ravithefucker9
New Member
- 94
- 83
- 33
बिलकुल दोस्त जल्द ही काया की माया दिखेगीWaah
Awesome update
Kaya har kisi ko milne chahiye
Light jaldi na aaye
Kaka ko kuchh dikha do
Gajab ki story start kiye ho bhai.अपडेट -1, काया की माया
दोस्तों बहुत समय तक मै busy रहा, माफ़ी चाहूंगा.
अब आ गया हूँ एक नयी wife storie के साथ उम्मीद करता हूँ आपका प्यार हूँ, आपका प्यार हमेशा की तरह मिलता रहेगा.
बिना वक़्त गवाए चलते है इस सफर पर.
"क्या रोहित तुम्हे यहीं जगह मिली थी क्या?"
"अब क्या करू काया? बैंक वालो ने यहीं ट्रांसफर दिया है "
ये है रोहित और काया, एक सरकारी कार मे बैठे बाहर बीहड़, खेत, गांव को सुनी आँखों से निहार रहे थे.
रोहित एक बैंक कर्मी है जो कि राजस्थान जयपुर का रहने वाला है अभी 2 साल पहले ही नौकरी लगी और उसके कुछ महीनों बाद ही काया जैसी स्त्री से शादी भी हो गई.
हालांकि रोहित का अभी शादी का कोई भी इरादा नहीं था परन्तु जब काया को देखा तो देखता ही रह गया..
जैसा नाम वैसा दर्शन क्या काया थी, एक दम भरा जवान जिस्म, सुडोल स्तन, जो ना जाने किस घमंड मे सर उठाये रहते थे, स्तन के नीचे बलखाती पतली कमर, और असली खूबसूरती यही से शुरू होती थी.
काया के जिस्म का सबसे बहुमल्य कामुक सुन्दर अंग उसकी गांड जो बिल्कुल ऊपर को उठी हुई बाहर को निकली, चलती तो गांड के दोनों हिस्से आपस ने रगड़ कर एक कामुक ध्वनि पैदा करते थे.
क्यूंकि काया को पसीना बहुत आता था, जो उसकी गांड कि दरार मे हमेशा विधमान रहता, जब भी वो चलती एक अजीब सी आवाज़ उत्तपन करती.
हालांकि वो आवाज़ माध्यम होती, कोई ध्यान से सुने तो ही समझ आये.
ऐसी काया ऐसा जिस्म ऐसी जवानी देख मै मना नहीं कर सका, कोई बेवकूफ ही होता जो मना करता.
जिस्म जीतना कामुक था उसके विपरीत चेहरा बिल्कुल सौम्य,कोई कामुकता नहीं,
सिंपल सा, बड़ी आंखे, लाल होंठ भरे हुए गाल.
कुल मिला कर एक बेहतरीन औरत थी काया उम्र मात्र 25 साल लेकीन इतनी सी उम्र मे ऐसा जिस्म नसीब वालो को ही मिलता है.
अब मै कोई इतना बेवकूफ तो हूँ नहीं कि ऐसे नसीब,ऐसी किस्मत को ठुकरा देता.
हुआ भी यहीं.
मैंने शादी के लिए हाँ कर दि, काया को भी मै पसंद आया.
मै अपने बारे मे बता दू मै भी कोई कम स्मार्ट नहीं हूँ.
लम्बा,छरहरा हसमुख मिजाज का व्यक्ति हूँ.
काया को मेरा हसमुख स्वाभाव खूब पसंद आया, पहली मुलाक़ात मे ही हम दोनों मे दोस्ती हो गई.
"देखिये मै शादी के बाद कोई साड़ी नहीं पहनुंगी,मुझे आदत नही है "
काया ने बड़े भी भोलेपन से कहाँ.
मै क्या कहता बस मुस्कुरा कर रह गया.
"वैसे मै सीख रही हूँ साड़ी पहनना,जल्दी सीख जाउंगी लेकीन मुझे लेगी,कुर्ता पहनना ही पसंद है" काया ने मुझे मुस्कुराता पा कर अपने दिल कि बात कह दि.
"अरे बाबा ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा,वैसे भी मेरे मम्मी पापा मॉर्डन ख़्यालात के है उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होंगी " मैंने काया कि सभी शंका को दूर कर दिया..वैसे भी कुर्ते लेगी मे उसकी मांसल जांधे अपने पूर्ण कामुकता का प्रदर्शन करती थी,और मुझे यहीं सबसे ज्यादा पसंद था.
उफ्फ्फ....कयामत थी काया.
देखने दिखाने के बाद 2 महीने मे ही हमारी सगाई शादी हो गई,
मेरा जीवन खुसमय हो चला, अच्छी नौकरी अच्छी बीवी कहीं कोई कमी थी ही नहीं.
हालांकि सुहागरात के दिन मै थोड़ा नर्वस जरूर था, मेरी कभी कोई gf नहीं रही थी, ना ही मैंने कभी सम्भोग सुख का आनंद लिया था.
परन्तु दोस्तों कि सलाह ले मै युद्ध भूमि मे कूद पड़ा था, अब एक नोसीखिया योद्धा क्या करता वही हुआ 2मिनट मे ही मै शहीद हो गया.
काया कि काया देख मेरे सिपाही वैसे ही घायल था.
रही सही कसर युद्ध भूमि रुपी चुत मे उतरते ही खत्म हो गई.
दिल दिमाग़ निराशा से भर उठा, हालांकि काया ने कोई शिकायत नहीं कि, शायद उसे भी sex का कोई अनुभव नहीं रहा होगा.
वैसे भी मैंने अच्छे पति होने के नाते कभी कुछ पूछा भी नहीं.
ऐसे ही समय गुजरा, काया मुझसे ख़ुश थी मै उस से,नौकरी तो बैंक असिस्टेंट मैनेजर कि थी ही.
भगवान को धन्यवाद कहते थकता नहीं था मै.
लेकीन 2 साल बाद एक फरमान सा जारी हुआ.
"Mr.रोहित up मुरादाबाद मे एक नयी ब्रांच खुली है, तुम सबसे काबिल और एक्सपीरियंस कर्मचारी हो तुम्हे वहाँ भेजा जा रहा है, सैलरी 30% बढ़ के मिलेगी, तुम्हे प्रमोट कर मैनेजर बनाया जाता है और सब बैंक ही प्रोवाइड करवाएगा जैसे रहना, यात्रा, हेल्थ इत्यादि."
मीटिंग मे बैठे सभी लोग ताली पीटने लगे.
मेरा सीना भी गर्व से चौड़ा हो चला, मै ख़ुश था आखिर मै जीवन मे तरक्की कर रहा था.
घर पहुंच काया को मैंने खुसखबरी दि,माँ पापा का आशीर्वाद लिया.
लेकीन एक उदासी भी थी कि परिवार से दूर जाना होगा.
"अरे बेटा उदास क्यों होते हो ये तो जीवन का हिस्सा है,बेटे को अलग होना ही होता है कभी ना कभी, और कौनसा दूर है आते रहना.क्यों बहु?"
काया ने भी पापा की बात का समर्थन किया.
पिता जी के आशीर्वाद और बातों से मेरा दिल हल्का हुआ, काया भी ख़ुश थी मेरी तरक्की से.
"Wow रोहित....तुम तो कमाल निकले "
"तुम.ख़ुश हो ना "
"अरे बहुत ख़ुश....लेकीन वो जगह कैसी होंगी?" काया के जहन मे थोड़ी चिंता थी.
"हमें क्या करना है जगह से, नौकरी करेंगे घूमेंगे, फिर कुछ साल बाद वापस जयपुर "
मैंने काया कि चिंता दूर कर दि.
अगले सप्ताह हम लोग मुरादाबाद पहुंच गये.
यानि आज का दिन...
ट्रैन से उतर, स्टेशन के बाहर निकले की सामने से एक लम्बा चौड़ा बंदा चला आया.
"आप रोहित सर ही होंगे लाइये सामान " उस बन्दे ने रोहित के हाथ से सामान ले लिया.
"साब मै मकसूद बैंक का ड्राइवर, आपको लेने भेजा गया है "
"लेकिन तुम्हे कैसे पता चला की मै रोहित ही हूँ?" रोहित का सवाल जायज था.
"साब इस देहात मे सूट बूट पहने और सुन्दर मेमसाब के साथ और कौन आएगा " मकसूद ने आगे चलते चलते बात कही लेकिन लास्ट की बात बोलते वक़्त पीछे मूड काया को देखते हुए दाँत निपोर के कही.
काया ने भी कोई खास ध्यान नहीं दिया.
मकसूद ने सारा सामान अकेले उठा कार मे ठेल दिया.
रोहित हैरान था जिन चार बेग को उठाने मे काया और रोहित के पसीने छूट रहे थे मकसूद बड़ी आसानी से सभी को उठा के हवा जैसे चला जा रहा था.
सभी कार मै बैठ चुके थे " चले साब "
"चलो मकसूद"
"क्या रोहित ये कैसी जगह है,यहीं जगह मिली थी क्या तुम्हे?" टैक्सी मे सवार काया बाहर देख रही थी
दूर दूर तक खेत, बिहाड़, झोपडीया,
कोई शहरी नामोनिशान नहीं.
"अरे ये तो रास्ता है क़स्बा आगे है" जवाब आगे बैठे मकसूद ने दिया
करीबन स्टेशन से 1.30 घंटे चलने के बाद कार एक कस्बे मे प्रवेश कर गई, आस पास गॉव ही थे.
काया सिर्फ बाहर देखे जा रही थी ना जाने क्या था उन रास्तो मे,या फिर शहर कि चकाचोघ को मिस कर रही थी.
कार चली जा रही थी, क़स्बा भी निकल गया, मै और काया दोनों के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे.
"हम कहाँ जा रहे है?" मैंने मकसूद से पूछा
"साब अभी जो हमने क़स्बा पार किया आपका बैंक वही है, और अब हम जहाँ जा रहे है वहा बैंक के कर्मचारियों के रहने का इंतेज़ाम है " ड्राइवर मकसूद ने शंका दूर करते हुए कहा.
थोड़ी ही देर बाद कार एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के बाहर जा रुकी.
"आइये सर ....आइये स्वागत है आपका " एक नाटा काला सा आदमी भागता हुआ सामने बिल्डिंग के दरवाजे से निकल के आया और दरवाजा खोलते हुए बोला..
