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Incest कोई तो रोक लो

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IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
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IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
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कोई तो रोक लो
दोस्तो आज से एक और नई कहानी शुरू कर रहा हूँ ये कहानी प्रीतम ने लिखी है मैं इसे हिन्दी फ़ॉन्ट में आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ . उम्मीद है कि ये कहानी आपको पसंद आएगी .
 
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कहानी का पहला अपडेट कब तक आएगा
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
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कहानी का पहला अपडेट कब तक आएगा
BAHUT JALADI AAYEGA UPDATE
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
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Abe unhone to ab tak puri bhi ni ki hai story

Vahi jake fir atak jaoge
BHAI SOMETHING IS BETTER THEN NOTHING
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
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मेरा नाम पुनीत है. मैं 24 साल का हूँ और मेरी हाइट 5'7" फुट है. देखने मे किसी हीरो की तरह हॅंडसम तो नही हूँ. लेकिन फिर भी इतना ज़रूर है कि, यदि कोई लड़की मुझे देखे तो, एक बार अपने दिल मे, ये बात ज़रूर सोचेगी कि, काश ये लड़का मेरा बाय्फ्रेंड होता.

ये तो मेरा परिचय हो गया. अब मैं अपने परिवार के बाकी सदस्यों का परिचय भी आप से करवा देता हूँ. जिनके इर्द गिर्द ये कहानी घूमना है.

सबसे पहले मैं आपका परिचय मेरे घर के मुखिया से करता हूँ. मेरे घर के सबसे पहले सदस्य मेरे पापा अमरनाथ है. उनकी उमर 48 साल है. लेकिन इस उमर मे भी वो अपने आपको बहुत मेनटेन करके रखते है. इसलिए 48 के होने के बाद भी वो बिल्कुल चुस्त दुरुस्त दिखते है.

उनकी इस चुस्ती का राज भी मुझे बहुत बाद मे पता चला. जो आपको भी आगे चलकर स्टोरी मे पता चल जाएगा. पापा एक बिज़्नेसमॅन है और उनका बिज़्नेस दूसरे सहरों मे भी फैला हुआ है. जिस वजह से हमारे यहाँ पैसो की कोई कमी नही है और हमारा परिवार आमिर परिवारों की गिनती मे आता है.

मेरे परिवार की दूसरी सदस्या मेरी माँ सुनीता है. उनकी उमर 36 साल है. देखने मे वो बिल्कुल शिल्पा सेठी की तरह दिखती है और 2 बेटियों की माँ होने के बाद भी बड़ी ही स्मार्ट पर्सनॅलिटी की मालकिन है.

अब मेरी माँ की उमर 36 साल और मेरी उमर 24 साल देख कर, आपके मन मे ये सवाल ज़रूर आएगा कि ऐसा कैसे हो सकता है. तो मैं आपको बता दूं की, सुनीता मेरी सग़ी माँ नही है. मेरी सग़ी माँ का देहांत तो, तभी हो गया था, जब मैं बहुत छोटा था. सुनीता मेरी सौतेली माँ है और मैं उन्हे छोटी माँ कह कर बुलाता हूँ.

छोटी माँ के बाद मेरे परिवार की तीसरी सदस्या मेरी सौतेली बहन अमिता है. अमिता अभी 12थ मे पढ़ रही है. वो बचपन से ही शांत स्वाभाव की और समझदार लड़की है. अमिता देखने मे दुबली पतली है और पूरी तरह से छोटी माँ पर गयी है. वो मुझसे 7 साल छोटी है. सब उसे प्यार से अमि बुलाते है और मैं उसे अमि के साथ साथ बेटू भी बुलाता हूँ.

अमिता के बाद मेरे परिवार की चौथी सदस्या मेरी सौतेली बहन नामिता है. नामिता अभी 10थ मे पढ़ रही है. वो बचपन से ही चंचल और नटखट स्वाभाव की लड़की है. गुस्सा तो उसकी नाक पर ही बैठा रहता है. नामिता देखने मे भरे बदन की लड़की है. मगर मोटी बिल्कुल नही है. वो मुझसे 9 साल छोटी है. सब उसे प्यार से निमी बुलाते है और मैं निमी के साथ साथ छोटी भी बुलाता हूँ.

मेरे परिवार का पाँचवा सदस्या मैं खुद हूँ. मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी है और अब मैं अपने पापा के साथ उनका बिज़्नेस संभालता हूँ. मुझे सब प्यार से पुन्नू बुलाते है. ये मेरे छोटे से परिवार का परिचय था. अब मैं अपनी कहानी पर आता हूँ.

ये कहानी तब सुरू होती है. जब मैं पहली क्लास मे पढ़ता था और मेरी माँ का देहांत हुए कुछ ही समय हुआ था. मेरी देख भाल मेरे पापा, और मेरे घर मे काम करने वाली चंदा मौसी किया करती थी.

पापा की उमर उस समय 30 साल रही होगी. एक दिन उनके ऑफीस मे एक लड़की सुनीता जॉब के लिए आई. उसकी उमर उस समय 18 साल रही होगी. पापा सुनीता को देखते ही उसके रूप पर मोहित हो गये और पहली ही मुलाकात मे उसके सामने जॉब की जगह शादी का प्रस्ताव रख दिया.

अचानक से पापा की तरफ से ये शादी का प्रस्ताव पाकर, सुनीता के कुछ समझ मे नही आया. वो एक मध्यम परिवार की लड़की थी और पापा एक रहीश खानदान के इकलौते लड़के होने के साथ साथ एक कंपनी के मालिक थे.

इसलिए सुनीता ने थोड़ा बहुत सोचने के बाद पापा के शादी के प्रस्ताव मंजूर कर लिया. कुछ ही दिनो मे पापा की शादी सुनीता के साथ हो गयी और सुनीता मेरी सौतेली माँ बनकर मेरे घर आ गयी. उनकी शादी के 1 साल बाद मेरी सौतेली बहन अमिता और 3 साल बाद नामिता का जनम हुआ.

लेकिन ये कहानी अमिता और नामिता के जनम से पहले, पापा की शादी की पहली रात से सुरू होती है. उस समय पापा की एज 30 साल और सुनीता की आगे 18 साल थी. मेरी सौतेली माँ का पति मतलब की पापा उनसे 12 साल बड़े थे, और उनके पति का बेटा मतलब कि मैं उनसे 12 साल छोटा था.

मुझे अच्छे से याद है कि उस समय मैं पापा के साथ ही सोया करता था. मगर जब पापा ने मुझे शादी की पहली रात मेरी सौतेली माँ से मिलवाया तो कहा कि “ये तुम्हारी नयी माँ है और आज से तुम इनको ही मम्मी कहोगे और आज से तुम दूसरे कमरे सोया करोगे.”

इसके बाद मेरे सोने की व्यवस्था एक दूसरे कमरे मे कर दी गयी. उस समय मुझे इतनी समझ तो थी नही जो पापा और छोटी माँ के एक साथ सोने का कुछ मतलब समझ पता. मुझे उस रात अकेले ज़रा भी नींद नही आई.

मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था. ऐसा लग रहा था कि मेरी माँ की मौत के साथ ही मेरी खुशिया भी ख़तम हो गयी हो. मैं सारी रत अपनी मरी हुई माँ को याद करके, रोता रहा और मुझे पहले दिन ही अपनी नयी माँ से नफ़रत हो गयी.

रात को रोते रोते कब मेरी नींद लग गयी, मुझे पता ही नही चला. सुबह सुबह मेरी नींद पापा की आवाज़ से खुली. पापा मुझे नींद से जगा रहे थे. मेरी नींद खुली तो पापा कहने लगे.

पापा बोले "पुन्नू जल्दी से उठ जाओ, नही तो स्कूल के लिए देर हो जाएगी."

मैने आँख खोल कर देखा तो नयी माँ भी पापा के साथ खड़ी मुस्कुरा रही थी. उन्हे हंसता देख कर मैं मन ही मन जल रहा था.

मैं बिना कुछ बोले फ्रेश होने चला गया. नहाने के बाद मुझे रोज की तरह मेरे घर मे काम करने वाली चंदा मौसी ने तैयार किया और फिर मैं स्कूल चला गया.

स्कूल मे भी मैं सारे समय उदास रहा. मुझे उदास देख कर मेरे दोस्त मेहुल ने कहा.

मेहुल बोला "सुना है तेरे पापा तेरे लिए नयी माँ लाए है."

मैं बोला "हाँ यार लाए तो है, पर नयी माँ अच्छी नही है. आते ही उसने मुझे पापा के कमरे से बाहर निकाल दिया. कल पहली बार मैं अकेले सोया."

ये कहते कहते मैं रो पड़ा. मेहुल मुझे चुप करता रहा और फिर कहने लगा.

मेहुल बोला “देख पुन्नू सौतेली माँ बहुत गंदी होती है.”

मैं बोला “ये सौतेली माँ क्या होता है.”

मेहुल बोला “जब किसी की माँ मर जाती है और उसके पापा जो नयी माँ लाते है, उसे सौतेली माँ कहते है.”

मेहुल की बात सुनकर मेरे मन की उत्सुकता बढ़ गयी. मैने उस से कहा.

मैं बोला “तुझे कैसे पता की सौतेली माँ गंदी होती है.

मेहुल बोला “मेरे पड़ोस मे एक लड़का रामू रहता है उसकी भी सौतेली माँ है. उसकी सौतेली माँ ने उसका स्कूल छुड़वा दिया है और उस से घर का सारा काम करवाती है. अपने बच्चों को तो खूब अच्छा अच्छा खाना देती है पर रामू को बचा हुआ खाना देती है और कभी कभी तो उसे भूका भी रखती है.”

मैं बोला “क्या रामू के पापा सौतेली माँ को ऐसा करने से नही रोकते.”

