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प्रिय पाठकों,
मुझे नही पता कि मर्डर मिस्ट्री की कहानियां इस फोरम पर पढ़ी जाती है या नहीं।
कुछ पाठको की प्रतिक्रियाएं देखकर कभी कभी लगता है कि बिना सेक्स के प्रदर्शन के भी कहानी लिखी और पढ़ी जा सकती है।
इस मर्डर मिस्ट्री में आपको सब मिलेगा सेक्स को छोड़कर। यदि कहीं पर आवश्यक हुआ भी तो U/A फिल्मों की तरह।
आप सब का साथ और समर्थन इस कहानी को लिखने और आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करेगा...
आपके सुझावों की प्रतीक्षा में..
अपडेट 1
सलेमपुर शहर की लाल कोठी लगभग 300 साल पुरानी थी परंतु उसकी चमक आज भी कायम थी। वह ताजमहल जैसी खूबसूरत तो नहीं थी परंतु उसकी खूबसूरती आज भी लोगों को लुभाती थी।
आजादी के पश्चात पुरातत्व विभाग वालों ने इस कोठी का अधिग्रहण करने का भरपूर प्रयास किया था परंतु जोरावर सिंह के पूर्वजों ने अपने प्रभाव और रसूख का इस्तेमाल कर उसे शासकीय संपत्ति होने से बचा लिया था।
आज लाल कोठी के सामने भीड़ भाड़ लगी हुई थी। आज ही विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम आया था। जोरावर सिंह सलेमपुर के विधायक चुन लिए गए थे। लाल कोठी के सामने शुभचिंतकों का रेला लगा हुआ था।
लाल कोठी की आलीशान बालकनी में जोरावर सिंह अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी रजनी और पुत्री रिया के साथ शुभचिंतकों के समक्ष आ चुके थे। उन का छोटा भाई राजा और उसकी पत्नी रश्मि भी इस जश्न में उनका साथ दे रहे थे।
जोरावर सिंह को देखते ही
"जोरावर सिंह …..जिंदाबाद"
"जोरावर सिंह...अमर रहे" की आवाज गूंजने लगी सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।
जोरावर सिंह ने अपने दोनों हाथ उठाएं और समर्थकों को शांत होने का इशारा किया तथा अपनी बुलंद आवाज में समर्थकों को संबोधित करते हुए बोले
"आज की यह विजय मेरी नहीं आप सब की विजय है। आप सबके सहयोग और विश्वास ने यह जीत दिलाई है। मैं आप सब का तहे दिल से आभारी हूं और अपने परिवार का भी जिन्होंने हर घड़ी मेरा साथ दिया।
जोरावर सिंह ने अपनी पत्नी रजनी और पुत्री रिया को अपने करीब बुला लिया। रजनी तो पूरी तरह जोरावर सिंह से सटकर खड़ी थी परंतु रिया ने जोरावर सिंह से उचित दूरी बना रखी थी। राजा और रश्मि भी उनके करीब आ चुके थे। परंतु राजा के चेहरे पर वह खुशी नहीं थी जो एक छोटे भाई के चेहरे पर होनी चाहिए थी।
लाल कोठी के अंदर एक काली स्कॉर्पियो कार प्रवेश कर रही थी गाड़ी के पोर्च में पहुंचने के बाद टायरों के चीखने की आवाज हुई और आगे बैठे बॉडीगार्ड ने उतर कर पीछे का दरवाजा खोला एक खूबसूरत नौजवान जो लगभग 6 फीट लंबा और बेहद आकर्षक कद काठी का था उतर कर तेज कदमों से लाल कोठी में प्रवेश कर रहा था। कुछ ही देर में वह बालकनी आ गया और जोरावर सिंह के चरण छूये।
"आओ बेटा जयंत मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था" जोरावर सिंह ने अपने पुत्र जयंत को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ सहलाने लगे।
जयंत की आंखें रिया से टकरायीं। रिया ने अपनी आंखें झुका ली और वह अपने नाखून कुरेदते हुए अपने पैरों की उंगलियों को देखने लगी।
जयंत ने राजा और रश्मि के भी पैर छुए परंतु उसने रजनी के न तो पैर छुए ना उससे कोई बात की।
कोठी के सामने पार्क में समर्थकों के खाने पीने और रास रंग की व्यवस्था की गई थी.
