sab ka pyra Raj dulara
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अध्याय १८
बहुत सालों बाद इतनी सुकून भरी नींद आई। मैं और अथर्व सुबह की पहली किरण के साथ नींद की आगोश में गए थे और हमारी आंख तब खुली जब दोपहर अपने पूरे शबाब पर थी। मैं अथर्व से किसी नागिन की तरह लिपटी हुई थी।
वैसे सही भी था काले नाग की नागिन। मेरे मन आज पहली बार कोई ग्लानि नही थी था तो बस असीम प्रेम, चाहत और समर्पण अपने ठाकुर के प्रति। दिल के किसी भी कोने में सुशांत के साथ दगा करने का कोई अपराध बोध नहीं था। कल तक था असमंजस की स्थिति थी, दिल और दिमाग दोनो बटे हुए थे पर आज नही सब कुछ सही प्रतीत हो रहा था। दिल और दिमाग दोनो एक साथ एक ही राह पे चलने को कह रहे थे। मन एक दम हल्का हो रखा था।
मैने चेहरा घूम के अथर्व की तरफ देखा, उसकी आंखे खुली हुई थी और वो एक टक मुझे देखे जा रहा था। मैं भी उसकी गहरी आंखों में खो गई। प्यार का सागर था उसकी आंखो में जिसमे मैं अपनी किश्ती पार लगाने की राह पर चल चुकी थी। मैने आंखो के इशारे से उससे पूछा क्या देख रहा हैं। उसने भी गर्दन हिलाकर कुछ नही बोला। मैं फिर उसकी आंखो में देखने लगी। हम दोनो चुप थे पर हम दोनो की आंखे बोल रही थी। उसकी आंखो की तपिश से मैं पिघलने लगी। उसकी आंखो की गर्मी मुझसे बरदाश्त नहीं हुई और मैंने सन्नाटे के कलेजे को चीर दिया।
मैं: क्या देख रहा है तू।
अथर्व: अपनी होने वाली बीवी की खूबसूरती को निहार रहा हूं।
जब अथर्व ने यह बोला तब मुझे एहसास हुआ की मैं निर्वस्त्र उसकी आगोश में पड़ी हूं। मैने खुद को समेटने की कोशिश करी पर मेरे यौवन का भार इतना ज्यादा था की समेटे नही सिमटा।
अथर्व: क्यू छुपा रही है ठकुराइन सब कुछ तो मेरा है, अगर देख भी लिया तो क्या फरक पड़ता है।
मैं: (शर्मा कर) अभी हुआ नही है, जब हो जाएगा तक नही रोकूंगी।
अथर्व: चल जैसी तेरी मरजी, रात तक रुक जा तेरी शर्म का हर गहना उत्तरूंगा।
अथर्व का इतना बोलना था की मैं खुद उससे शर्मा कर लिपट गई।
मुझे कोई एहसास नहीं था की मेरे और उसके जिस्म की तपिश कितना बड़ा ज्वार खड़ा कर रही है। हम दोनो फिर इक दूसरे की बाहों में समा गए। मेरे हाथ मेरे होने वाली पति की छाती पर चल रहे थे और उसके मेरी पीठ पर। शाम की तैयारी भी करनी थी पर मैं मारे शर्म के उससे कुछ नही बोल सकती थी। मन तो मेरा भी नही था उठने का पर इस रिश्ते को नया आयाम देना था तो उठना जरूरी था।
मैं: चल अब उठ कुछ काम भी कर ले, या यूंही पड़े रहने का इरादा है।
अथर्व: कुछ काम नही है, आज से मैं शादी की छुट्टी पर हूं। ७ ८ दिन तक कोई काम नही।
मेरे चेहरे पर प्यारी सी हंसी आ गई और आंखे लाज और शर्म से झुक गई।
मैं: अच्छा शादी की छुट्टी पर है, तो शादी से पहले के काम तो कर ले।
अथर्व: शादी से पहले के ठकुराइन, वो कौन से होते है।
मैं: नहा ले, धो ले और शाम की तैयारी भी तो करनी है।
अथर्व: आए हाय मेरी जान शाम की तैयारी, मारी जा रही है मेरी बीवी बनने को। (और मेरा माथा चूम लिया)
मैने अथर्व की छाती पर दो तीन मुक्के मारे और उसे खुद से दूर कर दिया।
मैं: चल अब जा और नहा धो, और मुझे भी नहाने दे।
अथर्व हसता हुआ बिस्तर से खड़ा हुआ और फिर वो हुआ जो मुझे बिल्कुल भी उपेक्षित नही था। अथर्व और मेरे जिस्म की तपिश से जो ज्वार खड़ा हुआ था वो मेरी आंखो के सामने आ गया। हर बार जब भी देखती तो और ज्यादा बड़ा और भयानक लगता पर पता नही क्यों मुझे इससे कभी डर नही हमेशा प्यार ही आया इस पर। अथर्व का काला नाग अपनी पूरी औकात पर था और उसके चलने से वो ऊपर नीचे हो रहा था। उसकी हर ठुनक के साथ मेरे दिल की धड़कन बाद जाती।
अथर्व के चेहरे पर मायूसी थी। वो मुझे घूरे जा रहा था जैसे कोई छोटा बच्चा किसी टॉफी की जिद करता है। वो आगे चला जा रहा था पर ध्यान मेरी तरफ, आगे क्या आ रहा हैं उसे कुछ नही मालूम और मेरा ध्यान उसके फंफनाते हुए काले नाग। वो चलता रहा और दीवार से टकरा गया। वो माथा पकड़ के मेरी तरफ पलटा और मेरा हस हस कर बुरा हाल। वो गुस्से में दरवाजा खोलने ही वाला था।
मैं: इधर आ मेरे काले नाग।
जैसे किसी व्यक्ति को उसकी मनचाही चीज मिल गई हो वो उसी व्याकुलता से मेरी तरफ आया। वो पलंग के किनारे आके खड़ा हो गया। मैने उसकी आंखो में देखा और नीचे झुकने को कहा। वो नीचे झुका और मैं उसकी गर्दन पर झूल गई। मेरे जिस्म से ओढ़ी हुई चादर अलग हो गई। मुझे अब कोई शर्म और कोई लाज नही थी। मैने उसके होठों को चूमना शुरू कर दिया। जहा कल रात वाला चुम्बन सिर्फ प्यार से भरा था ये चुम्बन में प्यार के साथ साथ एक दूसरे में समा जाने की चाहत भी थी।
कभी मैं उसके होठ चुस्ती कभी वो मेरे। हम दोनो जुबान एक दूसरे की जुबानों को कुरेद रही थी। सांसे फूलती जा रही थी पर दोनो में से कोई भी पीछे नहीं हट रहा था। अथर्व ने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया पर होठ अभी भी जुड़े हुए थे। हम दोनो इतने गरम हो गए थे की मैं अपनी चूत उसके जिस्म से रगड़ने लगी। प्यार था की कम ही नही हो रहा था लेकिन सांसे साथ छोड़ रही थी। सांसों को दुरुस्त करने के लिए हम दोनो अलग हुए और एक दूसरे की आंखों में देख कर रात तक प्रतीक्षा करने की मौन स्वीकृति दी।
मैं: हैप्पी बर्थडे मेरी जान। अगर वो चारो सौतन होती तो कम से कम केक तो मंगा लेती।
अथर्व: तो उसका क्या करता।
मैं: काटता और क्या करता।
अथर्व: केक काटने का टाइम गया अब तो फाड़ने का टाइम आ गया।
मैं अथर्व का मतलब समझ गई की ये क्या फाड़ने की बात कर रहा हैं। मेरे गाल शर्म से लाल पड़ गए।
मैं: धत बेशर्म।
अथर्व: अभी नही रात को बताऊंगा बेशर्म कैसा होता है।
मैं: कुलदेवी की पूजा करने चलेगा।
अथर्व: कितने सालों से बोल रहा हूं की वो मेरी कुलदेवी नही है और न ही तू आज से उसकी पूजा करेगी।
मैने भी उसकी सहमति में सिर हिलाया।
अथर्व ने वापस मुझे पलंग पर बिठा दिया और बिना रूके कमरे से बाहर चला गया। क्युकी अब हम दोनो के जज्ज़बातों को रोकना नामुमकिन था। मैं भी पलंग से उठी और नहाने की तैयारी करने लगी। आज बहुत दिन बात मैं हल्दी और चंदन के उबटन से नहाई। हर एक अंग को मल मल के साफ किया। मन में इतनी तरंगे थी जो की मैने सुशांत से शादी के वक्त भी महसूस नहीं की। मन तो बहुत कुछ करने को था की मैं मेहंदी लगाऊं जैसे शहर में पार्लर जाते है वहां जाऊ सजने संवरने को पर शायद आज वो मेरी किस्मत में नही। मैं नहा धोकर एक नाइटी पहन के कमरे से बाहर निकली।
अथर्व मैन हाल में ही बैठा था। मेरे हाल में पहुंचते ही पूरा हाल चंदन की खुशबू से महकने लगा। अथर्व मदहोश नजरो से मुझे घूर रहा था। मैने आंखो के इशारे से उससे पूछा की क्या हुआ।
अथर्व: तुझे पता है ना ठकुराइन चंदन की सुगंध नाग को आकर्षित करती है। नाग हमेशा चंदन से लिपटा हुआ रहना चाहता हैं।
इसका मतलब अथर्व मुझसे लिपटे रहना चाहता है। मेरी आंखे शर्म से झुक गई। इतना प्यार मुझे कभी नही मिला था। अथर्व छोटी छोटी बातों से मुझे और अपने करीब ला रहा था। ये छोटे छोटे पल ही जीवन में प्रेम की स्थापना करते है और वर्षो बाद यही पल आपके जीवन का सहारा बनते है। मेरे और अथर्व के बीच येही छोटी छोटी प्यार भरी बातें पूरे दिन भर होती रही। शाम होने से पहले अथर्व कही बाहर जाने लगा।
मैं: कहां जा रहा हैं।
अथर्व: अपनी होने वाली बीवी के लिए उसका शादी का जोड़ा लेने।
इतना बोलकर अथर्व चला गया और मैं घर पर अकेली उस पल का इंतजार करने लगी जब अथर्व और मेरे बीच सारे परदे गिर जायेंगे। मेरे जीवन भर में मैने कभी भी खुद तो इतना बेकरार नही पाया था। हर बीते क्षण के साथ वो घड़ी नजदीक आती जा रही थी।
घर के मुख्य द्वार पर दस्तक हुई, जब दरवाजे पर पहुंची तो तीन महिलाएं थी। उनमें से एक मेहंदी वाली और दो पार्लर वाली थी। अथर्व ने बिन बोले मेरे मन को समझ लिया, शायद यही प्यार हैं। वो मेरी इच्छाओं को दबाने की बजाए उन्हें और परवान चढ़ाता था, शायद ये भी एक कारण था हम दोनो के करीब आने का।
वो तीनो महिलाए जुट गई मुझ पर, मेहंदी वाली मेहंदी लगाने लगी और बाकी दोनो मेरे चेहरा का टच अप करने लगी क्योंकि उनके अनुसार मैं वैसे ही इतनी सुंदर हूं की मुझे कोई मेक अप की जरूरत नहीं। कोई दो से तीन घंटे तक वो तीनो मुझे अपने हिसाब से सजाने संवारने में लगी रही। मेहंदी वाली मेरे हाथो और पैरो को मेहंदी से भर चुकी थी, उसने अथर्व का नाम मेरे एक हाथ पर लिख दिया और बोली मुझसे की पूछना अपने पति की नाम कहा है और अगर उन्होंने ढूंढ लिया तो समझ लेना आपसे बहुत प्यार करते हैं। और उन दोनो पार्लर वालियों ने इतना सुंदर और सुशील टच अप किया था की थोड़ी देर को तो लगा ही नहीं मैं ये हूं। वो तीनो चली गई उनका पेमेंट अथर्व ने पहले ही कर रखा था।
उनके जाने के बाद मैं खुद को शीशे में निहारने लगी। इतनी सुंदर तो मैं सुशांत से शादी वाले दिन भी लगी। मेरे चेहरे पर इतना नूर था जितना शायद कायनात में भी नही था।
हर गुजरते पल के साथ जिस्म की सिरहन बड़ती जा रही थी। मेरी आंखे तो जैसे घर के मुख्य द्वार पर टिक के रह गई हूं। हल्की सी आहट पर भीं मैं दरवाजा खोलती पर निराशा ही हाथ लगती। अथर्व से दूरी मुझे एक भीं पल अब गवारा नहीं थी। चेहरे पर उदासी छा जानी चाहिए थी पर अंदर मन में उठ रही उमंगे चेहरे की रंगत को फीका नही पड़ने दे रही थी।
करीब रात के ८ बजे अथर्व वापस आया और मैं उसको देख कर ऐसे लिपटी जैसे न जाने हम दोनो सदियों से न मिले हो।
अथर्व ने भी मुझे बाहों में समेट लिया और किसी फूल की तरह अपनी गोद में उठा लिया। वो मुझे गोद में लिए ही सोफे पर आके बैठ गया। और मैं किसी बेल की तरह उससे लिपटी रही।
अथर्व: ठकुराइन आज १२ बजे से पहले हमे परिणय सूत्र में बंधना होगा।
मैं अथर्व को छोड़ उसकी आंखो में देखनी लगी।
अथर्व: अगर आज ये संभव नहीं हुआ तो हमे आनेवाले ५ सालो तक इंतजार करना होगा।
