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Incest कैसे कैसे परिवार

prkin

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अध्याय ७१: जीवन के गाँव में शालिनी ८
अध्याय ७० से आगे

अब आगे:

“आप सब मेरी बात सुनिए.” उसने पुकारा.

सब उसकी ओर देखने लगे.

“मेरा ये सोचना है कि अगली चुदाई में तीन के स्थान पर दो ही पुरुष रहेंगे. चूँकि मुँह चोदने वाला बबिता दीदी के मुँह में झड़ नहीं सकता तो इसका कोई अर्थ नहीं है. इसीलिए पहले असीम दीदी को चोदेगा, फिर जस्सी भाईसाहब उनकी गाँड मारेंगे। उसके बाद बाबूजी चोदें और कँवल भाईसाहब गाँड मारें. ये लगातार किया जा सकता है. अभी भी एक के बाद एक ही चोदेगा. क्या विचार है?”

“ठीक है. वैसे भी तेरे मुँह में झड़ने से अच्छा कुछ और छोड़ना है.” जीवन हँसते हुए बोला.

“बाबूजी, अधिक चतुर न बने, नहीं तो आज एक बूँद न छोड़ने दूँगी अपने मुँह में.” बसंती ने झूठा क्रोध दिखाया.

जीवन हँसते हुए बोला, “ठीक है मेरी रानी, तुझसे कैसे तर्क करूँगा, पक्का हार जाऊँगा।”

“अच्छा है इतनी सरलता से समझ गए.” ये कहकर उसने अपनी जीभ होंठों पर घुमाई. “तो अगला चरण आरम्भ हो, असीम बेटा चल अपनी नानी की चूत अब तक तरसने लगी होगी. उसके बाद मेरे ही पास आना.”

“जी छोटी नानी.” असीम ने सुशील की आज्ञा ली और फिर बबिता का हाथ लेकर पलंग की ओर चल दिया.

“मुझे प्यास लगी है, दीदी. आपमें से कौन आएगा? पहले मेरी चूत चाटनी होगी.”

निर्मला और शालिनी खड़ी हुईं पर शालिनी बैठ गई. निर्मला बसंती की चूत को चाटकर उसे झड़ाने में सफल हुई और फिर दूसरी कुर्सी पर बैठकर बसंती के मुँह में मूत्रदान किया. बसंती ने फिर कुछ बाल्टी में बचा लिया. निर्मला अपने स्थान पर आ बैठी। अब सबकी आँखें उस पलंग पर थीं जहाँ असीम ने अपने लौड़े को बबिता की चूत में धकेलना आरम्भ किया था. कुछ ही पलों में उसका पूरा लौड़ा बबिता की चूत में समा गया धुआँधार चुदाई आरम्भ हो गई. बबिता की चीखों से उसके आनंद का अनुमान मिल रहा था, वहीँ असीम की गुर्राहट उसकी शक्ति का परीक्षण ले रही थी.

पुरुष अपने लंड सहला रहे थे तो स्त्रियों की उँगलियां उनकी चूत को शांति करने का प्रयास कर रही थीं. इस बीच बबिता और असीम ने तीन बार आसन बदले और पंद्रह मिनट की कठोर तपस्या के बाद बबिता को तीन बार झड़ने का सुख प्राप्त हुआ. जब असीम को आभास हुआ कि वो झड़ने वाला है तो उसने अपनी गति कम की और फिर धीमे से अपना लंड बाहर निकाल लिया और फिर उसे लहराते हुए बसंती के पास जा खड़ा हुआ.

“बड़ी मलाई लगाकर लाये हो बिटवा अपनी छोटी नानी के लिए?” बसंती ने ये कहकर उसके लंड को चाटना आरम्भ किया. लंड को चमकाने के बाद उसे चूसने में जुट गई और जब असीम झड़ने लगा तो उसके वीर्य को काँच के प्याले में जोड़ दिया.

“छोटी नानी?”

“का बिटुआ?”

“अभी और कुछ भी है आपके लिए. मुँह तो खोलो.” असीम ने मुस्कुरा कर कहा.

“बड़े नटखट हो गए हो. अपनी छोटी नानी के मुँह में सूसू करना चाहते हो? पर तुम्हें कैसे मना करूँ?” बसंती ने मुँह खोला और असीम ने उसके मुँह में मूत्र त्याग करते हुए अपना कर्तव्य पूर्ण किया. बाल्टी का स्तर और बढ़ गया. असीम के हटते ही बबिता दूसरी कुर्सी पर आ बैठी और बसंती ने पहले उसकी चूत को अंदर से साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का दूसरा योगदान स्वीकारा. फिर उसकी गाँड को चाटकर कुछ चिकना किया।

“जाओ दीदी, अब जस्सी भाईसाहब आपकी गाँड फाड़ने को उतावले हैं.”

“जैसे मैं जानती नहीं.” उसने पलंग की ओर देखा जहाँ जस्सी अपने लंड को मुठिया रहा था. वो इठलाते हुए उसके पास पहुँच गई और घोड़ी बन गई.

जस्सी न जाने कबसे अपने लौड़े को सहलाये जा रहा था और इतना आतुर था कि बबिता के घोड़ी बनते ही उसने सवारी गाँठी और गाँड मारने लगा. बबिता अभी अपने आसन में पूर्ण रूप से स्थापित भी नहीं हो पाई थी कि गाँड में लौड़े ने धुआँधार चुदाई आरम्भ कर दी.

“इतना क्यों बेचैन हो? मैं कहीं भागी जा रही हूँ क्या. थोड़ी साँस तो लेने देते.” बबिता ने उलाहना दी तो जस्सी को अपनी त्रुटि का आभास हुआ. उसने धक्के धीमे किया और नीचे बबिता ने अपना आसन ठीक किया जिससे उसे भी गाँड मरवाने का आनंद प्राप्त हो सके.

बबिता ने पीछे सिर घुमाकर जस्सी को अब अपनी गति से आगे बढ़ने के लिए कहा तो जस्सी फिर से उसी पुरानी गति से उसकी गाँड मारने लगा. बबिता को अपनी गाँड में चलते हथोड़े का आनंद अनुभव होने लगा तो उसकी चूत ने पानी छोड़ा. बबिता ने अपना एक हाथ पीछे करते हुए अपने भग्नाशे को छेड़ा तो ढेर सा रस पलंग पर बिखर गया. उसके काँपते शरीर को जस्सी ने थामा और धक्कों की तीव्रता बढ़ा दी. बबिता ने अपना हाथ आगे करते हुए दोनों कोहनियों का सहारा लिया और जस्सी के धक्कों का साथ देने लगी. दोनों वासना के ज्वर में जल रहे थे और शीघ्र पतन की ओर अग्रसर हो रहे थे.

शालिनी के मन में एक प्रश्न था जिसे उसने जीवन से पूछा, “सभी को बसंती के पास क्यों जाना पड़ रहा है? वो भी तो आ सकती है.”

जीवन: “क्योंकि वो इस पूरे कार्यक्रम की संचालिका है. और उसे अपना स्थान पता है. अगर वो अपने सिहांसन से हटी तो वो जिस प्रकार से मूत्र इत्यादि का सेवन कर रही है उसका स्थान हम सबके मन में नीचा हो जायेगा. और ये हम सबके लिए एक अत्यंत दुःखद अनुभव होगा और इस प्रकार के आयोजन सम्भवतः बंद हो जायेंगे. बसंती को हम अपने परिवार का अभिन्न अंग समझते हैं, और उसकी बेटी का परिवार भी इसी प्रकार से हमारे साथ रहता है. क्या मैंने तुम्हारे प्रश्न का उत्तर ठीक से दिया है.”

“पूर्णतः”

“मुझे अगले चरण के लिए जाना होगा.” जीवन ने कहा.

“क्या मैं बसंती का…”

“ये उससे पूछना, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पर अभी मुझे उसकी आवश्यकता है.”

जीवन उठकर बसंती की ओर चला गया.

“आओ बाबूजी. जस्सी भाईसाहब लगता है आने ही वाले हैं.”

“हाँ, इसीलिए तो आया हूँ तेरा अमृत पीने. फिर बबिता की चुदाई जो करनी है.”

“तो बैठो न.”

जीवन उसके सामने बैठा और उसकी चूत पर मुँह लगाकर चाटने लगा. बसंती ने हल्का दबाव बनाकर उसके मुँह में अपना अमृत रस छोड़ दिया. जीवन अपनी प्यास बुझाकर खड़ा हो गया और घेरे से बाहर चला गया और जस्सी के अंतिम धक्कों को देखने लगा. जस्सी के धक्के धीमे पड़ चुके थे और बबिता की सिसकारियाँ भी मद्धम हो चुकी थीं.

जस्सी ने अपना लंड बबिता की गाँड से निकाला और फिर हिलाते हुए बसंती के पास आ खड़ा हुआ.

जीवन पलंग की ओर जा रहा था और जस्सी और उसने एक दूसरे को पार किया हाथ ऊपर मिलाकर ताली बजाई (इसे हाई फाइव भी कहते हैं) बबिता गहरी साँसे भरते हुए अपनी गाँड को सहला रही थी. बसंती ने जस्सी के लंड को चाटते हुए उसे चमकाया और चूसने लगी. कुछ ही पलों में जस्सी ने अपना वीर्य उसके मुँह में छोड़ा जिसे बसंती ने प्याले में थूक दिया और आना मुँह खोलकर जस्सी को देखने लगी.

जस्सी ने प्रेम से उसके सिर पर हाथ घुमाया और उसके बालों को सहलाते हुए उसके मुँह में अपना मूत्र का दान दे दिया.

बाल्टी में कुछ और मूत्र एकत्रित हो गया. जस्सी जाकर अपने स्थान पर बैठ गया और जीवन ने बबिता को उठाकर बसंती के पास भेज दिया. बबिता दूसरी कुर्सी पर बैठ गई और बसंती ने उसकी गाँड को साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का रस लिया.

“हर बार तुम्हारा स्वाद नया होता है दीदी. अब जाओ बाबूजी आपको चोदने के लिए खड़े हैं.”

बबिता मुस्कुराई और जाकर पलंग पर लेटी और अपने पैरों को चौड़ा करते हुए जीवन को आमंत्रित किया.

“टॉनिक पी कर आये हो तो जम कर चोदना।” बबिता ने गाँड हिलाकर कहा.

“अरे तुम्हें चोदने के लिए कोई टॉनिक नहीं चाहिए. बस थोड़ी प्यास लगी थी.” जीवन ने हँसते हुए बबिता की जाँघ पर चपत मारी।

“मुझसे न बनो भाईसाहब, न जाने आपमें कहाँ की शक्ति आ जाती है बसंती का टॉनिक पीने के बाद.”

जीवन ने अपना लौड़ा बबिता की चूत पर रगड़ा, “इसीलिए तो मैं उसे समझा रहा हूँ कि भूरा को पिलाने लगे तो उसका नशा फुर्र हो जायेगा और लौड़ा भी खड़ा होने लगेगा.”

“सबको लौड़ा खड़ा करने के लिए मूत नहीं पीना पड़ता.” ये बबिता ने जीवन को छेड़ने के लिए कहा था जिससे कि वो उसकी चुदाई में कोई छूट न करे.”

जीवन के चेहरे पर छाती कुटिल मुस्कराहट ने बबिता को बता दिया कि तीर ने लक्ष्य पा लिया है. अब उसकी चूत की जो विकराल चुदाई होगी जिसकी उसे आशा थी.

जीवन ने एक लम्बे धक्के में बबिता की चूत को चीरते हुए अपना लौड़ा अंदर तक गाढ़ दिया. बबिता की ह्रदयविदारक चीख ने कमरे को हिला दिया. सुशील ने अपना सिर पकड़ लिया. वो जानता था कि बबिता ने जीवन को क्यों छेड़ा, पर पति जो था, उसकी चीख से उसका भी मन दहल गया. वहीँ शालिनी की तो मानो साँस ही रुक गई.

गीता ने उसकी जाँघ पर हाथ रखा और बोली, “ये इन दोनों का खेल है. बबिता उन्हें छेड़ देती है और वो उसकी जमकर चुदाई करते हैं. हम तीनों भी कभी कभी ऐसा ही करती हैं. जीवन की पाशविक चुदाई का आनंद ही भिन्न है. बबिता आगे गैंगबैंग में ऐसा कुछ न कर पायेगी, सो उसने अभी उनको छेड़ दिया.”

शालिनी अचरज से जीवन के नितम्बों को चलते हुए देख रही थी. इतनी तीव्र गति थी कि आँखों को कुछ सुझाई न दे रहा था.

जीवन की असीमित शक्ति को देखकर वो हतप्रभ थी. इस प्रकार से कौन चुदाई कर सकता है? बबिता की चीत्कारें धीमी होने का नाम नहीं ले रही थीं, न ही जीवन के मुँह से निकलती हुई गुर्राहट. इस प्रकार की चुदाई न जाने कितनी ही देर तक चलती रही जीवन ने लेशमात्र भी अपनी गति और शक्ति में कमी न की तो शालिनी चीख पड़ी, “अब बस भी करो.”

जीवन उसकी चीख सुनकर कुछ ठिठका फिर उसी गति से कुछ देर तक और बबिता को चोदने के बाद धीमा पड़ गया. अंततः उसने अपना लंड बाहर निकाला तो वो लाल हो गया था. वहीँ बबिता की चूत भी सूजकर लाल हो गई थी.

शालिनी जाकर बबिता के पास बैठ गई और जीवन मुस्कुराते हुए बसंती के पास खड़ा हो गया जिसने अपने कर्तव्य का निर्वाहण किया और जीवन के वीर्य को प्याले और मूत्र को मुँह और बाल्टी में प्राप्त किया.

“आप ठीक हो न?” शालिनी ने बबिता की चूत पर हाथ रखकर चिंता जताई.

“काहे रोक दी रहीं उस मादरचोद को. रोम रोम हिला दिया कुत्ते ने! कुछ देर और चोदता तो तृप्त हो जाती.” बबिता धीमे से बुदबुदाई.

शालिनी को झटका लगा. उसे तो लगा था कि बबिता कष्ट में थी, पर यहाँ तो बात बबिता उसका स्वागत कर रही थी.

“अब आई हो तो बसंती के पास ले चलो. उसकी भी प्यास मिटा दूँ.” बबिता ने आँख खोलकर कहा.

शालिनी ने उसे उठाया और बसंती की ओर देखा जो इस समय जीवन के मूत्र से अपना मुँह धो रही थी. शालिनी को ईर्ष्या हुई पर उसने जीवन के हटने की प्रतीक्षा की और उसके हटते ही बबिता को ले जाकर दूसरी कुर्सी पर बिठा दिया.

“तुम जाओ.” बबिता ने कहा तो शालिनी शांति से जाकर जीवन के पास जा बैठी.

“क्यों इतना छेड़ती देती हो दीदी बाबूजी को? देखो कितनी निर्ममता से चोदे हैं आपको?” बंसती ने उसके सामने बैठकर उसकी फूली चूत को सहलाते हुए पूछा.

“छेड़े बिना वो ऐसे नहीं चोदता। तू न समझेगी, जब तक वो मेरी ऐसी हड्डियाँ हिलाने वाली चुदाई न करे मेरी आत्मा को तृप्ति नहीं मिलती. वो तो शालिनी ने बीच में टाँग अड़ा दी नहीं तो मैं शिखर से गिरने वाली ही थी.”

“न जाने दीदी, मुझे भी उनकी ऐसी ही चुदाई में आनंद आता है, पर लगता है बहूरानी डर गई.” बसंती अब बबिता की चूत को प्रेम से चाटने लगी. बबिता का शरीर काँपने लगा और वो झड़ गई. बसंती ने उसका पानी पी लिया और चूत को फिर से चाटने लगी.

“थोड़ा विश्राम कर लो, फिर जाना.” बसंती बोली और असीम को बबिता के लिए पेग बनाने का संकेत किया. बबिता की चूत चाटते हुए उसने अनुभव किया कि असीम बबिता को उसका पेग थमा गया था.

“दीदी, मूतने का मन करे तो रुकना मत, बस बोल देना. नहीं तो बाल्टी में न डाल पाऊँगी.”

“ले ही आ बाल्टी भी. तेरी प्यास भी मिटा दूँ.” बबिता बोली और फिर बसंती ने बाल्टी अपने सामने रख ली. बबिता ने उसके मुँह में धार छोड़ दी और बबिता ने अपने लिए बाल्टी में और मूत्र जोड़ लिया.

“अब थोड़ी देर रुको, फिर कँवल भाईसाहब के पास चली जाना. इसके बाद आपको बस एक बार ही विराम मिलेगा क्योंकि उसके बाद निरंतर चुदाई होगी.”

“ठीक है.” ये कहते हुए बबिता ने आँखें बंद कर लीं और कुछ देर के लिए हल्की नींद में चली गई. जीवन की चुदाई का उस पर ये प्रभाव पड़ता था.

जब कुछ देर में नींद खुली तो बसंती पास आई और पूछा कि क्या वो ठीक है? बबिता ने कहा अब वो ठीक है तो बसंती ने उसकी गाँड को चाटा और उसे पलंग पर भेज दिया. उसके साथ ही कँवल भी खड़ा हुआ और उसके पास जाकर खड़ा हो गया. बबिता घोड़ी बनी और अपनी गाँड को हिलाया. कँवल ने देर न की और अपना लंड उसकी गाँड में पेल दिया और धकाधक गाँड मारने लगा.

कहा जाये तो गैंगबैंग का आरम्भ हो चुका था क्योंकि अब ये मात्र शारीरिक संबंध में सीमित होने लगा था. सब अपना सुख प्राप्त करने वाले थे. इसमें सर्वपरि बबिता थी जिसे सबके संसर्ग का सुख मिलेगा। अब किसी भी प्रकार का संवाद नहीं होना था, होना थी तो मात्र चुदाई, भीषण, वीभत्स, कठोर। बबिता आज के गैंगबैंग की रानी थी, और कल कोई और होने वाली थी. और इन सबको वश में रखने वाली उनके घर की नौकरानी की माँ थी जो उन्हें नियंत्रण में रखने वाली थी. और उसे इसके लिए पर्याप्त रस मिलने वाला था.

अब फिर बसंती को अनुदान देना था जिसके लिए इस बार शालिनी खड़ी हुई और बसंती के सामने जा खड़ी हुई. उसने संकेत किया तो बसंती ने मना कर दिया.

“अभी नहीं दीदी. यहाँ सबके सामने मेरा मूत मत पियो. अभी अपनी इस लालसा को हम तीनों के ही बीच रखो. समय आने पर ये भी सबको बता देंगे. पर अभी नहीं.”

शालिनी को बात समझ आई और वो दूसरी कुर्सी पर बैठी जहाँ बसंती ने उसका जल ग्रहण किया और बाल्टी में भी जोड़ा.

इसके बाद शालिनी ने जाकर एक पेग बनाया और जाकर जीवन के पास बैठ गई.

“मना कर दिया?”

“जी.”

“मैं जानता था, इसीलिए कहा था कि उससे ही पूछो.”

“आप दोनों सही हो. मैं ही अधीर हो रही हूँ.”

“ये चस्का ही ऐसा है. जितना डूबो उतना ही अपनी ओर खींचता है. चिंता न करो, आज रात तुम्हारी इच्छा पूरी कर देंगे.”

“जी. पर कँवल भाईसाहब बिना भावना बबिता की गाँड मार रहे हैं.”

“हाँ, इसका अर्थ ये है कि गैंगबैंग का आरम्भ हो गया है. गैंगबैंग में भावना नहीं मात्र शारीरिक तृप्ति सर्वोपरि होती है. भावना से ध्यान बँटता है. इसमें मात्र रानी के सुख का ध्यान रखा जाता है. उसकी इच्छा के ही अनुसार बसंती भी निर्देशन करेगी. देखना, जब तुम इसकी रानी बनोगी तब अनुभव होगा.”

“मुझे तो डर लग रहा है.”

“जैसे वो पीने में संकोच नहीं हुआ, इसमें भी नहीं होगा. वैसे बसंती और मैं पूरा ध्यान रखेंगे.”

“जैसा आप कहो.” ये कहकर शालिनी ने अपना पेग एक ही घूँट में समाप्त कर दिया. जीवन ने कुमार से नया पेग बनाने के लिए कहा और वो दादा और भावी दादी के लिए नया पेग बना लाया.

कुछ देर में कँवल ने अपना कार्य समाप्त किया और जाकर बसंती की चौखट पर अपना योगदान दिया. उसके बाद बबिता ने जाकर बसंती को अपनी गाँड और चूत का उपहार दिया. इसके बाद बसंती ने गीता को पुकारा और उसके जल का सेवन किया और आधे घंटे के विश्राम की घोषणा की. सब उठ कर अपने लिए पेग बनाने लगे, वहीँ बंसती ने प्याले में एकत्रित वीर्य में बाल्टी से कुछ मूत्र डाला और उसे ही अपना पेग समझ कर पीने लगी. कुछ वो अपने चेहरे और स्तनों पर मल लेती पर अधिकतर उसके पेट में ही जा रहा था. शालिनी बीच बीच में बसंती की इन गतिविधियों को देखकर उत्तेजित हो रही थी, परन्तु उसे अभी बहुत कुछ सीखना और अनुभव करना था. गाँव में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक उसकी सेक्स की परिभाषा से कितने भिन्न थे. ये सोचकर वो हतप्रभ थी.

जब विश्राम का समय समाप्त हुआ तो बसंती ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा।

“अब अकेले चोदने का कार्यक्रम समाप्त हुआ है. और इस बार बबिता दीदी को दो दो लौंड़ों से चुदने का आनंद दिया जायेगा. अन्य सभी नियम वही हैं, सबका पानी मुझे ही मिलेगा. एक जोड़े की चुदाई के बाद दस मिनट का विराम रहेगा. एक समस्या ये है कि आप सात पुरुष हैं, तो किसी एक को बबिता दीदी की इस चुदाई में छूटना होगा.”

सब पुरुषों के मुँह उतर गए. न जाने किसकी टिकट काट जाये.

“पर जैसा हम हर बार करते हैं, उसे हम सभी स्त्रियों में से किसी एक की चुदाई करने का अवसर दिया जायेगा. वो बबिता दीदी की चुदाई के पश्चात ही होगा. परन्तु उनके नाम अभी से बता दिए जायेंगे.”

सबके मन उत्सुक हो गए कि ऐसा कौन जोड़ा होगा.

“चूँकि शालिनी दीदी की चुदाई उनके पोतों से नहीं हुई है तो उन्हें इसका अवसर मिलेगा. और उनके साथ होगा….” ये कहकर वो कुमार और असीम को देखने लगी. उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी.

“टॉस करो!” असीम बोला।

एक सिक्का लाया गया और उसे शालिनी ने ही उछाला और असीम को विजयी घोषित किया.

“असीम बेटा, तुम तो जानते ही हो कि अंत कैसे करना है.” बसंती ने एक नटखट स्वर में पूछा.

“बिलकुल छोटी नानी. मैं कैसे भूल सकता हूँ.”

“तो ठीक है. अब बबिता दीदी की दुहरी चुदाई का कार्यक्रम किया जायेगा. इस बार कुमार को चूत और सुशील भाईसाहब को अपनी पत्नी की गाँड मारना है. अब जाइये और जाकर दीदी को रगड़ दीजिये.”

ये कहते हुए बसंती अपने स्थान पर बैठ गई. बबिता अपने पति सुशील और नाती कुमार के साथ पलंग पर चली गई. कुमार और सुशील बबिता में मम्मों को दबाते हुए अपने लौड़े उसके मुँह के सामने लहरा रहे थे. बबिता ने बसंती को देखा जिसने स्वीकृति दी तो बबिता ने दोनों लंड चाटे और थोड़ा चूसे. पर ये गैंगबैंग था, इसमें चूत और गाँड की खुदाई होनी थी. इसीलिए कुमार लेट गया और बबिता उसके ऊपर चढ़ गई और उसके लंड को चूत में ले लिया. चूत और गाँड दोनों चुद कर खुल चुकी थीं तो लंड के प्रवेश में कोई कठिनाई नहीं हुई.

बबिता चूत में पूरा लंड लेकर रुक गई और पीछे से उसके पति ने उसकी गाँड पर हाथ फेरा और अपना लंड उसकी गाँड पर रखा और एक धक्का मारा. बबिता की सिसकी निकली और सुशील ने दो और धक्कों में पूरा लौड़ा जड़ तक पेल दिया.

कुछ पल यूँ ही रुक कर पहले कुमार ने अपनी कमर हिलाई और बबिता की चूत में लंड पेलना आरम्भ किया. सुशील ने उसके कुछ ही पलों के बाद अपने लंड का संचालन आरम्भ कर दिया. पति और नाती बबिता की दुहरी चुदाई करने लगे और शीघ्र ही गति पकड़ ली.

दोनों एक दूसरे से अच्छा सामंजस्य और ताल मिलाकर बबिता की चूत और गाँड की ठुकाई कर रहे थे. बबिता को आज की पहली दुहरी चुदाई का आनंद मिल रहा था. सोने पर सुहागा ये था कि उसमें से एक उसका पति था तो दूसरा माना हुआ नाती. ये अलौकिक आनंद उसकी सिसकारियों में और भी मादकता भर रहा था. जहाँ अन्य सभी जोड़े इसे एक सामान्य चुदाई की दृष्टि से देख रहे थे, वहीँ शालिनी अभी भी इस प्रकार की चुदाई से अचंभित थी. कितनी सरलता से बबिता इस आयु के पड़ाव में भी इस प्रकार की चुदाई का सुख ले रही थी ये उसके लिए अचरज का विषय था.

वो स्वयं को इस स्थिति में देखने के लिए आतुर थी और जीवन ने उसे विश्वास दिलाया था कि उसे अपने घर लौटने से पहले वो हर आसन और मिश्रण का आनंद दिलवाएगा. और वो इस खेल में शीघ्र स्नातक से स्नातकोत्तर की श्रेणी में उत्तीर्ण होने के लिए लालायित थी. जीवन भी उसे इस ओर सुचारु रूप से खींच रहा था.

चुदाई की गति में अब एक ठहराव सा आ गया था, इसे देखकर नाना नाती ने अपनी ताल बदली और इस बार दोनों ने से एक का ही लौड़ा अंदर होता. अंदर जाते और बाहर निकलते लौंड़ों का घर्षण बबिता को आनंद की नई ऊंचाइयों की ओर ले चला. अब नाना नाती इसी प्रकार से ताल और गति के विभिन्न मिश्रणों से बबिता को चोदने लगे. शालिनी के जीवन के पुरुष साथियों की शक्ति पर भी बहुत गर्व था. वो भी आम पुरुषों की अपेक्षा अधिक देर तक चुदाई करने में सक्षम थे.

कई मिनटों की इस चुदाई के बाद सुशील ने झड़ने के निकट होने की बात कही तो गति को धीमा किया गया. और झड़ने से बचते हुए सुशील ने अपना लंड बाहर निकाल लिया. उसके लंड निकालते ही कुमार ने फिर से बबिता की चुदाई आरम्भ कर दी.

सुशील अपना सना लौड़ा लेकर बसंती के पास चला गया जहाँ उसका भरपूर स्वागत हुआ और वो अपने वीर्य और मूत्र का दान देकर अपने स्थान पर जा बैठा. अब उसके पास लगभग दो घण्टे थे तो उसने अपने लिए पेग बनाया और सामने अपने पत्नी की इस चुदाई के अंतिम चरण को देखने लगा. उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और कुमार ने भी अपनी चुदाई का कर्तव्य पूरा किया और जाकर अपनी छोटी नानी को भेंट चढ़ाई और एक पेग बनाकर अपने नाना के पास बैठ गया. बबिता लड़खड़ाती हुई बसंती के पास जा बैठी जहाँ बंसती ने उसके दोनों छेदों की आवभगत की और फिर बाल्टी में अपने लिए बबिता का जल एकत्रित कर लिया. उसने फिर से बबिता को उसके स्थान पर भेजा और अगले चोदुओं की घोषणा की.

इस बार बलवंत को गाँड और कँवल को चूत का दायित्व मिला. दोनों जाकर बबिता से अपने लौड़े चुसवाने लगे और बलवंत लेट गया. बबिता उसके ऊपर चढ़ी और अपनी गाँड पर उसका लंड लगाकर बैठ गई. पक्क की ध्वनि से लंड अंदर समा गया. बबिता अपने हाथों के बल पीछे झुकी और कँवल ने अपना लौड़ा उसकी चूत में पेलने में समय न गँवाया।

इस आसन में गाँड अधिक तंग हो जाती है और चूत की ऊपर से चुदाई होने के कारण अधिक आनंद आता है. नीचे लेटे हुए पुरुष को भी अधिक परिश्रम करना पड़ता पर उसे सुख पूरा प्राप्त होता है. फिर से धुरंधर गति से बबिता की चुदाई का आरम्भ हो गया. नीचे से बलवंत हाथ बढ़कर बबिता के मम्मों को निर्ममता से मसलने लगा. बबिता की अब हल्की घुटी चीखें निकल रही थीं. परन्तु इस बार शालिनी को कोई शंका नहीं थी कि इसमें भी बबिता को आनंद ही मिल रहा था. उसने स्वयं अपने मम्मों को दबाया और हल्की सी सिसकारी ली.

