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Incest कैसे कैसे परिवार

prkin

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Chut chatu

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कैसे कैसे परिवार

प्रस्तावना

एक बड़े शहर में एक सुंदर कॉलोनी थी. मात्र ८ घर ही घर थे इस कॉलोनी में. इनके स्वामी अधिकतर या तो व्यवसाई थे या ऊँचे पद पर काम करने वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति. पुरुषों की एक मित्र मंडली थी, और महिलाओं की किटी. आठों भवन दो पंक्तियों में थे. एक ओर इन्होने एक जिम, स्पोर्ट्स हाल और स्विमिंग पूल बनवाया था, और दूसरी ओर एक दो मंज़िला भवन जिसमे लगभग ४०० लोगों की पार्टी आराम से हो सकती थी. इसमें ही एक किचॅन था. पहले रेस्तराँ खोलने का प्लान था पर इतने कम लोगों के लिए उसका कोई औचित्य नहीं था. परन्तु किटी पार्टीस और जेंट्स पार्टीस यहीं होती थीं. हालाँकि सब अच्छे दोस्त थे पर एक दूसरे के जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करता था. ये पार्टीस ही थीं जिनमें कुछ बातें सामने आती थीं. पर कभी भी इस कमरे से बाहर किसी ने इसको दोबारा नहीं बोला.

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६ लोग इन दोनों की प्रबंधन के लिए रखे थे, और एक सेक्यूरिटी एजेन्सी पहरेदारी के लिए.

अब क्योंकि इस कॉलोनी का कोई नाम भी होना चाहिए, तो हम इसे "संभ्रांत नगर" से बुला लेंगे. ये अलग बात है कि पर्दे के पीछे झाँकने पर कुछ और ही मिलेगा.

हम अब हर घर का लेखा जोखा लेंगे और देखेंगे की उन घरों में कब कब क्या क्या खेल खेले जाते हैं.



अध्याय १ पहला घर: अदिति और अजीत बजाज १


इस घर में वैसे तो चार ही लोग रहते हैं, पर कुछ महीनों से अजीत की माँ शालिनी बजाज भी यहीं आ गई थीं. अपने पति के देहांत के बाद तीन साल तो उन्होंने काट लिए, पर अजीत की बहुत ज़िद के कारण उन्होंने अपना घर बेचकर यहीं रहना शुरू कर दिया था. अब लगभग साल भर निकालने के बाद वो अपने निर्णय से बहुत संतुष्ट थीं. न सिर्फ़ अदिति उनका अत्यधिक आदर सम्मान करती थी, बल्कि बच्चों के साथ रहने से उनका अकेलापन भी अब उन्हें सताता नहीं था. अजीत तो दिन में हमेशा बाहर ही रहता था, पर दोनों सास बहू की खूब पटती थी.


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अदिति के बेटी अनन्या और बेटा गौतम भी अपनी दादी का बहुत ध्यान रखते थे. दोनों में बस १.५ साल का अंतर था और कॉलेज में थे. गौतम अनन्या से बड़ा था.

कुछ ही दिन पहले अदिति का एक ऑपरेशन हुआ था जिससे उसको शारीरिक संबंध बनाने की ३ महीने की मनाही थी. अजीत उसे पहले हफ्ते में लगभग तीन से चार दिन चोदता था, पर इस ऑपरेशन ने उस पर अंकुश लगा दिया था. अदिति और गौतम कई बार अपने दोस्तों के घर रुक जाते थे, उनके भी दोस्त ऐसा ही करते थे. सप्ताह में एक दिन तो वो बाहर ही रहते थे. आज भी वो अपने दोस्तों के साथ बाहर थे.

आज शाम को अजीत अपने कार्यालय से घर पहुँचा और मुंह हाथ धोकर अदिति के साथ सोफे पर बैठ गया. अदिति ने उसे उसकी मनपसंद ड्रिंक हाथ में थमाई और एक अपने लिए भी ले ली. तभी किचन से शालिनी भी अपनी ड्रिंक के साथ आ गई. इस प्रकार से एक साथ मदिरा सेवन सामान्य घटना थी. तीनों पूरे दिन में घटित घटनाओं की बातें करने लगे. ड्रिंक्स का एक और राउंड होने के बाद सब खाने के लिए बैठ गये. अजीत को इस सबमें कुछ योजना दिख रही थी. पर वो शांत रहा और उचित समय की प्रतीक्षा करने लगा. खाने के बाद अदिति ने एक और ड्रिंक की बात की तो अजीत चौंक गया. पर उसने हामी भारी और जाकर सोफे पर बैठ गया. तीनों फिर अपनी ड्रिंक्स की चुस्कियाँ लेने लगे.

"हनी, मेरे ऑपरेशन के समय से अपने बहुत धैर्य रखा है." ये कहते हुए उसने अजीत के हाथ में एक गोली थमा दी. गोली देखते ही अजीत सकपका गया.

"पर तुम्हें तो अभी २ महीने तक कुछ भी नहीं करना है." अजीत ने अदिति की ओर देखकर कहा. वो अपनी माँ को भी कनखियों से देख रहा था क्योंकि ये पति और पत्नी के बीच का संवाद था जिसे अदिति उसकी माँ के सामने ही उदित कर रही थी.

"वो तो है. पर मैं चाहती हूँ कि अब मैं भी तुम्हारी और शालिनी की प्रेम कहानी में भागीदार बन जाऊं."
अजीत का दिमाग़ चक्कर खाने लगा. उसकी पत्नी उसकी माँ को नाम से पुकार रही थी. न सिर्फ़ इतना बल्कि उसे संभवतः उन दोनों के बारे में पता था. अजीत ने अपनी माँ को ओर नज़र डाली तो वो मुस्कुरा रही थी.

"मैं तुम्हें हमेशा कहती हूँ कि मुझे इस घर में बहुत प्यार मिला है." शालिनी उठकर अदिति के पास बैठ गई और उसके होंठ चूम लिए. "अदिति को अपने बारे में मैने ही बताया, पर शायद तुम्हें हम दोनों के बारे में कुछ नहीं पता." शालिनी ने फिर से अदिति को चूमते हुए कहा.

"मैने तुम्हारे लिए एक अविस्मरणीय रात्रि शाम का प्रबंध किया है."

इस बार अजीत का ध्यान अपनी माँ की ओर गया, अभी तक उसने ध्यान नहीं दिया थे पर वो इस समय बहुत सुंदर लग रही थी. वो अपने शरीर का बहुत ध्यान रखती थी और इस आयु में भी लोगों को आकर्षित कर सकती थी. अजीत के दिमाग़ पर छाई धुन्ध छटने लगी और उसे योजना का अनुमान होने लगा. उसने बेध्यानी में अपने हाथ की गोली तो एक सिप के साथ खा लिया.

अब ऐसा नहीं था की अजीत इन तीन हफ्तों में सेक्स से वंचित रहा था. वो हफ्ते दो बार तो अपनी सेक्रेटरी को चोद लेता था. इसका लाइसेन्स उसे अदिति ने ही दिया था. दरअसल दोनों काफ़ी खुले विचारों के थे. जब वो कहीं बाहर जाता तो उसे और अदिति के बाहर जाने पर अदिति को कुछ सीमा तक दूसरों को चोदने की छूट थी. पर वो ऐसा कम ही करते थे. वो सोचता था कि अपनी माँ के साथ संबंधों का अदिति को भी पता नहीं था.

"बेडरूम में चलें?" अदिति ने अचंभित अजीत का हाथ पकडकर उसे उठाया और अपनी सास को साथ आने का इशारा किया.

बिस्तर के पास पहुँचकर अदिति ने उसे जोरदार चुंबन दिया और उसे बिस्तर पर धकेल दिया.

"माँ जी, आइए." अदिति बोली.

उन दोनों ने मिलकर कुछ ही क्षणों में अजीत को नंगा कर दिया. अजीत का शरीर काफ़ी गठा हुआ था. जो गोली उसने खाई थी उसके असर से उसका लंड भी बुरी तरह से तना हुआ था. अदिति घुटनों के बल बैठ गई और उसने अजीत का लंड अपने मुँह में भर लिया और पूरे ज़ोर शोर से चूसने लगी. अजीत ने कनखियों से देखा तो उसकी माँ अपने कपड़े उतार रही थी और जल्दी ही वो भी नंगी हो गई. उसने अजीत के चेहरे की ओर आकर अजीत के मुँह पर अपनी पसीजी हुई चूत को रख दिया. अजीत उसकी चूत को चूसने लगा. जल्दी ही उसने अपनी जीभ अंदर डाल दी और घुमाने लगा. नीचे अदिति उसके लंड को चूस रही थी और ऊपर वो शालिनी की चूत.

"माँ जी, आपका बेटा तैयार है सवारी के लिए. चढ जाइए."
"और तुम?"
"मुझे ज़्यादा तनाव नहीं लेना है. मैं आपकी जगह ले लेती हूँ."

ये कहते हुए, अदिति ऊपर आ गई और शालिनी ने अजीत का भारी मोटा लंड अपने हाथ में लिया. २ मिनट के लिए चूसा और फिर दोनों ओर पाँव फैलाकर अपनी रसीली चूत को उस पर उतार दिया. अदिति ने थोड़ा संभाल कर अपनी चूत को अजीत के मुँह पर रखा, अजीत की जीभ फिर हरकत में आ गई. पर अदिति के लिए इसमे थोड़ी मुश्किल हो रही थी. सो वो हट गई और एक तरफ बैठकर अपनी चूत को सहलाने लगी. अजीत को देखकर अच्छा नहीं लगा.

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अदिति ने थोड़ा संभाल कर अपनी चूत को अजीत के मुँह पर रखा, अजीत की जीभ फिर हरकत में आ गई. पर अदिति के लिए इसमे थोड़ी मुश्किल हो रही थी. सो वो हट गई और एक तरफ बैठकर अपनी चूत को सहलाने लगी. अजीत को देखकर अच्छा नहीं लगा.

उसने जानने के लिए पूछा, "तो तुम दोनों का क्या रहस्य है."

"हम दिन में एक दूसरे को सुख देते हैं." माँ ने बड़े नपे तुले शब्दों में कहा. अजीत को हँसी आ गई.

"अपने बेटे से यहाँ नंगी होकर अपनी बहू के सामने चुदवा रही हो और बातें ऐसी जैसे कोई सती सावित्री हो. कोई बात नहीं मैं समझ गया."

"अदिति, आओ तुम यहाँ लेट जाओ और माँ को तुम्हें सुख देने दो और मैं उन्हें घोडी बनाकर सुख दूँगा" अजीत ने व्यंग्य से कहा.

अदिति और शालिनी की हँसी छूट गई. पर शालिनी हट गई और उसने अदिति को बिस्तर पर लिटा दिया. खुद घोड़ी बनकर, अदिति की चूत में अपना मुँह घुसा दिया. पीछे से अजीत ने उसकी चूत में लंड पेल दिया.

"ओह, माँ ! तुम्हारी चूत की अब भी कोई तुलना नहीं है ." अजीत ज़ोरदार धक्के लगता हुआ बोला.

शालिनी भी पूरी मस्ती से इस तबाड़तोड़ चुदाई का आनंद ले रही थी. उसका मुँह उसकी बहू के चूत में था और अपनी जीभ पूरी अंदर कर रखी थी. अदिति भी इस समय एक अलग ही लोक में थी. अजीत ने ये दृश्य कभी सपने में भी नहीं सोचा था.उसने अपने धक्कों की गति तेज़ कर दी.

"अओऊउघह" अजीत की आँखों के आगे तारे से नाचने लगे. उसे अपने लंड में एक जबरदस्त फुलाव महसूस हुआ. वो झडने लगा था और उसने अपनी माँ की चूत में अपना रस भर दिया. ये दुनिया का संभवतः सबसे नीच काम था पर वो तीनों अपने वासना में ऐसे रंगे हुए थे कि इस सुख के आगे उन्हें कुछ न दिख रहा था. तभी अदिति और शालिनी का भी पानी छूट गया. शालिनी बेझिझक अपनी बहू का स्वादिष्ट रस पी गई. अदिति भी इस समय निढाल सी हो गई.

"अपने पति और मेरे रस का एक साथ स्वाद लोगी?" शालिनी ने अदिति की चूत पर एक चुंबन लेते हुए पूछा.
अदिति की आँखों में एक चमक आ गई.

"क्यों नहीं"

"तुम लेटी रहो, मैं तुम्हारे मुँह में सीधे परोसती हूँ." ये कहकर उसने अजीत को हटने को कहा और अपने दोनों पाँव अदिति के सिर के पास रखकर अपनी चूत को उसके मुँह से लगा दिया.


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अदिति सडप सडप कर शालिनी की चूत से बहता हुआ रस गटक गई. तीनों एक संतुष्टि का अहसास करते हुए एक दूसरे से लिपट गए.

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"आई लव यू" तीनों के मुँह से एक साथ निकला.

तीनों हँसते हुए आगे आने वाले नये रोमांच के बारे में सोचते हुए सो गये.


कुछ दिनों बाद:

रात के १ बजे अदिति की नींद खुली तो उसने देखा की वो अकेली है. वो बाथरूम गई, और लौट कर बिस्तर पर आकर लुढ़क गई. दोबारा नींद लगने से पहले उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट आयी ये सोचकर कि अजीत शायद शालिनी के कमरे में चला गया होगा. माँ बेटे का दिल नहीं भरा होगा और वो उसकी नींद न टूटे इस कारण दूसरे कमरे में चले गए होंगे.

शालिनी के कमरे में वही चल रहा था जैसी अदिति ने कल्पना की थी. अजीत लेटा हुआ था और उसकी माँ उसके ऊपर चढ़कर उसका लंड चूस रही थी. इस समय शालिनी की चूत अजीत के मुंह पर सटी थी जिसे वो बहुत प्यार और जोश से चाट रहा था. शालिनी को अपनी चूत चटवाने और चुसवाने में बहुत आनंद आता था. जब उसके पति जीवित थे तो वो घंटों उसकी चूत में छुपे रहते थे. उसके इसी प्रेम के कारण शालिनी अब मौखिक सहवास की इतनी आदी हो गई थी कि उसका दिन बिना इस क्रीड़ा के निकलता ही नहीं था. जब अजीत लगभग २० वर्ष का था तो एक बार शालिनी ने उसे कमरे में झांककर अपने पिता के इस कार्य में रत देख लिया था. शालिनी ने तब ये निश्चय किया था कि वो अजीत को वो सब गुर सिखाएगी जिससे वो किसी भी स्त्री को हर प्रकार से संतुष्ट कर सके.

और एक दिन जब उसके पति टूर पर बाहर थे उसने अवसर देखकर अजीत को ये प्रशिक्षण देने का प्रण किया था.

और उस रात शालिनी ने अजीत को रात भर चूत चाटने का प्रशिक्षण दिया. पर उसने अजीत के लंड को छुआ तक नहीं. अगले दिन अजीत की हालत ख़राब थी, एक तो रात भर का परिश्रम और उस पर उसे कोई झड़ने का समय जो नहीं मिला. उसने एक दो बार मुठ मारी और खाना खाने के बाद सो गया. रात में फिर शालिनी के उसे अपने कमरे में बुला लिया और इस बार माँ बेटे ने एक दूसरे की चूत और लंड चाटे और चूसे. और तीसरी रात में शालिनी ने उसे अपनी चूत में प्रवेश दिया. जवान लड़का रात में ५ बार अपनी माँ को चोदकर सोया था. अगले दिन ही शालिनी के पिता वापिस आने वाले थे और इस रात शालिनी ने उसे गांड चाटना सिखाया और अंततः प्रशिक्षण की अंतिम सीढ़ी पार कराते हुए उसके लंड को अपनी गांड की यात्रा भी करा दी.

अपने पति के आने के बाद अब अजीत और शालिनी जब समय मिलता तब इस नैसर्गिक सुख में लिप्त हो जाते थे. ४ साल बाद अजीत का विवाह अदिति से हो गया और इस सम्बन्ध पर विराम लग गया. अजीत अब कभी कभार ही अकेला आ पाता था. लगभग २० साल इसी तरह निकल गए और शालिनी के पति का स्वर्गवास हो गया. शालिनी अब इस अकेलेपन में बहुत दुखी रहने लगी थी. अजीत और अदिति से जब बात होती तो वो उसके इस दर्द को समझ लेते थे. एक दिन अदिति गयी और जिद करके शालिनी को अपने साथ ले आई। २ महीने निकलने के बाद अंततः शालिनी ने यहीं रहने का निर्णय लिया. इस दो महीनों में माँ बेटे के सम्बन्ध दोबारा स्थापित हो चुके थे. अजीत ने शालिनी का घर बेचकर उसके खाते में जमा कर दिए. अब शालिनी के पास धन और परिवार दोनों थे. उसका मन और तन दोनों खिल गए. चढ़ता हुआ बुढ़ापा जैसे लौटने लगा था.

इसी बीच शालिनी ने राधा को अपना हमराज बनाया और राधा से सुबह सुबह अपनी चूत और गांड चटवा कर संतुष्ट हो जाती. पर इसकी भनक अदिति को लग गई क्योंकि जब एक दिन राधा शालिनी के कमरे से बाहर निकली तो अदिति ने उसे किसी काम के लिए बुलाया. उसके मुंह और उँगलियों से चूत की सुगंध आते ही वो सब समझ गई. अदिति ने अपनी सास के पास जाकर उनसे पूछा तो शालिनी घबरा गई, की वो अब कहाँ जाएगी.

"माँ जी, आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है. पर क्या आप चूत केवल अपनी ही चटवाती हो या दूसरे की भी चाटती हो."
शालिनी ने माना की उसने अभी तक कभी चूत चाटी नहीं है.
"ठीक है, माँ जी. वो अब मैं आपको सिखाऊंगी." कहकर अदिति ने अपने कपडे उतारे और पांव फैलाकर शालिनी को बुलाकर काम पर लगने को कहा.
"माँ जी आप जैसे चटवाती हो, बस वैसे ही करो."

