#अपडेट १७
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कई दिन तक महाराज और महारानी युविका को समझते हैं, इसी बीच कुमार और नैना की सगाई भी हो जाती है। इधर सबके इतना समझने पर भी युविका अपनी जिद नही छोड़ पाती, लेकिन ऊपर से वो अब शांत दिखती थी, और एक दिन वो कुछ निर्णय ले कर भैंरवी के पास कुछ साधना करने चली जाती है.....
अब आगे
इधर कुमार की शादी नजदीक आती जा रही थी, और उधर युविका किसी साधना को करने के लिए भैंरवी से मिलने जाती है।
भैंरवी को युविका से कुछ ज्यादा ही लगाव था, और वो उसको अपनी ही पुत्री समान मानती थी। दोनो मे गहरी मित्रता भी थी और युविका उससे अपनी सारी बातें बताती थी। उसे युविका के कुमार के प्रति प्रेम का भी पता था, और कुमार और सुनैना की सगाई का सुन कर उसे भी झटका सा लगा था, क्योंकि वो भी मानती थी कि राजपुत्री होने के कारण कुमार उससे शादी करने को आसानी से मान जायेगा।
"प्रणाम मौसी।" युविका ने आश्रम में पहुंचते ही भैंरवी से मिलते हुए कहा।
"चिरंजीवी हो पुत्री। सदा खुश रहो।"
"अब कैसी खुशी मुझे रास आयेगी मौसी?" युविका ने उदास होते हुए कहा।
"क्यों पुत्री, ऐसे क्यों बोल रही हो?" भैंरवी ने चिंता से पूछा।
"सब जान कर भी अनजान क्यों बन रही हो मौसी?" युविका ने कहा, "क्या आपको पता नही कुमार मुझसे नही सुनैना से प्यार करता है, और शादी भी उसी से कर रहा है? मैने उसकी कितनी मिन्नतें की, लेकिन वो नही माना, उसका कहना है की उसने मुझेकभी दोस्त सा ऊपर समझा ही नही, और मुझसे शादी करके वो मुझसे शायद ही कभी प्यार कर पाएगा। उसकी इस बात का पिताजी ने भी समर्थन किया, मौसी।"
इतना बोलते ही वो रोते हुए भैंरवीं के गले लग गई। भैंरवी भी भावुक हो कर उसके सर को प्यार से सहलाने लगी। युविका बहुत ही जोर जोर से रो रही थी जिसे सुन कर भैंरवी का दिल भी दहलने लगा। वो उसे हर तरह से संतावना देते हुए चुप कराने लगी।
कुछ देर बाद युविका शांत हुई तो भैंरवी ने उसे समझाते हुए कहा: "देख बेटा दुनिया में सबको सब कुछ मिले वो संभव नहीं है। इसीलिए अब तू इस बात को भूल कर आगे बढ़, पूरी जिंदगी पड़ी है तेरे लिए, क्या पता ईश्वर ने कोई और भी अच्छा साथी चीन हो तेरे लिए।"
"मैं अब ईश्वर में कोई भरोसा नहीं रखती मौसी," युविका ने सुबकते हुए कहा, "मैं अब ईश्वर से आशा न रखते हुए जो मैं चाहूंगी वो पा कर रहूंगी।"
"कैसे?" भैंरवी ने कुछ हैरान होते हुए कहा।
"काली शक्तियों के द्वारा, और आप इसमें मेरा साथ देंगी, बोलिए देंगी न?"
"बेटा तुम अभी आपे में नहीं हो, कुछ दिन मेरे पास रुको, फिर हम इस बारे में बात करेंगे।"
"नही मैं निश्चय करके आई हूं कि मैं उन शक्तियों को पा कर रहूंगी जो मुझे दुनिया की सबसे ताकतवर स्त्री बना दे, और वो जो चाहे वो हासिल कर सके। और आप मेरा इसमे साथ देंगी।"
बहुत देर तक भैंरवी युविका को समझती रही, लेकिन वो नही मानी, अंत में भैंरवी ने उसे सोच कर एक दो दिन में बताने का फैसला किया।
कुछ दिनों बाद भैंरवी ने उसे एक जगह जाने को कहा, और उसे ये बताया कि यहां उसके गुरु बटुकनाथ रहते हैं जो बहुत पहुंचे हुए अघोरी हैं, और अगर जो युविका ने उन्हें मना लिया तो वो उन काली शक्तियों तक पहुंच सकती है जो उसे सब कुछ दिलवा सकती हैं। भैंरवी से आज्ञा लेकर युविका उसके बताए हुए स्थान की ओर पैदल ही चल देती है
कुछ दिनों के बाद युविका उस स्थान के पास पहुंचती है, जो एक बहुत ही भयंकर जंगल के अंदर होता है। वो जंगल इतना घना होता है की दिन में भी शाम सा अंधेरा रहता था, उस जंगल में लोग अकेले जाने से घबराते थे, क्योंकि वहां न सिर्फ जंगली जानवरों का खतरा था, बल्कि बटुकनाथ ने वहां अपनी काली शक्तियों का तिलिस्म भी बीच रखा था वहां पर। युविका को भैंरवी ने ये सब पहले ही बता दिया था, और युविका खुद कुछ काली शक्तियों की स्वामिनी थी, वो निर्भीक हो कर जंगल में चली गई।
कुछ अंदर जाते ही युविका को अपने दाई ओर से कुछ हलचल महसूस हुई, और उसने अपने धनुष बाण को तैयार कर लिया, तभी उसे एक जंगली सुवर पूरी रफ्तार से अपनी ओर आते दिखा, और ये देखते ही युविका ने अपना बाण उसकी तरफ छोड़ दिया जो सीधा उस सुवर के मस्तक को चीरता हुआ उसका काल साबित हुआ।
इसके बाद युविका और सावधानी पूर्वक आगे की ओर बढ़ते हुए एक बड़ी सी खाई के पास पहुंची जहां उसे एक भयानक आग सी जलती दिखी। युविका उसे देखते ही समझ गई कि ये एक तिलिस्म है, और वो चारों ओर देख कर फौरन साधना में बैठ गई, और कुछ समय के पश्चात उसे आग के बीच से आगे बढ़ने का मार्ग मिल गया।
उस मार्ग से आगे जाते ही युविका के सामने एक नदी आई जिसमे मगरमच्छ भरे हुए थे। जिसे देख युविका ने तुरंत ही अपने बाणों से सबको भेद कर पर जाने के लायक रास्ता बना लिया। और जैसे ही युविका ने नदी के दूसरे किनारे पर पैर रखा, उसे एक जोरदार अट्टहास सुनाई दिया ......