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Fantasy कमीना चाहे नगीना

Ajju Landwalia

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प्रिय कामदेव जी, अनुज जी, नाइक जी, मानु भाई, चूतिया डॉक्टर साहब, और सभी मित्रो का हार्दिक धन्यवाद जो आप सबने अपना कीमती समय निकालकर इस सूत्र पर आये

असल में इस कहानी के सभी पात्र असली हैं चाहे वो जीतू तूफानी घोडा हो या आगे भी जो पात्र आएंगे, और हम सभी परम मित्र हैं और सभी के सहमति से ये कहानी लिखी गई थी।

आप सबका ह्रदय से हार्दिक धन्यवाद और आभार, आशा करता हूँ आप सबका प्यार और साथ यूहीं बना रहेगा।

अपडेट हफ्ते दो या तीन आएंगे, समय और दिन निश्चित नहीं होंगे लेकिन अपडेट देने की और आप सबके मनोरंजन की कोशिश भरपूर रहेगी


आपका अपना अज्जू लंडवालिया
 

Rockstar_Rocky

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अब आगे:-

और फिर धीरे धीरे काका ने सेठ अज्जुनाथ जी को सारी बात दी। सेठ जी का खून खोल उठा, “आूँखों से क्रोध की ज्वाला निकलने लगी, नथुने फूलने फर पिचकने लगे , कमरे का तापमान बढ़ गया, काका हाथ जोड़े उनके अगले आदेश का इंनतजार कर रहा था।

सेठजी शून्य में देखते हुए धीरे से बोले- “काका अभी नजफगढ़ जाओ और हमारे पुराने साथी ठाकुर महेंद्रप्रताप महालन्डधारी को कहना की हमने याद किया है और जल्द आकर मिले । इस धरती पर ये पापी धूर्त बस चन्द दिनों के मेहमान हैं अब। आज ही हम बंसी लंगुरा के खेत जब्त करके आये, और वो पाखंडी उस पापी विपु मज़दूर से गाण्ड घिसवा रहा है और हमारे खिलाफ योजना बना रहा है। इस विपु के लिंग के के टुकड़े-टुकड़े करके और इनके आंड की भुजी बनाकर हमने इन दोनों को ही न खिलवा दी तो हम सब गांव वालों की मूंछे कटवा देंगे…”

और ध्यान से सुनो- “हमारे अस्तबल से हमारे सबसे तेज घोड़े जीतू तूफानी को लेकर जाना…”

काका- “जो हुकुम मालिक, मैं अभी निकलता हूँ …” और काका अपनी जान बचाकर बैठक से निकल आया।

काका रसोई घर के सामने से गुजरता हुआ उसकी नजर फर्श पर बैठी केशु पर पड़ी, जो अपनी उंगली से निकलते हुए खून को देखकर भीगी बिल्ली सी बैठी थी, उसकी झील जैसी आूँखों से टप-टप मोती टपक रहे थे, यह देखकर काका लंडैत जैसे पत्थर दिल इंसान के दिल में हूँक सी उठी और वो तड़प उठा।

चोट लगने की बेध्यानी में केशु के सीने से आँचल भी बिखरा भी पड़ा था और उसका सुंदर वक्षस्थल अपनी उड़ान भरने को जैसे तैयार था। उन उन्नत स्तनों के बीच एक पतली लकीर सी गहरी घाटी और बायें स्तन पर एक उन्मुक्त तिल देखकर काका की सांसें थम सी गई, घबराहट में केशु के ललाट से बहता हुआ पसीना मोती जैसा लग रहा था, उस मादक पसीने की कुछ मोती रूपी बुँदे ढुलक कर उस वक्षस्थल की गहरी घाटी में सरक जा रही थीं। वो अबला अपनी अंगुली थामे धीरे-धीरे अपने शहद जैसे होंठों से फूँक मार रही थी।

उधर काका लंडैत के जाने के बाद सेठ अजयानंद कुछ पल इन दोनों पापी दुष्टो के बारे में सोचते रहे। थोड़ा विचार करने के बाद उनके मुखमंडल पर एक अजीब सी मुस्कान फैल गई। और अगले ही पल उन्होंने अपने जांबाज दोस्त सवाई माधोपुर के जमीदार इन्दर सिंह मनमौजी, पटना के डान असीम आनंददया और मुरादाबाद के मशहूर ओरल बाबा शशांक छटपटिया को फोन करके दिल्ली आने की दावत दी। अब सेठजी निश्चिन्त हो गए तो उन्हें प्यास महसूस हुई और पानी के लिए उन्होंने केशु को आवाज दी।

“केशु ओ केशु”
“केशु ओ केशु”
“केशु ओ केशु”

लेकिन हवेली के सन्नाटे में उनकी आवाज गूँज के वावपस आ गई, सेठजी को आशंका हुई कि कहीं कुछ अनर्थ तो नहीं हो गया? वो सब कमरों में केशु को ढूंढने लगे।



