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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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Nice update.....अध्याय ७०: जीवन के गाँव में शालिनी ७
अध्याय ६९ से आगे
अब तक:
आज रात से गैंगबैंग की शृंखला का भी आरम्भ होना था. गैंगबैंग प्राप्तकर्ता भाग्यशाली स्त्री कौन होगी, उसका नाम एक गुप्त पर्ची में निकालकर एक ओर रख दिया गया.
जीवन और बसंती ने शालिनी को मूत्रक्रीड़ा से परिचित करवाया. शालिनी की विरूचि ने देखकर जीवन और उनकी मित्र मंडली को संतोष हुआ. गीता को अपनी मंडली में सर्वप्रथम गाँड में दो लौड़े लेना का सुख और यश प्राप्त हुआ. पाँचों मित्र अब शालिनी की चुदाई कर चुके थे. असीम और कुमार उसे बाद में चोदने वाले थे. बंसती की गाँड मारकर जीवन ने उसकी जलन शांत की. विश्राम के पहले आज रात्रि की गैंगबैंग की महिला का नाम जानने की इच्छा सबके मन में थी.
गीता जाकर वो पर्ची लाई और बसंती को थमा दी. “तू ही बता.”
बसंती ने पर्ची खोली और उत्सुक समूह को बताया.
“आज की रानी का नाम है.....”
अब आगे:
बसंती सबके चेहरों को देख रही थी. उन चेहरों की उत्सुक्ता उसे एक शक्ति का आभास दिला रही थी मानो उसके हाथों में कोई लॉटरी हो. आज रात्रि की तीन प्रत्याशी स्त्रियों के चेहरे पर सबसे अधिक व्यग्रता थी. उसने उन तीनों को फिर से देखा.
“और आज की रानी का नाम है… बबिता!”
और इस घोषणा के साथ बबिता को पूनम और निर्मला ने बाँहों में भर लिया और उसे चूमने लगीं. ये दृश्य उस दृश्य के समकक्ष था जिसमें विश्वसुंदरी इत्यादि का चयन होता है और उसे हारने वाली लड़कियाँ बधाई देती हैं. उनके हटते ही गीता, शालिनी ने उसे चूमा और फिर बसंती ने भी यही किया. बबिता के पति ने आकर अपनी पत्नी को बाँहों में लिया और उसे चूमकर बधाई दी. फिर घोषणा की.
“मित्रों, अब बबिता को विश्राम की आवश्यकता है. तो मैं उसे कमरे में ले जा रहा हूँ. आप सब भी जाकर विश्राम कीजिये और अपना इन्जन में ईंधन भरिये.”
गीता बोली: “और एक बात मैं बता देती हूँ. मेरी छोटी बहन बसंती इसका निर्देशन करेगी. हमें इसका पेट भी भरा रखना होगा. कार्यक्रम आरम्भ होने के बाद हर प्रकार के रस पर केवल बसंती का ही अधिकार होगा. मेरी प्यारी बहन बहुत प्यासी रहती है, तो हम सब इसे ही अपना रस इत्यादि पिलायेंगे। ये वैसे भी हमारी परम्परा है. जब भी हम ऐसा कोई कार्यक्रम करते हैं और वो उपस्थित होती है, तब उसे ही इसका अधिकार मिलता है. इसकी आज्ञा मानना बबिता और सब पुरुषों का कर्तव्य होगा. अगर किसी को कोई समस्या है तो अभी बता दे.”
अब इसमें क्या समस्या हो सकती थी. सबने स्वीकृति दी और अपने जोड़ों में कमरों में चले गए. असीम और कुमार अपने कमरे में चले गए और बसंती को जीवन अपने और शालिनी के साथ ले गया.
बबिता का मन धकधक कर रहा था.
बबिता: “अब मैं थोड़ी देर सो लेती हूँ. उसे बाद तो आप सब मुझे गुड़िया के समान मरोड़ोगे.”
कँवल: “अगर तेरा मन नहीं है तो किसी और को आज के लिए कह देते हैं.”
बबिता: “नहीं, नहीं! ऐसा मत करना. मैं तो इसके लिए बड़ी लालायित हूँ. बहुत आनंद आता है आप सबके बीच में पिसने में.”
कँवल: “चल थोड़ा विश्राम कर ले, मैं तेरी हल्की मालिश कर देता हूँ. तुझे इसका लाभ मिलेगा.”
ये कहते हुए कँवल ने बबिता को लिटाया और उसके हाथ, पैर और कमर इत्यादि को दबाने लगा. बबिता उसके प्रयासों से कुछ ही पलों में सो गई. कंवल ने उसे बाँहों में लिया और उसके साथ लेट गया और वो भी सो गया.
***********
शालिनी के साथ जीवन अपने कमरे में गया तो बसंती भी साथ थी. बसंती ने शालिनी के चेहरे को अपने हाथों में लिया.
बसंती: “बाबूजी ने हीरा चुना है, बहूरानी। आप सच में अद्वितीय हो.”
शालिनी: “तू मुझे बहूरानी क्यों कहती है, सबको तो दीदी बुलाती है. मुझे भी दीदी ही बुलाया कर, मुझे अच्छा लगेगा.”
बसंती: “ठीक है, दीदी.” फिर कुछ सोचकर, “आपको मेरे रूचि से घृणा तो नहीं है न दीदी?”
शालिनी: “नहीं. मैं समझ सकती हूँ. इनके साथ इतने ही दिनों में मैंने ये सीख लिया है कि रतिसुख के कई आयाम और कोण होते हैं. हमें अपने मन को नए परीक्षण और नई अनुभूतियों का स्वागत करना आना चाहिए. जितनी सरलता से सब एक दूसरे के साथ सहवास करते हैं, न कोई ईर्ष्या, न कोई क्रोध, ये सीखने और भोगने का आनंद लेना चाहिए.”
बसंती ने अब डरते हुए पूछा, “तो क्या आप बाबूजी आपके साथ वो सब खेल खेलना चाहें तो आप उनका साथ दोगी?”
शालिनी सोच में पड़ गई. फिर उसने बसंती को देखकर कहा, “क्या तुम मुझे सिखाओगी?”
बसंती की आँखें खुली रह गईं. उसने जीवन की ओर देखा जो इन बातों से अनिभज्ञ अपने लिए पेग बना रहा था.
“आइये मेरे साथ.” बसंती बोली और वो दोनों उस कमरे के बाथरूम में चली गईं.
जीवन ने अनुमान लगाया कि बसंती की प्यास फिर भड़क गई होगी. उसे ये सोचकर सांत्वना मिली कि उसने शालिनी को चुना और शालिनी ने भी प्रतिरोध नहीं किया. बाथरूम में जाकर बसंती ने शालिनी को देखा.
“क्या करें दीदी?”
“पहले मैं तुम्हें पिलाती हूँ, फिर मैं प्रयास करुँगी. ठीक है न?”
बसंती ने शालिनी को कमोड पर बैठाया और उसके सामने आकर बैठ गई और उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. शालिनी ने स्वयं को संतुलित किया. वो एक नया शिखर पार करने जा रही थी. और वो भी उनके घर की नौकरानी की माँ के साथ. उसे न जाने क्यों इस विचार से कोई क्षोभ नहीं हुआ. उसने देखा था कि सभी मित्र बसंती का सम्मान करते हैं और उसे किसी भी रूप में कम नहीं आँकते। उसने शरीर को ढीला छोड़ा और अपने मूत्र पात्र बसंती के मुँह में करना आरम्भ किया. उसने बसंती की जीभ और होठों के संचालन पर भी ध्यान दिया कि किस प्रकार से वो इस जल का सेवन कर रही थी. उसे कुछ नया सीखने को मिल गया.
जब शालिनी ने अपना कार्य समाप्त किया तो उसने बसंती को उसकी चूत को अंदर और बाहर चाटकर शेष जल को चाटते हुए पाया. सम्भवतः ये भी इस अनुभव की एक शिक्षा थी. बसंती उठ गई और उसने शालिनी को देखते हुए अपने होंठों को चाटा।
“दीदी, आप सच में बहुत मीठी हो.”
शालिनी अब सोच में पड़ गई. क्या वो आगे बढ़े? फिर उसने निर्णय लेते हुए बसंती का हाथ पकड़ा और खड़ी हो गई.
“मैं भी तो देखूँ ये (जीवन) तेरे पानी के लिए इतने अधीर क्यों रहते हैं. अब बैठ.”
बसंती का रोम रोम सिहर उठा. आज जीवन के अतिरिक्त कोई और उसका मूत्र पान करने वाला था. आज उसके बाबूजी का एकमेव अधिकार समाप्त होने जा रहा था. चाहे ये एकमात्र अवसर क्यों न हो, पर इसका वो अनुभव करना चाहती थी. कमोड पर बैठकर उसने अपने पैरों को फैलाया और शालिनी ने उसके सामने स्थान लेकर उसका अनुशरण करते हुए बसंती की चूत पर अपना मुँह लगा लिया.
“दीदी, जीभ नीचे रखना, नहीं तो बाहर अधिक गिरेगा.”
शालिनी ने यही किया और बसंती ने उसके सिर पर हाथ लगाया.
“गट गट करके पीती रहना, दीदी. मैं रुक रुक कर पिलाऊँगी।”
शालिनी ने सिर हिलाया और जीवन के नए स्वाद और अनुभव की प्रतीक्षा करने लगी.
बसंती ने हल्के दबाव के साथ शालिनी के मुँह में मूत्र त्यागना आरम्भ किया. उसने एक सीमित मात्रा में ही दबाव डाला. इसका परिणाम ये हुआ कि जो मात्रा उसने छोड़ी उसे पीने में शालिनी को कोई दुविधा नहीं हुई. बसंती के लिए एक कठिन नियंत्रण का कार्य था, परन्तु वो जीवन की भावी पत्नी के लिए इस कष्ट को भी झेलने के लिए तत्पर थी. शालिनी बसंती के कहे अनुसार गट गट करते हुए पीती रही. कुछ घूँटों के उपरांत ही उसे मूत्र की गंध का आभास हुआ. परन्तु वो रुकी नहीं.
एक नया ही स्वाद था. गंध अवश्य चिर परिचित थी, पर स्वाद में अनूठापन था. बसंती ने पर्याप्त समय लेते हुए शालिनी को अपना पूरा जल भेंट कर दिया. फिर उसके सिर पर हाथ घुमाया.
“मैं निपट गई दीदी.”
शालिनी ने बसंती का अनुशरण करते हुए उसकी चूत को चारों ओर से चाटा और अंदर जीभ डालकर भी कुरेदा. फिर उसने अपना मुँह हटा लिया और बसंती की ओर देखने लगी. बसंती के मुँह पर एक मुस्कान थी.
“कैसा लगा दीदी?”
“हम्म्म, ऐसा कुछ विशेष नहीं. हाँ, गंध ने अवश्य कुछ क्षणों के लिए विचलित किया था.” फिर रुककर बोली, “पर स्वाद अनूठा था. लुक मीठा, कुछ कसैला, कुछ न समझ आने वाला.”
“हाँ दीदी, यही बात है. आप दिन के भिन्न भिन्न समय पियोगी तो और भी विविधता पाओगी. चुदने से पहले और चुदने के बाद में भी बहुत अंतर होता है. और यही चोदने के पहले और चोदने के बाद भी होता है.”
“अच्छा! तब तो मुझे एक बार सब का स्वाद लेना चाहिए.” शालिनी ने नटखट स्वर में कहा तो बसंती खिलखिला उठी.
“दीदी, मुझे लगता है कि आप बाबूजी को बहुत प्रसन्न रखेंगी. वैसे बाबूजी, इसे मदिरा में मिलाकर भी पीते हैं. मैं तो पीती नहीं, सो जानती भी नहीं. पर कहते हैं कि मेरे मूत्र से बने पेग में नशा कई गुना अधिक होता है.”
“अच्छा जी. ऐसे हैं तेरे बाबूजी. उनका स्वाद कैसा है?”
“अरे दीदी, पूछ क्या रही ही, हाथ कंगन को आरसी क्या? अभी बुलाकर देख लो और ले लो स्वाद!”
“हम्म्म, ठीक है. बुला अपने बाबूजी को.”
शालिनी बोली तो बसंती लपककर कमरे में गई और कुछ ही पलों में जीवन को ले आई. जीवन ने शालिनी को नीचे बैठे देखा तो अचम्भित हो गया.
बसंती ने उसका लंड अपने हाथ में लिया और बोली, “दीदी हमारे खेल में मिलने की इच्छा रखती है. अब बाबूजी, आपके ऊपर है आप क्या चाहते हो?”
जीवन ने शालिनी को देखा, “क्या सच?” ऐसा कहते हुए बसंती ने अपने हाथ में उसके लंड को मचलते हुए अनुभव किया. शालिनी ने मात्र सिर हिलाकर स्वीकृति दी.
बंसती ने जीवन का लंड पकड़कर उसे शालिनी की मुँह की ओर इंगित किया.
“बाबूजी, अब अपनी दुल्हन को अपना पानी पिलाकर अपना बना लो.”
शालिनी ने मुँह खोला और जीवन के लंड से मूत्र की धार उसके मुँह में समाने लगी. बसंती के सिखाये अनुसार शालिनी बिना रुके गट गट करते हुए पीने लगी. पंरतु जीवन का स्त्राव अधिक था और उसके मुँह से बाहर गिरने लगा. शालिनी इसकी चिंता किया बिना अपना कार्य करती रही. जब जीवन का बहाव समाप्त हुआ तो उसने स्वाद और गंध का आभास किया. बसंती ने जीवन का लंड छोड़ा और शालिनी के शरीर से बहते हुए मूत्र को चाटने लगी. फिर उसने अपने होंठ शालिनी से जोड़े और दोनों एक दूसरे को चूमने लगीं.
जीवन उन दोनों को देखकर आश्वस्त हो गया कि अब कोई दुविधा नहीं है. उसके मन से एक बड़ा बोझ उतर गया. बसंती ने जीवन को देखा।
“बाबूजी, दीदी की टंकी अभी खाली है. मैं तो कहूँगी कि इसमें पैट्रोल डालकर आप भी स्वाद ले लो. बड़ा मीठा पानी है आपकी दुल्हनिया का. मैं तो अब जब तक साथ रहूँगी दिन में एक बार तो अवश्य पियूँगी.”
