DEVIL MAXIMUM
"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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Kafi dangerous update tha ye wala to 3 jin piche pde the Komal ke jadd hogy yr ye toA
Update 18B
दाई माँ फर्श पर बैठ गई. और अपने थैले से सामान निकालने लगी. कोमल सब देख रही थी. कुछ सामान तो उसे ख्याल था. जो उसने डॉ रुस्तम के हवन क्रिया मे देखा था. दाई माँ ने जो सामग्री निकली उसमे बहोत सी चीजे ऐसी थी. जो मृतक जीवो की थी.
किसी पशु का नाख़ून, दाँत, हड्डी. खोपड़ी. बहोत कुछ. दाई माँ ने एक खिलौना भी निकला. वो एक गुड्डा था. ऐसे और भी दाई माँ के झोले मे थे. दाई माँ ने कोमल की तरफ देखा.
दाई माँ : लाली तेरे घर मे कोउ बड़ो सो शिसा हते का???
(बेटी तेरे घर मे बड़ा सा शिसा है क्या???)
कोमल : हा हा है ना. पर वो मेरा ड्रेसिंग टेबल है.
डॉ रुस्तम : वो तो कुर्बान करना पड़ेगा.
कोमल ने बलबीर की तरफ देखा. वो समझ गया और बेडरूम से उस ड्रेसिंग टेबल को ही ले आया.
कोमल सभी करवाही बड़े ध्यान से देख रही थी. दाई माँ ने एक काला कपड़ा लिया और उस से ड्रेसिंग टेबल का मिरर ढक दिया. उसके एग्जिट सामने उस गुड्डे को रखा. कोमल डॉ रुस्तम के पास खड़ी थी. वो रहे नहीं पाई और डॉ रुस्तम से पूछ ही लेती है.
कोमल : माँ की प्रोसेस तुमसे अलग क्यों है.
डॉ : जो प्रोसेस मेने की वो शत्विक विधया थी. दाई माँ तामशिक प्रोसेस कर रही है.
कोमल : फिर दोनों मे फर्क क्या है????
डॉ : किसी भी भगवान की दो तरीको से सिद्ध हासिल की जा सकती है. एक तामसिक और एक सात्विक. सात्विक प्रवृत्ति में सब कुछ शुद्ध से होता है. जबकि तामसिक प्रवृत्ति में मालीनता का तक उपयोग होता है. तामसिक प्रवृत्ति में बाली भी देनी पड़ती है.
कोमल ने आगे कुछ पूछा नहीं. पर डॉ रुस्तम उसे खास चीज बताते है.
डॉ : दाई माँ ने 9 देवियो को सिद्ध कर रखा है. साथ ही कुछ सुपरनैचुरल पावर्स को भी सिद्ध कर रखा है. वो बहोत पावरफुल है.
कोमल हैरान रहे गई. ये सब सुन के. दाई माँ ने सारा सामान जमा दिया था. फर्श पर गोल और त्रिकोण आकृति बनाई थी. जिसपर कुम कुम वाला रंग लगा हुआ था. एक कटार भी रखी हुई थी. जिसे लेकर दाई माँ मंतर पढ़ रही थी. कई फल और भी कई ऐसे बीज भी थे.
जिसे कोमल नहीं जानती थी. दाई माँ ने अपने हाथ की ऊँगली को थोडा काटा. और खून निकल कर उस नीबू पर चढ़ाया. कोमल जो देख रही थी. उसकी जानकारी डॉ रुतम साथ साथ कोमल को बता रहे थे.
डॉ रुस्तम : ये जो कुम कुम वाले 9 नीबू है. ये 9 देवियो के स्थान है. साथ वो जो गुड्डा है वो एक जरिया है. जिस से वो जिन्न से बात की जा सकती है.
कोमल : फिर उस शीशे पर काला कपड़ा क्यों है???
वो जिन्न गुड्डे के जरिये आएगा. पर बात उस शीशे के जरिये से ही करेगा. उसे देखना अपसगुन है. पर वक्त आने पर तुम्हे देख कर बहोत कुछ समझ आ जाएगा. कोमल का ध्यान एक पत्थर पर गया. जिसे सिलबट्टा कहते है. जो चटनी कूटने के या मसाले कूटने के लिए काम आता है. दाई माँ मंतर पढ़ते पढ़ते रुक गई. और घूम कर डॉ रुस्तम की तरफ देखती है.
दाई माँ : नाय आ रहो बो.
