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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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Bahut hi badhiya update diya hai prkin bhai....अध्याय २०: दूसरा घर - सुनीति और आशीष राणा ३सुनीति के घर:
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दो दिन बाद
शाम के समय जब आशीष घर पहुंचा तो देखा कि घर पर किसी की गाड़ी खड़ी थी. उसे आश्चर्य हुआ कि सुनीति ने उसे बताया नहीं कि घर पर अथिति आये हैं. उसने अपना चेहरा और बाल ठीक किये और अपना ब्रीफ़केस लेकर घर में गया. पर उसे आश्चर्य इस बात का हुआ कि बैठक में कोई नहीं था. हाँ सुनीति अवश्य सलोनी के साथ किचन में कुछ कर रही थी. उसने सुनीति को पास बुलाया तो उसने कहा कि वो मुंह हाथ धो ले फिर बात करेगी. आशीष असमंजस की स्थिति में अपने कमरे में गया और मुंह हाथ धोकर, कपड़े बदल कर १५ मिनट में बैठक में आ गया. सुनीति ने उसके हाथ में उसकी पसंद की ड्रिंक दी और सामने बैठ गयी.
आशीष ने पूछा: “कौन आया है?”
सुनीति: “असीम के लिए रिश्ता आया है.”
आशीष भौचक्का रह गया.
“ये कब हुआ, कैसे.”
“समुदाय के द्वारा. लड़की हमने देखी हुई है.”
आशीष को कुछ समझ नहीं पड़ रहा था.
“कौन लड़की?”
“महक, विक्रम और स्मिता की बेटी, आठ नंबर वाले.”
“ओके, पर ये गाड़ी किसकी है? पापा और अन्य सब कहाँ गए? सुनीति, थोड़ा खुलकर बताओ, ये तुम्हारा सस्पेंस मुझे डरा रहा है.”
सुनीति मुस्क़ुरा कार बोली, “आपमें थोड़ा भी संयम नहीं है. ठीक है.” उसने बात आगे बढ़ाते हुए बताया.
“समुदाय के नियम के अनुसार वर वधू दोनों समुदाय के ही होने चाहिए, ये तो आपको पता ही है. पर विवाह योग्य लड़की का परिवार समुदाय में अपनी बेटी के लिए आवेदन लगता है. ये केवल लड़की वालों को ही अनुमति है. समुदाय की समिति योग्य लड़कों के देखकर, ये निश्चित करती है, कि क्या ये संबंध सम्भव है. असीम के सिवाय दो और लड़कों का भी इसके लिए चयन हुआ है. हालाँकि, हमारा संयोग अधिक है, क्योंकि हम एक दूसरे के परिवारों से पहले से ही परिचित हैं.”
“तो गाड़ी….” आशीष की बात पूरी न सुनकर सुनीति ने उसे रोका और आगे बताने लगी.
“मधु जी, जो कि समिति की मुखिया हैं, वही आयी हैं इस प्रस्ताव को लेकर. इसमें समिति, शेट्टी परिवार और हमारे परिवार में से कोई भी इसके लिए मना कर सकता है. उनका उद्देश्य ये होता है कि वे अपने चयन को लड़की के परिवार को बताएं और फिर दोनों परिवार ही ये निर्णय लेंगे कि आगे बढ़ना है या नहीं।”
सुनीति ने आशीष की बात का अब उत्तर देना आरम्भ किया. "मधु जी, समिति के एक और महिला और अपनी बहू के साथ आयी हुई हैं. असीम और कुमार पिताजी के कमरे में अपनी परीक्षा दे रहे हैं. महिलाओं का ये दायित्व है कि वे लड़कों की सेक्स की क्षमता और अनुकूलता की जाँच करें. पिता जी ने अपना पत्ता फेंका और कहा कि वे भी इसमें सम्मिलित होकर महिलाओं की अनुकूलता जांचेंगे.”
“ब्लडी हैल!” आशीष के मुंह से निकला. “पापा को चूत से दूर रखना कठिन ही नहीं असम्भव है. और इन समिति वाली औरतों की तो चांदी है. कितने ही ऐसे जाँच के अवसर इन्हें प्राप्त होते होंगे.”
सुनीति हंसने लगी, “ये तो है, पर समिति में मधु जी के सिवाय कोई भी स्थाई नहीं है, तो सबसे अधिक मजा वही लेती हैं.”
आशीष ने हंस कर पूछा, “क्या मैं इस जाँच के योग्य नहीं हूँ.”
सुनीति उठी और आशीष की गोद में बैठी और उसे चूमकर बोली, “घर की महिलाओं को ये अधिकार है कि वो अपने परिवार के पुरुषों को प्रमाणित कर सकती हैं. मैंने आपको कर दिया है. और मैं आपकी जाँच के हेतु आपको कमरे में लेकर जाऊंगी, एक बार ये सब लौट तो आएँ.”
फिर आशीष के कान में फुसफुसाकर बोली, “मधु जी ने परसों हम दोनों, केवल हम दोनों के अपने घर आमंत्रित किया है. रात में वहीँ रुकना भी है. अब एक बार उनकी बहू को फिर देख लो फिर बताना कि मैं स्वीकार करूँ या रहने दूँ.”
आशीष को मधु जी की बहू चारु भी भांति स्मरण में थी. समुदाय में उसे देखा जो था. वो तो तुरंत हाँ करने वाला था पर रुक गया. उस की ड्रिंक समाप्त हो चुकी थी, तो सुमति ने सलोनी ने एक और ड्रिंक लाने के लिए कहा, दोनों के लिए. और फिर ऑफिस और काम की बातों में व्यस्त हो गए.
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जीवन का कमरा
असीम का विश्लेषण अब समाप्ति पर था. समिति की अस्थाई सदस्य श्रीमती बालू सोफे पर बैठी सामने चल रही गतिविधि पर पैनी दृष्टि रखे हुए थीं. वो विश्लेषक थीं. उनका कार्य ये था कि चलने वाले समागम पर अपनी राय देना और ये देखना कि जिस लड़के का विश्लेषण हो रहा है वो इसमें उत्तीर्ण होगा या नहीं. उन्हें इस समागम में स्वयं हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी. इस प्रकार के आयोजन में अधिकतर एक महिला सदस्य और होती थी. अर्थात मधुजी, एक विश्लेषिका और एक अन्य सदस्या। विश्लेषेका और अन्य स्त्री बदल जाती थीं. इस बार जिस स्त्री का चयन हुआ था वो मधुजी की लाड़ली बहू चारु थी. ४५ वर्ष की इस आकर्षक और अनुभवी स्त्री की सेक्स की भूख अनंत थी. उसे देखकर कोई ये नहीं मान सकता था कि उसने तीन बच्चों को जन्म दिया है. और वे तीनों भी अपने पिता के साथ अपनी माँ की भूख मिटाने में कई बार अक्षम होते थे.
उन्हें इस खेल में लिप्त हुए लगभग एक घंटे से अधिक हो चुका था. और इस पूरे आकलन में असीम अभी तक पूर्णतया सटीक बैठा था. उसका उत्तीर्ण होना तय था. श्रीमती बालू जिनका नाम सुनंदा था, तमिल थीं पर इतने वर्ष यहाँ रहकर अब अच्छे से घुल मिल गयीं थीं. उनकी हिंदी पर पकड़ अच्छी थी, हालाँकि कुछ दक्षिणी पुट था जो सबको बड़ा सुहाता था. उन्हें विश्लेषिका के कार्य में विशेष आनंद आता था, क्योंकि उत्तीर्ण होने वाले लड़के पर समुदाय में पहला अधिकार उनका ही होता था. फिर इस प्रकार के आयोजन से उनकी कामोत्तेजना को शांत करने के लिए उनके दोनों पुत्र उनकी सहायता करते थे. उन्हें इस बात का अवश्य ही दुःख था कि उनके घर कोई पुत्री नहीं हुई, परन्तु उनकी दोनों बहुएं उन्हें माँ के ही रूप में देखती थीं और वे भी उन्हें उसी प्रकार से मानती थीं. इस प्रकार के आयोजन से उन्हें कई बार नए आसन भी देखने को मिलते थे जिनका उनके घरेलू चुदाई समारोह में समुचित उपयोग किया जाता था.
इस समय वो मधुजी की शक्ति और सहनशीलता पर आश्चर्य कर रही थीं. कुमार जो लड़के का छोटा भाई था, नीचे लेटा था और मधुजी उसके लम्बे तगड़े लौड़े को अपनी चूत में लिए हुए थीं. पीछे से उनके ऊपर असीम चढ़ा हुआ था और ये सर्वविदित था कि उसका लंड उनकी गांड में था. दोनों भाइयों की समकालिक जुगलबंदी भी देखने और अध्ययन का विषय थी. उसे विश्वास था कि आज के वीडियो को देखकर उसके पति और पुत्र उसे भी इसी प्रकार से चोदने के लिए तत्पर होंगे.
पर दोनों भाइयों की असीमित शक्ति के सामने हार न मानने के लिए मधु जी को श्रेय जाता था. जिस तरह से दोनों भाइयों के विशाल लंड उनके दो छेदों को चोद रहे थे, केवल विलक्षण प्रतिभा वाली कोई स्त्री ही इसमें भी आनंद ले सकती थी. और मधु जी की आनंदकारी चीखें और अधिक जोर से चोदने की गुहार सच में इनकी इस प्रतिभा को उजागर कर रही थी. अब ऐसा नहीं था कि उनकी बहू चारु व्यस्त नहीं थी. अपनी कोहनियों और घुटनों के बल घोड़ी के आसन में वो जीवन के लंड से अपनी गांड मरवाने में व्यस्त थी. और जीवन भी इस नयी गांड का भरपूर आनंद ले रहा था.
अगर समय का अभाव न होता तो संभवतः चारु भी दोनों भाइयों से अपनी सास की तरह ही चुदवाती, पर नियम के अनुसार समय की सीमा थी और उसे अपनी केवल गांड मरवाकर ही संतोष करना पड़ रहा था. इसके पहले वो दोनों भाइयों से एक एक बार अपनी चूत की धज्जियाँ उड़वा चुकी थी. पर एक अत्यंत काम पिपासु स्त्री होने के कारण उसे कभी भी पूर्ण शांति नहीं मिलती थी. उसकी गांड में अब जीवन का लंड तनके फूलने लगा था. और चारु की आभास हो गया था कि अब उसकी गांड में सिंचाई होने ही वाली है. उसने अपनी गांड की मांसपेशियों को कुछ सिकोड़ा जिससे कि उन दोनों के आनंद में कुछ वृध्दि हो. पर अब जीवन रुक नहीं पा रहा था और उसने अपने रस की फुहार से चारु को गांड भर दी और उसके ऊपर ढह गया.
कुछ देर यूँ ही पड़े रहने के बाद चारु और जीवन ने अपने बगल में चल रहे काम युद्ध को देखा तो वहां भी समापन निकट था. मधु जी की चीखें अब धीमी पड़ चुकी थीं और असीम के धक्के भी अब कुछ ठहर से गए थे. उन्हें ये देखकर आश्चर्य नहीं हुआ जब असीम ने अपने लम्बे लंड को मधुजी की गांड से बाहर निकाला। उससे बहता हुआ रस मधु जी की गांड पर फ़ैल गया. वो खड़ा हुआ तो चारु ने उसे बुलाया और उसके लौड़े को चाटकर साफ कर दिया. जीवन ने अपने लंड की ओर संकेत किया तो चारु ने अपनी सास की ओर देखकर बताया कि ये उनका अधिकार है. सास बहू के ऐसे पावन प्रेम से जीवन का मन प्रसन्न हो गया.
कुमार भी अब झड़ चुका था और मधु जी तो न जाने कितनी बार आकाश को छूकर लौटी थीं. वो कुमार के लंड से उतरीं और एक ओर निढाल होकर लेट गयीं. चारु ने कुमार को बुलाकर उसके लंड को भी चाटकर साफ कर दिया. फिर जीवन को मधु जी की ओर धक्का सा दिया. जीवन ने अपने लंड को मधुजी के सामने किया तो उन्होंने उसे बड़े प्रेम से चाटा और साफ कर दिया. सब कुछ समय के लिए सुस्ताने लगे. सुनंदा ने रिकॉर्डिंग बंद कर दी और फोन को पर्स में रख लिया. उसकी चूत में आग लगी थी, पर अभी भी घर पहुँचने में समय था.
कुछ देर के बाद सबने उठकर कपड़े पहने और फिर बैठक की ओर चल पड़े. बैठक में उनका स्वागत आशीष ने किया. मधुजी ने उसके गले मिलकर उनके होंठ चूमे. फिर चारु ने भी यही किया. चारु का विलक्षण सौंदर्य देखकर आशीष का मन मचल उठा. उसने सबको बैठने का आवेदन किया.
मधु जी: “सुनीति ने आपको मेरे आने का उद्देश्य बताया होगा. श्रीमती बालू बताएंगी कि उनका परीक्षण कैसा रहा.”
इस बार आशीष का ध्यान श्रीमती बालू पर गया और उसे आश्चर्य हुआ कि उन्होंने उसके साथ मिलन क्यों नहीं किया.
श्रीमती बालू, “मैं इस आयोजन की पर्यवेक्षिका हूँ और मुझे किसी भी प्रकार के सेक्स सम्बन्ध की अनुमति नहीं है. पर हम आज के बाद अवश्य ही मिल सकते हैं. पर वो बाद में देखेंगे. मैं ये सूचित करना चाहती हूँ की आपका पुत्र असीम अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया है. दोनों भाई सेक्स में पारंगत हैं पर ये केवल असीम का ही अनुमोचन है. इसका अर्थ ये है कि महक के लिए असीम को हम अपनी ओर से अनुमोदित करते हैं. इसके बाद आप दोनों के परिवारों पर इसके आगे का निर्णय होगा. पर मैं ये भी बताना चाहती हूँ कि एक और लड़के को भी हमने प्रस्तावित किया है. तो अब महक के परिवार को ही ये निर्णय लेना होगा कि वे किसे चुनेंगे.”
“इस सम्बन्ध की अगले ३ महीने में आपको पुष्टि करनी होगी. अन्यथा ये समाप्त हो जायेगा. आगे मधु जी बताएंगी.”
“नियम के अनुसार महक की माँ स्मिता को ये अधिकार है कि वो हमारे बताये हुए दोनों लड़कों को अपने मानकों के अनुसार तोले। इसमें किसी और का कोई भी योगदान नहीं होगा. पर मुझे लगता है कि असीम उन्हें भी संतुष्ट करने में सफल होगा.”
“धन्यवाद, आप लोग क्या पीना चाहेंगे?”
इसके बाद सब ने अपनी रूचि का पेय लिया और फिर तीनों स्त्रियों ने जाने की अनुमति चाही. जाने के पहले मधुजी ने आशीष को कहा कि सुनीति और वो परसों उनके घर पर आमंत्रित हैं और रात भी वहीँ ठहरेंगे.
जाते जाते चारु ने आशीष की ओर देखकर कहा, “आइयेगा अवश्य. मैं प्रतीक्षा करुँगी.”
सुनीति और आशीष ने उन्हें आने का आश्वासन दिया और फिर अथिति चले गए.
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बैठक में सुनीति और आशीष बातें कर रहे थे. अन्य परिवारजन अपने कार्यों में व्यस्त थे. जीवन बलवंत से फोन पर बात कर रहा था.
आशीष: “सुनीति, हमने समुदाय में प्रवेश तो किया है, पर मुझे लगता है कि हमें उसके पूरे नियम पता नहीं हैं. परसों जब हम मधु जी के घर जायेंगे तो हमें इसके बारे में बात करना और समझना आवश्यक है. हम अनजाने में ऐसा कुछ न कर बैठें जिससे कि हमारी सदस्य्ता समाप्त कर दी जाये.”
सुनीति: “आपकी बात ठीक है, पर मुझे आज मधु और सुनंदा से बात करने पर ये आभास भी हुआ कि वे नए सदस्यों को कुछ ढील देते हैं. अन्यथा समुदाय की सफलता और बढ़ोत्तरी सम्भव नहीं है. मेरा कहना है कि जब तक हम ऐसा कुछ न करें जो उन नियमों का उल्लंघन हो जो हमें समझाये गए हैं, कोई भी कठिनाई नहीं होगी. और मुझे जो बात सबसे अधिक भाई है वो ये कि परिवार की स्त्रियों को पुरुषों से अधिक अधिकार हैं. जो कि अपने आप में एक अनूठी परम्परा है.”
आशीष हँसते हुए बोला: “हमारे परिवार में तो तुम्हारी ही तूती बोलती है. हम सब तो बस काठ की कठपुतली हैं मैडम के सामने.”
सुनीति भी उसके साथ हँसते हुए बोली: “हाँ हाँ, जैसे आप मेरी हर बात मानते ही जाते हो.”
आशीष: “ऐसी कौन सी बात है तुम्हारी जो नहीं मानी गयी है. आने दो तुम्हारे मम्मी पापा को, उनसे भी ये सिद्ध करा दूंगा कि तुम ही घर की असली मालकिन हो.”
सुनीति: “अगर ऐसा है, तो इधर आइये और मेरी चूत को चाटकर शांत करिये. जब से ये तीनों आयी हैं, बहुत अधीर हो रही है.”
आशीष: “ जैसी मैडम की आज्ञा.”
ये कहकर वो सुनीति के सामने बैठा और उसकी साड़ी और पेटीकोट उठाकर उसकी चूत में अपना मुंह डाल दिया.
“तुम लोग ये सब अपने कमरे में नहीं कर सकते क्या?” जीवन के कर्कश स्वर ने उनका ध्यान बंटाया.
आशीष कुछ बोलता, इससे पहले ही सुनीति बोल पड़ी, “पिता जी, आप ने तो अपना मजा ले लिया पर मुझे क्यों रोक रहे हैं?”
जीवन ने ठिठोली करते हुए बोला, “क्योंकि, किसी ने चुदाई के बाद मेरे लंड को ठीक से नहीं चाटा, बस औपचारिकता ही पूरी की.”