शालिनी लजा गई.
“तेरा भी बड़ा मीठा था, बसंती. अच्छा लगा था मुझे.”
ये सुनकर जीवन अचरज में पड़ गया. उसने सोचा था कि बसंती ने शालिनी को पहला पानी उसका पिलाया था, पर शालिनी पहले ही बसंती को चख चुकी थी. बसंती समझ गई.
“बाबूजी. पिलाया चाहे पहले मैंने हो, पर नहलाना पहले आप ही.”
जीवन मुस्कुराया, “ठीक है. पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है अगर तूने पहल की तो. पर अब कुछ समय विश्राम कर लेते हैं. फिर बहुत व्यस्त हो जायेंगे.”
हल्के स्नान के बाद बसंती और शालिनी जाकर पलंग पर जीवन के साथ लेट गए और कुछ ही पलों में सो गए और लगभग एक घंटे बाद ही उठे. सबसे पहले बसंती की ही नींद टूटी. वो बैठकर जीवन और शालिनी को सोते हुए देख रही थी. उसे दोनों की जोड़ी बहुत प्यारी लग रही थी. और अगर कोई शंका थी तो वो भी कुछ समय पहले दूर हो चुकी थी. शालिनी की आँख खुली तो उसने बसंती को उसे निहारते हुए देखा और मूक प्रश्न किया.
“आप सच में बहुत सुंदर हो दीदी. बाबूजी बहुत भाग्यशाली हैं.” फिर कुछ सोचकर, “आप भी कम नहीं हो जो आपको उनके जैसा पुरुष मिला है. आप दोनों इस संतुलन को बिगड़ने मत देना.”
शालिनी उठी तो जीवन ने भी आँख खोली, “तुम सच कह रही हो बसंती, हमें एक दूसरे को पाने में एक लम्बा समय लगा, पर अब एक दूसरे को खोना नहीं चाहेंगे. और सच कहूं तो मैं तुझे भी नहीं खोना चाहता. मेरे मन में तेरा बहुत बड़ा स्थान है. अगर भूरा न होता तो मैं तुझे अपना लेता.”
“बाबूजी, मैं तो सदा आपकी रहूँगी, भूरा बस अपनी लत छोड़ दे तो मैं उसे अपने साथ लेकर आपके ही पास चली आऊँगी। अपने वचन दिया है उसके व्यसन छुड़ाने का,उसका पालन करना, बस यही चाहती हूँ.”
“चिंता न कर, घर लौटकर मैं उस क्लिनिक में बात करूँगा, भूरा के लिए. उसके उपचार में समय लगेगा, छह माह लग सकते हैं. उस पूरे समय वो वहीँ रहेगा. पर जब लौटेगा तब तेरी दूसरी सुहागरात मनाने का उत्सव मनाएँगे।”
बसंती की आँखों से आँसू बह निकले. फिर उसने स्वयं को संयत किया.
“बाबूजी, अब हमें चलना चाहिए. पर उसके पहले आप दीदी का भी स्वाद ले लो.”
जीवन ने शालिनी को देखा और उसे चलने का संकेत किया. बाथरूम में जाकर शालिनी कमोड पर बैठी और जीवन को अपना मूत्र पान करवाया. उसके बाद जीवन और शालिनी बाहर आये और बसंती के चल पड़े.
जीवन: “बसंती, तूने सच कहा था. बहुत मीठा है शालिनी का पानी. अब तो उसके बिना जीना कठिन होगा.”
“बाबूजी, आपने सच कहा. पर अब बबिता दीदी की ओर ध्यान दो.”
सामने बबिता कँवल के साथ खड़ी थी. उसने एक साड़ी पहनी थी, जो बस उसके शरीर से लिपटी हुई थी. अन्यथा कोई और वस्त्र नहीं था. जीवन को देखकर वो लजा गई. बसंती और शालिनी जाकर उससे मिलीं और तब तक अन्य सब भी कमरे में आ गए.
“पहले दो पेग और भोजन हो जाये, फिर कुछ और.” ये कहते हुए कंवल ने असीम को संकेत किया.
बबिता को छोड़कर अन्य स्त्रियाँ रसोई में चली गयीं और अल्पाहार और भोजन का प्रबंध करने लगीं. आधे ही घंटे में सब कुछ निपट गया. अल्पाहार लेकर आयीं और असीम ने पेग बनाये. बबिता पुरुषों को उनके पेग देने लगी. हर पेग से एक घूँट लेकर वो ग्लास थमा रही थी. ग्लास लेकर कोई उसके मम्मे दबाता तो कोई गाँड। पेग बाँटने के बाद उसने भी अपना पेग लिया और अन्य सखियों के साथ बैठकर पीने लगी.
कुछ ही देर में भोजन लगा दिया गया और सबने अपने मन के अनुसार खाया. खाना कम खाने पर अधिक ध्यान रखा गया जिससे कि अनावश्यक सुस्ती या अन्य समस्याएं न आएं. मदिरा की बोतलें सजा दी गयीं, भोजन को ढक दिया गया जिससे कि विश्राम के समय अगर मन करे तो और खाया जा सके. अल्पाहार अधिक मात्रा में रखा गया था. भोजन के उपरांत सभी प्रबंध पूरे करने में लगभग और आधे घण्टे का समय लगा. इस पूरे समय वातावरण पूर्ण रूप से सहज और सामान्य था. कोई विश्वास ही नहीं कर सकता था कि कुछ ही देर में यहाँ वासना का ऐसा वीभत्स खेल होना है जिसे देखकर निर्बल मन के व्यक्ति की आत्मा काँप जाएगी.
बसंती अपने निर्देशक की भूमिका के लिए उचित स्थान पर बैठ कर सभी गतिविधियों को संचालित कर रही थी. किसी के मन में उसके प्रति कोई द्वेष न था और सब उसके निर्देशों का पालन कर रहे थे. पलंग के निकट ही धुली हुई चादरें और कई सारे तौलिये रख दिए गए थे. गीता ने बसंती को उसके द्वारा कई बार उपयोग किया हुआ कांच का एक बड़ा प्याला दिया जिसे बसंती ने अपने निकट रख लिया. और एक बाल्टी नीचे रख दी गई.
बसंती को बैठने के लिए एक प्लास्टिक की कुर्सी दी गई थी और उसके नीचे भी प्लास्टिक की चादर फैला दी गई थी. एक और प्लास्टिक की कुर्सी उसके पास रख दी गई. कई सारे पुराने कपड़ों से नीचे बिछी प्लास्टिक के चारों ओर एक मेढ़ बना दी गई जिससे कि कोई भी पानी बाहर न बहे. फिर उसके बाहर द्वार पर लगने वाली कपड़े की चटाइयाँ लगा दी गयीं. उसके साथ ही कई सारे पोंछने के कपड़े भी उसे दे दिए गए थे.
शालिनी ये सब देखकर स्तब्ध थी. इसका यही अर्थ था कि ये एक नियमित प्रक्रिया थी जिसका इतनी कुशलता से प्रबंध किया गया था. अब रंगमंच नए खेल के लिए व्यवस्थित हो चुका था. किसी भी समय पहले गैंगबैंग का शुभारम्भ हो सकता था. कँवल ने उसके पास आकर उसे कुछ समझाया और चला गया. बसंती ने बबिता को देखा जिसकी आँखों में उल्लास और कामोन्माद की चमक थी. बसंती ने सबको अपने स्थानों पर बैठने का आदेश दिया, जिसका तुरंत पालन हुआ.
फिर उसने बबिता को खड़े होकर अपनी साड़ी निकालने का आदेश दिया. एक नौकरानी की माँ इतने बलशाली पुरुषों और प्रभावी महिलाओं को जिस प्रकार से आदेश दे रही थी वो दर्शनीय था. सम्भवतः जीवन से उसकी निकटता के कारण उसे ये अधिकार मिला था.
“दीदी, आज आपका गैंगबैंग होने वाला है. इसकी आपको बधाई हो. मैं आशा करती हूँ कि आपको इस चुदाई में असीम आनंद की प्राप्ति हो. इसके साथ ही आपको ये भी चेता दूँ कि हर बार के समान आपका सुरक्षा शब्द सरला होगा.”
शालिनी चौंकी क्योंकि ये तो जीवन की दिवंगत पत्नी का नाम था. पर उसे तुरंत इसका आशय समझ आ गया. उसने जीवन को देखा जिसका सिर झुका हुआ था.
“मेरे पीछे लगी तख्ती पर आपके नाम और नंबर लिखे हैं. ये वही नम्बर होते पर असीम और कुमार के आने से कुछ अंतर है.” उसने पीछे संकेत किया.
तख्ती पर लिखे हुए नाम और नंबर दिखने के लिए.
१ असीम
२ बलवंत
३ जस्सी
४ जीवन
५ कँवल
६ कुमार
७ सुशील
“तो मैं स्थिति के अनुरूप एक दो या तीन नंबर पुकारूँगी। मैं उन्हें बताऊंगी कि उन्हें बबिता दीदी को कैसे और कहाँ चोदना है. ये हमारी परम्परा है तो किसी को कोई शंका नहीं होने चाहिए.”
“और आप सबको, उसने सभी स्त्रियों को देखते हुए कहा, आपके हर स्खलन को इस मुझे ही अर्पण करना होगा. बबिता दीदी को कब क्या मिलेगा इसका निर्णय किसी भी समय मैं तत्काल कर सकती हूँ. पर आप जानते ही हो कि मैं कितनी लालची हूँ!” ये कहते हुए वो हंस पड़ी और अन्य सबने उसका साथ दिया.
“तो पहले सुशील भाईसाहब को अपनी पत्नी के मुँह के सहवास का सुख मिलेगा. इसके बाद बलवंत भाईसाहब को चूत और इसके बाद कुमार को गाँड मारने दी जाएगी. इससे आगे इन तीनों के कार्य समाप्ति पर बताऊँगी।”
“तो बबिता दीदी, अब आप आकर इस कुर्सी पर बैठिये.”
बबिता दूसरी कुर्सी पर बैठी और बसंती ने उसके आगे बैठकर अपना मुँह उसकी चूत पर रख दिया और बबिता ने आशानुसार अपना मूत्र का दान बसंती को दिया. बसंती ने उसे धन्यवाद किया और अपनी कुर्सी पर जा बैठी. सुशील आया और उसने बबिता के मुँह में लंड डाला और उसे चोदने लगा. बबिता भी उसका पूरा साथ दे रही थी. जब सुशील झड़ने को आया तो उसने अपना लंड बाहर निकाला और बसंती के काँच के प्याले में वीर्यपात कर दिया. बबिता वहाँ से उठी और पलंग पर जा बैठी. बसंती ने सुशील के लंड को चूमा और लंड को नीचे बाल्टी की ओर किया जिसमें सुशील ने मूत्र विसर्जन कर दिया. गैंगबैंग का आधिकारिक रूप से आरम्भ हो चुका था.
बबिता का गैंगबैंग:
बलवंत अपने लंड को हिलाते हुए बबिता के सामने आ खड़ा हुआ. बबिता नेउसके लंड को मुँह में लेकर कुछ पल चूसा और फिर पलंग पर पैरों को फैलाकर लेट गई. बलवंत ने बबिता को प्रेम से देखा.
“बड़े दिन बाद हाथ आई हो. अब मन भर कर चोदुँगा।”
“किसने रोका है आपको? अब तो वैसे भी कई दिन बाद मिलोगे. कुछ ऐसे चोदो कि कई दिन तक भूलूँ नहीं.”
बलवंत ने अपना लंड चूत के मुहाने पर रखा और बोला, “तब तो इस बार प्यार से चोदता हूँ. जोश वाली चुदाई फिर कर लेंगे.”
ये कहते हुए बबिता और बलवंत की चुदाई का आरम्भ हो गया और ये चुदाई से अधिक प्रेमालाप था. दोनों किसी भी प्रकार की शीघ्रता नहीं दिखा रहे थे. बबिता की बात सुनकर गीता की आँखों में आये आँसू अब सूख गए थे. उसे भी इस बात का दुःख था कि वो अपने घनिष्टतम मित्रों को छोड़कर जाने वाली है. उसे विश्वास था कि जीवन और बलवंत इसका कोई समाधान निकाल लेंगे. उसने जीवन को देखा जो उसे ही देख रहा था. जीवन ने अपना सिर हिलाकर बताया कि वो उसकी भावना समझ गया है. गीता फिर अपने पति को अपनी सखी को चोदते हुए देखने लगी.
इस बीच जीवन उठा और बसंती के पास गया.
“इससे पहले कि कुछ आगे बढ़ें मुझे अपना टॉनिक पिला दे.”
बसंती ने अपने पैर चौड़े किये और जीवन उनके बीच में बैठ गया.
“लो पी लो, बाबूजी. इसके सेवन से आपका लौड़ा रात भर खड़ा रहने वाला है.” बसंती खिलखिलाकर बोली और जीवन के मुँह में मूत्र विसर्जित कर दिया.
अपनी औषधि के सेवन के बाद जीवन उठकर अपने स्थान पर चला गया और वो भी बबिता की चुदाई जो अब कुछ गति पकड़ रही थी और सम्भवतः समापन पर थी, देखने लगा.
जीवन का अनुमान सही था बलवंत ने कुछ धक्के लगाए और फिर अपना लंड बाहर निकाल लिया. बबिता के रस से मिश्रित उसके अपने रस से चमकता गीला लौड़ा लेकर वो निसंकोच बसंती के सामने जा खड़ा हुआ. बसंती ने उसका लंड चाटा और चूसने लगी. बलवंत तो झड़ने वाला ही था अधिक न रुक सका और बसंती के मुँह में झड़ गया. बसंती ने कुछ तो गटक लिया, पर फिर काँच के प्याले में थूक दिया. फिर उसने बलवंत की मुठ मारकर शेष रस को प्याले में गिरा दिया.
