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Incest कर्ज और फर्ज - एक कश्मकश

Sanju@

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उसी दोपहर जब मै कॉलेज में लेक्चर दे रहा था मेरे पिताजी का फोन आया वो और मम्मी किसी दूर के रिश्तेदार के यहाँ 'गमी' में जा रहे थे और अगले दिन सुबह तक वापिस आने वाले थे। ये मौका मेरे लिए "आज नही तो कभी नही" वाला था।


बड़े दिनों बाद ऐसा हुआ की मैं इतनी जल्दी घर आया था, मम्मी पापा रिश्तेदारों के यहाँ गमी में शोक व्यक्त करने चले गए थे। मैं फ्रेश ही हुआ था की रिंकी भी स्कूल से वापस आयी…!

आज तो मौका भी था और दस्तूर भी इतने दिनों से मैं रिंकी के ऊपर कुछ भी ध्यान नही दे पाया था, उसने सुबह वाला वो ही टॉप और स्कर्ट पहना हुआ था, मैं जब सुबह कॉलेज के लिए घर से निकला था मैं उसके कंधो को स्पर्श करना चाहता था, उसकी पीठ को सहलाना चाहता था. मैं उसके कोमल मम्मों को दबाना चाहता था. मगर मेरे लिए उस स्तर तक बढ़ना तब तक संभव ना था जब तक मुझे उससे कोई इशारा या संकेत ना मिल जाता कि मुझे एसा करने की इज़ाज़त है.

हम एक दूसरे को पहले भी छेड़ चुके थे मगर उतना जितना अनुकूल परिस्थितिओ में स्वीकार्य होता, उससे बढ़कर या कुछ खुल्लम खुल्ला करने के लिए उनका स्वीकार्य होना अति अवशयक था, और जो सब मैं करना चाहता था वो उन हालातों में तो स्वीकार्य नही होता....।

आज वो मुझे भी अकेला देख थोड़ा सा शर्मा गयी, ऐसा तो नहीं था कि इससे ज़्यादा खूबसूरत लड़की मैंने देखी नही थी पर पता नही क्यों उसके चेहरे से मेरी नज़र हटती नहीं थी। उसकी आंखें झुकी हुई थीं और उसकी सांसें तेज़। बहुत डरी हुई थी वो। उसके बालों की एक लट उसकी दाईं आंख को परेशान कर रही थी और वो उसे झटकने की नाकाम कोशिश कर रही थी।उसके यौवन को देख कर ऐसे भी मेरा सांप अकड़ने लगा था ,

पतले से टॉप में वो गदराया हुआ कच्ची उम्र की नव्योवना का बदन, उसकी कमसिन जवानी, कौन नही भोगना चाहेगा ,उसके उरोज तो बस उसके कसे हुए टॉप से बाहर आने को छटपटा रहे थे,और कमर का वो हिस्सा जो टॉप और स्कर्ट से नही ढका था वो मुझे उसे मसलने को आमंत्रित कर रहा था,वो चुपचाप किचन में जाकर चाय बनाने लगी।

मैं अपने कमरे में जाकर अपना अंडरवियर निकाल फेका मुझे पता था कि आज तो बस मुझे रिंकी के जिस्म से खेलना था,ताकि वो तैयार तो हो सके, मैं अपना लोवर पहन कर किचन में चला गया,...।

उम्र की ढलती हुई जवानी के पड़ाव में अब मेरी बॉडी में कुछ फर्क सा आ गया था, और वो स्टेमिना बिस्तर में भी दिखाई देता था, कुछ गठीला तो मेरा बदन पहले भी था पर अब थोड़ी मोड़ी चर्बी भी बढ़ती जा रही थी।

वो भी जानती थी की मैं उसके पीछे ही खड़ा हु पर वो भी ठहरी अपने मनपसंद पुरुष से ठुकराई हुई लड़की जो एक शादीशुदा होकर रिश्ते में उसका सौतेला बाप है। इसलिए अपनी मर्यादा को वो कैसे लांघ सकती थी, मैं उसके पास गया मुझे उसकी तेजी से चलने वाली सांसे महसूस हो रही थी ,वो उत्तेजित थी ,किसी अनजान भय से शायद उसकी सांसो की रफ्तार भी बड़ी हुई थी, मैने अंदाज़ा लगाया वो भी उसी दिशा में सोच रही थी जिसमे मैं सोच रहा था और शायद वो कोई रास्ता जानती थी जिससे कम से कम हम दोनो के बीच शारीरिक संपर्क बढ़ाया जा सकता था.

मैंने उसे दबोचा नही जैसा मेरा दिल कर रहा था ,बल्कि मैं उससे थोड़ा सट गया,मेरा लिंग तो तनकर फूल गया था,वो उसके नितंबो के दीवारों को रगड़ने लगा। वो इससे अनभिज्ञ बनते हुए अपना काम करती रही पर उसकी सांसे उसके मन की स्थिति का बयान कर रही थी ,उसका सीना भी अब ऊपर नीचे होने लगा था,मुझे उसकी ये स्थिति देख बड़ा ही मजा आ रहा था।

आजकल मुझे लोगो को तड़पाने में बड़ा ही मजा आने लगा है…..।

मैं उससे पूरी तरह सट के खड़ा हो गया ,वो अब भी अनजान सी अपना काम कर रही थी ,हालांकि उसके हाथ अब काँपने लगे थे,मैंने बेसिन से पानी की कुछ बूंदे ली और उसके खुले पीठ पर छोड़ दी …

“हाय पापा आप ,क्या कर रहे है …”उसकी आवाज में वासना की मादकता घुली हुई थी ,वो लगभग फुसफुसाने की तरह बोली ,
मैं अब भी चुप था,वो बूंदे लुढ़कती हुई उसके पीठ से उसके कमर तक आ पहुचा था और उसके स्कर्ट के बंधन के बीच जाकर समाप्त हो गया….।

मैंने हल्के उंगलियों से उसके पीठ को छूना शुरू किया और जितने आराम से वो बून्द नीचे आया था उतने ही आराम से अपनी उंगलियों को नीचे ले जाने लगा,,,,,

“हाय ,पापा नही …...ओफ़ ... पापा आ आ आ हा आ आ ब बस …”

उसकी आंखे बन्द हो चली थी सांसे तेज थी और धड़कनों की आवाज मुझ तक पहुच रही थी ,और वो हल्के हल्के मादक आहे भर रही थी,मैं भी उसके कमर पर आकर रुक गया ,और अब अपनी उंगलियों को उसके नाभि की ओर ले जाने लगा,वो जैसे जम गई थी पता नही मेरे उंगलियों में इतना जादू कहा से आ गया की वो अवाक सी बस खड़ी हो गयी थी ,बेसिंग का नल चल रहा था और बर्तन धुलने को रखे के रखे रहे पर वो नही हिल पा रही थी।

मेरी उंगलिया जब उसकी नाभि की गहराइयों का मंथन कर रहे थे तब मैंने उसके चहरे को देखा वो आंखे बंद किये शायद मेरे अगले हमले की तैयारी कर रही थी ,पर मैं भी ठहरा 'घाघ' मैं बस वही रुक गया,कुछ ही देर में मुझे कुछ भी ना करता पाकर वो मुड़ी उसका सर मेरे सीने से टकराया,वो हल्के से अपना सर उठाकर देखी मैं हल्के हल्के मुस्कुरा रहा था जिसे देख कर वो बुरी तरह शर्मा गयी ,लेकिन थोड़े पलो में ही उसके चहरे पर भी एक शर्म भरी मुस्कान फैल गयी….

वो नादान नटखट लड़की सुलभ झूठे गुस्से से मुझे मुक्के से मारी और जैसे ही उसने बर्तनों को हाथ लगाया मैं अपने कमर को नीचे ले जाकर फिर से उसके नितंबो में एक हल्का सा झटका दे दिया …

“आह पापा काम करने दीजिये ना अभी पूरा काम पड़ा है…”।

मैंने अपना हाथ से उसका चहरा आगे किया वो अब भी शर्म से नीचे देख रही थी ,उसके होठो पर एक किस किया पर वो झट से पलट गयी...मैं उसके छोटे छोटे मांसल और भरे हुए उरोजो को अपने हाथो में भरकर भरपूर ताकत से दबाया ,की उसकी एक हल्की सी चीख निकल गयी …

“आआआआआआहहहहहह पापा आप बड़े 'जुल्मी' हो ..”

उसकी ये अदा इतनी सेक्सी थी की मेरे लिंग ने एक और जोर का झटका दिया और मैं फिर से उसे एक धक्का लगा दिया ,मुझे पता था की अगर मैं इस पटक के पेल भी दु तो कोई प्रोबलम नही है पर उससे वो मजा मुझे नही मिलता जो अभी मिल रहा था...।

मुझे उसकी मम्मी कुसुम ने आज तक कभी 'जुल्मी' नही कहा था, ये सेक्सी शब्द मुझे बड़ा भाया... सेक्सी कमसिन जवानी से लबरेज माल को भोगने का मतलब ही क्या हुआ जब वो सेक्सी शब्द ना बोले …।

मैं अब भी अपने हाथो को उसके उरोजो पर हल्के हल्के फिरता रहा और वो चाय का उबाल लेती रही , हल्के हल्के अपनी लिंग को भी उसके नितंबो पर रगड़ता रहा, जिससे मेरा लिंग और अकड़ रहा था और उसे और चहिये था,लेकिन वो कपड़ो में थी और मुझे कोई भी काम जल्दबाजी में करना पसंद नही….।

पता नही क्यो पर उसे किस करने का दिल ही नही कर रहा था सच बताऊ तो बस उसे पटक के चोदना चाहता था, कुसुम से मुझे इतना प्यार मिला था की मुझे किसी और की जरूरत ही महसूस नही होती थी, मैं भावनात्मक और शारीरिक तौर पर पूरी तरह से संतुष्ट था, तो ये मैं क्यो कर रहा हु…..???? इसका जवाब मेरे पास नही था, शायद इसके पीछे वही कारण है जो कारण कुसुम के वो सब करने के पीछे है।

"एक नशा सा है ये, जिसे जितना करो उतना कम, बस तलब बढ़ती जाती है…"

कुसुम की याद आते ही मेरा खड़ा हथियार कुछ मुरझा सा गया,जिसका पता अब रिंकी को भी चल चुका था, मैं वहां से निकलकर सोफे पे आकर बैठ गया , रिंकी मुझे जानती थी और वो इतना तो समझती ही थी की मैं उसकी मम्मी (कुसुम) से दिलोजान से प्यार करता हु,और शायद यही वजह है की मैं सिग्नल क्लियर होने के बावजूद भी रिंकी के साथ पहले भी कई दफा आगे नही बढ़ पाया था,,,,,

अपना काम खत्म कर वो मेरे पास आयी। लगभग एक घंटा बीत चुका था ,और मैं बस खयालो में ही खोया था, रिंकी उस समय में पूरा खाना बना चुकी थी,वो सभी तैयारी पहले ही करके रखती जो जरूरी काम है उसे बहुत जल्दी निपटा देती फिर गैरजरूरी कामो में वक़्त देती है, वो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी,उसके चहरे पर कोई भी खुसी के भाव नही थे,उसका गंभीर चहरा देखकर मुझे भी अच्छा नही लगा,मैं एक झूटी मुस्कान में मुस्काया और वो भी। वो जाने को हुई शायद उसे यहां और रुकना गवारा नही था …

“रिंकी“
वो जाते जाते रुक गयी

“जी पापा “

वो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी और मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी ,मैंने उसे देखा उसका वो मुरझाया चेहरा जो कुछ देर पहले आनंदित था,मैं उसका हाथ पकड़ा और सीधे अपने कमरे में ले गया ,वो मेरे साथ ही खिंची चली आयी ,मैं उसे अपने बिस्तर पर फेक दिया ,वो भी अपने हाथो को फैलाये पड़ी रही ,मैं उसके यौवन को निहार रहा था यही सोचकर की वासना की कोई लहर मेरे शरीर में दौड़े और मैं उसके ऊपर कूद जाऊ पर कोई लहर नही थी।

मैं सच मे एक अजीब से उलझन में था की ये क्या हो रहा है….? ???

उसने मुझे देखा और एक हल्की सी मुस्कान उसके चहरे पर आयी…।

“पापा अच्छाई इतनी आसानी से पीछा नही छोड़ती, मुझे पता है की आप मम्मी से बहुत ज्यादा प्यार करते है, छोड़िए पापा आप अच्छे ही रहिए क्यो ? अपने को बिगाड़ रहे हो ….”

रिंकी की बाते मेरे दिमाग के कोने कोने को हिला कर रख दी ये अजीब सी सच्चाई से उसने मुझे अवगत करा दिया मुझे खुद भी नही पता था की मैं उसकी मम्मी कुसुम से इतना प्यार करता हु….अब तक रिंकी उठकर बैठ चुकी थी मैं भी बिस्तर के एक किनारे पर बैठा हुआ था,वो बड़े ही प्यार से मेरे गालो को सहलाने लगी …

“कितनी लकी (भाग्यवान) है मेरी मम्मी, कि आप सा हबी (हस्बेंड) मिला उन्हें “

मैं उसे देखा मुझे थोड़ी हँसी आ गयी।

“ लेकिन मै लकी नही हू, " ना ही मै इतना अच्छा हू, अगर इतना अच्छा होता तो यहां अभी अपनी बेटी पर मुह नही मार रहा होता। सच कहु तो मै वो हवसी पुरुष हू जो अपनी सौतेली बेटी को वासना के भाव से भोगना चाहता हूँ…”

वो मुझे अजीब निगाहों से देखने लगी।

“मुझे पता है पापा आप क्या चाहते हैं, बस इतना ही कि आपका मेरे प्रति एक सुन्दर व्यवहार हो और ज़रा सा लाड़ प्यार हो !!

पापा यदि पुरुष, महिला पर मोहित नहीं होगा तो फिर किस पर होगा ? हवस की भावना कोई पाप या अपराध नहीं है, महिलाएँ भी पुरुष को हवस की भावना से देखती हैं ! अन्तर केवल स्वभाव का है, महिलाएंँ "पहल" करना पसन्द नहीं करतीं ! हवस सिर्फ़ ज़िस्म की नहीं, चाहत की भी होती, जहाँ दो दिल राजी होते हैं, उसकी आंखे भीग चुकी थी.....!!!

अपनी नादान नटखट खुद की उमर से 15-16 साल छोटी बेटी, की 'बड़ी बड़ी बातें' सुनकर मेरी आंखे आश्चर्य से फैल गयी और मै उसे घूर कर देखने लगा लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों में एक पीड़ा सी छा गयी….

“यहां आ रिंकी मेरे पास बैंठ“ मैने हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बैठा लिया मैं उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे सहानभूति देने की कोसिस कर रहा था… नतीजतन उसकी छाती सामने से उभर गई. उसके छोटे छोटे मांसल उरोज टॉप के उपर से अपना आकार दिखा रहे थे. मेरे घुटने उसके चुतड़ों की साइड्स को टच कर रहे थे और मैं उसके कोमल और जलते जिस्म को अपनी जाँघो के बीच महसूस कर रहा था.

लेकिन एक बात मुझे चुभ रही थी, मेरे मुह से अनायास ही निकल गया…....... तुम इतनी अच्छी हो की तुमको हम दोनों के इस रिश्ते में कोई भी बुराई दिखाई नही देती, लेकिन रिंकी तुझे पता है कि अगर इस रिश्ते की भनक 'उसको' लग गयी तो क्या 'उसको' फिर मेरे प्यार की कोई कदर होगी…..'वो' मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चली जायेगी...??

रिंकी प्यार से मेरे गाल पर अपना हाथ रखकर बोली…

“ 'वो' आपको कभी नही छोड़ेगी , 'वो' भी आपसे बहुत प्यार करती है…”

जैसे उसने 'कुसुम' के संदर्भ में मेरे मन की बात पढ़ ली हो,मैं अपना सर ऊँचा किये उसे देखा वो बस मुस्कुरा रही थी…... और मुस्कराते हुए बोली..!

पापा "ये अभी नही, तो कभी नही" का आखिरी मौका है........!



जारी है.......✍️
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
 
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Sanju@

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जैसे उसने 'कुसुम' के संदर्भ में मेरे मन की बात पढ़ ली हो,मैं अपना सर ऊँचा किये उसे देखा वो बस मुस्कुरा रही थी…... और मुस्कराते हुए बोली..!

पापा "ये अभी नही, तो कभी नही" का आखिरी मौका है........!

मेरी साँसे भारी हो चली थी, मैं अपनी बाहें उसकी पीठ के दोनो और से आगे ले गया और अपने काँपते हाथ उसके ठोस मम्मों पर रख दिए.

वो एक दम से स्थिर हो गयी, बिना हिले डुले उसी तरह बैठी रही. मैं धीरे धीरे सावधानी पूर्वक उसके मम्मों को दबाने लगा, दुलार्ने लगा. वो बस थोड़ा सा कसमसाई. मेरा उत्साह बढ़ गया और मैने उसके टॉप में हाथ डाले और उपर करते हुए उसके नंगे मम्मों को पकड़ लिया. मेरे हाथ नग्न मम्मों को छूते ही उसका जिस्म लरज गया उसने छाती को आगे से उभार दिया. त्वचा से त्वचा का स्पर्श होने पर मेरी साँसे उखड़ रही थी. मैं लाख कोशिस करने पर भी ज़िंदगी भर उस अविश्वसनीय एहसास की कल्पना नही कर सकता था जो एहसास आज मुझे असलियत में उसके मम्मे अपने उत्सुक हाथों में थामने पर हुआ था. उसकी साँसे भी मेरी तरह उखड़ी हुई थी और वो मेरे हाथो मे मम्मे दिए तड़प रही थी.

जितनी तेज़ी से मैने अपनी कमीज़ उतारी उतनी ही तेज़ी से उसका टॉप उतर गया. वो मेरी ओर घूमी और घुटनो के बल खड़ी हो गयी, मैं भी उसके सामने घुटनो के बल हो गया और उसके जिस्म को अपनी बाहों में भर लिया. उसके मम्मे मेरी नग्न छाती पर और भी सुखद और आनंदमयी एहसास दिला रहे थे. हमारे भूखे और लालायित मुँह ने एक दूसरे को ढूँढ लिया और हम ऐसे जुनून से एक एक दूसरे को चूमने और आलिंगंबद्ध करने लगे कि शायद हमारे जिस्मो पर खरोन्चे लग गयी थी. हमारा जुनून हमारी भावनाएँ जैसे किसी ज्वालामुखी की तरह फट पड़ी और हम एक दूसरे के उपर होने के चक्कर में बिस्तर पर करवटें बदल रहे थे.

हमारी साँसे इस हद तक उखड़ चुकी थी कि हमें एक दूसरे से अलग होना पड़ा। ताकि हम साँस ले सके. मुझे बहुत तेज़ प्यास भी महसूस हो रही थी और मुझे पानी पीना था. इतना समय काफ़ी था 'हमारी दहकती भावनाओं को थोड़ा सा ठंडा होने के लिए और वापस ज़मीन पर आने के लिए'.

हम ने फिर से एक दूसरे को चूमना और सहलाना चालू कर दिया, पहले कोमलता से मगर जल्द ही हम उत्तेजना के चरम पर पहुँच गये. हम एक दूसरे की जीभों को काटते हुए चूस रहे थे. हम ने अपनी भावनाएँ अपने जज़्बातों को इतने लंबे समय तक दबाए रखा था कि अब सिर्फ़ चूमने भर से हमें राहत नही मिलने वाली थी. हमें अपनी भावनाएँ अपना जुनून व्यक्त करने के लिए कोई प्रचंड, हिंसक रुख़ अपनाना था. हमें अपने अंदर के उस भावनात्मक तूफान को प्रबलता से निकालने की ज़रूरत थी.


उसकी स्कर्ट मेरी लोवर के मुक़ाबले कहीं आसानी से उतर गयी. जब तक मैं कपड़े निकाल पूरा नंगा हुआ, वो फर्श पर टाँगे पूरी चौड़ी किए लेटी हुई थी. मैं जैसे ही उसकी टाँगो के बीच पहुँचा तो उसने एक हाथ आगे बढ़ा मेरा लंड थाम लिया और उसे अपनी चूत के मुँह पर लगा दिया. उसकी चूत अविश्वसनीय हद तक गीली थी और मेरा लंड किसी लोहे की रोड की तरह सख़्त था और मैं कामोत्तेजना के चरम पर था. मैने रिंकी के कंधे पकड़े और पूरा ज़ोर लगाते हुए लंड अंदर घुसेड़ने लगा.

