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Tri2010

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काया अपने चरम सूखा का आनंद लिए नींद के आगोश मे समा चुकी थी, शरीर का पानी चुत के रास्ते बह गया था.

रात 3बजे

बाहर खिड़की से आती ठंडी हवा के थपेड़े काया के जिस्म को सूखा चुके थे, ठण्ड से रोये खड़े हुए थे.

एक दम से काया की आंखे खुल गई, जैसे कोई सपना देखा हो.

आस पास देखा रोहित सोया हुआ था, उसके जिस्म के ऊपरी हिस्से पे ब्लाउज विधमान था,

काया ने घड़ी पर नजर डाली 3बजे थे, अभी जो थोड़ी देर पहले हुआ वो उसके जहन मे दौड़ गया, उसकी नजरें अपने पैर के पंजो पर गई, जिसमे कुछ समय पहले कय्यूम का लंड फसा पड़ा था, वो पल याद आते ही काया के जिस्म ने एक झुंझुनी सी ली.

पेट मे गुदगुदी सी होने लगी.

काया के चेहरे पे कोई पछतावा जैसा कुछ नहीं था, एक नजर रोहित की ओर देखा " ये मैंने क्या कर दिया, रोहित जग जाते तो " काया ने जो किया उसकी फ़िक्र नहीं थी, रोहित जग जाता तो ये चिंता थी.

चोर ऐसे ही सोचता है, कहीं पकड़ा जाता तो.

काया का गला सूखता सा महसूस हुआ, जांघो के बीच गीलेपन ने उसे थोड़ा असहज कर दिया था.

काया बिस्तर से उठ हाल मे आ गई, सामने अँधेरे मे कय्यूम सोया पड़ा था.

काया उस विशालकाय आकृति को देख मुस्कुरा दी, अँधेरे मे सिर्फ उसकी महसूस हो रहा था की कोई लेता है,

काया ने किचन मे जा कर फ्रिज खोल दिया.

पानी की बोत्तल निकाल पिने ही वाली थी की गड़ब.... थूक निगल लिया, हाथ से बोत्तल छूटने वाली थी,

सामने कय्यूम सोफे पर बिलकुल नग्न पड़ा था, बालो से भरा कला जिस्म सफ़ेद सोफे पर फ्रिज की हलकी रौशनी मे चमक रहा था.

काया के किये हैरानी उसका शरीर नहीं था वो तो पहले भी देख चुकी थी.

उसकी नजर मे कय्यूम की जांघो के बीच झूलता उसका काला मोटा लंड चुभ रहा था.

कदकपन पानी था, एक तरफ लुड़का पड़ा था लेकिन भयानक दिख रह था.
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काया का जिस्म मे एक बार फिर से खलबली सी मचने लगी, मर्दाने अंग को देखने की चाहत पनपने लगी.

उस वक़्त वो हिम्मत नहीं कर पाई थी, कैसे करती पराया मर्द कय्यूम उसे ही देख रहा था, लेकिन यहाँ कौन है, रोहित अंदर सो रहा है, कय्यूम खुद सो रहा है.

काया को वो अंग पास से देखना था, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा,

काया हाथ मे बोत्तल पकडे कय्यूम की ओर बढ़ चली. पीछे फ्रिज का दरवाजा कहीं अटक गया मालूम होता था रौशनी अभी भी आ रही थी.

काया का दिल धाड धाड़ कर रहा था, कदम कांप रहे थे कभी पीछे हटते तो दो कदम आगे बढ़ जाते.

काया सोफे तक का फैसला तय कर चुकी थी.

सामने सोफे पर विशालकाय शरीर का मालिक कय्यूम बिछा हुआ था.

काया धीरे से कय्यूम के पैरो की तरफ बैठ गई.

जैसे कोई बायोलॉजी का छात्र आज किसी जीव की रचना का बारीकी से मुयाना करने बैठा हो.

काया के सामने कय्यूम का नसो से भरा काला, बड़ा और मोटा लंड लुड़का पड़ा था.

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"बबब.... बाप रे.. ये... ये... इतना बड़ा " काया ने दूर से ही हथेली को पूरा खोल लंड के सामंतर रख नापा.

मुरछीत लंड भी उसकी हथेली से बड़ा था.

काया का दिमाग़ सांय सांय करने लगा, ऐसा भी होता है, ऐसा तो बाबू का भी नहीं था.

ये तो रोहित से भी कहीं ज्यादा बड़ा है, आज की रात ही उसने रोहित और कय्यूम दोनों के लंड देखे थे,

तो तुलना तो लाज़मी ही थी, रोहित का तो इसके सामने कुछ भी नहीं.

काया को वो दृश्य याद आ गया जब वो इसी भयानक लंड को अपने पैरो मे कैद कर निचोड़ रही थी.

"ईईस्स्स...... एक सिस्कारी सी काया के मुँह से फुट पड़ी.

काया ने चेहरा नजदीक ले जा के देखा, लंड के आगे गुलाबी सा मोटा आकर का कुछ था जिस के ऊपर एक छोटा सा लम्बाई मे चीरा लगा था.

कितनी अच्छी छात्रा थी काया कितनी बारीकी से समझ रही थी, तभी उसकी नजर लाल लकीर पर पड़ी, को की पुरे लंड पर ऊपर ज़े नीचे की तरफ बनी हुई थी, लगता था जैसे खून सुख के जम गया है.

काया को ध्यान आया उसके पैरो के नाख़ून कय्यूम के लंड पर खरोच मारते हुए गए थे, काया के हाथ आगे बड़े वो टटोल लेना चाहती थी, वजन, मोटाई नापने की इच्छा जाग्रत होने लगी...

की ठप्प...... थप्पक... की आवाज़ के साथ हॉल मे अंधेरा छा गया, काया ने पीछे मूड देखा फ्रिज का दरवाजा बंद हो गया था.

काया का जिस्म इस अँधेरे से उजाले मे आ गया," क्या करने जा रही थी मै.... नहीं.. नहीं... ये गलत है, वो खुद से ऐसा कैसे कर सकती है... नहीं.... " काया पानी की बोत्तल उठा बैडरूम की ओर चल दी.

सुबह 7 बजे, day -6

ट्रिन... ट्रिंग... ट्रिंग....

रोहित के फ़ोन की घंटी बज उठी,

"हहह.... हेलो... हेल्लो " रोहित ने आधी नींद मे जवाब दिया.

काया की नींद भी मोबाइल बजने से खुल गई थी.

"साब... साब मै मकसूद, आज नहीं आ पाउँगा "

"क्यों... क्या हुआ?"

"साब बीबी को मायके छोड़ ने जाना है"

"अरे भाई तो फिर मै बैंक कैसे जाऊंगा?" रोहित की नींद पूरी तरह से फुर्र... हो गई थी.

"पांडे को कार दे दी है वो आ जायेगें आपको लेने "

"ठ... ठीक है कट...."फ़ोन काट दिया.

"आ गया होश बड़े बाबू को " काया ने तुरंत ही गुस्सा करते हुए कहां.

"वो... वो.... सॉरी काया... पता नहीं कल क्या हो गया था ससस... सोरी "

क्या खाक सॉरी पूरी रात ख़राब कर दी अपने, खाना भी नहीं खाया "

"मुझे तो याद नहीं यार कुछ, सॉरी, वैसे मै घर कैसे आया?"

"वो... कय्यूम.... कककक.... कक्क..." काया को जैसे ही कय्यूम का ध्यान आया उसके हलक मे जबान फस गई.

तुरंत बिस्तर से खड़ी हो गई, भागते हुए बाहर हॉल मे आई,

उसे याद आया कय्यूम नंगा सोफे पर सो रहा है.

लेकिन सोफा खाली था " कहां गया.... " काया भागती हुई बाथरूम की तरफ भागी, बाथरूम तो खुला है कोई नहीं है, ककय्यूम के कपडे भी नहीं है, काया फिर से हॉल मे आई, कय्यूम के सफ़ेद जूते नहीं थे.

"उउउफ्फ्फ.... हुउउम.. फ़फ़फ़फ़...." लगता है चले गए,

काया का सीना डर के मारे फटने को था, चेहरे की हवाइया उड़ गई थी, उसे हुए तोते वापस आ चुके थे.

साथ ही रोहित भी.

"क्या हुआ काया? भागी क्यों? " सवाल लाजमी था

"कक्क.... कुछ नहीं मुझे लगा दरवाजे पर कोई है " काया साफ झूठ बोल गई थी.

