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Incest कैसे कैसे परिवार

prkin

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prkin

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आज ६ बजे ?

नहीं। आज फ्राइडे है. घर ही ६ के बाद पहुँचूँगा। ये बता देता हूँ की अभी १०५०० शब्दों के बाद भी सम्भवतः १५०० और बाकी है.
तो १० के बाद ही होगा।
 

prkin

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प्रयास जारी है. १० से ११ बजे पोस्ट हो पायेगा। नहीं तो कल १२ बजे के पहले। १२००० शब्द हो चुके हैं, अभी कुछ और बाकी है.
 
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प्रयास जारी है. १० से ११ बजे पोस्ट हो पायेगा। नहीं तो कल १२ बजे के पहले। १२००० शब्द हो चुके हैं, अभी कुछ और बाकी है.
ये १२ सुबह के ही है ना या रात के ?
 
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prkin

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कल नहीं हो पाया दोस्तों। बारिश के कारण बिजली ने बहुत तंग किया और फिर मैंने छोड़ दिया।

आज किसी भी समय कर दूंगा। पर ये बता दूँ कि ये अब तक का सबसे बड़ा अपडेट होगा।
 

Evanstonehot

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कल नहीं हो पाया दोस्तों। बारिश के कारण बिजली ने बहुत तंग किया और फिर मैंने छोड़ दिया।

आज किसी भी समय कर दूंगा। पर ये बता दूँ कि ये अब तक का सबसे बड़ा अपडेट होगा।
कुछ idea तो दे दो भाई update किस समय तक आ जाएगा आज ?
 

prkin

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कुछ idea तो दे दो भाई update किस समय तक आ जाएगा आज ?

शाम नहीं होगी, २-३ बजे तक आ जायेगा। थोड़ा ही काम बाकी है.
 
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prkin

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2.30 ke pahle.
 
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prkin

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अध्याय १७: सातवां घर - वर्षा और समीर नायक २
कुसुम का परिवार विशेष

*************************************
कुसुम का घर:


अंदर जाने के बाद चारों एक दूसरे के गले लग गए. पूरा परिवार बहुत दिन बाद साथ में आया था. सब बहुत भावुक हो चले थे. कुसुम की तो आँखों से आंसू रुक ही नहीं रहे थे. ये देखकर काम्या और कमलेश ने उसे आगे और पीछे से पकड़कर चूमना आरम्भ कर दिया और कुछ गुदगुदी करने लगे. कुसुम के आंसू थम गए और उसकी खिलखिलाहट निकल पड़ी. फिर कमलेश ने कुसुम को गोद में उठाया और उसे उठाकर अंदर ले गया और सोफे पर लिटा दिया और फिर गुदगुदाने लगा.

“बस कर, दुष्ट. मेरी जान लेगा क्या?”

कमलेश ने गुदगुदाना बंद किया और ऊपर उठकर कुसुम के होंठ चूम लिए.

“हम सबकी आत्मा तुम में है, माँ. तुम्हारी जान क्यों लेंगे. तुम्हारी तो आज रात भर जी भर कर चूत और गांड लेंगे. क्यों पापा?”

“और क्या? इतने दिन हो गए हम सबको एक साथ मिले हुए. आज तो इसे प्यार से भर देंगे.”

“और मेरा क्या होगा, पापा?” काम्या ने झूठा स्वांग रचा.

“अरे बिटिया रानी. तू तो हम सबकी राजकुमारी है. रानी की सेवा हो तो राजकुमारी कैसे उससे वंचित रहेगी? और सुनो, भाईसाहब ने कल की छुट्टी दे दी है तुम्हारी माँ को. मुझे कुछ समय के लिए बुलाया है, काम की प्रगति समझने के लिए, पर कहा है कि कुसुम अपने बच्चों के ही साथ रह ले आज. और कल सबको साथ ही बुलाया है.”

ये सुनकर कमलेश ने फिर से कुसुम को गुदगुदी की, “देख ले माँ, अब तो तेरा पूरा ध्यान हम पर ही रहना चाहिए. बड़े दिन बाद मिली हो, तो आज पूरी रात और दिन तुम्हारा भोग लगाएंगे.”

“मैंने कब मना किया है. देख मुई कैसे बह रही है शाम से, जब से पता लगा कि तुम तीनों आ रहे हो.” ये कहकर कुसुम ने अपने गाउन को ऊपर उठाया और अपनी चूत की फांके फैलाकर दिखाया। सच में चूत इतनी गीली थी कि जैसे कोई झरना हो. कमलेश ने अपनी नाक उसपर लगाकर एक गहरी सांस ली.

“उन्न्ह क्या मदमस्त खुशबू है माँ तेरी चूत की. सच में इतने दिनों से इसके लिए तड़प रहा था. इस बार तू हमारे साथ चलना कुछ दिनों के लिए.”

“वो बाद में देखेंगे, अभी तो ये देख कि उस कमीनी का बहना कैसे बंद होगा.” कुसुम ने मचलते हुए कहा.

तभी संतोष बोल पड़ा, “अरे सब कुछ यहीं करना है क्या. चलो बिस्तर पर. मैं भी तो अपनी राजकुमारी का स्वाद ले लूँ, वहां जल्दी में बस चोदकर ही निकल लिए थे.”

ये सुनकर सबने सामान उठाकर अपने अपने कमरे में रखा. काम्या और कमलेश का कमरा एक ही था. संतोष ने अपने और कुसुम के कमरे में अपना बैग रखा और बाथरूम में घुस गया. मुंह हाथ धोने के बाद बाहर आया तो अभी तक कमलेश और काम्या नहीं आये थे.

“कुछ पीयेगी?”

“जो तुम पिला दो.”

संतोष ने बैग में से एक बोतल निकाली और किचन से दो ग्लास और खाने का सामान ले आया. इसके बाद संतोष ने दोनों के लिए पेग बनाया और पीने लगे. तभी कमलेश और काम्या भी आ गए. दोनों ने मुंह हाथ धोकर अपने कपड़े बदल लिए थे. शराब देखकर कमलेश के मुंह में पानी आ गया. संतोष ने उसके भाव देख लिए और संकेत में पूछा. कमलेश ने हामी भरी.

संतोष: “तू भी लेगा क्या कमलेश?”

कमलेश: “जी, पापा. और अगर आज्ञा हो तो काम्या भी थोड़ी सी ले लेगी.”

कुसुम: “ये क्या कर रहे हो. बच्चों को ये सब क्यों पिला रहे हो?”

संतोष: “अरे कुसुम, थोड़ी पीने में कोई बुराई नहीं होती. बस आदत नहीं होनी चाहिए. और इससे ये भी होगा कि अगर कोई पिला भी देगा तो इन्हें अधिक असर नहीं होगा.”

कुसुम: “अब आप जानो और आपका काम. पर मुझे ये ठीक नहीं लगता.”

संतोष: “तेरी चूत के रस से अधिक नशा नहीं है इसमें.”