अथर्व के हाथ में छोटा सा बैग था जो उसने मुझे पकड़ा दिया।
अथर्व: जा तैयार होजा मेरी ठकुराइन।
मैने उसके हाथ से बैग लिया। हर लड़की और औरत को अपना शादी का जोड़ा या लहंगा देखना का बड़ा शौक होता है, मुझे भी था और जब मैने उस बैग में से पैकेट निकाला और जो मैने देखा मेरे पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई।
मैं: ये पहन के शादी करेंगे।
अथर्व: हां। हमारा विवाह कुछ अलग होगा। जो संसार में कुछ ही लोगो ने किया होगा। ये साधना का प्रसाद है, जिसको तू और मैं मिलकर खायेंगे। तू तो फिर भी कुछ पहन रही है, मैं तो बिना कुछ पहने ही विवाह करूंगा।
मेरे तो उसकी बातो से ही कानो से धुआं सा आने लगा। शरीर का रोम रोम रोमांच से भर गया। इस विवाह के सुनहरे सपने अब और ज्यादा सुहाने लगने लगे।
मैं अपने कमरे में तैयार होने चली गई और अथर्व मुझे जल्द से जल्द नदी किनारे आने को बोल के चला गया। मैं तैयार हो गई और मेरे कमरे की रोशनी मेरे हुस्न के आगे फीकी पड़ने लगी। इन हीरो से बनी हुई ब्रा पैंटी में मेरे जिस्म का हर अंग निखर कर बाहर आ रहा था। मैं खुद को शीशे में देख इतराने लगी। मुझे समय का भी ध्यान देना था क्युकी और ५ साल रुकना मेरे बस की बात नही था। मैने खुद को शॉल से ढका और चल दी अपने मंडप की तरफ।
मैने जैसे ही घर के बाहर कदम रखा मेरी आंखे जगमगा उठी। घर से नदी तट तक के रास्ते पर फूल बिछे हुए थे। लाल गुलाब के फूल की पंखुड़ियां एक रास्ता सा बना रही थी। और उस रास्ते के दोनो तरफ थोड़ी थोड़ी दूरी पर मोमबत्तियां लगी हुई थी।
रात के अंधेरे को चीरती हुई ये रोशनी मुझे मेरे पति, प्रेमी और स्वामी की तरफ ले जा रही थी। आज हम दोनो जन्म जन्मांतर के लिए एक होने जा रहे थे। मैं उस रास्ते पर चल पड़ी। फिज़ा में एक मदहोश कर देने वाली महक थी। मेरे हर कदम के साथ मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। कोई कश्मकश नही थी मन क्युकी मैं अब पीछे नहीं हट सकती थी बस मेरे दिल में आने वाले कल के सुनहरे सपने थे जो उथल पुथल मचा रहे थे। हर कदम के साथ मेरे जिस्म का तापमान भी बड़ता जा रहा था। मेरी सांसे भारी होने लगी।
वो क्षण भी आ गया जब मैं अथर्व के सामने खड़ी थी और वो मेरे सामने बिल्कुल निर्वस्त्र। मैं अथर्व के जिस्म की कसावट में खो गई। उसके जिस्म का हर कटाव जैसे चौड़े कंधे, उभरी हुई छाती, पेट पर दिखती हुई उसकी मांसपेशियां, सुडौल और बलिष्ट टांगे और उसका काला नाग जो अपने पूर्ण आकार में था।
कब मेरे जिस्म से वो शॉल अलग हुआ मुझे पता ही नही लगा। एक बार फिर इस कुदरत ने मेरे जिस्म का लुफ्त उठाया। अथर्व ने मुझे एक आसान पर बैठने को कहा। और मैं उसके द्वारा बताए गए स्थान पर बैठ गई। उसने अग्नि कुंड की तरफ देखा और हाथ जोड़ कर नमस्कार किया, उसके होठ हिले और तुरंत ही अग्नि प्रज्वलित हो गई। अथर्व बिलकुल मेरे बगल में आ कर बैठ गया। और फिर फिजा में मंत्रो के उच्चारण की ध्वनि गूंजने लगी। कोई सुन सकता था या नहीं ये तो मुझे नही पता पर में और अथर्व सुन सकते थे। जैसे जैसे मंत्र उच्चारण होता गया हम दोनो वैसे ही करते रहे। अब आया समय गठबंधन का तो न तो अथर्व के पास ऐसा कोई कपड़ा था और न ही मेरे पास। वो जो शॉल मैं ओढ़कर आई थी वो भी नही दिख रही थी।
अथर्व ने मुझे खड़े होने का इशारा किया और मैं वैसे ही खड़ी हो गई। अथर्व ने मुझे गोद में उठाया। मेरी कुछ भी समझ में नही आ रहा था। मैं बिल्कुल उससे चिपक गई। अथर्व ने हाथ नीचे ले जाकर मेरी हीरो जड़ित पैंटी को साइड में किया। पहली बार अथर्व की उंगलियों का स्पर्श मुझे अपनी चूत पर हुआ। वो एक क्षण भर में ही मेरा जिस्म सिहर गया। मेरे जिस्म में इतनी उत्तेजना भर गई की मैने अथर्व को कस के बाहों में जकड़ लिया। मुझे बिलकुल भी नहीं पता था कि आने वाले क्षण में और क्या होगा।
अथर्व के लन्ड की दस्तक पहली बार मुझे मेरी चूत पर हुई। मेरी चूत हो आज सुबह से रह रह कर रोए जा रही थी, अथर्व के काले नाग की दस्तक से बुरी तरह रोने लगी। मैं शायद दुनिया की पहली दुल्हन होंगी जो अपने फेरो के समय अपनी चूत से पानी बहा रही थी। अथर्व ने बिलकुल हल्का सा धक्का दिया और उसका काला नाग बिलकुल जरा सा मेरी चूत की फांकों को चीरता हुआ अपने बिल में हल्का सा घुस गया।
मेरे जिस्म मारे उत्तेजना के थर थर कांपने लगा। मेरे मुंह से दर्द और उन्माद भरी एक सिसकारी निकल गई।
मैं: आ आ आए आह
अथर्व ने मुझे देखा और मैने अथर्व को। दोनो के चेहरों पर एक संतोष था, इक चाहत थी और असीम प्रेम था।
अथर्व: हो गया गठबंधन ठकुराइन। संसार में एक स्त्री और पुरुष का इस से बड़ा गठबंधन कोई नही हो सकता। स्त्री और पुरुष के जीवन का सबसे बड़ा सत्य ये है। जब पुरुष का लन्ड स्त्री की चूत में समाता है, तब ही सही मायने में वो दो जिस्म एक जान बनते हैं।
और फिर एक बार वातावरण में मंत्रो की गूंज सुनाई देने लगी। अथर्व और मैं अग्नि के समक्ष, दुनिया के सबसे बड़े गठबंधन में एक दूसरे की जकड़े हुए अग्नि के फेरे लेने लगे। अथर्व का लन्ड सिर्फ मेरी चूत में हल्का सा प्रविष्ट हुआ था पर मेरी चूत में तो खलबली मच गई। हर इक कदम के साथ मुझे अथर्व के लन्ड का घर्षण अपनी चूत की फांकों पर महसूस हो रहा। जब वो एक कदम आगे बढ़ता तो ऐसा लगता जैसे उसका लन्ड अंदर घुसने जा रहा है और जब दूसरा कदम आगे बड़ता तो वो बाहर की तरफ निकलता महसूस हो रहा था। मेरी चूचियां उसकी मर्दानी छाती से रगड़ खा रही थी, वो मुझे एक अलग अनोखा सुख प्रदान कर रही थी। मेरा जिस्म मचलने लगा। जिस चूत में २१ साल से उंगली के इलावा कुछ नही गया हो और एक दम से उसे उसकी कल्पनाओं से परे वाली चीज मिल जाए तो उसकी क्या हालत होगी। मेरा पूरा जिस्म उत्तेजना के मारे तड़प उठा। हर कदम के साथ मेरा जिस्म हल्का होता जा रहा था। खुमारी सी छाने लगीं थी और मेरी आहे बड़ती जा रही थी। मेरी गहरी गहरी सांसे अथर्व के चेहरे पर पड़ रही थी और हम दोनो की आंखे तो पलके झपकना ही भूल गई।
वक्त जैसे थम सा गया हो। हम दोनो एक दूसरे की आंखों में देखते हुए अग्नि के फेरे लेने लगे। अथर्व मुझे चोद नही रहा था बस केवल मात्र लन्ड और चूत के गठबंधन से जिस्म की उत्तेजना अपने चरम पर थी। मेरी चूत इतना पानी बहा रही थी जितना पूरे जीवन में नही बहा होगा। मैने नीचे नजरे करके देखा तो मुझे अथर्व का लन्ड भी अपने पानी से चमकता हुआ दिखा।
मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ गई थी की खुद ब खुद मेरी कमर चलने लगी पर अथर्व ने मुझे रोक लिया। जो एक एक घंटा उंगली करने पर भी मुझे चरम की प्राप्ति नही होती थी पर आज कुछ कदमों में ही मैं खुद अपने चरम के बिलकुल करीब थी। मैने अथर्व को इतना कस के जकड़ लिया की अगर कोई और मर्द होता को कराह जाता पर मजाल है अथर्व के चेहरे पर शिकन भी आई हो।
फेरे चलते रहे और मेरी चूत बिना चुदे चुदतीं रही। सातवा फेरा खतम हुआ और जैसे ही अथर्व ने अपना काला नाग बाहर खींचा, मुझे न जाने कितने सालों बाद चरम की प्राप्ति हुई। मेरी चूत ने अपना सारा धैर्य खो दिया और इतना पानी छोड़ा जिसकी परिकल्पना भी कोई नही कर सकता। मैं संसार की पहली ऐसी दुल्हन बन गई जो फेरे लेते समय झड़ गई। मेरे जिस्म में मानों जैसे जान ही नहीं बची हो। अगर अथर्व मुझे सहारा नही देता तो शायद मैं गिर ही जाती। अथर्व ने मुझे वहीं पर बैठा दिया।
विवाह की रस्में फिर यथावत चलने लगी। अब बारी आई मांग में सिंदूर भरने की। जैसा मेरा गठबंधन हुआ और जैसे मेरे फेरे हुए, मुझे अब कुछ आश्चर्यचकित नही कर सकता था। ये मेरी सोच थी। जो हुआ वो और भी हैरान कर देने वाला था। अथर्व ने अपना लन्ड मेरी मांग पर रखा और कुछ मंत्र पड़ा, वीर्य की एक छोटी धार ने मेरी मांग भर दी। मैं कुछ समझ पाती उससे पहले अथर्व ने अपनी उंगली काटी और मेरी मांग पर खून की बूंदे गिरने लगी। अथर्व ने फिर कुछ मंत्र पढ़े और जब वो अलग हुआ तो बरबस ही मेरा हाथ मेरी मांग पर गया। मेरी उंगलियों पर जो लगा था वो न तो वीर्य था ना ही खून बल्कि था वो सुर्ख लाल रंग का सिंदूर।
अथर्व: ये वो सिंदूर है जो जन्मों जन्मों तक तुझे सिर्फ मेरी बनाता है। ना तो तुझे मुझसे मौत छीन सकती है और न ही कोई ताकत। आज से अभी से तेरे तन, मन और आत्मा पर सिर्फ मेरा अधिकार है। तेरे दिल की हर धड़कन पर बस मेरा नाम लिखा हैं और मेरी हर सांस तेरी।
अथर्व ने जब मुझे देखा तो मेरी आंखे नम थी। मैं बस उसको घूरे जा रही थी। शायद जो रिश्ता लालच से शुरू हुआ, फिर जिस्म की तपिश की वजह से परवान चढ़ा और अंत में वो अपनी मंजिल पर पहुंच गया। जो था सच्चा प्यार मेरा अथर्व से और अथर्व का मुझ से।
विवाह की रस्में अपनी निर्धारित गति से चली जा रही थी। अब बारी आई मंगलसूत्र की। तो न तो अथर्व कुछ लाया था और न ही मेरा पास कुछ था। मैने अथर्व की तरफ देखा तो उसकी आंखे बंद थी और होठ हिल रहे थे। जैसे जैसे उसके होठ हिलते वैसे वैसे अग्नि की लपटे और प्रचंड होती जाती। मेरी एक आंख अथर्व पर थी और दूसरी अग्निकुंड पर। फिर वो हुआ जो सपने में भी मैने उपेक्षित नही किया था। अग्निकुंड में से एक थाल निकला जिसमे मेरा मंगलसूत्र था। किसी प्रकाश की भाती चमक रहा था। वो थाल सीधे अथर्व के सामने आके धरा पर रख दिया गया। अथर्व ने बिलकुल विलंब नही किया और तुरंत ही वो मंगलसूत्र मेरे गले पर सुसज्जित था। मैने उसमे जो पेंडेंट था वो ध्यान से देखा तो पाया तो उसमे एक नाग और एक नागिन प्रेम अभिसार में लिप्त थे। मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई।
विवाह संपन्न हो चुका था की अचानक फूलो की वर्षा सी होने लगी। मेरे अंदर आनेवाले समय को लेकर काफी उत्तेजना थी।
अथर्व ने मेरे माथे को चूमा और जो उसने मेरे कानो में कहा मैं शर्मा कर उसकी बाहों में सिमट गई। जानते है उसने क्या कहा। उसने कहा "अब तू पूरी तरह बन गई श्रीमती काला नाग"।