"बताओ ना मै यहाँ आया कैसे?"

" कय्यूम जी आये थे छोड़ने, छोड़ के चले गए " काया जवाब देती किचन की ओर चल दी.

"भले आदमी है लोग फालतू की बेकार कहते है उसे, तुमने कुछ चाय नाश्ता करवाया या नहीं उन्हें "

जवाब मे काया सिर्फ मुस्कुरा के रह गई.

रोहित बाथरूम की ओर चल पड़ा और काया किचन मे खाना बनाने लगी.





थोड़ी देर बाद डाइनिंग टेबल पर.

"अच्छा सुनो ना रोहित मुझे कुछ सामान लेने है "

"हाँ तो जाओ, घूमो फिरो थोड़ा मन लगेगा "

"तो आप कार भेज देंगे आज?"

"ओह... सॉरी आज मकसूद नहीं है"

"फिर?"

"फिर क्या देख लेना कोई ऑटो वगैरह "

"यहाँ मिलेंगे ऑटो?"

"क्यों नहीं... काफ़ी चलते है, पांडे को बोल के भिजवा दूंगा "

"हाँ भई बड़े बाबू है आप तो" काया ने चुटकी लेते हुए कहां.

"तुम्हारे तो पति हूँ मेरी जान "

रोहित बैंक के लिए निकल गया,.

काया के सामने बहुत काम थे.

*********



आज सुबह से ही बादल लगे हुए थे,

"आज मौसम अजीब हुआ है पांडे " कार मे बैठे रोहित मे पांडे को कहां

"हाँ साब लगता है कहीं बारिश हो रही है, इसलिए यहाँ भी मौसम बिगड़ रहा है"

रोहित बैंक पहुंच चूका था

"सुमित क्या प्रोग्रेस है, कुछ लोन रिकवर हुआ "

"बिलकुल सर, कुछ कुछ तो आया है, लेकिन जो मोटा माल है वहाँ से नहीं आया है "

"मतलब?'"

" मतलब शबाना जी का, कय्यूम का? "

"कय्यूम तो दे देगा, उसने कहां है... इस शबाना का कुछ करना पड़ेगा "

"पांडे.... पांडे..." रोहित ने पांडे को आवाज़ लगाई

"जी सर...?" पांडे तुरंत हाजिर हुआ

"कार की चाबी तो मै काम से हो के आता हूँ "

"आप चला लेंगे? मै चलता हूँ ना?"

"कार चालानी आती है मुझे, अब रास्ते भी पता है मै चला जाऊंगा, वैसे ही बैंक मे स्टाफ की कमी है "

रोहित कार ले चल पड़ा शबाना की कोठी की तरफ.

इधर काया घर के कामों मे व्यस्त थी.

टिंग टोंग.....

"अभी कौन आया?" काया ने दरवाजा खोल दिया

"नमस्ते मैडम जी "

"बाबू तुम...." काया के चेहरे पे मुस्कान आ गई.

बाबू उसे अच्छा लगता था.

"कल से मिली नहीं ना?" बाबू के लहजे मे शरारत थी

"क्या नहीं मिली " काया पलट कर सोफे पर जा बैठी.

साथ ही बाबू भी

" आप मैडम.... "

"अच्छा तो मुझसे मिलने आये हो?"

"हाँ... मैंने सोचा कोई काम हो, इस बिल्डिंग मे आप ही प्यार से बात करती है मुझसे "

" काम तो कोई नहीं है"

" अच्छा " बाबू का मुँह उतर गया, जैसे यहाँ आने का मकसद ही ख़त्म हो गया हो, बाबू पलटने को हुआ ही की.

"अच्छा बाबू तुम किसी ऑटो वाले को जानते हो?"

"हाँ... क्यों... कहां जाना है?"

"मार्किट कुछ सामान लेने है "

"आप इतनी बड़ी मेमसाब ऑटो से जाएगी, "

"इसमें क्या है?" काया जमीन से जुडी महिला थी, कोई घमंड नहीं था उसमे.

हहहहहहम.... बाबू सोचने लगा

"ऑटो तो क्या.... स्कूटी से चले "

"स्कूटी से चले का क्या मतलब?"

"मतलब स्कूटी का इंतेज़ाम है मेरे पास, ऑटो वाला धक्के खिलता ले जायेगा, मै भी दिन भर यहाँ मक्खी ही मरता हूँ, आपके काम आ जाऊंगा, आपकी सेवा कर लूंगा "

बाबू ने बड़ी ही मासूमियत से बात रखी..

"हाहाहाहा.... बाबू तुम भी ना, अच्छा ठीक है सेवा का मौका देती हूँ

"आप तैयार हो जाइये एक घंटे मे नीचे मिलता हूँ "

बाबू तुरंत निकल लिया कहीं काया का मूड ना बदल जाये

काया मुस्कुराती बाथरूम की ओर चल दी.

करीब एक घंटे बाद

रोहित शबाना की कोठी के बाहर खड़ा था, " आज हिसाब कर के रहूँगा "

दूसरी और काया लेगी कुर्ते मे बिल्डिंग के बाहर खड़ी थी, पिंक लेगी मे काया की जाँघे कहर ढा रही थी, फ्लावर प्रिंट कुरता काया के जिस्म पर कसा हुआ था, स्तन अपने आकर को बयां कर रहे थे.

पिंक दुप्पटा गले मे अटका पड़ा था,
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आसमान मे बादल छाये हुए थे, धुप बिलकुल भी नहीं थी, जो की काया के लिए सुखद था.

सामने से बाबू एक्टिवा लिए, दाँत निपोर चला आ रहा था.

"चले मैडम?" आँखों पर काला चश्मा चढ़ाये बाबू काया के सामने आ चूका था.

"अरे वाह बड़े हैंडसम लग रहे हो" काया स्कूटी पर जा बैठी.

काया की जाँघे बाबू की कमर से जा लगी.

"आप भी कम हैंडसम नहींअगर रही मैडम "

"हाहाहाहा.... बुद्धू लड़कियों को ब्यूटीफुल बोलते है,"

"वो... वो... सॉरी मैडम आप सुंदर लग रही है"

काया और बाबू का हसीं मज़ाक भरा सफर शुरु हो गया था.

पति पत्नी दोनों ही इस मौसम मे कुछ नया सीखेंगे?

रोहित लोन रिकवर कर पायेगा? इतिहास रहा है जहाँ हुश्न हो वहाँ मर्द पैसे लुटा के ही आता है ले कर नहीं.

बने रहिये कथा जारी है....
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Premkumar65

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काया बाथरूम के पास से भाग खड़ी हुई, पीछे कय्यूम बिना पैंटी के साड़ी मे कैद काया की मोटी गांड को उछलते देखता रहा.
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ऐसा लगता था जैसे काया की गांड की थिरकन उसके सीने पे हो रही है.

काया बैडरूम मे आई, रोहित बेसुध पड़ा था, काया ने झट से अलमारी खोल तौलिया ढूंढने लगी,

"आअह्ह्ह.... ये रहा " टॉवल हाथ मे ले काया चलने को हुई ही थी की उसकी नजर अपनी white दुप्पते पर पड़ी जो टॉवल के नीचे ही रखा था.

ना जाने क्यों काया के चेहरे पे एक मुस्कान सी तैर गई, उस एक पल मे उसने ना जाने क्या प्लान कर लिया, टॉवल वही रख दुप्पटा उठा बाथरूम की ओर चाल दी.

"कय्यूम जी.... कय्यूम जी " बाथरूम का दरवाजा बंद था,

"चररर..... से दरवाजे मे एक झिरी सी बानी, कय्यूम का काला जिस्म दिखने लगा.

"ये लीजये जब तक इसे लपेट लीजिये, लुंगी जैसा यही मिला "

कय्यूम ने हाथ आगे बड़ा दिया, काया ने झट से दुप्पटा थमा वहाँ से चाल दी, सांसे भारी हो गई थी, कदम मे वो तेज़ी नहीं थी.

जैसे चोरी कर के भागी हो.

किचन से कपड़ा ले काया फर्श और सोफा साफ करने मे व्यस्त हो गई.



काया का दिल धाड धाड कर बज यह था, जैसे कोई परीक्षार्थी परीक्षा दे मर रिजल्ट का इंतज़ार करता है, ठीक वैसे ही काया की स्थिति थी टॉवल की जगह अपना पतला वाइट दुप्पटा दे आई थी कय्यूम को.