गीता जाकर बसंती के सामने की बैठ गई और बसंती की चूत चाटकर उसे झड़ा दिया फिर गीता दूसरी कुर्सी पर बैठी और उसकी चूत को चाटा और उसके दोनों स्त्राव का सेवन किया.

गीता: “इतना बाल्टी में जो लिए बैठी है उसका क्या करेगी?”

बसंती ने चुल्लू से उसमें से मूत्र निकाला और चेहरे पर डालकर उसे धो लिया. फिर बाल्टी में मुँह डालकर पीने लगी. ऐसा करने से उसके बाल भी गीले हो गए. उसका चेहरा जब ऊपर आया तो उसकी आँखें लाल थीं.

“बस दीदी, यही करुँगी। पर यूँ व्यर्थ न बहाऊँगी.”

“इसे साफ करने का काम तेरा ही है समझी न? नहीं तो कल पूरा कमरा महक जायेगा.”

“चिंता न करो दीदी. आपको आज तक कभी कहने की आवश्यकता पड़ी जो आज कह रही हो.”

“अरे आज शालिनी आई है. नई है, न जाने क्या क्या सोचे हमारे बारे में.”

“दीदी, जहाँ समझी हूँ, वो हमारे बारे में सब अच्छा ही सोच रही हैं.”

ये कहते हुए बाल्टी में से उसने चुल्लू भरा और अपने स्तनों में मल लिया. गीता सिर हिलाती अपने स्थान पर चली गई. अपने स्थान पर बैठकर वो बबिता की चुदाई का दृश्य देखने लगी. उसे बसंती की इस विकृति से घृणा नहीं थी, पर ये उसका घर था जिसमें दुर्गंध को वो सहन नहीं कर सकती थी. परन्तु बसंती हमेशा पूरी सफाई करके ही हटती थी इसीलिए अधिक तर्क का नहीं था.

बलवंत और कँवल के बीच पिसती हुई बबिता सुख के सागर में गोते लगा रही थी. इस आसन का आनंद ही भिन्न था. बलवंत के द्वारा उसके मम्मों का भींचा जाना उसे और सुख दे रहा था. उसे कठोर चुदाई में अधिक आनंद आता था और इन कुछ दिनों में उसकी ये इच्छा पूर्ण होने में कोई कमी नहीं थी. उसके नातियों द्वारा चूत और गाँड की विशेष चुदाई और कुछ पहले जीवन की निर्मम चुदाई इसका उदाहरण थे. अभी तो इस गैंगबैंग का आरम्भ ही हुआ था. अभी तो पूरी रात्रि शेष थी जिसमें उसे इतने लौड़े चोदने वाले थे जिनका वो ध्यान भी नहीं रख सकती थी.

बसंती इसी कारण इस गैंगबैंग को चरण-बद्ध रूप से संजोया था. अन्यथा सब शीघ्र ही संतुष्ट हो जाते और रात युवा ही रह जाती.

चूँकि कँवल अधिक परिश्रम कर रहा था इसीलिए पहले उसने ही झड़ने की घोषणा की और अपना लंड बबिता की चूत ने बाहर खींचा और लगभग दौड़ते हुए बसंती के सामने खड़ा हो गया. बसंती ने मुस्कुराकर उसका स्वागत किया और अपना कर्तव्य पूरा किया और कँवल से उसका कर्तव्य पूरा करवाया.

कुछ ही समय और निकला कि बलवंत ने भी बबिता से हटने के लिए कहा. बबिता अभी झड़ ही रह थी तो उसने मन मार कर बलवंत का लौड़ा अपनी गाँड से निकाला और हट गई. बलवंत ने उठकर बसंती के चौखट पर अपना योगदान दिया. इसके बाद बबिता आई और उसने भी बसंती को अपना मूत्र पिलाया. इसके बाद बसंती जो इतनी देर से पानी पिए जा रही थी तो उसने भी बाल्टी में अपना अंश जोड़ दिया. बसंती ने बबिता से कहा कि वो जाकर पलंग पर बिछी चादर हटाकर दूसरी बिछा दे फिर उसके ही पास आकर बैठ जाये। बबिता ने ये कार्य शीघ्र समाप्त कर लिया.

बसंती ने असीम और शालिनी को अपना कार्यक्रम आरम्भ करने का आदेश दिया. असीम अपनी भावी दादी को लेकर पलंग पर गया और उनके कान में कुछ कहा. शालिनी ने स्वीकृति दी तो असीम ने अपना लंड उसके मुँह के सामने कर दिया. असीम के मोटे लम्बे लौड़े को चूसने चाटने में शालिनी को बहुत आनंद मिल रहा था.

कुछ देर में असीम ने अपना लंड निकाल लिया क्योंकि वो इसका उपयोग शालिनी की चुदाई के लिए करना चाहता था. उसने शालिनी के पैरों को फैलाया और उसकी चूत चाटने लगा. शालिनी कुछ ही पलों में काँपने लगी तो असीम ने अपनी जीभ बाहर निकाल ली और खड़ा हो गया. उसने शालिनी को उचित स्थित में आने के लिए कहा.

असीम ने अपना लौड़ा शालिनी की चूत पर रखा तो शालिनी की अपने पोते गौतम के साथ की हुई पहली चुदाई का ध्यान आया. असीम ने धीमी गति से अपने लंड को शालिनी की चूत में उतार दिया और उसे चोदने लगा. कुछ देर की सामान्य चुदाई के बाद उसने गति बढ़ाई और शालिनी भी उसका साथ देने लगी. कुछ ही देर हुई थी कि पीछे से बसंती ने पुकारा.

“अब गाँड मारो!”

असीम ने आज्ञाकारी नाती के समान अपना लंड बाहर निकाला और उसी आसन में शालिनी की गाँड पर लंड रखा. शालिनी के पैरों को उसने ऊपर किया तो पूनम ने आकर शालिनी के पैर पकड़ लिए जिससे असीम को कोई असुविधा न हो. आखिर नानी जो थी, अपने नाती का ध्यान रखना उसका कर्तव्य था. असीम ने उसे मूक धन्यवाद किया और अपने लंड को शालिनी की गाँड में डालना आरम्भ किया.

ये आसन गाँड मारने में कुछ कठिन होता है क्योंकि गाँड बहुत तंग हो जाती है. पर धैर्य और संयम का परिचय देते हुए असीम ने अपने सुपाड़े को अदंर प्रविष्ट कर दिया. इसके बाद की राह अपेक्षाकृत सरल थी और असीम ने बिना अधिक अड़चन के शालिनी की गाँड में अपना लंड पूरा डाला और धीमी गति से गाँड मारने लगा. कुछ ही देर हुई थी कि बसंती ने आदेश दिया.

“क्या लौंडे के जैसे गाँड मार रखा है, थोड़ा जम के मार. दादी है तेरी, इतना तो उसका ध्यान रख.”

असीम ने शालिनी को देखा तो उसने स्वीकृति दे दी और असीम ने गति बढ़ा दी. कुछ ही देर में वो शालिनी की चीखों के बीच उसकी गाँड धुआंधार गति से मार रहा था.

“और जोर लगा, असीम. अच्छे से मार अपनी दादी।” इस बार पूनम ने उसका उत्साह बढ़ाया. असीम अपने रौद्र रूप में आ गया और शालिनी की गाँड तीव्रता से मारने लगा.

कई पलों के बाद उसने पूनम को देखा, “नानी, अब में झड़ने वाला हूँ. आप दादी की टाँगे सम्भालो, मैं छोटी नानी के पास जा रहा हूँ.”

उसने अपना लंड बाहर निकाला और पूनम शालिनी को संभाले रही. फिर धीरे से उसकी टाँगे यथावत कर दीं.

असीम ने जाकर छोटी नानी से अपना लौड़ा चुसवा कर उनके मुँह में अपना वीर्य छोड़ा जिसका एक अंश प्याले में चला गया. फिर उसने छोटी नानी के मुँह, चेहरे और स्तनों पर मूत्र त्याग किया, जिसका कुछ भाग बाल्टी में गिरा. बसंती ने पिया और अपने चेहरे और शरीर पर मल कर असीम के लंड को चूमा।

“बहुत सीख गए को लल्ला. सदा सुखी रहो.”

असीम ने छोटी नानी को धन्यवाद दिया और अपने लिए पेग बनाने चला गया.

अब शालिनी आई और बसंती ने उसकी गाँड चाटी और उसके मूत्र का सेवन किया.

“तुम्हारे लिए मैंने नियम तोड़ा है बहूरानी. अब जाओ.”

“बबिता दीदी, अब आपको विश्राम मिल गया है. जस्सी भाईसाहब अब आपको चूत और बाबूजी आपको गाँड मारना है.” बसंती ने कहा तो जस्सी और जीवन खड़े हो गए. “इस चरण के बाद घण्टे का अंतिम विराम होगा.”

जहाँ जस्सी और बबिता पलंग की ओर बढ़े तो जीवन बसंती के पास गया और उससे टॉनिक पिलाने की माँग की. बसंती ने प्रेम से अपने बाबूजी को टॉनिक पिलाया जिसे पीकर तृप्त जीवन अखाड़े में चला गया. बबिता ने दोनों के लंड कुछ पल चूसे और फिर जस्सी को लिटाकर उसके लंड पर चढ़ गई. उसके पीछे से जीवन ने अपना लौड़ा उसकी गाँड में पेल दिया और बबिता की दुहरी चुदाई फिर आरम्भ हो गई. जस्सी और जीवन अनुमान के अनुसार तीव्रता से चुदाई कर रहे थे. बबिता के छेद भी अब खुल चुके थे और उसे भी इस चुदाई में आनंद आ रहा था. तीनों के शरीर एक दूसरे को सुख देने के लिए लालायित थे.

इस चरण की चुदाई भी लगभग दस पंद्रह मिनट चली और फिर जीवन ने अपना लौड़ा बाहर निकाला और बसंती को सौंप दिया. बसंती ने प्रेमपूर्वक उसे चुदाई से पूर्व स्थिति में चाटकर लाया और फिर अपने बाबूजी के मूत्र को अपने चेहरे पर लगाया और लंड नीचे करते हुए शेष शरीर को भी नहला दिया.

उधर जस्सी ने बबिता को नीचे कर दिया था और पाशविक गति से चोदे जा रहा था. फिर उसने भी लंड बाहर निकला और बसंती की चौखट पर अपना उपहार दिया. जीवन और जस्सी अपने पेग लेकर बैठ गए. बबिता ने भी जाकर बसंती की चूत को चाटा और फिर अपना मूत्र पिलाया और बाल्टी में भी डाल दिया. वो वहीं बैठी रही क्योंकि अब आधे घण्टे बाद उसके गैंगबैंग का अंतिम चरण आरम्भ होना था और उसे विश्राम करना था.

आधे घण्टे के स्थान पर लगभग 45 मिनट लग गए. बबिता हल्की नींद में चली गई और उसे उठाना थी नहीं था. इस बीच अन्य सभी सामान्य वार्तालाप करते रहे. जीवन एक ओर खड़ा होकर अपने दोनों पोतों से कुछ बात कर रहा था और दोनों उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे. सबके हाथ में अपनी रूचि का पेय था, जिसमें बसंती का अपना पेय भी था. कमरे में धीरे धीरे बसंती के स्थान की महक प्रबल होती जा रही थी. गीता ने कमरे को खोल दिया जिससे की कुछ गंध कम हो सके. पंखा चलने से कुछ ही देर में ये उद्देश्य पूरा हो गया पर अभी कमरा बंद नहीं किया गया.

“दीदी!” बसंती ने गीता को पुकारा.

गीता उसके पास गई तो बसंती ने पूछा: “दीदी, आपको इसमें असुविधा होती है तो मैं आगे से ऐसा नहीं करुँगी.”

गीता ने उसे देखा, “ऐसा कुछ नहीं है. तू कौन पराई है. और जब तेरे बाबूजी आते हैं और हमारा ये सब खेल चलता है, तभी तू भी खेलती है. चिंता न कर किसी को कोई समस्या नहीं है. अपने मन से ये विचार निकाल दे, समझे मेरी छोटी बहन.”

बसंती की आँखों में आँसू आ गए, उसका गला भर आया और वो उत्तर न दे सकी, बस सिर हिलाकर रह गई. गीता ने उसका सिर थपथपाया और चली गई. इतने में बबिता की आँख भी खुल गई. गीता ने उसे पानी पिलाया और फिर सुशील ने उसे एक पेग बना कर दिया. बबिता ने शांति से उसे समाप्त किया और बसंती की ओर देखा. बसंती उसका संकेत समझ गई और उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. गर्म फुहार ने उसके मुँह को भर दिया और इसकी समाप्ति के पश्चात बंसती हट गई और उसने बबिता को बैठे रहने के लिए कहा. बसंती ने ताली बजाई और सब उसकी ओर देखने लगे.

“अब हमारा अंतिम चरण आरम्भ होगा. जैसे नम्बर लगे हैं उसी प्रकार से चुदाई आरम्भ की जाएगी. असीम चूत और बलवंत भाईसाहब गाँड मारेंगे। जैसा की नियम है दोनों छेदों में हर समय लंड रहना चाहिए. मैं असीम और कुमार के लिए बता रही हूँ. अगर नीचे लेटा पुरुष झड़ने वाला है तो उन्हें पलटी मारनी होगी बिना लंड बाहर निकाले हुए. और उसका लंड बाहर निकलते ही अगले नम्बर वाले को उसका स्थान लेना है. चूत हो या गाँड किसी भी समय खाली नहीं रहनी है.”

“अगर विराम चाहिए भी है तो बबिता दीदी को सरला दीदी का नाम लेना होगा. ऐसा करने पर उन्हें कुछ देर का विश्राम दिया जायेगा. हाँ अगर उन्हें पानी पीना हो या मेरी सेवा की आवश्यकता हो (हंसती है) तब भी उन्हें यही करना होगा. विराम के बाद चुदाई वहीँ से आरम्भ होगी जहाँ रुकी थी. ध्यान रहे, बिना लंड के छेद नहीं रहना चाहिए, और सारा पानी मुझे मिलना चाहिए.”

उसने बबिता को देखा, “दीदी अब जाओ और आनंद लो. जब मन करे मेरे पास आ जाना, मेरी और अपनी प्यास बुझाने.”

बबिता पलंग पर जा बैठी और सातों पुरुषों ने उसे घेर लिया.

बसंती ने अन्य स्त्रियों को सम्बोधित किया: “आप एक दूसरे को या मुझे संतुष्ट कर सकती हैं. मेरे पास आने पर आपको पता है कि क्या करना होगा.”

इसके बाद सबका ध्यान पलंग की ओर चला गया जहाँ पहले गैंगबैंग का अंतिम चरण प्रारम्भ हो रहा था.

असीम लेट चुका था और बबिता ने उसका लौड़ा अपनी चूत में ले लिया था. जैसे ही बबिता आगे झुकी तो बलवंत ने आगे जाकर उसकी गाँड में लंड पेल दिया. असीम अपने नाना (उसके माँ के पिता) के साथ अपनी मुंह-बोली माँ की चुदाई करने जा रहा था. नाना नाती ने अपनी ताल साधी और बबिता की सिसकारियों ने कमरे में मधुर संगीत घोल दिया. अन्य पाँचों पुरुष अपने लंड धीमे धीमे सहला रहे थे, जिसमें जस्सी सर्वाधिक उतावला था. उसके साथ खड़े सुशील ने उसके हाथ पकड़ा जिससे कि वो अत्यधिक उत्साह में शीघ्र न झड़ जाये. सुशील को अपनी पत्नी के सुख का पूरा ध्यान था. जस्सी ने अपना हाथ धीमा दिया.

बलवंत और असीम दोनों अपनी पूरी ताल के साथ बबिता को चोदे जा रहे थे और बबिता आनंद के सागर में गोते लगा रही थी. अपने समय के अनुसार बलवंत ने ही पहले हटने की घोषणा की और जस्सी ने अपने लंड को संभाला। बलवंत ठीक से हटा भी नहीं था कि जस्सी के लंड ने उसका स्थान ले लिया और सवारी में जुट गया. बबिता की गाँड में बस हल्की पवन का एक झोंका पल भर को ही समा पाया था कि जस्सी के ढकते लौड़े ने उसे फिर से भर दिया.

असीम और जस्सी ने मिलकर बबिता को पलटा और बिना अपने लौड़े निकाले हुए इस बार जस्सी नीचे से गाँड मारने लगा तो असीम ऊपर से चूत का आनंद लेने लगा. जस्सी ने बबिता के मम्मों को अपने हाथों में लिया और दबाने लगा जिससे कि बबिता को और भी अधिक आनंद का अनुभव हुआ. उसकी चूत ने असीम के लंड को जकड़ना आरम्भ कर दिया तो असीम भी अपने स्खलन के निकट पहुंचने लगा.

बलवंत अपने और बबिता की गाँड के रस से चिपचिपाये लौड़े के साथ बसंती के पास गया तो बसंती ने उसे बड़े ही प्रेम से पहले तो चाटा और फिर मुँह में लेकर शीघ्र ही झड़ने पर विवश कर दिया. इस बार उसने अधिकतर वीर्य को प्याले में ही डाल दिया. “बाबू, मुँह में थोड़ा ही छोड़ना. अब पेट भरा हुआ है. चेहरे पर छोड़ो या बाल्टी में डाल दो.” बसंती ने कहा और फिर मुँह खोलकर बलवंत के मूत्र की प्रतीक्षा करने लगी.

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क्रमशः
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अध्याय ७१: जीवन के गाँव में शालिनी ८
अध्याय ७० से आगे

अब आगे:

“आप सब मेरी बात सुनिए.” उसने पुकारा.

सब उसकी ओर देखने लगे.

“मेरा ये सोचना है कि अगली चुदाई में तीन के स्थान पर दो ही पुरुष रहेंगे. चूँकि मुँह चोदने वाला बबिता दीदी के मुँह में झड़ नहीं सकता तो इसका कोई अर्थ नहीं है. इसीलिए पहले असीम दीदी को चोदेगा, फिर जस्सी भाईसाहब उनकी गाँड मारेंगे। उसके बाद बाबूजी चोदें और कँवल भाईसाहब गाँड मारें. ये लगातार किया जा सकता है. अभी भी एक के बाद एक ही चोदेगा. क्या विचार है?”

“ठीक है. वैसे भी तेरे मुँह में झड़ने से अच्छा कुछ और छोड़ना है.” जीवन हँसते हुए बोला.

“बाबूजी, अधिक चतुर न बने, नहीं तो आज एक बूँद न छोड़ने दूँगी अपने मुँह में.” बसंती ने झूठा क्रोध दिखाया.

जीवन हँसते हुए बोला, “ठीक है मेरी रानी, तुझसे कैसे तर्क करूँगा, पक्का हार जाऊँगा।”

“अच्छा है इतनी सरलता से समझ गए.” ये कहकर उसने अपनी जीभ होंठों पर घुमाई. “तो अगला चरण आरम्भ हो, असीम बेटा चल अपनी नानी की चूत अब तक तरसने लगी होगी. उसके बाद मेरे ही पास आना.”

“जी छोटी नानी.” असीम ने सुशील की आज्ञा ली और फिर बबिता का हाथ लेकर पलंग की ओर चल दिया.

“मुझे प्यास लगी है, दीदी. आपमें से कौन आएगा? पहले मेरी चूत चाटनी होगी.”

निर्मला और शालिनी खड़ी हुईं पर शालिनी बैठ गई. निर्मला बसंती की चूत को चाटकर उसे झड़ाने में सफल हुई और फिर दूसरी कुर्सी पर बैठकर बसंती के मुँह में मूत्रदान किया. बसंती ने फिर कुछ बाल्टी में बचा लिया. निर्मला अपने स्थान पर आ बैठी। अब सबकी आँखें उस पलंग पर थीं जहाँ असीम ने अपने लौड़े को बबिता की चूत में धकेलना आरम्भ किया था. कुछ ही पलों में उसका पूरा लौड़ा बबिता की चूत में समा गया धुआँधार चुदाई आरम्भ हो गई. बबिता की चीखों से उसके आनंद का अनुमान मिल रहा था, वहीँ असीम की गुर्राहट उसकी शक्ति का परीक्षण ले रही थी.

पुरुष अपने लंड सहला रहे थे तो स्त्रियों की उँगलियां उनकी चूत को शांति करने का प्रयास कर रही थीं. इस बीच बबिता और असीम ने तीन बार आसन बदले और पंद्रह मिनट की कठोर तपस्या के बाद बबिता को तीन बार झड़ने का सुख प्राप्त हुआ. जब असीम को आभास हुआ कि वो झड़ने वाला है तो उसने अपनी गति कम की और फिर धीमे से अपना लंड बाहर निकाल लिया और फिर उसे लहराते हुए बसंती के पास जा खड़ा हुआ.

“बड़ी मलाई लगाकर लाये हो बिटवा अपनी छोटी नानी के लिए?” बसंती ने ये कहकर उसके लंड को चाटना आरम्भ किया. लंड को चमकाने के बाद उसे चूसने में जुट गई और जब असीम झड़ने लगा तो उसके वीर्य को काँच के प्याले में जोड़ दिया.

“छोटी नानी?”

“का बिटुआ?”

“अभी और कुछ भी है आपके लिए. मुँह तो खोलो.” असीम ने मुस्कुरा कर कहा.

“बड़े नटखट हो गए हो. अपनी छोटी नानी के मुँह में सूसू करना चाहते हो? पर तुम्हें कैसे मना करूँ?” बसंती ने मुँह खोला और असीम ने उसके मुँह में मूत्र त्याग करते हुए अपना कर्तव्य पूर्ण किया. बाल्टी का स्तर और बढ़ गया. असीम के हटते ही बबिता दूसरी कुर्सी पर आ बैठी और बसंती ने पहले उसकी चूत को अंदर से साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का दूसरा योगदान स्वीकारा. फिर उसकी गाँड को चाटकर कुछ चिकना किया।

“जाओ दीदी, अब जस्सी भाईसाहब आपकी गाँड फाड़ने को उतावले हैं.”

“जैसे मैं जानती नहीं.” उसने पलंग की ओर देखा जहाँ जस्सी अपने लंड को मुठिया रहा था. वो इठलाते हुए उसके पास पहुँच गई और घोड़ी बन गई.

जस्सी न जाने कबसे अपने लौड़े को सहलाये जा रहा था और इतना आतुर था कि बबिता के घोड़ी बनते ही उसने सवारी गाँठी और गाँड मारने लगा. बबिता अभी अपने आसन में पूर्ण रूप से स्थापित भी नहीं हो पाई थी कि गाँड में लौड़े ने धुआँधार चुदाई आरम्भ कर दी.

“इतना क्यों बेचैन हो? मैं कहीं भागी जा रही हूँ क्या. थोड़ी साँस तो लेने देते.” बबिता ने उलाहना दी तो जस्सी को अपनी त्रुटि का आभास हुआ. उसने धक्के धीमे किया और नीचे बबिता ने अपना आसन ठीक किया जिससे उसे भी गाँड मरवाने का आनंद प्राप्त हो सके.

बबिता ने पीछे सिर घुमाकर जस्सी को अब अपनी गति से आगे बढ़ने के लिए कहा तो जस्सी फिर से उसी पुरानी गति से उसकी गाँड मारने लगा. बबिता को अपनी गाँड में चलते हथोड़े का आनंद अनुभव होने लगा तो उसकी चूत ने पानी छोड़ा. बबिता ने अपना एक हाथ पीछे करते हुए अपने भग्नाशे को छेड़ा तो ढेर सा रस पलंग पर बिखर गया. उसके काँपते शरीर को जस्सी ने थामा और धक्कों की तीव्रता बढ़ा दी. बबिता ने अपना हाथ आगे करते हुए दोनों कोहनियों का सहारा लिया और जस्सी के धक्कों का साथ देने लगी. दोनों वासना के ज्वर में जल रहे थे और शीघ्र पतन की ओर अग्रसर हो रहे थे.

शालिनी के मन में एक प्रश्न था जिसे उसने जीवन से पूछा, “सभी को बसंती के पास क्यों जाना पड़ रहा है? वो भी तो आ सकती है.”

जीवन: “क्योंकि वो इस पूरे कार्यक्रम की संचालिका है. और उसे अपना स्थान पता है. अगर वो अपने सिहांसन से हटी तो वो जिस प्रकार से मूत्र इत्यादि का सेवन कर रही है उसका स्थान हम सबके मन में नीचा हो जायेगा. और ये हम सबके लिए एक अत्यंत दुःखद अनुभव होगा और इस प्रकार के आयोजन सम्भवतः बंद हो जायेंगे. बसंती को हम अपने परिवार का अभिन्न अंग समझते हैं, और उसकी बेटी का परिवार भी इसी प्रकार से हमारे साथ रहता है. क्या मैंने तुम्हारे प्रश्न का उत्तर ठीक से दिया है.”

“पूर्णतः”

“मुझे अगले चरण के लिए जाना होगा.” जीवन ने कहा.

“क्या मैं बसंती का…”

“ये उससे पूछना, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पर अभी मुझे उसकी आवश्यकता है.”

जीवन उठकर बसंती की ओर चला गया.

“आओ बाबूजी. जस्सी भाईसाहब लगता है आने ही वाले हैं.”

“हाँ, इसीलिए तो आया हूँ तेरा अमृत पीने. फिर बबिता की चुदाई जो करनी है.”

“तो बैठो न.”

जीवन उसके सामने बैठा और उसकी चूत पर मुँह लगाकर चाटने लगा. बसंती ने हल्का दबाव बनाकर उसके मुँह में अपना अमृत रस छोड़ दिया. जीवन अपनी प्यास बुझाकर खड़ा हो गया और घेरे से बाहर चला गया और जस्सी के अंतिम धक्कों को देखने लगा. जस्सी के धक्के धीमे पड़ चुके थे और बबिता की सिसकारियाँ भी मद्धम हो चुकी थीं.

जस्सी ने अपना लंड बबिता की गाँड से निकाला और फिर हिलाते हुए बसंती के पास आ खड़ा हुआ.

जीवन पलंग की ओर जा रहा था और जस्सी और उसने एक दूसरे को पार किया हाथ ऊपर मिलाकर ताली बजाई (इसे हाई फाइव भी कहते हैं) बबिता गहरी साँसे भरते हुए अपनी गाँड को सहला रही थी. बसंती ने जस्सी के लंड को चाटते हुए उसे चमकाया और चूसने लगी. कुछ ही पलों में जस्सी ने अपना वीर्य उसके मुँह में छोड़ा जिसे बसंती ने प्याले में थूक दिया और आना मुँह खोलकर जस्सी को देखने लगी.

जस्सी ने प्रेम से उसके सिर पर हाथ घुमाया और उसके बालों को सहलाते हुए उसके मुँह में अपना मूत्र का दान दे दिया.

बाल्टी में कुछ और मूत्र एकत्रित हो गया. जस्सी जाकर अपने स्थान पर बैठ गया और जीवन ने बबिता को उठाकर बसंती के पास भेज दिया. बबिता दूसरी कुर्सी पर बैठ गई और बसंती ने उसकी गाँड को साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का रस लिया.

“हर बार तुम्हारा स्वाद नया होता है दीदी. अब जाओ बाबूजी आपको चोदने के लिए खड़े हैं.”

बबिता मुस्कुराई और जाकर पलंग पर लेटी और अपने पैरों को चौड़ा करते हुए जीवन को आमंत्रित किया.

“टॉनिक पी कर आये हो तो जम कर चोदना।” बबिता ने गाँड हिलाकर कहा.

“अरे तुम्हें चोदने के लिए कोई टॉनिक नहीं चाहिए. बस थोड़ी प्यास लगी थी.” जीवन ने हँसते हुए बबिता की जाँघ पर चपत मारी।

“मुझसे न बनो भाईसाहब, न जाने आपमें कहाँ की शक्ति आ जाती है बसंती का टॉनिक पीने के बाद.”

जीवन ने अपना लौड़ा बबिता की चूत पर रगड़ा, “इसीलिए तो मैं उसे समझा रहा हूँ कि भूरा को पिलाने लगे तो उसका नशा फुर्र हो जायेगा और लौड़ा भी खड़ा होने लगेगा.”

“सबको लौड़ा खड़ा करने के लिए मूत नहीं पीना पड़ता.” ये बबिता ने जीवन को छेड़ने के लिए कहा था जिससे कि वो उसकी चुदाई में कोई छूट न करे.”

जीवन के चेहरे पर छाती कुटिल मुस्कराहट ने बबिता को बता दिया कि तीर ने लक्ष्य पा लिया है. अब उसकी चूत की जो विकराल चुदाई होगी जिसकी उसे आशा थी.

जीवन ने एक लम्बे धक्के में बबिता की चूत को चीरते हुए अपना लौड़ा अंदर तक गाढ़ दिया. बबिता की ह्रदयविदारक चीख ने कमरे को हिला दिया. सुशील ने अपना सिर पकड़ लिया. वो जानता था कि बबिता ने जीवन को क्यों छेड़ा, पर पति जो था, उसकी चीख से उसका भी मन दहल गया. वहीँ शालिनी की तो मानो साँस ही रुक गई.

