! फिर उन्हें एहसास हुआ की वो माँ की गोदी में सर रख कर सो गईं थीं, वो धीरे से उठ कर बैठने लगीं और आँखों के इशारे से मुझसे पूछने लगीं की; 'की क्या देख रहे हो?' जिसका जवाब मैंने मुस्कुरा कर सर न में हिलाते हुए दिया! जाने मुझे ऐसा क्यों लगा की माँ की गोदी में सर रख कर सोने से भौजी को खुद पर बहुत गर्व हो रहा है!




जारी रहेगा भाग - 27 में...
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aman rathore

Enigma ke pankhe
4,853
20,198
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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 26



अब तक आपने पढ़ा:


अपने कमरे में लौट कर जब मैंने लाइट जलाई तो मेरा मुँह खुला का खुला रह गया! पूरा पलंग अस्त-व्यस्त था, चादर गद्दे के चारों कोनो से निकली पड़ी थी, ठीक बीचों बीच भौजी की योनि से निकला खून तथा हम दोनों के स्खलन से निकला हुआ कामरज चादर से होता हुआ गद्दे को भिगा रहा था, और तो और मैं अभी दरवाजे के पास खड़ा था, वहाँ भी ज़मीन पर भौजी का कामरज फैला हुआ था! ये दृश्य देख कर मैंने अपना सर पीट लिया; 'ओ बहनचोद! ये क्या गदर मचाया तूने?!' मेरा दिमाग मुझे गरियाते हुए बोला! मैंने फटाफट कमरे की खिड़की खोली ताकि ताज़ी हवा आये और कमरे में मौजूद दो जिस्मों के मिलन की महक को अपने साथ बाहर ले जाए वरना सुबह अगर माँ कमरे में आतीं तो उन्हें सब पता चल जाता! फिर मैंने बिस्तर पर पड़ी चादर समेटी और उसी चादर से दरवाजे के पास वाली ज़मीन पर घिस कर वहाँ पड़ा हुआ भौजी का कामरज साफ़ किया! ये गन्दी चादर मैंने अपने बाथरूम में कोने में छुपा दी, फिर नई चादर पलंग पर बिछाई और मुँह-हाथ धो कर पलंग पर पसर गया! थकावट मुझ पर असर दिखाने लगी थी, पहले सम्भोग और उसके बाद सफाई के कारन मैं बहुत थक चूका था, इसलिए लेटते ही मेरी आँख लग गई! मगर चैन तो मेरी क़िस्मत में लिखा ही नहीं था सो सुबह अलग ही कोहराम मचा जब भौजी उठी ही नहीं!



अब आगे:



मैं अपने मोबाइल में हमेशा छः बजे का alarm लगाए रखता हूँ, अगली सुबह इसी alarm ने मेरी नींद तोड़ी! Alarm का शोर सुन गुस्सा तो इतना आया की मन किया की फ़ोन उठा कर बाहर फेंक दूँ! मैं उठा और alarm बंद किया और फिर लेट गया, इतने में माँ मेरी चाय ले कर आ गईं! मैं कल रात से उम्मीद कर रहा था की भौजी सुबह उठ कर मेरे लिए चाय लाएँगी, लेकिन जब मैंने माँ को चाय लिए हुए देखा तो मैं सकपका कर उठ बैठा!

माँ: ले बेटा चाय!

माँ ने चाय का कप रखते हुए कहा|

मैं: आप चाय लाये हो? वो (भौजी) उठीं नहीं क्या?

मैंने फ़ौरन चाय का कप मुँह से लगाते हुए माँ से नजरें चुराते हुए पुछा|

माँ: नहीं बेटा| रोज तो जल्दी उठ जाती है, पता नहीं आज क्यों नहीं उठी? रात में कब सोये थे तुम लोग?

माँ के सवाल को सुनकर मैं थोड़ा हड़बड़ा गया था, एक पल को तो लगा की माँ ने हमारी (भौजी और मेरी) चोरी पकड़ ली हो!

मैं: माँ....आ....नौ बजे मैंने बच्चों को सुला दिया था! फिर मैं यहाँ आके सो गया, वो भी तभी सो गई होंगी! आपको रात में टी.वी. चलने की आवाज आई थी?

मेरा सवाल सिर्फ और सिर्फ ये जानने के लिए था की कहीं माँ ने रात को हमारी (मेरी और भौजी की) कामलीला तो देख या सुन तो नहीं ली?!

माँ: पता नहीं बेटा, कल तो मैं बहुत थक गई थी! एक बार लेटी तो फिर सीधा सुबह आँख खुली|

माँ का जवाब सुन मैं आश्वस्त हो गया की माँ को कल रात आये तूफ़ान के बारे में कुछ नहीं पता चला!



मैंने फटाफट अपनी चाय पी और पलंग से उठते हुए माँ से बोला;

मैं: मैं बच्चों को उठा दूँ, वरना वो स्कूल के लिए लेट हो जायेंगे|

माँ: ठीक है बेटा मैं दोनों का नाश्ता बना देती हूँ!

माँ नाश्ता बनाने उठीं तो मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: नहीं माँ, टाइम कम है| आप चिंता मत करो मैं बच्चों के लिए कुछ बना दुँगा!

