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Horror किस्से अनहोनियों के

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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वो लड़का तो कोमल का पीछा छोड़ हीं नही रहा है...

लेकिन दयाल के लिए जैसी करनी वैसी भरनी...
लालच जो न कराए...
Ye lalach hi to har dukh ka karan hai bhai :declare:
 

motaalund

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Update 26A


कोमल जब बहार स्कूल के बड़े दवाजे पर खड़ी पहले तो उस स्कूल को देखती है. वीरान पड़ी वो स्कूल रात के अँधेरे मे ज्यादा ही डरावनी लग रही थी. कोमल के हाथो में डॉ रुस्तम का दिया रेडिओ सेट था. डर से कोमल अनजाने में उसे ही जोरो से प्रेस कर रही थी. तभि सेट पर डॉ रुस्तम की आवाज आई.


डॉ : कोमल ऐसे सेट को प्रेस मत करो.


कोमल को एहसास हुआ की वो क्या कर रही है. रेडिओ सेट(RS) पर एक बार फिर डॉ रुस्तम की आवाज आई.


डॉ : आगे बढ़ो कोमल. ये तुम कर सकती हो.


डॉ रुस्तम की आवाज कोमल को थोड़ी हिम्मत भी दिला रहे थे. जब से कोमल को पता चला की 2 बच्चों की आत्मा उसके पीछे पड़ी है. और उसे अपने साथ लेजाना चाहती है. कोमल को डर भी लगने लगा था. कोमल फिर भी आगे बढ़ती है. कोमल डर के पीछे हट जाने वालों मे से नहीं थी. वो स्कूल की बिल्डिंग के डोर तक गई.

पहले कभी वहां लोहे की जाली और लोहे का दरवाजा रहा होगा. टूटी हुई दीवार से साफ पता चल रहा था. कोमल धीरे धीरे अंदर चली गई. और उस तरफ मूड गई जिस क्लास की छत गिरी और बच्चे मरे थे. कोमल उस क्लास रूम के बहार डोर पर ही खड़ी हो गई.

वहां पहोचने पर बड़ी नेगेटिव वाइब्स आ रही थी. उस क्लास का डोर भी टुटा हुआ था. सिर्फ थोड़ासा फट्टा ही था. कोमल के मन में अंदर जाने से पहले कई खयाल आए. क्या वो आज जिन्दा वापिस आएगी.

या वो खुद तो कही पजेश नहीं हो जाएगी. लेकिन ये कोमल का खुद का अपना फेशला था. कोमल ने एक लम्बी शास ली. और अंदर घुस गई.


कोमल : (स्माइल) कैसे हो बच्चों. देखो में फिरसे तुमसे मिलने आई.


बोलते हुए कोमल उसी चेयर पर बैठ गई. जहा लास्ट टाइम बच्चों से बात करती वक्त बैठी थी. उसके कान मे माइक्रोफोन था. जिस में से उसे कुछ आवाज सुनाई दीं. आवाज एक साथ कई बच्चों की आपस में बात करने की थी. ऐसी आवाज सायद स्कूल के रिसेस लंच ब्रेक वगेरा में सुनी होंगी.


तू क्या कर रहा है. हे वो आंटी आ गई. वो गुब्बारे नहीं लाई. आंटी गन्दी है. हे तू ऐसा मत बोल. वो हमें परेशान करेंगी. अह्ह्ह उह्ह्ह. आंटी उन लोगो के साथ है.


कोमल को पॉजिटिव के साथ नेगेटिव भी बाते सुनाई दीं. उसके दिल की धड़कने ज्यादा तेज़ हो गई. लेकिन कोमल हिम्मत करती है.


कोमल : बच्चों तुम हार वक्त यही रहते हो. क्या तुम्हारा मन नहीं करता कही बहार जाने का.


कोमल को फिर रिप्लाई सुनाई दिया.


हमें यही अच्छा लगता है. हमें कही नहीं जाना. हे ये हमें यहाँ से भागना चाहती है. ये गन्दी है. नहीं ऐसे मत बोलो. आंटी भी हमारे साथ रहेगी.


कोमल की फटने भी लगी. पर उसके पास अब पीछे जाने का रस्ता नहीं था. बच्चे तो उसे मारवकर अपने साथ रखना चाहते थे.


कोमल : बच्चों पंडितजी कहा है????


रिप्लाई : वो आते है. हमें नहीं जाना. वो हमें नहीं पकड़ सकते. वो हमें पसंद नहीं करते. वो गंदे है.


दरसल कोई भी आत्मा एक दूसरे का कुछ नहीं बिगड़ सकती. लेकिन मरे हुए उन लोगो मे एक जिंदगी ही बन चुकी थी. जैसा रियल जिंदगी में होता है. पंडितजी की आत्मा आती तो वो बच्चों की आत्माए उस स्कूल में इधर उधर भागने लगती. कोमल को ये कम समझ आया.

लेकिन बहार से सुन रहे डॉ रुस्तम को ये सब समझ आ गया था. कोमल को समझ नहीं आ रहा था की अब क्या सवाल करें. हड़बड़ट में उसने सीधा मंदिर के बारे मे ही पूछ लिया.


कोमल : बच्चों वो मंदिर कहा है. जो पंडित जी बनवा रहे थे???


रिप्लाई बड़ा अजीब था. जिसकी कोमल को उम्मीद ही नहीं थी. रिप्लाई में किसी बच्चे की खी खी खी कर के हसने की आवाज आई.


रिप्लाई : (हस्ते हुए) एएए.... मत बताना. (दूसरा बच्चा) वो तो पीछे ही है. (तीसरा बच्चा) वो तुम्हे नहीं मिलने वाला.


कोमल जवाब सुनकर हैरान रहे गई. उस मंदिर को स्कूल के आगे होना चाहिये था. पर वो स्कूल के पीछे था. लेकिन कोमल भी पहले दिन पूरा स्कूल देख चुकी थी. पीछे कोई मंदिर था ही नहीं. कोमल एक वकील थी. वो समझ गई की वास्तु गलत कैसे होगा.

पंडितजी का स्थान स्कूल के पीछे होना चाहिये था. मगर वो स्कूल के आगे था. और मंदिर को आगे होना चाहिये था. जब की वो स्कूल के पीछे था. कोमल ने पंडितजी के भी मुँह से सुना था. और डॉ रुस्तम ने भी यही जानकारी दीं थी की वास्तु गलत है. हलाकि कोमल को तो वास्तु का कोई ज्ञान नहीं था. लेकिन रिप्लाई रुका नहीं था.


हे हे क्यों बताया.... वो वो खोद के निकल लेंगे......आंटी गन्दी है....नहीं वो नहीं बताएगी. आंटी आप ऊपर से कूद जाओ. आप हमारे पास आ जाओ.


अचानक वहां इतनी बुरी बदबू आने लगी की कोमल को वोमिट जैसा होने लगा. सर दर्द करने लगा. कोमल खुद खड़ी हो गई. उसका जी घबराने लगा. रेडिओ सेट पर डॉ रुस्तम call करने लगे.


डॉ : वापिस आ जाओ कोमल. प्लीज वापिस आ जाओ... कोमल.. क्या तुम मुजे सुन रही हो???


डॉ रुस्तम कोमल के खड़े होने से डर गए थे. कही वो ऊपर ना जाए. वैसे तो उनकी बैकअप टीम तैयार थी. कोमल उस रूम से बड़ी मुश्किल से निकली. डॉ रुस्तम डर रहे थे. लेकिन कोमल जब स्कूल से बहार निकली तो उनके फेस पर भी स्माइल आ गई. कोमल को अंदर घुटन हो रही थी. उसने बहार आते ही वोमिट कर दीं.

और निचे ही घुटनो के बल बैठ गई. उसके कपडे भी ख़राब हो गए. ये देख कर डॉ रुस्तम तुरंत कोमल की तरफ भागे. पर तब तक तो बलबीर पहोच गया था. वोमिट के बाद कोमल को अच्छा लग रहा था.


डॉ : जल्दी कोई पानी लाओ.


डॉ रुस्तम का एक टीम मेंबर जल्दी पानी की बोतल कोमल को देता है. कोमल ने पानी पिया. और अपने आप को साफ किया. वो हफ्ते हुए बलबीर को देखती है. फेस जैसे बहोत थकान नींद आ रही हो. कोमल ने हलकी सी स्माइल की.


कोमल : (स्माइल थकान) मै ठीक हु.


डॉ : मेने उन बच्चों की सारी बाते सुनी.


कोमल ने बलबीर को अपना हाथ दिया. उसने कोमल को खड़ा किया.


कोमल : आगे चलके बात करते है.


वो तीनो आगे आ गए. कोमल ने रेडिओ सेट और माइक्रोफोन बलबीर को दे दिया.


कोमल : मंदिर स्कूल के पीछे है. सारा वास्तु का लोचा है.


बलबीर पर पीछे तो कुछ नहीं है. बस थोड़ी सी जमीन उठी हुई है. वो तो पंडितजी का स्थान है.


कोमल : नहीं.. उसे खोदो. मंदिर निचे गाढ़ा हुआ है. और स्कूल के आगे की तरफ पंडित जी का स्थान है.


बलबीर : तुम क्या उल्टा बोल रही हो....


दोनों की बहस को डॉ रुस्तम सूलझाते है.


डॉ : एक मिनट एक मिनट. मंदिर और पंडितजी का स्थान अपनी जगह पर ही है. स्कूल उलटी बनी हुई है.


बलबीर : चलो मान लिया. पर मंदिर जमीन के अंदर कैसे जा सकता है????


डॉ : होता तो नहीं है. किसी ने करवाया है.


बलबीर : किसने???


डॉ रुस्तम ने कोमल की तरफ देखा.


कोमल : खुद बच्चों ने. लेकिन जरिया मुजे लगता है दिन दयाल भी है.


अब कोमल और डॉ साहब. जैसे चोर पकड़ लिया हो. कॉन्फिडेंस से एक दूसरे के सामने देखने लगे. कोमल अपनी वाकिली दिमाग़ और डॉ रुस्तम अपने तंत्र मन्त्र जीवन के तजुर्बे को बयान कर रहे हो. बलबीर बस बारी बारी दोनों के फेस को देखता रहा.


कोमल : (स्माइल) कितनी अजीब बात थी ना. दिन दयाल के घर अपने बाप का फोटो था. जिसपर हार चढ़ा रखा था. मगर मरे हुए बेटों के ना हार थे ना फोटो.


डॉ : मंदिर और किसी की समाधी कभी एक साथ नहीं होती. पंडित जी चाहते थे की मंदिर के सामने स्कूल हो.

ताकि मंदिर और सूरज की पॉजिटिव एनर्जी स्कूल पर पड़े. आगे मंदिर पीछे सूरज. पर एक एनर्जी को रोक दिया गया. वो था मंदिर. लेकिन उस जगह अब सिर्फ सूर्य की एनर्जी मिल रही है. जिसका टाइम फिक्स है. नतीजा स्कूल के पीछे की तरफ हमेशा कोई पॉजिटिव एनर्जी का प्रभाव नहीं होगा. नेगेटिविटी बढ़ानी है.


कोमल : आप ने उस बुढ़िया पर ध्यान दिया. जो घर के बहार आँगन मै खटिये पर पड़ी थी.


डॉ : ऐसा लग रहा था की उसे घर मे लाया ही नहीं जा रहा. लेकिन हमारे आते ही वो गालिया बोलने लगी. कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो हमें क्यों गालिया बक रही थी.


कोमल : वो गालिया हमें नहीं दिन दयाल को ही दे रही थी. कोर्ट मे ऐसे बूढ़ो का बयान मेने कई बार दर्ज करवाया है.


डॉ : मतलब की बुढ़िया हमें बताना चाह रही थी सायद.


कोमल : (स्माइल) बिलकुल... सही कहा.


डॉ : मतलब उसके घर जो भी आता वो अपने बेटे को गालिया देने लगती. वो सब के सामने अपने बेटे को शो करना चाहती थी. लेकिन बेचारी ज्यादा बूढी थी. इस लिए उसकी भाषा कोई समझ नहीं पता था.


कोमल : वो कहना चाहती थी की ये मादरचोद भी मिला हुआ है. उसका मेला बिस्तर, ऐसा लगा जैसे धुप चाव बेचारी वही पड़ी रहती है.


डॉ : उसका सिर्फ एक बेटा बचा हुआ है. बेटी इतनी कमजोर है की कब मर जाय पता नहीं. वो एक एनटीटी को अपने शरीर मे झेल रही है.


कोमल : कही ऐसा तो नहीं की अपने बेटे को बचाने वो अपने पुरे परिवार को कुर्बान कर रहा है. लगता है दिन दयाल को पंडितजी के नाम की दुकान भी बंद नहीं होने देनी.


डॉ : तभि पंडितजी ने मेरा नाम अड्रेस फोन नो दिन दयाल को नहीं बल्की मुखिया को दिया. सब के सामने दिया होगा. दिन दयाल तब कुछ नहीं कर पाएगा.


बलबीर : पर उस से मंदिर कैसे जुडा हुआ है.


डॉ : मदिर का काम चालू था. पंडितजी मंदिर बनवाना चाहते थे. मतलब की प्रण प्रतिष्ठा हुई नहीं. तो जब भी पंडितजी उसकी बेटी मे आते वो सबको बोलते होंगे मंदिर का काम पूरा करवाओ.


कोमल : लेकिन मंदिर बन गया तो पंडितजी की विश पूरी हो जाएगी. और वो सायद चले जाए. तो उनकी दुकान कौन चलाएगा. साले ने खुद ही मंदिर को छुपाया है..


डॉ : उसी के चलते तो बच्चों की एनटीटी को पावर मिल रहा है. स्कूल के पीछे की तरफ नेगेटिव एनर्जी अपने आप बन गई. सामने की तरफ मंदिर जो जमीन मे गाढ़ा हुआ है. अब एक बात और है. कोई भी सात्विक चीजों को जमीन मे गाढ देने से नेगेटिव एनर्जी को पावर मिलता है. यह सिद्ध शैतानी प्रोसेस है.


कोमल ने अपनी पजामी के पॉकेट से एक काला कपडे का गुड्डा निकला. जिसपर लाला धागा बंधा हुआ था..


कोमल : तो कही ऐसा तो नहीं की दिन दयाल ये सब करवा रहा हो.


डॉ : नहीं... ऐसा होता तो उसके घर मे कुछ तो तंत्र मन्त्र जैसा कुछ फील होता या सामान मिलता. उसकी बेवकूफी की वजह से सिर्फ नेगेटिव एनर्जी को पावर मिला है.


बलबीर : उसके बाप ने पैदा करी. और बेटे ने पाल पोश कर बड़ा किया.


कोमल : (स्माइल) वाह बलबीर तुम जल्दी समझ गए.


बलबीर : पर अब क्या करें???


डॉ : पहले उस मंदिर को खोद के निकलना होगा.


कोमल : पर अभी इस वक्त???


डॉ : हा अभी. हमें देर नहीं करनी चाहिये.


जो मंदिर स्कूल के आगे होना चाहिये था. वो स्कूल के पीछे था. जिस उठी हुई जमीन को सब पंडितजी का स्थान समझ रहे थे. वो ही वास्तव मे मंदिर था. डॉ रुस्तम ने अपनी टीम की मदद से वहां लाइट लगवाई. उस वक्त मजदूर मिल नहीं सकते थे. इस लिए टीम मेंबर को ही काम करना पड़ रहा था. टीम के पास औजार तो थे.

लेकिन मेंबर मे ऐसा कोई नहीं था जो मजदूरी करता हो. कुछ लड़के थे. जो नवीन वगेरा जो कैमरामैन और कुछ टेक्निकल वाले थे. जिन्होंने मजदूरी तो कभी नहीं की थी.. बाकि मोटे पेट वाले शहेरी थे. वही जवान लड़के खुदाई के लिए आगे आए.

