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Horror किस्से अनहोनियों के

Shetan

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Another amazing Story

Bachpan main aisi bhoot pret ki kahaniyon ki kitabe aati thi, aap wahi nostalgia wapas la diya

Amazing Mam
Thankyou very very much. Aage ke 2 kisse kafi darvane hai. Aage badho to jarur padhna. Thankyou very very much.
 

komaalrani

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Shetan

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Thankyou so much komalji. Kal tak aap ke shaher Banaras pahoch jaungi. Maha kumbh ke lie nikli hu.
 

RED Ashoka

Writer
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Update 1

कोमल चौधरी वैसे तो अहमदाबाद की रहने वाली थी. पर उसका परिवार यूपी आगरा के पास का था. बाप दादा अहमदाबाद आकर बस गए. कोमल ने अपनी लौ की पढ़ाई अहमदाबाद से ही की थी. कोमल के पिता नरेंद्र चौधरी का देहांत हो चूका था. उसकी माँ जयश्री चौधरी के आलावा उसकी 2 बहने भी थी. दूसरी अपनी माँ के साथ रहकर ही आरोनोटिक इंजीनियरिंग कर रही थी. कोमल के पति पलकेंस एक बिज़नेसमेन थे. दोनों अहमदाबाद मे ही रहे रहे थे.

कोमल जहा 28 साल की थी. वही पलकेंस 29 साल का नौजवान था. कोमल का कोई भाई नहीं था. इस लिए कोमल अपनी मायके के पास की ही कॉलोनी मे अपना घर खरीद रखा था. ताकि अपनी माँ की जरुरत पड़ने पर मदद कर सके. कोमल अहमदाबाद मे ही वकीलात कर रही थी. आगरा मे अपनी चचेरी बहन की शादी के लिए कोमल अहमदाबाद से आगरा निकल पड़ी. फ्लाइट मे बैठे बैठे वो हॉरर स्टोरी पढ़ रही थी. कोमल को भूतिया किस्से पढ़ना बहोत पसंद था. वो जानती थी की अपने गाउ जाते ही उसे दाई माँ से बहोत सारे भूतिया किस्से सुन ने को जरूर मिलेंगे. कोमल का परिवार पहले से ही आगरा पहोच चूका था.

उसके पति पलकेंस विदेश मे होने के कारण शादी मे शामिल नहीं हो सकते थे. आगरा एयरपोर्ट पर कोमल को रिसीव करने के लिए उसके चाचा आए हुए थे.आगरा एयरपोर्ट से निकलते ही कोमल अपने चाचा के साथ अपने गाउ ह्रदया पहोच गई. जो आगरा से 40 किलोमीटर दूर था. वो अपने चाचा नारायण चोधरी, अपनी चाची रूपा. अपने चचेरे भई सनी और खास अपनी चचेरी बहन नेहा से मिली. सब बहोत खुश थे. कोमल के चाचा पेशे से किसान थे. चाची उसकी माँ की तरह ही हाउसवाइफ थी. सनी कॉलेज 1st ईयर मे था.

नेहा की ग्रेजुशन कम्प्लीट हो चुकी थी. नेहा की शादी मे शामिल होने के लिए कोमल और उसका परिवार आगरा आए हुए थे. कोमल परिवार मे सब से मिली. सब बहोत खुश थे. पर उसे सबसे खास जिस से मिलना था. वो थी गाउ की दाई माँ. दाई माँ का नाम तो उस वक्त कोई नहीं जनता था. उम्र से बहोत बूढी दाई माँ को सब दाई माँ के नाम से ही जानते थे. इनकी उम्र तकिरीबन 70 पार कर चुकी थी. सब नोरमल होते ही कोमल ने नेहा से पूछ ही लिया.


कोमल : नेहा दाई माँ केसी हे???


नेहा : (स्माइल) हम्म्म्म... मे सोच ही रही थी. तू आते ही उनका पूछेगी. पर वो यहाँ हे नहीं. पास के गाउ गई हे. वो परसो शादी मे ही लोटेगी.


कोमल ने बस स्माइल ही की. पर उसका मन दाई माँ से मिलने को मचल रहा था. कोमल शादी की बची हुई सारी रस्मो मे शामिल हुई. महेंदी संगीत सब के बाद शादी का दिन भी आ गया. जिसका कोमल को बेसब्री से इंतजार था. शादी का नहीं. बल्कि दाई माँ का. शादी शुरू हो गई. पर कोमल को कही भी दाई माँ नहीं दिखी. कोमल निराश हो गई. सायद दाई माँ आई ही नहीं. ऐसा सोचते वो बस नेहा के फेरे देखने लगी. मंडप मे पंडित के आलावा अपने होने वाले जीजा और नेहा को फेरे लेते देखते हुए मुर्ज़ाए चहेरे से बस उनपर फूल फेक रही थी. तभी अचानक कोमल की नजर सीधा दाई माँ से ही टकराई. शादी का मंडप घर के आंगन मे ही था.

और आंगन मे ही नीम के पेड़ के सहारे दाई माँ बैठी हुई गौर से नेहा को फेरे लेती हुई देख रही थी. कोमल दाई माँ से बहोत प्यार करती थी. वो अपने आप को रोक ही नहीं पाई. और सीधा दाई माँ के पास पहोच गई.


कोमल : लो दाई माँ. मुझे आए 2 दिन हो गए. और आप अब दिख रही हो.


दाई माँ अपनी जगह से खड़ी हुई. और कोमल के कानो के पास अपना मुँह लेजाकर बड़ी धीमे से बोली.


दाई माँ : ससस... दो मिनट डट जा लाली. तोए एक खेल दिखाऊ.
(दो मिनट रुक जा. तुझे एक खेल दिखाती हु.)


दाई माँ धीरे धीरे मंडप के एकदम करीब चली गई. बिलकुल नेहा और उसके होने वाले पति के करीब. दाई माँ के फेस पर स्माइल थी. जैसे नेहा के लिए प्यार उमड़ रहा हो. फेरे लेते नेहा और दाई माँ दोनों की नजरें भी मिली. जैसे ही फेरे लेते नेहा दाई माँ के पास से गुजरी. दाई माँ ने नेहा पर ज़पटा मारा. सारे हैरान हो गए. नेहा के सर का पल्लू लटक कर निचे गिर गया. दाई माँ ने नेहा के पीछे से बाल ही पकड़ लिए. नेहा दर्द से जैसे मचल गई हो.