***** *****आपकी जानकारी के लिए यहाँ कुछ बता देता हूँ (फ्लेशबैक)
सेठ अजयानंद जी- सेठ अजयनंद जी की धर्म पत्नी अपने बच्चों के पास जो की हॉवर्ड स्कूल (कैंब्रिज इंग्लैंड) में पढ़ते थे, के पास गई हुई थी, सेठजी ने कैंब्रिज से 50 KM दूर केम नदी (उतरी लंदन) के किनारे एक विशाल होटल खोल रखा था, जो अब सेठानी जी की देखरेख में था। हर 3 या 4 महीने में सेठजी एक चक्कर लगा लिया करते थे, उन्हें अपने देश से बहुत प्यार था, खेती-बाड़ी में उनका बहुत मन लगता था। वैसे तो सेठजी थोड़े से रंगीन मिज़ाज़ थे, लेकिन कभी भी अपनी मर्यादा पार नहीं करते थे। बस कालेज के दिनों में की गई रंगीनिया उन्हें आज भी गुदगुदा देती थी, कभी-कभी शहर से बाहर जाकर अपने अजीज मित्रो के साथ शिकार कर लिया करते थे, जयपुर उनका पसन्दीदा शिकारगाह हैं ।



क्रमश :

Nice update! Chhoti prntu achhi update!
Poori update ko bas ek meme se summarize kiya ja sakta hai:
 

Naik

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अब आगे:-

और फिर धीरे धीरे काका ने सेठ अज्जुनाथ जी को सारी बात दी। सेठ जी का खून खोल उठा, “आूँखों से क्रोध की ज्वाला निकलने लगी, नथुने फूलने फर पिचकने लगे , कमरे का तापमान बढ़ गया, काका हाथ जोड़े उनके अगले आदेश का इंनतजार कर रहा था।

सेठजी शून्य में देखते हुए धीरे से बोले- “काका अभी नजफगढ़ जाओ और हमारे पुराने साथी ठाकुर महेंद्रप्रताप महालन्डधारी को कहना की हमने याद किया है और जल्द आकर मिले । इस धरती पर ये पापी धूर्त बस चन्द दिनों के मेहमान हैं अब। आज ही हम बंसी लंगुरा के खेत जब्त करके आये, और वो पाखंडी उस पापी विपु मज़दूर से गाण्ड घिसवा रहा है और हमारे खिलाफ योजना बना रहा है। इस विपु के लिंग के के टुकड़े-टुकड़े करके और इनके आंड की भुजी बनाकर हमने इन दोनों को ही न खिलवा दी तो हम सब गांव वालों की मूंछे कटवा देंगे…”

और ध्यान से सुनो- “हमारे अस्तबल से हमारे सबसे तेज घोड़े जीतू तूफानी को लेकर जाना…”

काका- “जो हुकुम मालिक, मैं अभी निकलता हूँ …” और काका अपनी जान बचाकर बैठक से निकल आया।

काका रसोई घर के सामने से गुजरता हुआ उसकी नजर फर्श पर बैठी केशु पर पड़ी, जो अपनी उंगली से निकलते हुए खून को देखकर भीगी बिल्ली सी बैठी थी, उसकी झील जैसी आूँखों से टप-टप मोती टपक रहे थे, यह देखकर काका लंडैत जैसे पत्थर दिल इंसान के दिल में हूँक सी उठी और वो तड़प उठा।

चोट लगने की बेध्यानी में केशु के सीने से आँचल भी बिखरा भी पड़ा था और उसका सुंदर वक्षस्थल अपनी उड़ान भरने को जैसे तैयार था। उन उन्नत स्तनों के बीच एक पतली लकीर सी गहरी घाटी और बायें स्तन पर एक उन्मुक्त तिल देखकर काका की सांसें थम सी गई, घबराहट में केशु के ललाट से बहता हुआ पसीना मोती जैसा लग रहा था, उस मादक पसीने की कुछ मोती रूपी बुँदे ढुलक कर उस वक्षस्थल की गहरी घाटी में सरक जा रही थीं। वो अबला अपनी अंगुली थामे धीरे-धीरे अपने शहद जैसे होंठों से फूँक मार रही थी।

उधर काका लंडैत के जाने के बाद सेठ अजयानंद कुछ पल इन दोनों पापी दुष्टो के बारे में सोचते रहे। थोड़ा विचार करने के बाद उनके मुखमंडल पर एक अजीब सी मुस्कान फैल गई। और अगले ही पल उन्होंने अपने जांबाज दोस्त सवाई माधोपुर के जमीदार इन्दर सिंह मनमौजी, पटना के डान असीम आनंददया और मुरादाबाद के मशहूर ओरल बाबा शशांक छटपटिया को फोन करके दिल्ली आने की दावत दी। अब सेठजी निश्चिन्त हो गए तो उन्हें प्यास महसूस हुई और पानी के लिए उन्होंने केशु को आवाज दी।

