• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest कर्ज और फर्ज - एक कश्मकश

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
22,287
59,013
259
राइटर की नियत में खोट है 🤣🤤
:haha:
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
22,287
59,013
259

manu@84

Well-Known Member
8,854
12,265
174
Pehle ye bata agla Update kab dega :smarty:
परसो सर जी ✍️
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
22,287
59,013
259
परसो सर जी ✍️
Thats great 👍 👌🏻
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
22,287
59,013
259
परसो सर जी ✍️
Teraparso nahi hua kya abhi??
 
  • Like
Reactions: manu@84

manu@84

Well-Known Member
8,854
12,265
174
Teraparso nahi hua kya abhi??
Haa bas karne waala hu, aaj thoda sa Revise kar raha hu
 
  • Wow
Reactions: Raj_sharma

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
22,287
59,013
259
Haa bas karne waala hu, aaj thoda sa Revise kar raha hu
Koi baat nahi aaram se kar diyo👍
 

manu@84

Well-Known Member
8,854
12,265
174
उसने अपने बदन को पानी की फुंहारो से पोंछा, और अपनी चुत को भी रगड़ रगड़ कर साफ किया, अब उसकी चुत के अंदर से लालिमा की झलक उसे साफ दिखाई दे रही थी, जिसे देखकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई क्योंकि ये लालिमा उसके कली से फूल बनने की निशानी जो थी

लगभग आधे घण्टे में रिंकी नहा धोकर बिल्कुल फ्रेश हो चुकी थी, अब उसके पेट मे चूहे कूदने लगे क्योंकि कल रात तो बाप बेटी ने खाना खाया ही नही था, इसलिए वो फटाफट सुबह का नाश्ता तैयार करने के लिए किचन में घुस गई।

किचन में काम करते हुए उसका ध्यान बार-बार रात वाली घटना पर केंद्रित हो रहा था, रह रह कर उसे अपने पापा का मोटा लंड याद आने लगा जिससे उसे अपनी चुत में मीठे-मीठे से दर्द का अहसास होने लगा,

रात भर जमकर चुदवाने के बाद उसे इस बात का एहसास हो गया था कि उसके पापा एक दमदार और तगडे लंड के मालिक है , उनके जबरदस्त धक्को को याद करके रिंकी मन-ही-मन सिहर रही थी,

वो नाश्ता बनाते बनाते रात के ख्यालो में खो गई "कितना मोटा लंड है पापा का, मेरी चुत की कैसे धज्जियां उड़ा कर रख थी, क्या जबरदस्त स्टैमिना है उनका, हाय्य मन तो करता है कि अभी ऊपर जाकर उनके मोटे लंड को दोबारा अपनी चुत में घुसेड़ लूं, इसस्ससस कितने अच्छे से चोदते है ना पापा, मन करता है कि बस दिन रात उनके मोटे लंड को अपनी चुत में ही घुसाए रखूं"

लेकिन समस्या ये थी कि ये सब वो करे कैसे? " रात को तो ना जाने उसे क्या हो गया था और जो हिम्मत उसने दिखाई थी वो दिन के उजाले में कैसे दिखाए, वो ऐसा क्या करें कि उसके पापा खुद एक बार फिर अपने लंड को उसकी चुत में डालने को मजबूर हो जाये,

पर थोड़ी हिम्मत तो उसे दिखानी ही पड़ेगी वरना बना बनाया खेल बिगड़ने में वक्त नही लगेगा, वैसे भी रात को दो-तीन बार तो अपने पापा का लंड अपनी चुत में डलवा कर चुदवा ही चुकी थी तो अब शर्म कैसी ,
एक बार हो या बार बार , हो तो गया ही, और अब अगर उसे चुदवाना है तो रात की तरह अपने पापा को उकसाना ही होगा ताकि वो फिर से चुदाई करने के लिए मजबूर हो जाये"

रिंकी इसी उधेड़बुन में लगी थी,

नहाने के बाद रिंकी ने एक बेहद पतले कपड़े का शॉर्ट truser पहना था गहरे नीले चटकदार रंग के इस के ऊपर उसने एक छोटी सी टीशर्ट डाली हुई थी, पर आज भी उसने अंदर ब्रा नही पहनी हुई थी, शॉर्ट्स के अंदर नीले कलर की ही थोंग वाली पैंटी पहनी थी जो पीछे से उसकी भरावदार गांड में कही ओझल सी हो गई थी, ध्यान से देखने पर उसके गांड और उभरी हुई चुंचियों को साफ साफ महसूस किया जा सकता था,


