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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Anubhavp14

न कंचित् शाश्वतम्
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900
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बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन
भाग -3



अब तक आपने पढ़ा:


खैर रात का खाना खा कर मैं जानबूझ कर घर लेट पहुँचा ताकि मेरे आने तक भौजी अपने घर (गर्ग आंटी वाले घर) चली जाएँ, पर भौजी माँ के साथ बैठीं टी.वी देख रहीं थीं| मुझे देखते ही भौजी एकदम से उठ खड़ी हुईं, उन्होंने बोलने के लिए मुँह खोला ही था की मैंने उन्हें ऐसे 'नजर अंदाज' (ignore) किया जैसे वो वहाँ हों ही न!

मैं: Good night माँ!

इतना कह कर मैं सीधा अपने कमरे में आ गया, भौजी मेरे पीछे-पीछे कमरे के भीतर आना चाहतीं थीं पर मैंने दरवाजा उनके मुँह पर बंद कर दिया| कपडे बदल कर मैं लेटा पर एक पल को भी चैन नहीं मिला, मेरा दिल बहुत बेचैनी महसूस कर रहा था! मैंने अनेकों करवटें बदलीं पर एक पल को आँख नहीं लगी, मन कर रहा था की मैं खूब जोर से रोऊँ पर आँखों में जैसे पानी बचा ही नहीं था! ऐसा ही हाल मेरा तब हुआ था जब भौजी से मेरी आखरी बार बात हुई थी, मुझे लगा की शायद ये नेहा को न मिलने के कारन मेरा बुरा हाल हो रहा है! कल सुबह होते ही मैं नेहा से मिलूँगा ये सोच कर मैंने दिल को तसल्ली देना शुरू कर दिया|



अब आगे:


सुबह
के पाँच बजे थे और मैं अपने तकिये को नेहा समझ अपने सीने से लगाए जाग रहा था| पिताजी ने दरवाजा खटखटाया तो मैंने फटाफट उठ कर दरवाजा खोला;

पिताजी: गुडगाँव वाली साइट पर 7 बजे माल उतरेगा, टाइम से पहुँच जाइयो वरना पिछलीबार की तरह माल कहीं और पहुँच जायेगा!

मैंने हाँ में सर हिलाया और पिताजी बाहर चले गए| पिताजी के जाते ही अपनी बेटी नेहा को देखने के लिए आँखें लालहित हो उठीं|

माँ उस समय नहाने गई थी, भौजी रसोई में नाश्ते की तैयारी कर रहीं थीं, चन्दर अपने घर में सो रहा था और पिताजी मुझे जगा कर आयुष को अपने साथ दूध लेने डेरी गए थे| मेरी प्यारी बेटी नेहा अकेली हॉल में बैठी थी और टी.वी पर कार्टून देख रही थी| इतने सालों बाद जब मैंने नेहा को देखा तो आँखें ख़ुशी के आँसुओं से छलछला गईं, मेरी प्यारी बेटी अब बहुत बड़ी हो चुकी थी मगर उसके चेहरे पर अब भी वही मासूमियत थी जो पहले हुए करती थी! नीले रंग की फ्रॉक पहने नेहा सोफे पर आलथी-पालथी मार कर बैठी थी और टी.वी. पर कार्टून देख कर मुस्कुरा रही थी! उसे यूँ बैठा देख मेरी आँखें ख़ुशी से चमकने लगी, अब दिल को नेहा के मुँह से वो शब्द सुनना था जिसे सुनने को मेरे कान पिछले 5 साल से तरस रहे थे; “पापा”! उसके मुँह से "पापा" सुनने की कल्पना मात्र से मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे| मैं नेहा के सामने अपने घुटने टेक कर खड़ा हो गया, मैंने अपनी दोनों बाहें फैलाईं और रुँधे गले से बोला; "नेहा....बेटा....!" इससे आगे कुछ बोलने की मुझे में हिम्मत नहीं थी! मैं उम्मीद करने लगा की मुझे देखते ही नेहा दौड़ कर मेरे पास आएगी और मेरे सीने से लग जाएगी!



लेकिन जैसे ही नेहा ने मेरी आवाज सुनी उसने मुझे गुस्से से भरी नजरों से देखा! उसकी आँखों में गुस्सा देख मेरा दिल एकदम से सहम गया, डर की ठंडी लहर मेरे जिस्म में दौड़ गई! आज एक बाप अपनी बेटी की आँखों में गुस्सा देख कर सहम गया था, सुनने में अजीब लगेगा पर वो डर जायज था! मैं जान गया की नेहा मुझसे क्यों गुस्सा है, आखिर मैंने उससे किया अपना वादा तोडा था| मैंने उससे वादा किया था की मैं दशहरे की छुट्टियों में आऊँगा, उसके लिए फ्रॉक लाऊँगा, चिप्स लाऊँगा, मगर मैं अपने गुस्से के कारन अपने किये हुए वादे पर अटल न रह सका! मुझे नेहा से माफ़ी माँगनी थी उसे अपने न आने की सफाई देनी थी, मैं उठा और अपने आप को मजबूत कर मैं नेहा से बोला; "नेहा बेटा....." मगर इसके आगे मैं कुछ कहता उससे पहले ही नेहा मुझे गुस्से से देखते हुए बाहर भाग गई!

अपनी बेटी का रूखापन देख मैं टूट गया, मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया! मैं फफक कर रो पड़ा, मैंने अपनी निर्दोष बेटी को उसकी माँ की गलतियों की सजा दी थी! उस बेचारी बच्ची ने मुझसे कभी कुछ नहीं माँगा था, बस इतना ही माँगा था की मैं उसे प्यार दूँ, वो प्यार जो उसे अपने बाप से मिलना चाहिए था! मन ग्लानि से भर चूका था और दिमाग से ये ग्लानि बर्दाश्त नहीं हो रही थी, उसे बस ये ठीकरा किसी के सर फोड़ना था! ठीक तभी भौजी रसोई से निकलीं, उन्होंने मेरी आँसुओं से बिगड़ी हुई शक्ल देखि तो उनके चेहरे पर परेशानी के भाव उमड़ आये! भौजी को देखते ही जो पहला ख्याल दिमाग में आया वो ये की उन्होंने ही मेरी प्यारी बेटी के भोले मन में मेरे लिए जहर घोला है! 'मुझे इस्तेमाल कर के छड़ने से मन नहीं भरा था जो मेरी प्यारी बेटी को बरगला कर मेरे खिलाफ कर दिया? कम से कम उसे तो सच बता दिया होता की मुझे खुद से दूर आपने किया था!' दिल तड़पते हुए बोला, मगर जुबान ने ये शब्द बाहर नहीं जाने दिए क्योंकि भौजी इस लायक नहीं थीं की मैं उनसे बात करूँ! आँसूँ भरी आँखों से मैंने भौजी को घूर कर देखा और तेजी से उनकी बगल से निकल गया| मेरा गुस्सा देख भौजी डर गईं इसलिए उनकी हिम्मत नहीं हुई की वो मुझे छुएँ, उन्होंने मुझे कुछ कहने के लिए जैसे ही मुँह खोला मैंने 'भड़ाम' से अपने कमरे का दरवाजा उनके मुँह पर दे मारा|



कमरे में लौट मैं पलंग पर सर झुका कर बैठ गया, एक बार फिर आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी| एक बाप अपनी बेटी से हार चूका था, हताश था और टूट चूका था! दिमाग जुझारू था तो उसने मुझे हिम्मत देनी चाही की मैं एक बार नेहा को समझाऊँ मगर दिल ने ये कह कर डरा दिया की; 'अगर नेहा ने अपने गुस्से में सब सच बोल दिया तो आयुष की जिंदगी खराब हो जायेगी!' ये डरावना ख्याल आते ही मैंने अपने हथियार डाल दिए! नेहा को ले कर मैंने जो प्यारे सपने सजाये थे वो सब के सब टूट कर चकना चूर हो चुके थे और उन्हीं सपनो के साथ मेरा आत्मबल भी खत्म हो चूका था! रह गया था तो बस भौजी के प्रति गुस्सा जो मुझे अंदर ही अंदर जलाने लगा था!

बेमन से मैं उठा और नहा-धो कर अपने कमरे से बाहर निकला, माँ हॉल में बैठीं चाय पी रहीं थीं| उनकी नजर मेरी लाल आँखों पर पड़ी तो वो चिंतित स्वर में बोलीं;

माँ: बेटा तेरी आँखें क्यों लाल हैं, कहीं फिर से छींकें तो शुरू नहीं हो गई?

माँ की आवाज सुन भौजी रसोई से तुरंत बाहर आईं, उधर माँ के सवाल में ही मुझे अपना बोला जाने वाला झूठ नजर आ गया तो मैंने हाँ में सर हिला कर उनकी बात को सही ठहराया|

माँ: रुक मैं पानी गर्म कर देती हूँ, भाप लेगा तो तबियत ठीक हो जाएगी|

माँ उठने को हुईं तो मैंने उन्हें मना कर दिया;

मैं: नहीं अब ठीक हूँ!

इतना कह कर बाहर दरवाजे तक पहुँचा था की माँ ने मुझे नाश्ते के लिए रोकना चाहा;

माँ: इतनी सुबह कहाँ जा रहा है?

मैं: साइट पर माल आने वाला है|

माँ को अपने बेटे की तबियत की चिंता थी, इसलिए उन्होंने मुझे रोकना चाहा;

माँ: बेटा तेरी तबियत ठीक नहीं है, चल बैठ जा और नाश्ता कर फिर दवाई ले कर आराम कर. काम-धाम होता रहेगा!

मैं: देर हो रही है माँ, अगर मैं नहीं पहुँचा तो माल कहीं और उतर जायेगा|

इतना कह कर मैं निकल गया, माँ पीछे से बोलती रह गईं;

माँ: बेटा नाश्ता तो कर ले?

पर मैंने उनकी बात को अनसुना कर दिया|



दुखी मन से मैं साइट पर पहुँचा, माल आ चूका था और मैं सारा माल उतरवा कर रखवा रहा था| 9 बजे पिताजी का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे बिना खाये घर से जाने को ले कर झाड़ सुनाई, मैंने बिना कुछ बोले उनकी सारी झाड़ सुनी| भले ही काम को ले कर पिताजी सख्त थे पर खाने की बेकद्री को ले कर वो बहुत नाराज हो जाया करते थे| मुझे पेट भर के डाँटने के बाद पिताजी ने मुझे बताया की थोड़ी देर में वो संतोष को भेज रहे हैं, मुझे उसे दोनों साइट का काम दिखाना था ताकि माल डलवाने का काम वो देख सके| दरअसल संतोष पिताजी के साथ शुरू के दिनों में सुपरवाइजरी का काम करता था और उनका बहुत विश्वासु था, उसके घर में बस उसकी एक बूढी बीमार माँ थी, चूँकि वो घर में अकेला कमाने वाला था तो पिताजी उसे दिहाड़ी की जगह तनख्वा दिया करते थे| जब पिताजी का काम कम होने लगा तो उन्होंने संतोष को कहीं और काम ढूँढने को कह दिया, क्योंकि तब पिताजी उसकी तनख्वा नहीं दे सकते थे| अब जब काम चल निकला था तो पिताजी ने उसे वापस बुला लिया था, मेरी उससे कभी बात नहीं हुई थी इसलिए आज उससे मिला तो वो मुझे बड़ा सीधा-साधा लड़का लगा| मैंने उसे दोनों साइट दिखाईं और वो सारा काम समझ गया, उसके आ जाने से मेरे लिए शाम को निकालना आसान हो गया था|

दोपहर को माँ ने मुझे फ़ोन किया और मेरी तबियत और खाने के बारे में पुछा| मैंने माँ से झूठ कह दिया की मैं ठीक हूँ और मैंने यहाँ कुछ खा लिया है, जबकि मैं सुबह से भूखा बैठा था| माँ का फ़ोन काटा ही था की दिषु का कॉल आए गया, मेरे हेल्लो बोलते ही वो मेरी आवाज में छुपा दर्द दिषु भाँप गया और मुझसे मेरी मायूसी का कारन पूछने लगा| उसका सवाल सुन मैं खामोश हो गया क्योंकि मैं जानता था की वो कभी एक बाप के जज्बात नहीं समझ पायेगा, मेरे खामोश रहने पर दिषु एकदम से बोला;

दिषु: शाम 5 बजे ढाबे मिलिओ!