जैसे जैसे मेरा लंड अंदर जा रहा था उसके चेहरे पर पीड़ा की लकीरे उभरती जा रही थी. कुछ दूर जाकर मेरा लंड रुक गया, मैने आगे ठेलना चाहा मगर वो जा नही रहा था, जैसे बीच में कोई अवरोध था. लंड थोड़ा पीछे खींचकर मैने एक ज़ोरदार धक्का मारा और मेरा लंड उस अवरोध को तोड़ता हुआ आगे सरकता चला गया. मेरी बेटी रिंकी जिसके हाथ मेरे कुल्हों पर थे, उस धक्के के साथ ही उसने मेरे कंधे थाम लिए. उसके मुख से एक घुटि सी चीख निकल गयी. वो सर इधर उधर पटक रही थी.

"क्या हुआ? दर्द हो रहा है? अगर ज़्यादा दर्द है तो मैं बाहर निकाल लूँ"

"बाहर नही निकालना" वो मेरी बात काटते हुए लगभग चिल्ला पड़ी "पूरा अंदर डाल दो, रुकना नही" उसके होंठ भिंचे हुए थे जैसे वो असीम दर्द सहन करने की चेस्टा कर रही थी. मैने जो थोड़ा सा बाकी लंड था वो भी उसकी चूत में उतार दिया. जितना शारीरिक तौर पर संभव हो सकता था मैं उसकी चूत के अंदर गहराई तक पहुँच चुका था. जल्दी ही मैने उसकी चूत में ज़ोरदार धक्के लगाने शुरू कर दिए. मेरी लाडो बिटिया की चूत जितनी टाइट थी उतनी ही वो गीली थी.

कुछ पलों बाद उसके चेहरे से दर्द के भाव धीरे धीरे कम होने लगे. उसने हाथ वापिस मेरे कुल्हो को थाम कर अपनी ओर खींचने लगे ता कि मैं पूरी गहराई तक उसके अंदर अपना लंड डाल सकूँ. उस रात मैने उसे पूरी कठोरता से चोदा. उसे मैने पूरी गहराई तक चोदा. मैने उसे खूब देर तक चोदा. मैने उसे ऐसे चोदा जैसे वो हमारी ज़िंदगी का आख़िरी दिन हो. उसकी चूत से रस निकल निकल कर मेरे लंड को भिगोते हुए फर्श पर गिर रहा था और वो मेरे लंड के ज़ोरदार धक्के खाती आहें भरती, सिसकती मेरे नीचे किसी जल बिन मछली की तरह मचल रही थी.

मैं नही जानता उसका सखलन कब हुआ, हुआ भी या नही हुआ. मगर मैं इतना जानता हूँ मुझे सखलित होने में काफ़ी समय लग गया हालांकि उसकी चूत में लंड डालते ही मुझे अपने लंड पर ऐसी तपिश महसूस हुई कि मुझे लगा मैं उसी पल झड जाउन्गा. मैं उसे इतनी देर तक तो चोद सका कि उसकी अति सन्करी चूत मे अपने लंड के घर्सन से होने वाली सनसनी का आनंद ले सकूँ.

मेरा स्खलन प्रचंड वेग से आया. जब मेरा स्खलन शुरू हुआ तो मैं जितनी कठोरता और जितनी तेज़ी से धक्के लगा सकता था मैने लगाए. आनंद और दर्द से मेरा शरीर कांप रहा था, हिचकोले खा रहा था जब मैने अपनी बेटी रिंकी की चूत के अंदर मन भर वीर्य निकाला और वो मुझसे कस कर चिपकी हुई थी.

बुरी तरह थका मांदा मैं रिंकी के उपर लेट गया. मेरी साँसे उखड़ी हुई थी. उसने मेरी टाँगो के गिर्द अपनी टाँगे कस कर मुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया और मेरी पीठ सहलाते हुए मुझे शांत करने लगी ताकि मैं वापस धरती पर आ जाऊं. आख़िर में जब मैं उसके उपर से हटा और अपने लंड की ओर देखा तो मुझे एहसास हुआ कि उस को इतनी पीड़ा क्यों हो रही थी.

मेरे लंड और उसकी चूत के मुख पर खूब सारा खून लगा हुआ था. मैने अपनी बेटी का कौमार्य भंग किया था. मैने कभी नही सोचा था कि वो अब तक कुँवारी होगी. एक तरफ तो मैं अपनी बेटी को हुई तकलीफ़ के लिए थोड़ा शर्मसार हो गया मगर वहीं मुझे अपने पर गर्व महसूस हुआ कि मैं वो पहला मर्द था जिसने उसे भोगा था जिसने किसी अप्सरा से भी बढ़ कर उस लड़की का प्यार पाया था. मेने अपने होंठ रिंकी के होंटो पर रख दिए और मैं उसे चूमता रहा, उसे सहलाता रहा, उसे दुलारता रहा.

रात भर मेरा और मेरी बेटी रिंकी का चुदाई कार्यक्रम चलता रहा, मैने 3 बार उस को जबरदस्त तरीके से चोदा और फिर थक हारकर दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले सो गए

सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही रिंकी की आंखे खुल गई, रात की घनघोर अंधेरी वासनामयि कालि रात के बाद मौसम अब बिल्कुल साफ हो चुका था, पक्षियों की चहचहाहट साफ सुनी जा सकती थी,

रिंकी खुद को अपने पापा के आगोश में पाकर एकदम से शर्मसार होने लगी, उसके गालों की लालिमा कश्मीरी सेब की याद दिला रहे थे, हम दोनो संपूर्ण नग्नावस्था में बिस्तर पर एक दूसरे की बाहों में सोए हुए थे,

रिंकी ने उठने के लिए अपने बदन को थोड़ा आगे खिसकना चाहा पर अचानक उसके बदन में एक तेज़ सुरसुराहट दौड़ गयी क्योंकि मेरा लंड अभी भी उसकी चुत की फांको के बीच में फसा हुआ था

अपने पापा के लंड का अहसास अपनी चुत के इर्द गिर्द होते ही रिंकी के दिल की धड़कनें तेज़ होने लगी, वो बिस्तर से उठना तो चाहती थी लेकिन अपने पापा की लंड की गर्माहट उसे वही रुके रहने पर मजबूर कर रही थी

रिंकी का मन एक बार फिर से मचलने लगा, वो अपनी भरावदार गांड को मेरे लंड पर होले होले रगड़ने लगी जिससे उसके चुत की गुलाबी अधखुली पत्तियां मेरे लंड पर दस्तक देने लगी,

रिंकी की सांसे उसके बस में नहीं थी, एक बार तो उसका मन किया कि पापा को जगा कर फिर से अपनी चुत की प्यास बुझा ले पर रात के वासना के सैलाब में शर्म और हया का जो पर्दा तार तार हो चुका था, वो अब दोबारा उसे संस्कारो के बंधन की याद दिलाने लगा था।

किसी उफनती नदी के पानी की तरह रिंकी की वासना का भी पानी भी उतर चुका था, खिड़की से हल्की हल्की रोशनी कमरे में आ रही थी और रोशनी के साथ ही रिंकी की बेशर्मी भी दूर होने लगी थी, अपने नंगे बदन पर गौर करते ही रिंकी ने शरम के मारे अपनी आंखों को बंद कर लिया, अब वो धीरे धीरे अपनी गांड को हिलाती हुई पापा की बाहों के चंगुल से आज़ाद होने की कोशिश करने लगी, क्योंकि वो पापा के जगने से पहले ही कमरे से चली जाना चाहती थी नहीं तो वो रात की हरकत के बाद अपने पापा से नजरें नहीं मिला पाती,

थोड़ी ही देर की कसमसाहट के बाद रिंकी ने खुद को पापा की बाहों से आज़ाद कर लिया, उसका नंगा खूबसूरत बदन और चुत की खुली फांके रात की कारस्तानी को चीख चीख कर बता रही थी ,

रिंकी ने एक बार नज़रे अपने नंगे जिस्म पर घुमाई तो कल रात का मंज़र याद करके उसने अपने चेहरे को अपनी कोमल हथेलियों से छुपाने की नाकाम सी कोशिश की, अब उस कमरे में रुकना उसके लिए मुश्किल हुआ जा रहा था क्योंकि उसको डर था कि कहीं वो दोबारा हवस की शिकार होकर अपने पापा पर न टूट पड़े, इसलिए वो तेज़ तेज़ कदमो से चलती हुई कमरे से बाहर निकली और नीचे जाकर अपने के रूम में बाथरूम में घुस गई,

उसने अपने बदन को पानी की फुंहारो से पोंछा, और अपनी चुत को भी रगड़ रगड़ कर साफ किया, अब उसकी चुत के अंदर से लालिमा की झलक उसे साफ दिखाई दे रही थी, जिसे देखकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई क्योंकि ये लालिमा उसके कली से फूल बनने की निशानी जो थी


जारी है...... ✍️
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है आखिर प्रोफेसर साहब ने अपनी बेटी का कौमार्य भंग करके उसे कली से फूल बना दिया
 
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भी
उसने अपने बदन को पानी की फुंहारो से पोंछा, और अपनी चुत को भी रगड़ रगड़ कर साफ किया, अब उसकी चुत के अंदर से लालिमा की झलक उसे साफ दिखाई दे रही थी, जिसे देखकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई क्योंकि ये लालिमा उसके कली से फूल बनने की निशानी जो थी

लगभग आधे घण्टे में रिंकी नहा धोकर बिल्कुल फ्रेश हो चुकी थी, अब उसके पेट मे चूहे कूदने लगे क्योंकि कल रात तो बाप बेटी ने खाना खाया ही नही था, इसलिए वो फटाफट सुबह का नाश्ता तैयार करने के लिए किचन में घुस गई।

किचन में काम करते हुए उसका ध्यान बार-बार रात वाली घटना पर केंद्रित हो रहा था, रह रह कर उसे अपने पापा का मोटा लंड याद आने लगा जिससे उसे अपनी चुत में मीठे-मीठे से दर्द का अहसास होने लगा,

रात भर जमकर चुदवाने के बाद उसे इस बात का एहसास हो गया था कि उसके पापा एक दमदार और तगडे लंड के मालिक है , उनके जबरदस्त धक्को को याद करके रिंकी मन-ही-मन सिहर रही थी,

वो नाश्ता बनाते बनाते रात के ख्यालो में खो गई "कितना मोटा लंड है पापा का, मेरी चुत की कैसे धज्जियां उड़ा कर रख थी, क्या जबरदस्त स्टैमिना है उनका, हाय्य मन तो करता है कि अभी ऊपर जाकर उनके मोटे लंड को दोबारा अपनी चुत में घुसेड़ लूं, इसस्ससस कितने अच्छे से चोदते है ना पापा, मन करता है कि बस दिन रात उनके मोटे लंड को अपनी चुत में ही घुसाए रखूं"

लेकिन समस्या ये थी कि ये सब वो करे कैसे? " रात को तो ना जाने उसे क्या हो गया था और जो हिम्मत उसने दिखाई थी वो दिन के उजाले में कैसे दिखाए, वो ऐसा क्या करें कि उसके पापा खुद एक बार फिर अपने लंड को उसकी चुत में डालने को मजबूर हो जाये,

पर थोड़ी हिम्मत तो उसे दिखानी ही पड़ेगी वरना बना बनाया खेल बिगड़ने में वक्त नही लगेगा, वैसे भी रात को दो-तीन बार तो अपने पापा का लंड अपनी चुत में डलवा कर चुदवा ही चुकी थी तो अब शर्म कैसी ,
एक बार हो या बार बार , हो तो गया ही, और अब अगर उसे चुदवाना है तो रात की तरह अपने पापा को उकसाना ही होगा ताकि वो फिर से चुदाई करने के लिए मजबूर हो जाये"

रिंकी इसी उधेड़बुन में लगी थी,

नहाने के बाद रिंकी ने एक बेहद पतले कपड़े का शॉर्ट truser पहना था गहरे नीले चटकदार रंग के इस के ऊपर उसने एक छोटी सी टीशर्ट डाली हुई थी, पर आज भी उसने अंदर ब्रा नही पहनी हुई थी, शॉर्ट्स के अंदर नीले कलर की ही थोंग वाली पैंटी पहनी थी जो पीछे से उसकी भरावदार गांड में कही ओझल सी हो गई थी, ध्यान से देखने पर उसके गांड और उभरी हुई चुंचियों को साफ साफ महसूस किया जा सकता था,


दूसरी तरफ मै अब नींद से जग चुका था, मैने जब खुद को बिल्कुल नंगा बिस्तर पर पाया, तो मेरी आँखों के सामने रात वाला मंज़र घूम गया और होंठो पर एक गहरी मुस्कान आ गयी, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि आखिर मैने अपनी बेटी की फुलकुंवारी चूत का रस चख लिया था, उसे कली से फूल बना दिया था, मेरे लिए तो ये सब एक सपने की तरह प्रतीत हो रहा था, जल्दी ही रात की खुमारी को याद कर मेरे लंड में जोश भरता चला गया, अपने लंड में आए तनाव को देखकर मन बहकने लगा था, मै सोचने लगा कि कि अगर इस समय रिंकी इधर होती तो, जरूर एक बार फिर से उसे चोद कर अपने आप को शांत कर लेता, एक बार फिर उसकी नाजुक चुत को अपने हबीबी लंड से भर देता ,

लेकिन रिंकी तो पहले ही नीचे जा चुकी थी इसलिए मै भी बस हाथ मसल कर रह गया, रिंकी अब भी किचन में ही काम कर रही थी, और मै सीधा बाथरुम के अंदर चला गया, तकरीबन 30 मिनट में नहा धोकर बिल्कुल तैयार था, मैने अपने फोरमल कपड़े पहनकर ओर सीधा नाश्ता करने के लिए किचन कि तरफ चल पड़ा

मै अभी किचन की तरफ जा ही रह था कि अचानक से डोर बैल बजी मैने दरवाजा खोला तो मेरे माता पिता रिश्तेदारों के घर से वापस आ गये थे, मैने उन्हें बाल्टी भर कर दरवाजे पर ही शुद्धि स्नान करने के लिए पानी दिया, तद् उपरांत वो दोनों घर के अंदर आ कर अपने कमरे में चले गए।

जैसे ही मै किचन में दाखिल हुआ, रिंकी को मेरे कदमो की आहट होते ही उसकी जाँघो के बीच सुरसुरी सी मचने लगी, उसे पता था कि पापा की नजर उस पर ही टिकी होगी , लेकिन वो पीछे मुड़कर देखे बिना ही अपने काम मे मगन रही,

इधर उसकी सोच के मुताबिक ही मेरी नजरें रिंकी पर ही गड़ी थी, मै आश्चर्यचकित होकर अपनी बेटी को ही देख रहा था रिंकी की पीठ मेरी तरफ थी, अपनी बेटी को पारदर्शी शॉर्ट्स टीशर्ट में देख कर मै हैरान हो रहा था क्योंकि आज से पहले वो इस तरह पारदर्शी शॉर्ट्स टीशर्ट में कभी भी नजर नहीं आई थी। मुझे समझ आ रहा था लड़की अपनी नग्नता का प्रदर्शन सिर्फ अपने मन पसन्द पुरुष को रिझाने के लिए ही करती है।

मेरे माता पिता की मौजूदगी में इस वक्त मेरे लिए कुछ भी करना मुनासिब नही था। मैने रिंकी को गुड मॉर्निंग कहा और नाश्ता की प्लेट लेकर वापस हॉल में आ गया। कुछ देर में मेरे मम्मी पापा भी आकर मेरे साथ नाश्ता करने लगे। दस पंद्रह मिनिट इधर उधर की करने के बाद मै कॉलेज के लिए निकल गया।

वो रात और उसके बाद की रातें हमारी रातें बन गयी. जब मेरे मम्मी पापा सो जाते तो मैं और मेरी बेटी रिंकी चुदाई करते। नियमित तौर पर शारीरिक ज़रूरतें पूरे होने का फ़ायदा मुझे पहले हफ्ते में दिखाई देने लगा. मैं अब तनावग्रस्त नही था और रिंकी से चुदाई करके मैं जैसे एक नयी तरह की उर्जा महसूस करने लगा था. मैं पूर्णतया संतुष्ट था, ना सिर्फ़ शारीरिक तौर पर संतुष्ट था बल्कि भावनात्मक तौर पर भी और मेरी बेटी रिंकी भी हम दोनो ही हर तरह से खुश थे.

हमारे बीच अब आपस में बात करने में, खाना खाने में, हर काम में उत्साह होता था जिसे मेरे मम्मी पापा ने भी महसूस किया था. अब हम बाप बेटी का एक दूसरे के साथ समय बिताना बेहद मज़ेदार और रोमांचित होता था.

बहुत जल्द हम एक दूसरे के बदन की सुगंध, एक दूसरे की पसंद-नापसंद और आदतों के आदि हो गये थे. हमारे अंतरंग पलों में मेरी बेटी रिंकी का साथ कितना सुखद कितना आनंदमयी होता था, मैं बयान नही कर सकता. मुझे उसे अपनी बाहों में भर कर सीने से लगाना, उसके छोटे छोटे मम्मों को अपनी छाती पर महसूस करना बहुत अच्छा लगता था।

मुझे ये भी एहसास था कि मेरी ज़िंदगी में अकेली रिंकी नही बल्कि उसकी मम्मी कुसुम भी थी। बरबस मेरा ध्यान दोनो के जिस्मो में अंतर पर गया. मेरी बीबी कुसुम का जिस्म मेरी बेटी रिंकी के मुक़ाबले ज़यादा ताकतवर और ज़्यादा बड़ा था. उसके उरोज ज़्यादा बड़े और भारी थे, उसके चूतड़ ज़्यादा विशाल थे और रिंकी के मुक़ाबले उसकी कमर थोड़ी बड़ी थी.

लेकिन हर अनुपात से हर नज़रिए से मेरी बेटी रिंकी अपनी मम्मी कुसुम के मुक़ाबले ज़्यादा खूबसूरत थी. और यही वजह थी दोनो के प्रति मेरी भावनाओं में अंतर की. कुछ समानताएँ मौजूद थी मगर असमानताएँ बहुत बड़ी थी. यह बात नही थी कि मैं अपनी बीवी को बेटी से ज़्यादा चाहता था या नही. मगर मैं अब अपनी बीवी कुसुम के लिए उत्तेजित नही होता था. मैं अभी सिर्फ़ और सिर्फ़ रिंकी को ही प्यार करना चाहता था.


और एक इतवार की दोपहर जब मै अपनी बेटी के आगोश में था तभी मेरा मोबाइल बज उठा. लेकिन अपनी बीवी कुसुम का नंबर देख कर मेरा मुंह बन गया और तुरंत मैंने फोन काट दिया. 10 सैकंड भी नहीं गुजरे थे कि फिर से फोन आ गया. झल्लाते हुए मैंने फोन उठाया, ‘‘यार 10 मिनट बाद करना अभी मैं व्यस्त हूं. ऐसी क्या आफत आ गई जो कौल पर कौल किए जा रही हो?’’

मेरी बीवी यानी कुसुम देवी हमेशा की तरह चिढ़ गई, ‘‘यह क्या तरीका है अपनी बीवी से बात करने का? अगर पहली कौल ही उठा लेते तो दूसरी बार कौल करने की जरूरत ही नहीं पड़ती.’’

‘‘पर आधे घंटे पहले भी तो फोन किया था न तुम ने, और मैंने बात भी कर ली थी. अब फिर से डिस्टर्ब क्यों कर रही हो?’’

‘‘ सब समझ रही हूं, अभी तुम्हें मेरा फोन उठाना भी भारी क्यों लग रहा है. लगता है कि मेरे फूल पर कोई मधुमखी मडरा रही है.... वो भड़कती हुयी बोली।

जाहिर है, मेरे अंदर गुस्सा उबल पड़ा . और मैंने झल्ला कर कहा, ‘‘मैंने तो कभी तुम्हारी जिंदगी का हिसाब नहीं रखा कि कहां जाती हो, किस से मिलती हो?’’

‘‘तो पता रखो न अरुण … मैं यही तो चाहती हूं,’’ वह और ज्यादा भड़क कर बोल पड़ी.

‘‘पर यह सिर्फ पजेसिवनैस है और कुछ नहीं.’’

‘‘प्यार में पजेसिवनैस ही जरूरी है अरुण , तभी तो पता चलता है कि कोई आप से कितना प्यार करता है और बंटता हुआ नहीं देख सकता.’’

‘‘यह तो सिर्फ बेवकूफी है. मैं इसे सही नहीं मानता कुसुम, देख लेना यदि तुम ने अपना यह रवैया नहीं बदला तो शायद एक दिन मुझ से हाथ धो बैठोगी.’’

मैंने कह तो दिया, मगर बाद में स्वयं अफसोस हुआ. मैने महसूस किया जैसे उसके प्रति अपनी वफ़ा और अपनी ईमानदारी के लिए मुझे उसको आस्वश्त करना चाहिए था.