सुनीति: “तो मैं किस दिन काम आऊंगी, आइये, मैं आपके लंड को चूस लेती हूँ.”
जीवन ने अपनी पैंट सरकाई और अपने लंड को सुनीति के मुंह में दे दिया. और यही वो क्षण था जब अग्रिमा ने घर में प्रवेश किया.
“ओह, तो मजा किया जा रहा है.” ये कहते हुए वो अपने कमरे में चली गई जैसे ये कोई साधारण बात हो.
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मधु जी का घर:
दो दिन बाद आशीष और सुमति मधुजी के आमंत्रण के अनुसार शाम सात बजे उनके घर पहुँच गए. मधु जी ने उनका स्वागत किया और अपने पति से परिचय कराया. उनके पति को देखकर आशीष और सुमति को कुछ आश्चर्य हुआ क्योंकि वे बहुत दुर्बल और थके हुए दिख रहे थे. मधु जी की आँखों के संकेत को देखकर उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा. मधु जी ने बताया कि उनका बेटा परख, बहू चारु और उनके बच्चे बाहर गए हैं और कुछ ही समय में लौट आएंगे. इसके लिए उन्होंने क्षमा भी माँगी। जब वो सब बैठ गए तो मधुजी ने अपने पति से सबके लिए कुछ पीने के लिए लाने का आग्रह किया. कुछ ही देर में वे बैठकर अपनी ड्रिंक्स की चुस्कियां के रहे थे.
तभी मधु जी ने अपने पति से कहा, “सुनिए, आपकी दवाई लेने का समय हो गया है. आप दवाई लेकर कुछ समय के लिए लेट लीजिये, फिर लौट आइयेगा।”
उनके पति बिना कुछ कहे उठकर चले गए. आशीष ने ये समय समुदाय के नियम समझने के लिए उपयुक्त समझा. मधु जी ने उन्हें कुछ अन्य नियम बताये. सक्षिप्त में सार ये था कि समुदाय के अस्तित्व के बारे में कभी भी किसी को नहीं बताना था. जो सदस्य ५ वर्ष से अधिक से सदस्य थे केवल वही नए सदस्यों के लिए आवेदन कर सकते थे. समुदाय अपने अंदर ही विवाह को बढ़ावा देता था, परन्तु अगर कोई बाहर विवाह करना चाहे तो १ वर्ष के लिए उसे समुदाय से निकाल दिया जाता था. इस समय में वे नए सम्बन्धियों को समुदाय के लिए स्वीकार्य कर सकते थे. अभी तक किसी का भी सम्पूर्ण निष्काशन नहीं हुआ था.
सुमति ने पूछा, “मधु जी, मेरे माता पिता इस महीने के अंत तक आने वाले हैं. हम सब वर्षों से घरेलु सम्भोग में लग्न हैं. मेरे और आशीष के परिवार में ये सम्बन्ध हमारे जन्म के पूर्व से है. वे कम से कम तीन महीने यहाँ रहेंगे. इस समय हमें क्या सावधानी रखनी होगी.”
मधुजी: “क्योंकि वे समुदाय में नहीं हैं, तो वे हमारे किसी भी कार्यक्रम में नहीं आ सकते. वे किसी समुदाय वाले के घर जब हमारी कोई पार्टी या गोष्ठी हो, नहीं जा सकते. अगर आपके घर कोई आता है और आप उन्हें सम्मिलित करते हो तो कोई आपत्ति नहीं है. पर ये ध्यान रहे कि उन्हें भी समुदाय की गोपनीयता का ध्यान रखना होगा, अन्यथा आपकी सदस्य्ता समाप्त की जा सकती है.”
सुमति: “क्या वो सदस्य बन सकते हैं?”
मधुजी: “अगर वे यहाँ के निवासी बन जाएँ तो छह महीने के बाद आप की गारंटी पर ये संभव है. पर अगर वे यहाँ के निवासी नहीं हैं तो मुझे आपको मना करना होगा.”
इसके बाद मधुजी ने वो बताया जो उनके मन में प्रश्नचिन्ह किये हुए था.
“आप अपितु मेरे पति को देखकर कुछ असमंजस में हैं. उनका स्वास्थ्य कुछ वर्षों से उनका साथ नहीं दे रहा. और उनका लंड भी अब खड़ा नहीं होता. पर नियम के अनुसार हम उन्हें समुदाय के मिलान में जाने से नहीं रोक सकते. मुझे कई महिलाओं की ज्ञाति मिली है जिन्होंने उनके साथ को अपर्याप्त बताया है. पर मैं इस विषय में कुछ नहीं कर सकती क्योंकि कोई भी ये नियम नहीं बदल सकता. है, अगर वे चाहें तो जाने से मना कर सकते हैं. पर हम उन्हें ये कहने के लिए असमर्थ हैं क्योंकि ये नियमों का उल्लंघन होगा.”
आशीष और सुमति को समझ आ गया कि समुदाय अपने नियमों का कितना आदर करता है, कि उसकी मुखिया भी उन्हें नहीं तिरस्कृत कर सकती.
मधु जी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “मेरे पति अब अलग कमरे में सोते हैं. मैं अपने बेटे, बहू और पोते पोती के साथ उनके कमरे में सोती हूँ. ये व्यवस्था उनके आग्रह पर ही की गयी है. हमारे कमरे कांच की दीवार से अलग किये हुए हैं और कई बार वे भी हमारे खेल में सम्मिलित होते हैं. परन्तु वे अपने मुंह और उँगलियों का ही उपयोग कर पाते हैं.”
तभी घर का दरवाजा खुला और ५ लोगों ने प्रवेश किया. चारु से तो आशीष और सुनीति मिल चुके थे. उसके साथ तीन छह फुट से भी लम्बे तीन पुरुष थे. इसमें से एक तो चारु का पति प्रतीत होता था और दो उसके पुत्र. एक बहुत ही सरल और भोली सी लड़की उनके साथ थी. हालाँकि कद काठी में वो भी कम नहीं थी, पर उसके चेहरे का भोलापन उसे उन सब से अलग कर रहा था. मधु जी उन्हें देखते ही अत्यंत खुश हो गयीं. लड़की के हाथ में एक बड़ा सा थैला था.
“दादी! देखो हम खाने के लिए क्या लाये हैं!” वो मधुजी के पास आकर बोली.
तब तक अन्य लोग भी बैठक में आ गए और सबका परिचय हुआ. मधु जी के बेटे लोकेश का अपना होटल की शृंखला थी जो अभी चार शहरों में थे. कुल आठ होटल थे और बहुत सफल भी थे. उसने अपने एक बेटे परेश को अपने साथ ही काम पर लगा लिया था. दूसरा बेटा कुणाल अभी होटल मॅनॅग्मेंट की पढाई कर रहा था. अगले वर्ष वो भी अपने पिता के साथ ही होटल के काम देखेगा. उनकी एक मात्र बेटी मान्या थी जो अभी कॉलेज में एम कॉम की पढ़ाई कर रही थी और CA की तैयारी भी. अंत में वो भी पिता के ही साथ काम करना चाहती थी.
इसके बाद आशीष और सुनीति ने भी अपना परिचय दिया। मान्या अपने दादाजी के पास चली गयी और वहां से कुछ देर में लौटी और अपने पिता की गोद में जा बैठी.
उसने आशीष की ओर देखकर कहा, “अंकल, आप अपने पापा से मेरे दादाजी को मिलवाओ. देखो आपके पापा अभी भी कितने स्वस्थ और सक्रिय हैं. पता नहीं मेरे दादाजी क्यों अब ऐसे हो गए हैं. हो सकता है उनसे मिलने के बाद इन्हें भी कुछ स्वास्थ्य लाभ हो.”
आशीष ने उत्तर दिया, “हाँ हाँ बिलकुल. मैं कल ही पापा से कहूंगा कि वे सर को मिलने आएं और उनसे मित्रता करें. मुझे विश्वास है कि सर को अवश्य लाभ होगा. वैसे सुनीति के पिताजी भी कुछ ही दिनों में आ रहे हैं और वे भी इसमें साथ देंगे. और मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि तुम अपने दादाजी का इतना ध्यान रखती हो. पर तुमने मेरे पापा को कब देखा?”
“समुदाय में जब आपको प्रवेश दिया जा रहा था.”
आशीष हक्का बक्का रह गया, उसे लगा था कि ये १७-१८ वर्ष की सीधी सादी लड़की थी, पर अगर वो मिलन में थी तो अवश्य २० वर्ष से अधिक की है और चुदवाने में भी अनुभवी होगी. उसकी इस बौखलाहट को लोकेश ने समझ लिया.
“आशीष भाई, मान्या को समुदाय में सम्मिलित हुए ७ महीने हो चुके हैं. इसे देखकर सब इसे छोटा ही समझते हैं, पर इसके भोलेपन के पीछे बहुत ही चतुर और चुड़क्कड़ लड़की है.”
“पापा! आप मेरी प्रशंसा कर रहे हैं या बुराई?”
“मैंने कब तेरी बुराई की? क्यों माँ ये चतुर है कि नहीं?
“बिलकुल. और चुड़क्कड़ भी है.” मधु जी ने उत्तर दिया.
“दादी, आप भी! ठीक है आज मैं आपकी चूत नहीं चाटूँगी.” उसने अल्हड़पन में कहा.
दादी कहाँ पीछे रहने वाली थी. उसने आह सी भरकर कहा, “ठीक है. मैंने तो सोचा था की सुमति आंटी से तेरी चूत चटवाऊँगी, पर अब तू मना कर रही है तो ठीक है.”
“ए दादी! मैंने उन्हें चाटने के लिए मना थोड़े ही किया है.”
लोकेश ने उन दोनों को रोका. “चलो ठीक है. मैं अपनी गलती मानता हूँ, तुम लोग मत शुरू हो जाओ.”
“देखा अंकल, मेरे पापा कितने अच्छे है.”
ये कहकर उसने लोकेश के होंठों पर एक लम्बा चुंबन दिया. फिर उठी और अपनी दादी के पास बैठ गई.
“वैसे आंटी मेरी दादी भी बुरी नहीं है, बहुत प्यारी है.” और इस बार मधुजी को उसका चुंबन प्राप्त हुआ.
“और मैं?” चारु बोली.
“मम्मा, आप दुनिया की सबसे अच्छी मम्मा हो.” और चारु के भी होठ चूम लिए.
लोकेश बोला, “कुणाल, जाकर अपने दादाजी को ले आओ, तब तक हम खाना लगाते हैं.”
कुणाल चला गया और मधुजी, चारु और मान्या रसोई में जाकर खाना परोसने लगे. लोकेश ने आशीष से पूछा कि क्या वो कुछ पीना पसंद करेगा, तो आशीष ने उसे मना कर दिया. कुछ ही देर में मधु जी के पति भी आ गए और तीनों बैठे बातें करते रहे. कुणाल और परेश अपने मोबाइल पर ही व्यस्त थे. खाना परोसने के बाद उन्हें बुलाया गया और सबने बहुत चाव से भोजन किया. पता चला कि खाना लोकेश के ही एक होटल से मंगाया गया था. पूछने पर लोकेश ने उन्हें होम डिलीवरी का नंबर दिया और उन्हें बताया कि कल तक वो उन्हें कूपन देंगे जिस पर उन्हें २०% की छूट भी मिलेगी.
लोकेश के पिता को आशीष ने बताया कि उसके पिता उन्हें कल मिलने आएंगे और ये सुनकर उनका चेहरा खिल उठा. सम्भवतः, सबके व्यस्त होने के कारण वे अकेलेपन से भी बीमार हो रहे होंगे. खाने के बाद कुणाल अपने दादा को उनके कमरे में ले गया. फिर सामान समेटने के बाद सब लोग आज रात के कार्यक्रम के लिए मधुजी के कमरे में चले गए. कमरा देखकर आशीष और सुनीत ठगे से रह गए. ये कोई सामान्य कमरा नहीं था. पहले तले पर ये कमरा कोई तीन सामान्य शयनकक्षों के बराबर रहा होगा. ये समझिये कि एक हॉल था. उसके बीचों बीच जो बिस्तर था उसकी बनावट भी भिन्न थी. चार बड़े पलंग पलंग इस प्रकार से लगे हुए थे कि उनके बीच का स्थान खाली था. चूँकि राजसी पलंग थे तो उनके बीच बहुत स्थान रिक्त था. वहां पर एक टेबल और २ कुर्सियां रखी हुई थीं. आशीष और सुनीति एक दूसरे को अचरज से देख रहे थे. उन्हें मधु जी के अपने पास आकर खड़े होने का आभास हुआ.
“पहले यहाँ चार कमरे थे. पर जब हमें लगा कि हमें साथ ही रहना है तो हमने दो कमरे हटाकर उन्हें भी इसमें ही जोड़ लिया. लोकेश के होटल का अनुभव काम आया और हमने इसे अपने खेलने और सोने का स्थान बना लिया.” मधु जी ने समझाया.
“पर अगर कोई सम्बन्धी देखेगा तो…?”
“हम किसी को यहाँ नहीं आने देते. जैसा आप देख रहे हो, इसके तीनों दरवाजे अभी भी वैसे ही हैं जैसे कमरे मिलाने के पहले थे. सब अलग दरवाजों से अंदर आते हैं और सब पर नंबर वाला ताला है, तो कोई ताकने झाँकने के लिए नहीं आता. वैसे अतिथियों के कमरे इसके ऊपर वाले तल्ले पर हैं और एक कमरा नीचे भी है. अभी तक किसी प्रकार की समस्या नहीं आयी. समुदाय वाले अवश्य इसके बारे में जानते हैं, पर वे ईर्ष्या ही करते हैं.” मधु जी ने बताया.
तभी चारु आगे आयी और आशीष का हाथ पकड़कर उसे एक ओर ले गयी. एक दरवाजा खोला तो देखा कि बाथरूम था.
“आप तैयार हो जाइये, बाथ रोब वहीँ हैं, उसे पहन लीजियेगा. उसके सिवाय आपको किसी और वस्त्र की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.” एक मीठी सी मुस्कराहट से साथ चारु ये कहकर चली गयी.
अंदर जाते हुए उसने देखा कि लोकेश सुनीति को भी एक दूसरे दरवाजे की ओर ले जा रहा है. नहाने के बाद आशीष ने वहां लटका हुआ रोब पहन लिया और कमरे में लौट आया. कमरे की भव्यता उसे अभी भी आश्चर्य चकित कर रही थी. कुछ ही समय में एक और दरवाजा खुला और लोकेश बाहर निकला. एक एक करके सभी लोग बाहर आये और सब ने उसी प्रकार के तौलिये के रोब पहने हुए थे. ये लोकेश के होटल के ही थे. तभी आशीष ने उस ओर देखा जहां से मधुजी निकली थीं. वस्तुतः एक और भी कमरा था और उन दोनों के बीच केवल कांच की ही दीवार थी. कमरे में प्रकाश था और उसे उसमें कोई बैठा हुआ दिख रहा था. अचानक से वो आदमी खड़ा हुआ और आशीष ने उन्हें पहचान लिया। वे मधु जी के पति थे. उनके अलग कमरे में होने पर उसे आश्चर्य हुआ, पर उनकी तबियत के कारण उन्हें अलग कमरा दिया गया था.
“अब बताओ, किसे क्या पीना है.” लोकेश ने एक कांच की अलमारी खोलकर पूछा, उसमे एक से एक मंहगी शराब की बोतलें थीं और एक छोटा फ्रिज भी था.
मधु जी और चारु ने वाइन पीने की इच्छा की तो सुनीति ने भी वही चुना. लोकेश और आशीष ने एक मंहगी स्कॉच ली और परेश, कुणाल और मान्या ने बियर ली. सब वहीँ बैठे बातें करने लगे. फिर मान्या ने एक बियर ली और कमरे से निकल गई. कुछ देर में उसे अगले कमरे में अपने दादाजी को बियर देते हुए देखा और फिर वो लौट आयी. पर इस बार वो लौट कर लोकेश की नहीं बल्कि आशीष की गोदी में बैठी.
और उसे एक गहरा चुंबन देकर बोली, “अंकल, उस दिन आपकी चुदाई देखकर मुझे बहुत मजा आया था. तो आज आपकी पहली चुदाई मेरी ही होनी चाहिए.”
चारु ने आपत्ति की, “अरे नहीं, मेरा नंबर पहले आएगा.”
लोकेश ने उसे समझाया, “क्यों बच्ची का दिल तोड़ रही हो. उसे चुदवा लेने दो पहले, तुम फिर आशीष से गांड मरवा लेना, उसके पहले तुम्हारी गांड को हम से से कोई नहीं छुएगा.”
चारु बेमन से मन गयी, पर उसने सोचा कि ये समझौता भी ठीक ही है.
पर मान्या ने भी अपना तर्क रखा: “मॉम, आप पहले ही अंकल के पापा और उनके लड़कों से चुदवा चुकी हो. प्लीज, मेरी बात का बुरा मत मानो।”
चारु ने उसके पास आकर उसके सिर को चूमा और कहा कि उसे कोई भी आपत्ति नहीं है, वो चाहे तो अंकल से गांड भी मरवा सकती है. आशीष के मन में लड्डू फूट रहे थे कि इतनी सुंदर और कमसिन लड़की की चुदाई का उसे अवसर म्मिल रहा था. उसने सुनीति की ओर देखा तो परेश को उसकी बगल में बैठा हुआ पाया और दोनों प्रगाढ़ चुंबन में लीन थे. लोकेश अपनी माँ को चूम रहा था और वहीँ कुणाल ने भी अपनी माँ चारु को जकड लिया था. चारु को देखकर आशीष के मन में एक क्षण के लिए ईर्ष्या हुई, पर मान्या ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया.
मान्या उसकी गोद से उतरी और उसके रोब को खोलते हुए उसके लंड से खेलने लगी. इतनी कमसिन लड़की को गोद में बैठाने से आशीष का लंड खड़ा तो हो ही चुका था और उसे अधिक प्रलोभन की आवश्यकता नहीं थी. परन्तु मान्या का ऐसा मानना नहीं था. उसने आशीष के सामने बैठते हुए उसके लम्बे मोटे लंड को अपने मुंह में लिया और उसे चूसने में व्यस्त हो गयी.
