Anubhavp14
न कंचित् शाश्वतम्
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Jo dar tha wohi hua .....neha naraj hogayi uska naraz hona bhi jayaj hai kyu ki maanu se wo pyaar bhot karti hai aur naraj bhi insaan usi se hota hai jisse aas hoti hai pyaar hota hai .....बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन
भाग -3
अब तक आपने पढ़ा:
खैर रात का खाना खा कर मैं जानबूझ कर घर लेट पहुँचा ताकि मेरे आने तक भौजी अपने घर (गर्ग आंटी वाले घर) चली जाएँ, पर भौजी माँ के साथ बैठीं टी.वी देख रहीं थीं| मुझे देखते ही भौजी एकदम से उठ खड़ी हुईं, उन्होंने बोलने के लिए मुँह खोला ही था की मैंने उन्हें ऐसे 'नजर अंदाज' (ignore) किया जैसे वो वहाँ हों ही न!
मैं: Good night माँ!
इतना कह कर मैं सीधा अपने कमरे में आ गया, भौजी मेरे पीछे-पीछे कमरे के भीतर आना चाहतीं थीं पर मैंने दरवाजा उनके मुँह पर बंद कर दिया| कपडे बदल कर मैं लेटा पर एक पल को भी चैन नहीं मिला, मेरा दिल बहुत बेचैनी महसूस कर रहा था! मैंने अनेकों करवटें बदलीं पर एक पल को आँख नहीं लगी, मन कर रहा था की मैं खूब जोर से रोऊँ पर आँखों में जैसे पानी बचा ही नहीं था! ऐसा ही हाल मेरा तब हुआ था जब भौजी से मेरी आखरी बार बात हुई थी, मुझे लगा की शायद ये नेहा को न मिलने के कारन मेरा बुरा हाल हो रहा है! कल सुबह होते ही मैं नेहा से मिलूँगा ये सोच कर मैंने दिल को तसल्ली देना शुरू कर दिया|
अब आगे:
सुबह के पाँच बजे थे और मैं अपने तकिये को नेहा समझ अपने सीने से लगाए जाग रहा था| पिताजी ने दरवाजा खटखटाया तो मैंने फटाफट उठ कर दरवाजा खोला;
पिताजी: गुडगाँव वाली साइट पर 7 बजे माल उतरेगा, टाइम से पहुँच जाइयो वरना पिछलीबार की तरह माल कहीं और पहुँच जायेगा!
मैंने हाँ में सर हिलाया और पिताजी बाहर चले गए| पिताजी के जाते ही अपनी बेटी नेहा को देखने के लिए आँखें लालहित हो उठीं|
माँ उस समय नहाने गई थी, भौजी रसोई में नाश्ते की तैयारी कर रहीं थीं, चन्दर अपने घर में सो रहा था और पिताजी मुझे जगा कर आयुष को अपने साथ दूध लेने डेरी गए थे| मेरी प्यारी बेटी नेहा अकेली हॉल में बैठी थी और टी.वी पर कार्टून देख रही थी| इतने सालों बाद जब मैंने नेहा को देखा तो आँखें ख़ुशी के आँसुओं से छलछला गईं, मेरी प्यारी बेटी अब बहुत बड़ी हो चुकी थी मगर उसके चेहरे पर अब भी वही मासूमियत थी जो पहले हुए करती थी! नीले रंग की फ्रॉक पहने नेहा सोफे पर आलथी-पालथी मार कर बैठी थी और टी.वी. पर कार्टून देख कर मुस्कुरा रही थी! उसे यूँ बैठा देख मेरी आँखें ख़ुशी से चमकने लगी, अब दिल को नेहा के मुँह से वो शब्द सुनना था जिसे सुनने को मेरे कान पिछले 5 साल से तरस रहे थे; “पापा”! उसके मुँह से "पापा" सुनने की कल्पना मात्र से मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे| मैं नेहा के सामने अपने घुटने टेक कर खड़ा हो गया, मैंने अपनी दोनों बाहें फैलाईं और रुँधे गले से बोला; "नेहा....बेटा....!" इससे आगे कुछ बोलने की मुझे में हिम्मत नहीं थी! मैं उम्मीद करने लगा की मुझे देखते ही नेहा दौड़ कर मेरे पास आएगी और मेरे सीने से लग जाएगी!
लेकिन जैसे ही नेहा ने मेरी आवाज सुनी उसने मुझे गुस्से से भरी नजरों से देखा! उसकी आँखों में गुस्सा देख मेरा दिल एकदम से सहम गया, डर की ठंडी लहर मेरे जिस्म में दौड़ गई! आज एक बाप अपनी बेटी की आँखों में गुस्सा देख कर सहम गया था, सुनने में अजीब लगेगा पर वो डर जायज था! मैं जान गया की नेहा मुझसे क्यों गुस्सा है, आखिर मैंने उससे किया अपना वादा तोडा था| मैंने उससे वादा किया था की मैं दशहरे की छुट्टियों में आऊँगा, उसके लिए फ्रॉक लाऊँगा, चिप्स लाऊँगा, मगर मैं अपने गुस्से के कारन अपने किये हुए वादे पर अटल न रह सका! मुझे नेहा से माफ़ी माँगनी थी उसे अपने न आने की सफाई देनी थी, मैं उठा और अपने आप को मजबूत कर मैं नेहा से बोला; "नेहा बेटा....." मगर इसके आगे मैं कुछ कहता उससे पहले ही नेहा मुझे गुस्से से देखते हुए बाहर भाग गई!