उसने मेरी हाँ-न सुनने का भी इंतजार नहीं किया, बस अपना फैसला सुना कर उसने फ़ोन काट दिया! ढाबा हमारा एक code word था जिसका मतलब था हमारा मन पसंद पब|



शाम को जब मैं दिषु से पब में मिला तो उसने जोर दे कर मुझसे सब उगलवा लिया, दिषु ने मुझे लाख समझाने की कोशिश की मगर मेरे दिल ने उसकी एक न सुनी! दिषु को लगा था एक पेग के बाद वो मुझे समझा लेगा पर मेरा दिल जल रहा था और शराब उस आग को ठंडा कर रही थी, इसलिए मैंने एक के बाद एक 3 30ml के पेग खत्म कर दिए, दिषु ने मुझे पीने से रोकना चाहा पर मैं नहीं माना| मेरा 90ml का कोटा था उसके बाद मैं बहक जाता था, दिषु ये जानता था इसलिए उसने मुझे घर जाने के नाम से डराया, तब जा कर मुझे कुछ होश आया| लेकिन अपनी पीने की आदत से मैं बाज आने से रहा इसलिए मैंने जबरदस्ती हार्ड वाली बियर और मँगा ली!

रात के 9 बज रहे थे और पिताजी का फ़ोन गनगनाने लगा था, दिषु ने मुझसे फ़ोन ले कर उनसे बाहर जा कर बात की| वापस आ कर उसने बिल भरा और कैब बुलाई, ऐसा नहीं था की मैं पी कर 'भंड' हो चूका था! मुझे मेरे आस-पास क्या हो रहा है उसकी पूरी जानकारी थी, बस मैं ख़ामोशी से चुप-चाप बैठा हुआ था| दिषु ने अपने बैग से डिओड्रेंट निकाल कर मुझ पर छिड़का और मुझे खाने के लिए दो chewing gum भी दी| अपने दोस्त को संभालने के लिए दिषु ने मुझे कल से अपने साथ ऑडिट पर चलने को कहा, मैं उसके साथ रहता तो वो मुझे संभाल सकता था! मगर मैंने उसे घर में बात करने का बहना मारा क्योंकि मुझे अब सम्भलना नहीं था! मेरे पास बचा ही क्या था जो मैं सम्भलूँ?!



घर पहुँचते-पहुँचते 10 बज गए थे, कैब मेरे घर के पास पहुँची और मैं दिषु को bye बोल कर उतर गया| मैंने ज्यादा पी थी लेकिन इतने सालों से पीने का आदि होने पर मैं अपनी बहकी हुई चाल बड़े आराम से काबू कर लेता था| मैं घर में घुसा तो माँ टी.वी. देख रहीं थीं, और पिताजी कुछ हिसाब किताब कर रहे थे| चन्दर, भौजी और बच्चे सब अपने घर जा चुके थे|

पिताजी: बैठ इधर!

पिताजी ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा| उनके गुस्से से भरी आवाज सुनते ही सारा नशा काफूर हो गया! मैं उनके सामने वाली कुर्सी पर सर झुका कर बैठ गया, मेरा सर झुकाना मेरी की गई गलती को स्वीकारने का संकेत था| बचपन में जब भी मैं कोई गलती करता था तो मेरी गर्दन अपने आप पिताजी के सामने झुक जाती थी, पिताजी मेरी झुकी हुई गर्दन को देख कर कुछ शांत हो जाते थे और कई बार बिना डांटें छोड़ देते थे! मगर आज वो मुझे ऐसे ही छोड़ने वाले नहीं थे;

पिताजी: दस बज रहे हैं, कहाँ था अभी तक?

पिताजी ने गुस्से से पुछा|

मैं: जी वो दिषु के साथ ऑडिट का काम निपटा रहा था|

मैंने सर झुकाये हुए कहा|

पिताजी: गाँव से चन्दर आया है, खबर है तुझे? कल सारा दिन तूने आवारा गर्दी में निकाल दिया आज भी सारा दिन तू दिखा नहीं! जानता है कल से तेरा भाई तेरे बारे में कितनी बार पूछ चूका है?

पिताजी का चन्दर को मेरा भाई कहना मुझे बहुत चुभ रहा था, बड़ी मुश्किल से मैं अपना गुस्सा काबू में कर के खामोश बैठा था|

पिताजी: अपने भाई, उसके बीवी-बच्चों से मिलने तक का टाइम नहीं तेरे पास?

पिताजी ने डाँटते हुए कहा| ये सुन कर मेरा सब्र जवाब दे गया और मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ और उनसे उखड़े हुए स्वर में बोला;

मैं: काहे का भाई? जब बेल्ट से मेरी चमड़ी उधेड़ रहा था तब उसे अपने भाई की याद आई थी जो मुझे उसकी याद आएगी? आपने उसे यहाँ सह परिवार बुलाया, आपके बिज़नेस में उसे जोड़ना चाहा मगर आपने मुझसे पूछने की जहमत नहीं उठाई!

मेरे बाग़ी तेवर देख पिताजी खामोश हो गए, उन्हें लगा की मेरा गुस्सा चन्दर के कारन है| उन्हें नहीं पता था की मैं किस आग में जल रहा हूँ! कुछ पल खामोश रहने के बाद पिताजी बोले;

पिताजी: बेटा शांत हो जा! भाईसाहब चाहते थे की.....

पिताजी आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैंने उनकी बात को पूरा कर दिया;

मैं: चन्दर अपनी जिम्मेदारी उठाये! जानता हूँ! मुझे माफ़ कीजिये पिताजी पर प्लीज आप उसका नाम मेरे सामने मत लिया कीजिये!

ये सुन कर पिताजी मुस्कुरा दिए, माँ ने बात आगे बढ़ने से रोकी और मेरे लिए खाना परोस दिया| मुझे एहसास हुआ की मैं बेकार में अपना गुस्सा अपने असली परिवार पर उतार रहा हूँ, मुझे खुद को संभालना था ताकि मैं उस इंसान को सजा दे सकूँ जो असली कसूरवार है, यही सोचते हुए मैंने दिषु की ऑडिट करने की बात कबूली;

मैं: पिताजी कल से मेरी एक जर्रूरी ऑडिट है|

ये सुन कर पिताजी ने मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: पर ज्यादा दिन नहीं, दोनों साइट का काम मैं अकेले नहीं संभाल सकता!

मैंने एक नकली मुस्कराहट के साथ उनकी बात का मान रखा|



अगली सुबह मैं थोड़ा देर से उठा क्योंकि रात बड़ी बेचैनी से काटी थी और न के बराबर सोया था| बाहर से मुझे भौजी और माँ के बोलने की आवाज आ रही थी, भौजी की आवाज सुनते ही मेरा गुस्सा भड़कने लगा| मैंने अपना कंप्यूटर चालु किया और स्पीकर पर एक गाना तेज आवाज में चला दिया| भौजी के आने से पहले कभी-कभार मैं सुबह तैयार होते समय कंप्यूटर पर गाना लगा देता था, इसलिए माँ-पिताजी को इसकी आदत थी| मगर आज तो मुझे भौजी को तड़पाना था इसलिए मैंने ऐसा गाना लगाया जिसे सुन कर भौजी को उनके किये पाप का एहसास हुआ, वो गाना था; 'क़समें, वादे, प्यार, वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या!' लेकिन इतने भर से मेरा मन कहाँ भराना था, भौजी को और तड़पाने के लिए मैंने भी गाने के बोल गुनगुनाने शुरू कर दिए|

मैं: कसमे वादे प्यार वफ़ा सब

बातें हैं बातों का क्या

कोई किसी का नहीं ये झूठे

नाते हैं नातों का क्या!

भौजी को इस गाने के शब्द चुभने लगे थे!

मैं: सुख में तेरे...

सुख में तेरे साथ चलेंगे

दुख में सब मुख मोड़ेंगे

दुनिया वाले...

दुनिया वाले तेरे बनकर

तेरा ही दिल तोड़ेंगे

देते है...

देते हैं भगवान को धोखा

इन्सां को क्या छोड़ेंगे

गाने के दूसरे मुखड़े के बोलों ने भौजी के दिल को तार-तार कर दिया था|



जबतक मैं नहा नहीं लिया तब तक ये गाना लूप में चलता रहा और भौजी रसोई से इस गाने को सुन कर तड़पती रहीं| तैयार हो कर मैंने दिषु को फ़ोन किया और उससे पुछा की ऑडिट के लिए मुझे कहाँ पहुँचना है| दिषु ने मुझे बताया की आज मुझे कोहट एन्क्लेव आना है और वो मुझे फ़ोन पर रास्ता समझाने लगा| फ़ोन पर बात करते हुए मैं बाहर आया और नाश्ता करने बैठ गया, उस वक़्त बाहर सभी मौजूद थे सिवाए बच्चों के| दिषु से बात खत्म हुई तो चन्दर ने मुझसे बात करनी शुरू कर दी;

चन्दर: और मानु भैया, तुम तो ईद का चाँद हुई गए?

मैं: काम बहुत है न, दो साइट के बीच भागना पड़ता है! फिर मेरा अपना ऑडिट का काम भी है!

चन्दर को ऑडिट का काम समझ नहीं आया तो पिताजी ने उसे मेरा काम समझाया| अब चन्दर के मन में इच्छा जगी की मैं अपने काम से कितना कमाता हूँ तो मैंने उसे संक्षेप में उत्तर देते हुए कहा;

मैं: इतना कमा लेता हूँ की अपना खर्चा चला लेता हूँ!

मेरा नाश्ता हो चूका था तो मैं उठ कर अपने कमरे में आ गया| मेरे कमरे में घुसते ही भौजी धड़धड़ाते हुए कमरे में घुसीं, वो कुछ कहतीं उससे पहले ही मैं अपने बाथरूम में घुस गया और दरवाजा बंद कर दिया| बाथरूम में इत्मीनान से 10 मिनट ले कर मैंने भौजी को इंतजार करवाया, जब बाहर निकला तो भौजी की नजरें मुझ पर टिकी थीं, मगर मैंने उन्हें नजर अंदाज किया और अपना पर्स उठा कर निकलने लगा| भौजी ने एकदम से मेरा बायाँ हाथ पकड़ लिया और रूँधे गले से बोलीं;

भौजी: जानू...जानू...प्लीज...प्लीज....!

मैंने गुस्से में बिना उनकी ओर देखे अपना हाथ बड़ी जोर से झटक दिया जिससे उनकी पकड़ मेरे हाथ पर से छूट गई!

भौजी: प्लीज...जा.....

भौजी की बात सुने बिना मैं अपने कमरे से बाहर आया और माँ-पिताजी को बता कर निकल गया|



“साले जब तू मेरी बात मानता है न तो अच्छा लगता है|” दिषु मेरी पीठ थपथपाते हुए बोला| दिनभर दिषु ने मेरा मन बहलाने के लिए स्कूल के दिनों की याद दिलाई, वो लास्टबेंच पर छुप कर खाना खाना, कैंटीन से साल भर तक रोज पैटीज खाना, लंच होते ही स्कूल के गेट पर दौड़ कर जाना क्योंकि वहाँ छोले-कुलचे वाला खड़ा होता था, छुट्टी होने पर कई बार हम साइकिल पर कचौड़ी बेचने वाले से कचौड़ी खाते थे, वो गणित वाली मैडम से punishment मिलने पर हाथ ऊपर कर के खड़ा होना! स्कूल की ये खट्टी-मीठी यादें याद कर के दिल को कुछ सुकून मिला|

दिषु के साथ काम निपटा कर मैं रात को साढ़े नौ बजे घर पहुँचा, घर पर सिर्फ माँ-पिताजी थे जिन्होंने मेरे कारन अभी तक खाना नहीं खाया था| हम सब ने साथ खाना खाया और फिर काम को ले कर बात हुई, पैसों को ले कर हमने कुछ हिसाब किया उसके बाद हम सोने चले गए!



