• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
8,942
36,794
219
Waiting Sir.

Update coming up in 3...2...1....

giphy.gif
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
8,942
36,794
219
तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 1


अब तक आपने पढ़ा:

भौजी: Oh come on! Let's forget everything and start a fresh!

भौजी नई शुरुआत करना चाहतीं थीं!

मैं: That's something I’ll have to think about!

लेकिन मैं फिर से एक नई शुरुआत के लिए तैयार नहीं था! मेरा दिल एक बार टूट चूका था, बच्चों के प्यार ने उसे सँभाला था इसलिए मैं दुबारा दिल टूटने का जोखम नहीं उठाना चाहता था!



अब आगे:


आगे हमारी बात हो पाती उससे पहले ही माँ का फोन आ गया;

माँ: सूप बन गया है, आ कर ले जा और बहु को अपने सामने पीला दियो!

इतना कह माँ ने फ़ोन रख दिया और भौजी को मेरी नई शुरुआत करने पर विचार करने वाली बात पर कुछ कहने का मौका नहीं मिला| मैं घर जाने को उठा था की दोनों बच्चे समोसे ले कर आ गए, नेहा ने बचे हुए पैसे और समोसे का पैकेट मुझे दे दिया|

मैं: बेटा आप दोनों खाओ मैं आपकी मम्मी का सूप ले कर आ रहा हूँ|

बच्चों ने समोसे खाना शुरू किया और मैं सूप लेने घर लौटा, माँ ने सूप थर्मस में भर रखा था| थर्मस देते हुए माँ ने मुझे एक बार और सख्ती से कहा;

माँ: जब से बहु आई है तब से तेरे बारे में मुझसे सैकड़ों बार पूछ चुकी है| सारा टाइम तू या तो काम पर रहता है या घूमता रहता है, अपने बचपन की दोस्त को ऐसे सताना अच्छी बात नहीं! दुबारा बहु बीमार पड़ी तो तेरी खैर नहीं!

मेरी भोली-भाली माँ को लगता था की भौजी और मेरे बीच अब भी वो बचपन की दोस्ती वाला रिश्ता बरकरार है तथा उसी रिश्ते के कारण भौजी ने खाना पीना छोड़ दिया है| अब वो क्या जाने की यहाँ उनका लड़का किस कश्मकश में फँसा है, भौजी के साथ नई शुरुआत करे या फिर एक दोस्त बन कर दूरी बनाये रखे!



खैर सूप ले कर मैं भौजी के पास लौटा और गिलास में डालकर उन्हें पीने के लिए दिया, मगर भौजी बच्चों की तरह हट करने लगीं की मैं उन्हें सूप अपने हाथ से पिलाऊँ! उनका ये हट देख मुझे हँसी आई और मैंने उन्हें धीरे-धीरे सूप पिलाना शुरू किया| दोनों बच्चे सामने बैठे समोसे खा रहे थे, नेहा उठी और मेरे मुँह के सामने समोसे का एक छोटा टुकड़ा मुझे खिलाने को लिए ले कर खड़ी हो गई| मैंने वो टुकड़ा खाया तो आयुष भी अपनी दीदी की देखा-देखि मुझे समोसा खिलाने के लिए खड़ा हो गया| दोनों बच्चों ने बारी-बारी से मुझे समोसा खिलाया, अब दोनों बच्चों ने कभी सूप नहीं पिया था तो आयुष अपनी प्यारी आवाज में बोला;

आयुष: पापा सूप क्या होता है?

थर्मस में थोड़ा सूप बचा था तो मैंने नेहा को एक गिलास लाने को कहा और उस गिलास में दो घूँट बचा हुआ सूप डाल दिया| दोनों बच्चों ने बारी-बारी से सूप पिया और मुँह बिदकते हुए बोले;

आयुष: इसमें तो बस नमक है!

नेहा: ये तो बस पानी है!

दोनों को मुँह बिदकते हुए देख तथा उनकी बचकानी बात सुन मैं और भौजी हँस पड़े|

मैं: बेटा सूप बीमार लोगों को देते हैं, सब्जियों को पानी के साथ उबालते हैं तथा इसमें मिर्ची और मसाले इसलिए नहीं डालते ताकि बीमार इंसान को पीने में तकलीफ न हो| एकबार आपकी मम्मी ठीक हो जाएँ फिर मैं आप दोनों को chinese सूप पिलाऊँगा, वो बहुत स्वाद होता है!

Chinese सूप पिने के नाम से दोनों बच्चे खुश हो गए| भौजी ने सूप पिया और मैंने तथा बच्चों ने समोसे खा कर सुबह का नाश्ता कर लिया, उधर घर पर माँ दोपहर का खाना बनाने में लगी हुईं थीं|



अंततः सब खुश थे, मगर अब भी कुछ तो था, जो नहीं था!



दोपहर को खाने के समय पिताजी घर आये और जब उन्हें आज के घटनाक्रम का पता चला तो उन्होंने मुझे घर बुला कर बहुत डाँटा! भौजी का खाना ले कर मैं और माँ भौजी के घर पहुँचे, भौजी चाहतीं थीं की मैं उन्हें खाना खिलाऊँ मगर माँ की मौजूदगी में ये कैसे होता?! खैर भौजी ने पूरा खाना खाया और इस दौरान माँ ने भौजी को बातों में लगाए रखा| भौजी का खाना हुआ तो माँ ने मुझे डाँटते हुए कहा;

माँ: बच्चे यहाँ बहु के पास हैं तब तक तू भी खाना खा ले!

मैं सर झुका कर माँ के साथ घर लौट आया, कल से एक ही कपडे पहने था इसलिए नहा धो कर मैं खाना खाने बैठ गया| इतने में नेहा आ गई और मेरी बगल में कुर्सी खींच कर बैठ गई, नेहा को खाने के लिए बैठा देख माँ बोली;

माँ: मुन्नी और भूख लगी है तो खाना परोसूँ?

लेकिन मेरी बेटी मुस्कुराते हुए न में गर्दन हिलने लगी|

मैं: वो क्या है न माँ, आज घर पर हूँ इसलिए मेरी बच्ची को मेरे हाथ से दो कौर खाना है!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाने लगी! माँ ने मेरी थाली में थोड़े चावल और परोस दिए ताकि नेहा पेट भर कर खाये| मैंने नेहा को खाना खिलाया और वो कूदती हुई मेरे कमरे में चली गई| मैंने खाना खाया और माँ से कहा की मैं सोने जा रहा हूँ| कल रात से जागा था और अभी तो मेरे पास नेहा भी थी इसलिए अभी तो मुझे बड़ी मजेदार नींद आने वाली थी!

दोनों बाप-बेटी चैन की नींद सोये और उधर माँ भौजी के पास थीं ताकि वो अकेला न महसूस करें! मेरी नींद 5 बजे खुली, आज सालों बाद मेरे दिल में खुशियाँ भरीं थीं और मैं इन खुशियों के लिए भगवान को धन्यवाद कहना चाहता था| मैं धीरे से उठा ताकि नेहा जाग न जाए, पर जैसे ही मैं उठ कर बैठा नेहा की नींद खुल गई और वो मेरी पीठ पर सवार हो गई! मैंने नेहा से मंदिर जाने की बात कही तो नेहा फटाफट तैयार होने लगी| दोनों बाप-बेटी तैयार हो कर मंदिर पहुँचे, माथा टेक कर आँखें बंद किये हाथ जोड़कर मैं मन ही मन भगवान को आज के दिन के लिए धन्यवाद कहने लगा| उधर नेहा मुझे देख कर मेरी नकल करते हुए अपने हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी| जब मेरी प्रार्थना खत्म हुई तो मैंने नेहा को देखा जो अब भी आँखें बंद किये हुए प्रार्थना कर रही थी| छोटे बच्चे जब अपने छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं तो वो बहुत प्यारे लगते हैं! मैं भी मुस्कुराते हुए नेहा को प्रार्थना करते हुए देख रहा था, जब नेहा ने आँखें खोलीं और मुझे खुद को देखते हुए देखा तो वो ख़ुशी से चहकने लगी| पंडित जी से प्रसाद ले कर हम दोनों भौजी के घर पहुँचे, दोनों बाप-बेटी के माथे पर टीका देख माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: क्या बात है, आज तुझे मंदिर जाने का मन हो गया?!

माँ का सवाल सुन भौजी को थोड़ी हैरानी हुई, मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा;

मैं: कभी-कभी भगवान को भी मिलने जाना चाहिए, उनकी रहमत के लिए उन्हें धन्यवाद कहना चाहिए!

मेरा जवाब सुन भौजी मंद-मंद मुस्कुराने लगीं क्योंकि वो मेरे मंदिर जाने का कारन समझ गईं थीं| वहीं जैसे ही मैंने आयुष को प्रसाद दिया उसने 'गप' से प्रसाद खा लिया तथा और प्रसाद माँगने के लिए अपने छोटे-छोटे हाथ जोड़कर फैलाये! आयुष का ये बचपना देख हम सब हँस पड़े!

भौजी: माँ आयुष को न प्रसाद बहुत पसंद है!

भौजी की बात सुन मैं मन ही मन बोला; 'बिलकुल बाप पर (यानी मुझ पर) गया है!' जब मैं छोटा था तो मीठा खाने का बहुत शौक़ीन था, मंदिर का प्रसाद हो या हलवा, खीर, मिठाई! कुछ भी मीठा मेरे पास सुरक्षित नहीं होता था!



हँसी-ख़ुशी समय बीता और रात के खाने का समय हो गया| रात को चन्दर लौट आया था और रात घर ही रुकने वाला था| सबसे पहले दोनों बच्चों, चन्दर और पिताजी ने खाना खाया, इस दौरान मैं भौजी के पास बैठा था| हमारी बातें हो पातीं उससे पहले ही मुझे दिषु का फ़ोन आ गया, अपनी आखरी ऑडिट में टैक्स के अमाउंट को ले कर हम दोनों चर्चा करने लगे| इस दौरान भौजी चेहरे पर मुस्कान लिए मुझे बड़े गौर से देख रहीं थीं, मेरी नजर भी जब उनके चेहरे पर पड़ी तो दिल को एक अनजानी सी ठंडक का एहसास हुआ|

इतने में दोनों बच्चे आ गए और मुझसे लिपट गए| मैंने दिषु से बात खत्म की और दोनों बच्चों को एक साथ अपनी बाहों में भर लिया|

नेहा: पापा मैं आज आपके पास सोऊँगी|

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा;

मैं: बेटा आप अगर मेरे पास सोओगे तो आपकी मम्मी का ख्याल कौन रखेगा?

ये सुन कर नेहा सोच में पड़ गई और फिर एकदम से जिम्मेदार बनते हुए बोली;

नेहा: ठीक है पापा, जब तक मम्मी ठीक नहीं होती मैं यहीं सोऊँगी!

मैंने नेहा के माथे को चूम कर उसे आशीर्वाद दिया तो आयुष भी जोश में बोला;

आयुष: मैं भी मम्मी का ख्याल रखूँगा!

आयुष का जोश देख मैंने उसे गोद में उठा लिया और उसके दोनों गालों की मीठी-मीठी पप्पी लेते हुए बोला;

मैं: Awww मेरा बहादुर बच्चा! आप न अपनी दीदी के साथ मिल कर अपनी मम्मी का ख्याल रखना| Okay?

मेरी बात सुन कर दोनों बच्चों ने एक साथ हाँ में गर्दन हिलाई और दोनों फिर से मुझसे लिपट गए|



खाना खा कर मैं चैन से सोया और सुबह जल्दी उठ गया, फ्रेश हो कर मैं अपने कमरे से बाहर आया तो सारा घर भरा-भरा लग रहा था| चन्दर और पिताजी डाइनिंग टेबल पर बैठे चाय की पी रहे थे, माँ और भौजी बैठक में बैठे सब्जी काट रहे थे और दोनों बच्चे खेल रहे थे| जैसे ही दोनों बच्चों ने मुझे देखा तो दोनों दौड़ कर मेरी तरफ आये, मैं नीचे झुका और एक साथ दोनों को गोद में उठा लिया| नेहा ने मेरे दाएँ गाल पर और आयुष ने मेरे बाएँ गाल पर सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी! दोनों ने मेरे कान में खुसफुसाते हुए 'गुड मॉर्निंग पापा' कहा, मैंने दोनों की पप्पी ली और गुड मॉर्निंग कहा| पिताजी ने मुझे बात करने के लिए अपने पास बुलाया तो मैंने बच्चों को खेलने जाने को कहा|

पिताजी ने आज के कामों की सूची बनाई और मुझे सारा काम समझाया, नाश्ते का समय हुआ तो माँ ने सबके लिए पोहा बनाया| जैसे ही नाश्ता बना दोनों बच्चे मेरे अगल-बगल आ कर खड़े हो गए, माँ ने मेरी प्लेट में पोहे का पहाड़ परोस दिया| मैंने एक-एक कर दोनों बच्चों को चम्मच से पोहा खिलाना शुरू किया| पहला चम्मच खाते ही दोनों बच्चे एक साथ अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ गर्दन हिलाने लगे! दोनों बच्चों को एक साथ सर हिलाते देख मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई और मैंने दोनों के माथे चूम लिए|



इतने में मेरा फ़ोन बजा, screen पर सतीश जी का नाम था| मैंने सोचा शायद उन्हें अपने फ्लैट का कोई काम करवाना है, मगर जो बात उन्होंने बोली वो सुन कर मैं हैरान रह गया;

सतीश जी: मानु blue bells school में मैंने अभी बात की है, वो दोनों बच्चों के admission के लिए मान गए हैं लेकिन तुम्हें 10 हजार की donation देनी होगी!

Blue bells मेरे स्कूल का नाम था और वहाँ अपने बच्चों का admission कराने के नाम से मैं बहुत उत्साहित था! उनकी बात सुन मैंने बस इतना कहा;

मैं: Ok sir no problem!

इतना कह मैंने दोनों बच्चों के माथे चूमे और बोला;

मैं: बेटा मुझे अभी निकलना है, प्लेट में जितना नाश्ता है वो बर्बाद नहीं होना चाहिए!

मेरी बात सुनते ही दोनों बच्चों ने हाँ में सर हिलाया और मेरी जगह कुर्सी पर बैठ कर खाने लगे| पिताजी कभी काम पर जाने से टोकते नहीं थे इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा, कुछ देर बाद उनका फ़ोन आया तो मैंने उन्हें सारी बात बता दी|

मैं स्कूल पहुँचा तो मेरी मुलाक़ात मेरी principal मैडम से हुई, मुझे देख कर वो बहुत खुश हुईं, उन्होंने मेरे बारे में पुछा की मैं अभी क्या कर रहा हूँ आदि| सतीश जी ने उन्हें पहले ही सारी बात बता दी थी तो मुझे वहाँ कुछ बोलना नहीं पड़ा| उन्होंने मुझे कुछ फॉर्म्स भर कर लाने को कहा, बच्चों तथा उनके माता-पिता के कागज़ माँगे और बदले में उन्हें donation का चेक फाड़ कर दिया| फॉर्म ले कर मैं उड़ता हुआ घर पहुँचा, पिताजी और चन्दर साइट पर निकल चुके थे तो मैंने ये खुशखबरी माँ, भौजी तथा बच्चों को सुनाते हुए कहा;

मैं: बच्चों आपका स्कूल में admission होने जा रहा है!

माँ और भौजी के चेहरे पर ख़ुशी छलकने लगी और नेहा जोर से उछल पड़ी और दौड़ती हुई मेरी ओर आई| मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे कस कर लगाते हुए बोला;

मैं: और बेटा आपको पता है मैं भी इसी स्कूल में पढ़ा हूँ!

ये सुन कर नेहा ने मेरे दाएँ गाल की पप्पी लेते हुए मेरे कान में खुसफुसाते हुए बोली;

नेहा: Thank you पापा!

मैंने नेहा को कस कर गले लगाते हुए प्यार किया| जब मेरी नजर आयुष पर पड़ी तो वो बेचारा डरा-सहमा हुआ मुझे देख रहा था| मैंने नेहा को नीचे उतारा और आयुष को अपने पास बुलाया, आयुष डरा हुआ सा मेरे पास आया| जैसे ही मैंने उसे गोदी लिया आयुष कस कर मुझसे लिपट गया और खुसफुसाते हुए मुझसे बोला;

आयुष: पापा...वहाँ और भी...बच्चे होंगे न?

आयुष का डर उसकी बातों से झलक रहा था|

मैं: हाँ जी बेटा!

मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरा और उसे स्कूल जाने के डर निकालते हुए बोला;

मैं: बेटा स्कूल न बहुत मजेदार होता है! वहाँ आपको नए-नए दोस्त मिलेंगे, जिनके साथ आप पढाई करोगे, खेलोगे, हँसी-मजाक करोगे!

मेरी बात सुन कर आयुष का डर कम नहीं हुआ, अब मुझे उसे लालच दे कर समझना था;

मैं: बेटा आपको पता है स्कूल जाने का सबसे बड़ा फायदा क्या होता है?

मैंने आयुष से पुछा तो वो उत्सुकता भरी आँखों से मुझे देखने लगा|

मैं: आपको नई-नई स्कूल ड्रेस पहनने को मिलेगी, नई-नई किताबें मिलेंगी, नया school bag, water bottle, tiffin box मिलेगा!

ये सुन कर नेहा और आयुष दोनों की आँखें फ़ैल गईं क्योंकि उन्होंने आजतक न तो ये चीजें देखीं थीं और न कभी इस्तेमाल करने की सोची थीं| मैंने दोनों बच्चों को इत्मीनान से इन सभी चीजों के बारे में बताया और दोनों बच्चों ने बड़े गौर से मेरी बात सुनते हुए इन चीजों की कल्पना करनी शुरू कर दी|

मैं: इन सब के अलावा आपको पता है स्कूल में सबसे अच्छा क्या होता है?

दोनों बच्चों ने एक साथ न में गर्दन हिलाई|

मैं: Lunch Break!

मैंने खुश होते हुए कहा| मगर बच्चे नहीं जानते थे की Lunch Break क्या होता है तो मैंने उन्हें समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा lunch break मतलब आधी छुट्टी, साढ़े ग्यारह बजे स्कूल की घंटी बजती है और तब आपको लंच करना होता है| जब आप स्कूल जाओगे न तो आपकी मम्मी रोज सुबह आपके लिए नया-नया नाश्ता बना कर देंगी| जब lunch break होगा तब आपको वही खाना होगा, लेकिन आप अकेले नहीं होओगे, आपके साथ आपके स्कूल के दोस्त होंगे, वो भी अपने घर से खाना लाएँगे फिर आप सब एक साथ एक दूसरे के टिफ़िन में से खाना खा सकते हो! सोचो कोई दोस्त भिंडी लाया हो, कोई गोभी लाया हो, कोई आलू का परांठा लाया हो, कोई दाल लाया हो, तो ऐसे में आप सब मिलकर खाना खा सकते हो!

खाने की बात सुन कर नेहा इतनी खुश नहीं हुई जितना खुश आयुष हुआ था, मगर अभी तो दोनों बच्चों को canteen के बारे में बताना था|

मैं: और बेटा आपको पता है स्कूल में एक canteen होती है, जहाँ पर आपको बहुत अच्छा-अच्छा खाना मिलता है! पैटीज़, बर्गर, चाऊमीन, छोले कुलचे, समोसे, ब्रेड पकोड़े!

बच्चों ने अभी तक बस समोसे ही खाये थे ऐसे में मैंने जो अन्य खाने-पीने की चीजों के नाम लिए उससे आयुष के मुँह में पानी आ गया और उसका डर काफी हद्द तक कम हो गया! जो रही-सही कसर थी वो मैंने आयुष को थोड़ा प्यार से समझाते हुए पूरी कर दी;

मैं: फिर बेटा आपकी दीदी भी उसी स्कूल में पढेंगी और लंच में आपके पास आ जाया करेंगी, या फिर आप उनके पास चले जाना!

आयुष का डर अब खत्म हो गया था और उसके चेहरे पर पहले जैसी मुस्कान लौट आई थी|

मैं: जब मैं आप दोनों के admission फॉर्म जमा करने जाऊँगा न तब आप दोनों मेरे साथ चलना, मैं आपको सारा स्कूल घुमा दूँगा|

ये सुन कर दोनों बच्चे कूदने लगे और मुझे मीठी- मीठी पप्पी दे कर खेलने लगे|



माँ और भौजी मेरी बातें रस लेते हुए चुप-चाप मुस्कुराते हुए सुन रहे थे, मेरा बच्चों को बच्चा बन कर समझना उन्हें अच्छा लग रहा था| खैर माँ कुछ सामान लेने उठी तो मैंने भौजी से बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: मुझे आपके और बच्चों के कुछ documents चाहिए;

1. आपका और चन्दर भैया का गाँव कोई भी पहचान पत्र|

2. आप दोनों का एक हलफनामा जो मैं तैयार कर वाला लूँगा पर आप दोनों को उस पर दस्तखत करने होंगे|

3. दोनों बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र और

4. नेहा का तीसरी कक्षा का school leaving certificate.

जैसे ही मेरी बात पूरी हुई भौजी बोलीं;

भौजी: मेरे पास तो बस आयुष का जन्म प्रमाण पत्र है!

उनका ये छोटा सा जवाब सुन मुझे गुस्से आने लगा|

मैं: एक मिनट.....सिर्फ आयुष का जन्म प्रमाण पत्र? बस? नेहा का जन्म प्रमाण पत्र कहाँ है? और उसका तीसरी कक्षा का school leaving certificate?

मैंने गुस्से में भौजी पर अपने सवालों की बौछार कर दी|

भौजी: वो... नेहा के पैदा होने के बाद बनवाया नहीं! जब नेहा पहली कक्षा में आई तब हेडमास्टर साहब ने उसका जन्म प्रमाण पत्र माँगा था पर.....

इतना कह भौजी मेरे गुस्से के डर से खामोश हो गईं! उनका यूँ बात अधूरी छोड़ना मेरे गुस्से को न्योता दे बैठा और मैं गुस्से में उन्हें टोंट मारते हुए बोला;

मैं: पर आपको नेहा का जन्म प्रमाण पत्र बनवाने की फुर्सत नहीं मिली?

मेरा गुस्सा देख भौजी का सर शर्म से झुक गया, तभी माँ उनके बचाव में आगे आईं और बोलीं;

माँ: तो तू यहाँ बनवा दे न?! गाँव में कहाँ कोई इन बातों का ध्यान रखता है!

अब माँ के आगे मैं कुछ बोल नहीं सकता था, इसलिए मैंने उखड़ी हुई आवाज में भौजी से पुछा;

मैं: नेहा की birthdate क्या है?

भौजी: 23 जुलाई XXXX (साल)|

मैंने फ़ोन निकाला और दिषु को फ़ोन कर के birth certificate बनवाने वाले का नंबर माँगा, कुछ साल पहले दिषु के birth certificate में नाम change करवाना था तो उसने एक बंदे से बात की थी| दिषु ने उसका नंबर भेजा और मैंने उस आदमी से सारी बात तय कर ली, उसने कहा की मैं उसे नेहा के माता-पिता की सभी detail what’s app कर दूँ, वो परसों नेहा का जन्म प्रमाण पत्र ला देगा तथा बदले में मुझे उसे 2,000/- रुपये देने होंगे! मैंने उससे कोई भाव-ताव नहीं किया और उसे परसों घर बुला लिया|



अब बारी थी भौजी से नेहा का school leaving certificate माँगने की, मैं जानता था की भौजी के पास ये कागज भी नहीं होगा और मैं भौजी को झाड़ने का ये मौका छोड़ने वाला नहीं था;

मैं: और नेहा का तीसरी कक्षा का school leaving certificate? उसके लिए क्या बहाना है?!

मैंने भौजी को फिर टोंट मारते हुए पुछा|

भौजी: वो...वो...नेहा का दूसरी के बाद स्कूल छुड़वा दिया था!

भौजी ने डरते हुए सर झुका कर कहा| ये सुनते ही मेरा गुस्से का पारा टूट गया, मैंने गुस्से में आ कर टेबल पर जोर से हाथ मारा और उन पर गरजते हुए बोला;

मैं: Are you out of your freaking mind!

मेरे जोर से गरजने से सब के सब दहल गए!

मैं: क्यों छुड़वाया नेहा का स्कूल?

मैंने गुस्से से चिल्लाते हुए भौजी से पुछा, मेरा गुस्सा देख भौजी की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई! इतना तो मैं उनपर तब भी नहीं चिंघाड़ा था जब उन्होंने मुझे खुद से दूर करने का अपना वो बे सर-पैर का कारन दिया था! बड़ी हिम्मत जुटाते हुए वो बोलीं;

भौजी: आ...आयुष को भी ....स्कूल में...डालना था.... तो मैंने सोचा ...एक साथ दिल्ली में...डाल देंगे!

भौजी का मतलब था की उन्होंने सोचा की जब आयुष का दाखिला होना ही है तो नेहा का भी दाखिला तीसरी में एक ही बार करवा देंगे| भौजी की बात सुन कर मेरा गुस्से पर से काबू छूट गया, इधर पिताजी अचानक घर आ धमके और मेरा गुस्से के कारन रौद्र रूप देख कर हैरान हुए| वो कुछ पूछते उससे पहले ही मैं भौजी पर बरस पड़ा;

मैं: आयुष का दाखिला कराना था तो उसमें नेहा की पढ़ाई छुड़ा दी, अक्ल घाँस चरने गई थी क्या?!

अब जा कर पिताजी सारी बात समझ गए थे, उन्होंने मुझे शांत करवाते हुए मेरे कँधे पर हाथ रखा|

मैं: पिताजी इनके दिमाग में बस भूसा भरा हुआ है!

मैंने भौजी की तरफ इशारा करते हुए कहा|

मैं: आप जानते हो न पिताजी की इनकी (भौजी की) पढ़ाई इन्हीं के माता-पिता द्वारा दसवीँ के बाद क्यों छुड़वा दी गई थी? और ये (भौजी)...ये भी अपने माता-पिता के सुनेहरे क़दमों पर चलते हुए अपनी ही बेटी की पढ़ाई छुड़वाए बैठीं हैं! माता-पिता क्या नहीं करते की उनके बच्चे पढ़ लिख जाएँ, अपना पेट तक काट देते हैं मगर ये...

उस समय मेरे मुँह में गाली आ रही थी, बड़ी मुश्किल से मैंने वो गाली रोकी और दाँत पीसते हुए भौजी को गुस्से से देखने लगा| मेरी आँखों में गुस्सा देख भौजी का सर झुक गया, उधर पिताजी मुझे शांत करवाते हुए बोले;

पिताजी: बेटा बस!

पिताजी आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैं गुस्से में अपने कमरे में आ गया|



में पलंग पर बैठ अपना दिमाग शांत करने लगा, इतने में नेहा मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई| मेरे गुस्से के कारन नेहा कुछ घबराई हुई थी, मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो नेहा ने मेरा हाथ पकड़ लिया| मैंने नेहा को अपने सामने खड़ा किया, उसके चेहरे को हाथ में ले कर मैंने उससे माफ़ी माँगते हुए कहा;

मैं: मुझे माफ़ कर दो बेटा, मैं एक अच्छा पापा नहीं हूँ, मुझे आप के जन्मदिन की तरीक तक नहीं पता थी!

नेहा ने मेरा चेहरे को अपने छोटे-छोटे हाथों में थामा और मेरे माथे से अपना माथा भिड़ाते हुए बोली;

नेहा: पापा जी मुझे भी तो आपका जन्मदिन नहीं पता था! सिर्फ जन्मदिन पता होने से कोई अच्छे पापा थोड़े ही बन जाते हैं!

मेरी निगाहों में नेहा बहुत छोटी थी, लेकिन जब उसने इतनी बात कही तो मेरे दिल में पिता के प्यार का सागर उमड़ने लगा|

नेहा: आप दुनिया का best पापा हो!

इतना कह कर नेहा मेरे सीने से लग गई| नेहा के गले लगते ही गुस्से का जवालामुखी शांत समंदर बन गया और मैंने कस कर नेहा को अपने सीने से लगा लिया| नेहा की 'आभा' का मुझ पर ऐसा प्रभाव पड़ेगा इसकी मैंने कभी कल्पना नहीं की थी!

दिमाग शांत हुआ तो मैंने बच्चों के स्कूल के बारे में सोचने शुरू कर दिया| मैंने फ़ोन निकाला और अजय भैया से बात की;

अजय भैया: कइसन हो मानु भैया?!

अजय भैया खुश होते हुए बोले|

मैं: मैं ठीक हूँ भैया! दरअसल आपकी एक छोटी सी मदद चाहिए थी, आप स्कूल के हेडमास्टर साहब से मेरी बात करवा देंगे?

मेरी बात सुन अजय भैया थोड़े हैरान हुए तो मैंने उन्हें सारी बात समझाई, उन्होंने मुझे आधे घंटे के बाद कॉल करने को कहा| इतने में आयुष आ गया और वो भी थोड़ा डरा हुआ था, मैंने अपने दोनों हाथ खोल दिए तो आयुष दौड़ता हुआ आ कर मुझसे लिपट गया|

मैं: Awww मेरा बच्चा!

मैंने आयुष का सर चूमते हुए कहा|

आयुष: पापा आप मुझसे 'गुच्छा' हो?!

आयुष ने तुतलाते हुए पुछा|

मैं: मैं भला मेरे बच्चे से क्यों गुस्सा हूँगा?!

नेहा अकेला महसूस न करे इसलिए मैंने दोनों बच्चों को एक साथ गले लगा लिया| अगले दस मिनट तक मैं दोनों बच्चों के सर बारी-बारी से चूमता रहा, मेरे साथ दोनों बच्चों को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था क्योंकि अचानक से घर में दोनों बच्चों की किलकारियाँ गूँजने लगीं थीं!



कुछ देर बाद अजय भैया का फ़ोन आया और उन्होंने मेरी बात स्कूल के हेडमास्टर से करवाई| मैंने उनसे नेहा का school leaving certificate बना कर देने को कहा, साथ ही मैंने अजय भैया से कहा की वो शहर जा कर मुझे वो certificate courier कर दें!



नेहा को पीठ पर लादे और आयुष को गोद में लिए मैं बाहर आया तो देखा बाहर सब के सब खामोश बैठे हैं! साफ़ जाहिर था की मेरा गुस्सा देख कर सब सख्ते में थे! मैंने भौजी की तरफ देखते हुए उखड़े शब्दों में कहा;

मैं: कल आप और चन्दर भैया सुबह 10 बजे तैयार रहना, पहले आप दोनों का आधार कार्ड बनवाना है, पैन कार्ड का फॉर्म भरवाना है और आप दोनों का affidavit भी बनवाना है|

आज जा कर भौजी की तबियत कुछ ठीक हुई थी और ऐसे में उनका कल बाहर जाना माँ को ठीक नहीं लगा;

माँ: बेटा दो-एक दिन रुक जा, अभी बहु की तबियत थोड़ी ठीक हुई है|

माँ की बात सुन कर मैं बस गुस्से से अपने दाँत पीस कर रह गया|

भौजी: मैं अब ठीक हूँ माँ, पहले ही मेरी वजह से नेहा का एक साल बर्बाद हो गया अब और दो दिन बर्बाद नहीं करुँगी!

भौजी की बातों में पशाताप झलक रहा था! मगर मैंने उनके पश्चाताप से भरे आँसुओं को नजरअंदाज किया और नेहा को अपने सामने खड़ा करते हुए बोला;

मैं: बेटा.....मैं आपका admission third class में करवा रहा हूँ, लेकिन आपको बहुत मेहनत करनी होगी, आपको आधे साल की पढ़ाई करनी होगी!

मैंने बहुत गंभीर होते हुए कहा| लेकिन मेरी बेटी नेहा बहुत बहादुर थी, वो उत्साह से भरते हुए बोली;

नेहा: आप बिलकुल चिंता मत करो, मैं है न सारे साल की पढ़ाई कर लूँगी और साथ ही आयुष को भी पढ़ा दूँगी!

नेहा का उत्साह देखने लायक था, मुझे उसका उत्साह देख कर बहुत ख़ुशी हो रही थी|

मैं: I'm proud of my daughter!

ये कहते हुए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा लिया| चूँकि मैंने ये अंग्रेजी में कहा था तो माँ-पिताजी कुछ समझ नहीं पाए| मेरा गुस्सा शांत देख कर पिताजी को भी नेहा को प्यार आ गया, आखिर उसी के कारन तो मेरा गुस्सा काफ़ूर हो गया था| पिताजी ने नेहा को अपने पास बुलाया और उसे आशीर्वाद देते हुए बोले;

पिताजी: मेरी मुन्नी बहुत होशियार है!

जारी रहेगा भाग - 2 में
 

eternity

Active Member
501
1,876
138
तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 1


अब तक आपने पढ़ा:

भौजी: Oh come on! Let's forget everything and start a fresh!

भौजी नई शुरुआत करना चाहतीं थीं!

मैं: That's something I’ll have to think about!

