बस कालेज के दिनों में की गई रंगीनिया उन्हें आज भी गुदगुदा देती थी, कभी-कभी शहर से बाहर जाकर अपने अजीज मित्रो के साथ शिकार कर लिया करते थे, जयपुर उनका पसन्दीदा शिकारगाह हैं....................
अब आगे -----
केशु रानी- केशु सेठजी की हवेली में पिछले दो साल से रह रही थी और अब हवेली के सदस्य की तरह थी। कुंभ मेले में हुई एक दुर्घटना में वो अपने परिवार से बिछुड़ गई थी और अपनी याददाश्त खो चुकी थी, वही उस मेंले में उन्मुक्त विचरण कर रहे एक पापी और दुष्ट मुक्की बुढेला की काली नजर घाट पर बैठी अबला केशु पर पड़ी और वो उसे अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसाकर अपने डेरे ले जाने की ताक में था। वो जबरदस्ती उसे खींचकर अपने साथ ले जाने की कोशिश कर ही रहा था, की तभी घाट पर नहा रहे सेठ अजयानंद की नजर उन दोनों पर पड़ी, पलक झपकते ही वो मामला समझ गए, और उन्होंने झपटकर उस मुक्की की गर्दन दबोच ली, दो-तीन झन्नाटेदार रहपट मुक्की के कान के नीचे रसीद कर दिए , और उसके द्वारा की जा रही जोर जबरदस्ती के बारे में पूछा ।
मुक्की की तो आँखों के आगे चाँद तारे नजर आ रहे थे, वो कुछ जवाब दिए बना वहां से सरपट भाग लिया और दूर जाकर सेठजी को धमकी देने लगा।
सेठजी ने बड़ी कोशिश की केशु से पूछताछ करने की लईकिन वो मासूम अल्हड सी कुछ न बता पाई। अंततः वो उसे अपने घर ले आये और उसका इलाज लक्ष्मीनगर के प्रसिद्ध वालिया नर्सिंग होम के डाक्टर अमोल पालेकर से करवाया। डाक्टर अमोल ने जांच पड़ताल के पश्चात बताया की घबराने की कोनो जरूरत न है, वो ठीक हो सकती है लेकिन जब उसे कोई सुखद या दुखद मानसिक आघात लगेगा।
सेठजी ने बहुत बहुत विचार विमर्श करके केशु को हवेली की रसोई का कार्यभार सँभालने के लिए रख लिया, और अपने बाग के पिछवाड़े में बने कमरो में एक कमरा केशु के रहने के लिए दे दिया ताकि वो सुरक्षित रहे, और आगे से मुक्की जैसे कमीने लोगों के गंदे साये से भी सुरक्षित रहे, और अखबार में केशु के परिवार के लिए विज्ञापन भी दे दिया कि जिसको को भी पता लगे वो वो तुरंत सेठ जी सम्पर्क करे। सेठजी आज तक कभी भी केशु को भरपूर नजरों से नहीं देखा था। ऐसे महान और भले हैं अपने सेठ अज्जू जी ।
“केशु ओ केशु”
लेकिन हवेली के सन्नाटे में उनकी आवाज गूँजकर वापस आ गई। सेठजी को आशंका हुई कि कहीं कुछ अनर्थ तो नहीं हो गया? वो एक एक करके सभी कमरो में केशु को ढूंढने लगे।
केशु अपनी उंगली से निकलते रक्त को देखकर इतनी डर गई थी की सेठजी की आवाज सुनकर भी उसके गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी।
तभी सेठजी ने रसोई में प्रवेश किया और केशु को जमीन पर बैठा देखा, तो वो थोड़ा और आगे बढ़े, जमीन पर रक्त की बुँदे देखकर आश्चर्य से केशु की तरफ देखने लगे।
“उफ्......... कितना मासूम चेहरा, झुकी हुई पलकें, उस सुंदर मृगनयनी के कजरारे नैनों में झिलमिल करते आूँस रूपी मोती तैर रहे थे। डर के मारे उसके मुख से बोल नहीं निकल पा रहे थे…”
सेठ अजयनंद जी के हृदय में एक हूँक सी उठी, नीचे बैठकर, उन्होंने अपनी रोबीली आवाज में पूछा - “क्या हुआ केशु, ये सब कैसे हुआ? मुझे बताओ किसने इतनी ज़ुर्रत की, हम अभी उसको हवेली से बाहर उठाकर फेंक देंगे…”
केशु की तो घिग्घी सी बंध गई थी, एक तो अपनी उंगली से निकलते रक्त का डर और ऊपर से सेठजी की शेर जैसी गर्जना सुनकर वो अपनी सुध बुध खो बैठी, और वही जमींन पर बेहोश हो गई।
सेठ अज्जू जी घबरा उठे और जोर से गरजे- “हरिया, शेरा, धनिया, किधर मर गए सब के सब, जल्दी आओ…”
तभी धनिया भागती हुई आई- “जी मालिक …” वो पीछे आंगन में कपड़े धो रही थी।
सेठजी गरजते हुए- “हरिया और शेरा किधर मर गए हैं?”
धनिया - मालिक वो आपने ही तो कल रात दोनों को शहर भेजा था, दारू की पेटिया लाने को नव वर्ष की पार्टी के लिए ।
सेठजी- अरे हाँ हम तो भूल ही गए थे, देखो इस केशु को क्या हुआ? इसे उठाने में हमारी मदद करो और अंदर ले चलो।
धनिया - जी मालिक ।
सेठजी- छोड़ो तुम एक काम करो, गर्म पानी लाओ और हाँ डा॰ अमोल को फोन करके बुला लो।
धनिया - जी मालिक ।
फिर सेठजी ने केशु की तरफ देखा और उसे उठाने के लिए जैसे ही एक हाथ उसके सर के पीछे और दूसरा हाथ केशु की बलखाती कमर के नीचे लगाया, नंगी कमर से हाथ के छूते ही सेठजी के पुरे शरीर में अत्यंत तीव्र विद्युत प्रवाह कौंध गया । एक पल के लिए उनकी सांसें थम सी गई, जबड़े भींच गए, और एक गहरी सांस लेते हुए उन्होंने केशु को अपनी बलिष्ठ भुजाओ में उठा लिया ।
केशु की सुराहीदार गर्दन और दोनों मांसल भुजाये विपरीत दिशाओ में झूल रही थी, न चाहते हुए भी सेठजी की नजर केशु के गौर वर्ण उन्नत वक्षस्थल एवं उसकी उफनती गहरी घाटी पर पड़ी, बायें वक्ष के ऊपर नन्हें से मनोहारी काले तिल को देखकर उनका हृदय आंदोलित हो उठा। वो केशु को उठाकर दीवानेखास की तरफ बढ़े, और केशु को वहां पड़े दीवान पर धीरे से झूँक कर लिटाने लगे
सेठ जी महसूस किया बाजुओ में केशु के नरम-नरम विशाल सुडौल नितम्बो की मादकता, उनके चेहरे पर केशु की गर्म सुगंधित सांसें और उनके नथुनों में उतरती केशु के शरीर से उठी वो संदली महक उनके दिलो दिगमग में उतरती में चली गई।
समय जैसे थम गया, दिल कि धड़कनो ने जैसे धड़कना ही छोड़ दिया , धमनियों में रक्त का प्रवाह जैसे रुक सा गया, पुरे शरीर को काठ मार गया। चरम शून्य की अवस्था। तभी दूर अंधरे में बिजली कौंधी और एक आवाज धीमे धीमे जैसे किसी गहरे कुंए से आ रही हो।
क्रमश.............................