मेहुल बोला “पहले तो रोकते थे पर जब से सौतेली माँ के बच्चे हुए तब से वो उन बच्चों को प्यार करने लगे और रामू को अपनी माँ और भाई बहनो के साथ मिल कर ना रहने के लिए गुस्सा करने लगे. बेचारा रामू बिल्कुल अकेला हो गया. तब उसके नाना रामू को अपने साथ ले गये. अब रामू अपने नाना के साथ ही रहता है.”

रामू के उसके नाना के साथ जाने की बात सुनकर ना जाने क्यो मुझे खुशी हुई.

मैं बोला “क्या अब रामू अपने नाना के यहाँ खुश है.”

मेहुल बोला "नही यार वो बेचारा तो वहाँ भी खुश नही है. वहाँ उसके नाना नानी के साथ उसके 3 मामा और मामी भी रहते है. उसकी ममिया भी उसे परेशान करती है. बस फ़र्क इतना है कि उसके नाना नानी उसे बहुत प्यार करते है. इसलिए वो वहाँ से वापस आना नही चाहता.”

मेहुल की बात सुनकर मुझे बहुत निराशा हुई.

मैने बोला “यार अब मैं क्या करूँ. मेरी छोटी माँ भी तो सौतेली माँ है. क्या वो भी मुझे रामू की तरह दुख देगी.”

मुझे परेशान देख कर मेहुल ने मुझे दिलासा देते हुए कहा.

मेहुल बोला “यार तू दुखी मत हो. मैं कुछ ना कुछ रास्ता ढूँढ निकालुगा.”

मेहुल की बातों से मुझे कुछ सुकून महसूस हुआ और फिर हम लोग अपने अपने घर के लिए निकल लिए.मैं घर पहुचा तो नयी माँ हॉल मे बैठी टीवी देख रही थी. मुझे स्कूल से आया देख कर नयी माँ ने मुझे अपने पास बुला कर पूछा.

नयी माँ बोली “तुम्हारी स्कूल कितने बजे छूटी है.”

उनके इस सवाल से मैं सहम गया. मुझे लगा मेरी चोरी पकड़ी गयी है. मैने धीमी आवाज़ मे कहा.

मैं बोला “जी 1 बजे छूटी है.”

उन्होने मुझे गुस्से मे घूरते हुए कहा.

नयी माँ बोली “तब फिर तुम 2:30 बजे घर क्यो आ रहे हो. इतनी देर कहाँ थे और क्या कर रहे थे.”

मैने उनको अपनी सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “स्कूल तो 1 बजे छूट गया था पर मैं अपने दोस्त मेहुल से बात करने लगा था, इसलिए मुझे आने मे देर हो गयी.”

नयी माँ बोली “ठीक है आज मेरे सामने तुमने पहली बार ऐसा किया है. इसलिए मैं तुम पर कोई गुस्सा नही कर रही हूँ. मगर कल से ऐसा नही चलेगा. कल से समय पर घर आना. अब जाओ और जाकर कपड़े बदल कर खाना खा लो.”

मैं बोला “जी नयी माँ.”

इतना कहकर मैं सरपट अपने कमरे की तरफ भाग गया. जिसे कल रात ही मेरे लिए तैयार किया गया था.

रात को डिन्नर पर नयी माँ ने पापा को, मेरे स्कूल से देर से आने की बात बता दी. पापा ने मुझे बहुत गुस्सा किया. जिस वजह से मेरी नयी माँ के लिए नफ़रत और गहरी हो गयी. उस रात भी मैं अपनी नयी माँ को कोसते हुए सोया.

अगले दिन मैने मेहुल को सारी बात बताई. तब उसने कहा.

मेहुल बोला “देखा तेरी सौतेली माँ अब धीरे धीरे अपना रंग दिखाने लगी है. तू उस से डरना बंद कर और उसको सबक सिखा नही तो एक दिन तुझे भी रामू की तरह दुख सहने पड़ेँगे.”

मेहुल की बात मुझे जम गयी मैने उस से पूछा.

मैं बोला “मैं नयी माँ को सबक सिखाने के लिए क्या करू.”

तब मेहुल ने मुझे समझाते हुए कहा.

मेहुल बोला “सबसे पहले तू उस से डरना बंद कर और उसको हर बात का जबाब देना सुरू कर. आख़िर घर तो तेरा ही है. फिर वो तेरी सग़ी माँ तो है नही. जो तुझ पर इस तरह से हुकुम चलाए. जैसे वो तेरी शिकायत तेरे पापा से करती है. तू भी उसकी शिकायत पापा से कर.”

आख़िर छोटे बच्चों की सोच भी तो छोटी ही होती है. मुझे मेहुल की बात बहुत पसंद आई. मैने उस पर अमल करना भी शुरू कर दिया. जिसका नतीजा ये निकला कि, एक हफ्ते के अंदर मेरे और मेरी नयी माँ के बीच तनाव और भी ज़्यादा बढ़ गया. फिर एक दिन वो हो गया जो मेरे छोटे से दिमाग़ ने सोचा भी नही था.हुआ ये कि पापा ने नयी माँ के जनमदिन की पार्टी रखी थी. पापा ने कभी मेरे जनम दिन की पार्टी नही रखी थी और आज नयी माँ के जनमदिन की पार्टी कर रहे थे. जो मुझे ज़रा भी अच्छा नही लगा. मैं पार्टी मे नही गया और अपने कमरे मे ही बुक खोल कर बैठ गया. ताकि कोई आए तो उसे लगे कि, मैं पढ़ाई कर रहा हूँ.

मेरा सोचना ठीक ही निकला. क्योकि कुछ ही देर बाद किसी ने मेरा दरवाजा खटखटाया. मैने दरवाजा खोला तो सामने नयी माँ खड़ी थी. उन्हे दरवाजे पर खड़ा देख कर मैने कहा.

मैं बोला “जी नयी माँ.”

नयी माँ बोली “नीचे इतनी बड़ी पार्टी चल रही है. तुम यहाँ कमरे मे बैठे बैठे क्या कर रहे हो. चलो जल्दी से कपड़े बदलो और पार्टी मे आ जाओ.”

मैं बोला “नयी माँ, मुझे पार्टी पसंद नही है. मैं पार्टी मे नही आउन्गा और मुझे पढ़ाई भी करनी है.”

नयी माँ बोली “देखो पार्टी हम लोगो ने दी है, इसलिए पार्टी मे हमारे परिवार के सभी लोगो का होना ज़रूरी है. तुम चाहो तो थोड़ी देर बाद वापस आ जाना और अपनी पढ़ाई कर लेना. अब देर मत करो और तैयार होकर जल्दी से आ जाओ.”

ये कहकर नयी माँ चली गयी, पर मैं पार्टी मे नही गया. काफ़ी देर तक मैं पार्टी मे नही गया तो, नयी माँ फिर मुझे बुलाने आई मगर मैने आने से साफ मना कर दिया. तब नयी माँ ने मुझे समझाते हुए कहा.

नयी माँ बोली “देखो, पार्टी मे सभी रिश्तेदार आए है. यदि तुम नही आओगे तो वो तरह तरह की बाते करेगे. जो तुम्हारे पापा को अच्छी नही लगेगी और हो सकता है तुम्हारे पापा अपना सारा गुस्सा तुम पर उतार दे. इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम कुछ देर के लिए पार्टी मे आ जाओ.”

इतना कह कर नयी माँ चली गयी. मगर मुझे तो नयी माँ की बात ना मानने और उनको नीचा दिखाने का जुनून सवार था. इसलिए मैने इस बार भी उनकी बात पर कोई ध्यान नही दिया और मैं पार्टी मे नही गया.

देर रत को पार्टी ख़तम हुई. तब पापा और नयी माँ मेरे कमरे मे आए. मैं अपने बिस्तर पर लेटा हुआ, सोने का नाटक कर रहा था. पापा ने 2 बार मुझे आवाज़ दी, पर मैं चुपचाप लेटा रहा.

तब नयी माँ बोली “देखो पढ़ाई करते करते सो गया है. मैं तो पहले ही कह रही थी कि, वो पढ़ाई करते करते सो गया होगा. लेकिन आप मेरी बात मान ही रहे थे.”

मगर पापा मेरी वजह से बहुत गुस्से मे लग रहे थे. वो नयी माँ की इस बात के जबाब मे कहने लगे.

पापा बोले “ये लड़का बहुत ही बिगड़ गया है. इसे सुधारने का अब एक ही रास्ता है कि, इसे बोर्डिंग स्कूल मे डाल दिया जाए. वरना एक दिन ये लड़का हमारे हाथ से निकल जाएगा.”

पापा की बात सुनकर नयी माँ ने उन्हे समझाते हुए कहा.

नयी माँ बोली “अभी ये बहुत छोटा है. इतनी सी उमर मे इसे बोर्डिंग स्कूल मे डालना, ठीक नही रहेगा. वो थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो, खुद ही हर बात को समझने लगेगा.”

पापा बोले “नही ये बहुत ढीठ हो गया है और यदि हमने इसे अपने साथ रखा तो, इसका ढीठपन और भी बढ़ता जाएगा. इसके लिए यही ठीक होगा कि, ये बोर्डिंग मे रहे.”

इतना कहकर पापा और नयी माँ चले गये. लेकिन उनकी ये बात सुनकर तो, मेरी सिट्टी पिटी गुम हो गयी थी. अब मैं उस घड़ी को कोस रहा था, जब मैने नयी माँ की बात ना मान कर, पार्टी मे ना जाने का फ़ैसला था.

मैने खुद ही अपने लिए एक परेशानी खड़ी कर ली थी. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. मेरे दिमाग़ मे तो कुछ आ ही नही रहा था, इसलिए मैने सोचा कि, अब जो भी कर पाएगा, मेहुल ही कर पाएगा और फिर ये सब सोचते सोचते मैं सो गया.
दूसरे दिन मैं पापा का सामना किए बिना ही स्कूल निकल गया और फिर लंच मे मैने मेहुल को सारी बात बताई. तब मेहुल ने कहा.


