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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

aman rathore

Enigma ke pankhe
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इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (5)



अब तक आपने पढ़ा:


हमने रिक्शा किया और स्टेशन पहुँचे, मैंने ticket काउंटर से superfast की दो टिकेटें ली| टिकट ले कर मैंने पुछा की जयपुर की ट्रैन कब जाएगी तो काउंटर पर बैठा आदमी बोला की ये जो ट्रैन जा रही है ये ही जाएगी, इसके बाद अगली ट्रैन रात को आएगी! मैंने करुणा से दौड़ने को कहा क्योंकि ट्रैन धीरे-धीरे रेंगने लगी थी| मेरे हाथ में दो बैग थे पर फिर भी मैं करुणा से तेज भागा और सामान रख कर फटाफट चढ़ गया, करुणा अब भी स्टेशन पर दौड़ रही थी| वो बिना किसी मदद की तरह चढ़ नहीं पाती इसलिए मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया ताकि वो मेरा हाथ पकड़ ले, लेकिन उसे दौड़ कर बस पकड़ने की आदत थी तो उसने सावधानी से दौड़कर खुद ट्रैन पकड़ ली|

पूरी की पूरी ट्रैन खाली थी, मैंने सोचा की जब ट्रैन खाली ही है तो सफर आराम से किया जाए! मैं करुणा को लेकर AC वाले कोच की तरफ चल पड़ा, रास्ते में जो भी coaches आय सब या तो खाली थे या फिर उसमें इक्का-दुक्का लोग ही थे!


अब आगे:


ट्रैन
में कम लोग होना और साथ में लड़की, situation थोड़ी चिंता जनक थी पर अभी तक ये चिंता मेरे सर पर सवार नहीं हुई थी| हम थर्ड AC वाले कोच में पहुँचे, ये पूरा का पूरा कोच खाली था तो हमने कोच के बीचों बीच की सिंगल वाली बर्थ पर अपना समान रख दिया|

करुणा: मिट्टू हमारा पास तो reservation नहीं तो हम AC coach में कैसे?

करुणा ने घबराते हुए कहा| आजतक मैंने कभी भी बिना reservation के इस तरह ट्रैन में सफर नहीं किया था, पर उस वक़्त मैं कुछ ज्यादा ही उत्साहित था और इस situation को एक साहसिक कार्य (adventure) मान रहा था|

मैं: पूरी ट्रैन खाली है, हम कहीं भी बैठें किसे तकलीफ होगी?!

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा, पर अगले ही पल मुझे एहसास हुआ की पूरी ट्रैन खाली है और जो थोड़े बहुत यात्री हैं उनमें ज्यादातर आदमी ही हैं, कहीं कुछ गलत हो गया तो?! ये ख्याल मन में आते ही मुझे घबराहट होने लगी, मैंने एक नजर करुणा को देखा तो पाया की उसे मेरे साथ होने से कोई चिंता नहीं इसलिए वो ट्रैन की खिड़की से बाहर निश्चिंत हो कर देख रही है| अब ऐसे में अगर मैं घबरा जाता तो वो बेचारी रोने लगती, इसलिए मैंने अपने होंसले बुलंद किये और ऐसी कोई मुसीबत आई तो अपने आपको उससे लड़ने के लिए ख़ामोशी से मानसिक तैयारी करने लगा|



मेरे खामोश होने से करुणा के मन में डर भरने लगा और वो घबराते हुए बोली;

करुणा: मिट्टू.....इस पूरी ट्रैन...में हम...अकेले.... कोई आ रे तो?

करुणा ने डर के मारे काँपते हुए कहा|

मैं: Dear अभी अगले स्टेशन पर लोग जर्रूर चढ़ेंगे और फिर मैं हूँ न आपके साथ, तो फ़िक्र मत करो!

मैंने करुणा को हिम्मत बँधाई| मैंने करुणा क ध्यान भटकाने के लिए उसे अपने पर्स से पैसे निकाल कर संभालने के लिए दिए, मैंने अपने पर्स में बस 100-100 के दो नोट रखे और बाकी सब करुणा को दे दिए, ताकि TTE जब रिश्वत माँगे तो मैं उसे अपना पर्स खोल कर दिखा सकूँ और कम पैसे होने की दुहाई दे सकूँ! 15 मिनट बाद ही TTE साहब आ गए, उन्होंने हम दोनों को बैठे हुए देखा तो उन्होंने इसका कुछ और ही मतलब निकाला|

मैंने उन्हें अपनी सुपरफास्ट की टिकट दिखाईं तो वो हम दोनों के सामने सीट पर बैठ गए, मैं जानता था की बिना खाये-पीये वो छोड़ेंगे नहीं तो मैंने सीधा अपना पर्स निकाला| मैंने पर्स कुछ इस तरह से खोला की उन्हें ये दिख जाए की मेरे पास थोड़े ही पैसे हैं, मैंने वैसे ही पर्स खोले हुए उनकी तरफ देखा तो पाया वो पहले से ही मेरी तरफ देख रहे हैं|

TTE साहब: दे दो जो देना है!

अब उन्हें 100/- रुपये देता तो वो भड़क जाते इसलिए मैंने 200/- उन्हें दिए जो उन्होंने रख लिए| फिर हमारी टिकट के पीछे वही सीट नंबर लिख दिया जिस पर हम दोनों बैठे थे| टिकट मुझे देने के बाद वो बोले;

TTE साहब: घर से भाग कर जा रहे हो?

उन्होंने मुस्कुरा कर पुछा| उनकी ये बात सुन हम दोनों आँखें फाड़े उन्हें देखने लगे|

मैं: नहीं सर! इनकी joining के लिए श्री विजयनगर आये थे, कुछ कागज बनाने हैं तो इसलिए जयपुर अपने मामा जी के पास जा रहा हूँ|

मैंने जयपुर में मामा होने का बहाना इसलिए मारा क्योंकि मैंने उन्हें अपने पर्स में रखे सारे पैसे दे दिए थे, अब अगर मैं उन्हें कहता की हमें वापस दिल्ली जाना है तो वो पूछते की उसके पैसे कहाँ हैं?! उधर मेरी बात बिलकुल सीधी थी इसलिए TTE साहब समझ गए की हम दोनों घर से नहीं भागे हैं|

TTE साहब: कहाँ के रहने वाले हो आप दोनों?

उन्होंने बात शुरू करते हुए कह|

मैं: सर मैं अयोध्यावासी हूँ और ये (करुणा) केरला से हैं|

मैंने अपने अयोध्यावासी होने की बात बड़े गर्व से कही|

TTE साहब: अरे हम बाराबंकी से हैं! तुम तो हमारे पडोसी हुए!

वो हँसते हुए बोले और उठ कर चल दिए| चलते-चलते उन्होंने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, हम दोनों कोच के बाथरूम तक पहुँचे थे की वो मुझसे बोले;

TTE साहब: देखो इस ट्रैन में लोग कम हैं, इसलिए अपना और इस लड़की का ध्यान रखना!

उनकी ये बात मेरे लिए चेतावनी थी जिसे सुन कर मेरे कान खड़े हो गए थे!

मैं: तो सर आगे स्टेशन से कोई नहीं चढ़ेगा?

मैंने भोयें सिकोड़ कर परेशान होते हुए पुछा|

TTE साहब: नहीं, रास्ते में 1-2 जगह पर ही 2-4 मिनट का stoppage होगा, कुछ बुकिंग हैं पर सब स्लीपर या जनरल की हैं| Third AC और Second AC की कोई बुकिंग नहीं है, इसलिए यहाँ कोई अटेंडेंड भी नहीं हैं, ये ट्रैन अब जयपुर में ही भरेगी!

इतना कह वो चले गए और इधर मेरे दिमाग में चेतावनी का साईरन बजने लगा|

मैं आज रात जाग कर कैसे पहरेदारी करनी है ये सोचता हुआ करुणा के पास वापस लौटा, करुणा ने मुझसे पुछा की TTE साहब क्या कह रहे थे तो मैंने झूठ बोलते हुए कहा की वो हम उत्तर प्रदेश वालों की कुछ बात हो रही थी| करुणा मेरी बातों में आ गई और उसने कोई सवाल नहीं पुछा| रात के सात बजे थे और भूख लगी थी तो करुणा ने अपनी दीदी का दिया हुआ वही दही-चावल वाला खाना निकाल लिया| अब मरते क्या न करते, कुछ और तो खाने को मिलने वाला था नहीं इसलिए मैंने वही खाया|



खाना खा तो लिया लेकिन पानी बस आधा बोतल बचा था, वो भी कल रात का! पानी के लिए अगले स्टेशन का इंतजार करना था जो नजाने कब आये?! इधर इस ट्रैन ने बड़ी तेज रफ़्तार पकड़ी और AC इतनी तेज चलने लगा की करुणा को ठंड से कँप-कँपी होने लगी! हम दोनो उसी बर्थ पर अपनी पीठ टिका कर एक दूसरे की तरफ मुँह कर के बैठ गए, मेरी ठंड के प्रति प्रतिरोधकता करुणा के मुक़ाबले ज्यादा थी इसलिए मैं इस बढ़ी हुई ठंड को झेल पा रहा था, लेकिन करुणा शारीरिक तौर पर कमजोर थी इसलिए वो अपने दोनों हाथों से अपने दोनों बाजू रगड़ रही थी!

करुणा: ये AC कम नहीं हो सकते?

अब ट्रैन में कोई अटेंडेंट था नहीं और मैं भी थर्ड AC में पहलीबार सफर कर रहा था इसलिए मैं नहीं जानता था की AC कहाँ से कम होता है|

मैं: Actually dear इस ट्रैन में कोई attendant नहीं है, ये ट्रैन अब सीधा जयपुर रुकेगी!

मैंने करुणा को सच बताया पर TTE साहब की दी हुई चतवनी उसे नहीं बताई| ये सुन कर करुणा एक पल को तो घबरा गई, पर अगले ही पल उसके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान आ गई| वो उठी और मेरी गोद में सर रख कर अपनी दोनों टाँगें पेट से लगा कर सिकुड़ कर लेट गई| मेरी बाईं टाँग घुटने से मुड़ी हुई थी और दाईं टाँग बर्थ से नीचे लटक रही थी| उसके यूँ मेरी गोद में सर रखने से मेरे जिस्म में कुछ अजीब सा होने लगा था, ये एहसास वैसा नहीं था जब भौजी मुझे छूती थीं और न ही वैसा एहसास था जो मुझे रसिका भाभी द्वारा जबरदस्ती छूने से हुआ था! शायद मेरी 'बंद सोच' के कारन ये एहसास हो रहा हो, जिसके हिसाब से ये छुअन ठीक नहीं थी पर गलत भी नहीं थी!

इधर करुणा ठंड से थोड़ा काँप रही थी तो मैंने करुणा को गर्मी देने के लिए उसके दाएँबाजू को सहलाने की अनुमति माँगी;

मैं: Dear ..... आ ...आप को ठंड लग रही है....मैं आपकी ये बाजू सहलाऊँ...आपको शायद उससे गर्मी महसूस हो!