जोरावर सिंह ने सभी समर्थकों को रात्रि 8:00 बजे दावत में शामिल होने का न्योता दिया। प्रशंसक अभी भी जोरावर सिंह... जिंदाबाद जोरावर सिंह...अमर रहे के नारे लगा रहे थे।
जब तक खाने का वक्त हो तब तक मैं आप सभी को पात्रों से परिचय करा दूं।
जोरावर सिंह एक मजबूत कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी पुरुष थे। उम्र लगभग 45 वर्ष, उनके बाप दादा ने इतनी जमीन छोड़ी थी जिससे उनके आने वाली कई पुश्तें एक आलीशान जिंदगी व्यतीत कर सकती थीं। जोरावर सिंह की लाल कोठी में ऐसो आराम की हर वह व्यस्त मौजूद थी जो जोरावर सिंह जानते थे जब जब वह किसी बड़े शहर जाते हैं वहां देखी हुई हर नयी चीज कुछ दिनों में उनके हवेली की शोभा बढ़ा रही होती।
जयंत एक 20 वर्षीय युवा था जो जोरावर सिंह की पहली पत्नी शशि कला का पुत्र था। जयंत सलेमपुर से कुछ दूर सीतापुर में अपनी मां शशिकला के पुश्तैनी मकान में रहता था। शशि कला अपने माता पिता की अकेली संतान थी और इस समय पैर में लकवा मारने की वजह से व्हील चेयर पर आ चुकी थी। शशि कला के माता-पिता भी एक रहीस खानदान से थे जिन्होंने शशि कला के लिए एक सुंदर और आलीशान घर तथा ढेर सारी जमीन जायदाद और चार राइस मिल छोड़ गए थे।
अभी 2 वर्ष पहले ही शशि कला और जोरावर सिंह के बीच किसी बात को लेकर अनबन हुई थी तब से शशि कला अपने गांव सीतापुर आ गई थी और उसके साथ-साथ जयंत भी आ गया था। जयंत को जोरावर सिंह से कोई गिला शिकवा नहीं था परंतु वह अपनी मां को अकेला न छोड़ सका और उनके साथ रहने सीतापुर आ गया था। जोरावर सिंह से अलग होने के कुछ दिनों बाद ही शशि कला को लकवा मार गया था।
जयंत के बार बार पूछने पर भी शशि कला ने जोरावर सिंह से अलग होने का कारण जयंत को नहीं बताया था।
जोरावर सिंह जी की नई पत्नी रजनी एक बेहद सुंदर महिला थी जो अभी कुछ दिनों में ही 40 वर्ष की होने वाली थी भगवान ने उसमें इतनी सुंदरता को कूट कर भरी थी जितनी शायद खजुराहो की मूर्तियों में भी ना हो। अपने कद काठी को संतुलित रखते हुए रजनी ने अपनी उम्र 5-6 वर्ष और कम कर ली थी. रजनी की पुत्री रिया रजनी के समान ही सुंदर थी भगवान ने रजनी और उसकी पुत्री को एक ही सांचे में डाला था. रजनी गुलाब का खिला हुआ फूल थी और गुलाब की खिलती हुयी कली।
जोरावर सिंह का भाई राजा 40 वर्ष का खूबसूरत कद काठी का व्यक्ति था जो स्वभाव से ही थोड़ा क्रूर था यह क्रूरता उसके कार्य के लिए उपयुक्त भी थी। पुश्तैनी जमीन की देखरेख करना और उससे होने वाली आय को देखना तक ना उसने अपने जिम्मे ले रखा था जोरावर सिंह का ज्यादा ध्यान समाज और राजनीति में रहता था जबकि राजा अपने दादा परदादाओं की जमीन और धन में लगातार इजाफा किए जा रहा था।
राजा और जोरावर सिंह मैं कोई तकरार नथी राजा को सिर्फ इस बात का अफसोस रहता था कि इतनी मेहनत और धन उपार्जन करने के बाद भी जोरावर सिंह का कद राजा की तुलना में ज्यादा था।