नेहा : अह्ह्ह ससस.... दाई माँ ससस... ये क्या कर रही हो.. ससस... छोडो मुझे... अह्ह्ह... ससससस दर्द हो रहा है.


सभी देखते रहे गए. किसी को मामला समझ ही नहीं आया. कोमल भी ये सब देख रही थी.


दाई माँ : अरे.... ऐसे कैसे छोड़ दाऊ बाबडचोदी(देहाती गाली ). तू जे बता. को हे तू... कहा से आई है.
(अरे ऐसे कैसे छोड़ दू हरामजादी. तू ये बता कौन है तू?? कहा से आई है)


सभी हैरान तब रहे गए. जब गाउ की बेटी दुल्हनिया नेहा की आवाज मे बदलाव हुआ.


नेहा : अह्ह्ह... ससससस तुम क्या बोल रही हो दाई माँ. (बदली आवाज) छोड़... छोड़ साली बुढ़िया छोड़.


सभी हैरान रहे गए. कइयों के तो रोंगटे खड़े हो गए. सब को समझ आ गया की नेहा मे कोई और है. दाई माँ ने तुरंत आदेश दिया.


दाई माँ : जल्दी अगरबत्ती पजारों(जलाओ) सुई लाओ कोई पेनी.
(जल्दी कोई अगरबत्ती जलाओ. सुई लाओ कोई तीखी)


नेहा बदली हुई आवाज मे छट पटती रही. लेकिन पीछे से दाई माँ ने उसे छोड़ा नहीं.


नेहा : (बदली आवाज) छोड़ साली बुढ़िया. तू मुझे जानती नहीं है.


दाई माँ ने कस के नेहा के बाल खींचे.


दाई माँ : री बाबडचोदी तू मोए(मुझे) ना जाने. पर तू को हे. जे तो तू खुद ही बताबेगी.
(रे हरामजादी. तू मुजे नहीं जानती. पर तू कौन है. ये तो तू खुद ही बताएगी.)


जैसे गाउ के लोग ये सब पहले भी देख चुके हो. जहा दाई माँ हो. वहां ऐसे केस आते ही रहते थे. गाउ वालों को पता ही होता था ऐसे वख्त पर करना क्या हे. गाउ की एक औरत जिसकी उम्र कोमल की मम्मी जयश्री से ज्यादा ही लग रही थी. वो आगे आई और नेहा की खुली बाह पर जलती हुई अगरबत्ती चिपका देती हे. नेहा दर्द से हल्का सा छट पटाई. और अपनी खुद की आवाज मे रोते हुए मिन्नतें करने लगी.


नेहा : अह्ह्ह... ससससस दर्द हो रहा हे. ये आप लोग मेरे साथ क्या कर रहे हो.


दाई माँ भी CID अफसर की तरह जोश मे हो. चोर को पकड़ के ही मानेगी.


दाई माँ : हे या ऐसे ना मानेगी. लगा सुई.
(ये ऐसे नहीं मानेगी.)


उस औरत ने तुरंत ही सुई चुबई.


नेहा : (बदली आवाज) ससस अह्ह्ह... बताती हु. बताती हु.

दाई माँ : हलका मुश्कुराते) हम्म्म्म... मे सब जानू. तेरे जैसी छिनार को मुँह कब खुलेगो. चल बोल अब.
(मै सब जानती हु. तेरे जैसी छिनार का मुँह कब खुलेगा. चल अब बोल)

नेहा : अहह अहह जी हरदी(हल्दी) पोत(लगाकर) के मरेठन(समशान) मे डोल(घूम)रई. मोए(मुझे) जा की खसबू(खुसबू) बढ़िया लगी. तो मे आय गई.
(ये हल्दी पोती हुई शमशान मे घूम रही थी. मुझे इसकी खुसबू बढ़िया लगी. तो मे आ गई.)


दाई माँ और सारे लोग समझ गए की हल्दी लगाने के बाद बाहर घूमने से ये सब हुआ हे. शादी के वक्त हल्दी लगाने का रिवाज़ होता हे. जिस से त्वचा मे निखार आता हे. और भी बहोत से साइंटीफिक कारण हे. लेकिन यही बुरी आत्माओ को अकर्षित भी करता हे. यही कारण हे की दूल्हे को तो तलवार या कटार दी जाती हे. वही दुल्हन को तो बाहर निकालने ही नहीं दिया जाता. 21 साल की नेहा वैसे तो आगरा मे पढ़ी थी. उसकी बोली भी साफ सूत्री हिंदी ही थी.
लेकिन जब उसके शरीर मे किसी बुरी आत्मा ने वास कर लिया तो नेहा एकदम देहाती ब्रज भाषा बोलने लगी. दरसल नेहा का रिस्ता उसी की पसंद के लड़के से हो रहा था. नई नई शादी. नया नया प्रेम. दरअसल सगाई से पहले से ही दोनों प्रेमी जोड़े एक दूसरे से लम्बे लम्बे वक्त तक बाते कर रहे थे. ना दिन दीखता ना रात. प्रेम मे ये भी होश नहीं होता की कहा खड़े हे. खाना पीना सब का कोई होश नहीं.
सभी जानते हे. ऐसे वक्त और आज का जमाना. नेहा की हल्दी की रसम के वक्त बार बार उसके मोबाइल पर कॉल आ रहा था. पर वो उठा नहीं पा रही थी. पर जब हल्दी का कार्यक्रम ख़तम हुआ. नेहा ने तुरंत अपना मोबाइल उठा लिया. उसके होने वाले पति के तक़रीबन 10 से ज्यादा मिस कॉल थे. नेहा ने तुरंत ही कॉल बैक किया. होने वाले पति से माफ़ी मांगी. फिर मिट्ठी मिट्ठी बाते करने लगी. बाते करते हुए वो टहलने लगी. उसकी बाते कोई और ना सुने इस लिए वो टहलते हुए छुपने भी लगी. घर के पीछे एक रास्ता खेतो की तरफ जाता था. शादी की वजह से कोई खेतो मे नहीं जा रहा था.
नेहा अपने होने वाले पति से बाते करती हुई घर के पीछे ही थी. वो उसी रास्ते पर धीरे धीरे चलने लगी. घर मे किसी को मालूम नहीं था की नेहा घर के पीछे से आगे चल पड़ी हे. चलते हुए नेहा को ये ध्यान ही नहीं था की वो काफ़ी आगे निकल गई हे. बिच मे शमशानघट भी था. नेहा मुश्कुराती हुई बाते करते वही खड़ी हो गई. ध्यान तो उसका अपने होने वाली मिट्ठी रशीली बातो पर था.
पर वक्त से पहले मर जाने वाली एक बुरी आत्मा का ध्यान नेहा की खुशबु से खींचने लगा. नई नवेली कावारी दुल्हन. जिसपर से हल्दी और चन्दन की खुसबू आ रही हो. वो आत्मा नेहा से दूर नहीं रहे पाई. उस दोपहर वो आत्मा नेहा पर सवार हो गई. जिसका नेहा को खुद भी पता नहीं चला. फोन की बैटरी डिस हुई तब नेहा जैसे होश मे आई हो. इन बातो को शहर मे पढ़ने वाली नेहा मानती तो नहीं थी. मगर माँ बाप की डांट का डर जरूर था. नेहा तुरंत ही वहां से तेज़ कदम चलते हुए घर पहोच गई. शादी का माहौल. अच्छा बढ़िया खाना नेहा को ज्यादा पसंद ना हो.