“केशु ओ केशु”
“केशु ओ केशु”
“केशु ओ केशु”

लेकिन हवेली के सन्नाटे में उनकी आवाज गूँज के वावपस आ गई, सेठजी को आशंका हुई कि कहीं कुछ अनर्थ तो नहीं हो गया? वो सब कमरों में केशु को ढूंढने लगे।



***** *****आपकी जानकारी के लिए यहाँ कुछ बता देता हूँ (फ्लेशबैक)
सेठ अजयानंद जी- सेठ अजयनंद जी की धर्म पत्नी अपने बच्चों के पास जो की हॉवर्ड स्कूल (कैंब्रिज इंग्लैंड) में पढ़ते थे, के पास गई हुई थी, सेठजी ने कैंब्रिज से 50 KM दूर केम नदी (उतरी लंदन) के किनारे एक विशाल होटल खोल रखा था, जो अब सेठानी जी की देखरेख में था। हर 3 या 4 महीने में सेठजी एक चक्कर लगा लिया करते थे, उन्हें अपने देश से बहुत प्यार था, खेती-बाड़ी में उनका बहुत मन लगता था। वैसे तो सेठजी थोड़े से रंगीन मिज़ाज़ थे, लेकिन कभी भी अपनी मर्यादा पार नहीं करते थे। बस कालेज के दिनों में की गई रंगीनिया उन्हें आज भी गुदगुदा देती थी, कभी-कभी शहर से बाहर जाकर अपने अजीज मित्रो के साथ शिकार कर लिया करते थे, जयपुर उनका पसन्दीदा शिकारगाह हैं ।


क्रमश :
Bahot behtareen update bhai shaandaar
 

Naik

Well-Known Member
21,420
77,244
258
प्रिय कामदेव जी, अनुज जी, नाइक जी, मानु भाई, चूतिया डॉक्टर साहब, और सभी मित्रो का हार्दिक धन्यवाद जो आप सबने अपना कीमती समय निकालकर इस सूत्र पर आये

असल में इस कहानी के सभी पात्र असली हैं चाहे वो जीतू तूफानी घोडा हो या आगे भी जो पात्र आएंगे, और हम सभी परम मित्र हैं और सभी के सहमति से ये कहानी लिखी गई थी।

आप सबका ह्रदय से हार्दिक धन्यवाद और आभार, आशा करता हूँ आप सबका प्यार और साथ यूहीं बना रहेगा।

अपडेट हफ्ते दो या तीन आएंगे, समय और दिन निश्चित नहीं होंगे लेकिन अपडेट देने की और आप सबके मनोरंजन की कोशिश भरपूर रहेगी


आपका अपना अज्जू लंडवालिया
Ok bhai
Shukriya batane k liye
 

Ajju Landwalia

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159
बस कालेज के दिनों में की गई रंगीनिया उन्हें आज भी गुदगुदा देती थी, कभी-कभी शहर से बाहर जाकर अपने अजीज मित्रो के साथ शिकार कर लिया करते थे, जयपुर उनका पसन्दीदा शिकारगाह हैं....................


अब आगे -----


केशु रानी- केशु सेठजी की हवेली में पिछले दो साल से रह रही थी और अब हवेली के सदस्य की तरह थी। कुंभ मेले में हुई एक दुर्घटना में वो अपने परिवार से बिछुड़ गई थी और अपनी याददाश्त खो चुकी थी, वही उस मेंले में उन्मुक्त विचरण कर रहे एक पापी और दुष्ट मुक्की बुढेला की काली नजर घाट पर बैठी अबला केशु पर पड़ी और वो उसे अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसाकर अपने डेरे ले जाने की ताक में था। वो जबरदस्ती उसे खींचकर अपने साथ ले जाने की कोशिश कर ही रहा था, की तभी घाट पर नहा रहे सेठ अजयानंद की नजर उन दोनों पर पड़ी, पलक झपकते ही वो मामला समझ गए, और उन्होंने झपटकर उस मुक्की की गर्दन दबोच ली, दो-तीन झन्नाटेदार रहपट मुक्की के कान के नीचे रसीद कर दिए , और उसके द्वारा की जा रही जोर जबरदस्ती के बारे में पूछा ।

मुक्की की तो आँखों के आगे चाँद तारे नजर आ रहे थे, वो कुछ जवाब दिए बना वहां से सरपट भाग लिया और दूर जाकर सेठजी को धमकी देने लगा।

सेठजी ने बड़ी कोशिश की केशु से पूछताछ करने की लईकिन वो मासूम अल्हड सी कुछ न बता पाई। अंततः वो उसे अपने घर ले आये और उसका इलाज लक्ष्मीनगर के प्रसिद्ध वालिया नर्सिंग होम के डाक्टर अमोल पालेकर से करवाया। डाक्टर अमोल ने जांच पड़ताल के पश्चात बताया की घबराने की कोनो जरूरत न है, वो ठीक हो सकती है लेकिन जब उसे कोई सुखद या दुखद मानसिक आघात लगेगा।

