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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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कोई नया meme ढूँढो भाई, कब तक एक ही picture घुमाते रहोगे! :alright:

Bdiya update gurujii :love:


Ankho se aag dikhake
😐🤔


Forward :D
बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
चलो आज आपको दिखा दूँ आँखों से आग कैसे निकालते हैं:
giphy.gif



:lotpot:

Forward hi to hoti h sohann papri diwali pe :D
आज से 7-8 साल पहले सोहन पपड़ी forward नहीं होती थी, तब वो mix मिठाई वाला डिब्बा forward किया जाता था और सोहन पपड़ी दबा ली जाती थी!
 

Rockstar_Rocky

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Ye aaya ek dhamakedar update jiss mai tufan aaya par khushi wala jo pta nhi khud mai kya kya chupaye baitha h.
.
Abhi k liye to bhauji maam gye aur diwali bumpar offer bhi mil gya.
.
Agni pareeksha to diwali k baad shuru hogi.
.
Keep writing.
.
Keep posting.
.
..
...
....
बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

diwali bumpar offer bhi mil gya.


Agni pareeksha to diwali k baad shuru hogi.
 

Rockstar_Rocky

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Neha Or Aayush Ki Pyaari Masti Padh Kar Mazaa Aaya! Yaadgaar Diwali Rahi Aapki! Chaliye Bahut-Bahut Mubarakbaad Aapko! :celebconf:

बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
आशा करता हूँ आप अंत तक साथ बने रहेंगे!
 

Rockstar_Rocky

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Rockstar_Rocky

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चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-5

अब तक आपने पढ़ा:


भौजी के चेहरे को छोड़ मैं घुटने मोड़ कर नीचे बैठा और आँख बंद कर के उनके पेट पर अपने होंठ रख दिए! भौजी ने अपनी आँख बंद कर ली और मेरे इस चुंबन को हमारे बच्चे को मिलने वाली पहली 'पप्पी' के रूप में महसूस करने लगीं! हम दोनों उस वक़्त खुदको पूर्ण महसूस कर रहे थे, हमारा ये प्यार भरा रिश्ता ऐसे मुक़ाम पर आ चूका था जिसके आगे हम दोनों को अब कुछ नहीं चाहिए था| अब बस एक आखरी पड़ाव, एक आखरी उपलब्धि मिलनी बाकी थी, वो शिखर जिस पर पहुँच कर हम दोनों एक दूसरे को अपना सर्वस्व सौंप कर हमेशा-हमेशा के लिए के पावन रिश्ते में बँध जाते!


अब आगे:


इतनी ख़ुशी पा कर हम दोनों तृप्त हो गए थे! मैंने भौजी को पलंग पर बिठाया और मैं उनके सामने कुर्सी ले कर के बैठ गया| भौजी की आँखें ख़ुशी के मारे फिर छलक गईं थीं;

भौजी: जानू, मुझे मेरा पूरा परिवार चाहिए!

यहाँ पूरे परिवार से भौजी का तातपर्य था; मैं, वो, हमारे तीनों बच्चे और मेरे माता-पिता| भौजी की आवाज में अब वो आत्मविश्वास झलक रहा था जो मैंने कुछ पल पहले उनके भीतर जगाया था| उनका ये आत्मविश्वास देख मैं बड़े गर्व से बोला;

मैं: जान वादा करता हूँ की आपकी ये माँग मैं अवश्य पूरी करूँगा!

मैंने उस वक़्त जोश-जोश में कह तो दिया था, लेकिन ये सब होना इतना आसान नहीं था!



खैर अब समय रोने का नहीं था बल्कि ख़ुशी मनाने का था| मैंने भौजी के आँसूँ पोछे और मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: अच्छा बस! अब कोई रोना-धोना नहीं! सबसे पहले हमारे दोनों बच्चों को थोड़ा प्यार दो, बेचारे इतने दिनों से आपकी डाँट खा रहे हैं!

मैंने भौजी का ध्यान बच्चों की ओर करते हुए कहा|

भौजी: हाँ जी! उन्हें भी तो ये खुशखबरी दें!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: नहीं जान, अभी नहीं! वो बच्चे हैं कहीं आज माँ-पिताजी के सामने कुछ कह दिया तो कल के लिए मेरी बात बिगड़ जायेगी! फिलहाल आप उन्हें थोड़ा प्यार करो ताकि वो दोनों ख़ुशी से पहले की तरह चहकने लगें!

मैं नहीं चाहता था की बच्चों को ये बात अभी बताई जाए| दोनों की उम्र का तकाज़ा था, अपने बचपने में अगर वो किसी से कुछ कह देते तो मेरे लिए माँ-पिताजी से बात करने में मुश्किल खड़ी हो जाती! फिर मैं ये भी नहीं चाहता था की इतनी सी उम्र में बच्चों के ऊपर इतने सारे राज़ छुपाने का भार पड़े, उनका बचपन बिना किसी चिंता के होना चाहिए!

बहरहाल मने दोनों बच्चों को आवाज दे कर कमरे में बुलाया;

मैं: आयुष....नेहा बेटा इधर आओ!

मेरी आवाज सुन दोनों दौड़े-दौड़े कमरे में आये|

मैं: बेटा मम्मी के गले लगो!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को कहा, मगर दोनों ही अपनी मम्मी के गले लगने से झिझक रहे थे| दरअसल अपनी मम्मी के रूखे बर्ताव के कारन वो नाराज थे|

मैं: देख लो आपके रूखेपन के कारन मेरे बच्चे कितने डर गए हैं!

मैंने भौजी को प्यार से डाँटा तो भौजी ने अपने दोनों कान पकड़ लिए और सर झुका लिया|

मैं: बेटा आपकी मम्मी मुझसे नाराज थीं और मेरा सारा गुस्सा आपके ऊपर निकाल दिया| मेरे लिए अपनी मम्मी (भौजी) को माफ़ कर दो और उनके गले लग जाओ!

मैंने सारा इल्जाम अपने सर लिया और प्यार से बच्चों को समझाया तो दोनों ने झट से अपनी मम्मी को माफ़ कर दिया और मुस्कुराते हुए अपनी मम्मी के गले लग गए| भौजी ने भी दोनों बच्चों को कस कर अपने सीने से लगाया और दोनों के सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

भौजी: मुझे माफ़ कर दो बेटा!

जिसके जवाब में दोनों ने अपनी मम्मी के गालों पर प्यारी-प्यारी पप्पी दी और उन्हें माफ़ कर दिया|



मेरे दोनों बच्चे अब पहले की तरह चहक रहे थे, खाने का समय हो चला था तो दोनों बच्चे प्यार से तुतलाते हुए बोले; "पापा जी भूख लगी है!" मैंने फ़ोन उठाया और सब के लिए चाऊमीन और pastry मँगाई! चाऊमीन तो बच्चों की मनपसंद थी मगर pastry आने वाले मेहमान की ख़ुशी में मँगाई गई थी! खाना आया और हम चारों ने एक साथ बैठ कर, एक दूसरे को खिला कर खाया| खाना खा कर माँ-बेटी (भौजी और नेहा) रंगोली बनाने में जुट गए और हम बाप-बेटा (मैं और आयुष) दिवाली की लाइटें लगाने छत पर पहुँच गए| छत पर लाइटें लगा कर दोनों बाप-बेटे नीचे आये और घर के भीतर की सजावट में लग गए| सजावट करते समय मेरे मन में एक ख्याल आया और काम निपटा कर मैं 20 मिनट के लिए बाहर चल गया| दरअसल मेरा मन भौजी के साथ अकेले में कुछ समय बिताने का था, अब घर पर तो ये मुमकिन नहीं था इसलिए मैंने गाडी किराए पर लेने का मन बनाया| लेने को तो मैं गाडी दिषु से भी माँग सकता था लेकिन आज त्यौहार के दिन उसे भी गाडी की जर्रूरत होती इसलिए मैंने उससे गाडी नहीं माँगी! मैंने Swift Dzire 3,000/- रुपये दे कर किराये पर ली और गली के बाहर पार्क कर के घर आ गया|

माँ-पिताजी के आते-आते पूरा घर चमक रहा था! माँ-पिताजी आये तो साथ में मिठाई लाये, मिठाई देख कर दोनों बाप-बेटे (मैं और आयुष) एक दूसरे को देखने लगे! हम दोनों ही के चेहरे पर लालच नजर आ रहा था, माँ ने हमारा ये लालच देखा तो हँसते हुए बोलीं;

माँ: बहु ये मिठाई सब संभाल कर रखिओ, यहाँ दो-दो लालची शैतान घूम रहे हैं!

माँ की बात सुन हम सब ने जोर से से ठहाका लगाया|



सभी बारी-बारी से नहाये और नए कपडे पहन कर तैयार हो गए| पिताजी ने नई shirt-pant पहनी थी, माँ ने नै शिफॉन की साडी पहनी थी| मैंने अपने लिए कुछ नहीं खरीदा था इसलिए मैं jeans और shirt पहनने वाला था, मगर पिताजी ने मुझे नई shirt-pant दी और बोले;

पिताजी: जानता था तू अपने लिए कपडे लेना भूल गया होगा, इसलिए इस बार मेरी तरफ से तेरे लिए shirt-pant!

मैंने मुस्कुरा कर पिताजी से कपडे लिए और उनके पाँव छू कर उनका आशीर्वाद लिया| मैं अपने कमरे में भौजी के लिए लिए साडी लेने जा ही रहा था की इतने में माँ ने भौजी को आवाज लगा कर अपने पास बुलाया;

माँ: बहु, मेरी तरफ से तेरे लिए ये साडी| जल्दी से जा कर इसे पहन कर आ|

भौजी ने मुस्कुरा कर माँ से साडी ली और उनके पाँव छु कर आशीर्वाद लिया| अब माँ ने खुद साडी दे दी थी तो मैंने सोचा की मैं भौजी को साडी बाद में दे दूँगा!

माँ-पिताजी तो तैयार हो कर बैठक में बैठे थे, बच्चे नहा कर तैयार हो रहे थे और मैं अपनी बारी का इंतजार करने के लिए dining table के पास टहल रहा था| तभी नेहा तैयार हो कर अपना लहँगा-चोली पहन कर बाहर आई! लहँगा-चोली में मेरी बेटी इस समय पूरी परी लग रही थी! नेहा को देखते ही मैंने अपने दोनों हाथ खोल दिए और वो दौड़ती हुई आ कर मेरे गले लग गई!

मैं: मेरा बच्चा आज बहुत खूबसूरत लग रहा है! कहीं आपको मेरी नजर न लग जाए!

मैंने जेब से 10/- रुपये निकाले और नेहा पर वारते हुए मंदिर में रख दिए| फिर नेहा ने झुक कर मेरे पाँव छुए तो मैंने उसे गोदी में उठा लिया और उसके गालों की मीठी-मीठी पप्पी ले कर नाचने लगा| मेरी बेटी भी इतनी खुश थी की उसने मेरे कान में खुसफुसाते हुए कहा;

नेहा: Thank you पापा जी!

वहीं जब माँ ने नेहा को तैयार मेरी गोदी में नाचते हुए देखा तो माँ बोलीं;

माँ: अरे वाह! मेरी बिटिया तो आज राजकुमारी लग रही है!

माँ ने नेहा को अपने पास बुलाया तो मैंने नेहा को गोदी से उतार दिया| नेहा भागती हुई अपनी दादी की कमर से लिपट गई, माँ ने अपनी आँखों से काजल निकालते हुए नेहा के कान के पीछे टीका लगा दिया;

माँ: मेरी बिटिया को नजर न लगे!

माँ ने नेहा के माथे को चूमते हुए कहा| इतने में आयुष धोती कुरता पहन कर बाहर आ गया| अपनी छोटी सी धोती में आयुष ‘छोटे कुँवर साहब’ लग रहा था! मैंने आगे बढ़ते हुए आयुष को गोदी उठा लिया और अपने गले लगाते हुए बोला;

मैं: बेटा आज तो आप बहुत cute लग रहे हो! मेले छोटे लाड साहब!