लेकिन उस आत्मा को जरूर पसंद आ रहा था. खास कर नए नए कपडे श्रृंगार से आत्मा को बहोत ख़ुशी मिल रही थी. अगर आत्मा किसी कावारी लड़की की हो. तो उसे सात फेरे लेकर शादी करने का मन भी बहोत होता हे. वो आत्मा एक कावारी लड़की की ही थी. उस आत्मा का इरादा भी शादी करने का ही होने लगा था. पर एन्ड वक्त पर दाई माँ ने चोर पकड़ लिया.


दाई माँ : हाआआ.... तोए खुशबु बढ़िया लगी तो का जिंदगी बर्बाद करेंगी याकि??? तू जे बता अब तू गई क्यों ना??? डटी क्यों भई हे. का नाम हे तेरो???.
(तुझे इसकी खुसबू बढ़िया लगी तो क्या इस की जिंदगी बर्बाद करेंगी क्या?? तो फिर तू गई क्यों नहीं?? रुकी क्यों है. और तेरा नाम क्या है??)


सभी उन दोनों के आस पास इखट्टा हो गए. नेहा के माँ बाप भी. दूल्हा और उसके माँ बाप भी सभी. लेकिन कोई ऑब्जेक्शन नहीं. ऐसे किस्से कोमल के सामने हो. तो वो भला कैसे चली जाती. जहा दूसरी कावारी लड़किया भाग कर अपने परिवार के पास दुबक गई. वही कोमल तो खुद ही उनके पास पहोच गई. वो इस भूतिये किस्से को बिना डरे करीब से देख रही थी.


नेहा : (गुरराना) आआ... मे खिल्लो.... मोए कोउ बचाने ना आयो. मर दओ मोए डुबोके.... अब मे काउ ना जा रई. मे तो ब्याह करुँगी... आआ... ब्याह करुँगी... अअअ...
(मै खिल्लो हु. मुझे कोई बचाने नहीं आया. मार दिया मुझे डुबोकर. अब मे कही नहीं जाउंगी. मै तो शादी करुँगी)


खिल्लो पास के ही गाउ की रहने वाली लड़की थी. जो तालाब मे नहाते वक्त डूब के मर गई थी. दो गाउ के बिच एक ही ताकब था. किल्लो 4 साल पहले डूब के मर गई. दोपहर का वक्त था. और उस वक्त वो अकेली थी. उसे तैरते नहीं आता था. पर वो सीखना चाहती थी. अकेले सिखने के चक्कर उसका नादानी भरा कदम. उसकी जान ले बैठा. वो डूब के मर गई. किसी को पता नहीं चला. एक चारवाह जब शाम अपने पशु को पानी पिलाने लाया. तब जाकर गाउ मे सब को पता चला की गाउ की एक कवारी लड़की की मौत हो गई. वैसे तो आत्मा ने किसी को परेशान नहीं किया.
पर कवारी दुल्हन की खुसबू ने उसके मन मे दुल्हन बन ने की तमन्ना जगा दी. पकड़े जाने पर आत्मा अपनी मौत का जिम्मेदार भी सब को बताने लगी. दाई माँ ने बारी बारी सब को देखा. कोमल के चाचा और चाची को भी. दूल्हा तो घबराया हुआ लग रहा था. पर हेरात की बात ये थी की ना वो मंडप से हिला. और ना ही उसके माँ बाप. अमूमन ऐसे वक्त पर लोग रिश्ता तोड़ देते हे. लेकिन वो कोई सज्जन परिवार होगा. जो स्तिति ठीक होने का इंतजार कर रहे थे.


दाई माँ : देख री खिल्लो. तू मारी जमे जी छोरीकिउ गलती ना हे. और नाउ कोई ओरनकी. जाए छोड़ के तू चली जा. वरना तू मोए जानती ना है.
(देख री खिल्लो. तू मारी इसमें लड़की की गलती नहीं है. और नहीं किसी ओरोकी. इसे छोड़ के तू चली जा. वरना तू मुजे जानती नहीं है.)


दाई माँ ने खिलो को समझाया की तेरी मौत का कोई भी जिम्मार नहीं हे. वो नेहा के शरीर को छोड़ कर चली जाए. वरना वो उसे छोड़ेगी नहीं. मगर खिल्लो मन ने को राजी ही नहीं थी. वो गुरराती हुई दाई माँ को ही धमकाने लगी.