[/QUOT
Bahut hi mast update
Bahut hi mast updateअध्याय १८
बहुत सालों बाद इतनी सुकून भरी नींद आई। मैं और अथर्व सुबह की पहली किरण के साथ नींद की आगोश में गए थे और हमारी आंख तब खुली जब दोपहर अपने पूरे शबाब पर थी। मैं अथर्व से किसी नागिन की तरह लिपटी हुई थी।
वैसे सही भी था काले नाग की नागिन। मेरे मन आज पहली बार कोई ग्लानि नही थी था तो बस असीम प्रेम, चाहत और समर्पण अपने ठाकुर के प्रति। दिल के किसी भी कोने में सुशांत के साथ दगा करने का कोई अपराध बोध नहीं था। कल तक था असमंजस की स्थिति थी, दिल और दिमाग दोनो बटे हुए थे पर आज नही सब कुछ सही प्रतीत हो रहा था। दिल और दिमाग दोनो एक साथ एक ही राह पे चलने को कह रहे थे। मन एक दम हल्का हो रखा था।
मैने चेहरा घूम के अथर्व की तरफ देखा, उसकी आंखे खुली हुई थी और वो एक टक मुझे देखे जा रहा था। मैं भी उसकी गहरी आंखों में खो गई। प्यार का सागर था उसकी आंखो में जिसमे मैं अपनी किश्ती पार लगाने की राह पर चल चुकी थी। मैने आंखो के इशारे से उससे पूछा क्या देख रहा हैं। उसने भी गर्दन हिलाकर कुछ नही बोला। मैं फिर उसकी आंखो में देखने लगी। हम दोनो चुप थे पर हम दोनो की आंखे बोल रही थी। उसकी आंखो की तपिश से मैं पिघलने लगी। उसकी आंखो की गर्मी मुझसे बरदाश्त नहीं हुई और मैंने सन्नाटे के कलेजे को चीर दिया।
मैं: क्या देख रहा है तू।
अथर्व: अपनी होने वाली बीवी की खूबसूरती को निहार रहा हूं।
जब अथर्व ने यह बोला तब मुझे एहसास हुआ की मैं निर्वस्त्र उसकी आगोश में पड़ी हूं। मैने खुद को समेटने की कोशिश करी पर मेरे यौवन का भार इतना ज्यादा था की समेटे नही सिमटा।
अथर्व: क्यू छुपा रही है ठकुराइन सब कुछ तो मेरा है, अगर देख भी लिया तो क्या फरक पड़ता है।
मैं: (शर्मा कर) अभी हुआ नही है, जब हो जाएगा तक नही रोकूंगी।
अथर्व: चल जैसी तेरी मरजी, रात तक रुक जा तेरी शर्म का हर गहना उत्तरूंगा।
अथर्व का इतना बोलना था की मैं खुद उससे शर्मा कर लिपट गई।
मुझे कोई एहसास नहीं था की मेरे और उसके जिस्म की तपिश कितना बड़ा ज्वार खड़ा कर रही है। हम दोनो फिर इक दूसरे की बाहों में समा गए। मेरे हाथ मेरे होने वाली पति की छाती पर चल रहे थे और उसके मेरी पीठ पर। शाम की तैयारी भी करनी थी पर मैं मारे शर्म के उससे कुछ नही बोल सकती थी। मन तो मेरा भी नही था उठने का पर इस रिश्ते को नया आयाम देना था तो उठना जरूरी था।
मैं: चल अब उठ कुछ काम भी कर ले, या यूंही पड़े रहने का इरादा है।
अथर्व: कुछ काम नही है, आज से मैं शादी की छुट्टी पर हूं। ७ ८ दिन तक कोई काम नही।
मेरे चेहरे पर प्यारी सी हंसी आ गई और आंखे लाज और शर्म से झुक गई।
मैं: अच्छा शादी की छुट्टी पर है, तो शादी से पहले के काम तो कर ले।
अथर्व: शादी से पहले के ठकुराइन, वो कौन से होते है।
मैं: नहा ले, धो ले और शाम की तैयारी भी तो करनी है।
अथर्व: आए हाय मेरी जान शाम की तैयारी, मारी जा रही है मेरी बीवी बनने को। (और मेरा माथा चूम लिया)
मैने अथर्व की छाती पर दो तीन मुक्के मारे और उसे खुद से दूर कर दिया।
मैं: चल अब जा और नहा धो, और मुझे भी नहाने दे।
अथर्व हसता हुआ बिस्तर से खड़ा हुआ और फिर वो हुआ जो मुझे बिल्कुल भी उपेक्षित नही था। अथर्व और मेरे जिस्म की तपिश से जो ज्वार खड़ा हुआ था वो मेरी आंखो के सामने आ गया। हर बार जब भी देखती तो और ज्यादा बड़ा और भयानक लगता पर पता नही क्यों मुझे इससे कभी डर नही हमेशा प्यार ही आया इस पर। अथर्व का काला नाग अपनी पूरी औकात पर था और उसके चलने से वो ऊपर नीचे हो रहा था। उसकी हर ठुनक के साथ मेरे दिल की धड़कन बाद जाती।
अथर्व के चेहरे पर मायूसी थी। वो मुझे घूरे जा रहा था जैसे कोई छोटा बच्चा किसी टॉफी की जिद करता है। वो आगे चला जा रहा था पर ध्यान मेरी तरफ, आगे क्या आ रहा हैं उसे कुछ नही मालूम और मेरा ध्यान उसके फंफनाते हुए काले नाग। वो चलता रहा और दीवार से टकरा गया। वो माथा पकड़ के मेरी तरफ पलटा और मेरा हस हस कर बुरा हाल। वो गुस्से में दरवाजा खोलने ही वाला था।
मैं: इधर आ मेरे काले नाग।
जैसे किसी व्यक्ति को उसकी मनचाही चीज मिल गई हो वो उसी व्याकुलता से मेरी तरफ आया। वो पलंग के किनारे आके खड़ा हो गया। मैने उसकी आंखो में देखा और नीचे झुकने को कहा। वो नीचे झुका और मैं उसकी गर्दन पर झूल गई। मेरे जिस्म से ओढ़ी हुई चादर अलग हो गई। मुझे अब कोई शर्म और कोई लाज नही थी। मैने उसके होठों को चूमना शुरू कर दिया। जहा कल रात वाला चुम्बन सिर्फ प्यार से भरा था ये चुम्बन में प्यार के साथ साथ एक दूसरे में समा जाने की चाहत भी थी।
कभी मैं उसके होठ चुस्ती कभी वो मेरे। हम दोनो जुबान एक दूसरे की जुबानों को कुरेद रही थी। सांसे फूलती जा रही थी पर दोनो में से कोई भी पीछे नहीं हट रहा था। अथर्व ने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया पर होठ अभी भी जुड़े हुए थे। हम दोनो इतने गरम हो गए थे की मैं अपनी चूत उसके जिस्म से रगड़ने लगी। प्यार था की कम ही नही हो रहा था लेकिन सांसे साथ छोड़ रही थी। सांसों को दुरुस्त करने के लिए हम दोनो अलग हुए और एक दूसरे की आंखों में देख कर रात तक प्रतीक्षा करने की मौन स्वीकृति दी।
मैं: हैप्पी बर्थडे मेरी जान। अगर वो चारो सौतन होती तो कम से कम केक तो मंगा लेती।
अथर्व: तो उसका क्या करता।
मैं: काटता और क्या करता।
अथर्व: केक काटने का टाइम गया अब तो फाड़ने का टाइम आ गया।
मैं अथर्व का मतलब समझ गई की ये क्या फाड़ने की बात कर रहा हैं। मेरे गाल शर्म से लाल पड़ गए।
मैं: धत बेशर्म।
अथर्व: अभी नही रात को बताऊंगा बेशर्म कैसा होता है।
मैं: कुलदेवी की पूजा करने चलेगा।
अथर्व: कितने सालों से बोल रहा हूं की वो मेरी कुलदेवी नही है और न ही तू आज से उसकी पूजा करेगी।
मैने भी उसकी सहमति में सिर हिलाया।
अथर्व ने वापस मुझे पलंग पर बिठा दिया और बिना रूके कमरे से बाहर चला गया। क्युकी अब हम दोनो के जज्ज़बातों को रोकना नामुमकिन था। मैं भी पलंग से उठी और नहाने की तैयारी करने लगी। आज बहुत दिन बात मैं हल्दी और चंदन के उबटन से नहाई। हर एक अंग को मल मल के साफ किया। मन में इतनी तरंगे थी जो की मैने सुशांत से शादी के वक्त भी महसूस नहीं की। मन तो बहुत कुछ करने को था की मैं मेहंदी लगाऊं जैसे शहर में पार्लर जाते है वहां जाऊ सजने संवरने को पर शायद आज वो मेरी किस्मत में नही। मैं नहा धोकर एक नाइटी पहन के कमरे से बाहर निकली।
अथर्व मैन हाल में ही बैठा था। मेरे हाल में पहुंचते ही पूरा हाल चंदन की खुशबू से महकने लगा। अथर्व मदहोश नजरो से मुझे घूर रहा था। मैने आंखो के इशारे से उससे पूछा की क्या हुआ।
अथर्व: तुझे पता है ना ठकुराइन चंदन की सुगंध नाग को आकर्षित करती है। नाग हमेशा चंदन से लिपटा हुआ रहना चाहता हैं।
इसका मतलब अथर्व मुझसे लिपटे रहना चाहता है। मेरी आंखे शर्म से झुक गई। इतना प्यार मुझे कभी नही मिला था। अथर्व छोटी छोटी बातों से मुझे और अपने करीब ला रहा था। ये छोटे छोटे पल ही जीवन में प्रेम की स्थापना करते है और वर्षो बाद यही पल आपके जीवन का सहारा बनते है। मेरे और अथर्व के बीच येही छोटी छोटी प्यार भरी बातें पूरे दिन भर होती रही। शाम होने से पहले अथर्व कही बाहर जाने लगा।
मैं: कहां जा रहा हैं।
अथर्व: अपनी होने वाली बीवी के लिए उसका शादी का जोड़ा लेने।
इतना बोलकर अथर्व चला गया और मैं घर पर अकेली उस पल का इंतजार करने लगी जब अथर्व और मेरे बीच सारे परदे गिर जायेंगे। मेरे जीवन भर में मैने कभी भी खुद तो इतना बेकरार नही पाया था। हर बीते क्षण के साथ वो घड़ी नजदीक आती जा रही थी।
घर के मुख्य द्वार पर दस्तक हुई, जब दरवाजे पर पहुंची तो तीन महिलाएं थी। उनमें से एक मेहंदी वाली और दो पार्लर वाली थी। अथर्व ने बिन बोले मेरे मन को समझ लिया, शायद यही प्यार हैं। वो मेरी इच्छाओं को दबाने की बजाए उन्हें और परवान चढ़ाता था, शायद ये भी एक कारण था हम दोनो के करीब आने का।
वो तीनो महिलाए जुट गई मुझ पर, मेहंदी वाली मेहंदी लगाने लगी और बाकी दोनो मेरे चेहरा का टच अप करने लगी क्योंकि उनके अनुसार मैं वैसे ही इतनी सुंदर हूं की मुझे कोई मेक अप की जरूरत नहीं। कोई दो से तीन घंटे तक वो तीनो मुझे अपने हिसाब से सजाने संवारने में लगी रही। मेहंदी वाली मेरे हाथो और पैरो को मेहंदी से भर चुकी थी, उसने अथर्व का नाम मेरे एक हाथ पर लिख दिया और बोली मुझसे की पूछना अपने पति की नाम कहा है और अगर उन्होंने ढूंढ लिया तो समझ लेना आपसे बहुत प्यार करते हैं। और उन दोनो पार्लर वालियों ने इतना सुंदर और सुशील टच अप किया था की थोड़ी देर को तो लगा ही नहीं मैं ये हूं। वो तीनो चली गई उनका पेमेंट अथर्व ने पहले ही कर रखा था।
उनके जाने के बाद मैं खुद को शीशे में निहारने लगी। इतनी सुंदर तो मैं सुशांत से शादी वाले दिन भी लगी। मेरे चेहरे पर इतना नूर था जितना शायद कायनात में भी नही था।
हर गुजरते पल के साथ जिस्म की सिरहन बड़ती जा रही थी। मेरी आंखे तो जैसे घर के मुख्य द्वार पर टिक के रह गई हूं। हल्की सी आहट पर भीं मैं दरवाजा खोलती पर निराशा ही हाथ लगती। अथर्व से दूरी मुझे एक भीं पल अब गवारा नहीं थी। चेहरे पर उदासी छा जानी चाहिए थी पर अंदर मन में उठ रही उमंगे चेहरे की रंगत को फीका नही पड़ने दे रही थी।
करीब रात के ८ बजे अथर्व वापस आया और मैं उसको देख कर ऐसे लिपटी जैसे न जाने हम दोनो सदियों से न मिले हो।
अथर्व ने भी मुझे बाहों में समेट लिया और किसी फूल की तरह अपनी गोद में उठा लिया। वो मुझे गोद में लिए ही सोफे पर आके बैठ गया। और मैं किसी बेल की तरह उससे लिपटी रही।
अथर्व: ठकुराइन आज १२ बजे से पहले हमे परिणय सूत्र में बंधना होगा।
मैं अथर्व को छोड़ उसकी आंखो में देखनी लगी।
अथर्व: अगर आज ये संभव नहीं हुआ तो हमे आनेवाले ५ सालो तक इंतजार करना होगा।