"सर मै पांडे बैंक मे चपरासी कम अलराउंडर आपको बताया होगा मेरे बारे मे मल्होत्रा सर ने " पांडे ने डिक्की खोल सूटकेस संभाल लिए.
"ओह..अच्छा...अच्छा....तुम ही हो पांडे, हाँ बताया था कि तुम मिलोगे यहाँ "
रोहित और काया पांडे के पीछे पीछे बिल्डिंग मे दाखिल हो गये.
"ये कैसी जगह है पांडे?" रोहित ने पीछे चलते हुए सवाल किया
"सर बैंक तो गांव मे है, उन देहातियों के बीच रहेंगे क्या आप साब लोग, इसलिए बैंक ने इस बिल्डिंग मे सभी कर्मचारियों को फ्लैट दिए है, यहाँ से दूसरी तरफ हाइवे निकलने वाला है, किसी शहर से कम नहीं होंगी ये जगह देखना आप "
पांडे बोलता चला जा रहा था.
इसके पीछे रोहित काया सर घुमाये जगह का मुआयना कर रहे थे.
"ये कहा आ गए हम " काया खुद से ही बोल रही थी
"अच्छी जगह है मैडम, नई जगह पर थोड़ा टाइम लगता है" पीछे से आई आवाज़ ने काया को चौंक दिया
उसने पीछे मूड देखा, पीछे मकसूद सामान उठाये चला आ रहा था,
"अब आप जैसी शहरी लड़की वहा गांव मे कहा रहती " मकसूद की नजर एक खास जगह ही टिकी हुई थी.
काया पीछे देख वापस आगे को हो गई, उसके पास कोई जवाब नहीं था वैसे भी उसे अजीब लग रहा था ऊपर से मकसूद जो घूर रहा था उसे चाह कर भी काया छुपा नहीं सकती थी,
नतीजा जोर जोर से कदम चलाने लगी...
"मस्सल्लाह...." एक हलकी सी आवाज़ काया के कानो मे पड़ी.
काया समझदार थी वो जानती थी मकसूद की नजर कहा है, उसे ऐसी नजरों का सामना हमेशा ही करना पड़ता था.
उसकी गांड थी ही ऐसी, ऊपर से ये गर्मी पूरा जिस्म पसीने से नाहा रहा था.
पीछे मकसूद शायद पहली बार ऐसा नजारा, ऐसी खूबसुरति देख रहा था.
"आओ साब ये सामान मुझे दो, आप लिफ्ट मे आइये"
बिल्डिंग निर्माणधीन थी निचे पार्किंग बन चुकी थी, बाकि सभी मालो पर काम चल रहा था,
"साब अभी 4th और 5th फ्लोर पर ही दो चार फ्लैट तैयार किये गए है रहने लायक, आपको 5th फ्लोर पर फ्लैट दिया गया है" पांडे समझाता हुआ आगे चला जा रहा था.
बिल्डिंग के साइड मे ही एक लिफ्ट थी, नयी बनी हुई....
सससससस... ररररर...... आइये साब
लिफ्ट का दरवाजा खुलता चला गया.
"काका 5वे फ्लोर पे चलो " पांडे ने लिफ्ट मे बैठे शख्स को कहा.
काका कोई 50,55 के आस पास का आदमी जान पड़ता था, वर्दी पहने जर्दा मसलाता हुआ लिफ्ट मे प्रकट हुआ था "जज्ज....जज.... जी साब चलते है"
थाड... थाड.. थाड.... काका ने तीन ताली मार जर्दा मसल मुँह मे घुसेड़ लिया.
सामने काया ये सब देख निराशा मे डूबती जा रही थी.
"आउच...."तभी काया को छूता हुआ मामसूद सामान लिए लिफ्ट मे दाखिल हो गया.
"आइये साब आइये मैडम " मकसूद ऐसे घुसा जैसे कोई बच्चा हो लिफ्ट छूट जाएगी.
ना जाने क्यों उसकी इस हरकत पे काया के चेहरे पे मुस्कान सी आ गई.
ये पहला मौका था जब उसका ध्यान इन सब से हटा था, उसने कुछ फनी देखा था.
सभी लोग लिफ्ट मे सवार हो गए...
"और ये क्या बदतमीज़ी है दिख नहीं रहा सर मैडम आये है बड़े बाबू है यहाँ के और तुम जर्दा मसल रहे हो" लिफ्ट बंद होते ही पांडे ने तुरंत काका को हड़का दिया.
शायद पांडे ऐसा ही था या फिर रोहित जो की उसका नया बॉस था उसे इम्प्रेस कर रहा था, जैसे बताना चाहता हो की कितनी चलती है मेरी यहाँ.
"उउउफ्फ्फ्फ़.... कितनी गर्मी है " काया दुपट्टे से हवा करते हुए फुसफुसाई
"अभी बन रहा है ना मैडम जी " काका मुँह फट था बोल पड़ा.
वैसे भी काया को पसीना खूब आता था गर्मी सही नहीं जाती थी उससे, काका ने लिफ्ट मे 5नंबर का बटन दबा दिया, लिफ्ट चल पड़ी इधर काया का पसीना चल पड़ा.
सामने चमकती सतह पर अपने पीछे खड़े मकसूद को देख रही थी, उसकी नजरें अभी भी झुकी हुई थी.
शर्म से नहीं.... काया की गांड पर, जो बाहर निकली अपनी शोभा बिखेर रही थी.
ना जाने क्यों काया कुछ नहीं बोली, वो वैसे ही परेशान थी या फिर उसके लिए ये बात आम थी लोग उसकी गांड को ऐसे ही घूरते थे.
थोड़ी ही देर मे लिफ्ट रुकी, सामने गालियारा था,
"आइये सर " पांडे आगे चल पड़ा पीछे रोहित काया और मकसूद
"खुद को बड़ा साब समझता है साला थू...." काका ने जर्दा थूकते हुए पांडे पे गुस्सा निकला लिफ्ट बंद होती चली गई.
गालियारे के लास्ट मे दो फ्लैट थे जो की रहने लायक बने हुए थे बाकि मे कुछ ना कुछ काम चल थी रहा था.
"साब ये 51 नंबर फ्लैट आपका है, और ये सामने वाला 52 दोनों ही तैयार है " पांडे ने चाबी लगा दरवाजा खोल दिया.
"Wow रोहित...." काया के मुँह से खुशी की आवाज़ निकली जब से यहाँ आई है पहली बार.
फ्लैट वाकई बहुत शानदार था, फुल फर्नीश्ड
रोहित काया को ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी इस बीहड़ मे.
"Wow पांडे ये तो वाकई बहुत सुन्दर है " रोहित ने भी प्रशंसा की.
"मैंने पहले ही कहा था साब फ्यूचर मे ये शहर से भी बड़ी जगह होने वाली है"
पांडे काया और रोहित को घर दिखाने लगा.
मक़सूद सामान रख रहा था.
"अच्छा साब चलता हूँ मै अब बैंक, कल मक़सूद आपको लेने आ जायेगा "
पांडे ने इजाजत मांगी
"बहुत बहुत धन्यवाद पांडे तुम्हारा "
"अरे सर ये तो ड्यूटी है मेरी " पांडे और मकसूद बाहर को चल दिए
देखा सामने लिफ्ट बंद थी.
"ये हरामी कहा गया, साला कामचोर है बूढा "
पांडे काका को गाली देता सीढ़ियों से उतरने लगा पीछे पीछे मकसूद.
"Wow रोहित.... Love you " अंदर फ्लैट मे काया रोहित से जा लिपटी.
"अच्छा love you अभी तो मुँह बना रही थी " रोहित ने काया को आपने आगोश मे भर लिया
"वो तो गांव वगैरह देख के मन उदास हो गया था "
"तो अब...?"
"अब ख़ुश हो गया कौनसा मुझे बैंक जाना है, आप जाओ गांव देहात " काया ने चुटकी ली
"अच्छा बताता हूँ अभी...." रोहित ने काया के होंठो को छूना चाहा
"अभी नहीं पूरा पसीना पसीना हो गया है " काया खुद को छुड़ाती बाथरूम की तरफ भाग खड़ी हुई.
बाहर रोहित मुस्कुराता आपने सामान की ओर बढ़ चला.
काया बहुत ख़ुश थी उसे वैसे भी कुछ समय चाहिए था अकेला सिर्फ आपने पति के साथ और उसे ये मौका मिल गया था.
शादी के तुरंत बाद ही रोहित ने बैंक ज्वाइन कर लिया था तो हनीमून पर भी नहीं जा सके थे.
लेकिन ये मौका किस्मत से काया को मिल ही गया था.
अंदर बाथरूम मे काया पूर्ण नग्न शावर के निचे खड़ी आपने जिस्म को सहलाती, सपने संजो रही थी.
सपने मे सिर्फ वो थी उसका पति दुनिया से दूर उनका ये नया आशियाना.
सामने कांच इस खूबसूरत लम्हे का गवाह था, एक मदमस्त भरे जिस्म की औरत की परछाई उसमे दिख रही थी.
सुडोल बड़े आकर के स्तन से होता पानी, पतली कमर से होता चुत रुपी पतली दरार मे समा के निचे फर्श को भिगोता गुजर जा रहा था.
अचानक ना जाने काया को क्या सूझी वो पीछे को पलटी, सामने गजब की मदमस्त तरबूजबके आकर की गांड उजागर हो गई, एक पल को वो खुद शर्मा गई आपने अंगों की खूबसूरती से.
उसके जगह ने मक़सूद की हरकत दौड़ गई, कैसे देख रहा था जैसे खा जायेगा...
हेहेहे.... काया मुस्कुरा उठी.
आखिर थी तो वो खूबसूरत ही.
पानी बंद हो गया, काया नाहा चुकी थी.
तौलिये मे लिपटी काया बाथरूल से बाहर आ गई, सामने ही रोहित सामान सेट कर रहा था.
"मेरे कपडे वाला बेग देना " रोहित काया की आवाज़ सुन पलट गया.
"उउउउफ्फ्फ्फ़..... काया " काया की माया चमक रही थी दिन के उजाले मे पानी की बून्द किसी मोती की तरगम्ह जिस्म से फिसल रहे थे.