’’ ‘‘प्लीज कुसुम , समझा करो.
उधर से फोन कट चुका था. मैं सिर पकड़ कर बैठ गया.



जारी है...... ✍️
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है अरुण अब हर रोज अपनी बेटी के साथ संबंध बना रहा है जिससे अब वह तनावग्रस्त भी नहीं रहता है लेकिन रिंकी और अरुण के बीच बने इस संबंध से कुसुम और अरुण के बीच टकराव हो रहा है
 

Sanju@

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’’ ‘‘प्लीज कुसुम , समझा करो.
उधर से फोन कट चुका था. मैं सिर पकड़ कर बैठ गया.

मैने मेरे साथ लेटी हुई अपनी बेटी पर नज़र डाली तो मैने अपने अंदर अपराधबोध महसूस किया जैसे वो जानती हो कि मैं क्या सोच रहा था और मुझे वैसा नही सोचना चाहिए था क्योंकि वो अब अपनी मम्मी की जगह ले चुकी थी.

रिंकी की निगाहें मुझ पर टिकी थीं. निगाहें चुराता हुआ मैं दूसरी तरफ मुह कर बैठ गया. मुझे स्वयं पर आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा कैसे हो गया?

पापा तो फिर क्या सोचा है, आपने...???

क्या मतलब...??? मैने आश्चर्य से पूछा।

मतलब ये कि आपको अब मेरी मम्मी कुसुम से ज्यादा प्यार है या मुझसे.. ???

गलतफेहमी है तेरी , मुझे तुझसे और तेरी मम्मी दोनों से एक जैसा प्यार है, इसलिए मै कल तेरी मम्मी से मिलने के लिए उसके पास जा रहा हूँ।

मैने और मेरी बेटी ने उस रात कुछ बुझे हुए अनमने मन से प्यार किया. वो इस बात से नाखुश थी कि मुझे उसे छोड़ कर कल उसकी मम्मी के पास जाना पड़ रहा है। और जिसकी वजह से हम दोनो को एक दूसरे के प्यार के बिना रहना होगा.

अपनी बाहों में लेते हुए मैने उसे धृड़तापूर्वक बताया कि मुझे उसका इस तरह परेशान और व्याकुल होना बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था . यह एक और बदलाव था जिसकी हम दोनो को आदत डालनी थी और उस हिसाब से खुद को व्यवस्थित करना था. उसे मेरी बात समझ आ गयी थी शायद इसीलिए इसके बाद उसके चुंबनो में फिर से गर्माहट लौट आई थी. वो अपनी व्यथा भूलकर वापस अपने रंग में आ गयी थी.

लेकिन उसके चेहरे पर एक अंजानी शंका का भय का भाव था जिसे मैं समझ नही सकता था मगर मुझे उस समय इसकी कोई परवाह भी नही थी. मैं बस कुछ साबित करना चाहता था और हमारे बीच संबंध बनाने के बाद उस रात पहली दफ़ा ऐसा हुआ था जब मैने उसे अपने लिए, अपने मज़े के लिए ज़्यादा चोदा था, ना कि जितना उसके मज़े के लिए, जैसा मैं पहले करता था और जैसे ही मेरा स्खलन हुआ मेरा सारा दम निकल गया. उसके हाव भाव से जाहिर था वो थोड़ी असमंजस में थी, उलझन में थी मगर मुझे अब थोड़ी देर सोना था क्यॉंके सवेरा होने में ज़्यादा वक़्त नही बचा था।

अगले दिन शाम में अपनी कॉलेज की ड्यूटी खतम कर सीधा दिमापुर की ओर निकल गया। कुछ 1-2 घंटो के सफर के बाद मै अपने गंतव्य पहुँचा और वहा से सीधा ऑटो लेकर कुसुम के क्वार्टर के पास लगे बड़े से नीम के पेड़ के नीचे खड़ा होकर उसका ऑफिस से वापस आने का इंतजार करने लगा। चूंकि मुझे ये अच्छे से पता था वो अभी ऑफिस में होगी और मै उसे सरप्रिज़ देना चाहता था।

करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद मुझे नयी नवेली लाल रंग की अल्टो कार मेरी दिशा में आती हुई दिखाई दी। निशिचित् ही उसमे कुसुम ही होगी और मै उसे एकदम से उपस्थित होकर सर्परिजे दूंगा ये सोच कर मै थोड़ा सा पेड़ की आड़ में छिप गया।

जैसे ही कार रुकी और उसमे से जब कुसुम निकल कर बाहर आई तो मै खुद सर्परिसे हो गया। कुसुम के इस नये अवतार को देख मेरी आँखे फटी रह गयी। मै ठगा सा उसे बस देखता रह गया.।


आज कुसुम ने एक ब्लैक टॉप और ब्लू जीन्स पहने हुई थी ,उसके सभी शेप बड़े ही खूबसूरत लग रहे थे, मेरी कुसुम साड़ी से सलवार कुर्ता और अब जीन्स तक आ चुकी थी ,कोई भी बड़ी बात नही की कुछ दिनों में वो स्कर्ट वगेरह भी पहनने शुरू कर दे, वो अपने साथ एक बेग भी ले जाती थी पता नही उसमे क्या था, शायद उसे भी चेक करू कभी….कुसुम के उभरे हुए कर्व को देखकर मैं भी मोहित हो गया , कुसुम ने गाड़ी लॉक की और क्वाटर के बाहर लगे छोटे से दरवाजे को खोलने वाली थी, जब मैंने उसे आवाज दी…... कुसुम...!

मेरी आवाज सुन कुसुम ऐसे चौंकी, जैसे चोरी करते हुए रंगेहाथ पकड़ ली गई हो.
वो मुंह पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘हाय दैया, तो आप हो...??

मैने मुस्कुराहट देते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है जान, मेरा आना तुमको अच्छा नहीं लगा?’’

कुसुम हैरानी से जल्दी से मेरे पास आयी पर मैं तब तक उसकी नयी कार के पास आ कर उसे निहार रहा था, उसने मुझे देखा मैं थोड़ा सीरियस सा फेस बना कर वही खड़ा था , कुसुम जरूर ये समझ चुकी थी की कुछ तो गड़बड़ है शायद उसे ये लग रहा था की उसका ये मुझे बिना बताये जीन्स पहनना मुझे पसंद नही आया होगा या और कुछ , ऐसे भी उसका जीन्स बहुत ही कामुक लग रहा था,पिछवाड़े का पूरा प्रदर्शन और साथ ही उसके कसे हुए स्तनों की चोटी।

ऐसे भी उसके स्तन बहुत ही बड़े और आकर्षक थे… कुसुम इस अहसास से अपनी नजर झुककर मेरे सामने खड़ी हो गयी …...मैं कुछ बोलता उससे पहले ही बोलने लगी…

“जान मुझे माफ कर दो मैंने आपसे बिना पूछे ही ये कपड़े पहन लिए मैं इसे अभी चेंज करती हु..”

आज मुझे पता चला की अगर सुंदर हॉट वाइफ अथवा लड़की कसे हुए कपड़े पहन ले तो क्या होता है साले सभी ठरकी लोग हमे ही देख रहे थे और हमे कहना गलत है क्योकि वो सिर्फ कुसुम को ही देख रहे थे…….।

मैंने भी धयन दिया तो मैं भी थोड़ा चौक गया क्योकि मेरी कुसुम का कसा हुआ हुस्न इस वक्त देखने के लायक ही था ,उसके स्तन ऐसे भी बहुत ही बड़े और कसे हुए थे वो पूरे अपने सुरूर में किसी चोटी की तरह से दिखाई पड़ रहे थे ,लेकिन मुख्य आकर्षण तो उसके जीन्स में कसे हुए पिछवाडे (नितंब) थे जो इतने टाइट और इतने गजब के थे की मुझे भी एक बार लगा की साला छोड़ो सब को और घुस जाओ कुसुम को लेकर उसकी अल्टो कार में ,

कुसुम के उभरे हुए कूल्हे उसके पिछवाड़े के दोनो फांकों को साफ साफ अलग कर रहे थे थोड़ी देर में ही उसने मुझे भी उसे देखता पाया और खुद ही शर्मा गयी ,

“चलो घर के अंदर चलते है …….”

“अरे क्या हुआ ,”

“अरे अब अंदर चलो प्लीज् “

“बताओ तो सही की क्या हुआ है “

“नही सभी मुझे ऐसे देख रहे है तो आपको बुरा लगेगा और ये बहुत ही टाइट है ,मैं इसे चेंज कर लेती हु “

मेरे चहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई , भगवान सभी को इतनी समझदार बीवी दे ,........'बस वो आपकी ही रहे किसी और की नही' मेरी बीवी में हर वो चीज थी जो एक मर्द चाहता है, पर बस एक चीज ऐसी थी जो शायद की कोई मर्द चाहे ,जी हाँ अपनी पत्नी का किसी दूसरे मर्द से जिस्मानी संबंध……।

“अरे जान अगर तुम यहाँ ऐसा शर्माओगी तो ऑफिस में काम कैसे करती होगी, वहां भी तो लड़के आते होंगे ना “

तब तक वो घर की ओर मुड़ चुकी थी ,

“अरे वहां की बात अलग है पर यहां आपके सामने ये सब अच्छा नही लग रहा।

मेरे सामने अच्छा नही लग रहा मतलब मेरे पीछे सब अच्छा लगता हैं , वहां रे मेरी कुसुम …….

“आप बुरा मत मानना पर आपके सामने मुझे कोई घूरे ये मुझे अच्छा नही लगता,और आप ना हो तो मुझे कोई भी फर्क नही पड़ता की कौन क्या कर रहा है………क्या देख रहा है.....क्या कह रहा है??????

"मैं बस कुसुम पर शक ही कर सकता था अभी तक, मैंने देखा तो नही था की वो क्या करती है, और जो देखा था, वो बहुत ही कम था"

और हम घर के अंदर पहुँच गए मैंने उसे इशारे से दरवाजा बंद करने को कहा ,

बैठो, मैं नहा कर आती हूं...’’

इतना कह कर कुसुम फिर बाथरूम में नहाने को मुड़ी, लेकिन मैने उस का हाथ पकड़ कर रोक लिया.

उस समय मेरी आंखें लाल सुर्ख हो रही थीं और सारा बदन जोश के मारे कांपा जा रहा था. मैने आव देखा न ताव तुरंत कुसुम को अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘जो नहाना था, वह तुम सुबह ही नहा चुकी हो, इसलिए अब तुम्हें मैं नहलाऊंगा...’’

कुसुम सिकुड़ते हुए बोली, ‘‘बड़े बेशर्म हो जी आप ... हटो, मुझे कपड़े तो बदलने लेने दो...’’

‘‘जल्दी क्या है... फिर पहन लेना कपड़े. पहले उतारने दो, इतनी गरमी है, थोड़ी देर ऐसे ही बदन ठंडा होने दो. फिर जो नहाना हम कराएंगे, उस में कपड़ों का क्या काम...’’ कहते कहते मैने कुसुम को और जोर से भींच लिया.

वो कुछ देर तक मेरी बाहों में कसमसाती रही और मौका पाकर छिटक कर मुझसे दूर भाग कर बाथरूम में घुस गयी और दरवाजे बंद करते हुए बोली जो करना है वो रात को करना।

आज की रात मेरे लिए मेरे लिए बड़ी बेताबी की रात होने वाली थी, कुसुम रात में थोड़ी सुस्त दिखी,

“क्या हुआ जान,आज बड़ी सुस्त लग रही ही,काम से थक गई हो लगता है,”

मैने उसे अपने ऊपर खिंचते हुए कहा…वो मेरी बांहो में मचल कर समा गई..

“हा जान काम बहुत हो जा रहा है,इतना काम करने की आदत नही है मुझे...दिन भर काम करने वालो से कचकच, भला हो ऑफिस बॉय का वो पूरा दौड़भाग के काम सम्हाल लेता है वरना मैं अकेली तो …..उफ्फ्फ जल्दी से मेरा प्रमोशन के साथ वापस अपने शहर में ट्रांसफर हो जाय तो थोड़ा आराम आएगा”

कुसुम मेरे सीने में मचलने लगी,मैं उसके होठो को अपने उंगलियों से सहलाते हुए एक उंगली उसके मुह में डाल दिया वो हल्के से उसे चूसने लगी,


मेरी कुसुम बला की खूबसूरती, हर एक अंग जैसे बड़ी मेहनत से तराशा गया हो,होठो पर प्यारी ही मुस्कान और आंखों में बेपनाह प्यार, उसके नजरो की नजाकत से ही दिल मे एक सुकून भर जाता था, उसने अपनी मदभरे नयनो से मुझे देखा, इतनी चाहत इतना प्यार….

मैं उसे देखकर खुद को रोक ही नही पाया, और उसके आंखों पर अपने होठो को रख दिया, उसके चेहरे की मुस्कान और भी गहरा गयी.. और वो फिर से मचलती हुई मेरे सीने से लग गयी…

आज मैं इससे ज्यादा बढ़ना भी नही चाहता था बस चाहता था कि उसे महसूस करू, अपनी रूह तक उसकी कोमलता को पहुचने दु...उसके कोमल अंगों को बस हल्के हाथों से सहला रहा था,और वो भी मेरे सीने में सर रखे बस सो रही थी ,मैंने भी अपनी आंखें बंद कर ली और अपने हाथों को उसके शरीर से लिपटा कर गहरी सांसे ले अपनी जान को महसूस करने लगा...ना जाने कब हम दोनों ही नींद के आगोश में चले गए थे..

जब नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी कुसुम अब भी उसी तरह मेरे ऊपर लेटी हुई थी मैं फिर से उसे निहारने लगा,वो सौंदर्य की प्रतिमा सोते हुए भी इतनी प्यारी लग रही थी….

अचानक मुझे याद आये वो शब्द जो कुसुम ने मेरे बाहों के आगोश में कहे थे "उफ्फ्फ जल्दी से मेरा प्रमोशन के साथ वापस अपने शहर में ट्रांसफर हो जाय तो थोड़ा आराम आएगा”

मैंने फिर कुसुम के सुकून की नींद में सोते हुए चेहरे को देखा … एक अनजानी सी खुशी ने मुझे घेर लिया, पर साथ ही एक अनजाना सा दुख भी था…।


जारी है.... ✍️
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अचानक मुझे याद आये वो शब्द जो कुसुम ने मेरे बाहों के आगोश में कहे थे "उफ्फ्फ जल्दी से मेरा प्रमोशन के साथ वापस अपने शहर में ट्रांसफर हो जाय तो थोड़ा आराम आएगा”

मैंने फिर कुसुम के सुकून की नींद में सोते हुए चेहरे को देखा … एक अनजानी सी खुशी ने मुझे घेर लिया, पर साथ ही एक अनजाना सा दुख भी था…।


जब तक कुसुम की आँखे नही खुली तब तक मै उसे ही देख रहा था और जब वो जागी तो मेरी निगाहों ने एक प्यारी मुस्कान की जगह ले ली, हम दोनो ही एक दूसरे के चहरे को देख रहे थे।

सोकर उठने के बाद कुसुम थोड़ी ताजगी महसूस कर रही थी. वो बाथरूम चली गई, मै टीवी देखने लगा। थोड़ी देर बाद बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई। मैं उसके हुस्न को देखता ही रह गया,
उसके गुलाबी साड़ी से झलकता उसका यौवन शायद किसी को भी दीवाना बना देता पर मेरे लिए तो वो प्यार की एक मूरत थी जिसकी मैं पूजा करता था,

पिंक साड़ी में पिंक टाइट ब्लाउज़ ,जिससे उसके तने स्तनों की सुंदरता झांक रही थी,और नंगा पेट जो दूधिया सा चमक रहा था,भरा हुआ होने के कारण वो बहुत ही कामुक लग रहा था,कमर से नीचे भी उसने बड़े सलीके से साड़ी को मोड़ा था,उसके जिस्म का हर मोड़ दिखाई दे,साड़ी में भी कमाल की हसीना लग रही थी,मांग में हल्का सिंदूर था और हाथो में कुछ चूड़ियां,

चहरा ………………..चहरे पर नजर जाते ही सब कुछ भूल जाने का दिल करता ,वो मासूमियत और प्यारी सी हँसी,बालो की कोमलता और होठो की वो शरारते,मेरी जान किसी जन्नत के हूर से कम ना थी,बड़ी काली आंखों में सब कुछ लुटाने का समर्पण वो प्यार की दरिया थी,और मैं एक प्यासा ….

वो मेरे ऊपर झुकी मैं उसके जिस्म को हाथ लगाता उससे पहले ही उसने मुझे रोक दिया और पलटकर दर्पण के पास गई,वो अपने बेग से सिंदूर की डिबिया और अलमारी से चूड़ियां निकालने लगी,पिक कलर की ही चूड़ियों से उसने अपने हाथो को भर लिया और माथे में लगे हल्के सिंदूर को उसने गाढ़ा कर लिया जब वो पलटी तो उसके बाल खुले हुए थे और वो कयामत की सुंदर लग रही थी ,मेरा मुह उसे देखकर ही खुल गया जो खुला ही रहा ,वो मुझे ऐसे देखता पाकर कुछ शर्मा गई और धीरे से मेरे पास आकर मेरे सामने खड़ी हो गई, मैं, मेरा सर उसकी कमर के पास था,वो नीचे देखती हुई खड़ी थी ,मेरा मुह अनायास ही उसके नंगे नाभि पर चला गया और.. “आह “


“मुझे अब थोड़ी देर बाद वापस भी जाना है” जब मैने उससे ये कहा, तो मैंने उसके चहरे का रंग बदलते देखा वो कुछ मायूस सी हो गई ,

वो मेरा हाथ खिंचते हुए सीधे बैडरूम में ले गई जैसे मुझसे ज्यादा उसे जल्दी हो ,मैंने ना ही अभी हाथ-पैर ही धोया था ना ही कुछ खाया था,वो सीधे मुझे बिस्तर में ले जाकर बिठा दी और मेरा हाथ अपने हाथो में लेकर बोली...!

सुनो ना, मुझे तुम्हे एक बात बतानी है...???