अगली सुबह मैंने फिर कंप्यूटर पर गाना लगाया; 'मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे!'

मैं: मेरे दिल से सितमगर तू ने अच्छी दिल्लगी की है,

के बन के दोस्त अपने दोस्तों से दुश्मनी की है!

मैं गाने के पहले मुखड़े को गाता हुआ अपने कमरे से बाहर निकला| भौजी रसोई में मेरी ओर मुँह कर के खड़ी थीं, उस समय हॉल में माँ-पिताजी मौजूद थे इसलिए वो कुछ कह नहीं पाईं| मैंने अपना फ़ोन निकाला और अपने कमरे की चौखट से कन्धा टिका कर खड़ा हो गया| माँ-पिताजी को दिखाने के लिए मैंने अपनी नजरें फ़ोन में गड़ा दी पर मैं गाने के बोल भी बोल रहा था|

मैं: मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे

मुझे ग़म देने वाले तू खुशी को तरसे!

मैंने दुश्मन शब्द कहते हुए भौजी को देखा और आँखों ही आँखों में 'दुश्मन' कह कर पुकारा|

मैं: तू फूल बने पतझड़ का, तुझ पे बहार न आए कभी

मेरी ही तरह तू तड़पे तुझको क़रार न आए कभी

जिये तू इस तरह की ज़िंदगी को तरसे!

मैंने फ़ोन में नजरें गड़ाए भौजी को बद्दुआ दी!

मैं: इतना तो असर कर जाएं मेरी वफ़ाएं ओ बेवफ़ा

जब तुझे याद आएं अपनी जफ़ाएं ओ बेवफ़ा

पशेमान होके रोए, तू हंसी को तरसे!

ये मुखड़ा मैंने भौजी की ओर देखते हुए गाय, ताकि उन्हें उनकी बेवफाई याद दिला सकूँ!

मैं: तेरे गुलशन से ज़्यादा वीरान कोई वीराना न हो

इस दुनिया में तेरा जो अपना तो क्या, बेगाना न हो

किसी का प्यार क्या तू बेरुख़ी को तरसे!

ये आखरी बद्दुआ दे कर मैं अपने कमरे में लौट आया और गाना बंद कर दिया|



मेरे कमरे में जाने के बाद भौजी की आँखों से आँसूँ बह निकले, जिन्हें उन्होंने अपनी साडी के पल्लू से पोंछ लिया| वो जानती थीं की मैं गानों के जरिये भौजी पर तोहमद लगा रहा हूँ, मेरा उन्हें दुश्मन कहना, बेवफा कहना, गाने के बोलों के जरिये उन्हें बद्दुआ देना उन्हें आहात कर गया था! वो अंदर ही अंदर घुटे जा रहीं थीं, अपने दिल के जज्बातों को मेरे सामने रखने को तड़प रहीं थीं मगर मैं उन्हें बेरुखी दिखा कर जलाये जा रहा था!



अपने कमरे में लौटकर मैं पलंग पर सर झुका कर बैठ गया और खुद से सवाल पूछने लगा; 'भौजी को जलाने, तड़पाने के बाद मुझे सुकून मिलना चाहिए था, फिर ये बेचैनी क्यों है?' मुझे मेरे इस सवाल का जवाब नहीं मिला क्योंकि गुस्से की आग ने मेरे दिमाग पर काबू कर लिया था! जबकि इसका जवाब बड़ा सरल था, मैंने कभी किसी को अनजाने में भी दुःख नहीं दिया था, भौजी को तो मैं जानते-बूझते हुए दुःख दे रहा था, तड़पा रहा था तो मुझे सुकून कहाँ से मिलता?!

मैं नहा धोकर तैयार होकर अपना पर्स रख रहा था जब भौजी मेरे कमरे में घुसीं, उनकी आँखें भीगी हुई थीं और दिल में दुःख का सागर उमड़ रहा था| उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा दायाँ हाथ कस कर पकड़ लिया और बोलीं;

भौजी: जानू.....प्लीज....एक बार मेरी.....बात...

भौजी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने गुस्से अपने दाएँ हाथ को इस कदर मोड़ा की भौजी की पकड़ कुछ ढीली पड़ गई, उनहोने जैसे ही अपनी पकड़ को फिर से मजबूत करना चाहा मैंने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और तेज क़दमों से बाहर आ गया| भौजी एक बार फिर जल बिन मछली की तरफ तड़पती रह गईं क्योंकि आज फिर उनके मन की बात उनके मन में रह गई थी!



बाहर पिताजी नाश्ते पर मेरी राह देख रहे थे, उन्होंने थोड़ा सख्ती से मेरे ऑडिट के बारे में पुछा की कब तक मेरी ऑडिट चलेगी? मैं कुछ जवाब देता उससे पहले ही उन्होंने मुझे 'थोड़ी सख्ती' से डाँट दिया; "लाखों का काम छोड़ कर तू अपना छोटा सा काम पकड़ कर बैठा है! कल से साइट पर आ जा, मिश्रा जी ने पैसे ट्रांसफर किये हैं, कल से और लेबर लगानी है!” मैंने सर झुका कर उनकी बात मानी और देर रात तक बैठ कर ऑडिट का काम खत्म किया| जब से भौजी आईं थीं मेरी नींद हराम थी, पिछली रात थोड़ा बहुत सोया था मगर आज की रात मैं चैन से सोना चाहता था इसलिए मैंने घर जाते हुए ठेके से एक gin का पौआ लिया| थोड़ी देर बाद जब मैं घर पहुँचा तो पिताजी ने सख्ती से मुझे कल क्या काम करवाना है उसके बारे में बताया| खाना खा कर मैं अपने कमरे में आया, कमरे में मुझे भौजी की महक महसूस हुई और दिमाग में गुस्सा भर गया! मैंने बैग से पौआ निकाला और मुँह से लगाकर एक साँस में खींच गया! Neat gin जब गले से नीचे उतरी तो आँखें एकदम से लाल हो गईं, मैंने खाली बोतल वापस बैग में डाल दी और पलंग पर लेट गया| बिस्तर पर पड़े हुए कुछ देर मैं नेहा के बारे में सोचने लगा, उसके मासूम से चेहरे की कल्पना करते हुए मेरी आँखें भारी होने लगी| फिर शराब की ऐसी खुमारी चढ़ी की मैं घोड़े बेच कर सो गया!

अगली सुबह जब मैं नौ बजे तक नहीं उठा तो माँ ने पिताजी के कहने पर मेरा दरवाजा खटखटाया पर मैं बेसुध अब भी सो रहा था| माँ ने पिताजी से मेरी वकालत करते हुए कहा; "कल रात देर से आया था न इसलिए थक कर सो गया होगा! थोड़ी देर में उठेगा तो मैं नाश्ता करवा कर भेज दूँगी!' चन्दर घर में मौजूद था इसलिए पिताजी ने बात को ज्यादा खींचा नहीं और उसे अपने साथ ले कर गुडगाँव वाली साइट पर निकल गए| दस बजे माँ ने मेरा दरवाजा भड़भड़ाया, दरवाजा भड़भड़ाये जाने से मैं मुँह बिदका कर उठा और बोला;

मैं: आ...रहा....हूँ!

माँ: दस बज रहे हैं लाड-साहब, तेरे पिताजी बहुत गुस्सा हैं!

माँ बाहर से बोलीं|

भले ही मैं 21 साल का लड़का था पर पिताजी के गुस्से से डरता था, ऊपर से मेरे कमरे में कल रात की शराब की महक भरी हुई थी! मैं फटाफट नहाया और तैयार हुआ, मैंने कमरे में भर-भरकर परफ्यूम मारा ताकि शराब की महक को दबा सकूँ! मैं कमरे से बाहर निकला ही था की माँ को कमरे से परफ्यूम की तेज महक आ गई;

माँ: क्या सारी फुस्स-फुस्स (परफ्यूम) लगा ली?

माँ परफ्यूम को फुस्स-फुस्स कहती थीं!

मैं: वो फुस्स-फुस्स का स्प्रे अटक गया था!

मैंने हँसते हुए कहा|



उधर भौजी ने बड़ी गजब की चाल चली, वो जानती थीं की वो मेरे नजदीक आएँगी तो मैं कैसे न कैसे कर के उनके चंगुल से निकल भागूँगा इसलिए उन्होंने माँ का सहारा लेते हुए अपनी चाल चली|

माँ: बेटा अपनी भौजी के घर में ये सिलेंडर रख आ, चूल्हा तेरे पिताजी आज-कल में ला देंगे|

माँ ने एक भरे सिलेंडर की ओर इशारा करते हुए कहा| माँ का कहा मैं कैसे टालता, इसलिए मजबूरन मुझे सिलेंडर उठा के भौजी के घर जाना पड़ा| भौजी पहले ही मेरा इंतजार बड़ी बेसब्री से कर रहीं थीं, जैसे ही मैंने दरवाजा खटखटाया की भौजी ने एकदम से दरवाजा खोला, मुझे अपने सामने देखते ही उनके मुँह पर ख़ुशी झलकने लगी;

भौजी: जानू यहाँ रख दीजिये!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| पता नहीं क्यों भौजी मुझसे ऐसे बर्ताव कर रहीं थीं जैसे कुछ हुआ ही नहीं है?! मैंने सिलिंडर रखा तथा मुड़ कर बाहर जाने लगा तो भौजी ने मेरे कँधे पर हाथ रखा और एकदम से मुझे अपनी तरफ घुमाया! भौजी का 'हमला' इतनी जल्दी था की इससे पहले मैं सम्भल पाता, भौजी एकदम से मेरे गले लग गईं और मुझे अपनी बाहों में कस लिया! भौजी मेरे सीने की आँच में अपने लिए प्यार ढूँढ रहीं थीं और मैं अपने दोनों हाथ अपनी पैंट की पॉकेट में डाले खुद को उनके प्यार में बहने से रोक रहा था! भौजी के जिस्म की आग मेरे दिल को पिघलाने लगी थी, कुछ-कुछ वैसे ही जब मैं गाँव में था तो भौजी के मेरे नजदीक होने पर मैं बहकने लगता था! इधर भौजी के जिस्म की तपिश इस कदर भड़क गई थी की उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिए थे जबकि मैंने उन्हें अभी तक नहीं छुआ था! पीछे से अगर कोई देखता था तो उसे लगता की भौजी मेरे गले लगी हुई हैं मैं नहीं!

5 मिनट तक मेरे जिस्म से लिपट कर भौजी ने तो अपनी प्यास बुझा ली थी मगर मेरे दिमाग में अब गुस्सा फूटने लगा था|

मैं: OK let go of me!

मैंने गुस्से से भौजी के दोनों हाथ अपनी पीठ के इर्द-गिर्द से हटाए और उन्हें खुद से दूर कर दिया|

भौजी: आप मुझसे अब तक नाराज हो?

भौजी ने शर्म से सर झुकाते हुए पुछा|

मैं: (हुँह)नाराज? किस रिश्ते से?

मैंने भौजी को घूर कर देखते हुए पुछा|

भौजी: आप मेरे पति हो…

भौजी ने मुझसे नजर मिलाते हुए गर्व से कहा, मगर ये सुनते ही मैंने उनकी बात बीच में ही काट दी और उन्हें ताना मारा;

मैं: था!