इसके बाद उसने बलवंत के लंड को अपने मुँह के आगे किया और मुँह खोल लिया. बलवंत के लिए ये समुचित संकेत था. उसने बसंती के मुँह में मूतना आरम्भ किया. कुछ पीने के बाद बसंती ने नीचे की ओर आँखें कीं तो बलवंत ने अपनी धार रोकी और बाल्टी में सुशील के योगदान में अपना अंश जोड़ दिया. बसंती ने उसे मुस्कुराकर देखा और एक ओर जाकर बैठे के लिए कहा. अब बलवंत को लगभग एक से डेढ़ घंटे का अंतराल मिला था. उसने अपने लिए एक पेग बनाया और चुस्कियाँ लेते हुए कुमार को देखने लगा जिसका लंड अब बबिता के मुँह में था.
बलवंत की चुदाई के बाद बबिता को पाँच मिनट का विश्राम दिया गया था. और जब तक बलवंत बसंती के मुँह में झड़ा तब तक कुमार बबिता के पास पहुँच कर उससे अपना लौड़ा चुसवा रहा था. उसके लंड को मुँह से निकालकर बबिता ने घोड़ी का आसन लिया और कुमार ने उसकी गाँड में घी डालकर उसे चिकना कर दिया. फिर उसने कुछ घी अपने लौड़े पर भी लगाया. उसे गाँव प्राकृतिक चिकनाई अच्छी लग रही थी, अन्यथा नगर में अधिकतर जैल का उपयोग करना का चलन हो चुका था.
“नानी, प्यार से मारूँ या जोर से?” कुमार लंड गाँड के छेद हुए पूछा.
“बिटवा, पूछ कर क्यों मूरख बना रहा है. तुझे जानती हूँ, तू गाँड अपने दादा के समान ही मारेगा. तो पूछ कर बुढ़िया को बहला मत और मार मेरी गाँड।” बबिता ने कहा तो कुमार ने एक धक्के के साथ आधा लौड़ा गाँड में पेल दिया. अगले दो धक्कों में पूरा लंड बबिता की गाँड में जड़ दिया. दोनों साँस लेने के लिए रुके फिर एक मंथर गति से कुमार बबिता की गाँड मारने लगा.
गीता ने शालिनी को देखा जिसकी आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे. वो उसके सामने जा बैठी और पैरों को खोलकर उसकी चूत चाटने लगी. उनकी देखा देखी पूनम ने निर्मला को लिटाया और दोनों एक दूसरे की चूत का आनंद लेने लगीं. कुछ ही पलों बाद शालिनी ने भी यही इच्छा जताई तो शालिनी और गीता भी एक दूसरे की चूत चाटकर सुख पाने में जुट गयीं.
बसंती अपनी चूत को उँगलियों से ही सहला रही थी. अपने शरीर की बढ़ती प्यास को शांत करने के लिए उसने बाल्टी में से एक कटोरी मूत्र लिया और काँच के प्याले में उड़ेलकर पी गई. फिर उसने अपने स्तनों पर भी कुछ मात्रा रगड़ ली. और अंत में चेहरे पर थोड़ा सा लेप कर लिया. उसकी आग शांत न होकर और भड़क गई. पर अब उसे चारों स्त्रियों या कुमार के झड़ने तक रुकना था. वो आशा से कुमार के सशक्त धक्कों से बबिता की गाँड की नली की सफाई होते हुए देखने लगी.
बबिता की गाँड मारते हुए कुमार कोई दया नहीं दिखा रहा था. बबिता भी आज पूरी रात इसी प्रकार की चुदाई की अपेक्षा कर रही थी. उनकी मंडली में गैंगबैंग अब बहुत विरले हो गए थे. और उसे आज की गैंगबैंग रानी बनने का जो अवसर मिला था वो अब कब दोहराया जायेगा इसका कोई अनुमान नहीं था. अपनी गाँड में कुमार के लौड़े के शक्तिशाली धक्के उसे असीम सुख प्रदान कर रहे थे. असीम और कुमार दोनों अपने दादा जीवन की शक्ति और निर्ममता को विरासत में पाए थे. उनके पिता आशीष अपेक्षाकृत कम निर्दयी थे,पर आशीष की कला अनूठी थी. गाँड में चलते मोटे लम्बे लौड़े के आभास से बबिता की चूत से पानी बहने लगा था.
लगभग गाँड की दस मिनट तक भीषण चुदाई करने के बाद कुमार ने कहा कि अब उसे छोटी नानी के पास जाना होगा. बबिता इसका अभिप्राय समझ कर फिर से झड़ गई. और कुमार ने अपना लंड उसकी गाँड से बाहर निकाल लिया. बबिता कुछ समय इसी स्थित में रही पर उसे भी बसंती के पास जाने की आवश्यकता का आभास हुआ. उसने देखा तो बसंती कुमार के लंड को बड़े प्रेम से चूस रही थी. उसे इस तथ्य से कोई संकोच नहीं था कि वो लंड अभी बबिता की गाँड की गहराइयों को खँगाल कर आया है.
कुमार चूँकि झड़ने के समय ही बसंती के पास गया था तो बसंती के लंड चूसने के कुछ ही पलों में उसने बसंती ने मुँह में अपना रस छोड़ दिया. बसंती ने पहले कुछ पिया और फिर मुँह में भर लिया और काँच के प्याले में थूक दिया. इसके बाद कुमार के मुरझाते लंड को नीचे बाल्टी की ओर किया.
“छोटी नानी, मुँह में ले लो न? अभी तो अपने चेहरे पर मसल रही थीं. ताजा माल है, क्यों ठण्डा करोगी?” कहा.
“बिटवा, बहुत चतुर हो गए हो. चलो मुतो मेरे मुँह में और चेहरा भी धो दो अपने अमृत से.” बसंती ने उसकी आँखों में झाँककर कहा.
कुमार मुस्कुराया और अपने लंड से धार छोड़कर पहले बसंती को पिलाया और फिर उसके चेहरे और वक्ष पर भी बौझार कर दी. उसके बाद शेष मात्रा बाल्टी में समर्पित कर दी. वो हटा तो बसंती ने बबिता को खड़ा पाया, जो अपने पैरों पर उछल रही थी.
“क्या दीदी, रुका नहीं जा रहा है क्या?” ये कहते हुए उसने बबिता को अपने सामने खड़ा किया.
“हो जाओ हल्की, दीदी. मुँह में जाये तो ठीक नहीं तो बाल्टी तो है ही.” बसंती ने अपना मुँह बबिता की चूत पर रखने से पहले कहा.
इतनी देर से ठहरी हुई बबिता की चूत से गर्म मूत्र ने बसंती के मुँह में त्याग किया और फिर बसंती ने मुँह हटाकर बाल्टी में गिरने दिया.
“दीदी, सारा पी जाऊँगी तो बाद में तरसूंगी. वैसे कैसी रही चुदाई.”
“मस्त रही, बसंती. अब आगे क्या करना है.”
“अभी बताती हूँ. आप जाकर कुछ विश्राम कर लो.”
बबिता जाकर सुशील के पास बैठ गई और उसके ग्लास से दो घूँट लिए. तभी कुमार उन दोनों के लिए नए ग्लास भर कर ले आया. पूनम और निर्मला एक दूसरे को संतुष्ट कर चुकी थीं और उन्होंने नियम तोड़ दिया था. दोनों बसंती के सामने जा खड़ी हुईं.
“बसंती, हम दोनों ने एक दूसरे का रस पी लिया है. क्या करें?” पूनम ने पूछा.
“दीदी, अब आप दोनों को मुझे भी संतुष्ट करना होगा, एक एक करके. वैसे शालिनी और गीता दीदी भी यही करने वाली हैं. अच्छा होता अगर आप मुँह में रख कर मुझे कुछ दे पातीं, पर कोई बात नहीं है. मैं आपसे अपनी चूत चटवाकर सुख पा लूँगी।” अब तक शालिनी और गीता भी आ चुकी थीं और उसकी बात सुन ली थी.
फिर बसंती बोली, “पर क्या आपके पास मेरे लिए कुछ भी और नहीं है?” ये कहकर उसने मुँह खोलकर उसकी और ऊँगली दिखाई।
पूनम: “क्यों नहीं है, बोल किसका पानी पहले पीना है?”
“जो मेरी चूत पहले चाटेगा.”
इसमें किसी को कोई समस्या न थी. तो पूनम ने ही पहले हाथ खड़ा कर दिया. उसने बसंती के सामने आसन जमाया और उसकी चूत को चाटने लगी. कुछ पलों में ही बसंती का प्रेमरस पूनम के मुँह में भर गया. उसके बाद बसंती ने पूनम को दूसरी कुर्सी पर बैठाया और उसकी चूत को चाटने लगी. कुछ ही परिश्रम किया होगा कि पूनम ने उसके मुँह में अपनी आहुति दे दी. बसंती ने फिर कुछ पिया कुछ बाल्टी में थूक दिया. पूनम खड़ी हुई और जाकर अपने पति के साथ बैठ गई जहाँ उसका पेग रखा हुआ था.
“अभी आप तीनों जाओ. मेरे पेट में अब बिलकुल स्थान नहीं है.” बसंती ने कहा तो गीता, निर्मला और शालिनी भी जाकर अपने पतियों के साथ बैठ गयीं.
उधर बसंती ने बबिता की अगली चुदाई की व्यवस्था के लिए चिंतन आरम्भ किया. उसने कुछ परिवर्तन करने का निर्णय भी लिया.
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क्रमशः
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One of the very best of the best storyअध्याय ७०: जीवन के गाँव में शालिनी ७
अध्याय ६९ से आगे
अब तक:
आज रात से गैंगबैंग की शृंखला का भी आरम्भ होना था. गैंगबैंग प्राप्तकर्ता भाग्यशाली स्त्री कौन होगी, उसका नाम एक गुप्त पर्ची में निकालकर एक ओर रख दिया गया.
जीवन और बसंती ने शालिनी को मूत्रक्रीड़ा से परिचित करवाया. शालिनी की विरूचि ने देखकर जीवन और उनकी मित्र मंडली को संतोष हुआ. गीता को अपनी मंडली में सर्वप्रथम गाँड में दो लौड़े लेना का सुख और यश प्राप्त हुआ. पाँचों मित्र अब शालिनी की चुदाई कर चुके थे. असीम और कुमार उसे बाद में चोदने वाले थे. बंसती की गाँड मारकर जीवन ने उसकी जलन शांत की. विश्राम के पहले आज रात्रि की गैंगबैंग की महिला का नाम जानने की इच्छा सबके मन में थी.
गीता जाकर वो पर्ची लाई और बसंती को थमा दी. “तू ही बता.”
बसंती ने पर्ची खोली और उत्सुक समूह को बताया.
“आज की रानी का नाम है.....”
अब आगे:
बसंती सबके चेहरों को देख रही थी. उन चेहरों की उत्सुक्ता उसे एक शक्ति का आभास दिला रही थी मानो उसके हाथों में कोई लॉटरी हो. आज रात्रि की तीन प्रत्याशी स्त्रियों के चेहरे पर सबसे अधिक व्यग्रता थी. उसने उन तीनों को फिर से देखा.
“और आज की रानी का नाम है… बबिता!”
और इस घोषणा के साथ बबिता को पूनम और निर्मला ने बाँहों में भर लिया और उसे चूमने लगीं. ये दृश्य उस दृश्य के समकक्ष था जिसमें विश्वसुंदरी इत्यादि का चयन होता है और उसे हारने वाली लड़कियाँ बधाई देती हैं. उनके हटते ही गीता, शालिनी ने उसे चूमा और फिर बसंती ने भी यही किया. बबिता के पति ने आकर अपनी पत्नी को बाँहों में लिया और उसे चूमकर बधाई दी. फिर घोषणा की.
“मित्रों, अब बबिता को विश्राम की आवश्यकता है. तो मैं उसे कमरे में ले जा रहा हूँ. आप सब भी जाकर विश्राम कीजिये और अपना इन्जन में ईंधन भरिये.”
गीता बोली: “और एक बात मैं बता देती हूँ. मेरी छोटी बहन बसंती इसका निर्देशन करेगी. हमें इसका पेट भी भरा रखना होगा. कार्यक्रम आरम्भ होने के बाद हर प्रकार के रस पर केवल बसंती का ही अधिकार होगा. मेरी प्यारी बहन बहुत प्यासी रहती है, तो हम सब इसे ही अपना रस इत्यादि पिलायेंगे। ये वैसे भी हमारी परम्परा है. जब भी हम ऐसा कोई कार्यक्रम करते हैं और वो उपस्थित होती है, तब उसे ही इसका अधिकार मिलता है. इसकी आज्ञा मानना बबिता और सब पुरुषों का कर्तव्य होगा. अगर किसी को कोई समस्या है तो अभी बता दे.”
अब इसमें क्या समस्या हो सकती थी. सबने स्वीकृति दी और अपने जोड़ों में कमरों में चले गए. असीम और कुमार अपने कमरे में चले गए और बसंती को जीवन अपने और शालिनी के साथ ले गया.
बबिता का मन धकधक कर रहा था.
बबिता: “अब मैं थोड़ी देर सो लेती हूँ. उसे बाद तो आप सब मुझे गुड़िया के समान मरोड़ोगे.”
कँवल: “अगर तेरा मन नहीं है तो किसी और को आज के लिए कह देते हैं.”
बबिता: “नहीं, नहीं! ऐसा मत करना. मैं तो इसके लिए बड़ी लालायित हूँ. बहुत आनंद आता है आप सबके बीच में पिसने में.”
कँवल: “चल थोड़ा विश्राम कर ले, मैं तेरी हल्की मालिश कर देता हूँ. तुझे इसका लाभ मिलेगा.”
ये कहते हुए कँवल ने बबिता को लिटाया और उसके हाथ, पैर और कमर इत्यादि को दबाने लगा. बबिता उसके प्रयासों से कुछ ही पलों में सो गई. कंवल ने उसे बाँहों में लिया और उसके साथ लेट गया और वो भी सो गया.
***********
शालिनी के साथ जीवन अपने कमरे में गया तो बसंती भी साथ थी. बसंती ने शालिनी के चेहरे को अपने हाथों में लिया.
बसंती: “बाबूजी ने हीरा चुना है, बहूरानी। आप सच में अद्वितीय हो.”
