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Incest कैसे कैसे परिवार

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अध्याय ११: दूसरा घर - सुनीति और आशीष राणा २

जीवन का गाँव
दो दिन बाद:

जीवन को आए हुए दो दिन हो चुके थे. अपने मित्र और सम्बन्धी बलवंत के घर पर उनके चार मित्रगण जमा थे. वो जब भी आते थे तो नगर से मंहगी शराब की दो पेटियाँ साथ लाते थे. उनके मित्र भी इस समय की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा करते थे. शराब के लिए नहीं, बल्कि उनके साथ के लिए. सब मित्र अहाते में बैठे बातें कर रहे थे. बलवंत की पत्नी गीता उन्हें खाने का सामान परोस रही थी. अंदर अन्य मित्रों की पत्नियाँ भोजन बनाने में जुटी थीं. बचपन के साथी थे और उन सबकी पत्नियां भी एक दूसरे की अंतरंग सहेलियाँ थीं. जीवन की पत्नी की मृत्यु का शोक सबको समान रूप से ही लगा था.

“भाई साहब, आपका समय कैसे काट पाता है हम सब के बिना. सच कहें तो आपकी बहुत याद आती है.” गीता ने जीवन की प्लेट में मुर्गे के पकवान परोसते हुए पूछा.

“सच भाभी, मन नहीं लगता. तभी तो चला आता हूँ. अब सोचता हूँ कि छह महीने में नहीं हर तीन महीने में आ जाया करूँ। और आप दोनों भी आया करो तो मन लगा रहेगा.”

“मैनें तो इन्हे कई बार कहा कि चलते हैं, सुनीति की हमें भी बहुत याद आती है.”

कुछ देर बाद सभी मित्र अपने घर चले गए. बलवंत और जीवन वहीँ बैठे रहे. फिर गीता भी आ गई.

बलवंत: “तुम लोगी?”

गीता के हाँ कहने पर बलवंत ने उसके लिए भी एक पेग बनाया और उसमे थोड़ा कोका कोला मिला दिया कि अगर कोई देखे तो पता न लगे कि गीता क्या पी रही है.

गीता: “आप सुनीति को क्यों नहीं लेकर आते?”

जीवन: “उसने काम बहुत फैला लिया है. अब आना कठिन है. उसने ये कहा है कि मैं आप दोनों को साथ ले कर लौटूँ। मैं भी यही चाहता हूँ.”

बलवंत: “खेती कौन संभालेगा?”

जीवन: “मेरा जो मैनेजर मेरे खेत देखता है, वहीँ देखेगा. उसे हम इसके लिए दोगुने पैसे देंगे. और मैं नहीं समझता की वो मना करेगा. फिर एक महीने बाद जैसा समझो वैसा ही करना.”

बलवंत: “इस बारे में विचार किया जा सकता है. क्यों गीता.?”

गीता: “आप जो निर्णय लें, मुझे स्वीकार है.”

बलवंत: “इस बार तुम सलोनी को भी लेकर आये हो?”

जीवन: “हाँ, तुम तो जानते हो कि मेरा एक दिन भी चुदाई के बिना रहना कितना मुश्किल है. अब पिछली बार भाभी की तबियत ठीक नहीं थी, तो सोचा कि इस बार अपने प्रबंध के साथ आऊं.”

गीता: “पूछ तो लेते एक बार, अब मैं पूरी ठीक हूँ.”

जीवन: “ठीक है, तो बलवंत का स्वाद बदल जायेगा.”

गीता: “इनकी इतनी चिंता न करें भाई साहब. इनके स्वाद बदलने वाली तीन तो अभी ही अपने घरों को गई है.”

बलवंत हँसते हुए: “बोल तो ऐसे रही है जैसे मुझे ही सब मजे मिलते है. तू भी उन तीनों के पतियों के साथ मजा लेती है.”

जीवन ठहाका लगते हुए: “एक दूसरे की पोल न खोलो, चलो अंदर चलें यहाँ किसी ने सुन लिया तो बेकार बदनामी होगी.”

गीता ने सलोनी को बुलाया और दोनों शेष वस्तुएं अंदर ले गयीं. बलवंत और जीवन बैठक में सोफे हुए थे. गीता जाकर साथ बैठ गई. जीवन ने सलोनी को भी बुलाकर साथ बैठा लिया. बलवंत और गीता सुनीति के घर में सलोनी का स्थान जानते थे और उन्हें इसमें कोई भी आपत्ति नहीं थी. कल तो सलोनी अपने घर अपने माता पिता से मिलने रुकी थी. उनको उसने ५० हजार रूपये दिए जो कि सुनीति ने उसे दिए थे. वो मना करते रहे, पर सलोनी कहाँ मानने वाली थी.

बातों में फिर एक बार सेक्स पर चर्चा होने लगी.

जीवन: “भाभी, वैसे गांव के जीवन का आनंद अलग है. शहर में भीड़ भाड़ और दौड़ भाग के बीच समय यूँ ही व्यर्थ में बीत जाता है. आशीष ने बहुत परिश्रम किया है. आज जब सब कुछ अच्छे से संभल गया है, तो उसने अपना समय घर और परिवार में अधिक बिताने का निश्चय किया है. अब तीनों बच्चे ही लगभग सँभालते हैं. ये बात अलग है कि उसकी अनुमति बिना लिए वो कोई बड़ा निर्णय नहीं लेते.”

गीता: “हाँ भाई साहब. हम लोग तो यहीं खुश हैं. हम पांचों का जो समूह था उसमे से भाभी के जाने के बाद अब वो रस नहीं रह गया.”

जीवन: “हाँ, रसीली तो बहुत थी वो. न जाने क्यों इतनी जल्दी चली गई. और भाभी, रस तो तुममें भी बहुत है.”

गीता: “अरे कहाँ, अब इन बूढी हड्डियों में वो बात नहीं रह गई.”

जीवन: “अरे भाभी, जब हम अभी बूढ़े नहीं हुए तो तुम कैसे हो गयीं?” ये कहकर जीवन उठा और गीता के बगल में जाकर बैठ गया.

उसके मम्मे दबाते हुए कहा, “बलवंत तो कहता है कि तेरी जैसी कोई हो ही नहीं सकती. और वो तीन दुष्ट भी यही सोचते है.”

गीता उससे लिपट गई, “क्यों चले गए यहाँ से, हम सब इतने खुश थे.”

जीवन: “सरला के जाने के बाद कुछ अच्छा ही नहीं लगता था. हर दृश्य में वही दिखती थी. आशीष और सुनीति इसीलिए ही मुझे अपने साथ ले गए क्योंकि मुझे वो कमी खाये जा रही थी.”

बलवंत के संकेत पर सलोनी उठकर उसकी गोद में जा बैठी. और अपनी बाहें बलवंत के गले में डाल दीं। बलवंत ने उसके होंठ चूमते हुए उसके शरीर पर अपने हाथों से सहलाते हुए उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए. कुछ ही क्षणों में सलोनी ऊपर ने नंगी हो चुकी थी. फिर वो उठी और बिना हिचक के अपनी साड़ी और पेटीकोट उतारकर नंगी हो गई. फिर दोबारा बलवंत की गोद में जा बैठी.

जीवन गीता के मम्मे दबाते हुए बोला: “उधर देखो भाभी, सलोनी अपनी जवानी दिखा रही है तुम्हारे पतिदेव को. आपका क्या मन है?”

गीता: “अब उसके जैसा तो मेरा शरीर रहा नहीं. फिर भी आपके लिए मैं भी कपडे निकाल ही देती हूँ.”

गीता खड़ी होकर अपने कपडे निकालने लगी तो साथ में जीवन ने भी खड़े होकर अपने कपडे उतार दिए. उसका कसरती शरीर चमक रहा था. और उसके पांवों के बीच में उसका आधा तना लंड झूल रहा था.

गीता: “मुझे कभी कभी इसकी कमी बहुत सताती है.”

जीवन: “क्यों बहलाती हो भाभी, बलवंत के सामने तो ये उन्नीस ही होगा.”

गीता: “बात वो नहीं है, बस कभी कभी उस समय याद आती है जब सरला और मैं मिलकर आप दोनों से चुदवाती थी.”

जीवन की ऑंखें नम हो गयीं. गीता ने ये देखा तो उसके सीने से लग गई.

गीता: “ मुझे क्षमा कर दीजिये, भाईसाहब.”

जीवन: “नहीं भाभी, आप सही कह रही हो. उसकी बात कुछ और ही थी.” फिर उसने गीता की ठुड्डी पकड़कर सिर उठाकर उसके होंठ चूम लिए. “जैसे आपकी बात अपनी ही है.”

उधर बलवंत भी अपने कपडे उतार कर सलोनी को जमीन पर लिटा कर उसकी चूत की पूरी श्रध्दा से चूस रहा था. सलोनी कसमसा रही थी और अपनी गांड उठा उठाकर बलवंत को प्रोत्साहित कर रही थी. बलवंत ने उसके पांव इतने फैलाये हुए थे की चूत पूरी तरह से खुलकर उसके सामने थी. और वो उसके रोम रोम को कभी चाटता, कभी सहलाता और कभी हल्के से काट रहा था. सलोनी अपना वश खो चुकी थी. पर उसे पता था कि आज की रात उसकी और गीता दीदी की धुआंधार कुटाई होनी है. दोनों की चूत और गांड इतनी बार मारी जाएगी कि सुबह चलना भी कठिन होगा. इन दोनों की चुदाई कई बार इतनी दुर्दांत हो जाती थी कि मन कांप उठता था. पर उसमे जो आनंद आता था उसका वर्णन भी असंभव था.

सलोनी ये सब सोचते हुए अपनी चूत में चल रही उंगली और जीभ से आनंदातिरेक सिसकारियां ले रही थी. फिर बलवंत ने उसके पांव उठाकर ऊपर तक मोड़ दिए. इस आसन में सलोनी की चूत और गांड दोनों ही ऊपर आ गए. बलवंत ने अपनी जीभ को गांड के छेद से चूत के भगनासे तक घूमना आरम्भ किया. सलोनी की तो अब जैसे जान ही निकल गई. बलवंत उसकी गांड के छेद पर जीभ से खेलता, फिर अपनी जीभ के ऊपर ले जाता और फिर भगनासे को जीभ से चाटकर अपने होठों से दबा देता. और फिर यही क्रम दोहराता. सलोनी की चूत और गांड दोनों में कुनमुनाहट होने लगी. चूत ने अपना रस बहाना शुरू किया तो बलवंत ने उस रस के सहारे अपने क्रम को और गतिशील कर दिया.

सलोनी हल्की चीख के साथ सिसकती हुई बोल पड़ी: “भाई साहब, मेरा पानी छूटने वाला है.”

पर बलवंत ने अपने आक्रमण में कमी करने के स्थान पर और भी तेजी कर दी. और सलोनी का बांध टूट गया. उसने लम्बी पिचकारियों के साथ अपन ढेर सारा पानी बलवंत के मुंह और चेहरे पर उड़ेल दिया. पर बलवंत रुका नहीं. और जब सलोनी पूरी झड़ नहीं गई, तब तक उसने अपना खेल बंद नहीं किया. जब सलोनी निढाल हो गई, तब बलवंत ने अपना चेहरा उठाया जो इस समय पूरी तरह से भीगा हुआ था.

“जीवन, इसकी चूत तो बहुत मीठी है, यार. हर बार चाशनी जैसी मधुर लगती है.”

“मेरे घर की हर चूत मीठी है, तेरी बेटी की चूत मिला कर.” जीवन अपने लंड को गीता के मुंह में अंदर बाहर करते हुए हंस कर बोला.

“ये सब हमारी पत्नियों की कृपा है, जिन्होंने ऐसी संतानें जो दी हैं.” बलवंत भी हंसकर बोला।

गीता पूरी आत्मीयता से जीवन के लंड को चूस रही थी. अब वो पहले वाला समय तो था नहीं कि जब चाहते तब अपने किसी भी मित्र के घर चले जाते और चूत, लंड या गांड चूस लेते। जीवन का लंड तो अब साल में कोई १५-१६ दिन ही उसके हिस्से में आ पता था. और इसका वो पूरा लाभ उठाना चाहती थी. जीवन भी अपनी भाभी रूपी समधन से लंड चुसवाने के लिए लालायित रहता था. तभी वो चाहता था कि ये दोनों साथ चलें और आनंद लें. जीवन ने गीता का सिर पीछे से पकड़कर उसके मुंह को लंड से चोदने की प्रक्रिया प्रारम्भ की. गीता को उसकी ये सब लीलाएं पता थीं और वो बलवंत के लंड को भी गले तक निगल लेती थी. और अब भी जीवन का लंड उसके गले को छू कर अंदर बाहर हो रहा था.

“भाभी, अब मुझे आपको चोदना है.”

गीता: “क्यों भाईसाहब, मेरा रस नहीं पीना?”

जीवन: “नहीं भाभी, अभी रुका नहीं जा रहा, बहुत दिन हो गए इस चूत का भोग किये हुए. और अभी तो मैं कई दिन हूँ यहाँ.’

गीता वहीं जमीन पर लेट गई और अपने पांव फैला दिए.

जीवन: “नहीं भाभी, यहाँ नहीं, बिस्तर पर ही चलो. अब घुटने थक जाते हैं.”

ये सुनकर गीता उठी और वैसे ही नंगी अपनी गांड मटकाते हुए शयनकक्ष की ओर चल पड़ी. जीवन उसके पीछे हो गया. फिर उसने पीछे मुड़कर बलवंत को देखा.

जीवन: “तुम भी अंदर ही आ जाओ”

बलवंत ने सिर हिलाया और सलोनी को लेकर शयनकक्ष की ओर चल दिया. चलते समय उनके हाथ सलोनी की गांड पर था और उसने चुहल करने के लिए एक उंगली उसकी गांड में पेल दी. सलोनी चलते हुए ठिठक गयी.

सलोनी: “भाईसाहब, आपकी ऊँगली गलत छेद पर है.”

बलवंत: “नहीं, छेद भी सही है और लक्ष्य भेदने के लिए बाण भी उत्सुक है. पर अभी समय है वहाँ अतिक्रमण में. पहले तुम्हारी चूत का भोग लगाना चाहूंगा.”

सलोनी: “फिर ठीक है. चूत की खुजली बहुत अधिक बढ़ गई है, पर अब अपने गांड में भी आग लगा दी.”

बलवंत: “कहे तो मैं और जीवन तेरी चूत और गांड की आग एक साथ बुझा दें?”

अब सलोनी इस खेल के लिए नयी तो थी नहीं. उसे पता था कि उसके दोनों छेदों की पिलाई होनी ही है. जैसे की गीता दीदी की होगी. उसका शरीर उत्तेजना से सिहर उठा.

गीता: “ अभी नहीं भाईसाहब, उसका जब समय आएगा तब देखेंगे.”