और काम शुरू कर दिया. जमीन बहोत ठोस थी. और किसी को भी ठीक से खुदाई करते नहीं आ रहा था. बलबीर ये ठीक से समझ रहा था. क्यों की वो गांव का था. और किसानी करते ऐसे काम करने ही पड़ते है. बलबीर ने अपना शर्ट उतरा और कोमल को पकड़ाया.

वो जैसे ही खुदाई करने के लिए आगे आया कोमल के फेस पर स्माइल आ गई. बलबीर आया तो उसे सब देखने लगे. सायद खुदाई करने की सही तकनीक वो नहीं जानते थे. जब बलबीर ने फावड़ा चलाया तो सब को समझ आया. कुल 4 लोग खुदाई कर रहे थे.

बलबीर को खुदाई करते देख डॉ रुस्तम को महसूस हुआ की वो काम जल्दी कर लेगा. सभी बलबीर को कॉपी करने लगे. और उनसे भी खुदाई होने लगी. पर अचानक एक का औजार टूट गया. बलबीर ने उसकी तरफ देखा और मुश्कुराया..


बलबीर : (स्माइल)कोई बात नहीं. पहेली बार ऐसा होता है.


बलबीर वापस काम मे लगा. लेकिन उसका भी फावड़ा टूट गया. बलबीर हैरान रहे गया. कोमल भी उसे ही देख रही थी. पर तभि तीसरा और फिर तुरंत ही चौथा फावड़ा भी टूट गया. सभी हैरान थे. अभी तो जस्ट काम शुरू ही किया था.


डॉ : कोई बात नहीं. काम छोड़ दो पैकअप.


सभी ने काम छोड़ दिया. सब कुछ क्लोज होने लगा. कोमल बलबीर दोनों डॉ रुस्तम के पास आए.


बलबीर : डॉ साहब कुछ गड़बड़ है.


डॉ : अरे हमारे औजार पुराने थे. जो हम उसे भी नहीं करते कभी. ये तो किसी टेंट लगाने वगेरा के काम के लिए थे. लकड़ी गल गई होंगी. तभि तो हेंडल टूटे है. कल मुखिया से बोल कर खुदाई करवा देंगे. अभी तुम बस मे रेस्ट करो. आश्रम चलते है.


बलबीर का सक ख़तम नहीं हो रहा था. वो सभी आश्रम मे आ गए. रात के 3 बज चुके थे. सभी को थकान लग रही थी. और सभी को नींद आ रही थी. कोमल और बलबीर भी आश्रम के एक रूम मे ही थे. बलबीर तो सो चूका था. पर कोमल को नींद नहीं आ रही थी.

वो उस बच्चे के बारे मे ही सोच रही थी. जो उसे दिखाई दिया था. उसे बुलकर कही लेजा रहा था. अगर वो चली गई होती तो सायद जिन्दा ना होती. कोमल बलबीर के कंधे पर सर रखे ऐसे ही सोच मे डूबी हुई थी.

तभि उसे दाई माँ की याद आ गई. डॉ रुस्तम ने ही कहा था की दाई माँ कल आएगी. मतलब की सुबह. कोमल के फेस पर स्माइल आ गई. वो बलबीर को थोडा और जकड कर अपनी आंखे बंद कर लेती है.

तभि कोमल को सपना आता है. वही लड़का खड़ा है. और जोरो से हस रहा है. चारो तरफ सन्नाटा है. जिस से उस लड़के की हसीं गूंज रही है. हलका अंधेरा है. वो किसी तालाब के पास खड़ा है. और तालाब की तरफ ही देख रहा है. आस पास बाबुल के पेड़ है.

पर वो बच्चा तालाब की तरफ देख के हस रहा था. कोमल ने सपने मे देखा की कोमल तालाब के बीचो बिच है. और वो डूब रही है. वो बार बार ऊपर आने की कोसिस करती पर कोई फायदा नहीं होता. वो बच्चा कोमल को डूबते हुए देख हस रहा था.

तभि कोमल को घुटन होने लगी और वो एकदम से उठ गई. कोमल ने घड़ी देखि तो 4 बज रहे थे. कोमल पसीना पसीना हो गई. वो एक कपड़े से अपना पसीना पोछकर दोबारा लेट गई. उसे गर्मी लगने लगी. कोमल को डॉ रुस्तम की बात याद आई. कोई भी एनटीटी सुबह 4 बजे एक्टिव नहीं होती. कोमल को थोडा बेटर फील हुआ.

वो दोबारा आंखे बंद कर लेती है. उसे नींद आ गई. फिर कोमल को बहोत ही प्यारा सपना आया. वो घर पर सो रही है. कोमल सपने मे अपने आप को उसके बेडरूम मे सोते हुए साफ देख सकती थी. तभि उसके पास दाई माँ आई. वो उसके पास बैठ गई. और कोमल को गलो पर थपकी मार कर जगाने लगी.


दाई माँ : उठ जा लाली उठ जा. कितनो सोबेगी.
(उठ जा बेटा उठ जा. कितना सोएगी)


कोमल : (नींद मे) अममम माँ सोने दो ना.


बलबीर : अरे उठो यार. वो डॉ साहब बुला रहे है.


कोमल की एकदम से आंख खुली. पता चला की वो सपना देख रही थी. कोमल झट से उठकर बैठ गई.


बलबीर : ये लो चाय. जल्दी तैयार हो जाओ. हमें स्कूल वापस जाना है.


कोमल ने अपने मोबाइल मे टाइम देखा. सुबह के 7 बज रहे थे. वो फटाफट तैयार होने लगी. कोमल बस आधे घंटे मे ही तैयार हो चुकी थी. वो फटाफट बहार निकली. बस तैयार ही थी. सभी मिनी बस मे बैठे कोमल का ही इंतजार कर रहे थे. कोमल की नींद पूरी नहीं हुई ये बलबीर भी समझता था और डॉ रुस्तम भी. मगर कोमल का वहां होना अब जरुरी हो गया था. बस चल पड़ी. कोमल डॉ रुस्तम के पास ही आकर बैठ गई.


डॉ : मुखिया से बात हो गई है. उसने वहां खुदाई शुरू करवा दीं. और दिन दयाल भी वही है. बहोत डरा हुआ है.


कोमल : साला उसे इस केस मे अंदर भी नहीं करवा सकती.


डॉ : दाई माँ की ट्रैन भी स्टेशन पहोच गई. अब देखो वो यहाँ कब तक पहोचती है.


दाई माँ का नाम सुनकर वो बहोत ख़ुश हुई. कोमल ने सोच रखा था की वो इस बार दाई माँ को अपने साथ अपने घर लेकर ही जाएगी. बाते करते हुए वो आगे बढ़ रहे थे की कोमल को घने पेड़ो के बिच पानी की झलक दिखी.


कोमल : (सॉक) रोको रोको रोको...


बस तुरंत ही रुक गई.


डॉ : क्या हुआ???


पर कोमल कुछ बोली नहीं. और सीधा ही बस से उतार गई. डॉ रुस्तम बलबीर सारे ही हैरान थे.

.
मंदिर और स्कूल का नया खुलासा हुआ..
कोमल के बच्चों से मिलने के बाद...
 

motaalund

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Update 26B

बलवीर, डॉ रुस्तम, और नवीन भी उनके पीछे पीछे बस से उतर गए. कोमल पेड़ो के बिच से घुसने का रस्ता ढूढ़ने लगी. उसे पानी तो दिख रहा था. जैसे कोई नदी या तालाब हो.

मगर पेड़ो के कारण पूरा दिखाई नहीं दे रहा था. बलबीर समझ गया. उसे एक पगदंडी दिखाई दे गई.


बलबीर : कोमल यहाँ से.


कोमल ने बलबीर की तरफ देखा. और झट से उस तरफ आगे बढ़ गई. वो तीनो भी उसके पीछे थे. कोमल बस जरा सा आगे आकर रुक गई. और सॉक हो गई. वो वही तालाब था. जिसे उसने रात सपने मे देखा था. कोमल डूब रही थी. और वो बच्चा हस रहा था.


डॉ : क्या हुआ कोमल???


कोमल के फेस पर थोडा डर और सॉक से मुँह खुला हुआ. वो बोलते हुए थोडा हकला भी गई.


कोमल : वो वो....


कोमल तालाब की तरफ अपने आप से हिशारा कर रही थी.


बलबीर : अरे क्या हुआ बताओ तो.


कोमल : (घबराहट) मेने... मेने कल इस तालाब को सपने मे देखा.


डॉ रुस्तम को थोड़ी हैरानी हुई. क्यों की ना तो उसने कभी उस तालाब को देखा था. और ना ही कोमल ने. पर बलबीर थोडा हैरानी मे रहे गया. बीती शाम कोमल उस तालाब से थोडा ही दूर पहोची थी. और बलबीर ही कोमल के पीछे पीछे आते उसे आवाज दीं. वो नहीं आता तो सायद कोमल तालाब तक आ ही जाती.


बलबीर : और क्या देखा सपने मे.


कोमल जैसे होश मे आई. वो आस पास के नज़ारे को देखने लगी. वो तालाब एकदम शांत था. चारो तरफ पेड़ो से घिरा हुआ था. बस कही कही पशुओ को पानी पिलाने के लिए लाने की जगह बनी हुई थी.


कोमल : मेने सपने मे अपने आप को डूबते देखा. इसी तालाब मे.


ये सुनकर बलबीर और डॉ रुस्तम हैरान रहे गए.


डॉ : (सॉक) क्या सच मे?? तुमने यही देखा???


कोमल : हा मे वहां डूब रही थी. और वहां एक लड़का वहां खड़ा मुजे देख कर हस रहा था.


कोमल की बात से डॉ रुस्तम और बलबीर दोनों ही हिल गए.


डॉ : वो लड़का कितना बड़ा था.??


कोमल : कुछ पांच, छे साल का ही होगा. बच्चा ही था.


कोमल को याद आया की उसके पीछे दो बच्चों की आत्मा लगी हुई है.


कोमल : कही ये......


डॉ : बिलकुल.. स्कूल चलते है. हमरे पास वक्त है.


वो सब वापस बस मे बैठे और कुछ ही देर मे स्कूल पहोच गए. वो जैसे ही बस से निचे उतरे गांव के दो बुजुर्ग मर्द और मुखिया उनके पास आ गए.


डॉ : हा मुखिया जी. काम कहा तक पहोंचा????


मुखिया : काम हुआ हो तब ना. औजारों पे औजार टूट रहे है. पर मिट्टी खुद ही नहीं रही. ऐसे तो कभी हो नहीं सकता.


डॉ : आइये दिखाइये.


सभी स्कूल के पीछे की तरफ गए. जिसे पंडितजी का स्थान समझा जा रहा था. मंदिर वही होने का अनुमान लग चूका था. डॉ रुस्तम ही नहीं बलबीर कोमल सब हैरान गए. कई औजारों के दस्ते टूटे हुए थे.

कई औजारों का तो लोहा भी टूट चूका था. काम रुका हुआ था. बलबीर डॉ रुस्तम के पास आया.


बलबीर : मेने बोला था ना. ये मामला कुछ और है.


डॉ : हा तुम सही हो.


कोमल : फिर अब क्या करें???


डॉ : विधि करेंगे और क्या. पूजा करेंगे. उन बच्चों की आत्माओ को बांधेगे और फिर काम शुरू करेंगे. आओ..


सभी लोग स्कूल के आगे बस की तरफ चल दिये. तभि एक एम्बेसडर टैक्सी आती दिखाई दीं. सब की नजर उस टेक्सी पर ही गई. वो टेक्सी रुकी और टेक्सी का दरवाजा खुला.


कोमल : (स्माइल एक्साइड) दाई माँ.....


कोमल तो दौड़ पड़ी. और भाग कर सीधा दाई माँ को बाहो मे भर लिया. बलबीर भी देख कर खुश हो रहा था. दाई माँ भी कोमल के गलो को चूमते खूब लाड़ लड़ा रही थी. जब बलबीर दाई माँ के पास पहोंचा तो उन्होंने भी बलबीर को देखा.


बलबीर : (स्माइल) राम राम माँ..


दाई माँ : हा राम राम. चल ज्याए 700 रूपईया देदे.
(चल इसे 700 rs दे दे )


अब बलबीर के पास पैसे थे ही नहीं. ना उसके पास थे. ना कभी उसने कोमल से मांगे. वो हमेशा तो कोमल के साथ होता. कभी कोमल के साथ गया हो और कोमल कोर्ट या किसी मीटिंग मे हो तो वो बहार चाय की कितली या दुकान पर खाता पिता. कोमल आती और उसके पैसे पे कर देती. बलबीर कभी दाई माँ को देखता तो कभी कोमल को.


बलबीर : (मुँह खुला ) माँ.....


कोमल को हसीं आ गई.


कोमल : (स्माइल) कोई बात नहीं मै देती हु..


कोमल ने झट से पैसे निकले और टेक्सी ड्राइवर को दे दिए.


बलबीर हैरान था. क्यों की दाई माँ टैक्सी में आई थी. दाई माँ बलबीर को पट से गल पर एक थप्पड़ मार देती है. थप्पड़ तो हल्का था. पर आवाज पट से आई.


दाई माँ : हे बाबाड़चोदे छोड़िन ते पैसा दीबारों है.
(भोसड़ीके लड़की से पैसे दिलवा रहा है)


ये देख कर कोमल को बहोत जोरो से हसीं आई. बलबीर का फेस वाकई देखने लायक था.


दाई माँ : अब ऐसे मत देखे. मेरो सामान निकर ला गाड़ी मे ते.
( अब ऐसे मत देखें. मेरा सामान निकाल ले. गाड़ी में से.)


बलबीर तुरंत दाई माँ का सामान गाड़ी से निकालने लगा. दाई माँ कोमल के कंधे पर हाथ रखे डॉ रुस्तम के पास आई. डॉ रुस्तम दाई माँ को पूरी कहानी बताता है. डॉ रुस्तम हार एक बात को बड़ी बारीकी से बता रहा था. दाई माँ भी बड़े ध्यान से सुन रही थी. डॉ रुस्तम ने कोमल के साथ हुए आखरी किस्से को भी बता दिया.


दाई माँ : कोई बात ना हे. तू फिकर मत करें. ज्या तो मे अभाल ठीक कर दाऊँगी.
(कोई बात नहीं. तू फिक्र मत कर. ये तो मै अभी ठीक कर दूंगी )


दाई माँ घूमी और कोमल की तरफ देखने लगी. दाई माँ ने बड़े प्यार से कोमल के सर पर हाथ घुमाया.


दाई माँ : जा लाली. तू वाई बच्चन के पास बैठ जा.
(जा बेटी. तू वही बच्चों के पास बैठ जा)


कोमल : (सॉक) क्या वही क्लास मे???


दाई माँ : हा वाई सकुल के कलास मे जकड बैठ. और काउ हे जाए ठाडी मत भाइयो.
(हा वही स्कूल के क्लास मे जाकर बैठ. और कुछ हो जाए खड़ी मत होना )


दाई माँ ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा.


दाई माँ : रे बेटा रुस्तम. ज्याए बैठर वाउ.
(बेटा रुस्तम. इसे बैठा वहां )


दाई माँ कोमल को स्कूल के उस क्लास मे बैठने के किए डॉ रुस्तम को बोलती है. कोमल की फट गई थी. वो कभी दाई माँ तो कभी रुस्तम को देखती है. डॉ रुस्तम ने कोमल को जाने का हिसारा किया.

वो टीम मेंबर को बुलकर सेटअप लगवते है. ताकि कोमल को कोई खतरा हो तो बचा सके. दाई माँ ने ये फैसला क्यों लिया. ये डॉ रुस्तम ने पूछा तक नहीं. लेकिन बलबीर से रहा नहीं गया. डॉ रुस्तम भी उस वक्त दाई माँ के पास ही खड़े थे.


