तभी आंगन के दरवाजे पे बैठी कोयल के कूकने की आवाज़ से सारा वातावरण संगीतमय हो गया, केशु नामक सुंदरी का उन्मुक्त यौवन, छलकते हुए यौवन कलश,नागिन की तरह लहराते लम्बे काले बाल, उन बादामी भरपूर नितम्बो को ढंक पाने में असमर्थ थे, इन रेशमी सुखद पलो के एहसास में काका लंडैत मंत्रमुग्ध होकर बूत सा बन गया था, केशु की यौवन से भरी जवानी से उठ रही संदल सी खुशबु पुरे वातावरण में फैल गई थी।
केशु कब अपने बाल बांधकर रसोई में चली गई इसका काका को पता ही नहीं चला, वो तो बस एकटक उस कुँए, बाल्टी और लोटे को देखे जा रहा था, तभी एक तेज़ हवा के झोंके से रस्सी पर सुख रही केशु के अंगिया (ब्रा का एक प्रकार) उड़कर काका के मुंह पर आ गिरी और काका होश में आया।
अंगिया से उठती भीनी-भीनी सुगंध काका की सांसो में समाती चली गयी और काका के अंतर्मन में उतरती चली गई
तभी हवेली के दरवाजे पर अजयनाथ जी की जीप आकर रुकी। जैसे ही अजयनाथ जी की गाड़ी हवेली के पोर्च में आकर रुकी, दरबान भागता हुआ आया और सेठ जी की गाड़ी का दरवाजा खोला, सेठ अजयनाथ जी 35 वर्षीय एक गठीले बदन के स्वामी थे, रोबदार मछें , हाथ में सोने की मुठ वाली छड़ी, दोनों हाथों में सोने की अँगूठिया और शेर जैसी चाल चलते हुए वो हवेली के भीतर दाखिल हुए ।
दरबान - सेठजी वो काका लंडैत आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।
सेठ अजयनाथ- ह्म्म्म्म… बुलाओ काका को और बैठक में सम्मानपूर्वक बैठाओ ।
दरबान- “जो हुकुम मालिक …” और वो दौड़ता हुआ आँगन में काका को ढूंढने चला गया और चिल्लाया - “अरे काका कित मर
गया रे, चल सेठजी बुला रहे हैं…”
उधर काका अभी तक केशु की सन्दली खुशबु के आनदं में मस्त था, जो की उसकी अंगिया में से आ रही थी,
दरबान की आवाज सुन कर काका हड़बड़ा उठा और जल्दी से केशु की अंगिया अपने गमझे में लपेटकर कमर में बांध ली , और दरबान के साथ बैठक की ओर चल पड़ा।
बैठक में-
सेठ अजयनाथ- ह्म्म्म्म… कहो कैसे आना हुआ काका, सब खैरियत तो है न ?
काका- राम राम मालिक । आपकी अनकुंपा से सब ठीक है, बस आपको कुछ बताना था हुज़ूर, मगर डरते हैं कही आप
क्रोधित हो जायेंगे।
सेठ अजयनाथ- बिना डरे बोलो काका, तुम हमरे पुराने मित्र हो ।
काका- मालिक हमरे दिल्ली सूबे के आबो-हवा कुछ पापी खराब करने पर तुले हैं, और हवेली की इज्जत पे
अपने गन्दी नजर रखे हैं।
इतना सनु ते ही सेठ अजयनाथ जी की आँखों में खून उतर आया और पूरी हवेली में उनकी शेर जैसी दहाड़ गूंज उठी-
“क्या बोला रहा है काका?
किसकी इतनी ज़ुर्रत जो हवेली की तरफ देखे भी ? किस दुष्ट पापी का धरती पर समय पूरा हो गया हैं ??? और उनकी दोनाली से दो शोले निकले धाय धाय
काका का डर के मारे बुरा हाल हो गया वो थरथर काँप रहा था। जो काका अभी तक केशु की सन्दली खुशबू के
आनंद में मस्त था, अब वो ही डर के मारे काँप रहा था। उसके ह्रदय में केशु की जगह मौत के डर ने ले ली।
“धाय धाय ......…”
जो जहां था वहीं रुक गया, समय जैसा थम सा गया, रसोई में सब्जी काटती हुई हुश्न की मलिका केशु रानी की डर
के मारे चाकु से ऊँगली कट गई और खून की चंद बुँदे संगेमरमर की दूधिया फर्श पर टपक पड़ी और उसके कंठ से एक महीन मगर दर्दभरी आवाज़ निकली उफ्फफ़फ़................
क्रमश :