लेकिन मैं फिर से एक नई शुरुआत के लिए तैयार नहीं था! मेरा दिल एक बार टूट चूका था, बच्चों के प्यार ने उसे सँभाला था इसलिए मैं दुबारा दिल टूटने का जोखम नहीं उठाना चाहता था!



अब आगे:


आगे हमारी बात हो पाती उससे पहले ही माँ का फोन आ गया;

माँ: सूप बन गया है, आ कर ले जा और बहु को अपने सामने पीला दियो!

इतना कह माँ ने फ़ोन रख दिया और भौजी को मेरी नई शुरुआत करने पर विचार करने वाली बात पर कुछ कहने का मौका नहीं मिला| मैं घर जाने को उठा था की दोनों बच्चे समोसे ले कर आ गए, नेहा ने बचे हुए पैसे और समोसे का पैकेट मुझे दे दिया|

मैं: बेटा आप दोनों खाओ मैं आपकी मम्मी का सूप ले कर आ रहा हूँ|

बच्चों ने समोसे खाना शुरू किया और मैं सूप लेने घर लौटा, माँ ने सूप थर्मस में भर रखा था| थर्मस देते हुए माँ ने मुझे एक बार और सख्ती से कहा;

माँ: जब से बहु आई है तब से तेरे बारे में मुझसे सैकड़ों बार पूछ चुकी है| सारा टाइम तू या तो काम पर रहता है या घूमता रहता है, अपने बचपन की दोस्त को ऐसे सताना अच्छी बात नहीं! दुबारा बहु बीमार पड़ी तो तेरी खैर नहीं!

मेरी भोली-भाली माँ को लगता था की भौजी और मेरे बीच अब भी वो बचपन की दोस्ती वाला रिश्ता बरकरार है तथा उसी रिश्ते के कारण भौजी ने खाना पीना छोड़ दिया है| अब वो क्या जाने की यहाँ उनका लड़का किस कश्मकश में फँसा है, भौजी के साथ नई शुरुआत करे या फिर एक दोस्त बन कर दूरी बनाये रखे!



खैर सूप ले कर मैं भौजी के पास लौटा और गिलास में डालकर उन्हें पीने के लिए दिया, मगर भौजी बच्चों की तरह हट करने लगीं की मैं उन्हें सूप अपने हाथ से पिलाऊँ! उनका ये हट देख मुझे हँसी आई और मैंने उन्हें धीरे-धीरे सूप पिलाना शुरू किया| दोनों बच्चे सामने बैठे समोसे खा रहे थे, नेहा उठी और मेरे मुँह के सामने समोसे का एक छोटा टुकड़ा मुझे खिलाने को लिए ले कर खड़ी हो गई| मैंने वो टुकड़ा खाया तो आयुष भी अपनी दीदी की देखा-देखि मुझे समोसा खिलाने के लिए खड़ा हो गया| दोनों बच्चों ने बारी-बारी से मुझे समोसा खिलाया, अब दोनों बच्चों ने कभी सूप नहीं पिया था तो आयुष अपनी प्यारी आवाज में बोला;

आयुष: पापा सूप क्या होता है?

थर्मस में थोड़ा सूप बचा था तो मैंने नेहा को एक गिलास लाने को कहा और उस गिलास में दो घूँट बचा हुआ सूप डाल दिया| दोनों बच्चों ने बारी-बारी से सूप पिया और मुँह बिदकते हुए बोले;

आयुष: इसमें तो बस नमक है!

नेहा: ये तो बस पानी है!

दोनों को मुँह बिदकते हुए देख तथा उनकी बचकानी बात सुन मैं और भौजी हँस पड़े|

मैं: बेटा सूप बीमार लोगों को देते हैं, सब्जियों को पानी के साथ उबालते हैं तथा इसमें मिर्ची और मसाले इसलिए नहीं डालते ताकि बीमार इंसान को पीने में तकलीफ न हो| एकबार आपकी मम्मी ठीक हो जाएँ फिर मैं आप दोनों को chinese सूप पिलाऊँगा, वो बहुत स्वाद होता है!

Chinese सूप पिने के नाम से दोनों बच्चे खुश हो गए| भौजी ने सूप पिया और मैंने तथा बच्चों ने समोसे खा कर सुबह का नाश्ता कर लिया, उधर घर पर माँ दोपहर का खाना बनाने में लगी हुईं थीं|



अंततः सब खुश थे, मगर अब भी कुछ तो था, जो नहीं था!



दोपहर को खाने के समय पिताजी घर आये और जब उन्हें आज के घटनाक्रम का पता चला तो उन्होंने मुझे घर बुला कर बहुत डाँटा! भौजी का खाना ले कर मैं और माँ भौजी के घर पहुँचे, भौजी चाहतीं थीं की मैं उन्हें खाना खिलाऊँ मगर माँ की मौजूदगी में ये कैसे होता?! खैर भौजी ने पूरा खाना खाया और इस दौरान माँ ने भौजी को बातों में लगाए रखा| भौजी का खाना हुआ तो माँ ने मुझे डाँटते हुए कहा;

माँ: बच्चे यहाँ बहु के पास हैं तब तक तू भी खाना खा ले!

मैं सर झुका कर माँ के साथ घर लौट आया, कल से एक ही कपडे पहने था इसलिए नहा धो कर मैं खाना खाने बैठ गया| इतने में नेहा आ गई और मेरी बगल में कुर्सी खींच कर बैठ गई, नेहा को खाने के लिए बैठा देख माँ बोली;

माँ: मुन्नी और भूख लगी है तो खाना परोसूँ?

लेकिन मेरी बेटी मुस्कुराते हुए न में गर्दन हिलने लगी|

मैं: वो क्या है न माँ, आज घर पर हूँ इसलिए मेरी बच्ची को मेरे हाथ से दो कौर खाना है!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाने लगी! माँ ने मेरी थाली में थोड़े चावल और परोस दिए ताकि नेहा पेट भर कर खाये| मैंने नेहा को खाना खिलाया और वो कूदती हुई मेरे कमरे में चली गई| मैंने खाना खाया और माँ से कहा की मैं सोने जा रहा हूँ| कल रात से जागा था और अभी तो मेरे पास नेहा भी थी इसलिए अभी तो मुझे बड़ी मजेदार नींद आने वाली थी!

दोनों बाप-बेटी चैन की नींद सोये और उधर माँ भौजी के पास थीं ताकि वो अकेला न महसूस करें! मेरी नींद 5 बजे खुली, आज सालों बाद मेरे दिल में खुशियाँ भरीं थीं और मैं इन खुशियों के लिए भगवान को धन्यवाद कहना चाहता था| मैं धीरे से उठा ताकि नेहा जाग न जाए, पर जैसे ही मैं उठ कर बैठा नेहा की नींद खुल गई और वो मेरी पीठ पर सवार हो गई! मैंने नेहा से मंदिर जाने की बात कही तो नेहा फटाफट तैयार होने लगी| दोनों बाप-बेटी तैयार हो कर मंदिर पहुँचे, माथा टेक कर आँखें बंद किये हाथ जोड़कर मैं मन ही मन भगवान को आज के दिन के लिए धन्यवाद कहने लगा| उधर नेहा मुझे देख कर मेरी नकल करते हुए अपने हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी| जब मेरी प्रार्थना खत्म हुई तो मैंने नेहा को देखा जो अब भी आँखें बंद किये हुए प्रार्थना कर रही थी| छोटे बच्चे जब अपने छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं तो वो बहुत प्यारे लगते हैं! मैं भी मुस्कुराते हुए नेहा को प्रार्थना करते हुए देख रहा था, जब नेहा ने आँखें खोलीं और मुझे खुद को देखते हुए देखा तो वो ख़ुशी से चहकने लगी| पंडित जी से प्रसाद ले कर हम दोनों भौजी के घर पहुँचे, दोनों बाप-बेटी के माथे पर टीका देख माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: क्या बात है, आज तुझे मंदिर जाने का मन हो गया?!

माँ का सवाल सुन भौजी को थोड़ी हैरानी हुई, मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा;

मैं: कभी-कभी भगवान को भी मिलने जाना चाहिए, उनकी रहमत के लिए उन्हें धन्यवाद कहना चाहिए!

मेरा जवाब सुन भौजी मंद-मंद मुस्कुराने लगीं क्योंकि वो मेरे मंदिर जाने का कारन समझ गईं थीं| वहीं जैसे ही मैंने आयुष को प्रसाद दिया उसने 'गप' से प्रसाद खा लिया तथा और प्रसाद माँगने के लिए अपने छोटे-छोटे हाथ जोड़कर फैलाये! आयुष का ये बचपना देख हम सब हँस पड़े!

भौजी: माँ आयुष को न प्रसाद बहुत पसंद है!

भौजी की बात सुन मैं मन ही मन बोला; 'बिलकुल बाप पर (यानी मुझ पर) गया है!' जब मैं छोटा था तो मीठा खाने का बहुत शौक़ीन था, मंदिर का प्रसाद हो या हलवा, खीर, मिठाई! कुछ भी मीठा मेरे पास सुरक्षित नहीं होता था!



हँसी-ख़ुशी समय बीता और रात के खाने का समय हो गया| रात को चन्दर लौट आया था और रात घर ही रुकने वाला था| सबसे पहले दोनों बच्चों, चन्दर और पिताजी ने खाना खाया, इस दौरान मैं भौजी के पास बैठा था| हमारी बातें हो पातीं उससे पहले ही मुझे दिषु का फ़ोन आ गया, अपनी आखरी ऑडिट में टैक्स के अमाउंट को ले कर हम दोनों चर्चा करने लगे| इस दौरान भौजी चेहरे पर मुस्कान लिए मुझे बड़े गौर से देख रहीं थीं, मेरी नजर भी जब उनके चेहरे पर पड़ी तो दिल को एक अनजानी सी ठंडक का एहसास हुआ|

इतने में दोनों बच्चे आ गए और मुझसे लिपट गए| मैंने दिषु से बात खत्म की और दोनों बच्चों को एक साथ अपनी बाहों में भर लिया|

नेहा: पापा मैं आज आपके पास सोऊँगी|

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा;

मैं: बेटा आप अगर मेरे पास सोओगे तो आपकी मम्मी का ख्याल कौन रखेगा?

ये सुन कर नेहा सोच में पड़ गई और फिर एकदम से जिम्मेदार बनते हुए बोली;

नेहा: ठीक है पापा, जब तक मम्मी ठीक नहीं होती मैं यहीं सोऊँगी!

मैंने नेहा के माथे को चूम कर उसे आशीर्वाद दिया तो आयुष भी जोश में बोला;

आयुष: मैं भी मम्मी का ख्याल रखूँगा!

आयुष का जोश देख मैंने उसे गोद में उठा लिया और उसके दोनों गालों की मीठी-मीठी पप्पी लेते हुए बोला;

मैं: Awww मेरा बहादुर बच्चा! आप न अपनी दीदी के साथ मिल कर अपनी मम्मी का ख्याल रखना| Okay?

मेरी बात सुन कर दोनों बच्चों ने एक साथ हाँ में गर्दन हिलाई और दोनों फिर से मुझसे लिपट गए|



खाना खा कर मैं चैन से सोया और सुबह जल्दी उठ गया, फ्रेश हो कर मैं अपने कमरे से बाहर आया तो सारा घर भरा-भरा लग रहा था| चन्दर और पिताजी डाइनिंग टेबल पर बैठे चाय की पी रहे थे, माँ और भौजी बैठक में बैठे सब्जी काट रहे थे और दोनों बच्चे खेल रहे थे| जैसे ही दोनों बच्चों ने मुझे देखा तो दोनों दौड़ कर मेरी तरफ आये, मैं नीचे झुका और एक साथ दोनों को गोद में उठा लिया| नेहा ने मेरे दाएँ गाल पर और आयुष ने मेरे बाएँ गाल पर सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी! दोनों ने मेरे कान में खुसफुसाते हुए 'गुड मॉर्निंग पापा' कहा, मैंने दोनों की पप्पी ली और गुड मॉर्निंग कहा| पिताजी ने मुझे बात करने के लिए अपने पास बुलाया तो मैंने बच्चों को खेलने जाने को कहा|

पिताजी ने आज के कामों की सूची बनाई और मुझे सारा काम समझाया, नाश्ते का समय हुआ तो माँ ने सबके लिए पोहा बनाया| जैसे ही नाश्ता बना दोनों बच्चे मेरे अगल-बगल आ कर खड़े हो गए, माँ ने मेरी प्लेट में पोहे का पहाड़ परोस दिया| मैंने एक-एक कर दोनों बच्चों को चम्मच से पोहा खिलाना शुरू किया| पहला चम्मच खाते ही दोनों बच्चे एक साथ अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ गर्दन हिलाने लगे! दोनों बच्चों को एक साथ सर हिलाते देख मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई और मैंने दोनों के माथे चूम लिए|



इतने में मेरा फ़ोन बजा, screen पर सतीश जी का नाम था| मैंने सोचा शायद उन्हें अपने फ्लैट का कोई काम करवाना है, मगर जो बात उन्होंने बोली वो सुन कर मैं हैरान रह गया;

सतीश जी: मानु blue bells school में मैंने अभी बात की है, वो दोनों बच्चों के admission के लिए मान गए हैं लेकिन तुम्हें 10 हजार की donation देनी होगी!

Blue bells मेरे स्कूल का नाम था और वहाँ अपने बच्चों का admission कराने के नाम से मैं बहुत उत्साहित था! उनकी बात सुन मैंने बस इतना कहा;

मैं: Ok sir no problem!

इतना कह मैंने दोनों बच्चों के माथे चूमे और बोला;

मैं: बेटा मुझे अभी निकलना है, प्लेट में जितना नाश्ता है वो बर्बाद नहीं होना चाहिए!

मेरी बात सुनते ही दोनों बच्चों ने हाँ में सर हिलाया और मेरी जगह कुर्सी पर बैठ कर खाने लगे| पिताजी कभी काम पर जाने से टोकते नहीं थे इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा, कुछ देर बाद उनका फ़ोन आया तो मैंने उन्हें सारी बात बता दी|

मैं स्कूल पहुँचा तो मेरी मुलाक़ात मेरी principal मैडम से हुई, मुझे देख कर वो बहुत खुश हुईं, उन्होंने मेरे बारे में पुछा की मैं अभी क्या कर रहा हूँ आदि| सतीश जी ने उन्हें पहले ही सारी बात बता दी थी तो मुझे वहाँ कुछ बोलना नहीं पड़ा| उन्होंने मुझे कुछ फॉर्म्स भर कर लाने को कहा, बच्चों तथा उनके माता-पिता के कागज़ माँगे और बदले में उन्हें donation का चेक फाड़ कर दिया| फॉर्म ले कर मैं उड़ता हुआ घर पहुँचा, पिताजी और चन्दर साइट पर निकल चुके थे तो मैंने ये खुशखबरी माँ, भौजी तथा बच्चों को सुनाते हुए कहा;

मैं: बच्चों आपका स्कूल में admission होने जा रहा है!

माँ और भौजी के चेहरे पर ख़ुशी छलकने लगी और नेहा जोर से उछल पड़ी और दौड़ती हुई मेरी ओर आई| मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे कस कर लगाते हुए बोला;

मैं: और बेटा आपको पता है मैं भी इसी स्कूल में पढ़ा हूँ!

ये सुन कर नेहा ने मेरे दाएँ गाल की पप्पी लेते हुए मेरे कान में खुसफुसाते हुए बोली;

नेहा: Thank you पापा!

मैंने नेहा को कस कर गले लगाते हुए प्यार किया| जब मेरी नजर आयुष पर पड़ी तो वो बेचारा डरा-सहमा हुआ मुझे देख रहा था| मैंने नेहा को नीचे उतारा और आयुष को अपने पास बुलाया, आयुष डरा हुआ सा मेरे पास आया| जैसे ही मैंने उसे गोदी लिया आयुष कस कर मुझसे लिपट गया और खुसफुसाते हुए मुझसे बोला;

आयुष: पापा...वहाँ और भी...बच्चे होंगे न?

आयुष का डर उसकी बातों से झलक रहा था|

मैं: हाँ जी बेटा!

मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरा और उसे स्कूल जाने के डर निकालते हुए बोला;

मैं: बेटा स्कूल न बहुत मजेदार होता है! वहाँ आपको नए-नए दोस्त मिलेंगे, जिनके साथ आप पढाई करोगे, खेलोगे, हँसी-मजाक करोगे!

मेरी बात सुन कर आयुष का डर कम नहीं हुआ, अब मुझे उसे लालच दे कर समझना था;

मैं: बेटा आपको पता है स्कूल जाने का सबसे बड़ा फायदा क्या होता है?