शालिनी: “तू मुझे बहूरानी क्यों कहती है, सबको तो दीदी बुलाती है. मुझे भी दीदी ही बुलाया कर, मुझे अच्छा लगेगा.”
बसंती: “ठीक है, दीदी.” फिर कुछ सोचकर, “आपको मेरे रूचि से घृणा तो नहीं है न दीदी?”
शालिनी: “नहीं. मैं समझ सकती हूँ. इनके साथ इतने ही दिनों में मैंने ये सीख लिया है कि रतिसुख के कई आयाम और कोण होते हैं. हमें अपने मन को नए परीक्षण और नई अनुभूतियों का स्वागत करना आना चाहिए. जितनी सरलता से सब एक दूसरे के साथ सहवास करते हैं, न कोई ईर्ष्या, न कोई क्रोध, ये सीखने और भोगने का आनंद लेना चाहिए.”
बसंती ने अब डरते हुए पूछा, “तो क्या आप बाबूजी आपके साथ वो सब खेल खेलना चाहें तो आप उनका साथ दोगी?”
शालिनी सोच में पड़ गई. फिर उसने बसंती को देखकर कहा, “क्या तुम मुझे सिखाओगी?”
बसंती की आँखें खुली रह गईं. उसने जीवन की ओर देखा जो इन बातों से अनिभज्ञ अपने लिए पेग बना रहा था.
“आइये मेरे साथ.” बसंती बोली और वो दोनों उस कमरे के बाथरूम में चली गईं.
जीवन ने अनुमान लगाया कि बसंती की प्यास फिर भड़क गई होगी. उसे ये सोचकर सांत्वना मिली कि उसने शालिनी को चुना और शालिनी ने भी प्रतिरोध नहीं किया. बाथरूम में जाकर बसंती ने शालिनी को देखा.
“क्या करें दीदी?”
“पहले मैं तुम्हें पिलाती हूँ, फिर मैं प्रयास करुँगी. ठीक है न?”
बसंती ने शालिनी को कमोड पर बैठाया और उसके सामने आकर बैठ गई और उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. शालिनी ने स्वयं को संतुलित किया. वो एक नया शिखर पार करने जा रही थी. और वो भी उनके घर की नौकरानी की माँ के साथ. उसे न जाने क्यों इस विचार से कोई क्षोभ नहीं हुआ. उसने देखा था कि सभी मित्र बसंती का सम्मान करते हैं और उसे किसी भी रूप में कम नहीं आँकते। उसने शरीर को ढीला छोड़ा और अपने मूत्र पात्र बसंती के मुँह में करना आरम्भ किया. उसने बसंती की जीभ और होठों के संचालन पर भी ध्यान दिया कि किस प्रकार से वो इस जल का सेवन कर रही थी. उसे कुछ नया सीखने को मिल गया.
जब शालिनी ने अपना कार्य समाप्त किया तो उसने बसंती को उसकी चूत को अंदर और बाहर चाटकर शेष जल को चाटते हुए पाया. सम्भवतः ये भी इस अनुभव की एक शिक्षा थी. बसंती उठ गई और उसने शालिनी को देखते हुए अपने होंठों को चाटा।
“दीदी, आप सच में बहुत मीठी हो.”
शालिनी अब सोच में पड़ गई. क्या वो आगे बढ़े? फिर उसने निर्णय लेते हुए बसंती का हाथ पकड़ा और खड़ी हो गई.
“मैं भी तो देखूँ ये (जीवन) तेरे पानी के लिए इतने अधीर क्यों रहते हैं. अब बैठ.”
बसंती का रोम रोम सिहर उठा. आज जीवन के अतिरिक्त कोई और उसका मूत्र पान करने वाला था. आज उसके बाबूजी का एकमेव अधिकार समाप्त होने जा रहा था. चाहे ये एकमात्र अवसर क्यों न हो, पर इसका वो अनुभव करना चाहती थी. कमोड पर बैठकर उसने अपने पैरों को फैलाया और शालिनी ने उसके सामने स्थान लेकर उसका अनुशरण करते हुए बसंती की चूत पर अपना मुँह लगा लिया.
“दीदी, जीभ नीचे रखना, नहीं तो बाहर अधिक गिरेगा.”
शालिनी ने यही किया और बसंती ने उसके सिर पर हाथ लगाया.
“गट गट करके पीती रहना, दीदी. मैं रुक रुक कर पिलाऊँगी।”
शालिनी ने सिर हिलाया और जीवन के नए स्वाद और अनुभव की प्रतीक्षा करने लगी.
बसंती ने हल्के दबाव के साथ शालिनी के मुँह में मूत्र त्यागना आरम्भ किया. उसने एक सीमित मात्रा में ही दबाव डाला. इसका परिणाम ये हुआ कि जो मात्रा उसने छोड़ी उसे पीने में शालिनी को कोई दुविधा नहीं हुई. बसंती के लिए एक कठिन नियंत्रण का कार्य था, परन्तु वो जीवन की भावी पत्नी के लिए इस कष्ट को भी झेलने के लिए तत्पर थी. शालिनी बसंती के कहे अनुसार गट गट करते हुए पीती रही. कुछ घूँटों के उपरांत ही उसे मूत्र की गंध का आभास हुआ. परन्तु वो रुकी नहीं.
एक नया ही स्वाद था. गंध अवश्य चिर परिचित थी, पर स्वाद में अनूठापन था. बसंती ने पर्याप्त समय लेते हुए शालिनी को अपना पूरा जल भेंट कर दिया. फिर उसके सिर पर हाथ घुमाया.
“मैं निपट गई दीदी.”
शालिनी ने बसंती का अनुशरण करते हुए उसकी चूत को चारों ओर से चाटा और अंदर जीभ डालकर भी कुरेदा. फिर उसने अपना मुँह हटा लिया और बसंती की ओर देखने लगी. बसंती के मुँह पर एक मुस्कान थी.
“कैसा लगा दीदी?”
“हम्म्म, ऐसा कुछ विशेष नहीं. हाँ, गंध ने अवश्य कुछ क्षणों के लिए विचलित किया था.” फिर रुककर बोली, “पर स्वाद अनूठा था. लुक मीठा, कुछ कसैला, कुछ न समझ आने वाला.”
“हाँ दीदी, यही बात है. आप दिन के भिन्न भिन्न समय पियोगी तो और भी विविधता पाओगी. चुदने से पहले और चुदने के बाद में भी बहुत अंतर होता है. और यही चोदने के पहले और चोदने के बाद भी होता है.”
“अच्छा! तब तो मुझे एक बार सब का स्वाद लेना चाहिए.” शालिनी ने नटखट स्वर में कहा तो बसंती खिलखिला उठी.
“दीदी, मुझे लगता है कि आप बाबूजी को बहुत प्रसन्न रखेंगी. वैसे बाबूजी, इसे मदिरा में मिलाकर भी पीते हैं. मैं तो पीती नहीं, सो जानती भी नहीं. पर कहते हैं कि मेरे मूत्र से बने पेग में नशा कई गुना अधिक होता है.”
“अच्छा जी. ऐसे हैं तेरे बाबूजी. उनका स्वाद कैसा है?”
“अरे दीदी, पूछ क्या रही ही, हाथ कंगन को आरसी क्या? अभी बुलाकर देख लो और ले लो स्वाद!”
“हम्म्म, ठीक है. बुला अपने बाबूजी को.”
शालिनी बोली तो बसंती लपककर कमरे में गई और कुछ ही पलों में जीवन को ले आई. जीवन ने शालिनी को नीचे बैठे देखा तो अचम्भित हो गया.
बसंती ने उसका लंड अपने हाथ में लिया और बोली, “दीदी हमारे खेल में मिलने की इच्छा रखती है. अब बाबूजी, आपके ऊपर है आप क्या चाहते हो?”
जीवन ने शालिनी को देखा, “क्या सच?” ऐसा कहते हुए बसंती ने अपने हाथ में उसके लंड को मचलते हुए अनुभव किया. शालिनी ने मात्र सिर हिलाकर स्वीकृति दी.
बंसती ने जीवन का लंड पकड़कर उसे शालिनी की मुँह की ओर इंगित किया.
“बाबूजी, अब अपनी दुल्हन को अपना पानी पिलाकर अपना बना लो.”
शालिनी ने मुँह खोला और जीवन के लंड से मूत्र की धार उसके मुँह में समाने लगी. बसंती के सिखाये अनुसार शालिनी बिना रुके गट गट करते हुए पीने लगी. पंरतु जीवन का स्त्राव अधिक था और उसके मुँह से बाहर गिरने लगा. शालिनी इसकी चिंता किया बिना अपना कार्य करती रही. जब जीवन का बहाव समाप्त हुआ तो उसने स्वाद और गंध का आभास किया. बसंती ने जीवन का लंड छोड़ा और शालिनी के शरीर से बहते हुए मूत्र को चाटने लगी. फिर उसने अपने होंठ शालिनी से जोड़े और दोनों एक दूसरे को चूमने लगीं.
जीवन उन दोनों को देखकर आश्वस्त हो गया कि अब कोई दुविधा नहीं है. उसके मन से एक बड़ा बोझ उतर गया. बसंती ने जीवन को देखा।
“बाबूजी, दीदी की टंकी अभी खाली है. मैं तो कहूँगी कि इसमें पैट्रोल डालकर आप भी स्वाद ले लो. बड़ा मीठा पानी है आपकी दुल्हनिया का. मैं तो अब जब तक साथ रहूँगी दिन में एक बार तो अवश्य पियूँगी.”
शालिनी लजा गई.
“तेरा भी बड़ा मीठा था, बसंती. अच्छा लगा था मुझे.”
ये सुनकर जीवन अचरज में पड़ गया. उसने सोचा था कि बसंती ने शालिनी को पहला पानी उसका पिलाया था, पर शालिनी पहले ही बसंती को चख चुकी थी. बसंती समझ गई.
“बाबूजी. पिलाया चाहे पहले मैंने हो, पर नहलाना पहले आप ही.”
जीवन मुस्कुराया, “ठीक है. पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है अगर तूने पहल की तो. पर अब कुछ समय विश्राम कर लेते हैं. फिर बहुत व्यस्त हो जायेंगे.”
हल्के स्नान के बाद बसंती और शालिनी जाकर पलंग पर जीवन के साथ लेट गए और कुछ ही पलों में सो गए और लगभग एक घंटे बाद ही उठे. सबसे पहले बसंती की ही नींद टूटी. वो बैठकर जीवन और शालिनी को सोते हुए देख रही थी. उसे दोनों की जोड़ी बहुत प्यारी लग रही थी. और अगर कोई शंका थी तो वो भी कुछ समय पहले दूर हो चुकी थी. शालिनी की आँख खुली तो उसने बसंती को उसे निहारते हुए देखा और मूक प्रश्न किया.
“आप सच में बहुत सुंदर हो दीदी. बाबूजी बहुत भाग्यशाली हैं.” फिर कुछ सोचकर, “आप भी कम नहीं हो जो आपको उनके जैसा पुरुष मिला है. आप दोनों इस संतुलन को बिगड़ने मत देना.”
शालिनी उठी तो जीवन ने भी आँख खोली, “तुम सच कह रही हो बसंती, हमें एक दूसरे को पाने में एक लम्बा समय लगा, पर अब एक दूसरे को खोना नहीं चाहेंगे. और सच कहूं तो मैं तुझे भी नहीं खोना चाहता. मेरे मन में तेरा बहुत बड़ा स्थान है. अगर भूरा न होता तो मैं तुझे अपना लेता.”
“बाबूजी, मैं तो सदा आपकी रहूँगी, भूरा बस अपनी लत छोड़ दे तो मैं उसे अपने साथ लेकर आपके ही पास चली आऊँगी। अपने वचन दिया है उसके व्यसन छुड़ाने का,उसका पालन करना, बस यही चाहती हूँ.”
“चिंता न कर, घर लौटकर मैं उस क्लिनिक में बात करूँगा, भूरा के लिए. उसके उपचार में समय लगेगा, छह माह लग सकते हैं. उस पूरे समय वो वहीँ रहेगा. पर जब लौटेगा तब तेरी दूसरी सुहागरात मनाने का उत्सव मनाएँगे।”
बसंती की आँखों से आँसू बह निकले. फिर उसने स्वयं को संयत किया.
“बाबूजी, अब हमें चलना चाहिए. पर उसके पहले आप दीदी का भी स्वाद ले लो.”
जीवन ने शालिनी को देखा और उसे चलने का संकेत किया. बाथरूम में जाकर शालिनी कमोड पर बैठी और जीवन को अपना मूत्र पान करवाया. उसके बाद जीवन और शालिनी बाहर आये और बसंती के चल पड़े.
जीवन: “बसंती, तूने सच कहा था. बहुत मीठा है शालिनी का पानी. अब तो उसके बिना जीना कठिन होगा.”
“बाबूजी, आपने सच कहा. पर अब बबिता दीदी की ओर ध्यान दो.”
सामने बबिता कँवल के साथ खड़ी थी. उसने एक साड़ी पहनी थी, जो बस उसके शरीर से लिपटी हुई थी. अन्यथा कोई और वस्त्र नहीं था. जीवन को देखकर वो लजा गई. बसंती और शालिनी जाकर उससे मिलीं और तब तक अन्य सब भी कमरे में आ गए.
“पहले दो पेग और भोजन हो जाये, फिर कुछ और.” ये कहते हुए कंवल ने असीम को संकेत किया.
बबिता को छोड़कर अन्य स्त्रियाँ रसोई में चली गयीं और अल्पाहार और भोजन का प्रबंध करने लगीं. आधे ही घंटे में सब कुछ निपट गया. अल्पाहार लेकर आयीं और असीम ने पेग बनाये. बबिता पुरुषों को उनके पेग देने लगी. हर पेग से एक घूँट लेकर वो ग्लास थमा रही थी. ग्लास लेकर कोई उसके मम्मे दबाता तो कोई गाँड। पेग बाँटने के बाद उसने भी अपना पेग लिया और अन्य सखियों के साथ बैठकर पीने लगी.