बलबीर : माँ.. उसे फिर क्यों भेज दिया. उसे कुछ हो गया तो??? कल भी उसकी हालत ख़राब हो गई थी.


दाई माँ : वाके पीछे दो बालक हते लाला. हम कछु करें वाए सब पतों लगे है. हम कछु कर के सारे बच्चन को बांध दिंगे. पर कोमर के पीछे जो दो हते बे बच लिंगे. फिर बड़ी परेशानी हे जाएगी. ज्याते बढ़िया कोमरे वही बैठर दो.
(उसके पीछे दो बच्चे है. हम कुछ करेंगे बाते करेंगे उन्हें सब पता चलेगा. हम कुछ कर के बच्चों को बांध देंगे तब भी कोमल के पीछे जो दो बच्चे लगे है वो बच जाएंगे. फिर और ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ेगी. इस से बढ़िया है कोमल को ही वहां बिठा दो.)


डॉ रुस्तम को दाई माँ के तंत्र मंत्र विधया के साथ बुद्धि का उपयोग सही लगा. कोमल स्कूल मे जाकर वही बैठ चुकी थी. उसे इस बार एयरफोन नहीं दिये गए. बस रेडिओ सेट दिया गया. कोमल को रात जैसा डर नहीं लग रहा ठा. क्यों की दिन का उजाला उस क्लास रूम मे आ रहा था. पर फिर भी कोमल को डर तो लग रहा था.

अंदर रात जितनी तो नहीं पर बदबू उसे फिर भी आ रही थी. हलकी हलकी घुटन भी महसूस होने लगी. डॉ रुस्तम ने रेडिओ सेट से कोमल से संपर्क किया.


डॉ : हेलो हेलो कोमल....


कोमल : हा मे कोमल बोल रही हु..


डॉ : कोई प्रॉब्लम हो तो call कर देना.


कोमल : ओके..


वही बहार दाई माँ ने लाल धागे तैयार कर लिए. और डॉ रुस्तम के टीम मेम्बरो को पकड़ने लगी. डॉ रुस्तम जानते थे की क्या करना है. उन्होंने स्कूल के चारो तरफ वो धागे बंधवा दिये. दरसल उन्होंने वो धागो के जरिये स्कूल के अंदर की जितनी भी एनटीटिस हो सबको स्कूल मे ही कैद कर लिया था. दाई माँ साथ मंतर भी बड़ बड़ा रही थी.


दाई माँ : अब काम शरू करो. कछु ना होएगो.
(अब काम शुरू करो. कुछ भी नहीं होगा)


डॉ रुस्तम ने काम शुरू करवा दिया. कोई प्रॉब्लम नहीं हो रही थी. बड़ी आसानी से मिट्टी खुद रही थी. लेकिन दाई माँ थी तामशिक विधया वाली. तामसिक विधया बहार धुप सूरज की रौशनी मे नहीं हो सकती.

वो अपने कंधे पर बंधे चादर के झोले को लेकर उसी स्कूल मे ही घुस गई. दाई माँ ने लाल धागे वाला खुद का प्रकोषण भी देखा. जो स्कूल के मेइन दरवाजे पर था. निचे की तरफ हर डोर हर विंडो पर ये लाल धागे बंधे हुए थे. दाई माँ स्कूल मे घुसकर दए बाए देखने लगी.

वो उसी क्लास को ढूढ़ रही थी. जिसमे छत गिरने से बच्चों की मौत हुई थी. कोमल भी तो उसी क्लास रूम मे अकेली बैठी डर रही थी. कोमल ने दरवाजे के उजाले मे हलका सा कलापन देखा.

जैसे कोई पड़च्चाई डोर की तरफ आ रही हो. डोर से बहार की तरफ से आ रहे उजाले से अगर कोई बिच मे आ जाए तो अचानक उतना अंधेरा छा जाता है. बस उतना ही अंधेरा हुआ था. और कोमल की डर से धड़कने तेज़ हो गई. लेकिन जब उस डोर पर दाई माँ को खड़ा देखा तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.


कोमल : (स्माइल एक्ससिटेड) माँ......


कोमल ने खड़े होकर फिर दाई माँ को बाहो मे लपक लिया.


दाई माँ : तोए का लगो लाली. तोए का मे अकेली छोड़ दाऊँगी.
(तुझे क्या लगा बेटी. मै तुझे अकेली छोड़ दूंगी.)


दाई माँ अंदर आकर दए बाए देखने लगी.


कोमल : माँ आप क्या कर रही हो.


दाई माँ ने अपना झोला रखा. अंदर हाथ डाल कर कुछ सरसो के दाने निकले. उसे मुट्ठी मे बंद कर के अपने मुँह के पास लाई. आंखे बंद किये कुछ मंतर पढ़ने लगी. कोमल ये सब हैरानी से देख रही थी.

फिर दाई माँ ने आंखे खोली और निचे झूक कर उन सरसो के दानो से एक गोला बनाया. दाई माँ ने कोमल को उस गोले की तरफ हिशारा किया.


दाई माँ : बैठ जा लाली ज्यामे. (बैठ जा बेटी इसमें )


कोमल तुरंत ही उस घेरे मे खड़ी हो गई. वो बैठना नहीं चाहती थी. कोमल दाई माँ की तरफ देखने लगी. दाई माँ ने कोई रिएक्शन नहीं दिया मतलब खड़े रहने से भी कोई आपत्ति नहीं है. दाई माँ निचे थोडा अँधेरे की तरफ अपना ताम झाम जचाने लगी. उनके सामान को देख कर कोमल हैरान थी. कई प्रकार की जड़ीबटिया.

कागज मे थोड़ी सी मिठाई, कुछ जानवर की हड्डिया, इन्शानि खोपड़ी, और एक हाथ की लम्बी हड्डी. दाई माँ ने एक छोटा सा मिरर भी निकला. उसे एक छोटे काले कपड़े से ढक दिया. और मंतर पढ़ने लगी.

जब दाई माँ मंतर पढ़ने लगी तो कोमल को एक साथ कई बच्चों के रोने की आवाजे आने लगी. हैरानी की बात ये थी की वो आवाजे खुद दाई माँ को भी नहीं आ रही थी. उसे सिर्फ कोमल ही सुन पा रही थी. दरसल कोमक ने दाई माँ को माँ शब्द कहे कर पुकारा.

बच्चों की एनटीटीस जब मरी. तब वो बच्चे थे. इसी लिए वो आत्माए बच्चों के फोम मे ही थी. और माँ वर्ड सुनकर वो भी माँ का नाम लेकर रो रहे थे. कोमल हैरानी से दाई माँ की तरफ देखती है.

दाई माँ को भले ही उन बच्चों की आवाज ना सुनाई दे रही हो. पर वो ये अच्छे से जानती थी की आस पास जो भी एनटीटीस होंगी. कोमल उनकी आवाज सुन पाएगी.


दाई माँ : घबडावे मत लाली. तोए कछु ना होवेगो.
(घबरा मत बेटी. तुझे कुछ नहीं होगा.)


दाई माँ ने बोलते हुए कोमल को वो मिरर दिया. जो काले कपडे से ढाका हुआ था. कोमल उस मिरर को हाथो मे लिए दाई माँ की तरफ देखती है. जैसे पूछ रही हो. इसका क्या करना है. मंतर पढ़ते हुए दाई माँ ने बस उस मिरर से कपड़ा हटाने का हिशारा किया.

दाई माँ लगातार मंतर पढ़ रही थी. उन बच्चों के रोने की आवज भी कोमल के कानो मे लगातार आ रही थी. कोमल ने पहले तो उस कपडे को हटाया. सामने उसे अपना ही चहेरा दिखा. मगर कोमल हैरान तब रहे गई जब उसे वही लड़का कोमल के पीछे एक कोने मे खड़ा दिखा.


कोमल ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा. उसे नरी आंख से तो कोई नहीं दिख रहा था. लेकिन वापस जब कोमल ने उस मिरर को ऊपर किया तो वो लड़का वही कोने मे खड़ा दिखा.

जो कोमल को ही देख रहा था. ये वही लड़का था. जो कोमल को आवाज मार कर आश्रम से ले गया था. तब बलवीर ने बचा लिया. उसके बाद कोमल के सपने मे आया था. कोमल तालाब मे डूब रही थी. और वो हस रहा था. कोमल बार बार उसे कभी मिरर मे देखती फिर पीछे मुड़कर उस कोने की तरफ देखती.

वो सिर्फ उस मिरर से ही नजर आ रहा था. ये बात कोमल को भी समझ आ गई. पर कोमल ने उसे सुनाई दे रही उन रोते हुए बच्चों की आवाज की तरफ ध्यान दिया. वो आवाज उसके खुद के पास सामने से आ रही थी. कोमल ने थोडा आइना टेढ़ा कर के देखा तो बहोत ही ज्यादा हैरान कर देने वाला नजारा था. कई सारे बच्चे निचे बैठे हुए रो रहे थे.

वो सभी बच्चे स्कूल के यूनिफार्म मे ही थे. किसी के सर पर चोट तो किसी के हाथ पाऊ पर चोट. कइ तो खून से बहोत ज्यादा लट पत थे. छत का मलवा गिरने से वो गंदे भी हो रखे थे. पर चहेरे की स्किन एकदम रूखी सफ़ेद सी लग रही थी.

ये नजारा देख के कोमल हैरान रहे गई. वो सारे बच्चे दाई माँ के सामने बैठे दाई माँ की तरफ देखते हुए रो रहे थे. वो अपने हाथो को दाई माँ की तरफ ही बहाए हुए थे. जैसे चाह रहे हो की कोई उन्हें गोद मे ले ले.

लेकिन सिर्फ एक ही बच्चा कोने मे खड़ा था. दाई माँ से दूर कोमल के पीछे की तरफ. एक कोने मे. ना तो वो रो रहा था. और ना ही हस रहा था. दाई माँ ने अपने झोले मे हाथ डाला. और मुट्ठी भर कर साकड़ निकली. और बच्चों की तरफ फेक दिया. कोमल ने सफ़ेद मिट्ठी साकड़ फर्श पर फैली हुई देखि. कोमल सोच मे पड़ गई.

दाई माँ ने वो साकड़ ऐसे क्यों फेकि. ये देखने के लिए कोमल ने आईने को वापस टेढ़ा कर के देखा. बच्चों के रोने की आवाज भी बंद हो चुकी थी. आईने मे साफ दिख रहा था की वो बच्चे उन साकड़ो को बिन बिन कर खा रहे है. साथ मे हस भी रहे है. लेकिन कोने मे खड़ा वो बच्चा नहीं आया. कोमल से रहा नहीं गया. और कोमल ने दाई माँ को हिशारा किया.


कोमल : माँ....


दाई माँ ने कोमल की तरफ देखा. कोमल ने दाई माँ को उस कोने की तरफ हिशारा किया. लेकिन वो लड़का वहां उस क्लास रूम से निकल कर तुरंत ही भाग गया. कोमल ने अब उस बच्चे के पहनावे पर ध्यान दिया. वो छोटी सी निक्कर पहने हुए था. और एक शर्ट. इन नहीं की थी. कपडे पुराने ही थे. और स्कूल यूनिफार्म भी नहीं था.

वो लड़के ने ना तो चप्पल पहनी हुई थी. और ना ही उसकी स्किन बाकि बच्चों की तरह सफ़ेद थी. दाई माँ ने कोमल को हाथ दिखाकर बस शांत रहने का हिशारा किया. झोले से दाई माँ ने एक मिट्टी का कुल्लाड़ निकला. और उसमे कुछ साकड़ डाल दी. कोमल ने उस आईने के बिना उस फर्श पर देखा तो एक भी साकड़ फर्श पर नहीं थी.

कोमल ने तुरंत ही आईने को टेढ़ा कर के वापस उन बच्चों को देखने की कोसिस की. वो बच्चे तो दाई माँ की तरफ बढ़ रहे थे. लेकिन ना जाने कहा से वहां धुँआ हो रहा था. धीरे धीरे वो धुँआ ज्यादा होने लगा. कोमल ने आइना हटाकर देखा तो उस रूम मे कोई धुँआ नहीं था.

पर वापस जब आईने के जरिये देखा तो धुँआ इतना डार्क हो चूका था की कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. धीरे धीरे वो धुँआ काम होने लगा. कोमल को आईने मे क्लास की हलकी झलक दिखी. और कुछ ही देर मे क्लास पूरा प्रोपर दिखने लगा. वहां अब कोई भी बच्चा नहीं था. कोमल ने हैरानी से आइना हटाकर दाई माँ की तरफ देखा.

दाई माँ उस मिट्टी के कुल्लड़ को एक काले कपडे मे लपेट कर. उसे एक लाल धागे से बांध रही थी. जिसे लोग नाड़ाछडी भी बोलते है. अमूमन पूजा पाठ मे काम आता है. दाई माँ ने उस कुल्लड़ को जैसे बच्चा पतंग की डोर का पिंडुल बनता है. वैसे लपेट रही थी.


दाई माँ : इनको तो हेगो. (इनका तो हो गया.)



वहां बहार डॉ रुस्तम को मंजिल मिल गई थी. वो मंदिर जमीन मे आधे से ज्यादा गाढ़ा हुआ था. और थोडा बहार था. मंदिर पूरा मिल चूका था. बस एक तकलीफ थी की उस मंदिर मे मूर्ति नहीं थी.
दाई माँ ने अपना काम पूरा किया...
अब कोमल उन बच्चों के खतरे से निकल चुकी है...
 

motaalund

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Update 26C


डॉ रुस्तम ने तुरंत कोमल को रेडिओ सेट पर call किया.


डॉ : हेलो हेलो कोमल???


कोमल : हा डॉ साहब. मे सुन रही हु.


डॉ : मंदिर मिल चूका है.


कोमल के फेस पर तुरंत स्माइल आ गई.


डॉ : लेकिन उसमे मूर्ति नहीं है.


दाई माँ : वा के काजे तो पंडितजी बुलानो पड़ेगो.
(उसके लिए तो पंडितजी को बुलाना पड़ेगा)


कोमल ने दाई माँ का मेसेज डॉ रुस्तम को बताने के लिए रेडिओ सेट का बॉटन प्रेस जरूर किया. पर वो रुक गई. जैसे उसे कुछ याद आया. वो दोबारा डॉ रुस्तम को call करती है.


कोमल : दिन दयाल कहा है???


वहां दिन दयाल को भी मुखिया ने पास मे बैठाया हुआ था. वो डरा हुआ हाथ जोड़े चुप चाप वहां बैठा था. मगर कोमल के call के बाद डॉ रुस्तम घूम के देखते है. दिन दयाल वहां नहीं था. डॉ रुस्तम भी सॉक हो गए. उन्होंने तुरंत रेडिओ सेट पर कोमल को बताया.


डॉ : वो यहाँ नहीं है. लगता है कही भाग गया.


कोमल : वो मूर्ति दिन दयाल के खटिये के निचे गाढ़ी हुई है.


कोमल का वाकिली दिमाग़ सीबीआई वालों से भी तेज़ चलने लगा था. बुढ़िया के गंदे बिस्तर और फीके कलर से ही पता चल रहा था की बुढ़िया की खटिया वहां से नहीं हटी. दिन दयाल धुप छाव सर्दी गर्मी हर वक्त क्यों बहार उसी जगह बुढ़िया को मरने छोड़ रखा था.

ताकि उस जगह को खाली ना रखा जाए. कोमल को तुरंत समझ आ गया. डॉ रुस्तम मुखिया की मदद से दिन दयाल के घर भीड़ लेकर पहोच गए. और वहां पहोचने पर कुछ अलग ही नजारा था.