कुसुम को छोड़ तीनों हंस पड़े. अंत में कुसुम ने भी मजाक को समझा और उनकी हंसी में जुड़ गई.

“माँ, अब भी बह रही है, या कुछ रुकी?” कमलेश ने कुसुम ने हँसते हुए पूछा.

“कैसे रुकेगी, जब तक रोकने के लिए कोई नीड़ नहीं डालेगा.”

“दिखा तो सही.”

पर इस बार कुसुम ने केवल अपनी नाइटी नहीं उठाई, बल्कि खड़े होकर पूरी ही उतार दी. उसका नंगा सांवला शरीर कमरे के रौशनी में नहा रहा था. उसने अपने दोनों पांव फैलाकर अपनी चूत की फांके खोलीं तो उसपर चमकती नमी किसी मोती की बूंदों के सामान चमक रही थीं. उसने अपनी चूत के ऊपर हाथ चलते हुए अपनी ऊँगली अंदर डाली और फिर उसे निकालकर अपने मुंह में लेकर चाट लिया.

“हम्म्म, अभी तक तो बहे जा रही है.”

कमलेश को अब किसी और निमंत्रण की आवश्यकता नहीं थी. वो वैसे भी कई दिनों से अपनी माँ से दूर था और आज उसने इस दूरी को समाप्त करने का प्रण लिया था. उसके कपड़े पलक झपकते ही एक ओर जाकर गिर पड़े. उसने अपने कदम बढ़ाये और कुसुम के सामने घुटनों के बल बैठकर, उसके नितम्बों को अपने हाथ में लिया और अपना मुंह उसकी बहती हुई चूत के मुहाने पर रह कर जोर से मुंह से खींचा जैसे आम को चूसते है. कुसुम का शरीर छटपटा गया. उसकी चूत ने ये जान कर कि उसकी देखभाल करने कोई आ गया है, स्वागत में और ढेर सारा रस उगल दिया. कमलेश ने इसे भी अमृत समझ कर सेवन किया.

कमलेश खड़ा हो गया और उसने कुसुम को बहुत प्यार के साथ बिस्तर पर लिटाया, कुछ इस प्रकार कि उसके पांव नीचे झूल रहे थे और कूल्हे बिस्तर के कोने पर थे. इस प्रकार की स्थिति ने वो अब उसके सामने बैठकर मन भर कर अपनी माँ की चूत से प्यार दुलार कर सकता था. कनखियों से उसने देखा कि काम्या ने भी अपने वस्त्र निकाल दिए थे. और ये समझा जा सकता था कि उसके पिता भी पीछे नहीं रहे होंगे. उसका अनुमान सही सिद्ध हुआ जब काम्या भी कुसुम के बगल में उसी आसन में आ लेटी और उसने अपने बगल में अपने पिता की उपस्थिति अनुभव की.

“पापा, आपको किसकी चूत अधिक मीठी लगती है.” कमलेश ने पूछा.

“बेटा, अभी तू इतना बुद्धिमान नहीं हुआ कि मेरी लड़ाई लगवा सके. जो मेरे सामने होती है, मुझे वही मीठी लगती है. क्यों काम्या?”

“पापा, इसकी बातों में मत पड़ना. पता नहीं क्यों इसे अब चुदाई के समय बातें करने की नयी आदत पड़ गई है.”

सब हंसने लगे और कमलेश ने कुसुम की बहती चूत के झरने में अपना मुंह डाला और पीने में जुट गया. एक बार अपनी प्यास बुझाने के बाद उसने चूत को बहुत प्यार से चाटने का कार्यक्रम आरम्भ किया. संतोष तो पहले ही काम्या की चूत को चाटकर उसे उकसा रहा था. कुसुम ने अपने एक हाथ से काम्या के मम्मे पकडे.

“भरने लगे हैं तेरे ये मम्मे।”

“दिन रात आपका लाडला जो चूसता और दबाता रहता है. और तो और अविनाश (काम्या का बॉयफ्रेंड) भी अब जब अवसर मिले इनसे खेलता है.”

“कैसा लड़का है ये अविनाश?”

“ठीक है, टाइम पास के लिए. चोदना नहीं आता उसे ढंग से. पर चूत और गांड चाटना सीखा दिया है मैंने. और तो और कई बार तो कमलेश से चुदवाने के बाद भी मैं उससे अपनी चूत चटवाई हूँ. उसे पता भी नहीं लगा कि वो केवल मेरा नहीं कमलेश का भी पानी पी रहा है.”

“ये गलत है, काम्या. इस प्रकार किसी को धोखा नहीं देते. आगे से सफाई करने के बाद जाया कर. और अगर उसके प्रति गंभीर नहीं है, तो उसे छोड़ दे. किसी की भावनाओं से नहीं खेलते.”

“अब कौन बातें कर रहा है?” कमलेश ने कुसुम की चूत से सिर उठाकर पूछा.

“उई माँ. पकड़ी गई.” काम्या बोल पड़ी.

“हम इतने दिन बाद साथ हैं, इसीलिए बातें समाप्त नहीं हो रहीं. कुछ ऐसा करें कि बोलती बंद हो जाये.” संतोष ने प्रस्ताव रखा.

“ठीक है पापा, पर जब तक मेरा मन माँ के रस से भर नहीं जाता मैं और कुछ भी नहीं करूँगा.” ये कहते हुए कमलेश ने कुसुम की चूत की फाँको को फैलाया और अपनी जीभ से अंदर का स्वाद लेने लगा.

देखा देखी संतोष ने भी यही किया पर काम्या बीच में टोक दी.

“पापा, मुझे आपका लंड चूसना है अब. वहां घर में सीधे चुदाई पर आ गए थे. पर आपका लंड पीने का बहुत मन है.”

संतोष ने बेमन से अपना चेहरा काम्या की चूत से अलग किया और खड़ा हो गया. काम्या बिस्तर पर बैठ गई और उसने संतोष के लंड को मुंह में लेकर चाटने और चूसने लगी. कमलेश ने कुसुम की चूत में अपनी जीभ की बढ़त बनाये रखी और भग्नाशे पर भी केंद्रित हो गया. हल्के हाथों से उसे सहलाते हुए उसने उसे बीच बीच में मसलते हुए कुसुम की चुदास को और भड़का दिया, पर अति तो तब हुई जब उसने कामरस से भीगी एक ऊँगली कुसुम की गांड में डाल दी. ऊँगली के अंदर जाते ही कुसुम का शरीर अकड़ गया और वो भरभरा कर झड़ गई. उसके मुंह से निकलती सिसकियाँ और दबी हुई आनंद की चीखें उसके इस कामोत्कर्ष की साथी थीं.

संतोष का भी लंड अब भली भांति तन चूका था. इस बार भी वो काम्या के मुंह में नहीं झड़ना चाहता था. उसने काम्या को बिस्तर पर सीधा लिटाया और उसके पैरों के बीच स्थान बनाते हुए उसकी चूत पर अपना लंड रखा.

