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Romance कैसा ये रिश्ता (Completed)

Ashish Jain

कलम के सिपाही
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तड़प , आंसू , दर्द , तन्हाई , खामोशी , बेजान , बीरान , बिरह ये सब तो इश्क़ के तोफे हैं । मगर दोस्ती की आंचल में सिवाए सुकून के और कुछ नहीं । ऐसा मेरे दिल का मानना था। मगर हकीकत से तब वाकिफ हुए जब दिल के पास सिवाए सवाल के और कुछ बचा ही न। क्या कहूं अपनी उस कहानी के बारे में लफ्ज़ लड़खड़ा जाते हैं। बस दो बूंद आंसू और चार लफ्ज़ खामोशी के साथ रोज उन तमाम हसीं पलों को जी लेता हूं जो कभी जीवन में जीना स्वपन हुआ करता था। उलझन में ना डालते हुए कहानी शुरू करता हूं...

ये कैसा रिश्ता है !
 

Ashish Jain

कलम के सिपाही
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भाग १

रवि गांव का सीधा -सादा सुंदर कद काठी का गोरा चिट्टा लड़का , अभी अभी दसवी की परीक्षा उत्तीर्ण कर के ग्यारहवीं में जाने की तैयारी में था। गांव में उसकी पढ़ाई के चर्चे खूब थे। मां बाप का इकलौता रवि दुलारा भी था । किसान पिता का पुत्र मध्यम घर मे जन्मा अभावो से घिरा था । ऐसे वस्तुओ का मिलना नही होता जो थोड़ा महंगा हो। क्या मजाल रवि ने कभी पिता से कोई फ़रमाईश की हो। ग्यारहवीं में प्रवेश करने के बाद वो रोजाना गांव से शहर जाया करता था पढ़ाई के लिए, गांव की तरफ अच्छे कॉलेज नही थे तो ज्यादातर बच्चे शहर जाते थे,, कुछ तो शहर में रहकर पढ़ाई करते तो कुछ रोजाना साइकिल से आते और जाते थे ! रवि भी उनमे से एक था।

दशहरा आने वाला था,, गांव में प्रतिवर्ष रामलीला का आयोजन होता था , और गांव के बच्चे रामलीला के सदस्य होते थे , उनमे इस बार रवि भी था। देख रेख में कोई कमी न हो और किसी प्रकार की बाधा ना हो, कलाकारों को कोई परेशानी न हो ये सब देखना होता था। पहले तो रवि तैयार नही था क्योंकि उसकी पढ़ाई पर असर पड़ता । पर दोस्तो के जिद की वजह से वो मान गया । गांव के सरपंच ने चुना था इस बार रवि को महिला मंडल की तरफ का आयोजन देखने के लिए,।

रात के ग्यारह बजे गए थे, सभी लोग सोये थे पर रवि की आंखों में नींद नही था , और पढ़ने में भी ध्यान नही था, पता नही क्यो ? ऐसा पहली बार हुआ था उसे, और फिर न जाने कब नींद आ गई, वो नींद के आगोश में था,।

उसके सामने एक सुंदर सी लड़की, खूबसूरत आंखों वाली , उसी की उम्र की, शायद अपनी बड़ी बहन या भाभी के साथ बाजार की तरफ जा रही थी, ऐसा पहली बार हुआ था जब रवि किसी लड़की की तरफ देख रहा हो , रवि ने उसे देखा और देखते ही मुस्कुरा उठा, वाह इससे पहले तो मैंने इस परी को इधर नही देखा, कौन है ये अफसरा ? कहा से आई है , मेरे गांव की तो नही लगती,, शायद अगल बगल की गांव की हो कितनी मासूम सी प्यारी लड़की, जी चाहता है अभी मिलूं और ढेर सारी बाते करू,, अगर दोस्त ही बन जाये तो फिर क्या कहने , रवि तो बस टुकर टुकर देखे ही जा रहा था। फिर अचानक में हड़बड़ाकर उठा, माँ ने उसे आवाज लगाया था,, ओह तो ये सपना था,, मैं सपना देख रहा था। रवि मन ही मन मुस्कुरा उठा, और अंगड़ाई लेते हुए हल्के से बोला,,, आया मां,,, ।