कुछ ही देर में भोजन लगा दिया गया और सबने अपने मन के अनुसार खाया. खाना कम खाने पर अधिक ध्यान रखा गया जिससे कि अनावश्यक सुस्ती या अन्य समस्याएं न आएं. मदिरा की बोतलें सजा दी गयीं, भोजन को ढक दिया गया जिससे कि विश्राम के समय अगर मन करे तो और खाया जा सके. अल्पाहार अधिक मात्रा में रखा गया था. भोजन के उपरांत सभी प्रबंध पूरे करने में लगभग और आधे घण्टे का समय लगा. इस पूरे समय वातावरण पूर्ण रूप से सहज और सामान्य था. कोई विश्वास ही नहीं कर सकता था कि कुछ ही देर में यहाँ वासना का ऐसा वीभत्स खेल होना है जिसे देखकर निर्बल मन के व्यक्ति की आत्मा काँप जाएगी.
बसंती अपने निर्देशक की भूमिका के लिए उचित स्थान पर बैठ कर सभी गतिविधियों को संचालित कर रही थी. किसी के मन में उसके प्रति कोई द्वेष न था और सब उसके निर्देशों का पालन कर रहे थे. पलंग के निकट ही धुली हुई चादरें और कई सारे तौलिये रख दिए गए थे. गीता ने बसंती को उसके द्वारा कई बार उपयोग किया हुआ कांच का एक बड़ा प्याला दिया जिसे बसंती ने अपने निकट रख लिया. और एक बाल्टी नीचे रख दी गई.
बसंती को बैठने के लिए एक प्लास्टिक की कुर्सी दी गई थी और उसके नीचे भी प्लास्टिक की चादर फैला दी गई थी. एक और प्लास्टिक की कुर्सी उसके पास रख दी गई. कई सारे पुराने कपड़ों से नीचे बिछी प्लास्टिक के चारों ओर एक मेढ़ बना दी गई जिससे कि कोई भी पानी बाहर न बहे. फिर उसके बाहर द्वार पर लगने वाली कपड़े की चटाइयाँ लगा दी गयीं. उसके साथ ही कई सारे पोंछने के कपड़े भी उसे दे दिए गए थे.
शालिनी ये सब देखकर स्तब्ध थी. इसका यही अर्थ था कि ये एक नियमित प्रक्रिया थी जिसका इतनी कुशलता से प्रबंध किया गया था. अब रंगमंच नए खेल के लिए व्यवस्थित हो चुका था. किसी भी समय पहले गैंगबैंग का शुभारम्भ हो सकता था. कँवल ने उसके पास आकर उसे कुछ समझाया और चला गया. बसंती ने बबिता को देखा जिसकी आँखों में उल्लास और कामोन्माद की चमक थी. बसंती ने सबको अपने स्थानों पर बैठने का आदेश दिया, जिसका तुरंत पालन हुआ.
फिर उसने बबिता को खड़े होकर अपनी साड़ी निकालने का आदेश दिया. एक नौकरानी की माँ इतने बलशाली पुरुषों और प्रभावी महिलाओं को जिस प्रकार से आदेश दे रही थी वो दर्शनीय था. सम्भवतः जीवन से उसकी निकटता के कारण उसे ये अधिकार मिला था.
“दीदी, आज आपका गैंगबैंग होने वाला है. इसकी आपको बधाई हो. मैं आशा करती हूँ कि आपको इस चुदाई में असीम आनंद की प्राप्ति हो. इसके साथ ही आपको ये भी चेता दूँ कि हर बार के समान आपका सुरक्षा शब्द सरला होगा.”
शालिनी चौंकी क्योंकि ये तो जीवन की दिवंगत पत्नी का नाम था. पर उसे तुरंत इसका आशय समझ आ गया. उसने जीवन को देखा जिसका सिर झुका हुआ था.
“मेरे पीछे लगी तख्ती पर आपके नाम और नंबर लिखे हैं. ये वही नम्बर होते पर असीम और कुमार के आने से कुछ अंतर है.” उसने पीछे संकेत किया.
तख्ती पर लिखे हुए नाम और नंबर दिखने के लिए.
१ असीम
२ बलवंत
३ जस्सी
४ जीवन
५ कँवल
६ कुमार
७ सुशील
“तो मैं स्थिति के अनुरूप एक दो या तीन नंबर पुकारूँगी। मैं उन्हें बताऊंगी कि उन्हें बबिता दीदी को कैसे और कहाँ चोदना है. ये हमारी परम्परा है तो किसी को कोई शंका नहीं होने चाहिए.”
“और आप सबको, उसने सभी स्त्रियों को देखते हुए कहा, आपके हर स्खलन को इस मुझे ही अर्पण करना होगा. बबिता दीदी को कब क्या मिलेगा इसका निर्णय किसी भी समय मैं तत्काल कर सकती हूँ. पर आप जानते ही हो कि मैं कितनी लालची हूँ!” ये कहते हुए वो हंस पड़ी और अन्य सबने उसका साथ दिया.
“तो पहले सुशील भाईसाहब को अपनी पत्नी के मुँह के सहवास का सुख मिलेगा. इसके बाद बलवंत भाईसाहब को चूत और इसके बाद कुमार को गाँड मारने दी जाएगी. इससे आगे इन तीनों के कार्य समाप्ति पर बताऊँगी।”
“तो बबिता दीदी, अब आप आकर इस कुर्सी पर बैठिये.”
बबिता दूसरी कुर्सी पर बैठी और बसंती ने उसके आगे बैठकर अपना मुँह उसकी चूत पर रख दिया और बबिता ने आशानुसार अपना मूत्र का दान बसंती को दिया. बसंती ने उसे धन्यवाद किया और अपनी कुर्सी पर जा बैठी. सुशील आया और उसने बबिता के मुँह में लंड डाला और उसे चोदने लगा. बबिता भी उसका पूरा साथ दे रही थी. जब सुशील झड़ने को आया तो उसने अपना लंड बाहर निकाला और बसंती के काँच के प्याले में वीर्यपात कर दिया. बबिता वहाँ से उठी और पलंग पर जा बैठी. बसंती ने सुशील के लंड को चूमा और लंड को नीचे बाल्टी की ओर किया जिसमें सुशील ने मूत्र विसर्जन कर दिया. गैंगबैंग का आधिकारिक रूप से आरम्भ हो चुका था.
बबिता का गैंगबैंग:
बलवंत अपने लंड को हिलाते हुए बबिता के सामने आ खड़ा हुआ. बबिता नेउसके लंड को मुँह में लेकर कुछ पल चूसा और फिर पलंग पर पैरों को फैलाकर लेट गई. बलवंत ने बबिता को प्रेम से देखा.
“बड़े दिन बाद हाथ आई हो. अब मन भर कर चोदुँगा।”
“किसने रोका है आपको? अब तो वैसे भी कई दिन बाद मिलोगे. कुछ ऐसे चोदो कि कई दिन तक भूलूँ नहीं.”
बलवंत ने अपना लंड चूत के मुहाने पर रखा और बोला, “तब तो इस बार प्यार से चोदता हूँ. जोश वाली चुदाई फिर कर लेंगे.”
ये कहते हुए बबिता और बलवंत की चुदाई का आरम्भ हो गया और ये चुदाई से अधिक प्रेमालाप था. दोनों किसी भी प्रकार की शीघ्रता नहीं दिखा रहे थे. बबिता की बात सुनकर गीता की आँखों में आये आँसू अब सूख गए थे. उसे भी इस बात का दुःख था कि वो अपने घनिष्टतम मित्रों को छोड़कर जाने वाली है. उसे विश्वास था कि जीवन और बलवंत इसका कोई समाधान निकाल लेंगे. उसने जीवन को देखा जो उसे ही देख रहा था. जीवन ने अपना सिर हिलाकर बताया कि वो उसकी भावना समझ गया है. गीता फिर अपने पति को अपनी सखी को चोदते हुए देखने लगी.
इस बीच जीवन उठा और बसंती के पास गया.
“इससे पहले कि कुछ आगे बढ़ें मुझे अपना टॉनिक पिला दे.”
बसंती ने अपने पैर चौड़े किये और जीवन उनके बीच में बैठ गया.
“लो पी लो, बाबूजी. इसके सेवन से आपका लौड़ा रात भर खड़ा रहने वाला है.” बसंती खिलखिलाकर बोली और जीवन के मुँह में मूत्र विसर्जित कर दिया.
अपनी औषधि के सेवन के बाद जीवन उठकर अपने स्थान पर चला गया और वो भी बबिता की चुदाई जो अब कुछ गति पकड़ रही थी और सम्भवतः समापन पर थी, देखने लगा.
जीवन का अनुमान सही था बलवंत ने कुछ धक्के लगाए और फिर अपना लंड बाहर निकाल लिया. बबिता के रस से मिश्रित उसके अपने रस से चमकता गीला लौड़ा लेकर वो निसंकोच बसंती के सामने जा खड़ा हुआ. बसंती ने उसका लंड चाटा और चूसने लगी. बलवंत तो झड़ने वाला ही था अधिक न रुक सका और बसंती के मुँह में झड़ गया. बसंती ने कुछ तो गटक लिया, पर फिर काँच के प्याले में थूक दिया. फिर उसने बलवंत की मुठ मारकर शेष रस को प्याले में गिरा दिया.
इसके बाद उसने बलवंत के लंड को अपने मुँह के आगे किया और मुँह खोल लिया. बलवंत के लिए ये समुचित संकेत था. उसने बसंती के मुँह में मूतना आरम्भ किया. कुछ पीने के बाद बसंती ने नीचे की ओर आँखें कीं तो बलवंत ने अपनी धार रोकी और बाल्टी में सुशील के योगदान में अपना अंश जोड़ दिया. बसंती ने उसे मुस्कुराकर देखा और एक ओर जाकर बैठे के लिए कहा. अब बलवंत को लगभग एक से डेढ़ घंटे का अंतराल मिला था. उसने अपने लिए एक पेग बनाया और चुस्कियाँ लेते हुए कुमार को देखने लगा जिसका लंड अब बबिता के मुँह में था.
बलवंत की चुदाई के बाद बबिता को पाँच मिनट का विश्राम दिया गया था. और जब तक बलवंत बसंती के मुँह में झड़ा तब तक कुमार बबिता के पास पहुँच कर उससे अपना लौड़ा चुसवा रहा था. उसके लंड को मुँह से निकालकर बबिता ने घोड़ी का आसन लिया और कुमार ने उसकी गाँड में घी डालकर उसे चिकना कर दिया. फिर उसने कुछ घी अपने लौड़े पर भी लगाया. उसे गाँव प्राकृतिक चिकनाई अच्छी लग रही थी, अन्यथा नगर में अधिकतर जैल का उपयोग करना का चलन हो चुका था.
“नानी, प्यार से मारूँ या जोर से?” कुमार लंड गाँड के छेद हुए पूछा.
“बिटवा, पूछ कर क्यों मूरख बना रहा है. तुझे जानती हूँ, तू गाँड अपने दादा के समान ही मारेगा. तो पूछ कर बुढ़िया को बहला मत और मार मेरी गाँड।” बबिता ने कहा तो कुमार ने एक धक्के के साथ आधा लौड़ा गाँड में पेल दिया. अगले दो धक्कों में पूरा लंड बबिता की गाँड में जड़ दिया. दोनों साँस लेने के लिए रुके फिर एक मंथर गति से कुमार बबिता की गाँड मारने लगा.
गीता ने शालिनी को देखा जिसकी आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे. वो उसके सामने जा बैठी और पैरों को खोलकर उसकी चूत चाटने लगी. उनकी देखा देखी पूनम ने निर्मला को लिटाया और दोनों एक दूसरे की चूत का आनंद लेने लगीं. कुछ ही पलों बाद शालिनी ने भी यही इच्छा जताई तो शालिनी और गीता भी एक दूसरे की चूत चाटकर सुख पाने में जुट गयीं.
बसंती अपनी चूत को उँगलियों से ही सहला रही थी. अपने शरीर की बढ़ती प्यास को शांत करने के लिए उसने बाल्टी में से एक कटोरी मूत्र लिया और काँच के प्याले में उड़ेलकर पी गई. फिर उसने अपने स्तनों पर भी कुछ मात्रा रगड़ ली. और अंत में चेहरे पर थोड़ा सा लेप कर लिया. उसकी आग शांत न होकर और भड़क गई. पर अब उसे चारों स्त्रियों या कुमार के झड़ने तक रुकना था. वो आशा से कुमार के सशक्त धक्कों से बबिता की गाँड की नली की सफाई होते हुए देखने लगी.
बबिता की गाँड मारते हुए कुमार कोई दया नहीं दिखा रहा था. बबिता भी आज पूरी रात इसी प्रकार की चुदाई की अपेक्षा कर रही थी. उनकी मंडली में गैंगबैंग अब बहुत विरले हो गए थे. और उसे आज की गैंगबैंग रानी बनने का जो अवसर मिला था वो अब कब दोहराया जायेगा इसका कोई अनुमान नहीं था. अपनी गाँड में कुमार के लौड़े के शक्तिशाली धक्के उसे असीम सुख प्रदान कर रहे थे. असीम और कुमार दोनों अपने दादा जीवन की शक्ति और निर्ममता को विरासत में पाए थे. उनके पिता आशीष अपेक्षाकृत कम निर्दयी थे,पर आशीष की कला अनूठी थी. गाँड में चलते मोटे लम्बे लौड़े के आभास से बबिता की चूत से पानी बहने लगा था.
लगभग गाँड की दस मिनट तक भीषण चुदाई करने के बाद कुमार ने कहा कि अब उसे छोटी नानी के पास जाना होगा. बबिता इसका अभिप्राय समझ कर फिर से झड़ गई. और कुमार ने अपना लंड उसकी गाँड से बाहर निकाल लिया. बबिता कुछ समय इसी स्थित में रही पर उसे भी बसंती के पास जाने की आवश्यकता का आभास हुआ. उसने देखा तो बसंती कुमार के लंड को बड़े प्रेम से चूस रही थी. उसे इस तथ्य से कोई संकोच नहीं था कि वो लंड अभी बबिता की गाँड की गहराइयों को खँगाल कर आया है.
कुमार चूँकि झड़ने के समय ही बसंती के पास गया था तो बसंती के लंड चूसने के कुछ ही पलों में उसने बसंती ने मुँह में अपना रस छोड़ दिया. बसंती ने पहले कुछ पिया और फिर मुँह में भर लिया और काँच के प्याले में थूक दिया. इसके बाद कुमार के मुरझाते लंड को नीचे बाल्टी की ओर किया.