मेहुल बोला “यार ये तो बहुत बड़ी मुसीबत हो गयी है. इसके लिए तो अब हमे मम्मी ही कोई रास्ता बता सकती है.”

मैं बोला “तो फिर चल, घर चलते है और आंटी से ही रास्ता पूछते है”

इसके बाद हम ने लंच से ही स्कूल से छुट्टी मार दी और हम दोनो, मेहुल के घर के लिए निकल पड़े.

मेहुल की मम्मी, रिचा आंटी 26 साल की अत्यंत सुंदर महिला थी. जब से मेरी मम्मी की डेत हुई थी, तब से वो मुझे बहुत ही ज़्यादा प्यार करती थी और जब भी मैं उनके घर जाता था. वो मुझे बिना खाना खाए नही जाने देती थी और हमेशा मेहुल के हाथ से भी मेरे लिए, कुछ ना कुछ भेजती रहती थी. इसलिए मैं उन्हे बहुत पसंद करता था और अपनी मम्मी की तरह ही उन्हे प्यार करता था.

मेहुल के घर पहुचने पर जब रिचा आंटी ने दरवाजा खोला तो, हमे देख कर चौुक्ते हुए पुछा.

रिचा आंटी बोली “तुम लोग इतनी जल्दी घर कैसे आ गये.”

तब मेहुल बोला “मम्मी पुन्नू परेशान है और उसी परेशानी का हल आप से जानने आया है.”

रिचा आंटी बोली “ठीक है, पहले तुम दोनो कुछ खा लो. उसके बाद मैं पुन्नू की परेशानी भी सुनूँगी और उसे हल करने का रास्ता भी बताउन्गी.”

ये कह कर आंटी हम दोनो को घर के अंदर ले गयी. उन ने हम दोनो को बैठने को कहा और खुद हमारे लिए खाना लेने रसोई मे चली गयी.आंटी ने हम लोगों को आलू के पराठे बनाकर खिलाए और जब हम लोगों ने पराठे खा लिए तो फिर उन्हो ने मुझसे पूछा.

आंटी बोली “हाँ बेटा, अब बताओ तुम्हे क्या परेशानी है, जिसको हल करने का रास्ता तुम मुझसे जानना चाहते हो.”

मैने आंटी को, अपने रात को नयी माँ की बर्थ’डे पार्टी मे ना जाने और पापा की मुझे बोर्डिंग भेजने वाली बात बता दी. जिसे सुनने के बाद आंटी ने कहा.

आंटी बोली “बेटा जब तुम्हारी नयी माँ ने तुम्हे पार्टी मे आने को बोला तो, तुम पार्टी मे क्यों नही गये. ये तो तुम्हारी ही ग़लती है और इस बात पर तुम्हारे पापा का गुस्सा करना ज़रा भी ग़लत नही है.”

मुझे आंटी की ये बात सुनकर बहुत ज़्यादा निराशा हुई और मैं उदास हो गया. मुझे उदास देख कर, आंटी मेरे पास आकर बैठ गयी और मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहने लगी.

आंटी बोली “बेटा मेरी बात का बुरा मत मानो. मैं जो भी कहुगी, तुम्हारे भले के लिए ही कहुगी. अब मैं तुमसे जो भी पूछती हूँ, तुम उसका सही सही जबाब दो. तभी तो मैं तुम्हारी परेसानी को दूर करने का कोई रास्ता बता सकुगी.”

मुझे आंटी का यूँ प्यार से हाथ फेरना और उनकी बात दोनो बहुत अच्छे लगे. मैने खुश होते हुए आंटी से कहा.

मैं बोला “आप पूछिए आंटी, मैं आपकी हर बात का सही सही जबाब दूँगा.”

आंटी बोली “अच्छा ये बताओ, कल रात को अपनी नयी माँ के बार बार कहने पर भी, तुम पार्टी मे क्यो नही गये थे.”

मैं बोला “मुझे नयी माँ बिल्कुल भी पसंद नही है. इसलिए कल मैने उनकी बात नही मानी.”

आंटी बोली “क्यो, तुम्हे नयी माँ क्यो पसंद नही है.”

आंटी की इस बात पर मैं मेहुल की तरफ देखने लगा तो, मेहुल समझ गया कि, अब आगे की बात बताने की बारी उसकी है और फिर उसने पहले दिन से लेकर अभी तक हुई सारी बात आंटी को बता दी. जिसे सुनने के बाद आंटी ने कहा.

आंटी बोली “तुम लोगो को ये कैसे लगा कि, जो रामू की माँ ने रामू के साथ किया है. वही पुन्नू की नयी माँ पुन्नू के साथ करेगी. रामू की माँ तो एक अच्छी औरत नही है. इसलिए वो रामू को परेशान किया करती थी. लेकिन पुन्नू की नयी माँ बहुत अच्छी औरत है, इसलिए वो पुन्नू को कभी परेशान नही करेगी.”

आंटी के मूह से नयी माँ की तारीफ सुनकर भी, मुझे आंटी की बात पर विस्वास नही आ रहा था. मैने आंटी से कहा.

मैं बोला “आंटी आपने तो नयी माँ को देखा ही नही और जब आप उन्हे जानती ही नही है तो, फिर आप ये कैसे कह सकती है कि नयी माँ एक अच्छी औरत है और वो मुझे कभी परेशान नही करेगी.”

मेरी बात सुनकर आंटी हँसने लगी और फिर मुझे समझाते हुए कहा.

आंटी बोली “बेटा ये तुमसे किसने कह दिया कि, मैं तुम्हारी नही माँ को नही जानती. मैने तुम्हारी नयी माँ को देखा भी है और मैं उन्हे अच्छे से जानती भी हूँ. वो मेरी सहेली की छोटी बहन है. इसलिए मुझे मालूम है कि, वो बहुत अच्छी है.”

आंटी की ये बात सुनने के बाद भी मैं नयी माँ को अच्छा मानने को तैयार नही था. मैने आंटी से कहा.

मैं बोला “आंटी यदि नयी माँ अच्छी है तो, फिर उन ने मुझे पापा के कमरे से बाहर क्यो निकलवाया.”

आंटी बोली “देखो अभी तुम छोटे हो इसलिए इस बात को नही समझ सकते हो. फिर भी मैं इक दूसरे तरीके से तुमको ये बात समझाती हूँ. देखो तुम और मेहुल एक बराबर के हो. मेहुल भी पहले मेरे और अपने पापा के साथ, हमारे कमरे मे सोता था. मगर फिर ये स्कूल जाने लगा तो, हम ने इसके सोने और पढ़ाई के लिए इसे एक अलग कमरा दे दिया. अब तुम्हारी माँ तो थी नही. फिर तुम्हारे लिए ये सब कौन करता. मगर जब तुम्हारी नयी माँ आई तो, उन ने तुम्हारे लिए वही किया, जो मैने मेहुल के लिए किया था. अब यदि तुम्हारे लिए ऐसा करने से तुम्हारी नयी माँ अच्छी नही है तो, फिर मैने भी तो मेहुल के लिए ऐसा ही किया है. क्या तब मैं भी अच्छी नही हू.”

ये कह कर आंटी मेरी तरफ देखने लगी. मुझे उनकी बात समझ मे आ रही थी. फिर भी मैं नयी माँ को अच्छा मानने को तैयार नही था. मैने फिर से आंटी से सवाल किया.

मैं बोला “यदि ऐसा ही बात है तो, फिर नयी माँ ने मुझे उस दिन, मेहुल के साथ देर तक स्कूल मे रहने पर, गुस्सा क्यो किया था.”

आंटी बोली “देखो बेटा, उस दिन उनका तुम्हारे घर मे पहला ही दिन था और तुम उस दिन समय पर घर नही पहुचे तो, उन्हे तुम्हारी चिंता हो रही होगी. इसलिए उन्हो ने तुम्हे देर से आने के उपर से गुस्सा किया. उस दिन तो मैने भी मेहुल को गुस्सा किया था. तुम चाहो तो मेहुल से पूछ सकते हो.”

आंटी की बात सुनकर मैं मेहुल की तरफ देखने लगा. तब मेहुल ने कहा.

मेहुल बोला “हाँ, उस दिन मम्मी ने भी मुझ पर गुस्सा किया था.”

मेहुल के मूह से ये सच्चाई जानने के बाद भी मैने अपनी बात आंटी के सामने रखते हुए कहा.

मैं बोला “चलो मैं आपकी ये बात भी मान लेता हूँ कि, नयी माँ ने उस दिन मुझे, मेरी चिंता होने की वजह से गुस्सा किया था. लेकिन इसके बाद उन्हो ने, मेरी शिकायत पापा से क्यो की. पापा ने उनकी शिकायत सुनकर मुझ पर बहुत गुस्सा किया था. जब वो खुद मुझ पर इस बात के लिए गुस्सा कर चुकी थी. तब उन्हे पापा से मेरी शिकायत करने की क्या ज़रूरत थी.”

आंटी बोली “देखो बेटा, अभी वो तुम्हारे घर मे नयी है. उस ने सोचा होगा कि, यदि उसने तुम्हारे स्कूल से देर से आने की बात तुम्हारे पापा से ना बताई और कल को तुम्हे कुछ हो गया तो, सब यही कहेगे कि सौतेली माँ थी, इसलिए लड़के का ख़याल नही रखा. अब वो नयी है तो, उसे तुम लोगों को समझने मे कुछ समय तो लगेगा ही है.”