मैंने आयुष से पुछा तो वो उत्सुकता भरी आँखों से मुझे देखने लगा|

मैं: आपको नई-नई स्कूल ड्रेस पहनने को मिलेगी, नई-नई किताबें मिलेंगी, नया school bag, water bottle, tiffin box मिलेगा!

ये सुन कर नेहा और आयुष दोनों की आँखें फ़ैल गईं क्योंकि उन्होंने आजतक न तो ये चीजें देखीं थीं और न कभी इस्तेमाल करने की सोची थीं| मैंने दोनों बच्चों को इत्मीनान से इन सभी चीजों के बारे में बताया और दोनों बच्चों ने बड़े गौर से मेरी बात सुनते हुए इन चीजों की कल्पना करनी शुरू कर दी|

मैं: इन सब के अलावा आपको पता है स्कूल में सबसे अच्छा क्या होता है?

दोनों बच्चों ने एक साथ न में गर्दन हिलाई|

मैं: Lunch Break!

मैंने खुश होते हुए कहा| मगर बच्चे नहीं जानते थे की Lunch Break क्या होता है तो मैंने उन्हें समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा lunch break मतलब आधी छुट्टी, साढ़े ग्यारह बजे स्कूल की घंटी बजती है और तब आपको लंच करना होता है| जब आप स्कूल जाओगे न तो आपकी मम्मी रोज सुबह आपके लिए नया-नया नाश्ता बना कर देंगी| जब lunch break होगा तब आपको वही खाना होगा, लेकिन आप अकेले नहीं होओगे, आपके साथ आपके स्कूल के दोस्त होंगे, वो भी अपने घर से खाना लाएँगे फिर आप सब एक साथ एक दूसरे के टिफ़िन में से खाना खा सकते हो! सोचो कोई दोस्त भिंडी लाया हो, कोई गोभी लाया हो, कोई आलू का परांठा लाया हो, कोई दाल लाया हो, तो ऐसे में आप सब मिलकर खाना खा सकते हो!

खाने की बात सुन कर नेहा इतनी खुश नहीं हुई जितना खुश आयुष हुआ था, मगर अभी तो दोनों बच्चों को canteen के बारे में बताना था|

मैं: और बेटा आपको पता है स्कूल में एक canteen होती है, जहाँ पर आपको बहुत अच्छा-अच्छा खाना मिलता है! पैटीज़, बर्गर, चाऊमीन, छोले कुलचे, समोसे, ब्रेड पकोड़े!

बच्चों ने अभी तक बस समोसे ही खाये थे ऐसे में मैंने जो अन्य खाने-पीने की चीजों के नाम लिए उससे आयुष के मुँह में पानी आ गया और उसका डर काफी हद्द तक कम हो गया! जो रही-सही कसर थी वो मैंने आयुष को थोड़ा प्यार से समझाते हुए पूरी कर दी;

मैं: फिर बेटा आपकी दीदी भी उसी स्कूल में पढेंगी और लंच में आपके पास आ जाया करेंगी, या फिर आप उनके पास चले जाना!

आयुष का डर अब खत्म हो गया था और उसके चेहरे पर पहले जैसी मुस्कान लौट आई थी|

मैं: जब मैं आप दोनों के admission फॉर्म जमा करने जाऊँगा न तब आप दोनों मेरे साथ चलना, मैं आपको सारा स्कूल घुमा दूँगा|

ये सुन कर दोनों बच्चे कूदने लगे और मुझे मीठी- मीठी पप्पी दे कर खेलने लगे|



माँ और भौजी मेरी बातें रस लेते हुए चुप-चाप मुस्कुराते हुए सुन रहे थे, मेरा बच्चों को बच्चा बन कर समझना उन्हें अच्छा लग रहा था| खैर माँ कुछ सामान लेने उठी तो मैंने भौजी से बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: मुझे आपके और बच्चों के कुछ documents चाहिए;

1. आपका और चन्दर भैया का गाँव कोई भी पहचान पत्र|

2. आप दोनों का एक हलफनामा जो मैं तैयार कर वाला लूँगा पर आप दोनों को उस पर दस्तखत करने होंगे|

3. दोनों बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र और

4. नेहा का तीसरी कक्षा का school leaving certificate.

जैसे ही मेरी बात पूरी हुई भौजी बोलीं;

भौजी: मेरे पास तो बस आयुष का जन्म प्रमाण पत्र है!

उनका ये छोटा सा जवाब सुन मुझे गुस्से आने लगा|

मैं: एक मिनट.....सिर्फ आयुष का जन्म प्रमाण पत्र? बस? नेहा का जन्म प्रमाण पत्र कहाँ है? और उसका तीसरी कक्षा का school leaving certificate?

मैंने गुस्से में भौजी पर अपने सवालों की बौछार कर दी|

भौजी: वो... नेहा के पैदा होने के बाद बनवाया नहीं! जब नेहा पहली कक्षा में आई तब हेडमास्टर साहब ने उसका जन्म प्रमाण पत्र माँगा था पर.....

इतना कह भौजी मेरे गुस्से के डर से खामोश हो गईं! उनका यूँ बात अधूरी छोड़ना मेरे गुस्से को न्योता दे बैठा और मैं गुस्से में उन्हें टोंट मारते हुए बोला;

मैं: पर आपको नेहा का जन्म प्रमाण पत्र बनवाने की फुर्सत नहीं मिली?

मेरा गुस्सा देख भौजी का सर शर्म से झुक गया, तभी माँ उनके बचाव में आगे आईं और बोलीं;

माँ: तो तू यहाँ बनवा दे न?! गाँव में कहाँ कोई इन बातों का ध्यान रखता है!

अब माँ के आगे मैं कुछ बोल नहीं सकता था, इसलिए मैंने उखड़ी हुई आवाज में भौजी से पुछा;

मैं: नेहा की birthdate क्या है?

भौजी: 23 जुलाई XXXX (साल)|

मैंने फ़ोन निकाला और दिषु को फ़ोन कर के birth certificate बनवाने वाले का नंबर माँगा, कुछ साल पहले दिषु के birth certificate में नाम change करवाना था तो उसने एक बंदे से बात की थी| दिषु ने उसका नंबर भेजा और मैंने उस आदमी से सारी बात तय कर ली, उसने कहा की मैं उसे नेहा के माता-पिता की सभी detail what’s app कर दूँ, वो परसों नेहा का जन्म प्रमाण पत्र ला देगा तथा बदले में मुझे उसे 2,000/- रुपये देने होंगे! मैंने उससे कोई भाव-ताव नहीं किया और उसे परसों घर बुला लिया|



अब बारी थी भौजी से नेहा का school leaving certificate माँगने की, मैं जानता था की भौजी के पास ये कागज भी नहीं होगा और मैं भौजी को झाड़ने का ये मौका छोड़ने वाला नहीं था;

मैं: और नेहा का तीसरी कक्षा का school leaving certificate? उसके लिए क्या बहाना है?!

मैंने भौजी को फिर टोंट मारते हुए पुछा|

भौजी: वो...वो...नेहा का दूसरी के बाद स्कूल छुड़वा दिया था!

भौजी ने डरते हुए सर झुका कर कहा| ये सुनते ही मेरा गुस्से का पारा टूट गया, मैंने गुस्से में आ कर टेबल पर जोर से हाथ मारा और उन पर गरजते हुए बोला;

मैं: Are you out of your freaking mind!

मेरे जोर से गरजने से सब के सब दहल गए!

मैं: क्यों छुड़वाया नेहा का स्कूल?

मैंने गुस्से से चिल्लाते हुए भौजी से पुछा, मेरा गुस्सा देख भौजी की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई! इतना तो मैं उनपर तब भी नहीं चिंघाड़ा था जब उन्होंने मुझे खुद से दूर करने का अपना वो बे सर-पैर का कारन दिया था! बड़ी हिम्मत जुटाते हुए वो बोलीं;

भौजी: आ...आयुष को भी ....स्कूल में...डालना था.... तो मैंने सोचा ...एक साथ दिल्ली में...डाल देंगे!

भौजी का मतलब था की उन्होंने सोचा की जब आयुष का दाखिला होना ही है तो नेहा का भी दाखिला तीसरी में एक ही बार करवा देंगे| भौजी की बात सुन कर मेरा गुस्से पर से काबू छूट गया, इधर पिताजी अचानक घर आ धमके और मेरा गुस्से के कारन रौद्र रूप देख कर हैरान हुए| वो कुछ पूछते उससे पहले ही मैं भौजी पर बरस पड़ा;

मैं: आयुष का दाखिला कराना था तो उसमें नेहा की पढ़ाई छुड़ा दी, अक्ल घाँस चरने गई थी क्या?!

अब जा कर पिताजी सारी बात समझ गए थे, उन्होंने मुझे शांत करवाते हुए मेरे कँधे पर हाथ रखा|

मैं: पिताजी इनके दिमाग में बस भूसा भरा हुआ है!

मैंने भौजी की तरफ इशारा करते हुए कहा|

मैं: आप जानते हो न पिताजी की इनकी (भौजी की) पढ़ाई इन्हीं के माता-पिता द्वारा दसवीँ के बाद क्यों छुड़वा दी गई थी? और ये (भौजी)...ये भी अपने माता-पिता के सुनेहरे क़दमों पर चलते हुए अपनी ही बेटी की पढ़ाई छुड़वाए बैठीं हैं! माता-पिता क्या नहीं करते की उनके बच्चे पढ़ लिख जाएँ, अपना पेट तक काट देते हैं मगर ये...

उस समय मेरे मुँह में गाली आ रही थी, बड़ी मुश्किल से मैंने वो गाली रोकी और दाँत पीसते हुए भौजी को गुस्से से देखने लगा| मेरी आँखों में गुस्सा देख भौजी का सर झुक गया, उधर पिताजी मुझे शांत करवाते हुए बोले;

पिताजी: बेटा बस!

पिताजी आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैं गुस्से में अपने कमरे में आ गया|



में पलंग पर बैठ अपना दिमाग शांत करने लगा, इतने में नेहा मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई| मेरे गुस्से के कारन नेहा कुछ घबराई हुई थी, मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो नेहा ने मेरा हाथ पकड़ लिया| मैंने नेहा को अपने सामने खड़ा किया, उसके चेहरे को हाथ में ले कर मैंने उससे माफ़ी माँगते हुए कहा;

मैं: मुझे माफ़ कर दो बेटा, मैं एक अच्छा पापा नहीं हूँ, मुझे आप के जन्मदिन की तरीक तक नहीं पता थी!

नेहा ने मेरा चेहरे को अपने छोटे-छोटे हाथों में थामा और मेरे माथे से अपना माथा भिड़ाते हुए बोली;

नेहा: पापा जी मुझे भी तो आपका जन्मदिन नहीं पता था! सिर्फ जन्मदिन पता होने से कोई अच्छे पापा थोड़े ही बन जाते हैं!

मेरी निगाहों में नेहा बहुत छोटी थी, लेकिन जब उसने इतनी बात कही तो मेरे दिल में पिता के प्यार का सागर उमड़ने लगा|

नेहा: आप दुनिया का best पापा हो!

इतना कह कर नेहा मेरे सीने से लग गई| नेहा के गले लगते ही गुस्से का जवालामुखी शांत समंदर बन गया और मैंने कस कर नेहा को अपने सीने से लगा लिया| नेहा की 'आभा' का मुझ पर ऐसा प्रभाव पड़ेगा इसकी मैंने कभी कल्पना नहीं की थी!

दिमाग शांत हुआ तो मैंने बच्चों के स्कूल के बारे में सोचने शुरू कर दिया| मैंने फ़ोन निकाला और अजय भैया से बात की;

अजय भैया: कइसन हो मानु भैया?!

अजय भैया खुश होते हुए बोले|

मैं: मैं ठीक हूँ भैया! दरअसल आपकी एक छोटी सी मदद चाहिए थी, आप स्कूल के हेडमास्टर साहब से मेरी बात करवा देंगे?

मेरी बात सुन अजय भैया थोड़े हैरान हुए तो मैंने उन्हें सारी बात समझाई, उन्होंने मुझे आधे घंटे के बाद कॉल करने को कहा| इतने में आयुष आ गया और वो भी थोड़ा डरा हुआ था, मैंने अपने दोनों हाथ खोल दिए तो आयुष दौड़ता हुआ आ कर मुझसे लिपट गया|

मैं: Awww मेरा बच्चा!

मैंने आयुष का सर चूमते हुए कहा|

आयुष: पापा आप मुझसे 'गुच्छा' हो?!

आयुष ने तुतलाते हुए पुछा|

मैं: मैं भला मेरे बच्चे से क्यों गुस्सा हूँगा?!

नेहा अकेला महसूस न करे इसलिए मैंने दोनों बच्चों को एक साथ गले लगा लिया| अगले दस मिनट तक मैं दोनों बच्चों के सर बारी-बारी से चूमता रहा, मेरे साथ दोनों बच्चों को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था क्योंकि अचानक से घर में दोनों बच्चों की किलकारियाँ गूँजने लगीं थीं!



कुछ देर बाद अजय भैया का फ़ोन आया और उन्होंने मेरी बात स्कूल के हेडमास्टर से करवाई| मैंने उनसे नेहा का school leaving certificate बना कर देने को कहा, साथ ही मैंने अजय भैया से कहा की वो शहर जा कर मुझे वो certificate courier कर दें!



नेहा को पीठ पर लादे और आयुष को गोद में लिए मैं बाहर आया तो देखा बाहर सब के सब खामोश बैठे हैं! साफ़ जाहिर था की मेरा गुस्सा देख कर सब सख्ते में थे! मैंने भौजी की तरफ देखते हुए उखड़े शब्दों में कहा;

मैं: कल आप और चन्दर भैया सुबह 10 बजे तैयार रहना, पहले आप दोनों का आधार कार्ड बनवाना है, पैन कार्ड का फॉर्म भरवाना है और आप दोनों का affidavit भी बनवाना है|

आज जा कर भौजी की तबियत कुछ ठीक हुई थी और ऐसे में उनका कल बाहर जाना माँ को ठीक नहीं लगा;

माँ: बेटा दो-एक दिन रुक जा, अभी बहु की तबियत थोड़ी ठीक हुई है|

माँ की बात सुन कर मैं बस गुस्से से अपने दाँत पीस कर रह गया|

भौजी: मैं अब ठीक हूँ माँ, पहले ही मेरी वजह से नेहा का एक साल बर्बाद हो गया अब और दो दिन बर्बाद नहीं करुँगी!

भौजी की बातों में पशाताप झलक रहा था! मगर मैंने उनके पश्चाताप से भरे आँसुओं को नजरअंदाज किया और नेहा को अपने सामने खड़ा करते हुए बोला;

मैं: बेटा.....मैं आपका admission third class में करवा रहा हूँ, लेकिन आपको बहुत मेहनत करनी होगी, आपको आधे साल की पढ़ाई करनी होगी!

मैंने बहुत गंभीर होते हुए कहा| लेकिन मेरी बेटी नेहा बहुत बहादुर थी, वो उत्साह से भरते हुए बोली;

नेहा: आप बिलकुल चिंता मत करो, मैं है न सारे साल की पढ़ाई कर लूँगी और साथ ही आयुष को भी पढ़ा दूँगी!

नेहा का उत्साह देखने लायक था, मुझे उसका उत्साह देख कर बहुत ख़ुशी हो रही थी|

मैं: I'm proud of my daughter!

ये कहते हुए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा लिया| चूँकि मैंने ये अंग्रेजी में कहा था तो माँ-पिताजी कुछ समझ नहीं पाए| मेरा गुस्सा शांत देख कर पिताजी को भी नेहा को प्यार आ गया, आखिर उसी के कारन तो मेरा गुस्सा काफ़ूर हो गया था| पिताजी ने नेहा को अपने पास बुलाया और उसे आशीर्वाद देते हुए बोले;

पिताजी: मेरी मुन्नी बहुत होशियार है!


जारी रहेगा भाग - 2 में
Rockstar_Rocky Bhai adbhoot............ Bahut sundar
aise hi update ki parikalpana thi. agle update ki pratiksha hai. vastav mai baccho se bara naa stress buster hai aur na blood pressure ka medicine. koi nira murkh kapti khudgarj hi hoga jo bachho ko gale laga kar bhi apni sari pareshani naa bhul jaye. Achha update tha..........................
SADHUVAAD..............................................
 

Johnboy11

Nadaan Parinda.
1,183
2,558
159
तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 1


अब तक आपने पढ़ा:

भौजी: Oh come on! Let's forget everything and start a fresh!