बोलो ना क्या बात हुई,

थोड़ी देर खुद को संभालने के बाद कुसुम ने जवाब दिया.. ... मैने बाहर खड़ी गाड़ी के एवज में जिस टेंडर की गोपनीय राशि जिस ठेकेदार को गुपचुप तरीके से बताई थी, वो टेंडर निरस्त हो गया है, और वो ठेकेदार आये दिन ऑफिस में आकर अपने पैसे वापस मांग रहा है।

अरे ये तो बहुत बुरा हुआ, तो फिर अब क्या होगा....??? मैने चोंकते हुए पूछा.... ।

वैसे होना.... जाना कुछ नहीं है, मैने उसे गाड़ी वापस देने का फैसला किया है, लेकिन अब मुझे ऑफिस में सब घूस खाने वाली समझते है, इसलिए मैने अब फैसला किया है कि अब मुझे यहाँ से ट्रांसफर करा लेना चाहिए... इसी हफ्ते के आखिर में एस डी एम शर्मा सर रीटायर होने वाले है, और उन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि रिटाइयर मेंट् से पहले मुझे स्टेनो की पोस्ट पर प्रमोट कर जिला डी एम ऑफिस, नागालेण्ड ट्रांसफर कर देंगे.....कुसुम ने गंभीरता से कहा।

तो ये तो ख़ुशी की बात है... मैने झूठी मुस्कान देते हुए उससे कहा।

अरुण मैने कभी सोचा न था कि जिंदगी इस तरह भी करवट बदलेगी. ‘ब्रेन विद ब्यूटी’ का टैग हमेशा मेरे साथ चिपका रहा. आज यह टैग मुझे खोखला सा प्रतीत हो रहा है. कितनी तकलीफो को झेलने बाद मैने कितना कुछ हासिल किया. बस एक आखिरी महत्वकान्छा एक बड़े से सरकारी दफ्तर में उच्च पद पर आसीन होने की. पर क्या ये सब एक सुखी वैवाहिक पारिवारिक जीवन की गारंटी दे सकते हैं?.. . नही ना..!
सो अब मैने ये तय कर लिया है, आगे से अब मै अपनी नोकरी पूरी ईमानदारी से करूँगी, और साथ साथ अब अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाऊँगी।

ये सुनकर मै आश्चर्य से कुसुम का मुह ताकने लगा। अब मुझ को सचमुच काफी टेंसन होने लगी थी, पर कुसुम तो बस बोले ही जा रही थी।

वैसे भी , मेरे पापा की तबियत भी अब खराब रहती है, मेरी मम्मी भी बोल रही थी कि उन्हें डॉक्टर ने कम्पलीट रेस्ट पर रहने के लिए कहा है, अपने शहर, अपने घर पर रहूँगी तो उनसे भी मिलती रहूँगी। वैसे भी रिंकी के भी कॉलेज अगले हफ्ते से खुल जायेंगे, वो भी कॉलेज जाने लगेगी घर के काम करेगी तो उसकी क्लास और पढाई भी डिस्ट्रब होगी। आपकी मम्मी मेरी सास से भी इस उम्र में घर गृहस्थी के काम, और भाग दौड़ नही हो पाएगी, इसलिए मुझे उनकी मदद करने के लिए भी अब अपनी ससुराल मै ही अपनी सास ससुर के साथ रहना जरूरी है,

'मुझे उसकी बातों में एक बेटी, बहु और एक माँ की ममता साफ साफ दिखाई दे रही थी, और साथ साथ एक डर भी था, उसके द्वारा किये गए भृष्टाचार के भांडा फूटने का।

अब मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे लिए आने वाला समय बहुत ही दुखदायी होने वाला है' और मैने उसे उसका डिसिजन गलत साबित करने के लिए आखिरी दांव फेंका।



पर तुम इतने विश्वास और यकीन से कैसे कह सकती हो की शर्मा तुझे स्टेनो की पोस्ट देकर ट्रांसेफर लेटर देकर बोलेगा कि जाओ कुसुम अपनी ससुराल जियो अपनी जिंदगी।

बेशक, ऐसा ही बोलेंगे, मैं सब सम्भाल लूंगी, शर्मा जी बहुत दिनों से डिनर पर साथ चलने की बोल रहे थे, वैसे भी बेचारे इसी हफ्ते रिटायर हो जायेंगे तो आज उनके साथ डिनर कर ही लेती हूँ। आप बस आज रात का इंतजार कीजिये कल सुबह आपको खुश खबरी दूँगी।

मै अब निशब्द था, उसने पहले ही पूरा प्लान जो बनाया हुआ था।

कुछ देर बाद चलो ठीक है मै अब निकलता हूँ, अभी की गाड़ी से चलकर दोपहर तक घर पहुंच जाऊंगा

मै भी ऑफिस ही चल रही हु , साथ चलते हैं तुम्हे बस स्टैंड पर छोड़ दूँगी।

ठीक है,

कुसुम ने मुझे बस स्टैंड पर छोड़ दिया, मैं उसे जाते हुए बोला, पर तुम ज्यादा चिंता मत करो, भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा,

ठीक है बाय, सम्भलकर जाना।

बाय

मेरे लिए ये कोई झटके से कम नही था, मैने तो रिंकी के साथ आने वाली रातों को रंगीन बनाने के लिए पूरा 'टाइम टेबल' बना लिया था, पर अब तो मुझे अपना सपना मिट्टी में मिलता नज़र आ रहा था, वो भी खुद की खोदी हुई कब्र की मिट्टी में।

अब मेरे पास सिर्फ एक हफ्ते का ही वक्त था, इसलिए मैने ठान लिया था कि कुसुम के वापस अपने शहर, अपने घर में आने से पहले इस पूरे हफ्ते रिंकी की चुत का स्वाद जरूर चखउगा, अपने मकसद को कामयाब करने के लिए मै जल्दी से बस की ओर चल पड़ा अपने घर जाने के लिए, जहां रिंकी पहले ही पलकें बिछाए अपने पापा का इंतेज़ार कर रही थी,

दो घंटे बाद मै अपने घर पहुँच गया।

मुझे बस अब दो ही चीज से मतलब था वो था की --

1. मेरा और मेरी बेटी रिंकी के नाजायज रिश्ते का राज दुनिया (कुसुम) के सामने नही आये,


2. एक तरफ मैं चाहता था की मेरी बीवी को कोई भी मत छुए वही दूसरी तरफ एक अजीब सी तम्मना भी थी की कुसुम आज रात मुझे धोखा दे जाए......।


रात के 10 बजे थे अभी मैं अपने बेडरूम में अकेला ही था, आज की रात मेरे लिए बहुत भारी होने वाली थी, मेरे जेहन में रिंकी का ख्याल तो जैसे खतम सा हो गया, मेरा पूरा ध्यान सिर्फ कुसुम की बेफवाई पर था।

मैंने सबसे पहले कुसुम को काल किया,
पहले तो उसके हँसी की आवाज सुनाई दी फिर उसने हैल्लो कहा और साथ ही थोड़ा रुको भी …

“हा जान आप पहुच गए “

“हा दोपहर में ही पहुच गया था, तुम कहा हो “

“कहा था ना की शर्मा सर के साथ डिनर पर आयी हु ,अब घर जाने वाली हु “

“ओह घर अकेले जाओगी या ..”
उसकी हल्की सी हँसी सुनाई दी

“फोन पर पता कर लेना ऐसे 15 मिनट में घर पहुच जाऊंगी “ उसने हंसते हुए फोन को रख दिया ..

क्या बतलाऊ की इस खेल में मेरा क्या हाल हो रहा था,मुझे एक अजीब सा रोमांच महसूस हो रहा था,मैंने अपने मोबाइल से कैमरे को देखने लगा सभी कैमरे अपने सही जगह पर थे,बेडरूम में ही एक माइक्रो फोन भी लगा रखा था,उसमे से कोई भी आवाज अभी तो नही आ रही थी ,

जलन और रोमांच से .. दिल की धड़कने बड़ी हुई थी समझ नही आ रहा था की सही क्या है और गलत क्या है,एक तरफ मैं चाहता था की मेरी बीवी को कोई भी ना छुए वही दूसरी तरफ एक अजीब सी तम्मना भी थी आज रात कुसुम मुझे धोखा दे जाए..

मैं बेसब्री से मोबाइल में नजर टिकाए हुए बैठा था , लेकिन अभी तक तो घर कोई भी नही आया ,लेकिन थोड़ी ही देर में मुझे कुसुम, शर्मा के साथ घर के अंदर घुसते हुए दिखी,दोनो ही खुस लग रहे थे,लेकिन शर्मा ने कोई भी ऐसी वैसी हरकत नही की थी की मुझे उन पर थोड़ा भी शक हो …

वो अंदर घुसे , मै हाल का चित्र देखने लगा, शर्मा सोफे में जा जमा और कुसुम अपना बेग रखकर किचन में चली गई फिर पानी के साथ आयी ,उसने शर्मा से कुछ कहा और शर्मा ने सर हिला कर घर के बेडरूम में प्रवेश कर दिया, मैंने वँहा भी कैमरा लगा रखा था,वो बेडरूम में जाकर सीधे बाथरूम में घुस गया ।

वही हाल में बैठी कुसुम उसके जाने के तुरंत भी बाद उठी और उसने पहले हाल का कैमरा की ओर शरारती मुस्कान देते हुए देखा, मैं उसका चहरा अच्छे से देख सकता था उसने मुझे जीभ दिखाकर चिढ़ाया और हँसी ,उसकी आवाज तो मेरे कानो तक नही आयी लेकिन उसने मुझे जी भर कर चिढ़ाया। यानी कुसुम को पता था कि मैने घर में छिपे हुए कैमरा या माइक्रोफोन लगा रखे ..???


तब तक शर्मा बाहर आ गया था,वो उस कमरे में घुसी शर्मा को पता ही नही लगने दिया की वो क्या कर रही है, फिर थोड़ी ही देर में वो हमारे बेडरूम में आयी पहले तो वो एक जोर की अंगड़ाई ली फिर अपने काम में जुट गई उसने कैमरा को अपने चहरे की ओर कर लिया और माइक्रोफोन को अपने होठो के पास रखा…

मेरे सामने उसका चहरा था और कानो में एक आवाज गूंजी ..

“जान ...तो ऐसे मेरी जासूसी करने वाले थे आप,हाहाहाहाहाहाहाहा (वो जोरो से हँसी ) अब क्या करोगे प्रोफ़ेसर अरुण कुमार ...भूल ही जाते हो की मैं आपकी ही बीवी हु आपके हर ट्रिक का मुझे पता है , मेरे घर की कोनसी दीवाल पर कितनी कील लगी है, मै सब उंगलियों पर गिन कर बात सकती हू। हाहाहाहाहा ओह मेरा बेबी जलन तो फूल हो रही होगी लेकिन कर कुछ ही नही सकते ,ओ ओह ..हाहाहाहाहा “

मैं सच में पसीने से भीग गया था वो तो सच में बेहद ही चालाक निकली ,मुझे ऐसे चिढ़ा रही थी की लग रहा था अभी जाकर उसे अपने बांहो में मसल दु,जी हा उसके ऊपर बेहद ही प्यार आ रहा था लेकिन हवस वाला ..

उसकी आवाज फिर से आई ..

“चलो ये कैमरा तो और माइक्रोफोन तो बंद कर रही हु अब रात भर सोचना की आखिर हम दोनो घर में कर क्या रहे है ,लेकिन आप के ऊपर भी एक रहम कर देती हु ,गेट वाला कैमरा नही निकलूंगी हाहाहाहाहा”

हे भगवान उसे ये भी पता था की गेट में भी कैमरा लगा के रखा हु ,आखिर वो कैमरा उसने सच्ची में बंद कर दिया वही माइक्रोफोन से आवाज आनी भी बंद हो गई

मेरा दिल कसमसा कर रह गया,संच मे ये बात मुझे जला भी देती और रोमांचित भी कर देती की मेरी बीवी घर में अकेले (गैर मर्द के साथ) अपने बॉस के साथ है,वो क्या कर रहे होंगे ,मेरे लिए तो सहना ही मुश्किल था ,आखिर अब करू तो क्या करू ……….


दिमाग खराब बेहद ही खराब था,आंखों के सामने बस वो गेट का फुटेज था जो की बंद था, मैं अपना मोबाइल चालू किये बस उसे ही देख रहा था ,,अंदर क्या हो रहा होगा,??
मुझे कुसुम पर इतना तो भरोसा था की वो इतना आगे तो नही जाएगी की हमारी शादी को खतरा हो …

और वो चली गई तो ,मैं ही तो था जो उसे उकसाता रहता था,नही ये नही हो सकता,
जब दिमाग काम करना बंद कर देता है तो आप क्या करते है …? बाथरूम का सहारा, मैं दो बार पेशाब करके आ चुका था,आधा घंटा होई चुका था ..मैं परेशान भी था तो उत्तेजित भी ,लेकिन इतनी उत्तेजना की आदत मुझे नही थी ,मैं अब भी अपनी बीवी से बेहद प्यार था,और मैं अब भी कही ना कही ये चाहता था की वो वही कुसुम रहे जिसे मैं घर में छोड़कर आया था,किसी भी मर्द के लिए ये इतना आसान नही हो सकता की वो अपनी बीवी को ऐसे ही छोड़ दे …

बीवी खुद की संपति होती है और आपकी संपति पर कोई दूसरा राज करे तो सोच लो कैसा लगेगा ….

अचानक ही मेरे मोबाइल में एक मेसेज आया ,वो कुसुम का मेसेज था …

‘बेडरूम वाला कैमरा ऑन कर रही हु ,और माइक्रोफोन भी ..’

मेसेज पड़कर मेरे आंखों में आंसू आ गए क्या वो मुझे अपने बॉस के साथ मनाने वाली रंगरलियां दिखाने वाली है …

मैं सच में रो ही पड़ा ,तभी स्क्रीन में बेडरूम वाला कैमरा ऑन हुआ , कुसुम का चहरा मेरे सामने था,उसकी आंखे लाल थी जैसे बेहद गुस्से में हो,उसने अभी भी अपने कपड़े चेंज नही किया था …

वो कुछ बोलती उससे पहले ही मैंने अपने मोबाइल से उसे वीडियो काल कर दिया ...उसने कैमरा नीचे फेक दिया और मेरा काल उठाया …

हम दोनो के सामने हमारे चहरे थे दोनो की आंखों में आंसू था ,तभी मुझे एक आवाज आयी जैसे कोई दरवाजा पिट रहा हो ...वो शर्मा ही होगा ..


‘कुसुम जी प्लीज् मुझे माफ कर दो ..’
शर्मा की ये आवाज मेरे कानो में आयी ,


कुसुम मुझे ही देख रही थी उसकी आंखे गुस्से से भरी हुई थी , सुर्ख लाल …


“मुझे माफ कर दो जान मैं तुम पर कभी भी शक नहीं करूँगा और ना ही तुमसे कुछ करने को कहूंगा प्लीज् …”


मैं उसके सामने गिड़गिड़ाने लगा ,वो गुस्से में होते हुए भी हल्के से हँसी …


“आपको तो लगा होगा की आज मैं शर्मा के साथ इसी बिस्तर पर है ना...इसीलिए माफी मांग रहे हो ना ताकि मैं ऐसा कुछ ना करू ..” उसकी आवाज में एक गुस्सा और शरारत दोनो ही थी ...


मैंने हा में सर हिलाया


“भारतीय नारी हु अपने पति को ऐसे ही किसी ऐरे गैरे शर्मा वर्मा की बातो में आकर धोखा नही दे सकती समझे ,लेकिन आपने तो दिल ही दुखा दिया क्या आप सच में ऐसा सोच रहे थे की मैं ऐसा कुछ करूंगी …”
वो नाराज लग रही थी ।


“पागल हो गई हो क्या नही नही ...मैं जानता था की तुम ऐसा कुछ नही करोगी तुम तो बस मुझे जला रही हो ,लेकिन डर तो लगता है ना “


वो हल्के से मुस्कुराई ..


तभी पीछे से दरवाजा पीटने की आवाज तेज हो गई , शर्मा जोरो से कुसुम को सॉरी कह रहा था,


“तुम आज रात भर बाथरूम में बंद रहोगे शर्मा “ कुसुम चिल्लाई और फिर से मुझे देखने लगी


“क्या हुआ वो ऐसे क्यो दरवाजा पिट रहा है …”
वो हल्के से फिर से हँसी ..


“क्योकि उसे भी वही लगा जो आपको लगा,कि पति नही है जाऊंगा और कुछ हो जाएगा,साला मुझे समझ के क्या रखा है ...एक झापड़ मार कर उसे बाथरूम में बंद कर दिया अब चिल्लाने दो उसे “


मेरा मन एकदम से शांत हो गया ,मुझे पता था की कुसुम जब तक ना चाहे कोई उसे कुछ नही कर पायेगा ..


मेरी खुसी देखकर कुसुम भी मुस्कुरा उठी ..


“इतना खुस मत हो वो आज आपके ना होने का पूरा फायदा उठा रहा था,साले ने जबरदस्ती क्या क्या नही दबा दिया ..”
वो इतराते हुए बोली ,एक पल के लिए मेरी सांसे ही रुक गई ..


“क्या ...उसे तो मैं ..”


मैं बोल तो गया लेकिन मेरे चहरे को देखकर वो मुस्कुराई


“आपको गुस्सा तो नही आ रहा है ये सब किसी और को कहना इतना झूट तो मैं भी पकड़ सकती हु “मैं हँस पड़ा सच में मुझे इस बात पर कोई गुस्सा नही आया था ,असल में मैं तो बस इस बात से खुस था की कुछ ज्यादा नही हुआ ,


“गुस्सा नही आया तो उत्तेजना तो आई ही होगी आपको की शर्मा ने मुझे मसल दिया “


उसके होठो में एक शरारती सी हँसी आ गई ..मैंने उसे आंखे बड़ी करके देखा


“वैसे जिस काम के लिए तुमने शर्मा को बुलाया था वो हुआ क्या...???


वो हल्के से हँसी लेकिन उदास स्वर में कहा जैसे खुद से कह रही हो .. हा ट्रांसफर और प्रमोशन लेटर पर उसने signature कर ऑफिस में ही दे दिये थे। पांच दिन बाद रिपोर्ट करना है जिला कलेक्ट्रेट ऑफिस में।


तो फिर उसको अब बख़्श दो, जाने दो उसे यार... मुझसे अब उसकी माफी भरी आवाजे सुनी नही जा रही, उसके लिए इतना सबक बहुत है.....!


कुछ देर सोचने के बाद कुसुम “बाथरूम के दरवाजे के पास शर्मा से बोली... दरवाजा खोल रही हू, चुपचाप से सीधे निकल जाना।


दरवाजा खुलते ही, शर्मा भीगी बिल्ली की तरह दुम दबा कर घर के दरवाजे की तरफ चलने लगा। जाते जाते वो सॉरी बोल रहा था।


शर्मा जी यहाँ जो हुआ I hope उससे मेरे प्रमोशन और ट्रांसफर पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। क्योकि वो सब कैमरे में रिकॉर्ड हो चुका है, और जिसे मेरे पति अपने मोबाइल पर लाइव देख रहे है।


और जाते जाते मेरी एक बात सुनते जाओ
खुले ख्यालात और खुले कपड़ों में बहुत फर्क होता है। इस अंतर को समझना होगा अन्यथा मुश्किल में दिखाई दोगे। शादी शुदा औरत के खुले विचार होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि वो आपके लिए अपने कपड़े उतार देगी। मेरे जैसी खुले ख्यालात वाली बहुत सारी औरते अकेले रह कर नौकरी करती, इसका यह मतलब नहीं कि हम सबके लिए कपड़े खोल देते हैं। हमारी अपनी पसंद होती है और हम अपनी पसंद से इंजॉय करती हैं और यह हक हमको हमारे पति ने दिया है। खुले ख्यालात वाली शादी शुदा औरत और वैश्या में फर्क करना सीखो..... आज सच में मुझे बहुत बुरा लगा क्योकि आपने जबरदस्ती की , जिसे मैं दिल से अपना दोस्त मानती हु ,...”


जारी है.... ✍️
Bahut hi sandaar aur lajwab update hai
 
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Sanju@

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खुले ख्यालात वाली शादी शुदा औरत और वैश्या में फर्क करना सीखो..... आज सच में मुझे बहुत बुरा लगा क्योकि आपने जबरदस्ती की , जिसे मैं दिल से अपना दोस्त मानती हु ,...”


“कुसुम जी मुझे माफ कर देना मैं तुम्हे गलत समझ गया, सॉरी, मैं जा रहा हु आशा करता हु की तुम मुझे माफ कर दोगी ..”
कुसुम ने पीछे मुड़ कर दरवाजे को देखा .. फिर मुझे

“क्या वो चला गया”

मैंने मोबाइल स्क्रीन में देखा घर का दरवाजा खुला और शर्मा बाहर निकला ,वो बेहद ही परेशान दिख रहा था ,

“हा वो चला गया “

कुसुम ने एक गहरी सास ली और जाकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया वो आकर बिस्तर में लेट गई …

“जो हुआ वो नही होना था कुसुम, शायद ये सब कुछ मेरे कारण हो गया “

मैं उसे उदास देखकर बोला , उसके होठो में एक फीकी सी मुस्कान आई ..

“नही अरुण ये तुम्हारे कारण नही हुआ, मैं तो बस तुम्हे जलाना चाहती थी इसका हमारे उस खेल से कोई वास्ता नही था, मैं जानती हु की तुम मुझ पर भरोसा करते हो और मुझे समझते हो ….जो हुआ उसका कारण शायद मेरा कुछ ज्यादा ही खुले ख्यालात का होना है।

मैं चुप होकर उसकी बाते सुन रहा था, उसकी आंखों में कोई भी भाव नही थे जैसे वो शून्य में गुम हो गई हो ..

“ अब क्या हुआ कुसुम ..”मैं पूछ बैठा..

वो मुस्कुराई

“सुन पाओगे “

“थोड़ा तो समझ ही गया हु ,”

“फिर भी मुझसे प्यार करोगे ..”

उसकी आंखों से वो सवाल साफ था जो उसने मुझे पूछा था..

“कोई शक,”

“तुमने पूरे घर में मेरी बिना जानकारी के जासूसी कैमरे, क्यों लगाए ,.. ????

ओह वो...

जासूसी कर रहे थे ना मेरी “

मैं थोड़ा घबरा गया
“नही जान बस थोड़ा ..”

“चुप रहो संमझती हु आपको ,भले ही कितना भी कहो की प्यार करते हो लेकिन फिर भी दिल के किसी कोने में आप को शक का कीड़ा काटता ही रहता है ,सभी मर्द एक ही जैसे होते है तो आप कैसे उनसे जुदा होंगे ..’

मैं कुछ भी नही कह पाया ..वो भी कुछ नही बोली ,थोड़ी देर बाद ही उसने एक गहरी सांस ली और बोली अब सो जाओ गुड नाईट……और फोन कट हो गया।

मुझे कुसुम के दिल का कोई भी हाल समझ आना बंद हो गया था,आखिर वो चाहती क्या है ...????


करीब 5-7 मिनट बाद एक बार फिर मेरे बेडरूम का दरवाजा खटखटाया गया लेकिन इस बार थोड़ा धीरे ..