ये सब बोलते समय मेरा चेहरा लाल हो चूका था और आवाज में कंपन थी! करुणा ने एक नजर मुझे देखा और मुस्कुराते हुए हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने दाहिने हाथ से उसकी दाईं बाजू पर हाथ फेरना शुरू किया, कुछ देर में उसे शायद थोड़ी गर्मी मिली तो वो सुकून से सोने लगी| उधर मुझे वो दिन याद आया जब भौजी को बुखार चढ़ा था, उस रात उन्हें अचानक से तेज बुखार चढ़ गया था और कैसे मैंने आनन-फानन में उन्हें अपने जिस्म की गर्माहट दी थी| वो दृश्य याद कर के एक पल को मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई पर फिर अगले ही पल भौजी का चेहरा आँखों के सामने आ गया जिसे देखते ही दिमाग में गुस्सा भरने लगा| मैंने सर को झटक कर वो ख्याल अपने दिमाग से निकाला और सर पीछे टिका कर खिड़की से बाहर देखने लगा| वो ट्रैन की छुक-छुक, कोच का सन्नाटा और दूर कहीं किसी घर का जलता हुआ बल्ब जिसमें से पीले रंग की रौशनी निकल रही थी| ये सब इतना मनमोहक था की इसे देख कर सुकून मिल रहा था, उन कुछ पलों के लिए मैं अपनी सभी चिंताओं से मुक्त हो गया था|



कुछ देर बाद मैंने घडी देखि तो अभी रात के 10 बजे थे, एक ही आसन में पिछले 45 मिनट से बैठे-बैठे पाँव में खून रुक रहा था| मैंने धीरे-धीरे अपनी बाईं टाँग को फैलाना चाहा, पर दिक्कत ये की मेरे टाँग फ़ैलाने से करुणा जाग जाती और मैं उसे कतई जगाना नहीं चाहता था| सबसे पहले मैंने अपनी दाईं टाँग उठा कर ऊपर रखी और धीरे-धीरे अपनी बाईं टाँग थोड़ी खोली, मेरे ऐसा करने से करुणा की नींद टूट गई| उसने अधखुली आँखों से मुझे देखा तो उसे मेरी समस्या समझ आई, उसने मुझे बाईं टाँग फैलाने की जगह तो दी, पर मेरे टाँग फैलाते ही वो फिर से अपना सर मेरी गोद में रख कर लेट गई| इस बार जब उसने दुबारा सर मेरी गोद में रखा तो वो मेरे 'उसके' बहुत करीब था, अब 'उसमें' दिमाग तो होता नहीं उसे जब किसी अनजान जिस्म का एहसास हुआ तो वो अपना सर उठाने लगा| अब अगर करुणा मुझे और ‘उसे’ देख लेती तो उसे लगता की मैं कोई ठरकी आदमी हूँ जिसे अपने ऊपर काबू ही नहीं! अपनी इज्जत बचाने के लिए मैंने अपने दोनों हाथों को बर्थ पर रखा और दोनों हाथों पर वजन डाल कर अपनी कमर को पीछे खींचा जिससे करुणा का सर खिसक कर थोड़ा नीचे हो गया| करुणा के सर और मेरे 'उसके' बीच दूरी आई और मैंने अपने मन को शांत करने के लिए लम्बी-लम्बी सांसें लेना शुरू कर दिया, तब कहीं जा कर 'वो' शांत हुआ!



कुछ देर बाद हमारी कोच जो की पूरी खाली थी और जिसकी सारी लाइट्स मैंने बंद कर रखी थीं ताकि अगर कोई देखे तो लगे की ये कोच locked है, उसमें एक आदमी घुसा उसने हमारे पीछे वाली सीट की लाइट जलाई| रौशनी होते ही मैंने पीछे पलट कर देखा तो वो आदमी आमने-सामने वाली बर्थ पर पैर फैला कर बैठा हुआ था| उसकी नजर पहले मुझ पर पड़ी और फिर करुणा पर, उसने भोयें सिकोड़ कर हमें देखा पर बोला कुछ नहीं| कुछ देर पहले जहाँ में सुकून से बैठा था, वहीं अब मेरा दिमाग डर के मारे तेजी से काम करने लगा था|

इधर करुणा का ठंड से बुरा हाल था, वो ठंड से काँपने लगी थी! ठंड के मारे उसकी आँख खुल गई और उसने दबी हुई आवाज में मुझसे कहा;

करुणा: मिट्टू.... आपका body कितना गरम है.... आप मेरा back (पीठ) rub कर रे तो मुझे ठंड कम लगते!

मैं करुणा की हालत समझ सकता था पर मेरा मन मुझे ऐसा करने से रोक रहा था, साला मन में कहीं भौजी के लिए प्यार दबा हुआ था जो अब भी मुझे रोके हुए था| ‘She needs help!’ दिमाग बोला तो मन करुणा की पीठ छूने के लिए मान गया, मैंने काँपते हुए अपने दाएँ हाथ से उसकी पीठ को छुआ तो सबसे पहले मेरी उँगलियों को उसकी ब्रा का स्ट्राप महसूस हुआ, मैंने घबरा कर एकदम से अपना हाथ पीछे खींच लिया| करुणा ने एकदम से मेरी ओर देखा और मेरे चेहरे पर आये घबराहट के भाव देख कर बोली;

करुणा: क्या हुआ मिट्टू?

अब मैं उसे क्या कहता इसलिए मैंने नकली मुस्कराहट लिए हुए न में गर्दन हिलाई|



करुणा को रौशनी का एहसास हुआ तो उसने उठ कर पीछे देखा तो पाया एक आदमी लेटा हुआ है और अपने फ़ोन में कुछ देख रहा है| उसे देख करुणा ने डरी हुई आँखों से मुझे देखा, जब करुणा उस आदमी को देख रही थी तब मैंने अपने चेहरे के हाव-भाव बदल लिए थे, इसलिए जब करुणा ने डरी हुई आँखों से मुझे देखा तो उसे मेरे चेहरे पर होंसले के भाव दिखे जिन्हें देख वो चिंतामुक्त हो कर फिर लेट गई| इधर मैंने हिम्मत कर के अपने दाएँ हाथ से दुबारा उसकी पीठ को छुआ और अपने हाथ को उसके ब्रा के स्ट्रैप्स से काफी ऊपर धीरे-धीरे फेरने लगा| पता नहीं मेरे हाथ फेरने का क्या असर हुआ, लेकिन करुणा फिर से चैन से सो गई! वहीं अब ठंड मुझ पर थोड़ा-थोड़ा असर दिखाने लगी थी, मेरे शरीर में झुरझुरी उठने लगी थी! मुझे लग रहा था की किसी भी वक़्त मेरी छींकें शुरू हो जाएँगी, अगर छींकें शुरू होतीं तो मेरी हालत बिगड़ती फिर न तो मैं खुद को संभाल पाता और न ही करुणा को! वो तो भगवान की कृपा थी की छींकें काबू में रहीं और तबियत खराब नहीं हुई|

लेकिन प्यास से मेरा गला सूखने लगा था, स्टेशन आया तो था पर करुणा को छोड़कर जाता कैसे?! कल रात से सो न पाने की वजह से बहुत जोर से नींद आ रही थी, पर करुणा की सुरक्षा करनी थी सो आँखें बंद नहीं हो रहीं थी| वहीं मुझे ट्रैन के AC पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था, गुस्से से जल रहा दिमाग कह रहा था की आज के बाद कभी AC में सफर नहीं करूँगा! जल्दी से जयपुर आये तो मैं इस ठंडे बर्फ के गोदाम से बाहर निकलूँ, पर जयपुर अभी दूर था, मैंने अंदाजा लगाया की कम से कम सुबह के 2-3 बजे से पहले जयपुर नहीं आने वाला था| उधर करुणा चैन से सो रही थी, अब मैंने वही किया जो मैं अक्सर बोर होने पर करता था, मैंने अपने दिमाग के प्रोजेक्टर में नेहा की यादों की रील लगाई और गाँव में नेहा के संग बिताये दिनों को याद करने लगा| मेरी प्यारी बिटिया अबतक 8-9 साल की हो गई होगी, जाने कैसे दिखती होगी? जाने कौन सी क्लास में होगी और उसे अब कौन स्कूल ले जाता होगा? क्या उसे मैं याद हूँगा? क्या वो मुझे याद करती होगी? ये सारे सवाल एकदम से मुझे घेर कर खड़े हो गए| नेहा मेरी जिंदगी का वो हिस्सा था जो मेरे दिल के बहुत करीब था, मैं उस मासूम सी बच्ची को अपनी बेटी मान चूका था और उसके पास जाने को बहुत तड़पता था, पर उसकी माँ के कारन मैं उस निर्दोष को खुद से दूर रख कर खुद को सजा दे रहा था| कई बार मन में ख्याल आया की मैं गाँव जा कर उसे अपने साथ दिल्ली ले आऊँ और जिद्द कर के ही सही पर उसे गोद ले लूँ! लेकिन जानता था की इस सब के लिए एक तो बहुत देर हो चुकी थी और दूसरा कोई इसके लिए राजी नहीं होगा! नजाने कितनी ही गालियाँ देने का मन किया उस इंसान को जिस के कारन मैं ये तड़प महसूस कर रहा था, पर उसके लिए शायद अब भी कहीं प्यार था जो मेरे मुँह से वो गालियाँ बाहर नहीं आने दे रहा था!



खैर रात बीतने लगी और वो जो आदमी पीछे की बर्थ पर लेटा था वो चुपचाप लेटा रहा, सुबह के 2 बजे ट्रैन जयपुर पहुँची| मैंने करुणा का बाजू पकड़ कर उसे उठने को कहा, वो आँखें मलते हुए उठी और अधखुली आँखों से मुझसे बोली;

करुणा: जयपुर आ गए?

मैं: हाँ! (आह!)

मैं धीरे से कराह उठा क्योंकि इतनी देर एक ही आसन में बैठने से मेरी दोनों टांगों में खून रुक सा गया था, मैंने फटाफट जूते पहने और तब मेरा ध्यान मेरी जीन्स पर गया जो थोड़ी सी गीली हो गई थी क्योंकि नींद में करुणा के मुँह से लार बह कर उस पर गिर गई थी! ये देख कर करुणा झेंप गई पर मैंने किसी तरह उसे embarrass नहीं होने दिया और सामान ले कर जल्दी से नीचे उतर गया| ट्रैन से बाहर आते ही बाहर का मौसम अंदर के मुक़ाबले उलट था, यहाँ गर्मी और उमस थी जिसने ठंड से काँप रहे बदन को गर्मी दी थी| मेरी नजर प्लेटफार्म पर बनी दूकान पर पड़ी और मैंने सबसे पहले दो बोतल पानी ली| एक बोतल मैंने करुणा को दी और दूसरी वाली मैं मुँह से लगा कर एक साँस में खींच गया! पूरी बोतल पीने के बाद मेरी प्यास को चैन मिला, फिर हम बाहर आये और साइकिल रिक्शा किया| रिक्षेवाले भैया को मैंने कहा की वो कोई ठीक-ठाक होटल ले जाए जहाँ हमें 1000-1200/- रुपये में कमरा मिल जाए| पिछलीबार हम जहाँ रुके थे उस होटल का नाम-पता मुझ याद नहीं था और न ही मुझमें अभी इतना सब्र था की मैं उसे ढूँढने में माथा-पच्ची करूँ, मुझे चाहिए था एक अच्छा होटल जहाँ मैं पसर कर सो सकूँ! रास्ते में एक 24/7 दवाई की दूकान पड़ी तो करुणा ने मुझे कहा की उसे pads लेने हैं, मैंने रिक्शे वाले को एक मिनट रुकने को कहा तो वो रुकने का कारन पूछने लगा, "दवाई लेनी है!" मैंने उबासी लेते हुए कहा| पर इस ससुर को कुछ ज्यादा ही चुल्ल थी, वो बोला; "भैया आप कहो तो आगे एक अस्पताल है, वहाँ ले चलूँ?!"