काया के कान खड़े थे "चट... चररर.... की आवाज़ के साथ बाथरूम का दरवाजा खुला, एक जोड़ी भारी कदम उसी ओर बढ़ रहे थे, काया फर्श को कपडे से पोछने मे व्यस्त थी.

"मैडम... जी... मैडम... ये तो चुन्नी है " कय्यूम की भारी आवाज़ गूंज उठी.

काया का दिल बैठा जा रहा था, उसने जो हरकत की थी उसका सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही थी.

काया बिना कोई जवाब दिए कपड़ा फर्श पर फेरने लगी.

"मैडम... जी.. ये क्या है "

पोछा लगाती काया का पोछा कय्यूम के पेरो मे जा फसा, एक काला बालो से भरा पैर पोछे पे खड़ा था.

काया ने धड़कते दिल के साथ गर्दन ऊपर उठाई....
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काया का मुँह वही खुला रह गया, जो उसने सोचा था ये उस से ज्यादा भयानक था.

कय्यूम किसी राक्षस की तरह उसके सामने खड़ा था.

एकदम काला, बालो से भरा सीना, उसके नीचे काला मोटा पेट, जिसके चारो तरफ काया का सफ़ेद दुप्पटा दो तह मे लिपटा पड़ा था.

पीछे से आती रौशनी मे कय्यूम का जिस्म किसी हैवान की तरह दिखाई पड़ता था, दोनों टांगो कर बीच एक झूलती सी आकृति थी.
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काया का मकसद ही यही था, लेकिन जब ये हक़ीक़त मे हुआ तो उसका मुँह खुला रह गया, दिमाग़ साय साय करने लगा.

उसका पल्लू कबका सरका गया था,

कय्यूम नजरें नीचे किये उस हसीन नज़ारे का लुत्फ़ उठा रहा था.

काया की नजरें कय्यूम की जांघो कर बीच कहीं अटक गई थी पीछे से आती रौशनी उस आकृति का आकर प्रकार साफ बयां कर रही थी.
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तभी काया ने गौर किया वो आकृति ने झटका लिया, ईस एक झटके ने काया को हकीकत मे ला दिया.

काया झट से खड़ी हो गई.

पल्लू संभाल लिया.

"मैडम ये क्या है?" सामने कय्यूम का जिस्म पानी से भीगा था, भयानक कोई भालू नहा के निकला हो.

"वो... वो... मै.... यही था घर मे " काया ने कय्यूम के सवाल को भाम्प लिया.

कय्यूम की कमर पे लिपटा दुप्पटा उसकी तोंद के नीचे से लिपटा घुटनो के ऊपर तक ही ख़त्म हो जा रहा था.

"ऐसे क्या देख रही है कभी भालू नहीं देखा " कय्यूम ने मौके की नजाकत समझते उसे माहौल हल्का करने के लिए कहां.

"ददद... देखा है लेकिन ऐसा इंसान नहीं देखा " काया ने हिम्मत कर जवाब दिया हालांकि शब्द अभी भी उसके गले मे फस रहे थे.

कय्यूम इतना विशालकाय था की काया जैसे उसकी छाव मे ढक गई थी.

कय्यूम के पीछे रौशनी दिख रही थी लेकिन वो खुद अँधेरे मे थी.

"मर्दो का शरीर ऐसा ही होता है मैडम " कय्यूम बनावटी अंदाज़ मे बोला.

"ममम... मर्द.... मर्द ऐसा होता है " काया फुसफुसाई जैसे खुद ज़े सवाल किया हो.

"और औरत आप जैसी होती है,"

"ममम.... मै... सुन्दर " काया को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले क्या कहे.

"और नहीं तो क्या, मैंने तो आप जैसी सुन्दर लड़की पहली बार देखी है, "

"कक्क.... क्यों आपकी बीवी नहीं है सुन्दर?"

"अंम्म्म्म.... छोड़िये बीवी को, उसमे क्या रखा है " कय्यूम सोफे पर जा बैठा.

बैठे से दुप्पटा और ऊँचा हो जांघो तक आ गया, एक लम्बी सी आकृति साफ जांघो से चिपकी दिखाई पड़ने लगी.

काया की सांसे तेज़ हो गई उसकी नजरें वही टिकी हुई थी..

"मर्दो का ऐसा ही होता है " कय्यूम ने जैसे भाम्प लिया हो.

"कककक.... क्या?" काया बगले झाकने लगी जैसे चोरी पकड़ी गई हो.

दिल धाड धाड बजने लगा, नाभि के नीचे एक कुलबुलाहत सी मचने लगी.

मर्दो का लिंग काया की कमजोरी बनता जा रहा था..

"जाने दीजिये खाने मे कुछ बनाया है? बड़े बाबू तो सो गए, भई मुझे तो बहुत भूक लगी है " कय्यूम ने अपने पैरो को समेट लिया.

"वो...वो... हाँ... हाँ... बनाया है ना " काया का हाल बुरा था

तुरंत की किचन की तरफ भाग खड़ी हुई.

काया को अपनी जांघो कर बीच कुछ चिपचिपा सा महसूस हो रहा था, जो की दोनों मांसल जांघो से रगड़ खाता चिपक रहा था.

किचन की तरफ जाती काया की गांड हिचकोले खा रही थी, जिसे देख कय्यूम ने एक बार लंड मसल लिया, जैसे भरोसा दिला रह हो सब्र कर.

कुछ ही देर मे सोफे के सामने टेबल पर खाना रखा था.

एक तरफ कय्यूम तो दूसरी ओर काया बैठी थी.

"बैगन बनाया है आज, पसंद है आपको?" काया ने कय्यूम को खाना परोसते हुए कहां.

ईस उपक्रम मे काया के स्तन की दरारे कभी दिखती तो कभी छुप जाती.

ये लुका छिपी का खेल कय्यूम के अंग मे तनाव पैदा कर रह था.. जिसे वो दोनों जांघो के बीच दबाये बैठा था.

"अब आपने बनाया है तो अच्छा ही होगा", कय्यूम ने थाली से एक बेंगन पकड़ उठा लिया

"ये... तो बहुत छोटा है "

"कककक.... क्या " काया भी अपनी प्लेट ले सामने बैठ चुकी थी.

"बैगन मैडम जी बहुत छोटे है"

"यही मिला आपके यहाँ " काया ने भी मुस्तेदी से जवाब दिया.

"कभी मेरे खेत पे आना ये बड़े बड़े बेंगन होते है, एक बैगन से ही आपका पेट भर जायेगा " कय्यूम ने ऐसा कहते हुए अपनी जांघो को थोड़ा खोल दिया.

उसके लंड का उभार दुप्पते से टकरा कर फिर से दिखने लगा.

इस नज़ारे को काया ने साफ साफ देखा, क्युकी लाइट काया के पीछे से आ रही थी.

काया चोर निगाहो से देख रही थी,

"क्या करू मैडम जी बड़े बाबू के कपडे आएंगे नहीं ना मुझ भालू को, मज़बूरी है " कय्यूम ने अपने अर्धनग्न शरीर को जस्टिफाई करते हुए कहां.

"कककक.... कोई बात नहीं, मै ठीक हूँ ".

"आप कितने बैगन खा सकती है " कय्यूम ने एक कोर मुँह मे ड़ालते हुए कहां.

"कक्क... काया....एक या दो "

"आप शहरी मैडम भी ना हमारे यहाँ की औरते तो इस से भी मोटे और लम्बे बेंगन खा लेती है एक बार मे, गॉव की बहुत सी औरते मेरा ही बैगन खाती है " कय्यूम ने मेरा बेंगन पे बहुत जोर दे के कहां.

"ममम... मतलब " काया ना जाने क्यों कय्यूम की बातो मे फस रही थी.

अभी भी नजरें उठा के नहीं देख पा रही थी उसे.

"मतलब मेरे खेत पे बहुत सी मजदूर औरते आती है तो शाम को बेंगन ले के जाती है, कभी केले, कभी लोकि, कभी करेले, तोरई,

"सब लम्बी सब्जी ही उगाते है क्या आप " काया ने बीच मे ही बात काटते हुए कहां.

"असली मजा लम्बी मोटी सब्जी मे ही तो है मैडम जी, बहुत रस होता है, विटामिन होता है"

कय्यूम ने जांघो को और खोल दिया, एक लाल रंग का हल्का सा कुछ चमकने लगा,
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लाइट इतनी नहीं थी की साफ कुछ दिख सके.

काया वो नजारा देख हक्की बक्की रह गई.