(नहीं आ रहा वो)
रुस्तम : एक बार और कोसिस करो. नहीं तो इंतजार करते है. वो खुद आएगा तब कोसिस करेंगे.
दाई माँ एक बार और कोसिस करती है. कोमल,बलबीर डॉ रुस्तम तीनो देख रहे थे. काफ़ी वक्त हो गया. पर एनटीटी नहीं आई. दाई माँ बूढी थी. इस लिए उनका मुँह दर्द करने लगा. वो रुक गई. और पाऊ फॉल्ट कर के बैठ गई. डॉ रुस्तम सोफे पर बैठे तो कोमल और बलबीर भी दूसरे सोफे पर बैठ गए. दाई माँ तो फर्श पर ही बैठी थी.
कोमल दाई माँ को देख रही थी. और दाई माँ कोमल को. दाई माँ की नजर कोमल की थोड़ी से निचे गर्दन पर पड़े दाग पर गया. दाई माँ के चहेरे पर हलकी सी सिकन आ गई.
दाई माँ : इतउ आ री लाली.
(इधर आ बेटी)
कोमल तुरंत दाई माँ के करीब हुई. दाई माँ ने कोमल की थोड़ी को पकड़ कर हलके से गर्दन ऊपर उठाई. कुछ अजीब सा लाल दाग था. खींचने से कोमल को जलन भी हुई.
कोमल : बहोत दवाई करवाई माँ. पर ये जगह जगह हो जा रहा है.
कोमल को पता नहीं था की वो क्या है. पर दाई माँ को पता था. उन्हें गुस्सा आने लगा. वो जैसे गुस्सा अपने अंदर समेट रही हो.
दाई माँ : जा बैठ जा. सब ठीक हे जाएगो. (सब ठीक हो जाएगा)
कोमल जाकर बैठ गई. दाई माँ फिर घूमी और दूसरी बार अपना खून उन नीबूओ पर डाल के जोश मे मंत्रो का जाप करने लगी. कोमल से वो बेचैनी बरदास नहीं हुई. और वो खड़ी होकर डॉ रुस्तम के पास जाकर खड़ी हो गई. बलबीर उठने गया तो कोमल ने उसे बैठे रहने का हिशारा किया. कोमल बड़ी ही धीमी आवाज से पूछती है.
कोमल : अचानक माँ को गुस्सा क्यों आ रहा है??
डॉ : क्या तुम जानती हो तुम्हारे शरीर पर जो दाग है. वो क्या है??
कोमल : क्या???
डॉ : वो उस जिन्न का पेशाब है. वो तुम्हारे शरीर पर अपना...
डॉ रुस्तम बोल कर रुक गए. कोमल भी समझ गई की वो जिन्न अपने पेशाब कोमल के शरीर पर गिरता था. ये समाज़ते ही कोमल को भी गुस्सा आने लगा.
डॉ : दाई माँ ने उन 9 देवियो को अपना खून दिया. मतलब वो खुद की बली खुद को उन देवियो को अर्पण कर रही है.
कोमल वकील भी बेहद ख़तरनाक थी. उसे उन मर्दो पर बहोत गुस्सा आता था. जो औरत की बिना मर्जी के उन्हें छूते है. कोमल ने पति द्वारा पीड़ित महिलाओ के लिए भी कई केस लड़े थे. कइयों को तो सजा भी दिलवा दी थी. पर खुद को कोई पीड़ित करने लगे और कोमल को गुस्सा ना आए ऐसा मुश्किल है. दाई माँ रुक कर अपनी झंग पर अपना हाथ पटकती है.
दाई माँ : (गुस्सा) सारो आय ना रो. छोडूंगी नई ज्याए.
इन सब मे दोपहर का एक बज गया था. गुस्सा कोमल को भी आ रहा था. वो सोचने लगी की दाई माँ उसके लिए क्या कुछ नहीं कर रही. और वो बस ऐसे ही बैठी सिर्फ दाई माँ के भरोसे बैठी रहे. ऐसे ही दो कोसिस और हो गई. पर वो एंटी.टी आ ही नहीं रही थी. कोमल खड़ी हो गई.
कोमल : मुजे मालूम है की वो कैसे आएगा. तुम शुरू रखो. बेडरूम मे कोई नहीं आना.