भौजी नई शुरुआत करना चाहतीं थीं!

मैं: That's something I’ll have to think about!

लेकिन मैं फिर से एक नई शुरुआत के लिए तैयार नहीं था! मेरा दिल एक बार टूट चूका था, बच्चों के प्यार ने उसे सँभाला था इसलिए मैं दुबारा दिल टूटने का जोखम नहीं उठाना चाहता था!



अब आगे:


आगे हमारी बात हो पाती उससे पहले ही माँ का फोन आ गया;

माँ: सूप बन गया है, आ कर ले जा और बहु को अपने सामने पीला दियो!

इतना कह माँ ने फ़ोन रख दिया और भौजी को मेरी नई शुरुआत करने पर विचार करने वाली बात पर कुछ कहने का मौका नहीं मिला| मैं घर जाने को उठा था की दोनों बच्चे समोसे ले कर आ गए, नेहा ने बचे हुए पैसे और समोसे का पैकेट मुझे दे दिया|

मैं: बेटा आप दोनों खाओ मैं आपकी मम्मी का सूप ले कर आ रहा हूँ|

बच्चों ने समोसे खाना शुरू किया और मैं सूप लेने घर लौटा, माँ ने सूप थर्मस में भर रखा था| थर्मस देते हुए माँ ने मुझे एक बार और सख्ती से कहा;

माँ: जब से बहु आई है तब से तेरे बारे में मुझसे सैकड़ों बार पूछ चुकी है| सारा टाइम तू या तो काम पर रहता है या घूमता रहता है, अपने बचपन की दोस्त को ऐसे सताना अच्छी बात नहीं! दुबारा बहु बीमार पड़ी तो तेरी खैर नहीं!

मेरी भोली-भाली माँ को लगता था की भौजी और मेरे बीच अब भी वो बचपन की दोस्ती वाला रिश्ता बरकरार है तथा उसी रिश्ते के कारण भौजी ने खाना पीना छोड़ दिया है| अब वो क्या जाने की यहाँ उनका लड़का किस कश्मकश में फँसा है, भौजी के साथ नई शुरुआत करे या फिर एक दोस्त बन कर दूरी बनाये रखे!



खैर सूप ले कर मैं भौजी के पास लौटा और गिलास में डालकर उन्हें पीने के लिए दिया, मगर भौजी बच्चों की तरह हट करने लगीं की मैं उन्हें सूप अपने हाथ से पिलाऊँ! उनका ये हट देख मुझे हँसी आई और मैंने उन्हें धीरे-धीरे सूप पिलाना शुरू किया| दोनों बच्चे सामने बैठे समोसे खा रहे थे, नेहा उठी और मेरे मुँह के सामने समोसे का एक छोटा टुकड़ा मुझे खिलाने को लिए ले कर खड़ी हो गई| मैंने वो टुकड़ा खाया तो आयुष भी अपनी दीदी की देखा-देखि मुझे समोसा खिलाने के लिए खड़ा हो गया| दोनों बच्चों ने बारी-बारी से मुझे समोसा खिलाया, अब दोनों बच्चों ने कभी सूप नहीं पिया था तो आयुष अपनी प्यारी आवाज में बोला;

आयुष: पापा सूप क्या होता है?

थर्मस में थोड़ा सूप बचा था तो मैंने नेहा को एक गिलास लाने को कहा और उस गिलास में दो घूँट बचा हुआ सूप डाल दिया| दोनों बच्चों ने बारी-बारी से सूप पिया और मुँह बिदकते हुए बोले;

आयुष: इसमें तो बस नमक है!

नेहा: ये तो बस पानी है!

दोनों को मुँह बिदकते हुए देख तथा उनकी बचकानी बात सुन मैं और भौजी हँस पड़े|

मैं: बेटा सूप बीमार लोगों को देते हैं, सब्जियों को पानी के साथ उबालते हैं तथा इसमें मिर्ची और मसाले इसलिए नहीं डालते ताकि बीमार इंसान को पीने में तकलीफ न हो| एकबार आपकी मम्मी ठीक हो जाएँ फिर मैं आप दोनों को chinese सूप पिलाऊँगा, वो बहुत स्वाद होता है!

Chinese सूप पिने के नाम से दोनों बच्चे खुश हो गए| भौजी ने सूप पिया और मैंने तथा बच्चों ने समोसे खा कर सुबह का नाश्ता कर लिया, उधर घर पर माँ दोपहर का खाना बनाने में लगी हुईं थीं|



अंततः सब खुश थे, मगर अब भी कुछ तो था, जो नहीं था!



दोपहर को खाने के समय पिताजी घर आये और जब उन्हें आज के घटनाक्रम का पता चला तो उन्होंने मुझे घर बुला कर बहुत डाँटा! भौजी का खाना ले कर मैं और माँ भौजी के घर पहुँचे, भौजी चाहतीं थीं की मैं उन्हें खाना खिलाऊँ मगर माँ की मौजूदगी में ये कैसे होता?! खैर भौजी ने पूरा खाना खाया और इस दौरान माँ ने भौजी को बातों में लगाए रखा| भौजी का खाना हुआ तो माँ ने मुझे डाँटते हुए कहा;

माँ: बच्चे यहाँ बहु के पास हैं तब तक तू भी खाना खा ले!

मैं सर झुका कर माँ के साथ घर लौट आया, कल से एक ही कपडे पहने था इसलिए नहा धो कर मैं खाना खाने बैठ गया| इतने में नेहा आ गई और मेरी बगल में कुर्सी खींच कर बैठ गई, नेहा को खाने के लिए बैठा देख माँ बोली;

माँ: मुन्नी और भूख लगी है तो खाना परोसूँ?

लेकिन मेरी बेटी मुस्कुराते हुए न में गर्दन हिलने लगी|

मैं: वो क्या है न माँ, आज घर पर हूँ इसलिए मेरी बच्ची को मेरे हाथ से दो कौर खाना है!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाने लगी! माँ ने मेरी थाली में थोड़े चावल और परोस दिए ताकि नेहा पेट भर कर खाये| मैंने नेहा को खाना खिलाया और वो कूदती हुई मेरे कमरे में चली गई| मैंने खाना खाया और माँ से कहा की मैं सोने जा रहा हूँ| कल रात से जागा था और अभी तो मेरे पास नेहा भी थी इसलिए अभी तो मुझे बड़ी मजेदार नींद आने वाली थी!

दोनों बाप-बेटी चैन की नींद सोये और उधर माँ भौजी के पास थीं ताकि वो अकेला न महसूस करें! मेरी नींद 5 बजे खुली, आज सालों बाद मेरे दिल में खुशियाँ भरीं थीं और मैं इन खुशियों के लिए भगवान को धन्यवाद कहना चाहता था| मैं धीरे से उठा ताकि नेहा जाग न जाए, पर जैसे ही मैं उठ कर बैठा नेहा की नींद खुल गई और वो मेरी पीठ पर सवार हो गई! मैंने नेहा से मंदिर जाने की बात कही तो नेहा फटाफट तैयार होने लगी| दोनों बाप-बेटी तैयार हो कर मंदिर पहुँचे, माथा टेक कर आँखें बंद किये हाथ जोड़कर मैं मन ही मन भगवान को आज के दिन के लिए धन्यवाद कहने लगा| उधर नेहा मुझे देख कर मेरी नकल करते हुए अपने हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी| जब मेरी प्रार्थना खत्म हुई तो मैंने नेहा को देखा जो अब भी आँखें बंद किये हुए प्रार्थना कर रही थी| छोटे बच्चे जब अपने छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं तो वो बहुत प्यारे लगते हैं! मैं भी मुस्कुराते हुए नेहा को प्रार्थना करते हुए देख रहा था, जब नेहा ने आँखें खोलीं और मुझे खुद को देखते हुए देखा तो वो ख़ुशी से चहकने लगी| पंडित जी से प्रसाद ले कर हम दोनों भौजी के घर पहुँचे, दोनों बाप-बेटी के माथे पर टीका देख माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: क्या बात है, आज तुझे मंदिर जाने का मन हो गया?!

माँ का सवाल सुन भौजी को थोड़ी हैरानी हुई, मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा;

मैं: कभी-कभी भगवान को भी मिलने जाना चाहिए, उनकी रहमत के लिए उन्हें धन्यवाद कहना चाहिए!

मेरा जवाब सुन भौजी मंद-मंद मुस्कुराने लगीं क्योंकि वो मेरे मंदिर जाने का कारन समझ गईं थीं| वहीं जैसे ही मैंने आयुष को प्रसाद दिया उसने 'गप' से प्रसाद खा लिया तथा और प्रसाद माँगने के लिए अपने छोटे-छोटे हाथ जोड़कर फैलाये! आयुष का ये बचपना देख हम सब हँस पड़े!

भौजी: माँ आयुष को न प्रसाद बहुत पसंद है!

भौजी की बात सुन मैं मन ही मन बोला; 'बिलकुल बाप पर (यानी मुझ पर) गया है!' जब मैं छोटा था तो मीठा खाने का बहुत शौक़ीन था, मंदिर का प्रसाद हो या हलवा, खीर, मिठाई! कुछ भी मीठा मेरे पास सुरक्षित नहीं होता था!



हँसी-ख़ुशी समय बीता और रात के खाने का समय हो गया| रात को चन्दर लौट आया था और रात घर ही रुकने वाला था| सबसे पहले दोनों बच्चों, चन्दर और पिताजी ने खाना खाया, इस दौरान मैं भौजी के पास बैठा था| हमारी बातें हो पातीं उससे पहले ही मुझे दिषु का फ़ोन आ गया, अपनी आखरी ऑडिट में टैक्स के अमाउंट को ले कर हम दोनों चर्चा करने लगे| इस दौरान भौजी चेहरे पर मुस्कान लिए मुझे बड़े गौर से देख रहीं थीं, मेरी नजर भी जब उनके चेहरे पर पड़ी तो दिल को एक अनजानी सी ठंडक का एहसास हुआ|

इतने में दोनों बच्चे आ गए और मुझसे लिपट गए| मैंने दिषु से बात खत्म की और दोनों बच्चों को एक साथ अपनी बाहों में भर लिया|

नेहा: पापा मैं आज आपके पास सोऊँगी|

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा;

मैं: बेटा आप अगर मेरे पास सोओगे तो आपकी मम्मी का ख्याल कौन रखेगा?

ये सुन कर नेहा सोच में पड़ गई और फिर एकदम से जिम्मेदार बनते हुए बोली;

नेहा: ठीक है पापा, जब तक मम्मी ठीक नहीं होती मैं यहीं सोऊँगी!

मैंने नेहा के माथे को चूम कर उसे आशीर्वाद दिया तो आयुष भी जोश में बोला;

आयुष: मैं भी मम्मी का ख्याल रखूँगा!

आयुष का जोश देख मैंने उसे गोद में उठा लिया और उसके दोनों गालों की मीठी-मीठी पप्पी लेते हुए बोला;

मैं: Awww मेरा बहादुर बच्चा! आप न अपनी दीदी के साथ मिल कर अपनी मम्मी का ख्याल रखना| Okay?

मेरी बात सुन कर दोनों बच्चों ने एक साथ हाँ में गर्दन हिलाई और दोनों फिर से मुझसे लिपट गए|



खाना खा कर मैं चैन से सोया और सुबह जल्दी उठ गया, फ्रेश हो कर मैं अपने कमरे से बाहर आया तो सारा घर भरा-भरा लग रहा था| चन्दर और पिताजी डाइनिंग टेबल पर बैठे चाय की पी रहे थे, माँ और भौजी बैठक में बैठे सब्जी काट रहे थे और दोनों बच्चे खेल रहे थे| जैसे ही दोनों बच्चों ने मुझे देखा तो दोनों दौड़ कर मेरी तरफ आये, मैं नीचे झुका और एक साथ दोनों को गोद में उठा लिया| नेहा ने मेरे दाएँ गाल पर और आयुष ने मेरे बाएँ गाल पर सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी! दोनों ने मेरे कान में खुसफुसाते हुए 'गुड मॉर्निंग पापा' कहा, मैंने दोनों की पप्पी ली और गुड मॉर्निंग कहा| पिताजी ने मुझे बात करने के लिए अपने पास बुलाया तो मैंने बच्चों को खेलने जाने को कहा|

पिताजी ने आज के कामों की सूची बनाई और मुझे सारा काम समझाया, नाश्ते का समय हुआ तो माँ ने सबके लिए पोहा बनाया| जैसे ही नाश्ता बना दोनों बच्चे मेरे अगल-बगल आ कर खड़े हो गए, माँ ने मेरी प्लेट में पोहे का पहाड़ परोस दिया| मैंने एक-एक कर दोनों बच्चों को चम्मच से पोहा खिलाना शुरू किया| पहला चम्मच खाते ही दोनों बच्चे एक साथ अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ गर्दन हिलाने लगे! दोनों बच्चों को एक साथ सर हिलाते देख मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई और मैंने दोनों के माथे चूम लिए|



इतने में मेरा फ़ोन बजा, screen पर सतीश जी का नाम था| मैंने सोचा शायद उन्हें अपने फ्लैट का कोई काम करवाना है, मगर जो बात उन्होंने बोली वो सुन कर मैं हैरान रह गया;

सतीश जी: मानु blue bells school में मैंने अभी बात की है, वो दोनों बच्चों के admission के लिए मान गए हैं लेकिन तुम्हें 10 हजार की donation देनी होगी!

Blue bells मेरे स्कूल का नाम था और वहाँ अपने बच्चों का admission कराने के नाम से मैं बहुत उत्साहित था! उनकी बात सुन मैंने बस इतना कहा;

मैं: Ok sir no problem!

इतना कह मैंने दोनों बच्चों के माथे चूमे और बोला;

मैं: बेटा मुझे अभी निकलना है, प्लेट में जितना नाश्ता है वो बर्बाद नहीं होना चाहिए!

मेरी बात सुनते ही दोनों बच्चों ने हाँ में सर हिलाया और मेरी जगह कुर्सी पर बैठ कर खाने लगे| पिताजी कभी काम पर जाने से टोकते नहीं थे इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा, कुछ देर बाद उनका फ़ोन आया तो मैंने उन्हें सारी बात बता दी|

मैं स्कूल पहुँचा तो मेरी मुलाक़ात मेरी principal मैडम से हुई, मुझे देख कर वो बहुत खुश हुईं, उन्होंने मेरे बारे में पुछा की मैं अभी क्या कर रहा हूँ आदि| सतीश जी ने उन्हें पहले ही सारी बात बता दी थी तो मुझे वहाँ कुछ बोलना नहीं पड़ा| उन्होंने मुझे कुछ फॉर्म्स भर कर लाने को कहा, बच्चों तथा उनके माता-पिता के कागज़ माँगे और बदले में उन्हें donation का चेक फाड़ कर दिया| फॉर्म ले कर मैं उड़ता हुआ घर पहुँचा, पिताजी और चन्दर साइट पर निकल चुके थे तो मैंने ये खुशखबरी माँ, भौजी तथा बच्चों को सुनाते हुए कहा;

मैं: बच्चों आपका स्कूल में admission होने जा रहा है!

माँ और भौजी के चेहरे पर ख़ुशी छलकने लगी और नेहा जोर से उछल पड़ी और दौड़ती हुई मेरी ओर आई| मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे कस कर लगाते हुए बोला;

मैं: और बेटा आपको पता है मैं भी इसी स्कूल में पढ़ा हूँ!

ये सुन कर नेहा ने मेरे दाएँ गाल की पप्पी लेते हुए मेरे कान में खुसफुसाते हुए बोली;

नेहा: Thank you पापा!

मैंने नेहा को कस कर गले लगाते हुए प्यार किया| जब मेरी नजर आयुष पर पड़ी तो वो बेचारा डरा-सहमा हुआ मुझे देख रहा था| मैंने नेहा को नीचे उतारा और आयुष को अपने पास बुलाया, आयुष डरा हुआ सा मेरे पास आया| जैसे ही मैंने उसे गोदी लिया आयुष कस कर मुझसे लिपट गया और खुसफुसाते हुए मुझसे बोला;

आयुष: पापा...वहाँ और भी...बच्चे होंगे न?

आयुष का डर उसकी बातों से झलक रहा था|

मैं: हाँ जी बेटा!

मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरा और उसे स्कूल जाने के डर निकालते हुए बोला;

मैं: बेटा स्कूल न बहुत मजेदार होता है! वहाँ आपको नए-नए दोस्त मिलेंगे, जिनके साथ आप पढाई करोगे, खेलोगे, हँसी-मजाक करोगे!