वो हिस्सा बार बार झटका खाता जांघो से टकरा जा रह था, हर बार के टकराव के साथ काया का दिल भी उसकी छाती से टकरा जाता..

"आप जैसी औरतों को तो लम्बा और मोटा ही खाना चाहिए, तभी पेट भरेगा "

इस बार कय्यूम ने एक हाथ से अपने लंड को एडजस्ट कर उसे साइड कर दिया, उसका लंड जाँघ पर जा चढ़ा जिसका उभार देख काया के हलक मे निवाला अटक गया.

"खो... खो... खो...."

"मममम.... मैडम पानी " कय्यूम ने काया की तरफ पानी बढ़ा दिया.

"ममम.... ठीक हूँ मै, काया ने तुरंत पानी होंठो से लगा लिया, नजारा ही ऐसा था की उसका गला सुख गया था.

"क्यों मुझमे ऐसा क्या खास है " काया ने बात को आगे बढ़ाया.

जबकि चोर नजरें बार बार कय्यूम के उभार पर पड़ जाती, जिसे कय्यूम भी भाम्प रहा था.

"आप वो हो क्या कहते है इंग्लिश अरे... वो..."

"वो क्या?

"हाँ.... Sexy आप बहुत sexy है, लम्बे केले, लोकि, बैगन खाने से खूबसूरती और बढ़ जाती है " कय्यूम बेधड़क बोल गया.

"मममम... मै.... ससस.... Sexy हाहाहाहा..." काया ने पहली बार ये शब्द सुना था अपने लिए वो भी किस से एक देहाती से.

कय्यूम के बोलने का लहजा ही ऐसा था की काया को हसीं आ गई.

अब दोनों के बीच वो झिझक सी ख़त्म हो गई थी.

"हाँ आप शहरी लोग यही कहते होंगे ना, बड़े बाबू ने कभी नहीं कहां?"

"ववव... वो... हाँ... नहीं नहीं कहां " काया को याद ही नहीं रोहित ने उसे ऐसा कब कहां था.

काया का चेहरा बेजान सा हो गया.

"वैसे बड़े बाबू बहुत किस्मत वाले है, जो आप उन्हें मिली " कय्यूम तारीफों के पुल बांध रहा था.

"हहहहम....." काया प्लेट ले के सोफे से उठ खड़ी हुई,

"मेरा तो पेट भर गया " काया जैसे ही आगे बड़ी....

धड़ाक.... छननननन.... धाम से फर्श पर गिर पड़ी, बर्तन हाथ से छूट जमीन ओर बिखर गए.

"ककम्म..... क्या हुआ... क्या हुआ मैडम जी "

कय्यूम लपकाता हुआ काया तक पंहुचा, काया जमीन पर चित पड़ी थी.

"आअह्ह्ह.... आउचम.... उउउफ्फ्फ्फ़.... मेरा पैर "

कय्यूम ने देखा काया की सारी घुटनो तक चढ़ चढ़ आई थी, पल्लू जमीन पर फैला पड़ा था, स्तन लगभग बाहर को आ गए थे, गोरे सपात पेट लार नाभि अपनी पूर्ण खूबसूरती कर साथ दमक रही थी.

कय्यूम को जैसे सांप सूंघ गया हो, ऐसी क़यामत उसने कब देखी थी शायद कभी नहीं.

"आअह्ह्ह.... मेरा पैर आउच..."

काया की दर्दनाक कराह से कय्यूम का ध्यान टुटा उसकी नजर काया के पैर पर गई जो की मूड गया था.

पैर के नीचे सोफे के पास फर्श पर पानी पड़ा था, कय्यूम को याद बाथरूम से वो बिना शरीर पोछे ही बाहर आया था वही पानी फर्श पर गिरा पड़ा था.

"ससस.... सॉरी मैडम... जी... सॉरी माफ़ करना "

कय्यूम झट से नीचे झुका एक हाथ काया की पीठ के नीचे सरकाया तो दूसरा जांघो के बीच,

काया दर्द से बिलबिला रही थी, क्या हो रहा है सोचने का वक़्त नहीं था.

पल भर मे ही काया को अपना जिस्म हवा मर झूलता महसूस हुआ, कय्यूम ने किसी फूल की तरह उसे उठा लिया था,

काया हैरान थी, एक बार रोहित ने कोशिश की थी उसे उठाने की कमर टेड़ी हो गई थी उसकी.

लेकिन ये कय्यूम के चेहरे पे सिकन तक नहीं है.

काया के स्तन कय्यूम की नंगी बालदार छाती से जा चिपके.

कय्यूम और काया दोनों के जिस्म मे एक जैसा कर्रेंट दौड़ गया, काया विरोध करने की हालत मे नहीं थू.

"ाआहे.... उउउफ्फ्फ.... बहुत दर्द हो रहा है."

कय्यूम तुरंत ही काया को लेकर रोहित के बगल मे लेटा दिया.

"खर... खरररर... खररर...."रोहित इनती आवाज़ के बाद भी घोड़े बेच के सो रहा था,

काया बिस्तर पर इधर उधर करवट बदले तड़प रही थी, कय्यूम काया के पैरो के पास बिस्तर पर बैठ गया.

काया अर्धनग्न लेती थी, कमर के ऊपर सिर्फ ब्लाउज था मॉर्डन स्लीवलेस, जिसमे से काया के स्तन लगभग बाहर ही थे, अंदर ब्रा ना होने से निप्पल अपना सर उठाये हुए थे.
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"हिलिए मत मैडम जी और दर्द होगा, मै देखता हूँ.". कय्यूम पैर पकड़ने को हुआ की काया ने दर्द से पैर हटा लिया, फिर वापस सीधा कर देती.

कय्यूम के सामने एक जलपरी थी, लगता था जैसे उसे पानी से बाहर निकाल लिया हो.

काया बिन पानी की जलपरी की तरह ही मचल रही थी.

कय्यूम ने काया के पैर को मजबूती से पकड़ अपनी दोनों हथेली मे दबोच लिया.

"आआआआहहहहहहम्म्म...... नाहीईई...... उउउउफ्फ्फ्फ़.... ऊउच..."

काया के मुँह से भयंकर चित्कार निकल पड़ी.

लेकिन कय्यूम का हाथ टस से मस नहीं हुआ, उसके हाथो का दबाव काया के पैर पर बढ़ता चला गया.

खटक... चाट की आवाज़ के साथ कय्यूम ने एक झटका दे काया के पैर को सीधा कर दिया.

"आआआहहहह....... उउउफ्फ्फ्फ़..... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... आह्हः..." काया की आंखे बंद थी, माथे पर पसीना चु रहा था, जिस्म पसीने से भीगा कांप रहा था.

उउउफ्फ्फ..... हमफ़्फ़्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....
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दर्द का तूफान बीत गया था.

"खरररर.... खररर..... खराटा " रोहित इतनी चीखो के बावजूद टस का मस नहीं हुआ.

काया ने धीरे से आंखे खोली, दर्द की एक तेज़ लहर उसके जिस्म से हो कर गुजर गई थी.

"अब कैसा लग रहा है मैडम जी " कय्यूम की भारी आवाज़ गूंज उठी.

काया ने अपने पैर को हिलाया, जो की कय्यूम की जाँघ पर रखा हुआ था.

"ठ ठ ठीक हो गया " काया का चेहरा अच्छेम्भे से भरा हुआ था, आँखों से हैरानी टपक रही थी.

काया हैरान थी बेशमार दर्द, वो तड़प कहां गई, काया ने पैर को इधर उधर ऊपर नीचे हिला के देखा कोई दर्द नहीं था

"ययय.... ये कैसे हुआ?"

"मामूली बात है हम लोगो के लिए" कय्यूम का हाथ होले होले काया के पैर को सहला रहा था.

"पहलवानी करते थे तब ऐसी छोटी मोटी चोट लग जाती थी, तब ऐसे ही ठीक करते थे "

"अच्छा तो आप पहलवानी भी करते थे " काया ने अपने कपड़ो को सँभालने की बिलकुओं भी जहमत नहीं उठाई, साड़ी घुटनो तक चढ़ी हुई थी.
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"तो और क्या ऐसे ही ना शरीर बनाया है " कय्यूम ने छाती फाड़काते हुए गर्व से कहां.

कय्यूम ही हिलती छाती देख काया को होश आया उसकी छाती भी तो नंगी ही थी, जैसे ही गर्दन नीचे की सकपका के रह गई, वो एक गैर मर्द के सामने लगभग नंगी थी.