“छोटी नानी, मुँह में ले लो न? अभी तो अपने चेहरे पर मसल रही थीं. ताजा माल है, क्यों ठण्डा करोगी?” कहा.
“बिटवा, बहुत चतुर हो गए हो. चलो मुतो मेरे मुँह में और चेहरा भी धो दो अपने अमृत से.” बसंती ने उसकी आँखों में झाँककर कहा.
कुमार मुस्कुराया और अपने लंड से धार छोड़कर पहले बसंती को पिलाया और फिर उसके चेहरे और वक्ष पर भी बौझार कर दी. उसके बाद शेष मात्रा बाल्टी में समर्पित कर दी. वो हटा तो बसंती ने बबिता को खड़ा पाया, जो अपने पैरों पर उछल रही थी.
“क्या दीदी, रुका नहीं जा रहा है क्या?” ये कहते हुए उसने बबिता को अपने सामने खड़ा किया.
“हो जाओ हल्की, दीदी. मुँह में जाये तो ठीक नहीं तो बाल्टी तो है ही.” बसंती ने अपना मुँह बबिता की चूत पर रखने से पहले कहा.
इतनी देर से ठहरी हुई बबिता की चूत से गर्म मूत्र ने बसंती के मुँह में त्याग किया और फिर बसंती ने मुँह हटाकर बाल्टी में गिरने दिया.
“दीदी, सारा पी जाऊँगी तो बाद में तरसूंगी. वैसे कैसी रही चुदाई.”
“मस्त रही, बसंती. अब आगे क्या करना है.”
“अभी बताती हूँ. आप जाकर कुछ विश्राम कर लो.”
बबिता जाकर सुशील के पास बैठ गई और उसके ग्लास से दो घूँट लिए. तभी कुमार उन दोनों के लिए नए ग्लास भर कर ले आया. पूनम और निर्मला एक दूसरे को संतुष्ट कर चुकी थीं और उन्होंने नियम तोड़ दिया था. दोनों बसंती के सामने जा खड़ी हुईं.
“बसंती, हम दोनों ने एक दूसरे का रस पी लिया है. क्या करें?” पूनम ने पूछा.
“दीदी, अब आप दोनों को मुझे भी संतुष्ट करना होगा, एक एक करके. वैसे शालिनी और गीता दीदी भी यही करने वाली हैं. अच्छा होता अगर आप मुँह में रख कर मुझे कुछ दे पातीं, पर कोई बात नहीं है. मैं आपसे अपनी चूत चटवाकर सुख पा लूँगी।” अब तक शालिनी और गीता भी आ चुकी थीं और उसकी बात सुन ली थी.
फिर बसंती बोली, “पर क्या आपके पास मेरे लिए कुछ भी और नहीं है?” ये कहकर उसने मुँह खोलकर उसकी और ऊँगली दिखाई।
पूनम: “क्यों नहीं है, बोल किसका पानी पहले पीना है?”
“जो मेरी चूत पहले चाटेगा.”
इसमें किसी को कोई समस्या न थी. तो पूनम ने ही पहले हाथ खड़ा कर दिया. उसने बसंती के सामने आसन जमाया और उसकी चूत को चाटने लगी. कुछ पलों में ही बसंती का प्रेमरस पूनम के मुँह में भर गया. उसके बाद बसंती ने पूनम को दूसरी कुर्सी पर बैठाया और उसकी चूत को चाटने लगी. कुछ ही परिश्रम किया होगा कि पूनम ने उसके मुँह में अपनी आहुति दे दी. बसंती ने फिर कुछ पिया कुछ बाल्टी में थूक दिया. पूनम खड़ी हुई और जाकर अपने पति के साथ बैठ गई जहाँ उसका पेग रखा हुआ था.
“अभी आप तीनों जाओ. मेरे पेट में अब बिलकुल स्थान नहीं है.” बसंती ने कहा तो गीता, निर्मला और शालिनी भी जाकर अपने पतियों के साथ बैठ गयीं.
उधर बसंती ने बबिता की अगली चुदाई की व्यवस्था के लिए चिंतन आरम्भ किया. उसने कुछ परिवर्तन करने का निर्णय भी लिया.
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क्रमशः
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Nice update.....अध्याय ७०: जीवन के गाँव में शालिनी ७
अध्याय ६९ से आगे
अब तक:
आज रात से गैंगबैंग की शृंखला का भी आरम्भ होना था. गैंगबैंग प्राप्तकर्ता भाग्यशाली स्त्री कौन होगी, उसका नाम एक गुप्त पर्ची में निकालकर एक ओर रख दिया गया.
जीवन और बसंती ने शालिनी को मूत्रक्रीड़ा से परिचित करवाया. शालिनी की विरूचि ने देखकर जीवन और उनकी मित्र मंडली को संतोष हुआ. गीता को अपनी मंडली में सर्वप्रथम गाँड में दो लौड़े लेना का सुख और यश प्राप्त हुआ. पाँचों मित्र अब शालिनी की चुदाई कर चुके थे. असीम और कुमार उसे बाद में चोदने वाले थे. बंसती की गाँड मारकर जीवन ने उसकी जलन शांत की. विश्राम के पहले आज रात्रि की गैंगबैंग की महिला का नाम जानने की इच्छा सबके मन में थी.
गीता जाकर वो पर्ची लाई और बसंती को थमा दी. “तू ही बता.”
बसंती ने पर्ची खोली और उत्सुक समूह को बताया.
“आज की रानी का नाम है.....”
अब आगे:
बसंती सबके चेहरों को देख रही थी. उन चेहरों की उत्सुक्ता उसे एक शक्ति का आभास दिला रही थी मानो उसके हाथों में कोई लॉटरी हो. आज रात्रि की तीन प्रत्याशी स्त्रियों के चेहरे पर सबसे अधिक व्यग्रता थी. उसने उन तीनों को फिर से देखा.
“और आज की रानी का नाम है… बबिता!”
और इस घोषणा के साथ बबिता को पूनम और निर्मला ने बाँहों में भर लिया और उसे चूमने लगीं. ये दृश्य उस दृश्य के समकक्ष था जिसमें विश्वसुंदरी इत्यादि का चयन होता है और उसे हारने वाली लड़कियाँ बधाई देती हैं. उनके हटते ही गीता, शालिनी ने उसे चूमा और फिर बसंती ने भी यही किया. बबिता के पति ने आकर अपनी पत्नी को बाँहों में लिया और उसे चूमकर बधाई दी. फिर घोषणा की.
“मित्रों, अब बबिता को विश्राम की आवश्यकता है. तो मैं उसे कमरे में ले जा रहा हूँ. आप सब भी जाकर विश्राम कीजिये और अपना इन्जन में ईंधन भरिये.”
गीता बोली: “और एक बात मैं बता देती हूँ. मेरी छोटी बहन बसंती इसका निर्देशन करेगी. हमें इसका पेट भी भरा रखना होगा. कार्यक्रम आरम्भ होने के बाद हर प्रकार के रस पर केवल बसंती का ही अधिकार होगा. मेरी प्यारी बहन बहुत प्यासी रहती है, तो हम सब इसे ही अपना रस इत्यादि पिलायेंगे। ये वैसे भी हमारी परम्परा है. जब भी हम ऐसा कोई कार्यक्रम करते हैं और वो उपस्थित होती है, तब उसे ही इसका अधिकार मिलता है. इसकी आज्ञा मानना बबिता और सब पुरुषों का कर्तव्य होगा. अगर किसी को कोई समस्या है तो अभी बता दे.”
अब इसमें क्या समस्या हो सकती थी. सबने स्वीकृति दी और अपने जोड़ों में कमरों में चले गए. असीम और कुमार अपने कमरे में चले गए और बसंती को जीवन अपने और शालिनी के साथ ले गया.
बबिता का मन धकधक कर रहा था.
बबिता: “अब मैं थोड़ी देर सो लेती हूँ. उसे बाद तो आप सब मुझे गुड़िया के समान मरोड़ोगे.”
कँवल: “अगर तेरा मन नहीं है तो किसी और को आज के लिए कह देते हैं.”
बबिता: “नहीं, नहीं! ऐसा मत करना. मैं तो इसके लिए बड़ी लालायित हूँ. बहुत आनंद आता है आप सबके बीच में पिसने में.”
कँवल: “चल थोड़ा विश्राम कर ले, मैं तेरी हल्की मालिश कर देता हूँ. तुझे इसका लाभ मिलेगा.”
ये कहते हुए कँवल ने बबिता को लिटाया और उसके हाथ, पैर और कमर इत्यादि को दबाने लगा. बबिता उसके प्रयासों से कुछ ही पलों में सो गई. कंवल ने उसे बाँहों में लिया और उसके साथ लेट गया और वो भी सो गया.
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शालिनी के साथ जीवन अपने कमरे में गया तो बसंती भी साथ थी. बसंती ने शालिनी के चेहरे को अपने हाथों में लिया.
बसंती: “बाबूजी ने हीरा चुना है, बहूरानी। आप सच में अद्वितीय हो.”
शालिनी: “तू मुझे बहूरानी क्यों कहती है, सबको तो दीदी बुलाती है. मुझे भी दीदी ही बुलाया कर, मुझे अच्छा लगेगा.”
बसंती: “ठीक है, दीदी.” फिर कुछ सोचकर, “आपको मेरे रूचि से घृणा तो नहीं है न दीदी?”
शालिनी: “नहीं. मैं समझ सकती हूँ. इनके साथ इतने ही दिनों में मैंने ये सीख लिया है कि रतिसुख के कई आयाम और कोण होते हैं. हमें अपने मन को नए परीक्षण और नई अनुभूतियों का स्वागत करना आना चाहिए. जितनी सरलता से सब एक दूसरे के साथ सहवास करते हैं, न कोई ईर्ष्या, न कोई क्रोध, ये सीखने और भोगने का आनंद लेना चाहिए.”
बसंती ने अब डरते हुए पूछा, “तो क्या आप बाबूजी आपके साथ वो सब खेल खेलना चाहें तो आप उनका साथ दोगी?”
शालिनी सोच में पड़ गई. फिर उसने बसंती को देखकर कहा, “क्या तुम मुझे सिखाओगी?”
बसंती की आँखें खुली रह गईं. उसने जीवन की ओर देखा जो इन बातों से अनिभज्ञ अपने लिए पेग बना रहा था.
“आइये मेरे साथ.” बसंती बोली और वो दोनों उस कमरे के बाथरूम में चली गईं.
जीवन ने अनुमान लगाया कि बसंती की प्यास फिर भड़क गई होगी. उसे ये सोचकर सांत्वना मिली कि उसने शालिनी को चुना और शालिनी ने भी प्रतिरोध नहीं किया. बाथरूम में जाकर बसंती ने शालिनी को देखा.
“क्या करें दीदी?”
“पहले मैं तुम्हें पिलाती हूँ, फिर मैं प्रयास करुँगी. ठीक है न?”
बसंती ने शालिनी को कमोड पर बैठाया और उसके सामने आकर बैठ गई और उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. शालिनी ने स्वयं को संतुलित किया. वो एक नया शिखर पार करने जा रही थी. और वो भी उनके घर की नौकरानी की माँ के साथ. उसे न जाने क्यों इस विचार से कोई क्षोभ नहीं हुआ. उसने देखा था कि सभी मित्र बसंती का सम्मान करते हैं और उसे किसी भी रूप में कम नहीं आँकते। उसने शरीर को ढीला छोड़ा और अपने मूत्र पात्र बसंती के मुँह में करना आरम्भ किया. उसने बसंती की जीभ और होठों के संचालन पर भी ध्यान दिया कि किस प्रकार से वो इस जल का सेवन कर रही थी. उसे कुछ नया सीखने को मिल गया.
जब शालिनी ने अपना कार्य समाप्त किया तो उसने बसंती को उसकी चूत को अंदर और बाहर चाटकर शेष जल को चाटते हुए पाया. सम्भवतः ये भी इस अनुभव की एक शिक्षा थी. बसंती उठ गई और उसने शालिनी को देखते हुए अपने होंठों को चाटा।
“दीदी, आप सच में बहुत मीठी हो.”
शालिनी अब सोच में पड़ गई. क्या वो आगे बढ़े? फिर उसने निर्णय लेते हुए बसंती का हाथ पकड़ा और खड़ी हो गई.
“मैं भी तो देखूँ ये (जीवन) तेरे पानी के लिए इतने अधीर क्यों रहते हैं. अब बैठ.”
बसंती का रोम रोम सिहर उठा. आज जीवन के अतिरिक्त कोई और उसका मूत्र पान करने वाला था. आज उसके बाबूजी का एकमेव अधिकार समाप्त होने जा रहा था. चाहे ये एकमात्र अवसर क्यों न हो, पर इसका वो अनुभव करना चाहती थी. कमोड पर बैठकर उसने अपने पैरों को फैलाया और शालिनी ने उसके सामने स्थान लेकर उसका अनुशरण करते हुए बसंती की चूत पर अपना मुँह लगा लिया.
“दीदी, जीभ नीचे रखना, नहीं तो बाहर अधिक गिरेगा.”
शालिनी ने यही किया और बसंती ने उसके सिर पर हाथ लगाया.
“गट गट करके पीती रहना, दीदी. मैं रुक रुक कर पिलाऊँगी।”
शालिनी ने सिर हिलाया और जीवन के नए स्वाद और अनुभव की प्रतीक्षा करने लगी.
बसंती ने हल्के दबाव के साथ शालिनी के मुँह में मूत्र त्यागना आरम्भ किया. उसने एक सीमित मात्रा में ही दबाव डाला. इसका परिणाम ये हुआ कि जो मात्रा उसने छोड़ी उसे पीने में शालिनी को कोई दुविधा नहीं हुई. बसंती के लिए एक कठिन नियंत्रण का कार्य था, परन्तु वो जीवन की भावी पत्नी के लिए इस कष्ट को भी झेलने के लिए तत्पर थी. शालिनी बसंती के कहे अनुसार गट गट करते हुए पीती रही. कुछ घूँटों के उपरांत ही उसे मूत्र की गंध का आभास हुआ. परन्तु वो रुकी नहीं.
