जैसे उसने 'कुसुम' के संदर्भ में मेरे मन की बात पढ़ ली हो,मैं अपना सर ऊँचा किये उसे देखा वो बस मुस्कुरा रही थी…... और मुस्कराते हुए बोली..!
पापा "ये अभी नही, तो कभी नही" का आखिरी मौका है........!
मेरी साँसे भारी हो चली थी, मैं अपनी बाहें उसकी पीठ के दोनो और से आगे ले गया और अपने काँपते हाथ उसके ठोस मम्मों पर रख दिए.
वो एक दम से स्थिर हो गयी, बिना हिले डुले उसी तरह बैठी रही. मैं धीरे धीरे सावधानी पूर्वक उसके मम्मों को दबाने लगा, दुलार्ने लगा. वो बस थोड़ा सा कसमसाई. मेरा उत्साह बढ़ गया और मैने उसके टॉप में हाथ डाले और उपर करते हुए उसके नंगे मम्मों को पकड़ लिया. मेरे हाथ नग्न मम्मों को छूते ही उसका जिस्म लरज गया उसने छाती को आगे से उभार दिया. त्वचा से त्वचा का स्पर्श होने पर मेरी साँसे उखड़ रही थी. मैं लाख कोशिस करने पर भी ज़िंदगी भर उस अविश्वसनीय एहसास की कल्पना नही कर सकता था जो एहसास आज मुझे असलियत में उसके मम्मे अपने उत्सुक हाथों में थामने पर हुआ था. उसकी साँसे भी मेरी तरह उखड़ी हुई थी और वो मेरे हाथो मे मम्मे दिए तड़प रही थी.
जितनी तेज़ी से मैने अपनी कमीज़ उतारी उतनी ही तेज़ी से उसका टॉप उतर गया. वो मेरी ओर घूमी और घुटनो के बल खड़ी हो गयी, मैं भी उसके सामने घुटनो के बल हो गया और उसके जिस्म को अपनी बाहों में भर लिया. उसके मम्मे मेरी नग्न छाती पर और भी सुखद और आनंदमयी एहसास दिला रहे थे. हमारे भूखे और लालायित मुँह ने एक दूसरे को ढूँढ लिया और हम ऐसे जुनून से एक एक दूसरे को चूमने और आलिंगंबद्ध करने लगे कि शायद हमारे जिस्मो पर खरोन्चे लग गयी थी. हमारा जुनून हमारी भावनाएँ जैसे किसी ज्वालामुखी की तरह फट पड़ी और हम एक दूसरे के उपर होने के चक्कर में बिस्तर पर करवटें बदल रहे थे.
हमारी साँसे इस हद तक उखड़ चुकी थी कि हमें एक दूसरे से अलग होना पड़ा। ताकि हम साँस ले सके. मुझे बहुत तेज़ प्यास भी महसूस हो रही थी और मुझे पानी पीना था. इतना समय काफ़ी था 'हमारी दहकती भावनाओं को थोड़ा सा ठंडा होने के लिए और वापस ज़मीन पर आने के लिए'.
हम ने फिर से एक दूसरे को चूमना और सहलाना चालू कर दिया, पहले कोमलता से मगर जल्द ही हम उत्तेजना के चरम पर पहुँच गये. हम एक दूसरे की जीभों को काटते हुए चूस रहे थे. हम ने अपनी भावनाएँ अपने जज़्बातों को इतने लंबे समय तक दबाए रखा था कि अब सिर्फ़ चूमने भर से हमें राहत नही मिलने वाली थी. हमें अपनी भावनाएँ अपना जुनून व्यक्त करने के लिए कोई प्रचंड, हिंसक रुख़ अपनाना था. हमें अपने अंदर के उस भावनात्मक तूफान को प्रबलता से निकालने की ज़रूरत थी.
उसकी स्कर्ट मेरी लोवर के मुक़ाबले कहीं आसानी से उतर गयी. जब तक मैं कपड़े निकाल पूरा नंगा हुआ, वो फर्श पर टाँगे पूरी चौड़ी किए लेटी हुई थी. मैं जैसे ही उसकी टाँगो के बीच पहुँचा तो उसने एक हाथ आगे बढ़ा मेरा लंड थाम लिया और उसे अपनी चूत के मुँह पर लगा दिया. उसकी चूत अविश्वसनीय हद तक गीली थी और मेरा लंड किसी लोहे की रोड की तरह सख़्त था और मैं कामोत्तेजना के चरम पर था. मैने रिंकी के कंधे पकड़े और पूरा ज़ोर लगाते हुए लंड अंदर घुसेड़ने लगा.