“मुझे आपके जैसे मोटे लंड बहुत अच्छे लगते हैं अंकल. और मम्मा ने तो मुझे इसे अपनी गांड में लेने की भी अनुमति दे दी है. आज मुझे बहुत मजा आने वाला है.” मान्या अपना मुंह लंड पर से हटाकर बोली.
“तुझे कब चुदवाने में मजा नहीं आता छुटकी ?” ये कुणाल था जिसने अपनी माँ के मोटे चुचों पर से अपने मुंह को हटाकर ये व्यंग्य किया था.
“आप जैसे अच्छे भाई हों तो चुदाई में मजा तो आएगा ही. आप क्यों जल रहे हो? आपको तो मम्मा मिली हुई हैं न?” ये कहकर मान्या ने दोबारा आशीष के लंड को निगल लिया. आशीष ने अपने चारों ओर चल रहे खेल को देखा। कुणाल अब चारु के रोब को हटा चूका था और चारु के मोटे मोटे स्तन लाल हो गए थे. लगता है बेटे ने माँ को अच्छे से दुहा था. और अब उसकी चूत में मुंह डाले उसे खाने का प्रयास कर रहा था. चारु उसके बालों को सहला रही थी और उसका उत्साह भी बढ़ा रही थी.
“खा ले मेरी चूत कुणाल. सुबह से इसका किसी ने इसका ध्यान नहीं रखा. अच्छे से चाट और खा जा इसे.”
कुणाल बिना कुछ कहे अपने कार्य में लगा रहा. आशीष ने फिर मधुजी की ओर देखा तो उनका भी रोब उतरा हुआ था और उसे इस आयु में भी उनके इतने गठे शरीर को देखकर कुछ अचरज हुआ. सम्भवतः उनकी दिनचर्या में चुदाई का इतना अधिक योगदान था कि उनका शरीर बुढ़ापे को धोखा दे रहा था. आशीष को अपनी सास गीता की याद आ गयी. मधु जी और वो लगभग एक ही आयु की थीं और दोनों अभी भी किसी भी जवान लड़की को ईर्ष्या करवा सकती थीं. और जवान लौंडे अभी भी उन्हें देखकर आहें भरते थे. इस मामले में मधु जी आगे थीं, क्योंकि उन्हें नए और जवान लंड आसानी से प्राप्त थे जबकि गीता को ऐसा अवसर प्राप्त नहीं था. पर उनके यहाँ आने के बाद ये स्थिति बदलने वाली थी.
मधु जी भी अपने बेटे लोकेश के लंड को चूस रही थीं और जैसा आशीष का अनुमान था वो भी एक अच्छा तगड़ा लंड था. सुनीति की चूत में अब परेश मुंह घुसाए हुए था और सुनीति अपनी प्रवृत्ति के अनुसार ऑंखें बंद करके उसके इस पराक्रम का आनंद ले रही थी. उसका लंड कुछ तन के छिटका तो उसका ध्यान वापिस मान्या की ओर आया. लड़की की इस अल्पायु में भी लंड चूसने की प्रतिभा विलक्षण थी. मान्या ने उठकर अपना तौलिया निकाला और फिर आशीष को भी नंगा कर दिया. फिर उसने कांच की दीवार को देखकर हाथ हिलाया और अपनी चूत को आशीष के लंड पर रखा और एक ही झटके में पूरा अंदर उतार लिया. आशीष ने कांच की ओर देखा तो मधु जी के पति वहां खड़े हुए कमरे में चल रहे संग्राम को देख रहे थे, उन्होंने भी अपने कपड़े निकाले हुए थे और उन्हें देखकर लगता था कि इस समय वे अपने लंड को मुठ मार रहे थे.
“क्या मस्त लंड है अंकल आपका, बिलकुल चीरकर अंदर गया है. मजा आएगा आज चुदाई में.” मान्या ने सीत्कार लेकर बोला तो आशीष का सीना फूल गया.
“बेटा कुणाल, अब बहुत खा लिया तूने मेरी चूत को, अब पेल भी से अपना लंड, सुबह से प्यासी हूँ.” चारु ने कहा.
कुणाल को अपनी माँ की इस लालसा का पता था. उन्हें दिन में न जाने कितनी बार चुदने की इच्छा होती थी. अगर उनका बस चलता तो वो लाइन में लोगों को लगाकर चुदवाती. चारु की इस बात से आशीष ध्यान उस ओर गया था और उसने कुणाल को चारु की चूत पर अपने लंड को रखते हुए देखा. उसे एक बार फिर न जाने क्यों कुणाल से ईर्ष्या हुई. पर उसके लंड पर भी चारु की बेटी जो उठक बैठक कर रही थी उसके कारण वो अधिक देर तक उस ओर न देख पाया और उसने मान्या के मम्मों को पकड़ा और उन्हें मसलने लगा.
“हाँ अंकल, ऐसे ही दबाओ, काटो, काटो भी.”
इतनी सीधी दिखने वाली लड़की की ऐसी इच्छा से आशीष ने फिर आश्चर्य किया और अपने दातों में लेकर एक निपल को हल्के से काटा और फिर दूसरे को. उछलती हुई मान्या का शरीर थरथराने लगा. आशीष के अपने लंड और जांघों पर कुछ तरल सा बहता हुआ अनुभव हुआ तो वो जान गया कि मान्या की चूत रस छोड़ रही है. अब तक स्थिर रहकर वो मान्या को ही पूरी मेहनत करने दे रहा था, पर अब उसे लगा कि उसका भी कोई कर्तव्य है. वो अपने शक्तिशाली कूल्हे उठाकर मान्या की चूत में लंड को गहराई तक धकेलने लगा. एक ओर से मान्या नीचे आती तो आशीष उसकी चूत में लंड पेलकर उसे ऊपर उछाल देता. मान्या की इन्द्रियां शिथिल होने लगीं.
उसके पिता और भाई भी उसे मस्ती से चोदते थे, पर वो नए लंड के लिए सदैव उतावली रहती थी. समुदाय से जुड़ने के बाद अब उसकी ये इच्छा अधिकतर परिपूर्ण होती थी. परन्तु उसे अपने घर और कमरे में चुदाई में अधिक आनंद आता था. और आशीष ने जिस प्रकार से अब धक्के आरम्भ किये थे, मान्या की मन की इच्छा पूरी हो रही थी. उसकी कसी चूत को आशीष का लंड बहुत अच्छे से चोद रहा था. उसकी चूत से बहता हुआ पानी आशीष की जांघों पर फ़ैल रहा था. अचानक ही उछलते हुए उसका शरीर अकड़ा और कांपने लगा. इस बार वो फिर से झड़ रही थी और कुछ निढाल सी हो गई. उसने उछलते रहने का प्रयास तो किया पर उसकी शक्ति क्षीण हो चली थी.
आशीष ने उसकी दुविधा को समझा और अपने लंड को बाहर निकाले बिना ही उसे अपनी बाँहों में लिया और पलट कर लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ाई करते हुए द्रुत गति से उसे चोदने लगा. मान्या की आँखें बाहर निकल पड़ीं, पर उसने आशीष को और जोर से चोदने के लिए उत्साहित किया. आशीष ऐसे अवसर खोने वालों में नहीं था, और उसने लम्बे सटीक धक्कों से मान्या की चूत का बैंड बजाना आरम्भ कर दिया. इसके कारण जब तक आशीष झड़ा, तो लगभग दस मिनट में, मान्या दो या तीन बार और झड़ गयी. अंत में आशीष ने एक चिंघाड़ के साथ मान्या की चूत में अपना रस छोड़ दिया और उसके ऊपर लेट गया.
जब उसे कुछ समय का ज्ञान हुआ तो उसने अपने आसपास देखा. कुणाल अभी भी अपनी माँ चारु की चुदाई में व्यस्त था और जवान होने के कारण शिथिल नहीं पड़ा था. सुनीति अब घोड़ी बनी हुई थी और परेश अपने विशाल लौड़े से उसे पीछे खड़ा होकर चोद रहा था. मधु जी लेटकर चुदवा रही थीं और लोकेश की गति से लगता था कि वो भी अब झड़ने के निकट था. और आशीष के देखते ही देखते लोकेश ने भी अपनी माँ की चूत को लबालब कर दिया. अपने लंड को बाहर निकालकर उसने मधुजी को प्रस्तुत किया और उन्होंने चाटकर उसे साफ किया और फिर अपनी चूत में उँगलियाँ डालकर उसमे से रस निकाला और अपने चेहरे पर मल लिया.
कुणाल ने अपनी माँ के सामने हाथ डाल दिए और चारु की चीत्कारों ने उसे अपने शिखर से नीचे धकेल दिया. उसके रस से चारु की चूत पूरी भर गई. अंत में परेश ने सुनीति की चूत को अनुग्रहित किया और उसमे अपना कामरस छोड़ दिया. सभी पुरुष बैठकर हांफने लगे और महिलाएं अपनी चुदाई के सुख में लीन एक मुस्कराहट के साथ लेटी रहीं. सबसे वरिष्ठ होने के बाद भी सबसे पहले मधु जी ही उठीं और आकर मान्या की चूत के सामने बैठीं और उसे चाटने लगी. फिर उन्होंने अपनी जीभ से उसकी चूत से आशीष का रस खींचा और मुंह से निकालकर अपने चेहरे और वक्ष पर मल लिया. यही कार्य उन्होंने सुनीति और चारु की चूत के साथ भी किया. फिर चारु ने उनकी चूत से रस पिया और अपने चेहरे पर मला.
“मम्मी जी की जवानी का यही रहस्य है, वो इस रस को कभी व्यर्थ नहीं जाने देतीं.” चारु ने अपनी सास के होंठ चूमकर सुनीति को ज्ञान दिया.
“चलो, एक ड्रिंक और लेते हैं फिर इस बार साथी बदलकर गांड मारने का कार्यक्रम करेंगे.”
“पापा, नहीं, मम्मा ने मुझे अंकल से गांड मरवाने की अनुमति दी है. आप बदलो साथी, मेरे लिए तो इस बार अंकल ही रहेंगे. मैं अगली बार बदलूंगी.”
“यार ये लड़की.” लोकेश ने सिर हिलाया. “चल ठीक है. हम बदल लेंगे.”
कुणाल और परेश उठकर ड्रिंक बनाने लगे. मान्या ने एक बियर ली और अपने दादाजी को देने नंगी ही चली गई.
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मान्या ने आने में कुछ अधिक ही समय लगा दिया था. न जाने क्यों आशीष उसकी राह देख रहा था.
सुनीति उसके पास आकर बैठी और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोली, “बहुत देर लगा रही है तुम्हारी मान्या.”
आशीष झेंप गया. पर उसने सुनीति को भी छेड़ते हुए कहा, “तुम्हें भी तो नए नए लंड मिल रहे हैं, तो किस बात की शिकायत कर रही हो.”
सुनीति: “हाँ, अब देखें मेरी गांड के लिए किसे चुनती हैं मधु जी. जो भी हो, इन सबके भी लंड हमारे घर वालों से कम नहीं हैं.”
आशीष: “वो तो मैंने भी देखा.”
तभी मान्या उछलती हुई कमरे में आई. उसे देखकर ही पता चल गया कि उसे देर क्यों हुई थी. उसके होंठों के कोने पर सफेद द्रव्य था जो अवश्य ही वीर्य था. वो मधुजी के पास गई और उन्हें भी दिखाया.
मधुजी: “वाह रे मेरी गुड़िया रानी. दादाजी का रस पीकर आयी है. वैसे वो कैसे हैं ये सब देखकर?”
“दादी, आज तो दादाजी ने कमाल कर दिया. पूरे दस मिनट लगाए झड़ने में. मुझे लगता है, कि वो पुराने वाले दादाजी लौटने ही वाले हैं.”
मधुजी ने आशीष और सुनीति की ओर देखकर कहा, “मान्या का उद्घाटन उन्होंने ही किया था. हालाँकि लोकेश की बड़ी इच्छा थी, पर मान्या ने उन्हें ही चुना था. पिछले साल से न जाने क्यों वे बहुत दुर्बल हो गए हैं. पर मान्या आज भी उनके लंड से रस निकाल ही लेती है, जो मैं और चारु चाहकर भी नहीं कर पाते।”
आशीष ने अब दृढ निश्चय किया कि वो जीवन से उनके खोये हुए स्वास्थ्य के लिए उचित व्यवस्था करने का आग्रह करेगा. मान्या ने जाकर अपनी माँ को चूमकर उसे दादाजी का रस चटा दिया और आकर आशीष की गोद में बैठ गयी.
“आंटीजी, दादी अब आपको बताएंगी कि आगे क्या करना है, पर मेरा तो अंकल से गांड मरवाना निश्चित है.” सुनीति ने मधुजी की ओर देखा तो वो मुस्कुरा रही थीं.
“मैं चाहूंगी कि इस बार परेश अपनी माँ की गांड मरे, और कुणाल मेरी. और मेरा बेटा लोकेश जो इतनी देर से सुनीति के लिए लार टपका रहा है, उसे सुनीति को गांड मारने का अवसर दिया जाये. किसी को कोई आपत्ति?”
आपत्ति का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था. लोकेश ने आकर सुनीति का हाथ पकड़ा और उसे दूसरे बिस्तर पर ले गया. परेश चारु और कुणाल मधुजी के बिस्तर पर जाकर उनके सामने खड़े हो गए. आशीष ने एक दृष्टि साथ वाले कमरे पर डाली तो वहां अँधेरा हो चुका था. मान्या उठी और एक ओर चली गयी, लौटी तो उसके हाथ में जैल की तीन ट्यूब थीं. उसने एक एक ट्यूब अपने पापा लोकेश और भाई परेश को पकड़ाईं और एक अपने हाथ में लिया आशीष के पास आ गयी.
“अंकल, आपका लंड बहुत मोटा है, बिना इसके मेरी गांड फाड़ देगा.” उसने आशीष से कहा.
आशीष ने उसके चेहरे को अपनी ओर खींचा और उसे एक गहरा चुम्बन दिया, “ऐसा मैं कभी नहीं होने दूंगा. और इसका प्रयोग मुझे अच्छे से आता है.”
“ये मम्मा ने समझाया है मुझे.” मान्या ने बड़े गर्व से बताया. वो आज तक बिना जैल के किसी को अपनी गांड में नहीं घुसने देतीं. पापा को भी नहीं.”
चारु ने बताया: “ ओह हो हो! जैसे मेरी हर बात मानती है ये.”
इससे पहले कि माँ बेटी का एक और वाक्युद्ध प्रारम्भ हो, लोकेश ने कहा, “इस विषय में हम बाद में बात करेंगे. अभी तो मुझे सुनीति जी की गांड और आशीषजी को तुम्हारी गांड का आनंद लेना है.”
ये कहते हुए लोकेश ने सुनीति, जो कि घोड़ी का आसन ग्रहण कर चुकी थी, के नितम्ब फैलाये और उसके बीच में भूरे खुरदुरे छेद को खुलने का अवसर दिया. गांड के छेद में अपनी लार की एक धार छोड़ते हुए लोकेश ने उसने अपना मुंह घुसा दिया और उसे चाटने में व्यस्त हो गया.
“मेरे पापा इतनी अच्छी गांड चाटते हैं अंकल कि आंटी सब कुछ भूल जाएँगी.”
“हम्म, तो मैं भी तो देखूं कि तुम्हारी गांड का कैसा स्वाद है.” आशीष ने उसे छेड़कर कहा.
“अंकल, मेरी जैसी गांड आपको दुनिया में नहीं मिलेगी. एकदम कसी हुई और हमेशा लौड़े के लिए तत्पर.”
“हम्म्म, तुम्हारी बात सुनकर मुझे अपनी बेटी अग्रिमा की याद आ गयी. उसे भी अपनी गांड पर इतना ही गर्व है.”
“अगली बार मैं आपके घर आउंगी उससे मिलने, फिर हम आपको दोनों का अंतर बताने का अवसर देंगे. पर अभी तो आप मेरी गांड पर ध्यान लगाइये.”
मान्या ये कहकर घोड़ी के आसन में आ गयी और आशीष को मुस्कुराकर पीछे मुड़कर देखने लगी. आशीष को इससे अधिक आमंत्रण की आवश्यकता नहीं थी. उसने मान्या की गांड फैलाई और अपनी जीभ उसमे घुसा दी और उसे अंदर घुमाने लगा. मधु जी ने कुणाल के लंड को अपने मुंह में लिया और चूसने में व्यस्त हो गयीं.
“ओह, दादी. तुम जैसा लंड चूसने वाली आज तक नहीं मिली.” कुणाल ने उनसे कहा.
“अभी अगर तेरी माँ चूसेगी, तब तू उसे भी यही कहेगा. और जब भी कोई समुदाय की औरत चूसती है, तब भी यही कहता है. झूठ उतना कह जितना पकड़ा न जाये.”
“अरे दादी, आप कहाँ बात पकड़कर बैठ गयीं. मुझे लंड चूसने वाली हर औरत प्यारी लगती है. इसमें मेरा क्या दोष?”
आशीष ने धीमे स्वर में मान्या से पूछा, “तुमने सबके लिए जैल की ट्यूब लायी, अपनी दादी के लिए क्यों नहीं?”
“उन्हें आवश्यकता नहीं है. उनकी गांड वैसे भी इतने लौड़े खाकर खुल गयी है. जैल लगाने से उन्हें बिलकुल भी आनंद नहीं आता। अभी देखना जब आप उनकी गांड मरोगे तब आपको पता लग जायेगा.” ये सुनकर आशीष का लंड बल्लियों उछाल मारने लगा.
“और तुम्हारी मम्मा की गांड मिलेगी आज?” कुछ उत्सुकता से आशीष पूछ ही बैठा.
“ये तो आप के ऊपर निर्भर है, मम्मा तो सुबह से इसी आस में थीं. मैंने उनका नंबर काट दिया. पर आपका नंबर जरूर लगेगा. पर पहले मेरी गांड तो मार लो, अंकल.”