सेठजी ने बहुत बहुत विचार विमर्श करके केशु को हवेली की रसोई का कार्यभार सँभालने के लिए रख लिया, और अपने बाग के पिछवाड़े में बने कमरो में एक कमरा केशु के रहने के लिए दे दिया ताकि वो सुरक्षित रहे, और आगे से मुक्की जैसे कमीने लोगों के गंदे साये से भी सुरक्षित रहे, और अखबार में केशु के परिवार के लिए विज्ञापन भी दे दिया कि जिसको को भी पता लगे वो वो तुरंत सेठ जी सम्पर्क करे। सेठजी आज तक कभी भी केशु को भरपूर नजरों से नहीं देखा था। ऐसे महान और भले हैं अपने सेठ अज्जू जी ।

“केशु ओ केशु”

लेकिन हवेली के सन्नाटे में उनकी आवाज गूँजकर वापस आ गई। सेठजी को आशंका हुई कि कहीं कुछ अनर्थ तो नहीं हो गया? वो एक एक करके सभी कमरो में केशु को ढूंढने लगे।

केशु अपनी उंगली से निकलते रक्त को देखकर इतनी डर गई थी की सेठजी की आवाज सुनकर भी उसके गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी।

तभी सेठजी ने रसोई में प्रवेश किया और केशु को जमीन पर बैठा देखा, तो वो थोड़ा और आगे बढ़े, जमीन पर रक्त की बुँदे देखकर आश्चर्य से केशु की तरफ देखने लगे।

“उफ्......... कितना मासूम चेहरा, झुकी हुई पलकें, उस सुंदर मृगनयनी के कजरारे नैनों में झिलमिल करते आूँस रूपी मोती तैर रहे थे। डर के मारे उसके मुख से बोल नहीं निकल पा रहे थे…”

सेठ अजयनंद जी के हृदय में एक हूँक सी उठी, नीचे बैठकर, उन्होंने अपनी रोबीली आवाज में पूछा - “क्या हुआ केशु, ये सब कैसे हुआ? मुझे बताओ किसने इतनी ज़ुर्रत की, हम अभी उसको हवेली से बाहर उठाकर फेंक देंगे…”

केशु की तो घिग्घी सी बंध गई थी, एक तो अपनी उंगली से निकलते रक्त का डर और ऊपर से सेठजी की शेर जैसी गर्जना सुनकर वो अपनी सुध बुध खो बैठी, और वही जमींन पर बेहोश हो गई।

सेठ अज्जू जी घबरा उठे और जोर से गरजे- “हरिया, शेरा, धनिया, किधर मर गए सब के सब, जल्दी आओ…”

तभी धनिया भागती हुई आई- “जी मालिक …” वो पीछे आंगन में कपड़े धो रही थी।

सेठजी गरजते हुए- “हरिया और शेरा किधर मर गए हैं?”

धनिया - मालिक वो आपने ही तो कल रात दोनों को शहर भेजा था, दारू की पेटिया लाने को नव वर्ष की पार्टी के लिए ।

सेठजी- अरे हाँ हम तो भूल ही गए थे, देखो इस केशु को क्या हुआ? इसे उठाने में हमारी मदद करो और अंदर ले चलो।

धनिया - जी मालिक ।

सेठजी- छोड़ो तुम एक काम करो, गर्म पानी लाओ और हाँ डा॰ अमोल को फोन करके बुला लो।

धनिया - जी मालिक ।

फिर सेठजी ने केशु की तरफ देखा और उसे उठाने के लिए जैसे ही एक हाथ उसके सर के पीछे और दूसरा हाथ केशु की बलखाती कमर के नीचे लगाया, नंगी कमर से हाथ के छूते ही सेठजी के पुरे शरीर में अत्यंत तीव्र विद्युत प्रवाह कौंध गया । एक पल के लिए उनकी सांसें थम सी गई, जबड़े भींच गए, और एक गहरी सांस लेते हुए उन्होंने केशु को अपनी बलिष्ठ भुजाओ में उठा लिया ।

केशु की सुराहीदार गर्दन और दोनों मांसल भुजाये विपरीत दिशाओ में झूल रही थी, न चाहते हुए भी सेठजी की नजर केशु के गौर वर्ण उन्नत वक्षस्थल एवं उसकी उफनती गहरी घाटी पर पड़ी, बायें वक्ष के ऊपर नन्हें से मनोहारी काले तिल को देखकर उनका हृदय आंदोलित हो उठा। वो केशु को उठाकर दीवानेखास की तरफ बढ़े, और केशु को वहां पड़े दीवान पर धीरे से झूँक कर लिटाने लगे

सेठ जी महसूस किया बाजुओ में केशु के नरम-नरम विशाल सुडौल नितम्बो की मादकता, उनके चेहरे पर केशु की गर्म सुगंधित सांसें और उनके नथुनों में उतरती केशु के शरीर से उठी वो संदली महक उनके दिलो दिगमग में उतरती में चली गई।


समय जैसे थम गया, दिल कि धड़कनो ने जैसे धड़कना ही छोड़ दिया , धमनियों में रक्त का प्रवाह जैसे रुक सा गया, पुरे शरीर को काठ मार गया। चरम शून्य की अवस्था। तभी दूर अंधरे में बिजली कौंधी और एक आवाज धीमे धीमे जैसे किसी गहरे कुंए से आ रही हो।

क्रमश.............................