रामलीला का पहला दिन था । लोग पंडाल में एकत्रित हो रहे थे। भीड़ बढ़ रही थी, महिलाओं का एक तरफ और पुरुषों का एक तरफ बैठने का जगह बनाया गया था। बच्चो को बिल्कुल आगे की तरफ बिठाने की व्यवस्था थी। वालंटियर अपने काम मे मशगूल थे,गाँव की तरफ से हर साल हो रहे इस आयोजन में आस पास के कई गांवों के लोग आते थे रामलीला का आंनद लेने,, पूरी रात रामलीला होती और दश दिन तो मेले जैसा ही माहौल और शैलाब रहता था,, रवि जो बिल्कुल अच्छा लड़का था उसको और कुछ और लड़कों को महिलाओं की तरफ का देख रेख मिला था । भीड़ अपने जोरो पर थी,और रामलीला भी शुरू हो गया था। अयोध्या में राम जी के बचपन का दृश्य चल रहा था,, रवि खड़े होकर पांडाल में इधर उधर टहल कर सब व्यवस्था देख रहा था कि अचानक में उसकी नजर एक लड़की पर पड़ी और वो भौचक्का रह गया, बूत सा खड़ा हो गया , वो मूर्छित होते होते बचा, खुद को भीड़ की नजरों से बचाते हुए वो बार बार उस लड़की को देखता और दिमाग पर जोर लगाकर सोचने लगा कि इस लड़की को कहा देखा है,। कहा देखा है,,, उसका मन नही लग रहा था,, अजीब सी बेचैनी थी, बार बार देखे जा रहा था, नजर हटे तो बस यही सोच रहा था कि कही तो देखा है,,, ।
अभी तक उस लड़की की नजर रवि की तरफ नही पड़ी थी ,, वो तो अपने परिवार के साथ रामलीला देखने मे मस्त थी,,।।
ओह नो ,, अचानक में रवी के दिमाग की घंटी बजी ,, पर ऐसा कैसे हो सकता है -,खुद सोच में पड़ गया !! विस्वाश नही हो रहा है!! ऐसा तो सिर्फ फिल्मों में ही हो सकता है,, और होता भी फिल्मों में ही है पर यहाँ हकीकत थी,, ये तो वही लड़की थी चार दिन पहले सपनो वाली । हई,,, सपनो वाली हकीकत में,, ?

सुबह हुआ रवि सोच में पड़ गया रात सपनो वाली लड़की कैसे ? ? ये हकीकत था रवि ने इस से पहले उस लड़की को कभी नही देखा था,, तो फिर वो सपने में कैसे आई,,। उसने ये बात अपने दोस्त मनु से बताई ,, मनु को भी भरोसा नही हुआ,।। अब रवि ने मन बना लिया था कि ये कोई ऐसे ही नही हुआ है। ,, जरूर इसमें कोई बात होगी ।। उसने फैसला लिया उस लड़की से बात करने का , । उम्र ऐसी थी कि उत्सुक होना लाजिमी था,, न चाहते हुए भी रवि की आंखों में नींद नही थी,, एक सुनहरा सपना जैसा प्रतीत हो रहा था,,।
 

monika

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तड़प , आंसू , दर्द , तन्हाई , खामोशी , बेजान , बीरान , बिरह ये सब तो इश्क़ के तोफे हैं । मगर दोस्ती की आंचल में सिवाए सुकून के और कुछ नहीं । ऐसा मेरे दिल का मानना था। मगर हकीकत से तब वाकिफ हुए जब दिल के पास सिवाए सवाल के और कुछ बचा ही न। क्या कहूं अपनी उस कहानी के बारे में लफ्ज़ लड़खड़ा जाते हैं। बस दो बूंद आंसू और चार लफ्ज़ खामोशी के साथ रोज उन तमाम हसीं पलों को जी लेता हूं जो कभी जीवन में जीना स्वपन हुआ करता था। उलझन में ना डालते हुए कहानी शुरू करता हूं...

ये कैसा रिश्ता है !
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