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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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Nice and superb update....अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
अध्याय ७१ से आगे
अब तक:
बलवंत और असीम दोनों अपनी पूरी ताल के साथ बबिता को चोदे जा रहे थे और बबिता आनंद के सागर में गोते लगा रही थी. अपने समय के अनुसार बलवंत ने ही पहले हटने की घोषणा की और जस्सी ने अपने लंड को संभाला। बलवंत ठीक से हटा भी नहीं था कि जस्सी के लंड ने उसका स्थान ले लिया और सवारी में जुट गया. बबिता की गाँड में बस हल्की पवन का एक झोंका पल भर को ही समा पाया था कि जस्सी के ढकते लौड़े ने उसे फिर से भर दिया.
असीम और जस्सी ने मिलकर बबिता को पलटा और बिना अपने लौड़े निकाले हुए इस बार जस्सी नीचे से गाँड मारने लगा तो असीम ऊपर से चूत का आनंद लेने लगा. जस्सी ने बबिता के मम्मों को अपने हाथों में लिया और दबाने लगा जिससे कि बबिता को और भी अधिक आनंद का अनुभव हुआ. उसकी चूत ने असीम के लंड को जकड़ना आरम्भ कर दिया तो असीम भी अपने स्खलन के निकट पहुंचने लगा.
बलवंत अपने और बबिता की गाँड के रस से चिपचिपाये लौड़े के साथ बसंती के पास गया तो बसंती ने उसे बड़े ही प्रेम से पहले तो चाटा और फिर मुँह में लेकर शीघ्र ही झड़ने पर विवश कर दिया. इस बार उसने अधिकतर वीर्य को प्याले में ही डाल दिया. “बाबू, मुँह में थोड़ा ही छोड़ना. अब पेट भरा हुआ है. चेहरे पर छोड़ो या बाल्टी में डाल दो.” बसंती ने कहा और फिर मुँह खोलकर बलवंत के मूत्र की प्रतीक्षा करने लगी.
अब आगे:
बलवंत ने बसंती की आज्ञा का पालन किया और उसके चेहरे और वक्ष पर धार छोड़ने के पश्चात बाल्टी में शेष मूत्र त्याग दिया।
“बाबूजी, जो भी अंतिम चुदाई करे, उन्हें बता देना कि अंतिम रस दीदी की चूत और गाँड में ही छोड़ें. आप तो जानते ही हो कि मैं इस प्रकार के आयोजनों का समापन किस प्रकार से करती हूँ.” बसंती ने कहा.
“ठीक है, बसंती, जैसा तुम चाहो.” ये कहकर बलवंत ने अपने लिए एक पेग बनाया और बबिता की घनघोर चुदाई का दृश्य देखने लगा.
बबिता के गैंगबैंग का ये चरण आगे बढ़ने लगा. जैसा निर्धारित था उसकी चूत और गाँड बस पल भर के लिए ही लंड-विहीन होती थी. जैसे ही एक लंड निकलता दूसरा उसका स्थान तत्परता से ले लेता. शालिनी बबिता के सामर्थ्य से विस्मित थी. फिर उसे ध्यान आया कि इस कमरे में उपस्थित हर स्त्री इतना ही समर्थ थी. क्या वो भी इनके समान इस प्रकार की निरंतर चुदाई को झेल पायेगी.
बबिता ने अगले दो घंटों में तीन बार सरला का नाम लेकर कुछ विश्राम लिया. परन्तु इस अवधि में भी लौड़े चूत और गाँड से नहीं, बस कुछ पलों के लिए चुदाई को विराम दिया गया. एक बार अवश्य बबिता ने मूत्र निस्तारण के लिए लौड़े बाहर निकलने दिए था और बसंती को अपनी भेंट देकर कुछ पल बैठी और फिर से संग्राम छेत्र में लौट गई.
इस प्रकार की चुदाई के लगभग दो घण्टे बाद पुरुष शिथिल होने लगे तो बलवंत ने बसंती की आज्ञा उन्हें बता दी. अंतिम जोड़ी में अब जीवन और असीम बबिता की चूत और गाँड में धककमपेल कर रहे थे. बबिता की शक्ति अब लगभग समापन की ओर थी, फिर भी वो उन दोनों को प्रोत्साहित कर रही थी. जीवन ने अपना रस बसंती की चूत में भरा और रुक गया. असीम समझ गया कि वही इस द्वन्द का अंतिम योद्धा है. एक गर्वान्वित भाव से उसने भी अपने लंड के रस से बबिता की आहत गाँड सीँच दिया.
उधर बसंती ने एक तौलिये से अपने शरीर को पोंछा और असीम के पास आ खड़ी हुई. मूत्र की तीव्र गंध से असीम विचलित हो गया.
“लल्ला अब तुम हटो, मुझे मलाई खाना है. और तुमसे एक भेंट भी चाहिए.” बसंती की बात सुनकर असीम कुछ समझा नहीं, पर उसने अपना लौड़ा बबिता की गाँड से निकाल लिया. बसंती एक बार शालिनी की ओर देखा और अपनी जीभ से बबिता की गाँड चाटने लगी. बबिता को जब बसंती की जीभ का आभास हुआ तो उसने अपनी गाँड को खोलने सिकोड़ने करने का उपक्रम किया. असीम का वीर्य अब उसकी गाँड से बाहर निकलने लगा जिसे बसंती बड़े चाव से चाटती रही. अंत में उसने अपनी जीभ को अंदर धकेला और घुमाते हुए चाट लिया.
“दीदी, अब आप जाकर वहाँ बैठो और लल्ला को साथ ले जाओ. अब आप चाहो तो उसका लंड चूस सकती हो.” बसंती ने कहा.
असीम का हाथ पकड़कर बबिता के आसन के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई.
“बाबूजी, अब आप भी जाओ और दीदी से अपना लंड चमकवा लो.” बसंती ने कहते हुए जीवन को उठाया.
जीवन बबिता के समक्ष खड़ा हो गया और बबिता ने असीम के लंड मुँह से निकाला और जीवन के लंड को चूसने लगी.
“बाबूजी, अब आप चलो अपने स्थान पर.” बसंती ने जीवन को बोला तो जीवन चुपचाप अपने लिए पेग बनाकर शालिनी के पास बैठ गया.
“अब जो देखोगी तो सम्भवतः तुम विचलित हो जाओ. परन्तु ये बबिता के गैंगबैंग से साथ ही बसंती का भी दूसरे अर्थ का गैंगबैंग है. इस प्रकार के आयोजन का समापन एक विशेष प्रकार से होता है. असीम को अब पता चलेगा कि बसंती ने उससे क्या भेंट माँगी है.”
असीम के चेहरे पर आश्चर्य के भाव देखकर शालिनी समझ गई कि बसंती ने अपनी भेंट की इच्छा बता दी थी. बबिता के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो असीम के इस अचरज पर मुस्कुरा रही थी. बंसती की मांग सुनकर असीम ने बबिता को देखा.
“बिटवा, यही इन कार्यक्रमों का अंतिम चरण होता है. तूने मेरी गाँड में जो अपना रस छोड़ा है वो बसंती पूरा नहीं चाट पाई. तो उसे धोकर पिलाना तेरा ही दायित्व है.” ये कहते हुए बबिता ने अपने दोनों पैरों को ऊपर उठा लिया. सुशील ने जाकर उसके दोनों पैरों को पकड़ा जिससे कि बबिता की चूत गाँड ऊपर उभर आई.
असीम ने अपना लौड़ा बबिता की गाँड में डाला और तीन चार धक्के लगाए. और रुक गया. बबिता की आँखें धीरे से चौड़ी होने लगीं. बसंती असीम के पीछे बैठ गई. और उसने बसंती के नितम्बों पर अपने हाथ रख लिए.
“छोटी नानी, मैं हट रहा हूँ.” असीम ने कहा.
“मेरे हाथ के ऊपर ने निकलना.” बसंती ने बबिता के नितम्बों को थामे हुए बोला।
“जी, छोटी नानी.”
“अब देखना…” जीवन ने शालिनी के कान में बोला।
जैसे ही असीम हटा तो बबिता की गाँड से मूत्र की एक तीव्र धार छूटी। बसंती इसकी ही अपेक्षा कर रही थी. उसके खुले मुँह में वो धार आकर गिरने लगी. बसंती घूँट लेती तो मुँह बंद होते ही उसके चेहरे पर धार आ जाती. अंततः बबिता की गाँड पूर्ण रूप से धुलकर बसंती के मुँह, चेहरे और शरीर पर अपना स्थान बना चुकी थी. बसंती ने बड़े ही प्रेम से बबिता की गाँड को चाटा और हट गई.
“आज तो सचमुच आनंद आ गया. अब मेरा कार्य समाप्त हुआ. आप चलो, मैं यहाँ साफ सफाई हूँ.” बसंती ने बबिता से कहा.
“चाहे तो मैं तेरी सहायता कर देती हूँ, मेरी बहन.” बबिता ने उस स्थान को देखकर बसंती से कहा.
“नहीं, दीदी. मुझे इसमें अधिक समय नहीं लगेगा. पर असीम को इस बाल्टी को अंदर स्नानघर में रखने के लिए बोल दीजिये.”
बबिता ने असीम को आज्ञा दी. बसंती ने वीर्य और कुछ मात्रा में मूत्र से मिश्रित प्याला उठाया.
“पीना है, दीदी?”
“नहीं, तूने उसमे मूत्र न मिलाया होता तो अवश्य पी लेती.” बबिता ने उठते हुए कहा. बसंती ने मुस्कुराते हुए उसे अपने होंठों से लगाया और पी गई. अंत में जो शेष रहा उसे अपने चेहरे पर मल लिया.
पति पत्नियों की जोड़ियाँ अब अपने कमरों में जाने लगीं. परन्तु जीवन और शालिनी नहीं गए. जीवन ने कुमार और असीम को कुछ निर्देश दिया और शालिनी को लेकर स्नानघर में चला गया. बसंती उस बाल्टी को लालच से देख रही थी.
“जाकर पहले बाहर की धुलाई कर ले, नहीं तो फिर समस्या होगी.” जीवन ने कहा.
“मैं इसके साथ जाती हूँ. आप नए पेग बनाओ.” शालिनी ने जीवन को कहा तो जीवन आज्ञाकारी भावी पति के समान उसकी आज्ञा पूरी करने चला गया.
“यही इन पुरुषों को ठीक रखने का उपाय है दीदी. पर आपको कुछ करने की आवश्यकता नहीं है. मैं हर बार अकेली ही कर लेती हूँ.”
“ पर अब मैं तेरा साथ दूँगी।” शालिनी के स्वर में स्पष्ट भाव था कि वो न नहीं सुनाने वाली.
“चलो फिर.” बसंती ने एक अन्य बाल्टी उठाई और एक ओर जाकर एक उपकरण निकाला। शालिनी को गाँव में वैक्यूम क्लीनर देखकर पल भर के लिए आश्चर्य हुआ. बसंती ने अनुभवी ढंग से कुछ ही पलों में उसे कार्य के उपयुक्त बनाया और जाकर सफाई में लग गई. एक बार सोखने के बाद पानी डालकर फिर से उसे साफ कर दिया. दस पंद्रह मिनट में ही उसने अपना कार्य सम्पन्न कर लिया.
वैक्यूम क्लीनर इत्यादि लेकर बसंती और शालिनी स्नानघर में चली गयीं. जीवन ने असीम और कुमार को भी अंदर जाने के लिए संकेत किया और स्वयं अपना पेग समाप्त करके उनके पीछे चल दिया.
बसंती बहुत उतावली हो रही थी. उसने तीनों पुरुषों को आते देखा तो उसका चेहरा खिल उठा.
“तुझे तो पता है बसंती, तेरी हर इच्छा मेरे लिए कितना अर्थ रखती है. आज मैं चाहूँगा कि शालिनी भी देखे कि मैं तेरे लिए क्या हूँ.” जीवन ने कहा.
“बाबूजी!” बसंती का स्वर काँप गया.
जीवन ने बसंती का हाथ पकड़ा और शालिनी के सामने बैठा दिया. वो स्वयं बसंती के एक ओर खड़ा हो गया. असीम ओर और कुमार पीछे खड़ा हो गया. शालिनी समझ गई कि क्या करना है.
“अपना मुँह खोलो और आँखें बंद कर लो, बसंती.” शालिनी ने कहा.