आशीष अपनी जीभ फिर से मान्या की गांड में घुमाने लगा. और मान्या भी अपनी गांड उछाल उछाल कर इसका आनंद लेने लगी. सुनीति की गांड को अब तक लोकेश भली प्रकार से चाटकर चिकना कर चुका था. उसने इस बार गांड खोली और ट्यूब से भरपूर मात्रा से सुनीति की गांड भर दी. सुनीति ने अपनी गांड को सिमटाया और खोला जिसके कारण जैल अच्छे से गांड में चला गया. लोकेश ने अपने लंड को सुनीति के मुंह के आगे किया तो सुनीति ने निसंकोच उन मुंह में लेकर चाटना शुरू कर दिया. जल्दी ही लोकेश का लंड अपने पूरे आवेश में आ चुका था.
परेश ने अपने लंड को चारु के मुंह से निकला और उसे भी घोड़ी का आसन लेने के लिए कहा. फिर उसकी गांड फैलाकर ट्यूब में से जैल अंदर डाला और बिना किसी और विचार के अपने लंड को चारु की गांड पर लगाया और एक शक्तिशाली धक्के के साथ एक ही बार में अंदर पेल दिया. धक्के की तीव्रता से चारु थोड़ा आगे की ओर ढुलक गयी पर उसने तुरंत अपने आप को संभाल भी लिया. वो इस प्रकार की चुदाई की आदी थी और जानती थी कि अब उसकी गांड बड़ी ही निर्ममता के साथ मारी जानी है. पर उसे ऐसी ही चुदाई में सुख मिलता था.
“वाह रे मेरे लाल, तूने कर दिया कमाल। मार मेरी गांड अच्छे से, खोल कर रख दे इसे आज फिर. दो दिन से किसी ने इसकी ओर देखा भी नहीं. और जोर से चोद.”
चारु की इस चिल्लाहट ने सबका ध्यान उसकी ओर खींच लिया. बगल के कमरे की भी बत्ती जली और मधु जी के पति कांच के उस ओर से कमरे में चल रहे व्यभिचार को एकटक देखने लगे. लोकेश ने अपनी पत्नी की चीख का उत्तर देने के लिए सुनीति की गांड पर अपने लंड को रखकर उतना ही भीषण धक्का मारा. सुनीति इस प्रहार के लिए जैसे उत्सुक थी और लोकेश को आशा थी कि अगर वो भी चारु के समान चीखेगी और चिल्लायेगी तो वातावरण में कुछ और आनंद व्याप्त होगा. तो सुनीति ने भी लोकेश को चीख चीखकर गांड फाड़ने का अनुरोध किया. लोकेश ने ये अपेक्षा नहीं की थी, उसे तो लगा था की इस झटके से सुनीति डर जाएगी और दया की याचना करेगी. पर उसे क्या ज्ञान था की सुनीति के बेटे उसे किस प्रकार से चोदते थे. उसने सुनीति की गांड में तेजी से लंड से हमला करना शुरू कर दिया.
“अंकल, अब मेरी गांड का नंबर लगा ही दो, नहीं तो दादी शुरू हुई तो हमारी कोई सुनेगा ही नहीं.” मान्या ने आशीष को समझाया.
आशीष ने अपने लंड को मान्या की छरहरी काया के बीच में लुपलुपाते हुए गांड के संकरे छेद पर लंड लगाया और बड़ी शालीनता और प्रेम से उसे अंदर डाल दिया. धीमी गति से कुछ ही समय में आशीष का लंड मान्या की तंग गांड में जाकर खो गया. आशीष अपने लंड को उस गर्म गुफा में चलाने लगा और कुछ ही समय में एक अच्छी गति पकड़ ली. इस पूरे समय मान्या ऐसी चीखें निकाल रही थी मानो ये उसकी गांड में पहली बार लौड़ा गया हो. आशीष को उसका ये खेल जल्दी ही समझ आ गया और उसने बिना संकोच अपनी पूरी शक्ति से उस कसी गांड की अपने लंड से मालिश करना चालू रखा.
मान्या का अपनी दादी के बारे में विचार भी आशीष को पता चल गए जब मधुजी की चीखों ने उन सबको दबा दिया. वो इस प्रकार से चिल्ला चिल्ला कर कुणाल को अपनी गांड मारने के लिए उत्साहित कर रही थीं कि और कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. इस आयु में उनके इतने तीव्र स्वर में चुदाई करवाना सच में अचरज था. पर कुणाल ने भी अपनी ओर से कोई पराक्रम नहीं छोड़ा. बिना तेल या जैल के केवल थूक सी गीली की गई गांड उसके उतना ही सुख दे रही थी जितना उसकी माँ और बहन की गांड जैल के साथ देती थीं. कमरे में अब घोड़ी के आसन में चार औरतों की गांड की जोरदार चुदाई चल रही थी. अलग अलग स्वर में चीखती और अधिक तेजी से गांड मारने का आव्हान करने के स्वर कमरे में गूंज रहे थे.
“अंकल, मेरी गांड फाड़ दो. मेरी भाई और पापा भी फाड़ते है, पर हर दिन नहीं. दादाजी, पहले रोज मारते थे मेरी गांड, पर अब नहीं मारते। प्लीज अच्छे से मारो न.”
इसी प्रकार के स्वरों से कमरे का वातावरण अश्लील और वीभत्स हो चुका था. बगल के कमरे की बत्ती फिर बंद हो गई. पर इस कमरे में चुदाई का कार्यक्रम अनवरत चलता रहा. कोई दस से पंद्रह मिनट के अंतराल के बाद एक एक करके लौड़े अपने रस को गांड भरने लगे. आशीष के हिस्से में सबसे कसी गांड आयी थी और उसका रस भी सबसे पहले ही छूटा. लोकेश ने सुनीति की गांड को भरा और फिर परेश ने अपनी माँ चारु की गांड में अपना पानी छोड़ दिया. मधुजी की गांड में पानी सबसे अंत में कुणाल ने छोड़ा. फिर सारे पुरुष एक ओर बैठ गए. परन्तु महिलाएं अपने आसन में बनी रहीं. फिर मधुजी ने सबको बाथरूम ले जाकर धुलाई करवाई.
तभी मधुजी के पति आये और बोले, “अच्छा लगा आशीष तुम्हारा साथ हम लोगों को. अब तुम लोग आनंद लो. मधु का ध्यान रखना और इसे अच्छे से चोदे बिना मत जाना.” ये कहकर उन्होंने फ्रिज में से एक बियर निकाली और अपने कमरे में चले गए.
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आशीष अभी भी अचम्भे में था. उसने अपने सामने मधुजी को खड़ा पाया तो उनकी ओर देखा.
“हम उनकी खोई हुई शक्ति को वापिस नहीं ला पा रहे हैं. जिस दिन ऐसा कुछ हुआ, तो वे बदल जायेंगे. मुझे इस बात का अत्यंत दुःख है कि वे हमारे खेल में सम्मिलित नहीं हो सकते. पर सच कहूँ तो उनकी चुदाई के आगे मेरे लिए सारी ब्रम्हांड से चुदाई भी कम है.”
आशीष: “मैं अपने पिता से अवश्य इसके लिए सहायता लूंगा. न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि वो सर के पुराने दिन लौटा सकते हैं.”
इतने में ही कुणाल ने पूछा: “दादी, अब क्या सोचा है?”
मधुजी ने उसकी ओर एक आहत दृष्टि से देखा और कहा: “मैं तो आज के लिए तृप्त हो गयी, अब सुबह इनके जाने के पहले एक बार और चुदवा लूंगी। पर आज नहीं.”
मान्या जो अपने दादाजी से अत्यधिक प्रेम करती थी उसने भी आज के लिए मना कर दिया. इस पर मधु जी ने सुझाव दिया.
“अब केवल सुनीति और चारु ही हैं जो आगे चुदवाने की इच्छा रखती हैं तो क्यों न तुम चारों बदल बदल कर इन दोनों की ही डबल चुदाई करो. वैसे भी चारु को अपनी चूत और गांड में एक साथ लौड़े लेने में बहुत आनंद आता है.”
आशीष: “सुनीति का भी यही मन पसंद खेल है. उसे तो अपनी चूत में एक साथ दो लंड लेने में भी मजा आता है.”
मधु जी: “हाँ, मैं उस क्रीड़ा अपने लिए कल सुबह के लिए आरक्षित करती हूँ. चारु अपने लिए बताये.”
चारु: “मुझे तो अभी से दो दो लंड मेरी चूत में जायेंगे यही सोचकर रस बहने लगा है. पर मुझे एक चूत और एक गांड में अवश्य ही चाहिए.”
सुनीति ने उसे आश्वासन दिया, “चिंता न करो, तुम्हारी दोनों इच्छाएं पूरी हो सकती हैं. पर पहले चूत में दो लंड ले कर देखो, फिर आगे देखना. वैसे भी हम चारों को बदल बदल कर चोदने वाली हैं, तो हर लंड गांड भी मारेगा और चूत को भी सुख देगा.”
चारों पुरुष इस बात से अत्यंत प्रसन्न हो गए. और अपनी आगे की रणनीति पर विचार करने लगे.
परन्तु सुनीति ने चारु को पास बुलाकर कान में कहा, “चूत में अगर दो लंड लेने हैं, तो अपने बेटों के लेना. वही तुझे शांत कर पाएंगे और उनकी ताल भी मिली रहेगी. मैंने इन के साथ और अपने एक बेटे के साथ एक बार प्रयास किया था पर इन दोनों की ताल न मिलने से कठिनाई ही हुई थी. मैं इन दोनों को संभाल लूंगी।”
चारु ने बात समझ कर सिर हिला दिया. चारु ने बताया कि कैसे जोड़ियां बन रही हैं.
“चूत में दो लंड के लिए मेरे साथ परेश और कुणाल रहेंगे और सुनीति के साथ आशीष जी और आप.” लोकेश को देखकर उसने बताया. “चूत और गांड के लिए जिसे जो स्थान मिले वहीँ लग जाये. मेरे विचार से गांड में मेरे लिए पहले आशीष जी रहेंगे, और सुनीति अपने साथी को चुन लें. इसके बाद जिसे अवसर मिलेगा वो लग जाये.”
सुनीति ने अपना चयन बताया, “ कुणाल. कुणाल को पहला अवसर मेरी गांड में, बाद में जैसा चारु ने कहा.”
चारु: “मम्मी जी, आप और मान्या जाने के पहले इनमे से दो लंड चाटकर खड़े करते जाओ.”
मधुजी ने आशीष के लंड मुंह में लिया तो मान्या अपने पापा के लंड पर मुंह लगाकर चाटने लगी. सुनीति ने कुणाल और चारु ने परेश के लौडों को खड़ा करने का दायित्व उठाया. अब दो बार झड़े लंड इतनी सरलता से तो खड़े होने वाले थे नहीं, हालाँकि परेश और कुणाल के लौड़े जल्दी ही पूरे आक्रोश में आ गए. सुनीति ने चारु से कहा कि वो चारु को इस आसन के लिए सहायता करेगी जिससे उसे कोई चोट न लगे.
ये कहते हुए उसने परेश को नीचे लेटने के लिए कहा और उसके लेटने के बाद सुनीति ने ट्यूब लेकर बहुत सारा जैल चारु की चूत में अपनी उँगलियों से लगा दिया. फिर उसे परेश के लंड पर बैठकर अपने अनुसार चूत में लेने को कहा. उसने ये भी कहा कि इस आसन में उसकी पीठ परेश की ओर रहना चाहिए. चारु ने सामान्य रूप से परेश के लंड को अपनी चूत में समा लिया और ठहर गयी. ये देखकर अब लोकेश और आशीष के भी लंड तन गए. लोकेश विशेषकर इस पूरे वृत्तांत को ध्यान से देख रहा था. जब मधुजी ने देखा कि उनका कार्य सम्पन्न हो गया है तो उन्होंने मान्या को लिया और अपने पति के कमरे में चली गयीं.
अब सुनीति ने कुणाल को संकेत किया कि वो अपने लंड को अपने भाई के लंड के बगल से अपनी माँ चारु की चूत में डाले, पर उसे ये भी समझाया की अधिक जल्दी न करे अन्यथा लंड या चूत के छिलने की संभावना रहेगी. और इसीलिए जैल का प्रयोग किया है कि कठिनाई न हो. कुणाल ने एक सधी हुई धीमी गति से अपने लंड को चारु की चूत पर लगाया और उसे भीतर धकेलने लगा. आशीष ये खेल कई बार देख चुका था सुमति के साथ पर उसे आज भी स्त्री की चूत की बनावट पर अचरज होता था जो इस प्रकार से फ़ैल जाती है. और लोकेश! वो तो किंकर्तव्यविमूढ़ था, उसकी ऑंखें आश्चर्य ने फैली हुई थीं और मुंह खुला हुआ था. धीरे धीरे कुणाल ने भी अपने लंड को चारु की चूत में परेश के लंड के बगल में डाल ही दिया.
चारु आज अपनी चूत को जितना भरा हुआ अनुभव कर रही थी, उसका कोई पर्याय नहीं था. सुनीति ने अब दोनों लड़कों को आगे की प्रणाली समझाई। पहली बात ये थी कि उन्हें एक ही साथ दोनों लौडों को अंदर और बाहर करना था, अन्यथा छिलने की संभावना थी. उसने समझाया की चूत और गांड एक साथ मारने और चूत को दो लौडों से चोदने में यही वस्तुतः मुख्य अंतर है. और इसका ध्यान चाहे कितना भी जोश हो पूरे समय रखना होता है. दूसरा ये कि गति दोनों को एक ही रखनी होगी, और इसीलिए बहुत तीव्र गति सम्भव नहीं होती है, बिना समुचित अनुभव के. पर आनंद की ऊंचाई ऐसी होगी जो आज तक इन तीनों ने नापी नहीं होगी.
फिर उसने उन्हें ये भी समझाया कि जब वो बताये तब वे रुक जाएँ क्योंकि पहली बार के बाद इसमें चोटिल होने की संभावना बहुत रहती है. ये कहकर सुनीति ने उसे अपने कार्यक्रम को आरम्भ करने की आज्ञा दी. उसने देखा तो उसके दोनों ओर लोकेश और आशीष आकर खड़े हो चुके थे.
“बस कुछ समय दो, एक बार ये चुदाई ठीक प्रकार से करने लगें, फिर आप दोनों का ही नम्बर है मेरी चूत में.”
दोनों भाई का तालमेल सुचारु था और उन्होंने एक मध्यम लय में अपने लौडों से एक साथ अपनी माँ चारु की चुदाई करने में सफलता पाई. सुनीति ने आशीष को लेटने के लिए कहा और उसके लंड पर अपनी चूत लगाकर अंदर ले लिया. फिर उसने लोकेश को संकेत दिया और लोकेश ने जिस प्रकार से देखा था, उसी प्रकार अपने लंड को भी सुनीति की चूत में उतार दिया.
“अब दोनों मुझे चोदो पर ध्यान रहे जो मैंने कहा है.”
लोकेश और आशीष ने भी एक तय लय पकड़ ली और सुनीति की चुदाई शुरू हो गई. चारु ने जीवन में इस प्रकार के सुख की कल्पना नहीं की था. अद्भुत, अकल्पनीय आनंद के वो वशीभूत थी. उसके मुंह से केवल आहें और सिसकारियां ही निकल रही थीं. पर उसे सुनीति द्वारा दी गई निर्देशों का अर्थ भी समझा में आया. अगर उसके दोनों पुत्र इससे अधिक गति से चुदाई करते तो ये तय था कि उसे कठिनाई भी होती और चूत भी छिल जाती.
मंथर गति से ये दोनों तिकड़ी कुछ साथ आठ दस मिनट और इसी आसन में चुदाई करते रहे. इसके बाद सुनीति ने कहा कि अब आसन बदलना होगा नहीं तो चारु की चूत चरमरा जाएगी. आशीष और कुणाल ने अपने लंड बाहर निकाल लिए और फिर चारु और सुनीति ने आसन बदला और इस बार उनका मुंह नीचे लेटे हुए चोदू की ओर कर लिया. आगे झुकते हुए उन्होंने अपनी गांड को अगले आक्रमण के लिए प्रस्तुत किया.
आशीष ने अपने लंड को चारु की गांड पर लगाकर बड़े प्रेम से उसकी गांड में उतार दिया. अब उसका और परेश के लंड के बीच केवल चूत की एक पतली सी झिल्ली ही थी. परेश आशीष के लंड के अंदर जाने तक रुका रहा और फिर आशीष और परेश ने एक साथ तालमेल बैठाते हुए चारु की चूत और गांड दोनों में लंड पेलना आरम्भ कर दिया. चारु को इस प्रकार से चुदवाने में बहुत सुख मिलता था और आज भी उसे वही आनंद प्राप्त हो रहा था.
सुनीति की गांड में कुणाल ने अपना लंड पेला हुआ था और अपने पिता के साथ सुनीति को डबल चुदाई का आनंद दे रहा था. सुनीति और चारु की आनंदकारी चीखों ने कमरे को हिला रखा था. दोनों अधिक गहराई और तीव्रता से चोदने के लिए उत्साहित कर रही थीं. और पुरुष गण अपने सामर्थ्य के अनुसार उनकी ये इच्छा पूरी भी कर रहे थे. कुछ मिनट के बाद साथी बदलने का कार्य हुआ और इस बार परेश ने सुनीति की गांड मारी तो आशीष ने चारु की चूत. वहीँ लोकेश ने अपनी पत्नी चारु की गांड में लंड पेला और सुनीति की चूत में कुणाल पिल गया.
कोई दस मिनट की इस भीषण हृदयविदारक चुदाई के बाद सब थकने लगे और एक एक करके सबने अपना रस छोड़ दिया. हाँफते हुए थक कर चूर पुरुष एक एक करके ढेर हो गए. वहीँ चारु और सुनीति एक संतुष्ट मुस्कान के साथ बिस्तर पर ही लुढ़क गयी.