अथर्व के हाथ में छोटा सा बैग था जो उसने मुझे पकड़ा दिया।
अथर्व: जा तैयार होजा मेरी ठकुराइन।
मैने उसके हाथ से बैग लिया। हर लड़की और औरत को अपना शादी का जोड़ा या लहंगा देखना का बड़ा शौक होता है, मुझे भी था और जब मैने उस बैग में से पैकेट निकाला और जो मैने देखा मेरे पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई।
मैं: ये पहन के शादी करेंगे।
अथर्व: हां। हमारा विवाह कुछ अलग होगा। जो संसार में कुछ ही लोगो ने किया होगा। ये साधना का प्रसाद है, जिसको तू और मैं मिलकर खायेंगे। तू तो फिर भी कुछ पहन रही है, मैं तो बिना कुछ पहने ही विवाह करूंगा।
मेरे तो उसकी बातो से ही कानो से धुआं सा आने लगा। शरीर का रोम रोम रोमांच से भर गया। इस विवाह के सुनहरे सपने अब और ज्यादा सुहाने लगने लगे।
मैं अपने कमरे में तैयार होने चली गई और अथर्व मुझे जल्द से जल्द नदी किनारे आने को बोल के चला गया। मैं तैयार हो गई और मेरे कमरे की रोशनी मेरे हुस्न के आगे फीकी पड़ने लगी। इन हीरो से बनी हुई ब्रा पैंटी में मेरे जिस्म का हर अंग निखर कर बाहर आ रहा था। मैं खुद को शीशे में देख इतराने लगी। मुझे समय का भी ध्यान देना था क्युकी और ५ साल रुकना मेरे बस की बात नही था। मैने खुद को शॉल से ढका और चल दी अपने मंडप की तरफ।
मैने जैसे ही घर के बाहर कदम रखा मेरी आंखे जगमगा उठी। घर से नदी तट तक के रास्ते पर फूल बिछे हुए थे। लाल गुलाब के फूल की पंखुड़ियां एक रास्ता सा बना रही थी। और उस रास्ते के दोनो तरफ थोड़ी थोड़ी दूरी पर मोमबत्तियां लगी हुई थी।
रात के अंधेरे को चीरती हुई ये रोशनी मुझे मेरे पति, प्रेमी और स्वामी की तरफ ले जा रही थी। आज हम दोनो जन्म जन्मांतर के लिए एक होने जा रहे थे। मैं उस रास्ते पर चल पड़ी। फिज़ा में एक मदहोश कर देने वाली महक थी। मेरे हर कदम के साथ मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। कोई कश्मकश नही थी मन क्युकी मैं अब पीछे नहीं हट सकती थी बस मेरे दिल में आने वाले कल के सुनहरे सपने थे जो उथल पुथल मचा रहे थे। हर कदम के साथ मेरे जिस्म का तापमान भी बड़ता जा रहा था। मेरी सांसे भारी होने लगी।
वो क्षण भी आ गया जब मैं अथर्व के सामने खड़ी थी और वो मेरे सामने बिल्कुल निर्वस्त्र। मैं अथर्व के जिस्म की कसावट में खो गई। उसके जिस्म का हर कटाव जैसे चौड़े कंधे, उभरी हुई छाती, पेट पर दिखती हुई उसकी मांसपेशियां, सुडौल और बलिष्ट टांगे और उसका काला नाग जो अपने पूर्ण आकार में था।
कब मेरे जिस्म से वो शॉल अलग हुआ मुझे पता ही नही लगा। एक बार फिर इस कुदरत ने मेरे जिस्म का लुफ्त उठाया। अथर्व ने मुझे एक आसान पर बैठने को कहा। और मैं उसके द्वारा बताए गए स्थान पर बैठ गई। उसने अग्नि कुंड की तरफ देखा और हाथ जोड़ कर नमस्कार किया, उसके होठ हिले और तुरंत ही अग्नि प्रज्वलित हो गई। अथर्व बिलकुल मेरे बगल में आ कर बैठ गया। और फिर फिजा में मंत्रो के उच्चारण की ध्वनि गूंजने लगी। कोई सुन सकता था या नहीं ये तो मुझे नही पता पर में और अथर्व सुन सकते थे। जैसे जैसे मंत्र उच्चारण होता गया हम दोनो वैसे ही करते रहे। अब आया समय गठबंधन का तो न तो अथर्व के पास ऐसा कोई कपड़ा था और न ही मेरे पास। वो जो शॉल मैं ओढ़कर आई थी वो भी नही दिख रही थी।
अथर्व ने मुझे खड़े होने का इशारा किया और मैं वैसे ही खड़ी हो गई। अथर्व ने मुझे गोद में उठाया। मेरी कुछ भी समझ में नही आ रहा था। मैं बिल्कुल उससे चिपक गई। अथर्व ने हाथ नीचे ले जाकर मेरी हीरो जड़ित पैंटी को साइड में किया। पहली बार अथर्व की उंगलियों का स्पर्श मुझे अपनी चूत पर हुआ। वो एक क्षण भर में ही मेरा जिस्म सिहर गया। मेरे जिस्म में इतनी उत्तेजना भर गई की मैने अथर्व को कस के बाहों में जकड़ लिया। मुझे बिलकुल भी नहीं पता था कि आने वाले क्षण में और क्या होगा।
अथर्व के लन्ड की दस्तक पहली बार मुझे मेरी चूत पर हुई। मेरी चूत हो आज सुबह से रह रह कर रोए जा रही थी, अथर्व के काले नाग की दस्तक से बुरी तरह रोने लगी। मैं शायद दुनिया की पहली दुल्हन होंगी जो अपने फेरो के समय अपनी चूत से पानी बहा रही थी। अथर्व ने बिलकुल हल्का सा धक्का दिया और उसका काला नाग बिलकुल जरा सा मेरी चूत की फांकों को चीरता हुआ अपने बिल में हल्का सा घुस गया।
मेरे जिस्म मारे उत्तेजना के थर थर कांपने लगा। मेरे मुंह से दर्द और उन्माद भरी एक सिसकारी निकल गई।
मैं: आ आ आए आह
अथर्व ने मुझे देखा और मैने अथर्व को। दोनो के चेहरों पर एक संतोष था, इक चाहत थी और असीम प्रेम था।
अथर्व: हो गया गठबंधन ठकुराइन। संसार में एक स्त्री और पुरुष का इस से बड़ा गठबंधन कोई नही हो सकता। स्त्री और पुरुष के जीवन का सबसे बड़ा सत्य ये है। जब पुरुष का लन्ड स्त्री की चूत में समाता है, तब ही सही मायने में वो दो जिस्म एक जान बनते हैं।
और फिर एक बार वातावरण में मंत्रो की गूंज सुनाई देने लगी। अथर्व और मैं अग्नि के समक्ष, दुनिया के सबसे बड़े गठबंधन में एक दूसरे की जकड़े हुए अग्नि के फेरे लेने लगे। अथर्व का लन्ड सिर्फ मेरी चूत में हल्का सा प्रविष्ट हुआ था पर मेरी चूत में तो खलबली मच गई। हर इक कदम के साथ मुझे अथर्व के लन्ड का घर्षण अपनी चूत की फांकों पर महसूस हो रहा। जब वो एक कदम आगे बढ़ता तो ऐसा लगता जैसे उसका लन्ड अंदर घुसने जा रहा है और जब दूसरा कदम आगे बड़ता तो वो बाहर की तरफ निकलता महसूस हो रहा था। मेरी चूचियां उसकी मर्दानी छाती से रगड़ खा रही थी, वो मुझे एक अलग अनोखा सुख प्रदान कर रही थी। मेरा जिस्म मचलने लगा। जिस चूत में २१ साल से उंगली के इलावा कुछ नही गया हो और एक दम से उसे उसकी कल्पनाओं से परे वाली चीज मिल जाए तो उसकी क्या हालत होगी। मेरा पूरा जिस्म उत्तेजना के मारे तड़प उठा। हर कदम के साथ मेरा जिस्म हल्का होता जा रहा था। खुमारी सी छाने लगीं थी और मेरी आहे बड़ती जा रही थी। मेरी गहरी गहरी सांसे अथर्व के चेहरे पर पड़ रही थी और हम दोनो की आंखे तो पलके झपकना ही भूल गई।
वक्त जैसे थम सा गया हो। हम दोनो एक दूसरे की आंखों में देखते हुए अग्नि के फेरे लेने लगे। अथर्व मुझे चोद नही रहा था बस केवल मात्र लन्ड और चूत के गठबंधन से जिस्म की उत्तेजना अपने चरम पर थी। मेरी चूत इतना पानी बहा रही थी जितना पूरे जीवन में नही बहा होगा। मैने नीचे नजरे करके देखा तो मुझे अथर्व का लन्ड भी अपने पानी से चमकता हुआ दिखा।
मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ गई थी की खुद ब खुद मेरी कमर चलने लगी पर अथर्व ने मुझे रोक लिया। जो एक एक घंटा उंगली करने पर भी मुझे चरम की प्राप्ति नही होती थी पर आज कुछ कदमों में ही मैं खुद अपने चरम के बिलकुल करीब थी। मैने अथर्व को इतना कस के जकड़ लिया की अगर कोई और मर्द होता को कराह जाता पर मजाल है अथर्व के चेहरे पर शिकन भी आई हो।
फेरे चलते रहे और मेरी चूत बिना चुदे चुदतीं रही। सातवा फेरा खतम हुआ और जैसे ही अथर्व ने अपना काला नाग बाहर खींचा, मुझे न जाने कितने सालों बाद चरम की प्राप्ति हुई। मेरी चूत ने अपना सारा धैर्य खो दिया और इतना पानी छोड़ा जिसकी परिकल्पना भी कोई नही कर सकता। मैं संसार की पहली ऐसी दुल्हन बन गई जो फेरे लेते समय झड़ गई। मेरे जिस्म में मानों जैसे जान ही नहीं बची हो। अगर अथर्व मुझे सहारा नही देता तो शायद मैं गिर ही जाती। अथर्व ने मुझे वहीं पर बैठा दिया।
विवाह की रस्में फिर यथावत चलने लगी। अब बारी आई मांग में सिंदूर भरने की। जैसा मेरा गठबंधन हुआ और जैसे मेरे फेरे हुए, मुझे अब कुछ आश्चर्यचकित नही कर सकता था। ये मेरी सोच थी। जो हुआ वो और भी हैरान कर देने वाला था। अथर्व ने अपना लन्ड मेरी मांग पर रखा और कुछ मंत्र पड़ा, वीर्य की एक छोटी धार ने मेरी मांग भर दी। मैं कुछ समझ पाती उससे पहले अथर्व ने अपनी उंगली काटी और मेरी मांग पर खून की बूंदे गिरने लगी। अथर्व ने फिर कुछ मंत्र पढ़े और जब वो अलग हुआ तो बरबस ही मेरा हाथ मेरी मांग पर गया। मेरी उंगलियों पर जो लगा था वो न तो वीर्य था ना ही खून बल्कि था वो सुर्ख लाल रंग का सिंदूर।
अथर्व: ये वो सिंदूर है जो जन्मों जन्मों तक तुझे सिर्फ मेरी बनाता है। ना तो तुझे मुझसे मौत छीन सकती है और न ही कोई ताकत। आज से अभी से तेरे तन, मन और आत्मा पर सिर्फ मेरा अधिकार है। तेरे दिल की हर धड़कन पर बस मेरा नाम लिखा हैं और मेरी हर सांस तेरी।
अथर्व ने जब मुझे देखा तो मेरी आंखे नम थी। मैं बस उसको घूरे जा रही थी। शायद जो रिश्ता लालच से शुरू हुआ, फिर जिस्म की तपिश की वजह से परवान चढ़ा और अंत में वो अपनी मंजिल पर पहुंच गया। जो था सच्चा प्यार मेरा अथर्व से और अथर्व का मुझ से।
विवाह की रस्में अपनी निर्धारित गति से चली जा रही थी। अब बारी आई मंगलसूत्र की। तो न तो अथर्व कुछ लाया था और न ही मेरा पास कुछ था। मैने अथर्व की तरफ देखा तो उसकी आंखे बंद थी और होठ हिल रहे थे। जैसे जैसे उसके होठ हिलते वैसे वैसे अग्नि की लपटे और प्रचंड होती जाती। मेरी एक आंख अथर्व पर थी और दूसरी अग्निकुंड पर। फिर वो हुआ जो सपने में भी मैने उपेक्षित नही किया था। अग्निकुंड में से एक थाल निकला जिसमे मेरा मंगलसूत्र था। किसी प्रकाश की भाती चमक रहा था। वो थाल सीधे अथर्व के सामने आके धरा पर रख दिया गया। अथर्व ने बिलकुल विलंब नही किया और तुरंत ही वो मंगलसूत्र मेरे गले पर सुसज्जित था। मैने उसमे जो पेंडेंट था वो ध्यान से देखा तो पाया तो उसमे एक नाग और एक नागिन प्रेम अभिसार में लिप्त थे। मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई।
विवाह संपन्न हो चुका था की अचानक फूलो की वर्षा सी होने लगी। मेरे अंदर आनेवाले समय को लेकर काफी उत्तेजना थी।
अथर्व ने मेरे माथे को चूमा और जो उसने मेरे कानो में कहा मैं शर्मा कर उसकी बाहों में सिमट गई। जानते है उसने क्या कहा। उसने कहा "अब तू पूरी तरह बन गई श्रीमती काला नाग"।