अब भला कौन मर्द ऐसा होगा जो ये देख के भी पीछे हट जाये.
रोहित भी मर्द ही था, तुरंत छलांग मार काया कर जिस्म का जा दबोचा,
"आउच... क्या कर रहे हो, लम्बे सफर से थके नहीं?" काया ने चुटकी ली.
"थकान उतरने ही तो आया हूँ "
"छोड़िये ना कितना काम है अभी... गुगुगु.... उउउउम्म्म....
बस इसके आगे काया नहीं बिल सकी रोहित की होंठ काया के होंठ से जा लगे.
काया भी इस काला मे निपुण थी, रोहित के साथ वो भी इस सुखमय सफर मे निकल चली.
अभी कही गड्डे बिस्तर की व्यवस्था तो थी नहीं, रोहित इतना बेकाबू था की काया वो वही फर्श पर लिटा उसके ऊपर चढ़ बैठा...
फच फच.... फच.... उउउम्म्म्म... आअह्ह्ह... रोहित.... आराम से...
आअह्ह्ह.... पच... पच.... काया की चुत तो जैसे पहले से ही गिली थी तुरंत रोहित के लंड को लील लिया.
रोहित किसी बेकाबू सांड की तरह धका धक चालू हो गया..
आअह्ह्ह... रोहित रुको... आराम से भागे नहीं जा रही हूँ... आअह्ह्ह... रोहित.
लेकिन रोहित सुने तब ना, 5मिनट बाद ही.
"आअह्ह्ह... काया.... फच... अफच... आह्हः... मे गया...
रोहित के लंड ने वीर्य की उल्टिया कर दी.
आअह्ह्ह... रोहित कहा था ना आराम से, हटो अब
काया ने शिकायत तो नहीं की लेकिन उसके बोलने से लगा जैसे कुछ कमी रह गई हो.
"वो... वो.... तुम्हे ऐसे देख खुद को रोक नहीं पाया "
रोहित खड़ा होते हुए बोला.
काया ने भी टॉवल वापस लपेट लिया "तुम्हारा ऐसा ही है ना जाने क्या जल्दी रहती है तुम्हे हुँह..." काया बिना रोहित की तरफ देखे आपने बेग की तरफ चल दी और रोहित बाथरूम.
असल मे काया के साथ ये पहली बार नहीं हो रहा था, रोहित हमेशा ही जल्दबाज़ी करता और काया को बीच मझदार मे छोड़ खुद किनारे हो जाता.. हालांकि काया कोई सम्भोग की भूखी नहीं थी परन्तु कही ना कही मन मे मलाल रह ही जाता.
"रोहित थोड़ी देर और रुक जाते " बस सम्भोग के बाद अंतिम शब्द यही होते.
फिर भी उसने कभी कोई शिकायत नहीं की थी ना आज की.
Contd...
Awesome update tha Bhai..अपडेट -2
शाम हो चली थी
काया और रोहित खुश थे, अपनी जिंदगी का नया सफर शुरू करने जा रहे थे.
नया घर काया को खूब पसंद आया था, उसकी उम्मीद से कही ज्यादा खूबसूरत था.
मैन गेट खोलते ही एक बड़ा हॉल था जहाँ सोफा और उसके सामने टीवी दिवार पे टंगा हुआ था, मैन सोफे के पीछे दो बड़े बेडरूम थे, साइड वाले सोफे के पीछे किचन था जो की खुला पोर्सन था, सिर्फ एक पर्दा था जिसे सहूलियत के हिसाब से खिंच के किचन को ढका जा सकता था.
बेडरूम मे ही एक अटैक बाथरूम था जो दोनों कमरे के लिए कॉमन था, और एक अलग रसोई के साइड से निकले गालियरे मे अंदर था.
बैडरूम और किचन से बाहर की तरफ बालकनी भी थी.
कुल मिला का 2bhk आलीशान फ्लैट मिला था रोहित को.
काया और रोहित ने दिन भर मेहनत कर कपडे और जरुरी सामान निकाल जमा लिए थे.
"उफ्फ्फ.... कितनी थकान हो गई है " काया ने खाना परोसते हुए कहा, डाइनिंग टेबल किचन से ही अटैच था,
"हम्म्म्म..... रोहित कुछ बोला नहीं
"क्या सोच रहे हो रोहित "
"कक्क... कक्क... कुछ नहीं काया कल से बैंक ज्वाइन करना है वही सोच रहा हूँ "
"उसमे इतना क्या सोचना कोई पहली बार थोड़ी ना जाओगे " काया ने खाना परोस दिया
"जगह नहीं है, स्टेट अलग है, गांव है "
"अरे छोडो भी कल का कल देखना, खाना खाते है बहुत थक गए है " काया ने मुस्करा के कहा
काया की मुस्कान देखते है रोहित पल भर मे सारी चिंता भूल गया.
रात हो चली, सन्नाटा फेल गया था, दूर दूर तक कोई रौशनी का नामोनिशान नहीं था,
बैडरूम की खिड़की से झाकती काया को बस निचे एक कमरे से रौशनी आती दिख रही थी, कच्चा सा कमरा
शायद यहाँ के चौकीदार मजदूरों के लिए होगा.
"कितनी शांति है ना रोहित यहाँ "
"हहहम्म्म्म...." रोहित उनिंदा सा बिस्तर पे पड़ा ऊंघ रहा था
"So जाओ काया थकी नहीं क्या "
"थक तो गई हूँ लेकिन ये शांति कितनी अच्छी है ना, ना भीड़, ना कोई शोर, ना कोई गाड़ी की पो पो... मन शांत सा हो गया "
काया का जिस्म एक महीन गाउन से ढका हुआ था,
उसके मन मे इस माहौल को और भी करीब से महसूस करने की ललक जाग उठी, बैडरूम का दसरवाजा खोल बालकनी मे आ गई.... अंदर डीम लाइट से कमरा उजला सा था, रोहित शायद सो चूका था, काया ने जानने की कोशिश भी नहीं की.
बालकनी ने पहुंचते है काया का रोम रोम खील उठा, बाहर से आती गांव की ठंडी शुद्ध हवा काया कर गाउन को उडाने लगी, गाउन वैसे ही हल्का सा था,
"उउउफ्फ्फ..... ऐसी हवा शहर मे कहा नसीब होती है " काया खुद से ही कह रही थी
काया निचे झाकने लगी, वही जहाँ से निचे कमरे से रौशनी आ रही थी.
होता है वो अंधरे मे एक हलकी सी रौशनी भी आपका ध्यान अपनी तरफ खिंच लेती है.
काया ने भी वही किया उसकी आंखे वही देखने लगी की तभी उस टिनशेड के बने कमरे का दरवाजा खुला, बाहर रौशनी सी फ़ैल गई.
अभी काया कुछ समझती की एक लड़का जैसा बनियान पहना शख्स बाहर निकल आया.
रौशनी मे काला सा शरीर चमक रहा था, काया कोतुहाल से देखने लगी चलो यहाँ हमारे अलावा भी कोई रहता है....
निचे लड़का कुछ कर रहा था, इधर उधर गर्दन घुमा कमरे से आगे चल पजामा खोलने लगा.
साययय..... से काया का जिस्म हिल गया, काया समझ गई की वो क्या करने आया है, काया के कदम पीछे को हो गए उसे नहीं देखना था ये सब " कितना बेशर्म लड़का है "
काया आपने बैडरूम मे जाने को मुड़ी ही थी की दिल मे ना जाने क्या हुक सी जगी, उसका मन किया वापस जा के निचे देखे.
एक नजर उसने अंदर बैडरूम मे देखा रोहित घोड़ा बेच सो रहा था, चोर को हिम्मत आ गई थी.
इसमें बुरा ही क्या है, हर इंसान अकेले मे कुछ ना कुछ खुवाहिस रखता ही है,
काया का दिल एक बार तो धड़का ही था परन्तु उसके कदम फिर बालकनी से जा चिपके, गर्दन नीचे झुक गई.
नीचे लड़का पजामा नीचे किये सससससररर..... पेशाब की तेज़ धार बहा रहा था,
हलकी रौशनी मे तेज़ पेशाब की धार चमक रही थी,
ये चमक काया की आँखों मे भी देखी जा सकती थी.
हालांकि आज से पहके उसने ऐसा कुछ देखा नहीं था.
ना जाने क्यों आज उसकी नजरे ऐसा कर गई,
काया की नजर उस तेज़ धार पर ही थी, जो काफ़ी दूर तक जा रही थी.
"आदमी लोगो का अच्छा है कही भी खड़े हो जाओ, कोई लफड़ा नहीं " काया के मन मे कोई और भाव नहीं था, वैसे भी इतनी ऊपर से क्या ही दीखता, कभी एक लम्बी सी आकृति दिख जाती, काया का जिस्म ठंडी हवा मे भी पसीने छोड़ रहा था.
मन मे और देख लेने की चाहत जन्म ले रही थी.
चोर तभी चोर है जब वो पकड़ा जाये,
आज ये चोर काया के मन मे पैदा हो गया था.
इंसान का सुलभ व्यवहार यही होता है स्त्री या पुरुष वो एक दूसरे के कामुक अंगों को एक पल के लिए देख लेना ही चाहते है.
धार धीरे धीरे सिमटती चली गई, साथ ही काया की नजर भी सिमटती गई और रुकी वहा जहाँ उस धार का स्त्रोत था.
टप टप... टप.... करती दो बून्द और टपकी..
काया की आंखे वही जमीं थी, दिल एक बार को धाड़ धाड़ कर उठा, वो लड़का नीचे पेशाब कर अपने लंड को झटके मार रहा था.
बाहर से आती ठंडी हवा मे भी काया को पसीना सा आ गया था, इतनी ऊपर से भी रौशनी मे चमकता लंड का कुछ हिस्सा जगमगा रहा था,
काम को अंजाम दे वो लड़का वापस कमरे मे समा गया, धाड़.... से दरवाजा बंद होते ही चंद सेकंड मे लाइट भी बंद हो गई, चारो तरफ सन्नाटा अंधेरा छा गया था.
बस काया के चेहरे पे पसीना, दिल मे अजीब सी कस्माकश सा कुछ चल पड़ा था.