इतना कह मैं भौजी के कमरे में आया| भौजी अब भी उसी हालत में लेटी थीं जिस हालत में मैंने उन्हें कल लिटाया था| मैंने भौजी को छूते हुए उन्हें जगाया मगर वो नहीं जागीं, मुझे डर लगने लगा की कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया इसलिए मैंने अपना कान भौजी के सीने से लगा कर उनके दिल की धड़कन check की| भौजी का दिल अब भी सामान्य रूप से धड़क रहा था, मैंने सोचा की भौजी को थोड़ी देर और सो लेने देता हूँ! अब मैंने एक-एक कर दोनों बच्चों को जगाया, दोनों बच्चे जाग तो गए लेकिन फिर भी मेरी गोदी में चढ़ कर सोने लगे! दोनों को लाड करते हुए मैं अपने कमरे में आया और बड़े प्यार से दोनों को ब्रश करने को कहा|

आयुष: पापा जी, मम्मी क्यों नहीं उठीं?

आयुष ने जिज्ञासा वश सवाल पुछा|

मैं: बेटा आपकी मम्मी थकी हुई हैं, थोड़ा आराम कर लें फिर वो उठ जाएँगी!

मैंने बच्चों को दिलासा दिया और एक बार फिर भौजी के दिल की धड़कन सुनने चल दिया| मैंने पुनः भौजी को आवाज दी मगर वो नहीं उठीं, उनकी धड़कन सामन्य तौर पर चल रही थी इसलिए मैं उन्हें आराम करने के लिए छोड़ कर बच्चों के कपडे इस्त्री करने लगा| बच्चे तैयार हो कर अपनी दादी जी के पास बैठ गए, मैंने दोनों के लिए दूध बनाया और एक बार फिर भौजी की धड़कन सुनने चुपके से चल दिया| भौजी अब भी बेसुध सोइ थीं, इधर बच्चों का नाश्ता बनाना था इसलिए मैं रसोई में नाश्ता बनाने घुस गया| समय कम था तो मैंने दोनों बच्चों के लिए सैंडविच बनाये| उधर माँ फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गईं और दोनों बच्चे मेरे आस-पास खड़े हो गए, मैंने दोनों बच्चों को उनका टिफ़िन दिया| मैं जानता था की एक-एक सैंडविच से दोनों का पेट नहीं भरेगा इसलिए मैंने नेहा को 50/- रुपये का नोट देते हुए कहा;

मैं: नेहा बेटा ये आप रखो|

नेहा: पापा ये तो पचास रूपय हैं? मैं इसका क्या करूँ?

नेहा ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: बेटा एक सैंडविच से आप दोनों का पेट नहीं भरेगा, आप दोनों को अगर भूख लगे तो इन पैसों से कुछ खरीद कर खा लेना|

मैंने नेहा को समझाते हुए कहा|

आयुष: नहीं पापा!

इतना कह आयुष ने नेहा से पैसे लेके मुझे दे दिए!

आयुष: ये आप रख लो! हमारा पेट सैंडविच से भर जायेगा!

मैंने आयुष से इतनी अक्लमंदी की उम्मीद नहीं की थी! जब उसने पैसे मुझे वापस दिए तो मुझे आयुष पर गर्व होने लगा! कोई और बच्चा होता तो झट से पैसे रख लेता, मगर भौजी ने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे! बच्चों को पैसे का लालच कतई नहीं था, उन्हें बस अपने पापा का प्यार चाहिए था!

मैं: नहीं बेटा रख लो! अगर कभी जर्रूरत पड़े, या भूख लगे, कुछ खरीदना हो तो ये पैसे काम आएंगे!

मैंने पैसे वापस नेहा को दिए और नेहा ने सँभालकर पैसे अपने geometry box में रख लिए| मैंने दोनों बच्चों के माथों को चूमा और दोनों को गोद में लिए उनकी school van वैन में बिठा आया|

घर वापस आके देखा तो माँ नाश्ता बना रही थीं, मैंने भौजी की चाय गर्म की और भौजी के कमरे में आ गया| मैंने सबसे पहले भौजी की धड़कन सुनी, फिर उनके माथे पर हाथ फिराया तब एहसास हुआ की उन्हें बुखार है! शुक्र है की उनका बुखार ज्यादा तेज नहीं था, बस mild fever था! भौजी के बुखार के कारण मैं घबरा गया और उनके लिए लाई हुई चाय sidetable पर रख दी! भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए मैं घबराई आवाज में उन्हें पुकारने लगा; "जान...जान....उठो...please" पर मेरे पुकारने का कोई असर भौजी पर नहीं हुआ! रात से अभी तक मैं भौजी की बेहोशी को हलके में ले कर बहुत बड़ी गलती कर चूका था, सुबह से मैं भौजी को कई बार जगाने की कोशिश कर चूका था लेकिन भौजी न तो हिल-डुल रहीं थीं और न ही कोई जवाब दे रहीं थीं! मैंने सोचा एक आखरीबार और उन्हें (भौजी को) पुकारता हूँ, अगर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो मैं डॉक्टर को बुला लूँगा!

मैं: जान....प्लीज उठो...I'm....sorry!

मैंने घबराते हुए कहा|

भौजी: हम्म्म्म ...!

भौजी कराहते हुए जागीं! भौजी की पलकों में हरकत हुई और मेरी जान में जान आई! भौजी ने लेटे-लेटे मुस्कुराते हुए मुझे देखा, अपनी बहाएँ फैला कर अंगड़ाई ली और धीरे से उठ कर बैठने लगीं! एक तो कल भौजी ने व्रत रखा था ऊपर से मैंने उन्हें रात को निचोड़ डाला था इसलिए भौजी का पूरा बदन थकान से चूर था! मैंने भौजी को सहारा दे कर ठीक से पीठ टिका कर बिठाया और उन्हें चाय का गिलास थमाया|

भौजी: Good Morning जानू!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं! मैंने गौर किया की भौजी आज कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रहीं थीं!