अपनी बेटी का रूखापन देख मैं टूट गया, मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया! मैं फफक कर रो पड़ा, मैंने अपनी निर्दोष बेटी को उसकी माँ की गलतियों की सजा दी थी! उस बेचारी बच्ची ने मुझसे कभी कुछ नहीं माँगा था, बस इतना ही माँगा था की मैं उसे प्यार दूँ, वो प्यार जो उसे अपने बाप से मिलना चाहिए था! मन ग्लानि से भर चूका था और दिमाग से ये ग्लानि बर्दाश्त नहीं हो रही थी, उसे बस ये ठीकरा किसी के सर फोड़ना था! ठीक तभी भौजी रसोई से निकलीं, उन्होंने मेरी आँसुओं से बिगड़ी हुई शक्ल देखि तो उनके चेहरे पर परेशानी के भाव उमड़ आये! भौजी को देखते ही जो पहला ख्याल दिमाग में आया वो ये की उन्होंने ही मेरी प्यारी बेटी के भोले मन में मेरे लिए जहर घोला है! 'मुझे इस्तेमाल कर के छड़ने से मन नहीं भरा था जो मेरी प्यारी बेटी को बरगला कर मेरे खिलाफ कर दिया? कम से कम उसे तो सच बता दिया होता की मुझे खुद से दूर आपने किया था!' दिल तड़पते हुए बोला, मगर जुबान ने ये शब्द बाहर नहीं जाने दिए क्योंकि भौजी इस लायक नहीं थीं की मैं उनसे बात करूँ! आँसूँ भरी आँखों से मैंने भौजी को घूर कर देखा और तेजी से उनकी बगल से निकल गया| मेरा गुस्सा देख भौजी डर गईं इसलिए उनकी हिम्मत नहीं हुई की वो मुझे छुएँ, उन्होंने मुझे कुछ कहने के लिए जैसे ही मुँह खोला मैंने 'भड़ाम' से अपने कमरे का दरवाजा उनके मुँह पर दे मारा|
कमरे में लौट मैं पलंग पर सर झुका कर बैठ गया, एक बार फिर आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी| एक बाप अपनी बेटी से हार चूका था, हताश था और टूट चूका था! दिमाग जुझारू था तो उसने मुझे हिम्मत देनी चाही की मैं एक बार नेहा को समझाऊँ मगर दिल ने ये कह कर डरा दिया की; 'अगर नेहा ने अपने गुस्से में सब सच बोल दिया तो आयुष की जिंदगी खराब हो जायेगी!' ये डरावना ख्याल आते ही मैंने अपने हथियार डाल दिए! नेहा को ले कर मैंने जो प्यारे सपने सजाये थे वो सब के सब टूट कर चकना चूर हो चुके थे और उन्हीं सपनो के साथ मेरा आत्मबल भी खत्म हो चूका था! रह गया था तो बस भौजी के प्रति गुस्सा जो मुझे अंदर ही अंदर जलाने लगा था!
बेमन से मैं उठा और नहा-धो कर अपने कमरे से बाहर निकला, माँ हॉल में बैठीं चाय पी रहीं थीं| उनकी नजर मेरी लाल आँखों पर पड़ी तो वो चिंतित स्वर में बोलीं;
माँ: बेटा तेरी आँखें क्यों लाल हैं, कहीं फिर से छींकें तो शुरू नहीं हो गई?
माँ की आवाज सुन भौजी रसोई से तुरंत बाहर आईं, उधर माँ के सवाल में ही मुझे अपना बोला जाने वाला झूठ नजर आ गया तो मैंने हाँ में सर हिला कर उनकी बात को सही ठहराया|
माँ: रुक मैं पानी गर्म कर देती हूँ, भाप लेगा तो तबियत ठीक हो जाएगी|
माँ उठने को हुईं तो मैंने उन्हें मना कर दिया;
मैं: नहीं अब ठीक हूँ!
इतना कह कर बाहर दरवाजे तक पहुँचा था की माँ ने मुझे नाश्ते के लिए रोकना चाहा;
माँ: इतनी सुबह कहाँ जा रहा है?
मैं: साइट पर माल आने वाला है|
माँ को अपने बेटे की तबियत की चिंता थी, इसलिए उन्होंने मुझे रोकना चाहा;
माँ: बेटा तेरी तबियत ठीक नहीं है, चल बैठ जा और नाश्ता कर फिर दवाई ले कर आराम कर. काम-धाम होता रहेगा!
मैं: देर हो रही है माँ, अगर मैं नहीं पहुँचा तो माल कहीं और उतर जायेगा|
इतना कह कर मैं निकल गया, माँ पीछे से बोलती रह गईं;
माँ: बेटा नाश्ता तो कर ले?
पर मैंने उनकी बात को अनसुना कर दिया|
दुखी मन से मैं साइट पर पहुँचा, माल आ चूका था और मैं सारा माल उतरवा कर रखवा रहा था| 9 बजे पिताजी का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे बिना खाये घर से जाने को ले कर झाड़ सुनाई, मैंने बिना कुछ बोले उनकी सारी झाड़ सुनी| भले ही काम को ले कर पिताजी सख्त थे पर खाने की बेकद्री को ले कर वो बहुत नाराज हो जाया करते थे| मुझे पेट भर के डाँटने के बाद पिताजी ने मुझे बताया की थोड़ी देर में वो संतोष को भेज रहे हैं, मुझे उसे दोनों साइट का काम दिखाना था ताकि माल डलवाने का काम वो देख सके| दरअसल संतोष पिताजी के साथ शुरू के दिनों में सुपरवाइजरी का काम करता था और उनका बहुत विश्वासु था, उसके घर में बस उसकी एक बूढी बीमार माँ थी, चूँकि वो घर में अकेला कमाने वाला था तो पिताजी उसे दिहाड़ी की जगह तनख्वा दिया करते थे| जब पिताजी का काम कम होने लगा तो उन्होंने संतोष को कहीं और काम ढूँढने को कह दिया, क्योंकि तब पिताजी उसकी तनख्वा नहीं दे सकते थे| अब जब काम चल निकला था तो पिताजी ने उसे वापस बुला लिया था, मेरी उससे कभी बात नहीं हुई थी इसलिए आज उससे मिला तो वो मुझे बड़ा सीधा-साधा लड़का लगा| मैंने उसे दोनों साइट दिखाईं और वो सारा काम समझ गया, उसके आ जाने से मेरे लिए शाम को निकालना आसान हो गया था|
दोपहर को माँ ने मुझे फ़ोन किया और मेरी तबियत और खाने के बारे में पुछा| मैंने माँ से झूठ कह दिया की मैं ठीक हूँ और मैंने यहाँ कुछ खा लिया है, जबकि मैं सुबह से भूखा बैठा था| माँ का फ़ोन काटा ही था की दिषु का कॉल आए गया, मेरे हेल्लो बोलते ही वो मेरी आवाज में छुपा दर्द दिषु भाँप गया और मुझसे मेरी मायूसी का कारन पूछने लगा| उसका सवाल सुन मैं खामोश हो गया क्योंकि मैं जानता था की वो कभी एक बाप के जज्बात नहीं समझ पायेगा, मेरे खामोश रहने पर दिषु एकदम से बोला;
दिषु: शाम 5 बजे ढाबे मिलिओ!