कुछ समय तक स्वयं को सामान्य करने के बाद कुणाल और परेश उठे और उनके बाद आशीष और लोकेश भी खड़े हो गए. समय देखा तो रात के दो बज रहे थे. लोकेश ने अपने और आशीष के लिए स्कॉच और अन्य सबके लिए बियर प्रस्तुत की. बातों के साथ ड्रिंक समाप्त करके बत्ती बुझाकर सब वहीँ लेट गए और धीरे धीरे निद्रा की गोद में चले गए.
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देर से सोने के कारण सुबह सब देर से उठे. सुनीति और आशीष सबके साथ नीचे गए तो देखा कि मधुजी, उनके पति और मान्या पहले ही वहां नाश्ते के लिए बैठे हैं. सबने बैठ कर सप्रेम नाश्ता किया. आशीष ने मधु जी के पति से कहा कि उसके पिता जीवन उनसे आज बात करेंगे और उनका फोन नंबर ले लिया. नाश्ते के बाद सुनीति ने घर लौटने की अनुमति चाही. उसे लगा कि मधुजी की इच्छा न होते हुए भी उन्होंने स्वीकृति दे दी.
सुनीति उनके पास गई और उनसे बोली, “आप इस विषय में अधिक चिंतन न करें. आप जब चाहें हमें बुला लें, या स्वयं चली आएं. देर से उठने के कारण आपकी सेवा का अवसर नहीं मिल पा रहा है. आप कृपया समझें.”
मधु जी ने सुनीति को गले से लगा लिया और फिर आशीष को. सब एक दूसरे से ऐसे मिले जैसे न जाने कितने वर्षों की पहचान हो. इसके बाद सुनीति और आशीष अपने घर के लिए निकल पड़े.
रास्ते में बात करते हुए आशीष ने कहा, “मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि जिस परिवार से हम पहली बार मिले हैं, वो इतनी मिठास और अंतरंग रूप से मिला है. ऐसा लगा ही नहीं कि हम इससे पहले अपरिचित थे.”
सुनीति: “ये बात मुझे भी बहुत आश्चर्यजनक लगी, परन्तु हो सकता है कि समुदाय की मुखिया होने के कारण ये व्यव्हार हो. अन्य परिवारों से मिलने के बाद ही कुछ सोचना उचित होगा. वैसे तुमने मधु जी के पति के बारे में क्या सोचा है.”
“हालाँकि ये दूसरे के घर का मामला है, पर मुझे लगता है कि एकाकीपन उन्हें चुभ रहा है. मधुजी समुदाय के कार्यों में व्यस्त, अन्य सभी अपने कार्यों में. उनका जब स्वास्थ्य गड़बड़ाया होगा, तब भी किसी ने उन पर विशेष ध्यान नहीं दिया. मुझे लगता है कि अगर उन्हें दो तीन सप्ताह के लिए वहां से निकाल लिया जाये तो न केवल उन्हें स्वास्थ्य लाभ होगा, बल्कि घर के अन्य सदयों को भी उनकी अनुपस्थिति और कमी का अनुभव होगा। ये भविष्य के लिए अच्छा होगा.”
सुनीति ने विचार किया तो उसे ये ठीक लगा. इतने में वे घर पहुँच गए. घर पर सबने उनके कल के अनुभव के बारे में पूछा तो आशीष ने सुनीति ने संक्षेप में पूरा वृत्तांत सुनाया. जीवन से आशीष ने बात की और उन्हें सर का नाम और नंबर दिया. फिर उसने अपने विचार रखे और जीवन से कहा कि वो जैसा उचित समझें, वैसा ही करें. जीवन आशीष की इस योग्यता को भली भांति जानता था. उसने जीवन को ये बता दिया था कि वो स्वयं क्या चाहता है पर निर्णय जीवन पर छोड़ा था.
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क्रमशः
1171500
Thanks Bhai.Bahut hi badhiya update diya hai prkin bhai....
Nice and beautiful update....
Bahut hi shaandar update diya hai prkin bhai....अध्याय २१ तीसरा घर - शीला और समर्थ सिंह ३
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शीला का घर:
दिंची क्लब के आयोजन के लगभग एक सप्ताह बाद, सांय काल में समर्थ और शीला अपने घर की बैठक में बैठे हुए थे. उनका ८५ इंच के विशाल OLED टीवी इस समय चल रहा था और दोनों उस पर चल रहे कार्यक्रम को देख रहे थे. ये कार्यक्रम उनके ही घर के एक कमरे से प्रसारित हो रहा था. और जैसा कि आप जानते हैं कि समर्थ के घर का हर कमरा वीडियो कैमरों से सज्जित था. और इस कार्यक्रम के कलाकार भी उनके ही परिवारजन थे.
टीवी पर इस समय उनकी छोटी बेटी का फिल्मांकन हो रहा था. सुरेखा की चूत में नितिन ने अपना लौड़ा डाला हुआ था और उसका मुंह निखिल के लंड से भरा हुआ था. सुरेखा पीठ के बल लेटी हुई थी और उसका चेहरा बहुत ही समीप से दिख रहा था. दोनों भाई उसे बड़े प्यार से चोद रहे थे और सुरेखा भी इसका आनंद ले रही थी. सुप्रिया आज ऑफिस अपने ही घर चली गई थी. परन्तु सुरेखा आ गयी थी दोपहर में ही. और निखिल और नितिन के आने के पश्चात् सुरेखा उनके साथ एक शयनकक्ष में चली गई थी.
शीला: “सुरेखा ने किसी प्यासी मछली के समान हमारी जीवन शैली को अपना लिया है. अब उसे भी चुदवाने में बहुत आनंद आता है. बेचारी न जाने कितने दिनों से प्यार की भूखी थी.”
समर्थ: “मुझे तुम्हें कुछ बताना है.” उसका स्वर गंभीर था.
शीला: “ऐसा क्या है जो बताने के पहले पूछ रहे हो. सब ठीक तो है.”
समर्थ खड़ा होते हुए: “नहीं, सब ठीक नहीं है.” ये कहकर वो अपने घर में बने ऑफिस में गया और एक लिफाफा ले कर आया और शीला के हाथ में दिया.
समर्थ: “मैंने अपनी सिक्युरिटी कंपनी के द्वारा नागेश की जासूसी करवाई, पिछले दस दिनों में. अभी भी चल रही है.”
शीला ने लिफाफा खोला तो हतप्रभ रह गई. इसमें नागेश अपने विदेश दौरे पर अन्य लोगों के साथ सम्भोग में सलग्न था. पर आश्चर्य की बात ये थी कि वो स्त्रियों नहीं बल्कि दूसरे आदमियों के साथ लिप्त था. कहीं वो लंड चूस रहा था तो कहीं गांड मरवा रहा था.
समर्थ: “मैंने अपने वकील से सुरेखा की ओर से तलाक का नोटिस बनवा दिया है. जब वो वापिस आएगा तब उसे वो सौंप दिया आएगा. इन चित्रों के साथ. मुझे नहीं लगता कि वो कोई आपत्ति करेगा. उसे शहर छोड़ने के लिए मैंने कुछ राशि का प्रबंध किया है. उसकी कंपनी के MD से भी बात की है, वो उसे दूसरे शहर स्थानांतरित कर देंगे. मैंने उन्हें कारण नहीं बताया पर उन्होंने मेरी विनती स्वीकार कर ली है.”
शीला: “पर सुरेखा?”
समर्थ: “तुम्हें उससे बात करनी है. मेरा कुछ कहना अभी सही नहीं होगा. मुझे नहीं लगता कि सुरेखा वैसे भी उसके साथ रहना चाहती है, और ये देखकर तो बिल्कुल ही नहीं. मुझे एक बात की संतुष्टि है.”
शीला: “क्या?
समर्थ: “अब चूँकि इन दोनों में कई महीनों से शारीरिक सम्बन्ध नहीं हैं, तो सुप्रिया किसी भी प्रकार के सेक्स रोग से बच गई.”
शीला: “मैं आज ही रात को सुरेखा से बात करती हूँ.”
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सुप्रिया का घर:
सुप्रिया अपने घर आज एक विशेष प्रयोजन से गई थी. आज अपनी भांजी संजना को अपने घर कुछ बात करने के लिए आमंत्रित किया था. संजना, मौसी के घर निर्धारित समय पर पहुँच गई. सुप्रिया मौसी को वो बहुत प्रेम करती थी. उनका स्वभाव और उनकी सुंदरता ने उसे सदा प्रभावित किया था. पर आज अकेले बुलाये जाने का उसे रहस्य नहीं समझ में आया. सुप्रिया ने उसे घर में अंदर बुलाया और दोनों बैठकर पहले तो संजना की पढाई के बारे में बातें करते रहे. संजना की बातों से उसकी व्यवसाय में रूचि तो समझ में आ गई. फिर सुप्रिया ने अपनी बात उस ओर मोड़ी जिसके लिए संजना को बुलाया था.
सुप्रिया: “आजकल सुरेखा का मूड कैसा है. मैंने देखा था कि कुछ दिन पहले तक वो बहुत उखड़ी हुई रहती थी.”
संजना: “पता है मौसी, अब तो लगता है की मम्मी बिल्कुल चेंज हो गयी हैं. जहाँ हम दोनों को हर बात पर डाँट देती थीं, अब तो बहुत प्यार और संयम से समझाती हैं. जो भी हुआ है, उनके लिए बहुत अच्छा है.”
सुप्रिया: “हम्म्म्म, मेरे विचार से मुझे पता है क्या हुआ है.”
संजना: “क्या मौसी?”
सुप्रिया: “मैं वो भी बता दूँगी। और, वैसे तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड वगैरह है या नहीं?”
संजना: “नहीं मौसी, मित्र तो बहुत हैं, पर बॉयफ्रेंड लायक कोई नहीं. और वो मित्र भी सच्चे हैं या नहीं मुझे पता नहीं. हमेशा ऐसे देखते हैं जैसे मुझे नंगा कर रहे हैं.” कहते हुए संजना ने अपने मुंह पर हाथ रख दिया अपितु कोई गलत बात निकल गई हो मुंह से.
सुप्रिया: “इसमें शर्माने वाली कोई बात नहीं, संजना. इस आयु में लड़कों को हर लड़की में एक ही आकर्षण होता है. और आजकल ऐसा भी नहीं कि लड़कियां इससे दूर भागती हैं. तुम्हारी कुछ सहेलियां तो अवश्य इसका लाभ उठाती ही होंगी.”
संजना: “जी मौसी, कुछ ने तो ४-४ बॉयफ्रेंड रखे हुए हैं.”
सुप्रिया: “इसमें कोई गलत नहीं है. ये जवानी दोबारा तो आनी नहीं, तो जितना हो सके उसका आनंद उठाना चाहिए.”
संजना ने आश्चर्य से मौसी को देखा.
संजना: “मौसी, आपको ये गलत नहीं लगता?”
सुप्रिया: “किंचित भी नहीं. जब मैं तुम्हारी अवस्था की थी तो मेरे तो ६ बॉयफ्रेंड थे.” और फिर थोड़ा आगे झुककर संजना के पास आकर कुछ षड्यंत्रकारी स्वर में, “और इतनी ही गर्लफ्रेंड भी थीं.”
संजना स्तब्ध रह गई.
संजना, “मौसी, गर्लफ्रेंड यानि?”
सुप्रिया ने अपने हाथ को संजना की जांघ पर हल्के हल्के चलते हुए उत्तर दिया, “हम्म्म्म! जो तुम समझ रही हो वो सच है. और पता है मेरी सबसे अच्छी गर्लफ्रेंड का नाम क्या था?”
संजना: “नहीं.”
सुप्रिया ने फुसफुसाकर बोला, “सुरेखा. सुरेखा था नाम उसका.”
संजना को काटो तो खून नहीं.
संजना: “मम्मी!”
सुप्रिया ने सिर हिलाकर मुस्कुराकर हामी भरी.
संजना: “आप तो बहनें हैं फिर कैसे.”
सुप्रिया: “क्योंकि सबसे बड़ा मानसिक सुख शारीरिक सुख में ही निहित होता है. और हम वैसे भी साथ ही सोती थीं, तो कोई समस्या ही नहीं थी.”
संजना सोच में डूब गई. उसे कभी सपने में भी ये विचार नहीं आया था की उसकी माँ लेस्बियन सम्बन्ध में कभी रही होगी. और तो और वो भी उसकी मौसी के साथ. तभी उसे दूर से किसी के बोलने की आवाज़ आयी. शायद मौसी उससे कुछ कह रही थीं. उसने उनकी बात पर ध्यान दिया.
सुप्रिया: “कहाँ खो गयीं, मेरी बात सुनी?”
संजना: “नहीं मौसी, सॉरी मैं कुछ सोच रही थी.”
सुप्रिया ने संजना की जांघ पर हाथ चलते हुए उसकी चूत के ऊपर रोक दिया. संजना उनकी ओर एकटक देख रही थी.
सुप्रिया: “मैंने कहा कि मैं चाहती हूँ कि हम दोनों भी वैसे ही प्यार करें.” ये कहकर वो रुक गई और संजना की प्रतिक्रिया देखने लगी. संजना ने उत्तर नहीं दिया पर सुप्रिया के हाथ को हटाया भी नहीं.
फिर संजना हकलाते हुए बोली, “पर मम्मी को पता लगा तो.....”
सुप्रिया ने अपने हाथ से संजना को चूत पर दबाव बनाकर कहा, “ कौन बताएगा? और सच कहूँ तो वो स्वयं तुम्हारी इस मिठास को चखना चाहेगी.” ये कहते हुए सुप्रिया ने संजना के होंठ चूम लिए.
कुछ ही क्षणों में ये चुम्बन प्रगाढ़ हो गया. संजना की प्रतिक्रिया को स्वीकारात्मक समझते हुए सुप्रिया खड़ी हो गई और अपना हाथ संजना की ओर बढ़ाया.
सुप्रिया, “बेबी, ये सही स्थान नहीं है. मेरे कमरे में चलते हैं.”
संजना वशीभूत सी होकर सुप्रिया के साथ उसके कमरे में जा पहुंची. सुप्रिया ने दरवाजा बंद किया और अपने कपडे निकालने लगी और पालक झपकते ही वो संजना के सामने पूरी नंगी खड़ी थी.
फिर वो संजना की ओर बढ़ी और उसका चेहरा हाथ में लेकर प्यार से बोली, “शर्मा मत मेरी गुड़िया, तुमने कभी किसी स्त्री के साथ कुछ भी नहीं किया न?”
संजना ने न में सिर हिलाया.
सुप्रिया: “तुम्हें आज से मैं वो सब सिखाऊँगी जो तुम्हें सीखना चाहिए.” कहते हुए सुप्रिया ने संजना के वस्त्र उतारने शुरू किये. पर जब सुप्रिया का हाथ उसकी पैंटी पर पड़ा तो संजना ने उसका हाथ पकड़ लिया.
संजना: “मौसी, ये गलत नहीं है न?”
सुप्रिया: “बिल्कुल भी नहीं.”
ये कहकर उसने संजना को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी पैंटी भी अलग कर दी. संजना की एकदम मलाईदार बुर अब उसके सामने थी. और उसे देखकर ये भी समझ आ गया की संजना एक अछूती कली है. उसने अपने भाग्य को धन्य माना जो उसे ऐसी बुर को भोगने का पहला अवसर मिला था. उसने दोनों पंखुड़ियों को थोड़ा सा खोला और अपनी जीभ से बुर पर चमक रही नमी को चाट लिया.
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शीला का घर:
निखिल कुछ देर में नंगे ही बैठक में आया, उसके चेहरे पर पसीना चमक रहा था और एक संतुष्टि का भाव भी.
निखिल: “मौसी बहुत कमाल की हैं. मेरे लंड का पानी पूरा निचोड़कर पी गयीं.”
शीला: “क्या हुआ, तूने उसे चोदा नहीं.”
निखिल: “अपने छोटे भाई के लिए छोड़ दिया. आज उसी को सेवा करने दो उनकी.” ये कहकर उसने बार से अपने लिए एक पेग बनाया और टीवी पर चल रहे कार्यक्रम को देखने लगा.
निखिल: “नाना, जो कैमरे आपने लगाए हैं उनसे पिक्चर इतनी साफ आती है कि ऐसा लगता है कि हम वहीं हैं.”
समर्थ: “हाँ, बहुत उच्च कोटि के कैमरे लगाए हैं. पर अब मैं कुछ और करने के बारे में विचार कर रहा हूँ.”
निखिल: “इससे अधिक क्या करेंगे नानाजी?”
समर्थ: “3D, ये सबसे नए कैमरे हैं, और ये टीवी भी 3D पिक्चर दिखा सकता है. जो अभी कमी लग रही है वो भी नहीं रहेगी.”
निखिल: “वाओ, पर सारे घर में लगाने में बहुत खर्चा नहीं आएगा?”
समर्थ: “हाँ, २८ लाख का बजट दिया है. अगले हफ्ते में उन्हें लगाने के लिए उनका दल आएगा.”
निखिल: “ओके, मैं तो अभी से उसके द्वारा बने वीडियो के बारे में सोच रहा हूँ.”
समर्थ और शीला हंसने लगे.
निखिल: “नानी, पार्थ का फोन आया था. आपका दिंची क्लब का प्रवेश की प्रक्रिया पूरी करने हेतु उसने आपसे कोई दिन चुनने के लिए कहा है.”
शीला समर्थ से, “आप क्या कहते हो, कब जाऊँ?”
समर्थ: “ऐसा करो जिस दिन ये लोग कैमरे लगाने आ रहे हैं उसी दिन चली जाओ. उस दिन मेरे सिवाय यहाँ किसी की आवश्यकता नहीं है.”
शीला: “निखिल, जैसा नानाजी ने कहा है, वही आगे बता दे.”
निखिल: “जी नानी.”
शीला टीवी की ओर संकेत करते हुए: “और इन दोनों को बोल, अब बस करें खाना भी खाना है.”
निखिल ये सुनकर उठकर उस कमरे में चला गया.