मैं: Good Morning जान! यार आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी

मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा|

भौजी: क्यों?

भौजी भौचक्की हो कर पूछने लगीं|

मैं: कल रात से मैं चार बार आपकी दिल की धड़कनें check कर चूका हूँ|

मैंने चिंतित स्वर में कहा, लेकिन पता नहीं भौजी को इसमें क्या मजाकिया लगा की वो खी-खी कर हँसने लगीं!

भौजी: तो आप ये check कर रहे थी की मैं जिन्दा हूँ की नहीं! ही..ही..ही!

भौजी फिर खी-खी कर हँसने लगीं और मैं उन्हें हक्का-बक्का हो कर देखने लगा की भला इसमें हँसने वाली बात क्या है?

भौजी: मैं इतनी जल्दी आपको छोड़ के नहीं जाने वाली!

भौजी बड़े गर्व से बोलीं!

भौजी: आपने बर्फी फिल्म देखि है न? बर्फी की प्रियंका चोपड़ा की तरह मरूँगी में, आपके साथ, हाथों में हाथ लिए!!

पता नहीं इसमें क्या गर्व की बात थी, लेकिन भौजी को ये बात कहते हुए बहुत गर्व हो रहा था! भौजी कई बार ऐसी बातें करतीं थीं की गुस्सा आ जाता था!

मैं: सुबह-सुबह मरने-मारने की बातें, हे भगवान इन्हें सत बुद्धि दो!

मैंने अपना गुस्सा दबाते हुए बात को थोड़ा मजाकिया बनाते हुए कहा| भौजी ने अपने कान पकड़े और मूक भाषा में माफ़ी माँगने लगीं, तो मैंने मुस्कुरा कर उन्हें माफ़ कर दिया| भौजी उठीं और उठ के बाथरूम जाने लगीं तो मैंने गौर किया की वो लँगड़ा रही हैं|

मैं: क्या हुआ जान? आप लँगड़ा क्यों रहे हो? रात को मैं अच्छा खासा तो लेटा के गया था!

मैंने चिंता जताते हुए पुछा| मेरा सवाल सुन भौजी एक सेकंड के लिए रुकीं और कुछ सोचने लगीं, अगले पल वो मुझे देख फिर मुस्कुराईं और बाथरूम में घुस गईं| कुछ पल बाद भौजी साडी पहन कर मुस्कुराते हुए बाहर आईं, उनकी मुस्कान में कुछ तो था जो मैं पकड़ नहीं पा रहा था; शर्म, हया, प्यार?!



भौजी: बच्चे कहाँ हैं?

भौजी ने बात बदलते हुए कहा| फिर उनकी नजर घडी पर पड़ी और वो एकदम से हड़बड़ा गईं;

भौजी: हे राम! सात कब के बज गए और बच्चे स्कूल नहीं गए?!

भौजी अपना सर पीटते हुए बोलीं!

मैं: मैंने बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया और साथ ही उनका tiffin भी बना दिया!

Tiffin का नाम सुनते ही भौजी की आँखें ख़ुशी से चमकने लगीं;

भौजी: आपने tiffin बनाया? अंडा बनाया था न?

अंडे के ख्याल से भौजी को लालच आ गया और वो अपने होठों पर जीभ फिराते हुए बोलीं|

मैं: हे भगवान! सुबह उठते ही अंडा खाना है आपको?

मैंने हँसते हुए कहा| इतने में माँ कमरे में आईं, भौजी बड़ी मुश्किल से झुकीं और उनके पाँव छुए|

माँ: जीती रह बहु!

माँ ने मुस्कुराते हुए कहा और भौजी के माथे से सर की ओर हाथ फेरा तो उन्हें भौजी के बुखार का एहसास हुआ;

माँ: बहु तुझे तो बुखार है!

माँ की बात सुन भौजी हड़बड़ा गईं और जैसे-तैसे झूठ बोलने लगीं;

भौजी: नहीं माँ...वो…बस हलकी सी हरारत है!

मैं जानता था की भौजी ये झूठ बोल कर घर का काम करने लगेंगी और बीमार पड़ जाएँगी, इसलिए मैंने तैश में आ कर भौजी का हाथ थामा और उन्हें खींच कर पलंग पर बिठा दिया;

मैं: आप लेटो यहाँ!

उस समय एक प्रेमी को उसकी परिणीता की सेहत की चिंता थी, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था की उसकी (मेरी) माँ सामने खड़ी है!

माँ: तू आराम कर बहु|

माँ ने भी अपनी चिंता जताते हुए कहा| शुक्र है की माँ मेरे भौजी के प्रति अधिकार की भावना (possessiveness) को दोस्ती की नजर से देख रहीं थीं!

भौजी: लेकिन माँ, मेरे होते हुए आप काम करो मुझे ये अच्छा नहीं लगता!

भौजी की बात सही भी थी, इसलिए मैंने रसोई सँभालने की सोची;

मैं: ठीक है, रसोई आज मैं सँभाल लूँगा|

जिस तरह मुझे अपनी परिणीता की सेहत की चिंता थी, उसी तरह भौजी को अपने प्रियतम की सेहत की चिंता थी;

भौजी: नहीं, आप भी थके हो|

भौजी अपने जोश में मेरे कल व्रत रखने की बात कहने वाली थीं, लेकिन मैंने किसी तरह बात बात सँभाली;

मैं: कम से कम मुझे बुखार तो नहीं है!