बसंती ने यही किया तो शालिनी ने जीवन को देखा और मुस्कुराई. “मैंने सही समझा न?”
जीवन, “बिलकुल.”
“फिर आइये नहलाइये अपनी सखी को.” ये कहकर शालिनी आगे बड़ी और उसने बसंती के मुँह पर धार छोड़ दी. इसके साथ ही जीवन, असीम और कुमार ने भी बसंती पर अपनी धार छोड़ दी. चारों ओर से बसंती पर इस वृष्टि ने उसके मन को आल्हादित कर दिया. वो हाथों को अपने शरीर पर रगड़ने लगी मानो उसे रोम रोम में समाहित करना चाहती हो.
जब सबने अपना कार्य समाप्त किया तो शालिनी ने बाल्टी उसके सामने रख दी. बसंती ने कुछ पिया कुछ सिर पर डाला और फिर उससे सामान्य स्नान करने लगी.
“आप सब जाओ. मैं कुछ देर में आती हूँ.”
जीवन ने शालिनी को लिया और कपड़े लेकर अपने कमरे की ओर चल दिया. असीम और कुमार ने भी अपने कपड़े उठाये और चल पड़े.
“तुम अब क्या सोचती हो बसंती के विषय में?”
“पता नहीं. कुछ समझ नहीं पड़ रहा. हाँ, मूत्र से स्नान करना, गाँड में से मूत्र पीना, कुछ अधिक ही विकृत है. परन्तु जैसा अपने समझाया है, जिसे जिसमे आनंद और सुख मिले हमें उसके लिए कोई धारणा नहीं बनाना चाहिए.”
“तुम्हें पता है कि वो तुम्हारी गाँड से भी वही सुख पाने की इच्छुक है?”
“सम्भव है. और मुझे सच कहूँ तो कोई आपत्ति भी नहीं है.”
“बढ़िया. बसंती ये सुनकर बहुत प्रसन्न होगी.”
कमरे में पहुंचकर दोनों ने एक साथ स्नान किया और फिर जीवन ने दोनों के लिए पेग बनाये.
“नींद तो नहीं आ रही है?”
“न जाने क्यों, अभी नहीं.”
“फिर कुछ और देर खेल सकते हैं.” जीवन ने उसे ग्लास थमाते हुए कहा.
शालिनी सोफे पर जीवन से सट कर बैठ गई और अपनी व्हिस्की पीते हुए जो आज देखा था उसके विषय में सोचने लगी. उसने कभी सोचा न था कि गाँव में इतना खुला चुदाई का वातावरण भी हो सकता है. और बसंती! उसकी तो बात ही भिन्न थी. वो जिस प्रेम से अपने विकृत चरित्र को दिखाने में सक्षम थी उसने कभी सोचा भी न था. और अब वो भी उनके साथ नगर में लौटने वाली है.
“बसंती वहाँ आपके ही कमरे में रहने वाली है क्या?” उसने जीवन से पूछा.
“हाँ, क्यों? क्या तुम्हें कोई आपत्ति है?”
“नहीं, नहीं! ऐसा कुछ नहीं. मैं सोच रही थी कि हर दो तीन दिन में मैं आ जाया करुँगी तो हम तीनों…”
जीवन हंसने लगा.
“बस मुझे बता कर आना. वो घर के काम में सलोनी का हाथ बँटाये बिना नहीं रुकेगी. अगर पहले बता दोगी तो पहले ही उसे बता दूँगा और वो तुम्हें मेरे पास ले आएगी.”
“ये ठीक रहेगा. आपके परिवार वाले?”
“दो से तो तुम मिल ही चुकी हो. मेरा बेटे, बहू और पोती से भी ठीक से मिल लेना. वैसे तुम जानती ही हो कि बलवंत और गीता की बेटी सुनीति ही मेरी बहू भी है. तो तुम आधे परिवार से तो मिलन कर ही चुकी हो. घर पहुँचने के एक घण्टे में ही सबको तुम्हारे विषय में ज्ञात हो जायेगा. फिर उनका भी मन तुम्हारे इस सुंदर शरीर को चखने और तुम्हारे साथ खेलने का हो जायेगा.”
“मुझे भी अपने बेटे, बहू, पोते और पोती को आपके विषय में बताना होगा. आपके जितना लम्बा इतिहास हमारा नहीं है पारिवारिक और सामूहिक चुदाई का. तो मैं क्या कहूँगी, पता नहीं.”
“सच बताना, चाहे थोड़े थोड़े अंश में सही.”
“हाँ, यही मैंने भी सोचा है.”
उनके पेग समाप्त हो गए थे तो जीवन ने एक और पेग बनाया और इतने में ही उसके निर्देश के अनुसार असीम और कुमार बसंती को लेकर कमरे में आ गए.
“बाबूजी, मैंने नहीं कहा. ये दोनों ही मुझे पकड़कर आये।” बसंती विनती भरे स्वर में कहा.
जीवन उसके पास गया और उसके चेहरे हो अपने हाथों में लेकर प्रेम से बोला, “मैंने ही कहा था इन्हें.”
“क्यों?”
“अरे तेरा ध्यान मैं नहीं रखूँगा तो कौन रखेगा? इसीलिए यहाँ बुला लिया. अब तेरे इन दोनों नातियों को तेरी सेवा में दे रहा हूँ. इनके पास तो कोई कमरा है नहीं. और तुझे नीचे क्यों सोना पड़े?” फिर उसने शालिनी को देखा, “जब भी हम ऐसा आयोजन करते हैं तो बसंती मेरे साथ इस कमरे में सोती है. मैं जानता था कि वो आज हिचकेगी, इसीलिए इनसे पकड़वा कर लाना पड़ा.”
शालिनी उठ खड़ी हुई, “क्यों? मेरे आने से तेरा स्थान थोड़े ही कम हो गया. मुझे दीदी भी कहती है और संकोच भी करती है?”
बसंती की आँखें भर आईं.
“अब तेरे बाबूजी ने तुझे दो दो हट्टे कट्टे युवा तेरी सेवा में दिए हैं तो उसका सुख ले. और अब से कभी भी कहीं और सोने का मन में विचार भी मत लाना. हाँ अगर तेरी कहीं चुदाई हो रही हो तो फिर मैं नहीं रोकूंगी!”
ये सुनकर सब हंस पड़े और बसंती शर्मा गई.
असीम ने पहल की और बसंती को पीछे से पकड़ा और उसके स्तन दबाते हुए उसकी गर्दन को चूमा, “छोटी नानी, अब तो दादी से भी अनुमति मिल गई है. इतनी देर से सबकी सेवा कर रही थीं, अब हमें अपना कर्तव्य भी पूरा करने दो!”
बसंती कसमसाई और धीमे से बोली, “हाँ बिटवा, चूत बहुत व्याकुल है. अब तुम दोनों ही मेरी तृप्ति करो. तेरे दादा तो देवता हैं जिन्होंने मेरी इच्छा जान ली.”
अब तक कुमार आगे आ चुका और उसने बसंती के होंठों पर अपने होंठ रखते हुए उसे कुछ और बोलने से रोक दिया. कुछ देर तक कुमार उसके होंठ चूसता रहा और असीम उसके मम्मे मसलता रहा.
कुमार ने चुंबन तोड़ा और बसंती को देखते हुए कहा, “आओ छोटी नानी, पलंग पर चलते हैं. मुझे चूत चाटने की इच्छा है.”
तीनों पलंग पर चले गए जहाँ पहले से ही जीवन शालिनी की चुदाई आरम्भ कर चुका था. जीवन और शालिनी ने उनके लिए पर्याप्त स्थान छोड़ दिया था. कुमार नीचे लेटा और बसंती उसके मुँह पर अपनी चूत लगाकर बैठ गई. कुमार ने चूत चाटनी आरंभ कर दी. अचानक बसंती को अपनी गाँड पर कुछ आभास हुआ और उसकी सिसकारी निकल गई. असीम उसकी गाँड को चाट रहा था और एक ऊँगली से उसे खोल भी रहा था.
“आह बिटवा, चाटो मेरी चूत और गाँड और फिर उनकी चुदाई भी करना.”
कुछ देर तक ही ये चला और फिर कुमार ने अपनी जीभ हटा ली.
“अब चुदाई हो जाये.”
बसंती हटी और उसने पलटते हुए कुमार के मूसल से खड़े लौड़े पर चूत को दो पल रगड़ा और उस पर बैठती गई. दिन भर की दबी वासना चरम पर आ चुकी थी. उसकी आँखें शालिनी से मिलीं और दोनों मुस्कुरा दीं.
असीम ने बसंती की कमर पर हाथ रखकर उसे झुकाया और उसकी गाँड पर रखते हुए बिना किसी दुविधा के दो तीन धक्कों में अंदर पेल दिया. बसंती स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़ी.
इसके बाद अगले दो घंटों तक दोनों भाइयों ने मिलकर अपनी छोटी नानी की भरपूर चुदाई की. कुछ देर रुकते और फिर से चोदने लगते. बसंती की चूत और गाँड को इतना चोदा कि दोनों फूल गयीं. अंततः उन्होंने उस पर दया करते हुए उन्हें विश्राम करने के लिए छोड़ा और बसंती एक मधुर मुस्कान के साथ सो गई और दोनों भाई अपने कमरे में चले गए. जीवन और शालिनी इस बीच में पहले ही चुके थे.
अगली सुबह शालिनी उठी तो बसंती को बेसुध सोता पाकर मुस्कुरा दी. उसने अपने पोतों द्वारा चुदाई का वृत्तांत देखा था और बसंती की चूत और गाँड पर जमी श्वेत पपड़ी उसकी थकान की साक्षी थी. वो स्नान करने चली गई जहाँ जीवन अपने स्नान से निवृत्त हो चुके थे. बिना कुछ कहे उसने ब्रश किया और स्नान करने लगी. जीवन ने कहा कि वो बैठक में मिलेगा. शालिनी स्नान के बाद एक फिर बसंती को देखते हुए बाहर चली गई.
जीवन ने उपस्थित मित्रों को बताया कि वो बसंती को उसके घर छोड़ने जायेगा और शाम को उसे फिर ले आएगा. फिर उसने अपने मित्रों के साथ अपनी योजना को साँझा किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. चाय नाश्ता समाप्त होते होते बसंती भी आ गई. गीता ने उसे चाय पिलाई और घर लेकर जाने के नाश्ता इत्यादि दिया. इसके बाद जीवन और शालिनी बसंती को उसके घर छोड़ने निकल पड़े.
“बाबूजी, इन्हें अधिक तिरस्कृत मत करना. बस उन्हें दारू पीने की कीमत बता देना.” बसंती ने जीवन से विनती की.
“देख बसंती, मुझे जो भी उचित लगेगा मैं वही करूँगा. मुझे तेरी और उसकी एक समान चिंता है. तुझसे दूर रहने का दुःख और तुझसे मिलने की लालसा उसे ठीक कर सकती है. वहीँ मेरी मित्र मंडली उसे कड़े वश में रखेंगी और उसकी मदिरा पर सीमा लगा देंगी. यहाँ अकेला छोड़ा तो वो कभी नहीं छोड़ने वाला.” जीवन ने कठोर शब्दों में कहा.
बसंती ने गहरी श्वास भरी और उसके कंधे झुक गए. वो समझ गई कि अब भूरा को अपने किये की भरपाई करनी ही होगी.
इतनी देर में ही वो अपने खेतों पर पहुंच गए जहाँ पर बसंती और भूरा रहते थे. अंदर जाते ही सस्ती देसी दारू की गंध ने उन्हें व्यथित कर दिया.
भूरा उनकी रसोई में कुछ ढूँढ रहा था. बंसती को अकेला अंदर छोड़कर जीवन और शालिनी बाहर गाड़ी में बैठ गए. पंद्रह मिनट बाद बसंती आई और उन्हें अंदर ले गई. अब तक घर में से गंध कम हो चुकी थी और भूरा सिर झुकाये बैठा था.
जीवन जाकर एक कुर्सी पर बैठ गया.
“भूरा, तुम जानते हो कि तुम्हारा परिवार मेरे अपने परिवार के ही समान प्रिय है. जो तुम अपने साथ कर रहे हो उससे बसंती, सलोनी और भाग्या दुखी हैं. इसीलिए मैंने कुछ निर्णय लिया है.”
“जी.”