ये शब्द सुन कर भौजी की आँखों से आँसू बहने लगे|

भौजी: जानू प्लीज मुझे माफ़ कर दो! मुझे आपको वो सब कहने में कितनी तकलीफ हुई थी, ये मैं आपको बता नहीं सकती! दस दिन तक मैं बड़ी मुश्किल से खुद को आपको कॉल करने से रोकती रही, सिर्फ और सिर्फ इसलिए की ……

भौजी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी क्योंकि अगर वो अपनी बात दुबारा दुहराती तो मेरा गुस्सा और बढ़ जाता| वो एक बार फिर मेरे जिस्म से किसी जंगली बेल की तरह चिपक गईं, मुझे उनके जिस्म का स्पर्श अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए मैंने उन्हें एक बार फिर खुद से अलग किया और उनपर बरस पड़ा;

मैं: तकलीफ? इस शब्द का मतलब जानते हो आप? मुझे खुद से 'काट कर' अलग करने के बाद आप तो चैन की जिंदगी जी रहे थे, परिवार को उसका 'उत्तराधिकारी' दे कर आप तो बड़के दादा और बड़की अम्मा के चहेते बन गए! क्या मैं नहीं जानता की आपकी 'महारानी' जैसी खातिरदारी की जाती थी?

मैंने खुद की तुलना किसी खर-पतवार से की, जिसे किसान अपनी फसल से दूर रखने के लिए 'काट’ देता है और 'उत्तराधिकारी' तथा 'महारानी' जैसे शब्द मैंने भौजी को ताना मारने के लिए कहे थे|

मैं: आपको पता है की इधर मुझ पर क्या बीती? पूरे 5 साल...FUCKING 5 साल आपको भुलाने की कोशिश करता रहा, पर साला मन माने तब न और आप अपने दस दिन की 'तकलीफ' की बात करते हो? आपने मुझे कुछ कहने का मौका तक नहीं दिया, क्या मुझे अपनी बात रखने का हक़ नहीं था? कितनी आसानी से आपने कह दिया की; "भूल जाओ मुझे"? (हुँह) आपने मुझे समझा क्या है? मुझे खुद से ऐसे अलग कर के फेंक दिया जैसे कोई मक्खी को दूध से निकाल के फेंक देता है! आप सोच नहीं सकते मैं किस दौर से गुजरा हूँ, कितना दर्द सहा है मैंने! मैं इतना दुखी था, इतना तड़प रहा था की अपनी तड़प मिटाने के लिए मैंने पीना शुरू कर दिया!

मेरे पीने की बात सुन भौजी की आँखें फटी की फटी रह गईं!

मैं: आपने कहा था न की मैं पढ़ाई पर ध्यान दूँ, मगर मेरे mid-term में कम नंबर आये सिर्फ और सिर्फ आपकी वजह से! क्या फायदा हुआ आपके "बलिदान" का? Pre-Boards आने तक मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और ठीक-ठाक नंबर से पास हुआ, Boards में अच्छे नंबर ला सकता था पर सिर्फ आपकी वजह से मेरा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था इसलिए मुश्किल से मुझे DU के evening college में एडमिशन मिला!!

मेरी बात सुन कर भौजी को एहसास हुआ की उनका मुझसे दूर रहने का फैसला मेरे किसी काम नहीं आया बल्कि पढ़ाई के मामले में मेरी हालत और बदतर हो गई थी!

मैं: इन 5 सालों में आपको मेरी जरा भी याद नहीं आई? जरा भी? Do you know I felt when you dumped, I felt like… like you USED ME! और जब आपका मन भर गया तो मुझे मरने को छोड़ दिया! आप ने एक पल को भी नहीं सोचा की आपके बिना मेरा क्या होगा? अरे मैं मर ही जाता अगर मेरा दोस्त दिषु नहीं होता! बोलो यही चाहते थे न आप की मैं मर जाऊँ?!

मैंने जब अपने मरने की बात कही तो भौजी सर न में हिलाते हुए बिलख कर रो पड़ीं|

मैं: आपका मन मुझे कॉल करने का भी नहीं हुआ? प्यार करते 'थे' न मुझसे, तो कभी मेरी आवाज सुनने का मन नहीं हुआ? मेरे बारहवीं पास होने पर फोन नहीं किया, ग्रेजुएट होने पर भी कॉल नहीं किया, अरे इतना भी नहीं हुआ आपसे की आयुष के पैदा होने पर ही कम-स-कम मुझे एक फोन कर दो? पिताजी इतनी दफा गाँव आये, कभी आपने उनके हाथ आयुष की एक तस्वीर तक भेजने की नहीं सोची? थोड़ा तो मुझ पर तरस खा कर मुझे आयुष की आवाज फ़ोन पर सुना देते, आखिर बाप 'था' न मैं उसका?! लोग किसी अनजाने के साथ भी ऐसा सलूक नहीं करते, मैं तो फिर भी आपका पति 'हुआ करता था'| बिना किसी जुर्म के, बिना किसी गलती के आपने मुझे इतनी भयानक सजा दी! बता सकते हो की मेरी गलती क्या थी? आपने मुझे ऐसी गलती की सजा दी जो मैंने कभी की ही नहीं! और तो और आपको मुझे सजा देते समय नेहा के बारे में जरा भी ख्याल नहीं आया? उसके मन में मेरे लिए क्यों जहर घोला? इतवार सुबह जब मैंने नेहा को बुलाया तो जानते हो उसने मुझे कैसे देखा? उसकी आँखों मेरे लिए गुस्सा था, नफरत थी जो आपने उसके मन में घोल दी! मैं तो उसे पा कर ही खुश हो जाता और शायद आपको माफ़ कर देता लेकिन अब तो उस पर भी मेरा अधिकार नहीं रहा!

अपने भीतर का जहर उगल कर मैंने मैंने एक लम्बी साँस ली और बोला;

मैं: मेरे साथ इतना बड़ा धोका करने के बाद आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे कहने की कि क्या मैं आपसे नाराज हूँ?!

पिछले 5 साल से मन में दबी हुई आग ने भौजी को जला कर ख़ाक कर दिया था! भौजी को अपने किये पर बहुत पछतावा था इसलिए वो सोफे पर सर झुकाये अपने दोनों हाथों में अपना चेहरा छुपाये बिलख-बिलख कर रो रहीं थीं! मैं अगर चाहता तो उन्हें चुप करा सकता था, उनके आँसूँ पोछ सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया| मैं उन्हें रोता-बिलखता हुआ छोड़ के जाने लगा कि तभी मुझे दो बच्चे घर में घुसे| ये कोई और नहीं बल्कि नेहा और आयुष थे| आयुष को आज मैं जिन्दगी में पहली बार देख रहा था, चेहरे पर मुस्कान लिए, आँखों में हलकी सी शरारत के साथ वो नेहा संग दौड़ कर घर में घुसा पर उसने एक पल के लिए भी मुझे नहीं देखा, बल्कि मेरी बगल से होता हुआ अंदर कमरे में भाग गया| इधर नेहा मुझे देख कर रुक गई और गुस्से से भरी नजरों से मुझे 5 सेकंड तक देखती रही! मुझे लगा वो शायद कुछ बोलेगी पर वो बिना कुछ बोले अंदर चली गई!

अपने दोनों बच्चों को अपने सामने देख कर मेरा मन आशा से भर गया था, मेरा मन किया की मैं आयुष और नेहा को एक बार छू कर देख सकूँ, उनसे एक बार बात करूँ, उन्हें अपने सीने से लगा कर एक जलते हुए बाप के कलेजे को शांत कर सकूँ, लेकिन एक बेबस बाप को बस हताशा ही हाथ लगी! आयुष के मुझे अनदेखा कर अंदर भाग जाने और नेहा की गुस्से से भरी आँखों को देख मैं रो पड़ा! मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले, उस पल मेरे दिल के मानो हजार टुकड़े हो गए और हर एक टुकड़े ने भौजी को बद्दुआ देनी चाहि, मगर मेरे माँ-पिताजी ने मुझे कभी किसी को बद्दुआ देना नहीं सिखाया था, माँ को तो बचपन से पिताजी के जुल्म सहते हुए देखा था इसलिए मैं भी ख़ामोशी से सब सह गया|



मैंने शिकायत भरी आँखों से भौजी की ओर देखा तो पाया की उन्होंने अभी घटित दुःखमयी दृश्य देख लिया है, लेकिन इससे पहले वो कुछ कहतीं मैं अपने घर लौट आया| मैं सीधा अपने कमरे में घुसा ओर दरवाजा अंदर से बंद कर दरवाजे के सहारे जमीन पर बैठ गया, माँ मेरे रोने की आवाज न सुन लें इसलिए मैंने अपना सर अपने समेटे हुए घुटनों में छुपा कर रोने लगा! मेरे दिल के जिन जख्मों पर धूल जम चुकी थी, आज वो भौजी के कुरेदने से हरे गए थे! यही कारन था की मैं नहीं चाहता था की भौजी मेरे जीवन में फिर से लौट कर आएं!



जारी रहेगा भाग - 4 में....
Jo dar tha wohi hua .....neha naraj hogayi uska naraz hona bhi jayaj hai kyu ki maanu se wo pyaar bhot karti hai aur naraj bhi insaan usi se hota hai jisse aas hoti hai pyaar hota hai .....
Aur haaye re ye nafrat ek dum sahi waqt dhund leti hai ki kese kisi ke liye nafrat ko aur badhaya jaaye
Yahi to hua hai neha maanu se naraj hai aur uski bhauji ke liye jo nafrat hai usne ye sochne pe majbur kr diya ki jaroor bhauji ne hi neha ke kaan bhare honge....

Santosh new character lagta hai iska kuch role aayega ...dekhte hai...

Bhauji ko kya sach me koi andaja nhi hai jo wo itni asaani se maanu pe haq jatate huye jaanu keh rahi hai
Mtlb 5 saal bad mile aur itne haq se
Ye gaane ke jariye bhauji ko pida de kar sayad maanu sukoon dhund raha tha lekin milta kese apno koi pida dena se pida hi hoti chahe kitni hi nafrat ho aur phir maanu ne to dil se pyaar kiya tha

Lekin maanu ko ek baar to unki baat sunni chahiye

Ye bhauji ese mushkura kese sakti hai jab unko maanu ke gusse ka pata chal gaya sayad abhi tak maanu kuch bola nhi isiliye hoga
Aakhir 5 saal ka gussa bahar nikal hi aya....
Maanu ka gussa jayaj hai lekin sayad use bhauji ki baat puri sunni chahiye thi
Yahi to nahi dekhna cha hata tha meko laga koi badal jaaye lekin neha nahi badlegi lekin wo bhi maanu se gussa hai...hona bhi chahiye maanu ne promise jo toda hai

Bhot hi acha update tha aur emotional bhi ab bus jaldi se neha ko mana le maanu to bhot acha lagega .....

bhaiya
Be happy and keep smiling
 
Last edited:

Anubhavp14

न कंचित् शाश्वतम्
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अच्छा लगता है इतना बड़ा कमेंट पढ़ कर, जिसके जवाब के लिए मुझे notes बनाने पड़ें ताकि आपके लिखे हर एक point का जवाब दे सकूँ|

आजकल के व्यस्त दिनचर्या में पाठकों को किसी लेखक की कहानी पढ़ने के साथ-साथ अपनी निजी जिंदगी को भी संभालना होता है, देखा जाए तो ये गलत भी नहीं है| मगर कई बार पाठकगण भूल जाते हैं की एक लेखक उनके प्रोत्साहन का भूखा होता है| पाठकों का प्रोत्साहन जितना मिलेगा उतना ही लेखक जोश से लिखेगा, मैं हर बार कहता हूँ की जितनी चीनी डालोगे उतनी मीठी चाय बनेगी| यहाँ चीनी का तातपर्य पाठकों के प्रोत्साहन से है और चाय का तातपर्य अपडेट से है! शुरू-शुरू में मैं बहुत शिकायत करता था की मुझे पाठकों का प्रेम नहीं मिल रहा, पर धीरे-धीरे प्यार बढ़ने लगा और उसी के साथ मेरे लिखने में भी सुधार आने लगा| आगे भी इसी तरह प्यार मिलता रहेगा तो मैं इतने ही प्यार से लिखता रहूँगा|

आपने लिखा की आपको रिव्यु पोस्ट करना नहीं आता, मित्र रिव्यु देने का मतलब होता है की आपको अपडेट पढ़ के कैसा महसूस हुआ? अपडेट का कौन सा पहलु आपको सबसे अच्छा लगा, उसके बारे में अपनी राय देना| वैसे आपने अपनी इस पोस्ट में बहुत ही प्यारा रिव्यु दिया है!