"नहीं भाई! बस सर दर्द की दवाई लेनी है!" मैंने नींद पूरी न होने के कारन चिढ़ते हुए कहा|



करुणा को गए हुए 5 मिनट हो गए थे और मुझे उसकी चिंता हो रही थी, मैं उतरने वाला ही हुआ था की करुणा आ गई| उसने मेरे चेहरे पर चिंता देख ली थी, सो वो मुस्कुरा कर बोली; "मेरा ब्रांड नहीं मिल रहा था!" ये कहकर वो हँसने लगी| मैं समझ गया की कल शाम को मैंने जो बेवकूफी भरी बात कही थी ये उसी का मजाक बना रही है इसलिए मैं शर्म से लाल हो कर खामोश रहा|

खैर हमें ठीक-ठाक होटल मिल गया, check in कर के मैं तो कपडे बदल कर लेट गया क्योंकि मेरे लिए अब जागना नामुमकिन था! मुझे कुछ होश नहीं था की मेरे सोने के बाद करुणा ने क्या किया और वो कब लेटी!



अगली सुबह मेरी आँख जल्दी खुल गई, मैंने घडी देखि तो मैं बस 4 घंटे सो पाया था! अब अगर मैं दुबारा सोता तो हमें उठाने वाला कोई नहीं था, इसलिए मैं उठ कर बैठ गया| मैंने ब्रश किया और टीवी चालु कर दिया, टीवी पर कोई गाना आ रहा था जिसे सुन कर करुणा भी जाग गई| मैं फेसवाश करने जा रहा था की करुणा उठ कर बैठ गई और मुझसे बोली;

करुणा: मिट्टू आप थोड़ा और सो लो, आप दो दिन से ठीक से सोया नहीं!

मैं: अगर मैं सो गया तो हम ऑफिस जाने में लेट हो जायेंगे|

मैं बाथरूम में घुसने वाला था की करुणा बोली की उसे पहले जाना है, तो मैं वापस पलंग पर बैठ गया और कार्टून देखने लगा| करुणा फ्रेश हो कर आई और हँसते हुए मुझसे बोली;

करुणा: मिट्टू कल जब मैं आपको pads के बारे में बोला तो आप shocked क्यों ता?

उसका सवाल सुन मैं फिर कल की ही तरह हैरान आँखें फाड़े उसे देखने लगा| जब मैं कुछ न बोला तो करुणा ने मुझे छेड़ना शुरू कर दिया;

करुणा: आप कभी pads देखा नहीं क्या?

उसने हँसते हुए कहा तो मेरी गर्दन स्वतः ही न में हिलने लगी| ये देख कर वो खूब खिलखिलाकर हँसी, उसकी ये हँसी देख मुझे बहुत शर्म आ रही थी और मेरे दोनों कान शर्म से सुर्ख लाल हो गए थे| मैं करुणा से नजर बचाते हुए बाथरूम में घुसा और वाशबेसिन के सामने खड़ा हो कर फेसवाश चेहरे पर लगाया| मैं मुँह धोने ही जा रहा था की करुणा बाथरूम का दरवाजा खोल कर मेरे पीछे मसुकुराते हुए खड़ी हो गई, उसके हाथों में कुछ था जो उसने अपने पीछे छुपा रखा था|

करुणा: मिट्टू..... आप कभी sanitary pad नहीं देखा न??? .... मैं आपको आज दिखाते....!

ये कहते हुए उसने एक सफ़ेद कलर का कागज मेरी आँखों के आगे खोलना शुरू किया, इधर मैं उसकी बात और अपने सामने sanitary pad का पैकेट खुलने को लेकर थोड़ा घबरा गया था! पैकेट खुला और करुणा वो pad मुझे दिखाते हुए बोली;

करुणा: देखो मिट्टू...कितना soft है....!

करुणा ने उस pad पर अपनी ऊँगली फिराते हुए कहा| वहीं मैं जिंदगी में पहली बार sanitary pad अपनी आँखों के सामने देख कर सन्न था! ये मेरे लिए एक अनोखी चीज थी और अनोखी चीज देख कर मनुष्य को उसको छूने का मन अवश्य करता है परन्तु मैं उसे छूने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था| उसे देख कर ही पता लग रहा था की वो बहुत मुलायम होगा, पर उसे छूने से डर लग रहा था|

करुणा: Touch कर के देखो मिट्टू?!

ये कहते हुए करुणा ने वो pad मेरी ओर बढ़ा दिया, अब ये देख कर मैं बिलकुल हक्का-बक्का था! करुणा इसे इतना सरलता से ले रही थी मानो कोई आम बात हो! लड़कियों के बीच में क्या ये आम बात होती है?! मेरे ख्याल से तो नहीं!

मैं: पागल लड़की!

मैंने उसे प्यार से डाँटते हुए कहा तो करुणा खिलखिलाकर हँसने लगी| किसी तरह मैं और शर्म से पानी-पानी होने से बच गया था|



दोनों तैयार हुए, फिर मैंने ढंग का नाश्ता मँगाया ताकि कुछ अच्छा खाने को मिले और फिर हम ऑफिस पहुँचे| ऑफिस पहुँच कर पता चला की लाल सिंह जी और भंवर लाल जी दोनों ही ऑफिस में नहीं हैं, मैंने थोड़ी पूछताछ की तो पता चला की वे दोनों किसी मीटिंग के लिए गए हैं और कुछ देर में आएंगे| अब हमें बस इंतजार करना था, इतने में वहाँ एक चपरासी आंटी आईं और उन्होंने हमें बताया की केरला की रहने वाली एक मैडम नीचे काम करती हैं| मैंने इस बात को तवज्जो नहीं दी पर करुणा के मन में एक मल्लू मित्र से मिलने की आस जग गई, उसने मुझे कहा की नीचे चल कर उनसे मिल लेते हैं क्या पता कोई मदद ही कर दें! हम दोनों नीचे आये और वहाँ postal विभाग के कमरे में पहुँचे, वहाँ एक 35-40 साल की एक महिला बैठीं थीं जो देख कर south indian लग रहीं थीं| उन्होंने जैसे ही करुणा को देखा वो उससे मलयालम में बात करने लगीं, इधर करुणा भी ख़ुशी-ख़ुशी उनसे मलयालम में बात करने लगी| करुणा ने मलयालम भाषा में ही मेरा परिचय उनसे अपने best friend के रूप में कराया| करुणा ने जब उन्हें ये बताया की मुझे मलयालम नहीं आतीं तो उन्होंने हिंदी में मुझसे बात करनी शुरू कर दी| वो मुझसे तरह-तरह के सवाल पूछने लगीं, जैसे की मैं कहाँ से हूँ, क्या करता हूँ, शादी हुई या नहीं आदि| मुझसे बातों में उनका ऐसा मन लगा की वो करुणा को लगभग भूल ही गईं, जिससे करुणा का मुँह डब्बे जैसा बन गया! मैंने उसका ये डब्बे जैसा मुँह देखा तो मैंने उन मैडम का ध्यान करुणा की joining की तरफ मोड़ा और उन्हें सारी बात बताई| मैंने सोचा की क्यों न जबतक लाल सिंह जी आयें तब तक हम एप्लीकेशन लिख कर तैयार कर लें, तो मैंने उन्हीं मैडम से मदद माँगीं की वो हमारी एप्लीकेशन लिख दें| "मुझे हिंदी पढ़ना आता है, लिखना नहीं!" वो हँसते हुए बोलीं| मैंने सोचा की पिछली बार जिनसे लिखवाया था उन्हीं से लिखवा लेता हूँ पर वो लड़का आज नहीं आया था! मजबूरन मुझे ही एप्लीकेशन लिखनी थी, मैंने मैडम से दो सफ़ेद कागज लिए| मेरी लिखावट गन्दी थी इसलिए मैंने एक कागज पर application का rough draft लिख दिया और करुणा को उसे अच्छे से सुंदर तरीके से copy करने को कहा| जबतक करुणा कॉपी कर रही थी मैं हाथ बाँधे खड़ा था, उन मैडम ने मुझे प्यार से छेड़ते हुए कहा; "अरे मिस्टर दिल्ली, खड़े क्यों हैं? बैठ जाइये!" ये सुन मैं हँस पड़ा पर करुणा दाँत पीसते हुए मुझे देखने लगी| उसके चेहरे पर आया गुस्सा मैडम नहीं देख पाईं पर मैं देख कर समझ गया की करुणा को जलन हो रही है!

खैर करुणा ने पूरी application अच्छे से लिख कर तैयार कर दी, ठीक तभी लाल सिंह जी कुछ काम से नीचे आये और हमें देखते ही हैरान हुए| मैंने उन्हें सारी बात बताई और अपना एक एहसान लादने के लिए उन मैडम ने लाल सिंह जी से हमारी सिफारिश की; "लाल सिंह जी इनकी मदद कर दीजिये!" लाल सिंह जी हम दोनों को ले कर ऊपर आये, मैंने उन्हें हमारी लिखी हुई application दी जिसमें हमने सारे documents तैयार करने के लिए 1 महीने का वक़्त माँगा था| लाल सिंह जी ने बताया की ये application भंवर लाल जी द्वारा मंजूर होगी तभी हम जा सकते हैं, अब भंवर ला जी थे मीटिंग में जो 2 बजे तक चलनी थी| अब तब तक यहाँ बैठ कर बोर होने से अच्छा था की थोड़ा सैर-सपाटा किया जिससे करुणा का मूड भी ठीक हो जाए, कल से बेचारी परेशान थी, पहले मामा जी की मृत्यु, फिर नौकरी में अड़ंगा, फिर ट्रैन में ठंड से ठिठुरना!

मैं: सर अगर कोई दिक्कत न हो तो तबतक हम थोड़ा घूम आयें?

लाला सिंह जी: हाँ-हाँ! यहाँ रह कर भी तुम क्या करोगे?!