उस दिन से शालिनी के जीवन में और बहार आ गई. सुबह राधा, दोपहर अदिति, और अवसर के अनुरूप अजीत उसके शरीर की प्यास बुझाने लगे. जब अदिति का ऑपरेशन हुआ तो शालिनी ने अजीत को आराम देने के लिए अपना शरीर प्रस्तुत कर दिया. इसमें अदिति की सहमति थी हालाँकि अजीत को इसका ज्ञान नहीं था. वो हफ्ते में २ बार अपनी सेक्रेटरी को चोद लेता था, पर अपनी माँ को वो कभी भी मना नहीं कर पाया.

यही वो समय है जहाँ हम इस परिवार से मिले थे.

घर के सर्वेंट क्वार्टर में इस समय राधा अपने पति गोकुल का लंड चूस रही थी. गोकुल बिस्तर पर लेटा हुआ था और राधा के मुंह का आनंद ले रहा था.

गोकुल ने राधा से पूछा, "बड़ी मालकिन ने क्यों बुलाया था आज तुझे?"

"जिस काम के लिए हमेशा बुलाती है."

ये सुनते ही गोकुल के लंड में तनाव और बढ़ गया.

"पर बुलाती क्यों हैं तुझे ? और वहां से लौटकर तू मुझसे चुदने के लिए बहुत अधीर रहती है."

राधा ने अपना दायाँ हाथ बढ़ाया और गोकुल की नाक से लगाया. गोकुल ने बिना कुछ जाने एक गहरी साँस ली तो उसकी नाक में चूत की खुशबू भर गयी."

"तू अपनी चूत मुझे क्यों सुंघा रही है?"

"इतने साल में तुझे क्या मेरी चूत की खुशबू भी नहीं पता?"

गोकुल ने फिर सूंघा तो ये गंध राधा की चूत से अलग थी.

"तू बड़ी मालकिन की चूत चोद कर आयी है क्या."

"हाँ, मेरे राजा. बेचारी इस उम्र में भी बहुत प्यासी है. सुबह इसीलिए बुलाती है जिससे उसे एक दो बार झड़ा देती हूँ तो उनका दिन अच्छा निकलता है. पर उनकी चूत चूसने में मजा बहुत आता है."

"तुझे तो लंड हो या चूत कुछ भी चुसवा लो, मजा ही आता है."

"सच कहा, पर आज का उनका स्वाद अलग था."

"कैसे?"

"उसमे मर्द के पानी का भी स्वाद था. लगता है रात में चुदवाई है किसी से."

"पर घर में तो कोई दूसरा आदमी आया नहीं. फिर?"

"घर वाला ही कोई रहा होगा." राधा अर्थपूर्ण ढंग में बोली.

"घर वाला ?" अचानक गोकुल के पसीने छूट गए. "सुन ये किसी से कहना नहीं. हमारी नौकरी खतरे में आ जाएगी."

"मुझे पता है. अब तेरा लंड तैयार है. पेल दे मेरी चूत में."

ये कहकर राधा पांव फैलाकर लेट गयी और गोकुल उसे चोदने में व्यस्त हो गया.

************

शालिनी, अदिति और अजीत इस बात से अनिभिज्ञ थे की कल रात का खेल गौतम ने देख लिया था. रात में जब बीच में उसकी नींद खुली तो उसने पाया कि उसके कमरे में पीने का पानी नहीं है. जब उसने किचन में जाने के लिए कमरे का दरवाजा खोला ही था कि उसने पापा और दादी को दादी के कमरे में घुसते हुए देखा. पर सबसे बड़े अचरज की बात ये थी कि दोनों ने अपने कपडे पहने नहीं थे बल्कि हाथ में लिए हुए थे. अपनी दादी की मटकती गांड देखकर गौतम के लंड में तनाव आ गया. वो पानी के लिए किचन में गया और एक बोतल भर कर ले आया.

पूरे समय उसके दिमाग में यही घूम रहा था कि चक्कर क्या है. उसे कुछ बातें तो समझ आ रही थी.

१. पापा और दादी के सम्बन्ध उतने पवित्र नहीं जैसे दिखते हैं.
२. उसकी माँ को या तो पता है या वो भी इसमें शामिल हैं.

और उसने इस संदेह को दूर करने का निश्चय किया. और संभवतः अपने लिए एक या दो नई चूतों की उपलब्धि. यही सोचकर उसने अगले दो तीन दिन घर में ही रहने का निश्चय किया और अपनी दादी की दिनचर्या को समझा. दूसरे दिन उसने चूतों की संभावित सूची में राधा का नाम भी जोड़ दिया. उसने ये समझा कि राधा के जाने के लगभग आधे घंटे बाद दादी किचन में जाती है और दो घंटे वहीँ रहती हैं उसकी मम्मी के साथ. फिर यही क्रम शाम पांच बजे दोहराया जाता है, पर इस समय दादी ३ घंटे से अधिक अपने कमरे से बाहर रहती है. गौतम ने दादी के कमरे में गुप्त कैमरे लगाने का निश्चय किया.

उसने अगले दो दिन दोपहर को दादी के कमरे में जाकर उनसे बातें कीं और ये ताड़ने का प्रयास किया कि कैमरे कहाँ सही बैठेंगे. अंत में उसने तीन कैमरे का स्थान सुनिश्चित किया। अब बारी थी कैमरे खरीदने और फिर लगाने की. HD कैमरे जो केवल बैटरी से चलते हैं और साउंड भी रिकॉर्ड करते हैं, इस के लिए सबसे उपयुक्त थे. मंहगे होने के बाद भी गौतम ने उन्हें ख़रीदा और समझा कि किस प्रकार लगाया और प्रयोग किया जाता है. इसके लिए उसने तीन दिन अपने कमरे में इसका अभ्यास किया. जब उसने ये जान लिया की वो तीनों कैमरे २ घंटे के अंदर लगा सकता है, तब उसने अगले दिन शाम को (जब तीन घंटे कमरा खाली रहता है) कैमरे लगाने का निश्चय किया.

अगले दिन उसने सफलता पूर्वक कैमरे लगा दिए और अपने कमरे में चेक भी कर लिया. अब वो तैयार था.

************

अगले दिन गौतम अपने काम से दो दिन के लिए बाहर चला गया. और लौटने के बाद उसका ध्यान अपने कमरे में रिकॉर्डर पर ही था जहाँ दो दिन के उसकी दादी के कमरे के वीडियो रिकॉर्ड हुए पड़े थे. रात को खाना होने के बाद उसने सबसे कहा कि वो सोने जा रहा है. अपने कमरे में जाकर उसने रिकॉर्डर को टीवी से लगाया और ब्लू टूथ एयरफ़ोन अपने कानों में लगाकर पहले कमरे के वीडियो को चालू कर दिया. वीडियो पहले दिन रात का था.

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Aah bahut hi mast kahani hai bur me Lund Dal Kar padhne waali



क्रमशःast​

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अध्याय ८: आठवाँ घर - स्मिता और विक्रम शेट्टी १

मेहुल कॉलेज से घर पहुंचा तो उसने घर में स्नेहा की गाड़ी खड़ी देखी। उसका मन प्रसन्न हो गया. वो अंदर गया तो स्मिता बैठक में टीवी देख रही थी.

"माँ, स्नेहा आयी है क्या?"

"हाँ, जब गाड़ी देख चुका है तो पूछ क्यों रहा है."

"कहाँ है, भाभी के साथ?"

"हाँ दोनों बहनें श्रेया के ही कमरे में हैं. अरे तू कहाँ चल पड़ा? अरे रुक तो!" स्मिता ने उसे रोकने का प्रयास किया.

"मिल कर आता हूँ." मेहुल ने उत्सुकता से उत्तर दिया और सीढ़ी से ऊपर मोहन और श्रेया के कमरे की ओर चल पड़ा.

जब वो कमरे के बाहर पहुंचा तो उसे कुछ आवाजें आती सुनाई दीं. उसका माथा ठनका क्योंकि ये निःसंदेह चुदाई की आवाजें लग रही थीं. पर ये कैसे हो सकता है? उसकी उत्सुकता बढ़ गई. नीचे से उसकी माँ उसे पुकार कर बार बार नीचे आने को कह रही थी. तो क्या माँ को पता था की यहाँ कुछ खेल चल रहा है? उसने हलके से दरवाजे को धकेला तो वो खुल गया. उस दरार से उसने जब अंदर झाँका तो उसके होश उड़ गए.

बिस्तर पर उसकी भाभी श्रेया नंगी पड़ी थी. उसकी जांघों के बीच में एक लड़की का सिर छुपा हुआ था. वो लड़की भी नंगी ही थी. अवश्य ही स्नेहा थी क्योंकि वो उसे अच्छे से पहचानता था. बहनों के बीच ऐसे सम्बन्ध बनना संभव था, उसने कई जगह यह पढ़ा था. इसीलिए उसे इस बात पर इतना झटका नहीं लगा. जिस दृश्य ने उसके होश गुम कर दिए वो था वो पुरुष जो स्नेहा के पीछे था और उसे चोद रहा था.

वो कोई और नहीं बल्कि विक्रम शेट्टी था, उसके पिता!

मेहुल सकते में था और वो दरवाजे का सहारा लेकर ठगा सा देख रहा था. तभी उसे पीछे से आहट सुनाई दी और उसकी माँ ने आकर दरवाजा वापिस बंद कर दिया और उसका हाथ पकड़कर उसे अपने साथ लगभग घसीटते हुए नीचे ले गई. मेहुल कुछ भी न बोल पाया. नीचे स्मिता ने उसे सोफे पर बिठाया और पानी लेने किचन में चली गई.

पानी पीकर मेहुल ने अपने शब्द संजोये, "माँ हमारे घर में ये क्या चल रहा है?"

"तुम पहले जाकर कपड़े बदल लो. फिर मैं तुम्हे बताती हूँ."

**********

उस कमरे में बाहर क्या हुआ था इससे अनिभिज्ञ विक्रम स्नेहा को बड़े प्यार से चोद रहा था. वहीँ स्नेहा अपनी दीदी की चूत चाट रही थी.

"दीदी, जीजू कब तक आएंगे" स्नेहा ने पूछा.

श्रेया ने घड़ी की ओर देखा तो अभी ४ बजे थे. "अभी समय है, ६ के पहले नहीं आते कभी. तुझे क्या काम है उनसे?"

"मुझे उनकी कंपनी में ट्रेनिंग लेनी है, उसी के लिए बात करनी थी."

"अरे तुझे थोड़े ही मना करेंगे मोहन, तू तो उनकी सबसे प्यारी साली है."

"इकलौती साली हूँ." स्नेहा ने श्रेया की चूत पर जीभ फिरते हुए कहा.

"थोड़ा अच्छे से और अंदर तक चाट न. कुछ पता नहीं लग रहा."

ये सुनकर स्नेहा ने अपनी गतिविधि तेज कर दी और एक उंगली भी श्रेया की चूत में डालकर उसके भगनासे को चूसने लगी. श्रेया उछल गई पर स्नेहा ने अपना चेहरा नहीं हटाया. उसके पीछे विक्रम अब अपनी चुदाई को गतिशील कर रहा था. कसी चूत में उसका लंड बहुत घर्षण के साथ जा रहा था.और उसने भी स्नेहा की नक़ल करते हुए, स्नेहा के भग्नासे को दो उँगलियों में लेकर हलके से मसल दिया और रगड़ने लगा. अब बारी स्नेहा के उछलने की थी.

"अंकल मेरा होने वाला है."

"जा अपनी दीदी के मुंह पर बैठ, उसे पिलाना अपना शरबत."

स्नेहा तुरंत उठी और अपनी चूत को श्रेया के मुंह पर लगा दिया. विक्रम घूमकर उसके पीछे गया और अपना लंड फिर उसकी चूत में ठोककर चोदने लगा. स्नेहा कांपने लगी और थरथराते हुए उसने पानी छोड़ दिया। विक्रम ने अपना लंड बाहर निकला और स्नेहा का रस श्रेया के मुंह में जाने लगा. श्रेया ने निसंकोच उस रस को पी लिया और अपनी जीभ अपने होठों पर फिराई. विक्रम भी अब निकट था, उसने अपना लंड वापिस स्नेहा को चूत में पेला और तेज धक्के लगाने लगा. कुछ ही समय में उसका भी पानी छूटने को हुआ तो उसने अपने लंड को श्रेया के मुंह पर रखा.

"ले श्रेया, तेरी आज की औषधि."


श्रेया ने अपना मुंह खोलकर लंड को गपक लिया और चूसने लगी. विक्रम ने बिना देरी किये अपना रस उसके मुंह में छोड़ दिया. और फिर अपना लंड बाहर खींच लिया और एक ओर हट के खड़ा हो गया. अगला दृश्य उसका सबसे प्रिय दृश्य था. श्रेया बैठ गई, उसका मुंह फूला हुआ था. उसने वीर्य पिया नहीं था. फिर उसने अपने मुंह को स्नेहा के मुंह से लगाया और कुछ अंश स्नेहा के मुंह में छोड़ दिया.

फिर दोनों बहनों ने अपने हिस्से का टॉनिक पी लिया और एक दूसरे को फिर से चूमा.

"चलो नीचे माँजी प्रतीक्षा कर रही होंगी."

सबने अपने कपडे पहने और नीचे के और चल पड़े.

**********

जब मेहुल कपडे बदलने के लिए गया तो स्मिता ने अपना फ़ोन से एक नंबर लगाया.

"हैलो, मनोज, हाँ सुनो तुम तुरंत घर आ जाओ. मेहुल आज जल्दी आ गया और उसने श्रेया, स्नेहा और तुम्हारे पापा को देख लिया. अब समय आ गया है की उसे सब बता दिया जाये."

दूसरी ओर की बात सुनकर उसने फ़ोन काटा और एक दूसरा नंबर लगाया.

"सुनिए, आप अभी नीचे मत आना. मैंने मनोज को भी बुला लिया है. मेहुल ने आप तीनों को देख लिया है. यस, आई थिंक इट इस टाइम टू टेल हिम द ट्रुथ। आप लोग वहीँ रुको जब तक मैं न बुलाऊँ."

फोन रखकर वो सोचने लगी कि मेहुल को कैसे बताएगी. पर उन्हें पता था कि ये दिन दूर आना है, इसीलिए वो तैयार तो थे पर इस आकस्मक घटना से उनका समय चक्र अब बदल गया था.

मेहुल नीचे आ गया, उसे देखकर स्पष्ट था कि वो इस समय एक भ्रम की स्थिति में है.

"तुम्हारी गर्लफ्रेंड शीबा कैसी है?"

"ठीक है. आप कुछ बताने वाली थीं."

"हाँ. हम तुम्हे तुम्हारे २०वें जन्मदिन पर अगले महीने बताने वाले ही थे. पर अब उस वार्तालाप को आज ही करना होगा. मनोज भी कुछ ही देर में आने वाला है. महक भी अपने समय से आने ही वाली होगी."

"ये क्या है, क्या इसमें सब सम्मलित हैं?"

"हम सब ये बात एक साथ करेंगे। प्लीज, थोड़ा धीरज रखो. मेरे लिए."

मेहुल मन मार कर बैठ गया.

**********

लगभग २० मिनट में मोहन घर पहुँच गया. उसने देखा कि मेहुल बहुत उत्तेजित अवस्था में था. उसने एक गहरी श्वास ली और स्वयं को संयत किया. ये दिन तो आना ही था, पर उन्होंने इसे किसी और समय और प्रकार में इसकी योजना की थी, जो अब व्यर्थ हो चुकी थी. उसकी ऑंखें स्मिता से मिलीं तो स्मिता ने अपना फोन निकला और विक्रम को एक मिस कॉल दे दिया. ये संकेत था नीचे आने का. विक्रम, श्रेया और स्नेहा नीचे आये, विक्रम ने स्नेहा को चले जाने के लिए पहले ही कह दिया था. इसीलिए स्नेहा सीधे बाहर जाने लगी. पर उसे अपने ऊपर मेहुल की ऑंखें गढ़ती हुई लग रही थीं.

"मेहुल, बेटा हम तुम्हारे २०वें जन्मदिन की प्रतीक्षा कर रहे थे कुछ बताने के लिए. पर शायद वो समय आज ही आ गया है." विक्रम ने कहा.

"पापा, ऐसा क्या है जिसे आप मुझे पहले नहीं बता सकते थे. और जो अभी आप लोग कर रहे थे, ये कैसे संभव है? और मोहन दादा भी ऐसा नहीं लगता कि इससे विचलित है."

"नहीं. हम ये पहले नहीं बता सकते थे. हमारा परिवार और हमारी जैसे सोच वाले परिवार एक विशिष्ट समुदाय के सदस्य हैं. और उसमे प्रवेश के लिए २० साल का होना अनिवार्य है." विक्रम ने उत्तर दिया.

"कैसा समुदाय? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा."

"हम सब एक ऐसे समुदाय के सदस्य हैं जिसमे अपने परिवार वालों के साथ हम अपार प्रेम करते हैं. और यह हर रूप में होता है, मानसिक, सामाजिक और शारीरिक." मोहन ने बताया.

मेहुल का सिर घूम गया. "मैं कुछ समझा नहीं."

"इसका मतलब ये है की हम सब एक दूसरे के साथ सम्भोग करते हैं."

"यानि आप मम्मी....."

"हाँ और महक भी. श्रेया का परिवार भी उसका हिस्सा है और हमारी शादी भी उनकी सम्मति से हुई है. और अगले महीने जब तुम २० वर्ष के होंगे तो तुम भी उसमे सम्मिलित हो सकोगे. "

"क्या मतलब, फिर मैं मम्मी के साथ."

"हाँ, मम्मी, महक, श्रेया, स्नेहा और उनकी माँ सबके साथ तुम सम्भोग कर सकते हो."

मेहुल अब सकते में था. वो हमेशा अपनी माँ को केवल माँ नहीं बल्कि एक स्त्री के रूप में भी देखता था. और स्नेहा पर तो वो लट्टू था. अगर वो इस प्रस्ताव को मान लेगा तो न सिर्फ ये दोनों बल्कि उसकी भाभी, बहन और श्रेया की माँ भी उसके बिस्तर में होंगी. उसका मन प्रफुल्लित हो गया.