मैं बोला “चलिए आंटी, मैं आपकी ये बात भी मान लेता हूँ. लेकिन मुझे इतनी सी बात के लिए बोर्डिंग क्यो भेजा जा रहा है. ये तो बिल्कुल रामू की तरह ही हो गया है. उसे उसकी नयी माँ के आने पर उसके नाना के घर जाना पड़ा था और मुझे मेरी नयी माँ के आने पर बोर्डिंग जाना पड़ रहा है.”

ये कह कर मैं आंटी की तरफ देखने लगा. आंटी ने मुझसे पुछा.

आंटी बोली “तुम्हे बोर्डिंग भेजने की बात क्या तुम्हारी नयी माँ ने की थी.”

मैं बोला “नही पापा ने की थी.”

आंटी बोली “तब तुम्हारी नयी माँ ने क्या कहा.”

मैं बोला “उन्हो ने कहा कि ये बोर्डिंग के लिए अभी बहुत छोटा है. इसे बोर्डिंग मे नही डालना चाहिए.”

आंटी बोली “देखो बेटा जिस बात से तुम परेशान हो. उस बात के लिए तुम्हारी नयी माँ ने तुम्हारी तरफ़दारी ली. मैं मानती हूँ कि तुम मे अभी अच्छे बुरे की पहचान नही है. लेकिन तुम इतना तो समझ ही सकते हो कि, जो तुम्हारे भले की सोचे वो बुरा नही हो सकता.”

मैं बोला “आंटी आपकी सब बात सही पर आप मुझे बोर्डिंग जाने से रोक लो. मैं बोर्डिंग नही जाना चाहता.”

आंटी बोली “तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हे बोर्डिंग नही जाने दूँगी. मगर इसके लिए पहले तुम खुद कोशिश करो. यदि तुम से कुछ नही हुआ तो, फिर मैं तुम्हारी नयी माँ से बात करके, तुम्हारा बोर्डिंग जाना रुकवा दूँगी.”

आंटी की बात सुनकर मैं सोच मे पड़ गया. जब मेरे कुछ समझ मे नही आया तो मैने आंटी से पुछा.

मैं बोला “आंटी मैं भला क्या कर सकता हूँ. मेरी बात भला कौन मानेगा.”

आंटी बोली “सब से पहले तुम अपनी नयी माँ को बुरा मानना बंद करो और जैसे मेरी हर बात को मानते हो, वैसे ही अपनी नयी माँ की बात भी मानना सुरू कर दो. फिर देखो वो खुद तुम्हे बोर्डिंग नही जाने देगी.”

मैं बोला “आंटी वो मुझ से हमेशा गुस्से मे बात करती है. इसलिए मुझे भी उन पर गुस्सा आ जाता है.”

आंटी बोली “बेटा वो शुरू से ही गुस्से वाली है और यदि कोई उसकी बात नही मानता तो, उसे और भी गुस्सा आ जाता है. मगर जब तुम उसकी बात मनोगे तो, वो तुम पर ज़रा भी गुस्सा नही करेगी.”

मैं बोला “लेकिन आंटी, नयी माँ तो मुझसे कल की बात को लेकर नाराज़ होगी. वो भला मुझसे कोई बात क्यो करेगी. जब वो मुझसे कोई बात नही करेगी तो, फिर मैं उनकी बात कैसे मानूँगा.”

आंटी बोली “सबसे पहले तुम उसे नयी माँ की जगह छोटी माँ बोलना सुरू करो. आज घर जाते ही सब से पहले उसे कल की ग़लती के लिए सॉरी कहना और बर्तडे विश करना. उसकी सारी नाराज़गी खुद ही ख़तम हो जाएगी.”

मई बोला “ठीक है आंटी, अब मेरे घर जाने का टाइम भी हो रहा है. मई घर जाता हू.”

फिर मैने आंटी और मेहुल को बाइ बोला और घर के लिए निकल पड़ा मगर अब मेरे मान से बोर्डिंग जाने का दर निकल गया था. आंटी ने मेरे दिमाग़ मे नयी मा की जो तस्वीर बनाई थी, वो मुझे अची लगने लगी थी. मई बस इसी बारे मे सोचते सोचते अपने घर की तरफ चला जा रहा था

तभी रास्ते मे मुझे एक चूड़ियों की दुकान दिखाई दी. जिसे देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैने बड़े प्यार से नयी माँ के लिए लाल रंग की चूड़ीयाँ खरीदी. उधर ही एक ग्रीटिंग्स की दुकान भी मिल गयी तो मैने एक सॉरी और एक बर्तडे विश की ग्रीटिंग भी ले ली. मैने उसमे लिखवा दिया पुन्नू की छोटी माँ को पुन्नू की तरफ से.

सब समान अपने बेग मे अच्छे से रखने के बाद, मैं आने वाले पल की कल्पना करते हुए खुशी खुशी अपने घर के लिए चल पड़ा.

घर पहुचते ही मुझे नयी माँ दिख गयी. वो हॉल मे ही सोफे पर बैठी थी और उनकी नज़र दरवाजे की ही तरफ ही थी. मैने उनको देख कर मुस्कुराया मगर उन्हो ने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा दिया.

उन्हो ने जिस तरफ अपना चेहरा घुमाया था मैने उस तरफ देखा तो मेरे पैरो से ज़मीन ही खिसक गयी. वहाँ पापा खड़े थे और गुस्से से मुझे ही घूर रहे थे. मैं धीरे धीरे कदम बढ़ते हुए टेबल के पास आया और अपना बेग टेबल पर रखा तब तक पापा मेरे पास आ चुके थे.

पापा बोले "कहाँ से आ रहा है तू"

मुझे उनका ये सवाल करना अजीब लगा, क्योकि मैं तो रोज के टाइम पर ही घर आया था. मैं समझ गया कि, लगता है किसी ने पापा को बता दिया है कि, मई लंच टाइम पर स्कूल से निकल आया था, पर अब मैं इसका क्या जबाब दूं, ये मुझे समझ मे नही आ रहा था, इसलिए मैं सर झुकाए चुप चाप खड़ा रहा.

मेरी खामोशी से पापा का गुस्सा और भी बढ़ गया था. उनने मेरे बाल पकड़ कर मेरा चेहरा अपनी तरफ घुमाया और फिर पूछा.

पापा बोले "कहाँ से आ रहा है तू. जबाब क्यो नही देता."

मगर मेरे पास देने के लिए कोई जबाब होता तो, मैं देता. मैं चुप ही खड़ा रहा और रोने लगा. मेरे जबाब ना देने और रोने से गुस्सा होकर पापा ने खीच कर एक थप्पड़ मेरे गाल पर मारा. वो मुझे और मार पाते, उस से पहले ही नयी माँ बीच मे आ गयी और कहने लगी.

नयी माँ बोली "इतने छोटे बच्चे को क्या इतनी बेरहमी से मारा जाता है."

पापा गुस्से मे बोले "ये तुम्हे बच्चा लगता है. ज़रा इसका शैतानी दिमाग़ तो देखो. स्कूल का टाइम मिलाकर घर आ रहा है. अगर इसके प्रिन्सिपल ने ना बताया होता तो, हमें पता ही नही चलता कि, ये लंच मे ही स्कूल से भाग आया है.”

इतना बोल कर पापा ने मेरा हाथ पकड़ कर, मुझे छोटी माँ के पीछे से अपने पास खिचा और फिर मेरे बाल पकड़ कर पूछा.

पापा बोले "बता कहाँ था अभी तक, स्कूल से क्यो भागा था."

लेकिन मैं कुछ नही बोला तो, पापा ने मुझे मारने के लिए फिर से हाथ उठाया मगर तब तक फिर छोटी माँ ने बीच मे आकर मुझे अपने पीछे छुपा लिया. इस पर पापा ने कहा.

पापा बोले "ये साला ऐसे नही सुधरेगा. इसके सुधारने का एक ही रास्ता है कि, इसे बोर्डिंग भेज दिया जाए."

पापा के मूह से बोर्डिंग का नाम सुनते ही मुझे भी गुस्सा आ गया और मैने वो बोल दिया जो ना तो मैने कभी सोचा था और ना ही कभी मेरे दिमाग़ ने सोचा था.

मैने रोते हुए कहा "हाँ हाँ भेज दो मुझे बोर्डिंग. ताकि जैसे दूसरी बीबी ले आए हो, वैसे ही दूसरा बच्चा भी ले आओ."

मेरी इस बात ने दो बॉम्ब का काम किया था. एक बॉम्ब मैने अपनी नयी माँ पर गिराया था. जो मेरी बात को सुनकर सन्न रह गयी थी, तो दूसरा बॉम्ब मैने मेरे पापा पर गिराया था, जिसने उन्हे मानव से दानव बना दिया था.

वो मुझे पीटने के लिए अपनी तरफ गुस्से से खीच रहे थे. लेकिन नयी माँ मुझे उनसे बचाने की कोशिस कर रही थी. मगर पापा तो गुस्से मे पूरे दानव बन चुके थे और ऐसा लग रहा था कि ये दानव मेरा वध करके ही शांत होगा.

जब नयी माँ ने पापा को, मुझे पीटने से रोके रखा तो, पापा ने अपना गुस्सा उन पर उतारते हुए, उनके दोनो हाथ पकड़कर इतनी ज़ोर से दूसरी तरफ धकेला कि, नयी माँ टेबल के पास जाकर गिरी और टेबल का किनारा बड़ी ज़ोर से उन्हे लगा. एक पल के लिए वो अपनी सुध बुध खो बैठी. उनके माथे से खून आने लगा और वो अचेत सी हो गयी.

नयी माँ के हमारे बीच से हट जाने के बाद, पापा ने मेरी रूई का तरह धुनाई करना सुरू कर दिया.

चंदा मौसी और ड्राइवर भी वही खड़े थे. मेरी पिटाई देख कर उनकी आँखों से आँसू बह रह थे. मगर पापा को रोकने की किसी की हिम्मत नही पड़ रही थी और मैं मुझे पड़ रही मार से, मैं ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था "अरे कोई तो बचा लो मुझे. कोई तो रोक लो पापा को."