हम उनसे इजाजत ले कर निकले और बाहर से हवा महल के लिए ऑटो किया| जब मैं छोटा था तब पिताजी और माँ के साथ हवा महल और जल महल घूमा था, आज फिर वहाँ जा कर वही यादें ताजा होने वाली थीं| ऑटो चल पड़ा और इधर करुणा मेरे से सट कर बैठ गई, उसने मेरा दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया मानो मैं उसे छोड़कर कहीं जा रहा हूँ, साथ ही उसने अपना सर मेरे दाहिने कँधे पर रख दिया|



मुझे अब करुणा की छुअन की धीरे-धीरे आदत हो रही थी, इसलिए मैंने उसे कुछ नहीं कहा और चुपचाप बैठा रहा, पर अगले ही पल उसने कुछ ऐसा कहा जिसने मेरे मन में सवाल पैदा कर दिए|

"आप जिसका husband होते वो दुनिया का सबसे lucky wife होते!" करुणा भावुक हो कर बोली|

ये सुन कर मेरे मन में कोहराम छिड़ गया, दिमाग में बम फूटने लगे और दिल घबराने लगा! 'कहीं करुणा मुझसे प्यार तो नहीं करने लगी? अगर नहीं कर रही होती तो वो ये क्यों कहती?!' दिमाग में उठा कोतुहल शांत नहीं हो रहा था पर मन कह रहा था की; 'ऐसा कुछ नहीं है, उसने बस तेरी तारीफ की है| तू ज्यादा मत सोच और कुछ ऊल-जुलूल बोल कर इस दोस्ती का सत्यानाश मत कर! कम से कम उसकी नौकरी लगने तक तो शांत रह!' मन की बात सही थी, अगर मैं गलत साबित होता तो बेइज्जत्ती हो जाती इसलिए मैं खामोश रहा|



कुछ देर बाद हम हवा महल के पास उतरे, वहाँ लगी मार्किट को देख कर करुणा का मन वहाँ घूमने का करने लगा| हमने वहाँ पर कुछ दुकानें देखीं जहाँ पर artificial jewelry मिल रही थी| हमेशा से ही करुणा को झुमके खरीदने का शौक था, उसकी पतली लम्बी गर्दन पर झुमके बहुत फबते थे! करुणा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वहाँ खींच कर ले गई, एक-एक कर उसने झुमके try करने शुरू किये और हर झुमके को पहन कर वो मुझसे पूछती की ये कैसा है?! उसके चेहरे पर आई वो प्यारी सी मुस्कान मुझे बहुत अच्छी लगती थी, इसलिए मैं मन लगा कर उसे झुमके पसंद करने में मदद करने लगा| आखिर मैं मैंने एक बड़ा ही दिलकश झुमका ढूँढ कर निकाला, जिसे देखते ही करुणा की आँखों में ख़ुशी झलकने लगी, उसने जल्दी से उसे try किया और मुझे दिखाते हुए बोली; "मिट्टू...आप इतना अच्छा चीज कैसे ढूँढ़ते!" उसकी मुस्कराहट देख कर दिल गदगद हो गया और मैं उसके सवाल के जवाब में बस मुस्कुरा कर रह गया|

वो झुमका 800/- का था पर करुणा की उस मुस्कान के आगे कम था, मैंने पैसे दिए और हवा महल घूमने की टिकट लेने लगा| हवा महल के भीतर आ कर हम घूमने लगे और बहुत सारी फोटो खींचने लगे, इन सभी फोटो की एक ख़ास बात थी, वो ये की ये सभी फोटो selfie थीं जिसमें मैं और करुणा दोनों एक दूसरे के बहुत नजदीक थे| मुझे उसकी ये नजदीक अब अजीब नहीं लगती थी, क्योंकि मैं अपनी स्वेच्छा से उसे अपने नजदीक आने दे रहा था| घुमते-घुमते हम हवा महल में ऊपर पहुँचे और वहाँ से तसवीरें खींचने लगे, तभी करुणा एकदम से उदास हो गई, शायद उसे उसके मामा जी की याद आ गई थी| उस वक़्त वो मेरी एक फोटो ले रही थी जब मैंने उसके हाथ से अपना फ़ोन लिया और उसका ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करते हुए बोला;

मैं: Dearrrrr ..... आप ऐसे उदास होते हो न...तो ...मुझे अच्छा नहीं लगता.....I know you must be missing mama जी but he’s somewhere …and must be watching you from there…. Just imagine how he’d be feel seeing you so upset?! AND if you’re worried about your job, I take that repsonisibility to get you this job. Now relax and smile for me!

मैंने प्यार से करुणा को समझाते हुए कहा| मेरी बातों का असर हुआ और करुणा के चेहरे पर एक मीठी सी विश्वास पूर्ण मुस्कान आ गई| उसने मुझसे फ़ोन लिया और हम दोनों की एक प्यारी सी selfie ली, उसे मुस्कुराते हुए देख मैं बेफिक्र हो गया|



हवा महल से निकल कर हम जल महल की ओर निकले, हमने ऑटो किया था और ऑटो में बैठे हुए करुणा ने फिर से मेरा दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों के बीच पकड़ लिया तथा अपना सर मेरे कँधे पर रख दिया|

करुणा: वो.... आपको कैसे देख रा ता.... कैसे बात कर रा ता....?

करुणा गुस्से से दाँत पीसते हुए बुदबुदाई| उसकी ये बुदबुदाहट सुन मैं हैरान हुआ और गर्दन मोड़ कर उसे देखने लगा तो पाया की करुणा की आँखें पहले से ही मुझ पर टिकी हुई हैं| मेरी आँखों में सवाल थे की आखिर करुणा किस की बात कर रही है:

करुणा: वो औरत....ऑफिस वाला.... आप मेरा फ्रेंड है...और मेरे से बात करना छोड़ कर उससे क्यों बात कर रहा था?

करुणा की आवाज में जलन मैं साफ़ महसूस कर सकता था और इस जलन को महसूस कर मुझे हँसी आ रही थी|

मैं: मैंने क्या किया? वो खुद मुझसे बात कर रही थी!

मैंने अपनी सफाई दी|

करुणा: आपको क्या बोल रे..... हाँ ...मिस्टर दिल्ली.... हिम्मत तो देखो उसका....मेरा मिट्टू को मेरा सामने praise कर रे!

करुणा तुनक कर गुस्से से बोली|

करुणा: आप मेरा फ्रेंड है, समझा? मैं किसी के साथ आपको शेयर नहीं करते!

करुणा गर्व से बोली| पर तभी उसे एहसास हुआ की कहीं मैं उसकी बात का कोई गलत मतलब न निकालूँ इसलिए उसने बात कुछ इस तरह से मोड़ दी की मैं हँस पड़ा;

करुणा: मैं उसका state से है....मलयाली मैं है....मेरे को छोड़ कर आपको बात कर रे? ये ठीक है क्या?

उसकी एक राज्य (केरला) से होने की बात सुन कर मैं जोर से हँस पड़ा और उधर करुणा प्यार भरे गुस्से से मुझे देखने लगी|



खैर हम जल महल पहुँचे और वहाँ बाहर कुछ लोग प्लेट में मछलियों के खाने के लिए आटें की गोलियाँ बेच रहे थे| हमने वो आटें की गोलियाँ नहीं ली, बल्कि सीधा सीढ़ियों से उतर कर पानी के पास खड़े हो गए| वहाँ कुछ लोग मछलियों को वो गोलियाँ खिला रहे थे, ये देख कर मुझे याद आया की एक बार एक पंडित जी ने पिताजी से कहा था की मछलियों को खाना खिलाना पुण्य का काम होता है| ये पल याद आते ही मन में पुण्य करने की तीव्र इच्छा हुई, अपने लिए नहीं बल्कि करुणा के लिए ताकि उसे ये नौकरी जल्दी से जल्दी मिल जाए|

एक बूढी अम्मा से मैं एक प्लेट आटें की गोलियाँ ले आया, हम दोनों ने एक-एक कर गोलियाँ पानी में फेकने लगे| हम जहाँ भी गोली फेंकते वहाँ एक-दो मछलियाँ मुँह बाय आ जातीं, करुणा मछलियों को देख कर ख़ुशी से चहकने लगी और मुझे इशारे से बार-बार बताती की; "मिट्टू ...वो देखो...वो देखो...fish-fish ...!" उसका यूँ मछली देख कर बच्चों की तरह खुश हो जाना, ये दृश्य देख कर मेरे दिल में एक तरंग उठने लगी थी|



लेकिन जब मुझे उसकी ख़ुशी का असली कारन पता चला तो मेरे चेहरे पर जोरदार हँसी आ गई!

करुणा: मिट्टू...इतना सारा fish देख के मेरा मन सब को खाने का कर रे!

करुणा ख़ुशी से कूदते हुए बोली| उसकी बात सुन कर मैं पेट पकड़ कर हँसने लगा, मुझे यूँ हँसता हुआ देख करुणा की भी हँसी छूट गई|

मैं: पागल मैं इधर मछलियों को खाना खिलाकर पुण्य कमा रहा हूँ ताकि आपको ये job जल्दी मिले और आपको ये ही मछलियाँ खानी हैं? दुष्ट....पापन....!

ये कह कर मैं गला फाड़ कर हँसने लगा, उधर मेरी बात सुन करुणा भी हँसने लगी! अब वो थी तो south indian और वहाँ के लोगों को पसंद होती है मछली तो इसमें उस बेचारी की क्या गलती! खैर मैं जान गया था की करुणा को मछलियाँ देखना और खाना बहुत पसंद है तो मैंने उसकी ख़ुशी के लिए प्लेट में मौजूद सारी आटों की गोलियाँ एक साथ हवा में उछाली| सारी गोलियाँ एक साथ पानी में गिरीं और वहाँ ढेरों मछलियाँ एक साथ इकठ्ठा हो गईं, मछलियों का झुण्ड देख कर करुणा का चेहरा किसी सूरजमुखी की तरह खिल गया!

करुणा: मिट्टू....मिट्टू....ये सब देख के मेरा मन पानी में कूद कर सबको पकड़ने का कर रे!

करुणा हँसते हुए बोली|



हम कुछ देर वहाँ खड़े रहे और हँसते रहे और बात करते रहे, करुणा जल महल के अंदर जाना चाहती थी पर वहाँ जाना मना था इसलिए हम अंदर जा नहीं पाए| हमने वहीं खड़े-खड़े ढेर सारी तसवीरें खींची, कुछ मेरी, कुछ करुणा की और हम दोनों की तो ढेर सारी selfies! जैसे ही हम चलने को हुए तो करुणा बोली की उसे एक अच्छे angle पर मेरे अकेले की फोटो लेनी है जो मैं facebook पर डाल सकूँ| करुणा ने मुझसे 2-4 अच्छे pose बनवा कर पहले तो फोटो खींची, अंत में उसने मुझे शारुख खान की तरह हाथ फैला कर खड़ा होने को कहा| मुझे लगा की उससे अच्छी फोटो आएगी तो मैं वो pose ले कर खड़ा हो गया, ऐसे खड़ा होने से मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था और हँसी आ रही थी| तभी करुणा अचानक से मेरे नजदीक आई और कस कर अपनी बाहें मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे सीने से लग गई!