 

Rockstar_Rocky

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बस कालेज के दिनों में की गई रंगीनिया उन्हें आज भी गुदगुदा देती थी, कभी-कभी शहर से बाहर जाकर अपने अजीज मित्रो के साथ शिकार कर लिया करते थे, जयपुर उनका पसन्दीदा शिकारगाह हैं....................


अब आगे -----


केशु रानी- केशु सेठजी की हवेली में पिछले दो साल से रह रही थी और अब हवेली के सदस्य की तरह थी। कुंभ मेले में हुई एक दुर्घटना में वो अपने परिवार से बिछुड़ गई थी और अपनी याददाश्त खो चुकी थी, वही उस मेंले में उन्मुक्त विचरण कर रहे एक पापी और दुष्ट मुक्की बुढेला की काली नजर घाट पर बैठी अबला केशु पर पड़ी और वो उसे अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसाकर अपने डेरे ले जाने की ताक में था। वो जबरदस्ती उसे खींचकर अपने साथ ले जाने की कोशिश कर ही रहा था, की तभी घाट पर नहा रहे सेठ अजयानंद की नजर उन दोनों पर पड़ी, पलक झपकते ही वो मामला समझ गए, और उन्होंने झपटकर उस मुक्की की गर्दन दबोच ली, दो-तीन झन्नाटेदार रहपट मुक्की के कान के नीचे रसीद कर दिए , और उसके द्वारा की जा रही जोर जबरदस्ती के बारे में पूछा ।

मुक्की की तो आँखों के आगे चाँद तारे नजर आ रहे थे, वो कुछ जवाब दिए बना वहां से सरपट भाग लिया और दूर जाकर सेठजी को धमकी देने लगा।

सेठजी ने बड़ी कोशिश की केशु से पूछताछ करने की लईकिन वो मासूम अल्हड सी कुछ न बता पाई। अंततः वो उसे अपने घर ले आये और उसका इलाज लक्ष्मीनगर के प्रसिद्ध वालिया नर्सिंग होम के डाक्टर अमोल पालेकर से करवाया। डाक्टर अमोल ने जांच पड़ताल के पश्चात बताया की घबराने की कोनो जरूरत न है, वो ठीक हो सकती है लेकिन जब उसे कोई सुखद या दुखद मानसिक आघात लगेगा।

सेठजी ने बहुत बहुत विचार विमर्श करके केशु को हवेली की रसोई का कार्यभार सँभालने के लिए रख लिया, और अपने बाग के पिछवाड़े में बने कमरो में एक कमरा केशु के रहने के लिए दे दिया ताकि वो सुरक्षित रहे, और आगे से मुक्की जैसे कमीने लोगों के गंदे साये से भी सुरक्षित रहे, और अखबार में केशु के परिवार के लिए विज्ञापन भी दे दिया कि जिसको को भी पता लगे वो वो तुरंत सेठ जी सम्पर्क करे। सेठजी आज तक कभी भी केशु को भरपूर नजरों से नहीं देखा था। ऐसे महान और भले हैं अपने सेठ अज्जू जी ।

“केशु ओ केशु”

लेकिन हवेली के सन्नाटे में उनकी आवाज गूँजकर वापस आ गई। सेठजी को आशंका हुई कि कहीं कुछ अनर्थ तो नहीं हो गया? वो एक एक करके सभी कमरो में केशु को ढूंढने लगे।

केशु अपनी उंगली से निकलते रक्त को देखकर इतनी डर गई थी की सेठजी की आवाज सुनकर भी उसके गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी।

तभी सेठजी ने रसोई में प्रवेश किया और केशु को जमीन पर बैठा देखा, तो वो थोड़ा और आगे बढ़े, जमीन पर रक्त की बुँदे देखकर आश्चर्य से केशु की तरफ देखने लगे।

“उफ्......... कितना मासूम चेहरा, झुकी हुई पलकें, उस सुंदर मृगनयनी के कजरारे नैनों में झिलमिल करते आूँस रूपी मोती तैर रहे थे। डर के मारे उसके मुख से बोल नहीं निकल पा रहे थे…”