काला इश्क़ मेरी दूसरी कहानी थी, एक अनोखा बंधन मेरी सबसे पहली रचना थी जिसे मैंने Xossip पर लिखा था पर कुछ कारन वश मैं इसे पूरा नहीं कर पाया था| उस समय जब मैंने इसे लिखा तब मेरी लेखनी इतनी अच्छी नहीं थी जितनी अब है, तब मैंने इसे काफी हद्द तक draft की तरह लिखा था जिसमें न तो भावनाओं का सही ढँग से चित्रण किया था और काफी हद्द तक आप सभी पाठकों से बातें भी छुपाई थीं क्योंकि मैं किसी का चरित्र खराब करने से डरता था, मगर इस बार मैं बेख़ौफ़ सब कुछ सच लिख रहा हूँ| अगर आपको इंटरनेट पर कहीं मेरी पुरानी लिखी हुई 'एक अनोखा बंधन' मिले तो कृपया उसे न पढ़ें वरना आपका सारा मजा किरकिरा हो जायेगा!

आपने लिखा की आपको काला इश्क़ कहानी में रितिका का किरदार बहुत पसंद आया था, मगर जिस तरह से उसने आगे चल कर छीछालेदर किया वो आपको अच्छा नहीं लगा|

आपके इस सवाल का जवाब ये है की आजकल की दुनिया में 'सच्चा प्यार' केवल मिथ्या बन कर रहा गया है| ये बस बॉलीवुड के पिक्चर बनाने का एक topic है जिसे आज कल का नौजवान देख कर खुश हो जाता है| असल जिंदगी में केवल पैसे का मोल है, अगर आपके पास पैसा है तो रितिका जैसी छतीस हजार आपके पास भटकेंगी और अगर आपके पास पैसा नहीं तो आपको कोई घाँस नहीं डालेगी!

काला इश्क़ में आया twist दरअसल मेरे आदरणीय सर kamdev99008 जी के कारन आया था, उन्होंने अपने comments के जरिये मुझे इतना प्रभावित किया की मैंने कहानी को नया रुख दिया और कहानी का नाम सार्थक किया| इस कहानी में आया twist अर्थात भौजी की वापसी के अलावा भी एक ट्विस्ट है जो कुछ दिनों में आने वाला है| आप चिंता न करें ये कहानी आप सभी को बहुत भाएगी!

करुणा जैसी लापरवाह लड़की मैंने आज तक नहीं देखि, आशा करता हूँ की आप उसकी तरह इतने बड़े लापरवाह नहीं होंगे| करुणा के साथ हुई दोस्ती से मैंने जो सीखा था वो ये की इंसान के लिए उसका आत्मसम्मान बहुत जर्रूरी होता है! आपने बताया की आप की हाल-फिलहाल में दोस्ती टूटी है, मैं आपको एक जर्रूरी बात समझना चाहता हूँ; अगर कोई आपको ignore करे, आपको value न दे तो ऐसे इंसान को छोड़ दो और दुबारा चाहे वो लाख लकीर पीते पर उसे अपने नजदीक फिर मत आने दो! दोस्ती करो लेकिन कभी भी खुद को emotionally invest मत करो, आपके बचपन के दोस्त जो आपके साथ अभी साथ हों वही आपके सच्चे दोस्त है, उनके अलावा सभी temporary हैं| Temporary के चक्कर में Permanent दोस्तों को कभी for granted मत लेना!

अब आते हैं आपके प्यारे से रिव्यु पर;
भौजी की वापसी मेरी जिंदगी का turning point था, मैंने कभी उनके लौटने की कामना नहीं की थी| नेहा को मैं कभी नहीं भूल पाया, मैंने उसे हर एक दिन याद किया है, इस अध्याय के प्रथम भाग को लिखते समय मैंने नेहा का वर्णन इसलिए नहीं किया क्योंकि उस भाग का मकसद आप सभी को एक प्रेमी के जज्बातों से रूबरू करवाना था| नेहा में क्या बदलाव आये ये आपने कल की अपडेट में पढ़ा? अगर नहीं तो अवश्य पढ़ लें!
आपके इस review की एक ख़ास बात जो मुझे अच्छी लगी वो थी की आपने कहानी की बारीकियाँ याद रखीं हैं|

आपका ये कथन बताता है की आप कितनी बारीकी से पढ़ते हैं! :bow: भौजी के हिस्से की बातें आप को जल्द ही पढ़ने को मिलेंगी|

आशा करता हूँ की भविष्य में भी आप समय निकाल आकर इसी तरह प्यारे-प्यारे लम्बे reviews देंगे|
राधे-राधे ?



Jis tarha aapko acha laga ....jo ki dikh raha hai ki aapne kitne ache se mere review ka jawab diye .... Wesi khushi mujhe bhi ho rahi hai ....
Jaroor bhaiya ab se aapko nirasha nhi hogi...... promise to nhi karunga baaki haa kosis puri krunga ki time se aapke update ke review du....
Aur nischint rahe purani story kyu padhunga jab aap yaha continue kr hi rahe ho to ....

Bhaiya jo aapne pyaar ke baare me bilkul sahi kaha.... Pehle log insaano se pyaar karte the ab paise se karte hai......
Sahi kaha aapne self respect bhot jaroori hai ...kayi baar rishta ya dosti bachane ke chkkar me hum apne aap ko hi underestimate kar dete hai ki fir saamne wala kya hi respect karega usko to yahi lagega ki me kuch bhi kar lu ye khin nhi jayega... Khair ab seekh raha hu dheere dheere ....aur apki story padh ke bhot help mil rahi hai...

Bhaiya ab to aapke itne bade reply ke laalch me jaroor hi review dena padega ???

Thank u soooooo much aapne mujhe ek bade bhai ki tarha samjhaya ???... Isiliye me aapko bhaiya hi kahunga
Thank u so so so much
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,801
31,019
304
बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन
भाग -4


अब तक आपने पढ़ा:


अपने दोनों बच्चों को अपने सामने देख कर मेरा मन आशा से भर गया था, मेरा मन किया की मैं आयुष और नेहा को एक बार छू कर देख सकूँ, उनसे एक बार बात करूँ, उन्हें अपने सीने से लगा कर एक जलते हुए बाप के कलेजे को शांत कर सकूँ, लेकिन एक बेबस बाप को बस हताशा ही हाथ लगी! आयुष के मुझे अनदेखा कर अंदर भाग जाने और नेहा की गुस्से से भरी आँखों को देख मैं रो पड़ा! मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले, उस पल मेरे दिल के मानो हजार टुकड़े हो गए और हर एक टुकड़े ने भौजी को बद्दुआ देनी चाहि, मगर मेरे माँ-पिताजी ने मुझे कभी किसी को बद्दुआ देना नहीं सिखाया था, माँ को तो बचपन से पिताजी के जुल्म सहते हुए देखा था इसलिए मैं भी ख़ामोशी से सब सह गया|


मैंने शिकायत भरी आँखों से भौजी की ओर देखा तो पाया की उन्होंने अभी घटित दुःखमयी दृश्य देख लिया है, लेकिन इससे पहले वो कुछ कहतीं मैं अपने घर लौट आया| मैं सीधा अपने कमरे में घुसा ओर दरवाजा अंदर से बंद कर दरवाजे के सहारे जमीन पर बैठ गया, माँ मेरे रोने की आवाज न सुन लें इसलिए मैंने अपना सर अपने समेटे हुए घुटनों में छुपा कर रोने लगा! मेरे दिल के जिन जख्मों पर धूल जम चुकी थी, आज वो भौजी के कुरेदने से हरे गए थे! यही कारन था की मैं नहीं चाहता था की भौजी मेरे जीवन में फिर से लौट कर आएं!



अब आगे:


सारा दिन मैंने अकेले एक पार्क में बैठ कर काटा, रात को नौ बजे घर आया तो पिताजी से फिर डाँट पड़ी| पिताजी ने मुझे सुनाते हुए कहा की; "तू इतनी आवारागिर्दी करता रहता है!" मैंने पलट कर उन्हें कोई जवाब नहीं दिया और चुप-चाप उनकी डाँट सुनी, माँ ने खाना परोसा तथा मेरे खाने तक वो मेरे साथ बैठी रहीं| खाना खा कर मैं अपने कमरे में आया और अपने साथ छुपा कर लाया पौआ खोल कर पीने लगा| ये पौआ मैं सिर्फ इसलिए लाया था की रात को सो सकूँ वरना आज दिन भर के घटनाक्रम याद कर के मैं सो नहीं पाता!



अगले दिन मैं सुबह जल्दी उठ गया और तैयार हो कर घर से निकलने ही वाला था की पिताजी ने रोक लिया;

पिताजी: कहाँ जा रहा है?

पिताजी ने सख्ती से पुछा|

मैं: जी गुडगाँव....साइट पर|

पिताजी: कोई जर्रूरत नहीं, मैंने चन्दर को वहाँ भेजा है| वो आज प्लंबिंग का काम शुरू करवा रहा है, आज वहाँ तेरा कोई काम नहीं है| तेरी भौजी ने तेरी माँ से कहा था की घर में कुछ सफाई और बिजली का काम करवाना है, तू जा और वो काम कर के आ|

मैं समझ गया था की भौजी की ही चाल है, तभी वो और बच्चे घर पर नहीं थे! अब मैं भौजी की चाल में आने से रहा तो मैंने चिढ़ते हुए पिताजी से कहा;

मैं: पर मैं अभी नहाया हूँ और आप मुझे धुल-मिटटी का काम दे रहे हैं! मैं दीपक को....