उसने मेरी हाँ-न सुनने का भी इंतजार नहीं किया, बस अपना फैसला सुना कर उसने फ़ोन काट दिया! ढाबा हमारा एक code word था जिसका मतलब था हमारा मन पसंद पब|
शाम को जब मैं दिषु से पब में मिला तो उसने जोर दे कर मुझसे सब उगलवा लिया, दिषु ने मुझे लाख समझाने की कोशिश की मगर मेरे दिल ने उसकी एक न सुनी! दिषु को लगा था एक पेग के बाद वो मुझे समझा लेगा पर मेरा दिल जल रहा था और शराब उस आग को ठंडा कर रही थी, इसलिए मैंने एक के बाद एक 3 30ml के पेग खत्म कर दिए, दिषु ने मुझे पीने से रोकना चाहा पर मैं नहीं माना| मेरा 90ml का कोटा था उसके बाद मैं बहक जाता था, दिषु ये जानता था इसलिए उसने मुझे घर जाने के नाम से डराया, तब जा कर मुझे कुछ होश आया| लेकिन अपनी पीने की आदत से मैं बाज आने से रहा इसलिए मैंने जबरदस्ती हार्ड वाली बियर और मँगा ली!
रात के 9 बज रहे थे और पिताजी का फ़ोन गनगनाने लगा था, दिषु ने मुझसे फ़ोन ले कर उनसे बाहर जा कर बात की| वापस आ कर उसने बिल भरा और कैब बुलाई, ऐसा नहीं था की मैं पी कर 'भंड' हो चूका था! मुझे मेरे आस-पास क्या हो रहा है उसकी पूरी जानकारी थी, बस मैं ख़ामोशी से चुप-चाप बैठा हुआ था| दिषु ने अपने बैग से डिओड्रेंट निकाल कर मुझ पर छिड़का और मुझे खाने के लिए दो chewing gum भी दी| अपने दोस्त को संभालने के लिए दिषु ने मुझे कल से अपने साथ ऑडिट पर चलने को कहा, मैं उसके साथ रहता तो वो मुझे संभाल सकता था! मगर मैंने उसे घर में बात करने का बहना मारा क्योंकि मुझे अब सम्भलना नहीं था! मेरे पास बचा ही क्या था जो मैं सम्भलूँ?!
घर पहुँचते-पहुँचते 10 बज गए थे, कैब मेरे घर के पास पहुँची और मैं दिषु को bye बोल कर उतर गया| मैंने ज्यादा पी थी लेकिन इतने सालों से पीने का आदि होने पर मैं अपनी बहकी हुई चाल बड़े आराम से काबू कर लेता था| मैं घर में घुसा तो माँ टी.वी. देख रहीं थीं, और पिताजी कुछ हिसाब किताब कर रहे थे| चन्दर, भौजी और बच्चे सब अपने घर जा चुके थे|
पिताजी: बैठ इधर!
पिताजी ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा| उनके गुस्से से भरी आवाज सुनते ही सारा नशा काफूर हो गया! मैं उनके सामने वाली कुर्सी पर सर झुका कर बैठ गया, मेरा सर झुकाना मेरी की गई गलती को स्वीकारने का संकेत था| बचपन में जब भी मैं कोई गलती करता था तो मेरी गर्दन अपने आप पिताजी के सामने झुक जाती थी, पिताजी मेरी झुकी हुई गर्दन को देख कर कुछ शांत हो जाते थे और कई बार बिना डांटें छोड़ देते थे! मगर आज वो मुझे ऐसे ही छोड़ने वाले नहीं थे;
पिताजी: दस बज रहे हैं, कहाँ था अभी तक?
पिताजी ने गुस्से से पुछा|
मैं: जी वो दिषु के साथ ऑडिट का काम निपटा रहा था|
मैंने सर झुकाये हुए कहा|
पिताजी: गाँव से चन्दर आया है, खबर है तुझे? कल सारा दिन तूने आवारा गर्दी में निकाल दिया आज भी सारा दिन तू दिखा नहीं! जानता है कल से तेरा भाई तेरे बारे में कितनी बार पूछ चूका है?
पिताजी का चन्दर को मेरा भाई कहना मुझे बहुत चुभ रहा था, बड़ी मुश्किल से मैं अपना गुस्सा काबू में कर के खामोश बैठा था|
पिताजी: अपने भाई, उसके बीवी-बच्चों से मिलने तक का टाइम नहीं तेरे पास?
पिताजी ने डाँटते हुए कहा| ये सुन कर मेरा सब्र जवाब दे गया और मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ और उनसे उखड़े हुए स्वर में बोला;
मैं: काहे का भाई? जब बेल्ट से मेरी चमड़ी उधेड़ रहा था तब उसे अपने भाई की याद आई थी जो मुझे उसकी याद आएगी? आपने उसे यहाँ सह परिवार बुलाया, आपके बिज़नेस में उसे जोड़ना चाहा मगर आपने मुझसे पूछने की जहमत नहीं उठाई!