वो जानती थी कि जीवन को इस तरह की चुदाई कितनी पसंद है. कभी कभी वो अपने बेटे आशीष के साथ उसे इसी प्रकार से चोदते थे. उसके दो दिनों तक घर का कार्य सुनीति संभालती थी. इसीलिए नहीं कि सलोनी कर नहीं सकती थी, बल्कि इसीलिए कि सलोनी उसे उन दोनों की दुर्दांत चुदाई से बचा लेती थी. अब उनके बेटे असीम और कुमार तो और दो पग आगे निकल गए थे.

और अब वो भी इसकी अभ्यस्त हो चुकी थी और उसे इसमें भी आनंद आता था. कमरे में पहुंचे तो देखा कि गीता पहले से ही बिस्तर पर टाँगें फैलाये पड़ी थी और जीवन अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रखकर खड़े थे.

जीवन: “आ जा बलवंत. तेरे ही लिए रुका हूँ. साथ में जुगलबंदी करेंगे. देखें इनमे से कौन पहले हार मानती है. और जीतने वाली को हम दोनों कुछ विशेष देंगे.”

ये सुनते ही गीता और सलोनी दोनों के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. आज हारने में ही भलाई लग रही थी. पर जीवन की बात अभी समाप्त नहीं हुई थी.

“और हारने वाली को सजा.”

अब गीता और सलोनी को काटो तो खून नहीं. इधर गिरीं तो कुंआ, उधर गिरीं तो खाई. बलवंत ने सहमी हुई सलोनी को बिस्तर पर लिटा दिया, गीता के साथ और अपने लंड को सलोनी की चूत पर लगाया और जीवन को संकेत दिया. एक साथ दो मोटे लम्बे कड़क लंड दो चूतों के अंदर एक ही झटके में समा गए. अब गीता की तो चूत कई सावन देख चुकी थी पर सलोनी की आंखे तिरछा गयीं. ये खेल बलवंत और जीवन का पुराना शौक था और जब वो जुगलबंदी करते थे तो उनका एक एक धक्का और गति एक समान होती थी. गीता तो इस खेल में कई बार खिलौना बन चुकी थी पर सलोनी के लिए ये अधिक पुराना नहीं था. पर इससे कुछ अंतर नहीं पड़ना था. चूत तो उसकी अलग से ही चुदनी थी.

जीवन और बलवंत जुगलबंदी में गीता और सलोनी की चूतों में अपने लंड पेल रहे थे. लकड़ी का पलंग भी चूं चूं की ध्वनि से चरमरा रहा था. उनके चोदने की तीव्रता इतनी अधिक थी कि अगर पलंग मजबूत लकड़ी का न होता तो संभवतः अब तक टूट गया होता. उनके नीचे अपनी चूत का भोसड़ा बनवाती हुई गीता और सलोनी इस भीषण चुदाई में पीड़ा और आनंद दोनों अनुभव कर रही थीं. गीता को तो ऐसी ही चुदाई बहुत भाती थी, अगर चोदने वाला उसका पति न हो तो. अपने पति बलवंत से उसे प्यार से चुदना अधिक रुचिकर लगता था. पर दूसरों से उसे ऐसी ही चुदाई की कामना रहती थी. विशेषकर जीवन से, जिसके लंड और पाशविक चुदाई की तो वो प्रशंसक थी. उधर बलवंत भी गीता के अलावा दूसरी औरतों को इसी निर्ममता से चोदता था.

सलोनी की चूत तो इस समय अगर नदी के समान बह रही थी तो गीता की समुद्र की तरह. दोनों इस समय चरमोत्कर्ष की ऊंचाई पर थीं और उनकी आँखों में चाँद तारे जगमगा रहे थे. शारीरिक संवेदना अब पूर्ण रूप से उनकी योनि पर केंद्रित थी.

गीता: “अब और नहीं, बस अब झड़ जाओ. मेरी चूत अब और नहीं झेल पायेगी. मुझ पर दया करो.”

गीता की विनती भरे स्वर सुनकर सलोनी ने भी विनती दोहराई. बलवंत और जीवन ने एक दूसरे को देखा और सिर हिलाकर अपने धक्के और तेज कर दिए. बस कुछ ही पल निकले होंगे कि उन दोनों ने अपने गाढ़े सफ़ेद रस से दोनों चूतों को भर दिया. फिर दोनों मित्र परिवारजन हटकर अपने साथी की बगल में लेट कर लम्बी साँसों के साथ विश्राम करने लगे.

“आज कुछ अधिक ही जोश में थे भाई साहब.” गीता ने पूछा.

जीवन: “नहीं भाभी, बस आपके साथ इतने समय बाद जो किया, तो मन की इच्छा पूरी करनी थी. मैं फिर कहता हूँ, आप लोग मेरे साथ चलो.”

बलवंत: “जीवन, अभी चलना कठिन होगा. मैं सब काम एक बार संभाल दूँ फिर अगले महीने हम दोनों आ जायेंगे. अभी चलने से हमेशा मन में कुछ न कुछ कुरेदता रहेगा. अगले महीने आएंगे तो आराम से २ महीने तक रह पाएंगे. तुम मेरी बात समझ तो रहे हो न?”

जीवन ने कुछ देर सोचा फिर बोला, “तुम्हारी बात ठीक है. अगले महीने आओ फिर.”

गीता: “ये ठीक है, मैं भी सुनीति और बच्चों से कितने दिनों बाद मिलूंगी.”

जीवन हंस पड़ा, “जिन्हें तुम बच्चा कह रही हो वो तुम्हारी चूत और गांड की धज्जियाँ उड़ा देने वाले हैं.”

गीता: “क्या कह रहे हैं भाईसाहब!”

जीवन: “सच कह रहा हूँ. आओ भाभी, अब मैं तुम्हारी गांड का भी भोग लगा लूँ।”

बलवंत: “बिल्कुल, मेरा तो लंड सलोनी की गांड के बारे में सोचते ही फिर खड़ा हो गया है. क्यों सलोनी क्या कहती हो.”

सलोनी: “जब कमरे में आते हुए आपने मेरी गांड में उंगली की थी तब से ये खुजला रही है आपके लंड से खुजली मिटाने के लिए.”

ये कहते हुए चारों अगले चरण के लिए अग्रसर हो गए.

*****************


सुनीति के घर
अगले दिन सुबह:



सुनीति और अग्रिमा रसोई में खाना बना रहे थे. सुनीति को तो इसमें कोई कठिनाई नहीं थी पर अग्रिमा के हाथ पांव फूले हुए थे. उधर लगातार उसके मित्रों के फोन आये जा रहे थे. शर्म और घमंड में ये बता नहीं पा रही थी कि वो घर में अपनी माँ का काम में हाथ बंटा रही है. कुछ ही देर में शंकर भी आ जाता है, सब्जी और अन्य वस्तुओं के साथ. उसे अग्रिमा को रसोई में काम करते देख बहुत अचरज हुआ.

शंकर: “अरे अग्रिमा बिटिया, तुम! चलो अब रहने दो मैं आ गया हूँ.”

अग्रिमा: “थैंक यू , मौसाजी.”

सुनीति: “ ए मैडम, मौसा के आने से तुम जा सकती हो, ये किसने कहा?”

अग्रिमा: “मम्मी, मम्मी, मम्मी, प्लीज प्लीज. मेरे सब फ्रेंड्स मेरा वेट कर रहे हैं. मुझे जाने दो न प्लीज.” अग्रिमा के ये शब्द सुनकर सुनीति हंसने लगी. उसका मन भी लाड़ से भर गया.

सुनीति: “ठीक है जा. और मौसा के लिए कुछ उपहार लाना.”

अग्रिमा: “ओके, मॉम. जो उपहार मौसाजी को पसंद है, वो आप इन्हे अभी दे देना मेरी ओर से.”

सुनीति: “चल, शैतान. अब जा, मुझे काम करना है.”

अग्रिमा: “हाँ जी. इस काम के बाद भी तो काम करना है.” उसने अपने बाएं हाथ के अंगूठे और ऊँगली से गोला बनाकर उसमे दाएं हाथ की ऊँगली चलते हुए चुदाई का संकेत दिया और भाग गयी.

सुनीति भी हँसते हुए अपने रसोई के काम में लग गयी और शंकर सामान लगाने लगा. और फिर सुनीति का हाथ बँटाने लगा.

सुनीति: “बात हुई सलोनी से? ठीक से है.”

शंकर: “हाँ दीदी, सुबह हुई थी. सब अच्छा है. अपने घर भी गई थी. आपने जो पैसे दिए थे अपने घर वालों को दे दिए.”

सुनीति: “और कुछ?”

शंकर: “आपके बाबूजी और माँ जी के यहाँ आने की बात हो रही है. अगले महीने आएंगे कह रही थी. दादाजी ने मना लिया उन्हें।”

सुनीति: “सच. और ये बात मुझे अब बता रहे हो. ओह माँ. ये तो बड़ी ख़ुशी का समाचार है.”

ये कहते हुए सुनीति ने शंकर को बाँहों में भरकर चूम लिया. थोड़े ही समय में नाश्ता और खाना दोनों बन गए. शंकर से नाश्ता टेबल पर लगा दिया और घर के सदस्यों की प्रतीक्षा करने लगे. आधे घंटे में आशीष, असीम और कुमार आ गए और सब बैठकर नाश्ता करने लगे. आशीष ने देखा की सुनीति बहुत खिली हुई है.

आशीष: “क्या बात है, बहुत खुश लग रही हो.”

सुनीति: “बाबूजी ने पापा मम्मी को यहाँ आने के लिए मना लिया है. अगले महीने आएंगे.”

आशीष: “ये तो सच में बहुत ख़ुशी की बात है.”

कुमार: “मम्मी, नानी क्या अभी भी उतनी ही सुन्दर हैं?

सुनीति: “हाँ. और तेरे जैसे चार को संभाल सकती हैं इस आयु में भी.”

असीम: “ठीक है माँ. वैसे मैंने इसीलिए नहीं पूछा था, पर अब अपने कहा है तो हम दोनों संभाल लेंगे उन्हें.” कहते हुए दोनों भाइयों ने अपने एक एक हाथ जोड़कर ताली बजाई (हाई ५ किया).

आशीष सुनीति से: “ये साले नहीं सुधरेंगे। जहाँ चूत की बात हो, उछलने लगते हैं.”

असीम: “अरे पापा, आप के मन में लड्डू फूट रहे हैं. है न.”

बस यूँ ही चुहल में नाश्ता समाप्त करने के बाद सब अपने काम के लिए निकल पड़े. अब शंकर और सुनीति घर में अकेले ही थे. सामान समेटकर, किचन की सफाई करने के बाद शंकर ने चाय बनाई और लेकर बैठक में गया जहाँ सुनीति फोन पर अपनी माँ गीता से बात कर रही थी.

सुनीति: “.. अगर अभी आने को बोल रहे थे तो आ ही जाते.”

गीता: “...”

सुनीति: “बात तो पापा की भी सही है, चलो अब जितना शीघ्र हो सके आ जाओ. बहुत याद आती है, सच में.”

गीता: “...”

सुनीति: “अरे रे रे रे. पापा और बाबूजी जब भी मिलते हैं हमेशा ऐसा ही करते हैं. चलो ऐसा करो तुम मालिश करवा लो नाऊन को बुलाकर. सलोनी की भी करा देना. और विश्राम करो. बाद में फिर बात करेंगे.”

शंकर: “क्या हुआ दीदी, सब कुशल मंगल है न?”

सुनीति चाय की चुस्की लेते हुए : “हाँ सब ठीक है. पापा और बाबूजी जब साथ होते हैं तो कई बार बहुत बेदर्दी से चोदते है. मम्मी वही कह रही थीं. दोनों ने रात भर मम्मी और सलोनी के सारे बदन को तोड़ डाला. मम्मी की आयु ऐसी पहलवानी करने की तो है नहीं, पर सलोनी ठीक है, मम्मी ने बताया.”

शंकर अपनी चाय पीते हुए: “सलोनी तो और खिल गई होगी. जब असीम और कुमार के पास से आती है तब उसकी चाल भी बदली होती है और चेहरे की चमक भी. और ये दोनों भी बहुत बेरहमी से चोदते है, आप तो जानती ही हो.”

सुनीति, “हाँ, ये उन दोनों से इक्कीस ही निकले हैं.”

सुनीति की चाय समाप्त हो चुकी थी, उसने प्याला एक ओर रखा.

सुनीति: “हाँ जानती हूँ. कल तो मैंने दोनों मुश्टण्डों के लंड अपनी चूत में एक साथ लिए थे. सोचकर फिर पनियाने लगी है.” सुनीति ने अपने नाईट गाउन को घुटनों के ऊपर उठाकर अपनी चूत पर हाथ फिराते हुए कल की चुदाई को याद किया.

“मैं कुछ सहायता करूँ, दीदी” शंकर ने अपना प्याला एक और रखकर पूछा. उसे समझ आ चुका था कि ये वृत्तांत किस ओर अग्रसर है.

“इसमें पूछने जैसी कोई बात ही नहीं है.”

शंकर ने सुनीति के पांवों के बीच में बैठकर जांघों को अलग करते हुए चूत का अवलोकन किया.

“हम्म्म, लगता है कल तगड़ी चुदाई हुई है, दीदी. बहुत सूजी हुई लग रही है ये तो.”

“सूजेगी नहीं क्या. दो दो लंड एक साथ पेले थे इसमें.”

शंकर ने चूत की फांकों पर अपनी जीभ फिराई। और फिर धीरे धीरे चाटने शुरू किया. सुनीति ने सोफे पर अपना सिर पीछे करते हुए अपने पांव और फैलाये और अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया. शंकर ने अपना कार्यक्रम चालू रखते हुए अब सुनीति की गांड से चूत तक चाटना शुरू किया. सुनीति के शरीर में एक झुरझुरी से उठी. और उसने अपने आसन को बदल कर अपनी गांड उठाकर शंकर की पहुंच को सरल कर दिया. शंकर ने भी अपनी चाटने की प्रक्रिया को थोड़ा और तेज किया और अब वो अपनी जीभ से गांड और चूत की फांकों को कुरेद रहा था. पहले वो गांड के भूरे सितारे पर अपनी जीभ से चाटता और फिर चूत और गांड के बीच की लकीर को चाटते हुए चूत पर पहुँचता जहाँ वो पंखुडियों को चाटकर, जीभ से चूत के अंदर थोड़ी सी चटाई करता और भग्नासे के दाने को होंठों से दबाकर मसलता. और यही क्रिया वो दोहराता रहा.

अब सुनीति भी पूरी गर्मी में आ चुकी थी. उसकी चूत के पट खुल चुके थे और अब उसे कुछ बड़ी और कठोर वस्तु की अभिलाषा थी जो उसकी चूत को ठीक से भर सके.

“शंकर, अब तू मुझे चोद दे, बहुत बेचैनी हो रही है.”

ये सुनकर शंकर ने अपने कपडे उतारे, उसका लंड इस घर के अन्य लोगों की तरह विशालकाय तो नहीं था पर छोटा भी नहीं था. उसने अपने लंड को सुनीति की चूत पर रखा और एक ही बार में पूरा अंदर धकेल दिया.

*****************


जीवन का गाँव
पिछली रात:


जीवन: “सलोनी, जाकर जरा रसोई से तेल लेकर आओ.”