दिन दयाल की माँ एक तरफ पड़ी हुई थी. वो हिल ही नहीं रही थी. हकीकत मे वो मर चुकी थी. खटिया एक तरफ उलटी पड़ी थी. बिछोना बिस्तर भी निचे बिखरा पड़ा था. दिन दयाल वहां गाढ़ा खोद रहा था. जो सब को देख कर रुक गया. और सब के सामने हाथ जोड़ कर रोने लगा. डॉ रुस्तम को पूरा सीन समझ आ गया.

जब मूर्ति तक बात पहोची तो दिन दयाल वहां से खिसक गया. क्यों की मूर्ति पंडितजी की आत्मा को बुलकर पूछ लिया जता. उस से पहले दिन दयाल मूर्ति वहां से गायब करना चाहता था. वहां स्कूल से दिन दयाल खिसक लिया. वो तेज़ी से भागते हुए अपने घर तक पहोंचा. उसने जिसपर उसकी माँ लेटी हुई थी. उस खटिये को उलट दिया. बुढ़िया बहोत ज्यादा ही बूढी बीमार थी.

वो उसी वक्त मर गई. दिन दयाल उस जगह से मूर्ति खोद कर निकालने लगा. लेकिन पकडे गया. गांव वाले हो रही मौतो से बहोत परेशान थे. और दिन दयाल पकडे जा चूका था. गांव वाले उसपर टूट पड़े. पर डॉ रुस्तम और मुखिया ने मिलकर उसे बचा लिया.

उस मूर्ति को जमीन से सलामत निकला गया. वो मूर्ति माता की थी. गांव वाले मूर्ति और दिन दयाल दोनों को लेकर स्कूल तक पहोचे. वहां स्कूल मे अब भी एक एनटीटी अब भी पकड़ मे नहीं आई थी. दाई माँ कोमल के साथ हुए हादसे को सुन चुकी थी. दाई माँ समझ चुकी थी की उस बच्चे की आत्मा बुरी तरह से कोमल के पीछे है.

भले ही वो कोमल के शरीर मे ना घुस पाई हो. पर पीछे पड़े होने के कारण वो कोई ना कोई हादसा करने की कोसिस करेंगी. और आत्माओ से बच्चे की आत्मा ज्यादा जिद्दी होती है. जल्दी पीछा नहीं छोड़ती. लेकिन ऐसी आत्माओ को पकड़ना और भी ज्यादा आसान है.

वो जो मौत देती है. एक बली होती है. अगर उन्हें बली दे डी जाए तो उस मुद्दे तक शांत हो जाती है. दाई माँ ने कोमल की तरफ हाथ बढ़ाया. कोमल समझ नहीं पाई. दाई माँ बस मंतर पढ़ते हुए कोमल की तरफ अपना हाथ बढ़ाए हुए थी. कोमल ने भी दाई माँ की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया.


कोमल : अह्ह्ह्ह ससससस...


दाई माँ ने झट से कोमल का हाथ पकड़ लिया. और दूसरे हाथ से एक चाकू निकल कर कोमल के हाथ पर कट मारा. कोमल के हाथ से खून तपकने लगा. दाई माँ ने कोमल का हाथ अपने एक हाथ से पकडे रखा और दूसरे हाथ से निचे एक मिट्टी का कुल्लड़ सेट किया.

कोमल का खून उस कुल्लड़ से टप टप तपकने लगा. दाई माँ तो लगातार मंत्रो का उच्चारण मन मे किये ही जा रही थी. किसी भी जीव को मरे बिना. इस तरह धोखे से खून निकला जाए. वो मृत्यु बली के सामान है. ये विधि तामसिक विधया मे शामिल है. इस से वो जीव की जान लिए बिना बली दी जाती है. दाई माँ ने मिरर की तरफ हिशारा किया.

कोमल ने झट से मिरर उठाकर देखने की कोसिस की. वो लड़का वही था. ये देख कर कोमल घबरा गई. कोमल ने फिर धुँआ देखा. पर जब धुँआ छटा वो लड़का वहां नहीं था. दाई माँ उस कुल्लाड़ को भी वैसे ही बांध देती है.


दाई माँ : अब तू आज़ाद हे लाली(बेटी).


दाई माँ ने कोमल के हाथ को खुद अपने हाथो मे लिया. और उसके हाथ मे एक लाल धागा बांध दिया.


दाई माँ : अब तू कुछ बोले बिना ज्या ते निकर जा.
(अब तू कुछ बोले बिना यहाँ से निकल जा)


कोमल बोलना चाहती थी. पर दाई माँ ने उसके मुँह पर अपना हाथ रख दिया.


दाई माँ : मेरो काम बाकि है लाली. तू जा तहा ते.
(मेरा काम बाकि है. तू जा यहाँ से.)


कोमल कुछ बोले बिना उस स्कूल से निकल गइ. पर बहार निकलते ही उसने गांव वालों की भीड़ आते देखि.



कितनी सफाई से दाई माँ ने कोमल का पीछा छुड़ा दिया...
 

motaalund

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Update 28A


कोमल जब उस स्कूल से बहार निकली उसे बहोत ही हलका महसूस हो रहा था. जैसे अंदर उसका दम घुट रहा हो. और बहार निकलते ही उसे सांस लेने मे आसानी हुई हो. कोमल बहार निककते हो हाफ रही थी.

तभि उसे कुछ आवाजे आई. लाठी पटकने की. कई लोगो के कदमो की. कोमल ने सर उठाकर देखा तो एक भीड़ उसकी तरफ ही चली आ रही थी. कोमल ने देखा की बिच मे सबसे आगे डॉ रुस्तम है.

उसके साथ मुखिया भी थे. पीछे कुछ लोग चले आ रहे थे. दो लोग दयाराम का पीछे से कुर्ते की कोलर पकड़ रखी थी. वो हाथ जोड़े रो रहा था. गिड़गिड़ा रहा था. पर वो दो मर्द उसे धक्का देकर वहां ला रहे थे.

वो सारे स्कूल के बहार खड़े हो गए. डॉ रुस्तम कोमल के पास आए. डॉ रुस्तम ने कोमल को स्माइल करते हुए देखा.


डॉ : (स्माइल) मूर्ति मिल गई.


कोमल हैरानी से कभी डॉ रुस्तम को देखती है. फिर भीड़ को. कोमल ने बारी बारी सबको देखा.


कोमल : (सॉक) कहा है???


उस भीड़ से कुछ लोग साइड हटे. और पीछे बैलगाड़ी खड़ी थी. जिसमे कुछ 3 फिट बड़ी पत्थर की माता की मूर्ति थी. कोमल के फेस पर भी स्माइल आ गई. आंखे बंद किये उसने राहत की शांस ली.


डॉ : दाई माँ कहा है??


कोमल : वो अंदर है. उन्होंने उन बच्चों को सायद बांध दिया है. पर वो बहार नहीं आई.


डॉ : सायद बहोत लोगो ने यहाँ सुसाइड एटम किया है. उन एंटिटीस से संपर्क कर रही हो.


कोमल : तो अब क्या करेंगे???


डॉ : माँ को आने दो. पंचायत लगेगी.


कोमल : बलबीर कहा है??


डॉ कुछ बोले नहीं बस स्माइल करते है. कोमल को एहसास हुआ की उसके बगल मे कोई खड़ा है. कोमल ने एकदम से बलबीर को देखा. और वो झपट के इसके बाहो मे चली गई.


बलबीर : अरे... क्या कर रही हो.... सब....


कोमल को हसीं आने लगी. बलबीर गांव का ही था. और वो लोग किसी गांव मे ही थे. इसी लिए बलबीर को शर्म आ रही थी.


डॉ : चलो हम उस पेड़ के निचे चलते है. जब तक दाई माँ नहीं आती.


दोपहर हो चुकी थी. और धुप तेज़ भी हो गई थी. वो लोग एक पेड़ के निचे चले गए. दिन दयाल को भी उन लोगो ने पकड़ के रखा. जब तक दाई माँ नहीं आई. दिन दयाल के रोने के कारण सब बहोत इरेट हुए. पर किसी को भी उस पर दया नहीं आ रही थी.

उल्टा सब तो उसे बिच बिच मे गालिया देते. कोई तो ज्यादा ही परेशान हो जता तो खड़े होकर दिन दयाल को एक थप्पड़ भी मर देता. दोपहर के दो बजे दाई माँ बहार निकली. उनके हाथो मे उनका वही झोला था. पर हाथो मे चार पांच लाल कपड़ो मे लटकाती हांडी.

वो बहोत छोटी छोटी ही थी. बलबीर तुरंत भाग कर दाई माँ के पास पहोंचा. दाई माँ ने उसे अपना झोला तो दिया. मगर वो हंडिया नहीं दी.बलवीर दाई माँ को उस पेड़ की छाव तक ले आया. डॉ रुस्तम का एक टीम मेंबर तुरंत दाई माँ के लिए प्लास्टिक चेयर ले आया.

दाई माँ को पानी दिया. पर उन्होंने लेने से इनकार कर दिया. दाई माँ ने थोड़ी शांस ली. पसीना पोछा. और अपने आप को ठीक किया.


दाई माँ : जे सारे सुन लो. जिन लोगन ने मरे भए को छू रखो है. बे सारे कछु खानो पिनो अभाल मत कर दीजो. मरे भए है बा की पनोती लगेगी.
(ये सारे सुन लो. जिन लोगो ने मरे हुए लोगो का कुछ भी छुआ है तो कुछ भी खाना पीना मत. मरे हुए है. उनकी पनोती लगेगी.)


बलबीर : माँ इस से वैसे कुछ होता है क्या???


दाई माँ : हम काउ के मरे मे जाए तब का घर मे घुसने ते पहले नीम के पत्तन बारे पानी ते हाथ मो ना धोते?? कुला ना करते. हमारे बड़े बूढ़ो ने जो रीवाज करो. बे पागल ना है. समझो करो.
(हम किसी के मरे मे जाते है. तो घर मे घुसने से पहले नीम के पत्तों वाले पानी से हाथ मुँह धोते है या नहीं. कुल्ला करते है या नहीं. हमारे बड़े बूढ़ो ने जो रीवाज किये है वो पागल नहीं है. समझा करो)


सभी दाई माँ की बात मान लेते है. वैसे उनके आने से पहले सभी पानी पी चुके थे. खुद डॉ रुस्तम भी. क्यों की गर्मी बहोत ज्यादा थी. और डॉ रुस्तम ये सब जानते भी थे. पर गर्मी की वजह से कुछ रियते लेनी ही पडती है. डॉ रुस्तम ने दिन दयाल की तरफ हाथ दिखाया.


डॉ : ये देखो माँ. यही है सारी फसाद की जड़.


दाई माँ ने दिन दयाल की तरफ देखा. जैसे सुने बिना ही वो कुछ समझ चुकी हो. दाई माँ ने अपना पाऊ हिलाकर अपनी चप्पल ढीली की.


दाई माँ : बेटा बलबीर जे मेइ चप्पल दीजो.
(बेटा बलबीर मेरी चप्पल देना जरा)


कोमल दाई माँ के पास मे थी. वो उठाने गई तो माँ ने उसे रोक दिया.


दाई माँ : ना चोरी. तू रिन दे. चोरी पाम ना छूती. पाप परेगो मोए.
(ना बेटी तू रहने दे. पाप पड़ेगा मुजे)


बलबीर ने माँ को उनकी चप्पल दी. मा थोड़ी बैठे बैठे ही घूमी. और पूरी ताकत से दिन दयाल को चप्पल मारी.


दाई माँ : बाबाड़ चोदे.... बली दाई ना तूने हे...(भयकार गुस्सा)
(भोसड़ीके बली दी ना तूने... हा...)


दाई माँ समझ गई की दिन दयाल ने अपना काम निकलवाने के लिए बली दी थी. दाई माँ बहोत गुस्से मे चिल्ला चिल्लाकर बोल रही थी.


दाई माँ : (गुस्सा चिल्लाकर) जे मदरचोद ने अपने दोनों छोरन की बली दी है.
(इस मादर चोद ने अपने बेटों की बली दी है.)


सभी सुनकर हैरान हो गए. दाई माँ ने फिर दिन दयाल की तरफ देखा.


दाई माँ : मदरचोद तोए पतोंउ हे कछु. जिनकी बली होते. बाए मुक्ति ना मिलती. तोए तो भोत पाप लगेगो. तेइ योनि पीछे चली गई.
(मदरचोद तुझे पता भी है कुछ. जिनकी बली होती है. उन्हें मुक्ति नहीं मिलती. तुझे तो पाप लगेगा. तेरी योनि पीछे चली गई. )


डॉ रुस्तम जानते थे की सब कुछ लोगो को समझ नहीं आएगा. इस लिए वो समझाते है.


डॉ : जैसे इसने अपने बेटों की बली दी. अब उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी. क्यों की उनकी आत्मा अब कैद हो गई है. हलाकि इसने बली किसे दी है.

ये विधि जानेंगे. उन्हें भी मुक्ति देने की विधि है. पर लोग ये नहीं जानते की हम अपना काम निकलवाने के लिए जो बली देते है. उस से हमारी योनि का स्तर गिर जता है. हम अपना काम तो निकलवा लेते है.

इंसान या जानवर किसी की भी बली देने से उनकी आत्माए उस चीज से हमेशा जुड़ जाती है. हमारा तो काम बन जता है. मगर हर चीज की एक कीमत होती है. हम जन्म लेते है. वो एक इंसान की योनि है.

ऐसे कीड़े मकोड़े कुत्ता बिल्ली कई योनि के बाद हमें इंसान की योनि मिलती है. हमें हमारे काम निकलवाने के बदले तो बली की कीमत चूका दी. पर बली की कीमत कौन चुकाएगा. उसके बदले हमारी योनि गिरा दी जाती है. बली देने वाला सबसे निचले स्तर पर चले जता है. तो किसी की बली देना महा पाप है.


कोमल और बलबीर को भी ये ज्ञान हुआ. वो भी ये सुनकर हैरान हुए. डॉ रुस्तम ने दिन दयाल की तरफ देखा.


डॉ : दिन दयाल. अब तो तुम पुरे पकडे गए हो. जो हमें नहीं पता था. वो भी माँ ने पकड़ लिया. अब बताओ क्या बात थी. जो तुम इतना निचे गिर गए.


दिन दयाल की भी आंखे खुली. जब उसने डॉ रुस्तम की पूरी बात सुनी. उसे उस पाप का एहसास भी हुआ. और नशा भी उतार गया.


दिन दयाल : आश्रम का पैसा मेरे पिताजी ने नहीं मेने चुराया था. क्यों की पिताजी सारा पैसा हमारे घर ही रखते थे. पर जब पैसा चोरी हो गया. ये उन्हें पता चली तो उन्हें दिल का दोरा आ गया. वो मर गए.

मै पैसे अपने पास छुपाए हुए था. कुछ दिन तो सब अच्छा चला. फिर मेरी बेटी मे पंडितजी आने लगे. मुजे समझाया. वो पैसे लौटा दे. पर मे नहीं मना. वो मुजे बार बार परेशान करते थे. मेने ये बात किसी को नहीं बताई.

मगर उस दिन जब स्कूल के बच्चे मरे उस दिन सब को पता चल गया की मेरी बेटी मे कुछ गड़बड़ है. मेने लोगो मे ज़ुट्ठी अफवाह उड़ा दी की मेरी बेटी माता है. सभी ने मान भी लिया. मगर पंडितजी ने मेरा जीना हराम कर दिया था. तभि मै एक बाबा से मिला. उन्हें मेने गांव मे भी बुलाया. और उन्होंने ही मुजे ये सलाह दी थी.


कोमल का चालक दिमाग़ दिन दयाल की चोरी पकड़ चुकी थी. उसे गड़बड़ साफ नजर आ गई.