मैने उठ कर दरवाजा खोला और अपनी बेटी रिंकी को सिर्फ लाल रंग की सेक्सी जालीदार पारदर्शी नाइटी में देख कर मै हैरान हो रहा था क्योंकि आज से पहले वो इस तरह कभी भी नजर नहीं आई थी

मुझे अपनी बेटी को इस अवस्था में देखकर उत्तेजना का भी एहसास हो रहा था, जैसे जैसे वो बेडरूम के अंदर कदम बढ़ा रही थी वैसे वैसे उसकी भरावदार कसी हुई गांड भी मटकती थी और अपनी बेटी की मटकती गांड को देख कर मेरे लंड ने पाजामे में खलबली मचानी शुरू कर दी थी,

अपनी बेटी की गांड का घेराव देखकर मेरे लंड का तनाव लगातार बढ़ता ही जा रहा था ,पलपल ऊत्तेजना बढ़ती जा रही थी, अपनी बेटी को सेक्सी नाईटी में देखकर मै कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो गया था, क्योंकि नाइटी के अंदर से झांकती नंगी जांघें साफ साफ नजर आ रही थी, मुझे साफ साफ दिखाई दे रहा था कि रिंकी ने अंदर पैंटी नहीं पहनी है, ये देख कर मेरा लंड और ज्यादा उछाल मारने लगा,

इधर रिंकी भी अपनी भरावदार गांड को और ज्यादा मटकाते हुए कसमसा रही थी ,उसे इस प्रकार से अपने पापा को उकसाते हुए अजीब से आनंद की अनुभूति हो रही थी, अब मेरे पजामे में पूरी तरह से तंबू बना हुआ था, मेरा मन अपनी बेटी की स्थिति को देख कर एक बार फिर से उसे चोदने को करने लगा और वो भी तो ये ही चाहती थी ,बस दोनों एक दूसरे से सब कुछ हो जाने के बाद भी इस समय पहल करने से डर रहे थे,

आखिर मैने ही बातों का दौर आगे बढ़ाते हुए कहा- "क्या बात है रिंकी , रात के एक बजने को आया सोई नही अभी तक....??

रिंकी अपनी लालसा को पूरी करने के लिए पहले से ही पूरी तरह से रुपरेखा तैयार कर चुकी थी, इसलिए मुझ को जवाब देने में कोई भी दिक्कत महसूस नहीं हुई वो बड़े शांत मन से बोली,

"नही पापाआआआ.... मुझे तो आपके साथ सोने में इतना सुख मिलता है जिसकी मैं कल्पना भी नही कर सकती , मन करता है कि दिन रात बस आपके........ मेरा मतलब है कि आपके साथ ही रहूं" रिंकी ने मादकता के साथ कहा

"मैं भी यही चाहता हूं कि दिन रात अपने इस मोटे लंड को तुम्हारी चुत में ही घुसाए रखूं और तुम्हे हर पल चोदता रहूं" मै अब पूरी बेशर्मी पर उतर आया था, मै रिंकी को पूरी तरह से खोलना चाहता था

"इसस्ससस ....ये आप कैसी बातें कर रहे है पापाआआआ......" रिंकी शर्माती हुई बोली

"अरे इसमे शर्माना कैसा, मेरा बस चलता तो तुम्हे दिन रात अपनी बाहों में लेकर तुम्हारी चुत को चूसता, उससे प्यार करता, और अपने लंड से तुम्हारी चुत की जमकर कुटाई भी करता, तुम सच्ची सच्ची बताओ, क्या तुम्हारा मन नही करता ये सब करने को" मैने कहा

"ओहहहहहह पापाआआआ.... आप भी ना, मेरा मन तो हमेशा करता है कि मै....." रिंकी बोलते बोलते शर्मा गई

"बोलो न क्या मन करता है तुम्हारा " मैने पूछा

"नहीं मैं नही बताती" रिंकी ने शर्मा कर अपने चेहरे को हाथों से छुपाते हुए कहा

"प्लीज़ बताओ न रिंकी ,क्या मन करता है तुम्हारा, तुम्हे मेरी कसम, बताओ मुझे" मैने पूछा

"मेरा मन करता है, कि मैं हमेशा आपकी बाहों में रहूं, आप मुझे हमेशा प्यार करे, आप अपने उस बड़े से ......उससे...मेरा मतलब है कि अपने डि....क डिक से मेरी पुसी की चुद.......मेरा मतलब है कि वो सब करे जो हम छिप छिप कर करते है" रिंकी की सांसे अब उखड़ने लगी थी।

"अरे तुम शर्मा क्यों रही हो, अब तो हम सब कुछ कर चुके है, अब शर्माना कैसा, और ये डिक डिक क्या लगा रखा है ,उसे लंड कहते है और तुम्हारी पुसी को चुत कहते है, जो हम छिप छिप कर करते हैं उसे चुदाई कहते है, चलो अब तुम बोलो अभी हम क्या करेंगे" मै अब पूरे मूड में आ गया था, इन गर्म बातो से मेरे लंड में भयंकर तनाव आना शुरू हो गया था

"रहने दो ना पापा मुझे शर्म आती है ऐसे बोलते हुए" रिंकी बोली

"प्लीज़ रिंकी, बोलो ना,मेरे खातिर, प्लीज़" मैने कहा

"मेरा मन चाहता है कि आपके डिक नही नही आपके लंड..... को अपनी चुत .....में लेकर सदा आपसे चुदाई.... करवाती रहूं, अब खुश " रिंकी शर्माते हुए बोली

"हां बिल्कुल खुश" मैने बोलते हुए रिंकी को घुमाकर उसकी नाइटी उतार दी और उसे वही बेड पर घोड़ी बना लिया, रिंकी भी समझ गई थी कि पापा क्या चाहते है, उसने भी तुरंत अपनी कमर को पीछे से उठा कर घोड़ी style में आ गयी।

मैने भी बिना वक्त गंवाए अपने लंड को रिंकी की चुत के मुहाने पर सेट किया और फिर दे दना दन धक्के मारने लगा, हम दोनों के मुहँ से अजीब अजीब आवाज़े निकल रही थी

पहला राउंड करीब 13-16 मिनट तक चला, अब हम दोनों थककर चूर हो चुके थे, जब हम दोनों के सर से वासना का भूत उतरा तो मैने सोचा कि अब रिंकी को कुसुम की ट्रांसफर लेकर वापस यहाँ आने वाली बात बता देनी चाहिए।

"रिंकी, सुनो " मैने लगभग हाँफते हुए कहा

"हां पापाआआआ...." रिंकी तो आनंद के सागर में गोते लगा रही थी

" अब हमें ये सब बंद करना होगा" मैने लगभग रिंकी के सर पर बम फोड़ते हुए कहा

"क्या, पर क्यों" रिंकी को तो जैसे विश्वास ही नही हो रहा था, उसने तो आने वाली रातो के लिए न जाने कैसे कैसे सपने संजोए थे, सोचा था इन रातों में वो अपनी सारी हसरते पूरी करेगी पर यहां तो सब सपने धरे के धरे रह गए,

मैने सारी बात रिंकी को बता दी, हालांकि मै खुद भी दुखी था पर अब इस नाजायज रिश्ते को खतम तो करना पड़ेगा ही।


"क्या पापाआआआ, आपको मम्मी के इस बाहिजात फैसले के लिए हां करने की क्या जरूरत थी, मना कर देते, मम्मी यहाँ आकर हमारी खुशियों मे आग लगा कर कोई ना कोई चूतियापा जरूर खड़ा कर देगी " रिंकी बेबाकी से सब बोल गई।


हम दोनों बाप बेटी बिल्कुल नंगी हालत में बिस्तर पर लेटे थे, बेमन से, किसी भी प्रकार की उत्तेजना के अभाव में, मै रिंकी के मम्मे को हल्के से सेहलाते हुए और रिंकी मेरे मुरझाये हुए लंड को अपने हाथों में पकड़े हुए आने वाले कल के बारे में सोच रहे थे।


कभी कभी जायज रिश्ते भी भार बन जाते हैं, जिन्हें ढोना मजबूरी का सबब बन जाता है और कुछ नजायज रिश्ते बदनाम हो कर भी जायज रिश्तों से प्यारे लगने लगते हैं.


'मेरी बेटी एक प्रेमिका बन अपना नजायज रिश्ता बचाना चाहती हैं और मेरी पत्नी घर, इन दोनों को बचाव करने लेने से आने वाले वक्त में मेरी जिंदगी उजड़ जाने से बच जाए शायद ...????? '


अगले दिन सुबह मेरी मम्मी हम दोनों के जागने से पहले जागी और उन्होंने मुझे जगाने के लिए सबसे पहले मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया. मेरी बेटी मेरे कंधे पर सर रखे गहरी नींद मे डूबी हुई थी. मैं एकदम से घबरा गया मुझे लगा जैसे मेरी मम्मी अंदर आने वाली है और हम दोनो नंगे-पुंगे, रंगे हाथों पकड़े जाने वाले हैं. मगर मम्मी दरवाजा खटखटा कर चली गयी. मैने रिंकी को हिला कर जगाया और उसे जल्दी से रूम से जाने के लिए कहा क्योंकि उस समय रास्ता सॉफ था. आज सुबह सुबह तो हमारा बचाव हो गया था, मैने रिंकी को समझाया कि अब हमें ज़्यादा सावधानी रखनी होगी. यह भी एक एसा बदलाव था जिसकी हमें अब आदत डालनी थी.


मेरे और रिंकी के मिलन की आजादी के आगामी चार पांच दिन व्यर्थ ही चले गए। रिंकी अपने कॉलेज के एडमिशन की भागमभाग में पूरे दिन भर व्यस्त हो गयी थी। स्कूल, कॉलेज और बैंक वालो ने चक्कर लगवा लगवा कर उसे घन चक्कर बना दिया। कभी स्कूल से टी सी निकलवाने, कभी बैंक में डी डी बनवाने, कभी कॉलेज में कोई डॉक्यूमेंट जमा करने जाती तो कॉलेज वाले डॉक्यूमेंट मे नई नई कमियाँ खोज कर परेशान कर रहे थे।


दूसरी तरफ कुसुम भी मुझसे रात के 1 बजे तक वीडियो काल पर अपने वापस आने की त्यारियो और ऑफिस के हाल चाल बताने में उलझाए रखती।


नतीजन रिंकी और मुझे हमारे नाजायज रिश्ते के हिस्से में बचे हुए 4-5 दिन में इकट्ठे होने का निकटता का उतना समय नही मिल सका जितना हम दोनो एक दूसरे को प्यार करने के लिए चाहिए था। इन दिनों हम को झटपट जल्दी जल्दी संभोग से संतोष करना पड़ा मतलब मुझे जल्दी से अंदर डालकर जल्दी से स्खलित होना पड़ता, नतीजतन वो स्खलित भी नही होती और प्यासी रह जाती। इधर मेरी मम्मी का हमसे जल्दी जाग जाने का डर हमें साथ ना सोने को मजबूर कर गया था। मै अपने स्खलन होने के तुरंत बाद ही रिंकी को वापस उसके कमरे में भेज देता। अब हम बाप बेटी का प्यारा सा नाजायज रिश्ता बुरी तरह प्रभावित होकर अपनी आखिरी साँसे भर रहा था।


जारी है.... ✍🏻
Awesome update
 

Sanju@

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अध्याय - 25 --- " कलेश का गृह प्रवेश ""

अब हम बाप बेटी का प्यारा सा नाजायज रिश्ता बुरी तरह प्रभावित होकर अपनी आखिरी साँसे भर रहा था।

एक हफ्ते बाद......!

बस से बाहर आते ही नागालेण्ड की ठंडी हवा ने जैसे ही कुसुम के शरीर का स्पर्श किया, एक सिहरन सी उस के बदन में दौड़ गई. उसका यहाँ पहली बार आना नही हो रहा था। लेकिन आज वह एक अजीब एहसास से भरी हुई थी. और बस स्टैंड से बाहर ऑटो रिक्शा का इंतजार कर रही थी.

“कहां हो कुसुम ??? तेरा मोबाइल औफ आ रहा था, ” मैने चिंतित स्वर में उससे फोन पर पूछा.

“ फोन की बैटरी कम थी,तो ऑफ कर दिया था,” धीमे स्वर में कुसुम बोली.

“मै तुझे लेने बस स्टैंड पर आ रहा हूँ.”

“प्लीज, परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं खुद ही आ आऊंगी,” यह कह कुसुम ने फोन कट कर दिया.

लगभग दस मिनिट में कुसुम घर पहुंच गयी. घर पहुँचते ही उसने सास ससुर के पाँव छुये, सास से इधर उधर की बाते करते हुए वही सोफे पर बैठ गयी। मै आज कुसुम के स्वागत के लिए सैंडविच, जूस, पहले ही ले आया था।

जूस पीते पीते कुसुम ने एक नजर रिंकी पर डाली. वह चुपचाप सैंडविच खा रही थी और जूस पी रही थी. कुसुम का मन ममत्व के साथ एक दया से भी भर आया. वो उठ कर रिंकी के पास बैठ गयी उसके सिर पर हाथ रख कर उस के बालों को सहलाने लगी.

रिंकी कठोर बनी रही, जूस के ग्लास को दांतों में भींच कर, सुटुक् सुटुक् करते हुए जूस पीती रही।

रिंकी बेटा कैसी हो...?? अपनी बेटी के मुह से प्यारे शब्दो को सुनने को बेताब, उसे अपनी बांहों में कसमताते हुए कुसुम उससे पूछ रही थी.

मै अच्छी हू....! इतना कह रिंकी अपने कमरे में चली गई।

"क्या दोष था कुसुम का? मै कितने भी अपने दिल और दिमाग के दरवाजे बंद करू, वे बातें पीछा छोड़ती ही नहीं हैं. दबेपांव चली आती हैं जख्मों को कुरेदने के लिए."

सफर की थकान दूर करने वो नहाने चली गयी। नहाने के बाद कुसुम थोड़ी ताजगी महसूस कर रही थी. फिर लैपटॉप खोल कर ईमेल चैक करने लगी. बहुत सारी बातें थी, जिन के विषय में नए सिरे से सोचना था. जिंदगी एक नए सिरे से शुरू करनी थी. पता नहीं क्यों बहुत सारी चुनौतियों के बाद भी कुसुम कहीं न कहीं एक हलकापन महसूस कर रही थी.

लैपटौप पर चलती उंगलियों को रोक कर उसने मुझे देखा,

“कितना याद आया आपका ..”

“क्या याद आया काल का तो जवाब ही नही दे रही थी ,”

“ ऑफ ओ बताया तो था फोन की बैटरी कम थी”

मैं मुस्कुरा उठा,

वो बेहद ही प्यार से मुझे देखने लगी और मेरे गाल को चूम लिया..

“मुझे आपसे यही उम्मीद थी ...“आई लव यू जान ..”

वो फिर से मेरे गले से लग गई ,मैं भी उसके कोमल बालो को सहलाने लगा…

“तो शर्मा के साथ कुछ किया की नही ..”

वो हल्के गुस्से से मुझे देखने लगी..फिर शरारती मुस्कान लाकर बोली

“किया ना बहुत कुछ ..”

“अच्छा क्या ..”

“वो नही बताऊंगी मेरी जानकारी के बगैर कैमरे लगा कर जासूसी करने का चस्का था तो अब खुद पता कर लो ..”

“अच्छा ..’

“हा”.....! वो खिलखिलाने लगी मैंने उसे अपनी बांहो में भर लिया और उसे सीधे बिस्तर में ले जाकर पटक दिया ,

वो मुझे बड़े ही बेकरारी से देख रही थी …


मैं हँस पड़ा .. एक हफ्ते से तड़फ रहा हु मेरी जान ..”

उसने कुछ नही कहा बस मुस्कुराते हुए मेरे बालो को सहलाने लगी फिर मेरे कानो में हल्के से फूक मारने लगी..मुझे एक गुदगुदी का अहसास हुआ,मैंने उसे अपने ऊपर ले लिया,और उसके बालो को अपनी उंगली में फंसा कर उसके होठो को चूमने लगा,दोनो के होठ एक दूजे में मिल चुके थे और सांसे तेज हो चुकी थी ,धड़कने बढ़ रही थी…
मैंने उसके आंखों को हल्का गीला देखा ..

“क्या हुआ जान ..”

“ शर्मा ने रिटेरेमेंट वाले दिन तक मुझसे कोई बात तक नही की ..”

“तुमने इतना लंबा चौड़ा भाषण जो उसको पेल दिया था..” मै हँस पड़ा।

वो मेरे चहरे को देखने लगी ..

“मैंने बस उसे मना किया था ,वो बेकाबू हो रहा था ..”

मेरे होठो पर एक मुस्कान आ गई

“नही करना था ना, उस बेचारे की भी कई तमन्नाएं रही होंगी की प्रेमिका का पति बाहर गया है तो कुछ फायदा मिल जाए लेकिन तुमने तो ..बेचारे की हर तमन्ना को ही फेल कर दिया अब वो गुस्सा तो होगा ही ना “

कुसुम गुस्से से मुझे मारने लगी ..

“आपको हर वक्त मजाक ही सुझा रहता है ,भूल गए क्या ?? उस दिन क्या हालत हो गई थी आपकी ..” वो खिलखिलाने लगी

‘वो तो ..”

“क्या वो तो..?? अब अगर फिर से कहे ना तो सच में शर्मा के साथ …” वो रहस्यमयी मुस्कान से मुकुस्कुराने लगी …

“क्या करेगी ..”
उसकी मुस्कान और भी खिल गई ..

“जलने का बहुत ही शौक है ना आपको ..”

“हा वो तो है ..”

मैं भी मुस्कुराने लगा ..और उसके सीने में पके एक ताजा गोल आम को दबाने लगा,मेरा लिंग जीन्स में ही अकड़ रहा था मैंने जीन्स निकाल देने में हि अपनी भलाई समझी ..उसने भी अपनी नाइटी के अंदर हाथ डाला और अपनी ब्रा और पेंटी निकाल फेंकी.. अब मेरे जिस्म में बस एक अंडरवियर थी वही कुसुम के जिस्म में वो नाइटी जो एक पतले कपड़े का गाउन था जो उसके एड़ी से थोड़ा ऊपर तक था..

मेरे हाथ उसके जिस्म में फिसलते हुए उसके चहरे तक गए,मैंने उसके स्ट्राबेरी की तरह लाल होठो में अपने जलते हुए होठो को रख दिया,दोनो ही एक दूसरे के होठो से रस पीने लगे , मेरा लिंग तनकर मेरी अंडरवियर से बाहर आ रहा था,जिसे मैं गाउन के ऊपर से ही कुसुम के योनि में रगड़ रहा था ..वो भी गर्म हो रही थी ,उसकी भी सांसे तेज हो रही थी ..

“बोलो ना जान क्या करोगी शर्मा के साथ ..”

उसकी एक बेहद ही शरारती मुस्कान उसके चहरे में आ गई ..

“आप नही सुधरोगे ना .”

“नही तुम ही बिगड़ जाओ ..”
मैं बेचैन सा बोला ..

वो भी उत्तेजित होकर मेरे बालो को पकड़ कर मेरे होठो को चूसने लगी …

“आप सब जब अब बाहर कही जाओगे तो मैं फिर से शर्मा को यहाँ बुलाऊंगी ..”

उसने अपनी कमर मेरे लिंग के ऊपर जोरो से रगड़ दी ..

“आह फिर ..”मुझे उसके योनि से रसते हुए रस का आभस होने लगा था..

“फिर उसे सोफे में बैठने को कहूंगी ,वो भी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी गोद में बिठा लेगा ..”


उसने फिर से जोरो से अपनी योनि को मेरे लिंग में रगड़ा जो की अंडरवियर में होने के कारण अकड़ कर लेटा हुआ था और उसके इलास्टिक से बाहर झांक रहा था कुसुम उसके मोटे तने में अपनी योनि को रगड़ रही थी ,

“वो मेरे चहरे को पकड़ कर अपने होठो को मेरे होठो से मिलने की कोशिस करेगा,मैं पहले तो उसे हटा दूंगी लेकिन मुझे याद आएगा की अपने क्या कहा था और आपको तो जलने में मजा आता है ,मैं आपको फोन लगाउंगी ताकि आप मेरी आवाज सुन सको लेकिन ये बात शर्मा को पता नही होगी …”

मैं बुरी तरह से उत्तेजित हो गया था,मेरी बीवी मुझसे ही मुझे चीटिंग करने की बात कर रही थी..मैंने उसे अपने नीचे कर दिया और उसके ऊपर छा गया ..उसके गले को चूमने लगा,अब मैंने अपने अंडरवियर को निकाल दिया मेरा लिंग अब कुसुम के गाउन के ऊपर से ही उसके नंगे योनि पर रगड़ खा रहा था … “आह जान …”वो सिसकी । वो भी बेहद ही उत्तेजित हो गई थी ..