जैसे जैसे मेरा लंड अंदर जा रहा था उसके चेहरे पर पीड़ा की लकीरे उभरती जा रही थी. कुछ दूर जाकर मेरा लंड रुक गया, मैने आगे ठेलना चाहा मगर वो जा नही रहा था, जैसे बीच में कोई अवरोध था. लंड थोड़ा पीछे खींचकर मैने एक ज़ोरदार धक्का मारा और मेरा लंड उस अवरोध को तोड़ता हुआ आगे सरकता चला गया. मेरी बेटी रिंकी जिसके हाथ मेरे कुल्हों पर थे, उस धक्के के साथ ही उसने मेरे कंधे थाम लिए. उसके मुख से एक घुटि सी चीख निकल गयी. वो सर इधर उधर पटक रही थी.
"क्या हुआ? दर्द हो रहा है? अगर ज़्यादा दर्द है तो मैं बाहर निकाल लूँ"
"बाहर नही निकालना" वो मेरी बात काटते हुए लगभग चिल्ला पड़ी "पूरा अंदर डाल दो, रुकना नही" उसके होंठ भिंचे हुए थे जैसे वो असीम दर्द सहन करने की चेस्टा कर रही थी. मैने जो थोड़ा सा बाकी लंड था वो भी उसकी चूत में उतार दिया. जितना शारीरिक तौर पर संभव हो सकता था मैं उसकी चूत के अंदर गहराई तक पहुँच चुका था. जल्दी ही मैने उसकी चूत में ज़ोरदार धक्के लगाने शुरू कर दिए. मेरी लाडो बिटिया की चूत जितनी टाइट थी उतनी ही वो गीली थी.
कुछ पलों बाद उसके चेहरे से दर्द के भाव धीरे धीरे कम होने लगे. उसने हाथ वापिस मेरे कुल्हो को थाम कर अपनी ओर खींचने लगे ता कि मैं पूरी गहराई तक उसके अंदर अपना लंड डाल सकूँ. उस रात मैने उसे पूरी कठोरता से चोदा. उसे मैने पूरी गहराई तक चोदा. मैने उसे खूब देर तक चोदा. मैने उसे ऐसे चोदा जैसे वो हमारी ज़िंदगी का आख़िरी दिन हो. उसकी चूत से रस निकल निकल कर मेरे लंड को भिगोते हुए फर्श पर गिर रहा था और वो मेरे लंड के ज़ोरदार धक्के खाती आहें भरती, सिसकती मेरे नीचे किसी जल बिन मछली की तरह मचल रही थी.
मैं नही जानता उसका सखलन कब हुआ, हुआ भी या नही हुआ. मगर मैं इतना जानता हूँ मुझे सखलित होने में काफ़ी समय लग गया हालांकि उसकी चूत में लंड डालते ही मुझे अपने लंड पर ऐसी तपिश महसूस हुई कि मुझे लगा मैं उसी पल झड जाउन्गा. मैं उसे इतनी देर तक तो चोद सका कि उसकी अति सन्करी चूत मे अपने लंड के घर्सन से होने वाली सनसनी का आनंद ले सकूँ.
मेरा स्खलन प्रचंड वेग से आया. जब मेरा स्खलन शुरू हुआ तो मैं जितनी कठोरता और जितनी तेज़ी से धक्के लगा सकता था मैने लगाए. आनंद और दर्द से मेरा शरीर कांप रहा था, हिचकोले खा रहा था जब मैने अपनी बेटी रिंकी की चूत के अंदर मन भर वीर्य निकाला और वो मुझसे कस कर चिपकी हुई थी.
बुरी तरह थका मांदा मैं रिंकी के उपर लेट गया. मेरी साँसे उखड़ी हुई थी. उसने मेरी टाँगो के गिर्द अपनी टाँगे कस कर मुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया और मेरी पीठ सहलाते हुए मुझे शांत करने लगी ताकि मैं वापस धरती पर आ जाऊं. आख़िर में जब मैं उसके उपर से हटा और अपने लंड की ओर देखा तो मुझे एहसास हुआ कि उस को इतनी पीड़ा क्यों हो रही थी.