कोमल : (गुस्सा) अबे ओय चूतिये.


सभी कोमल का ये रूप देख कर हैरान हो गए. बलबीर ने तो कोमल का हाथ पकड़ लिया. क्यों की बड़ो के बिच गांव के माहोल मे ऐसा बर्ताव बहोत ही गलत मना जता है.


कोमल : (गुस्सा) साले माँ ने तो चप्पल मारी है. मे तो पत्थर मरूंगी तुझे. मंदिर की मूर्ति क्या तेरे बाप ने गायब की थी???


बात तो सही थी. ये मुद्दा वाकेई सोचने लायक था. कोमल तो गुस्से मे गली देते हुए चिल्लाकर बोल रही थी. क्यों की कोर्ट मे तो संभल कर बोलना पड़ता था. वो भड़ास निकालने का मौका नहीं खोना चाहती थी.


कोमल : (गुस्सा) तू उस से पहेली बार नहीं मिला था. तू उस तांत्रिक से पहले भी मिला. नहीं तो मूर्ति गायब करने का आईडिया तुझे आता ही नहीं.


दाई माँ भी खुश हो गई. वो थोडा झूक कर कोमल की पिठ थप थपाते हुए उसे सबासी देती है. दिन दयाल दरसल अपने बेटों की हत्या के बारे मे नहीं बताना चाहता था..


दिन दयाल : मेरे मन मे लालच थी. मै उन्हें अपनी जवानी के वक्त तब मिला था.

जब मेरे दो ही बेटे थे. मेरा तीसरा बेटा और बेटी तब पैदा ही नहीं हुए थे. मुजे पूरा विश्वास था की पंडितजी के पास और भी धन होगा. पर ढूढ़ने से कुछ नहीं मिलता था. तब मै एक बार वाराणसी गया. वहां पहेली बार उस बाबा से मिला. मेने उन्हें सारी जानकारी सुनाई.

पर उन्हें धन का लालच ही नहीं था. उन्हें तो कुछ और चाहिये था. उस वक्त मंदिर तो बन चूका था. पर स्कूल नही बना था. मेरे पिताजी भी जिन्दा ही थे. पिताजी सोच सोच कर पागल हुए जा रहे थे की स्कूल कैसे बनाए. क्यों की सारा पैसा तो चोरी हो गया.

उन्हें नहीं पता थी की वो चोर मे ही हु. उस तांत्रिक से मेरी पहले ही बात हो चुकी थी. मेने ही पिताजी से कहा एक तांत्रिक है. वो यहाँ आएँगे. पंडितजी का छुपा हुआ बहोत सारा धन है. जो कही उनकी जमीन मे गाड़ा हुआ है. हम उनकी मदद से उसे ढूढ़ लेंगे.

हमारा काम हो जाएगा. स्कूल हम बना लेंगे. वो मान गए. एक रात वो तांत्रिक आया. किसी को पता नहीं चला. उस वक्त मे जवान था. उसने मंदिर देखा. और मंदिर के चारो तरफ घुमा.


तांत्रिक : मै ये स्कूल बनवाने के लिए खुद पैसा दे दूंगा. मगर उसके लिए ये मूर्ति मुजे चाहिये.


मै मान गया. उसने वो पैसे मुजे नहीं दिये. मेरे पिताजी को दिये. क्यों की सायद मुजे दिये होते तो आज भी मंदिर ना बनता. वो चले गया. स्कूल बन ने का काम शुरू हो गया. तब मेरे पिताजी ने मुजे ही वो काम सौपा.

मे उसमे से भी बहोत पैसे खा गया. वो तांत्रिक एक रात और आया. स्कूल का काम चालू था. रात हम दोनों ने मिलकर मूर्ति चोरी की. और वही दाढ़ दी मेरे ही घर. लेकिन उसके बाद हकात ठीक नहीं हुए.

और ज्यादा बिगड़ने लगे. पहले तो मेरे पिताजी को दिल का दोहरा आया. जिसमे मेरे पिताजी चल बसें. मेरी बीवी मर गई. मै फिर वापस बनारस गया. क्यों की ना तो मुजे कोई धन मिला और ना ही घर का भला हो रहा था. उस तांत्रिक ने मुजे बताया की ये सब पंडितजी कर रहे है. वो तेरे परिवार के सभी लोगो को बारी बारी ले जाएगा.


दाई माँ : जे वाने तोते झूठ कओ. (यह उसने झूठ कहा.)


दिन दयाल : हा उसने मुझसे झूठ ही बोला था. मेने उस से उपाय पूछा तो उसने कहा की तेरे दोनों बेटे तो बचेंगे नहीं. हा मै तुझे तेरी बीवी के पेट मे है. उसे बचा सकता हु.

मै उसकी बात मान ली. मुजे नहीं पता थी की वो झूठ बोल रहा है. उस रात वो फिर आया. उसने उसी स्कूल मे पूजा की. इसका पता किसी को नहीं था. मेने अपने दोनों बेटों को खुद चल कर आते देखा. वो मेरे सामने ही उसी स्कूल की छत से कूद गए.


बोलते हुए दिन दयाल रोने लगा. डॉ रुस्तम उसके पास गए. और इसे दिलासा दिया.


डॉ : उस तांत्रिक ने तुझे मुर्ख बनाया. और तेरे दोनों बेटों की जान ले ली. तेरे सामने ही तेरे दोनों बेटों की बली ले ली.


दिन दयाल : उसने कहा अगर अपनी बीवी और होने वाले बच्चों को बचाना है तो इस मंदिर को छुपाना होगा. उस रात मेने खुद अपने हाथो से खोद खोद कर उस मंदिर को छुपा दिया. उसने कहा की जब तक ये मूर्ति तेरे आंगन के जमीन मे दफ़न है तेरा परिवार बचे रहेगा.

मेने उसी डर से वो मूर्ति दोबारा कभी नहीं निकली. मेरे बाद मे एक बेटा और बेटी हुए. बेटा तो ठीक था. पर बेटी बहोत कमजोर थी. मेरी माँ ने मुजे समझाया. ये सब गलत मत कर. मुजे मेरी माँ की बात ठीक लगी.

उस रात मेने अपने घर के आँगन मे मूर्ति निकालने के लिए खुदाई शुरू की. पर उसी वक्त मेरी बीवी चल बसी. मा को उसी वक्त लकवा हो गया. मेने काम बंद किया. मुजे लग रहा था की ये सब मूर्ति वापस निकालने के चक्कर मे ही हो रहा है. मेने मूर्ति वापस दफना दी.

और मेरी बीमार माँ को उसपर ही बैठा दिया. वो वही पड़ी रहती. लेकिन बेटी मे फिर पंडितजी आने लगे.


डॉ : ये सब वो तांत्रिक कर रहा था. उसने बली ली तो उसे तू क्या कर रहा है सब पता चल रहा था. तुझे सिर्फ डराने के लिए उसने ऐसा किया. तेरी माँ के कुछ पुण्य रहे होंगे जो वो बच गई.


दिन दयाल : उसके बाद पंडितजी मेरी बेटी मे आने लगे. उन्होंने मुजे रुक जाने को कहा. पर मे तो उन्हें ही कारण समझ रहा था. पंडितजी ने ही लोगो की जान बचाने की कोसिस की. पर मे समझा ही नहीं. स्कूल की छत गिरने के बाद मुजे एहसास तो हो गया. पर अगर मूर्ति निकलता तो मेरा एक बेटा बचा है. वो भी मर जता.


डॉ : तो वो तांत्रिक कहा है अभी???


दिन दयाल : पता नहीं कहा है. मै वाराणसी गया था. मुजे वो घाट पर मिला नहीं.


दाई माँ : वाराणसी मतबल तो बो मानिकर्निका मे मिलेगो.
( वाराणसी का है तो मतलब वो मनिकारनिका घाट पे ही मिलेगा )



डॉ रुस्तम ने दाई माँ की तरफ देखा


डॉ : अब क्या करें दाई माँ???


दाई माँ : संजऊ जाकी बेटी के पास चलिंगे. फिर देखींगे का कारनो है. अभाल नहाओ धोऊ.
(शाम को इसकी बेटी के पास चलेंगे. फिर देखते है. इसका क्या करना है)


सभी वहां से चले गए. दाई माँ कोमल से क्या सभी से दूर रहती. दाई माँ ने कोमल को अपने से दूर रखने के लिए बलबीर को हिशारा कर दिया था. सभी लोग आश्रम मे आए. सभी लोगो ने नहाया धोया.

खाना पीना खाया. पर दाई माँ आश्रम के बहार ही एक पेड़ के निचे खटिया डाल के पड़ी रही. पेड़ पर ही दाई माँ ने उन हंडियो को टांगे रखा. शाम हुई. सभी लोग दिन दयाल के घर गए. वहां पूजा आरम्भ की.

पर दाई माँ नहीं गई. दिन दयाल के घर पर तंत्र पूजा हुई वहां दीनदयाल की बेटी मे पंडितजी की आत्मा आई. वो बहोत खुश थी. उन्होंने बताया की स्कूल को तोड़ कर फिर से बनाया जाए. वास्तु के हिसाब से.

मंदिर और मूर्ति का शुद्धिकरण हो. मूर्ति मंदिर मे पूरी विधि वश स्थापना हो. और बहोत बड़ा भंडारा करें. एक बड़ा यज्ञ किया जाए. इतना सब करने के लिए बहोत पैसे लगने थे. पंडितजी को बताया गया. पंडितजी ने बोला आप कार्य शुरू करो. सब अपने आप हो जाएगा.

अब बारी थी पंचायत की. जिसमे गांव वाले दान देने का फेशला किया. डॉ रुस्तम ने 1 लाख रूपय दान देने का वादा किया तो कोमल ने भी 1 लाख दान देने का वादा कर दिया. बलबीर के पास कुछ नहीं था. वो बेचारा चुप ही रहा. दिन दयाल अपने पाप का प्रश्चित करना चाहता था. मगर सजा तो उसे कटनी ही थी.

दिन दयाल को गांव की पंचायत ने हुक्का पानी बंद की सजा सुनाई. मतलब गांव मे अब कोई भी दिन दयाल के परिवार से कोई वास्ता नहीं रखेगा. और जल्द से जल्द गांव छोड़ देने की हिदायत दी.

ये गांव वालों की अच्छाई ही थी की जमीन मकान बिक्री करने के लिए वक्त दिया जा रहा था. डॉ रुस्तम ने पंचायत मे दाई माँ की तरफ से बताया. सारे बच्चे गांव के ही थे. वो सारो के पिंड दान के लिए वाराणसी चले. सा गांव के कई लोग जो मारे गए वहां पर जो गांव के ही थे.

उनके परिजन भी साथ चले. ताकि उनका पिंडदान हो जाए. और सभी की आत्माओं को शांति मिले. जो अनजान लोग थे. उनका पिंड दान वहां नहीं हो सकता था. उनके लिए गया बिहार जाना पड़ता है. डॉ रुस्तम कोमल बलबीर और बाकि कई उनके टीम मेंबर वापस आश्रम मे आए. सारी जानकारी दाई माँ को दी. और दूसरे दिन वाराणसी जाने का प्लान बन गया.








सावधानी का दूसरा नाम दाई माँ...
हर समय कोमल का ध्यान और किससे पाप लगेगा...
वो भी समझाया...
बहुत खूब...
 

motaalund

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Update 28B

वाराणसी जाने के लिए सुबह के 6 बजे 2 बस निकली. एक तो डॉ रुस्तम की टीम जिसमे दाई माँ कोमल और बलबीर भी शामिल थे.

और दूसरी बस मे गांव वाले. रस्ता भी ज्यादा नहीं कुछ 3 घंटे के आस पास का ही था. गांव से जो अपने बच्चों का या घर के सदस्य जो मर चुके थे.


उन लोगो की आत्मा की शांति के लिए उन हर घर से कोई ना कोई सदस्य उस बस मे था. दाई माँ और कोमल के सिवा कोई और लेडीज़ नहीं थी. दाई माँ अकेली एक शीट पर बैठी हुई थी.

उनके पीछे वाली शीट पर डॉ रुस्तम थे. और वो भी अकेले ही उस शीट पर थे. कोमल और बलबीर दोनों थोडा पीछे थे. कोमल जानती थी की दाई माँ उसे अपने से दूर क्यों रख रही है. पर इतने पास दाई माँ हो तो कोमल कैसे दूर रहे सकती है.

कोमल खड़ी हुई और डॉ रुस्तम के बगल मे बैठ गई. दाई माँ ने थोड़ी गर्दन घुमाकर कोमल को देखा. और फिर मुश्कुराने लगी.


दाई माँ : (स्माइल) जे छोरी मेरे बिना एक पल ना रहे सके.
(ये लड़की मेरे बिना एक पल नहीं रहे सकती.)


डॉ रुस्तम और कोमल दोनों ही मुश्कुराने लगे. बलबीर से भी रहा नहीं गया. और वो भी पास आ गया. दूसरी रो की सीट पर बस थोडा सा टिक के बैठ गया.


कोमल : माँ ये वास्तु से भी भुत प्रेत आ जाते है???


दाई माँ : रे डाक्टर बता याए. (डॉक्टर बता इसे )


डॉ : जिस यारह ग्रह नक्षत्र का प्रभाव हमारे जीवन मे पड़ता है. ठीक उसी तरह जमीन की भी अपनी एक एनर्जी होती है. और वही एनर्जी हमारे जीवन पे प्रभाव डालती है. जमीन हमेशा सब कुछ सोखती है. और एनर्जी बहार निकलती है. जैसे की ज्वालामुखी. वो एक आग है. कितनी एनर्जी हे उसमे. बीज डालो पेड़ पौधे. ऊपर की ओर ही तो बढ़ते है.


कोमल : लेकिन वास्तु का कैसे सम्बन्ध मतलब.....


डॉ रुस्तम समझ गए की कोमल जान ना क्या चाहती है.


डॉ : ये हम पर निर्भर है की हम उन्हें क्या देते है. क्या तुम्हारी जमीन के अंदर तुमने कुछ ऐसा तो नहीं डाला??? जिसे देख कर खुद तुम्हे घिर्णा आए. तो उस जमीन पर तुम्हे मिलने वाली एनर्जी मे बदलाव भी आएगा. जमीन पर ग्रहो का प्रभाव किस तरह गिरेगा. हम अगर हमारे जीवन को उसी तरह ढले तो हमारा जीवन अच्छा हो सकता है.

जैसे की घर की बनावट. जिस से जमीन की एनर्जी और ग्रहो की छाया. हमारे जीवन पर अलग अलग असर करेगी. हम कोसिस करें की दोनों का प्रभाव हम पर अच्छा ही हो. यही तो वास्तु है.

प्राकृति हमसे क्या चाहती है. हम से क्या उम्मीद करती है. हम क्या प्राकृति को दे रहे है. ये सब वास्तु है. और वास्तु कोई जादू नहीं है. ये एक साइंस है. फिजिक्स है. मैथमेटिक्स है. जिन्हे कई पढ़े लिखें जादू टोना मान कर अंधविश्वास समझते हैं.


कोमल : हम्म्म्म मे समझ गई.


डॉ रुस्तम एग्जांपल के लिए एक कहानी सुनाते हैं.


डॉ : दिल्ली के मेरे क्लाइंट है. महेंद्र छाबरा. कुछ उनकी ऐज 44 के आस पास की होंगी.

उनकी बीवी का नाम था आरती छावरा. वो कोई काम मुझसे पूछे बिना करते ही नहीं थे. जैसे की कोई नई प्रॉपर्टी लेना हो. कोई नया कंस्ट्रक्शन बहोत कुछ. हम तक़रीबन 10 सालो से साथ जुड़े थे.

कोई भी बात हो मुजे call कर देते. उनकी एक प्रॉब्लम भी. उनकी कोई औलाद ही नहीं थी. उनकी बीवी इसी वजह से उखड़ी उखड़ी रहती थी.