मैंने काम से बचने के लिए पिताजी से दीपक बिजली वाले का नाम लिया पर पिताजी को न सुनने की आदत नहीं थी;

पिताजी: तो फिर से नाहा लिओ, यहाँ कौन सा सुख पड़ा है जो तुझे नहाने को पानी नहीं मिलेगा?! अब बहाने बंद कर और जा जल्दी|

पिताजी मुझे फरमान सुना कर निकल गए|



बुझे मन से मैंने भौजी के घर की ओर चल दिया, तभी मुझे कुछ याद आया| मैंने नेहा से वादा किया था की जब मैं उससे मिलने आऊँगा तो उसके लिए कपडे और चिप्स ले कर आऊँगा, ये वादा याद आते ही मन में एक आस भर गई की शायद gift देख कर ही नेहा मुझसे बात कर ले?! उस समय मेरे लिए ये आस ऐसी थी मानो डूबते को तिनके का सहारा, मैं जल्दी से मार्किट पहुँचा और नेहा के लिए एक जीन्स और टॉप खरीदा| मुझे नेहा का साइज नहीं पता था पर उसकी उम्र पता थी, मैंने दुकानदार से नेहा की उम्र की बच्ची के साइज के जीन्स-टॉप लिया और उसे एक gift wrap कराया| दुकानदार gift pack करने वाले थे की मैंने उन्हें 1 मिनट के लिए रोका और दूसरी दूकान से नेहा के मनपसंद 'अंकल चिप्स' खरीद लाया| मैंने वो चिप्स का पैकेट सबसे ऊपर रखा, ताकि gift खोलते ही नेहा को चिप्स का पैकेट सबसे पहले दिखे! Gift pack चिप्स के पैकेट के कारन बहुत मोटा हो गया था, gift pack को देख मुझे अजीब सा डर लगने लगा की पर पता नहीं नेहा को अब चिप्स पसंद होंगे भी या नहीं?! मन मजबूत कर मैं नेहा का gift pack ले कर एक खिलोने वाली दूकान में घुसा, वहाँ मुझे आयुष के लिए एक खिलौने वाला हवाई जहाज पसंद आया| मैंने दुकानदार से वो हवाई जहाज gift pack करने को कहा, दोनों बच्चों के लिए gift ले कर मैं भौजी के घर पहुँचा|

भौजी ने दरवाजा खोला और मुझे देख उनके चेहरे पर प्यार मुस्कान खिल गई, ऐसा लगा जैसे कल जो हुआ उसका उन पर कुछ प्रभाव ही नहीं पड़ा था! 'कहीं ये पागल-वागल तो नहीं हो गईं?' मैं मन ही मन बोला और चुप-चाप भौजी से नजरें फेर कर खड़ा हो गया| भौजी ने मुस्कुराते हुए मुझे बैठने का इशारा किया और बाहर चली गईं, दरअसल बच्चे घर पर नहीं थे वो गली के बच्चों के साथ छुपन-छुपाई खेल रहे थे| मैं सोफे पर बैठ गया और अपने दोनों बच्चों के इंतजार में नजरें दरवाजे पर बिछा दी!

भौजी: आयुष....नेहा..... बेटा जल्दी घर आओ!

भौजी ने घर के चौतरे पर खड़े हो कर बच्चों को आवाज दी, दोनों बच्चे अपनी मम्मी की आवाज सुन तुरंत हाजिर हो गए| भौजी ने दोनों को घर के भीतर जाने का इशारा किया, दोनों घर में घुसे और मुझे अपने सामने बैठा देख हाथ पीछे बाँधे खड़े हो गए| नेहा की आँखों में गुस्सा अब भी था पर धीरे-धीरे उसके गुस्से में अब कमी आने लगी थी, शायद भौजी ने कल मेरे जाने के बाद उससे बात की थी| वहीं आयुष की आँखें सूनी थी, वो मुझे आँखें बड़ी कर के देख रहा था और मुझे जानने की कोशिश कर रहा था! मैं उसकी आँखों में अपने पिता को देखने की ख़ुशी देखना चाहता था न की किसी अजनबी को जानने-पहचानने की कोशिश करता हुआ उसका छोटा सा दिमाग!



मैं टकटकी बाँधें दोनों बच्चों की भोली सी सूरत अपनी आँखों में बसाने में लगा था की भौजी ने चौधरी बन कर बीच में बोल कर मेरी नजरों की भूख को खंडित कर दिया;

भौजी: आयुष...नेहा... बेटा ये आपके पा....

भौजी 'पापा' शब्द कहने वाली ही थीं की मैंने उनकी बात को बीच में काट कर उसका रुख बदल दिया;

मैं: बेटा मैं आपका चाचा हूँ|

भौजी ने जिस तरह दोनों बच्चों को मुझे उनका पापा कहना चाहा ये मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ, उनके लहजे में मुझे प्यार महसूस नहीं हुआ, ऐसा लगा मानो वो दोनों बच्चों को 'जानकारी' दे रहीं थीं! जबकि मैं ऐसा कतई नहीं चाहता था, इसीलिए मैंने उनकी बात काटी थी|

खुद को दोनों बच्चों का 'पापा' कहने की बजाए 'चाचा' कहने में मेरे दिल में जो पीड़ा उठी उसे शब्दों में ब्यान कर पाना नामुमकिन है! दिल खून के आँसूँ रोये जा रहा था और आँखें उन आँसुंओं को चेहरे पर लाना चाहतीं थीं मगर ऐसा कर के मैं आयुष के मन में अपनी माँ के प्रति संदेह या गलत विचार पैदा नहीं करना चाहता था, आखिर कौन सा बच्चा अपनी माँ के मुँह से ये सुन्ना चाहेगा की उसके पापा कोई और हैं?! बहुत जोर लगाया और अपने जिस्म की सारी ताक़त झोंक कर मैंने अपने आँसुओं को बहने से रोक लिया|

उधर मेरी बात सुन कर भौजी और नेहा आँखें फ़ाड़े मेरी ओर देख रहे थे, क्योंकि नेहा मुझे पापा कहती थी तथा भौजी को इसकी ज़रा भी उम्मीद नहीं थी की मैं आयुष से अपना रिश्ता कुछ इस तरह स्थापित करूँगा! भौजी ने अपनी बात पुनः सही ढँग से दोहरानी चाहि और आयुष को मेरे बारे में सच बताना चाहा मगर मैंने उन्हें बोलने ही नहीं दिया| जितना दुःख मुझे खुद को आयुष और नेहा का 'चाचा' बोलने में हुआ था उससे हजार गुना ज्यादा दर्द भौजी को हुआ था! मैं उन्हें तड़पाने का मौका कैसे जाने देता इसलिए मैंने उन्हें उनकी बात कहने से रोक कर दर्द से तिलमिला दिया था, इसी बहाने उन्हें भी मेरा वो दर्द महसूस हुआ जो मुझे तब हुआ था जब भौजी ने मुझे आखरी बार कॉल किया था और ये कह के फोन काट दिया की “मैं कुछ नहीं सुनना चाहती...ये आखरी कॉल था! आपको मेरी कसम है, आज के बाद ना मैं आपको कभी फोन करुँगी और ना ही आप करोगे! आप बस...मुझे भूल जाओ!” भौजी की आँखों में आँसूँ उमड़ आये और उन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रूँधे गले से; "जानू" कहा, मगर मैंने उनको कोई तवज्जो नहीं दी बल्कि नेहा की ओर देखते हुए बोला;

मैं: नेहा बेटा, पता नहीं आपको याद होगा की नहीं पर गाँव में मैंने एक बार आपको promise किया था की मैं दशेरे की छुटियों में आऊँगा और आपके लिए बहुत सारे gift लाऊँगा|

ये कहते हुए मेरी आँखें भर आईं, गला भारी हो गया पर जैसे तैसे मैंने अपने आँसूँ रोके और अपनी बात पूरी करने लगा;

मैं: हाँ थोड़ा लेट हो गया...5 साल!

ये बात मैंने भौजी की ओर देखते हुए कही, जिससे उन्हें ये एहसास दिला सकूँ की उनके मुझे खुद से दूर करने का राज मैं उनके बच्चों पर नहीं खोल कर मैं उनपर कितना बड़ा एहसान कर रहा हूँ! वहीं मेरी बात सुन कर भौजी की नजरें शर्म से झुक गई थीं|



मैंने नेहा का gift उसकी ओर बढ़ाया तो नेहा अब भी बड़ी-बड़ी आँखों से मुझे देख रही थी, उसकी नजरों में नाराजगी फिर से लौट आई थी क्योंकि मैंने पहले तो खुद को उसका चाचा कहा और दूसरा मैंने उससे बात कुछ इस तरह शुरू की थी जैसे की नेहा को 5 साल पहले का कुछ याद ही न हो?! नेहा का गुस्सा जायज था पर मैं भी क्या करता, अपनी बेटी का गुनहगार मैं उससे बात करने से घबरा रहा था और इसी घबराहट में मैंने नेहा से इस तरह बात शुरू की थी!

नेहा वो gift लेने से झिझक रही थी पर जब उसने मेरी आँखों में आँसूँ देखे तो उसने बेमन से वो gift ले लिया;

नेहा: थैंक यू....

नेहा आगे कुछ कहने वाली थी, पर फिर उसने अपने शब्दों को रोक लिया और शिकायती नजरों से मुझे देखने लगी| नेहा की शिकायती नजरों के बाण मुझे चुभने लगे थे, मुझ में हिम्मत नहीं थी की मैं उससे नजरें मिलाऊँ इसलिए मैंने उससे नजरें चुराते हुए आयुष को देखा| आयुष मेरे हाथ में gift देख कर खुश था पर साथ ही उसके मन में एक जिज्ञासा थी की सामने बैठा आदमी आखिर है कौन? उसकी जिज्ञासा मैंने पढ़ ली थी, मेरा मन कर रहा था की मैं उसे गले लगा लूँ और उसे सब सच कह दूँ मगर मैं भौजी की इज्जाजत उनके बेटे के सामने ख़राब नहीं करना चाहता था|

मैं: आयुष बेटा.....

इतना कह मैं दो सेकंड के लिए रुक गया क्योंकि मेरे आँसूँ छलकने वाले थे;

मैं: ये आपके लिए!

मैंने आयुष को उसका gift दिया, लेकिन आयुष अपनी मम्मी की ओर देखते हुए बिना कुछ कहे उनकी आज्ञा माँगने लगा, भौजी ने सर हिला कर हाँ कहा तब जा कर आयुष ने मुझसे अपना gift लिया! मुझे उसका अपनी मम्मी से आज्ञा माँगना भा गया, एक पल को दिल को ख़ुशी हुई की भौजी ने आयुष को अच्छे संस्कार दिए हैं| अपना गिफ्ट बिना खोले सिर्फ वजन के अंदाजे से आयुष जान गया की उसमें जर्रूर कोई खिलौना है और ये सोच कर ही चेहरे पर एक अनमोल मुस्कान आ गई| आयुष ने अपनी दीदी (नेहा) का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ खेलने के लिए अंदर कमरे में ले जाने लगा, लेकिन नेहा मुझे देखते हुए अब भी कुछ सोच रही थी, ऐसा लगा वो कुछ कहना चाहती हो पर कहने की हिम्मत न कर पा रही हो! एक बार का तो मन हुआ की उसे रोक लूँ और पूछूँ पर नहीं, अब मेरा उस पे कोई हक़ नहीं था| आयुष को अपने इतना नजदीक देख के उसे छूना चाहा, गले लगाना चाहा, आखिर वो मेरा खून था मगर उसे अपने रिश्ते की परिभाषा देने से डर गया!



दोनों बच्चे जब कमरे के अंदर जा रहे थे तो मेरी नजरें उनका पीछा कर रहीं थीं और मेरी लाख कोशिशों के बाद भी मेरी आँखों से आँसूँ छलक आये! भौजी मेरी दशा समझ रहीं थीं तथा मन ही मन खुद को कोसें जा रहीं थीं जिसका सबुत उनकी आँखों ने आँसूँ बहा कर दिया| भौजी खामोश थीं और मैं भी, कुछ पाँच मिनट तक खामोश बैठा रहा और खुद को संभालने की कोशिश करता रहा| नेहा का उखड़ा व्यवहार मुझे कचोटे जा रहा था और भौजी के प्रति मेरा गुस्सा उबलने लगा था| जब से भौजी आईं थीं तब से कई बार मैंने अपने मन में उठ रहे ख्यालों तथा सवालों में 'भौजी' शब्द का इस्तेमाल किया था, वक़्त था आज ये शब्द पुनः बोल कर भौजी को दर्द की सुई चुभाई जाए! लेकिन तभी मुझे याद आया की 'भौजी' तो मैं उन्हें अपने बचपन में कह कर बुलाता था, ये शब्द सुन कर उन्हें वो दर्द नहीं होगा जो मैं चाहता हूँ! 'भाभी' दिमाग ने बदला लेने के लिए मुझे बड़ा ही उपयुक्त शब्द सुझाया, ये ऐसा शब्द था जिसे सुन कर भौजी के दिल के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और उन्हें पता लगता की मैंने कितने भारी मन से 'चाचा' शब्द कहा था!