Aakhirkar kalenag ne savita ki phad hi di..अध्याय १९
आज मेरे पांव जमीन पर नही थे क्युकी आज मेरा विवाह हुआ था और वो भी उस व्यक्ति से जिससे मैं दिल ओ जान से प्यार करती हूं। समाज की नजर में ये रिश्ता अनैतिक हो सकता है पर मेरी नजरो में सिर्फ प्रेम और वो भी सच्चा। प्रेम ही तो वो अनुभूति है जो आपको कही भी, कभी भी और किसी से भी हो सकती हैं। आज इस विवाह के बाद मन बड़ा ही हल्का और आनेवाले पलों को लेकर मन में अजीब सी हलचल भी थी। मेरा नया नया बना पति अथर्व मुझे नीचे ही नही उतार रहा। वो मुझे अपनी बाहों में समेटे हुए, मुझे गोद में उठाए घर की तरफ बड़े जा रहा था।
आज पहली बार घर में अजीब सी रूहानियत महसूस हो रही थी। अथर्व मुझे गोद में उठाए हुए घर में प्रविष्ट करने लगा। मेरी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। अथर्व मुझे मेरे कमरे में लेकर पहुंचा और मैं उस कमरे को पहचान ही नही पाई। सब कुछ बदल चुका था मेरे कमरे में। ये कमरा इतना सुंदर कभी भी नही लगा। कमरा इतनी खूबसूरती से सजाया हुआ था की न ज्यादा लग रहा था और न ही कहीं से कम। जगह जगह छोटी छोटी कैंडल्स जल रही थी जो की रोशनी का एक मात्र सहारा थी। लाल गुलाब की खुशबू पूरे रूम पर अपना शबाब बिखेरे हुए थी। लाल सफेद फूल ऐसे मिलकर बिखरे हुए थे जैसे आने वाले मिलन की गवाही दे रहे थे। कुल मिलाकर पूरे कमरे का माहौल एक दम प्यार और मोहब्बत से भरा हुआ था।
अथर्व ने मुझे बेड पर लिटाया और खुद भी बिलकुल मेरे करीब लेट गया। मैं तो जैसे अथर्व में समाने के लिए तैयार बैठी थी। मैं किसी बेल की तरह अथर्व से चिपक गई। मेरा सिर अथर्व के चौड़े सीने पर था और मेरी बाहें उसकी कमर से लिपटी हुई थी। इतना सुख एक औरत को तब ही मिलता है जब उसे प्यार करने वाला उसकी बाहों में सिमटा हो। मैं बस आंखे बंद किए हुए इस पल को जीना चाहती थी। अथर्व की बाहें भी मेरी कमर पर थी और वो उसे सहला रहा था। उसकी उंगलियों के स्पर्श से ही मेरे पूरे जिस्म में सिरहन सी दौड़ रही थी और मैं आंखे बंद किए हुए केवल इस पल के एक एक क्षण को यादों की माला में पिरो रही थी। जो हम दोनो की खामोशियां बात कर रही थी उसको अथर्व ने तोड़ा।
अथर्व: क्या सोच रही है ठकुराइन।
मैं: कुछ भी नही।
अथर्व: झूठ मत बोल। मुझसे तो मत छुपा।
मैने अपनी गर्दन मोड कर अथर्व को देखा और उसकी नजर से नजर मिलाने लगी।
मैं: सब सपने जैसा लग रहा है। पर अंदर से एक डर भी सता रहा है कि कल क्या होगा।
अथर्व: एक बता बता ठकुराइन। तू खुश तो है न। और किस बात का डर।
मैं: खुश! ......... मेरे जीवन का सबसे स्वर्णिम पल है ये। इससे ज्यादा खुशी तो मुझे अपने पूरे जीवन में ही नही मिली। रही बात डर की डर है समाज का उसके रीति रिवाजों का। मैं सिर्फ छुप छुप कर या सिर्फ इस कमरे की चार दिवारी में तेरी भ्यता नही बने रहना चाहती। मैं पूरे समाज के सामने तुझे अपना पति मानना चाहती हूं। मैं अपना बचा हुआ सारा जीवन तुझे समर्पित करना चाहती हूं।
अथर्व: समाज और उसके रीति रिवाज तू मुझपे छोड़ दे। समय आने पर तुझे इन रीति रिवाजों से ही हम अपना रिश्ता समाज के सामने रखेंगे। अपनी हर फिक्र तू मुखपे छोड़ दे और तू बस अपने इस नए पति को खुश रख। (और उसने मेरी कमर पर चिकोटी काट ली)
मैने अथर्व के हाथ पर बहुत तेज मारा।
मैं: आउच! कुत्ता कही का। (और अपनी कमर मसलने लगी)
अथर्व हसने लगा और मैं उसे घूर के देखने लगी। उसने तुरंत ही मुझे पलटाया और अब मैं पीठ के बल लेटी हुई थी और वो बिलकुल मेरे उपर। वो मेरी आंखो में देख रहा था।
अथर्व: कुत्ता बोला ना। अब तुझे कुत्तीया ही बनाऊंगा।
अथर्व का इतना बोलना और मेरे पूरे जिस्म में सिरहन सी दौड़ गई। जहा पर दिलो के मिलन की बात चल रही थी अब जिस्मों की प्यास हावी होती दिख रही थी। हम दोनो बस एक दूसरे को देख रहे थे। अथर्व धीरे धीरे मुझ पे झुकता जा रहा था और मैं तो बस इसी इंतजार में बैठी थी की कब हम दोनो एक दूसरे में समा जाए। मैं बाहें फैलाए अथर्व का स्वागत कर रही थी। अथर्व बिलकुल मेरे करीब आकर रुक गया। हम दोनो के बीच बस हवा गुजरने का ही फासला था। मेरे अधर बिलकुल सुख चुके थे और हम दोनो की आंखे बाते कर रही थी। आंखो ने आंखो को स्वीकृति दी और अथर्व मेरे लबों को अपनी आगोश में ले लिया।
कितना सुखद एहसास था। हम दोनो के लब ऐसे जुड़े की छूटने का नाम ही नही ले रहे थे। हम दोनो एक दूसरे पर बीस ही पड़ रहे थे, दोनो में से कोई उन्नीस नही था। कभी अथर्व मेरा निचला होठ चूसता कभी ऊपरी। हम दोनो की जुबान एक दूसरे से न हारने वाली जंग लड़ रही थी। हम दोनों प्यार के इतना खो गए थे की एक दूसरा का थूक भी निगल गए। जब हमारी सांसे उखड़ जाती तो केवल सांस लेने भर के लिए अलग होते और फिर जुट जाते प्यार के सागर में गोते लगाने को।
अथर्व के हाथ आज पहली बार मेरे जिस्म पर घूम रहे थे। वो कभी मेरी कमर सहलाता कभी मेरे बाल तो कभी मेरी कांख (अंडरआर्म्स)। मेरे संपूर्ण जिस्म उन्माद से भर चुका था। अभी तो कुछ हुआ भी नही था और मेरी कमर हिलने लगी। मुझे अभी से अपने अंदर एक उबाल उफनता हुआ महसूस हो रहा था। अथर्व के हाथ आखिर कर मंजिल तक पहुंच गए। अथर्व के हाथ मेरे विशाल गोल गुंबज समान चुचियों पर पहुंच ही गए। वो मेरी चूचियां धीरे धीरे सहलाने लगा। उसके हाथ जैसे ही मेरी चुचियों से टकराए मेरी चूत रिसने लगी। मैं चिलाना चाहती थी पर अथर्व और मेरे होठ अभी भी जुड़े हुए थे।
अथर्व सहलाते सहलाते मेरे आमो को मुट्ठी में भर दबाने लगा। मेरी आंखे इस एहसास से ही बंद हो गई। अथर्व का दबाव मेरी चुचियों पे बड़ता जा रहा था और मुझे दर्द नही अत्यंत सुख की प्राप्ति हो रही थी। जितना जोर से वो मर्दन करता मेरी चूची का उतना ज्यादा मेरी चूत रस छोड़ती। अथर्व ने चूमते चूमते ही मुझे अपने ऊपर ले लिया। अब अथर्व के हाथ मेरी पीठ पर चलने लगे। अथर्व का काला नाग बिलकुल अपने पसंदीदा बिल के करीब था और उसपर गहरी गहरी सांसे छोड़ रहा था। अथर्व के हाथ सहलाते हुए नीचे की तरफ जाने लगे। अथर्व के दोनो हाथ मुझे अपनी गांड़ के दोनो पाटों पर महसूस हुए। उसने दोनो पाटों को दबोच लिया। मेरी चिहुंक घूट कर रह गई। तभी एक जोरदार चपत उसने मेरी गांड़ पर मार दी। चपत इतनी तेज थी मुझे मजबूरन अपने होठ अथर्व के होठों से अलग करने पड़े और मैं उसे घूर के देखने लगी।
मैं: आह। कुत्ता
इतना बोलकर इस बार मैंने अथर्व के होठों को अपनी गिरफ्त में लिया। मैने खुद अथर्व के ऊपर सही किया और अथर्व के काले नाग को अपनी जांघो के बीच दबा लिया। काले नाग की गर्मी पाकर मेरी चूत ने अपने सारे द्वार खोल दिए। इतना पानी निकाल रहा था की मेरी पूरी जांघ भी गीली हो गई थी।
अथर्व का एक हाथ मेरी गांड़ मसल रहा था और दूसरे हाथ से वो मेरी ब्रा खोलने की कोशिश कर रहा था। उससे शायद एक हाथ से ब्रा नही खुल रही थी क्युकी उसे नही पता था की ये ब्रा आगे से खुलेगी। मैं एक दम से उठ बैठी और अथर्व को देख मुस्कुराने लगी। अपने हाथ आगे की तरफ लाई और उसकी आंखो में देखते हुए ब्रा के हुक खोलने लगी। जैसे ही ब्रा के हुक खुले मेरे दोनो कैद पंछी अब आजाद थे खुली हवा में सांस लेने को। मैने ब्रा कंधे से उतारी और एक तरफ उछाल दी।
मैं: बुधु कही का। (और मुस्कुराने लगी)
कुदरत की नायाब कारीगरी अब अथर्व की आंखों के सामने थी। अथर्व तो जैसे मेरे दोनो आजाद पंछी देख कर खो गया था। मैने उसके दोनो हाथ पकड़े और अपनी चुचियों पे रख दिए और उन्हें दबाने लगी। रोमांच सा भर गया था पूरे शरीर के अंदर।
मैं: ह ह आह ओ आ
मेरी कमर हल्की हल्की अथर्व के लन्ड के ऊपर चलने लगी। अथर्व भी उठ के बैठ गया। उसके हाथ अभी भी मेरी चूचियां का मर्दन कर रहे थे। मेरी हालत बद से बदतर होती जा रही थी। पूरे कमरे में मेरी आहे गूंज रही थी। अथर्व ने किसी बच्चे की तरह मेरा एक मम्मा अपने मुंह में भर लिया और उसे चूसने लगा पर उसके हाथ अभी भी दूसरे गुंबज का मर्दन कर रहे थे। जब अथर्व के मुंह का पहला स्पर्श मेरे निप्पल पर हुआ, तो ये वोही एहसास था जो मुझे तब हुआ जब अथर्व ने पहली बार एक बच्चे के रूप में मेरे निप्पल चूस कर दूध पिया था। इस एहसास में कोई भी ममता नही थी बस एक औरत की दबी हुई हवस थी। मैं उस एहसास में खोने लगी और अथर्व के बालो में उंगलियां फेरने लगी, मुझे ये एहसास भी नही हुआ की कब मैं अथर्व को सिर अपने सीने पर दबाने लगी। मेरी मदहोशी हर बीते पल के साथ बड़ती जा रही थी, आंखो से शर्म का हर पर्दा गिर चुका था, और जो दिख रहा था वो था हम दोनो का अथाह प्रेम और एक दूसरे में खोने की कशिश। पूरा कमरे में मेरी आहे गूंज रही थी। मैं अथर्व को एक पल के लिए भी अब खुद से दूर नही जाने दे सकती थी।
मैं: आह ह ओ आ आई ओह अथर्व ऐसे ही आ ओह मां।
अथर्व भी कोई कसर नहीं छोड़ रहा था कभी एक कबूतर को प्यार करता तो दूसरे की अकड़ निकलता उसका मर्दन करके। मेरी हालत इतने में ही पतली होने लगी। मेरी कमर और तेज चलने लगी और आज वर्षो बाद मेरे जिस्म में ऊबाल उफनने लगा। मैं जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी, अपना सिर इधर उधर पटकने लगी। एक तो अथर्व की हरकते और दूसरा इसके लन्ड की तपिश जो अब भी मेरी जांघो के जोड़ के बीच में था।
मैं: आई ओ ह आ आज आ वर्षो ह ओ बाद मेरा आ उई आह होने वाला है। ह रुकना मत आ आह करता रह।
अथर्व एक क्षण के लिए नही रुका। वो मेरी चुचियों से अपना खेल खेलता रहा। उसकी जीव हर इक बीते लम्हे के साथ मेरे जिस्म में नई ऊर्जा पैदा कर रही थी। वो हर उस तार को छेड़ रहा था जो न जाने कितने सालों से बिना किसी ताल के पड़ी थी। मेरी चूचियों पूरी तरह से लाल पड़ चुकी थी, जगह जगह या तो अथर्व की उंगलियों के निशान थे या फिर उसके दांतों के या फिर उसने चूस चूस के लाल कर दिए थे। उनमें अब मीठा मीठा दर्द भी हो रहा था, ये वोही दर्द है जो केवल एक संपूर्ण मर्द ही औरत को दे सकता है। इसी दर्द को प्राप्त करने के लिए ही एक औरत अपना सब कुछ दांव पर लगा देती है और आज वोही सुख मुझे प्राप्त हो रहा था।