माँ: तू रहने दे! उस दिन मैगी बनाते-बनाते तूने और बच्चों ने रसोई की हालत खराब कर दी थी!

माँ ने मुझे प्यार से झिड़का! अब माँ ने भौजी को प्यार से समझाना शुरू किया;

माँ: बहु तू आराम कर, बस हम तीन लोग ही तो हैं! आज का दिन आराम कर और कल से तू काम सँभाल लिओ|

माँ भौजी को प्यार से समझा कर पड़ोस में जाने को तैयार होने लगीं और इधर मैंने भौजी को चाय के साथ crocin दे दी! माँ कपडे बदल कर आईं और मुझसे बोलीं;

माँ: बेटा मैं कमला आंटी के साथ उनकी बेटी को देखने अस्पताल जा रही हूँ| तुम दोनों का नाश्ता मैंने बना दिया है, याद से खा लेना| मैं 1-२ घंटे में आ जाऊँगी!

माँ के जाते ही मैंने भौजी पर अपना सवाल दागा;

मैं: अब बताओ की आप लंगड़ा क्यों रहे थे, कहीं चोट लगी है?

मेरा सवाल सुन भौजी की आँखों में लाल डोरे तैरने लगे और मुझे देखते हुए वो फिर मुस्कुराने लगीं!

मैं: बताओ न?

मैंने थोड़ा जोर दे कर पुछा|

भौजी: वो...वो..ना.....

भौजी के गाल शर्म से लाल हो चुके थे!

मैं: क्या वो-वो लगा रखा है|

मैंने बेसब्र होते हुए पुछा, लेकिन इतने में साइट से फोन अ गया| मैंने फोन उठा के कहा;

मैं: मैं बाद में करता हूँ|

इतना कह कर मैंने फ़ोन रख दिया और फिर से भौजी की ओर देखने लगा;

भौजी: पहले आप फोन निपटाओ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: वो जर्रुरी नहीं है, आप ज्यादा जर्रुरी हो|

मैंने चिंतित होते हुए कहा|

भौजी: अच्छा बाबा!

भौजी हँसते हुए बोलीं|

भौजी: मेरी....."वो" (सुकुमारी)...सूज...गई है!

भौजी शर्माते हुए बोलीं! हैरानी की बात थी की भौजी शिकायत नहीं कर रहीं थीं, बल्कि खुश थीं!

मैं: Oh Shit!

भौजी की बात सुन मैं एकदम से उठा और रसोई की तरफ भागा| मैंने पानी गर्म करने को रखा, घर का प्रमुख दरवाज़ा बंद किया और माँ के कमरे से रुई का बड़ा सा टुकड़ा ले आया| गर्म पानी का पतीला और रुई ले कर मैं भौजी के पास लौटा| मेरे हाथ में पतीला देख भौजी को हैरानी हुई;

भौजी: ये क्या है?

मैं: आपको सेंक देने के लिए पानी गर्म किया है|

सेंक देने की बात सुनते ही भौजी घबरा गईं और बोलीं;

भौजी: नहीं...नहीं रहने दो ...ठीक हो जायेगा!

भौजी शर्माते हुए नजरें चुराने लगी!

मैं: जान please जिद्द मत करो, आप लेट जाओ!

मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा| मैंने भौजी को जबरदस्ती लिटा दिया, फिर उनकी साडी सामने से उठा के उनके पेट पर रख दी और दोनों हाथों से उनकी टाँगें चौड़ी कीं| भौजी की 'फूलमती' सूज कर लाल हो चुकी थी, भौजी की ये हालत देख मुझे आत्मग्लानि हो रही थी की क्यों मैंने उत्तेजना में बहते हुए भौजी के साथ ऐसी बर्बरता की!

मैंने पतीले के पानी का तापमान check किया की कहीं वो अधिक गर्म तो नहीं?! पानी गुनगुना गर्म था, मैंने उसमें रुई का एक बड़ा टुकड़ा डुबाया और पानी निचोड़ कर रुई का टुकड़ा भौजी की फूलमती पर रख दिया! रुई के गर्म स्पर्श से भौजी की आँखें बंद हो गईं तथा उनके मुख से ठंडी सीत्कार निकली; "ससस...आह!" भौजी की आँखें बंद हो चुकी थीं, गर्म पानी की सिकाई से उन्हें काफी राहत मिल रही थी, इसलिए मैं चुपचाप सिकाईं करने लगा| हम दोनों ही खामोश थे और इस ख़ामोशी ने मुझे मेरी गलती का एहसास करा दिया था! जिंदगी में पहलीबार मैंने भौजी को ऐसा दर्द दिया था, पता नहीं रात को मुझ पर कौन सा भूत सवार हुआ था की मैंने अपना आपा खो दिया! 'बड़ा फक्र कर रहा था की तेरा खुद पर जबरदस्त control है? यही था control? देख तूने अपने प्यार की क्या हालत कर दी है?' मेरा दिल मुझे झिड़कने लगा था और ये झिड़की सुन मुझे बहुत बुरा लग रहा था| आत्मग्लानि मुझ पर इस कदर सवार हुई की मेरी आँखें भर आईं और मेरे आँसुओं का एक कतरा बहता हुआ भौजी की टाँग पर जा गिरा!



मेरे आँसू की बूँद के एहसास से भौजी की आँख खुल गई, मेरी भीगी आँखें देख वो एकदम से उठ बैठीं और मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेते हुए पूछने लगीं;

भौजी: क्या हुआ जानू?

मैं: I'm so sorry!!! कल रात मैंने अपना आपा खो दिया था और आपके साथ ये अत्याचार कर बैठा! मेरा विश्वास करो, मैं आपके साथ ये नहीं करना चाहता था!