“पापा, इस बार देर तक चोदना. और जोर जोर से चोदना।’

“जैसी मेरी राजकुमारी चाहे.” ये कहते हुए संतोष ने एक ही झटके में अपने लंड को काम्या की गर्म चूत में उतार दिया. काम्या की एक संतुष्ट कराह निकली.

जब कुसुम कुछ शांत हुई तो संतोष से बोली, “आपका बेटा बहुत शरारती हो गया है. माँ की गांड में ऊँगली करने लगा है.”

संतोष ने भी उसी मजाक में उत्तर दिया, “जहाँ उसका लंड होना चाहिए, वहाँ ऊँगली कर रहा है. शरारती नहीं मुझे तो बेवकूफ लगता है.”

अब माँ की ममता जाग गई, “ख़बरदार, जो मेरे बेटे को बेवकूफ कहा तो. ये गांड जब वो चाहे तब मार सकता है. हैं न कमलेश?”

“बिल्कुल, माँ की गांड में जो मजा है वो कहीं और नहीं.”

“ला बेटा, अपना लंड ला, मुझे थोड़ा इसका स्वाद लेने दे. फिर एक बार मेरी चूत में डालकर मेरी प्यास मिटा दे.”

कमलेश खड़ा हो गया और कुसुम ने बैठते हुए उसके लंड को अपने मुंह से प्यार करने लगी. कमलेश का जवान लंड वैसे ही तना हुआ था, उसकी माँ के परिश्रम ने उसे फटने की स्थिति में ला दिया.

“माँ अब और नहीं, अब मैं आपको चोदना चाहता हूँ. इतने दिन से आज की प्रतीक्षा में था.”

“आ जा मेरे लाल.” ये कहकर कुसुम बिस्तर पर फ़ैल गयी और अपने पांव फैलाकर अपनी चूत को अपने हाथों से खोल दिया.”

कमलेश ने अपना लंड ऊपर रखकर, अपनी माँ को प्यार से देखते हुए एक ही धक्के में अपने लंड को अपने जन्म स्थान में डाल दिया.

“माँ, सच में तेरी चूत जैसा सुख कोई और नहीं देता मुझे.”

“कितनी चोद ली हैं तूने?”

“अरे माँ, इसकी बड़ी सारी गर्लफ्रेंड हैं. और तो और इसने कई आंटियों को भी अपना दोस्त बनाया हुआ है. हर दूसरे दिन किसी न किसी को चोदकर ही आता है.”

“सच बोल रही है ये?” कुसुम ने पूछा.

“बात मत करो, माँ. इतने दिन बाद नीचे आयी हो, आनंद लो.” ये कहकर कमलेश अपने लंड की पूरी लम्बाई से कुसुम को चोदने लगा.

साथ में उसके पिता भी उसकी बहन को उसी शक्ति से चोद रहे थे. यात्रा की थकान और रात का ढलता समय संतोष पर अब दिखने लगा था. उसके धक्कों की तीव्रता कम हो चली थी. फिर जैसे ही काम्या अपनी योनि को संकुचित करने लगी, उसके शरीर ने उसका साथ छोड़ दिया और वो काम्या की चूत में झड़ गया. काम्या ने उठकर संतोष के लंड को मुंह से साफ किया।

“पापा, आपके लंड का स्वाद मेरी चूत से निकलकर बहुत स्वादिष्ट हो जाता है.”

उधर, अब कमलेश से भी ठहरना भारी पड़ रहा था.

“बेटा, अगर होने वाला है तो रोक मत. पूरा दिन पड़ा है हमारे पास और इतने दिन है.”

ये सुनकर कमलेश ने रुकने का प्रयास छोड़ दिया और उसने भी कुसुम की चूत को अपने रस से लबालब कर दिया. कुसुम ने उठकर उसके लंड को चाटकर साफ किया और चूम लिया.फिर वो काम्या की ओर मुड़ी और काम्या के मुंह पर अपनी चूत रखकर काम्या की चूत से अपने पति का अंश पीने लगी. काम्या ने भी कुसुम की चूत से अपनी भाई के रस को पिया और फिर दोनों माँ बेटी सीधी होकर एक दूसरे से लिपटकर चूमा चाटी करने लगीं.

संतोष और कमलेश ने अपने लिए एक पेग बनाया और एक ही घूँट में पी कर लेट गए. कमलेश ने कुसुम को बाँहों में ले लिया और संतोष ने काम्या को. कुसुम में नींद में जाने के पहले घड़ी देखी तो सुबह के ६ बजने को थे. कुछ ही समय में वे सब निद्रा में लीन हो गए.

*************************


वर्षा का घर:


जहाँ कुसुम के घर में लोग सोने जा रहे थे, यहाँ घर में एक एक करके सब उठ रहे थे. सभी अपने कमरों से निकलकर बैठक में आ गए. सुलभा और अंजलि ने सबके लिए चाय बनाई और थोड़ा कुछ हल्का नाश्ता. पूरा नाश्ता तो ८ बजे के बाद ही होना था. समीर, पवन और जयंत समाचार पत्र पड़ने में व्यस्त थे. राहुल बैठ कर कोई बही-खाता देख रहा था. फिर वो उठकर सबके बीच में बैठ गया.

“मैंने बुक्स को देखा है. मुझे लगता है कि चूँकि इस साल हमें अच्छा लाभ मिलने वाला है, तो क्यों न हम अपने कामगारों के लिए कुछ अच्छा बोनस दे दें. पर इसे समय पर देना भी आवश्यक है.”

“तुम्हारे गणित से कितना बोनस देना ठीक है.?

“मैंने इसे तीन भागों में बाँटा है. एक नगद बोनस, जो उनके बैंक में जायेगा. दूसरा एक जीवन बीमा, जिसकी हर साल हम भरपाई करेंगे, जब तक वो हमारे साथ रहेंगे. और तीसरा एक स्वास्थ्य बीमा, जो सबको कम से कम २ लाख तक का खर्चा वहन करेगा.”

“और इसमें खर्चा कितना आएगा?”

“मैं नगद में २ महीने का वेतन देना चाहूँगा। इसमें लगभग २० लाख का खर्च आएगा. पर इससे हमारे कर का भी बोझ कम होगा. जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा में लगभग १० लाख का व्यय रहेगा. कुल लगभग ३० लाख. कर कम करने के बाद समझिये २७ लाख के आसपास. इसके बाद भी हमारा कुल लाभ २ करोड़ से अधिक रहेगा.”

“मुझे कोई आपत्ति नहीं है. जयंत और तुम्हें ये निर्णय लेना है. वैसे संतोष भी आएगा कुछ समय बाद उससे भी पूछ लेना.” समीर ने कहा.

“उसके लिए अलग प्रावधान किया है. उसका वेतन जयंत और मैंने १ लाख महीना करने का निश्चय किया है. वैसे भी अब उसके दोनों बच्चों की भी नौकरी लग चुकी है. तो अब वो कुछ पैसा बचाने में भी सफल होगा.”