मैं: आह ओ उई मैं आई आह ह आ
और वो पल भी आया जब मेरी आंखे उस सुख के कारण बंद हो गई, मेरी कमर की थिरकन रुक गई और मेरे सब्र ने अपना बांध छोड़ दिया, मेरी चूत ने मदनरस की नदिया बहा दी और और पूरे २० साल के बाद मुझे असली चरमसुख की प्राप्ति हुई। मेरी आंखे नशे से भारी हो चुकी थी, पलके थी की खुलने का नाम ही नही ले रही थी, मैने अथर्व को बाहों में भरा और अपने चेहरा उसके मजबूत कंधो पर टिका दिया। अथर्व ने भी मुझे कस के बाहों में जकड़ लिया। उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी की मेरे शरीर के सारे कस बल खुल गए।
अथर्व: क्या हुआ ठकुराइन।
अथर्व की आवाज से मैं अपनी मस्ती भरी दुनिया से बाहर आई और मुझे अपनी स्थिति का एहसास हुआ कि मैं झड़ कर अपने नए नए पति की गोद में बैठी हूं। मेरी आंखे फिर शर्म से बंद हो गई। अथर्व ने मुझे खुद से जुदा किया और मेरे चेहरे को निहारने लगा। मेरी आंखे अभी भी बंद थी।
अथर्व: आंखे खोल ठकुराइन।
मैने धीरे से अपनी आंखे खोली और अथर्व को मुझे देखते हुए पाया। इससे पहले मैं कुछ समझ पाती एक बार फिर मेरे होठ अथर्व के होठों की गिरफ्त में थे। दो सेकंड के भीतर ही मैं भी अथर्व का साथ देने लगी। अगर अथर्व मेरा निचला होठ चूसता तो मैं उसका ऊपरी। हम दोनो एक दूसरे को इस खेल में मात देना चाहते थे पर दोनो ये नही जानते थे की दोनो की मंजिल एक ही है। होठ से होठ की भिड़ंत करते करते हम दोनो की जीभ एक दूसरे को ललकारने लगी। इतनी उलझ गई थीं हम दोनो की जीभ की जैसे किसी ने साथ में चिपका दिया हो। मेरी अभी अभी झड़ी हुई चूत में एक बार फिर से हलचल मच गई। मेरी चूत कुलबुलाने लगी और फिर से मेरी कमर चलने लगी। मेरे पूरा जिस्म में उत्तेजना की लहर दौड़ गई। अथर्व यहां पर नही रुका और मेरी पैंटी के अंदर हाथ घुसा के मेरी गांड़ के दोनो तरबूजो को मसलने लगा। जितनी जोर से वो दबाता उतना ही मेरा जिस्म अकड़ जाता। थोड़ी देर यूंही चलता रहा और हम दोनो पर फिर खुमारी हावी होने लगी।
हम दोनो के होठ तब ही अलग हुए जब सांस लेना मुश्किल हो रहा था। हम दोनो अपनी उखड़ी हुई सांसों को सही कर रहे थे और एक दूसरे को नशे और वासना से भरी हुई आंखों से देख रहे थे। अथर्व ने मुझे तभी खड़ा कर दिया। मैं पलंग पर खड़ी थी और अथर्व की आंखों के सामने मेरे मदनरस से भीगी हुई पैंटी। अथर्व उसको निहारे जा रहा था और मैं शर्म के सागर में डूबी जा रही थी। और फिर अथर्व ने वो हरकत कर दी जिसकी मुझे सपने में भी कल्पना नहीं थी। वो जीव निकल कर मेरी गीली पैंटी चाटने लगा। उसकी जीव के पहले स्पर्श से ही मैं पिघलने लगी।
जिस चूत ने पिछले एक साल से चरमसुख का मुंह नही देखा हो, वोही चूत आज रस की नदिया बहा रही थी। अथर्व की जीव तो रुकने का नाम ही नही ले रही थी। उसकी जीव मेरी पैंटी से रस का एक एक बूंद निचोड़ रही थी और मेरी हालत बद से बदतर होती जा रही थी। मैं अपना सिर कभी दाई तरफ झुकाती तो कभी बाई तरफ और मेरे अंदर से सिसकियां रुकी नहीं रही थी।
मैं: आह मत कर ओह आई वो आ गंदी जगह आह है। आह ओह
अथर्व ने मेरी तरफ देखा और जो बोला उसको सुनते ही मैं खुद उसका सिर अपनी पैंटी पर दबाने लगी।
अथर्व: तेरा कुछ भी गंदा नही है ठकुराइन तेरा तो सब मेरे लिए अमृत है।
अथर्व के हाथ मेरी गांड़ पर घूम रहे थे। वो बार बार मेरी मंसल गांड़ की गोलाईयों को दबाता तो कभी उन्हे मुट्ठी में भर लेता। उसकी हर हरकत मुझे वासना और उन्माद की नई गहराई में डूबो देती। मैं कुछ समझ पाती उससे पहले अथर्व ने एक झटके में मेरे जिस्म पे बचा आखिरी वस्त्र भी नीचे खींच दिया। मैं अपने पति के आगे बिलकुल निर्वस्त्र खड़ी थी। मेरे जिस्म पे बस एक ही लिबास बचा था और वो थी मेरी शर्म, जिसका दामन मैने अभी भी नही छोड़ा था। मैं अपनी टांग उठा कर अपनी चूत को ढकने की नाकाम कोशिश करने लगी, पर अथर्व ने ऐसा कुछ भी नही होने दिया। मेरी टांग वापस नीचे कर दी और मेरी सालों से अंचूदी चूत को निहारने लगा और मैं शर्म से पानी होने लगी।
अथर्व: बहुत सुंदर है तेरी चूत ठकुराइन।
अथर्व ने आज पहली बार मेरे किसी अंग का नाम लिया था और वो भी सीधा चूत का, उसके मुंह से ऐसा सुनते ही मेरा जिस्म झनझना गया और मेरी आंखे बंद हो गई। मेरे हाथ खुद ब खुद उसके सिर पर चले गए और उसके सिर को एक बार फिर अपनी चूत पर दबाने लगी। जैसे ही उसके उसके जिस्म का स्पर्श मुझे अपने निचले भाग पर हुआ एक तेज उत्तेजना सी मेरे पूरे जिस्म में दौड़ गई।
मैं: आह अथर्व ओह
अथर्व रुका नही और एक बार फिर उसकी जीव चलने लगी पर इस बार मेरी पैंटी नहीं थी बल्कि मेरी नंगी चूत थी। जब उसकी तपती हुई जीव और मेरी भट्टी समान चूत का मिलन हुआ तो मेरा पूरा जिस्म किसी मोम की भाती पिघलने लगा। मेरा बिस्तर पर खड़ा होना मुश्किल हो गया और अगर अथर्व की बलिष्ट भुजाओं ने मुझे संभाला न होता तो शायद मैं गिर चुकी होती। अथर्व की जीव मेरी चूत के ऊपरी भाग पर चलने लगी। वो मेरी चूत के ऊपरी भाग पर चिपके रस को चाटने लगा। ये मेरे लिए नया अनुभव था क्युकी मेरे पहले पति सुशांत ने कभी भी ऐसा नहीं किया था। मेरा पूरा जिस्म जोश और लज्जत से मचलने लगा। मेरी कमर थिरकने लगी और मैं उसके सिर को अपनी चूत पर दबाने लगी। अथर्व को सांस लेने की भी जगह नहीं दी पर वो भी पीछे नहीं हटा, वो तो बस मेरी चूत को किसी स्वादिष्ट व्यंजन की तरह चाटे जा रहा था।
मैं: उह आह मैं आह आ मर उई आह उफ्फ जाऊंगी।
अथर्व ने एक सेकंड के लिए मेरी चूत छोड़ी मेरे चेहरे की तरफ देखने लगा।
अथर्व: चुदाई में कोई मरता है क्या ठकुराइन।
पहली बार अथर्व के मुंह से चुदाई सुन कर मेरा पूरा जिस्म तड़प गया और मेरी आंखो के सामने वो दृश्य दौड़ गया जब अथर्व का नाग मेरी कमसिन सी चूत का मर्दन करेगा।
उसी क्षण कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना भी मैने नही की थी। अथर्व की जीव ने पहली बार मेरी चूत के अंदरूनी भाग का भेदन किया। उसकी जीव ने अंदर घुसते ही मेरे अंदर सालो सी दबी हुई वासना को जागृत कर दिया। अथर्व केवल अपनी जीव से ही मेरी चूत का चोदन करने लगा और मैं केवल सिसकती रह गई। उसकी जीव अंदर जाती और मेरे चूत के अंदरूनी भागो को छेड़ती और फिर बाहर आ जाती। दो क्षणों के भीतर ही मेरे अंदर ज्वाला उफने लगा।
मैं: हट जा मैं फिर से आने वाली हूं। उह मां हट
पर अथर्व नही हटा, वो तो और दुगनी गति से अपनी जीव से मुझे चोदने लगा और अपने अंगूठे से मेरे भगनासे को कुरेदने लगा। जब वो नही हटा और उसकी हरकते बड़ती गई तब मैने भी एक बार फिर से उसके बालो में उंगलियां चलाने लगी और मेरे नाखून उसकी पीठ पर गड़ाने लगी। मेरा वेग इतना तेज था की एक दो जगह से अथर्व के खून भी निकलने लगा। पर उस समय मुझे कुछ नहीं दिख रहा था क्युकी मेरी उत्तेजना मेरी मस्तीक्ष पे हावी थी। मैं इतने चरम पर थी क्या बोल रही थी मुझे खुद को नही मालूम।
मैं: आह आ ओ चाट आह ऐसे ही उह आ ऊ आ चाट, चाट कुत्ते चाट मेरी चूत आह को।
अथर्व को तो जैसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था, वो तो बस मेरी चूत का हर उस भाग को अपनी जीव से छू रहा था जो अब तक अनछुआ था। मेरा जिस्म मेरा साथ छोड़ रहा था, मैं वहा पहुंच चुकी थी जहा से वापस मुड़ना मेरे बस में नही था। मैं तो बस आने वाले पल का इंतजार कर रही थी क्युकी जो कुछ भी हो रहा था इस समय हो रहा था वो सब नया था। पूरे कमरे में सिर्फ और सिर्फ मेरी आहे गूंज रही थी।
मैं: आह ओह आह ऊईईई आह आ ओ ऊ या ह उफ्फ आह
और वो पल भी आ गया जब मेरा जिस्म अकड़ा और मेरी चूत ने अपना बांध के सारे द्वार खोल दिया। मैं इतना झड़ी की ऐसा लगा एक बार फिर मैने मूत दिया हो। मेरा जिस्म धीरे धीरे ढीला पड़ने लगा और मैं अपनी उखड़ी हुई सांस दुरुस्त करने में लगी थी और वही अथर्व मेरे जिस्म से निकली हुई हर एक बूंद का हिसाब अपना मुंह में रख रहा था। इतना झड़ने के बाद भी एक बूंद मुझे कही बिस्तर पर दिखाई नहीं दी। अथर्व मेरे जिस्म से निकले हुए अमृत को पूरा निगल चुका था। जब अथर्व पूरी तरह से मेरी चूत को चाट चुका था और कोई नही कह सकता था की ये अभी कुछ क्षण पहले ही झड़ी थी। अथर्व और मेरी आंखे मिली और मेरी आंखे शर्म से झुक गई। अथर्व ने मुझे नीचे खींचा और एक बार फिर मेरा जिस्म अथर्व की बाहों में था। मेरा चेहरा और आंखे शर्म से झुकी हुई थी। अथर्व ने मेरा चेहरा उठाया और एक बार फिर हम दोनो के चेहरे आमने सामने थे। मैने हिम्मत करके अथर्व की आंखों में देखा तो उसकी आंखो में अपने लिए असीम प्यार पाया। वो प्यार जिसके लिए हर स्त्री तड़पती है, वो प्यार जो कुदरत का बनाया नायाब रिश्ता है, वो प्यार जो केवल एक संपूर्ण पुरुष ही स्त्री को दे सकता हैं। मैं आंखो में खोई हुई थी, मुझे पता भी नहीं लगा की कब हमारे होठ एक बार फिर जुड़ गए। और इस बार का मिलन किसी जनूनियत से कम नही था। हम दोनो के हाथ एक दूसरे के जिस्मों की टटोल रहे थे और तभी मेरा हाथ वहा रुका जहा उसकी मंजिल थी। मेरा हाथ अथर्व के लन्ड पर रुका और पता नही क्या हुआ मेरी उंगलियां अथर्व के लन्ड पर कसती चली गई और अब की बार सिसकी निकली अथर्व की जो उसके कंठ में ही घूट के रह गई क्युकी उसके होठ मैने नही छोड़े।
अथर्व भी कहा कम था वो भी मेरी गांड़ की दोनो गोलाईयों को भींचने लगा। हम दोनो की ही सिसकियां कंठो में ही घुटने लगी। दोनो में से कोई भी इक दूसरे को छोड़ने को तैयार नहीं था। पर मेरे हाथ अपने आप ही अथर्व के लन्ड पर चलने लगे। हमारे होठ जुड़े हुए थे, अथर्व के हाथ मेरी कोरी गांड़ पर और मेरा हाथ अथर्व के विकराल लन्ड पर। मैं उसे धीरे धीरे आगे पीछे करने लगी। जब अथर्व की चमड़ी पीछे जाती तो उसका गुलाबी रंग का सुपाड़ा नजर आता जिसकी महक मुझे मदहोश करने लगी।