नेहा(खिल्लो) : हाआआआ... कई ना जा रई मे हाआआआ... का कर लेगी तू हाआआ...
(मै नहीं जा रही. तू क्या कर लेगी??)


खिल्लो को दाई माँ को लालकरना भरी पड़ गया.


दाई माँ : जे ऐसे ना माने. पकड़ो सब ज्याए.
(ये ऐसे नहीं मानेगी. पकड़ो सब इसे)


दाई माँ के कहते ही नेहा के पापा. दूल्हे के पापा और गाउ के कुछ आदमियों ने दोनों तरफ से नेहा को कश के पकड़ा. दाई माँ ने तो सिर्फ पीछे से सर के बाल ही पकडे थे. मगर इतने आदमी मिलकर भी नेहा जैसी दुबली पतली लड़की संभाल ही नहीं पा रहे थे. जैसे उसमे हाथी की ताकत आ गई हो. पर कोई भी नेहा को छोड़ नहीं रहा था. दाई माँ अपनी करवाई मे जुट गई. जैसे ये स्टिंग ऑपरेशन करने की उसने पहले ही तैयारी कर रखी हो.

एक 18,19 साल का लड़का एक ज़ोला लेकर भागते हुए आया. और दाई माँ को वो झोला दे देता हे. दाई माँ ने निचे बैठ कर सामान निकालना शुरू किया. एक छोटीसी हांडी. एक हरा निम्बू. निम्बू मे 7,8 सुईया घुसी हुई थी. लाल कपड़ा. कोई जानवर की हड्डी. एक इन्शानि हड्डी. कोमल ये सब अपनी ही आँखों से देख रही थी. वो भी भीड़ के आगे आ गइ. वहां के कई मर्द कोमल को पीछे करने की कोसिस करते. पर दाई माँ के एक आँखों के हिसारो से ही कोमल को बाद मे किसी ने छेड़ा नहीं. दाई माँ ने अपनी विधि चालू की. मंत्रो का जाप करने लगी. वो जितना जाप करती. नेहा उतनी ही हिलने दुलने लगती. दाई माँ ने हुकम किया.


दाई माँ : रे कोई चिमटा मँगाओ गरम कर के.
(कोई चिमटा मांगवाओ गरम कर के )


चिमटे का नाम सुनकर तो खिल्लो मानो पागल ही हो गई हो. नेहा तो किसी के संभाले नहीं संभल रही थी. वो बुरी तरीके से हिलने डुलने लगी. दाई माँ को धमकी भी देने लगी.


नेहा(खिल्लो) : (चिल्ला कर) री.... बुढ़िया छोड़ दे मोए. जे छोरी तो अब ना बचेगी. ब्याह तो मे कर के ही रहूंगी.
(बुढ़िया छोड़ दे मुझे. ये लड़की तो अब नहीं बचेगी. शादी तो मै कर के ही रहूंगी.)


पर तब तक एक जवान औरत घूँघट मे आई. और चिमटा दाई माँ की तरफ कर दिया. उस औरत के हाथ कांप रहे थे. दाई माँ को भी डर लगा कही उस औरत के कापते हाथो की वजह से कही वो ना जल जाए.


दाई माँ : री मोए पजारेगी का.
(रे मुझे जलाएगी क्या...)


दाई माँ ने उस औरत को तना मारा और फिर नेहा की तरफ देखने लगी. कोमल भी दाई माँ के पास साइड मे घुटने टेक कर बैठ गई. सभी उन्हें घेर चुके थे. कोई बैठा हुआ था. तो कोई खड़े होकर तमासा देख रहा था.


दाई माँ : हा री खिल्लो. तो बोल. तू जा रही या नही .


दाई माँ ने नेहा के बदन मे घुसी खिल्लो की आत्मा को साफ सीधे लेबजो मे चुनौती दे दी. ज्यादा हिलने डुलने से नेहा का मेकअप तो ख़राब हो ही गया था. बाल भी खुल कर बिखर गए थे. वो सिर्फ गुस्से मे धीरे धीरे ना मे ही अपना सर हिलती हे. बिखरे बालो मे जब अपनी गर्दन झटक झटक चिल्ला रही थी. तब उसके दूल्हे को भी डर लगने लगा. जिसे फोन पर बाते करते वो नेहा की तारीफ करते नहीं थक रहा था. आज वही नेहा उसे खौफनाक लग रही थी.


नेहा(खिल्लो) : (चिल्लाते हुए) नाआआआ.... मे काउ ना जा रहीईई...
(नहीं..... मै कही नहीं जा रही)


दाई माँ ने हांडी को आगे किया. कुछ मंतर पढ़ कर उस हांडी को देखा. जो गरम चिमटा उसके हाथो मे था. उसे नेहा के हाथ पर चिपका दिया. नेहा जोर से चिल्लाई. इतना जोर से की जिन्होंने नेहा को पकड़ नहीं रखा था. उन्होंने तो अपने कानो पर हाथ तक रख दिए.


दाई माँ : बोल तू जा रही या नहीं.


गरम चिमटे से हाथ जल गया. नेहा के अंदर की खिल्लो तड़प उठी. पर दर्द जेलने के बाद भी नेहा का सर ना मे ही हिला.


दाई माँ : तू ऐसे ना मानेगी.


दाई माँ ने तैयारी सायद पहले से करवा रखी थी. दाई माँ ने भीड़ मे से जैसे किसी को देखने की कोसिस की हो.


दाई माँ : रे पप्पू ले आ धांस(मिर्ची का धुँआ).


जो पहले दाई माँ का थैला लाया था. वही लड़का भागते हुए आया. एक थाली मे गोबर के उपले जालाकर उसपे सबूत लाल मीर्चा डाला हुआ पप्पू के हाथो मे था. पास लाते ही सभी चिंकने लगे. पर बेल्ला के अंदर की खिल्लो जोर से चिखी.


नेहा(खिल्लो) : (चिल्ला कर) डट जा.... डट जा री बुढ़िया... मे जा रही हु.. डट जा....
(रुक जा बुढ़िया रुक जा. मै जा रही हु. रुक जा.)