कोमल अपने बेडरूम मे चली गई. वहा से बलबीर को बेड रूम के डोर के सामने का नजारा दिखाई दे रहा था. बलबीर ने देखा की कोमल जाते ही अपनी टीशर्ट पजामा ब्रा पैंटी सब कुछ उतर कर बेड पर नंगी लेट गई. बेड पर जाते ही उसे कोमल नहीं दिखाई देती है. क्यों की जिस ड्रेसिंग टेबल से बेडरूम का बेड दीखता था.
ड्रेसिंग टेबल ना होने के कारण वो कोमल को नहीं देख सकता था. बलबीर को कोमल के लिए एक अजीब सा डर लगने लगा. दाई माँ ने मंत्रो के उच्चारण को जोरो से शरू कर दिया. दोपहर के 2 बजते कोमल के फेल्ट का माहोल कुछ और ही हो गया. वहां कुछ अजीब हुआ. बलबीर ने देखा की एकदम जोर से कोमल के बैडरूम वाला डोर बड़ी जोरो से अपने आप बंद हुआ. और बड़ी जोरो की आवाज आई. भट्ट कर के. दाई माँ ने नव देवियो को सिर्फ खून ही नहीं पुष्प, फल, सुपारी पान बहोत कुछ अर्पण किया था.
उन्हें मालूम था की असर शुरू हो चूका है. जो गुड्डा रखा था. वो एकदम से आगे को झूकते गिर गया. गिरते ही उसे बड़े से मिरर का सहारा मिला. गुड्डा मिरर के सहारे टेढ़ा खड़ा था. गुड्डा रबर और प्लास्टिक का था. उसका वजन 5 ग्राम भी नहीं होगा. पर गुड्डे का सर मिरर से टकराते टंग सी आवाज आई. जैसे गुड्डा कोई भरी लोहे का हो.
मिरर और गुड्डे के बिच बस काला कपड़ा ही था. जैसे डोर बंद हुआ और भाग कर गया. डॉ रुस्तम भी उसके पीछे गया. अंदर कोमल जल्दी से खड़ी हुई और अपने कपडे पहेन ने लगी. अंदर अलमारी के दोनों दरवाजे अपने आप जोरो से खुलने बंद होने लगी.
फट फट की आवाजे जोरो से आने लगी. कोमल को भी डर लगने लगा. वही बहार से बलबीर और डॉ रुस्तम बार बार दरवाजा पिट रहे थे.
बलबीर : (घबराहट हड़ बड़ाहट) कोमल कोमल...
कोमल भी कपडे पहनते डोर तक पहोची.
कोमल : (जोर से आवाज) मे ठीक हु. डोर खुल नहीं रहा है.
डॉ : लगता है डोर ही तोडना पड़ेगा.
बलबीर : तुम पीछे हटो दरवाजा तोडना पड़ेगा.
कोमल पीछे हटी. बलबीर जोरो से डोर से कन्धा टकराने लगा. कोई कुण्डी नहीं लगे होने के बावजूद भी डोर खुल नही रहा था. उधर दाई माँ ने मंतर पढ़कर उस गुड्डे की पिठ की तरफ फेके. जैसे गुड्डे की पिठ पर जोर से मारे हो. वहां एकदम से वो डोर खुल गया. बलबीर सीधा अंदर की तरफ गिरने लगा. पर कोमल ने उसे थाम लिया. वो भी गिरते गिरते बची. वो तीनो बेडरूम से बहार दाई माँ के पास आ गए.
अब जो नजारा उन सब के सामने आने वाला था. वो एकदम डरावना था. दाई माँ ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा.
दाई माँ : डाक्टर तू हवन तैयार कर.
डॉ रुस्तम भी अपना बैग ले आया. उसमे से सामान निकालने लगा. जगह कम थी. इस लिए सोफे को वहां से पीछे खिसकाना पड़ा. डॉ रुस्तम ने हवन की सामग्री सब अच्छे से सेट किया. उसने हवन मे अग्नि भी दी. पर सब को एहसास हो रहा था की मिरर मे काले कपडे के पीछे कोई हे. एक आकृति सी उभर कर आने लगी थी. वोA
Update 18C
दाई माँ ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा.
दाई माँ : बात कर ज्याते. (बात कर इस से )
डॉ रुस्तम ने भी तुरंत मिर्चा संभाला.
डॉ : कौन है तू???
उस मिरर के पीछे से फिर हसने की आवाज आई.
मै कौन हु ये तू भी जानता है. और ये बुढ़िया भी. मुझसे क्यों पूछते हो.