वो वापस क्यों नहीं गई, जबकि उसे पता था उसे यही देखने को मिलेगा.
काया ने कभी दूसरे लंड को देखा भी नहीं था, हाँ कॉलेज मे कभी कभी ऐसी बाते हो जाया करती थी दोस्तों से, लेकिन ये असल मामला था हालांकि इतनी दूर से दिखा या ना दिखा कोई मतलब नहीं था.
लेकिन चोरी तो चोरी ही होती है, काया वापस नहीं गई थी ना जाने क्यों?
जवाब उसके पास भी नहीं था.
उसके कदम बैडरूम की तरफ बढ़ गए, जिस्म बिस्तर मे समा गया.
काया नींद के आगोश मे समा चुकी थी.
Contd...
Yaar aap awesome writer ho .अपडेट -3
अगले दिन
"रोहित उठो ऑफिस नहीं जाना, नाश्ता टिफ़िन तैयार है "
काया एक आदर्श बीवी की तरह सुबह सब तैयारी कर दी थी.
थोड़ी ही देर मे रोहित तैयार डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था.
समय 9.00am
टिंग टोंग....
"शायद मकसूद होगा, उसने आने को कहा था " रोहित नाश्ता करते हुए बोला
काया दरवाजे की ओर बढ़ चली, वो अभी भी रात वाले गाउन मे ही थी, यहाँ कौन से सांस ससुर थे की सूट साड़ी पहननी है.
पल भर मे ही दरवाजा खुल गया
"नमस्ते ममम... म.. मैड... मैडम जी " दरवाजा खुलते से ही मकसूद का मुँह भी खुला ही रह गया
काया के लिए ये सामान्य बात होंगी लेकिन गांव देहात के मकसूद के लिए ये सामन्य नहीं थस, उसे लगा शायद जन्नत का दरवाजा खोल कोई हर उसे अंदर बुला रही है.
"नमस्ते... नमस्ते मकसूद जी आईये" लेकिन मकसूद के कान पे जु भी ना रेंगी वो मुँह बाये कभी काया को देखता तो कभी अगल बगल झाकता
सामने गया हलके सफ़ेद गाउन मे खड़ी किसी अप्सरा से काम नहीं लग रही थी, एक एक अंग साफ नुमाया हो रहा था,
मकसूद की मनोदशा को भाम्प काया भी झेम्प गई, और दरवाजे से साइड हो गई.
"मै यही इंतज़ार कर लेता हूँ " मकसूद से और कुछ कहते नहीं बना,
"आ गए मकसूद, चलो चले"इतनी देर मे ही रोहित आपने बेग के साथ दरवाजे पर आ गया था.
रोहित मकसूद बाहर को निकलिए गए.
धाड़ से दरवाजा बंद कर काया उस से सट गई...
उफ्फ्फ्फ़.... मै भी क्या करती हूँ, मुझे ध्यान रखना चाहिए ये गांव देहात है.
काया आपने कामों मे व्यस्त हो गई,
बाहर कार मे
"हेलो हाँ मल्होत्रा सर, जी आज से ज्वाइन कर रहा हूँ, यस सर पहुंचने वाला हूँ " रोहित कार मे बैठा मल्होत्रा साहब से बात कर रहा था.
मल्होत्रा बैंक के हेड है, दिल्ली ब्रांच मे ही बैठते है,
इन्होने ही ख़ास रोहित के टैलेंट को पहचाना था.
दूसरी तरफ फ़ोन पर " देखो रोहित मन लगा के काम करना, सुमित मिलेगा वहा वो सब समझा देगा "
"ओके सर " पिक
फ़ोन कट हो गया
रोहित अपनी तरक्की से बेहद ख़ुश था.
लगभग 20 मिनट मे कार बैंक के सामने खड़ी थी.
बैंक गांव के बाहर ही स्थित था,
उसके बाजु मे सरकारी स्कूल, फिर पंचायत ऑफिस फिर बड़ा सा गांव मोहब्बतपुर.
"नाम तो बड़ा अच्छा है मकसूद गांव का "
"जी साब लोग भी अच्छे ही है " मकसूद मे कार का गेट खोल रोहित का बेग थाम लिया.
आइये आइये सर.... एक पतला सा सामान्य कद काठी का आदमी तुरंत भागता हुआ आया और फूलो की मला रोहित के गले मे डाल दी.
सर मै सुमित अभी तक मै ही ब्रांच को देख रहा था, अब आप आ गए है मै धन्य हुआ hehehehe.... सुमित थोड़ा मजाकिया लगा.
रोहित ने भी हाथ मिलाया.
सभी ब्रांच मे दाखिल हो चले.
बैंक मे कुल 4 लोगो का ही स्टाफ था, पाँचवा खुद रोहित.
चौकीदार रमेश तोमर जो की सेना मे सिपाही था, रिटायर होने के बाद बैंक मे चौकीदार है, कद काठी मे लबा चौड़ा, घनी मुछे रोबदार चेहरा,हेड केशियार कम अस्सिटेंट मैनेजर सुमित, चपरासी पांडे, और एक महिला क्लर्क आरती जो की विधवा थी और अपने पति के स्थान पर ही नौकरी पाई हुई थी.
आरती 40साल की महिला, पति बच्चा पैदा करने से पहले चल बसा, दिखने मे कोई खास नहीं, सवाली हष्ट पुष्ठ महिला, शरीर बिलकुल भरा हुआ, आम तौर पर साड़ी मे ही रहना पसंद करती थी.
सभी ने रोहित का स्वागत किया और रोहित ने अभिवादन स्वीकार भी किया.
कुछ हूँ देर मे सभी मैनेजर रूम मे बैठे चाय की चुस्की ले रहे थे.
"सर ये लीजिये पेपर सिग्नेचर कर दीजिये और मुझे मुक्त कीजिये इस भार से " सुमित ने एक फ़ाइल आगे बड़ा दी जिसमे रोहित की जोइनिंग, बैंक और उसकी सम्पति का ब्यौरा लिखा था
"बड़ी जल्दी है भाई सुमित तुम्हे, रोहित ने हलके लहजे मे कहा और सिग्नेचर कर दिए.
तुरंत ही सुमित ने फाइल्स का एक पुलिंदा आगे बड़ा दिया
"ये क्या है?"
"यही तो समस्या है "
"क्या मतलब?" रोहित हैरान था
"मल्होत्रा साहब ने बताया होगा ना आपको "
"नहीं, उन्होंने कहा था सुमित बता देगा "
"अच्छा...." सुमित सर खुजाने लगा.
"बोलो... क्या बात है" रोहित फ़ाइल खोल के देखने लगा.
"लोन डिफाल्टीर्स " फ़ाइल के पहले पन्ने भी ही कोई 10, 15 नाम लिखें थे.
"सर यही समस्या है, हमारी ये ब्रांच लोन डिफाल्टर्स से परेशान है, कोई 60,70 लाख का लोन पिछले 3 सालो मे बाट दिया गया है, लेकिन एक नया पैसा वापस नहीं आया है.
रोहित फ़ाइल के पन्ने पलटे जा रहा था, सुमित हर पन्ने को समझाये जा रहा था.
सुमित के चेहरे पे सुकून बढ़ता जा रहा था वही रोहित के माथे पर परशानियों की लकीरें बनती जा रही थी.
कुल मिला सुमित ने अपने कंधे का सारा बोझ रोहित के सर पर लाद दिया था.
"उउउफ्फ्फ्फ़...... पहले ही दिन रोहित के दिमाग़ के फ्यूज उड़ गए थे.
ट्रिंग... ट्रिंग....तभी फ़ोन की घंटी बज उठी
"हेलो.... हेलो.... हर मल्होत्रा सर "
"उम्मीद है तुमने ब्रांच का कार्यभार सुमित से ले लिए होगा " फ़ोन पर मल्होत्रा
"जज... ज.. जी सर ले लिया लल... लेकिन?"
"क्या हुआ रोहित सब ठीक तो है ना?"
"सर यहाँ तो सब कुछ क्रेडिट पर चल रहा है, बैंक तो डूबने की हालत मे है " रोहित ने जैसे शिकायत की हो.
"तुमसे इस तरह की उम्मीद नहीं थी रोहित, तुम्हे प्रमोशन क्यों दिया गया? तुम्हारी सैलरी क्यों बड़ाई गई? काम मे तो चुनौती आती ही है समझो यही वो चुनौती है, वहा जयपुर मे तुम्हारा 100% लोन रिकवरी का रिकॉर्ड था इसलिए ही तो तुम्हे प्रमोट किया गया है. क्या बैठने की तनख्वाव्हा लोगे?
80% ही कवर कर दो वही बहुत है बैंक के लिए, और ना हो सके तो बता देना मुझे, ठाक से मल्होत्रा ने लम्बा चौड़ा भाषण दे कर फ़ोन काट दिया.
रोहित सोच मे था, गहरी सोच मे जयपुर उसका इलाका था वहा वो सबको जनता था, सभ्य समाज था, यहाँ तो कुछ नहीं पता? कैसे करे? क्या करे?
"सर क्या हुआ? सर... सर..." सुमित की आवाज़ से रोहित थोड़ा सा हड़बड़या
"हा.. हाँ.... कुछ नहीं "
एक बात बताओ सुमित इतने दिन तक तुम क्या कर रहे थे? तुमने क्या किया? " रोहित थोड़ा कड़क हो चला
अक्सर ऐसा ही होता है बॉस अपने से नीचे के इंसान पे ऐसे ही रोब झाड़ता है जैसे अभी मल्होत्रा ने रोहित को हड़काया था.
"सर... वो... वो... मुझे भी तो 5 महीने ही हुए है यहाँ आये, जो पहले के मैनेजर और केशियर थे ये उनकी करास्तानी है, साले खुद लोन बाट कर रिटायर हो गए बोझ हम पर डाल गए " सुमित ने बेचारा सा मुँह बना लिया.
रोहित भी समझ चूका था यहाँ किसी की गलती नहीं है.
"सुमित तुम यहाँ बैठो बाकि लोग अपना काम करे "
सुमित रोहित घंटो फाइल्स मे उलझे रहे.
दिन के 12 बज चुके थे.