गीता ने उसकी जाँघ पर हाथ रखा और बोली, “ये इन दोनों का खेल है. बबिता उन्हें छेड़ देती है और वो उसकी जमकर चुदाई करते हैं. हम तीनों भी कभी कभी ऐसा ही करती हैं. जीवन की पाशविक चुदाई का आनंद ही भिन्न है. बबिता आगे गैंगबैंग में ऐसा कुछ न कर पायेगी, सो उसने अभी उनको छेड़ दिया.”

शालिनी अचरज से जीवन के नितम्बों को चलते हुए देख रही थी. इतनी तीव्र गति थी कि आँखों को कुछ सुझाई न दे रहा था.

जीवन की असीमित शक्ति को देखकर वो हतप्रभ थी. इस प्रकार से कौन चुदाई कर सकता है? बबिता की चीत्कारें धीमी होने का नाम नहीं ले रही थीं, न ही जीवन के मुँह से निकलती हुई गुर्राहट. इस प्रकार की चुदाई न जाने कितनी ही देर तक चलती रही जीवन ने लेशमात्र भी अपनी गति और शक्ति में कमी न की तो शालिनी चीख पड़ी, “अब बस भी करो.”

जीवन उसकी चीख सुनकर कुछ ठिठका फिर उसी गति से कुछ देर तक और बबिता को चोदने के बाद धीमा पड़ गया. अंततः उसने अपना लंड बाहर निकाला तो वो लाल हो गया था. वहीँ बबिता की चूत भी सूजकर लाल हो गई थी.

शालिनी जाकर बबिता के पास बैठ गई और जीवन मुस्कुराते हुए बसंती के पास खड़ा हो गया जिसने अपने कर्तव्य का निर्वाहण किया और जीवन के वीर्य को प्याले और मूत्र को मुँह और बाल्टी में प्राप्त किया.

“आप ठीक हो न?” शालिनी ने बबिता की चूत पर हाथ रखकर चिंता जताई.

“काहे रोक दी रहीं उस मादरचोद को. रोम रोम हिला दिया कुत्ते ने! कुछ देर और चोदता तो तृप्त हो जाती.” बबिता धीमे से बुदबुदाई.

शालिनी को झटका लगा. उसे तो लगा था कि बबिता कष्ट में थी, पर यहाँ तो बात बबिता उसका स्वागत कर रही थी.

“अब आई हो तो बसंती के पास ले चलो. उसकी भी प्यास मिटा दूँ.” बबिता ने आँख खोलकर कहा.

शालिनी ने उसे उठाया और बसंती की ओर देखा जो इस समय जीवन के मूत्र से अपना मुँह धो रही थी. शालिनी को ईर्ष्या हुई पर उसने जीवन के हटने की प्रतीक्षा की और उसके हटते ही बबिता को ले जाकर दूसरी कुर्सी पर बिठा दिया.

“तुम जाओ.” बबिता ने कहा तो शालिनी शांति से जाकर जीवन के पास जा बैठी.

“क्यों इतना छेड़ती देती हो दीदी बाबूजी को? देखो कितनी निर्ममता से चोदे हैं आपको?” बंसती ने उसके सामने बैठकर उसकी फूली चूत को सहलाते हुए पूछा.

“छेड़े बिना वो ऐसे नहीं चोदता। तू न समझेगी, जब तक वो मेरी ऐसी हड्डियाँ हिलाने वाली चुदाई न करे मेरी आत्मा को तृप्ति नहीं मिलती. वो तो शालिनी ने बीच में टाँग अड़ा दी नहीं तो मैं शिखर से गिरने वाली ही थी.”

“न जाने दीदी, मुझे भी उनकी ऐसी ही चुदाई में आनंद आता है, पर लगता है बहूरानी डर गई.” बसंती अब बबिता की चूत को प्रेम से चाटने लगी. बबिता का शरीर काँपने लगा और वो झड़ गई. बसंती ने उसका पानी पी लिया और चूत को फिर से चाटने लगी.

“थोड़ा विश्राम कर लो, फिर जाना.” बसंती बोली और असीम को बबिता के लिए पेग बनाने का संकेत किया. बबिता की चूत चाटते हुए उसने अनुभव किया कि असीम बबिता को उसका पेग थमा गया था.

“दीदी, मूतने का मन करे तो रुकना मत, बस बोल देना. नहीं तो बाल्टी में न डाल पाऊँगी.”

“ले ही आ बाल्टी भी. तेरी प्यास भी मिटा दूँ.” बबिता बोली और फिर बसंती ने बाल्टी अपने सामने रख ली. बबिता ने उसके मुँह में धार छोड़ दी और बबिता ने अपने लिए बाल्टी में और मूत्र जोड़ लिया.

“अब थोड़ी देर रुको, फिर कँवल भाईसाहब के पास चली जाना. इसके बाद आपको बस एक बार ही विराम मिलेगा क्योंकि उसके बाद निरंतर चुदाई होगी.”

“ठीक है.” ये कहते हुए बबिता ने आँखें बंद कर लीं और कुछ देर के लिए हल्की नींद में चली गई. जीवन की चुदाई का उस पर ये प्रभाव पड़ता था.

जब कुछ देर में नींद खुली तो बसंती पास आई और पूछा कि क्या वो ठीक है? बबिता ने कहा अब वो ठीक है तो बसंती ने उसकी गाँड को चाटा और उसे पलंग पर भेज दिया. उसके साथ ही कँवल भी खड़ा हुआ और उसके पास जाकर खड़ा हो गया. बबिता घोड़ी बनी और अपनी गाँड को हिलाया. कँवल ने देर न की और अपना लंड उसकी गाँड में पेल दिया और धकाधक गाँड मारने लगा.

कहा जाये तो गैंगबैंग का आरम्भ हो चुका था क्योंकि अब ये मात्र शारीरिक संबंध में सीमित होने लगा था. सब अपना सुख प्राप्त करने वाले थे. इसमें सर्वपरि बबिता थी जिसे सबके संसर्ग का सुख मिलेगा। अब किसी भी प्रकार का संवाद नहीं होना था, होना थी तो मात्र चुदाई, भीषण, वीभत्स, कठोर। बबिता आज के गैंगबैंग की रानी थी, और कल कोई और होने वाली थी. और इन सबको वश में रखने वाली उनके घर की नौकरानी की माँ थी जो उन्हें नियंत्रण में रखने वाली थी. और उसे इसके लिए पर्याप्त रस मिलने वाला था.

अब फिर बसंती को अनुदान देना था जिसके लिए इस बार शालिनी खड़ी हुई और बसंती के सामने जा खड़ी हुई. उसने संकेत किया तो बसंती ने मना कर दिया.

“अभी नहीं दीदी. यहाँ सबके सामने मेरा मूत मत पियो. अभी अपनी इस लालसा को हम तीनों के ही बीच रखो. समय आने पर ये भी सबको बता देंगे. पर अभी नहीं.”

शालिनी को बात समझ आई और वो दूसरी कुर्सी पर बैठी जहाँ बसंती ने उसका जल ग्रहण किया और बाल्टी में भी जोड़ा.

इसके बाद शालिनी ने जाकर एक पेग बनाया और जाकर जीवन के पास बैठ गई.

“मना कर दिया?”

“जी.”

“मैं जानता था, इसीलिए कहा था कि उससे ही पूछो.”

“आप दोनों सही हो. मैं ही अधीर हो रही हूँ.”

“ये चस्का ही ऐसा है. जितना डूबो उतना ही अपनी ओर खींचता है. चिंता न करो, आज रात तुम्हारी इच्छा पूरी कर देंगे.”

“जी. पर कँवल भाईसाहब बिना भावना बबिता की गाँड मार रहे हैं.”

“हाँ, इसका अर्थ ये है कि गैंगबैंग का आरम्भ हो गया है. गैंगबैंग में भावना नहीं मात्र शारीरिक तृप्ति सर्वोपरि होती है. भावना से ध्यान बँटता है. इसमें मात्र रानी के सुख का ध्यान रखा जाता है. उसकी इच्छा के ही अनुसार बसंती भी निर्देशन करेगी. देखना, जब तुम इसकी रानी बनोगी तब अनुभव होगा.”

“मुझे तो डर लग रहा है.”

“जैसे वो पीने में संकोच नहीं हुआ, इसमें भी नहीं होगा. वैसे बसंती और मैं पूरा ध्यान रखेंगे.”

“जैसा आप कहो.” ये कहकर शालिनी ने अपना पेग एक ही घूँट में समाप्त कर दिया. जीवन ने कुमार से नया पेग बनाने के लिए कहा और वो दादा और भावी दादी के लिए नया पेग बना लाया.

कुछ देर में कँवल ने अपना कार्य समाप्त किया और जाकर बसंती की चौखट पर अपना योगदान दिया. उसके बाद बबिता ने जाकर बसंती को अपनी गाँड और चूत का उपहार दिया. इसके बाद बसंती ने गीता को पुकारा और उसके जल का सेवन किया और आधे घंटे के विश्राम की घोषणा की. सब उठ कर अपने लिए पेग बनाने लगे, वहीँ बंसती ने प्याले में एकत्रित वीर्य में बाल्टी से कुछ मूत्र डाला और उसे ही अपना पेग समझ कर पीने लगी. कुछ वो अपने चेहरे और स्तनों पर मल लेती पर अधिकतर उसके पेट में ही जा रहा था. शालिनी बीच बीच में बसंती की इन गतिविधियों को देखकर उत्तेजित हो रही थी, परन्तु उसे अभी बहुत कुछ सीखना और अनुभव करना था. गाँव में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक उसकी सेक्स की परिभाषा से कितने भिन्न थे. ये सोचकर वो हतप्रभ थी.

जब विश्राम का समय समाप्त हुआ तो बसंती ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा।

“अब अकेले चोदने का कार्यक्रम समाप्त हुआ है. और इस बार बबिता दीदी को दो दो लौंड़ों से चुदने का आनंद दिया जायेगा. अन्य सभी नियम वही हैं, सबका पानी मुझे ही मिलेगा. एक जोड़े की चुदाई के बाद दस मिनट का विराम रहेगा. एक समस्या ये है कि आप सात पुरुष हैं, तो किसी एक को बबिता दीदी की इस चुदाई में छूटना होगा.”

सब पुरुषों के मुँह उतर गए. न जाने किसकी टिकट काट जाये.

“पर जैसा हम हर बार करते हैं, उसे हम सभी स्त्रियों में से किसी एक की चुदाई करने का अवसर दिया जायेगा. वो बबिता दीदी की चुदाई के पश्चात ही होगा. परन्तु उनके नाम अभी से बता दिए जायेंगे.”

सबके मन उत्सुक हो गए कि ऐसा कौन जोड़ा होगा.

“चूँकि शालिनी दीदी की चुदाई उनके पोतों से नहीं हुई है तो उन्हें इसका अवसर मिलेगा. और उनके साथ होगा….” ये कहकर वो कुमार और असीम को देखने लगी. उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी.

“टॉस करो!” असीम बोला।

एक सिक्का लाया गया और उसे शालिनी ने ही उछाला और असीम को विजयी घोषित किया.

“असीम बेटा, तुम तो जानते ही हो कि अंत कैसे करना है.” बसंती ने एक नटखट स्वर में पूछा.

“बिलकुल छोटी नानी. मैं कैसे भूल सकता हूँ.”

“तो ठीक है. अब बबिता दीदी की दुहरी चुदाई का कार्यक्रम किया जायेगा. इस बार कुमार को चूत और सुशील भाईसाहब को अपनी पत्नी की गाँड मारना है. अब जाइये और जाकर दीदी को रगड़ दीजिये.”

ये कहते हुए बसंती अपने स्थान पर बैठ गई. बबिता अपने पति सुशील और नाती कुमार के साथ पलंग पर चली गई. कुमार और सुशील बबिता में मम्मों को दबाते हुए अपने लौड़े उसके मुँह के सामने लहरा रहे थे. बबिता ने बसंती को देखा जिसने स्वीकृति दी तो बबिता ने दोनों लंड चाटे और थोड़ा चूसे. पर ये गैंगबैंग था, इसमें चूत और गाँड की खुदाई होनी थी. इसीलिए कुमार लेट गया और बबिता उसके ऊपर चढ़ गई और उसके लंड को चूत में ले लिया. चूत और गाँड दोनों चुद कर खुल चुकी थीं तो लंड के प्रवेश में कोई कठिनाई नहीं हुई.

बबिता चूत में पूरा लंड लेकर रुक गई और पीछे से उसके पति ने उसकी गाँड पर हाथ फेरा और अपना लंड उसकी गाँड पर रखा और एक धक्का मारा. बबिता की सिसकी निकली और सुशील ने दो और धक्कों में पूरा लौड़ा जड़ तक पेल दिया.

कुछ पल यूँ ही रुक कर पहले कुमार ने अपनी कमर हिलाई और बबिता की चूत में लंड पेलना आरम्भ किया. सुशील ने उसके कुछ ही पलों के बाद अपने लंड का संचालन आरम्भ कर दिया. पति और नाती बबिता की दुहरी चुदाई करने लगे और शीघ्र ही गति पकड़ ली.

दोनों एक दूसरे से अच्छा सामंजस्य और ताल मिलाकर बबिता की चूत और गाँड की ठुकाई कर रहे थे. बबिता को आज की पहली दुहरी चुदाई का आनंद मिल रहा था. सोने पर सुहागा ये था कि उसमें से एक उसका पति था तो दूसरा माना हुआ नाती. ये अलौकिक आनंद उसकी सिसकारियों में और भी मादकता भर रहा था. जहाँ अन्य सभी जोड़े इसे एक सामान्य चुदाई की दृष्टि से देख रहे थे, वहीँ शालिनी अभी भी इस प्रकार की चुदाई से अचंभित थी. कितनी सरलता से बबिता इस आयु के पड़ाव में भी इस प्रकार की चुदाई का सुख ले रही थी ये उसके लिए अचरज का विषय था.

वो स्वयं को इस स्थिति में देखने के लिए आतुर थी और जीवन ने उसे विश्वास दिलाया था कि उसे अपने घर लौटने से पहले वो हर आसन और मिश्रण का आनंद दिलवाएगा. और वो इस खेल में शीघ्र स्नातक से स्नातकोत्तर की श्रेणी में उत्तीर्ण होने के लिए लालायित थी. जीवन भी उसे इस ओर सुचारु रूप से खींच रहा था.

चुदाई की गति में अब एक ठहराव सा आ गया था, इसे देखकर नाना नाती ने अपनी ताल बदली और इस बार दोनों ने से एक का ही लौड़ा अंदर होता. अंदर जाते और बाहर निकलते लौंड़ों का घर्षण बबिता को आनंद की नई ऊंचाइयों की ओर ले चला. अब नाना नाती इसी प्रकार से ताल और गति के विभिन्न मिश्रणों से बबिता को चोदने लगे. शालिनी के जीवन के पुरुष साथियों की शक्ति पर भी बहुत गर्व था. वो भी आम पुरुषों की अपेक्षा अधिक देर तक चुदाई करने में सक्षम थे.

कई मिनटों की इस चुदाई के बाद सुशील ने झड़ने के निकट होने की बात कही तो गति को धीमा किया गया. और झड़ने से बचते हुए सुशील ने अपना लंड बाहर निकाल लिया. उसके लंड निकालते ही कुमार ने फिर से बबिता की चुदाई आरम्भ कर दी.

सुशील अपना सना लौड़ा लेकर बसंती के पास चला गया जहाँ उसका भरपूर स्वागत हुआ और वो अपने वीर्य और मूत्र का दान देकर अपने स्थान पर जा बैठा. अब उसके पास लगभग दो घण्टे थे तो उसने अपने लिए पेग बनाया और सामने अपने पत्नी की इस चुदाई के अंतिम चरण को देखने लगा. उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और कुमार ने भी अपनी चुदाई का कर्तव्य पूरा किया और जाकर अपनी छोटी नानी को भेंट चढ़ाई और एक पेग बनाकर अपने नाना के पास बैठ गया. बबिता लड़खड़ाती हुई बसंती के पास जा बैठी जहाँ बंसती ने उसके दोनों छेदों की आवभगत की और फिर बाल्टी में अपने लिए बबिता का जल एकत्रित कर लिया. उसने फिर से बबिता को उसके स्थान पर भेजा और अगले चोदुओं की घोषणा की.

इस बार बलवंत को गाँड और कँवल को चूत का दायित्व मिला. दोनों जाकर बबिता से अपने लौड़े चुसवाने लगे और बलवंत लेट गया. बबिता उसके ऊपर चढ़ी और अपनी गाँड पर उसका लंड लगाकर बैठ गई. पक्क की ध्वनि से लंड अंदर समा गया. बबिता अपने हाथों के बल पीछे झुकी और कँवल ने अपना लौड़ा उसकी चूत में पेलने में समय न गँवाया।

इस आसन में गाँड अधिक तंग हो जाती है और चूत की ऊपर से चुदाई होने के कारण अधिक आनंद आता है. नीचे लेटे हुए पुरुष को भी अधिक परिश्रम करना पड़ता पर उसे सुख पूरा प्राप्त होता है. फिर से धुरंधर गति से बबिता की चुदाई का आरम्भ हो गया. नीचे से बलवंत हाथ बढ़कर बबिता के मम्मों को निर्ममता से मसलने लगा. बबिता की अब हल्की घुटी चीखें निकल रही थीं. परन्तु इस बार शालिनी को कोई शंका नहीं थी कि इसमें भी बबिता को आनंद ही मिल रहा था. उसने स्वयं अपने मम्मों को दबाया और हल्की सी सिसकारी ली.

गीता जाकर बसंती के सामने की बैठ गई और बसंती की चूत चाटकर उसे झड़ा दिया फिर गीता दूसरी कुर्सी पर बैठी और उसकी चूत को चाटा और उसके दोनों स्त्राव का सेवन किया.

गीता: “इतना बाल्टी में जो लिए बैठी है उसका क्या करेगी?”

बसंती ने चुल्लू से उसमें से मूत्र निकाला और चेहरे पर डालकर उसे धो लिया. फिर बाल्टी में मुँह डालकर पीने लगी. ऐसा करने से उसके बाल भी गीले हो गए. उसका चेहरा जब ऊपर आया तो उसकी आँखें लाल थीं.

“बस दीदी, यही करुँगी। पर यूँ व्यर्थ न बहाऊँगी.”

“इसे साफ करने का काम तेरा ही है समझी न? नहीं तो कल पूरा कमरा महक जायेगा.”

“चिंता न करो दीदी. आपको आज तक कभी कहने की आवश्यकता पड़ी जो आज कह रही हो.”

“अरे आज शालिनी आई है. नई है, न जाने क्या क्या सोचे हमारे बारे में.”

“दीदी, जहाँ समझी हूँ, वो हमारे बारे में सब अच्छा ही सोच रही हैं.”

ये कहते हुए बाल्टी में से उसने चुल्लू भरा और अपने स्तनों में मल लिया. गीता सिर हिलाती अपने स्थान पर चली गई. अपने स्थान पर बैठकर वो बबिता की चुदाई का दृश्य देखने लगी. उसे बसंती की इस विकृति से घृणा नहीं थी, पर ये उसका घर था जिसमें दुर्गंध को वो सहन नहीं कर सकती थी. परन्तु बसंती हमेशा पूरी सफाई करके ही हटती थी इसीलिए अधिक तर्क का नहीं था.

बलवंत और कँवल के बीच पिसती हुई बबिता सुख के सागर में गोते लगा रही थी. इस आसन का आनंद ही भिन्न था. बलवंत के द्वारा उसके मम्मों का भींचा जाना उसे और सुख दे रहा था. उसे कठोर चुदाई में अधिक आनंद आता था और इन कुछ दिनों में उसकी ये इच्छा पूर्ण होने में कोई कमी नहीं थी. उसके नातियों द्वारा चूत और गाँड की विशेष चुदाई और कुछ पहले जीवन की निर्मम चुदाई इसका उदाहरण थे. अभी तो इस गैंगबैंग का आरम्भ ही हुआ था. अभी तो पूरी रात्रि शेष थी जिसमें उसे इतने लौड़े चोदने वाले थे जिनका वो ध्यान भी नहीं रख सकती थी.

बसंती इसी कारण इस गैंगबैंग को चरण-बद्ध रूप से संजोया था. अन्यथा सब शीघ्र ही संतुष्ट हो जाते और रात युवा ही रह जाती.

चूँकि कँवल अधिक परिश्रम कर रहा था इसीलिए पहले उसने ही झड़ने की घोषणा की और अपना लंड बबिता की चूत ने बाहर खींचा और लगभग दौड़ते हुए बसंती के सामने खड़ा हो गया. बसंती ने मुस्कुराकर उसका स्वागत किया और अपना कर्तव्य पूरा किया और कँवल से उसका कर्तव्य पूरा करवाया.

कुछ ही समय और निकला कि बलवंत ने भी बबिता से हटने के लिए कहा. बबिता अभी झड़ ही रह थी तो उसने मन मार कर बलवंत का लौड़ा अपनी गाँड से निकाला और हट गई. बलवंत ने उठकर बसंती के चौखट पर अपना योगदान दिया. इसके बाद बबिता आई और उसने भी बसंती को अपना मूत्र पिलाया. इसके बाद बसंती जो इतनी देर से पानी पिए जा रही थी तो उसने भी बाल्टी में अपना अंश जोड़ दिया. बसंती ने बबिता से कहा कि वो जाकर पलंग पर बिछी चादर हटाकर दूसरी बिछा दे फिर उसके ही पास आकर बैठ जाये। बबिता ने ये कार्य शीघ्र समाप्त कर लिया.

बसंती ने असीम और शालिनी को अपना कार्यक्रम आरम्भ करने का आदेश दिया. असीम अपनी भावी दादी को लेकर पलंग पर गया और उनके कान में कुछ कहा. शालिनी ने स्वीकृति दी तो असीम ने अपना लंड उसके मुँह के सामने कर दिया. असीम के मोटे लम्बे लौड़े को चूसने चाटने में शालिनी को बहुत आनंद मिल रहा था.

कुछ देर में असीम ने अपना लंड निकाल लिया क्योंकि वो इसका उपयोग शालिनी की चुदाई के लिए करना चाहता था. उसने शालिनी के पैरों को फैलाया और उसकी चूत चाटने लगा. शालिनी कुछ ही पलों में काँपने लगी तो असीम ने अपनी जीभ बाहर निकाल ली और खड़ा हो गया. उसने शालिनी को उचित स्थित में आने के लिए कहा.

असीम ने अपना लौड़ा शालिनी की चूत पर रखा तो शालिनी की अपने पोते गौतम के साथ की हुई पहली चुदाई का ध्यान आया. असीम ने धीमी गति से अपने लंड को शालिनी की चूत में उतार दिया और उसे चोदने लगा. कुछ देर की सामान्य चुदाई के बाद उसने गति बढ़ाई और शालिनी भी उसका साथ देने लगी. कुछ ही देर हुई थी कि पीछे से बसंती ने पुकारा.

“अब गाँड मारो!”

असीम ने आज्ञाकारी नाती के समान अपना लंड बाहर निकाला और उसी आसन में शालिनी की गाँड पर लंड रखा. शालिनी के पैरों को उसने ऊपर किया तो पूनम ने आकर शालिनी के पैर पकड़ लिए जिससे असीम को कोई असुविधा न हो. आखिर नानी जो थी, अपने नाती का ध्यान रखना उसका कर्तव्य था. असीम ने उसे मूक धन्यवाद किया और अपने लंड को शालिनी की गाँड में डालना आरम्भ किया.

ये आसन गाँड मारने में कुछ कठिन होता है क्योंकि गाँड बहुत तंग हो जाती है. पर धैर्य और संयम का परिचय देते हुए असीम ने अपने सुपाड़े को अदंर प्रविष्ट कर दिया. इसके बाद की राह अपेक्षाकृत सरल थी और असीम ने बिना अधिक अड़चन के शालिनी की गाँड में अपना लंड पूरा डाला और धीमी गति से गाँड मारने लगा. कुछ ही देर हुई थी कि बसंती ने आदेश दिया.

“क्या लौंडे के जैसे गाँड मार रखा है, थोड़ा जम के मार. दादी है तेरी, इतना तो उसका ध्यान रख.”

असीम ने शालिनी को देखा तो उसने स्वीकृति दे दी और असीम ने गति बढ़ा दी. कुछ ही देर में वो शालिनी की चीखों के बीच उसकी गाँड धुआंधार गति से मार रहा था.

“और जोर लगा, असीम. अच्छे से मार अपनी दादी।” इस बार पूनम ने उसका उत्साह बढ़ाया. असीम अपने रौद्र रूप में आ गया और शालिनी की गाँड तीव्रता से मारने लगा.

कई पलों के बाद उसने पूनम को देखा, “नानी, अब में झड़ने वाला हूँ. आप दादी की टाँगे सम्भालो, मैं छोटी नानी के पास जा रहा हूँ.”

उसने अपना लंड बाहर निकाला और पूनम शालिनी को संभाले रही. फिर धीरे से उसकी टाँगे यथावत कर दीं.

असीम ने जाकर छोटी नानी से अपना लौड़ा चुसवा कर उनके मुँह में अपना वीर्य छोड़ा जिसका एक अंश प्याले में चला गया. फिर उसने छोटी नानी के मुँह, चेहरे और स्तनों पर मूत्र त्याग किया, जिसका कुछ भाग बाल्टी में गिरा. बसंती ने पिया और अपने चेहरे और शरीर पर मल कर असीम के लंड को चूमा।

“बहुत सीख गए को लल्ला. सदा सुखी रहो.”

असीम ने छोटी नानी को धन्यवाद दिया और अपने लिए पेग बनाने चला गया.

अब शालिनी आई और बसंती ने उसकी गाँड चाटी और उसके मूत्र का सेवन किया.

“तुम्हारे लिए मैंने नियम तोड़ा है बहूरानी. अब जाओ.”

“बबिता दीदी, अब आपको विश्राम मिल गया है. जस्सी भाईसाहब अब आपको चूत और बाबूजी आपको गाँड मारना है.” बसंती ने कहा तो जस्सी और जीवन खड़े हो गए. “इस चरण के बाद घण्टे का अंतिम विराम होगा.”

जहाँ जस्सी और बबिता पलंग की ओर बढ़े तो जीवन बसंती के पास गया और उससे टॉनिक पिलाने की माँग की. बसंती ने प्रेम से अपने बाबूजी को टॉनिक पिलाया जिसे पीकर तृप्त जीवन अखाड़े में चला गया. बबिता ने दोनों के लंड कुछ पल चूसे और फिर जस्सी को लिटाकर उसके लंड पर चढ़ गई. उसके पीछे से जीवन ने अपना लौड़ा उसकी गाँड में पेल दिया और बबिता की दुहरी चुदाई फिर आरम्भ हो गई. जस्सी और जीवन अनुमान के अनुसार तीव्रता से चुदाई कर रहे थे. बबिता के छेद भी अब खुल चुके थे और उसे भी इस चुदाई में आनंद आ रहा था. तीनों के शरीर एक दूसरे को सुख देने के लिए लालायित थे.

इस चरण की चुदाई भी लगभग दस पंद्रह मिनट चली और फिर जीवन ने अपना लौड़ा बाहर निकाला और बसंती को सौंप दिया. बसंती ने प्रेमपूर्वक उसे चुदाई से पूर्व स्थिति में चाटकर लाया और फिर अपने बाबूजी के मूत्र को अपने चेहरे पर लगाया और लंड नीचे करते हुए शेष शरीर को भी नहला दिया.

उधर जस्सी ने बबिता को नीचे कर दिया था और पाशविक गति से चोदे जा रहा था. फिर उसने भी लंड बाहर निकला और बसंती की चौखट पर अपना उपहार दिया. जीवन और जस्सी अपने पेग लेकर बैठ गए. बबिता ने भी जाकर बसंती की चूत को चाटा और फिर अपना मूत्र पिलाया और बाल्टी में भी डाल दिया. वो वहीं बैठी रही क्योंकि अब आधे घण्टे बाद उसके गैंगबैंग का अंतिम चरण आरम्भ होना था और उसे विश्राम करना था.

आधे घण्टे के स्थान पर लगभग 45 मिनट लग गए. बबिता हल्की नींद में चली गई और उसे उठाना थी नहीं था. इस बीच अन्य सभी सामान्य वार्तालाप करते रहे. जीवन एक ओर खड़ा होकर अपने दोनों पोतों से कुछ बात कर रहा था और दोनों उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे. सबके हाथ में अपनी रूचि का पेय था, जिसमें बसंती का अपना पेय भी था. कमरे में धीरे धीरे बसंती के स्थान की महक प्रबल होती जा रही थी. गीता ने कमरे को खोल दिया जिससे की कुछ गंध कम हो सके. पंखा चलने से कुछ ही देर में ये उद्देश्य पूरा हो गया पर अभी कमरा बंद नहीं किया गया.

“दीदी!” बसंती ने गीता को पुकारा.

गीता उसके पास गई तो बसंती ने पूछा: “दीदी, आपको इसमें असुविधा होती है तो मैं आगे से ऐसा नहीं करुँगी.”