मैंने आयुष के दोनों गालों पप्पी लेते हुए कहा, आयुष अपनी तारीफ सुनते हुए शर्म से लाल हो गया! लाड साहब की 'उपाधि' मुझे मेरे बचपन में पिताजी द्वारा दी गई थी, आज जब आयुष को छोटी सी धोती में देखा तो मेरे मुँह से छोटे लाड साहब अनायास ही निकल गया! ठीक ही है, बाप (मैं) अपने पिताजी का लाड साहब था और बेटा (आयुष) मेरा छोटा लाड साहब था! नए कपड़ों को पा कर आयुष बहुत खुश था और ख़ुशी से चहक रहा था| पिताजी ने जब हम बाप-बेटे को देखा तो उन्होंने आवाज दे कर कहा;

पिताजी: अरे भई आयुष बेटा ने क्या पहना है हमें भी दिखाओ?

मैंने आयुष को नीचे उतारा और वो दौड़ता हुआ अपने दादाजी (मेरे पिताजी) के सामने खड़ा हो गया|

पिताजी: अरे भई वाह! हमारे छोटे साहबजादे तो आज बहुत जच रहे हैं!

पिताजी के मुँह से तारीफ सुन आयुष शरमा गया और जा कर अपने दादा जी के गले लग गया| पिताजी ने आयुष के सर को चूमा, अब आयुष भागता हुआ अपनी दादी जी के पास आया, माँ ने आयुष को भी काला टिका लगाया|

माँ: मेरा मुन्ना तो आज बहुत प्यारा लग रहा है|

माँ ने आयुष के सर को चूमते हुए कहा, आयुष शर्मा गया और माँ से लिपट गया|

पिताजी: भई क्या बात है, बच्चों के लिए कपडे तो तू बड़े चुन-चुन कर लाया है!

पिताजी मेरी तारीफ करते हुए बोले| अब अपनी तारीफ सुन मैं भी आयुष की तरह शर्माने लगा!

माँ: अजी समझदार हो गया है मेरा लाल!

माँ ने भी मेरी तारीफ की तो मैं शर्म से लाल हो चूका था! नेहा जो पिताजी के पास बैठी थी वो मेरे पास आई और मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपनी बाहें लपेट कर खड़ी हो गई| पूरे घर में बस एक मेरी बेटी थी जो मुझे समझती थी और मेरे शर्म से लाल होने पर मुझे सहारा देने आई थी| मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसकी नाक से अपनी नाक रगड़ते हुए अपने कमरे में आ गया|

मैं: मेरा प्यारा बच्चा हमेशा मुझे बचाने आ जाता है!

मैंने नेहा की बड़ाई की तो नेहा मेरे दोनों गाल खींचते हुए बोली;

नेहा: I love you पापा!

मैंने नेहा का माथा चूमा और बोला;

मैं: I love you too मेरा बच्चा!

मैंने नेहा को गोदी से उतारा और मैं तैयार हो कर बाहर आया|



कुछ देर बाद भौजी भी तैयार हो कर बाहर निकलीं| माँ ने भौजी के लिए अच्छी साडी पसंद की थी, मगर भौजी ने जो घूँघट काढ़ा था उसके नीचे मैं उनका चहेरा नहीं देख पा रहा था| अब माँ-पिताजी के सामने तो भौजी को देख पाना नामुमकिन था, इसलिए मैंने ये सोच कर संतोष कर लिया की drive पर जाते समय इसकी सारी भरपाई कर लूँगा!

खैर पूजा का समय हुआ और पंडित जी पूजा करवाने के लिए आ गए| सबसे आगे माँ-पिताजी बैठे थे, उनके पीछे मैं और भौजी बैठे थे, आयुष मेरी गोद में और नेहा मेरी दाहिनी तरफ बैठी थी| हम चारों (मैं, भौजी, नेहा और आयुष) एक छोटे से कुटुम्भ के समान दिख रहे थे! पूजा शुरू हुई, सभी विधि-विधान माँ-पिताजी ने निभाए, मैं उस वक़्त पीछे बैठा अपने खवाबों की दुनिया में गुम था; 'अगले साल दिवाली की पूजा में मैं और मेरी परिणीता बैठे होंगे!' इस मीठे ख्वाब को सोच कर मैं बहुत खुश था और ये ख़ुशी मेरे चेहरे पर झलक रही थी| भौजी मेरे चेहरे पर आई ये ख़ुशी पढ़ चुकीं थीं और उनके पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं थीं! नेहा मेरे ख़्वाबों से अनजान इसलिए खुश थी की उसके पापा जो उसे इस पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा चाहते हैं, आज उनके साथ उसे दिवाली की पूजा में बैठने का अवसर मिला है और आयुष के चेहरे पर ख़ुशी इसलिए ही की पूजा के बाद उसे मिठाई खाने और पटाखे जलाने को मिलेंगे!



पूजा संपन्न हुई तो पंडित जी आशीर्वाद दे कर, अपनी दक्षिणा ले कर चले गए| इधर आयुष से मिठाई खाने और पटाखे जलाने का सब्र नहीं हो रहा था!

पिताजी: बेटा, अभी थोड़ी रात होने दो फिर हम सब छत पर चलकर पटाखे जलाएँगे|

पिताजी ने आयुष को प्यार से समझाते हुए कहा|

माँ: चलो तबतक मिठाई खाते हैं!

माँ ने मिठाई का नाम लिया तो आयुष दौड़ कर अपना नंबर लगा कर माँ के सामने खड़ा हो गया| माँ ने सबको सोहन पापड़ी निकाल कर दी, सबसे पहले आयुष को सोहन पापड़ी मिली तो उसने घप्प से मिठाई मुँह में रखी! सोहन पापड़ी उसके मुँह में घुलने लगी तो आयुष ने ख़ुशी से अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाई! अगला नंबर नेहा का था, उसने भी सोहन पपड़ी का एक पीस खाया तो वो भी ख़ुशी से आयुष की तरह अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाने लगी! अभी बाकियों को मिठाई मिली भी नहीं थी की दोनों बच्चे फिर से माँ के सामने अपना नंबर लगा कर खड़े हो गए| बच्चों का बचपना देख माँ हँस पड़ीं और दोनों को दो-दो मिठाई के पीस दिए| माँ-पिताजी दोनों ही मिठाई के शौक़ीन नहीं थे तो उन्होंने एक पीस मिठाई ली और आधी-आधी खाने लगे| बाकी की मिठाई dining table पर रखी थी, मैंने एक पीस भौजी को दिया और खुद एक बड़ा पीस उठा कर खाने लगा| भौजी ने जब मिठाई का एक पीस खाया तो वो धीमी आवाज में मुझसे बोलीं;

भौजी: जानू, इसने तो मेरी बचपन की याद दिला दी!

भौजी की बात सुन मेरा ध्यान उनकी ओर गया वरना मैं तो सोहन पापड़ी लपेटने के चक्कर में था!

भौजी: जब मैं छोटी थी तो इसे बुढ़िया के बाल कहते थे! मेरे स्कूल के दिनों में कभी-कभी खाती थी!

भौजी घूँघट के नीचे से मुस्कुराते हुए बोलीं| 'बुढ़िया के बाल' सुन कर दोनों बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे, क्योंकि ये नाम सुनने में मजाकिया लगता है! फिर दोनों ये बात बताने के लिए अपने दादा जी के पास चले गए! पिताजी को जब ये बात पता चली तो वो भी ठहाका मार कर हँसने लगे! उन्होंने बच्चों को अपने पास बिठा के अपने बचपन की यादें ताज़ा करनी शुरू कर दी| इधर मेरी और भौजी की खुसर-फुसर जारी रही| भौजी की स्कूल के दिनों की बात सुन मुझे मस्ती सूझी और मैं भौजी को चिढ़ाते हुए बोला;

मैं: कहते तो हम भी इसे बुढ़िया के बाल थे, लेकिन आपके जमाने में ये मिठाई मिलती भी थी?

ये सुनते ही भौजी ने मेरी बाजू पर प्यार से घूसा मारा और बोलीं;

भौजी: इतनी बुढ़िया लगती हूँ तो क्यों प्यार करते हो मेरे से?

भौजी नाराज हो कर मुँह फुलाते हुए बोलीं|

मैं: जान शराब जितनी पुरानी होती है उतना ज्यादा नशा देती है!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा| मुझे लगा था की अपनी तुलना पुरानी शराब से होते देख भौजी शर्माएंगी, मगर वो तो रासन-पानी ले कर मेरे ही ऊपर चढ़ गईं;

भौजी: फिर आपने शराब का नाम लिया?

मैंने फ़ौरन अपने कान पकडे और माफ़ी माँगने लगा;

मैं: माफ़ी! माफ़ी देई दिहो!

मेरी गाँव की बोली सुन भौजी हँस पड़ीं, लेकिन फिर अगले ही पल फिर से मुँह फुला लिया;

भौजी: सबके लिए कपडे लाये, लेकिन अपनी पत्नी को भूल गए?

भौजी शिकायत करते हुए बोलीं| मैं उन्हें साडी के बारे में बताता उससे पहले ही पिताजी ने आवाज लगा दी;

पिताजी: चल बेटा, पटाखे जलाएँ!

दरअसल पटाखे जलाने के लिए आयुष पिताजी के पीछे पड़ गया था| वहीं नेहा माँ से लिपट गई और बोली;

नेहा: दादी जी, मुझे रसमलाई खानी है!

आयुष को जलाने थे पटाखे और नेहा को खानी थी रसमलाई तो दोनों भाई-बहन की मीठी-मीठी नोक-झोंक शुरू हो गई;

आयुष: नहीं पहले पटाखे जलाएँगे!

नेहा: नहीं पहले रसमलाई!

आयुष: Please दीदी! Pleaseeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee!

नेहा: नहीं!!

दोनों भाई-बहन की लड़ाई हम सब ख़ामोशी से मुस्कुराते हुए देख रहे थे, जब कोई हल नहीं निकला तो मैंने आगे बढ़ कर सुलाह कराई;

मैं: बेटा ऐसा करते हैं की रसमलाई खाते-खाते पटाखे जलाते हैं|

ये सुनते ही दोनों खुश हो गए|



हम छत पर जाते उससे पहले ही मेरे फ़ोन की घंटी बज गई! हुआ ये की भौजी अपना फ़ोन चार्ज करना भूल गईं थीं इसलिए उनका फ़ोन switch off हो गया था, तो दिवाली की मुबारकबाद देने के लिए अनिल ने मेरे फ़ोन पर कॉल किया था| मुझे दिवाली की शुभेच्छा दे कर उसकी बात अपनी बहन से हुई| उसके बाद नंबर आया बच्चों का जिन्होंने बस; "Happy Diwali मामा जी" कहा और छत पर भाग गए क्योंकि उन्हें पटाखे और रसमलाई जो खानी थी| अंत में माँ-पिताजी ने अनिल से बात की, उन्होंने गाँव घर की हाल-खबर ली और आखिरकार हम सब छत पर आ गए| छत पर तीन कुर्सियाँ लगी थीं जिन पर पिताजी, माँ और भौजी बैठ गए, टेबल पर मैंने नेहा की रसमलाई तथा पिताजी द्वारा लाये हुए ढ़ोकले रख दिए| मैंने पटाखे जलाने के लिए मोमबत्ती जलाई थी की माँ ने मुझे रोकते हुए कहा;

माँ: बेटा पहले ढोकला खा ले, फिर पटाखे जलाना!

मुझे ढोकला कुछ ख़ास पसंद नहीं था, इसलिए मैंने बस एक पीस लिया और पटाखे जलाने की तैयारी करने लगा| जब आयुष ने ढोकला देखा तो उसने अपनी एक ऊँगली से उसे दबा कर देखा, ढोकला sponge की तरह दबा तो आयुष ने खिखिलाकर हँसना शुरू कर दिया! आयुष का बचपना देख माँ, पिताजी, नेहा और भौजी ने हँसना शुरू कर दिया| मैं सबसे थोड़ा दूर था तो माँ ने मुझे आयुष के ऊँगली से ढोकला दबाने की बात बताई, ये सुन मेरी भी हँसी छूट गई!