“मैं बसंती को अपने साथ ले जा रहा हूँ. वैसे भी भाग्या कुछ ही दिनों में अपने बच्चे को जन्म देने वाली है. तो सलोनी को कुछ सहारे की आवश्यकता होगी. साथ ही तुम यहाँ नहीं रहोगे. तुम बलवंत के घर में उनके घर की देखभाल करोगे. परन्तु वहां तुम केवल सोने और सफाई इत्यादि के लिए ही जाओगे. तुम दिन में मेरे मित्रों के घर रहोगे और उनके घर का काम काज संभालोगे. तुम्हारे भोजन इत्यादि का प्रबंध उनके ही घर पर रहेगा.”
“जी.”
“ये कहते हुए मुझे दुःख हो रहा है परन्तु तुम उनके घर में नौकर के समान ही रहोगे और उनकी पत्नियों की सुख सुविधा का ध्यान रखोगे. और उनकी हर आज्ञा और इच्छा को पूरा करोगे.”
“जी.” भूरा का सिर अब भी झुका था.
“भूरा, तुम्हें याद है, जब मैं और तुम सरला की मिलकर चुदाई करते थे?” शालिनी ये सुनकर अचंभित हो गई.
“जी, बाबूजी!”
“और ये भी याद होगा कि जब तेरा विवाह बसंती से हुआ तो सुहागरात के एक ही सप्ताह बाद तूने मुझे बसंती की कुँवारी गाँड की भेंट दी थी.”
“जी बाबूजी..”
“और किस प्रकार से हम दोनों मिलकर उन्हें चोदा करते थे.”
भूरा की आँखें चमक उठीं.
“मुझे मेरा वही भूरा चाहिए. दारू के नशे में थका हुआ भूरा नहीं जिसका लंड खड़ा भी नहीं होता.”
भूरा ने उसे आश्चर्य से देखा.
जीवन ने शालिनी की ओर संकेत किया, “जानते हो ये कौन हैं?”
“आपकी मित्र हैं.”
“हाँ, पर भविष्य में पत्नी बनने वाली हैं. और मैं चाहूँगा कि हम उसी पुराने समय जैसे इन दोनों को एक साथ चोदे.”
शालिनी की आँखें फ़ैल गईं पर उसने कुछ कहा नहीं. जीवन भूरा को दण्ड और पारिश्रमिक से समझा रहा था.”
इस बार भूरा ने शालिनी को लालच से देखा.
“पर उसके पहले तेरे लिए कुछ नियम हैं. तू जानता है न कि बसंती और मेरा एक विशेष प्रेम क्यों है.?
“जी.”
“क्या है वो?”
“आप एक दूसरे का मूत पीते हो.”
“हाँ, और अब तुम्हें भी यही करना होगा. नहीं, नहीं, तुम्हें उसे अपना मूत्र पिलाने की अनुमति नहीं है. तुम केवल उसका और इसके बाद पूनम, निर्मला और बबिता का, जब तुम उनके घर रहोगे. विश्वास करो, तुम्हारी ये लत छुड़ाने का इससे शीध्र उपाय मुझे तो नहीं सूझ रहा. साथ ही तुम्हें दारू उनके ही द्वारा दी जाएगी. और वो जितना चाहेंगी, उतना ही देंगी. और अगर तुमने आनाकानी की तो मुझसे बुरा कोई न होगा और तुम सदा के लिए अपनी पत्नी, बेटी और नातिन से संबंध तोड़ दोगे।”
“बाबूजी!”
“मेरी चेतावनी को भली भांति समझ लो भूरा. तुम मेरे छोटे भाई के समान हो, पर अब मैं तुम्हें अपने परिवार को नष्ट करते हुए नहीं देखूँगा। दो तीन माह बाद मैं तुम्हें वहां बुलाऊँगा और एक क्लिनिक में भर्ती कराऊँगा जहाँ तुम्हारी ये लत सदा के लिए छूट जाएगी. समझ रहे हो?”
“जी बाबूजी, मुझे आपकी बात स्वीकार है.”
“बहुत अच्छे! तो फिर बसंती उधर बैठो और अपने पति को अपने अमृत का सेवन कराओ.”
बसंती ठगी सी रह गई.
“बसंती!” जीवन ने कर्कश स्वर में बुलाया.
“जी!”
ये कहते हुए बसंती जीवन वाली कुर्सी पर बैठ गई और जीवन ने एक झटके में उसका लहँगा उठाकर उसकी चूत उजागर कर दी.
“भूरा!”
भूरा अपनी पत्नी के सामने बैठ गया.
“देख रहा है न कैसे लाल है. रात भर मेरे पोतों से इसे चोदा है. गाँड भी मारी है. पर अभी तेरे लिए बस इसे चाटने और मूत्र पीने की स्वतंत्रता है.”
भूरा बसंती की चूत चाटने लगा. बसंती ने जीवन को देखा तो जीवन से अपना सिर हिलाकर संकेत किया.
“सुनिए जी, मेरा मूत निकलने वाला है.”
पर भूरा रुका नहीं और बसंती ने उसके मुँह में अपनी धार छोड़ दी. भूरा ने बिना संकोच उसे पीने का प्रयास किया और अधिकांश पी भी लिया.
“तो भूरा? क्या बुरा लगा?”
“कुछ कुछ!”
“कुछ दिनों में इसका स्वाद भी अच्छा लगने लगेगा. और जब तुझे दारू भी इसके साथ मिलकर ही दी जाएगी तो नशा भी जम कर चढ़ेगा.”
“जी.”
“अब तक तो तूने अपनी पत्नी का मूत्र पिया है. मैं जानना चाहता हूँ कि मेरी भाभियों का पी सकेगा या नहीं.”
भूरा के चेहरे पर कौतुहल के भाव आये. ये तो उसने सोचा ही न था. अपने परिवार को साथ रखने के लिए उसने एक कदम तो ले लिया था.
“इसका निर्णय अभी हो जायेगा, शालिनी!” जीवन ने कहा तो शालिनी चौंक गई.
“बसंती के स्थान पर बैठो और भूरा को अपना अमृत पिलाओ.”
बसंती विनती भरे चेहरे के साथ उठी और जीवन के सामने हाथ जोड़ दिए. जीवन ने सिर हिलाकर उसकी विनती अस्वीकार कर दी.
शालिनी के मूत्र का सेवन करने के बाद जीवन ने भूरा से कहा, “अब से क्लिनिक में जाने तक यही तेरी नियति है. और उसके बाद तुम सब मेरे ही साथ रहोगे. इस गाँव में तेरे यही २ महीने शेष हैं.”
“मेरी बात को हल्के में मत लेना भूरा, तुमने मेरा प्रेम देखा है, पर आक्रोश नहीं. मुझे विवश मत करना. अब मैं जा रहा हूँ. शाम को बसंती को लेने के लिए शालिनी आएंगी.”
ये कहते हुए जीवन ने शालिनी का हाथ लिया और चला गया.
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पाँच दिन बाद:
सामूहिक चुदाई के सारे कार्यक्रम समाप्त हो चुके थे. बबिता के बाद पूनम, निर्मला, गीता के गैंगबैंग के बाद शालिनी ने भी इसका आनंद लिया था. हालाँकि उसका गैंगबैंग उतना कठोर नहीं था न ही उतना वीभत्स. कल अंतिम रात थी जिसमें बसंती का गैंगबैंग हुआ था और वो पहले वाले गैंगबैंग के समान ही था. अंत में बसंती के अनुरोध पर उसे मूत्र स्नान करवाया गया था चूँकि उसकी चुदाई के समय इस क्रीड़ा में किसी की रूचि नहीं थी.
बाद में उसे स्नान करवा कर असीम उसे उसके घर छोड़ आया था. पति पत्नी एक दूसरे से दूर होने का दुःख साझा कर रहे थे. सुबह कुमार उन्हें लेने आया और दोनों बलवंत के घर चले गए. बसंती के हाथ में एक छोटी थी थैली ही थी. उसमें ही दो तीन जोड़ी कपड़े रख लिए थे. भूरा ने भी यही किया था. दोनों ने अपनी कोठरी को एक बाद देखकर अश्रुपूर्ण विदाई दी. सम्भवतः वो अब कभी इसमें रहने नहीं आएंगे.
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दो घण्टे बाद दो गाड़ियाँ बलवंत के घर से निकल कर जीवन के घर ओर दौड़ पड़ीं.
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क्रमशः
1741800
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अध्याय ७१ से आगे
अब तक:
बलवंत और असीम दोनों अपनी पूरी ताल के साथ बबिता को चोदे जा रहे थे और बबिता आनंद के सागर में गोते लगा रही थी. अपने समय के अनुसार बलवंत ने ही पहले हटने की घोषणा की और जस्सी ने अपने लंड को संभाला। बलवंत ठीक से हटा भी नहीं था कि जस्सी के लंड ने उसका स्थान ले लिया और सवारी में जुट गया. बबिता की गाँड में बस हल्की पवन का एक झोंका पल भर को ही समा पाया था कि जस्सी के ढकते लौड़े ने उसे फिर से भर दिया.
असीम और जस्सी ने मिलकर बबिता को पलटा और बिना अपने लौड़े निकाले हुए इस बार जस्सी नीचे से गाँड मारने लगा तो असीम ऊपर से चूत का आनंद लेने लगा. जस्सी ने बबिता के मम्मों को अपने हाथों में लिया और दबाने लगा जिससे कि बबिता को और भी अधिक आनंद का अनुभव हुआ. उसकी चूत ने असीम के लंड को जकड़ना आरम्भ कर दिया तो असीम भी अपने स्खलन के निकट पहुंचने लगा.
बलवंत अपने और बबिता की गाँड के रस से चिपचिपाये लौड़े के साथ बसंती के पास गया तो बसंती ने उसे बड़े ही प्रेम से पहले तो चाटा और फिर मुँह में लेकर शीघ्र ही झड़ने पर विवश कर दिया. इस बार उसने अधिकतर वीर्य को प्याले में ही डाल दिया. “बाबू, मुँह में थोड़ा ही छोड़ना. अब पेट भरा हुआ है. चेहरे पर छोड़ो या बाल्टी में डाल दो.” बसंती ने कहा और फिर मुँह खोलकर बलवंत के मूत्र की प्रतीक्षा करने लगी.
अब आगे:
बलवंत ने बसंती की आज्ञा का पालन किया और उसके चेहरे और वक्ष पर धार छोड़ने के पश्चात बाल्टी में शेष मूत्र त्याग दिया।
“बाबूजी, जो भी अंतिम चुदाई करे, उन्हें बता देना कि अंतिम रस दीदी की चूत और गाँड में ही छोड़ें. आप तो जानते ही हो कि मैं इस प्रकार के आयोजनों का समापन किस प्रकार से करती हूँ.” बसंती ने कहा.
“ठीक है, बसंती, जैसा तुम चाहो.” ये कहकर बलवंत ने अपने लिए एक पेग बनाया और बबिता की घनघोर चुदाई का दृश्य देखने लगा.
बबिता के गैंगबैंग का ये चरण आगे बढ़ने लगा. जैसा निर्धारित था उसकी चूत और गाँड बस पल भर के लिए ही लंड-विहीन होती थी. जैसे ही एक लंड निकलता दूसरा उसका स्थान तत्परता से ले लेता. शालिनी बबिता के सामर्थ्य से विस्मित थी. फिर उसे ध्यान आया कि इस कमरे में उपस्थित हर स्त्री इतना ही समर्थ थी. क्या वो भी इनके समान इस प्रकार की निरंतर चुदाई को झेल पायेगी.
बबिता ने अगले दो घंटों में तीन बार सरला का नाम लेकर कुछ विश्राम लिया. परन्तु इस अवधि में भी लौड़े चूत और गाँड से नहीं, बस कुछ पलों के लिए चुदाई को विराम दिया गया. एक बार अवश्य बबिता ने मूत्र निस्तारण के लिए लौड़े बाहर निकलने दिए था और बसंती को अपनी भेंट देकर कुछ पल बैठी और फिर से संग्राम छेत्र में लौट गई.
इस प्रकार की चुदाई के लगभग दो घण्टे बाद पुरुष शिथिल होने लगे तो बलवंत ने बसंती की आज्ञा उन्हें बता दी. अंतिम जोड़ी में अब जीवन और असीम बबिता की चूत और गाँड में धककमपेल कर रहे थे. बबिता की शक्ति अब लगभग समापन की ओर थी, फिर भी वो उन दोनों को प्रोत्साहित कर रही थी. जीवन ने अपना रस बसंती की चूत में भरा और रुक गया. असीम समझ गया कि वही इस द्वन्द का अंतिम योद्धा है. एक गर्वान्वित भाव से उसने भी अपने लंड के रस से बबिता की आहत गाँड सीँच दिया.