मेरे बाग़ी तेवर देख पिताजी खामोश हो गए, उन्हें लगा की मेरा गुस्सा चन्दर के कारन है| उन्हें नहीं पता था की मैं किस आग में जल रहा हूँ! कुछ पल खामोश रहने के बाद पिताजी बोले;
पिताजी: बेटा शांत हो जा! भाईसाहब चाहते थे की.....
पिताजी आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैंने उनकी बात को पूरा कर दिया;
मैं: चन्दर अपनी जिम्मेदारी उठाये! जानता हूँ! मुझे माफ़ कीजिये पिताजी पर प्लीज आप उसका नाम मेरे सामने मत लिया कीजिये!
ये सुन कर पिताजी मुस्कुरा दिए, माँ ने बात आगे बढ़ने से रोकी और मेरे लिए खाना परोस दिया| मुझे एहसास हुआ की मैं बेकार में अपना गुस्सा अपने असली परिवार पर उतार रहा हूँ, मुझे खुद को संभालना था ताकि मैं उस इंसान को सजा दे सकूँ जो असली कसूरवार है, यही सोचते हुए मैंने दिषु की ऑडिट करने की बात कबूली;
मैं: पिताजी कल से मेरी एक जर्रूरी ऑडिट है|
ये सुन कर पिताजी ने मुस्कुराते हुए बोले;
पिताजी: पर ज्यादा दिन नहीं, दोनों साइट का काम मैं अकेले नहीं संभाल सकता!
मैंने एक नकली मुस्कराहट के साथ उनकी बात का मान रखा|
अगली सुबह मैं थोड़ा देर से उठा क्योंकि रात बड़ी बेचैनी से काटी थी और न के बराबर सोया था| बाहर से मुझे भौजी और माँ के बोलने की आवाज आ रही थी, भौजी की आवाज सुनते ही मेरा गुस्सा भड़कने लगा| मैंने अपना कंप्यूटर चालु किया और स्पीकर पर एक गाना तेज आवाज में चला दिया| भौजी के आने से पहले कभी-कभार मैं सुबह तैयार होते समय कंप्यूटर पर गाना लगा देता था, इसलिए माँ-पिताजी को इसकी आदत थी| मगर आज तो मुझे भौजी को तड़पाना था इसलिए मैंने ऐसा गाना लगाया जिसे सुन कर भौजी को उनके किये पाप का एहसास हुआ, वो गाना था; 'क़समें, वादे, प्यार, वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या!' लेकिन इतने भर से मेरा मन कहाँ भराना था, भौजी को और तड़पाने के लिए मैंने भी गाने के बोल गुनगुनाने शुरू कर दिए|
मैं: कसमे वादे प्यार वफ़ा सब
बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे
नाते हैं नातों का क्या!
भौजी को इस गाने के शब्द चुभने लगे थे!
मैं: सुख में तेरे...
सुख में तेरे साथ चलेंगे
दुख में सब मुख मोड़ेंगे
दुनिया वाले...
दुनिया वाले तेरे बनकर
तेरा ही दिल तोड़ेंगे
देते है...
देते हैं भगवान को धोखा
इन्सां को क्या छोड़ेंगे
गाने के दूसरे मुखड़े के बोलों ने भौजी के दिल को तार-तार कर दिया था|
जबतक मैं नहा नहीं लिया तब तक ये गाना लूप में चलता रहा और भौजी रसोई से इस गाने को सुन कर तड़पती रहीं| तैयार हो कर मैंने दिषु को फ़ोन किया और उससे पुछा की ऑडिट के लिए मुझे कहाँ पहुँचना है| दिषु ने मुझे बताया की आज मुझे कोहट एन्क्लेव आना है और वो मुझे फ़ोन पर रास्ता समझाने लगा| फ़ोन पर बात करते हुए मैं बाहर आया और नाश्ता करने बैठ गया, उस वक़्त बाहर सभी मौजूद थे सिवाए बच्चों के| दिषु से बात खत्म हुई तो चन्दर ने मुझसे बात करनी शुरू कर दी;
चन्दर: और मानु भैया, तुम तो ईद का चाँद हुई गए?
मैं: काम बहुत है न, दो साइट के बीच भागना पड़ता है! फिर मेरा अपना ऑडिट का काम भी है!
चन्दर को ऑडिट का काम समझ नहीं आया तो पिताजी ने उसे मेरा काम समझाया| अब चन्दर के मन में इच्छा जगी की मैं अपने काम से कितना कमाता हूँ तो मैंने उसे संक्षेप में उत्तर देते हुए कहा;
मैं: इतना कमा लेता हूँ की अपना खर्चा चला लेता हूँ!
मेरा नाश्ता हो चूका था तो मैं उठ कर अपने कमरे में आ गया| मेरे कमरे में घुसते ही भौजी धड़धड़ाते हुए कमरे में घुसीं, वो कुछ कहतीं उससे पहले ही मैं अपने बाथरूम में घुस गया और दरवाजा बंद कर दिया| बाथरूम में इत्मीनान से 10 मिनट ले कर मैंने भौजी को इंतजार करवाया, जब बाहर निकला तो भौजी की नजरें मुझ पर टिकी थीं, मगर मैंने उन्हें नजर अंदाज किया और अपना पर्स उठा कर निकलने लगा| भौजी ने एकदम से मेरा बायाँ हाथ पकड़ लिया और रूँधे गले से बोलीं;
भौजी: जानू...जानू...प्लीज...प्लीज....!
मैंने गुस्से में बिना उनकी ओर देखे अपना हाथ बड़ी जोर से झटक दिया जिससे उनकी पकड़ मेरे हाथ पर से छूट गई!
भौजी: प्लीज...जा.....