सलोनी काँपते पाँवों से रसोई में गई और दो कटोरियों में सरसों का तेल ले आई. उसने एक एक कटोरी बिस्तर के दोनों ओर रख दी. बलवंत उसे बड़ी ललचाई हुई आँखों से देख रहा था. जब तेल रखकर वो मुड़ी तो बलवंत ने उसे खींच कर अपनी गोदी में बिठा लिया. उसके मम्मों को दबाते हुए उसके चेहरे और होठों को चूमने लगा. इस प्रक्रिया से सलोनी का शरीर भी उसका साथ देने लगा और वो स्वयं ही बलवंत से लिपट गई.

जीवन: “बलवंत, इसकी गांड बहुत प्यार और कोमलता से मारना। इसको गांड मरवाने में आनंद बहुत आता है, पर गली थोड़ी तंग है, तो रोने लगती है. तेरी मोटर ज्यादा तेज मत चलाना नहीं तो दोनों को मजा नहीं आएगा. एक बार खुल जाये फिर जैसे चाहो वैसे चला सकते हो अपनी गाड़ी.”

बलवंत: “इतनी मुलायम गांड को मैं कैसे दर्द दे सकता हूँ. सलोनी, चलो घोड़ी बन जाओ, पहले तेरी इस गांड को प्यार तो कर लूँ .”

सलोनी ने घोड़ी का आसान ग्रहण किया और बलवंत ने उसके पीछे आकर उसकी गांड को चाटते हुए उसकी चूत में एक उँगली डाल दी और उसे चोदने लगा. सलोनी की रोमांच से आह निकल गई. उधर जीवन ने भी गीता से उसी आसान में आने को कहा और गीता की गांड को चाट कर ढीला और गीला करने लगा. जब बलवंत को लगा कि सलोनी की गांड अपेक्षित रूप से गीली हो चुकी है तो उसने तेल उठाया और अपने एक हाथ से गांड को फैला दिया. इससे गांड का भूरा छेद थोड़ा खुल गया. फिर बलवंत ने कटोरी से तेल की एक पतली धार के द्वारा सलोनी की गांड में तेल भरने का काम शुरू किया.

ठन्डे तेल के प्रवेश से सलोनी की गांड कुलबुलाने लगी और उसे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. पर बलवंत इस खेल का अनुभवी खिलाडी था. उसने कटोरी एक ओर रखी फिर दोनों हाथों से सलोनी के नितम्ब जोड़े और गांड को सील करते हुए दोनों नितम्बों को एक दूसरे से विपरीत दिशा में हिलने लगा. इससे तेल गांड की गहराईओं में चला गया. फिर उसने अपनी एक ऊँगली गांड में डालकर उसे अंदर अच्छे से चलाते हुए तेल को गांड की अंदरूनी त्वचा पर अच्छे से मला. तीन चार बार उसने तेल डालते हुए ये क्रिया दोहराई.

इसके बाद रुकते हुए उसने अपनी पारखी आँखों से अवलोकन किया और पाया कि अब सलोनी की गांड चुदने की स्थिति के अनुरूप है. अब उसने तेल से अपने लंड की अच्छी मालिश की और इतना तेल लगा लिया जैसे नहा दिया हो. अब उसने अपने लंड को सलोनी की गांड पर रखा.

बिस्तर में दूसरी ओर भी गीता की गांड के साथ लगभग यही कर्म हुआ था. पर गीता की गांड पर इतना समय नहीं लगना था तेल से चिपड़ने में इसीलिए जीवन ने अपनी जीभ और उँगलियों से अधिक समय श्रम किया. और जब तक सलोनी की गांड पर बलवंत ने लंड रखा, जीवन ने भी उसी समय गीता की गांड पर अपने लंड को बैठाया. पर इस बार जुगलबंदी नहीं थी. और इसीलिए बलवंत बड़े संतोषी गति से सलोनी की गांड में अपना लंड उतारने लगा. अभी उसके सुपाड़े ने अंदर प्रवेश पाया ही था कि जीवन ने तीन चार धक्कों में ही अपना लंड गीता की वृद्ध गुदा में पेल दिया.

बलवंत: “सलोनी, ठीक तो है न तू?” जब लंड पूरा गांड में अच्छे से बैठ गया तब उसने पूछा.

सलोनी: “बिल्कुल, भाई साहब. और सुनिए, मैं पहली बार गांड में नहीं ले रही हूँ, आप अपने ढंग से मारिये. मुझे गांड मरवाने में आनंद तो बहुत आता है, पर निर्ममता से नहीं.”

बलवंत ये सुनकर प्रसन्न हो गया. उसने अपने अपने लंड को आगे पीछे करते हुए मिनट भर में ही सलोनी की गांड को अपने पूरे लंड से पैक कर दिया. अब सलोनी को ऐसा लग रहा था कि ये चला तो गया पर अब चलेगा कैसे? पर इसके लिए उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. तेल से सनी गांड में लंड आसानी के साथ चलने लगा. उसकी तंग गली में इस घर्षण से एक विलक्षण सी अनुभूति होने लगी. जब लंड बाहर होता तो जिस स्थान को छोड़ता वहां सलोनी को खुजली सी लगती, जिसे तत्क्षण बलवंत का लौड़ा लौटकर उसे मिटा देता.

पर जीवन पर ऐसा कोई अंकुश नहीं था, और गीता भी गांड मरवाने में महारथ प्राप्त किये हुए थी. उसने जीवन पर्यन्त बलवंत और उनके मित्र मंडल के लंड अपनी गांड से निकाले थे. और उसे जीवन का ये पाशविक चुदाई का ढंग बहुत रास आता था. सिर्फ जीवन ही उसके गांड के पेंच ढीले करता था, अन्य सभी उसे एक गुड़िया या बुढ़िया के रूप में ही चोदते थे. पर जीवन में कोई दया भावना नहीं थी. यही कारण था कि वो उसके आने की राह देखती थी. और इस समय जीवन उससे इस लम्बे अंतराल का एक एक पल ऋण समेत प्राप्त कर रहा था. उसके लंड के लम्बे और भयावह धक्के जो किसी और स्त्री की आत्मा कँपा देते, गीता प्रतिकूल प्रभाव कर रहे थे. गीता तो इस समय कामान्धता के स्वर्ग में विचरण कर रही थी.

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सुनीति के घर


शंकर जानता था कि इस समय की चुदाई में सुनीति को त्वरित वाली चुदाई की कामना होती है. और वही वो उसे प्रदान कर रहा था. सुनीति ने केवल अपना गाउन ऊपर किया हुआ था और शंकर ने भी केवल अपनी पैंट ही निकाली थी. और शीघ्र ही सुनीति और शंकर दोनों ही झड़ गए. सुनीति उठकर बाथरूम में नहाने चली गई और शंकर अपने आउट हाउस में. दोनों का ये सामान्य नित्यकर्म सा था. सुनीति को दिन में न कितनी बार चुदाई की भूख लगती थी. ये तो घर में इतने पुरुष थे जो उसकी इस आग को बुझा पाते थे अन्यथा न जाने क्या न कर बैठती.

अपने कमरे में नहा धोकर वो थोड़ी देर के लिए टीवी देखने लगा की तभी भाग्या का फोन आ गया. उसने बताया कि सूरज तीन दिन के लिए किसी काम से बाहर जा रहा है तो उसने अपनी सास से घर आने की अनुमति ले ली है. उसने ये भी कहा कि वो शाम के पहले आ जाएगी और किसी से बताये नहीं क्योंकि वो अपने ही कमरे में रहना चाहेगी. बात समाप्त होने के बाद शंकर टीवी देखते हुए कुछ देर के लिए सो गया और फिर उठकर मुख्य घर में शेष कार्य संपन्न करने के लिए आ गया.

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जीवन का गाँव
रात अभी बाकी है



“मार मेरी गांड, फाड़ दे इसे. तेरे जैसा लौड़ा पाकर ये आज धन्य हो गई. जोर से कर हरामी. बुढ़ा गया क्या तू? अपने नातियों से मरवानी है ये गांड, उसके लिए तो खोल दे.” गीता भावावेश में चिल्ला रही थी.

ये तो अच्छा हुआ कि वो शयनकक्ष में थे नहीं तो मोहल्ले वाले खिड़की से झांक रहे होते. सलोनी के मुंह से इस स्थिति में भी हंसी निकल गई. उसकी गांड में बलवंत लम्बे धक्के लगा रहा था, पर जहाँ उनकी लम्बाई पूरी थी उनमें वो तीव्रता नहीं थी. एक लय से वो गांड में अपने लंड को चला रहा था. हालाँकि सलोनी इससे तेज गति भी झेल सकती थी और वस्तुतः उसमें आनंदित भी होती, परन्तु उसने अधिक वीरता न दिखाने में ही अपनी भलाई समझी.

सलोनी की हंसी सुनकर धक्कों से उखड़ी साँस के बीच गीता चिढ़ कर बोली,”तू . . क्यों . . हंस .. रही .. है… माँ .. की…. लौड़ी?”

सलोनी: “माँ जी, आप जो बाबूजी को कह रही हो न नातियों से गांड मरवाने की बात, सच कहूँ तो आप वैसा न ही करना अगर अपनी भलाई चाहती हो. उनके नीचे आकर अगर आपने उन्हें अगर ऐसे ललकारा तो समझ लेना कि आपको बाथरूम जाने लायक भी नहीं छोड़ेंगे. सच कहूँ तो बाबूजी उनके आगे आपको दया की मूर्ति लगेंगे.”

ये सुनकर गीता की गांड फट गई, पर उसे इसका रोमांच भी आया. उसकी गांड, चूत और पूरे शरीर में उस समय के बारे में सोचकर एक सिहरन दौड़ गई. अब ऐसा नहीं था कि बलवंत और जीवन उसकी गांड दबा के नहीं मारते थे. पर ये भी सच था की उनकी उम्र के कारण वो झड़ने के बाद ठहर जाते थे. पर जवान लौंडे रुकने वाले नहीं थे, और न ही जल्दी झड़ने वाले थे. यही सोचकर गीता ने निश्चय किया कि समय आने पर वो उस आग में घी अवश्य डालेगी. और इस सोच के कारण उसकी चूत ने ढेर सारा छोड़ दिया. गांड भी अब उत्तेजना से लप्लपाने लगी.

जीवन ने भी ये स्पंदन अनुभव किया. उसे भी अब लग रहा था कि वो शीघ्र ही झड़ेगा. और इसीलिए वो लंड को गांड के पूरा बाहर लेकर छेद को खुलते बंद देखकर फिर लौड़ा पेलने लगा. पर अभी गति पर अंकुश लगा लिया था. कभी छोटे तो कभी लम्बे धक्कों के साथ ही उसका ज्वालामुखी फूट गया और उसने गीता की गांड मलाई से भर दी. लंड बाहर निकाल कर गीता की चौड़ाये हुए गांड के छेद को संतुष्ट भाव से देखते हुए वो उठकर एक ओर बैठ गया.

बलवंत भी अब कुछ ही देर और रुक पाया और फिर उसने भी अपनी मलाई से सलोनी की गांड को भर दिया. सलोनी को इस चुदाई से बहुत सुख मिला था. उसे गांड मरवाना बहुत सुखद लगता था, और बलवंत ने जिस विधि से उसकी गांड ली थी, उसमें प्यार और व्यभिचार का अनोखा संगम था. बड़ा लंड होने के बाद भी जिस सरलता से बलवंत ने उसकी गहराइयाँ नापी थीं वो सचमुच इस कला की चरम सीमा थी.

जीवन और बलवंत उठकर बाथरूम चले गए और लौड़े धोकर नंगे ही बाहर बैठक में चले गए. गीता और सलोनी ने भी अपनी सूजी हुई गांड उठायीं और बाथरूम की और बढ़ी. जहाँ सलोनी साधारण गति से चल रही थी, गीता की चाल में एक लचक थी जिसका कारण संभवतः गांड की हालत थी. सलोनी ने उन्हें दया भरी आँखों से देखा और उनको सहारा देते हुए अंदर ले गई और सफाई करवाई.

“ये हरामी थोड़ा भी जोश दिलाओ तो जानवर ही बन जाता है.” गीता बोली.

सलोनी: “तो क्यों करतीं है ऐसा.”

गीता: “उसके बिना मजा भी नहीं आता. ये समझ कि गांड के कीड़े साफ कर दिए. और जो दर्द की टीस है, वही तो इस खेल का असली सुख है.”

सलोनी ने भी सफाई की और दोनों नंगी ही बाहर बैठक में चली गयीं.

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सुनीति के घर


४ बजे दोपहर को भाग्या आ गयी और सीधे अपने घर में चली गई. इस समय शंकर घर में अकेला ही था. भाग्या जाकर उसके गले लग गई.

शंकर: “ क्या हुआ बेटी, सब कुशल मंगल तो है?”

भाग्या: “सब ठीक है. आप दोनों की बहुत याद आयी तो चली आयी.”

परन्तु शंकर समझ गया कि भाग्या कुछ छुपा रही है.

शंकर: “सच कह बिटिया, अभी तुझे गए हुए चार दिन भी नहीं हुए हैं.”

भाग्या: “जब ये चले जाते हैं तो सास बहुत तंग करती है. मुझे डर है कि मौसी जी कहीं उनकी माँ न चोद दें.”

शंकर: “सूरज को बताया?”

भाग्या: “सीधे तो नहीं. वो मानेंगे नहीं कि ऐसा कुछ है.”

शंकर: “जा, तू आराम कर, मैं कुछ सोचकर बताता हूँ. लेकिन सम्भवतः तेरी मौसी को बताना ही होगा. अब चिंता मत कर और विषम कर.”

भाग्या इधर उधर देखते हुए : “माँ कहाँ है? इस समय तो घर पर ही रहती है.”

शंकर: “बाबूजी के साथ उनके गांव गई है. अगले सप्ताह लौटेगी.”

भाग्या: “ तब तो बेचारी की हालत ख़राब कर देंगे। आपने जाने क्यों दिया?”

शंकर : “पहली बात, कि मना करना ठीक नहीं था. और दूसरी कि सलोनी भी जाना चाहती थी. तेरे नाना नानी से मिले हुए भी बहुत दिन हो गए हैं.”

भाग्या: “बात तो ठीक है. पर यहाँ आप अकेले पड़ गए.”

शंकर: “अब तू जो आ गयी है. सब ठीक रहेगा. थोड़ा विश्राम कर ले फिर चाय बनता हूँ. मेरा काम पर जाने का समय हो जायेगा तब तक.”

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जीवन का गाँव
रात अभी भी बाकी है


बैठक में बैठे हुए सब बातें कर रहे थे.

जीवन: “वैसे तुम्हारे अगले महीने आने की योजना सही है. मैं कल सुबह अपने मैनेजर को बुला लूंगा और उसे काम समझा देना. उसकी मासिक आय को मैं संभाल लूंगा. मुझे नहीं लगता कि वो मना करेगा.”