वो मिर्च वाले धुँए से खिल्लो को ऐसा डर लगा की खिल्लो जाने को तैयार हो गई. दाई माँ भी ज़ूमती हुई मुश्कुराई.


दाई माँ : हम्म्म्म... अब आई तू लेन(लाइन) पे. तू जे बता. चाइये का तोए????
(हम्म्म्म.... अब तू लाइन पे आई. तू ये बता तुझे चाहिए क्या???)

नेहा(खिल्लो) : मोए राबड़ी खाबाओ. और मोए दुल्हन को जोड़ा देओ. मे कबउ वापस ना आउ.
(मुझे राबड़ी खिलाओ. और मुझे दुल्हन का जोड़ा दो. मै कभी वापस नहीं आउंगी.)


कोमल को हसीं भी आई. भुत की डिमांड पर. उसे राबड़ी खानी थी. और दुल्हन का जोड़ा समेत सारा सामान चाहिए था. दाई माँ जोर से चीलाई.


दाई माँ : (चिल्ला कर जबरदस्त गुस्सा ) री बात सुन ले बाबड़चोदी. तू मरि बिना ब्याह भए. तोए सिर्फ श्रृंगार मिलेगो. शादी को जोड़ा नई. हा राबड़ी तू जीतती कहेगी तोए पीबा दंगे. बोल मंजूर हे का????
(बात सुन ले हरामजादी. तेरी मौत हुई बिना शादी के. तो तुझे सिर्फ श्रृंगार मिलेगा.
शादी का जोड़ा नहीं. हा राबड़ी तू जितना बोलेगी. उतना पीला देंगे.)


कोमल दाई माँ को एक प्रेत आत्मा से डील करते देख रही थी. दाई माँ कोई मामूली सयानी नहीं थी. वो जानती थी. अगर उस आत्मा ने सात फेरे लेकर शादी कर ली. तो पति पत्नी दोनों के जोड़े को जीवन भर तंग करेंगी. अगर उसे शादी का जोड़ा दे दिया तब वो पीछे पड़ जाएगी की ब्याह करवाओ. वो हर जवारे कड़के को परेशान करेंगी. इसी किए सिर्फ मेकउप का ही सामान उसे देने को राजी हुई. गर्दन हिलाती नेहा के अंदर की खिल्लो ने तुरंत ही हामी भर दी.


नेहा(खिल्लो) : (गुरराना) हम्म्म्म... मंजूर..


चढ़ावे के लिए रेडिमेंट श्रृंगार बाजारों मे मिलता ही हे. ज्यादातर ये सब पूजा के चढ़ावे मे काम आता हे. दाई माँ ऐसा एक छोटा सा पैकेट अपने झोले मे रखती है. उसे निकाल कर तुरंत ही निचे रख दिया.


दाई माँ : जे ले... आय गो तेरो श्रृंगार...
(ये ले. आ गया तेरा श्रृंगार...)


नेहा के अंदर की खिल्लो जैसे ही लेने गई. दाई माँ ने गरम चिमटा उसके हाथ पे चिपका दिया. वो दर्द से चीख उठी.


नेहा(खिल्लो) : आअह्ह्ह.... ससस...


दाई माँ : डट जा. ऐसे तोए कछु ना मिलेगो. तोए खूब खिबा पीबा(खिला पीला) के भेजींगे.
(रुक जा. तुझे ऐसे कुछ नहीं मिलेगा. तुझे खिला पीला के भेजेंगे)


नेहा के सामने एक कटोरी राबड़ी की आ गई. उसे कोमल भी देख रही थी. और उसका होने वाला दूल्हा भी. नेहा ने कटोरी उठाई और एक ही जाटके मे पी गई. हैरान तो सभी रहे गए. उसके सामने दूसरी फिर तीसरी चौथी करते करते 10 कटोरी राबड़ी पीला दे दी गई. दूल्हा तो हैरान था. उसकी होने वाली बीवी 10 कटोरी राबड़ी पी जाए तो हैरान तो वो होगा ही. पर जब नेहा ने ग्यारवी कटोरी उठाई दाई माँ ने हाथ पे तुरंत चिमटा चिपका दिया.


नेहा(खिल्लो) : अह्ह्ह... ससससस... री बुढ़िया खाबे ना देगी का.
(रे बुढ़िया खाने नहीं देगी क्या...)

दाई माँ : बस कर अब. भोत(बहोत) खा लो तूने. अब ले ले श्रृंगार तेरो.
(बस कर अब. बहोत खा लिया तूने. अब ले ले श्रृंगार तेरा.)


दाई माँ को ये पता चल गया की आत्मा परेशान करने के लिए खा ही खा करेंगी. इस लिए उसे रोक दिया. श्रृंगार का वो पैकेट जान बुचकर दाई माँ ने उस छोटी सी हांडी मे डाला. जैसे ही नेहा बेहोश हुई. दाई माँ तुरंत समझ गई की आत्मा हांडी मे आ चुकी हे. दाई माँ ने तुरंत ही लाल कपडे से हांडी ढक दी. हांडी उठाते उसका मुँह एक धागे से भांधने लगी. बांधते हुए सर ऊपर किया और कोमल के चाचा को देखा.


दाई माँ : ललिये होश मे लाओ. और फेरा जल्दी करवाओ. लाली को बखत ढीक ना हे.
(बेटी को होश मे लाओ. और जल्दी शादी करवाओ)


दाई माँ ने हांडी मे खिल्लो की आत्मा तो पकड़ ली. लेकिन वो जानती थी की एक आत्मा अंदर हे तो दूसरी आत्माए भी आस पास भटक रही होंगी. नेहा को मंडप से निचे उतरा तो और आत्मा घुस जाएगी. अगर पता ना चला और दूसरी आत्मा ने नेहा के शरीर मे आकर शादी कर ली तो बहोत बड़ा अनर्थ हो जाएगा. जितनी जल्दी उसके फेरे होकर शादी हो जाए वही अच्छा हे. नेहा को तो होश मे लाकर उसकी शादी कर दी गई. दूल्हा और उसका परिवार सज्जन ही होगा.
जो ऐसे वक्त मे भगा नहीं. और ना ही शादी तोड़ी. नेहा के फेरे तो होने लगे. दाई माँ उस हांडी को लेकर अपनी झोपड़ी की तरफ जाने लगी. तभी नेहा भगति हुई दाई माँ के पास आई. दाई माँ भी उसे देख कर खड़ी हो गई.