"तो क्या मुझे इस सब के लिए अगले महीने की प्रतीक्षा करनी होगी?"

"नहीं मेहुल, अपने घर और मोहन की ससुराल में तो तुम चाहो तो आज से ही सम्मिलित हो सकते हो. पर शेष सदस्यों से भेंट के लिए रुकना होगा." ये महक थी जो आ चुकी थी और सारी बातें सुन चुकी थी. "मेरे विचार से इस एक महीने के लिए हम चारों ही तुम्हारे लिए पर्याप्त होंगे."

"मुझे पहले मम्मी चाहिए।"

सबने एक चैन की सांस ली और हंस दिए. जितना कठिन उन्होंने सोचा था उससे कहीं सहज रहा था.

"आपने सुना. आज मैं मेहुल के साथ सोऊंगी. आप अकेले ही रहेंगे."

"ओह, यू डोंट वरी डियर. मुझे विश्वास है कि महक आज अपने पापा को अपने प्यार से ओतप्रोत कर देगी."

"पूर्ण रूप से" महक ने हँस के कहा.

"तो चलो इस बात पर एक पार्टी हो जाये. श्रेया व्हिस्की की बोतल और सब सामान ले आओ." विक्रम ने श्रेया को आदेश दिया.

"ओके, पापा."

और एक पार्टी आरम्भ हुई.

*********


स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

स्मिता ने मेहुल का हाथ पकड़ा और उसे अपने कमरे में ले गई. कमरे में जाकर उसने मेहुल को बिस्तर पर बैठा दिया.

"क्या तुम्हें कोई असहजता लग रही है?" स्मिता ने प्यार से पूछा.

मेहुल ने सिर हिलाया.

"चिंता न करो, मोहन की भी यही स्थिति थी, पर एक बार जब उसने चढ़ाई की मेरे ऊपर, तो रात भर रौंदा था मुझे. सारे छेद भर दिए थे." स्मिता ने अर्थपूर्ण ढंग से समझाया.

मेहुल के दिमाग की बत्ती जल उठी जब उसने सारे छेद सुना. क्या मम्मी का मतलब..?

"सारे छेद, यानि?"

"यानि मेरा मुंह, चूत और गांड. आज तुम्हें ये तीनों को अपने रस से भरना होगा."

"आ आ आप गांड भी मरवाती हो?"

"बिलकुल. और तुम्हारे जैसे जवान लड़कों को तो मैं बिना गांड मारे हुए छोड़ती ही नहीं." स्मिता ने हँसते हुए बताया.

"क्या तुमने कभी किसी को चोदा है."

धीरे धीरे अब मेहुल को अपना आत्मविश्वास को लौटता हुआ अनुभव कर रहा था. उसे ये समझ आ गया था कि उसका परिवार कोई आम परिवार नहीं है और इसमें हर संभव सेक्स क्रीड़ा होती है.

"हाँ, कईयों को."

"गर्लफ्रेंड्स?"

"नहीं, टीचर्स और फ्रेंड्स की मम्मियों को."

"अपने उम्र की कोई लड़की?"

"कुछ, क्योंकि एक बार में वो शादी की बात शुरू कर देती हैं."

"स्मार्ट, वैरी स्मार्ट. अभी खेलने के दिन हैं, बंधने के नहीं."

"वही."

"कितनी औरतों को चोद चुके हो?"

"बारह औरतें और तीन लड़कियाँ."

अब आश्चर्यचकित होने की बारी स्मिता की थी. "बारह औरतें?"

"हाँ, और आज का मिलकर तेरह हो जाएँगी." मेहुल ने बताया, "वैसे वो बारह की बारह आज भी मुझसे चुदवाती हैं. मैं इसलिए कालेज से ३ बजे घर नहीं आ पाता क्योंकि उनमें से किसी एक के बिस्तर में उसे रगड़ रहा होता हूँ."


"तो फिर आज क्यों जल्दी आये?"

"भाग्य. आज उन सबसे ज्यादा आकर्षक और प्यारी महिला को मेरी झोली में गिरना था."

मेहुल का ये विश्वास देखकर स्मिता विस्मित थी. ऐसा क्या था मेहुल में जो उसे अधिक आयु की महिलाएं पसंद करती हैं. मेहुल भी अब अपने उस रूप में आ रहा था जिसके लिए महिलाएं उस पर लट्टू थीं. उसका ४ घंटे पहले का आश्चर्य अब एक अवसर में बदल चुका था. उसे ये जानकर बहुत प्रसन्नता थी की न केवल अपनी माँ, बल्कि उनके चुदाई समूह की और औरतें भी उसके बिस्तर की शोभा बढ़ाएंगी. इसीलिए वो अब पूरे फ़्लर्ट की शैली में आ चुका था. वो आज अपनी माँ को ये दिखाना चाहता था कि वो उसे ही नहीं बल्कि औरों को भी पूरी संतुष्टि दे सकता है.

"कैसे?" स्मिता अभी भी अचरज में थी, "मुझे बताओ सब."

"क्या?"

"यही कि तुम इतनी जल्दी एक शर्मीले और शांत लड़के से इतने अनुभवी चुड़क्कड़ कैसे बन गए कि इतनी औरतें तुम्हें चाहती हैं."

"एक आयु के बाद स्त्रियाँ ऐसे भोले भाले लड़कों को सेक्स में दीक्षित करना चाहती है जिससे उनका मनोबल और अपने ऊपर विश्वास बढ़ता है कि वो अभी भी आकर्षक हैं." मेहुल एक कुटिल मुस्कान के साथ बोला।

"पर उन्हें ये नहीं पता होता की इस भोले चेहरे के पीछे सेक्स में निपुण एक आदमी छुपा है." स्मिता ने बात समझते हुआ कहा.

"हाँ और ३-४ मिलन के बाद उन्हें ये लगता है की मैं उनके द्वारा सिखाये हुए पाठ पर ही अनुशरण कर रहा हूँ."

"बेचारी भोली औरतें." स्मिता ने हैरत में सिर हिलाया. "तुमने किस आयु की औरतों को चोदा है?

"लड़कियों को छोड़ दें तो करीब ३० साल से ६५ साल तक की."

"६५? वो कैसे? कौन?"

"हमारी प्रिंसिपल की माँ."

"तुमने अपने प्रिंसिपल की माँ तक को चोद दिया!" स्मिता ने आश्चर्य से कहा.

"क्या करता, जब मैं उनके घर में अपनी प्रिंसिपल की गांड मार रहा था तो वो पता नहीं कैसे अंदर आ गयी कमरे में. और जाने का नाम ही नहीं ली. आखिर में मुझे उसके तीनों छेद पैक करने पड़े. पर अब सप्ताह में एक बार दोनों बुलाती है और साथ में चुदवाती है."

"तुम कौन हो? मेरा सीधा सादा बेटा कहाँ गया."

मेहुल ने एकदम से अपना भाव बदला और वही घबराया और परेशान लड़का दिखने लगा जिसे सब जानते थे.


"पर मम्मी हम ये सब बातें करने तो यहाँ आये नहीं है. आप तो मुझे सेक्स का ज्ञान देने के लिए आमंत्रित की थीं न?"

"जो इतनी औरतों को चोद चुका हो उसे ज्ञान देने की नहीं उससे सुख लेने की आवश्यकता है."

मेहुल ने अपनी माँ का हाथ पकड़कर उसे खड़ा किया और उसके रसीले होंठ चूमने लगा. स्मिता का शरीर वासना से थरथरा उठा और वो भी इस चुम्बन में पूरा साथ देने लगी. मेहुल ने पीछे करते हुए स्मिता के ब्लाउज और ब्रा के हुक खोल दिए. फिर उसने होंठों को छोड़कर गर्दन को चूमते और चाटते हुए स्मिता के पीछे गया और उसके कानों को चूमते हुए उसका ब्लाउज और ब्रा अलग कर दी. अपने हाथ आगे करते हुए स्मिता के दोनों मम्मों की घुंडिया अपनी उँगलियों में लेकर हल्के से मसलने लगा. उसके चुंबन बिना रुके स्मिता के कान, गर्दन और पीठ को तर कर रहे थे. स्मिता ये जान गई की आज उसका सामना सेक्स में निपुण एक ऐसे खिलाडी से है जो उसके रोम रोम को पुलकित कर देगा. मेहुल अब अपने हाथों से उसके दोनों मम्मों को दबा रहा था, या यूँ समझो की मसल रहा था, और उसकी उंगलिया घुंडियों को मसल रही थीं.

"कैसा लग रहा है, मम्मी। "

"ब ब ब बहुत अच्छा"

मेहुल यूँ ही स्मिता को चूमते हुए अपने हाथ को हटाता है और उसकी साड़ी को एक हाथ से उसके शरीर से उतारने लगता है और कुछ ही पलों में साड़ी कालीन पर गिर जाती है. पर मेहुल का हाथ ठहरता नहीं और वो पेटीकोट का नाड़ा खोल देता है और पेटीकोट भी लहरा कर स्मिता का शरीर छोड़ देता है. स्मिता ने पैंटी नहीं पहनी थी और वो पेटीकोट के गिरते ही नंगी हो गई. दो पल के लिए मेहुल अपने दोनों हाथ मुक्त करता है और अपनी टी-शर्ट, शॉर्ट्स उतार फेंकता है. वो और अंडरवियर में अपने शरीर को स्मिता के शरीर के पीछे पूरा मिला देता है. स्मिता को अपनी गांड में कुछ चुभता हुआ प्रतीत होता है तो वो समझ जाती है कि मेहुल ने अपने कपडे उतार दिए हैं. वो उसके देखने के लिए लालायित हो जाती है और घूम जाती है.

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श्रेया का शयनकक्ष: श्रेया और विक्रम

"पापा जी, मुझे मेहुल भैया के लिए बहुत डर लग रहा है. वो इतने सीधे हैं कि कहीं कुछ उल्टा सीधा न कर बैठें."

"चिंता तो मुझे भी है, श्रेया, पर मोहन भी शीशे में उतर गया था. मुझे स्मिता पर विश्वास है कि वो सब अच्छे से संभाल लेगी. दूसरा तुम ने ही देखा की मेहुल ने उसका ही नाम लिया था."

"आप बाथरूम से आईये तब तक मैं स्नेहा और मम्मी से बात कर लेती हूँ." कहते हुए वो अपनी माँ को कॉल लगाती है.

"हेलो मम्मी, स्नेहा पहुँच गयी न?"

“------”

"आज मेहुल को हमने अपना खेल दिखा दिया. अभी मम्मी जी उसे अपने कमरे में समझाने के लिए ले गई हैं."

“------”

"आप तो मम्मी जी को जानती हो, उनका तीर कभी नहीं चूकता।"

“------”

"अरे आपका भी नंबर आएगा, शीघ्र. पहले हम तो निपट लें. पर वो स्नेहा को जरूर चोदेगा, बहुत आगे पीछे घूमता है उसके."

“------”

"जी. आज तो मैं पापाजी के साथ हूँ. महक है, मोहन के साथ. और आप?"

“------”

"चलो आप भी इन्जॉय करो, गुड नाईट."

इतने में विक्रम बाथरूम से बाहर आ गया, एकदम नंगे और श्रेया अंदर घुस गयी और नहाकर कुछ ही मिनटों में नंगी ही बाहर आ गई. विक्रम बिस्तर पर लेटा था और उसका लंड सीधे पंखे को देख रहा था. श्रेया ने अपनी चूत को विक्रम के मुंह पर रखा और झुककर उसका लंड चूसने लगी.

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मोहन का शयनकक्ष: महक और मोहन


"कल पता लगेगा कि मेहुल माना कि नहीं. हालाँकि वो इतना दब्बू है कि मम्मी के कहने पर मानेगा अवश्य." महक ने अपने विचार रखे.

"तुम ये क्यों सोचती हो कि वो दब्बू है. मेरी समझ से वो बहुत संयम में रहता है. वो कभी कॉलेज बंद होने पर सीधे घर नहीं आता। २ -३ घंटे कहाँ रहता है, पता नहीं. दब्बू या डरपोक लोग ऐसा नहीं कर सकते. मुझे तो लगता है की वो हम सबसे कुछ छुपा रहा है. मैंने इसीलिए नहीं पूछा ताकि उसे झूठ न बोलना पड़े मुझसे."

"चलो, ये भी कल पता चल जायेगा. मम्मी राज उगलवाने की विशेषज्ञ है. उन्हें तो किसी खुफ़िआ जाँच एजेंसी में होना चाहिए था."

महक अपने कपडे उतार कर बिस्तर पर लेट गई और अपने दोनों पाँव फैला दिए.

"आइये, आपकी स्वीट डिश (मिठाई) परोसी हुई है. सीधे चाट लीजिये."

मोहन ने भी देर न की और कपडे उतार कर महक की चूत में अपने मुंह से पिल गया.

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गौड़ा परिवार के घर:


"श्रेया का फोन था. स्मिता मेहुल का आज उद्घाटन कर रही है. इतना सीधा लड़का है, पता नहीं उसे आघात न पहुंचे."

"उसे घर किसने भेजा था जल्दी, वैसे तो वो ६ बजे के पहले नहीं जाता है?"

"स्नेहा ने, उसे बोली थी कि वो उधर जा रही है. बाकी उसने भाग्य के हाथ में छोड़ दिया था."

"वही तरीका जो मोहन और मेरे लिए काम आया था. पर हम दोनों फिर भी थोड़े तेज हैं. मेहुल सच में बहुत सीधा है."

"अब कल ही पता चलेगा कि क्या हुआ. मुझे नहीं लगता मेहुल कल कॉलेज जाने की स्थिति में होगा."

इस समय सब लोग बैठक में बातें कर रहे थे. स्नेहा अविरल की गोद में थी, और विवेक का सिर अपनी माँ की गोद में.

"चलो सोते हैं, कल शायद श्रेया के घर जाना होगा. सब कुछ ठीक ठाक रहे और मेहुल कहीं कुछ उल्टा न कर बैठे."

ये कहकर सब अपने कमरों में चले गए.

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स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

जब परिवार के सब लोग इस चिंता में डूबे थे कि मेहुल पर कोई विपरीत असर न हो, बाकी लोगों की धारणा के विपरीत, यहाँ मेहुल ही इस अभियान को नियंत्रित कर रहा था.

स्मिता जब मेहुल की ओर मुड़ी तो उसे विश्वास था कि मेहुल भी उसकी ही तरह निर्वस्त्र होगा. पर उसे ये देखकर अचरज हुआ कि अभी भी मेहुल अंडरवियर पहने हुए था. वो अपना हाथ नीचे बढ़ाती इससे पहले ही मेहुल ने उसके हाथ अपने कन्धों पर रखे और एक गहरा चुम्बन लेने लगा. स्मिता फिर से लहरा उठी. चूमते हुए ही मेहुल ने स्मिता को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी आँखों से आरम्भ करते हुए, एक एक इंच शरीर को चूमते और चाटते हुए नीचे की ओर अग्रसर हुआ. स्मिता ने ऐसा उत्तेजक और मादक प्रेम कभी भी अनुभव नहीं किया था. अंततः मेहुल उसकी जांघों के जोड़ पर पहुंच गया जहाँ एक अमूल्य निधि उसको देख रही थी. उसने अपनी जीभ से उस गुफा के चारों और चाटकर उसे चमका दिया.

स्मिता अब वासना से तड़प रही थी और उसकी चूत से पानी की धार बह रही थी. मेहुल बहुत प्रेम और संयम से हर एक बूँद को चाट रहा था. तभी उसने स्मिता के भगनासे को दो उँगलियों के बीच में लेकर दबाया और अंगूठे से उसके ऊपर के पतले हल्के छेद को रगड़ने लगा. स्मिता को जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा. उसका पूरा शरीर बिस्तर से एक फुट ऊपर उछल गया और उसकी चूत से एक फुहार निकली जिसने मेहुल के पूरे चेहरे को सरोबार कर दिया.

"हम्म्म्म, मॉमा लव्स इट. क्यों माँ तुम्हें मज़ा आया? कभी छोड़ी है ऐसी धार पहले." मेहुल ने अपने चेहरे पर लगे स्मिता के रस को हाथों से पोंछते हुए पूछा.

"न न न नहीं. ऐसा कभी नहीं हुआ, तू तो जादूगर है रे."

"लो अपने पानी का स्वाद लो", कहते हुए मेहुल ने अपनी कामरस से सनी उँगलियाँ स्मिता के मुंह में डाल दीं। स्मिता ने उसकी ओर कामुक आँखों से देखते हुए उँगलियाँ चूस कर साफ कर दीं. फिर मेहुल स्मिता के बगल में लेट गया और अपने एक हाथ से उसकी चूत को सहलाते हुए उसके होंठों का रस पीने में जुट गया. फिर उसने अपना बायाँ हाथ स्मिता की गर्दन के नीचे से निकालकर उसके बाएँ स्तन को भींचने लगा. दायाँ हाथ चूत में व्यस्त था.

स्मिता ने अपना मुंह मोड़कर मेहुल के होंठ चूम लिए. कामातुर माँ अब अपने बेटे के हाथों में एक खिलौना थी, एक ऐसा बेटा जो बाहर से जो दिखता था अंदर से बिल्कुल अलग था.


"सब ये सोच रहे होंगे कि आज मैं तेरा उद्घाटन करूंगी क्योंकि तू सेक्स से अनिभिज्ञ होगा. उन्हें बहुत आश्चर्य होगा ये जानकर कि तू इतना बड़ा खिलाड़ी है. तूने मुझे बिना अपने लंड को छुए बिना ही इतना आनंद दिया है कि मैं वर्णन नहीं कर सकती. पर तू अभी तक अंडरवियर क्यों पहने है."