उधर बसंती ने एक तौलिये से अपने शरीर को पोंछा और असीम के पास आ खड़ी हुई. मूत्र की तीव्र गंध से असीम विचलित हो गया.
“लल्ला अब तुम हटो, मुझे मलाई खाना है. और तुमसे एक भेंट भी चाहिए.” बसंती की बात सुनकर असीम कुछ समझा नहीं, पर उसने अपना लौड़ा बबिता की गाँड से निकाल लिया. बसंती एक बार शालिनी की ओर देखा और अपनी जीभ से बबिता की गाँड चाटने लगी. बबिता को जब बसंती की जीभ का आभास हुआ तो उसने अपनी गाँड को खोलने सिकोड़ने करने का उपक्रम किया. असीम का वीर्य अब उसकी गाँड से बाहर निकलने लगा जिसे बसंती बड़े चाव से चाटती रही. अंत में उसने अपनी जीभ को अंदर धकेला और घुमाते हुए चाट लिया.
“दीदी, अब आप जाकर वहाँ बैठो और लल्ला को साथ ले जाओ. अब आप चाहो तो उसका लंड चूस सकती हो.” बसंती ने कहा.
असीम का हाथ पकड़कर बबिता के आसन के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई.
“बाबूजी, अब आप भी जाओ और दीदी से अपना लंड चमकवा लो.” बसंती ने कहते हुए जीवन को उठाया.
जीवन बबिता के समक्ष खड़ा हो गया और बबिता ने असीम के लंड मुँह से निकाला और जीवन के लंड को चूसने लगी.
“बाबूजी, अब आप चलो अपने स्थान पर.” बसंती ने जीवन को बोला तो जीवन चुपचाप अपने लिए पेग बनाकर शालिनी के पास बैठ गया.
“अब जो देखोगी तो सम्भवतः तुम विचलित हो जाओ. परन्तु ये बबिता के गैंगबैंग से साथ ही बसंती का भी दूसरे अर्थ का गैंगबैंग है. इस प्रकार के आयोजन का समापन एक विशेष प्रकार से होता है. असीम को अब पता चलेगा कि बसंती ने उससे क्या भेंट माँगी है.”
असीम के चेहरे पर आश्चर्य के भाव देखकर शालिनी समझ गई कि बसंती ने अपनी भेंट की इच्छा बता दी थी. बबिता के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो असीम के इस अचरज पर मुस्कुरा रही थी. बंसती की मांग सुनकर असीम ने बबिता को देखा.
“बिटवा, यही इन कार्यक्रमों का अंतिम चरण होता है. तूने मेरी गाँड में जो अपना रस छोड़ा है वो बसंती पूरा नहीं चाट पाई. तो उसे धोकर पिलाना तेरा ही दायित्व है.” ये कहते हुए बबिता ने अपने दोनों पैरों को ऊपर उठा लिया. सुशील ने जाकर उसके दोनों पैरों को पकड़ा जिससे कि बबिता की चूत गाँड ऊपर उभर आई.
असीम ने अपना लौड़ा बबिता की गाँड में डाला और तीन चार धक्के लगाए. और रुक गया. बबिता की आँखें धीरे से चौड़ी होने लगीं. बसंती असीम के पीछे बैठ गई. और उसने बसंती के नितम्बों पर अपने हाथ रख लिए.
“छोटी नानी, मैं हट रहा हूँ.” असीम ने कहा.
“मेरे हाथ के ऊपर ने निकलना.” बसंती ने बबिता के नितम्बों को थामे हुए बोला।
“जी, छोटी नानी.”
“अब देखना…” जीवन ने शालिनी के कान में बोला।
जैसे ही असीम हटा तो बबिता की गाँड से मूत्र की एक तीव्र धार छूटी। बसंती इसकी ही अपेक्षा कर रही थी. उसके खुले मुँह में वो धार आकर गिरने लगी. बसंती घूँट लेती तो मुँह बंद होते ही उसके चेहरे पर धार आ जाती. अंततः बबिता की गाँड पूर्ण रूप से धुलकर बसंती के मुँह, चेहरे और शरीर पर अपना स्थान बना चुकी थी. बसंती ने बड़े ही प्रेम से बबिता की गाँड को चाटा और हट गई.
“आज तो सचमुच आनंद आ गया. अब मेरा कार्य समाप्त हुआ. आप चलो, मैं यहाँ साफ सफाई हूँ.” बसंती ने बबिता से कहा.
“चाहे तो मैं तेरी सहायता कर देती हूँ, मेरी बहन.” बबिता ने उस स्थान को देखकर बसंती से कहा.
“नहीं, दीदी. मुझे इसमें अधिक समय नहीं लगेगा. पर असीम को इस बाल्टी को अंदर स्नानघर में रखने के लिए बोल दीजिये.”
बबिता ने असीम को आज्ञा दी. बसंती ने वीर्य और कुछ मात्रा में मूत्र से मिश्रित प्याला उठाया.
“पीना है, दीदी?”
“नहीं, तूने उसमे मूत्र न मिलाया होता तो अवश्य पी लेती.” बबिता ने उठते हुए कहा. बसंती ने मुस्कुराते हुए उसे अपने होंठों से लगाया और पी गई. अंत में जो शेष रहा उसे अपने चेहरे पर मल लिया.
पति पत्नियों की जोड़ियाँ अब अपने कमरों में जाने लगीं. परन्तु जीवन और शालिनी नहीं गए. जीवन ने कुमार और असीम को कुछ निर्देश दिया और शालिनी को लेकर स्नानघर में चला गया. बसंती उस बाल्टी को लालच से देख रही थी.
“जाकर पहले बाहर की धुलाई कर ले, नहीं तो फिर समस्या होगी.” जीवन ने कहा.
“मैं इसके साथ जाती हूँ. आप नए पेग बनाओ.” शालिनी ने जीवन को कहा तो जीवन आज्ञाकारी भावी पति के समान उसकी आज्ञा पूरी करने चला गया.
“यही इन पुरुषों को ठीक रखने का उपाय है दीदी. पर आपको कुछ करने की आवश्यकता नहीं है. मैं हर बार अकेली ही कर लेती हूँ.”
“ पर अब मैं तेरा साथ दूँगी।” शालिनी के स्वर में स्पष्ट भाव था कि वो न नहीं सुनाने वाली.
“चलो फिर.” बसंती ने एक अन्य बाल्टी उठाई और एक ओर जाकर एक उपकरण निकाला। शालिनी को गाँव में वैक्यूम क्लीनर देखकर पल भर के लिए आश्चर्य हुआ. बसंती ने अनुभवी ढंग से कुछ ही पलों में उसे कार्य के उपयुक्त बनाया और जाकर सफाई में लग गई. एक बार सोखने के बाद पानी डालकर फिर से उसे साफ कर दिया. दस पंद्रह मिनट में ही उसने अपना कार्य सम्पन्न कर लिया.
वैक्यूम क्लीनर इत्यादि लेकर बसंती और शालिनी स्नानघर में चली गयीं. जीवन ने असीम और कुमार को भी अंदर जाने के लिए संकेत किया और स्वयं अपना पेग समाप्त करके उनके पीछे चल दिया.
बसंती बहुत उतावली हो रही थी. उसने तीनों पुरुषों को आते देखा तो उसका चेहरा खिल उठा.
“तुझे तो पता है बसंती, तेरी हर इच्छा मेरे लिए कितना अर्थ रखती है. आज मैं चाहूँगा कि शालिनी भी देखे कि मैं तेरे लिए क्या हूँ.” जीवन ने कहा.
“बाबूजी!” बसंती का स्वर काँप गया.
जीवन ने बसंती का हाथ पकड़ा और शालिनी के सामने बैठा दिया. वो स्वयं बसंती के एक ओर खड़ा हो गया. असीम ओर और कुमार पीछे खड़ा हो गया. शालिनी समझ गई कि क्या करना है.
“अपना मुँह खोलो और आँखें बंद कर लो, बसंती.” शालिनी ने कहा.
बसंती ने यही किया तो शालिनी ने जीवन को देखा और मुस्कुराई. “मैंने सही समझा न?”
जीवन, “बिलकुल.”
“फिर आइये नहलाइये अपनी सखी को.” ये कहकर शालिनी आगे बड़ी और उसने बसंती के मुँह पर धार छोड़ दी. इसके साथ ही जीवन, असीम और कुमार ने भी बसंती पर अपनी धार छोड़ दी. चारों ओर से बसंती पर इस वृष्टि ने उसके मन को आल्हादित कर दिया. वो हाथों को अपने शरीर पर रगड़ने लगी मानो उसे रोम रोम में समाहित करना चाहती हो.
जब सबने अपना कार्य समाप्त किया तो शालिनी ने बाल्टी उसके सामने रख दी. बसंती ने कुछ पिया कुछ सिर पर डाला और फिर उससे सामान्य स्नान करने लगी.
“आप सब जाओ. मैं कुछ देर में आती हूँ.”
जीवन ने शालिनी को लिया और कपड़े लेकर अपने कमरे की ओर चल दिया. असीम और कुमार ने भी अपने कपड़े उठाये और चल पड़े.
“तुम अब क्या सोचती हो बसंती के विषय में?”
“पता नहीं. कुछ समझ नहीं पड़ रहा. हाँ, मूत्र से स्नान करना, गाँड में से मूत्र पीना, कुछ अधिक ही विकृत है. परन्तु जैसा अपने समझाया है, जिसे जिसमे आनंद और सुख मिले हमें उसके लिए कोई धारणा नहीं बनाना चाहिए.”
“तुम्हें पता है कि वो तुम्हारी गाँड से भी वही सुख पाने की इच्छुक है?”
“सम्भव है. और मुझे सच कहूँ तो कोई आपत्ति भी नहीं है.”
“बढ़िया. बसंती ये सुनकर बहुत प्रसन्न होगी.”
कमरे में पहुंचकर दोनों ने एक साथ स्नान किया और फिर जीवन ने दोनों के लिए पेग बनाये.
“नींद तो नहीं आ रही है?”
“न जाने क्यों, अभी नहीं.”
“फिर कुछ और देर खेल सकते हैं.” जीवन ने उसे ग्लास थमाते हुए कहा.
शालिनी सोफे पर जीवन से सट कर बैठ गई और अपनी व्हिस्की पीते हुए जो आज देखा था उसके विषय में सोचने लगी. उसने कभी सोचा न था कि गाँव में इतना खुला चुदाई का वातावरण भी हो सकता है. और बसंती! उसकी तो बात ही भिन्न थी. वो जिस प्रेम से अपने विकृत चरित्र को दिखाने में सक्षम थी उसने कभी सोचा भी न था. और अब वो भी उनके साथ नगर में लौटने वाली है.
“बसंती वहाँ आपके ही कमरे में रहने वाली है क्या?” उसने जीवन से पूछा.
“हाँ, क्यों? क्या तुम्हें कोई आपत्ति है?”
“नहीं, नहीं! ऐसा कुछ नहीं. मैं सोच रही थी कि हर दो तीन दिन में मैं आ जाया करुँगी तो हम तीनों…”
जीवन हंसने लगा.
“बस मुझे बता कर आना. वो घर के काम में सलोनी का हाथ बँटाये बिना नहीं रुकेगी. अगर पहले बता दोगी तो पहले ही उसे बता दूँगा और वो तुम्हें मेरे पास ले आएगी.”
“ये ठीक रहेगा. आपके परिवार वाले?”
“दो से तो तुम मिल ही चुकी हो. मेरा बेटे, बहू और पोती से भी ठीक से मिल लेना. वैसे तुम जानती ही हो कि बलवंत और गीता की बेटी सुनीति ही मेरी बहू भी है. तो तुम आधे परिवार से तो मिलन कर ही चुकी हो. घर पहुँचने के एक घण्टे में ही सबको तुम्हारे विषय में ज्ञात हो जायेगा. फिर उनका भी मन तुम्हारे इस सुंदर शरीर को चखने और तुम्हारे साथ खेलने का हो जायेगा.”