राहुल बोला, “पापा, क्या आप किसी प्रकार से कमलेश की नौकरी अपने ही शहर में नहीं लगवा सकते क्या? इससे हम लोग जब नहीं होंगे तो आप सबको कुछ सहायता रहेगी.”

“देखता हूँ, मुझे नहीं लगता इसमें कोई समस्या आनी चाहिए, वेतन कुछ कम हो सकता है, परन्तु फिर भी उसके व्यय कम होंगे. मैं आज अपने एक मित्र से बात करता हूँ. पर कमलेश या उनके परिवार में किसी को ये पता न लगे कि हमने उसकी सहायता की है. इससे उसका मनोबल टूटेगा.”

“ठीक है, पापाजी.” राहुल ने कहा. वो उठकर अपने कमरे की ओर जाने लगा तो समीर ने पुकारा.

“राहुल, यहाँ आओ जरा.”

जब राहुल उसके पास पंहुचा तो समीर ने खड़े होकर उसे गले से लगा लिया.

“मुझे तुम पर गर्व है. जो अपने साथ और अपने लिए काम करने वालों का ध्यान रखता है, ईश्वर उसका भी ध्यान रखता है. मुझे इस बात की ख़ुशी है कि अंजलि ने तुम्हारे जैसा पति चुना.”

अंजलि और सुलभा जो कमरे में अभी ही आये थे सुनकर भावविभोर हो गए. सुलभा की आँखों में प्रसन्नता और गर्व के आंसू थे और अंजलि की आँखों में प्यार के. अंजलि ने मुड़कर सुलभा को गले लगा लिया. सुलभा ने उसका माथा चूमा और उसका हाथ पकड़कर सबके सामने आ गई.

“अगर अंजलि ने सही पति चुना है भाई साहब तो मुझे ये कहना होगा कि राहुल उससे भी अधिक भाग्यशाली है जिसे अंजलि जैसी पत्नी और आपके जैसा परिवार मिला.”

इस भावपूर्ण प्रकरण के साथ नायक परिवार के दिन का शुभारम्भ हुआ.

नहा धोकर सबने नाश्ता किया और इसमें ही दस बज गए. आज सबका क्लब जाने की योजना थी. वर्षा ने बताया कि तीनों स्त्रियां क्लब जा रही हैं. इस पर समीर ने तीनों स्त्रियों से वहीँ ४ बजे मिलने के लिया कहा. महिलाएं कुछ देर बाद निकल गयीं. समीर संतोष की प्रतीक्षा कर रहा था. कुछ ही देर में संतोष भी आ गया. उसकी लाल आँखों से लग रहा था कि उसकी नींद अभी पूरी नहीं हुई थी.

संतोष को बैठाकर समीर, राहुल और जयंत ने खेतों की स्थिति जानी। सब कुछ अच्छा चल रहा था. इसके बाद राहुल ने अपने बोनस के प्रस्ताव को संतोष से साझा किया. संतोष ने इस पर सहमति जताई पर कुछ छोटे मोटे बदलाव भी प्रस्तावित किये. सबकी सहमति के बाद जयंत ने इस पर काम करने का विश्वास दिलाया. इसके बाद जयंत ने संतोष को उसके नए वेतन के बारे में बताया. संतोष इस पर सहमत नहीं था. उसका कहना था कि उन्हें हर प्रकार का सुख और सुविधा उनके पास है तो इसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी. परन्तु समीर ने उसे भविष्य के बारे में समझकर मना लिया.

“रात कितने बजे पहुंचे तुम सब?” काम की बातें समाप्त होने पर समीर ने प्रश्न किया.

“२.३०.”

“और सोये कब? समीर ने मुस्कुरा कर पूछा.

“६ बजे.” संतोष ने निसंकोच उत्तर दिया.

“लगता है काफी लम्बा पारिवारिक मिलन रहा.”

“हम सब कोई ५ महीने बाद एक साथ थे. तो बातें करने में समय यूँ ही निकल गया.”

“मैं जानता हूँ क्या बातें की होंगी. चलो, अब तुम घर जाओ और आराम करो. कल से काम की बातें करेंगे.”

“ठीक है, भाई साहब.” ये कहते हुए संतोष ने अपने घर का रास्ता पकड़ा ही था कि समीर को कुछ याद आ गया.

“संतोष, सुनो.”

“जी?”

“वर्षा और मेरी बात हो रही थी, कुछ दिन पहले. अब जब काम्या भी तुम्हारे ही साथ रहेगी, और नौकरी करेगी तो हमारा विचार था कि तुम्हारे आउट हाउस में एक कमरा और जोड़ दिया जाये. देर सवेर कमलेश को भी यहाँ नौकरी मिल गई तो तुम्हे कठिनाई होगी. बच्चे अब स्कूल में तो हैं नहीं.”

“मैं कुसुम से पूछूंगा.”

“पूछ लो, पर मैंने तय कर लिया है. बच्चों के कॉलेज समाप्त होने तक वो बन जायेगा. तुम लोगों के जाने के बाद कार्य प्रारम्भ होगा. करीब चार महीने में समाप्त होगा, क्योंकि अभी वाले घर में भी कुछ बदलाव करने होंगे. तब तक कुसुम कुछ दिन यहाँ, कुछ दिन तुम्हारे पास और कुछ दिन बेंगलोर में बच्चों के पास रह लेगी.”

“भाई साहब, आप सच मैं देवता हैं. अपने जैसा उचित सोचा है, वैसा ही करें. आपका ही घर है.”

“चलो, हम भी बाहर जा रहे है.”

संतोष अपने घर की ओर निकल गया और समीर, जयंत, राहुल और पवन क्लब की ओर।

समीर ने रास्ते में अपने मित्र को फोन किया और उससे कमलेश के बारे में बात की. उसके मित्र ने कमलेश से बात करने के बाद ही कुछ निर्णय लेने का विश्वास दिलाया. फिर समीर ने जयंत से कमलेश का नंबर लेकर अपने मित्र को दिया. उसने इस बात को गुप्त रखने का अनुरोध किया. राहुल गाड़ी चलते हुए कभी बात नहीं करता था और कोई २० मिनट में वे सब क्लब पहुँच गए. देखा तो १२ बजने वाले थे. सभी अंदर चल पड़े.

*************************


कुसुम का घर:


संतोष जब घर पहुंचा तो देखा कि खाना बन रहा है. वो कुसुम और काम्या को दूर से देखकर बहुत गर्वित अनुभव कर रहा था. दोनों सांवली अवश्य थीं, पर सुंदरता का कोई सानी नहीं था. काम करने के कारण शरीर भी गठा हुआ था. वो दोनों को यूँ ही एक तक निहारता रहा. तभी उसने अपने पास कुछ हलचल देखी। ये कमलेश था.

“दोनों बहुत सुन्दर हैं न?”