मेरे लंड और उसकी चूत के मुख पर खूब सारा खून लगा हुआ था. मैने अपनी बेटी का कौमार्य भंग किया था. मैने कभी नही सोचा था कि वो अब तक कुँवारी होगी. एक तरफ तो मैं अपनी बेटी को हुई तकलीफ़ के लिए थोड़ा शर्मसार हो गया मगर वहीं मुझे अपने पर गर्व महसूस हुआ कि मैं वो पहला मर्द था जिसने उसे भोगा था जिसने किसी अप्सरा से भी बढ़ कर उस लड़की का प्यार पाया था. मेने अपने होंठ रिंकी के होंटो पर रख दिए और मैं उसे चूमता रहा, उसे सहलाता रहा, उसे दुलारता रहा.
रात भर मेरा और मेरी बेटी रिंकी का चुदाई कार्यक्रम चलता रहा, मैने 3 बार उस को जबरदस्त तरीके से चोदा और फिर थक हारकर दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले सो गए
सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही रिंकी की आंखे खुल गई, रात की घनघोर अंधेरी वासनामयि कालि रात के बाद मौसम अब बिल्कुल साफ हो चुका था, पक्षियों की चहचहाहट साफ सुनी जा सकती थी,
रिंकी खुद को अपने पापा के आगोश में पाकर एकदम से शर्मसार होने लगी, उसके गालों की लालिमा कश्मीरी सेब की याद दिला रहे थे, हम दोनो संपूर्ण नग्नावस्था में बिस्तर पर एक दूसरे की बाहों में सोए हुए थे,
रिंकी ने उठने के लिए अपने बदन को थोड़ा आगे खिसकना चाहा पर अचानक उसके बदन में एक तेज़ सुरसुराहट दौड़ गयी क्योंकि मेरा लंड अभी भी उसकी चुत की फांको के बीच में फसा हुआ था
अपने पापा के लंड का अहसास अपनी चुत के इर्द गिर्द होते ही रिंकी के दिल की धड़कनें तेज़ होने लगी, वो बिस्तर से उठना तो चाहती थी लेकिन अपने पापा की लंड की गर्माहट उसे वही रुके रहने पर मजबूर कर रही थी
रिंकी का मन एक बार फिर से मचलने लगा, वो अपनी भरावदार गांड को मेरे लंड पर होले होले रगड़ने लगी जिससे उसके चुत की गुलाबी अधखुली पत्तियां मेरे लंड पर दस्तक देने लगी,
रिंकी की सांसे उसके बस में नहीं थी, एक बार तो उसका मन किया कि पापा को जगा कर फिर से अपनी चुत की प्यास बुझा ले पर रात के वासना के सैलाब में शर्म और हया का जो पर्दा तार तार हो चुका था, वो अब दोबारा उसे संस्कारो के बंधन की याद दिलाने लगा था।
किसी उफनती नदी के पानी की तरह रिंकी की वासना का भी पानी भी उतर चुका था, खिड़की से हल्की हल्की रोशनी कमरे में आ रही थी और रोशनी के साथ ही रिंकी की बेशर्मी भी दूर होने लगी थी, अपने नंगे बदन पर गौर करते ही रिंकी ने शरम के मारे अपनी आंखों को बंद कर लिया, अब वो धीरे धीरे अपनी गांड को हिलाती हुई पापा की बाहों के चंगुल से आज़ाद होने की कोशिश करने लगी, क्योंकि वो पापा के जगने से पहले ही कमरे से चली जाना चाहती थी नहीं तो वो रात की हरकत के बाद अपने पापा से नजरें नहीं मिला पाती,
थोड़ी ही देर की कसमसाहट के बाद रिंकी ने खुद को पापा की बाहों से आज़ाद कर लिया, उसका नंगा खूबसूरत बदन और चुत की खुली फांके रात की कारस्तानी को चीख चीख कर बता रही थी ,
रिंकी ने एक बार नज़रे अपने नंगे जिस्म पर घुमाई तो कल रात का मंज़र याद करके उसने अपने चेहरे को अपनी कोमल हथेलियों से छुपाने की नाकाम सी कोशिश की, अब उस कमरे में रुकना उसके लिए मुश्किल हुआ जा रहा था क्योंकि उसको डर था कि कहीं वो दोबारा हवस की शिकार होकर अपने पापा पर न टूट पड़े, इसलिए वो तेज़ तेज़ कदमो से चलती हुई कमरे से बाहर निकली और नीचे जाकर अपने के रूम में बाथरूम में घुस गई,
उसने अपने बदन को पानी की फुंहारो से पोंछा, और अपनी चुत को भी रगड़ रगड़ कर साफ किया, अब उसकी चुत के अंदर से लालिमा की झलक उसे साफ दिखाई दे रही थी, जिसे देखकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई क्योंकि ये लालिमा उसके कली से फूल बनने की निशानी जो थी
जारी है......