खैर अब समय था पटाखे जलाने का, मैंने सबसे पहले आयुष को एक फुलझड़ी जला कर दी| आयुष अपनी फुलझड़ी पकड़ कर उसे गोल-गोल घुमाने लगा और ख़ुशी से कूदने लगा| नेहा माँ की गोदी में बैठी मजे से अपनी रसमलाई खा रही थी, अब मैंने एक अनार उठाया और उसे दूसरी फुलझड़ी से जलाया| अनार को पहलीबार अपने सामने जलता देख आयुष ने खुशी से उछलना शुरू कर दिया, अनार जलते देखने का उत्साह इतना था की नेहा माँ की गोदी से उठ खड़ी हुई और पिताजी के साथ खड़ी हो कर ख़ुशी से चिल्लाने लगी! मैंने एक फुलझड़ी जलाई और नेहा की तरफ बढ़ाई तो वो डरने लगी, पिताजी ने नेहा के सर पर प्यार से हाथ फेरा तो नेहा में आत्मविश्वास आया और उसने फुलझड़ी ले ली और आयुष की देखा-देखि फुलझड़ी गोल-गोल घुमाने लगी| मैंने एक-एक फुलझड़ी माँ और भौजी को भी दे दी, ताकि उन्हें भी थोड़ा उत्साह मिले| अब बारी थी चखरी जलाने की, मैंने आयुष को अपने पास बुलाया और उसे चखरी जलाने का तरीका बताया| आयुष थोड़ा-थोड़ा डर रहा था इसलिए मैंने आयुष का हाथ पकड़ कर चखरी जलाई, जैसे ही चखरी गोल-गोल घूमी आयुष अपने दोनों हाथ अपने होठों पर रख कर आस्चर्य से चखरी को देखने लगा| मैंने आयुष का ध्यान अपनी तरफ खींचा और चखरी के इर्द-गिर्द कूदने लगा| अपने पापा को चखरी के इर्द-गिर्द कूदता देख आयुष में उत्साह भर उठा और वो भी मेरी देखा-देखि कूदने लगा| वहीं नेहा ने जब अपने भाई को कूदते देखा तो वो भी आयुष की तरह चखरी के इर्द-गिर्द कूदने लगी! अब पिताजी को भी जोश आया, उन्होंने एक-एक कर अनार जलाये| पूरी छत रौशनी से जगमगा रही थी और ये जगमगाहट सबके चेहरे पर ख़ुशी बनकर खिली हुई थी! हम सब की नजर बस बच्चों पर थी जो पटाखे जलने की ख़ुशी में डूबे हँस-कूद रहे थे!



अगल-बगल वाले पड़ोसियों ने आसमान में 7 रंग वाले shots चलाये तो सबका ध्यान उन रंग-बिरंगी आतिशबाजी की तरफ गया| माँ-पिताजी को ये आतिशबाजी देखने की आदत थी फिर भी उनके चेहरे पर वैसी ही ख़ुशी थी जैसे वो ये आतिशबाजी पहलीबार देख रहे हों| वहीं बच्चे और भौजी तो आश्चर्यचकित थे, उनके लिए तो ये बहुत अनोखी चीज थी! बच्चों के चेहरे पर आयी ख़ुशी और उत्साह देख कर ख़ुशी के मारे मेरी आँखें नम हो चली थीं| मैंने सबसे नजरे बचा कर अपनी आँखें पोछीं और बच्चों का ध्यान rocket जलाने की ओर खींचा|

आज तक अपने जीवन काल में मैंने बस एक ही बार rocket जलाया था और वो ससुरा ऊपर न जा कर नीचे ही मेरे सामने फट गया था! उस दिन से मैंने rocket जलाने से तौबा कर ली थी, इसलिए rocket जलाने का काम पिताजी ने किया| जैसे ही पिताजी ने rocket को आग लगाई वो भागता हुआ आसमान में जा फटा! Rocket को यूँ आसमान की ओर उड़ता देख बच्चे ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगे थे! दोनों बच्चों ने; "दादा जी फिर से" की रट लगानी शुरू कर दी, पिताजी को भी जोश आया और उन्होंने पटाखे जलाने की कमान अपने हाथ में ले ली| कभी अनार, कभी, चखरी तो कभी rocket, जो भी बच्चे उठा कर लाते पिताजी वही जलाते! अब चूँकि पिताजी पटाखे जला रहे थे तो मैं आराम से भौजी और माँ के पास आ कर बैठ गया| मैं नेहा की छोड़ी हुई रसमलाई खा रहा था जब माँ ने भौजी से बात छेड़ी;

माँ: बेटा तो कैसी लगी दिवाली हमारे साथ?

भौजी: माँ सच कहूँ तो ये मेरी अब तक की सबसे यादगार दिवाली है| गाँव में ना तो इतनी रौशनी होती है, न ये शोर-गुल| रात की पूजा के बाद शायद ही कोई पटाखे जलाता था, पिछले साल मैंने आयुष का शौक पूरा करने के लिए उसे फुलझड़ी ला कर दी थी वरना ये दोनों (आयुष और नेहा) तो जानते थे की पूजा और मिठाई खाने को ही दिवाली कहते हैं! यहाँ आके आज हम तीनों को पता चला की दिवाली क्या होती है?!

भौजी की बात सुन मुझे हैरानी नहीं हुई थी, क्योंकि गाँव की दिवाली के बारे में पिताजी ने मुझे पहले बताया था, तभी तो आज ये दिवाली मैं अपने बच्चों और अपनी दिलरुबा के लिए यादगार बनाना चाहता था|

माँ: बेटा वो ठहरा गाँव और ये शहर! यहाँ लोग दिखावा ज्यादा करते हैं, जबकि गाँव में सब कुछ सादे ढँग से मनाया जाता है|

माँ की बात सही थी, शहर में लोगों को बेकार पैसे फूँकने में मज़ा आता है|

मैं: अब इसे (मुझे) देख ले, हर साल मैं इससे कहती थी की पटाखे ले ले, मगर ये कहता था की पटाखे जलाने से पोलुशन (pollution) होता है और आज देखो जरा इसे?!

माँ ने जब मेरे पटाखे खरीदने की बात कही तो मैं माँ को समझाते हुए बोला;

मैं: माँ, मैं तो अब भी कहता हूँ की pollution बहुत बढ़ गया है, लेकिन आयुष और नेहा ने कभी पटाखे नहीं जलाये थे इसलिए मैं उनकी ख़ुशी के लिए बस फुलझड़ी, अनार, चखरी और राकेट लाया! बम और ये रंग-बिरंगे shots हवा के pollution के साथ ध्वनि pollution भी करते हैं, इसलिए मैंने वो नहीं खरीदे|

मेरी बात समझते हुए माँ बोलीं;

माँ: देख बेटा मैंने तुझे पटाखे खरीदने के लिए कभी मना नहीं किया, अपना मन मारकर कभी नहीं जीना!

माँ मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए बोलीं|

माँ: अच्छा ऐसा कर खाने का order दे दे, लेकिन खाना अच्छा मँगाईयो!

जैसे ही माँ ने मुझसे खाना मँगाने की बात कही, भौजी बीच में बोल पड़ीं;

भौजी: पर माँ मैंने पुलाव बना लिया है!

हमारे घर में हर दिवाली पर पुलाव बनता था, ये बात माँ ने भौजी को नहीं बताई थी इसलिए जैसे ही भौजी ने पुलाव का नाम लिया माँ ने हैरान होते हुए भौजी से पुछा;

माँ: पुलाव? पर बहु तुझे कैसे पता की दिवाली पर मैं पुलाव बनाती हूँ? इस बार तो समय नहीं मिला इसलिए नहीं बना पाई!

माँ का सवाल सुन भौजी की गर्दन मेरी तरफ घूमी तो माँ सब समझ गईं और मुस्कुराते हुए; "हम्म्म" बोलीं| पता नहीं माँ को क्या-क्या समझ आया था, शायद वो जान गईं थीं की मेरे और भौजी के बीच क्या चल रहा है? परन्तु अगर ऐसा था तो उन्होंने कुछ कहा क्यों नहीं?



इतने में हमारे पडोसी ने दस हजार बम की लड़ी जला दी, पटाखों का शोर शुरू हुआ तो किसी को भी कुछ सुनाई नहीं दे रहा था| मैंने इस मौके का फायदा उठाया और भौजी के नजदीक जा कर उनके कान में बोला;

मैं: दस मिनट बाद नीचे मिलना|

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और बोलीं;

भौजी: ठीक है|

मुझे भौजी के शब्द सुनाई नहीं दिए पर मैंने अंदाजा लगा लिया की उन्होंने 'ठीक है' ही कहा होगा| माँ ने खाने का जिक्र किया था तो मुझे लगा की खाना खा कर हम दोनों drive पर कैसे जायेंगे इसलिए मैंने भौजी को नीचे बुलाया था ताकि मैं उन्हें अपना तौहफा दे सकूँ और drive पर ले जाऊँ! मैंने घर की चाभी उठाई और बिना किसी को कुछ कहे नीचे आ गया, पाँच मिनट बाद भौजी भी नीचे आ गईं| ऊपर छत पर बच्चों ने हँसते-खेलते हुए समा बाँधा था तो माँ-पिताजी का ध्यान उन्हीं में लगा हुआ था, इसलिए उन्हें (माँ-पिताजी को) पता ही नहीं चला की मैं और भौजी छत से गोल हो लिए हैं! भौजी जब नीचे आईं तो वो आज की खुशियों को देख कर कल की चिंता करते हुए भावुक हो गई थीं, उन्हें यूँ भावुक देख मैं थोड़ा घबरा गया;

मैं: Hey जान! क्या हुआ आपको?

मैंने भौजी के नजदीक आते हुए पुछा|

भौजी: कुछ नहीं|

भौजी नजरें झुकाते हुए बोलीं|

मैं: Awwww!!!

मैंने भौजी को बच्चों की तरह लाड किया और उन्हें अपने सीने से लगा कर अपनी बाहों में जकड़ लिया|

मैं: I got a surprise for you!

मैं भौजी के कान में खुसफुसाया और अपने कमरे से उनके लिए लाई हुई साडी उन्हें देते हुए बोला;

मैं: इसे जल्दी से पहन लो|

भौजी ने साडी देखि तो उनकी आँखें ख़ुशी के मारे फ़ैल गईं;

भौजी: ये आप कब लाये?

मैं: जब सब के कपडे ले रहा था तब मैंने ये साडी ली थी और इसकी delivery मैंने साइट के address पर करवाई थी, क्योंकि मैं आपको ये आज के दिन पहने हुए देखना चाहता था!

मेरी बात सुन भौजी ने अपने कान पकडे और बोलीं;

भौजी: Sorry जानू! मैंने आप से बेवजह शिकायत की, मुझे लगा मेरे आपसे नाराज रहने के कारन आपने मेरे लिए कुछ नहीं खरीदा! मैं भी सच्ची बुद्धू हूँ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: कोई बात नहीं जान! चलो अब मौका भी है और दस्तूर भी, जल्दी से इसे पहनो ताकि हम जल्दी से drive पर चलें वरना दोनों बच्चे मुझे ढूँढ़ते हुए नीचे आ गए तो हमारा अकेले drive पर जाने का प्रोग्राम फुस्स हो जायेगा!

Drive पर जाने की बात सुन भौजी दुबारा हैरान हुईं;

भौजी: ड्राइव पर? क्या बात है जानू, आज बड़े romantic हो रहे हो?

भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं|

मैं: इतने दिनों से आपने मुझसे बात नहीं की न, तो आज उसकी सारी कसर निकालनी है!

मैंने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा| भौजी मेरा मतलब समझ गईं लेकिन बजाए जल्दी से तैयार होने के सवाल-जवाब में लग गईं;

भौजी: पर गाडी कहाँ है?

मैं: दिषु वाली (गाडी) तो उसके पास है, इसलिए मैंने किराए पर एक गाडी ले ली है!