मैं: तो कहिये "भाभी" क्या काम है आपको?

मैंने भाभी शब्द पर बहुत जोर दे कर कहा| जैसे ही भौजी ने मेरे मुँह से अपने लिए 'भाभी' शब्द सुना उनका दिल टूट कर चकनाचूर हो गया, वो एकदम से मेरे पास आ कर बैठ गईं जैसे की कोई पेड़ लक्कड़हारे के काटने से गिर पड़ता है! भौजी की आँखों से गंगा-जमुना तेजी से बहने लगी थी, उनके सारे जिस्म में त्रास का ज्वालामुखी फ़ट चूका था| भौजी जानती थीं की मैंने उन्हें तड़पाने के लिए ये शब्द जानबूझ कर कहा है और क्यों कहा है| भौजी में हिम्मत नहीं बची थी की वो मुझे कुछ कह सकें इसलिए वो अपनी आँसूँ बहाती हुई आँखों से मुझे देख रहीं थीं और मूक भाषा में मुझसे माफ़ी माँग रहीं थीं;

मैं: क्या हुआ?

मैंने अनजान बनने का नाटक करते हुए कहा| मैंने ऐसे दिखाया जैसे मुझे उनके बहते हुए आँसूँ और उनकी मूक शब्दों में माँगी माफ़ी समझ ही न आई हो! मगर मैं इतना पत्थर दिल नहीं था, भौजी के आँसूँ देख कर मेरा दिल पिघलने लगा था, मैं कमजोर पड़ कर उन्हें माफ़ न कर दूँ इसलिए मैंने वहाँ से जाने का फैसला किया,

मैं: मैं जा रहा हूँ!

मैं उठ कर जाने लगा तो भौजी ने एकदम से अपने आँसूँ पोछे और मुझसे सवाल पुछा;

भौजी: आप तो मुझे "जान" कहके बुलाया करते थे न?

ये सवाल भौजी ने मेरा मन टटोलने के लिए किया था, मगर उनके इस सवाल ने मेरे गुस्से की आग को और भड़का दिया;

मैं: कहता था, जबतक आपने मुझे ऐसे अपराध की सजा नहीं दी थी जो मैंने किया ही नहीं था| फिर अब रहा ही क्या है हमारे बीच जो मैं आपको 'जान' कहके बुलाऊँ?

ये सुन भौजी की आँखों से फिर आँसूँ बह निकले!

भौजी: कुछ नहीं रहा हमारे बीच?

भौजी ने रुनवासी होते हुए पुछा;

मैं: नहीं मैं अब किसी और से प्यार करता हूँ|

मैंने भौजी को जलाने के लिए कहा|

ये सुनते ही भौजी बिफर कर रो पड़ीं, आज उन्हें यूँ रुला कर मुझे बुरा लग रहा था मगर फिर भी मैं ऐसे दिखा रहा था की मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, लेकिन उन्हें रोता देख मेरा दिल कचोटने लगा था!

भौजी: ठीक है!

भौजी ने अपने रोने पर काबू कर सुबकते हुए कहा|

मैं: तो कुछ काम है मेरा की मैं जाऊँ?

मुझसे भौजी की ये रोनी सूरत नहीं देखि जा रही थी इसलिए मैं वहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना चाहता था|

भौजी कुछ नहीं बोलीं और टकटकी बाँधें मुझे देखने लगीं, अपनी नजरों से वो मेरी आत्मा को टटोल रहीं थीं की क्या मैं सच कह रहा हूँ या उन्हें जला रहा हूँ?! उन कुछ पलों के लिए मेरी और भौजी की आँखें मिलीं, पर इससे पहले की हमारे नजरें कुछ बात कर पातीं मुझे अंदर वाले कमरे से बच्चों के खेलने की आवाज सुनाई देने लगी! आयुष हवाई जहाज हाथ में लिए अंदर के कमरे में दौड़ रहा था और अपने मुँह से हवाई जहाज के इंजन की आवाज निकाल रहा था! बच्चों की किलकारियाँ सुन मेरा मन हुआ की उन्हें खेलते हुए देखूँ, मैं एक कदम आगे बढ़ा हूँगा की अचानक से रुक गया क्योंकि दिमाग मुझे डराए जा रहा था की मेरे अंदर जाने से नेहा की हँसी गुस्से में बदल जायेगी और आयुष मुझे फिर अजनबी की तरह देखेगा!

मुझे अंदर न जाता देख भौजी अस्चर्य में पड़ गईं, वो नहीं जानती थीं की मेरे दिमाग में क्या उथल-पुथल मची हुई है! अनजाने में भौजी ने ऐसा सवाल पुछा जिससे मेरा गुस्सा पुनः धधकने लगा;

भौजी: आप आयुष को गले नहीं लगाओगे?

भौजी का सवाल सुनते ही मैंने उन्हें ताना मरते हुए कहा;

मैं: किस हक़ से? ओह! याद आया चाचा जो हूँ उसका!

मेरा खुद को आयुष का चाचा कहना भौजी को चुभा और वो थोड़ा गुस्से में बोलीं;

भौजी: आप ऐसा क्यों कह रहे हो?

भौजी नहीं जानती थीं की उनके थोड़े से गुस्से ने मेरे अंदर के ज्वालामुखी को फटने पर मजबूर कर दिया है, मैं उन पर चिल्लाते हुए बोला;

मैं: (हुँह) मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? मेरी बात का जवाब दो, क्या आपने कभी उसे (आयुष को) बताय की मैं उसका कौन हूँ? या मेरे और उसका क्या (आयुष का) रिश्ता है? अरे ये तो छोडो आपने उसे मेरे बारे में कुछ भी बताया?

मेरे सवाल सुन भौजी ने पलट कर मुझे ही दोषी बनाना चाहा;

भौजी: कैसे बताती, आप कभी आये ही नहीं मिलने!

भौजी को मुझे दोषी कहने का कोई हक़ नहीं था इसलिए मैंने उन्हें शर्मिंदा करते हुए उस सच से रूबरू कराया जो इतने सालों से मरे सीने में दफन था;

मैं: कैसे आता? आपके आखरी कॉल वाले दिन मैं आपको खुशखबरी देना चाहता था की मेरे स्कूल की दशेरे की छुटियाँ पंद्रह अक्टूबर से शुरू होंगी, मगर आपने मेरी बात सुने बिना अपना फरमान सुना दिया और मुझे खुद से और मेरे बच्चों से दूर कर दिया!

भौजी को सच पता चला तो वो मुँह बाए मुझे देखने लगीं|

मैं: मेरी तस्वीर तो थी ना आपके पास?

मेरी इस बात का तातपर्य था की वो आयुष को मेरी तस्वीर दिखा कर उसे मेरे बारे में कुछ तो बता सकती थीं, ताकि आज जब मैं उससे मिला तो कमसकम उस रिश्ते से ही मैं उसे अपने गले लगा सकता था| ये कहते हुए मैंने भौजी को इस कदर शर्मिंदा कर दिया की उनका सर झुक गया और आँखों से ग्लानि भरे आँसूँ टपकने लगे|



भौजी को इस कदर शर्मिंदा कर के मुझे चैन मिला था, मैं पलट कर जाने लगा तो नेहा पीछे से आई और मेरी कमीज पीछे से खींचते हुए बोली;

नेहा: पापा!

नेहा की मासूमी से भरी आवाज मैं 'पापा' सुन मैं अपने घुटनों पर गिर पड़ा और नेहा को कस कर अपने सीने से लगा लिया| इतने सालों बाद अपनी बेटी के मुँह से 'पापा शब्द सुन कर मैं भाव-विभोर हो गया और मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसूँ भर आये, नेहा को गले लगाने की तमन्ना आज पूरी हुई और मेरे दिल ने उसके छोटे से धड़कते दिल की धड़कन को सुनना शुरू कर दिया| इधर नेहा ने अपने हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द कस कर लपेट लिया, उसकी पकड़ में आई कसावट उसके प्रेम को दर्शा रही थी और अपने इसी प्रेम में बहते हुए उसकी आँखें भी भर आईं थी! दो मिनट के इस पिता-पुत्री मिलन ने दोनों को ही तृप्त कर दिया था! मैंने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए नेहा के आँसूँ पोछे और नेहा ने मेरे आँसूँ पोछते हुए कहा;

नेहा: पापा I missed you so much!

उसके मुँह से अंग्रेजी सुन कर मेरा दिल गदगद हो गया और मैंने सालों बाद उसके माथे को चूमते हुए कहा;

मैं: I missed you too मेरा बच्चा!

मेरे मुँह से 'मेरा बच्चा' सुनना नेहा को बहुत अच्छा लगता था, आज इतने साल बाद ये दो शब्द दुबारा सुन नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई| लेकिन फिर अगले ही पल उसने अपने मन में उठ रहे सवाल को पुछा;

नेहा: आपने कहा था ना की आप 'मुझसे' मिलने दशेरे की छुटियों में आओगे, फिर आप क्यों नहीं आये?

नेहा ने 'मुझसे' शब्द पर जोर डालते हुए कहा| नेहा का सवाल सुन कर एक पल को तो मन हुआ की मैं उसे सब सच बता दूँ, मगर फिर मैं रुक गया क्योंकि सच्चाई जानकार नेहा अपनी माँ से नफरत करने लगती, इसलिए मैंने सारा इल्जाम अपने सर ले लिया;

मैं: बेटा.... वो मैं......Sorry मैं अपना वादा पूरा नहीं कर पाया|

ये कहते हुए मेरी आँखें फिर भीग गई थीं, पर नेहा ने मेरे आँसूँ पोछे और अपनी वही पुरानी भोली सी मुस्कान लिए बोली;

नेहा: It's okay पापा| लेकिन अब तो आप कहीं नहीं जाओगे न?

नेहा ने बहुत जल्दी मुझे माफ़ कर दिया था और मेरे लिए उसकी माफ़ी ही सब कुछ थी, मगर फिर भी उस छोटी सी बच्ची के दिल में डर था की कहीं मैं उसे फिरसे अकेला छोड़ कर तो नहीं चला जाऊँगा?

मैं: नहीं बेटा, मैं आपके दादा जी के घर पर ही रहता हूँ, आपका जब मन चाहे आ जाना और याद रहे ये 'पापा' वाला secret हमारे बीच रहे!

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| इतने साल बाद नेहा से मिल कर भी मुझे डर लगता था की कहीं वो बच्ची भावनाओं में बहते हुए सब के सामने मुझे पापा न कह दे! नेहा ने मेरी बात सुन कर पहले की तरह अपना सर हाँ में हिलाया और उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान तैरने लगी|



मैं उठा और एक पल के लिए भौजी को देखने लगा, उनकी आँखों से अब भी आँसूँ बाह रहे थे! ये देख मैं समझ नहीं पाया की वो खुश है या दुखी? खैर उन्हें और देख कर मैं अपना मन खराब नहीं करना चाहता था, मैंने नेहा को 'bye' कह कर जाने लगा तो भौजी ने फटाफट अपने आँसूँ पोछे और बोलीं;

भौजी: जानू प्लीज...1 मिनट रुकिए!!!

उनकी बात सुन मैं उनकी तरफ पीठ किये हुए रूक गया, भौजी ने आयुष को आवाज मारी;

भौजी: आयुष...बेटा इधर आओ|

मैं समझ गया की भौजी क्या चाहतीं हैं, मैंने सोचा की मैं यहाँ और नहीं रुकूँगा और बाहर जाने को एक कदम आगे बढ़ाया ही था की नेहा ने मेरे दाएँ हाथ की ऊँगली पकड़ के मुझे रोक लिया| मैंने पलट कर नेहा की ओर देखा और उसे समझाना चाहा लेकिन तभी आयुष मेरा दिया हुआ हवाई जहाज वाला खिलौना हाथ में लिए हुए कमरे से बाहर आ गया| मैं आयुष की तरफ मुड़ा, फिर एक बार मन में उसे (आयुष को) गले लगाने की हूक़ उठी पर दिमाग ने जैसे-तैसे उस हूक़ को दबा दिया और मेरे बढे हुए कदम एक बार फिर रूक गए!