जारी रहेगा भाग 7(6) में...
:reading1:
 

kamdev99008

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maanu bhai.....................bahut jabardast update.......................

apki story shuru se padhkar mujhe jaisa lag raha tha.................
is update ko padhkar puri tarah confirm bhi ho gaya....................

ap bilkul mere chhote bhai ki tarah hain......................matlab identical to my younger brother in real life

dusron ke liye hamesha samarpit, jarurat se jyada care karna, dusre ki care ke chakkar mein nuksan bhi uthana
aur............................................................................
ab aage nahin kahunga...................................... jo me use kahta hoon.................. :hehe:

khastaur par ladkiyan use apni masoomiyat dikhakar bahut fayda uthati hain..................
jaise ki apka fayda 'bhauji' aur fir karuna ne bhi uthaya

lekin last mein hota wahi hai
"laut ke buddhu ghar ko aaye"

keep it up
 

Lutgaya

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आज कुछ सुकुन मिला
Nice update bro
 

Akki ❸❸❸

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इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (5)



अब तक आपने पढ़ा:


हमने रिक्शा किया और स्टेशन पहुँचे, मैंने ticket काउंटर से superfast की दो टिकेटें ली| टिकट ले कर मैंने पुछा की जयपुर की ट्रैन कब जाएगी तो काउंटर पर बैठा आदमी बोला की ये जो ट्रैन जा रही है ये ही जाएगी, इसके बाद अगली ट्रैन रात को आएगी! मैंने करुणा से दौड़ने को कहा क्योंकि ट्रैन धीरे-धीरे रेंगने लगी थी| मेरे हाथ में दो बैग थे पर फिर भी मैं करुणा से तेज भागा और सामान रख कर फटाफट चढ़ गया, करुणा अब भी स्टेशन पर दौड़ रही थी| वो बिना किसी मदद की तरह चढ़ नहीं पाती इसलिए मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया ताकि वो मेरा हाथ पकड़ ले, लेकिन उसे दौड़ कर बस पकड़ने की आदत थी तो उसने सावधानी से दौड़कर खुद ट्रैन पकड़ ली|

पूरी की पूरी ट्रैन खाली थी, मैंने सोचा की जब ट्रैन खाली ही है तो सफर आराम से किया जाए! मैं करुणा को लेकर AC वाले कोच की तरफ चल पड़ा, रास्ते में जो भी coaches आय सब या तो खाली थे या फिर उसमें इक्का-दुक्का लोग ही थे!


अब आगे:


ट्रैन
में कम लोग होना और साथ में लड़की, situation थोड़ी चिंता जनक थी पर अभी तक ये चिंता मेरे सर पर सवार नहीं हुई थी| हम थर्ड AC वाले कोच में पहुँचे, ये पूरा का पूरा कोच खाली था तो हमने कोच के बीचों बीच की सिंगल वाली बर्थ पर अपना समान रख दिया|

करुणा: मिट्टू हमारा पास तो reservation नहीं तो हम AC coach में कैसे?

करुणा ने घबराते हुए कहा| आजतक मैंने कभी भी बिना reservation के इस तरह ट्रैन में सफर नहीं किया था, पर उस वक़्त मैं कुछ ज्यादा ही उत्साहित था और इस situation को एक साहसिक कार्य (adventure) मान रहा था|

मैं: पूरी ट्रैन खाली है, हम कहीं भी बैठें किसे तकलीफ होगी?!

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा, पर अगले ही पल मुझे एहसास हुआ की पूरी ट्रैन खाली है और जो थोड़े बहुत यात्री हैं उनमें ज्यादातर आदमी ही हैं, कहीं कुछ गलत हो गया तो?! ये ख्याल मन में आते ही मुझे घबराहट होने लगी, मैंने एक नजर करुणा को देखा तो पाया की उसे मेरे साथ होने से कोई चिंता नहीं इसलिए वो ट्रैन की खिड़की से बाहर निश्चिंत हो कर देख रही है| अब ऐसे में अगर मैं घबरा जाता तो वो बेचारी रोने लगती, इसलिए मैंने अपने होंसले बुलंद किये और ऐसी कोई मुसीबत आई तो अपने आपको उससे लड़ने के लिए ख़ामोशी से मानसिक तैयारी करने लगा|



मेरे खामोश होने से करुणा के मन में डर भरने लगा और वो घबराते हुए बोली;

करुणा: मिट्टू.....इस पूरी ट्रैन...में हम...अकेले.... कोई आ रे तो?

करुणा ने डर के मारे काँपते हुए कहा|

मैं: Dear अभी अगले स्टेशन पर लोग जर्रूर चढ़ेंगे और फिर मैं हूँ न आपके साथ, तो फ़िक्र मत करो!

मैंने करुणा को हिम्मत बँधाई| मैंने करुणा क ध्यान भटकाने के लिए उसे अपने पर्स से पैसे निकाल कर संभालने के लिए दिए, मैंने अपने पर्स में बस 100-100 के दो नोट रखे और बाकी सब करुणा को दे दिए, ताकि TTE जब रिश्वत माँगे तो मैं उसे अपना पर्स खोल कर दिखा सकूँ और कम पैसे होने की दुहाई दे सकूँ! 15 मिनट बाद ही TTE साहब आ गए, उन्होंने हम दोनों को बैठे हुए देखा तो उन्होंने इसका कुछ और ही मतलब निकाला|

मैंने उन्हें अपनी सुपरफास्ट की टिकट दिखाईं तो वो हम दोनों के सामने सीट पर बैठ गए, मैं जानता था की बिना खाये-पीये वो छोड़ेंगे नहीं तो मैंने सीधा अपना पर्स निकाला| मैंने पर्स कुछ इस तरह से खोला की उन्हें ये दिख जाए की मेरे पास थोड़े ही पैसे हैं, मैंने वैसे ही पर्स खोले हुए उनकी तरफ देखा तो पाया वो पहले से ही मेरी तरफ देख रहे हैं|

TTE साहब: दे दो जो देना है!

अब उन्हें 100/- रुपये देता तो वो भड़क जाते इसलिए मैंने 200/- उन्हें दिए जो उन्होंने रख लिए| फिर हमारी टिकट के पीछे वही सीट नंबर लिख दिया जिस पर हम दोनों बैठे थे| टिकट मुझे देने के बाद वो बोले;

TTE साहब: घर से भाग कर जा रहे हो?

उन्होंने मुस्कुरा कर पुछा| उनकी ये बात सुन हम दोनों आँखें फाड़े उन्हें देखने लगे|

मैं: नहीं सर! इनकी joining के लिए श्री विजयनगर आये थे, कुछ कागज बनाने हैं तो इसलिए जयपुर अपने मामा जी के पास जा रहा हूँ|

मैंने जयपुर में मामा होने का बहाना इसलिए मारा क्योंकि मैंने उन्हें अपने पर्स में रखे सारे पैसे दे दिए थे, अब अगर मैं उन्हें कहता की हमें वापस दिल्ली जाना है तो वो पूछते की उसके पैसे कहाँ हैं?! उधर मेरी बात बिलकुल सीधी थी इसलिए TTE साहब समझ गए की हम दोनों घर से नहीं भागे हैं|

TTE साहब: कहाँ के रहने वाले हो आप दोनों?

उन्होंने बात शुरू करते हुए कह|

मैं: सर मैं अयोध्यावासी हूँ और ये (करुणा) केरला से हैं|

मैंने अपने अयोध्यावासी होने की बात बड़े गर्व से कही|

TTE साहब: अरे हम बाराबंकी से हैं! तुम तो हमारे पडोसी हुए!

वो हँसते हुए बोले और उठ कर चल दिए| चलते-चलते उन्होंने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, हम दोनों कोच के बाथरूम तक पहुँचे थे की वो मुझसे बोले;

TTE साहब: देखो इस ट्रैन में लोग कम हैं, इसलिए अपना और इस लड़की का ध्यान रखना!

उनकी ये बात मेरे लिए चेतावनी थी जिसे सुन कर मेरे कान खड़े हो गए थे!

मैं: तो सर आगे स्टेशन से कोई नहीं चढ़ेगा?

मैंने भोयें सिकोड़ कर परेशान होते हुए पुछा|

TTE साहब: नहीं, रास्ते में 1-2 जगह पर ही 2-4 मिनट का stoppage होगा, कुछ बुकिंग हैं पर सब स्लीपर या जनरल की हैं| Third AC और Second AC की कोई बुकिंग नहीं है, इसलिए यहाँ कोई अटेंडेंड भी नहीं हैं, ये ट्रैन अब जयपुर में ही भरेगी!

इतना कह वो चले गए और इधर मेरे दिमाग में चेतावनी का साईरन बजने लगा|

मैं आज रात जाग कर कैसे पहरेदारी करनी है ये सोचता हुआ करुणा के पास वापस लौटा, करुणा ने मुझसे पुछा की TTE साहब क्या कह रहे थे तो मैंने झूठ बोलते हुए कहा की वो हम उत्तर प्रदेश वालों की कुछ बात हो रही थी| करुणा मेरी बातों में आ गई और उसने कोई सवाल नहीं पुछा| रात के सात बजे थे और भूख लगी थी तो करुणा ने अपनी दीदी का दिया हुआ वही दही-चावल वाला खाना निकाल लिया| अब मरते क्या न करते, कुछ और तो खाने को मिलने वाला था नहीं इसलिए मैंने वही खाया|



खाना खा तो लिया लेकिन पानी बस आधा बोतल बचा था, वो भी कल रात का! पानी के लिए अगले स्टेशन का इंतजार करना था जो नजाने कब आये?! इधर इस ट्रैन ने बड़ी तेज रफ़्तार पकड़ी और AC इतनी तेज चलने लगा की करुणा को ठंड से कँप-कँपी होने लगी! हम दोनो उसी बर्थ पर अपनी पीठ टिका कर एक दूसरे की तरफ मुँह कर के बैठ गए, मेरी ठंड के प्रति प्रतिरोधकता करुणा के मुक़ाबले ज्यादा थी इसलिए मैं इस बढ़ी हुई ठंड को झेल पा रहा था, लेकिन करुणा शारीरिक तौर पर कमजोर थी इसलिए वो अपने दोनों हाथों से अपने दोनों बाजू रगड़ रही थी!

करुणा: ये AC कम नहीं हो सकते?

अब ट्रैन में कोई अटेंडेंट था नहीं और मैं भी थर्ड AC में पहलीबार सफर कर रहा था इसलिए मैं नहीं जानता था की AC कहाँ से कम होता है|

मैं: Actually dear इस ट्रैन में कोई attendant नहीं है, ये ट्रैन अब सीधा जयपुर रुकेगी!

मैंने करुणा को सच बताया पर TTE साहब की दी हुई चतवनी उसे नहीं बताई| ये सुन कर करुणा एक पल को तो घबरा गई, पर अगले ही पल उसके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान आ गई| वो उठी और मेरी गोद में सर रख कर अपनी दोनों टाँगें पेट से लगा कर सिकुड़ कर लेट गई| मेरी बाईं टाँग घुटने से मुड़ी हुई थी और दाईं टाँग बर्थ से नीचे लटक रही थी| उसके यूँ मेरी गोद में सर रखने से मेरे जिस्म में कुछ अजीब सा होने लगा था, ये एहसास वैसा नहीं था जब भौजी मुझे छूती थीं और न ही वैसा एहसास था जो मुझे रसिका भाभी द्वारा जबरदस्ती छूने से हुआ था! शायद मेरी 'बंद सोच' के कारन ये एहसास हो रहा हो, जिसके हिसाब से ये छुअन ठीक नहीं थी पर गलत भी नहीं थी!

इधर करुणा ठंड से थोड़ा काँप रही थी तो मैंने करुणा को गर्मी देने के लिए उसके दाएँबाजू को सहलाने की अनुमति माँगी;

मैं: Dear ..... आ ...आप को ठंड लग रही है....मैं आपकी ये बाजू सहलाऊँ...आपको शायद उससे गर्मी महसूस हो!