दूसरी तरफ मै अब नींद से जग चुका था, मैने जब खुद को बिल्कुल नंगा बिस्तर पर पाया, तो मेरी आँखों के सामने रात वाला मंज़र घूम गया और होंठो पर एक गहरी मुस्कान आ गयी, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि आखिर मैने अपनी बेटी की फुलकुंवारी चूत का रस चख लिया था, उसे कली से फूल बना दिया था, मेरे लिए तो ये सब एक सपने की तरह प्रतीत हो रहा था, जल्दी ही रात की खुमारी को याद कर मेरे लंड में जोश भरता चला गया, अपने लंड में आए तनाव को देखकर मन बहकने लगा था, मै सोचने लगा कि कि अगर इस समय रिंकी इधर होती तो, जरूर एक बार फिर से उसे चोद कर अपने आप को शांत कर लेता, एक बार फिर उसकी नाजुक चुत को अपने हबीबी लंड से भर देता ,

लेकिन रिंकी तो पहले ही नीचे जा चुकी थी इसलिए मै भी बस हाथ मसल कर रह गया, रिंकी अब भी किचन में ही काम कर रही थी, और मै सीधा बाथरुम के अंदर चला गया, तकरीबन 30 मिनट में नहा धोकर बिल्कुल तैयार था, मैने अपने फोरमल कपड़े पहनकर ओर सीधा नाश्ता करने के लिए किचन कि तरफ चल पड़ा

मै अभी किचन की तरफ जा ही रह था कि अचानक से डोर बैल बजी मैने दरवाजा खोला तो मेरे माता पिता रिश्तेदारों के घर से वापस आ गये थे, मैने उन्हें बाल्टी भर कर दरवाजे पर ही शुद्धि स्नान करने के लिए पानी दिया, तद् उपरांत वो दोनों घर के अंदर आ कर अपने कमरे में चले गए।

जैसे ही मै किचन में दाखिल हुआ, रिंकी को मेरे कदमो की आहट होते ही उसकी जाँघो के बीच सुरसुरी सी मचने लगी, उसे पता था कि पापा की नजर उस पर ही टिकी होगी , लेकिन वो पीछे मुड़कर देखे बिना ही अपने काम मे मगन रही,

इधर उसकी सोच के मुताबिक ही मेरी नजरें रिंकी पर ही गड़ी थी, मै आश्चर्यचकित होकर अपनी बेटी को ही देख रहा था रिंकी की पीठ मेरी तरफ थी, अपनी बेटी को पारदर्शी शॉर्ट्स टीशर्ट में देख कर मै हैरान हो रहा था क्योंकि आज से पहले वो इस तरह पारदर्शी शॉर्ट्स टीशर्ट में कभी भी नजर नहीं आई थी। मुझे समझ आ रहा था लड़की अपनी नग्नता का प्रदर्शन सिर्फ अपने मन पसन्द पुरुष को रिझाने के लिए ही करती है।

मेरे माता पिता की मौजूदगी में इस वक्त मेरे लिए कुछ भी करना मुनासिब नही था। मैने रिंकी को गुड मॉर्निंग कहा और नाश्ता की प्लेट लेकर वापस हॉल में आ गया। कुछ देर में मेरे मम्मी पापा भी आकर मेरे साथ नाश्ता करने लगे। दस पंद्रह मिनिट इधर उधर की करने के बाद मै कॉलेज के लिए निकल गया।

वो रात और उसके बाद की रातें हमारी रातें बन गयी. जब मेरे मम्मी पापा सो जाते तो मैं और मेरी बेटी रिंकी चुदाई करते। नियमित तौर पर शारीरिक ज़रूरतें पूरे होने का फ़ायदा मुझे पहले हफ्ते में दिखाई देने लगा. मैं अब तनावग्रस्त नही था और रिंकी से चुदाई करके मैं जैसे एक नयी तरह की उर्जा महसूस करने लगा था. मैं पूर्णतया संतुष्ट था, ना सिर्फ़ शारीरिक तौर पर संतुष्ट था बल्कि भावनात्मक तौर पर भी और मेरी बेटी रिंकी भी हम दोनो ही हर तरह से खुश थे.

हमारे बीच अब आपस में बात करने में, खाना खाने में, हर काम में उत्साह होता था जिसे मेरे मम्मी पापा ने भी महसूस किया था. अब हम बाप बेटी का एक दूसरे के साथ समय बिताना बेहद मज़ेदार और रोमांचित होता था.