गीता: “मेरी सुनीति से बात हुई, वो भी बहुत आनंदित हुई ये जानकर कि हम लोग आ रहे हैं.” फिर कुछ सोचते हुए, “भाईसाहब, आपको अगर कोई परेशानी न हो तो मैं कुछ कहूँ?”

जीवन: “क्यों नहीं भाभी, इसमें पूछने जैसी कोई बात ही नहीं.”

गीता: “मैं सोच रही थी कि सलोनी के माता पिता को भी ले चलें. वो भी कुछ दिन रह लेंगे अपने बच्चों के साथ. सप्ताह या १० दिन में फिर लौट आएंगे.”

सलोनी की ऑंखें नम हो गयीं, पर वो कुछ बोली नहीं.

जीवन: “बिल्कुल ले कर आना. मैं बड़ी गाड़ी भेज दूंगा। पर ये ध्यान रहे कि हमारे संबंधों के बारे में उन्हें कोई भी शक न हो. और जब तक वो रहें तब तक इन तीनों को अपने खेलों से दूर ही रहना होगा. ठीक है न सलोनी.”

सलोनी: “बाबूजी, आप सचमुच देवता हैं. मैं कल ही माँ से बात करूँगी। “

गीता: “वो तुम मुझपर छोड़ दो, मुझे विश्वास है कि वो मेरी बात नहीं टालेंगे.”

कुछ देर और यूँ ही बातें करने के बाद सलोनी ने सोने जाने की अनुमति मांगी और जाकर अपने कमरे में लेट कर सो गई.

“तो भाभी, अब हम दोनों के बीच में तुम अकेली ही बची हो.”

“तो क्या हुआ, मैं अभी भी तुम दोनों को धूल चटा सकती हूँ. चलो मैदान में.”

और इसी के साथ सब लौट कर शयन कक्ष में आ गए और अपने कपडे उतारकर नंगे हो गए.

गीता बिस्तर पर बैठकर सामने खड़े दोनों विशालकाय लौंड़ों को चूसने लगी. एक बार एक और दूसरी बार दूसरा. पहले को मुंह से निकालकर वो उसे अपने हाथों से रगड़ देती और दूसरे को चूसती. इस प्रकार उसने लगभग ५-७ मिनट दोनों को अच्छे से चूस और चाटकर तान दिया. अब दोनों ही लंड उसके शरीर के दो छेदों में प्रविष्ट होने के लिए उत्सुक थे.

जीवन: “तुझे क्या चाहिए, बलवंत ?”

बलवंत अनकहे प्रश्न को समझ गया.

बलवंत: “तुमने तो इस बुढ़िया की गांड मार ही ली है एक बार, अब मुझे मारने दे.”

जीवन: “बिल्कुल ठीक.”

उसने गीता को खड़ा किया और उसका एक गहरा चुम्बन लिया.

जीवन: “भाभी, अब तुम्हारा सर्वप्रिय खेल खेलें?”

गीता: “अरे भाई साहब, जब से आप आये हो मैं इसी समय की राह देख रही थी. अब लेट जाओ, मैं अपनी चूत में आपके लौड़े को डाल लूँ, फिर सुनीति के बाबूजी मेरी गांड में अपना लंड डाल देंगे.”

जीवन बिस्तर पर लेट गया जहाँ उसका लंड छत को ताक रहा था. गीता ने उसके ऊपर दोनों पांव फैलाकर बैठते हुए उसका लंड अपनी चूत में ले लिया. और पूरा अंदर जाने के बाद आगे की ओर झुक गई. जीवन ने उसकी पीठ पर अपने हाथों से शिकंजा बनाया और उसे अपनी ओर खींच लिया. गीता के स्तन जीवन के मजबूत सीने से जाकर जुड़ गए. बलवंत ने कटोरी में बचा तेल अपने लंड पर मला और थोड़ा तेल गीता की गांड पर डालकर उसे भी चिकना कर दिया.

बलवंत: “इस बुढ़िया के आज सारे पेंच ढीले करने हैं, जीवन. बहुत फुदकती है ये लंड के लिए.”

ये कहते हुए बलवंत ने अपना सुपाड़ा अंदर डाला और सुपाड़ा फिट होते ही एक तगड़ा धक्का मारा. धक्का इतना तीव्र था कि उसका पूरा लौड़ा एक ही बार में गीता की गांड में पूरा जड़ तक घुस गया. इतनी खेली खिलाई गीता की भी चीत्कार निकल गई. बलवंत अधिकतर गीता की बहुत प्यार से गांड मारता था, पर आज उसने ऐसी पाशविकता दिखाई कि गीता की आँखों के आगे तारे नाचने लगे. उसकी चीख से बगल के कमरे में सो रही सलोनी की आंख खुल गई. परन्तु उसे समझ आ गया कि क्या चल रहा है और वो अपने भाग्य को धन्यवाद करते हुए मुस्कुराकर दोबारा सो गई.

अब जब दोनों लंड गीता की चूत और गांड में पूरे धंसे हुए थे तो गीता को एक अलग ही अनुभव हो रहा था. यही वो अनुभव था जिसके लिए उसका शरीर और आत्मा इतने समय से व्याकुल थी. दोनों छेदों के बीच की पतली झिल्ली इस समय दो ओर से दबी हुई थी और उस समय की प्रतीक्षा कर रही थी जब उसकी दोनों ओर से घिसाई होगी.

बलवंत: “जीवन कैसे चलना है?”

जीवन: “उल्टा सीधा.”

उल्टा अर्थात जब एक लंड अंदर जायेगा तब दूसरा बाहर आएगा. सीधा अर्थात दोनों एक साथ अंदर बाहर होंगे. और इन दोनों के जोड़ का अर्थ ये कि कुछ बार उल्टा चलेगा और फिर सीधा. उनके वर्षों के अनुभव में ये मिश्रण चुदने वाली महिला को अत्यधिक सुख देता था, क्योंकि उसका शरीर लगातार एक उधेड़बुन में रहता था कि आक्रमण किस प्रकार का होगा. जीवन और बलवंत ५ धक्कों से इस विविधता का आरम्भ करते थे और हर परिवर्तन में उसे दो धक्कों से बढ़ा देते थे. अर्थात ५ उल्टे , ७ सीधे, ९ उलटे ११ सीधे. इसको पांच बार दोहरा कर फिर ५-७-९-११ शुरू हो जाता था.

गीता इस मेल में कई बार चुद चुकी थी और अथाह आनंद अनुभव कर चुकी थी. और इन दोनों के सिवाय कोई और नहीं था जो इस लय को इतनी सटीकता से निभा सकता. आज वो फिर उसी सुख के लिए तत्पर थी.

और इसी के साथ जीवन और बलवंत ने अपना समागम प्रारम्भ किया. जीवन का लंड चूत में घुसता तो बलवंत का लंड गांड से बाहर निकलता. निश्चित गणना के पश्चात्, दोनों के लंड एक साथ अंदर जाते और बाहर निकलते. यही क्रम एक बढ़ते हुए क्रम में चलता फिर अचानक निचले क्रम को पकड़ लेता. गीता इस समय कामोत्कर्ष की चरम सीमा पार कर चुकी थी. उसकी चूत से बहती हुई धार उसकी जांघों और बिस्तर को भिगा रही थी. पर न उसका मन अभी भरा था न ही उसका शरीर ही हार मान रहा था.

दूसरी ओर जीवन और बलवंत भी अपने लौंड़ों को गीता की चूत और गांड के बीच की पतली झिल्ली का अनुभव कर रहे थे. और ये कहना गलत नहीं होगा कि ये घर्षण उनके आनंद में चार चाँद लगा रहा था. गीता का मस्तिष्क इस विविधता का गणित समझने में सक्षम नहीं था. वो तो केवल उस केंद्र से उठती हुई आनंद की अनंत संवेदनाओं से ही अपने आप को प्रफुल्लित कर रहा था.

जीवन ने तभी बलवंत से कहा: “भाई, अब बस सीधे.” और इसी के साथ दोनों लौड़े अपने अपने गंतव्य में एक साथ अंदर और बाहर होने लगे. इसका अर्थ ये भी था कि जीवन का अब रस निकलने वाला ही था. जब इस क्रम के १० -१५ धक्के हो चुके तो जीवन ने कहा.

“भाभी, कहाँ छोड़ना है?”

“हम्प्फ हम्प्फ मेरे हम्प्फ मुंह में हम्प्फ हम्प्फ हम्प्फ।”

ये सुनकर दोनों ने अपनी गति सामन्य की और फिर धीमी करते हुए पहले बलवंत ने अपने लौड़े को गीता की गांड से निकाला और हट गया. गीता ने भी रूककर अपने आपको बहुत संभाल कर जीवन के लंड से अलग किया और बिस्तर के किनारे बैठ गयी. जीवन भी उठा और उठकर गीता के सामने फिर खड़ा हो गया. अब दोबारा से गीता ने दोनों के लंड चाटते हुए चूसना शुरू कर दिया. पर अब दोनों अपने लक्ष्य पर पहुँच चुके थे. पहले जीवन ने अपने गाढ़े सफ़ेद रस से गीता का मुंह भर दिया. गीता ने एक बूँद भी बेकार नहीं जाने दी. और जब तक उसने उसका सेवन पूरा करके बलवंत के लंड को मुंह में डाला तो बलवंत ने भी उसके मुंह को मलाई से भर दिया.

अंततः, सब अपने अपने लक्ष्य को पाकर संतुष्ट थे. कुछ मिनट यूँ ही सुख की अनिभूति करने के बाद गीता बोल उठी.

गीता: “यहाँ सोना संभव नहीं, पूरा बिस्तर गीला है, चलिए दूसरे शयनकक्ष में सोते हैं.”

तीनों यूँ ही नंगे दूसरे कमरे में सोने के लिए चले गए.

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क्रमशः
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दूसरा घर: सुनीति और आशीष राणा
अध्याय २.२

Words: 8300

जीवन का गाँव
कोई एक महीने पहले:


जीवन राणा इस आयु में भी वही रोब रखते थे जो ४० साल पहले था. इनके लम्बे और बलिष्ठ शरीर को जैसे उम्र ने छुआ तक नहीं था. उनकी पत्नी की मृत्यु को अब कोई दस वर्ष हो चुके थे. आज भी उसकी याद में उनकी ऑंखें भर आती थीं. परन्तु जीवन का यही नियम है कि किसी के जाने के बाद भी ये नहीं रुकता. आज भी वो अपने गांव और खेतों से उतना ही प्यार करते थे जितना पहले. साल में दो बार १० दिनों के लिए वो हरियाणा के अपने गाँव अवश्य जाते थे. अपने पुराने मित्रों के साथ मिलने बैठने का आनंद ही कुछ और था. उस गाँव से जुडी उनकी यादें ताजा करके उनके मन को एक शांति मिलती थी.

इस बार भी उन्हें आए हुए दो दिन हो चुके थे. अपने मित्र और सम्बन्धी बलवंत के घर पर उनके चार मित्रगण जमा थे. वो जब भी आते थे तो पास के शहर से एक मंहगी शराब की दो पेटियाँ साथ लाते थे. उनके मित्र भी इस समय की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा करते थे. सब मित्र अहाते में बैठे बातें कर रहे थे. बलवंत की पत्नी गीता उन्हें खाने का सामान परोस रही थी. अंदर अन्य मित्रों की पत्नियाँ बनाने में जुटी थीं. सब एक दूसरे के परिवारों से बहुत खुले हुए थे, बचपन के साथी जो थे. उन सबकी पत्नियां भी एक दूसरे की अंतरंग सहेलियाँ थीं. जीवन की पत्नी की मृत्यु का शोक सबको समान रूप से ही लगा था.

“भाई साहब, आपका समय कैसे काट पाता है हम सब के बिना. सच कहें तो आपकी बहुत याद आती है.” गीता ने जीवन की प्लेट में चिकन के पकवान परोसते हुए पूछा.
“सच भाभी, मन नहीं लगता. तभी तो चला आता हूँ. अब सोचता हूँ कि छह महीने में नहीं हर तीन महीने में आ जाया करूँ। और आप दोनों भी आया करो तो मन लगा रहेगा.”
“मैनें तो इन्हे कई बार कहा कि चलते हैं, सुनीति की हमें भी बहुत याद आती है.”

कुछ देर बाद सभी मित्र अपने घर चले गए. बलवंत और जीवन वहीँ बैठे रहे. फिर गीता भी आ गई.

बलवंत: “तुम लोगी?”
गीता के हाँ कहने पर बलवंत ने उसके लिए भी एक पेग बनाया और उसमे थोड़ा कोका कोला मिला दिया किससे अगर कोई देखे तो पता न लगे कि गीता क्या पी रही है.

गीता: “आप सुनीति को क्यों नहीं लेकर आते?”
जीवन: “उसने काम बहुत फैला लिया है. अब आना कठिन है. उसने ये कहा है कि मैं आप दोनों को साथ ले कर लौटूँ। मैं भी यही चाहता हूँ.”
बलवंत: “खेती कौन संभालेगा?”
जीवन: “मेरा जो मैनेजर मेरे खेत देखता है, वहीँ देखेगा. उसे हम इसके लिए दोगुने पैसे देंगे. और मैं नहीं समझता की वो मन करेगा. फिर एक महीने बाद जैसा समझो वैसा ही करना.”
बलवंत: “इस बारे में विचार किया जा सकता है. क्यों गीता.?”
गीता: “आप जो कहेंगे मुझे सब स्वीकार है.”

बलवंत: “इस बार तुम सलोनी को भी लेकर आये हो?”
जीवन: “हाँ, तुम तो जानते हो कि मेरा एक दिन भी चुदाई के बिना रहना कितना मुश्किल है. अब पिछली बार भाभी की तबियत ठीक नहीं थी, तो सोचा कि इस बार अपने प्रबंध के साथ आऊं.”
गीता: “पूछ तो लेते एक बार, अब मैं पूरी ठीक हूँ.”
जीवन: “ठीक है, तो बलवंत का स्वाद बदल जायेगा.”
गीता: “इनकी इतनी चिंता न करें भाई साहब. इनके स्वाद बदलने वाली तीन तो अभी ही अपने घरों को गई है.”
बलवंत हँसते हुए: “बोल तो ऐसे रही है जैसे मुझे ही सब मजे मिलते है. तू भी उन तीनों के पतियों के साथ मजा लेती है.”
जीवन ठहाका लगते हुए: “एक दूसरे की पोल न खोलो, चलो अंदर चलें यहाँ किसी ने सुन लिया तो बेकार बदनामी होगी.”

गीता ने सलोनी को बुलाया और दोनों सारा सामान अंदर ले गयीं. बलवंत और जीवन बैठक में सोफे हुए थे. गीता जाकर साथ बैठ गई. जीवन ने सलोनी को भी बुलाकर साथ बैठा लिया. बलवंत और गीता सलोनी का स्थान जानते थे और उन्हें इसमें कोई भी आपत्ति नहीं थी. कल तो सलोनी अपने घर अपने माता पिता से मिलने रुकी थी. उनको उसने ५० हजार रूपये दिए जो कि सुनीति ने उसे दिए थे. वो मना करते रहे, पर सलोनी कहाँ मानने वाली थी.