ये सब बोलते समय मेरा चेहरा लाल हो चूका था और आवाज में कंपन थी! करुणा ने एक नजर मुझे देखा और मुस्कुराते हुए हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने दाहिने हाथ से उसकी दाईं बाजू पर हाथ फेरना शुरू किया, कुछ देर में उसे शायद थोड़ी गर्मी मिली तो वो सुकून से सोने लगी| उधर मुझे वो दिन याद आया जब भौजी को बुखार चढ़ा था, उस रात उन्हें अचानक से तेज बुखार चढ़ गया था और कैसे मैंने आनन-फानन में उन्हें अपने जिस्म की गर्माहट दी थी| वो दृश्य याद कर के एक पल को मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई पर फिर अगले ही पल भौजी का चेहरा आँखों के सामने आ गया जिसे देखते ही दिमाग में गुस्सा भरने लगा| मैंने सर को झटक कर वो ख्याल अपने दिमाग से निकाला और सर पीछे टिका कर खिड़की से बाहर देखने लगा| वो ट्रैन की छुक-छुक, कोच का सन्नाटा और दूर कहीं किसी घर का जलता हुआ बल्ब जिसमें से पीले रंग की रौशनी निकल रही थी| ये सब इतना मनमोहक था की इसे देख कर सुकून मिल रहा था, उन कुछ पलों के लिए मैं अपनी सभी चिंताओं से मुक्त हो गया था|



कुछ देर बाद मैंने घडी देखि तो अभी रात के 10 बजे थे, एक ही आसन में पिछले 45 मिनट से बैठे-बैठे पाँव में खून रुक रहा था| मैंने धीरे-धीरे अपनी बाईं टाँग को फैलाना चाहा, पर दिक्कत ये की मेरे टाँग फ़ैलाने से करुणा जाग जाती और मैं उसे कतई जगाना नहीं चाहता था| सबसे पहले मैंने अपनी दाईं टाँग उठा कर ऊपर रखी और धीरे-धीरे अपनी बाईं टाँग थोड़ी खोली, मेरे ऐसा करने से करुणा की नींद टूट गई| उसने अधखुली आँखों से मुझे देखा तो उसे मेरी समस्या समझ आई, उसने मुझे बाईं टाँग फैलाने की जगह तो दी, पर मेरे टाँग फैलाते ही वो फिर से अपना सर मेरी गोद में रख कर लेट गई| इस बार जब उसने दुबारा सर मेरी गोद में रखा तो वो मेरे 'उसके' बहुत करीब था, अब 'उसमें' दिमाग तो होता नहीं उसे जब किसी अनजान जिस्म का एहसास हुआ तो वो अपना सर उठाने लगा| अब अगर करुणा मुझे और ‘उसे’ देख लेती तो उसे लगता की मैं कोई ठरकी आदमी हूँ जिसे अपने ऊपर काबू ही नहीं! अपनी इज्जत बचाने के लिए मैंने अपने दोनों हाथों को बर्थ पर रखा और दोनों हाथों पर वजन डाल कर अपनी कमर को पीछे खींचा जिससे करुणा का सर खिसक कर थोड़ा नीचे हो गया| करुणा के सर और मेरे 'उसके' बीच दूरी आई और मैंने अपने मन को शांत करने के लिए लम्बी-लम्बी सांसें लेना शुरू कर दिया, तब कहीं जा कर 'वो' शांत हुआ!



कुछ देर बाद हमारी कोच जो की पूरी खाली थी और जिसकी सारी लाइट्स मैंने बंद कर रखी थीं ताकि अगर कोई देखे तो लगे की ये कोच locked है, उसमें एक आदमी घुसा उसने हमारे पीछे वाली सीट की लाइट जलाई| रौशनी होते ही मैंने पीछे पलट कर देखा तो वो आदमी आमने-सामने वाली बर्थ पर पैर फैला कर बैठा हुआ था| उसकी नजर पहले मुझ पर पड़ी और फिर करुणा पर, उसने भोयें सिकोड़ कर हमें देखा पर बोला कुछ नहीं| कुछ देर पहले जहाँ में सुकून से बैठा था, वहीं अब मेरा दिमाग डर के मारे तेजी से काम करने लगा था|

इधर करुणा का ठंड से बुरा हाल था, वो ठंड से काँपने लगी थी! ठंड के मारे उसकी आँख खुल गई और उसने दबी हुई आवाज में मुझसे कहा;

करुणा: मिट्टू.... आपका body कितना गरम है.... आप मेरा back (पीठ) rub कर रे तो मुझे ठंड कम लगते!

मैं करुणा की हालत समझ सकता था पर मेरा मन मुझे ऐसा करने से रोक रहा था, साला मन में कहीं भौजी के लिए प्यार दबा हुआ था जो अब भी मुझे रोके हुए था| ‘She needs help!’ दिमाग बोला तो मन करुणा की पीठ छूने के लिए मान गया, मैंने काँपते हुए अपने दाएँ हाथ से उसकी पीठ को छुआ तो सबसे पहले मेरी उँगलियों को उसकी ब्रा का स्ट्राप महसूस हुआ, मैंने घबरा कर एकदम से अपना हाथ पीछे खींच लिया| करुणा ने एकदम से मेरी ओर देखा और मेरे चेहरे पर आये घबराहट के भाव देख कर बोली;

करुणा: क्या हुआ मिट्टू?

अब मैं उसे क्या कहता इसलिए मैंने नकली मुस्कराहट लिए हुए न में गर्दन हिलाई|



करुणा को रौशनी का एहसास हुआ तो उसने उठ कर पीछे देखा तो पाया एक आदमी लेटा हुआ है और अपने फ़ोन में कुछ देख रहा है| उसे देख करुणा ने डरी हुई आँखों से मुझे देखा, जब करुणा उस आदमी को देख रही थी तब मैंने अपने चेहरे के हाव-भाव बदल लिए थे, इसलिए जब करुणा ने डरी हुई आँखों से मुझे देखा तो उसे मेरे चेहरे पर होंसले के भाव दिखे जिन्हें देख वो चिंतामुक्त हो कर फिर लेट गई| इधर मैंने हिम्मत कर के अपने दाएँ हाथ से दुबारा उसकी पीठ को छुआ और अपने हाथ को उसके ब्रा के स्ट्रैप्स से काफी ऊपर धीरे-धीरे फेरने लगा| पता नहीं मेरे हाथ फेरने का क्या असर हुआ, लेकिन करुणा फिर से चैन से सो गई! वहीं अब ठंड मुझ पर थोड़ा-थोड़ा असर दिखाने लगी थी, मेरे शरीर में झुरझुरी उठने लगी थी! मुझे लग रहा था की किसी भी वक़्त मेरी छींकें शुरू हो जाएँगी, अगर छींकें शुरू होतीं तो मेरी हालत बिगड़ती फिर न तो मैं खुद को संभाल पाता और न ही करुणा को! वो तो भगवान की कृपा थी की छींकें काबू में रहीं और तबियत खराब नहीं हुई|

लेकिन प्यास से मेरा गला सूखने लगा था, स्टेशन आया तो था पर करुणा को छोड़कर जाता कैसे?! कल रात से सो न पाने की वजह से बहुत जोर से नींद आ रही थी, पर करुणा की सुरक्षा करनी थी सो आँखें बंद नहीं हो रहीं थी| वहीं मुझे ट्रैन के AC पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था, गुस्से से जल रहा दिमाग कह रहा था की आज के बाद कभी AC में सफर नहीं करूँगा! जल्दी से जयपुर आये तो मैं इस ठंडे बर्फ के गोदाम से बाहर निकलूँ, पर जयपुर अभी दूर था, मैंने अंदाजा लगाया की कम से कम सुबह के 2-3 बजे से पहले जयपुर नहीं आने वाला था| उधर करुणा चैन से सो रही थी, अब मैंने वही किया जो मैं अक्सर बोर होने पर करता था, मैंने अपने दिमाग के प्रोजेक्टर में नेहा की यादों की रील लगाई और गाँव में नेहा के संग बिताये दिनों को याद करने लगा| मेरी प्यारी बिटिया अबतक 8-9 साल की हो गई होगी, जाने कैसे दिखती होगी? जाने कौन सी क्लास में होगी और उसे अब कौन स्कूल ले जाता होगा? क्या उसे मैं याद हूँगा? क्या वो मुझे याद करती होगी? ये सारे सवाल एकदम से मुझे घेर कर खड़े हो गए| नेहा मेरी जिंदगी का वो हिस्सा था जो मेरे दिल के बहुत करीब था, मैं उस मासूम सी बच्ची को अपनी बेटी मान चूका था और उसके पास जाने को बहुत तड़पता था, पर उसकी माँ के कारन मैं उस निर्दोष को खुद से दूर रख कर खुद को सजा दे रहा था| कई बार मन में ख्याल आया की मैं गाँव जा कर उसे अपने साथ दिल्ली ले आऊँ और जिद्द कर के ही सही पर उसे गोद ले लूँ! लेकिन जानता था की इस सब के लिए एक तो बहुत देर हो चुकी थी और दूसरा कोई इसके लिए राजी नहीं होगा! नजाने कितनी ही गालियाँ देने का मन किया उस इंसान को जिस के कारन मैं ये तड़प महसूस कर रहा था, पर उसके लिए शायद अब भी कहीं प्यार था जो मेरे मुँह से वो गालियाँ बाहर नहीं आने दे रहा था!



खैर रात बीतने लगी और वो जो आदमी पीछे की बर्थ पर लेटा था वो चुपचाप लेटा रहा, सुबह के 2 बजे ट्रैन जयपुर पहुँची| मैंने करुणा का बाजू पकड़ कर उसे उठने को कहा, वो आँखें मलते हुए उठी और अधखुली आँखों से मुझसे बोली;

करुणा: जयपुर आ गए?

मैं: हाँ! (आह!)

मैं धीरे से कराह उठा क्योंकि इतनी देर एक ही आसन में बैठने से मेरी दोनों टांगों में खून रुक सा गया था, मैंने फटाफट जूते पहने और तब मेरा ध्यान मेरी जीन्स पर गया जो थोड़ी सी गीली हो गई थी क्योंकि नींद में करुणा के मुँह से लार बह कर उस पर गिर गई थी! ये देख कर करुणा झेंप गई पर मैंने किसी तरह उसे embarrass नहीं होने दिया और सामान ले कर जल्दी से नीचे उतर गया| ट्रैन से बाहर आते ही बाहर का मौसम अंदर के मुक़ाबले उलट था, यहाँ गर्मी और उमस थी जिसने ठंड से काँप रहे बदन को गर्मी दी थी| मेरी नजर प्लेटफार्म पर बनी दूकान पर पड़ी और मैंने सबसे पहले दो बोतल पानी ली| एक बोतल मैंने करुणा को दी और दूसरी वाली मैं मुँह से लगा कर एक साँस में खींच गया! पूरी बोतल पीने के बाद मेरी प्यास को चैन मिला, फिर हम बाहर आये और साइकिल रिक्शा किया| रिक्षेवाले भैया को मैंने कहा की वो कोई ठीक-ठाक होटल ले जाए जहाँ हमें 1000-1200/- रुपये में कमरा मिल जाए| पिछलीबार हम जहाँ रुके थे उस होटल का नाम-पता मुझ याद नहीं था और न ही मुझमें अभी इतना सब्र था की मैं उसे ढूँढने में माथा-पच्ची करूँ, मुझे चाहिए था एक अच्छा होटल जहाँ मैं पसर कर सो सकूँ! रास्ते में एक 24/7 दवाई की दूकान पड़ी तो करुणा ने मुझे कहा की उसे pads लेने हैं, मैंने रिक्शे वाले को एक मिनट रुकने को कहा तो वो रुकने का कारन पूछने लगा, "दवाई लेनी है!" मैंने उबासी लेते हुए कहा| पर इस ससुर को कुछ ज्यादा ही चुल्ल थी, वो बोला; "भैया आप कहो तो आगे एक अस्पताल है, वहाँ ले चलूँ?!"