"अरे कोई तो बचा लो मुझे. कोई तो रोक लो पापा को"

 

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Bhai likho or jaha pe atki hai vahi pe ja ke tum aage badha na
 

swadu

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मेरा नाम पुनीत है. मैं 24 साल का हूँ और मेरी हाइट 5'7" फुट है. देखने मे किसी हीरो की तरह हॅंडसम तो नही हूँ. लेकिन फिर भी इतना ज़रूर है कि, यदि कोई लड़की मुझे देखे तो, एक बार अपने दिल मे, ये बात ज़रूर सोचेगी कि, काश ये लड़का मेरा बाय्फ्रेंड होता.

ये तो मेरा परिचय हो गया. अब मैं अपने परिवार के बाकी सदस्यों का परिचय भी आप से करवा देता हूँ. जिनके इर्द गिर्द ये कहानी घूमना है.

सबसे पहले मैं आपका परिचय मेरे घर के मुखिया से करता हूँ. मेरे घर के सबसे पहले सदस्य मेरे पापा अमरनाथ है. उनकी उमर 48 साल है. लेकिन इस उमर मे भी वो अपने आपको बहुत मेनटेन करके रखते है. इसलिए 48 के होने के बाद भी वो बिल्कुल चुस्त दुरुस्त दिखते है.

उनकी इस चुस्ती का राज भी मुझे बहुत बाद मे पता चला. जो आपको भी आगे चलकर स्टोरी मे पता चल जाएगा. पापा एक बिज़्नेसमॅन है और उनका बिज़्नेस दूसरे सहरों मे भी फैला हुआ है. जिस वजह से हमारे यहाँ पैसो की कोई कमी नही है और हमारा परिवार आमिर परिवारों की गिनती मे आता है.

मेरे परिवार की दूसरी सदस्या मेरी माँ सुनीता है. उनकी उमर 36 साल है. देखने मे वो बिल्कुल शिल्पा सेठी की तरह दिखती है और 2 बेटियों की माँ होने के बाद भी बड़ी ही स्मार्ट पर्सनॅलिटी की मालकिन है.

अब मेरी माँ की उमर 36 साल और मेरी उमर 24 साल देख कर, आपके मन मे ये सवाल ज़रूर आएगा कि ऐसा कैसे हो सकता है. तो मैं आपको बता दूं की, सुनीता मेरी सग़ी माँ नही है. मेरी सग़ी माँ का देहांत तो, तभी हो गया था, जब मैं बहुत छोटा था. सुनीता मेरी सौतेली माँ है और मैं उन्हे छोटी माँ कह कर बुलाता हूँ.

छोटी माँ के बाद मेरे परिवार की तीसरी सदस्या मेरी सौतेली बहन अमिता है. अमिता अभी 12थ मे पढ़ रही है. वो बचपन से ही शांत स्वाभाव की और समझदार लड़की है. अमिता देखने मे दुबली पतली है और पूरी तरह से छोटी माँ पर गयी है. वो मुझसे 7 साल छोटी है. सब उसे प्यार से अमि बुलाते है और मैं उसे अमि के साथ साथ बेटू भी बुलाता हूँ.

अमिता के बाद मेरे परिवार की चौथी सदस्या मेरी सौतेली बहन नामिता है. नामिता अभी 10थ मे पढ़ रही है. वो बचपन से ही चंचल और नटखट स्वाभाव की लड़की है. गुस्सा तो उसकी नाक पर ही बैठा रहता है. नामिता देखने मे भरे बदन की लड़की है. मगर मोटी बिल्कुल नही है. वो मुझसे 9 साल छोटी है. सब उसे प्यार से निमी बुलाते है और मैं निमी के साथ साथ छोटी भी बुलाता हूँ.

मेरे परिवार का पाँचवा सदस्या मैं खुद हूँ. मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी है और अब मैं अपने पापा के साथ उनका बिज़्नेस संभालता हूँ. मुझे सब प्यार से पुन्नू बुलाते है. ये मेरे छोटे से परिवार का परिचय था. अब मैं अपनी कहानी पर आता हूँ.

ये कहानी तब सुरू होती है. जब मैं पहली क्लास मे पढ़ता था और मेरी माँ का देहांत हुए कुछ ही समय हुआ था. मेरी देख भाल मेरे पापा, और मेरे घर मे काम करने वाली चंदा मौसी किया करती थी.

पापा की उमर उस समय 30 साल रही होगी. एक दिन उनके ऑफीस मे एक लड़की सुनीता जॉब के लिए आई. उसकी उमर उस समय 18 साल रही होगी. पापा सुनीता को देखते ही उसके रूप पर मोहित हो गये और पहली ही मुलाकात मे उसके सामने जॉब की जगह शादी का प्रस्ताव रख दिया.

अचानक से पापा की तरफ से ये शादी का प्रस्ताव पाकर, सुनीता के कुछ समझ मे नही आया. वो एक मध्यम परिवार की लड़की थी और पापा एक रहीश खानदान के इकलौते लड़के होने के साथ साथ एक कंपनी के मालिक थे.

इसलिए सुनीता ने थोड़ा बहुत सोचने के बाद पापा के शादी के प्रस्ताव मंजूर कर लिया. कुछ ही दिनो मे पापा की शादी सुनीता के साथ हो गयी और सुनीता मेरी सौतेली माँ बनकर मेरे घर आ गयी. उनकी शादी के 1 साल बाद मेरी सौतेली बहन अमिता और 3 साल बाद नामिता का जनम हुआ.

लेकिन ये कहानी अमिता और नामिता के जनम से पहले, पापा की शादी की पहली रात से सुरू होती है. उस समय पापा की एज 30 साल और सुनीता की आगे 18 साल थी. मेरी सौतेली माँ का पति मतलब की पापा उनसे 12 साल बड़े थे, और उनके पति का बेटा मतलब कि मैं उनसे 12 साल छोटा था.

मुझे अच्छे से याद है कि उस समय मैं पापा के साथ ही सोया करता था. मगर जब पापा ने मुझे शादी की पहली रात मेरी सौतेली माँ से मिलवाया तो कहा कि “ये तुम्हारी नयी माँ है और आज से तुम इनको ही मम्मी कहोगे और आज से तुम दूसरे कमरे सोया करोगे.”

इसके बाद मेरे सोने की व्यवस्था एक दूसरे कमरे मे कर दी गयी. उस समय मुझे इतनी समझ तो थी नही जो पापा और छोटी माँ के एक साथ सोने का कुछ मतलब समझ पता. मुझे उस रात अकेले ज़रा भी नींद नही आई.

मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था. ऐसा लग रहा था कि मेरी माँ की मौत के साथ ही मेरी खुशिया भी ख़तम हो गयी हो. मैं सारी रत अपनी मरी हुई माँ को याद करके, रोता रहा और मुझे पहले दिन ही अपनी नयी माँ से नफ़रत हो गयी.

रात को रोते रोते कब मेरी नींद लग गयी, मुझे पता ही नही चला. सुबह सुबह मेरी नींद पापा की आवाज़ से खुली. पापा मुझे नींद से जगा रहे थे. मेरी नींद खुली तो पापा कहने लगे.

पापा बोले "पुन्नू जल्दी से उठ जाओ, नही तो स्कूल के लिए देर हो जाएगी."

मैने आँख खोल कर देखा तो नयी माँ भी पापा के साथ खड़ी मुस्कुरा रही थी. उन्हे हंसता देख कर मैं मन ही मन जल रहा था.

मैं बिना कुछ बोले फ्रेश होने चला गया. नहाने के बाद मुझे रोज की तरह मेरे घर मे काम करने वाली चंदा मौसी ने तैयार किया और फिर मैं स्कूल चला गया.

स्कूल मे भी मैं सारे समय उदास रहा. मुझे उदास देख कर मेरे दोस्त मेहुल ने कहा.

मेहुल बोला "सुना है तेरे पापा तेरे लिए नयी माँ लाए है."

मैं बोला "हाँ यार लाए तो है, पर नयी माँ अच्छी नही है. आते ही उसने मुझे पापा के कमरे से बाहर निकाल दिया. कल पहली बार मैं अकेले सोया."

ये कहते कहते मैं रो पड़ा. मेहुल मुझे चुप करता रहा और फिर कहने लगा.

मेहुल बोला “देख पुन्नू सौतेली माँ बहुत गंदी होती है.”

मैं बोला “ये सौतेली माँ क्या होता है.”

मेहुल बोला “जब किसी की माँ मर जाती है और उसके पापा जो नयी माँ लाते है, उसे सौतेली माँ कहते है.”

मेहुल की बात सुनकर मेरे मन की उत्सुकता बढ़ गयी. मैने उस से कहा.

मैं बोला “तुझे कैसे पता की सौतेली माँ गंदी होती है.

मेहुल बोला “मेरे पड़ोस मे एक लड़का रामू रहता है उसकी भी सौतेली माँ है. उसकी सौतेली माँ ने उसका स्कूल छुड़वा दिया है और उस से घर का सारा काम करवाती है. अपने बच्चों को तो खूब अच्छा अच्छा खाना देती है पर रामू को बचा हुआ खाना देती है और कभी कभी तो उसे भूका भी रखती है.”

मैं बोला “क्या रामू के पापा सौतेली माँ को ऐसा करने से नही रोकते.”

मेहुल बोला “पहले तो रोकते थे पर जब से सौतेली माँ के बच्चे हुए तब से वो उन बच्चों को प्यार करने लगे और रामू को अपनी माँ और भाई बहनो के साथ मिल कर ना रहने के लिए गुस्सा करने लगे. बेचारा रामू बिल्कुल अकेला हो गया. तब उसके नाना रामू को अपने साथ ले गये. अब रामू अपने नाना के साथ ही रहता है.”