गीता ने उसे देखा, “ऐसा कुछ नहीं है. तू कौन पराई है. और जब तेरे बाबूजी आते हैं और हमारा ये सब खेल चलता है, तभी तू भी खेलती है. चिंता न कर किसी को कोई समस्या नहीं है. अपने मन से ये विचार निकाल दे, समझे मेरी छोटी बहन.”

बसंती की आँखों में आँसू आ गए, उसका गला भर आया और वो उत्तर न दे सकी, बस सिर हिलाकर रह गई. गीता ने उसका सिर थपथपाया और चली गई. इतने में बबिता की आँख भी खुल गई. गीता ने उसे पानी पिलाया और फिर सुशील ने उसे एक पेग बना कर दिया. बबिता ने शांति से उसे समाप्त किया और बसंती की ओर देखा. बसंती उसका संकेत समझ गई और उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. गर्म फुहार ने उसके मुँह को भर दिया और इसकी समाप्ति के पश्चात बंसती हट गई और उसने बबिता को बैठे रहने के लिए कहा. बसंती ने ताली बजाई और सब उसकी ओर देखने लगे.

“अब हमारा अंतिम चरण आरम्भ होगा. जैसे नम्बर लगे हैं उसी प्रकार से चुदाई आरम्भ की जाएगी. असीम चूत और बलवंत भाईसाहब गाँड मारेंगे। जैसा की नियम है दोनों छेदों में हर समय लंड रहना चाहिए. मैं असीम और कुमार के लिए बता रही हूँ. अगर नीचे लेटा पुरुष झड़ने वाला है तो उन्हें पलटी मारनी होगी बिना लंड बाहर निकाले हुए. और उसका लंड बाहर निकलते ही अगले नम्बर वाले को उसका स्थान लेना है. चूत हो या गाँड किसी भी समय खाली नहीं रहनी है.”

“अगर विराम चाहिए भी है तो बबिता दीदी को सरला दीदी का नाम लेना होगा. ऐसा करने पर उन्हें कुछ देर का विश्राम दिया जायेगा. हाँ अगर उन्हें पानी पीना हो या मेरी सेवा की आवश्यकता हो (हंसती है) तब भी उन्हें यही करना होगा. विराम के बाद चुदाई वहीँ से आरम्भ होगी जहाँ रुकी थी. ध्यान रहे, बिना लंड के छेद नहीं रहना चाहिए, और सारा पानी मुझे मिलना चाहिए.”

उसने बबिता को देखा, “दीदी अब जाओ और आनंद लो. जब मन करे मेरे पास आ जाना, मेरी और अपनी प्यास बुझाने.”

बबिता पलंग पर जा बैठी और सातों पुरुषों ने उसे घेर लिया.

बसंती ने अन्य स्त्रियों को सम्बोधित किया: “आप एक दूसरे को या मुझे संतुष्ट कर सकती हैं. मेरे पास आने पर आपको पता है कि क्या करना होगा.”

इसके बाद सबका ध्यान पलंग की ओर चला गया जहाँ पहले गैंगबैंग का अंतिम चरण प्रारम्भ हो रहा था.

असीम लेट चुका था और बबिता ने उसका लौड़ा अपनी चूत में ले लिया था. जैसे ही बबिता आगे झुकी तो बलवंत ने आगे जाकर उसकी गाँड में लंड पेल दिया. असीम अपने नाना (उसके माँ के पिता) के साथ अपनी मुंह-बोली माँ की चुदाई करने जा रहा था. नाना नाती ने अपनी ताल साधी और बबिता की सिसकारियों ने कमरे में मधुर संगीत घोल दिया. अन्य पाँचों पुरुष अपने लंड धीमे धीमे सहला रहे थे, जिसमें जस्सी सर्वाधिक उतावला था. उसके साथ खड़े सुशील ने उसके हाथ पकड़ा जिससे कि वो अत्यधिक उत्साह में शीघ्र न झड़ जाये. सुशील को अपनी पत्नी के सुख का पूरा ध्यान था. जस्सी ने अपना हाथ धीमा दिया.

बलवंत और असीम दोनों अपनी पूरी ताल के साथ बबिता को चोदे जा रहे थे और बबिता आनंद के सागर में गोते लगा रही थी. अपने समय के अनुसार बलवंत ने ही पहले हटने की घोषणा की और जस्सी ने अपने लंड को संभाला। बलवंत ठीक से हटा भी नहीं था कि जस्सी के लंड ने उसका स्थान ले लिया और सवारी में जुट गया. बबिता की गाँड में बस हल्की पवन का एक झोंका पल भर को ही समा पाया था कि जस्सी के ढकते लौड़े ने उसे फिर से भर दिया.

असीम और जस्सी ने मिलकर बबिता को पलटा और बिना अपने लौड़े निकाले हुए इस बार जस्सी नीचे से गाँड मारने लगा तो असीम ऊपर से चूत का आनंद लेने लगा. जस्सी ने बबिता के मम्मों को अपने हाथों में लिया और दबाने लगा जिससे कि बबिता को और भी अधिक आनंद का अनुभव हुआ. उसकी चूत ने असीम के लंड को जकड़ना आरम्भ कर दिया तो असीम भी अपने स्खलन के निकट पहुंचने लगा.

बलवंत अपने और बबिता की गाँड के रस से चिपचिपाये लौड़े के साथ बसंती के पास गया तो बसंती ने उसे बड़े ही प्रेम से पहले तो चाटा और फिर मुँह में लेकर शीघ्र ही झड़ने पर विवश कर दिया. इस बार उसने अधिकतर वीर्य को प्याले में ही डाल दिया. “बाबू, मुँह में थोड़ा ही छोड़ना. अब पेट भरा हुआ है. चेहरे पर छोड़ो या बाल्टी में डाल दो.” बसंती ने कहा और फिर मुँह खोलकर बलवंत के मूत्र की प्रतीक्षा करने लगी.

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क्रमशः
1710500
Nice and superb update....
 

Mass

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badhiya bhai...der aaye..par durust...
but one suggestion...reduce the kinkyness (piss scenes) in your updates...they are turnoffs.....

rest upto you. Thanks.

prkin
 

kas1709

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अध्याय ७१: जीवन के गाँव में शालिनी ८
अध्याय ७० से आगे

अब आगे:

“आप सब मेरी बात सुनिए.” उसने पुकारा.

सब उसकी ओर देखने लगे.

“मेरा ये सोचना है कि अगली चुदाई में तीन के स्थान पर दो ही पुरुष रहेंगे. चूँकि मुँह चोदने वाला बबिता दीदी के मुँह में झड़ नहीं सकता तो इसका कोई अर्थ नहीं है. इसीलिए पहले असीम दीदी को चोदेगा, फिर जस्सी भाईसाहब उनकी गाँड मारेंगे। उसके बाद बाबूजी चोदें और कँवल भाईसाहब गाँड मारें. ये लगातार किया जा सकता है. अभी भी एक के बाद एक ही चोदेगा. क्या विचार है?”

“ठीक है. वैसे भी तेरे मुँह में झड़ने से अच्छा कुछ और छोड़ना है.” जीवन हँसते हुए बोला.

“बाबूजी, अधिक चतुर न बने, नहीं तो आज एक बूँद न छोड़ने दूँगी अपने मुँह में.” बसंती ने झूठा क्रोध दिखाया.

जीवन हँसते हुए बोला, “ठीक है मेरी रानी, तुझसे कैसे तर्क करूँगा, पक्का हार जाऊँगा।”

“अच्छा है इतनी सरलता से समझ गए.” ये कहकर उसने अपनी जीभ होंठों पर घुमाई. “तो अगला चरण आरम्भ हो, असीम बेटा चल अपनी नानी की चूत अब तक तरसने लगी होगी. उसके बाद मेरे ही पास आना.”

“जी छोटी नानी.” असीम ने सुशील की आज्ञा ली और फिर बबिता का हाथ लेकर पलंग की ओर चल दिया.

“मुझे प्यास लगी है, दीदी. आपमें से कौन आएगा? पहले मेरी चूत चाटनी होगी.”

निर्मला और शालिनी खड़ी हुईं पर शालिनी बैठ गई. निर्मला बसंती की चूत को चाटकर उसे झड़ाने में सफल हुई और फिर दूसरी कुर्सी पर बैठकर बसंती के मुँह में मूत्रदान किया. बसंती ने फिर कुछ बाल्टी में बचा लिया. निर्मला अपने स्थान पर आ बैठी। अब सबकी आँखें उस पलंग पर थीं जहाँ असीम ने अपने लौड़े को बबिता की चूत में धकेलना आरम्भ किया था. कुछ ही पलों में उसका पूरा लौड़ा बबिता की चूत में समा गया धुआँधार चुदाई आरम्भ हो गई. बबिता की चीखों से उसके आनंद का अनुमान मिल रहा था, वहीँ असीम की गुर्राहट उसकी शक्ति का परीक्षण ले रही थी.

पुरुष अपने लंड सहला रहे थे तो स्त्रियों की उँगलियां उनकी चूत को शांति करने का प्रयास कर रही थीं. इस बीच बबिता और असीम ने तीन बार आसन बदले और पंद्रह मिनट की कठोर तपस्या के बाद बबिता को तीन बार झड़ने का सुख प्राप्त हुआ. जब असीम को आभास हुआ कि वो झड़ने वाला है तो उसने अपनी गति कम की और फिर धीमे से अपना लंड बाहर निकाल लिया और फिर उसे लहराते हुए बसंती के पास जा खड़ा हुआ.

“बड़ी मलाई लगाकर लाये हो बिटवा अपनी छोटी नानी के लिए?” बसंती ने ये कहकर उसके लंड को चाटना आरम्भ किया. लंड को चमकाने के बाद उसे चूसने में जुट गई और जब असीम झड़ने लगा तो उसके वीर्य को काँच के प्याले में जोड़ दिया.

“छोटी नानी?”

“का बिटुआ?”

“अभी और कुछ भी है आपके लिए. मुँह तो खोलो.” असीम ने मुस्कुरा कर कहा.

“बड़े नटखट हो गए हो. अपनी छोटी नानी के मुँह में सूसू करना चाहते हो? पर तुम्हें कैसे मना करूँ?” बसंती ने मुँह खोला और असीम ने उसके मुँह में मूत्र त्याग करते हुए अपना कर्तव्य पूर्ण किया. बाल्टी का स्तर और बढ़ गया. असीम के हटते ही बबिता दूसरी कुर्सी पर आ बैठी और बसंती ने पहले उसकी चूत को अंदर से साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का दूसरा योगदान स्वीकारा. फिर उसकी गाँड को चाटकर कुछ चिकना किया।

“जाओ दीदी, अब जस्सी भाईसाहब आपकी गाँड फाड़ने को उतावले हैं.”

“जैसे मैं जानती नहीं.” उसने पलंग की ओर देखा जहाँ जस्सी अपने लंड को मुठिया रहा था. वो इठलाते हुए उसके पास पहुँच गई और घोड़ी बन गई.

जस्सी न जाने कबसे अपने लौड़े को सहलाये जा रहा था और इतना आतुर था कि बबिता के घोड़ी बनते ही उसने सवारी गाँठी और गाँड मारने लगा. बबिता अभी अपने आसन में पूर्ण रूप से स्थापित भी नहीं हो पाई थी कि गाँड में लौड़े ने धुआँधार चुदाई आरम्भ कर दी.

“इतना क्यों बेचैन हो? मैं कहीं भागी जा रही हूँ क्या. थोड़ी साँस तो लेने देते.” बबिता ने उलाहना दी तो जस्सी को अपनी त्रुटि का आभास हुआ. उसने धक्के धीमे किया और नीचे बबिता ने अपना आसन ठीक किया जिससे उसे भी गाँड मरवाने का आनंद प्राप्त हो सके.

बबिता ने पीछे सिर घुमाकर जस्सी को अब अपनी गति से आगे बढ़ने के लिए कहा तो जस्सी फिर से उसी पुरानी गति से उसकी गाँड मारने लगा. बबिता को अपनी गाँड में चलते हथोड़े का आनंद अनुभव होने लगा तो उसकी चूत ने पानी छोड़ा. बबिता ने अपना एक हाथ पीछे करते हुए अपने भग्नाशे को छेड़ा तो ढेर सा रस पलंग पर बिखर गया. उसके काँपते शरीर को जस्सी ने थामा और धक्कों की तीव्रता बढ़ा दी. बबिता ने अपना हाथ आगे करते हुए दोनों कोहनियों का सहारा लिया और जस्सी के धक्कों का साथ देने लगी. दोनों वासना के ज्वर में जल रहे थे और शीघ्र पतन की ओर अग्रसर हो रहे थे.

शालिनी के मन में एक प्रश्न था जिसे उसने जीवन से पूछा, “सभी को बसंती के पास क्यों जाना पड़ रहा है? वो भी तो आ सकती है.”

जीवन: “क्योंकि वो इस पूरे कार्यक्रम की संचालिका है. और उसे अपना स्थान पता है. अगर वो अपने सिहांसन से हटी तो वो जिस प्रकार से मूत्र इत्यादि का सेवन कर रही है उसका स्थान हम सबके मन में नीचा हो जायेगा. और ये हम सबके लिए एक अत्यंत दुःखद अनुभव होगा और इस प्रकार के आयोजन सम्भवतः बंद हो जायेंगे. बसंती को हम अपने परिवार का अभिन्न अंग समझते हैं, और उसकी बेटी का परिवार भी इसी प्रकार से हमारे साथ रहता है. क्या मैंने तुम्हारे प्रश्न का उत्तर ठीक से दिया है.”

“पूर्णतः”

“मुझे अगले चरण के लिए जाना होगा.” जीवन ने कहा.

“क्या मैं बसंती का…”

“ये उससे पूछना, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पर अभी मुझे उसकी आवश्यकता है.”

जीवन उठकर बसंती की ओर चला गया.

“आओ बाबूजी. जस्सी भाईसाहब लगता है आने ही वाले हैं.”

“हाँ, इसीलिए तो आया हूँ तेरा अमृत पीने. फिर बबिता की चुदाई जो करनी है.”

“तो बैठो न.”

जीवन उसके सामने बैठा और उसकी चूत पर मुँह लगाकर चाटने लगा. बसंती ने हल्का दबाव बनाकर उसके मुँह में अपना अमृत रस छोड़ दिया. जीवन अपनी प्यास बुझाकर खड़ा हो गया और घेरे से बाहर चला गया और जस्सी के अंतिम धक्कों को देखने लगा. जस्सी के धक्के धीमे पड़ चुके थे और बबिता की सिसकारियाँ भी मद्धम हो चुकी थीं.

जस्सी ने अपना लंड बबिता की गाँड से निकाला और फिर हिलाते हुए बसंती के पास आ खड़ा हुआ.

जीवन पलंग की ओर जा रहा था और जस्सी और उसने एक दूसरे को पार किया हाथ ऊपर मिलाकर ताली बजाई (इसे हाई फाइव भी कहते हैं) बबिता गहरी साँसे भरते हुए अपनी गाँड को सहला रही थी. बसंती ने जस्सी के लंड को चाटते हुए उसे चमकाया और चूसने लगी. कुछ ही पलों में जस्सी ने अपना वीर्य उसके मुँह में छोड़ा जिसे बसंती ने प्याले में थूक दिया और आना मुँह खोलकर जस्सी को देखने लगी.

जस्सी ने प्रेम से उसके सिर पर हाथ घुमाया और उसके बालों को सहलाते हुए उसके मुँह में अपना मूत्र का दान दे दिया.

बाल्टी में कुछ और मूत्र एकत्रित हो गया. जस्सी जाकर अपने स्थान पर बैठ गया और जीवन ने बबिता को उठाकर बसंती के पास भेज दिया. बबिता दूसरी कुर्सी पर बैठ गई और बसंती ने उसकी गाँड को साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का रस लिया.

“हर बार तुम्हारा स्वाद नया होता है दीदी. अब जाओ बाबूजी आपको चोदने के लिए खड़े हैं.”

बबिता मुस्कुराई और जाकर पलंग पर लेटी और अपने पैरों को चौड़ा करते हुए जीवन को आमंत्रित किया.

“टॉनिक पी कर आये हो तो जम कर चोदना।” बबिता ने गाँड हिलाकर कहा.

“अरे तुम्हें चोदने के लिए कोई टॉनिक नहीं चाहिए. बस थोड़ी प्यास लगी थी.” जीवन ने हँसते हुए बबिता की जाँघ पर चपत मारी।

“मुझसे न बनो भाईसाहब, न जाने आपमें कहाँ की शक्ति आ जाती है बसंती का टॉनिक पीने के बाद.”

जीवन ने अपना लौड़ा बबिता की चूत पर रगड़ा, “इसीलिए तो मैं उसे समझा रहा हूँ कि भूरा को पिलाने लगे तो उसका नशा फुर्र हो जायेगा और लौड़ा भी खड़ा होने लगेगा.”

“सबको लौड़ा खड़ा करने के लिए मूत नहीं पीना पड़ता.” ये बबिता ने जीवन को छेड़ने के लिए कहा था जिससे कि वो उसकी चुदाई में कोई छूट न करे.”

जीवन के चेहरे पर छाती कुटिल मुस्कराहट ने बबिता को बता दिया कि तीर ने लक्ष्य पा लिया है. अब उसकी चूत की जो विकराल चुदाई होगी जिसकी उसे आशा थी.

जीवन ने एक लम्बे धक्के में बबिता की चूत को चीरते हुए अपना लौड़ा अंदर तक गाढ़ दिया. बबिता की ह्रदयविदारक चीख ने कमरे को हिला दिया. सुशील ने अपना सिर पकड़ लिया. वो जानता था कि बबिता ने जीवन को क्यों छेड़ा, पर पति जो था, उसकी चीख से उसका भी मन दहल गया. वहीँ शालिनी की तो मानो साँस ही रुक गई.

गीता ने उसकी जाँघ पर हाथ रखा और बोली, “ये इन दोनों का खेल है. बबिता उन्हें छेड़ देती है और वो उसकी जमकर चुदाई करते हैं. हम तीनों भी कभी कभी ऐसा ही करती हैं. जीवन की पाशविक चुदाई का आनंद ही भिन्न है. बबिता आगे गैंगबैंग में ऐसा कुछ न कर पायेगी, सो उसने अभी उनको छेड़ दिया.”

शालिनी अचरज से जीवन के नितम्बों को चलते हुए देख रही थी. इतनी तीव्र गति थी कि आँखों को कुछ सुझाई न दे रहा था.

जीवन की असीमित शक्ति को देखकर वो हतप्रभ थी. इस प्रकार से कौन चुदाई कर सकता है? बबिता की चीत्कारें धीमी होने का नाम नहीं ले रही थीं, न ही जीवन के मुँह से निकलती हुई गुर्राहट. इस प्रकार की चुदाई न जाने कितनी ही देर तक चलती रही जीवन ने लेशमात्र भी अपनी गति और शक्ति में कमी न की तो शालिनी चीख पड़ी, “अब बस भी करो.”

जीवन उसकी चीख सुनकर कुछ ठिठका फिर उसी गति से कुछ देर तक और बबिता को चोदने के बाद धीमा पड़ गया. अंततः उसने अपना लंड बाहर निकाला तो वो लाल हो गया था. वहीँ बबिता की चूत भी सूजकर लाल हो गई थी.

शालिनी जाकर बबिता के पास बैठ गई और जीवन मुस्कुराते हुए बसंती के पास खड़ा हो गया जिसने अपने कर्तव्य का निर्वाहण किया और जीवन के वीर्य को प्याले और मूत्र को मुँह और बाल्टी में प्राप्त किया.

“आप ठीक हो न?” शालिनी ने बबिता की चूत पर हाथ रखकर चिंता जताई.

“काहे रोक दी रहीं उस मादरचोद को. रोम रोम हिला दिया कुत्ते ने! कुछ देर और चोदता तो तृप्त हो जाती.” बबिता धीमे से बुदबुदाई.

शालिनी को झटका लगा. उसे तो लगा था कि बबिता कष्ट में थी, पर यहाँ तो बात बबिता उसका स्वागत कर रही थी.

“अब आई हो तो बसंती के पास ले चलो. उसकी भी प्यास मिटा दूँ.” बबिता ने आँख खोलकर कहा.

शालिनी ने उसे उठाया और बसंती की ओर देखा जो इस समय जीवन के मूत्र से अपना मुँह धो रही थी. शालिनी को ईर्ष्या हुई पर उसने जीवन के हटने की प्रतीक्षा की और उसके हटते ही बबिता को ले जाकर दूसरी कुर्सी पर बिठा दिया.

“तुम जाओ.” बबिता ने कहा तो शालिनी शांति से जाकर जीवन के पास जा बैठी.

“क्यों इतना छेड़ती देती हो दीदी बाबूजी को? देखो कितनी निर्ममता से चोदे हैं आपको?” बंसती ने उसके सामने बैठकर उसकी फूली चूत को सहलाते हुए पूछा.

“छेड़े बिना वो ऐसे नहीं चोदता। तू न समझेगी, जब तक वो मेरी ऐसी हड्डियाँ हिलाने वाली चुदाई न करे मेरी आत्मा को तृप्ति नहीं मिलती. वो तो शालिनी ने बीच में टाँग अड़ा दी नहीं तो मैं शिखर से गिरने वाली ही थी.”

“न जाने दीदी, मुझे भी उनकी ऐसी ही चुदाई में आनंद आता है, पर लगता है बहूरानी डर गई.” बसंती अब बबिता की चूत को प्रेम से चाटने लगी. बबिता का शरीर काँपने लगा और वो झड़ गई. बसंती ने उसका पानी पी लिया और चूत को फिर से चाटने लगी.

“थोड़ा विश्राम कर लो, फिर जाना.” बसंती बोली और असीम को बबिता के लिए पेग बनाने का संकेत किया. बबिता की चूत चाटते हुए उसने अनुभव किया कि असीम बबिता को उसका पेग थमा गया था.

“दीदी, मूतने का मन करे तो रुकना मत, बस बोल देना. नहीं तो बाल्टी में न डाल पाऊँगी.”

“ले ही आ बाल्टी भी. तेरी प्यास भी मिटा दूँ.” बबिता बोली और फिर बसंती ने बाल्टी अपने सामने रख ली. बबिता ने उसके मुँह में धार छोड़ दी और बबिता ने अपने लिए बाल्टी में और मूत्र जोड़ लिया.

“अब थोड़ी देर रुको, फिर कँवल भाईसाहब के पास चली जाना. इसके बाद आपको बस एक बार ही विराम मिलेगा क्योंकि उसके बाद निरंतर चुदाई होगी.”

“ठीक है.” ये कहते हुए बबिता ने आँखें बंद कर लीं और कुछ देर के लिए हल्की नींद में चली गई. जीवन की चुदाई का उस पर ये प्रभाव पड़ता था.

जब कुछ देर में नींद खुली तो बसंती पास आई और पूछा कि क्या वो ठीक है? बबिता ने कहा अब वो ठीक है तो बसंती ने उसकी गाँड को चाटा और उसे पलंग पर भेज दिया. उसके साथ ही कँवल भी खड़ा हुआ और उसके पास जाकर खड़ा हो गया. बबिता घोड़ी बनी और अपनी गाँड को हिलाया. कँवल ने देर न की और अपना लंड उसकी गाँड में पेल दिया और धकाधक गाँड मारने लगा.

कहा जाये तो गैंगबैंग का आरम्भ हो चुका था क्योंकि अब ये मात्र शारीरिक संबंध में सीमित होने लगा था. सब अपना सुख प्राप्त करने वाले थे. इसमें सर्वपरि बबिता थी जिसे सबके संसर्ग का सुख मिलेगा। अब किसी भी प्रकार का संवाद नहीं होना था, होना थी तो मात्र चुदाई, भीषण, वीभत्स, कठोर। बबिता आज के गैंगबैंग की रानी थी, और कल कोई और होने वाली थी. और इन सबको वश में रखने वाली उनके घर की नौकरानी की माँ थी जो उन्हें नियंत्रण में रखने वाली थी. और उसे इसके लिए पर्याप्त रस मिलने वाला था.

अब फिर बसंती को अनुदान देना था जिसके लिए इस बार शालिनी खड़ी हुई और बसंती के सामने जा खड़ी हुई. उसने संकेत किया तो बसंती ने मना कर दिया.

“अभी नहीं दीदी. यहाँ सबके सामने मेरा मूत मत पियो. अभी अपनी इस लालसा को हम तीनों के ही बीच रखो. समय आने पर ये भी सबको बता देंगे. पर अभी नहीं.”

शालिनी को बात समझ आई और वो दूसरी कुर्सी पर बैठी जहाँ बसंती ने उसका जल ग्रहण किया और बाल्टी में भी जोड़ा.

इसके बाद शालिनी ने जाकर एक पेग बनाया और जाकर जीवन के पास बैठ गई.

“मना कर दिया?”

“जी.”

“मैं जानता था, इसीलिए कहा था कि उससे ही पूछो.”

“आप दोनों सही हो. मैं ही अधीर हो रही हूँ.”

“ये चस्का ही ऐसा है. जितना डूबो उतना ही अपनी ओर खींचता है. चिंता न करो, आज रात तुम्हारी इच्छा पूरी कर देंगे.”

“जी. पर कँवल भाईसाहब बिना भावना बबिता की गाँड मार रहे हैं.”

“हाँ, इसका अर्थ ये है कि गैंगबैंग का आरम्भ हो गया है. गैंगबैंग में भावना नहीं मात्र शारीरिक तृप्ति सर्वोपरि होती है. भावना से ध्यान बँटता है. इसमें मात्र रानी के सुख का ध्यान रखा जाता है. उसकी इच्छा के ही अनुसार बसंती भी निर्देशन करेगी. देखना, जब तुम इसकी रानी बनोगी तब अनुभव होगा.”

“मुझे तो डर लग रहा है.”

“जैसे वो पीने में संकोच नहीं हुआ, इसमें भी नहीं होगा. वैसे बसंती और मैं पूरा ध्यान रखेंगे.”

“जैसा आप कहो.” ये कहकर शालिनी ने अपना पेग एक ही घूँट में समाप्त कर दिया. जीवन ने कुमार से नया पेग बनाने के लिए कहा और वो दादा और भावी दादी के लिए नया पेग बना लाया.

कुछ देर में कँवल ने अपना कार्य समाप्त किया और जाकर बसंती की चौखट पर अपना योगदान दिया. उसके बाद बबिता ने जाकर बसंती को अपनी गाँड और चूत का उपहार दिया. इसके बाद बसंती ने गीता को पुकारा और उसके जल का सेवन किया और आधे घंटे के विश्राम की घोषणा की. सब उठ कर अपने लिए पेग बनाने लगे, वहीँ बंसती ने प्याले में एकत्रित वीर्य में बाल्टी से कुछ मूत्र डाला और उसे ही अपना पेग समझ कर पीने लगी. कुछ वो अपने चेहरे और स्तनों पर मल लेती पर अधिकतर उसके पेट में ही जा रहा था. शालिनी बीच बीच में बसंती की इन गतिविधियों को देखकर उत्तेजित हो रही थी, परन्तु उसे अभी बहुत कुछ सीखना और अनुभव करना था. गाँव में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक उसकी सेक्स की परिभाषा से कितने भिन्न थे. ये सोचकर वो हतप्रभ थी.

जब विश्राम का समय समाप्त हुआ तो बसंती ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा।

“अब अकेले चोदने का कार्यक्रम समाप्त हुआ है. और इस बार बबिता दीदी को दो दो लौंड़ों से चुदने का आनंद दिया जायेगा. अन्य सभी नियम वही हैं, सबका पानी मुझे ही मिलेगा. एक जोड़े की चुदाई के बाद दस मिनट का विराम रहेगा. एक समस्या ये है कि आप सात पुरुष हैं, तो किसी एक को बबिता दीदी की इस चुदाई में छूटना होगा.”

सब पुरुषों के मुँह उतर गए. न जाने किसकी टिकट काट जाये.

“पर जैसा हम हर बार करते हैं, उसे हम सभी स्त्रियों में से किसी एक की चुदाई करने का अवसर दिया जायेगा. वो बबिता दीदी की चुदाई के पश्चात ही होगा. परन्तु उनके नाम अभी से बता दिए जायेंगे.”

सबके मन उत्सुक हो गए कि ऐसा कौन जोड़ा होगा.

“चूँकि शालिनी दीदी की चुदाई उनके पोतों से नहीं हुई है तो उन्हें इसका अवसर मिलेगा. और उनके साथ होगा….” ये कहकर वो कुमार और असीम को देखने लगी. उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी.

“टॉस करो!” असीम बोला।

एक सिक्का लाया गया और उसे शालिनी ने ही उछाला और असीम को विजयी घोषित किया.

“असीम बेटा, तुम तो जानते ही हो कि अंत कैसे करना है.” बसंती ने एक नटखट स्वर में पूछा.

“बिलकुल छोटी नानी. मैं कैसे भूल सकता हूँ.”

“तो ठीक है. अब बबिता दीदी की दुहरी चुदाई का कार्यक्रम किया जायेगा. इस बार कुमार को चूत और सुशील भाईसाहब को अपनी पत्नी की गाँड मारना है. अब जाइये और जाकर दीदी को रगड़ दीजिये.”