हम दोनो के होठ अलग हुए और अथर्व नीचे फर्श पर जाके खड़ा हो गया। मैं उसको आश्चर्य से भरी हुई आंखों से उसे देखने लगी। हम दोनो की आंखे मिली और कुछ हुआ, मैं कुतिया बनी उसकी तरफ चलने लगी। मेरी चेहरे के ठीक सामने अब वो सर उठाए खड़ा था जिसको मैं अपनी पनाहों में लेने को बेताब थी। मैं बस उसे घूरे जा रही थी और वो सर उठाए मुझे अपनी अकड़ दिखा रहा था। जो मैने कभी भी नही किया मैं वो कर गई। अथर्व के लन्ड को मैं चूमने लगी। मैने उसकी चमड़ी को पीछे करा और मेरी आंखो के सामने उसका गुलाबी रंग का सुपाड़ा आ गया। जो मेरे साथ कभी भी नही हुआ वो होने लगा, मेरी जीव अथर्व के लन्ड को देख लपलपाने लगी और मेरा गला खुश्क हो गया जिसे गिला करने का सिर्फ एक ही जरिया दिख रहा था, अथर्व का लन्ड।
मैने कभी भी सुशांत का लन्ड नही चूसा था, हां कुछ बार हाथ से पकड़ा जरूर था। अथर्व मुझे अपने लन्ड पर झुकाने लगा और मैं उसकी आंखो में देख जैसे विनती कर रही हूं की ये मैने पहले कभी नही किया और उसकी आंखे जैसे बोल रही हो सब हो जायेगा।
ना जानते हुए भी मैं अथर्व के लन्ड के बिलकुल करीब थी। मेरी सांसों की गर्मी पा कर वो और हुंकारने लगा। पर न जाने क्यों मुझे यकीन था की इस नाग की हुंकार को सिर्फ मैं ही स्वाहा कर सकती हूं। मेरा मुंह खुलने लगा और धीरे धीरे अथर्व का लन्ड मेरे मुंह में उतरने लगा। जैसे ही उसका लन्ड मेरे मुंह में गया अथर्व की आह निकल गई।
अथर्व: ओह ठकुराइन, आह।
मैं अथर्व के लन्ड को निगलती चली गई और वो पल भी आया जब अथर्व का संपूर्ण लन्ड मेरे मुंह की गहराई में उतर चुका था। ये मेरे लिए एक अचंभे से कम नही था क्युकी इतना बड़ा लन्ड मैं पूर्ण रूप से निगल चुकी थी। पता नही क्या हुआ की मैं एक रॉड की जैसे पूरा लन्ड निगल गई। अथर्व ने कुछ देर ऐसे ही रखा अपने लन्ड को मेरे गले के अंदर फिर जब उसे लगा की मेरी सांस उखड़ने लगी है तब उसने अपने लन्ड को बाहर निकाला। मेरी सांसे उखड़ गई पर मैंने अथर्व को लन्ड निकालने को नहीं कहा। जब अथर्व ने अपने लन्ड को बाहर निकाला मैं गहरी गहरी सांसे लेने लगी और अथर्व मुझे घूरे जा रहा था। जब मेरी सांस थोड़ी दुरुस्त हुई तब एक बार्कफिर मेरे हाथ में अथर्व का लन्ड था जिसका निशाना मेरा मुंह था। एक बार फिर से अथर्व का नाग मेरी मुंह में पनाह लेने लगा। मैं भी कहा पीछे रहती, मैने भी उसके सुपाड़े को अपनी जीव से चाटना शुरू कर दिया। उसका स्वाद कुछ अजीब सा लगा पर संतुष्टि पूरी मिल रही थी। मेरे लिए तो जैसे ये वो खिलौना था जिससे मैं सालों से वंचित रही हूं।
मैं भी पूरे जोश के साथ अथर्व का लन्ड चूसने लगी। कभी उसे मुठियाती, कभी चुप्पे लगाती तो कभी उसके लन्ड को पूरा अपनी जीव से चाटती। मेरी सिर्फ गुगु की आवाज आ रही थी जो अथर्व की आहे में दब जाती।
अथर्व: आह ओह ठकुराइन उफ्फ आह तेरा मुंह इतना गरम है तो तेरी चूत कितनी गरम होगी। आह
मैं अथर्व की ऐसी बाते सुन और जोश के साथ उसका लन्ड चूसने में लग जाती। उसके लन्ड को चूसते हुए मैं खुद उसके भरी भरकम टट्टो को सहलाने लगी। एक बार फिर मेरे जिस्म में ताप बड़ने लगा और मैं खुद अपनी चूत को सहलाने लगी। अथर्व को तो जैसे कोई होश ही नहीं था वो तो बस अपने लन्ड को मेरे मुंह में अंदर बाहर करने में लगा हुआ था। या यूंह कहे की वो इस समय मेरा मुंह चोद रहा था। वो जितना अंदर तक लन्ड को ठेलता उतना ही मजा मुझे भी मिल रहा था। अथर्व ने मेरे सिर को पकड़ा और अपना लन्ड तेजी से अंदर बाहर करने लगा। उसका वेग इतना तेज था की अगर उसने मेरा सिर न पकड़ा होता तो मैं शायद नीचे गिर चुकी होती। जितनी तेजी से वो मेरा मुंह चोद रहा था उतनी ही तेजी से मेरे हाथ मेरी चूत पर चल रहे थे। मेरी गुगू और अथर्व की गुर्राहट दोनो गूंज रही थी। पर दोनो में से कोई नहीं रुक रहा था पर मैं शायद इतनी मस्त हो चुकी थी की मैं उसके वेग के आगे न ठहर पाई और एक बार फिर से झड़ने लगी।
मेरा जिस्म एक बार फिर ढीला पड़ गया, और जब अथर्व को इसका एहसास हुआ तब उसने अपना लन्ड मेरे मुंह से निकाल लिया। अथर्व ने मुझे खड़ा किया और मुझे अपनी गोद में उठा लिया। हम दोनो के मुंह आमने सामने थे और एक बार फिर हमारे होठ जुड़ गए। चूमते हुए ही अथर्व मुझे फिर उसी बिस्तर पर लेके बैठ गया। हम दोनो एक दूसरे को चूम ही नही रहे थे बल्कि अपने पसंदीदा खिलौनों से खेल भी रहे थे। अथर्व के हाथ में मेरे दोनो तने हुए पर्वत थे जिन्हे वो मसल रहा था और मेरे हाथ के उसका नाग जिसे मैं सहला रही थी। अथर्व का एक हाथ एक बार फिर मेरे जिस्म का निचले हिस्से का रास्ता तय करने लगा। उसने सीधे ही अपनी उंगली मेरी चूत में घुसेड़ दी और अब मेरी चूत का उंगली भेदन होने लगा। आज को कुछ भी वो मेरा साथ कर रहा था मेरे लिए एक पुरुष के साथ ये सब नया था। मुझे बहुत ही ताज्जुब हुआ की थोड़ी देर में ही मेरी गांड़ एक बार फिर थिरकने लगी यानी मैं फिर से गरम हो गई थी। मेरी चूत फिर से चिकनाहट छोड़ने लगी।
अथर्व ने मेरे होठों को छोड़ दिया और मेरी आंखो में देखने लगा जैसे वो आगे जाने के लिए मौन स्वीकृति मांग रहा हो। मैने भी आंखे बंद करके उसे आगे बड़ने की अनुमति दे दी।
मैं पूरी तरह अथर्व के नीचे दबी हुई थी। उसने मेरी आंखों में देखा और अपने लन्ड को पकड़ मेरी चूत पर घिसने लगा। पहला स्पर्श होते ही मेरी सांस अटक गई।
मैं: आह मां ओह आ ह आह ओ
अथर्व भी नही रुका वो लगातार अपना लन्ड मेरी चूत पर घिसता रहा और मैं तड़पने लगी, कुछ बोल तो नही पा रही पर मेरे चेहरे के भाव बात रहे थे मेरी स्थिति। मेरी चूत की फांके फड़कने लगी और अथर्व के चेहरे पर इक कुटिल मुस्कान। उसके आगे पीछे करने से मेरी गांड़ भी हिलने लगी। मैं बस उसे अपने अंदर महसूस करने के लिए मरे जा रही थी और ये कुत्ता मेरे मजे ले रहा था, आखिरकार मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैने अथर्व के लन्ड को पकड़ा और सीधे चूत के प्रविष्ट द्वार पर लगा दिया।
हम दोनो की नज़र मिली और मैं आने वाले पल को सोच के उत्साह और घबराहट के बीच फंसी रह गई। अथर्व बस अपना लन्ड लगाए हुए मुझे देखने लगा और मैंने केवल अपनी गांड़ उचका के उसे आगे बढ़ने को अनुमति दी। वो क्षण आ गया था जिसका हम दोनो को इंतजार था।
पहला झटका लगते ही मेरी चूत ने अपने द्वार अथर्व के लन्ड के लिए खोल दिए। पीड़ा की लहर मेरी चूत से होती हुई पूरे जिस्म में दौड़ गई। अचंभे की बात थी मेरे लिए पांच बच्चो की मां को भी ये काला नाग असीम पीड़ा से नवाज रहा था। ये उस पीड़ा से गहन थी जो मैने पहली बार सुशांत के साथ महसूस करी थी। माना सुशांत का लन्ड अथर्व के लन्ड के आगे कुछ भी नही था पर मैं उस समय कुंवारी थी और आज मैं पांच बच्चो की मां हूं। मैं पीड़ा को सहन करने लगी और अथर्व को अपनी पीड़ा की जरा भी भनक नहीं पड़ने दी। अथर्व भी रुका रहा क्युकी अभी तो केवल उसका सुपाड़ा ही गया मेरी चूत की पनाह में। ना जाने कैसे अथर्व को मेरे मन में चल रहे हर द्वंद की भनक लग जाती थी। अथर्व अपना सुपाड़ा डाले मेरी चूत में मेरे कबूतरों पर झुकता चला गया। एक कबूतर की घुंडी पकड़ कर उसे मसलने लगा और दूसरे को अपनी जीव से कुरेदने लगा। कभी कुरेदता कभी चूसता कभी एक को मसलता कभी दूसरे को। ये सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक की एक बार फिर मेरी गांड़ हिलने लगी।
पर अथर्व ने इस बार मुझे नही छोड़ा और मेरे होठों को इस बार अपनी गिरफ्त में लिया। मैं भी बराबर उसका साथ देने लगी आने वाले दर्द से अंजान, मैं तो बस उसका साथ दिया जा रही थी की पीड़ा की एक तेज लहर मेरे जिस्म में दौड़ गई। अथर्व ने पहले थोड़ा सा लन्ड बाहर खींचा और एक जोरदार झटका मारा जिसने मेरी चूत को दो हिस्सो मे बांट दिया। आधा लन्ड अथर्व का मेरी चूत में अपना घर बना चुका था। ऐसा लगा की जैसे उसके लन्ड को किसी ने आगे जाने से रोका हू, वरना झटका इतना तेज था कि अब तक तो उसकी विजय पताका मेरी चूत पर लहरा रही होती।
मेरी आंखे गहन पीड़ा की वजह से अपने आप बंद हो गई। मैं पूरी कोशिश कर रही थी की पीड़ा की कोई भी शिकन मेरे चेहरे पे ना आए। अगर अथर्व के होठों ने मेरे होठों को कैद न किया होता, तो आज पूरे गांव को पता चल जाता की सविता चुद रही है। कुछ पलों तक अथर्व ऐसा हो पड़ा रहा मेरे ऊपर बस केवल मेरे होठ चूसता रहा और मेरी चुचियों को अपने हाथो से मसलता रहा, निचले हिस्से में अभी कोई हरकत नहीं थी।
अथर्व धीरे धीरे अपने लन्ड को मेरी चूत के अंदर रखे हुए उसे हिलाने लगा। एक असीम सुख की अनुभूति होने लगी मुझे। मेरी पीड़ा क्षण भर क्षण कम होती जा रही थी। अब मेरे हाथ अथर्व की पीठ पर चलने लगे। मैने उसे अपने बाहुपाश ने कस लिया जैसे मैं उसे अपने अंदर पूरा का पूरा समा लेना चाहती हूं। अथर्व के निचले हिस्से में अब ज्यादा हरकत होने लगी, वो धीरे से पूरा लुंड निकालता और फिर वापस से मेरी चूत में घुसा देता। उसके लन्ड की रगड़ मुझे हर बार सुख की नई अनुभूति कराती। मेरा जिस्म अब पीड़ा भूल चुका था और इस मजे में डूबता जा रहा था। मैं भूल गई थी की अभी भी अथर्व का संपूर्ण लन्ड मेरी चूत में नही समाया है। अथर्व के धक्कों की रफ्तार भड़ने लगी और अब एक बार फिर मेरी कमर अथर्व के धक्कों की ताल से ताल मिलाने लगी। पर जब भी लन्ड अंदर जाता तो ऐसा लगता की जैसे उसे आगे जाने से कोई चीज रोक रही है। मेरे मन में निराशा सी जन्म लेने लगी की मैं अथर्व को पूर्ण रूप से अपने अंदर नही समा पाई।
मेरी निराशा कुछ ही क्षण में टूट कर चकनाचूर हो गई क्युकी मेरे द्वारपाल ने अथर्व के नाग के आगे घुटने टेक दिए और उस नाग ने अपनी विजयी पताका मेरी चूत पर फेरा दी। जब अथर्व को लगा की मैं उसका अगला आक्रमण सहने को तैयार हूं तब उसने इतनी जोर से धक्का मारा की मैं खुद ऊपर को सरक गई और मेरा सिर पलंग की टेक से जा लगा और अथर्व का लन्ड द्वारपाल को परास्त करता हुआ मेरी चूत की नई गहराइयों में उतार चुका था। पीड़ा इतनी थी की अगर कोई और होता तो अब तक रहम की भीख मांग रही होती पर शायद मैं थी और मेरा अथर्व के लिए पूर्ण समर्पण जो मेरे चेहरे पर एक रत्ती भर भी शिकन आई हूं।