“मुझे भी अपने बेटे, बहू, पोते और पोती को आपके विषय में बताना होगा. आपके जितना लम्बा इतिहास हमारा नहीं है पारिवारिक और सामूहिक चुदाई का. तो मैं क्या कहूँगी, पता नहीं.”
“सच बताना, चाहे थोड़े थोड़े अंश में सही.”
“हाँ, यही मैंने भी सोचा है.”
उनके पेग समाप्त हो गए थे तो जीवन ने एक और पेग बनाया और इतने में ही उसके निर्देश के अनुसार असीम और कुमार बसंती को लेकर कमरे में आ गए.
“बाबूजी, मैंने नहीं कहा. ये दोनों ही मुझे पकड़कर आये।” बसंती विनती भरे स्वर में कहा.
जीवन उसके पास गया और उसके चेहरे हो अपने हाथों में लेकर प्रेम से बोला, “मैंने ही कहा था इन्हें.”
“क्यों?”
“अरे तेरा ध्यान मैं नहीं रखूँगा तो कौन रखेगा? इसीलिए यहाँ बुला लिया. अब तेरे इन दोनों नातियों को तेरी सेवा में दे रहा हूँ. इनके पास तो कोई कमरा है नहीं. और तुझे नीचे क्यों सोना पड़े?” फिर उसने शालिनी को देखा, “जब भी हम ऐसा आयोजन करते हैं तो बसंती मेरे साथ इस कमरे में सोती है. मैं जानता था कि वो आज हिचकेगी, इसीलिए इनसे पकड़वा कर लाना पड़ा.”
शालिनी उठ खड़ी हुई, “क्यों? मेरे आने से तेरा स्थान थोड़े ही कम हो गया. मुझे दीदी भी कहती है और संकोच भी करती है?”
बसंती की आँखें भर आईं.
“अब तेरे बाबूजी ने तुझे दो दो हट्टे कट्टे युवा तेरी सेवा में दिए हैं तो उसका सुख ले. और अब से कभी भी कहीं और सोने का मन में विचार भी मत लाना. हाँ अगर तेरी कहीं चुदाई हो रही हो तो फिर मैं नहीं रोकूंगी!”
ये सुनकर सब हंस पड़े और बसंती शर्मा गई.
असीम ने पहल की और बसंती को पीछे से पकड़ा और उसके स्तन दबाते हुए उसकी गर्दन को चूमा, “छोटी नानी, अब तो दादी से भी अनुमति मिल गई है. इतनी देर से सबकी सेवा कर रही थीं, अब हमें अपना कर्तव्य भी पूरा करने दो!”
बसंती कसमसाई और धीमे से बोली, “हाँ बिटवा, चूत बहुत व्याकुल है. अब तुम दोनों ही मेरी तृप्ति करो. तेरे दादा तो देवता हैं जिन्होंने मेरी इच्छा जान ली.”
अब तक कुमार आगे आ चुका और उसने बसंती के होंठों पर अपने होंठ रखते हुए उसे कुछ और बोलने से रोक दिया. कुछ देर तक कुमार उसके होंठ चूसता रहा और असीम उसके मम्मे मसलता रहा.
कुमार ने चुंबन तोड़ा और बसंती को देखते हुए कहा, “आओ छोटी नानी, पलंग पर चलते हैं. मुझे चूत चाटने की इच्छा है.”
तीनों पलंग पर चले गए जहाँ पहले से ही जीवन शालिनी की चुदाई आरम्भ कर चुका था. जीवन और शालिनी ने उनके लिए पर्याप्त स्थान छोड़ दिया था. कुमार नीचे लेटा और बसंती उसके मुँह पर अपनी चूत लगाकर बैठ गई. कुमार ने चूत चाटनी आरंभ कर दी. अचानक बसंती को अपनी गाँड पर कुछ आभास हुआ और उसकी सिसकारी निकल गई. असीम उसकी गाँड को चाट रहा था और एक ऊँगली से उसे खोल भी रहा था.
“आह बिटवा, चाटो मेरी चूत और गाँड और फिर उनकी चुदाई भी करना.”
कुछ देर तक ही ये चला और फिर कुमार ने अपनी जीभ हटा ली.
“अब चुदाई हो जाये.”
बसंती हटी और उसने पलटते हुए कुमार के मूसल से खड़े लौड़े पर चूत को दो पल रगड़ा और उस पर बैठती गई. दिन भर की दबी वासना चरम पर आ चुकी थी. उसकी आँखें शालिनी से मिलीं और दोनों मुस्कुरा दीं.
असीम ने बसंती की कमर पर हाथ रखकर उसे झुकाया और उसकी गाँड पर रखते हुए बिना किसी दुविधा के दो तीन धक्कों में अंदर पेल दिया. बसंती स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़ी.
इसके बाद अगले दो घंटों तक दोनों भाइयों ने मिलकर अपनी छोटी नानी की भरपूर चुदाई की. कुछ देर रुकते और फिर से चोदने लगते. बसंती की चूत और गाँड को इतना चोदा कि दोनों फूल गयीं. अंततः उन्होंने उस पर दया करते हुए उन्हें विश्राम करने के लिए छोड़ा और बसंती एक मधुर मुस्कान के साथ सो गई और दोनों भाई अपने कमरे में चले गए. जीवन और शालिनी इस बीच में पहले ही चुके थे.
अगली सुबह शालिनी उठी तो बसंती को बेसुध सोता पाकर मुस्कुरा दी. उसने अपने पोतों द्वारा चुदाई का वृत्तांत देखा था और बसंती की चूत और गाँड पर जमी श्वेत पपड़ी उसकी थकान की साक्षी थी. वो स्नान करने चली गई जहाँ जीवन अपने स्नान से निवृत्त हो चुके थे. बिना कुछ कहे उसने ब्रश किया और स्नान करने लगी. जीवन ने कहा कि वो बैठक में मिलेगा. शालिनी स्नान के बाद एक फिर बसंती को देखते हुए बाहर चली गई.
जीवन ने उपस्थित मित्रों को बताया कि वो बसंती को उसके घर छोड़ने जायेगा और शाम को उसे फिर ले आएगा. फिर उसने अपने मित्रों के साथ अपनी योजना को साँझा किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. चाय नाश्ता समाप्त होते होते बसंती भी आ गई. गीता ने उसे चाय पिलाई और घर लेकर जाने के नाश्ता इत्यादि दिया. इसके बाद जीवन और शालिनी बसंती को उसके घर छोड़ने निकल पड़े.
“बाबूजी, इन्हें अधिक तिरस्कृत मत करना. बस उन्हें दारू पीने की कीमत बता देना.” बसंती ने जीवन से विनती की.
“देख बसंती, मुझे जो भी उचित लगेगा मैं वही करूँगा. मुझे तेरी और उसकी एक समान चिंता है. तुझसे दूर रहने का दुःख और तुझसे मिलने की लालसा उसे ठीक कर सकती है. वहीँ मेरी मित्र मंडली उसे कड़े वश में रखेंगी और उसकी मदिरा पर सीमा लगा देंगी. यहाँ अकेला छोड़ा तो वो कभी नहीं छोड़ने वाला.” जीवन ने कठोर शब्दों में कहा.
बसंती ने गहरी श्वास भरी और उसके कंधे झुक गए. वो समझ गई कि अब भूरा को अपने किये की भरपाई करनी ही होगी.
इतनी देर में ही वो अपने खेतों पर पहुंच गए जहाँ पर बसंती और भूरा रहते थे. अंदर जाते ही सस्ती देसी दारू की गंध ने उन्हें व्यथित कर दिया.
भूरा उनकी रसोई में कुछ ढूँढ रहा था. बंसती को अकेला अंदर छोड़कर जीवन और शालिनी बाहर गाड़ी में बैठ गए. पंद्रह मिनट बाद बसंती आई और उन्हें अंदर ले गई. अब तक घर में से गंध कम हो चुकी थी और भूरा सिर झुकाये बैठा था.
जीवन जाकर एक कुर्सी पर बैठ गया.
“भूरा, तुम जानते हो कि तुम्हारा परिवार मेरे अपने परिवार के ही समान प्रिय है. जो तुम अपने साथ कर रहे हो उससे बसंती, सलोनी और भाग्या दुखी हैं. इसीलिए मैंने कुछ निर्णय लिया है.”
“जी.”
“मैं बसंती को अपने साथ ले जा रहा हूँ. वैसे भी भाग्या कुछ ही दिनों में अपने बच्चे को जन्म देने वाली है. तो सलोनी को कुछ सहारे की आवश्यकता होगी. साथ ही तुम यहाँ नहीं रहोगे. तुम बलवंत के घर में उनके घर की देखभाल करोगे. परन्तु वहां तुम केवल सोने और सफाई इत्यादि के लिए ही जाओगे. तुम दिन में मेरे मित्रों के घर रहोगे और उनके घर का काम काज संभालोगे. तुम्हारे भोजन इत्यादि का प्रबंध उनके ही घर पर रहेगा.”
“जी.”
“ये कहते हुए मुझे दुःख हो रहा है परन्तु तुम उनके घर में नौकर के समान ही रहोगे और उनकी पत्नियों की सुख सुविधा का ध्यान रखोगे. और उनकी हर आज्ञा और इच्छा को पूरा करोगे.”
“जी.” भूरा का सिर अब भी झुका था.
“भूरा, तुम्हें याद है, जब मैं और तुम सरला की मिलकर चुदाई करते थे?” शालिनी ये सुनकर अचंभित हो गई.
“जी, बाबूजी!”
“और ये भी याद होगा कि जब तेरा विवाह बसंती से हुआ तो सुहागरात के एक ही सप्ताह बाद तूने मुझे बसंती की कुँवारी गाँड की भेंट दी थी.”
“जी बाबूजी..”
“और किस प्रकार से हम दोनों मिलकर उन्हें चोदा करते थे.”
भूरा की आँखें चमक उठीं.
“मुझे मेरा वही भूरा चाहिए. दारू के नशे में थका हुआ भूरा नहीं जिसका लंड खड़ा भी नहीं होता.”
भूरा ने उसे आश्चर्य से देखा.
जीवन ने शालिनी की ओर संकेत किया, “जानते हो ये कौन हैं?”
“आपकी मित्र हैं.”
“हाँ, पर भविष्य में पत्नी बनने वाली हैं. और मैं चाहूँगा कि हम उसी पुराने समय जैसे इन दोनों को एक साथ चोदे.”
शालिनी की आँखें फ़ैल गईं पर उसने कुछ कहा नहीं. जीवन भूरा को दण्ड और पारिश्रमिक से समझा रहा था.”
इस बार भूरा ने शालिनी को लालच से देखा.
“पर उसके पहले तेरे लिए कुछ नियम हैं. तू जानता है न कि बसंती और मेरा एक विशेष प्रेम क्यों है.?
“जी.”
“क्या है वो?”
“आप एक दूसरे का मूत पीते हो.”
“हाँ, और अब तुम्हें भी यही करना होगा. नहीं, नहीं, तुम्हें उसे अपना मूत्र पिलाने की अनुमति नहीं है. तुम केवल उसका और इसके बाद पूनम, निर्मला और बबिता का, जब तुम उनके घर रहोगे. विश्वास करो, तुम्हारी ये लत छुड़ाने का इससे शीध्र उपाय मुझे तो नहीं सूझ रहा. साथ ही तुम्हें दारू उनके ही द्वारा दी जाएगी. और वो जितना चाहेंगी, उतना ही देंगी. और अगर तुमने आनाकानी की तो मुझसे बुरा कोई न होगा और तुम सदा के लिए अपनी पत्नी, बेटी और नातिन से संबंध तोड़ दोगे।”
“बाबूजी!”
“मेरी चेतावनी को भली भांति समझ लो भूरा. तुम मेरे छोटे भाई के समान हो, पर अब मैं तुम्हें अपने परिवार को नष्ट करते हुए नहीं देखूँगा। दो तीन माह बाद मैं तुम्हें वहां बुलाऊँगा और एक क्लिनिक में भर्ती कराऊँगा जहाँ तुम्हारी ये लत सदा के लिए छूट जाएगी. समझ रहे हो?”
“जी बाबूजी, मुझे आपकी बात स्वीकार है.”
“बहुत अच्छे! तो फिर बसंती उधर बैठो और अपने पति को अपने अमृत का सेवन कराओ.”
बसंती ठगी सी रह गई.
“बसंती!” जीवन ने कर्कश स्वर में बुलाया.
“जी!”