भौजी: और माँ-पिताजी से क्या कहेंगे?

भौजी के सवाल-जवाब सुन मैंने अपना सर पीट लिया;

मैं: अरे बाबा उन्हें मैं सँभाल लूँगा, आप पहले तैयार तो हो जाओ?

मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा तो भौजी मुस्कुराने लगीं और तपाक से बोलीं;

भौजी: रुकिए! पहले मैं भी आपको एक surprise दे दूँ|

भौजी तेजी से अपने कमरे में गईं और मेरे लिए मँगाया तोहफा ले आईं, मैंने उत्सुकता दिखाते हुए polythene खोला तो देखा उसमें मेरे लिए बंगाली design वाला कुरता पाजामा था! अब हैरान होने की बारी मेरी थी;

मैं: ये आपने कब खरीदा? आप तो मुझसे नाराज थे न?

मैंने प्यार से भौजी को उल्हना देते हुए कहा|

भौजी: नारजगी एक तरफ और अपने जानू के लिए तोहफा एक तरफ! पता है मैंने ये Online order कर के मँगाया है!

भौजी बड़े गर्व से बोलीं| बात थी भी उनके लिए गर्व की, आखिर पहलीबार उन्होंने बिना मेरी मदद के online कुछ order किया था!

भौजी: पहले सोचा आपके लिए लखनवी design का कुरता-पजामा लूँ मगर वो मुझे कुछ जचा नहीं, इसलिए मैंने बंगाली design चुना!

भौजी अपनी पसंद की तरीफ करते हुए बोलीं|

मैं: भई मानना पड़ेगा हम मियाँ-बीवी की पसंद को! मियाँ ने बिना बताये अपनी बीवी के लिए बंगाली साडी पसंद की तो बीवी ने भी बिना बताये अपने मियाँ के लिए बंगाली design का कुरता-पजामा पसंद किया!

मेरी बात सुन भौजी हँस पड़ीं और बोलीं;

भौजी: कहा था न हमारे दिल connected हैं!

भौजी की बात सुन मैं मुस्कुराया और बोला;

मैं: तो ठीक है भई अब दोनों तैयार हो जाते हैं!

हम दोनों अपने-अपने कमरे में घुसे, मैं तो 2 मिनट में तैयार हो कर आ गया मगर भौजी को तैयार होने में 15 मिनट लग गए! मैं dining table पर बैठा बेसब्री से उनके बाहर आने का इंतजार करने लगा, लेकिन 15 मिनट बाद जब भौजी बन-संवर कर बाहर आईं तो उन्हें देखते ही मेरे मुँह से; "WOW" निकला! भौजी ने साडी बिलकुल बंगाली ढँग से बाँधी थी, इस समय वो बिलकुल बंगाली दुल्हन लग रहीं थीं! होठों पर गहरे लाल रंग की लाली, आँखों में काजल, कानों में बालियाँ और हाथों में लाल-लाल चूड़ियाँ! भौजी के सजने-संवरने का मैं शुरू से प्रशंसक रहा हूँ, जब-जब वो बन-संवर के मेरे सामने आईं हैं उन्हें देखते ही मेरा दिल बेकाबू हो जाया करता था! वही हाल मेरा अभी भी था, भौजी को यूँ दुल्हन बना देख मैं उन्हें अपनी बाहों में लेने के लिए आगे बढ़ा ही था की भौजी ने भोयें सिकोड़ कर मेरे ऊपर सवाल दाग दिया;

भौजी: जानू, मुझे बताने की कृपा करेंगे की ये ब्लाउज मेरी fitting का कैसे बना?

भौजी का सवाल मेरे अरमानों पर ठंडा पानी साबित हुआ, साथ ही इस सवाल को सुन कर मैं शर्म से लाल हो गया;

मैं: मम...वो....मैंने....माप के लिए आपका ब्लाउज चुराया था!

मैंने शर्माते हुए सर झुका कर कहा|

भौजी: अरे वाह! मेरे जानू तो बहुत समझदार हैं! लेकिन आप शर्मा क्यों रहे हो?

भौजी मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाते हुए बोलीं|

मैं: वो...मैंने...आजतक कभी ऐसा नहीं किया!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: एक बात कहूँ जानू, जब आप शर्माते हो न तो आप बड़े cute लगते हो!

भौजी के मुँह से अपनी तारीफ सुन मैं फिर से शर्म से लाल हो गया| मुझे यूँ शर्माते हुए देख भौजी ने बात बदली वरना मैं शर्म से पिघल जाता;

भौजी: वैसे जानू, इस कुर्ते-पजामे में आप बहुत handsome लग रहे हो! मैं तो बेकार डर रही थी की कहीं साइज ऊपर-नीचे हो गया तो मेरा surprise धरा का धरा रह जाता!

मैं: अजी आपका surprise खराब कैसे होता, साइज चाहे जो होता मैं पहनता जर्रूर!

मैं भौजी के दोनों गाल खींचते हुए बोला|

भौजी: अच्छा अब आप माँ-पिताजी को हमारे जाने का बोल आओ|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: आप भी साथ चलो तो माँ-पिताजी मना नहीं करेंगे|

मैंने भौजी का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने साथ ऊपर छत पर ले आया|



हम दोनों (मैं और भौजी) ऊपर पहुँचे तो देखा की पिताजी बच्चों के साथ मिलकर पटाखे जला रहे हैं| माँ ने जब हम दोनों को यूँ नए कपडे में देखा तो वो हमारी तारीफ करते हुए बोलीं;

माँ: वाह भई वाह! तुम दोनों तो इन कपड़ों में बड़े अच्छे लग रहे हो! कौन लाया?

माँ का सवाल सुन हम दोनों की गर्दन एक दूसरे की तरफ घूम गई और माँ समझ गईं की हम दोनों ने ही एक दूसरे को ये तोहफा दिया है!

माँ: समझी! जानती थी की मानु तेरे (भौजी के) लिए कुछ न लाये ऐसा हो ही नहीं सकता, पर बहु तूने ये कुरता कब लिया?

भौजी: माँ online मँगाया था!

भौजी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया|

माँ: तो बेटा तुम दोनों ने पूजा में यही क्यों नहीं पहना?

माँ का सवाल सुन मैं जवाब देने को हुआ था, मगर भौजी ही बोल पड़ीं;

भौजी: माँ आप के लाये हुए कपड़ों में आपका प्रेम और स्नेह छुपा था, उसके आगे हमारे कपडे तो कुछ नहीं!

भौजी की बात ने माँ का दिल जीत लिया था, माँ ने उन्हें आशीर्वाद दिया और मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं;

माँ: देख कितनी समझदार है मेरी बेटी और एक तू है, हमेशा उससे लड़ता रहता है!

माँ की प्यारभरी डाँट सुन मैं हँस पड़ा|

इस छोटी सी प्यारभरे वार्तालाप ने मेरे लिए कल बात करने का मंच तैयार कर दिया था!

अब समय था माँ से मेरे और भौजी के अकेले drive पर जाने की बात करने का;

मैं: माँ मैं सोच रहा था की दिषु और एक-दो जगह मिठाई दे आऊँ|

मेरी बात सुन माँ ने मेरे जाने की हमीं भर दी, मगर मुझे भौजी को साथ ले जाना था इसलिए मैंने भौजी की तरफ अपनी गर्दन से इशारा करते हुए कहा;

मैं: इनको साथ ले जाऊँ?

मुझे लगा था की माँ मना कर देंगी पर उन्होंने मुस्कराते हुए हमें इजाजत दी;

माँ: ठीक है बेटा, मगर जल्दी घर आना वरना खाना ठंडा हो जायेगा|

मैंने खुश होते हुए हाँ में सर हिलाया और भौजी को साथ ले कर फटाफट निकल लिया! भौजी ने इस बार मेरे माँ से झूठ बोलने पर कोई सवाल नहीं पुछा, वो भी जानतीं थीं की हमारे अकेले निकलने के लिए झूठ बोलना जर्रूरी था|



हम गाडी में बैठे तो भौजी थोड़ा चिंतित होते हुए बोलीं;

भौजी: जानू अगर माँ-पिताजी ने दिषु भैया को फ़ोन किया तो?

मैंने फोन उठाया और दिषु को कॉल कर सब समझा दिया की अगर मेरे घर से फ़ोन आये तो वो कह दे की मैं उसके यहाँ से अभी-अभी निकला हूँ, भौजी मेरी होशियारी देख हँसे जा रहीं थीं|

मैंने गाडी सीधा India Gate की ओर घुमाई, इधर भौजी ने radio पर चुन-चुन कर रोमांटिक गाने लगाये| गाने सुनते हुए हम दोनों ही romantic हो चुके थे, भौजी ने मेरे थोड़ा नजदीक आते हुए अपना सर मेरे कँधे पर रख दिया और जब तक हम India Gate नहीं पहुँचे वो इसी तरह बैठी रहीं| India gate के नजदीक पहुँच एक एकांत जगह पर मैंने गाडी रोकी और भौजी की तरफ देखते हुए बोला;

मैं: जान आपने तो मूड रोमांटिक कर दिया!

भौजी: आपके साथ अकेले में समय बिताने को मिले और मूड रोमांटिक न हो तो कैसे चलेगा?

भौजी अपनी जीभ होठों पर फिराते हुए बोलीं| अभी तक मेरा मन बस भौजी के होठों का रसपान करने का था, मगर भौजी को यूँ अपने होठों पर जीभ फिराते देख मैं समझ गया की आग दोनों तरफ लगी हुई है!

मैं: चलें back seat पर?

मैंने पुछा ही था की भौजी तपाक से बोलीं;

भौजी: मुझे तो लगा था की आप पूछोगे ही नहीं!

भौजी प्यारभरा उल्हाना देते हुए बोलीं! उनका आशिक़ थोड़ा तो बुद्धू है, जिसे इशारे समझने में थोड़ा समय लगता है!



दिवाली के चलते ये रास्ता सुनसान था और हमारे प्यार के लिए इससे उपयुक्त जगह नहीं हो सकती थी! हम दोनों गाड़ी की back seat पर आ गए, दिषु की Tata Nano के मुक़ाबले इस गाडी में पीछे काफी जगह थी| पिछली सीट पर आ कर हम दोनों प्यासी नजरों से एक दूसरे को देखे जा रहे थे| अब समय था आगे बढ़ने का, मैंने पहल करते हुए अपने दाहिने हाथ को भौजी की गर्दन के पीछे ले जाकर रख उन्हें अपनी ओर खींचा, वहीं भौजी ने अपने दोनों हाथों का हार मेरी गर्दन में पहना दिया! धीरे-धीरे हमारे लब टकराये, उस मनमोहक स्पर्श ने हम दोनों के दिलों में उत्तेजना भर दी! मैंने भार सँभालते हुए अपना मुँह खोलकर भौजी के निचले होंठ को अपने मुख में भर लिया और उसे निचोड़कर पीने लगा| भौजी की मेरी गर्दन पर पकड़ सख्त हो गई और वो मुझे अपने नजदीक खींचने लगीं, अब गाडी में इतनी जगह तो होती नहीं की खड़ा हो कर मैं भौजी के ऊपर आ जाऊँ, इसलिए पहले मुझे अपने पैरों को सही स्थिति में करना था ताकि मैं उनके ऊपर छा सकूँ! अपने पैरों को ठीक करने के चक्कर में मेरी भौजी के होठों के ऊपर से पकड़ छूट गई, भौजी ने उस मौके का फायदा उठा लिया और अपना मुख खोल कर मेरे ऊपर वाले होंठ को अपने मुख में भरकर चूसने लगीं! इधर मैंने अपने पैर सीधे कर लिए थे और मैं भौजी को पीछे धकेल कर उन पर छा चूका था| फिर तो जो होठों के रसपान का सिलसिला शुरू हुआ की हम दोनों ने बेसब्री दिखाते हुए एक दूसरे के होठों को कस कर निचोड़ना शुरू कर दिया! 5 मिनट के चुंबन के दौर ने हम दोनों की सांसें उखाड़ दी थीं, उतावलेपन के कारण हमारे दिलों की धड़कन तेज हो गई थी, प्यास ऐसी थी की हमारी आँखों से ही छलक रही थी! हम आगे बढ़ते उससे पहले ही गाडी के dashboard पर रखा मेरा मोबाइल बज उठा!