किसी काम मे उनका मन नहीं लगता था. छावरा जी को बस यही दुख था. पर मेरे पास इसका कोई उपाय नहीं. क्यों की उनका कोई औलाद का कोई योग ही नहीं था. बाकि काम मे वो मेरी मदद लेते ही थे.

वो अपनी बीवी के उखड़े उखड़े रवाइये से परेशान थे. एक तो उनके घर मे वो पति और पत्नी के आलावा कोई नहीं था. ऊपर से उनका घर बहोत बड़ा था. उन्हें एहसास हुआ की उन्हें कोई छोटा घर ले लेना चाहिये.

ताकि अपनी पत्नी को घर के कामों मे आसानी हो. उन्होंने रोहिणी सेक्टर मे एक फ्लेट देखा. जो उन्हें बहोत सस्ते मे मिल गया. उन्होंने घर का पूरा नक्शा मुजे भेजा. एग्जैक्ट लोकेशन भी बताइ.

मेने उसपर अध्यन किया. पंचाग की मदद से उन घर की भी कुंडली बनाई. अब घर का वास्तु और कुंडली ये बोल रही थी की घर मे जो भी रहेगा. हार 4 साल मे एक मृत्यु पक्का होंगी. उस घर के हिसाब से वहां कोई खुश नहीं रहे सकता. मेने चावरा साहब को call कर के बताया की उस घर का वास्तु बहोत ख़राब है.

वहां कोई खुश नहीं रहे सकता. छावरा साहब ने मेरी बात मान ली. मगर वो प्रॉपर्टी डीलर थे. वो फ्लेट सस्ता था. बहोत ही ज्यादा सस्ता. रहने के लिए नहीं बस प्रॉपर्टी बनाने के उदेश्य से उन्होंने वो घर खरीद लिया.

कुछ दिन बीते पर छावरा साहब परेशान हो गए. बाद अपनी बीवी की तकलीफो के कारण. उन्होंने एक जमीन खरीदी. कही गुड़गांव के पास. उसके बारे मे भी उन्होंने मुजे बताया ही था. मेने ही वो जल्द खरीदने की सलाह दी थी. पर उन्होंने वो जमीन खरीदने के लिए अपना घर( कोठी ) को बेच दिया. उनका अपना घर भी काफ़ी अच्छे दामों मे बिक रहा था. लेकिन पार्टी को वो घर जल्द से जल्द चाहिये था.

छावरा साहब ने सोचा की वो कुछ दिन रेंट पर कोई घर ले लेंगे. जब गुड़गांव की जमीन पर कंस्ट्रक्शन करवा कर बिल्डिंग बनवाएंगे. बाकी फ्लैट्स बिक्री कर देंगे. और उनमें से एक प्लेट में वह खुद रह लेंगे.

एकदम से छवरा साहब को रेंट पर मकान नहीं मिला तो वो कुछ दिन के लिए वही फ्लेट मे चले गए. जिस फ्लेट को मेने खरीदने से इनकार किया था. उन्हें ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ता ही वहां रहना था. पर वो कुछ 15 दिन से ज्यादा वहां रुक गए. एक दिन मुजे उनका call आया.


मै (डॉ) : हेलो छावरा साहब. कहिये कैसे याद किया???


महेन्द्र छावरा : अरे डॉ साहब नमस्ते. वो गुड़गांव वाली तो डील फाइनल हो गई. पर आपको मैं कुछ बताना चाहता हूं.


मै : जी कहिये???


छावरा : आप को याद है. आप को मेने कहा था की मै एक फ्लेट खरीद कर उसमे रहना चाहता हु. और आप ने उस फ्लेट को खरीदने से ही मना कर दिया था..


मै : हा मुजे याद है. वो घर बहोत मनहूस है. मेने तुम्हे वो घर खरीदने से भी मना किया था.


छावरा : पर मेने तो वो घर खरीद ही लिया था. और कुछ 15 दिनों से उस घर मे रहे भी रहा हु.


ये सुनकर मै हैरान रहे गया. उन्होंने अपनी सारी सिचवेशन बताई की उन्हें वो घर मे क्यों रहने जाना पड़ा.


मै : छावरा साहब. आपने गलती कर दी. वो घर खरीदना भी घाटे का सौदा है.


छावरा साहब ने जो कहा. वो सुनकर मै भी हैरान रहे गया.


छावरा : मगर डॉ साहब आप कहते हो की ये घर मनहूस है. और यहाँ पर कोई खुश नहीं रहे सकता. मगर हम 15 दिन से इसी घर मे है. और ये घर बहोत अच्छा है. मेरी बीवी को तो मेने इतना खुश कभी नहीं देखा. मै तो सोच रहा हु की लाइफ टाइम यही ही रुक जाऊ.


मुजे उनकी बात सुनकर हैरानी हुई. ये क्या?? मेरा वास्तु गलत हो सकता है?? मुजे भरोसा ही नहीं हो रहा था. पंचांग जमीन की कुंडली सब कुछ तो खिलाफ थे.


मै : छावरा साहब मै आप के घर आकर देखना चाहता हु??


छावरा : हा तो आ जाइये. आप से मिलने को तो मै हर वक्त तरसता ही रहता हु.


मुजे समझ नहीं आ रहा था की ये कैसे हो सकता है. ग्रह नक्षत्र कुंडली सारे जिसके खिलाफ हो. उस जमीन पर कोई कैसे खुश रहे सकता है. हो सकता है सायद मे गलत होउ. मेने फिर सब चेक किया. नेट पर उस जमीन का डाटा भी निकला. गोवर्मेंट साइड पर मुजे उस जमीन की हिस्ट्री भी मिल गई. और मे उसी शाम दिल्ली निकल गया.

महेंद्र छावरा साहब ही मुजे एयरपोर्ट रिसीव करने आए. मैं उनके साथ ही उनके घर गया. उनका फ्लेट 2nd फ्लोर पर ही था. आस पास बजी कई बल्डिंगे बनी हुई थी. वहां कई फ्लेट थे. जिस फ्लेट मे छावरा साहब अपनी बीवी के साथ रहे रहे थे. वो 8 मंज़िला बिल्डिंग थी.

जाब मै उनके घर मे घुसा और बैठा तो मेरे फेस पर अपने आप स्माइल आ गई. मेने बहोत अच्छा महसूस किया. तभि छावरा की बीवी आरती आई.


आरती : (स्माइल) अरे डॉ साहब. आप कब आए???


मै उन्हें देख कर हैरान था. पहेली बार उनके फेस पर मेने स्माइल देखि. मै उनसे पहले भी मिल चूका था. पर वो हमेशा उखड़ी उखड़ी रहती थी. चहेरा एकदम उदास. जैसे जीने की इच्छा ही ना हो.


मै : (स्माइल) बस अभी आया.


आरती : (स्माइल) मै आप के लिए चाय लेकर आती हु.


वो अंदर चली गई. मै खुद वहां खुश था. मुजे ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ की वहां कुछ हो सकता है. मै और छावरा बाते कर रहे थे. और थोड़ी देर मे आरती जी चाय लेकर आई. हमने साथ मे चाय पी.

तभि छावरा ने डिसाइड किया की हम डिनर बहार करेंगे. मै भी खुश हुआ. पर आरती जी बहार नहीं जाना चाहती थी. हमने उन्हें फोर्स नहीं किया. और छावरा और मै. हम दोनों ही बहार डिनर के लिए चल दिये..

पर घर के बहार आते मुजे झटका लगा. वो खुशियों भरा माहोल एकदम से गायब था. हम उनके फ्लेट से निकल कर लिफ्ट से निचे उतरे. तब मै अंदर क्या हो रहा था. उसपर गौर करने लगा.

मुजे सब धीरे धीरे याद आ रहा था. हम पार्किंगलोट पहोच गए और कार मे बैठ गए. मेने कार मे बैठ ते ही छावरा साहब से कुछ सवाल पूछे.


मै : छावरा साहब आप और भाभीजी के सिवा यहाँ घर मे कोई और भी है क्या???


छावला : नहीं तो. क्यों???


छावरा साहब थोडा सा हैरान हुए. जब आरती जी चाय बनाने अंदर गई. और हम बाते कर रहे थे. तब मेने आरती जी की आवाज सुनी. जो किचन से आ रही थी.


गुड्डी नई.... गुड्डी जल जाओगी ना.... बैठ जाओ ना मेरी प्यारी बची. साबास... वैरी गुड गर्ल...


जैसे आरतीजी किचन मे काम कर रही हो. और कोई छोटी बच्ची उनके साथ हो.. और वो उनसे बाते कर रही हो..


छावरा : डॉ साहब क्या हुआ आप कुछ पूछ रहे थे???


मै : वो.... मेने जब भाभी जी किचन मे थी तब मुजे ऐसा लगा की भाभी जी किसी बच्ची से बात कर रही हो. वो किसी गुड्डी नाम की लड़की को पुकार रही थी.


छावरा साहब हसने लगे.


छावरा : (स्माइल) अरे वो..... वो बस एक गुड़िया है. आरती हमेशा उस गुड़िया से बाते करती रहती है. जैसे वो कोई बच्चा हो. मै भी उसे नहीं रोकता. क्यों की आरती उस गुड़िया से ऐसे अकेले अकेले बाते कर के ख़ुश होती है. बेचारी कई सालो बाद हस रही है.


मेरे पास ऐसे बच्चों के खिलोने या सामान पर कई केस आ चुके थे. जिसमे उन सामान पर कोई जादू टोना कर के लोगो को दे देते. और लोग किसी ना किसी चीज से पजेश हो जाते.


मै : तो वो गुड़िया कहा से आई???


छावरा : जब हम यहाँ रहने आए थे. तब पुराने मकान मालिक का कुछ सामान पड़ा हुआ था. मेने बाकि सामान तो निकलवा दिया. लेकिन ये गुड़िया आरती ने रख ली.


मै ये सुनकर हैरान था. मै समझ नहीं पा रहा था की समस्या क्या है. हमने एक रेस्टोरेंट में डिनर किया. और वापस आ गया गए. मै सोचता रहा की घर के अंदर का माहोल और बहार के माहोल मे फर्क क्या है.

घर मे रहने से फेस पर स्माइल रहती है. एकदम मूड ऐसा की बस बैठे रहे. कोई माइंड पर दबाव नहीं. सब कुछ हैप्पी. लेकिन बहार निकलते ही सब कुछ नार्मल. लेकिन एक बात थी. की बहार निकलने के बाद उस घर मे वापस जाने को बहोत मन होता था. समझ नहीं आ रहा था क्यों. हम जब वापस आ रहे थे. मेने एक टोटका किया.

एकदम सात्विक टोटका. मेरा एक छोटा बैग हमेसा मेरे पास ही होता है. मेरे पास अभिमत्रित किया हुआ कपूर और लॉन्ग थी. मेने उसे एक कपडे मे लपेट कर अपने हाथ पर बांध दिया. मै छावरा के साथ वापस उसके घर आया. मुजे तब वहां एक बहोत बड़ा झटका लगा.

जब मै घर के डोर पर पहोंचा. और आरती जी ने जब डोर ओपन किया तो घर से बहोत बुरी बदबू आ रही थी. डोर ओपन होते ही बदबू का एक बापका सा लगा. मै समझ गया की यहाँ कोई नेगेटिव एनर्जी है.

क्यों की मेने जो अभिमत्रित कपूर और लॉन्ग धारण किया था. वो नेगेटिव एनर्जी का अभ्यास करवाती है. मेने और एक चीज नोट की. जब मे आया था. वो ख़ुशी वो हैप्पीनेस मुजे फिर नहीं मिली.

बल्की मुजे मनहूसियत महसूस हुई. मगर मेने किसी को भी ये सब के बारे मे आभास नही होने दिया. कुछ देर मेने उन दोनों के साथ बैठ कर बाते की. तभि उनके बेडरूम से कुछ गिरने की आवाज आई. छावरा ने तो ध्यान नहीं दिया. पर मेरा और आरती जी ने गर्दन घुमाकर तुरंत उस बेडरूम की तरफ देखा.


आरती : उफ्फ्फ... ये लड़की भी ना.


आरती जी तुरंत खड़ी हुई और बेडरूम मे चली गई. और उन्होंने जाते ही रूम बंद कर दिया. अंदर से आरती जी की आवाज मुजे सुनाई दे रही थी.


अरे मेरी बच्ची. क्यों गुस्सा कर रही हो. मै आ ही रही थी ना. फिकर मत करो. वो बूढा कल सुबह चले जाएगा. नहीं... बिलकुल नहीं. तुम ऐसा करोगी तो मै तुमसे बात नहीं करुँगी. इ लव यू ना बाबा.


ये सुनकर मै हैरान रहे गया. मुजे सिर्फ आरती जी की ही आवाज सुनाई दे रही थी. बिना सवाल के तो जवाब नहीं हो सकता. पर हैरानी छावरा को देख कर हो रही थी. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था.

या फिर उसे पता नहीं चलता था. ये भी हो सकता था की वो खुद भी किसी चीज से पजेश हो. कई बार पजेश हुवा हुआ व्यक्ति खुद भी एनटीटी का साथ देने लगता है. पर फिर भी मुजे आँखों से देख कर कन्फर्म भी करना था. मै रात गुजरने के लिए गेस्ट रूम मे चले गया.

वो 3BHK का ही फ्लेट था. मै रात देर हो गई. पर सो नहीं पा रहा था. तभि मुजे रात 1 बजे फिर आरती जी की आवाज आई. जैसे वो किसी बच्ची के साथ खेल रही हो.


मै यहाँ हु........ अरे अरे मुजे पकड़ लिया.


मुजे हैरानी हुई क्यों की इस बार मुजे किसी बच्ची के हसने की भी आवाज आई. मै ध्यान से सुन ने लगा.


अच्छा अब तुम छुपो. मै तुम्हे ढूढ़ लुंगी. वन.... टू......थ्री...


मै तुरंत खड़ा हुआ. और हलके से डोर खोला. मेने देखा आरती जी के फेस पर स्माइल थी. जैसे वो किसी को ढूढ़ रही हो. और दबे पाऊ चल रही थी. मेने तुरंत ही डोर धीमे से बंद कर लिया. नहीं तो उन्हें पता चल जता. मै उनकी आवाज बड़े ध्यान से सुनता रहा.


पकड़ लिया....... अब चलो. मै थक गई. पापा भी उठ जाएंगे. हम बैडरूम मे थोड़ी देर रेस्ट करते है.


मै आरती जी के कदमो की आहट सुन रहा था. कुछ वक्त बाद मै बहोत धीरे से डोर खोलकर बहार निकला. वो मुजे कही नहीं दिख रही थी. लेकिन उनके बेडरूम का डोर खुला हुआ था. मैं धीरे-धीरे बिना आवाज किए इसी तरफ बढा. और डोर से अंदर देखा तो हैरान रहे गया.

आरती जी अपने बेड पर पीछे दीवार से पीठ टेके बैठी हुई थी. छाबड़ा साहब उसके पास में ही सो रहे थे. आरती जी के गोद में एक डाल थी. उनके रूम में एक बड़ा मिरर भी था. जब मेने मिरर में देखा तो मुझे बहुत बड़ा झटका लगा. आरती जी के गोद में एक बच्ची बैठी हुई थी.

तकरीबन 4,5 साल की. और उसकी गोद में वो डाल थी. सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह थी कि वह बच्ची मुझे ही देखकर स्माइल कर रही थी. मैं तुरंत ही पीछे हट गया. और वापस रूम में आ गया.