रामू के उसके नाना के साथ जाने की बात सुनकर ना जाने क्यो मुझे खुशी हुई.

मैं बोला “क्या अब रामू अपने नाना के यहाँ खुश है.”

मेहुल बोला "नही यार वो बेचारा तो वहाँ भी खुश नही है. वहाँ उसके नाना नानी के साथ उसके 3 मामा और मामी भी रहते है. उसकी ममिया भी उसे परेशान करती है. बस फ़र्क इतना है कि उसके नाना नानी उसे बहुत प्यार करते है. इसलिए वो वहाँ से वापस आना नही चाहता.”

मेहुल की बात सुनकर मुझे बहुत निराशा हुई.

मैने बोला “यार अब मैं क्या करूँ. मेरी छोटी माँ भी तो सौतेली माँ है. क्या वो भी मुझे रामू की तरह दुख देगी.”

मुझे परेशान देख कर मेहुल ने मुझे दिलासा देते हुए कहा.

मेहुल बोला “यार तू दुखी मत हो. मैं कुछ ना कुछ रास्ता ढूँढ निकालुगा.”

मेहुल की बातों से मुझे कुछ सुकून महसूस हुआ और फिर हम लोग अपने अपने घर के लिए निकल लिए.मैं घर पहुचा तो नयी माँ हॉल मे बैठी टीवी देख रही थी. मुझे स्कूल से आया देख कर नयी माँ ने मुझे अपने पास बुला कर पूछा.

नयी माँ बोली “तुम्हारी स्कूल कितने बजे छूटी है.”

उनके इस सवाल से मैं सहम गया. मुझे लगा मेरी चोरी पकड़ी गयी है. मैने धीमी आवाज़ मे कहा.

मैं बोला “जी 1 बजे छूटी है.”

उन्होने मुझे गुस्से मे घूरते हुए कहा.

नयी माँ बोली “तब फिर तुम 2:30 बजे घर क्यो आ रहे हो. इतनी देर कहाँ थे और क्या कर रहे थे.”

मैने उनको अपनी सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “स्कूल तो 1 बजे छूट गया था पर मैं अपने दोस्त मेहुल से बात करने लगा था, इसलिए मुझे आने मे देर हो गयी.”

नयी माँ बोली “ठीक है आज मेरे सामने तुमने पहली बार ऐसा किया है. इसलिए मैं तुम पर कोई गुस्सा नही कर रही हूँ. मगर कल से ऐसा नही चलेगा. कल से समय पर घर आना. अब जाओ और जाकर कपड़े बदल कर खाना खा लो.”

मैं बोला “जी नयी माँ.”

इतना कहकर मैं सरपट अपने कमरे की तरफ भाग गया. जिसे कल रात ही मेरे लिए तैयार किया गया था.

रात को डिन्नर पर नयी माँ ने पापा को, मेरे स्कूल से देर से आने की बात बता दी. पापा ने मुझे बहुत गुस्सा किया. जिस वजह से मेरी नयी माँ के लिए नफ़रत और गहरी हो गयी. उस रात भी मैं अपनी नयी माँ को कोसते हुए सोया.

अगले दिन मैने मेहुल को सारी बात बताई. तब उसने कहा.

मेहुल बोला “देखा तेरी सौतेली माँ अब धीरे धीरे अपना रंग दिखाने लगी है. तू उस से डरना बंद कर और उसको सबक सिखा नही तो एक दिन तुझे भी रामू की तरह दुख सहने पड़ेँगे.”

मेहुल की बात मुझे जम गयी मैने उस से पूछा.

मैं बोला “मैं नयी माँ को सबक सिखाने के लिए क्या करू.”

तब मेहुल ने मुझे समझाते हुए कहा.

मेहुल बोला “सबसे पहले तू उस से डरना बंद कर और उसको हर बात का जबाब देना सुरू कर. आख़िर घर तो तेरा ही है. फिर वो तेरी सग़ी माँ तो है नही. जो तुझ पर इस तरह से हुकुम चलाए. जैसे वो तेरी शिकायत तेरे पापा से करती है. तू भी उसकी शिकायत पापा से कर.”

आख़िर छोटे बच्चों की सोच भी तो छोटी ही होती है. मुझे मेहुल की बात बहुत पसंद आई. मैने उस पर अमल करना भी शुरू कर दिया. जिसका नतीजा ये निकला कि, एक हफ्ते के अंदर मेरे और मेरी नयी माँ के बीच तनाव और भी ज़्यादा बढ़ गया. फिर एक दिन वो हो गया जो मेरे छोटे से दिमाग़ ने सोचा भी नही था.हुआ ये कि पापा ने नयी माँ के जनमदिन की पार्टी रखी थी. पापा ने कभी मेरे जनम दिन की पार्टी नही रखी थी और आज नयी माँ के जनमदिन की पार्टी कर रहे थे. जो मुझे ज़रा भी अच्छा नही लगा. मैं पार्टी मे नही गया और अपने कमरे मे ही बुक खोल कर बैठ गया. ताकि कोई आए तो उसे लगे कि, मैं पढ़ाई कर रहा हूँ.

मेरा सोचना ठीक ही निकला. क्योकि कुछ ही देर बाद किसी ने मेरा दरवाजा खटखटाया. मैने दरवाजा खोला तो सामने नयी माँ खड़ी थी. उन्हे दरवाजे पर खड़ा देख कर मैने कहा.

मैं बोला “जी नयी माँ.”

नयी माँ बोली “नीचे इतनी बड़ी पार्टी चल रही है. तुम यहाँ कमरे मे बैठे बैठे क्या कर रहे हो. चलो जल्दी से कपड़े बदलो और पार्टी मे आ जाओ.”

मैं बोला “नयी माँ, मुझे पार्टी पसंद नही है. मैं पार्टी मे नही आउन्गा और मुझे पढ़ाई भी करनी है.”

नयी माँ बोली “देखो पार्टी हम लोगो ने दी है, इसलिए पार्टी मे हमारे परिवार के सभी लोगो का होना ज़रूरी है. तुम चाहो तो थोड़ी देर बाद वापस आ जाना और अपनी पढ़ाई कर लेना. अब देर मत करो और तैयार होकर जल्दी से आ जाओ.”

ये कहकर नयी माँ चली गयी, पर मैं पार्टी मे नही गया. काफ़ी देर तक मैं पार्टी मे नही गया तो, नयी माँ फिर मुझे बुलाने आई मगर मैने आने से साफ मना कर दिया. तब नयी माँ ने मुझे समझाते हुए कहा.

नयी माँ बोली “देखो, पार्टी मे सभी रिश्तेदार आए है. यदि तुम नही आओगे तो वो तरह तरह की बाते करेगे. जो तुम्हारे पापा को अच्छी नही लगेगी और हो सकता है तुम्हारे पापा अपना सारा गुस्सा तुम पर उतार दे. इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम कुछ देर के लिए पार्टी मे आ जाओ.”

इतना कह कर नयी माँ चली गयी. मगर मुझे तो नयी माँ की बात ना मानने और उनको नीचा दिखाने का जुनून सवार था. इसलिए मैने इस बार भी उनकी बात पर कोई ध्यान नही दिया और मैं पार्टी मे नही गया.

देर रत को पार्टी ख़तम हुई. तब पापा और नयी माँ मेरे कमरे मे आए. मैं अपने बिस्तर पर लेटा हुआ, सोने का नाटक कर रहा था. पापा ने 2 बार मुझे आवाज़ दी, पर मैं चुपचाप लेटा रहा.

तब नयी माँ बोली “देखो पढ़ाई करते करते सो गया है. मैं तो पहले ही कह रही थी कि, वो पढ़ाई करते करते सो गया होगा. लेकिन आप मेरी बात मान ही रहे थे.”

मगर पापा मेरी वजह से बहुत गुस्से मे लग रहे थे. वो नयी माँ की इस बात के जबाब मे कहने लगे.

पापा बोले “ये लड़का बहुत ही बिगड़ गया है. इसे सुधारने का अब एक ही रास्ता है कि, इसे बोर्डिंग स्कूल मे डाल दिया जाए. वरना एक दिन ये लड़का हमारे हाथ से निकल जाएगा.”

पापा की बात सुनकर नयी माँ ने उन्हे समझाते हुए कहा.

नयी माँ बोली “अभी ये बहुत छोटा है. इतनी सी उमर मे इसे बोर्डिंग स्कूल मे डालना, ठीक नही रहेगा. वो थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो, खुद ही हर बात को समझने लगेगा.”

पापा बोले “नही ये बहुत ढीठ हो गया है और यदि हमने इसे अपने साथ रखा तो, इसका ढीठपन और भी बढ़ता जाएगा. इसके लिए यही ठीक होगा कि, ये बोर्डिंग मे रहे.”

इतना कहकर पापा और नयी माँ चले गये. लेकिन उनकी ये बात सुनकर तो, मेरी सिट्टी पिटी गुम हो गयी थी. अब मैं उस घड़ी को कोस रहा था, जब मैने नयी माँ की बात ना मान कर, पार्टी मे ना जाने का फ़ैसला था.


मैने खुद ही अपने लिए एक परेशानी खड़ी कर ली थी. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. मेरे दिमाग़ मे तो कुछ आ ही नही रहा था, इसलिए मैने सोचा कि, अब जो भी कर पाएगा, मेहुल ही कर पाएगा और फिर ये सब सोचते सोचते मैं सो गया.
दूसरे दिन मैं पापा का सामना किए बिना ही स्कूल निकल गया और फिर लंच मे मैने मेहुल को सारी बात बताई. तब मेहुल ने कहा.


मेहुल बोला “यार ये तो बहुत बड़ी मुसीबत हो गयी है. इसके लिए तो अब हमे मम्मी ही कोई रास्ता बता सकती है.”