ये कहते हुए बसंती अपने स्थान पर बैठ गई. बबिता अपने पति सुशील और नाती कुमार के साथ पलंग पर चली गई. कुमार और सुशील बबिता में मम्मों को दबाते हुए अपने लौड़े उसके मुँह के सामने लहरा रहे थे. बबिता ने बसंती को देखा जिसने स्वीकृति दी तो बबिता ने दोनों लंड चाटे और थोड़ा चूसे. पर ये गैंगबैंग था, इसमें चूत और गाँड की खुदाई होनी थी. इसीलिए कुमार लेट गया और बबिता उसके ऊपर चढ़ गई और उसके लंड को चूत में ले लिया. चूत और गाँड दोनों चुद कर खुल चुकी थीं तो लंड के प्रवेश में कोई कठिनाई नहीं हुई.

बबिता चूत में पूरा लंड लेकर रुक गई और पीछे से उसके पति ने उसकी गाँड पर हाथ फेरा और अपना लंड उसकी गाँड पर रखा और एक धक्का मारा. बबिता की सिसकी निकली और सुशील ने दो और धक्कों में पूरा लौड़ा जड़ तक पेल दिया.

कुछ पल यूँ ही रुक कर पहले कुमार ने अपनी कमर हिलाई और बबिता की चूत में लंड पेलना आरम्भ किया. सुशील ने उसके कुछ ही पलों के बाद अपने लंड का संचालन आरम्भ कर दिया. पति और नाती बबिता की दुहरी चुदाई करने लगे और शीघ्र ही गति पकड़ ली.

दोनों एक दूसरे से अच्छा सामंजस्य और ताल मिलाकर बबिता की चूत और गाँड की ठुकाई कर रहे थे. बबिता को आज की पहली दुहरी चुदाई का आनंद मिल रहा था. सोने पर सुहागा ये था कि उसमें से एक उसका पति था तो दूसरा माना हुआ नाती. ये अलौकिक आनंद उसकी सिसकारियों में और भी मादकता भर रहा था. जहाँ अन्य सभी जोड़े इसे एक सामान्य चुदाई की दृष्टि से देख रहे थे, वहीँ शालिनी अभी भी इस प्रकार की चुदाई से अचंभित थी. कितनी सरलता से बबिता इस आयु के पड़ाव में भी इस प्रकार की चुदाई का सुख ले रही थी ये उसके लिए अचरज का विषय था.

वो स्वयं को इस स्थिति में देखने के लिए आतुर थी और जीवन ने उसे विश्वास दिलाया था कि उसे अपने घर लौटने से पहले वो हर आसन और मिश्रण का आनंद दिलवाएगा. और वो इस खेल में शीघ्र स्नातक से स्नातकोत्तर की श्रेणी में उत्तीर्ण होने के लिए लालायित थी. जीवन भी उसे इस ओर सुचारु रूप से खींच रहा था.

चुदाई की गति में अब एक ठहराव सा आ गया था, इसे देखकर नाना नाती ने अपनी ताल बदली और इस बार दोनों ने से एक का ही लौड़ा अंदर होता. अंदर जाते और बाहर निकलते लौंड़ों का घर्षण बबिता को आनंद की नई ऊंचाइयों की ओर ले चला. अब नाना नाती इसी प्रकार से ताल और गति के विभिन्न मिश्रणों से बबिता को चोदने लगे. शालिनी के जीवन के पुरुष साथियों की शक्ति पर भी बहुत गर्व था. वो भी आम पुरुषों की अपेक्षा अधिक देर तक चुदाई करने में सक्षम थे.

कई मिनटों की इस चुदाई के बाद सुशील ने झड़ने के निकट होने की बात कही तो गति को धीमा किया गया. और झड़ने से बचते हुए सुशील ने अपना लंड बाहर निकाल लिया. उसके लंड निकालते ही कुमार ने फिर से बबिता की चुदाई आरम्भ कर दी.

सुशील अपना सना लौड़ा लेकर बसंती के पास चला गया जहाँ उसका भरपूर स्वागत हुआ और वो अपने वीर्य और मूत्र का दान देकर अपने स्थान पर जा बैठा. अब उसके पास लगभग दो घण्टे थे तो उसने अपने लिए पेग बनाया और सामने अपने पत्नी की इस चुदाई के अंतिम चरण को देखने लगा. उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और कुमार ने भी अपनी चुदाई का कर्तव्य पूरा किया और जाकर अपनी छोटी नानी को भेंट चढ़ाई और एक पेग बनाकर अपने नाना के पास बैठ गया. बबिता लड़खड़ाती हुई बसंती के पास जा बैठी जहाँ बंसती ने उसके दोनों छेदों की आवभगत की और फिर बाल्टी में अपने लिए बबिता का जल एकत्रित कर लिया. उसने फिर से बबिता को उसके स्थान पर भेजा और अगले चोदुओं की घोषणा की.

इस बार बलवंत को गाँड और कँवल को चूत का दायित्व मिला. दोनों जाकर बबिता से अपने लौड़े चुसवाने लगे और बलवंत लेट गया. बबिता उसके ऊपर चढ़ी और अपनी गाँड पर उसका लंड लगाकर बैठ गई. पक्क की ध्वनि से लंड अंदर समा गया. बबिता अपने हाथों के बल पीछे झुकी और कँवल ने अपना लौड़ा उसकी चूत में पेलने में समय न गँवाया।

इस आसन में गाँड अधिक तंग हो जाती है और चूत की ऊपर से चुदाई होने के कारण अधिक आनंद आता है. नीचे लेटे हुए पुरुष को भी अधिक परिश्रम करना पड़ता पर उसे सुख पूरा प्राप्त होता है. फिर से धुरंधर गति से बबिता की चुदाई का आरम्भ हो गया. नीचे से बलवंत हाथ बढ़कर बबिता के मम्मों को निर्ममता से मसलने लगा. बबिता की अब हल्की घुटी चीखें निकल रही थीं. परन्तु इस बार शालिनी को कोई शंका नहीं थी कि इसमें भी बबिता को आनंद ही मिल रहा था. उसने स्वयं अपने मम्मों को दबाया और हल्की सी सिसकारी ली.

गीता जाकर बसंती के सामने की बैठ गई और बसंती की चूत चाटकर उसे झड़ा दिया फिर गीता दूसरी कुर्सी पर बैठी और उसकी चूत को चाटा और उसके दोनों स्त्राव का सेवन किया.

गीता: “इतना बाल्टी में जो लिए बैठी है उसका क्या करेगी?”

बसंती ने चुल्लू से उसमें से मूत्र निकाला और चेहरे पर डालकर उसे धो लिया. फिर बाल्टी में मुँह डालकर पीने लगी. ऐसा करने से उसके बाल भी गीले हो गए. उसका चेहरा जब ऊपर आया तो उसकी आँखें लाल थीं.

“बस दीदी, यही करुँगी। पर यूँ व्यर्थ न बहाऊँगी.”

“इसे साफ करने का काम तेरा ही है समझी न? नहीं तो कल पूरा कमरा महक जायेगा.”

“चिंता न करो दीदी. आपको आज तक कभी कहने की आवश्यकता पड़ी जो आज कह रही हो.”

“अरे आज शालिनी आई है. नई है, न जाने क्या क्या सोचे हमारे बारे में.”

“दीदी, जहाँ समझी हूँ, वो हमारे बारे में सब अच्छा ही सोच रही हैं.”

ये कहते हुए बाल्टी में से उसने चुल्लू भरा और अपने स्तनों में मल लिया. गीता सिर हिलाती अपने स्थान पर चली गई. अपने स्थान पर बैठकर वो बबिता की चुदाई का दृश्य देखने लगी. उसे बसंती की इस विकृति से घृणा नहीं थी, पर ये उसका घर था जिसमें दुर्गंध को वो सहन नहीं कर सकती थी. परन्तु बसंती हमेशा पूरी सफाई करके ही हटती थी इसीलिए अधिक तर्क का नहीं था.

बलवंत और कँवल के बीच पिसती हुई बबिता सुख के सागर में गोते लगा रही थी. इस आसन का आनंद ही भिन्न था. बलवंत के द्वारा उसके मम्मों का भींचा जाना उसे और सुख दे रहा था. उसे कठोर चुदाई में अधिक आनंद आता था और इन कुछ दिनों में उसकी ये इच्छा पूर्ण होने में कोई कमी नहीं थी. उसके नातियों द्वारा चूत और गाँड की विशेष चुदाई और कुछ पहले जीवन की निर्मम चुदाई इसका उदाहरण थे. अभी तो इस गैंगबैंग का आरम्भ ही हुआ था. अभी तो पूरी रात्रि शेष थी जिसमें उसे इतने लौड़े चोदने वाले थे जिनका वो ध्यान भी नहीं रख सकती थी.

बसंती इसी कारण इस गैंगबैंग को चरण-बद्ध रूप से संजोया था. अन्यथा सब शीघ्र ही संतुष्ट हो जाते और रात युवा ही रह जाती.

चूँकि कँवल अधिक परिश्रम कर रहा था इसीलिए पहले उसने ही झड़ने की घोषणा की और अपना लंड बबिता की चूत ने बाहर खींचा और लगभग दौड़ते हुए बसंती के सामने खड़ा हो गया. बसंती ने मुस्कुराकर उसका स्वागत किया और अपना कर्तव्य पूरा किया और कँवल से उसका कर्तव्य पूरा करवाया.

कुछ ही समय और निकला कि बलवंत ने भी बबिता से हटने के लिए कहा. बबिता अभी झड़ ही रह थी तो उसने मन मार कर बलवंत का लौड़ा अपनी गाँड से निकाला और हट गई. बलवंत ने उठकर बसंती के चौखट पर अपना योगदान दिया. इसके बाद बबिता आई और उसने भी बसंती को अपना मूत्र पिलाया. इसके बाद बसंती जो इतनी देर से पानी पिए जा रही थी तो उसने भी बाल्टी में अपना अंश जोड़ दिया. बसंती ने बबिता से कहा कि वो जाकर पलंग पर बिछी चादर हटाकर दूसरी बिछा दे फिर उसके ही पास आकर बैठ जाये। बबिता ने ये कार्य शीघ्र समाप्त कर लिया.

बसंती ने असीम और शालिनी को अपना कार्यक्रम आरम्भ करने का आदेश दिया. असीम अपनी भावी दादी को लेकर पलंग पर गया और उनके कान में कुछ कहा. शालिनी ने स्वीकृति दी तो असीम ने अपना लंड उसके मुँह के सामने कर दिया. असीम के मोटे लम्बे लौड़े को चूसने चाटने में शालिनी को बहुत आनंद मिल रहा था.

कुछ देर में असीम ने अपना लंड निकाल लिया क्योंकि वो इसका उपयोग शालिनी की चुदाई के लिए करना चाहता था. उसने शालिनी के पैरों को फैलाया और उसकी चूत चाटने लगा. शालिनी कुछ ही पलों में काँपने लगी तो असीम ने अपनी जीभ बाहर निकाल ली और खड़ा हो गया. उसने शालिनी को उचित स्थित में आने के लिए कहा.

असीम ने अपना लौड़ा शालिनी की चूत पर रखा तो शालिनी की अपने पोते गौतम के साथ की हुई पहली चुदाई का ध्यान आया. असीम ने धीमी गति से अपने लंड को शालिनी की चूत में उतार दिया और उसे चोदने लगा. कुछ देर की सामान्य चुदाई के बाद उसने गति बढ़ाई और शालिनी भी उसका साथ देने लगी. कुछ ही देर हुई थी कि पीछे से बसंती ने पुकारा.

“अब गाँड मारो!”

असीम ने आज्ञाकारी नाती के समान अपना लंड बाहर निकाला और उसी आसन में शालिनी की गाँड पर लंड रखा. शालिनी के पैरों को उसने ऊपर किया तो पूनम ने आकर शालिनी के पैर पकड़ लिए जिससे असीम को कोई असुविधा न हो. आखिर नानी जो थी, अपने नाती का ध्यान रखना उसका कर्तव्य था. असीम ने उसे मूक धन्यवाद किया और अपने लंड को शालिनी की गाँड में डालना आरम्भ किया.

ये आसन गाँड मारने में कुछ कठिन होता है क्योंकि गाँड बहुत तंग हो जाती है. पर धैर्य और संयम का परिचय देते हुए असीम ने अपने सुपाड़े को अदंर प्रविष्ट कर दिया. इसके बाद की राह अपेक्षाकृत सरल थी और असीम ने बिना अधिक अड़चन के शालिनी की गाँड में अपना लंड पूरा डाला और धीमी गति से गाँड मारने लगा. कुछ ही देर हुई थी कि बसंती ने आदेश दिया.

“क्या लौंडे के जैसे गाँड मार रखा है, थोड़ा जम के मार. दादी है तेरी, इतना तो उसका ध्यान रख.”

असीम ने शालिनी को देखा तो उसने स्वीकृति दे दी और असीम ने गति बढ़ा दी. कुछ ही देर में वो शालिनी की चीखों के बीच उसकी गाँड धुआंधार गति से मार रहा था.

“और जोर लगा, असीम. अच्छे से मार अपनी दादी।” इस बार पूनम ने उसका उत्साह बढ़ाया. असीम अपने रौद्र रूप में आ गया और शालिनी की गाँड तीव्रता से मारने लगा.

कई पलों के बाद उसने पूनम को देखा, “नानी, अब में झड़ने वाला हूँ. आप दादी की टाँगे सम्भालो, मैं छोटी नानी के पास जा रहा हूँ.”

उसने अपना लंड बाहर निकाला और पूनम शालिनी को संभाले रही. फिर धीरे से उसकी टाँगे यथावत कर दीं.

असीम ने जाकर छोटी नानी से अपना लौड़ा चुसवा कर उनके मुँह में अपना वीर्य छोड़ा जिसका एक अंश प्याले में चला गया. फिर उसने छोटी नानी के मुँह, चेहरे और स्तनों पर मूत्र त्याग किया, जिसका कुछ भाग बाल्टी में गिरा. बसंती ने पिया और अपने चेहरे और शरीर पर मल कर असीम के लंड को चूमा।

“बहुत सीख गए को लल्ला. सदा सुखी रहो.”

असीम ने छोटी नानी को धन्यवाद दिया और अपने लिए पेग बनाने चला गया.

अब शालिनी आई और बसंती ने उसकी गाँड चाटी और उसके मूत्र का सेवन किया.

“तुम्हारे लिए मैंने नियम तोड़ा है बहूरानी. अब जाओ.”

“बबिता दीदी, अब आपको विश्राम मिल गया है. जस्सी भाईसाहब अब आपको चूत और बाबूजी आपको गाँड मारना है.” बसंती ने कहा तो जस्सी और जीवन खड़े हो गए. “इस चरण के बाद घण्टे का अंतिम विराम होगा.”

जहाँ जस्सी और बबिता पलंग की ओर बढ़े तो जीवन बसंती के पास गया और उससे टॉनिक पिलाने की माँग की. बसंती ने प्रेम से अपने बाबूजी को टॉनिक पिलाया जिसे पीकर तृप्त जीवन अखाड़े में चला गया. बबिता ने दोनों के लंड कुछ पल चूसे और फिर जस्सी को लिटाकर उसके लंड पर चढ़ गई. उसके पीछे से जीवन ने अपना लौड़ा उसकी गाँड में पेल दिया और बबिता की दुहरी चुदाई फिर आरम्भ हो गई. जस्सी और जीवन अनुमान के अनुसार तीव्रता से चुदाई कर रहे थे. बबिता के छेद भी अब खुल चुके थे और उसे भी इस चुदाई में आनंद आ रहा था. तीनों के शरीर एक दूसरे को सुख देने के लिए लालायित थे.

इस चरण की चुदाई भी लगभग दस पंद्रह मिनट चली और फिर जीवन ने अपना लौड़ा बाहर निकाला और बसंती को सौंप दिया. बसंती ने प्रेमपूर्वक उसे चुदाई से पूर्व स्थिति में चाटकर लाया और फिर अपने बाबूजी के मूत्र को अपने चेहरे पर लगाया और लंड नीचे करते हुए शेष शरीर को भी नहला दिया.

उधर जस्सी ने बबिता को नीचे कर दिया था और पाशविक गति से चोदे जा रहा था. फिर उसने भी लंड बाहर निकला और बसंती की चौखट पर अपना उपहार दिया. जीवन और जस्सी अपने पेग लेकर बैठ गए. बबिता ने भी जाकर बसंती की चूत को चाटा और फिर अपना मूत्र पिलाया और बाल्टी में भी डाल दिया. वो वहीं बैठी रही क्योंकि अब आधे घण्टे बाद उसके गैंगबैंग का अंतिम चरण आरम्भ होना था और उसे विश्राम करना था.

आधे घण्टे के स्थान पर लगभग 45 मिनट लग गए. बबिता हल्की नींद में चली गई और उसे उठाना थी नहीं था. इस बीच अन्य सभी सामान्य वार्तालाप करते रहे. जीवन एक ओर खड़ा होकर अपने दोनों पोतों से कुछ बात कर रहा था और दोनों उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे. सबके हाथ में अपनी रूचि का पेय था, जिसमें बसंती का अपना पेय भी था. कमरे में धीरे धीरे बसंती के स्थान की महक प्रबल होती जा रही थी. गीता ने कमरे को खोल दिया जिससे की कुछ गंध कम हो सके. पंखा चलने से कुछ ही देर में ये उद्देश्य पूरा हो गया पर अभी कमरा बंद नहीं किया गया.

“दीदी!” बसंती ने गीता को पुकारा.

गीता उसके पास गई तो बसंती ने पूछा: “दीदी, आपको इसमें असुविधा होती है तो मैं आगे से ऐसा नहीं करुँगी.”

गीता ने उसे देखा, “ऐसा कुछ नहीं है. तू कौन पराई है. और जब तेरे बाबूजी आते हैं और हमारा ये सब खेल चलता है, तभी तू भी खेलती है. चिंता न कर किसी को कोई समस्या नहीं है. अपने मन से ये विचार निकाल दे, समझे मेरी छोटी बहन.”

बसंती की आँखों में आँसू आ गए, उसका गला भर आया और वो उत्तर न दे सकी, बस सिर हिलाकर रह गई. गीता ने उसका सिर थपथपाया और चली गई. इतने में बबिता की आँख भी खुल गई. गीता ने उसे पानी पिलाया और फिर सुशील ने उसे एक पेग बना कर दिया. बबिता ने शांति से उसे समाप्त किया और बसंती की ओर देखा. बसंती उसका संकेत समझ गई और उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. गर्म फुहार ने उसके मुँह को भर दिया और इसकी समाप्ति के पश्चात बंसती हट गई और उसने बबिता को बैठे रहने के लिए कहा. बसंती ने ताली बजाई और सब उसकी ओर देखने लगे.

“अब हमारा अंतिम चरण आरम्भ होगा. जैसे नम्बर लगे हैं उसी प्रकार से चुदाई आरम्भ की जाएगी. असीम चूत और बलवंत भाईसाहब गाँड मारेंगे। जैसा की नियम है दोनों छेदों में हर समय लंड रहना चाहिए. मैं असीम और कुमार के लिए बता रही हूँ. अगर नीचे लेटा पुरुष झड़ने वाला है तो उन्हें पलटी मारनी होगी बिना लंड बाहर निकाले हुए. और उसका लंड बाहर निकलते ही अगले नम्बर वाले को उसका स्थान लेना है. चूत हो या गाँड किसी भी समय खाली नहीं रहनी है.”

“अगर विराम चाहिए भी है तो बबिता दीदी को सरला दीदी का नाम लेना होगा. ऐसा करने पर उन्हें कुछ देर का विश्राम दिया जायेगा. हाँ अगर उन्हें पानी पीना हो या मेरी सेवा की आवश्यकता हो (हंसती है) तब भी उन्हें यही करना होगा. विराम के बाद चुदाई वहीँ से आरम्भ होगी जहाँ रुकी थी. ध्यान रहे, बिना लंड के छेद नहीं रहना चाहिए, और सारा पानी मुझे मिलना चाहिए.”

उसने बबिता को देखा, “दीदी अब जाओ और आनंद लो. जब मन करे मेरे पास आ जाना, मेरी और अपनी प्यास बुझाने.”

बबिता पलंग पर जा बैठी और सातों पुरुषों ने उसे घेर लिया.

बसंती ने अन्य स्त्रियों को सम्बोधित किया: “आप एक दूसरे को या मुझे संतुष्ट कर सकती हैं. मेरे पास आने पर आपको पता है कि क्या करना होगा.”

इसके बाद सबका ध्यान पलंग की ओर चला गया जहाँ पहले गैंगबैंग का अंतिम चरण प्रारम्भ हो रहा था.

असीम लेट चुका था और बबिता ने उसका लौड़ा अपनी चूत में ले लिया था. जैसे ही बबिता आगे झुकी तो बलवंत ने आगे जाकर उसकी गाँड में लंड पेल दिया. असीम अपने नाना (उसके माँ के पिता) के साथ अपनी मुंह-बोली माँ की चुदाई करने जा रहा था. नाना नाती ने अपनी ताल साधी और बबिता की सिसकारियों ने कमरे में मधुर संगीत घोल दिया. अन्य पाँचों पुरुष अपने लंड धीमे धीमे सहला रहे थे, जिसमें जस्सी सर्वाधिक उतावला था. उसके साथ खड़े सुशील ने उसके हाथ पकड़ा जिससे कि वो अत्यधिक उत्साह में शीघ्र न झड़ जाये. सुशील को अपनी पत्नी के सुख का पूरा ध्यान था. जस्सी ने अपना हाथ धीमा दिया.

बलवंत और असीम दोनों अपनी पूरी ताल के साथ बबिता को चोदे जा रहे थे और बबिता आनंद के सागर में गोते लगा रही थी. अपने समय के अनुसार बलवंत ने ही पहले हटने की घोषणा की और जस्सी ने अपने लंड को संभाला। बलवंत ठीक से हटा भी नहीं था कि जस्सी के लंड ने उसका स्थान ले लिया और सवारी में जुट गया. बबिता की गाँड में बस हल्की पवन का एक झोंका पल भर को ही समा पाया था कि जस्सी के ढकते लौड़े ने उसे फिर से भर दिया.

असीम और जस्सी ने मिलकर बबिता को पलटा और बिना अपने लौड़े निकाले हुए इस बार जस्सी नीचे से गाँड मारने लगा तो असीम ऊपर से चूत का आनंद लेने लगा. जस्सी ने बबिता के मम्मों को अपने हाथों में लिया और दबाने लगा जिससे कि बबिता को और भी अधिक आनंद का अनुभव हुआ. उसकी चूत ने असीम के लंड को जकड़ना आरम्भ कर दिया तो असीम भी अपने स्खलन के निकट पहुंचने लगा.

बलवंत अपने और बबिता की गाँड के रस से चिपचिपाये लौड़े के साथ बसंती के पास गया तो बसंती ने उसे बड़े ही प्रेम से पहले तो चाटा और फिर मुँह में लेकर शीघ्र ही झड़ने पर विवश कर दिया. इस बार उसने अधिकतर वीर्य को प्याले में ही डाल दिया. “बाबू, मुँह में थोड़ा ही छोड़ना. अब पेट भरा हुआ है. चेहरे पर छोड़ो या बाल्टी में डाल दो.” बसंती ने कहा और फिर मुँह खोलकर बलवंत के मूत्र की प्रतीक्षा करने लगी.

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क्रमशः
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Nice update....
 

parkas

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अध्याय ७१: जीवन के गाँव में शालिनी ८
अध्याय ७० से आगे

अब आगे:

“आप सब मेरी बात सुनिए.” उसने पुकारा.

सब उसकी ओर देखने लगे.

“मेरा ये सोचना है कि अगली चुदाई में तीन के स्थान पर दो ही पुरुष रहेंगे. चूँकि मुँह चोदने वाला बबिता दीदी के मुँह में झड़ नहीं सकता तो इसका कोई अर्थ नहीं है. इसीलिए पहले असीम दीदी को चोदेगा, फिर जस्सी भाईसाहब उनकी गाँड मारेंगे। उसके बाद बाबूजी चोदें और कँवल भाईसाहब गाँड मारें. ये लगातार किया जा सकता है. अभी भी एक के बाद एक ही चोदेगा. क्या विचार है?”

“ठीक है. वैसे भी तेरे मुँह में झड़ने से अच्छा कुछ और छोड़ना है.” जीवन हँसते हुए बोला.

“बाबूजी, अधिक चतुर न बने, नहीं तो आज एक बूँद न छोड़ने दूँगी अपने मुँह में.” बसंती ने झूठा क्रोध दिखाया.

जीवन हँसते हुए बोला, “ठीक है मेरी रानी, तुझसे कैसे तर्क करूँगा, पक्का हार जाऊँगा।”

“अच्छा है इतनी सरलता से समझ गए.” ये कहकर उसने अपनी जीभ होंठों पर घुमाई. “तो अगला चरण आरम्भ हो, असीम बेटा चल अपनी नानी की चूत अब तक तरसने लगी होगी. उसके बाद मेरे ही पास आना.”

“जी छोटी नानी.” असीम ने सुशील की आज्ञा ली और फिर बबिता का हाथ लेकर पलंग की ओर चल दिया.

“मुझे प्यास लगी है, दीदी. आपमें से कौन आएगा? पहले मेरी चूत चाटनी होगी.”

निर्मला और शालिनी खड़ी हुईं पर शालिनी बैठ गई. निर्मला बसंती की चूत को चाटकर उसे झड़ाने में सफल हुई और फिर दूसरी कुर्सी पर बैठकर बसंती के मुँह में मूत्रदान किया. बसंती ने फिर कुछ बाल्टी में बचा लिया. निर्मला अपने स्थान पर आ बैठी। अब सबकी आँखें उस पलंग पर थीं जहाँ असीम ने अपने लौड़े को बबिता की चूत में धकेलना आरम्भ किया था. कुछ ही पलों में उसका पूरा लौड़ा बबिता की चूत में समा गया धुआँधार चुदाई आरम्भ हो गई. बबिता की चीखों से उसके आनंद का अनुमान मिल रहा था, वहीँ असीम की गुर्राहट उसकी शक्ति का परीक्षण ले रही थी.

पुरुष अपने लंड सहला रहे थे तो स्त्रियों की उँगलियां उनकी चूत को शांति करने का प्रयास कर रही थीं. इस बीच बबिता और असीम ने तीन बार आसन बदले और पंद्रह मिनट की कठोर तपस्या के बाद बबिता को तीन बार झड़ने का सुख प्राप्त हुआ. जब असीम को आभास हुआ कि वो झड़ने वाला है तो उसने अपनी गति कम की और फिर धीमे से अपना लंड बाहर निकाल लिया और फिर उसे लहराते हुए बसंती के पास जा खड़ा हुआ.

“बड़ी मलाई लगाकर लाये हो बिटवा अपनी छोटी नानी के लिए?” बसंती ने ये कहकर उसके लंड को चाटना आरम्भ किया. लंड को चमकाने के बाद उसे चूसने में जुट गई और जब असीम झड़ने लगा तो उसके वीर्य को काँच के प्याले में जोड़ दिया.

“छोटी नानी?”

“का बिटुआ?”

“अभी और कुछ भी है आपके लिए. मुँह तो खोलो.” असीम ने मुस्कुरा कर कहा.

“बड़े नटखट हो गए हो. अपनी छोटी नानी के मुँह में सूसू करना चाहते हो? पर तुम्हें कैसे मना करूँ?” बसंती ने मुँह खोला और असीम ने उसके मुँह में मूत्र त्याग करते हुए अपना कर्तव्य पूर्ण किया. बाल्टी का स्तर और बढ़ गया. असीम के हटते ही बबिता दूसरी कुर्सी पर आ बैठी और बसंती ने पहले उसकी चूत को अंदर से साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का दूसरा योगदान स्वीकारा. फिर उसकी गाँड को चाटकर कुछ चिकना किया।

“जाओ दीदी, अब जस्सी भाईसाहब आपकी गाँड फाड़ने को उतावले हैं.”

“जैसे मैं जानती नहीं.” उसने पलंग की ओर देखा जहाँ जस्सी अपने लंड को मुठिया रहा था. वो इठलाते हुए उसके पास पहुँच गई और घोड़ी बन गई.

जस्सी न जाने कबसे अपने लौड़े को सहलाये जा रहा था और इतना आतुर था कि बबिता के घोड़ी बनते ही उसने सवारी गाँठी और गाँड मारने लगा. बबिता अभी अपने आसन में पूर्ण रूप से स्थापित भी नहीं हो पाई थी कि गाँड में लौड़े ने धुआँधार चुदाई आरम्भ कर दी.

“इतना क्यों बेचैन हो? मैं कहीं भागी जा रही हूँ क्या. थोड़ी साँस तो लेने देते.” बबिता ने उलाहना दी तो जस्सी को अपनी त्रुटि का आभास हुआ. उसने धक्के धीमे किया और नीचे बबिता ने अपना आसन ठीक किया जिससे उसे भी गाँड मरवाने का आनंद प्राप्त हो सके.