ये कहते हुए बसंती जीवन वाली कुर्सी पर बैठ गई और जीवन ने एक झटके में उसका लहँगा उठाकर उसकी चूत उजागर कर दी.
“भूरा!”
भूरा अपनी पत्नी के सामने बैठ गया.
“देख रहा है न कैसे लाल है. रात भर मेरे पोतों से इसे चोदा है. गाँड भी मारी है. पर अभी तेरे लिए बस इसे चाटने और मूत्र पीने की स्वतंत्रता है.”
भूरा बसंती की चूत चाटने लगा. बसंती ने जीवन को देखा तो जीवन से अपना सिर हिलाकर संकेत किया.
“सुनिए जी, मेरा मूत निकलने वाला है.”
पर भूरा रुका नहीं और बसंती ने उसके मुँह में अपनी धार छोड़ दी. भूरा ने बिना संकोच उसे पीने का प्रयास किया और अधिकांश पी भी लिया.
“तो भूरा? क्या बुरा लगा?”
“कुछ कुछ!”
“कुछ दिनों में इसका स्वाद भी अच्छा लगने लगेगा. और जब तुझे दारू भी इसके साथ मिलकर ही दी जाएगी तो नशा भी जम कर चढ़ेगा.”
“जी.”
“अब तक तो तूने अपनी पत्नी का मूत्र पिया है. मैं जानना चाहता हूँ कि मेरी भाभियों का पी सकेगा या नहीं.”
भूरा के चेहरे पर कौतुहल के भाव आये. ये तो उसने सोचा ही न था. अपने परिवार को साथ रखने के लिए उसने एक कदम तो ले लिया था.
“इसका निर्णय अभी हो जायेगा, शालिनी!” जीवन ने कहा तो शालिनी चौंक गई.
“बसंती के स्थान पर बैठो और भूरा को अपना अमृत पिलाओ.”
बसंती विनती भरे चेहरे के साथ उठी और जीवन के सामने हाथ जोड़ दिए. जीवन ने सिर हिलाकर उसकी विनती अस्वीकार कर दी.
शालिनी के मूत्र का सेवन करने के बाद जीवन ने भूरा से कहा, “अब से क्लिनिक में जाने तक यही तेरी नियति है. और उसके बाद तुम सब मेरे ही साथ रहोगे. इस गाँव में तेरे यही २ महीने शेष हैं.”
“मेरी बात को हल्के में मत लेना भूरा, तुमने मेरा प्रेम देखा है, पर आक्रोश नहीं. मुझे विवश मत करना. अब मैं जा रहा हूँ. शाम को बसंती को लेने के लिए शालिनी आएंगी.”
ये कहते हुए जीवन ने शालिनी का हाथ लिया और चला गया.
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पाँच दिन बाद:
सामूहिक चुदाई के सारे कार्यक्रम समाप्त हो चुके थे. बबिता के बाद पूनम, निर्मला, गीता के गैंगबैंग के बाद शालिनी ने भी इसका आनंद लिया था. हालाँकि उसका गैंगबैंग उतना कठोर नहीं था न ही उतना वीभत्स. कल अंतिम रात थी जिसमें बसंती का गैंगबैंग हुआ था और वो पहले वाले गैंगबैंग के समान ही था. अंत में बसंती के अनुरोध पर उसे मूत्र स्नान करवाया गया था चूँकि उसकी चुदाई के समय इस क्रीड़ा में किसी की रूचि नहीं थी.
बाद में उसे स्नान करवा कर असीम उसे उसके घर छोड़ आया था. पति पत्नी एक दूसरे से दूर होने का दुःख साझा कर रहे थे. सुबह कुमार उन्हें लेने आया और दोनों बलवंत के घर चले गए. बसंती के हाथ में एक छोटी थी थैली ही थी. उसमें ही दो तीन जोड़ी कपड़े रख लिए थे. भूरा ने भी यही किया था. दोनों ने अपनी कोठरी को एक बाद देखकर अश्रुपूर्ण विदाई दी. सम्भवतः वो अब कभी इसमें रहने नहीं आएंगे.
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दो घण्टे बाद दो गाड़ियाँ बलवंत के घर से निकल कर जीवन के घर ओर दौड़ पड़ीं.
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क्रमशः
1741800
Bahut hi badhiya update diya hai prkin bhai....अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
अध्याय ७१ से आगे
अब तक:
बलवंत और असीम दोनों अपनी पूरी ताल के साथ बबिता को चोदे जा रहे थे और बबिता आनंद के सागर में गोते लगा रही थी. अपने समय के अनुसार बलवंत ने ही पहले हटने की घोषणा की और जस्सी ने अपने लंड को संभाला। बलवंत ठीक से हटा भी नहीं था कि जस्सी के लंड ने उसका स्थान ले लिया और सवारी में जुट गया. बबिता की गाँड में बस हल्की पवन का एक झोंका पल भर को ही समा पाया था कि जस्सी के ढकते लौड़े ने उसे फिर से भर दिया.
असीम और जस्सी ने मिलकर बबिता को पलटा और बिना अपने लौड़े निकाले हुए इस बार जस्सी नीचे से गाँड मारने लगा तो असीम ऊपर से चूत का आनंद लेने लगा. जस्सी ने बबिता के मम्मों को अपने हाथों में लिया और दबाने लगा जिससे कि बबिता को और भी अधिक आनंद का अनुभव हुआ. उसकी चूत ने असीम के लंड को जकड़ना आरम्भ कर दिया तो असीम भी अपने स्खलन के निकट पहुंचने लगा.
बलवंत अपने और बबिता की गाँड के रस से चिपचिपाये लौड़े के साथ बसंती के पास गया तो बसंती ने उसे बड़े ही प्रेम से पहले तो चाटा और फिर मुँह में लेकर शीघ्र ही झड़ने पर विवश कर दिया. इस बार उसने अधिकतर वीर्य को प्याले में ही डाल दिया. “बाबू, मुँह में थोड़ा ही छोड़ना. अब पेट भरा हुआ है. चेहरे पर छोड़ो या बाल्टी में डाल दो.” बसंती ने कहा और फिर मुँह खोलकर बलवंत के मूत्र की प्रतीक्षा करने लगी.
अब आगे:
बलवंत ने बसंती की आज्ञा का पालन किया और उसके चेहरे और वक्ष पर धार छोड़ने के पश्चात बाल्टी में शेष मूत्र त्याग दिया।
“बाबूजी, जो भी अंतिम चुदाई करे, उन्हें बता देना कि अंतिम रस दीदी की चूत और गाँड में ही छोड़ें. आप तो जानते ही हो कि मैं इस प्रकार के आयोजनों का समापन किस प्रकार से करती हूँ.” बसंती ने कहा.
“ठीक है, बसंती, जैसा तुम चाहो.” ये कहकर बलवंत ने अपने लिए एक पेग बनाया और बबिता की घनघोर चुदाई का दृश्य देखने लगा.
बबिता के गैंगबैंग का ये चरण आगे बढ़ने लगा. जैसा निर्धारित था उसकी चूत और गाँड बस पल भर के लिए ही लंड-विहीन होती थी. जैसे ही एक लंड निकलता दूसरा उसका स्थान तत्परता से ले लेता. शालिनी बबिता के सामर्थ्य से विस्मित थी. फिर उसे ध्यान आया कि इस कमरे में उपस्थित हर स्त्री इतना ही समर्थ थी. क्या वो भी इनके समान इस प्रकार की निरंतर चुदाई को झेल पायेगी.
बबिता ने अगले दो घंटों में तीन बार सरला का नाम लेकर कुछ विश्राम लिया. परन्तु इस अवधि में भी लौड़े चूत और गाँड से नहीं, बस कुछ पलों के लिए चुदाई को विराम दिया गया. एक बार अवश्य बबिता ने मूत्र निस्तारण के लिए लौड़े बाहर निकलने दिए था और बसंती को अपनी भेंट देकर कुछ पल बैठी और फिर से संग्राम छेत्र में लौट गई.
इस प्रकार की चुदाई के लगभग दो घण्टे बाद पुरुष शिथिल होने लगे तो बलवंत ने बसंती की आज्ञा उन्हें बता दी. अंतिम जोड़ी में अब जीवन और असीम बबिता की चूत और गाँड में धककमपेल कर रहे थे. बबिता की शक्ति अब लगभग समापन की ओर थी, फिर भी वो उन दोनों को प्रोत्साहित कर रही थी. जीवन ने अपना रस बसंती की चूत में भरा और रुक गया. असीम समझ गया कि वही इस द्वन्द का अंतिम योद्धा है. एक गर्वान्वित भाव से उसने भी अपने लंड के रस से बबिता की आहत गाँड सीँच दिया.
उधर बसंती ने एक तौलिये से अपने शरीर को पोंछा और असीम के पास आ खड़ी हुई. मूत्र की तीव्र गंध से असीम विचलित हो गया.
“लल्ला अब तुम हटो, मुझे मलाई खाना है. और तुमसे एक भेंट भी चाहिए.” बसंती की बात सुनकर असीम कुछ समझा नहीं, पर उसने अपना लौड़ा बबिता की गाँड से निकाल लिया. बसंती एक बार शालिनी की ओर देखा और अपनी जीभ से बबिता की गाँड चाटने लगी. बबिता को जब बसंती की जीभ का आभास हुआ तो उसने अपनी गाँड को खोलने सिकोड़ने करने का उपक्रम किया. असीम का वीर्य अब उसकी गाँड से बाहर निकलने लगा जिसे बसंती बड़े चाव से चाटती रही. अंत में उसने अपनी जीभ को अंदर धकेला और घुमाते हुए चाट लिया.
“दीदी, अब आप जाकर वहाँ बैठो और लल्ला को साथ ले जाओ. अब आप चाहो तो उसका लंड चूस सकती हो.” बसंती ने कहा.
असीम का हाथ पकड़कर बबिता के आसन के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई.
“बाबूजी, अब आप भी जाओ और दीदी से अपना लंड चमकवा लो.” बसंती ने कहते हुए जीवन को उठाया.
जीवन बबिता के समक्ष खड़ा हो गया और बबिता ने असीम के लंड मुँह से निकाला और जीवन के लंड को चूसने लगी.
“बाबूजी, अब आप चलो अपने स्थान पर.” बसंती ने जीवन को बोला तो जीवन चुपचाप अपने लिए पेग बनाकर शालिनी के पास बैठ गया.
“अब जो देखोगी तो सम्भवतः तुम विचलित हो जाओ. परन्तु ये बबिता के गैंगबैंग से साथ ही बसंती का भी दूसरे अर्थ का गैंगबैंग है. इस प्रकार के आयोजन का समापन एक विशेष प्रकार से होता है. असीम को अब पता चलेगा कि बसंती ने उससे क्या भेंट माँगी है.”
असीम के चेहरे पर आश्चर्य के भाव देखकर शालिनी समझ गई कि बसंती ने अपनी भेंट की इच्छा बता दी थी. बबिता के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो असीम के इस अचरज पर मुस्कुरा रही थी. बंसती की मांग सुनकर असीम ने बबिता को देखा.
“बिटवा, यही इन कार्यक्रमों का अंतिम चरण होता है. तूने मेरी गाँड में जो अपना रस छोड़ा है वो बसंती पूरा नहीं चाट पाई. तो उसे धोकर पिलाना तेरा ही दायित्व है.” ये कहते हुए बबिता ने अपने दोनों पैरों को ऊपर उठा लिया. सुशील ने जाकर उसके दोनों पैरों को पकड़ा जिससे कि बबिता की चूत गाँड ऊपर उभर आई.
असीम ने अपना लौड़ा बबिता की गाँड में डाला और तीन चार धक्के लगाए. और रुक गया. बबिता की आँखें धीरे से चौड़ी होने लगीं. बसंती असीम के पीछे बैठ गई. और उसने बसंती के नितम्बों पर अपने हाथ रख लिए.
“छोटी नानी, मैं हट रहा हूँ.” असीम ने कहा.
“मेरे हाथ के ऊपर ने निकलना.” बसंती ने बबिता के नितम्बों को थामे हुए बोला।
“जी, छोटी नानी.”