मेरे ग्लानि भरे शब्द सुन भौजी को मेरी मनोस्थिति समझ आई|

भौजी: जानू आपने कुछ नहीं किया, मैंने जानबूझकर आपको उकसाया था! और ये कोई नासूर नहीं जो ठीक नहीं होगा, बस थोड़ी सी सूजन है जो एक-आध दिन में चली जायेगी| आप खाम्खा इतना परेशान हो जाते हो!

भौजी ने मेरे आँसूँ अपने आँचल से पोछे|

मैं: नहीं जान! मेरी गलती है....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही भौजी ने मेरी बात काट दी;

भौजी: Hey I actually kinda enjoyed this!

भौजी ने फिर शर्म से सर झुकाते हुए कहा|

भौजी: इसीलिए तो मैं सुबह से मुस्कुरा रही थी!

भौजी हँसते हुए मुझसे नजरें चुराते हुए बोलीं! भौजी की बात सुन मैं हैरान था की बजाए मुझसे नाराज होने या शिकायत करने के इनको कल रात का मेरा जंगलीपना देख मज़ा आ रहा है?

मैं: Enjoyed? What’s there to enjoy? आप बस बातें बना रहे हो ताकि मुझे बुरा न लगे!

मैंने भोयें सिकोड़ कर कहा|

भौजी: नहीं बाबा, आपकी कसम मैं झूठ नहीं बोल रही! उस रात जब आप मुझे अकेला छोड़ गए थे तब से मेरा मन आपके लिए प्यासा था! एक दिन मैंने hardcore वाला porn देखा था और उसी दिन से ये मेरी fantasy थी की हमारा मिलन जब हो तो मेरी यही हालत हो जो अभी हुई है!

भौजी लजाते हुए बोलीं| मैं ये तो जानता था की भौजी को porn देखना सिखा कर मैंने गलती की है, मगर वो ऐसी fantasy पाले बैठीं थीं मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी!

मैं: You’re getting kinky day by day!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा तो भौजी हँस पड़ीं!



सिकाईं के लिए लाया हुआ पानी ठंडा हो चूका था, इसलिए मैंने पतीला उठा कर नीचे रखा| इधर मेरा फोन दुबारा बज उठा था, इस बार दिषु ने कॉल किया था| मैंने भौजी के कपडे ठीक किये और फोन उठा कर बात करने लगा|

मैं: बोल भाई!

दिषु: यार मुझे गुडगाँव निकलना था, वापसी रात तक होगी इसलिए गाडी चाहिए थी, तुझे कोई काम तो नहीं?

मैं: यार गाडी तेरी है, जब चाहे ले जा| वैसे भी मुझे आज कोई काम नहीं, आज मैं घर पर ही हूँ!

मैंने घर पर रहने की बात भौजी की तरफ देखते हुए कहा|

दिषु: चल ठीक है मैं आ रहा हूँ|

मैंने फ़ोन रखा तो भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देख रहीं थीं!

भौजी: क्या मतलब घर पर ही हूँ, साइट पर नहीं जाना?

भौजी अपनी कमर पर हाथ रखते हुए झूठ गुस्सा दिखाते बोलीं|

मैं: भई आज तो मैं घर पर रह कर आपकी देखभाल करूँगा|

मैंने जिम्मेदार पति की तरह कहा| भौजी आगे कुछ कहतीं उसके पहले मेरा फ़ोन फिर बज उठा, इस बार लेबर का फ़ोन था;

मैं: हाँ बोलो भाई क्या दिक्कत है?

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा|

लेबर: साहब माल नहीं आया साइट पर और आप कब तक आएंगे?

मैं: संतोष कहाँ है?

लेबर ने संतोष को फ़ोन दिया;

मैं: संतोष भाई, आज प्लीज काम संभाल लो, मैं आज नहीं आ पाउँगा|

मैंने आने से मना किया तो संतोष को लगा की कोई चिंता की बात है;

संतोष: भैया कोई emergency तो नहीं है?

संतोष चिंतित होते हुए पूछने लगा|

मैं: नहीं यार! आज किसी के तबियत खराब है!

मैंने भौजी को कनखी आँखों से देखते हुए कहा|

संतोष: किस की साहब? माँ जी ठीक तो हैं?

मैं: हाँ-हाँ वो ठीक हैं! बस है कोई ख़ास!

मैंने मुस्कुरा कर भौजी को देखते हुए कहा| भौजी मेरी बातों का मतलब समझ रहीं थीं, मेरा उनको ले कर possessive हो जाना भौजी को अच्छा लगता था!

मैं: और वैसे भी आज मेरे पास गाडी नहीं है, अब यहाँ से गुडगाँव आऊँगा, एक घंटा उसमें खपेगा और फिर रात को रूक भी नहीं सकता, इसलिए बस आज का दिन काम सँभाल लो कल से मैं आ ही जाऊँगा|

संतोष: ठीक है भैया! आप जरा रोड़ी और बदरपुर के लिए बोल दो और मैं कल आपको सारा हिसाब दे दूँगा|

मैं: ठीक है, मैं अभी बोल देता हूँ|

मैंने फ़ोन रखा और सीधा supplier से बात कर के माल का order दे दिया! मैं फ़ोन रखा तो भौजी कुछ कहने वाली हुईं थीं;

मैं: हाँ जी बेगम साहिबा कहिये!

मैंने स्वयं ही भौजी से पूछा|

भौजी: आप पहले गाडी ले लो, बच्चों के लिए FD बाद में करा लेंगे!