सेठ अजयनंद जी के हृदय में एक हूँक सी उठी, नीचे बैठकर, उन्होंने अपनी रोबीली आवाज में पूछा - “क्या हुआ केशु, ये सब कैसे हुआ? मुझे बताओ किसने इतनी ज़ुर्रत की, हम अभी उसको हवेली से बाहर उठाकर फेंक देंगे…”

केशु की तो घिग्घी सी बंध गई थी, एक तो अपनी उंगली से निकलते रक्त का डर और ऊपर से सेठजी की शेर जैसी गर्जना सुनकर वो अपनी सुध बुध खो बैठी, और वही जमींन पर बेहोश हो गई।

सेठ अज्जू जी घबरा उठे और जोर से गरजे- “हरिया, शेरा, धनिया, किधर मर गए सब के सब, जल्दी आओ…”

तभी धनिया भागती हुई आई- “जी मालिक …” वो पीछे आंगन में कपड़े धो रही थी।

सेठजी गरजते हुए- “हरिया और शेरा किधर मर गए हैं?”

धनिया - मालिक वो आपने ही तो कल रात दोनों को शहर भेजा था, दारू की पेटिया लाने को नव वर्ष की पार्टी के लिए ।

सेठजी- अरे हाँ हम तो भूल ही गए थे, देखो इस केशु को क्या हुआ? इसे उठाने में हमारी मदद करो और अंदर ले चलो।

धनिया - जी मालिक ।

सेठजी- छोड़ो तुम एक काम करो, गर्म पानी लाओ और हाँ डा॰ अमोल को फोन करके बुला लो।

धनिया - जी मालिक ।

फिर सेठजी ने केशु की तरफ देखा और उसे उठाने के लिए जैसे ही एक हाथ उसके सर के पीछे और दूसरा हाथ केशु की बलखाती कमर के नीचे लगाया, नंगी कमर से हाथ के छूते ही सेठजी के पुरे शरीर में अत्यंत तीव्र विद्युत प्रवाह कौंध गया । एक पल के लिए उनकी सांसें थम सी गई, जबड़े भींच गए, और एक गहरी सांस लेते हुए उन्होंने केशु को अपनी बलिष्ठ भुजाओ में उठा लिया ।


केशु की सुराहीदार गर्दन और दोनों मांसल भुजाये विपरीत दिशाओ में झूल रही थी, न चाहते हुए भी सेठजी की नजर केशु के गौर वर्ण उन्नत वक्षस्थल एवं उसकी उफनती गहरी घाटी पर पड़ी, बायें वक्ष के ऊपर नन्हें से मनोहारी काले तिल को देखकर उनका हृदय आंदोलित हो उठा। वो केशु को उठाकर दीवानेखास की तरफ बढ़े, और केशु को वहां पड़े दीवान पर धीरे से झूँक कर लिटाने लगे

सेठ जी महसूस किया बाजुओ में केशु के नरम-नरम विशाल सुडौल नितम्बो की मादकता, उनके चेहरे पर केशु की गर्म सुगंधित सांसें और उनके नथुनों में उतरती केशु के शरीर से उठी वो संदली महक उनके दिलो दिगमग में उतरती में चली गई।


समय जैसे थम गया, दिल कि धड़कनो ने जैसे धड़कना ही छोड़ दिया , धमनियों में रक्त का प्रवाह जैसे रुक सा गया, पुरे शरीर को काठ मार गया। चरम शून्य की अवस्था। तभी दूर अंधरे में बिजली कौंधी और एक आवाज धीमे धीमे जैसे किसी गहरे कुंए से आ रही हो।

क्रमश.............................

Uttam update, prntu thodi chhoti thi! :sad: Thodi badi update dene ka prayaas karein!

Aapki kahani ke doctor ji aise to nahin dikhte the;

:lol1:
Or bhi memes daalta magar upload hone mein error aa raha hai! :banghead:

 

Nevil singh

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ये एक व्यस्क हास्य रचना है। मै आशा करता हूँ कि आप सब मित्रो को ये महागाथा अवश्य पसन्द आएगी आप सबसे आपके प्यार और उत्साहवर्धन की अपेक्षा हैं ।
ये दो ऐसे धूर्त मित्रो की कहानी है जो एक कमसिन कन्या को छल और कपट से पाना चाहते हैं लेकिन क्या वो उसके हासिल कर पाएंगे ?