"नहीं भाई! बस सर दर्द की दवाई लेनी है!" मैंने नींद पूरी न होने के कारन चिढ़ते हुए कहा|



करुणा को गए हुए 5 मिनट हो गए थे और मुझे उसकी चिंता हो रही थी, मैं उतरने वाला ही हुआ था की करुणा आ गई| उसने मेरे चेहरे पर चिंता देख ली थी, सो वो मुस्कुरा कर बोली; "मेरा ब्रांड नहीं मिल रहा था!" ये कहकर वो हँसने लगी| मैं समझ गया की कल शाम को मैंने जो बेवकूफी भरी बात कही थी ये उसी का मजाक बना रही है इसलिए मैं शर्म से लाल हो कर खामोश रहा|

खैर हमें ठीक-ठाक होटल मिल गया, check in कर के मैं तो कपडे बदल कर लेट गया क्योंकि मेरे लिए अब जागना नामुमकिन था! मुझे कुछ होश नहीं था की मेरे सोने के बाद करुणा ने क्या किया और वो कब लेटी!



अगली सुबह मेरी आँख जल्दी खुल गई, मैंने घडी देखि तो मैं बस 4 घंटे सो पाया था! अब अगर मैं दुबारा सोता तो हमें उठाने वाला कोई नहीं था, इसलिए मैं उठ कर बैठ गया| मैंने ब्रश किया और टीवी चालु कर दिया, टीवी पर कोई गाना आ रहा था जिसे सुन कर करुणा भी जाग गई| मैं फेसवाश करने जा रहा था की करुणा उठ कर बैठ गई और मुझसे बोली;

करुणा: मिट्टू आप थोड़ा और सो लो, आप दो दिन से ठीक से सोया नहीं!

मैं: अगर मैं सो गया तो हम ऑफिस जाने में लेट हो जायेंगे|

मैं बाथरूम में घुसने वाला था की करुणा बोली की उसे पहले जाना है, तो मैं वापस पलंग पर बैठ गया और कार्टून देखने लगा| करुणा फ्रेश हो कर आई और हँसते हुए मुझसे बोली;

करुणा: मिट्टू कल जब मैं आपको pads के बारे में बोला तो आप shocked क्यों ता?

उसका सवाल सुन मैं फिर कल की ही तरह हैरान आँखें फाड़े उसे देखने लगा| जब मैं कुछ न बोला तो करुणा ने मुझे छेड़ना शुरू कर दिया;

करुणा: आप कभी pads देखा नहीं क्या?

उसने हँसते हुए कहा तो मेरी गर्दन स्वतः ही न में हिलने लगी| ये देख कर वो खूब खिलखिलाकर हँसी, उसकी ये हँसी देख मुझे बहुत शर्म आ रही थी और मेरे दोनों कान शर्म से सुर्ख लाल हो गए थे| मैं करुणा से नजर बचाते हुए बाथरूम में घुसा और वाशबेसिन के सामने खड़ा हो कर फेसवाश चेहरे पर लगाया| मैं मुँह धोने ही जा रहा था की करुणा बाथरूम का दरवाजा खोल कर मेरे पीछे मसुकुराते हुए खड़ी हो गई, उसके हाथों में कुछ था जो उसने अपने पीछे छुपा रखा था|

करुणा: मिट्टू..... आप कभी sanitary pad नहीं देखा न??? .... मैं आपको आज दिखाते....!

ये कहते हुए उसने एक सफ़ेद कलर का कागज मेरी आँखों के आगे खोलना शुरू किया, इधर मैं उसकी बात और अपने सामने sanitary pad का पैकेट खुलने को लेकर थोड़ा घबरा गया था! पैकेट खुला और करुणा वो pad मुझे दिखाते हुए बोली;

करुणा: देखो मिट्टू...कितना soft है....!

करुणा ने उस pad पर अपनी ऊँगली फिराते हुए कहा| वहीं मैं जिंदगी में पहली बार sanitary pad अपनी आँखों के सामने देख कर सन्न था! ये मेरे लिए एक अनोखी चीज थी और अनोखी चीज देख कर मनुष्य को उसको छूने का मन अवश्य करता है परन्तु मैं उसे छूने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था| उसे देख कर ही पता लग रहा था की वो बहुत मुलायम होगा, पर उसे छूने से डर लग रहा था|

करुणा: Touch कर के देखो मिट्टू?!

ये कहते हुए करुणा ने वो pad मेरी ओर बढ़ा दिया, अब ये देख कर मैं बिलकुल हक्का-बक्का था! करुणा इसे इतना सरलता से ले रही थी मानो कोई आम बात हो! लड़कियों के बीच में क्या ये आम बात होती है?! मेरे ख्याल से तो नहीं!

मैं: पागल लड़की!

मैंने उसे प्यार से डाँटते हुए कहा तो करुणा खिलखिलाकर हँसने लगी| किसी तरह मैं और शर्म से पानी-पानी होने से बच गया था|



दोनों तैयार हुए, फिर मैंने ढंग का नाश्ता मँगाया ताकि कुछ अच्छा खाने को मिले और फिर हम ऑफिस पहुँचे| ऑफिस पहुँच कर पता चला की लाल सिंह जी और भंवर लाल जी दोनों ही ऑफिस में नहीं हैं, मैंने थोड़ी पूछताछ की तो पता चला की वे दोनों किसी मीटिंग के लिए गए हैं और कुछ देर में आएंगे| अब हमें बस इंतजार करना था, इतने में वहाँ एक चपरासी आंटी आईं और उन्होंने हमें बताया की केरला की रहने वाली एक मैडम नीचे काम करती हैं| मैंने इस बात को तवज्जो नहीं दी पर करुणा के मन में एक मल्लू मित्र से मिलने की आस जग गई, उसने मुझे कहा की नीचे चल कर उनसे मिल लेते हैं क्या पता कोई मदद ही कर दें! हम दोनों नीचे आये और वहाँ postal विभाग के कमरे में पहुँचे, वहाँ एक 35-40 साल की एक महिला बैठीं थीं जो देख कर south indian लग रहीं थीं| उन्होंने जैसे ही करुणा को देखा वो उससे मलयालम में बात करने लगीं, इधर करुणा भी ख़ुशी-ख़ुशी उनसे मलयालम में बात करने लगी| करुणा ने मलयालम भाषा में ही मेरा परिचय उनसे अपने best friend के रूप में कराया| करुणा ने जब उन्हें ये बताया की मुझे मलयालम नहीं आतीं तो उन्होंने हिंदी में मुझसे बात करनी शुरू कर दी| वो मुझसे तरह-तरह के सवाल पूछने लगीं, जैसे की मैं कहाँ से हूँ, क्या करता हूँ, शादी हुई या नहीं आदि| मुझसे बातों में उनका ऐसा मन लगा की वो करुणा को लगभग भूल ही गईं, जिससे करुणा का मुँह डब्बे जैसा बन गया! मैंने उसका ये डब्बे जैसा मुँह देखा तो मैंने उन मैडम का ध्यान करुणा की joining की तरफ मोड़ा और उन्हें सारी बात बताई| मैंने सोचा की क्यों न जबतक लाल सिंह जी आयें तब तक हम एप्लीकेशन लिख कर तैयार कर लें, तो मैंने उन्हीं मैडम से मदद माँगीं की वो हमारी एप्लीकेशन लिख दें| "मुझे हिंदी पढ़ना आता है, लिखना नहीं!" वो हँसते हुए बोलीं| मैंने सोचा की पिछली बार जिनसे लिखवाया था उन्हीं से लिखवा लेता हूँ पर वो लड़का आज नहीं आया था! मजबूरन मुझे ही एप्लीकेशन लिखनी थी, मैंने मैडम से दो सफ़ेद कागज लिए| मेरी लिखावट गन्दी थी इसलिए मैंने एक कागज पर application का rough draft लिख दिया और करुणा को उसे अच्छे से सुंदर तरीके से copy करने को कहा| जबतक करुणा कॉपी कर रही थी मैं हाथ बाँधे खड़ा था, उन मैडम ने मुझे प्यार से छेड़ते हुए कहा; "अरे मिस्टर दिल्ली, खड़े क्यों हैं? बैठ जाइये!" ये सुन मैं हँस पड़ा पर करुणा दाँत पीसते हुए मुझे देखने लगी| उसके चेहरे पर आया गुस्सा मैडम नहीं देख पाईं पर मैं देख कर समझ गया की करुणा को जलन हो रही है!

खैर करुणा ने पूरी application अच्छे से लिख कर तैयार कर दी, ठीक तभी लाल सिंह जी कुछ काम से नीचे आये और हमें देखते ही हैरान हुए| मैंने उन्हें सारी बात बताई और अपना एक एहसान लादने के लिए उन मैडम ने लाल सिंह जी से हमारी सिफारिश की; "लाल सिंह जी इनकी मदद कर दीजिये!" लाल सिंह जी हम दोनों को ले कर ऊपर आये, मैंने उन्हें हमारी लिखी हुई application दी जिसमें हमने सारे documents तैयार करने के लिए 1 महीने का वक़्त माँगा था| लाल सिंह जी ने बताया की ये application भंवर लाल जी द्वारा मंजूर होगी तभी हम जा सकते हैं, अब भंवर ला जी थे मीटिंग में जो 2 बजे तक चलनी थी| अब तब तक यहाँ बैठ कर बोर होने से अच्छा था की थोड़ा सैर-सपाटा किया जिससे करुणा का मूड भी ठीक हो जाए, कल से बेचारी परेशान थी, पहले मामा जी की मृत्यु, फिर नौकरी में अड़ंगा, फिर ट्रैन में ठंड से ठिठुरना!

मैं: सर अगर कोई दिक्कत न हो तो तबतक हम थोड़ा घूम आयें?

लाला सिंह जी: हाँ-हाँ! यहाँ रह कर भी तुम क्या करोगे?!