कोमल : (स्माइल हाफना एक्साटमेंट) दाई माँ......


दाई माँ ने भी बड़े प्यार से कोमल को देखा. जैसे अपनी शादीशुदा बेटी को देख रही हो.


दाई माँ : (स्माइल भावुक) री बावरी देख तो लाओ तूने. अब का सुनेगी. मे आज ना मिलु काउते. तोए मे कल मिलूंगी.
(बावरी देख तो लिया तूने. अब क्या सुनेगी. मै आज नहीं मिल सकती. तुझे मे कल मिलूंगी.)


बोल कर दाई माँ चल पड़ी. दाई माँ जानती थी की कोमल उस से बहोत प्यार करती हे. उसे भुत प्रेतो से डर नहीं लगता. पर कही कुछ उच नीच हो गई तो कोमल के साथ कुछ गकत ना हो जाए. वो कोमल को बस किस्से सुनाने तक ही सिमित रखना चाहती थी.
Bhot achi story... aisi kahani pahle bhi suni hai...is tarah ke kisse kafi hote hai.....baal khule aur haldi ke time pe aise hi bahar ghumne wale kafi kissee sune h...
Bhot achi kahani likhi aapne..aur dai ma to ekdum
Kamaal ki thi .....dekhte hi bata diya........
 
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Shetan

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Bhot achi story... aisi kahani pahle bhi suni hai...is tarah ke kisse kafi hote hai.....baal khule aur haldi ke time pe aise hi bahar ghumne wale kafi kissee sune h...
Bhot achi kahani likhi aapne..aur dai ma to ekdum
Kamaal ki thi .....dekhte hi bata diya........
Aap ne kahani ka sirf 1st update padha hai. Jo ki horror hai. Par daravna nahi. Aage horror level badhta hi chala jaega. Ek bar aur aage badhiye. Aap ko maza hi aa jaega.
 

RED Ashoka

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Update 2

कोमल ने उस रात तो अपनी आँखों के सामने एक जीता जगता किस्सा देखा. जिसमे अपनी चचेरी बहन नेहा के अंदर से पास के ही गाउ की खिल्लो की आत्मा निकली. उस रात गाउ मे ज्यादातर तो लोगो को डर से नींद नहीं आई. खास कर गाउ की जवान औरते. जवान लड़की, बहु, कई जवान लड़के भी.

कई तो व्यस्क और बूढ़े मर्द भी थे. जिन्हे डर लगता था. पर अमूमन लोग इन चीजों से कम ही डरते थे. क्यों की गाउ के मर्द कई बार खेतो मे ऐसे भुत प्रेतो को देख चुके थे. कइयों का काम भी ऐसा था की रात को देरी से आना. तो बहोतो को ऐसी चीजों का सामना होता ही रहता. पर वो जानते थे की ऐसी चीजों को छेड़ना नहीं चाहिए. उन लोगो के लिए ये सब नया भी नहीं था.


कई औरते भी ऐसी थी की भुत प्रेतो को दाई माँ से उतारते देखा भी हुआ था. क्यों की कई गाउ से लोग दाई माँ से ये सब कामों के लिए आते देखा भी था. या कई औरतों का इन सब चीजों से सामना भी हो चूका था. तो अमूमन लोग कम ही डरते थे. पर बिना डर के भी कोमल ही ऐसी थी की उसे डर नहीं रोमांच महसूस हो रहा था. दाई माँ ने कहे दिया था की वो आज नहीं मिलेगी. इस लिए उसे आने वाली कल का इंतजार था.

कोमल अपने परिवार के साथ ही थी. नेहा की शादी हो चुकी थी. पर गोना नहीं हुआ. बारात वापस चली गई. कोमल ने नेहा के साथ काफ़ी वक्त बिताया. जब होश आया तो नेहा को ये एहसास ही नहीं था की उसके साथ क्या क्या हुआ. वो बिलकुल नोरमल थी. कोमल सब के साथ खुश भी थी. लेकिन उसका दिल तो कही और ही था. प्यारी दाई माँ के पास.

रात नेहा शादी के बाद खाना खाते हुए अपने पति से हस हस कर बाते भी कर रही थी. दोनों टेबल चेयर लगा हुआ और साथ खाना खा रहे थे. कोमल दूर से ही देख कर हस रही थी. बेचारा दूल्हा. नेहा उसे चमच से खाना खिला रही है. हस रही है. और दूल्हा बेचारा चुप चाप खा रहा है. कोई आना कनि नहीं कर रहा.

कोमल ने भविस्य मे मज़ाक करने के लिए उनकी कई ताशवीर ली. रात हो गई. सब सो गए. पर कोमल के जहेन मे वो सारे किस्से घूम रहे थे. दुबली पतली सी नेहा कैसे पहलवानो की तरह ताव दे रही थी. कोमल का मन था की डरने के बजाय उसे ऐसा सब और जान ने को होने लगा. वो सोचने लगी की ऐसा वो क्या करें जो ऐसे किस्से वो अपने जीवन मे अपनी आँखों से देख सके. कब नींद आई. ये खुद कोमल को पता ही नहीं चला.

दिन बदल गया. सभी गोने की तैयारियो मे जुटे हुए थे. गाउ के सभी लोग नेहा की बिदाई के लिए उनके घर के आंगन मे इखट्टा हो गए. रोना धोना सब हो रहा था. कार घर के गेट पर सजी धजी खड़ी थी. नेहा जा रही थी. वैसे तो कोमल बहोत ही कठोर दिल की थी. पर नेहा की बिदाई के वक्त उसे भी रोना आ गया.