“अब देखना…” जीवन ने शालिनी के कान में बोला।
जैसे ही असीम हटा तो बबिता की गाँड से मूत्र की एक तीव्र धार छूटी। बसंती इसकी ही अपेक्षा कर रही थी. उसके खुले मुँह में वो धार आकर गिरने लगी. बसंती घूँट लेती तो मुँह बंद होते ही उसके चेहरे पर धार आ जाती. अंततः बबिता की गाँड पूर्ण रूप से धुलकर बसंती के मुँह, चेहरे और शरीर पर अपना स्थान बना चुकी थी. बसंती ने बड़े ही प्रेम से बबिता की गाँड को चाटा और हट गई.
“आज तो सचमुच आनंद आ गया. अब मेरा कार्य समाप्त हुआ. आप चलो, मैं यहाँ साफ सफाई हूँ.” बसंती ने बबिता से कहा.
“चाहे तो मैं तेरी सहायता कर देती हूँ, मेरी बहन.” बबिता ने उस स्थान को देखकर बसंती से कहा.
“नहीं, दीदी. मुझे इसमें अधिक समय नहीं लगेगा. पर असीम को इस बाल्टी को अंदर स्नानघर में रखने के लिए बोल दीजिये.”
बबिता ने असीम को आज्ञा दी. बसंती ने वीर्य और कुछ मात्रा में मूत्र से मिश्रित प्याला उठाया.
“पीना है, दीदी?”
“नहीं, तूने उसमे मूत्र न मिलाया होता तो अवश्य पी लेती.” बबिता ने उठते हुए कहा. बसंती ने मुस्कुराते हुए उसे अपने होंठों से लगाया और पी गई. अंत में जो शेष रहा उसे अपने चेहरे पर मल लिया.
पति पत्नियों की जोड़ियाँ अब अपने कमरों में जाने लगीं. परन्तु जीवन और शालिनी नहीं गए. जीवन ने कुमार और असीम को कुछ निर्देश दिया और शालिनी को लेकर स्नानघर में चला गया. बसंती उस बाल्टी को लालच से देख रही थी.
“जाकर पहले बाहर की धुलाई कर ले, नहीं तो फिर समस्या होगी.” जीवन ने कहा.
“मैं इसके साथ जाती हूँ. आप नए पेग बनाओ.” शालिनी ने जीवन को कहा तो जीवन आज्ञाकारी भावी पति के समान उसकी आज्ञा पूरी करने चला गया.
“यही इन पुरुषों को ठीक रखने का उपाय है दीदी. पर आपको कुछ करने की आवश्यकता नहीं है. मैं हर बार अकेली ही कर लेती हूँ.”
“ पर अब मैं तेरा साथ दूँगी।” शालिनी के स्वर में स्पष्ट भाव था कि वो न नहीं सुनाने वाली.
“चलो फिर.” बसंती ने एक अन्य बाल्टी उठाई और एक ओर जाकर एक उपकरण निकाला। शालिनी को गाँव में वैक्यूम क्लीनर देखकर पल भर के लिए आश्चर्य हुआ. बसंती ने अनुभवी ढंग से कुछ ही पलों में उसे कार्य के उपयुक्त बनाया और जाकर सफाई में लग गई. एक बार सोखने के बाद पानी डालकर फिर से उसे साफ कर दिया. दस पंद्रह मिनट में ही उसने अपना कार्य सम्पन्न कर लिया.
वैक्यूम क्लीनर इत्यादि लेकर बसंती और शालिनी स्नानघर में चली गयीं. जीवन ने असीम और कुमार को भी अंदर जाने के लिए संकेत किया और स्वयं अपना पेग समाप्त करके उनके पीछे चल दिया.
बसंती बहुत उतावली हो रही थी. उसने तीनों पुरुषों को आते देखा तो उसका चेहरा खिल उठा.
“तुझे तो पता है बसंती, तेरी हर इच्छा मेरे लिए कितना अर्थ रखती है. आज मैं चाहूँगा कि शालिनी भी देखे कि मैं तेरे लिए क्या हूँ.” जीवन ने कहा.
“बाबूजी!” बसंती का स्वर काँप गया.
जीवन ने बसंती का हाथ पकड़ा और शालिनी के सामने बैठा दिया. वो स्वयं बसंती के एक ओर खड़ा हो गया. असीम ओर और कुमार पीछे खड़ा हो गया. शालिनी समझ गई कि क्या करना है.
“अपना मुँह खोलो और आँखें बंद कर लो, बसंती.” शालिनी ने कहा.
बसंती ने यही किया तो शालिनी ने जीवन को देखा और मुस्कुराई. “मैंने सही समझा न?”
जीवन, “बिलकुल.”
“फिर आइये नहलाइये अपनी सखी को.” ये कहकर शालिनी आगे बड़ी और उसने बसंती के मुँह पर धार छोड़ दी. इसके साथ ही जीवन, असीम और कुमार ने भी बसंती पर अपनी धार छोड़ दी. चारों ओर से बसंती पर इस वृष्टि ने उसके मन को आल्हादित कर दिया. वो हाथों को अपने शरीर पर रगड़ने लगी मानो उसे रोम रोम में समाहित करना चाहती हो.
जब सबने अपना कार्य समाप्त किया तो शालिनी ने बाल्टी उसके सामने रख दी. बसंती ने कुछ पिया कुछ सिर पर डाला और फिर उससे सामान्य स्नान करने लगी.
“आप सब जाओ. मैं कुछ देर में आती हूँ.”
जीवन ने शालिनी को लिया और कपड़े लेकर अपने कमरे की ओर चल दिया. असीम और कुमार ने भी अपने कपड़े उठाये और चल पड़े.
“तुम अब क्या सोचती हो बसंती के विषय में?”
“पता नहीं. कुछ समझ नहीं पड़ रहा. हाँ, मूत्र से स्नान करना, गाँड में से मूत्र पीना, कुछ अधिक ही विकृत है. परन्तु जैसा अपने समझाया है, जिसे जिसमे आनंद और सुख मिले हमें उसके लिए कोई धारणा नहीं बनाना चाहिए.”
“तुम्हें पता है कि वो तुम्हारी गाँड से भी वही सुख पाने की इच्छुक है?”
“सम्भव है. और मुझे सच कहूँ तो कोई आपत्ति भी नहीं है.”
“बढ़िया. बसंती ये सुनकर बहुत प्रसन्न होगी.”
कमरे में पहुंचकर दोनों ने एक साथ स्नान किया और फिर जीवन ने दोनों के लिए पेग बनाये.
“नींद तो नहीं आ रही है?”
“न जाने क्यों, अभी नहीं.”
“फिर कुछ और देर खेल सकते हैं.” जीवन ने उसे ग्लास थमाते हुए कहा.
शालिनी सोफे पर जीवन से सट कर बैठ गई और अपनी व्हिस्की पीते हुए जो आज देखा था उसके विषय में सोचने लगी. उसने कभी सोचा न था कि गाँव में इतना खुला चुदाई का वातावरण भी हो सकता है. और बसंती! उसकी तो बात ही भिन्न थी. वो जिस प्रेम से अपने विकृत चरित्र को दिखाने में सक्षम थी उसने कभी सोचा भी न था. और अब वो भी उनके साथ नगर में लौटने वाली है.
“बसंती वहाँ आपके ही कमरे में रहने वाली है क्या?” उसने जीवन से पूछा.
“हाँ, क्यों? क्या तुम्हें कोई आपत्ति है?”
“नहीं, नहीं! ऐसा कुछ नहीं. मैं सोच रही थी कि हर दो तीन दिन में मैं आ जाया करुँगी तो हम तीनों…”
जीवन हंसने लगा.
“बस मुझे बता कर आना. वो घर के काम में सलोनी का हाथ बँटाये बिना नहीं रुकेगी. अगर पहले बता दोगी तो पहले ही उसे बता दूँगा और वो तुम्हें मेरे पास ले आएगी.”
“ये ठीक रहेगा. आपके परिवार वाले?”
“दो से तो तुम मिल ही चुकी हो. मेरा बेटे, बहू और पोती से भी ठीक से मिल लेना. वैसे तुम जानती ही हो कि बलवंत और गीता की बेटी सुनीति ही मेरी बहू भी है. तो तुम आधे परिवार से तो मिलन कर ही चुकी हो. घर पहुँचने के एक घण्टे में ही सबको तुम्हारे विषय में ज्ञात हो जायेगा. फिर उनका भी मन तुम्हारे इस सुंदर शरीर को चखने और तुम्हारे साथ खेलने का हो जायेगा.”
“मुझे भी अपने बेटे, बहू, पोते और पोती को आपके विषय में बताना होगा. आपके जितना लम्बा इतिहास हमारा नहीं है पारिवारिक और सामूहिक चुदाई का. तो मैं क्या कहूँगी, पता नहीं.”
“सच बताना, चाहे थोड़े थोड़े अंश में सही.”
“हाँ, यही मैंने भी सोचा है.”
उनके पेग समाप्त हो गए थे तो जीवन ने एक और पेग बनाया और इतने में ही उसके निर्देश के अनुसार असीम और कुमार बसंती को लेकर कमरे में आ गए.
“बाबूजी, मैंने नहीं कहा. ये दोनों ही मुझे पकड़कर आये।” बसंती विनती भरे स्वर में कहा.
जीवन उसके पास गया और उसके चेहरे हो अपने हाथों में लेकर प्रेम से बोला, “मैंने ही कहा था इन्हें.”
“क्यों?”
“अरे तेरा ध्यान मैं नहीं रखूँगा तो कौन रखेगा? इसीलिए यहाँ बुला लिया. अब तेरे इन दोनों नातियों को तेरी सेवा में दे रहा हूँ. इनके पास तो कोई कमरा है नहीं. और तुझे नीचे क्यों सोना पड़े?” फिर उसने शालिनी को देखा, “जब भी हम ऐसा आयोजन करते हैं तो बसंती मेरे साथ इस कमरे में सोती है. मैं जानता था कि वो आज हिचकेगी, इसीलिए इनसे पकड़वा कर लाना पड़ा.”
शालिनी उठ खड़ी हुई, “क्यों? मेरे आने से तेरा स्थान थोड़े ही कम हो गया. मुझे दीदी भी कहती है और संकोच भी करती है?”
बसंती की आँखें भर आईं.
“अब तेरे बाबूजी ने तुझे दो दो हट्टे कट्टे युवा तेरी सेवा में दिए हैं तो उसका सुख ले. और अब से कभी भी कहीं और सोने का मन में विचार भी मत लाना. हाँ अगर तेरी कहीं चुदाई हो रही हो तो फिर मैं नहीं रोकूंगी!”
ये सुनकर सब हंस पड़े और बसंती शर्मा गई.
असीम ने पहल की और बसंती को पीछे से पकड़ा और उसके स्तन दबाते हुए उसकी गर्दन को चूमा, “छोटी नानी, अब तो दादी से भी अनुमति मिल गई है. इतनी देर से सबकी सेवा कर रही थीं, अब हमें अपना कर्तव्य भी पूरा करने दो!”
बसंती कसमसाई और धीमे से बोली, “हाँ बिटवा, चूत बहुत व्याकुल है. अब तुम दोनों ही मेरी तृप्ति करो. तेरे दादा तो देवता हैं जिन्होंने मेरी इच्छा जान ली.”
अब तक कुमार आगे आ चुका और उसने बसंती के होंठों पर अपने होंठ रखते हुए उसे कुछ और बोलने से रोक दिया. कुछ देर तक कुमार उसके होंठ चूसता रहा और असीम उसके मम्मे मसलता रहा.
कुमार ने चुंबन तोड़ा और बसंती को देखते हुए कहा, “आओ छोटी नानी, पलंग पर चलते हैं. मुझे चूत चाटने की इच्छा है.”
तीनों पलंग पर चले गए जहाँ पहले से ही जीवन शालिनी की चुदाई आरम्भ कर चुका था. जीवन और शालिनी ने उनके लिए पर्याप्त स्थान छोड़ दिया था. कुमार नीचे लेटा और बसंती उसके मुँह पर अपनी चूत लगाकर बैठ गई. कुमार ने चूत चाटनी आरंभ कर दी. अचानक बसंती को अपनी गाँड पर कुछ आभास हुआ और उसकी सिसकारी निकल गई. असीम उसकी गाँड को चाट रहा था और एक ऊँगली से उसे खोल भी रहा था.
“आह बिटवा, चाटो मेरी चूत और गाँड और फिर उनकी चुदाई भी करना.”
कुछ देर तक ही ये चला और फिर कुमार ने अपनी जीभ हटा ली.
“अब चुदाई हो जाये.”