भौजी की बात सुने बिना मैं अपने कमरे से बाहर आया और माँ-पिताजी को बता कर निकल गया|
“साले जब तू मेरी बात मानता है न तो अच्छा लगता है|” दिषु मेरी पीठ थपथपाते हुए बोला| दिनभर दिषु ने मेरा मन बहलाने के लिए स्कूल के दिनों की याद दिलाई, वो लास्टबेंच पर छुप कर खाना खाना, कैंटीन से साल भर तक रोज पैटीज खाना, लंच होते ही स्कूल के गेट पर दौड़ कर जाना क्योंकि वहाँ छोले-कुलचे वाला खड़ा होता था, छुट्टी होने पर कई बार हम साइकिल पर कचौड़ी बेचने वाले से कचौड़ी खाते थे, वो गणित वाली मैडम से punishment मिलने पर हाथ ऊपर कर के खड़ा होना! स्कूल की ये खट्टी-मीठी यादें याद कर के दिल को कुछ सुकून मिला|
दिषु के साथ काम निपटा कर मैं रात को साढ़े नौ बजे घर पहुँचा, घर पर सिर्फ माँ-पिताजी थे जिन्होंने मेरे कारन अभी तक खाना नहीं खाया था| हम सब ने साथ खाना खाया और फिर काम को ले कर बात हुई, पैसों को ले कर हमने कुछ हिसाब किया उसके बाद हम सोने चले गए!
अगली सुबह मैंने फिर कंप्यूटर पर गाना लगाया; 'मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे!'
मैं: मेरे दिल से सितमगर तू ने अच्छी दिल्लगी की है,
के बन के दोस्त अपने दोस्तों से दुश्मनी की है!
मैं गाने के पहले मुखड़े को गाता हुआ अपने कमरे से बाहर निकला| भौजी रसोई में मेरी ओर मुँह कर के खड़ी थीं, उस समय हॉल में माँ-पिताजी मौजूद थे इसलिए वो कुछ कह नहीं पाईं| मैंने अपना फ़ोन निकाला और अपने कमरे की चौखट से कन्धा टिका कर खड़ा हो गया| माँ-पिताजी को दिखाने के लिए मैंने अपनी नजरें फ़ोन में गड़ा दी पर मैं गाने के बोल भी बोल रहा था|
मैं: मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मुझे ग़म देने वाले तू खुशी को तरसे!
मैंने दुश्मन शब्द कहते हुए भौजी को देखा और आँखों ही आँखों में 'दुश्मन' कह कर पुकारा|
मैं: तू फूल बने पतझड़ का, तुझ पे बहार न आए कभी
मेरी ही तरह तू तड़पे तुझको क़रार न आए कभी
जिये तू इस तरह की ज़िंदगी को तरसे!
मैंने फ़ोन में नजरें गड़ाए भौजी को बद्दुआ दी!
मैं: इतना तो असर कर जाएं मेरी वफ़ाएं ओ बेवफ़ा
जब तुझे याद आएं अपनी जफ़ाएं ओ बेवफ़ा
पशेमान होके रोए, तू हंसी को तरसे!
ये मुखड़ा मैंने भौजी की ओर देखते हुए गाय, ताकि उन्हें उनकी बेवफाई याद दिला सकूँ!
मैं: तेरे गुलशन से ज़्यादा वीरान कोई वीराना न हो
इस दुनिया में तेरा जो अपना तो क्या, बेगाना न हो
किसी का प्यार क्या तू बेरुख़ी को तरसे!
ये आखरी बद्दुआ दे कर मैं अपने कमरे में लौट आया और गाना बंद कर दिया|
मेरे कमरे में जाने के बाद भौजी की आँखों से आँसूँ बह निकले, जिन्हें उन्होंने अपनी साडी के पल्लू से पोंछ लिया| वो जानती थीं की मैं गानों के जरिये भौजी पर तोहमद लगा रहा हूँ, मेरा उन्हें दुश्मन कहना, बेवफा कहना, गाने के बोलों के जरिये उन्हें बद्दुआ देना उन्हें आहात कर गया था! वो अंदर ही अंदर घुटे जा रहीं थीं, अपने दिल के जज्बातों को मेरे सामने रखने को तड़प रहीं थीं मगर मैं उन्हें बेरुखी दिखा कर जलाये जा रहा था!
अपने कमरे में लौटकर मैं पलंग पर सर झुका कर बैठ गया और खुद से सवाल पूछने लगा; 'भौजी को जलाने, तड़पाने के बाद मुझे सुकून मिलना चाहिए था, फिर ये बेचैनी क्यों है?' मुझे मेरे इस सवाल का जवाब नहीं मिला क्योंकि गुस्से की आग ने मेरे दिमाग पर काबू कर लिया था! जबकि इसका जवाब बड़ा सरल था, मैंने कभी किसी को अनजाने में भी दुःख नहीं दिया था, भौजी को तो मैं जानते-बूझते हुए दुःख दे रहा था, तड़पा रहा था तो मुझे सुकून कहाँ से मिलता?!
मैं नहा धोकर तैयार होकर अपना पर्स रख रहा था जब भौजी मेरे कमरे में घुसीं, उनकी आँखें भीगी हुई थीं और दिल में दुःख का सागर उमड़ रहा था| उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा दायाँ हाथ कस कर पकड़ लिया और बोलीं;
भौजी: जानू.....प्लीज....एक बार मेरी.....बात...
भौजी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने गुस्से अपने दाएँ हाथ को इस कदर मोड़ा की भौजी की पकड़ कुछ ढीली पड़ गई, उनहोने जैसे ही अपनी पकड़ को फिर से मजबूत करना चाहा मैंने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और तेज क़दमों से बाहर आ गया| भौजी एक बार फिर जल बिन मछली की तरफ तड़पती रह गईं क्योंकि आज फिर उनके मन की बात उनके मन में रह गई थी!