तभी कोमल की नजर एक ऐसे सक्स पर पड़ी. जिसे देखते ही कोमल नजरें चुराने लगी. एक पुरानी शर्ट और पुराना पेंट पहने. चहेरे पर थोड़ी दाढ़ी किसी मजदूर की तरह दिखने वाला 6 फुट का लम्बा चौड़ा मर्द जिसका नाम बलबीर था. वो नेहा का मुँह बोला भई था. बलबीर की उम्र भी 30के आस पास ही होंगी. जब नेहा 12 क्लास स्कूल मे पढ़ रही थी. तब वेकेंशन मे अपने गांव आई हुई थी. तब उसकी बलबीर से आंखे चार हुई.

और प्यार हो गया. खेतो मे साथ घूमना. कोमल के लिए आम तोडना. बहोत कुछ साथ साथ. एक बार तो दोनों ने लिप किश भी की. पर वेकेंशन ख़तम हुआ और कोमल वापस अपने घर अहमदाबाद चली गई. कोमल तो कॉलेज की चका चोदनी मे बलबीर को भूल गई. पर बलबीर कभी नेहा को नहीं भूल पाया. खुबशुरत कोमल बलबीर के लिए बस ख्वाब ही रहे गई. क्यों की कुछ साल बाद जब कोमल वापस आई तब कोमल ने बलबीर को प्यार बचपन की नादानी कहे दिया. कोमल सायद बलबीर से प्यार को आगे भी जारी रख लेती. पर बलबीर अनपढ़ था.

और कोमल वकीलात की पढ़ाई कर रही थी. बलबीर पिता की मदद करने के लिए ट्रक चलाने लगा. और उसके पिता ने एक विधया नाम की पास के ही गांव की लड़की से सादी करवा दी. बलबीर के 2 बच्चे हो गए. अपनी जिंदगी मे खुश था. पर सामने उसके सपनों की सहेजादी आकर खड़ी हो गई. दोनों की आंखे मिली. कोमल समजदार थी. वैसे तो वो बलबीर के सामने नहीं आना चाहती थी. क्यों की अनजाने मे ही सही. कोमल ने बलबीर को डंप किया था. और उसे अफ़सोस भी था. तभी बलबीर ने भी कोमल को देख लिया.


कोमल : (स्माइल) कैसे हो बलबीर???


बलबीर बस हलका सा मुश्कुराया. थोडा सा भावुक पर खुश.


बलबीर : बस देख ले. तेरे सामने खड़ा हु.


तभी कोमल की नजर दाई माँ पर गई. वो भी विदाई मे नेहा को आशीर्वाद देने के लिए आ रही थी. उन्हें देखते ही कोमल दौड़ पड़ी.


कोमल : (स्माइल एक्ससिटेड ) दाई माँ.....


कोमल दाई माँ के पास पहोचते ही उन्हें जैसे सहारा दे रही हो. वो दोनों चंद ही कदम पर साथ नेहा तक आए. दाई माँ ने भी नेहा को प्यार दिया. सब रोना धोना हुआ और नेहा अपने दूल्हे के साथ चली गई. अब कोमल ने एक छुपी हुई मुश्कान से दाई माँ को देखा. दाई माँ भी समझ गई. वो दोनों आँगन मे ही बिछे तखत की तरफ चल पड़े. पीछे बलबीर भी था. जब कोमल सामने हो तो वो कैसे जा सकता था. कोमल और दाई माँ दोनों तखत पर बैठ गए. बलबीर भी आया. कोमल ने उसे भी बैठने का हिशारा किया. पर वो गरीबो वाली स्टाइल मे निचे ही बैठ गया.

जेब से बीड़ी माचिस निकली और 2 बीड़ी जलाने लगा. बीड़ी जलाते ही एक बीड़ी दाई माँ की तरफ बढ़ाई . और दूसरी से खुद सुट्टे मरने लगा. एक दम खिंचते हुए बोला.


बलबीर : मई कल तो तूने नेहा का भला कर दिया. तूने कितनो की मदद की होंगी.


दाई माँ भी बीड़ी का एक कश मरती हुई बस जरासा मुश्कुराई.


दाई माँ : जे तो धरम(धर्म) को काम है.


पर कोमल को बीड़ी का धुँआ मन ललचा रहा था. जब से गांव मे आई. उसने एक भी सिगरेट नहीं पी थी. पर एक नशेड़ी दूसरे नशेड़ी को अच्छे से जनता है. दाई माँ ने एक कश मरने के बाद बीड़ी कोमल की तरफ हाथ बढ़ाया. कोमल पहले तो शरमाई. उसने सीधा बलबीर की तरफ देखा. बलबीर भी ये सब आंखे फाडे देख रहा था. जैसे वो सॉक हो गया हो. कोमल ने भी दाए बाए देखा और एक कश खिंच लिया. वो एक कश कोमल को अजीब सा सुकून का अनुभव करवा रहा था.

कोमल ने तुरंत बीड़ी दाई माँ की तरफ बढ़ा दी. जैसे उसे डर भी हो. कही कोई उसे देख ना ले. दाई माँ जानती थी की कोमल को कुछ सुन ना है. कोई भूतिया किस्सा. इस लिए दाई माँ ने इस बार बलबीर की तरफ देखा.


दाई माँ : रे छोरा तू तो गाड़ी चलावे है. तेराऊ कभउ भुत प्रेतन ते भिड़त हुई होंगी???


दाई माँ जानती थी की ट्रक चलाने वाले ड्राइवरो को हाईवे पर ऐसे कई किस्से देखने को मिलते है. या खुद भी अनुभव होता है. इसी लिए कोमल के लिए उन्होंने बलबीर से ऐसे किस्से पूछे. बलबीर ने एक नजर कोमल पर डाली. और तुरंत दाई माँ की तरफ देखने लगा.


बलबीर : हमारा तो चलता रहता है माँ. पर इस छोरी को क्यों डरा रहे हो.


दाई माँ : (स्माइल) अरे ज्याको बस नाम कोमर(कोमल) है. अंदरते तो जे पूरी कठोर है.


दाई माँ हसने लगी. दाई माँ ने जता दिया की कोमल डरने वाली चीज नहीं है. बलबीर कुछ पल शांत हो गया. और उसने जो किस्सा सुनाया. वो किस्सा बड़ा ही अजीब था. कोमल वो किस्सा बड़े ध्यान से सुन ने लगी.