एक नया ही स्वाद था. गंध अवश्य चिर परिचित थी, पर स्वाद में अनूठापन था. बसंती ने पर्याप्त समय लेते हुए शालिनी को अपना पूरा जल भेंट कर दिया. फिर उसके सिर पर हाथ घुमाया.
“मैं निपट गई दीदी.”
शालिनी ने बसंती का अनुशरण करते हुए उसकी चूत को चारों ओर से चाटा और अंदर जीभ डालकर भी कुरेदा. फिर उसने अपना मुँह हटा लिया और बसंती की ओर देखने लगी. बसंती के मुँह पर एक मुस्कान थी.
“कैसा लगा दीदी?”
“हम्म्म, ऐसा कुछ विशेष नहीं. हाँ, गंध ने अवश्य कुछ क्षणों के लिए विचलित किया था.” फिर रुककर बोली, “पर स्वाद अनूठा था. लुक मीठा, कुछ कसैला, कुछ न समझ आने वाला.”
“हाँ दीदी, यही बात है. आप दिन के भिन्न भिन्न समय पियोगी तो और भी विविधता पाओगी. चुदने से पहले और चुदने के बाद में भी बहुत अंतर होता है. और यही चोदने के पहले और चोदने के बाद भी होता है.”
“अच्छा! तब तो मुझे एक बार सब का स्वाद लेना चाहिए.” शालिनी ने नटखट स्वर में कहा तो बसंती खिलखिला उठी.
“दीदी, मुझे लगता है कि आप बाबूजी को बहुत प्रसन्न रखेंगी. वैसे बाबूजी, इसे मदिरा में मिलाकर भी पीते हैं. मैं तो पीती नहीं, सो जानती भी नहीं. पर कहते हैं कि मेरे मूत्र से बने पेग में नशा कई गुना अधिक होता है.”
“अच्छा जी. ऐसे हैं तेरे बाबूजी. उनका स्वाद कैसा है?”
“अरे दीदी, पूछ क्या रही ही, हाथ कंगन को आरसी क्या? अभी बुलाकर देख लो और ले लो स्वाद!”
“हम्म्म, ठीक है. बुला अपने बाबूजी को.”
शालिनी बोली तो बसंती लपककर कमरे में गई और कुछ ही पलों में जीवन को ले आई. जीवन ने शालिनी को नीचे बैठे देखा तो अचम्भित हो गया.
बसंती ने उसका लंड अपने हाथ में लिया और बोली, “दीदी हमारे खेल में मिलने की इच्छा रखती है. अब बाबूजी, आपके ऊपर है आप क्या चाहते हो?”
जीवन ने शालिनी को देखा, “क्या सच?” ऐसा कहते हुए बसंती ने अपने हाथ में उसके लंड को मचलते हुए अनुभव किया. शालिनी ने मात्र सिर हिलाकर स्वीकृति दी.
बंसती ने जीवन का लंड पकड़कर उसे शालिनी की मुँह की ओर इंगित किया.
“बाबूजी, अब अपनी दुल्हन को अपना पानी पिलाकर अपना बना लो.”
शालिनी ने मुँह खोला और जीवन के लंड से मूत्र की धार उसके मुँह में समाने लगी. बसंती के सिखाये अनुसार शालिनी बिना रुके गट गट करते हुए पीने लगी. पंरतु जीवन का स्त्राव अधिक था और उसके मुँह से बाहर गिरने लगा. शालिनी इसकी चिंता किया बिना अपना कार्य करती रही. जब जीवन का बहाव समाप्त हुआ तो उसने स्वाद और गंध का आभास किया. बसंती ने जीवन का लंड छोड़ा और शालिनी के शरीर से बहते हुए मूत्र को चाटने लगी. फिर उसने अपने होंठ शालिनी से जोड़े और दोनों एक दूसरे को चूमने लगीं.
जीवन उन दोनों को देखकर आश्वस्त हो गया कि अब कोई दुविधा नहीं है. उसके मन से एक बड़ा बोझ उतर गया. बसंती ने जीवन को देखा।
“बाबूजी, दीदी की टंकी अभी खाली है. मैं तो कहूँगी कि इसमें पैट्रोल डालकर आप भी स्वाद ले लो. बड़ा मीठा पानी है आपकी दुल्हनिया का. मैं तो अब जब तक साथ रहूँगी दिन में एक बार तो अवश्य पियूँगी.”
शालिनी लजा गई.
“तेरा भी बड़ा मीठा था, बसंती. अच्छा लगा था मुझे.”
ये सुनकर जीवन अचरज में पड़ गया. उसने सोचा था कि बसंती ने शालिनी को पहला पानी उसका पिलाया था, पर शालिनी पहले ही बसंती को चख चुकी थी. बसंती समझ गई.
“बाबूजी. पिलाया चाहे पहले मैंने हो, पर नहलाना पहले आप ही.”
जीवन मुस्कुराया, “ठीक है. पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है अगर तूने पहल की तो. पर अब कुछ समय विश्राम कर लेते हैं. फिर बहुत व्यस्त हो जायेंगे.”
हल्के स्नान के बाद बसंती और शालिनी जाकर पलंग पर जीवन के साथ लेट गए और कुछ ही पलों में सो गए और लगभग एक घंटे बाद ही उठे. सबसे पहले बसंती की ही नींद टूटी. वो बैठकर जीवन और शालिनी को सोते हुए देख रही थी. उसे दोनों की जोड़ी बहुत प्यारी लग रही थी. और अगर कोई शंका थी तो वो भी कुछ समय पहले दूर हो चुकी थी. शालिनी की आँख खुली तो उसने बसंती को उसे निहारते हुए देखा और मूक प्रश्न किया.
“आप सच में बहुत सुंदर हो दीदी. बाबूजी बहुत भाग्यशाली हैं.” फिर कुछ सोचकर, “आप भी कम नहीं हो जो आपको उनके जैसा पुरुष मिला है. आप दोनों इस संतुलन को बिगड़ने मत देना.”
शालिनी उठी तो जीवन ने भी आँख खोली, “तुम सच कह रही हो बसंती, हमें एक दूसरे को पाने में एक लम्बा समय लगा, पर अब एक दूसरे को खोना नहीं चाहेंगे. और सच कहूं तो मैं तुझे भी नहीं खोना चाहता. मेरे मन में तेरा बहुत बड़ा स्थान है. अगर भूरा न होता तो मैं तुझे अपना लेता.”
“बाबूजी, मैं तो सदा आपकी रहूँगी, भूरा बस अपनी लत छोड़ दे तो मैं उसे अपने साथ लेकर आपके ही पास चली आऊँगी। अपने वचन दिया है उसके व्यसन छुड़ाने का,उसका पालन करना, बस यही चाहती हूँ.”
“चिंता न कर, घर लौटकर मैं उस क्लिनिक में बात करूँगा, भूरा के लिए. उसके उपचार में समय लगेगा, छह माह लग सकते हैं. उस पूरे समय वो वहीँ रहेगा. पर जब लौटेगा तब तेरी दूसरी सुहागरात मनाने का उत्सव मनाएँगे।”
बसंती की आँखों से आँसू बह निकले. फिर उसने स्वयं को संयत किया.
“बाबूजी, अब हमें चलना चाहिए. पर उसके पहले आप दीदी का भी स्वाद ले लो.”
जीवन ने शालिनी को देखा और उसे चलने का संकेत किया. बाथरूम में जाकर शालिनी कमोड पर बैठी और जीवन को अपना मूत्र पान करवाया. उसके बाद जीवन और शालिनी बाहर आये और बसंती के चल पड़े.
जीवन: “बसंती, तूने सच कहा था. बहुत मीठा है शालिनी का पानी. अब तो उसके बिना जीना कठिन होगा.”
“बाबूजी, आपने सच कहा. पर अब बबिता दीदी की ओर ध्यान दो.”
सामने बबिता कँवल के साथ खड़ी थी. उसने एक साड़ी पहनी थी, जो बस उसके शरीर से लिपटी हुई थी. अन्यथा कोई और वस्त्र नहीं था. जीवन को देखकर वो लजा गई. बसंती और शालिनी जाकर उससे मिलीं और तब तक अन्य सब भी कमरे में आ गए.
“पहले दो पेग और भोजन हो जाये, फिर कुछ और.” ये कहते हुए कंवल ने असीम को संकेत किया.
बबिता को छोड़कर अन्य स्त्रियाँ रसोई में चली गयीं और अल्पाहार और भोजन का प्रबंध करने लगीं. आधे ही घंटे में सब कुछ निपट गया. अल्पाहार लेकर आयीं और असीम ने पेग बनाये. बबिता पुरुषों को उनके पेग देने लगी. हर पेग से एक घूँट लेकर वो ग्लास थमा रही थी. ग्लास लेकर कोई उसके मम्मे दबाता तो कोई गाँड। पेग बाँटने के बाद उसने भी अपना पेग लिया और अन्य सखियों के साथ बैठकर पीने लगी.
कुछ ही देर में भोजन लगा दिया गया और सबने अपने मन के अनुसार खाया. खाना कम खाने पर अधिक ध्यान रखा गया जिससे कि अनावश्यक सुस्ती या अन्य समस्याएं न आएं. मदिरा की बोतलें सजा दी गयीं, भोजन को ढक दिया गया जिससे कि विश्राम के समय अगर मन करे तो और खाया जा सके. अल्पाहार अधिक मात्रा में रखा गया था. भोजन के उपरांत सभी प्रबंध पूरे करने में लगभग और आधे घण्टे का समय लगा. इस पूरे समय वातावरण पूर्ण रूप से सहज और सामान्य था. कोई विश्वास ही नहीं कर सकता था कि कुछ ही देर में यहाँ वासना का ऐसा वीभत्स खेल होना है जिसे देखकर निर्बल मन के व्यक्ति की आत्मा काँप जाएगी.
बसंती अपने निर्देशक की भूमिका के लिए उचित स्थान पर बैठ कर सभी गतिविधियों को संचालित कर रही थी. किसी के मन में उसके प्रति कोई द्वेष न था और सब उसके निर्देशों का पालन कर रहे थे. पलंग के निकट ही धुली हुई चादरें और कई सारे तौलिये रख दिए गए थे. गीता ने बसंती को उसके द्वारा कई बार उपयोग किया हुआ कांच का एक बड़ा प्याला दिया जिसे बसंती ने अपने निकट रख लिया. और एक बाल्टी नीचे रख दी गई.
बसंती को बैठने के लिए एक प्लास्टिक की कुर्सी दी गई थी और उसके नीचे भी प्लास्टिक की चादर फैला दी गई थी. एक और प्लास्टिक की कुर्सी उसके पास रख दी गई. कई सारे पुराने कपड़ों से नीचे बिछी प्लास्टिक के चारों ओर एक मेढ़ बना दी गई जिससे कि कोई भी पानी बाहर न बहे. फिर उसके बाहर द्वार पर लगने वाली कपड़े की चटाइयाँ लगा दी गयीं. उसके साथ ही कई सारे पोंछने के कपड़े भी उसे दे दिए गए थे.
शालिनी ये सब देखकर स्तब्ध थी. इसका यही अर्थ था कि ये एक नियमित प्रक्रिया थी जिसका इतनी कुशलता से प्रबंध किया गया था. अब रंगमंच नए खेल के लिए व्यवस्थित हो चुका था. किसी भी समय पहले गैंगबैंग का शुभारम्भ हो सकता था. कँवल ने उसके पास आकर उसे कुछ समझाया और चला गया. बसंती ने बबिता को देखा जिसकी आँखों में उल्लास और कामोन्माद की चमक थी. बसंती ने सबको अपने स्थानों पर बैठने का आदेश दिया, जिसका तुरंत पालन हुआ.
फिर उसने बबिता को खड़े होकर अपनी साड़ी निकालने का आदेश दिया. एक नौकरानी की माँ इतने बलशाली पुरुषों और प्रभावी महिलाओं को जिस प्रकार से आदेश दे रही थी वो दर्शनीय था. सम्भवतः जीवन से उसकी निकटता के कारण उसे ये अधिकार मिला था.
“दीदी, आज आपका गैंगबैंग होने वाला है. इसकी आपको बधाई हो. मैं आशा करती हूँ कि आपको इस चुदाई में असीम आनंद की प्राप्ति हो. इसके साथ ही आपको ये भी चेता दूँ कि हर बार के समान आपका सुरक्षा शब्द सरला होगा.”
शालिनी चौंकी क्योंकि ये तो जीवन की दिवंगत पत्नी का नाम था. पर उसे तुरंत इसका आशय समझ आ गया. उसने जीवन को देखा जिसका सिर झुका हुआ था.
“मेरे पीछे लगी तख्ती पर आपके नाम और नंबर लिखे हैं. ये वही नम्बर होते पर असीम और कुमार के आने से कुछ अंतर है.” उसने पीछे संकेत किया.
तख्ती पर लिखे हुए नाम और नंबर दिखने के लिए.
१ असीम
२ बलवंत
३ जस्सी
४ जीवन
५ कँवल
६ कुमार
७ सुशील
“तो मैं स्थिति के अनुरूप एक दो या तीन नंबर पुकारूँगी। मैं उन्हें बताऊंगी कि उन्हें बबिता दीदी को कैसे और कहाँ चोदना है. ये हमारी परम्परा है तो किसी को कोई शंका नहीं होने चाहिए.”
“और आप सबको, उसने सभी स्त्रियों को देखते हुए कहा, आपके हर स्खलन को इस मुझे ही अर्पण करना होगा. बबिता दीदी को कब क्या मिलेगा इसका निर्णय किसी भी समय मैं तत्काल कर सकती हूँ. पर आप जानते ही हो कि मैं कितनी लालची हूँ!” ये कहते हुए वो हंस पड़ी और अन्य सबने उसका साथ दिया.
“तो पहले सुशील भाईसाहब को अपनी पत्नी के मुँह के सहवास का सुख मिलेगा. इसके बाद बलवंत भाईसाहब को चूत और इसके बाद कुमार को गाँड मारने दी जाएगी. इससे आगे इन तीनों के कार्य समाप्ति पर बताऊँगी।”
“तो बबिता दीदी, अब आप आकर इस कुर्सी पर बैठिये.”