बबिता ने पीछे सिर घुमाकर जस्सी को अब अपनी गति से आगे बढ़ने के लिए कहा तो जस्सी फिर से उसी पुरानी गति से उसकी गाँड मारने लगा. बबिता को अपनी गाँड में चलते हथोड़े का आनंद अनुभव होने लगा तो उसकी चूत ने पानी छोड़ा. बबिता ने अपना एक हाथ पीछे करते हुए अपने भग्नाशे को छेड़ा तो ढेर सा रस पलंग पर बिखर गया. उसके काँपते शरीर को जस्सी ने थामा और धक्कों की तीव्रता बढ़ा दी. बबिता ने अपना हाथ आगे करते हुए दोनों कोहनियों का सहारा लिया और जस्सी के धक्कों का साथ देने लगी. दोनों वासना के ज्वर में जल रहे थे और शीघ्र पतन की ओर अग्रसर हो रहे थे.

शालिनी के मन में एक प्रश्न था जिसे उसने जीवन से पूछा, “सभी को बसंती के पास क्यों जाना पड़ रहा है? वो भी तो आ सकती है.”

जीवन: “क्योंकि वो इस पूरे कार्यक्रम की संचालिका है. और उसे अपना स्थान पता है. अगर वो अपने सिहांसन से हटी तो वो जिस प्रकार से मूत्र इत्यादि का सेवन कर रही है उसका स्थान हम सबके मन में नीचा हो जायेगा. और ये हम सबके लिए एक अत्यंत दुःखद अनुभव होगा और इस प्रकार के आयोजन सम्भवतः बंद हो जायेंगे. बसंती को हम अपने परिवार का अभिन्न अंग समझते हैं, और उसकी बेटी का परिवार भी इसी प्रकार से हमारे साथ रहता है. क्या मैंने तुम्हारे प्रश्न का उत्तर ठीक से दिया है.”

“पूर्णतः”

“मुझे अगले चरण के लिए जाना होगा.” जीवन ने कहा.

“क्या मैं बसंती का…”

“ये उससे पूछना, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पर अभी मुझे उसकी आवश्यकता है.”

जीवन उठकर बसंती की ओर चला गया.

“आओ बाबूजी. जस्सी भाईसाहब लगता है आने ही वाले हैं.”

“हाँ, इसीलिए तो आया हूँ तेरा अमृत पीने. फिर बबिता की चुदाई जो करनी है.”

“तो बैठो न.”

जीवन उसके सामने बैठा और उसकी चूत पर मुँह लगाकर चाटने लगा. बसंती ने हल्का दबाव बनाकर उसके मुँह में अपना अमृत रस छोड़ दिया. जीवन अपनी प्यास बुझाकर खड़ा हो गया और घेरे से बाहर चला गया और जस्सी के अंतिम धक्कों को देखने लगा. जस्सी के धक्के धीमे पड़ चुके थे और बबिता की सिसकारियाँ भी मद्धम हो चुकी थीं.

जस्सी ने अपना लंड बबिता की गाँड से निकाला और फिर हिलाते हुए बसंती के पास आ खड़ा हुआ.

जीवन पलंग की ओर जा रहा था और जस्सी और उसने एक दूसरे को पार किया हाथ ऊपर मिलाकर ताली बजाई (इसे हाई फाइव भी कहते हैं) बबिता गहरी साँसे भरते हुए अपनी गाँड को सहला रही थी. बसंती ने जस्सी के लंड को चाटते हुए उसे चमकाया और चूसने लगी. कुछ ही पलों में जस्सी ने अपना वीर्य उसके मुँह में छोड़ा जिसे बसंती ने प्याले में थूक दिया और आना मुँह खोलकर जस्सी को देखने लगी.

जस्सी ने प्रेम से उसके सिर पर हाथ घुमाया और उसके बालों को सहलाते हुए उसके मुँह में अपना मूत्र का दान दे दिया.

बाल्टी में कुछ और मूत्र एकत्रित हो गया. जस्सी जाकर अपने स्थान पर बैठ गया और जीवन ने बबिता को उठाकर बसंती के पास भेज दिया. बबिता दूसरी कुर्सी पर बैठ गई और बसंती ने उसकी गाँड को साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का रस लिया.

“हर बार तुम्हारा स्वाद नया होता है दीदी. अब जाओ बाबूजी आपको चोदने के लिए खड़े हैं.”

बबिता मुस्कुराई और जाकर पलंग पर लेटी और अपने पैरों को चौड़ा करते हुए जीवन को आमंत्रित किया.

“टॉनिक पी कर आये हो तो जम कर चोदना।” बबिता ने गाँड हिलाकर कहा.

“अरे तुम्हें चोदने के लिए कोई टॉनिक नहीं चाहिए. बस थोड़ी प्यास लगी थी.” जीवन ने हँसते हुए बबिता की जाँघ पर चपत मारी।

“मुझसे न बनो भाईसाहब, न जाने आपमें कहाँ की शक्ति आ जाती है बसंती का टॉनिक पीने के बाद.”

जीवन ने अपना लौड़ा बबिता की चूत पर रगड़ा, “इसीलिए तो मैं उसे समझा रहा हूँ कि भूरा को पिलाने लगे तो उसका नशा फुर्र हो जायेगा और लौड़ा भी खड़ा होने लगेगा.”

“सबको लौड़ा खड़ा करने के लिए मूत नहीं पीना पड़ता.” ये बबिता ने जीवन को छेड़ने के लिए कहा था जिससे कि वो उसकी चुदाई में कोई छूट न करे.”

जीवन के चेहरे पर छाती कुटिल मुस्कराहट ने बबिता को बता दिया कि तीर ने लक्ष्य पा लिया है. अब उसकी चूत की जो विकराल चुदाई होगी जिसकी उसे आशा थी.

जीवन ने एक लम्बे धक्के में बबिता की चूत को चीरते हुए अपना लौड़ा अंदर तक गाढ़ दिया. बबिता की ह्रदयविदारक चीख ने कमरे को हिला दिया. सुशील ने अपना सिर पकड़ लिया. वो जानता था कि बबिता ने जीवन को क्यों छेड़ा, पर पति जो था, उसकी चीख से उसका भी मन दहल गया. वहीँ शालिनी की तो मानो साँस ही रुक गई.

गीता ने उसकी जाँघ पर हाथ रखा और बोली, “ये इन दोनों का खेल है. बबिता उन्हें छेड़ देती है और वो उसकी जमकर चुदाई करते हैं. हम तीनों भी कभी कभी ऐसा ही करती हैं. जीवन की पाशविक चुदाई का आनंद ही भिन्न है. बबिता आगे गैंगबैंग में ऐसा कुछ न कर पायेगी, सो उसने अभी उनको छेड़ दिया.”

शालिनी अचरज से जीवन के नितम्बों को चलते हुए देख रही थी. इतनी तीव्र गति थी कि आँखों को कुछ सुझाई न दे रहा था.

जीवन की असीमित शक्ति को देखकर वो हतप्रभ थी. इस प्रकार से कौन चुदाई कर सकता है? बबिता की चीत्कारें धीमी होने का नाम नहीं ले रही थीं, न ही जीवन के मुँह से निकलती हुई गुर्राहट. इस प्रकार की चुदाई न जाने कितनी ही देर तक चलती रही जीवन ने लेशमात्र भी अपनी गति और शक्ति में कमी न की तो शालिनी चीख पड़ी, “अब बस भी करो.”

जीवन उसकी चीख सुनकर कुछ ठिठका फिर उसी गति से कुछ देर तक और बबिता को चोदने के बाद धीमा पड़ गया. अंततः उसने अपना लंड बाहर निकाला तो वो लाल हो गया था. वहीँ बबिता की चूत भी सूजकर लाल हो गई थी.

शालिनी जाकर बबिता के पास बैठ गई और जीवन मुस्कुराते हुए बसंती के पास खड़ा हो गया जिसने अपने कर्तव्य का निर्वाहण किया और जीवन के वीर्य को प्याले और मूत्र को मुँह और बाल्टी में प्राप्त किया.

“आप ठीक हो न?” शालिनी ने बबिता की चूत पर हाथ रखकर चिंता जताई.

“काहे रोक दी रहीं उस मादरचोद को. रोम रोम हिला दिया कुत्ते ने! कुछ देर और चोदता तो तृप्त हो जाती.” बबिता धीमे से बुदबुदाई.

शालिनी को झटका लगा. उसे तो लगा था कि बबिता कष्ट में थी, पर यहाँ तो बात बबिता उसका स्वागत कर रही थी.

“अब आई हो तो बसंती के पास ले चलो. उसकी भी प्यास मिटा दूँ.” बबिता ने आँख खोलकर कहा.

शालिनी ने उसे उठाया और बसंती की ओर देखा जो इस समय जीवन के मूत्र से अपना मुँह धो रही थी. शालिनी को ईर्ष्या हुई पर उसने जीवन के हटने की प्रतीक्षा की और उसके हटते ही बबिता को ले जाकर दूसरी कुर्सी पर बिठा दिया.

“तुम जाओ.” बबिता ने कहा तो शालिनी शांति से जाकर जीवन के पास जा बैठी.

“क्यों इतना छेड़ती देती हो दीदी बाबूजी को? देखो कितनी निर्ममता से चोदे हैं आपको?” बंसती ने उसके सामने बैठकर उसकी फूली चूत को सहलाते हुए पूछा.

“छेड़े बिना वो ऐसे नहीं चोदता। तू न समझेगी, जब तक वो मेरी ऐसी हड्डियाँ हिलाने वाली चुदाई न करे मेरी आत्मा को तृप्ति नहीं मिलती. वो तो शालिनी ने बीच में टाँग अड़ा दी नहीं तो मैं शिखर से गिरने वाली ही थी.”

“न जाने दीदी, मुझे भी उनकी ऐसी ही चुदाई में आनंद आता है, पर लगता है बहूरानी डर गई.” बसंती अब बबिता की चूत को प्रेम से चाटने लगी. बबिता का शरीर काँपने लगा और वो झड़ गई. बसंती ने उसका पानी पी लिया और चूत को फिर से चाटने लगी.

“थोड़ा विश्राम कर लो, फिर जाना.” बसंती बोली और असीम को बबिता के लिए पेग बनाने का संकेत किया. बबिता की चूत चाटते हुए उसने अनुभव किया कि असीम बबिता को उसका पेग थमा गया था.

“दीदी, मूतने का मन करे तो रुकना मत, बस बोल देना. नहीं तो बाल्टी में न डाल पाऊँगी.”

“ले ही आ बाल्टी भी. तेरी प्यास भी मिटा दूँ.” बबिता बोली और फिर बसंती ने बाल्टी अपने सामने रख ली. बबिता ने उसके मुँह में धार छोड़ दी और बबिता ने अपने लिए बाल्टी में और मूत्र जोड़ लिया.

“अब थोड़ी देर रुको, फिर कँवल भाईसाहब के पास चली जाना. इसके बाद आपको बस एक बार ही विराम मिलेगा क्योंकि उसके बाद निरंतर चुदाई होगी.”

“ठीक है.” ये कहते हुए बबिता ने आँखें बंद कर लीं और कुछ देर के लिए हल्की नींद में चली गई. जीवन की चुदाई का उस पर ये प्रभाव पड़ता था.

जब कुछ देर में नींद खुली तो बसंती पास आई और पूछा कि क्या वो ठीक है? बबिता ने कहा अब वो ठीक है तो बसंती ने उसकी गाँड को चाटा और उसे पलंग पर भेज दिया. उसके साथ ही कँवल भी खड़ा हुआ और उसके पास जाकर खड़ा हो गया. बबिता घोड़ी बनी और अपनी गाँड को हिलाया. कँवल ने देर न की और अपना लंड उसकी गाँड में पेल दिया और धकाधक गाँड मारने लगा.

कहा जाये तो गैंगबैंग का आरम्भ हो चुका था क्योंकि अब ये मात्र शारीरिक संबंध में सीमित होने लगा था. सब अपना सुख प्राप्त करने वाले थे. इसमें सर्वपरि बबिता थी जिसे सबके संसर्ग का सुख मिलेगा। अब किसी भी प्रकार का संवाद नहीं होना था, होना थी तो मात्र चुदाई, भीषण, वीभत्स, कठोर। बबिता आज के गैंगबैंग की रानी थी, और कल कोई और होने वाली थी. और इन सबको वश में रखने वाली उनके घर की नौकरानी की माँ थी जो उन्हें नियंत्रण में रखने वाली थी. और उसे इसके लिए पर्याप्त रस मिलने वाला था.

अब फिर बसंती को अनुदान देना था जिसके लिए इस बार शालिनी खड़ी हुई और बसंती के सामने जा खड़ी हुई. उसने संकेत किया तो बसंती ने मना कर दिया.

“अभी नहीं दीदी. यहाँ सबके सामने मेरा मूत मत पियो. अभी अपनी इस लालसा को हम तीनों के ही बीच रखो. समय आने पर ये भी सबको बता देंगे. पर अभी नहीं.”

शालिनी को बात समझ आई और वो दूसरी कुर्सी पर बैठी जहाँ बसंती ने उसका जल ग्रहण किया और बाल्टी में भी जोड़ा.

इसके बाद शालिनी ने जाकर एक पेग बनाया और जाकर जीवन के पास बैठ गई.

“मना कर दिया?”

“जी.”

“मैं जानता था, इसीलिए कहा था कि उससे ही पूछो.”

“आप दोनों सही हो. मैं ही अधीर हो रही हूँ.”

“ये चस्का ही ऐसा है. जितना डूबो उतना ही अपनी ओर खींचता है. चिंता न करो, आज रात तुम्हारी इच्छा पूरी कर देंगे.”

“जी. पर कँवल भाईसाहब बिना भावना बबिता की गाँड मार रहे हैं.”

“हाँ, इसका अर्थ ये है कि गैंगबैंग का आरम्भ हो गया है. गैंगबैंग में भावना नहीं मात्र शारीरिक तृप्ति सर्वोपरि होती है. भावना से ध्यान बँटता है. इसमें मात्र रानी के सुख का ध्यान रखा जाता है. उसकी इच्छा के ही अनुसार बसंती भी निर्देशन करेगी. देखना, जब तुम इसकी रानी बनोगी तब अनुभव होगा.”

“मुझे तो डर लग रहा है.”

“जैसे वो पीने में संकोच नहीं हुआ, इसमें भी नहीं होगा. वैसे बसंती और मैं पूरा ध्यान रखेंगे.”

“जैसा आप कहो.” ये कहकर शालिनी ने अपना पेग एक ही घूँट में समाप्त कर दिया. जीवन ने कुमार से नया पेग बनाने के लिए कहा और वो दादा और भावी दादी के लिए नया पेग बना लाया.

कुछ देर में कँवल ने अपना कार्य समाप्त किया और जाकर बसंती की चौखट पर अपना योगदान दिया. उसके बाद बबिता ने जाकर बसंती को अपनी गाँड और चूत का उपहार दिया. इसके बाद बसंती ने गीता को पुकारा और उसके जल का सेवन किया और आधे घंटे के विश्राम की घोषणा की. सब उठ कर अपने लिए पेग बनाने लगे, वहीँ बंसती ने प्याले में एकत्रित वीर्य में बाल्टी से कुछ मूत्र डाला और उसे ही अपना पेग समझ कर पीने लगी. कुछ वो अपने चेहरे और स्तनों पर मल लेती पर अधिकतर उसके पेट में ही जा रहा था. शालिनी बीच बीच में बसंती की इन गतिविधियों को देखकर उत्तेजित हो रही थी, परन्तु उसे अभी बहुत कुछ सीखना और अनुभव करना था. गाँव में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक उसकी सेक्स की परिभाषा से कितने भिन्न थे. ये सोचकर वो हतप्रभ थी.

जब विश्राम का समय समाप्त हुआ तो बसंती ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा।

“अब अकेले चोदने का कार्यक्रम समाप्त हुआ है. और इस बार बबिता दीदी को दो दो लौंड़ों से चुदने का आनंद दिया जायेगा. अन्य सभी नियम वही हैं, सबका पानी मुझे ही मिलेगा. एक जोड़े की चुदाई के बाद दस मिनट का विराम रहेगा. एक समस्या ये है कि आप सात पुरुष हैं, तो किसी एक को बबिता दीदी की इस चुदाई में छूटना होगा.”

सब पुरुषों के मुँह उतर गए. न जाने किसकी टिकट काट जाये.

“पर जैसा हम हर बार करते हैं, उसे हम सभी स्त्रियों में से किसी एक की चुदाई करने का अवसर दिया जायेगा. वो बबिता दीदी की चुदाई के पश्चात ही होगा. परन्तु उनके नाम अभी से बता दिए जायेंगे.”

सबके मन उत्सुक हो गए कि ऐसा कौन जोड़ा होगा.

“चूँकि शालिनी दीदी की चुदाई उनके पोतों से नहीं हुई है तो उन्हें इसका अवसर मिलेगा. और उनके साथ होगा….” ये कहकर वो कुमार और असीम को देखने लगी. उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी.

“टॉस करो!” असीम बोला।

एक सिक्का लाया गया और उसे शालिनी ने ही उछाला और असीम को विजयी घोषित किया.

“असीम बेटा, तुम तो जानते ही हो कि अंत कैसे करना है.” बसंती ने एक नटखट स्वर में पूछा.

“बिलकुल छोटी नानी. मैं कैसे भूल सकता हूँ.”

“तो ठीक है. अब बबिता दीदी की दुहरी चुदाई का कार्यक्रम किया जायेगा. इस बार कुमार को चूत और सुशील भाईसाहब को अपनी पत्नी की गाँड मारना है. अब जाइये और जाकर दीदी को रगड़ दीजिये.”

ये कहते हुए बसंती अपने स्थान पर बैठ गई. बबिता अपने पति सुशील और नाती कुमार के साथ पलंग पर चली गई. कुमार और सुशील बबिता में मम्मों को दबाते हुए अपने लौड़े उसके मुँह के सामने लहरा रहे थे. बबिता ने बसंती को देखा जिसने स्वीकृति दी तो बबिता ने दोनों लंड चाटे और थोड़ा चूसे. पर ये गैंगबैंग था, इसमें चूत और गाँड की खुदाई होनी थी. इसीलिए कुमार लेट गया और बबिता उसके ऊपर चढ़ गई और उसके लंड को चूत में ले लिया. चूत और गाँड दोनों चुद कर खुल चुकी थीं तो लंड के प्रवेश में कोई कठिनाई नहीं हुई.

बबिता चूत में पूरा लंड लेकर रुक गई और पीछे से उसके पति ने उसकी गाँड पर हाथ फेरा और अपना लंड उसकी गाँड पर रखा और एक धक्का मारा. बबिता की सिसकी निकली और सुशील ने दो और धक्कों में पूरा लौड़ा जड़ तक पेल दिया.

कुछ पल यूँ ही रुक कर पहले कुमार ने अपनी कमर हिलाई और बबिता की चूत में लंड पेलना आरम्भ किया. सुशील ने उसके कुछ ही पलों के बाद अपने लंड का संचालन आरम्भ कर दिया. पति और नाती बबिता की दुहरी चुदाई करने लगे और शीघ्र ही गति पकड़ ली.

दोनों एक दूसरे से अच्छा सामंजस्य और ताल मिलाकर बबिता की चूत और गाँड की ठुकाई कर रहे थे. बबिता को आज की पहली दुहरी चुदाई का आनंद मिल रहा था. सोने पर सुहागा ये था कि उसमें से एक उसका पति था तो दूसरा माना हुआ नाती. ये अलौकिक आनंद उसकी सिसकारियों में और भी मादकता भर रहा था. जहाँ अन्य सभी जोड़े इसे एक सामान्य चुदाई की दृष्टि से देख रहे थे, वहीँ शालिनी अभी भी इस प्रकार की चुदाई से अचंभित थी. कितनी सरलता से बबिता इस आयु के पड़ाव में भी इस प्रकार की चुदाई का सुख ले रही थी ये उसके लिए अचरज का विषय था.

वो स्वयं को इस स्थिति में देखने के लिए आतुर थी और जीवन ने उसे विश्वास दिलाया था कि उसे अपने घर लौटने से पहले वो हर आसन और मिश्रण का आनंद दिलवाएगा. और वो इस खेल में शीघ्र स्नातक से स्नातकोत्तर की श्रेणी में उत्तीर्ण होने के लिए लालायित थी. जीवन भी उसे इस ओर सुचारु रूप से खींच रहा था.

चुदाई की गति में अब एक ठहराव सा आ गया था, इसे देखकर नाना नाती ने अपनी ताल बदली और इस बार दोनों ने से एक का ही लौड़ा अंदर होता. अंदर जाते और बाहर निकलते लौंड़ों का घर्षण बबिता को आनंद की नई ऊंचाइयों की ओर ले चला. अब नाना नाती इसी प्रकार से ताल और गति के विभिन्न मिश्रणों से बबिता को चोदने लगे. शालिनी के जीवन के पुरुष साथियों की शक्ति पर भी बहुत गर्व था. वो भी आम पुरुषों की अपेक्षा अधिक देर तक चुदाई करने में सक्षम थे.

कई मिनटों की इस चुदाई के बाद सुशील ने झड़ने के निकट होने की बात कही तो गति को धीमा किया गया. और झड़ने से बचते हुए सुशील ने अपना लंड बाहर निकाल लिया. उसके लंड निकालते ही कुमार ने फिर से बबिता की चुदाई आरम्भ कर दी.

सुशील अपना सना लौड़ा लेकर बसंती के पास चला गया जहाँ उसका भरपूर स्वागत हुआ और वो अपने वीर्य और मूत्र का दान देकर अपने स्थान पर जा बैठा. अब उसके पास लगभग दो घण्टे थे तो उसने अपने लिए पेग बनाया और सामने अपने पत्नी की इस चुदाई के अंतिम चरण को देखने लगा. उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और कुमार ने भी अपनी चुदाई का कर्तव्य पूरा किया और जाकर अपनी छोटी नानी को भेंट चढ़ाई और एक पेग बनाकर अपने नाना के पास बैठ गया. बबिता लड़खड़ाती हुई बसंती के पास जा बैठी जहाँ बंसती ने उसके दोनों छेदों की आवभगत की और फिर बाल्टी में अपने लिए बबिता का जल एकत्रित कर लिया. उसने फिर से बबिता को उसके स्थान पर भेजा और अगले चोदुओं की घोषणा की.

इस बार बलवंत को गाँड और कँवल को चूत का दायित्व मिला. दोनों जाकर बबिता से अपने लौड़े चुसवाने लगे और बलवंत लेट गया. बबिता उसके ऊपर चढ़ी और अपनी गाँड पर उसका लंड लगाकर बैठ गई. पक्क की ध्वनि से लंड अंदर समा गया. बबिता अपने हाथों के बल पीछे झुकी और कँवल ने अपना लौड़ा उसकी चूत में पेलने में समय न गँवाया।

इस आसन में गाँड अधिक तंग हो जाती है और चूत की ऊपर से चुदाई होने के कारण अधिक आनंद आता है. नीचे लेटे हुए पुरुष को भी अधिक परिश्रम करना पड़ता पर उसे सुख पूरा प्राप्त होता है. फिर से धुरंधर गति से बबिता की चुदाई का आरम्भ हो गया. नीचे से बलवंत हाथ बढ़कर बबिता के मम्मों को निर्ममता से मसलने लगा. बबिता की अब हल्की घुटी चीखें निकल रही थीं. परन्तु इस बार शालिनी को कोई शंका नहीं थी कि इसमें भी बबिता को आनंद ही मिल रहा था. उसने स्वयं अपने मम्मों को दबाया और हल्की सी सिसकारी ली.

गीता जाकर बसंती के सामने की बैठ गई और बसंती की चूत चाटकर उसे झड़ा दिया फिर गीता दूसरी कुर्सी पर बैठी और उसकी चूत को चाटा और उसके दोनों स्त्राव का सेवन किया.

गीता: “इतना बाल्टी में जो लिए बैठी है उसका क्या करेगी?”

बसंती ने चुल्लू से उसमें से मूत्र निकाला और चेहरे पर डालकर उसे धो लिया. फिर बाल्टी में मुँह डालकर पीने लगी. ऐसा करने से उसके बाल भी गीले हो गए. उसका चेहरा जब ऊपर आया तो उसकी आँखें लाल थीं.

“बस दीदी, यही करुँगी। पर यूँ व्यर्थ न बहाऊँगी.”

“इसे साफ करने का काम तेरा ही है समझी न? नहीं तो कल पूरा कमरा महक जायेगा.”

“चिंता न करो दीदी. आपको आज तक कभी कहने की आवश्यकता पड़ी जो आज कह रही हो.”

“अरे आज शालिनी आई है. नई है, न जाने क्या क्या सोचे हमारे बारे में.”

“दीदी, जहाँ समझी हूँ, वो हमारे बारे में सब अच्छा ही सोच रही हैं.”

ये कहते हुए बाल्टी में से उसने चुल्लू भरा और अपने स्तनों में मल लिया. गीता सिर हिलाती अपने स्थान पर चली गई. अपने स्थान पर बैठकर वो बबिता की चुदाई का दृश्य देखने लगी. उसे बसंती की इस विकृति से घृणा नहीं थी, पर ये उसका घर था जिसमें दुर्गंध को वो सहन नहीं कर सकती थी. परन्तु बसंती हमेशा पूरी सफाई करके ही हटती थी इसीलिए अधिक तर्क का नहीं था.

बलवंत और कँवल के बीच पिसती हुई बबिता सुख के सागर में गोते लगा रही थी. इस आसन का आनंद ही भिन्न था. बलवंत के द्वारा उसके मम्मों का भींचा जाना उसे और सुख दे रहा था. उसे कठोर चुदाई में अधिक आनंद आता था और इन कुछ दिनों में उसकी ये इच्छा पूर्ण होने में कोई कमी नहीं थी. उसके नातियों द्वारा चूत और गाँड की विशेष चुदाई और कुछ पहले जीवन की निर्मम चुदाई इसका उदाहरण थे. अभी तो इस गैंगबैंग का आरम्भ ही हुआ था. अभी तो पूरी रात्रि शेष थी जिसमें उसे इतने लौड़े चोदने वाले थे जिनका वो ध्यान भी नहीं रख सकती थी.

बसंती इसी कारण इस गैंगबैंग को चरण-बद्ध रूप से संजोया था. अन्यथा सब शीघ्र ही संतुष्ट हो जाते और रात युवा ही रह जाती.

चूँकि कँवल अधिक परिश्रम कर रहा था इसीलिए पहले उसने ही झड़ने की घोषणा की और अपना लंड बबिता की चूत ने बाहर खींचा और लगभग दौड़ते हुए बसंती के सामने खड़ा हो गया. बसंती ने मुस्कुराकर उसका स्वागत किया और अपना कर्तव्य पूरा किया और कँवल से उसका कर्तव्य पूरा करवाया.

कुछ ही समय और निकला कि बलवंत ने भी बबिता से हटने के लिए कहा. बबिता अभी झड़ ही रह थी तो उसने मन मार कर बलवंत का लौड़ा अपनी गाँड से निकाला और हट गई. बलवंत ने उठकर बसंती के चौखट पर अपना योगदान दिया. इसके बाद बबिता आई और उसने भी बसंती को अपना मूत्र पिलाया. इसके बाद बसंती जो इतनी देर से पानी पिए जा रही थी तो उसने भी बाल्टी में अपना अंश जोड़ दिया. बसंती ने बबिता से कहा कि वो जाकर पलंग पर बिछी चादर हटाकर दूसरी बिछा दे फिर उसके ही पास आकर बैठ जाये। बबिता ने ये कार्य शीघ्र समाप्त कर लिया.

बसंती ने असीम और शालिनी को अपना कार्यक्रम आरम्भ करने का आदेश दिया. असीम अपनी भावी दादी को लेकर पलंग पर गया और उनके कान में कुछ कहा. शालिनी ने स्वीकृति दी तो असीम ने अपना लंड उसके मुँह के सामने कर दिया. असीम के मोटे लम्बे लौड़े को चूसने चाटने में शालिनी को बहुत आनंद मिल रहा था.

कुछ देर में असीम ने अपना लंड निकाल लिया क्योंकि वो इसका उपयोग शालिनी की चुदाई के लिए करना चाहता था. उसने शालिनी के पैरों को फैलाया और उसकी चूत चाटने लगा. शालिनी कुछ ही पलों में काँपने लगी तो असीम ने अपनी जीभ बाहर निकाल ली और खड़ा हो गया. उसने शालिनी को उचित स्थित में आने के लिए कहा.

असीम ने अपना लौड़ा शालिनी की चूत पर रखा तो शालिनी की अपने पोते गौतम के साथ की हुई पहली चुदाई का ध्यान आया. असीम ने धीमी गति से अपने लंड को शालिनी की चूत में उतार दिया और उसे चोदने लगा. कुछ देर की सामान्य चुदाई के बाद उसने गति बढ़ाई और शालिनी भी उसका साथ देने लगी. कुछ ही देर हुई थी कि पीछे से बसंती ने पुकारा.

“अब गाँड मारो!”

असीम ने आज्ञाकारी नाती के समान अपना लंड बाहर निकाला और उसी आसन में शालिनी की गाँड पर लंड रखा. शालिनी के पैरों को उसने ऊपर किया तो पूनम ने आकर शालिनी के पैर पकड़ लिए जिससे असीम को कोई असुविधा न हो. आखिर नानी जो थी, अपने नाती का ध्यान रखना उसका कर्तव्य था. असीम ने उसे मूक धन्यवाद किया और अपने लंड को शालिनी की गाँड में डालना आरम्भ किया.