"वो भी उतार दूंगा मेरी प्यारी मम्मी. मैं तुम्हे वो सुख देना चाहता हूँ जो आपने स्वप्न में भी नहीं अनुभव किया होगा. पर मेरी एक विनती है आपसे. हमारे बीच जो भी होगा, पर आप अभी किसी को बताना मत. मैं चाहता हूँ कि सब यही सोचते रहें कि मैं अनाड़ी हूँ. जब तक मैं परिवार की सभी महिलाओं को नहीं चोद लेता, जैसा कि मुझसे अपेक्षित है, आप कुछ नहीं कहोगी."

स्मिता इस समय हर शर्त पर सहमत थी. मेहुल की तीन उँगलियाँ उसकी चूत में अंदर बाहर हो रही थीं, और उसे अपनी चूत की आग बुझानी थी. पर मेहुल था कि इतना धीरे चल रहा था की उसे रुकना भारी लग रहा था.

"मेहुल, क्या अब तुम मुझे चोदोगे। मैं जली जा रही हूँ. मेरी आग को शांत कर दो बेटा। "

"हम्म्म्म, मम्मी तुमने तो कहा था कि दीक्षा में तुम मुझे अपने तीनों छेद समर्पित करोगी."

"हाँ, अवश्य. हमारा यही नियम है. इससे न सिर्फ दीक्षार्थी को सेक्स का पूरा अनुभव होता है, बल्कि ये भी पता लगता है कि उसकी ठहरने की क्षमता कितनी है और वो कितनी बार लड़ाई में खेल सकता है. क्योंकि उसे हमारे समुदाय की अन्य स्त्रियों को भी संतुष्ट करना होता है. और हम मानक से नीचे के खिलाड़ी को अतिरिक्त परीक्षण देते हैं.

"और आप लोग तीन बार को एक मानक मानते हो." मेहुल ने मुस्कराते हुए पूछा.

"हाँ, क्यों तू कितने बार चोद लेता है."

"ज्यादा नहीं, बस यूँ समझो की तीन स्त्रियों को तो पूरा अनुभव दे ही सकता हूँ."

"क्या!" स्मिता की ऑंखें फटी की फटी रह गयीं.

"अरे छोड़ो ये सब मम्मी, अब आपके पहले छेद का समय है. और मैं चाहूंगा कि आप मुंह से मेरे लंड को शांत करो."

स्मिता की आँखों में चमक आ गई. उसने मेहुल से अंडरवियर उतारने को कहा. मेहुल जानता था कि ये उसके लिए एक सरप्राइस होना चाहिए.

"नहीं मम्मी, ये शुभ कार्य तो आपको अपने ही हाथों से संपन्न करना होगा. आखिर मैं आपका शिष्य जो हूँ."

ये कहकर मेहुल बिस्तर के उस ओर खड़ा हो गया जहाँ स्मिता लेटी थी. स्मिता बैठ गई और उसने मेहुल का अंडरवियर उतार दिया.

"ओ गॉड! ये क्या है?" उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव थे. "क्या है ये?"

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श्रेया का शयनकक्ष: श्रेया और विक्रम

विक्रम और श्रेया ने एक बार मौखिक सम्भोग का आनंद लिया और दोनों एक दूसरे के मुंह में अपना पानी छोड़ चुके थे. पर दोनों का मन अभी भरा नहीं था. दोनों का पूरा ध्यान इस बात पर ही लगा था की स्मिता मेहुल को कैसे अपने वश में कर रही होगी और मेहुल की क्या प्रतिक्रिया हो रही होगी. दोनों के कान किसी भी ऐसी ध्वनि के लिए संवेदनशील थे जिससे ये पता लगे कि कहीं मेहुल कमरा छोड़कर बाहर तो नहीं जा रहा. ऐसी किसी भी विषम परिस्थिति में उसे रोकना आवश्यक था.

"पापाजी, आज आप मुझे घोड़ी के आसान में ही चोदिये, कहीं दौड़ना पड़ा मेहुल के पीछे तो देर नहीं होगी." ये कहकर श्रेया ने आसन धारण किया और सिर और कमर को झुककर अपनी गांड को ऊँचा उठा दिया.

विक्रम के मन में पहले श्रेया की गांड मारने का विचार आया पर अपने लंड को चूत पर रखकर अंदर पेल दिया. चाहे श्रेया कम आयु की थी पर उसने चुदाई ५ साल पहले ही शुरू कर दी थी. वो इस तगड़े धक्के को भी बड़ी सरलता से झेल गई. विक्रम उसे तेज गति से चोदने लगा. श्रेया भी उसका पूरा साथ दे रही थी और दोनों जल्दी ही अपनी भूख (या प्यास) मिटाकर विश्राम करना चाहते थे.

जल्द ही दोनों एक बार फिर से झड़ गए और एक दूसरे को चूमकर कपडे पहनकर बैठक में चले गए. आज पहरे की रात थी, जब तक स्मिता का सन्देश नहीं आता कि स्थिति काबू में है, उन्हें इसी प्रकार जागते रहना था.

श्रेया ने दोनों के लिए एक छोटा पेग बनाया, टीवी को सायलेंट में डालकर देखते हुए चुस्की लेने लगे. दोनों के दिल इस समय धड़क रहे थे. ४० मिनट से अधिक हो गया था और स्मिता ने कोई भी सूचना नहीं दी थी.

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मोहन का शयनकक्ष: महक और मोहन

मोहन अपनी जीभ महक की चूत में डालकर झाड़ू के समान घुमाने लगा. अपनी एक ऊँगली महक की चूत में डालकर उसे कुछ समय के किये ऊँगली से चोदा और अपने होंठों से उसके भगनासे को दबाकर रखा. इस आक्रमण के सामने महक ने हाथ डाल दिए और उसकी चूत भरभरा कर पानी छोड़ने लगी. अब चूँकि भगनासा मोहन के होंठों के बीच ही था तो सारी धार मोहन के मुंह में ही सीधी चली गई. मोहन ने अपने तेजी से अपना मुंह हटाया और अपनी दायीं हथेली में थोड़ा पानी इकठ्ठा किया। फिर महक के दोनों पांव अपने बाएं हाथ से इस तरह ऊपर उठाये कि उसके घुटने पेट से जा लगे. अब महक की चूत और गांड के दोनों छेद मोहन के सामने थे. उसने अपने हाथ में एकत्रित महक का कामरस उसकी गांड की छेद पर मल दिया.

महक समझ गयी कि मोहन आज उसकी गांड का आनंद लेगा, वो भी इस खेल के लिए अपने आपको मनाने लगी. अब महक की गांड पहली बार तो मारी जा नहीं रही थी. समुदाय में गांड मारने के लिए पुरुष लालायित रहते थे. वैसे महिलाएं भी इसमें पीछे नहीं थीं पर महक चाहती थी कि मोहन एक बार उसकी चूत की खुजली मिटा देता तो अच्छा होता. पर आज की विशेषता को देखकर उसने कोई आपत्ति नहीं की.

"थोड़ी वेसलीन लगा लो. ऐसे दर्द होगा." उसने मोहन से कहा.

मोहन जल्दी से ड्रेसिंग टेबल से वेसलीन की शीशी उठा लाया. तब तक महक घोड़ी की तरह अपनी गांड ऊपर करके लेट गई. मोहन ये देखकर मुस्कुरा दिया. वो पिछले आसन में ही उसकी गांड मारना चाहता था क्यूंकि उसमे गांड का रास्ता और तंग हो जाता था और आनंद अधिक आता था. पर इसमें महक को परेशानी होती थी. तो महक ने उसका ध्यान दूसरी ओर करके अपनी अनुसार मुद्रा ले ली थी. मोहन महक की गांड पर अच्छे से वेसलीन की मालिश की और उतने ही ध्यान से अपने लंड को भी चिकना कर लिया. महक की गांड का छेद इस समय आक्रमण की उत्सुकता से लपलपा रहा था. मोहन ने अपना लंड रखा और हल्के हल्के अंदर उतार दिया.

"आअह, वाह, क्या गजब की गांड है तेरी महक."

"लंड आपका भी कोई कम नहीं. चाहे जितनी बार भी खाऊं हमेशा नया और बड़ा ही लगता है. मेरी गांड को बिल्कुल सही लेवल तक भरता है. मेरी ही गांड का साइज देखकर ये लंड बना है."

"तू मुझसे छोटी है, तेरी गांड इसके साइज की बनी है."

"चलो ठीक है अब चोदो भी, बातें बाद में कर लेंगे. नीचे भी जाना है."

ये सुनकर मोहन को आज के दिन का महत्त्व याद आ गया. उसे अपना वो समय याद आ गया जब वो अपनी माँ के कमरे में था और उसके पिता बैठक में उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे. उसने मन ही मन मेहुल को शुभकामना दीं और इच्छा की कि मेहुल भी उसकी तरह इस पूरे पारिवारिक समारोह में सम्मिलित हो जाये.

ये सोचते हुए उसने महक की गांड में अच्छे लम्बे शॉट आरम्भ किया , पर इन धक्कों में तीव्रता तेजी नहीं थी, अपितु शीघ्रता अवश्य थी. वो कभी भी महक की कठोर चुदाई नहीं करता था, उसकी छोटी बहन जो ठहरी. महक को भी उसके बड़े भाई का प्यार ही भाता था. उसे चोदने वाले और भी थे, कुछ तो ऐसे जो हड्डियां हिला देते थे. उसे कभी कभार वो भी अच्छा लगता था. पर जो प्यार मोहन देता था उसकी कोई तुलना नहीं थी.

कुछ ही मिनटों की चुदाई के बाद मोहन महक की गांड में ही झड़ गया. लगभग साथ में महक भी झड़ चुकी थी. दोनों बाथरूम में जाकर निर्मल हुए और कपड़े पहन कर बैठक पहुंचे जहाँ विक्रम और श्रेया टीवी देख रहे थे. उन्हें देखकर मोहन ने भी दो हल्के ड्रिंक्स बनाये और सब चुपचाप चुस्कियां लेते हुए टीवी देखने लगे.

मोहन ने विक्रम से पूछा "मम्मी का कोई मेसेज।"

"नहीं"

"आशा करनी चाहिए कि सब ठीक रहे. मेहुल अब शायद लड़कियों से न घबराये."

**********


स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

"ओ गॉड! ये क्या है?" स्मिता के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे, "क्या है ये?"

स्मिता की आँखों के आगे उसके जीवन का सबसे बड़ा लंड झूल रहा था. मोटा इतना था जितनी कि उसकी कलाई. और लम्बा जितना कि उसकी कोहनी से इसकी कलाई. ये मनुष्य का लंड नहीं था. यही कारण था कि उसे केवल विवाहित महिलाएं ही झेल पाती थीं. कैसे जायेगा वो उसकी चूत में. और गांड, ये सोचते ही स्मिता के शरीर में झुरझुरी सी होने लगी.

"ये, ये, ये तुम्हारा लंड है?"

"आपको क्या लगता है."

"और तुम्हारी प्रिंसिपल इसे अपनी गांड में लेती है?"

"और उसकी माँ, बहन और सास भी."

"क्या? तुमने उसके खानदान की सारी औरतों को चोद दिया है क्या?"

"नहीं, बेटी अभी बाकी है. नहीं, उसे चोदने का कोई प्लान नहीं है. नहीं तो मेरी अन्य ९ रंडियों का क्या होगा."

"रंडी! ये क्या कह रहे हो?"

"अरे मम्मी, जब एक बार आप इस खूंटे से बंध जाओगी न तो रंडी की ही तरह चुदवाओगी मुझ से. अब देर मत करो, लंड चूसो मेरा, आपके पहले छेद का उद्घाटन करना है."

स्मिता ने धीरे से उसका लंड अपने मुंह में डाला और हल्के हलके चूसने लगी. वो ये सोच रही थी कि उनके समुदाय की महिलाएं तो पागल ही हो जाएँगी. फिर उसके मुँह से हंसी निकल गई.

"क्या हुआ?"

"श्रीमती गुप्ता, जो अपने आप को बहुत बड़ी चुड़क्कड़ मानती है और कहती है की ऐसा कोई लंड नहीं बना जो उसकी गांड की गर्मी ठंडी कर सके जब इसे देखेगी तो फट जाएगी हरामजादी की गांड."

"उसकी गांड उस समय देखेंगे. आज आपकी बारी है. पहले अपनी बचा लो फिर दूसरों की सोचना. वैसे सुजाता आंटी की गांड भी मस्त है. परसों के लिए बुक कर दो उन्हें मेरे लिए. परसों में फ्री हूँ ३ बजे के बाद. पर याद रहे उसे कुछ बताना नहीं है."

ये कहते हुए मेहुल ने पहल की और स्मिता के मुंह में अपना लंड डालकर उसका सिर पकड़ा और लंड अंदर तक धकेल दिया. लंड गले में जाकर फंस गया और स्मिता की साँस रुक गई और आँखों में आंसू आ गए. वो सिर हिलाकर छटपटाने लगी. मेहुल ने सिर को छोड़ा और लंड को बाहर खींच लिया पर मुंह से निकला नहीं. स्मिता ने उसे विनती भरी आँखों से देखा.

"जब मैं कह रहा हूँ की चूसो इसे तो इधर उधर की बातें क्यों कर रही हो. अब लगो काम पर और इसकी ठीक से सेवा करो. जब तक मैं न बोलूं, रुकना नहीं."

कहते हुए मेहुल बिस्तर पर पांव चौड़े करके बैठ गया और स्मिता को अपना स्थान लेने का संकेत किया. एक तकिया उठाकर अपने पांवों के बीच डाल दी जिससे स्मिता के घुटने न दुखें. स्मिता ने अपना स्थान ग्रहण किया और ऊपर से नीचे तक लंड को अच्छे से चाटते हुए अपने मुंह में ले लिया और इस बार पूरी तन्मयता से चूसने लगी. हालाँकि मुंह इतना चौड़ा करके चूसने में उसे कठिनाई हो रही थी पर वो मेहुल को अपने प्यार की गहराई से भी अवगत कराना चाहती थी.

मेहुल जानता था कि माँ अधिक देर ये नहीं कर पायेगी अन्यथा उसके जबड़े दुःख जायेंगे. वो उन्हें केवल उन्हें अपना और उनका स्थान दिखाना चाहता था. जो औरतें उससे चुदवाती थीं उन्हें उसके पांवों में झुकना पड़ता था. आज उसकी माँ वहां थी.

"आगे से जब भी हम चुदाई के लिए साथ होंगे तो आपका यही स्थान होगा. फिर मैं आपकी सेवा करूँगा पर पहले आपको मेरे सामने इसी आसन में आना होगा. ठीक है?"

स्मिता ने लंड चूसते हुए सिर हिलाया कि उसे ये स्थिति स्वीकार्य है.

"उठिये अब, मैं नहीं चाहता कि आपको कोई कष्ट हो." मेहुल ने आज्ञा दी.

स्मिता खड़ी हो गई.

"थोड़ा अपने इस सौंदर्य का दर्शन तो कराओ मम्मी. पीछे मुङो और नीचे झुको."

स्मिता ने वैसे ही किया जिससे उसकी गांड मेहुल के मुंह से सामने आ गई. मेहुल ने उसकी कमर पकड़कर धीरे से अपनी ओर खींचा और उसकी गांड में अपना मुंह डाल दिया. स्मिता चिहुंक पड़ी, पर अपने आसन से हटी नहीं.

मेहुल उसकी गांड के चारों ओर अपनी जीभ से चाट रहा था और गांड के छेद के सितारे पर विशेष रूप से ध्यान दे रहा था. स्मिता को गुदगुदी होने लगी तो वो हंस पड़ी. मेहुल ने उसकी ख़ुशी बढ़ने के लिए उसके नितम्ब दोनों हाथों से फैलाये और अपनी जीभ को गांड की गुफा में ढकेल दिया. स्मिता एक झुरझुरी के साथ एकदम से झड़ गई.

"मम्मी, आपकी गांड तो बहुत टाइट है, लगता है किसी अच्छे लंड से इसकी सिकाई नहीं हुई कभी."

स्मिता की अचानक मानो चेतना जाग्रत हुई. वो स्वयं को कोसने लगी कि क्यों उसने तीनों छेदों का नाम लिया. उसे नहीं लगता था कि वो मेहुल का डंडा अपनी गांड में ले पायेगी, चूत तो अम्भ्वतः उसे स्वीकार कर भी ले, पर गांड! ये सोचते ही उसकी गांड फट गई. और अगर गांड में ले भी लिया तो कितने दिन तक उसकी स्थिति थिंक हो पायेगी ये समझना कठिन था.

"अरे मम्मी, घबराओ नहीं, मैंने जितनी आंटियों को चोदा है सब की गांड इतनी ही संकरी थी, कई तो पहली बार गांड में लंड ले रही थीं. पर आज सब उछल उछल कर मुझसे गांड मरवाती हैं. आप मेरा विश्वास करो मैं आपको असीम सुख के सिवा कुछ नहीं दूंगा."

स्मिता ने अपनी सांसे संयत की. मेहुल ने उसकी गांड चाटना बंद करके, उसे सीधे होने के लिए कहा.

"अगर वेसलीन हो, तो ले आईये न प्लीज."

स्मिता गांड मटकाती हुई ड्रेसर से वेसलीन ले आयी. देखा तो मेहुल बिस्तर पर लेट चूका था और दोनों तकिये अपने सिर के नीचे लगा रखे थे.

मेहुल का तना लंड इस समय बहुत ही भयावना लग रहा था.

"पहले अपनी चूत में अच्छे से वेसलीन लगा लीजिये और फिर मेरे लंड पर भी. मैं नीचे रहूँगा, जिससे आप अपनी सुविधा के अनुसार जितना संभव हो उतना लंड डाल पाएं. अपने अनुमान से चुदवाइये अपनी चूत।"

स्मिता ने चैन की साँस ली, कि चलो अपने तरीके से ही लेगी. इतने में मेहुल ने उसे झटका दिया.

"पर गांड मैं अपने ढंग से मारूंगा।"

स्मिता की फिर गांड फट गई. पर ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना सोचते हुए अपने मन को मनाया. स्मिता बिस्तर पर बैठी और अपने पांव चौड़े करते हुए अपनी चूत में वेसलीन लगाने लगी. जब उसे लगा की उसकी चूत अच्छी चिकनी हो गई है, तो उसने मेहुल के लंड को पकड़ा और उसके टोपे पर एक चुम्मा लिया. फिर वेसलीन लगाकर उसे भी बिल्कुल चिकना कर दिया.