वहा घर पर काया घर के सभी काम निपटा कपडे बालकनी मे सूखने को डाल रही थी, अकस्मात ही उसकी नजर उसी कमरे पर जा पड़ी जहाँ कल रात वो लड़का निकला था, काया के दिमाग़ मे कोतुहाल सा मचने लगा, अँधेरी रात मे पेशाब की वो धार दिमाग़ मे जगमगाने लगी, काया ने उस धार का पीछा किया तो उसके स्त्रोत तक जा पहुंची... काला सा कुछ लम्बा सा था जहाँ से वो सफ़ेद चमकती धार निकल रही थी...
उफ्फ्फ.... क्या सोचने लगी मै, काया ने अपने दिमाग़ को झटक दिया,
"सब्जी... सब्जी.... ऐ सब्जी..." तभी काया के कान मे एक आवाज़ पड़ी सर उठा के देखा तो पाया बिल्डिंग के गेट के बाहर सब्जी के ठेला लिया आदमी खड़ा था.
"आज रात के लिए तो कुछ सब्जी लेनी पड़ेगी, अभी तो कोई बजार वगैरह भी पता नहीं कहा है?"
काया झट से बाहर की ओर दौड़ पड़ी कही वो चला ना जाये, नयी जगह है अब कहा मिलेगी कोई सब्जी,
काया ने नाहा धो कर एक टाइट लेगी और सूट पहना हुआ था, सोफे पे पड़ा दुपट्टा उठाया और बाहर को चल दी, बाल अभी भी भीगे हुए थे, बालो से पानी किसी मोटी की तरह रिस कर सूट को भिगो दे रहा था.
तुरंत ही काया गैलरी मे थी, लिफ्ट तक गई "ओफ़्फ़्फ़... हो... ये लिफ्ट तो बंद है, क्या yaar क्या जगह है" काया ने तेज़ कदमो से बाजु की सीढ़ी उतरना शुरू कर दिया.
लगभग 3मिनिट मे वो बिल्डिंग के गेट पे खड़ी थी
"अरे कहा गया, अभी तो यही था सब्जी वाला " काया जब तक पहुंची सब्जिवाला जा चूका था.
आस पास कही कोई नहीं था, सिर्फ कुछ मजदूर जो की यहाँ वहा काम मर रहे थे.
"क्या हुआ मैडम जी "
पीछे से आई आवाज़ से काया चौंक सी गई.
पीछे मूड देखा तो पीछे से एक औसत कद काठी का लड़का उसी तरफ बढ़ा चला आ रहा था.
"कककक.... कुछ नहीं "
"आप तो वही मैडम है ना जो कल ही यहाँ आई है " वो लड़का पास आ चूका था.
"आआ... आ. हाँ... कल ही आये है हम लोग "
"मै बाबू हूँ मैडम जी मतलब मेरा नाम बाबू है, यही इसी कमरे मे रहता हूँ, " बाबू ने उस कमरे की ओर इशारा कर दिया
बाबू दिखने मे छोटा सा, दुबला पतला, मासूम, गेहूए रंगत का लड़का था,
काया उसके इशारे को देख थोड़ा सकते मे आ गई " यानि यही वो लड़का है रात वाला " चिंता की एक लकीर सी काया के माथे पर रेंग गई.
"क्या हुआ मैडम कुछ परेशान सी लग रही है आप? कोई काम है तो बताइये "
बाबू सहज़ लहजे मे ही बोला लेकिन चोर तो काया के मन मे था ना इसलिए वो हकला रही थी भले चोर सफाई से चोरी कर ले लेकिन डर हमेशा होता है किसी ने देखा तो नहीं ना, बस यही चोर काया के मन मे था कही बाबू ने उसे नीचे झाकते देखा तो नहीं ना?
"ससस.... सब्जी वो.. सब्जी लेने आई थी मै " काया ने जल्दी से जबाब दे दिया.
"लो इसमें इतना क्या मैडम जी बताइये क्या लाना है अभी ले आता हूँ, सब्जी वाला यही बाजु ही रहता है "
बाबू के सहज़ व्यवहार से काया का दिल दिमाग़ कुछ शांत हुआ. उसे यकीन हो चला कल रात बाबू ने उसे नहीं देखा था.
"आलू भिंडी, बेंगन, टमाटर.... बला.. बला... ले आना " काया ने फट से बैग से पैसे निकाल बाबू को थमा दिए.
"अभी आया मैडम जी यही रुकना "
बाबू हवा की तरह फुर्र हो गया.
"कितना अच्छा लड़का है " काया मंद मंद मुस्कुरा दी.
लें दोपहर की चिलचिलाती धुप काया को परेशान कर रही थी, इधर उधर देखने पर उसे कमरे की शेड की छाव दिखी, काया ने वही इंतज़ार करना भला समझा.
टाइट लेगी कुर्ती पसीने से सराबोर हो चली थी, काया को पसीना ही इतना आता था, "उफ्फ्फ.... ये गर्मी " काया ने दुपट्टा हटा चेहरा और गार्डन पोछ दुपट्टा कंधे पर एक तरफ लटका लिया,
गर्मी से राहत मिली या नहीं ये तो लता नहीं लेकिन काया की खूबसूरत मादक स्तन की दरार जरूर चमक उठी.
लगभग पांच मिनट हुए ही होंगे की "ये लीजिये मैडम आपकी सब्जी " बाबू सामने एक दम से प्रकट हो गया.
बाबू सामने खड़ी काया को देखता ही रह गया, पसीने से भीग कर कपडे जिस्म से लगभग चिपक ही गए थे, ऊपर से काया चुस्त कपडे ही पहनना पसंद करती थी.
बाबू का सब्जी वाला हाथ आगे बढ़ गया लेकिन नजरें किसी खास जगह पर टिकी हुई थी,
काया ने देखा बभु के हाथ मे कोई 5 थेलिया था जिसमे अलग अलग सब्जियाँ थी, काया ने आगे हाथ बढ़ा के सब्जी लेनी चाही लेकिन बाबू सब्जी छोड़े तो सही.
काया ने बाबू की नजर का पीछा किया तो सकपका के रह गई, बाबू की नजर काया के सीने पे बानी कामुक दरार पर थी,
उसके पसीने ज़े भीगे स्तन सूट से बाहर झाँक रहे थे, दुप्पटा साइड मे कही अलग दुनिया मे था.
"बाबू... बाबू... लाओ सब्जी दो " काया ने तुरंत दुप्पटा ठीक कर लिया.
"हहह... आए..... हाँ... ये लो सब्जी मैडम जी " बाबू का मुँह ऐसे बना जैसे किसी बच्चे से उसकी लॉलीपॉप छीन ली हो.
ना जाने क्यों काया के चेहरे पे उसकी मासूमियत देख हसीं आ गई.
"चलिए मैडम मै सब्जी पंहुचा देता हूँ, इतना सारा आप कैसे ले जाएगी? " काया ने सहर्ष ऑफर स्वीकार कर लिया
ना जाने क्यों उसे बाबू अच्छा लगा था, मासूम, छोटा सा लड़का.
वैसे भी काया को अकेलापन सा लग रहा था, बाबू से मिल के उसे अच्छा लगा.
"दिखने मे तो छोटे से हो तुम, यहाँ नौकरी करने आ गए " काया ने चलते हुए पूछा
"का करे मैडम जी चाचा हमारे यही काम करते थे तो आ गए हम भी मज़बूरी देख के "
" अच्छा क्या उम्र है तुम्हारी अभी "
"18 का हो गए है मैडम जी, बस हाईट थोड़ा छोटा रह गया " बाबू ऐसे बोला जैसे खुद को बड़ा साबित करना चाह रहा हो.
"हाहाहाहा.... क्या बाबू तुम भी "काया उसकी मासूमियत पे हस पड़
तब तक लिफ्ट आ गई थी.
"आइये मैडम लिफ्ट से चलते है " बाबू लिफ्ट की तरफ बढ़ा
"लिफ्ट नहीं चल रही है, मै सीढ़ियों से ही नीचे आई थी " काया ने भी जानबूझ के मुँह बनाते हुए कहा.
असलम मे इंसान सामने वाले के हिसाब से ही बाट करता है, काया ने भी बाबू की मासूमियत के हिसाब से बात की.
"आई हो दादा.... मतलब आप सीढ़ी चढ़ के आई, आप जैसी शहरी मैडम सीढ़ी से आई " बाबू हैरान था
"इतना भी मत बोलो बाबू... ये शहरी क्या होता है इंसान ही हूँ मै, दूसरी दुनिया से नहीं हूँ, आओ सीढ़ी से चलते है "
"का मैडम... आप दूसरी दुनिया से ही तो हो, हमने तो आप जैसे सुंदर गोर मैडम आजतक नहीं देखी " बाबू मासूमियत मे बोल गया
काया सामने सीढ़ी चढ़ने लगी, पीछे बाबू हाथ मे सब्जी थामे
काया का सीढ़ी चढ़ना था की बाबू की सांसे भी चढ़ने लगी, सामने जन्नता का दरवाजा आपस मे रगड़ खा रहा था.
काया की बड़ी सुन्दर गांड आपस मे लड़ झगड़ के सीढिया चढ़ रही थी, जैसे काया एक पैर उठती उसकी गांड का एक हिस्सा निकल के बाहर आ जाता, फिर दूसरा
उउउफ्फ्फ.... बाबू ने ये नजारा सपने मे भी नहीं सोचा होगा.
काया इन सब से बेफिक्र चढ़ी जा रही थी.
"और क्या नहीं देखा?" काया फ्लो मे बोल गई
बाबू का कोई जवाब नहीं.
"बताओ ना और क्या नहीं देखा आजतक?" काया स्त्री सुलभ व्यवहार के नाते अपनी और तारीफ सुनना चाहती थी शायद, तारीफ कोई भी करे कैसी भी करे स्त्री को पसंद आता ही है.
पीछे से जवाब ना पर कर काया ने पीछे मूड देखा बाबू मुँह बाये चला आ रहा था, लगता था सुनने समझने की क्षमता खो बैठा है.
उसकी नजर गया की मदमस्त कर देने वाली गांड पर टिकी हुई थी.
"बाबू... बाबू...." काया ने जोर से कहा
"कक्क.... कक्क..क्या मैडम जी " बाबू चौंक गया, काया के चेहरे पे गुस्सा था
बाबू काया के बराबर आ चूका था,
"कहा ध्यान है तुम्हारा?" काया ने जानबूझ के ये सवाल किया जैसे कुछ जानना चाहती हो, ना जाने क्यों बाबू को परेशानी मे देख उसे अच्छा लग रहा था.