काया ने झट से पल्लू पकड़ अपने अगले हिस्से को ढक लिया और एक बार गर्दन घुमा रोहित की तरफ देख लिया, वो अभी भी घोड़े बेच सो रहा था.

"हाहाहाबा... कय्यूम की हसीं छूट गई " किसी ने नहीं देखा मैडम बड़े बाबू तो सो रहे है, सुबह तक नहीं उठेंगे"

बड़े बाबू तो सो रहे है " ये शब्द काया के जहन मे उतर गए

जैसे कोई चोर निश्चिन्त हो गया हो, पल भर पहले उभरी चिंता की लकीर तुरंत गायब हो गई, वैसे भी चोर तभी चोर है जब वो पकड़ा जाये, यहाँ तो पकड़ने वाला बेसुध सो रहा था,

"लल्ल.... लेकिन..."

"क्या लेकिन मैंने तो देख ही लिया, मज़बूरी थी अब आंखे थोड़ी ना फोड़ लेता " कय्यूम ने काया के पैरो को वैसे ही सहलाते हुए कहां

"इस्स्स...... काया को आराम मिल रहा था, आनंद महसूस हो रहा था.

"बंद तो कर सकते थे, मेरे दर्द का फायदा उठा रहे है आप " काया ने बनावटी गुस्सा दिखाया.

"अब ऐसे मौके बार बार थोड़ी ना मिलते है, "

"कक्क... क्या कैसा मौका "

"आप जैसी शहरी मैडम की सेवा का मौका " कय्यूम ने चालाकी से बात पलट दी.

काया ने एक बार फिर रोहित की तरफ देखा, फिर कय्यूम को जैसे कोई तुलना कर रही हो.

काया के बगल मे एक सुन्दर राजकुमार सोया था तो सामने भैसे जैसा काला राक्षस..

"आा. अआप... आप मुझे मैडम जी मैडम जी क्यों बोलते है, मै कितनी छोटी हूँ उम्र मे " काया ने बातचीत को जारी रखा.

हालांकि उसे उठ जाना चाहिए था, लेकिन ना जाने क्यों कय्यूम के भारी खुर्दारे हाथ उसे एक अजीब सा शुकुन दे रहे थे, एक ठंडक सी पहुंच रही थी.

"बड़े बाबू की बीवी है आप, मेहमान है हमारी, शहरी है " कय्यूम ने कायबके दूसरे पैर को उठा अपनी दूसरी जाँघ पर रख लिया.

कय्यूम का एक पैर पलंग के नीचे लटक रहा था तो दूसरे पैर को मोड़ के बैठा था.

पतला सफ़ेद दुप्पटा अभी भी उसकी इज़्ज़त को छुपाये था.

"बड़े बाबू आपके है, उन्हें इज़्ज़त दो, आप मुझसे कितने बड़े है "

"मेरा तो सब कुछ बड़ा है मैडम जी " कय्यूम ने इस बार दोनों पैरो की एडियो पे जोर से दबाव डाला

"इस्स्स..... आअह्ह्ह.... आप मुझे नाम से ही बुलाया कीजिये " काया के मुँह से एक हलकी सी राहत भारी सिस्करी निकल पड़ी.

"तौबा... तौबा... पाप कराएगी आप " इस बातमर कय्यूम के हाथ जरा धीरे चले लेकिन फैसला थोड़ा बढ़ गया, हाथ काया की पिण्डालियो से होते हुए वापस तलवे पर आ गए.

"इसमें क्या पाप, बोल कर तो देखिये ".

"ठीक है "

"तो बोलिये "

"क्या बोलू?".

"मेरा नाम "

"ककक.... काया... काया जी "

एक भारी आवाज़ काया के कान मे गूंज उठी, इस भारी से काया मे बहुत वजन था.

ना जाने क्यों काया को अपना नाम सुनना था, ना जाने क्या थ्रील था इसमें, ये तो वही जाने.

"काया जी आप बहुत सुन्दर है " कय्यूम के दोनों हाथो ने काया की पिण्डालियो तक पहुंच वहाँ एक दबाव बना दिया.

"आअह्ह्ह..... इस्स्स...." काया के मुँह से एक सिस्करी सी निकली, दर्द भारी राहत थी ये.

"आपके हाथो मे जादू है कय्यूम जी "

"आप खुद जादू है काया जी "

काया बेहिचक लेटी थी एक अनजान शख्श की जांघो पर अपने पैर रखे, पास मे उसका पति सो रहा था, वो ऐसी बेहयायी करेगी ऐसी उम्मीद उसे खुद नहीं थी.

कय्यूम के मजबूत काले, खुर्दारे हाथ लगातार काया की पिण्डालियो तक आ के लौट जा रहे थे.

काया का जिस्म अब उसके काबू ने नहीं था, एक अजीब सी सिरहाने पैरो से ऊपर की ओर चढ़ती हुई जांघो के बीच कहीं गयाब हो जा रही थी..

"अब कैसा लग रहा है मैडम.... मतलब काया जी "

कय्यूम की भारी आवाज़ से काया की बंद होती आंखे खुली.

"अअअअअ... अच्छा दर्द नहीं है अब " काया ने मुस्कुरा कर जवाब दिया.

ऐसा करने से मना नहीं किया.

कय्यूम के हाथो मे जादू था.

काया के नाजुक जिस्म पर ऐसे भारी मर्दाना हाथ उसे एक अलग सुख दे रहे थे.

रोहित के स्पर्श मे ये जादू नदारद था.

कय्यूम थोड़ा आगे को सरका " अभी बिलकुल ठीक हो जायेगा " कय्यूम ने काया के दोनों पैरो को उठा अपनी जांघो के बीच रख लिया.

कय्यूम का ऐसा करना था की काया का जिस्म भयानक तरीके से कांपा वजह थी काया के तलवो पर एक बेलनाकार आकृति जा लगी थी.

कय्यूम हाथ को आगे बढ़ाता, उसी के साथ उसके लंड का उभार भी काया के तलवो से रगड़ खा जाता.

"ईईस्स्स..... काया का जिस्म भारी होने लगा था, आंखे बंद हो खुल जाती,

कय्यूम भी मानो स्वर्ग मे था, कोमल पैरो का अहसास उसके काले भयानक लंड मे खून का रफ़्तार बढ़ा रहा था.

कय्यूम की काली जांघो पर काया के कोमल गोरे पैर ऐसे लग रहे थे जैसे राक्षस के चुंगल मे अप्सरा हो.

कय्यूम के हाथ घुटनो तक पहुंच चुके थे, गोरे पैरो पर घूमते काले हाथ.

"इस्स्स..... कककक... कय्यूम " काया के मुँह से हलकी सी सिस्करी निकली.

कय्यूम मांझा हुआ खिलाडी था, इस सिस्करी का मतलब अच्छे से समझता था.

कय्यूम का जिस्म थोड़ा और आगे को सरकार, नतीजा काया के पैर कय्यूम की जांघो मे धस गए.

"आअह्ह्ह.... काया का जिस्म एक पल को ऊपर हो बिस्तर से जा चिपका, एक बड़ी मोटी सी बेलनाकार चीज को काया अपने दोनों पैरो के बीच साफ महसूस कर रही थी.

काया सोचने समझने की अवस्था मे नहीं थी, उसके सामने बस कय्यूम का काला जिस्म था, पैरो मे मर्दाना अंग था.

पास मे उसका पति सोया है अब इस बात से कोई मतलब नहीं था, काया कामवासना की खाई मे गिर पड़ी थी.

कय्यूम के हाथ काया की साड़ी से लगते हुए घुटनो से ऊपर के रास्ते पर बढ़ चढ़े.

"आआहहहह...... नन न न न... नहीं " काया की गर्दन ना मे हिल गई, लेकिन उसके पैर कय्यूम की जाँघ मे अंदर को जा धसे.

काया हाँ ना की मझदार मे फसी थी.

"कैसा लग रहा है काया जी "

"अअअअअ..... अच्छा "

कय्यूम के मर्दाना हाथो ने काया की जांघो को कस के मसल दिया.

"आआहहहह..... Uuuffff..... इस काम दर्द की लहर काया के जांघो के बीच किसी तीर की तरह जा लगी, काया की चुत से चासनी सी निकल जांघो के अंदुरनी भाग मे जा चिपकी.
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जिसका अहसास सिर्फ काया को था, काया का सर ऊपर उठ पीछे को जा लगा.