जारी रहेगा भाग-6 में...
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,801
31,019
304
चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-5

अब तक आपने पढ़ा:


भौजी के चेहरे को छोड़ मैं घुटने मोड़ कर नीचे बैठा और आँख बंद कर के उनके पेट पर अपने होंठ रख दिए! भौजी ने अपनी आँख बंद कर ली और मेरे इस चुंबन को हमारे बच्चे को मिलने वाली पहली 'पप्पी' के रूप में महसूस करने लगीं! हम दोनों उस वक़्त खुदको पूर्ण महसूस कर रहे थे, हमारा ये प्यार भरा रिश्ता ऐसे मुक़ाम पर आ चूका था जिसके आगे हम दोनों को अब कुछ नहीं चाहिए था| अब बस एक आखरी पड़ाव, एक आखरी उपलब्धि मिलनी बाकी थी, वो शिखर जिस पर पहुँच कर हम दोनों एक दूसरे को अपना सर्वस्व सौंप कर हमेशा-हमेशा के लिए के पावन रिश्ते में बँध जाते!


अब आगे:


इतनी
ख़ुशी पा कर हम दोनों तृप्त हो गए थे! मैंने भौजी को पलंग पर बिठाया और मैं उनके सामने कुर्सी ले कर के बैठ गया| भौजी की आँखें ख़ुशी के मारे फिर छलक गईं थीं;

भौजी: जानू, मुझे मेरा पूरा परिवार चाहिए!

यहाँ पूरे परिवार से भौजी का तातपर्य था; मैं, वो, हमारे तीनों बच्चे और मेरे माता-पिता| भौजी की आवाज में अब वो आत्मविश्वास झलक रहा था जो मैंने कुछ पल पहले उनके भीतर जगाया था| उनका ये आत्मविश्वास देख मैं बड़े गर्व से बोला;

मैं: जान वादा करता हूँ की आपकी ये माँग मैं अवश्य पूरी करूँगा!

मैंने उस वक़्त जोश-जोश में कह तो दिया था, लेकिन ये सब होना इतना आसान नहीं था!



खैर अब समय रोने का नहीं था बल्कि ख़ुशी मनाने का था| मैंने भौजी के आँसूँ पोछे और मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: अच्छा बस! अब कोई रोना-धोना नहीं! सबसे पहले हमारे दोनों बच्चों को थोड़ा प्यार दो, बेचारे इतने दिनों से आपकी डाँट खा रहे हैं!

मैंने भौजी का ध्यान बच्चों की ओर करते हुए कहा|

भौजी: हाँ जी! उन्हें भी तो ये खुशखबरी दें!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: नहीं जान, अभी नहीं! वो बच्चे हैं कहीं आज माँ-पिताजी के सामने कुछ कह दिया तो कल के लिए मेरी बात बिगड़ जायेगी! फिलहाल आप उन्हें थोड़ा प्यार करो ताकि वो दोनों ख़ुशी से पहले की तरह चहकने लगें!

मैं नहीं चाहता था की बच्चों को ये बात अभी बताई जाए| दोनों की उम्र का तकाज़ा था, अपने बचपने में अगर वो किसी से कुछ कह देते तो मेरे लिए माँ-पिताजी से बात करने में मुश्किल खड़ी हो जाती! फिर मैं ये भी नहीं चाहता था की इतनी सी उम्र में बच्चों के ऊपर इतने सारे राज़ छुपाने का भार पड़े, उनका बचपन बिना किसी चिंता के होना चाहिए!

बहरहाल मने दोनों बच्चों को आवाज दे कर कमरे में बुलाया;

मैं: आयुष....नेहा बेटा इधर आओ!

मेरी आवाज सुन दोनों दौड़े-दौड़े कमरे में आये|

मैं: बेटा मम्मी के गले लगो!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को कहा, मगर दोनों ही अपनी मम्मी के गले लगने से झिझक रहे थे| दरअसल अपनी मम्मी के रूखे बर्ताव के कारन वो नाराज थे|

मैं: देख लो आपके रूखेपन के कारन मेरे बच्चे कितने डर गए हैं!

मैंने भौजी को प्यार से डाँटा तो भौजी ने अपने दोनों कान पकड़ लिए और सर झुका लिया|

मैं: बेटा आपकी मम्मी मुझसे नाराज थीं और मेरा सारा गुस्सा आपके ऊपर निकाल दिया| मेरे लिए अपनी मम्मी (भौजी) को माफ़ कर दो और उनके गले लग जाओ!

मैंने सारा इल्जाम अपने सर लिया और प्यार से बच्चों को समझाया तो दोनों ने झट से अपनी मम्मी को माफ़ कर दिया और मुस्कुराते हुए अपनी मम्मी के गले लग गए| भौजी ने भी दोनों बच्चों को कस कर अपने सीने से लगाया और दोनों के सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

भौजी: मुझे माफ़ कर दो बेटा!

जिसके जवाब में दोनों ने अपनी मम्मी के गालों पर प्यारी-प्यारी पप्पी दी और उन्हें माफ़ कर दिया|



मेरे दोनों बच्चे अब पहले की तरह चहक रहे थे, खाने का समय हो चला था तो दोनों बच्चे प्यार से तुतलाते हुए बोले; "पापा जी भूख लगी है!" मैंने फ़ोन उठाया और सब के लिए चाऊमीन और pastry मँगाई! चाऊमीन तो बच्चों की मनपसंद थी मगर pastry आने वाले मेहमान की ख़ुशी में मँगाई गई थी! खाना आया और हम चारों ने एक साथ बैठ कर, एक दूसरे को खिला कर खाया| खाना खा कर माँ-बेटी (भौजी और नेहा) रंगोली बनाने में जुट गए और हम बाप-बेटा (मैं और आयुष) दिवाली की लाइटें लगाने छत पर पहुँच गए| छत पर लाइटें लगा कर दोनों बाप-बेटे नीचे आये और घर के भीतर की सजावट में लग गए| सजावट करते समय मेरे मन में एक ख्याल आया और काम निपटा कर मैं 20 मिनट के लिए बाहर चल गया| दरअसल मेरा मन भौजी के साथ अकेले में कुछ समय बिताने का था, अब घर पर तो ये मुमकिन नहीं था इसलिए मैंने गाडी किराए पर लेने का मन बनाया| लेने को तो मैं गाडी दिषु से भी माँग सकता था लेकिन आज त्यौहार के दिन उसे भी गाडी की जर्रूरत होती इसलिए मैंने उससे गाडी नहीं माँगी! मैंने Swift Dzire 3,000/- रुपये दे कर किराये पर ली और गली के बाहर पार्क कर के घर आ गया|

माँ-पिताजी के आते-आते पूरा घर चमक रहा था! माँ-पिताजी आये तो साथ में मिठाई लाये, मिठाई देख कर दोनों बाप-बेटे (मैं और आयुष) एक दूसरे को देखने लगे! हम दोनों ही के चेहरे पर लालच नजर आ रहा था, माँ ने हमारा ये लालच देखा तो हँसते हुए बोलीं;

माँ: बहु ये मिठाई सब संभाल कर रखिओ, यहाँ दो-दो लालची शैतान घूम रहे हैं!

माँ की बात सुन हम सब ने जोर से से ठहाका लगाया|



सभी बारी-बारी से नहाये और नए कपडे पहन कर तैयार हो गए| पिताजी ने नई shirt-pant पहनी थी, माँ ने नै शिफॉन की साडी पहनी थी| मैंने अपने लिए कुछ नहीं खरीदा था इसलिए मैं jeans और shirt पहनने वाला था, मगर पिताजी ने मुझे नई shirt-pant दी और बोले;

पिताजी: जानता था तू अपने लिए कपडे लेना भूल गया होगा, इसलिए इस बार मेरी तरफ से तेरे लिए shirt-pant!

मैंने मुस्कुरा कर पिताजी से कपडे लिए और उनके पाँव छू कर उनका आशीर्वाद लिया| मैं अपने कमरे में भौजी के लिए लिए साडी लेने जा ही रहा था की इतने में माँ ने भौजी को आवाज लगा कर अपने पास बुलाया;

माँ: बहु, मेरी तरफ से तेरे लिए ये साडी| जल्दी से जा कर इसे पहन कर आ|

भौजी ने मुस्कुरा कर माँ से साडी ली और उनके पाँव छु कर आशीर्वाद लिया| अब माँ ने खुद साडी दे दी थी तो मैंने सोचा की मैं भौजी को साडी बाद में दे दूँगा!

माँ-पिताजी तो तैयार हो कर बैठक में बैठे थे, बच्चे नहा कर तैयार हो रहे थे और मैं अपनी बारी का इंतजार करने के लिए dining table के पास टहल रहा था| तभी नेहा तैयार हो कर अपना लहँगा-चोली पहन कर बाहर आई! लहँगा-चोली में मेरी बेटी इस समय पूरी परी लग रही थी! नेहा को देखते ही मैंने अपने दोनों हाथ खोल दिए और वो दौड़ती हुई आ कर मेरे गले लग गई!

मैं: मेरा बच्चा आज बहुत खूबसूरत लग रहा है! कहीं आपको मेरी नजर न लग जाए!

मैंने जेब से 10/- रुपये निकाले और नेहा पर वारते हुए मंदिर में रख दिए| फिर नेहा ने झुक कर मेरे पाँव छुए तो मैंने उसे गोदी में उठा लिया और उसके गालों की मीठी-मीठी पप्पी ले कर नाचने लगा| मेरी बेटी भी इतनी खुश थी की उसने मेरे कान में खुसफुसाते हुए कहा;

नेहा: Thank you पापा जी!

वहीं जब माँ ने नेहा को तैयार मेरी गोदी में नाचते हुए देखा तो माँ बोलीं;

माँ: अरे वाह! मेरी बिटिया तो आज राजकुमारी लग रही है!

माँ ने नेहा को अपने पास बुलाया तो मैंने नेहा को गोदी से उतार दिया| नेहा भागती हुई अपनी दादी की कमर से लिपट गई, माँ ने अपनी आँखों से काजल निकालते हुए नेहा के कान के पीछे टीका लगा दिया;

माँ: मेरी बिटिया को नजर न लगे!

माँ ने नेहा के माथे को चूमते हुए कहा| इतने में आयुष धोती कुरता पहन कर बाहर आ गया| अपनी छोटी सी धोती में आयुष ‘छोटे कुँवर साहब’ लग रहा था! मैंने आगे बढ़ते हुए आयुष को गोदी उठा लिया और अपने गले लगाते हुए बोला;

मैं: बेटा आज तो आप बहुत cute लग रहे हो! मेले छोटे लाड साहब!

मैंने आयुष के दोनों गालों पप्पी लेते हुए कहा, आयुष अपनी तारीफ सुनते हुए शर्म से लाल हो गया! लाड साहब की 'उपाधि' मुझे मेरे बचपन में पिताजी द्वारा दी गई थी, आज जब आयुष को छोटी सी धोती में देखा तो मेरे मुँह से छोटे लाड साहब अनायास ही निकल गया! ठीक ही है, बाप (मैं) अपने पिताजी का लाड साहब था और बेटा (आयुष) मेरा छोटा लाड साहब था! नए कपड़ों को पा कर आयुष बहुत खुश था और ख़ुशी से चहक रहा था| पिताजी ने जब हम बाप-बेटे को देखा तो उन्होंने आवाज दे कर कहा;

पिताजी: अरे भई आयुष बेटा ने क्या पहना है हमें भी दिखाओ?

मैंने आयुष को नीचे उतारा और वो दौड़ता हुआ अपने दादाजी (मेरे पिताजी) के सामने खड़ा हो गया|

पिताजी: अरे भई वाह! हमारे छोटे साहबजादे तो आज बहुत जच रहे हैं!