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सुप्रिया का घर:
सुप्रिया के शयनकक्ष के बिस्तर पर संजना कसमसा रही थी. उसके दोनों पाँव पूरी तरह से फैले हुए थे और उसकी मौसी उसकी चूत में अपना चेहरा घुसाए हुए थी. सुप्रिया जैसी अनुभवी चूत चाटने वाली स्त्री के सामने संजना ने हाथ डाल दिए थे. उसने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा थे कि इस प्रकार के सेक्स में भी इतना सुख है. और अब उसने ठान लिया था कि सेक्स के हर आयाम का वो सुख लेगी. परन्तु अभी उसे अपनी चूत में जो संवेदना हो रही थी उसके सामने उसकी आगे की किसी भी प्रकार की सोच पर पर्दा डल गया था.
सुप्रिया को भी इस अनछुई बुर के स्वाद ने विह्वल किया हुआ था. ऐसा स्वाद, ऐसी मिठास, ऐसी खुशबू उसे अपनी युवावस्था के दिनों का स्मरण करा रही थी. उसने निश्चय किया कि वो स्वार्थी बनकर जब तक उसका मन इस रस से भर नहीं जाता, वो इसे अपने लिए बचा के रखेगी. हालाँकि उसे ये पता था कि एक बार ये सुख पाने के पश्चात् संजना जल्दी ही इसके आगे बढ़ना चाहेगी. और तो और उन्होंने अभी ये भी निश्चित नहीं किया था कि संजना का उद्घाटन कौन करेगा। इस पंक्ति में समर्थ अवश्य सबसे आगे थे, पर वो इस शुभ कार्य को किसी और को भी सौंप सकते थे. संजना की अनचुदी बुर इस समय अश्रुधार बहा रही थी जिसके स्वाद से सुप्रिया अपने जीवन को धन्य मान रही थी.
“मौसी, मुझे अब बहुत अजीब लग रहा है, मौसी, ये क्या हो रहा है?”
मौसी तो अपने भोग में लीन थी, उसने कोई उत्तर नहीं दिया. वो जानती थी कि कुछ प्रश्न अपना उत्तर स्वयं ही ढूंढ लेते हैं. और यही हो भी रहा था.
“मौसी, मेरा सूसू निकल जायेगा मौसी. मुझे बहुत अजीब लग रहा हैं वहां. मौसी ..... मौ ...... सीईईईई .... मम्मीईईई उउउह आऊवोह मौसी मेरी सूसू निकल गई मौसी आपके मुंह में. ये क्या हो गया!”
संजना के पूरा झड़ने के बाद सुप्रिया ने अपना कामरस से ओतप्रोत चेहरा उठाकर उसकी ओर देखा.
“कैसा लगा मेरी लाडो?”
“बहुत अच्छा मौसी, पर अपने मेरा सूसू क्यों पिया.”
सुप्रिया ने उसकी चूत पर एक बार फिर जीभ चलते हुए कहा, “पहली बात तो ये है कि ये तुम्हारी सूसू नहीं थी. जब हम औरतें सेक्स के समय चरम पर पहुँचती है, तब उनका शरीर ये रस छोड़ता है. इसे कामरस भी कहते हैं. और जो तुमने आज अनुभव किया है, उसके लिए इस संसार की हर स्त्री व्याकुल रहती है. अब ये समझ लो कि तुमने आनंद के उस द्वार को देख लिया है जिसके लिए हर मनुष्य क्या नहीं करता.”
“मौसी, हम ये फिर कर सकते हैं.” संजना ने उत्सुकता से पूछा.
“बिल्कुल, आज तुम मेरे ही साथ रुक जो रही हो. मैंने सुरेखा से अनुमति ले ली थी.”
“और भैया लोग, वो भी तो आते होंगे?”
“नहीं आज नाना नानी ने उसे किसी विशेष अभियान में लगाया हुआ है. वो दोनों वहीं रहेंगे. आज हम दोनों अकेले ही हैं. चल अब खाना खा लेते हैं.”
ये कहते हुए सुप्रिया ने कपडे डाले और कमरे के दरवाजे पर रुक गई. संजना भी शीघ्र कपड़े पहन कर आ गई और दोनों रसोई में चले गए. जाते जाते सुप्रिया ने फोन से एक संदेश किया, “ मिशन सफल”
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सुरेखा का घर:
सजल आज घर जल्दी पहुँच गया था. सुरेखा ने उसे पहले ही बता दिया था की वो नाना नानी के घर जा रही है. और बाद में संजना का फोन आया कि वो भी मौसी के घर जा रही है. सजल को ऐसा अवसर कम ही मिलता था जब ये दोनों घर से इतनी देर एक साथ बाहर हों. उसने घर में जाकर फटाफट अपने कपडे बदले और बाथरूम में घुस गया जहाँ पर वाशिंग मशीन लगी थी. खंगालकर उसने सुरेखा की एक पैंटी ढूंढ निकाली और तुरंत अपने कमरे में घुसकर दरवाज़ा बंद कर लिया.
फिर टीवी पर उसने एक इन्सेस्ट (पारिवारिक सम्भोग) की वीडियो लगाई जो उसने नेट से डाउनलोड की थी. और ये सब करके वो अपने बिस्तर पर बैठकर मस्ती से मूवी देखते हुए मुठ मारने लगा. जब उसका एक बार झड़ गया तो उसने सफाई की और फिर दोबारा अपने लंड को खड़ा करने के लिए हिलाने लगा. कुछ ही देर में वो फिर तन गया था और उसने एक बार फिर अपनी माँ की पैंटी में मुठ मारकर अपना वीर्य छोड़ दिया. इस समय वो इतना आराम से था कि उसकी झपकी लग गई और वो सो गया.
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शीला का घर:
निखिल कमरे में पहुंचा तो देखा कि नितिन का वीर्य उसकी मौसी की चूत से बह रहा था जिसे अपनी उँगलियों में समेटकर चाटने का प्रयास कर रही थी. उसके बाद सुरेखा नितिन का लंड चूसने लगी जैसे फिर चुदवाने की इच्छा हो. दोनों भाई एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए.
निखिल: “क्या हुआ मौसी?”
सुरेखा: “मुझे और चुदवाने का मन है, तुम जाओ.”
निखिल: “अरे मौसी, सारी रात पड़ी है. नानी बुला रही हैं. चलिए.”
नितिन और सुरेखा उसी अवस्था में बैठक की ओर बढ़ गए.
सुरेखा: “मम्मी, आपने बुलाया?”
शीला ने सुरेखा की चूत से बहता हुआ वीर्य देखा तो उसे हंसी आ गई.
शीला: “ये ठीक है कि सालों से तेरी अच्छी चुदाई नहीं हुई, पर ये भी नहीं कि तू सब कुछ भूल जाये. चलो, खाने का समय है, खाने के बाद मुझे तुझसे कुछ आवश्यक बात भी करनी है.”
सुरेखा ने हाथ मुंह धोकर एक गाउन पहन लिया और खाने के लिए बैठ गई. तभी उसे ध्यान आया कि आज सजल घर में अकेला है क्यूंकि संजना भी सुप्रिया के घर पर है. खाना समाप्त करने के बाद शीला सुरेखा को समर्थ के घर में बने ऑफिस में ले गई और दरवाजा बंद कर लिया.
सुरेखा: “क्या हुआ, मम्मी.”
शीला: “सुरेखा, विषय थोड़ा गंभीर है. पहले ये बता कि तेरे और नागेश के सेक्स सम्बन्ध कितने दिन पहले हुए थे.”
सुरेखा: “मम्मी, बात क्या है?”
शीला: “जो पूछा है उसका उत्तर दो, उलटे सवाल मत करो.” शीला का स्वर कठोर था.
सुरझा: “साल से अधिक हो गया. ठीक से याद नहीं पर साल से तो अधिक हो ही गया है.”
शीला ने कहा: “जो मैं अब बताने जा रही हूँ, तुम्हें इससे धक्का लगेगा, पर बताना भी आवश्यक है.” ये कहकर शीला ने वो लिफाफा सुरेखा की ओर बढ़ा दिया.
चित्र देखकर सुरेखा के चेहरे का रंग ही उड़ गया. वो रोने लगी. कुछ समय जब वो रो चुकी तब शीला ने उसे गले से लगाकर ढाढस बंधाया.
“तेरे पापा ने तलाक के पेपर बना लिए हैं. बाहर जाकर उस पर हस्ताक्षर कर देना. पापा ने नागेश का स्थानांतरण दूसरे शहर करवा दिया है. नागेश अगर कुछ न नुकुर करेगा तो ये चित्र हम कई लोगों को भेजेंगे. मेरे विचार से अब तुम उससे अपने आप को मुक्त मानो। ”
सुरेखा ने कुछ नहीं कहा और उठकर बाहर चली गई.
“पापा, पेपर कहाँ हैं?”
समर्थ उसके दुःख को समझ रहा था.
“सॉरी, बेटी.” फिर उसने उठकर अपने ऑफिस से पेपर्स ले आये और सुरेखा ने निश्चित स्थानों पर हस्ताक्षर कर दिए.
सुरेखा: “पापा, मैं घर जा रही हूँ. पता नहीं सजल ने कुछ खाया या नहीं.”
समर्थ: “निखिल, जाकर मौसी को छोड़कर आ.”
सुरेखा: “मैं चली जाऊंगी।”
समर्थ: “बिल्कुल भी नहीं. या तो यहीं रुको नहीं तो निखिल छोड़कर आएगा.”
सुरेखा: “ठीक है.”
ये कहकर वो अपने कपड़े बदलने चली गई और कोई १० मिनट में वापिस लौट आयी. समर्थ और शीला ने उसे गले लगाया.
“तू चिंता मत करना, हम अभी ज़िंदा हैं.”
“मुझे बस इस बात का दुःख है कि मुझे जानने में इतने साल लग गए. पर अब मैं मुक्त हुई.”
निखिल सुरेखा को लेकर निकल गया और उसे छोड़कर वापिस लौट आया.
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सुरेखा का घर:
सुरेखा ने अपने घर में देखा कि सारे घर की बत्तियां जल रही थीं. उसने रसोई में जाकर देखा तो पाया कि खाने के लिए कुछ भी नहीं था. उसे सजल की चिंता हुई. फिर वो अपने कमरे की और बढ़ी कि कपडे बदल कर खाने के लिए कुछ बना देगी. अचानक उसके पैर ठिठक गए. सजल के कमरे से कुछ आवाजें आ रही थीं जैसे कोई चुदाई कर रहा हो. उसने देखा कि दरवाजा तो बंद था पर लॉक नहीं था. उसने धीरे से खोलकर अंदर झाँका तो उसके होश उड़ गए. सजल सोया हुआ था पर उसका लंड उसके अंडरवियर से बाहर था और उसके ऊपर सुरेखा की पैंटी थी. उसने धीमे क़दमों से कमरे में प्रवेश किया और टीवी पर चल रहे दृश्य को देखा.
उसे ये समझने में अधिक समय नहीं लगा कि सजल एक इन्सेस्ट मूवी देख रहा था जिसमें संभवतः एक लड़का अपनी माँ की चुदाई कर रहा था. टीवी को देखा तो उसमें एक USB लगी हुई थी.उसने कमरे से बाहर जाकर दरवाजा बंद किया और अपने कमरे में जाकर एक पतली झीनी नाइटी पहन ली. उसके मन में सुप्रिया के सुझाव आ रहे थे. अगर घर में ही लंड उपलब्ध है तो उसका उचित उपयोग करना चाहिए. कपड़े बदलकर उसने सजल का दरवाजा खटखटाते हुए उसे खाने के लिए आने के लिए कहा.
अपनी माँ की आवाज़ से सजल की आंख खुल गई. उसने देखा कि कमरा बंद है, पर मम्मी ने पुकारा था. उसने तुरंत टीवी बंद किया, अपना अंडरवियर ठीक किया, सुरेखा के पैंटी को तकिये के नीचे रखकर बाथरूम में जाकर मुंह धोया और कमरे से बाहर निकला. उसने रसोई में कुछ आवाज सुनी तो समझ गया कि मम्मी कुछ बना रही है. धड़कते मन से वो किचन की ओर चल पड़ा. रसोई में पहुंचा और सुरेखा ने जो पहना था उसे देखकर सजल के लंड में फिर तनाव आ गया और उसके शार्ट में एक टेंट बन गया. इससे पहले कि वो कुछ समझता या करता सुरेखा उसकी ओर मुड़ी और उसकी भी ऑंखें सजल के टेंट पर पड़ीं.
“मैं आयी तो देखा तुम सो रहे थे.” सुरेखा ने सजल के शंका को और बढ़ाते हुए कहा. अब सजल को ये नहीं समझ आया कि उसकी माँ ने क्या और कितना देखा है.
“मेरी आंख लग गई थी, थक कर. आप कब आयीं? आपने तो कहा था आज नाना के घर पर ही रहोगे.”
“अब बिस्तर पर लेट तुम ऐसा क्या कर रहे थे जो थक गए थे? कोई मूवी भी लगी थी तुम्हारे टीवी पर, कौन सी थी. चलो खाने के बाद साथ देखेंगे.” सुरेखा को सजल को छेड़ने में कुछ अधिक ही आनंद आ रहा था.
“पता नहीं, टीवी पर कोई चल रही होगी. मैं तो टीवी चला कर सो गया था.”
“चलो, कभी और सही. लो अब खाना खा लो, बस हल्का सा ये बना दिया है. वैसे भी थके होने पर कम ही खाना चाहिए.”
सजल ने प्लेट ली और डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाने लगा. सुरेखा उठकर किसी कमरे में गई और कुछ ही मिनट में लौट आई. अभी सुरेखा का मन नहीं भरा था सजल को सताने से.
“अरे, ये बताओ, तुमने मेरी पैंटी देखी है क्या वो नीली वाली? मैं वाशिंग मशीन में कपडे धोने डाल रही थी तो देखा वो नहीं है.”
सजल के गले में खाना अटक गया और उसे जोर का ठसका लगा. सुरेखा ने जल्दी से उठकर उसे पानी दिया और उसकी पीठ ठोकी. सजल की जब साँस सँभली तो उसने थोड़ा और पानी पिया.
“मुझे कैसे पता होगा आपकी पैंटी का? हो सकता है संजना ने ले ली हो गलती से.”
“हाँ, हो तो सकता है.”
सजल ने किसी तरह खाना खाया और प्लेट किचन में रखी और गुड नाइट कहकर अपने कमरे की ओर दौड़ गया. सुरेखा के चेहरे पर इस समय एक कुटिल मुस्कान नाच रही थी. सजल ने अपना कमरा लॉक किया और जल्दी से टीवी से USB निकाला जिसमे पॉर्न मूवी थी. फिर उसने अपनी तकिया के नीचे से पैंटी निकालने के लिए हाथ बढ़ाया तो वहाँ कुछ नहीं था. वो अचंभित हो गया. उसे याद था कि उसने पैंटी को तकिया के नीचे ही रखा था. उसे लगा कि शायद उसने वाशिंग मशीन में डाल दी हो. यही सोचकर उसने दरवाजा खोला तो हक्का बक्का रह गया.
दरवाजे पर उसकी माँ खड़ी थी और वो अपने हाथ में एक नीले रंग की पैंटी घुमा रही थीं.
“कुछ ढूंढ रहे थे क्या?”
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सुप्रिया का घर:
सुप्रिया ने खाने के बाद फिर एक बार संजना का रस चूसा और पिया. उसके मन को आत्मतृप्ति मिली.
सुप्रिया: “संजना, मुझे एक वचन दो.”
संजना: “क्या मौसी?”
सुप्रिया: “यही कि तुम अभी किसी भी पुरुष से नहीं चुदवाओगी। मैं इस कली का रस जी भर कर पीना चाहती हूँ. और भी कुछ लोग हैं जो इस कुंवारी चूत का रस पीना चाहेंगे. क्या है न आजकल अनछुई कली मिलना असंभव है. क्या वचन देती हो. हाँ, ये अवश्य है कि तुम्हें हम अधिक दिनों तक नहीं रोकेंगे, और संभव हुआ तो तुम्हारी चूत का उद्घाटन भी एक विशिष्ट व्यक्ति से ही करवाएंगे, जिससे कि तुम्हें जीवन भर के लिए एक मधुर स्मृति मिल जाये.”
संजना: “मौसी, सच कहूँ तो मैं यही सोच रही थी. पर मैं आपको वचन देती हूँ कि आपके बताये बिना मैं किसी भी पुरुष से नहीं चुदवाऊँगी।”
सुप्रिया: “अब तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि तुम्हें भी जानना चाहिए कि मुझे तुम्हारे रस में ऐसा क्या स्वाद आया कि मैं न्योछावर हो गई.”
संजना: “हाँ, पर मैं क्या करूँ ?”
सुप्रिया ने अपने पाँवों को फैला कर अपनी चूत की पंखुड़ियों को सहलाते हुए कहा, “वही जो मैं अब तक कर रही थी. मेरी चूत को चूस और चाटकर अब तुम मुझे सुख दो और जानो कि क्या जादू है इसके रस में.”
संजना: “पर मुझे तो कुछ आता ही नहीं.”
सुप्रिया: “तुम आरम्भ तो करो, कुछ मैं बताती रहूंगी, और कुछ तुम स्वयं ही सीख लोगी.”
संजना ने अपना चेहरा सुप्रिया की जांघों के बीच में डाला और सेक्स के ज्ञान का दूसरा अध्याय पढ़ना शुरू किया.
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शीला का घर:
निखिल जब वापिस पहुंचा तो देखा कि नाना और नानी दोनों गायब हैं. नितिन बड़े टीवी पर कोई शो देख रहा था.
निखिल: “नानी कहाँ हैं?”
नितिन: “सोने चली गयीं.”
निखिल: “तो हम भी चलते हैं.”
नितिन: “नहीं, आज मना किया है आने को. दोनों अकेले ही रहेंगे.”
निखिल: “यार पता होता तो मैं मौसी के ही घर रुक जाता.”
शीला और समर्थ अपने कमरे में लेटे हुए थे और आने वाले विवाह के विषय में बात कर रहे थे.