नाभि के नीचे एक कुलबुलाहत सी मचने लगी.

कय्यूम के हाथ वापस को नीचे आने लगे, हाथ इतने मजबूर और खुर्दारे थे की काया को अपनी चमड़ी सी घिसती महसूस हुई.

कय्यूम के हाथ काया के तलवो तक पहुंच गए.

काया अभी कुछ समझती की, कय्यूम ने सफ़ेद दुप्पटा अपनी कमर से नोच फेंका, एक भयानक मोटा बढ़ा सा सांप फुफुकरता जांघो कर बीच नाचने लगा.

कय्यूम ने काया के दोनों पंजो को पकड़ अपने काले भयानक सांप रूपी लंड के दोनों और लगा घिसने लगा.

"आआहहहह.... नहीं.... कय्यूम... जी... No "

काया मना तो कर रही थी लेकिन पैर खींचने की बिलकुल भी कोशिश नहीं की.

कय्यूम के हाथ काया के पंजो को अपने लंड पर रगड़ने लगे.

काया महसूस कर रही थी उसके पैर काफ़ी ऊपर तक जा कर नीचे वापस कय्यूम की जांघो से टकरा रहे थे.

"ई.... ये.... ये.... कय्यूम जी का वो है हा... हनन... हाँ.. वही है लल्ल.... लेकिन इतना बड़ा" काया के दिमाग़ की घंटी बजने लगी थी, उसकी कमजोरी मर्दाना अंग उसके पैरो मे था,

काया सर उठा के उस विशालकाय चीज को देख लेना चाहती थी, लेकिन नहीं... नहीं... उसमे हिम्मत नहीं थी.

उसका सर ऊपर उठा एक धुंदली सी आकृति उसके पैरो के बीच फसी हुई थी, जिसे कय्यूम ऊपर नीचे रगड़ रहा था.

धमममम.... से काया का सर वापस बिस्तर से जा चिपका, उसमे हिम्मत नहीं थी.

पूरा जिस्म पसीने पसीने हो गया,

कय्यूम के हाथ वापस से काया के पैरो पर रेंगने लगे जांघो तक, जांघो को दबाने लगे.

लंड लगातार काया के पैरो मे ठोंकर दे रह था, जैसे कोई इशारा कर रहा हो.

काया की वासना ने इस इशारे को तुरंत पहचान लिया उसके पैर खुद से कय्यूम के बड़े मोटे लंड पर चलने लगे, उसे अपने आगोश मे भर के सहलाने लगे.

काया पैरो से कय्यूम के लंड की लम्बाई चौड़ाई नाप रही थी.

किसी ने सही कहां है काम कला कोई सीखा नहीं सकता, जरुरत और आपकी वासना आपको सब सीखा देती है.

जैसे जैसे काया के पैर कय्यूम के लंड को रगड़ रहे थे, आश्चर्य से काया की आंखे बड़ी होती जा रही थी, गला सूखता जा रहा था.

जैसे काया किसी पेड़ की डाली पर चढ़ रही हो.

काया वासना से तड़प रही थी, और इस वासना रुपी आग मे घी कय्यूक के मजबूत हाथ से जो काया की मोटी जांघो को मसल रहे थे, उससे खेल रहे थे.

"आआआआह्हः...... उउउउफ्फ्फ्फ़.... आउच...."

काया के पैर तेज़ तेज़ चलने लगे, उसे इस काम मे मजा आ रहा था, ये अनोखा था, इसने रोमच था, मात्र पैर उसे सुख दे सकते है उसे पता नहीं था.

सम्भोग मे शरीर का हर अंग, हर हिस्सा काम अंग ही होता है.

"आआहह.... कय्यूम जी "

"हहहह... काया जी आप बहुत सुन्दर हो, आपकी जाँघे कितनी मोटी है, मैंने ऐसी जाँघे कभी नहीं देखी..."

आआहहहह..... मैडम धीरे " कय्यूम की तारीफ का नतीजा ये हुआ काया के हौसले बुलंद हो गए, उसके पैर कय्यूम के लंड पर कस कस कर चलने लगे.

"मैडममम... काया जी धीरे " काया किसी भूखी शेरनी की तरहै कय्यूम के लंड को रगड़ रही थी, नोच रही थी.
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काया का जिस्म उबल रहा था, फटने को आतुर था,

कय्यूम के हाथ जाँघ पर ऊपर चढ़ने लगे थे, उसे वो काम नदी देखनी थी.

काया की नाभि के नीचे कुछ पिघलाता सा महुसूस हो रहा था.

"आअह्ह्ह... कय्यूम जी.... उउउफ्फ्फ्फ़.... आउच... आअह्ह्ह...."

काया के पैर बुरी तरह कय्यूम के विशाल लंड पर ऊपर नीचे हो रहे थे.

कय्यूम मंजिल के बिलकुल करीब था, शहरी चुत उसके सामने आने ही वाली थी, कय्यूम के हाथ साड़ी ऊपर उठाने को ही थे की..... फच... फाचक.... फच... पच... पचाक..... से काया की जांघो के बीच एक चिपचिपी सी पिचकारी निकाल कय्यूम के सीने से जा टकराई.

"आअह्ह्ह..... कय्यूम.... उउफ्फ्फ... आआहह.... हुम्म्मफ़्फ़्फ़.... हमफ्फफ्फ्फ़...."

काया झड़ रही थी, काया की मुट्ठीया चद्दर को मुट्ठी मे भींचती चली है.

"आआहहहह.... काया जी "काया के साथ साथ कय्यूम भी चीख उठा.

काया के पैरो के नाख़ून कय्यूम के लंड पर एक लकीर बनाते हुए, कय्यूम के दोनों तरफ धारासाई हो गए.

"पच... पाचक.... काया की काम गुफा से एक पिचकारी और निकली, जो बिस्तर गिला करती गई.

"हम्म्म्मफ़्फ़्फ़.... हंफफ़फ़फ़.... उउउफ्फ्फ.... उफ्फ्फ्फ़....." काया का जिस्म पसीने से नहा गया, सांसे ऊपर नीचे हो रही थी,

ब्लाउज बिलकुल भीग कर अपना वजूद को साफ साफ बयां कर रहा था.

"आअह्ह्ह.... काया " कय्यूम दर्द के मारे लंड पकड़ा पीछे सिरहाने से जा चिपका.

कमरे मे सन्नटा छा गया था, कय्यूम की कराह और काया की सांसे एक दूसरे को सहला रही थी.

खरररर.... खररर.... खर्राटे की आवाज़ बीच बीच मे इस सन्नाटे तो चिर देती.

काया की आंखे बंद होती जा रही थी, सामने कय्यूम का भयानक जिस्म अपना लंड पकडे धुंधला होता चला जा रहा था,.

काया जिंदगी मे दूसरी बार झड़ी थी, वो भी बिना सम्भोग के.

काया का जिस्म ये स्सखालन ना झेल सका, उसे नींद ने घेर लिया.

कय्यूम दर्द से करहता, हॉल मे सोफे पर जा धसा.



स्त्री का जिस्म कच्चे मांस की तरह होता है, जितनी धीमी आंच पर पकाओ उतना की खाने का मजा आता है, लेकिन कभी कभी धीमी आंच खाने वाले को भी जला देती है.

जैसे इस आग मे कय्यूम भी जला.

कय्यूम के लंड पर बनी लकीरो से खून की बुँदे रिस रही थी.

कय्यूम भूखी शेरनी के पिंजरे मे जो कुदा था.

कय्यूम अभी तक शेर था, लेकिन कहावत है शेर को सवा शेर मिल जाता है, लेकिन यहाँ शेरनी थी काम वासना की भूखी शेरनी.

काया की ये भूख उसे कहां ले जाएगी....?

वो तो सुबह होने पर ही पता चलेगा.

बने रहिये "
A wonderful orgasm for kaya. Very erotic story.
 
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काया अपने चरम सूखा का आनंद लिए नींद के आगोश मे समा चुकी थी, शरीर का पानी चुत के रास्ते बह गया था.

रात 3बजे

बाहर खिड़की से आती ठंडी हवा के थपेड़े काया के जिस्म को सूखा चुके थे, ठण्ड से रोये खड़े हुए थे.

एक दम से काया की आंखे खुल गई, जैसे कोई सपना देखा हो.