"कक्क... कही तो नहीं " बाबू ने सीधा सा जवाब दिया.
"अच्छा तो मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दिया "
"क्या... कक्क... क्या पूछा आपने "
"जाने दो... चलो अब... गर्मी बहुत है " काया अगर बढ़ गई
बाबू वैसे ही उसकी गांड निहारता पीछे पीछे चल पड़ा.
काया जानती थी वो क्या देख रहा है, जानते हुए बहुत उसकी चाल ने एक मादकता आ गई थी.
किसी के मजे ले लेने मे क्या दिक्कत है, वैसे भी काया जानती थी हर मर्द उसकी गांड ही देखता है लेकिन उसे पता नहीं था बाबू जैसे छोटे उम्र के लड़को का भी यही हाल होगा.
खेर... कुछ ही देर मे काया का घर आ गया था.
दरवाजा खुला....
"Wow मैडम जी आपका घर कितना अच्छा है, और एक हम है टुटा फूटा सा झोपडी जैसा कमरा मिला है " बाबू सरल स्वाभाव का था कहा क्या बोलना है पता नहीं बस दिल की बात बोल गया.
शायद काया को यही सरल सुलभ व्यवहार पसंद आया था बाबू का.
"ऐसा नहीं बोलते बाबू, मेहनत से सब मिलता है तुम भी करना"
"सब्जी कहा रख दू मैडम जी "
"वहा किचन मे "
तब तक काया दो glass पानी ले आई, "लो बाबू पी लो "
बाबू एकटक काया को देखे जा रहा था
"क्या देख रहे हो पियो, प्यास नहीं लगी है " काया मुस्कुरा दी
"आप कितनी अच्छी है मैडम जी, वरना हम जैसे को कौन पूछता है, नीचे आरती मैडम रहती है वो तो हमेशा डांट देती है, गुटूक गुटूक गुटूक... बाबू एक सांस मे पानी पी गया.
कौन आरती?
"नीचे वाले फ्लोर पर रहती है, काली मोटी "
"ऐसा नहीं बोलते किसी के लिए बाबू "
काया को जानकारी हुई की ओर भी लोग रहते हे यहाँ
"अच्छा मैडम चलता हुआ मै, ये आपके बाकि पैसे " बाबू ने सब्जी मे से बचे पैसे काया की तरफ बढ़ा दिए.
"रख लो बाबू काम आएंगे " काया मे एक सादगी थी, एक अपनापन था जिस से मिलती वो उसका दीवाना हो जाता उसका व्यवहार ही ऐसा था
बाबू भी प्रभावित था.
"थन्कु मैडम जी "
बाबू चल दिया ...
काया मन ही मन मुस्कुरा उठी, बाबू उसे भला लड़का लगा.
वही दूसरी ओर बैंक मे रोहित और सुमित घंटो फाइल्स मे सर खापा के उठे, 4,5 कप चाय के खाली हो चुके थे.
"सुमित ये तो बहुत बहुत बढ़ा अमाउंट है पुरे 50 लाख रिकवर करने होंगे हमें "
"जी सर "
"और ये कय्यूम खान कौन है बैंक ने अकेले इसे 30लाख दिए है, ये मोटा बकरा है इसे ही पकड़ के पैसे निकाल ले तो काम हो जायेगा "
"सर यही तो मैन समस्या है, कय्यूम खान इस गांव का रसूखदार व्यपारी है, व्यापार के नाम पर 15, 10,5 लाख कर ले लोन उठाया था, अब बोलता है धंधा डूब गया, पैसे देने को राज़ी नहीं है "
सुमित ने तुरंत दुखड़ा रो दिया
"ऐसे कैसे चलेगा सुमित, एक बार बात करनी पड़ेगी ना "
टंग... टंग.... टंग.... मकसूद...
रोहित ने ऑफिस की बेल बजा मकसूद को बुलावा भेजा
"जी... साब..." मकसूद फ़ौरन हाजिर
"तुम तो यहाँ के लोकल आदमी हो, ये कय्यूम को जानते हो?"
"साब कय्यूम नहीं कय्यूम दादा बोलिये "
"ओह शटअप मकसूद, ये दादा क्या होता है?" रोहित ने अफसरगिरी दिखाते हुए तुरंत मकसूद को झाड़ दिया.
"साब इस गांव के दूसरी तरफ कय्यूम खान का ठीकाना है, "
"क्या धंधा करता है वो"
"साब... वो... वो..."
"बोलो भी... दिन भर का समय नहीं है मेरे पास "
"साब वो बुचड़खाना चलता है, मांस का धंधा करता है, बकरा मुर्गा काटने और बेचने का धंधा है उसका "
"हम्म्म्म..... रोहित सोच मे पड़ गया, अब ओखल मे सर दे दिया है तो मुसल से क्या डरना, वैसे भी उसने ऐसे टेड़े आदमियों को हैंडल किया ही था.
"चलो सुमित बात कर के आते है, मकसूद गाड़ी निकालो "
"मममम.... मै... मै... कैसे... मै कैसे जा सकता हूँ " सुमित कुर्सी पर पीछे की ओर जा बैठा जैसे की रोहित ना हो कोई भूत हो.
"क्यों तुम बैंक के कर्मचारी नहीं हो? तुम सैलरी नहीं लेते? तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है?"
"हहह.... है... है... सर लेकिन वो कय्यूम खान का बुचड़ खान बदबू और खून से भरा रहता है, मै शुद्ध शाकाहारी आदमी हूँ सर, एक बार गया था उल्टिया करता वापस आया हूँ"
सुमित ने साफ तौर पर असमर्थता जाता दी.
अब मरता क्या ना करता " चलो मकसूद " रोहित अकेला ही चल पड़ा.
20मिनट मे ही कार कय्यूम के बुचड़खाने के सामने खड़ी थी.
रोहित आस पास के लोगो के कोतुहाल का विषय बना हुआ था, सफ़ेद साफ सुथरे कपडे, टाई पहना शहरी बाबू....
"कय्यूम दादा अंदर है क्या?" मकसूद ने गेट पर खड़े आदमी से पूछा.
"बोलो क्या काम है " गेट लार खड़ा काला भद्दा सा आदमी ने कड़की से सवाल दागा
"बोलो बैंक से नये बड़े साब आये है "
तुरंत ही आदेश का पालन हुआ, गेट खोल दिया गया.
गेट से चल कर कोई 100 मीटर की दुरी पर एक घर नुमा आकृति बनी हुई थी,
पुरे रास्ते बकरे, मुर्गीयो के दबडे, कीचड़ भरा पड़ा था.
मकसूद और रोहित को पैदल ही वहा तक जाना पड़ा. इमारट की दहलीज पर दोनों के पैर थिठक गए.
" आप मकसूद आओ.... कौन बड़े साब आये है इस बार? "
एक भारी कड़क रोबदार आवाज़ ने रोहित के पैर वही थाम लिए.
सामने एक 6फीट का काला बिलकुल काला, भद्दा सा मोटा आदमी खड़ा मुस्कुरा रहा था.
गंदी सी लुंगी पहने, मैली बनियान शायद सफ़ेद बनियान रही होंगी कभी आज खून और मेल से लाल काली हुई पड़ी थी.
काले पसीने से तर गले मे भारी सी सोने की चैन लटक रही थी, उसके नीचे गंदे से, पसीने से भरे बालो का गुच्छा बनियान से बाहर झाँक रहा था.
पसीने की इतनी बदबू गंध ना जाने कब से नहीं नहाया था कय्यूम.
"तुम ही ही कय्यूम खान " रोहित ने हिम्मत दीखते हुए सवाल तलब किया.
"हाँ साब मै ही हूँ कय्यूम दादा" रोबदार भारी आवाज़ गूंज उठी.
पति पत्नी दोनी के पहले दिन मे अंतर था, दोनों ही किसी अनजान शख्स से मिले थे.
अनजान इंसान से मिल के काया के चेहरे पे मुस्कान थी तो वही रोहित के माथे पर पसीना और दिल मे खौफ ने जगह बन ली थी.
क्या रोहित लोन रिकवर कर पायेगा?
रोहित और काया का जीवन जल्द ही बदलने वाला है शायद.
बने रहिये कथा जारी है....
पेशाब वाली story पूरी ही है भाई, sabi नाम की लड़की की series है जिसके एपिसोडस मै बीच बीच मे लिखता रहूँगा.Yaar aap awesome writer ho .
Bhai pesabh wali apki story puri nahi karoge bhai .
Mazedar updateअपडेट -10
डर और परेशानी से काया का बुरा हाल था, क्या करे क्या नहीं समझ से परे था.
"कोई है, कोई बाहर है " काया लिफ्ट का दरवाजा पिटे जा रही थी.
पसीने से टीशर्ट भीग चुकी थी.
लिफ्ट के दरवाजे पर पड़ते हाथ काया के जिस्म मे एक कम्पन छोड़ दे रहे थे, काया के बड़े स्तन और बाहर निकली गांड बुरी तरह हिलते हुए पीछे खड़े काका के जिस्म मे एक हलचल सी पैदा कर दे रही थी.
"कोई नहीं सुनेगा मैडम, तीसरे फ्लोर पर कोई भी नहीं है, काम भी आगे चल रहा है, आपको चिंता ना करे लाइट आ जाएगी "
काका ने काया को थोड़ी हिम्मत दी.
काया पहली बार ऐसी परिस्थिति का सामना कर रही थी.
इसी कसमाकस मे काया के हाथ मे थमी कचरे की थैली नीचे जा गिरी, सारा कचरा फ़ैल गया.
जिसे उठाने को एक साथ दोनों ही झुके,
काया के झुकने से उसकी टीशर्ट का गला खुलता चला गया, सामने बैठे काका ने ना जाने क्या पुण्य कर्म किये थे की उसे स्वर्ग की खुली दरार दिख गई, इस दरार के दोनों तरफ सुडोल कामुक कड़क दो स्तन अपनी शोभा बिखेर रहे थे,
इसी दरार से चलती पसीने की एक लकीर काया के पेट से होती कहीं नाभि पर ख़त्म हो जा रही थी.