मैं बोला “तो फिर चल, घर चलते है और आंटी से ही रास्ता पूछते है”

इसके बाद हम ने लंच से ही स्कूल से छुट्टी मार दी और हम दोनो, मेहुल के घर के लिए निकल पड़े.

मेहुल की मम्मी, रिचा आंटी 26 साल की अत्यंत सुंदर महिला थी. जब से मेरी मम्मी की डेत हुई थी, तब से वो मुझे बहुत ही ज़्यादा प्यार करती थी और जब भी मैं उनके घर जाता था. वो मुझे बिना खाना खाए नही जाने देती थी और हमेशा मेहुल के हाथ से भी मेरे लिए, कुछ ना कुछ भेजती रहती थी. इसलिए मैं उन्हे बहुत पसंद करता था और अपनी मम्मी की तरह ही उन्हे प्यार करता था.

मेहुल के घर पहुचने पर जब रिचा आंटी ने दरवाजा खोला तो, हमे देख कर चौुक्ते हुए पुछा.

रिचा आंटी बोली “तुम लोग इतनी जल्दी घर कैसे आ गये.”

तब मेहुल बोला “मम्मी पुन्नू परेशान है और उसी परेशानी का हल आप से जानने आया है.”

रिचा आंटी बोली “ठीक है, पहले तुम दोनो कुछ खा लो. उसके बाद मैं पुन्नू की परेशानी भी सुनूँगी और उसे हल करने का रास्ता भी बताउन्गी.”

ये कह कर आंटी हम दोनो को घर के अंदर ले गयी. उन ने हम दोनो को बैठने को कहा और खुद हमारे लिए खाना लेने रसोई मे चली गयी.आंटी ने हम लोगों को आलू के पराठे बनाकर खिलाए और जब हम लोगों ने पराठे खा लिए तो फिर उन्हो ने मुझसे पूछा.

आंटी बोली “हाँ बेटा, अब बताओ तुम्हे क्या परेशानी है, जिसको हल करने का रास्ता तुम मुझसे जानना चाहते हो.”

मैने आंटी को, अपने रात को नयी माँ की बर्थ’डे पार्टी मे ना जाने और पापा की मुझे बोर्डिंग भेजने वाली बात बता दी. जिसे सुनने के बाद आंटी ने कहा.

आंटी बोली “बेटा जब तुम्हारी नयी माँ ने तुम्हे पार्टी मे आने को बोला तो, तुम पार्टी मे क्यों नही गये. ये तो तुम्हारी ही ग़लती है और इस बात पर तुम्हारे पापा का गुस्सा करना ज़रा भी ग़लत नही है.”

मुझे आंटी की ये बात सुनकर बहुत ज़्यादा निराशा हुई और मैं उदास हो गया. मुझे उदास देख कर, आंटी मेरे पास आकर बैठ गयी और मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहने लगी.

आंटी बोली “बेटा मेरी बात का बुरा मत मानो. मैं जो भी कहुगी, तुम्हारे भले के लिए ही कहुगी. अब मैं तुमसे जो भी पूछती हूँ, तुम उसका सही सही जबाब दो. तभी तो मैं तुम्हारी परेसानी को दूर करने का कोई रास्ता बता सकुगी.”

मुझे आंटी का यूँ प्यार से हाथ फेरना और उनकी बात दोनो बहुत अच्छे लगे. मैने खुश होते हुए आंटी से कहा.

मैं बोला “आप पूछिए आंटी, मैं आपकी हर बात का सही सही जबाब दूँगा.”

आंटी बोली “अच्छा ये बताओ, कल रात को अपनी नयी माँ के बार बार कहने पर भी, तुम पार्टी मे क्यो नही गये थे.”

मैं बोला “मुझे नयी माँ बिल्कुल भी पसंद नही है. इसलिए कल मैने उनकी बात नही मानी.”

आंटी बोली “क्यो, तुम्हे नयी माँ क्यो पसंद नही है.”

आंटी की इस बात पर मैं मेहुल की तरफ देखने लगा तो, मेहुल समझ गया कि, अब आगे की बात बताने की बारी उसकी है और फिर उसने पहले दिन से लेकर अभी तक हुई सारी बात आंटी को बता दी. जिसे सुनने के बाद आंटी ने कहा.

आंटी बोली “तुम लोगो को ये कैसे लगा कि, जो रामू की माँ ने रामू के साथ किया है. वही पुन्नू की नयी माँ पुन्नू के साथ करेगी. रामू की माँ तो एक अच्छी औरत नही है. इसलिए वो रामू को परेशान किया करती थी. लेकिन पुन्नू की नयी माँ बहुत अच्छी औरत है, इसलिए वो पुन्नू को कभी परेशान नही करेगी.”

आंटी के मूह से नयी माँ की तारीफ सुनकर भी, मुझे आंटी की बात पर विस्वास नही आ रहा था. मैने आंटी से कहा.

मैं बोला “आंटी आपने तो नयी माँ को देखा ही नही और जब आप उन्हे जानती ही नही है तो, फिर आप ये कैसे कह सकती है कि नयी माँ एक अच्छी औरत है और वो मुझे कभी परेशान नही करेगी.”

मेरी बात सुनकर आंटी हँसने लगी और फिर मुझे समझाते हुए कहा.

आंटी बोली “बेटा ये तुमसे किसने कह दिया कि, मैं तुम्हारी नही माँ को नही जानती. मैने तुम्हारी नयी माँ को देखा भी है और मैं उन्हे अच्छे से जानती भी हूँ. वो मेरी सहेली की छोटी बहन है. इसलिए मुझे मालूम है कि, वो बहुत अच्छी है.”

आंटी की ये बात सुनने के बाद भी मैं नयी माँ को अच्छा मानने को तैयार नही था. मैने आंटी से कहा.

मैं बोला “आंटी यदि नयी माँ अच्छी है तो, फिर उन ने मुझे पापा के कमरे से बाहर क्यो निकलवाया.”

आंटी बोली “देखो अभी तुम छोटे हो इसलिए इस बात को नही समझ सकते हो. फिर भी मैं इक दूसरे तरीके से तुमको ये बात समझाती हूँ. देखो तुम और मेहुल एक बराबर के हो. मेहुल भी पहले मेरे और अपने पापा के साथ, हमारे कमरे मे सोता था. मगर फिर ये स्कूल जाने लगा तो, हम ने इसके सोने और पढ़ाई के लिए इसे एक अलग कमरा दे दिया. अब तुम्हारी माँ तो थी नही. फिर तुम्हारे लिए ये सब कौन करता. मगर जब तुम्हारी नयी माँ आई तो, उन ने तुम्हारे लिए वही किया, जो मैने मेहुल के लिए किया था. अब यदि तुम्हारे लिए ऐसा करने से तुम्हारी नयी माँ अच्छी नही है तो, फिर मैने भी तो मेहुल के लिए ऐसा ही किया है. क्या तब मैं भी अच्छी नही हू.”

ये कह कर आंटी मेरी तरफ देखने लगी. मुझे उनकी बात समझ मे आ रही थी. फिर भी मैं नयी माँ को अच्छा मानने को तैयार नही था. मैने फिर से आंटी से सवाल किया.

मैं बोला “यदि ऐसा ही बात है तो, फिर नयी माँ ने मुझे उस दिन, मेहुल के साथ देर तक स्कूल मे रहने पर, गुस्सा क्यो किया था.”

आंटी बोली “देखो बेटा, उस दिन उनका तुम्हारे घर मे पहला ही दिन था और तुम उस दिन समय पर घर नही पहुचे तो, उन्हे तुम्हारी चिंता हो रही होगी. इसलिए उन्हो ने तुम्हे देर से आने के उपर से गुस्सा किया. उस दिन तो मैने भी मेहुल को गुस्सा किया था. तुम चाहो तो मेहुल से पूछ सकते हो.”

आंटी की बात सुनकर मैं मेहुल की तरफ देखने लगा. तब मेहुल ने कहा.

मेहुल बोला “हाँ, उस दिन मम्मी ने भी मुझ पर गुस्सा किया था.”

मेहुल के मूह से ये सच्चाई जानने के बाद भी मैने अपनी बात आंटी के सामने रखते हुए कहा.

मैं बोला “चलो मैं आपकी ये बात भी मान लेता हूँ कि, नयी माँ ने उस दिन मुझे, मेरी चिंता होने की वजह से गुस्सा किया था. लेकिन इसके बाद उन्हो ने, मेरी शिकायत पापा से क्यो की. पापा ने उनकी शिकायत सुनकर मुझ पर बहुत गुस्सा किया था. जब वो खुद मुझ पर इस बात के लिए गुस्सा कर चुकी थी. तब उन्हे पापा से मेरी शिकायत करने की क्या ज़रूरत थी.”

आंटी बोली “देखो बेटा, अभी वो तुम्हारे घर मे नयी है. उस ने सोचा होगा कि, यदि उसने तुम्हारे स्कूल से देर से आने की बात तुम्हारे पापा से ना बताई और कल को तुम्हे कुछ हो गया तो, सब यही कहेगे कि सौतेली माँ थी, इसलिए लड़के का ख़याल नही रखा. अब वो नयी है तो, उसे तुम लोगों को समझने मे कुछ समय तो लगेगा ही है.”

मैं बोला “चलिए आंटी, मैं आपकी ये बात भी मान लेता हूँ. लेकिन मुझे इतनी सी बात के लिए बोर्डिंग क्यो भेजा जा रहा है. ये तो बिल्कुल रामू की तरह ही हो गया है. उसे उसकी नयी माँ के आने पर उसके नाना के घर जाना पड़ा था और मुझे मेरी नयी माँ के आने पर बोर्डिंग जाना पड़ रहा है.”

ये कह कर मैं आंटी की तरफ देखने लगा. आंटी ने मुझसे पुछा.