समर्थ: “सोच रहा हूँ, कल सुमति को बुला लेते हैं. कल हमारे सिवाय कोई और तो रहेगा नहीं, उसे बुला कर देखते हैं, कि विवाह में क्या आयोजन ठीक रहेगा. शोनाली और जॉय से सीधे पूछना अच्छा नहीं लगेगा.”
शीला: “ठीक है, कल बुला लूंगी। “
समर्थ: “क्या हुआ आज बच्चों को मना कर दिया आने के लिए.”
शीला: “रोज रोज की चुदाई से एक दो दिन छुट्टी भी चाहिए होती है. और हम दोनों को इस तरह लेटकर बातें किये हुए कितना समय हो गया.”
समर्थ: “सच है.”
शीला: “सुप्रिया ने संजना का भोग लगा लिया आज.”
समर्थ: “अच्छा है. चलो अब सो ही जाते हैं.”
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सुरेखा का घर:
सजल को काटो तो खून नहीं. अपनी माँ के हाथ में अपने वीर्य से सनी पैंटी देखकर उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. उसके बचने के लिए कोई मार्ग नहीं था.
“अंदर चलो.” सुरेखा ने कठोर शब्दों में कहा.
सजल डरता हुआ कमरे में अंदर आ गया.
“बैठो” ये कहकर सुरेखा ने दरवाजा लॉक कर दिया.
उसके बाद वो टीवी को देखने लगी. उसने देख लिया की उसमें में USB नहीं लगी है.
“USB कहाँ है?”
“कौ क कौ कौन सी USB”
“मैंने पूछा कि USB कहाँ है, तो मुझे पता होगा कि कौन सी. अब बताओ कहाँ है.?”
सजल ने अपने पैंट से USB निकाल कर दे दी.
सुरेखा ने उसे टीवी में लगाकर टीवी चालू किया. सजल एकदम से सुरेखा के पांवों में लोट गया.
“मम्मी, नहीं. मुझे क्षमा कर दो. प्लीज. प्लीज़, मत देखो.”
“तो तुम्हें अपनी मम्मी की पैंटी अच्छी लगती हैं?”
सजल पांव पकडे लेटा रहा.
“बोलो?”
सजल ने सिर हिलाकर झुका लिया.
“और तुम ये माँ बेटे की चुदाई की फिल्म देखते हो और मेरी पैंटी को गन्दा करते हो?” सुरेखा को इस खेल में बहुत आनंद आ रहा था.
“मुझसे गलती हो गई. अब ऐसा नहीं करूंगा.”
अब तक सुरेखा अपने शरीर से वो झीनी नाइटी उतार चुकी थी और केवल एक लाल रंग की पैंटी में खड़ी थी. सजल उसके पांवो में पड़ा हुआ था. और ऊपर देख ही था.
“हम्म्म, तो तुम्हें क्या दंड मिलना चाहिए?”
सजल अपना सर नीचे ही किये हुए बोला , “बस मुझे क्षमा कर दो, जो दंड देना है दो, पर बस क्षमा कर दो.”
“ठीक है, ऊपर देखो, मेरी ओर.” ये कहते हुए सुरेखा ने अपने दोनों पांव फैला दिए.
सजल ने ऊपर देखा तो उसकी आंखे फट गयीं. उसके ऊपर उसकी माँ दोनों पांव फैलाये मात्र एक पैंटी में खड़ी थी. उसे उस पैंटी में कुछ गीलापन भी दिख रहा था. और उसके ऊपर माँ के दो पहाड़ जैसे मम्मे अपने पूरे सौंदर्य में तने हुए थे.
“तुम्हें मेरी पैंटी पसंद है न? आकर इसे चूसो. सावधान! जो उतारने का प्रयास भी किया!” ये कहते हुए सुरेखा बिस्तर के किनारे पैर फैलाकर बैठ गई.
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सुप्रिया का घर:
संजना अपने अनुमान के अनुसार सुप्रिया की चूत चाटने का प्रयास कर रही थी. अब एक अप्रशिक्षित और अनुभवी में अंतर तो होता ही है. ये ध्यान करते हुए कि मौसी ने क्या किया था उसका ही अनुशरण करने का प्रयास कर रही थी. परंतु उस समय वो अपने आनंद में इतनी व्याप्त थी कि उसे ठीक से कुछ याद ही नहीं था. परन्तु, वो जितना संभव हो उतने प्यार से अपने काम में लगी थी.
सुप्रिया यही सोच रही थी कि इस कच्ची कली को तो स्वयमेव सीखने में बहुत समय लगेगा. इसी कारण संजना को युक्तियाँ सुझाईं. संजना भी इस काम में आनंद पा रही थी. सुप्रिया ने अपनी चूत के कपाट खोलकर संजना को बताया कि किस प्रकार से उसे अपनी जीभ से भीतर का विश्लेषण करना है. अब संजना थी तो नयी पर जैसे ही उसने अपनी जीभ अंदर सरकाई मानो उसे ज्ञान स्वतः प्राप्त हो गया. उसने हर छिद्र, हर बिंदु को अपनी जीभ से टटोलना जब प्रारम्भ किया तो सुप्रिया के शरीर में आनंद की लहर दौड़ गई.
“हाँ, यूँ ही, बहुत अच्छा लग रहा है. उउउह व्वाआह संन्न ज न्नन्ना।”
संजना ने जब ये सुना तो उसे बहुत प्रसन्नता हुई की उसके उपक्रम से मौसी इतनी खुश है. उसने अपने प्रयास को और बढ़ा दिया. अचानक ही सुप्रिया का शरीर अकड़ गया, और संजना को अपनी जीभ पर कुछ खारे से पानी का अनुभव हुआ.
“उउउह व्वाआह संन्न ज न्नन्ना, मैं गईईई “
और संजना का पूरा मुंह सुप्रिया के रस से भर गया. सुप्रिया ने उसका सिर पकड़कर अपनी चूत में दबा लिया था इसीलिए संजना हट न पायी और उसे पूरा पानी पीना पड़ गया. पर उसे इसका स्वाद बुरा बिल्कुल भी नहीं लगा. जब सुप्रिया पूरी झड़ गई तो उसने बड़े प्यार से संजना के सिर पर हाथ फिराया और थपकी देकर संतोष व्यक्त किया. संजना ने अपना चेहरा उठाकर सुप्रिया को देखा.
“तू तो बहुत जल्दी सीख गई मेरी गुड़िया रानी. आ मौसी को एक पप्पी दे.”
संजना सुप्रिया के पास लेट गयी और दोनों एक दूसरे को चूमते हुए प्यार करते रहे. और कुछ देर यूँ ही प्यार करते हुए दोनों एक दूसरे से नंगी ही लिपटी हुईं नींद की गोद में चली गयीं.
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सुरेखा का घर:
घुटनों के बल चलकर सजल सुरेखा के पाँवों के बीच में आ गया. फिर उसने पैंटी पर अपनी नाक रगड़ते हुए एक गहरी साँस ली. सुरेखा की चूत की भीनी सुगंध उसके नथुनों में भर गई और उसे एक नशा सा हो गया. उसने ३-४ बार यही क्रिया दोहराई, जब तक उसके फेफड़े सुरेखा की मादक गंध से भर नहीं गए. फिर उसने अपना मुंह पैंटी पर लगाया जो इस समय गीली हो चुकी थी. एक बार अपना मुंह उस पर लगाकर उसने लम्बा घूंट सा लिया जिससे की उसके मुंह में सुरेखा का अमृत रस बहता चला आया. उस रस को पीते ही सजल का नियंत्रण समाप्त हो गया. वो किसी भूखे पशु के समान जोर जोर से चूस कर मानो अपना मन और पेट दोनों ही भरने का प्रयास कर रहा हो.
सुरेखा इस समय आनंद के सागर में हिलोरें ले रही थी. सुप्रिया न जाने कब से इसका आनंद ले रही है. अब उसका क्रम है, और उसने जीवन में खोये हुए सुख के हर क्षण को वापिस पाने का निर्णय लिया. उसने प्रेम से अपनी जांघों के बीच अपने बेटे को देखा. उसने एक हाथ बढाकर उसके सिर को सहलाया. उसने अब तक कठोरता दिखाई थी, परन्तु वो नहीं चाहती थी कि उसका बेटा दब्बू बन जाये. उसने खेल समाप्त करने का निर्णय किया.
“तुम चाहो तो पैंटी उतार सकते हो.” ये कहते हुए सुरेखा ने अपनी गांड उठा ली. सजल ने इसे शुभ संकेत मानकर धीरे से पैंटी को सरकाकर उतार दिया. अब उसकी माँ की सुन्दर गुलाबी चूत उसकी आँखों के समक्ष थी. इस दृश्य की चाह में उसने न जाने कितनी रातों को मुठ मारी थी.
“मैं छू कर देखूं?”
“अवश्य “
सजल ने अपने हाथ को बढ़ाते हुए सुरेखा की चूत के कपाल छुए. फिर उसे प्यार से सहलाने लगा. ऐसा करने से सुरेखा की चूत पर कामरस के मोती चमकने लगे. सजल ने अपना मुंह आगे किया और उस सुगन्धित जीवन रस को जीभ से चाट लिया. सुरेखा का शरीर काँप उठा. तो यही वो संवेदना थी जो सुप्रिया अनुभव करती होगी. उसका लाड़ला बेटा ही आज उस स्थान का अवलोकन कर रहा था जहाँ से उसने जन्म लिया था. सुरेखा से अब और संयम नहीं हुआ. उसने सजल का सिर पकड़कर अपनी चूत पर जोर से दबा लिया. सजल की तो साँस ही रुक गयी. सुरेखा ने उसके सिर को छोड़ा और खड़ा होने के लिए कहा.
सुरेखा: “अगर तुम्हें मेरी पैंटी ही चाहिए थी तो अलग बात है, पर अगर तुम्हें और कुछ भी इच्छा है, तो मैं उसे पूरी करने के लिए तत्पर हूँ. ये मैं तुम्हें इसीलिए कह रही हूँ क्योंकि तुम्हारे पापा से मुझे डेढ़ साल से छुआ भी नहीं है. और मैं चुदास से विह्वल हूँ. क्या तुम मुझे प्यार करोगे? बुझाओगे मेरी प्यास?”
सजल को मानो कुबेर का खजाना मिल गया. उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि आज के दिन ये चमत्कार लेकर आएगा. उसने सिर उठाकर अपनी माँ को एक प्रेमी की दृष्टि से देखा तो उसे अद्वितीय सौंदर्य की साक्षात् अप्सरा के दर्शन हुए. इस आयु में उसकी माँ का यौवन खिला हुआ था. अगर लड़कियों में सुंदरता होती है, तो उसकी माँ में एक अनूठा आकर्षण था.
सजल: “मम्मी, मेरा वश चले तो मैं संसार का आपको हर सुख देना चाहूंगा जो आपको मिलना चाहिए. आपके तन और मन दोनों को मैं अपने प्यार से ओतप्रोत कर दूंगा. आप जो भी इच्छा रखती हैं, मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा. परन्तु, मुझे अभी कुछ आता नहीं है, बस फ़िल्में देखकर जो ज्ञान अर्जित किया है मेरा अनुभव वहीँ तक सीमित है. आप अगर इसमें मेरी शिक्षिका बनेंगी तो मैं अवश्य अच्छा शिष्य भी बनूँगा.”
सुरेखा की ऑंखें भीग गयीं. अपने पति के तिरिस्कार से व्यथित उसके मन में जीवन की एक नयी उमंग जाग गयी. वो उठकर सोफे पर जा बैठी और उसने सजल को अपने पास बैठने का संकेत किया. सजल के पास बैठते ही उसने उसके सीने पर अपना सिर रख दिया और सुबकने लगी. सजल को समझ नहीं आया कि वो क्या करे. बड़े से बड़े अनुभवी पुरुष भी स्त्री के रोने का अर्थ नहीं समझे तो ये तो एक प्रकार से नादान था.
“मम्मी, रो क्यों रही हो.”
“मैंने सोचा भी नहीं था कि मुझे कभी दोबारा प्यार मिलेगा.” ये कहते हुए उसे इस बात की ग्लानि थी.
इस बात की कि उसने अपने शरीर को अपने पिता और भांजों को समर्पित किया, न कि उससे अथाह प्रेम करने वाले पुत्र को. पर उसने एक बात का निश्चय किया। आज तक उसकी गांड कोरी थी, और ये वो अपने बेटे को ही भेंट में देगी, समय आने पर. और तब तक वो इसमें किसी भी और पुरुष का प्रवेश वर्जित ही रखेगी. उसने एक मुस्कराहट से सोचा कि उसके पिता और भांजों में जो शर्त लगी है उसकी इस कुंवारी गांड को लेकर, वो तीनों ही हार जायेंगे. ये सोचकर वो ठहठहा कर हंस पड़ी. अब सजल को फिर समझ नहीं आया कि रोते रोते उसकी माँ हंसने क्यों लगी. पर उसने मूर्ख सिद्ध होने के स्थान पर चुप रहने ही श्रेयस्कर समझा.
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शीला का घर:
हालाँकि समर्थ सो चुके थे, पर शीला को नींद नहीं आ रही थी. उसका मन अपने परिवार के बारे में चिंतित था. समर्थ ने उसे कभी भी किसी सुख से वंचित नहीं रखा. उसने समर्थ के सिर पर प्यार से हाथ चलाते हुए समर्थ के शांत चेहरे को देखकर ईश्वर का धन्यवाद किया जिसने उन्हें न केवल साथ ही रखा अपितु एक जैसी सोच भी दी. कुछ देर में उसने जब अपना हाथ हटाया तो एक हाथ ने उसकी कलाई पकड़ ली. समर्थ उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रहे थे.
शीला: “आप सोये नहीं?”
समर्थ: “सो गया था, पर किसी खटके ने जगा दिया. देखा कि तुम सिर सहला रही हो तो सोने का स्वांग करता रहा. क्या हुआ? नींद नहीं आ रही?”
शीला: “नहीं, कुछ हुआ नहीं. बस प्रार्थना कर रही थी कि सब कुछ ऐसे ही अच्छे से चलता रहे. अब निखिल की भी बहू आ जाएगी. परिवार बढ़ने लगा है. हमें कभी बेटे की कमी नहीं लगी, पर अगर एक बेटा भी होता तो वंश आगे चलता.”
समर्थ: “सच कहूँ तो केवल बेटों से वंश चलने का मुझे बहुत औचित्य नहीं लगता. हमारी दोनों बेटियाँ हमारा ही वंश हैं, और उनके बेटे हमारा ही नाम आगे ले जायेंगे.”
शीला: “बात तो आप ठीक ही कह रहे हैं.”
समर्थ: “अब अगर तुम्हें बेटा किसी और कारण से चाहिए था तो अलग बात है. नातियों के लंड के लिए तुम्हें ३८ साल जो रुकना पड़ा था.”
शीला: “हटो, मुझसे मत बोलो.”
समर्थ: “ठीक है नहीं बोलता. पर तुम्हें नींद का इंजेक्शन लगा देता हूँ.” ये कहते हुए समर्थ ने शीला पर चढ़ाई कर दी.
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सुरेखा का घर:
सुरेखा: “सजल, मेरे लिए एक ड्रिंक बनाकर लाएगा? मुझे तुझसे कुछ और भी बात करनी है. अपने लिए चाहिए तो बियर ले ले.”
सजल को आश्चर्य हुआ क्योंकि सुरेखा कभी कभार ही ड्रिंक लेती थी.
सजल: “मम्मी, सब ठीक तो है.”
सुरेखा: “लेकर आ, तुझसे कुछ बात करनी है. सुन, बोतल साथ ही ले आना.” ये कहकर वो उठी और अपने कमरे की ओर बढ़ गई.
जब तक सजल उसकी ड्रिंक और कुछ नमकीन और अपने लिए बियर लाया तब तक सुरेखा ने वो नाइटी दोबारा ओढ़ ली थी. उसने अपनी ड्रिंक के दो घूंट लिए.
सुरेखा: “मैं तम्हारे पापा को तलाक दे रही हूँ.”
सजल भौचक्का रह गया. आज उसके लिए दिन कुछ अलग ही भूचाल ला रहा था. सुरेखा ने कुछ न बोलकर उसके हाथ में एक लिफाफा दे दिया.
“देख अपने बाप की गतिविधियाँ.” सुरेखा के शब्दों में घृणा का पुट था.
सजल ने लिफाफे के अंदर के देखा और कुछ ही चित्र देखकर उसके हाथों से लिफाफा छूटकर नीचे जा गिरा. अब पीने की बारी सजल की थी, सो उसने एक बार में ही बियर के चार पांच घूंट लिए. उसका सिर घूम रहा था.
“ये देखकर तो संजना पागल हो जाएगी, वो तो पापा को जैसे पूजती है.”
“मैं जानती हूँ, और इसीलिए मुझे इसमें तुम्हारी सहायता चाहिए. अच्छा होगा कि संजना को तुम इस बात को धीरे से बताओ. मैं नहीं चाहती कि इस कारण हम दोनों के बीच कोई मन मुटाव हो.”
सजल ने समझते हुए कहा, “ओके, मॉम. आई विल हैंडल इट। “
“अपने कपड़े उतारो “ सुरेखा ने कहा.
सजल ने अपने कपड़े उतार दिए पर अंडरवियर पहने रखा.
“ये भी निकालो. मुझे देखना है कि तुम कितने बड़े हो गए हो.”
सजल ने थोड़ा हिचकते हुए उसे भी उतार दिया और नंगा अपनी माँ के सामने खड़ा हो गया.
“बहुत अच्छा है, बहुत बड़ा और सुन्दर है, न जाने तुम्हारा ये लंड कैसे इतना बड़ा है, तुम्हारे पापा का तो इतना बड़ा था नहीं.” फिर कुछ सोचकर, “लगता है मेरे परिवार पर पड़ा है.”
सजल फिर चौंक गया.
“आपको कैसे पता?”
“मुझे और भी बहुत कुछ पता है, पर वो इस समय की चर्चा का विषय नहीं है. इधर आओ, आगे.”