मेरी बात सुन कर आयुष का डर कम नहीं हुआ, अब मुझे उसे लालच दे कर समझना था;

मैं: बेटा आपको पता है स्कूल जाने का सबसे बड़ा फायदा क्या होता है?

मैंने आयुष से पुछा तो वो उत्सुकता भरी आँखों से मुझे देखने लगा|

मैं: आपको नई-नई स्कूल ड्रेस पहनने को मिलेगी, नई-नई किताबें मिलेंगी, नया school bag, water bottle, tiffin box मिलेगा!

ये सुन कर नेहा और आयुष दोनों की आँखें फ़ैल गईं क्योंकि उन्होंने आजतक न तो ये चीजें देखीं थीं और न कभी इस्तेमाल करने की सोची थीं| मैंने दोनों बच्चों को इत्मीनान से इन सभी चीजों के बारे में बताया और दोनों बच्चों ने बड़े गौर से मेरी बात सुनते हुए इन चीजों की कल्पना करनी शुरू कर दी|

मैं: इन सब के अलावा आपको पता है स्कूल में सबसे अच्छा क्या होता है?

दोनों बच्चों ने एक साथ न में गर्दन हिलाई|

मैं: Lunch Break!

मैंने खुश होते हुए कहा| मगर बच्चे नहीं जानते थे की Lunch Break क्या होता है तो मैंने उन्हें समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा lunch break मतलब आधी छुट्टी, साढ़े ग्यारह बजे स्कूल की घंटी बजती है और तब आपको लंच करना होता है| जब आप स्कूल जाओगे न तो आपकी मम्मी रोज सुबह आपके लिए नया-नया नाश्ता बना कर देंगी| जब lunch break होगा तब आपको वही खाना होगा, लेकिन आप अकेले नहीं होओगे, आपके साथ आपके स्कूल के दोस्त होंगे, वो भी अपने घर से खाना लाएँगे फिर आप सब एक साथ एक दूसरे के टिफ़िन में से खाना खा सकते हो! सोचो कोई दोस्त भिंडी लाया हो, कोई गोभी लाया हो, कोई आलू का परांठा लाया हो, कोई दाल लाया हो, तो ऐसे में आप सब मिलकर खाना खा सकते हो!

खाने की बात सुन कर नेहा इतनी खुश नहीं हुई जितना खुश आयुष हुआ था, मगर अभी तो दोनों बच्चों को canteen के बारे में बताना था|

मैं: और बेटा आपको पता है स्कूल में एक canteen होती है, जहाँ पर आपको बहुत अच्छा-अच्छा खाना मिलता है! पैटीज़, बर्गर, चाऊमीन, छोले कुलचे, समोसे, ब्रेड पकोड़े!

बच्चों ने अभी तक बस समोसे ही खाये थे ऐसे में मैंने जो अन्य खाने-पीने की चीजों के नाम लिए उससे आयुष के मुँह में पानी आ गया और उसका डर काफी हद्द तक कम हो गया! जो रही-सही कसर थी वो मैंने आयुष को थोड़ा प्यार से समझाते हुए पूरी कर दी;

मैं: फिर बेटा आपकी दीदी भी उसी स्कूल में पढेंगी और लंच में आपके पास आ जाया करेंगी, या फिर आप उनके पास चले जाना!

आयुष का डर अब खत्म हो गया था और उसके चेहरे पर पहले जैसी मुस्कान लौट आई थी|

मैं: जब मैं आप दोनों के admission फॉर्म जमा करने जाऊँगा न तब आप दोनों मेरे साथ चलना, मैं आपको सारा स्कूल घुमा दूँगा|

ये सुन कर दोनों बच्चे कूदने लगे और मुझे मीठी- मीठी पप्पी दे कर खेलने लगे|



माँ और भौजी मेरी बातें रस लेते हुए चुप-चाप मुस्कुराते हुए सुन रहे थे, मेरा बच्चों को बच्चा बन कर समझना उन्हें अच्छा लग रहा था| खैर माँ कुछ सामान लेने उठी तो मैंने भौजी से बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: मुझे आपके और बच्चों के कुछ documents चाहिए;

1. आपका और चन्दर भैया का गाँव कोई भी पहचान पत्र|

2. आप दोनों का एक हलफनामा जो मैं तैयार कर वाला लूँगा पर आप दोनों को उस पर दस्तखत करने होंगे|

3. दोनों बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र और

4. नेहा का तीसरी कक्षा का school leaving certificate.

जैसे ही मेरी बात पूरी हुई भौजी बोलीं;

भौजी: मेरे पास तो बस आयुष का जन्म प्रमाण पत्र है!

उनका ये छोटा सा जवाब सुन मुझे गुस्से आने लगा|

मैं: एक मिनट.....सिर्फ आयुष का जन्म प्रमाण पत्र? बस? नेहा का जन्म प्रमाण पत्र कहाँ है? और उसका तीसरी कक्षा का school leaving certificate?

मैंने गुस्से में भौजी पर अपने सवालों की बौछार कर दी|

भौजी: वो... नेहा के पैदा होने के बाद बनवाया नहीं! जब नेहा पहली कक्षा में आई तब हेडमास्टर साहब ने उसका जन्म प्रमाण पत्र माँगा था पर.....

इतना कह भौजी मेरे गुस्से के डर से खामोश हो गईं! उनका यूँ बात अधूरी छोड़ना मेरे गुस्से को न्योता दे बैठा और मैं गुस्से में उन्हें टोंट मारते हुए बोला;

मैं: पर आपको नेहा का जन्म प्रमाण पत्र बनवाने की फुर्सत नहीं मिली?

मेरा गुस्सा देख भौजी का सर शर्म से झुक गया, तभी माँ उनके बचाव में आगे आईं और बोलीं;

माँ: तो तू यहाँ बनवा दे न?! गाँव में कहाँ कोई इन बातों का ध्यान रखता है!

अब माँ के आगे मैं कुछ बोल नहीं सकता था, इसलिए मैंने उखड़ी हुई आवाज में भौजी से पुछा;

मैं: नेहा की birthdate क्या है?

भौजी: 23 जुलाई XXXX (साल)|

मैंने फ़ोन निकाला और दिषु को फ़ोन कर के birth certificate बनवाने वाले का नंबर माँगा, कुछ साल पहले दिषु के birth certificate में नाम change करवाना था तो उसने एक बंदे से बात की थी| दिषु ने उसका नंबर भेजा और मैंने उस आदमी से सारी बात तय कर ली, उसने कहा की मैं उसे नेहा के माता-पिता की सभी detail what’s app कर दूँ, वो परसों नेहा का जन्म प्रमाण पत्र ला देगा तथा बदले में मुझे उसे 2,000/- रुपये देने होंगे! मैंने उससे कोई भाव-ताव नहीं किया और उसे परसों घर बुला लिया|



अब बारी थी भौजी से नेहा का school leaving certificate माँगने की, मैं जानता था की भौजी के पास ये कागज भी नहीं होगा और मैं भौजी को झाड़ने का ये मौका छोड़ने वाला नहीं था;

मैं: और नेहा का तीसरी कक्षा का school leaving certificate? उसके लिए क्या बहाना है?!

मैंने भौजी को फिर टोंट मारते हुए पुछा|

भौजी: वो...वो...नेहा का दूसरी के बाद स्कूल छुड़वा दिया था!

भौजी ने डरते हुए सर झुका कर कहा| ये सुनते ही मेरा गुस्से का पारा टूट गया, मैंने गुस्से में आ कर टेबल पर जोर से हाथ मारा और उन पर गरजते हुए बोला;

मैं: Are you out of your freaking mind!

मेरे जोर से गरजने से सब के सब दहल गए!

मैं: क्यों छुड़वाया नेहा का स्कूल?

मैंने गुस्से से चिल्लाते हुए भौजी से पुछा, मेरा गुस्सा देख भौजी की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई! इतना तो मैं उनपर तब भी नहीं चिंघाड़ा था जब उन्होंने मुझे खुद से दूर करने का अपना वो बे सर-पैर का कारन दिया था! बड़ी हिम्मत जुटाते हुए वो बोलीं;

भौजी: आ...आयुष को भी ....स्कूल में...डालना था.... तो मैंने सोचा ...एक साथ दिल्ली में...डाल देंगे!

भौजी का मतलब था की उन्होंने सोचा की जब आयुष का दाखिला होना ही है तो नेहा का भी दाखिला तीसरी में एक ही बार करवा देंगे| भौजी की बात सुन कर मेरा गुस्से पर से काबू छूट गया, इधर पिताजी अचानक घर आ धमके और मेरा गुस्से के कारन रौद्र रूप देख कर हैरान हुए| वो कुछ पूछते उससे पहले ही मैं भौजी पर बरस पड़ा;

मैं: आयुष का दाखिला कराना था तो उसमें नेहा की पढ़ाई छुड़ा दी, अक्ल घाँस चरने गई थी क्या?!

अब जा कर पिताजी सारी बात समझ गए थे, उन्होंने मुझे शांत करवाते हुए मेरे कँधे पर हाथ रखा|

मैं: पिताजी इनके दिमाग में बस भूसा भरा हुआ है!

मैंने भौजी की तरफ इशारा करते हुए कहा|

मैं: आप जानते हो न पिताजी की इनकी (भौजी की) पढ़ाई इन्हीं के माता-पिता द्वारा दसवीँ के बाद क्यों छुड़वा दी गई थी? और ये (भौजी)...ये भी अपने माता-पिता के सुनेहरे क़दमों पर चलते हुए अपनी ही बेटी की पढ़ाई छुड़वाए बैठीं हैं! माता-पिता क्या नहीं करते की उनके बच्चे पढ़ लिख जाएँ, अपना पेट तक काट देते हैं मगर ये...

उस समय मेरे मुँह में गाली आ रही थी, बड़ी मुश्किल से मैंने वो गाली रोकी और दाँत पीसते हुए भौजी को गुस्से से देखने लगा| मेरी आँखों में गुस्सा देख भौजी का सर झुक गया, उधर पिताजी मुझे शांत करवाते हुए बोले;

पिताजी: बेटा बस!

पिताजी आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैं गुस्से में अपने कमरे में आ गया|



में पलंग पर बैठ अपना दिमाग शांत करने लगा, इतने में नेहा मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई| मेरे गुस्से के कारन नेहा कुछ घबराई हुई थी, मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो नेहा ने मेरा हाथ पकड़ लिया| मैंने नेहा को अपने सामने खड़ा किया, उसके चेहरे को हाथ में ले कर मैंने उससे माफ़ी माँगते हुए कहा;

मैं: मुझे माफ़ कर दो बेटा, मैं एक अच्छा पापा नहीं हूँ, मुझे आप के जन्मदिन की तरीक तक नहीं पता थी!

नेहा ने मेरा चेहरे को अपने छोटे-छोटे हाथों में थामा और मेरे माथे से अपना माथा भिड़ाते हुए बोली;

नेहा: पापा जी मुझे भी तो आपका जन्मदिन नहीं पता था! सिर्फ जन्मदिन पता होने से कोई अच्छे पापा थोड़े ही बन जाते हैं!

मेरी निगाहों में नेहा बहुत छोटी थी, लेकिन जब उसने इतनी बात कही तो मेरे दिल में पिता के प्यार का सागर उमड़ने लगा|

नेहा: आप दुनिया का best पापा हो!

इतना कह कर नेहा मेरे सीने से लग गई| नेहा के गले लगते ही गुस्से का जवालामुखी शांत समंदर बन गया और मैंने कस कर नेहा को अपने सीने से लगा लिया| नेहा की 'आभा' का मुझ पर ऐसा प्रभाव पड़ेगा इसकी मैंने कभी कल्पना नहीं की थी!

दिमाग शांत हुआ तो मैंने बच्चों के स्कूल के बारे में सोचने शुरू कर दिया| मैंने फ़ोन निकाला और अजय भैया से बात की;

अजय भैया: कइसन हो मानु भैया?!

अजय भैया खुश होते हुए बोले|

मैं: मैं ठीक हूँ भैया! दरअसल आपकी एक छोटी सी मदद चाहिए थी, आप स्कूल के हेडमास्टर साहब से मेरी बात करवा देंगे?

मेरी बात सुन अजय भैया थोड़े हैरान हुए तो मैंने उन्हें सारी बात समझाई, उन्होंने मुझे आधे घंटे के बाद कॉल करने को कहा| इतने में आयुष आ गया और वो भी थोड़ा डरा हुआ था, मैंने अपने दोनों हाथ खोल दिए तो आयुष दौड़ता हुआ आ कर मुझसे लिपट गया|

मैं: Awww मेरा बच्चा!

मैंने आयुष का सर चूमते हुए कहा|

आयुष: पापा आप मुझसे 'गुच्छा' हो?!

आयुष ने तुतलाते हुए पुछा|

मैं: मैं भला मेरे बच्चे से क्यों गुस्सा हूँगा?!

नेहा अकेला महसूस न करे इसलिए मैंने दोनों बच्चों को एक साथ गले लगा लिया| अगले दस मिनट तक मैं दोनों बच्चों के सर बारी-बारी से चूमता रहा, मेरे साथ दोनों बच्चों को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था क्योंकि अचानक से घर में दोनों बच्चों की किलकारियाँ गूँजने लगीं थीं!



कुछ देर बाद अजय भैया का फ़ोन आया और उन्होंने मेरी बात स्कूल के हेडमास्टर से करवाई| मैंने उनसे नेहा का school leaving certificate बना कर देने को कहा, साथ ही मैंने अजय भैया से कहा की वो शहर जा कर मुझे वो certificate courier कर दें!



नेहा को पीठ पर लादे और आयुष को गोद में लिए मैं बाहर आया तो देखा बाहर सब के सब खामोश बैठे हैं! साफ़ जाहिर था की मेरा गुस्सा देख कर सब सख्ते में थे! मैंने भौजी की तरफ देखते हुए उखड़े शब्दों में कहा;

मैं: कल आप और चन्दर भैया सुबह 10 बजे तैयार रहना, पहले आप दोनों का आधार कार्ड बनवाना है, पैन कार्ड का फॉर्म भरवाना है और आप दोनों का affidavit भी बनवाना है|

आज जा कर भौजी की तबियत कुछ ठीक हुई थी और ऐसे में उनका कल बाहर जाना माँ को ठीक नहीं लगा;

माँ: बेटा दो-एक दिन रुक जा, अभी बहु की तबियत थोड़ी ठीक हुई है|

माँ की बात सुन कर मैं बस गुस्से से अपने दाँत पीस कर रह गया|

भौजी: मैं अब ठीक हूँ माँ, पहले ही मेरी वजह से नेहा का एक साल बर्बाद हो गया अब और दो दिन बर्बाद नहीं करुँगी!

भौजी की बातों में पशाताप झलक रहा था! मगर मैंने उनके पश्चाताप से भरे आँसुओं को नजरअंदाज किया और नेहा को अपने सामने खड़ा करते हुए बोला;

मैं: बेटा.....मैं आपका admission third class में करवा रहा हूँ, लेकिन आपको बहुत मेहनत करनी होगी, आपको आधे साल की पढ़ाई करनी होगी!

मैंने बहुत गंभीर होते हुए कहा| लेकिन मेरी बेटी नेहा बहुत बहादुर थी, वो उत्साह से भरते हुए बोली;

नेहा: आप बिलकुल चिंता मत करो, मैं है न सारे साल की पढ़ाई कर लूँगी और साथ ही आयुष को भी पढ़ा दूँगी!

नेहा का उत्साह देखने लायक था, मुझे उसका उत्साह देख कर बहुत ख़ुशी हो रही थी|

मैं: I'm proud of my daughter!

ये कहते हुए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा लिया| चूँकि मैंने ये अंग्रेजी में कहा था तो माँ-पिताजी कुछ समझ नहीं पाए| मेरा गुस्सा शांत देख कर पिताजी को भी नेहा को प्यार आ गया, आखिर उसी के कारन तो मेरा गुस्सा काफ़ूर हो गया था| पिताजी ने नेहा को अपने पास बुलाया और उसे आशीर्वाद देते हुए बोले;

पिताजी: मेरी मुन्नी बहुत होशियार है!

जारी रहेगा भाग - 2 में
Lovely update sirji.
.
Kya mja kya khana fir kya rulana.
.
Ye bhauji ki samajhdaari aram kr rhi thi lgta h itne time gaon mai.
.
Nye shuruwat ki baat chl rhi h aur sapne mai alg shruwat ho rhi thi wha par manu lal ji k.
.
Samose. kachori............
Mera naam Ayush nhi h lekin pani to merre bhi muh mai aagya.
.
Gussa fir jugaad fir pyaar.
.
Keep writing.
.
Keep posting.
.
..
...
....
 