“सच में. हम बहुत भाग्यशाली हैं.”

कुसुम उनकी बातें सुनकर पीछे मुड़ी और उसकी आँखों से प्यार छलक उठा. काम्या ने भी दोनों को देखा और अपने काम में व्यस्त हो गई. कुछ ही देर में वे अपना कार्य समाप्त करके संतोष और कमलेश के पास आकर बैठ गए.

संतोष: “मैंने भाईसाहब को कार्य की प्रगति बता दी है. अब आज की छुट्टी है. कुछ और भी बातें हुईं हैं.”

कुसुम: “और क्या बात हुई. अगर बताना चाहते हो तो बता दो.”

संतोष: “पहली ये कि मेरा वेतन अब १ लाख प्रति माह हो गया है, इसी महीने से.”

सब ख़ुशी से चिल्ला उठे. “बधाई हो, बधाई हो.”

“और दूसरी?” कुसुम की उत्सुकता दोगुनी हो गई.

“दूसरी ये, कि भाईसाहब हमारे जाने के पश्चात् अपने इस घर में एक कमरा और जोड़ रहे हैं.”

“तो मैं कहाँ रहूंगी? इतना शोर और धूल होगी.”

“उन्होंने कहा है कि कुछ समय मेरे साथ रहना, कुछ समय बच्चों के साथ और शेष उनके साथ.”

सबको ये आयोजन पसंद आ गया.

“पापा, पार्टी दो इंक्रीमेंट की.”

“क्यों नहीं. चलो कमलेश, चिकन वगैरह लाते हैं.”

“चलिए.”

दोनों निकल गए और १ घंटे में सब कुछ लेकर लौट आये. कुसुम ने जब सामान देखा तो गुस्सा होने लगी. संतोष १ पेटी बियर और बहुत सारा खाने का सामान लाया था.

“ये क्या है? क्या बच्चों को पियक्कड़ बनाना है? इतनी सारी क्यों ले आये?”

“मेरी जान, सब कुछ अच्छा हो रहा है, क्यों न इसका आनंद लिया जाये.”

तभी कमलेश के मोबाईल की घंटी बजी. उसने फोन उठाया और फिर “यस सर, यस सर” कहते हुए बाहर चला गया. १० मिनट बाद आया तो वो ख़ुशी से झूम रहा था. उसने पहले काम्या और फिर कुसुम को उठाकर घुमाया और चूमा.

“बताओ, क्या हुआ है?”

कुसुम ने सिर हिलाया कि पता नहीं.

“मेरी नौकरी इसी शहर में लग गई है. वेतन भी पिछले वाले से अधिक है. माँ, आज तू बस मजा कर. आज बहुत अच्छा दिन है.”

कुसुम ख़ुशी से रो पड़ी और ईश्वर के हाथ जोड़कर उनका धन्यवाद करने लगी.

संतोष: “देखा मैंने कहा था न, सब अच्छा होगा. चल अब ग्लास ला हम सब मिलकर मजा करेंगे.”

सबने अपने अपने ग्लास में बियर ले ली.

“सोचो, कितना अच्छा हो गया. छह महीने बाद तुम तीनो फिर साथ रहोगे. घर भी बड़ा हो जायेगा और वेतन भी. ये दोनों भी कमाने लगेंगे.”

कुसुम की ख़ुशी का सच में ठिकाना नहीं था.

“बस आप भी साथ रह पाते तो सब ठीक हो जाता.”

“तुम तो जानती हो, ये संभव नहीं. पर महीने में दो बार मैं आया करूँगा, जब काम कम होगा. फिर तुम भी तो आया ही करोगी सप्ताह दस दिन के लिए. समय के साथ सब ठीक हो जायेगा.”

“अब नहीं आ पाऊंगी मैं. बच्चों का ख्याल कौन रखेगा?”

कमलेश और काम्या हंस पड़े. “माँ अभी भी हम अपना ख्याल रखते ही हैं. आप अब शांति से जाया करो. अब तो ये पता रहेगा कि हम अपने ही घर में हैं किसी अन्य शहर में नहीं.”

ये कहते हुए दोनों भाई बहन ने कुसुम को अपनी बाँहों में भर लिया.

“ये फ़ाउल है. मैंने क्या गलत किया?” संतोष हँसते हुए बोला। इस बार तीनों ने आकर उसे अपनी बाँहों में ले लिया. और अचानक काम्या ने उसके होंठ चूम लिए. “मेरे प्यारे पापा.”

“मेरे विचार से अब इन कपड़ों की कोई आवश्यकता नहीं है. और फिर हमारा खेल भी अधूरा ही रहा था. क्या बोलते हो?”

बोलना किसने था, सब लग गए अपने कपड़े उतारने में और तुरंत ही नंगे होकर खड़े हो गए.

कुसुम: “सुनिए, अभी आप का लंड चाहिए मुझे. इतने दिन से दूर हो. तरस गई हूँ मैं.”

संतोष: ”तेरी तो रोज सिकाई होती होगी।”

कुसुम: “पर वो आप नहीं हो न.”

ये कहते हुए कुसुम संतोष की छाती से लिपट गयी. संतोष ने उसकी भावना को समझते हुए उसकी पीठ हाथों से सहलाने लगा.

“पर तू समझती तो है न, कि मेरा काम वहां खेतों पर ही है. ये तो भाईसाहब का बड़ा दिल है जो हमें परिवार वाला ही समझते हैं, अन्यथा इतना प्यार और सम्मान कोई देने वाला था हमें?”

“समझती हूँ, और अब आपको को भी अच्छे से समझती हूँ?” कुसुम ने ठिठोली की.

संतोष ने उसे आश्चर्य भरी दृष्टि से देखा तो कुसुम उसे बहुत प्रेम से देख रही थी. फिर वो अपने घुटनों से झुककर संतोष के सामने बैठ गई और उसका लंड पुचकारने लगी. संतोष ने एक गहरी साँस ली और अपने शरीर को कुसुम के मुंह को समर्पित कर दिया. कमलेश और काम्या उन्हें देखकर बहुत खुश थे.

“कोई सोच सकता है कि इतने साल शादी के बाद और इतना दूर रहने पर भी इनमें कितना प्यार है. यही है हमारे देश की सच्ची पहचान जहाँ प्यार दूरी नहीं समर्पण को समझता है. काश हम भी इसी प्रकार के जीवनसाथी को पा पाएं.” जुड़वां बही बहन की सोच भी एकाकार ही थी.

“काम्या, चल बिस्तर पर, तेरी चूत का स्वाद लिए २ दिन हो गए.”

“सच में. और मुझे तुम्हारे लंड का. ६९ (69) करते हैं.”