रिया जब से अपनी मां रजनी के साथ लाल कोठी में आई थी वह तब से ही दुखी रहती थी उसे यहां की शान शौकत रास ना आती थी वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से सीधा इस आलीशान कोठी में आ गई थी वह हमेशा सहमी हुई रहती।
शेष अगले भाग में।
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सलेमपुर शहर की लाल कोठी लगभग 300 साल पुरानी थी परंतु उसकी चमक आज भी कायम थी। वह ताजमहल जैसी खूबसूरत तो नहीं थी परंतु उसकी खूबसूरती आज भी लोगों को लुभाती थी।
आजादी के पश्चात पुरातत्व विभाग वालों ने इस कोठी का अधिग्रहण करने का भरपूर प्रयास किया था परंतु जोरावर सिंह के पूर्वजों ने अपने प्रभाव और रसूख का इस्तेमाल कर उसे शासकीय संपत्ति होने से बचा लिया था।
आज लाल कोठी के सामने भीड़ भाड़ लगी हुई थी। आज ही विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम आया था। जोरावर सिंह सलेमपुर के विधायक चुन लिए गए थे। लाल कोठी के सामने शुभचिंतकों का रेला लगा हुआ था।
लाल कोठी की आलीशान बालकनी में जोरावर सिंह अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी रजनी और पुत्री रिया के साथ शुभचिंतकों के समक्ष आ चुके थे। उन का छोटा भाई राजा और उसकी पत्नी रश्मि भी इस जश्न में उनका साथ दे रहे थे।
जोरावर सिंह को देखते ही
"जोरावर सिंह …..जिंदाबाद"
"जोरावर सिंह...अमर रहे" की आवाज गूंजने लगी सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।
जोरावर सिंह ने अपने दोनों हाथ उठाएं और समर्थकों को शांत होने का इशारा किया तथा अपनी बुलंद आवाज में समर्थकों को संबोधित करते हुए बोले
"आज की यह विजय मेरी नहीं आप सब की विजय है। आप सबके सहयोग और विश्वास ने यह जीत दिलाई है। मैं आप सब का तहे दिल से आभारी हूं और अपने परिवार का भी जिन्होंने हर घड़ी मेरा साथ दिया।
जोरावर सिंह ने अपनी पत्नी रजनी और पुत्री रिया को अपने करीब बुला लिया। रजनी तो पूरी तरह जोरावर सिंह से सटकर खड़ी थी परंतु रिया ने जोरावर सिंह से उचित दूरी बना रखी थी। राजा और रश्मि भी उनके करीब आ चुके थे। परंतु राजा के चेहरे पर वह खुशी नहीं थी जो एक छोटे भाई के चेहरे पर होनी चाहिए थी।
लाल कोठी के अंदर एक काली स्कॉर्पियो कार प्रवेश कर रही थी गाड़ी के पोर्च में पहुंचने के बाद टायरों के चीखने की आवाज हुई और आगे बैठे बॉडीगार्ड ने उतर कर पीछे का दरवाजा खोला एक खूबसूरत नौजवान जो लगभग 6 फीट लंबा और बेहद आकर्षक कद काठी का था उतर कर तेज कदमों से लाल कोठी में प्रवेश कर रहा था। कुछ ही देर में वह बालकनी आ गया और जोरावर सिंह के चरण छूये।
"आओ बेटा जयंत मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था" जोरावर सिंह ने अपने पुत्र जयंत को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ सहलाने लगे।
जयंत की आंखें रिया से टकरायीं। रिया ने अपनी आंखें झुका ली और वह अपने नाखून कुरेदते हुए अपने पैरों की उंगलियों को देखने लगी।
जयंत ने राजा और रश्मि के भी पैर छुए परंतु उसने रजनी के न तो पैर छुए ना उससे कोई बात की।
कोठी के सामने पार्क में समर्थकों के खाने पीने और रास रंग की व्यवस्था की गई थी.