‘आप फोन में होंगे और मैं उसके होठो को अपने होठो में ले लुंगी ,मेरी सिसकियां आपको सुनाई देगी और मैं उसे खिंचते हुए अपने बेडरूम में ले जाऊंगी ,वँहा मैं अपने मोबाइल फोन का speaker को भी आन कर दूंगी ताकि आप और भी क्लियर मेरी आवाज सुन सको ..वो मुझे बिस्तर में पटक देगा और मेरे ऊपर चढ़ जाएगा ,मैं सिसकियां लुंगी जब वो आपकी तरह मेरे ऊपर छा जाएगा ,और फिर इसी गाउन को उतारेगा …”

वो तड़फ रही थी उसके मुह से शब्द निकलना भी मुश्किल हो रहा था..

मैंने तुरंत ही उसके गाउन को निकाल फेका .. मेरा लिंग आसानी से उसके योनि में चला गया ..उसने मेरे बालो को जकड़ लिया।

“आह शर्मा मेरी जान “

शर्मा का नाम सुनकर मेरा लिंग और भी कड़ा हो गया था ,मैंने तेजी से एक धक्का उसके योनि में दिया ..

“ शर्मा तुम्हारा कितना बड़ा है मेरी जान , मेरे पति से ज्यादा बड़ा है और गहरा उतारो ना इसे “

उसकी बात सुनकर मैं एक बार कांप गया , कुसुम की आंखे पूरी तरह बंद थी क्या वो अभी शर्मा को ही अपने साथ महसूस करने की कोशिस कर रही थी …??? मैंने फिर से एक जोर का धक्का दिया और उसके होठो से अपने होठो को मिला दिया,

हम दोनो ही इस खेल में पूरी तरह से रम चुके थे,पहले तो कुसुम भी शर्मा शर्मा ही कह रही थी लेकिन जब खेल अपने तेजी में पहुचता गया वो जान जान कहने लगी ,अब वो जान मेरे लिए था या शर्मा के लिए ये कहना बेहद ही मुश्किल काम था ………

सुबह आंखे खुली तो रात की बाते याद आयी,मेरे अधरों में एक मुस्कान आ गई ,तभी कुसुम बाथरूम से बाहर आयी,और मुझे देखकर मुस्कुराने लगी ,

“कल आपको बहुत मजा आ रहा था,..”

“हा आ तो रहा था,सोच रहा हु तुम्हे आगे बढ़ने ही दु ..”

सुनते ही वो शर्मा गई और इठलाते हुए मेरे ऊपर आकर लेट गई,उसने अभी एक तोलिया ही लपेटा हुआ था,अभी अभी नहाकर निकल रही थी बालो में हल्की सी नमी भी बरकरार थी ,साबुन की खुशबू मेरे नथुने में समा रही थी…

“आप ऐसा मत बोला करो ,उत्तेजित करके ही छोड़ देते हो ,मुझे भी पता है की ये नही हो सकता ….”

मेरी आंखे चौड़ी हो गई ..

“यानी तुम उत्तेजित होती हो ..”
वो हल्के से मुस्कुराई

“इतना बोलेंगे बार बार तो उत्तेजित तो हो ही जाएगा कोई भी ,और इमेजिनेशन भी करने लगेगा,मानसिक रूप से आपने मुझे उसके साथ सुला ही दिया है ..तो…..”

वो थोड़ी गंभीर भी थी तो थोड़ी उत्तेजित भी ,और साथ थी शरमाई भी ,और साथ ही घबराई भी और साथ ही थोड़ी दुखी भी और साथ ही थोड़े गुस्से में और साथ ही थोड़े जज़बातों में …उसकी आंखों से एक साथ कई भाव टपक जा रहे थे,जिसे मैं निचोड़ने की कोशिस कर रहा था,

“तो तुम उसके साथ सोना चाहती हो

…”उसने ना में सर हिलाया..

“मैं कुछ नही चाहती,मैं बस जानती हु...ये की मैं आपसे बेहद ही प्यार करती हु और मैं ये भी जानती हु की आप मुझसे बेहद प्यार करते है और किसी दूसरे के साथ सोचने तक तो ठीक है लेकिन सच में किसी के साथ सोने पर आप उसे और मुझे दोनो को मार डालेंगे..”

मेरे होठो की मुस्कान खिल गई ..

“तुम्हे नही जान बस उसे …”मैने बेहद ही आराम से कहा इतने आरम से की कोई सुने तो ख़ौफ़ खा जाए लेकिन वो कुसुम थी ,मेरी कुसुम जो मेरे फितरत से वाकिफ थी ,मेरी एक एक नश से वाकिफ थी…
वो भी मुस्कराई …

“इसीलिए तो कहती हु की आप अब ऐसी बाते मत किया करो ,मैं भी इंसान ही तो हु,दिल में अरमान तो मेरे भी जाग जाते है जबकि आप उसे बार बार घी डालकर और भड़कते हो,लकड़ी भी आपकी,घी भी आप ही डाल रहे हो ,हवा भी आप ही दे रहे हो और फिर आग भी जलाने पर तुले हो फिर अगर ये आग भड़क कर कुछ जला दे तो फिर कहोगे की गलती किसी दूसरे की है …”

कुसुम ने बेहद ही मतलब की बात कर दी थी,सच में ये एक ही समस्या थी की मैं अपनी गलती को स्वीकार ही नही कर रहा था इसलिये शायद मुझे इतना गुस्सा था की मैं सामने वाले को मार दूंगा...या कुसुम को ही मार दु…

मैं थोड़ी देर तक चुप ही रहा...वो मेरे बालो से खेल रही थी जितना द्वंद मेरे अंदर था वो उतनी ही शांत थी ..

“ठीक है तो मैं खुद की गलती मानता हु ,और आज से तुम्हे पूरी छूट देता हु ,मैं किसी को नही मारूंगा ,जो आग तुम्हारे अंदर लगी है उसे जिससे चाहे बुझाओ ..वो तुम्हारी गलती नही होगी ..”


वो मेरे आंखों में देखने लगी ..

“आप तो सच में सीरियस हो गए ..”

“हा कुसुम मैं सीरियस ही हु,तुमने सही कहा ,पत्थर को भी बार बार घिसने से निशान बन जाता है वो तो तुम्हारा दिल ही है ,तुम्हारा मन है ,उसमे अगर बार बार ये बाद डाली जाए की तुम किसी गैर मर्द के साथ भी मजे ले रही हो और इस बात से मैं भी खुस हु तो ये सच है की कभी ना कभी तुम्हारे दिल में भी ये ख्याल आएगा ,और ख्याल ही क्यो ये चाहत भी होगी...और उस चाहत को पूरा करने का तुम्हे अधिकार होना चाहिए,मेरी तरफ से तुम फ्री हो …”

उसने मेरा सपाट चहरा देखा..और मेरे होठो में अपने होठो को घुसा दिया ..

“मैं अपनी चाहत पूरी करने के चक्कर में आपका प्यार नही खोना चाहती जान ..”वो और भी जोरो से मेरे होठो को चूस रही थी …
“फिक्र मत करो जान मेरा प्यार बस तुम्हारे लिए ही है और हमेशा ही रहेगा..”मेरे आंखों में एक मोती चमका जिसे देखकर कुसुम थोड़ी डर गई लेकिन मेरे दिल में क्या हो रहा था ये मैं ही जानता था,और मैं कम से कम इस समय तो कुसुम को नही बताना चाहता था,क्योकि हर चीज का एक समय होता है …।

“आप ऐसे ही रहोगे तो आपको क्या लगता है की मैं कुछ करूंगी ..”

मैंने अपने होठो में एक मुस्कान ला ली ..

“सच बताऊँ मुझे भी बहुत मजा आएगा , तुम करो तो सही “मैंने शरारत से कहा और उसने झूठे गुस्से से मुझे मारा लेकिन फिर हम दोनो ही हँस पड़े,हमारे बीच बात साफ हो चुकी थी ,अब देखना था की कुसुम कितना बढ़ती है…?? ?

कुसुम को आज डी एम ऑफिस में जॉइन करना था तो उसे मैंने ऑफिस टमिंग् से थोड़ा जल्दी जाने को कहा ।

वो बहुत एक्साइटेड थी , उसने एक नीले रंग की साड़ी पहनी ,उसकी जवानी उसके ब्लाउज से बाहर आने को बेकरार लग रही थी और नीला रंग उसके गोरी त्वचा पर बेहद फब रहा था,माथे में लगा गहरा सिंदूर उसके सुहाग की निशानी थी और हाथो की घनी चूड़ियां उसे और भी प्यारा बना रहे थे,,उसने अपने घने वालो को खुला ही रखा और जो उसके कमर को छू रहे थे,जो की उसके गदराये और साड़ी से झांकते पेट को और भी मादक बना रहे थे,..

कुल मिलाकर वो किसी भी मर्द को आकर्षित कर देने को तैयार थी,हल्की गंध वाली परफ्यूम से महकती हुई वो मेरे पास आयी …

“किस पर जादू चलाने वाली हो “तुम्हारे आशिकों की कोई कमी तो है नही ..” उसने मुझे गुस्से से देखा और हम दोनो ही खिलखिला उठे ………

उसकी आंखे चंचलता में मचली ..

“सभी पर “वो खिलखिलाई और मैंने उसे जोरो से जकड़ लिया उसके होठो को चूसने लगा,थोड़ी देर के बाद ही उसने मुझे झूठे गुस्से से देखा

“पूरी लिपिस्टिक ही खराब कर दी “

वो फिर से टचअप करने लगी,मैं भी अपनी तैयारी करने लगा, उसने अपनी फाइल उठा ली और एक बार फिर से उसे सरसरी निगाहों से पढ़ा..और फिर अपने बेग में डालकर चलने लगी..“बस थोड़ी देर बाद मै उसे उसके ऑफिस में छोड़ कर अपनी ड्यूटी पर निकल गया।


इधर रिंकी का कॉलेज शुरू होने में कुछ ही दिन बचे थे, वह एडमिशन की फ़ीस वगरह जमा करवाने के बाद ज़्यादातर वक़्त अपने कमरे में ही बिताने लगी थी। कुसुम के डर से अब मै और रिंकी वो सब कुछ एक दूसरे को कह नही सकते थे जो हम कहना चाहते थे, हम वो सब एक दूसरे के साथ कर नही सकते थे जो हम करना चाहते थे.

हमारी कामक्रीड़ा एक दूसरे के अंगो को चूमने, चूसने, सहलाने जैसी गतिविधियाँ दिन ब दिन कम होती जा रही थी जिसकी वजह से प्यार भी कम होता जा रहा था. हमारे अंदर एक दूसरे के लिए प्यार पहले जैसा ही मौजूद था मगर यह कम होता इसलिए महसूस हो रहा था क्योंकि हम एक दूसरे को पहले जैसे प्यार नही कर पा रहे थे.

मैं उसकी आँखो में उसके स्वाभाव मे उस निराशा को बल्कि उस गुस्से को भी देख सकता था अब, क्योंकि इसमे मेरा कोई दोष नही था, इसलिए मुझे उसका इस तरह निराश होना या गुस्सा करना जायज़ नही लगा. हम पहले जितना या पहले जैसा समय एक साथ नही बिता सकते थे इसलिए नही कि चाहत में कोई कमी आ गयी थी बल्कि असलियत में अब भी मैं उसे पहले जैसा ही चाहता था. समस्या सिर्फ़ यही थी कि कुसुम के आ जाने से मेरे पास उसके हिस्से का समय ही नही बचता था कि मैं उसे दिखा सकता, मैं उसे कितना प्यार करता हूँ.

मुझे यह बात भी अच्छी नही लगती कि उसकी मम्मी कुसुम पूरा दिन डी एम ऑफिस में पूरी ईमानदारी और मेहनत से
काम करती है ताकि परिवार का भविष्य उज्ज्वल बन सके और रिंकी हमारे मिलन के समय की कमी को हमारे बीच एक दरार का रूप दे रही थी. और यह दरार आने वाले हर दिन के साथ गहरी होती जा रही थी।


कुछ और हफ्ते बीतने के बाद मुझे अहसास हुआ कि कुसुम के साथ बढ़ती दूरी के कारण जो स्थान मेरे दिल मे खाली हो गया था उसे मैने कुसुम से नज़दीकियाँ बढ़ा कर पूरा भर लिया था. अगर एक लड़की मेरी ज़िंदगी से दूर होती जा रही थी तो दूसरी उतनी ही पास आती जा रही थी. मैं रिंकी के साथ बहुत कम समय बिता रहा था मगर मैं तन्हा नही था. मेरी कुसुम हर रात मेरे साथ थी.

कहने का मतलब जल्द ही मेरा और रिंकी का अब कभी कभार होने वाला मिलन भी पूरी तेरह बंद हो गया था. मैं जैसे खो गया था. जो लड़की मेरी भूल या गलती थी वो अब दूर चली गयी थी, और जो मेरे पास थी वो ही शायद मेरी किस्मत थी.... .. !


जारी है..... ✍🏻
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है
 

Sanju@

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कहने का मतलब जल्द ही मेरा और रिंकी का अब कभी कभार होने वाला मिलन भी पूरी तेरह बंद हो गया था. मैं जैसे खो गया था. जो लड़की मेरी भूल या गलती थी वो अब दूर चली गयी थी, और जो मेरे पास थी वो ही शायद मेरी किस्मत थी.... .. !

कुछ दिन बाद.......!


रिंकी का कॉलेज शुरू हो गया था. लेकिन न तो रिंकी क्लास में फ़र्स्ट-बेंच पर बैठी दिखायी देती थी और ना ही उसकी पढ़ाई की पर्फ़ॉर्मन्स इतनी अच्छी थी. एक दो बार जब किसी प्रोफ़ेसर ने उसे टोका भी, तो उसने अनसुना कर दिया था. कुछ दिन बाद उसने कॉलेज से बंक मारना भी शुरू कर दिया और अपने कमरे में ही ज़्यादातर वक़्त बिताने लगी.

लाख कोशिशों के बाद भी रिंकी के मन मे अपने पापा के प्रति प्रेम दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा था। उसकी वासना ने उसके दिमाग को पूरी तरह से वश में कर लिया था।

परन्तु उसके मन मे डर था कि

"" कहीं इतने हफ़्तों में पापा सब कुछ भूल तो नही गए? कहीं वो बिल्कुल बदल तो नही गए? क्योंकि अगर वो बदल चुके हैं, और मुझे अब एक बेटी के रूप में देखते है तो मैं किस तरह उनको अपने करीब कर पाऊंगी। कहीं उन्होंने मुझे ठुकरा दिया तो, नहीं नहीं मैं बर्दास्त नही कर पाऊंगी.....मैं किसी भी हाल में अपने पापा को दोबारा पाकर रहूंगी" रिंकी यही सब सोचती रहती।

दिनों दिन रिंकी की वासना बढ़ती जा रही थी। लेकिन उसे मौका ही नही मिल पा रहा था। और ना ही इस दौरान उसकी मुझ से खुल कर बात हो पाई। उसने एक दो बार कोशिश भी की मोबाइल से बात करने की पर मोबाइल में नम्बर डायल करने के बाद भी कभी वो कॉल न कर पाती और तुरन्त काट देती।

कुछ दिनों बाद रिंकी की सबसे खास सहेली श्रुति एक दोपहर उससे मिलने घर पर आई दोनों सहेलिया कमरे में बाते कर रही थी, श्रुति आज ख़ुशियों मैं थी, उसके पापा ने उसको स्कूटी ख़रीद कर दिया था, शायद कॉलेज कि वो अकेली लड़की थी, जिसके पास स्कूटी हो गयी थी, वो बड़े गर्व से अपने पापा की बारे में बता रही थी, की उसके पापा उसको बहुत प्यार करते हैं । वो इसी खुशी में रिंकी को एक ट्रीट पर साथ लेकर जाने वाली थी।

ओहो रिंकी कितना लेट हो गया है, रेस्ट्रारेंट में नीलू, शीतल इंतजार कर रहे होंगे.... अब बाते ही करती रहेगी या फिर ड्रेस चेंज कर चलेगी भी.. श्रुति ने रिंकी से कहा।

रिंकी ने मुस्करा कर कहा- हाँ हाँ क्यों नहीं।

चूंकि उस वक्त कमरे में सिर्फ दोनों लड़किया ही थी, इसलिए रिंकी ने बिना झिझक अपनी टॉप उतार दी, फिर उसने शिमीज भी उतार दी, श्रुति की तो आह निकल गयी और श्रुति एक लड़की हो कर भी रिंकी की सुंदरता पर मुग्ध हो गई । उसकी नजरे रिंकी के बदन से चिपक कर रह गई और आँखें फाड़कर वो एक भरपूर जवान लड़की का नंगा बदन देखने लगी। रिंकी की ब्रा में क़ैद बड़ी बड़ी चूचियाँ बहुत ही मादक लग रही थीं। फिर उसने अपनी ब्रा भी खोल दी, उसकी दूध से भरी छातियाँ बहुत सुंदर लग रही थीं और उसके बड़े बड़े निपल्ज़ भी सेक्सी दिख रहे थे, फिर उसने अपनी कपबोर्ड में से पुशअप ब्रा निकाल कर अपनी चूचियों पर ब्रा का कप रखा और पीछे जाकर उसकी पट्टी लगायी , और अपनी चूचियाँ हिलाकर ऊपर नीचे करके उसको चेक करने लगी।

श्रुति का मुँह खुला रह गया रिंकी की मदमस्त चूचियाँ देखकर, वो हँसकर बोली- रिंकी डार्लिंग तेरे तो मुझसे भी बड़े बड़े हो गये, कौन है वो जादूगर???किसके हाथों के जादू का कमाल है.... श्रुति अचानक से उठ कर रिंकी के बूब्स को दबाते हुए बोली ... ।

''प प प ............. पापा.................... ''

भावनाओ में बहकर रिंकी के मुँह से पापा निकल तो गया...पर अगले ही पल वो यथार्थ के धरातल पर आ गयी...और उसने डरते-डरते श्रुति की तरफ देखा..

पर शायद उसे ठीक से समझ नही आया था....! वो मुस्कुराती हुई बोली...

'' अच्छा ....तो अपने पापा के उपर नज़र है तेरी.... तू तो बड़ी चालू निकली रिंकी....''

उसकी ये बात सुनकर रिंकी का शरीर सुन्न होता चला गया।

पर श्रुति के होंठों पर अलग ही तरह की मुस्कान आ चुकी थी अब.

जिसे देखकर रिंकी समझ नही पा रही थी की उसके दिमाग़ में आख़िर चल क्या रहा है..

पर उसके बाद जो हुआ, उसे देखकर तो रिंकी के भी होश उड़ गये..उसने तो सोचा भी नही था की इस चुहिया के दिमाग़ में इतना गंद भरा पड़ा है

रिंकी से कुछ बोलते नही बन रहा था...रंगे हाथो पकड़ी गयी थी वो .

अपनी खास सहेली के सामने ही उसके और पापा के बीच का परदा उठ गया था... अब उसे उस हद तक तो नही मालूम था पर जिस अंदाज में वो पकड़ी गयी थी.. यानी जिस अंदाज में उसने अपने पापा को पुकारा था, उसे देखकर तो कोई बेवकूफ़ भी बता देगा की रिंकी के मन में उसके पापा के लिए क्या चल रहा है.

रिंकी ने अपना चेहरा शर्म से नीचे कर लिया.

"ओहो रिंकी... प्लीज़ ऐसे एम्बेरेस मत हो... इनफेक्ट मुझे तो इस बात की खुशी है की तू अंकल को उस नज़र से देखती हो,जिस नज़र से उन्हे मैं देखकर अपने अरमानो को दबाया करती हू ..''

श्रुति के मुँह से सीधी बात सुनकर रिंकी भी चोंक गयी...पर उसने कुछ ज़्यादा रिएक्ट नही किया..आख़िर श्रुति की भी क्या ग़लती है इसमे...एक तो उसके पापा इतने चार्मिंग है,वो खुद उनसे चुदाई करती है , ऐसे में श्रुति को किसी भी बात का दोष देना सही नही था.

श्रुति ने भी अब रिंकी को कुछ महीने पहले माल की पार्किंग के बारे में उसे बता देना उचित समझा, और फिर उसने कहा

सुन रिंकी, वो मैं तुझे तेरे पापा के बारे में कुछ बताना चाहती हूं। कुछ महीने पहले माल की पार्किंग में तेरे पापा ने मुझे बॉय फ्रेंड का लंड चूसते हुए देख लिया था,

रिंकी के चेहरे की हवाइयां उड़ चुकी थी, रिंकी तो श्रुति की बात सुनकर दंग रह गयी, उसे तो अब सूझ ही नही रहा था कि वो क्या बोले। रिंकी के ऊपर तो जैसे एक के बाद एक बम फूट रहे थे, वो पूछना चाहती थी कि ये सब हुआ कैसे ??? पर उसके पूछने से पहले ही श्रुति ने उस पर एक और बम फोड़ दिया


अच्छा रिंकी, प्लीज़ अब मुझसे शर्माओ मत, हम दोनों पक्की और खास सहेलिया है तो हमे एक दूसरे से कुछ नही छुपाना चाहिए, अच्छा अब प्लीज़ बताओ ना अंकल और तेरे बीच ये सब कैसे शुरू हुआ ???