उस रात में सो नहीं पाया. और सुबह होने का इंतजार करता रहा. सुबह हुई और मैं नहा धोकर वापस जाने के लिए रेडी हो गया. आरती जी मेरे साथ बहुत अच्छा बर्ताव कर रही थी. मुझे चाय नाश्ता दिया. बहुत अच्छे से ट्रीट किया. मुझे इन सबके लिए कोई सबूत चाहिए था.

जिससे मैं छावरा जी को सब बता सकूं. कि तुम्हारे घर में क्या हो रहा है. मैंने अपने मोबाइल में रिकॉर्डिंग चालू कर दी. मेरे जाने का वक्त हो गया. मैं जाने के लिए रेडी था. लेकिन जाते वक्त उन्होंने स्माइल करते हुए जो कहा. वो सुनकर मैं हैरान रह गया.


आरती : (स्माइल) बूढ़े दोबारा आया तो जान से मार डालूंगी.


हैरानी सिर्फ इतनी नहीं थी. आरती जी ने वो बात छवरा जी के सामने कहीं. और छावरा जी भी मुझे देखकर स्माइली कर रहे थे. मैं समझ नहीं पाया. क्या उन्हें कुछ पता नहीं चल रहा है. या वह भी यही चाहते हैं.



छावरा : (स्माइल) तो चले डॉक्टर साहब??
परेशानियों की जड़ में हमारा अपना हीं कुछ लालच होता है..
छावड़ा साहब भी इसी चक्कर के शिकार बनें..
 

motaalund

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Update 28C

मै छावरा जी के साथ निकल गया. नीचे आने के बाद हम कर में बैठे. और तब मैंने उन्हें बताया.


मै : छवरा जी आप जानते हो आपके घर में क्या हो रहा है??


छावरा : क्या???


मै : आप के घर मे एक बच्चे की आत्मा है. और आपकी बीवी उसके चपेट में है.


छावरा : क्या बात कर रहे हो डॉ साहब.


मै : क्या आप को अजीब नहीं लगता आप के घर का माहोल.


छावरा : मुझे तो घर का माहौल बहुत ही अच्छा लग रहा है. आप कह रहे थे कि यह घर मनहूस है. लेकिन ये घर आकर मुजे एहसास हुआ की ये घर ही मे मै खुश रहे सकता हु.


मै : क्यों की वो बच्ची की आत्मा ने उस घर के माहोल को वैसा बना रखा है. क्या आप को अभी वैसी ख़ुशी महसूस हो रही है..


छावरा भी ये सोचने लगा.


मै : क्या इस घर में आने के बाद आपकी कोई भी डील फाइनल हो पाई.


छावरा : (सोचते हुए ) नहीं..... जो है वो भी अटक गई.


मै : लेकिन फिर भी आप खुश हो सोचो.


छावरा की भी थोड़ी आंखे खुली..


छावरा : पर ये कैसे हो सकता है???


मै : छावरा साहब आप की बीवी किसी बच्चे से बाते करती है. ये आप ने भी नोट किया. और उन्हें बिलकुल पसंद नहीं आया जब मै आप के घर आया. ये सुनो.


मेने वो रिकॉर्डिंग छावरा साहब को सुनाई जिसमे हस्ते हस्ते आरती जी ने मुजे धमकी दी थी. बूढ़े अब वापस आया तो तुझे मर डालूंगी. छावरा साहब सुन कर हैरान हो गए. उन्होंने तुरंत कार रोक दी. उनके चेहरे का तो रंग ही उड़ गया. और मैं अपनी पूरी रिसर्च में सुनाई.


मै : आपके घर एक बच्चे की आत्मा है. वह घर का माहौल खुशियों से भरा रखती है. ताकि कोई उसे घर को छोड़ ना पाए. आरती जी भी उनकी चपेट में आ गई है. लेकिन वह घर मनहूस है. अगर आपने जल्द फैसला नहीं लिया. कुछ किया नहीं तो आप आरती जी को खो बैठोगे.


छावरा : मगर मेरी बीवी वहां खुश है. वो किसी को नुकसान तो नहीं पहुंचा रही. अगर वह उसके साथ है तो क्या प्रॉब्लम है.


मै : यही तो बात है छाबरा साहब. उस बच्चे की आत्मा को आरती जी अच्छी लगी. इस लिए वो उन्हें दिखाई दे रही है. आरती जी भी उस बच्चों की आत्मा से प्यार करने लगी है. क्योंकि वह एक औरत है.

और उनकी ममता उन्हें उसे बच्चों के करीब ला रही है. आने वाले वक्त में. वह बच्ची उन्हें मरने पर मजबूर कर देगी. ताकि आरती जी की आत्मा भी इस बच्चे की आत्मा से मिल जाए. इसके बाद आरती जी की आत्मा तुम्हें खींचने की कोशिश करेंगी. क्योंकि आरती जी आपसे प्यार करती है.


छावरा साहब ये सुनकर हैरान हो गए.


छावरा : (घबराहट ) आप क्या करूं डॉक्टर साहब??


मै : तुम उसे घर को अब छोड़ नहीं सकते. क्योंकि वह तुम्हें जाने नहीं देगी. ना ही आरती जी वहां से जाना चाहेगी. मुझे पहले पूरी तैयारी करनी है. जिसके लिए मुझे वक्त चाहिए.


मर्ज तो ढूंढ लिया...
अब बस इलाज बाकी है...
 

motaalund

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Update 29

अचानक बस रुकी. और सभी की आँखों मे जैसे सुकून आया हो. वो कुछ ढाई घंटे के सफर से ऊब चुके थे. लेकिन कोमल को तो एक नई रोमांचक कहानी ने कई चीजों को सोचने पर मजबूर कर दिया था. हलाकि डॉ साहब की वो कहानी अब भी अधूरी थी. दोनों बसो से सभी निचे उतरे. और उतारते ही धीरे धीरे सारो ने दाई माँ को घेर लिया.

जैसे जान ना चाहते हो की अब आगे क्या करना है. दाई माँ ने भी घूम कर सब को देखा. वाराणसी का घाट कोई छोटा घाट नहीं था. वो बहोत बड़ा घाट था. जहा हार वक्त कई लाशें जलती हुई होती है.

कई संस्थाए है जो यहाँ जन सेवा भी करती है. भीड़ घाट के बहार भी बहोत थी. इस लिए बस को थोड़ी दूर पार्क किया गया था. तभि दाई माँ की हिदायते शुरू हुई.


दाई माँ : जे सुन लो रे सबई. जे मरन को स्थान है. ज्या कोउ किसन ने भी निमंत्रण नहीं देगो. काउए कही अपय साथ ले चलो. और दूसरी बात. कोउ भी कोइये पीछे ते नहीं पुकारेगो. कोई तुम्हे पीछेते बुलावे तो कोई जवाब नहीं देगो. ना ही कोउ पीछे मुड़के देखेगो. जिन ने भी जरुरत होंगी वो खुदाई तुमए आगे आ जाएगो. समझ गए सभई????
(ये सारे सुन लो. ये मरे हुए लोगो का स्थान है. यहाँ कोई किसी को निमंत्रण नहीं देगा. कही किसी को तुम अपने साथ ले चलो. और दूसरी बात कोई भी किसी को भी पीछे से नहीं पुकारेगा. कोई तुम्हे पीछे से बुलाए तो कोई भी जवाब नहीं देगा. और नहीं कोई पीछे मुड़कर देकगेगा. जिसको तुम्हारी जरुरत होंगी. वो खुद ही आगे आ जाएगा. समझ गए सारे????)


दाई माँ का कहने का मतलब ये था की कोई भी किसी को निमंत्रण नहीं देगा. मतलब की आपस मे बाते करते कोई किसी को बोले चाल, आजा. वगेरा. क्यों की वहां मरे लोगो की आत्माए होती है. जो इन शब्दो को निमंत्रण समझ कर उनके साथ चलने लगती है.


वही कोई भी किसी को पीछे से नहीं पुकारेगा. क्यों की लोग तो अपने साथ आए लोगो को पुकारते है. जैसे ओय रुक जा, या रुकजा बेटी या बेटा, या किसी का नाम लेकर पुकार देते है. पर आत्मा एक ऐसी चीज होती है की वो अपनी लालच मे शरीर ढूढ़ती है.

या फिर साथ ढूढ़ती है. अब आत्माए जीवित व्यक्ति का भुत भविस्य भी बता सकती है. (उसका कारण कभी अपडेट मे आ जाएगा) इसी लिए आत्मा किसी भी अनजान व्यक्ति के नाम को पुकार लेती है.


किसी के गण कमजोर हुए या फिर संपर्क साधने वाले हुए तो वो व्यक्ति उस आत्मा से पुकारे नाम को सुन लेता है. और गलती से पीछे मुड़कर देखता है. आत्माए उसे भी निमंत्रण समज़ती है. और साथ चल पडती है. उसी लिए दाई माँ ने हिदायत दी थी.


दाई माँ चलने लगी और सारे ही उसके पीछे थे. वैसे तो मनिकारनिका घाट मुर्दो का स्थान था. पर वहां सभी को बड़ी ही पॉजिटिव वाइब्स आ रही थी. जैसे वो कोई शमशान मे नहीं किसी मंदिर मे आए हो.

दाई माँ के पीछे वो सारे घाट के अंदर गए. घाट मे जाने से पहले ही उन्हें बड़ा द्वार भी मिल गया. गंगा नदी के किनारे पर घाट पक्का था. सीढिया बनी हुई थी. जगह जगह लोग पूजा करवा रहे थे. लोहे के पोल से घेरे हुए खुले केबिन थे. जिसमे चिताए जल रही थी.

घाट की खासियत ये थी की वहां हर वक्त कोई ना कोई चिताए जल रही होती थी. वहां बहोत सारे कई प्रकार के साधुए भी थे. कोई भक्ति मे लीन था तो कोई पूजा मे. दाई माँ ने थोड़ी दुरी पर एक मंदिर की तरफ हिशारा किया.


दाई माँ : बाबा मशान नाथ.


दाई माँ का कहने का मतलब ये था की वो मंदिर बाबा मशान नाथ का मंदिर है. सभी ने मंदिर की तरफ हाथ जोड़े. दाई माँ आगे चाल पड़ी. सभी उनके पीछे चल रहे थे. कोमल और बलबीर दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकडे हुए था. कोमल तो ऐसे चल रही थी. जैसे वो बलबीर के साथ इश्क लड़ाने किसी गार्डन मे आई हो. एक हाथ बलबीर का पकड़ा हुआ था. और दूसरे हाथ से अपने चहेरे पर आ रही जुल्फों को हटा ती बलबीर को स्माइल करते देख रही थी.

वो कैसे किसी को बताती की उसके कानो मे जैसे कोई वीणा बज रही हो. कोई शास्त्र संगीत सुनाई दे रहा हो. बलबीर का ध्यान तो कोमल पर नहीं था. मगर कोमल के फेस पर एक नटखट स्माइल थी. तभि उसे पीछे से किसी ने पुकारा. जिसे सुनकर कोमल के फेस से वो स्माइल चली गई.


पलकेश : कोमल......


कोमल तुरंत आगे देखने लगी. और बलबीर का हाथ कश के पकड़ लिया. पर बलबीर को समझ नहीं आया. कोमल ने दाई माँ की हिदायत का पूरा खयाल रखा. बस पांच कदम ही और आगे गए होंगे की एक बाबा दाई माँ के आगे आ गया.


बाबा : हे माँ..... एक बीड़ी पिलादे माँ.


वो बाबा ने एक लंगोट पहनी हुई थी बस. उसके बदन पर जैसे रख मली हुई हो. बहोत सारी गले मे रुद्राक्ष की माला पहनी हुई थी. बड़ी लम्बी दाढ़ी थी. देखने से ही वो बड़ा दरवाना लग रहा था. दाई माँ रुक गई. उस साधु को देख कर बलबीर तुरंत ही बहोत धीमे से बोला.


बलबीर : नागा साधु.


डॉ रुस्तम उसकी ये बात सुन गए. और बलबीर और कोमल की तरफ देखा.


डॉ : (स्माइल) नागा नहीं ये अघोरी है.


कोमल : (सॉक) क्या वो दोनों अलग अलग होते है.


डॉ : हा नागा अलग है. अघोरी अलग है. ओघड़ अलग है. कपाली अलग है. मै इस बारे मे तुम्हे एक किताब दूंगा.


कोमल इन अजीब शब्दो को सुनकर बड़ी हेरत मे थी. वही दाई माँ और वो साधु दोनों सीढ़ियों पर ही बैठ गए. साथ आए गांव के एक बुजुर्ग को दाई माँ ने 500 का नोट दिया.


दाई माँ : जा रे. कोई सबन के काजे चाय ले आओ.
(जा सबके लिए चाय लेकर आओ)


दाई माँ और वो अघोरी साधु बात करने लगे. साधुओ का भी एक समाज होता है. कोनसे वक्त मे कोनसा साधु कहा भटक चूका है. ये उनके समाज को जान ने मे कोई परेशानी नहीं होती. बिच मे चाय भी आ गई. सभी ने चाय पी. और चाय पीते पीते अघोरी और साधु बात करते रहे. कुछ मिंटो(मिनट) बाद दाई माँ और वो साधु खड़े हुए.


दाई माँ : तुम नेक देर जई बैठो. मै आय रई हु. पतों लग गो. बो बाबा को हतो.
(कुछ देर आप सब यही बैठो. मै आ रही हु. पता लग गया की वो बाबा कौन है.)


दाई माँ और वो अघोरी बाबा वहां से चले गए.


डॉ : वो अघोरी माँ को अपने अखाड़े मे लेजा रहे है.


कोमल : माँ की सब रेस्पेक्ट करते हे ना.


डॉ : (स्माइल) दाई माँ एक कपाली है. और कपाली इन सब पे भरी होती है.


बलबीर : ऐसा क्यों मतलब....


डॉ : एक वक्त ऐसा आया की भोलेनाथ ने सारे तंत्र को रोक दिया. बस नहीं रोका वो था नारी तंत्र. दाई माँ ने कपाली तंत्र मयोंग मे सीखा. और 11 सिद्धिया भी हासिल की. उन्होंने माशान वाशीनी के सारे रूपों को सिद्ध किया हुआ है. वो जब चेहरे तब शमशान जगा सकती है. जब चाहे शमशान सुला सकती है.


डॉ रुस्तम दाई माँ के बारे मे बोलते हुए बहोत गर्व महसूस कर रहा था.


कोमल : वाओ.... पर ये मयोंग कहा है???


डॉ : मयोंग मतलब माया नगरी. ये भीम की पत्नी हेडम्बा की नगरी है. आशाम मे कामख्या माता के करीब. वहां का काला जादू बहोत खतरनाक है. बड़े बड़े साधु तांत्रिक भी मयोंग जाने से डरते है. वहां सिर्फ औरते ही जादू करती है. कहते है की वो जिस मरद को पसंद करने लगे. या दुश्मनी निकालनी हो तों वहां की औरते उन मर्दो को कुत्ता बिल्ली बन्दर बनाकर अपने पास रख लेती है. बहोत खतरनाक है ये कपाली तंत्र.


कोमल : मतलब को अघोरी, नागा, ये सब अलग अलग तंत्र है.


डॉ रुस्तम : नागा भोले के हार रूप की भक्ति करते है. ये अपने मे मस्त रहते है. जब की अघोरी तंत्र मे माशान नाथ के बाल स्वरुप की भक्ति होती है. बस इन दोनों मे समानता है तों बस एक. जिस तरह एक बच्चा.

जिसे समझ नहीं होती. वो अपनी ही लैटरिंग पेशाब कर देता है. और अनजाने मे उसी मे हाथ दे देता है. ये उस हद तक की भक्ति करते है. मतलब दुनिया दरी से अनजान भी और बेपरवाह भी.