बसंती हटी और उसने पलटते हुए कुमार के मूसल से खड़े लौड़े पर चूत को दो पल रगड़ा और उस पर बैठती गई. दिन भर की दबी वासना चरम पर आ चुकी थी. उसकी आँखें शालिनी से मिलीं और दोनों मुस्कुरा दीं.
असीम ने बसंती की कमर पर हाथ रखकर उसे झुकाया और उसकी गाँड पर रखते हुए बिना किसी दुविधा के दो तीन धक्कों में अंदर पेल दिया. बसंती स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़ी.
इसके बाद अगले दो घंटों तक दोनों भाइयों ने मिलकर अपनी छोटी नानी की भरपूर चुदाई की. कुछ देर रुकते और फिर से चोदने लगते. बसंती की चूत और गाँड को इतना चोदा कि दोनों फूल गयीं. अंततः उन्होंने उस पर दया करते हुए उन्हें विश्राम करने के लिए छोड़ा और बसंती एक मधुर मुस्कान के साथ सो गई और दोनों भाई अपने कमरे में चले गए. जीवन और शालिनी इस बीच में पहले ही चुके थे.
अगली सुबह शालिनी उठी तो बसंती को बेसुध सोता पाकर मुस्कुरा दी. उसने अपने पोतों द्वारा चुदाई का वृत्तांत देखा था और बसंती की चूत और गाँड पर जमी श्वेत पपड़ी उसकी थकान की साक्षी थी. वो स्नान करने चली गई जहाँ जीवन अपने स्नान से निवृत्त हो चुके थे. बिना कुछ कहे उसने ब्रश किया और स्नान करने लगी. जीवन ने कहा कि वो बैठक में मिलेगा. शालिनी स्नान के बाद एक फिर बसंती को देखते हुए बाहर चली गई.
जीवन ने उपस्थित मित्रों को बताया कि वो बसंती को उसके घर छोड़ने जायेगा और शाम को उसे फिर ले आएगा. फिर उसने अपने मित्रों के साथ अपनी योजना को साँझा किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. चाय नाश्ता समाप्त होते होते बसंती भी आ गई. गीता ने उसे चाय पिलाई और घर लेकर जाने के नाश्ता इत्यादि दिया. इसके बाद जीवन और शालिनी बसंती को उसके घर छोड़ने निकल पड़े.
“बाबूजी, इन्हें अधिक तिरस्कृत मत करना. बस उन्हें दारू पीने की कीमत बता देना.” बसंती ने जीवन से विनती की.
“देख बसंती, मुझे जो भी उचित लगेगा मैं वही करूँगा. मुझे तेरी और उसकी एक समान चिंता है. तुझसे दूर रहने का दुःख और तुझसे मिलने की लालसा उसे ठीक कर सकती है. वहीँ मेरी मित्र मंडली उसे कड़े वश में रखेंगी और उसकी मदिरा पर सीमा लगा देंगी. यहाँ अकेला छोड़ा तो वो कभी नहीं छोड़ने वाला.” जीवन ने कठोर शब्दों में कहा.
बसंती ने गहरी श्वास भरी और उसके कंधे झुक गए. वो समझ गई कि अब भूरा को अपने किये की भरपाई करनी ही होगी.
इतनी देर में ही वो अपने खेतों पर पहुंच गए जहाँ पर बसंती और भूरा रहते थे. अंदर जाते ही सस्ती देसी दारू की गंध ने उन्हें व्यथित कर दिया.
भूरा उनकी रसोई में कुछ ढूँढ रहा था. बंसती को अकेला अंदर छोड़कर जीवन और शालिनी बाहर गाड़ी में बैठ गए. पंद्रह मिनट बाद बसंती आई और उन्हें अंदर ले गई. अब तक घर में से गंध कम हो चुकी थी और भूरा सिर झुकाये बैठा था.
जीवन जाकर एक कुर्सी पर बैठ गया.
“भूरा, तुम जानते हो कि तुम्हारा परिवार मेरे अपने परिवार के ही समान प्रिय है. जो तुम अपने साथ कर रहे हो उससे बसंती, सलोनी और भाग्या दुखी हैं. इसीलिए मैंने कुछ निर्णय लिया है.”
“जी.”
“मैं बसंती को अपने साथ ले जा रहा हूँ. वैसे भी भाग्या कुछ ही दिनों में अपने बच्चे को जन्म देने वाली है. तो सलोनी को कुछ सहारे की आवश्यकता होगी. साथ ही तुम यहाँ नहीं रहोगे. तुम बलवंत के घर में उनके घर की देखभाल करोगे. परन्तु वहां तुम केवल सोने और सफाई इत्यादि के लिए ही जाओगे. तुम दिन में मेरे मित्रों के घर रहोगे और उनके घर का काम काज संभालोगे. तुम्हारे भोजन इत्यादि का प्रबंध उनके ही घर पर रहेगा.”
“जी.”
“ये कहते हुए मुझे दुःख हो रहा है परन्तु तुम उनके घर में नौकर के समान ही रहोगे और उनकी पत्नियों की सुख सुविधा का ध्यान रखोगे. और उनकी हर आज्ञा और इच्छा को पूरा करोगे.”
“जी.” भूरा का सिर अब भी झुका था.
“भूरा, तुम्हें याद है, जब मैं और तुम सरला की मिलकर चुदाई करते थे?” शालिनी ये सुनकर अचंभित हो गई.
“जी, बाबूजी!”
“और ये भी याद होगा कि जब तेरा विवाह बसंती से हुआ तो सुहागरात के एक ही सप्ताह बाद तूने मुझे बसंती की कुँवारी गाँड की भेंट दी थी.”
“जी बाबूजी..”
“और किस प्रकार से हम दोनों मिलकर उन्हें चोदा करते थे.”
भूरा की आँखें चमक उठीं.
“मुझे मेरा वही भूरा चाहिए. दारू के नशे में थका हुआ भूरा नहीं जिसका लंड खड़ा भी नहीं होता.”
भूरा ने उसे आश्चर्य से देखा.
जीवन ने शालिनी की ओर संकेत किया, “जानते हो ये कौन हैं?”
“आपकी मित्र हैं.”
“हाँ, पर भविष्य में पत्नी बनने वाली हैं. और मैं चाहूँगा कि हम उसी पुराने समय जैसे इन दोनों को एक साथ चोदे.”
शालिनी की आँखें फ़ैल गईं पर उसने कुछ कहा नहीं. जीवन भूरा को दण्ड और पारिश्रमिक से समझा रहा था.”
इस बार भूरा ने शालिनी को लालच से देखा.
“पर उसके पहले तेरे लिए कुछ नियम हैं. तू जानता है न कि बसंती और मेरा एक विशेष प्रेम क्यों है.?
“जी.”
“क्या है वो?”
“आप एक दूसरे का मूत पीते हो.”
“हाँ, और अब तुम्हें भी यही करना होगा. नहीं, नहीं, तुम्हें उसे अपना मूत्र पिलाने की अनुमति नहीं है. तुम केवल उसका और इसके बाद पूनम, निर्मला और बबिता का, जब तुम उनके घर रहोगे. विश्वास करो, तुम्हारी ये लत छुड़ाने का इससे शीध्र उपाय मुझे तो नहीं सूझ रहा. साथ ही तुम्हें दारू उनके ही द्वारा दी जाएगी. और वो जितना चाहेंगी, उतना ही देंगी. और अगर तुमने आनाकानी की तो मुझसे बुरा कोई न होगा और तुम सदा के लिए अपनी पत्नी, बेटी और नातिन से संबंध तोड़ दोगे।”
“बाबूजी!”
“मेरी चेतावनी को भली भांति समझ लो भूरा. तुम मेरे छोटे भाई के समान हो, पर अब मैं तुम्हें अपने परिवार को नष्ट करते हुए नहीं देखूँगा। दो तीन माह बाद मैं तुम्हें वहां बुलाऊँगा और एक क्लिनिक में भर्ती कराऊँगा जहाँ तुम्हारी ये लत सदा के लिए छूट जाएगी. समझ रहे हो?”
“जी बाबूजी, मुझे आपकी बात स्वीकार है.”
“बहुत अच्छे! तो फिर बसंती उधर बैठो और अपने पति को अपने अमृत का सेवन कराओ.”
बसंती ठगी सी रह गई.
“बसंती!” जीवन ने कर्कश स्वर में बुलाया.
“जी!”
ये कहते हुए बसंती जीवन वाली कुर्सी पर बैठ गई और जीवन ने एक झटके में उसका लहँगा उठाकर उसकी चूत उजागर कर दी.
“भूरा!”
भूरा अपनी पत्नी के सामने बैठ गया.
“देख रहा है न कैसे लाल है. रात भर मेरे पोतों से इसे चोदा है. गाँड भी मारी है. पर अभी तेरे लिए बस इसे चाटने और मूत्र पीने की स्वतंत्रता है.”
भूरा बसंती की चूत चाटने लगा. बसंती ने जीवन को देखा तो जीवन से अपना सिर हिलाकर संकेत किया.
“सुनिए जी, मेरा मूत निकलने वाला है.”
पर भूरा रुका नहीं और बसंती ने उसके मुँह में अपनी धार छोड़ दी. भूरा ने बिना संकोच उसे पीने का प्रयास किया और अधिकांश पी भी लिया.
“तो भूरा? क्या बुरा लगा?”
“कुछ कुछ!”
“कुछ दिनों में इसका स्वाद भी अच्छा लगने लगेगा. और जब तुझे दारू भी इसके साथ मिलकर ही दी जाएगी तो नशा भी जम कर चढ़ेगा.”
“जी.”
“अब तक तो तूने अपनी पत्नी का मूत्र पिया है. मैं जानना चाहता हूँ कि मेरी भाभियों का पी सकेगा या नहीं.”
भूरा के चेहरे पर कौतुहल के भाव आये. ये तो उसने सोचा ही न था. अपने परिवार को साथ रखने के लिए उसने एक कदम तो ले लिया था.
“इसका निर्णय अभी हो जायेगा, शालिनी!” जीवन ने कहा तो शालिनी चौंक गई.
“बसंती के स्थान पर बैठो और भूरा को अपना अमृत पिलाओ.”
बसंती विनती भरे चेहरे के साथ उठी और जीवन के सामने हाथ जोड़ दिए. जीवन ने सिर हिलाकर उसकी विनती अस्वीकार कर दी.
शालिनी के मूत्र का सेवन करने के बाद जीवन ने भूरा से कहा, “अब से क्लिनिक में जाने तक यही तेरी नियति है. और उसके बाद तुम सब मेरे ही साथ रहोगे. इस गाँव में तेरे यही २ महीने शेष हैं.”
“मेरी बात को हल्के में मत लेना भूरा, तुमने मेरा प्रेम देखा है, पर आक्रोश नहीं. मुझे विवश मत करना. अब मैं जा रहा हूँ. शाम को बसंती को लेने के लिए शालिनी आएंगी.”
ये कहते हुए जीवन ने शालिनी का हाथ लिया और चला गया.
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पाँच दिन बाद:
सामूहिक चुदाई के सारे कार्यक्रम समाप्त हो चुके थे. बबिता के बाद पूनम, निर्मला, गीता के गैंगबैंग के बाद शालिनी ने भी इसका आनंद लिया था. हालाँकि उसका गैंगबैंग उतना कठोर नहीं था न ही उतना वीभत्स. कल अंतिम रात थी जिसमें बसंती का गैंगबैंग हुआ था और वो पहले वाले गैंगबैंग के समान ही था. अंत में बसंती के अनुरोध पर उसे मूत्र स्नान करवाया गया था चूँकि उसकी चुदाई के समय इस क्रीड़ा में किसी की रूचि नहीं थी.
बाद में उसे स्नान करवा कर असीम उसे उसके घर छोड़ आया था. पति पत्नी एक दूसरे से दूर होने का दुःख साझा कर रहे थे. सुबह कुमार उन्हें लेने आया और दोनों बलवंत के घर चले गए. बसंती के हाथ में एक छोटी थी थैली ही थी. उसमें ही दो तीन जोड़ी कपड़े रख लिए थे. भूरा ने भी यही किया था. दोनों ने अपनी कोठरी को एक बाद देखकर अश्रुपूर्ण विदाई दी. सम्भवतः वो अब कभी इसमें रहने नहीं आएंगे.
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दो घण्टे बाद दो गाड़ियाँ बलवंत के घर से निकल कर जीवन के घर ओर दौड़ पड़ीं.
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क्रमशः
1741800