बातों में फिर एक बार सेक्स पर चर्चा होने लगी.

जीवन: “भाभी, वैसे गांव के जीवन का आनंद अलग है. शहर में भीड़ भाड़ और दौड़ भाग के बीच समय यूँ भी बीत जाता है. आशीष ने बहुत परिश्रम किया है. आज जब सब कुछ अच्छे से संभल गया है, तो उसने अपन समय घर और परिवार में अधिक बिताने का निश्चय किया है. अब तीनों बच्चे ही लगभग सँभालते हैं. ये बात अलग है कि उसकी अनुमति बिना लिए वो कोई बड़ा निर्णय नहीं लेते.”

गीता: “हाँ भाई साहब. हम लोग तो यहीं खुश हैं. हम पांचों का जो समूह था उसमे से भाभी के जाने के बाद अब वो रस नहीं रह गया.”
जीवन: “हाँ, रसीली तो बहुत थी वो. न जाने क्यों इतनी जल्दी चली गई. और भाभी, रस तुममें भी बहुत है.”
गीता: “अरे कहाँ, अब इन बूढी हड्डियों में वो बात नहीं रह गई.”
जीवन: “अरे भाभी, जब हम अभी बूढ़े नहीं हुए तो तुम कैसे हो गयीं?” ये कहकर जीवन उठा और गीता के बगल में जाकर बैठ गया.
उसके मम्मे दबाते हुए कहा, “बलवंत तो कहता है कि तेरी जैसी कोई हो ही नहीं सकती. और बाकी तीन भी यही सोचते है.”
गीता उससे लिपट गई, “क्यों चले गए यहाँ से, हम सब इतने खुश थे.”
जीवन: “निर्मला के जाने के बाद कुछ अच्छा ही नहीं लगता था. हर दृश्य में वही दिखती थी. आशीष और सुनीति इसीलिए ही मुझे अपने साथ ले गए क्योंकि मुझे वो कमी खाये जा रही थी.”

बलवंत के संकेत पर सलोनी उठकर उसकी गोद में जा बैठी. और अपनी बाहें बलवंत के गले में डाल दीं। बलवंत ने उसके होंठ चूमते हुए उसके शरीर पर अपने हाथों से सहलाते हुए उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए. कुछ ही क्षणों में सलोनी ऊपर ने नंगी हो चुकी थी. फिर वो उठी और बिना हिचक के अपनी साड़ी और पेटीकोट उतारकर नंगी हो गई. फिर दोबारा बलवंत की गोद में जा बैठी.

जीवन गीता के मम्मे दबाते हुए बोला: “उधर देखो भाभी, सलोनी अपनी जवानी दिखा रही है तुम्हारे पतिदेव को. आपका क्या मन है?”

गीता: “अब उसके जैसा तो मेरा शरीर रहा नहीं. फिर भी आपके लिए मैं भी कपडे निकाल ही देती हूँ.”
गीता खड़ी होकर अपने कपडे निकलने लगी तो साथ में जीवन ने भी खड़े होकर अपने कपडे उतार दिए. उसका कसरती शरीर चमक रहा था. और उसके पांवों के बीच में उसका आधा तना लंड झूल रहा था.
गीता: “मुझे कभी कभी इसकी कमी बहुत सताती है.”
जीवन: “क्यों बहलाती हो भाभी, बलवंत के सामने तो ये उन्नीस ही होगा.”
गीता: “बात वो नहीं है, बस कभी कभी याद आती है जब निर्मला और मैं मिलकर आप दोनों से चुदवाती थी.”
जीवन की ऑंखें नम हो गयीं. गीता ने ये देखा तो उसके सीने से लग गई.

गीता: “ मुझे क्षमा करो भाईसाहब.”
जीवन: “नहीं भाभी, आप सही कह रही हो. उसकी बात कुछ और ही थी.” फिर उसने गीता की ठुड्डी पकड़कर सिर उठाकर उसके होंठ चूम लिए. “जैसे आपकी बात अलग है.”

उधर बलवंत भी अपने कपडे उतार कर सलोनी को जमीन पर लिटा कर उसकी चूत की पूरी श्रध्दा से चूस रहा था. सलोनी कसमसा रही थी और अपनी गांड उठा उठाकर बलवंत को प्रोत्साहित कर रही थी. बलवंत ने उसके पांव इतने फैलाये हुए थे की चूत पूरी तरह से खुलकर उसके सामने थी. और वो उसके रोम रोम को कभी चाटता, कभी सहलाता और कभी हल्के से काट रहा था. सलोनी अपना वश खो चुकी थी. पर उसे पता था कि आज की रात उसकी और गीता दीदी की धुआंधार कुटाई होनी है. दोनों की चूत और गांड इतनी बार मारी जाएगी कि सुबह चलना भी कठिन होगा. इन दोनों की चुदाई कई बार इतनी दुर्दांत हो जाती थी कि मन कांप उठता था. पर उसमे जो आनंद आता था उसका वर्णन भी असंभव था.

सलोनी ये सब सोचते हुए अपनी चूत में चल रही उंगली और जीभ से आनंदातिरेक सिसकारियां ले रही थी. फिर बलवंत ने उसके पांव उठाकर ऊपर तक मोड़ दिए. इस आसन में सलोनी की चूत और गांड दोनों ही ऊपर आ गए. बलवंत ने अपनी जीभ को गांड के छेद से चूत के भगनासे तक चलाना शुरू किया. सलोनी की तो अब जैसे जान ही निकल गई. बलवंत उसकी गांड के छेद पर जीभ से खेलता, फिर अपनी जीभ के ऊपर ले जाता और फिर भगनासे को जीभ से चाटकर अपने होठों से दबा देता. और फिर यही क्रम दोहराता. सलोनी की चूत और गांड दोनों में कुनमुनाहट होने लगी. चूत ने अपना रस बहाना शुरू किया तो बलवंत ने उस रस के सहारे अपने क्रम को और गतिशील कर दिया.

सलोनी हल्की चीख के साथ सिसकती हुई बोल पड़ी: “भाई साहब, मेरा पानी छूटने वाला है.”
पर बलवंत ने अपने आक्रमण में कमी करने के स्थान पर और भी तेजी कर दी. और सलोनी का बांध टूट गया. उसने लम्बी पिचकारियों के साथ अपन ढेर सारा पानी बलवंत के मुंह और चेहरे पर उड़ेल दिया. पर बलवंत रुका नहीं. और जब सलोनी पूरी झड़ नहीं गई, तब तक उसने अपना खेल बंद नहीं किया. जब सलोनी निढाल हो गई, तब बलवंत ने अपना चेहरा उठाया जो इस समय पूरी तरह से भीगा हुआ था.

“जीवन, इसकी चूत तो बहुत मीठी है, यार.”
“मेरे घर की हर चूत मीठी है, तेरी बेटी की चूत मिला कर.” जीवन अपने लंड को गीता के मुंह में अंदर बाहर करते हुए हंस कर बोला.

“ये सब हमारी पत्नियों की कृपा है, जिन्होंने ऐसी संतानें जो दी हैं.” बलवंत भी हंसकर बोला।

गीता पूरी आत्मीयता से जीवन के लंड को चूस रही थी. अब वो पहले वाला समय तो था नहीं कि जब चाहते तब अपने किसी भी मित्र के घर चले जाते और चूत, लंड या गांड चूस लेते। जीवन का लंड तो अब साल में कोई १५-१६ दिन ही उसके हिस्से में आ पता था. और इसका वो पूरा लाभ उठाना चाहती थी. जीवन भी अपनी भाभी रूपी समधन से लंड चुसवाने के लिए लालायित रहता था. तभी वो चाहता था कि ये दोनों साथ चलें और आनंद लें. जीवन ने गीता का सिर पीछे से पकड़कर उसके मुंह को लंड से चोदने की प्रक्रिया प्रारम्भ की. गीता को उसकी ये सब लीलाएं पता थीं और वो बलवंत के लंड को भी गले तक निगल लेती थी. और अब भी जीवन का लंड उसके गले को छू कर अंदर बाहर हो रहा था.

“भाभी, अब मुझे आपकी चूत चोदनी है.”

गीता: “क्यों भाईसाहब, मेरा रस नहीं पीना?”
जीवन: “नहीं भाभी, अभी रुका नहीं जा रहा, बहुत दिन हो गए इस चूत का भोग किये हुए. और अभी तो मैं कई दिन हूँ यहाँ.’

गीता वहीं जमीन पर लेट गई और अपने पांव फैला दिए.
जीवन: “नहीं भाभी, यहाँ नहीं, बिस्तर पर ही चलो. अब घुटने थक जाते हैं.”

ये सुनकर गीता उठी और वैसे ही नंगी अपनी गांड मटकाते हुए शयनकक्ष की ओर चल पड़ी. जीवन उसके पीछे हो गया. फिर उसने पीछे मुड़कर बलवंत को देखा.

जीवन: “तुम भी अंदर ही आ जाओ”

बलवंत ने सिर हिलाकर ठीक है कहा और सलोनी को लेकर शयनकक्ष की ओर चल दिया. चलते समय उनके हाथ सलोनी की गांड पर था और उसने चुहल करने के लिए एक उंगली उसकी गांड में पेल दी. सलोनी चलते हुए ठिठक गयी.

सलोनी: “भाईसाहब, आपके लक्ष्य गलत छेद पर है.”
बलवंत: “नहीं, लक्ष्य भी सही है और लक्ष्य भेदने के लिए बाण भी उत्सुक है. पर अभी समय है वहाँ अतिक्रमण में. पहले तुम्हारी चूत का भोग लगाना चाहूंगा.”
सलोनी: “फिर ठीक है. चूत की खुजली बहुत अधिक बढ़ गई है, पर अब अपने गांड में भी आग लगा दी.”
बलवंत: “कहे तो मैं और जीवन तेरी चूत और गांड की आग एक साथ बुझा दें?”

अब सलोनी इस खेल के लिए नयी तो थी नहीं. उसे पता था कि उसके दोनों छेदों की पिलाई होनी ही है. जैसे की गीता दीदी की होगी. उसका शरीर उत्तेजना से सिहर उठा.

गीता: “ अभी नहीं भाईसाहब, उसका जब समय आएगा तब देखेंगे.”

वो जानती थी कि जीवन को इस तरह की चुदाई कितनी पसंद है. और अब वो भी इसकी अभ्यस्त हो चुकी थी और उसे भी इसमें आनंद आता था. कमरे में पहुंचे तो देखा की गीता पहले से ही बिस्तर पर टाँगें फैलाये पड़ी थी और जीवन अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रखकर खड़े थे.

जीवन: “आ जा बलवंत. तेरे ही लिए रुका हूँ. साथ में जुगलबंदी करेंगे. देखें इनमे से कौन पहले हार मानती है. और जीतने वाली को हम दोनों कुछ विशेष देंगे.”

ये सुनते ही गीता और सलोनी दोनों के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. आज हारने में ही भलाई लग रही थी. पर जीवन की बात अभी समाप्त नहीं हुई थी.

“और हारने वाली को सजा.”
अब गीता और सलोनी को काटो तो खून नहीं. इधर गिरीं तो कुंआ उधर गिरीं तो खाई. अब बलवंत ने सलोनी को बिस्तर पर लिटा दिया गीता के साथ और अपने लंड को सलोनी की चूत पर लगाया और जीवन को संकेत दिया शुरू करने का.

एक साथ दो मोटे लम्बे कड़क लंड दो चूतों के अंदर एक ही झटके में समा गए. अब गीता की तो चूत कई सावन देख चुकी थी पर गीता की आंखे तिरछा गयीं. ये खेल बलवंत और जीवन का पुराना शौक था और जब वो जुगलबंदी करते थे तो उनका एक एक धक्का और गति एक समान होती थी. गीता तो इस खेल में कई बार खिलौना बन चुकी थी पर सलोनी के लिए ये उतना पुराना नहीं था. पर इससे कुछ अंतर नहीं पड़ना था. चूत तो उसकी अलग से ही चुदनी थी.

जीवन और बलवंत जुगलबंदी में गीता और सलोनी की चूतों में अपने लंड पेल रहे थे. बिस्तर के स्प्रिंग चूं चूं की ध्वनि से चरमरा रहे थे. उनके चोदने की तीव्रता इतनी अधिक थी कि अगर पलंग मजबूत लकड़ी का न होता तो संभवतः अब तक टूट गया होता. उनके नीचे अपनी चूत का भोसड़ा बनवाती हुई गीता और सलोनी इस भीषण चुदाई में पीड़ा और आनंद दोनों अनुभव कर रही थीं. गीता को तो ऐसी ही चुदाई पसंद थी, अगर चोदने वाला बलवंत न हो तो. बलवंत से उसे प्यार से चुदना अधिक पसंद था. पर दूसरों से उसे ऐसी ही चुदाई की इच्छा रहती थी. विशेषकर जीवन से जिसके लंड और पाशविक चुदाई की तो वो दीवानी थी. उधर बलवंत भी गीता के अलावा दूसरी औरतों को इसी निर्ममता से चोदता था.

सलोनी की चूत तो इस समय अगर नदी के समान बह रही थी तो गीता की समुद्र की तरह. दोनों इस समय चरमोत्कर्ष की ऊंचाई पर थीं और उनकी आँखों में चाँद तारे जगमगा रहे थे. शारीरिक संवेदना अब पूर्ण रूप से उनकी योनि पर केंद्रित थी.

गीता: “अब और नहीं, बस अब झड़ जाओ. मेरी चूत अब और नहीं झेल पायेगी. मुझ पर दया करो.”
गीता की विनती भरे स्वर सुनकर सलोनी ने भी विनती दोहराई.
बलवंत और जीवन ने एक दूसरे को देखा और सिर हिलाकर अपने धक्के और तेज कर दिए. बस कुछ ही पल निकले होंगे कि उन दोनों ने अपने गाढ़े सफ़ेद रस से दोनों चूतों को भर दिया. फिर दोनों मित्र परिवारजन हटकर अपने साथी की बगल में लेट कर लम्बी साँसों के साथ विश्राम करने लगे.

“आज कुछ अधिक ही जोश में थे भाई साहब.” गीता ने पूछा.
जीवन: “नहीं भाभी, बस आपके साथ इतने समय बाद जो किया, तो मन की इच्छा पूरी करनी थी. मैं फिर कहता हूँ, आप लोग मेरे साथ चलो.”
बलवंत: “जीवन, अभी चलना कठिन होगा. मैं सब काम एक बार संभाल दूँ फिर अगले महीने हम दोनों आ जायेंगे. अभी चलने से हमेशा मन में कुछ न कुछ कुरेदता रहेगा. अगले महीने आएंगे तो आराम से २ महीने तक रह पाएंगे. तुम मेरी बात समझ तो रहे हो न?”
जीवन ने कुछ देर सोचा फिर बोला, “तुम्हारी बात ठीक है. अगले महीने आओ फिर.”
गीता: “ये ठीक है, मैं भी सुनीति और बच्चों से कितने दिनों बाद मिलूंगी.”
जीवन हंस पड़ा, “जिन्हें तुम बच्चा कह रही हो वो तुम्हारी चूत और गांड की धज्जियाँ उड़ा देने वाले हैं.”
गीता: “क्या कह रहे हैं भाईसाहब!”