कमलेश बिस्तर पर जाकर लेट गया और काम्या ने उसके मुंह पर अपनी चूत रखते हुए उसके लंड को अपने मुंह में डाल लिया. दोनों भाई बहन एक दूसरे को मौखिक सुख देने में जुट गए. कुसुम की तो पीठ उनकी ओर थी पर संतोष उन्हें देख रहा था. उसने कुसुम को खड़ा किया और बिस्तर की ओर संकेत करते हुए कहा कि क्यों न हम भी यही करें. संतोष ने भी कुसुम की चूत का सेवन कई दिन से नहीं किया था. कुसुम उठ गई और संतोष कमलेश के साथ में लेट गया और कुसुम ने भी वही आसन अपनाकर उसके लंड को अपने मुंह में लिया और अपनी चूत को संतोष के मुंह पर लगा दिया.

कुछ १० मिनट में चारों अपने चरम पर पहुँच गए और एक दूसरे के मुंह में झड़ गए. इसके बाद सबने बैठकर फिर से बियर पी और फिर खाना खाया. खाने के बाद कुछ सुस्ती आ गयी क्योंकि सब रात में कम सोये थे. १ घंटे सोने के बाद सब उठे. कुसुम ने चाय बनाई और सब चाय पीते हुए अपने भाग्य पर खुश होने लगे. कुसुम ने सबसे कहा कि सुबह नहाकर मंदिर चलेंगे ६ बजे फिर आगे कुछ करेंगे. सब ने सहमति जताई.

कमलेश ने कुसुम का हाथ पकड़ा और उससे कहा,”माँ, कल कुछ अच्छे से चुदाई नहीं हुई. चल आज मुझे तेरी चूत और गांड दोनों का मजा लेना है.”

काम्या ने भी अपना अंश जोड़ा, “हाँ माँ, मेरी भी यही इच्छा है. और मुझे आपको चूत और गांड में एक साथ चुदते हुए भी देखना है.”

“ये लड़की मेरी जान के पीछे पड़ी रहती है.” कुसुम ने हँसते हुए कहा. “ठीक है, पर मैं भी तेरी दुहरी चुदाई देखने को उत्सुक हूँ.”

“ओके, माँ. पहले आप इन दोनों से चुदवाओ फिर मैं चुदवाऊँगी।”

ये तय होने के बाद अब रुकने का कोई अर्थ नहीं था.

संतोष: “किसको क्या मिलेगा, ये भी बता दो अब.”

कुसुम ने मोर्चा संभाला, “आपको मेरी चूत मिलेगी और कमलेश को गांड. फिर कमलेश को काम्या की चूत मिलेगी और आपको उसकी गांड. क्या विचार है.”

संतोष ने संतुष्टि के साथ कहा, “हमेशा की तरह, बहुत उत्तम.”

संतोष अब बिस्तर पर लेट गया. काम्या ने आकर उसका लंड चूसकर चिकना कर दिया। कुसुम ने संतोष के ऊपर अपनी चूत की सवारी गाँठी। तब तक काम्या एक पिचकारी वाली प्लास्टिक की बोतल में रसोई से तेल ले आयी. फिर उसने वो बोतल की चोंच से कुसुम की गांड में तेल भर दिया. उसने कमलेश के लंड को चाटकर उसके ऊपर भी तेल लगाया. अब कमलेश कुसुम की गांड की सवारी के लिए तैयार था. कमलेश बहुत ही प्यार से कुसुम की गांड में लंड डालने लगा. सुपाड़ा पक्क से अंदर गया तो जैसे आगे का रास्ता साफ था. आखिर ये गांड सालों से लौड़े खा रही थी. कमलेश का लंड कुछ ही समय में गांड के अंदर चहलपहल करने लगा. नीचे से संतोष भी अपनी पूरी शक्ति के साथ कुसुम की चूत में लंड पेल रहा था. जो कुछ कसर शेष थी, उसे कुसुम ऊपर नीचे उछलकर पूरी कर दे रही थी.

तीनों इस समय वासना के समुद्र में हिचकोले खा रहे थे. साथ बैठी काम्या ये देखकर अपनी बारी की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी. इसका अर्थ ये नहीं था कि वो व्यर्थ ही बैठी थी. उसकी उँगलियाँ उसके चूत में चल रही थीं पर उसे इससे शांति नहीं मिल रही थी. पिता के लंड से गांड मरवाये बिना इस कन्या को शांति कैसे मिलती.

कुसुम की आनंदकारी चीत्कारें संभवतः मुख्य घर में भी सुनाई दे रही होंगी, पर उन्हें पता था कि परिवार इतने दिन बाद साथ आया है तो कुछ तो हल्ला गुल्ला होगा ही. कुसुम इस दुगने आघात से आनंदित अपना रस कुछ नहीं तो २-३ बार तो छोड़ ही चुकी थी, पर असली बड़ा स्खलन अभी भी शेष था. पर अधिक दूर भी नहीं था. जब बाप बेटे अपनी ताल बदल बदलकर चूत और गांड में लंड पेलने लगे तो कुसुम के शरीर और मस्तिष्क को समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा है. वो शिथिल हो गया और सारी इन्द्रियां कुसुम के निचले संवेदनशील पर केंद्रित हो गयीं. और इसके बाद कुसुम का बांध टूट गया. वो चीखते हुए झड़ी और संतोष के सीने पर लुढ़क गई. कमलेश अब झड़ने ही वाला था पर संतोष अपने ऊपर लेटी कुसुम की चूत में उसी समय झड़ गया. कमलेश ने भी अपनी गति बढ़ाई क्योंकि अब घर्षण कम हो चुका था. अंत में उसने भी अपने वीर्य से कुसुम की गांड को भर दिया और एक ओर बैठकर गहरी सांसे लेने लगा.

काम्या ने अपना अवसर देखा और वो अपनी माँ की गांड और चूत से बहते कामरस को चाटकर पी गई. पर अब उसे इन दोनों के लंड दोबारा करने खड़े थे अपनी दुहरी चुदाई के लिए. इसके लिए कुछ देर का विश्राम आवश्यक था. और विश्राम के लिए बियर का एक और चक्र चलाया गया.

बियर समाप्त होते होते संतोष और कमलेश भी अगले चरण के लिए तत्पर थे. पर काम्या को कुछ और तैयारी की आवश्यकता थी. और इसके लिए पहल की कुसुम ने. काम्या को बिस्तर पर लिटा कर उसने काम्या की चूत और गांड को चाटकर उत्तेजित किया. फिर गांड में तेल से अच्छे मालिश कर के उसे लंड झेलने के लिए चिकना किया और अपनी दो उँगलियों से उसे इतना खोल दिया कि संतोष का लंड आसानी से उसे भेद सके. जब उसने ये पाया कि काम्या तैयार है तो उसने अपने पति और बेटे के लौडों को चूसकर खड़ा तो किया ही पर इतना गीला भी कर दिया कि उसकी बेटी को कोई कठिनाई न हो.