आंटी बोली “तुम्हे बोर्डिंग भेजने की बात क्या तुम्हारी नयी माँ ने की थी.”

मैं बोला “नही पापा ने की थी.”

आंटी बोली “तब तुम्हारी नयी माँ ने क्या कहा.”

मैं बोला “उन्हो ने कहा कि ये बोर्डिंग के लिए अभी बहुत छोटा है. इसे बोर्डिंग मे नही डालना चाहिए.”

आंटी बोली “देखो बेटा जिस बात से तुम परेशान हो. उस बात के लिए तुम्हारी नयी माँ ने तुम्हारी तरफ़दारी ली. मैं मानती हूँ कि तुम मे अभी अच्छे बुरे की पहचान नही है. लेकिन तुम इतना तो समझ ही सकते हो कि, जो तुम्हारे भले की सोचे वो बुरा नही हो सकता.”

मैं बोला “आंटी आपकी सब बात सही पर आप मुझे बोर्डिंग जाने से रोक लो. मैं बोर्डिंग नही जाना चाहता.”

आंटी बोली “तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हे बोर्डिंग नही जाने दूँगी. मगर इसके लिए पहले तुम खुद कोशिश करो. यदि तुम से कुछ नही हुआ तो, फिर मैं तुम्हारी नयी माँ से बात करके, तुम्हारा बोर्डिंग जाना रुकवा दूँगी.”

आंटी की बात सुनकर मैं सोच मे पड़ गया. जब मेरे कुछ समझ मे नही आया तो मैने आंटी से पुछा.

मैं बोला “आंटी मैं भला क्या कर सकता हूँ. मेरी बात भला कौन मानेगा.”

आंटी बोली “सब से पहले तुम अपनी नयी माँ को बुरा मानना बंद करो और जैसे मेरी हर बात को मानते हो, वैसे ही अपनी नयी माँ की बात भी मानना सुरू कर दो. फिर देखो वो खुद तुम्हे बोर्डिंग नही जाने देगी.”

मैं बोला “आंटी वो मुझ से हमेशा गुस्से मे बात करती है. इसलिए मुझे भी उन पर गुस्सा आ जाता है.”

आंटी बोली “बेटा वो शुरू से ही गुस्से वाली है और यदि कोई उसकी बात नही मानता तो, उसे और भी गुस्सा आ जाता है. मगर जब तुम उसकी बात मनोगे तो, वो तुम पर ज़रा भी गुस्सा नही करेगी.”

मैं बोला “लेकिन आंटी, नयी माँ तो मुझसे कल की बात को लेकर नाराज़ होगी. वो भला मुझसे कोई बात क्यो करेगी. जब वो मुझसे कोई बात नही करेगी तो, फिर मैं उनकी बात कैसे मानूँगा.”

आंटी बोली “सबसे पहले तुम उसे नयी माँ की जगह छोटी माँ बोलना सुरू करो. आज घर जाते ही सब से पहले उसे कल की ग़लती के लिए सॉरी कहना और बर्तडे विश करना. उसकी सारी नाराज़गी खुद ही ख़तम हो जाएगी.”

मई बोला “ठीक है आंटी, अब मेरे घर जाने का टाइम भी हो रहा है. मई घर जाता हू.”

फिर मैने आंटी और मेहुल को बाइ बोला और घर के लिए निकल पड़ा मगर अब मेरे मान से बोर्डिंग जाने का दर निकल गया था. आंटी ने मेरे दिमाग़ मे नयी मा की जो तस्वीर बनाई थी, वो मुझे अची लगने लगी थी. मई बस इसी बारे मे सोचते सोचते अपने घर की तरफ चला जा रहा था

तभी रास्ते मे मुझे एक चूड़ियों की दुकान दिखाई दी. जिसे देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैने बड़े प्यार से नयी माँ के लिए लाल रंग की चूड़ीयाँ खरीदी. उधर ही एक ग्रीटिंग्स की दुकान भी मिल गयी तो मैने एक सॉरी और एक बर्तडे विश की ग्रीटिंग भी ले ली. मैने उसमे लिखवा दिया पुन्नू की छोटी माँ को पुन्नू की तरफ से.

सब समान अपने बेग मे अच्छे से रखने के बाद, मैं आने वाले पल की कल्पना करते हुए खुशी खुशी अपने घर के लिए चल पड़ा.

घर पहुचते ही मुझे नयी माँ दिख गयी. वो हॉल मे ही सोफे पर बैठी थी और उनकी नज़र दरवाजे की ही तरफ ही थी. मैने उनको देख कर मुस्कुराया मगर उन्हो ने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा दिया.

उन्हो ने जिस तरफ अपना चेहरा घुमाया था मैने उस तरफ देखा तो मेरे पैरो से ज़मीन ही खिसक गयी. वहाँ पापा खड़े थे और गुस्से से मुझे ही घूर रहे थे. मैं धीरे धीरे कदम बढ़ते हुए टेबल के पास आया और अपना बेग टेबल पर रखा तब तक पापा मेरे पास आ चुके थे.

पापा बोले "कहाँ से आ रहा है तू"

मुझे उनका ये सवाल करना अजीब लगा, क्योकि मैं तो रोज के टाइम पर ही घर आया था. मैं समझ गया कि, लगता है किसी ने पापा को बता दिया है कि, मई लंच टाइम पर स्कूल से निकल आया था, पर अब मैं इसका क्या जबाब दूं, ये मुझे समझ मे नही आ रहा था, इसलिए मैं सर झुकाए चुप चाप खड़ा रहा.

मेरी खामोशी से पापा का गुस्सा और भी बढ़ गया था. उनने मेरे बाल पकड़ कर मेरा चेहरा अपनी तरफ घुमाया और फिर पूछा.

पापा बोले "कहाँ से आ रहा है तू. जबाब क्यो नही देता."

मगर मेरे पास देने के लिए कोई जबाब होता तो, मैं देता. मैं चुप ही खड़ा रहा और रोने लगा. मेरे जबाब ना देने और रोने से गुस्सा होकर पापा ने खीच कर एक थप्पड़ मेरे गाल पर मारा. वो मुझे और मार पाते, उस से पहले ही नयी माँ बीच मे आ गयी और कहने लगी.

नयी माँ बोली "इतने छोटे बच्चे को क्या इतनी बेरहमी से मारा जाता है."

पापा गुस्से मे बोले "ये तुम्हे बच्चा लगता है. ज़रा इसका शैतानी दिमाग़ तो देखो. स्कूल का टाइम मिलाकर घर आ रहा है. अगर इसके प्रिन्सिपल ने ना बताया होता तो, हमें पता ही नही चलता कि, ये लंच मे ही स्कूल से भाग आया है.”

इतना बोल कर पापा ने मेरा हाथ पकड़ कर, मुझे छोटी माँ के पीछे से अपने पास खिचा और फिर मेरे बाल पकड़ कर पूछा.

पापा बोले "बता कहाँ था अभी तक, स्कूल से क्यो भागा था."

लेकिन मैं कुछ नही बोला तो, पापा ने मुझे मारने के लिए फिर से हाथ उठाया मगर तब तक फिर छोटी माँ ने बीच मे आकर मुझे अपने पीछे छुपा लिया. इस पर पापा ने कहा.

पापा बोले "ये साला ऐसे नही सुधरेगा. इसके सुधारने का एक ही रास्ता है कि, इसे बोर्डिंग भेज दिया जाए."

पापा के मूह से बोर्डिंग का नाम सुनते ही मुझे भी गुस्सा आ गया और मैने वो बोल दिया जो ना तो मैने कभी सोचा था और ना ही कभी मेरे दिमाग़ ने सोचा था.

मैने रोते हुए कहा "हाँ हाँ भेज दो मुझे बोर्डिंग. ताकि जैसे दूसरी बीबी ले आए हो, वैसे ही दूसरा बच्चा भी ले आओ."

मेरी इस बात ने दो बॉम्ब का काम किया था. एक बॉम्ब मैने अपनी नयी माँ पर गिराया था. जो मेरी बात को सुनकर सन्न रह गयी थी, तो दूसरा बॉम्ब मैने मेरे पापा पर गिराया था, जिसने उन्हे मानव से दानव बना दिया था.

वो मुझे पीटने के लिए अपनी तरफ गुस्से से खीच रहे थे. लेकिन नयी माँ मुझे उनसे बचाने की कोशिस कर रही थी. मगर पापा तो गुस्से मे पूरे दानव बन चुके थे और ऐसा लग रहा था कि ये दानव मेरा वध करके ही शांत होगा.

जब नयी माँ ने पापा को, मुझे पीटने से रोके रखा तो, पापा ने अपना गुस्सा उन पर उतारते हुए, उनके दोनो हाथ पकड़कर इतनी ज़ोर से दूसरी तरफ धकेला कि, नयी माँ टेबल के पास जाकर गिरी और टेबल का किनारा बड़ी ज़ोर से उन्हे लगा. एक पल के लिए वो अपनी सुध बुध खो बैठी. उनके माथे से खून आने लगा और वो अचेत सी हो गयी.

नयी माँ के हमारे बीच से हट जाने के बाद, पापा ने मेरी रूई का तरह धुनाई करना सुरू कर दिया.

चंदा मौसी और ड्राइवर भी वही खड़े थे. मेरी पिटाई देख कर उनकी आँखों से आँसू बह रह थे. मगर पापा को रोकने की किसी की हिम्मत नही पड़ रही थी और मैं मुझे पड़ रही मार से, मैं ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था "अरे कोई तो बचा लो मुझे. कोई तो रोक लो पापा को."

"अरे कोई तो बचा लो मुझे. कोई तो रोक लो पापा को"
Wah bhai hindi bhi translate ki to app se 🤦‍♂️
Kai app hai Google Play Store pe ek ka aapne istemal kiya

Matlab 0 mehnat🤣
 
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