क्या कचरे को उठाने मे लगी थी.
काका ने भी प्रयास किया लेकिन उसके हाथ थम गए थे, जिस्म मे कोई हरकत नहीं थी.
काया ने गर्दन उठाई देखा काका का मुँह खुला था, आंखे कटोरे से बाहर आने को बेताब थी.
काया की गर्दन फिर झुकी उसने भी वो दृश्य देखा जो काका के नसीब मे था "उउउउफ्फ्फ्फ़..... गॉड..." काया तुरंत ही सीधी खड़ी हो गई..
स्वर्ग के दरवाजे तुरंत ही बंद हो गए.
"ससस.... सॉरी मैडम मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था" काका ने कचरा थैली मे डाल खड़ा हो गया.
सामने काया सकपाकई सी खड़ी थी, पसीने से टीशर्ट भीग के जिस्म से चिपक गई थी, इतनी की स्तन की गोलाई साफ मालूम पडती थी, नीचे पेट और उसकी खूबसूरत नाभि.
लगता था जैसे काया नंगी ही खड़ी है.
काया शर्म से मेरे जा रही थी.
"ये लीजिये मैडम कचरा " काका ने थैली आगे बड़ा दी
कोई जवाब नहीं, सामने काया जोर जोर से सांस भर रही थी..
सांस भारी थी, सांस के साथ पसीने से भीगे स्तन भी ऊपर उठते फिर नीचे गिरते काका के लिए ये दृश्य हूँ कभी था,वैसे भी वो बरसो बाद किसी औरत को देख रहा था, ऊपर से किश्मत देखो पट्ठे की काया जैसी सुडोल जिस्म की शहरी मालकिन उसके सामने थी.
"नन... नं.... नीचे रख दो " काया ने जैसे तैसे खुद को संभाल कहां, और अपने दोनों हाथ अपनी छाती पर रख अपनी खूबसूरती को छिपाने की एक नाकाम कोशिश की,अब भला इतनी बड़ी खूबसूरती कभी छुप सकती है.
"रहने दीजिये मैडम, अब तो देख ही लिए है हम " काका थैली नीचे रख वापस खड़ा हो गया.
"हमें भी बहुत पसीना आता है का करे?" काका ने जैसे हमदर्दी जताई हो.
काया क्या बोलती दोनों हाथो को क्रॉस कर सीने पर बांध लिए, जिस से स्तन बाहर को और भी निकल आये, काया अपनी ही हरकतो से शरमाए जा रही थी, भरसक प्रयास कर करने के बावजूद वो अपने स्तन को ढकने मे नाकाम थी.
"कहां ना मैडम जाने दीजिये, आपके बहुत बड़े है नहीं छुपेगे " काका ने सीधा हमला कर दिया
"कककक.... क्या बदतमीज़ी है " काया ने गुस्सा जाहिर किया.
"काहे गुस्सा करती है मैडम आप, हम दोनों ही इस लिफ्ट मे फस गए है, आपकी जो हालत है वो मेरी भी है "
"लेकिन तुम मर्द हो, तुम्हे क्या पता " काया ने भी तकरार की ठान ली थी.
"इतना बड़ा है आपका तो हम का करे"
"कककक..... क्या बड़ा है?" काया ने सकपाकहट मे बोल दिया.
"आपके दूध मैडम बहुत बड़े और कड़क है "
काया के स्तन अब लगभग नंगे ही थे, टीशर्ट का गला भीग के लटक गया था, स्तन बाहरा आने को मरे जा रहे थे.
"शट up...." काया ने काका को झिड़क दिया
"हमने तो आजतक नहीं देखे ऐसे "
"क्यों आपकी बीवी नहीं है?"
काया ना जाने क्यों उसकी बातो का जवाब दिए जा रही थी
"गांव मे देहाती औरतों को कहां खाने पिने को मिलता है जो इतने बड़े हो जाये, वैसे भी हमारी पत्नी को मरे 20 साल हो गए " काका ने बड़े ही दुख से कहां.
"ससस.... सॉरी " काया ने भी दुख जताया, काया नरम दिल थी उसका दिल जल्दी ही काका की तरफ से पिघल गया.
लेकिन काका के शब्दों मे तारीफ भी थी जो कहीं ना कहीं उसे पसंद आई थी.
"वैसे भी अब कितना समय लगेगा कहा नहीं सकते, तो शर्माने का क्या फायदा?" काका ने अपनी मज़बूरी जता दी.
बात काया को भी जल्द ही समझ आई उसे हाथ सीने से हट कर स्तन के नीचे जा बंधे,
जानबूझ के या कैसे कहा नहीं सकते ऐसा करने से काया के दोनों सुडोल स्तन साफ बाहर को उजागर हो गए.
सामने काका का हलक सूखता जा रहा था.
काका की नजरें काया के सीने मे धसी जा रही थी, जिसे काया साफ महसूस कर रही सकती थी, लेकिन इस नजर मे एक मजा था, एक ठंडक सी थी.
हर लड़की जानती है मर्दो की नजरें उसके जिस्म पर कहां कहां रेंगति है, काया को भी इस बात का अहसास बखूबी थी.
"आप उधर खड़े हो जाइये ना " काया ने खुद को असहज महसूस करते हुए कहां.
"यहाँ का समस्या है मैडम जी "
"समस्या..... वो... वो.... तो.. कोई नहीं "
"तो फिर... वहा कोने मे का करेंगे हम, आपको कहे तो जर्दा बना ले?"
"न न... बाबा ..... न्नन्न... नहीं.... अब नहीं काका " काया के चेहरे पे एक मुस्कान आ गई.
काका ने पूछा ही इस मासूमियत से था.
"वैसे भी आपको इज़ाजत की जरुरत कब से पड़ने लगी?"
"अभी आपने ही तो बताया की, ऐसा नहीं करते है "
"बड़ी जल्दी बात मान गए मेरी "
"आपको बड़ी मालकिन है, माननी पड़ेगी ना शिकायत कर दी तो हमरा नौकरी तो गया ना "
"हाहाहाहा.... क्या काका आपको भी अच्छा चलिए, लिफ्ट की बात आपने बीच रहेगी "
काया ने अनजाने मे ही वादा कर दिया था.
"पक्का ना लिफ्ट मे मै जो भी करू वो बात आपके और मेरे बीच रहेगी "
"हाँ बाबा पक्का " काया ने वैसे ही मुस्कुरा के जवाब दिया.
काया का जवाब देना ही था की काका के हाथ अपनी वर्दी के बटन को खोलने लगे.
"यययय.... ये... ये.... क्या कर रहे है काका आप" काका एकदम से डर गई.
"मैडम जी गर्मी और पसीने से हाल बुरा है, वर्दी मोटी है उतार देते है, आपकी तरह पतली शर्ट थोड़ी ना पहने है "
काका की बातो से काया का ध्यान अपनी टीशर्ट पर गया जो बुरी तरह भीगी हुई थी.
"आपकी तरह हमें भी बहुत पसीना आता है मैडम जी " काका ने पुरे बटन खोल दिए थे.
काला लेकिन बलिष्ट, हट्टा कट्टा जिस्म काया के सामने चमकने लगा.
एक पल को काया भी इस उम्र मे काका के जिस्म की बनावट देख चौंक उठी.
अगले ही पल काका के जिस्म से वर्दी अलग हो चली, काका का जिस्म 60 साल की उम्र मे भी किसी नौजवन को फ़ैल कर रहा था, चर्बी का एक जर्रा भी नहीं था.
पसीने से पूरा काला बदन भीगा हुआ था.
वर्दी निकलते ही एक भीनी भीनी लेकिन अजीब से मर्दानगी लिए हुए महक उस छोटी सी जगह मे फ़ैल गई.
"उउउउह्म्मम्म्म्मह्ह्ह्ह..... ससससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... काया ने ना जाने क्यों एक जोरदार सांस खिंच ली, वमिस महक को महसूस करना चाहती थी.
जैसे ही काका सके पसीने की गंध मे काया के जिस्म को छुवा उसके रोंगटे खड़े हो गए.
काया इस अहसास को समझ नहीं पा रही थी, लेकिन जो आग काया के जिस्म मे थोड़ी देर पहले लगी थी उस आग को फिर से काका के जिस्म और पसीने ने माचिस दिखा दी थी.
"आअह्ह्ह.... अब आराम मिला थोड़ा " काका की आवाज़ से काया वापस धरातल मे आई.
सामने काका के जिस्म पर माध्यम रौशनी मे पसीने की बुँदे किसी मोती जैसे चमक रही थी.
काया की नाभि मे फिर से गुदगुदी होने लगी थी.
"आपकी उम्र कितनी है काका " काया को रहा नहीं गया
"60 के पड़ाव मे होगा मैडम जी " काका ने वर्दी से अपने बदन को पोछते हुए कहां.
"ओह... गॉड....60 इम्पोसीबल "
"कक्क... क्या मैडम जी?" काका भी सकपका गया काया क्या बोली.
"मतलब आपको लगते नहीं "
" ये तो गांव के शुद्ध देसी घी का कमाल है मैडम जी दबा के खाते है, दबा के मेहनत करते है " काका ने बड़े गर्व से अपने गांव को याद करते हुए कहां.
"एक बात कहे मैडम? बुरा ना मानियेगा तो?"
"हाँ बोलो ना अभी तो एक ही जहाज के पंछी है हम "
"आपका पसीना बहुत अच्छा महकता है "
कककक..... क्या... क्या... काया की आंखे चौड़ी हो गई.
"वो जब से महक आ रही है तो बोले बिन रह नहीं सके " काका बोले जा रहा था
काया ना जाने किस दुनिया मे ची गई थी, पहले बाबू अब काका दोनों को उसके पसीने से खुसबू आती है, लल्ल.... लेकिन रोहित ने कभी ऐसा नहीं कहां, उसे तो स्मेल अच्छी नहीं लगती "
"मैडम.... मैडम. जी क्या हुआ? सॉरी बुरा लगा तो "काका ने काया की आँखों के सामने हाथ हिलाया.
"ननन.... नई.... ऐसी बात नहीं है " काया ने सँभालते हुए कहां.
"पसीना भी कभी अच्छा होता है " काया बोल तो रही थी लेकिन वो खुद अभी काका के पसीने की गंध ज़े उत्तेजित हो गई थी.