हम उनसे इजाजत ले कर निकले और बाहर से हवा महल के लिए ऑटो किया| जब मैं छोटा था तब पिताजी और माँ के साथ हवा महल और जल महल घूमा था, आज फिर वहाँ जा कर वही यादें ताजा होने वाली थीं| ऑटो चल पड़ा और इधर करुणा मेरे से सट कर बैठ गई, उसने मेरा दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया मानो मैं उसे छोड़कर कहीं जा रहा हूँ, साथ ही उसने अपना सर मेरे दाहिने कँधे पर रख दिया|



मुझे अब करुणा की छुअन की धीरे-धीरे आदत हो रही थी, इसलिए मैंने उसे कुछ नहीं कहा और चुपचाप बैठा रहा, पर अगले ही पल उसने कुछ ऐसा कहा जिसने मेरे मन में सवाल पैदा कर दिए|

"आप जिसका husband होते वो दुनिया का सबसे lucky wife होते!" करुणा भावुक हो कर बोली|

ये सुन कर मेरे मन में कोहराम छिड़ गया, दिमाग में बम फूटने लगे और दिल घबराने लगा! 'कहीं करुणा मुझसे प्यार तो नहीं करने लगी? अगर नहीं कर रही होती तो वो ये क्यों कहती?!' दिमाग में उठा कोतुहल शांत नहीं हो रहा था पर मन कह रहा था की; 'ऐसा कुछ नहीं है, उसने बस तेरी तारीफ की है| तू ज्यादा मत सोच और कुछ ऊल-जुलूल बोल कर इस दोस्ती का सत्यानाश मत कर! कम से कम उसकी नौकरी लगने तक तो शांत रह!' मन की बात सही थी, अगर मैं गलत साबित होता तो बेइज्जत्ती हो जाती इसलिए मैं खामोश रहा|



कुछ देर बाद हम हवा महल के पास उतरे, वहाँ लगी मार्किट को देख कर करुणा का मन वहाँ घूमने का करने लगा| हमने वहाँ पर कुछ दुकानें देखीं जहाँ पर artificial jewelry मिल रही थी| हमेशा से ही करुणा को झुमके खरीदने का शौक था, उसकी पतली लम्बी गर्दन पर झुमके बहुत फबते थे! करुणा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वहाँ खींच कर ले गई, एक-एक कर उसने झुमके try करने शुरू किये और हर झुमके को पहन कर वो मुझसे पूछती की ये कैसा है?! उसके चेहरे पर आई वो प्यारी सी मुस्कान मुझे बहुत अच्छी लगती थी, इसलिए मैं मन लगा कर उसे झुमके पसंद करने में मदद करने लगा| आखिर मैं मैंने एक बड़ा ही दिलकश झुमका ढूँढ कर निकाला, जिसे देखते ही करुणा की आँखों में ख़ुशी झलकने लगी, उसने जल्दी से उसे try किया और मुझे दिखाते हुए बोली; "मिट्टू...आप इतना अच्छा चीज कैसे ढूँढ़ते!" उसकी मुस्कराहट देख कर दिल गदगद हो गया और मैं उसके सवाल के जवाब में बस मुस्कुरा कर रह गया|

वो झुमका 800/- का था पर करुणा की उस मुस्कान के आगे कम था, मैंने पैसे दिए और हवा महल घूमने की टिकट लेने लगा| हवा महल के भीतर आ कर हम घूमने लगे और बहुत सारी फोटो खींचने लगे, इन सभी फोटो की एक ख़ास बात थी, वो ये की ये सभी फोटो selfie थीं जिसमें मैं और करुणा दोनों एक दूसरे के बहुत नजदीक थे| मुझे उसकी ये नजदीक अब अजीब नहीं लगती थी, क्योंकि मैं अपनी स्वेच्छा से उसे अपने नजदीक आने दे रहा था| घुमते-घुमते हम हवा महल में ऊपर पहुँचे और वहाँ से तसवीरें खींचने लगे, तभी करुणा एकदम से उदास हो गई, शायद उसे उसके मामा जी की याद आ गई थी| उस वक़्त वो मेरी एक फोटो ले रही थी जब मैंने उसके हाथ से अपना फ़ोन लिया और उसका ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करते हुए बोला;

मैं: Dearrrrr ..... आप ऐसे उदास होते हो न...तो ...मुझे अच्छा नहीं लगता.....I know you must be missing mama जी but he’s somewhere …and must be watching you from there…. Just imagine how he’d be feel seeing you so upset?! AND if you’re worried about your job, I take that repsonisibility to get you this job. Now relax and smile for me!

मैंने प्यार से करुणा को समझाते हुए कहा| मेरी बातों का असर हुआ और करुणा के चेहरे पर एक मीठी सी विश्वास पूर्ण मुस्कान आ गई| उसने मुझसे फ़ोन लिया और हम दोनों की एक प्यारी सी selfie ली, उसे मुस्कुराते हुए देख मैं बेफिक्र हो गया|



हवा महल से निकल कर हम जल महल की ओर निकले, हमने ऑटो किया था और ऑटो में बैठे हुए करुणा ने फिर से मेरा दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों के बीच पकड़ लिया तथा अपना सर मेरे कँधे पर रख दिया|

करुणा: वो.... आपको कैसे देख रा ता.... कैसे बात कर रा ता....?

करुणा गुस्से से दाँत पीसते हुए बुदबुदाई| उसकी ये बुदबुदाहट सुन मैं हैरान हुआ और गर्दन मोड़ कर उसे देखने लगा तो पाया की करुणा की आँखें पहले से ही मुझ पर टिकी हुई हैं| मेरी आँखों में सवाल थे की आखिर करुणा किस की बात कर रही है:

करुणा: वो औरत....ऑफिस वाला.... आप मेरा फ्रेंड है...और मेरे से बात करना छोड़ कर उससे क्यों बात कर रहा था?

करुणा की आवाज में जलन मैं साफ़ महसूस कर सकता था और इस जलन को महसूस कर मुझे हँसी आ रही थी|

मैं: मैंने क्या किया? वो खुद मुझसे बात कर रही थी!

मैंने अपनी सफाई दी|

करुणा: आपको क्या बोल रे..... हाँ ...मिस्टर दिल्ली.... हिम्मत तो देखो उसका....मेरा मिट्टू को मेरा सामने praise कर रे!

करुणा तुनक कर गुस्से से बोली|

करुणा: आप मेरा फ्रेंड है, समझा? मैं किसी के साथ आपको शेयर नहीं करते!

करुणा गर्व से बोली| पर तभी उसे एहसास हुआ की कहीं मैं उसकी बात का कोई गलत मतलब न निकालूँ इसलिए उसने बात कुछ इस तरह से मोड़ दी की मैं हँस पड़ा;

करुणा: मैं उसका state से है....मलयाली मैं है....मेरे को छोड़ कर आपको बात कर रे? ये ठीक है क्या?

उसकी एक राज्य (केरला) से होने की बात सुन कर मैं जोर से हँस पड़ा और उधर करुणा प्यार भरे गुस्से से मुझे देखने लगी|



खैर हम जल महल पहुँचे और वहाँ बाहर कुछ लोग प्लेट में मछलियों के खाने के लिए आटें की गोलियाँ बेच रहे थे| हमने वो आटें की गोलियाँ नहीं ली, बल्कि सीधा सीढ़ियों से उतर कर पानी के पास खड़े हो गए| वहाँ कुछ लोग मछलियों को वो गोलियाँ खिला रहे थे, ये देख कर मुझे याद आया की एक बार एक पंडित जी ने पिताजी से कहा था की मछलियों को खाना खिलाना पुण्य का काम होता है| ये पल याद आते ही मन में पुण्य करने की तीव्र इच्छा हुई, अपने लिए नहीं बल्कि करुणा के लिए ताकि उसे ये नौकरी जल्दी से जल्दी मिल जाए|

एक बूढी अम्मा से मैं एक प्लेट आटें की गोलियाँ ले आया, हम दोनों ने एक-एक कर गोलियाँ पानी में फेकने लगे| हम जहाँ भी गोली फेंकते वहाँ एक-दो मछलियाँ मुँह बाय आ जातीं, करुणा मछलियों को देख कर ख़ुशी से चहकने लगी और मुझे इशारे से बार-बार बताती की; "मिट्टू ...वो देखो...वो देखो...fish-fish ...!" उसका यूँ मछली देख कर बच्चों की तरह खुश हो जाना, ये दृश्य देख कर मेरे दिल में एक तरंग उठने लगी थी|



लेकिन जब मुझे उसकी ख़ुशी का असली कारन पता चला तो मेरे चेहरे पर जोरदार हँसी आ गई!

करुणा: मिट्टू...इतना सारा fish देख के मेरा मन सब को खाने का कर रे!

करुणा ख़ुशी से कूदते हुए बोली| उसकी बात सुन कर मैं पेट पकड़ कर हँसने लगा, मुझे यूँ हँसता हुआ देख करुणा की भी हँसी छूट गई|

मैं: पागल मैं इधर मछलियों को खाना खिलाकर पुण्य कमा रहा हूँ ताकि आपको ये job जल्दी मिले और आपको ये ही मछलियाँ खानी हैं? दुष्ट....पापन....!

ये कह कर मैं गला फाड़ कर हँसने लगा, उधर मेरी बात सुन करुणा भी हँसने लगी! अब वो थी तो south indian और वहाँ के लोगों को पसंद होती है मछली तो इसमें उस बेचारी की क्या गलती! खैर मैं जान गया था की करुणा को मछलियाँ देखना और खाना बहुत पसंद है तो मैंने उसकी ख़ुशी के लिए प्लेट में मौजूद सारी आटों की गोलियाँ एक साथ हवा में उछाली| सारी गोलियाँ एक साथ पानी में गिरीं और वहाँ ढेरों मछलियाँ एक साथ इकठ्ठा हो गईं, मछलियों का झुण्ड देख कर करुणा का चेहरा किसी सूरजमुखी की तरह खिल गया!

करुणा: मिट्टू....मिट्टू....ये सब देख के मेरा मन पानी में कूद कर सबको पकड़ने का कर रे!

करुणा हँसते हुए बोली|



हम कुछ देर वहाँ खड़े रहे और हँसते रहे और बात करते रहे, करुणा जल महल के अंदर जाना चाहती थी पर वहाँ जाना मना था इसलिए हम अंदर जा नहीं पाए| हमने वहीं खड़े-खड़े ढेर सारी तसवीरें खींची, कुछ मेरी, कुछ करुणा की और हम दोनों की तो ढेर सारी selfies! जैसे ही हम चलने को हुए तो करुणा बोली की उसे एक अच्छे angle पर मेरे अकेले की फोटो लेनी है जो मैं facebook पर डाल सकूँ| करुणा ने मुझसे 2-4 अच्छे pose बनवा कर पहले तो फोटो खींची, अंत में उसने मुझे शारुख खान की तरह हाथ फैला कर खड़ा होने को कहा| मुझे लगा की उससे अच्छी फोटो आएगी तो मैं वो pose ले कर खड़ा हो गया, ऐसे खड़ा होने से मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था और हँसी आ रही थी| तभी करुणा अचानक से मेरे नजदीक आई और कस कर अपनी बाहें मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे सीने से लग गई!


जारी रहेगा भाग 7(6) में...
:reading:
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Although there is no danger or fear of traveling by train and bus, but when a girl is with us, the mind gets a little nervous and can cause trouble anytime, so we should always be ready. Whenever Neha is mentioned in the story, my heart gets sad because the trust and promise of an innocent girl is broken. Everything else is fine.
As always the update was great, You are writing very well, Now let's see what happens next, Till then waiting for the next part of the story.
Thank You...

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