बाहर पिताजी नाश्ते पर मेरी राह देख रहे थे, उन्होंने थोड़ा सख्ती से मेरे ऑडिट के बारे में पुछा की कब तक मेरी ऑडिट चलेगी? मैं कुछ जवाब देता उससे पहले ही उन्होंने मुझे 'थोड़ी सख्ती' से डाँट दिया; "लाखों का काम छोड़ कर तू अपना छोटा सा काम पकड़ कर बैठा है! कल से साइट पर आ जा, मिश्रा जी ने पैसे ट्रांसफर किये हैं, कल से और लेबर लगानी है!” मैंने सर झुका कर उनकी बात मानी और देर रात तक बैठ कर ऑडिट का काम खत्म किया| जब से भौजी आईं थीं मेरी नींद हराम थी, पिछली रात थोड़ा बहुत सोया था मगर आज की रात मैं चैन से सोना चाहता था इसलिए मैंने घर जाते हुए ठेके से एक gin का पौआ लिया| थोड़ी देर बाद जब मैं घर पहुँचा तो पिताजी ने सख्ती से मुझे कल क्या काम करवाना है उसके बारे में बताया| खाना खा कर मैं अपने कमरे में आया, कमरे में मुझे भौजी की महक महसूस हुई और दिमाग में गुस्सा भर गया! मैंने बैग से पौआ निकाला और मुँह से लगाकर एक साँस में खींच गया! Neat gin जब गले से नीचे उतरी तो आँखें एकदम से लाल हो गईं, मैंने खाली बोतल वापस बैग में डाल दी और पलंग पर लेट गया| बिस्तर पर पड़े हुए कुछ देर मैं नेहा के बारे में सोचने लगा, उसके मासूम से चेहरे की कल्पना करते हुए मेरी आँखें भारी होने लगी| फिर शराब की ऐसी खुमारी चढ़ी की मैं घोड़े बेच कर सो गया!
अगली सुबह जब मैं नौ बजे तक नहीं उठा तो माँ ने पिताजी के कहने पर मेरा दरवाजा खटखटाया पर मैं बेसुध अब भी सो रहा था| माँ ने पिताजी से मेरी वकालत करते हुए कहा; "कल रात देर से आया था न इसलिए थक कर सो गया होगा! थोड़ी देर में उठेगा तो मैं नाश्ता करवा कर भेज दूँगी!' चन्दर घर में मौजूद था इसलिए पिताजी ने बात को ज्यादा खींचा नहीं और उसे अपने साथ ले कर गुडगाँव वाली साइट पर निकल गए| दस बजे माँ ने मेरा दरवाजा भड़भड़ाया, दरवाजा भड़भड़ाये जाने से मैं मुँह बिदका कर उठा और बोला;
मैं: आ...रहा....हूँ!
माँ: दस बज रहे हैं लाड-साहब, तेरे पिताजी बहुत गुस्सा हैं!
माँ बाहर से बोलीं|
भले ही मैं 21 साल का लड़का था पर पिताजी के गुस्से से डरता था, ऊपर से मेरे कमरे में कल रात की शराब की महक भरी हुई थी! मैं फटाफट नहाया और तैयार हुआ, मैंने कमरे में भर-भरकर परफ्यूम मारा ताकि शराब की महक को दबा सकूँ! मैं कमरे से बाहर निकला ही था की माँ को कमरे से परफ्यूम की तेज महक आ गई;
माँ: क्या सारी फुस्स-फुस्स (परफ्यूम) लगा ली?
माँ परफ्यूम को फुस्स-फुस्स कहती थीं!
मैं: वो फुस्स-फुस्स का स्प्रे अटक गया था!
मैंने हँसते हुए कहा|
उधर भौजी ने बड़ी गजब की चाल चली, वो जानती थीं की वो मेरे नजदीक आएँगी तो मैं कैसे न कैसे कर के उनके चंगुल से निकल भागूँगा इसलिए उन्होंने माँ का सहारा लेते हुए अपनी चाल चली|
माँ: बेटा अपनी भौजी के घर में ये सिलेंडर रख आ, चूल्हा तेरे पिताजी आज-कल में ला देंगे|
माँ ने एक भरे सिलेंडर की ओर इशारा करते हुए कहा| माँ का कहा मैं कैसे टालता, इसलिए मजबूरन मुझे सिलेंडर उठा के भौजी के घर जाना पड़ा| भौजी पहले ही मेरा इंतजार बड़ी बेसब्री से कर रहीं थीं, जैसे ही मैंने दरवाजा खटखटाया की भौजी ने एकदम से दरवाजा खोला, मुझे अपने सामने देखते ही उनके मुँह पर ख़ुशी झलकने लगी;
भौजी: जानू यहाँ रख दीजिये!
भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| पता नहीं क्यों भौजी मुझसे ऐसे बर्ताव कर रहीं थीं जैसे कुछ हुआ ही नहीं है?! मैंने सिलिंडर रखा तथा मुड़ कर बाहर जाने लगा तो भौजी ने मेरे कँधे पर हाथ रखा और एकदम से मुझे अपनी तरफ घुमाया! भौजी का 'हमला' इतनी जल्दी था की इससे पहले मैं सम्भल पाता, भौजी एकदम से मेरे गले लग गईं और मुझे अपनी बाहों में कस लिया! भौजी मेरे सीने की आँच में अपने लिए प्यार ढूँढ रहीं थीं और मैं अपने दोनों हाथ अपनी पैंट की पॉकेट में डाले खुद को उनके प्यार में बहने से रोक रहा था! भौजी के जिस्म की आग मेरे दिल को पिघलाने लगी थी, कुछ-कुछ वैसे ही जब मैं गाँव में था तो भौजी के मेरे नजदीक होने पर मैं बहकने लगता था! इधर भौजी के जिस्म की तपिश इस कदर भड़क गई थी की उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिए थे जबकि मैंने उन्हें अभी तक नहीं छुआ था! पीछे से अगर कोई देखता था तो उसे लगता की भौजी मेरे गले लगी हुई हैं मैं नहीं!