कमलेश को लिटाकर कुसुम ने उसके लंड को एक बार और चूसा फिर काम्या की चूत को भी चाटकर उसे कमलेश के लंड पर बैठने के लिए कहा. काम्या ने सरलता से कमलेश को अपनी चूत में समा लिया. अब वो आगे झुकी, जैसा उसने अपनी माँ को करते हुए देखा था. अब संतोष की बारी थी. कुसुम ने एक बार और काम्या की गांड पर जीभ फिराई और ऊँगली से एक बार और सहलाया. फिर उसने संतोष के लंड को चाटकर उसे काम्या की गांड के छेद पर रख दिया. संतोष ने अपने लंड का दबाव बनाया और काम्या की गांड ने खुलकर उसका स्वागत किया और सुपाड़ा अंदर जाकर बैठ गया.

दबाव बनाये रखते हुए उसने अपने लंड को काम्या की गांड में पूरी लम्बाई तक डालने के बाद ही साँस ली. अब काम्या दो शरीरों से दबी हुई थी और उसके दो छेदों में दो लौड़े थे, जो अभी तक शांत पड़े थे. पर ये शांति टूट गई जब कमलेश ने अपने लंड से उसे चोदना शुरू किया. कुछ ही देर में कमलेश ने अच्छी गति पकड़ी और ३-४ मिनट तक चोदने के बाद रुक गया. उसके रुकते ही संतोष ने काम्या की गांड में अपने लंड का संचालन करने लगा. वही ताल अपनाते हुए उसने भी अपनी गति धीरे धीरे बढ़ाई और फिर ३-४ मिनट के बाद रूक गया. अब कमलेश चुदाई करने लगा, पर २-३ मिनट बाद कमलेश के रुके बिना ही संतोष ने भी गांड मारनी फिर शुरू कर दी. काम्या तो जैसे पागल हो गई. कुसुम उसके पास जाकर उसे चूमने लगी.

“ओह, माँ. कितना मजा है ऐसी चुदाई में. सच में स्वर्ग दिखता है. ओह, माँ. मुझे जब तक हम साथ हैं हर दिन ऐसे ही चुदना है.”

“ठीक है, इसमें कोई बड़ी बात नहीं, घर की ही तो बात है.”

कमलेश और संतोष अब पूरी गति से लंड चला रहे थे. काम्या की आनंदातिरेक चीखें उसकी माँ के होंठों ने बंद की हुई थी. काम्या दो झड़ गई थी, और अब उसका विशाल उत्कर्ष निकट था. संतोष और कमलेश भी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुके थे. गांड अधिक तंग होने से और कुछ आयु के कारण, संतोष ने अपने पानी से काम्या की गांड भर दी. गांड में छूट रहे फौहारे की गर्मी से काम्या भी अपने अंत पर पहुँच गई और थरथराते हुए झड़ गई और इतना पानी छोड़ दिया की कमलेश के लंड की ध्वनि किसी चलती हुई नाव के समान प्रतीत होने लगी. और कमलेश अब कितना रुकता. उसने भी अपने रस से काम्या की चूत लबालब कर दी.

संतोष काम्या के ऊपर से हटा, और काम्या एक ओर ढुलक गई. कुसुम ने तुरंत उसकी चूत और गांड से बहते रिसते कामरस को पिया और दोनों छेद चाटकर साफ कर दिए. फिर उसने संतोष के लंड को साफ किया और अंत में कमलेश के लंड को. सब लोग बिस्तर पर लेटकर पंखे की चाल देख रहे थे. सबके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे और एक चमक थी. कुछ समय पश्चात सब धीरे धीरे उठे और बाथरूम जाने लगे. आज पूरे शेष समय में केवल चुदाई ही होनी थी, हर संभव सम्मिश्रण में. और अन्य हर कार्य निरर्थक था.

घर कुछ दिनों के लिए स्वर्ग बन गया था.

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अगले दिन सुबह:


अगले दिन कुसुम और परिवार तड़के उठ कर स्नानादि से निवृत्त होकर मंदिर दर्शन के लिए गए और वहां धन्यवाद किया और आशीर्वाद माँगा. लौटते हुए उन्हें ७ बज गए और कुसुम सीधे बंगले में अपने काम पर चली गई. अभी लोग सोकर उठने ही लगे थे. सुलभा किचन में थी और कुसुम ने जाकर उनके पांव छुए और दूध गर्म करने के लिए चढ़ा दिया. साथ ही नाश्ते बनाना आरम्भ कर दिया. फिर चाय के लिए पानी चढ़ाया. इसके बाद दोनों को कुछ समय मिला तो बातें शुरू हो गयीं.

सुलभा: “बड़ी खिली हुई लग रही है. लगता है कल बाप बेटे ने अच्छे से चोदा है पूरे दिन.”

कुसुम: “हाँ दीदी, इतने दिन बाद सब मिले तो ये तो होने ही था. पर आपकी भी सुंदरता और चेहरे की चमक बता रही है की आपकी भी अच्छी सेवा हुई है.”

सुलभा ने षड्यंत्रकारी मुद्रा में फुसफुसाते हुए बोला: “कल सब क्लब गए थे.”

कुसुम सब समझ गई. “तभी सब अभी तक लोटे पड़े है.”

“नहीं, उठ गए होंगे. मैं तो कमरे में अकेली ही थी तो यहाँ आ गई. पर कल मजा आ गया. चूत और गांड इतनी चुदी कि मन तृप्त हो गया.”

कुसुम: “दीदी, आपका मन कभी तृप्त नहीं होता. सच बताओ, अपने घर आने पर भी किसी न किसी से चुदवाया तो होगा ही.”

सुलभा: “कल जयंत आया था. पर एक एक बार चूत और गांड मारकर चला गया. और इन्हें न जाने क्या सूझी, उसके आने के बाद वर्षा के पास चले गए. दोनों समधियों ने उसे चोदा होगा रात भर. बस मैं ही रह गयी.”

कुसुम: “दीदी, तुम चिंता मत करो. कमलेश आया हुआ है. तुम्हारी सेवा किया करेगा, जब चाहो. बस मेरे लिए कुछ दम छोड़ देना लड़के में.”

सुलभा: “तेरा बेटा है. चुदवाने के बाद इधर भेजा करना, नहीं तो हम दोनों निचोड़ देंगी उसे.”

कुसुम: “ठीक है दीदी.”

सुलभा: “वैसे कब आएंगे दोनों यहाँ आशीर्वाद लेने.”

कुसुम: “१० बजे के बाद. तब तक सब नाश्ता पानी कर चुके होंगे.”

सुलभा मुस्कुरा कर: “मेरी मान तो ९ बजे बुला लेना, नाश्ते के पहले. और संतोष को भी ले आना. नाश्ता सब साथ कर लेंगे सब परिवार वाले मिलकर.”

कुसुम अपने आप को परिवार का हिस्सा समझे जाने पर धन्य हो गयी.

“ठीक है, दीदी. मैं उन्हें बोलकर आती हूँ, फिर चाय परोस दूंगी सभी को.”

“ठीक है, जल्दी आजा. तुझसे और भी बातें करनी हैं.”