पिताजी के मुँह से तारीफ सुन आयुष शरमा गया और जा कर अपने दादा जी के गले लग गया| पिताजी ने आयुष के सर को चूमा, अब आयुष भागता हुआ अपनी दादी जी के पास आया, माँ ने आयुष को भी काला टिका लगाया|

माँ: मेरा मुन्ना तो आज बहुत प्यारा लग रहा है|

माँ ने आयुष के सर को चूमते हुए कहा, आयुष शर्मा गया और माँ से लिपट गया|

पिताजी: भई क्या बात है, बच्चों के लिए कपडे तो तू बड़े चुन-चुन कर लाया है!

पिताजी मेरी तारीफ करते हुए बोले| अब अपनी तारीफ सुन मैं भी आयुष की तरह शर्माने लगा!

माँ: अजी समझदार हो गया है मेरा लाल!

माँ ने भी मेरी तारीफ की तो मैं शर्म से लाल हो चूका था! नेहा जो पिताजी के पास बैठी थी वो मेरे पास आई और मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपनी बाहें लपेट कर खड़ी हो गई| पूरे घर में बस एक मेरी बेटी थी जो मुझे समझती थी और मेरे शर्म से लाल होने पर मुझे सहारा देने आई थी| मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसकी नाक से अपनी नाक रगड़ते हुए अपने कमरे में आ गया|

मैं: मेरा प्यारा बच्चा हमेशा मुझे बचाने आ जाता है!

मैंने नेहा की बड़ाई की तो नेहा मेरे दोनों गाल खींचते हुए बोली;

नेहा: I love you पापा!

मैंने नेहा का माथा चूमा और बोला;

मैं: I love you too मेरा बच्चा!

मैंने नेहा को गोदी से उतारा और मैं तैयार हो कर बाहर आया|



कुछ देर बाद भौजी भी तैयार हो कर बाहर निकलीं| माँ ने भौजी के लिए अच्छी साडी पसंद की थी, मगर भौजी ने जो घूँघट काढ़ा था उसके नीचे मैं उनका चहेरा नहीं देख पा रहा था| अब माँ-पिताजी के सामने तो भौजी को देख पाना नामुमकिन था, इसलिए मैंने ये सोच कर संतोष कर लिया की drive पर जाते समय इसकी सारी भरपाई कर लूँगा!

खैर पूजा का समय हुआ और पंडित जी पूजा करवाने के लिए आ गए| सबसे आगे माँ-पिताजी बैठे थे, उनके पीछे मैं और भौजी बैठे थे, आयुष मेरी गोद में और नेहा मेरी दाहिनी तरफ बैठी थी| हम चारों (मैं, भौजी, नेहा और आयुष) एक छोटे से कुटुम्भ के समान दिख रहे थे! पूजा शुरू हुई, सभी विधि-विधान माँ-पिताजी ने निभाए, मैं उस वक़्त पीछे बैठा अपने खवाबों की दुनिया में गुम था; 'अगले साल दिवाली की पूजा में मैं और मेरी परिणीता बैठे होंगे!' इस मीठे ख्वाब को सोच कर मैं बहुत खुश था और ये ख़ुशी मेरे चेहरे पर झलक रही थी| भौजी मेरे चेहरे पर आई ये ख़ुशी पढ़ चुकीं थीं और उनके पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं थीं! नेहा मेरे ख़्वाबों से अनजान इसलिए खुश थी की उसके पापा जो उसे इस पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा चाहते हैं, आज उनके साथ उसे दिवाली की पूजा में बैठने का अवसर मिला है और आयुष के चेहरे पर ख़ुशी इसलिए ही की पूजा के बाद उसे मिठाई खाने और पटाखे जलाने को मिलेंगे!



पूजा संपन्न हुई तो पंडित जी आशीर्वाद दे कर, अपनी दक्षिणा ले कर चले गए| इधर आयुष से मिठाई खाने और पटाखे जलाने का सब्र नहीं हो रहा था!

पिताजी: बेटा, अभी थोड़ी रात होने दो फिर हम सब छत पर चलकर पटाखे जलाएँगे|

पिताजी ने आयुष को प्यार से समझाते हुए कहा|

माँ: चलो तबतक मिठाई खाते हैं!

माँ ने मिठाई का नाम लिया तो आयुष दौड़ कर अपना नंबर लगा कर माँ के सामने खड़ा हो गया| माँ ने सबको सोहन पापड़ी निकाल कर दी, सबसे पहले आयुष को सोहन पापड़ी मिली तो उसने घप्प से मिठाई मुँह में रखी! सोहन पापड़ी उसके मुँह में घुलने लगी तो आयुष ने ख़ुशी से अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाई! अगला नंबर नेहा का था, उसने भी सोहन पपड़ी का एक पीस खाया तो वो भी ख़ुशी से आयुष की तरह अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाने लगी! अभी बाकियों को मिठाई मिली भी नहीं थी की दोनों बच्चे फिर से माँ के सामने अपना नंबर लगा कर खड़े हो गए| बच्चों का बचपना देख माँ हँस पड़ीं और दोनों को दो-दो मिठाई के पीस दिए| माँ-पिताजी दोनों ही मिठाई के शौक़ीन नहीं थे तो उन्होंने एक पीस मिठाई ली और आधी-आधी खाने लगे| बाकी की मिठाई dining table पर रखी थी, मैंने एक पीस भौजी को दिया और खुद एक बड़ा पीस उठा कर खाने लगा| भौजी ने जब मिठाई का एक पीस खाया तो वो धीमी आवाज में मुझसे बोलीं;

भौजी: जानू, इसने तो मेरी बचपन की याद दिला दी!

भौजी की बात सुन मेरा ध्यान उनकी ओर गया वरना मैं तो सोहन पापड़ी लपेटने के चक्कर में था!

भौजी: जब मैं छोटी थी तो इसे बुढ़िया के बाल कहते थे! मेरे स्कूल के दिनों में कभी-कभी खाती थी!

भौजी घूँघट के नीचे से मुस्कुराते हुए बोलीं| 'बुढ़िया के बाल' सुन कर दोनों बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे, क्योंकि ये नाम सुनने में मजाकिया लगता है! फिर दोनों ये बात बताने के लिए अपने दादा जी के पास चले गए! पिताजी को जब ये बात पता चली तो वो भी ठहाका मार कर हँसने लगे! उन्होंने बच्चों को अपने पास बिठा के अपने बचपन की यादें ताज़ा करनी शुरू कर दी| इधर मेरी और भौजी की खुसर-फुसर जारी रही| भौजी की स्कूल के दिनों की बात सुन मुझे मस्ती सूझी और मैं भौजी को चिढ़ाते हुए बोला;

मैं: कहते तो हम भी इसे बुढ़िया के बाल थे, लेकिन आपके जमाने में ये मिठाई मिलती भी थी?

ये सुनते ही भौजी ने मेरी बाजू पर प्यार से घूसा मारा और बोलीं;

भौजी: इतनी बुढ़िया लगती हूँ तो क्यों प्यार करते हो मेरे से?

भौजी नाराज हो कर मुँह फुलाते हुए बोलीं|

मैं: जान शराब जितनी पुरानी होती है उतना ज्यादा नशा देती है!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा| मुझे लगा था की अपनी तुलना पुरानी शराब से होते देख भौजी शर्माएंगी, मगर वो तो रासन-पानी ले कर मेरे ही ऊपर चढ़ गईं;

भौजी: फिर आपने शराब का नाम लिया?

मैंने फ़ौरन अपने कान पकडे और माफ़ी माँगने लगा;

मैं: माफ़ी! माफ़ी देई दिहो!

मेरी गाँव की बोली सुन भौजी हँस पड़ीं, लेकिन फिर अगले ही पल फिर से मुँह फुला लिया;

भौजी: सबके लिए कपडे लाये, लेकिन अपनी पत्नी को भूल गए?

भौजी शिकायत करते हुए बोलीं| मैं उन्हें साडी के बारे में बताता उससे पहले ही पिताजी ने आवाज लगा दी;

पिताजी: चल बेटा, पटाखे जलाएँ!

दरअसल पटाखे जलाने के लिए आयुष पिताजी के पीछे पड़ गया था| वहीं नेहा माँ से लिपट गई और बोली;

नेहा: दादी जी, मुझे रसमलाई खानी है!

आयुष को जलाने थे पटाखे और नेहा को खानी थी रसमलाई तो दोनों भाई-बहन की मीठी-मीठी नोक-झोंक शुरू हो गई;

आयुष: नहीं पहले पटाखे जलाएँगे!

नेहा: नहीं पहले रसमलाई!

आयुष: Please दीदी! Pleaseeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee!

नेहा: नहीं!!

दोनों भाई-बहन की लड़ाई हम सब ख़ामोशी से मुस्कुराते हुए देख रहे थे, जब कोई हल नहीं निकला तो मैंने आगे बढ़ कर सुलाह कराई;

मैं: बेटा ऐसा करते हैं की रसमलाई खाते-खाते पटाखे जलाते हैं|

ये सुनते ही दोनों खुश हो गए|



हम छत पर जाते उससे पहले ही मेरे फ़ोन की घंटी बज गई! हुआ ये की भौजी अपना फ़ोन चार्ज करना भूल गईं थीं इसलिए उनका फ़ोन switch off हो गया था, तो दिवाली की मुबारकबाद देने के लिए अनिल ने मेरे फ़ोन पर कॉल किया था| मुझे दिवाली की शुभेच्छा दे कर उसकी बात अपनी बहन से हुई| उसके बाद नंबर आया बच्चों का जिन्होंने बस; "Happy Diwali मामा जी" कहा और छत पर भाग गए क्योंकि उन्हें पटाखे और रसमलाई जो खानी थी| अंत में माँ-पिताजी ने अनिल से बात की, उन्होंने गाँव घर की हाल-खबर ली और आखिरकार हम सब छत पर आ गए| छत पर तीन कुर्सियाँ लगी थीं जिन पर पिताजी, माँ और भौजी बैठ गए, टेबल पर मैंने नेहा की रसमलाई तथा पिताजी द्वारा लाये हुए ढ़ोकले रख दिए| मैंने पटाखे जलाने के लिए मोमबत्ती जलाई थी की माँ ने मुझे रोकते हुए कहा;

माँ: बेटा पहले ढोकला खा ले, फिर पटाखे जलाना!

मुझे ढोकला कुछ ख़ास पसंद नहीं था, इसलिए मैंने बस एक पीस लिया और पटाखे जलाने की तैयारी करने लगा| जब आयुष ने ढोकला देखा तो उसने अपनी एक ऊँगली से उसे दबा कर देखा, ढोकला sponge की तरह दबा तो आयुष ने खिखिलाकर हँसना शुरू कर दिया! आयुष का बचपना देख माँ, पिताजी, नेहा और भौजी ने हँसना शुरू कर दिया| मैं सबसे थोड़ा दूर था तो माँ ने मुझे आयुष के ऊँगली से ढोकला दबाने की बात बताई, ये सुन मेरी भी हँसी छूट गई!