जोरावर सिंह ने सभी समर्थकों को रात्रि 8:00 बजे दावत में शामिल होने का न्योता दिया। प्रशंसक अभी भी जोरावर सिंह... जिंदाबाद जोरावर सिंह...अमर रहे के नारे लगा रहे थे।
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जोरावर सिंह एक मजबूत कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी पुरुष थे। उम्र लगभग 45 वर्ष, उनके बाप दादा ने इतनी जमीन छोड़ी थी जिससे उनके आने वाली कई पुश्तें एक आलीशान जिंदगी व्यतीत कर सकती थीं। जोरावर सिंह की लाल कोठी में ऐसो आराम की हर वह व्यस्त मौजूद थी जो जोरावर सिंह जानते थे जब जब वह किसी बड़े शहर जाते हैं वहां देखी हुई हर नयी चीज कुछ दिनों में उनके हवेली की शोभा बढ़ा रही होती।
जयंत एक 20 वर्षीय युवा था जो जोरावर सिंह की पहली पत्नी शशि कला का पुत्र था। जयंत सलेमपुर से कुछ दूर सीतापुर में अपनी मां शशिकला के पुश्तैनी मकान में रहता था। शशि कला अपने माता पिता की अकेली संतान थी और इस समय पैर में लकवा मारने की वजह से व्हील चेयर पर आ चुकी थी। शशि कला के माता-पिता भी एक रहीस खानदान से थे जिन्होंने शशि कला के लिए एक सुंदर और आलीशान घर तथा ढेर सारी जमीन जायदाद और चार राइस मिल छोड़ गए थे।
अभी 2 वर्ष पहले ही शशि कला और जोरावर सिंह के बीच किसी बात को लेकर अनबन हुई थी तब से शशि कला अपने गांव सीतापुर आ गई थी और उसके साथ-साथ जयंत भी आ गया था। जयंत को जोरावर सिंह से कोई गिला शिकवा नहीं था परंतु वह अपनी मां को अकेला न छोड़ सका और उनके साथ रहने सीतापुर आ गया था। जोरावर सिंह से अलग होने के कुछ दिनों बाद ही शशि कला को लकवा मार गया था।
जयंत के बार बार पूछने पर भी शशि कला ने जोरावर सिंह से अलग होने का कारण जयंत को नहीं बताया था।
जोरावर सिंह जी की नई पत्नी रजनी एक बेहद सुंदर महिला थी जो अभी कुछ दिनों में ही 40 वर्ष की होने वाली थी भगवान ने उसमें इतनी सुंदरता को कूट कर भरी थी जितनी शायद खजुराहो की मूर्तियों में भी ना हो। अपने कद काठी को संतुलित रखते हुए रजनी ने अपनी उम्र 5-6 वर्ष और कम कर ली थी. रजनी की पुत्री रिया रजनी के समान ही सुंदर थी भगवान ने रजनी और उसकी पुत्री को एक ही सांचे में डाला था. रजनी गुलाब का खिला हुआ फूल थी और गुलाब की खिलती हुयी कली।
जोरावर सिंह का भाई राजा 40 वर्ष का खूबसूरत कद काठी का व्यक्ति था जो स्वभाव से ही थोड़ा क्रूर था यह क्रूरता उसके कार्य के लिए उपयुक्त भी थी। पुश्तैनी जमीन की देखरेख करना और उससे होने वाली आय को देखना तक ना उसने अपने जिम्मे ले रखा था जोरावर सिंह का ज्यादा ध्यान समाज और राजनीति में रहता था जबकि राजा अपने दादा परदादाओं की जमीन और धन में लगातार इजाफा किए जा रहा था।
राजा और जोरावर सिंह मैं कोई तकरार नथी राजा को सिर्फ इस बात का अफसोस रहता था कि इतनी मेहनत और धन उपार्जन करने के बाद भी जोरावर सिंह का कद राजा की तुलना में ज्यादा था।
रिया जब से अपनी मां रजनी के साथ लाल कोठी में आई थी वह तब से ही दुखी रहती थी उसे यहां की शान शौकत रास ना आती थी वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से सीधा इस आलीशान कोठी में आ गई थी वह हमेशा सहमी हुई रहती।
शेष अगले भाग में।
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