जब की अघोड तंत्र मे सम्पूर्ण मशण नाथ की भक्तो होती है. लेकिन कपाली तंत्र की तों बात ही अलग है. जब ये कपलिनी समसान जगती है. और माशान वासिनी बाल खोल कर नाचती है तों भुत प्रेत कई कोसो दूर भाग जाते है.


कोमल : मतलब सबसे पवरफुल होती है ये???


डॉ : भगवान हो या इंसान. चलती तों बीवी की ही है. कपाली तंत्र मे एक रूप मे माशाण नाथ बाल रूप मे माशाण वासिनी के चरणों मे है. एक मे दोनों पूर्ण अवस्था मे दोनों का समागम है. वही हम इन्हे सात्विक रूप मे पूजते है तों शिव शक्ति के रूप की पूजा है.


कोमल को तों काफ़ी कुछ समझ आया. लेकिन बलबीर के तों सब ऊपर से गया.


कोमल : इन तंत्रो से होता क्या है.


डॉ : मैंने सिर्फ तंत्रो के टाइटल बताएं है. ये अंदर तों बहोत डीप है.


कुछ पल माहोल शांत रहा. कोमल सोच रही थी की उसने जो पलकेश की आवाज सुनी. वो बताए या नहीं. कोमल से रहा नहीं गया और उसने बता ही दिया.


कोमल : मम मुजे किसी ने पीछे से पुकारा था.


डॉ रुस्तम हेरत से कोमल की तरफ देखते है. बलबीर भी ये सुनकर हैरान रहे गया.


कोमल : वो पलकेश की आवाज थी.


डॉ रुस्तम ने एक लम्बी शांस ली.


डॉ : वो पलकेश नहीं था.


कोमल भी बेसे ही हैरानी से डॉ रुस्तम की तरफ देखा.


डॉ : यहाँ सिर्फ वही आत्मा होती है. जिनका सब यहाँ जल रहा होता है. ये बहोत पवित्र स्थान है. दूसरी आत्मा यहाँ नहीं आ सकती. अब मेने पहले ही कहा था की एक आत्मा तुम्हारा पास्ट फयुचर जान सकती है. इसी लिए उसने तुम्हे पलकेंस की आवाज मे पुकारा.


कोमल सॉक जरूर हुई. पर उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया. तभि दाई माँ और उस अघोरी साधु के साथ कुछ साधु और थे. जब दाई माँ उस अघोरी साधु के साथ उसके अखाड़े मे गई. तब वो अघोरियो के मुख्य गुरु से मिली. दाई माँ ने सारी बात बताई. तंत्र साधना करने वालो से कुछ छुपाना मुश्किल है. एक अघोरी खुद ही आगे आ गया. और उसने कबूला के वो ही था जो वहां आकर दिन दयाल से मिला था. दरसल उसे उन बच्चों के सब चाहिये थे.

जिसपर बैठकर वो एक मरण साधना कर सके. जिसके लिए उसने दिन दयाल को स्कूल बनाने लायक पुरे पैसे दिये थे. लेकिन दिन दयाल ने वो पैसा आधे से ज्यादा खा लिया. साथ ही उस अघोरी साधु की एक पुस्तक चोरी की. जिसमे एक बंधक साधना तंत्र का ज्ञान था.

उस समय वो साधु पूरी तरह से अघोरी नहीं बना था. वो सिद्धि हाशिल कर रहा था. इस लिए उस अघोरी को पता नहीं चला. दिन दयाल ने तों बंधक तंत्र को पढ़कर अपना कार्य शुरू किया. और मंदिर की सात्विकता मतलब भगवान को ही बंधक बनाने लगा.

जो इल्जाम मुझपर लगाए जा रहे है. की मेने उसके बेटों की बली ली. ये सरासर गलत है. बंधक साधना मे उस दिन दयाल ने ही बली दी थी. लेजिन विधि के अनुसार जिस तरह से बंधक बनाया जता है. मंदिर उस तरह से बंधक नहीं हुआ. क्यों की वहां एक पंडित की आत्मा थी. जिसके कारण उसका कार्य हमेशा से ही रुकता रहा???

दाई माँ ने पूछा की वो बंधक तंत्र की किताब कहा है. ताब उस अघोरी साधु ने बताया की मेने उसे मजबूर कर दिया. और वो खुद ही मुजे यहाँ आकर वो किताब दे गया. दाई माँ ने उस अघोरी को कपाली साधना की धमकी भी दी. पर वो अपने वचन से नहीं फिरा.

सबको विश्वास हो गया की वो अघोरी झूठ नहीं बोल रहा. अघोरी गुरु ने उस शिष्य अघोरी को सारी आत्माओ की मुक्ति करावाने की सजा दी. जिसके लिए वो तैयार भी हो गया. एक शांति पूजा करवाना वो भी भटकती हुई आत्माओ की. इतना भी आसान नहीं होता.

एक स्वस्थ सात्विक विधि भी होती है. जिसके लिए एक महा पंडित की जरुरत होती है. महा पंडित वो होता है. जो मरे हुए के लोगो की शांति पूजा करवाता है. अग्नि दह संस्कार करवाता है. उसके आलावा मरे हुए लोगो की आत्मा लम्बे वक्त से भटकती है. उनके जीवित रहते और मरने के पश्चायत पाप मुक्ति दोष को भी ख़तम करवाना होता है.

पर इसमें तामशिक विधि केवल जीवित रहते और मरने के बाद बाकि कोई दोष हो. उसे ख़तम करना होता है. यह कम ज़्यादातर चांडाल के जरिये करवाया जता है. मतलब की चांडाल से परमिशन लेनी होती है की घाट पर उन आत्माओ को बुलाने की परमिसन.

पर चांडाल वो व्यक्ति होते है जो शमशान में रहते हैं. चिता जलाने का कम अस्थिया चुकने का काम. लड़किया आदि बहोत कुछ होता है. एक अघोरी बन ने से पहले चांडाल बन ना पड़ता है. कई सालो तक 24 घंटे वो समसान मे ही रहते है. उस अघोरी साधु ने सब कार्य सिद्ध करवाए. जिसमे बहोत वक्त लग गया. तक़रीबन 12 बज चुके थे.

अस्थिया वित्सर्जन नहीं था. नहीं तों बनारस जाना पड़ता. दाई माँ ने गांव वालों को वापस जाने की हिदायत दी. और दाई माँ कोमल के पास आई. दोनों ही एक दूसरे को बड़े प्यार से देख रहे थे. दोनों के फेस पर स्माइल थी. दाई माँ ये जानती थी की कोमल उसे अपने साथ लेजाना चाहती है. मगर उनके पास अब भी 4 ऐसी आत्माए थी.

जो लावारिश थी. अनजान लोगो का पिंडदान केवल गया मे ही होता है. बाकि की आत्माओ के परिजन नाम पता थे. जिन्हे बाकि जीवन उस समसान मे रहने की परमिसन मिल गई थी. लेकिन वो चार आत्माए जिनका आता पता नहीं था. उन्हें गया बिहार लेजाना था. तभि वो अघोरी आया और दाई माँ के सामने खड़ा हो गया.


अघोरी : ला दे माँ. अपनी बेटी की इच्छा पूरी कर दे. तेरा ये बेटा इतना तों लायक है जो इस जिम्मे को सही से कर सके.


दाई माँ ने उस अघोरी की तरफ देखा. उसने बाकि सारे कार्य तों पुरे कर दिये. लेकिन उसपर भरोसा करना मुश्किल भी था. पर दाई माँ उस से इम्प्रेस हुई. क्यों की वो मस्तिका तंत्र अच्छे से जानता था. वो दाई माँ और कोमल दोनों के मन को पढ़ चूका था.


दाई माँ : याद रखोयो लाला. जे तूने कछु बदमाशी करी. तों बाकि जीवन तेरो चप्पल खा के गुजरेगो.
(याद रखना बेटा अगर तूने बदमाशी की तों तेरा बाकि जीवन चप्पल खा कर गुजरेगा )


अघोरी : माँ माशाण नाथ की कसम. तेरा बेटा अपना वचन निभाएगा माँ. भरोसा रख. माँ कपलिनी की इच्छा इस दास की इच्छा.


दाई माँ ने तुरंत वो हांडी उस अघोरी को दे दी.





नागा और अघोरी अलग-अलग होते हैं..
शायद क्या अंतर है इसका कुछ खुलासा...
 
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motaalund

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अपडेट अच्छा तो था ही अलग भी था।

पहली बात सूचना से भरपूर, लेकिन यह नहीं लग रहा था की जबरदस्ती ज्ञान दिया जा रहा है। वह कहानी के प्रवाह में था और नागा साधू से जो बात शुरू हुयी तो अघोरी, कापालिक तक पहुंची और सबसे बड़ी बात यह की ये पाठकों को इन साधनाओं के बारे में जानने के लिए उत्सुकता जगायेगा। पैरा नॉर्मल, घोस्ट बस्टर या इस तरह की बातें हर सभ्यता और संस्कृति में थीं और हैं लेकिन तंत्र के ये जिन आयामों की आपने चर्चा की किस्से के जरिये, यह पूरी तरह भारतीय संस्कृति और इतिहास से जुड़े हैं और अनेक धाराओं का उनमे संगम होता रहा।

दूसरी बात, जो इस कहानी में बार बार दिखती है कम शब्दों में दृश्यबंध बांधना, मणिकर्णिका का आपने कुछ शब्दों में दृश्य खिंच दिया। सच में वहां पहुँच कर लगता है मृत्यु जीवन का ही हिस्सा है, जैसे पूर्ण विराम के बिना वाक्य पूरा नहीं होता, और उसे उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए। रंगभरी एकादशी (आमलकी) के दूसरे दिन बाबा विश्वनाथ जी के गौना होता है ऐसी मान्यता है इस दिन बाबा मसान होली खेलते हैं जो कि काशी में मणिकर्णिका एवं हरिश्चन्द्र धाट के अतिरिक्त पूरे विश्व में अन्यत्र और कहीं नहीं मनाया जाता है| होली जो जीवंतता का पर्व है और मसान जो जीवन के अंत को स्वीकारता है दोनों का अद्भुत मिलान और महाकाल, वह काल जिसमे सब कुछ समा जाता है और बनारस जहाँ के कबीर ने कहा था, साधो यह मुर्दो का देस। सब मरेंगे, सूर्य चंद्र, देवता, सब उसी काल में समायेंगे। और आप के दृश्य मन के पंछी को कहँ कहाँ उड़ा के ले जाते हैं मैं ही समझ सकती हूँ।

तीसरी बात दाई माँ के माध्यम से लोक विश्वास, पीछे मुड़ के न देखना, हर बार यह कहा जाता है लेकिन उसके पीछे का बोध, अतीत को छोड़ के भविष्य की ओर बढ़ना, बस चलते रहना, पीछे जो है मोह है जो बांधता है, रोकता है



और दाई माँ का जो चरित्र आपने गढ़ा है, बरसों तक याद किया जाएगा। बेलौस, निस्पृह, निश्छल बच्चों ऐसी सरल, ज्ञान से भरपूर लेकिन अहंकार से दूर

तंत्र का जो रूप इसमें है वह काफी कुछ व्यवहारिक पक्ष है जो परिवार में, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक, उनके डेरे में गुरु से शिष्य तक और एक दुसरे के पास भी,

पर इसके साथ इसका एक सूक्ष्म पक्ष है पूरी तरह एकेडेमिक, आप में से बहुतो ने नाम सुना होगा शायद उनकी पुस्तकें पढ़ी भी होंगी,

जॉन वुड्रॉफ़ ( १८६५-१९३६), उन्नीसवीं शताब्दी में उन्होंने तंत्र से जुडी अनेक पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद किया और वैसे तो कलकत्ता हाईकोर्ट में जज थे बाद में चीफ जस्टिस बने और ऑक्सफोर्ड में लॉ पढ़ाते थे, लेकिन संस्कृत का उनका ज्ञान अद्भुत था। उन्होंने महा निर्वाण तन्त्रम का अंग्रेजी में अनुवाद किया और हम में से जो लोग संस्कृत नहीं समझते ( में एकदम नहीं जानती ) वो अंग्रेजी में इस पुस्तक को पढ़ सकते हैं जिसका मैं लिंक दे रही हूँ। उसी तरह देवी की स्तुतियां, जो तंत्र में हैं, पुराणों में हैं उसका भी उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद किया।


परम्परा में कितनी धाराएं कब कैसे मिलीं कहना मुश्किल है लेकिन तो आज हम टोने टोटके, जादू की बात करते हैं उसके बीज रूप अथरववेद में देखे जा सकते हैं। जैसे उत्तर में भक्ति काल में वैष्णव् परम्परा मजबूत हुयी उसी तरह पूरब में शाक्त परम्परा जिसका तंत्र पर बहुत असर पड़ा। और इसलिए लिए उड़ीसा, बंगाल और आसाम में यह अभी भी समृद्ध रूप में है। बुद्ध के अनुयायियों में वज्रयान परपंरा ने भी तंत्र को विकसित किया।

अंत में कुछ बातें कापालिक परंपरा के बारे में,

कापालिक एक तांत्रिक शैव सम्प्रदाय था जो अपुराणीय था। इन्होने भैरव तंत्र तथा कौल तंत्र की रचना की। कापालिक संप्रदाय पाशुपत या शैव संप्रदाय का वह अंग है जिसमें वामाचार अपने चरम रूप में पाया जाता है। कापालिक संप्रदाय के अंतर्गत नकुलीश या लकुशीश को पाशुपत मत का प्रवर्तक माना जाता है। लेकिन कापालिक मत में प्रचलित साधनाएँ बहुत कुछ वज्रयानी साधनाओं में गृहीत हैं। यह कहना कठिन है कि कापालिक संप्रदाय का उद्भव मूलत: व्रजयानी परंपराओं से हुआ अथवा शैव या नाथ संप्रदाय से। यक्ष-देव-परंपरा के देवताओं और साधनाओं का सीधा प्रभाव शैव और बौद्ध कापालिकों पर पड़ा क्योंकि तीनों में ही प्राय: कई देवता समान गुण, धर्म और स्वभाव के हैं। 'चर्याचर्यविनिश्चय' की टीका में एक श्लोक आया है जिसमें प्राणी को वज्रधर कहा गया है और जगत् की स्त्रियों को स्त्री-जन-साध्य होने के कारण यह साधना कापालिक कही गई।

बौद्ध संप्रदाय में सहजयान और वज्रयान में भी स्त्रीसाहचर्य की अनिवार्यता स्वीकार की गई है और बौद्ध साधक अपने को 'कपाली' कहते थे (चर्यापद ११, चर्या-गीत-कोश; बागची)। प्राचीन साहित्य (जैसे मालतीमाधव) में कपालकुंडला और अघारेघंट का उल्लेख आया है।

और इसी के साथ कौलाचार भी जुड़ा है। सौंदर्य लहरी के भाष्यकार लक्ष्मीधर ने 41वें श्लोक की व्याख्या में कौलों के दो अवान्तर भेदों का निर्देश किया है। उनके अनुसार पूर्वकौल श्री चक्र के भीतर स्थित योनि की पूजा करते हैं; उत्तरकौल सुंदरी तरुणी के प्रत्यक्ष योनि के पूजक हैं और अन्य मकारों का भी प्रत्यक्ष प्रयोग करते हैं। उत्तरकौलों के इन कुत्सापूर्ण अनुष्ठानों के कारण कौलाचार वामाचार के नाम से अभिहित होने लगा और जनसाधारण की विरक्ति तथा अवहेलना का भाजन बना। कौलाचार के इस उत्तरकालीन रूप पर तिब्बती तंत्र का भी असर पड़ा।



लेकिन यह सब बाते सिर्फ किताबी हैं, इन कहानियों के जरिये जो इन के लोक विशवास के और व्यवहारिक पक्षों से आप हमें परिचित करा रही हैं वह अद्भुत है।
आप ज्ञान का भंडार हैं..
 
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