जीवन: “सच कह रहा हूँ. तो लाओ भाभी अब मैं तुम्हारी गांड का भी भोग लगा लूँ।”
बलवंत: “बिल्कुल, मेरा तो लंड सलोनी की गांड के बारे में सोचते ही फिर खड़ा हो गया है. क्यों सलोनी क्या कहती हो.”
सलोनी: “जब कमरे में आते हुए आपने मेरी गांड में उंगली की थी तब से ये खुजला रही है आपके लंड से खुजली मिटाने के लिए.”

ये कहते हुए चारों अगले चरण के लिए अग्रसर हो गए.

*****************

सुनीति के घर
अगले दिन सुबह:


सुनीति और अग्रिमा किचन में थे और खाना बना रहे थे. सुनीति को तो इसमें कोई कठिनाई नहीं थी पर अग्रिमा के हाथ पांव फूले हुए थे. उधर लगातार उसके मित्रों के फोन आये जा रहे थे. शर्म और घमंड में ये बता नहीं पा रही थी कि वो घर में अपनी माँ का काम में हाथ बंटा रही है. कुछ ही देर में शंकर भी आ जाता है, सब्जी और अन्य वस्तुओं के साथ. उसे अग्रिमा को किचन में काम करते देख बहुत अचरज हुआ.

शंकर: “अरे अग्रिमा बिटिया, तुम! चलो अब रहने दो मैं आ गया हूँ.”
अग्रिमा: “थैंक यू , मौसाजी.”
सुनीति: “ ए मैडम, मौसा के आने से तुम जा सकती हो, ये किसने कहा?”
अग्रिमा: “मम्मी, मम्मी, मम्मी, प्लीज प्लीज. मेरे सब फ्रेंड्स मेरा वेट कर रहे हैं. मुझे जाने दो न प्लीज.” अग्रिमा के ये शब्द सुनकर सुनीति हंसने लगी. उसका मन भी लाड़ से भर गया.
सुनीति: “ठीक है जा. और मौसा के लिए कुछ उपहार लाना.”
अग्रिमा: “ओके, मॉम. जो उपहार मौसाजी को पसंद है, वो मैं रात में दे दूंगी. और आप इन्हे अभी दे देना मेरी ओर से.”
सुनीति: “चल, शैतान. अब जा, मुझे काम करना है.”
अग्रिमा: “हाँ जी. इस काम के बाद भी तो काम करना है.” उसने अपने बाएं हाथ के अंगूठे और ऊँगली से गोला बनाकर उसमे दाएं हाथ की ऊँगली चलते हुए चुदाई का संकेत दिया और भाग गयी.

सुनीति भी हँसते हुए अपने किचन के काम में लग गयी और शंकर सामान लगाने लगा. और फिर सुनीति का हाथ बँटाने लगा.

सुनीति: “बात हुई सलोनी से? ठीक से है.”
शंकर: “हाँ दीदी, सुबह हुई थी. सब अच्छा है. अपने घर भी गई थी. आपने जो पैसे दिए थे अपने घर वालों को दे दिए.”
सुनीति: “और कुछ?”
शंकर: “आपके बाबूजी और माँ जी के यहाँ आने की बात हो रही है. अगले महीने आएंगे कह रही थी. दादाजी ने मना लिया उन्हें।”
सुनीति: “सच. और ये बात मुझे अब बता रहे हो. ओह माँ. ये तो बड़ी ख़ुशी का समाचार है.”
ये कहते हुए सुनीति ने शंकर को बाँहों में भरकर चूम लिया.

थोड़े ही समय में नाश्ता और खाना दोनों बन गए. शंकर से नाश्ता टेबल पर लगा दिया और घर के सदस्यों की प्रतीक्षा करने लगे. आधे घंटे में आशीष, असीम और कुमार आ गए और सब बैठकर नाश्ता करने लगे. आशीष ने देखा की सुनीति बहुत खिली हुई है.

आशीष: “क्या बात है, बहुत खुश लग रही हो.”
सुनीति: “बाबूजी ने पापा मम्मी को यहाँ आने के लिए मना लिया है. अगले महीने आएंगे.”
आशीष: “ये तो सच में बहुत ख़ुशी की बात है.”
कुमार: “मम्मी, नानी क्या अभी भी उतनी ही सुन्दर हैं?
सुनीति: “हाँ. और तेरे जैसे चार को संभाल सकती हैं इस उम्र में भी.”
असीम: “ठीक है माँ. हम दोनों संभाल लेंगे उन्हें.” कहते हुए दोनों भाइयों ने अपने एक एक हाथ जोड़कर ताली बजाई (हाई ५ किया).

आशीष सुनीति से: “ये साले नहीं सुधरेंगे। जहाँ चूत की बात हो, उछलने लगते हैं.”
असीम: “अरे पापा, आप भी मन मन में खुश हो रहे हो. है न.”

बस यूँ ही चुहल में नाश्ता समाप्त करने के बाद सब अपने काम के लिए निकल पड़े. अब शंकर और सुनीति घर में अकेले ही थे. सामान समेटकर, किचन की सफाई करने के बाद शंकर ने अपने लिए एक और चाय बनाई. शंकर चाय लेकर बैठक में गया जहाँ सुनीति फोन पर गीता से बात कर रही थी.

सुनीति: “.. अगर अभी आने को बोल रहे थे तो आ ही जाते.”
गीता:””
सुनीति: “बात तो पापा की भी सही है, चलो अब जितना जल्दी हो सके आ जाओ. बहुत याद आती है, सच में.”
गीता:””
सुनीति: “अरे रे रे रे. पापा और बाबूजी जब भी मिलते हैं हमेशा ऐसा ही करते हैं. चलो ऐसा करो तुम मालिश करवा लो नाऊन को बुलाकर. सलोनी की भी करा देना. और आराम करो. बाद में फिर बात करेंगे.”

शंकर: “क्या हुआ दीदी, सब कुशल मंगल है न?”
सुनीति चाय की चुस्की लेते हुए : “हाँ सब ठीक है. पापा और बाबूजी जब साथ होते हैं तो कई बार बहुत बेदर्दी से चोदते है. मम्मी वही कह रही थीं. दोनों ने रात भर मम्मी और सलोनी के सारे बदन को तोड़ डाला. मम्मी की उम्र भी वैसी नहीं कि ऐसी पहलवानी करें. पर सलोनी ठीक है, मम्मी ने बताया.”

शंकर अपनी चाय पीते हुए: “सलोनी तो और खिल गई होगी. जब असीम और कुमार के पास से आती है तब उसकी चाल भी बदली होती है और चेहरे की चमक भी. और ये दोनों भी बहुत बेरहमी से चोदते है, आप तो जानती ही हो.”

सुनीति की चाय समाप्त हो चुकी थी, उसने प्याला एक ओर रखा.
सुनीति: “हाँ जानती हूँ. कल तो मैंने दोनों मुश्टण्डों के लंड अपनी चूत में एक साथ लिए थे. सोचकर फिर पनियाने लगी है.” सुनीति ने अपने नाईट गाउन को घुटनों के ऊपर उठाकर अपनी चूत पर हाथ फिराते हुए कल की चुदाई को याद किया.

“मैं कुछ सहायता करूँ, दीदी” शंकर ने अपना प्याला एक और रखकर पूछा. उसे समझ आ चुका था की ये वृत्तांत किस ओर अग्रसर है.
“इसमें पूछने जैसी कोई बात ही नहीं है.”
शंकर ने सुनीति के पांवों के बीच में बैठकर जांघों को अलग करते हुए चूत का अवलोकन किया.
“हम्म्म, लगता है कल तगड़ी चुदाई हुई है, दीदी. बहुत सूजी हुई लग रही है ये तो.”
“सूजेगी नहीं क्या. दो दो लंड एक साथ पेले थे इसमें.”

शंकर ने चूत की फांकों पर अपनी जीभ फिराई। और फिर धीरे धीरे चाटने शुरू किया. सुनीति ने सोफे पर अपना सिर पीछे करते हुए अपने पांव और फैलाये और अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया. शंकर ने अपना कार्यक्रम चालू रखते हुए अब सुनीति की गांड से चूत तक चाटना शुरू किया. सुनीति के शरीर में एक झुरझुरी से उठी. और उसने अपने आसन को बदल कर अपनी गांड उठाकर शंकर के कार्य को सरल कर दिया. शंकर ने भी अपनी चाटने की प्रक्रिया को थोड़ा और तेज किया और अब वो अपनी जीभ से गांड और चूत की फांकों को कुरेद रहा था. पहले वो गांड के भूरे सितारे पर अपनी जीभ से चाटता और फिर चूत और गांड के बीच की लकीर को चाटते हुए चूत पर पहुँचता जहाँ वो पंखुडियों को चाटकर, जीभ से चूत के अंदर थोड़ी सी चटाई करता और भग्नासे के दाने को होंठों से दबाकर मसलता. और यही क्रिया वो फिर से दोहराता.

अब सुनीति भी पूरी गर्मी में आ चुकी थी. उसकी चूत के पट खुल चुके थे और अब उसे कुछ बड़ी और कठोर वास्तु की अभिलाषा थी जो उसकी चूत को ठीक से भर सके.

“शंकर, अब तू मुझे चोद दे, बहुत बेचैन हो रही है ये.”

ये सुनकर शंकर ने अपने कपडे उतारे, उसका लंड इस घर के अन्य लोगों की तरह विशालकाय तो नहीं था पर छोटा भी नहीं था. उसने अपने लंड को सुनीति की चूत पर रखा और एक ही बार में पूरा अंदर धकेल दिया.

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जीवन का गाँव
पिछली रात:


जीवन: “सलोनी, जाकर जरा रसोई से तेल लेकर आओ.”

सलोनी काँपते पाँवों से रसोई में गई और दो कटोरियों में सरसों का तेल ले आई. उसने एक एक कटोरी बिस्तर के दोनों ओर रख दी. बलवंत उसे बड़ी ललचाई हुई आँखों से देख रहा था. जब तेल रखकर वो मुड़ी तो बलवंत ने उसे खींच कर अपनी गोदी में बिठा लिया. उसके मम्मों को दबाते हुए उसके चेहरे और होठों को चूमने लगा. इस प्रक्रिया से सलोनी का शरीर भी उसका साथ देने लगा और उसने भी अपने आप को बलवंत के शरीर से लपेट लिया.

जीवन: “बलवंत, इसकी गांड बहुत प्यार और कोमलता से मारना। इसको गांड मरवाने में मज़ा बहुत आता है, पर थोड़ी तंग गली है, तेरी मोटर ज्यादा तेज मत चलाना नहीं तो दोनों को मजा नहीं आएगा. एक बार खुल जाये फिर जैसे चाहो वैसे चला सकते हो अपनी गाड़ी.”

बलवंत: “इतनी मुलायम गांड को मैं कैसे दर्द दे सकता हूँ. सलोनी, चलो घोड़ी बन जाओ, पहले तेरी इस गांड को प्यार तो कर लूँ .”

सलोनी ने घोड़ी का आसान ग्रहण किया और बलवंत ने उसके पीछे आकर उसकी गांड को चाटते हुए उसकी चूत में एक उँगली डाल दी और उसे चोदने लगा. सलोनी की रोमांच से आह निकल गई. उधर जीवन ने भी गीता से उसी आसान में आने को कहा और गीता की गांड को चाट कर ढीला और गीला करने लगा.

जब बलवंत को लगा कि सलोनी की गांड अपेक्षित रूप से गीली हो चुकी है तो उसने तेल उठाया और अपने एक हाथ से गांड को फैला दिया. इससे गांड का भूरा छेद थोड़ा खुल गया. फिर बलवंत ने कटोरी से तेल की एक पतली धार के द्वारा सलोनी की गांड में तेल भरने का काम शुरू किया. ठन्डे तेल के प्रवेश से सलोनी की गांड कुलबुलाने लगी और उसे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. पर बलवंत इस खेल का अनुभवी खिलाडी था. उसने कटोरी एक ओर रखी फिर दोनों हाथों से सलोनी के नितम्ब जोड़े और गांड को सील करते हुए दोनों नितम्बों को एक दूसरे से विपरीत दिशा में हिलने लगा. इससे तेल गांड की गहराईओं में चला गया. फिर उसने अपनी एक ऊँगली गांड में डालकर उसे अंदर अच्छे से चलते हुए तेल को गांड की अंदरूनी त्वचा पर अच्छे से मला. तीन चार बार उसने तेल डालते हुए ये क्रिया दोहराई.

इसके बाद रुकते हुए उसने अपनी पारखी आँखों से अवलोकन किया और पाया कि अब सलोनी की गांड चुदने की स्थिति में आ गई है. फिर उसने तेल से अपने लंड की अच्छी मालिश की और इतना तेल लगा लिया जैसे नहा दिया हो. अब उसने अपने लंड को सलोनी की गांड पर रखा.

बिस्तर में दूसरी ओर भी गीता की गांड के साथ लगभग यही कर्म हुआ था. पर गीता की गांड पर इतना समय नहीं लगना था तेल से चिपड़ने में इसीलिए जीवन ने अपनी जीभ और उँगलियों से अधिक समय श्रम किया. और जब तक सलोनी की गांड पर बलवंत ने लंड रखा, जीवन ने भी उसी समय गीता की गांड पर अपने लंड को बैठाया. पर इस बार जुगलबंदी नहीं थी. और इसीलिए बलवंत बड़े संतोषी गति से सलोनी की गांड में अपना लंड उतारने लगा. अभी उसके सुपाड़े ने अंदर प्रवेश पाया ही था कि जीवन ने तीन चार धक्कों में ही अपना लंड गीता की वृद्ध गुदा में पेल दिया.

बलवंत: “सलोनी, ठीक तो है न तू?” जब लंड पूरा गांड में अच्छे से बैठ गया तब उसने पूछा.
सलोनी: “बिल्कुल भाई साहब. और सुनिए, मैं पहली बार गांड में नहीं ले रही हूँ, आप अपने ढंग से मारिये. मुझे गांड मरवाने में मजा तो बहुत आता है, पर बेरहम तरीके से नहीं.”

बलवंत ये सुनकर खुश हो गया. उसने अपने अपने लंड को आगे पीछे करते हुए मिनट भर में ही सलोनी की गांड को अपने पूरे लंड से पैक कर दिया. अब सलोनी को ऐसा लग रहा था कि ये चला तो गया पर अब चलेगा कैसे? पर इसके लिए उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. तेल से सनी गांड में लंड आसानी के साथ चलने लगा. उसकी तंग गली में इस घर्षण से एक अजीब सी अनुभूति होने लगी. जब लंड बाहर होता तो जिस स्थान को छोड़ता वहां सलोनी को खुजली सी लगती, जिसे तत्क्षण बलवंत का लौड़ा वापिस घुसते हुए मिटा देता.