मैं: Hey मेरा decision final है और मैं इसके बारे में मैं कुछ नहीं सुनना चाहता!

मैंने गुस्से से कहा|

भौजी: पर गाडी ज्यादा जर्रुरी है! उससे आपका काम आसान हो जाएगा!

भौजी ने मेरी बात काटनी चाही जो मुझे नगवार गुजरी;

मैं: NO AND END OF DISCUSSION!

मैंने गुस्से में बात खत्म करते हुए कहा| कई बार मैं भौजी के साथ गुस्से में बड़ा रुखा व्यवहार करता था, लेकिन इस बार मैं सही था! गाडी से ज्यादा जर्रूरी मेरे बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना था!



खैर मैंने गुस्सा कर के भौजी को नाराज कर दिया था और अब मुझे उन्हें मनाना था;

मैं: मैं नाश्ता ले के आता हूँ|

मैंने बात बनाते हुए कहा|

भौजी: मुझे नहीं खाना!

भौजी ने रुठते हुए अपना मुँह फुला कर कहा!

मैं: Awwwww मेरा बच्चा नाराज हो गया! Awwwww!!!

मैंने भौजी को मक्खन लगाने के लिए किसी छोटे बच्चे की तरह दुलार किया|

भौजी: आप मेरी बात कभी नहीं मानते!

भौजी आयुष की तरह अपना निचला होंठ फुलाते हुए बोलीं! मैंने अपनी आँखें बड़ी करके अपनी हैरानी जाहिर की;

भौजी: हाँ-हाँ कल रात आपने मेरी बात मानी थी|

कल रात जब मैं भौजी को तीसरे round के लिए मना कर रहा था तब उन्होंने विनती की थी की मैं न रुकूँ!

मैंने फिर से वैसे ही आँखें बड़ी कर के हैरानी जताई;

भौजी: हाँ-हाँ! आपने पाँच साल पहले भी मेरी बात मानी थी|

पाँच साल पहले भौजी ने मुझे खुद से दूर रहने को कहा था और मैंने तब भी उनकी बात मानी थी| मैंने तीसरी बार फिर भौजी को अपनी हैरानी जताई;

भौजी: ठीक है बाबा! आप मेरी सब बात मानते हो, बस! अब नाश्ता ले आओ और मेरे साथ बैठ के खाओ|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| उनका गुस्सा उतर चूका था और वो पहले की तरह मुस्कुराने लगीं थीं|

मैं नाश्ता लेने गया और घर का प्रमुख दरवाजा खोल दिया| इतने में दिषु आ गया और चाभी ले कर निकलने लगा, मैंने उसे नाश्ते के लिए पुछा तो उसने पराँठा हाथ में पकड़ा और खाते हुए चला गया! मैं हम दोनों का (भौजी और मेरा) नाश्ता लेकर भौजी के पास आ गया| हमने बड़े प्यार से एक-दूसरे को खाना खिलाया और थोड़ा हँसी-मजाक करने लगे! थोड़ी देर में माँ घर लौट आईं और सीधा भौजी वाले कमरे में आ गईं;

माँ: बहु अब कैसा लग रहा है?

माँ ने भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए पुछा|

माँ: मानु, तूने दवाई दी बहु को?

माँ ने पुछा|

मैं: जी चाय के साथ दी थी|

भौजी: माँ मुझे अब बेहतर लग रहा है, आप बैठो मैं खाना बनाना शुरू करती हूँ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और उठने लगीं, मैंने भौजी का हाथ पकड़ उन्हें फिर से बिठा दिया और उनपर हक़ जताते हुए बोला;

मैं: अभी आपका बुखार उतरा नहीं है, चुपचाप आराम करो! मैं खाना बाहर से मँगा लेता हूँ|

मैंने चौधरी बनते हुए कहा|

माँ: ठीक है बेटा, मगर कुछ अटर-पटर खाना मत मँगा लिओ| पता चले तू बहु का पेट भी ख़राब कर दे!

माँ मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं!

माँ: और बहु तू आराम कर!

माँ ने भौजी को आराम करने को कहा लेकिन भौजी को माँ के साथ समय बिताना था;

भौजी: माँ मैं अकेली यहाँ bore हो जाऊँगी!

मैं: तो आप और मैं tablet पर फिल्म देखते हैं?!

मैं बीच में बोल पड़ा|

माँ: जो देखना है देखो, मैं चली CID देखने|

माँ हँसते हुए बोलीं!

भौजी: माँ, मैं भी आपके पास ही बैठ जाती हूँ|

भौजी की बात सुन मैं आश्चर्यचकित हो कर उन्हें देखने लगा, क्योंकि मैं सोच रहा था की भौजी और मैं साथ बैठ कर फिल्म देखें, लेकिन भौजी की बात सुन मेरा plan खराब हो चूका था!

माँ: ठीक है बहु, तू सोफे पर लेट जा और मैं कुर्सी पर बैठ जाती हूँ|

माँ भौजी के साथ CID देखने के लिए राजी हो गईं थीं|

मैं: ठीक है भई आप सास-बहु का तो program set हो गया, मैं चला अपने कमरे में!

मेरी बात सुन सास-बहु हँसने लगे| मेरा माँ को भौजी की सास कहना उन्हें (भौजी को) बहुत अच्छा लगता था| मैं अपने कमरे की तरफ घूमा ही था की माँ ने पीछे से पुछा;

माँ: बेटा, आज काम पर नहीं जाना?