बहुत जल्द हम एक दूसरे के बदन की सुगंध, एक दूसरे की पसंद-नापसंद और आदतों के आदि हो गये थे. हमारे अंतरंग पलों में मेरी बेटी रिंकी का साथ कितना सुखद कितना आनंदमयी होता था, मैं बयान नही कर सकता. मुझे उसे अपनी बाहों में भर कर सीने से लगाना, उसके छोटे छोटे मम्मों को अपनी छाती पर महसूस करना बहुत अच्छा लगता था।

मुझे ये भी एहसास था कि मेरी ज़िंदगी में अकेली रिंकी नही बल्कि उसकी मम्मी कुसुम भी थी। बरबस मेरा ध्यान दोनो के जिस्मो में अंतर पर गया. मेरी बीबी कुसुम का जिस्म मेरी बेटी रिंकी के मुक़ाबले ज़यादा ताकतवर और ज़्यादा बड़ा था. उसके उरोज ज़्यादा बड़े और भारी थे, उसके चूतड़ ज़्यादा विशाल थे और रिंकी के मुक़ाबले उसकी कमर थोड़ी बड़ी थी.

लेकिन हर अनुपात से हर नज़रिए से मेरी बेटी रिंकी अपनी मम्मी कुसुम के मुक़ाबले ज़्यादा खूबसूरत थी. और यही वजह थी दोनो के प्रति मेरी भावनाओं में अंतर की. कुछ समानताएँ मौजूद थी मगर असमानताएँ बहुत बड़ी थी. यह बात नही थी कि मैं अपनी बीवी को बेटी से ज़्यादा चाहता था या नही. मगर मैं अब अपनी बीवी कुसुम के लिए उत्तेजित नही होता था. मैं अभी सिर्फ़ और सिर्फ़ रिंकी को ही प्यार करना चाहता था.


और एक इतवार की दोपहर जब मै अपनी बेटी के आगोश में था तभी मेरा मोबाइल बज उठा. लेकिन अपनी बीवी कुसुम का नंबर देख कर मेरा मुंह बन गया और तुरंत मैंने फोन काट दिया. 10 सैकंड भी नहीं गुजरे थे कि फिर से फोन आ गया. झल्लाते हुए मैंने फोन उठाया, ‘‘यार 10 मिनट बाद करना अभी मैं व्यस्त हूं. ऐसी क्या आफत आ गई जो कौल पर कौल किए जा रही हो?’’

मेरी बीवी यानी कुसुम देवी हमेशा की तरह चिढ़ गई, ‘‘यह क्या तरीका है अपनी बीवी से बात करने का? अगर पहली कौल ही उठा लेते तो दूसरी बार कौल करने की जरूरत ही नहीं पड़ती.’’

‘‘पर आधे घंटे पहले भी तो फोन किया था न तुम ने, और मैंने बात भी कर ली थी. अब फिर से डिस्टर्ब क्यों कर रही हो?’’

‘‘ सब समझ रही हूं, अभी तुम्हें मेरा फोन उठाना भी भारी क्यों लग रहा है. लगता है कि मेरे फूल पर कोई मधुमखी मडरा रही है.... वो भड़कती हुयी बोली।

जाहिर है, मेरे अंदर गुस्सा उबल पड़ा . और मैंने झल्ला कर कहा, ‘‘मैंने तो कभी तुम्हारी जिंदगी का हिसाब नहीं रखा कि कहां जाती हो, किस से मिलती हो?’’

‘‘तो पता रखो न अरुण … मैं यही तो चाहती हूं,’’ वह और ज्यादा भड़क कर बोल पड़ी.

‘‘पर यह सिर्फ पजेसिवनैस है और कुछ नहीं.’’

‘‘प्यार में पजेसिवनैस ही जरूरी है अरुण , तभी तो पता चलता है कि कोई आप से कितना प्यार करता है और बंटता हुआ नहीं देख सकता.’’

‘‘यह तो सिर्फ बेवकूफी है. मैं इसे सही नहीं मानता कुसुम, देख लेना यदि तुम ने अपना यह रवैया नहीं बदला तो शायद एक दिन मुझ से हाथ धो बैठोगी.’’

मैंने कह तो दिया, मगर बाद में स्वयं अफसोस हुआ. मैने महसूस किया जैसे उसके प्रति अपनी वफ़ा और अपनी ईमानदारी के लिए मुझे उसको आस्वश्त करना चाहिए था.

’’ ‘‘प्लीज कुसुम , समझा करो.
उधर से फोन कट चुका था. मैं सिर पकड़ कर बैठ गया.



जारी है...... ✍️
 
Top