आइये देखते हैं हमलोग
Shaandaar katha ki badhai dost
 

Nevil singh

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बहुत समय पहले एक विपु नाम का एक मज़दूर फैक्ट्री में पत्थर तोड़ने का कार्य करता था। फैक्ट्री के सेठ अज्जुनाथ लंडवालिया थे। बड़े ही दयालु गरीब औरतों की हमेशा मदद करने वाले।

उनके फूलो के बाग में एक भरपूर बदन की कमसिन युवती जिसका नाम केश रानी, काम करती थी। वो कजरारे नयनों, उन्नत
स्तन, पतली कमर, उन्नत नितम्ब कि मल्लिका थी, आवाज ऐसी जैसे कोयल कूक रही हो। होंठ शहद से भरपूर ,
गुलाब के फूल कि तरह कोमल जिस्म, बलखाती कमर, लहराते लंबे बाल जो उसके उन्नत नितम्बो से छेड़छाड़ करते रहते।

एक दिन वो बगिया में सेठ अज्जुनाथ जी कि पूजा के लिए फूल लेने गई तो वहां वो कपटी मज़दूर विपु क्यारियों कि खुदाई और चिनाई में व्यस्त था और उस मुर्ख ने कई फूलो और पौधों नष्ट कर दिया था यह देखकर केशु क्रोधित हो गई और उसने मेस्सी के तरह एक लात घुमाकर विपु के घनघोर काले नितम्बो पर जड़ दी

लज्जा और अपमान से विपु शर्मिंदा हो गया और मन ही मन अपमान कि ज्वाला में उसकी काली गांड भी जलकर धुंआ देने लगी, उसने एक नजर केशु के थिरकते हुए नितम्बो पर डाली और माफी मांगता हुआ चला गया।

उसी शाम गाँव के बहार वाले शमशान घाट के दायी तरफ वाली सड़क पे बने देसी दारू के अड्डे पर अपने अखण्ड चूतिया दोस्त बंसी लंगुरा के साथ मुर्गे के कपुरो कि भुर्जी और देसी दारू के साथ गांजे के सुट्टे लगा रहा था, दोनों कपटी उस दिलकश हसीना केशु से बदला लेने कि योजना पर अपना चूतिया दिमाग घिस रहे थे
देसी दारू, गांजे के सुट्टे और मुर्गे के कपूरे चबाने के बाद भी दोने मुढमति मूर्खो तरह आपस में बतिया रहे थे और कैसे उस अपूर्व सुंदरी केशु के शहद रूपी कामरस को चखा जाये अपनी चूतिया योजनाओ में लगे हुए थे


क्रमश:
Julmi update dost
 
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Reactions: Ajju Landwalia

Naik

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बस कालेज के दिनों में की गई रंगीनिया उन्हें आज भी गुदगुदा देती थी, कभी-कभी शहर से बाहर जाकर अपने अजीज मित्रो के साथ शिकार कर लिया करते थे, जयपुर उनका पसन्दीदा शिकारगाह हैं....................


अब आगे -----


केशु रानी- केशु सेठजी की हवेली में पिछले दो साल से रह रही थी और अब हवेली के सदस्य की तरह थी। कुंभ मेले में हुई एक दुर्घटना में वो अपने परिवार से बिछुड़ गई थी और अपनी याददाश्त खो चुकी थी, वही उस मेंले में उन्मुक्त विचरण कर रहे एक पापी और दुष्ट मुक्की बुढेला की काली नजर घाट पर बैठी अबला केशु पर पड़ी और वो उसे अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसाकर अपने डेरे ले जाने की ताक में था। वो जबरदस्ती उसे खींचकर अपने साथ ले जाने की कोशिश कर ही रहा था, की तभी घाट पर नहा रहे सेठ अजयानंद की नजर उन दोनों पर पड़ी, पलक झपकते ही वो मामला समझ गए, और उन्होंने झपटकर उस मुक्की की गर्दन दबोच ली, दो-तीन झन्नाटेदार रहपट मुक्की के कान के नीचे रसीद कर दिए , और उसके द्वारा की जा रही जोर जबरदस्ती के बारे में पूछा ।

मुक्की की तो आँखों के आगे चाँद तारे नजर आ रहे थे, वो कुछ जवाब दिए बना वहां से सरपट भाग लिया और दूर जाकर सेठजी को धमकी देने लगा।

सेठजी ने बड़ी कोशिश की केशु से पूछताछ करने की लईकिन वो मासूम अल्हड सी कुछ न बता पाई। अंततः वो उसे अपने घर ले आये और उसका इलाज लक्ष्मीनगर के प्रसिद्ध वालिया नर्सिंग होम के डाक्टर अमोल पालेकर से करवाया। डाक्टर अमोल ने जांच पड़ताल के पश्चात बताया की घबराने की कोनो जरूरत न है, वो ठीक हो सकती है लेकिन जब उसे कोई सुखद या दुखद मानसिक आघात लगेगा।

सेठजी ने बहुत बहुत विचार विमर्श करके केशु को हवेली की रसोई का कार्यभार सँभालने के लिए रख लिया, और अपने बाग के पिछवाड़े में बने कमरो में एक कमरा केशु के रहने के लिए दे दिया ताकि वो सुरक्षित रहे, और आगे से मुक्की जैसे कमीने लोगों के गंदे साये से भी सुरक्षित रहे, और अखबार में केशु के परिवार के लिए विज्ञापन भी दे दिया कि जिसको को भी पता लगे वो वो तुरंत सेठ जी सम्पर्क करे। सेठजी आज तक कभी भी केशु को भरपूर नजरों से नहीं देखा था। ऐसे महान और भले हैं अपने सेठ अज्जू जी ।