सजल सुरेखा के आगे जाकर खड़ा ही गया. सुरेखा ने उसके लंड को अपने हाथ में लेकर तौला और धीरे धीरे सहलाने लगी. अब सजल उत्तेजित तो पहले ही था, आनन फानन में उसके लंड ने अपना पूरा रूप धारण कर लिया.
“हम्म, बहुत सुन्दर है.” ये कहकर सुरेखा ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी नाक लगा कर सूंघा. “और बहुत सुगन्धित भी. स्वाद कैसा होगा?”
फिर कुछ देर यूँ ही उसे सहलाते हुए बोली, "ये जानने का तो केवल एक ही उपाय है.”
ये कहकर उसने सजल का लंड अपने मुंह में भर लिया. और फिर उसने चूसना शुरू किया. सजल तो मानो स्वर्ग में पहुँच गया. उसने कई बार इस प्रकार के सपने देखे थे, पर आज वो पूरे हो रहे थे.
सुरेखा पूरी तन्मयता से सजल के बढ़ते हुए लंड को चूस रही थी. वो उसको चाटती , फिर कुछ देर चूसती और फिर चाट लेती. साथ ही साथ उसने एक हाथ से सजल के अंडकोष भी सहला रही थी. सजल के पाँव काँप रहे थे. उसके लंड ने झटके लेने शुरू किये तो सुरेखा समझ गई कि अब सजल का पानी छूटने वाला है. पर उसने रुकने का नाम नहीं लिया. और फिर वही हुआ -- सजल ने उसके मुंह में ही अपना पानी छोड़ दिया. आज उसने पहली बार अपने हाथ के अलावा किसी दूसरे माध्यम से अपना पानी निकाला था. और वो भी अपनी ही माँ के मुंह में.
सुरेखा ने सजल के लंड का पानी पीकर उसके लंड को चाटकर साफ किया. और सोफे पर पीछे टिक कर बैठ गई. उसकी आँखों में एक संतुष्टि की चमक थी. उधर सजल भी खड़ा न रह सका और वहीँ सुरेखा के पास ही बैठ गया.
“थैंक यू, मॉम.”
“माई प्लेज़र.”
दोनों माँ बेटे बैठकर उनके सम्बन्ध के नए समीकरण के बारे में चिंतन करते हुए अपने ड्रिंक्स की चुस्कियाँ ले रहे थे.
सुरेखा: “तुम्हें नहीं लगता कि जो मैंने अभी किया उसका आभार तुम्हे भी प्रकट करना चाहिए.”
सजल: “मैं अपनी बियर पी लूँ उसके बाद. पर एक बात बताऊँ. ये मेरा वर्षों का सपना था, जो आज आपने पूरा किया है. मैं इसे कभी भी भूलूंगा नहीं.”
सुरेखा: “ऐसे प्रकरण भूलने के लिए नहीं होते. मैं भी तुम्हारा पहला स्वाद जीवन भर नहीं भूलूंगी.”
सजल की बियर जैसे ही ख़त्म हुई उसने सुरेखा के पांवों के बीच में अपना स्थान ग्रहण कर लिया.
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शीला का घर:
अगले दिन सुबह:
सुबह समर्थ की नींद देर से खुली थी. देखा तो शीला उठ चुकी थी. बाथरूम से नित्य कर्म के बाद वो बाहर निकले तो देखा कि शीला रसोई में भी नहीं है. तभी उन्होंने निखिल को नितिन के कमरे में जाते हुए देखा. वो भी सधे क़दमों से पीछे हो लिए. घर में कमरे बंद करने का स्वभाव किसी का था नहीं, तो वो बाहर जाकर अंदर का दृश्य देखने लगे. शीला इस समय नितिन के ऊपर नंगी ही उछलकूद कर रही थी. नितिन भी नंगा ही था. नितिन ने निखिल को अंदर आते देख लिया था पर उसने चुप्पी साधी हुई थी और अपने कमर उछाल कर अपनी नानी की चूत में अपने लंड को पेल रहा था.
निखिल ने भी अपना अंडरवियर उतारा और अपने लंड को थोड़ा हाथ से मसला. नितिन ने उसे आंख से संकेत किया तो उसने साथ पड़ी टेबल पर से वेसलीन उठाई और अपने लौड़े पर प्रचुर मात्रा में लगा ली. उसने फिर नितिन की ओर देखा. नितिन ने शीला की कमर को पकड़कर उसे अपने ऊपर झुका लिया और नीचे से लम्बे धक्के मरने लगा. इसके कारण शीला को अपने पीठ पीछे होती गतिविधि पर ध्यान नहीं गया. निखिल ने अपने लौड़े को शीला की गांड के छेद पर रखा और एक करारा धक्का मारा।
“गुड मॉर्निंग, नानी.”
उसका लंड शीला की मुलायम गांड को चीरता हुआ जड़ तक घुस गया. शीला के साथ ये इतना अकस्मात हुआ था कि उसे सोचने समझने का समय ही नहीं मिला. और जब होश आया तो बहुत देर हो चुकी थी. अब उसकी चूत और गांड दोनों में ही मोटे लम्बे लौड़े पिले हुए थे. पर शीला जैसी चुड़क्कड़ बहुत जल्दी ही संभल गई.
“ऐसे भी कोई गुड मॉर्निंग करता है? पर अच्छा लगा तेरा ये ढंग गुड मॉर्निंग का. अब दोनों अच्छे से चोदो मुझे, कल रात तुम्हारा कुछ हुआ नहीं तो लग जाओ काम पर.”
नितिन और निखिल ने अपनी लय से नानी की लेनी शुरू कर दी. नितिन ने नाना की ओर देखा जो इस पूरे वृत्तांत को देख रहे थे. नितिन ने नानी की ओर संकेत करके अपने मुंह से चूसने का इशारा किया. देखकर समर्थ ने भी अपना पजामा उतारा और अपने लंड को सहलाते हुए शीला के सामने खड़े हो गए.
“सुना है आज तुम सबको गुड मॉर्निंग कर रही हो.”
“अब आपने सुना है तो सही ही होगा. आइये, आपकी भी सेवा कर दूँ.” ये कहकर शीला ने समर्थ के लंड में लेकर उस पर धावा बोल दिया.
कुछ ही देर में तीनों ने अपने पानी को निर्धारित छेदों में छोड़ दिया, और फिर अलग हो गए. शीला बिस्तर पर लेट कर अपने छेदों से रस निकाल कर चेहरे पर मल रही थी.
“दिन प्रारम्भ करने का इससे अच्छा ढंग कोई हो नहीं सकता.” शीला ने कहा. “चलो अब नाश्ते की तैयारी भी करनी है.”
“नानी आप खाना बनाने के लिए किसी को क्यों नहीं रख लेतीं?”
“और अपनी स्वंत्रता खो दूँ? झाड़ू पोंछे बर्तन वाली ही बहुत हैं ताक झांक के लिए.” ये कहकर शीला बाथरूम में घुसी और सफाई करने के बाद किचन में चली गई.
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सुप्रिया का घर:
अगले दिन सुबह:
संजना जब सुबह उठी तो उसे एक सुखद अनुभूति का आभास हुआ. उसकी चूत में कुछ मीठा मीठा सा स्पंदन हो रहा था. उसने अपना हाथ नीचे किया तो वो किसी के बालों में उलझ गया.
“गुड मॉर्निंग, प्रेटी गर्ल.”
“मौसी! सुबह सुबह! वहां गन्दा होगा!”
“गन्दा तो हमेशा ही रहता है मेरी लाड़ो, इसीलिए तो साफ कर रही हूँ.”
ये कहकर सुप्रिया ने संजना के पांव फैलाये और अपने नाश्ते के पहले के बुर के मधु का रसास्वादन करने में जुट गई. संजना ने भी इसमें मौसी का साथ दिया और उनका सिर जोर से अपनी बुर पर दबा लिया. अब इतनी सुबह तो वैसे भी दबाव रहता है, तो संजना की बुर से एक तीव्र धारा छूटकर सुप्रिया के मुंह में समा गई. संजना जो इस खेल की नयी खिलाडी थी, उसे ये पता नहीं चला कि ये उसका पानी था या मूत्र. पर उसने सुप्रिया मौसी को देखा जो अब अपना चेहरा उठाकर उसे प्यार भरी दृष्टि से देख रही थीं तो उसने यही समझा कि वो अवश्य ही झड़ी है. पर सुप्रिया के अगले व्यक्तव्य ने उसके होश उड़ा दिए.
“तेरा हर रस बहुत मीठा है. मुझे अगर सुबह ये मिल जाता है तो जैसे एक अलग ही शक्ति आ जाती है.”
“मौसी, ये क्या था? मेरी सूसू तो नहीं पी ली आपने?”
“नहीं तो सुबह सवेरे तेरी चूत पीने का फायदा ही क्या होता?”
“आप… सूसू भी पीती हो?”
“सबकी नहीं. बस तेरी मम्मी की पीती थी और एक और स्त्री है उसकी जब तब अभी भी पी लेती हूँ. और कभी भी किसी की भी नहीं.”
संजना ये सुनकर सन्न रह गई. सुप्रिया उठकर बाथरूम में चली गई और संजना भी उठी और कपड़े पहनने लगी. वो रात रुकने के लिए कुछ भी नहीं लायी थी, अपना टूथ ब्रश भी नहीं. जब सुप्रिया बाहर निकली तो उसने घर जाने की अनुमति मांगी और अपनी कार से घर की ओर चल पड़ी.
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सुरेखा का घर:
पिछली रात
सजल अब अपने आत्मविश्वास को वापिस पा चुका था. अब उसे विश्वास था कि सुरेखा उससे खिन्न नहीं है. सुरेखा के पांवों के बीच बैठकर सजल ने उसके दोनों पांव फैला दिए. नाइटी को ऊपर करते हुए उसने सामने खुली बहुमूल्य निधि की ओर देख रहा था. पिछली बार के व्यवधान को याद करते हुए उसने अपने हाथ को हल्की ओस की बूंदों से भीगी चूत की पंखुड़ियों को छुआ. सुरेखा सिहर उठी. अपनी उँगलियों से उन्हें सहलाते हुए सजल अपने घुटनों के बल बैठ गया. फिर उसने अपनी ऊँगली हटाई और अपनी जीभ से उस सतह को चाटने लगा. सुरेखा आनंद से विभूत हो गई. उसने सजल के सिर को जोर से पकड़ कर अपनी चूत में दबा दिया. पर इस बार सजल चौकन्ना था. उसने अपने हाथ से सुरेखा के हाथ को हटा दिया.
“मम्मी, दम घुटता है.”
“ओह! सॉरी बेटा।”
अब सजल को इसके आगे क्या करना है इसका कोई प्रत्यक्ष अनुभव तो था नहीं. वही था जो उसने ब्लू फिल्मों में देखा था. और उनकी ही सीख को मानते हुए उसने सुरेखा की चूत को ऊपर से नीचे तक पूरी तन्मयता से चाटना शुरू किया. अपने मन में उन फिल्मों को रिवाइंड करते हुए उसने अपनी एक ऊँगली अंदर डाली और आगे पीछे करने लगा. सुरेखा की चूत पानी बहाने लगी और ऊँगली की यात्रा सरल हो गई. कुछ ही पलों में सजल की दो उँगलियाँ सुरेखा की थाह नाप रही थीं.
और इस सबके साथ सजल ने अपनी जीभ का अभियान चालू ही रखा था. सुरेखा की सिसकियों और कराहों से सजल को ये तो समझ आ ही चुका था कि वो सही राह पर है. उसने अपने परिश्रम को और तेज कर दिया. और अचानक सुरेखा का बांध टूट गया और उसकी चूत ने एक लम्बी धार में अपना पानी छोड़ दिया. सजल का चेहरा पूरा भीग गया. पर उसने हटने का प्रयास भी नहीं किया, बल्कि अपने काम में एकजुट होकर लगा रहा. पूरा झड़ जाने के बाद सुरेखा सोफे पर ही लम्बी साँसें लेते हुए ढेर हो गई. उसने प्यार से सजल के सिर पर हाथ फेर दिया. सजल उठा और सोफे पर ही उसके साथ बैठ गया.
थोड़ी देर दोनों माँ बेटे शांत ही बैठे रहे. सजल कुछ सोच रहा था.
सजल: “मैं ये नहीं सोच पा रहा कि संजना को पापा के बारे में बताएँगे कैसे?”
सुरेखा: “इसी कारण मैं चाहती हूँ कि तुम ये करो. सोचकर देखो. कल ही बताने की जल्दी मत करो. पर थोड़ी पृष्ठभूमि बना लो, फिर बताना.”
सजल: “ये भी सही है. पर पापा ऐसा कर सकते हैं विश्वास नहीं होता.”
सुरेखा: “मुझे नहीं लगता कि ये अधिक पुरानी बात है. और दूसरे क्या तुम ये विश्वास कर सकते थे कि हम दोनों यहाँ इस स्थिति में होंगे?”
सजल ने कुछ उत्तर नहीं दिया. उसे समझ आ गया था कि माँ क्या कहना चाह रही थी. उसने उठकर अपने लिए एक बियर लाई और सुरेखा का भी एक और पेग बना दिया. धीरे पीने के कारण वो नशे में नहीं थे बल्कि एक हल्की सी खुमारी थी.
सजल: “अब आगे क्या करना है, क्या चुदाई करें?”
सजल का आत्मविश्वास अब लौट चुका था.
“मैं भी यही सोच रही थी.”
ये कहकर सुरेखा ने अपनी ड्रिंक ख़त्म की और गाउन उतारते हुए बिस्तर की और बढ़ गई. सजल को कुछ समय लगा अपनी बियर पीने में, फिर वो भी बिस्तर पर पहुँच गया. सुरेखा ने रिमोट उठाया और USB की फिल्म चालू कर दी. इस बार सजल ने कुछ नहीं कहा, बस जाकर सुरेखा के बगल में बैठ गया.
“कब से देख रहे हो ऐसी फ़िल्में?”
“अभी एक दो ही देखी है.”
“हम्म्म”
तभी वहां परस्पर मौखिक सहवास का दृश्य आ जाता है. सुरेखा सजल की और देखकर, “ये करते हैं थोड़ा”
ये कहकर वो सजल को लिटा देती है और अपनी चूत को सजल के मुंह पर रखते हुए सजल का लंड अपने मुंह में ले लेती है. दोनों इस स्थिति में कोई ४-५ मिनट रहते है. जब सुरेखा को लगता है कि उसकी चूत और सजल का लंड पर्याप्त मात्रा में गीले हो चुके हैं तो ऊपर से हट जाती है, और लेटते हुए अपने पैर चौड़े कर देती है. सजल ने उनके बीच में अब अपना स्थान और अपने लंड को चूत पर रखते एक प्यार भरा धक्का दिया. लंड गप्प की ध्वनि के साथ सुरेखा की चूत में प्रवेश कर गया.
“अब धक्के मार, डरना नहीं और न ही रुकना जब तक तेरा हो न जाये.”
हालाँकि सजल का किसी चूत में ये पहला प्रवेश था, पर जैसे खाना मुंह में ही जाता है, उसी प्रकार सजल ने भी एक स्वाभाविक और प्राकृतिक लय में अपने लंड को अंदर से बाहर चलाना शुरू कर दिया. सुरेखा भी ये देख रही थी कि सजल की अपनी बुद्धि और क्षमता कितनी है. वो उसे पूरा सहयोग और प्रोत्साहन तो दे रही थी पर किसी भी प्रकार का सञ्चालन या निर्देशन नहीं कर रही थी. उसे ये भी भांपना था कि सजल को आगे कितनी और किस प्रकार की ट्रेनिंग आवश्यक होगी.
अब जैसा कि किसी के भी साथ पहली बार होता ही, सजल को रुकने में असमर्थता हुई. और वो अचानक ही सुरेखा की चूत में ही झड़ गया. इस हादसे से वो बहुत ही व्याकुल हो गया. उसका चेहरा झुक गया और उसे लगा कि वो अपनी माँ को संतुष्ट करने में असफल रहा था. सुरेखा ने उसकी इस भावना को ताड़ लिया और वो सजल को अपनी बाँहों में लेकर चूमने लगी.
सुरेखा: "अगर तुम्हें लग रहा है कि शीघ्र झड़ने के कारण तुम असफल हो गए और मैं संतुष्ट नहीं हुई, तो तुम्हारी ये सोच गलत है. पहली बात तो ये, कि आरम्भ में कई बार ऐसा होना संभव होता है. वो इसीलिए कि तुम्हें अपने शरीर की लय और क्षमता का अंदाजा नहीं है. ये सब ताल बनने में समय लगता है. अपने साथी के ऊपर कुछ निर्भर होता है. अपने झड़ने को कैसे रोकना और खींचना संभव है ये भी तुम्हें नहीं पता. जानते हो मैंने तुम्हे इस बार कुछ भी क्यों नहीं कहा?”
सजल ने नकारात्मक भाव में सिर हिलाया.
“इसीलिए, कि ये तुम्हारी पहली चुदाई थी, जो तुम्हें अपने ही तरीके से करनी थी. अब मान लो मेरे स्थान पर तुम्हारी नई पत्नी होती तो क्या तुम्हें तब भी ऐसा ही लगता?”
“नहीं, पर मॉम मूवी में तो वो….”
“बेटा, वो फिल्म है, उसमें दस बार में एक सीन होता है. उनके और अपने बीच में अंतर समझो. अब तुम चिंता करना छोड़ो. मैं तुम्हे सिखाऊंगी और संभव हुआ तो एक और शिक्षिका भी है मेरी पहचान की, जो तुम्हें इस कला में महारथी बना देगी. अब हंसो.”
सजल हंसने लगा और उसके मन से एक बोझ उतर गया.
“चलो अब तुम्हारी पहली चुदाई के लिए चियर्स करते हैं.”
सुरेखा ने अपनी नयी ड्रिंक बनाई और सजल ने एक और बियर ली. कुछ देर सामान्य बातें करने के बाद दोनों एक दूसरे की बाँहों में ही सो गए.
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क्रमशः
1173400
पर अब कहानी को आगे भी बढ़ाएं भाई....Wonderful update bhai...maza aa gaya..![]()