"आइये अब सवारी कीजिये. आपका घोड़ा तैयार है."

**********


बैठक में:

इस समय सब परिवार वाले एक गूढ़ चिंतन में डूबे थे. २ घंटे से ऊपर हो चुके थे. रात का लगभग १ बजने को था, पर स्मिता की ओर से कोई सन्देश नहीं आया था.

"कहीं मम्मी और मेहुल सो तो नहीं गए. जाकर देखूं?" महक ने पूछा.

"नहीं, नियम यही है कि मैसेज के पहले कोई भी क्रिया या प्रतिक्रिया नहीं की जाएगी. अगर मेहुल बाहर नहीं गया है तो स्थिति तनावपूर्ण अवश्य है, पर नियंत्रण में है. मुझे स्मिता पर पूरा विश्वास है. वो मेहुल को सांचे में ढाल लेगी. पर हमें अपनी निगरानी हटानी नहीं है." विक्रम ने मना करते हुए स्पष्ट किया.

"ठीक है पापा."

और सब बैचेनी से प्रतीक्षा में लगे रहे.

**********


स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

स्मिता ने बिस्तर पर चढ़ते हुए मेहुल के दोनों ओर पाँव किये, अपनी चूत के छेद पर मेहुल के लंड को लगाया और बहुत धीरे धीरे से उस पर उतरने लगी. लगभग ६-७ इंच लेने के बाद वो रुक गई और आगे झुककर मेहुल को चूमने लगी. मेहुल ने भी उसका भरपूर साथ दिया और उसके मम्मे मसलने लगा. स्मिता इस समय बहुत आनंदित थी और इतनी लम्बाई के लंड कई बार ले चुकी थी. पर चौड़ाई थी जो उसे आगे बढ़ने से रोक रही थी. इस समय उसे अपनी चूत पूरी तरह से पैक लग रही थी, मानो हवा तक जाने का स्थान न हो.

उसने धीरे धीरे उठक बैठक शुरू की, वेसलीन लगी होने से वो बहुत हो आसानी से चुदवा रही थी. इसी उपक्रम में उसने अपनी गति बढ़ा दी, चौड़ी हुई चूत अब और लंड की मांग करने लगी. वो लंड पर शायद एक दो इंच और उतरी होगी कि उसके ऐसे स्थान पर पंहुचा जहाँ आज तक कोई बिरला ही जा पाया था. इसी गहराई पर उसने अपनी चूत को रोक लिया और अपनी गति बढ़ाते हुए चुदवाने लगी.

"ओह, माँ, क्या लंड है तेरा मादरचोद. पूरी सिलाई खोल दी मेरी चूत की." वो बड़बड़ा रही थी.

उसकी चूत अब दनादन पानी की धार छोड़ रही थी जो मेहुल की जांघों को तर बतर कर रही थीं. वो इस समय वासना के ऐसे उन्माद में थी की उसे किसी भी और चीज़ का भान नहीं था. उसके सारी इन्द्रियाँ एक ही स्थान पर केंद्रित थीं और वो थी उसकी चूत। यही कारण था की जब मेहुल ने अपने दोनों हाथ उसकी कमर में डालकर मुट्ठी बंधी तो उसे इसका अर्थ न समझ पायी. मेहुल ने धीरे धीरे अपने बंधे हुए हाथ उसकी कमर के बिल्कुल नीचे के हिस्से पर ले जाकर रोक दिए.

हल्की हल्की चुम्मियाँ लेते हुए मेहुल ने बड़े प्यार से पूछा," मम्मी, मज़ा आ रहा है?"

"हूँ. बहुत. बहुत मजा आ रहा है. तेरा लंड वाकई में बहुत शानदार है."

"पर अभी तो आधा ही खाई हो, फिर भी इतना मजा आ रहा है."

"मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है , बस मुझे चोदने दे."

"हम्म्म, मम्मी."

"ह्म्म्मम्म"

"पर मैंने आपको पूरा सुख देने का वचन दिया था, है न?"

"हाँ दे तो रहा है. और कितना देगा." अचानक स्मिता के दिमाग की बत्ती जल उठी. कहीं ये सारा तो नहीं जड़ देगा मेरी चूत में., वो हटने का प्रयास करने लगी. पर मेहुल ने उसे अपने बाहुपाश में जकड रखा था.

"मम्मी, मैं हमेशा अपना वचन पूरा करता हूँ."

ये कहकर आधी ऊपर उठी स्मिता को जोर से अपने लंड की ओर खींचा और साथ ही अपनी कमर को बहुत तेजी के साथ ऊपर की ओर उठाते हुए एक जोरदार धक्का मारा. मेहुल का पूरा लंड अब स्मिता की चूत में जड़ तक समा गया था. स्मिता ऐसे आघात से एकदम सन्न हो गई. उसे लग रहा था जैसे किसी ने उसको चाकू से चीर दिया हो. उसकी आँखों से आंसू झरने लगे.


मेहुल स्मिता को उसी स्थिति में पकड़कर उसके बहते हुए आंसू चूम चूम कर पीने लगा. हल्के हल्के चुम्बन भी ले रहा था. एक हाथ से वो स्मिता की पीठ सहला रहा था. कुछ देर इसी तरह रहने पर स्मिता को थोड़ा आराम लगा तो वो रोने लगी. मेहुल ने उसके होंठ चूमते हुए कहा.

"मम्मी, एक बात बताओ."

"पूछ"

"जब बैंड ऐड की पट्टी निकालते है तो धीरे धीरे निकालने में अधिक दर्द होता या एक बार में निकालने में?"

"एक बार में निकालने में दर्द ज्यादा होता है पर ठीक भी जल्दी होता है."

"अब समझीं मैंने ऐसा क्यों किया. अपने आप कभी भी पूरा लंड नहीं लेतीं और जो अब आनंद मिलने वाला है उससे वंचित रह जातीं. मुझे क्षमा करना आपको इस तरह से छलना पड़ा. " मेहुल ताबड़तोड़ चुम्बन जड़ते हुए बोला।

"तू बहुत दुष्ट है. अब?"

"अब मैं आपको नीचे करूँगा और आपकी सही तरह से चुदाई करूँगा, जो आपका अधिकार है." ये कहकर मेहुल ने स्मिता की कमर पकड़कर एक करवट ली और स्मिता उसके नीचे आ गई. इस पूरे उपक्रम में मेहुल के लंड ने अपना स्थान नहीं छोड़ा.

मेहुल ने अब हलके और सधे हुए धक्कों से स्मिता की चुदाई शुरू की. अपने बाएं अगूंठे से वो रह रह कर भग्नाशे को कभी सहलाता, कभी रगड़ता और कभी उँगलियों में लेकर दबा देता. पर उसके इस प्रयास में कोई क्रम नहीं थे. स्मिता को अब वो आनंद आ रहा था जिससे वो इस जीवन में अछूती थी और ये सुख कोई और नहीं उसका सबसे लाडला बेटा ही उसे दे रहा था.

मेहुल ने भी अब गति पकड़ ली थी पर अभी भी वो पूरी लम्बाई का प्रगोग नहीं कर रहा था. उसकी चौड़ाई ही इतना घर्षण पैदा कर रही थी कि स्मिता कि चूत पानी पानी हो रही थी. अब कमरे में फच फच की ध्वनि गूंज रही थी.

"और चोद मुझे, और!" स्मिता ने मेहुल का उत्साह बढ़ाते हुए कहा. मेहुल ने भी अब समझ लिया कि उसकी माँ पूरे लंड के लिए तैयार है. उसने अब अपने धक्के पूरे गहरे और लम्बे कर दिये। बिस्तर कराह रहा था और स्मिता की चूत रो रो कर बेहाल थी. इतना पानी उसने छोड़ा था आज की पूरी बाल्टी भर जाती और अभी भी खेल समाप्त नहीं हुआ था. मेहुल के धक्के स्मिता की बच्चेदानी को हिला दे रहे थे. जिस रास्ते वो निकला था आज वहीँ उसने अपना झंडा गाढ़ दिया था.


"बेटा, अब बस कर. मेरी चूत फट गई है. इतना झड़ी हूँ कि कुछ बचा नहीं. अपने पानी से सींच दे मेरी चूत।"

मेहुल भी अब अधिक दूर नहीं था. उसने अपनी गति में परिवर्तन करते हुए कभी गहरे तो कभी तेज, कभी हलके तो कभी कभी रूककर धक्कों की झड़ी लगा दी. अपने निकट आते हुए उत्सर्ग से भी अंकुश हटा दिया. बस फिर क्या था स्मिता की चूत में तो जैसे एक बाढ़ सी आ गयी. उसका अपना पानी जब मेहुल के रस से मिला तो पूरा बिस्तर गीला हो गया. मेहुल ने पूरा झड़ने के बाद अपना लंड बाहर निकाला स्मिता की चुम्मियाँ लेता हुआ उसकी बगल में लेट गया.

दोनों हांफ रहे थे. फिर एक दूसरे की ओर मुड़कर एक लम्बा चुम्बन लिया.

"कैसा रहा." मेहुल ने पूछा.

"अद्वितीय. परम सुख मिला है आज. तूने सीखा कहाँ से ये सब?"

"बताया न, मुझे बहुत अच्छी शिक्षिकाएँ मिलीं. जो इस कला में बहुत निपुण हैं. उन्होनें बहुत कुछ सिखाया कि किसी स्त्री को कैसे सुख देते हैं."

"पर तू जो जबरदस्ती कर गया, वो."

"उनका कहना है की स्त्री सदैव हर क्रीड़ा के लिए मानती नहीं है, कभी कभी मनाने की असफल चेष्टा से कर लेना सही रहता है."

"क्या मैं पास हो गया?"

मेहुल का मुंह चूमते हुए स्मिता बोली, "एकदम टॉप."

"कुछ पियोगी?"

"हाँ बना दे एक पेग. टाइम क्या हुआ है?"

"१ बजे हैं."

"क्या. अरे मेरा फोन दे और पेग बना कर ला."

स्मिता ने विक्रम को मेसेज किया, "मिशन सफल,"

तब तक मेहुल पेग ले आया और दोनों माँ बेटे नंगे ही चुस्कियां लेने लगे.

**********


बैठक में:

"मिशन सफल,"विक्रम ने अपने फोन पर मेसेज पढ़ा. और सबको बता दिया. सबके मन में आनंद और सफलता की एक लहर दौड़ गई. और सब उठ के एक दूसरे के गले मिले और फिर अपने अपने कमरों में चले गए.

**********


स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

जब दोनों ने दो पेग लगा लिए तो मेहुल ने चिहुल की, "मम्मी, अब आओ, आपके तीसरे छेद का वचन भी पूरा कर देता हूँ." उसे पता था कि आज उसकी माँ किसी भी स्थिति में अपनी गांड नहीं मरवाने वालीं. स्मिता के हाथ पांव कांपने लगे.

वो विनती करने लगी, "बेटा, आज तू बस चूत ही से संतुष्ट हो ले."

मेहुल भी अपनी माँ को अधिक नहीं सताना चाहता था. हाँ अगर वो उसके परिवार की न होकर कोई और होती तो वो बिना गांड फाड़े छोड़ता नहीं.

"ठीक है मम्मी. पर कब."

स्मिता ने कुछ सोचा फिर बोली, "एक आइडिया है. परसों तू सुजाता और मुझे एक ही साथ क्यों नहीं चोदता। मेरी गांड भी तभी मार लेना और सुजाता की भी."

"हम्म आइडिया बुरा नहीं है. परन्तु मुझे स्वीकार नहीं है. मैं सुजाता आंटी को एक बार अकेले में ही चोदना चाहता हूँ. वे भी मुझे मूर्ख समझती हैं और आपको भी अधिक आदर नहीं देतीं. इसके बारे में कुछ करना होगा”, मेहुल के चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान थी, “तब तक अपने २-३ राउंड हो जाएँ"

"क्यों नहीं।" ये कहते हुए दोनों माँ बेटे फिर से एक दूसरे के आलिंगन में खो गए.

अभी पूरी रात जो शेष थी.


क्रमशः
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Aah jabardast update Maja AA gaya jhadne baad Mehul aur Smita ke Lund aur aur chut aise hi dikhte honge


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Chut chatu

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कैसे कैसे परिवार

अध्याय १०: पहला घर - अदिति और अजीत बजाज २

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काफी देर के बाद कैमरे में उसकी दादी दिखी. कुछ देर बाद वो कपड़े बदले हुए फिर दिखी. फिर कुछ देर बाद उनके कमरे में उसे अपने पापा दिखाई दिए. उन्होंने आकर दादी को बाँहों में भर लिया और चूमने लगे. दादी भी उनका पूरा साथ दे रही थी.

दादी: “अदिति सो गयी है क्या?”

पापा: “हाँ, उसकी दवाई से नींद आती है.”

दादी: “बस अब दो और सप्ताह की बात है, फिर वो पहले जैसी ठीक हो जाएगी.”

पापा: “हाँ, पर दवा पता नहीं कितने दिन और लेना पड़े. न जाने वो इतने दिन बिना चुदाई के कैसे रह पाई.”

दादी: “अरे मैं थी न, हाँ ये सच है की वो तुम्हारे लंड की अब बहुत प्यासी है.”

पापा: “और ये?” कहकर पापा ने दादी की चूत को दबाया.

दादी: "और ये भी. अब इसकी उतनी चुदाई नहीं होती जितनी ये चाहती है. २ सप्ताह बाद तो और भी कम हो जाएगी.”

पापा: “घर में अकेले मेरे ही पास लंड थोड़े ही है? जैसे मुझे सिखाया था, अब गौतम को भी सिखा दो चुदाई के सूत्र.”

दादी: “मैं तो तैयार हूँ, पर गौतम न जाने क्या सोचेगा.”

पापा: “वही जो मैंने २४ साल पहले सोचा था. जवान लड़का है, चुदाई के लिए मना करे ये हो नहीं सकता.”

दादी: “पर अदिति? उसे ये शायद अच्छा न लगे.”

पापा: “नहीं, मेरे विचार से उल्टा ही होगा. अदिति ऑपरेशन से पहले कई बार गौतम को चोदने के लिए कह चुकी है.”

दादी: “अच्छा!”

पापा: “हाँ और वो ये भी चाहती है की मैं अनन्या की सील खोलूं.”

ये सारी बातें सुनकर गौतम के तो होश ही उड़ गए. यहाँ वो दादी को फंसा कर चोदने का प्लान बना रहा था, वहां उसकी माँ पहले ही उससे चुदने का कार्यक्रम बनाये हुए है. और अगर पापा अनन्या को चोद लेंगे तो हो सकता है कि उसका भी नंबर लग जाये.

उसने अपना ध्यान सामने चल रहे वीडियो पर लौटाया. अब तक उसके दादी और पापा नंगे हो चुके थे और एक दूसरे को चूमते हुए बिस्तर की ओर बढ़ रहे थे. बिस्तर पर जाकर दादी लेट गई और अपने पांव फैला लिए. अजीत ने अपना मुंह दादी की जांघों में डाल दिया. अब वीडियो पर इससे अधिक देखना संभव नहीं था. पर यही कुछ ५-७ मिनट बाद उसने दादी को कांपते हुए देखा और उसके बाद अजीत ने अपना सर जांघों के बीच से निकाल लिया. फिर अजीत ने अपना लंड शालिनी के मुंह के पास लाकर हिलाना शुरू किया. शालिनी ने उसके लंड को अपने मुंह में लिया और कोई ४-५ मिनट तक चूसा. उसके बाद अजीत ने अपने लंड को शालिनी की चूत में डाल दिया और दोनों चुदाई करने लगे.

अपनी दादी को इस तरह चुदते देखकर गौतम ने अपना लंड निकाला और मुठ मारने लगा. उसने सोचा कि जब उसकी दादी और माँ दोनों उससे चुदवाने को तत्पर हैं. अभी मम्मी को ठीक होने में समय है तो दादी पर ही पहले हमला किया जाये. उसने फिर ये वीडियो फॉरवर्ड किया और अगले दिन सुबह उसने राधा को दादी को मौखिक सहवास करते हुए देखा. तो उसका शक सही था. राधा पर भी वो हाथ साफ कर सकेगा या नहीं इस पर उसे शंका थी. उसने जब दोपहर के वीडियो में अपनी माँ और दादी को फिर मौखिक सम्भोग में लिप्त देखा तो उसने निर्णय कर लिया की वो अगले एक दो दिन में ही किसी प्रकार दादी की चुदाई कर ही लेगा.

यही सोचते हुए उसने वीडियो बंद किया और नींद में चला गया.

************

अनन्या इस समय अपने मित्रों के साथ शहर के बाहर एक फार्म हाउस में थी. उसकी सहेली नताशा और उसके बॉयफ्रैंड्स जय और परम यहाँ थोड़ी मस्ती के लिए आये थे. अनन्या ने अभी तक किसी के साथ सेक्स नहीं किया था पर उसने हाथ से परम को कई बार झाड़ा था. परम जानता था कि अनन्या इससे अधिक नहीं करेगी, इसीलिए वो भी उस पर अधिक दबाव नहीं डालता था. अनन्या और परम दोनों अपने संबंधों के प्रति गंभीर भी नहीं थे और परम इसी कारण दूसरी लड़कियों से अपने सेक्स की भरपाई करता था. अनन्या को भी इसमें कोई आपत्ति नहीं थी. उसने अपना कौमार्य एक विशेष व्यक्ति के लिए संभाला हुआ था. और उसे विश्वास था कि एक दिन वही उसकी सील तोड़ेगा.