बलबीर : मे बम्बई(मुंबई ) से अपना ट्रक लेकर आ रहा था. अपने रतन काका का लड़का है ना मुन्ना. वो खालाशी था मेरा.

मेरी गाड़ी भोपाल बायपास पर कर चूका था.. मुझे माल लेकर जल्दी पहोचना था. इस लिए मै पूरा दिन चलता रहा. ढाबे पर खाना खाया. सिर्फ 1 घंटा ही आराम किया. और गाड़ी लेकर चल दिया. अंधेरा हो गया. तकबिबान रात के एक बज रहा होगा. मुझसे गाड़ी चलाई नहीं जा रही थी. झबकी आने लगी थी. ऊपर से गाड़ी लोडेड थी. मेने मुन्ना से कहा.


मै : यार मुन्ना बहोत नींद आ रही है. लगता है गाड़ी मुझसे चलेगी नहीं.


मुन्ना : ओओओ दद्दा. आप कही गाड़ी साइड लगा दो. कही कुछ बुरा हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे. कही गाड़ी पलट गई तो.


मै : रे ऐसे कैसे पलट जाएगी यार.


मुन्ना : दद्दा जान है तो जहान है. बाद मै पास्ताने का मौका भी नहीं मिलेगा. इस से तो अच्छा है गाड़ी साइड लगा दो. और सो जाओ. मै जाग लूंगा.


मुन्ना को गाड़ी चलाते आती नहीं थी. मुझे उसकी बात सही लगी. बेचारा उस टाइम तो पहेली बार आया था. मेने गाड़ी साइड की. और ड्राइविंग शीट के पीछे जो लम्बी शीट थी. उसपर सो गया. मुझे बहोत जल्दी नींद आ गई. और जैसे ही नींद आई. वो शपना था या हकीकत ये समाझना ही मुश्किल है. एक औरत मेरी छाती पर आकर बैठ गई. पुरानी मेली साड़ी. खुले बिखरे बाल. देखने से ही वो भीखारन सी लग रही थी.

एकदम मेली कुचेली. मे हिल भी नहीं पा रहा था. मेरा बदन जैसे लकवा मार गया हो. मै पसीना पसीना हो गया. और वो मेरी छाती पर बैठ कर मुझे दबोच जा रही थी. वो कहे रही थी की.


तेरी गाड़ी का पहिया मेरे सर पर है. जल्दी हटा इसे. नहीं तो तुझे जान से मार डालूंगी.


मेरी शांस रुक रही थी. मै अचानक जोरो से ताकत लगाकर उठा. जब में नींद से जगा तब पसीना पसीना हो गया था. पर मेरी नजर मुन्ना पर गई तो उसकी भी हालत वैसी ही थी. मोबाइल हाथ में और वो देख सामने रहा था. वो बुरी तरीके से कांप रहा था. मेने देखने की कोसिस की के वो देख किसे रहा है. सामने वही बुढ़िया खड़ी थी. जो मेरे शपने में आई थी.

मेने गाड़ी का गेर डाला और उस बुढ़िया की साइड से होते हुए आगे चल दिया. तक़रीबन 12 km दूर एक ढाबा दिखा. मेने वहां गाड़ी साइड लगा दी. मुन्ना को तो बुखार आ गया था. मेने उस से पूछा तो उसने बताया की.


मुन्ना : दद्दा जब आप सो गए तब में मोबाइल में फिलम देखने लगा.
अचानक से बड़ी बुरी बदबू आने लगी. मेने अपनी नाक सिकोड़ी और सामने देखा तो एक बुढ़िया आ रही थी. फटी पुरानी साड़ी में लिपटी. वो आ तो धीरे धीरे रही थी. पर पता नहीं क्यों अँधेरे में भी ऐसा लग रहा था की. वो मुझे ही देख रही है. और वो मुझे बड़ी बुरी नजरों से देख रही थी. जैसे बहोत गुस्से में हो.

मेने उस से नजर हटाई. और साइड वाली खिड़की की तरफ देखा. में हैरान रहे गया. वो बिलकुल निचे साइड वाले मेरे दरवाजे पर ही थी. मेने उसे बहोत करीब से देखा. दद्दा सच बता रहा हु. कोई पलक ज़बकते इतने करीब कैसे आ सकता है. वो मुझे ऐसे देख रही थी की डर बड़ा लगने लगा. उसने मुझे बहोत परेशान किया. वो तो ऊपर आने की कोसिस कर रही थी. पर पता नहीं ऊपर नहीं आ पाई. जैसे वो दरवाजे को छुति.

तुरंत अपना हाथ खींच लेती.


मै : चल कोई बात नहीं. डर मत. ऐसा रोड पर होता ही रहता है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ.


मेने अपने साथ हुआ शपना भी उसे बता दिया. पर बो अब भी मेरे साथ ही गाड़ी पर चलता है. अब तो नहीं डरता वो.


कोमल ये किस्सा सुनकर हैरान थी. उसने ऐसा किस्सा पहेली बार सुना था. हाईवे पर ऐसा भी हो सकता है. बलबीर ने दाई माँ की तरफ हेरात से देखा.


बलबीर : माई ऐसे तो कितने सडक पर एक्सीडेंट होते ही रहते है. होंगा कोई साया(आत्मा).


दाई माँ : ना बलबीर. जे अपनी जगाह पक्की कर के बैठी है. मतलब पक्का जाकी बाली भई है.



दाई माँ ने कहा की इसकी जगाह पक्की है. क्यों की बलबीर को गाड़ी हटाने को कहा. उसका टायर उसके सर पे था. यानि उसका स्थान होगा. मतलब वहां मार के गाढ़ा गया है. पर दाई माँ का कहना था की उसकी वहां बली दी गई है.
Nice 👍....wo truck pe lohe ki wajah se nahi chadh payi ..
 

Shetan

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Nice 👍....wo truck pe lohe ki wajah se nahi chadh payi ..
Thankyou very very much. Muje khushi hui ki aap ko ye update pasand aaya.
 

Shetan

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