दाई माँ ने तुरंत कुछ सरसो के दाने उस गुड्डे की पिठ पर फेक के मारे. उस मिरर के पीछे के अक्स से दर्द की आवाज आई.
ससससस मुजे क्यों मार रही है. ये बुढ़िया.
डॉ रुस्तम हसने लगा.
डॉ : तू इन्हे जानता नहीं है लगता है.
जानता हु. पर ये मुजे नहीं बाँध सकती. आज ये बुढ़िया भी मारेगी और तू भी मरेगा.
दाई माँ ने सरसो के दाने. और डॉ रुस्तम ने पानी के छींटे एक साथ उस गुड्डे की पिठ पर मारे. वो एनटीटी बहोत जोरो से चिखी.
आआआ.... देख बुढ़िया. तू सुन ले. मेरी तुजसे कोई दुश्मनी नहीं है. बस हमें ये लड़की चाहिये. हम इसे भोगेंगे और चले जाएंगे.
दाई माँ को गुस्सा आ गया. सवाल पूछने से पहले ही दाई माँ आगे होते एक किल उस गुड्डे की पिठ मे चुबूती है.
आआआ.......आ बुढ़िया ठीक है. मै जता हु.
दाई माँ : अब तोए कितउ मे ना जाने दाऊँगी. तोए अब मे ना छोडूंगी. बाबड़ चोदे. तू मोते मेरी ही बेटी मांग रओ है.
(अब तुझे मै कही जाने नहीं दूंगी. भोसड़ीके. तू मुझसे मेरी ही बेटी मांग रहा है.)
दाई माँ गुस्से मे कुछ भूल रही थी. पर डॉ रुस्तम अपना आपा नहीं खोए थे.
डॉ : एक मिनट. क्या कहा तूने हमें. मतलब तुम और भी हो.
दाई माँ बिच मे बोल पड़ी.
दाई माँ : हे अब जे तो 2 ही है. मेने पहले ही देख लओ.
(अब ये दो ही है. मेने पहले ही देख लिया है)
हा हम दो ही है. हम चले जाएंगे. ये बुढ़िया को बोल हमें जाने दे. वरना ये जिन्दा नहीं बचेगी.
दाई माँ जानती थी की वो दो जिन्न हे. वो तीन थे. जिनमे से एक को तो डॉ रुस्तम ने पकड़ लिया था. और एक सरिनडर कर चूका था. पर एक वही होने के बावजूद नहीं आ रहा था.
दाई माँ : तोए जाने तो ना दूंगी. चुप चाप ज्या मे आजा.
(तुझे जाने तो नहीं दूंगी. चुप चाप इसमें आजा).
दाई माँ ने उस गुड्डे की तरफ हिशारा किया. पर तभी डॉ रुस्तम बोल पड़ा.
डॉ : नई माँ. अगर ये अकेला आया तो वो नहीं आएगा. बहोत चालक है ये.
तभी वो अक्स वाला जिन्न हसने लगा.
जिन्न 1 : बेचारी बुढ़िया. बहोत चालक समज़ती है. अपने को. मेने बोला ना. मै तेरे बस का नहीं. जिन्दा रहना है तो भाग जा. भाग जा इसे छोड़ कर.
दाई माँ को गुस्सा आया. और वो उसे फिर कील चुबूती है.
जिन्न 1 : आआआ.....
दाई माँ : बाबड़ चोदे. बड़ो चालक समझ रओ है तू. बो ना आवे ता का हेगो. तू अब ना जा सके. ना तोए आमन दूंगी ना जाए दूंगी.
(भोसड़ीके. बहोत चालक समझता हे तू. वो नहीं आएगा तो क्या हुआ. मै ना तुझे आने दूंगी. और ना जाने दूंगी.)
दाई माँ समझ गई की दूसर जिन्न पहले वाले से जुडा हुआ है. दोनों को एक साथ पकड़ना पड़ेगा. कोई एक भी छूट गया तो दूसरे को छुड़वा लेगा. वो जिन्न चालाकी कर के दाई माँ को चुतिया बनाने की कोसिस कर रहा था. पर दाई माँ ने पहले वाले जिन्न को भी पकडे रखा था. आईने वो गुड्डा और मंत्रो के जरिये.
दाई माँ : रे तू ज्यापे जल फेकते रे. मे भी देखु. जे भी कब तक झेलेगो. (तू जल फेकते रहे. मै भी देखु. ये कब तक झेलेगा.)