ये आसन गाँड मारने में कुछ कठिन होता है क्योंकि गाँड बहुत तंग हो जाती है. पर धैर्य और संयम का परिचय देते हुए असीम ने अपने सुपाड़े को अदंर प्रविष्ट कर दिया. इसके बाद की राह अपेक्षाकृत सरल थी और असीम ने बिना अधिक अड़चन के शालिनी की गाँड में अपना लंड पूरा डाला और धीमी गति से गाँड मारने लगा. कुछ ही देर हुई थी कि बसंती ने आदेश दिया.

“क्या लौंडे के जैसे गाँड मार रखा है, थोड़ा जम के मार. दादी है तेरी, इतना तो उसका ध्यान रख.”

असीम ने शालिनी को देखा तो उसने स्वीकृति दे दी और असीम ने गति बढ़ा दी. कुछ ही देर में वो शालिनी की चीखों के बीच उसकी गाँड धुआंधार गति से मार रहा था.

“और जोर लगा, असीम. अच्छे से मार अपनी दादी।” इस बार पूनम ने उसका उत्साह बढ़ाया. असीम अपने रौद्र रूप में आ गया और शालिनी की गाँड तीव्रता से मारने लगा.

कई पलों के बाद उसने पूनम को देखा, “नानी, अब में झड़ने वाला हूँ. आप दादी की टाँगे सम्भालो, मैं छोटी नानी के पास जा रहा हूँ.”

उसने अपना लंड बाहर निकाला और पूनम शालिनी को संभाले रही. फिर धीरे से उसकी टाँगे यथावत कर दीं.

असीम ने जाकर छोटी नानी से अपना लौड़ा चुसवा कर उनके मुँह में अपना वीर्य छोड़ा जिसका एक अंश प्याले में चला गया. फिर उसने छोटी नानी के मुँह, चेहरे और स्तनों पर मूत्र त्याग किया, जिसका कुछ भाग बाल्टी में गिरा. बसंती ने पिया और अपने चेहरे और शरीर पर मल कर असीम के लंड को चूमा।

“बहुत सीख गए को लल्ला. सदा सुखी रहो.”

असीम ने छोटी नानी को धन्यवाद दिया और अपने लिए पेग बनाने चला गया.

अब शालिनी आई और बसंती ने उसकी गाँड चाटी और उसके मूत्र का सेवन किया.

“तुम्हारे लिए मैंने नियम तोड़ा है बहूरानी. अब जाओ.”

“बबिता दीदी, अब आपको विश्राम मिल गया है. जस्सी भाईसाहब अब आपको चूत और बाबूजी आपको गाँड मारना है.” बसंती ने कहा तो जस्सी और जीवन खड़े हो गए. “इस चरण के बाद घण्टे का अंतिम विराम होगा.”

जहाँ जस्सी और बबिता पलंग की ओर बढ़े तो जीवन बसंती के पास गया और उससे टॉनिक पिलाने की माँग की. बसंती ने प्रेम से अपने बाबूजी को टॉनिक पिलाया जिसे पीकर तृप्त जीवन अखाड़े में चला गया. बबिता ने दोनों के लंड कुछ पल चूसे और फिर जस्सी को लिटाकर उसके लंड पर चढ़ गई. उसके पीछे से जीवन ने अपना लौड़ा उसकी गाँड में पेल दिया और बबिता की दुहरी चुदाई फिर आरम्भ हो गई. जस्सी और जीवन अनुमान के अनुसार तीव्रता से चुदाई कर रहे थे. बबिता के छेद भी अब खुल चुके थे और उसे भी इस चुदाई में आनंद आ रहा था. तीनों के शरीर एक दूसरे को सुख देने के लिए लालायित थे.

इस चरण की चुदाई भी लगभग दस पंद्रह मिनट चली और फिर जीवन ने अपना लौड़ा बाहर निकाला और बसंती को सौंप दिया. बसंती ने प्रेमपूर्वक उसे चुदाई से पूर्व स्थिति में चाटकर लाया और फिर अपने बाबूजी के मूत्र को अपने चेहरे पर लगाया और लंड नीचे करते हुए शेष शरीर को भी नहला दिया.

उधर जस्सी ने बबिता को नीचे कर दिया था और पाशविक गति से चोदे जा रहा था. फिर उसने भी लंड बाहर निकला और बसंती की चौखट पर अपना उपहार दिया. जीवन और जस्सी अपने पेग लेकर बैठ गए. बबिता ने भी जाकर बसंती की चूत को चाटा और फिर अपना मूत्र पिलाया और बाल्टी में भी डाल दिया. वो वहीं बैठी रही क्योंकि अब आधे घण्टे बाद उसके गैंगबैंग का अंतिम चरण आरम्भ होना था और उसे विश्राम करना था.

आधे घण्टे के स्थान पर लगभग 45 मिनट लग गए. बबिता हल्की नींद में चली गई और उसे उठाना थी नहीं था. इस बीच अन्य सभी सामान्य वार्तालाप करते रहे. जीवन एक ओर खड़ा होकर अपने दोनों पोतों से कुछ बात कर रहा था और दोनों उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे. सबके हाथ में अपनी रूचि का पेय था, जिसमें बसंती का अपना पेय भी था. कमरे में धीरे धीरे बसंती के स्थान की महक प्रबल होती जा रही थी. गीता ने कमरे को खोल दिया जिससे की कुछ गंध कम हो सके. पंखा चलने से कुछ ही देर में ये उद्देश्य पूरा हो गया पर अभी कमरा बंद नहीं किया गया.

“दीदी!” बसंती ने गीता को पुकारा.

गीता उसके पास गई तो बसंती ने पूछा: “दीदी, आपको इसमें असुविधा होती है तो मैं आगे से ऐसा नहीं करुँगी.”

गीता ने उसे देखा, “ऐसा कुछ नहीं है. तू कौन पराई है. और जब तेरे बाबूजी आते हैं और हमारा ये सब खेल चलता है, तभी तू भी खेलती है. चिंता न कर किसी को कोई समस्या नहीं है. अपने मन से ये विचार निकाल दे, समझे मेरी छोटी बहन.”

बसंती की आँखों में आँसू आ गए, उसका गला भर आया और वो उत्तर न दे सकी, बस सिर हिलाकर रह गई. गीता ने उसका सिर थपथपाया और चली गई. इतने में बबिता की आँख भी खुल गई. गीता ने उसे पानी पिलाया और फिर सुशील ने उसे एक पेग बना कर दिया. बबिता ने शांति से उसे समाप्त किया और बसंती की ओर देखा. बसंती उसका संकेत समझ गई और उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. गर्म फुहार ने उसके मुँह को भर दिया और इसकी समाप्ति के पश्चात बंसती हट गई और उसने बबिता को बैठे रहने के लिए कहा. बसंती ने ताली बजाई और सब उसकी ओर देखने लगे.

“अब हमारा अंतिम चरण आरम्भ होगा. जैसे नम्बर लगे हैं उसी प्रकार से चुदाई आरम्भ की जाएगी. असीम चूत और बलवंत भाईसाहब गाँड मारेंगे। जैसा की नियम है दोनों छेदों में हर समय लंड रहना चाहिए. मैं असीम और कुमार के लिए बता रही हूँ. अगर नीचे लेटा पुरुष झड़ने वाला है तो उन्हें पलटी मारनी होगी बिना लंड बाहर निकाले हुए. और उसका लंड बाहर निकलते ही अगले नम्बर वाले को उसका स्थान लेना है. चूत हो या गाँड किसी भी समय खाली नहीं रहनी है.”

“अगर विराम चाहिए भी है तो बबिता दीदी को सरला दीदी का नाम लेना होगा. ऐसा करने पर उन्हें कुछ देर का विश्राम दिया जायेगा. हाँ अगर उन्हें पानी पीना हो या मेरी सेवा की आवश्यकता हो (हंसती है) तब भी उन्हें यही करना होगा. विराम के बाद चुदाई वहीँ से आरम्भ होगी जहाँ रुकी थी. ध्यान रहे, बिना लंड के छेद नहीं रहना चाहिए, और सारा पानी मुझे मिलना चाहिए.”

उसने बबिता को देखा, “दीदी अब जाओ और आनंद लो. जब मन करे मेरे पास आ जाना, मेरी और अपनी प्यास बुझाने.”

बबिता पलंग पर जा बैठी और सातों पुरुषों ने उसे घेर लिया.

बसंती ने अन्य स्त्रियों को सम्बोधित किया: “आप एक दूसरे को या मुझे संतुष्ट कर सकती हैं. मेरे पास आने पर आपको पता है कि क्या करना होगा.”

इसके बाद सबका ध्यान पलंग की ओर चला गया जहाँ पहले गैंगबैंग का अंतिम चरण प्रारम्भ हो रहा था.

असीम लेट चुका था और बबिता ने उसका लौड़ा अपनी चूत में ले लिया था. जैसे ही बबिता आगे झुकी तो बलवंत ने आगे जाकर उसकी गाँड में लंड पेल दिया. असीम अपने नाना (उसके माँ के पिता) के साथ अपनी मुंह-बोली माँ की चुदाई करने जा रहा था. नाना नाती ने अपनी ताल साधी और बबिता की सिसकारियों ने कमरे में मधुर संगीत घोल दिया. अन्य पाँचों पुरुष अपने लंड धीमे धीमे सहला रहे थे, जिसमें जस्सी सर्वाधिक उतावला था. उसके साथ खड़े सुशील ने उसके हाथ पकड़ा जिससे कि वो अत्यधिक उत्साह में शीघ्र न झड़ जाये. सुशील को अपनी पत्नी के सुख का पूरा ध्यान था. जस्सी ने अपना हाथ धीमा दिया.

बलवंत और असीम दोनों अपनी पूरी ताल के साथ बबिता को चोदे जा रहे थे और बबिता आनंद के सागर में गोते लगा रही थी. अपने समय के अनुसार बलवंत ने ही पहले हटने की घोषणा की और जस्सी ने अपने लंड को संभाला। बलवंत ठीक से हटा भी नहीं था कि जस्सी के लंड ने उसका स्थान ले लिया और सवारी में जुट गया. बबिता की गाँड में बस हल्की पवन का एक झोंका पल भर को ही समा पाया था कि जस्सी के ढकते लौड़े ने उसे फिर से भर दिया.

असीम और जस्सी ने मिलकर बबिता को पलटा और बिना अपने लौड़े निकाले हुए इस बार जस्सी नीचे से गाँड मारने लगा तो असीम ऊपर से चूत का आनंद लेने लगा. जस्सी ने बबिता के मम्मों को अपने हाथों में लिया और दबाने लगा जिससे कि बबिता को और भी अधिक आनंद का अनुभव हुआ. उसकी चूत ने असीम के लंड को जकड़ना आरम्भ कर दिया तो असीम भी अपने स्खलन के निकट पहुंचने लगा.

बलवंत अपने और बबिता की गाँड के रस से चिपचिपाये लौड़े के साथ बसंती के पास गया तो बसंती ने उसे बड़े ही प्रेम से पहले तो चाटा और फिर मुँह में लेकर शीघ्र ही झड़ने पर विवश कर दिया. इस बार उसने अधिकतर वीर्य को प्याले में ही डाल दिया. “बाबू, मुँह में थोड़ा ही छोड़ना. अब पेट भरा हुआ है. चेहरे पर छोड़ो या बाल्टी में डाल दो.” बसंती ने कहा और फिर मुँह खोलकर बलवंत के मूत्र की प्रतीक्षा करने लगी.

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क्रमशः
1710500
Bahut hi shaandar update diya hai prkin bhai....
Nice and lovely update....
 

dhparikh

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अध्याय ७१: जीवन के गाँव में शालिनी ८
अध्याय ७० से आगे

अब आगे:

“आप सब मेरी बात सुनिए.” उसने पुकारा.

सब उसकी ओर देखने लगे.

“मेरा ये सोचना है कि अगली चुदाई में तीन के स्थान पर दो ही पुरुष रहेंगे. चूँकि मुँह चोदने वाला बबिता दीदी के मुँह में झड़ नहीं सकता तो इसका कोई अर्थ नहीं है. इसीलिए पहले असीम दीदी को चोदेगा, फिर जस्सी भाईसाहब उनकी गाँड मारेंगे। उसके बाद बाबूजी चोदें और कँवल भाईसाहब गाँड मारें. ये लगातार किया जा सकता है. अभी भी एक के बाद एक ही चोदेगा. क्या विचार है?”

“ठीक है. वैसे भी तेरे मुँह में झड़ने से अच्छा कुछ और छोड़ना है.” जीवन हँसते हुए बोला.

“बाबूजी, अधिक चतुर न बने, नहीं तो आज एक बूँद न छोड़ने दूँगी अपने मुँह में.” बसंती ने झूठा क्रोध दिखाया.

जीवन हँसते हुए बोला, “ठीक है मेरी रानी, तुझसे कैसे तर्क करूँगा, पक्का हार जाऊँगा।”

“अच्छा है इतनी सरलता से समझ गए.” ये कहकर उसने अपनी जीभ होंठों पर घुमाई. “तो अगला चरण आरम्भ हो, असीम बेटा चल अपनी नानी की चूत अब तक तरसने लगी होगी. उसके बाद मेरे ही पास आना.”

“जी छोटी नानी.” असीम ने सुशील की आज्ञा ली और फिर बबिता का हाथ लेकर पलंग की ओर चल दिया.

“मुझे प्यास लगी है, दीदी. आपमें से कौन आएगा? पहले मेरी चूत चाटनी होगी.”

निर्मला और शालिनी खड़ी हुईं पर शालिनी बैठ गई. निर्मला बसंती की चूत को चाटकर उसे झड़ाने में सफल हुई और फिर दूसरी कुर्सी पर बैठकर बसंती के मुँह में मूत्रदान किया. बसंती ने फिर कुछ बाल्टी में बचा लिया. निर्मला अपने स्थान पर आ बैठी। अब सबकी आँखें उस पलंग पर थीं जहाँ असीम ने अपने लौड़े को बबिता की चूत में धकेलना आरम्भ किया था. कुछ ही पलों में उसका पूरा लौड़ा बबिता की चूत में समा गया धुआँधार चुदाई आरम्भ हो गई. बबिता की चीखों से उसके आनंद का अनुमान मिल रहा था, वहीँ असीम की गुर्राहट उसकी शक्ति का परीक्षण ले रही थी.

पुरुष अपने लंड सहला रहे थे तो स्त्रियों की उँगलियां उनकी चूत को शांति करने का प्रयास कर रही थीं. इस बीच बबिता और असीम ने तीन बार आसन बदले और पंद्रह मिनट की कठोर तपस्या के बाद बबिता को तीन बार झड़ने का सुख प्राप्त हुआ. जब असीम को आभास हुआ कि वो झड़ने वाला है तो उसने अपनी गति कम की और फिर धीमे से अपना लंड बाहर निकाल लिया और फिर उसे लहराते हुए बसंती के पास जा खड़ा हुआ.

“बड़ी मलाई लगाकर लाये हो बिटवा अपनी छोटी नानी के लिए?” बसंती ने ये कहकर उसके लंड को चाटना आरम्भ किया. लंड को चमकाने के बाद उसे चूसने में जुट गई और जब असीम झड़ने लगा तो उसके वीर्य को काँच के प्याले में जोड़ दिया.

“छोटी नानी?”

“का बिटुआ?”

“अभी और कुछ भी है आपके लिए. मुँह तो खोलो.” असीम ने मुस्कुरा कर कहा.

“बड़े नटखट हो गए हो. अपनी छोटी नानी के मुँह में सूसू करना चाहते हो? पर तुम्हें कैसे मना करूँ?” बसंती ने मुँह खोला और असीम ने उसके मुँह में मूत्र त्याग करते हुए अपना कर्तव्य पूर्ण किया. बाल्टी का स्तर और बढ़ गया. असीम के हटते ही बबिता दूसरी कुर्सी पर आ बैठी और बसंती ने पहले उसकी चूत को अंदर से साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का दूसरा योगदान स्वीकारा. फिर उसकी गाँड को चाटकर कुछ चिकना किया।

“जाओ दीदी, अब जस्सी भाईसाहब आपकी गाँड फाड़ने को उतावले हैं.”

“जैसे मैं जानती नहीं.” उसने पलंग की ओर देखा जहाँ जस्सी अपने लंड को मुठिया रहा था. वो इठलाते हुए उसके पास पहुँच गई और घोड़ी बन गई.

जस्सी न जाने कबसे अपने लौड़े को सहलाये जा रहा था और इतना आतुर था कि बबिता के घोड़ी बनते ही उसने सवारी गाँठी और गाँड मारने लगा. बबिता अभी अपने आसन में पूर्ण रूप से स्थापित भी नहीं हो पाई थी कि गाँड में लौड़े ने धुआँधार चुदाई आरम्भ कर दी.

“इतना क्यों बेचैन हो? मैं कहीं भागी जा रही हूँ क्या. थोड़ी साँस तो लेने देते.” बबिता ने उलाहना दी तो जस्सी को अपनी त्रुटि का आभास हुआ. उसने धक्के धीमे किया और नीचे बबिता ने अपना आसन ठीक किया जिससे उसे भी गाँड मरवाने का आनंद प्राप्त हो सके.

बबिता ने पीछे सिर घुमाकर जस्सी को अब अपनी गति से आगे बढ़ने के लिए कहा तो जस्सी फिर से उसी पुरानी गति से उसकी गाँड मारने लगा. बबिता को अपनी गाँड में चलते हथोड़े का आनंद अनुभव होने लगा तो उसकी चूत ने पानी छोड़ा. बबिता ने अपना एक हाथ पीछे करते हुए अपने भग्नाशे को छेड़ा तो ढेर सा रस पलंग पर बिखर गया. उसके काँपते शरीर को जस्सी ने थामा और धक्कों की तीव्रता बढ़ा दी. बबिता ने अपना हाथ आगे करते हुए दोनों कोहनियों का सहारा लिया और जस्सी के धक्कों का साथ देने लगी. दोनों वासना के ज्वर में जल रहे थे और शीघ्र पतन की ओर अग्रसर हो रहे थे.

शालिनी के मन में एक प्रश्न था जिसे उसने जीवन से पूछा, “सभी को बसंती के पास क्यों जाना पड़ रहा है? वो भी तो आ सकती है.”

जीवन: “क्योंकि वो इस पूरे कार्यक्रम की संचालिका है. और उसे अपना स्थान पता है. अगर वो अपने सिहांसन से हटी तो वो जिस प्रकार से मूत्र इत्यादि का सेवन कर रही है उसका स्थान हम सबके मन में नीचा हो जायेगा. और ये हम सबके लिए एक अत्यंत दुःखद अनुभव होगा और इस प्रकार के आयोजन सम्भवतः बंद हो जायेंगे. बसंती को हम अपने परिवार का अभिन्न अंग समझते हैं, और उसकी बेटी का परिवार भी इसी प्रकार से हमारे साथ रहता है. क्या मैंने तुम्हारे प्रश्न का उत्तर ठीक से दिया है.”

“पूर्णतः”

“मुझे अगले चरण के लिए जाना होगा.” जीवन ने कहा.

“क्या मैं बसंती का…”

“ये उससे पूछना, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पर अभी मुझे उसकी आवश्यकता है.”

जीवन उठकर बसंती की ओर चला गया.

“आओ बाबूजी. जस्सी भाईसाहब लगता है आने ही वाले हैं.”

“हाँ, इसीलिए तो आया हूँ तेरा अमृत पीने. फिर बबिता की चुदाई जो करनी है.”

“तो बैठो न.”

जीवन उसके सामने बैठा और उसकी चूत पर मुँह लगाकर चाटने लगा. बसंती ने हल्का दबाव बनाकर उसके मुँह में अपना अमृत रस छोड़ दिया. जीवन अपनी प्यास बुझाकर खड़ा हो गया और घेरे से बाहर चला गया और जस्सी के अंतिम धक्कों को देखने लगा. जस्सी के धक्के धीमे पड़ चुके थे और बबिता की सिसकारियाँ भी मद्धम हो चुकी थीं.

जस्सी ने अपना लंड बबिता की गाँड से निकाला और फिर हिलाते हुए बसंती के पास आ खड़ा हुआ.

जीवन पलंग की ओर जा रहा था और जस्सी और उसने एक दूसरे को पार किया हाथ ऊपर मिलाकर ताली बजाई (इसे हाई फाइव भी कहते हैं) बबिता गहरी साँसे भरते हुए अपनी गाँड को सहला रही थी. बसंती ने जस्सी के लंड को चाटते हुए उसे चमकाया और चूसने लगी. कुछ ही पलों में जस्सी ने अपना वीर्य उसके मुँह में छोड़ा जिसे बसंती ने प्याले में थूक दिया और आना मुँह खोलकर जस्सी को देखने लगी.

जस्सी ने प्रेम से उसके सिर पर हाथ घुमाया और उसके बालों को सहलाते हुए उसके मुँह में अपना मूत्र का दान दे दिया.

बाल्टी में कुछ और मूत्र एकत्रित हो गया. जस्सी जाकर अपने स्थान पर बैठ गया और जीवन ने बबिता को उठाकर बसंती के पास भेज दिया. बबिता दूसरी कुर्सी पर बैठ गई और बसंती ने उसकी गाँड को साफ किया और फिर बबिता के मूत्र का रस लिया.

“हर बार तुम्हारा स्वाद नया होता है दीदी. अब जाओ बाबूजी आपको चोदने के लिए खड़े हैं.”

बबिता मुस्कुराई और जाकर पलंग पर लेटी और अपने पैरों को चौड़ा करते हुए जीवन को आमंत्रित किया.

“टॉनिक पी कर आये हो तो जम कर चोदना।” बबिता ने गाँड हिलाकर कहा.

“अरे तुम्हें चोदने के लिए कोई टॉनिक नहीं चाहिए. बस थोड़ी प्यास लगी थी.” जीवन ने हँसते हुए बबिता की जाँघ पर चपत मारी।

“मुझसे न बनो भाईसाहब, न जाने आपमें कहाँ की शक्ति आ जाती है बसंती का टॉनिक पीने के बाद.”

जीवन ने अपना लौड़ा बबिता की चूत पर रगड़ा, “इसीलिए तो मैं उसे समझा रहा हूँ कि भूरा को पिलाने लगे तो उसका नशा फुर्र हो जायेगा और लौड़ा भी खड़ा होने लगेगा.”

“सबको लौड़ा खड़ा करने के लिए मूत नहीं पीना पड़ता.” ये बबिता ने जीवन को छेड़ने के लिए कहा था जिससे कि वो उसकी चुदाई में कोई छूट न करे.”

जीवन के चेहरे पर छाती कुटिल मुस्कराहट ने बबिता को बता दिया कि तीर ने लक्ष्य पा लिया है. अब उसकी चूत की जो विकराल चुदाई होगी जिसकी उसे आशा थी.

जीवन ने एक लम्बे धक्के में बबिता की चूत को चीरते हुए अपना लौड़ा अंदर तक गाढ़ दिया. बबिता की ह्रदयविदारक चीख ने कमरे को हिला दिया. सुशील ने अपना सिर पकड़ लिया. वो जानता था कि बबिता ने जीवन को क्यों छेड़ा, पर पति जो था, उसकी चीख से उसका भी मन दहल गया. वहीँ शालिनी की तो मानो साँस ही रुक गई.

गीता ने उसकी जाँघ पर हाथ रखा और बोली, “ये इन दोनों का खेल है. बबिता उन्हें छेड़ देती है और वो उसकी जमकर चुदाई करते हैं. हम तीनों भी कभी कभी ऐसा ही करती हैं. जीवन की पाशविक चुदाई का आनंद ही भिन्न है. बबिता आगे गैंगबैंग में ऐसा कुछ न कर पायेगी, सो उसने अभी उनको छेड़ दिया.”

शालिनी अचरज से जीवन के नितम्बों को चलते हुए देख रही थी. इतनी तीव्र गति थी कि आँखों को कुछ सुझाई न दे रहा था.

जीवन की असीमित शक्ति को देखकर वो हतप्रभ थी. इस प्रकार से कौन चुदाई कर सकता है? बबिता की चीत्कारें धीमी होने का नाम नहीं ले रही थीं, न ही जीवन के मुँह से निकलती हुई गुर्राहट. इस प्रकार की चुदाई न जाने कितनी ही देर तक चलती रही जीवन ने लेशमात्र भी अपनी गति और शक्ति में कमी न की तो शालिनी चीख पड़ी, “अब बस भी करो.”

जीवन उसकी चीख सुनकर कुछ ठिठका फिर उसी गति से कुछ देर तक और बबिता को चोदने के बाद धीमा पड़ गया. अंततः उसने अपना लंड बाहर निकाला तो वो लाल हो गया था. वहीँ बबिता की चूत भी सूजकर लाल हो गई थी.

शालिनी जाकर बबिता के पास बैठ गई और जीवन मुस्कुराते हुए बसंती के पास खड़ा हो गया जिसने अपने कर्तव्य का निर्वाहण किया और जीवन के वीर्य को प्याले और मूत्र को मुँह और बाल्टी में प्राप्त किया.

“आप ठीक हो न?” शालिनी ने बबिता की चूत पर हाथ रखकर चिंता जताई.

“काहे रोक दी रहीं उस मादरचोद को. रोम रोम हिला दिया कुत्ते ने! कुछ देर और चोदता तो तृप्त हो जाती.” बबिता धीमे से बुदबुदाई.

शालिनी को झटका लगा. उसे तो लगा था कि बबिता कष्ट में थी, पर यहाँ तो बात बबिता उसका स्वागत कर रही थी.

“अब आई हो तो बसंती के पास ले चलो. उसकी भी प्यास मिटा दूँ.” बबिता ने आँख खोलकर कहा.

शालिनी ने उसे उठाया और बसंती की ओर देखा जो इस समय जीवन के मूत्र से अपना मुँह धो रही थी. शालिनी को ईर्ष्या हुई पर उसने जीवन के हटने की प्रतीक्षा की और उसके हटते ही बबिता को ले जाकर दूसरी कुर्सी पर बिठा दिया.

“तुम जाओ.” बबिता ने कहा तो शालिनी शांति से जाकर जीवन के पास जा बैठी.

“क्यों इतना छेड़ती देती हो दीदी बाबूजी को? देखो कितनी निर्ममता से चोदे हैं आपको?” बंसती ने उसके सामने बैठकर उसकी फूली चूत को सहलाते हुए पूछा.

“छेड़े बिना वो ऐसे नहीं चोदता। तू न समझेगी, जब तक वो मेरी ऐसी हड्डियाँ हिलाने वाली चुदाई न करे मेरी आत्मा को तृप्ति नहीं मिलती. वो तो शालिनी ने बीच में टाँग अड़ा दी नहीं तो मैं शिखर से गिरने वाली ही थी.”

“न जाने दीदी, मुझे भी उनकी ऐसी ही चुदाई में आनंद आता है, पर लगता है बहूरानी डर गई.” बसंती अब बबिता की चूत को प्रेम से चाटने लगी. बबिता का शरीर काँपने लगा और वो झड़ गई. बसंती ने उसका पानी पी लिया और चूत को फिर से चाटने लगी.

“थोड़ा विश्राम कर लो, फिर जाना.” बसंती बोली और असीम को बबिता के लिए पेग बनाने का संकेत किया. बबिता की चूत चाटते हुए उसने अनुभव किया कि असीम बबिता को उसका पेग थमा गया था.

“दीदी, मूतने का मन करे तो रुकना मत, बस बोल देना. नहीं तो बाल्टी में न डाल पाऊँगी.”

“ले ही आ बाल्टी भी. तेरी प्यास भी मिटा दूँ.” बबिता बोली और फिर बसंती ने बाल्टी अपने सामने रख ली. बबिता ने उसके मुँह में धार छोड़ दी और बबिता ने अपने लिए बाल्टी में और मूत्र जोड़ लिया.

“अब थोड़ी देर रुको, फिर कँवल भाईसाहब के पास चली जाना. इसके बाद आपको बस एक बार ही विराम मिलेगा क्योंकि उसके बाद निरंतर चुदाई होगी.”

“ठीक है.” ये कहते हुए बबिता ने आँखें बंद कर लीं और कुछ देर के लिए हल्की नींद में चली गई. जीवन की चुदाई का उस पर ये प्रभाव पड़ता था.

जब कुछ देर में नींद खुली तो बसंती पास आई और पूछा कि क्या वो ठीक है? बबिता ने कहा अब वो ठीक है तो बसंती ने उसकी गाँड को चाटा और उसे पलंग पर भेज दिया. उसके साथ ही कँवल भी खड़ा हुआ और उसके पास जाकर खड़ा हो गया. बबिता घोड़ी बनी और अपनी गाँड को हिलाया. कँवल ने देर न की और अपना लंड उसकी गाँड में पेल दिया और धकाधक गाँड मारने लगा.