नताशा जय और परम दोनों से चुदवाती थी. और दोनों को ये बात पता थी. वैसे तो वो अकेले उनके साथ आना चाहती थी पर उसकी माँ इसकी अनुमति नहीं देने वाली थी. अनन्या के कारण उसे आने अनुमति मिली थी, पर उसकी माँ नहीं जानती थी कि बेटी और दो लड़कों के साथ जा रही थी और उसके मंतव्य ठीक नहीं थे. और ये इस समय दिखाई भी दे रहा था. चारों मित्र अपने हाथ में बियर लिए हुए थे. अनन्या एक कुर्सी पर बैठ कर अपनी बियर पी रही थी. कुछ ही देर पहले परम और उसने हस्त सम्भोग किया था, परम ने उसकी चूत बहुत अच्छे तरह से चाटकर उसको संतुष्ट किया था. पर उसे लग रहा था कि उसकी जवानी की आग बुझाने के लिए उसे ही पहला कदम लेना होगा. प्रश्न ये था कि अपने कौमार्य के उपहार को जीतने वाले से कैसे बताया जाये.

शाम को घर लौटते हुए उसने किसी प्रकार से उस व्यक्ति से इस पर बात करने का मन बना लिया. वैसे भी नताशा जय और परम को सम्भोग में संलग्न देखकर उसकी वासना जागृत हो गई थी. कब और कैसे की उधेड़बुन में वो अपने घर पहुँच गई. अगले दिन उसकी दादी का ६३वां जन्मदिन था.

*******************


शालिनी का ६३वां जन्मदिन:

आज शालिनी का ६३वां जन्मदिन था. घर में ही एक छोटा सा आयोजन रखा गया था. शालिनी की चार सहेलियों को भी बुलाया था. शाम सात बजे पार्टी शुरू हुई थी. शराब और खाने में सब लोग व्यस्त थे. शालिनी को सबने अपनी ओर से उपहार दिए. उसने सबका धन्यवाद भी किया. तभी अनन्या और गौतम उसके पास आये और उसे गले लगकर उसके जन्मदिन की बधाई दी. अनन्या फिर चली गई, पर गौतम रुका रहा.

गौतम: “दादी, आपको मेरी ओर से लाखों बधाइयाँ. अगर आप बताओ नहीं तो कोई कह नहीं सकता कि आप ६३ साल की हो गई हो.”

शालिनी: “उसका कारण तुम सब हो, मुझे जितनी आनंद और सुख तुम सबने दिया है, उसके कारण मुझे अपनी आयु और अकेलेपन का आभास नहीं होता.”

गौतम: “दादी, मैं तो आपको और भी सुख देना चाहता हूँ.” उसकी इस बात में एक भिन्न ही अर्थ छुपा था.

दादी: “सच कहूँ तो मुझे तुमसे अपने इस जन्मदिन पर कुछ अलग उपहार चाहिए, ऐसा उपहार जो जब तक हम चाहें एक दूसरे को दे सकें.”

गौतम समझ गया कि दादी का संकेत किस ओर है. पर उसने निर्बोध भाव से पूछा, “क्या दादी?”

शालिनी ने अपनी सहेलियों की ओर देखा तो वो अपने आप में व्यस्त थीं. पर अदिति की ऑंखें उन पर थीं. अदिति ने हल्के से सिर हिलाकर अपनी ओर से हरी झंडी दिखा दी. शालिनी ने अपने दाएं हाथ से गौतम की पैंट के ऊपर से ही उसके लंड को पकड़कर दबाते हुए कहा.

शालिनी: “मुझे तेरा लंड चाहिए. बोल देगा?”

गौतम: “दादी!!! मम्मी और पापा क्या कहेंगे?”

शालिनी: “उनकी इसमें अनुमति है. बस तुझे अपना मन बनाना है. अगर सच में तू मुझे उपहार देना चाहता है तो आज की रात मेरे साथ रह कर मुझे जी भर कर चोदना। क्या कहता है?”

गौतम: “दादी, मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ. आपके मांगे हुए उपहार से कैसे मना कर सकता हूँ.”

शालिनी: “तो पार्टी के बाद मेरे कमरे में आ जाना.”

उधर अदिति और अनन्या बात कर रहे थे.

अनन्या: “मम्मी, मुझे तुमसे कुछ पूछना है और कुछ मांगना भी है.”

अदिति: ”हाँ बोल.”

अनन्या: “यहाँ नहीं, थोड़ा आपके कमरे में चलें?”

अदिति ने अजीत को बताया और अनन्या के साथ अपने कमरे में आ गई.

अनन्या ने दरवाज़ा बंद किया,”मम्मी इससे पहले की मेरा साहस टूटे मैं एक बार में अपनी बात कह देती हूँ. मैं अभी भी कुंवारी हूँ. पर मुझे सेक्स की अब बहुत इच्छा रहती है. मैं चाहती हूँ कि एक विशेष व्यक्ति मेरे कौमार्य को भंग करे. और इसके लिए मुझे आपकी अनुमति और स्वीकृति दोनों चाहिए.”

अदिति: “मुझे गर्व है कि इस युग में भी तुमने अपना कौमार्य बचाकर रखा है. ये भी सच है कि तुम्हारी आयु सेक्स का सुख लेने की हो चुकी है. तो जो भी वो व्यक्ति है जिससे तुम इसे भंग करवाने की इच्छुक हो, तुम्हें उसे ये बात किसी माध्यम से बतानी चाहिए.”

अदिति का ये बात कहते हुए दिल टूट रहा था क्योंकि उसने अजीत को इस कार्य के लिए चुना हुआ था.

अनन्या: “मैं चाहती हूँ कि आप इसमें मेरी माध्यम बनें.”

अदिति अब अपने पति और बेटी की परस्पर विरोधी इच्छाओं के बीच फंस गई थी.

अदिति: “मैं तुम्हारी कैसे सहायता कर सकती हूँ?”

अनन्या: “क्योंकि वो विशेष व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि आपके पति और मेरे पापा हैं.”

अदिति का सिर घूम गया. वो धप्प से सोफे पर बैठ गई. फिर वो जोर जोर से हंसने लगी.

अनन्या: “मम्मी, क्या हुआ. ऐसे क्यों हंस रही हो?”

अदिति: ”मुझे इस बात की चिंता थी कि तुमने किसे चुना था क्योंकि मैंने भी किसी को चुना हुआ था इस शुभ कार्य के लिए.”

अनन्या: “तो हंस क्यों रही हो?”

अदिति: “क्योंकि मैंने जिसे चुना था वो भी तेरे पापा ही हैं.”

ये कहकर अदिति ने उठकर अनन्या को गले से लगा लिया.

अदिति: “आज पार्टी के बाद हमारे कमरे में आ जाना. शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए.”

ये कहकर उसने अनन्या का हाथ लिया और दोनों पार्टी में लौट गए.

************


शालिनी का कमरा:

पार्टी समाप्त होने के बाद शालिनी अपने कमरे में चली गई और कुछ ही देर में गौतम कपडे बदल कर आ गया. शालिनी उससे अपने कपड़े उतारकर लेटने के लिए कहती है और बाथरूम में घुस जाती है. गौतम कमरे में बिस्तर पर लेट गया. कमरे में रोशनी खिली हुई थी. वो इस समय नंगा था और उसके जवान कसरती शरीर पर उसका शानदार खड़ा हुआ लंड बहुत बड़ा और कड़ा लग रहा था. लगभग २२ साल की आयु में इसका भरपूर आनंद लिया और दिया था. पर आज कुछ विशेष था.

वो बाथरूम से उसकी दादी के निकलने की प्रतीक्षा कर रहा था. उन्होने अभी थोड़ी देर पहले टब में गर्म पानी से नहाया था. तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला और दो सुंदर पैर बाहर आए. बाहर आने वाली भीगी हुई स्त्री दिखने में कोई ४२-४३ वर्ष की रही होगी, पर गौतम जानता था कि वो ६३ वर्ष की थी. आज उनका जन्मदिन जो था. पर उन्होंने स्वयं को इस तरह से संभाल कर रखा था कि आयु उन पर हावी नहीं हुई थी. बाहर आकर उन्होंने कमरे की लाइट बंद कर दी. बाहर से चाँदनी रात की रोशनी कमरे को भिगोने लगी. वो खिड़की से बाहर देख रही थी और उनका शरीर चाँदनी में और भी ज़्यादा लुभावना लग रहा था. उसके स्तन तने हुए थे, लंबे बाल लगभग नितंबो को छू रहे थे.

गौतम की आँखें उन सुडोल नितंबों को ताक रही थीं, आयु का प्रभाव होते हुए भी वो बेहद आकर्षक थे. उन्होंने पलट कर गौतम की ओर देखा. उसकी आँखों में निमंत्रण था, और होठों पर एक मुस्कुराहट. उसका पहले से खड़ा लंड और अकड़ गया और वो बिस्तर से उठकर उसकी ओर बढ़ा. वो इस स्त्री के रोम रोम से प्यार करना चाहता था, वो उसे अपना बनाना चाहता था. वो उसे दिल भर कर चोदना चाहता था. गौतम उसके पीछे जाकर उन से चिपक गया. उसका लंड उन नितंबो में चुभने लगा था और उसका सीना पीठ पर सट गया. उसने अपनी बाहें कमर में डालकर उन्हें अपनी ओर खींचा.

उन के होठों से वो गर्दन और कानों के चुंबन लेते हुए उसने भर्राई हुई आवाज़ में कहा,"आइ लव यू, दादी."

"वैसे ही जैसे में चाहती हूँ कि तुम मुझे प्यार करो?" दादी ने पूछा, उनकी आँखों में निमंत्रण था और होंठ कंपकपा रहे थे.

“जैसा आप चाहती हो. और जैसा आप पापा से करती हो.” गौतम ने उत्तर दिया.

शालिनी एक पल के लिया ठिठक गई, फिर बोली, “हम्म्म, तुझे मेरे और अजीत के बारे में कैसे पता?”

गौतम: “कुछ दिन पहले आप दोनों को इस कमरे में आते हुए देखा था.”

शालिनी: “तो क्या, किसी बात के लिए आये होंगे.”

गौतम: “ऐसी क्या बात थी जिसके लिए नंगे आना पड़ा, और कपडे हाथ में लेकर?”

शालिनी समझ गई कि गौतम संभवतः सब कुछ जान चुका है.

शालिनी: “और क्या देखा?”

गौतम: “यही कि राधा आपके पास सुबह और मम्मी दोपहर को आती हैं. क्यों मैं सही समझ रहा हूँ न?”

शालिनी: “इसीलिए तू कुछ दिन काम पर नहीं गया था न ताकने के लिए कि मैं क्या करती हूँ.”

गौतम: “सही पकड़े हैं.”

शालिनी अब मुड़ी और दोनों एक दूसरे के सामने आ गए. उसके होंठ चूमते हुए बोली: “जब पकड़ी हूँ तो सजा भी दूंगी.”

गौतम: “दादी, मुझसे उपहार लेकर मुझे सजा दोगी ?”

शालिनी: “अजीत ने कहा है मैं तुझे वो सब सिखाऊं जो मैंने उसे बरसों पहले सिखाया था.”

गौतम: “तो देर किस बात की है?”

शालिनी ने गौतम का हाथ लेकर उसे बिस्तर पर खींचा। फिर उसने लेट कर अपने पांव फैलाकर गौतम को बुलाया.

शालिनी: “अगर किसी स्त्री को संतुष्ट करना है तो उसका सबसे पहला और सरल उपाय है उसकी चूत से प्यार करना. अगर किसी भी स्त्री को तुम अपने मुंह से संतुष्ट कर दोगे तो वो तुम्हें सदैव याद रखेगी और दोबारा तुमसे मिलना चाहेगी. तो मेरे प्यारे बच्चे अब अपनी दादी की चूत को ऐसे प्यार करो जैसे कि स्वर्ग का द्वार है.”

गौतम: “ये स्वर्ग का द्वार है, इसे समझने में मुझे कोई कठिनाई नहीं है.”

ये कहते हुए गौतम ने अपना मुंह दादी की चूत में लगाया और उसे चाटने लगा. अब ये कहना कि ये उसकी पहली चूत थी जिसे वो ये सुख दे रहा था गलत होगा. वो पिछले तीन सालों में कई चूतों का रस पी चुका था. और उसको सिखाने वाली उसकी आयु की लड़कियां ही नहीं, बल्कि कुछ मध्यम आयु की विवाहित स्त्रियाँ भी थीं. उन सब ने मिलकर उसे इस कला में बहुत पारंगत कर दिया था. और आज उसे उस कला को अपनी चहेती दादी पर प्रयोग करने का अवसर मिला था. गौतम उन्हें ये दिखाना चाहता था कि वो उन्हें हर प्रकार से संतुष्ट कर सकता है..

शालिनी भी गौतम के उपक्रम से ये समझ गई कि जिसे वो सिखाना चाहती है, वो पहले ही प्रशिक्षित है. पर उसने इस समय कुछ भी कहना उचित नहीं समझा बल्कि इसका पूर्ण आनंद लेने का निश्चय किया. प्रश्नोत्तर बाद में किये जा सकते थे. शालिनी ने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और गौतम को समर्पित कर दिया. गौतम ने उसके इस बदले हुए भाव को समझ लिया. अब दादी उसके वश में होंगी.

शालिनी के मुंह से आनंद की सीतकारें निकल रही थीं. अपने प्यारे पोते को अपनी जांघों के बीच अपनी चूत पर जादू करता जो अनुभव कर रही थी. उसकी चूत पानी छोड़ रही थी और अभी तो केवल आरम्भ था. गौतम के अधक प्रयास उसे एक नयी स्वर्णिम ऊंचाइयों पर ले जा रहे थे. उन्होंने ये समझ लिया कि वो स्वयं गौतम को इससे श्रेष्ठ ज्ञान नहीं दे सकती थी.

गौतम न केवल अपनी जीभ बल्कि उँगलियों का भी बहुत ही सुन्दर उपयोग कर रहा था. उसकी जीभ अब शालिनी की चूत की गहराइयों में जाकर उसके अंदर की संवेदनशील नसों को छेड़ रही थी. साथ ही उसकी दो उँगलियाँ शालिनी के भगनासे पर ही थीं और कभी रगड़कर, तो कभी मसलकर वो अपनी दादी को वासना की ऊंचाई से नीचे नहीं उतरने दे रहा था. शालिनी ने अपनी गांड उठाई जिससे गौतम को कुछ सुगमता हो. परन्तु गौतम ने इसका अलग ही उपयोग किया. उसने अपने बाएँ हाथ को उसकी उठे नितम्बों के नीचे लगाया और बहुत ही हल्के हल्के उसकी गांड के छेद को सहलाने लगा. पर उसे इस हाथ से बहुत अच्छे से ये छेड़छाड़ करने में समस्या लगी. तो उसने दाएँ हाथ को नीचे लगाकर बाएँ हाथ से ऊपर का पराक्रम अबाधित रखा. अब चूँकि उसकी दाएँ हाथ की उँगलियाँ रस से गीली थी, तो शालिनी की गांड के भूरे सितारे पर उसकी सहलाने की गति भी बढ़ गयी.

शालिनी: “बेटा, मैं तो गयी.” कहते हुए शालिनी पूरी तरह से भरभरा कर झड़ने लगी. यही वो अवसर था जब गौतम ने अपनी बीच वाली उंगली को शालिनी की गांड में उतार दिया और उसे गोल गोल घुमाने लगा. अभी शालिनी का झड़ना समाप्त भी नहीं हुआ था कि इस अनायास आक्रमण ने उसे एक बार फिर रोमांच की ऊंचाई पर भेज दिया. और फिर वो एक झटके से उससे उतरी और उसकी चूत ने एक फव्वारा छोड़ा जिससे गौतम का सारा चेहरा भीग गया. पर गौतम कहाँ रुकने वाला था. उसने शालिनी के भगनासे को जोर से दबाया और गांड में उंगली से मैथुन करने लगा. शालिनी को अब कुछ भी बूझ नहीं रहा था. वो आनंद की इस पराकाष्ठा से आज तक अनिभिज्ञ थी. उसके तन और मन इस समय ऐसी लहरों में बह रहे थे जिसका उसने कभी अनुभव नहीं किया था.

अंततः उसका शरीर ढीला पड़ गया. अब उसमे कुछ शेष नहीं था. गौतम ने ये समझा और धीरे से गांड में से उंगली बाहर निकली और उसकी चूत पर एक गहरा चुम्बन लेते हुए शालिनी की जांघों से अलग हो गया.

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अदिति का कमरा:

पार्टी समाप्त होने ही अदिति अनन्या को अपने साथ ही लेकर अपने कमरे में चली आयी. उसने अजीत को ये बता दिया था कि अनन्या की भी वही इच्छा है जो उस दोनों की है. अजीत ये सुनकर बहुत प्रसन्न हो गया था. अजीत कमरे में पहले ही आ चुका था और अभी बाथरूम में था. अदिति ने अनन्या को अपने पास बैठाया और उसे समझाया कि पहली बार सम्भोग में कुछ दर्द होने की सम्भावना रहती है, परन्तु उसके बाद जीवन के असीमित आनंद का द्वार खुल जाता है.

उसने ये जानने का प्रयास किया कि क्या अनन्या घर के बाहर भी किसी से सम्बन्ध बनाना चाहती है. अनन्या ने कहा कि अभी उसने इस बारे में अधिक विचार नहीं किया है. हालाँकि उसके साथ की अधिकतर लड़कियाँ अपने बॉयफ्रेंड के साथ ये सुख लेती हैं, पर कुछ हैं जो उसकी ही तरह सोचती हैं और अपने को संजो के रखे हैं. इतने में अजीत बाथरूम से बाहर आया, उसने केवल एक तौलिया ही अपनी कमर के नीचे बांधा हुआ था और उसका धड़ नंगा था. और उसने माँ बेटी को बातें करते हुए देखा. अनन्या ने उसकी ओर देखा तो उसने अपनी ऑंखें झुका लीं. अदिति ने उसकी ठुड्डी पकड़कर उसका चेहरा ऊपर किया.

अदिति: “बेटी, ये वो खेल है जिसमें शर्म नहीं होनी चाहिए. बाकी समय तुम चाहे जितना भी शर्म और आदर रखो, पर जब भी चुदाई का समय हो तो उन सबको हटाकर केवल इसकी ओर ही ध्यान रखो. अगर कुछ भी और सोचोगी तो इस सुख से वंचित रह जाओगी.”