मुझे लगा की अब तो पूरा नाग मेरी चूत में समा गया होगा पर ये मेरी गलत फहमी थी अभी भी एक तिहाई नाग बाहर था। अथर्व ने मुझे पूरी तरह से जकड़ा हुआ था। उसके होठ मेरे होठों पर थे और उसके हाथ मेरे जिस्म को सहला रहे थे, तभी मुझे नीचे कुछ गीला गीला लगा। मैं धीरे से हाथ नीचे ले गई और पाया की खून निकला हुआ है। मैने अथर्व को अपने हाथ पे लगा खून दिखाया तो वो हंसने लगा और मेरे हाथ को अपने मुंह के करीब ले गया और पूरा खून अपनी जीव से चाट गया। मैं कुछ बोलना चाह रही थी तो उसने मेरे होठों पर अपनी उंगली रख दी और मेरे शब्द वही दफन हो गए।
अथर्व फिर मेरे जिस्म से खेलने लगा और पीड़ा धीरे धीरे काफूर हो गई, मैं भी खून वाली बात अपने जेहन से निकालने लगी। वापस से एक बार फिर हम दोनो प्रेम और मिलन की नांव में सफर करने लगे। जैसे ही अथर्व को लगा की अब मैं अगला वार सहने को तैयार हूं उसने एक क्षण भी गवाए बिना अपना लन्ड बाहर खींचा और पूरे वेग से अंदर करा जो की मेरी चूत के दुर्ग की आखिरी दीवार तक जाके ही रुका। पहली बार जीवन में ऐसा लगा की मेरी चूत पूरी भर गई है। मेरे अंदर कितना भी सईयम था पर उस धक्के का वेग इतना तेज था की पहली बार मेरे मुंह से दर्द भरी सिसकी निकली।
मैं: आ आ आ हा मां, मर गई।
मेरी वेदना सुनते ही अथर्व ने मुझे देखा और मेरी आंखो मे देखने लगा, मैं भी उसकी आंखो में देखने लगी और एक पल में ही मेरी सारी पीड़ा उसने हर ली। वो मुझे देख रहा था और मैं उसे बस और कुछ नही। पता नही मुझे क्या हुआ मैं अथर्व को खुद के उप्पर झुकाती चली गई और इस बार मैंने उसके होठों को अपनी गिरफ्त में ले लिया। अथर्व भी पीछे नहीं रहा और मेरा पूरा साथ देने लगा। अथर्व का संपूर्ण लन्ड मेरी चूत की गहराइयों में दफन था और उसके हाथ मेरे आजाद पंछियों के पर कुत्तर रहे थे और मेरे हाथ उसकी पीठ से लेकर उसकी गांड़ तक जा रहे थे। वो पल भर की पीड़ा पे ये सारे लम्हे बहुत भारी पड़ रहे थे। मुझे एहसास हुआ निचले भाग में हरकत का, तो पता लगा की अथर्व बहुत धीरे धीरे अपना लन्ड अंदर बाहर कर रहा है, यानी उसने मुझे चोदना शुरू कर दिया है।
अथर्व अपना लन्ड थोड़ा से बाहर खींचता और बड़े प्यार से वापस अंदर करता। ऐसा लग रहा था जैसे वो अपनी जगह बना रहा हूं। मेरी पीड़ा भी अब तक काफी हद तक कम हो चुकी थी और मैं आने वाले मजे के लिए पूरी तरह तैयार थी। मेरी गांड़ भी अब थोड़ी थोड़ी हिलने लगी। अथर्व ने उसे महसूस किया की अब मैं भी अपनी गांड़ हिला रही हूं, तो उसने चोदने की रफ्तार हल्की सी बड़ा दी। अथर्व ने अपने होठों को आजाद किया मेरे होठों की गिरफ्त से और कंधो को चूसने लगा और उसके हाथ अभी भी मेरी चूंचियों की अकड़ निकालने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे। मेरा उत्साह बढ़ता जा रहा था और मैं अथर्व को अपनी बाहों की गिरफ्त में जकड़ने की कोशिश करने लगी।
मैं: आह ओह आ था रव ओ
अथर्व भी मेरी हालत को समझने लगा और उसने एक गियर और बदला अब उसके धक्कों की रफ्तार और तेज हो गई। मेरी चूत भी चुदाई के नशे में झूमने लगी और हल्की हल्की बौछार करने लगी जिससे आथर्व के नाग को अपनी जगह बनाने में मदद मिल रही थी। मेरा नशा दुगना होने लगा, अब मुझे वो चुदाई चाहिए थी जिसके लिए मैं हमेशा से तरसी हूं, और उसके लिए मुझे अथर्व को उकसाना पड़ेगा और भीतर के जानवर को जगाना पड़ेगा।
मैं: आह उफ़ आह ओह चोद मुझे और तेज चोद। चोद अपनी लुगाई को चोद, बहुत तड़पी हूं मैं, अब मुझे रोज चोदना , दिन रात चोदना। आह चोद कुत्ते।
मेरे हाथ अथर्व की गांड़ पर जम गए जैसे अथर्व को पूरा अपने अंदर समा लेना चाहती हू। मेरी जीव अथर्व निप्पल कुरेदने लगी। मेरी गांड़ भी अथर्व के हर धक्के से ताल से ताल मिला रही थी। पूरे कमरे में हम दोनो की आहे और अथर्व के गोटे की थपक जो की मेरी गांड़ से टकराने से हो रही थी। मेरी चूत तो जैसे निहाल ही हो गई थी, उसका पानी तो रुक ही नही रहा था, जैसे किसी ने अंदर नलका खुला छोड़ दिया हो। अथर्व के धक्कों की गति निरंतर बढ़ती जा रही थी और अब जब मुझे पीड़ा का कोई एहसास नही था तो मैं उसे और उकसा रही थी।
मैं: आह उफ्फ ओह चोद मेरे मर्द चोद अपनी लुगाई को। आह ओ
अथर्व बस मुझे देखता और मुस्कुरा कर अपना एक गियर और बड़ा देता। ना जाने अभी कितने गियर बचे थे, पर मैं भी उसे पूरी टक्कर दे रही थी उसके हर धक्के को अपनी गांड़ उच्च्का कर स्वागत करती। अथर्व का हर धक्का मुझे वहा पर महसूस होता जहा पर आज तक मैंने कुछ भी महसूस नहीं किया था।
अथर्व: आह कितनी कसी हुई चूत है तेरी ठकुराइन। इसे चोद चोद कर भोसड़ा बना दूंगा। रोज चोदूंगा तुझे मेरी जान मेरी लुगाई सविता।
ये पहली बार था जब अथर्व ने मेरा नाम लिया था। अपना नाम उसके मुंह से सुन कर न जाने मेरे अंदर इतना उबाल पैदा हो गया की मैं झड़ने की कगार पर पहुंच गई।
मैं: अथर्व आह रो कर...न...आह न... ही.... ओ मेरा ... ह..... न.... वाला .... है। ओ
अथर्व रुका नहीं और दुगने वेग से मुझे चोदने लगा। उसका हर धक्का मुझे चर्म की नई उच्चाइयों तक ले जा रहा था। उसकी सिसकियां अब गुर्राहट में बदल गई थी। और वो पल भी आया जब मेरे जिस्म ने उस उफान को उगल दिया।
मैं: आह मैं ... ग....... ई उह आह।
अथर्व ने अपना लन्ड बाहर को खींचा और मुझे पूर्ण रूप से उस चरमसुख को जीने का मौका दिया। मेरी चूत निहाल हो चुकी थी और भर भर अपना लावा बहा रही थी। मेरी आंखे बंद थी और मेरी सांसे उखड़ी। मेरी आंखे तब खुली जब मुझे नीचे कुछ खुरदुरा सा लगा। मैने देखा अथर्व बचा खुचा लावा भी अपनी जीव और मुंह से निचोड़ रहा है। ताज्जुब जब हुआ जब कुछ ही पल में मैं फिर से चुदासी महसूस करने लगी और मेरे हाथ अथर्व को अपनी चूत पर झुकाने लगे। मैं आंखे बंद किए इस लम्हे को महसूस कर रही थी की तभी एक करारा झटका लगा और एक बार फिर अथर्व का नाग अपने बिल में घुस चुका था। एक ही बार में पूरा घुसा दिया। मीठा मीठा सा दर्द हुआ पर जब पाया की एक बार में मैने इस विकराल लन्ड को निगल लिया तो खुद पे बहुत गर्व महसूस करा।
इस बार अथर्व एक पल भी नही रुका और वो लम्बे लम्बे झटके देने लगा। वो पूरा लन्ड बाहर निकलता और जड़ तक एक ही बार में पूरा अंदर तक घुसेड़ देता। उसके हर धक्के की दस्तक होती मेरे बच्चेदानी पर एक बार फिर मेरी चूत का नलका खुल गया। अथर्व का हर लंबा झटका ऐसा लग रहा था जैसे वो हाईवे पे गाड़ी चलाने के लिए रास्ता साफ कर रहा हो। हर धक्के के साथ मुझे शारीरिक सुख का नया अनुभव होता।
अथर्व मुझे ये वहा चूमे जा रहा था। कभी काटता, कभी चूमता और कभी चूसता। पूरे जिस्म पर मेरे उसके काटने के निशान बन चुके थे। जहा पर काटने के निशान नही थे वहा पर उसका थूक और मेरे पसीने का मिलन हो रहा था। अथर्व की पीठ पर नाखूनों के निशान थे और कई जगह से तो खून भी रिस रहा था। हम दोनो के जिस्म इस सर्द भरी रात में पसीने से लथपत थे। दोनो एक दूसरे को सुख देने में इतने व्यस्त थे समय का कोई ज्ञान नहीं था। अथर्व मुझे चोदे जा रहा था और मैं चुदती जा रही थी।
अथर्व का लन्ड अब वाकई हाईवे पर गाड़ी चला रहा था। उसकी रफ्तार का सामना शायद मैं ही कर सकती थी। उसका हर धक्का मेरे जिस्म के हर जोड़ को झंझोर रहा था और मैं किसी चुदासी रॉड के जैसे उसे उकसाए जा रही थी।
मैं: आह ओह चोद और तेज कर कुत्ते। चोद मुझे।
अथर्व: आह मेरी कुतिया ओह मेरी लुग्गाई, तुझे दिन रात भी चोदूं तो कम है। तुझे आह इस लन्ड पर बैठा कर रखूंगा।
मैं: बैठा लियो, पहले मुझे चोद, चोद चोद कर अपने बच्चे की मां बना दे। आह ओह
अथर्व: तुझ्से तो मुझे हर साल बच्चा चाहिए समझी ठकुराइन।
मैं: हां मेरे पतिदेव हर साल बच्चा दूंगी बस मुझे ये लन्ड रोज चाहिए। आह ओह चोद मुझे
और अथर्व मेरे हर निर्देश का पालन करते हुए मुझे चोदे जा रहा था। हर धक्के पर मैं भी उसका साथ देती। मेरी चूत कितनी बार झड़ चुकी थी मुझे याद भी नहीं पर मेरा पति अभी तक नही और अब मैं उसका लावा अपने अंदर लेने को बैचेन थी।
अथर्व के धक्कों की गति अप्रत्याशित रूप से बड़ गई थी। मुझे उसके अंदर का लावा महसूस होने लगा। वो पल कभी भी आ सकता है जिसके लिए एक स्त्री और पुरुष अभिसार करते है, क्योंकि जब मर्द अपना लावा उगलता है और औरत उस लावे को अपने अंदर महसूस करती है तब उसे जो सुख प्राप्त होता है वो किसी भी चरमसुख से बड़ कर होता है। अथर्व की गुर्राहट हर धक्के के साथ बड़ती जा रही थी और उसकी रफ्तार का वेग किसी तूफान से कम नहीं था। उसके हर धक्के से मुझे सुख के साथ साथ हल्की सी जलन भी हो रही थी और मेरी चूत हल्की सी छील भी गई थी पर मैं उसे रुक नही रही थी बल्कि उसे और उकसा रही थी।
मैं: आजा मेरे मर्द भर दे अपनी पत्नी की चूत। आह ओह कर दे मुझे गर्भवती। उफ आह
और अथर्व मेरी आंखो में देखते हुए बस चोदे जा रहा था।
और वो पल भी आ गया जब उसके लावे की पहली बौछार ने मेरी बरसो से बंजर पड़ी जमीन को हरा कर दिया। उसकी बौछार की पहली बूंद गिरते ही मेरी बंजर जमीन ने भी पानी छोड़ दिया।
मैं: आह ओह अथर्व आह
और वो झड़ता रहा और इतनी बारिश करी उसने और मैने जैसे की सैलाब आ गया हो।
हम दोनो के जिस्म थक के चूर हो चुके थे कोई भी किसी से एक शब्द नही बोल रहा था, पूरे कमरे में हम दोनो की तेज सांसों की आवाज जोकि धौकनी की तरह चल रही थी बस वोही गूंज रही थी। मैं तो अपने पति की मर्दानगी की कायल हो चुकी थी। पहली चुदाई में उसने मुझे स्वर्ग की सैर करा दी थी। मैने उसे अपनी बाहों में समेट लिया जैसे की मैं दुनिया को बताना चाहती हूं की ये सिर्फ मेरा है सिर्फ मेरा "काला नाग"।