रिंकी भी अब थोड़ी नार्मल हो चुकी थी, फिर उसने श्रुति को अपने और अपने पापा के बीच हुए पूरे वाकये को शुरू से लेकर अंत तक मिर्च मसाला लगाकर सुना दिया, कैसे पहली बार दिमापुर में ये सब शुरू हुआ था, कैसे उसने नई नई चालें चल कर अपने पापा को फँसाने की कोशिस की थी। कैसे फिर वो उनसे नाराज़ हुई, कैसे धीरे धीरे वो उन्हें चाहने लगी, और कैसे उस रात वो सब कुछ हुआ।

श्रुति तो बड़ी तल्लीनता से रिंकी की कहानी सुन रही थी,


"देखो रिंकी ...

मेरा भी बॉय फ्रेंड है, हमने एक दूसरे के साथ सेक्स किया है.. लेकिन हम सेक्स सिर्फ़ मौका मिलने पर चोरी छिपे कभी कभार ही कर सकते है... हर रोज सेक्स के असली मज़े के लिए तो हमे किसी घर के मर्द की ही ज़रूरत पड़ेगी ना..और तेरे पापा के होते हुए तेरे लिए तो ये गॉड गिफ्ट (सोने पे सुहागा) हो गया है! तुम जो भी कर रही हो, सही कर रही हो, किसी प्रकार की गिल्ट और एंब्रेस् होने की जरूरत नहीं है...ठीक है ना...''

श्रुति अपने हिसाब से तर्क दे रही थी...जो अभी के लिए रिंकी को भी सही लग रहा था..!


श्रुति शायद तुम सही बोलती हो.... और रिंकी ने उसके गाल में चिकोटि काट दी। फिर वो कप बोर्ड खोल कर एक ड्रेस श्रुति को दिखाते हुए ये ड्रेस ली थी मैंने...मतलब और भी हैं, पहन के दिखाती हूँ अभी... पहले ये बताओ कैसी है?' रिंकी ने चहक कर पूछा.


मस्त है, अब जल्दी से पहनो हमें चलना चाहिए.... श्रुति ने जबाब दिया।


रिंकी ने एक काली पार्टी-ड्रेस पहन ली श्रुति उसे देख सीटी बजाते हुए बोली ओह बेबी यू आर सो सेक्सी.....! दोनों सहेलिया मस्ती के मूड में आ चुकी थी, और फिर वो दोनों ट्रीट एंजॉय करने बाहर चले गए।


"दोनों सहेलिया एक दूसरे के सीक्रेट शेयर कर बड़ी खुश थी, पर अभी दोनों ही भविष्य में आने वाले भयानक परिणाम से बेखबर थी"


ऐसे ही कुछ दिन निकल गये, अब रिंकी को कॉलेज लाइफ रास आने लगी थी। उसके नये दोस्त भी बन गए थे। दूसरी तरफ हर रात कुसुम से समागम के बाद मै अपने बिस्तर पर करवट बदलते हुए सोचता कि रिंकी की खुशी के लिए लिये ऐसा क्या करू जिससे उसे अपने पापा पर गर्व हो।


फिर करीब एक महीना बाद एक इतवार की दोपहर कुसुम फोन पर किसी से बातें कर रही थी, बातें करते हुए कुसुम का फोन कट गया। कुसुम को याद आया उसके फोन का बैलेंस खत्म हो गया था और उसे किसी को अर्जेंट काल करनी थी. मेरे अलावा घर पर कोई था नहीं, तो उस ने मेरा फोन मांगा और मुझ से कहा कि काल करने के बाद फोन मुझे लौटा देगी.


कुसुम को पता नहीं क्या सूझा कि फोन कर के जब वह फ्री हुई तो फोन की फोटो गैलरी खोल कर देखने लगी. उस में रिंकी की विविध मुद्राओं में खींची गई अनेक तसवीरें कैद थीं.


उन्हीं तसवीरों में कुछ ऐसी भी तसवीरें सामने आईं जिसे देख कर वह चौंक गई.
बाप और बेटी के फोटो ऐसी पोजीशन में खींचे गए थे जिसमे दोनों बाप बेटी लिपटे हुए थे. जब उस ने उस फोन के वीडियो देखे तो उस के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई. वीडियो में रिंकी अपने पापा के साथ प्यार करती हुई दिख रही थी.


कुसुम ने कभी ध्यान नहीं दिया था कि उसकी कोख से जन्मी उसकी बेटी उसके ही संसार को उजाड़ रही है । वह तो नौकरी में और अपने सास-ससुर में व्यस्त रहती । एक बार कुसुम को शक भी हुआ था लेकिन यह सोच कर अपने आप को सांत्वना देने लगी थी, कि रिंकी मेरी बेटी तो अभी छोटी है और एक अच्छी मां की तरह उसने रिंकी की परवरिश की थी। यह हो ही नहीं सकता कि कोई बच्चा अपनी मां को धोखा दे । पर कुसुम गलत थी उसे पता ही नहीं था कि उसकी बेटी उसकी सौतन बनने का ख्वाब सजाये थी. यह सब देख कुसुम आगबबूला हो गई.....!


जारी है...... ✍🏻
Nice update
 
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Sanju@

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यह हो ही नहीं सकता कि कोई बच्चा अपनी मां को धोखा दे । पर कुसुम गलत थी उसे पता ही नहीं था कि उसकी बेटी उसकी सौतन बनने का ख्वाब सजाये थी. यह सब देख कुसुम आगबबूला हो गई.....!

उस ने मुझ को जोर से चिल्लाकर कर अपने पास बुला कर मुझे मोबाइल में फोटो दिखाते हुए बोली...

‘‘ मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद कर के तुम्हे गुलछर्रे नहीं उड़ाने दूंगी अरुण कुमार। मै तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूंगी. तुम अभी मुझे जानते नहीं हो...???

मेरे पाप की लंका का दहन हो चुका था, और इस वक्त की परिस्थिति की नाजुकता का अंदाज़ा होने लगा. ‘पता नहीं अब क्या होगा?? यह चंद फोटो मेरी खुशहाल शादीशुदा जिंदगी पर भारी पड़ गयी…!साली ये फोटो मैने डिलीट क्यों नही की थी। यह मेरे दिमाग़ में क्यों नहीं आया.??’ मै अपनी हार पर निराशा और कुसुम के भय से भयभीत हो रहा था.... हे भगवान मेरी भी मत मारी गयी थी, जो ये फोटो मैने मोबाइल में सहेजे हुए थे। इन फोटो ने तो मुझे बर्बाद कर के ही छोड़ा।

अब गूँगे की तरह खड़े रहोगे या मुह से कुछ बकोगे भी....??? अरुण मुझे सिर्फ सच सुनना आखिर क्या है ये सब....????

कुसुम की कर्कश आवाज मेरे कानों में एक बार फिर से गूंजी।

मै बिस्तर पर बैठ गया, मेरा सिर झुका हुआ था लेकिन मैने अब तक हार नही मानी थी। और मैने सारी सच्चाई बड़े धेर्य के साथ विस्तारपूर्वक कुसुम को बताना शुरू किया।

कुसुम शायद तुम नहीं समझोगी मेरे प्यार और हवस के भेद को क्योंकि जो मेरा है, उसकी समझ भी तो मेरी है न, तुम्हारी नज़रों का, सोच का, मैं क्या कर सकता हूं भला।

मैं जब एक बेटी की तरह रिंकी को दुलारता हूं इसका मतलब ये नहीं की हवस से वसीभूत हूं मैं, इसका मतलब ये है की मुझे सच में उसे दुलारना होता है, अपनी सगी बेटी की तरह निश्चल भाव से...... मैं जब उससे लिपटता हूं दुलारते वक्त, या फिर बात करते वक्त, तो वो हवस नहीं बस एक सुकून होता है मेरे लिए, जो ये एहसास कराता है की, हां मेरी बेटी मेरे पास है पर सोच तुम्हारी, मेरे एहसासों को हवस तक ले के जा रही है।

मैं जब उसे अधिकांश वक्त चूमता हूं माथे पे, होंठो पे या गालों पे तो ये भी मेरी हवस नहीं होती पर तुम मानती हो और चाहती हो की मैं भी इसे मानू की ये मेरी हवस हैं लेकिन सच कहूं वो मेरी हवस नहीं होती वो बस अपना प्यार जाहिर करने का तरीका मात्र है,


ये सारे फोटो और वीडियो मेरी बेटी रिंकी के साथ मेरे उसी प्यार, दुलार, लाड़ की निशानी है। ठीक जिस तरह जब एक माँ अपने बेटे को खुद से लपेट कर आँचल में समेट कर आगोश में लेती है तो उस वक्त सिर्फ माँ के ह्रदय में ममता के भाव ही होते है, ठीक मेरा भी अपनी बेटी के साथ इस तरह लिपटना, उसे आलिंगन करना सिर्फ और सिर्फ बाप की बापता का ही भाव है।

चलो अपनी बेटी से प्यार के बारे में मैंने बता दिया अब मै थोड़ा हवस के बारे में बात कर लेता हू । हवस होती है जो किसी परस्त्री पर गलत तरीके से डाली गयी नजर, ना की अपनी बेटी पर डाली गयी निगाह, अगर मेरी बात तुम तक, तुम्हारे दिल दिमाग तक पहुंचे तब तुम समझोगी प्रेम की अधिकता आसक्ति की वजह होती है, और आसक्ति की अधिकता हवस को जन्म देती है, और अपनी बेटी के साथ प्यार करना हवस नहीं होती है, आसक्ति की भावना से प्रेरित परस्त्री से प्यार हवस होती है।

"मेरी नीयत में बेशक फरेब था. लेकिन मैने जो कहा, वह सोलह आने सच था."......!

मुझे नही पता उसे मेरे कहे शब्दों के मायने ठीक से समझ आये या नही। लेकिन मेरा छोड़ा गया शब्दों का तीर कहीं ना कही कुसुम के दिल दिमाग में सही निशाने पर लगा था। अब इस वक्त मुझे उसके मुख से बस अगले निकलने शब्दों का इंतजार था।

मेरी बात सुन कर कुसुम सोच में डूब गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इन चंद बाप बेटी के फोटो की वजह से अनायास जो स्थिति बन गई है, उससे कैसे निपटा जाए.

कुसुम का गुस्सा भी अब शांत हो कर सुस्त पड़ गया था. कुछ देर खामोश बैठी रहने के बाद वो उठ कर दबे पाँव बेडरूम के दरवाज़े के पास गयी. वो कुछ पल खड़ी खड़ी सोचती रही और फिर वापस बिस्तर पर आ कर बैठ गयी. और रिंकी को फोन लगाने लगी।

ये देख मै डर गया ‘कहीं रिंकी ने कुसुम के सामने मुँह खोल दिया, तो मैं तो कहीं का नहीं रहूँगा…'


कुसुम ने रिंकी को फोन कर के सिर्फ उसके वापस आने का समय पूछा ??? और फोन काट दिया। काफी सोचविचार के बाद कुसुम ने मुझ को इस हिदायत के साथ साफ साफ दो टूक शब्दों में कहा कि मै कभी भी उसकी बेटी रिंकी पर बुरी नजर नहीं डालूँगा ! यह बात कुसुम ने अपने तक सीमित रखी ।

उसी रात जब कुसुम आकर मेरे बगल में लेटी तो सो मैने उसको कुछ सुख देने का सोचा, लेकिन एक दो बार जब कुसुम ने मेरे उकसावे का जवाब नहीं दिया तो मै चुपचाप लेट कर सोने लगा.

"ऐसा नहीं है कि कुसुम मुझ से प्यार नहीं करती. मगर कई बार रिश्तों में ऐसे मोड़ आते हैं,तब रिश्ते भार बन जाते हैं और मन में खालीपन घर कर जाता है. कुसुम की जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही दौर आया था. और जिंदगी में एक नया अध्याय जुड़ने लगा था."

एक बात जो मैं आसानी से महसूस कर सकता था, वह यह कि मेरी बीवी कुसुम की खोजी निगाहें अब शायद मुझ पर ज्यादा गहरी रहने लगी थीं. मेरे अंदर चल रही भावनात्मक उथलपुथल और अनकही दास्तान का जैसे उसे एहसास हो चला था. यहां तक कि यदाकदा वह मेरे मोबाइल भी चैक करने लगी थी.

उस दिन के बाद मैंने कभी भी कुसुम से इस संदर्भ में कोई बात नहीं की. न ही कुसुम ने कुछ कहा. मगर उस की शक करने और मुझ पर नजर रखने की आदत बरकरार रही.

मेरी मम्मी भी कुसुम की उदासी का कारण नही जान पायी। जब वो कभी उससे उदासी की वजह पूछती तो कुसुम बस नौकरी और काम का बहाना बना देती. मोबाइल की फोटो वाली घटना के बाद से ही कुसुम ने मेरे साथ कभी भी शारीरिक संम्बंध नहीं बनाए थे। हालांकि पहले भी कुसुम की अन्य शहर में नौकरी के कारण हम दोनों 15 दिन में एक या दो बार ही सेक्स करते थे पर अब तो वो भी बिल्कुल बन्द हो चुका था। मै अपनी तरफ से भी कभी कोशिश करता तो भी कुसुम का ठंडा रेस्पांस देखकर मै भी ठंडा हो जाता.. उस फोटो कांड के बाद मेरा सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि अब कुसुम पहले जैसी हसमुंख इंसान नही रही थी, ना जाने दिल में कौनसी चोट खाये बैठी थी...!

उधर रिंकी की जिंदगी में पापा के प्यार की बगिया बखूबी खिलने लगी थी. वो मैसेज व शायरी के साथ साथ अब रोमांटिक वीडियोज और चटपटे जोक्स भी शेयर करने लगी थी. कभी कभी मुझे चिंता होती कि मैं इन्हें देखते वक्त इतना घबराया हुआ सा क्यों रहता हूं? निश्चिंत हो कर इन का आनंद क्यों नहीं उठा पाता? जाहिर है, चोरी छिपे कुछ किया जाए तो मन में घबराहट तो होती ही है और वही मेरे साथ भी होता था. आखिर कहीं न कहीं मैं अपनी बीवी से धोखा ही तो कर रहा था. इस बात का अपराधबोध तो मुझे था ही.

अब तो समय के साथ रिंकी की हिमाकतें और भी बढ़ने लगी थीं. मैं भी बहता जा रहा था. एक अजीब सा जनून था जिंदगी में. वैसे कभी कभी मुझे ऐसा लगता जैसे यह सब बिलकुल सही नहीं. इधर कुसुम को धोखा देने का अपराधबोध तो दूसरी तरफ रिंकी का बढ़ता आकर्षण. मैं न चाहते हुए भी स्वयं को रोक नहीं पा रहा था

एक दिन रिंकी ने मुझे एक रोमांटिक सा वीडियो शेयर किया और तभी कुसुम भी बड़े गौर से मुझे देखती हुई गुजरी. मैं चुपके से अपना मोबाइल ले कर बाहर बालकनी में आ गया. वीडियो डाउनलोड कर इधर उधर देखने लगा कि कोई मुझे देख तो नहीं रहा. जब निश्चिंत हो गया कि कुसुम आसपास नहीं है, तो वीडियो का आनंद लेने लगा. उस वक्त मुझे अंदर से एक अजीब सा रोमांटिक एहसास हुआ. उस समय अपनी बेटी रिंकी को बांहों में भरने की तमन्ना भी हुई मगर तुरंत स्वयं को संयमित करता हुआ अंदर आ गया.

कुसुम की अनुभवी निगाहें मुझ पर टिकी थीं. निगाहें चुराता हुआ मैं लैपटौप खोल कर बैठ गया. मुझे स्वयं पर आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा कैसे हो गया? मन का एक कोना एक अनजान से अपराधबोध से घिर गया. क्या मैं यह ठीक कर रहा हूं? मैंने कुसुम की तरफ देखा.


कुसुम सामने उदास सी बैठी थी, जैसे उसे मेरे मन में चल रही उथलपुथल का एहसास हो गया था. अचानक वह पास आ कर बोली, ‘‘ मैने काफी सोच विचार कर एक फैसला लिया है कि "रिंकी को अपनी नानी के घर रहना चाहिए, उसकी नानी, जूली की शादी के बाद अब बिल्कुल अकेली पड़ गयी हैं, वहा उनके साथ रहेगी थोड़ा गृहशथि के काम मे हाथ बटायेगी, उसका कॉलेज भी नानी के घर के ही पास है "

(शायद कुसुम का दिमागी तर्क था कि उसकी बेटी नानी के घर जा कर वह हर वक़्त उसके पति का सामना करने से बच सकेगी, उसे अब बाप बेटी की हँसी ठिठोली फूटी आँख नहीं सुहाती थी! कुसुम ने ये भी ठान लिया था कि अगर रिंकी ने नानी के घर जाने मे जरा सी भी आना कानी की तो वह जहर उगलने में एक पल की भी देरी नहीं करेगी)

कुसुम की उदासी व रिंकी के दूर होने का एहसास मुझे अंदर तक द्रवित कर गया. ऐसा लगा जैसे रिंकी को बरगलाने मे मेरा ही हाथ है, और मैं ही उस का दोषी हूं. अजीब सी कशमकश में घिरा मैं सो गया. सुबह उठा तो मन शांत था मेरा.

मेरी हालत थोड़ी अजीब सी थी. रिंकी की जुदाई की पीड़ा लफ़्ज़ों में भी बयान नही की जा सकती. एक तरफ तो मैं आज नौकरी पर नही जाना चाहता था क्योंकि कुसुम ने मेरे साले को रिंकी को ले जाने के लिए बुलाया था और मै उसे अपने घर में

कयि महीनों बल्कि कयि सालों तक अपने पास रखना चाहता था. मगर ऐसा संभव तो नही था.

मै उस दिन अपनी नौकरी पर चला तो गया पर अपना दिल अपना चैन सब कुछ रिंकी के पास रख गया । रिंकी का भी यही हाल था । वह भी बेचैनी का अनुभव करती रही ।

कुसुम ने भी अपना इरादा पक्का कर लिया था, उसने सोचा तो था कि अगर घर में किसी ने मुझे रिंकी को अचानक से उसकी नानी के घर भेजने का कारण पूछा तो वह सास ससुर ( मेरी मम्मी पापा) को सब सच-सच बोल देगी, लेकिन जब उसने घर पर उसके फैसले पर किसी को कोई ऐतराज ना करते हुए देखा तो उस से कुछ कहते न बना. और बात टलते-टलते टल गयी.

कुसुम को एक और बात भी खल रही थी, उसके मायके की आर्थिक हालत सही नही है, तो उसे ही रिंकी की पढाई और अन्य खर्चे के साथ-साथ मायके में माँ-बाप, भाई के खर्चा के लिए भी पैसा भेजना पड़ेगा. परंतु इस बात पर काफ़ी गहरायी से सोचने के बाद " अगर उसका पैसा ख़र्च होता भी है तो अब उसे फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए, यह उसका फर्ज था बस उसकी बेटी उसके पति से दूर रहे, भले ही इसके लिए उसका ज्यादा ख़र्चा हो रहा हो."

दोपहर के खाना के बाद, रिंकी के नानी के घर जाने का समय आ गया. कुसुम ने साले की जिद करने के बाबजूद अपने आप ही उसके साथ जाना यह कह कर टाल दिया कि ऑफ़िस में पहले ही काफ़ी काम बाक़ी पड़ा है, सो वो अभी नहीं जा सकेगी. इसी तरह, कुछ अपनों का प्यार और कुछ अपने कल के बुरे अनुभवों से बाहर निकलने के सपने लिए रिंकी नानी के घर के लिए रवाना हो गयी.

उसी शाम को......! मुझे घर जाने की जल्दबाज़ी भी हो रही थी, जैसे जैसे घर नज़दीक आता जा रहा था मेरी धड़कन बढ़ती जा रही थी. मैं अपने मन को तस्सली दे रहा था कि शायद किसी वजह से कुसुम ने रिंकी को नानी के घर भेजने का फैसला बदल दिया हो....!

मै जब घर में दाखिल हुआ तो देखा रिंकी घर पर नही थी. शायद ऊपर अपने कमरे में होगी. मैं उसके कमरे की ओर चल पड़ा. मैं तेज़ तेज़ कदम उठा रहा था. मेरी उस समय एक ही ख्वाहिश थी कि जल्द से जल्द उसका खूबसूरत चेहरा देख लूँ, तभी मेरे दिल को सकुन आने वाला था. मगर कमरे मे पहुँचते ही मेरे पैर ठिठक गये. कमर बंद था. मुझे घबराहट होने लगी. मैं बैचैन मन को तस्सली देता वापस चल दिया.