पर जीवन के ऊपर ऐसा कोई अंकुश नहीं था, और गीता भी गांड मरवाने में महारथ प्राप्त किये हुए थी. उसने बलवंत और उनके मित्र मंडल के अन्य चार मित्रों के लंड अपनी गांड से निकाले थे. और उसे जीवन का ये वहशियाना चुदाई का ढंग बहुत रास आता था. सिर्फ जीवन ही उसके गांड के पेंच ढीले करता था, अन्य सभी उसे एक गुड़िया या बुढ़िया के रूप में ही चोदते थे. पर जीवन में ऐसी कोई दया नहीं थी. यही कारण था कि वो उसके आने की राह देखती थी. और इस समय जीवन उसके इस लम्बे अंतराल का एक एक पल वसूल रहा था. उसके लंड के लम्बे और भयावह धक्के किसी और स्त्री की आत्मा कँपा देते. पर गीता इस समय कामान्धता के स्वर्ग में विचरण कर रही थी.

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अग्रिमा का खेल:

अब ये तो हो नहीं सकता कि सारा परिवार रंगरेलियों में लिप्त हो और अग्रिमा इससे दूर रहे. उसने ये तो सच ही कहा था कि उसके मित्र उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे, पर वो कौन थे ये उसने नहीं बताया.

अग्रिमा अपनी सहेली मोना और तीन पुरुष मित्रों के साथ इस समय एक घर की बैठक में थे. ये घर उनमे से किसी का भी नहीं था और मोना ही उन्हें यहाँ लेकर आयी थी. तीनों लड़के उनके ही साथ के थे. जब ये तय हुआ कि सेक्स किया जाये तो मोना ने तीनों लड़कों को कपडे उतार कर एक कमरे में जाने के लिए कहा.

“तुम लोग कपडे निकालकर उस बेडरूम में चलो, मैं और अग्रिमा बस ५ मिनट में आते हैं.” मोना ने कहा.

लड़कों को तो जैसे मिठाई मिल गई हो, उन्होंने तुरंत अपने कपड़े आनन फानन निकाले और जल्दी से कमरे में घुस गए. पर वहां का दृश्य देखकर वो ठिठक गए.

“हैलो बॉयज़! क्या मुझे ढूंढ रहे हो?” बिस्तर पर बैठी हुई एक अति सुन्दर अधेड़ स्त्री ने लुभावनी और आमंत्रण भरे स्वर में पूछा.
एक लड़का, “हमें मोना ने यहाँ आने को कहा और बोली कि वो भी आ रही है.”

स्त्री: “वो आएगी, पर जो पाने के लिए तुम तीनों आतुर हो वो मोना से नहीं, मुझसे मिलेगा.” उसने तीनों लड़कों की आँखों में ऑंखें मिलकर बताया. “क्या है न कि मोना लेस्बियन है, उसे लड़कों में कोई रूचि नहीं है. और मुझे तुम्हारी आयु के लड़कों में बहुत रूचि है. मेरा अर्थ समझ रहे हो न? उसने एक हाथ से अपने मम्मे और एक से अपनी चूत के पाटों को हटाकर सहलाते हुए बोला। “

लड़कों ने एक दूसरे की ओर देखा, और जैसा कि इस उम्र में होता है उनका निर्णय उनके खड़े होकर सलाम करते हुए लौंड़ों ने लिया, क्योंकि मिलती हुई चूत को ठुकराना बेवकूफी होती है.

“हम्म्म, लगता है तुम सबके लंड इसके लिए हाँ कह रहे हैं.” स्त्री ने मुस्कुराकर कहा. “क्या है न, मैं अपने किसी भी छेद से पक्षपात नहीं करती हूँ. इसीलिए ये सब तुम लोगों के लिए है.” उसने अश्चार्यजनक अंदाज़ में अपने दोनों पांव ऊपर उठाये और अपनी चूत और फिर गांड में ऊँगली डालकर अपना आशय साफ कर दिया. तीनों लड़कों की बांछे खिल गयीं. लड़कियाँ चुदवा तो लेती थीं पर मुंह में लेने में बहुत नखरे करती थीं. और गांड! उसे तो भूल ही जाओ. कोई बिरली ही होती थी जो उसे छूने भी देती थी.

“तो क्या कहते हो? खेलोगे या जा रहे हो?”

तीनों ने एक स्वर में उत्तर दिया: “खेलेंगे!”

लगभग तभी मोना और अग्रिमा ने भी निर्वस्त्र उस कक्ष में प्रवेश किया. और कुछ ही समय में सब अपने अपने खेल में व्यस्त हो गए. इस समय अग्रिमा अपनी अंतरंग सखी मोना के बिस्तर में थी. मोना और वो दोनों इस समय नंगी अवस्था में एक दूसरे की चूत चाट रहे थे. दोनों की घुटी सिसकियाँ कमरे में गूंज रही थी. कमरे में थप थप की ध्वनि में इनकी सिसकियाँ दब जा रही थीं. और ये थप थप मोना के ही पास चल रहे एक द्वन्द युद्द के कारण आ रही थीं जहाँ मोना की ताईजी इस समय तीन लड़कों से एक साथ चुदवा रही थी.

मोना की ताईजी उसे नए नए लड़के फंसा कर उसकी शरीर की भूख शांत करने के लिए प्रयोग में लाती थी. मोना को लड़कों में कोई भी रूचि नहीं थी क्योंकि वो पूर्ण रूप से समलैंगी थी. और इसी कारण वो लड़कों को चूत का प्रलोभन देकर लाती थी. उसकी ताई को जवान लड़कों का चस्का तब लगा था जब वो कॉलेज प्रोफ़ेसर थीं. परन्तु उनकी इस बात का पता लगने पर उन्हें हटा दिया गया था. पर उनकी आग आज भी वैसे ही प्रज्ज्वलित थी. और उन्होंने मोना को अपने इस शौक को पूरा करने में उपयोग किया. लड़कों को ये नहीं पता होता था कि वो चूत उसकी ताई की है. और तो और इसके लिए मोना को उसकी ताई पैसा भी देती थी जो उसकी माँ उसे नहीं देती थी. लड़कों को भी पैसा मिलता था अगर वो ताईजी की भूख को शांत कर पाते थे. और वापिस लौटने का न्योता भी. इस कारण वो ये रहस्य सदैव गुप्त ही रखते थे. और मोना नए नए शिकार लाने में कोई समस्या नहीं होती थी.

जहाँ तक अग्रिमा की बात थी तो उसे घर में ही इतने लंड मिले हुए थे कि बाहर देखने जी कोई आवश्यकता ही नहीं थी. पर उसे मोना की साथ सम्बन्ध में कोई परेशानी नहीं थी. एक तो ये कि मोना इस कला में निपुण थी और दूसरा ये कि उसे ऐसे वातावरण में इस प्रकार के सेक्स में आनंद आता था जब उसे पता होता था कि हर लड़का उसे लालच भरी आँखों से देख तो सकता था पर इससे अधिक और कुछ पाना उसके लिए संभव नहीं था. उस समय भी मोना की जीभ एक साँप की जीभ की भांति उसकी चूत में उथल पुथल मचा रही थी. और यही सुख अग्रिमा भी मोना को दे रही थी.

मोना की ताईजी के मुंह में एक लंड था तो एक उसकी चूत में. और तीसरा उसकी गांड के परखच्चे उड़ा रहा था. ये लंड सामान्य आकार के ही थे और ताईजी को एक अच्छी ताल में चोद रहे थे. उनके मोटे और लम्बे लौडों की भूख मिटाने के लिए उन्होंने अन्यत्र आयोजन किया हुआ था. परन्तु उनके शरीर की आग इतनी धधकती थी कि उन्हें बीच बीच में दूसरे लौंड़ों से भी अपनी भूख मिटानी पड़ती थी.

अग्रिमा की इस वातावरण से इतना उत्तेजना बढ़ती थी और यहाँ भी उसे मोना की उँगलियाँ, होंठ और जीभ एक स्तर तक संतुष्ट कर देते थे.

(१. यह प्रकरण आगे की कहानी में एक अहम् भूमिका निभाएगा, परन्तु यहाँ इसका उपयोग बस इतना ही है.
२. अनाम ताईजी से या तो आप मिल चुके हैं या जल्द ही दोबारा मिलेंगे.)

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सुनीति के घर

शंकर जानता था की इस समय की चुदाई में सुनीति को एक तेज और जल्दी वाली चुदाई की कामना होती है. और वही वो उसे प्रदान कर रहा था. सुनीति ने केवल अपना गाउन ऊपर किया हुआ था और शंकर ने भी केवल अपनी पैंट ही निकाली थी. और शीघ्र ही सुनीति और शंकर दोनों ही झड़ गए. सुनीति उठकर बाथरूम में नहाने चली गई और शंकर अपने आउट हाउस में. दोनों का ये एक प्रकार से नित्यकर्म था. सुनीति को दिन में न कितनी बार चुदाई की भूख लगती थी. ये तो घर में इतने पुरुष थे जो उसकी इस आग को बुझा पाते थे अन्यथा न जाने क्या न कर बैठती.

अपने कमरे में नहा धोकर वो थोड़ी देर के लिए टीवी देखने लगा की तभी भाग्या का फोन आ गया. उसने बताया कि सूरज तीन दिन के लिए किसी काम से बाहर जा रहा है तो उसने अपनी सास से घर आने की अनुमति ले ली है. उसने ये भी कहा कि वो शाम के पहले आ जाएगी और किसी से बताये नहीं क्योंकि वो अपने ही कमरे में रहना चाहेगी. बात समाप्त होने के बाद शंकर टीवी देखते हुए कुछ देर के लिए सो गया और फिर उठकर मुख्य घर में शेष कार्य संपन्न करने के लिए आ गया.

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जीवन का गाँव
रात अभी बाकी है


“मारो मेरी गांड, फाड़ दे इसे. तेरे जैसा लौड़ा पाकर ये धन्य हो गई. जोर से कर हरामी. बुढ्ढा हो गया क्या तू? अपने नातियों से मरवानी है ये गांड, उसके लिए तो खोल दे.” गीता भावावेश में चिल्ला रही थी. ये तो अच्छा हुआ कि वो शयनकक्ष में थे नहीं तो मोहल्ले वाले खिड़की से झांक रहे होते.

सलोनी के मुंह से इस स्थिति में भी हंसी निकल गई. उसकी गांड में बलवंत लम्बे धक्के लगा रहा था, पर जहाँ उनकी लम्बाई पूरी थी उनमें वो तीव्रता नहीं थी. एक लय से वो गांड में अपने लंड को चला रहा था. हालाँकि सलोनी इससे तेज गति भी झेल सकती थी और वस्तुतः उसमें आनंदित भी होती, परन्तु उसने अधिक वीरता न दिखाने में ही अपनी भलाई समझी.

सलोनी की हंसी सुनकर धक्कों से उखड़ी साँस के बीच गीता चिढ़ कर बोली,”तू . . क्यों . . हंस .. रही .. है… माँ .. की…. लौड़ी?”

सलोनी: “माँ जी, आप जो बाबूजी को कह रही हो न नातियों से गांड मरवाने की बात, सच कहूँ तो आप वैसा न ही करना अगर खैरियत चाहती हो. उनके नीचे आकर अगर आपने उन्हें अगर ऐसे ललकारा तो समझ लेना कि आपको बाथरूम जाने लायक भी नहीं छोड़ेंगे. सच कहूँ तो बाबूजी उनके आगे आपको दया की मूर्ति लगेंगे.”

गीता की गांड ये सुनकर फट गई, पर उसे इसका रोमांच भी आया. उसकी गांड, चूत और पूरे शरीर में उस समय के बारे में सोचकर एक सिहरन दौड़ गई. अब ऐसा नहीं था कि बलवंत और जीवन उसकी गांड दबा के नहीं मारते थे. पर ये भी सच था की उनकी उम्र के कारण वो झड़ने के बाद ठहर जाते थे. पर जवान लौंडे रुकने वाले नहीं थे, और न ही जल्दी झड़ने वाले थे. यही सोचकर गीता ने निश्चय किया कि समय आने पर वो उस आग में अवश्य घी डालेगी. और इस सोच के साथ उसकी चूत ने ढेर सारा छोड़ दिया. गांड भी अब उत्तेजना से लप्लपाने लगी.

जीवन ने भी ये स्पंदन अनुभव किया. उसे भी अब लग रहा था कि वो शीघ्र ही झड़ेगा. और इसीलिए वो लंड को गांड के पूरा बाहर लेकर छेद को खुलते बंद देखकर फिर लौड़ा पेलने लगा. पर अभी गति पर अंकुश लगा लिया था. कभी छोटे तो कभी लम्बे धक्कों के साथ ही उसका ज्वालामुखी फूट गया और उसने गीता की गांड मलाई से भर दी. लंड बाहर निकाल कर गीता की चौड़ाये हुए गांड के छेद को संतुष्ट भाव से देखते हुए वो उठकर एक ओर बैठ गया.

बलवंत भी अब कुछ ही देर और रुक पाया और फिर उसने भी अपनी मलाई से सलोनी की गांड को भर दिया. सलोनी को इस चुदाई से बहुत सुख मिला था. उसे गांड मरवाना बहुत पसंद था, और बलवंत ने जिस विधि से उसकी ली थी, उसमें प्यार और व्यभिचार का अनोखा संगम था. बड़ा लंड होने के बाद भी जिस आसानी से बलवंत ने उसकी गहराइयाँ नापी थीं वो सचमुच इस कला की चरम सीमा थी.

जीवन और बलवंत उठकर बाथरूम चले गए और धोकर नंगे ही बाहर बैठक में चले गए. गीता और सलोनी ने भी अपनी सूजी हुई गांड उठायीं और बाथरूम की और बढ़ी. जहाँ सलोनी साधारण गति से चल रही थी, गीता की चाल में एक लचक थी जिसका कारण संभवतः गांड की हालत थी. सलोनी ने उन्हें दया भरी आँखों से देखा और उनको सहारा देते हुए अंदर ले गई और सफाई करवाई.

“ये हरामी थोड़ा भी जोश दिलाओ तो जानवर ही बन जाता है.” गीता बोली.
सलोनी: “तो क्यों करतीं है ऐसा.”
गीता: “उसके बिना मजा भी नहीं आता. ये समझ कि गांड के कीड़े साफ कर दिए. और जो दर्द की टीस है, वही तो इस खेल का असली सुख है.”

सलोनी ने भी सफाई की और दोनों नंगी ही बाहर बैठक में चली गयीं.