दाई माँ उस जिन्न को वो कील चुबोती रही. और डॉ रुतम भी उसपर जल फेकता रहा. वो जिन्न चीखने लगा.
जिन्न 1 : आआआ...........
हैरानी वाली बात तो ये थी की मिरर के निचले हिस्से से खून तपकने लगा. एक पतली सी खून की लाल लकीर टपक कर गुड्डे की तरफ आ गई. दाई माँ चीखती है.
दाई माँ : बुला वाए. (बुला उसे ).
दाई माँ ने उस जिन्न को इतना परेशान कर दिया. और साथ मे वो तामसिक मंत्र पढ़े की उस जिन्न को आना ही पड़ा. उस अक्स के साथ आधी सी दिखने वाली एक और चीज सबको नजर आने लगी. साथ ही दूसरी पर भयानक डार्विनी आवाज सुनाई देने लगी.
जिन्न 2 : क्यों हमें परेशान कर रही हो. मेने बोला ना. हम जा रहे है.
दाई माँ : ना ना ना... तुम कितउ जाओगे वो मे बताउंगी. चुप चाप दोनों या मे आ जाओ. नई तो.
(नहीं नहीं..... तुम कहा जाओगे ये मे बताउंगी. चुप चाप दोनों इस गुड्डे मे आ जाओ. नहीं तो.)
वो दोनों जिन्न बड़ी आसानी से उस गुड्डे मे आ गए. उस काले कपडे के पूछे जैसे ही अक्स निचे की तरफ मिटने लगा. दाई माँ ने उसी काले कपडे से उस गुड्डे को ढक कर लपेट लिया. दाई माँ ने उस काले कपडे अच्छे से बांध दिया.
दाई माँ : रे डाक्टर. ला रे मटकी. मे ज्याए(इसे) दरगा छोड़ आउं.
कोमल हैरान रहे गई. दाई माँ 4 घंटे पहले तो आई. अब जाने को कहे रही है. कोमल दुखी भावुक हो गई.
कोमल : माँ तुम अभी तो आई हो. और मुजे छोड़ कर.
कोमल के मुँह को अचानक डॉ रुस्तम ने दबोच लिया.
डॉ : कुछ मत बोलना कोमल. उन्हें जाने दो.
दाई माँ : जे साईं के रो हे. तू चुप रहे. मै तोते बाद मे मिलूंगी.
कोमल समझ तो नहीं पाई. पर उसकी आँखों मे अंशू आ गए. वो दाई माँ को सामान समेट ते देखे ही जा रही थी. साथ रोए ही जा रही थी. देख्ग्ते ही देखते दाई माँ जाने के लिए तैयार हो गई. कोमल दाई माँ के जाने के गम मे रोए ही जा रही थी. पर दाई माँ रुक नहीं सकती थी. उन्हें उन जिन्नो को एक दरगा तक लेजाना था.
दाई माँ देश का हर वो कोना घूम चुकी थी. जो उसके मतलब की थी. वो सबसे नज़दीक की जगह के बारे मे जानती थी. वो उन जिन्नो को सारंगपुर दरगा लेजा रही थी. उस जगह की खासियत थी की वहां पर दरगा पर एक पेड़ हे. जिसपर ऐसी बहोत सारी एनटीटी लटक रही है. उन्हें वहां कैद कर के रखा जता है. क्यों की वो ख़तम नहीं होती. वो जब तक उनका वक्त है. जमीन पर ही रहती है.
दाई माँ अपना सामान झोला लेकर दरवाजे पर खड़ी हो गई. जाते जाते भी वो हिदायत देती है.
दाई माँ : जे सीसाए करो कर के फिर लाकडिया समेत पजार दीजो. ( इस मिरर को काला कर के लड़की समेत जला देना)
दाई माँ चली गई. कोमल ये गम बरदास नहीं कर पा रही थी. उसे बलबीर संभालता है. कोमल बलबीर की बाहो मे बहोत देर तक रोती ही रही.
कपड़ा ट्रांसफार्मेट था. कपडे के पीछे कोई खुले बालो वाला भयानक अक्स नजर आने लगा. पर हड़ तो तब हो गई जब उनहे उस सक्स की हसने की आवाज आने लगी.
Lekin achi bat ye hue ki picha chuta Komal ka inse
Sath ek bat or achi khe Dr ne Balbir ke lye Komal ko
Ache bhole wale insaan ka sath ko leke bhot he ache se smjaya Komala ko