मैं अपने और रिंकी के कमरे से होकर मम्मी के कमरे में गया, पर वो वहाँ नही थी. शायद वो रसोई में थी. मैं रसोई की और गया देखा मम्मी वहीं थी और एक कुर्सी पर बैठी हुई थी, कुसुम भी पास खड़ी हुयी थी मेरी ओर उसकी पीठ थी. मैने रसोई की ओर जाते हुए मम्मी को पुकारा मगर वो सिर्फ तीन शब्द ही बोली...!

"वो चली गयी....,.,......."

उन्होंने पीछे मुड़कर भी नही देखा. मैं थोड़ा हैरान था, ये मम्मी को अचानक क्या हो गया.


जारी है....... ✍🏻
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मैं अपने और रिंकी के कमरे से होकर मम्मी के कमरे में गया, पर वो वहाँ नही थी. शायद वो रसोई में थी. मैं रसोई की और गया देखा मम्मी वहीं थी और एक कुर्सी पर बैठी हुई थी, कुसुम भी पास खड़ी हुयी थी मेरी ओर उसकी पीठ थी. मैने रसोई की ओर जाते हुए मम्मी को पुकारा मगर वो सिर्फ तीन शब्द ही बोली...!

"वो चली गयी....,.,......."

उन्होंने पीछे मुड़कर भी नही देखा. मैं थोड़ा हैरान था, ये मम्मी को अचानक क्या हो गया.

मै अंजान बनते हुए बोला.. कौन चली गई???

तेरी लाडो रानी... मम्मी ने टोंट मारा..

लेकिन तुम्हारी लाडो रानी तो मौजूद हैं. ये क्यों रुक गयी, ये भी चली जाती ??? मैने भी जानबूजकर कुसुम की ओर व्यंग भरा कटाक्ष किया.


'तुम्हारी छाती पर मूंग दलने के लिए.'

कुसुम ने ऊंचे स्वर में एकदम से पलट कर जबाब दिया....!

अरे बस करो तुम दोनों बेबजह की जिरह ...... अरुण बेटा जाकर हाथ मुह धो मै खाना परोसती हू. मम्मी ने तुरंत मामला शांत करवा दिया.

आधी रात गुज़र चुकी थी. दीवार से टेक लगाए बेड पर बैठा मैं कमरे के गहरे अंधेरे में खुद को छुपाने की कोशिश कर रहा था. रोशनी अब आँखो को चुभती थी, उजाला उस भयानक सच्चाई की तकलीफ़ को और बढ़ा देता. अंधेरे में अपनी तन्हाई में, उस अकेलेपन में, रिंकी के साथ बिताए एक एक पल को मैं याद कर रहा था. वहीं दिल में दर्द की लहरें उठ रही थी. मुझे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी. लगता था जैसे अंदर कुछ टूट रहा था. मेरी बेटी के साथ मेरे रिश्ते में कुछ भी ग़लत नही था.

अगली सुबह मै वक्त से आधे घंटे पहले नौकरी के लिए जाने वाला था कि मेरे पिताजी की पीछे से आवाज आई.

अरुण.. जरा मुझे बैंक तक छोड़ दोगे...??

मैने हाँ मे उन्हें स्वकीर्ति देदी. वो और मै एक साथ बाइक पर निकल गये. चूंकि बैंक को खुलने मे अभी काफी वक्त था तो पिताजी बोले अरुण अगर देर ना हो रही हो तो एक एक चाय पी ले.

हम दोनों बाप बेटे चाय वाले की रेहड़ी पर चाय की चुस्किया लेने लगे. चुस्किया लेते हुए अचानक पिताजी बोले.

अरुण मै तुम्हें कुछ समझाना चाहता हूँ, मानना या ना मानना तुम्हारी मर्जी तुम परिपक्व हो चुके अच्छा बुरा दोनों की समझ रखते हो.

मैंने प्रश्नवाचक नजरों से पिताजी की तरफ देखा और बोला आप जो भी कहना चाहते है, निश्चित ही मेरे अच्छे के लिए ही होगा आप खुल कर बताइये.

अरुण तेरी शादी को एक साल होने वाला है, और मेरी शादी जितनी तेरी उम्र है उससे एक साल ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं. बेटा इस हिसाब से मै तेरा सीनियर हू. तू मुझे एक बात बता तेरी माँ कैसी माँ है...???

अच्छी.. मैने धीरे से कहा.

सिर्फ अच्छी...??? पिताजी ने फिर से जोर दिया.

बहुत अच्छी. मेरी माँ 'बहुत अच्छी माँ' है.. मैने मुस्कुरा कर कहा.

अरुण तेरी माँ ने 'अच्छी' से 'बहुत अच्छी' तक का सफर इतनी आसानी से तय नहीं किया है, बहुत बलिदान दिया है. तेरी माँ और मेरी उम्र में एक दशक (दस साल) से ज्यादा का अंतर है, और इस अंतर को सहज रूप से स्वीकार करना किसी भी स्त्री के लिए आसान नहीं होता है. बड़े उम्र के पुरुषों के साथ ब्याही गई स्त्रियों को भी अपनी उम्र से अधिक बड़ी हो जाना पड़ता है. अपनी इच्छाओं अपने सपनों और अपनी कामनाओं की छाती,पेट, कमर, सिर और पैर को रौंदकर चढ़ना पड़ता है उम्र की सीढ़ियों को. स्त्री का बडी उम्र के पुरुष की ब्याहता होना अपनी ही उम्र के भीतर रहकर उसे उम्र के कांटे को बराबर रखने के लिए दबानी पड़ती है अपनी मुस्कुराहट, आंखों की चमक और अपना अस्तित्व और देखते ही देखते वो बड़े उम्र के पुरुष से पहले ही हो जाती है बूढ़ी ...,,,!!!!

अरुण विवाह के वक्त कुंडली में मिलाये गये गुण का कितना महतव् होता है मुझे नही पता, लेकिन विवाह पश्चात पति पत्नी का समगुणी-सद्गुणी होना बहुत जरूरी होता है.

सुनीता (मेरी माँ नाम) को हमेशा यह भरम बना रहता था कि उसके पति ने यानी मैंने जवानी के दिनों में बड़े गुल खिलाये होंगे ।

एक बार यदि भरम का कीड़ा मन मे बैठ जाये तो कितनी भी खुदाई निराई गुड़ाई कर लो बाहर निकलता ही नहीं जब-तब काटता कचोटता ही रहता है , जिसकी वजह से उसे खुजली मचती रहती थी ।

उसकी एक दिक्कत यह भी थी कि मौसमानुसार यदि ज़रा छेड़छाड़ शुरू करो तो वो फ़्लैश बेक में चली जाती।

एक शाम बादल कुछ ज़्यादा ही गहरा गए थे , मैने भी ठान ली कि कीड़े को मार कर ही रहूंगा ।

जैसा कि होना था हाथ पकड़ते ही बोली , ' बताइए न कॉलेज में कोई थी क्या ?' और मैं भी बादलों की ओर मुंह उठा कर बोला , ' अरे क्या छेड़ दिया तुमने भी , बहुत कुछ हुआ उन दिनों ..! '

बस फिर क्या बगल से उठ कर सामने आ बैठी और उसका पूरा चेहरा ही मानो प्रश्रचिन्ह ही बन गया !

मैं भी इत्मीनान से शुरू हो गया ।

" सुनो , उस वक़्त एक ही बात समझ में आयी कि लड़कियां अजीब ही होती हैं इनको समझना नामुमकीन है , जितना दूर रहो उतना ही अच्छा !"

" क्या हुआ था सब सुनना है मुझे ?" तेरी माँ ने फौरन पालथी मार दर्शा दिया कि आप बोलो मैं सब सुनूँगी , मैं भी यही चाहता था और शुरू हो गया !

" अब तुम तो जानती हो कि मैं न तो गाता बजाता हूँ न स्केच बनाता हूँ न शायरी नज़्म कविता कहानी ही लिखता हूँ और न ही सुपर स्मार्ट या इंटेलिजेंट ही हूँ , यानी मुझमें कोई भी गुण न था न है और यह बात मैंने कभी किसी भी लड़की से नही छुपाई !

पहली लड़की ने मुझसे बातचीत करने की पेशकश की पर मेरी ये बातें सुनते ही बोली कि तुम में कोई भी गुण ही नही है , तुम से मुझे कोई बात नही चलानी तुम मेरे जैसे नही !

दूसरी लड़की बोली कि भाड़ में जाये सानू की फर्क पेंदा , रुपया पैसा तगड़ा कमाओ बस मेरे लिए वही बहुत है ।

तीसरी लड़की बोली तुम्हे गुण सिखाना मेरे बायें हाथ का खेल है तुम्हे मेरे जैसा बना ही लूंगी !

चौथी बोली कि तुम बेकार चक्कर मे न पड़ो , मैं जो जैसा कहूँ वही करते चलना बस !

सुनीता यह तो समझ गयी कि इन चारों संग मेरी कहानी चली नही ! पूछ ही ली कि बताइए आपने मुझसे ही शादी क्यों कि ?

मैं इतना ही बोला , " सुनीता , एक तुम ही थी जिसने मुझ से कहा कि आप जैसे हैं वैसे ही मुझे चाहिए कुछ भी बदलने की ज़रूरत नही ! मेरी सोच भी यही थी और तुम मेरे जैसी ही निकली ! "

बात सुनते ही वो सामने से उठी और झट से मेरी बगल में आ सटी ! मेरा यही एकमात्र सटने का पसंदीदा गुण उसने भी उठा लिया है और चाहिए भी क्या ?

जब मन एक हों तो गीत संगीत रंग चित्र कविताएं शेरो शायरी खुद ब खुद निकलने लगते है , हम दोनों समगुणी भी हैं और सद्गुणी भी ।

शायद तुझे पता नही है बेटा.. तेरा और बहु का रिंकी को अचानक से भेज देने के फैसले पर मै कुछ क्यो नही बोला क्योकि जब शादी के वक्त रिंकी को साथ रखने की बात चली थी, उस बात से तेरी माँ और मै कतयी सहमत नहीं थे, लेकिन तेरी और बहु की खुशी के लिए हम चुप रहे और कल जब बहु ने उसे वापस भेज दिया तब भी हम चुप रहे.

लेकिन मै अपने अनुभव से इतना समझ सकता हूँ कि बहु ने ये फैसला क्यो लिया, अरुण प्रेमिका का पत्नी हो जाना एक घटना है, और पत्नी का प्रेमिका हो जाना एक अधिद्वित्य घटना है, बहु तुझे एक प्रेमिका की तरह प्यार करती हैं. और तेरा प्यार किसी के साथ बटता हुआ नही देख सकती. चाहे उसकी खुद की सगी बेटी क्यो ना हो.

बेटा मर्द का क्या है वह तो हमेशा वही चीजों के पीछे दौड़ता है जो उसे अच्छी लगती है । तेरी हालत उस मृग की तरह है जो उस कस्तूरी की सुंगन्ध के लिए यहा वहा भटकता रहता है, जो स्वयम उसकी नाभि मे मौजूद होती हैं. तेरी प्रेमिका तेरे घर में है और तू क्यू बेवजह यहा वहा भटक रहा है. खुश नसीब है तू जो समगुणी-सद्गुणी और इतना प्यार करने वाली पत्नी मिली है....!

अभी तो वक़्त है खुद की गृहस्थी बसाने का, ध्यान दो वर्ना कुछ भी हासिल नहीं कर पाओगे ।"

मै अभी सिर झुकाए वहां बैठा था ।

"अब जाओ, इतना ही कहने को तुम्हारे साथ मे आये थे । अभी समझ आ जाए तो अच्छा है वर्ना बाद में सिवाए पछताने के कुछ कर नहीं पाओगे ।"

मै कुछ नहीं बोला बस पापा को जाते हुए देख रहा था ।

”बेटा पिता की बातों को समझ गया था ये देख कर पिता को अच्छा लगा । बेटा आगे क्या करेगा ये तो पता नहीं, लेकिन अब से अपनी पत्नी की इज़्ज़त ज़रूर करेगा ये पक्का है."

शाम को नौकरी से वापस आने के बाद मैंने घर में प्रवेश किया, कुसुम किचिन् मे मौजूद थी और मेरे माता पिता हॉल मे बैठे थे.

मैने स्टाइल में बाइक की चाबी उछाली , और कहा, "मुझे बहुत भूख लगी है। क्या पका है?

सोफे पर बैठ कर अपने जूते उतार रहा था तभी कुसुम की रोमांटिक आवाज आई।

I LOVE YOU!

मैं चौंक गया अपनी बीवी कुसुम को ध्यान से देखा। उसकी काजल भरी आँखों में प्यार था। काले बाल लहरा रहे थे। उसके गुलाबी होठों पर मुस्कान थी। शादी को एक साल होने को आया था मगर कुसुम ने कभी अपने सास ससुर के सामने इस तरह खुलेआम इतनी जोर से कभी I Love you नहीं कहा था मगर ख्याल आया के चलो बोली है तो में भी इंग्लिश में ही जवाब दे दूँ मैंने अपनी बीवी कुसुम से भी ज्यादा प्यार से, और भी रोमांटिक अंदाज में कहा ......

"I LOVE YOU TOO"

अचानक मेरी बीवी के लहजे मे से रोमांस छू हो गया और मुस्कान उसके होठों से निकल गई और आंखें सिकुड़ गईं। उसने कर्कश स्वर में कहा, "मैं कब से कह रही हूं कि अपने कानों का इलाज कराओ कभी उनमें सीटी बजती है। कभी पटाखे बजते हैं। कभी संगीत बजता है।"

वैसे Love you Too का शुक्रिया, लेकिन में ने I Love you नहीं कहा था !

आप ने पूछा, क्या पकाया है?
मैंने कहा था, आलू...!

इस बात पर सबके चेहरे पर हंसी खिल गई ।

शाम को बाकी लोगों ने भी खाना खा लिया था और अपने अपने रूम में चले गए, कुसुम ने बर्तन साफ किये और बाकी छोटा मोटा काम खत्म करके बेड रूम में आ गयी,

और मुझे देख कर वो दरवाजे पर ठिठक गई, हम दोनो की नजर मिली और उसकी आंखे भीग गई……वो हल्के पैरो से चलते हुए मेरे पास आई मैं अपनी जगह पर खड़ा उसे अपनी ओर आते देख रहा था,दोनो की नजर बस एक दूसरे की नजरो में ही खोई थी ,उसके पायल के छोटे से घुंघरू हल्के हल्के से आवाज कर रहे थे,जैसे जैसे वो मेरे पास आती वो आवाज थोड़ी और बढ़ रही थी ,

इतने दिनों तक जिस पल का इंतजार और अचानक ही जब वो सामने हो ……..दिल की धड़कने भी थोड़ी बढ़ ही जाती है ,वो आकर मेरे सामने खड़ी हो गई ,हम एक दूसरे को देखने के सिवा और कुछ भी नही कर रहे थे,उसका चहरा मेरे चहरे के पास आया और हमारे होठ मिल गए,मेरे हाथ अनायास ही उसके बालो में फसकर उसके चहरे को अपनी ओर खिंच रहे थे,और मेरी जीभ उसके होठो से अंदर किसी अस्तित्व की तलाश में जा चुके थे……..

'चुम्बन की दीर्घता संभोग की गहनता से अधिक रोमांटिक होती है। संभोग संतोष प्रदान कर सकता है किंतु आत्मतोष का साधन होंठो की गुलजार गलियां हैं।'

हम काफी देर तक युही एक दूसरे से लिपटे हुए बस एक अहसासों की दरिया में डुबकी लगा रहे थे,पूरी दुनिया जैसे खो चुकी थी और समय कि कोई सीमा नही थी ,समय मानो खो गया था…..

आज हम दोनो की पूरे एक महीने से दबी वासना बाहर निकल चुकी थी और दोनो ही जानते थे कि अगर ये वासना शांत न कि तो दोबारा कहीं कुछ गलत न हो जाये,

“ओह जान तुम तो किसी भी मर्द को अपना गुलाम ही बना दोगी..”

मेरे मुह से यही निकला जब मैंने कुसुम की योनि में अपना वीर्य उड़ेल दिया …

मैं थका हुआ उसके ऊपर पड़ा हुआ था वही वो मेरे सर को सहलाती हुई शांत पड़ी थी,जब मैंने उसकी आंखों में देखा तो वो उसकी आंखों में एक अजीब सी हलचल थी और होठो पर एक कातिल मुस्कान…

“सच में मैं किसी भी मर्द को अपना गुलाम बना सकती हु..”

कुसुम की बात से मेरे भी होठो पर एक मुस्कान खिल गई ..

“मुझे तो बना ही चुकी हो …”
वो हल्के से हँसी ..

“अच्छा,लेकिन मुझे तो लगता है की मैं आपकी गुलाम बन चुकी हु ,आपके प्यार के आगे मेरी हुस्न की क्या मजाल है,जब से हमारी शादी हुई है आपके प्यार की काशिस् ने मुझे अपना गुलाम ही बना दिया है…”

उसकी आंखों से छलकती हुई सच्चाई की बूंदों को मैंने अपने होठो में भर लिया …

“तुम्हारे हुस्न और सच्चाई ,तुम्हारी ये प्यारी सी आंखे और भरे हुए होठो से छलकते हुए रस के प्याले ,किसी भी मर्द को पागल बना देंगे….तुम जब हंसती हो तो लगता है की चांद खिल गया है,तुम्हारा रूठा हुआ चहरा भी इतना प्यारा है की दिल करता है अपना सब कुछ तुम्हारे कदमो में रख दु …”

मेरी आवाज में कुसुम के लिए बस प्यार ही प्यार था..

और उसके आंखों में आंसू ,जिसे मैं अपने होठो से हल्के हल्के से चूम रहा था,

" कुसुम सुनो,कहाँ खोई हो ?
मुझे तुमसे कुछ बात भी करनी है"

"सुनो जी मुझे भी आपसे कुछ बात करनी है"
"अच्छा पहले तुम बताओ"

"नही पहले आप कहिए, क्या कहना चाहते हो"

कुसुम हमारी शादी को कुछ हफ़्तों मे एक साल हो जायेगा. लेकिन हम एक दूसरे को कभी समझ ही नही पाए। या शायद समझने को कोशिश ही नही कर पाए। लेकिन इन पेन्तीस दिनों ने मुझे ये अहसास करवा दिया है कि तुम्हारे बिना तो मैं बिल्कुल जीरो हूँ। तुम्हारा आसपास होना ही मुझे पूर्ण कर देता है। तुम हो तो मैं हूँ, तुम नही तो मैं कुछ भी नही। अब जाके अहसास हुआ है कि इस पति पत्नी के रिश्ते की अहमियत क्या होती है। क्या तुम मुझे माफ़ कर सकोगी। शायद ये कहने में मैंने बहुत देर कर दी लेकिन सच मे कुसुम मुझे अब तुमसे प्यार हो गया है।"

“इतना ही प्यार करते हो तो उसे साफ साफ मना क्यो नही करते….”

उसकी इस बात से मैं सकपका गया,

ना जाने क्यो लेकिन उसकी ये बात मुझे अच्छी लग रही थी, ऐसी है मेरी बीवी कि उसे मेरे सिवा किसी और की (अपनी कोख से जनमी बेटी) फिक्र ही नही…!

मेरे होठो में हल्की मुस्कान तैरने लगी …

मैने कुसुम के हाथ को अपने हाथ मे ले लिया और बोला,मेरे जीवन में सिर्फ तुम ही एक लड़की हो , ट्राई सब पर किया लेकिन कभी कोई लड़की पटी ही नही....... उसने झूठे गुस्से से मुझे मारा ..

"अच्छा अब तुम बताओ तुम क्या कहना चाहती हो'

मेरी बातें सुन कर कुसुम की तो जैसे बोलती ही बन्द हो गयी थी। जिस बात को सुनने के लिए उसने इतने दिन इंतजार किया आज उसको सुनकर उसकी आँखों से गंगा यमुना बह निकली। उसने अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया और बहुत देर तक मेरा कंधा अपने आंसुओं से भिगोती रही।

आखिर वो भी तो यही कहना चाहती थी अपने पति प्रियतम से..!!!

वो मुझसे लिपट गई और मैं उससे,जिस्म में कोई आग तो नही थी बस अहसास था एक दूसरे के होने का अहसास...मैं उसके बालो को हल्के हल्के ही सहला रहा था वही वो आंखे बंद किये मेरे कंधे पर ही लेटी थी...हमारे रिश्ते में आगे क्या होने वाला था इस बात की गारेंटी दोनो में कोई नही दे सकता था,



जारी है..... ✍🏻
Awesome update दोनो के गिले शिकवे दूर हो गए
 
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