Last edited:

aman rathore

Enigma ke pankhe
4,853
20,198
158
तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 1


अब तक आपने पढ़ा:

भौजी: Oh come on! Let's forget everything and start a fresh!

भौजी नई शुरुआत करना चाहतीं थीं!

मैं: That's something I’ll have to think about!

लेकिन मैं फिर से एक नई शुरुआत के लिए तैयार नहीं था! मेरा दिल एक बार टूट चूका था, बच्चों के प्यार ने उसे सँभाला था इसलिए मैं दुबारा दिल टूटने का जोखम नहीं उठाना चाहता था!



अब आगे:


आगे हमारी बात हो पाती उससे पहले ही माँ का फोन आ गया;

माँ: सूप बन गया है, आ कर ले जा और बहु को अपने सामने पीला दियो!

इतना कह माँ ने फ़ोन रख दिया और भौजी को मेरी नई शुरुआत करने पर विचार करने वाली बात पर कुछ कहने का मौका नहीं मिला| मैं घर जाने को उठा था की दोनों बच्चे समोसे ले कर आ गए, नेहा ने बचे हुए पैसे और समोसे का पैकेट मुझे दे दिया|

मैं: बेटा आप दोनों खाओ मैं आपकी मम्मी का सूप ले कर आ रहा हूँ|

बच्चों ने समोसे खाना शुरू किया और मैं सूप लेने घर लौटा, माँ ने सूप थर्मस में भर रखा था| थर्मस देते हुए माँ ने मुझे एक बार और सख्ती से कहा;

माँ: जब से बहु आई है तब से तेरे बारे में मुझसे सैकड़ों बार पूछ चुकी है| सारा टाइम तू या तो काम पर रहता है या घूमता रहता है, अपने बचपन की दोस्त को ऐसे सताना अच्छी बात नहीं! दुबारा बहु बीमार पड़ी तो तेरी खैर नहीं!

मेरी भोली-भाली माँ को लगता था की भौजी और मेरे बीच अब भी वो बचपन की दोस्ती वाला रिश्ता बरकरार है तथा उसी रिश्ते के कारण भौजी ने खाना पीना छोड़ दिया है| अब वो क्या जाने की यहाँ उनका लड़का किस कश्मकश में फँसा है, भौजी के साथ नई शुरुआत करे या फिर एक दोस्त बन कर दूरी बनाये रखे!



खैर सूप ले कर मैं भौजी के पास लौटा और गिलास में डालकर उन्हें पीने के लिए दिया, मगर भौजी बच्चों की तरह हट करने लगीं की मैं उन्हें सूप अपने हाथ से पिलाऊँ! उनका ये हट देख मुझे हँसी आई और मैंने उन्हें धीरे-धीरे सूप पिलाना शुरू किया| दोनों बच्चे सामने बैठे समोसे खा रहे थे, नेहा उठी और मेरे मुँह के सामने समोसे का एक छोटा टुकड़ा मुझे खिलाने को लिए ले कर खड़ी हो गई| मैंने वो टुकड़ा खाया तो आयुष भी अपनी दीदी की देखा-देखि मुझे समोसा खिलाने के लिए खड़ा हो गया| दोनों बच्चों ने बारी-बारी से मुझे समोसा खिलाया, अब दोनों बच्चों ने कभी सूप नहीं पिया था तो आयुष अपनी प्यारी आवाज में बोला;

आयुष: पापा सूप क्या होता है?

थर्मस में थोड़ा सूप बचा था तो मैंने नेहा को एक गिलास लाने को कहा और उस गिलास में दो घूँट बचा हुआ सूप डाल दिया| दोनों बच्चों ने बारी-बारी से सूप पिया और मुँह बिदकते हुए बोले;

आयुष: इसमें तो बस नमक है!

नेहा: ये तो बस पानी है!

दोनों को मुँह बिदकते हुए देख तथा उनकी बचकानी बात सुन मैं और भौजी हँस पड़े|

मैं: बेटा सूप बीमार लोगों को देते हैं, सब्जियों को पानी के साथ उबालते हैं तथा इसमें मिर्ची और मसाले इसलिए नहीं डालते ताकि बीमार इंसान को पीने में तकलीफ न हो| एकबार आपकी मम्मी ठीक हो जाएँ फिर मैं आप दोनों को chinese सूप पिलाऊँगा, वो बहुत स्वाद होता है!

Chinese सूप पिने के नाम से दोनों बच्चे खुश हो गए| भौजी ने सूप पिया और मैंने तथा बच्चों ने समोसे खा कर सुबह का नाश्ता कर लिया, उधर घर पर माँ दोपहर का खाना बनाने में लगी हुईं थीं|



अंततः सब खुश थे, मगर अब भी कुछ तो था, जो नहीं था!



दोपहर को खाने के समय पिताजी घर आये और जब उन्हें आज के घटनाक्रम का पता चला तो उन्होंने मुझे घर बुला कर बहुत डाँटा! भौजी का खाना ले कर मैं और माँ भौजी के घर पहुँचे, भौजी चाहतीं थीं की मैं उन्हें खाना खिलाऊँ मगर माँ की मौजूदगी में ये कैसे होता?! खैर भौजी ने पूरा खाना खाया और इस दौरान माँ ने भौजी को बातों में लगाए रखा| भौजी का खाना हुआ तो माँ ने मुझे डाँटते हुए कहा;

माँ: बच्चे यहाँ बहु के पास हैं तब तक तू भी खाना खा ले!

मैं सर झुका कर माँ के साथ घर लौट आया, कल से एक ही कपडे पहने था इसलिए नहा धो कर मैं खाना खाने बैठ गया| इतने में नेहा आ गई और मेरी बगल में कुर्सी खींच कर बैठ गई, नेहा को खाने के लिए बैठा देख माँ बोली;

माँ: मुन्नी और भूख लगी है तो खाना परोसूँ?

लेकिन मेरी बेटी मुस्कुराते हुए न में गर्दन हिलने लगी|

मैं: वो क्या है न माँ, आज घर पर हूँ इसलिए मेरी बच्ची को मेरे हाथ से दो कौर खाना है!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाने लगी! माँ ने मेरी थाली में थोड़े चावल और परोस दिए ताकि नेहा पेट भर कर खाये| मैंने नेहा को खाना खिलाया और वो कूदती हुई मेरे कमरे में चली गई| मैंने खाना खाया और माँ से कहा की मैं सोने जा रहा हूँ| कल रात से जागा था और अभी तो मेरे पास नेहा भी थी इसलिए अभी तो मुझे बड़ी मजेदार नींद आने वाली थी!

दोनों बाप-बेटी चैन की नींद सोये और उधर माँ भौजी के पास थीं ताकि वो अकेला न महसूस करें! मेरी नींद 5 बजे खुली, आज सालों बाद मेरे दिल में खुशियाँ भरीं थीं और मैं इन खुशियों के लिए भगवान को धन्यवाद कहना चाहता था| मैं धीरे से उठा ताकि नेहा जाग न जाए, पर जैसे ही मैं उठ कर बैठा नेहा की नींद खुल गई और वो मेरी पीठ पर सवार हो गई! मैंने नेहा से मंदिर जाने की बात कही तो नेहा फटाफट तैयार होने लगी| दोनों बाप-बेटी तैयार हो कर मंदिर पहुँचे, माथा टेक कर आँखें बंद किये हाथ जोड़कर मैं मन ही मन भगवान को आज के दिन के लिए धन्यवाद कहने लगा| उधर नेहा मुझे देख कर मेरी नकल करते हुए अपने हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी| जब मेरी प्रार्थना खत्म हुई तो मैंने नेहा को देखा जो अब भी आँखें बंद किये हुए प्रार्थना कर रही थी| छोटे बच्चे जब अपने छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं तो वो बहुत प्यारे लगते हैं! मैं भी मुस्कुराते हुए नेहा को प्रार्थना करते हुए देख रहा था, जब नेहा ने आँखें खोलीं और मुझे खुद को देखते हुए देखा तो वो ख़ुशी से चहकने लगी| पंडित जी से प्रसाद ले कर हम दोनों भौजी के घर पहुँचे, दोनों बाप-बेटी के माथे पर टीका देख माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: क्या बात है, आज तुझे मंदिर जाने का मन हो गया?!

माँ का सवाल सुन भौजी को थोड़ी हैरानी हुई, मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा;

मैं: कभी-कभी भगवान को भी मिलने जाना चाहिए, उनकी रहमत के लिए उन्हें धन्यवाद कहना चाहिए!

मेरा जवाब सुन भौजी मंद-मंद मुस्कुराने लगीं क्योंकि वो मेरे मंदिर जाने का कारन समझ गईं थीं| वहीं जैसे ही मैंने आयुष को प्रसाद दिया उसने 'गप' से प्रसाद खा लिया तथा और प्रसाद माँगने के लिए अपने छोटे-छोटे हाथ जोड़कर फैलाये! आयुष का ये बचपना देख हम सब हँस पड़े!

भौजी: माँ आयुष को न प्रसाद बहुत पसंद है!

भौजी की बात सुन मैं मन ही मन बोला; 'बिलकुल बाप पर (यानी मुझ पर) गया है!' जब मैं छोटा था तो मीठा खाने का बहुत शौक़ीन था, मंदिर का प्रसाद हो या हलवा, खीर, मिठाई! कुछ भी मीठा मेरे पास सुरक्षित नहीं होता था!



हँसी-ख़ुशी समय बीता और रात के खाने का समय हो गया| रात को चन्दर लौट आया था और रात घर ही रुकने वाला था| सबसे पहले दोनों बच्चों, चन्दर और पिताजी ने खाना खाया, इस दौरान मैं भौजी के पास बैठा था| हमारी बातें हो पातीं उससे पहले ही मुझे दिषु का फ़ोन आ गया, अपनी आखरी ऑडिट में टैक्स के अमाउंट को ले कर हम दोनों चर्चा करने लगे| इस दौरान भौजी चेहरे पर मुस्कान लिए मुझे बड़े गौर से देख रहीं थीं, मेरी नजर भी जब उनके चेहरे पर पड़ी तो दिल को एक अनजानी सी ठंडक का एहसास हुआ|

इतने में दोनों बच्चे आ गए और मुझसे लिपट गए| मैंने दिषु से बात खत्म की और दोनों बच्चों को एक साथ अपनी बाहों में भर लिया|

नेहा: पापा मैं आज आपके पास सोऊँगी|

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा;

मैं: बेटा आप अगर मेरे पास सोओगे तो आपकी मम्मी का ख्याल कौन रखेगा?

ये सुन कर नेहा सोच में पड़ गई और फिर एकदम से जिम्मेदार बनते हुए बोली;

नेहा: ठीक है पापा, जब तक मम्मी ठीक नहीं होती मैं यहीं सोऊँगी!

मैंने नेहा के माथे को चूम कर उसे आशीर्वाद दिया तो आयुष भी जोश में बोला;

आयुष: मैं भी मम्मी का ख्याल रखूँगा!

आयुष का जोश देख मैंने उसे गोद में उठा लिया और उसके दोनों गालों की मीठी-मीठी पप्पी लेते हुए बोला;

मैं: Awww मेरा बहादुर बच्चा! आप न अपनी दीदी के साथ मिल कर अपनी मम्मी का ख्याल रखना| Okay?

मेरी बात सुन कर दोनों बच्चों ने एक साथ हाँ में गर्दन हिलाई और दोनों फिर से मुझसे लिपट गए|



खाना खा कर मैं चैन से सोया और सुबह जल्दी उठ गया, फ्रेश हो कर मैं अपने कमरे से बाहर आया तो सारा घर भरा-भरा लग रहा था| चन्दर और पिताजी डाइनिंग टेबल पर बैठे चाय की पी रहे थे, माँ और भौजी बैठक में बैठे सब्जी काट रहे थे और दोनों बच्चे खेल रहे थे| जैसे ही दोनों बच्चों ने मुझे देखा तो दोनों दौड़ कर मेरी तरफ आये, मैं नीचे झुका और एक साथ दोनों को गोद में उठा लिया| नेहा ने मेरे दाएँ गाल पर और आयुष ने मेरे बाएँ गाल पर सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी! दोनों ने मेरे कान में खुसफुसाते हुए 'गुड मॉर्निंग पापा' कहा, मैंने दोनों की पप्पी ली और गुड मॉर्निंग कहा| पिताजी ने मुझे बात करने के लिए अपने पास बुलाया तो मैंने बच्चों को खेलने जाने को कहा|

पिताजी ने आज के कामों की सूची बनाई और मुझे सारा काम समझाया, नाश्ते का समय हुआ तो माँ ने सबके लिए पोहा बनाया| जैसे ही नाश्ता बना दोनों बच्चे मेरे अगल-बगल आ कर खड़े हो गए, माँ ने मेरी प्लेट में पोहे का पहाड़ परोस दिया| मैंने एक-एक कर दोनों बच्चों को चम्मच से पोहा खिलाना शुरू किया| पहला चम्मच खाते ही दोनों बच्चे एक साथ अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ गर्दन हिलाने लगे! दोनों बच्चों को एक साथ सर हिलाते देख मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई और मैंने दोनों के माथे चूम लिए|



इतने में मेरा फ़ोन बजा, screen पर सतीश जी का नाम था| मैंने सोचा शायद उन्हें अपने फ्लैट का कोई काम करवाना है, मगर जो बात उन्होंने बोली वो सुन कर मैं हैरान रह गया;

सतीश जी: मानु blue bells school में मैंने अभी बात की है, वो दोनों बच्चों के admission के लिए मान गए हैं लेकिन तुम्हें 10 हजार की donation देनी होगी!

Blue bells मेरे स्कूल का नाम था और वहाँ अपने बच्चों का admission कराने के नाम से मैं बहुत उत्साहित था! उनकी बात सुन मैंने बस इतना कहा;

मैं: Ok sir no problem!

इतना कह मैंने दोनों बच्चों के माथे चूमे और बोला;

मैं: बेटा मुझे अभी निकलना है, प्लेट में जितना नाश्ता है वो बर्बाद नहीं होना चाहिए!

मेरी बात सुनते ही दोनों बच्चों ने हाँ में सर हिलाया और मेरी जगह कुर्सी पर बैठ कर खाने लगे| पिताजी कभी काम पर जाने से टोकते नहीं थे इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा, कुछ देर बाद उनका फ़ोन आया तो मैंने उन्हें सारी बात बता दी|

मैं स्कूल पहुँचा तो मेरी मुलाक़ात मेरी principal मैडम से हुई, मुझे देख कर वो बहुत खुश हुईं, उन्होंने मेरे बारे में पुछा की मैं अभी क्या कर रहा हूँ आदि| सतीश जी ने उन्हें पहले ही सारी बात बता दी थी तो मुझे वहाँ कुछ बोलना नहीं पड़ा| उन्होंने मुझे कुछ फॉर्म्स भर कर लाने को कहा, बच्चों तथा उनके माता-पिता के कागज़ माँगे और बदले में उन्हें donation का चेक फाड़ कर दिया| फॉर्म ले कर मैं उड़ता हुआ घर पहुँचा, पिताजी और चन्दर साइट पर निकल चुके थे तो मैंने ये खुशखबरी माँ, भौजी तथा बच्चों को सुनाते हुए कहा;

मैं: बच्चों आपका स्कूल में admission होने जा रहा है!

माँ और भौजी के चेहरे पर ख़ुशी छलकने लगी और नेहा जोर से उछल पड़ी और दौड़ती हुई मेरी ओर आई| मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे कस कर लगाते हुए बोला;

मैं: और बेटा आपको पता है मैं भी इसी स्कूल में पढ़ा हूँ!

ये सुन कर नेहा ने मेरे दाएँ गाल की पप्पी लेते हुए मेरे कान में खुसफुसाते हुए बोली;

नेहा: Thank you पापा!

मैंने नेहा को कस कर गले लगाते हुए प्यार किया| जब मेरी नजर आयुष पर पड़ी तो वो बेचारा डरा-सहमा हुआ मुझे देख रहा था| मैंने नेहा को नीचे उतारा और आयुष को अपने पास बुलाया, आयुष डरा हुआ सा मेरे पास आया| जैसे ही मैंने उसे गोदी लिया आयुष कस कर मुझसे लिपट गया और खुसफुसाते हुए मुझसे बोला;

आयुष: पापा...वहाँ और भी...बच्चे होंगे न?

आयुष का डर उसकी बातों से झलक रहा था|

मैं: हाँ जी बेटा!

मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरा और उसे स्कूल जाने के डर निकालते हुए बोला;

मैं: बेटा स्कूल न बहुत मजेदार होता है! वहाँ आपको नए-नए दोस्त मिलेंगे, जिनके साथ आप पढाई करोगे, खेलोगे, हँसी-मजाक करोगे!