"क्यों नहीं मैडम... औरतों का पसीना अलग अलग होता है, आपके पासीने मे तो जादू है ससससन्ननीफ्फफ्फ्फ़..... कितना अच्छा महक रहा है " काका की बातो मे जादू था, काया सुन रही थी समझ क्या आ रहा था लता नहीं..
काका ने पास आ एक लम्बी सांस खिंच ली.....सससससन्ननीफ्फफ्फ्फ़...... आअभ.... ऊफ्फफ्फ्फ़.. मैडम जी.
"हटो काका क्या कर रहे है " काया ने पीछे हटना चाहा,यकीन लिफ्ट की दिवार से जा चिपकी, काका के पास आने से एक मर्दानी गंध भी काया के जिस्म मे जा घुली.
वो मर्दो के पसीने से वाकिफ हो रही थी.
जब जब काका के पसीने की गंध को महसूस करती वैसे ही रोंगटे खड़े हो जाते.
"काका....."
" सच कहा रहे है मैडम जी "
"चलिए ऐसा भी कहीं होता है " काया खुद महसूस कर रही थी लेकिन शायद वो और भी जानना चाहती थी.
"नहीं सच मे मैडम जी ऐसा ही होता है, औरतों के पसीने से बहुत कुछ मालूम पड़ता है "
"अच्छा तो मेरे पसीने से क्या मालूम पड़ा?" काया काका की बातो मे आ गई थी.
"अभी सुंघा कहां अच्छे से "
"अभी सुंधा तो सही "
"पास से सूंघ के मालूम पड़ता है "
काया सोच मे पड़ गई थी, हालांकि उसका जिस्म भी काका के पसीने को पास से सूंघणा चाहता था, लेकिन उसके संस्कार उसका बड़े बाबू की पत्नी होने का तमगा उसे ऐसा करने से रोक रहा था.
"रहने दीजिये "
"क्यों आपने कभी सुंघा नहीं क्या कभी किसी मर्द का पसीना "
काका ने जैसे काया को उठा कर पटक दिया हो,
काया को याद आया ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं, रोहित तो दिन मे दो, तीन बार नहा लेता था. उसने तो कभी ऐसा महसूस किया ही नहीं.
"सुंघा मैडम जी?"
"हैन्नन.... हाँ.... नहीं... नहीं...., गन्दा होता है "
"तो फिर आपका पसीना भी गन्दा होगा " काका काया के बिलकुल पास आ चूका था, माया का जिस्म बिलकुल लिफ्ट की दिवार ने धस गया था.
काका के पास आने से भीनी भीनी महक ने काया के दिमाग़ को कब्जे मे ले लिया था. कोई खुद के पसीने को कैसे गन्दा कहां सकता है, काया भी ना कहा सकी.
उसके सोचने समझने की क्षमता धारासाई होती जा रही थी.
वो कामरूपी युद्ध मे हार रही थी.
"आपको पता है सबसे ज्यादा पसीना कहां आता है " काका बिलकुल सामने खड़ा था ऊपर से नंगा
"कककक.... कहां "
"औरतों की बगल मे "
"कककक.... क्या, कहां "
"औरतों की कांख मे "
काका लगभग काया से जा चिपका था, काया तो जैसे बहक गई थी, आंखे काका को देख रही थी, कान उसकी बात सुन रहे थे, होंठ जवाब दे दे रहे थे.
"आपकी बगल मे आता है "
"क्या?"
"पसीना मैडम जी पसीना " काया वाकई मन्त्रमुग्ध थी.
उसके चेहरे से पसीने की बुँदे होती हुई नाभि तक चली जा रही थी, उसके नीचे कहां गिर रही थी अभी कुछ नहीं पता.
"अ आ.... आता है " काया के हलक से आवाज़ ना निकली बस एक फुसफुसाहत सी थी.
काका खेला खाया इंसान मालूम होता था, काया के पेट पर बंधे हाथो को अपनी हाथो मे थाम ऊँचा करता चला गया तब तक जब तक काया के हाथ पीछे लिफ्ट की दिवार से ना जा चिपके.
"आआहहहह...... मैडम जी " काका के होश उड़ गए थे सामने के नज़ारे को देख.
काया की तो आंखे बोझिल हो चली थी, लगता था ना जाने कितनी शराब पी ली हो.
काका के सीने से निकलते पसीने की गंध सीधा काया की नाक मे जा रही थी, अजीब कैसेली गंध थी, शुद्ध मर्दाना गंध.
सामने काया हाथ ऊपर किये खड़ी थी, पसीने से भीगी कांख, एक बाल का तिनका तक नहीं, साफ सुथरी पसीने से महकती कांख.
"मैडम आपको वाकई बहुत खूबसूरत है, ऐसी बगल मैंने सपने मे भी नहीं देखी " काका अपने जज़्बात को काबू ना कर सका.
काया तो ना जाने किस दुनिया मे थी, बस सुन रही थी काका को देख रही थी लेकिन एक शब्द मुँह से नहीं फुट रहा था, हलक जैसे सुख गया था..
"ऐसी खूबसूरत कांख चाटने को मिल जाये तो जीवन धन्य हो जाये मैडम जी " काका की बातो से काया का दिल धाड़ धाड़ कर बज उठा.
आज तक उसके लिए ये सब घिनोना था, लेकिन आज नहीं कामअग्नि मे जलती औरत गन्दा, बुरा कुछ नहीं देखती.
तारीफ थोड़ी अजीब थी, वाहियात थी लेकिन थी तो तारीफ ही ना.
अब भला तस्करीफ किस औरत को पसंद नहीं होती.
काया बस मुस्कुरा दी, और काया की मुस्कुराहट ही उसकी स्वीकृति थी.
काका का सर आगे को बढ़ गया.... काया जानती थी क्या होने वाला है, अतिउत्तेजना मे उसकी आंखे बंद होती चली गई.
ससससन्ननणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....... सससन्नन्ननीफ्फफ्फ्फ़..... काका ने काया की कांख मे मुँह डाल एक जोरदार सांस खिंच ली.
आआआहहहह...... उउउड़.....
काया और काका दोनों एक साथ हुंकार उठे, जैसे कोई नर और मादा भेड़िया का मिलन हुआ हो.
"उउउउउफ्फ्फ्फ़..... काका " काया को अपनी जांघो के बिच एक तूफान सा महसूस हुआ, जैसे कुछ फटने वाला है, एक दबाव बनने लगा.
इस दबाव मे माया की गांड पीछे को और बुरी तरह से जा सटी, जाँघे आपस मे भींच ली.
"मैडम जी.... वाह.... मैडम जी धन्य कर दिया आपने, ऐसी खुसबू मैंने कभी नहीं ली, ऐसी खूबसूरती कभी नहीं देखी ". काका बड़बड़ाए जा रहा था.
कभी पहली कांख सूंघता तो कभी दूसरी, काया आंख बंद किये सर पटक रही थी.
तभी वो हुआ जिसने काया के वजूद को हिला के रख दिया, काका की जबान काया की कांख मे रेंग गई.
"आआआहहहहह...... काका " एक ठंडक ने काया के जिस्म को भिगो दिया.
ये ठंडक सर से होती हुई नाभि तक पहुंच गई.
लप.... लपाट... कर काका ने एक बार फिर जबान चला दी.
"न्नन्नहिई..... काका... आअह्ह्ह...... काया लगभग चिल्ला उठी, उसका मुँह काका के कंधे पर धसता चला गया, काया के दांतो ने काका के कंधे को दबोच लिया.
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह.... काका..... उउउफ्फ्फ्फ़..फच पच... फाचक .." काया के जांघो के बीच अटकी गर्मी उसके पाजामे मे निकलने लगी.
सससऊऊऊरररर..... झट.... झटक से लिफ्ट को एक झटका लगा, मैन लाइट जल गई, लिफ्ट चलने लगी, नीचे जाने लगी.
"आअह्ह्ह..... काका.... साथ ही काया के घुटने झुकते लगे, शरीर मे जैसे कोई जान ना बची हो, आँखों के आगे अंधेरा छा गया.
काया आज पहली बार इस तरह से झड़ी थी, इस तरह क्या कैसे भी आज पहली ही बात उसकी चुत से गर्मी निकली थी.. काया घुटनो के बढ़ बिलकुल बेदम, लिफ्ट की दिवार पर सर लगाए जोर जोर से हांफ रही थी, बदन पूरा भीग चूका था.
जांघो से रिसता पानी लिफ्ट के फर्श को भीगो रहा था. लेगी चुत रस से सराबोर थी.
सससससररररर....... सससससस....
3.... 2..... 1...... ग्राउंड फ्लोर आ गया था.
"मैडम.... मैडम जी.... उठिये..." काका ने काया को पकड़ उठाना चाहा लेकिन हंफ.... हुम्म्मफ़्फ़्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... काया का जिस्म झटके खा रहा था.
काका ने झट से वर्दी पहन, क्लोज का बटन और 5 नंबर वापस दबा दिया.
लिफ्ट ससससररर..... से वापस ऊपर चल पड़ी, काका के चेहरे पर हवाइया उड़ आई थी.
"मैडम... मैडम.... जी... क्या हुआ? आपको ठीक है ना "
हहह... हाँ... हाँ.... " काया के हलक से बस यही निकल सका.
5th फ्लोर आ गया था, लिफ्ट खुली....
काया को सहारा दिए काका चला आ रहा था,
काया के पैर लड़खड़ा रहे थे, जिस्म मे हलके भूकंप जैसे झटके महसूस किये जा सकते थे.
51 फ्लैट का दरवाजा खुला, काया सहारा लेती सोफे तक पहुंच ढेर हो गई.
आंखे बंद, बस जोर जोर से सांसे चल रही थी, हर सांस के साथ काया के सुडोल स्तन उठ उठ के गिर जा रहे थे.
काका उस हसीन नज़ारे मा साक्षी बना वही खड़ा था.
काया के जिंदगी का पहला इसखलन था ये और ऐसा की लगता था उसकी चुत के रास्ते उसकी आत्मा ही निकल गई हो.
तो काया क्या उबार पायेगी इन सब से?
जब होश मे आएगी तब क्या होगा?
बने रहिये कथा जारी है...