आस पास देखा रोहित सोया हुआ था, उसके जिस्म के ऊपरी हिस्से पे ब्लाउज विधमान था,

काया ने घड़ी पर नजर डाली 3बजे थे, अभी जो थोड़ी देर पहले हुआ वो उसके जहन मे दौड़ गया, उसकी नजरें अपने पैर के पंजो पर गई, जिसमे कुछ समय पहले कय्यूम का लंड फसा पड़ा था, वो पल याद आते ही काया के जिस्म ने एक झुंझुनी सी ली.

पेट मे गुदगुदी सी होने लगी.

काया के चेहरे पे कोई पछतावा जैसा कुछ नहीं था, एक नजर रोहित की ओर देखा " ये मैंने क्या कर दिया, रोहित जग जाते तो " काया ने जो किया उसकी फ़िक्र नहीं थी, रोहित जग जाता तो ये चिंता थी.

चोर ऐसे ही सोचता है, कहीं पकड़ा जाता तो.

काया का गला सूखता सा महसूस हुआ, जांघो के बीच गीलेपन ने उसे थोड़ा असहज कर दिया था.

काया बिस्तर से उठ हाल मे आ गई, सामने अँधेरे मे कय्यूम सोया पड़ा था.

काया उस विशालकाय आकृति को देख मुस्कुरा दी, अँधेरे मे सिर्फ उसकी महसूस हो रहा था की कोई लेता है,

काया ने किचन मे जा कर फ्रिज खोल दिया.

पानी की बोत्तल निकाल पिने ही वाली थी की गड़ब.... थूक निगल लिया, हाथ से बोत्तल छूटने वाली थी,

सामने कय्यूम सोफे पर बिलकुल नग्न पड़ा था, बालो से भरा कला जिस्म सफ़ेद सोफे पर फ्रिज की हलकी रौशनी मे चमक रहा था.

काया के किये हैरानी उसका शरीर नहीं था वो तो पहले भी देख चुकी थी.

उसकी नजर मे कय्यूम की जांघो के बीच झूलता उसका काला मोटा लंड चुभ रहा था.

कदकपन पानी था, एक तरफ लुड़का पड़ा था लेकिन भयानक दिख रह था.
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काया का जिस्म मे एक बार फिर से खलबली सी मचने लगी, मर्दाने अंग को देखने की चाहत पनपने लगी.

उस वक़्त वो हिम्मत नहीं कर पाई थी, कैसे करती पराया मर्द कय्यूम उसे ही देख रहा था, लेकिन यहाँ कौन है, रोहित अंदर सो रहा है, कय्यूम खुद सो रहा है.

काया को वो अंग पास से देखना था, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा,

काया हाथ मे बोत्तल पकडे कय्यूम की ओर बढ़ चली. पीछे फ्रिज का दरवाजा कहीं अटक गया मालूम होता था रौशनी अभी भी आ रही थी.

काया का दिल धाड धाड़ कर रहा था, कदम कांप रहे थे कभी पीछे हटते तो दो कदम आगे बढ़ जाते.

काया सोफे तक का फैसला तय कर चुकी थी.

सामने सोफे पर विशालकाय शरीर का मालिक कय्यूम बिछा हुआ था.

काया धीरे से कय्यूम के पैरो की तरफ बैठ गई.

जैसे कोई बायोलॉजी का छात्र आज किसी जीव की रचना का बारीकी से मुयाना करने बैठा हो.

काया के सामने कय्यूम का नसो से भरा काला, बड़ा और मोटा लंड लुड़का पड़ा था.

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"बबब.... बाप रे.. ये... ये... इतना बड़ा " काया ने दूर से ही हथेली को पूरा खोल लंड के सामंतर रख नापा.

मुरछीत लंड भी उसकी हथेली से बड़ा था.

काया का दिमाग़ सांय सांय करने लगा, ऐसा भी होता है, ऐसा तो बाबू का भी नहीं था.

ये तो रोहित से भी कहीं ज्यादा बड़ा है, आज की रात ही उसने रोहित और कय्यूम दोनों के लंड देखे थे,

तो तुलना तो लाज़मी ही थी, रोहित का तो इसके सामने कुछ भी नहीं.

काया को वो दृश्य याद आ गया जब वो इसी भयानक लंड को अपने पैरो मे कैद कर निचोड़ रही थी.

"ईईस्स्स...... एक सिस्कारी सी काया के मुँह से फुट पड़ी.

काया ने चेहरा नजदीक ले जा के देखा, लंड के आगे गुलाबी सा मोटा आकर का कुछ था जिस के ऊपर एक छोटा सा लम्बाई मे चीरा लगा था.

कितनी अच्छी छात्रा थी काया कितनी बारीकी से समझ रही थी, तभी उसकी नजर लाल लकीर पर पड़ी, को की पुरे लंड पर ऊपर ज़े नीचे की तरफ बनी हुई थी, लगता था जैसे खून सुख के जम गया है.

काया को ध्यान आया उसके पैरो के नाख़ून कय्यूम के लंड पर खरोच मारते हुए गए थे, काया के हाथ आगे बड़े वो टटोल लेना चाहती थी, वजन, मोटाई नापने की इच्छा जाग्रत होने लगी...

की ठप्प...... थप्पक... की आवाज़ के साथ हॉल मे अंधेरा छा गया, काया ने पीछे मूड देखा फ्रिज का दरवाजा बंद हो गया था.

काया का जिस्म इस अँधेरे से उजाले मे आ गया," क्या करने जा रही थी मै.... नहीं.. नहीं... ये गलत है, वो खुद से ऐसा कैसे कर सकती है... नहीं.... " काया पानी की बोत्तल उठा बैडरूम की ओर चल दी.

सुबह 7 बजे, day -6

ट्रिन... ट्रिंग... ट्रिंग....

रोहित के फ़ोन की घंटी बज उठी,

"हहह.... हेलो... हेल्लो " रोहित ने आधी नींद मे जवाब दिया.

काया की नींद भी मोबाइल बजने से खुल गई थी.

"साब... साब मै मकसूद, आज नहीं आ पाउँगा "

"क्यों... क्या हुआ?"

"साब बीबी को मायके छोड़ ने जाना है"

"अरे भाई तो फिर मै बैंक कैसे जाऊंगा?" रोहित की नींद पूरी तरह से फुर्र... हो गई थी.

"पांडे को कार दे दी है वो आ जायेगें आपको लेने "

"ठ... ठीक है कट...."फ़ोन काट दिया.

"आ गया होश बड़े बाबू को " काया ने तुरंत ही गुस्सा करते हुए कहां.

"वो... वो.... सॉरी काया... पता नहीं कल क्या हो गया था ससस... सोरी "

क्या खाक सॉरी पूरी रात ख़राब कर दी अपने, खाना भी नहीं खाया "

"मुझे तो याद नहीं यार कुछ, सॉरी, वैसे मै घर कैसे आया?"

"वो... कय्यूम.... कककक.... कक्क..." काया को जैसे ही कय्यूम का ध्यान आया उसके हलक मे जबान फस गई.

तुरंत बिस्तर से खड़ी हो गई, भागते हुए बाहर हॉल मे आई,

उसे याद आया कय्यूम नंगा सोफे पर सो रहा है.

लेकिन सोफा खाली था " कहां गया.... " काया भागती हुई बाथरूम की तरफ भागी, बाथरूम तो खुला है कोई नहीं है, ककय्यूम के कपडे भी नहीं है, काया फिर से हॉल मे आई, कय्यूम के सफ़ेद जूते नहीं थे.

"उउउफ्फ्फ.... हुउउम.. फ़फ़फ़फ़...." लगता है चले गए,

काया का सीना डर के मारे फटने को था, चेहरे की हवाइया उड़ गई थी, उसे हुए तोते वापस आ चुके थे.

साथ ही रोहित भी.

"क्या हुआ काया? भागी क्यों? " सवाल लाजमी था

"कक्क.... कुछ नहीं मुझे लगा दरवाजे पर कोई है " काया साफ झूठ बोल गई थी.

"बताओ ना मै यहाँ आया कैसे?"

" कय्यूम जी आये थे छोड़ने, छोड़ के चले गए " काया जवाब देती किचन की ओर चल दी.

"भले आदमी है लोग फालतू की बेकार कहते है उसे, तुमने कुछ चाय नाश्ता करवाया या नहीं उन्हें "

जवाब मे काया सिर्फ मुस्कुरा के रह गई.

रोहित बाथरूम की ओर चल पड़ा और काया किचन मे खाना बनाने लगी.





थोड़ी देर बाद डाइनिंग टेबल पर.