5 मिनट तक मेरे जिस्म से लिपट कर भौजी ने तो अपनी प्यास बुझा ली थी मगर मेरे दिमाग में अब गुस्सा फूटने लगा था|
मैं: OK let go of me!
मैंने गुस्से से भौजी के दोनों हाथ अपनी पीठ के इर्द-गिर्द से हटाए और उन्हें खुद से दूर कर दिया|
भौजी: आप मुझसे अब तक नाराज हो?
भौजी ने शर्म से सर झुकाते हुए पुछा|
मैं: (हुँह)नाराज? किस रिश्ते से?
मैंने भौजी को घूर कर देखते हुए पुछा|
भौजी: आप मेरे पति हो…
भौजी ने मुझसे नजर मिलाते हुए गर्व से कहा, मगर ये सुनते ही मैंने उनकी बात बीच में ही काट दी और उन्हें ताना मारा;
मैं: था!
ये शब्द सुन कर भौजी की आँखों से आँसू बहने लगे|
भौजी: जानू प्लीज मुझे माफ़ कर दो! मुझे आपको वो सब कहने में कितनी तकलीफ हुई थी, ये मैं आपको बता नहीं सकती! दस दिन तक मैं बड़ी मुश्किल से खुद को आपको कॉल करने से रोकती रही, सिर्फ और सिर्फ इसलिए की ……
भौजी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी क्योंकि अगर वो अपनी बात दुबारा दुहराती तो मेरा गुस्सा और बढ़ जाता| वो एक बार फिर मेरे जिस्म से किसी जंगली बेल की तरह चिपक गईं, मुझे उनके जिस्म का स्पर्श अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए मैंने उन्हें एक बार फिर खुद से अलग किया और उनपर बरस पड़ा;
मैं: तकलीफ? इस शब्द का मतलब जानते हो आप? मुझे खुद से 'काट कर' अलग करने के बाद आप तो चैन की जिंदगी जी रहे थे, परिवार को उसका 'उत्तराधिकारी' दे कर आप तो बड़के दादा और बड़की अम्मा के चहेते बन गए! क्या मैं नहीं जानता की आपकी 'महारानी' जैसी खातिरदारी की जाती थी?
मैंने खुद की तुलना किसी खर-पतवार से की, जिसे किसान अपनी फसल से दूर रखने के लिए 'काट’ देता है और 'उत्तराधिकारी' तथा 'महारानी' जैसे शब्द मैंने भौजी को ताना मारने के लिए कहे थे|
मैं: आपको पता है की इधर मुझ पर क्या बीती? पूरे 5 साल...FUCKING 5 साल आपको भुलाने की कोशिश करता रहा, पर साला मन माने तब न और आप अपने दस दिन की 'तकलीफ' की बात करते हो? आपने मुझे कुछ कहने का मौका तक नहीं दिया, क्या मुझे अपनी बात रखने का हक़ नहीं था? कितनी आसानी से आपने कह दिया की; "भूल जाओ मुझे"? (हुँह) आपने मुझे समझा क्या है? मुझे खुद से ऐसे अलग कर के फेंक दिया जैसे कोई मक्खी को दूध से निकाल के फेंक देता है! आप सोच नहीं सकते मैं किस दौर से गुजरा हूँ, कितना दर्द सहा है मैंने! मैं इतना दुखी था, इतना तड़प रहा था की अपनी तड़प मिटाने के लिए मैंने पीना शुरू कर दिया!
मेरे पीने की बात सुन भौजी की आँखें फटी की फटी रह गईं!
मैं: आपने कहा था न की मैं पढ़ाई पर ध्यान दूँ, मगर मेरे mid-term में कम नंबर आये सिर्फ और सिर्फ आपकी वजह से! क्या फायदा हुआ आपके "बलिदान" का? Pre-Boards आने तक मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और ठीक-ठाक नंबर से पास हुआ, Boards में अच्छे नंबर ला सकता था पर सिर्फ आपकी वजह से मेरा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था इसलिए मुश्किल से मुझे DU के evening college में एडमिशन मिला!!
मेरी बात सुन कर भौजी को एहसास हुआ की उनका मुझसे दूर रहने का फैसला मेरे किसी काम नहीं आया बल्कि पढ़ाई के मामले में मेरी हालत और बदतर हो गई थी!
मैं: इन 5 सालों में आपको मेरी जरा भी याद नहीं आई? जरा भी? Do you know I felt when you dumped, I felt like… like you USED ME! और जब आपका मन भर गया तो मुझे मरने को छोड़ दिया! आप ने एक पल को भी नहीं सोचा की आपके बिना मेरा क्या होगा? अरे मैं मर ही जाता अगर मेरा दोस्त दिषु नहीं होता! बोलो यही चाहते थे न आप की मैं मर जाऊँ?!
मैंने जब अपने मरने की बात कही तो भौजी सर न में हिलाते हुए बिलख कर रो पड़ीं|
मैं: आपका मन मुझे कॉल करने का भी नहीं हुआ? प्यार करते 'थे' न मुझसे, तो कभी मेरी आवाज सुनने का मन नहीं हुआ? मेरे बारहवीं पास होने पर फोन नहीं किया, ग्रेजुएट होने पर भी कॉल नहीं किया, अरे इतना भी नहीं हुआ आपसे की आयुष के पैदा होने पर ही कम-स-कम मुझे एक फोन कर दो? पिताजी इतनी दफा गाँव आये, कभी आपने उनके हाथ आयुष की एक तस्वीर तक भेजने की नहीं सोची? थोड़ा तो मुझ पर तरस खा कर मुझे आयुष की आवाज फ़ोन पर सुना देते, आखिर बाप 'था' न मैं उसका?! लोग किसी अनजाने के साथ भी ऐसा सलूक नहीं करते, मैं तो फिर भी आपका पति 'हुआ करता था'| बिना किसी जुर्म के, बिना किसी गलती के आपने मुझे इतनी भयानक सजा दी! बता सकते हो की मेरी गलती क्या थी? आपने मुझे ऐसी गलती की सजा दी जो मैंने कभी की ही नहीं! और तो और आपको मुझे सजा देते समय नेहा के बारे में जरा भी ख्याल नहीं आया? उसके मन में मेरे लिए क्यों जहर घोला? इतवार सुबह जब मैंने नेहा को बुलाया तो जानते हो उसने मुझे कैसे देखा? उसकी आँखों मेरे लिए गुस्सा था, नफरत थी जो आपने उसके मन में घोल दी! मैं तो उसे पा कर ही खुश हो जाता और शायद आपको माफ़ कर देता लेकिन अब तो उस पर भी मेरा अधिकार नहीं रहा!