भौजी: बेटा ये आपके पापा हैं|

भौजी मेरी तरफ इशारा करते हुए एकदम से बोलीं| उनकी बात सुन आयुष के चेहरे से ख़ुशी गायब हो गई और वो हैरत भरी आँखों से मुझे देखने लगा| आयुष के चेहरे से गायब होती हुई ख़ुशी देख मैंने फ़ौरन भौजी की बात संभालते हुए कहा;

मैं: चाचा....मैं आपका चाचा हूँ!

लेकिन मेरे जवाब ने आयुष को संतुष्ट नहीं किया था, वो अब भी सवालिया नजरों से मुझे देख रहा था| इधर मुझे खुद को आयुष का 'चाचा' कहने में फिर से तकलीफ हो रही थी!

मैं: और बेटा आपको Thanks कहने की कोई जर्रूरत नहीं, आप जाओ और अपनी दीदी के साथ खेलो|

मैंने आयुष का ध्यान भंग करते हुए कहा और नेहा को अपने भाई के साथ खेलने जाने को इशारा किया| नेहा ने आयुष का हाथ पकड़ा और उसे खेलने के लिए अंदर ले गई, दोनों बच्चों के जाने के बाद हॉल में सन्नाटा छा गया| मैं और भौजी ख़ामोशी से खड़े थे, भौजी की नजर मुझ पर थी और मेरी उस कमरे के दरवाजे पर जहाँ बच्चे खेल रहे थे| मेरा दिल बच्चों के पास जाना चाहता था, उनके साथ खेलना चाहता था, उनसे जी भर कर बातें करना चाहता था लेकिन भौजी की वजह से मैं अंदर नहीं जा पा रहा था! मुझे ख़ामोशी से दरवाजे को देखता हुआ देख भौजी फिर रो पड़ीं, मेरा आयुष को खुद से दूर रखना भौजी के दिल को चीर गया था|

भौजी के रोने की आवाज सुन मैंने उन्हें देखा तो एक पल को मेरा दिल पसीज गया, लेकिन खुद को पत्थर के समान कठोर कर मैं अपनी जगह खड़ा रहा और उन्हें संभालने के लिए अपने कँधे का सहारा तक नहीं दिया! 'क्यों दूँ मैं उनको सहारा, जब मैं रो रहा था तब मुझे सहारा देने वो आईं थीं यहाँ? नहीं! तब तो मुझे तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया था, तो अब आपकी बारी है और महसूस करो की तड़प क्या होती है?' मेरा गुस्से से भरा दिमाग बोला| लेकिन मन ससुरा पिघलने लगा था वो भौजी की तरफ बहने लगा था, तभी दिमाग ने उसे भौजी द्वारा किये गए धोके को याद दिलाया और जुबान से जहर में लिब्डे, कड़वे शब्द बाहर आये;

मैं: क्यों जबरदस्ती के रिश्ते बाँध रहे हो?

ये सुन भौजी के दिल में बसा मेरा प्यार गुस्से के रूप में बाहर आया, उन्होंने अपने आँसूँ पोछे और बोलीं;

भौजी: जबरदस्ती के? वो आपका बेटा है, आपका अपना खून है!

भौजी का यूँ मुझ पर अधिकार जताना मुझे गुस्सा दिला रहा था इसलिए मैंने उन्हें ताना मारते हुए कहा;

मैं: Thanks बताने के लिए!

मेरा ताना सुन भौजी रोते हुए मेरी मिन्नत करने लगीं;

भौजी: प्लीज...प्लीज.....एक बार मेरी बात सुन लो!.. ...प्लीज...प्लीज....!

भौजी ने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए|

मैं: चाहूँ तो मैं अभी जा सकता हूँ और आप अच्छे से जानते हो की मैं कभी नहीं लौटूँगा! जो सफाई आप मुझे देना चाहते हो वो आपके अंदर ही दब कर रह जाएगी, मगर मैं आपकी तरह नहीं हूँ, आपने तो उस दिन मुझे अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया था लेकिन मैं जर्रूर दूँगा! बोलो क्या बोलना है आपको?

ये कहते हुए मैं हाथ बाँधे खड़ा हो गया, मुझे भी जानना था की भौजी को क्या बहाना मारना है?!

भौजी: मैंने कभी आपका कोई इस्तेमाल नहीं किया, मेरे मन में कभी भी ऐसा ख्याल नहीं आया की मैं आपको USE कर रही हूँ| मैं ने आपसे आजतक सच्चे दिल से प्यार किया है और ताउम्र आपसे प्यार करती रहूँगी! आप ही के कारन तो मुझे इस परिवार में वो इज्जत मिली, वो प्यार वापस मिला जो नेहा के पैदा होने के बाद मुझसे छीन लिया गया था| सिर्फ मैं ही नहीं नेहा को भी थोड़ा-बहुत जो प्यार अपनी दादी और दादा (बड़की अम्मा और बड़के दादा) से मिला वो भी सिर्फ आप ही के कारन मिला! आपके दिल्ली लौट आने के बाद हम रोज फ़ोन पर बातें करते थे, मेरे माता-पिता ने इसको ले कर मुझसे सवाल पूछने शुरू कर दिए थे! हमारा प्यार उन्हें खटक रहा था और मेरे लिए उन्हें जवाब दे पाना मुश्किल हो रहा था! मुझे लगा की लोगों का यूँ हम पर ऊँगली उठाना आपके और मेरे लिए अच्छी बात नहीं! मुझे ये भी एहसास होने लगा की मैं इस तरह रोज-रोज आपसे फ़ोन पर बात कर के आपका समय बर्बाद कर रही हूँ, जिस कारन आप पढ़ाई के प्रति लापरवाह हो रहे हो! इन्हीं सब कारणों से मैंने खुद को आपसे दूर किया ताकि आप अच्छे से पढ़ाई में अपना मन लगा सको!

भौजी की बात खत्म होते ही मैं उन पर गुस्से से बरस पड़ा;

मैं: Oh please! Don’t gimme that bullshit story again! असली बात ये है की आपसे अपने माँ-पिताजी को जवाब देते नहीं बन रहा था की आप क्यों मुझसे रोज बात करते हो?!

ये सुन भौजी का सर शर्म से झुक गया|

मैं: क्या मैंने कभी आपसे कहा की मैं पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पा रहा? भूल गए class test में मेरे कितने अच्छे नंबर आये थे? आपके साथ डेढ़ महीना बिताने के बाद सिर्फ 15 दिन....FUCKING 15 दिन में मैंने अपना सारा holiday homework खत्म कर दिया था! What else you wanted me to do? You knew everything.... FUCKING EVERYTHING BUT आपको वो सब याद थोड़े ही था?

मैं गरजते हुए भौजी से बोला|

मैं: जानते हो मैं पढ़ाई में क्यों अच्छा था, क्योंकि आप मेरी प्रेरणा (Inspiration) थे! मैं जानता था की अगर मैं पढ़ाई को ले कर कोई ढिलाई बरतूँगा तो आपका दिल दुखेगा इसलिए मैं आपको शिकायत का कोई मौका नहीं देना चाहता था| क्या फायदा हुआ इतनी क़ुरबानी दे कर, क्योंकि आप की वजह से पढ़ाई में मेरे नंबर बढ़ने के बजाए घटने लगे! एक घंटा...बस दिन में एक घंटा आप से बात करता था न, वो एक घंटा आप कहीं छुप कर मुझसे बात नहीं कर सकते थे? इसके सिवा मैंने आपसे कभी कुछ माँगा था?

मैंने भौजी को झिंझोड़ते हुए सवाल पुछा|

मैं: What if I've committed suicide over our last telephonic conversation? Would you ever be able to forgive yourself?

ये सुन भौजी को जोरदार झटका लगा और वो गिड़गिड़ाते हुए मुझसे बोलीं;

भौजी: प्लीज...प्लीज...ऐसा मत कहिये, आपको कुछ हो जाता तो मैं भी अपनी जान दे देती! मैं मानती हूँ की गलती मेरी थी, मुझे फैसला लेने से पहले आपको पूछना चाहिए था? मैंने बहुत बड़ी गलती की है...Punish Me!

भौजी रोते हुए बोलीं| उनका यूँ सजा की माँग करना सुन मुझे और गुस्सा आने लगा;

मैं: Punish you? You gotta be kidding me! क्या ये इतनी छोटी गलती है की मैं आपको उठक-बैठक करने की सजा दूँ और बात खत्म! आपने....You ruined everything…everything!

मैंने अपने दाँत पीसते हुए खुद को गाली देने से रोकते हुए कहा|

भौजी ग्लानि से बेहाल थीं, वो मेरे सामने अपने घुटनों पर गिर गईं और बिलख-बिलख कर रोने लगीं तथा मेरा बायाँ पाँव अपने दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया| उन्हें यूँ अपने सामने बिखरा हुआ देख मेरा सब्र टूटने लगा| मैंने भौजी से बहुत प्यार किया था और शायद अब भी करता हूँ, फिर मुझे मेरी प्यारी बेटी नेहा मिल गई थी, उसे पा कर मैं तृप्त था इसलिए मैंने भौजी की पकड़ से अपनी टाँग निकाली और तीन कदम पीछे जाते हुए बोला;

मैं: Despite everything you did to me……. I forgive you! This is the least I can do!

मैंने भौजी को माफ़ कर दिया लेकिन उन्होंने जो मेरे साथ किया उसे कभी भूल नहीं सकता था| मैंने भौजी से आगे कुछ नहीं कहा और वहाँ से घर लौट आया|


जारी रहेगा भाग - 5 में....
Gajab emotional update gurujii :cry2:
Shabd nhi h.........

Mujhe thodi kami ye lgi shyad apne neha ke scene ko short me nipta diya
Ise thoda aur bdiya, emotional tarike se detail me describe kiya ja sakta tha
Khair update vaqai bhut bdiya tha, khani ab majedar part me h
 
Last edited:

Rockstar_Rocky

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Gajab emotional update gurujii :cry2:
Shabd nhi h.........

Mujhe thodi kami ye lgi shyad apne neha ke scene ko short me nipta diya
Ise thoda aur bdiya, emotional tarike se detail me describe kiya ja sakta tha
Khair update vaqai bhut bdiya tha, khani ab majedar part me h

धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
कल मिली warning के कारन मैंने पिता-पुत्री मिलन को ज्यादा detail में नहीं लिखा, वो दो मिनट गले लगना तो शुरुआत थी, अगली अपडेट नेहा की खिली हुई मुस्कान से भरी होगी!
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
कल मिली warning के कारन मैंने पिता-पुत्री मिलन को ज्यादा detail में नहीं लिखा, वो दो मिनट गले लगना तो शुरुआत थी, अगली अपडेट नेहा की खिली हुई मुस्कान से भरी होगी!
Oh chalo koi bat nhi ?
 

Arvind274

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Bhai ji aapki lekhni ki kya tareef kru bs sabbd nhi mere pas. Pr yha bhauji ke rawaiye ko dekh kr aisaha lag rha hai ki sayad hi unhe apne kiye hue pr koi pachtawa y malal ho. Itni aasani se to bhauji ko to mat chodna yar.aakhir in 5 saalow me gusse me liye hue ek -ek paig :beer2: ka badla jo Lena hai bhauji se. Waiting for next bhai ji.
 
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Rockstar_Rocky

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Rockstar_Rocky

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इसी लिए तो बच्चों पे नूर सा बरसता है,
शरारतें करते हैं, साजिशें तो नहीं करते…....!!!
Shandar Update...Sir.
keep posting... :loveeyed2: ?

मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते!

धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
 
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