“केशु ओ केशु”

लेकिन हवेली के सन्नाटे में उनकी आवाज गूँजकर वापस आ गई। सेठजी को आशंका हुई कि कहीं कुछ अनर्थ तो नहीं हो गया? वो एक एक करके सभी कमरो में केशु को ढूंढने लगे।

केशु अपनी उंगली से निकलते रक्त को देखकर इतनी डर गई थी की सेठजी की आवाज सुनकर भी उसके गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी।

तभी सेठजी ने रसोई में प्रवेश किया और केशु को जमीन पर बैठा देखा, तो वो थोड़ा और आगे बढ़े, जमीन पर रक्त की बुँदे देखकर आश्चर्य से केशु की तरफ देखने लगे।

“उफ्......... कितना मासूम चेहरा, झुकी हुई पलकें, उस सुंदर मृगनयनी के कजरारे नैनों में झिलमिल करते आूँस रूपी मोती तैर रहे थे। डर के मारे उसके मुख से बोल नहीं निकल पा रहे थे…”

सेठ अजयनंद जी के हृदय में एक हूँक सी उठी, नीचे बैठकर, उन्होंने अपनी रोबीली आवाज में पूछा - “क्या हुआ केशु, ये सब कैसे हुआ? मुझे बताओ किसने इतनी ज़ुर्रत की, हम अभी उसको हवेली से बाहर उठाकर फेंक देंगे…”

केशु की तो घिग्घी सी बंध गई थी, एक तो अपनी उंगली से निकलते रक्त का डर और ऊपर से सेठजी की शेर जैसी गर्जना सुनकर वो अपनी सुध बुध खो बैठी, और वही जमींन पर बेहोश हो गई।

सेठ अज्जू जी घबरा उठे और जोर से गरजे- “हरिया, शेरा, धनिया, किधर मर गए सब के सब, जल्दी आओ…”

तभी धनिया भागती हुई आई- “जी मालिक …” वो पीछे आंगन में कपड़े धो रही थी।

सेठजी गरजते हुए- “हरिया और शेरा किधर मर गए हैं?”

धनिया - मालिक वो आपने ही तो कल रात दोनों को शहर भेजा था, दारू की पेटिया लाने को नव वर्ष की पार्टी के लिए ।

सेठजी- अरे हाँ हम तो भूल ही गए थे, देखो इस केशु को क्या हुआ? इसे उठाने में हमारी मदद करो और अंदर ले चलो।

धनिया - जी मालिक ।

सेठजी- छोड़ो तुम एक काम करो, गर्म पानी लाओ और हाँ डा॰ अमोल को फोन करके बुला लो।

धनिया - जी मालिक ।

फिर सेठजी ने केशु की तरफ देखा और उसे उठाने के लिए जैसे ही एक हाथ उसके सर के पीछे और दूसरा हाथ केशु की बलखाती कमर के नीचे लगाया, नंगी कमर से हाथ के छूते ही सेठजी के पुरे शरीर में अत्यंत तीव्र विद्युत प्रवाह कौंध गया । एक पल के लिए उनकी सांसें थम सी गई, जबड़े भींच गए, और एक गहरी सांस लेते हुए उन्होंने केशु को अपनी बलिष्ठ भुजाओ में उठा लिया ।


केशु की सुराहीदार गर्दन और दोनों मांसल भुजाये विपरीत दिशाओ में झूल रही थी, न चाहते हुए भी सेठजी की नजर केशु के गौर वर्ण उन्नत वक्षस्थल एवं उसकी उफनती गहरी घाटी पर पड़ी, बायें वक्ष के ऊपर नन्हें से मनोहारी काले तिल को देखकर उनका हृदय आंदोलित हो उठा। वो केशु को उठाकर दीवानेखास की तरफ बढ़े, और केशु को वहां पड़े दीवान पर धीरे से झूँक कर लिटाने लगे

सेठ जी महसूस किया बाजुओ में केशु के नरम-नरम विशाल सुडौल नितम्बो की मादकता, उनके चेहरे पर केशु की गर्म सुगंधित सांसें और उनके नथुनों में उतरती केशु के शरीर से उठी वो संदली महक उनके दिलो दिगमग में उतरती में चली गई।


समय जैसे थम गया, दिल कि धड़कनो ने जैसे धड़कना ही छोड़ दिया , धमनियों में रक्त का प्रवाह जैसे रुक सा गया, पुरे शरीर को काठ मार गया। चरम शून्य की अवस्था। तभी दूर अंधरे में बिजली कौंधी और एक आवाज धीमे धीमे जैसे किसी गहरे कुंए से आ रही हो।

क्रमश.............................
Bahot behtareen shaandaar update bhai
 
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