बबिता दूसरी कुर्सी पर बैठी और बसंती ने उसके आगे बैठकर अपना मुँह उसकी चूत पर रख दिया और बबिता ने आशानुसार अपना मूत्र का दान बसंती को दिया. बसंती ने उसे धन्यवाद किया और अपनी कुर्सी पर जा बैठी. सुशील आया और उसने बबिता के मुँह में लंड डाला और उसे चोदने लगा. बबिता भी उसका पूरा साथ दे रही थी. जब सुशील झड़ने को आया तो उसने अपना लंड बाहर निकाला और बसंती के काँच के प्याले में वीर्यपात कर दिया. बबिता वहाँ से उठी और पलंग पर जा बैठी. बसंती ने सुशील के लंड को चूमा और लंड को नीचे बाल्टी की ओर किया जिसमें सुशील ने मूत्र विसर्जन कर दिया. गैंगबैंग का आधिकारिक रूप से आरम्भ हो चुका था.
बबिता का गैंगबैंग:
बलवंत अपने लंड को हिलाते हुए बबिता के सामने आ खड़ा हुआ. बबिता नेउसके लंड को मुँह में लेकर कुछ पल चूसा और फिर पलंग पर पैरों को फैलाकर लेट गई. बलवंत ने बबिता को प्रेम से देखा.
“बड़े दिन बाद हाथ आई हो. अब मन भर कर चोदुँगा।”
“किसने रोका है आपको? अब तो वैसे भी कई दिन बाद मिलोगे. कुछ ऐसे चोदो कि कई दिन तक भूलूँ नहीं.”
बलवंत ने अपना लंड चूत के मुहाने पर रखा और बोला, “तब तो इस बार प्यार से चोदता हूँ. जोश वाली चुदाई फिर कर लेंगे.”
ये कहते हुए बबिता और बलवंत की चुदाई का आरम्भ हो गया और ये चुदाई से अधिक प्रेमालाप था. दोनों किसी भी प्रकार की शीघ्रता नहीं दिखा रहे थे. बबिता की बात सुनकर गीता की आँखों में आये आँसू अब सूख गए थे. उसे भी इस बात का दुःख था कि वो अपने घनिष्टतम मित्रों को छोड़कर जाने वाली है. उसे विश्वास था कि जीवन और बलवंत इसका कोई समाधान निकाल लेंगे. उसने जीवन को देखा जो उसे ही देख रहा था. जीवन ने अपना सिर हिलाकर बताया कि वो उसकी भावना समझ गया है. गीता फिर अपने पति को अपनी सखी को चोदते हुए देखने लगी.
इस बीच जीवन उठा और बसंती के पास गया.
“इससे पहले कि कुछ आगे बढ़ें मुझे अपना टॉनिक पिला दे.”
बसंती ने अपने पैर चौड़े किये और जीवन उनके बीच में बैठ गया.
“लो पी लो, बाबूजी. इसके सेवन से आपका लौड़ा रात भर खड़ा रहने वाला है.” बसंती खिलखिलाकर बोली और जीवन के मुँह में मूत्र विसर्जित कर दिया.
अपनी औषधि के सेवन के बाद जीवन उठकर अपने स्थान पर चला गया और वो भी बबिता की चुदाई जो अब कुछ गति पकड़ रही थी और सम्भवतः समापन पर थी, देखने लगा.
जीवन का अनुमान सही था बलवंत ने कुछ धक्के लगाए और फिर अपना लंड बाहर निकाल लिया. बबिता के रस से मिश्रित उसके अपने रस से चमकता गीला लौड़ा लेकर वो निसंकोच बसंती के सामने जा खड़ा हुआ. बसंती ने उसका लंड चाटा और चूसने लगी. बलवंत तो झड़ने वाला ही था अधिक न रुक सका और बसंती के मुँह में झड़ गया. बसंती ने कुछ तो गटक लिया, पर फिर काँच के प्याले में थूक दिया. फिर उसने बलवंत की मुठ मारकर शेष रस को प्याले में गिरा दिया.
इसके बाद उसने बलवंत के लंड को अपने मुँह के आगे किया और मुँह खोल लिया. बलवंत के लिए ये समुचित संकेत था. उसने बसंती के मुँह में मूतना आरम्भ किया. कुछ पीने के बाद बसंती ने नीचे की ओर आँखें कीं तो बलवंत ने अपनी धार रोकी और बाल्टी में सुशील के योगदान में अपना अंश जोड़ दिया. बसंती ने उसे मुस्कुराकर देखा और एक ओर जाकर बैठे के लिए कहा. अब बलवंत को लगभग एक से डेढ़ घंटे का अंतराल मिला था. उसने अपने लिए एक पेग बनाया और चुस्कियाँ लेते हुए कुमार को देखने लगा जिसका लंड अब बबिता के मुँह में था.
बलवंत की चुदाई के बाद बबिता को पाँच मिनट का विश्राम दिया गया था. और जब तक बलवंत बसंती के मुँह में झड़ा तब तक कुमार बबिता के पास पहुँच कर उससे अपना लौड़ा चुसवा रहा था. उसके लंड को मुँह से निकालकर बबिता ने घोड़ी का आसन लिया और कुमार ने उसकी गाँड में घी डालकर उसे चिकना कर दिया. फिर उसने कुछ घी अपने लौड़े पर भी लगाया. उसे गाँव प्राकृतिक चिकनाई अच्छी लग रही थी, अन्यथा नगर में अधिकतर जैल का उपयोग करना का चलन हो चुका था.
“नानी, प्यार से मारूँ या जोर से?” कुमार लंड गाँड के छेद हुए पूछा.
“बिटवा, पूछ कर क्यों मूरख बना रहा है. तुझे जानती हूँ, तू गाँड अपने दादा के समान ही मारेगा. तो पूछ कर बुढ़िया को बहला मत और मार मेरी गाँड।” बबिता ने कहा तो कुमार ने एक धक्के के साथ आधा लौड़ा गाँड में पेल दिया. अगले दो धक्कों में पूरा लंड बबिता की गाँड में जड़ दिया. दोनों साँस लेने के लिए रुके फिर एक मंथर गति से कुमार बबिता की गाँड मारने लगा.
गीता ने शालिनी को देखा जिसकी आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे. वो उसके सामने जा बैठी और पैरों को खोलकर उसकी चूत चाटने लगी. उनकी देखा देखी पूनम ने निर्मला को लिटाया और दोनों एक दूसरे की चूत का आनंद लेने लगीं. कुछ ही पलों बाद शालिनी ने भी यही इच्छा जताई तो शालिनी और गीता भी एक दूसरे की चूत चाटकर सुख पाने में जुट गयीं.
बसंती अपनी चूत को उँगलियों से ही सहला रही थी. अपने शरीर की बढ़ती प्यास को शांत करने के लिए उसने बाल्टी में से एक कटोरी मूत्र लिया और काँच के प्याले में उड़ेलकर पी गई. फिर उसने अपने स्तनों पर भी कुछ मात्रा रगड़ ली. और अंत में चेहरे पर थोड़ा सा लेप कर लिया. उसकी आग शांत न होकर और भड़क गई. पर अब उसे चारों स्त्रियों या कुमार के झड़ने तक रुकना था. वो आशा से कुमार के सशक्त धक्कों से बबिता की गाँड की नली की सफाई होते हुए देखने लगी.
बबिता की गाँड मारते हुए कुमार कोई दया नहीं दिखा रहा था. बबिता भी आज पूरी रात इसी प्रकार की चुदाई की अपेक्षा कर रही थी. उनकी मंडली में गैंगबैंग अब बहुत विरले हो गए थे. और उसे आज की गैंगबैंग रानी बनने का जो अवसर मिला था वो अब कब दोहराया जायेगा इसका कोई अनुमान नहीं था. अपनी गाँड में कुमार के लौड़े के शक्तिशाली धक्के उसे असीम सुख प्रदान कर रहे थे. असीम और कुमार दोनों अपने दादा जीवन की शक्ति और निर्ममता को विरासत में पाए थे. उनके पिता आशीष अपेक्षाकृत कम निर्दयी थे,पर आशीष की कला अनूठी थी. गाँड में चलते मोटे लम्बे लौड़े के आभास से बबिता की चूत से पानी बहने लगा था.
लगभग गाँड की दस मिनट तक भीषण चुदाई करने के बाद कुमार ने कहा कि अब उसे छोटी नानी के पास जाना होगा. बबिता इसका अभिप्राय समझ कर फिर से झड़ गई. और कुमार ने अपना लंड उसकी गाँड से बाहर निकाल लिया. बबिता कुछ समय इसी स्थित में रही पर उसे भी बसंती के पास जाने की आवश्यकता का आभास हुआ. उसने देखा तो बसंती कुमार के लंड को बड़े प्रेम से चूस रही थी. उसे इस तथ्य से कोई संकोच नहीं था कि वो लंड अभी बबिता की गाँड की गहराइयों को खँगाल कर आया है.
कुमार चूँकि झड़ने के समय ही बसंती के पास गया था तो बसंती के लंड चूसने के कुछ ही पलों में उसने बसंती ने मुँह में अपना रस छोड़ दिया. बसंती ने पहले कुछ पिया और फिर मुँह में भर लिया और काँच के प्याले में थूक दिया. इसके बाद कुमार के मुरझाते लंड को नीचे बाल्टी की ओर किया.
“छोटी नानी, मुँह में ले लो न? अभी तो अपने चेहरे पर मसल रही थीं. ताजा माल है, क्यों ठण्डा करोगी?” कहा.
“बिटवा, बहुत चतुर हो गए हो. चलो मुतो मेरे मुँह में और चेहरा भी धो दो अपने अमृत से.” बसंती ने उसकी आँखों में झाँककर कहा.
कुमार मुस्कुराया और अपने लंड से धार छोड़कर पहले बसंती को पिलाया और फिर उसके चेहरे और वक्ष पर भी बौझार कर दी. उसके बाद शेष मात्रा बाल्टी में समर्पित कर दी. वो हटा तो बसंती ने बबिता को खड़ा पाया, जो अपने पैरों पर उछल रही थी.
“क्या दीदी, रुका नहीं जा रहा है क्या?” ये कहते हुए उसने बबिता को अपने सामने खड़ा किया.
“हो जाओ हल्की, दीदी. मुँह में जाये तो ठीक नहीं तो बाल्टी तो है ही.” बसंती ने अपना मुँह बबिता की चूत पर रखने से पहले कहा.
इतनी देर से ठहरी हुई बबिता की चूत से गर्म मूत्र ने बसंती के मुँह में त्याग किया और फिर बसंती ने मुँह हटाकर बाल्टी में गिरने दिया.
“दीदी, सारा पी जाऊँगी तो बाद में तरसूंगी. वैसे कैसी रही चुदाई.”
“मस्त रही, बसंती. अब आगे क्या करना है.”
“अभी बताती हूँ. आप जाकर कुछ विश्राम कर लो.”
बबिता जाकर सुशील के पास बैठ गई और उसके ग्लास से दो घूँट लिए. तभी कुमार उन दोनों के लिए नए ग्लास भर कर ले आया. पूनम और निर्मला एक दूसरे को संतुष्ट कर चुकी थीं और उन्होंने नियम तोड़ दिया था. दोनों बसंती के सामने जा खड़ी हुईं.
“बसंती, हम दोनों ने एक दूसरे का रस पी लिया है. क्या करें?” पूनम ने पूछा.
“दीदी, अब आप दोनों को मुझे भी संतुष्ट करना होगा, एक एक करके. वैसे शालिनी और गीता दीदी भी यही करने वाली हैं. अच्छा होता अगर आप मुँह में रख कर मुझे कुछ दे पातीं, पर कोई बात नहीं है. मैं आपसे अपनी चूत चटवाकर सुख पा लूँगी।” अब तक शालिनी और गीता भी आ चुकी थीं और उसकी बात सुन ली थी.
फिर बसंती बोली, “पर क्या आपके पास मेरे लिए कुछ भी और नहीं है?” ये कहकर उसने मुँह खोलकर उसकी और ऊँगली दिखाई।
पूनम: “क्यों नहीं है, बोल किसका पानी पहले पीना है?”
“जो मेरी चूत पहले चाटेगा.”
इसमें किसी को कोई समस्या न थी. तो पूनम ने ही पहले हाथ खड़ा कर दिया. उसने बसंती के सामने आसन जमाया और उसकी चूत को चाटने लगी. कुछ पलों में ही बसंती का प्रेमरस पूनम के मुँह में भर गया. उसके बाद बसंती ने पूनम को दूसरी कुर्सी पर बैठाया और उसकी चूत को चाटने लगी. कुछ ही परिश्रम किया होगा कि पूनम ने उसके मुँह में अपनी आहुति दे दी. बसंती ने फिर कुछ पिया कुछ बाल्टी में थूक दिया. पूनम खड़ी हुई और जाकर अपने पति के साथ बैठ गई जहाँ उसका पेग रखा हुआ था.
“अभी आप तीनों जाओ. मेरे पेट में अब बिलकुल स्थान नहीं है.” बसंती ने कहा तो गीता, निर्मला और शालिनी भी जाकर अपने पतियों के साथ बैठ गयीं.
उधर बसंती ने बबिता की अगली चुदाई की व्यवस्था के लिए चिंतन आरम्भ किया. उसने कुछ परिवर्तन करने का निर्णय भी लिया.
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क्रमशः
1606700
Wonderful erotic update.Super update bhai...the length of the update justifies you taking so much time...it takes a hell lot of effort to come up with such a sexy update...
jo log story likh nahi sakte...hamesha kehte rahenge..."agla update", etc...but quality updates takes a lot of time and as Komal Madam said on my thread, "Large Size Matters" . Great going!!
Btw, i hope just as you said yesterday..you'll post the remaining part today
prkin
Excellent update. yes, Golden Shower is not everybody's cup of tea (pun intended) but readers have been warned. And there is a thematic unity, the thread follows a pattern of a family enjoying kinks. and it has been shown here too. It has been a long wait for the update but the size of the update, events and actions are worth the wait. Very well written.
Awesome super duper gazab sexiest gyanvardhak update