"अच्छा सुनो ना रोहित मुझे कुछ सामान लेने है "

"हाँ तो जाओ, घूमो फिरो थोड़ा मन लगेगा "

"तो आप कार भेज देंगे आज?"

"ओह... सॉरी आज मकसूद नहीं है"

"फिर?"

"फिर क्या देख लेना कोई ऑटो वगैरह "

"यहाँ मिलेंगे ऑटो?"

"क्यों नहीं... काफ़ी चलते है, पांडे को बोल के भिजवा दूंगा "

"हाँ भई बड़े बाबू है आप तो" काया ने चुटकी लेते हुए कहां.

"तुम्हारे तो पति हूँ मेरी जान "

रोहित बैंक के लिए निकल गया,.

काया के सामने बहुत काम थे.

*********



आज सुबह से ही बादल लगे हुए थे,

"आज मौसम अजीब हुआ है पांडे " कार मे बैठे रोहित मे पांडे को कहां

"हाँ साब लगता है कहीं बारिश हो रही है, इसलिए यहाँ भी मौसम बिगड़ रहा है"

रोहित बैंक पहुंच चूका था

"सुमित क्या प्रोग्रेस है, कुछ लोन रिकवर हुआ "

"बिलकुल सर, कुछ कुछ तो आया है, लेकिन जो मोटा माल है वहाँ से नहीं आया है "

"मतलब?'"

" मतलब शबाना जी का, कय्यूम का? "

"कय्यूम तो दे देगा, उसने कहां है... इस शबाना का कुछ करना पड़ेगा "

"पांडे.... पांडे..." रोहित ने पांडे को आवाज़ लगाई

"जी सर...?" पांडे तुरंत हाजिर हुआ

"कार की चाबी तो मै काम से हो के आता हूँ "

"आप चला लेंगे? मै चलता हूँ ना?"

"कार चालानी आती है मुझे, अब रास्ते भी पता है मै चला जाऊंगा, वैसे ही बैंक मे स्टाफ की कमी है "

रोहित कार ले चल पड़ा शबाना की कोठी की तरफ.

इधर काया घर के कामों मे व्यस्त थी.

टिंग टोंग.....

"अभी कौन आया?" काया ने दरवाजा खोल दिया

"नमस्ते मैडम जी "

"बाबू तुम...." काया के चेहरे पे मुस्कान आ गई.

बाबू उसे अच्छा लगता था.

"कल से मिली नहीं ना?" बाबू के लहजे मे शरारत थी

"क्या नहीं मिली " काया पलट कर सोफे पर जा बैठी.

साथ ही बाबू भी

" आप मैडम.... "

"अच्छा तो मुझसे मिलने आये हो?"

"हाँ... मैंने सोचा कोई काम हो, इस बिल्डिंग मे आप ही प्यार से बात करती है मुझसे "

" काम तो कोई नहीं है"

" अच्छा " बाबू का मुँह उतर गया, जैसे यहाँ आने का मकसद ही ख़त्म हो गया हो, बाबू पलटने को हुआ ही की.

"अच्छा बाबू तुम किसी ऑटो वाले को जानते हो?"

"हाँ... क्यों... कहां जाना है?"

"मार्किट कुछ सामान लेने है "

"आप इतनी बड़ी मेमसाब ऑटो से जाएगी, "

"इसमें क्या है?" काया जमीन से जुडी महिला थी, कोई घमंड नहीं था उसमे.

हहहहहहम.... बाबू सोचने लगा

"ऑटो तो क्या.... स्कूटी से चले "

"स्कूटी से चले का क्या मतलब?"

"मतलब स्कूटी का इंतेज़ाम है मेरे पास, ऑटो वाला धक्के खिलता ले जायेगा, मै भी दिन भर यहाँ मक्खी ही मरता हूँ, आपके काम आ जाऊंगा, आपकी सेवा कर लूंगा "

बाबू ने बड़ी ही मासूमियत से बात रखी..

"हाहाहाहा.... बाबू तुम भी ना, अच्छा ठीक है सेवा का मौका देती हूँ

"आप तैयार हो जाइये एक घंटे मे नीचे मिलता हूँ "

बाबू तुरंत निकल लिया कहीं काया का मूड ना बदल जाये

काया मुस्कुराती बाथरूम की ओर चल दी.

करीब एक घंटे बाद

रोहित शबाना की कोठी के बाहर खड़ा था, " आज हिसाब कर के रहूँगा "

दूसरी और काया लेगी कुर्ते मे बिल्डिंग के बाहर खड़ी थी, पिंक लेगी मे काया की जाँघे कहर ढा रही थी, फ्लावर प्रिंट कुरता काया के जिस्म पर कसा हुआ था, स्तन अपने आकर को बयां कर रहे थे.

पिंक दुप्पटा गले मे अटका पड़ा था,
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आसमान मे बादल छाये हुए थे, धुप बिलकुल भी नहीं थी, जो की काया के लिए सुखद था.

सामने से बाबू एक्टिवा लिए, दाँत निपोर चला आ रहा था.

"चले मैडम?" आँखों पर काला चश्मा चढ़ाये बाबू काया के सामने आ चूका था.

"अरे वाह बड़े हैंडसम लग रहे हो" काया स्कूटी पर जा बैठी.

काया की जाँघे बाबू की कमर से जा लगी.

"आप भी कम हैंडसम नहींअगर रही मैडम "

"हाहाहाहा.... बुद्धू लड़कियों को ब्यूटीफुल बोलते है,"

"वो... वो... सॉरी मैडम आप सुंदर लग रही है"

काया और बाबू का हसीं मज़ाक भरा सफर शुरु हो गया था.

पति पत्नी दोनों ही इस मौसम मे कुछ नया सीखेंगे?

रोहित लोन रिकवर कर पायेगा? इतिहास रहा है जहाँ हुश्न हो वहाँ मर्द पैसे लुटा के ही आता है ले कर नहीं.

बने रहिये कथा जारी है....
Seducing Babu will be fun for kaya, like my mausi did with me.
 
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दोस्तों मेरे मन मे इस कहानी को ले कर एक दुविधा है, आप लोगो का सुझाव चाहता हूँ.
इस कहानी के दो एन्ड है मेरे दिमाग़ मे.
1. Happy ending जहाँ सब राज़ी ख़ुशी निपट जायेगा, काया रोहित कुछ सीख के जायेंगे यहाँ से.

2. Sad ending - जहाँ थोड़ी गड़बड़ है, साज़िश है, धोखा है, काया रोहित मे से किसी की बाली चढ़ेगी.

तो क्या चाहते है आप?
अभी ending बहुत दूर है, लेकिन कहानी को इस मोड़ पे ले जाना पड़ेगा, इसलिए सुझाव माँगा है.
दो रास्ते है, आप पाठक बताइये कहां जाना है.?
 

Delta101

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दोस्तों मेरे मन मे इस कहानी को ले कर एक दुविधा है, आप लोगो का सुझाव चाहता हूँ.
इस कहानी के दो एन्ड है मेरे दिमाग़ मे.
1. Happy ending जहाँ सब राज़ी ख़ुशी निपट जायेगा, काया रोहित कुछ सीख के जायेंगे यहाँ से.

2. Sad ending - जहाँ थोड़ी गड़बड़ है, साज़िश है, धोखा है, काया रोहित मे से किसी की बाली चढ़ेगी.

तो क्या चाहते है आप?
अभी ending बहुत दूर है, लेकिन कहानी को इस मोड़ पे ले जाना पड़ेगा, इसलिए सुझाव माँगा है.
दो रास्ते है, आप पाठक बताइये कहां जाना है.?
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दोस्तों मेरे मन मे इस कहानी को ले कर एक दुविधा है, आप लोगो का सुझाव चाहता हूँ.
इस कहानी के दो एन्ड है मेरे दिमाग़ मे.
1. Happy ending जहाँ सब राज़ी ख़ुशी निपट जायेगा, काया रोहित कुछ सीख के जायेंगे यहाँ से.

2. Sad ending - जहाँ थोड़ी गड़बड़ है, साज़िश है, धोखा है, काया रोहित मे से किसी की बाली चढ़ेगी.

तो क्या चाहते है आप?
अभी ending बहुत दूर है, लेकिन कहानी को इस मोड़ पे ले जाना पड़ेगा, इसलिए सुझाव माँगा है.
दो रास्ते है, आप पाठक बताइये कहां जाना है.?
Happy Ending bhai...story ko happy ending doge to hi accha rahega...

andypndy
 
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