मेरी बात सुन कर आयुष का डर कम नहीं हुआ, अब मुझे उसे लालच दे कर समझना था;

मैं: बेटा आपको पता है स्कूल जाने का सबसे बड़ा फायदा क्या होता है?

मैंने आयुष से पुछा तो वो उत्सुकता भरी आँखों से मुझे देखने लगा|

मैं: आपको नई-नई स्कूल ड्रेस पहनने को मिलेगी, नई-नई किताबें मिलेंगी, नया school bag, water bottle, tiffin box मिलेगा!

ये सुन कर नेहा और आयुष दोनों की आँखें फ़ैल गईं क्योंकि उन्होंने आजतक न तो ये चीजें देखीं थीं और न कभी इस्तेमाल करने की सोची थीं| मैंने दोनों बच्चों को इत्मीनान से इन सभी चीजों के बारे में बताया और दोनों बच्चों ने बड़े गौर से मेरी बात सुनते हुए इन चीजों की कल्पना करनी शुरू कर दी|

मैं: इन सब के अलावा आपको पता है स्कूल में सबसे अच्छा क्या होता है?

दोनों बच्चों ने एक साथ न में गर्दन हिलाई|

मैं: Lunch Break!

मैंने खुश होते हुए कहा| मगर बच्चे नहीं जानते थे की Lunch Break क्या होता है तो मैंने उन्हें समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा lunch break मतलब आधी छुट्टी, साढ़े ग्यारह बजे स्कूल की घंटी बजती है और तब आपको लंच करना होता है| जब आप स्कूल जाओगे न तो आपकी मम्मी रोज सुबह आपके लिए नया-नया नाश्ता बना कर देंगी| जब lunch break होगा तब आपको वही खाना होगा, लेकिन आप अकेले नहीं होओगे, आपके साथ आपके स्कूल के दोस्त होंगे, वो भी अपने घर से खाना लाएँगे फिर आप सब एक साथ एक दूसरे के टिफ़िन में से खाना खा सकते हो! सोचो कोई दोस्त भिंडी लाया हो, कोई गोभी लाया हो, कोई आलू का परांठा लाया हो, कोई दाल लाया हो, तो ऐसे में आप सब मिलकर खाना खा सकते हो!

खाने की बात सुन कर नेहा इतनी खुश नहीं हुई जितना खुश आयुष हुआ था, मगर अभी तो दोनों बच्चों को canteen के बारे में बताना था|

मैं: और बेटा आपको पता है स्कूल में एक canteen होती है, जहाँ पर आपको बहुत अच्छा-अच्छा खाना मिलता है! पैटीज़, बर्गर, चाऊमीन, छोले कुलचे, समोसे, ब्रेड पकोड़े!

बच्चों ने अभी तक बस समोसे ही खाये थे ऐसे में मैंने जो अन्य खाने-पीने की चीजों के नाम लिए उससे आयुष के मुँह में पानी आ गया और उसका डर काफी हद्द तक कम हो गया! जो रही-सही कसर थी वो मैंने आयुष को थोड़ा प्यार से समझाते हुए पूरी कर दी;

मैं: फिर बेटा आपकी दीदी भी उसी स्कूल में पढेंगी और लंच में आपके पास आ जाया करेंगी, या फिर आप उनके पास चले जाना!

आयुष का डर अब खत्म हो गया था और उसके चेहरे पर पहले जैसी मुस्कान लौट आई थी|

मैं: जब मैं आप दोनों के admission फॉर्म जमा करने जाऊँगा न तब आप दोनों मेरे साथ चलना, मैं आपको सारा स्कूल घुमा दूँगा|

ये सुन कर दोनों बच्चे कूदने लगे और मुझे मीठी- मीठी पप्पी दे कर खेलने लगे|



माँ और भौजी मेरी बातें रस लेते हुए चुप-चाप मुस्कुराते हुए सुन रहे थे, मेरा बच्चों को बच्चा बन कर समझना उन्हें अच्छा लग रहा था| खैर माँ कुछ सामान लेने उठी तो मैंने भौजी से बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: मुझे आपके और बच्चों के कुछ documents चाहिए;

1. आपका और चन्दर भैया का गाँव कोई भी पहचान पत्र|

2. आप दोनों का एक हलफनामा जो मैं तैयार कर वाला लूँगा पर आप दोनों को उस पर दस्तखत करने होंगे|

3. दोनों बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र और

4. नेहा का तीसरी कक्षा का school leaving certificate.

जैसे ही मेरी बात पूरी हुई भौजी बोलीं;

भौजी: मेरे पास तो बस आयुष का जन्म प्रमाण पत्र है!

उनका ये छोटा सा जवाब सुन मुझे गुस्से आने लगा|

मैं: एक मिनट.....सिर्फ आयुष का जन्म प्रमाण पत्र? बस? नेहा का जन्म प्रमाण पत्र कहाँ है? और उसका तीसरी कक्षा का school leaving certificate?

मैंने गुस्से में भौजी पर अपने सवालों की बौछार कर दी|

भौजी: वो... नेहा के पैदा होने के बाद बनवाया नहीं! जब नेहा पहली कक्षा में आई तब हेडमास्टर साहब ने उसका जन्म प्रमाण पत्र माँगा था पर.....

इतना कह भौजी मेरे गुस्से के डर से खामोश हो गईं! उनका यूँ बात अधूरी छोड़ना मेरे गुस्से को न्योता दे बैठा और मैं गुस्से में उन्हें टोंट मारते हुए बोला;

मैं: पर आपको नेहा का जन्म प्रमाण पत्र बनवाने की फुर्सत नहीं मिली?

मेरा गुस्सा देख भौजी का सर शर्म से झुक गया, तभी माँ उनके बचाव में आगे आईं और बोलीं;

माँ: तो तू यहाँ बनवा दे न?! गाँव में कहाँ कोई इन बातों का ध्यान रखता है!

अब माँ के आगे मैं कुछ बोल नहीं सकता था, इसलिए मैंने उखड़ी हुई आवाज में भौजी से पुछा;

मैं: नेहा की birthdate क्या है?

भौजी: 23 जुलाई XXXX (साल)|

मैंने फ़ोन निकाला और दिषु को फ़ोन कर के birth certificate बनवाने वाले का नंबर माँगा, कुछ साल पहले दिषु के birth certificate में नाम change करवाना था तो उसने एक बंदे से बात की थी| दिषु ने उसका नंबर भेजा और मैंने उस आदमी से सारी बात तय कर ली, उसने कहा की मैं उसे नेहा के माता-पिता की सभी detail what’s app कर दूँ, वो परसों नेहा का जन्म प्रमाण पत्र ला देगा तथा बदले में मुझे उसे 2,000/- रुपये देने होंगे! मैंने उससे कोई भाव-ताव नहीं किया और उसे परसों घर बुला लिया|



अब बारी थी भौजी से नेहा का school leaving certificate माँगने की, मैं जानता था की भौजी के पास ये कागज भी नहीं होगा और मैं भौजी को झाड़ने का ये मौका छोड़ने वाला नहीं था;

मैं: और नेहा का तीसरी कक्षा का school leaving certificate? उसके लिए क्या बहाना है?!

मैंने भौजी को फिर टोंट मारते हुए पुछा|

भौजी: वो...वो...नेहा का दूसरी के बाद स्कूल छुड़वा दिया था!

भौजी ने डरते हुए सर झुका कर कहा| ये सुनते ही मेरा गुस्से का पारा टूट गया, मैंने गुस्से में आ कर टेबल पर जोर से हाथ मारा और उन पर गरजते हुए बोला;

मैं: Are you out of your freaking mind!

मेरे जोर से गरजने से सब के सब दहल गए!

मैं: क्यों छुड़वाया नेहा का स्कूल?

मैंने गुस्से से चिल्लाते हुए भौजी से पुछा, मेरा गुस्सा देख भौजी की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई! इतना तो मैं उनपर तब भी नहीं चिंघाड़ा था जब उन्होंने मुझे खुद से दूर करने का अपना वो बे सर-पैर का कारन दिया था! बड़ी हिम्मत जुटाते हुए वो बोलीं;

भौजी: आ...आयुष को भी ....स्कूल में...डालना था.... तो मैंने सोचा ...एक साथ दिल्ली में...डाल देंगे!

भौजी का मतलब था की उन्होंने सोचा की जब आयुष का दाखिला होना ही है तो नेहा का भी दाखिला तीसरी में एक ही बार करवा देंगे| भौजी की बात सुन कर मेरा गुस्से पर से काबू छूट गया, इधर पिताजी अचानक घर आ धमके और मेरा गुस्से के कारन रौद्र रूप देख कर हैरान हुए| वो कुछ पूछते उससे पहले ही मैं भौजी पर बरस पड़ा;

मैं: आयुष का दाखिला कराना था तो उसमें नेहा की पढ़ाई छुड़ा दी, अक्ल घाँस चरने गई थी क्या?!

अब जा कर पिताजी सारी बात समझ गए थे, उन्होंने मुझे शांत करवाते हुए मेरे कँधे पर हाथ रखा|

मैं: पिताजी इनके दिमाग में बस भूसा भरा हुआ है!

मैंने भौजी की तरफ इशारा करते हुए कहा|

मैं: आप जानते हो न पिताजी की इनकी (भौजी की) पढ़ाई इन्हीं के माता-पिता द्वारा दसवीँ के बाद क्यों छुड़वा दी गई थी? और ये (भौजी)...ये भी अपने माता-पिता के सुनेहरे क़दमों पर चलते हुए अपनी ही बेटी की पढ़ाई छुड़वाए बैठीं हैं! माता-पिता क्या नहीं करते की उनके बच्चे पढ़ लिख जाएँ, अपना पेट तक काट देते हैं मगर ये...

उस समय मेरे मुँह में गाली आ रही थी, बड़ी मुश्किल से मैंने वो गाली रोकी और दाँत पीसते हुए भौजी को गुस्से से देखने लगा| मेरी आँखों में गुस्सा देख भौजी का सर झुक गया, उधर पिताजी मुझे शांत करवाते हुए बोले;

पिताजी: बेटा बस!

पिताजी आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैं गुस्से में अपने कमरे में आ गया|



में पलंग पर बैठ अपना दिमाग शांत करने लगा, इतने में नेहा मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई| मेरे गुस्से के कारन नेहा कुछ घबराई हुई थी, मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो नेहा ने मेरा हाथ पकड़ लिया| मैंने नेहा को अपने सामने खड़ा किया, उसके चेहरे को हाथ में ले कर मैंने उससे माफ़ी माँगते हुए कहा;

मैं: मुझे माफ़ कर दो बेटा, मैं एक अच्छा पापा नहीं हूँ, मुझे आप के जन्मदिन की तरीक तक नहीं पता थी!

नेहा ने मेरा चेहरे को अपने छोटे-छोटे हाथों में थामा और मेरे माथे से अपना माथा भिड़ाते हुए बोली;

नेहा: पापा जी मुझे भी तो आपका जन्मदिन नहीं पता था! सिर्फ जन्मदिन पता होने से कोई अच्छे पापा थोड़े ही बन जाते हैं!

मेरी निगाहों में नेहा बहुत छोटी थी, लेकिन जब उसने इतनी बात कही तो मेरे दिल में पिता के प्यार का सागर उमड़ने लगा|

नेहा: आप दुनिया का best पापा हो!

इतना कह कर नेहा मेरे सीने से लग गई| नेहा के गले लगते ही गुस्से का जवालामुखी शांत समंदर बन गया और मैंने कस कर नेहा को अपने सीने से लगा लिया| नेहा की 'आभा' का मुझ पर ऐसा प्रभाव पड़ेगा इसकी मैंने कभी कल्पना नहीं की थी!

दिमाग शांत हुआ तो मैंने बच्चों के स्कूल के बारे में सोचने शुरू कर दिया| मैंने फ़ोन निकाला और अजय भैया से बात की;

अजय भैया: कइसन हो मानु भैया?!

अजय भैया खुश होते हुए बोले|

मैं: मैं ठीक हूँ भैया! दरअसल आपकी एक छोटी सी मदद चाहिए थी, आप स्कूल के हेडमास्टर साहब से मेरी बात करवा देंगे?

मेरी बात सुन अजय भैया थोड़े हैरान हुए तो मैंने उन्हें सारी बात समझाई, उन्होंने मुझे आधे घंटे के बाद कॉल करने को कहा| इतने में आयुष आ गया और वो भी थोड़ा डरा हुआ था, मैंने अपने दोनों हाथ खोल दिए तो आयुष दौड़ता हुआ आ कर मुझसे लिपट गया|

मैं: Awww मेरा बच्चा!

मैंने आयुष का सर चूमते हुए कहा|

आयुष: पापा आप मुझसे 'गुच्छा' हो?!

आयुष ने तुतलाते हुए पुछा|

मैं: मैं भला मेरे बच्चे से क्यों गुस्सा हूँगा?!

नेहा अकेला महसूस न करे इसलिए मैंने दोनों बच्चों को एक साथ गले लगा लिया| अगले दस मिनट तक मैं दोनों बच्चों के सर बारी-बारी से चूमता रहा, मेरे साथ दोनों बच्चों को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था क्योंकि अचानक से घर में दोनों बच्चों की किलकारियाँ गूँजने लगीं थीं!



कुछ देर बाद अजय भैया का फ़ोन आया और उन्होंने मेरी बात स्कूल के हेडमास्टर से करवाई| मैंने उनसे नेहा का school leaving certificate बना कर देने को कहा, साथ ही मैंने अजय भैया से कहा की वो शहर जा कर मुझे वो certificate courier कर दें!



नेहा को पीठ पर लादे और आयुष को गोद में लिए मैं बाहर आया तो देखा बाहर सब के सब खामोश बैठे हैं! साफ़ जाहिर था की मेरा गुस्सा देख कर सब सख्ते में थे! मैंने भौजी की तरफ देखते हुए उखड़े शब्दों में कहा;

मैं: कल आप और चन्दर भैया सुबह 10 बजे तैयार रहना, पहले आप दोनों का आधार कार्ड बनवाना है, पैन कार्ड का फॉर्म भरवाना है और आप दोनों का affidavit भी बनवाना है|

आज जा कर भौजी की तबियत कुछ ठीक हुई थी और ऐसे में उनका कल बाहर जाना माँ को ठीक नहीं लगा;

माँ: बेटा दो-एक दिन रुक जा, अभी बहु की तबियत थोड़ी ठीक हुई है|

माँ की बात सुन कर मैं बस गुस्से से अपने दाँत पीस कर रह गया|

भौजी: मैं अब ठीक हूँ माँ, पहले ही मेरी वजह से नेहा का एक साल बर्बाद हो गया अब और दो दिन बर्बाद नहीं करुँगी!

भौजी की बातों में पशाताप झलक रहा था! मगर मैंने उनके पश्चाताप से भरे आँसुओं को नजरअंदाज किया और नेहा को अपने सामने खड़ा करते हुए बोला;

मैं: बेटा.....मैं आपका admission third class में करवा रहा हूँ, लेकिन आपको बहुत मेहनत करनी होगी, आपको आधे साल की पढ़ाई करनी होगी!

मैंने बहुत गंभीर होते हुए कहा| लेकिन मेरी बेटी नेहा बहुत बहादुर थी, वो उत्साह से भरते हुए बोली;

नेहा: आप बिलकुल चिंता मत करो, मैं है न सारे साल की पढ़ाई कर लूँगी और साथ ही आयुष को भी पढ़ा दूँगी!

नेहा का उत्साह देखने लायक था, मुझे उसका उत्साह देख कर बहुत ख़ुशी हो रही थी|

मैं: I'm proud of my daughter!

ये कहते हुए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा लिया| चूँकि मैंने ये अंग्रेजी में कहा था तो माँ-पिताजी कुछ समझ नहीं पाए| मेरा गुस्सा शांत देख कर पिताजी को भी नेहा को प्यार आ गया, आखिर उसी के कारन तो मेरा गुस्सा काफ़ूर हो गया था| पिताजी ने नेहा को अपने पास बुलाया और उसे आशीर्वाद देते हुए बोले;

पिताजी: मेरी मुन्नी बहुत होशियार है!


जारी रहेगा भाग - 2 में
:superb: :good: :perfect: awesome update hai maanu bhai,
Behad hi shandaar, lajawab aur amazing update hai bhai,
hamesha aapka pala careless insano se hi parta hai kya ? Pahle karuna thi jo ek bhi document taiyar nahin rakhti thi aur ab maharani saahiba hain :hehe:,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
Waiting for next update
 
Top