कुसुम घर जाकर सबको ९ बजे आने के लिए बोलकर लौट आयी. और चाय लेकर निकल पड़ी. ९ बजे तक सभी परिवारजन नाश्ते के लिए आये ही थे कि संतोष, काम्या और कमलेश भी आ गए.

“आओ संतोष. आओ काम्या, आजा कमलेश.” समीर ने तीनों का स्वागत किया. कमलेश और काम्या ने समीर, पवन. वर्षा और सुलभा के पांव छूकर आशीर्वाद लिया. सबने उन्हें आशीर्वाद भी दिया और गले भी लगाया.

“बहुत दिन हो गए तुम दोनों को देखे हुए. कितने दिन बाद आये हो घर?”

“ताऊजी, ३ महीने से अधिक हो गए. सच मैं हम भी आप सबसे मिलने के लिए तरस गए थे.” कमलेश ने बताया.

“हाँ बहुत समय जो गया. अब आये हो तो नाश्ते के बाद अच्छे से मिलते हैं.” समीर ने द्विअर्थी बात कही जिसे समझने में किसी को कठिनाई नहीं हुई. जयंत, अंजलि और राहुल इस बात पर मुस्कुराने लगे. काम्या ने सिर झुका लिया.

“चलिए, पहले नाश्ता करिये, फिर आगे के दिन का सोचेंगे.”

सबने अपना नाश्ता लिया और कुछ लोग डाइनिंग टेबल पर ही खाने लगे और अन्य बैठक में चले गए. समीर, कमलेश, वर्षा और काम्या बैठक में जाकर बैठे.

“ताऊजी, एक अच्छा समाचार और भी है. कल यहाँ से () कंपनी का फोन आया था और उन्होंने फोन पर ही इंटरव्यू ले लिया और मुझे नौकरी का प्रस्ताव भी दे दिया. वेतन पिछले प्रस्ताव से अधिक है.”

वर्षा ख़ुशी से बोली: “ये तो बहुत ही शुभ समाचार है. रुको, मैं तुम्हारा मुंह मीठा करने के लिए कुछ लाती हूँ.”

वो किचन में गई और कुसुम को गले से लगा लिया और बोली; “तू कब बताने वाली थी कि कमलेश को यहीं नौकरी मिल गई?”

कुसुम झेंप गई, “दीदी, बस आपके ही पास आने वाली थी. इसके पहले समय ही नहीं मिला.”

वर्षा: “कोई बात नहीं. बच्चे इतने दिन बाद आये हैं, तुझे सच में कहाँ समय मिल पाया होगा. अब कमलेश का मुंह मीठा करने के लिए कुछ दे.”

मिष्ठान लेकर वर्षा कमलेश के पास आयी जो आदर से खड़ा हो गया. उसके मुंह में मिठाई डालकर वर्षा ने उसे फिर से आशीर्वाद दिया.

फिर उसके कान में बोली: “ तेरी सबसे पसंद वाली मिठाई भी मिलेगी तुझे, बस थोड़ी प्रतीक्षा कर ले.” ये कहकर उसने कमलेश के लंड को पैंट के ऊपर से सहलाकर अपना तात्पर्य जता दिया.

कमलेश का लंड एक झटके में खड़ा हो गया. इसके बाद वर्षा ने काम्या को मिठाई खिलाई और उसे भी आशीर्वाद दिया.

समीर: “वर्षा, तुम तो जानती ही हो मेरे आशीर्वाद का ढंग. हम दोनों जब तक इन्हें अपना प्रसाद नहीं देंगे इनका आशीर्वाद अधूरा ही रहेगा.”

वर्षा: “बिल्कुल, पर नाश्ता कर लीजिये उसके बाद.”

सब नाश्ता समाप्त करने में व्यस्त हो गए. नाश्ते के बाद समीर और वर्षा ने कहा की वो अपने कमरे में जा रहे हैं. उसके बाद वो दोनों काम्या और कमलेश को लेकर अपने कमरे में चले गए. कमरे में जाने के बाद समीर और वर्षा अपने कपड़े उतारने लगे. कमलेश और काम्या अभी वैसे ही खड़े थे.

“क्या हुआ तुम दोनों को? प्रसाद नहीं लोगे आशीर्वाद के साथ?”

ये सुनकर काम्या और कमलेश भी नंगे हो गए. समीर और वर्षा पास पास सोफे पर बैठ गए. अर्थ समझकर कमलेश वर्षा के आगे जा बैठा और उसकी चूत को चाटने लगा. काम्या ने भी समीर के आगे बैठकर उसके लंड पर अपनी जीभ चलाई और उसे चाटने लगी.

“तुम बच्चों की बहुत याद आती थी, अब ये जानकर ख़ुशी है कि ६ महीनों में यहीं आ जाओगे.” वर्षा बोली।

“ताईजी, हमें भी घर की याद बहुत सताती थी. पर आज हमारा भविष्य बन गया दूर रहकर.” कमलेश ने अपना सिर उठाकर वर्षा को उत्तर दिया. “और विशेषकर आपकी ये चूत की खुशबू और स्वाद जिसे हम बहुत मिस करते थे.”

“अब आया है तो जी भर के पी ले मेरा पानी. जब मन करे आ जाया कर. तेरे लिए तो हमेशा खुले है ये.” वर्षा ने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए कहा. “जब तेरी माँ काम पर आया करे, तब तुझे उसकी सेवा नहीं करनी होगी. तब यहाँ आ जाया कर. क्यों जी मैंने ठीक कहा न?”

“तुमने कभी गलत कहा है?” समीर ने चुहल की.

कमलेश और काम्या अपने कथित ताई और ताऊ की चूत और लंड को चूसने चाटने में लगे रहे. दोनों के सिर पर हाथ फेरते हुए वर्षा और समीर आनंद ले रहे थे. साथ ही साथ वे अपनी गांड पर भी दोनों भाई बहन की जीभ को अनुभव कर रहे थे. कुछ देर की इस गतिविधि के बाद वर्षा ने कमलेश और समीर ने अपना माल काम्या के मुंह में उड़ेल दिया, जिसे दोनों युवाओं ने प्रसाद समझ कर ग्रहण किया. पर दोनों ने अपने चेहरे को उसी स्थान पर रहने दिया और अपने बुजर्गों से आशीर्वाद लेते रहे.

वर्षा: “चलो जी. इनको तो हमने आशीर्वाद और प्रसाद दे दिया. अब इनको भी कुछ सुख दे दें?”

समीर: “तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली.”

ये कहते हुए पति पत्नी ने उठकर अपने साथ बहन भाई को लिया और बिस्तर की ओर चल दिए. और कुछ ही देर में कमलेश का लंड वर्षा की चूत की गहराई नाप रहा था और समीर का लंड काम्या की चूत की.

नायक परिवार में एक और आनंद से भरपूर सामान्य दिन का आरम्भ हो चुका था.

क्रमश:
1162000
 
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prkin

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दोस्तों,
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