खैर अब समय था पटाखे जलाने का, मैंने सबसे पहले आयुष को एक फुलझड़ी जला कर दी| आयुष अपनी फुलझड़ी पकड़ कर उसे गोल-गोल घुमाने लगा और ख़ुशी से कूदने लगा| नेहा माँ की गोदी में बैठी मजे से अपनी रसमलाई खा रही थी, अब मैंने एक अनार उठाया और उसे दूसरी फुलझड़ी से जलाया| अनार को पहलीबार अपने सामने जलता देख आयुष ने खुशी से उछलना शुरू कर दिया, अनार जलते देखने का उत्साह इतना था की नेहा माँ की गोदी से उठ खड़ी हुई और पिताजी के साथ खड़ी हो कर ख़ुशी से चिल्लाने लगी! मैंने एक फुलझड़ी जलाई और नेहा की तरफ बढ़ाई तो वो डरने लगी, पिताजी ने नेहा के सर पर प्यार से हाथ फेरा तो नेहा में आत्मविश्वास आया और उसने फुलझड़ी ले ली और आयुष की देखा-देखि फुलझड़ी गोल-गोल घुमाने लगी| मैंने एक-एक फुलझड़ी माँ और भौजी को भी दे दी, ताकि उन्हें भी थोड़ा उत्साह मिले| अब बारी थी चखरी जलाने की, मैंने आयुष को अपने पास बुलाया और उसे चखरी जलाने का तरीका बताया| आयुष थोड़ा-थोड़ा डर रहा था इसलिए मैंने आयुष का हाथ पकड़ कर चखरी जलाई, जैसे ही चखरी गोल-गोल घूमी आयुष अपने दोनों हाथ अपने होठों पर रख कर आस्चर्य से चखरी को देखने लगा| मैंने आयुष का ध्यान अपनी तरफ खींचा और चखरी के इर्द-गिर्द कूदने लगा| अपने पापा को चखरी के इर्द-गिर्द कूदता देख आयुष में उत्साह भर उठा और वो भी मेरी देखा-देखि कूदने लगा| वहीं नेहा ने जब अपने भाई को कूदते देखा तो वो भी आयुष की तरह चखरी के इर्द-गिर्द कूदने लगी! अब पिताजी को भी जोश आया, उन्होंने एक-एक कर अनार जलाये| पूरी छत रौशनी से जगमगा रही थी और ये जगमगाहट सबके चेहरे पर ख़ुशी बनकर खिली हुई थी! हम सब की नजर बस बच्चों पर थी जो पटाखे जलने की ख़ुशी में डूबे हँस-कूद रहे थे!



अगल-बगल वाले पड़ोसियों ने आसमान में 7 रंग वाले shots चलाये तो सबका ध्यान उन रंग-बिरंगी आतिशबाजी की तरफ गया| माँ-पिताजी को ये आतिशबाजी देखने की आदत थी फिर भी उनके चेहरे पर वैसी ही ख़ुशी थी जैसे वो ये आतिशबाजी पहलीबार देख रहे हों| वहीं बच्चे और भौजी तो आश्चर्यचकित थे, उनके लिए तो ये बहुत अनोखी चीज थी! बच्चों के चेहरे पर आयी ख़ुशी और उत्साह देख कर ख़ुशी के मारे मेरी आँखें नम हो चली थीं| मैंने सबसे नजरे बचा कर अपनी आँखें पोछीं और बच्चों का ध्यान rocket जलाने की ओर खींचा|

आज तक अपने जीवन काल में मैंने बस एक ही बार rocket जलाया था और वो ससुरा ऊपर न जा कर नीचे ही मेरे सामने फट गया था! उस दिन से मैंने rocket जलाने से तौबा कर ली थी, इसलिए rocket जलाने का काम पिताजी ने किया| जैसे ही पिताजी ने rocket को आग लगाई वो भागता हुआ आसमान में जा फटा! Rocket को यूँ आसमान की ओर उड़ता देख बच्चे ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगे थे! दोनों बच्चों ने; "दादा जी फिर से" की रट लगानी शुरू कर दी, पिताजी को भी जोश आया और उन्होंने पटाखे जलाने की कमान अपने हाथ में ले ली| कभी अनार, कभी, चखरी तो कभी rocket, जो भी बच्चे उठा कर लाते पिताजी वही जलाते! अब चूँकि पिताजी पटाखे जला रहे थे तो मैं आराम से भौजी और माँ के पास आ कर बैठ गया| मैं नेहा की छोड़ी हुई रसमलाई खा रहा था जब माँ ने भौजी से बात छेड़ी;

माँ: बेटा तो कैसी लगी दिवाली हमारे साथ?

भौजी: माँ सच कहूँ तो ये मेरी अब तक की सबसे यादगार दिवाली है| गाँव में ना तो इतनी रौशनी होती है, न ये शोर-गुल| रात की पूजा के बाद शायद ही कोई पटाखे जलाता था, पिछले साल मैंने आयुष का शौक पूरा करने के लिए उसे फुलझड़ी ला कर दी थी वरना ये दोनों (आयुष और नेहा) तो जानते थे की पूजा और मिठाई खाने को ही दिवाली कहते हैं! यहाँ आके आज हम तीनों को पता चला की दिवाली क्या होती है?!

भौजी की बात सुन मुझे हैरानी नहीं हुई थी, क्योंकि गाँव की दिवाली के बारे में पिताजी ने मुझे पहले बताया था, तभी तो आज ये दिवाली मैं अपने बच्चों और अपनी दिलरुबा के लिए यादगार बनाना चाहता था|

माँ: बेटा वो ठहरा गाँव और ये शहर! यहाँ लोग दिखावा ज्यादा करते हैं, जबकि गाँव में सब कुछ सादे ढँग से मनाया जाता है|

माँ की बात सही थी, शहर में लोगों को बेकार पैसे फूँकने में मज़ा आता है|

मैं: अब इसे (मुझे) देख ले, हर साल मैं इससे कहती थी की पटाखे ले ले, मगर ये कहता था की पटाखे जलाने से पोलुशन (pollution) होता है और आज देखो जरा इसे?!

माँ ने जब मेरे पटाखे खरीदने की बात कही तो मैं माँ को समझाते हुए बोला;

मैं: माँ, मैं तो अब भी कहता हूँ की pollution बहुत बढ़ गया है, लेकिन आयुष और नेहा ने कभी पटाखे नहीं जलाये थे इसलिए मैं उनकी ख़ुशी के लिए बस फुलझड़ी, अनार, चखरी और राकेट लाया! बम और ये रंग-बिरंगे shots हवा के pollution के साथ ध्वनि pollution भी करते हैं, इसलिए मैंने वो नहीं खरीदे|

मेरी बात समझते हुए माँ बोलीं;

माँ: देख बेटा मैंने तुझे पटाखे खरीदने के लिए कभी मना नहीं किया, अपना मन मारकर कभी नहीं जीना!

माँ मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए बोलीं|

माँ: अच्छा ऐसा कर खाने का order दे दे, लेकिन खाना अच्छा मँगाईयो!

जैसे ही माँ ने मुझसे खाना मँगाने की बात कही, भौजी बीच में बोल पड़ीं;

भौजी: पर माँ मैंने पुलाव बना लिया है!

हमारे घर में हर दिवाली पर पुलाव बनता था, ये बात माँ ने भौजी को नहीं बताई थी इसलिए जैसे ही भौजी ने पुलाव का नाम लिया माँ ने हैरान होते हुए भौजी से पुछा;

माँ: पुलाव? पर बहु तुझे कैसे पता की दिवाली पर मैं पुलाव बनाती हूँ? इस बार तो समय नहीं मिला इसलिए नहीं बना पाई!

माँ का सवाल सुन भौजी की गर्दन मेरी तरफ घूमी तो माँ सब समझ गईं और मुस्कुराते हुए; "हम्म्म" बोलीं| पता नहीं माँ को क्या-क्या समझ आया था, शायद वो जान गईं थीं की मेरे और भौजी के बीच क्या चल रहा है? परन्तु अगर ऐसा था तो उन्होंने कुछ कहा क्यों नहीं?



इतने में हमारे पडोसी ने दस हजार बम की लड़ी जला दी, पटाखों का शोर शुरू हुआ तो किसी को भी कुछ सुनाई नहीं दे रहा था| मैंने इस मौके का फायदा उठाया और भौजी के नजदीक जा कर उनके कान में बोला;

मैं: दस मिनट बाद नीचे मिलना|

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और बोलीं;

भौजी: ठीक है|

मुझे भौजी के शब्द सुनाई नहीं दिए पर मैंने अंदाजा लगा लिया की उन्होंने 'ठीक है' ही कहा होगा| माँ ने खाने का जिक्र किया था तो मुझे लगा की खाना खा कर हम दोनों drive पर कैसे जायेंगे इसलिए मैंने भौजी को नीचे बुलाया था ताकि मैं उन्हें अपना तौहफा दे सकूँ और drive पर ले जाऊँ! मैंने घर की चाभी उठाई और बिना किसी को कुछ कहे नीचे आ गया, पाँच मिनट बाद भौजी भी नीचे आ गईं| ऊपर छत पर बच्चों ने हँसते-खेलते हुए समा बाँधा था तो माँ-पिताजी का ध्यान उन्हीं में लगा हुआ था, इसलिए उन्हें (माँ-पिताजी को) पता ही नहीं चला की मैं और भौजी छत से गोल हो लिए हैं! भौजी जब नीचे आईं तो वो आज की खुशियों को देख कर कल की चिंता करते हुए भावुक हो गई थीं, उन्हें यूँ भावुक देख मैं थोड़ा घबरा गया;

मैं: Hey जान! क्या हुआ आपको?

मैंने भौजी के नजदीक आते हुए पुछा|

भौजी: कुछ नहीं|

भौजी नजरें झुकाते हुए बोलीं|

मैं: Awwww!!!

मैंने भौजी को बच्चों की तरह लाड किया और उन्हें अपने सीने से लगा कर अपनी बाहों में जकड़ लिया|

मैं: I got a surprise for you!

मैं भौजी के कान में खुसफुसाया और अपने कमरे से उनके लिए लाई हुई साडी उन्हें देते हुए बोला;

मैं: इसे जल्दी से पहन लो|

भौजी ने साडी देखि तो उनकी आँखें ख़ुशी के मारे फ़ैल गईं;

भौजी: ये आप कब लाये?

मैं: जब सब के कपडे ले रहा था तब मैंने ये साडी ली थी और इसकी delivery मैंने साइट के address पर करवाई थी, क्योंकि मैं आपको ये आज के दिन पहने हुए देखना चाहता था!

मेरी बात सुन भौजी ने अपने कान पकडे और बोलीं;

भौजी: Sorry जानू! मैंने आप से बेवजह शिकायत की, मुझे लगा मेरे आपसे नाराज रहने के कारन आपने मेरे लिए कुछ नहीं खरीदा! मैं भी सच्ची बुद्धू हूँ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: कोई बात नहीं जान! चलो अब मौका भी है और दस्तूर भी, जल्दी से इसे पहनो ताकि हम जल्दी से drive पर चलें वरना दोनों बच्चे मुझे ढूँढ़ते हुए नीचे आ गए तो हमारा अकेले drive पर जाने का प्रोग्राम फुस्स हो जायेगा!

Drive पर जाने की बात सुन भौजी दुबारा हैरान हुईं;

भौजी: ड्राइव पर? क्या बात है जानू, आज बड़े romantic हो रहे हो?

भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं|

मैं: इतने दिनों से आपने मुझसे बात नहीं की न, तो आज उसकी सारी कसर निकालनी है!

मैंने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा| भौजी मेरा मतलब समझ गईं लेकिन बजाए जल्दी से तैयार होने के सवाल-जवाब में लग गईं;

भौजी: पर गाडी कहाँ है?

मैं: दिषु वाली (गाडी) तो उसके पास है, इसलिए मैंने किराए पर एक गाडी ले ली है!

भौजी: और माँ-पिताजी से क्या कहेंगे?

भौजी के सवाल-जवाब सुन मैंने अपना सर पीट लिया;

मैं: अरे बाबा उन्हें मैं सँभाल लूँगा, आप पहले तैयार तो हो जाओ?

मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा तो भौजी मुस्कुराने लगीं और तपाक से बोलीं;

भौजी: रुकिए! पहले मैं भी आपको एक surprise दे दूँ|

भौजी तेजी से अपने कमरे में गईं और मेरे लिए मँगाया तोहफा ले आईं, मैंने उत्सुकता दिखाते हुए polythene खोला तो देखा उसमें मेरे लिए बंगाली design वाला कुरता पाजामा था! अब हैरान होने की बारी मेरी थी;

मैं: ये आपने कब खरीदा? आप तो मुझसे नाराज थे न?

मैंने प्यार से भौजी को उल्हना देते हुए कहा|

भौजी: नारजगी एक तरफ और अपने जानू के लिए तोहफा एक तरफ! पता है मैंने ये Online order कर के मँगाया है!