मैं: नहीं! संतोष आज काम सँभाल लेगा, कल चला जाऊँगा|

भौजी के सामने माँ से झूठ नहीं बोल सकता था, इसलिए मैंने बात घुमा दी!

माँ: जैसी तेरी मर्जी|

मैं अपने कमरे में आ गया और कुछ bill और accounts लिखने लगा, उधर भौजी तथा माँ बैठक में CID देखने लगे!



कुछ देर बाद मुझे प्यास लगी तो मैं पानी लेने के लिए रसोई में जाने लगा तो बैठक का नजारा देख के चौखट पर चुपचाप खड़ा हो गया| भौजी ने माँ की गोद में सर रख रखा था और माँ टी.वी. देखते हुए उनका सर थपथपा रहीं थीं| मैं धीरे-धीरे चलते हुए माँ के पास आया, जैसे ही माँ की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे चुप रहने का इशारा किया| भौजी माँ की गोदी में सर रखे हुए सो चुकी थीं| भौजी को यूँ माँ की गोदी में सर रख कर सोता देख मेरे दिल में गुदगुदी होने लगी थी! मैं चुपचाप पानी ले कर अपने कमरे में लौट आया और पानी पीते हुए अभी देखे हुए मनोरम दृश्य के बारे में सोचने लगा| भौजी ने मेरे दिल के साथ-साथ इस घर में भी अपनी जगह धीरे-धीरे बना ली थी! मेरे माँ-पिताजी को भौजी अपने माँ-पिताजी मानती थीं| पिताजी के दिल में भौजी के लिए बेटी वाला प्यार था, वहीं दोनों बच्चों को पिताजी खूब लाड करते थे, हमेशा उनके लिए चॉकलेट या टॉफी लाया करते थे! उधर माँ के लिए तो भौजी बेटी समान ही थीं, मेरे से ज्यादा तो माँ की भौजी से बनने लगी थी!

'क्या भौजी इस घर का हिस्सा बन सकती हैं?' एक सवाल मेरे ज़ेहन में उठा! ये था तो बड़ा ही नामुमकिन सा सवाल; 'Impossible!' दिमाग बोला, लेकिन दिल को ये सवाल बहुत अच्छा लगा था! इस सवाल को सोचते हुए मैं कल्पना करने लगा की कैसा होता अगर भौजी इस घर का हिस्सा होती हैं? किसी की कल्पना पर किसका जोर चलता है? अपनी इस कल्पना में खो कर मेरी आँख लग गई|



दो घंटे बड़े चैन की नींद आई, फिर एक डरावना सपने ने मेरी नींद तोड़ दी! मैंने सपना देखा की मैं भौजी को i-pill देना भूल गया और उनकी pregnancy ने घर में बवाल खड़ा कर दिया! ऐसा बवाल की बात मार-काट पर आ गई! मैं चौंक कर उठ बैठा और फटाफट घडी देखि, पौने एक हो रहा था मतलब खाने का समय हो चूका था| मैं फटाफट कपडे पहन कर बाहर बैठक में आया, भौजी तो पहले ही सो चुकी थीं लेकिन अब माँ की भी आँख लग चुकी थी और टी.वी. चालु था| मैं दबे पाँव बाहर जाने लगा तो दरवाजा खुलने की आहट से माँ की आँख खुल गई, उन्होंने इशारे से पुछा की मैं कहाँ जा रहा हूँ? मैंने इशारे से बता दिया की मैं खाना लेने जा रहा हूँ, माँ ने सर हाँ में हिलाते हुए मुझे जाने की आज्ञा दी और मैं चुप-चाप बाहर निकल गया| मुझे सबसे पहले लेनी थी i-pill जो मैं अपने घर के पास वाली दवाई की दूकान से नहीं ले सकता था क्योंकि वे सब मुझे और पिताजी को जानते थे| अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए मैंने दूसरी colony जाने के लिए ऑटो किया, वहाँ पहुँच कर मैंने दवाई की दूकान ढूँढी और भौजी के लिए i-pill का पत्ता लिया| फिर मैंने घर के लिए खाना पैक कराया और वापस अपनी colony लौट आया| खाना हाथ में लिए मैं बच्चों के आने का इंतजार करने लगा, 5 मिनट में बच्चों की school van आ गई और मुझे खड़ा हुआ देख दोनों कूदते हुए आ कर मुझसे लिपट गए| खाने की खुशबु से दोनों जान गए की मेरे हाथ में खाना है, आयुष ने तो चाऊमीन की रट लगा ली मगर नेहा ने उसे प्यार से डाँटते हुए कहा:

नेहा: चुप! जब देखो चाऊमीन खानी है तुझे!

आयुष बेचारा खामोश हो गया, मैंने प्यार से उसे समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा आपकी दादी जी चाऊमीन नहीं खातीं न, इसलिए मैंने सिर्फ खाना पैक करवाया है|

आयुष मेरी बात समझ गया और मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: ठीक है पापा जी, चाऊमीन फिर कभी खाएँगे!

आयुष बिलकुल जिद्दी नहीं था, मेरी कही हर बात समझ जाता था!