अनन्या ने स्वीकृति में सिर हिलाया। अदिति उसे अपने साथ बाथरूम में ले गई और उससे नहाकर आने के लिए कहा. फिर उसने अजीत को समझाया कि उसे बहुत प्यार और संयम से अनन्या का कौमार्य भंग करना है.

अदिति: “अनन्या अभी कली है, मेरे, माँ जी या मोनिका के जैसी नहीं है कि तुम एक बार में चढ़ाई कर दो.”

अजीत: “तुम शायद अपना पहला संसर्ग भूल रही हो, मैंने तुम्हें जिस तरह से पहली बार चोदा था, उस समय को याद करो.”

अदिति: “हाँ. बस वैसे ही.”

इतने में अनन्या बाहर आ गई, अब कोई और कपडा तो उसके पास था नहीं तो उसने अपने आप को एक तौलिये से ही लपेट रखा था. अजीत का लंड ये देखते ही फनफना गया. अदिति ने उसकी जांघ हल्के से थपथपाई और स्वयं स्नान के लिए चली गई. अजीत ने बार से तीन पेग बनाये और एक अनन्या को थमा दिया. अनन्या हालाँकि पार्टी में भी पी चुकी थी पर न जाने आज उसपर कोई नशा नहीं चढ़ा था. उसने तीन चार घूँट में ही अपना पेग समाप्त किया और एक और बना लिया. अदिति तब तक बाहर आ चुकी थी और वो भी केवल तौलिया ही लपेटे थी. उसने देख लिया कि अनन्या दूसरा पेग बना रही है. वो उसके पास गई और उसे समझाया कि पहली बार का सुख शराब के नशे में नहीं लेना चाहिए, अन्यथा उसे जीवन का पहला अनुभव उस प्रकार से याद नहीं रहेगा जैसा रहना चाहिए.

अनन्या ने माँ की बात को समझा और अपने पेग को चुस्कियों में पीना शुरू किया. अजीत और अदिति भी यही कर रहे थे.

अजीत: “अगर तुम्हें इसमें जरा सा भी संकोच है तो कोई आवश्यक नहीं कि हम ये करें.”

अनन्या ये सुनकर चौंक गई.

अनन्या: “नहीं, पापा. ये मेरा बहुत पहले का प्रण है. और मुझे नहीं लगता कि आज से कोई अच्छा समय आएगा. मम्मी ने मुझे बहुत कुछ समझाया है. मैं चाहती हूँ कि आज मुझे एक कली से फूल बना दें.”

ये कहती हुई वो आगे बढ़ी और अजीत के पास आकर उसने उसे चूम लिया. अजीत ने अपना ग्लास अदिति को दिया और अनन्या को अपनी बाँहों में लेकर चुम्बनों की बौछार कर दी. और इसी के साथ उसने अनन्या के शरीर से तौलिया खींच कर अलग कर दिया. अदिति की एक सिसकारी निकल गई. उसने कभी सोचा भी न था कि अनन्या निर्वस्त्र कितनी सुन्दर लगती होगी. उसके नंगे शरीर को देखकर अदिति की चूत भी पनिया गई. उधर बाप बेटी के चूमा चाटी में न जाने कब अजीत का तौलिया भी गिर गया. अनन्या ने जब अपनी नाभि पर कुछ चुभता हुआ पाया तो नीचे देखा. उसकी आंखे अपने पिता के लंड को देखकर फ़ैल गयीं. जय और परम जो अपने आपको बड़े महारथी समझते थे उसके पिता के आगे गौण ही थे. न जाने उसके मन में कहाँ से ये विचार आया कि अगर नताशा एक बार पापा का लंड झेल लेगी तो जो मुझे उलाहने देती है,उसकी बोलती ही बंद हो जाएगी. यही सोचते हुए उसने अजीत के तने हुए लंड को अपने हाथ में ले लिया.

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शालिनी का कमरा:


शालिनी अपनी साँसों को संभल रही थी. उसने मौखिक सम्भोग से कभी भी इतना आनंद नहीं पाया था.

शालिनी: “कहाँ से सीखा तूने ये सब.”

गौतम: “अरे दादी आप आम खाओ, गुठलियाँ न गिनो. क्या आपको अच्छा लगा?”

शालिनी: “अच्छा? ऐसा अनुभव मैंने जीवन में कभी भी नहीं लिया है.”

गौतम: “दादी, बात ये है कि मैं आपसे असीम प्रेम करता हूँ. ये सुख आपको इस कारण मिला, न कि मेरे कहीं से सीख कर आने से.” गौतम ने बात बनाते हुए कहा.

शालिनी समझ गई कि ये बताने वाला नहीं है. उसने अपने हाथ में गौतम का लंड पकड़ा और हल्के से सहलाते हुए पूछा.

शालिनी: “और इसका कैसे प्रयोग करते हैं वो भी तुझे भली भांति आता ही होगा.”

गौतम: “कुछ कुछ. पर जैसे आप सिखाओगी मैं वैसा ही करूँगा.”

शालिनी: “ह्म्म्मम्म, मेरा मन अब तेरे इस लंड को चूसने का है और फिर मैं चाहूंगी कि तू मुझे अच्छे से चोदे.”

गौतम: “दादी, आप जो चाहे वैसा करो.”

शालिनी: “चल सामने आकर खड़ा हो जा, जरा चूस कर देखूं तेरे लंड को कैसा स्वाद है.”

गौतम शालिनी के सामने जा खड़ा हुआ और शालिनी ने बिना समय नष्ट किये हुए उसके लंड को अपने मुंह में ले लिया. उसने ये प्रण किया कि जितना आनंद गौतम ने उसे दिया है, उससे अधिक वो उसे लौटाएगी. और गौतम ने जाना कि उसकी दादी क्या बला है. उसके लंड के टोपे, लम्बाई, चौड़ाई और अंडकोष हर स्थान पर मानो शालिनी के मुंह और हाथ एक ही समय चल रहे थे. वो लंड को अपने गले तक ले जाती और वहां उसके लंड को दबाती थी. गौतम अब तक जिन भी स्त्रियों के साथ संभोगरत हुआ था सबकी लंड चूसने की विभिन्न शैलियाँ थीं. पर आज वो उन सबके समावेश से बनी एक शैली को अनुभव कर रहा था. और ये कहना गलत नहीं होगा कि उसकी दादी उन सब बाकी स्त्रियों से कोसों आगे थीं.

शालिनी ने कुछ ही समय में गौतम को चरम पर ले आया. पर यहाँ उसने अपनी उँगलियों से कुछ ऐसा किया कि गौतम ले लंड में उफनता हुआ उबाल मानो शांत हो गया. यही क्रिया जब शालिनी ने तीसरी बार दोहराई तो गौतम से रहा नहीं गया.

गौतम: “दादी, अब और मत सताओ, मुझे झड़ जाने दो, प्लीज.”

शालिनी ने अपने पैतरे बदले और कुछ ही सेकण्ड में गौतम का ज्वालामुखी फूट पड़ा और अपना लावा शालिनी के मुंह में गिराने लगा. शालिनी ने उसके इस लावे को पूरा पी लिया. गौतम असमंजस में था क्यूंकि अभी तक कोई भी स्त्री उसका पूरा पानी नहीं पी पाई थी. शालिनी ने पूरा गटकने के बाद गौतम की ओर मुस्कुरा कर देखा.

“क्यों बेटा, कैसा लगा.”

“दादी आप सच में विलक्षण हो.”

“अब कितनी देर लगेगी तेरा फिर से खड़ा होने में?”

“बस समझो कुछ ही मिनट.”

“हूउउउनंनन, अब मेरी चूत कुलबुला रही है. अब जैसे ही तेरा लंड खड़ा हो जाये इसकी भी प्यास बुझा देना.”

“अवश्य दादी।”

अब जवान लड़के की लंड को खड़े होने में अधिक समय तो लगता नहीं, वो भी तब, जब उसके सपनों की अप्सरा उसके सामने निर्वस्त्र पड़ी हो. और जैसे ही गौतम को लगा कि अब वो दादी की चुदाई कर सकता है, उसने आगे बढ़कर अपने लंड को शालिनी के मुंह के पास लगा दिया.

गौतम: “दादी, थोड़ा इसे प्यार करो जिससे ये भी आपको उतना ही लौटा सके.”

शालिनी: “मुझे विश्वास है कि ये कई गुना लौटाने वाला है.”

ये कहते हुए शालिनी ने लंड मुंह में लेकर कुछ देर चूसा जिससे वो अच्छे से गीला भी हो जाये और अच्छा कड़क हो जाये जिससे वो उसकी चूत के पेंच ढीले कर सके. फिर गौतम ने अपना स्थान उस द्वार के समक्ष लिया जहाँ से कई वर्ष पहले उसके पिता ने संसार में कदम रखा था.

गौतम: “दादी, कैसी चुदाई पसंद करोगी, प्यार से या धुआंधार।”

शालिनी: “ये वाली तो धुआंधार होनी चाहिए, बाद में एक बार प्यार से भी चोदना। पर इस बार कोई दया नहीं दिखाना।”

गौतम ने ये सुनकर अपने लंड को दादी की चूत के ऊपर रखकर उसे उसकी लकीरों पर घिसा और जब लगा कि उसकी पंखुड़ियाँ खुल गयी है तो धीरे से अपने सुपाड़े को चूत में बैठाया. शालिनी साँस रोके उसके इस उपक्रम को देख रही थी. और जब गौतम को लगा कि उसका लंड अच्छे से बैठा है तो उसने दबाव बनाया और लंड को कोई ३-४ इंच तक अंदर धकेल दिया. शालिनी अब भी कामुक और प्रेम भरी आँखों से उसे ताक रही थी. अचानक उसके चेहरे के भाव आश्चर्य और कुछ दर्द के मिले जुले भावों में बदल गए. गौतम ने एक लम्बे और शक्तिशाली झटके से अपना शेष लंड उसकी चूत में जो उतार दिया था.

गौतम अब ठहरने वाला नहीं था. उसे उसकी दादी ने हरी झंडी दिखा दी थी और अगर अब उसे अपने निर्णय पर पुनर्विचार की इच्छा भी थी तो तीर धनुष से छूट चुका था. गौतम अपने लंड की पूरी लम्बाई का प्रयोग कर रहा था. उसकी गोलाई अच्छी होने से शालिनी की बूढी और खुली चूत को भी बहुत सट के जा रहा था. कुछ लोग शालिनी की चूत भोसड़ा कहते, पर उनके लंड गौतम जैसे नहीं थे. और ये भी था कि पिछले ३ सालों में उसकी चुदाई कम और चुसाई ज्यादा हुई थी. शालिनी अब इस पलंगतोड़ चुदाई से विचलित नहीं थी, पर उसकी बूढी हड्डियां इन धक्कों से चरमरा रही थीं. उसने गौतम के सीने पर हाथ रखकर उसकी गति कम करने का प्रयास किया.

पर ये असंभव था. गौतम ही स्वयं को रोकने में असमर्थ था. शालिनी की चूत भी उसके शरीर का साथ नहीं दे रही थी और लगातार पानी छोड़ रही थी. इसके कारण घर्षण कम हो गया और गौतम का लंड अब और सरलता से गंतव्य को भेदने में जुट गया. अंततः शालिनी ने भी अपनी चूत की गुहार सुनी और आनंद के झोंकों में बहने लगी.

शालिनी: “क्या राक्षस की तरह चोद रहा है. दादी हूँ मैं तेरी, थोड़ी तो दया कर.”

गौतम: “दादी मैंने आपसे पूछा ही था, आपने ने ही ऐसे चुदने की इच्छा की थी. और आपकी चूत तो इतना पानी छोड़ रही है जैसे नदी हो.”

शालिनी, अपनी कमर को अब उठाकर गौतम की चुदाई में लिप्त हो गई.

शालिनी: “बात मेरी चूत की नहीं. सच कहूं तो मेरी जो इच्छा थी वही पूरी हो रही है और बहुत आनंद आ रहा है. बात मेरी इन बूढी हड्डियों की है, जो इस उम्र में ऐसे व्यायाम की अभ्यस्त नहीं हैं.”

गौतम ने ये सुनकर अपनी गति धीमी कर ली और शालिनी के होंठ चूमकर बोला, “अरे दादी, एक बार ये हड्डियां खुल गयीं तो फिर आपको हर दिन ऐसी ही चुदाई चाहिए होगी. और जकड़ी हुई हड्डियों को खोलने के लिए ऐसी ही चुदाई करते हैं.”

गौतम ने फिर अपनी गति बढ़ा दी. शालिनी अब इतना झड़ चुकी थी कि उसकी चूत अब जैसे सूखने लगी. गौतम का लंड भी अब इस बढ़ते हुए घर्षण को पहचान गया और कुछ ४ मिनट की चुदाई के बाद अपना माल छोड़ने को उत्सुक हो उठा.

गौतम: “दादी, कहाँ निकालूँ?”

दादी “मेरे मुंह में छोड़. पता तो चले की अपने बाप से कितना मिलता है तेरा स्वाद.”

गौतम ने धक्के हल्के किया और फिर अपने लंड को बाहर निकला और शालिनी के मुंह पर लगा दिया. शालिनी ने उसे अपने मुंह में लेकर पूरी शक्ति से चूसना प्रारम्भ कर दिया. और बस कुछ क्षणों में गौतम के अपना लावा उसके मुंह में भर दिया. पूरा पानी शालिनी ने फिर से पी लिया. गौतम आकर दादी के साथ लेट गया.

गौतम: “दादी, पहले भी तो तुमने मेरे रस का स्वाद लिया था तब तो पता लग गया होगा की मेरे और पापा के स्वाद का अंतर. फिर अब ऐसा क्यों?”

शालिनी: “वो पहले का स्वाद था और ये बाद का. तू नहीं समझेगा इसका अंतर. अपनी माँ से पूछना कभी. या अनन्या से.”

गौतम चौंक कर: “अनन्या से?”

शालिनी उसके होंठ चूमकर और सीने पर अपना सिर रखकर बोली, “हाँ. जैसे तू आज मेरे बिस्तर में है, वैसे ही अनन्या तेरे पापा के बिस्तर में है. तेरी माँ आज उसके कौमार्य का भोग अपने पति को लगा रही है.”

गौतम: “वाओ!”

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अदिति का कमरा:


अजीत ने अनन्या को बिस्तर पर लिटाया और अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच डाल दिया. चारों ओर उसे चूमते हुए उसने एक लम्बी साँस ली और अनन्या की अब तक अक्षत योनि की महक ली. आज के बाद ये असंभव हो जायेगा. उसने चेहरा उठाकर अदिति को बुलाया.

अजीत: “लो अपनी बेटी की कुंवारी चूत की सुगंध ले लो. और चाहो तो स्वाद भी चख लो. आज के बाद ये ऐसी न रहेगी.”

अदिति आगे झुकी और उसने भी एक साँस में अपनी बेटी की सुगंध भर ली. फिर उसने उसकी चूत पर अपनी जीभ से चाटा और पंखुड़ियां खोलकर अपनी जीभ अंदर डालकर अंदर का स्वाद चखा. फिर वो हट गई.

अदिति: “आज ये तुम्हारी ही है. पर मुझे ये अवसर देने के लिए धन्यवाद.”

अजीत ने अब अपने मुंह और जीभ से अनन्या की संकरी चूत को प्यार करना प्रारम्भ किया. और कुछ ही समय में अनन्या बिस्तर पर कसमसा रही थी. अजीत की जीभ उसकी चूत के हर कोने को खंगाल रही थी. अब उसके कॉलेज वाले दोस्त उसे बचकाना लग रहे थे. अजीत का पारखी और अनुभवी मौखिक आक्रमण उसके जीवन का प्रथम जीवंत सेक्स का अनुभव था. यही कारण है कि पूरी सृष्टि इस एक कार्य के लिए पागल है. अनन्या की कमसिन चूत अब पानी बहा रही थी और अजीत उसके बहाव में गोते लगते हुए उस जल से अपनी प्यास बुझा रहा था. एक ओर अदिति भी अपने तौलिये को फेंककर अपनी चूत को बाहर से मसल रही थी.

अचानक अनन्या का शरीर अकड़ गया और उसके कूल्हे और पैर कांपने लगे. उसकी चूत से एक लम्बी धार निकली जो अजीत के मुंह में समा गई. आज उसका पहला स्त्राव हुआ था. और फिर उसका शरीर ढीला पड़ गया.

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शालिनी का कमरा:


गौतम: “दादी, क्या मुझे भी अनन्या?”

शालिनी: “बच्चू, पहले मुझे और अपनी माँ को ही संभाल ले, ज्यादा लालच में न पड़। “

गौतम: “अरे दादी, मैं तो इसीलिए पूछ रहा था कि बाहर की गतिविधियाँ बंद करने की आवश्यकता तो नहीं. जब घर में ही…”

शालिनी: “बात तो तेरी सही है, कुछ दिन ठहर के देख.”

गौतम: “और राधा?”

शालिनी: “हम्म्म लगता है तू घर की किसी औरत को छोड़ने वाला नहीं. चल मैं उससे बात करुँगी. परन्तु उसके विषय में विश्वास के साथ नहीं कह सकती. क्योंकि किसी ने इस ओर कोई प्रयास नहीं किया. पता नहीं अब तक अनन्या का कौमार्य टूटा भी होगा या नहीं.”

इसी उधेड़बुन में दादी और पोता सोचते हुए निद्रामग्न हो गए.

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अदिति का कमरा:


और अब समय था अनन्या के कौमार्य के विच्छेदन का. अदिति ने बाथरूम में जाकर वहां से एक वेसलीन की शीशी लाई। पहले उसने अजीत के लंड को मुंह में लेकर अच्छे से चूसा और चाटकर कुछ हद तक गीला किया. पर एक कुँवारी चूत के लिए और चिकनाई की आवश्यकता तो समझते हुए, वेसलीन लगाकर उसे पर मला. फिर थोड़ी वेसलीन और लगाई और अजीत से कहा कि वो अपने लंड पर स्वयं ही मले.