भौजी बड़े गर्व से बोलीं| बात थी भी उनके लिए गर्व की, आखिर पहलीबार उन्होंने बिना मेरी मदद के online कुछ order किया था!

भौजी: पहले सोचा आपके लिए लखनवी design का कुरता-पजामा लूँ मगर वो मुझे कुछ जचा नहीं, इसलिए मैंने बंगाली design चुना!

भौजी अपनी पसंद की तरीफ करते हुए बोलीं|

मैं: भई मानना पड़ेगा हम मियाँ-बीवी की पसंद को! मियाँ ने बिना बताये अपनी बीवी के लिए बंगाली साडी पसंद की तो बीवी ने भी बिना बताये अपने मियाँ के लिए बंगाली design का कुरता-पजामा पसंद किया!

मेरी बात सुन भौजी हँस पड़ीं और बोलीं;

भौजी: कहा था न हमारे दिल connected हैं!

भौजी की बात सुन मैं मुस्कुराया और बोला;

मैं: तो ठीक है भई अब दोनों तैयार हो जाते हैं!

हम दोनों अपने-अपने कमरे में घुसे, मैं तो 2 मिनट में तैयार हो कर आ गया मगर भौजी को तैयार होने में 15 मिनट लग गए! मैं dining table पर बैठा बेसब्री से उनके बाहर आने का इंतजार करने लगा, लेकिन 15 मिनट बाद जब भौजी बन-संवर कर बाहर आईं तो उन्हें देखते ही मेरे मुँह से; "WOW" निकला! भौजी ने साडी बिलकुल बंगाली ढँग से बाँधी थी, इस समय वो बिलकुल बंगाली दुल्हन लग रहीं थीं! होठों पर गहरे लाल रंग की लाली, आँखों में काजल, कानों में बालियाँ और हाथों में लाल-लाल चूड़ियाँ! भौजी के सजने-संवरने का मैं शुरू से प्रशंसक रहा हूँ, जब-जब वो बन-संवर के मेरे सामने आईं हैं उन्हें देखते ही मेरा दिल बेकाबू हो जाया करता था! वही हाल मेरा अभी भी था, भौजी को यूँ दुल्हन बना देख मैं उन्हें अपनी बाहों में लेने के लिए आगे बढ़ा ही था की भौजी ने भोयें सिकोड़ कर मेरे ऊपर सवाल दाग दिया;

भौजी: जानू, मुझे बताने की कृपा करेंगे की ये ब्लाउज मेरी fitting का कैसे बना?

भौजी का सवाल मेरे अरमानों पर ठंडा पानी साबित हुआ, साथ ही इस सवाल को सुन कर मैं शर्म से लाल हो गया;

मैं: मम...वो....मैंने....माप के लिए आपका ब्लाउज चुराया था!

मैंने शर्माते हुए सर झुका कर कहा|

भौजी: अरे वाह! मेरे जानू तो बहुत समझदार हैं! लेकिन आप शर्मा क्यों रहे हो?

भौजी मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाते हुए बोलीं|

मैं: वो...मैंने...आजतक कभी ऐसा नहीं किया!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: एक बात कहूँ जानू, जब आप शर्माते हो न तो आप बड़े cute लगते हो!

भौजी के मुँह से अपनी तारीफ सुन मैं फिर से शर्म से लाल हो गया| मुझे यूँ शर्माते हुए देख भौजी ने बात बदली वरना मैं शर्म से पिघल जाता;

भौजी: वैसे जानू, इस कुर्ते-पजामे में आप बहुत handsome लग रहे हो! मैं तो बेकार डर रही थी की कहीं साइज ऊपर-नीचे हो गया तो मेरा surprise धरा का धरा रह जाता!

मैं: अजी आपका surprise खराब कैसे होता, साइज चाहे जो होता मैं पहनता जर्रूर!

मैं भौजी के दोनों गाल खींचते हुए बोला|

भौजी: अच्छा अब आप माँ-पिताजी को हमारे जाने का बोल आओ|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: आप भी साथ चलो तो माँ-पिताजी मना नहीं करेंगे|

मैंने भौजी का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने साथ ऊपर छत पर ले आया|



हम दोनों (मैं और भौजी) ऊपर पहुँचे तो देखा की पिताजी बच्चों के साथ मिलकर पटाखे जला रहे हैं| माँ ने जब हम दोनों को यूँ नए कपडे में देखा तो वो हमारी तारीफ करते हुए बोलीं;

माँ: वाह भई वाह! तुम दोनों तो इन कपड़ों में बड़े अच्छे लग रहे हो! कौन लाया?

माँ का सवाल सुन हम दोनों की गर्दन एक दूसरे की तरफ घूम गई और माँ समझ गईं की हम दोनों ने ही एक दूसरे को ये तोहफा दिया है!

माँ: समझी! जानती थी की मानु तेरे (भौजी के) लिए कुछ न लाये ऐसा हो ही नहीं सकता, पर बहु तूने ये कुरता कब लिया?

भौजी: माँ online मँगाया था!

भौजी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया|

माँ: तो बेटा तुम दोनों ने पूजा में यही क्यों नहीं पहना?

माँ का सवाल सुन मैं जवाब देने को हुआ था, मगर भौजी ही बोल पड़ीं;

भौजी: माँ आप के लाये हुए कपड़ों में आपका प्रेम और स्नेह छुपा था, उसके आगे हमारे कपडे तो कुछ नहीं!

भौजी की बात ने माँ का दिल जीत लिया था, माँ ने उन्हें आशीर्वाद दिया और मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं;

माँ: देख कितनी समझदार है मेरी बेटी और एक तू है, हमेशा उससे लड़ता रहता है!

माँ की प्यारभरी डाँट सुन मैं हँस पड़ा|

इस छोटी सी प्यारभरे वार्तालाप ने मेरे लिए कल बात करने का मंच तैयार कर दिया था!

अब समय था माँ से मेरे और भौजी के अकेले drive पर जाने की बात करने का;

मैं: माँ मैं सोच रहा था की दिषु और एक-दो जगह मिठाई दे आऊँ|

मेरी बात सुन माँ ने मेरे जाने की हमीं भर दी, मगर मुझे भौजी को साथ ले जाना था इसलिए मैंने भौजी की तरफ अपनी गर्दन से इशारा करते हुए कहा;

मैं: इनको साथ ले जाऊँ?

मुझे लगा था की माँ मना कर देंगी पर उन्होंने मुस्कराते हुए हमें इजाजत दी;

माँ: ठीक है बेटा, मगर जल्दी घर आना वरना खाना ठंडा हो जायेगा|

मैंने खुश होते हुए हाँ में सर हिलाया और भौजी को साथ ले कर फटाफट निकल लिया! भौजी ने इस बार मेरे माँ से झूठ बोलने पर कोई सवाल नहीं पुछा, वो भी जानतीं थीं की हमारे अकेले निकलने के लिए झूठ बोलना जर्रूरी था|



हम गाडी में बैठे तो भौजी थोड़ा चिंतित होते हुए बोलीं;

भौजी: जानू अगर माँ-पिताजी ने दिषु भैया को फ़ोन किया तो?

मैंने फोन उठाया और दिषु को कॉल कर सब समझा दिया की अगर मेरे घर से फ़ोन आये तो वो कह दे की मैं उसके यहाँ से अभी-अभी निकला हूँ, भौजी मेरी होशियारी देख हँसे जा रहीं थीं|

मैंने गाडी सीधा India Gate की ओर घुमाई, इधर भौजी ने radio पर चुन-चुन कर रोमांटिक गाने लगाये| गाने सुनते हुए हम दोनों ही romantic हो चुके थे, भौजी ने मेरे थोड़ा नजदीक आते हुए अपना सर मेरे कँधे पर रख दिया और जब तक हम India Gate नहीं पहुँचे वो इसी तरह बैठी रहीं| India gate के नजदीक पहुँच एक एकांत जगह पर मैंने गाडी रोकी और भौजी की तरफ देखते हुए बोला;

मैं: जान आपने तो मूड रोमांटिक कर दिया!

भौजी: आपके साथ अकेले में समय बिताने को मिले और मूड रोमांटिक न हो तो कैसे चलेगा?

भौजी अपनी जीभ होठों पर फिराते हुए बोलीं| अभी तक मेरा मन बस भौजी के होठों का रसपान करने का था, मगर भौजी को यूँ अपने होठों पर जीभ फिराते देख मैं समझ गया की आग दोनों तरफ लगी हुई है!

मैं: चलें back seat पर?

मैंने पुछा ही था की भौजी तपाक से बोलीं;

भौजी: मुझे तो लगा था की आप पूछोगे ही नहीं!

भौजी प्यारभरा उल्हाना देते हुए बोलीं! उनका आशिक़ थोड़ा तो बुद्धू है, जिसे इशारे समझने में थोड़ा समय लगता है!



दिवाली के चलते ये रास्ता सुनसान था और हमारे प्यार के लिए इससे उपयुक्त जगह नहीं हो सकती थी! हम दोनों गाड़ी की back seat पर आ गए, दिषु की Tata Nano के मुक़ाबले इस गाडी में पीछे काफी जगह थी| पिछली सीट पर आ कर हम दोनों प्यासी नजरों से एक दूसरे को देखे जा रहे थे| अब समय था आगे बढ़ने का, मैंने पहल करते हुए अपने दाहिने हाथ को भौजी की गर्दन के पीछे ले जाकर रख उन्हें अपनी ओर खींचा, वहीं भौजी ने अपने दोनों हाथों का हार मेरी गर्दन में पहना दिया! धीरे-धीरे हमारे लब टकराये, उस मनमोहक स्पर्श ने हम दोनों के दिलों में उत्तेजना भर दी! मैंने भार सँभालते हुए अपना मुँह खोलकर भौजी के निचले होंठ को अपने मुख में भर लिया और उसे निचोड़कर पीने लगा| भौजी की मेरी गर्दन पर पकड़ सख्त हो गई और वो मुझे अपने नजदीक खींचने लगीं, अब गाडी में इतनी जगह तो होती नहीं की खड़ा हो कर मैं भौजी के ऊपर आ जाऊँ, इसलिए पहले मुझे अपने पैरों को सही स्थिति में करना था ताकि मैं उनके ऊपर छा सकूँ! अपने पैरों को ठीक करने के चक्कर में मेरी भौजी के होठों के ऊपर से पकड़ छूट गई, भौजी ने उस मौके का फायदा उठा लिया और अपना मुख खोल कर मेरे ऊपर वाले होंठ को अपने मुख में भरकर चूसने लगीं! इधर मैंने अपने पैर सीधे कर लिए थे और मैं भौजी को पीछे धकेल कर उन पर छा चूका था| फिर तो जो होठों के रसपान का सिलसिला शुरू हुआ की हम दोनों ने बेसब्री दिखाते हुए एक दूसरे के होठों को कस कर निचोड़ना शुरू कर दिया! 5 मिनट के चुंबन के दौर ने हम दोनों की सांसें उखाड़ दी थीं, उतावलेपन के कारण हमारे दिलों की धड़कन तेज हो गई थी, प्यास ऐसी थी की हमारी आँखों से ही छलक रही थी! हम आगे बढ़ते उससे पहले ही गाडी के dashboard पर रखा मेरा मोबाइल बज उठा!


जारी रहेगा भाग-6 में...
:reading:
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,801
31,019
304
कोई नया meme ढूँढो भाई, कब तक एक ही picture घुमाते रहोगे! :alright:
Kuch chize kbhi purani nhi hoti :D

Is meme ka matlab kbhi Rahul chicha ya Ristrcted chiraan se puchna :hide1:
 
Last edited:

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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34,962
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कोई बताएगा की हमारे लेखक जी कहाँ हैं.... Akki ❸❸❸ ...तुझे बता कर गए क्या.... kamdev99008 भैया....आपको कोई खबर है हमारे लेखक जी की 😟
अपने दिल में ढूंढा???
मुझे तो सब वहीं मिल जाते हैं........... जो दिल मैं बसे हों :love3:
 
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