अपने भीतर का जहर उगल कर मैंने मैंने एक लम्बी साँस ली और बोला;
मैं: मेरे साथ इतना बड़ा धोका करने के बाद आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे कहने की कि क्या मैं आपसे नाराज हूँ?!
पिछले 5 साल से मन में दबी हुई आग ने भौजी को जला कर ख़ाक कर दिया था! भौजी को अपने किये पर बहुत पछतावा था इसलिए वो सोफे पर सर झुकाये अपने दोनों हाथों में अपना चेहरा छुपाये बिलख-बिलख कर रो रहीं थीं! मैं अगर चाहता तो उन्हें चुप करा सकता था, उनके आँसूँ पोछ सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया| मैं उन्हें रोता-बिलखता हुआ छोड़ के जाने लगा कि तभी मुझे दो बच्चे घर में घुसे| ये कोई और नहीं बल्कि नेहा और आयुष थे| आयुष को आज मैं जिन्दगी में पहली बार देख रहा था, चेहरे पर मुस्कान लिए, आँखों में हलकी सी शरारत के साथ वो नेहा संग दौड़ कर घर में घुसा पर उसने एक पल के लिए भी मुझे नहीं देखा, बल्कि मेरी बगल से होता हुआ अंदर कमरे में भाग गया| इधर नेहा मुझे देख कर रुक गई और गुस्से से भरी नजरों से मुझे 5 सेकंड तक देखती रही! मुझे लगा वो शायद कुछ बोलेगी पर वो बिना कुछ बोले अंदर चली गई!
अपने दोनों बच्चों को अपने सामने देख कर मेरा मन आशा से भर गया था, मेरा मन किया की मैं आयुष और नेहा को एक बार छू कर देख सकूँ, उनसे एक बार बात करूँ, उन्हें अपने सीने से लगा कर एक जलते हुए बाप के कलेजे को शांत कर सकूँ, लेकिन एक बेबस बाप को बस हताशा ही हाथ लगी! आयुष के मुझे अनदेखा कर अंदर भाग जाने और नेहा की गुस्से से भरी आँखों को देख मैं रो पड़ा! मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले, उस पल मेरे दिल के मानो हजार टुकड़े हो गए और हर एक टुकड़े ने भौजी को बद्दुआ देनी चाहि, मगर मेरे माँ-पिताजी ने मुझे कभी किसी को बद्दुआ देना नहीं सिखाया था, माँ को तो बचपन से पिताजी के जुल्म सहते हुए देखा था इसलिए मैं भी ख़ामोशी से सब सह गया|
मैंने शिकायत भरी आँखों से भौजी की ओर देखा तो पाया की उन्होंने अभी घटित दुःखमयी दृश्य देख लिया है, लेकिन इससे पहले वो कुछ कहतीं मैं अपने घर लौट आया| मैं सीधा अपने कमरे में घुसा ओर दरवाजा अंदर से बंद कर दरवाजे के सहारे जमीन पर बैठ गया, माँ मेरे रोने की आवाज न सुन लें इसलिए मैंने अपना सर अपने समेटे हुए घुटनों में छुपा कर रोने लगा! मेरे दिल के जिन जख्मों पर धूल जम चुकी थी, आज वो भौजी के कुरेदने से हरे गए थे! यही कारन था की मैं नहीं चाहता था की भौजी मेरे जीवन में फिर से लौट कर आएं!
जारी रहेगा भाग - 4 में....
Aur haaye re ye nafrat ek dum sahi waqt dhund leti hai ki kese kisi ke liye nafrat ko aur badhaya jaaye
Yahi to hua hai neha maanu se naraj hai aur uski bhauji ke liye jo nafrat hai usne ye sochne pe majbur kr diya ki jaroor bhauji ne hi neha ke kaan bhare honge....
Santosh new character lagta hai iska kuch role aayega ...dekhte hai...
Bhauji ko kya sach me koi andaja nhi hai jo wo itni asaani se maanu pe haq jatate huye jaanu keh rahi hai
Mtlb 5 saal bad mile aur itne haq se
Ye gaane ke jariye bhauji ko pida de kar sayad maanu sukoon dhund raha tha lekin milta kese apno koi pida dena se pida hi hoti chahe kitni hi nafrat ho aur phir maanu ne to dil se pyaar kiya tha
Lekin maanu ko ek baar to unki baat sunni chahiye
Ye bhauji ese mushkura kese sakti hai jab unko maanu ke gusse ka pata chal gaya sayad abhi tak maanu kuch bola nhi isiliye hoga
Aakhir 5 saal ka gussa bahar nikal hi aya....
Maanu ka gussa jayaj hai lekin sayad use bhauji ki baat puri sunni chahiye thi
Yahi to nahi dekhna cha hata tha meko laga koi badal jaaye lekin neha nahi badlegi lekin wo bhi maanu se gussa hai...hona bhi chahiye maanu ne promise jo toda hai
Bhot hi acha update tha aur emotional bhi ab bus jaldi se neha ko mana le maanu to bhot acha lagega .....
bhaiya
Be happy and keep smiling
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