फिर उसने अनन्या की कच्ची चूत पर वेसलीन लगाई और उसे एक ऊँगली से उसके अंदर भी मला। इतने में ही अनन्या एक बार झड़ गई. वो बहुत उत्सुक थी और रुक न पाई. अदिति ने उसके छोड़े हुए पानी और वेसलीन से उसकी चूत के अंदर अच्छे से मालिश की. जब उसे लगा कि अब वो अगले पड़ाव के लिए तैयार है, तो वो उठी और अजीत की ओर मुड़ी।

अदिति: “आपकी बेटी अब फूल बनने के लिए उत्सुक है. आइये और इसको अपने जीवन का वो सुख दीजिये, जिससे वो अभी तक अनिभिज्ञ रही है.”

अजीत ने अपने तने हुए लंड को अनन्या की चूत के ऊपर रगड़ा जिस कारण अनन्या कुनमुमनाने लगी.

अजीत हँसते हुए बोला, “कुछ ज्यादा ही बेचैन हो रही हो.”

अदिति बोल पड़ी, “क्यों न हो, उसका सपना जो पूरा होने जा रहा है. चलिए और आगे बढिये.”

अजीत ने अपने लंड को अनन्या की चूत में फंसाया और हल्के दबाव के साथ उसकी चूत की कोमल पंखुड़ियों को चीरते हुए सुपाड़े को अंदर प्रविष्ट कर दिया. अनन्या सिहर उठी. इतने दिनों का उसका सपना आज पूरा जो होने जा रहा था.

“पापा, थोड़ा जल्दी करो न, प्लीज.”

“नहीं बेटी, उसमें तुम्हे दर्द होगा. मैं जानता हूँ मुझे क्या करना है.” अजीत बोलते हुए अपने लंड को दबाते हुए अंदर धकेल रहा था.

एक घोंघे की गति से बढ़ाते हुए कुछ समय में लगभग ५ इंच लंड अनन्या की मखमली चूत में समा चुका था. अनन्या को अभी तक किसी प्रकार का दर्द नहीं हुआ था. अजीत ने अदिति को देखा और अदिति ने वस्तुस्थिति भांपते हुए अनन्या के पास बैठकर उसके हाथ अपने हाथों में ले किये और उन्हें सहलाने लगी. अनन्या समझ गई कि अब सच का सामना होने वाला है. उसने अपने मन को पक्का किया और अपने पापा को आँखों से संकेत किया कि वो आगे बढ़ें.

इस बार अजीत ने अपने लंड को बाहर खींचा और इस बार थोड़ा तेजी से अंदर बढ़ाया. पर लंड पिछली गहराई पर ही रुक गया, उसे अनन्या के कौमार्य की झिल्ली रोक रही थी. अजीत ने उसी क्रम को दोहराते हुए हर बार अपनी गति को बढ़ाते हुए लंड को अंदर और फिर बाहर किया. और फिर एक बार ही अचानक उसने एक तगड़ा धक्का लगाया, और अनन्या का शरीर अकड़ गया. उसने अदिति के हाथ को जोर से अपने हाथ में दबाया। इसके पैर छटपटाने लगे और आँखों में आँसू आ गए. उसकी सील टूट चुकी थी, उसके पापा का लंड अपने अंतिम अवरोध को तोड़कर आगे बढ़ चुका था.

अदिति उसके हाथ और माथे को सहला रही थी. अजीत रुका हुआ था और उसने झुककर अनन्या के होंठ चूमे और बाप बेटी एक दूसरे को चूमने लगे. जब अजीत को लगा कि समय सही है, उसने अपने लंड की चहलकदमी आरम्भ कर दी. अब उसका लंड अनन्या की चूत में हर बार थोड़ा बढ़ कर जा रहा था. कुछ ही समय में लंड की पूरी लम्बाई अनन्या की गहराई नाप रही थी. अनन्या को भी अब दर्द के स्थान पर एक नई संवेदना का अनुभव हो रहा था. ये हर उस अनुभव से अलग था जो उसने अपने जीवन में किये थे. कुछ अलग, कुछ मीठा सा. उसे लगा जैसे उसके शरीर की सभी कोशिकाएं उसके इस अंग में समा गई थी.

उसकी नई खुली चूत अब पानी से भरने लगी थी. अजीत के धक्कों से अब छप छप की ध्वनि आने लगी थी. अदिति ने अजीत की ओर प्रेम भरी आँखों से देखा और उसके होंठ चूम लिए. फिर उसने मुड़कर अपनी बेटी के होंठों पर अपने होंठ रखे. माँ बेटी एक प्रगाढ़ चुम्बन में लीन हो गए. अजीत अब आसानी से अपने लंड को अनन्या की चूत में पेल रहा थे, चूत से छूटता रस उसके प्रयास को सरल बना रहा था. पर इतने संकरे रास्ते के कारण अब उसका अधिक देर तक ठहरना संभव नहीं था. उसने अदिति को संकेत किया कि वो झड़ने वाला है.

अदिति ने अनन्या को बताया तो अनन्या ने कहा कि अंदर ही छोड़ो, वो गोली ले लेगी पर बाहर नहीं निकालें. ये सुनकर अजीत के लंड ने अपनी पिचकारी खाली करना शुरू कर दी और कुछ ही क्षणों में अनन्या की चूत में अपना पूरा रस डालकर अलग हो गया.

अदिति: “कैसी लगी मेरी बेटी को अपनी पहली चुदाई?”

अनन्या : “मम्मी, मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मैं बादलों में तैर रही हूँ. इतना मजा आता है चुदाई में? मुझे नहीं लगता कि अब मैं एक दिन भी इसके बिना रह पाऊंगी.”

अदिति: “मुझे ख़ुशी है कि तुझे इतना आनंद आया. ला अब मैं तेरी चूत साफ कर दूँ.”

ये कहते हुए अदिति ने अनन्य की जांघों को फैलाया और झुककर उसकी चूत में अपना मुंह लगाकर चाटने लगी. अपनी बेटी और पति के इस मिश्रित रास को भोग लगाकर उसका मन उल्लास से भर गया. उसके अच्छे से चाटकर अनन्या की चूत को साफ कर दिया. फिर उसके फैले हुए पांवों के बीच खिली हुई पाव के सामान फूली हुई लाल गुलाबी चूत को देखकर अजीत और अदिति ने एक दूसरे को एक संतोष भाव से देखा.

अदिति ने अनन्या को आज उनके ही साथ सोने का आमंत्रण दिया और तीनों नंगे ही एक दूसरे की बाहों में सो गए. आज घर में सब सो रहे थे और सब अपने सपनों में एक ही दृश्य की कल्पना कर रहे थे. और वो था उन्मुक्त सेक्स का वातावरण। जीवन के नए आनंद के द्वार खुल चुके थे.

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नया दिन नया प्रारम्भ:


सुबह ६ बजे सब जाग चुके थे. गौतम ने शालिनी को एक बार बहुत प्यार से चोदा और फिर कपड़े पहनकर अपने कमरे में चल दिया. उसे ये रात जीवन पर्यन्त याद रहने वाली थी. उधर अदिति ने भी अनन्या की चूत को चूसकर एक बार स्खलित किया और फिर अजीत ने उसे पूरे प्यार के साथ एक बार फिर चोदा। फिर अनन्या अपने कपडे पहनकर अपने कमरे की ओर चल दी. दोनों भाई बहन अपने कमरे में पहुँचने के पहले एक दूसरे से भिड़ गए. और दोनों को ये समझने में देर नहीं लगी कि वे अपने कमरे में क्यों नहीं थे.

गौतम: "अनन्या, तुम्हें मेरी बधाई."

अनन्या की ऑंखें फ़ैल गयीं.

अनन्या: "दादा आप?"

गौतम: "मैं दादी के साथ था. अब घर में सब कुछ बदल गया है. चलो तैयार होकर मिलते हैं."

अनन्या ने सिर हिलाया और दोनों अपने अपने कमरे में चले गए.

जब सब लौट कर बैठक में आये तो घर में एक अलग ही वातावरण का अनुभव किया. अनन्या अजीत की ओर ऑंखें चुराकर देख रही थी. और गौतम शालिनी को ताक रहा था. अजीत और अदिति ने इस बदले हुए समीकरण को समझ लिया और सब कुछ वापिस पहले जैसा करने का प्रयत्न करने लगे. शालिनी ने इसे समझ लिया. घर में अब कोई असहजता नहीं होनी चाहिए थी.

शालिनी: “अदिति, राधा कहाँ है.”

अदिति: “अपना काम करने के बाद अपने कमरे में गई है. अब बारह बजे ही लौटेगी. कुछ काम है क्या?”

शालिनी ने कोई उत्तर नहीं दिया, उसके मन में एक विचार आया था और वो उठी और किचन और घर के दरवाजे अंदर से लॉक कर दिए.

शालिनी: “नहीं, कोई काम नहीं है, पर हम सब जो बातें अब करने वाले हैं उसका सुनना उचित नहीं होगा.”

ये कहते हुए वो गौतम की बगल में बैठ गयी.

शालिनी: “हम सबने कल एक नए जीवन का आरम्भ किया है. सच ये भी है कि आज जो हमारे बीच में कुछ असहजता है, मानो सब एक दूसरे से डरे हुए हैं. पर मेरे विचार में ये सही नहीं है.”

सब चौंक गए.

शालिनी: “हमने पारिवारिक प्रेम को बढ़ावा ही दिया है. जीवन में उन्माद और रोमांच होना चाहिए. अब मेरे विचार से गौतम और अनन्या ही एक दूसरे से अंतरंग नहीं हुए हैं. पर इसमें अधिक समय नहीं लगेगा. जब हम एक दूसरे से इतने अच्छे से परिचित हो चुके हैं तो शर्म किस बात की है? वर्षों पहले जब मैंने अजीत को अपने बिस्तर में बुलाया था, न मुझे तब इस बात की कोई ग्लानि हुई थी और न ही मुझे कल अपने प्यारे पोते गौतम से चुदवाने के बाद हुई है.” ये कहकर शालिनी ने गौतम के होठों पर अपने होंठ रखे और उसे एक प्रगाढ़ चुम्बन दिया.

“जब हम सब एक दूसरे से हर प्रकार से प्रेम कर सकते हैं, तो अपने आप को क्यों रोकना. मैं शेष जीवन इस प्यार और सहवास के बिना नहीं बिताना चाहती.” शालिनी ने अजीत को पास बुलाया और उसे भी एक चुम्बन दिया. “क्या तुम सबको मेरे इस व्यहवार में किसी भी प्रकार से प्रेम के सिवाय कुछ और दिखा?”

सबने न में सिर हिलाया.

“और इसीलिए, अब मैं चाहूंगी कि हम जब भी चाहें, जहां भी चाहें और जिसके साथ भी चाहें, चुदाई कर सकें. राधा इसमें बाधक बन सकती है और हमें इसका उपाय ढूँढना ही होगा. पर उसे जब तक कोई समाधान नहीं मिलता किसी भी प्रकार से कोई शक नहीं होना चाहिए. ठीक है?”

सबने इस बार हाँ में सर हिलाया.

“तो घर की सबसे बड़ी होने के नाते मैं इस उन्मुक्त जीवन शैली का शुभारम्भ करती हूँ.” ये कहते हुए शालिनी खड़ी हुई और अपने कपड़े उतारने लगी. पल भर में ही वो सबके सामने नंगी खड़ी थी. और उसके चेहरे पर किसी प्रकार की शर्म नहीं थी. बल्कि आँखों में एक नयी चमक थी.

“दादी, आप कितनी सुन्दर हो!” अनन्या के मुंह से निकल पड़ा.

“क्यों न हो, दादी जो है मेरी.” अब तक गौतम सम्भल चुका था और उसने शालिनी के नितम्ब पकड़कर उन्हें दबाते हुए अधिकार भरे शब्दों में कहा.

अजीत भी कहाँ पीछे रह सकता था. “ये मत भूलो कि ये मेरी माँ है.” शालिनी के पीछे से उसके स्तन दबाते हुए उसने भी अपना अधिकार जमाया.

“उँह” शालिनी ने अपने स्तन दबते हुए एक दबी हुई आह भरी.

अजीत: “और ये मत भूलो कि इस चूत और गांड में गौतम से पहले मेरा लंड गया था.”

गौतम: “पर डैड, मैंने अभी तक दादी की गांड नहीं मारी है. इसीलिए इस में आप इकलौते ही हैं.”

अजीत: “क्यों माँ, अपने पोते को आधा ही सुख दिया क्या?”

शालिनी: “मेरी बूढी हड्डियां चटका दीं इसने रात में. मेरी तो हिम्मत ही नहीं हुई आगे कुछ करने की. पर आज की रात गांड भी मरवा लूंगी अपने पोते से.”

अनन्या: “दादी वो सब ठीक है. पर मैं पापा और आपकी चुदाई देखना चाहती हूँ. क्योंकि इस पूरे नए समीकरण का आरम्भ वहीँ से हुआ था.”

गौतम ने भी अनन्या के स्वर में स्वर जोड़ा.

अदिति: “अब लगता है कि आप दोनों को बच्चों की बात माननी ही पड़ेगी.”

अदिति: “अनन्या, बिटिया इधर आ और अपने पापा के लंड को थोड़ा अच्छे से कसकर खड़ा कर. फिर हम उधर बैठकर इस खेल को देखेंगे.”

अनन्या को इससे अधिक निमंत्रण की आवश्यकता नहीं थी. वो तपाक से उठी और अजीत के सामने खड़ी हो गयी. फिर उसने अजीत की पैंट खोली और उसे नीचे सरका दिया.

अजीत: “रुक थोड़ा.”

ये कहकर अजीत ने पूरी पैंट निकाली और फिर अपनी टी-शर्ट और अंडरवियर भी उतार फेंका. अब वो भी अपनी माँ के समान नंगा खड़ा था.

अनन्या घुटनो के बल बैठी और लंड मुंह में लेने ही लगी थी कि अदिति बोल उठी, “कपड़े पहनकर चूसेगी? इन्हें निकाल ही दे तो अच्छा है. तेरे भाई को भी तो तेरी सुंदरता का दर्शन करने दे.”

अनन्या ने गौतम की ओर देखा और कुछ शर्माई फिर उसे अपनी माँ की कल रात की बात याद आ गयी और उसने तुरंत अपनी शर्म छोड़ी और गौतम की आँखों में देखते हुए कपड़े निकालने लगी. गौतम उसके शनैः शनैः अनावृत होते संगमरमरी शरीर को ललचाई आँखों से देख रहा था.

अदिति: “हम्म्म, ये ठीक है. पर तू क्यों बैठा टुकुर टुकुर देख रहा है. तेरी दादी की चूत तेरे सामने है. अपने पापा के लिए उसे भी अच्छे से तैयार कर दे. पर मेरे विचार से हमें शयनकक्ष में चलना चाहिए.”

गौतम ने अनन्या के ऊपर से हटाकर शालिनी की ओर देखा. “चलो, मेरी नयी गर्लफ्रेंड।”

ये कहते हुए गौतम ने शालिनी को थामा और अदिति के कमरे को ओर बढ़ चला. पीछे पीछे अनन्या और अजीत भी आ गए. अदिति ने बैठक से बिखरे पड़े कपड़े समेटे और वो भी कमरे में आ गयी और कमरा लॉक कर दिया. अनन्या ने समय व्यर्थ नहीं किया था, पर अब वो बिस्तर पर बैठी हुई अजीत के लंड को चूस रही थी. गौतम को कुछ समय लगा क्योंकि उसने भी अपने कपड़े उतारे थे. और अदिति की ऑंखें उसके लंड पर पड़ीं और उसे अपने बेटे पर गर्व हो उठा. शालिनी तो पहले से ही उत्तेजित थी, सो वो बिस्तर पर टाँगे फैलाये लेटी थी और अपनी चूत में ऊँगली कर रही थी. गौतम ने उसकी उँगलियों को हटाया और अपने मुंह को उसकी चूत पर मलने लगा.

************************

ये सब इस बात से अनिभिज्ञ थे की राधा अभी तक घर में ही थी. वो किसी काम से ऊपर छत पर गयी थी, परन्तु सब ये माने हुए थे कि वो अपने घर गयी है. राधा जब नीचे उतरी तो वो सीढ़ी पर ही रुक गयी थी, और उनकी बातें सुन रही थी. उसकी शंका सही सिद्ध हुई. बाप बेटे शालिनी को चोद रहे थे. हालाँकि गौरव ने कल रात ही पहली बार चोदा था शालिनी को. जब अजीत के लंड को चूसने के लिए अदिति ने कहा तो राधा अपने आप को रोक नहीं पायी और छुपकर झाँका. अजीत के लंड को देखकर उसका मन मचल गया. उसके पति के लंड से दुगना रहा होगा अजीत. उसकी चूत पनिया गयी.

जैसे ही सब कमरे में गए और दरवाजे को लॉक किये, राधा दबे पांव अपने घर की ओर चली गयी. वो ये भूल गयी कि शालिनी ने दरवाजा अंदर से बंद किया था राधा को अंदर न आने देने के लिए. उसने तो इसे सामान्य दिनों के समान ही समझा और क्योंकि कई बार दरवाजा खुला भी रहता था तो इस पर ध्यान नहीं दिया. अपने कमरे में जाकर वो बिस्तर पर लेट गयी और जो घर में चल रहा था उसकी कल्पना में लीन हो गयी. जब उससे सहन नहीं हुआ तो उसने अपने कपड़े उतारे और किचन से एक बैंगन लेकर अपनी चूत में डालकर उसे शांत करने लगी. उसकी आँखों के सामने अजीत का मोटा लम्बा लंड घूम रहा था. वो किसी प्रकार उससे चुदवाने की कल्पना करने लगी. पर उसके पति को इसका आभास नहीं होना चाहिए था.


क्रमशः
1144300
Aah mast chudai ka scene varan Kiya gaya hai


the-baby-isnt-going-to-look-like-you-scaled
 

prkin

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Abhi Tak Target Puura nahin hua.
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prkin

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ससुराल की नई दिशा

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