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सुनीति के घर

४ बजे दोपहर को भाग्या आ गयी और सीधे अपने घर में चली गई. इस समय शंकर घर में अकेला ही था. भाग्या जाकर उसके गले लग गई.
शंकर: “ क्या हुआ बेटी, सब कुशल मंगल तो है?”
भाग्या: “सब ठीक है. आप दोनों की बहुत याद आयी तो चली आयी.”
परन्तु शंकर समझ गया कि भाग्या कुछ छुपा रही है.
शंकर: “सच कह बिटिया, अभी तुझे गए हुए चार दिन भी नहीं हुए हैं.”
भाग्या: “जब ये चले जाते हैं तो देवर बहुत तंग करता है. मुझे डर है कि कहीं मेरी इज्जत न लूट ले किसी दिन.”
शंकर: “सूरज को बताया?”
भाग्या: “सीधे तो नहीं. वो मानेंगे नहीं कि ऐसा कुछ है.”
शंकर: “जा, तू आराम कर, मैं कुछ सोचकर बताता हूँ. अब चिंता मत कर.”
भाग्या इधर उधर देखते हुए : “माँ कहाँ है? इस समय तो घर पर ही रहती है.”
शंकर: “बाबूजी के साथ उनके गांव गई है. अगले हफ्ते लौटेगी.”
भाग्या: “ तब तो बेचारी की हालत ख़राब कर देंगे। आपने जाने क्यों दिया?”
शंकर : “पहली बात, कि मना करना ठीक नहीं था. और दूसरी कि सलोनी भी जाना चाहती थी. तेरे नाना नानी को भी बहुत दिन हो गए हैं किसी से मिले हुए.”
भाग्या: “बात तो ठीक है. पर यहाँ आप अकेले पड़ गए.”
शंकर: “अब तू जो आ गयी है. सब ठीक रहेगा. थोड़ा आराम कर ले फिर चाय बनता हूँ. मेरा काम पर जाने का समय हो जायेगा तब तक.”

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जीवन का गाँव
रात अभी भी बाकी है


बैठक में बैठे हुए सब बातें कर रहे थे.

जीवन: “वैसे तुम्हारे अगले महीने आने की योजना सही है. मैं कल सुबह अपने मैनेजर को बुला लूंगा और उसे काम समझा देना. उसकी मासिक आय को मैं संभाल लूंगा. मुझे नहीं लगता कि वो मना करेगा.”
गीता: “मेरी सुनीति से बात हुई, वो भी बहुत खुश हुई ये जानकर कि हम लोग आ रहे हैं.” फिर कुछ सोचते हुए, “भाईसाहब, आपको अगर कोई परेशानी न हो तो मैं कुछ कहूँ?”
जीवन: “क्यों नहीं भाभी, इसमें पूछने जैसी कोई बात ही नहीं.”
गीता: “मैं सोच रही थी कि सलोनी के माता पिता को भी ले चलें. वो भी कुछ दिन रह लेंगे अपने बच्चों के साथ. हफ्ते १० दिन में फिर लौट आएंगे.”
सलोनी की ऑंखें नम हो गयीं, पर वो कुछ बोली नहीं.
जीवन: “बिल्कुल ले कर आना. मैं बड़ी गाड़ी भेज दूंगा। पर ये ध्यान रहे कि हमारे संबंधों के बारे में उन्हें कोई भी शक न हो. और जब तक वो रहें तब तक इन तीनों को अपने खेलों से दूर ही रहना होगा. ठीक है न सलोनी.”
सलोनी: “बाबूजी, आप सचमुच देवता हैं. मैं कल ही माँ से बात करूँगी। “
गीता: “वो तुम मुझपर छोड़ दो, मुझे विश्वास है कि वो मेरी बात नहीं टालेंगे.”

कुछ देर और यूँ ही बातें करने के बाद सलोनी ने सोने जाने की अनुमति मांगी और जाकर अपने कमरे में लेट कर सो गई.

“तो भाभी, अब हम दोनों के बीच में तुम अकेली ही बची हो.”
“तो क्या हुआ, मैं अभी भी तुम दोनों को धूल चटा सकती हूँ. चलो मैदान में.”

और इसी के साथ सब लौट कर शयन कक्ष में आ गए और अपने कपडे उतारकर नंगे हो गए.

गीता बिस्तर पर बैठकर सामने खड़े दोनों विशालकाय लौंड़ों को चूस रही थी. एक बार एक और दूसरी बार दूसरा. पहले को मुंह से निकालकर वो उसे अपने हाथों से रगड़ देती और दूसरे को चूसती. इस प्रकार उसने लगभग ५-७ मिनट दोनों को अच्छे से चूस और चाटकर तान दिया. अब दोनों ही लंड उसके शरीर के दो छेदों में प्रविष्ट होने के लिए उत्सुक थे.
जीवन: “तुझे क्या चाहिए, बलवंत ?”
बलवंत अनकहे प्रश्न को समझ गया.
बलवंत: “तुमने तो इस बुढ़िया की गांड मार ही ली है एक बार, अब मुझे मारने दे.”
जीवन: “बिल्कुल ठीक.”
उसने गीता को खड़ा किया और उसका एक गहरा चुम्बन लिया.
जीवन: “भाभी, अब तुम्हारा सर्वप्रिय खेल खेलें?”
गीता: “अरे भाई साहब, जब से आप आये हो मैं इसी समय की राह देख रही थी. अब लेट जाओ जिससे मैं अपनी चूत में आपके लौड़े को डाल सकूँ। फिर सुनीति के बाबूजी मेरी गांड में अपना लंड डाल देंगे.”

जीवन बिस्तर पर लेट गया जहाँ उसका लंड छत को ताक रहा था. गीता ने उसके ऊपर दोनों पांव फैलाकर बैठते हुए उसका लंड अपनी चूत में ले लिया. और पूरा अंदर जाने के बाद आगे की ओर झुक गई. जीवन ने उसकी पीठ पर अपने हाथों से शिकंजा बनाया और उसे अपनी ओर खिंच लिया. गीता के स्तन जीवन के मजबूत सीने से जाकर जुड़ गए. बलवंत ने कटोरी में बचा तेल अपने लंड पर मला और थोड़ा तेल गीता की गांड पर डालकर उसे भी चिकना कर दिया.

बलवंत: “इस बुढ़िया के आज सारे पेंच ढीले करने हैं, जीवन. बहुत फुदकती है ये लंड के लिए.”

ये कहते हुए बलवंत ने अपना सुपाड़ा अंदर डाला और सुपाड़ा फिट होते ही एक तगड़ा धक्का मारा. धक्का इतना तीव्र था कि उसका पूरा लौड़ा एक ही बार में गीता की गांड में पूरा जड़ तक घुस गया. इतना खेली खिलाई होने के बावजूद गीता की चीख निकल गई. बलवंत हमेशा बहुत प्यार से गांड मरता था, पर आज उसने ऐसी दरिंदगी दिखाई कि गीता की आँखों के आगे तारे नाचने लगे. उसकी चीख से बगल के कमरे में सो रही सलोनी की आंख खुल गई. परन्तु उसे समझ आ गया कि क्या चल रहा है और वो मुस्कुराते हुए दोबारा सो गई.

अब जब दोनों लंड गीता की चूत और गांड में पूरे धंसे हुए थे तो गीता को एक अलग ही अनुभव हो रहा था. यही वो अनुभव था जिसके लिए उसका शरीर इतने समय से व्याकुल था. दोनों छेदों के बीच की पतली झिल्ली इस समय दो ओर से दबी हुई थी और उस समय की प्रतीक्षा कर रही थी जब उसकी दोनों ओर से घिसाई होगी.

बलवंत: “जीवन कैसे चलना है?”
जीवन: “उल्टा सीधा.”

बलवंत समझ गया कि इसका क्या अर्थ है. उल्टा अर्थात जब एक लंड अंदर जायेगा तब दूसरा बाहर आएगा. सीधा अर्थात दोनों एक साथ अंदर बाहर होंगे. और इन दोनों के जोड़ का अर्थ ये कि कुछ बार उल्टा चलेगा और फिर सीधा. उनके इतने वर्ष के अनुभव में ये मिश्रण चुदने वाली महिला को अत्यधिक सुख देता था, क्योंकि उसका शरीर लगातार एक उधेड़बुन में रहता था कि आक्रमण किस प्रकार का होगा. जीवन और बलवंत ५ धक्कों से इस विविधता का आरम्भ करते थे और हर परिवर्तन में उसे दो धक्कों से बढ़ा देते थे. अर्थात ५ उल्टे , ७ सीधे, ९ उलटे ११ सीधे. इसको पांच बार दोहरा कर फिर ५-७-९-११ शुरू हो जाता था.

गीता इस मेल में कई बार चुद चुकी थी और अथाह आनंद अनुभव कर चुकी थी. और इन दोनों के सिवाय कोई और नहीं था जो इस लय को इतनी सटीकता से निभा सकता. आज वो फिर उसी सुख के लिए अपने को तैयार कर रही थी.

और इसी के साथ जीवन और बलवंत ने अपना समागम प्रारम्भ किया. जीवन का लंड चूत में घुसता तो बलवंत का लंड गांड से बाहर निकलता. निश्चित गणना के पश्चात्, दोनों के लंड एक साथ अंदर जाते और बाहर निकलते. यही क्रम एक बढ़ते हुए क्रम में चलता फिर अचानक निचले क्रम को पकड़ लेता. गीता इस समय कामोत्कर्ष की चरम सीमा पार कर चुकी थी. उसकी चूत से बहती हुई धार उसकी जांघों और बिस्तर को भिगा रही थी. पर न उसका मन अभी भरा था न ही उसका शरीर हार मान रहा था.

दूसरी ओर जीवन और बलवंत भी अपने लौंड़ों को गीता की चूत और गांड के बीच की पतली झिल्ली अनुभव कर रहे थे. और ये कहना गलत नहीं होगा कि ये घर्षण उनके आनंद में चार चाँद लगा रहा था. गीता का मस्तिष्क इस विविधता का गणित समझने में सक्षम नहीं था. वो तो केवल उस केंद्र से उठती हुई आनंद की अनंत संवेदनाओं से ही अपने आप को प्रफुल्लित कर रहा था.

जीवन ने तभी बलवंत से कहा: “भाई, अब बस सीधे.” और इसी के साथ दोनों लौड़े अपने अपने गंतव्य में एक साथ अंदर और बाहर होने लगे. इसका अर्थ ये भी था कि जीवन का अब रस निकलने वाला ही था. जब इस क्रम के १० -१५ धक्के हो चुके तो जीवन ने कहा.

“भाभी, कहाँ छोड़ना है?”
“हम्प्फ हम्प्फ मेरे हम्प्फ मुंह में हम्प्फ हम्प्फ हम्प्फ।”

ये सुनकर दोनों ने अपनी गति सामन्य की और फिर धीमी करते हुए पहले बलवंत ने अपने लौड़े को गीता की गांड से निकाला और हट गया. गीता ने भी रूककर अपने आपको बहुत संभाल कर जीवन के लंड से अलग किया और बिस्तर के किनारे बैठ गयी. जीवन भी उठा और उठकर गीता के सामने फिर खड़ा हो गया. अब दोबारा से गीता ने दोनों के लंड चाटते हुए चूसना शुरू कर दिया. पर अब दोनों अपने लक्ष्य पर पहुँच चुके थे. पहले जीवन ने अपने गाढ़े सफ़ेद रस से गीता का मुंह भर दिया. गीता ने एक बूँद भी बेकार नहीं जाने दी. और जब तक उसने उसका सेवन पूरा करके बलवंत के लंड को मुंह में डाला तो बलवंत ने भी उसके मुंह को मलाई से भर दिया.

अंततः, सब अपने अपने लक्ष्य को पाकर संतुष्ट थे. कुछ मिनट यूँ ही सुख की अनिभूति करने के बाद गीता बोल उठी.

गीता: “यहाँ सोना संभव नहीं, पूरा बिस्तर गीला है, चलिए दूसरे शयनकक्ष में सोते हैं.”

तीनों यूँ ही नंगे दूसरे कमरे में सोने के लिए चले गए.

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अग्रिमा का खेल:

अग्रिमा २ बजे तक अपने घर पहुँच गयी. मोना और उसने एक दूसरे को कई बार संतुष्ट किया था. फिर जब तीनों लड़के चले गए तो मोना की अतृप्य ताई ने भी दोनों की चूत चूसकर उन्हें एक बार और तृप्त किया. आने के पहले ताईजी ने मोना को ५००० रुपये भी दिए. तीनों लड़कों को भी उन्होंने २-२००० दिए थे. ये इस बात की भी गारंटी थे कि वे बात फैलाएंगे नहीं. और उन्हें अगले सप्ताह इसी दिन फिर आमंत्रित किया था.

अग्रिमा घर आकर स्नान करके अपने कमरे में जाकर सो गई. आज न वो कॉलेज गई न काम पर.

*****************

सुनीति के घर

शाम हो चुकी थी. अब आज क्या होगा ये बताना इस समय संभव नहीं. पर आज कुछ न कुछ तो होगा ही.


क्रमशः
अपडेट देने के आभार
सधन्यबाद..........!

बहुत लंबा अपडेट है....
धीरे धीरे पड़ता हूँ
 

prkin

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अपडेट आ गया है.

पात्र परिचय एक बार फिर पढ़ लें, दो नए पात्र आये हैं कहानी में.
 
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Ati uttam bhai tm kmal likhte ho par thoda confiusan ho jata hai ki kon character kya roller me hai kon nokar hai kon maa hai kon beti samjhne me time lagta hai
 
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satabdi

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'prkin bhai', your update is always longer and more erotic than my incest saga 'Sophisticated Bengalee Family' but I love your style most and this one isn't exception from your others. If you don't mind, I've two requests in this regard:-

1) Please write on my favourite parody 'TMKOC'. Although, there are more regarding this, I think it would be an exceptional saga by your excellent writing skill.

2) An Indian Celeb Saga ( Incest based ), which is rare in Indian erotica.

It's my earnest plea, please think it seriously. Would be grateful to you forever, if you fulfill my wishes. Thanks and have a nice day.
 
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prkin

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Ati uttam bhai tm kmal likhte ho par thoda confiusan ho jata hai ki kon character kya roller me hai kon nokar hai kon maa hai kon beti samjhne me time lagta hai


Isiliye mein har baar kahta hoon ki Intro fir se padho. Thode din mein sab character yaad ho jayenge.
 

prkin

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'prkin bhai', your update is always longer and more erotic than my incest saga 'Sophisticated Bengalee Family' but I love your style most and this one isn't exception from your others. If you don't mind, I've two requests in this regard:-

1) Please write on my favourite parody 'TMKOC'. Although, there are more regarding this, I think it would be an exceptional saga by your excellent writing skill.

2) An Indian Celeb Saga ( Incest based ), which is rare in Indian erotica.

It's my earnest plea, please think it seriously. Would be grateful to you forever, if you fulfill my wishes. Thanks and have a nice day.

Thank you Satabdi.

1) I have actually never (may be once in a while seen TMKOC) so I can not fulfil that request. In fact any story based on TV shows is not my cup of tea, as I do not watch any.

2) Indian Celebs: This has actually crossed my mind a couple of days back. What I am planning is to introduce one couple in this story and then create another story based on the Celebs lives in their bedrooms. I have read some that were based such, but most are not my types. So yes, this is a possibility. But not very soon.
 
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तूफ़ान मचा दिया ? awesome bhai for your writing skills .... तीसरा घर तो शादी वाला घर है । देखते है वहाँ क्या तैयारियाँ चल रही है । मज़ा आ जाएगा । ????‍?
 
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