खैर मैं खाना और बच्चों को ले कर घर पहुँचा, घर का दरवाजा खुला तो बच्चों ने अपनी मम्मी को अपनी दादी जी की गोदी में सर रख कर सोये हुए पाया! दोनों बच्चे चुप-चाप खड़े हो गए, आज जिंदगी में पहलीबार वो अपनी मम्मी को इस तरह सोते हुए देख रहे थे! माँ ने जब हम तीनों को देखा तो बड़े प्यार से भौजी के बालों में हाथ फिराते हुए उठाया;

माँ: बहु......बेटा......उठ...खाना खा ले|

भौजी ने धीरे से अपनी आँख खोली और मुझे तथा बच्चों को चुपचाप खुद को निहारते हुए पाया! फिर उन्हें एहसास हुआ की वो माँ की गोदी में सर रख कर सो गईं थीं, वो धीरे से उठ कर बैठने लगीं और आँखों के इशारे से मुझसे पूछने लगीं की; 'की क्या देख रहे हो?' जिसका जवाब मैंने मुस्कुरा कर सर न में हिलाते हुए दिया! जाने मुझे ऐसा क्यों लगा की माँ की गोदी में सर रख कर सोने से भौजी को खुद पर बहुत गर्व हो रहा है!




जारी रहेगा भाग - 27 में...
:superb: :good::perfect: awesome update hai maanu bhai,
Behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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मानु भाई,
कभी कभी आपकी आत्मकथा पढ़कर मुझे आपसे जलन होने लगती है
अधिकार, मोह, क्रोध और पश्चाताप ..........
जो आपने सिर्फ बचपन में ही नहीं.......... जवानी तक जिए (अब तक की कहानी में भी आपका बचपना झलकता है)
मैं नहीं जी पाया......
दूसरों के घर की परवरिश ने मुझे होश संभालते ही परिपक्व कर दिया
मेरी हर भावना, भावुकता को ...... तर्क और उचित निर्णय लेने की योग्यता ने दबा दिया

- कभी किसी के लिए possessiveness ही नहीं महसूस हुई...... क्योंकि पता नहीं कितने मिलते -बिछ्ड्ते गए .......इसीलिए मोह भी नहीं
- कभी गुस्सा नहीं दिखा सका किसी को....... कभी उसकी जरूरत होती थी मुझे तो कभी उसकी जरूरत ही नहीं आगे ..... सामंजस्य या त्याग
- अपनी गलतियों पर पछतावा भी नहीं किया....या तो उसे सही साबित कर दिया या उसको सुधार दिया.... ज़िम्मेदारी निभाना पछताने से ज्यादा जरूरी होता था

"बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले"

बस.......एक ही सब्र है
मेरी ख्वाहिशे कभी इतनी ज्यादा रही ही नहीं.......तो जो ज़िंदगी ने दिया, ख़्वाहिशों से ज्यादा ही रहा
 

Sangeeta Maurya

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मानु भाई,
कभी कभी आपकी आत्मकथा पढ़कर मुझे आपसे जलन होने लगती है
अधिकार, मोह, क्रोध और पश्चाताप ..........
जो आपने सिर्फ बचपन में ही नहीं.......... जवानी तक जिए (अब तक की कहानी में भी आपका बचपना झलकता है)
मैं नहीं जी पाया......
दूसरों के घर की परवरिश ने मुझे होश संभालते ही परिपक्व कर दिया
मेरी हर भावना, भावुकता को ...... तर्क और उचित निर्णय लेने की योग्यता ने दबा दिया

- कभी किसी के लिए possessiveness ही नहीं महसूस हुई...... क्योंकि पता नहीं कितने मिलते -बिछ्ड्ते गए .......इसीलिए मोह भी नहीं
- कभी गुस्सा नहीं दिखा सका किसी को....... कभी उसकी जरूरत होती थी मुझे तो कभी उसकी जरूरत ही नहीं आगे ..... सामंजस्य या त्याग
- अपनी गलतियों पर पछतावा भी नहीं किया....या तो उसे सही साबित कर दिया या उसको सुधार दिया.... ज़िम्मेदारी निभाना पछताने से ज्यादा जरूरी होता था

"बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले"

बस.......एक ही सब्र है
मेरी ख्वाहिशे कभी इतनी ज्यादा रही ही नहीं.......तो जो ज़िंदगी ने दिया, ख़्वाहिशों से ज्यादा ही रहा

हमारे लेखक महोदय हैं ही इतने अच्छे...इतना प्यार करने वाले...जिसने इन्हें ज़रा सा प्यार दिया उस पर इन्होने अपने प्यार की बारिश कर दी..... जिस ने इनसे कुछ मांग लिया इन्होने उसे सब कुछ दे दिया..... जिसने इन्हें प्यार से गले लगा लिया ये उसी के हो गए.... कभी किसी का दिल नहीं दुखाया....अगर गलती से दुखाया भी तो सर झुका कर दिल से माफ़ी मांग ली....कभी किसी का भरोसा नहीं तोडा....कभी किसी से जबरदस्ती प्यार नहीं माँगा.... आप में और इनमें एक ही अंतर् है.... जहाँ आप किसी के धोखा देने पर बदला लेने को तैयार हो जाते हो...ये उसे उसके कर्मों की सजा भुगतने के लिए छोड़ देते हैं..... इन्होने कभी किसी से बदला लेने की नहीं सोची... हाँ बचपना बहुत है इनमें.... बच्चों से भी ज्यादा.... वो क्यूटनेस ऐसी है की क्या कहें.... खुराफातें ऐसी की पढ़ कर हंसी आ जाती है.... ख़ास तौर पर उस करुणा के साथ तो कुछ ज्यादा ही खुराफातें की हैं इन्होने :girlmad: ...... किसी को सरप्राइज देना हो तो इनकी तैयारी देखने लायक होती है... आसमान सर पर उठा लेते हैं..... लेकिन इन्हें कभी कोई सरप्राइज नहीं मिला..... सब को खुशियां बांटने वाला खुद ही बिना खुशियों के रहा.... :verysad:
 
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