कहा जाये तो गैंगबैंग का आरम्भ हो चुका था क्योंकि अब ये मात्र शारीरिक संबंध में सीमित होने लगा था. सब अपना सुख प्राप्त करने वाले थे. इसमें सर्वपरि बबिता थी जिसे सबके संसर्ग का सुख मिलेगा। अब किसी भी प्रकार का संवाद नहीं होना था, होना थी तो मात्र चुदाई, भीषण, वीभत्स, कठोर। बबिता आज के गैंगबैंग की रानी थी, और कल कोई और होने वाली थी. और इन सबको वश में रखने वाली उनके घर की नौकरानी की माँ थी जो उन्हें नियंत्रण में रखने वाली थी. और उसे इसके लिए पर्याप्त रस मिलने वाला था.

अब फिर बसंती को अनुदान देना था जिसके लिए इस बार शालिनी खड़ी हुई और बसंती के सामने जा खड़ी हुई. उसने संकेत किया तो बसंती ने मना कर दिया.

“अभी नहीं दीदी. यहाँ सबके सामने मेरा मूत मत पियो. अभी अपनी इस लालसा को हम तीनों के ही बीच रखो. समय आने पर ये भी सबको बता देंगे. पर अभी नहीं.”

शालिनी को बात समझ आई और वो दूसरी कुर्सी पर बैठी जहाँ बसंती ने उसका जल ग्रहण किया और बाल्टी में भी जोड़ा.

इसके बाद शालिनी ने जाकर एक पेग बनाया और जाकर जीवन के पास बैठ गई.

“मना कर दिया?”

“जी.”

“मैं जानता था, इसीलिए कहा था कि उससे ही पूछो.”

“आप दोनों सही हो. मैं ही अधीर हो रही हूँ.”

“ये चस्का ही ऐसा है. जितना डूबो उतना ही अपनी ओर खींचता है. चिंता न करो, आज रात तुम्हारी इच्छा पूरी कर देंगे.”

“जी. पर कँवल भाईसाहब बिना भावना बबिता की गाँड मार रहे हैं.”

“हाँ, इसका अर्थ ये है कि गैंगबैंग का आरम्भ हो गया है. गैंगबैंग में भावना नहीं मात्र शारीरिक तृप्ति सर्वोपरि होती है. भावना से ध्यान बँटता है. इसमें मात्र रानी के सुख का ध्यान रखा जाता है. उसकी इच्छा के ही अनुसार बसंती भी निर्देशन करेगी. देखना, जब तुम इसकी रानी बनोगी तब अनुभव होगा.”

“मुझे तो डर लग रहा है.”

“जैसे वो पीने में संकोच नहीं हुआ, इसमें भी नहीं होगा. वैसे बसंती और मैं पूरा ध्यान रखेंगे.”

“जैसा आप कहो.” ये कहकर शालिनी ने अपना पेग एक ही घूँट में समाप्त कर दिया. जीवन ने कुमार से नया पेग बनाने के लिए कहा और वो दादा और भावी दादी के लिए नया पेग बना लाया.

कुछ देर में कँवल ने अपना कार्य समाप्त किया और जाकर बसंती की चौखट पर अपना योगदान दिया. उसके बाद बबिता ने जाकर बसंती को अपनी गाँड और चूत का उपहार दिया. इसके बाद बसंती ने गीता को पुकारा और उसके जल का सेवन किया और आधे घंटे के विश्राम की घोषणा की. सब उठ कर अपने लिए पेग बनाने लगे, वहीँ बंसती ने प्याले में एकत्रित वीर्य में बाल्टी से कुछ मूत्र डाला और उसे ही अपना पेग समझ कर पीने लगी. कुछ वो अपने चेहरे और स्तनों पर मल लेती पर अधिकतर उसके पेट में ही जा रहा था. शालिनी बीच बीच में बसंती की इन गतिविधियों को देखकर उत्तेजित हो रही थी, परन्तु उसे अभी बहुत कुछ सीखना और अनुभव करना था. गाँव में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक उसकी सेक्स की परिभाषा से कितने भिन्न थे. ये सोचकर वो हतप्रभ थी.

जब विश्राम का समय समाप्त हुआ तो बसंती ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा।

“अब अकेले चोदने का कार्यक्रम समाप्त हुआ है. और इस बार बबिता दीदी को दो दो लौंड़ों से चुदने का आनंद दिया जायेगा. अन्य सभी नियम वही हैं, सबका पानी मुझे ही मिलेगा. एक जोड़े की चुदाई के बाद दस मिनट का विराम रहेगा. एक समस्या ये है कि आप सात पुरुष हैं, तो किसी एक को बबिता दीदी की इस चुदाई में छूटना होगा.”

सब पुरुषों के मुँह उतर गए. न जाने किसकी टिकट काट जाये.

“पर जैसा हम हर बार करते हैं, उसे हम सभी स्त्रियों में से किसी एक की चुदाई करने का अवसर दिया जायेगा. वो बबिता दीदी की चुदाई के पश्चात ही होगा. परन्तु उनके नाम अभी से बता दिए जायेंगे.”

सबके मन उत्सुक हो गए कि ऐसा कौन जोड़ा होगा.

“चूँकि शालिनी दीदी की चुदाई उनके पोतों से नहीं हुई है तो उन्हें इसका अवसर मिलेगा. और उनके साथ होगा….” ये कहकर वो कुमार और असीम को देखने लगी. उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी.

“टॉस करो!” असीम बोला।

एक सिक्का लाया गया और उसे शालिनी ने ही उछाला और असीम को विजयी घोषित किया.

“असीम बेटा, तुम तो जानते ही हो कि अंत कैसे करना है.” बसंती ने एक नटखट स्वर में पूछा.

“बिलकुल छोटी नानी. मैं कैसे भूल सकता हूँ.”

“तो ठीक है. अब बबिता दीदी की दुहरी चुदाई का कार्यक्रम किया जायेगा. इस बार कुमार को चूत और सुशील भाईसाहब को अपनी पत्नी की गाँड मारना है. अब जाइये और जाकर दीदी को रगड़ दीजिये.”

ये कहते हुए बसंती अपने स्थान पर बैठ गई. बबिता अपने पति सुशील और नाती कुमार के साथ पलंग पर चली गई. कुमार और सुशील बबिता में मम्मों को दबाते हुए अपने लौड़े उसके मुँह के सामने लहरा रहे थे. बबिता ने बसंती को देखा जिसने स्वीकृति दी तो बबिता ने दोनों लंड चाटे और थोड़ा चूसे. पर ये गैंगबैंग था, इसमें चूत और गाँड की खुदाई होनी थी. इसीलिए कुमार लेट गया और बबिता उसके ऊपर चढ़ गई और उसके लंड को चूत में ले लिया. चूत और गाँड दोनों चुद कर खुल चुकी थीं तो लंड के प्रवेश में कोई कठिनाई नहीं हुई.

बबिता चूत में पूरा लंड लेकर रुक गई और पीछे से उसके पति ने उसकी गाँड पर हाथ फेरा और अपना लंड उसकी गाँड पर रखा और एक धक्का मारा. बबिता की सिसकी निकली और सुशील ने दो और धक्कों में पूरा लौड़ा जड़ तक पेल दिया.

कुछ पल यूँ ही रुक कर पहले कुमार ने अपनी कमर हिलाई और बबिता की चूत में लंड पेलना आरम्भ किया. सुशील ने उसके कुछ ही पलों के बाद अपने लंड का संचालन आरम्भ कर दिया. पति और नाती बबिता की दुहरी चुदाई करने लगे और शीघ्र ही गति पकड़ ली.

दोनों एक दूसरे से अच्छा सामंजस्य और ताल मिलाकर बबिता की चूत और गाँड की ठुकाई कर रहे थे. बबिता को आज की पहली दुहरी चुदाई का आनंद मिल रहा था. सोने पर सुहागा ये था कि उसमें से एक उसका पति था तो दूसरा माना हुआ नाती. ये अलौकिक आनंद उसकी सिसकारियों में और भी मादकता भर रहा था. जहाँ अन्य सभी जोड़े इसे एक सामान्य चुदाई की दृष्टि से देख रहे थे, वहीँ शालिनी अभी भी इस प्रकार की चुदाई से अचंभित थी. कितनी सरलता से बबिता इस आयु के पड़ाव में भी इस प्रकार की चुदाई का सुख ले रही थी ये उसके लिए अचरज का विषय था.

वो स्वयं को इस स्थिति में देखने के लिए आतुर थी और जीवन ने उसे विश्वास दिलाया था कि उसे अपने घर लौटने से पहले वो हर आसन और मिश्रण का आनंद दिलवाएगा. और वो इस खेल में शीघ्र स्नातक से स्नातकोत्तर की श्रेणी में उत्तीर्ण होने के लिए लालायित थी. जीवन भी उसे इस ओर सुचारु रूप से खींच रहा था.

चुदाई की गति में अब एक ठहराव सा आ गया था, इसे देखकर नाना नाती ने अपनी ताल बदली और इस बार दोनों ने से एक का ही लौड़ा अंदर होता. अंदर जाते और बाहर निकलते लौंड़ों का घर्षण बबिता को आनंद की नई ऊंचाइयों की ओर ले चला. अब नाना नाती इसी प्रकार से ताल और गति के विभिन्न मिश्रणों से बबिता को चोदने लगे. शालिनी के जीवन के पुरुष साथियों की शक्ति पर भी बहुत गर्व था. वो भी आम पुरुषों की अपेक्षा अधिक देर तक चुदाई करने में सक्षम थे.

कई मिनटों की इस चुदाई के बाद सुशील ने झड़ने के निकट होने की बात कही तो गति को धीमा किया गया. और झड़ने से बचते हुए सुशील ने अपना लंड बाहर निकाल लिया. उसके लंड निकालते ही कुमार ने फिर से बबिता की चुदाई आरम्भ कर दी.

सुशील अपना सना लौड़ा लेकर बसंती के पास चला गया जहाँ उसका भरपूर स्वागत हुआ और वो अपने वीर्य और मूत्र का दान देकर अपने स्थान पर जा बैठा. अब उसके पास लगभग दो घण्टे थे तो उसने अपने लिए पेग बनाया और सामने अपने पत्नी की इस चुदाई के अंतिम चरण को देखने लगा. उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और कुमार ने भी अपनी चुदाई का कर्तव्य पूरा किया और जाकर अपनी छोटी नानी को भेंट चढ़ाई और एक पेग बनाकर अपने नाना के पास बैठ गया. बबिता लड़खड़ाती हुई बसंती के पास जा बैठी जहाँ बंसती ने उसके दोनों छेदों की आवभगत की और फिर बाल्टी में अपने लिए बबिता का जल एकत्रित कर लिया. उसने फिर से बबिता को उसके स्थान पर भेजा और अगले चोदुओं की घोषणा की.

इस बार बलवंत को गाँड और कँवल को चूत का दायित्व मिला. दोनों जाकर बबिता से अपने लौड़े चुसवाने लगे और बलवंत लेट गया. बबिता उसके ऊपर चढ़ी और अपनी गाँड पर उसका लंड लगाकर बैठ गई. पक्क की ध्वनि से लंड अंदर समा गया. बबिता अपने हाथों के बल पीछे झुकी और कँवल ने अपना लौड़ा उसकी चूत में पेलने में समय न गँवाया।

इस आसन में गाँड अधिक तंग हो जाती है और चूत की ऊपर से चुदाई होने के कारण अधिक आनंद आता है. नीचे लेटे हुए पुरुष को भी अधिक परिश्रम करना पड़ता पर उसे सुख पूरा प्राप्त होता है. फिर से धुरंधर गति से बबिता की चुदाई का आरम्भ हो गया. नीचे से बलवंत हाथ बढ़कर बबिता के मम्मों को निर्ममता से मसलने लगा. बबिता की अब हल्की घुटी चीखें निकल रही थीं. परन्तु इस बार शालिनी को कोई शंका नहीं थी कि इसमें भी बबिता को आनंद ही मिल रहा था. उसने स्वयं अपने मम्मों को दबाया और हल्की सी सिसकारी ली.

गीता जाकर बसंती के सामने की बैठ गई और बसंती की चूत चाटकर उसे झड़ा दिया फिर गीता दूसरी कुर्सी पर बैठी और उसकी चूत को चाटा और उसके दोनों स्त्राव का सेवन किया.

गीता: “इतना बाल्टी में जो लिए बैठी है उसका क्या करेगी?”

बसंती ने चुल्लू से उसमें से मूत्र निकाला और चेहरे पर डालकर उसे धो लिया. फिर बाल्टी में मुँह डालकर पीने लगी. ऐसा करने से उसके बाल भी गीले हो गए. उसका चेहरा जब ऊपर आया तो उसकी आँखें लाल थीं.

“बस दीदी, यही करुँगी। पर यूँ व्यर्थ न बहाऊँगी.”

“इसे साफ करने का काम तेरा ही है समझी न? नहीं तो कल पूरा कमरा महक जायेगा.”

“चिंता न करो दीदी. आपको आज तक कभी कहने की आवश्यकता पड़ी जो आज कह रही हो.”

“अरे आज शालिनी आई है. नई है, न जाने क्या क्या सोचे हमारे बारे में.”

“दीदी, जहाँ समझी हूँ, वो हमारे बारे में सब अच्छा ही सोच रही हैं.”

ये कहते हुए बाल्टी में से उसने चुल्लू भरा और अपने स्तनों में मल लिया. गीता सिर हिलाती अपने स्थान पर चली गई. अपने स्थान पर बैठकर वो बबिता की चुदाई का दृश्य देखने लगी. उसे बसंती की इस विकृति से घृणा नहीं थी, पर ये उसका घर था जिसमें दुर्गंध को वो सहन नहीं कर सकती थी. परन्तु बसंती हमेशा पूरी सफाई करके ही हटती थी इसीलिए अधिक तर्क का नहीं था.

बलवंत और कँवल के बीच पिसती हुई बबिता सुख के सागर में गोते लगा रही थी. इस आसन का आनंद ही भिन्न था. बलवंत के द्वारा उसके मम्मों का भींचा जाना उसे और सुख दे रहा था. उसे कठोर चुदाई में अधिक आनंद आता था और इन कुछ दिनों में उसकी ये इच्छा पूर्ण होने में कोई कमी नहीं थी. उसके नातियों द्वारा चूत और गाँड की विशेष चुदाई और कुछ पहले जीवन की निर्मम चुदाई इसका उदाहरण थे. अभी तो इस गैंगबैंग का आरम्भ ही हुआ था. अभी तो पूरी रात्रि शेष थी जिसमें उसे इतने लौड़े चोदने वाले थे जिनका वो ध्यान भी नहीं रख सकती थी.

बसंती इसी कारण इस गैंगबैंग को चरण-बद्ध रूप से संजोया था. अन्यथा सब शीघ्र ही संतुष्ट हो जाते और रात युवा ही रह जाती.

चूँकि कँवल अधिक परिश्रम कर रहा था इसीलिए पहले उसने ही झड़ने की घोषणा की और अपना लंड बबिता की चूत ने बाहर खींचा और लगभग दौड़ते हुए बसंती के सामने खड़ा हो गया. बसंती ने मुस्कुराकर उसका स्वागत किया और अपना कर्तव्य पूरा किया और कँवल से उसका कर्तव्य पूरा करवाया.

कुछ ही समय और निकला कि बलवंत ने भी बबिता से हटने के लिए कहा. बबिता अभी झड़ ही रह थी तो उसने मन मार कर बलवंत का लौड़ा अपनी गाँड से निकाला और हट गई. बलवंत ने उठकर बसंती के चौखट पर अपना योगदान दिया. इसके बाद बबिता आई और उसने भी बसंती को अपना मूत्र पिलाया. इसके बाद बसंती जो इतनी देर से पानी पिए जा रही थी तो उसने भी बाल्टी में अपना अंश जोड़ दिया. बसंती ने बबिता से कहा कि वो जाकर पलंग पर बिछी चादर हटाकर दूसरी बिछा दे फिर उसके ही पास आकर बैठ जाये। बबिता ने ये कार्य शीघ्र समाप्त कर लिया.

बसंती ने असीम और शालिनी को अपना कार्यक्रम आरम्भ करने का आदेश दिया. असीम अपनी भावी दादी को लेकर पलंग पर गया और उनके कान में कुछ कहा. शालिनी ने स्वीकृति दी तो असीम ने अपना लंड उसके मुँह के सामने कर दिया. असीम के मोटे लम्बे लौड़े को चूसने चाटने में शालिनी को बहुत आनंद मिल रहा था.

कुछ देर में असीम ने अपना लंड निकाल लिया क्योंकि वो इसका उपयोग शालिनी की चुदाई के लिए करना चाहता था. उसने शालिनी के पैरों को फैलाया और उसकी चूत चाटने लगा. शालिनी कुछ ही पलों में काँपने लगी तो असीम ने अपनी जीभ बाहर निकाल ली और खड़ा हो गया. उसने शालिनी को उचित स्थित में आने के लिए कहा.

असीम ने अपना लौड़ा शालिनी की चूत पर रखा तो शालिनी की अपने पोते गौतम के साथ की हुई पहली चुदाई का ध्यान आया. असीम ने धीमी गति से अपने लंड को शालिनी की चूत में उतार दिया और उसे चोदने लगा. कुछ देर की सामान्य चुदाई के बाद उसने गति बढ़ाई और शालिनी भी उसका साथ देने लगी. कुछ ही देर हुई थी कि पीछे से बसंती ने पुकारा.

“अब गाँड मारो!”

असीम ने आज्ञाकारी नाती के समान अपना लंड बाहर निकाला और उसी आसन में शालिनी की गाँड पर लंड रखा. शालिनी के पैरों को उसने ऊपर किया तो पूनम ने आकर शालिनी के पैर पकड़ लिए जिससे असीम को कोई असुविधा न हो. आखिर नानी जो थी, अपने नाती का ध्यान रखना उसका कर्तव्य था. असीम ने उसे मूक धन्यवाद किया और अपने लंड को शालिनी की गाँड में डालना आरम्भ किया.

ये आसन गाँड मारने में कुछ कठिन होता है क्योंकि गाँड बहुत तंग हो जाती है. पर धैर्य और संयम का परिचय देते हुए असीम ने अपने सुपाड़े को अदंर प्रविष्ट कर दिया. इसके बाद की राह अपेक्षाकृत सरल थी और असीम ने बिना अधिक अड़चन के शालिनी की गाँड में अपना लंड पूरा डाला और धीमी गति से गाँड मारने लगा. कुछ ही देर हुई थी कि बसंती ने आदेश दिया.

“क्या लौंडे के जैसे गाँड मार रखा है, थोड़ा जम के मार. दादी है तेरी, इतना तो उसका ध्यान रख.”

असीम ने शालिनी को देखा तो उसने स्वीकृति दे दी और असीम ने गति बढ़ा दी. कुछ ही देर में वो शालिनी की चीखों के बीच उसकी गाँड धुआंधार गति से मार रहा था.

“और जोर लगा, असीम. अच्छे से मार अपनी दादी।” इस बार पूनम ने उसका उत्साह बढ़ाया. असीम अपने रौद्र रूप में आ गया और शालिनी की गाँड तीव्रता से मारने लगा.

कई पलों के बाद उसने पूनम को देखा, “नानी, अब में झड़ने वाला हूँ. आप दादी की टाँगे सम्भालो, मैं छोटी नानी के पास जा रहा हूँ.”

उसने अपना लंड बाहर निकाला और पूनम शालिनी को संभाले रही. फिर धीरे से उसकी टाँगे यथावत कर दीं.

असीम ने जाकर छोटी नानी से अपना लौड़ा चुसवा कर उनके मुँह में अपना वीर्य छोड़ा जिसका एक अंश प्याले में चला गया. फिर उसने छोटी नानी के मुँह, चेहरे और स्तनों पर मूत्र त्याग किया, जिसका कुछ भाग बाल्टी में गिरा. बसंती ने पिया और अपने चेहरे और शरीर पर मल कर असीम के लंड को चूमा।

“बहुत सीख गए को लल्ला. सदा सुखी रहो.”

असीम ने छोटी नानी को धन्यवाद दिया और अपने लिए पेग बनाने चला गया.

अब शालिनी आई और बसंती ने उसकी गाँड चाटी और उसके मूत्र का सेवन किया.

“तुम्हारे लिए मैंने नियम तोड़ा है बहूरानी. अब जाओ.”

“बबिता दीदी, अब आपको विश्राम मिल गया है. जस्सी भाईसाहब अब आपको चूत और बाबूजी आपको गाँड मारना है.” बसंती ने कहा तो जस्सी और जीवन खड़े हो गए. “इस चरण के बाद घण्टे का अंतिम विराम होगा.”

जहाँ जस्सी और बबिता पलंग की ओर बढ़े तो जीवन बसंती के पास गया और उससे टॉनिक पिलाने की माँग की. बसंती ने प्रेम से अपने बाबूजी को टॉनिक पिलाया जिसे पीकर तृप्त जीवन अखाड़े में चला गया. बबिता ने दोनों के लंड कुछ पल चूसे और फिर जस्सी को लिटाकर उसके लंड पर चढ़ गई. उसके पीछे से जीवन ने अपना लौड़ा उसकी गाँड में पेल दिया और बबिता की दुहरी चुदाई फिर आरम्भ हो गई. जस्सी और जीवन अनुमान के अनुसार तीव्रता से चुदाई कर रहे थे. बबिता के छेद भी अब खुल चुके थे और उसे भी इस चुदाई में आनंद आ रहा था. तीनों के शरीर एक दूसरे को सुख देने के लिए लालायित थे.

इस चरण की चुदाई भी लगभग दस पंद्रह मिनट चली और फिर जीवन ने अपना लौड़ा बाहर निकाला और बसंती को सौंप दिया. बसंती ने प्रेमपूर्वक उसे चुदाई से पूर्व स्थिति में चाटकर लाया और फिर अपने बाबूजी के मूत्र को अपने चेहरे पर लगाया और लंड नीचे करते हुए शेष शरीर को भी नहला दिया.

उधर जस्सी ने बबिता को नीचे कर दिया था और पाशविक गति से चोदे जा रहा था. फिर उसने भी लंड बाहर निकला और बसंती की चौखट पर अपना उपहार दिया. जीवन और जस्सी अपने पेग लेकर बैठ गए. बबिता ने भी जाकर बसंती की चूत को चाटा और फिर अपना मूत्र पिलाया और बाल्टी में भी डाल दिया. वो वहीं बैठी रही क्योंकि अब आधे घण्टे बाद उसके गैंगबैंग का अंतिम चरण आरम्भ होना था और उसे विश्राम करना था.

आधे घण्टे के स्थान पर लगभग 45 मिनट लग गए. बबिता हल्की नींद में चली गई और उसे उठाना थी नहीं था. इस बीच अन्य सभी सामान्य वार्तालाप करते रहे. जीवन एक ओर खड़ा होकर अपने दोनों पोतों से कुछ बात कर रहा था और दोनों उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे. सबके हाथ में अपनी रूचि का पेय था, जिसमें बसंती का अपना पेय भी था. कमरे में धीरे धीरे बसंती के स्थान की महक प्रबल होती जा रही थी. गीता ने कमरे को खोल दिया जिससे की कुछ गंध कम हो सके. पंखा चलने से कुछ ही देर में ये उद्देश्य पूरा हो गया पर अभी कमरा बंद नहीं किया गया.

“दीदी!” बसंती ने गीता को पुकारा.

गीता उसके पास गई तो बसंती ने पूछा: “दीदी, आपको इसमें असुविधा होती है तो मैं आगे से ऐसा नहीं करुँगी.”

गीता ने उसे देखा, “ऐसा कुछ नहीं है. तू कौन पराई है. और जब तेरे बाबूजी आते हैं और हमारा ये सब खेल चलता है, तभी तू भी खेलती है. चिंता न कर किसी को कोई समस्या नहीं है. अपने मन से ये विचार निकाल दे, समझे मेरी छोटी बहन.”

बसंती की आँखों में आँसू आ गए, उसका गला भर आया और वो उत्तर न दे सकी, बस सिर हिलाकर रह गई. गीता ने उसका सिर थपथपाया और चली गई. इतने में बबिता की आँख भी खुल गई. गीता ने उसे पानी पिलाया और फिर सुशील ने उसे एक पेग बना कर दिया. बबिता ने शांति से उसे समाप्त किया और बसंती की ओर देखा. बसंती उसका संकेत समझ गई और उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. गर्म फुहार ने उसके मुँह को भर दिया और इसकी समाप्ति के पश्चात बंसती हट गई और उसने बबिता को बैठे रहने के लिए कहा. बसंती ने ताली बजाई और सब उसकी ओर देखने लगे.

“अब हमारा अंतिम चरण आरम्भ होगा. जैसे नम्बर लगे हैं उसी प्रकार से चुदाई आरम्भ की जाएगी. असीम चूत और बलवंत भाईसाहब गाँड मारेंगे। जैसा की नियम है दोनों छेदों में हर समय लंड रहना चाहिए. मैं असीम और कुमार के लिए बता रही हूँ. अगर नीचे लेटा पुरुष झड़ने वाला है तो उन्हें पलटी मारनी होगी बिना लंड बाहर निकाले हुए. और उसका लंड बाहर निकलते ही अगले नम्बर वाले को उसका स्थान लेना है. चूत हो या गाँड किसी भी समय खाली नहीं रहनी है.”

“अगर विराम चाहिए भी है तो बबिता दीदी को सरला दीदी का नाम लेना होगा. ऐसा करने पर उन्हें कुछ देर का विश्राम दिया जायेगा. हाँ अगर उन्हें पानी पीना हो या मेरी सेवा की आवश्यकता हो (हंसती है) तब भी उन्हें यही करना होगा. विराम के बाद चुदाई वहीँ से आरम्भ होगी जहाँ रुकी थी. ध्यान रहे, बिना लंड के छेद नहीं रहना चाहिए, और सारा पानी मुझे मिलना चाहिए.”

उसने बबिता को देखा, “दीदी अब जाओ और आनंद लो. जब मन करे मेरे पास आ जाना, मेरी और अपनी प्यास बुझाने.”

बबिता पलंग पर जा बैठी और सातों पुरुषों ने उसे घेर लिया.

बसंती ने अन्य स्त्रियों को सम्बोधित किया: “आप एक दूसरे को या मुझे संतुष्ट कर सकती हैं. मेरे पास आने पर आपको पता है कि क्या करना होगा.”

इसके बाद सबका ध्यान पलंग की ओर चला गया जहाँ पहले गैंगबैंग का अंतिम चरण प्रारम्भ हो रहा था.

असीम लेट चुका था और बबिता ने उसका लौड़ा अपनी चूत में ले लिया था. जैसे ही बबिता आगे झुकी तो बलवंत ने आगे जाकर उसकी गाँड में लंड पेल दिया. असीम अपने नाना (उसके माँ के पिता) के साथ अपनी मुंह-बोली माँ की चुदाई करने जा रहा था. नाना नाती ने अपनी ताल साधी और बबिता की सिसकारियों ने कमरे में मधुर संगीत घोल दिया. अन्य पाँचों पुरुष अपने लंड धीमे धीमे सहला रहे थे, जिसमें जस्सी सर्वाधिक उतावला था. उसके साथ खड़े सुशील ने उसके हाथ पकड़ा जिससे कि वो अत्यधिक उत्साह में शीघ्र न झड़ जाये. सुशील को अपनी पत्नी के सुख का पूरा ध्यान था. जस्सी ने अपना हाथ धीमा दिया.

बलवंत और असीम दोनों अपनी पूरी ताल के साथ बबिता को चोदे जा रहे थे और बबिता आनंद के सागर में गोते लगा रही थी. अपने समय के अनुसार बलवंत ने ही पहले हटने की घोषणा की और जस्सी ने अपने लंड को संभाला। बलवंत ठीक से हटा भी नहीं था कि जस्सी के लंड ने उसका स्थान ले लिया और सवारी में जुट गया. बबिता की गाँड में बस हल्की पवन का एक झोंका पल भर को ही समा पाया था कि जस्सी के ढकते लौड़े ने उसे फिर से भर दिया.

असीम और जस्सी ने मिलकर बबिता को पलटा और बिना अपने लौड़े निकाले हुए इस बार जस्सी नीचे से गाँड मारने लगा तो असीम ऊपर से चूत का आनंद लेने लगा. जस्सी ने बबिता के मम्मों को अपने हाथों में लिया और दबाने लगा जिससे कि बबिता को और भी अधिक आनंद का अनुभव हुआ. उसकी चूत ने असीम के लंड को जकड़ना आरम्भ कर दिया तो असीम भी अपने स्खलन के निकट पहुंचने लगा.

बलवंत अपने और बबिता की गाँड के रस से चिपचिपाये लौड़े के साथ बसंती के पास गया तो बसंती ने उसे बड़े ही प्रेम से पहले तो चाटा और फिर मुँह में लेकर शीघ्र ही झड़ने पर विवश कर दिया. इस बार उसने अधिकतर वीर्य को प्याले में ही डाल दिया. “बाबू, मुँह में थोड़ा ही छोड़ना. अब पेट भरा हुआ है. चेहरे पर छोड़ो या बाल्टी में डाल दो.” बसंती ने कहा और फिर मुँह खोलकर बलवंत के मूत्र की प्रतीक्षा करने लगी.

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क्रमशः
1710500
Nice update....
 
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